SAVITA DEV
सविता देव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
जो सविता हम लोगों की बुद्धि को प्रेरित करता है, सम्पूर्ण श्रुतियों में प्रसिद्ध उस द्योतमान जगत्स्रष्टा परमेश्वर के संभजनीय परब्रह्मात्मक तेज का हम लोग ध्यान करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.10]
जो सविता देव हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रेरित करते हैं, उन पूर्ण तेजस्वी, सर्व-प्रकाशक, सर्वदाता, सर्वज्ञाता, सर्वश्रेष्ठ, परमात्मा के उस दिव्य-महान पापों का पतन करने वाले, तेज को धारण करते हुए उसी का ध्यान करें।
Savita Dev inspire-direct our mind-intelligent towards the virtuous, righteous, pious way. We should meditate-concentrate in the creator of the universe aware of all, Almighty, destroyer of sins.
देवस्य सवितुर्वयं वाजयन्तः पुरन्ध्या।
भगस्य रातिमीमहे॥
हम लोग धनाभिलाषी होकर स्तुति द्वारा द्योतमान सविता से भजनीय धन के दान की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.11]
हम सर्वप्रकाश, तेजोमय, सभी ऐश्वर्यों को देने वाले, सबके भजने योग्य, कल्याण रूप, सुखकारी सविता देव की दान बुद्धि की अन्न, बल और धन की इच्छा करते हुए धारणा सामर्थ्य से युक्त प्रार्थना द्वारा विनती करते हैं।
Desirous of wealth, we worship radiant Savita Dev.
देवं नरः सवितारं विप्रा यज्ञैः सुवृक्तिभिः। नमस्यन्ति धियेषिताः॥
कर्म नेता मेधावी अध्वर्यु गण बुद्धि द्वारा प्रेरित होकर यजनीय हवि और शोभन स्तोत्रों द्वारा सविता देवता की अर्चना करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.12]
मेधावीजन महान कार्यों में प्रेरित करने वाली मति की शिक्षा से दोषों का समूल पतन करने में समर्थ, यज्ञादि महान कार्यों में प्रकाशक, सर्वप्रेरक तथा रचयिता सविता देव को नमस्कार और अर्चन करते हैं।
The enlightened-intellectual Ritviz guided-inspired by their mind-brain, make offerings and pray to Savita Dev with decent Strotr-hymns.
ऊर्ध्वं भानुं सविता देवो अश्रेद्द्रप्सं दविध्वद्गविषो न सत्वा।
अनु व्रतं वरुणो यन्ति मित्रो यत्सूर्यं दिव्यारोहयन्ति॥
सविता देव उन्मुख किरण को विकासित करते हैं। रश्मियाँ जब सूर्य को द्युलोक में आरूढ़ कराती हैं, तब वरुण, मित्र और अन्यान्य देवगण अपने-अपने कर्मों का अनुगमन करते हैं, जिस प्रकार से बलवान वृषभ गौओं की कामना करके धूलि विकीर्ण करता हुआ गौओं का अनुगमन करता है।[ऋग्वेद 4.13.2]
सूर्य देव किरणों को विकसित करते हैं। जब किरणें सूर्य को आकाश में चढ़ाती हैं, तब वरुण, मित्र और अग्नि सभी देवता अपने कर्मों के पीछे चलते हैं, उसी तरह जिस तरह बलिष्ठ बैल गायों की कामना कर धूल उड़ाता हुआ गायों के पीछे चलता है।
Savita Dev-Sun, boosts his rays establishing himself in the heavens. Varun Dev, Mitr and other demigods-deities begin with their work-routine just like the bull who chase the cows raising dust.
यं सीमकृण्वन्तमसे विपृचे ध्रुवक्षेमा अनवस्यन्तो अर्थम्।
तं सूर्यं हरितः सप्त यह्वीः स्पशं विश्वस्य जगतो वहन्ति॥
सृष्टि करने वाले देवों ने संसार के कार्य का परित्याग न करके सर्वतोभाव से अन्धकार को दूर करने के लिए जिस सूर्य को सृष्ट किया, उस समस्त प्राणि समूह के विज्ञाता सूर्य को धारित महान हरिनामक सप्ताश्व करते हैं।[ऋग्वेद 4.13.3]
सृष्टि के रचनाकार देवताओं ने संसार के कर्म को न छोड़कर तम को समाप्त करने के लिए जिस सूर्य की उत्पत्ति की, वह सूर्य सभी प्राणधारियों को जानने वाले हैं। हें प्रकाशवान सूर्य देव! तुम संसार का पालन करने वाले अन्न के लिए रश्मियों की वृद्धि करते हो। तुम ही उस काले रंग की रात्रि को भगाते हो और अत्यधिक बोझ को भी ढो लेने वाले अश्वों द्वारा गमन करते हो।
Seven great courses convey that Sun, whom the deities, occupants of enduring mansions and not heedless of their offices, have formed for the driving away of darkness and who is the animator of the whole world.
The demigods-deities continued with their endeavours and created-evolved the Sun-Sury Dev, to eliminate the darkness, who ride the charoite pulled by seven horses called Hari.
