Monday, October 26, 2020

PARJANY DEV DEITY OF RAINS पर्जन्य देव

DEITY OF RAINS पर्जन्य देव
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (83) :: ऋषि :- भौम अत्रि; देवता :- पर्जन्य; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप्।
अच्छा वद तवसं गीर्भिराभिः स्तुहि पर्जन्यं नमसा विवास। कनिक्रद्वृषभो जीरदानू रेतो दधात्योषधीषु गर्भम्
हे स्तोता! आप बलवान् पर्जन्य देव के सम्मुख होकर उनकी प्रार्थना करें। स्तुति वचनों से उनका स्तवन करें। हविर्लक्षण अन्न से उनकी परिचर्या करें। जलवर्षक, दानशील, गर्जनकारी पर्जन्य वर्षा द्वारा औषधियों को गर्भ युक्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.83.1]
पर्जन्य :: बरसने वाला बादल, मेघ; rain clouds.
Hey Stota! Worship mighty Parjany Dev with sacred hymns. Serve food grains as offerings to him. Showering rain clouds creating thunderous sound leads to the pollination and seed formation in the medicinal herbs.
वि वृक्षान् हन्त्युत हन्ति रक्षसो विश्वं बिभाय भुवनं महावधात्।
उतानागा ईषते वृष्ण्यावतो यत्पर्जन्यः स्तनयन् हन्ति दुष्कृतः
पर्जन्य वृक्षों को नष्ट करके राक्षसों का वध करते हैं और महान् वध द्वारा समग्र भुवन को भयाक्रान्त करते हैं। गरजने वाले पर्जन्य पापियों का संहार करते हैं, इसलिए निरपराधी भी वर्षण करने वाले पर्जन्य के निकट से भयभीत होकर पलायित हो जाते हैं।[ऋग्वेद 5.83.2]
निरपराधी :: निर्दोष, निरपराधी, बेगुनाह; innocent, non guilty, in culpable.
Thunderous clouds destroy the trees and kills the demons leading to fear-panic in the entire universe. Since, they kill the sinners, innocent -non guilty too become afraid and migrate-move.
रथीव कशयाश्वाँ अभिक्षिपन्नाविर्दूतान्कृणुते वय ३ अह।
दूरात्सिंहस्य स्तनथा उदीरते यत्पर्जन्यः कृणुते वर्ष्य१नभः
रथी जिस प्रकार से कशाघात द्वारा अश्वों को उत्तेजित करके योद्धाओं को आविष्कृत करते हैं, उसी प्रकार पर्जन्य भी मेघों को प्रेरित करके वारिवर्षक मेघों को प्रकटित करते हैं। जब तक पर्जन्य जलद समूह को अन्तरिक्ष में व्याप्त करते हैं, तब तक सिंह के तुल्य गरजने वाले मेघ का शब्द दूर से ही उत्पन्न होता है।[ऋग्वेद 5.83.3]
कशाघात :: कोड़े का आघात, चाबुक से वार करना; lashing.
The manner in which a charoite driver lashes the horses to incite to overtake the warriors, Parjany Dev inspire the rain clouds to shower. Water in the form of clouds pervade the sky leading to generation of roaring sound like the lion.
प्र वाता वान्ति पतयन्ति विद्युत उदोषधीर्जिहते पिन्वते स्वः।
इरा विश्वस्मै भुवनाय जायते यत्पर्जन्यः पृथिवीं रेतसावति
जब तक पर्जन्य वृष्टि द्वारा पृथ्वी की रक्षा करते हैं, तब तक वृष्टि के लिए हवा बहती रहती है, चारों ओर बिजलियाँ चमकती रहती हैं, औषधियाँ बढ़ती रहती हैं, अन्तरिक्ष स्रवित होता रहता है और सम्पूर्ण भुवन की हितसाधना में पृथिवी समर्थ होती रहती हैं।[ऋग्वेद 5.83.4]
Till when, Parjany Dev protect the earth with rains, wind flows favourably, lightening occurs all arounds, medicinal herbs grow, sky keep on drizzling and earth become capable of the welfare of the entire universe.
यस्य व्रते पृथिवी नन्नमीति यस्य व्रते शफवज्जर्भुरीति।
यस्य व्रत ओषधीर्विश्वरूपाः स नः पर्जन्य महि शर्म यच्छ
हे पर्जन्य! आपके ही कर्म से पृथ्वी अवनत होती हैं, आपके ही कर्म से पाद युक्त या खुर विशिष्ट पशु समूह पुष्ट होते हैं या गमन करते हैं। आपके ही कर्म से औषधियाँ विविध वर्ण धारित करती हैं। आप हम लोगों को महान् सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.83.5]
हे मेघ के सदृश वर्तमान विद्वान! जिस मेघ के कर्म से भूमि अत्यन्त नम्र होती और जिस मेघ के कर्म से खुर के तुल्य निरन्तर धारण करती है और जिस मेघ के कर्म में अनेक प्रकार की सोमलता आदि ओषधियाँ उत्पन्न होती हैं, उस मेघ की विद्या से युक्त वह आप हम लोगों के लिये बड़े गृह को दीजिये।
अवनत :: झुका हुआ, गिरा हुआ; accumbent, reclinate.
Hey Parjany Dev! Your endeavours leads to softening of soil, the animals are nourished, medicines like Som Lata grow. Grant us a big house blessed by the clouds.
दिवो नो वृष्टिं मरुतो ररीध्वं प्र पिन्वत वृष्णो अश्वस्य धाराः।
अर्वाङितेन स्तनयित्नुनेह्यपो निषिञ्चन्नसुरः पिता नः
हे मरुतो! आप लोग अन्तरिक्ष से हम लोगों के लिए वृष्टि प्रदान करें। वर्षण कारी और सर्व व्यापी मेघ की उदक धारा को क्षरित करें। हे पर्जन्य! आप जल सेचन करके गर्जन शील मेघ के साथ हम लोगों के अभिमुख आगमन करें। आप वारि वर्षक और हम लोगों के पालक है।[ऋग्वेद 5.83.6]
Hey Marud Gan! Grant rains from the space-sky & regulate them. Hey Parjany Dev! Come to us making the clouds shower rains. You are the showerer of rains and our nurturer.
अभि क्रन्द स्तनय गर्भमा धा उदन्वता परि दीया रथेन।
दृतिं सु कर्ष विषितं यसमा भवन्तूद्वतो निपादाः
पृथ्वी के ऊपर आप शब्द करें, गर्जन करें, उदक द्वारा औषधियों को गर्भधारित करावें, वारिपूर्ण रथ द्वारा अन्तरिक्ष में परिभ्रमण करें, उदकधारक मेघ को वृष्टि के लिए आकृष्ट करें, उस बन्धन को अधोमुख करें, उन्नत और निम्नतम प्रदेश को समतल करें।[ऋग्वेद 5.83.7]
Rattle over the earth, nourish-nurture the medicinal herbs, revolve in the sky in your charoite with water, attract the rain clouds, serving the earth break the bonds i.e., loosen the soil and level the elevated land.
महान्तं कोशमुदचा नि षिञ्च स्यन्दन्तां कुल्या विषिताः पुरस्तात्।
घृतेन द्यावापृथिवी व्यन्धि सुप्रपाणं भवत्वघ्न्याभ्यः
हे पर्जन्य! आप कोश स्थानीय महान् मेघ को ऊर्ध्वभाग में उत्तोलित करें एवं वहाँ से उसे नीचे की ओर क्षारित करें अर्थात् जल की वर्षा करावें। अप्रतिहत वेग शालिनी नदियाँ पूर्वाभिमुख या पुरोभाग में प्रवाहित हों। जल द्वारा द्यावा- पृथ्वी को आर्द्र करें। गौओं के लिए पीने योग्य सुन्दर जल प्रचुर मात्रा में हो।[ऋग्वेद 5.83.8]
Hey Parjany Dev! Raise the clouds to the middle-centre and then make them shower rains. Let the river flow facing the east. Wet the earth with water. Cows should have sufficient water to drink.
यत्पर्जन्य कनिक्रदत्स्तनयन् हंसि दुष्कृतः।
प्रतीदं विश्वं मोदते यत्किं च पृथिव्यामधि
हे पर्जन्य! जब आप गम्भीर गर्जन करके पापिष्ठ मेघों को विदीर्ण करते हैं, तब यह सम्पूर्ण विश्व और भूमि में अधिष्ठित चरचरात्मक पदार्थ हर्षित होते हैं अर्थात् वर्षा होने से सम्पूर्ण जगत् प्रसन्न होता है।[ऋग्वेद 5.83.9]
Hey Parjany Dev! The entire earth is filled with pleasure when you roar & tear the clouds, causing rains.
अवर्षीर्वर्षमुदु षू गृभायाकर्धन्वान्यत्येतवा उ।
अजीजन ओषधीर्भोजनाय कमुत प्रजाभ्योऽविदो मनीषाम्
हे पर्जन्य! आपने वर्षा की। अभी वर्षा संहारण करें। आपने मरुभूमियों को सुगम्य बनाने के लिए जलयुक्त किया। मनुष्यों के भोग के लिए औषधियों को उत्पन्न किया। आपने प्रजाओं द्वारा उत्तम स्तुतियाँ भी प्राप्त की।[ऋग्वेद 5.83.10]
Hey Parjany Dev! You caused rains and now stopped them. You led to rains shower in the desert lands and made them pleasant. Grew medicines for human consumption-welfare. In return the populace worshiped you.(17.08.2023)
पर्जन्यवाता वृषभा पृथिव्याः पुरीषाणि जिन्वतमप्यानि।
सत्यश्रुतः कवयो यस्य गीर्भिर्जगतः स्थातर्जगदा कृणुध्वम्
वर्षा करने वाले पर्जन्य और वायु देव आप अन्तरिक्ष से प्राप्त जल भेजें। हे ज्ञान सम्पन्न, स्तोत्र सुनने वाले और संसार-स्थापक मरुतों! जिसके स्तोत्र से आप प्रसन्न होते हैं, उसके समस्त प्राणियों को समृद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 6.49.6]
Hey rain causing Parjany & Vayu Dev divert the water from the space-sky to us. Hey enlightened, listeners of the Strotr and the establisher of the world, Marud Gan! You grow-nourish the living beings-animals of the person with who's Strotr you are pleased.
