Wednesday, February 18, 2015

VAJ, RIBHU & VIBHU GAN वाज़, ऋभु और विभु गण :: त्वष्टा (2) [RIG VED ऋग्वेद 1-4]*

VAJ, RIBHU & VIBHU GAN
वाज़, ऋभु और विभु गण
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋभु, विभु व वाज यह तीन सुधन्वा आङ्गिरस के मानव योनि में पुत्र हैं और त्वष्टा के शिष्य बनकर तक्षण की शिक्षा ग्रहण करते हैं। उन्होंने कठिन साधना से उन्होंने देवत्व की उपलब्धि प्राप्त की। ऋषिगण उनकी स्तुति करते हैं।[बृहद्देवता 3.83, सायण]
यास्क के निरुक्त 11.15 में ऋभुओं की निरुक्ति उरु भान्ति या ऋतेन भान्ति या ऋतेन भवन्ति के रूप में की गई है। इसी स्थान पर आदित्य रश्मियों को भी ऋभव: कहा गया है। इस निरुक्ति से संकेत मिलता है कि ऋभुओं का अधिकार ऋत् पर है, सत्य पर नहीं। किसी सत्य का मर्त्य स्तर पर साक्षात्कार करना ऋत् कहलाता है। 
अथर्ववेद 20.127.4 के आधार पर इसे शकुन विद्या कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में सभी को विभिन्न रूपों में शकुन-अपशकुन होते हैं। जिस प्रकार पके हुए वृक्ष पर शकुन पक्षी बोलता है, उसी प्रकार रेभ का वाचन करो। अतः  शकुन के सत्य होने के लिए यह आवश्यक है कि वृक्ष पूर्ण विकसित हो। रेभ वैदिक साहित्य का सार्वत्रिक शब्द है और यह ऋभु से सम्बन्धित हो सकता है।
त्वष्टा ने एक चमस पात्र का निर्माण किया था। अग्निदेव ने देवताओं को दूत के रूप में जाकर उन तीनों से कहा कि एक चमस पात्र से चार चमस बना दें। उन्होंने स्वीकार कर लिया तथा चार चमस बना दिये। फलस्वरूप तीसरे सवन में स्वधा के अधिकारी हुए। उन्हें सोमपान का अधिकार प्राप्त हुआ तथा देवताओं में उनकी गणना होने लगी। उन्होंने अमरत्व प्राप्त किया।
सुधन्वा पुत्रों में से कनिष्ठ बाज देवताओं से, मध्यम बिंबन वरुण से ज्येष्ठ ऋभुगण देवराज इन्द्र  से सम्बन्धित हुए। 
उन्होंने अपने वृद्ध माता-पिता को पुन: युवा बना दिया। अश्विनी कुमारों के लिए तीन आसनों वाला रथ बनवाया, जो अश्व के बिना चलता था। देवराज इन्द्र के लिए रथ का निर्माण किया। देवताओं के लिए दृढ़ कवच बनाया तथा अनेक आयुधों का निर्माण भी किया।
अग्नि वसु आदि देवतागण ऋभुओं के साथ सोमपान नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें मनुष्य की गंध से डर लगता था। सविता तथा प्रजापति (ऋभुओं के दोनों पार्श्व में विद्यमान रहकर) उनके साथ सोमपान करते थे। 
ऋभुओं को स्तोत्र देवता नहीं माना गया है, यद्यपि प्रजापति ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया था।
ऋभु शब्द का सोमयाग में सायं सवन या तृतीय सवन को आर्भव पवमान कहा जाता है। आर्भव पवमान में सामवेद के स्तोत्रों में ऋभुओं की स्तुति कहीं नहीं की गई। ऐतरेय ब्राह्मण 6.12 में इसका वर्णन है। बृह द्देवता 3.83 तथा सायण के अनुसार ऋभु, विभु व वाज यह तीन सुधन्वा आङ्गिरस के पुत्र हैं, नर हैं और त्वष्टा के शिष्य बनकर तक्षण की शिक्षा ग्रहण करते हैं। ऋभु सूक्तों के देवता भी हैं, जिनकी ऋषि स्तुति करते हैं। ऋग्वेद के सूक्त 1.20, 1.110-111, 1.161, 3.60. 4.33-37, 7.48 और 10.76.1 में ऋभुओं की स्तुति की गई है। देवताओं ने ऋभुओं के साथ सोमपान करने को हीन कर्म माना, लेकिन फिर वह इस शर्त पर राजी हो गए कि ऋभुओं के दोनों ओर प्रजापति बैठेंगे, तभी देवता उनके साथ सोमपान करेंगे। चूंकि ऋभुगण नर से देव बने हैं।[ऐतरेय ब्राह्मण 3.30]
ऋभुओं की निरुक्ति उरु भान्ति या ऋतेन भान्ति या ऋतेन भवन्ति के रूप में की गई है । इसी स्थान पर आदित्य रश्मियों को भी ऋभव: कहा गया है। इस निरुक्ति से संकेत मिलता है कि ऋभुओं का अधिकार ऋत् पर है, सत्य पर नहीं। किसी सत्य का मर्त्य स्तर पर साक्षात्कार करना ऋत् कहलाता है, जैसे जैन तीर्थङ्कर महावीर ने अपनी प्रज्ञा को विकसित किया कि आज का भोजन कहाँ प्राप्त करना है, आदि।[यास्क निरुक्त 11.15]
इसे शकुन विद्या कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में सभी को विभिन्न रूपों में शकुन-अपशकुन होते हैं। लेकिन अथर्ववेद के उपरोक्त संदर्भ में उल्लेख है कि जिस प्रकार पके हुए वृक्ष पर शकुन पक्षी बोलता है, उसी प्रकार रेभ का वाचन करो। यह संकेत करता है कि शकुन के सत्य होने के लिए यह आवश्यक है कि वृक्ष पका हुआ हो। रेभ वैदिक साहित्य का सार्वत्रिक शब्द है और यह ऋभु से सम्बन्धित हो सकता है  रिभि धातु धारणे अर्थ में कही गई है और टीकाकार ने इसे घर्षणे रूप में माना है जो धारण का उल्टा प्रतीत होता है। धारण तभी हो सकता है जब घर्षण न हो, परस्पर विरोध न हो।[अथर्ववेद 20.127.4]
सविता के साथ ऋभुओं का तादात्म्य है।[शतपथ ब्राह्मण 14.2.2.9, तैत्तिरीय आरण्यक 4.9.2, 5.7.11]
ऋक् व साम ही इन्द्र के हरि-द्वय हैं।[ऐतरेय ब्राह्मण 2.24, तैत्तिरीय ब्राह्मण 1.6.3.9]
ऋभु द्वारा शिष्य निदाघ को शिक्षा देने की कथा आती है। तैत्तिरीय आरण्यक में उल्लेख आता है कि ऋभु का सम्बन्ध शरद ऋतु से है, जिसमें पहली ऋतुओं से प्राप्त कष्टों का अन्त हो जाता है। निदाघ ग्रीष्म का, तपन का नाम है। जब इन्द्रियों को उनका स्वाभाविक भोजन प्राप्त न हो अथवा यदि समरसता न हो, घर्षण हो तो वे तपने लगती हैं। यह अनृत की अवस्था हो सकती है, जिसमें ऋत् का भरण ऋभु के माध्यम से हो सकता है। ऋभु द्वारा निदाघ से मिष्ट भोजन की माँग को सोम रूप अन्न की माँग के रूप में देखा जा सकता है। वाहन और वाहक के माध्यम से निदाघ को शिक्षा का परस्पर सम्बन्ध है। ऋभु व निदाघ की कथा का वाचन सौवीरराज की शिबिका को ढो रहे भरत कर रहे हैं। महाराज भरत ब्राह्मण जन्म में बेगार कर रहे हैं। ऋभुओं के बारे में भी ऋग्वेद 1.20.4 में ऐसा ही उल्लेख है। ऋभु शिबिका का वहन कर रहे हैं। महोपनिषद, वराहोपनिषद, अन्नपूर्णोपनिषद, तेजोबिन्दु उपनिषद ऋभु और निदाघ के वार्तालाप पर आधारित हैं।[नारद पुराण आदि]
ऋभव: की परिगणना पद नामानि तथा ऋभु की परिगणना मेधावि नामों के अन्तर्गत की गई है। दोनों ही शब्दों में ऋ अनुदात्त और भ उदात्त है। ऋभुक्षा को वैदिक निघण्टु में महन्नामों में रखा गया है, जिसमें ऋ तथा भ अनुदात्त हैं तथा क्ष उदात्त है। वैदिक मन्त्रों में प्रकट होने वाले एक शब्द ऋभ्व: में ऋ उदात्त है।[वैदिक निघण्टु]

ऋभु गण :: ऋभु, विभु व वाज यह तीन सुधन्वा आङ्गिरस के मानव योनि में पुत्र हैं और त्वष्टा के शिष्य बनकर तक्षण की शिक्षा ग्रहण करते हैं। उन्होंने कठिन साधना से उन्होंने देवत्व की उपलब्धि प्राप्त की। ऋषिगण उनकी स्तुति करते हैं।[बृहद्देवता 3.83, सायण]

ऋग्वेद के सूक्त 1.20, 1.110,  1.161,  3.60, 4.33-37,  7.48, 10.76.1 ऋभुओं की स्तुति में हैं।
शतपथ ब्राह्मण 14.2.2.9, तैत्तिरीय आरण्यक 4.9.2, 5.7.11, में सविता देव के साथ ऋभुओं का तादात्म्य कहा गया है।
यास्क के निरुक्त 11.15 में ऋभुओं की निरुक्ति उरु भान्ति या ऋतेन भान्ति या ऋतेन भवन्ति के रूप में की गई है। इसी स्थान पर आदित्य रश्मियों को भी ऋभव: कहा गया है। इस निरुक्ति से संकेत मिलता है कि ऋभुओं का अधिकार ऋत् पर है, सत्य पर नहीं। किसी सत्य का मर्त्य स्तर पर साक्षात्कार करना ऋत् कहलाता है।  
अथर्ववेद 20.127.4 के आधार पर इसे शकुन विद्या कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में सभी को विभिन्न रूपों में शकुन-अपशकुन होते हैं। जिस प्रकार पके हुए वृक्ष पर शकुन पक्षी बोलता है, उसी प्रकार रेभ का वाचन करो। अतः  शकुन के सत्य होने के लिए यह आवश्यक है कि वृक्ष पूर्ण विकसित हो। रेभ वैदिक साहित्य का सार्वत्रिक शब्द है और यह ऋभु से सम्बन्धित हो सकता है।
त्वष्टा ने एक चमस पात्र का निर्माण किया था। अग्निदेव ने देवताओं को दूत के रूप में जाकर उन तीनों से कहा कि एक चमस पात्र से चार चमस बना दें। उन्होंने स्वीकार कर लिया तथा चार चमस बना दिये। फलस्वरूप तीसरे सवन में स्वधा के अधिकारी हुए। उन्हें सोमपान का अधिकार प्राप्त हुआ तथा देवताओं में उनकी गणना होने लगी। उन्होंने अमरत्व प्राप्त किया।
सुधन्वा पुत्रों में से कनिष्ठ बाज देवताओं से, मध्यम बिंबन वरुण से ज्येष्ठ ऋभुगण देवराज इन्द्र  से सम्बन्धित हुए। 
उन्होंने अपने वृद्ध माता-पिता को पुन: युवा बना दिया। अश्विनी कुमारों के लिए तीन आसनों वाला रथ बनवाया, जो अश्व के बिना चलता था। देवराज इन्द्र के लिए रथ का निर्माण किया। देवताओं के लिए दृढ़ कवच बनाया तथा अनेक आयुधों का निर्माण भी किया।
अग्नि वसु आदि देवतागण ऋभुओं के साथ सोमपान नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें मनुष्य की गंध से डर लगता था। सविता तथा प्रजापति (ऋभुओं के दोनों पार्श्व में विद्यमान रहकर) उनके साथ सोमपान करते थे। 
ऋभुओं को स्तोत्र देवता नहीं माना गया है, यद्यपि प्रजापति ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया था। ऋभुओं को स्तोत्र देवता नहीं माना गया यद्यपि प्रजापति ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया था।
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 20 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व,  देवता :- ऋभुगण, छन्द :- गायत्री]
अयं देवाय जन्मने स्तोमो विप्रेभिरासया। अकारि रत्नधातमः॥
ऋभुदेवों के निमित्त ज्ञानियों ने अपने मुख से इन रमणीय स्तोत्रों की रचना की तथा उनका पाठ किया।[ऋग्वेद 1.20.1]
यह श्लोक विद्वानों ने ऋभु देवों के लिए रमणीक छन्द में रचित किया है। 
The enlightened-learned created these delightful-enjoyable Strotr-verses and recited them in the honour of Ribhu Devs.
य इन्द्राय वचोयुजा ततक्षुर्मनसा हरी। शमीभिर्यज्ञमाशत॥
जिन ऋभुदेवों ने अति कुशलतापूर्वक इन्द्रदेव के लिये वचन मात्र से नियोजित होकर चलने वाले अश्‍वों की रचना की, ये शमी आदि यज्ञ (यज्ञ पात्र-चमस एक प्रकार के पात्र का नाम है, जिसे भी देव भाव से सम्बोधित् किया गया है; अथवा पाप शमन करने वाले देवों) के साथ यज्ञ में सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 1.20.2]
जिन प्रभुओं ने अपने हृदय में इन्द्रदेव के संकल्प मात्र से जुत जाने वाले अश्वों की उत्पत्ति की, वे हमारे अनुष्ठान में स्वयं ही विद्यमान हैं।
The Ribhu Devs created the horses who moves just by listening to the words (order, directions) for Indr Dev with great expertise-skill, along with creating highly revered the pots called Chamas.
तक्षन्नासत्याभ्यां परिज्मानं सुखं रथम्। तक्षन्धेनुं सबर्दुघाम्॥
जिन ऋभुदेवों ने अश्‍विनी कुमारों के लिये अति सुखप्रद सर्वत्र गमनशील रथ का निर्माण किया और गौओं को उत्तम दूध देने वाली बनाया।[ऋग्वेद 1.20.3]
उन्होंने अश्विनी कुमारों के  लिए सुख प्रदान करने वाले रथ की उत्पत्ति की। दुग्ध रूप अमृत देने वाली गौओं को बनाया।
The Ribhu Devs created the extremely comfortable charoite for Ashwani Kumars and made the cows give high quality nourishing milk. 
युवाना पितरा पुनः सत्यमन्त्रा ऋजूयवः। ऋभवो विष्ट्यक्रत॥
अमोघ मन्त्र सामर्थ्य से युक्त, सर्वत्र व्याप्त रहने वाले ऋभुदेवों ने माता-पिता में स्नेहभाव संचरित कर उन्हें पुनः जवान बनाया।[ऋग्वेद 1.20.4]
[यहाँ जरावस्था दूर करने की मन्त्र विद्या का संकेत है।]
सत्याशय, सरल स्वभाव वाले स्नेही, निस्वार्थी ऋभुओं ने अपने माता-पिता को पुनः युवावस्था प्रदान की।
Ribhu Devs who were truthful, pervading all over, in all directions & full of affection for their parents made them young, by making use of their ability in the Mantr Shakti. 