वहिष्ठेभिर्विहरन्यासि तन्तुमवव्ययन्नसितं देव वस्म।
दविध्वतो रश्मयः सूर्यस्य चर्मेवाधुस्तमो अप्स्व १ न्तः॥
हे द्युतिमान सूर्य! आप जगन्निर्वाहक रस को ग्रहण करने के लिए तन्तु स्वरूप रश्मि समूह को विस्तारित करते हैं, कृष्ण वर्णा रात्रि को तिरोहित करते हैं और अत्यन्त वहन समर्थ अश्वों द्वारा गमन करते हैं। कम्पन युक्त सूर्य की रश्मियाँ अन्तरिक्ष के बीच में स्थित चर्म सदृश अन्धकार को दूर करती हैं।[ऋग्वेद 4.13.4]
हे प्रकाशवान सूर्य देव! तुम संसार का पालन करने वाले अन्न के लिए रश्मियों की वृद्धि करते हो। तुम ही उस काले रंग की रात्रि को भगाते हो और अत्यधिक बोझ को भी ढो लेने वाले अश्वों द्वारा गमन करते हो। सूर्य की गतिमान रश्मियाँ अंतरिक्ष में स्थित तम को भगाती हैं।
Hey Illuminated Sury Dev-Sun! You sip-absorb the juices for the welfare of the world, by spreading your rays, like a web, removing the darkness of the night, being carried by the mighty horses. Sun associated with vibrations-waves removes the darkness spreaded like the skin.
अनायतो अनिबद्धः कथायं न्यङ्ङुत्तानोऽव पद्यते न।
कया याति स्वधया को ददर्श दिवः स्कम्भः समृतः पाति नाकम्॥
अदूरवर्ती अर्थात् प्रत्यक्ष उपलभ्यमान सूर्य का कोई भी बन्धन नहीं कर सकता। अधोमुख सूर्य किसी प्रकार भी हिंसित नहीं होते। ये किस बल से ऊद्धर्वमुख भ्रमण करते हैं? द्युलोक (स्वर्गलोक) में समवेत स्तम्भ स्वरूप सूर्य स्वर्ग का पालन करते हैं। इसे किसने देखा है? अर्थात् इस तत्त्व को कोई भी नहीं जानता।
प्रत्यक्ष प्राप्त सूर्य को कोई बाँध नहीं सकता। नीचे रहने वाले सूर्य की कोई हिंसा नहीं कर सकता। वे किस शक्ति से ऊँचे उठते हुए चलते हैं? क्षितिज में स्तम्भ के समान उठे हुए सूर्य अपने आप को शरण प्रदान करते हैं। इसे कौन देखता है? सूर्य की कोई हिंसा नहीं कर सकता। वे किस शक्ति से ऊँचे उठते हुए चलते हैं?
Neither, none can tie the Sun, nor can he be harmed-attacked by any one. What is the strength-force behind him, which moves him around. Sury Dev support-nurture the heavens like pole. Who has seen this!? None is aware of he source-secret of his strength.(09.02.2023)
ऊर्ध्वं केतुं सविता देवो अश्रेज्ज्योतिर्विश्वस्मै भुवनाय कृण्वन्।
आप्रा द्यावा-पृथिवी अन्तरिक्षं वि सूर्यो रश्मिभिश्चेकितानः॥
सविता देवता समस्त भुवन को आलोक युक्त करके उन्मुख किरण का आश्रय लेते हैं। सबको विशेष रूप से देखने वाले सूर्य ने अपनी किरणों से द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष को परिपूर्ण किया है।[ऋग्वेद 4.14.2]
प्रकाशवान सूर्य सभी संसार को प्रकाशित करके किरणों के आश्रय पर चलते हैं। सबके दृष्टा सर्य ने अपनी किरणों के माध्यम से गगन, धरती और अंतरिक्ष को पूर्ण किया है।
Savita Dev-Sun illuminate the universe with his rays. He has completed-supplemented the earth, heaven and the space through his rays.
अनायतो अनिबद्धः कथायं न्यङ्ङुत्तानोऽव पद्यते न।
कया याति स्वधया को ददर्श दिवः स्कम्भः समृतः पाति नाकम्॥
अदूरवर्ती अर्थात् प्रत्यक्ष उपलभ्यमान सूर्य का कोई भी बन्धन नहीं कर सकता है। अधोमुख सूर्य किसी प्रकार हिंसित नहीं होते हैं। ये किस बल से ऊद्धर्व मुख भ्रमण करते हैं? द्युलोक में समवेत स्तम्भ स्वरूप सूर्य स्वर्ग का पालन करते हैं। इसे किसने देखा है? अर्थात् इस तत्त्व को कोई भी नहीं जान सकता।[ऋग्वेद 4.14.5]
प्रत्यक्ष उपलब्ध सविता देव को बाँधने में कोई भी समर्थवान नहीं है। यह नीचे रहे तब भी उनकी हिंसा किया जाना सम्भव नहीं है। वे किस पराक्रम से ऊँचे उठते हुए चलते हैं? वे अम्बर स्तम्भ के तुल्य स्वर्ग के शरण भूत हैं। इसे कौन जानता है? अर्थात इस तत्व का ज्ञाता कोई नहीं है।
None is capable of binding-harming visible Sun. What is source-reason, power behind his motion!? He supports the heaven like a pole. None is aware of this secret-intricate fact.(10.02.2023)
अहं मनुरभवं सूर्यश्चाहं कक्षीवाँ ऋषिरस्मि विप्रः।
अहं कुत्समार्जुनेयं न्यृञ्जेऽहं कविरुशना पश्यता मा॥
हम प्रजापति हैं, हम सबके प्रेरक सविता हैं, हम ही दीर्घतमा के पुत्र मेधावी कक्षीवान ऋषि हैं, हमने ही अर्जुनी पुत्र कुत्स को भली-भाँति अलंकृत किया, हम ही उशना नामक कवि हैं। हे मनुष्यों! हमें अच्छी तरह से देखो।[ऋग्वेद 4.26.1]
