Wednesday, July 29, 2015

चामुण्डा स्त्रोत्र

चामुण्डा  स्त्रोत्र
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद् भगवद्गीता 2.47]
श्रीगणेशाय नमः। श्रीभैरवाय नमः। 
श्रीउमामहेश्वराभ्यां नमः।
श्री मार्कण्डेय उवाच ::
ततो गच्छेन्महीपाल तीर्थं कनखलोत्तमम्।
गरुडेन तपस्तप्तं पूजयित्वा महेश्वरम्॥1॥
दिव्यं वर्षशतं यावज्जातमात्रेण भारत।
तपोजपैः कृशीभूतो दृष्टो देवेन शम्भुना॥2॥
ततस्तुष्टो महादेवो वैनतेयं मनोजवम्। 
उवाच परमं वाक्यं विनतानन्दवर्धनम्॥3॥
प्रसन्नस्ते महाभाग वरं वरय सुव्रत। 
दुर्लभं त्रिषु लोकेषु ददामि तव खेचर॥4॥
गरुड उवाच ::
इच्छामि वाहनं विष्णोर्द्विजेन्द्रत्वं सुरेश्वर।
प्रसन्ने त्वयिमेसर्वम्भवत्विति मतिर्मम॥5॥
श्री महेश उवाच ::
दुर्लभः प्राणिनान्तातयोवरः प्रार्थितोऽनघ।
देवदेवस्यवहनं द्विजेन्द्रत्वं सुदुर्ल्लभम्॥6॥
नारायणोदरे सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्।
त्वया स कथमूह्यतेदेवदेवो जगद्गुरुः॥7॥
तेनैव स्थापितश्चेन्द्रस्त्रैलोक्ये सचराचरे।
कथमन्यस्य चेन्द्रत्वं भवतीति सुदुर्लभम्॥8॥
तथापि ममवाक्येनवाहनन्त्वम्भविष्यसि।
शङ्खचक्रगदापाणेर्वहतोऽपि जगत्त्रयम्॥9॥
इन्द्रस्त्वं पक्षिणां मध्येभविष्यसिनसंशयः।
इति दत्त्वावरन्तस्मान्तर्धानङ्गतोहरः॥10॥
ततो गते महादेवेह्यरुणस्यानुजो नृप।
आराधयामास तदा चामुण्डां मुण्डमण्डिताम्॥11॥
श्मशानवासिनीं देवीं बहुभूतसमन्विताम्।
योगिनीं योगसंसिद्धां वसामांसासवप्रियाम्॥12॥
ध्यातमात्रा तु तेनैवप्रत्यक्षाह्यभवत्तदा।
जालन्धरे च या सिद्धिः कौलीने उड्डिशे परे॥13॥
समग्रा सा भृगुक्षेत्रे सिद्धक्षेत्रे तु संस्थिता।
चामुण्डा तत्र सा देवी सिद्धक्षेत्रे व्यवस्थिता॥14॥
संस्तुता ऋषिभिर्द्देवैर्योगक्षेमार्थसिद्धये।
विनताऽऽनन्दजननस्तत्र तां योगिनीं नृप।
भक्त्या प्रसादयामास स्तोत्रैर्वैदिकलौकिकैः॥15॥
गरुड उवाच ::
या सा क्षुत्क्षामकण्ठा नवरुधिरमुखा प्रेतपद्मासनस्था
भूतानां वृन्दवृन्दैः पितृवननिलया क्रीडते शूलहस्ता।
शस्त्रध्वस्तप्रवीरव्रजरुधिरगलन्मुण्डमालोत्तरीया
देवी श्रीवीरमाता विमलशशिनिभा पातु वश्चर्ममुण्डा॥16॥
या सा क्षुत्क्षामकण्ठा विकृतभयकरी त्रासिनी दुष्कृतानां
मुञ्चज्ज्वालाकलापैर्द्दशनकसमसैः खादति प्रेतमांसम्।
पिङ्गोद् र्ध्वोद् बद्धजूटारविसदृशतनुर्व्याघ्रचर्मोत्तरीया
दैत्येन्द्रैर्यक्षरक्षोऽरसुरनमिता पातु वश्चर्ममुण्डा॥17॥
या सा दोर्द्दण्डचण्डैर्डमरुरणरणाटोपटङ्कारघण्टैः
कल्पान्तोत्पातवाताहतपटुपटहैर्वल्गते भूतमाता।
क्षुत्क्षामा शुष्ककुक्षिः खरतरनखरैः क्षोदति प्रेतमांसं
