Thursday, April 6, 2023

ऋतदेव RAT DEV (ऋग्वेद 4)

RAT DEV ऋतदेव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋतस्य हि शुरुधः सन्ति पूर्वीर्ऋतस्य धीतिर्वृजिनानि हन्ति। ऋतस्य श्लोको बधिरा ततर्द कर्णा बुधानः शुचमान आयोः॥
ऋत (सत्य, आदित्य अथवा यज्ञ) देव के पास बहुत जल है। ऋतदेव की प्रार्थना पाप को नष्ट करती है। ऋतदेव का बोध योग्य तथा दीप्तिमान् स्तुति वाक्य मनुष्यों के बधिर कर्ण (जिन्हें सुनाई नहीं देता) में भी प्रवेश पाता है।[ऋग्वेद 4.23.8]
ऋतु देव अनेक जल से परिपूर्ण हैं। उनकी प्रार्थना पापों को दूरस्थ करती है। उनको ज्ञान प्रदान करने वाली प्रार्थना बहरे व्यक्ति के भी कानों में पहुँच जाती है।
Rit Dev (Truth, Adity-Sun, Yagy) possess plenty of water. His prayer-worship destroys sin. Acknowledgement-awareness of Rit Dev leads to hearing by the deaf, who are devoted to prayers-worship.
ऋतस्य दृळ्हा धरुणानि सन्ति पुरूणि चद्रा वपुषे वपूंषि।
ऋतेन दीर्घमिषणन्त पृक्ष ऋतेन गाव ऋतमा विवेशुः॥
वयुष्मान् ऋतदेव के दृढ़, धारक, आह्लादक आदि अनेक रूप हैं। लोग ऋतदेव के निकट प्रभूत अन्न की इच्छा करते हैं। ऋतदेव द्वारा गौएँ दक्षिणा रूप से यज्ञ में प्रवेश करती हैं।[ऋग्वेद 4.23.9]
ऋतु देव के असंख्य रूप हैं। तपस्वीगण उनसे अन्न की विनती करते हैं। इनके द्वारा धेनु दक्षिणा के रूप में अनुष्ठान में पधारती हैं।
Rit Dev has several forms like determined, bearer and blissful. People-Humans request him for granting food grains. Cows come to the Yagy for Dakshina-donating (to Brahmans).
ऋतं येमान ऋतमिद्वनोत्यृतस्य शुष्मस्तुरया उ गव्युः।
ऋताय पृथ्वी बहुले गभीरे ऋताय धेनू परमे दुहाते॥
स्तोता लोग ऋतदेव को वशीभूत करने के लिए उनकी भक्ति करते हैं। ऋतदेव का बल शीघ्र ही जल कामना करता है। विस्तीर्णा तथा दुरवगाहा द्यावा-पृथ्वी ऋतदेव की है। प्रीति वायिका तथा उत्कृष्टा द्यावा-पृथ्वी ऋतदेव के लिए दुग्ध दोहन करती है।[ऋग्वेद 4.23.10]
स्तुति करने वाले ऋतुदेव को वश में करने के लिए उनका पूजन करते हैं। उनका पराक्रम जल की कामना करता है। पृथ्वी ऋतृदेव के लिए दूध दुहती है।
Those who wish to be blessed by Rit Dev, worship-pray him. His might desire rains, he produces rains. Both the heavens & the earth belong to Rit Dev. The earth draw milk-milch for Rat Dev.
हंसः शुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत्। नृषद्वरसदृतसव्द्योमसदब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतम्
हंस (आदित्य) दीप्त आकाश में अवस्थित रहते हैं। वसु (वायु) अन्तरिक्ष में अवस्थिति करते है। होता (वैदिकाग्नि) वेदीस्थल पर गार्हपत्यादि रूप से अवस्थिति करते हैं एवं अतिथिवत पूज्य होकर धर में (पाकादिसाधन रूप से) अवस्थिति करते हैं। ऋत (सत्य, ब्रह्म, यक्ष ) मनुष्यों के बीच में अवस्थान करते हैं, वरणीय स्थान में अवस्थान करते हैं, यज्ञस्थल में अवस्थान करते हैं एवं अन्तरिक्ष स्थल में अवस्थान करते हैं। वे जल में, रश्मियों में, सत्य में और पर्वतों में उत्पन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 4.40.5]
अवस्थित नभ में वायु अंतरिक्ष में और होता इत्यादि वेदी पर आते हैं। अदिति के समान पूजनीय होकर गृह में निवास करते हैं। ऋभु मनुष्यों में वरणीय स्थान तथा यज्ञ-स्थल में रहते हैं। वे नत, रश्मि, सत्य और शैलों में उत्पन्न हुए हैं।
Swans (Hans-Adity) stay-establish in the sky. Vasu Vayu stay in the space. The hosts-Ritviz stay at the Yagy site like the fire and honoured like Aditi. Rat dev (Truth, Brahm & Yaksh) establish between-amongest the humans & the space-sky. They are born in the waters, rays of light and the mountains.

    
Contents of these above mentioned blogs are covered under copyright and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS ARE RESERVED WITH THE AUTHOR.
संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)