सं वो मदासो अग्मतेन्द्रेण च मरुत्वता। आदित्येभिश्च राजभिः॥
हे ऋभुदेवो! यह हर्षप्रद सोम रस इन्द्र देव, मरुतों और दीप्तिमान् आदित्यों के साथ आपको अर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 1.20.5]
हे इन्द्र! मरुद्गण और आदित्य के सहित तुम्हारे लिए यह सोम रस प्रस्तुत है।
Hey Ribhu Devs! This Somras is offered to you along with Indr Dev, Marud Gan and the Adity-Sun. 
उत त्यं चमसं नवं त्वष्टुर्देवस्य निष्कृतम्। अकर्त चतुरः पुनः॥
त्वष्टादेव के द्वारा एक ही चमस तैयार किया गया था, ऋभुदेवों ने उसे चार प्रकार का बनाकर प्रयुक्त किया।[ऋग्वेद 1.20.6]
त्वष्टा ने जो नवीन चमस-पात्र प्रस्तुत किया था, ऋभुओं ने उसके स्थान पर चार चमस बना दिए।
The pot called Chamas made by Twasta, meant for performing the Yagy, was given four different shapes by the Ribhu Devs.
ते नो रत्नानि धत्तन त्रिरा साप्तानि सुन्वते। एकमेकं सुशस्तिभिः॥
वे उत्तम स्तुतियों से प्रशंसित होने वाले ऋभुदेव! सोमयाग करने वाले प्रत्येक याजक को तीनों कोटि के सप्तरत्नों अर्थात इक्कीस प्रकार के रत्नों (विशिष्ट कर्मो) को प्रदान करें। (यज्ञ के तीन विभाग है :- हविर्यज्ञ, पाकयज्ञ एवं सोमयज्ञ। तीनों के सात-सात प्रकार है। इस प्रकार यज्ञ के इक्कीस प्रकार कहे गये हैं।)।[ऋग्वेद 1.20.7]
वे श्रेष्ठ प्रकार से वन्दना  किये जाते हुए ऋभुगण सोम सिद्ध करने वालों को एक-एक कर इक्कीस रत्न प्रदान करें।
Let the Ribhu Devs grant 21 jewels to the performer of Som Yagy.
The Yagy had three categories :- Havir Yagy, Pak Yagy & Som Yagy; which had been split into 21 categories.  
अधारयन्त वह्नयोऽभजन्त सुकृत्यया। भागं देवेषु यज्ञियम्॥
तेजस्वी ऋभुदेवों ने अपने उत्तम कर्मो से देवों के स्थान पर अधिष्ठित होकर यज्ञ के भाग को धारण कर उसका सेवन किया।[ऋग्वेद 1.20.8]
ऋभुगण अविनाशी उम्र ग्रहण कर देवों के बीच रहते हुए अनुष्ठान भाग ग्रहण करते हैं।
The Ribhu Devs having aura, attained the honourable place (position, seat) amongest the demigods-deities by virtue of their brilliance, got a part of the offerings and utilised it.
त्वं सत्य इन्द्र घृष्णुरेतान्त्वमृभुक्षा नर्यस्त्वं षाट्। 
त्वं शुष्णं वृजने पृक्ष आणौ यूने कृत्साय धुमते सचाहन्॥3॥
हे इन्द्र देव आप सर्वोत्कृष्ट हैं। आप समस्त शत्रुओं के विनाशक हैं। आप ऋभु गण के स्वामी, मनुष्यगण के उपकर्ता  और शत्रु के नाशक हैं। संहारक और आपुल युद्ध में आपने प्रकाशक और तरुण कुत्स के सहायक बनकर शुष्ण नामक असुर को मारा।[ऋग्वेद 1.63.3]
हे सत्य रूप इन्द्र देव! तुम शत्रुओं को वशीभूत करने वाले और श्रेष्ठ हो। तुम मनुष्यों की भलाई करने वाले विजेता हो। तुमने युवक कुत्स के सहायक होकर संग्राम में शुष्ण को मारा। Hey Indr Dev! You are excellent-best. You control-mesmerize the enemies and kill them. You are the master of Ribhu Gan, benefactor of humans and slayer of enemies. You became helpful to young Kuts and killed Shushn in fight-war.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (110) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- ऋभुगण,  छंद :- जगती, त्रिष्टुप्।  
ततं मे अपस्तदु तायते पुनः स्वादिष्ठा धीतिरुचथाय शस्यते। 
अयं समुद्र इह विश्वदेव्यः स्वाहाकृतस्य समु तृष्णुत ऋभवः॥1॥
हे ऋभुगण! पहले मैंने बार-बार यज्ञानुष्ठान किया; इस समय पुनः करता हूँ एवं उसमें आपकी प्रशंसा के लिए अत्यन्त मधुर स्तोत्र पढ़ा जाता है। यहाँ सभी देवों के लिए यह सोमरस प्रस्तुत हुआ है। स्वाहा शब्द के उच्चारण के साथ अग्नि में उस रस के अर्पित होने पर उसका पान कर तृप्त होवें।[ऋग्वेद 1.110.1]
हे ऋभुओं! जो पूजन कर्म मैंने पहले किया था, वह अब फिर करता हूँ। तुम्हारे लिए श्लोक उच्चारण करता हूँ। यह समुद्र सा विशाल गुणवाला सोम समस्त देवों के लिए है। स्वाहा युक्त होम होने पर तुम इससे अत्यन्त तृप्त होओ।
Hey Ribhu Gan! I repeat the Yagy, Hawan, Agni Hotr and prayers done earlier. A very loving (pleasing) Strotr is very recited in your honour in those prayers. Here is the Somras for you. Accept that extract as the offering is made in the fire by saying Swaha and get satisfied.
आभोगयं प्र यदिच्छन्त ऐतनापाकाः प्राञ्चो मम के चिदापयः। सौधन्वनासश्चरितस्य भूमनागच्छत सवितुर्दाशुषो गृहम्॥2॥
हे ऋभुगण! आप मेरे जातिभ्राता हैं। जिस समय आप लोगों का ज्ञान अपरिपक्व था, उस पूर्व समय में आप लोगों ने पीने के लिए सोमरस की इच्छा की थी। हे सुधन्वा के पुत्र! उस समय अपने कर्म या तपस्या के महत्त्व द्वारा आप लोग हविर्दानशील सविता के घर पधारे थे।[ऋग्वेद 1.110.2]
हे सुधन्वा पुत्रो! जब तुम सोमरस की कामना से विचरो तब तुम अपने महत्त्व से सूर्य के भवन में जा पहुँचे।
Hey Ribhu Gan, the son of Sudhanva! You belong to my clan, Varn, caste. You desired for Somras when your knowledge was incomplete-immature. You had reached Savita's house on the strength of Tapsaya-ascetic practices.
तत्सविता वोऽमृतत्वमासुवदगोह्यं यच्छ्वयन्त ऐतन। 
त्यं चिच्चमसमसुरस्य भक्षणमेकं सन्तमकृणुता चतुर्वयम्॥3॥
जिस समय आप लोग प्रकाशमान सविता को अपने सोमरस पान की इच्छा बताने आये थे और त्वष्टा के बनाये उस एक सोमरस पात्र के चार टुकड़े किये, उस समय सविता ने आपको अमरता प्रदत्त की थी।[ऋग्वेद 1.110.3]
हे ऋभुगण! सूर्य ने तुमको अमर तत्त्व प्रदान किया, क्योंकि तुमने उनसे  अपनी कामना व्यक्त की और त्वष्टा के सोम-भक्ष करने वाले चमस को चार भागों में बाँट दिया। महणधर्मा ऋभुओं ने अपने लगातार कर्मों द्वारा अमरत्व पाया।
The bright Sun granted you immortality, when visited him with the desire of drinking Somras and moulded the Som pot prepared by Twasta, into 4. 
विष्टी शमी तरणित्वेन वाघतो मर्तासः सन्तो अमृतत्वमानशुः। 
सौधन्वना ऋभवः सूरचक्षसः संवत्सरे समपृच्यन्त धीतिभिः॥4॥
ऋभुओं ने शीघ्र कर्मानुष्ठान किया और ऋत्विकों के साथ मिले, इसलिए मनुष्य होकर भी अमरत्व प्राप्त किया। उस समय सुधन्वा के पुत्र ऋभु लोग सूर्यदेव की तरह प्रकाशित होकर सावित्सरिक यज्ञों में हव्य के अधिकारी हुए।[ऋग्वेद 1.110.4]
वे सूर्य के समान तेजस्वी हुए। वर्ष भर में अनुष्ठान कार्य में जुड़े। निकटस्थों से वंदना किये गये ऋभुजों ने उत्तम पद माँगते हुए देवत्व की इच्छा की।
Ribhu Gan quickly performed the rites, met the Ritviz and hence attained immortality, though they are humans. They, the son of Sudhanva, qualified-entitled themselves for the offerings in the Yagy and got Aura in their bodies.
क्षेत्रमिव वि ममुस्तेजनेनं एकं पात्रमृभवो जेहमानम्। 
उपस्तुता उपमं नाधमाना अमर्त्येषु अव इच्छमानाः॥5॥
ऋभुओं ने पार्श्वचर्तियों के स्तुतिपात्र होकर उत्कृष्ट सोमरस की आकांक्षा करके और देवों में हव्य की कामना करके उसी प्रकार तीक्ष्ण अस्त्र द्वारा एक यज्ञपात्र को चार भागों में विभक्त किया, जिस प्रकार से मानदण्ड लेकर खेत मापा जाता है।[ऋग्वेद 1.110.5]
बाँस के खेत को नापने के तुल्य चौड़े मुख के पात्र को इन्होंने नापा। 
Ribhu's qualified themselves to be prayed-respected. Their desire for Somras was so great that they used a sharp tool and divided the Yagy pot into 4, just like the measurement of the field, with precision-perfectness.
आ मनीषामन्तरिक्षस्य नृभ्यः स्रुचेव घृतं जुहवाम विद्मना। 
तरणित्वा ये पितुरस्य सश्चिर ऋभवो वाजमरुहन्दिवो रजः॥6॥
हम अन्तरिक्ष के नेता ऋभुओं को पात्र स्थित धृत अर्पित करके ज्ञान द्वारा उनकी स्तुति करते हैं। इन ऋभुदेवों ने अपने पिता के संग सतत क्रिया शील रहकर दिव्य लोक और अन्तरिक्ष लोक से अन्न का उत्पादन करने में सामर्थ्य प्राप्त की।[ऋग्वेद 1.110.6]
स्नूच द्वारा घी डालने से ऋभुओं के प्रति ज्ञान के द्वारा वंदना अर्पित की। उन ऋभुओं ने जनक के कर्मों का अनुसरण कर आकाश के अन्न को पाया। 
We pray to the leaders of the space Ribhu Gan, by offering ghee (in Agni Hotr), who attained the knowledge-ability of growing food grains in the sky-space, actively with their father by 
ऋभुर्न इन्द्रः शवसा नवीयानृभुर्वाजेभिर्वसुभिर्वसुर्ददिः। 
युष्माकं देवा अवसाहनि प्रियेभि तिष्ठेम पृत्सुतीरसुन्वताम्॥7॥
शक्ति युक्त होने से ऋभु देव सदैव तरुण जैसे ही प्रतीत होते हैं और इन्द्रदेव के तुल्य ही सम्पन्न भी है। शक्तियों और धन-सम्पदाओं से युक्त ये ऋभु हमको ऐश्वर्य प्रदत्त करने वाले है। हे देवो! आपके स्मरणीय साधनों से संरक्षित हम किस शुभ समय में यज्ञीय कर्मों से रहित अर्थात् जो यज्ञ नहीं करते हैं, ऐसे रिपुदल पर विजय प्राप्त करेगें।[ऋग्वेद 1.110.7]
ऋभु अपने पराक्रम से इन्द्र के समान हुए। वे बलों द्वारा धन देने वाले हैं। हे देवगण! हम तुम्हारी रक्षा में रहकर मन चाहे दिनों में ही सोम द्रोहियों की सेनाओं को परास्त करें। 
The Ribhu Gan looks young on being associated with power, mighty, strength and looks like Indr Dev. Having become powerful, they have acquired power to grant wealth, comforts. Hey demigods-Ribhu Gan having been protected by you, we will win the enemy, who do not conduct Yagy.
निश्चर्मण ऋभवो गामपिंशत सं वत्सेनासृजता मातरं पुनः। 
सौधन्वनासः स्वपस्यया नरो जिव्री युवाना पितराकृणोतन॥8॥
ऋभुगण! आपने चमड़े से गौ को आच्छादित किया और गौ को बछड़े से संयुक्त किया। हे सुधन्वा के पुत्र! आपने अपने सत्प्रयास से वृद्ध माता-पिता को पुनः युवा कर दिया।[ऋग्वेद 1.110.8]
हे ऋभुओ! तुमने चर्म से धेनुएँ बनायी। माता से बछड़े का योग किया। श्रेष्ठ कार्यों की कामना से वृद्ध माता-पिता को युवावस्था प्रदान की।
Hey Ribhu Gan! You covered the cows body with leather and joined the calf with its mother. Hey the sons of Sudhanva! you granted youth to your parents by making fruitful efforts.
वाजेभिर्ने वाजसातावविड्ढयृभुमाँ इन्द्र चित्रमा दर्षि राधः। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥9॥
हे इन्द्रदेव! ऋभुओं के साथ मिलकर अन्नदान के समय हमें अन्न प्रदान करते हैं, विचित्र धन प्रदान करते हैं। हमारी यह कामना मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी  और आकाश के देवताओं को अनुमोदित करें।[ऋग्वेद 1.110.9]
हे इन्द्रदेव! ऋभुओं युक्त तुम संग्रामों में अपने बल से हमारी सुरक्षा करना और दिव्य धनों को प्रकट करना। सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, धरा और क्षितिज हमारी वन्दना को अनुमोदित करें।
Hey Indr Dev! You grant us food grains and amazing wealth in association with the Ribhu Gan. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Earth and the sky recommend to the demigods-deities our wishes-desires.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (111) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- ऋभुगण,  छंद :- जगती, त्रिष्टुप्। 
तक्षत्रथं सुवृतं विद्मनापसस्तक्षन्हरी इन्द्रवाहा वृषण्वसू।
तक्षन्पितृभ्यामृभवो युवद्वयस्तक्षन्वत्साय मातरं सचाभुवम्॥1॥
उत्तम ज्ञानशाली और शिल्पी ऋभुओं ने अश्विनी कुमारों के लिए सुनिर्मित रथ प्रदान किया और इन्द्र के रथ के वाहक हरि नामक बलवान् दोनों घोड़ों को निर्मित किया। ऋभुओं ने अपने माता-पिता को यौवन और बछड़े को सहचरी गौ का प्रदान की।[ऋग्वेद 1.111.1]
ज्ञान द्वारा कार्यों में नियुक्त ऋभुओं ने श्रेष्ठ रथ की उत्पत्ति की। इन्द्रदेव के इस भ्रमण वाले रथ के लिए अश्व बनाये। माता-पिता के लिए युवावस्था को प्रेरित किया और बछड़े के संग रहने वाली जननी की उत्पत्ति की।
The divine artisans Ribhus, who were blessed with excellent knowledge, skills & ability produced an excellent chariot for Ashwani Kumars, in addition to the two strong horses called Hari for the chariote of Indr Dev. They granted youth to their parents (made them young) and created the cow for the calf as its mother.
