CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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हिरण्यपाणिमूतये सवितारमुप ह्वये।
स चेत्ता देवता पदम्॥5॥
यजमान को (प्रकाश-उर्जा आदि) देने वाले हिरण्यगर्भ (हाथ में सुवर्ण धारण करने वाले या सुनहरी किरणों वाले) सविता देव का हम अपनी रक्षा के लिये आवाहन करते हैं। वे ही यजमान के द्वारा प्राप्तव्य (गन्तव्य) स्थान को विज्ञापित करनेवाले हैं।[ऋग्वेद 1.22.5]
मैं उस स्वर्ण हस्त वाले सूर्य का आह्वान करता हूँ। वे यजमान को श्रेष्ठ प्रेरणा देंगे।
The hosts invite the Savita Dev (Bhagwan Sury), having golden hands (rays of light glittering like gold) for their safety.
अपां नपातमवसे सवितारमुप स्तुहि। तस्य व्रतान्युश्मसि॥6॥
हे ऋत्विज! आप हमारी रक्षा के लिये सविता देवता की स्तुति करें। हम उनके लिये सोमयागादि कर्म सम्पन्न करना चाहते है। वे सविता देव जलों को सुखा कर पुनः सहस्त्रों गुणा बरसाने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.22.6]
(सौर शक्ति से जल के शोधन, वर्षण एवं शोचन की प्रक्रिया का वर्णन इस ऋचा में है।)
जलों को आकृष्ट करने वाले सूर्य को रक्षण हेतु बुलाकर हम अनुष्ठान करने की कामना करते हैं।
Hey hosts-doers of Yagy! Please pray to Bhagwan Sury Narayan for protecting us. We wish to organise Som Yagy and other related deeds. Savita Dev-Sun, initially dry the water-evaporate & then shower it back with increased capacity-thousands of times as compared to the evaporated water.
विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः। सवितारं नृचक्षसम्॥7॥
समस्त प्राणियों के आश्रयभूत, विविध धनों के प्रदाता, मानव मात्र के प्रकाशक सूर्य देव का हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.22.7]
धन एवं ऐश्वर्य को बाँटने वाले मनुष्यों के द्रष्टा सूर्य का आह्वान करते हैं।
We invite Bhagwan Sury, who provides shelter to all organism, grants wealth, glow-lit the whole universe.
सखाय आ नि षीदत सविता स्तोम्यो नु नः। दाता राधांसि शुम्भति॥8॥
हे मित्रो! हम सब बैठकर सविता देव की स्तुति करें। धन-ऐश्वर्य के दाता सूर्य देव अत्यन्त शोभायमान हैं।[ऋग्वेद 1.22.8]
हे मित्रों सभी ओर बैठकर धन दाता सूर्य की आराधना करो। वह अत्यन्त सुशोभित हैं।
Hey friends! Let us sit together and pray to Bhagwan Sury-Sun. The Sun who gives wealth-amenities, is stunning-beautiful (glorious).
अभि त्वा देव सवितरीशानं वार्याणाम्। सदावन्भागमीमहे॥
हे सर्वदा रक्षणशील सविता देव! आप वरण करने वाले योग्य धनों के स्वामी हैं, अतः हम आपसे ऐश्वर्यों के उत्तम भाग को माँगते हैं।[ऋग्वेद 1.24.3]
हे सतत रक्षणशील एवं वरणीय धनों के स्वामी सविता देव! तुमसे हम सभी ऐश्वर्यों की कामना करते हैं।
O always moving Savita Dev! You are the master of the riches one should have; so we request you to give us the best part of the comforts-amenities.
यश्चिद्धि त इत्था भगः शशमानः पुरा निदः। अद्वेषो हस्तयोर्दधे॥
हे सविता देव! आप तेजस्विता युक्त, निन्दा रहित, द्वेष रहित, वरण करने योग्य धनों को दोनों हाथों से धारण करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.24.4]
हे सूर्य, सत्य, अनित्य, पूजनीय द्वेष रहित तथा सेवनीय धन को तुम ग्रहण करने वाले हो।
निन्दा :: कलंक, तिरस्कार, परिवाद, धिक्कार, भला-बुरा, लानत, शाप, फटकार, गाली; blasphemy, reproach, damn, reprehension.
