CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
मरुद्गण :: 49 मरुद्गण प्रमुख देवगणों का एक प्रमुख समूह है। वेदों में इन्हें रुद्र और वृश्नि का पुत्र लिखा है और इनकी संख्या 60 की तिगुनी मानी गई है। पुराणों में इन्हें कश्यप और दिति के पुत्रों के रूप में जाना जाता है। इन्द्र देव ने दिति के गर्भ को 49 भागों में विभाजित किया था। वेदों में मरुद्गणों का निवास अंतरिक्ष में है। उनके घोड़े घोड़ों को पृशित कहा जाता है। ये देवराज इन्द्र सहयोगी और बन्धु हैं। ये वायुकोण के दिक्पाल हैं।
वेदों का आदि-अंत नहीं है, मगर प्रत्येक मन्वन्तर में नए इंद्र और देवगणों का प्राकट्य होता है।
वर्तमान मन्वन्तर में मरुद्गणों की उत्पत्ति :: प्रजापति कश्यप की दो पत्नियाँ थीं उनमें से पहली पत्नी का नाम था अदिति और दूसरी पत्नी का नाम था दिति। अदिति के गर्भ से देवताओं अथवा आदित्यों ने जन्म लिया और दिति के गर्भ से दैत्यों ने जन्म लिया। देवासुर संग्राम में देवताओं की पराजय के बाद समुद्र मंथन हुआ और उससे प्राप्त अमृत से देवता अमर हो गए।
सात मरुतों के नाम :- आवह, प्रवह, संवह, उद्वह, विवह, परिवह और परावह।
इनके निवास :- ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा इस तरह से कुल 49 मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते हैं।
शस्त्रास्त्र :- सब मरुतों के शस्त्रास्त्र समान रहते हैं। कंधों पर भाले और हाथों में अग्नि के समान तेजस्वी शस्त्र रहते हैं। अपने हाथों में वे कुठार और धनुष रखते हैं। हाथों में चाबुक धारण करते हैं।
दैत्य माता दिति ने अपने पति कश्यप श्रषि से कहा, "देवगण हमेशा हमारी सन्तान को मारने के लिये तरह-तरह के उपाय करते रहते हैं। हमारी एक ऐसी सन्तान होनी चाहिये, जो इंद्र का वध कर सके"।
पति-पत्नी दोनों ने ऐसा संकल्प किया। कुछ दिनों के दिति गर्भवती हुई। इन्द्र को पता लगा कि दिति ने ऐसी सन्तान की कामता करके गर्भ धारण किया है, जो पैदा होने के बाद उसका वध कर सके। महर्षि कश्यप ने चेतावनी दी कि किसी भी प्रकार का अशौच होने की स्थिति में सन्तान का अशुभ है।
इन्द्र को सदा से अपना पद, अपनी प्रतिष्ठा तथा अपना प्राण प्यारा रहा है। इसको बचाने के लिये वे कोई भी उचित-अनुचित कदम उठा सकते थे। इसके लिए वे किसी नीति-नीति का विचार नहीं करते थे। उन्हें ज्ञात हुआ कि अशौच की स्थिति में दिति की सन्तान-गर्भ को नष्ट किया जा सकता है और वे इस इंतजार में रहे। ऐसा होने पर वे दिति के प्रसव से पूर्व एक दिन इन्द्र छल पूर्वक समरूप से दिति के पेट में घुस गये और उस गर्भस्थ शिशु के टुकड़े कर दिये। टुकड़ों में बँट जाने पर भी वह बच्चा रोने लगा तो इन्द्र ने उन्हें चुप करने के लिये पुनः उन सातों के सात-सात टुकड़े कर दिये। इस प्रकार उनचास टुकड़े हो गये। इंद्र देव ने कहा, "मारुत, मा रुदल" अर्थात् मत रोओ, मत रोओ।
वह बच्चा ऋषि-शक्ति सम्पन्न था, अतः टुकड़ों में बँटने पर भी मरा नहीं, बल्कि 49 खण्डों में जन्मा। उतने बच्चों को एक साथ रोते देखकर दिति घबरा गयी और उसने भी "मारुत-मा रुदत" कहकर उन्हें चुप कराया। इस तरह उन बच्चों का नाम ही मरुत् हो गया। वे सब सँख्या में 49-उड़नचास थे।
जब दिति को यह पता चला कि उसके बच्चे को इस प्रकार 49 टुकड़ों में से बाँट देने का जघन्य कार्य इन्द्र ने किया है तो डर के मारे देवराज इंद्र कश्यप और दिति के पास आये तथा उसने हाथ जोड़कर क्षमा माँगी। अपने इस पाप के प्रायश्चित के लिये इन मरुतों को देव श्रेणी प्रदान करने तथा यज्ञ भाग पाने का अधिकारी बनाया। दिति और कश्यप को इससे संतोष हुआ। वे सब मिलकर मरुद्गण कहलाये।
बड़े होने पर मरुद्गणों को द्युलोक तथा अन्तरिक्ष में स्थान दिया गया। ये इन्द्र की बड़ी सहायता करते थे। जिस ओर भी ये चलते थे, वायु में प्रकम्प पैदा होता था तथा भी वायु की वक्रता से उसमें विद्युत पैदा होती थी। ऐसे अवसर पर कहा जाता था कि "चले मरुत उनचास"।
एक बार इन्द्र तथा मरुद्गणों में किसी प्रकार का विवाद हो गया। इन्द्र रुष्ट हो गये और उन्होंने व्यवस्था की कि अब यज्ञ में मरुद्गणों को देवों जैसा यज्ञ भाग नहीं मिलेगा। मरुद्गणों को इंद्र के इस निर्णय का पता नहीं चला परन्तु एक बार महर्षि अगस्त्य ने एक यज्ञ शुरू किया तो उसमें हो देवों तथा मरुद्गणों का हविष्य डालने को कहा।
इन्द्र ने कहा, "ऋषिवर! मरुद्रणों को यज्ञभाग से वञ्चित में कर दिया गया है। अब उन्हें यज्ञ में भाग लेने का अधिकार नहीं है और न ही ये यज्ञाग्नि में हविष्य डाल सकेंगे"। इन्द्र का यह निर्णय सुनकर महर्षि अगस्त्य ने कुछ नहीं कहा, पर मरुद्गण ने इसे अपना अपमान तथा पराभव समझा। क्रोधित होकर वे यज्ञ वेदी से उठ गए। मरुद्गणों के इस प्रकार यज्ञ वेदी से क्रोधित हो उठकर जाते देख महर्षि अगस्त्य ने इंद्र से कहा, इंद्र! तुम्हारी शक्ति, पद, प्रतिष्ठा तथा पूजा समस्त देवों के सहयोग तथा कार्य से होती है। चूंकि तुम देवताओं के राजा हो, इसलिये सारा यश और प्रतिष्ठा तुम्हें मिलती है और सर्वत्र सबसे बढ़कर तुम्हारी हो पूजा होती है। यह मत भूलो कि यदि ये देवगण एक-एक कर तुमसे असहयोग करने लगेंगे तो तुम्हारी शक्ति शून्य हो जायगी। इन मरुद्गणों की शक्ति नहीं जानते और यह भी नहीं जानते कि इन्हीं के सहयोग से भूमण्डल में तुम्हें सर्वपूज्य देवता माना गया है"।
'ये मरुद्गण भूमिधर्मा जल को अपने बल से आकाश में उठाकर फिर उसे वर्षा के रूप में पृथ्वी पर भेजकर अन्न, फल, फूल तथा वनस्पतियों के उत्पादन में सहयोग देते हैं। ये सामान्यरूप से चलकर समस्त जीवों को प्राण वायु प्रदान करते हैं। यदि ये रुष्ट हो गये और भूमण्डल में अकाल पड़ा तो इसके दोषी तुम होओगे और तुम्हारी पूजा तथा प्रतिष्ठा की हानि होगी। यदि ये सब अपने सामूहिक वेग से चलने लगेंगे तो कौन उस वेग को संभालेगा और कौन उसके आगे ठहर सकेगा? तुम्हारे देवलोक को ब्रह्माण्ड के किस अन्तरिक्ष में ये फेंक देंगे, किसी को पता भी नहीं चलेगा!
इसलिये अहंकार वश अपने विनाश का कारण मत बनो। विवेकवान होओ, अहंकार त्यागकर विनयशील होओ। सबके सहयोग से विश्व का कल्याण करो, इसी से तुम्हारे अस्तित्व की रक्षा होगी।
महर्षि अगस्त्य की यह चेतावनी सुनकर इंद्र का अहंकार नष्ट हुआ। उन्होंने जाकर मरुद्गणों से क्षमा माँगी तथा विनयपूर्वक सबको मनाया एवं उन्हें यज्ञ भाग का अधिकारी बनाया और देव श्रेणी की मर्यादा दी।[ऋग्वेद]
उनचास मरुत ::
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥
जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो वे उनचासों पवन चलने लगे। हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश से जाने लगे।[तुलसीदास, रामचरित मानस, सुन्दर कांड 25]
वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है।
7 प्रकार की वायु-पवन :: (1). प्रवह, (2). आवह, (3). उद्वह, (4). संवह, (5). विवह, (6). परिवह और (7). परावह।
(1). प्रवह :- यह पृथ्वी को लाँघकर मेघ मण्डल पर्यन्त जो वायु स्थित है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणत हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं।
(2). आवह :- यह सूर्य मण्डल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्य मण्डल घुमाया जाता है।
(3). उद्वह :- यह चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मण्डल घुमाया जाता है।
(4). संवह :- यह नक्षत्र मण्डल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मण्डल घूमता रहता है।
(5). विवह :- यह ग्रह मण्डल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है।
(6). परिवह :- यह सप्तर्षि मण्डल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।
(7). परावह :- यह ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मण्डल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
इन सातों वायु के सात-सात गण संचालित करने वाले हैं जो निम्न जगह में विचरण करते हैं :-
ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक कि दक्षिण दिशा। इस तरह 7x7 = 49. कुल 49 मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं।
It shows that its not merely gravitational attraction which ties-moves the stars, constellations, solar system, moons in their orbit. The 49 segments of Marut-Marud Gan contribute in their stability and motion in space.
आदह स्वधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे।
दधाना नाम यज्ञियम्॥
यज्ञीय नाम वाले, धारण करने में समर्थ मरुत वास्तव में अन्न की (वृद्धि की) कामना से बार-बार (मेघ आदि) गर्भ को प्राप्त होते है।[ऋग्वेद 1.6.4]
अन्न प्राप्ति की इच्छा से यज्ञोपयोगी हुए मरुद्गण गर्भ को बादल में रचने वाले हैं।
The Marut Gan, bearing the names as per the Yagy-endeavour, effort, turn the air into clouds with the desire to produce food grain.
वीळु चिदारुजत्नुभिर्गुहा चिदिन्द्र वह्रिभि:। अविन्द उस्त्रिया अनु॥
हे इन्द्रदेव! सुदृढ़ किले को ध्वस्त करने में समर्थ, तेजस्वी मरुद् गणों के सहयोग से आपने गुफा में अवरुद्ध गौओं (किरणों) को खोजकर प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.6.5]
हे इन्द्र! सुदृढ़ दुर्गों के भी भेदक हो। तुमने गुफा में छपी हुई गायों को मरुद्गण की सहायता से प्राप्त किया है।
Hey Indr Dev! Being capable of demolishing a strong fort with the help of Marud Gan you released the cows trapped in the cave.
देवयन्तो यथा मतिमिच्छा विदद्वसुं गिर:। महानूषत् श्रुतम्॥
देवत्व प्राप्ति की कामना वाले ज्ञानी ऋत्विज्, महान यशस्वी, ऐश्वर्यवान वीर मरुद्गणों की बुद्धिपूर्वक स्तुति करते है।[ऋग्वेद 1.6.6]
देवत्व-ग्रहणता की अभिलाषा से वन्दना करने वाले उन समृद्धिवान और ज्ञानी मरुद्गणों को अपनी तेज बुद्धि से वंदना करते हैं।
The enlightened performer of Yagy, pray the Marud Gan who are famed-honourable, possessed with all amenities and are brave; through their intelligence.
इन्द्रेण सं हि दृक्षसे सञ्जग्मानो अबिभ्युषा। मन्दू समानवर्चसा॥
सदा प्रसन्न रहने वाले, समान् तेज वाले मरुद् गण निर्भय रहने वाले इन्द्रदेव के साथ संगठित अच्छे लगते है।[ऋग्वेद 1.6.7]
यह इन्द्र के सहगामी मरुद्गण निडर हैं और इन्द्र देव तथा मरुद्गण एक से ही तेज वाले हैं।
The Marud Gan who are always happy, fearless, having aura, associate themselves with Indr Dev.
अनवद्यैरभिद्युभिर्मख: सहस्वदर्चति। गणैरिन्द्रस्य काम्यै:॥
इस यज्ञ में निर्दोष, दीप्तिमान्, इष्ट प्रदायक, सामर्थ्यवान मरुद् गणों के साथी इन्द्रदेव के सामर्थ्य की पूजा की जाती है।[ऋग्वेद 1.6.8]
इस यज्ञ में निर्दोष और यशस्वी मरुद्गणों के सखा इन्द्र को शक्तिमान समझकर अर्चना की जाती है।
In this Yagy the Indr, who is sinless, glittering, capable of granting boons, associate of mighty Marud Gan is prayed-worshipped.
अत: परिज्मन्ना गहि दिवो वा रोचनादधि। समस्मिन्नृञ्जते गिर:॥
हे सर्वत्र गमनशील मरुद् गणों! आप अंतरिक्ष से, आकाश से अथवा प्रकाशमान द्युलोक से यहाँ पर आयें, क्योंकि इस यज्ञ में हमारी वाणी आपकी स्तुति कर रही है।[ऋग्वेद 1.6.9]
हे सर्वत्र विचरने प्रीतो! तुम अंतरिक्ष, पाताल या सूर्य लोक से यहाँ आ जाओ। इस अनुष्ठान में संगठित समस्त तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey Marud Gan! You are capable of movement every where, the space, sky and the divine abodes. Please come here to bless us. We are enchanting verses (Shlok-Mantr) in your honour.
मरुतः पिबत ऋतुना पोत्राद्यज्ञं पुनीतन। यूयं हि ष्ठा सुदानवः॥
दानियाँ में श्रेष्ठ हे मरुतो! आप पोता नामक ऋत्विज् के पात्र से ऋतु के अनुकूल सोमरस का पान करें एवं हमारे इस यज्ञ को पवित्रता प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.15.2]
हे मरुद्गणों! ऋतु के युक्त सोमपात्र से सोमपान करो। तुम कल्याण दाता मेरे यज्ञ को शुद्ध करो।
Hey the excellent Marud Gan in the universe! Please consume the Somras through the pot of the host named Pota, as per the season and purify this Yagy.
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 19 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- अग्नि और मरुद्गण, छन्द :- गायत्री।
प्रति त्यं चारुमध्वरं गोपीथाय प्र हूयसे। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! श्रेष्ठ यज्ञों की गरिमा के संरक्षण के लिये हम आपका आवाहन करते हैं, आपको मरुतों के साथ आमंत्रित करते हैं, अतः देवताओं के इस यज्ञ में आप पधारें।[ऋग्वेद 1.19.1]
हे अग्नि! सुशोभित अनुष्ठान में सोमपान करने के लिए तुम्हारा आह्वान करता हूँ। मरुद्गणों के संग यहाँ पधारो।
Hey Agni Dev! We invite you to join this Yagy to maintain its glory & excellence, along with the Marud Gan. Kindly oblige us.
नहि देवो न मर्त्यो महस्तव क्रतुं परः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! ऐसा न कोइ देव है, न ही कोई मनुष्य, जो आपके द्वारा सम्पादित महान कर्म को कर सके। ऐसे समर्थ आप मरुद्गणों से साथ आप इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.19.2]
हे अग्ने! तुम्हारे तुल्य कोई देवता या मनुष्य श्रेष्ठतम नहीं है, जो तुम्हारी शक्ति का सामना कर सके। तुम मरुतों के संग विराजो।
Hey Agni Dev! There is no human or demigod who matches-equals you and initiate-perform the great deed-Yagy. Having the capability, please join us along with the Marud Gan.
ये महो रजसो विदुर्विश्वे देवासो अद्रुहः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
मरुद्गण पृथ्वी पर श्रेष्ठ जल वृष्टि की विधि जानते है या क्षमता से सम्पन्न हैं। हे अग्निदेव! आप उन द्रोह रहित मरुद्गणों के साथ इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.19.3]
जो विश्वेदेवा किसी से शत्रुता नहीं रखते और उत्तम अंतरिक्ष के ज्ञाता हैं। हे अग्ने! उनके सहित आओ।
Hey Agni Dev! The Marud Gan are blessed with the capacity-power & technique to shower rains over the earth. Please join us with the Marud Gan; who have no enemies.
य उग्रा अर्कमानृचुरनाधृष्टास ओजसा। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! जो अति बलशाली, अजेय और अत्यन्त प्रचण्ड सूर्य के सदृश प्रकाशक हैं। आप उन मरुद्गणों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.4]
हे अग्ने! जिन उग्र और अजेय, बलशाली मरुतों ने वृष्टि की थी, श्लोकों से वंदना किये हुए उन मरुतों के साथ यहाँ आओ।
Hey Agni Dev! Please join us along with the Marud Gan who are strong & invincible bearing energy-aura like the Sun
ये शुभ्रा घोरवर्पसः सुक्षत्रासो रिशादसः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
जो शुभ्र तेजों से युक्त तीक्ष्ण, वेधक रूप वाले, श्रेष्ठ बल-सम्पन्न और शत्रु का संहार करने वाले हैं। हे अग्निदेव! आप उन मरुतों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.5]
हे अग्ने! जो शोभायुक्त और उग्र रूप धारण करने वाले हैं जो बलशाली और शत्रुओं के संहारकर्ता हैं, उन्हीं मरुद्गणों सहित आ जाओ।
Hey Agni Dev! Join us along with the Marud Gan who are penetrating-sharp, have power and are capable of destroying the enemy.
ये नाकस्याधि रोचने दिवि देवास आसते। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! ये जो मरुद्गण सबके उपर अधिष्ठित, प्रकाशक, द्युलोक के निवासी हैं, आप उन मरुदगणों के साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.6]
हे अग्ने! स्वर्ग से ऊपर प्रकाशमान संसार में जिन मरुतों का निवास है, उन्हें संग लेकर प्रस्थान करो।
Hey Agni Dev! Please join our venture-Yagy along with the Marud Gan who are designated as the highest (among the demigods), reside over the heavens & are brilliant.
य ईङ्खयन्ति पर्वतान्तिरः समुद्रमर्णवम्। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! जो पर्वत सदृश विशाल मेघों को एक स्थान से दूसरे सुदूरस्थ दूसरे स्थान पर ले जाते हैं तथा जो शान्त समुद्रों में भी ज्वार पैदा कर देते हैं (हलचल पैदा कर देते है), ऐसे उन मरुद्गणों को साथ लेकर आप इस यज्ञ में पधारे।[ऋग्वेद 1.19.7]
हे अग्ने! मेघों का संचालन करने वाले और जल को समुद्र में गिराने वाले मरुतों के संग यहाँ विराजो।
Hey Agni Dev! Please come here along with the Marud Gan who move the clouds which are like the mountains & shake the ocean waters generating tides in it.
आ ये तन्वन्ति रश्मिभिस्तिरः समुद्रमोजसा। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! जो सूर्य की रश्मियों के साथ सर्व व्याप्त होकर समुद्र को अपने ओज से प्रभावित करते हैं, उन मरुतों के साथ आप यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.8]
हे अग्ने! सूर्य की किरणों के साथ सर्वत्र व्याप्त और समुद्र को बलपूर्वक चलायमान करने वाले मरुतों के साथ यहाँ आओ।
Hey Agni Dev! Please associate the Marud Gan with us, who adds up their energy with the Sun rays and affect the oceans waters with their aura-energy.
अभि त्वा पूर्वपीतये सृजामि सोम्यं मधु। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! सर्वप्रथम आपके सेवनार्थ यह मधुर सोमरस हम अर्पित करते हैं, अतः आप मरुतों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.9]
हे अग्ने! आपके पीने के लिए सुमधुर सोम रस प्रस्तुत कर रहा अतः तुम मरुतों के साथ यहाँ आ जाओ।
Hey Agni Dev! We initiate by serving this sweet Somras to you, hence please visit us along with the Marud Gan.
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 37 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- मरुद्गण, छन्द :- गायत्री।
क्रीळं वः शर्धो मारुतमनर्वाणं रथेशुभम्। कण्वा अभि प्र गायत॥
हे कण्व गोत्रीय ऋषियो! क्रीड़ा युक्त, बल सम्पन्न, अहिंसक वृत्तियों वाले मरुद्गण रथ पर शोभायमान हैं। आप उनके निमित्त स्तुतिगान करें।[ऋग्वेद 1.37.1]
हे कण्वगोत्र वाले ऋषियों क्रीड़ा परिपूर्ण अहिंसित मरुद्गण रथ पर सुशोभित हैं। उनके लिए बंदना गान करो।
Hey Rishis from the Kavy clan! The playful, strong-mighty, non violent Marud Gan are riding their chariot. You should sing hymns in their honour.
ये पृषतीभिरृष्टिभिः साकं वाशीभिरञ्जिभिः। अजायन्त स्वभानवः॥
हे मरुद्गण स्वदीप्ति से युक्त धब्बों वाले मृगों (वाहनों) सहित और आभूषणों से अलंकृत होकर गर्जना करते हुए प्रकट हुए हैं।[ऋग्वेद 1.37.2]
वे अपने आप दीप्ति वाले, विन्दु चिह्न से परिपूर्ण महिरच-वाहन शस्त्रों युद्धों में ललकारों, आभूषणादि से परिपूर्ण रचित हुए हैं।
These Marud Gan have appeared with the aura-brilliance of their own, spotted deer-vehicles and decorated with ornaments-armours & weapons creating roaring sound.
इहेव शृण्व एषां कशा हस्तेषु यद्वदान्। नि यामञ्चित्रमृञ्जते॥
मरुद्गणों के हाथों में स्थित चाबुकों से होने वाली ध्वनियाँ हमें सुनाई देती हैं, जैसे वे यहीं हो रही हों। वे ध्वनियाँ संघर्ष के समय असामान्य शक्ति प्रदर्शित करती हैं।[ऋग्वेद 1.37.3]
इनके हाथों में चाबुक का शब्द हम सुन रहे हैं । यह अद्भुत चाबुक युद्ध में शक्ति बढ़ाने बाली है।
We are hearing the sound of whips in their hands, as if they are here-close to us. These sounds shows-liberate unusual powers during confrontation-war.
प्र वः शर्धाय घृष्वये त्वेषद्युम्नाय शुष्मिणे। देवत्तं ब्रह्म गायत॥
हे याजको! आप बल बढ़ाने वाले, शत्रु नाशक, दीप्तिमान मरुद्गणों की सामर्थ्य और यश का मंत्रों से विशिष्ट गान करें।[ऋग्वेद 1.37.4]
वे मरुद्गण तुम्हारी शक्ति को बढ़ाते हैं और प्रतापी बनाते हैं। उन शत्रुनाशक की प्रार्थना करो।
Hey performer of Yagy! Recite the special prayers meant to boost the capability, power, strength, might of the glorious Marud Gan who destroys the enemy.
प्र शंसा गोष्वघ्न्यं क्रीळं यच्छर्धो मारुतम्। जम्भे रसस्य वावृधे॥
हे याजको! आप किरणों द्वारा संचरित दिव्य रसों का पर्याप्त सेवन कर बलिष्ठ हुए उन मरुद्गणों के अविनाशी बल की प्रशंसा करें।[ऋग्वेद 1.37.5]
दुग्धदात्री गायों ऋषभ से क्रीड़ा करने वाले मरुद्गणों की वंदना करो। वह वर्धा रूप रस को पान कर वृद्धि को ग्रहण हुए हैं।
Hey Yagy performers! Appreciate the unending powers of the Marud Gan who acquire-consume the divine extracts through the rays and become strong-powerful.
को वो वर्षिष्ठ आ नरो दिवश्च ग्मश्च धूतयः। यत्सीमन्तं न धूनुथ॥
द्युलोक और भूलोक को कम्पित करनेवाले हे मरुतो! आप में वरिष्ठ कौन है? जो सदा वृक्ष के अग्रभाग को हिलाने के समान शत्रुओं को प्रकम्पित कर दे।[ऋग्वेद 1.37.6]
क्षितिज धरा को कम्पायमान करने वाले मरुतो! तुमसे बड़ा कौन है? तुम वृक्ष की डालियों के तुल्य संसार को हिलाते हो।
Hey Marud Gan, capable of trembling-vibrating the earth and the upper abodes! Who is your leader-senior amongest you, who can shake the enemies just like the upper branches of the tree?
नि वो यामाय मानुषो दध्र उग्राय मन्यवे। जिहीत पर्वतो गिरिः॥
हे मरुद्गणों! आपके प्रचण्ड संघर्ष आवेश से भयभीत मनुष्य सुदृढ़ सहारा ढूँढता है, क्योंकि आप बड़े पर्वतों और टीलों को भी कँपा देते हैं।[ऋग्वेद 1.37.7]
हे मरुतो! तुम्हारी गति और गुस्से से भय ग्रस्त मनुष्यों ने सुदृढ़ स्तम्भ खड़े किये हैं तुम बड़े जोड़ों वाले पर्वतों को भी कम्पायमान कर देते हो।
Hey Marud Gan! You shake large mountains & hillocks when in fierce mode-mood. The afraid person looks to hideout-shelter in this state.
येषामज्मेषु पृथिवी जुजुर्वाँ इव विश्पतिः। भिया यामेषु रेजते॥
उन मरुद्गणों के आक्रमणकारी बलों से यह पृथ्वी जरा-जीर्ण नृपति की भाँति भयभीत होकर प्रकम्पित हो उठती है।[ऋग्वेद 1.37.8]
उन मरुतों की गति से पृथ्वी वृद्ध राजा के समान भय से काँपती है।
The earth start trembling-shaking, like and old fragile person, when the Marud Gan are in attacking-war mode-mood.
स्थिरं हि जानमेषां वयो मातुर्निरेतवे। यत्सीमनु द्विता शवः॥
इन वीर मरुतों की मातृभूमि आकाश स्थिर है। ये मातृभूमि से पक्षी के वेग के समान निर्बाधित होकर चलते हैं। उनका बल दुगुना होकर व्याप्त होता है।[ऋग्वेद 1.37.9]
उनका जन्म स्थान स्थित है। उनकी मातृ-भूमि आकाश में पक्षी की गति भी निर्बाध है। उनका बल दुगुना होकर फैला है।
The brave fighters Marud Gan's place of birth space is stationary-fixed, so they move like birds without any obstacles-opposition. It enhance-doubles their power, strength, might.
उदु त्ये सूनवो गिरः काष्ठा अज्मेष्वत्नत। वाश्रा अभिज्ञु यातवे॥
शब्द नाद करने वाले मरुतों ने यज्ञार्थ जलों को निःसृत किया। प्रवाहित जल का पान करने के लिए रंभाति हुई गौएं घुटने तक पानी में जाने के लिए बाध्य होती हैं।[ऋग्वेद 1.37.10]ये अंतरिक्ष में रचित मरुद्गण विचरण के लिए जल का विस्तार करते हैं और ध्वनि करने वाली गायों को घुटने-घुटने जल में ले जाते हैं।
The sound producing Marud Gan expelled-repelled water so that the cows can move into the flowing waters till their knees, for drinking it.
त्यं चिद्घा दीर्घं पृथुं मिहो नपातममृध्रम्। प्र च्यावयन्ति यामभिः॥
विशाल और व्यापक, न बिंध सकने वाले, जल वृष्टि न करने वाले मेघों को भी वीर मरुद्गण अपनी तेज गति से उड़ा ले जाते है।[ऋग्वेद 1.37.11]
अवश्य ही मरुद्गण उस व्यापक अवध्य वेन पुत्र को अपनी चाल से कँपाते हैं।
The Marud Gan moves away the large clouds, which can not be pierced, and are without water with their high speed.
मरुतो यद्ध वो बलं जनाँ अचुच्यवीतन। गिरीँरचुच्यवीतन॥
हे मरुतो! आप अपने बल से लोगों को विचलित करते हैं, आप पर्वतों को भी विचलित करने में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 1.37.12]
मरुद्गण चलते हैं, तब आपस में बातें करते हैं। उनके उस शब्द को कौन सुनते हैं।
Hey Marud Gan! You disturb the humans due to your power. You are capable of disturbing-dislocating mountains as well.
Typhoons, tornado, cyclones, twister, avalanche and even Tsunami are the different forms of fierce Marud Gan.यद्ध यान्ति मरुतः सं ह ब्रुवतेऽध्वन्ना। शृणोति कश्चिदेषाम्॥
जिस समय मरुद्गण गमन करते हैं, तब वे मध्य मार्ग में ही परस्पर वार्ता करने लगते हैं। उनके शब्द को भला कौन नहीं सुन लेता है? (सभी सुन लेते है।)।[ऋग्वेद 1.37.13]
हे मरुतों! तुमने अपनी शक्ति से मनुष्यों को कार्य में प्रेरित किया है। तुम्हीं बादलों को प्रेरित करने वाले हो।
When the Marud Gan move, they talk together and are heard by every one.
प्र यात शीभमाशुभिः सन्ति कण्वेषु वो दुवः। तत्रो षु मादयाध्वै॥
हे मरुतो! आप तीव्र वेग वाले वाहन से शीघ्र आएं, कण्व वंशी आपके सत्कार के लिए उपस्थित हैं। वहाँ आप उत्साह के साथ तृप्ति को प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.37.14]
हे मरुतो! वेग वाले वाहन से शीघ्र आओ। यहाँ कण्व वंशी और अन्य विद्वान एकत्रित हैं। उनके द्वारा प्रसन्नता प्राप्त करो।
Hey Marud Gan! Please come here with high speed. Kavy Vanshi have gathered here to welcome you. You will be satisfied-satiated there.
अस्ति हि ष्मा मदाय वः स्मसि ष्मा वयमेषाम्। विश्वं चिदायुर्जीवसे॥
हे मरुतो! आपकी प्रसन्नता के लिए यह हवि-द्रव्य तैयार है। हम सम्पूर्ण आयु सुखद जीवन प्राप्त करने के लिए आपका स्मरण करते है।[ऋग्वेद 1.37.15]
हे मरुतो! तुम्हारे हर्ष के लिए हवि प्रस्तुत है। हम आयु प्राप्त करने के लिए यहाँ उपस्थित हैं।
Hey Marut! For your happiness pleasure this drink (Somras) in the form of offerings is ready. We pray-worship you for comfortable life.
