Monday, November 2, 2015

SACRED HYMNS-MANTROPCHAR (2) मंत्रोपचार :: (CURE OF ALL TROUBLES-विध्न बाधा दूर करने हेतु नाम स्मरण)

MANTROPCHAR (2)
मंत्रोपचार
(विध्न बाधा दूर करने हेतु नाम स्मरण)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com palmistryencyclopedia.blogspot.com
santoshvedshakti.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
पुण्यश्लोका च वैदेही पुण्यश्लोको युधिष्ठिर:॥
[पद्मपुराण]
चिरंजीवियों का नाम स्मरण ::
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:॥
अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यास जी, हनुमान जी, विभीषण, कृपाचार्य और श्री परशुराम जी ये सातों महामानव चिरंजीवी हैं।
सप्तैतान संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम।
जीवेद वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जित:॥
कर्कोटकस्य नागस्य दमयन्त्या नलस्य च।
ऋतुपर्णस्य राजर्षे: कीर्तनं कलिनाशनम॥
भगवान् के परम भक्तों का नाम स्मरण ::
प्रह्लादनारदपराशरपुण्डरीक व्यासाम्बरीषशुकशौनकभीष्मदाल्भ्यान।
रुक्मांगदार्जुनवसिष्ठविभीषणादीन पुण्यानिमान परमभागवतान नमामि॥
धर्मो विवर्धति युधिष्ठिरकीर्तनेन पापं प्रणश्यति वृकोदरकीर्तनेन।
शत्रुर्विनश्यति धनंजयकीर्तनेन माद्रीसुतौ कथयतां न भवन्ति रोगा:॥
वाराणस्यां पूर्वभागे व्यासो नारायण: स्वयं।
तस्य स्मरणमात्रेण अज्ञानी ज्ञानवान भवेत्॥
वाराणस्यां पश्चिमे भागे भीमचण्ड़ी महासती।
तस्या: स्मरणमात्रेण सर्वदा विजयी भवेत्॥
वाराणस्यां उत्तरे भागे सुमन्तुर्नाम वै द्विज:।
तस्य स्मरणमात्रेण निर्धनो धनवान् भवेत्॥
वाराणस्यां दक्षिणे भागे कुक्कुटो नाम ब्राह्मण:।
तस्य स्मरणमात्रेण दु:स्वप्न: सुस्वप्नो भवेत्॥
उमा उषा च वैदेही रमा गंगेति पञ्चकम्।
प्रातरेव पठेन्नित्यं सौभाग्यं वर्धते सदा॥
औषधि  सेवन के समय प्रार्थना मंत्र PRAYER FOR CONSUMING MEDICINE ::
ओं सुमित्रिया नऽआपऽओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै।
सन्तु योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः॥
[यजुर्वेद 6.22.361.12]
ओं रुद्र जलाषभेषज नीलशिखण्ड कर्मकृत्।
प्राशं प्रतिप्राशो जह्यरसान्कृण्वोषधे॥
[अथर्ववेद 2.27.6]
ओं प्रियं मा कृणु देवेषु प्रियं राजसु मा कृणु।
प्रियं सर्वस्य पश्यत उत शूद्र उतार्ये॥
[अथर्ववेद 19.62.1]
रोग निवारण हेतु नाम स्मरण ::
सोमनाथो वैद्यनाथो धन्वन्तरिरथाश्विनौ।
पञ्चैतान् य: स्मरेन्नित्यं व्याधिस्तस्य न जायते॥
पाँच महानाग जिनके नाम स्मरण मात्र से ही विषबाधा, मानसिक तनाव, अवसाद आदि का नाश होता है :-
कपिला कालियोSनन्तो वासुकिस्तक्षकस्तथा।
पञ्चैतान् स्मरतो नित्यं विषबाधा न जायते॥
पाँच देव जिनके नाम स्मरण मात्र से ही घोर संकटों का नाश होता है :-
हरं हरिं हरिश्चन्द्रम् हनूमन्तं हलायुधम्।
पञ्चकं वै स्मरेन्नित्यं घोरसंकटनाशनम्॥
इच्छा पूर्ति, भूख-प्यास और तृष्णाओं के नाम स्मरण :-
आदित्यश्च उपेन्द्रश्च चक्रपाणिर्महेश्वर:।
दण्डपाणि: प्रतापी स्यात् क्षुत्तृड्बाधा न बाधते॥
वसुर्वरुणसोमौ च सरस्वती च सागर:।