आ नो यज्ञाय तक्षत ऋभुमद्वयः क्रत्वे दक्षाय सुप्रजावतीमिषम् यथा क्षयाम सर्ववीरया विशा तन्नः शर्धाय घासथा स्विन्द्रियम्॥2॥
हमारे यज्ञ के लिए उज्ज्वल अन्न प्रदान करें। हमारे यज्ञ और बल के लिए सन्तान हेतु भूत अन्न प्रदान करें, जिससे हम सारी वीर सन्ततियों के साथ आनन्द से रहें। हमारे बल के लिए ऐसा ही अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.111.2]
हे ऋभुओ! यज्ञ कर्मों के लिए हमको स्वास्थ्य प्रदान करो। कर्म करने के लिए सामर्थ्य चाहिये। अतः उत्तम प्रजा से युक्त अन्न की रचना करो। हे उत्तम बल धारण करने वाली! हम वीर संतति लिए विद्यमान हो।
Create-generate excellent-best quality grains for our Yagy. Produce excellent grains which existed in the past, for our Yagy and the offspring-progeny. Create, generate, produce such grains for us which can give us strength & power.
आ तक्षत सातिमस्मभ्यमृभवः सातिं रथाय सातिमर्वते नरः।
सातिं नो जैत्रीं सं महेत विश्वहा जामिमजामिं पृतनासु सक्षणिम्॥3॥
हे ऋभुगण! हमें अन्न प्रदान करें। हमारे रथ के लिए धन प्रदान करें। हमारे घोड़ों के लिए अन्न प्रदान करें। संसार हमारे जयशील धन की प्रतिदिन पूजा करे और हम रणक्षेत्र में अपने बीच उत्पन्न या अनुत्पन्न शत्रुओं को पराजित कर सकें।[ऋग्वेद 1.111.3]
हे ऋभुओ! हे उत्तम बल धारण करने वाले ऋभुगण, उत्तम प्रजा से युक्त अन्न की रचना करो। हमारे रथ और अश्वों के लिए अन्न, शक्ति आदि ग्रहण कराओ।  हमारे विजय दिलाने वाले और शत्रुओं को दबाने वाले सुरक्षा साधनों की वृद्धि करो।
Hey Ribhu Gan! Grant us food grains, money to maintain our chariots, food grains for our horses. Let our wealth be protected and we should be able to defeat the enemy in the battle field-war.
ऋभुक्षणमिन्द्रमा हुव ऊतय ऋभून्वाजान्मरुतः सोमपीतये।
उभा मित्रावरुणा नूनमश्विना ते नो हिन्वन्तु सातये धिये जिषे॥4॥
अपनी रक्षा के लिए महान् इन्द्र को तथा ऋभु, विभु, वाज और मरुतों को सोमपान के लिए हम बुलाते है। मित्र, वरुण और अश्विनीकुमारों को भी बुलाते हैं। वे हमारे धन, यज्ञ, कर्म और विजय को सिद्धि प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.111.4]
अपनी रक्षा तथा सोम पान के लिए इन्द्र, ऋभुगण, बाज, मरुद्गण, मित्र, वरुण, अश्विनी कुमारों का मैं आह्वान करता हूँ। वे धन की प्राप्ति, श्रेष्ठ बुद्धि और जल के लिए हमें प्रेरित करें।
We call-invite great Indr Dev, Ribhu Gan, Vibhu, Vaj & Marud Gan to drink Somras for our protection. We call Mitr, Varun and Ashwani Kumars too, for drinking Somras. Let them provide-grant us with money, success, victory and actions, performances-endeavours. 
ऋभुर्भराय सं शिशातु सातिं समर्यजिद्वाजो अस्माँ अविष्टु। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥5॥
संग्राम के लिए हमें ऋभु धन प्रदान करें। युद्ध में विजयी वाज हमारी रक्षा करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी यह प्रार्थना पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.111.5]
युद्ध के लिए ऋभुगण हमको धन प्रदान करें। संग्रामों की जीतने वाले बाज हमारे रक्षक हों। सखा, अदिति वरुण, समुद्र, धरा और क्षितिज हमारी इस वंदना को अनुमोदित करें। ऋभुगण अग्रणी मनुष्य थे। 
अंगिरा वेष में सुधन्वा के ऋभु, विभु और बाज नामक तीन पुत्र थे। वे अपने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा देवता बन गये। (Sudhanva had three sons named Ribhu, Vibhu and Baj. They became demigods by virtue of their excellent deed. 
Let Ribhu Gan give us money to fight. Winners of war, Vaj-Baj, protect us. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Prathvi-Earth and the sky fulfil our this prayer.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (161) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- ऋभृगण, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
किमु श्रेष्ठः किं यविष्ठो न आजगन्किमीयते दूत्यं कद्यदूचिम। 
न निन्दिम चमसं यो महाकुलोऽग्ने भ्रातर्दुण इद्भूतिमूदिम
जो हमारे पास आये हैं, वे क्या हमसे ज्येष्ठ हैं या छोटे? ये क्या देवों के दूत कार्य के लिए आये हैं। इन्हें क्या कहना होगा? इन्हें कैसे पहचानेंगे? हे माता अग्रि! हम चमस की निन्दा नहीं करेंगे, क्योंकि वह महाकुल में उत्पन्न है। उस काष्ठमय चमस के स्मृति की हम व्याख्या करेंगे।[ऋग्वेद 1.161.1]
निन्दा :: बुराई करना; taunt, decry.    
वे महान और युवा हमारे पास आये हैं, वे क्या दौत्य कर्म के लिए आये हैं? हे अग्ने! हमने चमस की निंदा नहीं की है। हमने तो उस काष्ठ के कार्यों को ही कहा है।
Those who have come to us, are seniors or juniors! Have they come to execute the endeavours of the demigods-deities! How to reply them? How to recognise them? Hey mother fire-Agni! We will not either taunt or decry Chamas, since he is born in a high-prestigious family-clan. We will explain the details pertaining to the Chamas made of wood.
एकं चमसं चतुरः कृणोतन तद्वो देवा अब्रुवन्तद्व आगमम्। 
सौधन्वना यद्येवा करिष्यथ साकं देवैर्यज्ञियासो भविष्यथ
अग्नि ने कहा, सुधन्वा के पुत्र, एक चमस को चार बनाओ; देवों ने यह बात कहकर मुझे भेजा है। मैं आपको कहने आया हूँ। आप लोग यह कार्य कर सकते हैं और ऐसा करने पर आप लोग देवों के साथ यज्ञांशभागी बनेंगे।[ऋग्वेद 1.161.2]
हे सुधन्वा के पुत्रों! मैं देव आज्ञा से तुम्हारे सम्मुख आया हूँ। तुम एक चमस में चार कर दो। ऐसा करने पर देवताओं के साथ तुम भी अनुष्ठान का भाग ग्रहण करोगे।
Agni Dev said, "Hey the sons of Sudhanva! Make four Chamas out of the one Chamas, this is the directive of the demigods-deities".  I have come to tell you this. You are capable of doing this. Its execution will entitle to the share of the Yagy.
अग्निं दूतं प्रति यदब्रवीतनाश्वः कर्त्वो  रथ उतेह कर्त्व:। 
धेनुः कर्त्वा युवशा कर्त्वा द्वा तानि भ्रातरनु वः कृत्व्येमसि
हे अग्नि देव! देवों ने अपने दूत अग्नि के प्रति जो-जो कार्य बताये हैं, उनमें से रथ का निर्माण करना होगा, गौ का सृजन करना होगा अथवा माता-पिता को फिर युवा करना होगा? हे भ्रातृवर आपके उन समस्त कार्यों को करके अन्त में कर्म फल के लिए आपके पास आयेंगे।[ऋग्वेद 1.161.3]
हे देव बन्धुओं! तुमने अग्नि को दूत बनाया है। हमको अश्व और धेनु बनाकर दो। जनक-जननी को युवावस्था दो। इन कार्यों के पश्चात हम तुम्हारे सम्मुख उपस्थित होंगे।
Hey Agni Dev! Demigods-deities have assigned the duties to his agent-ambassador Agni prepare a chariote, cows and make the parents young. Hey brothers having executed all these functions-duties, we will come back to you for the reward (outcome, result) of this all. 
चकृवांस ॠभवस्तदपृच्छत केदभूद्यः स्य दूतो न आजगन्। 
यदावाख्यच्च मसाञ्चतुरः कृतानादित्त्वष्टा ग्रास्वन्तन्र्यानजे
हे ऋभुगण! वह कार्य करके आपने पूछा कि जो दूत हमारे पास आये थे, वह कहाँ गये? जिस समय ब्रह्मा जी ने चमस के चार टुकड़े देखे, उसी समय वह स्त्रियों में छिप गया।[ऋग्वेद 1.161.4]
हे ऋभुगण कार्य करने के बाद ही तुमने पूछा कि जो दूत नारियों को देखकर शर्म से क्यों छिप गया? 
Hey Ribhu Gan! Having accomplished the assigned job, you enquired about the messenger-ambassador, where had it hidden themselves? When Brahma Ji saw 4 pieces of the Chamas, it hide itself amongest the women.
हनामैनाँ इति त्वष्टा यदब्रवीच्चमसं ये देवपानमनिन्दिषुः। 
अन्या नामानि कृण्वते सुते सचाँ अन्यैरेनान्कन्या नामभिः स्परत्
जिस समय त्वष्टा ने कहा कि जिन्होंने देवताओं के पान पात्र चमस का अपमान किया है, उनका वध करना होगा, उस समय से ऋभुगण ने सोमरस तैयार होने पर दूसरा नाम ग्रहण किया और कन्या या उनकी माता ने उसी नाम से पुकारकर उन्हें प्रसन्न किया।[ऋग्वेद 1.161.5]
त्वष्टा ने कहा कि जिन्होंने देवों के पीने के पात्र चमस की निन्दा की, उन्हें हम समाप्त कर दें। तब ऋभुओं ने सीम तैयार होने पर दूसरा नाम दिया और त्वष्टा की कन्या ने भी इसी नाम से उच्चारण कर हर्षित किया।
Ribhu Gan adopted a different name (replica of Chamas was created by them) on Somras being ready, when Twasta said that those who had insulted the pot of the demigods-deities had to be killed. Their daughters and the mother called them by that name and made them happy.
इन्द्रो हरी युयुजे अश्विना रथं बृहस्पतिर्विश्वरूपामुपाजत। 
ऋभुर्विध्वा वाजो देवाँ अगच्छत स्वपसो यज्ञियं भागमैतन
इन्द्र देव ने अपने अश्वों को सजाया, अश्विनी कुमारों ने रथ तैयार किया और बृहस्पति ने विश्व रूपा गौ को स्वीकार किया। इसलिए हे ऋभु, विभु और वाज! आप देवों के पास जाये। हे पुण्य कर्ता लोग! आप यज्ञ भाग ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.161.6]
इन्द्र ने अश्वों को जोड़ा, अश्विदेवों ने रथ को जोड़ा, बृहस्पति ने धेनु को पुकारा। ऋभु, विश्वा एवं बाज, ये देवगणों के समीप गए तथा यज्ञ भाग प्राप्त किया। 
Dev Raj Indr deployed his horses, Ashwani Kumars made their chariote ready and Brahaspati accepted the cow in the form of the universe. Hence Hey pious Ribhu, Vibhu and Vaj, go the demigods-deities and accept your share of the Yagy. 
निश्चर्मणो गामरिणीत घीतिभिर्या जरन्ता युवशा ताकृणोतन। 
सौधन्वना अश्वादश्वमतक्षत युक्त्वा रथमुप देवाँ अयातन
हे सुधन्वा के पुत्रों! आपने आश्चर्यजनक कौशल से मृत गाय के शरीर का चमड़ा लेकर उससे गौ उत्पन्न को, जो पिता-माता वृद्ध थे, उन्हें फिर युवा बना दिया और एक अश्व से अन्य अश्व उत्पन्न किये, इसलिए रथ तैयार करके देवों के सामने जावें।[ऋग्वेद 1.161.7]
हे सुधन्वा पुत्रो! तुमने अपने कर्मों से चर्म द्वारा धेनु को दोबारा जीवन प्रदान किया तुमने वृद्ध माता-पिता को युवावस्था प्रदान की। तुमने अश्वों से अश्व उत्पन्न किये और रथ को जोड़कर देवगणों के सम्मुख उपस्थित हुए है।
Hey the sons of Sudhanva! You amazingly produced a cow from the dead cow's skin, using wonderful skills-expertise. Made the aging- old parents young and produced several horses from one horse. Deploy the charoite and go to the demigods-deities. 
DNA-body cells can be used to reproduce the identical species-twins. The cells from the dead remains can also be used to produce new-identical beings. There are several examples in the scriptures like that of King Ven & Prathu.
इदमुदकं पिबतेत्यब्रवीतनेदं वा घा पिबता मुञ्जनेजनम्। 
सौधन्वना यदि तन्नेव हर्यथ तृतीये घा सवने मादयाध्यें
हे देवो! आपने कहा था, हे सुधन्वा के पुत्रों आप लोग इसी सोमरस का पान करें। यदि इन दोनों में आपकी इच्छा न हो, तो तीसरे सवन में सोमरस पीकर अत्यन्त तृप्त हो जावें।[ऋग्वेद 1.161.8]
देवगण तुमने कहा था कि हे सुधन्वा पुत्रों! मूंज से निचोड़े रस का पान करो या जलपान करो। यदि इन दोनों में से किसी को भी पान करना नहीं चाहते तो तीसरे सायंकाल में सोम को पियो।
Hey demigods-deities! You asked the sons of Sudhanva to sip-drink Somras. In case, you have no desire at this moment, you may drink it in the third segment of the day i.e., evening (morning, noon and the evening) and become satisfied.
