Wednesday, October 28, 2015

DIVINE CURE (1) मंत्रोपचार

MANTROPCHAR (1) DIVINE CURE
मंत्रोपचार

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47] 
मंत्रोपचार द्वारा चिकित्सा :: आयुर्वेद-वाङ्मय में पद-पद पर देवोपासना द्वारा रोग मुक्ति प्रतिपादित की गयी है। इस विधा में दैवव्यपाश्रय का उपयोग किया जाता है। इसमें दैव की शान्ति एवं निराकरण हेतु मणि, मन्त्र, जप, कीर्तन, हवन, मंगलकर्म एवं यम-नियमों का प्रयोग किया जाता है। संकीर्तन शब्द देवोपासना से सम्बन्धित विभिन्न क्रियाओं को निरूपित करता है। इसमें स्तुति, नामोच्चारण, गुणगान, जप, भजन, अर्चन, कथा, सूक्त पाठ, स्वस्ति वाचन आदि का प्रयोग किया जाता है।
मंत्रोपचार द्वारा चिकित्सा-रोग निवारण :: सूक्त पाठ और ईश्वरोपासना से मनोरोगों के कारण भूत रज एवं तम दोष का निवारण होता है।[यजुर्वेद]
स्वस्ति वाचन और मन्त्र जप से उन्माद तथा अपस्मार रोग की निवृत्ति होती है।
विषम ज्वर (मलेरिया) दूर करने हेतु शिव-पार्वती की पूजा औषध का कार्य करती है।[महर्षि आत्रेय]
जन्मान्तरकृतं पापं व्याधिरूपेण बाधते।
तच्छान्तिरौषधैर्दानैर्जपहोमसुरार्चनैः॥
जन्मान्तर में किये हुए पाप जीवों को रोग के रूप में पीड़ित करते हैं, उनका शमन औषध, दान, जप, देवार्चन (संकीर्तन) एवं हवन से होता है।
अच्युतानन्तगोविन्दनामोच्चारणभेषजात्।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥
अच्युत, अनन्त और गोविन्द नाम का उच्चारण सर्वरोगों का विनाश करता है।[चरक संहिता टीका, आचार्य चक्रपाणि दत्त]
अच्युतं चामृतं चैव जपेदौषधकर्मणि।
औषध को निश्चित प्रभावकारी एवं चमत्कारी बनाने हेतु उसके संचय और निर्माण-काल में अच्युत, अनन्त और गोविन्द नाम का उच्चारण करें। 
स्तुवन् नामसहस्त्रेण ज्वरान् सर्वान् व्यपोहति।
ज्वर चिकित्सा हेतु विष्णु सहस्र नाम का पाठ करें।[चरक संहिता]
ग्रह बाधा में नाम-जप तथा अपस्मार में शिव-पूजन करनी चाहिये।[महर्षि सुश्रुत]
शिशुओं को भूतावेश से बचाने हेतु विभिन्न जप करने चाहियें।[काश्यप संहिता]
भगवान् शिव और गणेश जी की आराधना से कुष्ठरोग दूर होते हैं। कर्मज व्याधियों का नाश जप से होता है।[अष्टाङ्ग हृदय, आचार्य वाग्भट]
जरारोग और अकाल मृत्यु के निवारणार्थ "हरं गौरीं प्रपूजयेत्" नाम संकीर्तन करना चाहिये। ऐसा आदेश दिया है।[वैद्य बंगसेन] 
युक्तोऽतिसारी स्मर तु प्रसह्य गोविन्दगोपालगदाधरेति।
अतिसार ग्रस्त रोगी को गोविन्द, गोपाल और गदाधर नामों का स्मरण करना चाहिये।
महामारी का कारण वायु, जल, देश और काल की विकृति है। इन चारों की विकृति को दूर करने हेतु सत्कथा, देवार्चन तथा जपादिक सुकृत्य करने चाहियें।[महर्षि आत्रेय]
हिक्कारोगं तथा छर्दि मूत्रकृच्छ्रं तथा ज्वरम्।
संकीर्तन से सर्वरोगों का विनष्ट होना प्रतिपादित किया गया है। राधा सहस्र नाम का पठन हिचकी, वमन, मूत्ररोग, ज्वर, अतिसार और शूल का शमन करता है।[रुद्रयामल]  
हृद्रोगमाश्व पहिनोत्यचिरेण धीरः।
गोपीगीत का पाठ हृदय सम्बन्धी रोगों को दूर करता है।[श्रीमद्भागवत दशम स्कन्ध]
गरुडध्वज के नाम का कीर्तन तथा श्रवण सर्पदंश, वृश्चिकदंश, ज्वर और शिरोरोग का शमन करता है।
केशव तथा पुण्डरीकाक्ष मनिशं हि तथा जपेत्। नेत्रबाधासु घोरासु ...॥
केशव और पुण्डरीकाक्ष नामों का संकीर्तन नेत्र रोगों को ठीक करता है। 
सर्वरोगोपशमनं सर्वोपद्रवनाशनम्। 
शान्तिदं सर्वरिष्टानां हरेर्नामानुकीर्तनम्॥ 
संकीर्तन के अलौकिक प्रभाव से दैहिक, दैविक और भौतिक संताप नष्ट होकर सुख, शान्ति तथा समृद्धि की अभिवृद्धि होती है।[बृहद विष्णु पुराण]
हत्वा लोकानपीमांस्त्रीनश्नन्नपि यतस्ततः। ॐ नमों भगवते सुदर्शन वासुदेवाय, धन्वंतराय अमृतकलश हस्ताय, सकला भय विनाशाय, सर्व रोग निवारणाय, त्रिलोक पठाय, त्रिलोक लोकनिथाये, ॐ श्री महाविष्णु स्वरूपा, ॐ श्री श्री ॐ औषधा चक्र नारायण स्वाहा।
वेद मंत्रों में देव शब्द के प्रयोग द्वारा देवताओं की सामूहिक स्तुति की गई है। रोग मुक्त शतायु जीवन की कामना के साथ उपयुक्त मंत्र अथर्ववेद एवं यजुर्वेद में है। दोनों ही वेदों में तत्संबंधी मंत्र ‘पश्येम शरदः शतम्’ से आरंभ होते हैं।
सूक्त पाठ और ईश्वरोपासना से मनोरोगों के कारण भूत रज एवं तम दोष का निवारण होता है।[यजुर्वेद] 
स्वस्ति वाचन और मन्त्र जप से उन्माद तथा अपस्मार रोग की निवृत्ति होती है। 
विषम ज्वर (मलेरिया) दूर करने हेतु शिव-पार्वती की पूजा औषध का कार्य करती है।[महर्षि आत्रेय] 
जन्मान्तरकृतं पापं व्याधिरूपेण बाधते।
तच्छान्तिरौषधैर्दानैर्जपहोमसुरार्चनैः॥
जन्मान्तर में किये हुए पाप जीवों को रोग के रूप में पीड़ित करते हैं, उनका शमन औषध, दान, जप, देवार्चन (संकीर्तन) एवं हवन से होता है। 
अच्युतानन्तगोविन्दनामोच्चारणभेषजात्। 
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥ 
अच्युत, अनन्त और गोविन्द, नाम का उच्चारण सर्वरोगों का विनाश करता है।[चरक संहिता टीका, आचार्य चक्रपाणि दत्त]
अच्युतं चामृतं चैव जपेदौषधकर्मणि।
औषध को निश्चित प्रभावकारी एवं चमत्कारी बनाने हेतु उसके संचय और निर्माण-काल में अच्युत, अनन्त और गोविन्द, नाम का उच्चारण करें। 
स्तुवन् नामसहस्त्रेण ज्वरान् सर्वान् व्यपोहति।
ज्वर चिकित्सा हेतु विष्णु सहस्र नाम का पाठ करें।[चरक संहिता]
ग्रह बाधा में नाम-जप तथा अपस्मार में शिव-पूजन करनी चाहिये।[महर्षि सुश्रुत] 
शिशुओं को भूतावेश से बचाने हेतु विभिन्न जप करने चाहियें।[काश्यप संहिता]
भगवान् शिव और गणेश जी की आराधना से कुष्ठरोग दूर होते हैं। कर्मज व्याधियों का नाश जप से होता है।[अष्टाङ्ग हृदय, आचार्य वाग्भट] 
जरारोग और अकाल मृत्यु के निवारणार्थ "हरं गौरीं प्रपूजयेत्" नाम संकीर्तन करना चाहिये। ऐसा आदेश दिया है।[वैद्य बंगसेन] 
युक्तोऽतिसारी स्मर तु प्रसह्य गोविन्दगोपालगदाधरेति।
अतिसार ग्रस्त रोगी को गोविन्द, गोपाल और गदाधर नामों का स्मरण करना चाहिये।
महामारी का कारण वायु, जल, देश और काल की विकृति है। इन चारों की विकृति को दूर करने हेतु सत्कथा, देवार्चन तथा जपादिक सुकृत्य करने चाहियें।[महर्षि आत्रेय] 
हिक्कारोगं तथा छर्दि मूत्रकृच्छ्रं तथा ज्वरम्।
संकीर्तन से सर्वरोगों का विनष्ट होना प्रतिपादित किया गया है। राधा सहस्र नाम का पठन हिचकी, वमन, मूत्ररोग, ज्वर, अतिसार और शूल का शमन करता है।[रुद्रयामल]  
हृद्रोगमाश्व पहिनोत्यचिरेण धीरः।
गोपीगीत का पाठ हृदय सम्बन्धी रोगों को दूर करता है।[श्रीमद्भागवत दशम स्कन्ध]
गरुडध्वज के नाम का कीर्तन तथा श्रवण सर्पदंश, वृश्चिकदंश, ज्वर और शिरोरोग का शमन करता है।
केशव तथा पुण्डरीकाक्ष मनिशं हि तथा जपेत्। नेत्रबाधासु घोरासु ...॥ 
केशव और पुण्डरीकाक्ष नामों का संकीर्तन नेत्र रोगों को ठीक करता है। 
सर्वरोगोपशमनं सर्वोपद्रवनाशनम्। 
शान्तिदं सर्वरिष्टानां हरेर्नामानुकीर्तनम्॥ 
संकीर्तन के अलौकिक प्रभाव से दैहिक, दैविक और भौतिक संताप नष्ट होकर सुख, शान्ति तथा समृद्धि की अभिवृद्धि होती है।[बृहद विष्णु पुराण] 
ॐ नमों भगवते सुदर्शन वासुदेवाय, धन्वंतराय अमृतकलश हस्ताय, सकला भय विनाशाय, सर्व रोग निवारणाय, त्रिलोक पठाय, त्रिलोक लोकनिथाये, ॐ श्री महाविष्णु स्वरूपा, ॐ श्री श्री ॐ औषधा चक्र नारायण स्वाहा।
वेद मंत्रों में देव शब्द के प्रयोग द्वारा देवताओं की सामूहिक स्तुति की गई है। रोग मुक्त शतायु जीवन की कामना के साथ उपयुक्त मंत्र अथर्ववेद एवं यजुर्वेद में है। दोनों ही वेदों में तत्संबंधी मंत्र ‘पश्येम शरदः शतम्’ से आरंभ होते हैं।
Mantr (मन्त्र) are Sanskrat stanzas-rhymes which have special effect on us and the environment. These always bring peace, prosperity and wellness to all. If recited with the proper pronunciation a Shlok-Mantr can perform miracles. Scriptures have described specific Mantr which can cure diseases which are declared incurable. There are Mantr for healing, relief, mental peace, harmony, control of diseases, famine, floods, rains, soothing effect over the environment, repulsion of evil etc.
These are the coded verses which opens the power centres hidden in an individual to over his troubles, tensions, problems, provide performed with care, austerity, devotions with proper procedure under the supervision of some trained, qualified priest, Don't link it with religion, if one wish to seek his welfare and blessings.
One, desirous of having intelligence, wisdom, knowledge, Riddhi, Siddhi and fulfilment of all desires, should pray, meditate Ganesh Ji Maha Raj respectfully, with faith, concentration and devotion. One often comes across difficulties in life, due to the deeds of present or previous lives. Ganpati is the incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu (God), who is worshipped  before one starts with the prayers, auspicious occasion,  new venture, marriage, construction of house or else. Om Ganganpatye Namah (or Om Ganganpatye Swaha) is the Mantr, recitation of which regularly 108 or 1,008 times, clear, removes all hurdles in the way of auspicious-pious deeds, ventures or the deeds undertaken by the devotee. One must fresh himself, under take to have only vegetarian meals, no smoking, alcohol, drugs, narcotics, observe fast and recite this Mantr, facing east in the morning and north in the evening with concentration and asceticism.
Recitation of  any of these Mantr 5,00,000 times or more, ascertain success in the desired field.
Procedure-Methodology :: The devotee should sit comfortably over cushion, mattress (Munj-Chatai), skin of black deer, with crossed legs, in front of the image (photograph, picture, sketch), statue of the deity having placed a Lota, Kalsh filled with water, made up of copper, brass, silver, gold or earthen. Dhoop, Agarbatti-incense sticks, should be ignited and suitably placed in front by the desirous. One should be clad in washed cloths. Flow of fast air should be avoided. These performances should be avoided in  high speed wind, typhoon, cyclone. Extreme care should be taken to pronounce the Shlok, Mantr correctly, with rhythm. One should adhere to asceticism. The water in the Kalsh may be added with Ganga Jal, milk, honey, sugar, Tulsi leaves, pure ghee, curd, Kapoor-camphor etc. Help of learned Brahman Priest  may be obtained. Jal in the Kalsh has to be poured, offered to Sury Bhagwan in the morning. A Tulsi plant may be placed in east direction with a Shiv ling in it, for offering water.
Caution :: Recitation of these Mantr with evil designs, ulterior motives, yield negative results and is counter productive.
गणपति सिद्ध मंत्र :: गणेश  महाराज के सिद्ध मंत्र  लम्बोदर के प्रमुख चतुर्वर्ण हैं। सर्वत्र पूज्य सिंदूर वर्ण के हैं। इनका स्वरूप व फल सभी प्रकार के शुभ व मंगल भक्तों को प्रदान करने वाला है। नीलवर्ण उच्छिष्ट गणपति का रूप तांत्रिक क्रिया से संबंधित है। शांति और पुष्टि के लिए श्वेत वर्ण गणपति की आराधना करना चाहिए। शत्रु के नाश व विघ्नों को रोकने के लिए हरिद्रा गणपति की आराधना की जाती है।
गणपतिजी का बीज मंत्र "गं" है। इनसे युक्त मंत्र :- "ॐ गं गणपतये नमः" का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। 
षडाक्षर मंत्र ::
"ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌"
आर्थिक प्रगति व समृद्धि के लिए उपरोक्त मत्रं का प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें।
उच्छिष्ट गणपति मंत्र ::
"ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा:"
किसी के द्वारा अनिष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए। इनका जप करते समय मुँह में गुड़, लौंग, इलायची, पताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए। यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है। इसमें पवित्रता-अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है।
विघ्नराज आराधना मंत्र ::
"गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:"
आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए उपरोक्त मत्रं का प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें। 
हेरम्ब गणपति मंत्र ::
"ॐ गं नमः"
विघ्न को दूर करके धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए उपरोक्त मत्रं का प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें। 
लक्ष्मी विनायक मंत्र ::
"ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा"
रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक वृद्धि के लिए उपरोक्त मत्रं का प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें। 