Hey Savita Dev! You wear the jewels-ornaments which are shinning-glittering, free from defects-blasphemy, envy.
भगभक्तस्य ते वयमुदशेम तवावसा। मूर्धानं राय आरभे॥
हे सविता देव! हम आपके ऐश्वर्य की छाया में रहकर संरक्षण को प्राप्त करें। उन्नति करते हुये सफलताओं के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचकर भी अपने कर्तव्यों को पूरा करते रहें।[ऋग्वेद 1.24.5]
हे समृद्धिशाली सूर्य! तुम्हारी सुरक्षा में आश्रित हम तुम्हारे सेवक समद्धि साधनों की वृद्धि में लगे रहते हैं। आप हमारी सुरक्षा करें।
Hey Savita Dev! Let us progress under your protection and reach the peaks of success while discharging our duties.
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्॥
सूर्य को प्राप्त हुआ जो तेज सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता है और जो तेज चन्द्रमा में है तथा अग्नि में है, उस तेज को मेरा ही जान।[श्रीमद्भगवद्गीता 15.12] The energy (aura, brilliance, brightness, light) present in the Sun, which illuminates the universe, the energy in the Moon and the fire are by virtue of the Almighty. They shine due to the power of the God.
जो सूर्य पूरे ब्रह्माण्ड को प्रकशित करता है, उसमें जो तेज है, वह परमात्मा से प्राप्त है। सूर्य नेत्रों के अधिष्ठात्र देवता हैं। सूर्य में प्रकाश और ज्वलन शक्ति, चंद्र में शीतलता, मधुरता, प्रकाश और पोषण शक्ति, अग्नि में प्रकाश और दहन शक्ति परमात्मा से प्राप्त हैं। चन्द्रमा मन के अधिष्ठात्र देवता हैं। अग्नि वाणी के अधिष्ठात्र देवता हैं। कहने का अर्थ यह है कि परमात्मा, सूर्य, चन्द्र और अग्नि सहित प्राणी सभी एक श्रंखला में जुड़े हैं। सभी परमात्मा के अंश हैं। सभी में तेज, प्राण और संवेदन परमात्मा से हैं। किसी में अपना स्वयं का कुछ नहीं है।
जो सूर्य पूरे ब्रह्माण्ड को प्रकशित करता है, उसमें जो तेज है, वह परमात्मा से प्राप्त है। सूर्य नेत्रों के अधिष्ठात्र देवता हैं। सूर्य में प्रकाश और ज्वलन शक्ति, चंद्र में शीतलता, मधुरता, प्रकाश और पोषण शक्ति, अग्नि में प्रकाश और दहन शक्ति परमात्मा से प्राप्त हैं। चन्द्रमा मन के अधिष्ठात्र देवता हैं। अग्नि वाणी के अधिष्ठात्र देवता हैं। कहने का अर्थ यह है कि परमात्मा, सूर्य, चन्द्र और अग्नि सहित प्राणी सभी एक श्रंखला में जुड़े हैं। सभी परमात्मा के अंश हैं। सभी में तेज, प्राण और संवेदन परमात्मा से हैं। किसी में अपना स्वयं का कुछ नहीं है।
The Sun illuminates the whole universe with the energy-aura granted by the God. He is the deity of the eyes as well. One can not see anything in the absence of eyes (light). The Moon gets its energy, calmness-cool, brightness and capacity to nourish from the God. He is the deity of the mind, brain, thoughts, memory etc. Fire is the deity of speech. Its empowered to burn everything and digest the food. The fact remains that each one of them gets its energy from the Almighty. They have no existence without the God. Their brightness-aura fades in front of the God. The energy, soul and sensation in them is by virtue of the God, including the organism-living being. None has anything of its own. Therefore, its the pious duty of one to worship the Almighty, in order to assimilate in HIM. It means that one has to perform his duties religiously, with dedication, concentration, without laziness, carefully honestly, piously, righteously, virtuously.
