By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (83) :: ऋषि :- भौम अत्रि; देवता :- पर्जन्य; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप्।
अच्छा वद तवसं गीर्भिराभिः स्तुहि पर्जन्यं नमसा विवास। कनिक्रद्वृषभो जीरदानू रेतो दधात्योषधीषु गर्भम्॥
हे स्तोता! आप बलवान् पर्जन्य देव के सम्मुख होकर उनकी प्रार्थना करें। स्तुति वचनों से उनका स्तवन करें। हविर्लक्षण अन्न से उनकी परिचर्या करें। जलवर्षक, दानशील, गर्जनकारी पर्जन्य वर्षा द्वारा औषधियों को गर्भ युक्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.83.1]
पर्जन्य :: बरसने वाला बादल, मेघ; rain clouds.
Hey Stota! Worship mighty Parjany Dev with sacred hymns. Serve food grains as offerings to him. Showering rain clouds creating thunderous sound leads to the pollination and seed formation in the medicinal herbs.
वि वृक्षान् हन्त्युत हन्ति रक्षसो विश्वं बिभाय भुवनं महावधात्।
उतानागा ईषते वृष्ण्यावतो यत्पर्जन्यः स्तनयन् हन्ति दुष्कृतः॥
पर्जन्य वृक्षों को नष्ट करके राक्षसों का वध करते हैं और महान् वध द्वारा समग्र भुवन को भयाक्रान्त करते हैं। गरजने वाले पर्जन्य पापियों का संहार करते हैं, इसलिए निरपराधी भी वर्षण करने वाले पर्जन्य के निकट से भयभीत होकर पलायित हो जाते हैं।[ऋग्वेद 5.83.2]
निरपराधी :: निर्दोष, निरपराधी, बेगुनाह; innocent, non guilty, in culpable.
Thunderous clouds destroy the trees and kills the demons leading to fear-panic in the entire universe. Since, they kill the sinners, innocent -non guilty too become afraid and migrate-move.
रथीव कशयाश्वाँ अभिक्षिपन्नाविर्दूतान्कृणुते वय ३ अह।
दूरात्सिंहस्य स्तनथा उदीरते यत्पर्जन्यः कृणुते वर्ष्य१नभः॥
रथी जिस प्रकार से कशाघात द्वारा अश्वों को उत्तेजित करके योद्धाओं को आविष्कृत करते हैं, उसी प्रकार पर्जन्य भी मेघों को प्रेरित करके वारिवर्षक मेघों को प्रकटित करते हैं। जब तक पर्जन्य जलद समूह को अन्तरिक्ष में व्याप्त करते हैं, तब तक सिंह के तुल्य गरजने वाले मेघ का शब्द दूर से ही उत्पन्न होता है।[ऋग्वेद 5.83.3]
कशाघात :: कोड़े का आघात, चाबुक से वार करना; lashing.
The manner in which a charoite driver lashes the horses to incite to overtake the warriors, Parjany Dev inspire the rain clouds to shower. Water in the form of clouds pervade the sky leading to generation of roaring sound like the lion.
प्र वाता वान्ति पतयन्ति विद्युत उदोषधीर्जिहते पिन्वते स्वः।
इरा विश्वस्मै भुवनाय जायते यत्पर्जन्यः पृथिवीं रेतसावति॥
जब तक पर्जन्य वृष्टि द्वारा पृथ्वी की रक्षा करते हैं, तब तक वृष्टि के लिए हवा बहती रहती है, चारों ओर बिजलियाँ चमकती रहती हैं, औषधियाँ बढ़ती रहती हैं, अन्तरिक्ष स्रवित होता रहता है और सम्पूर्ण भुवन की हितसाधना में पृथिवी समर्थ होती रहती हैं।[ऋग्वेद 5.83.4]
Till when, Parjany Dev protect the earth with rains, wind flows favourably, lightening occurs all arounds, medicinal herbs grow, sky keep on drizzling and earth become capable of the welfare of the entire universe.
यस्य व्रते पृथिवी नन्नमीति यस्य व्रते शफवज्जर्भुरीति।
यस्य व्रत ओषधीर्विश्वरूपाः स नः पर्जन्य महि शर्म यच्छ॥
हे पर्जन्य! आपके ही कर्म से पृथ्वी अवनत होती हैं, आपके ही कर्म से पाद युक्त या खुर विशिष्ट पशु समूह पुष्ट होते हैं या गमन करते हैं। आपके ही कर्म से औषधियाँ विविध वर्ण धारित करती हैं। आप हम लोगों को महान् सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.83.5]
हे मेघ के सदृश वर्तमान विद्वान! जिस मेघ के कर्म से भूमि अत्यन्त नम्र होती और जिस मेघ के कर्म से खुर के तुल्य निरन्तर धारण करती है और जिस मेघ के कर्म में अनेक प्रकार की सोमलता आदि ओषधियाँ उत्पन्न होती हैं, उस मेघ की विद्या से युक्त वह आप हम लोगों के लिये बड़े गृह को दीजिये।
अवनत :: झुका हुआ, गिरा हुआ; accumbent, reclinate.