हम प्रजापति, सबको प्रेरणा प्रदान करने वाले एवं हम ही दीर्घतमा के विद्वान पुत्र कक्षीवान ऋषि हैं हम कवि उशना हैं। हमने ही अर्जुन के पुत्र कुत्स को भली-भांति प्रशंसित किया था। हे मनुष्यों! हम ही क्रांतदर्शी और सर्वप्रिय हैं।
We are Praja Pati, Savita-who inspire all, Medhavi Kakshivan Rishi-son of Dirghtama and poet Ushna. We decorated Kuts the son of Arjuni. Hey humans! Look at us carefully.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- सविता, छन्द :- जगती।
तद्देवस्य सवितुर्वार्यं महद्वृणीमहे असुरस्य प्रचेतसः।
छर्दिर्येन दाशुषे यच्छति त्मना तन्नो महाँ उदयान्देवो अक्तुभिः॥
हम लोग असुर और बुद्धिमान प्रेरक सविता देव के उस वरणीय एवं पूज्य धन की प्रार्थना करते हैं, जिसे वे याजक गण हव्य दाता को स्वेच्छापूर्वक देते हैं। वे महान सविता देव हमें उस तेज को प्रदत्त करते हुए निशा के अवसान के समय उदित होते हैं।[ऋग्वेद 4.53.1]
हम दिव्य, शक्तिशाली और बुद्धिमान सविता की याचना करते हैं जो वांछनीय और पर्याप्त धन प्रदान करते हैं, जिसके साथ वह अपने स्वयं के बलिदान के प्रस्तावक को आवास प्रदान करता है; महान देवता हमें हर दिन ऐसा प्रदान करें।
We pray-worship divine, mighty, intelligent Savita Dev who grant wealth to the Ritviz who make offerings (in the Yagy). He Provide energy (heat, light and several other kinds of radiations) and rises when the night is over.
दिवो धर्ता भुवनस्य प्रजापतिः पिशङ्गं द्रापिं प्रति मुञ्चते कविः।
विचक्षणः प्रथयन्नापृणन्नुर्वजीजनत्सविता सुम्नमुक्थ्यम्॥
द्युलोक एवं समस्त लोक के धारक, प्रजाओं को प्रकाश, वृष्टि आदि के द्वारा पालन करने वाले कवि सविता देव हिरण्मय कवच परिधान करते हैं। विचक्षण सविता देव प्रख्यात होकर भी संसार को तेज द्वारा परिपूर्ण करते हैं और स्तुति योग्य प्रभूत सुख उत्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 4.53.2]
विचक्षण :: विवेक शील; prudent.
Savita Dev who lit the heavens and the whole universe, support the living beings by granting light, rains wear golden shield. Prudent Savita Dev, fills the universe with aura-light and evolve comforts which deserve appreciation.
आप्रा रजांसि दिव्यानि पार्थिवा श्लोकं देवः कृणुते स्वाय धर्मणे।
प्र बाहू अस्राक्सविता सवीमनि निवेशयन्प्रसुवन्नक्तुभिर्जगत्॥
सविता देव तेज द्वारा द्युलोक और पृथ्वी लोक को परिपूर्ण करते हैं एवं अपने कार्य की प्रशंसा करते हैं। वे प्रतिदिन संसार को अपने-अपने कार्य में स्थापित करते हुए प्रेरित करते हैं। वे सृजन कार्य के लिए भुजाओं को प्रसारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.53.3]
Savita Dev fills the heavens & the earth with aura-light. He inspire the living beings to be active-busy with their work, who extend their limbs to do creative work.
अदाभ्यो भुवनानि प्रचाकशद्व्रतानि देवः सविताभि रक्षते।
प्रास्राग्बाहू भुवनस्य प्रजाभ्यो धृतव्रतो महो अज्मस्य राजति॥
सविता देव अहिंसित होकर भुवनों को प्रदीप्त करते हैं और व्रतों की रक्षा करते हैं। वे भुवनस्थ प्रजाओं के लिए भुजाओं को प्रसारित करते हैं। धृतव्रत सविता देव महान जगत के ईश्वर हैं।[ऋग्वेद 4.53.4]
Savita Dev protect the deeds-endeavours without being violent. He extend his arms for the living beings of all abodes. Determined Savita Dev is the nurturer-God of the whole universe.
त्रिरन्तरिक्षं सविता महित्वना त्री रजांसि परिभूस्त्रीणि रोचना।
तिस्रो दिवः पृथिवीस्तिस्त्र इन्वति त्रिभिर्व्रतैरभि नो रक्षति त्मना॥
सविता देव महिमा द्वारा परिभव करते हुए अन्तरिक्षत्रय को व्याप्त करते हैं। वे लोकत्रय को व्याप्त करते है। वे तीन पृथ्वियों को व्याप्त करते हैं। वे तीन व्रतों (ग्रीष्म, वर्षा और हिम) द्वारा हम लोगों का अनुग्रह पूर्वक पालन करें।[ऋग्वेद 4.53.5]
Savita Dev pervade the three abodes in the space Heaven, earth & the Nether world. He support-nurture us with the summer, rains and the cold, carefully.