मुञ्चन्ती चाट्टहासं घुरघुरितरवा पातु वश्चर्ममुण्डा॥18॥
या सा निम्नोदराभा विकृतभवभयत्रासिनी शूलहस्ता
चामुण्डा मुण्डघाता रणरुणितरणझल्लरीनादरम्या।
त्रैलोक्यं त्रासयन्ति ककहकहकहैर्घोररावैरनेकैर्नृत्यन्ती
मातृमध्ये पितृवननिलया पातु वश्चर्ममुण्डा॥19॥
या धत्ते विश्वमखिलं निजांशेन महोज्ज्वला।
कनकप्रसवे लीना पातु मां कनकेश्वरी॥20॥
हिमाद्रिसम्भवा देवी दयादर्शितविग्रहा।
शिवप्रिया शिवे सक्ता पातु मां कनकेश्वरी॥21॥
अनादिजगदादिर्या रत्नगर्भा वसुप्रिया।
रथाङ्गपाणिना पद्मा पातु मां कनकेश्वरी॥22॥
सावित्री या च गायत्री मृडानी वागथेन्दिरा।
स्मर्तृणां या सुखं दत्ते पातु मां कनकेश्वरी॥23॥
सौम्यासौम्यैः सदा रूपैः सृजत्यवति या जगत्।
परा शक्तिः परा बुद्धिः पातु मां कनकेश्वरी॥24॥
ब्रह्मणः सर्गसमये सृज्यशक्तिः परा तु या।
जगन्माया जगद्धात्री पातु मां कनकेश्वरी॥25॥
विश्वस्य पालने विष्णोर्या शक्तिः परिपालिता।
मदनोन्मादिनी मुख्या पातु मां कनकेश्वरी॥26॥
विश्वसंलयने मुख्या या रुद्रेण समाश्रिता।
रौद्री शक्तिः शिवाऽनन्ता पातु मां कनकेश्वरी॥27॥
कैलाससानुसंरूढ कनकप्रसवेशया।
भस्मकाभिहृता पूर्वं पातु मां कनकेश्वरी॥28॥
पतिप्रभावमिच्छन्ती त्रस्यन्ती या विना पतिम्।
अबला त्वेकभावा च पातु मां कनकेश्वरी॥29॥
विश्वसंरक्षणे सक्ता रक्षिता कनकेन या।
आ ब्रह्मस्तम्बजननी पातु मां कनकेश्वरी॥30॥
ब्रह्मविष्ण्वीश्वराः शक्त्या शरीरग्रहणं यया।
प्रापिताः प्रथमा शक्तिः पातु मां कनकेश्वरी॥31॥
श्रुत्वा तु गरुडेनोक्तं देवीवृत्तचतुष्टयम्।
प्रसन्ना सम्मुखी भूत्वा वाक्यमेतदुवाच ह॥32॥
श्रीचामुण्डोवाच ::
प्रसन्ना ते महासत्त्व वरं वरय वाञ्छितम्।
ददामि ते द्विजश्रेष्ठ यत्ते मनसि रोचते॥33॥
गरुड उवाच ::
अजरश्चामरश्चैव अधृष्यश्च सुरासुरैः।
तव प्रसादाच्चैवान्यैरजेयश्च भवाम्यहम्॥34॥
मार्कण्डेय उवाच ::
त्वयाचाऽत्र सदा देवि स्थातव्यं तीर्थसन्निधौ।
एवं भविष्यतीत्युक्त्वा देवी देवैरभिष्टुता॥35॥
लक्ष्मीरुवाच ::
जगामाकाशमाविश्य भूतसङ्घसमन्विता। 
यदा लक्ष्म्या नृपश्रेष्ठ स्थापितं पुरमुत्तमम्॥36॥
अनुमान्य तदा देवीं कृतं तस्यां समर्पितम्। 
रक्षणाय मया देवि योगक्षेमार्थसिद्धये॥37॥
मातृवत्प्रतिपाल्यं ते सदा देवि पुरं मम। 
गरुडोऽपि ततः स्नात्वा सम्पूज्य कनकेश्वरीम्॥38॥
तीर्थं तत्रैव संस्थाप्य जगामाकाशमुत्तमम्। 
तत्र तीर्थे तु यः स्नात्वा पूजयेत्पितृदेवताः॥39॥
सर्वकामसमृद्धस्य यज्ञस्य फलमश्नुते। 
गन्धपुष्पादिभिर्यस्तु पूजयेत्कनकेश्वरीम्॥40॥
तस्य योगैश्वर्यसिद्धिर्योगपीठेषु जायते।
मृतो योगेश्वरं लोकं जयशब्दादिमङ्गलैः। 
स गच्छेन्नाऽत्र सन्देहो योगिनीगणसंयुतः॥41॥
