Tuesday, December 30, 2014

PAWAN-VAYU DEV (THE DEITY OF AIR) :: पवन-वायु देव (ऋग्वेद 1-5)*

PAWAN-VAYU DEV
पवन-वायु देव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:। 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
Air is basic ingredient for life. It evolved with Bhagwan Shri Hari Vishnu at the time of  his appearance in the Golden egg shell. Its controlled by Pawan-Vayu Dev. Pawan Dev is the father of Shri Hanuman Ji Maharaj & Bheem Sen.
पवन देव वायु के देवता हैं। उन्हें हनुमान जी महाराज और भीमसेन के पिता के रूप में भी जाना जाता है। माधवाचार्य को उनका अवतार कहा जाता है। 
Once the demigods who control bodily functions got engaged in a contest to determine who among them is the greatest. When a deity such as that of vision would leave a man's body, that man would continue to live, albeit as a blind man and having regained the lost faculty once the errant deity returned to his post. One by one the deities all took their turns leaving the body, but the man continued to live on, though successively impaired in various ways. Finally, when Mukhy Pran started to leave the body, all the other deities started to be inexorably pulled off their posts by force, just as a powerful horse yanks off pegs in the ground to which he is bound. This caused the other deities to realise that they can function only when empowered by Vayu and can be overpowered by him easily.[Brahad Arnayak Upnishad]
Vayu is said to be the only deity not afflicted by demons of sin who were on the attack. 
One cannot know Brahman except by knowing Vayu as the Udgith (the Mantric syllable om).[Chandogy Upanishad]
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः। 
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्॥
प्राणियों के शरीर में रहने वाला मैं प्राण-अपान से युक्त वैश्वानर-जठराग्नि होकर चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ।[श्रीमद्भगवद्गीता 15.14] 
The Almighty is present in the body of the organism in the form of combustion power to digest 4 kinds of food grains in association with 5 kinds of air. HE has said that HE is the power behind fire to burn. Without HIM fire is not capable to burn anything.
अग्नि से प्रकाश भी उत्पन्न होता है और यह दहन का कार्य भी करती है। प्राणी के शरीर में यही अग्नि भोजन को पचाने का कार्य करती है। इस अग्नि का नाम जठराग्नि है और यह 5 प्रकार की वायु (प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान) के सहयोग से 4 प्रकार के अन्नों को पचाती है। इन 5 प्रधान वायु के अलावा 5 उपप्रधान वायु :- नाग, कूर्म, कृकर, देवदत्त और धनंजय भी हैं। जठराग्नि के द्वारा पचाये गये भोजन को प्राण वायु शरीर के समस्त अंगों तक पहुँचाती है तथा अपान वायु अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करती है। 
The fire present in the form of digestive power in the stomach breaks the food particles into juices and then carries them to various organs, systems, tissues and cells. The food particles are then utilised through oxidation and the wastes are excreted out of the body. The digestive power (fire) has 5 main and 5 sub divisions. Each one has specific purpose.
PANCH BHUT-TATV पञ्च तत्व-भूत :: These five elements  are (1). Earth or Prathvi, पृथ्वी, (2). Water or Jal, जल, (3). Fire-Tej or Agni, अग्नि, (4). Air or Vayu, वायु and (5). Ether or Akash, आकाश 
पंच तत्त्व :: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु  और आकाश।  
पञ्च प्राण या प्राण वायु :: 
(1). प्रधान वायु :-
(1.1). प्राण :: निवास स्थान-ह्रदय; श्र्वास को बाहर निकालना, खाये हुए अन्न को पचाना। 
(1.2). अपान :: निवास स्थान-गुदा; श्र्वास को अंदर ले जाना, मल-मूत्र को बाहर निकालना, गर्भ को बाहर निकालना। 
(1.3). समान :: निवास स्थान-नाभि; पचे हुए भोजन को समस्त अंगो, ऊतकों, कोशिकाओं तक ले जाना। 
(1.4). उदान :: निवास स्थान-कण्ठ; भोजन के गाढ़े और तरल भाग को अलग-अलग करना, सूक्ष्म शरीर को बाहर निकालना, दूसरे शरीर या लोक में ले जाना। 
(1.5). व्यान :: निवास स्थान-सम्पूर्ण शरीर; शरीर के सम्पूर्ण अंगों को सिकोड़ना और फैलाना। 
(2). उप प्रधान वायु :- 
(2.1). नाग :: कार्य-डकार लेना। 
(2.2). कूर्म :: कार्य-नेत्रों को खोलना और बन्द करना। 
(2.3). कृकर :: कार्य-छींकना। 
(2.4). देवदत्त :: कार्य-जम्हाई लेना।  
(2.5). धनंजय :: कार्य-मृत्यु के बाद शरीर को फुलाना।
पञ्च प्राण (प्राणवायु, प्राणायाम) :: प्राणी के शरीर के भीतर पाँच प्रकार की वायु पाई जाती है। ये पाँचों ही पवन देव के पुत्र हैं और प्राणी में प्रकृति के अंश में उपस्थित रहते हैं।
प्राण :: वह वायु जो मनुष्य, प्राणी, जीव के शरीर को जीवित रखती है। शरीरांतर्गत प्राण वायु की उपस्थिति तक ही जीवात्मा इसमें निवास करता है। इस वायु का मुख्‍य स्थान हृदय में है।इस वायु के आवागमन को अच्छी तरह, भली-भाँति समझकर जो इसे साध लेता है वह लंबे काल तक जीवित रहने का रहस्य जान लेता है। वायु शरीर के अन्तर्गत खाद्य पदार्थों-भोजन को पोषक या हानिकारक पदार्थों में तब्दील करने-बदलने की क्षमता रखती है। मल का निर्माण और निष्कासन भी इसी के माध्यम से होता है। 
आयाम :: प्रथम नियंत्रण या रोकना, द्वितीय विस्तार और दिशा। व्यक्ति जब जन्म लेता है तो गहरी श्वास लेता है और जब मरता है तो पूर्णत: श्वास छोड़ देता है। प्राण जिस आयाम से आते हैं, उसी आयाम में चले जाते हैं। मनुष्य जब श्वास लेता है तो भीतर जा रही हवा या वायु पाँच भागों में विभक्त हो जाती है अर्थात शरीर के भीतर पाँच जगह स्थिर और स्थित हो जाता हैं। लेकिन वह स्थिर और स्थितर रहकर भी गतिशील रहती है।
पंचक :: (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण।
वायु के इस पाँच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति चैतन्य रहता है, स्मृतियांँ सुरक्षित रहती हैं, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह-स्पंदन होता रहता है। मन के विचार बदलने या स्थिर रहने में भी इसका योगदान रहता है। इस प्रणाली में किसी भी प्रकार का अवरोध पूरे शरीर, तंत्रिका-तंत्र को प्रभावित करता है। शरीर, मन तथा चेतना बीमारी, व्याधि, रोग और शोक से ‍ग्रस्त हो जाते हैं। नियमित प्राणायाम मन-मस्तिष्क, चरबी-माँस, आँत, गुर्दे, मस्तिष्क, श्वास नलिका, स्नायु तंत्र और खून आदि सभी को शुद्ध और पुष्ट, स्वस्थ रखता है।
ये सभी प्राण शरीर के अलग-अलग भागों को नियंत्रित करते हैं।
(1). प्राणवायु :- ह्रदय से लेकर नासिका पर्यन्त जो प्राणवायु होती है, उसे प्राण कहते हैं। श्वास प्रश्वास को नासिका द्वारा लेना और छोड़ना, मुख और नासिका की गति, अन्न को पाचन योग्य बनाना, पानी को रक्त मूत्र एवं पसीने में परिवर्तित करना प्राणवायु के मुख्य कार्य है। इसका सम्बन्ध वायु तत्व एवं अनाहत चक्र (ह्रदय) से है। प्राण वायु मनुष्य के शरीर का संचालन करती है। यह वायु मूलत: खून ऑक्सीजन (O2 ) और कार्बन-डाइऑक्साइड ( CO2 ) के रूप में रहती है। 
(2). अपान वायु :- यह नाभि से लेकर पैरों तक विचरती है। नाभि से नीचे के अंग यथा प्रजनन अंग, गर्भाशय, कमर, घुटने, जंघाएँ, मल-मूत्र पैर इन सभी अंगों का कार्य अपान वायु द्वारा होता है। इसका सम्बन्ध पृथ्वी तत्व और मूलाधार चक्र से है। इसकी गति नीचे की ओर होती है। अपान का अर्थ नीचे जाने वाली वायु। यह शरीर के रस में होती है।
(3). समानवायु :- यह नाभि से ह्रदय तक चलती है। पाचन क्रिया भोजन से रस निकलकर पोषक तत्वों को सभी अंगो में बाँटना इस वायु का कार्य है। इसका सम्बन्ध अग्नि तत्व और मणिपुर चक्र से है। समान नामक संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है। हड्डियों से ही संतुलन बनता है।
(4). व्यान वायु :- यह समूचे शरीर में घूमती है। सभी स्थूल एवं सूक्षम नाड़ियों में रक्त संचार बनाये रखना इसका कार्य है। इसका सम्बन्ध जल तत्व और स्वाधिष्ठान चक्र से है। व्यान का अर्थ है चरबी तथा माँस से सम्बंधित कार्यों का सम्पादन करना।
(5). उदान वायु :- यह कंठ से लेकर मस्तिष्क पर्यन्त भ्रमण करती है। इसका सम्बन्ध आकाश तत्व और विशुद्धि चक्र से है। उदान का अर्थ उपर ले जाने वाली वायु। यह हमारे स्नायुतंत्र में स्थित होती है।
प्राणिक मुद्रा :- पाँचों प्राणों के नाम पर ही पाँच प्राणिक मुद्राएँ हैं, जिनमें दो या दो से अधिक तत्वों का अग्नि के साथ मिलन होता है। उदाहरणार्थ :- अग्नि + वायु + आकाश, अग्नि + आकाश + पृथ्वी, अग्नि + पृथ्वी + जल, अग्नि + वायु + आकाश + पृथ्वी और अग्नि + शेष चारों तत्व। इसी तरह से बनने वाली मुद्राओं को ही प्राणिक मुद्रा कहा जाता है। जब दो से अधिक तत्व आपस में मिलते हैं तो उनका प्रभाव तत्व मुद्राओं की तुलना में और भी अधिक बढ़ जाता है। जिस प्रकार से दो अथवा अधिक नदियों के मिलने से संगम का महत्व बढ़ जाता है, उसी प्रकार इन मुद्राओं का महत्व भी बढ़ जाता है। ये मुद्राएँ हैं :- (1). प्राण मुद्रा, (2). अपान मुद्रा, (3). व्यान मुद्रा, (4). उदान मुद्रा और (5). समान मुद्रा अथवा मुकुल मुद्रा।
वायवा याहि दर्शतेमे सोमा अरंकृता:।
तेषां पाहि श्रुधी हवम्॥
हे प्रियदर्शी वायुदेव! हमारी प्रार्थना को सुनकर यज्ञ स्थल पर आयें। आपके निमित्त सोम रस प्रस्तुत है, इसका पान करें।[ऋग्वेद 1.2.1] 
हे प्रियदर्शन वार्यो! यहाँ पर पधारो, तुम्हारे लिए यह सुप्रसिद्ध सोम रखा है, उसे पीते हुए हमारे संकल्पों पर ध्यान आकृष्ट करो। 
Hey Vayu Dev-the lover of goodness! Please come to this spot meant for Yagy and drink the Somras.
The Yagy is perform for the fulfilment of some desire. The deities-demigods are invited to the Yagy so that they help the organiser fulfil the objective. 
वाय उक्वेथेभिर्जरन्ते त्वामच्छा जरितार:। सुतसोमा अहर्विद:॥
हे वायुदेव! सोमरस तैयार करके रखने वाले, उसके गुणों को जानने वाले स्तोतागण स्तोत्रों से आपकी उत्तम प्रकार से स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.2.2] 
हे वार्यो! यह सोम निष्पन्न करने वाले और उसके गुणों को जानने वाले वंदनाकारी तेरा गुणगान करते हुए पूजन करते हैं। 
Hey Vayu Dev-the deity of air! Those who prepare the Somras, knows its qualities pray to you while appreciating you.
वायो तव प्रपृञ्चती धेना जिगाति दाशुषे। उरूची सोमपीतये॥
हे वायुदेव! आपकी प्रभावोत्पादक वाणी, सोमयाग करने वाले सभी यजमानों की प्रशंसा करती हुई एवं सोम रस का विशेष गुणगान करती हुई, सोमरस पान करने की अभिलाषा से दाता (यजमान) के पास पहुँचती है।[ऋग्वेद 1.2.3]
हे वायु! तुम्हारे हृदय को छूने वाली वाणी सोम की इच्छा से दाता को शीघ्र प्राप्त होती है। 
Hey Vayu Dev! your soothing (consoling, pleasing) words in the form of the verses of Sam Ved reaches the performer of Yagy, who offer you Somras. 
इन्द्रवायू उमे सुता उप प्रयोभिरा गतम्। इन्दवो वामुशान्ति हि॥
हे इन्द्रदेव! हे वायुदेव! यह सोमरस आपके लिये अभिषुत किया (निचोड़ा) गया है। आप अन्नादि पदार्थो से साथ यहाँ पधारें, क्योंकि यह सोमरस आप दोनों की कामना करता है।[ऋग्वेद 1.2.4]
हे इन्द्र तथा वायु! यहाँ सोम इस प्रस्तुत है। यह तुम्हारे लिए ही है; अतः अन्न आदि सहित आओ।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! This Somras has been extracted for you, so please come to us with the food grain etc. 
वायविन्द्रश्च चेतथ: सुतानां वाजिनीवसू। तावा यातमुप द्रवत्॥
हे वायुदेव! हे इन्द्रदेव! आप दोनों अन्नादि पदार्थो और धन से परिपूर्ण है एवं अभिषुत सोमरस की विशेषता को जानते है। अत: आप दोनों शीघ्र ही इस यज्ञ में पदार्पण करें।[ऋग्वेद 1.2.5]
हे वायु! हे इन्द्र! तुम अन्न सहित सोमों के त्राता हो इसलिए शीघ्र आगमन करो।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! You provide us with food grain and other essential commodities and knows the qualities of Somras. So, kindly oblige us by joining this Yagy-our efforts.
वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्कृतम्। मक्ष्वि१त्था धिया नरा॥
हे वायुदेव! हे इन्द्रदेव! आप दोनों ही बड़े सामर्थ्यशाली हैं। आप यजमान द्वारा बुद्धिपूर्वक निष्पादित सोम के पास अति शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 1.2.6] 
हे वायु और इन्द्रदेव! इस सिद्ध किये गये सोम रस के निकट शीघ्र पधारो। तुम दोनों ही योग्य पदार्थों को ग्रहण करते हो।
 Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! Both of you are powerful-capable. Please join this Yagy in which Somras is being offered.
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम्। 
पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये॥6॥ 
जिसमें सब कुछ हवन किया गया है, उस यज्ञपुरुष से उसी ने दही, घी आदि उत्पन्न किये और वायु में, वन में एवं ग्राम में रहने योग्य पशु उत्पन्न किये।[ऋग्वेद 10.90.6 पुरुष सूक्त] 
He who is Yagy Purush-Ultimate being created curd, Ghee etc. & the creatures capable of living in the air, forests and villages.
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत। 
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायते॥12॥ 
इस परम पुरुष के मन से चन्द्रमा उत्पन्न हुए, नेत्रों से सूर्य प्रकट हुए, कानों से वायु और प्राण तथा मुख से अग्नि की उत्पत्ति हुई।[ऋग्वेद 10.90.12]
Som Dev (Chandr Dev, Moon) emerged from the innerself (mind & heart) of the Param-Yagy Purush, eyes produced Sun, ears emitted air & Pran-life sustaining force and Agni-fire came out of the mouth.
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत। 
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत 
इस परम पुरुष के मन से चन्द्रमा उत्पन्न हुए, नेत्रों से सूर्य प्रकट हुए, कानों से वायु और प्राण तथा मुख से अग्नि की उत्पत्ति हुई।[यजुर्वेद 31.12]
Moon evolved out of the innerself & the Sun from the eyes, air and the Pran-life force from the ears  and Agni-fire evolved out of the mouth, of the Ultimate being-Purush.
Brahma Ji is the creator-an extension of the Virat Purush, Maha Vishnu.
नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत्। 
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद् गहनं गभीरम्॥
प्रलय-काल में असर नहीं था। सत्य भी उस समय नहीं था, पृथ्वी-आकाश भी नहीं थे। तब कौन यहाँ रहा था। ब्रह्माण्ड कहाँ था, गम्भीर जल भी कहाँ था।[ऋग्वेद 10.129.1]
Prior to evolution nothing was present. It was only the Almighty who existed everywhere. No air, no water, so sky. It was full of darkness after vast devastation-annihilation. It was all quit. Universe, Solar System, Earth, Heaven and Nether world too did not exist.
The space is filled with energy. The Almighty is  formless, shapeless, figure less at this stage. The energy fuses into mass and the Almighty appears as Shri Krashn.
Devastation & annihilation are cyclic and intermediate in nature like the 108 beads of a rosary. All living being assimilate-merge in Brahma Ji to evolve in next Kalp.
न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः। 
आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न परः किञ्चनास॥
उस समय न मृत्यु थी न अमृत ही था। रात्रि और दिन भी नहीं थे। वायु से शून्य और आत्मा के अवलम्ब श्वास-प्रश्वास वाला एक ब्रह्म मात्र ही था। उसके अतिरिक्त सब शून्य था।[ऋग्वेद 10.129.2]
That was the occasion when neither death or immortality existed. It was neither day nor night. In the absence of air, the Brahm exited depending over the soul, inhaling 7 exhaling air. It was just the Brahm, Almighty-God who prevailed, WHO has neither beginning, not end. HE is since ever for ever. HE evolves by HIMSELF. HE is the only one WHO perpetuate none else, nothing else.
परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म, ब्रह्म ही सत्य है, वही अविकारी परमेश्‍वर है। जिस समय सृष्टि में अंधकार था। न जल, न अग्नि और न वायु था तब वही तत्सदब्रह्म ही था जिसे श्रुतियों में सत्-अविनाशी परमात्मा कहा गया है।  
उस अविनाशी परब्रह्म (काल) ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्ति रहित परम ब्रह्म है। 
Its only the Almighty who is truth (for ever since ever), known as Ekakshr (single syllable) Brahm, Param Brahmn, The defect free-untainted Ultimate, Almighty. It was HE who was alone described as Non-perishable God. Water, air or fire did not exist.
सृष्टि रचना का कार्य ईश्वर की इच्छा से होता है। इसके प्रारंभिक क्रम में अंधकार में सिमटी ऊर्जा परमाणुओं में बदलती है। स्वतंत्र अवस्था में रहने के लिये परमाणु द्रव्य का अंतिम अवयव है तथा परमाणु नित्य हैं। पृथ्वी, जल, तेज, वायु परमाणुओं के संयोग से बने हैं। सर्वप्रथम इन्हीं परमाणुओं से क्रिया होती है और दो परमाणुओं के संयोग से द्वयणुक उत्पन्न होते हैं। ऐसे ही तीन द्वयणुकों के संयोग से त्रयणुक बनता है, तत्पश्चात् चतुरणुक आदि क्रम से महती पृथ्वी, महत् आकाश, महत् तेज तथा महत् वायु उत्पन्न होता है।
Evolution is the outcome of the desire of the Almighty. It begins with the fusion of energy from darkness into atoms, the basic-fundamental particles which can exist freely in nature. Everything including earth, air, water, energy are formed by the fusion of atoms. Two atoms fuse to form a molecule. Two or more atoms may combine to form molecules with three or more atoms. Molecules with multiple atoms may be formed. Complex molecules do exists. 
More than 49 particles have been recognised which exhibit both energy and particulate form, including the God particle.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (134) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- वायु, छन्द :- अत्यष्टि।
आ त्वा जुवो रारहाणा अभि प्रयो वायो, वहन्त्विह पूर्वपीतये सोमस्य पूर्वपीतये। ऊर्ध्वा ते अनु सूनृता मनस्तिष्ठतु जानती। नियुत्वता रथेना याहि दावने वायो मखस्य दावने
हे वायु देवता! शीघ्र गामी और बलवान् अश्व आपको अन्न के उद्देश्य से और देवों के बीच प्रथम सोमपान के लिए इस यज्ञ में ले आवें। हमारी प्रिय, सत्य और उच्च स्तुति अच्छी तरह आपके गुणों की व्याख्या करती है। वह आपके अनुकूल हैं। आप अपने रथ द्वारा आहुतियों को ग्रहण करने के लिए इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.134.1]
हे वार्यों! सोम पान के लिए वेगवान अश्व तुम्हें पहले से ही यहाँ लावें। हमारी वंदना रूपी वाणी उन्नत हुई तुम्हारे गुणों को जानती है। वह तुम्हारे अनुकूल हो। तुम जुते हुए रथ से परिपूर्ण हुए हविदाता को ग्रहण होओ।
Hey -Pawan-Vayu Dev (The deity of air)! Let the fast moving horses deployed in the charoite bring you to the spot of the Yagy for drinking Somras & offerings in the form of food grains. Our prayers describe your characterises with the help of our attractive, true, high quality verses-poems, which suits you. 
मन्दन्तु त्वा मन्दिनो वायविन्दवोऽस्मत्क्राणासः सुकृता अभिद्यवो गोभिः क्राणा अभिद्यवः। यद्ध क्राणा इरध्यै दक्षं सचन्त ऊतयः। सध्रीचीना नियुतो दावने धिय उप ब्रुवत ईं धियः
हे वायु देवता! मादकतोत्पादक, हर्षजनक, सम्यक प्रस्तुत, उज्ज्वल और मन्त्र द्वारा हूयमान सोमरस आपको आनन्दित करे। श्रम में लगे हुए पुरुषार्थी मनुष्य, विवेक युक्त, दान और रक्षण हेतु आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.134.2]
हुयमान :: यज्ञ, बलि, आहुति, नैवेद्य; offering, oblation, prey, victim, Ahuti, holocaust, immolation, being offered in oblation.
हे वायु! हमारे प्रभावशाली, सुपुष्ट सोमरस तुम्हें पुष्ट करें दूध के प्रभाव से युक्त हुए इन सोमों के प्रति चलने के लिए तुम्हारे घोड़े पराक्रम प्राप्त करें। स्तोताओं की प्रार्थनाओं के प्रति पराक्रम से आएँ।
Hey Pawan Dev! Let the Somras which causes pleasure-happiness, toxication, offered as per schedule, treated by the recitation of Mantr in the Yagy as oblation, amuse-please you. The prudent who are engaged in their endeavours pray to you for charity and protection. 
वायुर्युङ्क्ते रोहिता वायुररुणा वायू रथे अजिरा धुरि वोळ्हवे वहिष्ठा धुरि वोळ्हवे। प्र बोधया पुरंधिं जार आ ससतीमिव। प्र चक्षय रोदसी वासयोषसः श्रवसे वासयोषसः
भारवहन के लिए वायु देवता लोहितवर्ण, गमनशील अश्व रथ में नियोजित करते हैं; क्योंकि ये भार वहन में अत्यन्त समर्थ हैं। जिस प्रकार थोड़ी निद्रा मैं आई स्त्री को उसका प्रेमी जगा देता है, उसी प्रकार आप भी बहुयज्ञ प्रबोधित यजमान को जागृत करते हैं। आप आकाश और पृथ्वी को प्रकाशित करते हुए उषा को हव्य ग्रहण के लिए स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 1.134.3]
चलने के लिए लाल रंग के घोड़ों को वायु देव उनके रथ में जोड़ते हैं। वे रथ की धुरी में सुनहरे द्रुतगामी अश्वों को जोड़कर प्रेमी द्वारा सोती हुई नारी को जगाने के तुल्य को जगाते हैं। वे कीर्ति के लिए उषा को स्थित करते हैं। 
Pawan Dev deploys red coloured fast moving horses in his chariot since they are good at carrying weight. You awake the host carrying out Yagy just like a woman who awakes her lover. You establish Usha to spread light in the space and the earth.
तुभ्यमुषासः शुचयः परावति भद्रा वस्त्रा तन्वते दंसु रश्मिषु चित्रा नव्येषु रश्मिषु। तुभ्यं धेनुः सबर्दुघा विश्वा वसूनि दोहते। अजनयो मरुतो वक्षणाभ्यो दिव आ वक्षणाभ्यः
हे वायु देव! दीप्ति युक्त उषाएँ, दूर देश में आपके लिए ही घरों को ढ़ँकने वाली किरणों से कल्याणकारी वस्त्र को विस्तारित करती हैं; नई किरणों से विचित्र वस्त्रों का विस्तार कर अमृत बरसाने वाली गायें आपके ही लिए समस्त धन प्रदान करती है। आपने वर्षा और नदियों के उत्पादन के लिए अन्तरिक्ष से मरुतों को उत्पादित किया।[ऋग्वेद 1.134.4]
हे वायुदेव! चमकती हुई उषाएँ दूर देश तक स्थित घरों में तुम्हारे लिए किरण रूपी वस्त्रों को फैलाती हैं। अनेक रंगों वाली किरणों को बढ़ाती हैं। अमृत रूपी दूध वाली धेनुएँ तुम्हारे लिए सभी धनों को दोहन करती हैं। तुमने वहाँ के लिए मरुतों को प्रकट किया है। 
Hey Pawan Dev! Bright Ushas spread over the houses like a useful cloth-covering and nectar yielding cows yield all sorts of riches. You have established Marud Gan in the space for causing rain and the rivers.
तुभ्यं शुक्रासः शुचयस्तुरण्यवो मदेषूग्रा इषणन्त भुर्वण्यपामिषन्त भुर्वणिः। त्वां त्सारी दसमानो भगमीट्टे तक्ववीये। त्वं विश्वस्माद्भुवनात्पासि धर्मणासुर्यात्पासि धर्मणा
दीप्त, शुद्ध, उग्र और प्रवाहशाली सोमरस आपके आनन्द के लिए आहवनीय अग्रि के पास जाता है और जल भार वाहक मेघ की आकांक्षा करता है। हे वायुदेव! यजमान लोग अत्यन्त डरे हुए और शरीर से दुर्बल होकर चोरों के हटाने के लिए आपकी पूजा करते हैं। हमारे धार्मिक होने से हमारे समस्त महाभूतों की रक्षा करें। हमारे धर्म संयुक्त होने के कारण असुरों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.134.5]
महाभूत :: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश नामक पंच तत्व, सभी तत्वों में समान रूप से विद्यमान तत्व-मूल द्रव्य, परमेश्वर।
हे वायु! ये चमकते हुए पुष्टिकर सोम तुम्हारे लिए ग्रहण होते हैं। शत्रु के भय से क्षीण होता हुआ यजमान तुम्हारा शीघ्रता से आह्वान करता है। तुम धर्म द्वारा संसार की सुरक्षा करने वाले हो और असुरों से आराधकों को बचाते हो।
Pure, shinning, fierce flowing Somras moves to the Agni Dev and requests for the clouds carrying rains-water. Hey Pawan Dev! The devotees who are afraid of the thieves and have become too weak, pray to you for protection. Protect us from all the past misdeeds-misadventure. Our righteous, virtuous, pious, pure deeds protect us from the demons-Anary.