बृहत्सुम्नः प्रसवीता निवेशनो जगतः स्थातुरुभयस्य यो वशी।
स नो देवः सविता शर्म यच्छत्वस्मे क्षयाय त्रिवरूथमंहसः॥
जिनके पास प्रभूत धन है, जो कर्मों को उत्पन्न करते हैं, जो सभी के लिए गन्तव्य हैं एवं जो स्थावर और जंगम दोनों को वश में रखते हैं, वे सविता देव हम लोगों के पापक्षय के लिए हम लोगों को तीनों लोकों का सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.53.6]
Let Savita Dev grant us comforts of the three world, destroy over sins. He possess the ultimate wealth, generate the deeds-endeavours, controls both the movable & fixed living beings and the ultimate goal for all.
Life on earth is possible by virtue of the Sun.
आगन्देव ऋतुभिर्वर्धतु क्षयं दधातु नः सविता सुप्रजामिषम्।
स नः क्षपाभिरहभिश्च जिन्वतु प्रजावन्तं रयिमस्मे समिन्वतु॥
सविता देव ऋतुओं के साथ आगमन करें। हम लोगों के घर को वर्द्धित करें। हम लोगों को पुत्र-पौत्रादि से युक्त कर अन्न प्रदान करें। दिन और रात्रि दोनों में हम लोगों के प्रति उनका प्रेम हो। वे हम लोगों को अपत्य युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.53.7]
Let Savita arrive with the seasons. Enlarge over homes. grant us sons, grandsons & food grains. We should have love & affection for him during the day as well as night. He should grant us progeny along with wealth.(02.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- वामदेव, गौतम, देवता :- सविता, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
अभूद्देवः सविता वन्द्यो नु न इदानीमह्न उपवाच्यो नृभिः।
वि यो रत्ना भजति मानवेभ्यः श्रेष्ठं नो अत्र द्रविणं यथा दधत्॥
सविता देव प्रादुर्भूत हुए हैं। हम शीघ्र ही उनकी वन्दना करेंगे। वे इस समय और तृतीय सवन में होताओं द्वारा प्रार्थित होवें। जो मनुष्यों को रत्न प्रदान करते हैं, वे सविता देव हम लोगों को इस यज्ञ में श्रेष्ठ धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.54.1]
Savita Dev has arisen. We will worship-pray him soon. Let him be prayed in the morning & evening (first & third segment of the day). Let Savita Dev who grant jewels-gems to the humans, grant us best-excellent riches in this Yagy.
देवेभ्यो हि प्रथमं यज्ञियेभ्योऽमृतत्वं सुवसि भागमुत्तमम्।
आदिद्दामानं सवितर्व्यूर्णुषेऽनूचीना जीविता मानुषेभ्यः॥
आप पहले यज्ञार्हदेवों के लिए अमरत्व के साधन भूत सोम के उत्कृष्टतम भाग को उत्पन्न करें। हे सविता देव! उसके अनन्तर आप हव्य दाता को प्रकाशमय करें, इस प्रकार पिता, पुत्र और पौत्रादि क्रम से मनुष्यों को जीवन दान करें।[ऋग्वेद 4.54.2]
Initially you evolve the excellent segment of Som for the immorality of the demigods-deities. Hey Savita Dev! Thereafter you enlighten-lit the hosts-Ritviz and grant life-longevity to father, sons and grandsons.
अचित्ती यच्चकृमा दैव्ये जने दीनैर्दक्षैः प्रभूती पूरुषत्वता।
देवेषु च सवितर्मानुषेषु च त्वं नो अत्र सुवतादनागसः॥
हे सविता देव! अज्ञानतावश अथवा दुर्बल अथवा बलशाली लोगों के प्रमाद वश अथवा ऐश्वर्य के गर्व से या परिजन के गर्व से आपके प्रति अथवा देव या मनुष्यों के प्रति हमने जो अपराध किया है, इस यज्ञ में आप हमें उस पाप से मुक्त करें।[ऋग्वेद 4.54.3]
अपराध :: दोष, जुर्म, दंड योग्य कर्म; crime, guilt.
Hey Savita Dev! Make us sinless in this Yagy, remove our guilts-faults committed by us due to ignorance, intoxication, grandeur or pride towards the demigods-deities or the humans, under the impression-influence of either the weak or mighty or our relatives.
न प्रमिये सवितुर्देव्यस्य तद्यथा विश्वं भुवनं धारयिष्यति।
यत्पृथिव्या वरिमन्ना स्वङ्गुरिर्वर्ष्मन्दिवः सुवति सत्यमस्य तत्॥
सविता देव का वह कर्म हिंसा योग्य नहीं है; क्योंकि वे विश्व भुवन धारित करते हैं। वे अंगुलि विशिष्ट होकर पृथ्वी को विस्तीर्ण होने के लिए प्रेरित करते हैं एवं द्युलोक को भी विस्तीर्ण सुन्दर होने के लिए प्रेरित करते हैं। उन सविता देव का यह कर्म सत्य है।[ऋग्वेद 4.54.4]
That function of Savita Dev is non violent, since he supports the three abodes. His gracious fingers inspire the earth to expand, increase fertility along with the beauty of the heavens. This is the true endeavour-effort of Savita Dev.