पञ्चैतान् संस्मरेद् यस्तु तृषा तस्य न बाधते॥
काम बाधा, बुरे विचार के नाश हेतु नाम स्मरण :-
सनत्कुमारदेवर्षिशुकभीष्मप्लवंगमा:।
पञ्चैतान् स्मरतो नित्यं कामस्तस्य न बाधते॥
परेशानियों, दुःख, बाधाओं को दूर करने हेतु नाम समरण :-
रामलक्ष्मणौ सीता च सुग्रीवो हनुमान कपि:।
पञ्चैतान् स्मरतो नित्यं महाबाधा प्रमुच्यते॥
पवित्र नदियों का नाम स्मरण :-
विश्वेशं माधवं ढुण्ढिम् दण्डपाणिम च भैरवं।
वन्दे काशीं गुहां गंगां भवानीं मणिकर्णिकां॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्मरण :-
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोम्कारममलेश्वरम्॥
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम्।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे॥
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये॥
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।
सर्वपापविनिर्मुक्त: सर्वसिद्धिफलो भवेत्॥
पद्मपुराण एवं महाभारत में वर्णित इन पुण्यश्लोक स्मरण से मनुष्य के अनेक पाप नष्ट होते हैं और सुखों में वृद्धि होती है।
कार्य दिवस पर कार्यालय, दुकान खोलते समय प्रार्थना मंत्र ::
ओं मयि देवा द्रविणमा यजन्तां मय्याशीरस्तु मयि देवहूतिः।
दैव्या होतारो वनुषन्त पूर्वऽरिष्टाः स्याम तन्वा सुवीराः
[ऋग्वेद 10.128.3]
नियत अथवा कोई भी कार्य आरम्भ करते समय प्रार्थना :: 
ओं समिन्द्र राया समिषा रभेमहि सं वाजेभिः पुरुश्चन्द्रैरभिद्युभिः।
सं देव्या प्रमत्या वीरशुष्मया गोअग्रयाश्वावत्या रभेमहि॥
[ऋग्वेद 1.53.5; अथर्ववेद 20.21.5]
ओं परि माग्ने दुश्चरिताद् बाधस्वा मा सुचरिते भज।
उदायुषा स्वायुषोदस्थाममृताँ2ऽअनु
[यजुर्वेद 4.28]
किसी भी कृषि-कार्य को आरम्भ करते समय प्रार्थना मंत्र ::
ओं युनक्त सीरा वि युगा तनोत कृते योनौ वपतेह बीजम्।
विराजः श्नुष्टि सभरा असन्नौ नेदीय इत्सृण्य:पक्वमा यवन्॥
[ऋग्वेद 10.101.3, यजुर्वेद 12.68; अथर्ववेद  3.17.2]
ओम् इन्द्रः सीतां नि गृप्रातु तां पूषाभि रक्षतु।
सा नः पयस्वती दुहामुत्तरामुत्तरां समाम्
[ऋग्वेद 4.57.; अथर्ववेद 3.17.4]
मन से बुरे विचारों को हटाने के लिए प्रार्थना मंत्र ::
ओं परोऽपेहि मनस्पाप किमशस्तानि शंससि।
परेहि न त्वा कामये वृक्षां वनानि सं चर गृहेषु गोषु मे मनः॥
[अथर्ववेद 6.45.1]
भय हीन होने के लिए प्रार्थना मंत्र :: 
ओं यतो यतः समीहसे ततो नोऽअभयं कुरु।
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥
[यजुर्वेद 36.22]
ओं यत इन्द्र भयामहे ततो नो अभयं कृधि।
मघवञ्छग्धि तव त्वं न ऊतिभिर्वि द्विषो वि मृधो जहि॥
[अथर्ववेद 19.15.1]
ओम् अभयं मित्रादभयममित्रादभयं ज्ञातादभयं परोक्षात्।
अभयं नक्तमभयं दिवा नः सर्वा आशा मम मित्रां भवन्तु
[अथर्ववेद 19.15.6]
ओं यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः।
एवा मे प्राण मा बिभेः
[अथर्ववेद 2.15.1]
खोयी हुई शक्ति प्राप्त करने के लिए (ब्रह्मचर्य) :: 
ऊँ  यन्मेऽद्य रेतः पृथिवीमस्कान्त्सीद्यदोष धीरप्यसरद्यदपः। इदमहं तद्रेत आददे पुनर्मामैत्विन्द्रियं पुनस्तेजः पुनर्भगः पुनरग्निीर्धिष्ण्या यथा स्थानं कल्पन्ताम