त्वं नो वायवेषामपूर्व्यः सोमानां प्रथमः पीतिमर्हसि सुतानां पीतिमर्हसि। उतो विहुत्पतीनां विशां ववर्जुषीणाम्। विश्वा इत्ते धेनवो दुह्र आशिरं घृतं दुहत आशिरम्
हे वायु देवता! आपके पहले किसी ने भी सोमरस नहीं पिया था। आप ही सबसे पहले हमारे इस अभिषुत सोमरस का पान करने योग्य हैं। आप हवन करने वाले और निष्पाप लोगों का हव्य स्वीकार करते हैं। सभी गायें आपके लिए दूध देती हैं और आपके लिए घी भी देती हैं।[ऋग्वेद 1.134.6]
हे वायु! हमारे द्वारा निचोड़े उन सोम रसों को पीने में तुम सक्षम हो। तुम्हारे लिए ये अत्यन्त दूध देने वाली धेनुएँ सोमरस से मिलाने के लिए दूध और घी का दोहन करती हैं।
Hey Pawan-Vayu Dev! None prior to you sipped Somras. You deserve to accept this Somras as oblation. You accept the offerings of sinless devotees conducting Yagy. All cows yield milk & Ghee for you as offerings.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (135) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- वायु, छन्द :- अष्टि, अत्यष्टि।
स्तीर्णं बर्हिरुप नो याहि वीतये सहस्रेण नियुता नियुत्वतेशतिनीभिर्नियुत्वते तुभ्यं हि पूर्वपीतये देवा देवाय येमिरे। प्र ते सुतासो मधुमन्तो अस्थिरन्मदाय क्रत्वे अस्थिरन्
हे नियुत अश्व वाले वायु देवता! आप हजारों अश्वों से नियोजित रथ पर बैठकर यहाँ पधारें। आपके लिए यहाँ कुशासन बिछाया गया है। ऋत्विजों ने आपके लिए ही सोमरस निर्मित किया है। इस मधुर सोमरस का पान करके आप आनंदित व बलयुक्त होवें।[ऋग्वेद 1.135.1]
हे वायुदेव! हवि सेवन के लिए बिछी हुई कुशा को ग्रहण होओ। ऋत्विजों ने तुम्हारे सेवन के लिए पहले से ही सोम रस तैयार रखा है। निष्पन्न सोम तुमको शक्ति देगा और पुष्ट करेगा।
Hey Pawan-Vayu Dev! You should ride the chariot in which thousands of horses have been deployed and come here. Kushasan-mat made of Kush Grass has been laid here for you to sit. Those who are engaged in Yagy have extracted Somras for you. Drink this Somras, be amused & fresh, strong.
तुभ्यायं सोमः परिपूतो अद्रिभिः स्पार्हा वसानः परि कोशमर्षति शुक्रा वसानो अर्षति। तवायं भाग आयुषु सोमो देवेषु हूयते। वह वायो नियुतो याह्यस्मयुर्जुषाणो याह्यस्मयुः
हे वायु देवता! आपके लिए पत्थरों से कूटकर शोधित किया हुआ तथा वांछित तेजस्विता को धारित किया हुआ सोमरस कलश में स्थापित किया गया है। मनुष्यों के द्वारा सर्वप्रथम आपका ही आवाहन किया जाता है। हे वायु देव! आप अश्वों द्वारा यहाँ पधार कर मधुर शुद्ध व कान्तिवान् सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.135.2]
हे वायुदेव! यह सिद्धस्थ किया गया सोम शक्ति धारण करता हुआ कलश की ओर बढ़ता है। यह सोम हवि से परिपूर्ण किया जाता है। हम अभिलाषा करने वालों की तरफ तुम अपने घोड़ों को प्रेरित करो।
Hey Vayu Dev! Somras crushed with stones, purified possessing energy has been stored in the pot-Kalash. The humans invite you first. Hey Vayu Dev! You ride the horses and sip-enjoy the sweet, aurous, pure Somras.
आ नो नियुद्धिः शतिनीभिरध्वरं सहस्त्रिणीभिरुप याहि वीतये वायो। हव्यानि वीतये। तवायं भाग ऋत्वियः सरश्मिः सूर्ये सचा। अध्वर्युभिरमाणा अयंसत वायो शुक्रा अयंसत
हे वायु देवता! आप सैकड़ों और हजारों अश्वों पर सवार होकर अभिमत सिद्धि और हव्य मक्षण के लिए हमारे यज्ञ में पधारे। यही आपका भाग है; यह सूर्य के तेज से युक्त व ऋत्विकों के द्वारा निर्मित हुआ है। यह सोमरस का आपके बल को बढ़ाने वाला है।[ऋग्वेद 1.135.3]
अभिमत :: राय, सुझाव, विचार, मत, सम्मति, इष्ट, मनचाही बात, वांछित, मनोनीत, सम्मत, अनुमत, राय के मुताबिक, मनचाहा; desired.
हे वायुदेव! सैकड़ों हजारों के द्वारा हमारे यज्ञ में सम्मलित होकर हवि को स्वीकार करो। यह तुम्हारा भाग सूर्य के समान तेज वाला है। अध्वर्युओं ने तुम्हारे लिए यह सोम रस अर्पित किया है।
Hey Vayu Dev! Please come to our Yagy, riding thousands of horses to accept the offerings & accomplishments. Its your share prepared by the Ritviz possessing the energy of the Sun. This Somras will boost your power, energy, strength. 
आ वां रथो नियुत्वान्वक्षदवसेऽभि प्रयांसि सुधितानि वीतये वायो। हव्यानि वीतये। पिबतं मध्वो अन्धसः पूर्वपेयं हि वां हितम्। वायवा चन्द्रेण राधसा गतमिन्द्रश्च राधसा गतम्
हे वायु देवता! हमारी रक्षा के लिए इन्द्रदेव के साथ आप अश्व नियोजित रथ द्वारा यहाँ पधार कर हमने जो सोमरस तैयार किया है, उस सोमरस का पान करें। यह सोमरस इन्द्र देवता के साथ आपको भी आनन्द देने वाला है।[ऋग्वेद 1.135.4]
हे वायो! सुन्दर हवि रूप अन्नों की ओर तुम्हारा रथ रक्षापूर्वक चले। तुम मधुर सोम रस को ग्रहण करो। तुम उज्जवल धनों से युक्त हुए इन्द्र सहित पधारो।
Hey Vayu Dev! Please with Indr Dev for protecting us in the chariot in which horses have been deployed and sip Somras. This Somras will give you pleasure-amusement like Indr Dev.  
आ वां धियो ववृत्युरध्वराँ उपेममिन्दुं मर्मृजन्त वाजिनमाशुमत्यं न वाजिनम्। तेषां पिबतमस्मयू आ नो गन्तमिहोत्या। इन्द्रवायू सुतानामद्रिभिर्युवं मदाय वाजदा युवम्
हे इन्द्र देव और वायु देवता! हमारे स्तोत्रादि आप लोगों को यज्ञ में आने के लिए प्रेरित करते हैं। जैसे शीघ्रगामी अश्च को परिमार्जित किया जाता है, वैसे ही कलश से लाये हुए सोमरस को ऋत्विक् लोग परिमार्जित करते हैं। अध्वर्युओं (यजुर्वेद विहित कार्य करने वालों) द्वारा बने हुए इस सोमरस का पान करें। हमारी रक्षा के लिए यज्ञ में पधारें। आप दोनों अन्न देने वाले हैं, इसलिए हमारे प्रति प्रसन्न होकर आनन्द देने के लिए पत्थरों के द्वारा कूटकर जो यह सोमरस बनाया गया है, उसको पीवें।[ऋग्वेद 1.135.5]
हे इन्द्र देव और वायु देव! हमारी वंदनाएँ तुम्हें अनुष्ठान की ओर आकृष्ट करें। ऋत्विजों ने रस छानकर रखा है, उसे यहाँ पर पधार कर पान करो और हमारी सुरक्षा करो।
Hey Indr Dev & Vayu Dev!  Let our prayers-worship Strotr inspire you to join our Yagy. The way a fast moving horse is readied, similarly the Somras in the Kalash is readied for both of you. Let the organisers of the Yagy too sip the Somras. Please come to protect us. Both of you grant us food grains. 
इमे वां सोमा अप्स्वा सुता इहाध्वर्युभिर्भरमाणा अयंसत वायो शुक्रा अयंसत। एते वामध्यसृक्षत तिरः पवित्रमाशवः। युवायवोऽति रोमाण्यव्यया सोमासो अत्यव्यया
हमारे इस यज्ञकार्य में अभिषुत और अध्वर्युओं द्वारा गृहीत यह दीप्त सोमरस निश्चय ही आप दोनों के लिये ही हैं। यह यथेष्ट सोमरस निश्चय ही आपके लिए टेढ़े तीरछी धारा के पात्र में डाला जाता है। इस प्रकार का सोमरस आपको प्राप्त हो। अखण्डित रोम तन्तुओं से छन कर सोमरस अति संरक्षक गुणों से युक्त हो जाता है।[ऋग्वेद 1.135.6]
अध्वर्यु :: यज्ञ करानेवाले श्रेष्ठ यजुर्वेदी पुरोहित, आचार्य, पुरोधा, कर्मकांडी ब्राह्मण, यजुर्वेद के अनुरूप कर्म करनेवाला, यज्ञ का संपादन करनेवाला, यजुर्वेद में बतलाए गए कर्म करने वाला ऋत्विक, यज्ञ में यजुर्वेद का मंत्र पढ़ने वाला व्यक्ति; one who holds-conducts Yagy in accordance with Yajur Ved, best among the priests, enchanters of Yajur Ved, best amongest the priests,  the priests and the organises, hosts reciting Mantr in the Yagy.
हे वायु देव! अध्वर्युओं द्वारा प्राप्त हुए निष्पन्न सोम रस प्रस्तुत है। ये तुम दोनों के लिए ऊनी वस्त्र से छाने गये हैं। 
The Somras in this Yagy is prepared by the organisers; is definitely meant for both of you. Its poured in an inclined position-condition, in the pot meant for sipping. Let this be available to both of you. When this is extracted through the unbroken fibre, its full of highly protective powers.
अति वायो ससतो याहि शश्वतो यत्र ग्रावा वदति तत्र गच्छतं गृहमिन्द्रश्च गच्छतम्। वि सूनृता दहशे रीयते घृतमा पूर्णया नियुता याथो अध्वरमिन्द्रश्च याथो अध्वरम्
हे वायु देवता! आप निद्रालु यजमानों का अतिक्रमण करके उस गृह में जायें, जिसमें प्रस्तर का शब्द होता है। इन्द्रदेव भी उसी गृह में जावें। जिस गृह में प्रिय और सत्य स्तुति का उच्चारण होता है, जिस घर में घृत जाता है, उसी यज्ञस्थान में पुष्ट नियुत घोड़ों के साथ जावें। हे इन्द्रदेव! आप भी वहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.135.7]
हे वायु! सभी सो रहे व्यक्तियों को जगाते हुए, आओ। सोम को कूटने के पत्थर के शब्द से आकर्षित होओ। 
Hey Vayu Dev! You just cross the sleeping organisers of the Yagy and move to that room where sound of the rattling stones is heard. Let, Indr Dev too visit that house-room. You should visit that house riding the strong horses, where Yagy is held, in which pleasing truth prevails & Ghee is used. Let Indr Dev accompany.
अत्राह तद्वहेथे मध्व आहुतिं यमश्वत्थमुपतिष्ठन्त जायवोऽस्मे ते सन्तु जायवः। साकं गावः सुवते पच्यते यवो न ते वाय उप दस्यन्ति धेनवो नाप दस्यन्ति धेनवः
हे इन्द्र देव और वायु देवता! आप इस यज्ञ में मधु के समान उस आहुति को धारण करें, जिसके लिए विजेता यजमान पर्वत आदि प्रदेशों में जाते हैं। हमारे विजेता लोग यज्ञ का निर्वाहन करने में समर्थ हों। गायें आपके लिए अमृतरूपी दूध देती हैं और जौ से बनाया हुआ हव्य तैयार होता है। हे वायुदेवता! ये गायें आपके लिए कभी कम न हों, न ही किसी के द्वारा इनका अपहरण हो।[ऋग्वेद 1.135.8]
हे इन्द्र और वायुदेव! तुम इस मधुर सोम की आहुति प्राप्त करो। इस पीपल रूप सोम को अजय व्यक्ति पान करते हैं। हमारी गौएँ क्षीण न हों। 
Hey Indr & Vayu Dev! You should accept those offerings, for which the winning organisers of the Yagy visit mountainous regions. Our winners should be able to complete-finish the Yagy.  The cows yield the milk which is comparable to the nectar, which is used for preparing offerings with barley. Hey Vayu Dev! Our cows should never be reduced in numbers and they should never be stolen or abducted. 
इमे ये ते सु वायो बाह्वोजसोऽन्तर्नदी ते पतयन्त्युक्षणो महि व्राधन्त उक्षणः धन्वञ्चिद्ये अनाशवो जीराश्चिदगिरौकसः। सूर्यस्येव रश्मयो दुर्नियन्तवो हस्तयोर्दुर्नियन्तवः
हे वायु देवता! ये जो आपके बलशाली युवा बैलों के समान और अत्यन्त हृष्ट-पुष्ट घोड़े है, वे आपको स्वर्ग और पृथ्वी पर ले जाते हैं, ये अन्तरिक्ष में भी गमन करने में देर नहीं करते, ये शीघ्रगामी हैं, इनकी गति नहीं रुकती। सूर्य किरणों की तरह इनकी गति का रोकना कठिन है।[ऋग्वेद 1.135.9]
हमारा अन्न परिपक्व हो जाये। ये तुम्हारे शक्तिशाली वृषभ नदी रूपी प्रवाह में दौड़ते ये मरुस्थल में भी नष्ट नहीं होते। ये सूर्य की किरणों के समान अबाध वेग वाले हैं।
Hey Vayu Dev! Your powerful-strong horses which are comparable to the strong young oxen-bull, are capable of taking you to the earth, heavens and even in the space. They are fast moving and their movements can not be obstructed. Their movement can not be blocked just like the Sun rays.
वायो ये ते सहस्रिणो रथासस्तेभिरा गहि। नियुत्वान्त्सोमपीतये
हे वायु देव! आपके पास जो हजार रथ हैं, उनके द्वारा नियुत्गण से युक्त होकर सोम पान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 2.41.1]
हे वार्या। अपने हजारों रथ द्वारा, मरुद्गण से परिपूर्ण होकर सोमपान के लिए पधारो मरुद्गण युक्त पधारो। 
Hey Vayu Dev (deity of air)! Come to us, riding your thousands charoites along with Marud Gan to drink Somras.
नियुत्वान्वायवा गायं शुक्रो अयामि ते। गन्तासि सुन्वतो गृहम् 
हे वायुदेव! नियुतगण से युक्त होकर आयें। आपने दीप्तिमान् सोमरस ग्रहण किया है। सोमाभिषवकारी यजमान के घर में आप जाते है।[ऋग्वेद 2.41.2]
तुमने तेज से परिपूर्ण सोम को पिया है। तुम सोम सिद्ध करने वाले के घर को ग्रहण हो।
Hey Vayu Dev! Come to us along with the Marud Gan. You have drunk energetic Somras. You visit the house-family of the Ritviz-household who extract Somras for you.
शुक्रस्याद्य गवाशिर इन्द्रवायू नियुत्वतः। आ यातं पिबतं नरा 
हे नेता इन्द्र देव और वायु देव! आप आज नियुत्गण से युक्त होकर और सोम के लिए आकर गव्य मिला सोमरस पीवें।[ऋग्वेद 2.41.3]
हे इन्द्र और वायु! तुम मरुद्गण से युक्त हुए सोम के लिए यहाँ पर आओ और दूध मिश्रित सोम रस को पीयें।
Hey Indr Dev & Vayu-Pawan Dev! Come to us along with Marud Gan and drink the Somras mixed with cow milk.  
इन्द्रज्येष्ठा मरुद्गणा देवासः पूषरातयः। विश्वे मम श्रुता हवम्
जिन मरुतों में इन्द्र देव श्रेष्ठ हैं, जिनके दाता पूषा हैं, वे ही मरुद्गण हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.41.15]
जिन मरुद्गण में इन्द्रदेव सर्वश्रेष्ठ हैं, जिनको पूषा दान प्रदान करने वाले हैं, वे मरुद्गण हमारे आह्वान को सुनें।
The Marud Gan, amongest whom, Indr Dev is the beast, who's benefactor is Pusha Dev, listen-respond to our prayers.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-  इन्द्र देव, वायु देव, छन्द :- गायत्री
अग्रं पिबा मधूनां सुतं वायो दिविष्टिषु। त्वं हि पूर्वपा असि
हे वायु देव! स्वर्ग प्रापक यज्ञ में आप सर्वप्रथम अभिषुत सोमरस का पान करें; क्योंकि आप सबसे पहले सोमरस का पान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 4.46.1]
हे वायु! स्वर्ग में स्थान बनाने वाले अनुष्ठान में इस अभिषुत सोम रस को आकर पीओ क्योंकि तुम सबसे पहले सोमरस का पान करने वाले हो।
Hey Vayu Dev! Drink this freshly extracted Somras first of all, since you are one who clears the way to heavens and you are entitled to drink it first.
शतेना नो अभिष्टिभिर्नियुत्वाँ इन्द्रसारथिः। वायो सुतस्य तृम्पतम्
हे वायु देव! आप नियुद्वान् हैं और इन्द्र देव आपके सारथि हैं। आप अपरिमित कामनाओं को पूर्ण करने के लिए आगमन करें। आप अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 4.46.2]
हे वायु देव! हे इन्द्र देव! तुम दोनों सोमपान के द्वारा संतुष्टि को प्राप्त हो जाओ। हे वायु! तुम संसार के कल्याणकारी कर्म में नियुक्त हुए हो। तुम इन्द्र देव के सारथी होकर हमारी दृढ़ कामनाओं को पूरा करने के लिए यहाँ आओ।
Hey Vayu Dev! Indr Dev is your charioteer & you are appointed to perform the welfare of the humans-world.  Invoke to accomplish our unfulfilled desires. Drink the freshly extracted Somras.
आ वां सहस्रं हरय इन्द्रवायू अभि प्रयः। वहन्तु सोमपीतये
हे इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों को हजारों संख्या वाले अश्व युक्त रथ द्रुतगति से सोमपान के लिए ले आवें।[ऋग्वेद 4.46.3]
हे इन्द्र और वायु! तुम दोनों को हजारों अश्व शीघ्रतापूर्वक सोमपान के लिए यहाँ ले आएँ।
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come here fast, riding the charoite pulled by thousands of horses, to drink the Somras.
रथं हिरण्यवन्धुरमिन्द्रवायू स्वध्वरम्। आ हि स्थाथो दिविस्पृशम्
हे इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों हिरण्मय निवासाधार काष्ठ से युक्त द्युलोक स्पर्शी और शोभन यज्ञशाली रथ पर आरोहण करें।[ऋग्वेद 4.46.4]
हे इन्द्रदेव और वायु! तुम दोनों स्वर्ण के उज्जवल काष्ठ के मूल वाले तथा अम्बर से तुम दोनों ही महान शक्तिशाली रथ से ही हवि प्रदान करने वाले यजमान के निकट पधारो।
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come to the Yagy of the Ritviz, for accepting offerings riding the charoite in which wood is studded with gold, from the heavens.
रथेन पृथुपाजसा दाश्वांसमुप गच्छतम्। इन्द्रवायू इहा गतम्
हे इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों प्रभूत बल सम्पन्न रथ द्वारा हव्य दाता याजक गण के निकट आगमन करें तथा इस यज्ञ मण्डप में पधारें।[ऋग्वेद 4.46.5]
तुम दोनों यजमान के लिए ही इस महान अनुष्ठान में पधारो।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! Visit the Yagy of the Ritviz making offerings, riding the charoite associated with your might.  
इन्द्रवायू अयं सुतस्तं देवेभिः सजोषसा। पिबतं दाशुषो गृहे
इन्द्र देव और वायु देव! यह सोमरस आपके लिए अभिषुत किया गया है। आप दोनों देवताओं के साथ समान प्रीति युक्त होकर हव्य दाता याजक गण की यज्ञशाला में उसका पान करें।[ऋग्वेद 4.46.6]
हे इन्द्र देव! हे वायो! यह प्रसिद्ध सोम रखा है। तुम दोनों समान प्रीति वाले होकर हविदाता यजमान के यज्ञ स्थल में आकार सोम रस पीओ।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! This Somras has been extracted for you. Drink it along with the demigods-deities happily, in the Yagy Shala-house of the Ritviz.
इह प्रयाणमस्तु वामिन्द्रवायू विमोचनम्। इह वां सोमपीतये
हे इन्द्र देव और वायु देव! इस यज्ञ में आप दोनों का आगमन हो। यहाँ पधार कर सोमपान के निमित्त आप दोनों अपने अश्वों को रथ से मुक्त करें।[ऋग्वेद 4.46.7]
हे इन्द्रदेव! हे वायो! इस अनुष्ठान में तुम्हें सोमरस पान करने के लिए अश्व खोल दिए जाएँ। तुम दोनों इस यज्ञ स्थल में आओ।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! Join this Yagy. Come here and release your horses from the charoite.(23.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-  इन्द्र देव, वायु देव, छन्द :- गायत्री
वायो शुक्रो अयामि ते मध्वो अग्रं दिविष्टिषु।
आ याहि सोमपीतये स्पार्हो देव नियुत्वता
हे वायु देव! व्रतचर्यादि के द्वारा दीप्त-पवित्र होकर हम द्युलोक जाने की अभिलाषा से आपके लिए मधुर सोमरस का प्रथम आनयन करते हैं। हे वायु देव! आप स्पृहणीय हैं। आप अपने अश्व वाहन द्वारा सोमपान के लिए यहाँ आगमन करें।[ऋग्वेद 4.47.1]
हे वायो! महान कर्मानुष्ठानों द्वारा शुद्ध बने हुए हम अद्भुत संसार प्राप्ति की इच्छा करते हुए पहले तुम्हारे लिए ही सोमरस को लाते हैं। तुम अभिलाषा के योग्य हो। अपने वाहन के युक्त सोमपान करने के लिए उस स्थान से पधारो।
Hey Vayu Dev! We extract the sweet Somras with great efforts for you, adopting penances, fasts etc. You are desirable. Ride your charoite deploying horses and come here to drink Somras.
इन्द्रश्च वायवेषां सोमानां पीतिमर्हथः।
युवां हि यन्तीन्दवो निम्नमापो न सध्र्यक्
हे वायु देव! आप और इन्द्र देव इस गृहीत सोमरस के पान योग्य हो, आप दोनों ही सोमरस को प्राप्त करते हैं; क्योंकि जल जिस प्रकार से गर्त की ओर गमन करता है, उसी प्रकार से सकल सोमरस आप दोनों के अभिमुख गमन करते हैं।[ऋग्वेद 4.47.2]
हे वायो! उस ग्रहण किये हुए सोम पीने के पात्र तुम हो और इन्द्रदेव हैं। जैसे जल गड्ढे की ओर जाता है, वैसे ही सभी प्रकार के सोम तुम्हारे समीप जाते हैं।
Hey Vayu Dev! You and Indr dev are qualified to drink Somras. The way water moves to low lying areas, all sorts of Somras comes to you automatically.
वायविन्द्रश्च शुष्मिणा सरथं शवसस्पती।
नियुत्वन्ता न ऊतय आ यातं सोमपीतये
हे वायु देव! आप ही इन्द्र देव हैं। आप दोनों बल के स्वामी है। आप दोनों पराक्रमशाली और नियुद्गण से युक्त हैं। आप दोनों एक ही रथ पर आरोहण करके हम लोगों को आश्रय प्रदान करने के लिए और सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 4.47.3]
तुम दोनों अत्यन्त शक्तिशाली एवं अश्वों से युक्त हो। तुम दोनों एक ही रथ पर विराजमान होकर सोमरस का पान करो तथा हमें आश्रय प्रदान करने के लिए यहाँ पर पधारो।
Hey Vayu Dev! You are Indr Dev. Both of you are mighty and possess the horses. Ride the same charoite and come to us for drinking Somras and grant us asylum-protection.
या वां सन्ति पुरुस्पृहो नियुतो दाशुषे नरा। 
अस्मे ता यज्ञवाहसेन्द्रवायू नि यच्छतम्
हे नायक तथा यज्ञ वाहक इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों के पास अनेकों द्वारा कामना किए जाने योग्य जो अश्व हैं, उन अश्वों को मुझ दान देने वाले यजमान को प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.47.4]
हे इन्द्रदेव और वायो! तुम दोनों ही यज्ञ हवन करने वालों एवं समस्त देवों में अग्रणी हो। हम तुमको हवि रत्न प्रदान करने वाले यजमान हैं। तुम्हारे पास अभिलाषा के योग्य जो अश्व हैं उन्हें हमें प्रदान करो।
Hey leaders and supporter of the Yagy Vayu Dev & Indr Dev! Grant me-the Ritviz, the horses which several people desire to have-possess.(23.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-  वायु देव, छन्द :- अनुष्टुप्
विहि होत्रा अवीता विपो न रायो अर्यः।
वायवा चन्द्रेण रथेन याहि सुतस्य पीतये
हे वायु देव! शत्रुओं को कम्पायमान करने वालों को राजा की तरह आप पूर्व ही दूसरे के द्वारा अपीत सोमरस का पान करें एवं स्तोताओं के धन का सम्पादन करें। हे वायु देव! आप सोमपान के लिए शीतलता दायक रथ द्वारा पधारें।[ऋग्वेद 4.48.1]
हे वायो! शत्रुओं को कम्पित करने वाले सम्राट के तुल्य तुम अन्यों के द्वारा व पान किये गये सोमरस को पूर्व ही पान करो और प्रार्थना करने वालों के लिए धनों को ग्रहण कराओ। तुम अपने कल्याणकारी रथ के द्वारा सोम को पान करने के लिए यहाँ पधारो।
Hey Vayu Dev! Arrive here in your charoite, which is cooled and trembles-hake the enemy, to drink Somras prior to others and grant wealth-money to the hosts-organisers of the Yagy.
निर्युवाणो अशस्तीर्नियुत्वाँ इन्द्रसारथिः।
वायवा चन्द्रेण रथेन याहि सुतस्य पीतये
हे वायु देव! आप अभिशस्ति का नि:शेष नियोग करते है। आप नियुद्गण से युक्त हैं और इन्द्र देव आपके सारथि हैं। हे वायु देव! आप सोमपान के लिए आह्लादकर रथ द्वारा पधारें।[ऋग्वेद 4.48.2]
हे वायु! तुम इन्द्र देव सहित सारथी के रूप में सुवर्णमय रथ द्वारा अश्वादि से युक्त होकर सौम्य स्वभाव वाले शक्तिवान प्राणियों से युक्त तथा अनेक दुष्ट प्राणियों से परे हो। तुम हर्षकारी सोम को पीने के लिए यहाँ पधारो।
Hey Vayu Dev! Arrive here to drink stimulating Somras in your golden charoite driven by Indr Dev.
अनु कृष्णे वसुधिती येमाते विश्वपेशसा।
वायवा चन्द्रेण रथेन याहि सुतस्य पीतये
हे वायु देव! कृष्ण वर्ण, वसुओं की धात्री, विश्व रूपा द्यावा-पृथ्वी आपका अनुगमन करती है। हे वायु देव! आप सोमपान के लिए तेजस्वी रथ द्वारा पधारें।[ऋग्वेद 4.48.3]
हे वायु! काले रंग वाली, वसुओं को धारण करने वाली विश्वरूप अम्बर-धरा तुम्हारे पदचिह्नों पर चलती है। तुम अपने हर्षिता परिपूर्ण रथ के द्वारा सोम को पीने के लिए यहाँ विराजमान होओ।
Hey Vayu! Blackish heaven & earth constituting the universe, who supports the Vasus, follows you. Come to drink Somras in your radiant charoite.