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 38 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- मरुद्गण, छन्द :- गायत्री।
कद्ध नूनं कधप्रियः पिता पुत्रं न हस्तयोः। दधिध्वे वृक्तबर्हिषः॥
हे स्तुति प्रिय मरुतो! आप कुश के आसनों पर विराजमान हो। पुत्र को पिता द्वारा स्नेह पूर्वक गोद में उठाने के समान, आप हमें कब धारण करेंगे?[ऋग्वेद 1.38.1]
हे वंदनाओं को चाहने वालों मरुतो! तुम्हारे हेतु कुशा का आसन बिछाया गया है। पिता द्वारा पुत्र को धारण करने के तुल्य तुम हमें कब धारण करोगे?
Hey Marud Gan! Please be seated over the Kushasan (cushion made of Kush grass). When will you adopt us like the father carrying his son in the lap (granting protection, shelter, asylum), keeping round the shoulders!?
क्व नूनं कद्वो अर्थं गन्ता दिवो न पृथिव्याः। क्व वो गावो न रण्यन्ति॥
हे मरुतो! आप कहाँ हैं? किस उद्देश्य से आप द्युलोक में गमन करते हैं? पृथ्वी में क्यों नही घूमते? आपकी गौएं आपके लिए नहीं रम्भाती क्या? अर्थात आप पृथ्वी रूपी गौ के समीप ही रहें।[ऋग्वेद 1.38.2]
हे मरुतो! तुम अब कहाँ हो? किसलिए क्षितिज मार्ग में विचरण करते हो? पृथ्वी पर क्यों विचरण नहीं करते? तुम्हारी धेनु तुम्हें नहीं बुलाती?
Hey Maruto! Where are you? What is the purpose behind your roaming in the space? Why do not you come to the earth? Do your cows not Moo-call you?
क्व वः सुम्ना नव्यांसि मरुतः क्व सुविता। क्वो विश्वानि सौभगा॥
हे मरुद्गणों! आपके नवीन संरक्षण साधन कहाँ है? आपके सुख-ऐश्वर्य के साधन कहाँ हैं? आपके सौभाग्यप्रद साधन कहाँ हैं? आप अपने समस्त वैभव के साथ इस यज्ञ में आयें।[ऋग्वेद 1.38.3]
हे मरुतो! तुम्हारी अभिनव कृपाएँ, शुभ और सौभाग्य कहाँ है?
Hey Marud Gan! Where are new means of protection (well wishes, good luck)? Where are your means of comforts, luxuries, amenities? Where are means of granting good luck-destiny? Please come to this Yagy with all your glory.
यद्यूयं पृश्निमातरो मर्तासः स्यातन। स्तोता वो अमृतः स्यात्॥
हे मातृभूमि की सेवा करने वाले आकाश पुत्र मरुतो! यद्यपि आप मरणशील हैं, फिर भी आपकी स्तुति करने वाला अमरता को प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.38.4]हेआकाश पुत्रो! यद्धपि तुम मरण धर्मा पुरुष हो, तुम्हारा स्तोता अमर और शत्रु से कभी पराजित होने वाला हो।
Hey sons of space Marud Gan! You serve the mother land. Though you are perishable, yet those who worship you become immortal.
मा वो मृगो न यवसे जरिता भूदजोष्यः। पथा यमस्य गादुप॥
जैसे मृग, तृण को असेव्य (untouchable, which can not be used-consumed or rejected) नहीं समझता, उसी प्रकार आपकी स्तुति करने वाला आपके लिए अप्रिय न हो (आप उस पर कृपालु रहें), जिससे उसे यमलोक के मार्ग पर न जाना पड़े।[ऋग्वेद 1.38.5]
जिस प्रकार घास के मैदान में मृग आहार प्राप्त करता है पर मृग के लिए घास असेवनीय नहीं होती उसी प्रकार स्तोता भी सेवा प्राप्त करता रहे, जिससे उसे यम मार्ग में न जाना पड़े।
The manner in which the deer do not consider grass as unconsumable, one worshiping-praying you should not be disliked by you. You should always be kind to him, so that he has not to follow the route-path of Yam Lok-the abode of the deity of death.
मो षु णः परापरा निरृतिर्दुर्हणा वधीत्। पदीष्ट तृष्णया सह॥
अति बलिष्ठ पाप वृत्तियाँ हमारी दुर्दशा कर हमारा विनाश न करें, प्यास (अतृप्ति) से वे ही नष्ट हो जायें।[ऋग्वेद 1.38.6]बारम्बार ग्रहण होने वाले पाप के बल हमारी हिंसा न करें। वह तृण के तुल्य समाप्त हो जाए।
The strong tendencies leading us to sins, should not be able to destroy-over power us. They should be eliminated for want of nourishment.
One should never be tempted by sensualities, sexuality, lasciviousness, sins, vices, wickedness, greed etc. Whole hearted efforts should be made to resist-repel them.
सत्यं त्वेषा अमवन्तो धन्वञ्चिदा रुद्रियासः। मिहं कृण्वन्त्यवाताम्॥
यह सत्य ही है कि कान्तिमान, बलिष्ठ रूद्रदेव के पुत्र वे मरुद्गण, मरु भूमि में भी अवात स्थिति से वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.38.7]
वे कांतिमय रुद्र के पुत्र मरुद्गण मरु भूमि में पवन सहित वृष्टि करते हैं।
The shinning, strong sons of Rudr Dev, the Marud Gan rain in desert regions as well without discrimination, in the absence of winds.
वाश्रेव विद्युन्मिमाति वत्सं न माता सिषक्ति। यदेषां वृष्टिरसर्जि॥
जब वह मरुद्गण वर्षा का सृजन करते हैं तो विद्युत रम्भाने वाली गाय की तरह शब्द करती है, (जिस प्रकार) गाय बछड़ों को पोषण देती है, उसी प्रकार वह विद्युत सिंचन करती है।[ऋग्वेद 1.38.8]
रम्भाने वाली धेनु के तुल्य जब विद्युत कड़कड़ाती है और वृष्टि होती है, तब बछड़े का पोषण करने वाली गाय के समान ही मौन हुई बिजली मरुतों की सेवा करती है।
The electric streak create the sound of mooing cows, while feeding their calf, when the Marud Gan create rain showers.
दिवा चित्तमः कृण्वन्ति पर्जन्येनोदवाहेन। यत्पृथिवीं व्युन्दन्ति॥
मरुद्गण जल प्रवाहक मेघों द्वारा दिन में भी अंधेरा कर देते हैं, तब वे वर्षा द्वारा भूमि को आद्र करते हैं।[ऋग्वेद 1.38.9]
जल वर्षक मेघों से मरुद्गण दिन में भी अंधेरा कर देते हैं। उस समय वे पृथ्वी को वर्षा से सींचते हैं।
While watering the earth, the Marud Gan make it dark during the day with the rain carrying clouds.
अध स्वनान्मरुतां विश्वमा सद्म पार्थिवम्। अरेजन्त प्र मानुषाः॥
मरुतों की गर्जना से पृथ्वी के निम्न भाग में अवस्थित सम्पूर्ण स्थान प्रकम्पित हो उठते हैं। उस कम्पन से समस्त मानव भी प्रभावित होते हैं।[ऋग्वेद 1.38.10]मरुतों की गर्जना से पृथ्वी पर बने हुए भवन तथा प्राणी भी काँपने लगते हैं।
All structures in the lower regions of the earth start shaking-trembling by the roars of the clouds, affecting the humans.
मरुतो वीळुपाणिभिश्चित्रा रोधस्वतीरनु। यातेमखिद्रयामभिः॥
हे अश्वों को नियन्त्रित करने वाले मरुतो! आप बलशाली बाहुओं से, अविच्छिन्न गति से शुभ्र नदियों की ओर गमन करें।[ऋग्वेद 1.38.11]
हे मरुद्गण! तुम स्थिर खुर वाले लगातार चाल वाले अश्वों द्वारा उज्जवल नदियों की ओर गति करो।
Hey controller of horses Marud Gan! You should move with unbroken speed-regular speed towards the holy-pious rivers, with your mighty arms.
स्थिरा वः सन्तु नेमयो रथा अश्वास एषाम्। सुसंस्कृता अभीशवः॥
हे मरुतो! आपके रथ बलिष्ठ घोड़ों, उत्तम धुरी और चंचल लगाम से भली प्रकार अलंकृत हों।[ऋग्वेद 1.38.12]
हे मरुतो! तुम्हारे पहिये की गति, रथ की धुरी और रासें श्रेष्ठ हों तथा घोड़े दृढ़ व बलशाली बनें।
Hey Marud Gan! Your chariot should be decorated with strong horses, excellent excel and reins.
अच्छा वदा तना गिरा जरायै ब्रह्मणस्पतिम्। अग्निं मित्रं न दर्शतम्॥
हे याजको! आप दर्शनीय मित्र के समान ज्ञान के अधिपति अग्नि देव की, स्तुति युक्त वाणियों द्वारा प्रशंसा करें।[ऋग्वेद 1.38.13]
सखा के समान वेद-रक्षक अग्नि को साध्य बनाकर वन्दना संकल्पों का उच्चारण करो।
Hey hosts performing Yagy! You should pray to Agni Dev-the leader of knowledge with the help of hymns like a close-fast friend.
मिमीहि श्लोकमास्ये पर्जन्य इव ततनः। गाय गायत्रमुक्थ्यम्॥
हे याजको! आप अपने मुख से श्लोक रचना कर मेघ के समान इसे विस्तारित करें। गायत्री छ्न्द में रचे हुये काव्य का गायन करें।[ऋग्वेद 1.38.14]
अपने मुख से श्लोकों को रचित करो। मेघों को समान श्लोकों की वृद्धि करो। शास्त्रों के अनुकूल स्तोत्र का गायन करो।
Hey hosts! You should recite Shloks-verses with your mouth and propagate it all over & recite the poems from Gayatri Chhand.
वन्दस्व मारुतं गणं त्वेषं पनस्युमर्किणम्। अस्मे वृद्धा असन्निह॥
हे ऋत्विजो! आप कान्तिमान, स्तुत्य, अर्चन योग्य मरुद्गणों का अभिवादन करें, यहाँ हमारे पास इनका वास रहे।[ऋग्वेद 1.38.15]
कांतिमान, पूजनीय और प्रार्थनाओं से युक्त मरुतों की पूजा करो। वे महान हमारे यहाँ वास करें!
Hey performer of Yagy! You should welcome & pray-worship the Marud Gan bearing aura.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 39 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- मरुद्गण, छन्द :- बाहर्त प्रगाथ (विषमा बृहती, समासतो बृहती)।
प्र यदित्था परावतः शोचिर्न मानमस्यथ।
कस्य क्रत्वा मरुतः कस्य वर्पसा कं याथ कं ह धूतयः॥
हे कम्पाने वाले मरुतो! आप अपना बल दूरस्थ स्थान से विद्युत के समान यहाँ पर फेंकते हैं, तो आप (किसके यज्ञ की ओर) किसके पास जाते हैं? किस उद्देश्य से आप कहाँ जाना चाहते हैं? उस समय आपका लक्ष्य क्या होता है?।[ऋग्वेद 1.39.1]
हे कम्पायमान करने वाले मरुतो! जब तुम दूर से ही धारा के तुल्य अपने तेज को इस स्थान पर फेंकते हो तब तुम किसके अनुष्ठान से आकृष्ट होते और किसके निकट जाते हो?
Hey Marud Gan, creating shaking waves! To whose Yagy, do you transfer your force-might (energy) like electricity to distant places, with what purpose and what is your goal-target at that time-moment?
स्थिरा वः सन्त्वायुधा पराणुदे वीळू उत प्रतिष्कभे।
युष्माकमस्तु तविषी पनीयसी मा मर्त्यस्य मायिनः॥
आपके हथियार शत्रु को हटाने मे नियोजित (employed, planned, prearranged, target) हों। आप अपनी दृढ़ शक्ति से उनका प्रतिरोध करें। आपकी शक्ति प्रशंसनीय हो। आप छद्म वेषधारी मनुष्यों को आगे न बढ़ायें।[ऋग्वेद 1.39.2]
हे मरुतो! तुम्हारे शस्त्र शत्रुओं का नाश करने को दृढ़ हो। स्थिरतापूर्वक शत्रुओं को रोकें। तुम्हारी शक्ति पूजनीय हो। धोखा करने वालों की हमारे पास प्रशंसा न हो।
Your arms & ammunition has been programmed to remove-destroy the enemy. You should resist them with great determination-will power. Your might should be appreciated. Don't let the impostors proceed further-forward.
परा ह यत्स्थिरं हथ नरो वर्तयथा गुरु।
वि याथन वनिनः पृथिव्या व्याशाः पर्वतानाम्॥
हे मरुतो! आप स्थिर वृक्षों को गिराते, दृढ़ चट्टानों को प्रकम्पित करते, भूमि के वनों को जड़ विहीन करते हुए पर्वतों के पार निकल जाते हैं।[ऋग्वेद 1.39.3]
हे मरुतो! तुम पेड़ों को गिराते, पत्थरों को घुमाते और पृथ्वी के नए वृक्षों के मध्य से तथा पर्वतों में छिद्र करके निकल जाते हो।
Hey Marud Gan-Maruto! You move-proceed forward, pulling down stationary trees, strong rocks-hills, cliffs, destroying the forests through the mountains.
नहि वः शत्रुर्विविदे अधि द्यवि न भूम्यां रिशादसः।
युष्माकमस्तु तविषी तना युजा रुद्रासो नू चिदाधृषे॥
हे शत्रु नाशक मरुतो! न द्युलोक में और न पृथ्वी पर ही, आपके शत्रुओं का आस्तित्व है। हे रूद्र पुत्रो! शत्रुओं को क्षत-विक्षत करने के लिए आप सब मिलकर अपनी शक्ति विस्तृत करें।[ऋग्वेद 1.39.4]
हे शत्रु नाशक मरुतो! आकाश और पृथ्वी पर तुम्हारा कोई शत्रु नहीं है। हे रुद्र पुत्रो! तुम मिलकर शत्रुओं के दमन के लिए शक्ति को बढ़ाओ।
Hey, the slayer of enemy Maruto! Your enemies are non existent either in the heavens or the earth. Hey the sons of Rudr! Cut-chop the enemies into pieces and enhance your boost (strength-power) together.
प्र वेपयन्ति पर्वतान्वि विञ्चन्ति वनस्पतीन्।
प्रो आरत मरुतो दुर्मदा इव देवासः सर्वया विशा॥
हे मरुतो! मदमत्त हुए लोगों के समान आप पर्वतों को प्रकम्पित करते हैं और पेड़ों को उखाड़ कर फेंकते हैं। अतः आप प्रजाओं के आगे-आगे उन्नति करते हुए चलें।[ऋग्वेद 1.39.5]
वे मरुद्गण पर्वतों को कम्पाते हुए पेड़ों को अलग-अलग करते हैं। हे मरुतो! तुम मदमत्त के समान प्रजागण के साथ आगे चलो।
Hey Maruto! You shake the mountains and unroot the trees like intoxicated person. So, move ahead the populace for their progress.
उपो रथेषु पृषतीरयुग्ध्वं प्रष्टिर्वहति रोहितः।
आ वो यामाय पृथिवी चिदश्रोदबीभयन्त मानुषाः॥
हे मरुतो! आपके रथ को चित्र-विचित्र चिह्नों से युक्त (पशु आदि) गति देते हैं, उनमें लाल रंग वाला अश्व धुरी को खींचता है। तुम्हारी गति से उत्पन्न शब्द भूमि सुनती है, मनुष्य गण उस ध्वनि से भयभीत हो जातें हैं।[ऋग्वेद 1.39.6]
हे मरुतो! तुमने बिन्दु परिपूर्ण हिरणों के रथ में जोड़ा है। लाल हिरण सबसे आगे जुड़ा है।पृथ्वी तुम्हारी प्रतीक्षा करती है। मनुष्य तुम से भयग्रस्त हो गये हैं।
Hey Maruto! Your chariot is accelerated-pulled by the spotted animals like deer-deployed in the front. Red coloured horse pulls the axel. The earth listens the sound produced by your chariot and the humans become afraid due to that sound.
आ वो मक्षू तनाय कं रुद्रा अवो वृणीमहे।
गन्ता नूनं नोऽवसा यथा पुरेत्था कण्वाय बिभ्युषे॥
हे रूद्र पुत्रो! अपनी सन्तानों की रक्षा के लिए हम आपकी स्तुति करते हैं। जैसे पूर्व समय में आप भययुक्त कण्वों की रक्षा के निमित्त शीघ्र गये थे, उसी प्रकार आप हमारी रक्षा के निमित्त शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 1.39.7]
हे रुद्र पुत्रो! सन्तान की सुरक्षा के लिए हम आपकी प्रार्थना कर रहे हैं। जैसे तुम पूर्व काल में सुरक्षा के लिए पधारे थे, वैसे ही भयग्रस्त यजमान के निकट पधारो।
Hey the sons of Rudr (Maha Dev)! We pray-worship you for the welfare of our progeny. The speed with which you reached the afraid Kanvy, come to protect us as well.
युष्मेषितो मरुतो मर्त्येषित आ यो नो अभ्व ईषते।
वि तं युयोत शवसा व्योजसा वि युष्माकाभिरूतिभिः॥
हे मरुतो! आपके द्वारा प्रेरित या अन्य किसी मनुष्य द्वारा प्रेरित शत्रु हम पर प्रभुत्व जमाने आयें, तो आप अपने बल से, अपने तेज से और रक्षण साधनों से उन्हें दूर हटा दें।[ऋग्वेद 1.39.8]
हे मरुतो! तुम्हारे द्वारा सहयोग प्राप्त या किसी दूसरे द्वारा उकसाया हुआ शत्रु हमारे सम्मुख आए तो तुम उसे शक्ति, तेज, और रक्षक साधनों द्वारा दूर हटा दो।
Hey Maruto! If an enemy inspired-provoked by you or someone else-humans come to overpower-control us, please repel him by your might, energy and the arms & ammunition.
असामि हि प्रयज्यवः कण्वं दद प्रचेतसः।
असामिभिर्मरुत आ न ऊतिभिर्गन्ता वृष्टिं न विद्युतः॥
हे विशिष्ट पूज्य, ज्ञाता मरुतो! कण्व को जैसे आपने सम्पूर्ण आश्रय दिया था, वैसे ही चमकने वाली बिजलियों के साथ वेग से आने वाली वृष्टि की तरह आप सम्पूर्ण रक्षा साधनों को लेकर हमारे पास आयें।[ऋग्वेद 1.39.9]
हे पूजनीय मेधावी मरुतो! तुमने कण्व को सम्पूर्ण ऐश्वर्य दिया था। बिजलियों से वर्षा के लिए होने के समान सभी रक्षा के साधनों से युक्त हुए हमको प्राप्त हो जाओ।
Hey specially worshipped, intelligent Maruto! The way you sheltered-protected the Kanvy, similarly come fast to asylum us associated with the lightening with all means of protection.
असाम्योजो बिभृथा सुदानवोऽसामि धूतयः शवः।
ऋषिद्विषे मरुतः परिमन्यव इषुं न सृजत द्विषम्॥
हे उत्तम दानशील मरुतो! आप सम्पूर्ण पराक्रम और सम्पूर्ण बलों को धारण करते हैं। हे शत्रु को प्रकम्पित करने वाले मरुदगणों, ऋषियों से द्वेष करने वाले शत्रुओं को नष्ट करने वाले बाण के समान आप शत्रु घातक (शक्ति) का सृजन करें।[ऋग्वेद 1.39.10]
हे मंगलमय मरुतो! तुम अत्यन्त तेजस्वी हो। हे कम्पित करने वाले! तुम समस्त शक्ति से परिपूर्ण हो। अतः ऋषियों से बैर करने वालों के प्रति अपनी उग्रता को प्रेरित करो।
Hey excellent donor Maruto! You are associated with valour and all types of forces. Hey enemy trembling-shaking Marud Gan, create the Shakti Van (arrow) to destroy the enemy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- मरुत, छन्द:- जगती त्रिष्टुप्।
वृष्णे शर्धाय सुमखाय वेधसे नोधः सुवृत्तिं प्र भरा मरुद्ध्यः।
अपो न धीरो मनसा सुहस्त्यो गिरः समञ्जे विदथेष्याभुवः॥1॥
हे ऋषि नोधा! वर्षक, सुन्दर यज्ञ और पुष्प फल आदि के कर्ता मरुद्गणों को लक्ष्य कर सुन्दर स्तोत्र प्रेरण करें। जिन वाक्यों में वृष्टि धारा की तरह अर्थात् मेधों की विविध बूँदों की तरह यज्ञ स्थल में देवों को अभिमुख किये जाते हैं, उन्हीं बाक्यों को धीर और कृताञ्जलि होकर मनोयोगपूर्वक प्रयुक्त करता हूँ।[ऋग्वेद 1.64.1]
हे नोधा! पौरुषवान, पूज्य मेधावी मरुतों के लिए आकर्षक प्रार्थनाएँ करो। जैसे कर्मवान व्यक्ति जलों को सिद्ध करते हैं, उसी तरह मैं वंदनाएँ करता हूँ।
Hey Rishi Nodha! Compose poems in the honour of Marud Gan who are mighty, intelligent & perform Yagy with the help of flowers and fruits. They cause rains. Let me concentrate in them and pray-worship them with great attention.
ते जज्ञिरे दिव ऋष्वास उक्षणो रुद्रस्य मर्या असुरा अरेपसः।
पावकासः शुचयः सूर्याइव सत्वानो न द्रप्सिनो घोरवर्पसः॥2॥
अन्तरिक्ष में मरुद्गण उत्पन्न हुए हैं। बे दर्शनीय वीर्यशाली और रुद्र के पुत्र हैं। वे शत्रुजयी, निष्पाप, सबके शोधक सूर्यदेव की तरह दीप्त, रुद्र के गण की तरह अथवा वीरों की तरह बल-पराक्रम शाली, वृष्टि बिन्दुयुक्त और घोर रूप हैं।[ऋग्वेद 1.64.2]
वे श्रेष्ठ मरुत के पुत्र हैं। वे प्राणवान् निष्पाप, शुद्धकता, सूर्य के तुल्य तेजस्वी, विकराल रूप वाले हैं।
They are the sons of excellent Marut. They are victorious, free from sins, purity causative, possessing aura like the Sun and are furious in looks.
युवानो रुद्रा अजरा अभोग्धनो ववक्षुरप्रिगावः पर्वताइव।
दुळ्हा चिद्विश्चा भुवनानि पार्थिवा प्र च्यावयन्ति दिव्यानि मज्मना॥3॥
रूद्र के पुत्र मरुद्गण युवा और वृद्धावस्था से रहित हैं तथा जो देवों को हाथ नहीं देते, उनके नाशक है। वे अप्रतिहत गति और पर्वत की तरह दृढ़ अङ्ग वाले हैं। वे स्तोताओं को अभीष्ट देना चाहते हैं। पृथ्वी और द्युलोक की सारी वस्तुएँ दृढ़ हैं, तो भी उनको मरुत लोग अपने बल से संचालित कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.64.3]
युवा, विकराल, अजर, न देने वालों के हिंसक अबाध गति से चलने वाले मरुद्गण शैल के समान महत्व वाले हुए अपने पराक्रम से पृथ्वी और आकाश में उत्पन्न जीवों को कंपाते हैं।
Young, furious, immortal and violent against those who do not perform Yagy (donate, helpful to the needy), moving with unblock able speed, are capable of moving fixed-inertial objects with their might-strength. They wish to grant-accomplish the desires of those who pray to them.
चित्रैरज्जिभिर्वपुषे व्यञ्जते वक्षः सु रुक्माँ अधि येतिरे शुभे।
अंसेष्वेषां नि मिमृक्षुर्ऋत्ष्टयः साकं जज्ञिरे स्वधया दिवो नरः॥4॥
शोभा के लिए अनेक अलंकारों से मरुद्रण अपने शरीर को अलंकृत करते हैं। शोभा के लिए हृदय पर सुन्दर हार धारण करते है और अंग में आयुध पहनते हैं। नेतृम्थानीय मरुद्गण अन्तरिक्ष से अपने बल के साथ प्रादुर्भूत हुए हैं।[ऋग्वेद 1.64.4]
शोभा के लिए विविध अलंकारों को सजाने वाले मरुद्गण ने स्वर्णाभूषण धारण किये। ये कंधे पर अस्त्र रखे अपनी इच्छा से आकाश द्वारा प्रकट हुए।
Marud Gan decorate their body with ornaments and weapons. they wear a necklace over their heart-chest. They have appeared from the ether-space of their own keeping weapons over the shoulder.
ईशानकृतो धुनयो रिशादसो वातान्विद्युतस्तविषीभिरक्रत।
दुहन्त्यूधर्दिव्यानि धूतयो भूमिं पिन्यन्ति पयसा परिज्रयः॥5॥
यजमानों को सम्पत्तिशाली, मेघादि को कम्पित और हिंसक को विनष्ट करके अपने बल द्वारा मरुतों ने वायु और विद्युत् का निर्माण किया। इसके अनन्तर चारों दिशाओं में जाकर एवं सबकी कम्पित करे द्युलोक के मेध का दोहन किया और जल से भूमि को सिंचित किया। [ऋग्वेद 1.64.5]
समृद्धि दाता शत्रु को भयग्रस्त करके भक्षण करने वाले मरुतों ने अपनी शक्ति से पवन और विद्युत को प्रकट किया। सब जगह विचरणशील वे क्षितिजस्थ बादल को दुहकर पृथ्वी को सींचते हैं।
Marud Gan grant riches to the worshipers. They agitate the clouds and produce air & electricity. They move in all directions, tremble-agitate and extract the clouds to shower rains over the earth to irrigate it.
पिन्वन्त्यपो मरुतः सुदानवः परयो घृतवद्विदथेष्वाभुवः।
अत्यं न मिहे वि नयन्ति वाजिनमुत्सं दुहन्ति स्तनयन्तमक्षितम्॥6॥
जिस प्रकार से यज्ञ भूमि में ऋत्विक् घृत का सिंचन करते हैं, उसी प्रकार दान परायण मरुद्गण साररूप जल का सिंचन करते है। वे घोड़े की तरह वेगवान् मेघ को बरसने के लिए विनम्र निवेदन और गर्जनकारी तथा अक्षय मेध का दोहन करते है।[ऋग्वेद 1.64.6]
कल्याणकारी मरुद्गण जलों को सींचते हुए यज्ञों में घृत युक्त दूध की वर्षा की वर्षा करते हैं।अश्वों के समान बादल को वर्षा की प्रेरणा देते और उसे दुहते हैं।
The way the host performing Yagy make offerings in the form of Ghee-clarified butter, the Marud Gan with the tendency of donation-charity too shower rains. They make requests to the speedy clouds moving like horses and make the thunderous clouds rain.
महिषासो मायिनश्चित्रभानवो गिरयो न स्वतवसो रघुष्यदः।
मृगाइव हस्तिनः खादथा वना यदारुणीषु तविषीरयुग्ध्वम्॥7॥
हे मरुद्गण! आप महान, बुद्धिशाली, सुन्दर, तेजो विशिष्ट, पर्वत की तरह बलवान और द्रुत गतिशील हैं। आप कर युक्त गज की तरह वन का भक्षण करते हैं, क्योंकि आपने अरुण वर्ण बड़वा को बल प्रदान किया है।[ऋग्वेद 1.64.7]
हे मरुद्गण! श्रेष्ठ बुद्धि वाले तुम विभिन्न दोषों से युक्त, पर्वतों के समान, उन्नत, द्रुतगामी हाथियों के समान वन का भक्षण करते हो। तुमने लाल रंग की अग्नि को पराक्रम प्रदान किया।
Hey Marud Gan! You are great, intelligent, beautiful, possessing energy-aura, mighty like the mountains and fast moving. You eat-destroy the forests like the elephant and speed up the fire called Badva (jungle fire).
सिंहाइव नानदति प्रचेतसः पिशाइव सुपिशो विश्ववेदसः।
क्षपो जिन्वन्तः पृषतीभिर्ऋष्टि भिः समित्सवाध: शवसाहिमन्यवः॥8॥
उच्च ज्ञान शाली मरुद्गण शेर को तरह गर्जना करते हैं। सर्वज्ञाता मरुद्रण हिरण की तरह सुन्दर हैं। मरुद्गण अपने शत्रु विनाशक, स्तोता के प्रीतिकारी और क्रुद्ध होने पर नाशकारी बल से सम्पन्न हैं। ऐसे मरुद्गण अपने वाहन मृग और हथियारों के साथ शत्रु द्वारा पीड़ित यजमान की रक्षा करने के लिए साथ ही आते हैं।[ऋग्वेद 1.64.8]
महाज्ञानी, हिरण के तुल्य सुन्दर समस्त समृद्धियों से परिपूर्ण, दिव्य शस्त्रों से सम्पन्न, प्रजा-पीड़ा के नाशक मरुद्गण शेरों के समान क्रोध से गर्जना करते हैं।
Intellectual Marud Gan roar like the lion. All knowing Marud Gan are beautiful like deer. Marud Gan destroy their enemy, favour the host performing Yagy and possess destroying power on being angry roaring like the lion.
रोदसी आ वदता गणश्रियो नृषाचः शूराः शवसाहिमन्यवः।
आ वन्धुरेष्वमतिर्न दर्शता विद्युन्न तस्थौ मरुतो रथेषु वः॥9॥
हे दलबद्ध, मनुष्य हितैषी और वीर्यशाली मरुद्गण, आप बल द्वारा विध्वंसक क्रोध से युक्त होकर आकाश और पृथ्वी को शब्दायमान करें। आपका तेज विमल स्वरूप या दर्शनीय विद्युत के समान रथ के सारथि वाले स्थान पर अवस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 1.64.9]
हे गतिशील वीर अहंकारी शत्रु नाशक मरुतो! तुम क्रोध से भरे, पराक्रम से आकाश और पृथ्वी को गुंजा दो। तुम्हारे रथ में चन्द्रमा के समान कांतिवाले विद्युत रूपिणी देवी विराजमान हैं।
Hey strong, moving in groups, beneficial to the humans Marud Gan! You make tumultuous sound when angry, shaking the earth and the sky. Lightening, with the aura of Moon, is present in your chariot.