 [श्रीस्कान्दे रेवाखण्डे कनखलेश्वरतीर्थमाहात्म्ये चामुण्डा स्तोत्रम्]
माँ चामुण्डा माँ राज राजेश्वरी त्रिपुरसुंदरी का ही एक स्वरूप हैं।
शुम्भ और निशुम्भ का पृथ्वी पर शासन था। उन्होंने धरती व स्वर्ग में प्राणियों-मनुष्यों पर घोर अत्याचार किये तो देवताओं ने हिमालय पर्वत पर जाकर माँ भगवती की आराधना की। उन्होंने स्तुति में किसी भी देवी का नाम नही लिया। तभी भगवान् शिव और माता पार्वती मानसरोवर में स्नान के लिये पधारे। उन्होंने देवताओं से पूछा कि किसकी आराधना कर रहे हो? तब देवता तो मौन हो गए क्योंकि माँ भगवती के स्वरूप को तो भगवान् ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी नही जानते। देवता मौन रहे। माँ भगवती ने देवी पार्वती जी के शरीर में से प्रगट होकर माता पार्वती से कहा कि देवगण उन्हीं की स्तुति कर रहे थे। 
माँ पार्वती के शरीर से प्रगट होने के कारण माँ दुर्गा का एक नाम कोशिकी भी पड़ गया। कोशिकी को राक्षस दूतों ने देख लिया और उन्होंने कहा कि वे शुम्भ-निशुम्भ तीनों लोकों के अधिपति हैं। उनके यहाँ सभी अमूल्य रत्‍न उपलब्ध हैं। इन्द्र का ऐरावत हाथी भी उनके पास है। अतः इस उनके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह सुनकर शुम्भ और निशुम्भ ने अपना एक अन्य दूत देवी कोशिकी के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनों लोकों के राजा है और वो दोनों तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता कोशिकी के पास गया और दोनों दैत्यों द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूँ कि शुम्भ और निशुम्भ दोनों ही महान बलशली है। परन्तु मैं एक प्रण ले चुकी हूँ कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा, मैं उसी से विवाह करूँगी। 
यह सारी बातें दूत ने शुम्भ और निशुम्भ को बताई। तो वह दोनों कोशिकी के वचन सुन कर उस पर क्रोधित हो गये और कहा उस नारी का यह दूस्‍साहस कि वह हमें युद्ध के लिए ललकारे। तभी उन्होंने चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरों को भेजा और कहा कि उसके केश पकड़कर हमारे पास ले आओ। चण्ड और मुण्ड देवी कोशिकी के पास गये और उसे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी कौशिकी ने अपने आज्ञाचक्र भृकुटि (ललाट) से अपना एक और रूप, काली रूप धारण कर लिया और चण्ड ओर मुण्ड का वध कर दिया, जिससे उनका नाम चामुण्डा पड़ गया।
आध्यात्म में चण्ड प्रवर्त्ति ओर मुण्ड निवर्ती का नाम है और माँ भगवती प्रवर्त्ति ओर निवर्ती दोनों से जीव छुड़ाती है और मोक्ष प्रदान करती हैं। 