वहन्तु त्वा मनोयुजो युक्तासो नवतिर्नव।
वायवा चन्द्रेण रथेन याहि सुतस्य पीतये
हे वायु देव! मन के तुल्य वेगवान, परस्पर संयुक्त, निन्यान्वें अश्व आपका वहन करते है। हे वायु देव! आप सोमपान के लिए आह्लादकर रथ द्वारा पधारें।[ऋग्वेद 4.48.4]
हे वायु! मन के समान वेगवान आपस में मिले हुए निन्यानवें अश्व तुम्हें यहाँ लाते हैं। तुम सोम पीने के लिए प्रसन्नतापूर्वक सुन्दर रथ पर पधारो।
Hey Vayu Dev! Come here to drink Somras producing joy-pleasure, in your charoite, supported by 99 horses, which moves as fast as the brain. 
वायो शतं हरीणां युवस्व पोष्याणाम्।
उत वा ते सहस्रिणो रथ आ यातु पाजसा
हे वायु देव! आप सैकड़ों सँख्या वाले पोषणीय अश्वों को रथ में नियोजित करें अथवा सहस्र संख्यक अश्वों को रथ में नियोजित करें। उनसे युक्त होकर आपका रथ वेग पूर्वक यहाँ आवें।[ऋग्वेद 4.48.5]
हे वायु! तुम सैकड़ों अश्वों को रथ में जोड़ो और उनके साथ यहाँ आओ।
Hey Vayu Dev! Let your charoite driven by hundred or thousands of well nourished-stout horses, running fast come here.(24.04.2023)
प्र शंतमा वरुणं दीधिती गीर्मित्रं भगमदितिं नूनमश्याः।
पृषद्योनिः पञ्चहोता शृणोत्वतूर्तपन्था असुरो मयोभुः
प्रदत्त हव्य के साथ हम लोगों का निरतिशय सुखदायक स्तोत्र वरुण, मित्र, भग और आदित्य के निकट उपस्थित हैं। जो प्राण आदि पञ्चवायु के साधक हैं, जो विविध वर्ण के अन्तरिक्ष में अवस्थान करते हैं, जिनकी गति अबाधित है, जो प्राणदाता और सुख देने वाले है, वे वायुदेव हम लोगों का स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.42.1]
निरतिशय :: हद दरज़े का, बेहद, अद्वितीय, परम, जिसके आगे या जिससे बढ़कर और कुछ न हो,  चश्म, परमात्मा, ईश्वर, परब्रह्म; unique, ultimate, almighty, God.
We approach Varun, Mitr, Bhag and Adity Dev with the ultimate Strotr & offerings-oblations. Let Vayu Dev who grant-consist of five forms of living sustaining force-Pran, stay in the space having vivid colours, moves freely, grant life and comforts, listen to our Strotr.
अध्वर्यवश्चकृवांसो मधूनि प्र वायवे भरत चारु शुक्रम्।
होतेव नः प्रथमः पाह्यस्य देव मध्वो ररिमा ते मदाय
हे अध्वर्युओं! आप लोग मधुर घृतादि हव्य प्रस्तुत करें और वह रमणीय तथा दीप्त सोमरस सबसे पहले वायु को अर्पित करें। हे वायु देव! आप होता के तुल्य इस सोमरस को अन्य देवों से पहले पियें। हे वायु देव! यह मधुर सोमरस आपकी प्रसन्नता के लिए हम देते हैं।[ऋग्वेद 5.43.3]
Hey priests! Present sweet Ghee and other offerings along with Somras to Vayu Dev. Hey Vayu Dev! Drink this Somras offered by the worshiper first, as compared to the other demigods-deities. We offer this sweet Somras for your pleasure.
प्र तव्यसो नमउक्तिं तुरस्याहं पूष्ण उत वायोरदिक्षि।
या राधसा चोदितारा मतीनां या वाजस्य द्रविणोदा उत त्मन्
हम बलवान् और वेग पूर्वक गमन करने वाले पूषा तथा वायु देव की प्रार्थना करते हैं। ये दोनों देव धन और अन्न के लिए लोगों की बुद्धि को प्रेरित करें अथवा जो देव संग्राम के प्रेरक हैं, वे धनप्रदान करें।[ऋग्वेद 5.43.9]
We worship dynamic-accelerated mighty Pusha and Vayu Dev. Let both of them inspire the minds of public-populace for food grains and wealth or else, those who are the inspirer of war grant wealth.
अयं सोमश्चमू सुतोऽमत्रे परि षिच्यते। प्रिय इन्द्राय वायवे
हे इन्द्र देव और वायु देव! पत्थरों से कूटकर अभिषुत हुआ सोमरस पात्रों में छानकर भरा जाता है, यह इन्द्रदेव और वायुदेव के लिए प्रिय है। इस सोमरस को पीने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.51.4]
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come to drink Somras crushed with stones and filtered for you, kept in the pots. 
वायवा याहि वीतये जुषाणो हव्यदातये। 
पिबा सुतस्यान्धसो अभि प्रयः
हे वायु देव! हवि देने वाले यजमान की प्रीति के लिए आप हव्यपान करने के लिए पधारें। आकर अभिषुत सोमरूप अन्न का भक्षण करें।[ऋग्वेद 5.51.5]
Hey Vayu Dev! Come for drinking Somras for the love of the Ritviz making offerings and eat the food grains in the containing-form of Somras.
इन्द्रश्च वायवेषां सुतानां पीतिमर्हथः।
ताञ्जुषेथामरेपसावभि प्रयः
हे वायु देव! आप और इन्द्र देव इस अभिषुत सोमरस का पान करने के योग्य हैं; इसीलिए अहिंसक होकर आप दोनों इस सोमरस का सेवन करें और सोमात्मक अन्न के उद्देश्य से आगमन करें।[ऋग्वेद 5.51.6]
Hey Vayu Dev! You alongwith Indr Dev is qualified to drink this extracted Somras. Invoke for the eating the food grains in the form of Somras, without being violent.
सुता इन्द्राय वायवे सोमासो दध्याशिरः।
निम्नं न यन्ति सिन्धवोऽभि प्रयः
इन्द्र देव तथा वायु देव के लिए दधि मिश्रित सोमरस अभिषुत हुआ है। हे इन्द्र देव और वायु देव! निम्नगामिनी नदियों के सदृश वह सोमरस आप दोनों के अभिमुख गमन करता है।[ऋग्वेद 5.51.7]
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Somras mixed with curd has been extracted for you. It moves to you like the rivers flowing in the down ward direction.
स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः।
बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः
कल्याण के लिए हम लोग वायु देव की प्रार्थना करते हैं और सोमरस का भी स्तवन करते हैं। सोम निखिल लोक के पालक हैं। सब देवों के साथ मन्त्र पालक बृहस्पति देव की प्रार्थना कल्याण के लिए करते हैं। अदिति के पुत्र देवगण अथवा अरुणादि द्वादश देव हम लोगों के लिए कल्याणकारी हों।[ऋग्वेद 5.51.12]
We worship Vayu Dev for our welfare and extract Somras for him. Som nourish-nurture the whole world. We worship Brahaspati Dev with all demigods-deities, who is the supporter of Mantr Shakti, for our welfare. Let the son of Aditi Demigods and the twelve Adity Gan be helpful to us i.e., resort to our welfare. 



 
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 संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

MITR-VARUN मित्रा-वरुण (ऋग्वेद 1-6)*

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MITRA-VARUN
मित्रा-वरुण
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:। 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
मित्रं हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम्। 
धियं घृताचीं साधन्ता॥
मित्र और वरुण दो देवता है। ऋग्वेद में दोनों का अलग और प्राय: एक साथ भी वर्णन है, अधिकांश पुराणों में मित्रा-वरुण इस एक ही शब्द द्वारा उल्लेख है। ये द्वादश आदित्य में भी गिने जाते हैं। इनका संबंध इतना गहरा है कि इन्हें द्वंद्व संघटकों के रूप में गिना जाता है। इन्हें गहन अंतरंग मित्रता या भाइयों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये दोनों कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र हैं। ये दोनों जल पर सार्वभौमिक राज करते हैं, जहां मित्र सागर की गहराईयों एवं गहनता से संबद्ध है वहीं वरुण सागर के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन करते हैं। मित्र सूर्योदय और दिवस से संबद्ध हैं जो कि सागर से उदय होता है, जबकि वरुण सूर्यास्त एवं रात्रि से संबद्ध हैं जो सागर में अस्त होती है।
मित्र द्वादश आदित्यों में से हैं, जिनसे वशिष्ठ का जन्म हुआ। वरुण से अगस्त्य की उत्पति हुई और इन दोनों के अंश से इला नामक एक कन्या उस यज्ञकुंड से प्रगट हुई जिसे प्रजापति मनु ने पुत्र प्राप्ति की कामना से रचा था। 
काशी स्थित मित्रा-वरुण नामक दो शिवलिंगों की पूजा करने से मित्र लोक एवं वरुण लोक की प्राप्ति होती है।[स्कन्दपुराण]
दोनों देवता पृथ्वी एवं आकाश को जल से संबद्ध किये रहते हैं तथा दोनों ही चंद्रमा, सागर एवं ज्वार से जुड़े रहते हैं। भौतिक मानव शरीर में मित्र शरीर से मल को बाहर निकालते हैं, जबकि वरुण पोषण को अन्दर लेते हैं, इस प्रकार मित्र शरीर के निचले भागों (गुदा एवं मलाशय) से जुड़े हैं, वहीं वरुण शरीर के ऊपरी भागों (मुख एवं जिह्वा) पर शासन करते हैं। मित्र, वरुण एवं अग्नि को ईश्वर के नेत्र स्वरूप माना जाता है। वरुण की उत्पत्ति व्रि अर्थात संयोजन यानि जुड़ने से हुई है। इसी प्रका मित्र की उत्पत्ति मींय अर्थात संधि से हुई है।
मित्रावरुण में भ्रातृ सदृश स्नेह है। मित्र का शाब्दिक अर्थ ही दोस्त होता है। ये अंतरंग मित्रता या दोस्ती के प्रतीक हैं। इन्हें एक शार्क मत्स्य पर सवार दिखाया जाता है और इनके हाथों में त्रिशूल, पाश, शंख और पानी के बर्तन दिखाये जाते हैं। कई स्थानों पर इन्हें सात हंसों द्वारा खींचे गये स्वर्ण रथ पर साथ-साथ आरूढ भी दिखाया जाता है। प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार इन्हें चंद्रमा के दो रूपों या कलाओं के रूप में दिखाया जाता है, बढ़ता चंद्रमा वरुण एवं घटता चंद्रमा मित्र का प्रतीक दिखाया जाता है। इसी रात्रि में मित्र अपने बीज को वरुण में स्थापित करते हैं। इसी प्रकार वरुण मित्र में अपने बीज की स्थापना पूर्णिमा की रात्रि को करते हैं।
वरुण और मित्र को अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। इन दोनों की संतानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणाम स्वरूप हुई। वरुण के दीमक की बांबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि वाल्मीकि की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा उर्वशी की उपस्थिति में एक घड़े में गिये तब ऋषि अगस्त्य एवं वशिष्ठ की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकार वरुण की एक उत्पत्ति थी, वारुणी अर्थात मधु और मद्य की देवी। मित्र की संतान उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल हुए जिनका गोबर, बेर वृक्ष एवं बरगद वृक्ष पर शासन रहता है।[भागवत पुराण]
मित्र, याणि इंद्र के भ्राता अर्जुन के जन्म के समय आकाश में उपस्थित थे। क्योंकि मित्र एवं वरुण आकाश एवं पृथ्वी पर अपने सागर के जलस्वरूप छाये रहते हैं, इन दोनों देवताओं की पूजा अर्चना ज्येष्ठ माह में अच्छी वर्षा की कामना से की जाती है। मित्र-वरुण की संयुक्त रूप से प्रतिपदा एवं पूर्णिमा के दिन अर्चना की जाती है, जबकि मित्र की अकेले शुक्ल पक्ष सप्तमी एवं वरुण की कृष्ण पक्ष सप्तमी को अर्चना की जाती है।[महाभारत]
मित्रा-वरुण में प्रत्येक को वायु कहा गया है।[निरुक्त-निघंटु]
मित्र प्राणरक्षक, वरुण जलभंडारक और वृष्टिकारक।[निरुक्त 5.3]
मित्र रात है और वरुण दिन।[ऐतरेय ब्राह्मण 4.10]
मित्रं हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम। धियं घृताचीं साधन्ता
पूतदक्षं मित्रम् :- पवित्र करने में दक्ष मित्र,
रिशादशं वरुणं च :-  ख़राब करने वाले वरुण को भी मैं ग्रहण करूँ, 
घृताचीं धियं साधन्ता :- ये दोनों पानी का निर्माण या प्रमाण करते हैं।
[ऋग्वेद 1.2.7]
उतासि मैत्रावरुणो वशिष्ठोर्वश्या ब्रह्मन्मनसो अधिजातः। 
द्रप्सं स्कन्नं ब्रह्मणा दैव्येन विश्वेदेवाः पुष्करे त्वादद्रन्त॥
वसिष्ठ उत मैत्रावरुणः असि :- हे वासकतम जल, तू मित्र-वरुण का है या उनसे बना है, 
ब्रह्मन् उर्वश्याः मनसः अधिजातः :- अन्नदाता! तू विद्युत के सामर्थ्य से उत्पन्न हुआ है (द्रप्सं स्कन्नं त्वा) जल के रूप में परिणत, तुझको विद्वानों के अन्न हेतु सूर्यकिरणें अंतरिक्ष में धारण करती हैं।[ऋग्वेद 7.33.11] 
घृत के समान प्राण प्रद वृष्टि सम्पन्न कराने वाले मित्र और वरुण देवों का हम आवाहन करते हैं। मित्र हमें बलशाली बनायें तथा वरुणदेव हमारे हिंसक शत्रुओं का नाश करें।[ऋग्वेद 1.2.7]
पवित्र शक्ति वाले मित्र और शत्रु नाशक वरुण का मैं आह्वान करता हूँ।
We invite Mitr Dev & Varun Dev, who shower rains which are like Ghee which nourishes us. Let Mitr make us strong and Varun Dev destroy our violent enemies.
ऋतेन मित्रावरुणावृतावृधारुतस्पृशा। क्रतुं बृहन्तमाशाथे॥
सत्य को फलितार्थ करने वाले सत्य यज्ञ के पुष्टिकारक देव मित्रा-वरुण! आप दोनों हमारे पुण्यदायी कार्यों (प्रवर्तमान सोमयाग) को सत्य से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.2.8]
ये मित्र वरुण! सत्य से वृद्धि को प्राप्त होने वाले, सत्य-स्वरूप तथा सत्य महानता को प्राप्त यज्ञ को सम्पन्न करने वाले हैं।
Hey Mitra-Varun! You enrich the Yagy which strengthen out efforts-endeavours pertaining to virtues, values, ethics, truth.
कवी नो मित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया। दक्षं दधाते अपसम्॥
अनेक कर्मो को सम्पन्न कराने वाले विवेकशील तथा अनेक स्थलों में निवास करने वाले मित्रा-वरुण! हमारी क्षमताओं और कार्यों को पुष्ट बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.2.9]
ये सखा, वरुण, शक्तिशाली, सब जगह विद्यमान हैं और जल द्वारा कार्यों को प्रेरित करते हैं। समस्त कर्मों और अधिकारों वश में करने वाले हैं।ये ज्ञान और कर्म को प्रेरित करने वाले हैं।
Mitra-Varun! You help us perform our prudent deeds at various places and enhance-boost our capabilities.
युवं दक्षं धृतव्रत मित्रावरुण दूळभम्। ऋतुना यज्ञमाशाथे॥
हे अटल व्रत वाले मित्रावरुण! आप दोनों ऋतु के अनुसार बल प्रदान करने वाले हैं। आप कठिनाई से सिद्ध होने वाले इस यज्ञ को सम्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.15.6]
हे दृढ़ व्रत वाले मित्रावरुण! दोनों कार्यों में व्याप्त हुए तुम ऋतु के युक्त हमारे अनुष्ठान में आते हो।
Hey Mitra Varun with firm determination! You grant strength in both the seasons. Its you who makes this Yagy successful, which is difficult to conduct-perform.
मित्रं वयं हवामहे वरुणं सोमपीतये। जज्ञाना पूतदक्षसा॥
सोमरस पीने के लिये यज्ञ स्थल पर प्रकट होने वाले परम पवित्र एवं बलशाली मित्र और वरुण देव का हम आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.23.4]
मित्र और वरुण को सोमरस ग्रहण करने के लिए हम बुलाते हैं। वे पवित्र और शक्तिशाली हैं।
We invite-welcome Varun Dev, who is extremely pure-virtuous, strong-powerful to appear at the Yagy site and consume Somras. 
ऋतेन यावृतावृधावृतस्य ज्योतिषस्पती। ता मित्रावरुणा हुवे॥
सत्य मार्ग पर चलने वाले का उत्साह बढाने वाले, तेजस्वी मित्रा-वरुण का हम आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.23.5]
सत्य से यज्ञ को बढ़ाने वाला प्रकाश के पालक मित्र और वरुण का आह्वान करता हूँ।
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करनेवाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, तीक्ष्ण, प्रज्वलित, उत्सुक, कलहप्रिय; rattling, fiery, glorious.
We invite glorious Mitra-Varun who encourage one who follows the virtuous, righteous, pious path of truth.
वरुणः प्राविता भुवन्मित्रो विश्वाभिरूतिभिः। करतां नः सुराधसः॥
वरुण एवं मित्र देवता अपने समस्त रक्षा साधनों से हम सबकी रक्षा करते हैं। वे हमें महान वैभव सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 1.23.6]
वरुण मेरे रक्षक बने, सखा भी सुरक्षा करें और ये दोनों मुझे धनपति बनायें।
Mitr & Varun protects us through all of thier means. Let them provide us with great amenities-riches. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (122) :: ऋषि :- कक्षीवान्, देवता :- विश्वेदेवा,   इन्द्र, छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्।
प्र वः पान्तं रघुमन्यवोऽन्धो यज्ञं रुद्राय मीळ्हुषे भरध्वम्।
दिवो अस्तोष्यसुरस्य वीरैरिषुध्येव मरुतो रोदस्योः॥
क्रोध से रहित ऋत्विकों आप लोग कर्म फलदाता रुद्रदेव को पालनशील और यज्ञ साधन अग्नि अर्पित करें। मैं भी उन द्युलोक के देव और उनके अनुचर एवं स्वर्ग और पृथ्वी के मध्यस्थवासी मरुद्गण की स्तुति करता हूँ। जिस प्रकार से तूणीर द्वारा शत्रुओं का वध किया जाता है, उसी प्रकार रुद्रदेव भी वीर मरुतों के साथ शत्रुओं का वध करते हैं।[ऋग्वेद 1.122.1]
हे द्रुतगामी मरुद्गण! हम रुद्र के लिए अन्न रूप हविदान करते हैं। मैं उन क्षितिज के वीरों के युक्त उनकी वंदना करता हूँ। वे क्षितिज और धरा के वीरों के तुल्य शस्त्र धारण कर शत्रुओं को निरस्त करते हैं।
Hey hosts-households conducting Yagy! Offer Agni-fire to Rudr Dev who sanctions-grants the rewards & punishments of the deeds performed by you, for conducting the Yagy. I too pray to the demigods of the heavens, their followers & inhabitants-Marud Gan who reside between the heavens & the earth. The way the arrows in the quiver are used to kill the enemy, the Rudr Dev along with the Marud Gan, too eliminate the enemies.  
पत्नीव पूर्वहूतिं वावृधध्या उषासानक्ता पुरुधा विदाने। 
स्तरीर्नात्कं व्युतं वसाना सूर्यस्य श्रिया सुदृशी हिरण्यैः
जिस प्रकार से स्वामी के प्रथम आह्वान पर पत्नी शीघ्र आती है, उसी प्रकार अहोरात्र देवता नाना प्रकार की स्तुतियों द्वारा स्तुत होकर हमारे प्रथम आह्वान पर शीघ्र पधारें। अरिमर्दन सूर्य की तरह उषादेवी सोने की किरणों से युक्त होकर और विशाल रूप धारण कर सूर्य की शोभा से शोभित हों।[ऋग्वेद 1.122.2]
पति के पुकारने पर भार्या शीघ्र उपस्थित होती हैं, वैसे ही अहोरात्र देवता हमारे प्रथम आह्वान पर विराजें। रात्रि धूम्र वर्ण के वस्त्र वाली है और उषा सूर्य की किरणों से युक्त अत्यधिक सुन्दर दिखाई पड़ती है।
The way-manner in which the wife come quickly on being called by her husband, the demigods of the Ahoratr (Day & night, midnight), having been worshiped in various, manners with several hymns, verses come quickly on just being requested. Let Usha Devi having rays with golden hue, acquire large-huge proportion & be embellished, like the Sun who is a destroyer of the evil.
ममत्तु नः परिज्मा वसर्हा ममत्तु वातो अपां वृषण्वान्। 
शिशीतमिन्द्रापर्वता युवं नस्तन्नो विश्वे वरिवस्यन्तु देवाः॥
वसन योग्य और सर्वतोगामी सूर्यदेव हमारी प्रसन्नता बढ़ावें। जलवर्षण करने वाला वायु हमारा आनन्द बढ़ावें। इन्द्रदेव और मेघ हमारी बुद्धि को विकसित करें। विश्वेदेवगण हमें यथेष्ट अन्न प्रदान करने की कृपा करें।[ऋग्वेद 1.122.3]
वसन :: परिधान, पोशाक, वस्र, लबादा, वस्त्र, पोशाक, कपड़ा, तैयार कपड़े, धूप और ऊष्मा; garment.
दिन वाला गतिमान सूर्य हमको प्रसन्नता प्रदान करने वाला हो। जल वर्षक पवन हमको आनन्द करे। इन्द्रदेव और पर्वत हमें उत्साहित करें। विश्वेदेवा हमें धन दान करें।
Let Sun-Sury Dev, who is always moving and giving us Sun light, amuse us. Let the wind which leads to rains, amuse us. Let Indr Dev and the rain showers lead to development of intelligence. Let Vishw Dev Gan provide us sufficient food grains.
उत त्या मे यशसा श्वेतनायै व्यन्ता पान्तौशिजो हुवध्यै। 
प्र वो नपातमपां कृणुध्वं प्र मातरा रास्पिनस्यायोः
अश्विनी कुमारों की स्तुति उशिक् पुत्र कक्षीवान् के द्वारा की जाती है। हे मनुष्यों! माता-पिता के तुल्य पृथ्वी, आकाश और रक्षा-साधनों द्वारा अग्नि देवता के निमित्त उत्तम प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 1.122.4]
हे ऋत्विजों! मुझ उशिज-पुत्र के लिए हवि-भक्षक और पूजनीय अश्विनी कुमारों का आह्वान करो। हे मानवों! तुम जलों के पुत्र की अर्चना करो और स्तोताओं की मातृभूमि धरती और आकाश की भी वंदना करो।
Ashwani Kumars are prayed-worshiped by Kakshiwan, the son of Ushik. Hey humans!  Pray to earth, who is equivalent to the mother & father (parents), sky (heavens) & the Agni with the help of the excellent Strotr meant for protection.
आ वो रुवण्युमौशिजो हुवध्यै घोषेव शंसमर्जुनस्य नंशे। 
प्र वः पूष्णे दावन आँ अच्छा वोचेय वसुतातिमग्नेः
हे देवगण! मैं उशिक् का पुत्र कक्षीवान् हूँ। मैं आपके लिए कहने योग्य स्तोत्र का आह्वान के लिए पाठ करता हूँ। हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार से अपने शरीर में श्वेतवर्ण (त्वचारोग) के विनाश के लिए घोषा नामक ब्रह्मवादिनी महिला ने आपकी स्तुति की थी, उसी प्रकार मैं भी स्तुति करता हूँ। हे देवों! मैं धन देने वाले पूषा देव की और वैभव सम्पदा के लिए अग्निदेव की स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 1.122.5]
हे मनुष्यों! मैं उशिज पुत्र कक्षीवान गर्जनशील इन्द्रदेव का तुम्हारे लिए आह्वान करता हूँ। घोषा नामक स्त्री ने रोग निवृत्ति के लिए अश्विद्वय का आह्वान किया, वैसे ही मैं भी आह्वान करता हूँ। मैं दानशील पूषा की वंदना करता हुआ अग्नि सम्बन्धी धनों की विनती करता हूँ। 
Hey demigods-deities! I am Ushik, the son of Kakshiwan. I am reciting the the Strotr addressed to you. Hey Ashwani Kumars! The manner in which the truthful woman Ghosha suffering from skin diseases, prayed to you, I too pray to you. Hey demigods-deities! I pray to Pusha Dev & Agni Dev, who grant wealth & amenities. 
श्रुतं मे मित्रावरुणा हवेमोत श्रुतं सदने विश्वतः सीम्। 
श्रोतु नः श्रोतुराति: सुश्रोतुः सुक्षेत्रा सिन्धुरद्भिः
हे मित्र और वरुणदेव! मेरा आह्वान श्रवण करें। यज्ञगृह में समस्त आह्वान श्रवण करें। प्रसिद्ध धनशाली जलाभिमानी देव खेतों में जल बरसाकर हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.122.6]
हे सखा और वरुण! मेरी विनती सुनो। यज्ञ भवन तथा सभी ओर से मेरे आह्वान पर ध्यान दो। हमारे खेतों में जल वर्षक इन्द्रदेव वर्षा करें। 
Hey Mitr & Varun Dev! Kindly listen, pay attention to us. Please respond to all invitations in the Yagy place. Let the deities of rains respond to our prayers and shower over our fields. 
स्तुषे सा वां वरुण मित्र रातिर्गवां शता पृक्षयामेषु पज्रे। 
श्रुतरथे प्रियरथे दधानाः सद्यः पुष्टिं निरुन्धानासो अग्मन्
हे मित्र और वरुणदेव! हम आपकी प्रार्थना करते हैं। जहाँ घोड़े तेज गति से चलाये जाते हैं, ऐसे युद्ध में शूरवीर ही जिनकी सँख्या विदित न हो अर्थात् असँख्य हों, ऐसे गौरूपी धन को प्राप्त करते हैं। आप दोनों उस प्रसिद्ध एवं अपने प्रिय रथ पर आरूढ़ होकर शीघ्रता से यहाँ आकर हमें पुष्टि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.122.7]
हे मित्रावरुण! मैं तुम्हारी प्रार्थना करता हूँ। तुम मुझ वज्रवंशी को सौ धेनु प्रदान करो। सुसज्जित रथ में बैठकर शीघ्र यहाँ आओ और मुझे पुष्ट करो। 
Hey Mitr & Varun Dev! We pray to you. The war in which horses run with fast speed, the number of warriors is huge (undisclosed-uncertain), win cows as wealth. Both of you ride your favourite chariote, come here quickly and nourish us.