 

विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने, शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति के लिये निम्न त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें। 
त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र :: 
"ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा"
इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेश जी महाराज की कृपा प्राप्त होती है।
विघ्न हरण :::
गणपति मंत्र GANPATI MANTR ::
ॐ गं गणपत्ये नम:। ॐ गं गणपत्ये स्वाहा:। 
Om Gan Ganpatye Namh.  Om Gan Ganpatye Swaha.  
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसम्स्प्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
Vakr Tund Maha Kay Sury Koti Sam Prabh:, 
Nir Vighnam Kuru Me Dev Sarv Karyeshu Sarvada.
Let Ganpati, bearing large body, curved trunk, who shines like a million Suns, should always make my work free from obstacles. 
गणेश्वरकल्प मन्त्र :: 
ॐ गाँ गीं गूँ गैं गौं ग:। 
नया मकान खरीदना :: निम्न मंत्रों से युक्त विघ्नहर्ता भगवान गणपति की प्रतिमा घर में स्थापित करने से आर्थिक तंगी-परेशानी, कलह, विघ्न, अशांति, क्लेश, तनाव, मन-मुटाव, बच्चों में अशांति, मानसिक संताप आदि का नाश होता है। 
(1). बीज मंत्र "गं" का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है, 
(2). षडाक्षर मंत्र "ॐ गं गणपतये नमः" का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है, 
(3). ॐ श्री विघ्नेश्वार्य नम:
(4). ऊं श्री गणेशाय नम:
(5). निर्हन्याय नमः। अविनाय नमः
गणपति की प्रतिमा के साथ 
श्रीपतये नमः, रत्नसिंहासनाय नमः, ममिकुंडलमंडिताय नमः, महालक्ष्मी प्रियतमाय नमः, सिद्घ लक्ष्मी मनोरप्राय नमः लक्षाधीश प्रियाय नमः, कोटिधीश्वराय नमः जैसे मंत्रों का सम्पुट होता है। गणपति की मूर्ति की पीठ दक्षिण दिशा में रखें।
विघ्न हरण :: गणपति विघ्न हर्ता हैं। ये साधक को बुद्धि चातुर्य, मातृ-पितृ भक्ति भी प्रदान करते हैं। सच्चे मन से गई इनकी प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
गणपति मंत्र GANPATI MANTR ::
ॐ गं गणपत्ये नम:। ॐ गं गणपत्ये स्वाहा:। 
Om Gan Ganpatye Namh.  Om Gan Ganpatye Swaha.  
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसम्स्प्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
Vakr Tund Maha Kay Sury Koti Sam Prabh:, 
Nir Vighnam Kuru Me Dev Sarv Karyeshu Sarvada.
Let Ganpati, bearing large body, curved trunk, who shines like a million Suns, should always make my work free from obstacles. 
गणेश्वरकल्प मन्त्र :: 
ॐ गाँ गीं गूँ गैं गौं ग:। 
नया मकान खरीदना :: निम्न मंत्रों से युक्त विघ्नहर्ता भगवान गणपति की प्रतिमा घर में स्थापित करने से आर्थिक तंगी-परेशानी, कलह, विघ्न, अशांति, क्लेश, तनाव, मन-मुटाव, बच्चों में अशांति, मानसिक संताप आदि का नाश होता है। 
(1). बीज मंत्र "गं" का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है, 
(2). षडाक्षर मंत्र "ॐ गं गणपतये नमः" का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है, 
(3). ॐ श्री विघ्नेश्वार्य नम:
(4). ऊं श्री गणेशाय नम:
(5). निर्हन्याय नमः। अविनाय नमः
गणपति की प्रतिमा के साथ 
श्रीपतये नमः, रत्नसिंहासनाय नमः, ममिकुंडलमंडिताय नमः, महालक्ष्मी प्रियतमाय नमः, सिद्घ लक्ष्मी मनोरप्राय नमः लक्षाधीश प्रियाय नमः, कोटिधीश्वराय नमः जैसे मंत्रों का सम्पुट होता है। गणपति की मूर्ति की पीठ दक्षिण दिशा में रखें।
MORNING-EVENING SANDHYA PRAYERS :: Following three Mantr are recited in the morning, as a part of prayers to seek the blessings of the Almighty to get the desired.
(1). Twamev Mata Ch Pita Twamev, Twamev Bandhusch Sakha Twamev; Twamev Vidyashch Dravinam Twamev, Twamev Sarwam Mam Dev Dev.
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्याश्च द्रविनम त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव
हे ईश्वर! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बन्धु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो। तुम ही मेरे देवता हो।
द्रविणं का अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति। द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता। हे प्रभु! तुम माता हो! हे ईश्वर! तुम पिता हो! हे भगवान् तुम भाई हो। तुम्हीं संगी-साथी, सहचर। तुम्हीं विद्या-ज्ञान और धन-दौलत, सम्पत्ति हो।
(2). Kragre Vaste Lakshmi: Karmule Saraswati. Kar Madhyetu Govindh Prabhate Kardarshnam.
कराग्रे वस्ते लक्ष्मी: करमूले सरस्वती। 
कर मध्येतु गोविन्द :प्रभाते कर दर्शनम 


शान्ति मन्त्र:: 
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव॥
ॐ गणानां त्वा गणपति ग्वँग् हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग्वँग् हवामहे निधीनां त्वा निधीपति ग्वँग् हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्॥
स्वस्ति-वाचन आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे-दिवे॥
देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम्।
देवानां सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्र तिरन्तु जीवसे॥ 
तान् पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्। 
अर्यमणं वरुणं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्॥ 
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत् पिता द्यौः। 
तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम्॥ 
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम्। 
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥ 
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पुषा विश्ववेदाः। 
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥ 
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः। 
अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह॥ 
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। 
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः॥ 
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम। 
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥ 
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः। 
विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम॥
[ऋग्वेद 1.89.1-10]
कल्याणकारक, न दबनेवाले, पराभूत न होने वाले, उच्चता को पहुँचानेवाले शुभकर्म चारों ओर से हमारे पास आयें। प्रगति को न रोकने वाले, प्रतिदिन सुरक्षा करने वाले देव हमारा सदा संवर्धन करने वाले हों। सरल मार्ग से जाने वाले देवों की कल्याणकारक सुबुद्धि तथा देवों की उदारता हमें प्राप्त होती रहे। हम देवों की मित्रता प्राप्त करें, देव हमें दीर्घ आयु हमारे दीर्घ जीवन के लिये दें। उन देवों को प्राचीन मन्त्रों से हम बुलाते हैं। भग, मित्र, अदिति, दक्ष, विश्वास योग्य मरुतों के गण, अर्यमा, वरुण, सोम, अश्विनीकुमार, भाग्य युक्त सरस्वती हमें सुख दें। वायु उस सुखदायी औषध को हमारे पास बहायें। माता भूमि तथा पिता द्युलोक उस औषध को हमें दें। सोमरस निकालने वाले सुखकारी पत्थर वह औषध हमें दें। हे बुद्धिमान् अश्विदेवो तुम वह हमारा भाषण सुनो। स्थावर और जंगम के अधिपति बुद्धि को प्रेरणा देने वाले उस ईश्वर को हम अपनी सुरक्षा के लिये बुलाते हैं। इससे वह पोषणकर्ता देव हमारे ऐश्वर्य की समृद्धि करने वाला तथा सुरक्षा करने वाला हो, वह अपराजित देव हमारा कल्याण करे और संरक्षक हो। बहुत यशस्वी इन्द्र हमारा कल्याण करे, सर्वज्ञ पूषा हमारा कल्याण करे। जिसका रथचक्र अप्रतिहत चलता है, वह तार्क्ष्य हमारा कल्याण करे, बृहस्पति हमारा कल्याण करे। धब्बों वाले घोड़ों से युक्त, भूमि को माता मानने वाले, शुभ कर्म करने के लिये जाने वाले, युद्धों में पहुँचने वाले, अग्नि के समान तेजस्वी जिह्वावाले, मननशील, सूर्य के समान तेजस्वी मरुत् रुपी सब देव हमारे यहाँ अपनी सुरक्षा की शक्ति के साथ आयें। हे देवो कानों से हम कल्याणकारक भाषण सुनें। हे यज्ञ के योग्य देवों आँखों से हम कल्याणकारक वस्तु देखें। स्थिर सुदृढ़ अवयवों से युक्त शरीरों से हम तुम्हारी स्तुति करते हुए, जितनी हमारी आयु है, वहाँ तक हम देवों का हित ही करें। हे देवो सौ वर्ष तक ही हमारे आयुष्य की मर्यादा है, उसमें भी हमारे शरीरों का बुढ़ापा तुमने किया है तथा आज जो पुत्र हैं, वे ही आगे पिता होनेवाले हैं, सब देव, पञ्चजन (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद), जो बन चुका है और जो बनने वाला है, वह सब अदिति ही है अर्थात् यही शाश्चत सत्य है, जिसके तत्त्व दर्शन से परम कल्याण होता है। 
द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ग्वँग् शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ग्वँग् शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥[यजुर्वेद 36.17
 यतो यत: समीहसे ततो नो अभयं कुरु। 
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः  
सुशान्तिर्भवतु। 
ग्रह शांति के लिये नाम के अनुरूप मंत्र :: अपने नाम के प्रथम अक्षर से राशि को देखना चाहिये।
 राशि
 नामाक्षर
 मंत्र 
मेष 
चू चे चो ला ली लू ले लो अ 
ॐ ऐं क्लीं सोः  
 वृषभ
 इ उ ए ओ वा वी वू वे वो
ॐ ऐं क्लीं श्रीं  
मिथुन 
का की कू घ ङ छ के को हा 
 ॐ क्लीं ऐं सोः 
कर्क 
 ही हू हे हो डा डी डू डे डो
ॐ ऐं क्लीं श्रीं  
 सिंह
मा मी मू मे मो टा टी टू टे 
ॐ ह्रीं श्रीं सोः  
कन्या 
टो पा पी पू ष ण ठ पे पो 
ॐ क्लीं ऐं सोः  
तुला 
रा री रू रे रो ता ती तू ते 
ॐ ऐं क्लीं श्रीं  
 वृश्चिक
तो ना नी नू ने नो या यी यू 
ॐ ऐं क्लीं सोः 
धनु 
ये यो भा भी भू धा फा ढा भे 
ॐ ह्रीं क्लीं सोः  
 मकर
भो जा जी खी खू खे खो गा गी 
ॐ ऐं क्लीं श्रीं  
कुंभ 
गू गे गो सा सी सू से सौ दा 
ॐ ऐं क्लीं श्रीं  
मीन 
दी दू थ झ ञ दे दो चा ची 
ॐ ह्रीं क्लीं सोः

राशियों शांति हेतु मंत्र ::
मेष :: ॐ ऐं क्लीं सोः।
वृषभ :: ॐ ऐं क्लीं श्रीं।
मिथुन :: ॐ क्लीं ऐं सोः।
कर्क :: ॐ ऐं क्लीं श्रीं।
सिंह :: ॐ ह्रीं श्रीं सोः।
कन्या :: ॐ क्लीं ऐं सोः।
तुला :: ॐ ऐं क्लीं श्रीं।
वृश्चिक :: ॐ ऐं क्लीं सोः।
धनु :: ॐ ह्रीं क्लीं सोः।
मकर :: ॐ ऐं क्लीं श्रीं।
कुंभ :: ॐ ऐं क्लीं श्रीं।
मीन :: ॐ ह्रीं क्लीं सोः।
MANTROPCHAR (1) DIVINE CURE मंत्रोपचार
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
santoshsuvichar.blogspot.com