दधिक्राव्ण इदु नु चर्किराम विश्वा इन्मामुषसः सूदयन्तु।
अपामग्नेरुषसः सूर्यस्य बृहस्पतेराङ्गिरसस्य जिष्णोः॥
हम बारम्बार दधिक्रा देव की प्रार्थना करेंगे। सम्पूर्ण उषा हमें कर्म में प्रेरित करें। हम जल, अग्निदेव, उषा, सूर्य, बृहस्पति और अङ्गिरा गोत्रोत्पन्न जिष्णु की प्रार्थना करेंगे।[ऋग्वेद 4.40.1]
जिष्णु :: विजयी; triumphant, victorious, winner.
उन दधिक्रादेव की हम बारम्बार उपासना करेंगे। समस्त उषायें हमको कार्यों में संलग्न करें। जल, अग्नि, उषा, सूर्य, बृहस्पति और अंगिरा वंशज विष्णु का हम समर्थन करेंगे।
We will worship-pray Dadhikra Dev repeatedly. Let Usha inspire us endeavours, every morning. We will pray to the winners in the dynasty Agni Dev, Sun, Brahaspati and Angira.
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- इन्द्र, सूर्य, छन्द :- उष्णिक्, त्रिष्टुप् अनुष्टुप्।
आ याह्यद्रिभिः सुतं सोमं सोमपते पिब। वृषन्निन्द्र वृषभिर्वृत्रहन्तम॥
हे इन्द्र देव! हम लोगों के यज्ञ में आप उपस्थित हों। हे सोमरस के स्वामी इन्द्र देव! आकर पत्थरों-द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करें। हे फल वर्षक, हे शत्रुओं के अतिशय हन्ता! फलवर्षी मरुतों के साथ आप सोमपान करें।[ऋग्वेद 5.40.1]
Hey Indr Dev! Join out Yagy. Hey the lord of Somras! Drink the Somras crushed & extracted with stones. Hey rewarding, slayer of the enemy! Drink Somras along with the Marud Gan, who accomplish desires.
वृषा ग्रावा वृषा मदो वृषा सोमो अयं सुतः। वृषन्निन्द्र वृषभिर्वृत्रहन्तम॥
अभिषव साधन पाषाण वर्षणकारी है। सोमपान जनित हर्ष वर्षणकारी है। यह अभिषुत सोम वर्षणकारी है। हे फल वर्षक! शत्रुओं के अतिशय हन्ता! फलवर्षी मरुतों के साथ आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.40.2]
The stones used to extract Somras leads to rains. Drinking of Somras grant rains. This extracted Somras draws rains. Hey rewarding, destroyer of the enemy! Drink Somras along with the Marud Gan, who accomplish desires.
वृषा त्वा वृषणं हुवे वज्रिञ्चित्राभिरूतिभिः। वृषन्निन्द्र वृषभिर्वृत्रहन्तम॥
वज्रधर इन्द्र देव! आप सोमरस के सेचन कर्ता और अभीष्ट वर्षी हैं। हम विचित्र रक्षा के लिए आपका आह्वान करते हैं। हे फलवर्षक शत्रुओं के अतिशय हन्ता! फलवर्षी मरुतों के साथ आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.40.3]
सेचन :: सिंचाई करना, सिंचन, पानी छिड़कना; pollination.
Hey Vajr wielding Indr Dev! Hey nurturer of Somras and desires accomplisher, we invoke you for our protection-safety. Hey rewarding slayer of the enemy! Drink-enjoy Somras along with the Marud Gan.
ऋजीषी वज्री वृषभस्तुराषाट्छुष्मी राजा वृत्रहा सोमपावा।
युक्त्वा हरिभ्यामुप यासदर्वाङ्माध्यन्दिने सवने मत्सदिन्द्रः॥
इन्द्र देव ऋजीषी और वज्रधर हैं। इन्द्र देव अभीष्टवर्षी, शत्रु संहारकर्ता, बलवान्, सभी के ईश्वर, वृत्र हन्ता और सोमपान कर्ता हैं। इस तरह के इन्द्र देव घोड़ों को रथ में नियोजित करके हम लोगों के अभिमुख पधारें और माध्यन्दिन सवन में सोमपान से हर्षित हों।[ऋग्वेद 5.40.4]
ऋजीषी :: कर्ता; nominative, singular, masculine.