आपो भूयिष्ठा इत्येको अब्रवीदग्निर्भूयिष्ठ इत्यन्यो अब्रवीत्। 
वधर्यन्तीं बहुभ्यः प्रैको अब्रवीदृता वदन्तश्चमसाँ अपिंशत
ऋभुओं में से एक ने कहा, जल ही सबसे श्रेष्ठ है, एक ने अग्नि को श्रेष्ठ बताया और तीसरे ने पृथ्वी को। सत्य कहकर उन्होंने चारों चमसों का निर्माण किया।[ऋग्वेद 1.161.9]
एक ने जल को, दूसरे ने अग्नि को और तीसरे ने धरा को महान कहा। ऐसी सत्य बात कहते हुए उन ऋभुओं ने चमसों की उत्पत्ति की। 
The first Ribhu said that the fire is best, the second said that the water is best and the third said that the earth is best said; having revealed the truth, they constructed the four Chamas.
श्रोणामेक उदकं गामवाजति मांसमेकः पिंशति सूनयाभृतम्। 
आ निम्रचः शकृदेको अपाभरत्किं स्वित्पुत्रेभ्यः पितरा उपावतुः
एक रक्त बाहर भूमि पर रखते है, दूसरे छूरे से कटे माँस को रखते हैं और तीसरे माँस से मल आदि अलग करते हैं। किस प्रकार पिता-माता (यजमान दम्पत्ती) पुत्रों (ऋभुओं) का उपकार कर सकते हैं?[ऋग्वेद 1.161.10]
एक ने लड़की की ओर झाँका, दूसरे ने माँस को अलग किया, तीसरे ने सूर्य अस्त से पहले ही पुरीष को उठा लिया। माँ-बाप बेटों का क्या हित कर सकते हैं।
The first one is used to remove the blood and place it over the earth, the second one is used to remove the meat and the third one is used to isolate the excreta. How can the hosts-husband & wife, oblige the sons-the Ribhu's?
उद्वत्स्वस्मा अकृणोतना तृणं निवत्स्वपः स्वपस्यया नरः। 
अगोह्यस्य यदसस्तना गृहे तदद्येदमृभवो नानु गच्छथ
हे प्रभूत दीप्तिशाली ऋभुओं! आप नेता हैं। प्राणियों के भले के लिए आप ऊँचे स्थान पर ब्रीहि, जौ आदि तृण उत्पन्न करते हैं और सत्कर्म करने की इच्छा से नीचे के प्रदेश में जल उत्पन्न करते हैं। आप अब तक सूर्य मण्डल में विश्राम रत रहे; अब इस प्रक्रिया का अनुगमन क्यों नहीं करते?[ऋग्वेद 1.161.11]
प्रभूत :: जो हुआ हो,  निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर,  पूर्ण, पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत; excellent, regeneratory.
हे ऋभुओं! तुमने श्रेष्ठ कर्म की कामना से इन प्राणियों के लिए उच्च स्थान में तृषादि को, नीचे स्थान में जलों को प्रकट किया। तुम अब तक सूर्य मंडल में सोते रहे। अब तुम वैसा ही कर्म क्यों नहीं करते?
Hey excellent aura possessing Ribhu Gan! You are a leader. You generate the food grains, straw, barley etc. and generate water in low lying regions with the desire of auspiciousness. You have been resting in the Sun so far. Do something beneficial.
संमील्य यद्भुवना पर्यसर्पत क स्वित्तात्या पितरा व आसतुः। 
अशपत यः करस्नं व आददे यः प्राब्रवीत्प्रो तस्मा अब्रवीतन
हे ऋभुओं! जिस समय आप जलधर में भूतों को मिलाकर चारों ओर जाते हैं, उस समय संसार के पिता-माता कहाँ रहते हैं? जो लोग आपको हाथ पकड़कर रोकते हैं, उन्हें नीचा दिखावें। जो (कटु) वचन द्वारा आपको रोकता है, उसकी भर्त्सना करें।[ऋग्वेद 1.161.12]
हे ऋभुगण! जब तुम भुवनों को छिपाकर चारों ओर भ्रमण करते हो, तब तुम्हारे माता-पिता कहाँ रहते हैं? जो तुम्हारा हाथ पकड़कर विनती करते हैं, तुम उन्हें संकल्प देते हो। जो तुम्हारी प्रशंसा करता है, उसे तुम अग्रणी बनाते हो।
Hey Ribhus! Where does your parents live, when you mix up hide-cloud the other abodes mixing them up with the past!? Let down- reproach those, who obstruct you by holding your hands.
सुषुप्वांस ऋभवस्तदपृच्छतागोह्य क इदं नो अबूबुधत्। 
श्वानं बस्तो बोधयितारम ब्रवीत्संवत्सर इदमद्या व्यख्यत
हे ऋभुओं! आप सूर्य मण्डल में शयन करके सूर्य देव से पूछते हैं कि, "हे सूर्य देव! किसने हमारे कर्म को जागृत किया"। तब वे कहते हैं, वायु देव ने आपको जगाया। वर्ष बीत चला, इस समय आप लोग पुनः संसार को प्रकाशमान करें।[ऋग्वेद 1.161.13]
हे ऋभुओ! सूर्य मंडल में सोने के पश्चात चैतन्य होकर तुमने पूछा कि “किसने हमें जगाया"? सूर्य ने कहा कि पवन देव ने तुम्हें जगाया। वर्ष भर व्यतीत हो गया, अब फिर अपने कर्मों को प्रकाशित करो।
Hey Ribhus! You sleep in the Sun system and ask the Sun, "Why have you awaken us"! He replies, "Vayu Dev awoke you". A lot of Time has elapsed, now you lit the universe.
दिवा यान्ति मरुतो भूम्याग्निरयं वातो अन्तरिक्षेण याति। 
अद्भिर्याति वरुणः समुद्रैर्युष्माँ इच्छन्तः शवसो नपातः
हे बल के नप्ता ऋभुओं! आपके दर्शन की इच्छा से मरुत् स्वर्ग लोक से आ रहे हैं, अग्नि देव पृथ्वी से आते हैं, वायुदेव आकाश से आते हैं और वरुण देव समुद्र जल के साथ आते हैं।[ऋग्वेद 1.161.14] 
नप्ता :: बेटे का बेटा, grandson.
हे ऋभुओ! तुमसे मिलने को मरुद्गण नभ से आ रहे हैं। अग्नि पृथ्वी से और पवन अंतरिक्ष से तथा वरुण जल रूपी समुद्र मार्ग से चले जाते हैं।
Hey Ribhus, the grandson of might (power, force, strength)! To see you, Maruts are comings from the heaven, Agni Dev is coming from the earth, Vayu Dev is coming from the sky and Varun Dev is coming with the water from ocean.
तृतीये धानाः सवने पुरुष्टुत पुरोळाशमाहुतं मामहस्व नः। 
ऋभुमन्तं वाजवन्तं त्वा कवे प्रयस्वन्त उप शिक्षेम धीतिभिः
हे बहुजन स्तुत इन्द्र देव! तीसरे सवन में हमारे भुने जौ का और हुत पुरोडाश का भक्षण करें। हे कवि! आप ऋभु वाले तथा धन युक्त पुत्र वाले हैं। हम लोग हवि लेकर स्तुतियों द्वारा आपकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 3.52.6]
हे इन्द्र देव! तुम पुरोडाश का सेवन करो। तुम ऋभुओं से परिपूर्ण तथा धन और पुत्रों से परिपूर्ण हो। हम हवियों से परिपूर्ण श्लोकों द्वारा तुम्हारी अर्चना करते हैं।
Hey Indr Dev, worshiped by a lot of people! Eat the Purodash and roasted barley in the third part of the day i.e., evening. Hey poet! You are associated  Ribhu Gan, have wealth and sons. We make offerings while singing sacred hymns. 
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- ऋभुगण; इन्द्र, छन्द :- जगति
इहेह वो मनसा बन्धुता नर उशिजो जग्मुरभि तानि वेदसा।
याभिर्मायाभिः प्रतिजूतिवर्पसः सौधन्वना यज्ञियं भागमानश
हे ऋभु गण! आप लोगों के कर्म को सब कोई जानता है। हे मनुष्य गण! आप सब सुधन्वा के पुत्र है। आप लोग जिस सकल कर्म द्वारा शत्रु पराभवोपयुक्त और तेजो विशिष्ट होकर यज्ञीय भाग को प्राप्त करते हैं, कामना काल में उस सकल कर्म को आप लोग जान जाते है।[ऋग्वेद 3.60.1]
हे ऋभुओं! तुम्हारी समृद्धि, कर्म और सामर्थ्य को सभी जानते हैं । हे मनुष्यों ! तुम सुधन्वा के कुल (वंशज) हो, तुम अपने जिन कर्मों द्वारा शत्रुओं को पराजित करने में उपयुक्त तथा विशिष्ट तेज से परिपूर्ण होकर अनुष्ठान भाग को ग्रहण करते हो। उस समस्त कर्म को तुम कामना करते ही जान लेते हो।
Hey Ribhu Gan! Everyone is aware of your endeavours-deeds. Hey Humans! You are the sons-descendants of Sudhanva. You know-learn the entire endeavours pertaining to the Yagy leading to the defeat of the enemy, as soon as you desire, possessing special aura-energy, power.
याभिः शचीभिश्चमसाँ अपिंशत यया धिया गामरिणीत चर्मणः।
येन हरी मनसा निरतक्षत तेन देवत्वमृभवः समानश
हे ऋभुओं! जिस शक्ति के द्वारा आप लोगों ने चमस (यज्ञ-पात्र) को विभक्त किया, जिस प्रज्ञा बल से गौ-शरीर में चर्म योजना की और जिस मनीषा के द्वारा इन्द्र के अश्व द्वय का निर्माण किया, उन्हीं समस्त कर्मों द्वारा आप लोगों ने यज्ञभागार्हत्व देवत्व प्राप्त किया है।[ऋग्वेद 3.60.2]
हे ऋभुओं! तुमने अपने जिस बल से चमस को पृथक किया था, जिस बुद्धि के बल से तुमने गौ देह के चर्म को जीता था तथा जिस ज्ञान से तुमने इन्द्र के दोनों अश्वों की रचना की थी, अपने उन्हीं कर्मों द्वारा तुम यज्ञ के भाग के अधिकारी बनकर देवत्व को प्राप्त कर सको।
Hey Ribhu Gan! You attained-acquired demigodhood by the division of Chamas-the Yagy pot into 4, managed-planned the skin craft for the cow through intelligence, created the two horses for Dev Raj Indr; for the offerings in the Yagy.
इन्द्रस्य सख्यमृभवः समानशुर्मनोर्नपातो अपसो दधन्विरे।
सौधन्वनासो अमृतत्वमेरिरे विष्टी शमीभिः सुकृतः सुकृत्यया
मनुष्य पुत्र ऋभु गण ने योगादि कर्म करके इन्द्र देव की मित्रता को प्राप्त किया। पूर्व में मरण धर्मा होकर भी वे इन्द्र देव के सखित्व से प्राण धारित करते हैं। सुधन्वा के पुण्य-कार्यकारी पुत्र गण कर्म बल और यज्ञादि बल से व्याप्त होकर अमृतत्व को प्राप्त हुए।[ऋग्वेद 3.60.3]
मनुष्यों के कुल ऋभुओं ने अनुष्ठान आदि कार्यों द्वारा इन्द्रदेव की मित्रता से शरीर में प्राण परिपूर्ण किये हैं। पुण्य कार्य करने वाले यह सुधन्वा के पुत्र कर्म की शक्ति से अविनाशी पद प्राप्त किये हैं।
Ribhu Gan born as humans attained the friendship of Dev Raj Indr by performing endeavours like Yagy. Though born as mortals, they attained immortality on the strength of their endeavours, Yagy etc. 
इन्द्रेण याथ सरथं सुते सचाँ अथो वशानां भवथा सह श्रिया।
न वः प्रतिमै सुकृतानि वाघतः सौधन्वना ऋभवो वीर्याणि च
हे ऋभु गण! आप लोग इन्द्र देव के साथ एक रथ पर बैठकर कर सोमाभिषव के स्थान में गमन करें। इसके बाद मनुष्यों की प्रार्थना को ग्रहण करें। हे अमृत बल वाहक सुधन्वा के पुत्रो! आपके शोभन कार्यों की कोई तुलना नहीं कर सकता। हे ऋभुओं! आपकी सामर्थ्य की तुलना भी कोई नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 3.60.4]
तुम इन्द्र सहित एक ही रथ पर चढ़कर सोम सिद्ध करने वाले स्थान में जाओ। फिर प्राणियों के श्लोकों को स्वीकार करो। हे सुधन्वा के पुत्रों! तुम अमृत के बल को वहन करने वाले हो। तुम्हारे उत्तम कर्मों को कोई नहीं रोक सकता। हे ऋभुगण! तुम्हारी शक्ति का सामना करने में कोई भी समर्थ नहीं है।
Hey Ribhu Gan! Ride the charoite of Indr Dev and reach the spot for extracting Somras. Thereafter accept-answer to the prayers of the humans. Hey sons of Sudhanva! None can match your powers-strength. You can bear the powers of elixir-nectar.
इन्द्र ऋभुभिर्वाजवद्भिः समुक्षितं सुतं सोममा वृषस्वा गभस्त्योः।
धियेषितो मघवन्दाशुषो गृहे सौधन्वनेभिः सह मस्त्वा नृभिः
हे इन्द्र देव! आप वाज (अन्न या ऋभुओं के भ्राता) विशिष्ट है। ऋभुओं के साथ आप अच्छी तरह से जल द्वारा सिक्त और अभिषुत सोमरस को दोनों हाथों से ग्रहण करके पान करें। हे मघवन्! आप स्तुति द्वारा प्रेरित होकर याजक गण के घर में सुधन्वा के पुत्रों के साथ सोमपान से हर्षित होते हैं।[ऋग्वेद 3.60.5]
हे इन्द्र देव! जैसे सूर्य वेगवान और तेजस्विनी किरणों को पुष्ट करता है, वैसे ही तुम धरा को शक्तिशाली और ज्ञानी जनों से पुष्ट करो। हे इन्द्र! तुम ऋभुओं के युक्त सोम पियो और प्रार्थनाओं के द्वारा आहूत हुए यजमान के गृह में सुधन्वों के साथ सोमपान ग्रहण करते हुए आनन्द का लाभ ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! You are special to Ribhu Gan like brothers. Nourish the enlightened over earth just as Sun strengthen its rays. Accept Somras with Ribhu Gan in both hands. Inspired by you the devotees-Ritviz serve you Somras to drink it with Ribhu Gan at their homes.