इन्द्रज्येष्ठान्बृहद्भ्यः पर्वतेभ्यः क्षयाँ एभ्यः सुवसि पस्त्यावतः।
यथायथा पतयन्तो वियेमिर एवैव तस्थुः सवितः सवाय ते॥
हे सविता देव! परमैश्वर्यवान इन्द्र देव हम लोगों के बीच में पूजनीय हैं। आप हम लोगों को महान पर्वतों की अपेक्षा और भी उन्नत करें। इन सम्पूर्ण याजक गणों को गृह विशिष्ट निवास (ग्राम, नगर आदि) प्रदान करें। वे सब गमन काल में जिससे आपके द्वारा नियत हों और आपकी आज्ञा के अनुसार चलें।[ऋग्वेद 4.54.5]
Hey Savita Dev! Indr Dev, the possessor of ultimate grandeur is worshiped by us. Make us progress beyond the mountains. Grant homes-houses to the worshipers. Let them follow your dictates in all segments of time-day.
ये ते त्रिरहन्त्सवितः सवासो दिवेदिवे सौभगमासुवन्ति।
इन्द्रो द्यावापृथिवी सिन्धुरद्भिरादित्यैर्नो अदितिः शर्म यंसत्॥
हे सविता देव! जो याजक गण आपके उद्देश्य से प्रति दिन तीन बार सौभाग्य जनक सोम का अभिषव करता है, इन्द्र देव, द्यावा-पृथ्वी, जल विशिष्ट सिन्धु, देवता और आदित्यों के साथ अदिति उस याजक गण को और हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.54.6]
Hey Savita Dev! Grant comforts to the Ritviz who extract auspicious Somras for you, thrice during the day along with Indr Dev, earth & heavens, Aditi and us.(02.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- वामदेव, गौतम, देवता :- अग्नि देव, सूर्य, वाष्प, गौ या घृत, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
समुद्रादूर्मिर्मधुमाँ उदारदुपांशुना सममृतत्वमानट्।
घृतस्य नाम गुह्यं यदस्ति जिह्वा देवानाममृतस्य नाभिः॥
समुद्र (अग्नि, अन्तरिक्ष, आदित्य अथवा गौओं के ऊध: प्रदेश) से मधुमान ऊर्मि उद्भूत होती है। मनुष्य किरण द्वारा अमृतत्व प्राप्त करते हैं। घृत का जो गोपनीय नाम है, वह देवों का नाम है, वह देवों की जिव्हा और अमृत की नाभि है।[ऋग्वेद 4.58.1]
आकाश से मीठा जल उमड़ पड़ता है; मनुष्य सौर किरण द्वारा अमरत्व प्राप्त करता है; वह जो स्पष्ट मक्खन का गुप्त नाम है वह देवताओं की जीभ है, अमृत की नाभि है।
ऊर्मि :: छोटी लहर, प्रवाह, बहाव, तरंग, हल्की लहर, वेग, किरण-प्रकाश की रश्मि; small wave, flow.
The sweet water swells up from the sky-space; by virtue of the rays of Sun and the humans attain immortality. The secret name of Ghee-clarified butter constitute the tongue of the demigods-deities and it form the navel of nectar-ambrosia.
Small waves arise in the ocean sweetened by honey. Rays of light emerge from fire, Adity-Sun, the lower segment of the cows inducing immortality in the humans. Ghee obtained from the cows is the basis of nectar licked by the demigods-deities.
वयं नाम प्र ब्रवामा घृतस्यास्मिन्मज्ञे धारयामा नमोभिः।
उप ब्रह्मा शृणवच्छस्यमानं चतुःशृङ्गोऽवमीद्गौर एतत्॥
हम उस याजक घृत की प्रशंसा करते हैं। इस यज्ञ में नमस्कार द्वारा उसे धारित करते हैं। ब्रह्माजी इस प्रार्थना को श्रवण करें। वेद चतुष्टय रूप शृङ्ग विशिष्ट गौर वर्ण देव इस संसार का निर्वाह करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.2]
हम इस यज्ञ-हवन, अग्निहोत्र में घी की प्रशंसा करते हुए उसे धारण करते हैं। चार रूपों वाले वेद और गौर वर्ण देवता ऐसे धारण करते हैं। ब्रह्मा जी हमारी प्रार्थना स्वीकार करें।
We celebrate the name Ghee at this sacrifice, we offer it with adoration. Let the Veds in the form of fair coloured demigods-deities nurture-support the universe. Let Brahma Ji endorse our prayers.
We appreciate the Ghee and accept it in the Yagy. Let Brahma Ji listen to our prayer. The four Veds support the universe in the form of fair coloured demigods-deities.
चत्वारि शृङ्गा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मत्य आ विवेश॥
इस यज्ञात्मक अग्नि के चार शृङ्ग हैं अर्थात् शृङ्ग स्थानीय चार देव हैं। इसे सवन स्वरूप तीन पाद हैं। ब्रह्मोदन एवं प्रवग्य स्वरूप दो मस्तक हैं। छन्द स्वरूप सात हाथ हैं। ये अभीष्ट वर्षी हैं। ये मंत्र, कल्प एवं ब्राह्मण द्वारा तीन प्रकार से बद्ध हैं। ये अत्यन्त शब्द करते हैं। वे महान देव मर्त्यों के बीच में प्रवेश करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.3]
The holy-sacred fire of the Yagy has 4 elevations-horns-demigods. The three segments of the day are its legs. It has two heads, seven arms in the form of hymns-stanzas. They grant accomplishments and are tied-associated with Mantr, Kalp & the Brahman. They produce enormous sound. The great deity enters the perishables.