Hey Vajr wielding, singularly doer Indr Dev! You are accomplisher of desires, slayer-killer of enemies, mighty-powerful, lord of all, killer of Vrata Sur and extractor of Somras. Let Indr Dev deploy horses in his charoite and come to us for drinking Somras during the day-noon.
यत्त्वा सूर्य स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः।
अक्षेत्रविद्यथा मुग्धो भुवनान्यदीधयुः॥
हे सूर्य देव! स्वर्भानु नामक असुर ने जब आपको अन्धकार से आच्छदित कर दिया, तब जैसे मनुष्य अन्धकार में अपने क्षेत्र या रास्ते को न जानकर भ्रमित हो जाता है, उसी प्रकार से सभी लोग तमिस्रा में सम्मोहित हो गये।[ऋग्वेद 5.40.5]
तमिस्रा :: अँधेरी रात, गहन-गहरा अँधेरा या अंधकार, क्रोध, द्वेष, राग आदि दूषित और तामसिक मनोविकार, अविद्या का वह रूप जो भोग-विलास की पूर्ति में बाधा पड़ने पर उत्पन्न होता है और जिससे मनुष्य क्रोध वैर आदि करने लगता है; darkness, anger, attachment.
Hey Sury-Sun Dev! When the demon Swarbhanu had covered-hidden you, every one became confused-illusioned unable to recognise their either the locality or the path.
स्वर्भानोरध यदिन्द्र माया अवो दिवो वर्तमाना अवाहन्।
गूळ्हं सूर्यं तमसापव्रतेन तुरीयेण ब्रह्मणाविन्ददत्रिः॥
हे इन्द्र देव! जब आपने सूर्य के अधोदेश में वर्त्तमान, स्वर्भानु असुर की द्युतिमान् माया को नष्ट किया, तब व्रत विघातक अन्धकार द्वारा समाच्छन्न सूर्य देव को अत्रि ने चार ऋचाओं द्वारा प्रकाशमान किया।[ऋग्वेद 5.40.6]
ऋचा :: incantation.
Hey Indr Dev! When you removed-eliminated the bright cast-illusion made by the demon Swarbhanu, the darkness spoiled the fasts-endeavours, Atri Rishi lit the Sun by four Mantr-sacred hymns.
मा मामिमं तव सन्तमत्र इरस्या द्रुग्धो भियसा नि गारीत्त्वं।
मित्रो असि सत्यराधास्तौ मेहावतं वरुणश्च राजा॥
सूर्य वाक्य :- हे अत्रि! ऐसी अवस्था वाले हम आपके हैं। अन्न की इच्छा से द्रोह करने वाले असुर भय जनक अन्धकार द्वारा हमें नहीं निगल जायें; इसलिए आप और वरुण देव दोनों हमारी रक्षा करें। आप हमारे मित्र और सत्य पालक हैं।[ऋग्वेद 5.40.7]
Sury Dev said :- Hey Atri! In this situation-condition, we belong to you. The demons desirous of food grains may not engulf us by virtue of fear some darkness, we request you and Varun Dev to protect us. You are our friend and stand by the truth.
ग्राव्णो ब्रह्मा युयुजानः सपर्यन् कीरिणा देवान्नमसोपशिक्षन्।
अत्रिः सूर्यस्य दिवि चक्षुराधात्स्वर्भानोरप माया अघुक्षत्॥
उस समय ऋत्विक् अत्रि ने सूर्य को उपदेश दिया, प्रस्तर खण्डों का घर्षण करके इन्द्र देव के लिए सोमाभिषव किया, स्तोत्रों द्वारा देवी की पूजा की और मन्त्र प्रभाव से अन्तरिक्ष में सूर्य देव चक्षु को स्थापित किया। उस समय उन्होंने स्वर्भानु की समस्त माया को दूर कर दिया।[ऋग्वेद 5.40.8]
At that moment Ritviz Atri advised Sury Dev, that he should rub the stones and extract Somras for Indr Dev, worshiped the Goddess-Maa Bhagwati and established Sury Dev Chakshu in the space eliminating-removing the darkness and cast-spell of Swarbhanu.