विश्ववेदसो रयिभिः समोकसः संमिश्लासस्तविषीभिर्विरप्शिनः।
अस्तार इषुं दधिरे गभस्त्योरनन्तशुष्मा वृषखादयो नरः॥10॥
सर्वज्ञ, धनपति, बलशाली, शत्रु नाशक, अमित पराक्रमी, सोम रक्षक और नेता, मरुद्गण अपनी दोनों भुजाओं में हथियार धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.64.10]
सभी ऐश्वर्य वाले, पराक्रम वाले शत्रुनाशक, रण में कुशल मरुतों ने दोनों हाथों में हथियार धारण किये हैं।
Marud Gan who are intellectuals, wealthy, strong-powerful, slayer of enemy, protector od Som, having leadership qualities, associated with valour, wear arms in both hands.
हिरण्ययेभिः पविभिः पयोवृध उज्जिघ्नन्त आपथ्यो न पर्वतान्।
मखाः अयासः स्वसृतो ध्रुवच्युतो दुध्रकृतो मरुता भ्राजदृष्टयः॥11॥
वृष्टि वर्द्धन कर्त्ता मरुद्गण सोने के रथ चक्र द्वारा मार्गस्थ तिनके और पेड़ की तरह मेघों को उनके स्थान से ऊपर उठा लेते हैं। ये यज्ञ प्रिय देवों के यज्ञ स्थल में आते हैं। स्वयं शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं। अचल पदार्थों का संचालन करते हैं। दूसरे के लिए अशक्य सम्पत् और प्रकाशशाली आयुध धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.64.11]
जलों की वृद्धि करने वाले पूज्य, द्रुतगति वाले, अचल पदार्थों को चलाने वाले, अबाध गति से परिपूर्ण मरुद्गण स्वर्ण के रथ चक्रों से बादलों को उठाते हैं।
Rain boosting Marud Gan, lifts the straw and trees on their way, riding golden chariot. They attack the enemy and manage the immovable objects. They wear shinning arms and make the enemy incompetrent-motionless.
घृषं पावकं वनिनं विचर्षणिं रुद्रस्य सूनुं हवसा गृणीमसि।
रजस्तुरं तवसं मारुतं गणमृजीषिणं वृषणं सश्चत श्रिये॥12॥
राक्षसों के विध्वंसक, सर्व वस्तु शोधक, वृष्टिदाता, सर्वद्रष्टा और रुद्रपुत्र मरुद्रण की हम स्त्रोतों द्वारा स्तुति करते हैं। धूलिप्रेरक, शक्तिशाली, ऋजीष युक्त और अभीष्टवर्षी मरुद्रणों के आश्रय को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.64.12]
शत्रु नाशक, पतितपावन, वक्षुकर्मा रुद्रपुत्र मरुतों की हम वंदना करते हैं। उन धूल प्रेरक, मतिप्रद वीर्यवान मरुतों की शरण में धन के लिए जाओ।
We pray-worship Marud Gan-the sons of Rudr, who are destroyers of Demons-Giants, cleanse everything, cause rains, looks everything.
प्र नू स मर्तः शवसा जनाँ अति तस्थौ व ऊती मरुतो यमावत।
अर्वद्भिर्वाजं भरते धना नृभिरापृच्छ्यं क्रआपा क्षेति पुष्यति॥13॥
हे मरुद्गण! आप जिसे आश्रय देते हुए रक्षित करते हैं, वह पुरुष सबसे बली हो जाता है और वह अश्व द्वारा अन्न और मनुष्य द्वारा धन प्राप्त करता है। वह दिव्य यज्ञ करके ऐश्वर्यशाली हो जाता है।[ऋग्वेद 1.64.13]
हे मरुतों! तुम्हारे द्वारा रक्षित मनुष्य सभी मनुष्यों में अधिक शक्तिशाली हो जाता है। वह अश्वों और प्राणियों द्वारा धनों को प्राप्त करके श्रेष्ठ यज्ञ द्वारा सुख प्राप्त किया।
Hey Marud Gan! One protected by you, becomes most powerful amongest the humans and gains food grains with the help of horses and wealth with the help of all living beings-organism. He perform-organise devine Yagy and become rich.
चर्कृत्यं मरुतः पृत्सु दुष्टरं द्युमन्तं शुष्मं मघवत्सु धत्तन।
धनस्पृतमुक्थ्यं विश्वचर्षणिं तोकं पुष्येम तनयं शरणं हिमाः॥14॥
हे मरुद्गण! आप लोग यजमानों को सब कार्यों में निपुण, युद्ध में अजेय, दीप्तिमान्, शत्रु विनाशक, धनवान, प्रशंसा भाजन और सर्वज्ञ पुत्र प्रदान करें। ऐसे पुत्र-पौत्रों को हम सौ वर्ष जीवित रखना चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.64.14]
हे मरुतों! कार्यों में सक्षम युद्धों में अजेय, दीप्तिमान, तुम पराक्रम की स्थापना करो। हम अपने पुत्रों को सौ वर्ष तक पालने वाले हैं।
Hey Marud Gan! You are make the hosts skilled-expert, invincible in war, shinning-glowing, slayer of enemy, rich-wealthy, appreciable having sons with divine vision. Let us protect-nourish our such sons & grand sons for 100 years.
नू ष्ठिरं मरुतो वीरवन्तमृतीपाहं रयिमस्मासु धत्त।
सहस्त्रिणं शतिनं शूशुवांसं प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥15॥
हे मरुद्रण! हमें स्थिर, वीर्यशाली और शत्रुजयी धन दें। इस प्रकार शत सहस्र धन से युक्त होने पर हमारी रक्षा के लिए, जिन्होंने कर्म द्वारा धन पाया है, वे मरुद्गण यहाँ आगमन करें।[ऋग्वेद 1.64.15]
हे मरुद्गण! तुम हमको स्थायी और शत्रु को विजय करने की सामर्थ्य प्रदान करो । हममें शत सहस्र, एक लाख संख्यक धन स्थित करो। तुम प्रात:काल शीघ्र हमको ग्रहण होओ।
Hey Marud Gan! Grant us immovable, powerful riches-wealth with which we can win-over power the enemy. In this manner on becoming rich with hundreds-thousands of riches-wealth, possessions, the Marud Gan should protect us who earned wealth with hard work and come here to protect us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (85) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती।
प्र ये शुम्भन्ते जनयो न सप्तयो यामन्रूद्रस्य सूनवः सुदंससः।
रोदसी हि मरुतश्चक्रिरे वृधे मदन्ति वीरा विदथेषु धृष्ययः॥
रमन वेला में मरुद्गण स्त्रियों की तरह अपने शरीर को सजाते हैं, वे गतिशील रुद्र के पुत्र हैं। उन्होंने हितकर कार्य द्वारा आकाश और पृथ्वी को वर्द्धित किया है। वीर और घर्षणशील मरुद्रण यज्ञ में सोमरस पीकर आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 1.85.1]
द्रुतगामी मरुत ने जो रुद्र के पुत्र हैं, यात्रा के समय महिलाओं और पृथ्वी की वृद्धि करते हैं। वे घर्षणशील हमारे यज्ञ में अनन्द प्राप्त करें।
The Marud Gan, son of Rudr, make up like the women, during the period of intimacy. They have worked for the benefit of the earth and the sky. Brave and ready to fight Marud Gan are having fun-pleasure after enjoying Somras.
त उक्षितासो महिमानमाशत दिवि रुद्रासो अधि चक्रिरे सदः।
अर्चन्तो अर्कं जनयन्त इन्द्रियमधि श्रियो दधिरे पृश्निमातरः॥
ये मरुद्गण देवों द्वारा अभिषिक्त होकर महत्व प्राप्त कर चुके हैं। रुद्रपुत्रों ने आकाश में स्थान प्राप्त किया और पूजनीय इन्द्रदेव की पूजा करके तथा इनको वीर्यशाली करके पुषिणी या पृथ्वी के पुत्र मरुतों ने ऐश्वर्य भी प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.85.2]
वे श्रेष्ठ मरुद्गण महत्तावान हैं। उन्होंने क्षितिज में अपनी जगह निर्माण की है। इन्द्रदेव के लिए श्लोक उच्चारण कर, शक्ति धारण करते हुए उन-उन धरा पुत्रों ने समृद्धि को पाया।
Marud Gan have become important having been honored by the demigods-deities. The Marud Gan established them selves in the sky, space, heavens by worshiping Indr Dev. They attained galore as well. They are the sons of the earth and the Rudr.
गोमातरो यच्छुभयन्ते अञ्जिभिस्तनूषु शुभ्रा दधिरे विरुक्मतः।
बाधन्ते विश्वमभिमातिनमप वर्त्मान्येषामनु रीयते घृतम्॥
गौ या पृथ्वी के पुत्र अलंकारों द्वारा अपने को शोभा सम्पन्न करते हैं, तब दीप्त मरुद्गण अपने शरीर में उज्ज्वल अलंकार धारित करते हैं। वे समस्त शत्रुओं का विनाश करते हैं और मरुतों के मार्ग का अनुगमन करके वृष्टि करते हैं।[ऋग्वेद 1.85.3]
वे धरती पुत्र मरुत अलंकारों से सजकर अधिक प्रीति को धारण करते हुए शत्रु का हनन करते हैं। उनके मार्गों पर चलकर बादल की वर्षा करते हैं।
Marud Gan the sons of earth or the divine cows decorate their bodies. Their bodies have aura. The glorious Marud Gan destroy the enemy and shower rains on their way.
वि ये भ्राजन्ते सुमखास ऋष्टिभिः प्रच्यावयन्तो अच्युता चिदोजसा।
मनोजुवो यन्मरुतो रथेष्वा वृषव्रातासः पृषतीरयुग्ध्वम्॥
सुन्दर यज्ञ से युक्त मरुद्गण आयुध के द्वारा विशेष रूप से दीप्तिमान् होते हैं। वे स्वयं स्थिर होकर पर्वत आदि को भी अपने बल द्वारा उत्पन्न करते हैं। जिस समय आप लोग अपने रथ में बिन्दु चिह्नित मृगों को योजित करते हैं, उस समय हे मरुद्रण! आप लोग मन की तरह वेगवान् और वृष्टि सेवन कार्य में नियुक्त होते हैं।[ऋग्वेद 1.85.4]
सुंदर यज्ञ वाले ये मरुद्गण अपने आयुधों को चमकाते हुए पर्वत जैसे अपतनशील भी पदार्थों को गिराने में सक्षम हैं। हे मरुद्गण! तुम मन के समान गति वाले हो। तुम वीरों के रथों से बिन्दु चिह्नित हिरणियों को जोड़ते हो।
The beautiful Yagy leads to wearing of arms and ammunition and shine. they stabilize and create mountains with their power-strength. You deploy the spotted deer in your chariot. You move fast with the speed of brain-innerself and cause rain showers.
प्र यद्रथेषु पृषतीरयुग्ध्वं वाजे अद्रिं मरुतो रंहयन्तः।
उतारुषस्य वि ष्यन्ति धाराश्चर्मेवोदभिर्व्युन्दन्ति भूम॥
अन्न के लिए मेघ को वर्षणार्थ प्रेरण करके बिन्दु चह्नित मृग का रथ में योजित करें। उस समय उज्ज्वल सूर्य के पास से जल की धारा छूटती है और जल से सारी भूमि भीग जाती है।[ऋग्वेद 1.85.5]
जब तुम संग्राम में वज्र प्रेरित करते हुए बुंदकियो वाले हिरन को रथ में जोड़कर सूर्य के पास जल प्रेरित हो, तब वह गिरती हुई वर्षा पृथ्वी को पूर्णतः आर्द्र कर देती है।
They deploy the spotted deer in their chariot and inspire the clouds to rain for the production of food grains. At this moment a big stream of water is released from the Sun and the earth becomes wet.
आ वो वहन्तु सप्तयो रघुष्यदो रघुपत्वानः प्र जिगात बाहुभिः।
सीदता बर्हिरुरु वः सदस्कृतं मादयध्वं मरुतो मध्वो अन्धसः॥
हे मरुतो! आपके वेगवान् और शीघ्र गामी घोड़े आपको इस यज्ञ में ले आवें। आप शीघ्र गन्ता हो; हाथ में धन लेकर पधारें। हे मरुतो! बिछाये हुए कुशों पर बैठकर आप सोमरस का पान कर तृप्त हों।[ऋग्वेद 1.85.6]
मरुतो! तुमको मन्द गति वाले अश्व यहाँ लायें। हाथ में धन लेकर आओ। तुम्हारे लिये विशाल कुशासन यहाँ पर हैं, उस पर विराजमान होकर मृदु सोम का पान करो।
Hey Marud Gan! Your accelerated & fast moving horses should bring you to this Yagy. Hey fast moving, bring money in your hands. Occupy the Kush Asan and enjoy Somras.
तेऽवर्धन्त स्वतवसो महित्वना नाकं तस्थुरुरु चक्रिरे सदः।
विष्णुर्यद्धावषणं मदच्युतं वयो न सीदन्नधि बर्हिषि प्रिये॥
मरुद्गण अपने बल पर बढ़े हैं। अपनी महिमा के कारण स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर चुके हैं। इसी प्रकार वास स्थान विस्तीर्ण कर चुके हैं। जिनके लिए विष्णु मनोरथदाता और आह्लादकर यज्ञ की रक्षा करते हैं। वे ही मरुद्गगण पक्षियों की तरह शीघ्र आकर इस प्रसन्नतादायक पर विराजें।[ऋग्वेद 1.85.7]
अपने वंश से ही प्राप्त मरुद्गण स्वर्ग में विशाल जगह बना चुके हैं। उनके लिये भगवान् श्री हरी विष्णु मनोरथ दाता और यज्ञ के रक्षक हैं।
Marud Gan have progressed on the strength of their power-might. They attained a place-position in the heavens. Bhagwan Shri Hari Vishnu fulfills their aims-targets, desires & grants pleasure-happiness to them. Let them fly like birds and occupy this comfortable place.
शूराइवेद्युयुधयो न जग्मयः श्रवस्यवो न पृतनासु येतिरे।
भयन्ते विश्वा भुवना मरुद्भयो राजानइव त्वेषसंदृशो नरः॥
शूरों, युद्धार्थियों तथा कीर्ति या अन्न के प्रेमी पुरुषों के तुल्य शीघ्रगामी, मरुद्गण युद्ध में लिप्त हुए हैं। समस्त संसार उन मरुतों से भयभीत है। क्योंकि वे नेता एवं राजा व उग्ररूप हैं।[ऋग्वेद 1.85.8]
पराक्रमियों के समान आक्रमण करने वाले मरुद्गण गण ऐश्वर्य के लिए वीर कर्म करते हैं।इनसे सभी लोक भयभीत होते हैं। ये बहुत तेजस्वी हैं।
Marud Gan have entangled in war like brave warriors seeking fight, fame-honour and those who love to have food grain. The whole world is afraid of them since they are furious like a leader and king.
त्वष्टा यद्वज्रं सुकृतं हिरण्ययं सहस्त्रभृष्टिं स्वपा अवर्तयत्।
धत्त इन्द्रो नर्यपांसि कर्तवेऽहन्वृत्रं निरपामौब्जदर्णवम्॥
शोभन कर्ता त्वष्टा ने जो सुनिर्मित, सुवर्णमय और अनेक धारा युक्त वज्र इन्द्र को दिया, उससे ही इन्द्र देव ने युद्ध में वृत्रासुर का वध किया और जलों को नीचे की ओर प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 1.85.9]
श्रेष्ठ कर्म वाले त्वष्टा ने हजारों धारों वाले वज्र को निर्मित किया, उसे इन्द्र देव ने पराक्रम कार्यों के लिए धारण किया। उसी से वृत्र को मारकर जलों को नीचे गिराया।
Twasta who decorates, built Vajr with many sharp points gave it to Indr Dev and Indr Dev killed Vrata Sur with it & moved-poured the water in the down ward direction-earth.
ऊर्ध्वं नुनद्रेऽवतं त ओजसा दाद्दहाणं चिद्बिभिदुर्विं पर्वतम्।
धमन्तो वाणं मरुतः सुदानवो मदे सोमस्य रण्यानि चक्रिरे॥
मरुद्गणों ने अपने बल द्वारा कूप को ऊपर उठाकर पथनिरोधक पर्वत का भेदन किया। शोभन दानशील मरुद्गणों ने वीणा बजाकर एवं सोमपान से प्रसन्न होकर रमणीय धन भी दिया।[ऋग्वेद 1.85.10]
अपने पराक्रम से मरुतों ने भूमि पर स्थित जल को ऊपर की ओर प्रेरित किया और दृढ़ बादलों को भेदन कर शब्दवान हुए तथा कल्याण कारी सोम के पराक्रम से उन्होंने अत्युत्तम कर्मों को किया।
Marud Gan lifted the well in an upward direction and pierced into the mountain which was obstructing the path. Decorated Marud Gan who resort to donations played Veena and granted riches, money wealth being happy after drinking Somras.
जिह्यं नुनद्रेऽवतं तथा दिशासिञ्चन्नुत्सं गोतमाय तृष्णजे।
आ गच्छन्तीमवसा चित्रभानवः कामं विप्रस्य तर्पयन्त धामभिः॥
मरुतों में उन गौतम की ओर कूप को टेढ़ा किया तथा पिपासित गौतम ऋषि के लिए जल का सिंचन किया। विलक्षण दीप्ति से युक्त मरुत लोग रक्षा के लिए आये और मेधावी गौतम की जल द्वारा तृप्ति की।[ऋग्वेद 1.85.11]
मरुतों ने बादल को तिरछा करके उठ और प्यासे गौतम के लिए झरनों को सिंचित किया। ये सुरक्षा के लिए गये और किया।
Marud Gan tilted the well (कुँआ) towards thirsty Gautom Rishi and quenched his thirst. They filled the streams with water & protected him as well.
या वः शर्म शशमानाय सन्ति त्रिधातूनि दाशुषे यच्छताधि।
अस्मभ्यं तानि मरुतो वि यन्त रयिं नो धत्त वृषणः सुवीरम्॥
हे मरुद्गणों! आप स्तोताओं और दाताओं को उनके अभीष्ट से तीन गुना सुख प्रदान करते हो। उसी प्रकार का सुख हमें भी प्रदान करो। आप हमें संतान से युक्त धन प्रदान करो।ऋग्वेद 1.85.12]
हे मरुतो! वंदनाकारी और दाता को तुम जो इच्छापूर्वक तिगुना को सन्तुष्ट सुख प्रदान करते हो, वह हमको प्रदान करो। वीरो! उत्तम संतान से परिपूर्ण धनों से हमें धारण कराओ।
Hey Marud Gan you grant three times the desired wealth to those who worship you and those who are donours. Please grant such comforts to us as well. Bless us with progeny and give money.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (86) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मरुत, छन्द :- गायत्री।
मरुतो यस्य हि क्षये पाथा दिवो विमहसः।
स सुगोपातमो जनः॥
हे उज्जवल मरुद्गणों! अन्तरिक्ष में आकर आप जिस यजमान के यज्ञ गृह में सोमरस का पान करते हो, वह मनुष्य शोभन रक्षकों से होता है।[ऋग्वेद 1.86.1]
हे महापुरुषो! तुम जिसके घर में सोमपान करते हो, वह व्यक्ति नितान्त रक्षित होता है।
Hey great Marud Gan! The person from whom you accept Somras in his house is protected by you.
यज्ञैर्वा यज्ञवाहसो विप्रस्य वा मतीनाम्।
मरुतः शृणुता हवम्॥
हे यज्ञ वाहक मरुद्गणों! यज्ञ परायण यजमान की स्तुति श्रवण करो।[ऋग्वेद 1.86.2]
हे यज्ञों को पूर्ण करने वाले मरुद्गण! हमारे अनुष्ठान में वंदनाओं को प्राप्त करो।
Hey, the carrier of Yagy Marud Gang! Please listen to the prayers by the host-one performing Yagy.
उत वा यस्य वाजिनोऽनु विप्रमतक्षत।
स गन्ता गोमति व्रते॥
यजमान के ऋतिक लोगों ने मरुतों को हव्य प्रदान कर प्रसन्न किया। जिससे वह यजमान नाना प्रकार के गौवों वाले गोष्ठ में जाता है।[ऋग्वेद 1.86.3]
हे मरुतो! जिस यजमान के ऋत्विज को तुमने ऋषि बनाया, वह अधिक धेनुओं वाला होता है।
The Purohit-Ritvij conducting Yagy for the host made offerings for you and made you happy-pleased. It led the host to acquire-possess cows.
अस्य वीरस्य बर्हिषि सुत: सोमो दिविष्टिषु।
उक्थं मदश्च शस्यते॥
यज्ञ के दिनों में वीर मरुतों के लिए यज्ञ में सोमरस तैयार किया जाता है और मरुतों की प्रसन्नता के लिए स्त्रोत्र पढ़ा जाता है।[ऋग्वेद 1.86.4]
यज्ञों में जो मरुतों के लिए कुशा पर निचोड़ा सोमरस रखता है, उसके भवन में प्रसन्नतापूर्वक श्लोकों का गान होता है।
During Yagy Somras is extracted for the brave Marud Gan and hymns are recited for the pleasure of Marud Gan.
अस्य श्रोषन्त्वा भुवो विश्वायश्चर्षणीरभी।
सूरं चित्सस्त्रुषीरिष:॥
सर्व शत्रु विजेता मरुद्गण स्तोताओं की स्तुति श्रवण करे उन्हें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.86.5]
हे मरुद्गण! उत्तम यजमान की विनती को सुनो। मैं स्तोता भी उनसे अन्न ग्रहण करूँ।
The winner all enemies Marud Gan should listen to the prayer, worship, recitations by the hosts-devotees and provide them food grains.
पूर्वीभिर्हि ददाशिम शरद्धिर्मरुतो वयम्।
अवोभिश्चर्षणीनाम्॥
हम सर्वज्ञाता मरुतों द्वारा रक्षित होकर आपको अनेक वर्षों से हव्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.86.6]
तुम्हारे रक्षण सामर्थ्यों से परिपूर्ण हुए हम बहुत समय से हवि प्रदान करते हैं।
Being protected by enlightened Marud Gan, we have been making offerings for them.
सुभगः स प्रयज्यवो मरुतो अस्तु मर्त्यः।
यस्य प्रयांसि पर्षथ॥
हे राजनीय मरुद्रण जिसका हव्य आप ग्रहण करते हैं, वे सौभाग्यशाली होते हैं।[ऋग्वेद 1.86.7]
हे श्रेष्ठतम रूप से पूजनीय मरुतो! जिसे तुम अन्न से भाग्यशाली बनाओ, वह तुम्हारा आराधक है।
Hey honourable Marud Gan! Those, whose offerings are accepted by you are lucky.
शशमानस्य वा नरः स्वेदस्य सत्यशवसः।
विदा कामस्य वेनतः॥
हे प्रकृत बल सम्पन्न नेता मरुद्गण! हे सत्य बल वाले मरुतो! अनुष्ठान परिश्रम से थके हुए वंदनाकारी की मनोकामना पूर्ण करके उसके अभिष्ट को ग्रहण कराओ।
Hey Marud Gan empowered by excellent might-power! Please realise the desires of the hosts praying to you, with the help of Mantr (Shlok, Strotr) who are sweating due to the labour done by them in conducting Yagy-prayers.
यूयं तत्सत्यशवस आविष्कर्त महित्वना।
विध्यता विद्युता रक्षः॥
हे सत्य सम्पन्न मरुद्रण! आप उज्जवल माहात्म्य को प्रकट करें और उसके द्वारा राक्षस आदि का नाश करें।[ऋग्वेद 1.86.9]
हे सत्य बल से युक्त तुम अपनी महत्ता से असुरों को मारने वाले विख्यात पराक्रम को प्राप्त करें।
Hey Truth possessing Marud Gan! Please cast your excellent powers and kill the demons with them.
गूहता गुह्यं तमो वि यात विश्वमत्रिणम्।
ज्योतिष्कर्ता यदुश्मसि॥
उसे प्रकाशित करें।अंधेरों को छिपाओ, असुरों को भगाकर प्रकाश फैलाओ। हम तुमसे ज्ञान की विनती करते हैं।Remove darkness and repel all demons and destroyers-man eaters. Grant us the vision-enlightenment, that we need.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (87) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती।
प्रत्वक्षसः प्रतवसो विरप्शिनोऽनानता अविथुरा ऋजीषिणः।
जुष्टतमासो नृतमासो अञ्चिभिर्व्यानज्रे के चिदुस्राइव स्तृभिः॥
मरुद्रण शत्रु घातक, प्रकृष्ट बल सम्पन्न, जय घोष युक्त, सर्वोत्कृष्ट, संघीभूत, अवशिष्ट सोमपायी, यजमानों द्वारा सेवित और मेघ आदि के नेता हैं। मरुद्रण आभरण द्वारा सूर्य किरणों की तरह प्रकाशमान हुए।[ऋग्वेद 1.87.1]
श्रेष्ठ, बलिष्ठ, वक्ता, अपतित, अभय, द्रुतगामी, प्रिय, मरुद्गण स्वल्प तारों से सजे हुए ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे प्रातः कालीन उषा सुन्दर दिखाई देती है।
Marud Gan are slayers of the enemy, full of power-strength, fast moving, best of all, condensed-composite, served by the hosts, dear of devotees, drinks Somras, leader of the clouds. They are accompanied by the sounds-slogans of victory. They appears beautiful like the rays of Sun in the morning.
रेषु यदचिध्वं ययिं वयइव मरुतः केन चित्पथा।
श्चोतन्ति कोशा उप वो रथेष्वा घृतमुक्षता मधुवर्णमर्चते॥
हे मरुद्रण! जिस समय पक्षी की तरह किसी मार्ग से शीघ्र दौड़कर पास के आकाश मण्डल में आप लोग गतिशील मेघों को एकत्र करते हैं, उस समय सब मेघ आपके रथों में आसक्त होकर जल की वर्षा करते हैं, इसलिए आप अपने पूजक के ऊपर मधु के तुल्य स्वच्छ जल का सिंचन करें।[ऋग्वेद 1.87.2]
हे मरुतो! तुमने क्षितिज के निचले रास्तों में बादलों को अवस्थित किया है। तुमने क्षितिज़ के निचले रास्तों में बादलों को अवस्थित किया है। तुम्हारे रथ में बादल बूँदें बरसते हैं। तुम आराधक को मधुर जल से सींचो।
Hey Marud Gan! When you run and condense the clouds in the sky, all the clouds rain-shower over your chariot. Hence you should nourish the devotees with water.
प्रैषामज्मेषु विथुरेव रेजते भूमिर्यामेषु यद्ध युञ्जते शुभे।
ते क्रीळयो धुनयो भ्राजदृष्टयः स्वयं महित्वं पनयन्त धूतयः॥
मंगल विधायिनी वृष्टि की तरह जिस समय मरुत लोग मेघों को तैयार करते हैं, उस समय मरुद्गण द्वारा लिप्त मेधों को नियमित हुए देखकर पति रहिता स्त्री की तरह पृथ्वी कम्पायमान होने लगती है। ऐसे विहरणशील, गतिविशिष्ट और प्रदीप्तायुद्ध मरुद्रण पर्वत आदि को कम्पायमान करके अपनी महिमा प्रकट करते हैं।[ऋग्वेद 1.87.3]
मरुत्तों के युद्ध जाने पर धरती भय से काँपती है। वे खेलने वाले, गर्जनशील चमकते आयुधों से युक्त मरुत विजय के लिए पूजे जाते हैं।
When the Marud Gan prepare the clouds for auspicious rains, the earth start trembling like a woman who has no husband. Thus, they show their might by shaking-trembling the mountains.
स हि स्वसृत्पृषदश्वो युवा गणोया ईशानस्तविषीभिरावृतः।
असि सत्य ऋणयावानेद्योऽस्या धियः प्राविताथा वृषा गणः॥
मरुद्रण स्वयमेव संचालित हैं। श्वेत बिन्दु युक्त मृग मरुतों का अश्व है। मरुत लोग तरुण, वार्यशाली और क्षमतायुक्त हैं। हे मरुतो! आप सत्यरूप हैं व ऋण से मुक्त करने वाले आप निन्दा रहित और जल की वर्षा करने वाले हैं। आप हमारे यज्ञ के रक्षक हैं।[ऋग्वेद 1.87.4]
स्वचालित चित्र-विचित्र अश्वों वाले मरुत शक्ति से परिपूर्ण हैं। वे सत्यरूप पापियों को जानने वाले तथा अनुष्ठान की सुरक्षा करने वाले हैं। मरुतों की जन्म कथा हमने अपने पूर्वजों से सुनी।
Marud Gan moves of their own. The spotted deer with white spots are like their horses. Marud Gan are young and full of energy-power, valour. Hey Marud Gan! You are the symbol of truth, removes the loans, free from scorn and showers rains. You are the protector of our Yagy-endeavours.
पितुः प्रत्नस्य जन्मना वदामसि सोमस्य जिह्वा प्र जिगाति चक्षसा।
यदामिन्द्रं शम्यृकाण आशतादिन्नामानि यज्ञियानि दधिरे॥
अपने पूर्वजों द्वारा उपदिष्ट होकर हम कहते हैं कि सोम की आहुति के साथ मरुतों को स्तुति वाक्य प्राप्त होता है। मरुत लोग, वृत्र वध में इन्द्र की स्तुति करते हुए उपस्थित हुए थे और इस प्रकार यज्ञ योग्य नाम धारण किया था।[ऋग्वेद 1.87.5]
हमारी जीभ सोम को देखकर अधिक प्रार्थना करती है। स्तुति करते हुए मरुत जब युद्ध में इन्द्र के सहायक हुए तब उन्होंने यज्ञ के योग्य नामों को धारण किया।
Having been preached-guided our ancestors we offer Somras to them and worship-pray them. Marud Gan were present with Indr Dev, when he relinquished Vratr. Thus they got the titles suitable for Yagy.
