Friday, November 14, 2014

अश्विनी कुमार ASHWANI KUMARS (देव वैद्य-चिकित्सक PHYSICIAN OF DEMIGODS) :: SUN (4) सूर्य*

अश्विनी कुमार
(देव वैद्य-चिकित्सक, PHYSICIAN OF DEMIGODS)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
उत्तरकुरु क्षेत्र में अश्व रूपी सूर्य और अश्वा रूप धारी संज्ञा से अश्विनी कुमारों की उत्पत्ति हुई। अश्व रूपी भगवान् सूर्य और अश्वा रूप धारी संज्ञा के मिथुन से अश्वनी कुमारों की उत्पत्ति हुई। भगवान् सूर्य के तेज से क्लांत संज्ञा ने अश्वा रूप ग्रहण किया, तब सायंकाल होने पर भगवान् सूर्य अश्व बनकर आहवनीय अग्नि में प्रवेश कर गए। इसके अतिरिक्त, अमावास्या काल में भी भगवान् सूर्य अश्व रूप में रहते हैं। चूँकि अमावास्या तथा सायंकाल से आगे रात्रि को समाधि की अवस्था कहा जा सकता है। अतः कार्तिक शुक्ल द्वितीय को अश्वनी कुमारों का जन्म हुआ। शुक्ल पक्ष समाधि से व्युत्थान का प्रतीक हो सकता है।
ये दोनों भगवान् सूर्य के पुत्र हैं, जो देव वैद्य-चिकित्सक हैं, जिन्हें देवता नहीं माना गया, मगर च्यवन ऋषि ने उन्हें यह स्थान दिलवाया और सोमरस पान करने का अधिकार दिलवाया। 
च्यवन ऋषि के लिये च्यवानं का प्रयोग हुआ है। [ऋग्वेद 10.17.1] 
आश्विन् ग्रह के संदर्भ में च्यवन-सुकन्या आख्यान है। [शतपथ ब्राह्मण 4.1.5.1]
अश्विनी कुमार पितरद्वय हैं, जो सोम के कच्चे रूप सुरा को पीकर अपने यजमान रूपी पुत्र इन्द्र की रक्षा करते हैं। यह संदर्भ आश्विन् मास के कृष्ण पक्ष की पितृ पक्ष के रूप में प्रतिष्ठा के कारणों पर विचार करने के लिए उपयोगी है।[ऋग्वेद 10.131.5] 
अश्विनौ शब्द द्विवचन है। यह एक देवमिथुन है। इन्हें देवभिषजौ कहा जाता है। इनके अन्य नाम नासत्य और दस्र आते हैं। वृद्ध से युवा बना देना, टूटी जाँघ के स्थान पर लोहे की जाँघ लगा देना, अन्धकार से प्रकाश में ले जाना, समुद्र से डूबते को बचा लेना आदि उनके लिये सामान्य बातें हैं। 
यह चेतना की पराक् और अर्वाक् गति का प्रतीक हैं। अश्व अर्थात जिसका कल नहीं है, जो सदा वर्तमान है वह अश्व परमात्मा है। परमात्मा की शक्ति जीवात्मा को अजर-अमर कर सकती है और यदि अश्व का दूसरा अर्थ है। ब्राह्मण ग्रन्थों में इन्हें प्राणापानौ कहा गया है। प्राणों की यह पराक् और अर्वाक् गति ही अन्नमय, प्राणमय आदि कोशों को जोडने-सेतु तैयार करने वाली है। 
अश्विनी कुमारों के अंश, विश्कर्मा के पुत्र नल-नील ने रामेश्वर सेतु निर्माण किया।
इनका रथ तीन चक्रों-पहियों वाला है। दो चक्रों को तो ब्राह्मण लोग ऋतुथा जानते हैं, लेकिन तीसरे को सत्य की खोज करने वाले योगी ही जान सकते हैं। रथ के तीन पहिए हैं :– एक स्थूल शरीर में, एक सूक्ष्म शरीर में और एक कारण शरीर में। तीनों में एक ही चेतना एक साथ चलेगी। जब तक जीवात्मा अश्व नहीं बनता, तब तक वह अधिक से अधिक मन तक पहुँच सकता है। तब तक रथ के दो ही चक्र हैं :– स्थूल और सूक्ष्म शरीर। मन ऊर्ध्वमुखी होने पर तीन चक्रों का रथ बन जाता है। समाधि लग जाने पर अश्विनौ दिखाई नहीं पडते। सत्य हिरण्यय कोश है, वही समाधि है। अश्विनौ का नाम नासत्य (न-असत्य) है, जो संकेत करता है कि यह समाधि से नीचे की स्थिति है।
संज्ञा ::  मन रेतस्या बन जायें, प्राण गायत्री, चक्षु त्रिष्टुप्, श्रोत्र जगती, वाक् अनुष्टुप् छन्द बन जायें, यह संज्ञाएं हैं।[जैमिनीय ब्राह्मण 1.269]
आदित्यों ने अंगिरसों को श्वेत वडवा लाकर दी, लेकिन अङ्गिरसों ने अस्वीकार कर दिया। तब वडवा क्रोध में उभयमुखी सिंही हो गई। बाद में देवों द्वारा उसे स्वीकार कर लेने पर वह उत्तरवेदी बन गई। जब आदित्यों ने श्वेत अश्व के द्वारा स्वर्ग लोक प्राप्त कर लिया, तो अङ्गिरसों ने भी श्वेत वडवा को स्वीकार करके स्वर्ग लोक की प्राप्ति की। उत्तरवेदी, उत्तरकुरु है, जहाँ संज्ञा ने तप किया।[जैमिनीय ब्राह्मण 2.115-121] 
कुरुक्षेत्र में सृष्टि की रचना हुई। यही खाण्डव वन और देवों की यज्ञवेदी है। खाण्डव वन ही बाद में इन्द्रपस्थ बना। यही नागभूमि है और यही रावण का जन्म स्थल बिसरख। वडवाग्नि द्वारा समुद्र जल पान का उल्लेख पृथ्वी या संज्ञा के एक रूप वडवाग्नि के रूप में विकसित होकर असुरों का नाश करता है। उत्कृष्ट रूप में यही यज्ञ की उत्तरवेदी है। यहीं अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ।[ब्राह्मण ग्रन्थ] 
ऋग्वेद की ऋचा 10.17.1  इस कथा को जोड़ती-समर्थन करती है।  
अश्विनी कुमार हमें अपनों से और परायों से संज्ञान प्राप्त करायें। संज्ञा के विराट रूप संज्ञान को प्राप्त होना ही अश्विनौ का जन्म लेना है।[अथर्ववेद 7.54.1]
प्रवर्ग्य नामक यज्ञ में भगवान् श्री हरी रूपी विष्णु का सर कटने पर भी  देवगणों के द्वारा कुरुक्षेत्र में शीर्ष रहित यज्ञ का अनुष्ठान हुआ, जिससे वांछित फलों की प्राप्ति नहीं हुई, तब अश्विनी कुमारों सर्वता की प्राप्ति के लिए यज्ञ के अध्वर्यु नामक ऋत्विज बने और दधीचि से प्राप्त मधु विद्या द्वारा यज्ञ के शीर्ष को जोडा गया।[तैत्तिरीय आरण्यक 4.1.1  तथा शतपथ ब्राह्मण 14.1.1.1]
दधीचि बताते हैं कि मधु विद्या क्या है? रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव इत्यादि अर्थात् कण-कण में उसी परमात्मा के रूप का दर्शन करना मधु विद्या है। इस यज्ञ में अध्वर्यु ऋत्विज यजमान रूपी सूर्य के तेज का क्रमशः विकास करता है। उस सूर्य को आकाश में विचरण करने योग्य, पतन रहित, 12 मास के 12 सूर्यों और 13वें मास के सूर्य को धारण करने वाला, चन्द्रमा, नक्षत्रों और ऋतुओं को धारण करने वाला बनाते हैं।[बृहदारण्यक उपनिषद 2.5.19]
प्रतिप्रस्थाता, अध्वर्यु ऋत्विज का एक सहायक, आसुरी पक्ष, आग्नीध्र तथा अन्य ऋत्विज यजमान-पत्नी या पृथ्वी  को दसों दिशाओं में व्याप्त होने वाली, मनु को वहन करने वाली अश्वा का रूप देते हैं। सूर्य के तेज, जिसे इस यज्ञ में घर्म या प्रवर्ग्य कहते हैं, का विकास पूर्ण हो चुकने पर यज्ञ में काम आने वाले मिट्टी से निर्मित महावीर पात्र तथा अन्य सहायक उपकरणों जैसे परीशास-संडासी आदि को उत्तरवेदी में स्थापित कर दिया जाता है। अश्विनी कुमारों द्वारा मिट्टी का शिवलिंग बनाना गया जो कि यज्ञ रूपी उत्तरवेदी में महावीर सर का प्रतीक है। परीशास आदि यज्ञ के उपकरणों से शरीर की बाहुओं आदि का प्रतीक लिया जाता है। प्रत्येक यज्ञ का एक शीर्ष होता है, जैसे अग्निहोत्र में आहवनीय अग्नि शीर्ष है, दर्श पूर्णमास यज्ञ में आज्यभाग द्वय व पुरोडाश शीर्ष हैं, सोम यज्ञ में हविर्धान यज्ञ का शीर्ष है, चातुर्मास्य में पयस्या यज्ञ की शीर्ष है।[त्वष्टा का रूप, तैत्तिरीय आरण्यक 3.3.1]
अतिथि को भी यज्ञ का शीर्ष कहते हैं। प्रवर्ग्य यज्ञ देवों के यज्ञ में अश्विनौ अध्वर्युओं द्वारा स्थापित शीर्ष अन्य सब यज्ञों को समाहित करता है।[शतपथ ब्राह्मण 14.2.2.48] 
सौत्रामणी यज्ञ :: देवराज इन्द्र ने त्वष्टा विश्वरूप का वध करके उसके यज्ञ कलश में उपलब्ध समस्त सोम को पी लिया। वह सोम इन्द्र के विभिन्न अङ्गों से विभिन्न हिंसक पशुओं के रूप में प्रकट हुआ। अश्वनी कुमारों और सरस्वती ने उसकी चिकित्सा की।[शतपथ ब्राह्मण 12.7.1.1; तैत्तिरीय ब्राह्मण 2.6.1.1] 
भेषज्य कर्म :: जिस सोमरस का, भक्तिरस का, आह्लाद का इन्द्र ने अचानक पान किया है, वह उसे आत्मसात् करने में समर्थ नहीं हो रहा है। अतः वह आह्लाद नमुचि असुर के रूप में (नमुचि अर्थात् जो एक बार पकड कर मुक्त न करे) तथा हिंसक प्रवृत्तियों के रूप में प्रकट हो रहा है। उस शक्ति को प्रवाहित होने का सम्यक् मार्ग कैसे दिया जाए? यह जो अतिरिक्त सोम है, यह आश्विन है। अश्वनी कुमारों  के पास इसकी भेषज यह है कि वह इसे ओंकार रूपी रथ पर आरूढ करके उसका वहन करते हैं। [शांखायन ब्राह्मण 18.1] 
अश्वनी कुमार और सरस्वती को भेषज कर्म में संयोग भक्ति के मुख्य रूप से चार प्रकार होते हैं :- हिंकार, प्रस्ताव, उद्गीथ और प्रतिहार। इनसे सम्बन्धित पशु क्रमशः अज, अवि, गौ और अश्व हैं। ऋतुओं की दृष्टि से यह चार अवस्थाएं वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा व शरद होती हैं।[जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण 1.3.2.7] 
अज अवस्था अश्विनौ का और अवि अवस्था सरस्वती का ग्रह है, वह यहां आकर स्थित हो सकते हैं।[शतपथ ब्राह्मण 12.7.1.11] 
भक्ति मार्ग में अज और अवि अवस्था को पार करने के पश्चात् गौ और अश्व अवस्थाएं परस्पर मिश्रित हैं। अश्विनी कुमार ही गोमत् और अश्ववत् हैं। जब वह गोमत् होंगे तब उनका नाम नासत्य होगा और वह इन्द्रियों की पुष्टि गौ प्राणों द्वारा करेंगे।[ऋग्वेद 2.41.7, तैत्तिरीय ब्राह्मण 2.6.13.3 
उनका रथ अरिष्टनेमि प्रकार का होगा।[ऋग्वेद 1.180.10]
अग्नि के वाहन अज रूपी तेज का विकास प्रतिहार अवस्था में चक्षु के तेज के रूप में हो जाता है, ऐसा चक्षु जिसे कण-कण में उस परमात्मा का ही रूप दिखाई पडने लगे, में अश्वनी कुमारों को शरद या प्रतिहार हैं।[जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण 1.18.2.9]
प्रतिहार से अगली निधन अवस्था में चक्षु ग्रह के बदले श्रोत्र ग्रह बन जाता है। अतः अश्वनी कुमारों कहीं छाग, कहीं चक्षु तो कहीं श्रोत्र हैं।[शतपथ ब्राह्मण 12.8.2.22, 4.1.5.1]
वे कपिला गौ के कर्णों में स्थिति हैं। उन्हें कर्णवेध संस्कार करने वाला कहा गया है। सरस्वती के ग्रह अवि वीर्य  हैं,  जिनका विकास प्राण, अपान, उदान, व्यान आदि अन्य रूपों में होता है।[शतपथ ब्राह्मण 12.8.2.22]
योग की दृष्टि से अवि और असि, वरुणा नदी अथवा इडा या पिङ्गला नाड़ी  हैं, जिनके मिलने से तीसरी सरस्वती या सुषुम्ना नाडी का विकास होता है। 
अन्य सब नदियाँ तो पर्वतों से निकल कर समुद्र में विलीन होती हैं, लेकिन सरस्वती नदी ऐसी है जो विज्ञानमय कोश रूपी सिन्धु से निकलती है। यह सरस्वती या सुषुम्ना या सिन्धु नदी ऐसी है जो हिरण्यवर्तनी है, हिरण्यय कोश के, समाधि अवस्था के बार-बार चक्कर लगाती रहती है और अपने साथ अश्विनौ को भी ले जाती है और रस का आस्वादन कराती है।[ऋग्वेद 5.75.2 तथा 8.26.18] 
अश्विनौ से  प्राणों का उद्धार करने वाली वर्ति में स्थापित करने की प्रार्थना की गई है। [ऋग्वेद 8.26.15] 
अश्विनौ ने वर्तिका को वृक के मुख से बचाया। यह वर्तिका, दीपक की बत्ती यही सरस्वती नाडी है। अश्विनौ का तेज उसे जलाता है।[ऋग्वेद 1.111.6.14] 
अश्विनौ अङ्गों की चिकित्सा आत्मा में की  तथा सरस्वती ने आत्मा को अङ्गों से युक्त किया, अङ्गों द्वारा धारण किया।[तैत्तिरीय ब्राह्मण 2.6.4.6; शतपथ ब्राह्मण 12.9.1.4]  
यज्ञ के अङ्गों का निर्माण उच्छिष्ट से, अतिरिक्त शक्ति से होता है।[अथर्ववेद 11.9.6]
दिवस काल में अश्विनौ और रात्रि काल में सरस्वती हमारी रक्षा करें।[तैत्तिरीय ब्राह्मण 2.6.12.3;  2.6.12.6]  
अश्विनौ के रथ को प्रातःकाल में जुडने वाला कहा गया है जो उषा को अपने रथ पर बैठा कर ले जाते हैं।[ऋग्वेद]
नकुल और सहदेव की उत्पति अश्विनी कुमारों से हुई। नकुल अश्वों के विशेषज्ञ और सहदेव गायों के विशेषज्ञ थे।[महाभारत]
विराट के राज्य में सहदेव का नाम अरिष्टनेमि  है। जब अश्विनी कुमार अश्वावत् होंगे तो वे वीर्य और बल की पुष्टि करेंगे। जैसे अश्विनी कुमार रूपवान् हैं, ऐसे ही नकुल व सहदेव भी बहुत रूपवान् हैं, विशेषकर नकुल, क्योंकि स्वर्गारोहण के समय जब नकुल मृत होकर गिर पडते हैं तो युधिष्ठिर उसका कारण बताते हैं कि उनको अपने रूप पर बहुत गर्व था। सहदेव के मृत होने पर उन्होंने कहा कि उनको अपनी प्रज्ञा पर बहुत गर्व था। 
प्रज्ञा द्वारा ही चक्षु पर आरूढ होकर सब रूपों के दर्शन होता है। अतः गौ और अश्व या नकुल और सहदेव को एक दूसरे से अभिन्न हैं।[कौशीतकि उपनिषद 3.4] 
प्राण-अपान का प्रजापति के शरीर को त्यागना और फिर द्वितीया तिथि को अश्विनौ के रूप में पुनः शरीर धारण करने के संदर्भ में अश्विनौ देवता का उल्लेख है।[वराह पुराण]
प्राण-अपान का सम्बन्ध सरस्वती से है।[अथर्ववेद 7.55]
"सवितुः प्रसवितृभ्यां अश्विनौर्बाहुभ्यां पूष्णोः हस्ताभ्यां" इत्यादि। सविता से सव प्राप्त करना ही अश्विनौ का सर्व बनना है। अश्विनौ उस शक्ति को पूषा रूपी वत्स को देते हैं, जो उस शक्ति का सर्वत्र च्यावयन करता है, उसे वितरित करता है।[ऋग्वेद 10.17.1] 
अश्विना यज्वरीरिषो द्रवपाणी शुभस्पती। पुरुभुजा चनस्यतम्॥
हे विशालबाहो! शुभ कर्म पालक, द्रुत गति से कार्य सम्पन्न करने वाले अश्विनी कुमारो! हमारे द्वारा समर्पित हविष्यान्नों से आप भली प्रकार सन्तुष्ट हों।[ऋग्वेद 1.3.1]
हे विशाल भुजाओं वाले शुभ कार्यों के सम्पादक द्रुत कार्यकारी अश्विद्वय! अनुष्ठान के अन्न से सन्तुष्टि को प्राप्त होओ।
Hey huge armed! Hey  Ashwani Kumars! You perform the auspicious deeds with highspeed-quickly. You should be thoroughly satisfied-content with the offerings containing food grain etc., made by us. 
अश्विना पुरुदंससा नरा शवीरता धिया। धिष्ण्या वनतं गिर:॥
असंख्य कर्मो को संपादित करनेवाले धैर्य धारण करने वाले बुद्धिमान, हे अश्विनी कुमारो! आप अपनी उत्तम बुद्धि से हमारी वाणियों (प्रार्थनाओं को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.3.2]
हे अश्विनी कुमारो! तुम विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने वाले, धैर्य और बुद्धि दो। अतः अपने हृदय से हमारी वंदना पर ध्यान आकर्षित करो।
Hey Ashwani Kumars! You perform millions-unaccountable deeds with patience. Please accept our prayers made with pure heart, through your intellect.
दस्ना युवाकव: सुता नासत्या वृक्तबर्हिष:। आ यातं रुद्रवर्तनी॥
रोगों को विनष्ट करने वाले, सदा सत्य बोलने वाले रूद्र देव के समान (शत्रु संहारक) प्रवृत्ति वाले, दर्शनीय हे अश्विनीकुमारो! आप यहाँ आये और बिछी हुई कुशाओं पर विराजमान होकर प्रस्तुत संस्कारित सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 1.3.3] 
हे शत्रु-संहारक वीरो! तुम झूठ से बचने वाले, दुर्धष रास्ते पर चलने वाले हो। इस छने हुए सोमरस को पीने के लिए यहाँ आ जाओ। 
Hey Ashwani Kumars! You abide by the truth and destroy the diseases & the enemy like Rudr-Bhagwan Shiv. We invite you to come to us and enjoy the Somras by sitting over the mat made with Kush grass.
Dev Raj Indr denied Somras to Ashwani Kumars and grant them the status of main demigods, being the son of Bhagwan Sury-Sun. Chaywan Rishi having being obelised by Ashwani Kumars installed them to the status of full-specific demigods.
अश्विना पिबतं मधु दीद्यग्नी शुचिव्रता। ऋतुना यज्ञवाहसा॥
दिप्तिमान, शुद्ध कर्म करने वाले, ऋतु के अनुसार यज्ञवाहक हे अश्‍विनी कुमारो! आप इस मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.15.11]
अग्नि में प्रकाशमान, नियमों में स्थिर, ऋतु के संग, अनुष्ठान के निर्वाहक अश्विनी कुमारों! इस मधुर सोम पोषण तथा अनुष्ठान का निर्वाह करने वाले हो।
Hey aura bearing, performer of pious deeds, conductor of Yagy as per the season, Ashwani  Kumars! Please drink this Somras.
प्रातर्युजा वि बोधयाश्विनावेह गच्छताम्। अस्य सोमस्य पीतये॥1॥
हे अध्वर्युगण! प्रातःकाल चेतनता को प्राप्त होने वाले अश्‍विनी कुमारों को जगायें। वे हमारे इस यज्ञ में सोमपान करने के निमित्त पधारें।[ऋग्वेद 1.22.1]
है अग्ने! प्रातः काल सचेत होने वाले अश्विनी कुमारों को अनुष्ठान में आने के लिए जगाओ।
अध्वर्यु :: यज्ञ करानेवाले श्रेष्ठ यजुर्वेदी पुरोहित, आचार्य, पुरोधा, कर्मकांडी ब्राह्मण, यजुर्वेद के अनुरूप कर्म करनेवाला, यज्ञ का संपादन करनेवाला; one who holds-conducts Yagy in accordance with Yajur Ved, best among the priests, enchanters of Yajur Ved, best amongest the priests. 
Please wake up Ashwani Kumars, when they are conscious in the morning and invite them to this Yagy to drink Somras.
या सुरथा रथीतमोभा देवा दिविस्पृशा। अश्विना ता हवामहे॥2॥
ये दोनों अश्‍विनी कुमार सुसज्जित रथों से युक्त महान रथी हैं। ये आकाश में गमन करते हैं। इन दोनों का हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.22.2]
[यहाँ मंत्र शक्ति से चालित, आकाश मार्ग से चलने वाले यान (रथ) का उल्लेख किया गया है।]
वे दोनों सुशोभित रथ से परिपूर्ण अतिरथी तथा क्षितिज को स्पर्श करने वाले हैं। हम उनका आह्वान करते हैं।
Ashwani Kumars are great warriors, having chariots (aeroplanes) loaded with arms & weapons, who moves through the sky-space.
या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। तया यज्ञं मिमिक्षतम्॥3॥
हे अश्‍विनी कुमारो! आपकी जो मधुर सत्य वचन युक्त कशा (चाबुक वाणी) है, उससे यज्ञ को सिंचित करने की कृपा करें।[ऋग्वेद 1.22.3]
(वाणी रूपी चाबुक से स्पष्ट होता है कि अश्‍विनी कुमारों के यान मंत्र चालित हैं। मधुर एवं सत्य वचनों से यज्ञ का सिंचन भी किया जाता है। कशा-चाबुक से यज्ञ के सिंचन का भाव अटपटा लगते हुये भी युक्ति संगत है।)
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों का मधुर, प्रिय और सत्य रूपी जो चाबुक है,उसके सहित आकार यज्ञ को सींचो।
Hey Ashwani Kumars! Please nurse our Yagy with your soothing voice, which is like the true whip (coded languages used to move the aeroplane).
नहि वामस्ति दूरके यत्रा रथेन गच्छथः। अश्विना सोमिनो गृहम्॥4॥
हे अश्‍विनी कुमारो! आप रथ पर आरूढ होकर जिस मार्ग से जाते हैं, वहाँ से सोमयाग करने वाले जातक का घर दूर नही हैं।[ऋग्वेद 1.22.4]
(पूर्वोक्त मंत्र में वर्णित यान के तीव्र वेग का वर्णन है।)
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों जिस मार्ग से प्रस्थान करते हो, उससे सोमयाग वाले यजमान का भवन दूर नहीं है।
Hey Ashwani Kumars! The house of the person who is conducting Som Yagy is not far away from the path adopted by you, riding your chariot-aeroplane.
आश्विनावश्वावत्येषा यातं शवीरया। गोमद्दस्रा हिरण्यवत्॥
हे शक्तिशाली अश्‍विनीकुमारों! आप बलशाली अश्वों के साथ अन्नों, गौओं और स्वर्णादि धनों को लेकर यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.30.17]
हे भीषण बल वाले अश्विनी कुमारों! तुम घोड़ों की गति से गौ और स्वर्गादि धन सहित यहां आओ। 
Hey powerful-mighty Ashwani Kumars (sons of Bhagwan Sury)! Please come here with strong-powerful horses, food grains, cows and wealth in the form of gold & jewels.
समानयोजनो हि वां रथो दस्रावमर्त्यः। समुद्रे अश्विनेयते॥
हे अश्‍विनी कुमारों! आप दोनों के लिये जुतने वाला एक ही रथ आकाशमार्ग से जाता है। उसे कोई नष्ट नही कर सकता।[ऋग्वेद 1.30.18]
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों के लिए जुतने वाला एक ही रथ आकाश पथ में चलता है, जिसे कोई नष्ट नहीं कर सकता। 
Hey Ashwani Kumars! The only charoite meant for you, moves through the space-sky and no one can destroy it.
न्यघ्न्यस्य मूर्धनि चक्रं रथस्य येमथुः। परि द्यामन्यदीयते॥
हे अश्‍विनी कुमारों! आप के रथ (पोषण प्रक्रिया) का एक चक्र पृथ्वी के मूर्धा भाग में (पर्यावरण चक्र के रूप में) स्थित है और दूसरा चक्र द्युलोक में सर्वत्र गतिशील है।[ऋग्वेद 1.30.19]
हे अश्विनी कुमारों! तुमने अपने रथ के पहिए को पर्वत पर स्थित किया है तथा दूसरा पहिया अम्बर के चारों ओर चलता है। 
One of the cycles of charoite passes through the heavens and the other one covers the earth, in the form of environment-seasons.
त्रिश्चिन्नो अद्या भवतं नवेदसा विभुर्वां याम उत रातिरश्विना।
युवोर्हि यन्त्रं हिम्येव वाससोऽभ्यायंसेन्या भवतं मनीषिभिः॥
हे ज्ञानी अश्‍विनी कुमारो! आज आप दोनों यहाँ तीन बार (प्रातः, मध्यान्ह, सायं) आयें। आप के रथ और दान बड़े महान है। सर्दी की रात एवं आतप युक्त दिन के समान आप दोनों का परस्पर नित्य सम्बन्ध है। विद्वानों के माध्यम से आप हमें  प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.34.1]
मेधावी अश्विनी कुमारों। यहाँ आज तीन बार आओ। तुम्हारा मार्ग और दान दोनों ही व्यापक हैं। सर्दियों में वस्त्रों के सहारे की भाँति हमको तुम्हारा ही सहारा है। तुम विद्वानों के माध्यम से हमको ग्रहण होओ।
आतप :: गरमी, धूप, दुःख देनेवाला; Sun.
Hey enlightened Ashwani Kumars! Please come here trice a day (morning, noon & the evening). Both of your charity-donations and the chariot are extensive-great. Both of you are related like the winters and warmness-heat during the day. We avail-contact you by means of the learned-scholars. 
त्रयः पवयो मधुवाहने रथे सोमस्य वेनामनु विश्व इद्विदुः।
त्रय स्कम्भास स्कभितास आरभे त्रिर्नक्तं याथस्त्रिर्वश्विना दिवा॥
मधुर सोम को वहन करने वाले रथ में वज्र के समान सुदृढ़ पहिये लगे हैं। सभी लोग आपकी सोम के प्रति तीव्र उत्कंठा को जानते हैं। आपके रथ में अवलम्बन के लिये तीन खम्बे लगे हैं। हे अश्‍विनीकुमारो! आप उस रथ से तीन बार रात्रि में और तीन बार दिन में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 1.34.2]
तुम्हारे मिष्ठान ढ़ोने वाले रथ में तीन पहिए हैं। देवगणों ने यह बात चन्द्रमा की प्यारी पत्नी के विवाह के समय जानी। उसमें सहारे के लिए तीन खम्बे लगे हैं। हे अश्विनी कुमार! तुम उस रथ से रात्रि में तीन-तीन बार गमन करते हो।
The chariot carrying sweet-tasty Somras, is fitted with wheels as strong as Vajr. Everyone knows your desire for Somras. Your chariot has three poles for support. Hey Ashwani Kumars you travel thrice by your chariot during the night.  
समाने अहन्त्रिरवद्यगोहना त्रिरद्य यज्ञं मधुना मिमिक्षतम्।
त्रिर्वाजवतीरिषो अश्‍विना युवं दोषा अस्मभ्यमुषसश्च पिन्वतम्॥
दोषों को ढँकने वाले हे अश्‍विनी कुमारो! आज हमारे यज्ञ में दिन में  तीन बार मधुर रसों से सिंचन करें। प्रातः, मध्यान्ह एवं सांय तीन प्रकार के पुष्टिवर्धक अन्न हमें  प्रदान करें[ऋग्वेद 1.34.3]
हे दोषों के ढकने वाले अश्विनी कुमारों! तुम दिन में तीन बार विशेषकर आज तीन बार यज्ञ को मृदु रस से सींचों और दिन रात में तीन बार हमारे लिए अन्नों की लाओ।
Hey Ashwani Kumars! You hide-cover the defects. Nourish our Yagy with sweet exracts thrice. Give (grant, provide) us with nourishing foods.
त्रिर्वर्तिर्यातं त्रिरनुव्रते जने त्रिः सुप्राव्ये त्रेधेव शिक्षतम्।
त्रिर्नान्द्यं वहतमश्विना युवं त्रिः पृक्षो अस्मे अक्षरेव पिन्वतम्॥
हे अश्‍विनी कुमारो! हमारे घर आप तीन बार आयें। अनुयायी जनों को तीन बार सुरक्षित करें, उन्हें तीन बार तीन विशिष्ट ज्ञान करायें। सुख प्रद पदार्थो को तीन बार हमारी ओर पहुँचाये। बल प्रदायक अन्नों को प्रचुर परिमाण मे देकर हमें सम्पन्न करें[ऋग्वेद 1.34.4]
हे कुमारद्वय! तुम तीन बार हमारे भवन में आओ। तुम अपने अनुयायी व्यक्तियों को तीन बार सुरक्षित करो। हमको तीन बार सुखदायक पदार्थ एवं तीन बार ही दिव्य अन्न प्राप्त कराओ।
Hey Ashwani Kumars! Come to our house thrice. Protect the followers thrice and enlighten them thrice with specific knowledge. Enrich us with comforting goods in sufficient quantity thrice. Enrich us with nourishing food (which enhance-boost power) thrice. 
त्रिर्नो रयिं वहतमश्विना युवं त्रिर्देवताता त्रिरुतावतं धियः।
त्रिः सौभगत्वं त्रिरुत श्रवांसि नस्त्रिष्ठं वां सूरे दुहिता रुहद्रथम्॥
हे अश्‍विनी कुमारो! आप दोनों हमारे लिए तीन बार धन इधर लायें। हमारी बुद्धि को तीन बार देवों की स्तुति में प्रेरित करें। हमें तीन बार सौभाग्य और तीन बार यश प्रदान करें। आप के रथ में सूर्य पुत्री (उषा) विराजमान हैं[ऋग्वेद 1.34.5]
हे अश्विद्व! हमें तीन बार धन प्रदान करो। हमारी वृत्रियों को तीन बार देव की आराधना में प्रेरित करो। हमको सौभाग्य और कीर्ति तीन-तीन बार दो। तुम्हारे रथ पर सूर्य पुत्री (ऊषा) चढ़ी हुई हैं।
Hey Ashwani Kumars! Bring wealth to us thrice. Direct our brain towards the demigods-deities thrice for prayers-enchanting hymns. Grant us good luck and honour thrice. Usha, the daughter of Sun is riding your chariot. 
त्रिर्नो अश्‍विना दिव्यानि भेषजा त्रिः पार्थिवानि त्रिरु दत्तमद्भ्यः।
ओमानं शंयोर्ममकाय सूनवे त्रिधातु शर्म वहतं शुभस्पती॥
हे शुभ कर्म पालक अश्‍विनी कुमारो! आपने तीन बार हमें (द्युस्थानीय) दिव्य औषधियाँ, तीन बार पार्थिव औषधियाँ तथा तीन बार जलौषधियाँ प्रदान की हैं। हमारे पुत्र को श्रेष्ठ सुख और संरक्षण दिया है और तीन धातुओं (वात, पित्त, कफ) से मिलने वाला सुख, आरोग्य एवं ऐश्वर्य प्रदान किया है[ऋग्वेद 1.34.6]
हे अश्विद्ववयः! हमें रोग का विनाश करने वाली औषधियाँ तीन बार दो। पार्थिव औषधियों तीन बार दो। जलों से तीन बार रोगों का नाश करो। हमारी संतान की रक्षा करो तथा हमें सुख प्रदान करो। सब सुखों को तिगुने रूप में हमें प्रदान करो।
Hey the nurturer of virtuous-pious deeds, Ashwani Kumars! You provided-granted us divine medicines, physical medicines and medicines pertaining to water in the upper abodes-heavens. You sheltered our son with excellent comforts-luxuries along with the comforts, good health and amenities from the three factors affecting health (Kaf-cough, Pitt, Vat).
त्रिर्नो अश्‍विना यजता दिवेदिवे परि त्रिधातु पृथिवीमशायतम्।
तिस्रो नासत्या रथ्या परावत आत्मेव वातः स्वसराणि गच्छतम्॥
हे अश्‍विनी कुमारो! आप नित्य तीन बार यजन योग्य हैं। पृथ्वी पर स्थापित वेदी के तीन ओर आसनों पर बैठें। हे असत्य रहित रथारूढ़ देवो! प्राण वायु और आत्मा के समान दूर स्थान से हमारे यज्ञों में तीन बार आयें[ऋग्वेद 1.34.7]
हे अश्विद्वय! तुम प्रति दिन तीन बार पूजन करने के योग्य हो। तुम पृथ्वी पर तीन बार तीन लपटों वाले कुशासन पर जाओ। हे असत्य रहित रथी! आत्मा द्वारा शरीरों को ग्रहण करने के तुल्य तुम तीन यज्ञों को ग्रहण कराओ। 
Hey Ashwani Kumars! You deserve prayers thrice a day. Occupy the cushions around the Yagy Vedi-site covering three sides. Hey truthful demigods riding the chariot, come to us from the place equally away from the life force-energy (Pran Vayu) and the soul, thrice in our Yagy.
त्रिरश्विना सिन्धुभिः सप्तमातृभिस्त्रय आहावास्त्रेधा हविष्कृतम्।
तिस्रः पृथिवीरुपरि प्रवा दिवो नाकं रक्षेथे द्युभिरक्तुभिर्हितम्॥
हे अश्‍विनी कुमारो! सात मातृ भूत नदियों के जलों से तीन बार तीन पात्र भर दिये हैं। हवियों को भी तीन भागों में विभाजित किया है। आकाश में ऊपर गमन करते हुए आप तीनों लोकों की दिन और रात्रि में रक्षा करते हैं[ऋग्वेद 1.34.8]
हे अश्विद्वय! सप्त मातृ भूत जलों द्वारा हमने तीन बार सोमों को सिद्ध किया है। यह तीन कलश भरकर हवि भी तैयार की है। तुम आकाश के ऊपर चलते हुए तीनों लोकों की रक्षा करते हो।
Hey Ashwani Kumars! Three pitchers-urns are filled with the waters obtained from the 7 pious rivers designated as mothers, the offerings have been divided into three parts. You protect the three abodes (heaven, earth, nether world) while passing in the space throughout the day & night.  
क्व त्री चक्रा त्रिवृतो रथस्य क्व त्रयो वन्धुरो ये सनीळाः।
कदा योगो वाजिनो रासभस्य येन यज्ञं नासत्योपयाथः॥
हे सत्य निष्ठ अश्‍विनी कुमारो! आप जिस रथ द्वारा यज्ञ स्थल मे पहुँचते है, उस तीन छोर वाले रथ के तीन चक्र कहाँ हैं? एक ही आधार पर स्थापित होने वाले तीन स्तम्भ कहाँ हैं!? अति शब्द करने वाले बलशाली (अश्व या संचालक यंत्र) को रथ के साथ कब जोड़ा गया था?[ऋग्वेद 1.34.9]
हे अश्विद्वय! जिस रथ के द्वारा तुम अनुष्ठान को ग्रहण होते हो, उस त्रिकोण रथ के तीन पहिये किधर लगे हैं? रथ के आधार भूत तीनों काष्ठ कहाँ हैं? तुम्हारे रथ में शक्तिशाली गर्दभ कब संयुक्त किया जायेगा?
Hey truthful Ashwani Kumars! Where are the three wheels of the triangular chariot in which you reach the site of the Yagy!? Where are the three supporting poles joined to one point. When was the machines (or the horses) producing a lot of sound connected with the chariot!?  
आ नासत्या गच्छतं हूयते हविर्मध्वः पिबतं मधुपेभिरासभिः।
युवोर्हि पूर्वं सवितोषसो रथमृताय चित्रं घृतवन्तमिष्यति॥
हे सत्यशील अश्‍विनी कुमारो! आप यहाँ आएँ। यहाँ हवि की आहुतियाँ दी जा रही हैं। मधु पीने वाले मुखों से मधुर रसों का पान करें। आप के विचित्र पुष्ट रथ को सूर्य देव उषाकाल से पूर्व, यज्ञ के लिए प्रेरित करते है[ऋग्वेद 1.34.10]
हे अश्विद्वय! आओ मैं हव्य देता हूँ। अतः मधुपान करने वाले सुखों से मधुर इवियों को स्वीकार करो। उषाकाल से पूर्व तुम्हारे घृत से युक्त रथ को यज्ञ में आने के लिए प्रेरणा देते हैं।
Hey truthful Ashwani Kumars! Please come here. Offerings are made here (in the Yagy). Enjoy sweet-relishing drinks with the mouth which consumes honey. The Sun (Sury Bhagwan, their father) inspires your amazing chariot prior to the day break for the Yagy.  
आ नासत्या त्रिभिरेकादशैरिह देवेभिर्यातं मधुपेयमश्विना।
प्रायुस्तारिष्टं नी रपांसि मृक्षतं सेधतं द्वेषो भवतं सचाभुवा॥
हे अश्‍विनी कुमारो! आप दोनों तैंतीस देवताओं सहित हमारे इस यज्ञ में मधु पान के लिए पधारें। हमारी आयु बढ़ायें  और हमारे पापों को भली-भाँति विनष्ट करें। हमारे प्रति द्वेष की भावना को समाप्त करके सभी कार्यों में सहायक बने।[ऋग्वेद 1.34.11]
हे असत्य रहित अश्वियो! तुम तैंतीस देवताओं के साथ यहाँ पर आकर मधु पान ग्रहण करो। हमको उम्र प्रदान कर पापों को हटाओ। शत्रुओं को भगाकर हमारे अन्दर निवास करो। 
Hey Ashwani Kumars! Please come to our Yagy along with the 33 major demigods (out of the 33 crore demigods), enjoy honey (or  either wine or Somras)
आ नो अश्‍विना त्रिवृता रथेनार्वाञ्चं रयिं वहतं सुवीरम्।
शृण्वन्ता वामवसे जोहवीमि वृधे च नो भवतं वाजसातौ॥
हे अश्‍विनी कुमारो! त्रिकोण रथ से हमारे लिये उत्तम धन-सामर्थ्यो को वहन करें। हमारी रक्षा के लिए आवाहनों को आप सुने। युद्ध के अवसरों पर हमारी बल-वृद्धि का प्रयास करें[ऋग्वेद 1.34.12]
हे अश्विद्वयों! त्रिकोण रथ द्वारा पराक्रमियों से परिपूर्ण समृद्धि को यहाँ लाओ। तुम्हारा आह्वान करता हूँ। तुम संग्रामों में हमारी शक्ति में वृद्धि करो।
Hey Ashwani Kumars! Please support our requirements (wealth, comforts) through your triangular chariot. Answer our prayers for protection. Enhance our power-might at the occasion of war-fight.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- प्रस्कण्व काण्व, देवता :- अश्‍विनी कुमार,  छन्द :- गायत्री। 
एषो उषा अपूर्व्या व्युच्छति प्रिया दिवः। स्तुषे वामश्विना बृहत्॥
यह प्रिय अपूर्व (अलौकिक) देवी उषा आकाश के तम का नाश करती है। देवी उषा के कार्य में सहयोगी हे अश्‍विनी कुमारो! हम महान स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.46.1]
जो प्रिय उषा पहले दिखाई नहीं दी, वह क्षितिज से प्रकट होती है। हे अश्विनी कुमारों! मैं हृदय में तुम्हारी प्रार्थना करता हूँ।
This fresh-new Usha (day break, Sun rise, first rays of light) removes the darkness from the sky. Usha Devi is helpful in your endeavours. Hey Ashwani Kumars! We pray-worship you with the help of  great-revered hymns. 
या दस्रा सिन्धुमातरा मनोतरा रयीणाम्। धिया देवा वसुविदा॥
हे अश्‍विनी कुमारो! आप शत्रुओं के नाशक एवं नदियों के उत्पत्तिकर्ता है। आप विवेकपूर्वक कर्म करने वालों को अपार सम्पति देने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.46.2]
जो समुद्र में रचित हृदय से समृद्धि का उत्पादन करने वाले तथा ध्यान से धनों के ज्ञाता हैं, उनका पूजन करता हूँ। 
Hey Ashwani Kumars! You are the destroyer of enemies-evil and producer of rivers. The person who perform prudently, is blessed-granted amenities, comforts by you.
वच्यन्ते वां ककुहासो जूर्णायामधि विष्टपि। यद्वां रथो विभिष्पतात्॥
हे अश्‍विनी कुमारो! जब आपका रथ पक्षियों की तरह आकाश में पहुँचता है, तब प्रशंसनीय स्वर्गलोक में भी आप के लिये स्तोत्रों का पाठ किया जाता है।[ऋग्वेद 1.46.3]
हे अश्विद्वय! जब तुम्हारा रथ अंतरिक्ष में जाता है, तुम्हारी सब वंदनायें करते हैं।
Hey Ashwani Kumars! When your chariot reaches the sky like birds, prayers are held even in the appreciable heavens with the help of revered hymns.  
हविषा जारो अपां पिपर्ति पपुरिर्नरा। पिता कुटस्य चर्षणिः॥
हे देव पुरुषो! जलों को सुखाने वाले, पिता रूप, कार्य द्रष्टा सूर्यदेव (हमारे द्वारा प्रदत्त) हवि से आपको संतुष्ट करते हैं अर्थात सूर्यदेव प्राणि मात्र के  पोषण ले लिए अन्नादि पदार्थ उत्पन्न करके प्रकृति के विराट यज्ञ में आहुति दे रहे हैं।[ऋग्वेद 1.46.4]
हे व्यक्तियों! जलों से स्नेह करने वाले धन पूरक, ग्रह पालक और दृष्टा अग्नि हमारी हवि से तुम्हें परिपूर्ण करते हैं।
Hey divine humans-demigods-deities! Sun who dries the water bodies, is like father and perceives every activity, satisfies you with offerings.
Ashwani Kumars are the Sun of Sun.
No life is possible on earth, since vegetation produces food for all creatures & need Sun light. Chlorophyll present in the leaves of the plants produces food. Rays of Sun evaporate water, which turn into rain showers. Some of this water decomposed and reaches back to Sun to work as fuel for the Sun. 
आदारो वां मतीनां नासत्या मतवचसा। पातं सोमस्य धृष्णुया॥
असत्यहीन, मनन पूर्वक वचन बोलने वाले हे अश्‍विनी कुमारो! आप अपनी बुद्धि को प्रेरित करने वाले एवं संघर्ष शक्ति बढ़ाने वाले इस सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 1.46.5]
हे मिथ्यात्व रहित अश्विद्वयों! हमारे आदर पूर्वक वचनों को स्वीकार करते हुए, प्रार्थनाओं द्वारा प्रेरित सोम को नि:शंक ग्रहण करो।
Hey truthful, prudent Ashwani Kumars! Please accept this Somras, which boosts intelligence and physical strength-power to counter evils.
या नः पीपरदश्विना ज्योतिष्मती तमस्तिरः। तामस्मे रासाथामिषम्॥
हे अश्‍विनी कुमारो! जो पोषक अन्न हमारे जीवन के अंधकार को दूर कर प्रकाशित करने वाला हो, वह हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.46.6]
हे अश्विनी कुमारो! दीप्ति से परिपूर्ण और अन्धेरे से अलग धन को हमारे पोषणार्थ प्रदान करो। 
Hey Ashwani Kumars ! Grant us the food which nourishes us and keeps our lives away from darkness.
Money-riches are used to buy food grains to obtain nourishment.
आ नो नावा मतीनां यातं पाराय गन्तवे। युञ्जाथामश्विना रथम्॥
हे अश्‍विनी कुमारों! आप दोनों अपना रथ नियोजितकर हमारे पास आयें। अपनी श्रेष्ठ बुद्धि से हमें दुःखों के सागर से पार ले चलें।[ऋग्वेद 1.46.7]
हे अश्विनी कुमारों! हमारी वंदनाओं के स्नेहपूर्ण पाश में बंधकर हमको समुद्र रूपी कष्टों से पार करो। अपने रथ में अश्वों को जोड़ो।
Hey Ashwani Kumars! Deploy your horses in your chariot and come to us to free us from pain, sorrow, worries with the help of your excellent intellect-genius. 
अरित्रं वां दिवस्पृथु तीर्थे सिन्धूनां रथः। धिया युयुज्र इन्दवः॥
हे अश्‍विनी कुमारों! आपके आवागमन के साधन द्युलोक (की सीमा) से भी विस्तृत हैं। (तीनों लोकों में आपकी गति है।) नदियों, तीर्थ प्रदेशों में भी आपके साधन है, (पृथ्वी पर भी) आपके लिये रथ तैयार है। (आप किसी भी साधन से पहुँचने में समर्थ हैं।) आप के लिये यहाँ विचारयुक्त कर्म द्वारा सोमरस तैयार किया गया है।[ऋग्वेद 1.46.8]
हे अश्विनी कुमारो! तुम्हारा जहाज समुद्र से भी विशाल है। समुद्र के किनारे पर तुम्हारा रथ खड़ा है तथा यहाँ सोम रस भी तैयार है। 
Hey Ashwani Kumars! You are capable of reaching even beyond the boundaries of heavens. You have means for navigation in the rivers and the ocean as well. Please come to us to enjoy Somras which has been duly extracted methodically.
दिवस्कण्वास इन्दवो वसु सिन्धूनां पदे। स्वं वव्रिं कुह धित्सथः॥
कण्व वंशजों द्वारा तैयार सोम दिव्यता से परिपूर्ण है। नदियों के तट पर ऐश्वर्य रखा है। हे अश्‍विनी कुमारो! अब आप अपना स्वरूप कहाँ प्रदर्शित करना चाहते हैं?[ऋग्वेद 1.46.9]
हे कण्व वंशियों! सोम दिव्य गुणों से परिपूर्ण हुआ है। समुद्र के किनारे पर ऐश्वर्य है।
The extract-Somras produced by the descendants of Kavy Rishi, full of divinity, is stocked at the river bank, sea shore. Hey Ashwani Kumars! Please come and oblige us. 
अभूदु भा उ अंशवे हिरण्यं प्रति सूर्यः। व्यख्यज्जिह्वयासितः॥
अमृतमयी किरणों वाले हे सूर्यदेव! अपनी आभा से आप स्वर्णतुल्य प्रतीत हो रहे हैं। इसी समय श्यामल अग्निदेव, ज्वालारूप जिह्वा से विशेष प्रकाशित हो चुके हैं। हे अश्‍विनी कुमारो! यही आपके शुभागमन का समय है।[ऋग्वेद 1.46.10]
हे अश्विद्वय! तुम अपना स्वरूप कहाँ रखना चाहते हो? उषा काल में सूरज सोने की आभा युक्त ज्योतिर्मय हो गया। अग्नि श्याम रंग का होता हुआ अपनी लपट रूप जिह्वा से प्रकट होने लगा। 
Hey Sury Narayan-Sun! You are appearing like glittering gold due to your bright-golden rays. The greyish Agni Dev has evolved with his flames. Hey Ashwani Kumars! This is the most appropriate-oppotunate time for your arrival.
In the morning the household ignite wood for preparing food and the fire produces smoke which is greyish.
अभूदु पारमेतवे पन्था ऋतस्य साधुया। अदर्शि वि स्रुतिर्दिवः॥
द्युलोक से अंधकार को पार करती हुई, विशिष्ट प्रभा प्रकट होने लगी है, जिससे यज्ञ के मार्ग अच्छी तरह से प्रकाशित हुए हैं। अतः हे अश्‍विनीकुमारो! आपको आना चाहिये।[ऋग्वेद 1.46.11]
पार जाने के लिए यज्ञ रूप श्रेष्ठ मार्ग है। उसमें से निकलती हुई आकाश की पगडंडी दिखाई दे रही है। 
The aura is appearing from the heavens lightening the path. The site of Yagy is visible properly. Hey Ashwani Kumars! Please come.
Yagy is one of the means of achieving greatness, heavens. It may help in achieving Moksh (Salvation, assimilation in the God, Liberation, emancipation).
तत्तदिदश्विनोरवो जरिता प्रति भूषति। मदे सोमस्य पिप्रतोः॥
सोम के हर्ष से पूर्ण होने वाले अश्‍विनी कुमारो के उत्तम संरक्षण का स्तोतागण भली प्रकार वर्णन करते हैं।[ऋग्वेद 1.46.12]
स्तोता सोम के आनंद से परिपूर्ण करने वाले अश्विदेवों की रक्षा की बार-बार सराहना दो। 
Those praying to Ashwani Kumars appreciate the shelter, protection, asylum granted to them, who are happy with the right to accept Somras.
वावसाना विवस्वति सोमस्य पीत्या गिरा। मनुष्वच्छम्भू आ गतम्॥
हे दीप्तिमान (यजमानों के) मन में निवास करने वाले, सुखदायक अश्‍विनी कुमारो! मनु के समान श्रेष्ठ परिचर्या करने वाले यजमान के समीप निवास करने वाले (सुखप्रदान करने वाले हे अश्‍विनीकुमारो!) आप दोनों सोमपान के निमित्त एवं स्तुतियों के निमित्त इस याग में पधारें।[ऋग्वेद 1.46.13]
हे प्रकाशमय आकाश के निवासी सुखदायक अश्विनी कुमारो! मनु की प्रार्थनाओं से उनको प्राप्त होने के समान हमारी वंदना से हमको प्राप्त होओ। 
Hey aura possessing Ashwani Kumars! You acquire the hearts of the hosts like Manu Maharaj. Both of you should come to us and enjoy Somras & listen to the divine hymns-prayers.
युवोरुषा अनु श्रियं परिज्मनोरुपाचरत्। ऋता वनथो अक्तुभिः॥
हे अश्‍विनी कुमारो! चारों ओर गमन करने वाले आप दोनों की शोभा के पीछे-पीछे देवी उषा अनुगमन कर रहीं हैं। आप रात्रि में भी यज्ञों का सेवन करते हैं।[ऋग्वेद 1.46.14]
हे अश्विद्वय! तुम चारों ओर विचरण करने वालों की शोभा के पीछे-पीछे उषा फिर रही है। तुम रात्रि में हवियों की कामना करो। 
Hey Ashwani Kumars! You move in all the 10 directions followed by Usha. You accept the offerings at night as well.
उभा पिबतमश्विनोभा नः शर्म यच्छतम्। अविद्रियाभिरूतिभिः॥
हे अश्‍विनी कुमारो! आप दोनों सोमरस का पान करें। आलस्य न करते हुये हमारी रक्षा करें तथा हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.46.15]
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों सोमपान करते हुए अपनी रक्षाओं से हमको सुख प्रदान करो।
Hey Ashwani Kumars! Both of you enjoy Somras. Protect us without laziness and grant us pleasure-happiness.
Being considered inferior, Ashwani Kumars were not entitled to drink Somras. Chayvan Rishi on being rejuvenated by them granted them the right to enjoy Somras, on the strength of his asceticism.
ऋग्वेद संहिता,  प्रथम मंडल सूक्त 47 :: ऋषि :- प्रस्कण्व कण्व, देवता :- अश्‍विनी कुमार,  छन्द :- बाहर्त प्रगाथ (विषमा बृहती, समासतो बृहती)।
अयं वां मधुमत्तमः सुतः सोम ऋतावृधा।
तमश्विना पिबतं तिरोअह्न्यं धत्तं रत्नानि दाशुषे॥
हे यज्ञ कर्म का विस्तार करने वाले अश्‍विनी कुमारो! अपने इस यज्ञ में अत्यन्त मधुर तथा एक दिन पूर्व शोधित सोमरस का आप सेवन करें। यज्ञकर्ता यजमान को रत्न एवं ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.47.1]
ये यज्ञ वर्द्धक अश्विनी कुमारो! यह अत्यन्त मधुर सोम तुम्हारे लिए निचोड़ा गया है। उसको पियो और हविदाता को रत्नादि धन प्रदान करो। 
Hey Yagy promoting-extending Ashwani Kumars! This sweet-tasty Somras has been extracted for you. Accept this and grant riches, comforts, amenities to the hosts-household conducting-performing Yagy.
त्रिवन्धुरेण त्रिवृता सुपेशसा रथेना यातमश्विना।
कण्वासो वां ब्रह्म कृण्वन्त्यध्वरे तेषां सु शृणुतं हवम्॥
हे अश्‍विनी कुमारो! तीन वृत्त युक्त (त्रिकोण), तीन अवलम्बन वाले अति सुशोभित रथ से यहाँ आयें। यज्ञ में कण्व वंशज आप दोनों के लिए मंत्र युक्त स्तुतियाँ करते हैं, उनके आवाहन को सुनें।[ऋग्वेद 1.47.2]
हे अश्विद्वय! अपने तीन काठों से परिपूर्ण त्रिकोण सुन्दर रथ से हमको ग्रहण होओ। यह कण्ववंशी अपने अनुष्ठान में मंत्र परिपूर्ण वंदनाएँ अर्पण करते हैं, उनको ध्यान पूर्वक सुनो।