इन्द्रो नेदिष्ठमवसागमिष्ठः सरस्वती सिन्धुभिः पिन्वमाना।
पर्जन्यो न ओषधीभिर्मयोभुरग्निः सुशंसः सुहवः पितेव
इन्द्र देव और जलराशि के द्वारा स्फीत सरस्वती नदी हमारी रक्षा के साथ हमारे सम्मुख आवें। औषधियों के साथ पर्जन्य हमारे लिए सुख-दाता हों। पिता के सदृश अग्निदेव अनायास स्तुत्य और आह्वान योग्य हों।[ऋग्वेद 6.52.6]
स्फीत :: बढ़ा हुआ, फूला या उभरा हुआ; inflated, enlarged.
Let Indr Dev and river Saraswati full of water come to us for our protection. Let Parjany Dev grant us pleasure with the medicines. Agni Dev who is like father and worshipable deserve invocation.
अग्नीपर्जन्याववतं धियं मेऽस्मिन्हवे सुहवा सुष्टुतिं नः।
इळामन्यो जनयद्गर्भमन्यः प्रजावतीरिष आ धत्तमस्मे
अग्नि देव और पर्जन्य हमारे यज्ञ कार्य की रक्षा करें। आप अनायास आह्वान के योग्य हैं; इसलिए इस यज्ञ में हमारा स्तोत्रों को श्रवण करें। आपमें से एक व्यक्ति अन्न प्रदान करते हैं और दूसरे गर्भ उत्पन्न करते हैं। इसलिए आप हमें सन्तति के साथ अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.52.16]
Let Agni Dev & Parjany Dev protect our Yagy. You deserve invocation at any time, therefore listen to our Strotr. One of you grant food grains and the other one develop-grow the foetus. Hence, grant food grains to our progeny.
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (101) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
तिस्रो वाचः प्र वद ज्योतिरग्रा या एतद्दुह्रे मधुदोघमूधः।
स वत्सं कृण्वन् गर्भमोषधीनां सद्यो जातो वृषभो रोरवीति
अग्र भाग में ओंङ्कार वाले ऋक, यजुः और साम नाम के जो तीन प्रकार के वाक्य जल को दूहते हैं, उन्हीं वाक्यों या ध्वनियों का वर्णन करें। पर्जन्य ही सहवासी विद्युदग्नि को उत्पन्न करते हुए और औषधियों को गर्भ उत्पन्न करते हैं, शीघ्र ही उत्पन्न होकर वृषभ के समान शब्द करते हैं।[ऋग्वेद 7.101.1]
Three words i.e., Rik, Yaju and Sam which constitute the prefix Omkar & agitate-churn the water. Describe these compositions. Parjany create-generate the lightening and seed the Ayurvedic medicines i.e., herbs and quickly sound like the bull.
यो वर्धन ओषधीनां यो अपां यो विश्वस्य जगतो देव ईशे।
स त्रिधातु शरणं शर्म यंसत्त्त्रिवर्तु ज्योतिः स्वभिष्ट्य १ स्मे
जो औषधियों और जल के वर्द्धक हैं, जो सम्पूर्ण संसार के ईश्वर हैं, वह पर्जन्य देवता तीन प्रकार की भूमियों से युक्त गृह और सुख प्रदान करें। वह तीन ऋतुओं में वर्तमान सुन्दर गमन वाली ज्योति हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 7.101.2]
Parjany Dev who is the grower of medicines and water, is the lord of the whole world grant us comfortable house having three types of land. He should grant us light which moves beautifully in the three seasons.
स्तरीरु त्वद्भवति सूत उ त्वद्यथावशं तन्वं चक्र एषः।
पितुः पयः प्रति गृभ्णाति माता तेन पिता वर्धते तेन पुत्रः
पर्जन्य का एक रूप निवृत्त प्रसवा गौ की तरह है और दूसरा रूप जल वर्षक है। ये इच्छानुसार अपने शरीर को बनाते हैं। माता (पृथ्वी) पिता (द्युलोक) से दूध लेती हैं, जिससे द्युलोक और प्राणि वर्ग दोनों बढ़ते हैं।[ऋग्वेद 7.101.3]
Parjany has two forms viz like the cow after delivery and showering rains. He compose his body as per his whims-desire. Mother earth takes milk from the father heavens which grow the heavens and the organism.
यस्मिन्विश्वानि भुवनानि तस्थुस्तिस्त्रो द्यावस्त्रेधा स्त्रुरापः।
त्रयः कोशास उपसेचनासो मध्वः श्चोतन्त्यभितो विरप्शम्
जिनमें सभी भुवन अवस्थित हैं, जिनमें द्युलोक आदि तीनों लोक अवस्थित हैं, जिनसे जल तीन प्रकार से निकलता है और जिन पर्जन्य के चारों ओर उपसेचन करने वाले तीन प्रकार के मेघ जल बरसाते हैं, ऐसे ही पर्जन्य देवता हैं।[ऋग्वेद 7.101.4]
All abodes are present in Parjany Dev including the three abodes i.e., Earth, Nether world and the heavens. Water comes out of him such that nurturing clouds shower rains. 
इदं वचः पर्जन्याय स्वराजे हृदो अस्त्वन्तरं तज्जुजोषत्।
मयोभुवो वृष्टयः सन्त्वस्मे सुपिप्पला ओषधीर्देवगोपाः
यह स्वयं प्रकाशित पर्जन्य के लिए स्तोत्र किया जाता है। वे स्तोत्र ग्रहण करें। वह उनके लिए हृदय ग्राही है। हमारे लिए सुखकर वर्षा करें। जिनके रक्षक स्वयं पर्जन्य हैं, वे औषधियाँ जल तीन प्रकार से निकलता है और जिन के मेघ जल बरसाते हैं, ऐसे ही पर्जन्य देवता हैं।[ऋग्वेद 7.101.5]
This Strotr is for self illuminating Parjany Dev. Let him accept the Strotr in his innerself. He should make comfortable rains. Water pour out of Ayurvedic medicines in three different ways leading to rains from clouds protected by Parjany Dev.
स रेतोधा वृषभः शश्वतीनां तस्मिन्नात्मा जगतस्तस्थुषश्च।
तन्म ऋतं पातु शतशारदाय यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः
वृषभ की तरह वे पर्जन्य अनेक औषधियों के लिए जल के धारक हैं। स्थावर और जङ्गम की देह-पर्जन्य में ही रहती है। पर्जन्य का दिया हुआ जल सौ वर्षों तक जीने के लिए मेरी रक्षा करे। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.101.6]
Parjany nurse the herbs like the bull. Dynamic and stationary bodies remain-reside in Parjany Dev. Let the water granted by Parjany Dev protect us for hundred years.(05.03,2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (102) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
पर्जन्याय प्र गायत दिवस्पुत्राय मीळ्हुषे। स नो यवसमिच्छतु
हे स्तोताओं! अन्तरिक्ष के पुत्र और सेचक पर्जन्य के लिए प्रार्थना करें। हमें भरपूर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.102.1]
Hey Stotas! Let us pray for nurturing Parjany Dev, the son of space. He should provide us enough food grains.
यो गर्भमोषधीनां गवां कृणोत्यर्वताम्। पर्जन्यः पुरुषीणाम्
पर्जन्य देवता औषधियों, गौओं, अश्व जातियों और स्त्रियों के लिए गर्भ उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 7.102.2]
Parjany Dev produces fetus for medicines, cows, races of horses and the women.
तस्मा इदास्ये हविर्जुहोता मधुमत्तमम्। इळां नः संयतं करत्
उन्हीं के लिए देवताओं के मुख रूप अग्नि में अत्यन्त रसवान् हव्य का हवन करें। वे हमें भरपूर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.102.3]
Perform Hawan with juicy offerings in the fire which is like the mouth of demigods-deities. He should provide-grant us sufficient food grains.(05.03.2024)


 
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
skbhardwaj1951@gmail.com

Sunday, October 18, 2020

SAVITA DEV-SUN सविता देव

SAVITA DEV 
सविता देव 
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् 
जो सविता हम लोगों की बुद्धि को प्रेरित करता है, सम्पूर्ण श्रुतियों में प्रसिद्ध उस द्योतमान जगत्स्रष्टा परमेश्वर के संभजनीय परब्रह्मात्मक तेज का हम लोग ध्यान करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.10]
जो सविता देव हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रेरित करते हैं, उन पूर्ण तेजस्वी, सर्व-प्रकाशक, सर्वदाता, सर्वज्ञाता, सर्वश्रेष्ठ, परमात्मा के उस दिव्य-महान पापों का पतन करने वाले, तेज को धारण करते हुए उसी का ध्यान करें।
Savita Dev inspire-direct our mind-intelligent towards the virtuous, righteous, pious way. We should meditate-concentrate in the creator of the universe aware of all, Almighty, destroyer of sins.  
देवस्य सवितुर्वयं वाजयन्तः पुरन्ध्या।
भगस्य रातिमीमहे
हम लोग धनाभिलाषी होकर स्तुति द्वारा द्योतमान सविता से भजनीय धन के दान की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.11]
हम सर्वप्रकाश, तेजोमय, सभी ऐश्वर्यों को देने वाले, सबके भजने योग्य, कल्याण रूप, सुखकारी सविता देव की दान बुद्धि की अन्न, बल और धन की इच्छा करते हुए धारणा सामर्थ्य से युक्त प्रार्थना द्वारा विनती करते हैं।
Desirous of wealth, we worship radiant Savita Dev. 
देवं नरः सवितारं विप्रा यज्ञैः सुवृक्तिभिः। नमस्यन्ति धियेषिताः
कर्म नेता मेधावी अध्वर्यु गण बुद्धि द्वारा प्रेरित होकर यजनीय हवि और शोभन स्तोत्रों द्वारा सविता देवता की अर्चना करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.12]
मेधावीजन महान कार्यों में प्रेरित करने वाली मति की शिक्षा से दोषों का समूल पतन करने में समर्थ, यज्ञादि महान कार्यों में प्रकाशक, सर्वप्रेरक तथा रचयिता सविता देव को नमस्कार और अर्चन करते हैं।
The enlightened-intellectual Ritviz guided-inspired by their mind-brain, make offerings and pray to Savita Dev with decent Strotr-hymns. 
ऊर्ध्वं भानुं सविता देवो अश्रेद्द्रप्सं दविध्वद्गविषो न सत्वा।
अनु व्रतं वरुणो यन्ति मित्रो यत्सूर्यं दिव्यारोहयन्ति
सविता देव उन्मुख किरण को विकासित करते हैं। रश्मियाँ जब सूर्य को द्युलोक में आरूढ़ कराती हैं, तब वरुण, मित्र और अन्यान्य देवगण अपने-अपने कर्मों का अनुगमन करते हैं, जिस प्रकार से बलवान वृषभ गौओं की कामना करके धूलि विकीर्ण करता हुआ गौओं का अनुगमन करता है।[ऋग्वेद 4.13.2]
सूर्य देव किरणों को विकसित करते हैं। जब किरणें सूर्य को आकाश में चढ़ाती हैं, तब वरुण, मित्र और अग्नि सभी देवता अपने कर्मों के पीछे चलते हैं, उसी तरह जिस तरह बलिष्ठ बैल गायों की कामना कर धूल उड़ाता हुआ गायों के पीछे चलता है।
Savita Dev-Sun, boosts his rays establishing himself in the heavens. Varun Dev, Mitr and other demigods-deities begin with their work-routine just like the bull who chase the cows raising dust.
यं सीमकृण्वन्तमसे विपृचे ध्रुवक्षेमा अनवस्यन्तो अर्थम्।
तं सूर्यं हरितः सप्त यह्वीः स्पशं विश्वस्य जगतो वहन्ति
सृष्टि करने वाले देवों ने संसार के कार्य का परित्याग न करके सर्वतोभाव से अन्धकार को दूर करने के लिए जिस सूर्य को सृष्ट किया, उस समस्त प्राणि समूह के विज्ञाता सूर्य को धारित महान हरिनामक सप्ताश्व करते हैं।[ऋग्वेद 4.13.3]
सृष्टि के रचनाकार देवताओं ने संसार के कर्म को न छोड़कर तम को समाप्त करने के लिए जिस सूर्य की उत्पत्ति की, वह सूर्य सभी प्राणधारियों को जानने वाले हैं। हें प्रकाशवान सूर्य देव! तुम संसार का पालन करने वाले अन्न के लिए रश्मियों की वृद्धि करते हो। तुम ही उस काले रंग की रात्रि को भगाते हो और अत्यधिक बोझ को भी ढो लेने वाले अश्वों द्वारा गमन करते हो।
Seven great courses convey that Sun, whom the deities, occupants of enduring mansions and not heedless of their offices, have formed for the driving away of darkness and who is the animator of the whole world.
The demigods-deities continued with their endeavours and created-evolved the Sun-Sury Dev, to eliminate the darkness, who ride the charoite pulled by seven horses called Hari.
वहिष्ठेभिर्विहरन्यासि तन्तुमवव्ययन्नसितं देव वस्म।
दविध्वतो रश्मयः सूर्यस्य चर्मेवाधुस्तमो अप्स्व १ न्तः
हे द्युतिमान सूर्य! आप जगन्निर्वाहक रस को ग्रहण करने के लिए तन्तु स्वरूप रश्मि समूह को विस्तारित करते हैं, कृष्ण वर्णा रात्रि को तिरोहित करते हैं और अत्यन्त वहन समर्थ अश्वों द्वारा गमन करते हैं। कम्पन युक्त सूर्य की रश्मियाँ अन्तरिक्ष के बीच में स्थित चर्म सदृश अन्धकार को दूर करती हैं।[ऋग्वेद 4.13.4]
हे प्रकाशवान सूर्य देव! तुम संसार का पालन करने वाले अन्न के लिए रश्मियों की वृद्धि करते हो। तुम ही उस काले रंग की रात्रि को भगाते हो और अत्यधिक बोझ को भी ढो लेने वाले अश्वों द्वारा गमन करते हो। सूर्य की गतिमान रश्मियाँ अंतरिक्ष में स्थित तम को भगाती हैं।
Hey Illuminated Sury Dev-Sun! You sip-absorb the juices for the welfare of the world, by spreading your rays, like a web, removing the darkness of the night, being carried by the mighty horses. Sun associated with vibrations-waves removes the darkness spreaded like the skin.
अनायतो अनिबद्धः कथायं न्यङ्ङुत्तानोऽव पद्यते न।
कया याति स्वधया को ददर्श दिवः स्कम्भः समृतः पाति नाकम्
अदूरवर्ती अर्थात् प्रत्यक्ष उपलभ्यमान सूर्य का कोई भी बन्धन नहीं कर सकता। अधोमुख सूर्य किसी प्रकार भी हिंसित नहीं होते। ये किस बल से ऊद्धर्वमुख भ्रमण करते हैं? द्युलोक (स्वर्गलोक) में समवेत स्तम्भ स्वरूप सूर्य स्वर्ग का पालन करते हैं। इसे किसने देखा है? अर्थात् इस तत्त्व को कोई भी नहीं जानता।
प्रत्यक्ष प्राप्त सूर्य को कोई बाँध नहीं सकता। नीचे रहने वाले सूर्य की कोई हिंसा नहीं कर सकता। वे किस शक्ति से ऊँचे उठते हुए चलते हैं? क्षितिज में स्तम्भ के समान उठे हुए सूर्य अपने आप को शरण प्रदान करते हैं। इसे कौन देखता है? सूर्य की कोई हिंसा नहीं कर सकता। वे किस शक्ति से ऊँचे उठते हुए चलते हैं?
Neither, none can tie the Sun, nor can he be harmed-attacked by any one. What is the strength-force behind him, which moves him around. Sury Dev support-nurture the heavens like pole. Who has seen this!? None is aware of he source-secret of his strength.(09.02.2023)
ऊर्ध्वं केतुं सविता देवो अश्रेज्ज्योतिर्विश्वस्मै भुवनाय कृण्वन्।
आप्रा द्यावा-पृथिवी अन्तरिक्षं वि सूर्यो रश्मिभिश्चेकितानः
सविता देवता समस्त भुवन को आलोक युक्त करके उन्मुख किरण का आश्रय लेते हैं। सबको विशेष रूप से देखने वाले सूर्य ने अपनी किरणों से द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष को परिपूर्ण किया है।[ऋग्वेद 4.14.2]
प्रकाशवान सूर्य सभी संसार को प्रकाशित करके किरणों के आश्रय पर चलते हैं। सबके दृष्टा सर्य ने अपनी किरणों के माध्यम से गगन, धरती और अंतरिक्ष को पूर्ण किया है।
Savita Dev-Sun illuminate the universe with his rays. He has completed-supplemented the earth, heaven and the space through his rays.
अनायतो अनिबद्धः कथायं न्यङ्ङुत्तानोऽव पद्यते न।
कया याति स्वधया को ददर्श दिवः स्कम्भः समृतः पाति नाकम्
अदूरवर्ती अर्थात् प्रत्यक्ष उपलभ्यमान सूर्य का कोई भी बन्धन नहीं कर सकता है। अधोमुख सूर्य किसी प्रकार हिंसित नहीं होते हैं। ये किस बल से ऊद्धर्व मुख भ्रमण करते हैं? द्युलोक में समवेत स्तम्भ स्वरूप सूर्य स्वर्ग का पालन करते हैं। इसे किसने देखा है? अर्थात् इस तत्त्व को कोई भी नहीं जान सकता।[ऋग्वेद 4.14.5] 
प्रत्यक्ष उपलब्ध सविता देव को बाँधने में कोई भी समर्थवान नहीं है। यह नीचे रहे तब भी उनकी हिंसा किया जाना सम्भव नहीं है। वे किस पराक्रम से ऊँचे उठते हुए चलते हैं? वे अम्बर स्तम्भ के तुल्य स्वर्ग के शरण भूत हैं। इसे कौन जानता है? अर्थात इस तत्व का ज्ञाता कोई नहीं है।
None is capable of binding-harming visible Sun. What is source-reason, power behind his motion!? He supports the heaven like a pole. None is aware of this secret-intricate fact.(10.02.2023)
अहं मनुरभवं सूर्यश्चाहं कक्षीवाँ ऋषिरस्मि विप्रः।
अहं कुत्समार्जुनेयं न्यृञ्जेऽहं कविरुशना पश्यता मा
हम प्रजापति हैं, हम सबके प्रेरक सविता हैं, हम ही दीर्घतमा के पुत्र मेधावी कक्षीवान ऋषि हैं, हमने ही अर्जुनी पुत्र कुत्स को भली-भाँति अलंकृत किया, हम ही उशना नामक कवि हैं। हे मनुष्यों! हमें अच्छी तरह से देखो।[ऋग्वेद 4.26.1]
हम प्रजापति, सबको प्रेरणा प्रदान करने वाले एवं हम ही दीर्घतमा के विद्वान पुत्र कक्षीवान ऋषि हैं हम कवि उशना हैं। हमने ही अर्जुन के पुत्र कुत्स को भली-भांति प्रशंसित किया था। हे मनुष्यों! हम ही क्रांतदर्शी और सर्वप्रिय हैं।
We are Praja Pati, Savita-who inspire all, Medhavi Kakshivan Rishi-son of Dirghtama and poet Ushna. We decorated Kuts the son of Arjuni.  Hey humans! Look at us carefully.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- सविता, छन्द :- जगती।
तद्देवस्य सवितुर्वार्यं महद्वृणीमहे असुरस्य प्रचेतसः।
छर्दिर्येन दाशुषे यच्छति त्मना तन्नो महाँ उदयान्देवो अक्तुभिः
हम लोग असुर और बुद्धिमान प्रेरक सविता देव के उस वरणीय एवं पूज्य धन की प्रार्थना करते हैं, जिसे वे याजक गण हव्य दाता को स्वेच्छापूर्वक देते हैं। वे महान सविता देव हमें उस तेज को प्रदत्त करते हुए निशा के अवसान के समय उदित होते हैं।[ऋग्वेद 4.53.1]
हम दिव्य, शक्तिशाली और बुद्धिमान सविता की याचना करते हैं जो वांछनीय और पर्याप्त धन प्रदान करते हैं, जिसके साथ वह अपने स्वयं के बलिदान के प्रस्तावक को आवास प्रदान करता है; महान देवता हमें हर दिन ऐसा प्रदान करें।
We pray-worship divine, mighty, intelligent Savita Dev who grant wealth to the Ritviz who make offerings (in the Yagy). He Provide energy (heat, light and several other kinds of radiations) and rises when the night is over.
दिवो धर्ता भुवनस्य प्रजापतिः पिशङ्गं द्रापिं प्रति मुञ्चते कविः।
विचक्षणः प्रथयन्नापृणन्नुर्वजीजनत्सविता सुम्नमुक्थ्यम्
द्युलोक एवं समस्त लोक के धारक, प्रजाओं को प्रकाश, वृष्टि आदि के द्वारा पालन करने वाले कवि सविता देव हिरण्मय कवच परिधान करते हैं। विचक्षण सविता देव प्रख्यात होकर भी संसार को तेज द्वारा परिपूर्ण करते हैं और स्तुति योग्य प्रभूत सुख उत्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 4.53.2]
विचक्षण :: विवेक शील; prudent.
Savita Dev who lit the heavens and the whole universe, support the living beings by granting light, rains wear golden shield. Prudent Savita Dev, fills the universe with aura-light and evolve comforts which deserve appreciation.
आप्रा रजांसि दिव्यानि पार्थिवा श्लोकं देवः कृणुते स्वाय धर्मणे। 
प्र बाहू अस्राक्सविता सवीमनि निवेशयन्प्रसुवन्नक्तुभिर्जगत्
सविता देव तेज द्वारा द्युलोक और पृथ्वी लोक को परिपूर्ण करते हैं एवं अपने कार्य की प्रशंसा करते हैं। वे प्रतिदिन संसार को अपने-अपने कार्य में स्थापित करते हुए प्रेरित करते हैं। वे सृजन कार्य के लिए भुजाओं को प्रसारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.53.3]
Savita Dev fills the heavens & the earth with aura-light. He inspire the living beings to be active-busy with their work, who extend their limbs to do creative work.
अदाभ्यो भुवनानि प्रचाकशद्व्रतानि देवः सविताभि रक्षते।
प्रास्राग्बाहू भुवनस्य प्रजाभ्यो धृतव्रतो महो अज्मस्य राजति
सविता देव अहिंसित होकर भुवनों को प्रदीप्त करते हैं और व्रतों की रक्षा करते हैं। वे भुवनस्थ प्रजाओं के लिए भुजाओं को प्रसारित करते हैं। धृतव्रत सविता देव महान जगत के ईश्वर हैं।[ऋग्वेद 4.53.4]
Savita Dev protect the deeds-endeavours without being violent.  He extend his arms for the living beings of all abodes. Determined Savita Dev is the nurturer-God of the whole universe.
त्रिरन्तरिक्षं सविता महित्वना त्री रजांसि परिभूस्त्रीणि रोचना।
तिस्रो दिवः पृथिवीस्तिस्त्र इन्वति त्रिभिर्व्रतैरभि नो रक्षति त्मना
सविता देव महिमा द्वारा परिभव करते हुए अन्तरिक्षत्रय को व्याप्त करते हैं। वे लोकत्रय को व्याप्त करते है। वे तीन पृथ्वियों को व्याप्त करते हैं। वे तीन व्रतों (ग्रीष्म, वर्षा और हिम) द्वारा हम लोगों का अनुग्रह पूर्वक पालन करें।[ऋग्वेद 4.53.5]
Savita Dev pervade the three abodes in the space Heaven, earth & the Nether world. He support-nurture us with the summer, rains and the cold, carefully.
बृहत्सुम्नः प्रसवीता निवेशनो जगतः स्थातुरुभयस्य यो वशी।
स नो देवः सविता शर्म यच्छत्वस्मे क्षयाय त्रिवरूथमंहसः
जिनके पास प्रभूत धन है, जो कर्मों को उत्पन्न करते हैं, जो सभी के लिए गन्तव्य हैं एवं जो स्थावर और जंगम दोनों को वश में रखते हैं, वे सविता देव हम लोगों के पापक्षय के लिए हम लोगों को तीनों लोकों का सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.53.6]
Let Savita Dev grant us comforts of the three world, destroy over sins. He possess the ultimate wealth, generate the deeds-endeavours, controls both the movable & fixed living beings and the ultimate goal for all.
Life on earth is possible by virtue of the Sun. 
आगन्देव ऋतुभिर्वर्धतु क्षयं दधातु नः सविता सुप्रजामिषम्।
स नः क्षपाभिरहभिश्च जिन्वतु प्रजावन्तं रयिमस्मे समिन्वतु
सविता देव ऋतुओं के साथ आगमन करें। हम लोगों के घर को वर्द्धित करें। हम लोगों को पुत्र-पौत्रादि से युक्त कर अन्न प्रदान करें। दिन और रात्रि दोनों में हम लोगों के प्रति उनका प्रेम हो। वे हम लोगों को अपत्य युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.53.7]
Let Savita arrive with the seasons. Enlarge over homes. grant us sons, grandsons & food grains. We should have love & affection for him during the day as well as night. He should grant us progeny along with wealth.(02.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- वामदेव, गौतम, देवता :- सविता, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
अभूद्देवः सविता वन्द्यो नु न इदानीमह्न उपवाच्यो नृभिः।
वि यो रत्ना भजति मानवेभ्यः श्रेष्ठं नो अत्र द्रविणं यथा दधत्
सविता देव प्रादुर्भूत हुए हैं। हम शीघ्र ही उनकी वन्दना करेंगे। वे इस समय और तृतीय सवन में होताओं द्वारा प्रार्थित होवें। जो मनुष्यों को रत्न प्रदान करते हैं, वे सविता देव हम लोगों को इस यज्ञ में श्रेष्ठ धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.54.1]
Savita Dev has arisen. We will worship-pray him soon. Let him be prayed in the morning & evening (first & third segment of the day). Let Savita Dev who grant jewels-gems to the humans, grant us best-excellent riches in this Yagy.
देवेभ्यो हि प्रथमं यज्ञियेभ्योऽमृतत्वं सुवसि भागमुत्तमम्।
आदिद्दामानं सवितर्व्यूर्णुषेऽनूचीना जीविता मानुषेभ्यः
आप पहले यज्ञार्हदेवों के लिए अमरत्व के साधन भूत सोम के उत्कृष्टतम भाग को उत्पन्न करें। हे सविता देव! उसके अनन्तर आप हव्य दाता को प्रकाशमय करें, इस प्रकार पिता, पुत्र और पौत्रादि क्रम से मनुष्यों को जीवन दान करें।[ऋग्वेद 4.54.2]
Initially you evolve the excellent segment of Som for the immorality of the demigods-deities. Hey Savita Dev! Thereafter you enlighten-lit the hosts-Ritviz and grant life-longevity to father, sons and grandsons.
अचित्ती यच्चकृमा दैव्ये जने दीनैर्दक्षैः प्रभूती पूरुषत्वता।
देवेषु च सवितर्मानुषेषु च त्वं नो अत्र सुवतादनागसः
हे सविता देव! अज्ञानतावश अथवा दुर्बल अथवा बलशाली लोगों के प्रमाद वश अथवा ऐश्वर्य के गर्व से या परिजन के गर्व से आपके प्रति अथवा देव या मनुष्यों के प्रति हमने जो अपराध किया है, इस यज्ञ में आप हमें उस पाप से मुक्त करें।[ऋग्वेद 4.54.3]
अपराध :: दोष, जुर्म, दंड योग्य कर्म; crime, guilt.
Hey Savita Dev! Make us sinless in this Yagy, remove our guilts-faults committed by us due to ignorance, intoxication, grandeur or pride towards the demigods-deities or the humans, under the impression-influence of either the weak or mighty or our relatives.
न प्रमिये सवितुर्देव्यस्य तद्यथा विश्वं भुवनं धारयिष्यति।
यत्पृथिव्या वरिमन्ना स्वङ्गुरिर्वर्ष्मन्दिवः सुवति सत्यमस्य तत्
सविता देव का वह कर्म हिंसा योग्य नहीं है; क्योंकि वे विश्व भुवन धारित करते हैं। वे अंगुलि विशिष्ट होकर पृथ्वी को विस्तीर्ण होने के लिए प्रेरित करते हैं एवं द्युलोक को भी विस्तीर्ण सुन्दर होने के लिए प्रेरित करते हैं। उन सविता देव का यह कर्म सत्य है।[ऋग्वेद 4.54.4]
That function of Savita Dev is non violent, since he supports the three abodes. His gracious fingers inspire the earth to expand, increase fertility along with the beauty of the heavens. This is the true endeavour-effort of Savita Dev.
इन्द्रज्येष्ठान्बृहद्भ्यः पर्वतेभ्यः क्षयाँ एभ्यः सुवसि पस्त्यावतः।
यथायथा पतयन्तो वियेमिर एवैव तस्थुः सवितः सवाय ते
हे सविता देव! परमैश्वर्यवान इन्द्र देव हम लोगों के बीच में पूजनीय हैं। आप हम लोगों को महान पर्वतों की अपेक्षा और भी उन्नत करें। इन सम्पूर्ण याजक गणों को गृह विशिष्ट निवास (ग्राम, नगर आदि) प्रदान करें। वे सब गमन काल में जिससे आपके द्वारा नियत हों और आपकी आज्ञा के अनुसार चलें।[ऋग्वेद 4.54.5]
Hey Savita Dev! Indr Dev, the possessor of ultimate grandeur is worshiped by us. Make us progress beyond the mountains. Grant homes-houses to the worshipers. Let them follow your dictates in all segments of time-day.
ये ते त्रिरहन्त्सवितः सवासो दिवेदिवे सौभगमासुवन्ति।
इन्द्रो द्यावापृथिवी सिन्धुरद्भिरादित्यैर्नो अदितिः शर्म यंसत्
हे सविता देव! जो याजक गण आपके उद्देश्य से प्रति दिन तीन बार सौभाग्य जनक सोम का अभिषव करता है, इन्द्र देव, द्यावा-पृथ्वी, जल विशिष्ट सिन्धु, देवता और आदित्यों के साथ अदिति उस याजक गण को और हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.54.6]
Hey Savita Dev! Grant comforts to the Ritviz who extract auspicious Somras for you, thrice during the day along with Indr Dev, earth & heavens, Aditi and us.(02.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- वामदेव, गौतम, देवता :- अग्नि देव, सूर्य, वाष्प, गौ या घृत, छन्द :- त्रिष्टुप्,  जगती।
समुद्रादूर्मिर्मधुमाँ उदारदुपांशुना सममृतत्वमानट्।
घृतस्य नाम गुह्यं यदस्ति जिह्वा देवानाममृतस्य नाभिः॥
समुद्र (अग्नि, अन्तरिक्ष, आदित्य अथवा गौओं के ऊध: प्रदेश) से मधुमान ऊर्मि उद्भूत होती है। मनुष्य किरण द्वारा अमृतत्व प्राप्त करते हैं। घृत का जो गोपनीय नाम है, वह देवों का नाम है, वह देवों की जिव्हा और अमृत की नाभि है।[ऋग्वेद 4.58.1]
आकाश से मीठा जल उमड़ पड़ता है;  मनुष्य सौर किरण द्वारा अमरत्व प्राप्त करता है; वह जो स्पष्ट मक्खन का गुप्त नाम है वह देवताओं की जीभ है, अमृत की नाभि है।
ऊर्मि :: छोटी लहर, प्रवाह, बहाव, तरंग, हल्की लहर, वेग, किरण-प्रकाश की रश्मि; small wave, flow.
The sweet water swells up from the sky-space; by virtue of the rays of Sun and the humans attain immortality. The secret name of Ghee-clarified butter constitute the tongue of the demigods-deities and it form the  navel of nectar-ambrosia.
Small waves arise in the ocean sweetened by honey. Rays of light emerge from fire, Adity-Sun, the lower segment of the cows inducing immortality in the humans. Ghee obtained from the cows is the basis of nectar licked by the demigods-deities.
वयं नाम प्र ब्रवामा घृतस्यास्मिन्मज्ञे धारयामा नमोभिः।
उप ब्रह्मा शृणवच्छस्यमानं चतुःशृङ्गोऽवमीद्गौर एतत्॥
हम उस याजक घृत की प्रशंसा करते हैं। इस यज्ञ में नमस्कार द्वारा उसे धारित करते हैं। ब्रह्माजी इस प्रार्थना को श्रवण करें। वेद चतुष्टय रूप शृङ्ग विशिष्ट गौर वर्ण देव इस संसार का निर्वाह करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.2]
हम इस यज्ञ-हवन, अग्निहोत्र में घी की प्रशंसा करते हुए उसे धारण करते हैं। चार रूपों वाले वेद और गौर वर्ण देवता ऐसे धारण करते हैं। ब्रह्मा जी हमारी प्रार्थना स्वीकार करें। 
We celebrate the name Ghee at this sacrifice, we offer it with adoration. Let the Veds in the form of fair coloured demigods-deities nurture-support the universe. Let Brahma Ji endorse our prayers.
We appreciate the Ghee and accept it in the Yagy. Let Brahma Ji listen to our prayer. The four Veds support the universe in the form of fair coloured demigods-deities.
चत्वारि शृङ्गा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य। 
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मत्य आ विवेश॥
इस यज्ञात्मक अग्नि के चार शृङ्ग हैं अर्थात् शृङ्ग स्थानीय चार देव हैं। इसे सवन स्वरूप तीन पाद हैं। ब्रह्मोदन एवं प्रवग्य स्वरूप दो मस्तक हैं। छन्द स्वरूप सात हाथ हैं। ये अभीष्ट वर्षी हैं। ये मंत्र, कल्प एवं ब्राह्मण द्वारा तीन प्रकार से बद्ध हैं। ये अत्यन्त शब्द करते हैं। वे महान देव मर्त्यों के बीच में प्रवेश करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.3]
The holy-sacred fire of the Yagy has 4 elevations-horns-demigods. The three segments of the day are its legs. It has two heads, seven arms in the form of hymns-stanzas. They grant accomplishments and are tied-associated with Mantr, Kalp & the Brahman. They produce enormous sound. The great deity enters the perishables.
त्रिधा हितं पणिभिर्गुह्यमानं गवि देवासो घृतमन्वविन्दन्।
इन्द्र एकं सूर्य एकं जजान वेनादेकं स्वधया निष्टतक्षुः॥
प्राणियों ने गौओं के बीच में तीन प्रकार के दीप्त पदार्थों (क्षीर, दधि और घृत) को छिपाकर रखा। देवों ने उन्हें प्राप्त किया। इन्द्र देव ने एक क्षीर को उत्पन्न किया तथा सूर्य ने भी एक को उत्पन्न किया। देवों ने कान्तिमान् अग्नि या गमनशील वायु को निकट से अन्न द्वारा और एक पदार्थ घृत को निष्पन्न किया।[ऋग्वेद 4.58.4]
क्षीर :: दूध, खीर, किसी वृक्ष आदि का सफ़ेद रस, कोई तरल पदार्थ, जल; latex.
The cows have three divine objects :- milk, curd and Ghee. The demigods-deities obtained them. Indr Dev created one kind of milk-sap, latex followed by another by the Sun. The aurous demigods evolved fire, air, food grains & the ghee.
एता अर्षन्ति ह्यद्यात्समुद्राच्छतव्रजा रिपुणा नावचक्षे।
घृतस्य धारा अभि चाकशीमि हिरण्ययो वेतसो मध्य आसाम्॥
अपरिमित गति विशिष्ट यह जल हृदयङ्गम अन्तरिक्ष से अधोदेश में प्रवाहित होता है। प्रतिबन्धकारी शत्रु उसे नहीं देख सकते। उस सकल घृत धारा को हम देख सकते हैं। इसके बीच में अग्नि को भी देख सकते हैं।[ऋग्वेद 4.58.5]
The Ghee (sap-water) flow from the space to the earth unseen-undetected  by the enemy. We can see the flowing Ghee and the fire in it.
सम्यक्त्रवन्ति सरितो न धेना अन्तहृदा मनसा पूयमानाः।
एते अर्षन्त्यूर्मयों घृतस्य मृगा इव क्षिपणोरीषमाणाः॥
घृत की धारा प्रीति प्रद नदी के तुल्य क्षरित होती है। यह सकल जल हृदय मध्यगत चित्त के द्वारा पूत होता है। घृत की ऊर्मि प्रवाहित होती है। जैसे शिकारी के पास से मृग भाग जाता है।[ऋग्वेद 4.58.6]
घृत की धारा प्रीति प्रद नदियों की तरह निर्बाध रूप से बहती हैं, जो हृदय में विराजमान मन से शुद्ध होती हैं; घी की ये धाराएँ (आग पर) उतरती हैं, जैसे हिरण शिकारी से उड़ता है।
The current of Ghee appears like the dear-lovely river, purified-cleansed by the innerself. The waves formed by the Ghee flow like the deer who escape the hunter.
सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातुप्रमियः पतयन्ति यह्वाः।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः॥
नदी का जल जिस प्रकार नीचे की ओर शीघ्र गमन करता है, उसी प्रकार वायु के तुल्य वेग शालिनी होकर महती घृत-धारा द्रुत वेग से गमन करती है। यह धृत राशि परीधि भेद करके ऊर्मि द्वारा वर्द्धित होती है, जिस प्रकार से गर्ववान अश्व गमन करता है।[ऋग्वेद 4.58.7]
The way the water in the river flow in the down ward direction quickly, strong current of Ghee flow at a very fast speed just like the air. It moves like the waves and horses, breaking barriers.
अभि प्रवन्त समनेव योषाः कल्याण्य १: स्मयमानासो अग्निम्।
घृतस्य धाराः समिधो नसन्त ता जुषाणो हर्यति जातवेदाः॥
कल्याणी और हँसने वाली स्त्री जिस प्रकार से एक चित्त होकर पति के प्रति आसक्त होती है, उसी प्रकार घृत धारा अग्नि देव के प्रति गमन करती है, वह सम्यक् रूप से दीप्ति प्रद होकर सभी जगह व्याप्त होती है। जातवेदा हर्षित होकर इस सकल धाराओं की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.8]
कल्याणी :: कल्याण या मंगल करनेवाली, भाग्य शालिनी, रूपवती, सुन्दरी, कामधेनु, गाय, गौ, एक देवी का नाम, माषपर्णी
The way-manner in which a devoted and smiling wife is attached-attracted towards her husband, the current of Ghee bows-assimilate in Agni Dev, glow uniformly and illuminate all places. Agni Dev pleased-happy with it, desires to have its all currents. 
कन्याइव वहतुमेतवा उ अञ्ज्यञ्जाना अभि चाकशीमि।
यत्र सोमः सूयते यत्र यज्ञो घृतस्य धारा अभि तत्पवन्ते॥
कन्या (अनूढ़ा बालिका) जिस प्रकार से पति के निकट जाने के लिए अलंकृत होती है, हम देखते हैं, यह सकल घृत धारा उसी प्रकार से करती है। जिस स्थल में सोमरस अभिषुत होता है अथवा जिसके स्थल में यज्ञ विस्तीर्ण होता है, उसी को लक्ष्य कर वह धारा गमन करती है।[ऋग्वेद 4.58.9]
The current of Ghee behaves like a newly wed girl to accompany her husband, the entire Ghee current behaves similarly. The Ghee current moves to the place where Somras is extracted and the Yagy is conducted.
अभ्यर्षत सुष्टुतिं गव्यमाजिमस्मासु भद्रा द्रविणानि धत्त।
इमं यज्ञं नयत देवता नो घृतस्य धारा मधुमत्पवन्ते॥
हे हमारे ऋत्विकों! गौओं के निकट आगमन करें, उनकी शोभन प्रार्थना करें। हम याजकों के लिए वह प्रार्थना योग्य धन धारित करें। हमारे इस यज्ञ को देवों के निकट ले जावें। घृत की धारा मधुर भाव से गमन करती है।[ऋग्वेद 4.58.10]
Hey Ritviz! Move close to the cows and pray-worship them. Let these prayers grant us wealth and make our Yagy close to the demigods-deities. The current of Ghee flow to the Yagy happily.
धामन्ते विश्वं भुवनमधि श्रितमन्तः समुद्रे हृद्य १ न्तरायुषि।
अपामनीके समिथे य आभृतस्तमश्याम मधुमन्तं त ऊर्मिम्॥
आपका तेज समुद्र के बीच में वड़वाग्नि रूप से, अन्तरिक्ष के बीच में सूर्य मण्डल रूप से, हृदय के मध्य में वैश्वानर रूप से, अन्न में आहार रूप से, जल समूह में विद्युत रूप से और संग्राम में शौर्याग्नि रूप से विद्यमान है। समस्त लोक आपके आश्रित हैं। उसमें जो घृत रूप रस स्थापित हुआ है, उस मधुर रस को हम प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.11]
Your energy is embedded in the ocean as Vadvagni, as Vaeshwanar in the heart of the solar system, as food in the food grains, as electricity in the water and bravery-valour in the war-battle. All abodes are dependent upon you. The Ghee established-present in them is required-desired by us.
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (81) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- सविता, छन्द :- जगती।
युञ्जते मन उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः।
वि होत्रा दधे वयुनाविदेक इन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः
हे ऋत्विक्! यजमान लोग अपने मन को सब कर्मों में लगाते हैं। मेधावी, महान और स्तुति-योग्य सविता की आज्ञा से यज्ञकार्य में निविष्ट होते हैं। सविता देव की प्रार्थना अत्यन्त प्रभूत है।[ऋग्वेद 5.81.1]
Hey Ritviz! The hosts-household devote themselves to their jobs, work, endeavours. They perform Yagy under directions-orders of the intelligent, great and worshipable Savita Dev. Worship of Savita yields  ample-abundant desired goods-riches.
विश्वा रूपाणि प्रतिमुञ्चते कविः प्रासावीद्भद्रं द्विपदे चतुष्पदे।
वि नाकमख्यत्सविता वरेण्योऽनु प्रयाणमुषसो वि राजति
मेधावी सविता देव स्वयं सम्पूर्ण रूप धारित करते हैं। वे मनुष्यों या पशुओं के गमनादि विषयक कल्याण को जानते हैं। सभी के प्रेरक रमणीय सविता देव स्वर्ग को प्रकाशित करते हैं। वे उषा उदित होने के पश्चात् प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 5.81.2]
Intelligent-wise Savita Dev shows grand exposure. He is aware of the welfare-benefits of humans & animals movements. All inspiring, adorable Savita Dev illuminate heavens.  He rises after Usha-dawn.
यस्य प्रयाणमन्वन्य इद्ययुर्देवा देवस्य महिमानमोजसा।
यः पार्थिवानि विममे स एतशो रजांसि देवः सविता महित्वना
अग्नि आदि अन्यान्य देवगण द्युतिमान् सविता देव का अनुगमन करके महिमा और बल प्राप्त करते हैं अर्थात् सूर्य के उदय होने पर ही अग्नि होत्रादि कार्य होता है। जो सविता देव अपने माहात्म्य पृथिव्यादि लोक को परिच्छिन्न करते हैं, वे देव अत्यन्त शोभायमान हैं।[ऋग्वेद 5.81.3]
Agni Dev and several other demigods-deities follow aurous-shinning Savita Dev and attain glory & might. Agni Hotr, prayers, Hawan etc. are performed only after the Sun rise. Savita Dev illuminate the various abodes, including earth, displaying his grandeur.
उत यासि सवितस्त्रीणि रोचनोत सूर्यस्य रश्मिभिः समुच्यसि।
उत रात्रीमुभयतः परीयस उत मित्रो भवसि देव धर्मभिः
हे सविता देव! रोचमान तीनों लोकों में आप आगमन करते हैं और सूर्य की किरणों से मिलित होते हैं, आप रात्रि के दोनों छोरों को प्रभावित करके परिगमन करते हैं। हे सविता देव! आप जगद्धारक कर्म द्वारा मित्र नामक देव होते हैं।[ऋग्वेद 5.81.4]
Hey Savita Dev! You visit the three abodes possessing grandeur illuminating them with your rays. You affect the two ends of night while revolving. Hey Savita Dev! You possess the title "Mitr" Dev as as a protector of the world.
उतेशिषे प्रसवस्य त्वमेक इदुत पूषा भवसि देव यामभिः।
उतेदं विश्वं भुवनं वि राजसि श्यावाश्वस्ते सवितः स्तोममानशे
हे सविता देव! अकेले आप ही समस्त उत्पन्न संसार के अधिश्वर हैं। आप अपनी गमन सामर्थ्य से संसार के पोषणकर्ता हैं। आप संपूर्ण लोकों में विशिष्ट रूप से देदीप्यमान हैं। हे सविता देव! श्याश्च ऋषि आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.81.5]
hey Savita Dev! You alone is the Lord of the universe. You nourish-nurture the universe-world due to your ability to revolve. You are illuminated in all abodes. Hey Savita Dev! Syashrach Rishi worship-pray you.(15.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (82) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय; देवता :- सविता; छन्द :- अनुष्टुप्, गायत्री। 
तत्सवितुर्वृणीमहे वयं देवस्य भोजनम्।
श्रेष्ठं सर्वघातमं तुरं भगस्य धीमहि
हम लोग सविता देव से प्रसिद्ध और भोग योग्य धन के लिए प्रार्थना करते हैं। सविता देव से हम भग के निकट से श्रेष्ठ, सर्वभोग प्रद और शत्रु संहारक धन प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.82.1]
We pray to Savita Dev to grant famous and consumable wealth. Let us receive such wealth from Savita Dev, in proximity of Bhag Rishi, which is excellent, useful and capable of destroying the enemy.
अस्य हि स्वयशस्तरं सवितुः कच्चन प्रियम्। न मिनन्ति स्वराज्यम्
सविता देव के स्वयं धारित, सर्वप्रिय और राजमान ऐश्वर्य को कोई असुर आदि भी नष्ट नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 5.82.2]
The Godly grandeur, adorable can not be destroyed by the demons etc.
स हि रत्नानि दाशुषे सुवाति सविता भगः। तं भागं चित्रमीमहे 
वह सविता और भजनीय भगदेव हम हव्य दाता को रमणीय धन प्रदान करते हैं। हम उस भजनीय भगदेव से रमणीय धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.3]
रमणीय :: सुखद, ख़ुशगवार, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला, मनोरम, सुहावना, ललित, आनंदकर; delectable, delightful, enjoyable.
Savita Dev and Bhag Dev grant adorable wealth to those who make offering-oblations for them. We pray-request Bhag Dev to grant us delightful goods-possessions.
अद्या नो देव सवितः प्रजावत्सावीः सौभगम्। परा दुःष्वप्न्यं सुव॥
हे सविता देव! आज के यज्ञ दिन में आप हम लोगों को पुत्रादि से युक्त सौभाग्य (धन) प्रदान करें एवं दुःख देने वाले स्वप्नों के तरह दरिद्रता को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 5.82.4]
Hey Savita Dev! On this day of Yagy, grant us sons, wealth and eliminate the poverty away from us.
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव। यद्भद्रं तन्न आ सुव
हे सविता देव! आप हम लोगों के समस्त अमंगल को दूर करें एवं प्रजा, पशु और गृहादि रूप कल्याण को हम लोगों के अभिमुख प्रेरित करें।[ऋग्वेद 5.82.5]
Hey Savita Dev! Eliminate the all sorts of inauspiciousness and direct the welfare means pertaining to populace, cattle-animals and houses to us.
अनागसो अदितये देवस्य सवितुः सवे। विश्वा वामानि धीमहि
हम अनुष्ठान करने वाले प्रेरक सविता देव की आज्ञा से अखण्डनीया देवी अदिति के निकट निरपराधी हों। हम सम्पूर्ण रमणीय या वाञ्छित धन धारित करें।[ऋग्वेद 5.82.6]
अनुष्ठान :: समारोह, संस्कार, अनुष्ठान, विधि, रसम, धर्मक्रिया, धार्मिक उत्सव, आचार, आतिथ्य सत्कार, संस्कार, धार्मिक क्रिया, धार्मिक संस्कार, पद्धति, शास्रविधि; rituals, rite, ceremony.
By virtue of the orders-directives from inspiring Savita Dev towards this Yagy-ceremony; we should be free from criminality in front of Devi Aditi. Let us have adorable-desirable wealth.
आ विश्वदेवं सत्पतिं सूक्तैरद्या वृणीमहे। सत्यसवं सवितारम्
आज हम लोग इस यज्ञ दिन में स्तोत्रों के द्वारा सर्वदेव स्वरूप अनुष्ठाताओं के पालक और सत्य शासक या रक्षक सविता देव का संभजन करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.7]
On this of Yagy, we worship-pray Savita Dev; the truthful Lord and our protector,  with the help of Strotrs-sacred hymns.
य इमे उभे अहनी पुर एत्यप्रयुच्छन्। स्वाधीर्देवः सविता
जो सविता देव भली-भाँति से ध्यान करने योग्य हैं या सुन्दर कर्म वाले हैं। जो अप्रमत्त होकर दिन और रात के पुरोभाग में गमन करते हैं, उन सविता देव का हम इस यज्ञ दिन में सूक्तों के द्वारा उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.8]
We worship-pray Savita Dev who perform great deeds, revolve day & night untired, deserve to be concentrated properly and perform.
य इमा विश्वा जातान्याश्रावयति श्लोकेन। प्र च सुवाति सविता॥
जो सविता देव समस्त उत्पन्न प्राणियों के निकट यश सुनाते हैं, जो सब प्राणियों को प्रेरित करते हैं, उन सविता देव का इस यज्ञ दिन में हम सूक्तों के द्वारा संभजन अथवा उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.9]
We worship-pray Savita Dev on this day of Yagy with the help of Strotrs, who inspires all living organism & who's glory is narrated to all the evolved beings.(16.08.2023)

 
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

Saturday, August 29, 2020

FRIENDS & RELATIVES मित्र और सम्बंधी

FRIENDS & RELATIVES
मित्र और सम्बंधी
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
अक्ष्यौ नौ मधुसंकाशे अनीकं नौ समञ्जनम्। अन्त: कृणुष्व मां हृदि मन इन्नौ सहासति
हम दोनों मित्रों की दोनों आँखें ज्ञान का प्रकाश करने वाली हों। हम दोनों का मुख यथावत् विकास वाला होवे। हमें अपने हृदय के भीतर कर लो। हम दोनों का मन भी एकमेव हो अर्थात् हम सदा ही प्रीतिपूर्वक रहें, सभी के प्रति मित्रभाव हो।[अथर्ववेद 7.36.1]
Our eyes should be lit with enlightenment and ours mouths should also be like that. Please give place in your heart. Our innerself should be at the same frequency-status and we should be friendly.
दृते दृंह मा मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्। मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे। मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे 
हे परमात्मा! तुम मुझे दृढ़ बनाओ। सर्वभूत मुझे मित्र की दृष्टि से देखें। मैं भी सर्वभूतों को मित्र की ही दृष्टि से देखूँ। हम परस्पर मित्र की दृष्टि से देखें। सभी का एकमत हो।[यजुर्वेद 36.18]
Hey Almighty! make me strong. All your creations should be friendly with me. We should be friendly with one another. We all should have one opinion-faith.
हे अनन्तबल महावीर ईश्‍वर! 
दृते :- दुष्‍ट ‌स्वभाव नाशक विदीर्ण कर्म अर्थात् विज्ञानादि शुभ गुणों का नाश क‌रने वाला मुझको मत रखो (मत करो) किन्तु उससे मेरे आत्मादि को विद्या सत्यधर्मादि शुभ गुणों में सदैव अपनी कृपा सामर्थ्य से स्थित करो। 
दृँह मा :- धर्मार्थकाममोक्षादि तथा विज्ञानादि दान से मुझको बढ़ा।  
मित्रस्येत्यादि :- सब भूत प्राणिमात्र मित्रदृष्टि से यथावत् मुझको देखें। सब मेरे मित्र हों। मुझसे कोई भी किंचिन्मात्र वैर न करे।  
मित्रस्याहं :- आपकी कृपा से मैं भी निर्वैर होकर सब चराचर जगत् को मित्र दृष्‍टि से अपने प्राणवत् प्रिय जानूँ। 
मित्रस्य चक्षुषा :- पक्षपात छोड़ के सब जीव-देहधारी प्रेम पूर्वक परस्पर व्यवहार करें। अन्याय से युक्त होके किसी पर कभी हम लोग न वर्त्तें। यह परमधर्म का सब मनुष्यों के लिए परमात्मा का उपदेश किया है। सबको यही मान्य होने के योग्य है।
All living beings in this world should see me with an amiable eye. I should (also) look at all the living beings with a friendly eye. I should be very loving and affectionate to all living beings on this earth. We all should see each other with a friendly eye. We all should be sympathetic and loving to each other.
संगच्छध्वं संवदध्वं संवोमनांसि जानताम्।
देवाभागंयथापूर्वे सञ्जानाना उपासते 
हम सब एक साथ चलें; परस्पर एक दूसरे के साथ बातचीत करें, हमारे मन एक हो। जैसे देवता एकमत होकर अपना हविर्भाग स्वीकार करते हैं और आदर-सम्मान पाते हैं।[ऋग्वेद 10.191.2]  
Let us move (work) together harmoniously, speak together, understand each other's minds, just as the demigods have been doing from the ancient times. That why they are honoured-respected.
समानो मन्त्र: समिति: समानी समानं मन: सह चित्तमेषाम्।
समानं मन्त्रमभिमन्त्रयेव: समानेनवोहविषाजुहोमि 
इन पुरोहितों की स्तुति एक सी हो, इनका आगमन एक साथ हो और इनके मन (अन्त:करण) तथा चित्त (विचारजन्य ज्ञान) एकविध हों। द्वेषभाव न हो।[ऋग्वेद 10.191.3]
The Purohit-Achary preforming Yagy should enchant the Mantr in unison. Their innerself and the mental status-enlightenment should of the same level-status. They should be free from enmity.
नयसीद्वति द्विष: कृणोष्युक्थशंसिन:। नृभि: सुवीर उच्यसे
हे प्रभु! तू द्वेष करने वाले के द्वेषभाव को निश्चय ही निकाल डालता है। तू उन्हें अपना प्रशंसक बना देता है। सच्चे मनुष्यों से तू सुवीर कहलाता है। [ऋग्वेद 6.45.6]
Hey Almighty! You eliminate-remove the enmity from within us and make us appreciate-pray to YOU (seek asylum, protection under YOU). YOU are called due to the truthful devotees.
ईर्ष्याया ध्राजिं प्रथमां प्रथमस्या उतापराम्।
अग्निं हृदह्यं शोकं तं ते निर्वापयामसि 
परमात्मा की वाणी है, हे ईर्ष्या संतप्त पुरुष! हम ईर्ष्या की पहली ही वेगवती गति को, ज्वाला को बुझाते हैं। पहली के बाद वाली ज्वाला को भी बुझाते हैं। इस तरह हे मनुष्य! तेरी उस हृदय में जलने वाली अग्नि को तथा उसके शोक–संताप को बिल्कुल शान्त कर देते हैं अर्थात् मनुष्य दूसरे की वृद्धि देख कर कभी ईर्ष्या न करे। द्वेष की परम्परा का अवसान। [अथर्ववेद 6.18.1]
Envy & enmity amongest us should be eliminated making us free from pain, sorrow, worries.
इदमुच्छ्रेयो अवसानमागां, शिवे मे द्यावापृथिवी अभूताम्।
असपत्ना: पृदिशो मे भवन्तु, न वै त्वा द्विष्मो अभयं नो अस्तु
हे भाई! मैं ही तेरे साथ द्वेष करना छोड़ देता हूँ। अब यह ही कल्याणकर है कि मैं अब समाप्ति पर आ जाऊँ, शत्रुता की परम्परा का विराम कर दूँ। द्यौ और पृथिवी भी मेरे लिए अब कल्याणकारी हो जाएँ। सभी दिशाएँ मेरे लिए शत्रु-रहित हो जाएँ। मेरे लिए अब अभय ही अभय हो जाए। हम सदा निर्वैर हों।[अथर्ववेद 19.41.1]
Let us reject enmity, the earth and the space should become beneficial-Blissful to us, free from enemies. 
अनमित्रं नो अधरादनमित्रं न उत्तरात्।
इन्द्रानमित्रं न पश्चादनमित्रं पुरस्कृधि
हे प्रभु इन्द्र! हमारे लिए नीचे से निर्वैरता, हमारे लिए ऊपर से निर्वैरता, हमारे लिए पीछे से निर्वैरता और हमारे लिए आगे से निर्वैरता तू हमारे लिए कर दे अर्थात् हम सदा निर्वैर हो कर रहें। परिवार में सब मिलकर रहें।[अथर्ववेद 6.40.3]
We should reject enmity and live together like a family. 
इहैव स्तं मा वि यौष्टं विश्वमायुर्व्यश्नुतम्।
क्रीडन्तौ पुत्रैर्नप्तृभिर्मोदमानौ स्वस्तकौ 
हे वर-वधू! यहाँ गृहस्थाश्रम के नियमों में ही तुम दोनों रहो। कभी अलग मत होओ। पुत्रों के साथ तथा नातियों के साथ क्रीड़ा करते हुए, हर्ष मनाते हुए और उत्तम घर वाले तुम दोनों सम्पूर्ण आयु को प्राप्त होओ। इस मन्त्र में आपसी प्रेम व संयुक्त परिवार का संदेश है।[अथर्ववेद 14.1.22]
Hey husband & wife! Live together following-adopting the rules of family life (house hold). never separate from each other. You should get a long life along with with your grand children enjoying life happily.
अनुव्रत: पिता पुत्रो माता भवतु संमना:।
जाया पत्ये मधु वाचं वदतु शान्तिवान् 
पुत्र पिता के अनुकूल व्रती हो कर माता के साथ एक मन वाला होवे। पत्नी पति से मधुवत् अर्थात् मधु से सनी के समान और शान्तिप्रद वाणी बोले अर्थात् सन्तान माता-पिता की आज्ञाकारी और माता-पिता सन्तानों के हितकारी हों। पति-पत्नी आपस में मधुरभाषी और मित्र हों।[अथर्ववेद 3.30.2]
The son should have the same goals-targets in life as his father adopting himself as per his mother. The wife should speak to husband in affectionate voice-terms. The progeny should be obedient and the parents should be the well wishers of the children. The husband & the wife should speak to each other affectionately like friends.
ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पय: कीलालं परिस्त्रुतम्।
स्वधा स्थ तर्पयत् मे पितृन् 
पितरों को अनेक प्रकार के उत्तम-उत्तम रस, स्वादिष्ट जल, अमृतमय औषधि, दूध घी, स्वादिष्ट भोजन, रस से भरे हुए फलों को दे कर तृप्त करो। परधन का त्याग करके अपने को प्राप्त धन का उपयोग करने वाले होओ अर्थात् जिस प्रकार पितर अर्थात् माता-पिता आदि ने हमें पाला है, उसी प्रकार हमें भी उनकी सेवा व सत्कार करना चाहिए।[यजुर्वेद 2.34]
Let us satisfy our Manes with various juices-extracts, sweet water, medicines like nectar-elixir, milk, Ghee, fruits full of juices. Let us reject-never desire for other's wealth and utilise our own wealth to serve the Manes and give them due respect-honour. 
Its a regular ceremony every year to pay homage to the Manes. Europeans celebrate Halloween festival almost over the same period as Hindus i.e., Pitr Paksh. 
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा।
सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया
भाई-भाई से द्वेष न करें। बहन-बहन से द्वेष न करें। एकमत वाले और एकव्रती हो कर कल्याणी रीति से वाणी बोलें अर्थात् परिवार में सब प्रेमपूर्वक रहें। स्त्रियों को सम्मान करें।[अथर्ववेद 3.30.3]
There should be no rivalry-coemption amongest the brothers & the sisters. They should have common goal-aim and interact for each other's welfare. Everyone in the family should live with love & affection. The women folk should be revered-regarded, honoured.
यो जाम्या अप्रथयस्तद् यत् सखायं दुधूर्षति।
ज्येष्ठो यदप्रचेतास्तदाहुरधरागिति
जो मनुष्य कुलस्त्री को गिराता है। वह पुरुष और जो मित्र को मारना चाहता है ओर जो अतिवृद्ध हो कर भी अज्ञानी है। वह लोग अधोगति को प्राप्त होते हैं अर्थात् जो कुलीन स्त्री का अपमान करता है या मित्रघाती है या वयोवृद्ध हो कर भी अज्ञानी है अर्थात् परमात्मा को नहीं भजता है, वह अधोगति को प्राप्त होता है।[अथर्ववेद 20.128.2]
One who let down the honoured-revered woman, want to kill his friends, do not pray to the God, is an ignorant in spite of his old age. He moves to the lower species, abodes & hells. 
सम्राज्ञी एधि श्वशुरेषु सम्राज्ञी उत देवृषु।
ननान्दु: सम्राज्ञी एधि सम्राज्ञी उत श्वश्र्वा: 
हे वधू! तुम अपने श्वसुर, सास देवरों तथा ननदों के मध्य सम्राज्ञी हो अर्थात् वधू! अपने विद्या और बुद्धि के बल से तथा अपने कर्तव्यों से छोटे-बड़े सबके मध्य प्रतिष्ठित हो। वधू! को भी ससुराल पक्ष के लोगों को सम्मान देना चाहिए।[अथर्ववेद 14.1.44]
Hey newly wed woman-bride! You are like a queen amongest your in laws, brothers & sisters of your husband. Enhance your status-value through your learning & prudence by discharging your duties-family routine dedicatedly.
The in laws should also respect-honour her. Its purely a give & take business. Do good have good.
अघोरचक्षुरपतिघ्नी स्योना शग्मा सुशेवा सुयमा गृहेभ्य:।
वीरसूर्देवृकामा सं त्वयैधिषीमहि सुमनस्यमाना 
हे वधू! तू घर वालों के लिए प्रिय दृष्टि वाली, पति को न सताने वाली, सुखदायिनी, कार्यकुशला, सुन्दर सेवा वाली, सुन्दर मनवाली, वीरों को उत्पन्न करने वाली और प्रसन्न चित्त वाली हो। तेरे साथ मिल कर हम सब घर वाले बढ़ते रहें।[अथर्ववेद 14.2.17]
Hey bride! You should become affectionate-darling of the family members, never teasing & comforting the husband, skilful in family welfare, good hearted-affectionate, giving birth to brave progeny & always cheerful.  The members of the family should also progress with you.
 जो त्याग (अलोभ एवं दूसरों के लिये सब कुछ उत्सर्ग करने का स्वभाव), विज्ञान (सम्पूर्ण शास्त्रों में प्रवीणता) तथा सत्व (विकार शून्यता), इन गुणों से सम्पन्न, महापक्ष (महान् आश्रय एवं बहुसंख्यक बन्धु आदि के वर्ग से सम्पन्न), प्रियंवद (मधुर एवं हितकर वचन बोलने वाला), आयतिक्षम (सुस्थिर स्वभाव होने के कारण भविष्यकाल में भी साथ देने वाला) अद्वैध (दुनिया में रहने वाला) तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हो, ऐसे पुरुष को अपना मित्र बनाये। मित्र के आने पर दूर से ही अगवानी में जाना, स्पष्ट एवं प्रिय वचन बोलना तथा सत्कारपूर्वक मनोवाञ्छित वस्तु देना, ये मित्र संग्रह के तीन प्रकार हैं। धर्म, अर्थ, काम की प्राप्ति, ये मित्र से मिलने वाले तीन प्रकार के फल हैं। चार प्रकार के मित्र जानने चाहिये :- औरस (माता-पिता के सम्बन्ध से युक्त), मित्रता के सम्बन्ध से बँधा हुआ, कुल क्रमागत तथा संकट से बचाया हुआ। सत्यता (झूंठ न बोलना), अनुराग और दुःख-सुख में समान रूप से भाग लेना ये मित्र के चार गुण हैं।[अग्नि पुराण-राम नीति 239.34-37]
सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु।
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते॥
सुहृद्, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य, बन्धु, धर्मात्मा और पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यन्त श्रेष्ठ है।[श्रीमद्भगवद्गीता 6.9] 
He, who treats the well-wishers, the friends, the foes, the indifferent, the neutral-mediators, the envious, the relatives, the righteous and the sinful equally, prevails-excels.
निर्जीव और पशु-पक्षियों में समता सरल है; परन्तु इन्सानों में सम बुद्धि उत्पन्न करना अत्यंत कठिन है। व्यक्ति का आचरण देखकर भी जिसकी बुद्धि और विचार में कोई विषमता या पक्षपात नहीं होता; ऐसा सम बुद्धि वाला पुरुष श्रेष्ठ है। 
सुहृदय वो है जो माता की तरह ही, मगर ममता रहित होकर, बिना किसी कारण के सबका भला चाहने वाला हो। मित्र वह है जो उपकार के बदले उपकार करता है। अरि (शत्रु, दुश्मन) वो है जो अपने स्वार्थवश, किसी अन्य कारण या अकारण ही द्वेष, अहित, अपकार करता है। उदासीन-तटस्थ वो है जो किसी के वाद-विवाद में पक्षपात रहित रहता है और अपनी ओर से किसी से कुछ नहीं कहता। मध्यस्थ वो है जो वाद-विवाद, मार-पीट को रोककर, समझौता (मेल-हित) करने की चेष्टा करता है। अपने सम्बन्धी, मित्र, बन्धु) के प्रति बर्ताव करने में मन में कोई विषम भाव नहीं लाता। 
श्रेष्ठ आचरण करने वालों, पापियों के साथ व्यवहार में, उनका हित करने में, दुःख-मुसीबत में सहायता करने में उसके अन्तःकरण कोई पक्षपात या विषम भाव नहीं होता। श्रेष्ठ मनुष्य जानता है कि सबमें एक ही परमात्मा विराजमान है। तत्व बोध होने से मनुष्य में सम भाव आता है और वह समबुद्धि हो जाता है। सुहृदय सिद्ध कर्म योगी पक्षपात रहित होकर सेवा, परमार्थ, परहित करता है। जिसकी साधु और पापी में समबुद्धि हो गई हो, निश्चय ही श्रेष्ठ है। समता की अपार असीम, अनन्त महिमा है। समदृष्टा किसी का बुरा नहीं मानता, बुरा नहीं करता, बुरा नहीं सोचता, किसी में बुराई नहीं देखता, किसी की बुराई नहीं सुनता और किसी की बुराई नहीं कहता-करता। 
Its easy to develop-grow equanimity towards lifeless, birds & animals, but really difficult to grow equanimity towards the humans of different behaviour, habits, nature, region, religion, attitude, culture, tendencies, mental level, social status etc. One is definitely a great man if he does not react-behave differently, without favour or discrimination, (contrast, abnormality, incongruity, inequality, disparity, irregularity). 
One is good at heart if he think of the benefit-welfare of all without attachment & discrimination, without any reason, without the desire of reciprocation and is tender like the mother. One is a friend-relative if he reciprocate the timely help, gratitude. 
Enemy-foe is one who is envious & do not hesitate in harming without logic-reason due to his selfishness-with bad intentions. 
One is neutral if he do not interfere-indulge in the quarrel (dispute, confrontation) of others. Mediator is one who tries to resolve the disputes of two parties. 
The great man do not react, show or bring and irrationality-abnormality, in their behaviour-dealings towards the friends, relatives, acquaintances, enemies-foes. The pious (righteous, virtuous, great soul) discriminate (differentiate, distinguish) while dealing with the sinners, for helping them in destitute (बेसहारा, दीन, निःसहाय, अकिंचन, निराश्रित, मुहताज, बेकस, निरालंब, निराश्रय, miserable, necessitous, penniless, unobtrusive, pauper, indigent, poor, needy, dependent, devoid, helpless, hapless, defenceless, helpless, homeless, house less) trouble-bad luck. The great souls-enlightened are aware that the same Almighty resides in all creatures-humans. The moment Tatv Gyan-gist of the Almighty comes to one, he acquires equanimity in him automatically. The accomplished, relinquished Karm Yogi with tender heart, helps every one, without discrimination. One is definitely-surely a great man if he has grown equanimity towards the devil-sinner and the saint-sage. The grandeur (बडप्पन, प्रताप, महिमा, शोभा, महत्व), greatness, (बडाई, अधिकार, भलमनसाहत, श्रेष्ठता, गुरुत्व) of equanimity is beyond limits, infinite. 
One who has attained equanimity, does take any thing against him to his heart, does not listen-mind bad words spoken to him by others, does not speak bad-slur against others, does not find fault with others, does not listen any thing bad pertaining to others and does not speak bad (does not use foul language).
त्यजेद् धर्म दयाहीनं विद्याहीन् गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत् क्रोधमुखीं भार्या नि:स्नेहान् बान्धवाँस्त्यजेत्॥
धर्म और दया रहित व्यक्ति, ज्ञान हीन गुरु, ग़ुस्सैली पत्नी और प्रेम हीन बन्धुओं का त्याग कर दो।[चाणक्य नीति 4.16]
A pity less person without religiosity (who do not fulfil his obligations i.e., Varnashram Dharm), a teacher devoid of knowledge (enlightenment, spirituality), the arrogant wife with offensive face and the brothers who lacks love & affection deserve to be rejected (discarded, deserted).
The religion which is devoid of affection, love pity, pardon, mercy i.e., Islam, deserve to be discarded. Mercy, pity, pardon are integral components of religion. One should reject-discard a religion which is devoid of mercy. Terrorist's, murder's, killer's, butcher's faith-religion deserve to be abandoned by the common masses.
The teacher-preacher who is not enlightened-learned deserves to be abandoned by the disciples, followers. Such people are impostors, hypocrites, heretic, crafty, cunning, deceitful, villains, corrupt, disguised, dissembling, malicious, insincere, in the grab of scants, religious person wearing saffron cloths.
The woman who is filled with rage-anger can not do good to her husband-family.
The relatives who do not have concern for one, who are devoid of sympathy, love, affection will not turn in an hour of need. Its of no use having such relatives. If the son do not turn up to care-look after one, his existence is of no use for the father. Its better to be without them.
क: काल: कानि मित्राणि को देश: को व्ययागमौ।
कश्चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहु:॥
मनुष्य को किसी भी कार्य को सही वक्त, सही मित्रों का चुनाव, रहने की सभी जगह, पैसे कमाने और खर्च करने का सही तरीका और प्रेरणा के उचित स्त्रोत का चुनाव सोच विचार करना चाहिये।[चाणक्य नीति 4.18]
One should opt for the most opportunate timing of an event, selection of friends-associates, selecting right place for residence, righteous source of earning and expenditure and the person to seek guidance after due consideration. One who is intelligent-prudent, will repeatedly think-analyse prior to taking any decision in life. He will consult mature, experienced person, expert-specialist in his field.
In spiritual matters one should be extra careful-cautious. One should not be a blind follower of any one especially the imposters roaming every where these days.
Selection of his present friends, place of residence, income, expenditure should be done thoughtfully carefully not emotionally. He should examine-weigh himself, his capabilities, strength, power-capacity, welfare, upliftment, progress, physically, socially, economically, spiritually as well. Its good to identify, evaluate, examine, oneself. One is a reality or just a soul, independent or a slave; are the questions, which haunt him time and again.
One has to analyse the plus points of the place of his residence-work, since he has to survive with those living in and around him. Its no use living in the company of the wicked-notorious people, who will only look to exploit-extract him, instead of helping him. He should identify and examine, his friends-relatives, well wishers, since these are the people who may help him in an hour of need and vice versa. His income-expenditure, savings-investments, donations should be well planned. 
As a matter of fact one should continuously think, asses, analyse these questions which arise in his mind time and again-repeatedly. Self introspection helps one to come out of difficult situations, adversaries-difficulties. It helps in paving the way to salvation.

 
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 संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)