इन्द्र ऋभुमान्वाजवान्मस्त्वेह नोऽस्मिन्त्सवने शच्या पुरुष्टुत।
इमानि तुभ्यं स्वसराणि येमिरे व्रता देवानां मनुषश्च धर्मभिः
हे बहु स्तुत इन्द्र देव! ऋभु और वाज से युक्त होकर तथा इन्द्राणी के साथ होकर हमारे इस तृतीय सवन में आनन्दित होवें। हे इन्द्र देव! तीनों सवनों में सोमपान के लिए ये दिन आपके लिए नियत हुए हैं। किन्तु देवों के व्रत और मनुष्यों के कर्मों के साथ सभी दिन आपके लिए नियत हुए हैं।[ऋग्वेद 3.60.6]
हे इन्द्रदेव! तुम अनेकों द्वारा स्तुत्य हो। तुम इंद्राणी के साथ तथा ऋभुओं से युक्त होकर हमारे तीसरे प्रहर में आनन्द प्राप्त करो। हे इन्द्र देव! दिन के तीनों कालों में यह काल तुम्हारे सोम ग्रहण करने के लिए निश्चित है। वैसे देवगणों के सभी वृतों और प्राणियों के सभी कर्मों द्वारा सभी दिवस तुम्हारी पूजा के लिए उत्तम है।
Hey Indr Dev! You are worshiped by many. Enjoy with Ribhu Gan & Indrani in the later part of the day. These days have been fixed for you to drink Somras in the three segments of the day. But you are eligible to drink Somras every day with the fasting of demigods-deities and the endeavours of humans.
इन्द्र ऋभुभिर्वाजिभिर्वाजयन्निह स्तोमं जरितुरुप याहि यज्ञियम्।
शतं केतेभिरिषिभिरायवे सहस्रणीथो अध्वरस्य होमनि
हे इन्द्र देव! आप स्तोताओं के अन्नों का सम्पादन करते हुए वाज युक्त ऋभुओं के साथ इस यज्ञ में स्तोताओं के स्तोत्रों के अभिमुख आगमन करें। मरुद्गण भी शत संख्यक गमन कुशल अश्वों के साथ याजक गण के सहस्र प्रकार से प्रमीत अध्वर के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 3.60.7] 
हे इन्द्र देव! वंदना करने वालों के लिए अन्न संपादन करते हुए, बलशाली, ऋभुगण युक्त वंदनाकारी की प्रार्थनाओं के प्रति इस अनुष्ठान में विराजो। शत-संख्यक कुशल घोड़ों के द्वारा मरुद्गण भी यजमान के हजारों संख्यक हिंसा रहित अनुष्ठान में आगमन करें।
Hey Indr Dev! Join the Yagy of the Ritviz accepting the offerings of food grains and the prayers-requests of Strota with Strotr-hymns. Let Marud Gan too join with trained thousand horses in the Yagy, which do not involve violence.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- ऋभुगण,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र ऋभुभ्यो दूतनिव वाचमिष्य उपस्तिरे श्वैतरीं धेनुमीळे।
ये वातजूतास्तरणिभिरेवैः परि द्यां सद्यो अपसो बभूवुः
हम याजक गण ऋभुओं के निकट दूत के तुल्य स्तुति वाक्य प्रेरित करते हैं। हम उनके निकट सोम उपस्तरण के लिए पयोयुक्त गौ की याचना करते हैं। ऋभुगण वायु के समान गमन करने वाले है। वे जगत् के उपकार जनक कर्म को करने वाले हैं। वे वेग से जाने वाले घोड़ों द्वारा अन्तरिक्ष को क्षण मात्र में परिव्याप्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.33.1]
हम यजमान ऋभुगण के लिए दूत के समान वंदना वाणी को प्रेरित करते हैं। हम उनके समीप सोम उपस्थित करने हेतु दुग्ध वाली गौओं की विनती करते हैं। ऋभुगण पवन के समान चलने वाले तथा संसार का हित करने वाले कार्यों को करते हैं। वे अपने वेगवान घोड़ों से पल भर में अंतरिक्ष को विद्यमान करते हैं।
We, the hosts, Ritviz express ourselves as a messenger, to the Ribhu Gan, reciting prayers. We request them to grant us cows yielding milk. Ribhu Gan moves as fast as air. They preform deeds pertaining to the welfare-benefit of the universe-world. Their horses pervade the space with the blink of eye.
यदारमक्रन्नृभवः पितृभ्यां परिविष्टी वेषणा दंसनाभिः।
आदिद्देवानामुप सख्यमायन्धीरासः पुष्टिमवहन्मनायै
जब ऋभुओं ने माता-पिता को परिचर्या द्वारा युवा किया एवं चमस निर्माणादि अन्य कार्य करके वे अलंकृत हुए, तब इन्द्रादि देवों के साथ उन्होंने उसी समय मित्र-लाभ किया। वीर ऋभुगण प्रकृष्ट मनस्वी हैं। वे यजमानों के लिए पुष्टि धारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.33.2]
जब ऋभुगण ने अपनी माता को युवावस्था दी और चमस बनाने आदि कार्यों को करते हुए यशवान हुए तब उसी समय उनकी मित्रता इंद्रादि देवताओं के साथ हो गई। वे मनस्वी एवं धैर्यवान हैं तथा यजमान के लिए पराक्रम धारण करते हैं।
मनस्वी :: चिन्तन शील, विचार शील; intelligent person, thoughtful person, contemplative person.
Ribhu Gan granted youth to their parents, developed Chamas and gained fame & honours. They gained -enjoyed the friendship of the demigods-deities. They are thoughtful and have patience. The rise-possess valour to protect the devotees, Ritviz.
पुनर्ये चक्रुः पितरा युवाना सना यूपेव जरणा शयाना।
ते वाजो विभ्वाँ ऋभुरिन्द्रवन्तो मधुप्सरसो नोऽवन्तु यज्ञम्
ऋभुओं ने यूप काष्ठ के तुल्य जीर्ण और लेटे हुए अपने माता-पिता को नित्य युवा किया। बाज विभु और ऋभु इन्द्र देव के साथ सोम पान करके हम लोगों के यज्ञ की रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.33.3]
ऋभुगणों ने ही यूप के समान जीर्ण और लुढ़के पड़े हुए माता-पिता को तरुणाई प्रदान की। वे शक्तिशाली और ऋभु इन्द्रदेव के साथ सोमपान करते हुए हमारे अनुष्ठान के रक्षक हों।
They made their parents younger day by day, who were lying like the dead log. Let Vibhu & Ribhu Gan drink Somras along with Indr Dev and protect-shield our Yagy.
यत्संवत्समृभवो गामरक्षन्यत्संवत्समृभवो मा अपिंशन्।
यत्संवत्समभरन्भासो अस्यास्ताभिः शमीभिरमृतत्वमाशुः
ऋभुओं ने संवत्सर पर्यन्त मृतक गौ का पालन किया। ऋभुओं ने उस गौ के माँस-शरीर को संवत्सर पर्यन्त अवयव युक्त किया एवं संवत्सर पर्यन्त उसके शरीर के सौन्दर्य की रक्षा की। इन सकल कार्यों द्वारा उन्होंने देवत्व को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 4.33.4]
ऋभुगण ने एक वर्ष तक मृत धेनु की सेवा की। उन्होंने उस धेनु के शरीर को अवयवों से सम्पन्न किया और वर्ष भर उनकी सुरक्षा की। अपने इन कर्मों से वे देवत्व को ग्रहण कर सके।
For a year the Ribhus preserved the dead cow & invested it with flesh & other organs, continued its beauty they obtained by their acts of immortality.
The Ribhu Gan nursed-preserved the dead cow for a year and produced flesh and other organs in her. They attained divinity by virtue of this act.
ज्येष्ठ आह चमसा द्वा करेति कनीयान्त्रीन्कृणवामेत्याह।
कनिष्ठ आह चतुरस्करेति त्वष्ट ऋभवस्तत्पनयद्वचो वः
ज्येष्ठ ऋभु ने कहा, “एक चमस को दो करेंगे।" उसके अवरज विभु ने कहा, "तीन करेंगे।" उसके कनिष्ठ वाज ने कहा, “चार प्रकार से करेंगे"। हे ऋभुओं! आपके गुरु त्वष्टा ने इस चतुष्करण रूप आपके वचन को अङ्गीकार किया।[ऋग्वेद 4.33.5]
बड़े ऋभु ने एक चमस को दो करने की कामना प्रकट की। बीच के ऋभुगण ने तीन करने की और छोटे ऋभु ने चार करने को कहाँ। हे ऋभुगण ! तुम्हारे मरु त्वष्टा ने इस तुम्हारी "चार करने" वाली बात को स्वीकार कर लिया।
The eldest Ribhu said that they would convert one Chamas to two. The second-middle one said that they world make three Chamas out of one. The youngest said that they would convert it into four. Twasta as Guru accepted their plea.
सत्यमूचुर्नर एवा हि चक्रुरनु स्वधामृभवो जग्मुरेताम्।
विभ्राजमानांश्चमसाँ अहेवावेनत्त्वष्टा चतुरो ददृश्वान्
मनुष्य रूप ऋभुओं ने सत्य कहा; क्योंकि उन्होंने जैसा कहा, वैसा किया। इसके अनन्तर ऋभु गण तृतीय सवन गत स्वधा के भागी हुए। दिवस के तुल्य दीप्तिमान चार चमसों को देखकर त्वष्टा ने उसकी कामना की और उसे अङ्गीकार किया।[ऋग्वेद 4.33.6]
उस पुरुष रूपी वाले ऋभुओं ने जो कहा, वही किया। उनका कथन सत्य को प्राप्त हुआ। फिर वे ऋभुगण तीसरे सवन में स्वधा अधिकारी बने। दिन के समान ज्योतिवान चार चमसों को देखकर त्वष्टा ने कामना करते हुए प्राप्त किया।
Ribhu Gan in the form of humans, did what they said. Thereafter, they became entitled-eligible for the third  session-evening Swadha. Twasta accepted the four shinning Chamas.
द्वादश द्यून्यदगोह्यस्यातिथ्ये रणन्नृभवः ससन्तः।
सुक्षेत्राकृण्वन्ननयन्त सिन्धू न्ध न्वातिष्ठन्नोषधीर्निम्नमापः
अगोपनीय सूर्य के घर में जब ऋभु गण आर्द्रा से लेकर वृष्टि कारक बारह नक्षत्रों तक अतिथि रूप से सुख पूर्वक निवास करते हैं, तब वे वृष्टि द्वारा खेतों को शस्य सम्पन्न करते और नदियों को प्रेरित करते हैं। जल विहीन स्थान में औषधियाँ उत्पन्न होती हैं और नीचे की ओर जल जमा होता है।[ऋग्वेद 4.33.7]
प्रत्यक्ष प्रकाशवान सूर्य लोक में जब वे ऋभुगण आर्द्रा से वर्षा कारक बारह नक्षत्रों तक अतिथि रूप में रहते हैं। तब वे वर्ष द्वारा कृषि को धान्यपूर्ण करते और नदियों को बहने वाला बनाते हैं। जल रहित स्थान में दवाइयाँ पैदा होती और निचले स्थानों में जल भरा रहता है।
When Ribhu Gan reside in the house of Sun, starting from Adra- constellation & the rain causing 12 constellations comfortably, they make the earth green with vegetation and inspire the rivers. Medicines grow over those places where there in no water (stagnations) and water is stored in low lying regions.
रथं ये चक्रुः सुवृतं नरेष्ठां ये धेनुं विश्वजुवं विश्वरूपाम्।
त आ तक्षत्वृभवो रयिं नः स्ववसः स्वपसः सुहस्ताः
ऋभु गण, जिन्होंने सुचक्र और चक्र विशिष्ट रथ का निर्माण किया, जिन्होंने विश्व की प्रेरयित्री और बहुरूपा गायों को उत्पन्न किया, वे सुकर्मा, अन्न युक्त और सुहस्त ऋभु हम लोगों को धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.33.8]
जिन्होंने सुन्दर पहियों वाले रथ का निर्माण किया था, जिन्होंने संसार को शिक्षित करने वाले तथा अनेक रूपिणी धेनु को प्रकट किया था, वे श्रेष्ठतम कर्म वाले सुन्दर अन्नवास और सिद्ध ऋभुगण हमारे धन का सम्पादन करें।
Let Ribhu Gan engaged in virtuous, pious endeavours, who created the charoite with beautiful wheels and cows, grant us wealth along with food grains.
अपो ह्येषामजुषन्त देवा अभि क्रत्वा मनसा दीध्यानाः।
वाजो देवानामभवत्सु कर्मेन्द्रस्य ऋभुक्षा वरुणस्य विभ्वा
इन्द्र देव आदि देवों ने वर प्रदान रूप कर्म द्वारा एवं प्रसन्न हृदय से देदीप्यमान होकर इन ऋभुओं के अश्व, रथ आदि निर्माण रूप कर्म को स्वीकार किया। शोभन कर्म करने वाले कनिष्ठ वाज सभी देवों के सम्बन्धी हुए, ज्येष्ठ ऋभु इन्द्र देव के सम्बन्धी हुए और मध्यम विभु वरुण देव के सम्बन्धी हुए।[ऋग्वेद 4.33.9]
इन्द्रादि देवगणों ने वर देने जैसे कर्म द्वारा तथा प्रसन्न चित्त हृदय से तेजस्वी होकर ऋभु गण के अश्व, रथ आदि के निर्माण कार्य को स्वीकार किया । श्रेष्ठ कर्म वाले छोटे-बड़े ऋभु इन्द्र से सम्बन्धित हुए।
Demigods-deities including Indr Dev, accomplishing desires, accepted the endeavours of Ribhu Gan like creation of charoite, horses etc. and became relatives. Young Vaj and other demigods-deities became relatives, the middle-second Vibhu became relative of Varun Dev.
ये हरी मेधयोक्था मदन्त इन्द्राय चक्रुः सुयुजा ये अश्वा।
ते रायस्पोषं द्रविणान्यस्मे धत्त ऋभवः क्षेमयन्तो न मित्रम्
हे ऋभुओं! जिन्होंने अश्व द्वय को प्रज्ञा तथा स्तुति द्वारा बलिष्ठ किया, जिन्होंने उस अश्व द्वय को इन्द्र के लिए सुयोजमान किया, वही ऋभुगण हम लोगों को मंगलकांक्षी मित्र के तुल्य धन, पुष्टि गौ आदि धन तथा सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.33.10]
जिन ऋभुओं ने दो अश्वों को वृद्धि और प्रशंसा के माध्यम से पुष्ट किया, वह ऋभु हमारे लिए मंगलकारी सखा के समान धन, गौ, जल इत्यादि और सभी सुख प्रदान करें।
The Ribhus who who created and grew the twin horses and made them strong for Indr Dev, should become our friend, grant us wealth, nourished cows and comforts-luxuries.