अस्य स्तुषे महिमघस्य राधः सचा सनेम नहुषः सुवीराः। 
जनो यः पज्रेभ्यो वाजिनीवानश्वावतो रथिनो मह्यं सूरिः
मैं महान् धन वाले देवों के धन की स्तुति करता हूँ। हम मनुष्य हैं, इसलिए शोभन पुत्र-पौत्र आदि से युक्त होकर हम, इस धन का उपभोग करें। जो देवगण अङ्गिरा गोत्र में उत्पन्न राजा कक्षीवान् के लिए अन्न प्रदान करते हैं, जो अश्व और रथ देते हैं, मैं उनकी स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 1.122.8]
 मैं इन श्रेष्ठ वैभवशाली देवों की प्रार्थना करता हूँ। हम मनुष्य इस सुन्दर धन का उपभोग करें। वे देव अंगिराओं को अनेक अन्न प्रदान करते और मुझे अश्व रथ आदि परिपूर्ण धन प्रदान करते हैं।
I pray-honour those demigods-deities who grant us huge wealth. Being humans, we should use this wealth along with our sons & grandsons. I pray-worship those demigods-deities who grant food grain, horses & chariote to the king Kakshiwan, the descendent of Angira. 
जनो यो मित्रावरुणावभिध्रुगपो न वां सुनोत्यक्ष्णयाध्रुक्। 
स्वयं स यक्ष्मं हृदये नि धत्त आप यदीं होत्राभिर्ऋतावा॥
हे मित्र और वरुणदेव! जो आपका द्रोही अर्थात् विरोधी है, जो किसी प्रकार से आपसे द्रोह या द्वेष करते हैं, जो आपके लिए सोमरस का अभिषव अर्थात् निर्मित नहीं करते, वह अपने हृदय में यक्ष्मा रोग धारण करते हैं। सत्य मार्ग पर चलने वाला और आपके निमित्त मंत्र युक्त स्तुतियाँ करने वाला निःसंदेह ही आपका कृपापात्र होता है।[ऋग्वेद 1.122.9]
हे सखा वरुण जो द्रोही कुटिलता पूर्वक तुम्हारे लिए सोम निष्पन्न नहीं करता। वह अपने मन में यक्ष्मा व्याधि धारण करता है। जो नियमपूर्वक निर्वाह करता हुआ तुम्हारी स्तुतियाँ करता हुआ सोम रस तैयार करता है वह तुम्हारी कृपा का पात्र होता है। 
Hey Mitr & Varun Dev! One who is your opponent, desert you, do not prepare-offer Somras to you suffers from tuberculosis. The truthful devotee following righteous-virtuous path is always being obliged by you.
स व्राधतो नहुषो दंसुजूतः शर्धस्तरो नरां गूर्तश्रवाः। 
विसृष्टरातिर्याति बाळ्हसृत्वा विश्वासु पृत्सु सदमिच्छूरः॥
हे देवो! ऐसा मनुष्य शत्रुओं को नष्ट करने वाला, अश्वयुक्त, तेजोमय व यजमानों के प्रति उदार प्रवृत्ति का होते हुए समस्त युद्धों में अत्यधिक सामर्थ्यवान् होता है।[ऋग्वेद 1.122.10]
वह प्राणी धनवान, शक्तिशाली, श्रेष्ठ यश वाला त्यागी होता हुआ शत्रुओं को पराजित करता है। वह भयंकर प्राणियों से भी नहीं डरता।
Hey demigods duo! Such a person eliminates the enemy, has horses, possess aura-brilliance, kind, liberal to the hosts-household conducting Yagy and excels in all wars.
अध ग्मन्ता नहुषो हवं सूरेः श्रोता राजानो अमृतस्य मन्द्राः। 
नभोजुवो यन्निरवस्य राधः प्रशस्तये महिना रथवते॥
हे आकाश में स्थित देवों! मनुष्यों की प्रार्थना को श्रवण कर यहाँ पधारने वाले आप अपने बल द्वारा अहित करने वाले दुष्टों की सम्पदा को श्रेष्ठ वीरों को प्रदत्त कर, हमें आनन्द प्रदान करने वाले अमृतस्वरूप यज्ञ प्रदान करने वाले, अमृतस्वरूप यज्ञ की ओर  प्ररित करते हो।[ऋग्वेद 1.122.11]
हे हर्षदाता, अविनाशी देवो! वंदनाकारी का आह्वान सुनो। तुम क्षितिज में वेग से चलते हुए प्रस्थान कर बुलाने वाले को महत्वपूर्ण धनों को प्रदान करते हो।
Hey demigods stationed in the sky-heavens! You rush to protect the humans with your might on listening to their prayers-worship and grant the wealth of the wicked to them-the excellent warriors. You amuse us, gift-grant the Yagy which is like elixir-nectar and motivate us to conduct Yagy. 
एवं शर्धं धाम यस्य सूरेरित्यवोचन्दशतयस्य नंशे। 
द्युम्नानि येषु वसुताती रारन्विश्वे सन्वन्तु प्रभृथेषु वाजम्॥
जिस यजमान की दसों इन्द्रियों के बलदायक अन्न की प्राप्ति के लिए हम आये हैं, उसे हमने मनुष्यों को विजय प्राप्त करने वाला बल प्रदान किया, देवों ने ऐसा कहा। इन देवों का प्रकाशमान अन्न और धन अत्यन्त शोभित होता है। ऐसे उत्तम यज्ञ में देवता लोग अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.122.12]
जिस वंदनाकारी ने दस चमसों में रखे हुए सोम के लिए हमारा आह्वान किया है, उसके लिए शक्ति धारण करेंगे। देवताओं ने ऐसा कहा है कि इन देवों में कीर्ति और धन शोभा प्राप्त करते हैं। ये देव हमारे अनुष्ठानों में अन्न सेवन करें।
The demigods said that they had come-visited to grant the food grains to strengthen the host's 10 sense organs, so that he could win. The food grains and the wealth granted by these demigods is excellent. The demigods provide best food grains in the excellent Yagy.
मन्दामहे दशतयस्य धासेर्द्विर्यत्पञ्च बिभ्रतो यन्त्यन्ना। 
किमिष्टाश्व इष्टरश्मिरेत ईशानासस्तरुष ऋञ्जते नॄन्॥
इन्द्रियाँ दस प्रकार की हैं, इसलिए ऋत्विक् लोग दस अवयवों से युक्त अन्न धारण करके गमन करते हैं। हम विश्वदेवों की स्तुति करते हैं। इष्टात्व और इष्टरश्मि नाम के राजा शत्रुतारक वरुणादि का क्या अनिष्ट कर सकते हैं।[ऋग्वेद 1.122.13]
ऋत्विज दस चमसों में रखे सोम रूपी अन्न से पुष्ट करते चलते हैं। अभीष्ट अश्व तथा अभीष्ट रसो वाले प्राणी क्या स्वयं सामर्थ्य वाले हैं?
The sense organs are of ten types. Hence, the host-those performing Yagy, make provision for the food grains containing ten components. We pray to the Vishw Devs. The kings named Ishtatv & Ishtrashmi can not harm the demigods including Varun Dev, who protect the humanity. 
हिरण्यकर्णं मणिग्रीवमर्णस्तन्नो विश्वे वरिवस्यन्तु देवाः। 
अर्को गिरः सद्य आ जग्मुषीरोस्स्राश्चाकन्तूभयेष्वस्मे॥
समस्त देवतागण हमें कानों में स्वर्ण आभूषण व गले में मणियों को धारण किये हुए उत्तम पुत्र प्रदान करें और हमारे द्वारा की गई स्तुतियों और घृताहुतियों को दोनों प्रकार के यज्ञों में यथाशीघ्र अंगीकार करें।[ऋग्वेद 1.122.14]
वे देव ही इन प्राणियों को और इनके विजयशील अश्वों को प्रेरित करते हैं। विश्वेदेवा हमको कानों में स्वर्ण, गर्दन में मणि पहनने वाले सुशोभित पुत्र को देने की कामना करें। 
Let all demigods give us the sons, who wear golden ornaments and jewels in their neck and ears. They should accept our prayers & offerings having Ghee in both types of Yagy as fast as possible-quickly.
चत्वारो मा मशर्शारस्य शिश्वस्त्रयो राज्ञ आयवसस्य जिष्णोः। 
रथो वां मित्रावरुणा दीर्घाप्साः स्यूमगभस्तिः सूरो नाद्यौत्॥
शत्रुओं का नाश करने वाले मशर्शार राजा के चार पुत्र और विजयी आयवस राजा के तीन पुत्र हमें कष्ट देते हैं। हे मित्रावरुण देवो! आप दोनों का विशालकाय व सुख देने वाला रश्मियों से युक्त रथ सूर्य देवता के समान कान्तिमय है।[ऋग्वेद 1.122.15] 
उषा काल में वंदना और हव्य को प्राप्त करें। हे सखा वरुण मशशर सम्राट के चार और आयवश सम्राट के तीन बालकों को अश्व मिले हैं। तुम्हारा अति सुन्दर सुसज्जित रथ सूर्य के तुल्य चमकता है।
The 4 sons of the king Mashrshar  and 3 sons of victorious king Ayvas torture-trouble us. Hey Mitra Varun Devs! Both of you have huge and glittering chariote which shine like the Sun Dev.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (136) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- मित्रा वरुण, छन्द :- अत्यष्टि, त्रिष्टुप्।
प्र सु ज्येष्ठं निचिराभ्यां बृहन्नमो हव्यं मतिं भरता मृळयद्भयां स्वादिष्ठं मृळयद्भयाम्। ता सम्राजा घृतासुती यज्ञेयज्ञ उपस्तुता। अथैनोः क्षत्रं न कुतश्चनाघृषे देवत्वं नू चिदाधृषे
हे मनुष्यों! घृतयुक्त हवियों का सेवन करने वाले मित्र और वरुण देव यज्ञ में स्तुति के योग्य हैं। हम उत्तम श्रद्धा और भक्ति से युक्त होकर उनकी स्तुति करते हैं (क्योंकि उनका क्षात्रबल व देवत्व कभी क्षीण नहीं होता।[ऋग्वेद 1.136.1]
हे मनुष्यों! नमस्कार पूर्वक सखा और वरुण के लिए सोम संपादन करो। वे घृत युक्त हवि यज्ञों में वंदना किये जाते हैं और उनका देवत्व कदापि कम नहीं होता।
Hey humans! Demigods Mitr & Varun who consume the offerings with Ghee deserve prayers-worship. We pray to them with devotion & honour (Their character as a warrior, mighty-power, strength never fades) 
अदर्शि गातुरुरवे वरीयसी पन्था ॠतस्य समयंस्त रश्मिभिश्चक्षुर्भगस्य रश्मिभिः। द्युक्षं मित्रस्य सादनमर्यम्णो वरुणस्य च। अथा दधाते बृहदुक्थ्यं वय उपस्तुत्यं बृहद्वयः
श्रेष्ठ उषा देवी विस्तृत यज्ञ की ओर जाती हैं, ऐसा देखा गया है। शीघ्र गामी सूर्य देव का पथ व्याप्त हुआ है। सूर्य की किरणों से मनुष्य की आँखें खुलती हैं। मित्र, अर्यमा और वरुणदेव तेजस्विता से युक्त हुए हैं। गृह प्रकाश से परिपूर्ण हुए; इसलिए आप दोनों के लिए आहुतियों के रूप में प्रशंसनीय हविष्यान्न अर्पित किया जाता है, जिसे आप अंगीकार करें।[ऋग्वेद 1.136.2]
सूर्य का विशाल मार्ग सिद्धान्त रूप डोरी पर थमा हुआ है। सखा, अर्यमा और वरुण की जगह अत्यन्त उज्ज्वल है। वे वहाँ से श्रेष्ठ शक्ति प्रदान करते हैं।
Usha Devi gradually moves to the site of the Yagy. The path-way of fast moving Sury Dev-Sun has broadened (entire universe is filled with light). The humans open their eyes due to the rays of Sun. Mitr, Aryma & Varun Dev have attained energy-glory. The houses-homes, the site of the Yagy, have been lit with Sun light. Hence, offerings are made for you and you should accept them.
ज्योतिष्मतीमदितिं धारयत्क्षितिं स्वर्वतीमा सचेते दिवेदिवे जागृवांसा दिवेदिवे। ज्योतिष्मत्क्षत्रमाशाते आदित्या दानुनस्पती। मित्रस्तयोर्वरुणो यातयज्जनोऽर्यमा यातयज्जनः
यजमान ने ज्योतिष्मती, सम्पूर्ण लक्षणा और स्वर्ग प्रदायिनी वेदी बनाई। आप लोग सदैव जागरूक रहकर और प्रतिदिन वहाँ उपस्थित होकर तेज और बल प्राप्त करें। आप लोग माता अदिति के पुत्र और सर्व प्रकार का दान देने वाले हैं। मित्र और वरुण लोगों को उत्तम कार्य में लगाते हैं। अर्यमा भी इसी प्रकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.136.3]
धरती की धारक और आसमान से युक्त अदिति की मित्र-वरुण प्रतिदिन सेवा करते हैं। ये दान के दाता आदित्य तेजस्वी हैं। सोम मित्र और वरुण को सुख प्रदान करे।
The host (one conducting Yagy) has constructed the Vedi (structure for making offerings in holy fire), having all virtuous characterises, capable of granting heavens. You should be present there and attain energy & strength. You are the sons of Mata Aditi and able to make all sorts of donations-charity. Mitr, Varun and Aryma inspire the humans to to do pious, truthful, righteous, virtuous deeds. 
अयं मित्राय वरुणाय शंतमः सोमो भूत्ववपानेष्वाभगो देवो देवेष्वाभगः। तं देवासो जुषेरत विश्वे अद्य सजोषसः। तथा राजाना करथो यदीमह ऋतावाना यदीमहे
मित्र और वरुणदेव के लिए यह सोमरस प्रसन्नतादायक हैं। वे दोनों नीचे मुख करके इसका पान करें। दीप्यमान सोम देवों की सेवा के उपयुक्त हैं। समस्त देवगण अतीव प्रसन्न होकर इसका पान करें। हे प्रकाशशाली मित्र और वरुणदेव! आप उत्तम कर्मों की प्रेरणा देने वाले हो, हमारी अभीष्ट कामनाओं को निश्चित रूप से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.136.4]
देवता उससे प्रसन्नचित्त हों, सभी देवता समान अभिलाषा से उसका सेवन करें। वह हमारी इच्छा के अनुसार ही कार्य करें।
This Somras will grant pleasure to Mitr & Varun. They should sip it by lowering their moth. All demigods-Deities should too drink it with extreme pleasure. Hey shinning Mitr & Varun! You inspire us to do virtuous deeds. You should fulfil all our desires-wishes.  
यो मित्राय वरुणायाविधज्जनोऽनर्वाणं तं परि पातो अंहसो दाश्वांस मर्तमंहसः। तमर्यमाभि रक्षत्यृजूयन्तमनु व्रतम्। उक्थैर्य एनोः परिभूषति व्रतं स्तोमैराभूषति व्रतम्
मित्र और वरुण देव के प्रति जो सेवाभाव रखते हैं, उनके द्वारा किये गये कार्यों की आप महिमा वर्णित करते हैं; उनकी वो पापरूपी कर्मों से रक्षा करते करते हैं।[ऋग्वेद 1.136.5]
सखा वरुण की सेवा करने वाले को वे शत्रु और पापों से बचाते हैं। हविदाता की सुरक्षा करते हैं।
Mitr & Varun Dev protect those from sins (wicked-deeds, vices) who possess attitude for serving and describe their glory.
नमो दिवे बृहते रोदसीभ्यां मित्राय वोचं वरुणाय मीळ्हुषे सुमृळीकाय मीळ्हुषे। इन्द्रमग्निमुप स्तुहि द्युक्षमर्यमणं भगम्। ज्योग्जीवन्तः प्रजया सचेमहि सोमस्योती सोमस्योती सचेमहि
मैं प्रकाशशाली और महान् सूर्य को नमस्कार करता हूँ। पृथ्वी, आकाश, मित्र, वरुण और रुद्रदेव को भी नमस्कार करता हूँ। ये सब अभीष्ट फल और सुख देने वाले हैं। आप इन्द्र, अग्नि, दीप्तिमान् अर्यमा और भगदेव की स्तुति कीजिये, क्योंकि ये सभी देव हमें सन्तानादि प्रदान कर हमारी रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.136.6]
जो इनके सिद्धान्तों को मानता हुआ वंदना करता है, उसकी अर्यमा सुरक्षा करते हैं। श्रेष्ठ आकाश धरती, मित्र और वरुण को प्रणाम करता हूँ। हम इन्द्र, अग्नि, अर्थमा, भाग की समीप से वंदना करें और पत्र आदि से युक्त हुए रक्षाओं को प्राप्त करें। देवताओं श्रेष्ठ भाग की समीप से वंदना करें और पुत्र आदि से युक्त हुए रक्षाओं को प्राप्त करें।
I salute the great shinning Sun. I salute the Prathvi-earth, Akash-sky, Mitr, Varun, Rudr Dev as well. They all are capable of granting the desired boon, rewards, pleasure & comforts. You should worship Indr Dev, Agni-fire, shinning Aryma and Bhag Dev; since they grant us progeny and protection-shelter.
ऊती देवानां वयमिन्द्रवन्तो मंसीमहि स्वयशसो मरुद्भिः। अग्निर्मित्रो वरुणः शर्म यंसन्तदश्याम मघवानो वयं च
इन्द्र, अग्नि, मित्र और वरुण देव हमें सुख प्रदान करें। हम देवताओं की कृपा से सुख, यश और बल आदि को प्राप्त करें। हम अन्न से संयुक्त होकर उसी सुख का भोग करें।[ऋग्वेद 1.136.7]
देवताओं की सुरक्षा से हमारी ओर आकृष्ट हुए और उनके साथी मरुतों की प्रशंसा करें। अग्नि वरुण, सखा हमारे आश्रय दाता हैं। उनसे हम अभिष्ट धन ग्रहण करें।
Let Indr, Agni, Mitr & Varun Dev grant us comforts, pleasure. We should gain comfort, honour (name & fame) and strength. We should have plenty of food stuff to enjoy and live comfortably.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (137) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- अतिशक्वरी
सुषुमा यातमद्रिभिर्गोश्रीता मत्सरा इमे सोमासो मत्सरा इमे आ राजाना दिविस्पृशास्मत्रा गन्तमुप नः। इमे वां मित्रावरुणा गवाशिरः सोमाः शुक्रा गवाशिरः
हम पत्थर के टुकड़े से सोम चुआते हैं। हे मित्रावरुण! आप यहाँ पधारें। दूध मिला और तृप्ति करने वाला सोमरस तैयार है। यह सोमरस तृप्ति देने वाला है। आप राजा, स्वर्ग में रहने वाले और हमारे रक्षक है। हमारे यज्ञ में पधारें। आपके ही लिए यह सोमरस दूध में मिलाया गया है, क्योंकि दूध में मिलाया गया सोमरस विशुद्ध होता है।[ऋग्वेद 1.137.1]
हे मित्रावरुण! हमने सोम रस निष्पन्न कर लिया है। तुम दोनों यहाँ पधारकर इस दूध मिश्रित हुए पुष्टि कारक सोम को पियो और हमारे रक्षक बनो।
We have extracted Somras. Hey Mitra Varun! Please come here. Somras mixed in milk is ready for you, enhancing its power & purity. . It grants satisfaction-contentment. You are kingly, our protector, residing in the heaven. Please Join our Yagy.   
इम आ यातमिन्दवः सोमासो दध्याशिरः सुतासो दध्याशिरः। उत वामुषसो बुधि साकं सूर्यस्य रश्मिभिः। सुतो मित्राय वरुणाय पीतये चारुर्ऋताय पीतये
हे मित्रावरुण! यहाँ पधारें। यह अभिषुत तरल सोमरस दही के साथ मिलाया हुआ है। उषा के उदयकाल में ही हो अथवा सूर्य की किरणों के साथ ही हो, आपके लिए यह सोमरस अभिषुत है। यह सुन्दर सोमरस यज्ञस्थल में मित्र और वरुण के पीने के लिए है।[ऋग्वेद 1.137.2]
हे मित्रावरुण! यह सोम दही परिपूर्ण हो। तुम दोनों उषाकाल होते ही पधारो। तुम दोनों के लिए इस अनुष्ठान कार्य में सोम निष्पन्न किया गया है।
Hey Mitr Varun! Please oblige us by joining our Yagy. Pure Somras mixed in curd is ready for you. 
तां वां धेनुं न वासरीमंशुं दुहन्त्यद्रिभिः सोमं दुहन्त्यद्रिभिः। अस्मत्रा गन्तमुप नोऽर्वाञ्चा सोमपीतये। अयं वां मित्रावरुणा नृभिः सुतः सोम आ पीतये सुतः
दुग्धवती गाय की तरह आपके लिए ऋत्विक गण बहुत रस वाले सोमरस को पत्थरों से कूटकर सोमवल्लियों से रस निचोड़ते हैं। आप हमारे रक्षक हैं। सोमपान के लिए हमारे सामने व हमारे पास पधारें। हे मित्र और वरुणदेव! आप दोनों के पीने के लिए ही याज्ञिकों द्वारा सोमरस अभिषुत किया गया है।[ऋग्वेद 1.137.3]
हे मित्रावरुण! तुम दोनों के लिए प्राणियों ने सोम का गौ-दुग्ध के समान दोहन किया है। तुम हमारी रक्षा करने वाले सोमरस का पान करने के लिए हमारी ओर आओ। हमने तुम्हारे पीने के लिए सोम निष्पन्न किया है।
Hey Mitr Varun! The Somras has been extracted for you by crushing the Somvalli (a vine), like the cow's milk. Please oblige us joining us and sipping this, readied for you the organisers of the Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (151) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- मित्र, वरुण, अग्नि, छन्द :- जगती।
मित्रं न यं शिम्या गोषु गव्यवः स्वाध्यो विदथे अप्सु जीजनन्। 
अरजेतां रोदसी पाजसा गिरा प्रति प्रियं यजतं जनुषामवः
गोधनाभिलाषी और स्वाध्याय सम्पन्न यजमानों ने गोधन की प्राप्ति और मनुष्यों की रक्षा के लिए मित्र की तरह प्रिय और यजनीय जिन अग्नि देव को अन्तरिक्ष भव जल के मध्य में कर्म द्वारा उत्पन्न किया, उनकी ध्वनि और तेजोमयी शक्ति से दिव्य लोक अर्थात् स्वर्ग और पृथ्वी लोक कम्पायमान होते हैं।[ऋग्वेद 1.151.1]
ज्योति की कामना से ध्यानरत देवतागण ने जीव मात्र की सुरक्षा के लिए श्लोक तुल्य पूजनीय अग्नि को जलों से रचित किया, प्रकट होने पर उसकी शक्ति और बाणी के प्रभाव से क्षितिज और पृथ्वी कम्पित हो गये।
The earth & the heavens trembled by the sound and energy which were produced by Agni Dev as dear as Mitr to the hosts, who was evolved by the hosts-Ritviz between the space-sky, earth & the water, who were self studying desired cow heard. 
यद्ध त्यद्वां पुरुमीळ्हस्य सोमिनः प्र मित्रासो न दधिरे स्वाभुवः। 
अध क्रतुं विदतं गाआपर्चत उत श्रुतं वृषणा पस्त्यावतः
चूँकि मित्रवत् ऋत्विकों ने आपके लिए अभीष्टदायी और अपने कर्म में समर्थ सोमरस धारण किया है, इसलिए पूजक के घर पधारें। आप अभीष्ट वर्षी है। आप गृह के स्वामी का आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.151.2]
हे मित्रावरुण। ऋत्विजों ने तुम्हारे अभिष्टदायी सोमरस को अर्पित किया। इसलिए साधक के गृह जाकर उसका आह्वान सुनो।
Since, the friendly hosts-Ritviz have extracted Somras for you, which helps in seeking the desired boons-commodities, hence you should visit the house of the devotee. Please listen to the request-prayer of the house holds.  
आ वां भूषन्क्षितयो जन्म रोदस्योः प्रवाच्यं वृषणा दक्षसे महे। 
यदीमृताय भरथो यदर्वते प्र होत्रया शिम्या वीथो अध्वरम्
अभीष्ट वर्षक मित्रावरुण! मनुष्य लोग महाबल की प्राप्ति के लिए द्यावा पृथ्वी से आपके प्रशंसनीय जन्म का कीर्तन करते हैं, क्योंकि आप यजमान के यज्ञ फलरूप मनोरथ को देते हुए स्तुति और हव्य युक्त यज्ञ ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.151.3]
हे मित्रावरुण! तुम्हारी वर्णन योग्य रचना क्षितिज पृथ्वी से बताई गई है। तुम दैवीय सिद्धान्तों का पालन करते हो और अपने आराधकों के लिए प्रकट होते हो। तुम श्रेष्ठ यज्ञों में वंदनाओं द्वारा ग्रहण होते हो।
Hey desire fulfilling Mitra-Varun! The humans pray to the heavens & the earth to attain extreme power & strength, sing the rhymes describing your birth; since you grant the boons to the Ritviz-hosts and accept their offerings. 
प्र सा क्षितिरसुर या महि प्रिय ऋतावानावृतमा घोषथो बृहत्यु। 
युवं दिवो बृहतो दक्षमाभुवं गां न धुर्युप युञ्जाथे अपः
हे पर्याप्त बलशाली मित्रावरुण! जो यज्ञ भूमि आपको प्रिय है, उसकी व्यापक वृद्धि करें। आप दोनों सत्य ज्ञान का उद्घोष करें। जिस प्रकार से बैल हल के जुए में जुड़े होते हैं, उसी प्रकार से आप समस्त मंगल कार्यों में संलग्न होवें।[ऋग्वेद 1.151.4]
हे मित्रवरुण! तुमको यह प्राणी अत्यन्त प्रिय हैं। तुम नियमों की उच्चवाणी में घोषणा करने वाले हो। तुम बैल को धुरे में जोतने के समान विस्तृत आकाश में सामर्थ्य को जोड़ते हो। 
Hey sufficient strength possessing Mitra-Varun! Enhance the Yagy site loved by you. Spell the truth loudly. You should be associated with our pious-righteous endeavours like the bullocks deployed in the plough.
मही अत्र महिना वारमृण्वथोऽरेणवस्तुज आ सद्मन्धेनवः। 
स्वरन्ति ता उपरताति सूर्यमा निम्रुच उषसस्तकरीरिव
हे मित्रावरुण! आप अपनी महिमा से जिन गायों को वरणीय प्रदेश में ले जाते हैं, उन्हें कोई नष्ट नहीं कर सकता। वे दूध देती हैं और गोशाला में लौट आती हैं। जिस प्रकार से चोरी करने वाले को देखकर मनुष्य चिल्लाने लगते हैं, उसी प्रकार ये गायें प्रातःकाल और सायंकाल को उपरिस्थित सूर्य की ओर देखकर चीत्कार करती हैं।[ऋग्वेद 1.151.5]
हे सखा और वरुण! तुम वरणीय धनों को ग्रहण करने वाले हो। गृह में रहने वाली गौएँ सवेरे और सायंकालीन क्षितिज में उड़ते हुए पक्षियों के समान सूर्य को देखती हुई रंभाती हैं।
Hey Mitra-Varun! No one can destroy the cows taken to the places where they are esteemed. They yield milk and return to the cow shed. The way the people start crying siting the thief, the cows start mowing in the morning and evening to be milked. 