श्रियसे कं भानुभिः सं मिमिक्षिरे ते रश्मिभिस्त ऋक्वभिः सुखादयः।
ते वाशीमन्त इष्मिणो अभीरवो विद्रे प्रियस्य मारुतस्य धाम्नः॥
जीवों के उपभोग के लिए वे मरुद्गण दीप्तिमान् सूर्य की किरणों के साथ जल की वर्षा करना चाहते हैं। वे स्तुति वाले ऋत्विकों के साथ आनन्द दायक हव्य का भक्षण करते हैं। स्तुति युक्त, वेगवान् और निर्भीक मरुद्गणों ने सर्वप्रिय मरुद्गण सम्बन्धित विशिष्ट स्थान को किया।[ऋग्वेद 1.87.6]
उन सुशोभित मरुतों ने स्तोताओं के लिए वर्षा करने की अभिलाषा की। वेग से चलते हुए अपने प्रिय स्थान को पाया।
Marud Gan are eager to shower rains for the benefit of the living beings. They eat-consume the offerings by the hosts conducting Yagy with happiness, joyfully. They achieved the high position by being accelerated-fast, fearless and attained prayers-worship.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (88) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मरुत, छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्।
हे मरुद्गण! मान के पुत्र मान्दार्य कवि का यह श्लोक तुम्हारे लिए है। तुम तन को पराक्रम देने वाले और अन्न के साथ यहां आओ। हमें अन्न, बल और दानशील बुद्धि की प्राप्ति करावें।
हे मरुदगण! प्रणामों से युक्त हमारा तुम्हारा यह श्लोक मन से रचा गया और मन में स्वीकार किया गया है। इसलिए इसे स्वीकार करते हुए स्नेह वश यहाँ आओ। तुम निश्चय ही हव्यान्न को बढ़ाते हो।
Hey Marud Gan! Listen to the prayers by us. Be happy, come to us, accept the offerings and increase our stock of food stuff.
आ विद्युन्मद्भिर्मरुतः स्वर्कै रथेभिर्यात ऋष्टिमद्भिरश्वपर्णै:।
आ वर्षिष्ठया न इषा वयो न पप्तता सुमायाः॥
हे मरुद्रण! आप दीप्ति से युक्त शोभन गमनवाले, शस्त्रशाली और अश्व संयुक्त रथों पर आरूढ़ होकर पधारें। शोभन कर्मा इन्द्र देव प्रभूत अन्न के साथ पक्षी की तरह हमारे पास आयें।[ऋग्वेद 1.88.1]
हे मरुद्गण! तुम अत्यन्त ज्योति, महानगति और आयुधों से परिपूर्ण हुए उड़ने वाले घोड़ों को रथ में जोतकर आओ। तुम्हारी बुद्धि कल्याण करने वाली है। अधिक अन्नों के संग हमको ग्रहण होओ।
Hey Marud Gan! You are armed & possess aura. You should visit us in the chariot in which horses have been deployed. Let Indr Dev who is known for doing appreciable deeds, come to us flying like birds, with a lot of food grains.
तेऽरुणेभिर्वरमा पिशङ्गै शुभे कं यान्ति रथतूर्भिरश्वैः।
रुक्मो न चित्रः स्वधितीवान्पव्या रथस्य जङ्घनन्त भूम॥
मरुद्रण अरुण और पिङ्गल वाले रथ प्रेरक घोड़ों द्वारा किस स्तोता का कल्याण करने के लिए आते हैं? सोने की तरह दीप्तिमान और शत्रु नाशकारी तथा शस्त्र शाली मरुद्गण रथ चक्र द्वारा भूमि को उघाड़ते चलते हैं।[ऋग्वेद 1.88.2]
विजय की आशा से लाल-पीले रंग के अश्वों से दौड़े आते हैं, उनका रथ सोने के वर्ण का है। वे वज्र से युक्त हैं। उस रथ के पहिये की लीक से धरती को उखाड़ते हैं।
Marud Gan moves with the hope of success-victory, in the chariot in which horses of red and yellow colour have been deployed, with the desire to benefit the devotees. Their chariot has golden colour. Their chariot removes soil, when it moves over the ground.
श्रिये कं वो अधि तनूषु वाशीर्मेधा वना न कृणवन्त ऊर्ध्वा।
युष्मभ्यं कं मरुतः सुजातास्तुविद्युमासो घनयन्ते अद्रिम्॥
मरुद्रण, ऐश्वर्याप्ति के लिए आपके शरीर में शत्रुओं का संहारक शस्त्र है। मरुद्गण वन, वृक्ष आदि की तरह यज्ञ को ऊपर करते हैं। सुजन्मा मरुद्रण आपके लिए प्रभूत धनशाली यजमान लोग सोम पीसने वाले पत्थर को धन सम्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.88.3]
हे मरुद्गण! तुम शास्त्रों से सुसज्जित हो। यज्ञों को वृक्षों के समान ऊँचा उठाओ। यजमान तुम्हें आकर्षित करने को सोमरस कूटने के पाषाण से शब्द करते हैं।
Hey Marud Gan! You possess the arms & ammunition for the destruction of the enemy. You lift the Yagy like forests and trees. The hosts conducting Yagy extract Somras by crushing-beating the plant with stone.
अहानि गृध्राः पर्या व आगुरिमां धियं वार्कार्यं च देवीम्।
ब्रह्म कृण्वन्तो गोतमासो अर्कैरुर्ध्वं नुनुद्र उत्सधिं पिबध्यै॥
जलाभिलाषा गौतम गण आपके सुख के दिन आये है और आपने आकर जलनिष्पाद्य यज्ञ को द्युतिमान किया है। गौतम ने स्तुति के साथ हव्य दान करके जल पीने के लिए कूप को उठाया था।[ऋग्वेद 1.88.4]
हे प्रार्थना की कामना वालों! तुम्हारे अच्छे दिन लौट आये हैं। प्रार्थना करते हुए गौतमों ने पान करने के लिए बादल रूप कृप की कीर्ति कर्म द्वारा ऊपर की ओर आकृष्ट किया है।
Rishi Gautom wanted to have water. He is comfortable now. He has accelerated the process of Yagy for the sake of drinking water. He made offerings, prayed-worshipped and raised the well for drinking water.
एतत्यन्न योजनमचेति सस्वई यन्मरुतो गोतमो वः।
पश्यन्हिरण्यचक्रानयोदंष्ट्रान्वि धावतो वराहून्॥
मरुद्रण हिरण्यमय चक्र रथ पर आरूढ़, लौहमय चक्रधारा से युक्त इधर-उधर दौड़ने वाले और प्रबल शत्रुहन्ता है। उन्हें देखकर गौतम ऋषि ने जिस स्तोत्र का उच्चारण किया था, वह यही स्तुति है।[ऋग्वेद 1.88.5]
हे मरुतो! इस प्रसिद्ध श्लोक को ही हमने पहले नहीं जाना, जिसे गौतम ऋषि ने तुम्हारे लिए उच्चारित किया था।
Marud Gan are riding the golden chariot, having excels made of iron and he is slayer-killer of the enemy, who run hither & thither for safety. Gautom Rishi saw them and recited this Strotr in their honour.
एषा स्या वो मरुतोऽनुभर्त्री प्रति ष्टोभति वाघतो न वाणी।
अस्तोभयथासामनु स्वधां गभस्त्योः॥
हे मरुद्रण! हमारी जिह्वा ऋषियों की वाणी का अनुकरण कर आपकी प्रार्थना करती है। हमारे द्वारा पहले के समान ही यह स्तुति सरल स्वभाव से की जा रही हैं।[ऋग्वेद 1.88.6]
हे मरुतो! मेरी जिह्वा ऋषियों की वाणी का अनुकरण कर तुम्हारी वन्दना करती है। यह वन्दना सरल स्वभाव से ही की जा रही है।
Hey Marud Gan! Our tongue follow the voice-words of the Rishi Gan in your honour. We are praying-worshiping you with simple hearts.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (165) :: ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्रादि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
कया शुभा सवयसः सनीळाः समान्या मरुतः सं मिमिक्षुः।
कया मती कुत एतास एतेऽर्चन्ति शुष्मं वृषणो वसूया॥
समान वयस्क और एक स्थान निवासी मरुद्गण सर्वसाधारण की दुर्जेय शोभा से युक्त होकर पृथ्वी पर सिञ्चन करते हैं। मन में क्या सोचकर वे किस देश से आये हैं? आकर जल वर्षीय गण धन लाभ की कामना से क्या बल की अर्चना करते है?[ऋग्वेद 1.165.1]
इन्द्र समव्यस्क और बराबर स्थान वाले मरुद्गण तुल्य शोभा से परिपूर्ण हैं। ये किस मत में, किस देश से पधारे हैं? क्या वे पराक्रमी धन लाभ की कामना से शक्ति की अर्चना करते हैं।
Marud Gan of the same age, live together at one place (in Marut Lok) and cause rains-showers to nurse the earth. Where have they come from with plans & programmes? Do they want to have wealth-riches & strength
कस्य ब्रह्माणि जुजुषुर्युवानः को अध्वरे मरुत आ ववर्त।
श्येनाँइव ध्रजतो अन्तरिक्षे केन महा मनसा रीरमाम॥
तरुण वयस्क मरुद्गण किसका हव्य ग्रहण करते हैं? वे अन्तरिक्षचारी श्येन पक्षी की तरह है। यज्ञ से उन्हें कौन हटा सकता है? किस प्रकार के महास्तोत्रों द्वारा हम उन्हें आनन्दित करें?[ऋग्वेद 1.165.2]
तरुण मरुद्गण किसकी हवियाँ प्राप्त करते हैं? उनको यज्ञ में कौन हटा सकता है? अंतरिक्ष में भ्रमण करने वाले बाज पक्षी के तुल्य इन मरुतों को किस महान श्लोक से पूजन करें।
How do the young Marud Gan accept the offerings? They are like the Shyen bird flying in the sky. Who can replace in the Yagy? With which Strotr-hymns we please them-make them happy?
कुतस्त्वमिन्द्र माहिनः सन्नेको यासि सत्पते किं त इत्था।
सं पृच्छसे समराणः शुभानैर्वोचेस्तन्नो हरिवो यत्ते अस्मे॥
हे साधु पालक और पूज्य इन्द्रेव! आप अकेले कहाँ जा रहे हैं? आप क्या ऐसे ही हैं? हमारे साथ मिलकर आपने ठीक ही पूछा है। हे हरि वाहन! हमारे लिए जो वक्तव्य है, वह मीठे वचनों से कहें।[ऋग्वेद 1.165.3]
हे श्रेष्ठ कर्मवालों का पालन करने वाले इन्द्र! तुम स्वयं कहाँ जाते हो? तुम्हारा अभिष्ट क्या है? हे शोभनीय! तुम सबकी बात पूछते हो, हमसे जो कहना चाहो, कहो।
Hey virtuous, pious, righteous people's supporter Indr Dev! Where are going alone? What is your aim-goal, target? You should guide us-tell us what to do.
ब्रह्माणि मे मतयः शं सुतासः शुष्म इयर्ति प्रभृतो मे अद्रिः।
आ शासते प्रति हर्यन्त्युक्थेमा हरी वहतस्ता नो अच्छ॥
समस्त हव्य मेरा है, सभी स्तुतियाँ मेरे लिए सुखकर है, प्रस्तुत सोमरस मेरा है। मेरा दृढ़ वज्र शत्रुओं पर फेंके जाने पर व्यर्थ नहीं होता। यजमान लोग मेरी ही प्रार्थना करते हैं, स्तुतियाँ मेरी प्रशंसा करती हुई मेरी ओर आती हैं। ये हरि नाम के दोनों घोड़े हव्य लाभ के लिए मेरा ही वहन करते हैं। ऐसा इन्द्रदेव का कथन है।[ऋग्वेद 1.165.4]
इन्द्र :- ये वंदनायें और निष्पक्ष सोम मुझे सुख प्रदान करते हैं। मेरा दृढ़ वज्र शत्रुओं पर व्यर्थ नहीं जाता। मनुष्य मेरी अर्चना करते और उनके श्लोक मुझे ग्रहण होते ये दोनों घोड़े मुझे ले जाते हैं।
Dev Raj Indr says that the entire offerings belong to me, all prayers-wishes gives pleasure to me. Som Ras is offered to me is mine. Thunder volt targeted by me over the enemy never mis the target. The hosts-priests pray to me. Prayers, Strotr come to me praying me. These two horses named Hari, carry the offerings made to me.
अतो वयमन्तमेभिर्युजानाः स्वक्षत्रेभिस्तन्वः शुम्भमानाः।
महोभिरेताँ उप युज्महे न्विन्द्र स्वधामनु हि नो बभूथ॥
हे इन्द्रदेव! हम महातेज से अपने शरीर को अलंकृत करके, निकटवर्ती और बली अश्वों से युक्त होकर यज्ञस्थान में जाने के लिए शीघ्र ही तैयार हुए हैं। आप बल के संग हमारे साथ ही रहें।[ऋग्वेद 1.165.5]
मरुद्गण :- हे इन्द्र! समीप रहने वालों के समान हम अपनी शक्ति से शरीरों को ससज्जित करते हैं। अपने पराक्रम से इन घोड़ों को रथ में जोतते हैं। तुम हमारे स्वभाव को जानते हो।
Marud Gan said, "We have contained extreme aura-radience in our body, to move to the nearest place of Yagy, readied the horses with valour. You are aware of our might".
क स्या वो मरुतः स्वधासीद्यन्मामेकं समधत्ताहिहत्ये।
अहं ह्युग्रस्तविषस्तुविष्मा न्विश्वस्य शत्रोरनमं वधस्नैः॥
हे मरुद्गणों! आपका वह बल कहाँ था, जिसे आपने वृत्रासुर के वध के समय अकेले मुझ में स्थापित किया था? मैं (इन्द्र) स्वयं ही शक्तिशाली, बलवान् और शूरवीर हूँ, मैंने अपने वद्र द्वारा कठोर से कठोर शत्रुओं को भी झुकने के लिए बाध्य कर दिया।[ऋग्वेद 1.165.6]
इन्द्र :- हे मरुद्गण! वृत्र वध के कार्य में तुमने मुझे अकेले ही लगाया। तब तुम्हारा पूर्वत स्वभाव कहाँ था? मैं विकराल बलिष्ठ और दुर्जय हूँ। मैंने अपने शत्रुओं पर वज्र से विजय प्राप्त कर ली।
Hey Marud Gan! You empowered me with your power & might when I killed Vrata Sur. I posses power, strength & valour. I have to defeat the worst possible enemies with my Thunder Volt.
भूरि चकर्थ युज्येभिरस्मे समानेभिर्वृषभ पौंस्येभिः।
भूरीणि हि कृणवामा शविष्ठेन्द्र क्रत्वा मरुतो यद्वशाम॥
हे अभीष्ट वर्षी इन्द्रदेव! हम एक तुल्य पौरुषवाले हैं। हमारे साथ मिलकर आपने बहुत कुछ किया है। हे बलवत्तम इन्द्रदेव! हमने भी बहुत कार्य किये हैं। हम मरुत हैं, इसलिए कार्य द्वारा हम वर्षा आदि की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 1.165.7]
मरुद :- हे वीर! तुमने हमारे सहित मिलकर बहुत वीर कर्म किया है। हे महाबली इन्द्र! हम मरुद्गण भी अपने मनोबल से जो चाहें कर सकते हैं।
Hey boons-accomplishment granting Indr Dev! We possess same level of valour-might. We have accomplished several feats-deeds together. Hey mighty Indr Dev! We too accomplished many feats. We are Marud Gan, hence we desire for rain showers.
वधीं वृत्रं मरुत इन्द्रियेण स्वेन भामेन तविषो बभूवान्।
अहमेता मनवे विश्वश्चन्द्राः सुगा अपश्चकर वज्रबाहुः॥
हे मरुतो! मैंने क्रोध के समय विशाल पराक्रमी बनकर अपने बाहुबल से वृत्रासुर को पराजित किया। मैं वज्रबाहु हूँ। मैं मनुष्यों के लिए व सबकी प्रसन्नता के लिए सुन्दर वर्षा किया करता हूँ।[ऋग्वेद 1.165.8]
इन्द्र :- हे मरुतो! मैंने अपने क्रोध से, पराक्रम से वृत्र का वध किया। मैंने ही वज्र धारण कर, प्राणियों के लिए जल-वर्षा की।
Hey Marud Gan! I turned into a great warrior due to anger and defeated Vrata Sur with my muscle power. I am Vajr Bahu (one who's arms made of thunder volt). I shower rains for the appeasement of humans and all others.
अनुत्तमा ते मघवन्नकिर्नु न त्वावँ अस्ति देवता विदानः।
न जायमानो नशते न जातो यानि करिष्या कृणुहि प्रवृद्ध॥
हे इन्द्रदेव! आपका सभी कर्म उत्तम है। आपके समान कोई देवता विद्वान् नहीं है। हे अतीव बलशाली इन्द्रदेव! आपने जो कर्त्तव्य कर्मों को किया हैं, उन्हें न तो कोई पहले कर सका, न आगे कर सकेगा।[ऋग्वेद 1.165.9]
मरुद :- हे समृद्धि शालिन! हे इन्द्रदेव! तुमसे बढ़कर कोई धनवान नहीं है। तुम्हारे तुल्य कोई विख्यात देव नहीं है। तुम्हारे कार्यों की समानता न कोई पूर्व में कर सका और न ही अब कर सकता है।
Hey Indr Dev! All your deeds-functions are superb-excellent. None of the demigods-deities matches you, in terms of knowledge-enlightenment. Hey extremely powerful Indr Dev! The deeds accomplished by you are unmatched and none will be able to achieve that in future.
एकस्य चिन्मे विभ्वस्त्वोजो या नु दधृष्वान्कृणवै मनीषा।
अहं ह्युग्रो मरुतो यानि च्यवमिन्द्र इदीश एषाम्॥
मैं अकेला हूँ। मेरा ही बल सर्वत्र व्याप्त है; मैं जो चाहूँ, तत्काल कर सकता हूँ; क्योंकि हे मरुतो! मैं उग्र और विद्वान् हूँ एवं जिन धनों का मुझे पता है, उनका मैं ही स्वामी हूँ।[ऋग्वेद 1.165.10]
इन्द्र :- हे मरुद गण! एक मेरा बल ही फैला हुआ रहता है। मैं अत्यन्त बुद्धिमान और प्रसिद्ध उग्रकर्मा हूँ। मैं जो चाहूँ वही करने में सक्षम हूँ, जो धन संसार में है, उसका मैं दाता हूँ।
I am alone. My power pervades all around and I am capable of doing the desired immediately-at once. Hey Marud Gan! I am furious and enlightened. I am the master of entire wealth known to me.
अमन्दन्मा मरुतः स्तोमो अत्र यन्मे नरः श्रुत्यं ब्रह्म चक्र।
इन्द्राय वृष्णे सुमखाय मह्यं सख्ये सखायस्तन्वे तनूभिः॥
हे मरुतो! इस सम्बन्ध में आपने मेरा जो प्रसिद्ध स्तोत्र किया है, वह मुझे आनन्दित करता है। मैं अभीष्ट फलदाता, ऐश्वर्यशाली, विभिन्न रूपों वाला और आपके योग्य मित्र हूँ।[ऋग्वेद 1.165.11]
इन्द्रदेव :- हे मरुतो! तुम्हारे श्लोक से मैं आनंदित हुआ। वह श्लोक तुमने मुझे मानकर रचा है। मैं तुम्हारा सखा अभीष्ट फल प्रदान करने वाला हूँ।
Hey Marud Gan! You have composed a famous hymn devoted to me, which amuses me. I grant the desired boons-accomplishments, capable of possessing different-various forms and your friend.
एवेदेते प्रति मा रोचमाना अनेद्यः श्रव एषो दधानाः।
संचक्ष्या मरुतश्चन्द्रवर्णा अच्छान्त मे छदयाथा च नूनम्॥
हे मरुतो! आप सोने के रंग के हैं। मेरे लिए प्रसन्न होकर दूरस्थ कीर्ति और अन्न धारण करते हुए मुझे अच्छी तरह से प्रकाश और तेज द्वारा आच्छादित करें।[ऋग्वेद 1.165.12]
इन्द्रदेव :- हे मरुतो तुमने अनिद्य कीर्ति और महान शक्तियों को धारण कर मेरे लिए प्रकट होकर आनंदित किया। मैं अब भी तुम्हारे कार्यों से प्रसन्नचित्त हूँ।
Hey Marud Gan! You body possess golden hue-colour. On being happy-delighted, you granted long lasting fame to me and covered me bright light-aura.
को न्वत्र मरुतो मामहे वः प्र यातन सखींरच्छा सखायः।
मन्मानि चित्रा अपिवातयन्त एषां भूत नवेदा म ऋतानाम्॥
हे मरुतो! कौन मनुष्य आपकी पूजा करता है? आप सबके मित्र हैं। आप यजमान के सामने आवें। हे मरुतो! आप दिव्य धन की प्राप्ति के उपायभूत बनें और सत्य कर्म को जानें।[ऋग्वेद 1.165.13]
अगस्त्य :- हे मरुतो! यहाँ कौन तुम्हारी वंदना करता है? तुम सबके सखा हो। अपने मित्र उपासक के समीप जाओ। तुम श्रेष्ठ धनों की प्राप्ति में कारणभूत बनते हुए कर्मों की प्रेरणा करो।
Hey Marud Gan! Who worships you here? You are friendly with everyone. You should come face to face with the hosts. Hey Marud Gan! You should become cause-means for attaining the divine wealth and discover the truth.
आ यद्दुवस्याद्दुवसे न कारुरस्माञ्चक्रे मान्यस्य मेधा।
ओ षु वर्त्त मरुतो विप्रमच्छेमा ब्रह्माणि जरिता वो अर्चत्॥
हे मरुतो! स्तोत्र द्वारा परिचरण समर्थ, स्तुति कुशल और मान्य ऋत्विक् की बुद्धि आपकी सेवा के लिए हमारे सामने आती है। हे मरुतो! मैं मेधावी हूँ। मेरे सामने आवें। आपके प्रसिद्ध कर्म को लक्ष्य कर स्तोता आपका पूजन करते है।[ऋग्वेद 1.165.14]
सेवा करने वाले से हर्षित होकर पारितोषिक देने के तुल्य इन्द्र देव ने मुझे कवित्व प्रदान किया है। हे मरुदगण! तुम प्रार्थनाकर्त्ता के सम्मुख पधारो।
Hey Marud Gan! The Ritviz-hosts conducting Yagy-prayers come to us for worship. Hey Marud Gan ! I am genius. Come to me. The devotees pray to you for your divine functions.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः।
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्॥
हे मरुतो! यह स्तोत्र और यह स्तुति माननीय और प्रसन्नतादायक है। यह शरीर पुष्टि के लिए आपके पास जाती है। हम अन्न, बल और दीर्घ आयु अथवा विजय, शील और दान प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.165.15]
हे मरुद्गण! मान पुत्र मान्दार्य कवि का यह श्लोक तुम्हारे लिए हो। तुम मेरे शरीर को बल प्रदान करने के लिए अन्न से परिपूर्ण प्रस्थान करो। हम अन्न, शक्ति और दान मति को ग्रहण करें।
Hey Marud Gan! Let this hymn by the poet Mandary, son of Man be pleasing to you. Let us attain donations, food grains, might-power, longevity, victory and modesty-piety.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (165) :: ऋषि :- मैत्र, वरुण, अगस्त्य, देवता :- मरुत्, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
तन्नु वोचाम रभसाय जन्मने पूर्व महित्वं वृषभस्य केतवे।
ऐधेव यामन्मरुत स्तुविष्वणो युधेव शक्रास्तविषाणि कर्तन॥
फलवर्षक् यज्ञ के सुसम्पादन के लिए मरुतों के शीघ्र आकर उपस्थित होने के लिए उनके प्रसिद्ध प्रर्वतन महात्म्य को कहता हूँ। हे विशाल ध्वनि से युक्त और सब कार्यों में समर्थ मरुद्गण! आपके यज्ञस्थल में जाने के लिए प्रस्तुत होने पर जैसे समिधा तेज से आवृत होती है, वैसे ही आप लोग युद्ध में जाने के लिए प्रभूत बल धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.166.1]
हे श्रेष्ठ गर्जनशील मरुतो! तुम इन्द्रदेव के ध्वज रूप एवं वेगवान गण हो। हम तुम्हारे पुरातन महत्व को बताते हैं। हे समर्थ! तुम तेजवन्त हुए योद्धाओं के समान पराक्रमी कर्म करते हो।
I am narrating the glory of the Maruts to come quickly to accomplish the Yagy. Hey Marud Gan! You are accompanied with loud sounds-thunder and are capable of carrying out great deeds. When you prepare to depart for the war the Samidha-wood for the Yagy is ignited and you depart for the war-battle.
नित्यं न सूनुं मधु बिभ्रत उप क्रीळन्ति क्रीळा विदथेषु घृष्वयः।
नक्षन्ति रुद्रा अवसा नमस्विनं न मर्धन्ति स्वतवसो हविष्कृतम्॥
औरस पुत्र की तरह प्रिय मधुर हव्य धारण करके घर्षणकारी मरुद्गण प्रसन्न चित्त से यज्ञ में क्रीड़ा किया करते हैं। विनीत यजमान की रक्षा के लिए रुद्रगण मिलते हैं। उनका बल उनके अधीन हैं, वे कभी यजमान को कष्ट नहीं देते।[ऋग्वेद 1.166.2]
द्वन्द्व में शत्रुओं का घर्षण करने वाले, शिशु के समान मधुर क्रीड़ा परिपूर्ण इन्द्रपुत्र मरुद्गण नमस्कार करने वाले की सुरक्षा करते हैं, वे हविदाता को दुःखी नहीं होने देते।
The thunderous Marud Gan accept the lovely & sweet offerings and enjoy in the Yagy happily. The Rudr Gan too come to protect the polite performer of the Yagy. Their power, strength & might is under their control and they never trouble-tease the hosts.
यस्मा ऊमासो अमृता अरासत रायस्पोषं च हविषा ददाशुषे।
उक्षन्त्यस्मै मरुतो हिताइव पुरू रजांसि पयसा मयोभुवः॥
जिस हवि देने वाले यजमान की आहुति से प्रसन्न होकर सर्वरक्षक, अमर और सुखोत्पादक मरुद्गण यथेष्ट धन देते हैं, उसी यजमान के हितकारी मित्र की तरह आप लोग समस्त संसार की उपजाऊ भूमि को जल से अच्छी तरह सींचते हैं।[ऋग्वेद 1.166.3]
मृत्यु से रक्षा करने वाले मरुद्गण हवि दाता को अत्यन्त धन प्रदान करते हो। उसके प्रदेश को, मित्रों को समवर्षा से सींचते हो।
The immortal Marud Gan, who protect every one, provide sufficient wealth to the host on being happy, leading to comforts. They irrigate the soil to make it fertile like a beneficial friend.
आ ये रजांसि तविषीभिरव्यत प्र व एवासः स्वयतासो अध्रजन्।
भयन्ते व विश्वा भुवनानि हर्म्या चित्रो वो यामः प्रयतास्वृष्टिषु॥
हे मरुतो! आपके अश्वगण अपने बल से सारे संसार का भ्रमण करते हैं, वे अपने ही रथ पर आरुढ़ होकर जाते हैं। आपकी यात्रा अत्यन्त आश्चर्यमयी है। हथियार उठाने पर जैसे लोग संसार में भयभीत होते हैं, उसी तरह समस्त भुवन और अट्टालिकायें आपके यात्रा काल में भयभीत होती है।[ऋग्वेद 1.166.4]
हे मरुद्गण! तुमने अपने पराक्रम से देशों का भ्रमण किया है। तुम्हारे वाहन आगे उड़ते हैं। तब सभी लोक काँप जाते हैं। जैसे हथियार उठाकर चलने वाले वीर को देखकर सभी कंपित होते हैं, वैसे ही यह भवन तुम्हारे वेग से काँपते हैं।
Hey Marud Gan! Your horses travel around the world, with their might-power over their charoite. Your journey is amazing. The manner in which the populace-world become afraid over raising of arms-weapons, the huge-tall buildings become afraid (tremble).
यत्त्वेषयामा नदयन्त पर्वतान्दिवो वा पृष्ठं नर्या अचुच्यवुः।
विश्वो वो अज्मन्भयते वनस्पती रथीयन्तीव प्र जिहीत ओषधिः॥
मरुतों का गमन अत्यन्त प्रदीप्त है। वे जिस समय पर्वतों-गह्वरों को ध्वनित करते अथवा मनुष्यों के हित के लिए अन्तरिक्ष के ऊपरी भाग में चढ़ते हैं, उस समय उनके पथ के समस्त विरोधी भयभीत हो जाते और रथ पर बैठी हुई स्त्री की तरह औषधियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती हैं।[ऋग्वेद 1.166.5]
हे मरुतो! तुम तेजवान, गतिमान मनुष्यों के हितकारी और पर्वतों को गुंजायमान करने वाले हो। तुम अम्बर की पीठ कम्पायमान करते हो। तुम्हारे डर से वृक्ष, रथ पर चढ़ी हुई नारी के तुल्य, इधर से उधर हिलते हैं।
Hey Marud Gan! Your movements are stunning but useful to the living beings. Your vibrate-create ripples in the sky. The trees start shaking like the woman riding a charoite.
यूयं न उग्रा मरुतः सुचेतुनारिष्टग्रामाः सुमतिं पिपर्तन।
यत्रा वो दिद्युद्रदति क्रिविर्दती रिणाति पश्व: सुधितेव बर्हणा॥
हे उग्र मरुतो! सद्बुद्धि के साथ आप लोग अहिंसक होकर हमें सदबुद्धि प्रदान करें। जिस समय आपकी क्षेपणशील और दन्तविशिष्ट विद्युत् दर्शन करती हैं, उस समय आप शत्रु सेना का संहार करते हुए हिंसक पशुओं का भी वध कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.166.6]
हे विकराल मरुतो! हमारे कल्याण की कामना से अपनी बुद्धि को दया की ओर प्रेरित करें। जब तुम्हारी बिजली रूप तलवार चमकती है, तब वह बर्धी के सामान जन्तुओं का विनाश करती है।
Hey furious Marud Gan! You should grant us virtues. When lightening appears, it destroys-kills the predatory animals and the enemy armies.
