ये दोनों भगवान् सूर्य के पुत्र हैं, जो देव वैद्य-चिकित्सक हैं, जिन्हें देवता नहीं माना गया, मगर च्यवन ऋषि ने उन्हें यह स्थान दिलवाया और सोमरस पान करने का अधिकार दिलवाया।
आश्विन् ग्रह के संदर्भ में च्यवन-सुकन्या आख्यान है। [शतपथ ब्राह्मण 4.1.5.1]
अश्विनी कुमार पितरद्वय हैं, जो सोम के कच्चे रूप सुरा को पीकर अपने यजमान रूपी पुत्र इन्द्र की रक्षा करते हैं। यह संदर्भ आश्विन् मास के कृष्ण पक्ष की पितृ पक्ष के रूप में प्रतिष्ठा के कारणों पर विचार करने के लिए उपयोगी है।[ऋग्वेद 10.131.5]
ऋग्वेद की ऋचा 10.17.1 इस कथा को जोड़ती-समर्थन करती है।
भेषज्य कर्म :: जिस सोमरस का, भक्तिरस का, आह्लाद का इन्द्र ने अचानक पान किया है, वह उसे आत्मसात् करने में समर्थ नहीं हो रहा है। अतः वह आह्लाद नमुचि असुर के रूप में (नमुचि अर्थात् जो एक बार पकड कर मुक्त न करे) तथा हिंसक प्रवृत्तियों के रूप में प्रकट हो रहा है। उस शक्ति को प्रवाहित होने का सम्यक् मार्ग कैसे दिया जाए? यह जो अतिरिक्त सोम है, यह आश्विन है। अश्वनी कुमारों के पास इसकी भेषज यह है कि वह इसे ओंकार रूपी रथ पर आरूढ करके उसका वहन करते हैं। [शांखायन ब्राह्मण 18.1]
अश्वनी कुमार और सरस्वती को भेषज कर्म में संयोग भक्ति के मुख्य रूप से चार प्रकार होते हैं :- हिंकार, प्रस्ताव, उद्गीथ और प्रतिहार। इनसे सम्बन्धित पशु क्रमशः अज, अवि, गौ और अश्व हैं। ऋतुओं की दृष्टि से यह चार अवस्थाएं वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा व शरद होती हैं।[जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण 1.3.2.7]
अज अवस्था अश्विनौ का और अवि अवस्था सरस्वती का ग्रह है, वह यहां आकर स्थित हो सकते हैं।[शतपथ ब्राह्मण 12.7.1.11]
भक्ति मार्ग में अज और अवि अवस्था को पार करने के पश्चात् गौ और अश्व अवस्थाएं परस्पर मिश्रित हैं। अश्विनी कुमार ही गोमत् और अश्ववत् हैं। जब वह गोमत् होंगे तब उनका नाम नासत्य होगा और वह इन्द्रियों की पुष्टि गौ प्राणों द्वारा करेंगे।[ऋग्वेद 2.41.7, तैत्तिरीय ब्राह्मण 2.6.13.3
उनका रथ अरिष्टनेमि प्रकार का होगा।[ऋग्वेद 1.180.10]
अग्नि के वाहन अज रूपी तेज का विकास प्रतिहार अवस्था में चक्षु के तेज के रूप में हो जाता है, ऐसा चक्षु जिसे कण-कण में उस परमात्मा का ही रूप दिखाई पडने लगे, में अश्वनी कुमारों को शरद या प्रतिहार हैं।[जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण 1.18.2.9]
प्रतिहार से अगली निधन अवस्था में चक्षु ग्रह के बदले श्रोत्र ग्रह बन जाता है। अतः अश्वनी कुमारों कहीं छाग, कहीं चक्षु तो कहीं श्रोत्र हैं।[शतपथ ब्राह्मण 12.8.2.22, 4.1.5.1]
वे कपिला गौ के कर्णों में स्थिति हैं। उन्हें कर्णवेध संस्कार करने वाला कहा गया है। सरस्वती के ग्रह अवि वीर्य हैं, जिनका विकास प्राण, अपान, उदान, व्यान आदि अन्य रूपों में होता है।[शतपथ ब्राह्मण 12.8.2.22]
योग की दृष्टि से अवि और असि, वरुणा नदी अथवा इडा या पिङ्गला नाड़ी हैं, जिनके मिलने से तीसरी सरस्वती या सुषुम्ना नाडी का विकास होता है।