इदाह्नः पीतिमुत वो मदं धुर्न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवाः।
ते नूनमस्मे ऋभवो वसूनि तृतीये अस्मिन्त्सवने दधात
चमस आदि निर्माण के अनन्तर तृतीय सवन में देवों ने आप लोगों को सोमपान तथा तदुत्पन्न हर्ष प्रदान किया। तपो युक्त व्यक्ति को छोड़कर दूसरे के मित्र देव गण नहीं होते। हे ऋभुओं! इस तृतीय सवन में आप निश्चय ही हम लोगों को ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.33.10]
चमस आदि के बनने के बाद देवताओं ने तीसरे सवन में तुम्हारे लिए सोमपान से रचित हर्ष प्रदान किया था। देव गण तपस्वी के अतिरिक्त किसी अन्य के सखा नहीं बनते हैं। हे ऋभुओं! इस तीसरे सवन में तुम हमारे लिए अवश्य ही फल प्रदान करो।
The demigods-deities granted pleasure-enjoyment to Ribhu Gan, when they created Chamas in the third segment of the day-evening and offered them Somras. Hey Ribhu Gan! During this third segment of the day, you will definitely grant us grandeur.(29.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- ऋभुगण,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
ऋभुर्विभ्वा वाज इन्द्रो नो अच्छेमं यज्ञं रत्नधेयोप यात।
इदा हि वो धिषणा देव्यह्नामधात्पीतिं सं मदा अग्मता वः
हे ऋभु! विभु, वाज और इन्द्र देव, रत्न प्रदान करने के लिए आप लोग हमारे इस यज्ञ में पधारें, क्योंकि अभी दिन में वाक्देवी आप लोगों को सोमाभिषव सम्बन्धी प्रीति प्रदान करती हैं। इसलिए सोम जनित हर्ष आप लोगों के साथ संगत हों।[ऋग्वेद 4.34.1]
संगत :: अनुकूल, मुताबिक़, अविस्र्द्ध, तर्कयुक्त, सिलसिलेवार, अविरोधी, प्रासंगिक, उचित, अनुरूप, योग्य, प्रस्तुत; accompaniment, compatible, consistent, relevant.
हे ऋभु, विभु, बाज और इन्द्र देव! धन-धौलत के लिए हमारे इस अनुष्ठान में विराजो। अभी दिन में वाणी रूप वंदना तुम्हारे लिए सोम सिद्ध करने सम्बन्धी स्नेह प्रदान करती हैं। सोम से रचित हुई तुम्हारे साथ सुसंगत हो।
Hey Ribhu, Vibhu, Vaj & Indr Dev! Join our Yagy to grant jewels, gems. Vak Devi is affectionate with you during the day & help you extract Somras. Let the pleasure-happiness, enjoyment by virtue of Somras be compatible with you.
विदानासो जन्मनो वाजरत्ना उत ऋतुभिर्ऋभवो मादयध्वम्।
सं वो मदा अग्मत सं पुरंधिः सुवीरामस्मे रयिमेरयध्वम्
हे अन्न द्वारा शोभमान ऋभु गण! पहले आप लोगों का जन्म मनुष्यों में हुआ, अब देवत्व प्राप्ति को जान करके आप लोग देवों के साथ हर्षित होवें। हर्ष कर सोम और प्रार्थना आप लोगों के लिए एकत्र हुए हैं। आप लोग हमारे लिए पुत्र-पौत्र के लिए विशिष्ट धन प्रेरित करें।[ऋग्वेद 4.34.2]
हे ऋभुओं। तुम अन्न के द्वारा सुशोभित हो। पूर्व में तुम पुरुष थे अब देवता बने हो। इस बात का ध्यान करते हुए देवताओं को समीप पुष्टि को पाओ। हर्षकारी सोम और स्तोत्र तुम्हारे लिए सुसंगत हुए हैं। तुम हमारे लिए पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन प्रदान करो।
सुशोभित :: सजा हुआ, संवारा हुआ, अलंकृत, विभूषित, मंडित, सुंदर, सुखद, शोभायमान, सुश्री, रमणीय; graceful, adorned, inwrought. 
Hey Ribhu Gan! You should be adorned with food grains. Initially you got birth as humans and now you have attained divinity granting you pleasure. You have gathered for Somras and prayers. Grant riches for us & our sons, grandsons.
अयं वो यज्ञ ऋभवोऽकारि यमा मनुष्वत्प्रदिवो दधिध्वे।
प्र वोऽच्छा जुजुषाणासो अस्थुरभूत विश्वे अग्रियोत वाजाः
हे ऋभुओं! आप लोगों के लिए यह यज्ञ किया गया है। मनुष्य के तुल्य दीप्तिशाली होकर आप लोग इसे धारित करें। सेवमान सोम आप लोगों के निकट रहता है। हे वाजगण! आप लोग ही प्रथम उपास्य है।[ऋग्वेद 4.34.3]
हे ऋभुगण ! यह हवन तुम्हारे लिए किया गया है तुम इसे प्राणी के समान दीप्तिवान होकर करो। सेवा कारक सोम तुम्हारे निकट उपस्थित हैं। तुम हमारे मुख्य साध्य हो।
Hey Ribhu Gan! This Yagy has been organised for you. Become radiant-aurous and support it. Somras for drinking is available with you. Hey Vaj Gan! You deserve first worship.
अभूदु वो विद्यते रत्नधेयमिदा नरो दाशुषे मर्त्याय।
पिबत वाजा ऋभवो ददे वो महि तृतीयं सवनं मदाय
हे नेतृगण! आपके अनुग्रह से अभी इस तृतीय सवन में दान योग्य रत्न परिचर्याकारी, हव्य दाता याजक गण के लिए है। हे वाजगण! हे ऋभुगण! आप लोग पान करें। तृतीय सवन में हर्ष के लिए प्रभूत सोमरस हम आप लोगों के लिए प्रदत्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.34.4]
हे अग्रगण्य ऋभुओं! हविदाता यजमान के लिए इस तीसरे सवन में तुम्हारे कृपा दृष्टि से दान योग्य रत्न ग्रहण हो। हम तुम्हारे लिए पुष्टिदायक सोम प्रदान करते हैं। तुम उसको ग्रहण करो।
Hey senior Ribhu Gan! During this third segment of the day-evening, jewels-gems are meant for the Ritviz to donate-charity. Hey Ribhu Gan! Hey Vaj Gan! Drink Somras offered by us for your pleasure-happiness.
आ वाजा यातोप न ऋभुक्षा महो नरो द्रविणसो गृणानाः।
आ वः पीतयोऽभिपित्वे अह्नामिमा अस्तं नवस्व इव ग्मन्
हे वाजो, हे ऋभुक्षाओ! आप लोग नेता है। महान धन की प्रार्थना करते हुए आप लोग हमारे निकट आगमन करें। दिवस की समाप्ति में अर्थात तृतीय सवन में जिस प्रकार से नव प्रसवा गौएँ घर की ओर जाती हैं, उसी प्रकार यह सोमरस का पान आप लोगों के निकट आगमन करता है।[ऋग्वेद 4.34.5]
ऋभुगण, श्रेष्ठ ऐश्वर्य की प्रशंसा करते हुए तुम हमारे समीप आओ। दिन की समाप्ति पर जैसे नवप्रसूता गायें अपने स्थान को वापस लौटती हैं, उसी प्रकार यह सोम रस तुम्हारे पीने के लिए तुम्हारी ओर आता है।
Hey Vaj! Hey Ribhu Gan! You are great. Come to us appreciating great wealth & grandeur. Come to the hosts-household like the cows laying the calf & who return home in the evening; for drinking Somras.
आ नपातः शवसो यातनोपेमं यज्ञं नमसा हूयमानाः।
सजोषसः सूरयो यस्य च स्थ मध्वः पात रत्नधा इन्द्रवन्तः
हे बलवानों! स्तोत्र द्वारा आहूत होकर आप लोग इस यज्ञ में आगमन करें। आप लोग इन्द्र देव के साथ प्रीत होते हैं और मेधावी हैं; क्योंकि आप लोग इन्द्र देव के सम्बन्धी हैं। आप लोग इन्द्र देव के साथ रत्न प्रदान करते हुए मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 4.34.6]
हे शक्ति से परिपूर्ण ऋभुओ। श्लोक द्वारा पुकारे जाने पर तुम इस अनुष्ठान पधारो। तुम इन्द्र देव के मित्र रूपी और मतिवान हो क्योंकि तुम इन्द्र देव के सम्बन्धी तुम मधुर सोमपान को इन्द्र देव के संग पान करते हुए रत्नादि धन प्रदान करो।
Hey mighty Ribhu Gan! On being invoked by the recitation of Strotr, join this Yagy. You are Indr Dev's affectionate, relatives & intelligent. Provide us jewels-gems & enjoy Somras.
सजोषा इन्द्र वरुणेन सोमं सजोषाः पाहि गिर्वणो मरुद्भिः।
अग्रेपाभिर्ऋतुपाभिः सजोषा ग्नास्पत्नीभी रत्नधाभिः सजोषाः
हे इन्द्र देव! आप रात्रयभिमानी वरुण देव के साथ समान प्रीति युक्त होकर सोमरस का पान करें। हे स्तुति योग्य इन्द्र देव! आप मरुतों के साथ संगत होकर सोमपान करें। प्रथम पानकारी ऋतुओं के साथ देव-पत्नियों के साथ और रत्न देने वाले ऋभुओं के साथ सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 4.34.7]
हे इन्द्र देव! वरुण सहित सम्यक दीप्तिवान होकर सोम पियो। पहले पीने वाले ऋभुओं, देवांगनाओं तथा रत्नादात्री सामर्थ्यो सहित सोमपान करो।
Hey worship deserving Indr Dev! Enjoy Somras with Varun Dev, Marud Gan, goddesses, wives of the demigods-deities & Ribhu Gan who provide us jewels-gems.
सजोषस आदित्यैर्मादयध्वं सजोषस ऋभवः पर्वतेभिः।
सजोषसो दैव्येना सवित्रा सजोषसः सिन्धुभी रत्नधेभिः
हे ऋभुओं! आदित्यों के साथ संगत होकर आप हर्षित होवें, पर्व में अर्चमान देव विशेष के साथ संगत होकर आप हर्षित होवें, देवों के हितकर सविता देव के साथ संगत होकर हर्षित होवें और रत्नदाता नद्यभिमानी देवों के साथ संगत होकर हर्षित होवें।[ऋग्वेद 4.34.8]
हे ऋभुओं! आदित्यों सहित मिलकर आनन्द को प्राप्त हो जाओ। उपासनीय देवताओं को ग्रहण करो। पर्वत के तुल्य अचल एवं रत्नदाता देवों के संग मिलकर हृष्ट-पुष्ट हो जाओ।
Hey Ribhu Gan! You should be happy in the company of Adity Gan, specific demigods-deities of the festivals, Savita Dev & the deities as great as the mountains who grant gems-jewels.
ये अश्विना ये पितरा य ऊती धेनुं ततक्षुर्ऋभवो ये अश्वा।
ये अंसत्रा य ऋधग्रोदसी ये विभ्वो नरः स्वपतानि चक्रुः
जिन ऋभुओं ने अपने रक्षण साधनों से अश्विनी कुमारों को सक्षम बनाया, जिन्होंने जीर्ण माता-पिता को युवा किया, जिन्होंने धेनु और अश्व का निर्माण किया, जिन्होंने देवों के लिए अंसत्रा कवच निर्माण किया, जिन्होंने द्यावा-पृथ्वी को पृथक किया, जो व्याप्त एवं नेता हैं और जिन्होंने सुन्दर अपत्य प्राप्ति साधन कार्य रूप किया, वे सर्व प्रथम सोमपान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 4.34.9]
जिन्होंने अश्विनी कुमारों को बनाने आदि कर्मों से अपने प्रति स्नेहवान बनाया, जिन्होंने जीर्ण माता-पिता को तारुण्य किया, जिन्होंने गौ और घोड़े को निर्मित किया, जिन्होंने देवों के लिए उसका कवच बनाया। जिन्होंने आकाश और धरती को अलग किया, जिन्होंने सुन्दर से तान उत्पन्न करने वाला कार्य किया और जो सबके नेता रूप हैं, वे ऋभु मध्यम पान करने वाले हैं।
The Ribhu Gan, who made Ashwani Kumars capable, made their parents young, created cows & horses, produced shields for the demigods-deities, separated the sky & earth, who pervades each & every place & works as means for the off springs; are going to drink Somras first of all. 
ये गोमन्तं वाजवन्तं सुवीरं रयिं धत्थ वसुमन्तं पुरुक्षुम्।
ते अग्रेपा ऋभवो मन्दसाना अस्मे धत्त ये च रातिं गृणन्ति
हे ऋभुओं! जो गोविशिष्ट, अन्नविशिष्ट, पुत्र-पौत्रादि विशिष्ट, निवास योग्य घर आदि धनों से युक्त तथा बहुत अन्न वाले धन को धारित करते हैं एवं जो धन की प्रशंसा करते हैं, वे प्रथम सोमपानकारी ऋभुगण हर्षित होकर हम लोगों को धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.34.10]
गौ, अन्न, संतान तथा निवास योग्य ही वह व्यक्ति है जो अनेक अन्न वाले, धनों के पालक हैं, जो धनों की प्रशंसा करने वाले हैं। वे ऋभुगण प्रथम सोमपान के द्वारा हृष्ट-पुष्ट होकर हमें धन ऐश्वर्य प्रदान करें।
Let Ribhu Gan drink Somras first of all, become healthy, happy with us and provide us riches. They possess cows, food grains, sons-grandsons, residence, various kinds of riches.
नापाभूत न वोऽतीतृषामानिःशस्ता ऋभवो यज्ञे अस्मिन्।
समिन्द्रेण मदथ सं मरुद्भिः सं राजभी रत्नधेयाय देवाः
हे ऋभुओं! आप लोग चले न जाना। हम आप लोगों को अत्यन्त तृषित नहीं करेंगे। हे देवो! आप लोग अनिन्दित होकर रमणीय धन प्रदान करने के लिए इस यज्ञ में इन्द्र देव के साथ हर्षित हों, मरुतों के साथ हर्षित होवें और अन्यान्य दीप्तिमान देवों के साथ हर्षित हों।[ऋग्वेद 4.34.11]
हे ऋभु गण! हमसे दूरस्थ मत जाना। तुम हमें अधिक समय वृषित न रहने देना। तुम सुन्दर धन देने के लिए इन्द्रदेव के साथ इस अनुष्ठान में हर्ष को ग्रहण होओ। मरुद्गण तथा अन्य तेजस्वी देवों के साथ पुष्टतम हो जाओ।
Hey Ribhu Gan! Do not desert us. We will not trouble-bother you. Hey demigods! You should be happy-pleased with us along with Indr Dev, several demigods-deities and grant riches-wealth for the Yagy.(31.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- ऋभुगण,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
इहोप यात शवसो नपातः सौधन्वना ऋभवो माप भूत।
अस्मिन्हि वः सवने रत्नधेयं गमन्त्विन्द्रमनु वो मदासः
हे बल के पुत्र, सुधन्वा के पुत्र ऋभुओं! आप सब इस तृतीय सवन में पधारें, अपगत न होवें। इस सवन में मदकर सोम रत्नदाता इन्द्र देव के अनन्तर आप लोगों के निकट गमन करें।[ऋग्वेद 4.35.1]
हे सुधन्वा के बलशाली पुत्रों! इस तृतीय सवन में यहाँ पधारो, कहीं अन्य विचरण मत करो। दृष्टि कारक सोम इस सवन में, रत्न दान करने वाले इन्द्र देव के पश्चात तुम्हारे सम्मुख आयें।
Hey Ribhu Gan, son of Sudhanva & grand son of Bal! Come here in the third segment of the day-evening. Do not move else where. Let Som come to you after the donor of jewels-gems Indr Dev.