Hey Parjany Dev! Your endeavours leads to softening of soil, the animals are nourished, medicines like Som Lata grow. Grant us a big house blessed by the clouds.
दिवो नो वृष्टिं मरुतो ररीध्वं प्र पिन्वत वृष्णो अश्वस्य धाराः।
अर्वाङितेन स्तनयित्नुनेह्यपो निषिञ्चन्नसुरः पिता नः॥
हे मरुतो! आप लोग अन्तरिक्ष से हम लोगों के लिए वृष्टि प्रदान करें। वर्षण कारी और सर्व व्यापी मेघ की उदक धारा को क्षरित करें। हे पर्जन्य! आप जल सेचन करके गर्जन शील मेघ के साथ हम लोगों के अभिमुख आगमन करें। आप वारि वर्षक और हम लोगों के पालक है।[ऋग्वेद 5.83.6]
Hey Marud Gan! Grant rains from the space-sky & regulate them. Hey Parjany Dev! Come to us making the clouds shower rains. You are the showerer of rains and our nurturer.
अभि क्रन्द स्तनय गर्भमा धा उदन्वता परि दीया रथेन।
दृतिं सु कर्ष विषितं यसमा भवन्तूद्वतो निपादाः॥
पृथ्वी के ऊपर आप शब्द करें, गर्जन करें, उदक द्वारा औषधियों को गर्भधारित करावें, वारिपूर्ण रथ द्वारा अन्तरिक्ष में परिभ्रमण करें, उदकधारक मेघ को वृष्टि के लिए आकृष्ट करें, उस बन्धन को अधोमुख करें, उन्नत और निम्नतम प्रदेश को समतल करें।[ऋग्वेद 5.83.7]
Rattle over the earth, nourish-nurture the medicinal herbs, revolve in the sky in your charoite with water, attract the rain clouds, serving the earth break the bonds i.e., loosen the soil and level the elevated land.
महान्तं कोशमुदचा नि षिञ्च स्यन्दन्तां कुल्या विषिताः पुरस्तात्।
घृतेन द्यावापृथिवी व्यन्धि सुप्रपाणं भवत्वघ्न्याभ्यः॥
हे पर्जन्य! आप कोश स्थानीय महान् मेघ को ऊर्ध्वभाग में उत्तोलित करें एवं वहाँ से उसे नीचे की ओर क्षारित करें अर्थात् जल की वर्षा करावें। अप्रतिहत वेग शालिनी नदियाँ पूर्वाभिमुख या पुरोभाग में प्रवाहित हों। जल द्वारा द्यावा- पृथ्वी को आर्द्र करें। गौओं के लिए पीने योग्य सुन्दर जल प्रचुर मात्रा में हो।[ऋग्वेद 5.83.8]
Hey Parjany Dev! Raise the clouds to the middle-centre and then make them shower rains. Let the river flow facing the east. Wet the earth with water. Cows should have sufficient water to drink.
यत्पर्जन्य कनिक्रदत्स्तनयन् हंसि दुष्कृतः।
प्रतीदं विश्वं मोदते यत्किं च पृथिव्यामधि॥
हे पर्जन्य! जब आप गम्भीर गर्जन करके पापिष्ठ मेघों को विदीर्ण करते हैं, तब यह सम्पूर्ण विश्व और भूमि में अधिष्ठित चरचरात्मक पदार्थ हर्षित होते हैं अर्थात् वर्षा होने से सम्पूर्ण जगत् प्रसन्न होता है।[ऋग्वेद 5.83.9]
Hey Parjany Dev! The entire earth is filled with pleasure when you roar & tear the clouds, causing rains.