नवग्रह शान्ति मंत्र NAV GRAH SHANTI MANTR :: सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति चाहता है तो उसे नीचे लिखे नवग्रह मंत्रों का जाप करने से हर तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है।
सूर्य मंत्र :: "ऊँ घृणि सूर्याय नम:"।
चन्द्र मंत्र :: "ऊँ सों सोमाय नम:"।
मंगल मंत्र :: "ऊँ अंगारकाय नम:"।
बुध मंत्र :: "ऊँ बुं बुधाय नम:"।
गुरु मंत्र :: "ऊँ बृं बृहस्पत्ये नम:"।
शुक्र मंत्र :: "ऊँ शुं शुक्राय नम:"।
शनि मंत्र :: "ऊँ शं शनैश्चराय नम:"।
राहु मंत्र :: "ऊँ रां राहवे नम:"।
राहु मंत्र :: "ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:"
नवग्रह शान्ति मंत्र :: सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति चाहता है तो उसे नीचे लिखे नवग्रह मंत्रों का जाप करने से हर तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है।
नवग्रह शान्ति बीज मंत्र ::
ब्रह्मा मुरारी  त्रिपुरांतकारी भानु शशि भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्र: शनि राहु केतव:, सर्वे ग्रहा शान्ति करा भवन्तु।
सूर्य मंत्र :: "ऊँ घृणि सूर्याय नम:"।
चन्द्र मंत्र :: "ऊँ सों सोमाय नम:"।
मंगल मंत्र :: "ऊँ अंगारकाय नम:"।
बुध मंत्र :: "ऊँ बुं बुधाय नम:"।
गुरु मंत्र :: "ऊँ बृं बृहस्पत्ये नम:"।
शुक्र मंत्र :: "ऊँ शुं शुक्राय नम:"।
शनि मंत्र :: "ऊँ शं शनैश्चराय नम:"।
राहु मंत्र :: "ऊँ रां राहवे नम:"।
राहु मंत्र :: "ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:"
शान्ति मंत्र ::
ॐ द्यौ: शांति अंतरिक्ष शांति पृथिवी शांति आपः शांति औषधय: शांति वनस्पतय: शांति विश्र्वेदेवा शांति सर्व शांति ब्रह्म शांतिरेव शांति  सामा शांति शान्तिरेधि: विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्न आसुव। ॐ शांति: शांति: शांति: ॐ॥  
 नवग्रह शान्ति बीज मंत्र :: 
ब्रह्मा मुरारी  त्रिपुरांतकारी भानु शशि भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्र: शनि राहु केतव:, सर्वे ग्रहा शान्ति करा भवन्तु।
Brahma Murari Tripurantkari Bhanu Shashi Bhumi Suto Budhshcha Gurushcha Shukr Shani Rahu Ketvh, Sarve Graha Shanti Kara Bhawntu. Let Brahma, Vishnu (Murari) and Shiv (Tri Pu Rant Kari), the Sun (Bhanu), the Moon (Shashi), Mars (Bhumi Sut the son of earth), Buddh, Guru (teacher) Shukr, Shani and Ketu make the morning auspicious for me. 
This is recited in the morning to make the day auspicious and fruitful.  
SHANTI MANTR शान्ति मंत्र ::
ॐ द्यौ: शांति अंतरिक्ष शांति पृथिवी शांति आपः शांति औषधय: शांति वनस्पतय: शांति विश्र्वेदेवा शांति सर्व शांति ब्रह्म शांतिरेव शांति  सामा शांति शान्तिरेधि: विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्न आसुव। ॐ शांति: शांति: शांति: ॐ॥  
Om Dhyo Shanti,  Antriksh Shanti,  Prathvi Shanti,  Apah Shanti,  Oushadhay Shanti, Vanaspatyh Shanti,  Vishve Deva Shanti, Sarv Shanti, Shanti Rev Shanti,  Sa Ma Shanti Redhi, Vishwani Dev Sviturduritani Prasuv. Yad Bhadrantann Asuv.  Om Shanti Shanti Shanti Om.
हे परमात्मा स्वरुप शांति कीजिये, वायु में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, हे परमपिता परमेश्वर शांति हो, शांति हो, शांति हो।
Let the Almighty bless the mankind with peace (solace & tranquillity). Let the space be quite, the earth be quite. The air, water, medicines, the universe, demigods-deities, the creator-Brahm be quite. All of use be at peace. the God be quite. Let the entire world enjoy a congenital (mutually beneficial) environment. All of us should live happily.:: 
One who is suffering from mental tensions, agony, failure in endeavours, ill health, troubled married life, should recite this Mantr, every day 108 times.
At least 1,25,000 will make the Mantr active. 5,00,000 recitations will start yielding favourable results.
मृत्यु भय दूर करना ::
कूष्माण्ड मंत्र :: 
कूष्माण्डैर्वापि जुहुयाद् घृतमग्नौ यथाविधि।
उदित्यृचा वा वारुण्या तृचेनाब्दैवतेन वा॥
कृष्माण्ड मंत्रों से यथाविधि अग्नि में घृत से हवन करें। 
"किंया उदुत्तमं" 
इस वरुण मन्त्र से जल देवता की तीन ऋचाओं से हवन करे।
"ॐ कूष्माण्डायै नम:" का जाप मृत्यु भय दूर करने के लिये किया जाता है। महामृत्युंजय मंत्र में उर्वारिक शब्द तोरी, घीया, खीरे जैसी वनस्पतियों के लिये आया है। इसका जाप करने से रोग, शोक, जरा-मृत्यु भय दूर होता है।[मनु स्मृति 8.106]
One should recite "Kushmand Mantr" while offering holy sacrifices in holy fire. "Kinya Uduttamam" is a rhyme devoted to Varun Dev-deity of water, which has to be recited trice while performing Yagy, Hawan, Agnihotr-holy sacrifices in fire.
Kushmand Mantrs reduces the fear of diseases, ageing, sorrow-pain and death. Kushmand is a word used for gourds in Maha Mratunjay Mantr devoted to Bhagwan Shiv i.e., Maha Kal.
कूष्माण्ड :: gourd, cucurbit.
राशि का मूल मंत्र :: धन, यश और समृद्धि लिये अपनी राशि के अनुकूल मंत्र का जाप करें। सामान्य सहज भाव से स्नान के पश्चात पूजा गृह या घर में शुद्ध स्थान का चयन कर प्रतिदिन धूप-दीप के पश्चात ऊन या कुशासन पर बैठें एवं अपनी शक्ति अनुरूप एक, तीन या पाँच माला का जाप करें।
मेष 
ॐ ऐं क्लीं सौं: 
 वृषभ
 ॐ ऐं क्लीं श्रीं
 मिथुन 
 ॐ क्लीं ऐं सौं:
 कर्क
 ॐ ऐं क्लीं श्रीं
 सिंह
 ॐ ह्रीं श्रीं सौं:
 कन्या
 ॐ श्रीं ऐं सौं:
 तुला 
 ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं
 वृश्चिक 
 ॐ ऐं क्लीं सौं:
 धनु
 ॐ ह्रीं क्लीं सौं:
 मकर 
 ॐ ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं सौं:
 कुंभ 
 ॐ ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं
 मीन
 ॐ ह्रीं क्लीं सौं:
SANDHYA-EVENING PRAYER ::
शुभं कुरुत्वं कल्याणं आरोग्यं धनसंपदः। 
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिनमोऽस्तु ते॥
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योति जनार्दनः। 
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥
भो दीप ब्रह्मारूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः। 
आरोग्यं देहि पुत्रांश्च मतिं स्वच्छां हि मे सदा॥
स्वेरस्तं समारभ्य यावत्सूर्योदयो भवेत्। 
यस्य तिष्ठेद्गृहे दीपस्तस्य नास्ति दरिद्रता॥
Shubham Kurutvam Kalyanam Arogyam Dhan Sampdah, Shatru Buddhi Vinashay Deep Jyoti Namo Astu Te.
Deep Jyotih Par Brahm Deep Jyoti Janardnah, Deepo Hartu Me Papam Sandhya Deep Namo Astu Te.
Bho Deep Brahma Rupstwam, Jyotisham Prabhurvyyh Arogyam Dehi Putranshch Matim Swachchham Hi Me Sada.
Swerastam Samarbhay Yavatsuryodayo Bhavet, Yasy Tishthedgrahe Deepstasy Nasti Daridrta. 
SANDHYA MANTR :: This is recited while lighting a candle (दीप, Deep) in the evening.
ॐ ऐं वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदया।
ॐ नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि; 
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते। 
ॐ काली काली महाकाली पाप नाशिनी; 
काली कराली निष्क्रान्ते कालिके तवन्नामोSस्तुते।
For purification of body, mind and soul, eternal peace, solace and tranquillity and attainment of Salvation, recitation of these Mantr is helpful:
 (1).  ॐ नम: शिवाय। Om Namah Shivay.  
(2). ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।  Om Namo Bhagwate Vasudevay.  
(3). कर्पूर गौरं करुणावतारम्, संसारसारं भुजगेंद्र हारम। 
 सदा बसंतम्  ह्र्द्यारविन्दे, भवम्  भवानी सहितम् नमामि॥  
Karpur Gouram Karunavtaram, Sansarsaram Bhujgendr Haram; Sada Basantam Hradyarvinde, Bhawam Bhawami Sahitam Namami.  
(4). मंगलम्  भगवान  विष्णु, मंगलम् गरुड़ ध्वज। 
        मंगलम् पुंड्रिरिकाक्ष, मंगलाय तनु  हरि:॥ 
Manglam Bhagwan Vishnu, Manglam Garud Dhwaj, 
Manglam Pundrikaksh, Manglay Tanu Hari.
(5). शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं; 
विश्र्वाधारं गगन सदॄशमं मेघ वर्णं शुभांगम। 
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभिर्ध्यान गम्यं; 
वंदे विष्णु भवभयहरं सर्व लोकैकनाथं॥  
Shantakaram Bhujagshaynam Padmnabham Suresham,
     Vishwadharam Gagan Sdrasham Megh Varnam Shubhangam.
      Laxmi Kantam Kamal Nayanam Yogibhirdhyan Gamyam,
Vande Vishnu Bhavbhayharam Sarvloknatham.
(6). सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वादी साधिके। 
शरण्ये त्रिअम्बिके गौरी नारायणी  नमोस्तुते॥
Sarv Mangal Mangalye Shive Sarvadi Sadhike,
  Sharanye Triambike Gauri Narayani Namostute.
गायत्री मन्त्र ::
पूर्वां सन्ध्यां जपंस्तिष्ठेत् सावित्रीमार्कदर्शनात्। 
पश्चिमां तु समासीन: सम्यगृक्षविभावनात्॥[मनु स्मृति 2.101]
प्रातः संध्या में पूर्व की ओर मुँह करके खड़े होकर सूर्य दर्शन पर्यन्त सावित्री का जप करे। संध्याकालीन संध्या में पश्चिम की ओर मुँह करके बैठ कर जब तक तारे न दिखाई पड़ें तब तक गायत्री का जप करे। 
One should stand facing east in the morning and recite the Savitri Mantr till the Sun rises and in the evening he should sit facing west and recite the Gayatri Mantr till the stars-constellations  appear.
This process begins quite early in the morning in the Brahm Muhurt, around 4 AM during summers and 6 AM during winters.
पूर्वां संध्यां जपन्तिष्ठन्नैशमेनो व्यपोहति। 
पश्चिमां तु समासीनो मलं  हन्ति दिवाकृतम्॥मनु स्मृति 2.102॥
प्रातः संध्या में खड़े होकर (गायत्री) जप करने वाला रात के पाप को नष्ट करता है और साँय-सँध्या के समय बैठकर जप करने वाला दिन के पाप को नष्ट करता है। 
Recitation of the Gayatri Mantr in the morning while standing removes the sins-guilt committed at night, while the recitation of the Mantr while sting in the evening removes the sins of the day.
अपां समीपे नियतो नैत्यकं विधिमास्थितः। 
सावित्रीमप्यधीयीत  गत्वाSरण्यं समाहितः॥मनु स्मृति 2.104॥
निर्जन स्थान में जल के समीप जाकर अपनी नित्य क्रियाओं को कर, स्थिर चित्त होकर, गायत्री का जप करना चाहिए। 
One should move to an isolate place near a water body, pond, lake, river & perform the daily routine of freshness and then he should recite the Gayatri Mantr with full concentration-devotion.
ॐ भुर्भुवः स्वः तत्सोवितुवरेण्यं।
भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्॥
Om Bhur Bhuvah Svah Tat Savitur Varenyam; Bhargo Devasy Dhee Mahi Dhiyo Yonah Prachodyat.
O God! YOU are the giver of life, the remover of pain and sorrow, the bestower of happiness; O Creator of the Universe!, may we receive YOUR supreme, sin destroying light; may YOU guide our intellect in the right direction.
Reciting or listening this Mantr, 3 to 108 times in early morning is extremely beneficial. 
ब्रह्मा गायत्री BRAHMA GAYATRI :: 
ॐ चतुर्मुखाय  विद्महे, हंसारूढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।
Om Chaturmukhay Vidhmahe, Hansarudhay Dhimahi, Tenno Brahma Prechodyat.
विष्णु गायत्री VISHNU GAYATRI ::
ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।
Om Naraynay Vidmahe, Vasudevay Dheemahi Tenno Vishnuh Prechodyat.
रूद्र गायत्री RUDR GAYATRI :: 
ॐ  पंच वाक्याय विद्महे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
Om Punch Vakyay Vidhmahe, Mahadevay Dhimahi Tenno Rudrah Prechodyat.
श्री दुर्गा गायत्री SHRI DURGA GAYATRI ::
 ऊँ कात्यायनाय विद्महे कन्यकुमारि धीमहि तन्नो दुर्गिः प्रचोदयात्॥
महामृत्युंजय साधना :: प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रम् अर्थात् ज्योतिष प्रत्यक्ष शास्त्र है। फलित ज्योतिष में महादशा एवं अन्तर्दशा का बड़ा महत्व है। वृहत्पाराशर होराशास्त्र में अनेकानेक दशाओं का वर्णन है। आजकल विंशोत्तरी दशा का प्रचलन है। मारकेश ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा में महामृत्युंजय प्रयोग फलदायी है। 
जन्म, मास, गोचर, अष्टक आदि में ग्रहजन्य पीड़ा के योग, मेलापक में नाड़ी के योग, मेलापक में नाड़ी दोष की स्थिति, शनि की साढ़ेसाती, अढय्या शनि, पनौती (पंचम शनि), राहु-केतु, पीड़ा, भाई का वियोग, मृत्युतुल्य विविध कष्ट, असाध्य रोग, त्रिदोषजन्य महारोग, अपमृत्युभय आदि अनिष्टकारी योगों में महामृत्युंजय प्रयोग रामबाण औषधि है।
शनि की महादशा में शनि तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, केतु में केतु तथा गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, रवि की महादशा में रवि की अनिष्टकारी अंतर्दशा, चन्द्र की महादशा में बृहस्पति, शनि, केतु, शुक तथा सूर्य की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, मंगल तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, राहु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, शुक्र की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, मंगल तथा राहु की अन्तर्दशा, गुरु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अंतर्दशा, बुध की महादशा में मंगल-गुरु तथा शनि की अनिष्टकारी अन्तर्दशा आदि इस प्रकार मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा में सविधि मृत्युंजय जप, रुद्राभिषेक एवं शिवार्जन से ग्रहजन्य एवं रोगजन्य अनिष्टकारी बाधाएँ शीघ्र नष्ट होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
उपर्युक्त अनिष्टकारी योगों के साथ ही अभीष्ट सिद्धि, पुत्र प्राप्ति, राजपद प्राप्ति, चुनाव में विजयी होने, मान-सम्मान, धन लाभ, महामारी आदि विभिन्न उपद्रवों, असाध्य एवं त्रिदोषजन्य महारोगादि विभिन्न प्रयोजनों में सविधि प्रमाण सहित महामृत्युंजय जप से मनोकामना पूर्ण होती है। 
विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है। मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है, किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है।
देवता मंत्रों के अधीन होते हैं :- "मंत्रधीनास्तु देवताः"। मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुवतादि मंत्र शास्त्रीय ग्रंथों में 
"त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्"। 
उक्त मंत्र मृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
शिवपुराण में सती खण्ड में इस मंत्र को 'सर्वोत्तम' महामंत्र' की संज्ञान से विभूषित किया गया है :- मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः। इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित 'मृत संजीवनी विद्या' के नाम से भी जाना जाता है। नारायणणोपनिषद् एवं मंत्र सार में :- 
"मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मतः" 
मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को 'मृत्युंजय' कहा जाता है। सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं- वैदिक, तांत्रिक एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र हैं।
मृत्युंजय जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक, मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में विशिष्टता से उल्लेख है। 
मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं :- 
पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र। 
पहला मंत्र तीन व्यह्यति :- "भूर्भुवः स्वः" से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय, दूसरा "ॐ हौं जूं सः" (त्रिबीज) और "भूर्भुवः स्वः" (तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण 'मृतसंजीवनी' तथा उपर्युक्त हौं जूं सः (त्रिबीज) तथा भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है। इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।
इस प्रकार वेदोक्त 'त्र्यम्बकं यजामहे' मंत्र में ॐ सहित विविध सम्पुट लगने से उपर्युक्त मंत्रों की रचना हुई है। 
उपर्युक्त तीन मंत्रों में मृत संजीवनी मंत्र :: 
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ।
यह मंत्र सर्वाधिक प्रचलित एवं फल देने वाला माना गया है। कुछ लघु मंत्र भी प्रयोग में आते हैं, जैसे-त्र्यक्षरी अर्थात तीन अक्षरों वाला ॐ जूं सः पंचाक्षरी ॐ हौं जूं सः ॐ तथा ॐ जूं सः पालय पालय आदि। ॐ हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ। हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ।
इस मंत्र के 11 लाख अथवा सवा लाख जप का मृत्युंजय कवच यंत्र के साथ जप करने का विधान भी है। यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष के दाहिने तथा स्त्री के बाएँ हाथ पर बाँधने से असाध्य रोगों से मुक्ति होती है। सर्वप्रथम यंत्र की सविधि विभिन्न पूजा उपचारों से पूजा-अर्चना करना चाहिए, पूजा में विशेष रूप से आंकड़े, एवं धतूरे का फूल, केसरयुक्त, चंदन, बिल्वपत्र एवं बिल्वफल, भांग एवं जायफल का नैवेद्य आदि। 
मंत्र जप के पश्चात् सविधि हवन, तर्पण एवं मार्जन करना चाहिए। मंत्र प्रयोग विधि सुयोग्य वैदिक विद्वान आचार्य के आचार्यत्व या मार्गदर्शन में सविधि सम्पन्न हो तभी यथेष्ठ की प्राप्ति होती है, अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने की आशंका हो सकती है।
जप विधि में साधक को नित्यकर्म से निवृत्त हो आचमन-प्राणायाम के साथ मस्तक पर केसरयुक्त चंदन के साथ रुद्राक्ष माला धारण कर प्रयोग प्रारंभ करना चाहिए। प्रयोग विधि में मृत्युंजय देवता के सम्मुख पवित्र आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर शरीर शुद्धि कर संकल्प करने का विधान प्रमुख है। संकल्प के साथ विनियोग न्यास एवं ध्यान जप विधि के प्रमुख अंग हैं।
मृत्युंजय महादेवों त्राहिमाम् शरणामम्।
जन्म-मृत्यु जरारोगैः पीड़ितम् कर्मबंधनैः 
के ध्यान के साथ जप निवेदन करना चाहिए। अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों से मुक्ति की यह रामबाण महौषधि है।