आ वामृताय केशिनीरनूषत मित्र यत्र वरुण गाआपर्चथः।
अव त्मना सृजतं पिन्वतं धियो युवं विप्रस्य मन्मनामिरज्यथः
हे मित्रावरुण! आप जिस यज्ञ में यज्ञ भूमि को सम्मान युक्त करते हैं, उसमें केश की तरह अग्नि की शिखा यज्ञ के लिए आपकी पूजा करती है। आप निम्र मुख से वृष्टि प्रदान कर हमारे कर्म को सम्पन्न करें। आप ही मेधावी यजमान की मनोहर स्तुति के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 1.151.6]
हे सखा और वरुण! जब तुम धर्म की राह की उन्नति करते हो, तो यज्ञ में स्थित ज्वालाएँ तुम्हारी वंदना करती हैं। तुम ऋषियों के स्तोत्र के दाता हो। हमारी प्रार्थनाओं की वृद्धि करो।
Hey Mitra-Varun! The flames honour-worship you in the Yagy patronised by you. You shower bliss by lowering your mouths and accomplish our Yagy. You deserve the worship-prayers by the intelligent Ritviz-the hosts.
यो वां यज्ञैः शशमानो ह दाशति कविर्होता यजति मन्मसाधनः। 
उपाह तं गच्छथो वीथो अध्वरमच्छा गिरः सुमतिं गन्तमस्यमयू
जो मेधावी होम निष्पादक और मनोहर यज्ञों के साधन से संयुक्त यजमान यज्ञ के लिए आपके उद्देश्य से स्तुति करते हुए हव्य प्रदान करता है, उस बुद्धिशाली यजमान के लिए यज्ञ में पधारें। हमारे ऊपर अनुग्रह करते हुए हमारी स्तुति स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.151.7]
हे मित्रावरुण! जो स्तोता यज्ञ में तुम्हारे लिए हवि प्रदान करता है और जो श्लोक कवि तुम्हारी वंदना करता है, तुम दोनों उसे प्राप्त होते हुए उसके हवन को सफल बनाते हो। अतः हमारी प्रार्थनाओं को सुनकर यहाँ आओ।
Oblige by visiting the intelligent-prudent hosts in their joint Yagy who felicitate-honour you and make offering. Respond to our prayers and accept our prayers-worships.
युवां यज्ञैः प्रथमा गोभिरञ्जत ऋतावाना मनसो न प्रयुक्तिषु। 
भरन्ति वां मन्मना संयता गिरोऽद्दप्यता मनसा रेवदाशाथे
हे सत्यवादी मित्रावरुण! जिस प्रकार से इन्द्रिय का प्रयोग करने के लिए पहले मन का प्रयोग करना होता है, उसी प्रकार यजमान गण अन्य देवों के पहले गव्य द्वारा आपको पूजित करते हैं। आसक्त चित्त से यजमान लोग आपकी स्तुति करते हैं। आप मन में दर्प न करके हमारे समृद्ध कार्य में उपस्थित हों।[ऋग्वेद 1.151.8]
हे घृत नियमा मित्रावरुण! जो व्यक्ति अपने अनुष्ठानों में हार्दिक भावना से तुम्हारी अर्चना करते हैं वे दृढ़ तपस्या से तुम्हारी वदंना करते हैं। वह तुम्हें ग्रहण हों।
Hey truthful Mitra-Varun! The way the mental make up is there for action by the organs, the Ritviz-priests pray to you prior to the demigods-deities. The hosts worship you with attachment. Please oblige us associating yourself with our endeavours forgetting ego-pride.
रेवद्वयो दधाथे रेवदाशाथे नरा मायाभिरितऊति माहिनम्। 
न वां द्यावोऽहभिर्नेत  सिन्धवो न देवत्वं पणयो नानशुर्मघम्
हे मित्रावरुण! आप दोनों की देवत्व क्षमताओं को आकाश, अहोरात्र, नदियाँ व पणि नामक दैत्य भी अपने हाँथों से स्पर्श नहीं कर सकते, अपनी (सम्पूर्ण) शक्तियों को सुरक्षित करते हुए हमें वैभवपूर्ण उपयोगी सम्पादाएँ प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.151.9]
हे मित्रावरुण! तुम धन से परिपूर्ण शक्ति के धारक हो। मानसिक शक्ति से सुरक्षा साधन परिपूर्ण हुए तुम सर्वश्रेष्ठ बनते हो। दिन, रात, नदियाँ और प्राणी तुमसे देवत्व नहीं प्राप्त कर सके, प्राणधारियों को तुम्हारा हाल भी नहीं मिला।
Hey Mitra-Varun! The parameters-limits of your powers-strength cannot be suppressed or even touched by the sky, Ahoratr (day, night), rivers and the demon called Pani with their hands. You should grant us comforts-luxuries by using your might.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (152) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- मित्र, वरुण, अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
युवं वस्त्राणि पीवसा वसाथे युवोरच्छिद्रा मन्तवो ह सर्गाः। 
अवातिरतमनृतानि विश्व ऋतेन मित्रावरुणा सचेथे
हे स्थूल मित्र और वरुण देव! आप तेजोरूप वस्त्र धारण करें। आपकी सृष्टि सुन्दर और दोष शून्य है। आप सारे असत्य का विनाश करते हुए सत्य के साथ युक्त होवें।[ऋग्वेद 1.152.1]
हे मित्रा वरुण! तुम दोनों तेज रूप वस्त्रों को धारण करते हो, तुम्हारी सृष्टियाँ सुन्दर और छिद्र विमुख हैं। तुम प्रत्येक प्रकार से असत्य से दूर रहते हुए सत्य के मित्र हो।
Hey embodied Mitra-Varun! You wear the dresses in the form of aura. Your creations are defectless and beautiful. You should destroy the falsehood and support the truth.
एतच्चन त्वो वि चिकेतदेषां सत्य मन्त्रः कविशस्त ॠघावान्। 
त्रिरश्रिं हन्ति चतुरश्रिरुग्रो देवनिदो ह प्रथमा अजूर्यन्
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों ही कर्म का अनुष्ठान करते हैं। दोनों सत्यवादी मंत्रित्व निपुण, कवियों के स्तवनीय और शत्रुओं का नाश करने करने वाले हैं। ये पराक्रमी वीर त्रिधारा और चतुर्धारा युक्त शस्त्रों को नष्ट करने वाले हैं। दैवी अनुशासनों की अवहेलना करने वालों का ये सर्वनाश कर देते हैं। ऋषिगण इनके इस कार्य को जानते हैं।[ऋग्वेद 1.152.2]
ऋषियों के वाक्य सच हैं कि सखा वरुण चतुर्गुण शस्त्रों से शोभावान हैं और वे त्रिगुणात्मक शस्त्रों वाले को समाप्त करते हैं। इनके महत्व को कोई नहीं जानता। देव निन्दकों को ये सर्वप्रथम समाप्त करते हैं। पद-रहित उषा पद से युक्त प्राणियों के आगे जाती हैं, इसके कर्म को कौन जानता है?
Hey Mitra-Varun! Both of you undertake endeavours-Karm. Both of you are expert in ministership (counselling, guiding, advising), revered by the poets and destructor of the enemy. These warriors possessing valour destroys the the arms & ammunition directed in 3-4 directions. They vanish those who do not follow the dictated the Mother nature-Maa Bhagwati. The Rishis (saints & sages) are aware of it.
अपादेति प्रथमा पद्वतीनां कस्तद्वां मित्रावरुणा चिकेत। 
गर्भो भारं भरत्या चिदस्य ऋतं पिपर्त्यनृतं नि तारीत्
हे मित्रा-वरुण! पद संयुक्त मनुष्यों के आगे पद शून्या उषा आती हैं, यह जो आपका कर्म है, इसे कौन जानता है? दिवा रात्रि के पुत्र सूर्य देव सत्य की पूर्ति और असत्य का विनाश करके सारे संसार का भार वहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.152.3]
रात का गर्भस्थ पुत्र सूर्य इस संसार का भार वहन करता हुआ सत्य को ग्रहण करता और असत्य को समाप्त करता है।
Hey Mitra-Varun! Who is aware of your actions that makes Usha (without legs) ahead of the humans (two legged)!? Sun born out of the night established the truth, vanish the falsehood and support the universe. 
प्रयन्तमित्परि जारं कनीनां पश्यामसि नोपनिपद्यमानम्। 
अनवपृग्णा वितता वसानं प्रियं मित्रस्य वरुणस्य धाम
हम देखते हैं कि उषा के जार सूर्य देव क्रमागत चलते हैं, कभी भी बैठते नहीं। विस्तृत तेज से आच्छादित सूर्य देव मित्रा-वरुण के प्रिय पात्र है।[ऋग्वेद 1.152.4]
हम प्रशस्त तेज रूप वस्त्र धारी मित्रा-वरुण की जगह की ओर उषाओं की कांति क्षीण करने वाले सूर्य को अगे बढ़ता देखते हैं। मित्रा-वरुण का स्थान कभी पीछे नहीं रहता।
Mitra-Varun accompany Usha & Sury Dev moving sequentially, without rest. Sun possessing the vast-wide aura is a dear companion of Mitra-Varun.
अनश्वो जातो अनभीशुरर्वा कनिक्रदत्पतयदूर्ध्वसानुः। 
अचित्तं ब्रह्म जुजुषुर्युवानः प्र मित्रे धाम वरुणे गृणन्तः
सूर्य देव के न तो अश्व हैं, न लगाम; परन्तु वे शीघ्र गमन शील और अतीव शब्द कर्ता हैं। वे क्रमश: ही ऊपर चढ़ते हैं। संसार इन सब अचिन्तनीय और विशाल कर्मों को मित्र और वरुण देव का मानकर उनकी स्तुति और सेवा करता है।[ऋग्वेद 1.152.5]
बिना अश्व और बिना रस्सी वाला आदित्य प्रकट होते ही ऊँचा चढ़ता और ध्वनि करता है। मित्रा-वरुण के स्थान रूपी सूर्य की मनुष्यगण वंदना करते हैं।
Sun-Sury Dev, without the horses and the strings rises up at a fast speed-pace making sound. The universe worship Mitra-Varun considering this to be their endeavours.
आ धेनवो मामतेयमवन्तीर्ब्रह्मप्रियं पीपयन्त्सस्मिन्नूधन्। 
पित्वो भिक्षेत वयुनानि विद्वानासाविवासन्नदितिमुरुष्येत्
प्रीति प्रदायक गायें विशाल कर्म प्रिय ममता के पुत्र को (मुझे) अपने स्तन से उत्पन्न से दूध तृप्त करें। शब्द ज्ञान के ज्ञाता मित्र और वरुण का उचित पोषण प्राप्त करें। आपकी उपासना से साधक मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ले।[ऋग्वेद 1.152.6]
हे मित्रा-वरुण! स्नेहदायिनी धेनु मुझ ममता के पुत्र को अपने स्तन से रचित दुग्ध पान कराये। धर्म-मार्ग वाले अन्न मांगे और तुम्हारी सेवा करते हुए अनुष्ठान की वृद्धि करें।
Let the loving-affectionate cows feed me with the milk from their udder. We should get suitable nourishment through Mitra-Varun, who are enlightened with the knowledge of words-dictionary. The devotees contain death with the blessings of Mitra-Varun. 
आ वां मित्रावरुणा हव्यजुष्टिं नमसा देवाववसा ववृत्याम्। 
अस्माकं ब्रह्म पृतनासु सह्या अस्माकं वृष्टिर्दिव्या सुपारा
हे देव मित्रा-वरुण! हमारे द्वारा विनम्रता पूर्वक स्तवन किये गये स्तोत्रों को श्रवण कर आप दोनों यहाँ उपस्थित होवें। आहुतियों को ग्रहण करके आप हमें युद्ध में विजय श्री प्रदान करावें और दिव्य वृष्टि अर्थात् सुन्दर वर्षा करके हमें अकाल और दुःख-दरिद्रता से मुक्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.152.7]
हे मित्रावरुण! मैं अपनी रक्षा के लिए प्रणाम पूर्वक हविदान करूँ। हमारी स्तुतियों के प्रभाव से युद्ध में हमारे शत्रु वशीभूत हों तथा अलौकिक वर्षा कर हमको दुःखों से पार लगाएँ।
Hey Mitra-Varun! Kindly accept the prayers recited-sung by us in your honour and come to us. Please accept the offerings and grant us victory in the war-battle. Manage divine rains and free us from famine, sorrow-worries and poverty.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (153) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
यजामहे वां महः सजोषा हव्येभिर्मित्रावरुणा नमोभिः। 
घृतैघृतस्नू अघ यद्वामस्मे अध्वर्यवो न धीतिभिर्भरन्ति
हे जल वर्षक और महान् मित्रा-वरुण! चूँकि हमारे अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) लोग अपने कार्य से आपको पोषण करते हैं; इसलिए हम समान प्रीति युक्त होकर हव्य, घृत और नमस्कार द्वारा आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.153.1]
हे जल रूप घृत वर्षक मित्रावरुण! हम घृत परिपूर्ण हवियों से नमस्कार पूर्वक तुम्हारी आराधना करते हैं। हमारे अध्यवर्यु तुमको हवि भेंट करते हैं।
Hey rain causing Mitra-Varun! Since, our Ritviz (Priests, Purohits) adopt the methods-means described in Yajur Ved for performing Yagy-Hawan for making offerings to you, we too make offerings of ghee and salute you with great love & affection. 
प्रस्तुतिर्वां धाम न प्रयुक्तिरयामि मित्रावरुणा सुवृक्तिः। 
अनक्ति यद्वां विदथेषु होता सुम्नं वां सूरिर्वृषणावियक्षन् 
हे मित्रा-वरुण! हम आपका स्तवन करते हैं और सदैव आपका ही ध्यान करते हैं। ज्ञानी याजक आप दोनों की स्तुति करते हैं। वे आपके आनन्द प्राप्ति की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 1.153.2]
हे मित्रा-वरुण तुम्हारी प्रार्थना तेज की प्रेरक है। इसलिए मैं श्रेष्ठतम वंदनाओं से तेज ग्रहण करता जो होता तुम्हें अर्चन करने की कामना करता और तुम्हें हर्षित करना चाहता है वह अनुष्ठान में तुमको घृत से परिपूर्ण हवि देता है।
Hey Mitra-Varun! We recite hymns-rhymes, prayers in your honour and always meditate-concentrate in you. The enlightened devotees, performing Yagy pray to both of you. They make efforts to amuse-please you.
पीपाय धेनुरदितिर्ऋताय जनाय मित्रावरुणा हविर्दे। 
हिनोति यद्वां विदथे सपर्यन्त्स रातहव्यो मानुषो न होता
हे मित्रा-वरुण! जब हम हवि प्रदत्त करने वाले मननशील होता आपकी अर्चना करते हुए यज्ञ में आहुतियाँ प्रदान करते हैं तब आप दोनों ही सत्य मार्ग पर सुदृढ़ रहने वाले और हव्य प्रदान करने वाले साधकों को आपकी पोषक किरणें हर प्रकार का सुख प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.153.3]
हे मित्रा-वरुण! "रातहव्य" के यज्ञ कर्म से प्रसन्न हुए तुमने उसकी गौ को दूध देने वाली किया था। वैसे ही यजमान तुम्हें हवि देता हुआ अपनी गौओं को अत्याधिक दूध वाली होने की याचना करता है।
Hey Mitra-Varun! Favourable waves-vibrations from you, grant bliss-pleasure to the devotees-us, when we-the thoughtful, make offerings to you, adopting rigidly (with firm determination), the path of truth making offerings in the Yagy.
उत वां विक्षु मद्यास्वन्धो गाव आपश्च पीपयन्त देवीः। 
उतो नो अस्य पूर्व्यः पतिर्दन्वीतं पातं पयस उस्त्रियायाः
हे मित्र और वरुणदेव! दिव्य गौएँ, अन्न और जल आपके भक्त यजमानों के लिए, आपको प्रसन्न करें। हमारे यजमान के पूर्व पालक अग्नि देव दानशील हों और आप क्षीर वर्षिणी गाय का दूध पीवें।[ऋग्वेद 1.153.4] 
क्षीर :: दुध-पय, क्षीरसार-मक्खन, द्रव या तरल पदार्थ, जल-पानी, पेड़ों का रस या दूध, निर्यास, खीर, सरल नामक वृक्ष का गोंद।
क्षीरधि :- समुद्र, क्षीर सागर, दूध का समुद्र।
क्षीरनिधि :- समुद्र; सागर।
क्षीरनिधिशायी :- भगवान् श्री हरी विष्णु।
क्षीर सागर :- पुराण वर्णित सात समुद्रों में से एक समुद्र, पुराणवर्णित  दूध से भरा हुआ समुद्र जिसमें भगवान् नारायण शेष शय्या पर सोते हैं, क्षीरनिधि।
आक्षीर :- वनस्पति का दूध; पेड़-पौधों के तनों या पत्तों से निकलने वाला सफ़ेद गाढ़ा द्रव्य।
नीरक्षीर :- पानी और दूध।
नीरक्षीर विवेक :- अच्छाई और बुराई में अंतर करने की क्षमता, सम्यक न्याय का विवेक।
हे स्त्री-पुरुषों! आपके गज और साधनों की वृद्धि हो। आपको पर्याप्त गौ दुग्ध प्राप्त हो जिससे शरीर हर प्रकार से पुष्ट रहे।
Hey Mitra-Varun! Let the divine cows, food grains and water make your devotees happy. Nurturer of our Ritviz, the earlier nurturer Agni Dev be charitable and drink the milk of cows.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- विश्वामित्र, देवता :- मित्र, आदित्य, छन्द :- त्रिष्टुप्, गायत्री
मित्रो जनान्यातयति ब्रुवाणो मित्रो दाधार पृथिवीमु॒त द्याम्।
मित्रः कृष्टीरनिमिषाभि चष्टे मित्राय हव्यं घृतवज्जुहोत
स्तुत होने पर देवता सकल लोक को कृष्यादि कार्य में प्रवर्तित करते हैं। वृष्टि द्वारा अन्न और यज्ञ को उत्पन्न करते हुए मित्र देवता पृथ्वी और द्युलोक दोनों को धारित करते हैं। कर्मवान् मनुष्यों को चारों ओर से मित्र देवता अनुग्रह दृष्टि से देखते हैं। मित्र देव के निमित्त घृत विशिष्ट हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.59.1]
देवगण उपासित होने पर समस्त संसार को कृषि आदि कार्यों के लिए प्रेरित करते हैं। वृष्टि द्वारा अन्न आदि को रचित करने वाले सखा, देवता, धरा और अम्बर दोनों को धारण करने वाले हैं। वे सखा देवता कार्य वाले मनुष्यों को सभी प्रकार से कृपा दृष्टि से देखते हैं। उन सखा देव के लिए घृत परिपूर्ण हवियाँ प्रदान करो। 
On being worshiped, prayed the demigods-deities inspire the entire world to perform agriculture and other professions. Mitr Dev evolve the crops and Yagy, supporting the earth & heavens. Mitr helps-bless the endeavourers. Let the offerings made to Mitr Dev be specially prepared by mixing Ghee.
प्र स मित्र मर्तो अस्तु प्रयस्वान्यस्त आदित्य शिक्षति व्रतेन।
न हन्यते न जीयते त्वोतो नैनमंहो अश्नोत्यन्तितो न दूरात्
हे आदित्य! यज्ञ युक्त होकर जो मनुष्य आपको मित्र देव के साथ हविष्यान्न प्रदान करता है, वह अन्नवान होता है। आपके द्वारा रक्षित होकर वह मनुष्य किसी से भी विनष्ट और अभिभूत नहीं होता। आपको जो हवि देता है, उस पुरुष को दूर अथवा निकट से पाप छू नहीं सकता।[ऋग्वेद 3.59.2]
हे आदित्य! तुम्हें मित्र के साथ जो प्राणी हवियाँ प्रदान करता है, वह अन्न दाता हो। जो प्राणी तुम्हारा रक्षक है, उसकी हिंसा कोई नहीं कर सकता। तुम्हारे लिए जो प्राणी हवि देता है, उसके पास पाप नहीं फटकता। 
Hey Adity! A person who makes offerings to you along with Mitr Dev for the Yagy become self sufficient in food grains. A person protected by you is never destroyed-killed and is not affected by the sins. One who makes offerings to you is free from sins either from far or near.
अनमीवास इळया मदन्तो मितज्ञवो वरिमन्ना पृथिव्याः।
आदित्यस्य व्रतमुपक्षियन्तो वयं मित्रस्य सुमतौ स्याम
हे मित्र! रोग वर्जित होकर अन्न लाभ से हर्षित होकर और पृथ्वी के विस्तीर्ण प्रदेश में मितजानु होकर हम सर्वत्र गामी सूर्य के व्रत (कर्म) के निकट अवस्थिति करते हैं। हम लोगों के ऊपर सूर्य देव सदैव अनुग्रह करते रहें।[ऋग्वेद 3.59.3]
अनुग्रह :: मेहरवानी, कृपा; grace, favour.
हे सखा! हम व्याधियों से बचें, अन्न प्राप्ति द्वारा पुष्ट हों। हम इस विशाल धरा पर अपनी जाँघों को सिकोड़कर आदित्य के व्रत का पोषण करते हैं। वे आदित्य हमारे प्रति अपनी कृपा दृष्टि रखें।
May we, exempt from disease, rejoicing in abundant food stuff, roaming free over the wide-expanse of the earth, diligent in the worship of Adity-Sun, ever be in the grace-favour of Mitr.
Hey Mitr Dev! Let us be protected from ailments-diseases, become happy due to the receipt of food grains, in the broad area-region of the earth, sitting contracting our thighs, observe fast for Adity Dev-Sun. Let Sun always favour us.
अयं मित्रो नमस्यः सुशेवो राजा सुक्षत्रो अजनिष्ट वेधाः।
तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्याम
नमस्कार योग्य, सुन्दर मुख विशिष्ट, स्वामी, अत्यन्त बल विशिष्ट और सभी के विधाता ये सूर्य देव प्रादुर्भूत हुए हैं। ये यज्ञार्ह हैं। इनके अनुग्रह और कल्याणकर वात्सल्य को हम याजकगण प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 3.59.4]
यह आदित्य सुन्दर प्रकाश वाले पराक्रम में पड़े हुए, सबके दाता तथा प्रणाम करने योग्य हैं। हम यजमान इनकी दया और कल्याणकारी वात्सल्य भाव को प्राप्त करें। उन श्रेष्ठ संसार के प्रवर्तक आदित्यों की नमस्कारों से परिपूर्ण उपासना करनी चाहिए, वंदना करने वालों से वे आदित्य हर्षित होते हैं।
Sun who deserve worship-prayers, possess beautiful face, specific powers-might and the destiny of all, has evolved-arisen. He has arisen for Yagy to commence. Let us-the Ritviz, devotees attain his favours and affection.
महाँ आदित्यो नमसोपसद्यो यातयज्जनो गृणते सुशेवः।
तस्मा एतत्पन्यतमाय जुष्टमग्नौ मित्राय हविरा जुहोत
जो आदित्य देव महान हैं, जो सकल लोक के प्रवर्त्तक हैं, नमस्कार द्वारा उनकी उपासना करना उचित है। वे प्रार्थना करने वालों के प्रति प्रसन्न मुख होते हैं। स्तुति योग्य मित्र के लिए प्रीतिकर हवियाँ अग्नि में समर्पित करें।[ऋग्वेद 3.59.5]
हे वंदना कारियों! सखा देवता वंदना के पात्र हैं, उनके लिए स्नेहदायक हवियाँ अग्नि में अर्पित करो।
Its proper to worship-pray to the Sun who is the inspirer of all abodes, with salutations. He become happy with those, who pray-worship him. Let us make offerings for Mitr Dev deserving worship-prayers in the sacred fire.
मित्रस्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि। द्युम्नं चित्रश्रवस्तमम्
जल वृष्टि द्वारा मनुष्यों के धारक मित्र देव का अन्न और सभी के द्वारा भजनीय धन अतिशय कीर्ति युक्त है।[ऋग्वेद 3.59.6]
वर्षा के द्वारा प्राणियों को धारण करने वाले सखा देवता का प्रभाव अन्न आदि धन, यश और ज्ञान से परिपूर्ण होकर सभी के लिए सेवन करने योग्य तथा प्रदान करने वाला हो।
The food grains and wealth-riches of Mitr Dev, who is the supports-nurture the humans by making rain fall, deserve appreciation, glory & honour. 
अभि यो महिना दिवं मित्रो बभूव सप्रथाः। अभि श्रवोभिः पृथिवीम् 
जिन मित्र देव ने अपनी महिमा से द्युलोक को अभिभूत किया, उसी ने कीर्त्ति युक्त होकर पृथ्वी को प्रचुर अन्न विशिष्टा भी किया।[ऋग्वेद 3.59.7]
मित्र देवता ने अपनी महत्ता से नभ को वशीभूत किया है। उन्होंने कर्मों द्वारा अत्यन्त यशस्वी पृथ्वी को सेवन योग्य अन्न से युक्त किया।
Renowned Mitr Dev, who by his might presides over heavens, is the one who presides over the earth as well by the gifting of food grains-stuff.
Mitr Dev has pervaded the heavens-sky with his glory-greatness. He prepared the earth to produce food grains.
मित्राय पञ्च येमिरे जना अभिष्टिशवसे। स देवान्विश्वान्विभर्ति
निषाद को लेकर पाँचों वर्ण शत्रु जयक्षम और बल विशिष्ट मित्र के उद्देश्य से हव्य प्रदान करते हैं। वे मित्र देव अपने स्वरूप से समस्त देवगणों को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 3.59.8]
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा निषाद यह पाँचों वर्ण शत्रुओं को विजय करने की क्षमता वाले सखा के प्रति सम्मान को प्रदर्शित करें। वे सखा अपने स्वरूप द्वारा ही समस्त देवों का पोषण करते हैं।
Let the 5 Varn :- Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr & Nishad honour-revere make offerings for Mitr Dev, who wins over the enemy. He support-nourish the demigods-deities with his powers.
मित्रो देवेष्वायुषु जनाय वृक्तबर्हिषे। इष इष्टव्रता अकः
देवों और मनुष्यों के बीच में जो व्यक्ति कुशच्छेदन करता है, उसे मित्र देव कल्याणकारी अन्नादि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 3.59.9]
प्राणी विद्वानों, देवगणों एवं अन्य प्राणियों के कुश को काट कर लाता है, वह मित्र देवता उसके लिए कल्याणकारी अन्न देते हैं।
Mitr Dev is the deity who among demigods-deities and humans bestows food as the reward of pious acts upon the man who has prepared for him the lopped sacred grass-Kush.
A person who cuts Kush-sacred grass between the demigods-deities & the humans, is rewarded by Mitr Dev with beneficial food grains.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- विश्वामित्र, जमदग्नि,  देवता :- इन्द्रा-वरुण, बृहस्पति, पूषा, सविता, सोम, मित्रा-वरुण, , छन्द :- त्रिष्टुप, गायत्री
इमा उ वां भृमयो मन्यमाना युवावते न तुज्या अभूवन्।
क्व १ त्यदिन्द्रावरुणा यशो वां येन स्मा सिनं भरथः सखिभ्यः
हे इन्द्रा-वरुण! शत्रुओं को वश में करने वाले आपके गतिशील शस्त्र सज्जनों की रक्षा करने वाले हैं, वे किसी के द्वारा नष्ट न हों। आप जिससे अपने मित्र बन्धुओं को अन्नादि प्रदत्त करते हैं, वह यश कहाँ स्थित है?[ऋग्वेद 3.62.1]
हे इन्द्रा-वरुण! सभी को ढकने वाले अंधकार के समान सभी को वशीभूत करने वाले तुम दोनों की विचरणशील क्रियाएँ जानी जाती हैं। वे क्रियाएँ तुम्हारे तपस्वियों के लाभ के लिए हैं तथा किसी तरह भी पतन के योग्य नहीं हैं। 
हे इन्द्रा-वरुण! तुम्हारी यह कीर्ति और तेज कहाँ है? जिसके द्वारा तुम सखाओं के लिए अन्न और शक्ति की वृद्धि करते हो। 
Hey Indr-Varun! Let your dynamic Shastr-weapons, which protect the gentle men & keep the enemies under control, never be destroyed by any one. Where is your might-power with which you grant food grains to the friends, relatives?!