 
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Saturday, July 25, 2015

गरुड़ गोविन्द स्तोत्र

गरुड़ गोविन्द स्तोत्र
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।  
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
एकदा सुखमासीनम गर्गाचार्य मुनीश्वरम। 
बहुलाश्वः परिपपच्छः सर्व शास्त्र विशारदम॥1॥ 
श्रीमद गरुड़ गोविन्द स्तोत्रं कथयामे प्रभो।
एतब्दी ज्ञान मात्रेण भुक्ति मुक्ति प्रजायते॥2॥ 
गर्गोवाच :-
श्रणु राजन प्रवक्ष्यामि गुह्यादी गुह्यतरं परम। 
एतब्दी ज्ञान मात्रेण सर्व सिद्धि प्रजायते॥3॥ 
गोविन्दो गरुदोपेतो गोपालो गोप बल्लभ।   
गरुड़गामी गजोद्धारी गरुड़वाहन ते नमः॥4॥
गोविन्दः गरुडारूद गरुड़ प्रियते नमः। 
 |गरुड़ त्रान कारिस्ते गरुड़ स्थितः ते नमः॥5॥
गरुड़ आर्त हरः स्वामी ब्रजबाला प्रपूजकः।  
विहंगम सखा श्रीमान गोविन्दो जन रक्षकः॥6॥
गरुड़ स्कंध समारुड भक्तवत्सल! ते नमः। 
लक्ष्मी गरुड़ सम्पन्नः श्यामसुन्दर ते नमः॥7॥ 
द्वादशभुजधारी च द्वादश अरण्य नृत्य कृत। 
रामावतार त्रेतायां द्वापरे कृष्ण रूप ध्रक॥8॥
शंख चक्र गदा धारी पद्म धारी जगत्पति। 
क्षीराब्धि तनया स्नेह पूर्णपात्र रस व्रती॥9॥
पक्शिनाम लाल्पमानाय स व्यपाणीतले नहि। 
पुनः सुस्मित वक्राय नित्यमेव नमो नमः॥10॥  
ब्रजांगना रासरतो ब्रजबाला जन प्रियः। 
गोविन्दो गरुडानंदो गोपिका प्रणपालकः॥11॥
गोविन्दो गोपिकानाथो गोचारण तत्परः। 
गोविन्दो गोकुलानान्दो गोवर्धन प्रपूजकः॥12॥ 
श्रीमद गरुड़ गोविन्दः संसार भय नाशनः। 
धर्मार्थ काम मोक्षानाम खल्विदं साधनं महत॥13॥ 
ध्यानं गरुड़ गोविन्दस्य सदा सुखदम न्रनाम। 
रोग क्लेशादीहारिः श्री धनधान्य प्रपद्यकः॥14॥ 
श्रीमद गरुड़गोविन्द स्मार्कानामयम स्तवः। 
पुत्र पौत्र कलत्रानाम धन धान्य यशस्कर॥15॥
गोविन्द! गोविन्द! विहंगयुक्त! नमोस्तुते द्वादश बाहू युक्त। 
गोविप्र रक्षार्थ अवतार धारम,लक्ष्मीपते नित्यमथो नमस्ते॥16॥
वृन्दावन विहारी च रासलीला मधुव्रतः। 
राधा विनोद कारिस्ते राधाराधित ते नमः॥17॥ 
गोलोक धाम वास्तको वृषभानु सुता प्रियः। 
विहंगोपेंद्र नामे दंता पत्रे विनाशनम॥18॥ 
गरुड़ अभिमान हर्ता च गरुड़ आसन संस्थितः। 
वेणु वाद्यमहोल्लास वेणुवाहन तत्परः॥19॥ 
भक्त्स्यानंदकारी स्वभक्त प्रियते नमः। 
माधव गरुड़ गोविन्द करूणासिन्धवे नमः॥1॥ 
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु द्वादशाक्षर मंत्रकम। 
अथवा गरुड़ गायत्री धयात्वा सम्पुटमेव हि॥20॥ 
श्रीमद गरुड़ गोविन्द नाम मात्रेण केवलं। 
अपस्मार विष व्यालं शत्रु बाधा प्रनश्यती॥21॥ 
अधुना गरुड़ गोविन्द गायत्री कथयाम्यहम :-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्पुरुषाय विद्महे गरुड़ गोविन्दाय
 धीमहि तन्नो गोविन्द प्रचोदयात॥22॥ 
गरुड़ गायत्री ::
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्पुरुषाय विद्महे स्वर्ण पक्षाय धीमहि तन्नो गरुड़ प्रचोदयात॥23॥ 
द्वादशाक्षर मंत्र :: 
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। 
इति श्रीमद गरुड़ गोविन्द स्तोत्र। 
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Monday, July 13, 2015

अन्नपूर्णा स्तोत्र (श्री शङ्कराचार्य कृत)

अन्नपूर्णा स्तोत्र (श्री शङ्कराचार्य कृत)
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 ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
108 साल बाद माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा कनाडा से वापस आयी है। इस प्रतिमा में माँ अन्नपूर्णा के एक हाथ में खीर की कटोरी और दूसरे हाथ में चम्मच है। वाराणसी में लगभग 108 वर्ष पहले इस पवित्र प्रतिमा को असामाजिक तत्वों द्वारा चोरी कर कनाडा पहुँचा दिया गया था। इस प्रतिमा की पहचान कुछ भारतीय मूल के लेखकों द्वारा की गई।
इस संबंध में जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी मिली कि यह प्रतिमा भारत की आस्था से जुड़ी है और यह वाराणसी से चोरी की गई थी। उन्होंने कनाडा सरकार से संवाद स्थापित कर इस प्रतिमा को ससम्मान भारत मंगाया।
प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा काशी में की गई है। यह प्रतिमा दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा काशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद को सौंपी गई है। जिसके बाद पुनर्स्थापना यात्रा के माध्यम से माँ अन्नपूर्णा 18 जिलों में भक्तों को दर्शन देते हुए 14 नवंबर, 2021 को यह काशी पहुँची है। देवोत्थान एकादशी के खास मौके पर श्री काशी विश्वनाथ धाम के नवीन परिसर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधि-विधान से प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की।

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥2॥
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥3॥
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥4॥
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥5॥
उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥6॥
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥7॥
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥8॥
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥9॥
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥10॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥11॥
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥12॥
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