प्र स्कम्भदेष्णा अनवभ्रराधसोऽलातृणासो विदथेषु सुष्टुताः।
अर्चन्त्यर्कं मदिरस्य पीतये विदुर्वीरस्य प्रथमानि पौंस्या॥
जिनका दान अविरत है, जिनका धन भ्रंश रहित है, जिनका शत्रु वध पर्याप्त है और जिनकी स्तुति सुगीत है, वे मरुद्गण सोमरस पाने के लिए स्तुति करते हैं, क्योंकि वे लोग ही इन्द्रदेव की प्रथम वीर कीर्त्ति को जानते हैं।[ऋग्वेद 1.166.7]
जिनका दिया हुआ धन स्थिर है, वे मरुद्गण सोम के लिए इन्द्र की प्रशंसा करते हुए उनकी शक्ति और मेरे कर्मों को जानने वाले हैं।
The Marud Gan pray to Dev Raj Indr for having Somras. Their donations are continuous and wealth is imperishable. They are synonym to the death of the enemy. They are aware of the glory, fame of Dev Raj Indr.
शतभुजिभिस्तमभिह्रुतेरघात्पूर्भी रक्षता मरुतो यमावत।
जनं यमुग्रास्तवसो विरप्शिन: पाथना शंसात्तनयस्य पुष्टिषु॥
हे मरुतो! आपने जिस व्यक्ति को कुटिल पाप से बचाया है, हे उग्र और बलवान् मरुद्गण! आपने जिस मनुष्य को पुत्रादि पुष्टि साधन द्वारा निन्दा से बचाया है, उसे असंख्य योग्य वस्तुओं द्वारा प्रति पालित करें।[ऋग्वेद 1.166.8]
हे विकराल कार्य शक्ति वाले मरुद्गण! तुमने जिस पर कृपा दृष्टि की है उसे तुम अनेकों घातों से बचाते हो और उसकी पुत्र आदि साधन द्वारा सुरक्षा करते हो।
Hey furious and mighty Marud Gan! You are a saviour-protector of the humans. You save-restrain them from sins, protect their sons. You save them from defame and support them by granting them unlimited useful commodities.
विश्वानि भद्रा मरुतो रथेषु वो मिथस्पृध्येव तविषाण्याहिता।
अंसेष्वा वः प्रपषेषु खादयोऽक्षो वश्चक्रा समया वि वावृते॥
हे मरुतो! समस्त कल्याण देने वाले पदार्थ आपके रथ पर स्थापित है। आपके स्कन्ध देश में परस्पर स्पर्द्धा वाले आयुध है। आपके लिए विश्राम स्थान पर भोजन तैयार है। आपके सारे चक्र अक्ष के पास भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 1.166.9]
हे मरुद्गण! सभी कल्याण, समस्त शक्ति तुम्हारे रथ पर स्थापित है तुम्हारे कंधे पर स्पर्धा से परिपूर्ण आयुध रहते हैं। तुम्हारा धुरा दोनों पहियों को सही ढंग से भ्रमण कराता है।
Hey Marud Gan! All means of luxury, welfare are present-available over your charoite. Weapons-arms & ammunition for all sorts of fight are present over your shoulders. Food is ready at the place of your rest. All your cycles move around the axles of the charoite.
भूरीणि भद्रा नर्येषु बाहुषु वक्षःसु रुक्मा रभसासो अञ्जयः।
अंसेष्वेताः पविषु क्षुरा अधि वयो न पक्षान्व्यनु श्रियो घिरे॥
मनुष्यों की हितकारिणी भुजाओं पर मरुद्गण अनन्त कल्याण साधक द्रव्य धारण करते हैं, वक्षः स्थल में कान्ति युक्त और सुन्दर रूप संयुक्त सोने के आभूषण धारण करते हैं। स्कन्ध देश में श्वेत वर्ण की माला धारण करते हैं। वज्र सदृश आयुध पर क्षुर धारण करते हैं। जिस प्रकार से पक्षी पंख धारण करते हैं, उसी प्रकार से मरुद्गण लक्ष्मी को धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.166.10]
हे मरुद्गण! तुम्हारी भुजाएँ प्राणी की भलाई के साधन में तत्पर रहती हैं। तुम्हार हृदय देश कल्याणकारी स्वर्णहारों से सजा हुआ है और कंधे विकराल आयुधों से युक्त हैं। पक्षी जैसे पंख ग्रहण करते हैं, वैसे ही तुमने शक्ति ग्रहण कर रखी है।
Hey Marud Gan! Your arms are always ready to help-benefit the living beings. Your chest is decorated with golden ornaments. Your shoulders possess dangerous-furious weapons. The Marud Gan possess wealth just like the birds having feathers.
महान्तो मह्ना विभ्वोविभूतयो दूरेदृशो ये दिव्या इव स्तृभिः।
मन्द्राः सुजिह्वाः स्वरितार आसभिः संमिश्ला इन्द्रे मरुतः परिष्टुभः॥
जो मरुद्गण महान्, महिमान्वित, विभूतिमान् और आकाश में स्थित नक्षत्रों की तरह दूर तक प्रकाशित होते हैं, जो प्रसन्न हैं, जिनकी जिह्वा सुन्दर है, जिनके मुख से शब्द होता है, जो इन्द्र के सहायक हैं और जो स्तुति युक्त हैं, वे हमारे यज्ञ स्थल में पधारें। [ऋग्वेद 1.166.11]
महान समृद्धिशाली, शक्तिशाली, अम्बर में नक्षत्रों के तुल्य दैदिप्यमान, गंभीर, ध्वनि से परिपूर्ण, सुन्दर जीभ और मधुर गान वाले मरुद्गण ध्वनिशील, हुए इन्द्र के सहयोगी हैं।
The great, glorious, shinning like stars-constellations in the sky, happy with sweet voice-speech, helpers of Dev Raj Indr and deserve prayers-worship, Marud Gan join us in the Yagy.
तद्वः सुजाता मरुतो महित्वनं दीर्घं वो दात्रमदितेरिव व्रतम्।
इन्द्रश्चन त्यजसा वि ह्रुणाति तज्जनाय यस्मै सुकृते अराध्वम्॥
हे सुजात मरुद्गण! आपका माहात्म्य प्रसिद्ध है और आपका दान अदिति के व्रत की तरह अविच्छिन्न है। आप जिस पुण्यात्मा यजमान को दान देते हैं, उसके प्रति इन्द्रदेव कभी कुटिलता नहीं करते।[ऋग्वेद 1.166.12]
हे उत्तम प्रकार से प्रकट मरुतो! तुम्हारा नाम अदिति के नियम के समान स्थिर है। इसलिए तुम श्रेष्ठ हो। जिस श्रेष्ठ कर्म वाले को तुम धन देते हो, उसके धन को इन्द्र भी नहीं छीनते।
Hey excellent Marud Gan! Your greatness and charity is unbroken-forever like the the fast-determination of Aditi-Dev Mata. Dev Raj Indr never snatch the wealth given by you to the devotees.
तद्वो जामित्वं मरुतः परे युगे पुच्छंसममृतास आवत।
अया धिया मनवे श्रुष्टिमाव्या साकं नरो दंसनैरा चिकित्रिरे॥
हे मरुद्गण! आपकी मित्रता प्रसिद्ध और चिरस्थायी है। अमर होकर आप लोग स्तुति द्वारा हमारी भली-भाँति रक्षा करते हैं। याचना पूर्वक मनुष्यों की स्तुति की रक्षा करते हुए उनके साथ मिलकर और उनका नेतृत्व स्वीकार कर कर्म द्वारा सब जान जाते हैं।[ऋग्वेद 1.166.13]
हे अविनाशी मरुतो! तुमने अपने बन्धु भाव के कारण प्राचीन श्लोकों की भली भांति सुरक्षा की है। तुमने मनुष्यों की वंदना स्वीकृत करके उन्हें कर्मों का ज्ञान प्रदान किया।
Hey Marud Gan! Your friendship is forever-ever lasting. Being immortal, you protect us through prayers-worship by us. You accept the prayers by the humans and accept their leadership and learn every thing, get their every detail.
You grant enlightenment to the humans.
येन दीर्घं मरुतः शूशवाम युष्माकेन परीणसा तुरासः।
आ यत्ततनन्वृजने जनास एभिर्यज्ञेभिस्तदभीष्टिमश्याम्॥
हे वेगवान् मरुतो! आपके महान् आगमन पर हम दीर्घ कर्म यज्ञ को वर्द्धित करते हैं। उसके में मनुष्य विजयी होता है। इन सब यज्ञों द्वारा मैं आपका शुभ आगमन प्राप्त कर सकूँ।[ऋग्वेद 1.166.14]
हे वेगवान मरुद्गण! हम तुम्हारी दया से चिर काल तक वृद्धि को प्राप्त हों। जिन कर्मों से प्राणी जीत हासिल करता है और यश को प्राप्त करता है, अपनी इस कामना को मैं इन यज्ञों से प्राप्त करूँ।
Hey fast moving Marud Gan! Over your arrival-visit we extend our Yagy, leading to our victory, glory. Let me welcome you in the Yagy.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः।
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्॥
हे वीर मरुतो! महान् कवि द्वारा रचना किये गए स्तोत्र वाणी द्वारा आपको आनन्द और प्रसन्नता प्रदान करने वाले आपके शरीर के बल की वृद्धि करने वाले और आपके अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले हैं। हमें भी आप इसी प्रकार अन्न, बल और विजय श्री शीघ्रतापूर्वक प्रदान करे।[ऋग्वेद 1.166.15]
हे मरुद्गण! मान-पुत्र मान्दार्य कवि का यह श्लोक और वाणी तुम्हारे लिए हो। तुम हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करने के लिए अन्न के साथ जाओ। हम अन्न शक्ति और दानशील स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey mighty Marud Gan! Let the compostions-Strotr by the great poets grant you pleasure-amusement. It enhances-boosts your power-might fulfil your desires. You should grant us food grains, valour-might and victory quickly.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (167) :: ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, मरुत्, छन्द :- त्रिष्टुप्।
सहस्रं त इन्द्रोतयो नः सहस्त्रमिषो हरिवो गूर्ततमाः।
सहस्रं रायो मादयध्यै सहस्रिण उप नो यन्तु वाजाः॥
हे इन्द्रदेव! आप हजारों प्रकार से (हमारी) रक्षा करें। आपकी रक्षाएँ हमारे पास आवें। हे हरि नामक अश्ववाले इन्द्रदेव! आपके पास हजार प्रकार के प्रशंसनीय अन्न हैं; वे हमें प्राप्त हो। हे इन्द्रदेव! आपके पास हजारों प्रकार का धन है। हमारी तृप्ति के लिए वे भी हमें प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.167.1]
हे अश्व सम्पन्न इन्द्रदेव! तुम्हारे अनेक सुरक्षा पालक हमको प्राप्त हों, अनेक सा अन्न और प्रचुर धन राशि हमको असीमित शक्ति के साथ मिले।
Hey Indr Dev! Protect us through all thousands-means available with you. Hey the possessor of the horse named Hari, Indr Dev! We should get thousands kinds of food grains available with you. You have thousands of types of possessions-wealth. Let them be available to us for our comforts-satisfaction.
आ नोऽवोभिर्मरुतो यान्त्वच्छा ज्येष्ठेभिर्वा बृहद्दिवैः सुमायाः।
अध यदेषां नियुतः परमाः समुद्रस्य चिद्धनयन्त पारे॥
आश्रय देने के लिए मरुद्गण हमारे पास आवें। सद्बुद्धि मरुद्गण प्रशस्यतमः और महादीप्ति संयुक्त धन के साथ हमारे पास पधारें, क्योंकि उनके नियुत नाम के श्रेष्ठ अश्व समुद्र के उस पार से भी धन ले आते हैं।[ऋग्वेद 1.167.2]
अत्यन्त मेधावी मरुद्गण अपने सुरक्षा साधनों और श्रेष्ठतम धन के साथ हमारी ओर पधारो! उनके अश्व समुद्र के पार हिन-हिनाते हुए प्रतीत होते हैं।
Let intellectual Marud Gan come to us with appreciable wealth. Their excellent horses named Niyut bring wealth across the oceans.
मिम्यक्ष येषु सुधिता घृताची हिरण्यनिर्णिगुपरा न ऋष्टिः।
गुहा चरन्ती मनुषो न योषा सभावती विदथ्येव सं वाक्॥
सुव्यवस्थित, जलवर्षक और सुवर्ण वर्ण विद्युत् मेघमाला की तरह अथवा निगूढ़ स्थान में अवस्थित मनुष्य की पत्नि की तरह या कही गई यज्ञीय वाणी की तरह इन मरुतों के साथ मिलती है।[ऋग्वेद 1.167.3]
प्राणियों की गुप्त रूप से रहने वाली पत्नियों के समान उन मरुद्गण की चमकती हुई स्वर्णिम कटार, म्यान में रहती और निकलती है। वह विद्युत रूपा विदुषी के समान ओजस्वी वाणी से युक्त है। बिजली कभी चमकती, कभी छिपती और कभी कड़कती है) द्रुत गतिमान मरुद्गण को यह विद्युत एकांत निवासिनी भार्या के तुल्य या अनुष्ठान में उच्चारण की जाने में वाली वेद वाणी के तुल्य ग्रहण होती है।
Well organised-systematic, rain showering and lightening; like the shy-hidden wives, meets the Marud Gan and becomes visible like the hymns-recitations of the Veds.
परा शुभ्रा अयासो थव्या साधारण्येव मरुतो मिमिक्षुः।
न रोदसी अप नुदन्त घोरा जुषन्त वृधं सख्याय देवाः॥
साधारण स्त्री की तरह आलिंगन-परायण विद्युत् के साथ शुभवर्ण, अतिगमन शील और उत्कृष्ट मरुद्रण मिलते है। भयंकर मरुद्रण द्यावा-पृथ्वी को नहीं हटाते। देवता लोग मैत्री के कारण उनकी समृद्धि का उपाय करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.4]
साधारण स्त्री के तुल्य इस चमकती हुई बिजली ने मरुद्गण को वरण किया। तब वह सूर्य के तुल्य चाल वाली मरुद्गण को के ग्रहण हुई।
The extremely fast-quick moving Marud Gan meets like lightening & hugging a common woman. They do not disturb the sky and the earth. The demigods-deities make efforts for their progress due to friendship.
जोषद्यदीमसुर्या सचध्यै विषितस्तुका रोदसी नृमणाः।
आ सूर्येव विधतो रथं गात्त्वेषप्रतीका नभसो नेत्या॥
मरुतों की अपनी पत्नी बिजली आलुलायित केश और अनुरक्त मन से मरुतों के संगम के लिए उनकी सेवा करती है। जिस प्रकार से सूर्या अश्विनी कुमारों के रथ पर आरूढ़ होती है, उसी प्रकार प्रदीप्ता वयवा रोदसी चंचल मरुतों के रथ पर चढ़कर शीघ्र आती है।[ऋग्वेद 1.167.5]
हे मरुद्गण! तुमने अन्यन्त तेज वाली युवावस्था प्राप्त दामिनी को अपने रथ पर चढ़ाया।
Lightening, the wife of Marud Gan serves them with love. The way the Surya (Sun light) rides the charoite of Ashwani Kumars bright lightening rides the charoite of the naughty (playful-fickle) Marud Gan.
आस्थापयन्त युवतिं युवानः शुभे निमिश्लां विदथेषु पज्राम्।
अर्को यद्वो मरुतो हविष्मान्गायद्गाथं सुतसोमो दुवस्यन्॥
यज्ञ आरम्भ होने पर वर्षादान के लिए तरुण युवा तरुणी रोदसी को रथ पर बैठाते हैं। बलवती रोदसी (पृथ्वी, स्वर्ग) नियमानुरूप उनके साथ मिलती है। उसी समय अर्चन मंत्रयुक्त हव्यदाता और सोमाभिषवकारी यजमान मरुतों की सेवा करते हुए स्तोत्रों का पाठ करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.6]
उस समय सोम अभिषवकर्त्ता हवि देते हुए श्लोक गान करने लगे। इन मरुदगण के कथन बल का मैं यथावत वर्णन करता हूँ।
The earth & the sky rides (takes part in the process) the charoite prior to the Yagy leading to showers. It interact with them as per rule-process. The hosts making offerings make prayers using Mantr-hymns for the service of the Marud Gan.
प्र तं विवक्मि वक्म्यो य एषां मरुतां महिमा सत्यो अस्ति।
सचा यदीं वृषमणा अहंयुः स्थिरा चिज्जनीर्वहते सुभागाः॥
मरुतों की महिमा सबकी प्रशंसनीय और अमोघ है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। उनकी रोदसी वर्षणाभिलाषिणी, अहंकारिणी और अविनश्वरा है। यह सौभाग्यशालिनी, उत्पत्तिशील और प्रजा को धारण करती है।[ऋग्वेद 1.167.7]
अमोघ :: अचूक (औषधिया अस्त्र), जो निष्फल न हो, जो निरर्थक या व्यर्थ न हो, सफल, लक्ष्यभेदी।
उसकी मानिनी वर्षाणाभिलाषी, अटल विचार वाली है। वह मानिनी सौभाग्यवती हुई प्रजाओं को ग्रहण करती है।
Glory-majesty of the Marud Gan deserve appreciation and it never goes waste. The earth and the sky desires rains which leads to growth & good luck. It supports the populace-living beings.
पान्ति मित्रावरुणाववद्याच्चयत ईमर्यमो अप्रशस्तान्।
उत च्यवन्ते अच्युता ध्रुवाणि वावृध ई मरुतो दातिवारः॥
मित्र, वरुण और अर्यमा इस यज्ञ को निन्दा से बचाते हैं और उसके अयोग्य पदार्थ का विनाश करते हैं। हे मरुतों! आपके जल देने का समय जब आता है, तब वे मेघों के बीच एकत्रित जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.8]
सखा और वरुण, यज्ञ निंदकों से सुरक्षा करते हैं। अर्यमा उनको नष्ट करते हैं। हे मरुद्गण जब तुम्हारा जल त्यागने का समय आता है और तब निश्चल बादल भी डिग जाते हैं।
Mitr, Varun & Aryma protects this Yagy from blasphemy, reproach & damn. They destroy the unwanted-unsuitable (undesirable) goods. Hey Marud Gan! When the time for showers arrives, they set themselves in the clouds and shower the accumulated water.
नहीं नु वो मरुतो अन्त्यस्मे आरात्ताच्चिच्छवसो अन्तमापुः ।
ते धृष्णुना शवसा शूशुवांसोऽर्णो न द्वेषो धृषता परि ष्ठू:॥
हे मरुतो! हमारे बीच किसी ने भी अत्यन्त दूर से भी आपके बल का अन्त नहीं पाया।
दूसरों को पराजित करने वाले बल के द्वारा वृद्धि कर जलराशि की तरह अपनी शक्ति से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.9]
हे मरुद्गण! तुम्हारा बल असीमित हैं। उसका पता न समीप से लगता है न दूर से। तुम अत्यन्त सामर्थ्यवान हो। तुम जल के समान बढ़कर शक्तिशाली हुए शत्रुओं को हरा देते हो।
Hey Marud Gan! None of us has been able to assess your might-power either from near or far. By increasing the might to defeat others, like the stores-accumulated water you win-over power the enemy.
वयमद्येन्द्रस्य प्रेष्ठा वयं श्वो वोचेमहि समर्थे।
वयं पुरा महि च नो अनु द्यून्तन्न ऋभुक्षा नरामनु ष्यात्॥
आज हम इन्द्रदेव के प्रियतम होकर यज्ञ में उनकी महिमा का गान करेंगे। हमने पहले भी इनके माहात्म्य का गान किया और प्रतिदिन गान करते है। इसलिए ये महान् इन्द्रदेव हमारे लिए अनुकूल बने रहें।[ऋग्वेद 1.167.10]
आज हम इन्द्रदेव के अत्यन्त प्रिय बनेंगे। कल हम उन्हीं को पुकारेंगे। पूर्व में भी उनको पुकारते रहे हैं। वे श्रेष्ठतम इन्ददेव और हमारे अनुकूल हों।
Let us become dear to Indr Dev and sing his glory. We earlier sung described this glory. Let great-mighty Indr Dev be favourable to us.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः।
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्॥
हे मरुतो! कवि मान्दर्य की यह स्तुति आपके लिए है। इच्छानुसार उसकी शरीर पुष्टि के लिए आपके पास आती है। हम भी अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.167.11]
हे मरुद्गण! मान पुत्र मान्दार्य का श्लोक तुम्हारे लिए है। तुम शरीर को शक्ति देने हेतु समृद्धि से युक्त यहाँ पर पधारो और अन्न, शक्ति तथा दानशील स्वभाव को ग्रहण कराओ।
Hey Marud Gan! Poet-Rishi Mandary has composed this prayer for you. You should arrive here to nourish us. Let us obtain food grains, might-power and long life.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (168) :: ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- मरुत्, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
यज्ञायज्ञा वः समना तुतुर्वणिर्धियंधियं वो देवया उ दधिध्वे।
आ वोऽर्वाचः सुविताय रोदस्योर्महे ववृत्यामवसे सुवृक्तिभिः॥
हे मरुद्गणों। समस्त यज्ञों में आपका समान आग्रह है। आप अपने समस्त कर्मों को देवताओं के पास ले जाने के लिए धारण करते हैं, इसलिए द्यावा-पृथ्वी की भली-भाँति रक्षा करने के लिए उत्कृष्ट स्तोत्र द्वारा आपको अपने पास बुलाने के लिए आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 1.168.1]
हे मरुद्गण! समस्त यज्ञों में तुम अपने एकाग्र हृदय वाले यजमान को प्रत्येक श्लोक में वृद्धि करते और उसे देवकर्मों के लिए धारण करते हो। मैं क्षितिज-धरा की सुरक्षा के लिए महान वंदनाओं द्वारा अपनी ओर पुकारता हूँ।
Hey Marud Gan! You have equal rights over all Yagy. You bear-carry forward all endeavours to the demigods-deities. Hence, I invite you to protect the sky-horizon and the earth with the help of excellent Strotr-hymn.
वव्रासो न ये स्वजाः स्वतवस इषं स्वरभिजायन्त धूतयः।
सहस्त्रियासो अपां नोर्मय आसा गावो वन्द्यासो नोक्षणः॥
स्वयं उत्पन्न, स्वाधीन बल और कम्पनशील मरुद्रण मानों मूर्तिमान होकर अन्न और स्वर्ग के लिए प्रकट होते हैं। असंख्य और प्रशंसनीय गौ जिस प्रकार दूध देती हैं, उसी प्रकार से जल-तरंग के समान वे उपस्थित होकर जलदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.168.2]
हे मरुतो! तुम अपने आप रचित स्वयं शक्तिशाली अन्न के लिए प्रकट होते हो। वे जल की लहरों के समान तथा पयस्विनी धेनुओं के तुल्य दान करते हैं।
Hey Marud Gan! You appear for giving the food grains developed by you with your own endeavours-efforts and strength. The manner in which several appreciable cows grant milk, you appear like water waves & give us water.
सोमासो न ये सुतास्तृप्तांशवो हृत्सु पीतासो दुवसो नासते।
ऐषामंसेषु रम्भिणीव रारभे हस्तेषु खादिश्च सं दधे॥
सुसंस्कृत शाखावाली सोमलता, अभिषुत और पीत होकर जिस प्रकार से हृदय के बीच परिचारिका की तरह कार्य करती है, उसी प्रकार से ध्यान किये जाने पर मरुद्गण भी करते हैं। उनके अंशदेश में स्त्री की तरह आयुधविशेष आलिंगन करता है। मरुतों के हाथ में हस्तत्राण और कर्त्तन है।[ऋग्वेद 1.168.3]
जैसे उत्तम शाखा वाले सोम रस पीने के लिए अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। वैसे ही मरुद्गण मंगलकारी होते हैं। उनकी भुजाओं पर शस्त्र और हाथों में कंगन और कटार सजे हुए हैं।
The way the virtuous-learned female servants serve the Somras with happiness to Marud Gan, they too reciprocate on being remembering them-meditating in them. Their hands possess arms and protective covers over the arms bracelets and dagger.
अव स्वयुक्ता दिव आ वृथा ययुरमर्त्याः कशया चोदत त्मना।
अरेणवस्तुविजाता अचुच्यवुर्दृळ्हानि चिन्मरुतो भ्राजदृष्टयः॥
आपस में मिलने हेतु मरुद्गण अनायास स्वर्ग से आते हैं। हे अमर मरुतो! अपने ही वाक्यों से हमारा उत्साह बढ़ावें। निष्पाप, अनेक यज्ञों में प्रादुर्भूत और प्रदीप्त मरुद्गण दृढ़ पर्वतों को भी कम्पायमान् कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.168.4]
मरुद्गण नभ से आते हैं। हे अविनाशी मरुतो! अपने ओजस्वी शब्दों हमारा उत्साह वर्द्धन करो। अनेक यज्ञों में आने वाले तुम अटल शैल को भी कंपित करते हो।
Marud Gan come from the heavens to meet one another. Hey immortal Marud Gan! Encourage us with your speech. Sinless brilliant Marud Gan appearing in various Yagy, tremble-shake the mountains.
को वोऽन्तर्मरुत ऋष्टिविद्युतो रेजति त्मना हन्वेव जिह्वया।
धन्वच्युत इषां न यामनि पुरुप्रैषा अहन्योनैतशः॥
हे भुजलक्ष्मी से सुशोभित मरुद्गण! जिस प्रकार जिह्वा दोनों जबड़ों को चालित करती है, उसी प्रकार से ही आपके बीच रहकर कौन आपको परिचालित करता है। आप लोग स्वयं परिचालित होते हैं। जिस प्रकार से जलवर्षी मेघ परिचालित होता है, जिस प्रकार से दिन में मेघ चलता है, उसी प्रकार से बहु फलेच्छ यजमान अन्न प्राप्ति के लिए आपको परिचालित करते हैं।[ऋग्वेद 1.168.5]
आयुधों से शोभायमान मरुतो! तुम्हें कौन शिक्षा देता है? जैसे बादल अपने आप चलता है, वैसे ही तुम अपने आप परिचालित होते हो। यजमान तुम्हें अन्न ग्रहण प्राप्ति के लिए पुकारता है।
Hey armed Marud Gan! Who move-channelize you like the tongue between the jaws? You are self governed. The hosts-Yagy performers govern-request you with the desire of high food grain yield, leading to movement of clouds yielding rains.
क स्विदस्य रजसो महस्परं कावरं मरुतो यस्मिन्नायय।
यच्च्यावयथ विथुरेव संहितं व्यद्रिणा पतथ त्वेषमर्णवम्॥
हे मरुतो! जिस जल के लिए आप अन्तरिक्ष से आते हैं, उस विशाल वृष्टि जल का आदि और अन्त कहाँ है? शिथिल घास की तरह जिस समय आप जलराशि को गिराते हो, उस समय वज्र द्वारा दीप्तिमान् मेघ को आप विदीर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.168.6]
हे मरुद्गण! उस मेघ मंडल का आद्यान्त कहाँ है? जब तुम तृणों के समान बादलों को छिन्न-भिन्न करते हो तब जलों को उनसे अलग कर धरती पर वर्षा करते हो।
Hey Marud Gan! Where is the beginning and end of the vast water reservoir of rains, for which you come from the space?! When you make it rain-tear off the clouds, the water stored in the clouds is struck with lightening.
सातिर्न वोऽमवती स्वर्वती त्वेषा विपाका मरुतः पिपिष्वती।
भद्रा वो रातिः पृणतो न दक्षिणा पृथुज्रयी असुर्येव जञ्जती॥
हे मरुतो! जिस प्रकार का आपका धन है, उसी प्रकार का दान भी है। दान के सम्बन्ध में आपके सहायक इन्द्रदेव है। उसमें सुख और दीप्ति है। उसका फल परिपक्व है। उससे कृषिकार्य का भी मंगल होता है। वह दाता की दक्षिणा की तरह शीघ्र फलदाता है। वह सूर्य की जयशील शक्ति के तुल्य है।[ऋग्वेद 1.168.7]
हे मरुद्गण तुम्हारे रक्षा के साधन सशक्त, चमकते हुए अटल शत्रुओं को पीस देने वाले हैं। तुम्हारा दान यजमान को दक्षिणा के समान आनन्दप्रद और वर्षा के समान स्थायी प्रभाव वाला है।
Hey Marud Gan! Your wealth-possessions and charity are alike. Indr Dev is helpful to you in donations-charity. Its yield is lauding. It results in good harvest, high yield of crops like the donation by the virtuous donor. This is like the imperishable glory of the Sun.
प्रति ष्टोभन्ति सिन्धवः पविभ्यो यदभ्रियां वाचमुदीरयन्ति।
अव स्मयन्त विद्युतः पृथिव्यां यदी घृतं मरुतः प्रुष्णुवन्ति॥
जिस समय वज्र मेघ सम्भूत शब्द उच्चारित करते हैं, उस समय उनसे क्षरण शील जल परिचालित होता है। जिस समय मरुद्गण पृथ्वी पर जल सेचन करते हैं, उस समय विद्युत् नीचे की ओर मुख करके पृथ्वी पर प्रकट होती है।[ऋग्वेद 1.168.8]
बादलों के गरजने की प्रतिध्वनि करती नदियाँ तीव्र गतिवान होती हैं। बिजली नीचे को मुख करके मुस्कराती है और मरुद्गण धरा पर जल पुष्टि करते हैं।
When the thunderous sound is generated, water capable of cutting-eroding clay-soil see the rivers flowing with high speed. When the Marud Gan shower rains over the earth, the lightening strikes-smiles over the earth with its mouth down.