Hey Ashwani Kumars come here, riding your three dimentional beautiful-glorious chariot. The descendents of Kavy are making prayers to you with decent hymns. Please listen to these hymns, recitations in the form of Mantr.
अश्विना मधुमत्तमं पातं सोममृतावृधा।
अथाद्य दस्रा वसु बिभ्रता रथे दाश्वांसमुप गच्छतम्॥
हे शत्रु नाशक, यज्ञ वर्द्धक अश्‍विनी कुमारो! अत्यन्त मीठे सोमरस का पान करें। आज रथ में धनों को धारण कर हविदाता यजमान के समीप आयें।[ऋग्वेद 1.47.3]
हे यज्ञ वर्द्धक विकराल अश्विनी कुमारों! तुम मधुर सोमरस का पान करो। फिर अपने रथ में धनों को धारण करते हुए हविदाता की ओर पधारो।
Hey Yagy protector, enemy slayer Ashwani Kumars! Enjoy the extremely sweet-relishing Somras. Please come to the hosts with wealth for them. 
त्रिषधस्थे बर्हिषि विश्ववेदसा मध्वा यज्ञं मिमिक्षतम्।
कण्वासो वां सुतसोमा अभिद्यवो युवां हवन्ते अश्विना॥
हे सर्वज्ञ अश्‍विनी कुमारो! तीन स्थानों पर रखे हुए कुश-आसन पर अधिष्ठित होकर आप यज्ञ का सिंचन करें। स्वर्ग की कामना वाले कण्व वंशज सोम को अभिषुत कर आप दोनों को बुलातें हैं।[ऋग्वेद 1.47.4]
हे सर्वज्ञाता अश्विद्वय! तीन स्थानों में रखे हुए कुश पर विराजमान होकर मधु रस से यज्ञ का संचालन करो। स्वर्ग की अभिलाषा से सोम को निष्पन्न करने वाले कण्ववंशी तुम्हारा आह्वान करते हैं। 
Hey all knowing-enlightened Ashwani Kumars! Please occupy the Kush Asan-cushions placed at three points-locations and complete this Yagy. The descendents of Kavy, desirous heavens are calling-requesting you.
याभिः कण्वमभिष्टिभिः प्रावतं युवमश्विना।
ताभिः ष्वस्माँ अवतं शुभस्पती पातं सोममृतावृधा॥
यज्ञ को बढ़ाने वाले शुभ कर्मो के पोषक, हे अश्‍विनी कुमारो! आप दोनों ने जिन इच्छित रक्षण-साधनों से कण्व की भली प्रकार रक्षा की, उन साधनों से हमारी भी भली प्रकार रक्षा करें और प्रस्तुत सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 1.47.5]
हे अनुष्ठान वर्द्धक सुकर्मों का पालन करने वाले अश्विद्वय! जिन साधनों से तुमने कण्व की सुरक्षा की थी, उनसे हमारी भी सुरक्षा करो और इस सोम रस का पान करो।
Hey protector of auspicious acts-endeavours, Ashwani Kumars! The way you protected Kavy, protected us as well. Here is the Somras ready to be enjoyed by you. 
सुदासे दस्रा वसु बिभ्रता रथे पृक्षो वहतमश्विना।
रयिं समुद्रादुत वा दिवस्पर्यस्मे धत्तं पुरुस्पृहम्॥
शत्रुओं के लिए उग्ररूप धारण करने वाले हे अश्‍विनी कुमारो! रथ में धनों को धारण कर आपने सुदास को अन्न पहुँचाया। उसी प्रकार अन्तरिक्ष या सागरों से लाकर बहुतों द्वारा वाञ्छित धन हमारे लिए प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.47.6]
हें उग्र कर्मा अश्विद्वय! रथ में धन को धारण कर तुमने सुदास नामक सम्राट को अन्न पहुँचाया। उसी प्रकार अंतरिक्ष या क्षितिज से अनेक कामना योग्य धन हमारे लिए स्थापित करो। 
Hey Ashwani Kumars! You become ferocious for the enemy. You delivered various kinds of jewels in your chariot either from the space or the ocean, to have food grains to king Sudas (to support his populace during scarcity).
यन्नासत्या परावति यद्वा स्थो अधि तुर्वशे।
अतो रथेन सुवृता न आ गतं साकं सूर्यस्य रश्मिभिः॥
हे सत्य समर्थक अश्‍विनी कुमारो! आप दूर हो या पास हों, वहाँ से उत्तम गतिमान रथ से सूर्य रश्मियों के साथ हमारे पास आयें।[ऋग्वेद 1.47.7]
हे असत्य रहित अश्विद्वय! तुम दूर हो या निकट, सूर्य की किरणों के साथ घूमने वाले रथ से हमको प्राप्त हो जाओ। 
Hey supportor of truth, Ashwani Kumars! Where ever you are, far or wide, please come to us in your accelarated chariot, with the rays of Sun light.
अर्वाञ्चा वां सप्तयोऽध्वरश्रियो वहन्तु सवनेदुप।
इषं पृञ्चन्ता सुकृते सुदानव आ बर्हिः सीदतं नरा॥
हे देव पुरुषो, अश्‍विनी कुमारो! यज्ञ की शोभा बढ़ाने वाले आपके अश्व आप दोनों को सोमयाग के समीप ले आयें। उत्तम कर्म करनेवाले और दान देने वाले याजकों के लिये अन्नों की पूर्ति करते हुए आप दोनों कुश के आसनों पर बैठें।[ऋग्वेद 1.47.8]
हे पुरुषों! यज्ञ में जाने वाले अश्व सोम याग में तुम्हें हमारे सम्मुख ले आयें। श्रेष्ठ कार्य और दान वाले यजमान को ताकत से युक्त करते हुए तुम कुश के आसनों पर विराजो। 
Hey divine beings, Ashwani Kumars! The decorated horses which increases the glory of the Yagy, should bring both of you to the site of the Yagy. Please occupy the seats while granting best food grains to the performer of the Yagy who perform excellent deeds and make donations.
तेन नासत्या गतं रथेन सूर्यत्वचा।
येन शश्वदूहथुर्दाशुषे वसु मध्वः सोमस्य पीतये॥
हे सत्य समर्थक अश्‍विनी कुमारो! सूर्य सदृश तेजस्वी जिस रथ से दाता याजकों के लिए सदैव धन लाकर देते रहे हैं, उसी रथ से आप मीठे सोमरस पान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 1.47.9]
हे असत्य रहित अश्विद्वय! जिस रथ से तुमने हविदाता को निरन्तर धन प्रदान किया है, उसी से सोमों का पान करने हेतु यहाँ पर विराजमान होओ। 
Hey truthful Ashwani Kumars! The glorious chariot in which you bring riches to the donor hosts conducting Yagy, be used by you come and drink the sweet-relishing Somras.
उक्थेभिरर्वागवसे पुरूवसू अर्कैश्च नि ह्वयामहे।
शश्वत्कण्वानां सदसि प्रिये हि कं सोमं पपथुरश्विना॥
हे विपुल धन वाले अश्‍विनी कुमारो! अपनी रक्षा के निमित्त हम स्तोत्रों और पूजा-अर्चनाओं से बार-बार आपका आवाहन करते हैं। कण्व वंशजों की यज्ञ सभा में आप सर्वदा सोमपान करते रहे हैं।[ऋग्वेद 1.47.10]
हे समृद्धिशाली अश्विद्वय! सुरक्षा के लिये श्लोकों से हम बार-बार आह्वान करते हैं। कण्व वंशियों के समाज में तुम सोमपान करते रहे, यह प्रसिद्ध ही है।
Hey possessor of unlimited wealth, Ashwani Kumars! We pray-worship you with the help of hymns, recitation again and again. You have been enjoying Somras in the company of the descendents of Kavy, its well knows.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (112) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- द्यावा, पृथिवी, अग्रि, अश्विनी कुमार,  छंद :- जगती, त्रिष्टुप्। 
ईळे द्यावापृथिवी पूर्वचित्तयेऽग्निं धर्म सुरुचं यामन्निष्टये। 
याभिर्भरे कारमंशाय जिन्वथस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
अश्विनी कुमारों को पहले बताने के लिए द्यावा-पृथ्वी की मैं स्तुति करता हूँ। इन दोनों के आने पर उनकी पूजा के लिए प्रदीप्त और शोभन कान्ति से युक्त अग्निदेव की स्तुति करता हूँ। हे अश्विद्रय! आप लोग युद्ध में अपना भाग पाने के लिए जिन सब उपायों के साथ शंख बजाते हैं, उन सभी उपायों के साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.1]
मैं चैतन्य के लिए क्षितिज धरा की वंदना करता हूँ। फिर अश्विनी कुमारों के शीघ्र आगमन के लिए महान कान्ति से परिपूर्ण अग्नि का पूजन करता हूँ। हे अश्विनों! जिस सुन्दर सुरक्षा साधनों से युद्ध में धन जीत कर प्रदान करते हो, उनके संग यहाँ विराजो।
I pray to Prathvi-the Earth to reveal-explain to Ashwani Kumars, my concern. I pray to Agni Dev who has aura on the arrival of Ashwani Kumars. Hey Ashwani Kumars! You blow conch in the war to receive your share. Please come here with all those methods-procedures which  can grant us the money won in the war.
युवोर्दानाय सुभरा असश्चतो रथमा तस्थुर्वचसं न मन्तवे। 
याभिर्धियोऽवथः कर्मन्निष्टये ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
जिस प्रकार न्याय वाक्यों से युक्त पण्डित के पास शिक्षा के लिए लोग जाते हैं, हे अश्विद्वय! वैसे ही अन्य देवों में अनासक्त स्तोता लोग शोभन स्तुति के साथ अनुग्रह प्राप्ति की आशा में आपके रथ के पास आकर खड़े होते हैं। हे अश्विद्वय! आप लोग जिन उपायों के साथ यज्ञ सम्पादन के लिए बुद्धिमान लोगों की रक्षा करते हैं, उन उपायों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.2]
हे अश्विनी कुमारो! जैसे कर्मों में सम्पत्ति के लिए महापुरुषों के सभी ओर खड़े रहते हैं, वैसे ही तुम्हारे रथ के चारों ओर खड़े रहकर स्तोताजन गान के योग्य श्लोकों के साथ स्थिर होते हैं। जिन रक्षा के साधनों को अभिष्ट सिद्धि के लिए प्रेरित करते हो। उनके साथ यहाँ आ जाओ।
The worshippers-devotees continue standing by the side of your chariot to seek favours, like the learned-enlightened people, who visit the Pandits (scholars, enlightened people, philosophers) to seek blessing and Gyan-knowledge. Please come to protect us and use those means utilised by you to save the populace.  
युवं तासां दिव्यस्य प्रशासने विशां क्षयथो अमृतस्य मज्पनाँ। 
याभिर्धेनुमस्वं पिन्वथो नरा ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे नेतृद्वय! आप दोनों दिव्य लोक में निर्मित हुए सोमरस के पान से अमर और बलशाली बनें और उसी बल से इन सभी प्रजाजनों पर शासन भी करते रहें। आपने जिन चिकित्सा प्रणाली से सन्तान न देने वाली अर्थात् बन्ध्या गौओं को प्रजनन योग्य हृष्ट-पुष्ट और दूध देने वाली बनाया, उन संरक्षण साधनों के साथ आप हमारे यहाँ निश्चित रूप से पधारें।[ऋग्वेद 1.112.3]
हे अश्विनी कुमारों! तुम क्षितिजस्त अमृत की शक्ति से प्रजाओं पर राज्य करने में समर्थ हो। जिस प्रकार से तुमने वन्धया गौओं को दूध से परिपूर्ण किया, उनके संग पधारो।
Hey leader deo-Ashwani Kumars! You should become immortal, strong and gain strength by drinking the Somras extracted in divine abodes. Protect and rule the populace with this might attained by you. You made the cows fertile, strong and to be Milch. Please come to us with all these means, methods, procedures adopted do all this.
याभिः परिज्या तनयस्य मज्यना द्विमाता तूर्षु तरणिर्विभूषति। याभिस्त्रिमन्तुरभवद्विचक्षणस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
दो माताओं (अरणियों) से उत्पन्न वायुदेव और अग्निदेव गति युक्त होकर शोभायमान होते हैं तथा कक्षीवान् ऋषि जिन तीन साधनारूपी यज्ञों से ज्ञानयुक्त हुए, हे अश्विनी कुमारों आप उन रक्षा कारणों से हमारे पास पधारे।[ऋग्वेद 1.112.4]
हे अश्विनो! जिन उपायों से द्विमातृक अग्नि पुत्र यजमान के पराक्रम से उत्पन्न होकर तेज से सुशोभित होते हैं तथा जिन उपायों से "कक्षीवान्" तीन यज्ञों के ज्ञाता महापुरुष हुए, उन उपायों के साथ यहाँ आओ।
Please visit us with those methods-means, with which Agni Dev-Fire & the Pawan Dev-Air got honours, having born out of two woods & Rishi Kakshivan attained enlightened by conducting three Yagy in the form of rigorous practices.
याभी रेभं निवृतं सित मद्भ्य उद्वन्दनमैरयतं स्वर्दृशे। 
याभिः कण्वं प्र सिषासन्तमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्
हे अश्विद्वय! जिन उपायों से आप लोगों ने असुरों द्वारा कुएँ में फेंके हुए व पाश से बँधे हुए रेभ नामक ऋषि को तथा बन्दन नाम के ऋषि को भी जल से बचाया था। जिस प्रकार साधना में रत कण्व ऋषि को संरक्षण साधनों द्वारा उचित रीति से सामर्थ्यवान् बनाया, उन्हीं संरक्षण युक्त साधनों के साथ आप हमारे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.5]
हे अश्विदेवो! जिन उपायों से कुएँ में पड़े हुए बन्धन परिपूर्ण "रेभ" ऋषि को जल से बाहर निकाला और इसी प्रकार "वन्दन" ऋषि को बचाया तथा जिन उपायों से कण्व ऋषि की सुरक्षा की, उनके साथ यहाँ पधारो।
Hey Ashwani deo! Please come to us with the means, methods, procedures with which you brought out the Rishis named Bandan & Rebh, who were tied by the demons with ropes and thrown into the well and you made Kavy Rishi strong and capable, who was busy with meditation-ascetics. 
याभिरन्तकं जसमानमारणे भुज्युं याभिरव्यथिभिर्जिजिन्वथुः। 
याभिः कर्कन्धुं  वय्यं  च जिन्वथस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्
कुँए में फेंककर असुर लोग जिस समय अन्तक नाम के राजर्षि की हिंसा कर रहे थे, उस समय आप लोगों ने जिन उपायों द्वारा उनकी रक्षा की थी, जिस कड़ी मेहनत से तुग्र पुत्र भुज्यु को सुरक्षित किया तथा असुरों द्वारा पीड़ित कर्कन्धु और वय्य नाम के मनुष्यों की रक्षा की थी, उनके साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.6]
हे अश्विदेवो! जिन साधनों से कुएँ में डालकर हिंसा किये जाते अंतक ऋषियों को बचाया, समुद्र में पड़े भुज्यु की रक्षा की, कर्कन्ध और वय्य की रक्षा की उन साधनों के साथ यहाँ पर पधारो।
Hey Ashwani deo! Please come to us with the means, methods, procedures with which you saved Antak-the Rajrishi, who was thrown into the well & tortured by the demons, protected Bhujyu-the son of Tugr and Karkandhu & Vayy-named humans.
याभिः शुचन्तिं धनसां सुषंसदं तप्तं घर्ममोम्यावन्तमत्रये। 
यभिः पृश्निगुं पुरुकुत्समावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे अश्विनी कुमारों! जिन उपायों द्वारा शुचन्ति नामक व्यक्ति को धन और शोभन गृह प्रदान किया व अत्रि ऋषि के लिए तपते हुए कारागार को शीतल किया तथा पृश्निगु व पुरुकुत्स की रक्षा की, आप उन्हीं सुरक्षा साधनों से युक्त होकर हमारे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.7]
हे अश्विदेवो! जिन साधनों से सुचिति को श्रेष्ठ धन और निवास दिया, अत्रि को दग्घ करने वाली अग्नि के ताप से बचाया, पृश्निगु और पुरुकुत्स की सुरक्षा उनके लिए पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you provided wealth & comfortable house to Shuchanti, cooled the hot prison for Atri Rishi, protected Prashnigu & Purukuts.
याभिः शचीभिर्वृषणा परावृजं प्रान्धं श्रोणं चक्षस एतवे कृथः। 
याभिर्वर्तिकां ग्रसिताममुञ्चतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे अभीष्ट वर्षिद्वय! आपने परावृज ऋषि, ऋजाश्च और श्रोण को दृष्टि और पैर प्रदत्त किये, भेड़िये द्वारा मुख में पकड़ी हुई एवं दाँतों से घायल चिड़िया को अपनी शक्ति से छुड़ाकर से आरोग्यता की, उन आरोग्यप्रद चिकित्सा साधनों के साथ आप हमारे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.8]
हे अश्विदेवो! जिन शक्तियों से अंधे, लूले, परावृज को आँखें और पाँव प्रदान किये, जिन साधनों में भेड़िये द्वारा ग्रसित “बेटरी" की सुरक्षा की, उनके परिपूर्ण यहाँ पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you gave eye sight and legs to Pravraj Rishi, Rijashch & Shron, released the bird caught by the wolf in his mouth and granted it good health.
याभिः सिन्धुं मधुमन्तमसश्चतं वसिष्ठं यभिरजरावजिन्वतम्। 
याभिः कुत्सं श्रुतर्यं नर्यमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्॥
हे अजर अश्विनी कुमारों! जिन उपायों द्वारा मधुमयी नदी को प्रवाहित किया, जिन उपायों द्वारा वसिष्ठ, कुत्स, श्रुतर्य तथा नर्य नाम के ऋषियों की शत्रुओं से रक्षा की उन्हीं संरक्षक साधनों के साथ हमारे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.9]
हे अजर अश्विदेवो! जिन साधनों से आपने मधुमयी नदी को बहा दिया। जिन साधनों से वशिष्ठ, कुत्स और क्षुतर्थ की रक्षा की, उनके साथ यहाँ आओ। 
Hey immortal Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you cleared the flow of Madhumayi river, protected Vashishth, Kuts, Rutary and Nary Rishi. 
याभिर्विश्पलां धनसामथव्र्यं सहस्रमीळ्ह आजावजिन्वतम्। 
याभिर्वशमश्र्व्यं प्रेणिमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
हे अश्विनी कुमारों! जिस शक्ति से आप दोनों ने सहस्रों वीरों द्वारा लड़े जा रहे युद्धभूमि में अथर्वकुल में उत्पन्न धनदात्री विश्पला की सहायता की और प्रेरणाप्रद अश्वराज के पुत्र वश ऋषि को सुरक्षित किया। आप उन्हीं रक्षा साधनों से यहाँ पधारो।[ऋग्वेद 1.112.10]
हे अश्विद्वय! जिन साधनों से धन की इच्छा करने वाले और पेंगु विश्पला! को असंख्य धन देने वाले युद्ध में जाने की शक्ति दी। जिन साधनों से स्तुति करते हुए अश्वराज के पुत्र “वश" ऋषि की रक्षा की, उनके साथ यहाँ आओ। 
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you helped Dhandatri Vishpala, born in Atharv clan who was fighting with hundreds of warriors and saved the son of Ashvraj called Rishi.
याभिः सुदानू औशिजाय वणिजे दीर्घश्रवसे मधु कोशो अक्षरत्। 
कक्षीवन्तं स्तोतारं याभिरावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्र्विना गतम्॥
हे दानशील अश्विनी कुमारों! जिन उपायों द्वारा दीर्घतमा की उशिकू नामक स्त्री के पुत्र वणिक वृत्ति दीर्घश्रवा को मेघ से जल प्रदान किया था और उशिकू के पुत्र स्तोता कक्षीवान् की रक्षा की उनके साथ यहाँ पधारे।[ऋग्वेद 1.112.11]
हे कल्याणकारी अश्विद्वय! जिन साधनों से वर्णकर (वैश्य) उशिज के पुत्र दीर्घश्रवा के लिए वर्षा की तथा जिनके वंदनाकारी कक्षीवान की सुरक्षा की, उनके संग पधारो।
Hey Ashwani Kumars inclined to charity-donations! Please come to us with the means, methods, procedures with which you gave rain water to the son of Dirghtma born out of the woman named Ushiku, named Vanik Vrati and protected Stota Kashivan son of Ushiku.
याभी रसां क्षोदसोद्नः पिपिन्वथुरनश्र्वं याभा रथमावतं जिषे। 
याभिस्त्रिशोक उस्त्रिया उदाजत ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
हे अश्विनी कुमारों! जिन उपायों द्वारा नदियों के तटों को जल से परिपूर्ण किया और अपने अश्व रहित रथ को विजय के लिए चलाया तथा आपके जिन उपायों से कण्वपुत्र त्रिशोक नामक ऋषि ने अपनी अपहृत गौ को प्राप्त किया, उन उपायों के साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.12]
हे अश्विद्वय! जिन साधनों से नदी किनारे को तुमने जलों से परिपू किया, जिन साधनों के बिना अश्वों के रथ को चलाया तथा जिन साधनों से त्रिशोक ने धेनुओं को हाँकने की शिक्षा पायी, उनके संग पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you filled the rivers with water, drove your chariote which did not have horses for victory and helped the Son of Kavy Rishi Trishok recovered his abducted cow.
याभिः सूर्यं परियाथः परावति मन्धातारं क्षैत्रपत्येष्वावतम्। 
याभिर्विप्रं प्र भरद्वाजमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
जिन उपायों द्वारा दूर स्थित सूर्य के पास उन्हें ग्रहण के अन्धकार से मुक्त करने के लिए जाते हैं। जिस प्रकार से क्षेत्रपति के कार्य में मान्धाता राजर्षि की रक्षा की और जिन उपायों द्वारा अन्नदान कर भरद्वाज ऋषि की रक्षा की, उनके साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.13]
हे अश्द्वियों! जिन साधनों से दूरवर्ती सूर्य को प्राप्त होते हो, जिन उपायों से मान्धाता की क्षेत्रपति के कार्य में रक्षा की और भरद्वाज ऋषि को जिन उपायों से बचाया, उनके साथ यहाँ आओ।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you went to the Sun to free-release him from the darkness of eclipse, the way-manner in which you helped Rajrishi Mandhata in the deeds works related with the land and provided food grains to Rishi Bhardwaj
याभिर्महामतिथिग्वं केशोजुवं दिवोदासं शम्बरहत्य आवतम्। 
याभिः पूर्भिद्य त्रसदस्युमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
जिन उपायों द्वारा महान् अतिथि वत्सल और असुरों के भय से जल में बैठे हुए दिवोदास को शम्बर असुर के हनन काल में बचाया था तथा जिन उपायों द्वारा नगर विनाश रूप समर में पुरुकुत्स पुत्र सदस्यु ऋषि की रक्षा की थी, हे अश्विनी कुमारो! उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.14]
जिन साधनों से तुमने अतिथि प्रेमी दिवोदास को शम्बर सहित युद्ध करते हुए रक्षा की तथा त्रसदस्यु को युद्ध में बचाया, इन साधनों सहित आ जाओ।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you protected Divo Das, who served the guests to his level best & who was hiding in water due to the fear of the demon Shambar and saved Sadasyu Rishi, the son of Purukuts in a fearsome battle.
याभिर्वम्रं विपिपानमुपस्तुतं कलिं याभिर्वित्तजानिं दुवस्यथः। 
याभिर्व्यश्वमुत पृथिमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आपने जिन साधनों से सोमरस का पान करने वालों की, वभ्र ऋषि की, पत्नी सहित कलि नाम के ऋषि की रक्षा की और जिन उपायों द्वारा अश्वरहित पृथि नाम के बैन राजर्षि की रक्षा की थी, उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.15]
हे अश्विनी कुमारों! जिन साधनों से वभ्र ऋषि की उपस्तुत की नारी पाने पर कलि ऋिषि की सुरक्षा की तथा जिन साधनों से व्यश्रव और पृथि को बचाया, उनके संग पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you saved-protected the Rishi named Kali along with the wife of Vrabh Rishi and Prathi Rishi-Baen Rajrishi who was without the horse. 
याभिर्नरा शयवे याभिरत्रये याभिः पुरा मनवे गाआपीषथुः। 
याभिः शारीराजतं स्यूमरश्मये ताभिरू षु अतिभिरश्चिना गतम्
हे नेतृद्वय! जिन उपायों द्वारा शत्रु, अग्रि और पहले मनु को गमन मार्ग दिखाने की इच्छा की थी और स्यूमरश्मि ऋषि के लिए उनके शत्रुओं के ऊपर बाण चलाया था, हे अश्विनी कुमारो! उन उपायों के साथ यहाँ पधारे।[ऋग्वेद 1.112.16]
हे अश्विनी कुमारो! शयु, अत्रि और मनु के लिए जिन साधनों ने मार्ग दिखाया तथा स्यूम रश्मि की सुरक्षा के लिए उनके शत्रु पर बाण चलाया उन साधनों से युक्त पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you desired to show the sky path to Shatru, Agni and Manu and shot arrow at the enemy of Rishi Syumrshmi.
याभिः पठर्वा जठरस्य मज्मनाग्निर्नादीदेच्चित इद्धो अज्मन्ना। 
याभिः शर्यातमवथो महाधने ताभिरू ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
जिन उपायों द्वारा पठव नाम के राजर्षि शरीर बल से संग्राम में काष्ठ युक्त प्रज्वलित की तरह दीप्तिमान् हुए थे और जिन उपायों द्वारा युद्ध क्षेत्र में शर्यात नामक राजा की रक्षा की थी, हे अश्विनी कुमारों! उन उपायों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.17]
हे अश्विद्वय! जिस शक्ति के साधन से तेज समूह युक्त अग्नि के समान पढर्वा को युद्ध में प्रकाशित किया तथा शयति की युद्ध में रक्षा की, उनके साथ आओ।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you established Rajrishi Pathav (just like a source of fire & light produced from wood) as a source of light-energy in the battle field  and saved the king Sharyat. 
याभिरङ्गिरो मनसा निरण्यथोऽग्रं गच्छयो विवरे गोअर्षासः। 
याभिर्मनुं शूरभिषा समावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे अङ्गिरा! हे अश्विनी कुमारों की स्तुति करें। जिन उपायों से आप लोग अन्तःकरण से प्रसन्न हुए थे, जिनसे पणि द्वारा अपहृत गौ के प्रच्छन स्थान में सभी देवताओं से पहले पहुँचे थे और जिन्हें अन्न देकर शूर मनु की रक्षा की थी, हे अश्विनीकुमारी उन उपायों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.18]
हे अंगिराओ! हे अश्विद्वय! जिन सुरक्षा साधनों से तुम प्रसन्नचित्त होते हो, जिनसे पणि द्वारा अपहरण धेनु के स्थान में समस्त देवों से आगे गये, जिनसे मनु को अग्नि से परिपूर्ण किया, उनके युक्त यहाँ विराजो।
Hey Angira worship-pray to Ashwani Kumars. Hey Ashwani Kumars! Please come to us with those means, methods, procedures with which your innerself was filled with pleasure-happiness and you brought the demigods-deities to the take back the cows abducted by Pani gave food grains to Manu and saved him.
याभिः पत्नीर्विमदाय न्यूहथुरा घ वा याभिररुणीरशिक्षतम्। 
याभिः सुदास ऊहथुः सुदेव्यं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
जिन उपायों से विमद ऋषि को पत्नी दी, जिन्हें लाल रंग की गायें प्रदत्त की और पिजवन पुत्र सुदास राजा को यथेष्ट धन प्रदान किया, हे अश्विनीकुमारों। उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.19]
हे अश्विनी कुमारों जिन साधनों से तुमने विभेद को पत्नी से युक्त किया। प्राणियों के लिए अरुण उधाएँ प्रेरित की, सुदास को दिव्य धन प्रदान किया, उनके साथ पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you granted-gave a wife to Vimad Rishi, gave red coloured cows and gave sufficient money to the king Sudas, the son of Pijwan.
याभिः शंताती भवथो ददाशुषे भुज्युं याभिरवथो याभिरध्रिगुम्। 
ओम्यावतीं सुभरामृतस्तुभं ताभिरू पु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे अश्विनी कुमारों! जिन उपायों से आप हव्य देने वाले को सुख प्रदान करते हैं, आपने तुग्र पुत्र भुज्यु और देवों के अध्रिगु की रक्षा को थी तथा ऋतस्तुभ ऋषि को सुखकर पुष्टि कारक अन्न प्रदान किया था, उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.20]
हे अश्विदय! जिन साधनों से तुम हविदाता को सुख देते हो। अनुष्ठान की सुरक्षा करते हो, जिनसे अध्रिगु देववाणी और ऋतु के अर्चन की सुरक्षा करते हो। उनके संग यहाँ पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you granted comforts & pleasure to those who made offerings, you protected Bhujyu the son of Tugr, protected Adhirgu & gave nourishing food grains to Ritstubh Rishi. 
याभिः कृशानुमसने दुवस्यथो जवे याभिर्यूनो अर्वन्तमावतम्। 
मधु प्रियं भरथो यत्सरभ्यस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्
हे अश्विनी कुमारो! जिन उपायों द्वारा आपने सोमपाल कृशानु की समर में रक्षा की और युवा पुरुकुत्स के अश्व को  वेग प्रदान किया तथा मधु मक्षिकाओं को मधु दिया, उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.21]
हे अश्विद्वय! जिन साधनों से युद्ध में कृशानु को बचाया, जिनसे युवा पुरुकुत्स के अश्व को वेग से चलाया, जिन साधनों से मधुमक्खियों को शहद दिया, उनके सहित आओ।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you protected Sompal Krashanu in war, accelerated the horse of Purukuts and gave honey to Madhu Makshikas.
याभिर्नरं गोषुयुधं नृषाह्ये क्षेत्रस्य साता तनयस्य जिन्वथः। 
याभी रथाँ अवथो याभिरर्वतस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्
हे अश्विनी कुमारो! गौ प्राप्ति के लिए जिन उपायों द्वारा युद्धकाल में मनुष्यों की आप रक्षा करते हैं और जिनकी भूमि और धन की प्राप्ति में सहायता करते हैं तथा जिन उपायों द्वारा मनुष्य अथवा यजमान के रथों और अश्वों की रक्षा करते हैं, उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.22]
हे अश्विद्वय! जिन साधनों से गौ आदि धन के लिए युद्ध में प्राणियों की रक्षा करते हो, जिनसे रथ और अश्वों की रक्षा करते हो, उनके सहित पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you protect the humans with the means of getting cows, land & money and protect the chariots and horses of humans or the Yagy performers, house holds.
याभिः कुत्समार्जुनय शतक्रतू प्र तुवींतिं प्र च दभीतिमावतम्। 
याभिर्ध्वसन्ति पुरुषन्तिमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरशिवा गतम्
हे शतक्रतु अश्वनी कुमारो! आप दोनों जिन उपायों से अर्जुन के पुत्र कुत्स तुर्वी और दधीति को तथा ध्वसन्ति व पुरुषन्ति ऋषि को संरक्षित किया, उन उपायों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.23]
हे महाबलिष्ठ अश्विद्वय! जिन सुरक्षा साधनों से अर्जुन पुत्र कुत्स, तुर्वोति, दर्भाति, ध्वसन्ति और पुरुषन्ति की तुमने सुरक्षा की उन साधनों सहित यहाँ पधारो।
Hey mighty Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you both protected Kuts Tuvi & Dadhichi the sons of Arjun and saved Dhvsanti & Purushanti Rishis.
अप्नस्वतीमश्विना वाचमस्मे कृतं नो दस्रा वृषणा मनीषाम्।
अद्यूत्येऽवसे नि ह्वये वां वृधे च नो भवतं वाजसातौ॥
हे अभीष्टवर्षी अश्विनी कुमारो! हमारे वाक्य को विहित कर्म युक्त करें; हमारी बुद्धि को वेद ज्ञान समर्थ करें। हम प्रकाशहीन रात्रि के शेष प्रहर में रक्षा के लिए आपको बुलाते हैं। अन्नप्राप्ति के लिए हम आप दोनों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.112.24]
हे अश्विदेवो! हमारे संकल्प और बुद्धि को कर्म युक्त करो। मैं निष्कपट कार्यों में सुरक्षा हेतु आपका आवाह्न करता हूँ। द्वन्द्व में हमारी वृद्धि करो।
Hey desire fulfilling Ashwani Kumars! Please make our words meaningful-sinless, make our minds capable of understanding-interpreting the Veds. We call you in the dark nights in the last segment-quarter. We pray-request both of you for the food.
द्युभिरक्तुभिः परि पातमस्मानरिष्टेभिरश्विना सौभगेभिः। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे अश्विनी कुमारो! दिन और रात्रि में हमें विनाश रहित सौभाग्य द्वारा बचावें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश आपके द्वारा दिये गए धनों की रक्षा में हमारे सहायक।[ऋग्वेद 1.112.25]
हे अश्विदेवो! दिन और रात्रि चौबीस घंटों में भी विनाश रहित सौभाग्यों द्वारा हमारी सभी तरफ से सुरक्षा करी। सखा, वरुण, समुद्र, अदिति, धरती और आकाश हमारी इस विनती को अनुमोदित करें।
Hey Ashwani Kumars! Please protect us throughout the day & night with good luck. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Prathvi-Earth & Akash-sky become helpful to us in protecting the wealth granted by you.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (116) :: ऋषि :- कक्षीवान् , देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
नासत्यभ्यां बर्हिरिव प्र वृञ्जे स्तोमाँ इयर्म्यभ्रियेव वातः। 
यावर्भगाय विमदाय जायां सेनाजुवा न्यूहतू रथेन
यज्ञ के लिए जिस प्रकार यजमान कुश का विस्तार करता है तथा वायु बादलों को नाना दिशाओं में प्रेरित करती हैं, उसी प्रकार मैं अश्विनी कुमारों को प्रभूत स्तोत्र समर्पित करता हूँ। वीर सैनिकों के साथ रथ द्वारा चलने वाले अश्विनी कुमार युवा विमद राजर्षि की पत्नी (जो स्वयंवर) में प्राप्त हुई थीं) उन्हें घर तक पहुँचाते हैं।[ऋग्वेद 1.116.1]
सत्य रूप अश्विद्वय के लिए श्लोक तैयार करता हूँ। ऐसी शिक्षा दिया करता हूँ जैसे पवन जलों के अभिप्रेरित करता है। अश्विनी कुमारों ने विमद की पत्नी को सैन्य शिक्षा द्वारा विमद के यहाँ पहुँचा दिया।
The manner-way in which a host extend his Kush grass mate for the Yagy, the wind spread-carries the clouds in various directions, I too offer the excellent Strotr-verse to Ashwani Kumars. Ashwani Kumars accompanied the wife of young Rajrishi Vimad to his house, who was selected by his wife in the Swayamvar (an ancient method of selection of husband by the daughters of the kings). 
वीळुपत्मभिराशुहेमभिर्वा देवानां वा जूतिभिः शाशदाना। 
तद्रासभो नासत्या सहस्त्रमाजा यमस्य प्रधने जिगाय
हे नासत्यद्वय! आकाश में अतिवेग से चलने वाले देवताओं की गति से चलने वाले, वाहनों से भी अधिक तेज गति से जाने वाले आपके वाहनों के संयुक्त हुए रासभ ने यम को आनन्दित करने वाले युद्ध में हजारों सैनिकों वाले शत्रु पर विजय प्राप्त की।[ऋग्वेद 1.116.2]
रासभ :: गधा, गर्दभ, खर; jackass. 
हे असत्य रहित अश्विद्वय! तुम शक्ति पूर्वक उड़ने वाले द्रुतगामी अश्वों से उत्साहित हुए थे। यम के प्रिय उस युद्ध प्रतियोगिता में तुम्हारे वाहन ने सहस्त्रों पर विजय प्राप्त की। 
Hey truthful Ashwani Kumars! Your vehicles which had deployed the asses-donkeys and run with much higher speed of the chariots of the demigods-deities, led to the victory, slayed thousands of warriors in the battle i.e., Yam the deity of death was pleased.
तुग्रो ह भुज्युमश्विनोदमेघे रयिं न कश्चिन्ममृवाँ अवाहाः। 
तमूहथुर्नौभिरात्मन्वती-भिरन्तरिक्षप्रुद्भिरपोदकाभिः
हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार से कोई मृत्यु को प्राप्त होने वाला मनुष्य धन का त्याग करता है, वैसे ही तुग्र नाम के राजर्षि ने बड़े कष्ट से अपने पुत्र भुज्यु को सेना के साथ शत्रुओं पर विजय के लिए नौका से समुद्र में भेजा था। मध्य समुद्र में निमग्न भुज्यु को आपने अपनी नौका द्वारा तुग्र के पास पहुँचाया था। आपकी नौका जल के ऊपर अन्तरिक्ष में चलने वाली और अप्रविष्ट जल वाली (पनडुब्बी) है अर्थात् आपकी नौका में जल नहीं प्रवेश नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 1.116.3]
हे अश्विदेवो! तुग्र ने भुज्य को समुद्र में उसी प्रकार त्याग दिया जैसे मृतक धन को त्याग देता है। तुम उसे अपनी अंतरिक्ष गामिनी वायुयानो (नावों) द्वारा ले जाओ। 
The manner-way, a person waiting for the death, rejects his wealth,  king-Rajrishi Tugr posted his son to Bhujyu to the battle field in boats. You carried Bhujyu from the mid ocean in your boat. Your boat is capable of moving both in the space and water i.e., water can not enter it.
Here submarine has been described which was capable of moving in the space like soccer's-UFO, unidentified flying objects.
Rajrishi is a king who protects his subjects from the enemy but live like the ascetics-saints. King Janak, the father of Mata Sita was a person of this type. Janak is a title of the dynasty of kings who ruled erstwhile Nepal. Please refer to JANAK DYNASTY जनक वंश santoshkipathshala.blogspot.com
तिस्रः क्षपस्त्रिरहातिव्रजद्भिर्नासत्या भुज्युमूहथुः पतङ्गैः। 
समुद्रस्य धन्वन्नार्द्रस्या पारे त्रिभी रथैः शतपद्भिः षळश्वैः
हे नासत्यद्वय (सत्य स्वभाव, one who never tells lies, always speaks the truth)! अति गहन समुद्र से दूर जहाँ मरुस्थल है, वहाँ तीन दिन और तीन रात्रि निरन्तर चलते हुए अत्यन्त वेग से गमनशील सौ चक्रों व छः घोड़ों से युक्त यंत्रों वाले पक्षी के तुल्य आकाश मार्ग से जाते हुए तीनों यानों द्वारा आप दोनों ने भुज्यु को उसके निवास स्थान अर्थात् घर पहुँचाया था।[ऋग्वेद 1.116.4]
हे असत्य विमुख अश्विद्वय! तुम तीन रात्रि और दिन तक द्रुतगति के चलते हुए रथ द्वारा भुज्यु को समुद्र के पार शुष्क स्थान पर ले आये।
Hey Nasaty Dway! You took Bhujy to his house far away from the ocean in the desert, travelling three days & three nights with very high speed, in three aircrafts having hundred wheels and six horses in the space-sky, like a bird.
अनारम्भणे तदवीरयेथामनास्थाने अग्रभणे समुद्रे। 
यदश्विना ऊहथुर्भुज्युमस्तं शतारित्रां नावमातस्थिवांसम्
हे अश्विनी कुमारों! आप लोगों ने अवलम्बन शून्य, भू प्रदेश रहित, ग्रहणीय शाखादि वस्तु रहित समुद्र में यह कार्य किया था। सौ डाँडो वाली नौका में भुज्यु को बैठाकर तुग्र के पास पहुँचाया था।[ऋग्वेद 1.116.5]
हे अश्विद्वय! बिना आधार के समुद्र में पड़े भुज्य को सौ चापों वाली नाव के साथ घर पहुँचाया। यह तुम्हारा अत्यधिक वीरता पूर्ण कर्म है। 
Hey Ashwani Kumars! You did this where there was no support, no land, no material aid in the ocean. You used the boat with 100 oars and took Bhujy to his father Tugr.
यमश्विना ददथुः श्वेतमश्वमघाश्चाय शश्वदित्स्वस्ति। 
तद्वां दात्रं महि कीर्तेन्यं भूत्यैद्वो वाजी सदमिद्धव्यो अर्थः
हे अश्विनी कुमारों! अवध्य अश्व के स्वामी पेदु नाम के राजर्षि को आपने जो सफेद रंग का घोड़ा दिया था, उस अश्व ने पेदु का प्रतिदिन जयरूप से मंगल किया। आपका वह दान महान् और कीर्तनीय हुआ। राजर्षि पेदु का वह उत्तम अश्व हमारे लिए सदैव पूजनीय है।[ऋग्वेद 1.116.6]
हे अश्विद्वय! दुष्ट अश्वों वाले राजा पैदु को तुमने कल्याणकारी श्वेत रंग का अश्व प्रदान किया। तुम्हारा यह महादान प्रशंसा के योग्य है। वह अश्व सदैव युद्धों में विजेता रहा।
Hey Ashwani Kumars! You gave the white horse to Rajrishi Pedu, the master of the horse which had not to be killed, did auspicious deeds for him. That horse of Pedu deserve worship from us.
युवं नरा स्तुवते पजियाय कक्षीवते अरदतं पुरंधिम्। 
कारोतराच्छफादश्वस्य वृष्णः शतं कुम्भाँ असिञ्चतं सुरायाः
हे नेतृदय! आपने अङ्गिरा के कुल में उत्पन्न कक्षीवान् को स्तुति करने पर प्रचुर बुद्धि प्रदान की। जिस प्रकार से सुरापात्र के मुख से सुरा निकाली जाती है, उसी प्रकार से आपके सेचन समर्थ अश्व के खुर से आपने शत कुम्भ सुरा का सिञ्चन किया था।[ऋग्वेद 1.116.7]
सेचन :: खेती-बारी के लिए खेतों आदि में नाली आदि के द्वारा जल पहुँचाने की क्रिया ताकि उनमें नमी बनी रहे, भूमि को पानी से सींचना, सिंचाई, पानी के छींटे देना, छिड़काव, अभिषेक, धातुओं की ढलाई, पानी से सीचने की क्रिया या भाव; pollinate.
हे पराक्रमी! तुमने वन्दना करते हुए कक्षीवान की मति को प्रशस्त किया और वीर्यवान घोड़े के खुर रूप गढ़े से जल की वृष्टि की।
Hey leaders duo! You granted sufficient intelligence to Kakshivan who was born in the family of Angira he when prayed-worshiped you. The way wine is extracted from the pot containing wine, you extracted wine known Shat Kumbh, with the help of your horse, who crushed it.
हिमेनाग्निं घ्रंसमवारयेथां पिआपतीमूर्जमस्मा अधत्तम्। 
ऋबीसे अत्रिमश्विना-वनीतमुन्निन्यथुः सर्वगणं स्वस्ति
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों ने प्रचण्ड अग्निदेव को हिमयुक्त शीतल जल से बुझा दिया। असुरों द्वारा अपने राज्य के लिए संघर्ष रत अँधेरे कारागृह में रखे गये अत्रि ऋषि को सहयोगियों के साथ कारावास तोड़कर आपने मुक्त किया और शरीर से कमजोर हुए अत्रि ऋषि को पौष्टिक व शक्ति बढ़ानेवाला आहार देकर हृष्ट-पुष्ट किया।[ऋग्वेद 1.116.8]
हे अश्विद्वय! तुमने प्रज् अग्नि को शीतल से शांत किया। इसे अन्न परिपूर्ण शक्ति दी। तुमने अग्नि को शीतल से शांत किया। इसे अन्न परिपूर्ण शक्ति दी। तुमने असुरों द्वारा अंधकार पूर्ण वारिधि में गिराये गये अत्रि को प्रकाश में निकाला। 
Hey Ashwani Kumars! You extinguished the fierce fire-Agni with iced water. You freed Atri Rishi along with his associated, from the prison of the demons, who were fighting for their empire. Atri Rishi was supported with nourishing food.
परावतं नास्तयानुदेथामुच्चाबुध्नं चक्रथुर्जिलबारम्। 
क्षरन्नापो न पायनाय राये सहस्त्राय तृष्यते गोतमस्य
हे नासत्यद्वय! आप मरुस्थल में गौतम ऋषि के पास कूप उठा लाये और कूप का तलभाग ऊपर तथा मुखभाग नीचे कर दिया। उस जल को गौतम ऋषि के आश्रम तक ले जाकर हजारों प्यासों को जल उपलब्ध कराया।[ऋग्वेद 1.116.9]
हे सत्य रूप अश्विद्वय! तुमने मरुभूमि में गौतम ऋषि के समीप कूप को भेजा। उसे उलटा कर सहस्त्र प्यासों के लिए जल की वर्षा की। 
Hey the Truthful duo! You took the well to Gautom Rishi in the desert and inverted it. This water quenched the thirst of thousands of the thirsty people. 
जुजुरुषो नासत्योत वव्रिं प्रामुञ्चतं द्रापिमिव च्यवानात्। 
प्रातिरतं जहितस्या-युर्दस्त्रादित्पतिमकृणुतं कनीनाम्
हे नासत्यद्वय अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार से शरीर का आवरण खोलकर फेंका जाता है, उसी प्रकार से ही आपने जीर्ण च्यवन ऋषि की शरीर व्यापिनी जरा खोलकर फेंकी और उन्हें दीर्घायु प्रदत्त कर सुन्दर कन्याओं का पति बना दिया।[ऋग्वेद 1.116.10]
हे सत्य रूप, विकराल अश्विद्वय! तुमने वृद्ध च्यवन का बुढ़ापा कवच के समान हटा दिया और अश्वों द्वारा परित्यक्त ऋषि की आयु को बढ़ाकर कन्याओं का पति बना दिया।
Hey truthful Ashwani Kumars! The manner in the body shell is thrown away, you removed the dilapidated body of Chayvan Rishi and made him young, granted him long age and made him husband of beautiful girls. 
तद्वां नरा शंस्यं राध्यं चाभिष्टिमन्नासत्या वरूथम्। 
यद्विद्वांसो निधिमिवाप-गूळ्हमुद्दर्शतादूपथुर्वन्दनाय
हे नेता नासत्यद्वय! आपका वह इष्ट वरणीय कार्य हमारे लिए प्रशंसनीय और आराध्य है। गहरे कुएँ में पड़े उन वन्दन ऋषि को आपने गुप्त स्थान में गड़े धन के सदृश निकाला। आपका यह सराहनीय कार्य स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 1.116.11]
हे मिथ्यात्वहीन अश्विन देव! इच्छा के योग्य तुम्हारा रक्षक सामर्थ्यवान पूजनीय तथा प्रशंसनीय है। तुमने अदृश्य हुए कोष से तुल्य वंदन को कुएँ से निकाला।
Hey truthful leaders! The efforts made by you deserve praise & appreciation and deserve worship-prayers. You brought out Vandan Rishi out of the well like the treasure buried in the secret chambers. This act of yours, deserve appreciation.
तद्वां नरा सनये दंस उग्रमाविष्कृणोमि तन्यतुर्न वृष्टिम्। 
दध्यङ् ह यन्मध्वाथर्वणो वामश्वस्य शीष्र्णा प्र यदीमुवाच
हे नेतृद्वय! जिस प्रकार से बादलों की गर्जना होने वाली वृष्टि को प्रकट करता है, वैसे ही मैं धनप्राप्ति के लिए आपके उस उग्र कर्म को प्रकट करता हूँ, अथर्वा के पुत्र दधीचि ऋषि ने घोड़े के मुख से आपको मधु विद्या का ज्ञान अर्थात् अभ्यास कराया था।[ऋग्वेद 1.116.12]
हे पराक्रमियों! जैसे बादल का गर्जन वर्षा को प्रकट करता है, वैसे ही मैं तुम्हारे उग्र कार्य को प्रकट करता हूँ। तुम्हारे लिए अथर्वा के पुत्र दध्यड़ ने अश्व के सिर को मधु विद्या सिखायी।
Hey leaders duo! The manner in which the clouds roar to show-declare rain fall, I disclose your fierce deed-action to attain wealth & money.  Dadhich Rishi, the son of Athrva taught you granted you this secret knowledge called Madhu Vidya, with the mouth of a horse. 