MANTROPCHAR (1) DIVINE CURE मंत्रोपचार
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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Recitation or listening of this Mantr, 3 to 108 times in early morning is highly beneficial. This Mantr protects one along with his family, friends, relatives, elders, from accidents and misfortunes of all kinds and has great curative effect over diseases declared incurable. 
व्याधि-बीमारी-रोग, संकट, कष्ट, मृत्यु का आभास होने पर मनुष्य को इस मन्त्र का पूरी लग्न-निष्ठां-ईमानदारी के साथ श्रवण, मनन, पाठ करना चाहिए। इसके जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है। स्वयं के लिए निम्न मन्त्रों का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो 'मां' के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा।
(1). एकाक्षरी मंत्र :- 
हौं 
(2). त्र्यक्षरी मंत्र :-
ॐ जूं सः। 
(3). चतुराक्षरी मंत्र :- 
ॐ वं जूं सः। 
(4). नवाक्षरी  मंत्र :- 
ॐ जूं सः पालय पालय। 
(5). दशाक्षरी (10) मंत्र :- 
ॐ जूं सः मां पालय पालय।
तांत्रिक बीजोक्त मंत्र :: महामृत्युंजय मन्त्र के अलग-अलग रुप हैं। अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी मंत्र का चुनाव करके नियमित रूप से इन मंत्रों का पाठ करना चाहिये। यह मन्त्र महर्षि वशिष्ठ ने हमें प्रदान किया। आचार्य शौनक ने ऋग्विधान में इस मन्त्र का वर्णन किया है। नियम पूर्वक व्रत तथा इस मंत्र द्वारा पायस (खीर, pudding) के हवन से दीर्घ आयु प्राप्त होती है, मृत्यु दूर  है तथा प्रकार सुख प्राप्त होता है। इस मंत्र  के अधिष्ठाता भगवान् शिव हैं।
महामृत्युंजय मंत्र :: जन-धन हानि, अकाल मृत्यु, बीमारी हो रही हो तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
सुगन्ध युक्त, त्रिनेत्रधारी भगवान् शिव समस्त प्राणियों को भरण-पोषण, पालन-पोषण करने वाले, हमें संसार सागर (मृत्यु-अज्ञान) से उसी प्रकार बन्धन मुक्त करें, जिस प्रकार खीरा अथवा ककड़ी पककर बेल से अलग हो जाती है।[ऋग्वेद 7.59.12]
मार्कन्डेय ऋषि :: मृकंदु ऋषि और उनकी पत्नी मरुदमती ने भगवान् शिव की पुत्र प्राप्ति हेतु तपस्या की। भगवान् शिव प्रकट हुए और पुत्र उत्पन्न होने का वरदान दिया। मगर यह भी कह दिया कि उनके यहाँ एक तेजस्वी, विद्वान पुत्र पैदा होगा, लेकिन वह अल्पायु होगा और उसकी मृत्यु 7 साल की उम्र में हो जायेगी।
बच्चे का नाम मार्कण्डेय रखा गया। मार्कण्डेय ने एक शिवलिंग के समक्ष शिव महा मृत्युजय से आराधना करनी शुरु की। निश्चित समय पर यमदूत उन्हें लेने आये मगर शिव भक्ति के प्रभाव से लौट गये। तब धर्मराज स्वयं आये। जैसे ही उन्होंने यमपाश से मार्कण्डेय को बाँधा महाकाल भगवान् शिव प्रकट हो गये और उन्होंने यमराज को लौटा दिया। उन्होंने मार्कण्डेय को अजर-अमर होने का वरदान दिया।
शिव पुराण में महामृत्युंजय मंत्र की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है।
साकार और निराकार दोनों ही रूपों में शिव जी की पूजा कल्याणकारी होती है, लेकिन शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम है।[शिवपुराण]
महामृत्युंजय मंत्र का एक लाख जाप करने पर शरीर की शुद्धि होती है। दो लाख जाप करने पर पूर्वजन्म का स्मरण होता है। तीन लाख जाप करने पर इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो जाती है। चार लाख जाप करने पर स्वप्न में भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। पाँच लाख जाप करने पर भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। दस लाख जाप करने पर संपूर्ण फल की सिद्धि होती है। मंत्र जाप आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से पूर्ण पवित्र होकर करें। जो असहाय बीमार हो वह कैसी भी अवस्था में लेटे-बैठे, बगैर स्नान किए, किसी भी समय, किसी भी उम्र में बीज मंत्रों का जाप कर सकते हैं। उन्हें भगवान् शिव की कृपा से निरोगता प्राप्त होगी।
वेदोक्त महामृत्युंजय मंत्र निम्नलिखित है :-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्[ऋग्वेद 7.59.12] 
सुगन्ध युक्त, त्रिनेत्रधारी भगवान् शिव समस्त प्राणियों को भरण-पोषण, पालन-पोषण करने वाले, हमें संसार सागर (मृत्यु-अज्ञान) से उसी प्रकार बन्धन मुक्त करें, जिस प्रकार खीरा अथवा ककड़ी पककर बेल से अलग हो जाती है। 
I worship Bhagwan Shiv the three-eyed Supreme deity, who is full of fragrance and who nourishes all beings; may He liberate me from the death (of ignorance), for the sake of immortality (of knowledge and truth), just as the ripe cucumber is severed from its bondage (the creeper).
संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या :: 
ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ॥ 
मृत संजीवनी मंत्र :: 
भगवान् शिव ने काव्य-शुक्राचार्य को वैदिक और लौकिक विद्या के साथ-साथ ही मृत संजीविनी विद्या भी प्रदान की, जिससे देवगण भी अनभिज्ञ थे। इस विद्या द्वारा काव्य को किसी भी मृत प्राणी को पुनरुज्जीवित करने की शक्ति प्राप्त हो गई। 
भृगु ऋषि पुत्र शुक्राचार्य ने इस विद्या में सिद्धि प्राप्त की और देव दानव युद्ध में जो भी राक्षस मृत्यु ग्रस्त हुआ उसे जीवित कर दिया। 
देवताओं  भगवान् शिव से उनकी शिकायत  वे काव्य को निगल गये।  लम्बे अरसे के बाद वे भगवान् शिव के मूत्र मार्ग से बाहर आये और उनका नाम शुक्र पड़ गया।
संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या :: 
ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ 
स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ। 
इस विद्या का दुरूपयोग कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिये। 
मृत्यु-रोग, शांति-मन्त्र ::
ॐ ह्रूमं हं स:।
मृत संजीवनी मन्त्र ::
ॐ हं स: हूं हूं स:,
ॐ ह: सौ:,
ॐ हूं स:,
ॐ जूं स:,
ॐ जूं स: वषट।
(1). एकाक्षरी मंत्र :- 
हौं 
(2). त्र्यक्षरी मंत्र :-
ॐ जूं सः। 
(3). चतुराक्षरी मंत्र :- 
ॐ वं जूं सः। 
(4). नवाक्षरी  मंत्र :- 
ॐ जूं सः पालय पालय। 
(5). दशाक्षरी (10) मंत्र :- 
ॐ जूं सः मां पालय पालय।
Please refer to :: 
SHUKRACHARY-SON OF BHRAGU शुक्राचार्य :: भृगु पुत्र
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MAHA MRATUNJAY MANTR OTHER FORMS :: 
ॐ मृतुंज्याय महादेवाय नमोस्तुते। 
Om Mratunjayay Maha Devay Namostute.    
भगवान् शिव को अति प्रसन्न करने वाला मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र। जन साधारण की धारणा है कि इसके जाप से व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती परंतु यह पूरी तरह सही अर्थ नहीं है। महामृत्युंजय का अर्थ है महामृत्यु पर विजय अर्थात् व्यक्ति की बार-बार मृत्यु ना हो। वह मोक्ष को प्राप्त हो जाए। उसका शरीर स्वस्थ हो, धन एवं मान की वृद्धि तथा वह जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाए। शिव पुराण में भी महामृत्युंजय मंत्र की महिमा के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। इसी मंत्र के लगातार जाप से कई असाध्य रोगों से भी लाभ पहुंचता है। महामृत्युंजय मंत्र के पहले तथा बाद उसके बीज मंत्र "ॐ हौं जूँ स:" का उच्चारण आवश्यक माना गया है। जिस तरह बिना बीज के जीवन उत्पन्न नहीं होता है उसी तरह बिना बीज मंत्र के महामृत्युंजय मंत्र फलित नहीं होता है। जो पूरे मंत्र का जाप नहीं सकते वे केवल बीज मंत्र के सतत जाप से सभी अभिष्ट फल प्राप्त कर सकते हैं। महामृत्युंजय मंत्र का एक लाख जाप करने पर शरीर की शुद्धि होती है। दो लाख जाप करने पर पूर्वजन्म का स्मरण होता है। तीन लाख जाप करने पर इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो जाती है। चार लाख जाप करने पर स्वप्न में भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। पांच लाख जाप करने पर भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। दस लाख जाप करने पर संपूर्ण फल की सिद्धि होती है। मंत्र जाप आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से पूर्ण पवित्र होकर करें। जो असहाय बीमार हो वह कैसी भी अवस्था में लेटे-बैठे, बगैर स्नान किए, किसी भी समय, किसी भी उम्र में बीज मंत्रों का जाप कर सकते हैं। उन्हें भगवान् शिव की कृपा से निरोगता प्राप्त होगी।
शिवाराधना से चन्द्रमा और शनि दोनों मजबूत और निरापद होते हैं। निराकार रूप में भगवान् शिव शिवलिंग रूप में पूजे जाते हैं। शिवपुराण में कहा गया है कि साकार और निराकार दोनों ही रूपों में शिव जी की पूजा कल्याणकारी होती है, लेकिन शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम है।भगवान् शिव के अतिरिक्त अन्य कोई भी देवता साक्षात् ब्रह्म स्वरूप नहीं हैं। संसार भगवान् शिव के ब्रह्म स्वरूप को जान सके इसलिए ही भगवान शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए और शिवलिंग के रूप में इनकी पूजा होती है। भगवान् शिव को जगत पिता हैं। वही सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म भी हैं। शिव' का अर्थ है, कल्याणकारी, लिंग का अर्थ है :- सृजन अतः भगवान् सर्जनहार हैं। उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में लिंग की पूजा होती है। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं।
विधि-विधान :: (1). रोजाना सुबह शिव मंदिर जायें और शिवलिंग पर चावल चढ़ायें। शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती।
(2).  रोजाना रात के समय शिव मंदिर जाएं और दीप दान करें। ऐसा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन का अभाव नहीं होता।
(3). मंत्र कामनापूर्ति का श्रेष्ठ साधन हैं। पश्चिम दिशा की ओर मुँह करके किया गया मंत्र जाप धन, वैभव व ऐश्वर्य की कामना को पूरी करता है।
रूद्राक्ष की माला लेकर अपनी इच्छा अनुसार शिव मंत्र का जाप करें : -
मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय। 
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥ 
श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहारिणे। 
सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥
(4). जन-धन हानि हो रही हो तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें ::
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥ 
(5).  सोमवार के दिन भगवान शिव जी को पंजीरी का भोग लगाएं। 
सावधानियाँ :- महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम कल्याणकारी-फलदायी है। अनिष्ट निवारण हेतु जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :-
( 1). जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
(2). एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
(3). मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
(4). जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
(5). रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
(6). माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
(7). जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
(8). महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
(9). जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
(10). महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
(11). जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
(12). जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।
(13). जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
(14). मिथ्या बातें न करें।
(15). जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
(16). जपकाल में मद्य-नशा-मांसाहार त्याग दें।
शिवाराधना से चन्द्रमा और शनि दोनों मजबूत और निरापद होते हैं। निराकार रूप में भगवान शिव शिवलिंग रूप में पूजे जाते हैं। 
शिवपुराण में कहा गया है कि साकार और निराकार दोनों ही रूपों में शिव जी की पूजा कल्याणकारी होती है, लेकिन शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम है। शिव जी के अतिरिक्त अन्य कोई भी देवता साक्षात् ब्रह्मस्वरूप नहीं हैं।
संसार भगवान् शिव के ब्रह्मस्वरूप को जान सके इसलिए ही भगवान् शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए और शिवलिंग के रूप में इनकी पूजा होती है। भगवान् शिव को जगत पिता हैं। वही सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म भी हैं। 
शिव का अर्थ है :- कल्याणकारी, लिंग का अर्थ है :- सृजन अतः भगवान् सर्जनहार हैं। उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में लिंग की पूजा होती है। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं।
विधि-विधान :: (1). रोजाना सुबह शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर चावल चढ़ाएं। शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती।
(2).  रोजाना रात के समय शिव मंदिर जाएं और दीप दान करें। ऐसा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन का अभाव नहीं होता।
(3). मंत्र कामनापूर्ति का श्रेष्ठ साधन हैं। पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके किया गया मंत्र जाप धन, वैभव व ऐश्वर्य की कामना को पूरी करता है।
रूद्राक्ष की माला लेकर अपनी इच्छा अनुसार शिव मंत्र का जाप करें : -
मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय। 
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥ 
श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहारिणे। 
सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥
(4).  जन-धन हानि हो रही हो तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें ::
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥ 
(5).  सोमवार के दिन भगवान शिव जी को पंजीरी का भोग लगाएं।