असूत पृश्निर्महते रणाय त्वेषमयासां मरुतामनीकम्।
ते सप्सरासोऽजनयन्ता भ्वमादित्स्वधामिषिरां पर्यपश्यन्॥
प्रश्नि ने महासंग्राम के लिये प्रदीप्त गमन युक्त मरुद्गण को उत्पन्न किया। समान रूप वाले मरुतों ने जल उत्पन्न किया। इसके पश्चात संसार ने अभिलषित अन्न आदि प्राप्त किये।[ऋग्वेद 1.168.9]
पृश्नि ने महासंग्राम के लिए चपल मरुद्गण का प्रसव किया। उन तुल्य रूप वाले मरुतों ने जल प्रकट किया और मनुष्यों ने शक्तिदाता अन्न के दर्शन किये।
Prashni created the aurous moving Marud Gan for the fierce war. Marud Gan alike in gestures-face created water. After this, the universe-world obtained the food grains.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः।
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्॥
हे मरुतो! कवि मान्य मान्दर्य का यह स्तोत्र आपके लिए है, यह स्तुति आपके लिए है। अपने शरीर की पुष्टि के लिए आपके पास आते हैं। हम भी अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.168.10]हे मरुद्गण! मान के पुत्र मान्दार्य कवि का यह श्लोक तुम्हारे लिए है। तुम तन को पराक्रम देने वाले और अन्न के साथ यहां आओ। हमें अन्न, बल और दानशील बुद्धि की प्राप्ति करावें।
Hey Marud Gan! This composition-Strotr by poet-Rishi Mandary is for you. We come to you-request you, for the nourishment of our bodies. Let us attain food grains, strength, longevity and inclination of mind, leading to charity social welfare.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (171) :: ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, मरुत्, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रति व एना नमसाहमेमि सूक्तेन भिक्षे सुमतिं तुराणाम्।
रराणता मरुतो वेद्याभिर्नि हेळो धत्त वि मुचध्यमश्वान्॥
हे मरुतो! मैं नमस्कार और स्तुति करता हुआ आपके पास आता हूँ और आपकी दया चाहता हूँ। हे मरुतो! स्तुति द्वारा आनन्दित चित्त से क्रोध का परित्याग कर रुकने की कृपा करें।[ऋग्वेद 1.171.1]
हे मरुतो! मैं प्रणाम करता हुआ तुम्हारे नजदीक आता हूँ। तुम गतिवानों से दया की विनती करता हूँ। तुम वंदनाओं से प्रसन्न होकर आक्रोश को शांत करो। अपने रथ से अश्वों को खोल दो।
Hey Marud Gan! I have come to you to greet and pray you and desire your favours-mercy, kindness. Hey Marud Gan! Be happy with our requests & prayers, reject your anger & stay with us. Release-untie the horses from your charoite.
एष वः स्तोमो मरुतो नमस्वान्हृदा तष्टो मनसा धायि देवाः।
उपेमा यात मनसा जुषाणा यूयं हि ष्ठा नमस इधासः॥
हे मरुतो! हमारे स्तोत्रों को ध्यान पूर्वक श्रवण करें। इन स्तोत्रों से आनन्दित होकर आप हमारे पास आयें और हमारे हविरूप अन्न की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 1.171.2] हे मरुदगण! प्रणामों से युक्त हमारा तुम्हारा यह श्लोक मन से रचा गया और मन में स्वीकार किया गया है। इसलिए इसे स्वीकार करते हुए स्नेह वश यहाँ आओ। तुम निश्चय ही हव्यान्न को बढ़ाते हो।
Hey Marud Gan! Listen to the prayers by us. Be happy, come to us, accept the offerings and increase our stock of food stuff.
स्तुतासो नो मरुतो मृळयन्तूत स्तुतो मघवा शंभविष्ठः।
ऊर्ध्वा नः सन्तु कोम्या वनान्यहानि विश्वा मरुतो जिगीषा॥
हे मरुद्गण हे इन्द्रदेव! हमारी प्रार्थनाओं से प्रसन्न होकर आप हमें सुख और सौभाग्य प्रदत्त करे, जिससे हमारा शेष जीवन सुखमय, प्रशंसनीय और वैभव युक्त हो।[ऋग्वेद 1.171.3]
वंदना किये जाने पर मरुद्गण हम पर कृपा दृष्टि करें। वंदना करने पर इन्द्रदेव भी शांति दाता हों। हे मरुतो! हमारी आयु के दिन रमणीय सुख से परिपूर्ण महान और विजय पूर्ण रहें।
Hey Marud Gan & Indr Dev! Being happy with our prayers-worship, grant us comforts and good luck so that rest of our life is appreciable and full of majesty.
अस्मादहं तविषादीषमाण इन्द्राद्भिया मरुतो रेजमानः।
युष्मभ्यं हव्या निशितान्यासन्तान्यारे चकृमा मृळता नः॥
हे मरुतो! हम इस बलवान् इन्द्रदेव के भय से भयभीत होकर कम्पायमान होते हुए पलायित होते हैं। आपके निमित्त रखी हुई हवियों को हमने एक ओर हटा दिया है। हम अपने सुख के लिए आपकी कृपा दृष्टि चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.171.4]
हे मरुद्गण! हम इन शक्तिशाली इन्द्र के डर से भागते हुए एक कम्पायमान होते रहते हैं। तुम्हारे लिए जो हव्य तैयार रखा था, उसे हमने दूर कर लिया। अब तुम हम पर दया करो।
Hey Marud Gan! We are trembling & running away due to the fear of Indr Dev. We have kept the offerings aside and seek your favours-mercy.
येन मानासश्चितयन्त उस्त्रा व्युष्टिषु शवसा शश्वतीनाम्।
स नो मरुद्भिर्वृषभ श्रवो धा उग्र उग्रेभिः स्थविरः सहोदाः॥
हे इन्द्र देव! आप बल स्वरूप हैं। आपके माननीय अनुग्रह से किरणें प्रतिदिन उषा के उदयकाल में प्राणियों को चैतन्यता प्रदान करती हैं। हे अभीष्टवर्षी, उग्र बलप्रदायी और पुरातन इन्द्रदेव! आप उग्र मरुतों के साथ अन्न ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.171.5]
हे वीर इन्द्रदेव! तुम्हारी शक्ति से प्रेरित हुई उषायें नित्य खिलती और प्राणधारियों को जाग्रत करती हैं। तुम विकराल कार्य वाले, मरुतो के संग हमारे लिए अन्न को धारण करो।
Hey Indr Dev! You are a form of strength & might. Due to your grace-kindness, Usha make the living beings conscious. Hey accomplishments-desires fulfilling eternal Indr Dev! You should accept food along with the Marud Gan.
त्वं पाहीन्द्र सहीयसो नॄन्भवा मरुद्भिरवयातहेळाः।
सुप्रकेतेभिः सासहिर्दधानो विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्॥
हे इन्द्र देव! प्रभूत बलशाली मरुतों की रक्षा करें। उनके प्रति क्रोधी न बनें। मरुद्गण उत्तम प्रजा वाले हैं। उनके साथ शत्रुओं के विनाशक बनें और हमारी रक्षा करें, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.171.6]
हे अजेय इन्द्र देव! तुम उन मेधावी मरुतों के साथ अपने क्रोध को शांत करो। शत्रुओं को पराजित करते हुए हमारी रक्षा करो। हम अन्न, बल प्राप्त करें और हमारा स्वभाव दानशील हो।
Hey invincible Indr Dev! Protect the Marud Gan possessing abundant might. Do not be angry with them. Marud Gan are the protector of the populace. Join them to vanish-kill the enemy and protect us, so that we get food and strength.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (172) :: ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- मरुत्, छन्द :- जगती ।
चित्रो वोऽस्तु यामश्चित्र ऊती सुदानवः। मरुतो अहिभानवः॥
हे दानशील और उत्कृष्ट दीप्तिवाले मरुद्गणो! यज्ञ में आपका आगमन विचित्र हैं। आपका आगमन हमें रक्षित करे।[ऋग्वेद 1.172.1]
हे कल्याणकारी मरुतों! तुम्हारा आगमन हमारी सुरक्षा का प्रत्यक्ष कारण बने।
Hey beneficial, protective excellent aura possessing Marud Gan! Your arrival at the Yagy is amazing. Your arrival may protect us.
आरे सा वः सुदानवो ऋञ्जती शरुः। आरे अश्मा यमस्यथ॥
हे दान शील मरुद्गणों! शत्रुओं की ओर चलाये गये आपके विनाशक अस्त्र हमसे दूर जाकर गिरे। जिससे आप शत्रुओं का संहार करते हैं वह वज्र भी हमसे दूर रहे।[ऋग्वेद 1.172.2]
हे कल्याणदाता मरुद्गण! तुम्हारे नाशक शस्त्र हमसे दूर रहें। जिस अस्त्र को फेंकते हो, वह हमसे दूर जाकर गिरे।
Hey protector, beneficial Marud Gan! Let the weapons projected by the enemy fall away from us. The Vajr with which you eliminate the enemy should also be away from us.
तृणस्कन्दस्य नु विशः परि वृङ्क सुदानवः। ऊर्ध्वान्त्रः कर्त जीवसे॥
हे दाता मरुद्गणों! तृण के तुल्य नीच होने पर भी मेरी प्रजाओं को बचाते हुए हमें उन्नत करें, जिससे हम भी बच जावें।।[ऋग्वेद 1.172.3]
हे मंगलमय मरुद्गण! तृण के समान अवनति के प्राप्त होने पर भी हमारे सम्मान की रक्षा नहीं करना। हमें ऊँचा उठाओ जिसमें हम पूर्ण आयु तक जीवित रह सकें।
Hey donator Marud Gan! Protect our populace which is too low in status like the straw, boost us, so that we too are protected-survived to attain our full age.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- मरुत्, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
धारावरा मरुतो धृष्णवोजसो मृगा न भीमास्तविषीभिरर्चिनः।
अग्नयो न शुशुचाना ऋजीषिणो भृमिं धमन्तो अप गा अवृण्वत॥
जलधारा से मरुद्गण आकाश को छिपा लेते हैं। उनका बल दूसरे को पराजित करता है। वे पशु की तरह भयंकर हैं। वे बल द्वारा संसार को व्याप्त कर लेते हैं। वे अग्नि की तरह दीप्तिमान् और जल से परिपूर्ण है। वे भ्रमण कर्त्ता मेघ को इधर-उधर भेजकर जल को पृथ्वी पर गिराते है।[ऋग्वेद 2.34.1]
ये मरुद्गण जल धारा द्वारा आकाश को आच्छादित करते हैं। उनकी शक्ति शत्रु को पराजित करती है। वे पशु के समान विकराल हैं और संसार उनकी शक्ति द्वारा विद्यमान हैं। वे अग्नि के तुल्य प्रदीप्ति परिपूर्ण और जलमय हैं। वे गतिवान बादलों को प्रेरित करके वृष्टि करते हैं।
The Marud Gan hides the sky with water currents. Their strength is to defeat others-enemy. They are furious like the beasts. They pervade the universe with their might & power. They are shinning like fire and store-contain water. They shower rains over the earth by moving rain clouds from one place to another.
द्यावो न स्तृभिश्चितयन्त खादिनो व्य१भ्रिया न द्युतयन्त वृष्टयः।
रुद्रो यद्वो मरुतो रुक्मवक्षसो वृषाजनि पृश्न्याः शुक्र ऊधनि॥
हे सुवर्ण हृदय मरुद्गणों! चूँकि सेचन-समर्थ रुद्र देव ने पृश्नि के निर्मल उदर से आपको उत्पन्न किये है; इसलिए, जैसे आकाश नक्षत्रों से सुशोभित होता है, वैसे ही आप भी अपने आभरण से सुशोभित होवें। आप शत्रुओं का नाश करने वाले और जल बरसाने वाले हैं। आप मेघस्थ विद्युत् की तरह शोभित होते हैं।[ऋग्वेद 2.34.2]
पृश्नि गर्भ :: पृश्नि गर्भ भगवान् श्री हरी विष्णु के अवतार हैं। इनके पिता का नाम सुतपा और माता का नाम पृश्नि था। स्वायम्भुव मन्वन्तर में सुतपा और पृश्नि ने घोर तपस्या कर भगवान् श्री हरी विष्णु से उनके समान पुत्र की इच्छा प्रकट की तब भगवान् ने इन्हें वर दिया कि वे तीन बार इनके पुत्र बनेंगे। स्वायम्भुव मन्वन्तर में इन्हें पृश्निगर्भ नामक पुत्र प्राप्त हुआ। सुतपा और पृश्नि ने दूसरा जन्म कश्यप और अदिति के रूप में पाया तब इन्हें वामन देव के रूप में संतान प्राप्ति हुई। द्वापरयुग में इन्होंने वासुदेव और देवकी के रूप में भगवान् श्री कृष्ण को संतान के रूप में पाया। पृश्नि गर्भ ने ही ध्रुव लोक का निर्माण किया, जहाँ बाद में ध्रुव जी को स्थान मिला।
हे निर्मल हृदय वाले मरुद्गण तुम रुद्र से पैदा हुए हो। नक्षत्रों से नभ के सुशोभित होने के समान अपने गुणों से तुम भी सुशोभित हो। तुम शत्रु का संहार करने वाले और जल को प्रेरणा देने वाले हो। मेघों से जैसे विद्युत शोभा पाती है, वैसे ही तुम शोभा को प्राप्त हो।
Hey Marud Gan possessing golden heart! You were produced from the ovum of Prashni by Rudr Dev. You should be placed like the constellations in the sky due to your qualities-traits. You are the destroyer of the enemy and inspire the clouds to rain. The way the thunder volt-electric spark is decorated in the sky is by the clouds, you too should decorated-be honoured.
उक्षन्ते अश्वाँ अत्याइवाजिषु नदस्य कर्णैस्तुरयन्त आशुभिः।
हिरण्यशिप्रा मरुतो दविध्वतः पृक्षं याथ पृषतीभिः समन्यवः॥
युद्ध में तुरंग की तरह मरुद्गण विशाल भुवन को सिक्त करते हैं। वे घोड़े पर चढ़कर शब्दायमान मेघ के कान के पास से होकर द्रुत वेग से जाते हैं। हे मरुतो! आप हिरण्य शिरस्त्राण वाले और समान क्रोध वाले हैं। आप वृक्ष आदि को कम्पित करते हैं। आप पृषती (बिन्दु चिह्नित) मृग पर चढ़कर अन्न के लिए जाते हैं।[ऋग्वेद 2.34.3]
शिरस्त्राण :: सैनिकों द्वारा युद्ध के दौरान अस्त्र-शस्त्रों से रक्षा हेतु सिर पर पहना जाने वाला लोहे का टोपनुमा कवच, हैलमेट; head gear, helmet, hard het.
घोड़े के तुल्य मरुद्गण व्यापक क्षेत्र को सींचते हैं। वे अश्वारोही ध्वनि करते हुए बादल के पास में गति से विचरण करते हैं। हे मरुद्गण! तुम मुकुट वाले और तुल्य आक्रोश करने वाले हो। तुम वृक्षादि को कम्पायमान करते हो। तुम बिन्दु चिह्नित हिरन पर अन्न के लिए पहुँचते हो।
Marud Gan pervades the sky like the horses in the battle field. They produce the sound like the roaring clouds while moving fast. Hey Marud Gan! Your head gear is made of gold and possess anger. You tremble the trees and serve food grains to spotted deer.
पृक्षे ता विश्वा भुवना ववक्षिरे मित्राय वा सदमा जीरदानवः।
पृषदश्वासो अनवभ्रराधस ऋजिप्यासो न वयुनेषु धूर्षदः॥
मरुद्गण मित्र की तरह हव्य युक्त यजमान के लिए, सर्वदा समस्त जल का वहन करते हैं। वे दानशील, पृषती मृगवाले, अक्षय, अन्न वाले और अकुटिलगामी अश्व की तरह पथिकों के आगे जाते हैं।[ऋग्वेद 2.34.4]
हविदाता यजमान के लिए ये मरुद्गण मित्र के समान जल वाहक हैं। वे उदार मन वाले बिन्दु चिह्नित मृग से युक्त हुए, अन्न से युक्त हुए, सरल वेग वाले अश्वों को समान चलते हैं।
Marud Gan support-sustain water for the devotee-Ritviz who make offerings, like a friend. They moves like the liberal person who believes in charity-donations, possessing food grains, like a spoted deer and the horses who move rhyemetically-straight.
इन्धन्वभिर्धेनुभी रप्शदूधभिरध्वस्मभिः पथिभिर्भ्राजदृष्टयः।
आ हंसासो न स्वसराणि गन्तन मधोर्मदाय मरुतः समन्यवः॥
हे समान क्रोध और दीप्तिमान् आयुध वाले मरुतो जिस प्रकार से हंस अपने निवास स्थान पर जाता है, उसी प्रकार से आप भी महाजल स्रोत वाले मेघों के साथ और गौओं से युक्त होकर विघ्न शून्य मार्ग से, मधुर सोमरस से उत्पन्न हर्ष प्राप्ति के लिए पधारें।[ऋग्वेद 2.34.5]
हे मरुतो ! तुम तुल्य आक्रोश वाले हो। तुम्हारे आयुध चमकते हुए हैं। जिस तरह हंस अपने निवास करने वाले स्थान पर जाता है उसी तरह तुम भी अत्यन्त जल स्त्रोत वाले बादलों के साथ निर्विघ्न रास्ते से सोमजनित हर्ष के लिए गायों से युक्त पधारो।
Hey Marud Gan! You possess identical bright arms, weapons and furiosity; move like the swan who goes back to its residence, carrying rain clouds, with cows happily, amused by drinking Somras.
आ नो ब्रह्माणि मरुतः समन्यवो नरां न शंसः सवनानि गन्तन।
अश्वामिव पिप्यत धेनुमूधनि कर्ता जरित्रे वाजपेशसम्॥
हे समान क्रोध वाले मरुद्गणों! जैसे आप स्तोत्र से आते हैं, वैसे ही हमारे अभिषुत अन्न के पास पधारें। घोड़ी की तरह गाय का अधोदेश पुष्ट करें और यजमान यज्ञ अन्न युक्त हो।[ऋग्वेद 2.34.6]
हे मरु द्गण! अश्व के समान गौ के नीचे का भाग पुष्ट करो। यजमान का यज्ञ अन्न युक्त हो।
Hey furious Marud Gan! The way-manner in which you obelize the Ritviz due to their recitation of the Strotr-hymns, come to accept our offerings of food grains. Make the lower part (stomach) of the cows strong like the horses. Let the Yagy conducted by the hosts-Ritviz accompany food grains.
तं नो दात मरुतो वाजिनं रथ आपानं ब्रह्म चितयद्दिवेदिवे।
इषं स्तोतृभ्यो वृजनेषु कारवे सनिं मेधामरिष्टं दुष्टरं सहः॥
हे मरुतो! आप हमें अन्न युक्त पुत्र दें। वह आपके आगमन के समय, प्रतिदिन आपके गुणों का कीर्त्तन करेगा। आप स्तोताओं को अन्न प्रदान करें। युद्ध के समय स्तोता को दानशीलता, युद्ध-कौशल, ज्ञान और अक्षय तथा अतुल बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.34.7]
हे मरुद्गण! तुम हमें अन्न और पुत्र दो। तुम्हारे आने पर वह तुम्हारा गुणमान किया करेगा। वंदना करने वाले को तुम अन्न देते हो।
Hey Marud Gan! Give us a son along with food grains, who will recite prayers in your honour at the time of your arrival. Provide food grains to the worshipers. Grant the mentality-capability to donate, skills-ability in war fare, knowledge and imperishable might.
यद्युञ्जते मरुतो रुक्मवक्षसोऽश्वान्रथेषु भग आ सुदानवः।
धेनुर्न शिश्वे स्वसरेषु पिन्वते जनाय रातहविषे महीमिषम्॥
मरुतों के वक्षः स्थल में दीप्त आभरण है। उनका दान सबके लिए सुखकर है। वे जिस समय रथ में घोड़े जोतते हैं, उसी समय जिस प्रकार से गाय बछड़े को दूध देती है, उसी प्रकार वे हव्यदाता यजमान के लिए उसके गृह में यथेष्ट अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.8]
मरुद्गण का हृदय उज्ज्वल है। उसका दान सभी का कल्याण करता है। वे जब अपने रथ में घोड़े संयोजन करते हैं, तब बछड़े को गाय द्वारा दुग्ध देने के समान हविदाता को अभीष्ट अन्न प्रदान करते हैं।
The hearts of Marud Gan are aurous. Donations by them are comfortable for all. They provide sufficient food grains-stuff to the Ritviz-hosts making offerings to them like the cow feeding its calf as & when they deploy their horses in the charoite.
यो नो मरुतो वृकताति मर्त्यो रिपुर्दधे वसवो रक्षता रिषः।
वर्तयत तपुषा चक्रियाभि तमव रुद्रा अशसो हन्तना वधः॥
हे मरुतो! जो मनुष्य वृक की तरह हमसे शत्रुता करता है, हे वसु गण! उस हिंसक के हाथ से हमें बचावें। उसे तापप्रद चक्र के द्वारा चारों ओर से हटावें। हे रुद्र गण! आप उसके सारे अस्त्रों को दूर फेंककर उसे विनष्ट करें।[ऋग्वेद 2.34.9]
हे मरुद्गण! जो हिंसक हमसे वृत्र के समान शत्रुता करता है उससे हमारी रक्षा करो। उसे अपने ताप से भगा दो।
Hey Marud Gan! Protects us from the person who grows-develops enmity with us like a wolf. Hey Vasu Gan! Remove him away from us, with the help of a heat shield. Hey Rudr Gan! Unarm him and destroy him.
चित्रं तद्वो मरुतो याम चेकिते पृश्न्या यदूधरप्यापयो दुहुः।
यद्वा निदे नवमानस्य रुद्रियास्त्रितं जराय जुरतामदाभ्याः॥
हे मरुतो! जिस समय आपने पृश्नि के अधो भाग का दोहन किया, उस समय स्तोता के निन्दक की हत्या की और त्रित के शत्रुओं का वध किया। हे अहिंसनीय रुद्र पुत्रो! उस समय आपकी विचित्र क्षमता को सबने जाना।[ऋग्वेद 2.34.10]
हे रुद्रो! जब तुमने पृश्नि के नीचे के भाग को दुहा था तब स्तोता की निन्दा करने वाले का संहार किया था। त्रित के द्रोहियों का वध किया था। उस समय तुम्हारी शक्ति सभी पर प्रकट हुई थी।
Hey Marud Gan! When you milched the body of Prashni, you killed the person who slurred the Stota (one who recited prayers in your honour) and killed the enemies of Trit. Hey non violent sons of Rudr! Your majesty by recognised by all at that moment.
तान्वो महो एवयाव्नो विष्णोरेषस्य प्रभृथे हवामहे।
हिरण्यवर्णान्ककुहान्यतस्रुचो ब्रह्मण्यन्तः शंस्यं राध ईमहे॥
हे महासुभग मरुतो! आप सदा यज्ञ स्थल में जाते हैं। यथेष्ट और प्रार्थनीय सोमरस के तैयार हो जाने पर हम आपको बुलाते हैं। स्तुति पाठक स्रुक को उठाकर स्वर्ण वर्ण और सर्वश्रेष्ठ स्तुति योग्य मरुद्गण से प्रशंसनीय धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.11]
हे महान् कार्य वाले मरुद्गण! तुम अनुष्ठान में हमेशा जाते हो। सोम के सिद्ध होने पर तुम पुकारे जाते हो। वंदना करने वाले स्नुक हाथ में लेकर मरुद्गण से महान धन मांगा करते हैं।
Hey great endeavour undertaking Marud Gan! You always visit the site of Yagy, participate in the Yagy. The Ritviz invite you, having prepared sufficient Somras for you. Those who are reciting the Stuti-prayers, raise the wood spoon for making offerings in the holy fire and request wealth-money from you.
ते दशग्वाः प्रथमा यज्ञमूहिरे ते नो हिन्वन्तूषसो व्युष्टिषु।
उषा न रामीररुणैरपोर्णुते महो ज्योतिषा शुचता गोअर्णसा॥
स्वर्गगामी अङ्गिरोरूपी मरुतों ने प्रथम यज्ञ का आयोजन किया। उषा देवी के आने पर मरुद्रण हमें यज्ञ आदि में प्रवृत्त करें। जैसे उषा अरुण वर्ण किरण जाल से कृष्ण वर्णा रात्रि को हटाती हैं, वैसे ही मरुद्गण विशाल, दीप्तिमान् और जलस्त्रावी ज्योति से अन्धकार को दूर करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.12]
लोक प्राप्त करने वाले अंगिरा रूप मरुतों ने प्रथम यज्ञ को ढोया। वे हमको उषाकाल में यज्ञ कर्म में लगाएँ। जैसे उषा ताप को दूर करती है।
The Marud Gan in the form of the Angiras organised the first Yagy. Let Marud Gan make us initiate the Yagy Karm prior to the day break i.e., appearance of Usha. The way the golden coloured, bright Usha removes the darkness, Marud Gan too removes darkness with the broad & shining light forming rains.
ते क्षोणीभिररुणेभिर्नाञ्जिभी रुद्रा ऋतस्य सदनेषु वावृधुः।
निमेघमाना अत्येन पाजसा सुश्चन्द्रं वर्णं दधिरे सुपेशसम्॥
हे रुद्र पुत्र मरुद्गण! वीणा-विशेष और अरुण वर्ण अलंकार से युक्त होकर जल के निवास मेघ में वर्द्धित हुए। मरुद्गण सर्वत्र प्रभाव वाले बल से जल लाते हुए प्रसन्नतादायक और भूत मनोहर सौन्दर्य धारण करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.13]
हे रुद्र पुत्र मरुत! विशेष ध्वनि और अरुण रंग वाले हुए जल के आधार भूत बादल में वृद्धि करते हैं। वे सदैव प्रतिभावान रहते हुए अपनी श्रद्धा से जल लाते हुए अत्यन्त शोभायमान होते हैं।
Hey the sons of Rudr, Marud Gan! You make typical sounds, wearing bright golden aura, become the residence-supporters of the large clouds. Marud Gan support the clouds roaming every where, happily having various-vivid beautiful forms.
ताँ इयानो महि वरूथमूतय उप घेदेना नमसा गृणीमसि।
त्रितो न यान्पञ्च होतॄनभिष्टय आववर्तदवराञ्चक्रियावसे॥
मरुतों से वरणीय धन की याचना करते हुए अपनी रक्षा के लिए स्तोत्र द्वारा हम उनकी स्तुति करते हैं। अभीष्ट सिद्धि के लिए चक्र द्वारा त्रित उन मुख्य प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान आदि पाँच होताओं (मरुतों) को आवर्तित करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.14]
उन मरुद्गण से वरण करने योग्य धन को माँगते हुए हम अपनी सुरक्षा के लिए विनती करते हैं। अभिष्ट सिद्ध करने के लिए प्राण, अपान, समान, ध्यान और उदान इन पाँच होताओं को त्रित द्वारा संचालित करते हो।
We pray for our safety-welfare while requesting Marud Gan wealth-riches. For the desired accomplishments Trit control the 5 forms of hosts-Ritviz (five forms of air) i.e., Pran, Apan, Saman, Vyan & Udan.
Imploring them for ample wealth and (having recourse to him) for protection, we glorify them with this praise; like the five chief priests whom Trit detained for the (performance of) the sacrifice and to protect it with their weapons.
यया रध्रं पारयथात्यंहो यया निदो मुञ्चथ वन्दितारम्।
अर्वाची सा मरुतो या व ऊतिरो षु वाश्रेव सुमतिर्जिगातु॥
हे मरुतो! आप जिस आश्रय से आराधक यजमान को पाप से बचाते है, जिससे स्तोता को शत्रु के हाथ से मुक्त करते हैं, हे मरुतो! आपका वही आश्रय हमारे सामने आवे।[ऋग्वेद 2.34.15]
हे मरुद्गण! तुम जिस साधन से यजमान की पाप से सुरक्षा करते हो तथा वंदना करने वाले को शत्रु से बचाते हो, तुम्हारा वही साधन हमको ग्रहण हो।
Hey Marud Gan! Let us attain the asylum under you which protects the worshiper from sins & saves the Stota from the enemy.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, आत्मा, देवता :- वैश्वानर अग्नि, मरुतादि, छन्द :- जगती।
वैश्वानरं मनसाग्निं निचाय्या हविष्मन्तो अनुषत्यं स्वर्विदम्।
सुदानुं देवं रथिरं वसूयवो गीर्भी रण्वं कुशिकासो हवामहे॥
हम कुशिक गोत्रोद्भूत है। धन की अभिलाषा से हव्य को एकत्रित करते हुए भीतर ही भीतर वैश्वानर अग्नि देव को जानकर स्तुति द्वारा उन्हें बुलाते हैं। वे सत्य के द्वारा अनुगत है; स्वर्ग का विषय जानते हैं, यज्ञ का फल देते हैं, उनके पास रथ है, वे इसलिए वह यज्ञ में आते हैं।[ऋग्वेद 3.26.1]
हम कौशिक जन धन की इच्छा से हवि संगठित करते हुए, वैश्वानर अग्नि का आह्वान करते हैं। वे सत्य मार्ग गामी, स्वर्ग के संबंध में जानने वाले हैं। यज्ञ का फल देने वाले हैं। वे अपने रथ से अनुष्ठान स्थल को ग्रहण होते हैं।
We the members of Kaushik family-clan make offerings and invoke Vaeshwanar Agni for the sake of wealth, money. He is truthful, understands-knows the heaven, possess the charoite and grant the rewards for the Yagy. That's why, he visits the Yagy.
तं शुभ्रमग्निमवसे हवामहे वैश्वानरं मातरिश्वानमुक्थ्यम्।
बृहस्पतिं मनुषो देवतातये विप्रं श्रोतारमतिथिं रघुष्यदम्॥
आश्रय प्राप्ति और याजक गण के यज्ञ के लिए उन शुभ, वैश्वानर, मातरिश्वा ऋचा योग्य, यज्ञपति, मेधावी, श्रोता, अतिथि और क्षिप्रगामी अग्नि देव को हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.26.2]
क्षिप्रगामी :: त्वरित, फुर्तीला, तेज; quick, fast, nimble, agile.
उन उज्ज्वल रंग वाले वैश्वानर, विद्युत रूप यज्ञ में शरण ग्रहण करने के लिए आहूत करते हैं।
We invoke-invite Vaeshwanar Agni in our Yagy for seeking asylum under him. He is intelligent, enlightened, listener, guest, auspicious, quick and the deity of the Yagy.
We invoke you for our own protection and for the devotions of mankind, the radiant Agni, Vaeshwanar, the illuminator of the firmament-world, the adorable lord of sacred rites, the wise, the hearer of supplications, the guest of man, the quick-moving.
अश्वो न क्रन्दञ्जनिभिः समिध्यते वैश्वानरः कुशिकेभिर्युगेयुगे।
स नो अग्निः सुवीर्यं स्वश्व्यं दधातु रत्नममृतेषु जागृविः॥
हिनहिनाने वाले घोड़े के बच्चे जिस प्रकार से अपनी माता के द्वारा वर्द्धित होते हैं, उसी प्रकार प्रतिदिन वैश्वानर अग्नि कौशिकों के द्वारा वर्द्धित होते है। देवों में जागरूक अग्निदेव हमें उत्तम अश्व, उत्तम वीर्य और उत्तम धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.26.3]
घोड़े का बच्चा :: colt, foal.