अयमु वां पुरुतमो रयीयञ्छश्वत्तममवसे जोहवीति।
सजोषाविन्द्रावरुणा मरुद्भिर्दिवा पृथिव्या शृणुतं हवं मे
हे इन्द्रा-वरुण! धन की इच्छा करने वाले ये महान् याजक गण अन्न के लिए आप दोनों का सदैव आह्वान करते हैं। मरुद्गण, द्युलोक और पृथ्वी के साथ मिलकर आप दोनों मेरी प्रार्थना का श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.62.2] 
हे इन्द्रा-वरुण! धन की अभिलाषा करने वाले यह साधक तुम दोनों को अन्न की प्राप्ति के लिए आमंत्रित करते हैं। हे मरुतों! आकाश और धरती से संगत तुम मेरे श्लोकों को श्रवण करो।
Hey Indr Varun! The great Ritviz always invoke you for wealth & food grains. Marud Gan, heavens, earth and both of you listen-respond to my prayers-requests.
अस्मे तदिन्द्रावरुणा वसु ष्यादस्मे रयिर्मरुतः सर्ववीरः।
अस्मान्वरूत्रीः शरणैरवन्त्वस्मान्होत्रा भारती दक्षिणाभिः
हे इन्द्रा-वरुण! हम लोगों को उसी अभिलषित धन की प्राप्ति हो। हे मरुद्गण! सर्वकर्म-समर्थ पुत्र और पशुसंघ हम लोगों पास हो। सभी के द्वारा भजनीय देव पत्नियाँ द्वारा हम लोगों की रक्षा करें। होत्रा भारती उदार वचनों द्वारा हम लोगों का पालन करें।[ऋग्वेद 3.62.3]
हे इन्द्रा-वरुण! हमको शक्ति, अलौकिक ऐश्वर्य प्राप्त हो। तुम्हारी रक्षित सेनाएँ अपने शत्रु नाशक साधनों तथा शत्रुओं द्वारा हमारी रक्षा करें। सबका पालन करने वाली, प्रदान करने योग्य और उदार वचनों द्वारा हमारा पोषण करें।
Hey Indr Varun! Grant us divine wealth, comforts, luxuries and power. Hey Marud Gan! We should be blessed with sons capable of performing all sorts of endeavours-Karm and cattle. Let the revered-honoured by all, wives of the demigods-deities protect-nourish us with sweet-encouraging words. 
बृहस्पते जुषस्व नो हव्यानि विश्वदेव्य। रास्व रत्नानि दाशुषे
हे समस्त देवताओं के हितकर बृहस्पति देव! हम लोगों के पुरोडाश (हवि) आदि का सेवन करें। तदनन्तर हवि देने वाले याजक गण को आप उत्तम धन दें।[ऋग्वेद 3.62.4]
हे बृहस्पते! तुम सभी सज्जनों को भलाई करने वाले हो। हमारे द्वारा दी जाने वाली हवि को स्वीकृत करो। हविदाता यजमान को महान तथा रमणीय धन प्रदान करो।
Hey well wisher of demigods-deities Brahaspati Dev! Eat the Purodas offered by us. Thereafter, grant wealth to the Ritviz-organisers of the Yagy. 
शुचिमर्कैर्बृहस्पतिमध्वरेषु नमस्यत। अनाम्योज आ चके
हे ऋत्विको! आप लोग यज्ञ-समूह में अर्चनीय स्तोत्रों द्वारा विशुद्ध बृहस्पति की परिचर्या करें। मैं शत्रुओं द्वारा अपराजेय बल व पराक्रम की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.62.5]
हे ऋत्विजों! तुम महान श्लोकों द्वारा बृहस्पति को यज्ञ आदि शुभ कर्मों के मौकों पर प्रणाम द्वारा अर्चना करो। मैं उनसे ही शत्रु द्वारा कभी न झुकाए जा सकने वाले पराक्रम की याचना करता हूँ।
Hey Ritviz! Pray to Brahaspati Dev with the worship able sacred Strotr-hymns. I request power & might to be a winner against the enemy.
वृषभं चर्षणीनां विश्वरूपमदाभ्यम्। बृहस्पतिं वरेण्यम्
मनुष्यों के लिए अभिमत फल वर्षक, विश्वरूप नामक गोवाहन से युक्त अतिरस्करणीय और सभी के द्वारा भजनीय बृहस्पति देव के निकट मैं अभिमत फल की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.62.6]
समस्त व्यक्तियों में सभी सुखों की वर्षा करने में समर्थ, सभी आदर पाने योग्य, किसी के द्वारा भी हिंसित न होने वाले, शक्तिशाली सभी पर कृपा दृष्टि करने वाले उत्तम मार्ग पर शिक्षा देने वाले बृहस्पति सभी पदार्थों के जानने वाले हैं। उनको नमस्कार करो।
I worship-pray to the showerer of benefits over the humans, the omni form, the irreproachable, the excellent Brahaspati Dev.
I pray-request to Brahaspati Dev who is revered-honoured by all (the demigods-deities & the demons as well) grant-accomplish unlimited desires of the humans
इयं ते पूषन्नाघृणे सुष्टुतिर्देव नव्यसी। अस्माभिस्तुभ्यं शस्यते
हे दीप्तिमान् पूषा! ये नीवनतम और शोभन स्तुति रूप वचन आपके लिए का उच्चारण हम लोग आपके लिए ही करते हैं।
हे पूषन! तुम सभी तरह से प्रकाशमान तथा प्रत्येक सुख की वर्षा करने में समर्थ हो। तुम्हारा वह अत्यन्त नया श्लोक सदैव वंदना करने के योग्य हो। इस उत्तम वंदना को हम तुम्हारे प्रति हमेशा उच्चारण करते रहें।
Hey radiant showerer of comforts Pusha Dev! We recite these excellent verses-hymns, compositions-Strotr in your honour.
तां जुषस्व मिरं मम वाजयन्तीमवा धियम्। वधूयुरिव योषणाम्
हे पूषा! मेरी उस प्रार्थना को स्वीकार करें। स्वीकार स्त्री के अभिमुख आगमन करता है, उसी प्रकार आप इस हर्षकारिणी प्रार्थना के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 3.62.8]
पत्नी की इच्छा करने वाला मनुष्य जैसे चाहत करने वाली रमणी को स्नेह पूर्वक स्वीकार करता है। वैसे ही हे पूजन! मेरी उस ज्ञानमय तथा सत्यासत्य को जानने वाली और उत्तम धनावती मंत्र युक्त बुद्धि को स्नेह भावना पूर्वक स्वीकृत करो।
Hey Pusha Dev! Respond-accept our prayers, with the enlightened, truthful words, the way a person desirous of companion-wife does it.  
यो विश्वाभि विपश्यति भुवना सं च पश्यति। स नः पूषाविता भुवत्
जो पूषा निखिल लोक को विशेष रूप से देखते हैं और उसे देखते हैं, वे ही पूषा हम लोगों का रक्षण करें।[ऋग्वेद 3.62.9]
जो पूषा सभी लोकों को समान रूप से देखते हैं तथा समस्त संसार को विविध दृष्टिकोण से देखते हैं, वह हमारे पोषक तथा सभी तरह से हमारे रक्षक हैं।
Let Pusha Dev who looks at the entire universe uniformly, nourish & protect us. 
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् 
जो सविता हम लोगों की बुद्धि को प्रेरित करता है, सम्पूर्ण श्रुतियों में प्रसिद्ध उस द्योतमान जगत्स्रष्टा परमेश्वर के संभजनीय परब्रह्मात्मक तेज का हम लोग ध्यान करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.10]
जो सविता देव हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रेरित करते हैं, उन पूर्ण तेजस्वी, सर्व-प्रकाशक, सर्वदाता, सर्वज्ञाता, सर्वश्रेष्ठ, परमात्मा के उस दिव्य-महान पापों का पतन करने वाले, तेज को धारण करते हुए उसी का ध्यान करें।
Savita Dev inspire-direct our mind-intelligent towards the virtuous, righteous, pious way. We should meditate-concentrate in the creator of the universe aware of all, Almighty, destroyer of sins.  
देवस्य सवितुर्वयं वाजयन्तः पुरन्ध्या। भगस्य रातिमीमहे
हम लोग धनाभिलाषी होकर स्तुति द्वारा द्योतमान सविता से भजनीय धन के दान की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.11]
हम सर्वप्रकाश, तेजोमय, सभी ऐश्वर्यों को देने वाले, सबके भजने योग्य, कल्याण रूप, सुखकारी सविता देव की दान बुद्धि की अन्न, बल और धन की इच्छा करते हुए धारणा सामर्थ्य से युक्त प्रार्थना द्वारा विनती करते हैं।
Desirous of wealth, we worship radiant Savita Dev. 
देवं नरः सवितारं विप्रा यज्ञैः सुवृक्तिभिः। नमस्यन्ति धियेषिताः
कर्म नेता मेधावी अध्वर्यु गण बुद्धि द्वारा प्रेरित होकर यजनीय हवि और शोभन स्तोत्रों द्वारा सविता देवता की अर्चना करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.12]
मेधावीजन महान कार्यों में प्रेरित करने वाली मति की शिक्षा से दोषों का समूल पतन करने में समर्थ, यज्ञादि महान कार्यों में प्रकाशक, सर्वप्रेरक तथा रचयिता सविता देव को नमस्कार और अर्चन करते हैं।
The enlightened-intellectual Ritviz guided-inspired by their mind-brain, make offerings and pray to Savita Dev with decent Strotr-hymns. 
सोमो जिगाति गातुविद्देवानामेति निष्कृतम्। ऋतस्य योनिमासदम्
पथज्ञ सोम जाने वालों को स्थान दिखाते हैं। उपवेशन कारी देवों के लिए श्रेष्ठ यज्ञ-स्थान में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.13]
सोम मेधावी जनों की प्रशंसा करता हुआ अनेक साधन सम्पन्न कर्मों के कारण उनकी शरण को प्राप्त करता है। वह अत्यन्त तुष्ट और सत्य के आश्रय से यज्ञ स्थान को जाता है।
Som, aware of the right path, proceeds by it; to the excellent seat of the demigods-deities, the place of sacrifice-Yagy.
Som aware of the right path, follows it & guide the intellectuals to the excellent Yagy spot for the demigods-deities.  
सोमो अस्मभ्यं द्विपदे चतुष्पदे च पशवे। अनमीवा इषस्करत् 
हे सोम! हम स्तोताओं के लिए एवम् द्विपदों, चतुष्पदों और पशुओं के लिए रोग रहित अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.62.14]
वह सोम हम दो पैर वाले मनुष्य के लिए तथा चार पैर वाले पशुओं के लिए भी व्याधि विमुख, स्वास्थ्यप्रद अन्नों को रचित करने में समर्थवान हो।
Hey Som Dev! Let us grant the Ritviz food grains for the double hoofed, four hoofed and the humans which can keep them free from ailments-diseases.  
अस्माकमायुर्वर्धयन्निभिमातीः सहमानः। सोमः सधस्थमासदत्
हे सोम देव! हम लोगों की आयु को बढ़ाते हुए और कर्म विघातक शत्रुओं को अभिभूत करते हुए हम लोगों के यज्ञस्थान में प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 3.62.15]
वह सोम हमारी आयु में वृद्धि करता हुआ तथा शरीर की समस्त व्याधियों को शत्रु के समान पतन करता हुआ हमारे अनुष्ठान स्थान में हमारे साथ आकर निवास करें।
Hey Som Dev! Enhance our longevity & control-over power the enemies who create hurdles in our endeavours; establishing yourself at the Yagy site along with us. 
आ नो मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिमुक्षतम्। मध्वा रजांसि सुक्रतू
हे शोभन कर्मकारी मित्रा-वरुण! हम लोगों के गोष्ठ को दुग्ध पूर्ण करें। हम लोगों के आवास स्थान को मधुर रस से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.62.16]
गोष्ठ :: गोशाला, एक ही प्रकार के पशुओं के रहने का स्थान जैसे :- अश्व गोष्ठ) गउशाला, गोआरी, गोकुल, गोठ, गोवारी, गोशाला, गोष्ठ, बथान, संदानिनी, संधानिनी, सन्दानिनी, सन्धानिनी; cow barn, cow house, cowshed, byre.
हे मित्रा-वरुण! तुम दोनों हमारे बीच में उत्तम कार्यों को करते हुए श्रेष्ठ आचरणों द्वारा ज्ञान युक्त मधुर वचनों से लोकों को सींचों।
Hey auspicious deeds performing Mitra-Varun! Let our byre have cattle yielding milk. Let our house have plenty of sweet sap (juices). 
उरुशंसा नमोवृधा मह्ना दक्षस्य राजथः। द्राघिष्ठाभिः शुचिव्रता 
हे विशुद्ध कर्मकारी मित्रा-वरुण! आप हविष्यान्न और स्तुतियों द्वारा पुष्ट होकर गरिमामय यश को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.17]
हे मित्रा-वरुण! तुम दोनों अत्यन्त शुद्ध व्यवहार कराने वाले हो। तुम प्रशस्त वंदनाओं से परिपूर्ण नमस्कार पूर्वक किये जाते हुए वृद्धि को ग्रहण होते हो। तुम अपनी अत्यन्त मनुष्यार्थ परिपूर्ण बल तथा शक्ति और ज्ञान के श्रेष्ठ सामर्थ्य से सुशोभित होओ। 
Hey righteous, virtuous, pious deeds performing Mitra-Varun! You attain glory, honour being nourished with offerings of food grains and Strotr-sacred hymns.
गृणााना जमदग्निना योनावृतस्य सीदतम्। पातं सोममृतावृधा
हे मित्रा-वरुण! आप दोनों जमदग्नि नामक महर्षि द्वारा या अग्नि को प्रज्वलित करने वाले विश्वामित्र द्वारा प्रार्थित होकर यज्ञ देश में विराजें और प्रस्तुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.62.18] 
हे मित्रा-वरुण! तुम प्रज्वलित अग्नि के समान सत्य को प्रकाशित करने वाले ज्ञानी के द्वारा उपदेश करते हुए परिपूर्ण हुए गृह के समान पधारो। दोनों सत्य के बल से प्राप्त हुए सोम रस का पान करो।
Hey Mitra-Varun! Being requested-invited either by Maharshi Jamdagni or by Vishwa Mitr come to the Yagy site and drink the Somras.
महश्चर्कर्म्यर्वतः क्रतुप्रा दधिक्राव्णः पुरुवारस्य वृष्णः।
ये पूरुभ्यो दीदिवासं नाग्निं ददथुर्मित्रावरुणा ततुरिम्
हम यज्ञ सम्पन्न करने वाले हैं। हम बहुतों द्वारा वरणीय, महान और अभीष्ट वर्षी दधिक्रा देव की प्रार्थना करते हैं। हे मित्रा-वरुण! आप दोनों दीप्तिमान अग्नि देव के तुल्य स्थित तथा त्राणकर्ता दधिक्रा देव को मनुष्यों के उपकार के लिए धारित करते है।[ऋग्वेद 4.39.2]
हम अनुष्ठान कर्म के संपादन कर्त्ता हैं। अनेकों द्वारा वरण किये जाने वाले अभिलाषा की वर्षा करने वाले दधिक्रा देव की हम वंदना करते हैं। हे मित्रा-वरुण! तुम दैदीप्यमान अग्नि के समान दुःखों से पार लगाने वाले दधिक्रा देव को प्राणियों के हितार्थ धारण करने वाले हो।
We intend to organise a Yagy. We worship great Dadhikra Dev adorned by many people, who  accomplish our desires-needs. Hey Mitra-Varun! You support Dadhikra Dev who relieve us from trouble, like the aurous Agni Dev for the welfare of humans.
यो अश्वस्य दधिक्राव्णो अकारीत्समिद्धे अग्ना उषसो व्युष्टौ।
अनागसं तमदितिः कृणोतु स मित्रेण वरुणेना सजोषाः
जो याजकगण उषा के प्रकाशित होने पर अर्थात प्रभात होने पर और अग्नि देव के समिद्ध होने पर अश्व रूप दधिक्रा की प्रार्थना करते हैं, मित्र, वरुण और अदिति के साथ दधिक्रादेव उस याजकरण को निष्पाप करें।[ऋग्वेद 4.39.3]
जो यजमान उषाकाल में अग्नि प्रज्जवलित होने पर घोड़े रूप दधिक्रा का पूजन करते हैं, उनकी सखा, वरुण, अदिति और दधिक्रा पापों से बचावें।
Those Ritviz-hosts, who worship Dadhikra Dev; when Agni Dev is being ignited with the day break, he makes them sinless in association with Mitr, Varun & Aditi.
दधिक्राव्ण इष ऊर्जो महो यदमन्महि मरुतां नाम भद्रम्।
स्वस्तये वरुणं मित्रमग्नि हवामह इन्द्रं वज्रबाहुम्
हम अन्न साधक, बल साधक, महान और स्तोताओं के कल्याण कारक दधिक्रा देव के नाम की प्रार्थना करते हैं। कल्याण के लिए हम वरुण, मित्र, अग्नि और वज्रबाहु इन्द्र देव का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.39.4]
अन्न का साधन करने वाले, प्रार्थना। करने वालों का मंगल करने वाले श्रेष्ठ दधिक्रा देव का नाम संकीर्तन करते हैं। सुख की प्राप्ति के लिए हम मित्र वरुण, अग्नि में व्रज धारण करने वाले इन्द्र देव को आमंत्रित करते हैं।
We worship Dadhikra Dev who is the provider of food grains, great and beneficial to hosts-devotees. We invoke Mitr Dev, Varun Dev, Agni Dev and Indr Dev wielding Vajr.
WIELD :: रखना, चलाना, बरतना, हिलाना, सँभालना, फिराना, प्रबंध करना, काम में लगाना, हाथ लगाना, उपयोग करना; hold, to have and use power, authority, to hold and be ready to use a weapon.
इन्द्रमिवेदुभये विह्वयन्त उदीराणा यज्ञमुपप्रयन्तः।
दधिक्रामु सूदनं मर्त्याय ददथुर्मित्रावरुणा नो अश्वम्
जो युद्ध करने के लिए पराक्रम करते हैं और जो यज्ञ आरम्भ करते हैं, वे दोनों ही इन्द्र देव के तुल्य दधिक्रा देव का आह्वान करते हैं। हे मित्रा-वरुण! आप मनुष्यों के प्रेरक अश्व स्वरूप दधिक्रा देव को हमारे लिए धारित करें।[ऋग्वेद 4.39.5]
जो युद्ध को तैयार करते हैं और जो यज्ञ कर्म करते हैं, वह दोनों ही इन्द्र के समान दधिक्रा देव को आमंत्रित करते हैं। हे मित्रा-वरुण! तुम मनुष्यों को शिक्षा प्रदान करने वाले अश्व के रूप वाले दधिक्रा देव को हमारे लिए धारण करो।
Those who make efforts for the war & those who begin Yagy, both invoke Dadhikra Dev just like Indr Dev. Hey Mitra-Varun! You support Dadhikra Dev-in the form of horse, who inspire humans.
प्रति मे स्तोममदितिर्जगृभ्यात्सूनुं न माता हृद्यं सुशेवम्।
ब्रह्म प्रियं देवहितं यदस्त्यहं मित्रे वरुणे यन्मयोभु
हमारे हृदयंगम और सुखकर स्तोत्र को माता अदिति ग्रहण करें, जिस प्रकार से जननी अपने को ग्रहण करती है। अहोरात्राभिमानी देव मित्र और वरुण के उद्देश्य से हम मनोहर आनन्दायक और देवग्राह्य स्तोत्र प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.42.2]
हृदयंगम :: मर्मस्पर्शी, अच्छी तरह समझा हुआ, ठीक से याद किया हुआ; हृदयगत; inculcate, learning by heart.
Let Maa Aditi accept our inculcated Strotr causing comforts like a mother. We recite-compose attractive & acceptable Strotr for the sake of demigods-deities & the deities governing day and night and Mitr  & Varun Dev.
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- श्रुतवित् आत्रेयदेवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
ऋतेन ऋतमपिहितं धुवं वां सूर्यस्य यत्र विमुचन्त्यश्वान्।
दश शता सह तस्थुस्तदेकं देवानां श्रेष्ठं वपुषामपश्यम्
हम आप लोगों के आवासभूत, उदक द्वारा आच्छादित, शाश्वत और सत्यभूत सूर्य मण्डल का दर्शन करते हैं। उस स्थान में अवस्थित अश्वों को स्तोता लोग मुक्त करते हैं। उस मण्डल में हजारों की संख्या में रश्मियाँ अवस्थिति करती हैं। तेजोवान अग्नि देव आदि शरीरवान देवों के बीच में हमने सूर्यदेव के उस श्रेष्ठ मण्डल को देखा।[ऋग्वेद 5.62.1]
We visualise your eternal, truthful, basic abode the Sun, covered by water-clouds. The Stota release the horses kept there. Thousands of rays are present there. We observed the aurous-radiant excellent abode of Sun present between the aurous demigods-deities and Agni Dev.
तत्सु वां मित्रावरुणा महित्वमीर्मा तस्थुषीरहभिर्दुदुहे।
विश्वाः पिन्वथः स्वसरस्य धेना अनु वामेकः पविरा ववर्त
हे मित्र और वरुण! आप दोनों का यह माहात्म्य अत्यन्त प्रशस्त है, जिसके द्वारा निरन्तर परिभ्रमण कारी सूर्य देव दैनिक गति से सम्बद्ध स्थावर जल राशि को दुहते हैं। आप लोग स्वयं भ्रमण कारी सूर्य देव की प्रीतिदायक दीप्ति को वर्द्धित करते है। आप दोनों का एकमात्र रथ अनुक्रम से भ्रमण करता है।[ऋग्वेद 5.62.2]
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; expansive, smashing.
Hey Mitr & Varun Dev! Your greatness is highly praiseworthy, by virtue of which rotating Sun extract water everyday. You yourself enhance the affectionate aura of Sury Dev-Sun. Your common charoite revolve sequentially.
अधारयतं पृथिवीमु॒त द्यां मित्रराजाना वरुणा महोभिः।
वर्धयतमोषधीः पिन्वतं गा अव वृष्टिं सृजतं जीरदानू
हे मित्र और वरुण देव! स्तोता लोग आपके अनुग्रह से राजपद प्राप्त करते हैं। आप दोनों अपनी सामर्थ्य से द्यावा-पृथिवी को धारण करते हैं। हे शीघ्र दानकर्ताओं! आप लोग औषधियों और गौओं को वर्द्धित करते हुए जलवर्षा करें।[ऋग्वेद 5.62.3]
Hey Mitr & Varun Dev! Stota attain government jobs due to your obligations. You support the earth & heavens by virtue of your strength-power. Hey Donors! Enhance the medicines (medicinal herbs-shrubs) and cows and shower rains.
आ वामश्वासः सुयुजो वहन्तु यतरश्मय उप यन्त्वर्वाक्।
घृतस्य निर्णिगनु वर्तते वामुप सिन्धवः प्रदिवि क्षरन्ति
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों के अश्व रथ में भली-भाँति से नियोजित होकर आप दोनों को वहन करें। सारथि के द्वारा नियन्त्रित होकर अनुवर्तन करें। जल का रूप आप दोनों का अनुसरण करता है। आप दोनों के अनुग्रह से पुरातन नदियाँ प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 5.62.4]
अनुसरण :: अनुगमन, अनुकरण, समान आचरण, अनुषंग, परिणामत, किसी नियम का कई स्थानों पर बार बार लगना; compliance, consequentiality, adherence, tropism.
Hey Mitr & Varun Dev! Let your horses be deployed properly in the charoite, carry you & adhere to compliance of charoite driver's directions. Due to your obligation ancient eternal river maintain their flow. 
अनु श्रुताममतिं वर्धदुर्वी बर्हिरिव यजुषा रक्षमाणा।
नमस्वन्ता धृतदक्षाधि गर्ते मित्रासाथे वरुणेळास्वन्तः
हे अन्नवान तथा बल सम्पन्न मित्र और वरुण देव! आप दोनों विश्रुत शरीर दीप्ति को वर्द्धित करते हैं। यज्ञ जिस प्रकार से मन्त्र द्वारा रक्षित होता है, उसी प्रकार आप दोनों भी पृथ्वी का पालन करें। आप दोनों यज्ञ भूमि के मध्य में स्थित रथ पर अधिष्ठित होवें।[ऋग्वेद 5.62.5]
विश्रुत :: सुना हुआ, विख्यात, जिसे लोग अच्छी तरह से सुन चुके हों, जिसे सब लोग जान चुकें हों, प्रसिद्ध, प्रसन्न, खुश, ख़ुशी, वासुदेव के पुत्र, ब्रह्म पुराण, भगवान् श्री हरी विष्णु; heard-noticed by all, known to all, happiness, son of Vasu Dev, Bhagwan Shri Hari Vishnu.
Hey possessor of food grains and mighty Mitr & Varun Dev! You boost the aura of your body, heard-noticed by all. The way the Yagy is protected by Mantr, you protect the earth. Ride the charoite present at the centre of the Yagy site.
अक्रविहस्ता सुकृते परस्पा यं त्रासाथे वरुणेळास्वन्तः।
राजाना क्षत्रमहृणीयमाना सहस्रस्थूणं बिभृथः सह द्वौ
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों यज्ञभूमि में जिस याजकगण की रक्षा करते हैं, शोभन प्रार्थना करने वाले उस याजकगण के प्रति आप दोनों दान शील होकर उसकी रक्षा करें। उसे धनादि से परिपूर्ण हजारों स्तम्भों से युक्त गृह भी प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.62.6]
Hey Mitr & Varun Dev! The way you protect the Ritviz at the Yagy site, adhere to donations and protect the Ritviz who recite sacred hymns for you.  Grant him wealth and house, having thousands of pillars.
हिरण्यनिर्णिगयो अस्य स्थूणा वि भ्राजते दिव्य १ श्वाजनीव।
भद्रे क्षेत्रे निमिता तिल्विले वा सनेम मध्वो अधिगत्र्यस्य
इनका रथ स्वर्णमय है और कीलकादि भी स्वर्णमय ही है। यह रथ विद्युत् के तुल्य अन्तरिक्ष में शोभा पाता है। हम लोग कल्याणकर स्थान में अथवा यूप यष्टि समन्वित यज्ञ भूमि में रथ के ऊपर सोमरस को स्थापित करें।[ऋग्वेद 5.62.7]
Their charoite is golden and its excel and the hook-nail too are made of gold. This charoite is glorified in the sky like electric spark. Let us place the Somras over the charoite at the Yagy site, welfare spot, where pillar-pole has been fixed.