 कुशाग्र बुद्धि हेतु शिव मंत्र द्वारा आराधना ::
याते रुद्रशिवातनूरघोरा पापकाशिनी। 
तयानस्तन्नवाशन्त मयागिरी शंताभिचाकशीहि॥ 
भगवान् शिव के इस मंत्र को जप करने के लिए पूर्व दिशा या काशी की तरफ मुख कर, आसन पर बैठकर जाप करें। इस  मंत्र का जाप प्रत्येक दिन 108 बार करने से बुद्धि कुशाग्र हो जाती है और गृह क्लेशों का निवारण होता है। मंत्र को जपते समय भगवान् शिव का ही ध्यान करते रहना चाहिए। विद्यार्थियों के लिए यह श्लोक बहुत लाभ प्रद है। मन्त्र सिद्धि की लिए इसका 5,00,000 जप विधि विधान से करें। 
SARASWAT MANTR ::
This Mantr is helpful to those who wish to be blessed with education, knowledge  and enlightenment.
 Om Aim Namah. ॐ ऐं नम:। 
सोने की सलाई से या कुशा की जड़ से गंगा-जल द्वारा अभिमंत्रित, अष्टमी या चतुर्दशी के दिन छात्र-बच्चे की जीभ पर ऐं’बीज लिखें व 5,00,000 बार शांत भाव से सस्वर उच्चारण करें। 
सारस्वत मन्त्र :: 
"ॐ ह्रां ऐं ह्रीं सरस्वतयै नमः" 
का जाप 5,00,000 बार विधि-विधान के साथ करें। 
हंसारुढा भगवती मां सरस्वती का ध्यान कर मानस-पूजा पूर्वक इस मन्त्र का 108 बार जप करें :- 
ॐ ऐं क्लीं सौः ह्रीं श्रीं ध्रीं वद वद वाग् वादिनि सौः क्लीं ऐं श्रीसरस्वत्यै नमः।
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥
Saraswati Namas Tubhyam Varde Kam Rupini;
Vidyarambham Karishyami Siddhirbhvtu Me Sada.
O Goddess Saraswati, I bow down humbly before you, the bestower of all wishes; As I commence my studies, may there be success for ever. Note: This is recited to salute Goddess Saraswati before starting studies.
 या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता। 
या वीणा वर दण्ड मण्डितकरा या श्वेत पद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत सङ्कर प्रभृतिभिः देवैः सदा वन्दिता। 
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा॥
Ya Kundendu Tushar Har Dhavla Ya Shubhr Vastra Vrta;
Ya Veena Var Dand Manditkara Ya Shvet Padmasana.
Ya Brahmachyut Sankar Prabhr Tibhih Devaeh  Sada Vandita;
Sa Maan Patu Sarasvati Bhagvati Nihi Shesh Jadyapha.
Hey Maan  Saraswati, pure and radiant as the full moon and frost, wearing a garland of jasmine flowers, in your white robes, seated on lotus throne; with the Veena on your lap; O one who is worshipped by Brahma, Vishnu and Maheshwar (Shiv), may you bless and protect me and remove the laziness and sloth in me. 
This is recited while worshiping Maa Saraswati.
बुद्धि,  विवेक जाग्रत करने हेतु मंत्र ::
इन मंत्रों की सिद्धि हेतु :-
गणपति आराधना "ॐ गं गणपत्ये नमः" और देवगुरु बृहस्पति  का ध्यान करें "ॐ गुं गुरुभ्यो नमः" 
कुशाग्र बुद्धि हेतु शिव मंत्र द्वारा आराधना ::
याते रुद्रशिवातनूरघोरा पापकाशिनी। 
तयानस्तन्नवाशन्त मयागिरी शंताभिचाकशीहि॥ 
भगवान् शिव के इस मंत्र को जप करने के लिए पूर्व दिशा या काशी की तरफ मुख कर, आसन पर बैठकर जाप करें। इस मंत्र का जाप प्रत्येक दिन 108 बार करने से बुद्धि कुशाग्र हो जाती है और गृह क्लेशों का निवारण होता है। मंत्र को जपते समय भगवान् शिव का ही ध्यान करते रहना चाहिए। विद्यार्थियों के लिए यह श्लोक बहुत लाभ प्रद है। मन्त्र सिद्धि की लिए इसका 5,00,000 जप विधि विधान से करें।
सारस्वत मन्त्र :: 
(1). ॐ ऐं नम:। 
सोने की सलाई से या कुशा की जड़ से गंगा-जल द्वारा अभिमंत्रित, अष्टमी या चतुर्दशी के दिन छात्र-बच्चे की जीभ पर ऐं’बीज लिखें व 5,00,000 बार शांत भाव से सस्वर उच्चारण करें।
(2). "ॐ ह्रां ऐं ह्रीं सरस्वतयै नमः" 
का जाप 5,00,000 बार विधि-विधान के साथ करें। 
हंसारुढा भगवती मां सरस्वती का ध्यान कर मानस-पूजा पूर्वक इस मन्त्र का 108 बार जप करें :-
(1). ॐ ऐं क्लीं सौः ह्रीं श्रीं ध्रीं वद वद 
वाग् वादिनि सौः क्लीं ऐं श्रीसरस्वत्यै नमः।
(2). सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥
 (3). या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता। 
या वीणा वर दण्ड मण्डितकरा या श्वेत पद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत सङ्कर प्रभृतिभिः देवैः सदा वन्दिता। 
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा॥
MANTROPCHAR (1) DIVINE CURE मंत्रोपचार
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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SHAKTI MANTR ::
Tantrik/Beej (बीजमंत्र) :: This is a form of prayer, performed by the Tantrik. Those who recite this Mantr with good intentions, are blessed with might and power.
 Om Aim Hreem Kleem Chamunday Vichchae Phat Swaha. 
ॐ  ऐं  ह्रीं  क्लीं चामुंडाय  विच्चै  (नमः) फट  स्वाहा:। 
सामान्य पूजा पाठ में " ॐ  ऐं  ह्रीं  क्लीं चामुंडाय  विच्चै  नमः" जाप 108 बार करें। 
DURGA SAPT SHATI ::
Durge Smreta Harsi Bheetim shesh Janto, Swesthe Smreta Matimateew Shubham Dadasi.
Daridry Dukh Bhayharini Ka Tvdanya, Serwopkar Kernay Sdardr Chitta.
दुर्गे स्मृता  हरसि भीतिम शेष जन्तो, स्वस्थे: स्मृतामतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्र्य दुःख भयहारिणी का त्वदन्या, सर्वोपकार  करणाय सदार्द्र चित्ता॥ 
LAKSHMI MANTR :: भौतिक सुख के लिये लक्ष्मी मन्त्र 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये महे प्रसीदा प्रसीदा स्वाहा॥         
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मेय नमः॥
किसी भी मन्त्र को कमलगट्टे की माला से हर गुरुवार को 5 माला जपे। इससे घर की आर्थिक परिस्थिती में सुधार होने लगता है।
Laxmi is the Shakti of Bhagwan Vishnu, who nurtures this universe. Desirous of worldly comforts and pleasures, people worship mother Laxmi on Deepawali, new ventures and the beginning of new business.
 Om Shreem Hreem Kleem Aim Kamal Vasiney Phat Swaha.
ओम श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमल वासिन्ये फट स्वाहा:। 
आर्थिक संकट से मुक्त होने के लिए ऋग्वेद के इस मंत्र का जप करें :: 
“ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मादभ्रं भूर्या भर। भूरि धेदिन्द्र दित्ससि। 
ॐ भूरि दाह्यसि श्रुतः पुरुजा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
हे लक्ष्मीपते! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं। आप्तजनों से सुना है कि संसारभर से निराश होकर जो याचक आपसे प्रार्थना करता है, उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं :- उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान्! मुझे इस अर्थ संकट से उबार दें।
LAKSHMI VANDNA ::
"महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वेरि। 
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधि"॥ 
Maha Laxmi Namstubhayam Namstubhayam Sureshrewari,
Hari Priye Namstubhayam Namstubhayam Dayanidhi.
KUBER MANTR कुबेर मन्त्र :: दीपावली की रात में लक्ष्मी और कुबेर देव का पूजन करें और इस मंत्र का जाप 108 बार करें।
ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रववाय, धन-धान्यधिपतये
 धन-धान्य समृद्धि मम देहि दापय स्वाहा।
महालक्ष्मी के पूजन में गोमती चक्र भी रखना चाहिए। गोमती चक्र भी घर में धन संबंधी लाभ दिलाता है। दीपावली पर तेल का दीपक जलाएं और दीपक में एक लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। किसी हनुमान जी के मंदिर में जाकर ऐसा दीपक भी लगा सकते हैं।
 
धन-सम्पत्ति प्राप्ति हेतु लक्ष्मी, कुबेर मंत्र ::
माँ लक्ष्मी की आराधना :-
ओम श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमल वासिन्ये नमः।
कुबेर मन्त्र :: दीपावली की रात में लक्ष्मी और कुबेर देव का पूजन करें और इस मंत्र का जाप 108 बार करें।
ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रववाय, धन-धान्यधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मम देहि दापय स्वाहा।
महालक्ष्मी के पूजन में गोमती चक्र भी रखना चाहिए। गोमती चक्र भी घर में धन संबंधी लाभ दिलाता है। दीपावली पर तेल का दीपक जलाएं और दीपक में एक लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। किसी हनुमान जी के मंदिर में जाकर ऐसा दीपक भी लगा सकते हैं।
आर्थिक संकट से मुक्त होने के लिए ऋग्वेद के इस मंत्र का जप करें :: 
“ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मादभ्रं भूर्या भर। भूरि धेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरि दाह्यसि श्रुतः पुरुजा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
हे लक्ष्मीपते! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं। आप्तजनों से सुना है कि संसार भर से निराश होकर जो याचक आपसे प्रार्थना करता है, उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं :- उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान्! मुझे इस अर्थ संकट से उबार दें।
इसके साथ-लक्ष्मी यंत्र और कुबेर यंत्र भी लाभप्रद हैं।
MANTROPCHAR (1) DIVINE CURE मंत्रोपचार
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By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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LAKSHMI (wealth) & SARASWATI (Education)
Laxmi, Lajje, Maha Viddye Sherddhe, 
Pushti Swedhye Dhruve;
Maha Ratri Maha Viddye Narayani Namostute.
 लक्ष्मी, लज्जे, महाविद्दे श्रद्दे, पुष्टि स्वधे ध्रुवे।
 महारात्रि महाविद्द्ये नारायणि नमोस्तुते॥ 
DAKHNINA MANTR :: For timely, good, harmonious marriage this Mantr is purposeful.
Om  Shreem Hreem Kleem Dakshinayae Phat Swaha. 
  ॐ श्रीं  ह्रीं  क्लीं  दक्षिणायै  फट नमः स्वाहा:। 
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं दक्षिणायै नमः। 
SURY (रवि) MANTR :: The devotees of Bhagwan Sury Narayan are blessed with success, riches, name, fame, health and vigour. One should recite the Mantr every day, in the morning, after becoming fresh and pour water towards the Sun, such that the Lota-pot-vessel,  carrying water is slightly over the head. The water may be allowed to run into Tulsi Plant kept in the open. The day assigned to specific Pooja and Archna is Sunday.
Om Suryay Namo Namah. ॐ सूर्याय नमो: नम:।  
Om Suryay Namah. ॐ सूर्याय नम:। 
   Om Adityay Namo Namah. ॐ आदित्याय नम:। 
                  Om Jyotir Aditay Phat Swaha. ॐ ज्योतिर आदित्य फट स्वाहा:। 
             Om Bhaskray Namah. ॐ भास्कराय नम:। 
 Om Bhanuve Namah.  ॐ भानुवे नम:। 
 Om Khakhol Kay Namah. ॐ  खखोलकाय नम:।    
 Om Khakhol Kay Swaha.  ॐ  खखोलकाय स्वाहा:।
Om Vyam Phat. ॐ व्यं फट। 
 Om Hram Hreem Sah: Phat Swaha. ॐ  ह्रां  ह्रीं   स: फट स्वाहा:। 
 Om Hram Hreem Sheh Suryay Namah. ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:।
SURY GAYATRI MANTR ::
Om Adityay Vidmahe Bhaskray Dheemahi Tanno  Bhanuh Prachodyat.
आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानुह: प्रचोदयात्।
साध्य सूर्य मन्त्र :: ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। ॐ घृणि सूर्याय नमः।  
SOM MANTR :: Som (सोम-Moon) Mantr is devoted to Moon. Moon is the lord of Brahmns and the vegetation-herbs (Medicinal Plants). He nourishes all medicinal plants herbs. He is associated with travel and love. Those who wish to have good mental & physical health may pray to him. The day assigned is Monday. He is  a component of Brahma Ji and controls the Man, Mood, psyche, wisdom. For special-specific prayers visit Som Nath temple in Gujrat.
Om Somay Namo Namah. ॐ सोमाय नमो: नम:   
MANGAL (मंगल-Mars) MANTR ::
This Mantr is meant to seek the blessings of Mangal-the red planet Mars which was created by the sweat of Bhagwan Shiv, which fell on earth. Those who are Mangli, must recite this Mantr, to seek protection from the bad omens associated with this sign lord. This plane creates all sorts of hurdles in the life of some people. Recitation of Hanuman Chalisa on Tuesdays is helpful to great extent.
Om Bhomay Namo Namah.  ॐ भोमाय नमो: नम। 
BUDDH MANTR बुध मंत्र :: 

Buddh  (बुद्ध-Mercury) is the son of Moon from Tara-the wife of Dev Guru Vrahspati. This planet is closest to the Sun and is worshiped for success in trade, business, sciences, new inventions, techniques, innovations, new designs etc. on Wednesday. This day is assigned for Ganpati-Ganesh Ji's prayers as well. 
To come out of business losses pray to Budh Dev, son of Chandr Dev reciting the following Budh Mantr :-
ॐ सोमात्मज्याय नमो: नम:।
Om Somatmjyay Namo Namah.

GURU VRAHASPATI (गुरू वृहस्पति) :: Jupiter is the largest-gaseous planet in our Solar system. He is the teacher, philosopher and guide of Demigods, and most revered person in the Heaven. For harmony in family and cordial relations, one has to observe fast on Thursday, wear yellow cloths, donate yellow goods and eatables. Bhagwan Shiv is  the Maha Guru.  Guru Vandna is recited to pay salutation to teacher  (गुरु, guru) in the evening.  
  "ॐ गुं गुरूभ्यो नम:"। 
Om Gun Gurubhyo Namah. 
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। 
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
Gurur Brahma, Gurur Vishnuh, Gurur Devo Maheshwarah;
Gurur Sakshat Param Brahm, Tasmae Shri Gurve Nameh.
My salutation to my teacher, who to me are Brahma, Vishnu and Maheshwar, the Ultimate Par Brahm, the Supreme reality.
SHUKR DEV :: Shukr (शुक्र-Venus) is the shining planet, which is closest to the earth. It affects the weather on earth, along with moon and Shishumar Chakr-constituted of 4 stars. Dhruv-the Pole Star is located at the tail of Shishumar Chakr-the embodiment of Bhagwan Vishnu. Sun revolves round Dhruv. It provides health, vigour  potency and success in arts and literary fields. Wear white cloths and observe fast on Friday.
 ॐ शुक्राय नमो: नमः। 
Om Shukray Namo Namah. 
शुक्र स्तोत्रं :: 
हिमकुदमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुं। सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहंशुक्र पीडाहर स्तोत्र दैत्यमंत्रि गुरुस्तेषां प्रणवश्च महाद्युतिः। प्रनुस्ताराग्रहाणां च पीठां हरतु से भृगुः
शुक्र गायत्री मंत्र :: 
ऊं भार्गवाय विद्महे असुराचार्याय धीमही तन्त्रो शुक्र प्रचोदयात्
शुक्र वीज मंत्र :: 
ऊंद्रां द्री द्रों सः शुक्राय नमः।
मृत सञ्जीवनी विद्या :: 
ॐ हौं जूँ स:। ॐ भूर्भुव: स्व:। 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं। ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम। 
ॐ भर्गो देवस्य धीमहि। 
ॐ उर्वारुकमिव बन्धनाद। 
ॐ धियो यो न प्रचोदयात। 
ॐ मृत्योर्मुक्षीय माSमृतात। 
ॐ स्व: भुव: भू:। 
ॐ स: जूँ ह्रौं ॐ। 
असुरों के गुरु शुक्राचार्य द्वारा इसका अभ्यास किया गया। सभी प्रकार के रोग-शोक निवारण के लिये इसका विधि-विधान पूर्वक अभ्यास करें। 
SHANI DEV-SATURN (शनि देव) :: It is the ringed planet, which is most feared and considered to be dreaded and cruel  by nature. If one is facing tough time, difficulties, obstructions in life, money losses, weak constitution, poor health, thin pale body, he must pray to Shani. People wear blue clothes and observe fast on Saturdays, for protection from its ill effects. They donate mustered oil, glow/light earthen lamp, with mustard oil, below the Peepal tree near its root.  People wear iron ring in their Saturn finger to avoid ill effects of Shani. It provides Bhakti, might and wealth.
ॐ शनैश्वराय  नमो नम:। Om Shaneshwray Namo Namah.   
शनि गायत्री मन्त्र :: 
ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्न सौरि प्रचोदयात।
शनि पौराणिक मन्त्र :: 
ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनये नम:। ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः॥    

 काल सर्प योग  
 Protection from Snakes/Nag/Serpents. Recitation of these Mantr is useful.
  