अजहवीन्नासत्या करें वां महे यामन्पुरुभुजा पुरंधिः। 
श्रुतं तच्छासुरिव वध्रिमत्या हिरण्यहस्तमश्विनावदत्तम्
हे बहुलोक पालक नासत्यद्वय! आप अभिमत फलदाता है। बुद्धिमती वध्रिमती नाम की ऋषिपुत्री ने पूजनीय स्तोत्र द्वारा आपको बार-बार पुकारा था। जिस प्रकार से शिष्य शिक्षक की कथा सुनता है, वैसे ही आपने वध्रिमती का आह्वान सुना। आपने उसे हिरण्यहस्त नामक पुत्र प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.116.13]
अनेकों के पोषणकर्त्ता असत्य रहित अश्विद्वय! तुम्हें वह्निमतों ने आहूत किया तुमने हर्षित होकर हिरण्यहस्त नामक पुत्र उसे प्रदान किया।
Hey truthful duo, nurturing many abodes-Loks! You grant the desired boons. The intelligent Buddhimati Vadhrimati, the daughter of a Rishi, repeatedly called you with sacred verses-Strotr. The way-manner the student listens to the stories narrated by the teacher you attended the invitation of Vadhrimati. You granted him the son named Hirany Hast. 
आस्नो वृकस्य वर्तिकामभीके युवं नरा नासत्यामुमुक्तम्।
उतो कविं पुरुभुजा युवं ह कृपमाणकृणुतं विचक्षे
हे नेता नासत्यद्वय! आपने भेड़िए के मुख से चिड़िया को मुक्त कराया। आपने एक नेत्रहीन कवि की प्रार्थना करने पर उसे देखने की शक्ति प्रदान की।[ऋग्वेद 1.116.14]
हे मिथ्यात्व रहित अश्विदेवो! तुमने बटेरी को भेड़िये के मुख से निकाला और रोते हुए कण्व को देखने की शक्ति प्रदान की।
Hey truthful leaders duo! You released the bird from the mouth of the wolf. You granted eye sight to blind poet listening-attending to his prayers. 
चरित्रं हि वेरिवाच्छेदि पर्णमाजा खेलस्य परितक्म्यायाम्। 
सद्यो जङ्घामायसीं विश्पलायै धने हिते सर्तवे प्रत्यधत्तम्
राजा खेल की पत्नी विश्पला का एक पैर युद्ध में पक्षी की पंख की तरह कट गया था। हे अश्विनीकुमारों! उसी रात्रि काल में उस विश्पला को युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व आक्रमण करने के लिए लोहे का पाँव लगाकर आप दोनों ने युद्ध करने योग्य बना दिया।[ऋग्वेद 1.116.15]
राज खेल की पत्नी का पैर युद्ध में कट गया। तुमने उसे चलने के लिए लोहे की टांग बना दी।
The leg of the queen of the king Khel was cut during war like the feather of the bird. Hey Ashwani Kumars! You fitted an iron leg to Vishpla's body prior to the beginning of the fight-battle the same night. 
शतं मेषान्वृक्ये चक्षदानमृज्राश्वं तं पितान्धं चकार। 
तस्मा अक्षी नासत्या विचक्ष आधत्तं दस्रा भिषजावनर्वन्
जिन ऋजाश्व राजर्षि ने अपनी वृकी को खाने के लिए सौ भेड़ों को काट डाला था, उनको उनके पिता (वृषागिर) ने क्रुद्ध होकर नेत्रहीन कर दिया। ऋजाश्व के दोनों नेत्र किसी भी वस्तु को देखने में असमर्थ हो गये। हे भिषज दक्ष नासत्यद्वय! आपने ऋजाश्व की आँखें अच्छी कर दी अर्थात् उसे नेत्रज्योति प्रदान कर दीं।[ऋग्वेद 1.116.16]
हे मिथ्यात्व रहित विकराल रूप वाले भिषको! वृकी को खाने के लिये सौ मेष काट देने के दण्ड स्वरूप ऋजाश्रव को उसके पिता ने अंधा कर दिया था। उसके लिए तुमने सर्वश्रेष्ठ ज्योति वाली आँखें प्रदान कीं। 
Vrashagir blinded his son Rijashrav, a Rajrishi for slaughtering 100 sheep to feed his Vraki, in a fit of anger. Both the eyes of Rijashrav were unable to see-visualize any thing. Hey the experts in identifying the medicinal properties of plants & vegetation, truthful Ashwani Kumars! You restored-granted eye sight to Rijashrav.
आ वां रथं दुहिता सूर्यस्य कावातिष्ठदर्वता जयन्ती। 
विश्वे देवा अन्वमन्यन्त हद्भिः समु श्रिया नासत्या सचेथे
हे अश्विनी कुमारों! सूर्य की पुत्री उषा प्रतिस्पर्धा में जीतकर आपके रथ पर आरूढ़ हो गई। सम्पूर्ण देवताओं ने उनका अभिनन्दन किया, तब आप दोनों भी उषा से शोभायुक्त हुए।[ऋग्वेद 1.116.17]
हे अश्विद्वय! सूर्य-पुत्री तुम्हारे द्वारा त्रिजित हुई, तुम्हारे रथ पर चढ़ गई उस समय तुम्हारे घोड़े तेजी से दौड़कर सबसे पहले काष्ठ खंड (घुड़दौड़ में विजय के लिए चिह्न स्वरूप) के पास पहुँचे। तब देवताओं ने तुम्हारे कार्य का हार्दिक अनुमोदन किया।
Hey Ashwani Kumars! Daughter of Sun Usha won the competition and rode your chariot. All demigods-deities honoured three of you and both of you too were dignified.
यदयातं दिवोदासाय वर्तिर्भरद्वाजायाश्विना हयन्ता। 
रेवदुवाह सचनो रथो वां वृषभश्च शिंशुमारश्च युक्ता
हे अश्विनी कुमारों! जब आप दोनों अन्नदान करने वाले राजर्षि दिवोदास और भरद्वाज के गृह में गये, तब उपभोग्य धन से परिपूर्ण रथ आपको वहाँ ले गया। उस समय आपके रथ को शक्तिशाली और शत्रुओं का नाश करने वाले घोड़े खींच रहे थे। आपकी यह विलक्षण सामर्थ्य शक्ति है।[ऋग्वेद 1.116.18]
हे अश्विद्वय! जब तुम दिवोदास और भरद्वाज के घर लिए चले तब तुम्हारा रथ समृद्धि से पूर्ण था। उस रथ में ऋषभ और ग्राह जुते थे।
Hey Ashwani Kumars! When you visited the houses of Divo Das & Bhardwaj well known for donating food, your chariot was full of useful wealth, money, amenities for them.  
रयिं सुक्षत्रं स्वपत्यमायुः सुवीर्यं नासत्या वहन्ता। 
आ जह्नावीं समनसोप वाजैस्त्रिरह्रो भागं दधतीमयातम्
हे नासत्यद्वय! हवि रूप अन्नों द्वारा तीनों कालों में पूजा करने वाली महर्षि जनु की सन्तानों को आप बल, संतति, वैभव, सम्पदा और पराक्रमशाली जीवन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.116.19]
पराक्रम :: शौर्य, विक्रम, बल, पुरुषार्थ, अभियान, साहसिक कार्य, सामर्थ्य, बल, शक्ति, भगवान् श्री हरी विष्णु, पुरुषार्थ, पौरुष, उद्योग; ability, achievement, courage, exploit, gallantry, heroism, might, power, valour. 
हे असत्य रहित अश्विनी कुमारो! हवि रूप अन्न के तीन भाग देने वाले जनु की संतान को तुमने सुन्दर राज परिपूर्ण समृद्धि और पुरुष संयुक्त उम्र को प्रदान किया। 
Hey truthful duo! You granted might, progeny, glory, wealth-property and valour to the sons of Mahrshi Janu, who performed the three prayers (morning, mid day-noon & evening) with the offerings of food grains
परिविष्टं जाहुषं विश्वतः सीं सुगेभिर्नक्तमूहथू रजोभिः। 
विभिन्दुना नासत्या रथेन वि पर्वताँ अजरयू अयातम्
हे नासत्यद्वय! आप अजर हैं। जिस समय राजा जाहुष शत्रुओं द्वारा चारों ओर से घिर गये, उस समय आप अपने सर्वभेदकारी रथ से रातों-रात उन्हें सरल मार्ग से बाहर निकाल ले गये व पर्वतों को चीरते हुए दूर निकल गये।[ऋग्वेद 1.116.20]
मिथ्यात्व रहित अजर अश्विदेवो! तुम शत्रु से घिरे जाहुष को रातों-रात सुगम्य राह से ले चले और अपने रथ से शैल को चीरकर निकल गए।
Hey truthful duo! You are immune to ageing (ever young, ever green, one who does not grow old). You saved king Jahush when he was surrounded by the enemy from all directions, in the chariot which could overcome all troubles-obstacles, crossing the mountains within the night.
एकस्या वस्तोरावतं रणाय वशमश्विना सनये सहस्रा। 
निरहतं दुच्छुना इन्द्रवन्ता पृथुश्रवसो वृषणावरातीः
हे अभीष्टवर्षक अश्विनी कुमारों! आप दोनों ने वश नामक ऋषि को हजारों प्रकार के असंख्य धनों को प्राप्ति के लिए एक दिन में पूर्ण संरक्षणों से युक्त कर दिया व आप दोनों ने राजा इन्द्र के साथ मिलकर राजा पृथुश्रवा को कष्ट देने वाले शत्रुओं का मर्दन किया।[ऋग्वेद 1.116.21]
हे अश्विदेवो! इन्द्र के साथ तुमने एक दिन में हजारों सुंदर धनों को पाने के लिए वंश ऋषि को मदद दी और पृथुश्रवा के दुश्मनों को मार दिया।
Hey desire accomplishing Ashwani Kumars! You both, granted all sorts of wealth, amenities to the Rishi names Vash with in a day and eliminated the enemies of king Prathushrava with the help of Dev Raj Indr.
शरस्य चिदार्चत्कस्यावतादा नीचादुच्चा चक्रथुः पातवे वाः। 
शयवे चिन्नासत्या शचीभिर्जसुरये स्तर्यं पिप्यथुर्गाम्
हे नासत्यद्वय! ऋचत्क के पुत्र शर नामक स्तोता के पीने के लिए आपने कूप नीचे से जल को ऊपर किया। आप दोनों ने अपनी शक्ति से अतिकृषकाय शयु नामक ऋषि के लिए प्रसवशून्य गाय को दुग्धवती बना दिया।[ऋग्वेद 1.116.22]
हे अश्विद्वय तुमने ऋचत्क के पुत्र शिर की प्यास बुझाने को गहरे कुएँ के जल को ऊँचा किया और परिश्रान्त शत्रु के लिए वन्ध्या धेनु को दूध से परिपूर्ण कर दिया। 
Hey truthful duo! You inverted the well upside down to let Shar the son of Richtk. Both of you made the infertile cow to yield milk for the sake of Shayu Rishi who had become extremely weak and fragile.
अवस्यते स्तुवते कृष्णियाय ऋजूयते नासत्या शचीभिः। 
पशुं न नष्टमिव दर्शनाय विष्णाप्वं ददथुर्विश्वकाय
हे नासत्यद्वय! आप दोनों की प्रार्थना करने वाले व अपनी रक्षा के इच्छुक सरल मार्ग से जाने वाले कृष्ण पुत्र विश्वक के नष्ट हुए पुत्र विष्णाप्व के खोये हुए पशु के तुल्य (खोजकर) आप दोनों ने अपनी सामर्थ्य शक्तियों से दर्शनार्थ उपस्थित कर दिया।[ऋग्वेद 1.116.23]
हे अश्विदेवो! तुम्हारी सुरक्षा चाहने वाले कृष्ण ऋषि के पुत्र विश्वक को तुमने शत्रु के समान खोये हुए पुत्र विष्णायु से मिला दिया। 
Hey truthful duo! You traced and presented Vishnapv, the lost-dead son of Krashn Putr Vishvak, who prayed-worshiped both of you and followed the right-straight path-route, with your amazing powers.
दश रात्रीरशिवेना नव द्यूनवनद्धं श्नथितमप्स्व १ न्तः। 
विप्रुतं रेभमुदनि प्रवृक्तमुन्निन्यथुः सोममिव स्रुवेण
असुरों द्वारा पाश से बँधे, कुएँ में गिरे हुए और शत्रुओं द्वारा आहत होकर रेभ नामक ऋषि के दस रात नौ दिन जल में पड़े रहने की व्यथा से सन्तप्त और जल में विप्लुत होने पर आपने उन्हें उसी प्रकार कुएँ से निकाल लिया जिस प्रकार अध्वर्यु स्रुव से सोमरस निकालता है।[ऋग्वेद 1.116.24]
हे अश्विदेवो! स्व से सोम निकलने के तुल्य दस रात्रि और नौ दिन तक जल में पाशों से बंधे हुए आहूत "रेभ" ऋषि को तुमने बाहर निकाला।
You rescued Rishi Rebh, who was injured-hit by the demons & enemies, tied with roles and thrown in the well for 10 days and 9 nights in water and pained; just like Struv meant for making offerings in the Yagy and collecting Somras.
प्र वां दंसांस्यश्विनाववोचमस्य पतिः स्यां सुगवः सुवीरः। 
उत पश्यन्नश्नु-वन्दीर्घमायुरस्तमिवेज्जरिमाणं जगम्याम्
हे अश्विनीकुमारों! आपके पूर्वकृत कार्यों का मैंने वर्णन किया। मैं शोभन गौ और वीर से युक्त होकर इस राष्ट्र का अधिपति बनूँ। जिस प्रकार से गृहस्वामी निष्कंटक घर में प्रवेश करता है, वैसे ही मैं भी नेत्रों से स्पष्ट देखकर और दीर्घ आयु भोगकर वृद्धावस्था को प्राप्त करूँ।[ऋग्वेद 1.116.25]
हे अश्विदेवो! मैंने तुम्हारा यशगान किया है, मैं सुन्दर धेनुओं और वीरों से युक्त होकर देश का दाता बनूँ। आँखों से स्पष्ट देखता हुआ लम्बी आयु प्राप्त कर वृद्धावस्था प्रवेश करूँ।
Hey Ashwani Kumars! I have described the deeds you committed-performed in the past.  I wish, I could become the king of this country along with  descent cows and brave warriors. The manner in which a house owner enters his house without any hesitation-trouble, let me have long life and become old watching clearly with my eyes.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (117) :: ऋषि :- कक्षीवान् , देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्। 
मध्वः सोमस्याश्विना मदाय प्रत्नो होता विवासते वाम्। 
बर्हिष्मती रातिर्विश्रिता गीरिषा यातं नासत्योप वाजैः
हे अश्विनी कुमारों! आपका चिरन्तन होता, आपके हर्ष के लिए मधुर सोमरस के साथ आपकी अर्चना करता है। कुश के ऊपर हव्य स्थापित किया हुआ है, ऋत्विकों द्वारा स्तुत और प्रस्तुत हुआ है। हे नासत्यद्वय! अन्न और बल लेकर हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 1.117.1]
हे असत्य रहित अश्विदेवो! प्राचीन आह्वाता तुम्हें मधुर सोम से सींचता है। प्रदान करने योग्य हवि कुशा पर प्रस्तुत है। स्तुति उच्चारित की जा रही है। तुम दोनों अन्न शक्ति युक्त यहाँ पधारो। 
Hey Truthful Ashwani Kumars! Your worshiper (one ready to conduct Yagy, Hawan, Agni Hotr) from the ancient times, get Somras ready to welcome you. He prays to you. He has placed the offerings over the Kush mate. Rhymes are sung in your honour. Please come to us-bless us, with the food grains and grant us strength, power & might.
यो वामश्विना मनसो जवीयान्रथः स्वश्वो विश आजिगाति। 
येन गच्छथः सुकृतो दुरोणं तेन नरा वर्तिरस्मभ्यं यातम्
हे अश्विनी कुमारों! मन की अपेक्षा भी वेगवान् और शोभन अश्व युक्त रथ समस्त प्रजावर्ग के सामने जाता है और जिस रथ से आप लोग शुभ कर्मा लोगों के घर जाते हैं, हे नेतृद्वय! उसी रथ से हमारे घर पधारें।[ऋग्वेद 1.117.2]
हे अश्विदेवो! मन से अधिक वेग वाले रथ से तुम मान के घर  को प्राप्त करते हो। उसी से हमारे घर आओ। 
Hey Ashwani Kumars, the duo in leadership! Your chariot which is faster than the speed of the innerself (mind, brain, thoughts) moves to the populace. You visit the people who are engaged in virtuous, pious, righteous acts. Please come to riding your chariot.
ऋषि नरावंहसः पाञ्चजन्यमृबीसादत्रिं मुञ्चथो गणेन। 
मिनन्ता दस्योरशिवस्य माया अनुपूर्वं वृषणा चोदयन्ता
हे नेतृद्वय अभीष्ट वर्षक द्वय! आपने शत्रुओं की हिंसा करके और क्लेश देने वाली दस्यु माया का आनुपूर्विक निवारण करके पाँच श्रेणियों द्वारा पूजित अत्रि ऋषि को शत द्वार यन्त्र गृह के पापतुषानल से सन्तानादि के साथ मुक्त किया।[ऋग्वेद 1.117.3]
हे पुरुषार्थी अश्विद्वय! असुरों की दुःख रूपी माया को दूर करते हुए तुमने समस्त वर्षों से पूजित अत्रि को तुम पाप वाले स्थान (पीड़ा दायक यंत्र गृह) से परिवार के साथ मुक्त किया। 
Hey leadership duo granting boons! You released Atri Rishi, who is worshiped by 5 categories of two legged living beings, with his family,  from the prison of the dacoit, demon called Maya, who had locked you in machine powered-operated torture chamber. 
अश्वं न गूळ्हमश्विना दुरेवैर्ऋषिं नरा वृषणा रेभमप्सु। 
सं तं रिणीथो विप्रुतं  दंसोभिर्न वां जूर्यन्ति पूर्व्या कृतानि॥
हे नेतृद्वय अभीष्ट वर्षक द्वय! दुर्दान्त दानवों द्वारा जल में निगूढ़ रेभ ऋषि को आप लोगों ने निकालकर पीड़ित अश्व की तरह उनका विनष्ट अवयव अपनी दवाओं से ठीक कर दिया। आपके पहले के कार्य निश्चित रूप से अद्भुत हैं।[ऋग्वेद 1.117.4]
हे अश्विद्वय! अश्वों के समान, दुष्टों द्वारा जल में छिपाएँ भिन्न-भिन्न शरीर वाला रेभ ऋषि के अंगों को तुमने जोड़ दिया। तुम्हारे पुराने कर्मों में कभी न्यूनता नहीं आती।
Hey leadership duo granting boons! You brought out Rebh Rishi, who was captured by the cruel, demons below water and corrected-repaired his body organs by using medicines. Your deeds, acts, actions are amazing-wonderful.
सुषुप्वांसं न निर्ऋतेरुपस्थे सूर्यं न दस्रा तमसि क्षियन्तम्। 
शुभे रुक्मं न दर्शतं निखातमुदूपथुरश्विना वन्दनाय
हे दस्त्र अश्विनी कुमारों! पृथ्वी के ऊपर सुषुप्त मनुष्य की तरह और अन्धकार में क्षय प्राप्त सूर्य के शोभन दीप्तिमान् आभूषण की तरह तथा दर्शनीय उस कुएँ में गिरे बन्दन ऋषि को आप लोगों ने निकाला था।[ऋग्वेद 1.117.5]
हे अश्विद्वय! मृत्यु की गोद में सोने के तुल्य, अंधेरे में छिपे सूर्य के समान, गड़े हुए स्वर्ण के समान वंदन ऋषि को निकालकर तुमने सुशोभित किया।
Hey Ashwani Kumars! You recovered-brought out Bandan Rishi from the well, who was there like the Sun without light-aura or golden ornaments.
तद्वां नरा शंस्यं पज्रियेण कक्षीवता नासत्या परिज्मन्। 
शफादश्वस्य वाजिनो जनाय शतं कुम्भाँ असिञ्चतं मधूनाम्
हे नेता नासत्यद्वय! अङ्गिरा वंशीय कक्षीवान् मैं मनोनुकूल द्रव्य की प्राप्ति की तरह आपका अनुष्ठान उद्घोषित करूँगा, क्योंकि आपने शीघ्र गामी घोड़ों के खुरों से निकाले हुए मधु से संसार में सैकड़ों घड़े पूर्ण कर दिये।[ऋग्वेद 1.117.6]
हे अश्विद्वय! तुम्हारा सब ओर फैला हुआ कर्म कक्षीवान द्वारा प्रशंसित किया गया है। तुमने दौड़ते हुए अश्व के खुर से प्राणी के लिए पर्याप्त पानी बरसाया।
Hey truthful leadership duo! Kakshivan, born in Angira clan announced the conduction of Yagy, since your fast running horses extracted hundreds of piture-urns of honey with the help of their hoofs
युवं नरा स्तुवते कृष्णियाय विष्णाप्वं ददथुर्विश्वकाय। 
घोषायै चित्पितृषदे दुरोणे पतिं जूर्यन्त्या अश्विनावदत्तम्
हे नेतृद्वय! कृष्ण के पुत्र विश्वकाय के द्वारा आप लोगों की स्तुति करने पर विनष्ट पुत्र विष्णापु को आप लोग लाये। हे अश्विनी कुमारों! कोढ़ होने के कारण बुढ़ापे तक पिता के घर में अविवाहिता रहने पर घोषा नाम की ब्रह्म वादिनी स्त्री के कुष्ठ को दूर कर उसे पति प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.117.7]
हे अश्विद्वय! तुमने स्तोता “विश्वक" को उसका पुत्र “विष्णायु" दिया और जनक के घर पर वृद्धावस्था को प्राप्त होती हुई "घोषा" को प्रदान किया।
Hey leadership duo-Ashwani Kumars! You brought back to life the son of Krashn  called Vishwkay, when he prayed to you. You recovered Ghosha from leprosy, who was devoted to the Brahm-The Almighty & remained unmarried till her old age. You granted her a husband.
युवं श्यावाय रुशतीमदत्तं महः क्षोणस्याश्विना कण्वाय। 
प्रवाच्यं तद्वृषणा कृतं वां यन्नार्षदाय श्रवो अध्यधत्तम्
हे अश्विनी कुमारों! आपने कुष्ठ रोग ग्रसित श्यामवर्ण ऋषि को अच्छा कर दीप्तिमती स्त्री दी। आँखे न रहने से वे कभी नहीं चल सकते थे, आपने उन्हें नेत्र ज्योति प्रदान की। हे अभीष्टवर्षिद्वय! बहरे नृषद पुत्र को आपने सुनने की शक्ति प्रदान की, आपके ये सभी कार्य प्रशंसनीय हैं।[ऋग्वेद 1.117.8]
हे अश्विद्वय! तुमने सांवले रंग वाले कण्व को उज्जवल रंग वाली बड़े गृह की बेटी भार्या रूप में ग्रहण करायी। तुमने नुषद के पुत्र को कीर्ति प्रदान की। तुम्हारा यह काम वर्णन करने लायक है। 
Hey Ashwani Kumars! You recovered the dark skinned Rishi suffering from leprosy and was unable to walk, granted him eye sight and got him married. Hey boon granting-desires fulfilling leadership duo! You granted the power to hear to the son of Nrashad. All your endeavours-deeds deserve appreciation.
पुरू वर्पांस्यश्विना दधाना नि पेदव ऊहथुराशुमश्वम्। 
सहस्रसां वाजिनमप्रतीतमहिहनं श्रवस्यं तरुत्रम्
बहुरूपधारी अश्विनी कुमारों! आपने राजर्षि पेदु को शीघ्र चलने वाले अश्व दिये। वे अश्व हजारों तरह के धन प्रदान करते थे। वह बलवान् शत्रुओं द्वारा अपराजेय, शत्रुहन्ता, स्तुतिपात्र और विपत्ति में रक्षा करने वाले थे।[ऋग्वेद 1.117.9]
हे अश्विद्वय! तुम असंख्य रूप धारणा करने वाले हो।"पेदु" के लिए तुम गतिवान घोड़े को लाए जो कभी पीछे न हटने वाला, अधिक धन देने वाला, शत्रुओं के समीप निडर होकर जाकर उन्हें मारने में सहायक तथा विजय प्राप्त कराने में सक्षम था।
Hey Ashwani Kumars! You are capable of acquiring vivid-various shapes, sizes, figures, bodies. You gave fast moving horses to Rajrishi Pedu. These horses were capable of thousands of types of riches-money. They could not be defeated by strong enemy-armies, deserved respect & prayers, gave protection in an hour of need and they could eliminate the enemy as well. 
एतानि वां श्रवस्या सुदानू ब्रह्माङ्गुषं सदनं रोदस्योः। 
यद्वां पज्रासो अश्विना हवन्ते यातमिषा च विदुषे च वाजम्
हे दानवीर अश्विनी कुमारों! आपकी ये वीर कीर्तियाँ सबको जाननी चाहिए। आप धुलोक भूलोक रूप वर्तमान हैं। आपको प्रसन्न कर घोषणीय मन्त्र निष्पन्न हुआ है। हे अश्विनी कुमारों! जिस समय अङ्गिराकुल के यजमान आपको बुलाते हैं, उस समय आप दोनों अन्न लेकर आवें तथा मुझ यजमान को बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.117.10]
हे कल्याणकारी अश्विदेवो! तुम्हारे कर्म श्रवण के योग्य हैं। वेद मंत्र तुम्हारा श्लोक और आकाश एवं पृथ्वी वास स्थान है। जब तुम्हें अंगिराओं ने बुलाया तब तुम अन्न और बल के सहित आओ।
Hey donor Ashwani Kumars! Everyone must know your greatness, glory. You reside both in the space & over the earth. Your appeasement-happiness led to the creation-composition of an enchanting Mantr-verse, poem. Please come to the hosts from the Angira clan, when they call you, give them food grains and grant me strength, power, might.  
सूनोर्मानेनाश्विना गृणाना वाजं विप्राय भुरणा रदन्ता। 
अगस्त्ये ब्रह्मणा वावृधाना सं विश्पलां नासत्यारिणीतम्
हे पोषक नासत्यद्वय! कुम्भ के पुत्र अगस्त्य ऋषि की स्तुति से स्तुत होकर और मेधावी भरद्वाज ऋषि को अन्नदान कर तथा अगस्त्य द्वारा मंत्रवर्द्धित होकर आपने विश्पला को निरोगी बना दिया।[ऋग्वेद 1.117.11]
हे पोषणकर्त्ता अश्विदेवो! पुत्र के समान भक्ति से आगस्त्य ने वदंना की। वंदनाओं से वृद्धि को प्राप्त हुए तुमने उस मेधावी भरद्वाज को अन्न दिया और विरपला को स्वस्थ किया।
Hey nurturing-nursing, nourishing Ashwani Kumars! You became happy-pleased with the prayers of August Rishi, the son of Kumbh, gave food grains to Bhardwaj and acquired capability to cure Vishpala attending-responding to the Mantr Shakti of August. 
कुह यान्ता सुष्टुतिं काव्यस्त दिवो नपाता वृषणा शयुत्रा। 
हिरण्यस्येव कलशं निखातमुदूपथुर्दशमे अश्विनाहन्॥
हे आकाश पुत्रद्वय अभीष्टवर्षक! उशना की स्तुति सुनने के लिए कहाँ उसके घर की ओर जाते हो? हिरण्यपूर्ण कलश की तरह कुएँ में गिरे रेभ ऋषि को आपने दसवें दिन निकाला था।[ऋग्वेद 1.117.12]
हिरण्य :: सोना-सुवर्ण, शुक्राणु-वीर्य।
हे अश्विद्वय! “शंयु" के रक्षक काव्यमय वंदना से आने वाले तुमने स्वर्ण के कलशों के तुल्य गढ़े हुए “रेभ" को दसवें दिन निकला-मुक्त किया। 
Hey boon granting duo, Ashwani Kumars, stationed in the space! You visit the house of Ushna to respond to his request-prayers. You recovered Rebh Rishi on the tenth day, when he had fallen in the well which was like an urn containing sperms.
युवं च्यवानमश्विना जरन्तं पुनर्युवानं चक्रथुः शचीभिः। 
युवो रथं दुहिता सूर्यस्य सह श्रिया नासत्यावृणीत
हे अश्विनीकुमारों! भैषज्यरूप कार्य द्वारा आपने वृद्ध च्यवन ऋषि को युवा कर दिया। हे नासत्यद्वय! सूर्य पुत्री सूर्या (उषा) कान्ति के साथ आपके रथ पर आरूढ़ हुई।[ऋग्वेद 1.117.13]
हे अश्विदय! तुमने वृद्ध"च्यवन" को युवा बनाया। सूर्य की पुत्री ने शोभा से युक्त ही तुम्हारा वरण किया है।
Hey Ashwani Kumars! You turned old & fragile Chayvan Rishi into a young man, by treating him with the vegetation (herbs). Hey truthful duo! Usha, the daughter of Sun rode your chariot with her shine-aura, glow. 
युवं तुग्राय पूर्व्येभिरेवैः पुनर्मन्यावभवतं युवाना। 
युवं भुज्युमर्णसो निः समुद्राद्विभिरूहथुर्ऋज्रेभिरश्वैः
हे दुःख विदारक द्वय! तुग्र जैसे पहले स्तोत्र द्वारा आपकी स्तुति कर आप दोनों की अर्चन करते थे, क्योंकि उनके पुत्र भुज्यु को आप महासागर से गमनशील नौका और तेज चलने वाले अश्व द्वारा ले आये थे।[ऋग्वेद 1.117.14]
हे अश्विद्वय! तुमको पुरातन श्लोक से तुग्र ने स्मरण किया। तुम पक्षी की चाल से उड़ने वाले अश्वों द्वारा "भुज्यु" को समुद्र निकाल लाये।
Hey sorrow relieving Duo!  Tugr continued praying you with the ancient Shloks-verses since you brought his son Bhujyu back who was drowning in the ocean, by using fast moving boats and horses. 
अजोहवीदश्विना तौग्रयो वां प्रोळ्हः समुद्रमव्यथिर्जगन्वान्।
निष्टमूहथुः सुयुजा रथेन मनोजवसा वृषणा स्वस्ति
हे अश्विनी कुमारों! पिता तुग्र द्वारा समुद्र में भेजे हुए और जल में डूबते हुए भुज्यु ने सरलता से समुद्र पार करके आपका आवाहन किया। हे मनोवेग सम्पन्न अभीष्टवर्षिद्वय! आप दोनों उत्कृष्ट अश्व युक्त रथ पर भुज्यु को लेकर आये।[ऋग्वेद 1.117.15]
हे अश्विदेवो! तुग्र पुत्र ने बार-बार तुम्हारा आह्वान किया। वह समुद्र में बहता हुआ भी दर्द में रहता था उसे अत्यन्त वेगवान रथ से तुम निकाल लाए। 
Hey Ashwani Kumars! Bhujyu who was sent to the ocean by his father Tugr, was carried away-swayed by the ocean currents, remembered-prayed you. You relieved him and he easily crossed the ocean. Hey desire fulfilling duo! Both of you then brought Bhujyu to his father in the chariot which had excellent horses.
अजोहवीदश्विना वर्तिका वामास्नो यत्सीममुञ्चतं वृकस्य। 
वि जयुषा ययथु: सान्वद्रेर्जातं विष्वाचो अहतं विषेण
हे अश्विनी कुमारों! जिस समय आप लोगों ने वृक के मुख से वर्त्तिका नाम की चिड़िया ने छुड़ाया, उस समय उसने आपका ही आवाहन किया था। आप लोग विजयी रथ द्वारा जाहुष को लेकर पर्वत पर चले गये। आपने विष्वाङ्ग असुर के पुत्र का विषैले तीर से वध किया।[ऋग्वेद 1.117.16] 
हे अश्विद्वय! वृत्तिका ने तुम्हारा आह्वान किया। तुमने उसे भेड़िये के मुँह से निकाला। जीतने वाले रथ से पर्वत पर गये। तुमने “विश्वा" के पुत्र को विष परिपूर्ण अस्त्र से समाप्त कर डाला।
Hey Ashwani Kumars! The bird named Vartika prayed you, when you released her from the clutches of Vrak-the wolf. You rode the chariot which was victorious, going to the mountain carrying Jahush. You killed the son of Vishwang-the demon, with a poisonous arrow. 
शतं मेषान्वृक्ये मामहानं तमः प्रणीतमशिवेन शन पित्रा। 
आक्षी ऋज्राश्वे अश्विनावधत्तं ज्योतिरन्धाय चक्रथुर्विचक्षे॥
जबकि ऋजाश्व ने वृकी के लिए सौ भेड़ों का वध किया, तब उनके क्रुद्ध पिता ने उन्हें अन्धा बना दिया। इसके अनन्तर आपने उन्हें नेत्र ज्योति प्रदान की और देखने के लिए आप लोगों ने अन्धे को नेत्र प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.117.17]
हे अश्विद्वय! वृकी को सौ भेड़े देने वाले ऋजाश्व को उसके पिता ने अंधा बना दिया। तुमने उसे नेत्र देकर उनमें प्रकाश भर दिया। वृकी ने अन्धे ऋजास्व के लिए वंदना की।
When Rijashrav killed 100 sheep for feeding the Vraki-she wolf, his father blinded in a fit of anger. You provided him eye sight. Vraki prayed for the blind Rijashrav.
शुनमन्धाय भरमह्वयत्सा वृकीरश्विना वृषणा नरेति। 
जारः कनीनइव चक्षदान ऋज्राश्वः शतमेकँ च मेषान्
ऋजाश्व के अन्धा होने पर वृकी ने उसके सुख के लिए इस प्रकार से प्रार्थना करने लगी कि हे सामर्थ्यवान् नेतृत्व प्रदान करने वाले देवों! युवा जार के द्वारा तरुणी का सर्वस्व समर्पित कर देने के समान बिना समझे ऋजाश्व ने मुझे एक सौ भेड़ें खाने के लिए दी थीं।[ऋग्वेद 1.117.18]
ऋजास्व ने अल्हड़पन (मनमौजीपन, बेपरवाही, निर्द्वद्वता, बालसुलभ मस्ती और लापरवाही; inexperience, ignorance, childishness, carefreeness) से अमितव्ययी होकर तरुण सार के समान एक सौ भेड़ें काट डाली थीं। 
When Rijashrav became blind, the Vraki prayed to the capable Ashwani Kumars-the duo to restore eyesight to Rijashravaddressing them as capable leadership granting demigods-deities! Young Rijashrav killed the sheep due to his ignorance. 
मही वामूतिरश्विना मयोभूरुत स्त्रामं धिष्ण्या सं रिणीथः।
अथा युवामिदह्वयत्पुरंधिरागच्छतं सीं वृषणाववोभिः 
हे स्तुतिपात्र अश्विनी कुमारों! आपका रक्षा कार्य सुख का कारण है, आपने रोगियों के अंगों को ठीक किया, अतः प्रभूत बुद्धिशालिनी घोषा ने आपको रोग निवृत्ति के लिए बुलाया। हे अभीष्टदातृद्वय! अपने रक्षण कार्य के साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.117.19]
हे अश्विद्वय! तुम सुख देने में सक्षम हो। अंगहीन को अंग देते हो। इसलिए विश्मला ने तुम्हें आमंत्रित किया था, तब तुमने उसकी रक्षा की थी।
Hey prayer deserving Ashwani Kumars! Protection by you leads to pleasure.  Since, you cured the organs of the diseased, the intelligent Ghosha invited you to cure her. Hey leadership duo! Please come for protecting-sheltering us.
अधेनुं दस्रा स्तर्यं विषक्तामपिन्वतं शयवे अश्विना गाम्। 
युवं शचीभिर्विमदाय जायां न्यूहथुः पुरुमित्रस्य योषाम्
हे दस्त्रु द्वय! शयु ऋषि के लिए आपने कृशा प्रसव शून्या (जिसे सन्तान न हो सके) और दुग्ध रहिता गौ को दुग्ध पूर्ण किया। आपने अपने कर्म द्वारा पुरुमित्र राजा की पुत्री को विमद ऋषि की पत्नी बनाया।[ऋग्वेद 1.117.20]
हे अश्विद्वय! तुमने शयु के लिए बांझ गाय को दूध से परिपूर्ण किया। तुमने पुरुमित्र की पुत्री को विमद की पत्नी बनाया। 
Hey Ashwani Kumars! You restored milk in the infertile old cow. You got the daughter of the king Purumitr to Vimad Rishi. 
यवं वृकेणाश्विना वपन्तेषं दुहन्ता मनुषाय दस्त्रा। 
अभि दस्युं बकुरेणा धमन्तोरु ज्योतिश्चक्रथुरार्याय
हे अश्विनी कुमारों! आपने विद्वान् मनु के लिए हल द्वारा खेत जुतवा कर जौ उत्पन्न कराकर अन्न के लिए वर्षा की और अपने वज्र द्वारा दस्यु का वध करके मनुष्यों का परम उपकार किया।[ऋग्वेद 1.117.21]
हे अश्विद्वय! तुमने खेत जुतवाकर अन्न पैदा कर वज्र से दैत्यों को समाप्त करते हुए मनुष्यों का परम हित किया।
Hey Ashwani Kumars! You let the fields ploughed for the enlightened Manu and killed the dacoit-demon with your Vajr leading to ultimate welfare of the humanity.
आथर्वणायाश्विना दधीचेऽश्र्व्यं शिरः प्रत्यैरयतम्। 
स वां मधु प्र वोचदृतायन्त्वाष्ट्रं यद्दत्रावपिकक्ष्यं वाम्
हे अश्विनी कुमारों! आपने अथर्वा ऋषि के पुत्र दधीचि ऋषि के कन्धे पर अश्व का मस्तक जोड़ दिया। दधीचि ने भी सत्य की रक्षा कर इन्द्रदेव से प्राप्त मधुविद्या आपको प्रदत्त की। हे दस्त्र द्वय! वही विद्या आप लोगों में प्रवर्ग (किसी वर्ग या श्रेणी का छोटा विभाग या श्रेणी, हवन करने की अग्नि, category) विद्या रहस्य हुई थी।[ऋग्वेद 1.117.22]
हे आश्विद्वय! तुमने अथर्वा के पुत्र "दध्य के अश्व को सिर जोड़ा। तब उसने इन्द्रदेव से ग्रहण मधु विद्या तुम्हें सिखायी। वह विद्या तुम को अत्याधिक शक्ति देने वाली हुई।
Hey Ashwani Kumars! You joined the head of a horse to the shoulder of the son of Athrava Rishi, named Dadhichi. Dadhichi too, in turn taught you Madhu Vidhya. This knowledge became useful in igniting fire for Hawan-Yagy and granted immense power.
सदा कवी सुमतिमा चके वां विश्वा धियो अश्विना प्रावतं मे। 
अस्मे रयिं नासत्या बृहन्तमपत्यसाचं श्रुत्यं रराथाम्
हे मेधाविद्वय! मैं सदा आपकी कृपा के लिए प्रार्थना करता हूँ। आप मेरे सारे कार्यों की रक्षा करते हैं। हे नासत्यद्वय! आप हमें अच्छी सुसंतति से युक्त उत्तम धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.117.23]
हे अश्विद्वय ! मैं तुम्हारी दया बुद्धि की विनती करता हूँ। तुम मेरे कार्यों की रक्षा करने वाले हो। हमको संतान से युक्त अनिंद्य धन दे दो।
Hey prudent duo! I always pray for your blessings. You protect all of my endeavours. Hey truthful duo! You grant us excellent progeny and best riches.  
हिरण्यहस्तमश्विना रराणा पुत्रं नरा वध्रिभत्या अदत्तम्। 
त्रिधा ह श्यावमश्विना विकस्तमुज्जीवस ऐरयतं सुदानू
हे दानशील और नेता अश्विनी कुमारों! आपने वभ्रिमती को हिरण्यहस्त नाम का पुत्र प्रदान किया। हे दानशील अश्विनी कुमारों! आपने तीन भागों में विभक्त श्याव ऋषि को जीवित किया।[ऋग्वेद 1.117.24]
हे अश्विद्वय! तुमने वधिमति को हिरण्यहस्त नामक पुत्र प्रदान किया। तुमने तीन टुकड़ों में विभक्त हुए "श्वायु" ऋषि को जोड़कर जीवित कर दिया।
Hey leadership duo inclined to charity! You granted the son named Hiranyhast to Vabhrimati. You made alive Syav-Shravayu Rishi, whose body was cut into three pieces.
एतानि वामश्विना वीर्याणि प्र पूर्व्याण्यायवोऽवोचन्। 
ब्रह्म कृण्वन्तो वृषणा युवभ्यां सुवीरासो विदथमा वदेम
हे अश्विनी कुमारों! आपके इन शौर्य युक्त कार्यों की सभी मनुष्य प्रशंसा करते रहे हैं। हे अभीष्टदातृद्वय! हम भी आपकी स्तुति करके वीर पुत्र आदि से युक्त होकर यज्ञ को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.117.25]
हे अश्वि देवो! तुम्हारे प्राचीन पराक्रमी कार्यों को पूर्वजों ने कहा। तुम्हारी वदंना करते हुए सुन्दर और पराक्रमी पुत्रादि से परिपूर्ण होकर अनुष्ठान कार्य में लगाते हैं।
Hey Ashwani Kumars! All humans praise all of your deeds added with valour-might. Hey boon granting duo! We too commit ourselves with our mighty sons to your worship & Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (118) :: ऋषि :- कक्षीवान्, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्। 
आ वां रथो अश्विना श्येनपत्वा सुमृळीकः स्ववाँ यात्वर्वाङ्। 
यो मर्त्यस्य मनसो जवीयान्त्रिवन्धुरो वृषणा वातरंहाः॥
हे अश्विनी कुमारों! श्येन पक्षी की तरह शीघ्रगामी, सुखकर और धनयुक्त आपका रथ हमारे सामने आवे। हे अभीष्टवर्षक द्वय! आपका वह रथ मनुष्य के मन की तरह गतिवान् व त्रिबन्धनाधारभूत और वायुवेगी है।[ऋग्वेद 1.118.1]
हे अश्विद्वय! वज्र के तुल्य उड़ने वाला परम समृद्धिवान तुम्हारा रथ यहाँ पधारे। वह रथ पवन के समान गति वाला और अत्यन्त वेगवान है।
Hey Ashwani Kumars! Let your comfortable chariot possessing all amenities & riches come to us like, the Shyen bird. Your chariot is fast moving like the mind-innerself representing the three bonds in the human body. 
Please refer to :: TRIPLE BOND त्रिविधि बन्धन santoshsuvichar.blogspot.com
त्रिवन्धुरेण त्रिवृता रथेन त्रिचक्रेण सुवृता यातमर्वाक्। 
पिन्वतं गा जिन्वतमर्वतो नो वर्धयतमश्विना वीरमस्मे
हे अश्विनी कुमारों! आप तीन पहियों से युक्त तीन बन्धनों वाले त्रिकोणाकृति एवं उत्तम तेज चलने वाले रथ पर आरूढ़ होकर हमारे यहाँ पधारें। आप हमें दुधारू गौवें, तेज गति से चलने वाले अश्व और शूरवीर पुत्र प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.118.2]
 हे अश्विद्वय! तुम तीन काष्ट वाले रथ से यहाँ पर विराजो। हमारी धेनुओं को दूध वाली करो, अश्वों को वेगवान बनाओ और पराक्रमियों की उन्नति करो। 
Hey Ashwani Kumars! Please come to us riding your fast moving chariot with three wheels & axles and trigonal in shape. Please give milch cows, fast running horses and brave sons.
प्रवद्यामना सुवृता रथेन दस्त्राविमं शृणुतं श्लोकमद्रेः। 
किमङ्ग वां प्रत्यवर्ति गमिष्ठाहुर्विप्रासो अश्विना पुराजाः
हे दस्त्रद्वय अश्विनी कुमारों! अपने शीघ्रगामी और शोभनगति रथ द्वारा आकर सेवा परायण स्तोता का यह मंत्र श्रवण करें। क्या पहले के विद्वान् यह नहीं बोले कहे थे कि आप स्तोताओं की दरिद्रता दूर करने के लिए सर्वदा जाते हैं?[ऋग्वेद 1.118.3]
हे अश्विद्वय! उतरते हुए रथ से सोम कूटने का शब्द सुनो, तुम्हें पितर, निर्धनता नष्ट करने वाला कहते हैं।
Hey Ashwani Kumars-duo! Please come in your glorious fast moving chariot and listen to the Strotr-prayer sung by the devotee in your honour. Did not the ancient sages-scholars said that you come to remove the poverty of your worshipers?
आ वां श्येनासो अश्विना वहन्तु रथे युक्तास आशवः पतङ्गाः। 
ये अप्तुरो दिव्यासो न गृध्रा अभि प्रयो नासत्या वहन्ति
हे अश्विनी कुमारों! रथ में योजित, शीघ्रगन्ता, उछलने में बहादुर और श्येन पक्षी की तरह वेग विशिष्ट आपके घोड़े आपको लेकर आवें। हे नासत्य द्वय जल की तरह शीघ्रगति अथवा आकाशचारी गृध्र की तरह शीघ्रगति वे घोड़े आपको हव्यान्न के सामने ले आवें।[ऋग्वेद 1.118.4]
हे अश्वि देवो! तीव्रग्रति वाले अश्वों से युक्त रथ में यहाँ आओ। वे आसमान में विचरते हुए पक्षी की तरह आपको यहाँ लाते हैं। 
Hey Ashwani Kumars! Let your horses which are good at jumping, deployed in the chariot, brave, fast moving like the Shyen bird bring you here. Hey truthful duo! Your horse who moves fast like water and the vultures in the sky, bring you to us with the offerings of food grain. 
आ वां रथं युवतिस्तिष्ठदत्र जुष्टी नरा दुहिता सूर्यस्य। 
परि वामश्वा वपुषः पतङ्गा वयो वहन्त्वरुषा अभीके
हे नेतृ दय! प्रसन्न होकर सूर्य देव की युवा पुत्री (उषा) आपके रथ पर आरुढ़ हुईं। इस रथ में जोते गये लाल रंग के शरीर एवं आकृति से पक्षी के तुल्य आकाश में उड़ने वाले घोड़े आप दोनों को हमारे घर अथवा यज्ञस्थल के समीप ले आवें।[ऋग्वेद 1.118.5]
हे अश्विदेवो! हर्षितादाता सूर्य पुत्री हमारे रथ पर विराजमान थी। उस रथ को आपके सहित पक्षी रूप अरुण रंग के अश्व यहां पर लावें। 
Hey leadership duo! Usha, the daughter of the Sun, appeased with you rode your chariot. Let the horses deployed in the chariot had red colour & had the shape of birds, bring you to either our house or the site of the Yagy.
उद्वन्दनमैरतं दंसनाभिरुद्रेभं दस्त्रा वृषणा शचीभिः। 
निष्टौग्रयं पारयथः समुद्रात्पुनश्र्च्यवानं चक्रथुर्युवानम्
हे कामवर्षि द्वय! अपने कार्य द्वारा आपने बन्दन ऋषि को बचाया। अपने कार्य द्वारा आपने रेभ ऋषि को कुएँ से निकाला। आपने तुग्र पुत्र भुज्यु को समुद्र से पार कराया। च्यवन ऋषि को पुनः युवा बना दिया।[ऋग्वेद 1.118.6]
हे उग्रकर्मा अश्विद्वय! तुमने वंदना का उद्वार किया, रेभ को बचाया। तुम्रपुत्र को सागर से निकाला और च्यवन को युवावस्था दी। 
Hey desire fulfilling duo! You protected Bandan Rishi, recovered Rebh Rishi from the well, moved Bhujyu the son of Tugr across the ocean and granted Youth to Chayvan Rishi.
युवमत्रयेऽवनीताय तप्तमूर्जमोमानमश्विनावधत्तम्।  
युवं कण्वायापिरिप्ताय चक्षुः प्रत्यधत्तं सुष्टुतिं जुजुषाणा
हे अश्विनी कुमारों! आपने रोके हुए अत्रि की प्रदीप्त अग्नि शिक्षा को निवारित किया और उन्हें रस युक्त अन्न प्रदान किया। स्तुति ग्रहण करके आपने अन्धकार में प्रविष्ट कण्व ऋषि को नेत्र प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.118.7]
हे अश्विद्वय! तुमने जलाये गये अत्रि को सुख देने वाला जन्म प्रदान किया। कण्व की प्रार्थना स्वीकार कर उनको नेत्र दिये।
Hey Ashwani Kumars! You granted relief to Atri whose hairlock was burnt by fire and fed him with liquid food. You accepted the prayers of Kavy Rishi and restored his eye sight. 
युवं धेनुं शयवे नाधितायापिन्वतमश्विना पूर्व्याय। 
अमुञ्चतं वर्तिकामंहसो निः प्रति जङ्घां विश्पलाया अधत्तम्
हे अश्विनी कुमारों! प्रार्थना करने पर प्राचीन शयु ऋषि की दुग्ध रहिता गौ को आप दोनों ने दुग्धवती किया। आपने वृक रूप पाप से वर्तिका को मुक्त किया। आपने विश्पला की एक टूटी टाँग के स्थान पर लोहे की टाँग लगा दी।[ऋग्वेद 1.118.8]
हे अश्विनो! प्रार्थी "शयु की धेनु" को दूध देने वाली बनाया, "वृत्तिका" का कष्ट दूर किया और "विश्पला" की जांघ ठीक की।
Hey Ashwani Kumars! You made the cow of Shyu Rishi fertile, milk yielding-milch, when he prayed to you. You relieved Vartika from the sin earned by way of Vrak. You fitted the iron leg replacing Vishpla's broken leg.
युवं श्वेतं पदव इन्द्रजूतमाहिहनमश्विनादत्तमश्वम्। 
जोहूत्रमर्यो अभिभूति मुग्रं सहस्त्रां वृषणं वीड्वङ्गम्
हे अश्विनी कुमारों! आपने पेदु राजा को श्वेत वर्ण अश्व दिये। वह अश्व इन्द्र द्वारा गये थे, शत्रुओं का नाश करने वाले और युद्ध में शब्द करने वाले तथा वैरियों का वध करने वाले उग्र और हजारों प्रकार का धन देने वाले थे। जिनका शरीर दृढ़ाङ्ग था और वह तेज थे।[ऋग्वेद 1.118.9]
हे अश्विद्वय! तुमने पेदु को इन्द्रदेव द्वारा प्रेरित, शत्रुनाशक विकराल समृद्धिशाली श्वेत रंग का अश्व प्रदान किया। 
Hey Ashwani Kumars! You gave white coloured horses to king Pedu. These horses given by Dev Raj Indr, were noise producing and the slayer of the enemy. They use to provide thousands of kinds of riches-goods. Their body was strong and they were fast moving.
ता वां नरा स्ववसे सुजाता हवामहे अश्विना नाधमानाः। 
आ न उप वसुमता रथेन गिरो जुषाणा सुविताय यातम्
हे नेतृद्वय शोभन जन्मा अश्विनी कुमारों! हम धन प्राप्त व रक्षा के लिए आपका आवाहन करते हैं। हमारी स्तुति स्वीकार करके आप दोनों धन युक्त रथ पर बैठकर हमें सुख देने के लिए हमारे सम्मुख आवें।[ऋग्वेद 1.118.10]
हे अश्विद्वय! हम अपनी रक्षा के हेतु तुम्हारा आह्वान करते हैं। तुम हमारी प्रार्थनाओं को स्वीकार कर धन से युक्त रथ से हमारे समीप आओ। 
Hey leadership duo, born with glory, Ashwani Kumars! We pray to you for receiving money, wealth and protection from you. Please accept our request-prayers and come to us in the chariot full of money, to give us money, comforts and amenities.
आ श्येनस्य जवसा नूतनेनास्मे यातं नासत्या सजोषाः। 
हवे हि वामश्विना रातहव्यः शश्वत्तमाया उषसो व्युष्टौ
हे नासत्य द्वय! समान प्रीति युक्त होकर श्येन पक्षी के तेज वेग की तरह हमारे निकट पधारें। हे अश्विनीकुमारों! हव्य लेकर नित्य उषा के उदित होते ही हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.118.11]
हे अश्विद्वय। तुम बाज की चाल से हमारे समीप आओ। मैं इस उषाकाल में हवि हाथ में लिए तुम्हारा आह्वान करता। 
Hey truthful duo! you should come to us full of affection with fast speed like the Shyen bird. Hey Ashwani Kumars! We invite you in the morning everyday-day break, having offerings for you.

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (119) :: ऋषि :- कक्षीवान्, दीर्घतमसा, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।

आ वां रथं पुरुमायं मनोजवं जीराश्वं यज्ञियं जीवसे हुवे। 

सहस्रकेतुं वनिनं शतद्वसुं श्रुष्टीवानं वरिवोधामभि प्रयः॥

हे अश्विनी कुमारों! जीवन धारण के लिए अन्न के निमित्त मैं आपके रथ का आवाहन करता हूँ। वह रथ बहुविध गति, विशिष्ट मन की तरह चलने वाला, वेगवान् अश्व से युक्त यज्ञ पात्र, सहस्त्र केतु युक्त, शतधन युक्त, सुखकर और धन प्रदान करने वाला है।[ऋग्वेद 1.119.1]

हे अश्विद्वय मैं जीवन धारण के लिए तुम्हारे मतिवान, वेगवान श्रेष्ठ अश्व वाले, युज्क, ध्वजा परिपूर्ण, सम्पत्ति से परिपूण रथ को हवियों की तरफ आकृष्ट करता हूँ।

Hey Ashwani Kumars! I invite-call your chariot for receiving food grains to survive. That chariot is capable of moving with different speed and can be operated just by thinking of the destination. The chariot is driven by fast moving horses, has the pot for performing Yagy, carries various kinds of wealth & is comfortable.

ऊर्ध्वा धीतिः प्रत्यस्य प्रयामन्यधायि शस्मन्त्समयन्त आ दिशः। 

स्वदामि धर्म प्रति यन्त्यूतय आ वामूर्जानी रथमश्विनारुहत्॥

उस रथ के गमन करने पर अश्विनी कुमारों की प्रशंसा में हमारी बुद्धि ऊपर उठ जाती है। हमारी स्तुतियाँ अश्विनी कुमारों को प्राप्त होती है। मैं हव्य को स्वादिष्ट करता हूँ। सहायक ऋत्विक लोग आते हैं। हे अश्विनी कमारों! सूर्य पुत्री उषा आपके रथ पर बैठी हैं।[ऋग्वेद 1.119.2]

इस रथ के चलने पर हम ऊपर देखते हैं। सभी ओर से वंदनाएँ इकट्ठी होती हैं। मैं यज्ञ हवि को सुस्वादु बनाता हूँ। ऋत्विज उसकी ओर जाते हैं। हे अश्विद्वय! तुम्हारे रथ पर सूर्य की पुत्री आरूढ़ है। 

When this chariot moves we look-stare up. We make prayers in the honour of Ashwani Kumars. I make the offerings tasty. Assistant priests are coming to accomplish the Yagy, in your presence. Usha, the daughter of Sun is accompanying you.



सं यन्मिथः पस्पृधानासो अग्मत शुभे मखा अमिता जायवो रणे।
युवोरह प्रवणे चेकिते रथो यदश्विना वहथः सूरिमा वरम्॥
जिस समय यज्ञ परायण असंख्य जयशील मनुष्य युद्ध में धन के लिए परस्पर युद्ध करने के लिए एकत्रित होते हैं, हे अश्विनी कुमारों! उस समय आपका रथ पृथ्वी पर आता हुआ प्रतीत होता है। उसी रथ पर बैठकर आप लोग अपने याजकों के लिए श्रेष्ठ धन लावें।[ऋग्वेद 1.119.3]

हे अश्विदेवो! परस्पर ईर्ष्यालु परन्तु हर्षितोचित वाले पराक्रमी वीर द्वारा कीर्ति प्राप्ति के लिए संगठित होते हैं। तब तुम्हारा रथ नीचे उतरता जाना जाता है। उसी से तुम वंदना करने वाले पराक्रमी के लिए वरणीय धनों को लाते हो।

When hundreds of devotees quarrel-fight for money, your chariot appears to be landing over the earth. You bring money in that chariot for those devotees who desire it. 

युवं भुज्यं भुरमाणं विभिर्गतं स्वयुक्तिभिर्निवहन्ता पितृभ्य आ।यासिष्टं वर्तिर्वृषणा विजेन्यं दिवोदासाय महि चेति वामवः॥

हे अभीष्ट वर्षक द्वय! पक्षियों के सदृश आकाश में उड़ने वाले वाहन द्वारा आपने तुग्र पुत्रः भुज्यु को उसके माता-पिता पास पहुँचाया। दिवोदास को भी आप दोनों का सहयोग और संरक्षण प्राप्त हुआ।[ऋग्वेद 1.119.4]

हे अश्विदेवो! समुद्र की लहरों में समाकर नष्ट प्राय हुए भज्यु को तुमने स्वयं जुड़ने वाले अश्वों द्वारा ले जाकर उसके भवन पहुँचाया। दिवोदास को जो आपने रक्षा की, वह प्रसिद्ध ही है।

Hey desire accomplishing duo! You carried Bhujyu, the son of Tugr in the vehicle which flew like birds, to his parents. Divo Das too obtained your protection-shelter.

 युवोरश्विना वपुषे युवायुजं रथं वाणी येमतुरस्य शर्ध्यम्। 

आ वां पतित्वं सख्याय जग्मुषी योषावृणीत जेन्या युवां पती॥

हे अश्विनी कुमारों! आपके प्रशंसनीय दोनों घोड़े आपके संयोजित रथ को उसकी सीमा सूर्य तक समस्त देवताओं के पहले ले गये। कुमारी उषा ने इस प्रकार विजित होकर मैत्री भाव के कारण, "आप दोनों मेरे पति हो" यह कहकर आपको पति बना लिया।[ऋग्वेद 1.119.5]

हे अश्विद्वय तुम्हारे सुन्दर घोड़ों ने स्वयं जुतकर शोभित रथ को उचित स्थान पर पहुँचाया। सूर्य ने सखा भाव के लिए पधारकर "तुम मेरे परमेश्वर हो" कहकर तुम्हें वरण किया।

Hey Ashwani Kumars! Your appreciable horses take your chariot to Sun & the demigods-deities. Goddess Usha, pleased with your friendly behaviour accepted both of you as her husband.

युवं रेभं परिषूतेरुरुष्यथो हिमेन धर्मं परितप्तमत्रये। युवं शयोरवसं पिप्यथुर्गवि प्र दीर्घेण वन्दनस्तार्यायुषा॥

आपने रेभ ऋषि को चारों ओर के उपद्रवों से बचाया आपने अत्रि ऋषि के लिए हिम द्वारा अग्नि को शान्त किया। आपने शयु की गौ को दुग्धवती बनाया तथा आपने बन्दन ऋषि को दीर्घ आयु प्रदत्त की।[ऋग्वेद 1.119.6]

हे अश्विद्वय! तुमने रेभ की रक्षा की। अत्रि के लिए अग्नि को ठंडे जल से शांत किया। शत्रु की गाय को पर्याश्विनी बनाया और वंदन दीर्घ आयु प्रदान की।

You saved-protected Rebh Rishi from disturbances-nuisance and calmed down fire with ice, for Atri Rishi. You made the cow of Shyu milch & granted long life to Bandan Rishi.

युवं वन्दनं निर्ऋतं जरण्यया रथं न दस्रा करणा समिन्वथः। 

क्षेत्रादा विप्रं जनथो विपन्यया प्र वामत्र विधते दंसना भुवत्॥

जिस प्रकार से पुराने रथ को शिल्पी नया कर देता हैं, हे निपुण दस्त्रद्वय! उसी प्रकार आपने भी अति वृद्ध वन्दन ऋषि को पुनः युवा बना दिया। गर्भ में स्थित वामदेव द्वारा आपकी प्रार्थना करने पर आप दोनों उन मेधावी को गर्भ से पृथ्वी लोक में ले आये। आपका सहयोग ही मनुष्यों की सुरक्षा करता है।[ऋग्वेद 1.119.7]

हे अश्विद्वय! तुमने अपनी कुशलता से वन्दन के जीर्ण हुए शरीर रथ समान ठीक किया। वंदनाओं से हर्षित हुए तुम गर्भस्थ शिशु को भी मेधावी बनाते हो। तुम्हारा कार्य यजमान की सुरक्षा करना है।  

The way a mechanic overhaul the vehicle-chariot, you made Vandan Rishi young again (You brought his youth back). Vam Dev prayed to you while in the womb. You led his birth and brought to the earth. Its you who's cooperation protects the humans. 

अगच्छतं कृपमाणं परावति पितुः स्वस्य त्यजसा निबाधितम्। 

स्वर्वतीरित ऊतीर्युवोरह चित्रा अभीके अभवन्नभिष्टयः॥

भुज्यु के पिता तुम्र ने उनका परित्याग कर दिया। भुज्यु ने दूसरे देश में कष्ट पाने पर आप दोनों की कृपा के लिए प्रार्थना की। आप उनके पास गये। आपका यह रक्षण कार्य अत्यधिक अद्भुत व प्रशंसा के योग्य है।[ऋग्वेद 1.119.8]

हे अश्वि देवो! दूर देश में रुदन करते हुए भज्यु के समीप तुम गये। तुम्हारी अलौकिक रक्षाओं ने वह आश्चर्य चकित कार्य किया। 

Bhujyu's father Tugr disowned him. Bhujyu prayed to you when he faced trouble in other country. You went to him and helped him. Your amazing deeds of sheltering Bhujyu deserve appreciation.

उत स्या वां मधुमन्मक्षिकारपन्मदे सोमस्यौशिजो हुवन्यति। युवं दधीचो मन आ विवासथोऽथा शिरः प्रति वामध्यं वदत्॥

जिस प्रकार मधुमक्खी मधुर स्वर में गुंजन करती हैं, उसी प्रकार सोमरस पान की प्रसन्नता में उशिक् के पुत्र कक्षीवान् आपको बुलाते हैं। आपने जब दधीचि ऋषि का मन प्रसन्न किया, तब उनके अश्व मस्तक ने आपको मधुविद्या प्रदान की।[ऋग्वेद 1.119.9]

गायत्री में सन्निहित मधु विद्या का उपनिषदों में वर्णन इस प्रकार है :-तत्सवितुर्वरेण्यम्। मथुवाता ऋतायते मधक्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीनः सन्त्वोषधीः। भू स्वाहा भगदेवस्य धीमहि मधुनक्त मतोषसो मधुमत्यार्थिव रजः॥मधुयोररस्तु नः पिता भुवः स्वाहा थियो योनः प्रचोदयात्। मधु मान्नो वनस्पतिमधू मा अस्तु सूर्य माध्वीर्गावो नः स्वः स्वाहा। सवांव मदुमती रहभेवेद संभूर्भूव स्वः स्वाहा॥

तत्सवितुर्वरेण्यं :- मधु वायु चले, नदी और समुद्र रसमय होकर रहें। औषधियाँ हमारे लिए सुखदायक हों।

भगदेवस्य धीमहि :- रात्रि और दिन हमारे लिए सुखकारी हों, पृथ्वी की रज हमारे लिये मंगलमय हो दयुलोक हमें सुख प्रदान करें।

यो योनः प्रचोदयात् :- वनस्पतियाँ हमारे लिए रसमयी हो। सूर्य हमारे लिये सुखप्रद हो उसकी रश्मियों हमारे लिए कल्याणकारी हो। सब हमारे लिए हों में सबके लिये मधुर बन जाऊँ।

Please refer to :: मधु विद्या santoshhindukosh.blogspot.com

इस मधुर मक्षिका ने मीठी वाणी से तुम्हारी वंदना की। कक्षीवान ने सोम रस के आनन्द में तुम्हें पुकारा। तुमने दध्य हृदय को आकृष्ट करके उस पर रखे अश्व सिर में मधु विद्या की शिक्षा ली है। 

The way the honey bee buzz in sweet sound, the son of Ushik, Kakshiwan call for enjoying Somras. when we pleased the innerself of Dadhichi Rishi, he granted you Madhu Vidya with his mouth which was that of a horse.

युवं पेदवे पुरुवारमश्विना स्पृधां श्वेतं तरुतारं दुवस्यथः।

शर्यैरभिद्यं पृतनासु दुष्टरं चर्कृत्यमिन्द्रमिव चर्षणीसहम्॥

हे अश्विनी कुमारों! आपने पेदु राजा को शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले शुभ्रवर्ण अश्व प्रदान किये। वह अश्व युद्ध में रत, दीप्तिमान् युद्ध में पराजित न होने वाले, समस्त कार्यों को पूर्ण करने वाले और इन्द्रदेव की तरह मनुष्यों पर विजय प्राप्त करने वाले थे।[ऋग्वेद 1.119.10]

हे अश्विदेवो! तुमने पेटु के लिए युद्ध विजेता, कुशल, अनेकों द्वारा इच्छित शत्रुओं को वशीभूत करने में इन्द्रदेव समान श्वेत वर्ण का अश्व प्रदान किया।

Hey Ashwani Kumars! You awarded white coloured horses to king Pedu, which helped in his victory. These horses were skilled in warfare, undefeated, able to accomplish all endeavours and helping hands to humans like Indr Dev. 

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (120) :: ऋषि :- उशिवपुत्र, कक्षीवान्, दीर्घतमसा, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप।
का राधद्धोत्राश्विना वां को वां जोष उभयोः। 
कथा विधात्यप्रचेताः
हे अश्विनी कुमारो! कौन-सी स्तुति आपको प्रसन्न कर सकती? आप दोनों को कौन परितुष्ट कर सकता है? एक अज्ञानी जीव आपकी सेवा कैसे कर सकता है?[ऋग्वेद 1.120.1]
हे अश्विदेवों! तुम किस प्रार्थना को चाहते हो? तुम्हें कौन प्रसन्न कर सकता है? एक अज्ञानी व्यक्ति तुम्हारी साधना किस प्रकार से करें? 
Hey Ashwani Kumars! Which prayer can satisfy you!? How can an ignorant serve-pray to you?!
विद्वांसाविद्दुरः पृच्छेदविद्वानित्थापरो अचेताः। 
नू चिन्नु मर्ते अक्रौ
अनभिज्ञ प्राणी इस प्रकार उन दोनों सर्वज्ञों की परिचर्या के उपायभूत मार्ग की जिज्ञासा करता है। अश्विनीकुमारों के सिवा सभी अज्ञ हैं। शत्रुओं द्वारा जिन पर आक्रमण नहीं हो सकता; ऐसे दोनों अश्विनी कुमार शीघ्र ही मनुष्यों पर कृपा करते हैं।[ऋग्वेद 1.120.2]
अज्ञानी व्यक्ति इन विद्वानों से ही वंदना और उपासना के तरीकों का ज्ञान ग्रहण करें। इन अश्विनी कुमारों के तुल्य सभी अज्ञानी हैं। मनुष्यों पर वे शीघ्र कृपा दृष्टि करते हैं।
The ignorant should learn the methods-procedures of worship from them. As compared to Ashwani Kumars all beings are ignorant. Ashwani Kumars who can not be attacked by the enemy, should take pity over the humans.
ता विद्वांसा हवामहे वां ता नो विद्वांसा मन्म वोचेतमद्य। 
प्रार्चद्दयमानो युवाकुः
हे सर्वज्ञ द्वय! हम आपका आह्वान करते हैं। आप अभिज्ञ हैं, हमें मननीय स्तोत्र बतायें। उन्हीं से मैं आपकी कामना करते हुए हव्य प्रदान करके प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.120.3]
हे अश्विद्वय! हम महापुरुषों का ही आह्वान करते हैं। हमको प्रार्थना योग्य मंत्र बताये। तुमको हवि प्रदान करने वाला मैं अत्यन्त भक्ति से प्रणाम करता हूँ।
Hey enlightened duo! We invite-welcome you. Please yield-disclose the Mantr for your worship-prayers. I make offerings in your honour.
वि पृच्छामि पाक्या न देवान्वषट्कृतस्याद्भुतस्य दस्रा। 
पातं च सह्यसो युवं च रभ्यसो नः
मैं आपकी ही जिज्ञासा करता हूँ, अपनी परिपक्व बुद्धि से जिज्ञासा नहीं करता। हे दस्त्रद्वय! "वषट्" शब्द के साथ अग्नि में प्रदत्त अद्भुत और पुष्टिकर सोमरस का पान करें और हमें सामर्थ्य युक्त बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.120.4]
हे अश्विद्वय! मै शिशु के समान देवगण के यज्ञ के सम्बन्ध में जानना चाहता हूँ। अधिक शक्तिशाली और भयंकर प्राणी से हमारी रक्षा करो।
I am curious about you. I wish to know more about you as an infant. Hey Ashwani Kumars! Let us make offerings in Agni-fire, offer you Somras. Kindly grant us capability, strength & protect us from the dangerous animals..
प्र या घोषे भृगवाणे न शोभे यया वाचा यजति पज्रियो वाम्। 
प्रैषयुर्न विद्वान्
आपकी जो स्तुति घोषा पुत्र सुहस्ति और भृगु द्वारा उच्चारित होकर सुशोभित हुई थी, उसी स्तुति द्वारा वज्र वंशीय ऋषि में कक्षीवान् आपकी अर्चना करता हूँ। इसलिए मैं स्तुतिज्ञ अन्न की प्राप्ति में सफल हो सकूँ।[ऋग्वेद 1.120.5]
तुम्हारी वंदना रूपी वाणी भृगु के तुल्य व्यवहार के वाले घोषा के पुत्र में सुशोभित हुई, जिसके द्वारा पज्रिवंशी तुम्हारा पूजन करता हूँ।
Your prayers recited by Suhasti the son of Ghosha & Bhragu got appreciation. I Kakshivan, of Vajr clan sing the same prayer. It gave me the food grains meant for offerings. 
श्रुतं गायत्रं तकरींनस्याहं चिद्धि रिरेभाश्विना वाम्। 
आक्षी शुभस्पती दन्
हे शोभनीय कर्मों के प्रतिपालक! गति रहित ऋषि अर्थात् अन्ध ऋजाश्च की स्तुति श्रवण करें। उसने मेरे सदृश स्तुति करके दोनों नेत्र प्राप्त किये। इसी प्रकार मेरा मनोरथ भी पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.120.6] 
यह वाणी अत्यन्त ज्ञान से भरी हुई हो। हे अश्विदेवो! तुम मेरी एक प्रार्थना श्रवण करो। मैंने तुम्हारी ही प्रार्थना की है। तुम अंधों को आँखें प्रदान करते हो, मेरी भी मनोकामना पूरी करो। 
Hey the patron of all deeds, endeavours, ventures, this prayer constitutes of enlightenment. Blind Rajashrv got his eyes by singing-reciting this prayer. Let my desires be fulfilled by this means.
युवं ह्यास्तं महो रन्युवं वा यन्निरततंसतम्। 
ता नो वसू सुगोपा स्यातं पातं नो वृकादघायोः
हे गृहदातृ द्रय! आपने महान् धनदान किया है और उसे फिर लुप्त कर दिया। आप दोनों हमारे श्रेष्ठ रक्षक बनें। पापी भेड़िये और चोरों से से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.120.7]
हे अश्विद्वय! तुम विशाल धन देते हो। हमारी रक्षा करो और पाप कर्म वाले चोरों से हमको बचाओ।
Hey house providing duo! You provided unlimited wealth to us. Let you become our protector. Please save us from wolfs and the thieves.
मा कस्मै धातमभ्यमित्रिणे नो माकुत्रा नो गृहेभ्यो धेनवो गुः।
स्तनाभुजो अशिश्वीः
किसी भी शत्रु के सामने पराजित न हों। हमारे घर से दुग्ध वती गायें, बछड़ों से अलग होकर, किसी अगम स्थान को न चली जायें।[ऋग्वेद 1.120.8]
हे अश्विदेवो! तुम हमको शत्रु से पराजित न कराओ। हमारी दूध वाली धेनुएँ बछड़े से न बिछड़े तथा अन्य स्थान को ग्रहण न हो।
Please ensure that we are not defeated by any enemy. Our milk yielding milk should not move to deserted-lonely places out of our reach, leaving behind the calf.  
दुहीयन्मित्रधितये युवाकु राये च नो मिमीतं वाजवत्यै।
इषे च नो मिमीतं धेनुमत्यै
जो आपको लक्ष्य कर आपकी स्तुति करता है, वह मित्रों की रक्षा के लिए धन प्राप्त करता है। हमें अन्न युक्त धन व गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.120.9]
हे अश्विद्वय! तुम्हारे आराधक मित्रों के लाभार्थ तुमसे विनती करें। तुम हमें शक्ति और धनों से परिपूर्ण करो। 
Any one who recite this prayer to you, receives wealth for the protection of his friends & relatives. Grant us cows and wealth along with food grains.
अश्विनोरसनं रथमनश्वं वाजिनीवतोः।
तेनाहं भूरि चाकन
मैंने अन्न देने वाले अश्विनी कुमारों का अश्व रहित, परन्तु गमन समर्थ, रथ प्राप्त कर लिया। उसके द्वारा मैं अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त करने की कामना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.120.10]
I have attained the chariot of food granting Ashwani Kumars, which is without the horses, but is capable of moving. I desire of receiving various gains by means of that.
गौओं और अन्नों की प्राप्ति की शक्ति दो। मैंने अश्विनी कुमारों से बिना अश्वों के चलने वाले रथ को अनाज के साथ प्राप्त किया है। 
अयं समह मा तनूह्याते जनाँ अनु। 
सोमपेयं सुखो रथः
हे धनपूर्ण रथ! मैं सामने ही हूँ। मुझे समृद्ध करें। उस सुखकर रथ पर आरूढ़ होकर अश्विनी कुमार स्तोताओं के सोमपान करने के लिए याज्ञिक जनों के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 1.120.11] 
मैं उसके द्वारा श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्राप्ति की आशा करता हूँ। हे धनयुक्त रथ! मुझे बढ़ा। यह सुखकारी रथ सोम रस पीने योग्य स्थानों में पहुंचकर मनुष्यों को प्राप्त होता है। 
Hey chariot full of amenities, I am before you, please enrich me. Ashwani Kumars ride that chariot to move to the devotees-hosts performing Yagy and drink Somras.
अघ स्वप्नस्य निर्विदेऽभुञ्जतश्च रेवतः। 
उभा ता बस्त्रि नश्यतः
मैं प्रातः काल के स्वप्न से घृणा करता हूँ और जो धनी दूसरे का प्रतिपालन नहीं करता, उसे भी घणित समझता हूँ। ये दोनों ही शीघ्र नाश को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 1.120.12]
प्रातः कालीन स्वप्न और सम्पदा का उपभोग न करने वाले धनिक दोनों ही प्रकार से उपेक्षा के पात्र हैं। ये शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
I hate those who discard the dreams in the morning at the time of waking up and the rich who do not care for others. Such people are bound to perish quickly.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (157) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- त्रिष्टुप, जगती।
अबोध्यग्निज्र्म  उदेति सूर्यो व्युषाश्चन्द्रा मह्यावो अर्चिषा। आयुक्षातामश्विना यातवे रथं प्रासावीद्देवः सविता जगत्पृथक्॥
भूमि के ऊपर अग्नि देव जागे, सूर्य देव उदित हुए। विराट् उषा अपने तेज द्वारा सबको प्रसन्न करके अन्धकार को दूर करती हैं। हे अश्विनी कुमारों! आप आने के लिए अपना रथ नियोजित करें। सम्पूर्ण संसार को अपने-अपने कर्मों में सविता ने उनके कर्मों में प्रवृत्त कर दिया।[ऋग्वेद 1.157.1]
अग्निदेव चैतन्य हुए, सूर्य उदित हुए, आनंददायिनी उषा ज्योति के साथ पधारी। अश्विदेवों ने रथों को जोड़ा और सविता देव ने संसार को उत्तम शिक्षा प्रदान की।
Agni Dev became conscious, Sun rose, vast Usha's energy-aura made every one happy and removed darkness. Hey Ashwani Kumars! You should deploy your chariote to arrive here. Savita has engaged the whole world-living beings in their schedule (endeavours, works) 
यद्युञ्जाथे वृषणमश्विना रथं घृतेन नो मधुना क्षत्रमुक्षतम्। 
अस्माकं ब्रह्म पृतनासु जिन्वतं वयं धना शूरसाता भजेमहि
हे अश्विनी कुमारों! जिस समय आप लोग वृष्टि दाता रथ को तैयार करते हैं, उस समय मधुर जल द्वारा हमारा बल बढ़ावें। हमारी प्रजाओं में ज्ञान की वृद्धि करें। हम वीर संग्राम शत्रुओं को पराजित करते हुए उनके धनों को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.157.2]
हे रथ को जोतने वाले अश्वि देवो! हमारी मातृभूमि को मधु और घृत से सिंचित करो। हमारी वंदनाओं को युद्ध में शक्तिशाली बनाओ। हम युद्ध में व्यापक धन को जीत कर प्राप्त करें।
Hey Ashwani Kumars! You deploy your chariote to make rain showers to provide sweet water. Make the populace knowledgeable-enlightened. Let us win the enemy in the battle-war and get their riches. 
अर्वाङत्रिचक्रो मधुवाहनो रथो जीराश्वो अश्विनोर्यातु सुष्टुतः। 
त्रिवन्धुरो मघवा विश्वसौभगः शं न आ वक्षद्विपदे चतुष्पदे
अश्विनी कुमारों का तीन पहियों वाला, मधु युक्त, तेज घोड़ों से संयुक्त प्रशंसित, तीन बन्धनों वाला धनपूर्ण और सर्वसौभाग्य सम्पन्न रथ हमारे समक्ष आवे और हमारे द्विपद और चतुष्पद को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.157.3]
तुम्हारा तीन पहियों वाला रथ, धनो से युक्त द्रुतगामी हमारी प्रार्थनाओं द्वारा प्रत्यक्ष हो और हमारे दुपाये तथा चौपाये पशुओं को सुखी बनाएँ। 
Let the chariote of Ashwani Kumars, run over three wheels, possessing sweetness-honey, deploying fast moving-running horses, having the three bonds, with wealth and capable of granting auspiciousness come and grant comforts to the living beings having either two of four legs.
आ न ऊर्जं वहतमश्विना युवं मधुमत्या नः कशया मिमिक्षतम्। 
प्रायुस्तारिष्टं नी रपांसि मृक्षतं सेधतं द्वेषो भवतं सचाभुवा॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमें प्रचुर मात्रा में अन्न प्रदान करें। हमें मधु (शहद) से भरा हुआ पात्र प्रदान करें तथा हमें दीर्घायु प्रदान कर हमारे सभी विकारों को दूर करें और द्वेषियों का विनाश कर हमारे समस्त कर्मों में सहायक बनें।[ऋग्वेद 1.157.4]
हे अश्विद्वय! तुम हमको बलशाली बनाओ। मीठे रस से हमको सींचों। हमारी आयु की वृद्धि करो। पापों को दूर करो, शत्रुओं को हटाओ और हर प्रकार से हमारी सहायता करो।
Hey Ashwani Kumars! Both of you grant us food grains in sufficient quantity. Grant us the urn full of honey and remove all of our defects (ailments, illness, diseases). Grant us long life and destroy the envious helping us in all of our endeavours, efforts, goals, targets.
Ashwani Kumars are the doctors-physicians of demigods-deities. They are the sons of Sun-Sury Bhagwan-Narayan. Honey has amazing curative effect-powers. 
युवं ह गर्भं जगतीषु धत्थो युवं विश्वेषु भुवनेष्वन्तः। 
युवमग्निं च वृषणावपश्च वनस्पतींरश्विनावैरयेथाम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों गमन शील गौओं और सम्पूर्ण संसार के प्राणियों में अन्तः स्थित गर्भ की रक्षा करें। हे अभीष्ट वर्षक द्वय! अग्नि, जल और वनस्पतियों को प्रेरित करें।[ऋग्वेद 1.157.5]
हे अश्विद्वय! तुम गौओं में गर्भ धारण करते हो। तुम अग्नि, जल और वनस्पतियों को आकृष्ट करते हो।
Hey Ashwani Kumars! You should protect the bomb-zygote of the moving cows and all living beings. Hey boon-desire granting duo, inspire the Agni-fire (Agni Dev), water (Varun Dev) and vegetation.
युवं ह स्थो भिषजा भेषजेभिरथो ह स्थो रथ्याराथ्येभिः। 
अथो ह क्षत्रमधि धत्थ उग्रा यो वां हविष्मान्मनसा ददाश
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों उत्तम औषधियों से युक्त श्रेष्ठ वैद्य है तथा उत्तम रथ से युक्त श्रेष्ठ रथी भी हैं। हे पराक्रमी अश्विनी कुमारों! जो आपके निमित्त श्रद्धा युक्त होकर हविष्यादि प्रदत्त करते हैं, उन्हें आप दोनों क्षात्र धर्म के निर्वाह के लिए शौर्य और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.157.6]
पराक्रमी :: शूर, वीर, पुरुषार्थी; mighty, chivalric.
Definitions from Oxford Lहे उग्र अश्वि द्वय! तुम औषधि वाले वैद्य हो, रथ वाले रथी हो। तुम्हारे लिए जो मन से हवि प्रदान करता है, उसे तुम समृद्धिवान बनाते हो।
Hey Ashwani Kumars! Both of you are excellent physicians-doctors and chariote drivers too. Hey mighty-chivalric! One who make offerings to you, is granted the power to discharge his duties (Dharm) as a Kshatriy (Warriors, marshal caste) and attain amenities-wealth, comforts, luxuries.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (158) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- त्रिष्टुम्, अनुष्टुप्।
वसू रुद्रा पुरुमन्तू वृधन्ता दशस्यतं नो वृषणावभिष्टौ। 
दस्त्रा ह यद्रेक्ण औचथ्यो वां प्र यत्सत्राथे अकरोंभिरूती
हे अभीष्ट वर्षक, निवास दाता, पाप हन्ता, बहुज्ञानी, स्तुति द्वारा बर्द्धमान और पूजित अश्विनी कुमारों! हमें अभीष्ट फल प्रदान करें, क्योंकि उचथ्य के पुत्र दीर्घतमा आपकी प्रार्थना करते हैं और आप प्रशंसनीय रीति से उसे आश्रय प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.158.1]
हे अश्वि देवो! उच्चय पुत्र दीर्घतमा द्वारा माँगे गये सुरक्षा साधन परिपूर्ण धनों को हमें प्रदान करो।
Hey the desires fulfilling-boon granting, shelter providing-protector, enlightened, available by prayers worshiped Ashwani Kumars! Grant us the desired reward-result. Uchathy's son requests-prays you. You grant him asylum through appreciable means-methods.
को वां दाशत्सुमतये चिदस्यै वसू यद्धेथे नमसा पदे गोः। 
जिगृतमस्मे रेवती: पुरंधीः कामप्रेणेव मनसा चरन्ता॥
हे निवास प्रद अश्विनी कुमारों! आपके इस अनुग्रह के सामने कौन आपको हव्य प्रदान कर सकता है? अपने यज्ञीय स्थान पर हमारी स्तुति सुनकर अन्न के साथ आप लोग बहुत धन देना चाहते हैं। शरीर पुष्टिकर, शब्दायमाना और बहुत दूध देने वाली गायें प्रदान करें। यज की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए आप लोग कृत संकल्प होकर विचरण करते हैं।[ऋग्वेद 1.158.2]
हे अश्विद्वयो! तुम वेदी स्थान में हमारे लिए नमस्कारों से जिस मति को धारण करते हो, उस धन से परिपूर्ण मति को हमारे अभिष्ट पूर्ण करने में लगाओ।
Hey asylum granting Ashwani Kumars! Please accept our offerings at the Yagy site, give us a lot of money and food grains. Give us cows which yield nourishing milk. You are always willing-ready to grant the desires of the Ritviz-the host in the Yagy. 
युक्तो ह यद्वां तौग्र्याय पेरुर्वि मध्ये अर्णसो धायि पज्र:। 
उप वायवः शरणं गमेयं शूरो नाज्म पतयद्भिरेवैः
हे अश्वनी कुमारों! तुग्र के पुत्र भुज्यु की रक्षा के लिए आपने गति शील यान को समुद्र के मध्य में ही अपनी शक्ति से स्थिर किया। वीर पुरुष जिस प्रकार युद्ध में जाते हैं, उसी प्रकार से ही संरक्षण पूर्ण आश्रय प्राप्ति के लिए हम आप दोनों के पास पहुँचे।[ऋग्वेद 1.158.3]
हे अश्विद्वय! तुग्र का जो पुत्र समुद्र में डाला गया था, उसे पार लगाने को तुम्हारा रथ जोड़ा गया था। जैसे तुम द्रुतगामी घोड़ों से युद्ध में पहुँचते हो, वैसे ही मैं तुम्हारी शरण प्राप्त करूँ।
Hey Ashwani Kumars! You stationed (made is stationary) your plane in the middle of the ocean with your power, for saving the son of Tugr called Bhujyu. The way the brave-warriors goes to the war, we come to you for seeking protection and asylum under you. 
उपस्तुतिरौचथ्यमुरुष्येन्या मामिमे पतत्रिणी वि दुग्याम्। 
मा मामेघो दशतयश्चितो धाक् प्र यद्वां बद्धस्त्मनि खादति क्षाम्
हे अश्विनी कुमारों! आपकी स्तुति दीर्घतमा की रक्षा करे। प्रति दिन घूमने वाले अहोरात्र हमें जीर्ण-शीर्ण न करें। दस बार प्रज्वलित अग्नि भी मुझे जला न सके, क्योंकि आपके आश्रित यह व्यक्ति पाशबद्ध होकर पृथ्वी पर असहाय अवस्था में पड़ा है।[ऋग्वेद 1.158.4]
हे अश्विद्वय! ये प्रार्थना उच्च पुत्र की रक्षा करें, ये गतिमान दिन और रात मुझे कमजोर न करें। दस गुणा ढेर वाला ईंधन मुझे न जलाएँ। तुम्हारे आश्रय को प्राप्त मैं धरती पर झुका हूँ।
Hey Ashwani Kumars! Let your prayers protect Dirghtama. Rotating-cycling day & night should not weaken us. The fire with 10 times of its normal strength, should not be able to burn me. I am lying over the earth, tied with ropes.
न मा गरन्नद्यो मातृतमा दासा यदीं सुसमुब्धमवाधुः। 
शिरो यदस्य त्रैतनो वितक्षत्स्वयं दास उरो अंसावपि ग्ध॥
अचध्य के पुत्र दीर्घतमा को दस्युओं ने पाशों में जकड़कर नदी में फेंक दिया, तब मातृ रूपा उन नदियों ने उन्हें संरक्षण प्रदान किया। जब त्रैतन नामक असुर ने सिर, छाती और कन्धे को काटने का प्रयत्न किया तब आपके संरक्षण के कारण आपका वह सेवक सुरक्षित रहा। इसके विपरीत त्रैतन असुर के ही अंग कट गये।[ऋग्वेद 1.158.5]
हे अश्विद्वय! मातृ रूप सरिता का जल भी मुझे डुबोने में असमर्थ रहे। दस्युओं ने इस संग्राम में बाँधकर फेंक दिया। "त्रैतन" असुर ने जब मेरा सिर काटने की चेष्टा की तब वह अग्नि आप ही कन्धों से आहत हुआ।
When Dirghtama, the son of Achadhy was thrown into the river, tied with ropes, the rivers in the form of mothers granted him asylum. When the demon Traetan tried to cut his head, chest and the shoulders, he remained safe due to your patronage. On the other hand the organs of Traetan were chopped off. 
दीर्घतमा मामतेयो जुजुर्वान्दशमे युगे। 
अपामर्थं यतीनां ब्रह्मा भवति सारथिः
ममता के पुत्र ऋषि दीर्घतमा एक सौ ग्यारहवें वर्ष में वृद्धावस्था को प्राप्त हुए। ये ब्रह्म ज्ञान से युक्त, सभी का संचालन करने वाले सारथी के सदृश बने। इन्होंने संयमशील उत्तम कर्मों द्वारा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.158.6]
ममता का दीर्घतमा दस काल पश्चात् वृद्ध हुआ। कर्मफल की कामना से प्रार्थना करने वाले स्तोता रथ युक्त हुए।
Rishi Dirghtama became aged after 110 years. He was enlightened and became the patron of all like the chariote driver. He attained Dharm, Arth, Kam & Moksh the four goals (aims, targets) of being a human being.
One gets birth as a human being to discharge his duties as per Varnashram Dharm. He should earn sufficient money to support his family and discharge his financial liabilities. He should marry and produce progeny. Sex should be used as a means for producing next generation, not for lust, satiation of passions. Sensuality, sexuality, lasciviousness is harmful-dangerous. Having fulfilled all of his liabilities one should opt for retirement from active life, transferring his assets, responsibilities to the son.
We are passing through Kali Yug, hence one should have sufficient money to look after our own self without depending over the progeny.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (180 ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
युवो रजांसि सुयमासो अश्वा रथो यद्वां पर्यर्णांसि दीयत्। 
हिरण्यया वां पवयः प्रुषायन्मध्वः पिबन्ता उषसः सचेथे
हे अश्विनी कुमारों! जिस समय आप शोभन गति वाले घोड़े आपको लेकर अभिमत प्रदेश में जाते हैं, उस समय आपके हिरण्यमय रथ की नेमि अभिमत प्रदान करती है, इसलिए आप उषाकाल में सोमरस का पान करते हुए यज्ञ में आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 1.180.1]
अभिमत :: अनुकूल, अनुगुण, सुरीला, सामंजस्यपूर्ण; favourite, beloved.
हे अश्विनी कुमारों! तुम्हारे अश्व आकाश में भी गतिमान हैं। तुम्हारा रथ समुद्र के चारों ओर चलता हुआ वर्धक होता है। तुम मधुर रस का पान करते हुए उषाओं के साथ चलते हो।
Hey Ashwani Kumars! When your gracefully running horses pulls the charoite with golden hue towards the favourite places, you sip Somras in the morning hours (dawn-day break).   
युवमत्यस्याव नक्षथो यद्विपत्मनो नर्यस्य प्रयज्योः। 
स्वसा यद् वां विश्वगूर्ती भराति वाजायेट्टे मधुपाविषे च
हे सर्वस्तृत मधुपायी अश्विनी कुमारों! जिस समय आपकी बहिन स्थानीय उषा उपस्थित होती हैं, जिस समय अन्न और बल के लिए यजमान आपको स्तुति करता है, उस समय आपको सततगन्ता, विचित्र गतिशील, मनुष्य हितैषी और विशिष्ट रूप से पूजनीय रथ निम्नाभिमुख जाता है।[ऋग्वेद 1.180.2]
हे मधुर पायी अश्विद्वय! तुम वंदनाओं के योग्य हो। जब उषा प्रकट होती है, तब तुम अत्यन्त पूजनीय रथ पर सवार होकर यजमान की अन्न, शक्ति प्राप्ति की वंदनाओं के प्रति जाते हो।
Hey honey consuming Ashwani Kumars! The hosts (devotees, Ritviz) pray to you for food stuff and strength in the presence of your sister Usha (dawn), when you ride the revered charoite, moving with constant & amazing speed.  
युवं पय उस्त्रियायामधत्तं पकमामायामव पूर्व्यं गोः। 
अन्तर्यद्वनिनो वामृतप्सू ह्वारो न शुचिर्यजते हविष्मान्
हे सत्य रूप अश्विनी कुमारो! आपने गायों में दुग्ध स्थापित किया। आपने अप्रसूता गौओं में भी दुग्ध का संचार किया और वनों में जागरूक रहने वाले विशुद्ध स्वभाव वाले यजमान हवि वाले यज्ञ में आपकी स्तुति करते है।[ऋग्वेद 1.180.3]
हे सत्य स्वरूप अश्विद्वय! तुमने धेनुओं को पयस्विनी बनाया है। वन-वृक्षों के बीच हमेशा जागरुक यजमान तुम्हारे लिए हवि देता हुआ पूजन करता है।
Hey truthful Ashwani Kumars! You made the cows milch. The pure hearted host-devotees pray to you and make offerings in the Yagy.
युवं ह घर्मं मधुमन्तमत्रयेऽपो न क्षोदोऽवृणीतमेषे। 
तद्वां नरावश्विना पश्वइष्टी रथ्येव चक्रा प्रति यन्ति मध्वः
हे नराकार अश्विनी कुमारों! आपने अत्रि मुनि की सहायता की इच्छा से दीप्त दुग्ध और घृत को जल प्रवाह की तरह प्रवाहित किया, इसलिए आपके लिए अग्नि में यज्ञ किया जाता है। निम्म्र देश में रथ चक्र की तरह सोमरस आपके लिए आता है।[ऋग्वेद 1.180.4]
अश्विद्वय! तुमने सहायता की इच्छा करने वाले अत्रि के लिए अग्नि के ताप को जल के समान शीतल कर दिया। इसलिए अग्नि में तुम्हारे लिए हवन किया जाता है और रथ के पहिये की तरह सोम रस तुम्हारी ओर जाता है।
Hey Ashwani Kumars in the form of humans! You desired to help Atri made milk & ghee flow like water (for them). Sacrifices are offered to you in holy fire. Somras comes to you just as the movement of charoite wheels.  
आ वां दानाय ववृतीय दस्रा गोरोहेण तौग्र्यो न जिद्रि:। 
अपः क्षोणी सचते माहिना वां जूर्णो वामक्षुरंहसो यजत्रा
हे यजनीय अश्विनी कुमारों! वृद्ध तुग्र राजा के पुत्र की तरह मैं स्तुति द्वारा अभिमत लाभ के लिए आपको यज्ञ देश में ले आऊंगा। आपकी महिमा से द्यावा-पृथ्वी परस्पर संव्याप्त है। यह अतिवृद्ध ऋषि पाप मुक्त होकर दीर्घ जीवन को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.180.5]
हे अश्विद्वय! मैं प्राचीन काल में हुए "तुंग" राजा के पुत्र के तुल्य प्रार्थना करता हुआ, धेनु के लिए अपनी ओर पुकारता हूँ। तुम्हारी समृद्धि से धरा जलों से पूर्ण होती और तुम्हारी कृपा दृष्टि से पाप का फन्दा भी छूट जाता है। 
Hey prayer deserving Ashwani Kumars! I will take you to the Yagy site by pleasing you with the recitation of hymns like the son of old-aged Tugr. Your glory is spread over the earth & the horizon. Let this too old Rishi-sage become free from sins and survive for long.
नि यद्युवेथे नियुतः सुदानू उप स्वधाभिः सृजथः पुरंधिम्। 
प्रेषद्वेषद्वातो न सूरिरा महे ददे सुव्रतो न वाजम्
हे शोभन दान वाले अश्विनी कुमारों! जिस समय आप नियुत नाम के घोड़ों को रथ में नियोजित करते हैं, उस समय अन्न से पृथ्वी को भर देते हैं, इसलिए वायु की तरह स्तोता गण आप दोनों को तृप्त करते हैं। उत्तम कर्म वाले व्यक्ति की तरह स्तोता अपने जीवन के लिए अन्न को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.180.6]
हे नभ अश्विद्वय! जब तुम अश्वों को जोतते हो, तब अन्नों वाली वृद्धि देते हो। उस समय सुखी हुआ स्तोता और अपने महत्त्व के लिए अन्न बल प्राप्त करता है।
Hey plentiful donors Ashwani Kumars! You fill the earth with lot of food grains, when you deploy your horses named Niyut. Hence, the devotees the hosts-Ritviz satisfy you with prayers-hymns. The devotees accept the food grains for their survival like one who perform excellent deeds. 
वयं चिद्धि वां जरितारः सत्या विपन्यामहे वि पणिर्हितावान्। 
अधा चिद्धि ष्माश्विनावनिन्द्या पाथो हि ष्मा वृषणावन्तिदेवम्
हे स्तुति पात्र और अभीष्ट वर्षी अश्विनीकुमारों! हम भी आपके स्तोता और सत्य प्रतिज्ञ होकर विभिन्न प्रकार से स्तुति करते हैं। द्रोण कलश स्थापित हुआ है। आप देवों के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.180.7]
द्रोण कलश :: यज्ञ आदि में सोम छानने का वैकंक लकड़ी का बना हुआ एक प्राचीन पात्र।
हे अश्विद्वय! हम सत्यभाषी स्तोता श्रद्धापूर्वक तुम्हारी प्रार्थना करते हैं। तुम अभीष्ट दाता तुम अभीष्ट दाता और अनिंद्य हो, देवताओं के पास बैठकर सोम ग्रहण करो।
Hey prayers deserving, accomplishments granting-desire (wishes) fulfilling Ashwani Kumars! We pray to you in different manners, with pure heart to stick to truth. Dron Kalash, the pot for keeping Somras has been kept ready for you and the demigods-deities.
युवां चिद्धि ष्माश्विनावनु द्यून्विरुद्रस्य प्रस्रवणस्य सातौ। 
अगस्त्यो नरां नृषु प्रशस्त: काराधुनीव चितयत्सहस्त्रैः
हे अश्विनी कुमारों! कर्म निर्वाहक लोगों में श्रेष्ठ अगस्त्य ऋषि ग्रीष्म ऋतु के दुःख निवारक स्तोत्र की प्राप्ति के लिए शब्द उत्पन्न करने वाले शङ्ख आदि की तरह हजार स्तुतियों द्वारा आपको प्रति दिन जगाते हैं।[ऋग्वेद 1.180.8]
हे अश्विद्वय! महान कर्मवान अगस्त्य कष्ट निवारक श्लोक की प्राप्ति के लिए शंखों के समान गर्जते हुए हजारों वंदनाओं से तुम्हें चैतन्य करते हैं।
Hey Ashwani Kumars! Best amongest the performers, Maharshi August awake you with the recitations of thousands of Strotr & blowing of conch, which can reduce-vanish the pangs of summers. 
प्र यद्वहेथे महिना रथस्य प्र स्पन्द्रा याथो मनुषो न होता। 
धत्तं सूरिभ्य उत वा स्वव्यं नासत्या रयिषाचः स्याम
हे सत्य का पालन करने वाले गतिशील अश्विनी कुमारों! आप दोनों अपने रथ में बैठकर वेग के साथ यज्ञ करने वाले के पास पहुँचते हैं और उसे अश्वों से युक्त करते हैं, उसी प्रकार से हमें भी धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.180.9]
हे अश्विद्वय! तुम महिमा वाले रथ से यात्रा करते हो और होता के समान आते हो। प्रार्थनाओं को सुन्दर अश्व प्रदान करते हो। तुम असत्य से परे हो, हमको धन प्रदान कराओ।
Hey truthful fast moving Ashwani Kumars! The way-manner in which you reach the Yagy performers, riding your charoite with fast speed and associate it with the horses, bless us with riches in the same manner.
तं वां रथं वयमद्या हुवेम स्तोमैरश्विना सुविताय नव्यम्। 
अष्टिनेमिं परि द्यामियानं विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे अश्विनी कुमारों! चारों ओर आकाश में भ्रमण करने वाला आपका रथ हमारे पास आवे, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.180.10]
हे अश्विद्वय! नभ में घूमने वाले तुम्हारे रथ का हम आह्वान करते हैं। हम अन्न, पराक्रम और आय लाभ करें।
Hey Ashwani Kumars! Let your charoite roaming all around the sky, come to us and bless us with food grains, valour-might and boosing of income.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (181) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
कदु प्रेष्ठाविषां रयीणामध्वर्यन्ता यदुन्निनीथो अपाम्अ। 
अयं वां यज्ञो अकृत प्रशस्ति वसुधिती अवितारा जनानाम्
हे प्रियतम धनधारी और मनुष्यों के आश्रयदाता अश्विनी कुमारो! आप यज्ञ हेतु जल, अन्न और धन-सम्पदाओं को प्रेरित करते हैं। इस यज्ञ में आप की ही प्रशंसा होती है। वह क्रम किस समय से आप प्रारम्भ करेंगे?[ऋग्वेद 1.181.1]
हे अश्विद्वय! अन्न, धन और जल में ऐसा क्या है जिसे अनुष्ठान पूर्ण करने की कामना करते हुए ऊपर ही उठाये हुए हो? इस अनुष्ठान में तुम्हारी ही प्रशंसा होती है।
Hey possessor riches-wealth, protector of humans Ashwani Kumars! You provide water, food grains, riches to join Yagy. Its you who is appreciated for the Yagy. When will you begin with the series of the Yagy?!
आ वामश्वासः शुचयः पयस्या वातरंहसो दिव्यासो अत्याः। 
मनोजुवो वृषणो वीतपृष्ठा एह स्वराजो अश्विना वहन्तु
हे अश्विनी कुमारो! आपके दीप्तिशाली, वृष्टिमान करने वाले, वायु की तरह वेग वाले, स्वर्गीय गतिशील, मन की तरह वेगवान् युवा और शोभन पृष्ठ वाले अश्व आपको इस यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 1.181.2]
हे अश्विदय! पवन के तुल्य प्रचण्ड शीघ्रगामी, गतिवान, शोभनीय उज्जवल घोड़े तुम्हें यहाँ लायें।
Hey Ashwani Kumars! Let your horses with shinning back, running as fast as wind and the mind bring you here in the Yagy. 
आ वां रथोऽवनिर्न प्रवत्वान्त्सृप्रवन्धुरः सुविताय गम्याः। 
वृष्णः स्थातारा मनसो जवीयानहंपूर्वो यजतो धिष्ण्या यः
हे ऊँचे स्थान के योग्य और रथासीन अश्विनीकुमारों! भूमि की तरह अत्यन्त विस्तृत, उत्तम मित्र वाले, वर्षा करने में समर्थ, मन की तरह वेगवाले, अहंकारी और यजनीय रथ को यज्ञ में ले आयें।[ऋग्वेद 1.181.3]
हे प्रशंसनीय कर्म वाले अश्विद्वय! तुम्हारा रथ कल्याण के लिए यहाँ आए। वह अत्यन्त गतिवान महान और पूजने योग्य है। 
Hey Ashwani Kumars deserving high position, riding the charoite! Bring your charoite here which is wide, capable of causing rains & welfare, moves as fast as the mind, deserving worship. 
इहेह जाता समवावशीतामरेपसा तन्वा नामभिः स्वैः।
जिष्णुर्वामन्यः सुमखस्य सूरिर्दिवो अन्यः सुभगः पुत्र ऊहे
हे अश्विनी कुमारो! आपने सूर्य और चन्द्र के रूप से जन्म ग्रहण किया। आप पाप शून्य हैं। आपके शरीर सौन्दर्य और नाम महिमा के कारण मैं बार-बार आपकी स्तुति करता हूँ। आप एक यज्ञ प्रवर्तक होकर संसार को धारण करते हैं और दूसरे द्युलोक के पुत्र रूप होकर विविध रश्मियों को धारण करते हुए संसार को धारित किए हुए हैं।[ऋग्वेद 1.181.4]
प्रवर्तक :: उत्प्रेरक, क्रियावर्द्धक, क्रियात्मक, चालू करने वाला, प्रणेता, जनक, संवर्धक; originator, promoters, activator.
हे अश्विद्वय! तुम अपराध रहित तन से प्रकट होकर स्तुतियाँ प्राप्त करते हो। तुममें दूसरा नभ का पुत्र हुआ। सौभाग्य को धारण करता है।
Hey Ashwani Kumars! You are like Sun & the Moon, free from sins. Let me describe-elaborate your glory and beauty with the help of chosen Strotr. As a promotor of Yagy and the second son of the space-horizon (sky) you bear-support the universe possessing various rays.  
प्र वां निचेरुः ककुहो वशाँ अनु पिशङ्गरूपः सदनानि गम्याः। 
हरी अन्यस्य पीपयन्त वाजैर्मथ्रा रजांस्यश्विना वि घोषैः
हे अश्विनी कुमारो! आपमें से एक का श्रेष्ठ और पीतवर्ण रथ इच्छानुसार हमारे यज्ञ गृह में पधारे और दूसरे के मन्थन से उत्पन्न घोड़े, अन्नों और मन्त्रों सहित लोकों को पुष्टि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.181.5]
हे अश्विद्वय! तुम दोनों में से एक का अत्यन्त गतिमान रथ इच्छा वालों के घरों को ग्रहण हो और दूसरों के घोड़े मन्त्रों से पुष्ट होते हुए हमारी प्रार्थनाओं से प्रसन्न हो।
Hey Ashwani Kumars! The excellent yellowish charoite of one of you should come to our house, of its own. The second charoite should  produce us horses, food stuff and give strength to all abodes with the help of Mantr-hymns.
प्र वां शरद्वान्वृषभो न निष्षाट् पूर्वीरिषश्चरति मध्व इष्णन्। 
एवैरन्यस्य पीपयन्त वाजैर्वेषन्तीरूर्ध्वा नद्यो न आगुः
हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों में से एक शत्रुओं की सेना को हराने वाला और अन्न में विद्यमान मीठे रस की उत्पत्ति के लिए सर्वत्र विचरण करने वाला है। दूसरे के अन्नों को समृद्ध करने वाली ऊर्ध्वगामी नदियों को वेगपूर्वक प्रवाहित करते हुए आप दोनों हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 1.181.6]
हे अश्विद्वय! तुम दोनों में से एक रथ अन्नों में विचरण करता है तथा दूसरे के भ्रमण से फूलती हुई जल धारायें हमको सींचती हैं।
Hey Ashwani Kumars! Either of you is capable of defeating the enemy and roam all around to generate sweet sap in the food grains. The other one makes the rivers flowing with high speed to enrich the food grains. Both of you come to us. 
असर्जि वां स्थविरा वेधसा गीर्बाळ्हे अश्विना त्रेधा क्षरन्ती। 
उपस्तुताववतं नाधमानं यामन्नयामञ्छृणुतं हवं मे
हे विधाता अश्विनी कुमारो! आपकी स्थिरता की प्राप्ति के लिए अत्यन्त स्थिर स्तुतियाँ रची जाती हैं। वह तीन तरह से आपके पास जाती हैं। आप प्रशंसित होकर याचना करने वाले की रक्षा हेतु उसका आवाहन श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 1.181.7]
हे अश्विद्वय! तुम्हारी दृढ़ता के लिए वंदनाएँ निर्मित की जाती हैं। वे तीन प्रकार से तुम्हारे लिए ग्रहण होती हैं। तुम विनती करने वाले यजमान के रक्षक बनों और चलते हुए या रुककर मेरी पुकार को सुनो।
Hey Ashwani Kumars, a form of the God! Hymns are composed for your strength and stability. These prayers-hymns reach you in three ways. You listen to these prayers to help the devotees-those who want your blessings, for their protection. 
उत स्या वां रुशतो वप्ससो गीस्त्रिबर्हिषि सदसि पिन्वते नॄन्। 
वृषा वां मेघो वृषणा पीपाय गोर्न सेके मनुषो दशस्यन्
हे सामर्थ्यवान् अश्विनी कुमारो! यह स्तोत्र वाणी आप दोनों का गुणगान करते हुए तीन कुशासनों से युक्त यज्ञ-स्थल में मनुष्यों को परिपुष्ट करती हैं। इस प्रकार गौ दूध देकर पौष्टिकता से प्रदान करती है, उसी प्रकार आपकी प्रेरणा से मेघ भी जल (पोषण) प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.181.8]
हे अश्विद्वय! तुम दोनों के प्रदीप्त रूप का गान करने वाली वाणी यज्ञ ग्रह के प्राणियों को बढ़ाने वाली है। तुम्हारा जल वर्षा द्वारा धेनुओं के समान मधुर हो।
Hey capable Ashwani Kumars! These Strotr-compositions appreciate you  and strengthen the Yagy of the humans through three Kushasan (cushions made of Kush grass). The way the milk yielded by the cow grant strength-nourishment, the clouds too rain and grant nourishment.  
युवां पूषेवाश्विना पुरंधिरग्निमुषां न जरते हविष्मान्। 
हुवे यद्वां वरिवस्या गृणानो विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे अश्विनी कुमारो! पूषा की तरह बहु प्रज्ञाशाली और हविष्मान् यजमान अग्निदेव और उषादेवी की तरह आपकी स्तुति करता है। जिस समय पूजा में रत स्तोता आपकी स्तुति करता है, उस समय यजमान भी आपकी स्तुति करता है, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.181.9]
हे अश्विनी कुमारो! पूजा की तरह अत्यन्त बुद्धिमान हविदाता अग्नि और उषा के समान तुम्हारी प्रार्थना करता हूँ। मैं तुम्हारी सेवा करता हुआ आह्वान करता हूँ। मैं अन्न, बल, और दानशीलता प्राप्त करूँ।
Hey Ashwani Kumars! The prudent hosts-Ritviz who have calibre like Pusha, making offerings to Agni Dev and Usha, pray to you. When the Strotr reciting worshiping person pray to you and the hosts too pray to you, so as to attain food grains, strength-power and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (182) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
अभूदिदं वयुनमो षु भूषता रथो वृषण्वान्मदता मनीषिणः। 
धियंजिन्वा धिष्ण्या विश्पलावंसू दिवो नपाता सुकृते शुचिव्रता
हे मनीषी ऋत्विकों! हमारी ऐसी धारणा हो रही है कि अश्विनी कुमारों का अभीष्ट वर्षी रथ उपस्थित है। उसके आगे जाकर उनकी प्रतीक्षा करें। वे पुण्यात्माओं के कर्म को करते हैं। वे स्तुति योग्य हैं। उन्होंने विश्पला का हित किया था। वे स्वर्ग के नप्ता हैं। उनका कर्म पवित्र है।[ऋग्वेद 1.182.1]
नप्ता :: लड़की या लड़के की संतान, नाती या पोता; grandson or grand daughter.
हे विद्वानों! अश्विनी कुमारो के उत्तम रथ को स्वयं सजाओ। वे बुद्धि को प्रेरित करने वाले पूजनीय "विश्पला" की भलाई करने वालों तथा महान कर्म वालों के लिए सिद्धान्तों से परिपूर्ण रहते हैं। 
Hey learned (scholars)! We believe that the charoite of the wish fulfilling Ashwani Kumars has arrived-present here. Let us move to welcome them. They support those who perform virtuous-pious, righteous deeds. They deserve worship. They helped Vishpala. They are the grand children of the heavens. Their endeavours are pious. 
इन्द्रतमा हि धिष्ण्या मरुत्तमा दस्त्रा दंसिष्ठा रथ्या रथीतमा। 
पूर्ण रथं वहेथे मध्व आचितं तेन दाश्वांसमुप याथो अश्विना
हे अश्विनी कुमारो! आप अवश्य ही इन्द्र श्रेष्ठ, स्तुति योग्य, मरु श्रेष्ठ, शत्रु नाशक, उत्कृष्ट कर्मचारी, स्थवान् और रथियों में उत्तमोत्तम हैं। आप मधु पूर्ण है। आप चारों ओर सन्नद्ध रथ को ले जाते हैं। उसी रथ पर आरूढ़ होकर हव्यदाता के पास जावे।[ऋग्वेद 1.182.2]
हे अश्विनी कुमारो! तुम इन्द्र और मरुद्गण के समान, रथियों में उत्तम रथी, भयंकर कार्य को करने वाले हो तुम मधुर रस से परिपूर्ण रथ के साथ हविदाता की ओर प्राप्त हो जाओ। 
Hey Ashwani Kumars! You are like Dev Raj Indr & Marud Gan, best amongest the charoite riding warriors. You perform furious deeds. You move to those who make offerings; in a charoite which has sweet juices-saps. 
किमत्र दस्रा कृणुथः किमासाथे जनो यः कश्चिदहविर्महीयते। 
अति क्रमिष्टं जुरतं पणेरसुं ज्योतिर्विप्राय कृणुतं वचस्यवे
हे अश्विनी कुमारो! यहाँ क्या करते है? यहाँ क्यों हैं? हव्य शून्य जो कोई भी व्यक्ति पूजनीय हुआ हो, उसे आप पराजित करें। यज्ञ न करने वालों के प्राणों का हरण करें। मैं मेधावी आपकी स्तुति का अभिलाषी हूँ। मुझे ज्योति प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.182.3]
हे अश्वि देवो! तुम यहाँ क्या करते हो? जो कोई हवि न देने वाला पूजनीय बन गया हो, उसे पराजित करो, उसको मार डालो, मुझ स्तोता को प्रकाश अवश्य दो।
 Hey Ashwani Kumars, what for are you here!  Defeat those who do not conduct Yagy, is without making offerings to demigods-deities. I am requesting you to have eye sight, capability to see.
जम्भयतमभितो रायतः शुनो हतं मृधो विदथुस्तान्यश्विना। 
वाचंवाचं जरितू रलिनीं कृतमुभा शंसं नासत्यावतं मम
हे नासत्य अश्विनी कुमारो! जो श्वान की तरह जघन्य शब्द करते हुए हमारे विनाश के लिए आते हैं, उन्हें विनष्ट करें। वे लड़ाई करना चाहते हैं, उन्हें मार डालें। उन्हें मारने का उपाय आप जानते हैं। आप दोनों हम स्तोताओं की प्रत्येक स्तोत्र वाणी को धन-सम्पदा से हुए हमारे प्रशंसनीय स्तोत्रों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.182.4]
हे असत्य रहित अश्विदेवो! हिंसक कुत्तों के तुल्य हम पर धावा बोलने वालों का पतन करो। तुम उन्हें जानते हो। मेरे के श्लोक को सत्य साबित करते हुए सुरक्षा करो।
Hey truthful Ashwani Kumars! Vanish those who come to attack like violent dogs.  Those who want to fight should be killed by  you. Protect our Strotr sung in your glory-honour.
युवमेतं चक्रथुः सिन्धुषु प्लवमात्मन्वन्तं पक्षिणं तौग्र्याय कम्। 
येन देवत्रा मनसा निरूहथुः सुपप्तनी पेतथुः क्षोदसो महः
हे अश्विनी कुमारो! तुग्र राजा के पुत्र के भुज्यु के लिए आपने समुद्र-जल में प्रसिद्ध, दृढ़ और पक्ष-विशिष्ट नौका बनाई। देवों में आपने ही कृपा करके नौका द्वारा उनको निकाला। सहसा आकर आपने महासमुद्र से उनका उद्धार किया।[ऋग्वेद 1.182.5]
हे अश्विद्वय! तुमने तुग्र के पुत्र के लिए नाव बनाकर सुरक्षा की। देवताओं को चाहने वालों को समुद्र से उबार लिया। 
Hey Ashwani Kumars! You suddenly reached the ocean to save the son king Tugr named Bhujyu, by building a strong boats. 
अवविद्धं तौग्र्यमप्स्वन्तरनारम्भणे तमसि प्रविद्धम्। 
चतस्त्रो नावो जठलस्य जुष्टा उदश्विभ्यामिषिताः पारयन्ति
जल के मध्य में नीचे की ओर मुख करके गिराया हुआ तुग्र पुत्र भुज्यु अवलम्बन रहित अन्धकार के बीच अति पीड़ित हुआ। अश्विनी कुमारों द्वारा भेजी गई सागर के बीच चार नौकाएँ। पहुँच गई और उसे ऊपर उठाकर समुद्र के पार पहुँचा दिया।[ऋग्वेद 1.182.6]
जलों में सिर के बल गिरे हुए निराश्रित तुग्र के पुत्र की अश्विनी कुमारों को चार नौका प्राप्त हुई।
Tugr's son Bhujyu was hanging in the dark  with head in the down ward direction when the four boats reached there and protected him and sailed him across the ocean.
कः स्विद्वृक्षो निष्ठितो मध्ये अर्णसो यं तौग्र्यो नाधितः पर्यषस्वजत्। 
पर्णा मृगस्य पतरोरिवारभ उदश्विना ऊहथुः श्रोमताय कम्
हे अश्विनी कुमारो! तुम्र पुत्र भुज्यु ने याचक होकर जल के मध्य जिस निश्चल वृक्ष का आलिंगन किया, वह वृक्ष क्या हैं? आपने उसे सुरक्षित उठाकर विपुल कीर्त्ति प्राप्त की।[ऋग्वेद 1.182.7]
वह कौन सा पेड़ था जिससे समुद्र में गिरा हुआ तुग्र पुत्र चिपट गया? हे अश्वि देवो! तुमने कीर्ति प्राप्ति के लिए उसे बचाया।
Hey Ashwani Kumars! You earned great honour & respect by saving Bhujyu the son of Tugr who had clasped the stationary tree. What is the name of that tree.  
तद्वां नरा नासत्यावनु ष्याद्यद्वां मानास उचथमवोचन्। 
अस्मादद्य सदसः सोम्यादा विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे नराकर अश्विनी कुमारो! आपके पूजकों अथवा आपके स्तोताओं ने जो आपकी स्तुति की है, उसे आप ग्रहण करें। इस सोमयाग के यज्ञस्थल से हम अन्न, बल, ऐश्वर्य को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.182.8]
हे असत्य विमुख अश्विदेवों! मान के पुत्रों द्वारा सोमयाग में गाया श्लोक तुम्हारे अनुकूल हो और हम अन्न, शक्ति और दानमय स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey truthful Ashwani Kumars! Please accept the hymns-Strotr sung in the Som Yagy by your devotees and grant us with food grains, strength and comforts.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (183) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
तं युञ्जाथां मनसो यो जवीयान् त्रिवन्धुरो वृषणा यस्त्रिचक्रः। 
येनोपयाथः सुकृतो दुरोणं त्रिधातुना पतथो विर्न पर्णैः
हे अभीष्ट वर्षी अश्विनी कुमारो! जो रथ मन की अपेक्षा भी अति वेगशाली है, जिसमें तीन सारथि स्थान और तीन चक्र हैं, जिसमें अभीष्ट वर्षी और धातुत्रय विशिष्ट हैं, जिस रथ पर चढ़कर जिस प्रकार से पक्षी पंखों के बल जाता है, उसी प्रकार से आप सुकृतकारी के घर उसी रथ से जाते हैं।[ऋग्वेद 1.183.1]
हे अश्वि देवो! उस हृदय से भी अधिक गति वाले रथ के द्वारा श्रेष्ठ कर्म वाले यजमान के गृह को पक्षी के तुल्य गति से ग्रहण होओ। 
Hey accomplishment fulfilling Ashwani Kumars! You reach the home of the devotees, riding the charoite which has three drivers seats and three cycles (modes of navigation), has provisions for distribution, is faster than the speed of the mind, moves like the birds fly over the feathers.
सुवृद्रथो वर्तते यन्नभि क्षां यत्तिष्ठथः क्रआपन्तानु पृक्षे। 
वपुर्वपुष्या सचतामियं गीर्दिवो दुहित्रोषसा सचेथे
हे अश्विनी कुमारो! आप संकल्पवान् होकर हव्य के लिए जिस रथ पर आरूढ़ होते हैं, वही आपको भली भाँति आवर्त्तनकारी रथ देवयजन भूमि के पास ले जाता है। आप आकाश की पुत्री उषा को प्राप्त होकर हमारी स्तुतियों से आनन्दित होवें।[ऋग्वेद 1.183.2]
हे अश्विदेवो! आसानी से मुड़ने वाला तुम्हारा रथ दोनों मेधावियों को चढ़ाकर धरा पर हव्य के लिए जाता है। तुम दोनों अम्बर की पुत्री उषा से परिपूर्ण होओ और मेरी प्रार्थना से शोभा परिपूर्ण हो।
Hey Ashwani Kumars! Determined, you ride the charoite and move to the site of Yagy for accepting the offerings of the devotee. You should be blessed by Usha (move at dawn) and enjoy the hymns sung by the hosts conducting Yagy. 
आ तिष्ठतं सुवृतं यो रथो वामनु व्रतानि वर्तते हविष्मान्। 
येन नरा नासत्येषयध्यै वर्तिर्याथस्तनयाय त्मने च
हे नराकार नासत्यद्वय! जो रथ हविवाले यजमान के कर्म का लक्ष्य करके जाता है, आप जिस रथ से यज्ञशाला जाने की इच्छा करते हैं, उसी रथ पर चढ़कर यजमान के पुत्र और अपने के हित की प्राप्ति के लिए यज्ञशाला में आवें।[ऋग्वेद 1.183.3]
हे असत्य रहित अश्विदेवो! आसानी से घूमने वाले अपने रथ पर चढ़ो। वह हविदाताओं के कर्म अनुष्ठानों के अनुसार चलता है। उस पर सवार होकर तुम यजमान और उसके पुत्रों के लिए यज्ञ में जाते हो।
Hey truthful duo! You ride the charoite which leads to the hosts-Ritviz's Yagy site, making offerings for you. You perform the welfare of the host along with his son.
मा वां वृको मा वृकीरा दधर्षीन्मा परि वर्त्तमुत माति धक्तम्। 
अयं वां भागो निहित इयं गीर्दस्राविमे वां निधयो मधूनाम्
हे अश्विनी कुमारो! आपकी कृपा से वृक और वृकी मुझ पर आक्रमण न करें। मेरे अतिरिक्त दूसरे को दान न करें। यही आपका हव्य भाग है, यही आपकी स्तुति है, यही आपके लिए सोमरस का पात्र है।[ऋग्वेद 1.183.4]
वृक :: भेड़िये और कुत्ते का वर्णसंकर; wolf, lupin, hybrid of the wolf and the furious dog.
हे अश्वि देवो! मुझ पर व्रक-वृकी का आक्रमण न हो। तुम हमको उलांघकर मत जाओ। हमारी जगह को न छोड़ो। यह अनुष्ठान भाग, मधुर रस परिपूर्ण पात्र और वंदनाएँ तुम्हारे लिए ही हैं।
Hey Ashwani Kumars! Do not let the male & female lupine attack me. You should accept your share of offerings & prayers along with Somras and oblige me.
युवां गोतमः पुरुमीळ्हो अत्रिर्दस्त्रा हवतेऽवसे हविष्मान्। 
दिशं न दिष्टामृजूयेव यन्ता मे हवं नासत्योप यातम्
हे अश्विनी कुमारो! जिस प्रकार से मार्ग में जाने के लिए पथिक रास्ता बताने वाले को बुलाता है, उसी प्रकार हे गौतम! पुरुमीड़ और अत्रि हव्य ग्रहण करके तृप्त करने के लिए आपका आवाहन करते हैं। मेरे आवाहन को सुनकर पधारें।[ऋग्वेद 1.183.5]
हे अश्वि द्वय! गौतम परुमील और अत्रि हवि के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं। जैसे सीधे रास्ते पर चलने वाला लक्ष्य पर शीघ्र पहुँच जाता है, वैसे ही तुम मेरे आह्वान की तरफ शीघ्र अतिशीघ्र पहुँचो।
Hey Ashwani Kumars! The manner in which a traveller ask one to know the way, Gautom, Purumeed and Arti invite you to accept the offerings. Please respond to my prayers-requests and come.
अतारिष्म तमसस्पारमस्य प्रति वां स्तोमो अश्विनावधायि। 
एह यातं पथिभिर्देवयानैर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे अश्विनी कुमारो! आपके कृपा से हम अन्धकार के पार चले जायेंगे। आपके उद्देश्य से यह स्तुति रची गई है। देवों के गन्तव्य पथ यज्ञ में पधारें ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.183.6]
हे अश्वि देवो! हम इस अंधेरे से पार उतर गये हैं। हमने तुम्हारे श्लोकों को स्वीकार कर लिया है। तुम यहाँ देवपथ में आओ। हम अन्न शक्ति और दानपूर्ण स्वभाव को अर्जित करें। 
Hey Ashwani Kumars! We move across the darkness (ignorance) with your blessings. We have composed this hymn-Strotr in your honour. Come to the point of the move-elevation of the demigods-deities, so that we can have food grains, might and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (184) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
ता वामद्य तावपरं हुवेमोच्छन्त्यामुषसि वह्निरुक्थैः। 
नासत्या कुह चित्सन्तावर्यो दिवो नपाता सुदास्तराय
अन्धकार का विनाश करने के लिए उषा देवी के आने पर हम आज के यज्ञ में और दूसरे दिन के यज्ञ में आपका आवाहन करते हैं। हे अश्विनी कुमारो! आप असत्य शून्य और द्युलोक के नेता हैं। आप जहाँ कहीं भी रहें, स्तोता आर्य ऋग्वेदीय मंत्र द्वारा विशिष्ट दानशील यजमान के लिए आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.184.1]
हे असत्य रहित अश्विदेवो! तुम विख्यात धन के दाता हो। उषा के प्रकट होने पर हम तुम्हारी वंदना गीतों द्वारा आह्वान करते हैं। 
Hey truthful Ashwani Kumars! We invite you to the Yagy today and tomorrow with the arrival of Usha (dawn, day break). You are the leader of heavens. The hosts performing Yagy pray to you with the helps hymns for the sake of the hosts-Ritviz, who are great donors.
अस्मे ऊ षु वृषणा मादयेथामुत्पणींहितमूर्म्या मदन्ता। 
श्रुतं मे अच्छोक्तिभिर्म तीनामेष्टा नरा निचेतारा च कर्णैः
हे अभीष्टवर्षी अश्विनी कुमारो! सोमरस से बलवान् होकर आप हमारी तृप्ति करें और पणियों का समूल नाश करें। हे नेतृद्वय! आपको सामने लाने के लिए हम जो तृप्तिप्रद स्तुति करते हैं, उसे श्रवण करें, क्योंकि आप लोग स्तुति के अन्वेषक और सञ्चय करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.184.2]
हे अश्विदेवो। तुम सोम की धारा से अत्यन्त आह्वलादमय होकर लालचियों का पतन करो। मेरी प्रार्थनाओं की इच्छा वाले तुम आकर स्वयं मेरी वंदना संकल्पों को सुनो।
Hey accomplish fulfilling Ashwani Kumars! Enjoy Somras and crush the greedy. Hey leaders! Listen to the Strotr-hymn we sing for honouring and  satisfying you.
श्रिये पूषन्निषुकृतेव देवा नासत्या वहतुं सूर्यायाः। 
वच्यन्ते वां ककुहा अप्सु जाता युगा जूर्णेव वरुणस्य भूरेः
हे सूर्य-चन्द्र रूपी अश्विनी कुमारो! कल्याण प्राप्ति के लिए तीर की तरह शीघ्रगामी होकर सूर्य की पुत्री को ले जावें। पूर्व युग की तरह यज्ञ काल में सम्पादित स्तुति महान् वरुण देव की प्रसन्नता के लिए आपकी स्तुति करती है।[ऋग्वेद 1.184.3]
हे संसार-पालक अश्विदेवो! जल से उत्पन्न श्रेष्ठ अश्व तुम्हें सर्व के विवाहोत्सव की ओर ले आते हैं। वरुण की तृप्ति के लिए प्रभात में की जाने वाली प्रार्थना तुम्हें प्राप्त होती हैं।
Hey Sun & Moon like Ashwani Kumars! Be quick and bring the daughter of Sun-Usha for the welfare of Yagy performing people. The way prayers were conducted to please Varun Dev in ancient times, we do worship you alike. 
अस्मे सा वां माध्वी रातिरस्तु स्तोमं हिनोतं मान्यस्य कारोः। 
अनु यद्वां श्रवस्या सुदानू सुवीर्याय चर्षणयो मदन्ति
हे मधु पात्र वाले अश्विनी कुमारो! आप कवि मान्य की स्तुति अंगीकार करें। आपका दान हमारे उद्देश्य से प्रदत्त हों। हे शुभ फल प्रदाता अश्विनी कुमारो! अन्न की इच्छा से और बलशाली यजमान के हित के लिए पुरोहित आपके साथ हर्षित हों।[ऋग्वेद 1.184.4]
हे माधुर्यमय कल्याण करने वाले अश्विदेवो! तुम्हारा दिया हुआ धन हम पर रहे। तुम मान के पुत्र के श्लोक को प्रेरित करो। साधकगण यज्ञ की कामना से शक्ति के लिए उस श्लोक को बढ़ाते हैं। 
Hey Ashwani Kumars holding the pot of honey! Accept the prayers of poet Many. Your charity be aimed at us. Hey auspicious reward granting Ashwani Kumars! The mighty-strong hosts & Ritviz are happy with the desire of food grains.
एष वां स्तोमो अश्विनावकारि मानेभिर्मघवाना सुवृक्ति। 
यातं वर्तिस्तनयाय त्मने चागस्त्ये नासत्या मदन्ता
हे अन्नवान् अश्विनी कुमारो! आपके लिए हव्य के साथ यह पापों का नाश करने वाला स्तोत्र रचित हुआ है। अगस्त्य ऋषि के प्रति प्रसन्न होकर यजमान के पुत्रादि और अपने सुख भोग के लिए यज्ञ भूमि में आगमन करें।[ऋग्वेद 1.184.5]
हे अश्विदेवो! तुम्हारे लिए मान के पुत्रों ने इस शक्ति से परिपूर्ण श्लोक की उत्पत्ति की। तुम मुझ अगस्त्य पर हर्षित होकर मेरे पुत्र के लिए गृह में पधारो।
Hey food grain possessing Ashwani Kumars! This Strotr has been composed for you offerings to you and vanishing sins. Let August Rishi be happy and join the Yagy for the sake of the host and his sons and granting them comforts.
अतारिष्म तमसस्पारमस्य प्रति वां स्तोमो अश्विनावधायि। 
एह यातं पथिभिर्देवयानैर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे अश्विनी कुमारो! आपकी कृपा से हम अन्धकार को पार कर जायेंगे। आपके लिए ही यह स्तव रचित हुआ है। देवों के गन्यव्य पथ से यज्ञ में आवें, ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.184.6]
हे अश्विद्वय! हम अंधेरे से पार लग गये हैं। तुम्हारे लिए श्लोक आरम्भ किया है, इसके प्रति देवों के योग्य मार्ग से आओ। हम अन्न शक्ति और दानमय स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey Ashwani Kumars! Let us over come darkness-ignorance due to your blessings. This Strotr has been composed for you. Follow the path of the demigods-deities and come to the Yagy, so that we are able to get food grains, strength and longevity.
अर्वाञ्चमद्य यय्यं नृवाहणं रथं युञ्जाथामिह वां विमोचनम्। 
पृङ्कं हवींषि मधुना हि कं गतमथा सोमं पिबतं वाजिनीवसू
हे अश्विनी कुमारों! जो रथ शीघ्र गामी, आपका वाहन और अभीष्ट स्थान पर आपको उतार देने वाला है, आज उसी रथ को इस यज्ञ में हमारे सामने नियोजित करें। हमारा हव्य सुस्वादु करें और यहाँ पधारें। हे अन्न वाले अश्विनी कुमारों! हमारे सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.5]
हे अश्विद्वय! शीघ्रगामी इच्छित स्थान पर पहुँचाने वाले, जो तुम्हारा रथ वाहन है, उसी के इसमें जोड़ो। हमारी हवि को सुस्वादु बनाओ। तुम अन्न वाले हों। हमारे सोम रस का पान करो।
Hey Ashwani Kumars! Organise our Yagy by arriving in your fast moving charoite. Our offerings are tasty. Hey food grain granting Ashwani Kumars! Enjoy our Somras. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- अश्विनी  कुमार, छन्द :- त्रिष्टुप।
ग्रावाणेव तदिदर्थं जरेथे गृधेव वृक्षं निधिमन्तमच्छ।
ब्रह्माणेव विदथ उक्थशासा दूतेव हव्या गन्या पुरुत्रा
हे अश्विनी कुमारो ! शत्रुओं के प्रति प्रेरित प्रस्तर खण्डद्वय की तरह शत्रु को बाधा दें। जैसे दो पक्षी वृक्ष पर आते हैं, वैसे ही आप भी यजमान के निकट आवें। मंत्रोच्चारक ब्रह्मा नाम के ऋत्विक् और देश में दो दूतों की तरह आप बहुतों के आह्वान योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.39.1]
हे अश्विनी कुमारो! पत्थर को दो शिलाओं की तरह शत्रुओं को बाँध दो। वृक्ष पर दो पक्षियों के आकर विराजमान होने के तुल्य तुम दोनों भी यजमान के पास पधारने वाले होओ। मंत्रोच्चारणकर्त्ता ब्रह्म पद वाले ऋत्विज और दो राजदूतों की तरह तुम आह्वान करने योग्य हो।
Hey Ashwani Kumars! Tie the enemy like the rocks thrown over the enemies.  Come to the hosts, Ritviz like the birds which comes to the tree. You deserve invitation-revoke like the Ritviz named Brahma and the two ambassadors in the country.    
प्रातर्यावाणा रथ्येव वीराजेव यमा वरमा सचेथे।
मेनेइव तन्वाशुम्भमाने दम्पतीव क्रतुविदा जनेषु
हे अश्विनी कुमारो! प्रातःकाल जाने वाले दो रथियों की तरह आप महारथी वीर हैं, दो जुड़वा भाई जैसे हैं, दो स्त्रियों की तरह सुन्दर शरीर वाले हैं, दम्पति की तरह समान परस्पर सम्बन्ध रखकर कार्य करने वाले हैं, आप दोनों अपने श्रेष्ठ भक्तों के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 2.39.2]
हे अश्विद्वयो! तुम प्रातः गमन करने वाले दो रथियों के समान महान, सहजन्मा के तुल्य यमज, दो सुन्दरियों के तुल्य यशस्वी, दम्पत्ति के तुल्य सहकर्मी तथा समस्त कर्मों के ज्ञाता हो। तुम दोनों अपने आराधक को ग्रहण होओ।
Hey Ashwani Kumars! Both of you are like the twins & the greatest warriors riding charoite in the battle field. You have beautiful-handsome bodies, mutually agreeable like the couple and move to the excellent devotees.  
शृङ्गेव नः प्रथमा गन्तमर्वाक्छफाविव जर्भुराणा तरोभिः। 
चक्रवाकेव प्रति वस्तोरुस्रार्वाञ्चा यातं रथ्येव शक्रा
हे देवों में प्रथम अश्विनी कुमारो! आप पशु की दोनों सींगों या अश्व आदि के दोनों खुरों की तरह वेगवान् होकर हमारे सामने आवें। शत्रुहन्ता और स्वकर्म समर्थ अश्विनी कुमारो! जिस प्रकार से दिन में चक्रवाक-दम्पती आते हैं अथवा जैसे दो रथी आते हैं, वैसे ही आप हमारे सामने पधारें।[ऋग्वेद 2.39.3]
हे अश्विद्वय! तुम देवगणों में प्रथम हो। तुम पशु के दो सींगों के समान विशिष्ट और अश्वादि के खुरों के समान वेगवान हुए विराजो! तुम शत्रुओं का सहारा करने वाले और अपने कर्म समर्थ वाले हो। जैसे दिन में चकवा चकवी आते हैं, वैसे ही हमारे समक्ष आओ।
Hey Ashwani Kumars! You are first amongest the demigods-deities. Come to us quickly either like the two horns of the animals or the two hoofs of the horses. Hey Ashwani Kumars! You are the slayer of the enemy and capable of discharging your own duties. Come to us during the day like the two charioteers or the pair-couple of Chakrvak birds.
नावेव नः पारयत युगेव नभ्येव न उपधीव प्रधीव। 
श्वानेव नो अरिषण्या तनूनां खृगहेव वित्रसः पातमस्मान्
हे अश्विनी कुमारो! नौका की तरह आप हमें पार उतार दें। रथ के युग की तरह, रथचक्र के नाभि फलक की तरह उसके पार्श्वस्थ फलक की तरह और चक्र के बाह्यदेश के बलय की तरह हमें पार करें। दो कुक्कुरों की तरह आप हमारे शरीर को हिंसा से बचावें। दो वर्म की तरह आप हमें वृद्धावस्था से बचावें।[ऋग्वेद 2.39.4]
हे अश्विनी कुमारो! जैसे नाव पार लगाती है वैसे ही हमको पार लगाओ। रथ के दोनों पहियों की तरह ढोकर हमको पार करो। हिंसा से हमारी रक्षा करो।
Hey Ashwani Kumars! Sail us like the boat across the worldly affairs (leading to Salvation-emancipation). Let us be moved across the ocean named world like the axels & wheels of the charoite. Protect our bodies from violence like the pet dogs. Protect us like the medicines from old age. 
वातेवाजुर्या नद्येव रीतिरक्षीइव चक्षुषा यातमर्वाक्। 
हस्ताविव तन्वेशंभविष्ठा पादेव नो नयतं वस्यो अच्छ
हे अश्विनी कुमारो! दो वायुओं की तरह अक्षय, दो नदियों की तरह शीघ्रगामी और दो मंत्रों की तरह दर्शक हैं। आप हमारे सामने आयें। आप दोनों हाथों और पैरों की तरह शरीर के सुख दाता हैं। आप हमें श्रेष्ठ धन की ओर ले जावें।[ऋग्वेद 2.39.5]
हे अश्विनी कुमारों! तुम पवनों के तुल्य अक्षय, नदियों के तुल्य गतिवाले तथा मंत्रों के तुल्य दर्शनीय हो। हमारे यहाँ आओ। तुम दोनों हाथ और दोनों पैरों के तुल्य शरीर के सुख प्रदान करने वाले हो। तुम हमें श्रेष्ठ धन ग्रहण कराओ।
Hey Ashwani Kumars! You are comparable to the two streams of air, two rivers and the two Mantr. Come to us. You grant us comforts like the two hands and two legs provide comfort to the body. Direct us to the excellent wealth.
Every one in this universe crave for money and forget the health. Mental, physical & spiritual health is th real wealth. 
ओष्ठाविव मध्वास्ने वदन्ता स्तनाविव पिप्यतं जीवसे नः। 
नासेव नस्तन्वो रक्षितारा कर्णाविव सुश्रुता भूतमस्मे
हे अश्विनी कुमारो! दोनों ओठों की तरह मधुर वाक्य का उच्चारण करें, दोनों स्तनों की तरह हमारे जीवन धारण के लिए दूध पिलावें, दोनों नाकों की तरह हमारे शरीर के रक्षक होवें और दोनों कानों की तरह हमारे श्रोता होवें।[ऋग्वेद 2.39.6]
हे अश्विद्वय! जैसे दोनों होठों से मधुर वचन निकलते हैं वैसे ही मधुर बात कहो। जैसे दोनों स्तनों से दूध निकलता है, हमारे जीवन को भी वैसे रस से युक्त करो। नाक के दोनों स्वरों के समान हमारे रक्षक बनो। तुम कानों के समान हमारी वंदना को सुनो।
Hey Ashwani Kumars! Recite beautiful sentences-stanzas (Hymns) dear to listen. Let us be fed-nourished like feeding-sucking milk through both breasts of the mother. Be protective like the two nostrils. Be our listeners trough both the ears.
हस्तेव शक्तिमभि संददी नः क्षामेव नः समजतं रजांसि। 
इमा गिरो अश्विना युष्मयन्तीः क्ष्णोत्रेणेव स्वधितिं सं शिशीतम्
हे अश्विनी कुमारो! दोनों हाथों की तरह हमें सामर्थ्य प्रदान करें। द्यावा-पृथ्वी की तरह हमें जल दें। हे अश्विनी कुमारो! ये सब स्तुतियाँ आपको चाहती हैं। आप शान चढ़ाने के यंत्र के द्वारा तलवार की तरह उन्हें तीक्ष्ण करें।[ऋग्वेद 2.39.7]
हे अश्विद्वयों! दोनों हाथों के तुल्य हमको शक्ति प्रदान करो। अम्बर-धरा के तुल्य अल प्रदान करो। ये वंदनायें तुम्हारी इच्छा करती हैं। जैसे धार रखने वाले यंत्र तलवार की धार को तेज करता है। वैसे ही तुम वंदनाओं को तीक्ष्ण बनाओ। 
Hey Ashwani Kumars! Grant us strength, power, might through both the hands. Grant us water like the sky-horizon and the earth. Hey Ashwani Kumars! All the prayers desire-wish to be sung in your honour. You should sharpen them over the grinding disc, like sharpening the sword.  
एतानि वामश्विना वर्धनानि ब्रह्म स्तोमं गृत्समदासो अक्रन्।
तानि नरा जुजुषाणोप यातं बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे अश्विनी कुमारो! गृत्समद ऋषि ने आपकी वृद्धि के लिए ये सब स्तोत्र और मंत्र बनाये हैं। आप नेता और अतीव प्रीति वाले हैं। आपके पास ये सब स्तुतियाँ पहुँचें। हम पुत्र और पौत्र वाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.39.8] 
हे अश्विद्वय! गृत्समद ऋषि द्वारा बनाए गए ये श्लोक तुम्हारी वृद्धि करने वाले हैं। तुम सबके स्वामी और प्रिय हो। ये प्रार्थनाएँ तुमको प्राप्त हों। हम पुत्र-पौत्र युक्त हुए इस यज्ञ में अत्यन्त वंदना करेंगे।
Hey Ashwani Kumars! Gratsamad Rishi has composed all these Strotr-hymns and the Mantr for you. You are leaders and affectionate. Let all our prayers reach you. Let us have sons and grand sons and pray-worship you in our Yagy.
गोमदू षु नासत्याऽश्वावद्यातमश्विना। वर्ती रुद्रा नृपाय्यम्
हे अश्विनी कुमारो! हे सत्य सेवी रुद्र देवों! जिस सोमरस का पान यज्ञ में नेतृत्व प्रदान करने वाले लोग करेंगे, उस सोमरस को धेनु और अश्व से युक्त करके तथा रथ पर लेकर आयें।[ऋग्वेद 2.41.7]
असत्य रहित दोनों अश्विनों कुमारों रुद्र यज्ञ में अग्रणी जो सोमरस प्राप्त करेंगे उस सोम के लिए घोड़े परिपूर्ण रथ पर यहाँ पधारो।
Hey truthful Ashwani Kumars! Bring the Somras for the leaders in this Yagy, associated with cows & horses, riding your charoite. 
न यत्परो नान्तर आदघर्षषण्वसू। दुःशंसो मर्त्यो रिपुः
हे धनवर्षी अश्विनी कुमारों! दूर स्थित वा समीप वर्ती मन्द भाषी मर्त्यरिपु जिस धन को नहीं चुरा सकता, उसे हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.41.8]
धन की वर्षा करने वाले दोनों अश्विनी कुमार पास या दूर के उस धन को जिसे मनुष्यों का शत्रु छीन नहीं सकता हमको प्रदान करो।
Hey wealth showering Ashwani Kumars! Enrich us with the wealth, which the near or far enemy, can not steal.
ता न आ वोळ्हमश्विना रयिं पिशङ्गसंदृशम्। धिष्ण्या वरिवोविदम् 
हे ज्ञानार्ह अश्विनी कुमारों! आप हमारे पास नाना रूप और धन प्रापक धन ले आयें।[ऋग्वेद 2.41.9]
हे अश्विनी कुमारों! तुम हमारे लिए विभिन्न प्रकार का पालन करने वाला श्रेष्ठ धन लेकर आओ। 
Hey enlightened Ashwani Kumars! Bring to us various kinds of excellent riches.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अश्विनी कुमारछन्द :- त्रिष्टुप्
धेनुः प्रत्नस्य काम्यं दुहानान्तः पुत्रश्चरति दक्षिणायाः।
आ द्योतनिं वहति शुभ्रयामोषसः स्तोमो अश्विनावजीगः
प्रीणयित्री उषा पुरातन अग्नि देव के लिए कमनीय दुग्ध का दोहन करती है। उषा पुत्र सूर्य उसके बीच में विचरण करते हैं। शुभ्र दीप्ति दिवस सभी के प्रकाशक सूर्य का वहन करता है। उसके पूर्व ही अश्विद्वय (अश्विनी कुमारों) के स्तोत्र का गान होता हैं।[ऋग्वेद 3.58.1]
प्राचीन अग्नि के लिए उषा रात्रि की पर ओस रूप रस बूदों को दुहती। फिर उषा का पुत्र सूर्य उनके बीच में विचरण करते हैं। उज्जवल ज्योति से परिपूर्ण सभी को प्रकाश प्रदान करने वाले सूर्य को घुमाता है। सूर्य उदय होने से पहले ही अश्विनी कुमार का पूजन करने वाले तत्पर रहते हैं।
The cow-dawn (Usha) yields the desired milk-dew drops, to the ancient-eternal Agni, the son of the south passes within the firmament-space; the bright-houred-day brings the illuminative Sun, the praiser awakes to glorify the Ashvins preceding the dawn.
Usha creates dew drops for the eternal Agni. Thereafter, Sun, the son of Usha roam through it. Sun shines for all. The worshipers are ready to pray to Ashwani Kumars prior to dawn.
सुयुग्वहन्ति प्रति वामृतेनोर्ध्वा भवन्ति पितरेव मेधाः।
जरेथामस्मद्वि पणेर्मनीषां युवोरवश्चकृमा यातमर्वाक्
हे अश्विनी कुमारों! उत्तम रूप से रथ में युक्त अश्वद्वय सत्य रूप रथ द्वारा आप दोनों को यज्ञ में ले आने के लिए वहन करते हैं। यज्ञ आपके लिए उन्मुख होते हैं, जिस प्रकार से माता-पिता को लक्ष्य कर पुत्र जाते हैं। हम लोगों के निकट से पणियों की आसुरी बुद्धि को विशेष रूप से नष्ट करें। हम लोग आपके लिए हवि प्रस्तुत करते हैं। आप हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 3.58.2]
हे अश्विनी कुमारो! महान, श्रेष्ठ तथा सत्य रूप रथ द्वारा तुम को यज्ञ में लाने के लिए दो अश्व जोते जाते हैं। माता-पिता की ओर पुत्र के जाने के समान यज्ञ तुम्हारी ओर जाता है। हमारे निकट राक्षस और दैत्य कर्मियों को दूर हटाओ। हम तुम्हारे लिए हव्य देते हैं। तुम दोनों यहाँ आओ।
Hey Ashwani Kumars! Two horses are deployed in the charoite in excellent manner, representing truth, to bring you to the Yagy. The way the son goes to his parents, the Yagy comes to you. Destroy the demonic tendencies around us. We are making offerings to you. Come to us.
सुयुग्भिरश्वैः सुवृता रथेन दस्राविमं शृणुतं श्लोकमद्रेः।
किमङ्ग वां प्रत्यवर्ति गमिष्ठाहुर्विप्रासो अश्विना पुराजाः
हे अश्विनी कुमारों! सुन्दर चक्र विशिष्ट रथ पर आरोहण करके और उत्तम रूप से योजित अश्वों द्वारा वाहित होकर आप दोनों स्तुति कारियों के इस स्तोत्रों का श्रवण करें। हे अश्विनी कुमारों! पुरातन मेधावीगण क्या नहीं बोलते, जो हमारी वृत्ति हानि के विरुद्ध आप दोनों गमन करते है।[ऋग्वेद 3.58.3]
हे अश्विनी कुमारों! विशेष चक्र वाले सुन्दर रथ में सुशोभित अश्वों को जोड़ो और उस पर आरूढ़ होकर यहाँ पधारो। इस वंदनाकारी तुम दोनों का श्लोक उच्चारण करते हैं, उसे आकर सुनो तथा इस बात पर भी ध्यान आकृष्ट करो कि प्राचीन मतिवानों ने क्या प्रार्थना की, तुम दोनों उन्हीं के अनुकूल चलो।
Hey Ashwani Kumars! Listen-respond to the prayers (Strotr, hymns) of the devotees-worshipers, riding the beautiful charoite, deploying horses. Hey Ashwani Kumars! Respond to the prayers of the old wise men and act according to them, for the protection of our endeavours-Yagy etc.
आ मन्येथामा गतं कच्चिदेवैर्विश्वे जनासो अश्विना हवन्ते।
इमा हि वां गोऋजीका मधूनि प्र मित्रासो न ददुरुस्त्रो अग्रे
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारी प्रार्थना को स्वीकार करें और अश्वों के साथ यज्ञ में आगमन करें। सब स्तोता स्तुति लक्षण वचनों से आप दोनों का आह्वान करते हैं। वे मित्र के तुल्य दुग्ध मिश्रित और हर्षकर हवि आप दोनों को प्रदान करते हैं। सूर्य उषा के आगे उदित होते हैं। इसलिए आगमन करें।[ऋग्वेद 3.58.4]
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों को सभी सम्मान पूर्वक आमंत्रित करते हैं। उनके आह्वान पर ध्यान देकर अपने अश्वों के साथ यज्ञ में पधारो। वे तुम्हारे मित्र के समान आनन्दित दुग्ध आदि से निर्मित हव्य देते हैं। उषा के बाद आदित्य देव उदित हो रहे हैं। अतः शीघ्र आओ।
Hey Ashwani Kumars! Respond to our prayers and join the Yagy with your horses (deployed in the charoite). All worshipers invoke you with beautifully composed Strotr-hymns. They make offerings to you mixed with milk, happily. Sun follows Usha, hence come quickly.
तिरः पुरू चिदश्विना रजांस्याङ्गुषो वां मघवाना जनेषु।
एह या पथिभिर्देवयानैर्दस्राविमे वां निधयो मधूनाम्
हे अश्विनी कुमारों! नाना देशों को अपने तेज से तिरस्कृत करके आप दोनों देवयान पथ द्वारा इस स्थल में आगमन करें। हे धनवान अश्विनी कुमारों! आप दोनों के लिए स्तोताओं का स्तोत्र उद्घोषित होता है। हे शत्रुओं के क्षय कारक! आप दोनों के लिए ये मधुर सोम के पात्र विशेष रूप से तैयार किये गये हैं।[ऋग्वेद 3.58.5]
हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों की वाणी समस्त लोकों को ग्रहण हो। तुम्हारी वाणी संकटों को दूर करें। तुम दोनों विद्वानजनों के मार्गों में इस संसार में आगमन करो। तुम शत्रुओं का विनाश करने में समर्थवान हो। इस मधुर रसपूर्ण पुष्टि कारक सोम को तुम्हारे लिए ही पात्रों में निचोड़कर रखा गया है।
Hey Ashwani Kumars! Avoiding various countries over your travel route, come to our Yagy site, by divine aeroplane. Hey rich Ashwani Kumars! The Strotas recite hymns-Shloks in your honour. Hey reducer of the power-might of the enemies! This Somras kept in the pot has been specially produced-extracted for you.
पुराणमोकः सख्यं शिवं वां युवोर्नरा द्रविणं जह्नाव्याम्।
पुनः कृण्वानाः सख्या शिवानि मध्वा मदेम सह नू समानाः
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों की पुरातन मित्रता सबके लिए कल्याणकारी है। हे नेतृ द्वय! आप दोनों का धन जह्रुकुलजा में है। आप दोनों की सुखकर मित्रता को बारम्बार प्राप्त करके हम लोग मित्रभूत (आपके समान) होते हैं। हर्ष कारक सोम के द्वारा आप दोनों के साथ हम शीघ्र ही हर्षित होते हैं।[ऋग्वेद 3.58.6]
हे अश्विनी कुमारों! तुम्हारी मित्रता पुरातन और सभी को आवश्यक कल्याणकारी है। तुम दोनों सभी का नेतृत्व करने वाले हो। तुम दोनों का धन जहनु वंश वालों के लिए मंगलकारी हो। तुम दोनों के मैत्री भाव का सुख निरन्तर प्राप्त करें। हर्ष उत्पन्न करने वाले सोम को ग्रहण करते हुए हम भी तुम दोनों के साथ ही तुष्टि को प्राप्त करें।
Hey Ashwani Kumars! Your friendship is ancient, old-prolonged and is for the welfare of all. Hey leader duo! Let your wealth-riches be beneficial for the descendants of Jahnu clan. We should be benefited by your friendship time & again. Let us drink-have pleasure producing Somras, in your company. 
अश्विना वायुना युवं सुदक्षा नियुद्भिश्च सजोषसा युवाना।
नासत्या तिरोअन्ह्ययं जुषाणा सोमं पिबतमस्त्रिधा सुदानू
शोभन सामर्थ्य से युक्त, नित्य तरुण, असत्य रहित एवम् शोभन फल के दाता हे अश्विनी कुमारों! वायु और नियुद्गण के साथ मिलकर अक्षीण और सोमपायी आप दोनों दिवस के शेष में सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.58.7]
हे अश्विनी कुमारों! तुम समस्त उपयुक्त सामर्थ्यो से परिपूर्ण हो, तुम मिथ्यात्व पृथक सतत युवा तथा शोभनीय धनों को प्रदान करने वाले हो। पवन तथा सिद्धान्तों से नियुक्त घोड़ों से परिपूर्ण हुए, यहाँ पधारकर अक्षय गुण वाले, सोमपान के लिए अभ्यासी तुम दोनों ही दिन के प्रकाश में सोमपान करो।
Hey Ashwani Kumars! Endowed with power, ever young, truthful, unwearied, munificent, accepters of libations, drink with Vayu and your steeds, rejoicing together, of the Soma libation offered at the close of day.
STEEDS :: घोड़ा, लड़ाई का घोड़ा; horse, equine, gee, stud horse.
Hey Ashwani Kumars! You are capable accomplishing auspicious desires, always young, truthful. Come riding your steeds & enjoy the Somras & Pawan Dev in rest of the day. 
अश्विना परि वामिषः पुरूचीरीयुर्गीर्भिर्यतमाना अमृध्राः।
रथो ह वामृतजा अद्रिजूतः परि द्यावापृथिवी याति सद्यः
हे अश्विनी कुमारों! प्रचुर हवि आप लोगों के निकट गमन करती है। दोष रहित और कर्म कुशल स्तोता लोग स्तुति लक्षण वचनों द्वारा आप दोनों की परिचर्या करते हैं। स्तोताओं द्वारा आकृष्ट जल प्रद रथ द्यावा-पृथ्वी के बीच में सद्यः गमन करता है।[ऋग्वेद 3.58.8]
हे अश्विनी कुमारो। यह पर्याप्त हव्य तुमको प्राप्त होता है। कर्मों से चतुर तथा पार रहित, स्तुति करने वाला, द्वारा आकर्षित किया गया जलदायक रथ नभ और पृथ्वी के मध्य चलता है।
Hey Ashwani Kumars! Let these quantum of offerings reach you. Defectless & expert in rituals Agni Hotr, Yagy Strotas recite descent Strotr-hymns for you. Your charoites crossing the water bodies-ways between the earth & the sky attracted by the Strotas.
अश्विना मधुषुत्तमो युवाकुः सोमस्तं पातमा गतं दुरोणे।
रथो ह वां भूरि वर्पः करिक्रत्सुतावतो निष्कृतमागमिष्ठः
हे अश्विनी कुमारो! जो सोमरस अत्यन्त मधुर रसों से बना है, उसका पान करें। आप लोगों का धन दानकारी रथ सोमाभिषव करने वाले याजकगण के घर में अनेकानेक बार आगमन करता है।[ऋग्वेद 3.58.9] 
हे अश्विनी कुमारो। तुम दोनों का धन देने वाला उत्तम रथ सोम सिद्ध करने वाले यजमान के शोभित घर में निरन्तर पहुँचता है।
Hey Ashwani Kumars! Enjoy the Somras extracted & mixed with highly sweet extracts. Your charoite with the wealth for donations move to the Ritviz  who offer you Somras again & again.
 
बोधद्युन्मा हरिभ्यां कुमारः साहदेव्यः। अच्छा न हूत उदरम्
सहदेव के पुत्र सोमक राजा ने जब हमें इन दोनों अश्वों को देने की बात कही, तब हम भली प्रकार उनके पास पहुँचे और वहाँ से सन्तुष्ट होकर लौटे।[ऋग्वेद 4.15.7]
सहदेव के पुत्र सम्राट सोमक ने इन दोनों अश्वों को हवि को प्रदान करने का विचार प्रकट किया, तब हम उनके निकट जाकर इन दोनों को संग लेकर चले आये।
When Emperor Somak, son of Sahdev granted us the horse duo, we went to them and brought them with us, satisfied.
उत त्या यजता हरी कुमारात्साहदेव्यात्। प्रयता सद्य आ ददे
सहदेव के पुत्र सोमक राजा के निकट से उसी दिन उन पूजनीय और प्रयत अश्वों को हमने ग्रहण किया।[ऋग्वेद 4.15.8]
सहदेव पुत्र राजा सोमक के निकट से उन परिचय योग्य सुन्दर अश्वों को हमने उसी दिन ले लिया।
We took the revered horses from king Somak, son of Sahdev, same day.
एष वां देवावश्विना कुमारः साहदेव्यः। दीर्घायुरस्तु सोमकः
हे कान्तिमान अश्विनी कुमारों! आप दोनों के तृप्ति कारक सहदेव के पुत्र सोमक राजा सौ वर्ष की आयु वाले हों।[ऋग्वेद 4.15.9]
हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों उज्ज्वल तेज वाले हो। सहदेव पुत्र सम्राट सोमक ने तुम दोनों को संतुष्ट किया है। सोमक सौ वर्ष की आयु को प्राप्त करे।
Hey radiant Ashwani Kumars! Let king Somak, son of Sahdev, who satisfied you, live for 100 years.
तं युवं देवावश्विना कुमारं साहदेव्यम्। दीर्घायुषं कृणोतन
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों सहदेव के पुत्र सोमक राजा को दीर्घायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.15.10]
हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों उज्जवल कान्ति वाले हो सहदेव के पुत्र राजा सोमक को तुम दीर्घ आयु प्रदान करो।
Hey Ashwani Kumars! Grant long age to king Somak, son of Sahdev.
(10.02.2023)
ऋजिप्य ईमिन्द्रावतो न भुज्यं श्येनो जभार बृहतो अधि ष्णोः।
अन्तः पतत्पतत्र्यस्य पर्णमद्य यामनि प्रसितस्य तद्वेः
अश्विनी कुमारों ने जिस प्रकार सामर्थ्यवान् इन्द्र विशिष्ट देश से भुज्यु नामक राजा का अपहरण किया, उसी प्रकार ऋजुगामी श्येन ने इन्द्र रक्षित महान द्युलोक से सोमरस का आहरण किया। उस समय युद्ध में कृशानु के आयुधों से विद्ध होने पर उस गमनशील पक्षी का एक पतनशील पंख गिर पड़ा।[ऋग्वेद 4.27.4]
जैसे अश्विनी कुमारों ने इन्द्र के स्वामित्व वाले देश से राजा भृज्यु का अपहरण किया था, उसी प्रकार इन्द्र से रक्षित श्रेष्ठ आकश से ऋजुगामी सोम को लेकर आया। उस समय कृशनु से लड़ने के कारण उस श्येन का एक पंख बाण से बिंध जाने के कारण गिर गया।
The manner in which Ashwani Kumars abducted king Bhujyu from the domain of Indr Dev,  in the same way fast moving falcon abducted Somras. At that moment one of his feathers was cut by the arrow of Krashanu.
तं नो वाजा ऋभुक्षण इन्द्र नासत्या रयिम्।
समश्वं चर्षणिभ्य आ पुरु शस्त मघत्तये
हे वाजगण, हे ऋभुगण, हे इन्द्रदेव, हे अश्विनीकुमारों! आप सब हम प्रार्थना करने वालों को प्रचुर ऐश्वर्य और शक्ति प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 4.37.8]
हे ऋभुओं! हे इन्द्र देव! हे अश्विनी कुमारों ! हम प्रार्थना करने वालों को तुम दान के लिए महान धन और अश्वों के दान की शिक्षा प्रदान करो।
Hey Vaj Gan, Hey Ribhu Gan, Hey Indr Dev and Hey Ashwani Kumars! Grant us sufficient wealth-riches, grandeur responding to our prayers, blessing us.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- पुरुमीलहाजमीलह सौहोत्रदेवता :- अश्विनीकुमार, छन्द :- त्रिष्टुप।
क उ श्रवत्कतमो यज्ञियानां वन्दारु देवः कतमो जुषाते।
कस्येमां देवीममृतेषु प्रेष्ठां हृदि श्रेषाम सुष्टुतिं सुहव्याम्
यज्ञार्ह देवों के बीच में कौन देव इसे सुनेंगे? कौन देव इस वन्दनशील स्तोत्र का सेवन करेंगे? देवताओं के बीच में किस देव के हृदय में इस प्रियतरा द्योतमाना, हव्य युक्ता शोभन प्रार्थना को सुनावें अर्थात अश्विनी कुमारों के अतिरिक्त प्रार्थना के स्वामी कौन देव होंगे?[ऋग्वेद 4.43.1]
अनुष्ठान के देवताओं में कौन से देवता इस प्रार्थना को सुनेंगे? कौन से देव इस
अर्चना के योग्य श्लोकों को प्राप्त करेंगे। देवताओं में ऐसे किस देव को हम अपनी प्रेममयी, उज्ज्वल, हविरत्न वाली सुन्दर प्रार्थना को सुनावें जो इसके अधिकारी हों।
Which demigod-deities will listen to our prayers? Who will hear these worship Strotr? To whom should we offer these descent prayers, aided by offerings, in addition to Ashwani Kumars, who deserve it?
को मृळाति कतम आगमिष्ठो देवानामु कतमः शंभविष्ठः।
रथं कमाहुर्द्रवदश्वमाशुं यं सूर्यस्य दुहितावृणीत
कौन देवता हम लोगों को सुखी करेंगे? कौन देवता हमारे यज्ञ में सबकी अपेक्षा अधिक आगमन करते हैं? देवों के बीच में कौन देवता हम लोगों को सबकी अपेक्षा अधिक सुखी करते हैं? इस तरह उपर्युक्त गुणों से विशिष्ट अश्विनी कुमार ही हैं। कौन रथ वेगवान अश्व युक्त और शीघ्रगामी है, जिसको सूर्य की पुत्री ने स्वीकार किया था?[ऋग्वेद 4.43.2]
हमको कौन से देवता सुख देंगे? हमारे यज्ञ में कौन से देवता सर्वाधिक आते हैं? देवगणों में कौन से देवता हमको कल्याणप्रद सिद्ध होंगे? किसका रथ सुन्दर अश्वों से युक्त और अधिक वेगवान है, जिसका सूर्य की पुत्री सूर्या ने सम्मान किया था?
Which demigods-deities will grant us comforts? Which demigods-deities visit this Yagy as compared to others? Only Ashwani Kumars possess these qualities. Which charioteer is more accelerated-dynamic and moves quickly, who was accepted-revered by the daughter of Sun?
मक्षू हि ष्मा गच्छथ ईवतो द्यूनिन्द्रो न शक्तिं परितक्म्यायाम्।
दिव आजाता दिव्या सुपर्णा कया शचीनां भवथः शचिष्ठा
रात्रि के व्यतीत होने पर इन्द्र देव जिस प्रकार से अपनी शक्ति प्रदर्शित करते हैं, हे गमनशील अश्विनी कुमारों! आप दोनों भी उसी प्रकार से अभिषवण काल में गमन करें। आप दोनों ने द्युलोक से आगमन किया है। आप दोनों दिव्य और शोभन गति से विशिष्ट है। आप दोनों के कर्मों के बीच में कौन कर्म सर्वापेक्षा श्रेष्ठ हैं?[ऋग्वेद 4.43.3]
उपर्युक्त कर्मों के करने वाले अश्विनी कुमार ही हैं। हे अश्विनी कुमारों! रात्रि के अवसान होने पर इन्द्र देव जैसे अपनी वीरता दिखाते हैं, वैसे ही तुम दोनों सोमाभिषव के समय पधारो। तुम दोनों आकाश मार्ग से पधारते हो। तुम सुन्दर गति वाले तथा अदभुत गुण वाले हो। तुम्हारे कार्यों से कौन सा कार्य सबसे अधिक श्रेष्ठ है?
Hey Ashwani Kumars! You should also establish your might like Indr Dev who demonstrate it, after the night. Both of you have come from the heavens & possess divine movements. Which of your deeds-endeavours is best?
का वां भूदुपमातिः कया न आश्विना गमथो हूयमाना।
को वां महश्चित्त्यजसो अभीक उरुष्यतं माध्वी दस्रा न ऊती
कौन प्रार्थना आप दोनों के समान हो सकती है? जिस स्तुति द्वारा बुलाये जाने पर आप दोनों हमारे निकट आगमन करेंगे? कौन आप दोनों के महान क्रोध को सहन कर सकता है? हे मधुर जल के सृष्टिकर्ता एवं शत्रु विनाशक अश्विनी कुमारों! आप दोनों हम लोगों को आश्रय प्रदान कर रक्षित करें।[ऋग्वेद 4.43.4]
तुम दोनों के उपयुक्त कौन सी वंदना है? तुम किस श्लोक द्वारा आमंत्रित किये जाने पर आओगे? तुम दोनों के भयंकर क्रोध को सहन करने की शक्ति किसमें है? हे मृदुजल के रचित करने वालों! तुम शत्रुओं का पतन करने वाले हो, तुम अपनी शरण प्रदान करके हमारी सुरक्षा करो।
Which prayers suits you? which prayers will bring you to us? Which of you can tolerate furiosity? Hey creators of sweet waters, destroyers of enemies Ashwani Kumars! Both of you grant us protection.
उरु वां रथः परि नक्षति द्यामा यत्समुद्रादभि वर्तते वाम्।
मध्वा माध्वी मधु वां प्रुषायन्यत्सी वां पृक्षो भूरजन्त पक्काः
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों का रथ द्युलोक के चारों ओर विस्तृत भाव से गमन करता से आप दोनों के अभिमुख गमन करता है। आप दोनों के लिए पके जौ के साथ सोमरस संयोजित हुआ है। हे मधुर जल के सृष्टिकर्ता, शत्रु विनाशक अश्विनी कुमारो! अध्वर्युगण मधुर दुग्ध के साथ सोमरस को मिश्रित कर रहे हैं। है।[ऋग्वेद 4.43.5] 
हे अश्विनी कुमारों! तुम्हारा रथ अम्बर से चतुर्दिक अधिकाधिक विचरणशील है। यह समुद्र में भी चलता है। तुम्हारे लिए परिपक्व जौं के समान सोम रस मिला हुआ है। तुम मधुरजल के उत्पन्न करने वाले हो और शत्रुओं का विनाश करते हो। यह अध्वर्यु तुम्हारे लिए सोम रस में दूध मिश्रित करते हैं।
Hey Ashwani Kumars! Your charoite roams-move all over the space-sky & in the four directions. It drives over the ocean as well. Somras has been extracted out of ripe barley for you. Hey creator of sweet waters and destructors of the enemies, Ashwani Kumars! The priests are mixing Somras with milk for you.
सिन्धुर्ह वां रसया सिञ्चदश्वान्घृणा वयोऽरुषासः परि ग्मन्।
तदू षु वामजिरं चेति यानं येन पती भवथः सूर्यायाः
मेघ या उदक रस द्वारा आप दोनों के अश्वों का सेवन हुआ है। पक्षी सदृश अश्व गण द्वारा दीप्यमान होकर गमन करते हैं। जिस रथ द्वारा आप दोनों सूर्य के पालन करने वाले हुए, आप दोनों का वह शीघ्रगामी रथ प्रसिद्ध है।[ऋग्वेद 4.43.6]
मेघ द्वारा तुम्हारे अश्वों को अभिषिक्त किया है। ज्योति से ज्योतिवान ये तुम्हारे अश्व पक्षियों के समान चलते हैं जिस रथ के द्वारा तुम दोनों ने सूर्या की सुरक्षा की थी, तुम दोनों का वह विख्याति ग्रहण रथ शीघ्रता से चलने वाला है।
Your horses have been anointed-crowned with rain waters. The radiant horses move like the birds.  Your fast moving charoite with which you protected the daughter of Sun is famous.
इहेह यद्वां समना पपृक्षे सेयमस्मे सुमतिर्वाजरत्ना।
उरुष्यतं जरितारं युवं ह श्रितः कामो नासत्या युवद्रिक्
हे अश्विनी कुमारों! इस यज्ञ में आप दोनों समान मन वाले हैं। हम स्तुति द्वारा आप दोनों को संयुक्त करते हैं। वह शोभन प्रार्थना हम लोगों के लिए फलवती हो। हे रमणीय अन्न वाले अश्विनी कुमारो ! आप दोनों स्तोता की रक्षा करें। हे नासत्यद्वय! हमारी अभिलाषा आप दोनों के निकट जाने से पूर्ण होती है।[ऋग्वेद 4.43.7]
हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों एक समान हो। इस यज्ञ में हम स्तुति द्वारा तुम दोनों को समान मानते हुए एकत्र आहूत करते हैं। यह सुन्दर स्तुति हमको श्रेष्ठ जल प्रदान करने वाली हो। हे अश्विद्वय! तुम शोभन अन्न से युक्त हो। हम स्तोताओं की रक्षा करो। हमारी अभिलाषा तम्हारे समीप पहुँचते ही पूरी हो जाती है।
Hey Ashwani Kumars! Both of you have the same feelings-respect for this Yagy. We make offerings for you in this Yagy considering you as one entity. Hey possessors of desired food grains Ashwani Kumars! You both protect the Stota-Ritviz. Hey duo! our desires are accomplished as soon as we reach-approach you.(19.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- पुरुमीलहाजमीलह सौहोत्रदेवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- त्रिष्टुप।
तं वां रथं वयमद्या हुवेम पृथुज्रयमश्विना संगतिं गोः।
यः सूर्यां वहति वन्थुरायुर्गिर्वाहसं पुरुतमं वसूयुम्
हे अश्विनी कुमारों! हम आज आपके विख्यात वेग वाले और गोसंगत गौप्रद रथ का आह्वान करते हैं। वह रथ सूर्या को धारित करता है। उसके निवासाधारभूत काष्ठ बंधुर है। वह रथ स्तुतियों को ढोने वाला, विशाल और धनवान है।[ऋग्वेद 4.44.1]
हे अश्विद्वय! हम तुम्हारे गौ दाता एवं प्रसिद्ध गतिवान रथ को पुकारते हैं। वह सूर्य को शरण दे चुके हैं। उसमें बैठने की जगह लकड़ी की बनी है। तुम्हारा वह रथ वंदनाओं को वहन करने वाला तथा अन्न व धन से परिपूर्ण परमऐश्वर्य वाला है।
Hey Ashwani Kumars! We invoke your charoite which is famous for its high speed and grants cows. It bears Surya, the daughter of Sun. Its seats are made up of wood. It carries prayers-Strotr, is large-spacious and possess grandeur.
युवं श्रियमश्विना देवता तां दिवो नपाता वनथः शचीभिः।
युवोर्वपुरभि पृक्षः सचन्ते वहन्ति यत्ककुहासो रथे वाम्
हे आदित्य या द्युलोक के पुत्र स्थानीय अश्विनी कुमारों! आप दोनों देवता है। आप दोनों कर्म द्वारा प्रसिद्ध शोभा को प्राप्त करते हैं। आप दोनों के शरीर को सोमरस प्राप्त करता है। महान अश्व आप दोनों के रथ का वहन करता है।[ऋग्वेद 4.44.2]
हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों ही देवता हो। तुम दोनों ही अपने श्रेष्ठ कर्म द्वारा सुशोभित होते हो। तुम दोनों के शरीर में सोमरस व्याप्त रहता है। तुम्हारे रथ को उत्तम अश्व खींचते हैं।
Hey son of Sun, residents of heavens, Ashwani Kumars! Both of you are demigods. You are known for your great deeds-endeavours. You are nourished with Somras. Excellent horses pull your charoite.
को वामद्या करते रातहव्य ऊतये वा सुतपेयाय वार्कैः।
ऋतस्य वा वनुषे पूर्व्याय नमो येमानो अश्विना ववर्तत्
कौन सोम दाता याजक गण, आज रक्षा के लिए, सोमपान के लिए, यज्ञ की पूर्ति के लिए अथवा सम्भजन के लिए आप दोनों की प्रार्थना करता है? हे अश्विनी कुमारों! कौन नमस्कार करने वाला आप दोनों को यज्ञ के लिए प्रवृत्त करता है।[ऋग्वेद 4.44.3]
हे अश्विद्वय! सोम देने वाला कौन सा यजमान सोमपान के लिए और अपनी सुरक्षा अभिलाषा करता हुआ तुम्हारी वंदना करता है। कौन सा नमस्कारकर्त्ता यजमान तुम दोनों को अनुष्ठान की ओर पुकारता है?
Hey Ashwani Kumars! Who is the needy, who offer you Somras calling-inviting you for the completion of Yagy and his own safety? Hey Ashwani Kumars! Which Ritviz-devotee invite you in his Yagy?
हिरण्ययेन पुरुभू रथेनेमं यज्ञं नासत्योप यातम्।
पिबाथ इन्मधुनः सोम्यस्य दधथो रत्नं विधते जनाय
हे नासत्यद्वय! आप दोनों बहुविध है। इस यज्ञ में हिरण्मय रथ द्वारा आप दोनों पधारें। मधुर सोमरस का पान करें और पुरुषार्थी मनुष्यों को रमणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.44.4]
पुरुषार्थी :: पुरुषार्थ करने वाला, उद्योगी; effort maker, endeavourers.
हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों अनेक कार्य करने वाले हो। तुम अपने स्वर्ण से परिपूर्ण रथ युक्त इस यज्ञ में पधारो और मधुर-मधुर सोमरस का पान करो। हम तपिस्वयों को सुन्दन धन प्रदान करो।
Hey Ashwani Kumars! You carry out multiple tasks. Join the Yagy by coming here in your charoite carrying gold. Enjoy sweet Somras and provide gold to the endeavourers.
आ नो यातं दिवो अच्छा पृथिव्या हिरण्ययेन सुवृता रथेन।
मा वामन्ये नि यमन्देवयन्तः सं यद्ददे नाभिः पूर्व्या वाम्
शोभन आवर्तन वाले हिरण्मय रथ द्वारा आप दोनों द्युलोक या पृथ्वीलोक से हमारे सम्मुख आगमन करते हैं। आप दोनों की इच्छा करने वाले दूसरे याजक गण आप दोनों को नहीं रोक सकते, इसलिए हमने पूर्व में ही प्रार्थना अर्पित की है।[ऋग्वेद 4.44.5]
हे अश्विद्वय! तुम अपने स्वर्णिम रथ से नभ से हमारे समीप पधारो। तुम्हें आहुत करने वाले अन्य यजमान तुम्हें यहाँ आने से रोक न लें, इसलिए हमने अपनी प्रार्थनाओं को पहले ही निवेदन कर दिया है।
Hey Ashwani Kumars! You travel to us in your golden charoite either from the heaven or the earth. Other Ritviz-devotees can not stop you from coming here since we had already requested you.
नू नो रयिं पुरुवीरं बृहन्तं दस्रा मिमाथामुभयेष्वस्मे।
नरो यद्वामश्विना स्तोममावन्त्सधस्तुतिमाजमीळ्हासो अग्मन्
हे वस्त्रद्वय! आप लोग हम दोनों को शीघ्र ही बहुपुत्र युक्त प्रभूत धन प्रदान करें। हे अश्विनी कुमारों! पुरुमीळ्ह के ऋत्विकों ने आप दोनों को स्तोत्र द्वारा प्राप्त किया एवं अजमीळ्ह के ऋत्विकों की प्रार्थना भी उसी के साथ संगत हुई।[ऋग्वेद 4.44.6]
हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों हमको अनेक संतान युक्त धन प्रदान करो। मुझ पुरमी हरण के ऋत्विजों ने अपने श्लोक की शक्ति से तुमको यहाँ पुकारा और अजमीहण के ऋत्विजों ने जो श्लोक प्रस्तुत किया है उसके बल भी इसी के साथ मिले हुए हैं।
Hey Ashwani Kumars! Grant us several sons and a lot of wealth. The Ritviz of Purumilh attained you through the Strotr & the Ritviz of Ajmilh too, did the same.
इहेह यद्वां समना पपृक्षे सेयमस्मे सुमतिर्वाजरत्ना।
उरुष्यतं जरितारं युवं ह श्रितः कामो नासत्या युवद्रिक्
हे अश्विनी कुमारों! इस यज्ञ में आप दोनों समान विचार वाले हैं। हम जिन स्तुति द्वारा आप दोनों को संयुक्त करते हैं, वह शोभन प्रार्थना हम लोगों के लिए फलवती हो। हे रमणीय अन्न वाले अश्विनी कुमारों! आप दोनों स्तोता की रक्षा करें। हे नासत्यद्वय! हमारी कामनाएँ आप दोनों के निकट जाने से पूर्ण होती है।[ऋग्वेद 4.44.7]
हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों इस अनुष्ठान में समान हृदय वाले बनो! हम जिस श्लोक द्वारा तुम दोनों को एक करते हैं उस सुन्दर स्त्रोत द्वारा हम तुम्हारे लिए फल वाले हो जाओ। तुम दोनों उत्तम अन्न वाले हो। मुझ वंदना करने वाले की तुम सुरक्षा करो। हमारी अभिलाषा तुम्हारे समीप पहुंचने से पूर्व हो जाती है।
Hey Ashwani Kumars! You have the same feelings, thoughts, ideas for this Yagy. We connects both of you with prayers. Let our prayers be successful. You possess excellent food grains. Protect the worshipers. You accomplish our desires.(20.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप।
एष स्य भानुरुदियर्ति युज्यते रथः परिज्मा दिवो अस्य सानवि।
पृक्षासो अस्मिन्मिथुना अधि त्रयो दृतिस्तुरीयो मधुनो वि रप्शते
हे अश्विनी कुमारों! दीप्तिमान आदित्य उदित होते हैं। आप दोनों का रथ चारों ओर गमन करता है। वह द्युतिमान सूर्य देव के साथ ऊँचे स्थान में मिलते हैं। इस रथ के ऊपरी भाग में मिथुनी भूत त्रिविध (अशन, पान, खाद) अन्न है एवं सोमरस पूर्ण चर्ममय पात्र चतुर्थ रूप में शोभा पाता है।[ऋग्वेद 4.45.1]
ज्योर्तिमान सूर्य देव उदित हो रहे हैं। अश्विनी कुमारों का महान रथ सब ओर विचरण करता है। वह तेजस्वी रथ से जुड़ा रहता है। इस रथ से ऊपरी तरफ विविध अन्न है तथा सोम रस से भरा हुआ चमस चतुर्थ रूप से सुशोभित है।
Hey Ashwani Kumars! Radiant Sun rises. Your charoite moves in all directions. They meet shinning Sun at the elevated places. The upper segment of the charoite contains different types of food grains. Your Chamas-pot is full of Somras.
उद्वां पृक्षासो मधुमन्त ईरते रथा अश्वास उषसो व्युष्टिषु।
अपोर्णुवन्तस्तम आ परीवृतं स्व १ र्ण शुक्रं तन्वन्त आ रजः
उषा के आरम्भ काल में आप दोनों का त्रिविधान्नवान, सोमरसोपेत, अश्व युक्त रथ चारों ओर, व्याप्त अन्धकार को दूर करता हुआ और सूर्य के तुल्य दीप्त तेज को विस्तारित करता हुआ उन्मुख होकर गमन करता है।[ऋग्वेद 4.45.2]
हे अश्विद्वय! उषा आरम्भ में तुम्हारा सुंदर विविध अन्न और सोम से युक्त रथ सभी ओर अंधकार को दूर करता हुआ सूर्य के समान उज्जवल प्रकाश को फैलाता हुआ ऊपर की ओर उड़ता है।
Hey Ashwani Kumars your rises up, full of three kinds of food grains, possessing Somras, when the Usha-day break start removing darkness, shinning like the Sun.
मध्वः पिबतं मधुपेभिरासभिरुत प्रियं मधुने युञ्जाथां रथम्।
आ वर्तनिं मधुना जिन्वथस्पथो दृतिं वहेथे मधुमन्तमश्विना
सोमपान करने योग्य मुख द्वारा आप दोनों सोमरस का पान करें। सोमरस के लाभ के लिए प्रिय रथ की योजना करें और याजक के घर में पधारें। गमनमार्ग को मधुर रस से परिपूर्ण करें और सोमरस से पूर्ण पात्र को धारित करें।[ऋग्वेद 4.45.3]
हे अश्विद्वय! तुम अपने सोम पीने के अभ्यासी मुख द्वारा सोम रस पियो। सोमरस का पान करने हेतु तुम अपने रथ को जोड़कर यजमानों के ग्रह में लाओ। अपने विचरण मार्ग को सोमरस की इच्छा करते हुए शीघ्र पूर्ण कर लो और सोमपूर्ण पात्र को प्राप्त करो।
Hey Ashwani Kumars! You pour Somras in your mouth, being experienced in it. Come to the house of the Ritviz for drinking Somras, in your charoite. Cover the distance quickly and hold the pot full of Somras.
हंसासो ये वां मधुमन्तो अस्त्रिधो हिरण्यपर्णा उहुव उषर्बुधः।
उदप्रुतो मन्दिनो मन्दिनिस्पृशो मध्वो न मक्षः सवनानि गच्छथः
आप दोनों के पास शीघ्रगामी, माधुर्य युक्त, द्रोह रहित, हिरण्मय, पक्ष विशिष्ट, वहनशील, उषाकाल में जागरण कारी, जल प्रेरक, हर्ष युक्त एवं सोम स्पर्शी अश्व हैं, जिनके द्वारा आप लोग हम लोगों के सवनों में आगमन करते हैं, जैसे मधुमक्खियाँ मधु के समीप गमन करती हैं।[ऋग्वेद 4.45.4]
हे अश्विद्वय! तुम्हारे निकट तीव्र गति वाले, मधुरिमा से युक्त, द्वेष से शून्य, सुवर्ण के समान तेज वाले, पंख से युक्त, उषाकाल में चैतन्य होने वाले जलों को प्रेरित करने वाले एवं सोम को छूने की कामना वाले सुन्दर अश्व हैं। जिनके द्वारा तुम मधु मक्खी के मधु के पास जाने के समान हमारे यज्ञों में आगमन करते हो।
You possess fast moving beautiful horses, touching Som, free from envy, capable of carrying, inspiring water, in all segments of the day, riding golden charoite, the way honey bee move to honey, 
स्वध्वरासो मधुमन्तो अग्नय उस्रा जरन्ते प्रति वस्तोरश्विना।
यन्निक्तहस्तर णिर्विचक्षणः सोमं सुषाव मधुमन्तमद्रिभिः
जब कर्म करने वाले अध्वर्युगण अभिमंत्रित जल से हस्त शोधन करते हुए, प्रस्तर खण्ड द्वारा मधु युक्त सोमरस का अभिषव करते हैं, तब यज्ञ के साधनभूत सोमवान गार्हपत्यादि अग्नि देव एकत्र निवासकारी अश्विनी कुमारों प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.45.5]
कर्मवान अध्वर्यु जब अभिमंत्रित जल के द्वारा हाथ धोकर पाषाण से मधुर सोम को कूटते हो, तब अनुष्ठान के साधन रूपी गार्हपत्यादि अग्नि अश्विनी कुमारों का पूजन करते हैं।
Endeavourer priests cleanse the hands with enchanted water, extract the Somras by crushing it with stones, mixes it with honey, Garhpaty & other forms of Agni pray Ashwani Kumars-you.
आकेनिपासो अहभिर्दविध्वतः स्व१र्ण शुक्रं तन्वन्त आ रजः। सूरश्चिदश्वान्युयुजान ईयते विश्वाँ अनु स्वधया चेतथस्पथः
समीप में अवतरित होने वाली रश्मियाँ दिवस द्वारा अन्धकार को नाश करती हुई सूर्य के तुल्य दीप्त तेज को विस्तारित करती हैं। सूर्य देव अश्व योजना करके गमन करते हैं। हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों सोमरस के साथ उनका अनुगमन करके समस्त पथ प्रज्ञापित करें।[ऋग्वेद 4.45.6]
निकट में पड़ती हुई रश्मि दिन के द्वारा अंधेरे को समाप्त करती और सूर्य के समान ज्योति को फैलाती है। उस समय सूर्य अपने गृह पर चढ़कर चलते हैं। हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों सोमरस के साथ उनके चलते हुए सभी पथ को पूर्ण करो।
Radiations created around you, kill darkness like the Sun. Sun harness his horses, ride the charoite and move. Hey Ashwani Kumars! You both follow his path with Somras.
प्र वामवोचमश्विना धियन्धा रथः स्वश्वो अजरो यो अस्ति।
येन सद्यः परि रजांसि याथो हविष्मन्तं तरणिं भोजमच्छ
हे अश्विनी कुमारों! यज्ञ करने वाले हम आप दोनों की प्रार्थना करते हैं। आप दोनों का सुन्दर अश्व युक्त यह जो नित्य तरुण रथ है एवं जिस रथ द्वारा आप दोनों क्षण मात्र में तीनों लोकों का परिभ्रमण करते हैं, उसी रथ द्वारा आप दोनों हव्य युक्त, तीनों लोकों का शीघ्र अतिवाही एवं भोगप्रद यज्ञ में आगमन करें।[ऋग्वेद 4.45.7]
हे अश्विद्वय! हम याज्ञिकगण तुम दोनों की वंदना करते हैं। जो तुम्हारा सुन्दर अश्वों से परिपूर्ण नित्य नवीन रथ है, जिस रथ के द्वारा तुम दोनों लोकों का विचरण करते हो, अपने उस रथ से युक्त तुम हविरत्न वाले हमारे अनुष्ठान में पधारो।
Hey Ashwani Kumars! We the organisers of the Yagy request your presence in it. Come & join the Yagy associated with offerings, riding your beautiful charoite, which is always new, in which you travel the three abodes in few moments.(22.04.2023)
समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम।
आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि॥
हम लोग अश्विनीकुमार की उस रक्षा को प्राप्त करें, जिसका पहले किसी ने भी अनुभव नहीं किया, जो आनन्ददायक तथा सुख सम्पन्न है। हे अमरणशील अश्विनी कुमारों! आप दोनों हम लोगों को ऐश्वर्य, वीर पुत्र और समस्त सौभाग्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.42.18]
We should attain-experience that protection full of pleasure and comforts, by Ashwani Kumars, which has never been granted to any one. Hey immortal Ashwani Kumars! Both of you grant-provide us grandeur, brave sons and good luck.
अच्छा मही बृहती शंतमा गीर्दूतो न गन्त्वश्विना हु॒वध्यै।
मयोभुवा सरथा यातमर्वाग्गन्तं निधिं धुरमाणिर्न नाभिम्
हम लोगों का यह पूजनीय, महान् और सुखदायक स्तोत्र अश्विनी कुमारों को इस स्थान में आह्वान करने के लिए दूत के तुल्य गमन करे। हे सुखदायक अश्वि द्वय! आप दोनों एक रथ पर बैठकर अर्पित सोम के निकट भारवाहक कील के तुल्य आगमन करें। जिस प्रकार से बिना कील वाली नाभि से रथ का निर्वहण नहीं होता, उसी प्रकार से बिना आपके सोमयाग का निर्वाह नहीं होता।[ऋग्वेद 5.43.8]
Let our revered great, comforting Strotr act as an ambassador for the Ashwani Kumars for invoking them at this place. Hey comforting Ashwani Kumars! Come riding the same charoite like the hub-nail supporting weight in its excel. The manner in which the hub support the charoite, the Yagy can not be conducted without your support-favour.
समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम।
आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि
हे अमरणशील अश्विनी कुमारों! हम लोग अश्विनी कुमारों की उस रक्षा को प्राप्त करें, जिसका पूर्व में किसी ने भी अनुभव नहीं किया, जो आनन्द दायक तथा सुख सम्पन्न है। आप दोनों हम लोगों को ऐश्वर्य, वीर्य, पुत्र और समस्त सौभाग्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.43.17]
Hey immortal Ashwani Kumars! Let us attain that protection of yours, which has not been accessed-experienced by anyone earlier; that is blissful and comfortable. Both of you grant grandeur, power, sons and good luck.
स्वस्ति नो मिमीतामश्विना भगः स्वस्ति देव्यदितिरनर्वणः।
स्वस्ति पूषा असुरो दधातु नः स्वस्ति द्यावापृथिवी सुचेतुना
हम लोगों के लिए दोनों अश्विनी कुमार अविनश्वर कल्याण करें, भग कल्याण करें तथा देवी अदिति कल्याण करें। बलवान् अथवा सत्यशील और शत्रु संहारक अथवा बलदाता पूषा हम लोगों का मङ्गल करें। शोभन ज्ञान विशिष्ट द्यावा-पृथ्वी हम लोगों का मङ्गल करें।[ऋग्वेद 5.51.11]
अविनश्वर :: वह अक्षर और अविनश्वर है और जीवात्मा के रूप में प्रत्येक जीव में अवस्थित है, जिसका नाश न हो, परब्रह्म; immortal, imperishable, indestructible.
Let both Ashwani Kumars, the imperishable-immortal Brahm, Bhag and Devi Aditi resort to our welfare. Let truthful Pusha the grantor of might, destroyer of the enemy resort to our welfare. Let the heaven & earth resort to our welfare through specific means-knowledge.

ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (73) :: ऋषि :- पौर आत्रेय, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- अनुष्टुप्।
यदद्य स्थः परावति यदर्वावत्यश्विना।
यद्वा पुरू पुरुभुजा यदन्तरिक्ष आ गतम्
हे अगणित यज्ञ में भोजन करने वाले अश्विनी कुमारों! आप दोनों दूरस्थ देश में हों या निकटवर्ती बहुत प्रदेशों में हों अथवा अन्तरिक्ष में हों, आप जहाँ भी हों, तथापि उन सब स्थानों से यहाँ आगमन करें।[ऋग्वेद 5.73.1]
DINE :: दोपहर का खाना खाना, मध्याह्न का भोजन करना, मध्याह्न का भोज देना; lunch. 
Hey Ashwani Kumars! You dine in unaccounted Yagys. Where ever you are, far or near, space come to this place.
इह त्या पुरुभूतमा पुरू दंसांसि बिभ्रता।
वरस्या याम्यध्रिगू हुवे तुविष्टमा भुजे
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों बहुत याजकगणों के उत्साह दाता, विविध कर्मों के धारणकर्ता, वरणीय अप्रतिहत गति और अनिरुद्ध कर्मा हैं। इस यज्ञ में हम दोनों के समीप आप उपस्थित होवें। प्रभूततम भोग और रक्षा के लिए हम आप दोनों का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.73.2]
अनिरुद्ध :: असीम, अजेय, विजयी, निर्विरोध; unlimited, boundless, unstoppable, victorious, unopposed, an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu, uncontrolled, unrestrained, without obstacles, name of grandson of Bhagwan Shri Krashn. 
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous.
प्रभुतम :: जो हो चुका हुआ हो, निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर,  पूर्ण,  पूरा, पक्व; पका हुआ, उन्नत; sovereign.
Hey Ashwani Kumars! Both of you encourage the Ritviz, preform several-various boundless endeavours, possess continuous speed. We invite you for our protection and sovereignty.
ईर्मान्यद्वपुषे वपुश्चक्रं रथस्य येमथुः।
पर्यन्या नाहुषा युगा मह्ना रजांसि दीयथः
हे अश्विनी कुमारों! सूर्य देव की मूर्ति को प्रदीप्त करने के लिए आप दोनों ने रथ के एक दीप्तिमान चक्र को नियमित किया। अपनी सामर्थ्य से मनुष्यों के अहोरात्रादि काल को निरूपित करने के लिए अन्य चक्र द्वारा (तीनों लोकों में परिभ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 5.73.3]
Hey Ashwani Kumars! You regulated a wheel of the charoite of Bhagwan Sury to make him shine. You travel in the three abodes to regulate the two segments of the day by virtue of your power-might.
तदू षु वामेना कृतं विश्वा यद्वामनु ष्टवे।
नाना जातावरेपसा समस्मे बन्धुमेयथुः
हे व्यापक देवद्वय! हम जिस स्तोत्र द्वारा आप दोनों की प्रार्थना करते हैं, वह आप दोनों का स्तोत्र इस पुरवासी के द्वारा सुसम्पादित हो। हे पृथक उत्पन्न तथा निष्पाप देवद्वय! आप दोनों हमें प्रचुर परिमाण में अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.73.4]
Hey vast duo deities! The Strotr with which we worship you should be properly composes by the inhabitants of this abode. Hey born separately, deity duo! Both of you grant us food grains in sufficient quantity.
आ यद्वां सूर्या रथं तिष्ठद्रघुष्यदं सदा।
परि वामरुषा वयो घृणा वरन्त आतपः
हे अश्विनी कुमारों! जब आप दोनों की पत्नी सूर्या आप दोनों के सर्वदा शीघ्रगामी रथ पर आरोहण करती हैं, तब आरोचमान और दीप्त आतप-दीप्तियाँ आप दोनों के चतुर्दिक् विस्तृत होती हैं।[ऋग्वेद 5.73.5]
Hey Ashwani Kumars! When your wives Surya, ride your always quickly moving charoite, then bright-waving, resplendent rays of light encompass you.
युवोरत्रिश्चिकेतति नरा सुम्नेन चेतसा।
घर्मं यद्वामरेपसं नासत्यास्ना भुरण्यति
हे नेता अश्विनी कुमारों! हम लोगों के पिता अत्रि ने आप दोनों का स्तवन करके जब अग्नि देव के उत्ताप को सुखप्रद समझा, तब उन्होंने अग्नि दाहोपशम रूप सुख हेतु कृतज्ञ चित्त से आप दोनों के उपकार को स्मरण किया।[ऋग्वेद 5.73.6]
उत्ताप :: अत्यधिक गर्मी, दुःख; candescence, heat.
Hey leaders Ashwani Kumars! After worshiping you, when our father Atri Rishi found the candescence-heat and burning power of Agni Dev comfortable; he felt obliged and remembered both of you for the help.
उग्रो वां ककुहो ययिः शृण्वे यामेषु संतनिः।
यद्वां दंसोभिरश्विनात्रिर्नराववर्तति
हे नेता अश्विनी कुमारों! आप दोनों का दृढ़, उन्नत, गमनशील, सतत् विघूर्णित रथ यज्ञ में प्रसिद्ध है। आप दोनों के ही कार्य द्वारा हमारे पिता अत्रि आवर्तमान होते हैं अर्थात् आप दोनों के कार्य द्वारा उन्होंने परित्राण पाया।[ऋग्वेद 5.73.7]
आवर्तमान :: गोलाकार घूमना, चक्कर काटना; going round, revolving, advancing, proceeding.
परित्राण :: पूर्ण रक्षा, पूरा बचाव; complete protection, avoidance.
Hey Ashwani Kumars, the leaders! Your charoite is famous for its strength, height, motion-rotation; in the Yagy. Our father Atri Rishi got protection-rescued by virtue of your help.
मध्व ऊ षु मधूयुवा रुद्रा सिषक्ति पिप्युषी।
यत्समुद्राति पर्षथः पक्वाः पृक्षो भरन्त वाम्
हे मधुर सोमरस के मिश्रयिता देवों! हम लोगों की पुष्टिकर प्रार्थना आप लोगों के ऊपर मधुर रस सिंचन करती है। आप लोग अन्तरिक्ष की सीमा का अतिक्रमण करते हैं और पके हुए हविष्यान्नों से परिपूर्ण होते है।[ऋग्वेद 5.73.8]
मिश्रयिता  :: एक में मिलाया हुआ, मिश्रण किया हुआ, मिला हुआ; mixers.
Hey mixers of sweet Somras, deities! Our nourishing prayers showers sweet sap over you. You cross the boundaries of the space-sky and get-obtain ripe-cooked offerings-oblations.
सत्यमिद्वा उ अश्विना युवामाहुर्मयोभुवा।
ता यामन्यामहूतमा यामन्ना मृळयत्तमा
हे अश्विनी कुमारों! पण्डित लोग आप दोनों को जो सुखदाता कहते हैं, वह निश्चय ही मधुर रस सिंचन करती है। आप लोग अन्तरिक्ष की सीमा का अतिक्रमण करते हैं और पके हुए हविष्यान्नों से परिपूर्ण होते है।[ऋग्वेद 5.73.9]
Hey Ashwani Kumars! The scholars-Pandits call you the providers of comforts-pleasure, since you shower sweet saps. You cross the limits of the space and avail cooked offerings-oblations.
इमा ब्रह्माणि वर्धनाश्विभ्यां सन्तु शंतमा।
या तक्षाम रथाँइवावोचाम बृहन्नमः
शिल्पी जिस प्रकार से रथों को प्रस्तुत करता है, उसी प्रकार हम लोग अश्विनी कुमारों को संवर्द्धित करने के लिए प्रार्थना प्रस्तुत करते हैं। वे स्तुतियाँ उन्हें प्रीतिकर हों।[ऋग्वेद 5.73.10]
The way a craftsman presents charoites, we present-compose prayers for the growth of Ashwani Kumars. Let our prayers be likes-admired by them.(08.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- पौर आत्रेय, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- अनुष्टुप्।
कूष्ठो देवावश्विनाद्या दिवो मनावसू।
तच्छ्रवथो वृषण्वसू अत्रिर्वामा विवासति
हे स्तुति धन, धन वर्षणकारी देवद्वय! आज इस यज्ञ दिन में आप दोनों द्युलोक से आगमन करके भूमि पर स्थित हों और उस स्तोत्र को श्रवण करें, जिसे आपके उद्देश्य से अत्रि सर्वदा पाठ करते हैं।[ऋग्वेद 5.74.1]
Hey worship deserving, wealth showering duo deities! Come and join this Yagy from the heaven to the earth and listen to the Strotr always recited by Atri Rishi for you.
कुह त्या कुह नु श्रुता दिवि देवा नासत्या।
कस्मिन्ना यतथो जने को वां नदीनां सचा
वे दीप्तिमान् नासत्य द्वय कहाँ हैं? आज इस यज्ञ दिन में वे द्युलोक के किस स्थान में श्रुत हो रहे हैं? हे देवद्वय! आप दोनों किस यजमान के निकट आगमन करते हैं? कौन स्तोता आप दोनों की स्तुतियाँ का सहायक है?[ऋग्वेद 5.74.2]
नासत्य दो आश्विनों में से एक हैं। वह स्वास्थ के देवता हैं। मानव शरीर की देवी और शिव की पुत्री ज्योति नासत्य की पत्नी हैं। स्वास्थ्य लाभ के देवता सत्यवीर नासत्य के पुत्र हैं। दरसा दूसरे आश्विन हैं।
Hey radiant Nasaty duo! Where in the heavens are you present on the day of this Yagy and being heard? Hey duo deities! Which Ritviz you visit? Which Stota is associated in your worship-prayers?
कं याथः कं ह गच्छथः कमच्छा युञ्जाथे रथम्।
कस्य ब्रह्माणि रण्यथो वयं वामुश्मसीष्टये
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों किस याजकगण या यज्ञ के प्रति गमन करते हैं? जाकर किसके साथ मिलित होते हैं? किसके अभिमुखवर्ती होने के लिए रथ में अश्व योजना करते हैं? किसके स्तोत्र आप दोनों को प्रसन्न करते हैं? हम लोग आप दोनों को पाने की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 5.74.3]
Hey Ashwani Kumars! Which Ritviz or the Yagy you visit-proceed! With whom do to meet-mix? For whom do you deploy your horses in the charoite? Which Strotr does make you both happy-gratified? We desire to have-receive you.
पौरं चिद्ध्युदप्रुतं पौर पौराय जिन्वथः।
यदीं गृभीततातये सिंहमिव द्रुहस्पदे
हे पौर सम्बन्धी अश्विनी कुमारों! आप दोनों पौर के निकट पौर को अर्थात् वारिवाहक मेघ को प्रेरित करें। जङ्गल में व्याधगण जिस प्रकार से सिंह को ताड़ित करते हैं, उसी प्रकार यज्ञ कर्म में व्याप्त पौर के निकट आप दोनों इसे ताड़ित करें।[ऋग्वेद 5.74.4]
पौर :: पुर का, नगर संबंधी, पुर में उत्पन्न होने वाला, नगर, निवासी, नागरिक; civic.
Hey Ashwani Kumars related with the cities! Direct the rain clouds towards the cities-human habitation. The way a hunter strike the lion, you should strike the rain clouds around the Yagy sites to make them rain.
प्र च्यवानाज्जुजुरुषो वव्रिमत्कं न मुञ्चथः।
युवा यदी कृथः पुनरा काममृण्वे वध्वः
आप दोनों ने जराजीर्ण च्यवन ऋषि के हेय, पुरातन, कुरूप को कवच तुल्य विमोचित किया। जब आप दोनों ने उन्हें पुनः युवा किया, तब उन्होंने सुरूपा कामिनी के द्वारा वाञ्छित मूर्ति को पाया।[ऋग्वेद 5.74.5]
Both of you granted-converted the old, ugly body of Chayvan Rishi like a shield. When you made him young again, then the beautiful desirous woman got you.
अस्ति हि वामिह स्तोता स्मसि वां संदृशि श्रिये।
नू श्रुतं म आ गतमवोभिर्वाजिनीवसू
हे अश्विनी कुमारों! इस यज्ञ स्थल में आप दोनों के स्तोता विद्यमान हैं। हम लोग समृद्धि के लिए आप दोनों के दृष्टि पथ में अवस्थान करें। आज आप लोग हमारा आह्वान श्रवण करें। आप लोग अन्न रूप धन से धनवान् हैं। आप लोग रक्षा के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.74.6]
Hey Ashwani Kumars! Your worshipers are present-waiting in this Yagy. For our prosperity come to us. Listen-respond to our prayers. You are rich in food grains. Come here for our safety.
को वामद्य पुरूणामा वन्वे मर्त्यानाम्।
को विप्रो विप्रवाहसा को यज्ञैर्वाजिनीवसू
हे अन्नरूप धनवान अश्विनी कुमारों! असंख्य मर्त्यो के बीच कौन व्यक्ति आज सर्वापेक्षा आप दोनों को अधिक प्रसन्न करता है? हे ज्ञानियों द्वारा वन्दित अश्विनी कुमार! कौन ज्ञानी व्यक्ति आप दोनों को सबसे अधिक प्रसन्न करता है अथवा कौन याजकगण यज्ञ द्वारा आप दोनों को तृप्त करता है।[ऋग्वेद 5.74.7]
Hey Ashwani Kumars, rich in food grains! Who amongest the mortals make you happy? Hey Ashwani Kumars worshiped by the enlightened which learned-scholar please-appease you? Which Ritviz satisfy-please you with Yagy?
आ वां रथो रथानां येष्ठो यात्वश्विना।
पुरू चिदस्मयुस्तिर आङ्गुषो मर्त्येष्वा
हे अश्विनी कुमारों! अन्य देवताओं के रथों में सर्वापेक्षा वेगगामी और असंख्य शत्रु संहारी एवं सम्पूर्ण मनुष्य याजकगणों द्वारा प्रार्थित आप दोनों का रथ हम लोगों की हितकामना करके इस स्थान में आगमन करे।[ऋग्वेद 5.74.8]
असंख्य :: बेशुमार; innumerable, myriad, uncountable.
Hey Ashwani Kumars! Let your charoite fastest amongest the charoites of the demigods-deities and slayer of innumerable enemies, worshiped by the Ritviz, arrive here for our welfare.
शमू षु वां मधूयुवास्माकमस्तु चर्कृतिः।
अर्वाचीना विचेतसा विभिः श्येनेव दीयतम्
हे मधुमान अश्विनी कुमारों! आप दोनों के लिए बार-बार सम्पादित स्तोत्र हम श्येन पक्षी के समान सभी जगह गमनशील अश्व पर आरूढ़ होकर हम लोगों के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 5.74.9]
Hey possessor of honey friendly Ashwani Kumars! You should move like the Shyen-falcon, riding your charoite to us, to listen-respond to the Strotr recited by us repeatedly.
अश्विना यद्ध कर्हि चिच्छुश्रूयातमिमं हवम्।
वस्वीरू षु वां भुजः पृश्ञ्चन्ति सु वां पृचः
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों जिस किसी स्थान में अवस्थान करें, किन्तु हमारा यह आह्वान श्रवण करें। हम यज्ञ में आपके निमित्त उत्तम अन्नों को अच्छी प्रकार से मिलाकर हविरूप प्रशंसित भोज्य पदार्थ निवेदित करते हैं।[ऋग्वेद 5.74.10]
Hey Ashwani Kumars! Where ever you live, listen-respond to our invocation. We present appreciable eatables as offerings-oblations to you.(09.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- अवस्यु  आत्रेय, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- पंक्ति।
प्रति प्रियतमं रथं वृषणं वसुवाहनम्।
स्तोता वामश्विनावृषिः स्तोमेन प्रति भूषति माध्वी मम श्रुतं हवम्
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों के स्तुतिकारी अवस्यु ऋषि आप दोनों के फलवर्षणकारी और धनवाहक रथ को विभूषित करते हैं। हे मधुविद्या को जानने वाले, आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.1]
Hey Ashwani Kumars! Avasyu Rishi decorate your charoite which grants rewards-accomplish desires and carries wealth. Hey experts-scholars of Madhu Vidya, attend-listen (respond) to our invitation.
अत्यायातमश्विना तिरो विश्वा अहं सना।
दस्रा हिरण्यवर्तनी सुषुम्ना सिन्धुवाहसा माध्वी मम श्रुतं हवम्
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों सब याजकगणों का अतिक्रमण करके इस स्थान में आगमन करें, जिससे हम समस्त विरोधियों को पराजित करें। हे शत्रुसंहारक! सुवर्णमय रथारूढ़, प्रशस्त धनसम्पन्न, नदियों को वेग प्रवाहित करनेवालो एवं मधुविद्या विशारद अश्विनीकुमारों! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.2]
Hey Ashwani Kumars! You both come to us, discarding all other Ritviz, so that we are able to defeat our opponents. Hey destroyer of the enemies, experts in Madhu Vidya! Riding the golden charoite, possessing a lot of wealth, maintain-regulate the flow of rivers, respond to our invitation-invocation.
आ नो रत्नानि बिभ्रतावश्विना गच्छतं युवम्।
रुद्रा हिरण्यवर्तनी जुषाणा वाजिनीवसू माध्वी मम श्रुतं हवम्
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारे लिए रत्न लेकर आगमन करें। हे हिरण्य रथाधिरूढ़, स्तुति योग्य, अन्नरूप धन वालों, यज्ञ में अधिष्ठान करने वालों एवं मधुविद्या विशारद अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.3]
Hey Ashwani Kumars! Both of you come with jewels for us. Hey riders of golden charoite, worship-prayer deserving, deity of the Yagy, possessor of wealth in the form of food grains, experts in Madhu Vidya, Ashwani Kumars! Respond to our invocation.
RIDER :: सवार, घुड़सवार; plunger, cavalier, cavalryman, equestrian, horseman, cavalier, cavalryman.
सुष्टुभो वां वृषण्वसू रथे वाणीच्याहिता।
उत वां ककुहो मृगः पृक्षः कृणोति वापुषो माध्वी मम श्रुतं हवम्
हे धन वर्षणकारी अश्विनी कुमारों! आप दोनों के स्तोता का स्तोत्र आप दोनों के उद्देश्य से उच्चारित होता है। आप दोनों का प्रसिद्ध, मूर्तिमान याजकगण एकाग्र चित्त होकर आप दोनों को हव्य प्रदान करते हैं। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.4]
Hey wealth showering Ashwani Kumars! Your Stota recite the Strotr for you. Your famous Ritviz make offerings for you with great concentration-attention, sitting erect like a statue. Hey experts of Madhu Vidya! Listen-respond to our invitation. 
बोधिन्मनसा रथ्येषिरा हवनश्रुता।
विभिश्र्च्यवानमश्विना नि याथो अद्वयाविनं माध्वी मम श्रुतं हवम्
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों विज्ञ मन वाले, रथाधिरूढ़, द्रुतगामी एवं स्तोत्र श्रवण कर्ता है। आप दोनों शीघ्र ही अश्व पर आरोहण करके कपटता विहीन च्यवन ऋषि के निकट उपस्थित हुए। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.5]
Hey Ashwani Kumars! You are enlightened-knowledgeable, rider of the charoite, fast moving and listen-attend to the Strotr. You quickly rode the horses and reached cunning less Chayvan Rishi. Hey experts of Madhu Vidya! Listen-respond to our invocation.
आ वां नरा मनोयुजोऽश्वासः प्रुषितप्सवः।
वयो वहन्तु पीतये सह सुम्नेभिरश्विना माध्वी मम श्रुतं हवम्
हे नेता अश्विनी कुमारों! आप दोनों के सुशिक्षित, द्रुतगामी और विचित्र मूर्ति अश्व सोमरस पान के लिए ऐश्वर्य के साथ इस स्थान में आप दोनों को हमारी ओर लायें। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.6]
Hey leaders, Ashwani Kumars! Let your trained-skilled amazing horses bring you here for drinking Somras. Come to us with your grandeur. Hey experts of Madhu Vidya! Listen-respond to our invocation.
अश्विनावेह गच्छतं नासत्या मा वि वेनतम्।
तिरश्चिदर्यया परि वर्तिर्यातमदाभ्या माध्वी मम श्रुतं हवम्
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों इस स्थान में आगमन करें। हे नासत्यद्वय! आप दोनों प्रतिकूल न होना। हे अजेय प्रभु! आप दोनों प्रच्छन्न प्रदेश से हमारे यज्ञगृह में आगमन करें। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.7]
अजेय :: जिसे जीता न जा सके; invincible, insurmountable.
प्रच्छन्न :: छिपाया हुआ, तिरोभूत, तिरोहित, गुम, अव्यक्त, गुप्त, सुप्त,  निहित, अंतर्निहित; disguised, hidden, undisclosed, latent.
Hey Ashwani Kumars! Visit this place. Hey Nasaty duo! Do not go against us. Hey invincible Prabhu-Lord! Come to join our Yagy from an undisclosed place. Hey comprehensively knowing Madhu Vidya! Respond to our invitation.
अस्मिन्यज्ञे अदाभ्या जरितारं शुभस्पती।
अवस्युमश्विना युवं गृणन्तमुप भूषथो माध्वी मम श्रुतं हवम्
हे जल के अधिपति अजेय अश्विनी कुमारों! इस यज्ञ में आप दोनों स्तवकारी अवस्यु के लिए अनुग्रह प्रदर्शन करें। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.8]
Hey invincible lord of water, Ashwani Kumars! Show respect-gratitude towards Avasyu Rishi. Hey experts in Madhu Vidya! respond to our invitation.
अभूदुषा रुशत्पशुराग्निरधाय्यृत्वियः।
अयोजि वां वृषण्वसू रथो दस्रावमर्त्यो माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
उषा विकसित हुई। समुज्ज्वल किरण सम्पन्न अग्निदेव वेदी के ऊपर संस्थापित हुए। धन वर्षणकारी, शत्रु संहारक अश्विनी कुमारों! आपका अनश्वर रथ नियोजित किया गया है। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.9]
The Usha-dawn has evolved & grown. Agni Dev with brilliant rays has been establish over the Yagy Vedi. Hey wealth showering, slayers of enemy Ashwani Kumars! Your indestructible charoite has been readied. Hey experts in Madhu Vidya! Both of you respond to our prayers. (10.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (76) :: ऋषि :- अत्रि भौम,  देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ भात्यग्निरुषसामनीकमुद्विप्राणां देवया वाचो अस्थुः।
अर्वाञ्चा नूनं रथ्येह यातं पीपिवांसमश्विना धर्ममच्छ
उषाकाल में प्रबुध्यमान अग्नि देव दीप्ति होते हैं। मेधावी स्तोताओं के देवाभिलाषी स्तोत्र उद्गीत होते हैं। हे रथाधिपति अश्विनी कुमारों! आप दोनों आज इस यज्ञ स्थान में अवतीर्ण होकर इस सोमरस पूर्ण समृद्ध यज्ञ में आगमन करें।[ऋग्वेद 5.76.1]
प्रबुद्ध :: चैतन्य, सचेत, जागा हुआ, जाग्रत, ज्ञानी, विद्वान, पंडित, जिसे यथार्थ का ज्ञान हो, जानकार; awake, learned, illuminated, enlightened. 
AFFFULENT :: धनी, संपन्न, समृद्ध, प्रचुर; wealthy, blessed, large, colliquation, enormous, exuberant, no end of.
Enlightened Agni Dev shines during Usha-day break. Intelligent Stotas desirous of demigods-deity's invocation, recite Strotr. Hey lord of the charoite Ashwani Kumars! Both of you come to this affluent Yagy having Somras.
न संस्कृतं प्र मिमीतो गमिष्ठान्ति नूनमश्विनोपस्तुतेहे।
दिवाभिपित्वेऽवसागमिष्ठा प्रत्यवर्तिं दाशुषे शंभविष्ठा
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों संस्कृत यज्ञ की हिंसा न करें; किन्तु यज्ञ के समीप शीघ्र आगमन करके स्तुति के भाजन होवें। प्रातः काल में रक्षा के साथ आप दोनों आगमन करें, जिससे अन्नाभाव न हो। आकर हव्यदाता याजकगण को सुखी करें।[ऋग्वेद 5.76.2]
Hey Ashwani Kumars! Do not kill any one in this Yagy where scholars-enlightened are participating. Arrive in the morning for our protection, so that there is no scarcity of food grains. Come and please-comfort the Ritviz.
उता यातं सङ्गवे प्रातरह्नो मध्यन्दिन उदिता सूर्यस्य।
दिवा नक्तमवसा शंतमेन नेदानीं पीतिरश्विना ततान
आप दोनों रात्रि के शेष में, गोदोहन-काल में, प्रातः काल में, सूर्य जिस समय अत्यन्त प्रवृद्ध होते हैं अर्थात् अपराह्न काल में; सायाह्न में, रात्रि में अथवा जिस किसी समय में सुखकर रक्षा के साथ आगमन करें। अश्विनी कुमारों को छोड़कर दूसरे देव सोमरस के पान के लिए प्रवृत्त नहीं होते।[ऋग्वेद 5.76.3]
Come late mid night, early morning, morning, Sun at his peak, night or when you can come comfortably. None of the demigods-deities intend to drink Somras discarding Ashwani Kumars.
इदं हि वां प्रदिवि स्थानमोक इमे गृहा अश्विनेदं दुरोणम्।
आ नो दिवो बृहतः पर्वतादाद्भ्यो यातमिषमूर्जं वहन्ता
हे अश्विनी कुमारों! यह उत्तर वेदी आप दोनों का निवास योग्य प्राचीन स्थान है। वैसे तो समस्त घर और आलय आप दोनों के ही हैं। आप दोनों वारिपूर्ण मेघ द्वारा समाकीर्ण अन्तरिक्ष से अन्न और बल के साथ हम लोगों के निकट आगमन करें।[ऋग्वेद 5.76.4]
Hey Ashwani Kumars! This Uttar Vedi-Yagy site in the North, is your ancient place good enough-suitable for residing. In fact all houses and the temples belong to you. Come through the space having clouds full of rain water, with food grains and might.
समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम।
आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि
हम सब अश्विनी कुमारों की श्रेष्ठ रक्षा तथा सुख दायक आगमन के साथ संगत हों। हे अमरण शील अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमें धन, सन्तति और समस्त कल्याण प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.76.5]
Let us all be associated of Ashwani Kumars with their excellent protection and comfortable-pleasure granting arrival. Hey immortal Ashwani Kumars! Both of you grant us wealth, progeny and all sorts of welfare-comforts.(11.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (77) :: ऋषि :- अत्रि भौम, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रातर्यावाणा प्रथमा यजध्वं पुरा गृध्रादररुषः पिबातः।
प्रातर्हि यज्ञमश्विना दधाते प्रशंसन्ति कवयः पूर्वभाजः
हे ऋत्विजों! अश्विनी कुमार प्रातः काल में ही सब देवों से पहले ही उपस्थित होते हैं, आप सब उनका यजन करें। वे अभिकांक्षी और नहीं देने वाले राक्षस प्रभृति के पूर्व ही हव्य पान करते हैं। अश्विनी कुमार प्रातः काल में यज्ञ का संभजन करते हैं। पूर्वकालीन ऋषिगण प्रातः काल में ही उनकी प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 5.77.1]
अभिकांक्षी :: इच्छा करनेवाला; aspirant.
Hey Ritviz! Pray to Ashwani Kumars. They arrive prior to all demigods-deities. They are aspirant and drink offerings prior to the demon Prabhrti, who do not give any thing. Ashwani Kumars accept oblations in the morning. Ancient Rishis-sages worshiped them in the morning only.
प्रातर्यजध्वमश्विना हिनोत न सायमस्ति देवया अजुष्टम्।
उतान्यो अस्मद्यजते वि चाव: पूर्व: पूर्वी याजकगणो वनीयान्
हे ऋत्विकों! प्रात:काल में ही आप लोग अश्विनी कुमारों का पूजन कर उन्हें हव्य प्रदान करें। सायंकालीन हव्य देवों के निकट जाने वाला नहीं जाता। देवगण उसे स्वीकार नहीं करते, वह हव्य असेवनीय हो जाता है। हमसे अन्य जो कोई सोम द्वारा उनका यजन करता है और हव्य द्वारा उन्हें तृप्त करता है; वह व्यक्ति देवों का संभजनीय होता है।[ऋग्वेद 5.77.2]
Hey Ritviz! Worship Ashwani Kumars and make offerings to them in the morning. Oblations made in the evening do not reach the demigods-deities. Such oblations-offerings are not acceptable to demigods-deities and can not be used-consumed. Any one other than us, who worship them with Somras and satisfy them with oblations is acceptable-approved in the morning, only.
हिरण्यत्वङ्मधुवर्णो घृतस्नुः पृक्षो वहन्ना रथो वर्तते वाम्।
मनोजवा अश्विना वातरंहा येनातियाथो दुरितानि विश्वा
हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों का हिरण्य द्वारा आच्छादित, मनोहर वर्ण, जल वर्षण करने वाला, मन के तुल्य वेग वाला, वायु के सदृश वेगपूर्ण और अन्न को धारित करने वाला रथ आगमन करता है। उस रथ के द्वारा आप दोनों सम्पूर्ण दुर्गम मार्गों का अतिक्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 5.77.3]
Hey Ashwani Kumars! Your charoite which is gold plated, beautifully coloured,  rain showering, with the speed of the mind, accelerated like air and possessing food grains arrives. You cross the tough terrains in that charoite. 
यो भूयिष्ठं नासत्याभ्यां विवेष चनिष्ठं पित्वो ररते विभागे।
स तोकमस्य पीपरच्छमीभिरनूर्ध्वभासः सदमित्तुतुर्यात्
जो याजकगण हविर्विभाग होने वाले यज्ञ में अश्विनी कुमारों को विपुल अन्न या हव्य प्रदान करता है, वह याजकगण कर्म द्वारा अपने पुत्र का पालन करता है। जो अग्नि देव को उद्दीप्त नहीं करते, वह सर्वदा हिंसित होते हैं।[ऋग्वेद 5.77.4]
The Ritviz who make offering and food grains to Ashwani Kumars, nourish his son with efforts. Those who do not ignite fire are always harmed.
समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम।
आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि
हम सब अश्विनी कुमारों की श्रेष्ठ रक्षा तथा सुख दायक आगमन के साथ संगत हों। हे अमरण शील देवद्वय! आप दोनों हमें धन, पुत्र और समस्त कल्याण प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.77.5]
Let all of us be granted excellent and comfortable protection with the arrival of Ashwani Kumars. Hey immortal deity duo! Both of you grant us wealth, son and all sorts of amenities-welfare.(12.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (78) :: ऋषि :- सप्तवध्रि आत्रेय, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- उष्णिक्, त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
अश्विनावेह गच्छतं नासत्या मा वि वेनतम्।
हंसाविव पततमा सुताँ उप
हे अश्विनी कुमारों! इस यज्ञ में आप दोनों पधारें। हे नासत्य द्वय! आप दोनों स्पृहा शून्य न हों। जिस प्रकार से हंसद्वय निर्मल उदक के प्रति आगमन करते हैं, उसी प्रकार आप दोनों अभिषुत सोमरस के निकट आवें।[ऋग्वेद 5.78.1]
स्पृहा :: किसी अच्छे काम, चीज या बात की प्राप्ति अथवा सिद्धि के लिए मन में होने वाली अभिलाषा, इच्छा या कामना; appetency, aspiration, ambition, craving, eagerness, desire, covetousness.
Hey Ashwani Kumars! Come to this Yagy. Hey Nasaty duo! You should be free from aspiration. The manner in which a pair of Swans is attracted towards clean water, you should come to the extracted Somras.
अश्विना हरिणाविव गौराविवानु यवसम्।
हंसाविव पततमा सुताँ उप
हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार से हरिण और गौर मृग घास का अनुधावन करते हैं एवं जिस प्रकार से हंसद्वय निर्मल उदक के प्रति आगमन करते हैं, उसी प्रकार आप दोनों अभिषुत सोम के निकट अवतीर्ण हों।[ऋग्वेद 5.78.2]
Hey Ashwani Kumars! The way the deer and Gaur deer reach grass and the Swans reach the clean water, you should also come to the extracted Somras.
अश्विना वाजिनीवसू जुषेथां यज्ञमिष्टये।
हंसाविव पततमा सुताँ उप
हे अन्न के निमित्त निवासप्रद अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारे यज्ञ अभीष्ट सिद्धि के लिए आगमन करें। जिस प्रकार से हंसद्वय निर्मल उदक के प्रति आगमन करते हैं, उसी प्रकार आप दोनों अभिषुत सोमरस के निकट अवतीर्ण होवें।[ऋग्वेद 5.78.3]
Hey Ashwani Kumars reside granting, rich in food grains! Both of you come to our Yagy for accomplishments. The way Swan duo reach clean water you should also come to extracted Somras.
अत्रिर्यद्वामवरोहन्नृबी समजोहवीन्नाधमानेव योषा।
श्येनस्य चिज्जवसा नूतनेनागच्छतमश्विना शंतमेन
हे अश्विनी कुमारों! विनय करने पर स्त्री जिस प्रकार से पति को प्रसन्न करती है, उसी प्रकार हम लोगों के पिता अत्रि ऋषि ने आपकी प्रार्थना करके तुषाग्नि कुण्ड से मुक्ति प्राप्त की। आप दोनों श्येन पक्षी के नवजात वेग से सुखकर रथ द्वारा हम लोगों की रक्षा के लिए आगमन करें।[ऋग्वेद 5.78.4]
Hey Ashwani Kumars! The way a wife on being requested comfort her husband, our father Atri Rishi prayed you and you released him from Tushagni-fire. Arrive with the speed of falcon riding your comfortable charoite for our protection.
वि जिहीष्व वनस्पते योनिः सूष्यन्त्या इव।
श्रुतं मे अश्विना हवं सप्तवधिं च मुञ्चतम्
हे वनस्पति विनिर्मित पेटिके! प्रसव करने के लिए उद्यत स्त्री की योनि के तुल्य आप विस्तृत होवें। खुले हुए पेटिका की ओर संकेत है। आप दोनों हमारा आह्वान सुनकर आवें और मुझ सप्तवध्रि को मुक्त करें।[ऋग्वेद 5.78.5]
पेटिका :: संदूक, पेटी, छोटी पिटारी; cassette, portfolio, capsid, cabinet, pyxis, python.
Hey little box made of vegetation! Open like the vagina of a woman ready for delivery. This is an indication for the box. Both of you come and release me-Saptvadhri.
भीताय नाधमानाय ऋषये सप्तवध्रये।
मायाभिरश्विना युवं वृक्षं सं च वि चाचथः
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों भयभीत और निर्गमन के लिए प्रार्थना करने वाले ऋषि सप्तवध्रि के लिए माया द्वारा पेटिका को संगत और विभक्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.78.6]
Hey Ashwani Kumars! You opened the box with enchantment-cast of the afraid-feared Rishi Saptvadhri, for his release when he prayed-requested you.
यथा वातः पुष्करिणीं समिङ्गयति सर्वतः।
एवा ते गर्भ एजतु निरैतु दशमास्यः
वायु जिस प्रकार सरोवर आदि को स्पन्दित करता है, उसी प्रकार आपका गर्भ संचालित हो। दस मास के अनन्तर गर्भस्थ जीव निर्गत हो।[ऋग्वेद 5.78.7]
The way the air pulsate the water in a lake, your foetus too move like that. The living being inside the womb should come out within ten months.
यथा वातो यथा वनं यथा समुद्र एजति।
एवा त्वं दशमास्य सहावेहि जरायुणा
वायु, वन और समुद्र जिस प्रकार से कम्पित होते हैं, उसी प्रकार दस मास पर्यन्त गर्भस्थ जीव जरायु के साथ बाहर प्रकट हो।[ऋग्वेद 5.78.8]
The way air, forests and the ocean vibrate; the living being should take birth within ten months.
दश मासाञ्छशयानः कुमारो अधि मातरि।
निरैतु जीवो अक्षतो जीवो जीवन्त्या अधि
दस मास पर्यन्त माता के गर्भ में अवस्थित जीव जीवित तथा अक्षत रूप से जीविता जननी से उत्पन्न हो।[ऋग्वेद 5.78.9]
The living being present in the mother's womb should take birth alive and the mother should remain unharmed.(12.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अश्विनीकुमार; छन्द :- त्रिष्टुप्।
स्तुषे नरा दिवो अस्य प्रसन्ताश्विना हुवे जरमाणो अर्कैः।
या सद्य उस्स्रा व्युषि ज्मो अन्तान्युयूषतः पर्युरू वरांसि
जो क्षण मात्र में शत्रुओं का नाश करते हैं और प्रभात में पृथ्वी पर्यन्त प्रभूत अन्धकार दूर करते हैं, उन्हीं द्युलोक के नेता और भुवनों के ईश्वर अश्विनी कुमारों की मैं स्तुति करता हूँ और मन्त्रों द्वारा प्रार्थना करता हुआ, उन्हें यहाँ बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 6.62.1]
A worship the lord of abodes and leader of the heavens Ashwani Kumars, who remove darkness in moment till the earth. I invoke them with the help of Mantr, here.
ता यज्ञमा शुचिभिश्चक्रमाणा रथस्य भानुं रुरुचू रजोभिः।
पुरू वरांस्यमिता मिमानापो धन्वान्यति याथो अज्रान्
अश्विनी कुमार यज्ञ की ओर आते हुए अपने निर्मल तेजो बल से रथ की दीप्ति प्रकट करते हैं और असीम रूप से तेजों का निर्माण करते हुए जल के लिए अश्वों को मरुस्थल को लघाकर ले जाते हैं।[ऋग्वेद 6.62.2]
Ashwani Kumars appear with their pious-virtuous radiance generating several zones of aura, while coming to the Yagy site, crossing vast deserts and make the horses drink water there.
ता ह त्यद्वर्तिर्यदरध्रमुग्रेत्था धिय ऊहथुः शश्वदश्चैः।
मनोजवेभिरिषिरैः शयध्यै परि व्यथिर्दाशुषो मर्त्यस्य
हे अश्विनी कुमारों! आप असमृद्ध गृह में जाते है। इस प्रकार वाञ्छनीय और मन के समान वेगवान अश्वों द्वारा अपने स्तोताओं को स्वर्ग ले जाते हैं। हव्य दाता मनुष्य के हिंसक को चिर निद्रा में सुला देते हैं।[ऋग्वेद 6.62.3]
Hey Ashwani Kumars! You visit the unprosperous houses. You take the Stotas to heavens through the fast moving horses which move with the desired speed of mind.
ता नव्यसो जरमाणस्य मन्मोप भूषतो युयुजानसप्ती।
शुभं पृक्षमिषमूर्जं वहन्ता होता यक्षत्प्रत्नो अध्रुग्युवाना
हे अश्विनी कुमारो! अश्व जोतते हुए दिव्य अन्न, पुष्टि और रस का वहन करते हुए अभिनव स्तोता की मनोज्ञ प्रार्थना के समीप आवें। वे युवक हैं। होता, द्रोह रहित और प्राचीन याग करें।[ऋग्वेद 6.62.4]
Hey Ashwani Kumars! Come close to the Stota reciting prayers-sacred hymns, deploying the horses, carrying divine food grains & nourishing juices. They are young, free from  treachery-contamination and perform ancient Yagy.
ता वल्गू दस्रा पुरुशाकतमा प्रत्ना नव्यसा वचसा विवासे।
या शंसते स्तुवते शंभविष्ठा बभूवतुर्गृणते चित्रराती
जो स्तुतिकारी और स्तोत्रकर्ता व्यक्ति को सुखी करते हैं और जो स्तुतिकर्ता को धन एवं सुख देते है, उन्हीं रुचिर, बहुकर्मा, प्राचीन और दर्शनीय अश्विनी कुमारों की नवीन स्तोत्रों से मैं स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 6.62.5]
रुचिर :: रुचि के अनुकूल, मनोहर, सुंदर; dainty, delicious.
I worship dainty Ashwani Kumars performing several deeds, ancient and is beautiful; with newly composed Strotr, who make the worshipers & reciter of Strotr comfortable, grant them wealth and pleasure. 
ता भुज्युं विभिरद्भ्यः समुद्रात्तुग्रस्य सूनुमूहथू रजोभिः।
अरेणुभिर्योजनेभिर्भुजन्ता पतत्रिभिरर्णसो निरुपस्थात्॥
आपने तुग्र के पुत्र भुज्यु को नौका रहित हो जाने पर धूल रहित मार्ग में रथ युक्त और गमन शील अश्वों द्वारा जल के उत्पत्ति स्थान सागर के जल से बाहर किया।[ऋग्वेद 6.62.6]
You brought out Bhujyu, the son of Tugr when he lost his boat through the route without sand riding the charoite pulled by dynamic horses and the origin of water in the ocean.
वि जयुषा रथ्या यातमद्रिं श्रुतं हवं वृषणा वभ्रिमत्याः।
दशस्यन्ता शयवे पिप्यथुर्गामिति च्यवाना सुमतिं भुरण्यू
हे रथारोही अश्विनी कुमारों! आप अपने विजयी रथ पर बैठकर पर्वतों अथवा मेघों को भी लाँघकर आते हैं। आप कामवर्षी हैं। पुत्रार्थिनी का आह्वान श्रवण करें। स्तोताओं का मनोरथ पूर्ण करें। आप स्तोता की निवृत्त प्रसवा गौ को दुग्ध शालिनी बनावें । इस प्रकार सुबुद्धिशाली होकर सर्वत्र गामी बनें।[ऋग्वेद 6.62.7]
Hey Ashwani Kumars riding the charoite! You cross the mountains and clouds riding your victorious charoite. You accomplish desires. Liston-respond the woman seeking son. Make the infertile cows of the Stota milk yielding. You move around every where with prudently.
यद्रोदसी प्रदिवो अस्ति भूमा हेळो देवानामुत मर्त्यत्रा।
तदादित्या वसवो रुद्रियासो रक्षोयुजे तपुरघं दधात
प्राचीन द्यावा-पृथ्वी आदित्यों, वसुओं और रुद्र पुत्रों, अश्विनी कुमारों के परिचारक मनुष्यों के प्रति देवताओं का जो भीषण रोष है, उस तापकारी क्रोध को असुरों का संहार करने में प्रयुक्त करें।[ऋग्वेद 6.62.8]
Use the furiosity-anger of the demigods-deities against the humans serving the ancient heavens-earth, Adity Gan, Vasus, Rudr Putr and Ashwani Kumars to destroy the demons.
य ईं राजानावृतुथा विदधद्रजसो मित्रो वरुणश्चिकेतत्।
गम्भीराय रक्षसे हेतिमस्य द्रोघाय चिद्वचस आनवाय
जो मनुष्य इन अश्विनी कुमारों की यथा समय स्तुति करता है, उसे मित्र और वरुण देव जानते हैं। ऐसे मनुष्य असुरों का संहार अपने अस्त्रों से करने में समर्थवान् होते हैं।[ऋग्वेद 6.62.9]
Mitr & Varun Dev recognises the humans who worship Ashwani Kumars as per schedule. Such people are capable of destroying the demons with their weapons.
अन्तरैश्चक्रैस्तनयाय वर्तिर्द्युमता यातं नृवता रथेन।
सनुत्येन त्यजसा मर्त्यस्य वनुष्यतामपि शीर्षा ववृक्तम्
हे अश्विनी कुमारों! आप उत्तम चक्र, दीप्ति और सारथि वाले रथ पर आरूढ़ होकर सन्तान देने के लिए हमारे गृह में आवें और क्रोध का परित्याग करते हुए मनुष्यों के विघ्नकर्ताओं मस्तक को काट डालें।[ऋग्वेद 6.62.10]
Hey Ashwani Kumars! Ride the charoite with excellent excel & wheels, charioteer and come to our house to grant progeny. Reject the anger and cut the heads of the disturbing elements.
आ परमाभिरुत मध्यमाभिर्नियुद्धिर्यातमवमाभिरर्वाक्।
दृळ्हस्य चिद्गोमतो वि व्रजस्य दुरो वर्तं गृणते चित्रराती
हे अश्विनी कुमारों! उत्कृष्ट, मध्यम और साधारित अश्वों के साथ हमारे सामने पधारें। दृढ़ और गौओं से युक्त गौशाला का द्वार खोलें। मैं प्रार्थना करता हूँ कि मुझे दिव्य धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.62.11]
Hey Ashwani Kumars! Come riding the excellent, mediocre and trained horses. Open the strong gate of the cow herd. I pray you to grant me divine wealth.(29.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- विराट्, एकपदा, त्रिष्टुप्।
क १ त्या वल्गू पुरुहूताद्य दूतो न स्तोमोऽविदन्नमस्वान्।
आ ओ अर्वाङ्नासत्या ववर्त प्रेष्ठा ह्यसथो अस्य मन्मन्
अनेकाहूत और मनोहर अश्विनी कुमार जहाँ जाते हैं, वहाँ हव्य युक्त पञ्च दशादि स्तोत्र दूतं के समान उन्हें प्राप्त करें। इसी स्तोत्र ने अश्विनी कुमारों को मेरी ओर प्रेरित किया। स्तोता की स्तुति से आप प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 6.63.1]
Beautiful, worshiped by many Ashwani Kumars are welcomed with offerings and Panch Dashadi Strotr. This Strotr directed Ashwani Kumars towards me. They become happy-pleased by the prayers of the Stotas.
अरं मे गन्तं हवनायास्मै गृणाना यथा पिबाथो अन्यः।
परि ह त्यद्वर्तिर्याथो रिषो न यत्परो नान्तरस्तुतुर्यात्
हमारे आवाहन के अनुसार भली-भाँति गमन करें। प्रार्थना किए जाने पर सोमरस का पान करें। शत्रुओं से हमारे गृह को बचावें, पास या दूर के शत्रु हमारे गृह को नष्ट न कर सकें।[ऋग्वेद 6.63.2]
Move as per our invocation. drink Somras on being requested-prayed. Protect our houses from the enemies; far or distant enemies should not be able to destroy our houses.
अकारि वामन्धसो वरीमन्नस्तारि बर्हिः सुप्रायणतमम्।
उत्तानहस्तो युवयुर्ववन्दा वां नक्षन्तो अद्रय आञ्जन्
हे अश्विनी कुमारों! सोमरस तैयार है। आपके लिए ही प्रस्तुत किया गया हैं। मृतुतम कुश के आसन बिछाये गये हैं। आपकी कामना से होता हाथ जोड़कर आपकी स्तुति कर आपको आमन्त्रित करता है।[ऋग्वेद 6.63.3]
Hey Ashwani Kumars! Somras is ready. It has been presented for you. Kush Mats-cushions have been prepared with Kush grass. The house hold invite you with folded hands as per your desire-wish.
ऊर्ध्वो वामग्निरध्वरेष्वस्थात्प्र रातिरेति जूर्णिनी घृताची।
प्र होता गूर्तमना उराणोऽयुक्त यो नासत्या हवीमन्
आपके यज्ञ के लिए अग्नि देव ऊपर उठते हैं, यज्ञ में जाते तथा हव्य और घृत वाले बनते हैं। जो स्तोता अश्विनी कुमारों का स्तोत्र से पाठ करता है, वही बहुकर्मा और अतीव उद्युक्तमना होता है।[ऋग्वेद 6.63.4]
Agni Dev rises up for your Yagy due to the offerings of Ghee. The Stota who recite the Strotr for Ashwani Kumars perform various endeavours with great enthusiasm. 
अधि श्रिये दुहिता सूर्यस्य रथं तस्थौ पुरुभुजा शतोतिम्।
प्र मायाभिर्मायिना  भूतमत्र नरा नृतू जनिमन्यज्ञियानाम्
हे अनेकों के रक्षक अश्विनी कुमारों! सूर्य देव की पुत्री आपके बहु रक्षक रथ को सुशोभित करने के लिए आरूढ़ होती हैं। आप देवताओं की प्रजाओं का नेतृत्व करें।[ऋग्वेद 6.63.5]
Hey protector of many people Ashwani Kumars! Daughter of Sury Dev (your sister) ride your charoite with grace. Lead the subjects of demigods-deities.
युवं श्रीभिर्दर्शताभिराभिः शुभे पुष्टिमूहथुः सूर्यायाः।
प्र वां वयो वपुषेऽनु पप्तन्नक्षद्वाणी सुष्टुता धिष्ण्या वाम्
इस दर्शनीय क्रांति द्वारा आप दोनों सूर्या की शोभा के लिए पुष्टि प्राप्त करें। शोभा के लिए आपके अश्व भली-भाँति अनुगमन करते हैं। हे स्तवनीय अश्विनी कुमारों! भली-भाँति की गई हमारी स्तुतियाँ आप तक पहुँचे।[ऋग्वेद 6.63.6]
Both of you get the nourishment for Surya's grace with beautiful aura. Hey worship deserving Ashwani Kumars! Let the prayers-worship conducted properly, reach you.
आ वां वयोऽश्वासो वहिष्ठा अभि प्रयो नासत्या वहन्तु।
प्र वां रथो मनोजवा असर्जीषः पृक्ष इषिधो अनु पूर्वीः
हे अश्विनी कुमारों! गतिशील और वहन करने में अत्यन्त चतुर अश्व आपको अन्न की ओर ले आवें। मन के तुल्य वेगशाली आपका रथ आप दोनों को अन्न के साथ हमारे समीप ले आवें।[ऋग्वेद 6.63.7]
Hey Ashwani Kumars! Let dynamic and cleaver-prudent horses take you towards the food grains. Let your charoite movable with the speed of mind, bring you to us with food grains.
पुरु हि वां पुरुभुजा देष्णं धेनुं न इषं पिन्वतमसक्राम्।
स्तुतश्च वां माध्वी सुष्टुतिश्च रसाश्च ये वामनु रातिमग्मन्
हे बहुपालक अश्विनी कुमारों! आपके पास बहुत धन है; इसलिए हमारे लिए प्रीतिकारी और दूसरे स्थान पर न जाने वाली गौएँ तथा अन्न प्रदान करें। स्तोता गण आपकी ही स्तुति करते है। क्योंकि आपके लिए मधुर सोमरस तैयार है।[ऋग्वेद 6.63.8]
Hey nurturer of many people Ashwani Kumars! You have a lot of wealth, hence grant us lovely cows, ready to move to other site and food grains. The Stotas worship you, since sweet Somras is ready for you.
उत म ऋज्रे पुरयस्य रघ्वी सुमीळ्हे शतं पेरुके च पक्वा।
शाण्डो दाद्धिरणिनः स्मद्दिष्टीन्दश वशासो अभिषाच ऋष्वान्॥
पुण्य की सरल गति और शीघ्र गामिनी दो बड़वाएँ (अश्वाएँ) मेरे पास हैं; समीढ़ की सौ गौएँ मेरे पास हैं। पेरुक के पक्व अन्न भी मेरे पास हैं। शान्त नाम के राजा ने अश्विनी कुमारों के स्तोताओं को स्वर्ण युक्त और सुदृश्य दस रथ या अश्व प्रदान किया और उनके अनुरूप ही शत्रु नाशक तथा दर्शनीय पुरुष भी दिया।[ऋग्वेद 6.63.9]
I possess the virtues-good will and fast moving mare are with me.  I have hundred cows of Sameedh. Ripe food grains of Peruk too are with me. The king named Shant granted ten beautiful charoites of gold to the worshipers-Stotas of Ashwani Kumars and handsome people capable of destroying the enemy.
संवां शता नासत्या सहस्त्राश्वानां पुरुपन्था गिरे दात्।
भरद्वाजाय वीर नू गिरे दाद्धता रक्षांसि पुरुदंससा स्युः
हे नासत्य द्वय! आपके स्तोता को पुरुपन्था राजा ने सैकड़ों और हजारों अश्व प्रदान किए। हे वीर अश्विनी कुमारों! यह सब भरद्वाज को भी शीघ्र प्रदान करते हुए राक्षसों को नष्ट करें।[ऋग्वेद 6.63.10]
Hey Nasaty duo-Ashwani Kumars! King Purupantha gave thousands of horses to your Stotas. Hey brave Ashwani Kumars! Grant all this to Bhardwaj as well quickly & destroy the demons.
आ वां सुम्ने वरिमन्त्सूरिभिः ष्याम्
मैं विद्वान व्यक्तियों के साथ आपके सुखद धन द्वारा राक्षसों का विनाश करूँ।[ऋग्वेद 6.63.11]
Let me kill the demons with your comfortable wealth in association with-alongwith the enlightened people.(30.10.2023)
 
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)