Monday, November 13, 2023

SHIELD, ARROW, CHARIOTEER, CHAROITE वर्म, धनु, सारथि, रथादि (RIG VED ऋग्वेद 6)

OM
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- पायु भरद्वाज; देवता :- वर्म, धनु, सारथि, रथादि; छन्द :- त्रिष्टुप् जगती, अनुष्टुप् पंक्ति।
जीमूतस्येव भवति प्रतीकं यद्वर्मी याति समदामुपस्थे।
अनाविद्धया तन्वा जय त्वं स त्वा वर्मणो महिमा पिपर्तु
युद्ध प्रारम्भ हो जाने पर जब राजा जिस समय लौहमय कवच पहन कर जाता है, समय मालूम पड़ता है कि यह साक्षात् मेघ हैं। राजन् अविद्ध शरीर रहकर विजय प्राप्त करें। उस कवच की महान शक्ति आपकी रक्षा करे।[ऋग्वेद 6.75.1]
When the king wear the iron shield over his chest and come to the battle field, he appears like clouds. Let the king attain victory without being pierced by the arrows. Let the power of great shield protect him.
धन्वना गा धन्वनाजिं जयेम धन्वना तीव्राः समदो जयेम।
धनुः शत्रोरपकामं कृणोति धन्वना सर्वाः प्रदिशो जयेम
हम धनुष के द्वारा शत्रुओं की गौवों को जीतेंगे, युद्ध जीतेंगे और मदोन्मत्त शत्रुओं के सेना का वध करेंगे। शत्रुओं की अभिलाषा धनुष से नष्ट करेंगे। हम इस धनुष से समस्त दिशाओं में स्थित शत्रुओं का विनाश करेंगे।[ऋग्वेद 6.75.2]
We will win the cows of the enemy with the power of the bow and kill their intoxicated armies. We will destroy the ambitions of the enemy with the bow. We will destroy the enemies with the bow in all directions. 
वक्ष्यन्तीवेदा गनीगन्ति कर्णं प्रियं सखायं परिषस्वजाना।
योषेव शिङ्क्ते वितताधि धन्वञ्ज्या इयं समने पारयन्ती
धनुष की यह ज्या युद्ध बेला में युद्ध से पार ले जाने की इच्छा करके मानो प्रिय वचन बोलने के लिए ही धनुर्धारी के कान के पास आती है। जिस प्रकार से स्त्री प्रिय पति का आलिङ्गन करके बात करती है, उसी प्रकार यह ज्या भी बाण का आलिङ्गन करके ही शब्द करती है।[ऋग्वेद 6.75.3]
The cord of the bow reach the ears of the archer during the war, as if it wants to speak lovely words to him. The way a wife embrace her husband; this cord too embrace the arrow and make sound.
ते आचरन्ती समनेव योषा मातेव पुत्रं बिभृतामुपस्थे।
अप शत्रून्विध्यतां संविदाने र्त्नी इमे विष्फुरन्ती अमित्रान्
वे दोनों कोटियाँ अन्य मनस्का स्त्री की तरह आचरण करके शत्रुओं के ऊपर आक्रमण करते समय माता की तरह पुत्र तुल्य राजा की रक्षा करती हैं और अपने कार्य को भली-भाँति जानकर जाते हुए इस राजा के द्वेषी शत्रुओं का वेधन करती हैं।[ऋग्वेद 6.75.4]
Both these items (bow & arrow) behave like a woman inclined to some one else, behaves like a mother and protect the king like a son, understanding fully well its job and pierce the envious enemies.
बह्वीनां पिता बहुरस्य पुत्रश्चिश्चा कृणोति समनावगत्य।
इषुधिः सङ्काः पृतनाश्च सर्वाः पृष्ठे निनद्धो जयति प्रसूतः
यह तूणीर अनेक बाणों का पिता है। कितने ही बाण इसके पुत्र हैं। बाण निकालने के समय यह तूणीर “त्रिश्वा" शब्द करता है। यह योद्धा के पृष्ठ देश में निबद्ध रहकर युद्धकाल में बाणों का प्रसव करता हुआ समस्त सेना को जीत लेता है।[ऋग्वेद 6.75.5]
This quiver is the father of several arrows. Many arrows are its son. Quiver makes the sound trishrava while taking the arrow out of it. It stays over the back of the warrior and during the war it evolves the arrows and wins the whole army.