त्रिधा हितं पणिभिर्गुह्यमानं गवि देवासो घृतमन्वविन्दन्।
इन्द्र एकं सूर्य एकं जजान वेनादेकं स्वधया निष्टतक्षुः॥
प्राणियों ने गौओं के बीच में तीन प्रकार के दीप्त पदार्थों (क्षीर, दधि और घृत) को छिपाकर रखा। देवों ने उन्हें प्राप्त किया। इन्द्र देव ने एक क्षीर को उत्पन्न किया तथा सूर्य ने भी एक को उत्पन्न किया। देवों ने कान्तिमान् अग्नि या गमनशील वायु को निकट से अन्न द्वारा और एक पदार्थ घृत को निष्पन्न किया।[ऋग्वेद 4.58.4]
क्षीर :: दूध, खीर, किसी वृक्ष आदि का सफ़ेद रस, कोई तरल पदार्थ, जल; latex.
The cows have three divine objects :- milk, curd and Ghee. The demigods-deities obtained them. Indr Dev created one kind of milk-sap, latex followed by another by the Sun. The aurous demigods evolved fire, air, food grains & the ghee.
एता अर्षन्ति ह्यद्यात्समुद्राच्छतव्रजा रिपुणा नावचक्षे।
घृतस्य धारा अभि चाकशीमि हिरण्ययो वेतसो मध्य आसाम्॥
अपरिमित गति विशिष्ट यह जल हृदयङ्गम अन्तरिक्ष से अधोदेश में प्रवाहित होता है। प्रतिबन्धकारी शत्रु उसे नहीं देख सकते। उस सकल घृत धारा को हम देख सकते हैं। इसके बीच में अग्नि को भी देख सकते हैं।[ऋग्वेद 4.58.5]
The Ghee (sap-water) flow from the space to the earth unseen-undetected by the enemy. We can see the flowing Ghee and the fire in it.
सम्यक्त्रवन्ति सरितो न धेना अन्तहृदा मनसा पूयमानाः।
एते अर्षन्त्यूर्मयों घृतस्य मृगा इव क्षिपणोरीषमाणाः॥
घृत की धारा प्रीति प्रद नदी के तुल्य क्षरित होती है। यह सकल जल हृदय मध्यगत चित्त के द्वारा पूत होता है। घृत की ऊर्मि प्रवाहित होती है। जैसे शिकारी के पास से मृग भाग जाता है।[ऋग्वेद 4.58.6]
घृत की धारा प्रीति प्रद नदियों की तरह निर्बाध रूप से बहती हैं, जो हृदय में विराजमान मन से शुद्ध होती हैं; घी की ये धाराएँ (आग पर) उतरती हैं, जैसे हिरण शिकारी से उड़ता है।
The current of Ghee appears like the dear-lovely river, purified-cleansed by the innerself. The waves formed by the Ghee flow like the deer who escape the hunter.
सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातुप्रमियः पतयन्ति यह्वाः।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः॥
नदी का जल जिस प्रकार नीचे की ओर शीघ्र गमन करता है, उसी प्रकार वायु के तुल्य वेग शालिनी होकर महती घृत-धारा द्रुत वेग से गमन करती है। यह धृत राशि परीधि भेद करके ऊर्मि द्वारा वर्द्धित होती है, जिस प्रकार से गर्ववान अश्व गमन करता है।[ऋग्वेद 4.58.7]
The way the water in the river flow in the down ward direction quickly, strong current of Ghee flow at a very fast speed just like the air. It moves like the waves and horses, breaking barriers.
अभि प्रवन्त समनेव योषाः कल्याण्य १: स्मयमानासो अग्निम्।
घृतस्य धाराः समिधो नसन्त ता जुषाणो हर्यति जातवेदाः॥
कल्याणी और हँसने वाली स्त्री जिस प्रकार से एक चित्त होकर पति के प्रति आसक्त होती है, उसी प्रकार घृत धारा अग्नि देव के प्रति गमन करती है, वह सम्यक् रूप से दीप्ति प्रद होकर सभी जगह व्याप्त होती है। जातवेदा हर्षित होकर इस सकल धाराओं की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.8]
कल्याणी :: कल्याण या मंगल करनेवाली, भाग्य शालिनी, रूपवती, सुन्दरी, कामधेनु, गाय, गौ, एक देवी का नाम, माषपर्णी
The way-manner in which a devoted and smiling wife is attached-attracted towards her husband, the current of Ghee bows-assimilate in Agni Dev, glow uniformly and illuminate all places. Agni Dev pleased-happy with it, desires to have its all currents.
कन्याइव वहतुमेतवा उ अञ्ज्यञ्जाना अभि चाकशीमि।
यत्र सोमः सूयते यत्र यज्ञो घृतस्य धारा अभि तत्पवन्ते॥
कन्या (अनूढ़ा बालिका) जिस प्रकार से पति के निकट जाने के लिए अलंकृत होती है, हम देखते हैं, यह सकल घृत धारा उसी प्रकार से करती है। जिस स्थल में सोमरस अभिषुत होता है अथवा जिसके स्थल में यज्ञ विस्तीर्ण होता है, उसी को लक्ष्य कर वह धारा गमन करती है।[ऋग्वेद 4.58.9]
The current of Ghee behaves like a newly wed girl to accompany her husband, the entire Ghee current behaves similarly. The Ghee current moves to the place where Somras is extracted and the Yagy is conducted.