हिरण्यरूपमुषसो व्युष्टावयःस्थूणमुदिता सूर्यस्य।
आ रोहथो वरुण मित्र गर्तमतश्चक्षाथे अदितिं दितिं च
हे मित्र और वरुण देव! आप लोग उषाकाल में सूर्य के उदित होने पर लौहकील समन्वित सुवर्ण मय रथ पर यज्ञ में जाने के लिए आरोहण करें एवं अदिति अर्थात् अखण्डनीय भूमि और दिति अर्थात् खण्डित प्रजा का अवलोकन करें।[ऋग्वेद 5.62.8]
Hey Mitr & Varun Dev! Ride the golden charoite having iron nail over the excel to reach the Yagy and view Aditi-unbreakable soil and Diti-breakable populace, at dawn-Usha when the Sun rises.
यद्वंहिष्ठं नातिविधे सुदानू अच्छिद्रं शर्म भुवनस्य गोपा।
तेन नो मित्रावरुणावविष्टं सिषासन्तो जिगीवांसः स्याम
हे दानशील तथा विश्व रक्षक मित्र और वरुण देव! जो सुख व्याघात रहित, अछित्र और बहुतम है, उस सुख को आप दोनों धारित करते हैं। उसी सुख द्वारा हम लोगों की रक्षा करें। हम लोग अभिलक्षित धन प्राप्त करते हुए शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.62.9]
Hey donor-munificent and friends of the world Mitr & Varun Dev! You possess the continuous and maximum felicity-comforts free from troubles. Protect us through that felicity-comfort. Let us gain victory over the enemy targeting the desired wealth.(01.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- अर्चनाना आत्रेयदेवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
ऋतस्य गोपावधि तिष्ठथो रथं सत्यधर्माणा परमे व्योमनि।
यमत्र मित्रावरुणावथो युवं तस्मै वृष्टिर्मधुमत्पिन्वते दिवः
हे उदक के रक्षक सत्य धर्म वाले मित्र और वरुणदेव! आप दोनों हमारे यज्ञ में आने के लिए निरतिशय आकाश में रथ के ऊपर आरूढ़ होते हैं। इस यज्ञ में आप दोनों जिस याजक गण की रक्षा करते हैं, उस याजकगण के लिए मेघ द्युलोक से सुमधुर जल की वर्षा करता है।[ऋग्वेद 5.63.1]
निरतिशय :: अद्वितीय, परमात्मा, ईश्वर; relentless
Hey truthful protectors of water Mir & Varun Dev! You ride your unique-unparalled charoite in the sky. The Ritviz protected by you in the Yagy gets rains showers having sweet water by the clouds from the heavens.
सम्राजावस्य भुवनस्य राजथो मित्रावरुणा विदथे स्वर्दृशा।
वृष्टिं वां राधो अमृतत्वमीमहे द्यावापृथिवी वि चरन्ति तन्यवः
हे स्वर्ग के द्रष्टा मित्र और वरुण देव! इस यज्ञ में राजमान होकर आप दोनों भुवन में शासन करते हैं। हम लोग आप दोनों निकट वृष्टि रूप धन तथा स्वर्ग की प्रार्थना करते हैं। आप दोनों की विस्तृत रश्मियाँ आकाश और पृथिवी के बीच में भ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 5.63.2]
Hey on lookers of heavens Mitr & Varun Dev! Presenting yourself in the Yagy you rule-preside in both the abodes (earth & heavens). We request-pray you for wealth in the form of rains & the heavens. Your rays-aura fills the sky and the earth.
सम्राजा उग्रा वृषभा दिवस्पती पृथिव्या मित्रावरुणा विचर्षणी।
चित्रेभिर भ्रैरुप तिष्ठथो रवं द्यां वर्षयथो असुरस्य मायया
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों अत्यन्त राजमान, उद्यत बल, वारिवर्षक, द्यावा-पृथिवी के पति और सर्वद्रष्टा है। आप दोनों महानुभाव विचित्र मेघों के साथ प्रार्थना श्रवण करने के लिए आगमन करें। पश्चात् वृष्टि विधायक पर्जन्य की सामर्थ्य द्वारा द्युलोक से जल की वर्षा करें।[ऋग्वेद 5.63.3]
राजमान :: चमकता हुआ, शोभित; shinning, brilliant.
उद्यत बल :: उत्प्लावन बल; buoyant force, vertical force, up thrust.
Hey Mitr & Varun Dev! You are extremely brilliant-shinning, acting vertically upwards, rain showering, lord-leaders of earth and viewers of every event-thing. Arrive here to listen to the prayers with the amazing clouds. Thereafter, shower rains from the heavens with the rattling clouds.
माया वां मित्रावरुणा दिवि श्रिता सूर्यो ज्योतिश्चरति चित्रमायुधम्।
तमभ्रेण वृष्ट्या गृहथो दिवि पर्जन्य द्रप्सा मधुमन्त ईरते
हे मित्र और वरुण देव! जब आप दोनों के अस्त्र भूत ज्योतिर्मय सूर्य देव अन्तरिक्ष में भ्रमण करते हैं, जब आप दोनों की माया स्वर्ग में प्रकट होती है। आप दोनों द्युलोक में मेघ और वर्षा द्वारा सूर्य देव की रक्षा करते है। हे पर्जन्य देव! मित्र और वरुण देव द्वारा प्रेरित होने पर आपके द्वारा सुमधुर जल बूँदें गिरती हैं।[ऋग्वेद 5.63.4]
अस्त्र :: हथियार, फेंककर चलाया जानेवाला हथियार; missile.
Hey Mitr & Varun Dev! When radiant Sury Dev-Sun revolve in the space-sky as your protectors, your spell-cast is observed in the heavens. You protect the Sun in the heavens with clouds & rains. Hey Parjany Dev! Inspired by Mitr & Varun Dev you begin with rains drops constituting sweet water.
रथं युञ्जते मरुतः शुभे सुखं शूरो न मित्रावरुणा गविष्टिषु।
रजांसि चित्रा वि चरन्ति तन्यवो दिवः सम्राजा पयसा न उक्षतम्
हे मित्र और वरुण देव! जिस प्रकार से वीर युद्ध के लिए अपने रथ को सुसज्जित करता है, उसी प्रकार मरुद्गण आप दोनों के अनुग्रह से जलवर्षा के लिए सुखकर रथ को सुसज्जित करते हैं। जल की वर्षा करने के लिए मरुद्गण विभिन्न लोकों में सञ्चरण करते हैं। हे राजमान देवो! आप दोनों मरुतों के साथ द्युलोक से हम लोगों के ऊपर जल की वर्षा करें।[ऋग्वेद 5.63.5]
Hey Mitr & Varun Dev! The way a soldier prepares his charoite for fight-war, Marud Gan keep their charoite ready for rains due to your obligations. For causing rains Marud Gan move to different abodes. Hey aurous-decorated deities! Both of you shower rains over us from the sky-heavens along with Marud Gan.
वाचं सु मित्रावरुणाविरावतीं पर्जन्यश्चित्रां वदति त्विषीमतीम्।
अभ्रा वसत मरुतः सु मायया द्यां वर्षयतमरुणामरेपसम्
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों के अनुग्रह से मेघ अन्न साधक, प्रभाव्यञ्जक और विचित्र गर्जन शब्द करते हैं। मरुद्गण अपनी प्रज्ञा के बल से बादलों की रक्षा भली-भाँति से करते हैं। उनके साथ आप दोनों अरुण वर्ण तथा निष्पाप आकाश से जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.63.6]
Hey Mitr & Varun Dev! By virtue of your wishes-obligations clouds cause abundant rains for producing food grains making wonderful sounds. Marud Gan protect the clouds thoroughly with their ability-intellect. Thereafter, you produce rains looking reddish-purple.
धर्मणा मित्रावरुणा विपश्चिता व्रता रक्षेथे असुरस्य मायया।
ऋतेन विश्वं भुवनं वि राजथः सूर्यमा धत्थो दिवि चित्र्यं रथम्
हे विद्वान मित्र और वरुण देव! आप दोनों संसार के उपकारक वृष्ट्यादि कार्य द्वारा यज्ञ की रक्षा करते हैं। जल के वर्षक पर्जन्य की प्रज्ञा द्वारा उदक से समस्त भूतजात को दीप्ति करते हैं। पूज्य और वेगवान सूर्यदेव को द्युलोक में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.63.7]
Hey enlightened-learned Mitr & Varun Dev! Both of you protect the Yagy with the beneficial rains. You glow the world with the rains caused by Parjany-rattling clouds and establish accelerated Sury Dev-Sun in the heavens-sky.(02.8.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- अर्चना आत्रेयदेवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति।
वरुणं वो रिशादसमृचा मित्र हवामहे।
परि व्रजेव बाह्वोर्जगन्वांसा स्वर्णरम्
हे मित्र और वरुण देव! हम इस मन्त्र से आप दोनों का आह्वान करते हैं। बाहुबल से गौसमूह के सञ्चालक द्वय के समान शत्रुओं का विनाश करें और स्वर्ग के मार्ग को प्रदर्शित करें।[ऋग्वेद 5.64.1]
Hey Mitr & Varun Dev! We invoke you through this Mantr. Use your muscle power to operate the cow heard, destroy the enemy  and pave -show the way for the heavens.
ता बाहवा सुचेतुना प्र यन्तमस्मा अर्चते।
शेवं हि जार्यं वां विश्वासु क्षासु जोगवे
आप दोनों प्रज्ञा सम्पन्न हैं। आप दोनों हम स्तुति कर्ता को अभिमत सुख प्रदान करें। हम शोभन हस्त द्वारा प्रार्थना करते हैं। आप दोनों द्वारा प्रदत्त स्तुति योग्य सुख सब स्थान में व्याप्त हैं।[ऋग्वेद 5.64.2]
शोभन :: ललित,  शोभनीय, पयुक्त, उपयुक्त, स्वच्छ, संगत; suitable, seemly, decent, nice.
Both of you are enlightened. Grant desired pleasure to us, the worshipers. We worship with suitably (decent, nice) folded hands. The pleasure-comforts granted by you pervade every where.
यन्नूनमश्यां गतिं मित्रस्य यायां पथा।
अस्य प्रियस्य शर्मण्यहिंसानस्य सश्चिरे
हम अभी संगति प्राप्त करें। मित्र भूत अथवा मित्र द्वारा दर्शित मार्ग से हम गमन करें। अहिंसक मित्र का प्रिय सुख हमें घर में प्राप्त हो।[ऋग्वेद 5.64.3]
Let us enjoy your company and follow the track-path shown (guided) by the friends. We shall have the pleasure of meeting our non violent friend at our residence.
युवाभ्यां मित्रावरुणोपमं धेयामृचा।
यद्ध क्षये मघोनां स्तोतॄणां च स्पूर्धसे
हे मित्र और वरुण देव! हम आपके उस धन को धारित करें, जो धनवान् स्तोताओं के गृह में परस्पर कलह का कारण बनता हो।[ऋग्वेद 5.64.4]
Hey Mitr & Varun Dev! Let have your those riches, which cause domestic mutual trouble-quarrel in the houses of the rich Stotas.
आ नो मित्र सुदीतिभिर्वरुणश्च सधस्थ आ।
स्वे क्षये मघोनां सखीनां च वृधसे
हे मित्र, हे वरुण देव! आप दोनों सुन्दर दीप्ति से युक्त होकर हमारे गृह में पधारें। आप निश्चित ही पधारें और धनवान् मित्रों को समृद्धि युक्त करें।[ऋग्वेद 5.64.5]
Hey Mitr & Varun Dev! Invoke at our home having your beautiful aura and make the rich friends prosperous.
युवं नो येषु वरुण क्षत्रं बृहच बिभृथः।
उरु णो वाजसातये कृतं राये स्वस्तये
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों हमारी स्तुतियों के निमित्त हमारे लिए प्रचुर अन्न तथा बल धारित करते हैं। आप दोनों हमें अन्न, धन और कल्याण विशेष रूप से प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.64.6]
Hey Mitr & Varun Dev! You possess enough-sufficient food grains and might for the sake of our prayers-sacred holy hymns. Specially, grant us food grains and wealth for our welfare.
उच्छन्त्यां मे यजता देवक्षत्रे रूशद्गवि।
सुतं सोमं न हस्तिभिरा पड्भिर्धावतं नरा बिभ्रतावर्चनानसम्
हे अधिनायक मित्र और वरुण देव! उषाकाल में सुन्दर किरण से युक्त प्रातः सवन में, देव-बल विशिष्ट गृह में आप दोनों पूजनीय होते हैं। उस घर में हमारे द्वारा अभिषुत सोमरस का आप दोनों अवलोकन करें। आप दोनों अर्चना से प्रसन्न होकर गमन साधन अश्वों पर बैठकर तत्काल आवें।[ऋग्वेद 5.64.7] 
Hey leaders-lord Mitr & Varun Dev! You are worshiped during Usha-dawn with the beautiful rays accompanied with the might of deities in the specific-special homes. Inspect the Somras extracted by us in that house. On being pleased with the prayers, ride the horses and come to us, immediately.(03.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- रातहव्य आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति।
यश्चिकेत स सुक्रतुर्देवत्रा स ब्रवीतु नः।
वरुणो यस्य दर्शतो मित्रो वा वनते गिरः
जो स्तोता देवों के बीच में आप दोनों की प्रार्थना जानता है, वही शोभनकर्म करने वाला है। वह शोभनकर्मा स्तोता हमें स्तुति विषयक उपदेश दें, जिनकी प्रार्थना को सुन्दर मूर्ति वाले मित्र और वरुण देव स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 5.65.1]
The Stota who recognise you both amongest the demigods-deities is the doer of great deeds-endeavours. Let him guide in terms of worship-prayers who's prayers are laudation-accepted by graceful Mitr & Varun Dev.
ता हि श्रेष्ठवर्चसा राजाना दीर्घश्रुत्तमा।
ता सत्पती ऋतावृध ऋतावाना जनेजने
प्रशस्त तेज वाले और ईश्वर भूत मित्रा-वरुण दूर देश से आहूत होने पर भी आह्वान सुन लेते हैं। याजक गणों के स्वामी और यज्ञ के वर्द्धयिता वे दोनों प्रत्येक स्तोताओं के कल्याण विधानार्थं भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 5.65.2]
Mitr & Varun Dev possessing great aura respond to the prayers even when they are away. Lord of the Ritviz and promoters of the Yagy they travel for the welfare-benefit of each Stota.
ता वामियानोऽवसे पूर्वा उप ब्रुवे सचा।
स्वश्वासः सु चेतुना वाजाँ अभि प्र दावने
आप दोनों पुरातन हैं। हम आप दोनों के निकट उपस्थित होकर रक्षा के लिए हम स्तवन करते हैं। वेगवान् अश्वों के अधिपति होकर हम अन्न प्रदानार्थ आप दोनों की प्रार्थना करते हैं। आप दोनों शोभन ज्ञान वाले है।[ऋग्वेद 5.65.3]
Both of you are ancient-eternal. We present ourselves before you and request you for our protection. We become the master-owner fast moving of horses and request you for the food grains. Both of you are enlightened.
मित्रो अंहोश्चिदादुरु क्षयाय गातुं वनते।
मित्रस्य हि प्रतूर्वतः सुमतिरस्ति विधतः
मित्र देव पापी स्तोता को भी विशाल घर में निवास करने का उपाय बताते हैं। हिंसक भक्त के लिए भी मित्र देव की शोभन बुद्धि रहती है।[ऋग्वेद 5.65.4]
Mitr Dev guide even the sinner Stota to get-live in a large house. Mitr Dev is kind even to the violent devotee.
वयं मित्रस्यावसि स्याम सप्रथस्तमे।
अनेहसस्त्वोतयः सत्रा वरुणशेषसः
हम याजक गण दुःख निवारक मित्र देव की विपुल रक्षा लिए अधिकारी होवें । वरुण देव के संतानरूप हो। हम लोग आपसे रक्षित होकर और निष्पाप होकर संयुक्त रूप से रहें।[ऋग्वेद 5.65.5]
Let us the Ritviz, qualify for protection from Mitr Dev who removes pain-sorrow. We should be like the progeny of Varun Dev. On being sinless & protected by you, let us live together.
युवं मित्रेमं जनं यतथः सं च नयथः।
मा मघोनः परि ख्यतं मो अस्माकमृषीणां गोपीथे न उरुष्यतम्
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों की हम प्रार्थना करते हैं। आप दोनों हमारे निकट आगमन करें। आकर समस्त अभिलषित वस्तु प्राप्त करें। हम अन्न युक्त हैं। हमारा परित्याग न करें। ऋषियों के अर्थात् हमारे पुत्रों का परित्याग न करें। सोमदेव यज्ञादि कार्य में हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.65.6] 
परित्याग :: पूर्णतः छोड़ देना, परित्यजन, आत्मसमर्पण, अधिकार त्याग, इंकार, अपदस्थ होना; abandonment, reject.
Hey Mitr & Varun Dev! We worship both of you. Both of you should invoke before us. Come and get the offerings-oblations. We are blessed with food grains. Do not abandon-reject us. Let Som Dev protect us in the virtuous deeds like Yagy.(04.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- रातहव्य आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- अनुष्टुप्।
आ चिकितान सुक्रतू देवौ मर्त रिशादसा।
वरुणाय ऋतपेशसे दधीत प्रयसे महे
हे स्तुति विज्ञाता मनुष्य! आप शोभन कर्म को करने वाले और शत्रुओं के हिंसक दोनों देवताओं का आह्वान करें। उदक स्वरूप, हविर्लक्षण, अन्नवान और पूजनीय वरुण देव को हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.66.1]
विज्ञाता :: जिसे जानकारी हो, जानकार, ज्ञाता, भिज्ञ, अभिज्ञ, वाकिफ, वाक़िफ़, बाखबर, बाख़बर; aware, acknowledged.
Hey humans aware of sacred hymns! Invoke both deities slayer of the enemy and performers of virtuous deeds. Grant-provide offerings-oblations to Varun Dev who is in like the water, possessor of food grains and honourable-revered.
ता हि क्षत्रम विह्रुतं सम्यगसुर्य १ माशाते।
अध व्रतेव मानुषं स्व १ र्ण धायि दर्शतम्
आप दोनों का बल अहिंसनीय और असुर के लिए विनाशक है अर्थात् आप दोनों महान् बल वाले है। सूर्यदेव जिस प्रकार अन्तरिक्ष में दृश्यमान होते हैं, उसी प्रकार मनुष्यों के बीच में आप दोनों का दर्शनीय बल यज्ञ में स्थापित होता है।[ऋग्वेद 5.66.2]
Might of both of you is non violent and destroyer of demons. The way Sury Dev-Sun is visible in the sky your visible impact-might is observed in the Yagy amongest the humans.
ता वामेषे रथानामुर्वीं गव्यूतिमेषाम्।
रातहव्यस्य सुष्टुतिं दधृक्स्तोमैर्मनामहे
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों हव्य देने वाले की प्रकृष्ट प्रार्थना से प्रार्थित होते हैं और आवाहित होने पर अत्यन्त बड़े-बड़े मार्गों से भी गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.66.3]
Hey Mitr & Varun Dev! You both are worshiped by the prayers of the offerings-oblation providers and travel through long distances-roads on being invoked.
अधा हि काव्या युवं दक्षस्य पूर्भिरद्भुता।
नि केतुना जनानां चितेथे पूतदक्षसा
हे स्तुति योग्य और हे शुद्ध बल वाले देवद्वय! हम प्रवृद्धमान की पूरक प्रार्थना से आप दोनों प्रशंसित होते हैं। आप दोनों अनुकूल मन से याजक गणों के स्तोत्र को जानें।[ऋग्वेद 5.66.4]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; grown up.
Hey worshipable, possessing pure might, duo demigods! You become happy with our growing prayers and honoured. Recognise the prayers of the Ritviz favourably.
तदृतं पृथिवि बृहच्छ्रव एष ऋषीणाम्।
ज्रयसानावरं पृथ्वति क्षरन्ति यामभिः
हे पृथिवी देवी! हम ऋषियों के प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए आपके ऊपर प्रभूत जल अवस्थित है। गमनशील देवद्वय निज गतिविधि द्वारा अति प्रचुर परिमाण में जलवर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.66.5]
Hey Prathvi Devi! We store-accumulate sufficient water over you for the sake of the Rishi Gan. Dynamic duo demigods, due to their own movements lead to rain showers in a high quantum.
आ यद्वामीयचक्षसा मित्र वयं च सूरयः।
व्यचिष्ठे बहुपाय्ये यतेमहि स्वराज्ये
हे दूरदर्शी मित्र और वरुण देव! हम और स्तोता लोग आप दोनों का आह्वान करते हैं। जिससे हम आपके सुविस्तीर्ण और बहुतों द्वारा संरक्षित राज्य में आ-जा सकें।[ऋग्वेद 5.66.6]
Hey far sighted Mitr & Varun Dev! We along with the Stotas invoke you, so that we can visit, come & go to your broad state protected by many.(04.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- यजत आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- अनुष्टुप्।
बळित्था देव निष्कृतमादित्या यजतं बृहत्।
वरुण मित्रार्यमन्वर्षिष्ठं क्षत्रमाशाथे
हे द्युतिमान् अदिति पुत्र मित्र, वरुण और अर्यमा देव! आप निश्चित रूप से अपराजेय, पूजनीय और अत्यन्त महान बल धारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.1]
Hey radiant sons of Aditi Mitr, Varun & Aryma! You are definitely-certainly undefeatable, revered, worshipable and possess extremely great might.
आ यद्योनिं हिरण्ययं वरुण मित्र सदथः।
धर्तारा चर्षणीनां यन्तं सुम्नं रिशादसा
हे मनुष्यों के रक्षक तथा शत्रु संहारक, मित्र और वरुणदेव! जब आप लोग आनन्दजनक यज्ञभूमि में आगमन करते हैं, तब आप लोग हमें सुख प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.2]
Hey protectors of humans and destructors of the enemy, Mitr & Varun Dev! You provide pleasure-comforts to us when you arrive at the Yagy Bhumi-site.
विश्वे हि विश्ववेदसो वरुणो मित्रो अर्यमा।
व्रता पदेव सश्चिरे पान्ति मर्त्यं रिषः
सर्वविद् मित्र, वरुण, अर्यमा अपने-अपने स्थान के अनुरूप हमारे यज्ञ में सुशोभित होते हैं और हिंसकों से मनुष्यों की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.3]
Enlightened-aware of everything Mitr, Varun & Aryma  occupy their seats as per their designation-title in our Yagy and protect the humans from the violent people.
ते हि सत्या ऋतस्पृश ऋतावानो जनेजने।
सुनीथासः सुदानवो ऽ होश्चिदुरुचक्रयः
वे सत्यदर्शी, जलवर्षी और यज्ञ रक्षक हैं। वे प्रत्येक याजकगण को सत्पथ प्रदर्शित करते हैं और प्रचुर दान करते हैं। वे महानुभाव वरुणादि पापी स्तोताओं को भी प्रभूत धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.4]
They are truthful, rain showering and protectors of Yagy. They direct everyone to the path of truth and make donations-charity. The great deities Varun etc., give lots of wealth to the sinners as well.
को नु वां मित्रास्तुतो वरुणो वा तनूनाम्।
तत्सु वामेषते मतिरत्रिभ्य एषते मतिः
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों के बीच में सभी के द्वारा स्तुतियों से कौन अस्तूयमान है? अर्थात् आप दोनों ही स्तुतियोग्य हैं। हम लोग अल्पबुद्धि हैं। हम लोग आपका स्तवन करते है। अत्रि गोत्रज लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.5]
Hey Mitr & Varun Dev! Both of you are revered-honourable. We have little intellect. We worship-pray you. Descents of Atri Rishi worship-honour you.(05.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- यजत आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- गायत्री।
प्र वो मित्राय गायत वरुणाय विपा गिरा।
महिक्षत्रावृतं बृहत्
हे हमारे ऋत्विकों! आप लोग उच्च स्वर से मित्र और वरुण देव का भली-भाँति से स्तवन करें। हे प्रभूत बलशाली मित्र और वरुण देव! आप दोनों इस महायज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 5.68.1]
Hey our Ritvizs! Recite prayers devoted to Mitr & Varun Dev in loud voice. Hey abundantly powerful Mitr & Varun Dev! Both of you join this Yagy.
सम्राजा या घृतयोनी मित्रश्चोभा वरुणश्च।
देवा देवेषु प्रशस्ता
जो मित्र और वरुण देव दोनों ही परस्परापेक्षा सभी के स्वामी, जल के उत्पादक, द्युतिमान् और देवों के बीच में अतिशय स्तुत्य हैं, हे ऋत्विजों! आप लोग उन दोनों की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 5.68.2]
Mitr & Varun Dev who are the lords of of all, producer of water, radiant and esteemed amongest the demigods-deities. Hey Ritvizs! Worship both of them.
ता नः शक्तं पार्थिवस्य महो रायो दिव्यस्य। महि वां क्षत्रं देवेषु॥
वे दोनों देव हम लोगों को पार्थिव धन तथा दिव्य धन दोनों ही देने में समर्थ हैं। हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों का पूजनीय बल देवों के बीच में प्रसिद्ध है। हम लोग उसका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.68.3]
Both of these demigods are capable of granting both perishable & divine wealth. Hey Mitr & Varun Dev! Your worshipable might is famous amongest the demigods-deities. We recite prayers for them.
ऋतमृतेन सपन्तेषिरं दक्षमाशाते। अगुहा देवौ वर्धेते
उदक द्वारा यज्ञ का स्पर्शन करके वे दोनों देव अन्वेषणकारी प्रबुद्ध यजमान को अथवा हव्य को व्याप्त करते हैं। हे द्रोह रहित मित्रा-वरुण देव! आप दोनों प्रबुद्ध होते हैं।[ऋग्वेद 5.68.4]
स्पर्शन :: छूने की किया, स्पर्श करना, दान देना, संबंध; touching, donating.
द्रोह :: द्वेष, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता, नमकहरामी, बेवफ़ाई, राज-द्रोहिता, दुष्टता, हानिकरता, नुक़सान देहता, कपट; treachery, disloyalty, malignancy, disloyalty, malevolence.
Both demigods touch the water in the Yagy-shower rains and favour the zealous worshippers. Hey malevolence free Mitra-Varun! Both of you may prosper.
वृष्टिद्यावा रीत्यापेषस्पती दानुमत्याः। बृहन्तं गर्तमाशाते
जिन दोनों के द्वारा अन्तरिक्ष वर्षणकारी होता है, जो दोनों अभिमत फल के प्रापक हैं, वृष्टि प्रद होने से जो अन्न के अधिपति हैं और जो दाता के प्रति अनुकूल हैं, वे दोनों महानुभाव यज्ञ के लिए महान् रथ पर आरूढ़ होते हैं।[ऋग्वेद 5.68.5]
The duo due to whom the sky become ready for rains, grants required rewards-accomplish desires, for causing rains they are the lords of food grains, favourable to the donors, ride the great charoite for the Yagy.(05.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- उरुचक्रियात्रेय, देवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्री रोचना वरुण त्रीरुत द्यून्त्रीणि मित्र धारयथो रजांसि।
वावृधानावमतिं क्षत्रियस्यानु व्रतं रक्षमाणावजुर्यम्
हे मित्र, हे वरुण देव! आप दोनों रोचमान तीन द्युलोकों को धारित करते हैं, तीन अन्तरिक्ष लोकों को धारित करते हैं और भूलोकों को धारित करते हैं। आप दोनों क्षत्रिय याजक गण के अथवा इन्द्र देव के रूप और कर्म की अविरत रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.69.1]
Hey Mitr & Varun Dev! Both of you support the radiant-shinning three heavens, three abodes in the space and the earths. You keep on protecting either the Kshatriy Ritviz's or Indr Dev's forms & endeavours.