रथे तिष्ठन्नयति वाजिनः पुरो यत्रयत्र कामयते सुषारथिः।
अभीशूनां महिमानं पनायत मनः पश्चादनु यच्छन्ति रश्मयः
सुन्दर सारथि रथ में अवस्थान करके आगे के घोड़ों को जहाँ इच्छा होती है, वहाँ ले जाता है। रस्सियाँ अश्वों के तक फैल कर और अश्वों के पीछे फैलकर सारथि के मन के अनुकूल नियुक्त होती हैं।[ऋग्वेद 6.75.6]
The charioteer deploy the horses and takes the charoite as per his wish. Reins extend till the gorge of the mouth of the horse and fixed as per need of the charioteer.
तीव्रान् घोषान् कृण्वते वृषपाणयोऽश्वा रथेभिः सह वाजयन्तः।
अवक्रामन्तः प्रपदैरमित्रान् क्षिणन्ति शत्रूंरनपव्ययन्तः
अश्व टापों से धूल उड़ाते हुए और रथ के साथ संवेग जाते हुए हिनहिनाते हैं तथा पलायन न करके हिंसक शत्रुओं को टापों-खुरों से पीटते हैं।[ऋग्वेद 6.75.7]
The horses raise dust and neigh running with speed and attack the enemies with their hoofs.
रथवाहनं हविरस्य नाम यत्रायुधं निहितमस्य वर्म।
तत्रा रथमुप शग्मं सदेम विश्वाहा वयं सुमनस्यमानाः
जिस प्रकार से हव्य अग्नि को बढ़ाता है, उसी प्रकार इस राजा के रथ द्वारा वहन किया जाने वाला धन इसे वर्द्धित करे। रथ पर इस राजा के अस्त्र, कवच आदि रहते हैं। हम सदा प्रसन्नचित्त से उस सुखावह रथ के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 6.75.8]
The manner in which offerings raise the fire, the wealth carried in the charoite make the king prosper. The charoite carries the shield and weapons of the king. We approach the comfortable-blissful charoite happily.
स्वादुषंसदः पितरो वयोधाः कृच्छ्रश्रितः शक्तीवन्तो गभीराः।
चित्रसेना इषुबला अमृध्राः सतोवीरा उरवो व्रातसाहाः
रथ के रक्षक शत्रुओं के सुस्वादु अन्न को नष्ट करके अपने पक्ष के लोगों को अन्न प्रदान करते हैं। विपत्ति के समय इनका आश्रय लिया जाता है। ये शक्तिमान, गंभीर, विचित्र सेना से युक्त, बाण बल सम्पन्न अहिंसक, वीर, महान और अनेक शत्रुओं को जीतने में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 6.75.9]
Protectors of the charoite destroy the tasty food of the enemy and grant food grains to the people on their side. Asylum is sought under them during calamity-disaster. They are mighty, serious, possess amazing armies, have the power of arrows, brave, great and capable of winning the enemy.
ब्राह्मणासः पितरः सोम्यासः शिवे नो द्यावापृथिवी अनेहसा।
पूषा नः पातु दुरिताद् ऋतावृधो रक्षा माकिर्नो अघशंस ईशत
हे ब्राह्मणो, पितरों और यज्ञ वर्द्धक सोम सम्पादक! आप हमारी रक्षा करें। पाप शून्या द्यावा-पृथ्वी हमारे लिए सुखकारी हों। पूषा हमें पाप से बचावें। हमारा पापी शत्रु अपना प्रभुत्व स्थापित न करने पावे।[ऋग्वेद 6.75.10]
Hey Brahmans, Manes and promotor of the Yagy, Som! Protect us. Let the sinless earth & heavens comfortable to us. Let Pusha save us from sins. The sinful enemy should not be able to impose his dominion.
सुपर्णं वस्ते मृगो अस्या दन्तो गोभिः संनद्धा पतति प्रसूता।
यत्रा नरः सं च वि च द्रवन्ति तत्रास्मभ्यमिषवः शर्म यंसन्
बाण शोभन पंख धारित करता है। इसका दाँत मृगश्रृंग है। यह ज्या अथवा गोचर्म से अच्छी तरह बद्ध है। यह प्रेरित होकर पतित होता है। जहाँ मनुष्य एकत्र या पृथकरूप से विचरण करते हैं, वहाँ यह बाण हमें शरण प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.75.11]
The arrows have feathers. Its teeth are made of deer's horns. Its covered with cow skin. It strikes on being aimed. Let the arrows grant us shelter, where the people gather or roam separately.
ऋजीते परि वृङ्धि नोऽश्मा भवतु नस्तनूः।
सोमो अधि ब्रवीतु नोऽदितिः शर्म यच्छतु
बाण हमें परिवर्द्धित करें। हमारा शरीर पाषाण के समान है। सोमदेव हमें उत्साहित करें और देवमाता अदिति हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.75.12]
Let arrows enhance-boost us. Our bodies are like the rocks. Let Som Dev encourage us and Dev Mata Aditi grant us pleasure.