Om Kurukulle Phat Swaha.  ॐ कुरुकुल्ले फट स्वाहा:|
 Om Nagar Phat Swaha.  ॐ नगर  फट स्वाहा:|
Om Narmdaye Nameh. Prater Narmdaye Namo Nishi,
Namo Astu Narmdye Trahimam Vishsarpt:.
ॐ  नर्मदायै नम:. प्रातर्नर्मदायै  नमो निशि। नमोअस्तु नर्मदे तुभं त्राहि मां विश्सर्पत:॥ 
Om Namo Bhagwate Neel Kanthay.
ॐ नमो भगवते नील कंठाय।
काल सर्प योग के दोष निवारण :- इस कार्य हेतु ताँबे का एक बड़ा सर्प शिवलिंग को अर्पित करें अथवा चांदी के नाग नागिन का जोड़ा समर्पित करें। नव नाग स्तोत्र तथा सर्प गायत्री मंत्र का उच्चारण करें।
नवनाग स्तोत्र :- 
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं, शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं, कालियं तथा एतानि नव नामानि नागानाम च, महात्मनं सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत
NAVNAG STROT :: Anant Vasukim Shesham Padmnabham Ch Kambalam, Shankhpalm Dhratrashtram Ch Takshakm Kaliyam Tatha, Atani Nav Namani Naganam Ch Mahatmanm,Sayamkale Pathennityam Pratahkale Visheshtah Tasy Vishbhyam Nasti Sarwatr Vijyee Bhavet.
नाग गायत्री मंत्र :-
ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धी माहि तन्नो सर्प प्रचोदयात। 
NAG GAYATRI MANTR :: Om Nav Kulay Vidhmahe Vishdantay Dhee Mahi Tanno Sarp Prachodyat.
Protection from Snakes/Nag/Serpents. Recitation of these Mantr is useful.
नागों, साँपों से सुरक्षा ::
(1). ॐ कुरुकुल्ले फट स्वाहा:।
(2). ॐ नगर फट स्वाहा:।
(3). ॐ नर्मदायै नम:. प्रातर्नर्मदायै नमो निशि।
नमोअस्तु नर्मदे तुभं त्राहि मां विश्सर्पत:॥
(4). ॐ नमो भगवते नील कंठाय।
(5). नवनाग स्तोत्र :-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं, शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं, कालियं तथा एतानि नव नामानि नागानाम च, महात्मनं सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत।
(6). नाग गायत्री मंत्र :-
ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धी महि तन्नो सर्प प्रचोदयात।
(7). काल सर्प योग के दोष निवारण :- इस कार्य हेतु ताँबे का एक बड़ा सर्प शिवलिंग को अर्पित करें अथवा चाँदी के नाग-नागिन का जोड़ा समर्पित करें। नव नाग स्तोत्र तथा सर्प गायत्री मंत्र का उच्चारण करें।
(8). पाँच महानाग जिनके नाम स्मरण मात्र से ही विषबाधा, मानसिक तनाव, अवसाद आदि का नाश होता है :-
कपिला कालियोSनन्तो वासुकिस्तक्षकस्तथा।
पञ्चैतान् स्मरतो नित्यं विषबाधा न जायते॥
भूत-प्रेत बाधा :: निम्न मंत्र को 1,000 बार जप करना चाहिए। इसके बाद जिसे भूत लगा हो, उसे 7 बार, मंत्र पड़ते हुए झाड़ें, तो लाभ होगा।
नमो मसाणं बरसिने प्रेतानां कुरू कुरू स्वाहा।
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए सरसों के दाने अभिमन्त्रित करके आविष्ट पुरुष पर डालने से ब्रह्म राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाचादि से मुक्ति प्राप्त होती है :-
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्।
अहींश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योSधराची: परा सुव॥
[शुक्ल यजुर्वेद 16.5]
भय या भूत-प्रेत आदि का डर सताता हो तो हनुमान जी महाराज का ध्यान करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
Recitation of this Mantr and Hanuman Chalisa will help :-
Om Shree Maha Anjnay Pawan Putravesh Veshey,
Om Shree Hanumate Phat.
ॐ श्री महा अन्ज्नाये पवन पुत्रावेशवेशय।
ॐ श्री हनुमते फट॥
Shri Hanumat Vandna 
Atulit Bal Dhamam hem Shaella Bhadem, 
Dju Jwn Krashanu Gyani Namgr  Gamyam.
Sakal Gun Nidhanam Vrndhishm Vanrandhisham, 
Ragupati Pribhkram Vat Jatm Namami.
अतुलित बल धामं हेम शैला भदेहं,
दजु जवन कृषानु ज्ञानी नामग्र गम्यं।
सकल गुण निधानं वंरधिषम वानराधीशं,
रघुपति प्रियभ्कृम् वात जातं नमामि॥
Wish to have long life of son, recite this Mantr ::
ॐ नमोस्तुते कार्त्विर्याय।
Wish to avoid untimely/accidental death, recite:
Akal Mrtyu-Hrnam Sarv Vyadhi-Vinashnam.      

Shri Ram Padodkam Peetva Punrjnm Na Vidhyte.
 अकाल मृत्यु-हरणं सर्व व्याधि-विनाशनम्। 
 श्री राम पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विध्यते॥ 
Shri Ram Vandna ::
Shri Ram Chandr Raghupungev Rajvry Rajendr Ram Raghu Nayak Raghvesh.
Rajadhiraj Raghunandan Ramchandr Dasoahmdy Bhawth Sarnagatoasmi.

श्री रामचन्द्र रघु पुंगव राज्वर्य राजेन्द्र राम रघु नायक राघवेश।
राजाधिराज रघुनन्दन रामचन्द्र दासोडहमद्द भवत: शरणागतोअस्मि॥ 
PREVENTION FROM  EPIDEMIC/PLAGUE ::
      Om Jayanti Mangla Kali Bhadr Kali Krapalini.               
Durga Kshama Shiva Dhatri Swaha Swedha Namostute.
 ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा  स्वधा नमोस्तुते
PREVENTION OF DISTRESS, DISASTER, ADVERSITY, MISFORTUNE ::
                                                   Sharnagat Deenatr Paritran Prayne;  
Sarw Syatimhre Devi Narayani Namostute.