इरावतीर्वरुण धेनवो वां मधुमद्वां सिन्धवो मित्र दुह्रे
त्रयस्तस्थुर्वृषभासस्तिसृणां धिषणानां रेतोधा वि द्युमन्तः
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों की आज्ञा से गौएँ दुग्धवती होती हैं। स्पन्दनशील मेघ वा नदियाँ सुमधुर जल प्रदान करती हैं। आप दोनों के अनुग्रह से जलवर्षक मौर उदक धारक तथा द्युतिमान अग्रिदेव, वायुदेव और सूर्यदेव नामक तीन देव (पृथिवी, अन्तरिक्ष तथा द्युलोक) के अधिपति रूप में स्थित हैं।[ऋग्वेद 5.69.2]
Hey Mitr & Varun Dev! Cows yield milk, pulsating clouds and the river yield sweet water by virtue of your command, orders-directives. Due to your obligation the rains shower and the radiant Agni Dev, Vayu Dev and Sury Dev are established as the lords of earth, sky-space and the heavens.
प्रातर्देवीमदितिं जोहवीमि मध्यन्दिन उदिता सूर्यस्य।
राये मित्रावरुण सर्वतातेले तोकाय तनयायशं योः
प्रातः काल में और सूर्य के समृद्धि काल में अर्थात् माध्यन्दिन सवन में हम ऋषि देवों की द्युतिमति जननी अदिति का आह्वान करते हैं। हे मित्र और वरुण देव! हम धन, पुत्र, पौत्र, अरिष्ट शान्ति और सुख के लिए आप दोनों का यज्ञ में स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.69.3]
अरिष्ट :: कष्ट, क्लेश, आपत्ति, विपत्ति; ill-fated.
In the morning and period of Sun's progress i.e., mid day we Rishis invoke the radiant mother of demigods-deities. Hey Mitr & Varun Dev! We worship both of you in the Yagy with the desire of sons, grandsons, calming of bad luck, pleasures-comforts.
या धर्तारा रजसो रोचनस्योतादित्या दिव्या पार्थिवस्य।
न वां देवा अमृता आ मिनन्ति व्रतानि मित्रावरुणा ध्रुवाणि
हे द्युलोकोत्पन्न अदिति पुत्र द्वय! आप दोनों द्युलोक तथा भूलोक के धारणकर्ता हैं। हम दोनों आपका स्तवन करते हैं। हे मित्र और वरुण देव! आपके कार्य स्थिर हैं, उन कार्यों की हिंसा इन्द्रादि अमर देवगण भी नहीं कर सकते हैं।[ऋग्वेद 5.69.4]
Hey sons of Aditi born in the heaven, son duo! You support the heavens and the earth. We worship recite prayers in your honour. Hey Mitr & Varun Dev! Your endeavours are fixed and even Indr Dev and the immortal demigods-deities can not disturb-violate them.(05.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (70) :: ऋषि :- उरुचक्रियात्रेय, देवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- गायत्री।
पुरूरुणा चिद्ध्यस्त्यवो नूनं वां वरुण। मित्र वंसि वां सुमतिम्॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों का रक्षण कार्य निश्चय ही अत्यन्त दीर्घतर है। हम आप दोनों की अनुग्रह बुद्धि का सम्भजन करें।[ऋग्वेद 5.70.1]
Hey Mitr & Varun Dev! Let your endeavours of protection prolong. Let us be assured by your obligations.
ता वां सम्यगद्गुह्वाणेषमश्याम धायसे। वयं ते रुद्रा स्याम॥
हे मित्र और वरुण देव! ईर्ष्या अथवा द्वेष न करने वाले आप दोनों की हम भली-भाँति प्रार्थना करते हैं। हमें आपकी मित्रता का लाभ प्राप्त होते हुए, अपार धन की प्राप्ति हो।[ऋग्वेद 5.70.2]
Hey Mitr & Varun Dev! We worship you for you do not have either envy or  malice-hatred. Let us gain a lot of wealth due to your friendship.
पातं नो रुद्रा पायुभिरुत त्रायेथां सुत्रात्रा। तुर्याम दस्यून्तनूभिः
हे रुद्ररूप देव द्वय! आप दोनों रक्षण-साधनों से हमारी रक्षा करें। शोभन त्राण द्वारा पालन करें, अनिष्ट का निराकरण करें और अभिमत फल प्राप्त हों। हम अपने सामर्थ्य से शत्रुओं को पराजित कर सकें।[ऋग्वेद 5.70.3]
Hey deities having-possessing the form of Rudr Dev! Protect us through various means. Nourish-nurture us, eliminate the evil-forbidden and accomplish our desires. Let us become capable of defeating the enemy ourselves. 
मा कस्याद्भुतक्रतू यक्षं भुजेमा तनूभिः। मा शेषसा मा तनसा
हे आश्चर्यजनक कर्म करने वाले मित्र और वरुण देव! हम अपने शरीर द्वारा किसी के पूजित (श्रेष्ठ) धन का भी उपभोग नहीं करते। हम आपके अनुग्रह से समृद्ध हैं। किसी के धन से शरीर पोषण भी नहीं करते। पुत्र-पौत्रों के साथ भी हम दूसरे के धन का उपभोग नहीं करते। हमारे कुल में कोई भी दूसरे के धन का उपभोग नहीं करता।[ऋग्वेद 5.70.4]
Hey Mitr & Varun Dev performing amazing deeds! We do not utilise other's wealth. We are rich by virtue of your blessings-obligations. We do not nourish our body with other's money. We do not use other's money with our sons & grandsons. None in our clan uses other's money.(06.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- बाहुवृक्त आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- गायत्री।
आ नो गन्तं रिशादसा वरुण मित्र बर्हणा। उपेमं चारुमध्वरम्
हे मित्र, हे वरुण देव! आप दोनों शत्रुओं के प्रेरक और हन्ता है। आप दोनों हमारे इस हिंसा वर्जित यज्ञ में आगमन करें।[ऋग्वेद 5.71.1]
प्रेरक :: संपदी, निष्पादी, सहायक, कारणभूत, उपकारी, कार्यान्वित करने वाला, क्रियाकारक, उत्तेजित करने वाला, उकसाने वाला; inciter, motivational, effector, conducive, actuator.
Hey Mitr & Varun Dev! You are the inciter & slayers of the enemy. Join us in this Yagy where no violence will occur.
विश्वस्य हि प्रचेतसा वरुण मित्र राजथः। ईशाना पिप्यतं धियः
हे प्रकृष्ट ज्ञान युक्त मित्र और वरुण देव! आप समस्त संसार के प्रशासक हैं और सभी पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने वाले हैं। आप हमारी अभिलषित बुद्धि को तृप्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.71.2]
प्रभुत्व :: प्रधानता, अधिकार, प्राबल्य, शासन, अधिकार, बोलबाला, निर्दयता, अधिराज्य, राज्य, उपनिवेश; dominance, domination, dominion, ascendancy.
अभिलषित :: पोषित, दुलारा हुआ, इच्छित; desired, cherished, welcome.
Hey enlightened Mitr & Varun Dev! You are the administrator of the universe and establish your dominance over every one. Grant satisfaction to our cherished desires. 
उप नः सुतमा गतं वरुण मित्र दाशुषः। अस्य सोमस्य पीतये
हे मित्र, हे वरुण देव! आप दोनों हमारे अभिषुत सोमरस के लिए आगमन करें। हम हवि देने वाले हैं। आप हमारे इस सोमरस को पीने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.71.3]
Hey Mitr & Varun Dev! Both of you come here to drink Somras extracted by us. We make offerings-oblations to you.(06.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- बाहुवृक्त आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण,  छन्द :- उष्णिक्।
आ मित्रे वरुणे वयं गीर्भिर्जुहुमो अत्रिवत्।
नि बर्हिषि सदतं सोमपीतये
हमारे गोत्र प्रवर्तक अत्रि के तुल्य लोग मन्त्र द्वारा आप दोनों (मित्र और वरुण देव) का आह्वान करते हैं। इसलिए हे मित्रा-वरुण! सोमरस के पान के लिए कुश के ऊपर अधिष्ठित होवें।[ऋग्वेद 5.72.1]
Hey Mitr & Varun Dev! People comparable to our Gotr-clan initiator Atri Rishi, invite you for drinking Somras. Come and be seated over the Kush Mat.
व्रतेन स्थो ध्रुवक्षेमा धर्मणा यातयज्जना।
नि बर्हिषि सदतं सोमपीतये
हे मित्र और वरुण देव! जगद्धारक कर्म के द्वारा आप दोनों स्थान च्युत नहीं होते। ऋत्विक् लोग आप दोनों को यज्ञ प्रदान करते हैं। इसलिए मित्रा-वरुण सोमरस के पान के लिए कुश के ऊपर उपवेशन करें।[ऋग्वेद 5.72.2]
उद्धारक :: रक्षक, बचानेवाला, तारक; saviour.
Hey Mitr & Varun Dev! You maintain your position-dignity by virtue of the endeavours as a saviour of the world. Ritviz provide you the share of the Yagy. Hence, come and be seated over the Kush Mat for drinking Somras.
मित्रश्च नो वरुणश्च जुषेतां यज्ञमिष्टये।
नि बर्हिषि सदतां सोमपीतये
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों हमारे यज्ञ को प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण करें और पधारकर सोमरस के पान के लिए कुश के ऊपर उपवेशन करें।[ऋग्वेद 5.72.3]
Hey Mitr & Varun Dev! Happily accept our Yagy, come and sit over the Kush Mat and sip Somras.(07.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- मित्र, वरुण; छन्द :- त्रिष्टुप्।
विश्वेषां वः सतां ज्येष्ठतमा गीर्भिर्मित्रावरुणा वावृधध्यै।
सं या रश्मेव यमतुर्यमिष्ठा द्वा जनाँ असमा बाहुभिः स्वैः
सम्पूर्ण संसार में श्रेष्ठ मित्र और वरुण देव! मैं स्तुति द्वारा आपको वर्द्धित करता हूँ। रज्जु के सदृश अपनी भुजाओं द्वारा आप मनुष्यों को अनुशासित करते हैं।[ऋग्वेद 6.67.1]
Excellent in the whole world, hey Mitr & Varun Dev! I grow-nourish you with Stuti-prayer. You disciple the humans with your arms like a cord.
इयं मद्वां प्रस्तृणीते मनीषोप प्रिया नमसा बर्हिरच्छ।
यन्तं नो मित्रावरुणावधृष्टं छर्दिर्यद्वां वरूथ्यं सुदानू
हे प्रिय मित्र और वरुण देव! हमारी यही प्रार्थना आपको प्रवृद्ध करती है। हव्य के साथ आपके पास यही प्रार्थना जाती है और आपके यज्ञ की ओर जाती है। हे सुन्दर दान वाले मित्र और वरुण देव! आप हमें शीत आदि का निवारक और अनभिभूत गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.67.2]
Hey dear Mitr & Varun Dev! Our prayers grow you. The prayers made with offerings comes you and direct you towards the Yagy. Hey Mitr & Varun Dev, making beautiful donations! Grant us house which can protect us from cold.
आ यातं मित्रावरुणा सुशस्त्युप प्रिया नमसा हूयमाना।
सं यावप्नःस्थो अपसेव जनाञ्छ्रुधीयतश्चिद्यतथो महित्वा
हमारे आह्वान को सुनकर हे मित्रा-वरुण! आप आगमन करें। सत्कर्मों में प्रवृत्त हुए आप हमें अन्न एवं धनादि प्राप्त कराने वाले होवें। हम नमनपूर्वक आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 6.67.3]
Hey Mitra-Varun respond to our invocation! Come to us. Inclined to virtuous deeds, grant us food grains and wealth etc. We salute-prostrate before and worship-pray you.
अश्वा न या वाजिना पूतबन्धू ऋता यद्गर्भमदितिर्भरध्यै।
प्र या महि महान्ता जायमाना घोरा मर्ताय रिपवे नि दीधः
जो अश्व के समान बलवान, पवित्र स्तोत्र से युक्त और सत्य रूप हैं, उन्हीं गर्भभूत मित्र और वरुण को अदिति ने धारण किया। जन्म लेने के साथ ही जो महान से भी महान और हिंसक मनुष्य के लिए घातक हुए, उन्हें अदिति ने गर्भ में धारण किया।[ऋग्वेद 6.67.4]
Aditi had Mitr & Varun, who are strong like horse, possess pious Strotr and truthful, in her womb. Aditi kept the great amongest the great and slayer of violent human in her womb.
विश्वे यद्वां मंहना मन्दमानाः क्षत्रं देवासो अदधुः सजोषाः।
परि यद्भूथो रोदसी चिदुर्वी सन्ति स्पशो अदब्धासो अमूराः॥
परस्पर प्रीति युक्त होकर समस्त देवताओं ने आपकी महिमा का भजन करते हुए बल धारित किया। आप लोग विस्तीर्ण द्यावा-पृथ्वी को परिभूत करते हैं। आप किसी के द्वारा पराजित नहीं होते।[ऋग्वेद 6.67.5]
Having mutual love-affection, all demigods-deities sung your sacred hymns, glory & acquired might-power. You control the broad-vast heavens & earth without being defeated by anyone.
ता हि क्षत्रं धारयेथे अनु द्यून् दृंहेथे सानुमुपमादिव द्योः।
दृळ्हो नक्षत्र उत विश्वदेवो भूमिमातान्द्यां धासिनायोः
आप प्रतिदिन बल धारित करते हैं। अन्तरिक्ष के उन्नत प्रदेश को खूँटे के सदृश दृढ़रूप से धारित करें। आपके द्वारा दृढ़ीकृत मेघ अन्तरिक्ष में व्याप्त होता है और विश्व देव मनुष्य के हव्य से तृप्त होकर भूमि और द्युलोक में व्याप्त होते हैं।[ऋग्वेद 6.67.6]
खूंटा :: हाता, कील, कटघरा, दाँव, पण, खूंटा, शंकु, जलाकर हत्या, निहाई, सीमा, अहाता, कील, घेरा; stake, pale, pegs.
Your acquire strength every day. Bear the elevated regions of the space like a peg. Empowered by you the clouds pervade the sky. Vishw Dev on being satisfied by the humans by making offerings you pervade the earth and heavens.
ता विग्रं धैथे जठरं पृणध्या आ यत्सद्म सभृतयः पृणन्ति।
न मृष्यन्ते युवतयोऽवाता वि यत्पयो विश्वजिन्वा भरन्ते
सोमरस द्वारा उदर पूर्ण करने के लिए आप लोग प्राज्ञ व्यक्ति को धारित करते हैं। हे विश्व जिन्वा मित्र और वरुण देव! जिस समय ऋत्विक लोग यज्ञ कार्य पूर्ण करते हैं और आप जल भेजते हैं, उस समय नदियाँ अथवा दिशायें धूल से नहीं भरती; परञ्च अशुष्क और अवात होकर विभूति धारित करती हैं।[ऋग्वेद 6.67.7]
For filling the stomach with Somras you support the enlightened. Sustainer of the world Mitr & Varun Dev! When the Ritviz accomplish the Yagy, you provide water, the rivers and directions are not engulfed by the dust, do not become dry and acquire glory.
ता जिह्वया सदमेदं सुमेधा आ यद्वां सत्यो अरतिऋते भूत्।
तद्वां महित्वं घृतान्नावस्तु युवं दाशुषे वि चयिष्टमंहः
मेधावी व्यक्ति आपसे सदा वचन द्वारा इस जल की याचना करता है। हे घृतान्न युक्त मित्र और वरुणदेव! जिस प्रकार आपका अभिगन्ता यज्ञ में माया रहित होता है, उसी प्रकार आपकी महिमा है। हव्य दाता के पापों का नाश करें।[ऋग्वेद 6.67.8] 
The intelligent always request you for water. Hey Mitr & Varun Dev possessing food grains mixed with Ghee! The manner in which your Yagy is free from cast similarly your glory exist. Destroy the sins of the humans, who make offerings.
प्र यद्वां मित्रावरुणा स्पूर्धन्प्रिया धाम युवधिता मिनन्ति।
न ये देवास ओहसा न मर्ता अयज्ञसाचो अप्यो न पुत्राः
हे मित्र और वरुण देव! जो लोग स्पर्द्धा करके आपके द्वारा विहित और आपके प्रिय कर्म में विघ्न करते हैं, जो देवता और मनुष्य स्तोत्र रहित हैं, जो कर्मशील होकर भी यज्ञ नहीं करते और न ही वे मनुष्य हैं, न ही देवता हैं, अतः आप उनका संहार करें।[ऋग्वेद 6.67.9]
Hey Mitr & Varun Dev! Those who compete-interfere with your ordained duties, free from Strotr as demigods & humans, do not perform Yagy and are neither humans & demigods-deities destroy them.
वि यद्वाचं कीस्तासो भरन्ते शंसन्ति के चिन्निविदो मनानाः।
आद्वां ब्रवाम सत्यान्युक्था नकिर्देवेभिर्यतथो महित्वा
जिस समय मेधावी लोग प्रार्थना का उच्चारण करते हैं। कोई-कोई प्रार्थना करते हुए सूक्त का पाठ करते हैं और जब हम आपको लक्ष्यकर सत्य मन्त्रों का पाठ करते हैं, उस समय आप लोग महिमान्वित होकर देवों के साथ न जावें।[ऋग्वेद 6.67.10]
While the intellectual-intelligent recite prayers-Sukt, recite Mantr for you, do not move along with the demigods on being glorified.
अवोरित्था वां छर्दिषो अभिष्टौ युवोर्मित्रावरुणावस्कृधोयु।
अनु यद्गावः स्फुरानृजिप्यं धृष्णुं यद्रणे वृषणं युनजन्॥
रक्षक मित्र और वरुण देव! जिस समय स्तुतियाँ उच्चारित होती हैं और जब सरलगामी, घर्षक तथा अभीष्टवर्षी सोमरस को यज्ञ में प्रस्तुत किया जाता है, तब आप अपने आश्रित रहने वाले भक्तों को गौओं से युक्त गोष्ठ व सुरक्षित गृह प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.67.11]
Hey protector Mitr & Varun Dev! When Stutis are recited, Somras is served in the Yagy, you grant the devotees dependent upon you; cows alongwith cow shed-yard and safe houses.(05.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र देव, वरुण; छन्द :- त्रिष्टुप जगती।
श्रुष्टी वां यज्ञ उद्यतः सजोषा मनुष्वद् वृक्तबर्हिषो यजध्यै।
आ य इन्द्रावरुणाविषे अद्य महे सुम्नाय मह आववर्तत्
हे महान इन्द्र देव और वरुण देव! मनु के सदृश कुश-विस्तारक याजकगण के अन्न और सुख के लिए जो यज्ञ आरम्भ होता है, आज आप लोगों के लिए वही क्षिप्र यज्ञ ऋत्विकों के द्वारा प्रवृत्त किया गया।[ऋग्वेद 6.68.1]
Hey great Indr Dev & Varun Dev! The Yagy which initiate by spreading Kush Mat-cushion like Manu for food grains & benefit-comforts of the Ritviz, has been directed towards you. 
ता हि श्रेष्ठा देवताता तुजा शूराणां शविष्ठा ता हि भूतम्।
मघोनां मंहिष्ठा तुविशुष्म ऋतेन वृत्रतुरा सर्वसेना
आप श्रेष्ठ हैं, यज्ञ में धन देने वाले हैं और वीरों में अतीव बलवान हैं। दाताओं में श्रेष्ठ दाता तथा बहुबलशाली सत्य के द्वारा शत्रुओं के हिंसक और सब प्रकार की सेना से युक्त हैं।[ऋग्वेद 6.68.2]
You are excellent, grant lots of wealth for the Yagy and mightiest amongest the brave. Best amongest the donors, your mighty-truthful powers destroy the violent enemies and are have all sorts of armies.
ता गृणीहि नमस्येभिः शूषैः सुम्नेभिरिन्द्रावरुणा चकाना।
वज्रेणान्यः शवसा हन्ति वृत्रं सिषकयन्यो वृजनेषु विप्रः
स्तुति, बल और सुख के द्वारा स्तुत इन्द्र देव और वरुण देव की प्रार्थना करें। उनमें से एक इन्द्र देव वृत्रासुर का वध करते हैं, दूसरे प्रजा में युक्त (वरुण) उपद्रवों से रक्षा करने के लिए बलशाली होते हैं।[ऋग्वेद 6.68.3]
Let us worship Indr Dev & Varun Dev with Stuti, strength and comforts. One of them Indr Dev kills Vrata Sur and the other one i.e., Varun Dev protect the populace from all sorts of trouble.
ग्नाश्च यन्नरश्च वावृधन्त विश्वे देवासो नरां स्वगूर्ताः।
प्रैभ्य इन्द्रावरुणा महित्वा द्यौश्च पृथिवि भूतमुर्वी
हे इन्द्र देव और वरुण देव! समस्त पुरुष और स्त्री एवं समस्त देवगण द्यावा- पृथ्वी स्वतः उद्यत होकर जब आपको स्तुति द्वारा वर्द्धित करते हैं, तब महमिान्वित होकर आप लोग उनके प्रभु बनें।[ऋग्वेद 6.68.4]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You should become the lord of the all men & women with all demigods-deities who will automatically worship-pray to grow-promote you.
स इत्सुदानुः स्वँवा ऋतावेन्द्रा यो वां वरुण दाशति त्मन्।
इषा स द्विषस्तरेद्दास्वान्वंसद्रयिं रयिवतश्च जनान्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! जो याजक आपको स्वयं हवि देता है, वह सुन्दर दान वाला और यज्ञशाली होता है। वही दाता जय प्राप्त अन्न के साथ शत्रुओं के हाथ से सुरक्षित रहकर धन और सम्पत्तिशाली पुत्र प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.68.5]
GRACIOUS :: वैभवपूर्ण, सुख-सुविधापूर्ण, व्‍यक्ति या उसका अच्छा आचरण,  दयालु, नम्र और उदार; descent behaviour of a person, kind, polite and generous, showing the easy comfortable way of life that rich people can have.
Hey Indr Dev & Varun Dev! The Ritviz who make offerings to you become a gracious-glorious donor and performer of Yagy. That donor wins the enemies & remain protected, gets wealth and prosperous son.
यं युवं दाश्वध्वराय देवा रयिं धत्थो वसुमन्तं पुरुक्षुम्।
अस्मे स इन्द्रावरुणावपि ष्यात्प्र यो भनक्ति वनुषामशस्तीः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप हविदाता को धनानुगामी और बहु अन्नशाली जो धन देते हैं और जिससे हम अपनी निन्दा करने वालों को दूर कर सकें, वैसा ही धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.68.6]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You grant wealth and various food grains to the one (who makes offerings in the Yagy for you). Grant us riches so that we can repel those who reproach us.
उत नः सुत्रात्रो देवगोपाः सूरिभ्य इन्द्रावरुणा रयिः ष्यात्।
येषां शुष्मः पृतनासु साह्रान्प्र सद्यो द्युम्ना तिरते ततुरिः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! हम आपके स्तोता हैं। जो धन सुरक्षित है और जिसके रक्षक देवगण हैं, वही धन हम स्तोताओं को प्रदान करें। हमारा बल संग्राम में शत्रुओं को परास्त करने वाला और हिंसक होकर तत्काल उनके यज्ञ को नष्ट करे।[ऋग्वेद 6.68.7]
Hey Indr Dev & Varun Dev! We are your worshipers-Stotas. Grant us the wealth which is safe and protected by the demigods-deities. Our strength and power should be such that we are able to defeat the enemy in the war and destroy his Yagy-endeavours by becoming violent immediately.
नू न इन्द्रावरुणा गृणाना पृङ्क्तं रयिं सौश्रवसाय देवा।
इत्था गृणन्तो महिनस्य शर्धोऽपो न नावा दुरिता तरेम
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप लोग प्रार्थित होकर सुअन्न के लिए हमें शीघ्र धन प्रदान करें। हे देवों! आप लोग महान हैं। हम इस प्रकार आपके बल की प्रार्थना करते हैं। हम नौका द्वारा जल के समान पापों से मुक्त हो जावें।[ऋग्वेद 6.68.8]
Hey Indr Dev & Varun Dev! On being worshipped you grant us pious food grains quickly. Hey deities! You are great. In this manner we worship your might & power. Let us become free from the sins caused by water through boat.
I Delhi Yamuna river is extremely polluted. Maa ganga else where too face the same agony-trouble. Any one who take a dip in them invite numerous diseases-sins for him. Its advised not to enter these river for a bath or cross them. The governments are gross failure.
प्र सम्राजे बृहते मन्म नु प्रियमर्च देवाय वरुणाय सप्रथः।
अयं य उर्वी महिना महिव्रतः क्रत्वा विभात्यजरो न शोचिषा
जो वरुण देव महिमान्वित, महाकर्मा, प्रज्ञायुक्त तेज युक्त और अजर हैं, जो विस्तीर्ण हैं, वहीं धन हम स्तोताओं को प्रदान करें। हमारा बल संग्राम में शत्रुओं को परास्त करने वाला और हिंसक होकर तत्काल उनके यज्ञ को नष्ट करे।[ऋग्वेद 6.68.9]
Varun Dev, who is free form old age, glorious, performer of great deeds, aurous and vast; grant us-Stotas wealth-riches. Our war should be aimed-able to defeat the enemy by becoming violent and destroy their endeavours at the same moment.
इन्द्रावरुणा सुतपाविमं सुतं सोमं पिबतं मद्यं धृतव्रता।
युवो रथो अध्वरं देववीतये प्रति स्वसरमुप याति पीतये
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप सोमरस का पान करने वाले हैं; इसलिए इस मादक और अभिषुत सोमरस का पान करें। हे धृतव्रत मित्र और वरुणदेव! देवों के पान के लिए आपका रथ यज्ञ की ओर आता है।[ऋग्वेद 6.68.10]
धृतव्रत :: (1). जिसने कोई व्रत धारण किया हो, धार्मिक क्रिया करनेवाला, निष्ठाशील, जिसकी निष्ठा द्दढ़ हो, पुरुवेशीय जयद्रथ के पुत्र विजय का पौत्र।etermined-firm.
(2). वरुण देव के नियम सर्वदा ही निश्चित तथा दृढ हैं और इसीलिए उन्हें धृतव्रत कहा जाता है। स्वयं देवता भी इनके नियम का पालन करते हैं। शब्द का प्रयोग सविता-सूर्य  देव के लिये भी किया गया है।[ऋग्वेद 4.53.4]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You drink Somras, hence drink this intoxicating and extracted Somras. Hey determined-firm Mitr & Varun Dev! Your charoite approaches the Yagy for the demigods  to drink Somras.
इन्द्रावरुणा मधुमत्तमस्य वृष्णः सोमस्य वृषणा वृषेथाम्।
इदं वामन्धः परिषिक्तमस्मे आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयेथाम्
हे कामवर्षी इन्द्र देव और वरुण देव! आप अतीव मधुर और मनोरथवर्षक सोमरस का पान करें। आपके लिए इस सोमरूप अन्न को बनाया गया है; इसलिए कुश के आसन पर बैठकर इस यज्ञ में सोमरस को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.68.11]
Hey desires accomplishing Indr & Varun Dev! You should drink extremely-highly sweet and ambitions fulfilling Somras. Somras has been extracted for you from the food grains, hence sit over the Kush Mat and accept Somras in this Yagy.(06.11.2023)
 
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तोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)