उच्च आवाज करने वाले अश्व का शिशु जैसे माता की शरण में वृद्धि पाता है। हे अग्नि देव! तुम देवताओं में चैतन्य हो। हमको उत्तम अश्व, पौरुष और श्रेष्ठ धन प्रदान करो।
The way the colt-foal is protected by its mother Vaeshwanar Agni is nursed by the Kaushiks. Let brilliant Agni Dev grant us horse, strength and excellent wealth.
प्र यन्तु वाजास्तविषीभिरग्नयः शुभे संमिश्लाः पृषतीरेयुक्षत।
बृहदुक्षो मरुतो विश्ववेदसः प्र वेपयन्ति पर्वतों अदाभ्याः॥
अग्रि रूप अश्व गण गमन करें; बली मरुतों के साथ मिलकर पृषती वाहनों को संयुक्त करें। सर्वज्ञ और अहिंसनीय मरुद्गण अधिक जलशाली और पर्वत समान मेघ को कम्पित करते हैं।[ऋग्वेद 3.26.4]
पृषत :: वायु का वाहन, पवन की सवारी; vehicle of Pawan-Vayu Dev.
अग्नि रूप अश्व, विद्वान मरुद्गण से संयुक्त हुए पृषती वाहनों को मिलावें। सर्वज्ञाता किसी के द्वारा भी हिंसित न होने वाले मरुद्गण जल राशि परिपूर्ण तथा पर्वत के समान बादल को कम्पायमान करते हैं।
Let the horses in the form-shape of Agni-fire move, along with the Marud Gan. Enlightened, non violent Marud Gan shake the clouds, like the mountains, possessing excess water.
अग्निश्रियो मरुतो विश्वकृष्टय आ त्वेषमुग्रमव ईमहे वयम्।
ते स्वानिनो रुद्रिया वर्षनिर्णिजः सिंहा न हेषक्रतवः सुदानवः॥
मरुद्रण अग्रि के आश्रित और संसार के आकर्षक है। उन्हीं मरुतों के दीप्त और उग्र आश्रय के लिए हम भली-भाँति याचना करते हैं। वर्षण रूप धारी, हरेवा (हिनहिनाना) शब्द कारी और सिंह के सदृश गरजने वाले मरुद्गण विशेष रूप से जल देते हैं।[ऋग्वेद 3.26.5]
हिनहिनाना :: हींसना; snort, neigh, horselaugh.
अग्नि के सहारे मरुत सागर को आकृष्ट करते हैं। हम उन्हीं मरुतों के उत्कृष्ट आश्रय की अभिलाषा करते हैं। वे वर्षा रूप वाले सिंह के समान गर्जनशील मरुद्गण जल दाता के रूप में विख्यात हैं।
Marud Gan dependent over the fire-Agni, attract the ocean. We desire-pray to seek asylum under these Marud Gan. Marud Gan who neigh-sound like the horse and roar like the lion specially, grant water-shower rains.
व्रातंव्रातं गणंगणं सुशस्तिभिरग्नेर्भामं मरुतामोज ईमहे।
पृषदश्वासो अनवभ्रराधसो गन्तारो यज्ञं विदथेषु धीराः॥
दल के दल और झुण्ड के झुण्ड स्तुति मंत्रों द्वारा हम अग्नि के तेज और मरुत् के बल
की याचना करते हैं। बिन्दु चिह्नित अश्व वाले और अक्षय धन-संयुक्त तथा धीर मरुद्गण हव्य के उद्देश्य से यज्ञ में जाते हैं।[ऋग्वेद 3.26.6]
अनेक श्लोकों द्वारा हम अग्नि के तेज और मरुदगण को शक्ति की अभिलाषा करते हैं। वे बिन्दु चिह्न वाले अश्व-युक्त मरुद्गण नष्ट न होने वाले धन के साथ हवि के लिए यज्ञ को प्राप्त होते हैं।
We request-pray for the strength-might of Agni Dev and Marud Gan, with the recitation of numerous-in bunches, Stuti Mantr (hymns meant for prayers). Patient Marud Gan, possessing spotted horses & imperishable wealth, come to the Yagy with the desire of offerings.
अग्निरस्मि जन्मना जातवेदा घृतं मे चक्षुरमृतं म आसन्।
अर्कस्त्रिधातू रजसो विमानोऽजत्रो धर्मों हविरस्मि नाम॥
मैं अग्नि या परब्रह्म जन्म से ही जातवेदा अथवा परतत्त्व-रूप हूँ। घृत अथवा प्रकाश ही मेरा नेत्र है। मेरे मुख में अमृत है। मेरे प्राण त्रिविध अर्थात् वायु, सूर्य, दीप्ति हैं। मैं अन्तरिक्ष को मापने वाला हूँ। मैं अक्षय उत्ताप हूँ। मैं हव्य रूप हूँ।[ऋग्वेद 3.26.7]
प्राण :: मार्मिकता, बड़ा जीवन बल, बड़ी जीवन-शक्ति, आत्मा, जी, जीव, व्यक्ति, रूह, जीवन काल, जन्म, जीव, जीवनी; life sustaining vital force, soul, vitality.
उत्ताप :: अत्यधिक गर्मी, दुःख; candescence, heat.
मैं अग्नि देव जन्म से ही मेधावी हूँ। अपने रूप को स्वयं प्रकट करता हूँ। रोशनी मेरी आँखें हैं। जिह्वा में अमृत है। मैं विविध प्राण परिपूर्ण एवं अंतरिक्ष का मापक हैं, मेरे तार का भी क्षय नहीं होता। मैं ही साक्षात हवि हूँ।
I am Agni or the Ultimate Almighty enlightened since birth. Ghee and light are my eyes. My mouth possess elixir-nectar. My vitals are air, Sun and aura. I measure the sky-universe. I am candescence, heat in the form of offerings.
त्रिभिः पवित्रैरपुपोद्ध्य १ र्कं हृदा मतिं ज्योतिरनु प्रजानन्।
वर्षिष्ठं रत्नमकृत स्वधाभिरादिद्द्यावापृथिवी पर्यपश्यत्॥
अन्तःकरण द्वारा मनोहर ज्योति को भली-भाँति जानकर अग्नि देव ने अग्नि, वायु, सूर्य रूप तीन पवित्र स्वरूपों से पूजनीय आत्मा को शुद्ध किया है। अग्नि देव ने अपने रूपों द्वारा अपने को अतीव रमणीय किया और दूसरे ही क्षण द्यावा-पृथ्वी को देखा।[ऋग्वेद 3.26.8]
सुन्दर ज्योति को मन से जानने वाले अग्निदेव ने अग्नि, पवन और सूर्य रूप धारण कर अपने को सक्षम बनाया। अग्नि ने इन रूपों में प्रकट होकर आकाश और पृथ्वी के दर्शन किये थे।
Agni Dev recognised the beautiful aura through his innerself and purified his soul by the three pious forms viz. fire, air and the Sun. Agni Dev; made himself very attractive and looked at sky & the earth immediately.
शतधारितुत् समक्षीयमाणं विपश्चितं पितरं वक्त्वानाम्।
मेळिं मदन्तं पित्रोरुपस्थे तै रोदसी पिपृतं सत्यवाचम्॥
शत (सौ) धार वाले स्त्रोत के तुल्य अविच्छिन्न प्रवाह वाले, विद्वान् पालक, वाक्यों का मेल कराने वाले माता-पिता की गोद में प्रसन्न और सत्य स्वरूप अग्नि को, हे द्यावा पृथ्वी! आप परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.26.9]
हे अम्बर-धरती! सौ धार वाले बादल की तरह अक्षुण, प्रवाह परिपूर्ण, मेधावी पोषणकर्त्ता, वाक्यों को मिलाकर बतलाने वाले, माता-पिता की गोद में हर्षित, सत्य स्वरूप अग्नि को परिपूर्ण करो।
Hey sky & earth! Replete the Agni, who is like the hundred branches of Strotr-clouds, enlightened, connecting sentences, truthful, happy in the lap of his parents.
मरुत्वतो अप्रतीतस्य जिष्णोरजूर्यतः प्र ब्रवामा कृतानि।
न ते पूर्वे मघवन्नापरासो न वीर्यं १ नूतनः कश्चनाप॥
हम याजक गण मरुद्वान् इन्द्र देव के कार्यों का वर्णन करते हैं। वे युद्ध से कभी पलायमान नहीं होते। वे जयनशील और जरा रहित हैं। हे इन्द्र देव! आपके पराक्रम को कोई पुरातन पुरुष नहीं जान पाया, उनके पीछे होने वाले भी नहीं जान पाये। और क्या, किसी नवीन ने भी आपके पराक्रम को प्राप्त नहीं किया।[ऋग्वेद 5.42.6]
We, the Ritviz describe-appreciate the endeavours of Indr Dev and his associates Marud Gan. They are winning and free from aging. Hey Indr Dev! Neither your preceder nor the next to them could ascertain-assess your valour-bravery. Any one next to them could not do so.
य ओहते रक्षसो देवष्वीतावचक्रेभिस्तं मरुतो नि यात।
यो वः शमींश शमानस्य निन्दात्तुच्छ्यान्कामान्करते सिष्विदानः॥
हे मरुतों! जो याजक देवयज्ञ में राक्षसों को बुलाता है अन्न, अश्व, कृषि आदि के द्वारा उत्पन्न भोग के लिए, जो अपने को क्लेश देता है और जो आपकी प्रार्थना करने वाले की निन्दा करता है, उस याजक को चक्र विहीन रथ द्वारा आप लोग अन्धकार में डुबो देते हैं।[ऋग्वेद 5.42.10]
Hey Marud Gan! The Ritviz who invite demons to the Yagy, torture himself for consumption of food grains, horses, agriculture and reproach-damn your worshipers, you remove excels from their charoite and put-shroud him under darkness.
आ नामभिर्मरुतो वक्षि विश्वाना रूपेभिर्जातवेदो हुवानः।
यज्ञं गिरो जरितुः सुष्टुतिं च विश्वे गन्त मरुतो विश्व ऊती॥
हे उत्पन्न मात्र को जानने वाले अग्नि देव! हम लोगों के द्वारा आवाहित होकर आप विविध (इन्द्र देव, वरुण आदि) नामधारी और विभिन्नाकृति निखिल मरुतों का यज्ञ में वहन करते है। हे मरुतों! आप सब रक्षा के साथ याजकगण के यज्ञ में शोभन फलवाली प्रार्थना में और पूजा में पधारें।[ऋग्वेद 5.43.10]
Hey Agni Dev, knowing the born-created! On being invited-invoked by us you support Marud Gan in the Yagy. Hey Marudu Gan! All of you should come-join the Yagy, associated with attractive rewarding prayers and Pooja.
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति।
प्र श्यावाश्व धृष्णुयार्चा मरुद्भिर्ऋक्वभिः।
ये अद्रोघमनुष्वधं श्रवो मदन्ति यज्ञियाः॥
हे श्यावाश्व ऋषि! आप धीरता से स्तुति योग्य मरुतों की अर्चना करें। याग योग्य मरुद्गण प्रतिदिन हविर्लक्षण अहिंसक अन्न को प्राप्त करके प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 5.52.1
Hey Rishi Shyavashrv! Maintain your patience-cool while praying to revered-worshipable Marud Gan. Qualified for the Yagy, Marud Gan become happy on being offered the food grains obtained through non violent means.
ते हि स्थिरस्य शवसः सखायः सन्ति धृष्णुया।
ते यामन्ना धृषद्विनस्त्मना पान्ति शश्वतः॥
वे अविचलित बल के मित्र हैं, वे धीर हैं, वे मार्ग में भ्रमण करते हैं और स्वेच्छापूर्वक हमारे पुत्र एवं दासों की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.2]
अविचलित :: उदासीन, शांत, स्थिर; undisturbed, unshaken, unmoved, nonchalant.
Unshaken-unmoved they are the friends of Bal, patience, move over their path and protect our sons and slaves.
ते स्पन्द्रासो नोक्षणोऽति ष्कन्दन्ति शर्वरीः।
मरुतामधा महो दिवि क्षमा च मन्महे॥
स्पन्दनशील और जलवर्षक मरुद्गण रात्रि का अतिक्रम करके गमन करते हैं। क्योंकि वे इस प्रकार के हैं; इसीलिए अब हम व्याप्त मरुतों के द्युलोक और भूमि में तेजों की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.3]
स्पंदन :: संवेग, फड़फड़ाहट, नाड़ी-स्फुरण, कंपन, थरथराहट; flutter, quivering, vibration.
Fluttering and rain showering Marud Gan travel through the night, by virtue of their nature. Hence, we worship pray the aura-energy of the Marud Gan over the earth & heavens.
मरुत्सु वो दधीमहि स्तोमं यज्ञं च धृष्णुया।
विश्वे ये मानुषा युगा पान्ति मर्त्यरिषः॥
हे होताओं! आप लोग धीरतापूर्वक मरुतों को किसलिए स्तवन और हव्य प्रदान करते हैं? ये मरुद्गण मानवी युगों में हिंसकों से मरणशील मनुष्यों की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.4]
Hey Hotas-Ritviz! Why do you worship Marud Gan with patience-patiently and make offerings? Marud Gan protect the mortal humans from the violent people.
PATIENTLY :: धैर्यपूर्वक, सब्र से, धीरज-धीरता से; perseveringly, forbearingly, imperturbably, quietly.
अर्हन्तो ये सुदानवो नरो असामिशवसः।
प्र यज्ञं यज्ञियेभ्यो दिवो अर्चा मरुद्भ्यः॥
हे होताओं! जो पूजनीय, सुन्दर दान विशिष्ट, कर्म के नेता और अधिक बल वाले हैं, ऐसे याग योग्य द्युतिमान् मरुतों को यज्ञ साधन हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.52.5]
Hey Hotas! Make oblations-offerings for the radiant Marud Gan for the Yagy, who are worshipable, revered, make donations-resort to charity & endeavours-efforts, possessing excess might.
आ रुक्मैरा युधा नर ऋष्वा ऋष्टीरसृक्षत।
अन्वेनाँ अह विद्युतो मरुतो जर्रझतीरिव भानुरर्त त्मना दिवः॥
जल के नेता महान् मरुद्रण रोचमान आभरण विशेष से तथा आयुध विशेष से शोभायमान् होते हैं। बादलों के भेदन के लिए वे आयुध विशेष को प्रक्षेपित करते हैं। विद्युत शब्द करने वाली जलराशि के तुल्य मरुतों का अनुगमन करती हैं। द्युतिमान् मरुद्गणों की दीप्ति स्वयं निःसृत होती है।[ऋग्वेद 5.52.6]
रोचमान :: चमकता हुआ, शोभायुक्त; shinning, radiant, aurous.
आभरण :: गहना, आभूषण, भरण पोषण; pretties.
निःसृत :: निकला हुआ; derived.
Great leader of water, radiant Marud Gan are decorated with pretties and specific weapons. They launch specific weapons-missiles for tearing the clouds. Thunder volt follows them like the water. Radiance of Marud Gan comes out automatically.
ये वावृधन्त पार्थिवा य उरावन्तरिक्ष आ।
वृजने वा नदीनां सधस्थे वा महोदिवः॥
जो पृथ्वी सम्बन्धी मरुद्गण हैं और वर्द्धमान होते हैं, जो महान् अन्तरिक्ष में वर्द्धमान होते हैं, वे नदियों की धारा में तथा महान् द्युलोक के बीच में वृद्धि प्राप्त करें। इस प्रकार जल के लिए सभी जगह वर्द्धमान मरुत् बादलों का भेदन करने के लिए आयुध विशेष को प्रक्षेपित करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.7]
Marud Gan related-concerned with the earth and growing, grow in the space. Let them grow-flourish in the rivers current and the heavens. Marud Gan are empowered to tear into the clouds with the launching of specific weapons-missiles.
शर्धो मारुतमुच्छंस सत्यशवसमृभ्वसम्।
उत स्म ते शुभे नरः प्र स्पन्द्रा युजतत्मना॥
हे स्तोताओं! मरुतों के उत्कृष्ट बल की प्रार्थना करें। उनका बल अत्यन्त प्रवृद्ध तथा सत्यमूल है। वर्षा करने वाले मरुद्गण, गमनशील होकर सबकी रक्षाबुद्धि से जल के लिए स्वयं नियोजित होते हैं।[ऋग्वेद 5.52.8]
प्रवृद्ध :: बढ़ी हुई; grown up.
Hey Stotas-worshipers! Let us pray-worship for the excellent strength-might of the Marud Gan. Their power is grown up and truthful. Rain causing dynamic Marud Gan organise the water for the protection of all.
उत स्म ते परुष्ण्यामूर्णा वसत शुन्ध्यवः।
उत पव्या रथानामद्रिं भिन्दं त्योजसा॥
मरुद्गण परुष्णी नामक नदी में अवस्थित रहते हैं और सबको शुद्ध करने वाली दीप्ति द्वारा अपने को आच्छादित करते हैं। वे अपने रथ चक्र के द्वारा बादलों और पर्वतों को विदीर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.9]
Marud Gan are stationed-situated in the river known as Parushni and cover themselves with the radiance purifying every one. They tear-rock the clouds and the mountains, with the wheel of their charoite.
आपथयो विपथयोऽन्तस्पथा अनुपथाः।
एतेभिर्मह्यं नामभिर्यज्ञं विष्टार ओहते॥
जो मरुद्गण हम लोगों के अभिमुख मार्ग से गमन करते हैं, जो सभी जगह गमन करते हैं, जो गिरि कन्दराओं में गमन करते हैं और जो अनुकूल मार्ग गामी हैं, वे उपर्युक्त चारों नाम वाले मरुद्गण विस्तृत होकर हमारे यज्ञ के हविष्यान्न वहन करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.10]
Marud Gan accept our offerings in the Yagy, move all around us every where, reside-stay in the mountains & caves, follows the favourable path.
अधा नरो न्योहतेऽधा नियुत ओहते।
अधा पारावता इति चित्रा रूपाणि दर्श्या॥
अभिमत वृष्ट्यादि के नेता संसार का अतिशय वहन करते हैं। स्वयं सम्मिलित करने वाले संसार का अतिशय वहन करते हैं। दूर देश अन्तरिक्ष में वे ग्रह, तारा, मेघ आदि को धारित करते हैं। इस प्रकार से उनके रूप नानाविधि और दर्शनीय होते हैं।[ऋग्वेद 5.52.11]
अभिमत :: अनुकूल, सम्मत, मनचाहा, स्वीकृत मत, व्यक्तिगत मत; opinion, consonant.
Favourable, Marud Gan! The leader of the rains etc., bear the excessive burden-load of the universe. They bear the planets, stars, clouds etc. In this manner they appear in different, various ways-forms.
छन्दःस्तुभः कुभन्यव उत्समा कीरिणो नृतुः।
ते मे के चिन्न तायव ऊमा आसन्दृशि त्विषे॥
छन्दों द्वारा प्रार्थना करने वाले और जल की इच्छा करने वाले स्तोता लोगों ने मरुतों की प्रार्थना की तथा प्यासे गौतम के पीने के लिए कूप का आनयन किया। उनमें मरुतों ने अदृश्य तस्करों के सदृश स्थित होकर हमारी रक्षा की तथा कितने ही प्राणरूप से दृश्यमान् होकर शरीर का बल साधन किया।[ऋग्वेद 5.52.12]
The Stotas worshiping Marud Gan with the Chhand-verses, hymns composed of six lines, desirous-needy of water; requested them and organised a well for the thirsty Gautom Rishi. They protected us like the invisible people and boosted strength in the body as the conscience, invoking themselves.
य ऋष्वा ऋष्टिविद्युतः कवयः सन्ति वेधसः।
तमृषे मारुतं गणं नमस्या रमया गिरा॥
हे श्यावाश्व ऋषि! जो मरुद्गण दर्शनीय विद्युत्रूपी आयुध से दीप्तिमान्, मेधावी और सभी के विधाता हैं, उन मरुद्गण की रमणीय प्रार्थना से आप परिचर्या करें।[ऋग्वेद 5.52.13]
Hey Shyavashrv Rishi! Serve-worship the Marud Gan with attractive sacred hymns, who are intelligent, wielding the thunderbolt as a weapon.
अच्छऋषे मारुतं गणं दाना मित्रं न योषणा।
दिवो वा धृष्णव ओजसा स्तुता धीभिरिषण्यत॥
हे ऋषि! आप हविर्दान तथा प्रार्थना के साथ मरुतों के निकट सूर्य देव के तुल्य उपस्थित होवें। हे बल द्वारा पराभूत करने वाले मरुतों! आप लोग द्युलोक से अथवा अन्य दोनों लोकों से हमारे यज्ञ में आगमन करें। हम सब आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.14]
पराभूत :: पराजित, परास्त, विनष्ट, ध्वस्त; defeated, overthrown.
Hey Rishi! Present yourself through offerings-oblations and worship near the Marud Gan, like the Sun. Hey defeating with might, Marud Gan! You should join our Yagy from either the heavens or the other two abodes-earth & the Nether world. We worship-request you.
नू मन्वान एषां देवाँ अच्छा न वक्षणा।
दाना सचेत सूरिभिर्यामश्रुतेभिरचिभिः॥
स्तोता शीघ्रता से मरुतों की प्रार्थना करके अन्य देवों की अभिप्राप्ति की कामना नहीं करते। स्तोता ज्ञान सम्पन्न, शीघ्र गमन में प्रसिद्ध तथा फलदाता मरुतों से अभिष्ट दान प्राप्त कर लेते हैं।[ऋग्वेद 5.52.15]
The Stotas quickly worship the Marud Gan without the desire of invoking other demigods-deities. The Stotas get rewards-desired donations from the enlightened, quick moving, famous, obelising Marud Gan.
प्र ये मे बन्ध्वेषे गां वोचन्त सूरयः पृश्निं वोचन्त मातरम्।
अधा पितरमिष्मिणं रुद्रं वोचन्त शिक्वसः॥
जिन प्रेरक मरुतों ने हमें अपने बन्धुओं के अन्वेषण में यह वचन कहा; उन्होंने देवता अथवा पृश्नि वर्ण (चितकबरी, छोटी गाय) गौ को माता बताया और अन्नवान अथवा गमनवान रुद्रदेव को अपना पिता बताया, वे समर्थवान् हैं।[ऋग्वेद 5.52.16]
पृश्नि वर्ण :: चितकबरी; brindle.
The inspiring Marud Gan in connection with our friend & relatives said that Prashni Varn cows are like mother and dynamic Rudr Dev who grant food grains like father.
सप्त मे सप्त शाकिन एकमेका शता ददुः।
यमुनायामधि श्रुतमुद्राधो गव्यं मृजे नि राधो अश्व्यं मृजे॥
सात-सात-सङ्ख्यक सर्वसमर्थ मरुद्गण एक-एक होकर हमें शत संख्यक गौ-अश्व प्रदान करें। इनके द्वारा प्रदत्त गोसमूहात्मक प्रसिद्ध धन को हम यमुना के किनारे प्राप्त करें। उनके द्वारा प्रदत्त अश्व समूहात्मक धन को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.52.17]
Let Marud Gan in groups of seven, grant us hundreds of cows & horses in groups, over the banks of Yamuna.(18.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- गायत्री, बृहती, अनुष्टुप्, उष्णिक्, पंक्ति, ककुप् आदि।
को वेद जानमेषां को वा पुरा सुम्नेष्वास मरुताम्।
यद्युयुज्रे किलास्यः॥
कौन पुरुष मरुतों की उत्पत्ति को जानता है? कौन पहले मरुतों के सुख में वर्त्तमान था? जब उन्होंने पृथ्वी-पृश्नि को रथ में युक्त किया, तब इनके बलरक्षक सुख को कौन जानता था?[ऋग्वेद 5.53.1]
इन मरुतों का जन्म कौन जानता है? मरुतों का सुख सर्वप्रथम किसने अनुभव किया? जब इन्होंने रथ में पृश्नि को जोड़ा था, तब इनकी शक्ति किसने जानी?
Who knows the birth of Maruts? Who has formerly been participant of their enjoyments, by whom the spotted deer are harnessed in their chariots?
Who knows the birth of Marud Gan? Who was present under the comforts granted by Marud Gan? Who was aware of their protective powers generating comforts, when they deployed the earth in their charoite?
ऐतान्रथेषु तस्थुषः कः शुश्राव कथा ययुः।
कस्मै सत्रुः सुदासे अन्वापय इळाभिर्वृष्टयः सह॥
ये मरुद्गण रथ पर उपविष्ट हुए हैं, यह किसने सुना अथवा इनकी रथध्वनि को किसने सुना? यह किस प्रकार गमन करते हैं, यह कौन जानता है? अथवा देव आदि किस प्रकार इनका अनुगमन करें? किस दानशील के लिए बन्धु भूत वर्षक मरुद्गण, बहुत अन्न के साथ अवतीर्ण होंगे?[ऋग्वेद 5.53.2]
उपविष्ट :: आसीन, विराजमान, अध्यासीन, अभिनिविष्ट, बैठा हुआ, जमकर बैठा हुआ; seated, contained.
Who knew that Marud Gan had occupied the charoite or heard the sound of their charoite? Who knows their movements? How the demigods-deities follow them? For which donor, friendly Marud Gan will invoke with a lot of food grains?
ते म आहुर्य आययुरुप द्युभिर्विभिर्मदे।
नरो मर्या अरेपस इमान्पश्यन्निति ष्टुहि॥
सोमपान-जनित हर्ष के लिए द्युतिमान् अश्वों पर आरोहण करके जो मरुत् हमारे निकट आया, उन्होंने कहा, वे नेता, मनुष्यों के हितकर्ता और मूर्तिहीन हैं। इस प्रकार हम लोगों को स्थित देखकर उन्होंने कहा कि हे ऋषि! स्तवन करें।[ऋग्वेद 5.53.3]
The Marud Gan who came closer to the humans riding the charoite having consumed Somras said that they were formless leaders, inclined to human welfare. They saw us sitting and asked, Hey Rishis! Worship.
ये अञ्जिषु ये वाशीषु स्वभानवः स्रक्षु रुक्मेषु खादिषु।
श्राया रथेषु धन्वसु॥
हे मरुतो! जो दीप्ति आप लोगों के आभरण के आश्रय भूत है, जो आयुधों में है, जो माला विशेष में है, जो उरो भूषण में है और जो हस्तपाद स्थित कटक में हैं एवं जो दीप्ति रथ एवं धनुष में विद्यमान् है, उन समस्त दीप्तियों की हम वन्दना करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.4]
कटक :: समूह, पैर का कड़ा; leg brace, spine.
Hey Marud Gan! We worship the radiance present in your pretties, weapons, rosary, ornaments of the neck, hands, leg brace, charoite, bow etc.
युष्माकं स्मा रथाँ अनु मुदे दधे मरुतो जीरदानवः।
वृष्टी द्यावो यतीरिव॥
हे शीघ्रदान देने वाले मरुतों! वृष्टि की सभी जगह गमनशील दीप्ति के तुल्य आप लोगों के दृश्यमान् रथ को देखकर हम हर्षित होते हैं और प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.5]
Quickly resorting to donation, hey Marud Gan! We become happy on seeing your charoite looking like the electric spark in the sky and worship.
आ यं नरः सुदानवो ददाशुषे दिवः कोशमचुच्यवुः।
वि पर्जन्यं सृजन्ति रोदसी अनु धन्वना यन्ति वृष्टयः॥
वे नेतृत्व करने वाले तथा शोभन दान वाले मरुद्गण हवि देने वाले याजकगण के लिए अन्तरिक्ष से जल धारक मेघ को बरसाते हैं। वे द्यावा-पृथ्वी के लिए मेघ को विमुक्त करते हैं। इसके अनन्तर वृष्टिप्रद मरुत् सभी जगह गमनशील उदक के साथ व्याप्त होते हैं।[ऋग्वेद 5.53.6]
Leader, resorting to donations-charity Marud Gan, shower rains for the Ritviz who make offerings for them. They release the clouds for earth & the heavens. Thereafter, the rain clouds move every where and shower rains.
ततृदानाः सिन्धवः क्षोदसा रजः प्र सस्रुर्धेनवो यथा।
स्यन्ना अश्वा इवाध्वनो विमोचने वि यद्वर्तन्त एन्यः॥
निर्भिद्यमान मेघ से निःसृत जलराशि उदक के साथ अन्तरिक्ष में प्रसारित होती हैं, जिस से दुग्ध सिञ्चन करने वाली नव प्रसूता गौ के मार्ग में जाने के लिए विमुक्त शीघ्रगामी अश्व के तुल्य नदियाँ महावेग से प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 5.53.7]
हे मनुष्यो! जिस प्रकार से दुग्ध देने वाली गौएँ वैसे जल से भूमि को तोड़ने वाली नदियाँ लोक को प्रस्रवित करती हैं और जैसे घोड़े दौड़ते हैं, वैसे जो शीघ्र जाने वाली नदियाँ विमोचन में मार्गों को बितातीं हैं, उनसे सम्पूर्ण उपकार ग्रहण करने चाहियें।
Unrestricted clouds move through the space with water like the newly pregnant cows producing milk, the rivers flow with great speed like the horses.
आ यात मरुतो दिव आन्तरिक्षादमादुत। माव स्थात परावतः॥
हे मरुतो! आप लोग लोक से, अन्तरिक्ष से अथवा इसी लोक से आगमन करें। दूर देश द्युलोक इत्यादि में अवस्थान न करें।[ऋग्वेद 5.53.8]
Hey Marud Gan! Move from other abode, space or this abode but do not move away to distant heavens.
मा वो रसानितभा कुभा क्रुमुर्मा वः सिन्धुर्नि रीरमत्।
मा वः परि ष्ठात्सरयुः पुरीषिण्यस्मे इत्सुम्नमस्तु वः॥
हे मरुतो! रसा, अनितभा और कुभा नाम की नदियाँ एवं सभी जगह गमन शील समुद्र आप लोगों को रोकें। जलमयी सरयू आप लोगों को निरुद्ध न करें। हम सब आपके आगमन जनित के तुल्य नदियाँ महावेग से प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 5.53.9]
Hey Marud Gan! Let rivers named Rasa, Anitbha and Kubha moving all around and the ocean stop you. Let Saryu river block your movement. Let all of us rivers flow with great speed like the speed of your arrival.
तं वः शर्धं रथानां त्वेषं गणं मारुतं नव्यसीनाम्। अनु प्र यन्ति वृष्टयः॥
आप लोगों के प्रेरक नूतन रथ के बल पर और दीप्त मरुद्गण का हम स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.10]
We worship Marud Gan, on the strength of their new radiant charoite.