यं वै सूर्यं स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः।
अत्रयस्तमन्वविन्दन्नह्य १ न्ये अशक्नुवन्॥
असुर स्वर्भानु ने जिस सूर्य को अन्धकार द्वारा आच्छदित किया, अत्रि पुत्रों ने अवशेष में उन्हें मुक्त किया। दूसरा कोई ऐसा करने में समर्थ न हुआ।[ऋग्वेद 5.40.9]
Atri's sons liberated the Sun, which was engulfed with darkness by Swarbhanu. None other had this power.(29.06.2023)
प्रति मे स्तोममदितिर्जगृभ्यात्सूनुं न माता हृद्यं सुशेवम्।
ब्रह्म प्रियं देवहितं यदस्त्यहं मित्रे वरुणे यन्मयोभु॥
हमारे हृदयंगम और सुखकर स्तोत्र को माता अदिति ग्रहण करें, जिस प्रकार से जननी अपने को ग्रहण करती है। अहोरात्राभिमानी देव मित्र और वरुण के उद्देश्य से हम मनोहर आनन्दायक और देवग्राह्य स्तोत्र प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.42.2]
हृदयंगम :: मर्मस्पर्शी, अच्छी तरह समझा हुआ, ठीक से याद किया हुआ; हृदयगत; inculcate, learning by heart.
Let Maa Aditi accept our inculcated Strotr causing comforts like a mother. We recite-compose attractive & acceptable Strotr for the sake of demigods-deities & the deities governing day and night and Mitr & Varun Dev.
देवो भगः सविता रायो अंश इन्द्रो वृत्रस्य संजितो धनानाम्।
ऋभुक्षा वाज उत वा पुरन्धिरवन्तु नो अमृतासस्तुरासः॥
भगदेव, धनस्वामी सविता, वृत्रहन्ता इन्द्र देव, भली-भाँति से धन के विजेता ऋभुक्षा, वाज़ और पुरन्धि आदि समस्त अमर शीघ्र ही हम लोगों के यज्ञ में उपस्थित होकर हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.42.5]
Let all the immortals :- Bhag Dev, lord of riches Savita, slayers of Vratr Indr Dev, winner of wealth Ribhuksha, Vaj and Purandhi join this Yagy quickly and protect us.
प्र व एते सुयुजो यामन्निष्टये नीचीरमुष्मै यम्य ऋतावृधः।
सुयन्तुभिः सर्वशासैरभीशुभिः क्रिविर्नामानि प्रवणे मुषायति॥
इन याजक गणों के लिए यज्ञ को बढ़ाने वाली ये सूर्य की किरणें परस्पर भली-भाँति से संयुक्त होकर यज्ञ भूमि में गमन करने की अभिलाषा से अवतीर्ण होती हैं। वेग पूर्वक गमन करने वाली और सबका नियमन करने वाली इन समस्त किरणों द्वारा सूर्य जलराशि को निम्न देश में प्रेरण करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.4]
The Sun rays support the Yagy by the Ritviz occurring to lit the Yagy site together. Moving with fast speed, they regulate all inspiring the water to occupy low lying land.
ज्यायांसमस्य यतुनस्य केतुन ऋषिस्वरं चरति यासु नाम ते।
यादृश्मिन्धायि तमपस्यया विदद्य उ स्वयं वहते सो अरं करत्॥
हे देव श्रेष्ठ सूर्य देव या अग्नि देव! याजकगण आपके निकट आगमन करते हैं। आप उदयादि लक्षण द्वारा परिज्ञात होते हैं। ऋषि लोग आपका स्तवन करते हैं, जिससे आपका नाम वर्द्धित होता है। वे जिस वस्तु की कामना करते हैं, कार्य द्वारा उसे प्राप्त करते हैं और जो अपनी इच्छा से पूजा करते हैं, वे प्रचुर पुरस्कार प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.8]
Hey deity Sury Dev/Agni Dev! The Ritviz move closer to you. You are recognised with dawn. The Rishi-sages worship-recite hymns in your favour to prolong your name. They attain the desired commodities by virtue of their endeavours. Those who worship you of their own, get plenty of rewards.