   
 शरणागतदीनार्तपरीत्राण परायणे।
     सर्वस्यातिमंहरे देवी नारायणि नमोस्तुते 
PREVENTION FROM FEAR
                   Sarw-Sverupe Sarveshe Sarw Shakti Samnvite; 
Bhyebhy strahi no Devi Durge Devi Namostute.. 
        सर्व-स्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।         
 भयेभ्यस्त्राहि  नो देवी दुर्गे देवि नमोस्तुते
           Prevention from Poverty, Pains and sorrow/grief
Durge Smrta Hersi Bheetim Sheshjnto. Swestheh Smrta Mtimteev Shubham Dadasi..
Daridry Dukh-Bhy Hrni Ka Tvdnya. Sarvopkarkrnay Sdardrchita..
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो।
स्वेस्थे: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि
दारिद्र्य दुःख-भय हारिणि  का त्वदन्या।
सर्वोपकारकरणाय  सदार्द्रचिता
PREVENTION OF DISTRESS, DISASTER, ADVERSITY, MISFORTUNE OF THE ENTIRE  WORLD
Devi Prsann Tirhre Prsid Prsid Matrjgto Akhilsy.
 Prsid Vishveshwari Pahi Vishvm Tvmishwri Devi Chrachrsy..
देवि प्रसन्नतिर्हेरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतो   अखिलस्य।
 प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवी चराचरस्य।।
Mantr recited  for Good Night sound sleep before sleeping
Krshnay Vasudevay Hrye Prmatmne, Prnat Klesh Nashay Govinday Namo Namh..
कृष्णाय  वासुदेवाय हरये परमात्मने,
प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम:।
भैरवी कवच ::
भैरवी कवचस्यास्य सदाशिव ऋषि: स्मृत:; 
छंदोSनुष्टुब देवता च भैरवी भयनाशिनी। 
धर्मार्थ काम मोक्षेषु विनियोग: प्रकीर्तित:; 
हसरैं मे शिर: पातु भैरवी भयनाशिनी। 
हसकलरीं नेत्रंच हसरौश्च ललाटकम् ; 
कुमारी सर्व्वगात्रे च वाराही उत्तरे तथा। 
पूर्व्वे च वैष्णवी देवी इंद्राणी मम दक्षिणे; 
दिग्विदिक्ष सर्व्वेत्रैवभैरवी सर्व्वेदावतु। 
इदं कवचमज्ञात्वा यो सिद्धिद्देवी भैरवीम; 
कल्पकोटिशतेनापि सिद्धिस्तस्य न जायते। 
Shri Brahm Vandna श्री ब्रह्म वन्दना 
Nameste Sate  Jagatkarnaay, Nameste Chite Serwlokashryay.
Namo Asdwet Ttway Mukti Prday, Namo Brahmne Vyapine Shashwtay.
नमस्ते सते ते जगत्कारणाम, नमस्ते चिते सर्व लोकाश्रयाय।
नमो अद्वेत तत्वाय मुक्ति प्रदाय, नमो ब्रह्मणे व्यापिने शाश्वताय ।।
Shri Krashn Vandna श्री कृष्ण वन्दना ::
Vsudev Sutam Devm Kans Chadur Mardnm, Devki Permanandm Kreshnm Vnde Jagatgurum.
वसुदेव सुतं देवं कंस  चाणूर मर्दनम्,
देवकी परमानन्दं कृष्णम् वन्दे जगद्गुरुम।
Shuddhi Mantr  शुद्धि मंत्र ::
Om Apvitrh  Pavitro Va Sarwavsthangto Api Va.
Yh Smret Pundrikakshm S Wa Hyabhyantr Shuchih.
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वाव स्थान्गतो अपि वा। 
य: स्मरेत  पुंडरीकाक्षं स वा ह्यभ्यन्तर: शुचि:॥   
प्रात: कर-दर्शनम् ::
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। 
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥
पृथ्वी क्षमा प्रार्थना:: 
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥
त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण ::
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च। 
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
स्नान मन्त्र ::
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। 
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
सूर्य नमस्कार ::
ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने। दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्  सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम: ॐ रवये नम: ॐ सूर्याय नम: ॐ भानवे नम: ॐ खगाय नम: ॐ पूष्णे नम: ॐ हिरण्यगर्भाय नम: ॐ मरीचये नम: ॐ आदित्याय नम: ॐ सवित्रे नम: ॐ अर्काय नम: ॐ भास्कराय नम: ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर। 
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥
दीप दर्शन :: 
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा। 
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः। 
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥
गणपति स्तोत्र :: 
गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:। 
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:। 
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय। लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय। गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं। प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥
माता आदि शक्ति वंदना ::
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। 
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
भगवान् शिव स्तुति ::
कर्पूर गौरम करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारं। 
सदा वसंतं हृदयार विन्दे, भवं भवानी सहितं नमामि॥ 
भगवान्  श्री हरी विष्णु स्तुति :: 
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
भगवान्  श्री कृष्ण स्तुति ::
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम। 
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि। 
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌। 
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥
भगवान्  श्री राम वंदना ::
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। 
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
श्री रामाष्टक ::
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा। 
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते। 
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
एक श्लोकी रामायण ::
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्। 
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्। 
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
सरस्वती वंदना ::
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। 
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती  निःशेषजाड्याऽपहा॥
श्री हनुमान वंदना ::
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌। दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌। 
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं। 
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥
स्वस्ति-वाचन :: 
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। 
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
शाँति पाठ :: 
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:, पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ 
॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ 
शुद्धि मन्त्र :: 
आचम्य प्रयतो नित्यं जपेदशुचिदर्शने। 
सौरान्मन्त्रान्यथोत्साहं पावमानीश्च शक्तितः॥
स्नान आचमन आदि के बाद चाण्डाल आदि अपवित्र लोगों पर दृष्टि पड़े तो वह साध्य सूर्य का मन्त्र (उदुत्यं जातवेदसमीत्यादि) और यथाशक्ति पावमानी (पुनन्तु मां, इत्यादि) मन्त्र जपे। 
If one happen to see a Chandal of some impure-unclean person, he should recite the Sadhy Sury Mantr and practice Pavmani Mantr with effort.
साध्य सूर्य मन्त्र :: 
ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। ॐ घृणि सूर्याय नमः।  
पावमानी मन्त्र :: 
ॐ स्तूता मया वरदा वेद माता प्रचोदयंताम् पावमानी द्विजानाम् आयुः प्राणं प्रजाम् पशुं कीर्तिम् द्रविणं ब्रह्मवर्चसं मह्यम् द्वत्वा वृजत् ब्रह्मलोकं।  ततो नमस्कारं करोमि। 
उच्चाटन मंत्र :: शत्रु नाश, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी आदि के निवारण या नियंत्रण हेतु किया जाता है।
उच्चाटन :- लगी या सटी हुई चीज को अलग करना, उचाड़ना, उखाड़ना, नोचना, किसी के चित्त को कहीं से हटाना।
मारण से प्राणनाश करने, मोहन से किसी के मन को मुग्ध करने, स्तंभन से मंत्रादि द्वारा विभिन्न घातक वस्तुओं या व्यक्तियों का निरोध, स्थिति करण या नाश करने, विद्वेषण से दो अभिन्न हृदय व्यक्तियों में भेद या द्वेष उत्पन्न करने, उच्चाटन से किसी के मन को चंचल, उन्मत्त या अस्थिर करने तथा वशीकरण से राजा या किसी स्त्री अथवा अन्य व्यक्ति अथवा पशु के मन को अपने वश में करने की क्रिया संपादित की जाती की जाती है।
इन क्रियाओं को करने के लिए अनेक प्रकार के तांत्रिक कर्मो के विधान हैं जिनमें सामान्य दृष्टि से कुछ अवांछित कार्य भी हैं। इन क्रियाओं में मंत्र, यंत्र, बलि, प्राण-प्रतिष्ठा, हवन, औषधि प्रयोग आदि के विविध नियोजित स्वरूप मिलते हैं। उपर्युक्त अभिचार अथवा तांत्रिक षट्कर्म के प्रयोग के लिए विभिन्न तिथियों का है जैसे मारण के लिए शतभिषा में अर्धरात्रि, स्तंभन के लिए शीतकाल, विद्वेषण के लिए ग्रीष्मकालीन पूर्णिमा की दोपहर, उच्चाटन के लिए शनिवार युक्त कृष्णा चतुर्दशी अथवा अष्टमी आदि।
उच्चाटन मन्त्र :- 
(1).  उल्लूकाना विद्वेषय फट स्वाहा:, 
(2).   क्षौं क्षौं भैरवाय स्वाहा:, 
(3). ऊँ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः!
(4). ॐ हृलीं ब्रह्मास्त्राये विद्यमने स्तम्भन धीमही तन्नो बगला प्रचोदयात।
(5). श्रीं श्रीं श्रीं अमुक शत्रु उच्चाटन स्वाहा।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में सात अंगुल लम्बी कुंकुम की लकड़ी को एक सौ आठ बार मंत्र पढ़कर शत्रु के द्वार पर गाड़ने से, सात दिन मे शत्रु का उच्चाटन होता है।
 (6). ॐ नमो मोमास्याय अमुकस्य गृहे उच्चाटन कुरु कुरु स्वाहा।
इस मंत्र को एक हजार बार जाप करके सिद्धि करके मंगलवार के दिन जिस जगह गधा लेटता हो, वहाँ की मिट्टी बायें हाथ से उत्तर दिशा की ओर मुख करके ले आयें और इक्कीस बार मंत्र पढ़ शत्रु के घर में डाल दे तो उच्चाटन अवश्य होगा।
(7). ॐ घुं घूति ठः ठः स्वाहा।
एक हजार बार जाप करने से ही यह सिद्ध हो जाता है और जब इसका प्रयोग करना हो तो अरुवा वृक्ष की एक टहनी ले लें और  एक सौ आठ बार मंत्र पढ़कर जिस व्यक्ति का नाम लेकर हवन करेंगे उसका उच्चाटन अवश्य होगा।
(8). ॐ ह्रीं दण्डीनं हीन महादण्डि नमस्ते ठः ठः।
इस मंत्र को भी उपरोक्त मंत्र की भाँति एक हजार बार जाप कर सिद्धि कर ले फिर जब प्रयोग करना होवे तो सात अंगुल लम्बी मनुष्य की हड्डी ले उक्त मंत्र से अभिमन्त्रित कर जिस व्यक्ति के निवास स्थान में गाढ़ दें तो उसका उच्चाटन अवश्य होगा।
(9). ॐ लोहिता मुख स्वाहा।
इस मंत्र को एक हजार बार जाप कर सिद्धि कर ले फिर जब प्रयोग करना हो तो चार अंगुल लम्बी उमरी वृक्ष की लकड़ी लाकर उक्त मंत्र से अभिमन्त्रित कर जिसके मकान में डाले उसका उच्चाटन अवश्य होगा।
(10). ॐ हं हं वां हृं हृं ठः ठः।
इस मंत्र को पहले केवल एक हजार बार जाप करके सिद्धि कर ले फिर जब प्रयोग करना हो तो चार अंगुल लम्बी कौवे की हड्डी लाकर एक हजार बार मंत्र पढ़ कर अभिमन्त्रित कर जिसका उच्चाटन करना होवे उसके घर में डाल दे तो शीघ्र उच्चाटन होगा।
जाप का मंत्र ::
(11). ऊँ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः।
इसे पांच बार करने से लाभ मिलता है। उससे बचाव की मन्नत मांगते हुए उच्चाटन मंत्र का 51 माला जाप करें।
शत्रु उच्चाटन मंत्र टोटके :- किसी भी कार्य की संपन्ना उसमें लगे मन की एकाग्रता और कार्य के प्रति समर्पण पर निर्भर है। यह कहें कि दिल लगाकर  किया गया कार्य ही फलदायी साबित होता है, अन्यथा इसमें आने वाली अड़चनें  सफलता में बाधक बनी रहती हैं। कई बार कार्य के प्रति मन में भटकाव अर्थात उचाट जैसी स्थिति बन जाती है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। कुछ अपने आचरण, विवाद, मनमुटाव, किसी की नापसंदगी, तो कुछ दुश्मनों के विराधी तेवर से हो सकते हैं। इन्हें उच्चाटन के तांत्रिक उपायों से दूर किया जा सकता है।
षटकर्म प्रयोग :- यह तांत्रिक षट्कर्म प्रयोग से संभव हो पाता है। इसके द्वारा किसी भी व्यक्ति के मन में कार्य के प्रति विरोधी भावना रखने वाले के गुण, स्थान आदि के प्रति अरुचि पैदा कर दी जाती है, जिससे शत्रु से विकर्षण और कार्य के प्रति आकर्षण बन जाता है। उच्चाटन का प्रयोग उनके लिए बहुत ही उपयोगी साबित होता है, जो किसी के वशीभूत हो चुके होते हैं, अपने कार्मपथ से भटक जाते हैं, गलत संगत में पड़ जाते हैं, बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं या फिर किसी के बहकावे में आकर संस्कार व सम्मान भूल जाते हैं। साथ ही पति-पत्नी के बीच किसी तीसरे के आ जाने से आपसी संबंध बिगड़ने, पारिवारिक मान-मर्यादा कलंकित होने, प्रतिष्ठा पर आंच आने, रुपया-पैसा या धन-संपत्ति के अपव्यय या अनावश्यक खर्च होने जैसी समस्याओं को भी इससे दूर किया जा सकता है।
उच्चाटन के फायदे :- जन्म कुंडली के अनुसार ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव से घरेलू, पारिवारिक, कामकाजी, आर्थिक मामलों को लेकर चली आ रही मानसिक अशांति को उच्चाटन प्रयोग से खत्म किया जाता है। परस्त्री या परपुरुष गमन में लिप्त व्यक्ति को सही रास्ते पर लाने का यह प्रयोग अद्भुत और अचूक असर देता है। इसके द्वारा दरिद्रता दूर करने के साथ-साथ किसी द्वारा धन-संपदा पर कब्जा करने वालों से छुटकारा दिलवाया जा सकता है और दरिद्रता और अशांति को भी दूर किया जा सकता है। इसी तरह परिवार व समाज के रीति-रिवाजों के विरूद्ध जाकर बेमेल, अनैतिक या अनुचित प्रेमपाश में फंसी किसी विवाहिता या कुंवारी स्त्री को उच्चाटन प्रयोग से ही सही मार्ग पर लाया या उसे बचाया जा सकता है। इस प्रयोग के बाद उस स्त्री के मन में वैसे प्रेम से हमेशा के लिए विरक्ति हो जाएगी।
वशीकरण से भिन्न :- उच्चाटन प्रयोग वशीकरण के प्रयोग से भिन्न है, क्योंकि उसमें उग्र शक्तियों वाले देवी-देवताओं का सहयोग लिया जाता है, जबकि वशीकरण में सौम्य शक्तियों का साथ मिलता है। यही कारण है कि उच्चाटन की तांत्रिक क्रिया जानकार तांत्रिक के मार्गदर्शन में ही किया जाता है, जो कि विकर्षण के सिद्धांत पर आधारित है। देवी-दवताओं की आराधना और तंत्र-मंत्र के साथ विधि-विधान पूर्वक साधना व सिद्धि से मन में अरुची और वितृष्णा के भाव भरे जाते हैं, जिससे दूरी या अनचाहेपन यानि नकारात्मक भाव स्वतः उत्पन्न हो जाते हैं और वह सही-गलत में फर्क समझकर सकारत्मक दिशा की ओर रूख कर लेता है।
कालरात्रि साधना :- शत्रु से छुटकारा दिलाने के लिए काल रात्रि साधना एक बहुत ही उपयोगी और शीघ्र फल देने वाला उपाय है। इसे तांत्रिक के सहयोग से काफी सतर्कता के साथ करना चाहिये, अन्यथा इसके प्रतिकूल प्रभाव मिल सकते हैं। उच्चाटन कार्य, व्यक्ति का नाम संबंधी संकल्प लेकर साधना का आरंभ कृष्णपक्ष चतुर्दशी की रात्रि में किया जाना चाहिए। काले आसन पर दक्षिण दिशा की ओर बैठकर दिए गए मंत्र का 11 दिनों तक प्रतिदिन 11 माला का जाप किया जाता है। तीव्रता से उच्चाटन का लाभ लेने के लिए 21 माला का जाप करना होता है। बारहवें दिन कार्य सिद्धि की पूर्णाहुति काले तिल, लौंग, काली मिर्च और चंदन आदि के चूर्ण से कम से कम 108 बार मंत्र का जाप करते हुए हवन करना आवश्यक है। उसके बाद चोटी के कुछ बाल उखाड़कर जमीन में दबा दें और हवन की राख को जल नदी के बहते जल में प्रवाहित कर दें। 
मंत्र :-
ऊँ ब्लूं स्लूं म्लूं क्ष्लूं कालरात्रि महाध्वांक्षी अमुक माश्ूच्चाटय आशूच्चटाय छिन्धी भिन्धी स्वाहा! कामाक्षी क्रों।
इसमें अमुक के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना चाहिए जिसके लिए उच्चाटन का प्रयोग किया जाना है। सिद्धि की पूर्णाहुति के बाद तीन दिनों तक भगवान शिव का नियमित जलाभिषेक करना जरूरी है।
शत्रु से छुटकारा :- बार-बार परेशान करने वाले शत्रु से छुटकारा एक सामान्य प्रयोग के जरिए भी संभव है। खासकर सहकर्मियों या सहयोगियों के कारण आने वाली परेशानी से राहत मिल सकती है, तो इसके द्वारा खुद की गई भूलों को भी सुधारा जा सकता है। यह उपाय मंगलवार या शनिवार को भौरवभैरों बाबा के मंदिर में उनके सामने किया जाता है। भैरव के सामने चैमुखा दीपक जलाएं। इससे पहले उसकी चारों बत्तियों को रोली से रंग लें। उसके बाद शत्रु का नाम लेकर दीपक के तेल में एक चुटकी पीली सरसों कुछ दाने डालकर नीचे दिए गए ध्यान के श्लोक का 21 बार पाठ करें। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने पर दीपक के तेल में एक चुटकी लाल सिंदूर डालें। मुंह में एक लौंग रखें और एक लौंग हाथ में लेकर शत्रु का स्मरण करते हुए निम्नलिखित मंत्र का 21 बार जाप करें। इस तरह से पांच लौंग के साथ जाप करें। लौंग का ऊपरी हिस्सा तेल में डाल दें और बाकी का भाग जमीन में दबा देें।
ध्यान हेतु श्लोक :-
ध्यायेन्नीलाद्रिकांतम शशिश्कलधरम्, मुण्डमालं महेशम्।
दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ सृणिं, खडगपाशाभयानि।
नागं घण्टाकपालं करसरसिरु है, र्बिभ्रतं भीमद्रष्टम्।
दिव्यकल्पम त्रिनेत्रं मणिमयमिलसद, किंकिणी नुपुराढ्यम्।
जाप का मंत्रः ऊँ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः। 
इस साधना को दक्षिण दिशा की ओर मुखकर करना चाहिए तथा इसे शनि मंदिर में भी किया जा सकता है। पूरा अनुष्ठान खत्म होने के बाद दीपक को आधी रात को किसी चैराहे पर रख दें। इस दौरान किसी की नजर नहीं पड़नी चाहिए। यदि इस प्रयोग से एकबार में शत्रु शांत नहीं हो पाता है तो इसे पाँच बार करने से लाभ मिलता है।
शत्रु उच्चाटन के लिये माँ दुर्गा का ध्यान :- माता दुर्गा की आराधना कर भी शत्रु उच्चाटन साधना कर संघर्ष को खत्म किया जा सकता है। यह प्रयोग किसी भी माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शुरू किया जाता है। वैसे इसे किसी भी शनिवार को किया जा सकता है। इसका समय रात्रि के 11 बजे के बाद है। साधना की शुरूआत से पहले लाल वस्त्र में लाल आसन पर दक्षिण की ओर मुंह कर बैठें। अपने सामने देवी दुर्गा की तस्वीर रखें और शत्रु का नाम लेकर उससे बचाव की मन्नत माँगते हुए उच्चाटन मंत्र का 51 माला जाप करें। मंत्र में दिए गए अमुक के स्थान पर शत्रु का नाम लें। 
मंत्र :- 
ऊँ दुँ दुर्गायै अमुकं उच्चाटय उच्चाटय शीघ्रं सर्व शत्रु बाधा नाशय नाशय फट।
इस साधना के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान तीन दिनों का होता है। उसके बाद यंत्र, माला और दूसरी पूजन सामग्रियों को जमीन में दबा दिया जाता है।
वशीकरण, उच्चाटन, मोहन, आकर्षण :: तीन पके हुए नींबू लेकर उनमें से एक को नीला, दूसरे को काला व तीसरे को लाल रंग की स्याही से रंग लें। इन तीनों नींबूओं में प्रत्येक में एक-एक साबूत मोटी लौंग गाड़ दें। इसके बाद तीन लड्डू मोती चूर के तथा तीन लाल-पीले फूल लेकर सबको एक रूमाल में बाँध दें। इस रूमाल को सात-बार प्रभावित व्यक्ति पर उतारा करके बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इस पोटली को प्रवाहित करते समय आस-पास कोई खड़ा न हो। इस क्रिया का असर कुछ ही समय में दिखाई देने लगेगा।
ध्यान रखें इस प्रकार  की हरकतें अन्ततोगत्वा स्वयं लिये घातक हो सकती हैं। 

महामारी, स्वास्थ्य, भय दूर करने हेतु तथा बुद्धि-ज्ञान प्राप्ति-आजचा मंत्र :: महामारी, स्वास्थ्य, भय दूर करने हेतु तथा बुद्धि-ज्ञान प्राप्ति हेतु निम्न मंत्र का जप प्रतिदिन शुद्ध होकर प्रातःकाल 108 बार करें।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन वासुदेवाय, धन्वंतराय अमृतकलश हस्ताय, सकला भय विनाशाय, सर्व रोग निवारणाय, त्रिलोक पठाय, त्रिलोक लोकनिथाये, ॐ श्री महाविष्णु स्वरूपा, ॐ श्री श्री ॐ औषधा चक्र नारायण स्वहा॥