अवर्षीर्वर्षमुदु षू गृभायाकर्धन्वान्यत्येतवा उ।
अजीजन ओषधीर्भोजनाय कमुत प्रजाभ्योऽविदो मनीषाम्॥
हे पर्जन्य! आपने वर्षा की। अभी वर्षा संहारण करें। आपने मरुभूमियों को सुगम्य बनाने के लिए जलयुक्त किया। मनुष्यों के भोग के लिए औषधियों को उत्पन्न किया। आपने प्रजाओं द्वारा उत्तम स्तुतियाँ भी प्राप्त की।[ऋग्वेद 5.83.10]
Hey Parjany Dev! You caused rains and now stopped them. You led to rains shower in the desert lands and made them pleasant. Grew medicines for human consumption-welfare. In return the populace worshiped you.(17.08.2023)
पर्जन्यवाता वृषभा पृथिव्याः पुरीषाणि जिन्वतमप्यानि।
सत्यश्रुतः कवयो यस्य गीर्भिर्जगतः स्थातर्जगदा कृणुध्वम्॥
वर्षा करने वाले पर्जन्य और वायु देव आप अन्तरिक्ष से प्राप्त जल भेजें। हे ज्ञान सम्पन्न, स्तोत्र सुनने वाले और संसार-स्थापक मरुतों! जिसके स्तोत्र से आप प्रसन्न होते हैं, उसके समस्त प्राणियों को समृद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 6.49.6]
Hey rain causing Parjany & Vayu Dev divert the water from the space-sky to us. Hey enlightened, listeners of the Strotr and the establisher of the world, Marud Gan! You grow-nourish the living beings-animals of the person with who's Strotr you are pleased.
इन्द्रो नेदिष्ठमवसागमिष्ठः सरस्वती सिन्धुभिः पिन्वमाना।
पर्जन्यो न ओषधीभिर्मयोभुरग्निः सुशंसः सुहवः पितेव॥
इन्द्र देव और जलराशि के द्वारा स्फीत सरस्वती नदी हमारी रक्षा के साथ हमारे सम्मुख आवें। औषधियों के साथ पर्जन्य हमारे लिए सुख-दाता हों। पिता के सदृश अग्निदेव अनायास स्तुत्य और आह्वान योग्य हों।[ऋग्वेद 6.52.6]
स्फीत :: बढ़ा हुआ, फूला या उभरा हुआ; inflated, enlarged.
Let Indr Dev and river Saraswati full of water come to us for our protection. Let Parjany Dev grant us pleasure with the medicines. Agni Dev who is like father and worshipable deserve invocation.
अग्नीपर्जन्याववतं धियं मेऽस्मिन्हवे सुहवा सुष्टुतिं नः।
इळामन्यो जनयद्गर्भमन्यः प्रजावतीरिष आ धत्तमस्मे॥
अग्नि देव और पर्जन्य हमारे यज्ञ कार्य की रक्षा करें। आप अनायास आह्वान के योग्य हैं; इसलिए इस यज्ञ में हमारा स्तोत्रों को श्रवण करें। आपमें से एक व्यक्ति अन्न प्रदान करते हैं और दूसरे गर्भ उत्पन्न करते हैं। इसलिए आप हमें सन्तति के साथ अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.52.16]
Let Agni Dev & Parjany Dev protect our Yagy. You deserve invocation at any time, therefore listen to our Strotr. One of you grant food grains and the other one develop-grow the foetus. Hence, grant food grains to our progeny.
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (101) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
तिस्रो वाचः प्र वद ज्योतिरग्रा या एतद्दुह्रे मधुदोघमूधः।
स वत्सं कृण्वन् गर्भमोषधीनां सद्यो जातो वृषभो रोरवीति॥
अग्र भाग में ओंङ्कार वाले ऋक, यजुः और साम नाम के जो तीन प्रकार के वाक्य जल को दूहते हैं, उन्हीं वाक्यों या ध्वनियों का वर्णन करें। पर्जन्य ही सहवासी विद्युदग्नि को उत्पन्न करते हुए और औषधियों को गर्भ उत्पन्न करते हैं, शीघ्र ही उत्पन्न होकर वृषभ के समान शब्द करते हैं।[ऋग्वेद 7.101.1]
Three words i.e., Rik, Yaju and Sam which constitute the prefix Omkar & agitate-churn the water. Describe these compositions. Parjany create-generate the lightening and seed the Ayurvedic medicines i.e., herbs and quickly sound like the bull.
यो वर्धन ओषधीनां यो अपां यो विश्वस्य जगतो देव ईशे।
स त्रिधातु शरणं शर्म यंसत्त्त्रिवर्तु ज्योतिः स्वभिष्ट्य १ स्मे॥
जो औषधियों और जल के वर्द्धक हैं, जो सम्पूर्ण संसार के ईश्वर हैं, वह पर्जन्य देवता तीन प्रकार की भूमियों से युक्त गृह और सुख प्रदान करें। वह तीन ऋतुओं में वर्तमान सुन्दर गमन वाली ज्योति हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 7.101.2]
Parjany Dev who is the grower of medicines and water, is the lord of the whole world grant us comfortable house having three types of land. He should grant us light which moves beautifully in the three seasons.
स्तरीरु त्वद्भवति सूत उ त्वद्यथावशं तन्वं चक्र एषः।
पितुः पयः प्रति गृभ्णाति माता तेन पिता वर्धते तेन पुत्रः॥
पर्जन्य का एक रूप निवृत्त प्रसवा गौ की तरह है और दूसरा रूप जल वर्षक है। ये इच्छानुसार अपने शरीर को बनाते हैं। माता (पृथ्वी) पिता (द्युलोक) से दूध लेती हैं, जिससे द्युलोक और प्राणि वर्ग दोनों बढ़ते हैं।[ऋग्वेद 7.101.3]
Parjany has two forms viz like the cow after delivery and showering rains. He compose his body as per his whims-desire. Mother earth takes milk from the father heavens which grow the heavens and the organism.
यस्मिन्विश्वानि भुवनानि तस्थुस्तिस्त्रो द्यावस्त्रेधा स्त्रुरापः।
त्रयः कोशास उपसेचनासो मध्वः श्चोतन्त्यभितो विरप्शम्॥
जिनमें सभी भुवन अवस्थित हैं, जिनमें द्युलोक आदि तीनों लोक अवस्थित हैं, जिनसे जल तीन प्रकार से निकलता है और जिन पर्जन्य के चारों ओर उपसेचन करने वाले तीन प्रकार के मेघ जल बरसाते हैं, ऐसे ही पर्जन्य देवता हैं।[ऋग्वेद 7.101.4]
All abodes are present in Parjany Dev including the three abodes i.e., Earth, Nether world and the heavens. Water comes out of him such that nurturing clouds shower rains.
इदं वचः पर्जन्याय स्वराजे हृदो अस्त्वन्तरं तज्जुजोषत्।
मयोभुवो वृष्टयः सन्त्वस्मे सुपिप्पला ओषधीर्देवगोपाः॥
यह स्वयं प्रकाशित पर्जन्य के लिए स्तोत्र किया जाता है। वे स्तोत्र ग्रहण करें। वह उनके लिए हृदय ग्राही है। हमारे लिए सुखकर वर्षा करें। जिनके रक्षक स्वयं पर्जन्य हैं, वे औषधियाँ जल तीन प्रकार से निकलता है और जिन के मेघ जल बरसाते हैं, ऐसे ही पर्जन्य देवता हैं।[ऋग्वेद 7.101.5]
This Strotr is for self illuminating Parjany Dev. Let him accept the Strotr in his innerself. He should make comfortable rains. Water pour out of Ayurvedic medicines in three different ways leading to rains from clouds protected by Parjany Dev.
स रेतोधा वृषभः शश्वतीनां तस्मिन्नात्मा जगतस्तस्थुषश्च।
तन्म ऋतं पातु शतशारदाय यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
वृषभ की तरह वे पर्जन्य अनेक औषधियों के लिए जल के धारक हैं। स्थावर और जङ्गम की देह-पर्जन्य में ही रहती है। पर्जन्य का दिया हुआ जल सौ वर्षों तक जीने के लिए मेरी रक्षा करे। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.101.6]
Parjany nurse the herbs like the bull. Dynamic and stationary bodies remain-reside in Parjany Dev. Let the water granted by Parjany Dev protect us for hundred years.(05.03,2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (102) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
पर्जन्याय प्र गायत दिवस्पुत्राय मीळ्हुषे। स नो यवसमिच्छतु॥
हे स्तोताओं! अन्तरिक्ष के पुत्र और सेचक पर्जन्य के लिए प्रार्थना करें। हमें भरपूर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.102.1]
Hey Stotas! Let us pray for nurturing Parjany Dev, the son of space. He should provide us enough food grains.
यो गर्भमोषधीनां गवां कृणोत्यर्वताम्। पर्जन्यः पुरुषीणाम्॥
पर्जन्य देवता औषधियों, गौओं, अश्व जातियों और स्त्रियों के लिए गर्भ उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 7.102.2]
Parjany Dev produces fetus for medicines, cows, races of horses and the women.
तस्मा इदास्ये हविर्जुहोता मधुमत्तमम्। इळां नः संयतं करत्॥
उन्हीं के लिए देवताओं के मुख रूप अग्नि में अत्यन्त रसवान् हव्य का हवन करें। वे हमें भरपूर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.102.3]
Perform Hawan with juicy offerings in the fire which is like the mouth of demigods-deities. He should provide-grant us sufficient food grains.(05.03.2024)
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