आगन्नृभूणामिह रत्नधेयमभूत्सोमस्य सुषुतस्य पीतिः।
सुकृत्यया यत्स्वपस्यया चँ एकं विचक्र चमसं चतुर्धा
ऋभुओं का रत्न दान इस तृतीय सवन में मेरे निकट आवें; क्योंकि आप लोगों ने शोभन हस्त व्यापार द्वारा और कर्म की इच्छा द्वारा एक चमस को चार प्रकार से विनिर्मित किया है एवं अभिषुत सोमरस का पान किया।[ऋग्वेद 4.35.2]
ऋभुओं के द्वारा दिये जाने वाले रत्नों का दान इन तीसरे सवन में मेरे नजदीक पधारें। हे ऋभुगण! तुमने अपने हाथ की कला के माध्यम से एक चमस के चार बना दिये थे और सुसिद्ध सोम को पिया था।
Let the impact of donation of jewels-gems by Ribhu Gan, show its impact in the evening, since they created 4 Chamas out of one by virtue of your skills and drank Somras.
व्यकृणोत चमसं चतुर्धा सखे वि शिक्षेत्यब्रवीत।
अथैत वाजा अमृतस्य पन्थां गणं देवानामृभवः सुहस्ताः
हे ऋभुओं! आप लोगों ने चमस को चार प्रकार का बनाया एवं कहा कि, "हे मित्र अग्नि देव! अनुग्रह करें"। अग्नि देव ने आप लोगों से कहा, "हे वाजगण! हे ऋभुगण! आप लोग कुशल हस्त है। आप लोग अमरत्व पथ में अर्थात स्वर्ग मार्ग में गमन करें।”[ऋग्वेद 4.35.3]
हे ऋभुगण! तुमने एक चमस के चार करते हुए कहा था, हे मित्र रूप अग्ने! दया करो। तब अग्नि ने उत्तर दिया था, हे ऋभुओं! तुम हस्त कारोबार में मेधावी हो। तुम अमरत्व प्राप्ति के मार्ग पर जाओ।
Hey Ribhu Gan! You created 4 Chamas out of one and requested friendly Agni Dev to oblige you. Agni Dev told you, "Hey Vaj Gan! Hey Ribhu Gan"! You are skilled. You should attain immortality.
किंमयः स्विच्चमस एष आस यं काव्येन चतुरो विचक्र।
अथा सुनुध्वं सवनं मदाय पात ऋभवो मधुनः सोम्यस्य
जिस चमस को कौशलपूर्वक चार प्रकार का बनाया, वह चमस किस प्रकार का था? हे ऋत्विकों! आप लोग हर्ष के लिए सोमाभिषव करें। हे ऋभुओं! आप लोग मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 4.35.4]
जिस चमस की चालाकी पूर्वक चार बनाये गये थे, वह चमस कैसा था? हे ऋत्विजों! आनन्द के लिए सोम को सिद्ध करो! हे ऋभुओं! तुम मधुर सोम का पान करो।
What was the shape, size of the Chamas that was converted by you into four, skilfully?! Hey Ritviz! Drink Somras happily. Hey Ribhu Gan! Drink the sweet-tasty Somras.
शच्याकर्त पितरा युवाना शच्याकर्त चमसं देवपानम्।
शच्या हरी धनुतरावतष्टेन्द्रवाहावृभवो वाजरत्नाः
हे रमणीय सोम वाले ऋभुओं! आप लोगों ने कर्म द्वारा माता-पिता को युवा बनाया, कर्म द्वारा चमस को देवपान के योग्य चतुर्था किया और कर्म द्वारा शीघ्र गामी इन्द्र देव को वहन करने वाले अश्व द्वय को सम्पादित किया।[ऋग्वेद 4.35.5]
हे उत्तम सोम युक्त ऋभुगण! तुमने कला द्वारा अपने माता पिता को तारुण्य दिया। एक चमस के चार बनाये और इन्द्र के शीघ्र चलने वाले दोनों अश्वों को प्रकट किया।
Hey possessor of descent Somras Ribhu Gan! You made your parents young by using your skills, expertise & knowledge. You converted one Chamas into four by virtue of expertise. You evolved the fast moving horse duo for Indr Dev. 
यो वः सुनोत्यभिपित्वे अह्नां तीव्रं वाजासः सवनं मदाय।
तस्मै रयिमृभवः सर्ववीरमा तक्षत वृषणो मन्दसानाः
हे ऋभुओं! आप लोग अन्नवान है। जो याजक गण आप लोगों के उद्देश्य से हर्ष के लिए दिवावसान में तीव्र सोमरस का अभिषव करता है, हे फलवर्षी ऋभुओं! आप लोग हर्षित होकर उन याजकों को हर प्रकार से पराक्रमी, उत्तम संतानों से युक्त ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.35.6]
ऋभुगण! तुम अन्न के स्वामी हो। जो यजमान तुम्हारे आनन्द के लिए दिवस के अन्तिम दिन के अंतिम पहर को छानता है, उस यजमान के लिए तुम उत्तम अभीष्ट वर्षी होते हुए अनेक संतान परिपूर्ण धन के देने वाले बनों।
Hey Ribhu Gan! You possess food grains. You extract Somras for the public at the end of the day. Hey accomplishments granting-fulfilling Ribhu Gan! Become happy-pleased and grant versatile progeny & grandeur to the Ritviz.
प्रातः सुतमपिबो हर्यश्व माध्यंदिनं सवनं केवलं ते।
समृभुभिः पिबस्व रत्नधेभिः सखीयों इन्द्र चकृषे सुकृत्या
हे हरि विशिष्ट इन्द्र देव! आप प्रातः सवन में अभिषुत सोमरस का पान करें। माध्यन्दिन सवन केवल आपका ही है। हे इन्द्र देव! आपने शोभन कर्म द्वारा जिसके साथ मित्रता की है, उस रत्नदाता ऋभुओं के साथ आप तृतीय सवन में उनके साथ पान करें।[ऋग्वेद 4.35.7]
हे अश्ववान इंद्र! तुम सुसिद्ध सोम को प्राप्त सवन में पान करो। दिन के मध्यकाल वाला सवन केवल तुम्हारे लिए ही है। हे इन्द्र! अपने श्रेष्ठ कार्य द्वारा तुमने जिनके साथ मित्रता स्थापित की, उन रत्न दान करने वाले ऋभुगण के साथ तीसरे सवन में सोम पान करो।
Hey master of the horses named Hari, Indr Dev! Drink Somras during the first, second & third segment of the day. Drink Somras in the third segment of the day with Ribhu Gan, with whom you became friendly by virtue of your virtuous deeds; who grant jewels-gems. 
ये देवासो अभवता सुकृत्या श्येना इवेदधि दिवि निषेद।
ते रत्नं धात शवसो नपातः सौधन्वना अभवतामृतासः
हे ऋभुओं! आप लोग सुकर्म द्वारा देवता बने। हे बल के पुत्रो! आप लोग श्येन (गृद्ध-विशेष) के तुल्य द्युलोक में प्रतिष्ठित होवें, आप लोग धनदान प्रदान करें। हे सुधन्वा के पुत्रो! आप लोग अमर हुए।[ऋग्वेद 4.35.8]
हे ऋभु गण! तुमने अपने उत्तम कार्यों से देवत्व प्राप्त किया। तुम श्येन के समान क्षितिज में ग्रहण होओ। हे सुधन्वा पुत्रों! तुम अमरत्व ग्रहण कर चुके हो, हमकों धन प्रदान करो।
Hey son of Sudhanva, Ribhu Gan! You have attained divinity by virtue of your auspicious-virtuous deeds. You should be honoured in the heavens like the Shyen-bird & grant us riches. You have attained immortality.
यत्तृतीयं सवनं रत्नधेयमकृणुध्वं स्वपस्या सुहस्ताः।
तदुद्भवः परिषिक्तं व एतत्सं मदेभिरिन्द्रियेभिः पिबध्वम्
हे सुहस्त ऋभुओं! आप लोग रमणीय सोमदान युक्त तृतीय सवन को शोभन कर्म की इच्छा से प्रयुक्त और प्रसाधित करते हैं, इसलिए आप लोग हर्षित इन्द्रियों के साथ अभिषुत सोमरस का पान करो।[ऋग्वेद 4.35.9]
हे ऋभुओं! तुम महान हस्त कला से सम्पूर्ण हो। तुम सुन्दर सोम से सम्पूर्ण तीसरे सवन को महान कार्यों की कामना से सुसिद्ध करते हो। अतः तुम हर्षित हृदय से सोम का पान करो।
Hey great experts in handicrafts, Ribhu Gan! Enjoy Somras in the third segment of the day with pleasure.(04.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- ऋभुगण,  छन्द :- त्रिष्टुप् ,जगती।
अनश्वो जातो अनभीशुरुक्थ्यो 3 रथस्त्रिचक्रः परि वर्तते रजः।
महत्तद्वो देव्यस्य प्रवाचनं द्यामृभवः पृथिवीं यच पुष्यथ
हे ऋभुओं! आप लोगों का कर्म स्तुति योग्य है। आप लोगों द्वारा प्रदत्त अश्विनी कुमार का त्रिचक्र रथ अश्व के बिना और प्रग्रह के बिना अन्तरिक्ष में परिभ्रमण करता है। जिसके द्वारा आप लोग द्यावा-पृथ्वी का पोषण करते हैं, वह रथ निर्माण रूप महान् कर्म आप लोगों के देवत्व को प्रख्यात करता है।[ऋग्वेद 4.36.1]
हे ऋभुओं! तुम्हारे द्वारा किये जाने वाले कर्म प्रशंसा के योग्य हैं। तुम्हारे द्वारा दिया अश्विनीकुमारों का तीन पहिये वाला रथ अश्व के बिना ही अंतरिक्ष में भ्रमण करता है। जिसके द्वारा तुम आकाश और पृथ्वी का पोषण करते हो। रथ बनाने वाला श्रेष्ठ कार्य तुम्हारे देवत्व का साक्ष्य रूप है।
Hey Ribhu Gan! Your endeavours deserve appreciation. The three wheeled charoite created by you for Ashwani Kumars, roams-travels in the space-heavens, has no horses; with the help which you nourish the earth & heavens. Your great endeavour is a proof of divinity-divine hood.
रथं ये चक्रुः सुवृतं सुचेतसोऽविह्वरन्तं मनसस्परि ध्यया।
ताँ ऊ न्व 1 स्य सवनस्य पीतय आ वो वाजा ऋभवो वेदयामसि
हे सुन्दरान्तःकरण ऋभुओं! आप लोगों ने मानसिक ध्यान द्वारा सुवर्तन चक्र वाला अकुटिल रथ बनाया। हे वाजगण और हे ऋभुगण! हम सोमपान के लिए आप लोगों को आमंत्रित करते हैं।[ऋग्वेद 4.36.2]
हे उत्तम हृदय वाले ऋभुगण! तुमने अपने आंतरिक ध्यान से सुन्दर चाल वाला पहिये से युक्त रथ बनाया था। हम तपस्वीगण तुम्हें सोमपान हेतु बुलाते हैं।
Hey Ribhu Gan with excellent innerself! You created the charoite with excellent navigation system, through your mental power. Hey Vaj & Ribhu Gan! We invite for drinking Somras.
तद्वो वाजा ऋभवः सुप्रवाचनं देवेषु विभ्वो अभवन्महित्वनम्।
जिव्री यत्सन्ता पितरा सनाजुरा पुनर्युवाना चरथाय तक्षथ
हे वाजगण, हे ऋभुगण और हे विभुगण! आप लोगों ने अपने जो वृद्ध और जीर्ण माता-पिता को नित्य तरुण और सर्वदा चलने फिरने योग्य बना दिया, आप लोगों का वही माहात्म्य देवों के बीच में प्रख्यात है।[ऋग्वेद 4.36.3]
हे ऋभुओं! तुम तीनों ने अपने वृद्ध माता-पिता को तरुण अवस्था देकर चलने के योग्य बनाया था। तुम्हारा वह महान कार्य देवताओं में विख्यात है।
Hey Vaj, Ribhu & Vibhu Gan! Your great endeavour by virtue of which you granted youth to your parents is famous between the demigods-deities.
एकं वि चक्र चमसं चतुर्वयं निश्चर्मणो गामरिणीत धीतिभिः।
अथा देवेष्वमृतत्वमानश श्रुष्टी वाजा ऋभवस्तद्व उक्थ्यम्
हे ऋभुओं! आप लोगों ने एक चमस को चार भागों में विभाजित किया, कर्म द्वारा गौ को चर्म से परिवृत किया; इसलिए आप लोगों ने देवों के मध्य अमरत्व पाया। हे वाजगण, ऋभुगण! आप लोगों का यह कर्म प्रशंसा के योग्य है।[ऋग्वेद 4.36.4]
हे ऋभुओं! तुमने एक चमस के चार भाग किये। अपने उत्तम कार्य से धेनु को चमड़े से ढका। इसलिए तुमने देवों का अविनाशी पद ग्रहण किया। तुम्हारे सभी कर्म वंदना के योग्य हैं।
Hey Ribhu Gan! You made four Chamas out of one and covered the body of cow with leather leading to attainment of divinity. Hey Vaj Gan, Hey Ribhu Gan! This practice-endeavour of yours deserve appreciation.
ऋभुतो रयिः प्रथमश्रवस्तमो वाजश्रुतासो यमजीजनन्नरः।
विभ्वतष्टो विदथेषु प्रवाच्यो यं देवासोऽवथा स विचर्षणिः
वाजों के साथ विख्यात नेता ऋभुओं ने जिस धन को उत्पन्न किया, प्रधान और प्रभूत वह अन्न विशिष्ट धन ऋभुओं के निकट से हमारे निकट आवे। यज्ञ में ऋभुओं द्वारा सम्पन्न रथ विशेष रूप से प्रशंसा के योग्य है। हे दीप्ति विशिष्ट ऋभुओं! आप लोग जिसकी रक्षा करते हैं, वह दर्शन योग्य होता है।[ऋग्वेद 4.36.5]
ऋभुगण ने जिस धन को प्रकट किया था, वह अन्न युक्त मुख्य धन ऋभुओं के निकट आएँ। यज्ञ स्थान के ऋभुगण द्वारा निर्मित रथ प्रशंसनीय है। हे दीप्तिमान ऋभुओं! तुम जिसकी रक्षा करते हो। वह साधक देखने योग्य होता है।
Let the wealth & food grains created by the Ribhu Gan-leader of the Vaj Gan, be available to us. The charoite generated by the Ribhu Gan in the Yagy deserve special mention-appreciation. Hey radiant Ribhu Gan! A person protected by you is worth invoking-seeing.