समुद्रमासामव तस्थे अग्रिमा न रिष्यति सवनं यस्मिन्नायता।
अत्रा न हार्दि क्रवणस्य रेजते यत्रा मतिर्विद्यते पूतबन्धनी॥
हम लोगों के इन समस्त स्तोत्रों के बीच में प्रधान स्तोत्र समुद्र के समान सूर्य के निकट उपस्थित हों। यज्ञगृह में जो उनका स्तोत्र विस्तीर्ण होता है, वह नष्ट नहीं होता। जिस स्थान में पवित्र सूर्य देव के प्रति चित्त समर्पित होता है, वहाँ उपासकों के हृदयगत मनोरथ विफल नहीं होते ।[ऋग्वेद 5.44.9]
विस्तीर्ण :: फैला हुआ, लंबा-चौड़ा, विशाल, विस्तृत, व्यापक, प्रशस्त, लंबा-चौड़ा, प्रचुर, प्रभूत; extensive, roomy, ample, spacious, vast.
Let the main Strotr be present amongst all Strotr like the ocean close to the Sun. His sacred hymns in the Yagy house be vast & ample without being vanished. A place where the innerself-conscience is devoted to the pious Sun, desires in the heart never fail.
स हि क्षत्रस्य मनसस्य चित्तिभिरेवावदस्य यजतस्य सध्रे:।
अवत्सारस्य स्पृणवाम रण्वभिः शविष्ठं वाजं विदुषा चिदर्ध्यम्॥
वह सविता देव सभी के द्वारा स्तुत्य हैं, सबकी कामनाओं के पूरक हैं। उनके निकट से हम क्षेत्र, मनस, अवद, यजत, सधि और अवत्सार नामक ऋषिगण सूर्यदेव की प्रार्थनाओं द्वारा उत्तम बलों और अन्नों की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.10]
Savita is worshipable for all and accomplish the desires of everyone. We the Rishis-sages named Kshetr, Manas, Yajat, Sadhi and Avtsar desire of excellent might and food grains by virtue of dedication-prayers devoted to Savita Dev-Sun.
देवं वो अद्य सवितारमेषे भगं च रलं विभजन्तमायोः।
आ वां नरा पुरुभुजा ववृत्यां दिवेदिवे चिदश्विना सखीयन्॥
अभी हम आप याजक गणों के लिए सविता और भगदेव का आवाहन करते हैं। क्योंकि ये याजकगणों को धन प्रदान करते हैं। हे नेतृ स्वरूप बहुभोग कर्ता अश्विनी कुमारों! आप दोनों से मित्रता की कामना करके हम प्रतिदिन आप दोनों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 5.49.1]
We are invoking Savita & Bhag Dev for the Ritviz, since they grant wealth-riches to them. Hey leaders and consumers of several offerings-oblations Ashwani Kumars! We seek-request your friendship and company invoking you everyday.
प्रति प्रयाणमसुरस्य विद्वान्त्सूक्तैर्देवं सवितारं दुवस्य।
उप ब्रुवीत नमसा विजानञ्ज्येष्ठं च रलं विभजन्तमायोः॥
हे स्तोताओं! शत्रुओं के निवारक सविता देव को पुनः वापस आता जानकर सूक्तों द्वारा उनकी स्तुति करें। वे मनुष्यों को श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं। नमस्कार अथवा हविर्विशेष से उनका स्तवन करें।[ऋग्वेद 5.49.2]
Hey Stotas! On seeing Savita Dev, the remover of the enemies, returning-coming back worship-pray him with sacred hymns-Strotr. He grant money to the excellent humans. Salute him and worship him with special offerings.
तन्नो अनर्वा सविता वरूथं तत्सिन्दधव इषयन्तो अनु ग्मन्।
उप यद्वोचे अध्वरस्य होता रायः स्याम पतयो वाजरत्नाः॥
किसी के द्वारा भी अपराजित सविता देव हम लोगों को अभिमत धन प्रदान करें। उस धन को देने के लिए स्पन्दनशील नदियाँ गमन करें। इसीलिए हम यज्ञ के होता स्तोत्र पाठ करते हैं। हम बहुविध धन के स्वामी हों, अन्न और बल से सम्पन्न हों।[ऋग्वेद 5.49.4]
Let undefeatable by any one, Savita Dev grant us unlimited wealth. Let the palpitating-pulsating rivers flow to grant that unlimited wealth. Hence, we the Stota-Hota of the Yagy recite Strotr. Let us become the owners of vivid wealth, food grains and might.