MANTROPCHAR (1) DIVINE CURE मंत्रोपचार
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अनावृष्टि दूर करने के उपाय :: 
अनश्नतैतज्जप्तव्यं वृष्टिकामेन यन्त्रत:। 
पंचरात्रेSप्यतिक्रान्ते महतीं वृष्टिमाप्नुयात्॥[ऋग्विधान 2.327]
जल वृष्टि  :: निम्न दोनों मंत्रों से सत्तू और जल का ही सेवन करता हुआ, गुड़ तथा दूध में वेतस् की समिधाओं को भिगोकर हवन करे करें तो भगवान् सूर्य नारायण जल बरसाते हैं :- 
"असौ यस्ताम्नो" तथा "असौ योSवसर्पति"
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अनावृष्टि दूर करने के उपाय ::
अनश्नतैतज्जप्तव्यं वृष्टिकामेन यन्त्रत:। 
पंचरात्रेSप्यतिक्रान्ते महतीं वृष्टिमाप्नुयात्॥[ऋग्विधान 2.327]
जल वृष्टि :: निम्न दोनों मंत्रों से सत्तू और जल का ही सेवन करता हुआ, गुड़ तथा दूध में वेतस् की समिधाओं को भिगोकर हवन करें तो भगवान् सूर्य नारायण जल बरसाते हैं :- 
"असौ यस्ताम्नो" तथा "असौ योSवसर्पति"
अनावृष्टि दूर करने हेतु निम्न मंत्रों से यज्ञ करें :- 
ॐ इन्द्राय: नमः 
ॐ पवनाय: नमः 
ॐ वरूणाय: नमः
ॐ पर्जन्ये नमः 
ॐ मेघाय: नमः 
ॐ अग्ने नमः   
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भूत-प्रेत से मुक्ति :: निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए सरसों के दाने अभिमन्त्रित करके आविष्ट पुरुष पर डालने से ब्रह्म राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाचादि से मुक्ति प्राप्त होती है :- 
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्। 
अहींश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योSधराची: परा सुव
[शुक्ल यजुर्वेद 16.5]
भूत-प्रेत से मुक्ति PROTECTION FROM GHOSTS ::
जातक को शुद्धि का ध्यान रखना चाहिये। हनुमान चालीसा पाठ करने से भी भूत-प्रेत आदि भय नहीं रहता। 
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए सरसों के दाने अभिमन्त्रित करके आविष्ट पुरुष पर डालने से ब्रह्म राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाचादि से मुक्ति प्राप्त होती है :-
(1). अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्।
अहींश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योSधराची: परा सुव
[शुक्ल यजुर्वेद 16.5]
(2). ॐ श्री महा अन्ज्नाये पवन पुत्रावेशवेशय। 
 ॐ श्री हनुमते फट॥ 
अतुलित बल धामं हेम शैला  भदेहं,
दजु जवन  कृषानु  ज्ञानी नामग्र गम्यं।
सकल गुण निधानं वंरधिषम वानराधीशं,
रघुपति प्रियभ्कृम्  वात  जातं नमामि॥
शिशुओं को भूतावेश से बचाने हेतु विभिन्न जप करने चाहियें।[काश्यप संहिता]

 

असाध्य रोग निवारण मंत्र
बाल शान्ति ::
मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्। 
मा नो वधी: पितरं मोत मातरं मा नः प्रिया स्तन्वो रूद्र रीरिष:॥
[शुक्ल यजुर्वेद 16.15]
इस मंत्र से तिल की 10,000 आहुति देने से बालक निरोग रहता है तथा परिवार में शान्ति रहती है। 
रोग नाशन :: 
नमः सिकत्याय च प्रवाह्याय च नमः कि ँ ्शिलाय च क्षयणाय च
नमः कपर्दिने च पुलस्तये च नम इरिण्याय च प्रपथ्याय च
[शुक्ल यजुर्वेद 16.43]
इस मंत्र से 800 वार कलश स्थित जल को अभिमन्त्रित करके उससे रोगी का अभिषेक करें, तो वह रोग मुक्त हो जाता है।
आरोग्य  प्राप्ति  ::  
(1). माँ भयात  सर्वतो रक्ष श्रियम वर्धय सर्वदा शारीरारोग्य में देहि देवी देवी नमोस्तुते। (2). ओम अच्युताय नमः, ओम अनंताय नमः, ओम गोविन्दाय नमः, ओम  रुद्राय नमः।
सर्वरोग निवारण ::
ॐ नमो भगवते महासुदर्शन वासुदेवाय धन्वंतराय अमृतकळश हस्ताय सकल भय विनाशाय सर्वरोग निवारणाय त्रिलोक पतये त्रिलोक निधये ॐ श्री महाविष्णू स्वरुप श्री धन्वंतरी स्वरुप ॐ श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नम:
आजचा मंत्र :: महामारी, स्वास्थ्य, भय दूर करने हेतु तथा बुद्धि-ज्ञान प्राप्ति हेतु निम्न मंत्र का जप प्रतिदिन शुद्ध होकर प्रातःकाल 108 बार करें :-
ॐ नमो भगवते सुदर्शन वासुदेवाय, धन्वंतराय अमृतकलश हस्ताय, सकला भय विनाशाय, सर्व रोग निवारणाय, त्रिलोक पठाय, त्रिलोक लोकनिथाये, ॐ श्री महाविष्णु स्वरूपा, ॐ श्री श्री ॐ औषधा चक्र नारायण स्वहा॥
सर्वरोग नाशक प्रातः स्मरण-आराधना :: यह महर्षि वशिष्ठ द्वारा भगदेवता-ईश्वर से सभी रोगों से मुक्ति पाने की प्रार्थना है। इसके प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक पाठ करने से असाध्य से भी असाध्य रोग दूर हो जाते हैं और दीर्घायु प्राप्त होती है। 
प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना। 
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम॥
हे सर्व शक्तिमान् ईश्वर! आप स्वप्रकाश स्वरूप-सर्वज्ञ, परम ऐश्वर्य के दाता और परम ऐश्वर्य से युक्त, प्राण और उदान के समान, सूर्य और चन्द्र को उत्पन्न करने वाले हैं। आप भजनीय, सेवनीय, पुष्टिकर्त्ता हैं। आप अपने उपासक, वेद तथा ब्रह्माण्ड के पालनकर्त्ता, अन्तर्यामी और प्रेरक, पापियों को रुलाने वाले तथा सर्वरोग नाशक हैं। हम प्रातः वेला में आपकी स्तुति-प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 7.41.1]
Hey Almighty! YOU bear (inbuilt) aura, all knowing, possess & grants ultimate comforts-bliss, support Pran Vayu-life sustaining force in us, creator of Sun & Moon, has to be prayed by us-devotees. YOU maintain-nurture your devotees, Ved & the Universe, punishes the sinners & eliminates all diseases-illness. We pray to YOU in the morning.
लंबे वक्त से बीमारियों ने घेर रखा है तो मंगलवार के दिन निम्न मंत्रों का नियमित रूप से पाठ करें। इनसे असाध्य रोगों का नाश होता है। 
ॐ आञ्जनेय नमः। 
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा।  
ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकायं हुं फट्।
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 बाल शान्ति :: 
मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्। 
मा नो वधी: पितरं मोत मातरं मा नः प्रिया स्तन्वो रूद्र रीरिष:॥
[शुक्ल यजुर्वेद 16.15]
इस मंत्र से तिल की 10,000 आहुति देने से बालक नीरोग रहता है तथा परिवार में शान्ति रहती है।
रोग नाशन :: 
नमः सिकत्याय च प्रवाह्याय च नमः कि ँ ्शिलाय च क्षयणाय च नमः कपर्दिने च पुलस्तये च नम इरिण्याय च प्रपथ्याय च
[शुक्ल यजुर्वेद 16.43]
इस मंत्र से 800 वार कलश स्थित जल को अभिमन्त्रित करके उससे रोगी का अभिषेक करें तो वह रोग मुक्त हो जाता है।
सर्वरोग निवारण ::
ॐ नमो भगवते महासुदर्शन वासुदेवाय धन्वंतराय अमृतकळश हस्ताय सकल भय विनाशाय सर्वरोग निवारणाय त्रिलोक पतये त्रिलोक निधये ॐ श्री महाविष्णू स्वरुप श्री धन्वंतरी स्वरुप ॐ श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नम:।
द्रव्य प्राप्ति :: 
"नमो वः किरिकेभ्योo"।[शुक्ल यजुर्वेद 16.46]
उपरोक्त मंत्र से तिल की 10,000 आहुति देने पर धन की प्राप्ति होती है।
PRAYERS FOR HUMAN WELFARE :: 
ऋग्वेद का आद्य मांगलिक संदेश ::
अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥ 
स्वयं आगे बढ़कर लोगों का हित करनेवाले, प्रकाशक, ऋतु के अनुसार यज्ञ करने तथा देवों को बुलाने वाले और रत्नों को धारण करने वाले अग्नि की मैं स्तुति करता हूँ।
आद्य :: आदि, मूल; primitive, primordial.
I pray to the Agni-deity of fire, who illuminates all, performs Yagy as per the season (sowing crops, mating and performing all useful deeds), who invites the demigods-deities, bearing jewels-ornaments. 
यजुर्वेद का आद्य मांगलिक संदेश ::
इषे त्वोर्जे त्वा वायव स्थ देवो वः सविता प्रापयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आप्यायस्व मध्य इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवा अयक्ष्मा मा व स्तेन ईशत माघश सो ध्रुवा अस्मिन् गोपतौ स्यात बह्वीर्यजमानस्य पशून्याहि॥
(हे मानव!) सबको उत्पन्न करने वाला देव-सविता देव, तुझे अन्न-प्राप्ति के लिये प्रेरित करें। सबको उत्पन्न करने वाला देव तुझे बल-प्राप्ति के लिये प्रेरित करे। हे मनुष्यो! तुम प्राण हो। सबका सृजन करने वाला देव तुम सबको श्रेष्ठतम कर्म के लिये प्रेरित करे। हे मनुष्यो! बढ़ते जाओ। तुम सभी प्रजाओं का वध करने के अयोग्य हो। 
तुम इन्द्र के लिये अपना भाग बढ़ाकर दो। तुम सन्तान युक्त, यज्ञ से रोग मुक्त और क्षय रोग रहित होओ। चोर तुम्हारा प्रभु न बने, पापी तुम्हारा स्वामी न बने। इस भूपति के निकट स्थिर रहो, अधिक सँख्या में प्रजा सम्पन्न हो, यज्ञ कर्ता के पशुओं की रक्षा करो। 
Hey Humans! Savita Dev (read Almighty) who gave birth to all, should inspire-guide us to produce food grain. One-God who produces all, should inspire to acquire strength-power. Hey Humans! You are life force. The God who gave birth to all may inspire you to do excellent Karm-Deeds (endeavours). Keep on progressing. Let the God make you incompetent to destroy life-shun from violence. 
You should increase the offering to Indr (Dev Raj-here Almighty, for the sake of charity, donations, human welfare). You should be blessed with progeny through the Yagy (production of life is also a form of Yagy.) and become free from illness & Tuberculosis. The thief should not become your master-king. Stay with this land lord-the honest (virtuous, righteous, pious). More and more people should become rich-wealthy. Protect the one who performs the Yagy. 
सामवेद का आद्य माङ्गलिक संदेश ::  
अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये। 
नि होता सत्सि बर्हिषि॥ 
 हे अग्ने! हवि-भक्षण करने के लिये तू आ, देवों को हवि देने के लिये जिसकी स्तुति की जाती है, ऐसा तू यज्ञ में ऋत्विज् होता हुआ आसन पर बैठ।
Hey Agni Dev! Please come and acquire the seat of Ritviz-the person making offerings to the demigods-deities.  Please eat the offerings to the demigods-deities for whom you act the mouth. 
अथर्ववेद का आद्य माङ्गलिक संदेश :: 
शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। 
शं योरभि स्त्रवन्तु नः॥ 
दिव्य जल हमें सुख दे और इष्ट-प्राप्ति के लिये एवं पीने के लिये हो तथा हम पर शान्ति का स्रोत बहाये।
The divine water should grant us pleasure-comforts & should be meant as an offering to the Isht-the deity prayed by us and for drinking, in addition to showering solace, peace & tranquillity over us.
शरीर शुद्ध करने का मंत्र ::
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः
अतिनिल घनश्यामं नलिनायतलोचनं
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम॥
पवमान मन्त्र :: 
ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः॥
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो।मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। यह मन्त्र मूलतः सोम यज्ञ की स्तुति में यजमान द्वारा गाया जाता है।[बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28]
प्रात कालीन वन्दना ::
ॐ गं गणपत्ये नम:।
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसम्स्प्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"; "ॐ नमोः शिवाय"।
गायत्री मंत्र ::
ॐ भुर्भुवः स्वः तत्सोवितुवरेण्यं।
भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा।
पितु मात स्वामी, सखा हमारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देव देवः॥
 सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। 
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
मंगलम्  भगवान  विष्णु, मंगलम् गरुड़ ध्वज। 
        मंगलम् पुंड्रिरिकाक्ष, मंगलाय तनु  हरि:॥
ॐ नमस्ते अस्तु भगवन विश्र्वेश्र्वराय महादेवाय;
त्र्यम्बकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकालाग्निकालाय।
कालाग्निरुद्राय नीलकण्ठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्र्वराय सदाशिवाय
श्रीमन् महादेवाय नमः॥
भगवान् शिव स्तुति ::
कर्पूर गौरम करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारं। 
सदा वसंतं हृदयार विन्दे, भवं भवानी सहितं नमामि॥ 
भगवान्  श्री हरी विष्णु स्तुति :: 
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
महामृत्युंजय मंत्र ::
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥
देवराज इन्द्र रचित श्री कृष्ण वन्दना  ::
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
शान्ति मंत्र ::
(1). ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी; भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव; सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु॥
(2). ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी; भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव; कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
(3). ॐ असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय॥ ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः॥ 
(4). ॐ द्यौ: शांति अंतरिक्ष शांति पृथिवी शांति आपः शांति औषधय: शांति वनस्पतय: शांति विश्र्वेदेवा शांति सर्व शांति ब्रह्म शांतिरेव शांति  सामा शांति शान्तिरेधि: विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्न आसुव। ॐ शांति: शांति: शांति: ॐ॥
  
प्रातः और रात्रि संध्या :: सुबह स्नान आदि से निवृत होकर सूर्य आराधना करें।
ॐ सूर्याय नमः। ॐ आदित्याय नम:। ॐ ज्योतिर आदित्य फट स्वाहा:। ॐ भास्कराय नम:। ॐ भानुवे नम:। ॐ खखोलकाय नम:। ॐ खखोलकाय स्वाहा:। ॐ व्यं फट। ॐ ह्रां ह्रीं स: फट स्वाहा:। ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:।
रात्रि में माता भगवती आराधना करें। 
" ॐ  ऐं  ह्रीं  क्लीं चामुंडाय  विच्चै  नमः" 
शत्रु, परेशानियों, विध्न बाधाओं से मुक्ति हेतु :- 
ॐ  ऐं  ह्रीं  क्लीं चामुंडाय  विच्चै  फट  स्वाहा:। 
महामृत्युंजय मंत्र :: 
व्याधि, बीमारी, रोगों, अकाल मृत्यु से बचने के लिये :- 
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥
ईश्वर अनन्त अवतार ले चुका है और लेता ही रहेगा। भगवान् शिव, भगवान् कृष्ण और भगवान् विष्णु एक ही हैं। भगवान् श्री अवतारी अर्थात ईश्वर स्वयं पृथ्वी पर प्रकट हो गये है।
मकान का मुँह पूर्व, उत्तर, उत्तर-पूर्व और पश्चिम दिशा में होना शुभ फल देता है।

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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श्री हरी विष्णु जी
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
श्री ब्रह्मा जी
ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा नमस्ते परमात्ने।
निर्गुणाय नमस्तुभ्यं सदुयाय नमो नम:।।
श्री कृष्ण
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।।
श्री राम जी
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः !
मां दुर्गा 
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते
मां महालक्ष्मी जी
ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।
मां सरस्वती
ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा।।
मां महाकाली
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हलीं ह्रीं खं स्फोटय क्रीं 
क्रीं क्रीं फट !!
श्री हनुमान जी
मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
श्री कार्तिकेय
ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते
काल भैरव
ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा