त्वष्टा देव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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इह त्वष्टारमग्रियं विश्वरूपमुप ह्वये।
अस्माकमस्तु केवलः॥
प्रथम पूज्य, विविध रूप वाले त्वष्टादेव का इस यज्ञ में आवाहन करते हैं, वे देव केवल हमारे ही हों।[ऋग्वेद 1.13.10]मैं अग्रगण्य, अनेक रूप वाले, त्वष्टा (अग्नि) का अनुष्ठान में आह्वान करता हूँ, वे हमारे ही रहें।
We invite Twasta-Agni having various forms, who is honoured first, in this Yagy to become our own.
अभि यज्ञं गृणीहि नो ग्नावो नेष्टः पिब ऋतुना। त्वं हि रत्नधा असि॥
हे त्वष्टा देव! आप पत्नि सहित हमारे यज्ञ की प्रशंसा करे, ऋतु के अनुकूल सोमरस का पान करें! आप निश्चय ही रत्नों को देने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.15.3]
हे त्वष्टा देव! देव पत्नियों से युक्त हमारे अनुष्ठान की भली-भाँति प्रशंसा करो और ऋतु-युक्त सोमपान करो। तुम अवश्य ही रत्नों को देने वाले हो।
Hey Twasta Dev! Please appreciate-join our Yagy-effort, drink Somras as per the season. You are sure to give us jewels.
उत त्यं चमसं नवं त्वष्टुर्देवस्य निष्कृतम्। अकर्त चतुरः पुनः॥
त्वष्टादेव के द्वारा एक ही चमस तैयार किया गया था, ऋभुदेवों ने उसे चार प्रकार का बनाकर प्रयुक्त किया।[ऋग्वेद 1.20.6]
त्वष्टा ने जो नवीन चमस-पात्र प्रस्तुत किया था, ऋभुओं ने उसके स्थान पर चार चमस बना दिए।
The pot called Chamas made by Twasta, meant for performing the Yagy, was given four different shapes by the Ribhu Devs.
हृदं न हि त्वा न्यृषन्त्यूर्मयो ब्रह्माणीन्द्र तव यानि वर्धना।
त्वष्टा चित्ते युज्यँ वावृधे शवस्ततक्ष वज्रमभिभूत्योजसम्॥
जिस प्रकार जलाशय को जल-प्रवाह प्राप्त करता है, उसी प्रकार आपके लिए कहे हुए स्तोत्र आपको प्राप्त होते हैं। त्वष्टादेव ने अपने बल को नियोजित कर आपके बल को बढ़ाया और शत्रुओं को पराजित करने में समर्थवान आपके वज्र को भी तीक्ष्ण किया।[ऋग्वेद 1.52.7]
हे इन्द्रदेव! प्रवाहित जल के जलाशय को ग्रहण करने के तुल्य ये श्लोक तुम को ग्रहण होते हैं। त्वष्टा ने तुम्हारे बल की समद्धि की और जीतने वाले बल से तुम्हारे वज्र का निर्माण किया।
The way-manner the flowing waters move to the reservoirs-water bodies, the hymns sung for you are received by you i.e., they increase your strength. Twasta Dev enhanced your powers and sharpened Vajr to overcome-overpower the enemies.
अस्मा इदु त्वष्टा तक्षदव्रं स्वपस्तमं स्वर्यं रणाय।
वृत्रस्य चिद्विदद्येन मर्म तुजन्नीशानस्तुजता कियेधाः॥
इन्द्रदेव के लिए त्वष्टा ने युद्ध के निमित्त शोभन कर्मा और सुप्रेरणीय वज्र का निर्माण किया। शत्रुओं के नाश के लिए तैयार होकर ऐश्वर्य वान और अपरिमित बलशाली इन्द्रदेव ने हननकर्ता वज्र से वृत्र के मर्मस्थान पर प्रहार करके उसे मारा।[ऋग्वेद 1.61.6]
त्वष्टा ने इन्द्रदेव के लिए कार्य सिद्ध करने वाले, घोर ध्वनि युक्त वज्र का निर्माण किया। इन्द्रदेव ने उससे वृत्र के मर्म स्थल का पतन किया।
Mighty Indr Dev possessing great power-strength, struck Vratr at his softest point of the body-heart to kill him, with the Vajr-built by Twasta, which produced thunderous noise-sound.
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)