PALPITATION :: स्पंदन, धड़कन, घबराहट; flurry, bewilderment, dither, tizzy, pulsation, throb, flutter, quivering, vibration, pulsation, trembling.
विश्वो देवस्य नेतुर्मर्ती वुरीत सख्यम्।
विश्वः राय इषुध्यति द्युम्नं वृणीत पुष्यसे॥
सभी मनुष्य सविता देव से मित्रता की प्रार्थना करते हैं। सम्पूर्ण मनुष्य उनसे धन की कामना करते हैं। उनके अनुग्रह से सभी लोग पुष्टि के लिए पर्याप्त धन प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.50.1]
अनुग्रह :: दया, सुघड़ता, इनायत, सुन्दर ढ़ंग, श्री, पक्षपात, अनुमति, अति कृपा, पत्र, इनायत; grace, favour, graciousness.
All humans worship-pray, request Savita Dev for his friendship. Entire populace get sufficient money for their nourishment by virtue of his grace.
अतो न आ नॄनतिथीनतः पत्नीर्दशस्यत।
आरे विश्वं पश्रेष्ठां द्विषो युयोतु यूयुविः॥
अतः इस यज्ञ में हम ऋत्विजों के अतिथि के तरह पूज्य देवों की सेवा करें। इसलिए इस यज्ञ में हविः प्रदान करके देव पत्नियों की सेवा करें। हे देवों! पृथक कर्ता देव समूह या सविता देव दूर मार्ग में वर्त्तमान समस्त वैरियों को या अन्य शत्रुओं को दूर करें।[ऋग्वेद 5.50.3]
वैरी :: शत्रु, दुश्मन, वैर करने वाला; enemy.
Hence we should serve the worshipable deities-demigods and the their wives-Goddesses in this Yagy like the guests of the Ritviz with offerings. Hey demigods-deities! Either isolating group of demigods-deities or Savita Dev repel the current enemies of those envious to us.
यत्र वह्निरभिहितो दुद्रवद्द्रोण्यः पशुः।
नृमणा वीरपस्त्योऽर्णा धीरेव सनिता॥
जिस यज्ञ में यज्ञ को वहन करने वाला यूप योग्य पशु यूप के निकट उपस्थित होता है, उस यज्ञ में सविता देव याजक गण को कुशल तथा धीर स्त्री के तुल्य गृह, भृत्यादि और धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.50.4]
धीर :: शांत स्वभाव वाला, नम्र, विनीत, विरक्त, शांत, दिलजमा, नाउम्मेद, निचला, संकोची, विनयशील, आडंबरहीन, निराश; demure, halcyon, steadfast, resolute, bold, patient, persevering, lasting, stable, constant, calm, self possessed, solemnness, sedate, solemn, grave, deep.
Savita Dev grant skilled-expert, passionless wife, riches, servants etc. to the Ritviz, who brings animal for the sake of Yagy to the pole for tiding it.
एषते देव नेता रथस्पतिः शं रयिः।
शं राये शं स्वस्तय इषः स्तुतो मनामहे देवस्तुतो मनामहे॥
हे नेता सविता देव! आपका यह धनवान् और सबको पालन करने वाला रथ हम लोगों का कल्याण करे। हम सब स्तुति योग्य सविता देव के स्तोता हैं, हम धन के लिए, सुख के लिए तथा अविनष्ट होने के लिए उनकी प्रार्थना करते हैं। हम सविता देव के स्तुतियों के साथ आपकी भी बारम्बार प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.50.5]
Hey leader Savita Dev! Let your wealth carrying and nurturer of all, charoite resort to our welfare. We all Stotas are the worshipers of honoured-revered Savita Dev and worship-pray him for riches, comforts, immortality. We worship you again & again along with the prayers devoted to Savita Dev.
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- सविता; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
उदु ष्य देवः सविता हिरण्यया बाहू अयंस्त सवनाय सुक्रतुः।
घृतेन पाणी अभि प्रुष्णुते मखो युवा सुदक्षो रजसो विधर्मणि॥
वही सुकृति (दिव्य और परोपकारी) सविता देवता दान के लिए हिरण्मय भुजाओं को ऊपर उठाते हैं। विशाल, तरुण और विद्वान सविता देव संसार की रक्षा के लिए दोनों जलमय भुजाओं को प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 6.71.1]
परोपकारी :: भलाई करनेवाला; philanthropic, beneficent.