अभ्यर्षत सुष्टुतिं गव्यमाजिमस्मासु भद्रा द्रविणानि धत्त।
इमं यज्ञं नयत देवता नो घृतस्य धारा मधुमत्पवन्ते॥
हे हमारे ऋत्विकों! गौओं के निकट आगमन करें, उनकी शोभन प्रार्थना करें। हम याजकों के लिए वह प्रार्थना योग्य धन धारित करें। हमारे इस यज्ञ को देवों के निकट ले जावें। घृत की धारा मधुर भाव से गमन करती है।[ऋग्वेद 4.58.10]
Hey Ritviz! Move close to the cows and pray-worship them. Let these prayers grant us wealth and make our Yagy close to the demigods-deities. The current of Ghee flow to the Yagy happily.
धामन्ते विश्वं भुवनमधि श्रितमन्तः समुद्रे हृद्य १ न्तरायुषि।
अपामनीके समिथे य आभृतस्तमश्याम मधुमन्तं त ऊर्मिम्॥
आपका तेज समुद्र के बीच में वड़वाग्नि रूप से, अन्तरिक्ष के बीच में सूर्य मण्डल रूप से, हृदय के मध्य में वैश्वानर रूप से, अन्न में आहार रूप से, जल समूह में विद्युत रूप से और संग्राम में शौर्याग्नि रूप से विद्यमान है। समस्त लोक आपके आश्रित हैं। उसमें जो घृत रूप रस स्थापित हुआ है, उस मधुर रस को हम प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.11]
Your energy is embedded in the ocean as Vadvagni, as Vaeshwanar in the heart of the solar system, as food in the food grains, as electricity in the water and bravery-valour in the war-battle. All abodes are dependent upon you. The Ghee established-present in them is required-desired by us.
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (81) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- सविता, छन्द :- जगती।
युञ्जते मन उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः।
वि होत्रा दधे वयुनाविदेक इन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः॥
हे ऋत्विक्! यजमान लोग अपने मन को सब कर्मों में लगाते हैं। मेधावी, महान और स्तुति-योग्य सविता की आज्ञा से यज्ञकार्य में निविष्ट होते हैं। सविता देव की प्रार्थना अत्यन्त प्रभूत है।[ऋग्वेद 5.81.1]
Hey Ritviz! The hosts-household devote themselves to their jobs, work, endeavours. They perform Yagy under directions-orders of the intelligent, great and worshipable Savita Dev. Worship of Savita yields ample-abundant desired goods-riches.
विश्वा रूपाणि प्रतिमुञ्चते कविः प्रासावीद्भद्रं द्विपदे चतुष्पदे।
वि नाकमख्यत्सविता वरेण्योऽनु प्रयाणमुषसो वि राजति॥
मेधावी सविता देव स्वयं सम्पूर्ण रूप धारित करते हैं। वे मनुष्यों या पशुओं के गमनादि विषयक कल्याण को जानते हैं। सभी के प्रेरक रमणीय सविता देव स्वर्ग को प्रकाशित करते हैं। वे उषा उदित होने के पश्चात् प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 5.81.2]
Intelligent-wise Savita Dev shows grand exposure. He is aware of the welfare-benefits of humans & animals movements. All inspiring, adorable Savita Dev illuminate heavens. He rises after Usha-dawn.
यस्य प्रयाणमन्वन्य इद्ययुर्देवा देवस्य महिमानमोजसा।
यः पार्थिवानि विममे स एतशो रजांसि देवः सविता महित्वना॥
अग्नि आदि अन्यान्य देवगण द्युतिमान् सविता देव का अनुगमन करके महिमा और बल प्राप्त करते हैं अर्थात् सूर्य के उदय होने पर ही अग्नि होत्रादि कार्य होता है। जो सविता देव अपने माहात्म्य पृथिव्यादि लोक को परिच्छिन्न करते हैं, वे देव अत्यन्त शोभायमान हैं।[ऋग्वेद 5.81.3]
Agni Dev and several other demigods-deities follow aurous-shinning Savita Dev and attain glory & might. Agni Hotr, prayers, Hawan etc. are performed only after the Sun rise. Savita Dev illuminate the various abodes, including earth, displaying his grandeur.
उत यासि सवितस्त्रीणि रोचनोत सूर्यस्य रश्मिभिः समुच्यसि।
उत रात्रीमुभयतः परीयस उत मित्रो भवसि देव धर्मभिः॥
हे सविता देव! रोचमान तीनों लोकों में आप आगमन करते हैं और सूर्य की किरणों से मिलित होते हैं, आप रात्रि के दोनों छोरों को प्रभावित करके परिगमन करते हैं। हे सविता देव! आप जगद्धारक कर्म द्वारा मित्र नामक देव होते हैं।[ऋग्वेद 5.81.4]
Hey Savita Dev! You visit the three abodes possessing grandeur illuminating them with your rays. You affect the two ends of night while revolving. Hey Savita Dev! You possess the title "Mitr" Dev as as a protector of the world.