अन्य सब नदियाँ तो पर्वतों से निकल कर समुद्र में विलीन होती हैं, लेकिन सरस्वती नदी ऐसी है जो विज्ञानमय कोश रूपी सिन्धु से निकलती है। यह सरस्वती या सुषुम्ना या सिन्धु नदी ऐसी है जो हिरण्यवर्तनी है, हिरण्यय कोश के, समाधि अवस्था के बार-बार चक्कर लगाती रहती है और अपने साथ अश्विनौ को भी ले जाती है और रस का आस्वादन कराती है।[ऋग्वेद 5.75.2 तथा 8.26.18]
अश्विनौ से प्राणों का उद्धार करने वाली वर्ति में स्थापित करने की प्रार्थना की गई है। [ऋग्वेद 8.26.15]
अश्विनौ ने वर्तिका को वृक के मुख से बचाया। यह वर्तिका, दीपक की बत्ती यही सरस्वती नाडी है। अश्विनौ का तेज उसे जलाता है।[ऋग्वेद 1.111.6.14]
अश्विनौ अङ्गों की चिकित्सा आत्मा में की तथा सरस्वती ने आत्मा को अङ्गों से युक्त किया, अङ्गों द्वारा धारण किया।[तैत्तिरीय ब्राह्मण 2.6.4.6; शतपथ ब्राह्मण 12.9.1.4]
यज्ञ के अङ्गों का निर्माण उच्छिष्ट से, अतिरिक्त शक्ति से होता है।[अथर्ववेद 11.9.6]
दिवस काल में अश्विनौ और रात्रि काल में सरस्वती हमारी रक्षा करें।[तैत्तिरीय ब्राह्मण 2.6.12.3; 2.6.12.6]
अश्विनौ के रथ को प्रातःकाल में जुडने वाला कहा गया है जो उषा को अपने रथ पर बैठा कर ले जाते हैं।[ऋग्वेद]
विराट के राज्य में सहदेव का नाम अरिष्टनेमि है। जब अश्विनी कुमार अश्वावत् होंगे तो वे वीर्य और बल की पुष्टि करेंगे। जैसे अश्विनी कुमार रूपवान् हैं, ऐसे ही नकुल व सहदेव भी बहुत रूपवान् हैं, विशेषकर नकुल, क्योंकि स्वर्गारोहण के समय जब नकुल मृत होकर गिर पडते हैं तो युधिष्ठिर उसका कारण बताते हैं कि उनको अपने रूप पर बहुत गर्व था। सहदेव के मृत होने पर उन्होंने कहा कि उनको अपनी प्रज्ञा पर बहुत गर्व था।
प्रज्ञा द्वारा ही चक्षु पर आरूढ होकर सब रूपों के दर्शन होता है। अतः गौ और अश्व या नकुल और सहदेव को एक दूसरे से अभिन्न हैं।[कौशीतकि उपनिषद 3.4]
प्राण-अपान का सम्बन्ध सरस्वती से है।[अथर्ववेद 7.55]
"सवितुः प्रसवितृभ्यां अश्विनौर्बाहुभ्यां पूष्णोः हस्ताभ्यां" इत्यादि। सविता से सव प्राप्त करना ही अश्विनौ का सर्व बनना है। अश्विनौ उस शक्ति को पूषा रूपी वत्स को देते हैं, जो उस शक्ति का सर्वत्र च्यावयन करता है, उसे वितरित करता है।[ऋग्वेद 10.17.1]
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (119) :: ऋषि :- कक्षीवान्, दीर्घतमसा, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
आ वां रथं पुरुमायं मनोजवं जीराश्वं यज्ञियं जीवसे हुवे।
सहस्रकेतुं वनिनं शतद्वसुं श्रुष्टीवानं वरिवोधामभि प्रयः॥
हे अश्विनी कुमारों! जीवन धारण के लिए अन्न के निमित्त मैं आपके रथ का आवाहन करता हूँ। वह रथ बहुविध गति, विशिष्ट मन की तरह चलने वाला, वेगवान् अश्व से युक्त यज्ञ पात्र, सहस्त्र केतु युक्त, शतधन युक्त, सुखकर और धन प्रदान करने वाला है।[ऋग्वेद 1.119.1]
हे अश्विद्वय मैं जीवन धारण के लिए तुम्हारे मतिवान, वेगवान श्रेष्ठ अश्व वाले, युज्क, ध्वजा परिपूर्ण, सम्पत्ति से परिपूण रथ को हवियों की तरफ आकृष्ट करता हूँ।
Hey Ashwani Kumars! I invite-call your chariot for receiving food grains to survive. That chariot is capable of moving with different speed and can be operated just by thinking of the destination. The chariot is driven by fast moving horses, has the pot for performing Yagy, carries various kinds of wealth & is comfortable.
ऊर्ध्वा धीतिः प्रत्यस्य प्रयामन्यधायि शस्मन्त्समयन्त आ दिशः।
स्वदामि धर्म प्रति यन्त्यूतय आ वामूर्जानी रथमश्विनारुहत्॥
उस रथ के गमन करने पर अश्विनी कुमारों की प्रशंसा में हमारी बुद्धि ऊपर उठ जाती है। हमारी स्तुतियाँ अश्विनी कुमारों को प्राप्त होती है। मैं हव्य को स्वादिष्ट करता हूँ। सहायक ऋत्विक लोग आते हैं। हे अश्विनी कमारों! सूर्य पुत्री उषा आपके रथ पर बैठी हैं।[ऋग्वेद 1.119.2]
इस रथ के चलने पर हम ऊपर देखते हैं। सभी ओर से वंदनाएँ इकट्ठी होती हैं। मैं यज्ञ हवि को सुस्वादु बनाता हूँ। ऋत्विज उसकी ओर जाते हैं। हे अश्विद्वय! तुम्हारे रथ पर सूर्य की पुत्री आरूढ़ है।
हे अश्विदेवो! परस्पर ईर्ष्यालु परन्तु हर्षितोचित वाले पराक्रमी वीर द्वारा कीर्ति प्राप्ति के लिए संगठित होते हैं। तब तुम्हारा रथ नीचे उतरता जाना जाता है। उसी से तुम वंदना करने वाले पराक्रमी के लिए वरणीय धनों को लाते हो।
When hundreds of devotees quarrel-fight for money, your chariot appears to be landing over the earth. You bring money in that chariot for those devotees who desire it.
युवं भुज्यं भुरमाणं विभिर्गतं स्वयुक्तिभिर्निवहन्ता पितृभ्य आ।यासिष्टं वर्तिर्वृषणा विजेन्यं दिवोदासाय महि चेति वामवः॥
हे अभीष्ट वर्षक द्वय! पक्षियों के सदृश आकाश में उड़ने वाले वाहन द्वारा आपने तुग्र पुत्रः भुज्यु को उसके माता-पिता पास पहुँचाया। दिवोदास को भी आप दोनों का सहयोग और संरक्षण प्राप्त हुआ।[ऋग्वेद 1.119.4]
हे अश्विदेवो! समुद्र की लहरों में समाकर नष्ट प्राय हुए भज्यु को तुमने स्वयं जुड़ने वाले अश्वों द्वारा ले जाकर उसके भवन पहुँचाया। दिवोदास को जो आपने रक्षा की, वह प्रसिद्ध ही है।
Hey desire accomplishing duo! You carried Bhujyu, the son of Tugr in the vehicle which flew like birds, to his parents. Divo Das too obtained your protection-shelter.
युवोरश्विना वपुषे युवायुजं रथं वाणी येमतुरस्य शर्ध्यम्।
आ वां पतित्वं सख्याय जग्मुषी योषावृणीत जेन्या युवां पती॥
हे अश्विनी कुमारों! आपके प्रशंसनीय दोनों घोड़े आपके संयोजित रथ को उसकी सीमा सूर्य तक समस्त देवताओं के पहले ले गये। कुमारी उषा ने इस प्रकार विजित होकर मैत्री भाव के कारण, "आप दोनों मेरे पति हो" यह कहकर आपको पति बना लिया।[ऋग्वेद 1.119.5]
हे अश्विद्वय तुम्हारे सुन्दर घोड़ों ने स्वयं जुतकर शोभित रथ को उचित स्थान पर पहुँचाया। सूर्य ने सखा भाव के लिए पधारकर "तुम मेरे परमेश्वर हो" कहकर तुम्हें वरण किया।
Hey Ashwani Kumars! Your appreciable horses take your chariot to Sun & the demigods-deities. Goddess Usha, pleased with your friendly behaviour accepted both of you as her husband.
युवं रेभं परिषूतेरुरुष्यथो हिमेन धर्मं परितप्तमत्रये। युवं शयोरवसं पिप्यथुर्गवि प्र दीर्घेण वन्दनस्तार्यायुषा॥
आपने रेभ ऋषि को चारों ओर के उपद्रवों से बचाया आपने अत्रि ऋषि के लिए हिम द्वारा अग्नि को शान्त किया। आपने शयु की गौ को दुग्धवती बनाया तथा आपने बन्दन ऋषि को दीर्घ आयु प्रदत्त की।[ऋग्वेद 1.119.6]
हे अश्विद्वय! तुमने रेभ की रक्षा की। अत्रि के लिए अग्नि को ठंडे जल से शांत किया। शत्रु की गाय को पर्याश्विनी बनाया और वंदन दीर्घ आयु प्रदान की।
You saved-protected Rebh Rishi from disturbances-nuisance and calmed down fire with ice, for Atri Rishi. You made the cow of Shyu milch & granted long life to Bandan Rishi.
युवं वन्दनं निर्ऋतं जरण्यया रथं न दस्रा करणा समिन्वथः।
क्षेत्रादा विप्रं जनथो विपन्यया प्र वामत्र विधते दंसना भुवत्॥
जिस प्रकार से पुराने रथ को शिल्पी नया कर देता हैं, हे निपुण दस्त्रद्वय! उसी प्रकार आपने भी अति वृद्ध वन्दन ऋषि को पुनः युवा बना दिया। गर्भ में स्थित वामदेव द्वारा आपकी प्रार्थना करने पर आप दोनों उन मेधावी को गर्भ से पृथ्वी लोक में ले आये। आपका सहयोग ही मनुष्यों की सुरक्षा करता है।[ऋग्वेद 1.119.7]
हे अश्विद्वय! तुमने अपनी कुशलता से वन्दन के जीर्ण हुए शरीर रथ समान ठीक किया। वंदनाओं से हर्षित हुए तुम गर्भस्थ शिशु को भी मेधावी बनाते हो। तुम्हारा कार्य यजमान की सुरक्षा करना है।
The way a mechanic overhaul the vehicle-chariot, you made Vandan Rishi young again (You brought his youth back). Vam Dev prayed to you while in the womb. You led his birth and brought to the earth. Its you who's cooperation protects the humans.
अगच्छतं कृपमाणं परावति पितुः स्वस्य त्यजसा निबाधितम्।
स्वर्वतीरित ऊतीर्युवोरह चित्रा अभीके अभवन्नभिष्टयः॥
भुज्यु के पिता तुम्र ने उनका परित्याग कर दिया। भुज्यु ने दूसरे देश में कष्ट पाने पर आप दोनों की कृपा के लिए प्रार्थना की। आप उनके पास गये। आपका यह रक्षण कार्य अत्यधिक अद्भुत व प्रशंसा के योग्य है।[ऋग्वेद 1.119.8]
हे अश्वि देवो! दूर देश में रुदन करते हुए भज्यु के समीप तुम गये। तुम्हारी अलौकिक रक्षाओं ने वह आश्चर्य चकित कार्य किया।
Bhujyu's father Tugr disowned him. Bhujyu prayed to you when he faced trouble in other country. You went to him and helped him. Your amazing deeds of sheltering Bhujyu deserve appreciation.
उत स्या वां मधुमन्मक्षिकारपन्मदे सोमस्यौशिजो हुवन्यति। युवं दधीचो मन आ विवासथोऽथा शिरः प्रति वामध्यं वदत्॥
जिस प्रकार मधुमक्खी मधुर स्वर में गुंजन करती हैं, उसी प्रकार सोमरस पान की प्रसन्नता में उशिक् के पुत्र कक्षीवान् आपको बुलाते हैं। आपने जब दधीचि ऋषि का मन प्रसन्न किया, तब उनके अश्व मस्तक ने आपको मधुविद्या प्रदान की।[ऋग्वेद 1.119.9]
गायत्री में सन्निहित मधु विद्या का उपनिषदों में वर्णन इस प्रकार है :-तत्सवितुर्वरेण्यम्। मथुवाता ऋतायते मधक्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीनः सन्त्वोषधीः। भू स्वाहा भगदेवस्य धीमहि मधुनक्त मतोषसो मधुमत्यार्थिव रजः॥मधुयोररस्तु नः पिता भुवः स्वाहा थियो योनः प्रचोदयात्। मधु मान्नो वनस्पतिमधू मा अस्तु सूर्य माध्वीर्गावो नः स्वः स्वाहा। सवांव मदुमती रहभेवेद संभूर्भूव स्वः स्वाहा॥
तत्सवितुर्वरेण्यं :- मधु वायु चले, नदी और समुद्र रसमय होकर रहें। औषधियाँ हमारे लिए सुखदायक हों।
भगदेवस्य धीमहि :- रात्रि और दिन हमारे लिए सुखकारी हों, पृथ्वी की रज हमारे लिये मंगलमय हो दयुलोक हमें सुख प्रदान करें।
यो योनः प्रचोदयात् :- वनस्पतियाँ हमारे लिए रसमयी हो। सूर्य हमारे लिये सुखप्रद हो उसकी रश्मियों हमारे लिए कल्याणकारी हो। सब हमारे लिए हों में सबके लिये मधुर बन जाऊँ।
Please refer to :: मधु विद्या santoshhindukosh.blogspot.com
इस मधुर मक्षिका ने मीठी वाणी से तुम्हारी वंदना की। कक्षीवान ने सोम रस के आनन्द में तुम्हें पुकारा। तुमने दध्य हृदय को आकृष्ट करके उस पर रखे अश्व सिर में मधु विद्या की शिक्षा ली है।
The way the honey bee buzz in sweet sound, the son of Ushik, Kakshiwan call for enjoying Somras. when we pleased the innerself of Dadhichi Rishi, he granted you Madhu Vidya with his mouth which was that of a horse.
युवं पेदवे पुरुवारमश्विना स्पृधां श्वेतं तरुतारं दुवस्यथः।
शर्यैरभिद्यं पृतनासु दुष्टरं चर्कृत्यमिन्द्रमिव चर्षणीसहम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आपने पेदु राजा को शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले शुभ्रवर्ण अश्व प्रदान किये। वह अश्व युद्ध में रत, दीप्तिमान् युद्ध में पराजित न होने वाले, समस्त कार्यों को पूर्ण करने वाले और इन्द्रदेव की तरह मनुष्यों पर विजय प्राप्त करने वाले थे।[ऋग्वेद 1.119.10]
हे अश्विदेवो! तुमने पेटु के लिए युद्ध विजेता, कुशल, अनेकों द्वारा इच्छित शत्रुओं को वशीभूत करने में इन्द्रदेव समान श्वेत वर्ण का अश्व प्रदान किया।
Hey Ashwani Kumars! You awarded white coloured horses to king Pedu, which helped in his victory. These horses were skilled in warfare, undefeated, able to accomplish all endeavours and helping hands to humans like Indr Dev.