Divine and beneficent Savita Dev raise his golden arms for donating-charity. Large, young and enlightened Savita Dev extend both of his hands possessing water, for the protection of the universe.
देवस्य वयं सवितुः सवीमनि श्रेष्ठे स्याम वसुनश्च दावने।
यो विश्वस्य द्विपदो यश्चतुष्पदो निवेशने प्रसवे चासि भूमनः॥
हम उन्हीं सविता देव के प्रसव कर्म और प्रशस्त धनदान के विषय में समर्थ होवें। हे सविता देव! आप समस्त द्विपदों और चतुष्पदों की स्थिति और प्रसव (उत्पत्ति) में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 6.71.2]
प्रसव :: वितरण, प्रतिपादन, भाषण, जनन, छुटकारा, प्रसूति, जनना, जन्म संख्या, जनना; delivery, childbirth, childbearing.
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; appreciable, expansive, smashing.
We should be capable of Savita Dev's delivery, related functions and smashing donations. You are capable of performing delivery of two hoofed and four hoofed animals.
अदब्धेभिः सवितः पायुभिष्टं शिवेभिरद्य परि पाहि नो गयम्।
हिरण्यजिह्वः सुविताय नव्यसे रक्षा माकिर्नो अघशंस ईशत॥
हे सविता देव! आप आज अहिंसित और सुखावह तेज के द्वारा हमारे गृहों की रक्षा करें। सुवर्ण जिह्वा वाले देव आप हमें नवीन सुख प्रदान करें और हमारी रक्षा करें। हमारा अहित करने वाला व्यक्ति प्रभुत्व न करने पायें।[ऋग्वेद 6.71.3]
Hey Savita Dev! Protect our homes with your non violent and comforting energy. Grant us new comforts-pleasures with your golden tongue & protect us. A person who wish to harm should not be able to control us.
उष्टुष्य देवः सविता दमूना हिरण्यपाणिः प्रतिदोषमस्थात्।
अयोहनुर्यजतो मन्द्रजिह्व आ दाशुषे सुवति भूरि वामम्॥
शान्तमना, हिरण्यहस्त, हिरण्मयहनु वाले, यश के योग्य और मनोहर वचन वाले वही सविता देव रात्रि के अन्त में जागृत हों। वे हव्यदाता को यथेष्ट अन्न व धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.71.4]
Let Savita Dev who is calm-quite, possessing golden hands and golden chin, fame deserving with attractive voice, awake at the end of night. He grant sufficient food grains and wealth to the one who make offerings.
उर्दू अयाँ उपवक्तेव बाहू हिरण्यया सविता सुप्रतीका।
दिवो रोहांस्यरुहत्पृथिव्या अरीरमत्पतयत् कच्चिदभ्वम्॥
हे सविता देव! अधिवक्ता के तुल्य हिरण्मय और शोभनांश, दोनों भुजाओं को उठावें। वे पृथ्वी से द्युलोक के उन्नत प्रदेश में चढ़ते हैं। गतिशील, जो कुछ महान् वस्तुएँ हैं, वे सबको प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 6.71.5]
Hey Savita Dev! Let Savita Dev raise his golden & beautiful arms like an orator. He rise from the earth to elevated regions of heavens. Dynamic, he make make all glorious materials happy.
वाममद्य सवितर्वाममु श्वो दिवेदिवे वाममस्मभ्यं सावीः।
वामस्य हि क्षयस्य देव भूरेरया धिया वामभाजः स्याम॥
हे सविता देव! आज हमें धन देवें। कल हमें धन देना। प्रतिदिन हमें धन देना। हे देव! आप निवासभूत प्रचुर धन के दाता हैं, इस भावना के अनुसार हम श्रेष्ठ प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.71.6]
Hey Savita Dev! Grant us wealth, today, tomorrow and everyday. Hey deity! "You are a big donor of wealth", let us obtain excellent house-residence with this feeling-sentiment.(09.11.2023)
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा
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