उतेशिषे प्रसवस्य त्वमेक इदुत पूषा भवसि देव यामभिः।
उतेदं विश्वं भुवनं वि राजसि श्यावाश्वस्ते सवितः स्तोममानशे॥
हे सविता देव! अकेले आप ही समस्त उत्पन्न संसार के अधिश्वर हैं। आप अपनी गमन सामर्थ्य से संसार के पोषणकर्ता हैं। आप संपूर्ण लोकों में विशिष्ट रूप से देदीप्यमान हैं। हे सविता देव! श्याश्च ऋषि आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.81.5]
hey Savita Dev! You alone is the Lord of the universe. You nourish-nurture the universe-world due to your ability to revolve. You are illuminated in all abodes. Hey Savita Dev! Syashrach Rishi worship-pray you.(15.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (82) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय; देवता :- सविता; छन्द :- अनुष्टुप्, गायत्री।
तत्सवितुर्वृणीमहे वयं देवस्य भोजनम्।
श्रेष्ठं सर्वघातमं तुरं भगस्य धीमहि॥
हम लोग सविता देव से प्रसिद्ध और भोग योग्य धन के लिए प्रार्थना करते हैं। सविता देव से हम भग के निकट से श्रेष्ठ, सर्वभोग प्रद और शत्रु संहारक धन प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.82.1]
We pray to Savita Dev to grant famous and consumable wealth. Let us receive such wealth from Savita Dev, in proximity of Bhag Rishi, which is excellent, useful and capable of destroying the enemy.
अस्य हि स्वयशस्तरं सवितुः कच्चन प्रियम्। न मिनन्ति स्वराज्यम्॥
सविता देव के स्वयं धारित, सर्वप्रिय और राजमान ऐश्वर्य को कोई असुर आदि भी नष्ट नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 5.82.2]
The Godly grandeur, adorable can not be destroyed by the demons etc.
स हि रत्नानि दाशुषे सुवाति सविता भगः। तं भागं चित्रमीमहे॥
वह सविता और भजनीय भगदेव हम हव्य दाता को रमणीय धन प्रदान करते हैं। हम उस भजनीय भगदेव से रमणीय धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.3]
रमणीय :: सुखद, ख़ुशगवार, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला, मनोरम, सुहावना, ललित, आनंदकर; delectable, delightful, enjoyable.
Savita Dev and Bhag Dev grant adorable wealth to those who make offering-oblations for them. We pray-request Bhag Dev to grant us delightful goods-possessions.
अद्या नो देव सवितः प्रजावत्सावीः सौभगम्। परा दुःष्वप्न्यं सुव॥
हे सविता देव! आज के यज्ञ दिन में आप हम लोगों को पुत्रादि से युक्त सौभाग्य (धन) प्रदान करें एवं दुःख देने वाले स्वप्नों के तरह दरिद्रता को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 5.82.4]
Hey Savita Dev! On this day of Yagy, grant us sons, wealth and eliminate the poverty away from us.
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव। यद्भद्रं तन्न आ सुव॥
हे सविता देव! आप हम लोगों के समस्त अमंगल को दूर करें एवं प्रजा, पशु और गृहादि रूप कल्याण को हम लोगों के अभिमुख प्रेरित करें।[ऋग्वेद 5.82.5]
Hey Savita Dev! Eliminate the all sorts of inauspiciousness and direct the welfare means pertaining to populace, cattle-animals and houses to us.
अनागसो अदितये देवस्य सवितुः सवे। विश्वा वामानि धीमहि॥
हम अनुष्ठान करने वाले प्रेरक सविता देव की आज्ञा से अखण्डनीया देवी अदिति के निकट निरपराधी हों। हम सम्पूर्ण रमणीय या वाञ्छित धन धारित करें।[ऋग्वेद 5.82.6]
अनुष्ठान :: समारोह, संस्कार, अनुष्ठान, विधि, रसम, धर्मक्रिया, धार्मिक उत्सव, आचार, आतिथ्य सत्कार, संस्कार, धार्मिक क्रिया, धार्मिक संस्कार, पद्धति, शास्रविधि; rituals, rite, ceremony.
By virtue of the orders-directives from inspiring Savita Dev towards this Yagy-ceremony; we should be free from criminality in front of Devi Aditi. Let us have adorable-desirable wealth.
आ विश्वदेवं सत्पतिं सूक्तैरद्या वृणीमहे। सत्यसवं सवितारम्॥
आज हम लोग इस यज्ञ दिन में स्तोत्रों के द्वारा सर्वदेव स्वरूप अनुष्ठाताओं के पालक और सत्य शासक या रक्षक सविता देव का संभजन करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.7]
On this of Yagy, we worship-pray Savita Dev; the truthful Lord and our protector, with the help of Strotrs-sacred hymns.
य इमे उभे अहनी पुर एत्यप्रयुच्छन्। स्वाधीर्देवः सविता॥
जो सविता देव भली-भाँति से ध्यान करने योग्य हैं या सुन्दर कर्म वाले हैं। जो अप्रमत्त होकर दिन और रात के पुरोभाग में गमन करते हैं, उन सविता देव का हम इस यज्ञ दिन में सूक्तों के द्वारा उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.8]
We worship-pray Savita Dev who perform great deeds, revolve day & night untired, deserve to be concentrated properly and perform.
य इमा विश्वा जातान्याश्रावयति श्लोकेन। प्र च सुवाति सविता॥
जो सविता देव समस्त उत्पन्न प्राणियों के निकट यश सुनाते हैं, जो सब प्राणियों को प्रेरित करते हैं, उन सविता देव का इस यज्ञ दिन में हम सूक्तों के द्वारा संभजन अथवा उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.9]
We worship-pray Savita Dev on this day of Yagy with the help of Strotrs, who inspires all living organism & who's glory is narrated to all the evolved beings.(16.08.2023)
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)