आज जो मेरा रेतस पृथ्वी पर स्रवित हो गया जो ओषधियों की ओर तथा जो जलों की ओर बहा, मैं वह यह सामथ्र्य लेता हूँ, निग्रह की शक्ति धारण करता हूँ। रेतस्-निग्रह से मुझको फिर इन्द्रिय बल प्राप्त हो, फिर तेज, फिर सौभाग्य प्राप्त हो। अग्नि है स्थान जिसका वे अग्निधिष्ण्य देव सामथ्र्य फिर मुझ को यथा स्थान में कर दें, मेरे गये हुए बल को फिर लौटा दें।
रात्रि कालीन प्रार्थना :: 
ओं अग्ने त्वं सु जागृहि वयं सु मन्दिषीमहि।
रक्षा णोऽअप्रयुच्छन् प्रबुधे नः पुनस्कृधि॥
[यजुर्वेद  4.14]
आ रात्रि पार्थिवं रजः पितुरप्रायि धामभिः।
दिवः संदासि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः॥
[अथर्ववेद 19.47.1]
न यस्याः पारं ददृशे न योयुवद्विश्वमस्यां नि विशते यदेजति।
अरिष्टासस्त उर्वि तमस्वति रात्रि पारमशीमहि भद्रेपारमशीमहि
[अथर्ववेद 19.47.2]
त्वयि रात्रि वसामसि स्वपिष्यामसि जागृहि।
गोभ्यो नः शर्म यच्छाश्वेभ्यः पुरुषेभ्यः
[अथर्ववेद 19.47.9]
रात्रि मातरुषसे नः परि देहि।
उषा नो अह्ने परि ददात्वहस्तुभ्यं विभावरि
[अथर्ववेद 19.48.2]
नौका, वाहन, यान आदि पर चढ़ते समय प्रार्थना मंत्र :: 
ओं सुत्रामाणं पृथिवीं द्यामनेहसं सुशर्माणमदितिं सुप्रणीतिम्।
दैवीं नावं स्वरित्रामनागसमस्त्रावन्तीमा रुहेमा स्वस्तये
[ऋग्वेद 10.63.10]
यात्रा पर जाते समय प्रार्थना मंत्र ::
ओम् अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि
विद्वान्। युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम
[ऋग्वेद 1.189.1; यजुर्वेद 5.36, 7.43, 40.16]
जाने वाले यात्रियों के लिए शुभकामना मंत्र ::
ओं सुगः पन्था अनृक्षर आदित्यास ऋतं यते।
नात्रावखादो अस्ति वः
[ऋग्वेद 141.4]
परीक्षा अथवा साक्षात्कार से पूर्व प्रार्थना मंत्र :: 
ओं सना दक्षमुत क्रतुमप सोम मृधो जहि।
अथा नो वस्यसस्कृधि॥
[ऋग्वेद 9.4.3; सामवेद1049]
ओं विश्वा सोम पवमान द्युम्नानीन्दवा भर।
विदाः सहस्त्रिणीरिषः
[ऋग्वेद 9.40.4]
ओं मूर्धाहं रयीणा मूर्धा समाननां भूयासम्
[अथर्ववेद 16.3.1]
सत्य पर आधारित युद्ध, संग्राम व न्यायालय जाते समय प्रार्थना मंत्र ::
ओं ममाग्ने वर्चो विहवेष्वस्तु वयं त्वेन्धानास्तन्वं पुषेम।
मह्यं नमन्तां प्रदिशश्चतस्त्रास्त्वयाध्यक्षेण पृतना जयेम
[ऋग्वेद 10.128.1, अथर्ववेद 5.3.1]
ओं वयं जयेम त्वया युजा वृतमस्माकमंशमुदवा भरेभरे।
अस्मभ्यमिन्द्र वरिवः सुगं कृधि प्र शत्राूणां मघवन् वृष्ण्या रुज
[ऋग्वेद 1.102.4, अथर्ववेद 7.50.4]
आन्तरिक शान्ति के लिये प्रार्थना मंत्र :: 
ओं इमानि यानि पञ्चेन्द्रियाणि मनःषष्ठानि मे हृदि ब्रह्मणा। 
संशितानि। यैरेव संसृजे घोरं तैरेव शान्तिरस्तु नः॥
[अथर्ववेद 19.9.5]
ओं यानि कानि चिच्छान्तानि लोके सप्तऋषयो विदुः।
सर्वाणि शं भवन्तु मे शं मे अस्त्वभयं मे अस्तु॥
[अथर्ववेद 19.9.13]


Contents of these above mentioned blogs are covered under copy right and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS RESERVED WITH THE AUTHOR.
संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
skbhardwaj1951@gmail.com