स वाज्यर्वा स ऋषिर्वचस्यया स शूरो अस्ता पृतनासु दुष्टरः।
स रायस्पोषं स सुवीर्यं दधे वाजो विभ्वाँ ऋभवो यमाविषुः
वाजि, विभु और ऋभु जिस पुरुष की रक्षा करते हैं, वह बलवान् होकर रण कुशल होता है, वह ऋषि होकर प्रशंसनीय होता है, वह शूर होकर शत्रुओं का विनाशक होता है, वह युद्ध में उद्धर्ष होता है और वह मनुष्य धन, पुष्टि तथा पराक्रम को धारित करता है।[ऋग्वेद 4.36.6]
जिस व्यक्ति की ऋभुगण सुरक्षा करते हैं, वह मनुष्य पराक्रमी एवं संग्राम कौशल में चालाक होता है। वह मुनि बनकर वंदनाओं से सम्पन्न होता है। वह पराक्रमी शत्रुओं को पराजित करके युद्ध में उच्च स्थान प्राप्त करता है तथा धनवान संतान से परिपूर्ण और शक्तिशाली होता है।
The person protected by Vaj, Vibhu & Ribhu Gan become mighty, an expert warrior, appreciated as a sage and possess valour to destroy the enemy. He attains a high rank-position in the war and get riches-wealth, nourishment, galore, might & power. 
श्रेष्ठं वः पेशो अधि धायि दर्शतं स्तोमो वाजा ऋभवस्तं जुजुष्टन।
धीरासो हि ष्ठा कवयो विपश्चितस्तान्व एना ब्रह्मणा वेदयामसि
हे वाजगण, हे ऋभुगण! आप लोग अत्युत्कृष्ट और दर्शनीय रूप धारित करते हैं। हम लोगों ने आपके लिए यह उचित स्तोत्र रचा है। आप लोग इसका सेवन करें। आप लोग धैर्यवान्, कवि और ज्ञानवान हैं। स्तोत्र द्वारा हम आप लोगों को आहूत करते हैं।[ऋग्वेद 4.36.7]
हे ऋभुओं! तुम अत्यन्त उत्कृष्ट और दर्शन के योग्य स्वरूप वाले हो। हमने यह सुन्दर स्तोत्र तुम्हारे लिए ही बनाया है। तुम इसे सुनो। तुम मेधावी, ज्ञानी और कवि हो । श्लोकों द्वारा हम तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey Vaj, Ribhu Gan! You are excellent and possess beautiful looks. We have composed this Strotr in your honour. Please listen-hear it. You are poetic, have patience and are learned-enlightened. We worship-pray you with the help of these Strotr-hymns.
यूयमस्मभ्यं धिषणाभ्यस्परि विद्वांसो विश्वा नर्याणि भोजना।
द्युमन्तं वाजं वृषशुष्ममुत्तममा नो रयिमृभवस्तक्षता वयः
हे ऋभुओं! हमारी प्रार्थना के लिए मनुष्यों की हितकारिणी समस्त भोग्य वस्तुओं को जानकर आप उनकी प्राप्ति करें एवं हमारे लिए दीप्तिमान, बल कारक और बलवान शत्रुओं के शोषक धन और अन्न का सम्पादन करें।[ऋग्वेद 4.36.8]
हे ऋभुओं! हमारी वंदना के लिए व्यक्तियों का हित करने वाली समस्त भक्षण योग्य सामग्री को तुम प्राप्त करो और हमारे लिए अत्यन्त तेजस्वी तथा शक्ति रचित करने वाला, शत्रुओं का पोषण करने वाला अन्न धन ग्रहण कराओ।
Hey Ribhu Gan! Avail the useful commodities for our consumption and grant us nourishing food grains of the powerful enemy.
इह प्रजामिह रयिं रराणा इह श्रवो वीरवत्तक्षता नः।
येन वयं चितयेमात्यन्यान्तं वाजं चित्रमृभवो ददा नः
हे ऋभुओं! आप लोग हमारे इस यज्ञ में हर्षित होकर पुत्र-पौत्रादि का सम्पादन करें, इस यज्ञ में धन-सम्पादन करें और इस यज्ञ में भृत्यादि युक्त यश सम्पादन करें। हम लोग जिस अन्न के द्वारा दूसरों का अतिक्रमण कर सकें, उस तरह का रमणीय श्रेष्ठ अन्न हम लोगों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.36.9]
हे ऋभुगण! तुम हमारे ऐश्वर्य में प्रीतिमान होकर पुत्र-पौत्रादि तथा धन, भृत्यादि से युक्त यश प्राप्त कराओ। हम जिस धन से दूसरों पर जीत हासिल कर सकें वह सुंदर धन हमको दो।
Hey Ribhu Gan! Be pleased with us and award us sons & grandsons. Give us money and servants for the Yagy. Give us the food grains and riches with which we can over power others (enemies).(07.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- ऋभुगण,  छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
उप नो वाजा अध्वरमृभुक्षा देवा यात पथिभिर्देवयानैः।
यथा यज्ञं मनुषो विश्वा ३ सुदधिध्वे रण्वाः सुदिनेष्वह्नाम्
हे रमणीय ऋभुओं! आप लोग जिस प्रकार से दिवसों को सुदिन करने के लिए मनुष्यों के यज्ञ को धारित करते हैं, हे वाजगण, हे ऋभुगण! उसी प्रकार से आप लोग देवमार्ग द्वारा हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 4.37.1]
रमणीय :: मनोरम, सुहावना, ललित, आनंदकर, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देनेवाला; delightful, delectable.
हे ऋभु गण! तुम जैसे दिनों को उत्तम दिन बनाने के लिए मनुष्यों के अनुष्ठान का पोषण करते हो, वैसे ही तुम देवों के श्रेष्ठतम मार्ग हमारे अनुष्ठान में पधारो।
Hey delightful Vaj Gan, Ribhu Gan! The manner in which you support the Yagy of the humans for their welfare-benefits, come to our Yagy through the divine path.
ते वो हृदे मनसे सन्तु यज्ञा जुष्टासो अद्य घृतनिर्णिजो गुः।
प्र वः सुतासो हरयन्त पूर्णाः क्रत्वे दक्षाय हर्षयन्त पीताः
आज यह समस्त यज्ञ आपके हृदय और मन में प्रीति दायक हो, घृत मिश्रित पर्याप्त सोमरस आपके हृदय में गमन करे। चमस पूर्ण अभिषुत सोमरस आपकी कामना करता है। वह प्रीत होकर आपको सुकर्म के लिए स्फूर्ति प्रदान करे।[ऋग्वेद 4.37.2]
आज समस्त अनुष्ठान तुम्हारे अन्तःकरण को स्नेह प्रदान करो। घृत मिश्रित सोमरस पर्याप्त मात्रा में तुम्हारे हृदय में प्रविष्ट करे। चमस में रखा हुआ सोम तुम्हारी कामना करता है।
Let this Yagy grant solace, delight to your innerself. Enjoy Somras mixed with Ghee. Chamas full of Somras awaits you. Let it grant energy-pleasure.
त्र्युदायं देवहितं यथा वः स्तोमो वाजा ऋभुक्षणो ददे वः।
जुह्वे मनुष्वदुपरासु विक्षु युष्मे सचा बृहद्दिवेषु सोमम्
हे वाजिगण, हे ऋभुगण! जो लोग सवन त्रयोपेत देवों के हितकर सोमरस को आप लोगों के उद्देश्य से धारित करते हैं, उन समवेत प्रजाओं के बीच में हम मनु के तुल्य प्रभूत दीप्ति युक्त होकर आपके उद्देश्य से सोमरस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.37.3]
वह स्नेहमय होकर तुम्हें श्रेष्ठ कर्मों की प्रेरणा प्रदान करें। हे ऋभुओं! जो व्यक्ति तीनों सयनों में तुम्हारे लिए देवताओं का हित करने वाले सोम को धारण करते हैं, उनमें हम अत्यन्त मनस्वी होकर तुम्हारे लिए सोमरस प्रदान करते हैं।
Hey Vaj Gan, Ribhu Gan! The affectionate who serve you Somras, during the three segments of the day for the welfare-benefit of the demigods, should become aurous-radiant like Manu. 
पीवोअश्वाः शुचद्रथा हि भूताय: शिप्रा वाजिनः सुनिष्काः।
इन्द्रस्य सूनो शवसो नपातोऽनु वश्चेत्यग्रियं मदाय
हे ऋभुओं! आपके अश्व मोटे हैं, आपके रथ दीप्तिशाली हैं, आपका हनुद्वय लोहे के सदृश सारवान है। आप अन्नवान और शोभन निष्क (दान) वाले है। हे इन्द्र के पुत्रों और बल के पुत्रों! आप लोगों के हर्ष के लिए यह प्रथम सवन अनुष्ठित हुआ है।[ऋग्वेद 4.37.4]
हृष्ट पुष्ट :: दृढ़, हट्टा-कट्टा, बलवान; robust, athletic, hefty.
हे ऋभुओं! तुम्हारे अश्व हृष्ट-पुष्ट हैं, तुम्हारा रथ देदीप्यमान है। तुम्हारी चिन लोहे के समान दृढ़ हैं। तुम अन्नों के स्वामी तथा श्रेष्ठ दान करने वाले हो। हे शक्तिवानों! तुम्हारी पुष्टि के लिए हम इस पहले सवन में यज्ञ करते हैं।
Hey Vajin, you are borne by stout horses mounted on a brilliant car, have jaws of metal and are possessed of treasures; sons of Indr Dev, grandsons of strength, this last sacrifice is for your exhilaration.
Hey Ribhu Gan! Your horses are healthy-robust, hefty and the charoite is shinning. Your jaws are strong like iron. You possess food grains and donate it. You are the sons & grandsons of Indr Dev and Bal. First segment of the day has been met-accomplished with worship-pryers for your pleasure.
ऋभुमृभुक्षणो रयिं वाजे वाजिन्तमं युजम्।
इन्द्रस्वन्तं हवामहे सदासात ममश्विनम्
हे ऋभुओं! हम अत्यन्त वृद्धिशील धन का आह्वान करते हैं, संग्राम में अत्यन्त बलवान रक्षक का आह्वान करते हैं और सर्वदा दानशील, अश्ववान तथा इन्द्रवान या इन्द्रियवान आपके गण का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.37.5]
हे ऋभुओं! हम श्रेष्ठ बढ़े हुए धन की विनती करते हैं। युद्ध काल उपस्थित होने पर अत्यन्त बलशाली रक्षक को आमंत्रित करते हैं तथा सदैव दानशील अश्वों के दाता तुम्हारे गणों को हम आमंत्रित करते हैं।
Hey Ribhu Gan! We pray-request you the growing wealth. We request for the highly potential protectors in the war. We invite your mighty warriors, who grant us horses and donate money.
सेदृभवो यमवथ यूयमिन्द्रश्च मर्त्यम्।
स धीभिरस्तु सनिता मेधसाता सो अर्वता
हे ऋभुओं! आप और इन्द्र जिस मनुष्य की रक्षा करते हैं, वह श्रेष्ठ होता है। वह मनुष्य अपने कर्मों द्वारा धन का भागीदार और यज्ञों में अश्वों से युक्त होता है।[ऋग्वेद 4.37.6]
हे ऋभुओं! तुम और इन्द्र जिसकी रक्षा करते हो, वह प्राणी सबमें उत्तम होता है। वह अपने कार्य द्वारा धन भाग प्राप्त करें तथा यज्ञ में अश्वों से युक्त हो।
Hey Ribhu Gan! One protected by you and Indr Dev is excellent. He enjoy wealth by virtue of his endeavours and possess horses in the Yagy.
वि नो वाजा ऋभुक्षणः पथश्चितन यष्टवे।
अस्मभ्यं सूरयः स्तुता विश्वा आशास्तरीषणि
हे वाजिगण, हे ऋभुगण! हम लोगों को यज्ञ मार्ग प्रज्ञापित करें। हे ज्ञानियों! आप लोग प्रशंसित होकर समस्त दिशाओं में सफलतापूर्वक आगे बढ़ने के लिए हमें रास्ता दिखावें।[ऋग्वेद 4.37.7]
हे ऋभुओं! हमको अनुष्ठान में मार्ग गामी बनाओ। तुम कुशल हो। तुम हमारे लिए समस्त दिशाओं में सफल होने की शक्ति बाँटने वाले बनो।
Hey Vaji Gan & Ribhu Gan! Guide us in our Yagy. Hey enlightened! Show-guide us in achieving success in all direction (all round success)
तं नो वाजा ऋभुक्षण इन्द्र नासत्या रयिम्।
समश्वं चर्षणिभ्य आ पुरु शस्त मघत्तये
हे वाजगण, हे ऋभुगण, हे इन्द्रदेव, हे अश्विनीकुमारों! आप सब हम प्रार्थना करने वालों को प्रचुर ऐश्वर्य और शक्ति प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 4.37.8]
हे ऋभुओं! हे इन्द्र देव! हे अश्विनी कुमारों ! हम प्रार्थना करने वालों को तुम दान के लिए महान धन और अश्वों के दान की शिक्षा प्रदान करो।
Hey Vaj Gan, Hey Ribhu Gan, Hey Indr Dev and Hey Ashwani Kumars! Grant us sufficient wealth-riches, grandeur responding to our prayers, blessing us.(10.04.2023) 
हंसः शुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत्। नृषद्वरसदृतसव्द्योमसदब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतम्
हंस (आदित्य) दीप्त आकाश में अवस्थित रहते हैं। वसु (वायु) अन्तरिक्ष में अवस्थिति करते है। होता (वैदिकाग्नि) वेदीस्थल पर गार्हपत्यादि रूप से अवस्थिति करते हैं एवं अतिथिवत पूज्य होकर धर में (पाकादिसाधन रूप से) अवस्थिति करते हैं। ऋत (सत्य, ब्रह्म, यक्ष ) मनुष्यों के बीच में अवस्थान करते हैं, वरणीय स्थान में अवस्थान करते हैं, यज्ञस्थल में अवस्थान करते हैं एवं अन्तरिक्ष स्थल में अवस्थान करते हैं। वे जल में, रश्मियों में, सत्य में और पर्वतों में उत्पन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 4.40.5]
अवस्थित नभ में वायु अंतरिक्ष में और होता इत्यादि वेदी पर आते हैं। अदिति के समान पूजनीय होकर गृह में निवास करते हैं। ऋभु मनुष्यों में वरणीय स्थान तथा यज्ञ-स्थल में रहते हैं। वे नत, रश्मि, सत्य और शैलों में उत्पन्न हुए हैं।
Swans (Hans-Adity) stay-establish in the sky. Vasu Vayu stay in the space. The hosts-Ritviz stay at the Yagy site like the fire and honoured like Aditi. Rat dev (Truth, Brahm & Yaksh) establish between-amongest the humans & the space-sky. They are born in the waters, rays of light and the mountains.
  

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)