आ जङ्घन्ति सान्वेषां जघनाँ उप जिघ्नते।
अश्वाजनि प्रचेतसोऽश्वान्त्समत्सु चोदय
कशा (चाबुक), प्रकृष्ट ज्ञानी सारथि लोग आपके द्वारा अश्वों के उरु और जघन में मारते हैं। संग्राम में आप अश्वों को प्रेरित करें।[ऋग्वेद 6.75.13]
The trained charioteer strike the femur and thigh with whip. Encourage the horses in the battle-war.
अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्पुमान्पुमांसं परि पातु विश्वतः
हस्तघ्न ज्या के आघात का निवारण करता हुआ सर्प के सदृश शरीर के द्वारा प्रकोष्ठ को परिवेष्टित करता है, समस्त ज्ञातव्य विषयों को जानता है और पौरुषशाली होकर चारों ओर से रक्षण करता है।[ऋग्वेद 6.75.14]
The ward of the fore-arm protect it from the abrasion of the bow-string, surrounds the arm like a snake with its convolutions. Let the brave man, expert in warfare, defend a combatant all from four directions.
आलाक्ता या ररुशीष्र्ण्यथो यस्या अयो मुखम्।
इदं पर्जन्यरेतस इष्वै देव्यै बृहन्नमः
जो विषाक्त है, जिसका अग्रभाग हिंसक और और जिसका मुख लौहमय है, उसी पर्जन्य से उत्पन्न विशाल बाण देवता को हमारा नमस्कार है।[ऋग्वेद 6.75.15]
We salute Parjany out of whom the large deity Van-arrow appear, which is poisonous, with harmful tips & iron mouthed.
अवसृष्टा परा पत शरव्ये ब्रह्मसंशिते।
गच्छामित्रान्प्र पद्यस्व मामीषां कं चनोच्छिषः
मंत्र प्रयोग से तीक्ष्ण किए गए हे बाण रूप अस्त्र! हमारे द्वारा छोड़े जाने पर आप शत्रुओं की सेना पर एक साथ प्रहार करें। उनके शरीर में प्रविष्ट होकर आप सभी का सर्वनाश करें और शत्रुओं को जीवित न छोड़े।[ऋग्वेद 6.75.16]
Sharpened with Mantr Shakti, hey weapon in the form of arrow! Strike the enemy on being shot by us. Pierce their bodies and destroy them all.
यत्र बाणाः संपतन्ति कुमारा विशिखाइव।
तत्रा नो ब्रह्मणस्पतिरदितिः शर्म यच्छतु विश्वाहा शर्म यच्छतु
मुण्डित कुमारों की तरह जिस युद्ध में बाण गिरते हैं, उसमें हमें ब्रह्मण स्पति और माता अदिति सुख प्रदान कर हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 6.75.17]
Let Brahman Spati and Mata Aditi grant us comforts-pleasure and benefit us the manner in which the arrows fall in the war like the shaved heads.
मर्माणि ते वर्मणा छादयामि सोमस्त्वा राजामृतेनानु वस्ताम्।
उरोर्वरीयो वरुणस्ते कृणोतु जयन्तं त्वानु देवा मदन्तु
हे राजन्! आपके शरीर के मर्मस्थानों को कवच से आच्छादित कर रहा हूँ। सोम राजा आपको अमृत द्वारा आच्छादित करें, वरुण देव आपको श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठतम सुख प्रदान करें। आपके विजयी होने पर देवगण हर्षित होवें।[ऋग्वेद 6.75.18]
Hey king! I am covering your sensitive organs with the shield. Let Som Dev cover you with elixir-nectar & Varun Dev grant you excellent pleasures. Let the demigods-deities become happy with your victory.
यो नः स्वो अरणो यश्च निष्ट्यो जिघांसति।
देवास्तं सर्वे धूर्वन्तु ब्रह्म वर्म ममान्तरम्
जो कुटुम्बी हमारे प्रति प्रसन्न न होकर जो हमसे अलग रहकर हमारे वध की इच्छा रखते हैं, उन्हें सभी देवता गण नष्ट कर दें। हमारे लिए तो वेदमन्त्र ही बाण निवारक कवच है।[ऋग्वेद 6.75.19]
Let the demigods-deities destroy the people of our clan, who separate from us and wish to kill us.  Let the Ved Mantr be protective to us from arrows like a shield.(13.11.2023)
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)