शर्धशर्धं व एषां व्रातंव्रातं गणङ्गणं सुशस्तिभिः। अनु क्रामेम धीतिभिः॥
हे मरुतो! हम शोभन प्रार्थना और हविः प्रदानादि लक्षण कार्य द्वारा आपके बल को अविवक्षितगण का और सात-सात समुदायात्मक गण का अनुसरण करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.11]
अविवक्षित :: जो अभिप्रेत या उद्धिष्ट न हो, जिसके विषय में कुछ कहा न जा सके, अनुद्दिष्टा; one nothing can be said about whom.
Hey Marud Gan! We worship & make offerings to you in groups of seven, along with the unpredictable people.
कस्मा अद्य सुजाताय रातहव्याय प्र ययुः। एना यामेन मरुतः॥
आज के दिन किस हव्य देने वाले याजक गण के पास प्रकृष्ट रथ द्वारा मरुद्गण गमन करेंगे?[ऋग्वेद 5.53.12]
Today to which Ritviz making offerings, will Marud Gan move in their charoite.
येन तोकाय तनयाय धान्यं १ बीजं वहध्वे अक्षितम्।
अस्मभ्यं तद्धत्तन यद्व ईमहे राधो विश्वायु सौभगम्॥
जिस दया युक्त हृदय से आप लोग पुत्र और पौत्र को अक्षय धान्य बीज बार-बार प्रदान करते हैं, उसी हृदय से हम लोगों को भी वह धान्य बीज प्रदान करें। क्योंकि हम लोग आपके निकट सर्वान्नोपेत अथवा आयुर्युक्त तथा सौभाग्यात्मक धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.13]
Grant us the imperishable rice seeds with the heart full of pity with which you award it to sons and grandsons. We request you for the life prolonging-boosting food grains and auspicious wealth.
अतीयाम निदस्तिर: स्वस्तिभिर्हित्वावद्यमरातीः।
वृष्टी शं योराप उस्रि भेषजं स्याम मरुतः सह॥
हे मरुतो! हम लोग कल्याण द्वारा पापों का परित्याग करके निन्दक शत्रुओं को जीतें। आपके द्वारा वृष्टि के प्रेरित होने पर हम सुख, पाप निवारक उदक और गौ युक्त औषध प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.53.14]
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, निन्दक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी; cynical, cynic, slanderer, satirical.
Hey Marud Gan! Let us win the sins through welfare means and overpower the cynical enemies. Rains being inspired by you, may provide us comforts, water removing of sins and the medicines along with cows.
सुदेवः समहासति सुवीरो नरो मरुतः स मर्त्यः। यं त्रायध्वे स्याम ते॥
हे पूजित और नेतृत्व कर्ता मरुतों! आप लोग जिसकी रक्षा करते हैं, वह देवों द्वारा अनुगृहीत और शोभन पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है। हम लोग उसी व्यक्ति के समान हों; क्योंकि हम लोग आपके ही हैं।[ऋग्वेद 5.53.15]
शोभन :: ललित, शोभनीय, संगत, उपयुक्त, स्वच्छ; seemly, decent, nice.
Hey revered-honoured Marud Gan! One who is protected by you is obliged by the demigods-deities and get decent-nice sons & grandsons. We should be like that person since we belong to you.
स्तुहि भोजान्त्स्तुवतो अस्य यामनि रणन्गावो न यवसे।
यतः पूर्वां इव सखरनु ह्वय गिरा गृणीहि कामिनः॥
हे ऋषि! प्रार्थना करने वाले इस याजक गण के यज्ञ में आप दाता मरुद्गण की प्रार्थना करें। तृणादि भक्षण करने के लिए गमन करने वाली गौओं के तुल्य मरुद्गण आनन्दित होते हैं। पुरातन मित्र के सदृश गमनशील मरुतों का आह्वान करें। स्तवन की इच्छा करने वाले मरुतों की वचन द्वारा प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 5.53.16]
Hey Rishi! Pray to donor Marud Gan for the sake of this worshiper's Yagy. Marud Gan become happy like the roaming cows, eating straw. Invite-invoke Marud Gan like old friends. Recite sacred hymns for the sake of Marud Gan desirous of prayers.(20.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्र शर्धाय मारुताय स्वभानव इमां वाचमनजा पर्वतच्युते।
घर्मस्तुभे दिव आ पृष्ठयज्वने द्युम्नश्रवसे महि नृम्णमर्चत॥
मरुत्सम्बन्धी बल के लिए इस क्रियमाण प्रार्थना को प्रेषित करें अर्थात् मरुतों के बल की प्रशंसा करें। वे स्वयं तेजोविशिष्ट पर्वतों को विदीर्ण करने वाले, धर्मशोषक, द्युलोक से आने वाले और द्युतिमान् अन्न वाले हैं। इन्हें प्रचुर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.54.1]
धर्मशोषक :: स्वधर्म त्यागी; apostate, renegade.
Appreciate the strength of Marud Gan. They are the destroyers of mountains, renegade, comes from the heavens and have bright food grains. Offer them food grains.
प्र वो मरुतस्तविषा उदन्यवो वयोवृधो अश्वयुजः परिज्रयः।
सं विद्युता दधति वाशति त्रितः खरन्त्यापोऽवना परिज्रयः॥
हे मरुतो! आपके गण प्रादुर्भूत होते हैं। वे दीप्तिमान् संसार की रक्षा के लिए जल के अभिलाषी, अन्न के वर्द्धयिता, गमन करने के लिए अश्वों को रथ में युक्त करने वाले सभी जगह गमनशील और विद्युत् के साथ सम्मिलित होने वाले हैं। उसी समय त्रित (मेघ या मरुद्गण) शब्द करते हैं और चतुर्दिक गमन करने वाली जलराशि भूमि पर गिरती हैं।[ऋग्वेद 5.54.2]
गण :: समूह, दल, जत्था, गिरोह, टोली, वर्ग, श्रेणी, अनुचर, सेवक, किसी समान उद्देश्य वाले लोगों का समूह, शिव के दूत या सेवकों का दल, समानता के आधार पर किसी व्यक्ति, जीवों या वस्तुओं का वह विभाग जिसके और उपविभाग किए जा सकते हों, (छंद शास्त्र) तीन वर्णों का वर्ग एवं समूह, जैसे :- जगण, तगण, नगण, भगण, यगण और सगण आदि; college, crew.
Hey Marud Gan! Your followers evolve-appear in groups. They are the protectors of the world, desirous of water, growers of food grains, use-deploy horses in the charoites every where and are associated with the clouds. At that moment the clouds make sound-thunder and the rains fall over the earth in the four directions.
विद्युन्महसो नरो अश्मदिद्यवो वातत्विषो मरुतः पर्वतच्युतः।
अब्दया चिन्मुहुरा ह्रादुनीवृतः स्तनयदमा रभसा उदोजसः॥
द्युतिमान् तेज वाले, वृष्टि आदि के नेता, आयुध से युक्त प्रदीप्त, पर्वत अथवा मेघ को विदीर्ण करने वाले, बारम्बार उदकदाता, वज्रक्षेपक, एकत्र शब्द करने वाले, उद्धतबल, मरुद्गण वृष्टि के लिए प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 5.54.3]
Possessors of electric power, leaders of rains etc., aurous possessing weapons, tearing into mountains or clouds, granting water repeatedly, launchers of thunder volt, create sound together, possessing the power of water Marud Gan appear for raining.
व्य१क्तूनुद्रा व्यहानि शिक्वसो वय१न्तरिक्षं वि रजांसि धूतयः।
वि यदज्राँ अजथ नाव ईं यथा वि दुर्गाणि मरुतो नाह रिष्यथ॥
हे रुद्र पुत्र मरुतो! आप लोग अहोरात्र को प्रवर्तित करें। हे सर्वसमर्थ! आप लोग अन्तरिक्ष तथा लोकों को विक्षिप्त करें। हे कम्पनकारी! आप लोग समुद्र गर्भस्थ नौका के समान मेघों को कम्पित करें। आप लोग शत्रुओं के नगरों को ध्वस्त करें। हे मरुतो! आप हिंसा न करें।[ऋग्वेद 5.54.4]
प्रवर्तित :: पदोन्नत, प्रवर्तित, (कक्षा में) चढ़ाया गया, उन्नत, प्रख्यापित; promote.
विक्षिप्त :: पागल, बावला, उन्मत्त, बेधड़क, अव्यवस्थित, उलझा हुआ, दीवाना, उन्मादी, उन्मत्त, सिड़ी, परेशान, भ्रांतचित; deranged, mad, insane.
Hey sons of Rudr! Extend-promote the day & night. Hey mighty-powerful! Agitate the space and abodes. Hey tremblor! Shake the clouds like the boat in the ocean. Destroy the cities of the enemy. Hey Marud Gan! Do not resort to violence.
तद्वीर्यंवो मरुतो महित्वनं दीर्घं ततान सूर्यो न योजनम्।
एता न यामे अगृभीतशोचिषोऽनश्वदां यन्त्र्ययातना गिरिम्॥
हे मरुतो! सूर्यदेव जिस प्रकार से बहुत दूर तक अपनी दीप्ति को विस्तारित करते हैं अथवा देवों के अश्व जिस प्रकार से गमन में दीर्घता को विस्तारित करते हैं, उसी प्रकार से आपके सुप्रसिद्ध वीर्य और महिमा को स्तोता लोग दूर तक विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.54.5]
Hey Marud Gan! The way Sun extend his energy, the horses of demigods-deities extend their way; the Stotas extend your energy and glory to distant places.
अभ्राजि शर्धो मरुतो यदर्णसं मोषथा वृक्षं कपनेव वेधसः।
अध स्मा नो अरमतिं सजोषसश्चक्षुरिव यन्तमनु नेषथा सुगम्॥
हे वृष्टि के विधाता मरुतो! आप लोग उदकवान् मेघ को ताड़ित करते है। आपका बल शोभायमान होता है। हे परस्पर समान प्रीति वाले मरुतो! नेत्र जिस प्रकार से मार्गप्रदर्शन में नायक होता है, उसी प्रकार से आप लोग हमें सुगम मार्ग द्वारा धनादि के समीप ले जावें।[ऋग्वेद 5.54.6]
विधाता :: निर्माता, सर्जक; creator.
Hey creator of rain clouds, Marud Gan! You strike the clouds having water. Your might-power is demonstrated. Hey Marud Gan! You posses love and affection for each one of you. They way eyes show the path, you should direct us to riches-wealth through simple-clear way.
न स जीयते मरुतो न हन्यते न स्स्रेधति न व्यथते न रिष्यति।
नास्य राय उप दस्यन्ति नोतय ऋषिं वा यं राजानं वा सुषूदथ॥
हे मरुतो! आप लोग जिस मन्त्र द्रष्टा ब्राह्मण या राजा को सत्कर्म में प्रेरित करते हैं, वह दूसरों के द्वारा पराजित नहीं होता और नहीं हिंसित होता। वह न कभी क्षीण होता है, न पीड़ित होता है और न कोई बाधा प्राप्त करता है। उसका धन और उसकी रक्षा कभी नष्ट नहीं होती है।[ऋग्वेद 5.54.7]
मन्त्र द्रष्टा :: जो मंत्रों का अर्थ जानता हो, मंत्रों के अर्थ जानने और बताने वाला ऋषि; the Brahman-Rishi who explains-is aware of the theme-meaning of Mantr-sacred hymns.
Hey Marud Gan! Either the Brahman who know the theme of sacred hymns or the king inspired by you is never defeated or struck by others. He never become weak, tortured or obstructed. His wealth and protection are never lost.
नियुत्वन्तो ग्रामजितो यथा नरोऽर्यमणो न मरुतः कवन्धिनः।
पिन्वन्त्युत्सं यदिनासो अस्वरन्व्युन्दन्ति पृथिवीं मध्वो अन्धसा॥
नियुत्संज्ञक अश्वों से युक्त संघात्मक पदार्थों के विश्लेषयिता, नराकार अथवा नेता अथवा ग्रामजेता मनुष्य के तुल्य और सूर्यदेव की तरह दीप्त मरुद्गण उदकवान् होते हैं। जब वे स्वामी होते हैं, तब कूपादि निम्न प्रदेश को जलपूर्ण करते हैं और शब्दायमान होकर सुमधुर तथा सारभूत जल से पृथ्वी को सिंचित करते हैं।[ऋग्वेद 5.54.8]
नियुत्संज्ञक :: nominative, commander.
Marud Gan shinning like the Sun & leaders of humans, deploying horses & objects for striking, possess water. They over take the lower lands and fill them like wells, irrigate earth making lovely sounds.
प्रवत्वतीयं पृथिवी मरुद्भ्यः प्रवत्वती द्यौर्भवति प्रयद्भ्यः।
प्रवत्वतीः पथ्या अन्तरिक्ष्याः प्रवत्वन्तः पर्वता जीरदानवः॥
यह पृथ्वी मरुतों के लिए विस्तीर्ण प्रदेश वाली होती है। द्युलोक भी मरुतों के संचारण के लिए विस्तीर्ण होता है। अन्तरिक्ष स्थित मार्ग मरुतों के गमन के लिए विस्तीर्ण होता है। मरुतों के लिए ही मेघ या पर्वत शीघ्र जल वर्षक होते हैं।[ऋग्वेद 5.54.9]
This earth is extended-vast place for the Marud Gan. Heavens & the space too extends for the Marud Gan. The clouds and mountains quickly lead to rain showers fro the Marud Gan.
यन्मरुतः सभरसः स्वर्णरः सूर्य उदिते मदथा दिवो नरः।
न वोऽश्वाः श्रथयन्ताह सिस्रतः सद्यो अस्याध्वनः पारमश्नुथ॥
हे महाबल वाले सभी के नेता मरुतों तथा द्युलोक के नेता हैं! आप लोग सूर्य के प्रकट होने पर सोमरस के पान के लिए हर्षित होते हैं, उस समय आप लोगों के अश्व, गमन कार्य में आप लोग ही तीनों लोकों के सम्पूर्ण मार्ग को पार करते हैं।[ऋग्वेद 5.54.10]
Hey possessors of great might, leaders of all and the heaven, Marud Gan! You become happy for drinking Somras with the Sun rise; at that moment your horses quickly cross the three abodes.
अंसेषु व ऋष्टयः पत्सु खादयो वक्षःसु रुक्मा मरुतो रथे शुभः।
अग्निभ्राजसो विद्युतो गभस्त्योः शिप्राः शीर्षसु वितता हिरण्ययीः॥
हे मरुतो! आप लोगों के स्कन्ध प्रदेश में आयुध शोभायमान होते हैं। पैरों में कटक, वक्ष स्थल में हार और रथ के ऊपर शोभमान दीप्ति है। आप लोगों के दोनों हाथों में अग्रि दीप्त रश्मियाँ हैं और मस्तक पर विस्तीर्ण स्वर्ण की पगड़ी है।[ऋग्वेद 5.54.11]
पगड़ी :: साफ़ा, शिरावस्त्र, शिरोवेष, टोपी, अंग्रेजी टोपी के गिर्द धूप से बचाव के लिए लिपटा हुआ कपड़ा; turban, head-dress.
Hey Marud Gan! Your chest and the waist is covered with weapon-armours, rosary, has golden rings in the legs and your charoite is aurous-shinning. Both of your hands possess the rays of fire and the head is covered by golden turban.
तं नाकमर्यो अग्रभीतशोचिषं रुशत्पिप्पलं मरुतो वि धनुथ।
समच्यन्त वृजनातित्विषन्त यत्स्वरन्ति घोषं विततमृतायवः॥
हे मरुतों! जब आप लोग गमन करते हैं, तब अप्रतिहत दीप्तिशाली स्वर्ग और समुज्ज्वल जलराशि विचलित हो जाती है। जब आप लोग हमारे द्वारा प्रदत्त हव्य का भक्षण कर बलशाली होते हैं और उज्ज्वल भाव से दीप्ति प्रकाशित करते हैं एवं जब आप लोग उदक वर्षण की अभिलाषा प्रकट करते हैं, तब आप लोग भीषण रूप से गर्जना करते हैं।[ऋग्वेद 5.54.12]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; which/who can not be restrained-blocked, continuous.
Hey Marud Gan! When you move unrestrained-unrestricted, radiant heavens and the shinning water bodies are disturbed. When you consume the offerings-oblations made by us, you become mighty and become aurous with gentle feelings and lead to rains, making thunderous loud sound.
युष्मादत्तस्य मरुतो विचेतसो रायः स्याम रथ्यो वयस्वतः।
न यो युच्छति तिष्यो ३ यथा दिवो ३ स्मे रारन्त मरुतः सहस्रिणम्॥
हे विविध बुद्धि वाले मरुतो! हम लोग रथाधिपति हैं। हम लोग आपके द्वारा प्रदत्त धन और अन्न के स्वामी हैं। आपके द्वारा प्रदत्त धन कभी नष्ट नहीं होता, जिस प्रकार से आकाश से सूर्य देव कभी अलग नहीं होते हैं। हे मरुतो! हम लोगों को अपार धन द्वारा आनन्दित करें।[ऋग्वेद 5.54.13]
Hey Marud Gan possessing vivid intelligence! We are the owner of charoites, wealth and food grains granted by you. The manner in which Sun do not separate-isolate from the sky, the wealth given you is never lost. Hey Marud Gan! Make us happy with unlimited wealth-riches.
यूयं रयिं मरुतः स्पार्हवीरं यूयमृषिमवथ सामविप्रम्।
यूयमर्वन्तं भरताय वाजं यूयं धत्थ राजानं श्रुष्टिमन्तम्॥
हे मरुतो! आप लोग धन और स्पृहणीय पुत्र, सेवकादि हमें प्रदान करें। हे मरुतों! आप लोग सोम सहित ब्राह्मणों की रक्षा करें। हे मरुतो! आप लोग श्यावाश्व को धन और अन्न प्रदान करें। वे देवों का यजन करते हैं। हे मरुतो! आप लोग राजा को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.54.14]
स्पृहणीय :: स्पृहा के योग्य, वांछनीय, प्राप्त करने योग्य, चाहने योग्य, प्राप्त करने योग्य, वांछनीय; covetable, enviable, preferable, preferential, desirable.
Hey Marud Gan! Grant us worthy-coveted sons, servants etc. Hey Marud Gan! Protect the Brahmans along with Som. Hey Marud Gan! Grant wealth and food grains to Shyavashv. He worship the demigods-deities. Hey Marud Gan! Grant comforts-pleasure to the king.
तद्वो यामि द्रविणं सद्यऊतयो येना स्व१र्ण ततनाम नॄँरभि।
इदं सु मे मरुतो हर्यता वचो यस्य तरेम तरसा शतं हिमाः॥
हे सद्यः रक्षणशील मरुतो! आप लोगों से हम धन की याचना करते हैं। सूर्य देव जिस प्रकार से अपनी रश्मि को दूर तक फैलाते हैं, उसी प्रकार से हम भी अपने पुत्र, सेवकादि को उसी धन से विस्तारित करें। हे मरुतो! आप लोग हमारे इस स्तोत्र को ग्रहण करें, जिससे हम सौ हेमन्त ऋतु का अतिक्रमण करें अर्थात् सौ वर्ष तक जीवित रहें।[ऋग्वेद 5.54.15]
सद्यः :: अव्यय, आज ही, इसी समय, अभी; currently.
Hey quickly-immediately protecting Marud Gan! We beg you money. The way Sun spread his rays, let us increase our sons, servants etc. with that money. Hey Marud Gan! Accept-respond to our prayer-Strotr in such a way that we survive for hundred years Hemant Ritu, season.(24.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्रयज्यवो मरुतो भ्राजदृष्टयो बृहद्वयो दधिरे रुक्मवक्षसः।
ईयन्ते अश्वैः सुयमेभिराशुभिः शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
अतिशय यष्टव्य और दीप्त आयुध वाले मरुद्गण यौवन रूप प्रभूत अन्न धारित करते हैं। वे वक्ष: स्थल पर हार धारित करते हैं। सुख पूर्वक नियमन योग्य तथा शीघ्रगामी अश्व उन्हें वहन करते हैं। शोभन भाव से गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.1]
यष्टव्य :: यज्ञ करने योग्य, देव पूजा-यज्ञ में बलि चढ़ाये जाने योग्य; highly revered, worshipable, deserving worship.
Worshipable, possessing divine weapons Marud Gan are youthful and have food grains. They wear necklace over their chest. Easily manoeuvring and fast moving horses carry them. Graceful charoites of Marud Gan drive after others.
स्वयं दधिध्वे तविषीं यथा विद बृहन्महान्त उर्विया वि राजथ।
उतान्तरिक्षं ममिरे व्योजसा शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! आप लोग जैसा जानते हैं अर्थात् जो उचित समझते हैं, वैसी सामर्थ्य स्वयं धारित करते हैं, आपकी सामर्थ्य अप्रतिबद्ध है। हे मरुतो! आप लोग महान् और दीर्घ होकर शोभायमान हों, अन्तरिक्ष को बल द्वारा व्याप्त करें। शोभायमान भाव से अथवा उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.2]
Hey Marud Gan! You act-behave as per your capacity-calibre. You should be great and graceful to occupy the space with might. Their charoites follow others who wish to have water, gracefully.
साकं जाताः सुभ्वः साकमुक्षिताः श्रिये चिदा प्रतरं वावृधुर्नरः।
विरोकिणः सूर्यस्येव रश्मयः शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
महान् मरुद्गण एक साथ ही उत्पन्न हुए हैं और एक साथ ही वर्षक होते हैं। वे अतिशय शोभा के लिए सभी जगह वर्द्धमान हुए हैं। सूर्य रश्मि के समान वे यागादि कार्य के नेता तथा शोभा सम्पन्न हैं। शोभयमान भाव से गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.3]
Great Marud Gan evolved together and lead to rains. They are well placed gracefully like the rays of Sun, as the leader of the endeavours like Yagy. Their chaoites move after others gracefully.
आभूषेण्यं वो मरुतो महित्वनं दिदृक्षेण्यं सूर्यस्येव चक्षणम्।
उतो अस्माँ अमृतत्वे दधातन शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! आप लोगों की महत्ता स्तवनीय है। आप लोगों का रूप सूर्य के तुल्य दर्शनीय है। हमारे मोक्ष में अर्थात् स्वर्ग प्राप्ति के विषय में आप लोग हमारे सहायक हों। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.4]
Hey Marud Gan! Your might deserve worship. Your are beautiful like the Sun. Let you become helpful in our endeavours for attaining Moksh-Salvation. Their chariots follow others who intend to have water.
उदीरयथा मरुतः समुद्रतो यूयं वृष्टिं वर्षयथा पुरीषिणः।
न वो दस्त्रा उप दस्यन्ति धेनवः शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! आप लोग अन्तरिक्ष से दृष्टि को प्रेरित करें। हे जल सम्पन्न! आप लोग वर्षा करें। हे दर्शनीयों अथवा शत्रु संहारको! आपकी प्रसन्नता से मेघ कभी भी शुष्क नहीं होते। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.5]
Hey Marud Gan! You look around-survey from the space for rains. Hey destroyers of enemy, graceful Marud Gan! Your charoites follow others, who are needy, desirous of water-rains.
यदश्वान्धूर्षु पृषतीरयुग्ध्वं हिरण्ययान्प्रत्यत्काँ अमुग्ध्वम्।
विश्वा इत्स्पृधो मरुतो व्यस्यथ शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो ! जब आप लोग रथ के अग्र भाग में पृषती अश्व को नियोजित करते हैं, तब हिरण्यवर्ण वाले कवच को उतार देते हैं। आप लोग समस्त संग्रामों में विजय प्राप्त करते है। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.6]
पृषती :: धब्बेदार; spotted.
Hey Marud Gan! When your deploy the spotted horses in front you remove the golden shield. You are winner in all wars-battles. Your charoites follow others who move-look for water.
न पर्वता न नद्यो वरन्त वो यत्राचिध्वं मरुतो गच्छथेदु तत्।
उत द्यावापृथिवी याथना परि शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! पर्वत तथा नदियाँ आप लोगों के लिए प्रतिरोधक हों। आप लोग जिस किसी यज्ञादि स्थान में जाने के लिए संकल्प करते हैं, वहाँ जाते ही हैं। वर्षा करने के लिए आप लोग द्यावा-पृथिवी में व्याप्त होते है। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.7]
संकल्प :: विचार, प्रण, प्रस्ताव, समाधान, स्थिरता, चित्त की दृढ़ता, ठानना; resolution, resolve, determination.
Hey Marud Gan! You should be resistant to rivers and mountains. You resolve to visit spots like Yagy etc. and go there. You cover-pervade the heaven & earth for causing rains. You follow those who look for water in your charoite.
यत्पूर्व्यं मरुतो यच नूतनं यदुद्यते वसवो यच शस्यते।
विश्वस्य तस्य भवथा वेदसः शभं यातामन् रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! जो यागादि कार्य पूर्व में सम्पादित हुए हैं और जो अभी हो रहे हैं, हे वसुओ! जो कुछ मन्त्रगान होता है तथा जो कुछ स्तोत्र पाठ होता है, आप लोग वह सब जानें। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.8]
Hey Marud Gan! The worship-Yagy which used to be conducted-held earlier, are done at present as well. You should know-learn the Mantr and Strotr etc., recited there. Charoites of Marud Gan follow those who wish have water.
मृळत नो मरुतो मा वधिष्टनास्मभ्यं शर्म बहुलं वि यन्तन।
अधि स्तोत्रस्य सख्यस्य गातन शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! आप लोग हमें सुखी करें। हम लोगों के द्वारा किसी अनिष्ट कार्य के हो जाने से जो आपको क्रोध उत्पन्न हुआ है, उससे हम लोगों को बाधा न पहुचाएँ। हम लोगों को अत्यन्त सुख प्रदान करें। प्रार्थना को सुनकर हम लोगों के साथ मित्रता करें। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.9]
अनिष्ट :: अवांछित, अशुभ, अहित, अमंगल; unwelcome, forbidding, mis happening.
Hey Marud Gan! Make us happy-blissful. Do not restrict-block us on being angry due to the mis happening-trouble caused by us to others. Grant us comforts. Be friendly listening-responding to our prayers. Your charoites follow others who move, looking for water.
यूयमस्मान्नयत वस्यो अच्छा निरंहतिभ्यो मरुतो गृणानाः।
जुषध्वं नो हव्यदातिं यजत्रा वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
हे मरुतो! आप लोग हमें ऐश्वर्य के समक्ष ले जावें। हम लोगों के स्तोत्र से प्रसन्न होकर हम लोगों को पापों से मुक्त करें। हे यजनीय मरुतो! आप लोग हम लोगों के द्वारा प्रदत्त हव्य ग्रहण करें, जिससे हम लोग विविध ऐश्वर्यों के स्वामी हों।[ऋग्वेद 5.55.10]
Hey Marud Gan! Grant us grandeur. Be happy with us responding to this Strotr-prayer and make us sinless. Hey worshipable Marud Gan! accept the offerings-oblations made by us, so that we acquire various grandeurs.(25.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- बृहती, सतोबृहती।
अग्ने शर्धन्तमा गणं पिष्टं रुक्मेभिरञ्जिभिः।
विशो अद्य मरुतामव ह्वये दिवश्चिद्रोचनादधि॥
हे अग्नि देव! रोचमान् आभरणों से युक्त और शत्रुओं को पराभूत करने वाले अथवा यज्ञ के प्रति उत्साहित होने वाले मरुतों का आह्वान करें। आज यज्ञ दिन में दीप्तिमान द्युलोक से हम लोगों के समक्ष आने के लिए मरुतों का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.56.1]
रोचमान :: चमकता हुआ, शोभित होता हुआ, घोड़े की गरदन पर की एक भंवरी, कार्तिकेय का एक अनुचर, शोभा युक्त; shinning, glittering, radiant, aurous.
उत्साहित :: अंगारे जैसा लाल, अत्यन्त उत्तेजित, तत्परतापूर्वक किसी काम में लगने वाला, आनंदपूर्वक कोई काम करने वाला, जिसके मन में हर काम के लिए और हर समय उत्साह रहता हो; excited, red hot.
Hey Agni Dev! Invoke Marud Gan who are shinning-aurous, capable of defeating the enemy and excited-encouraged for the Yagy. Let them be invoked to join the Yagy with us.
यथा चिन्मन्यसे हृदा तदिन्मे जग्मुराशसः।
ये ते नेदिष्ठं हवनान्यागमन्तान्वर्ध भीमसंदृशः॥
हे अग्नि देव! जिस प्रकार से आप मरुद्गणों को अत्यन्त पूजित मानते हैं, उनका आदर करते हैं, उसी प्रकार से वे हम लोगों के समीप उपकारक भाव से आवें। जो आपके आह्वान सुनने मात्र से ही आगमन करते हैं, उन भयंकर मरुतों को हव्य प्रदान कर प्रवृद्ध करें।[ऋग्वेद 5.56.2]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; grown up.
Hey Agni Dev! The manner in which you consider Marud Gan highly esteemed and respect them, similarly they should invoke-come you us for our welfare-benefit. Furious Marud Gan who respond to your call, let them grow-flourish by granting oblations-offerings.
मीळ्हुष्मतीव पृथिवी पराहता मदन्त्येत्यस्मदा।
ऋक्षो न वो मरुतः शिमीवाँ अमो दुध्रो गौरिव भीमयुः॥
पृथ्वी पर अधिष्ठित मनुष्य दूसरे व्यक्ति द्वारा अभिभूत होने पर जिस प्रकार से अपने प्रबल स्वामी के निकट गमन करता है, उसी प्रकार मरुत्सेना हर्षित होकर हम लोगों के निकट आगमन करती है। हे मरुतो! आप वृषभ के समान सेचन में समर्थ और विशिष्ट सामर्थ्यवान हैं।[ऋग्वेद 5.56.3]
अधिष्ठित :: स्थापित, स्थित, अधिकृत, नियोजित, व्यापार आदि में लगाया हुआ धन, लाभ के लिए निवेशित धन; enshrined.
अभिभूत :: पराजित किया हुआ, पीड़ित; overwhelmed.
सेचन :: सिंचाई करना, सिंचन, पानी छिड़कना; pollination
सामर्थ्यवान :: काबिल, सक्षम; powerful.
The way a person enshrined over the earth overwhelmed by the others moves to his strong lord, the army of Marud Gan comes to us happily. Hey Marud Gan! You are capable of fertilisation like the bull, capable and powerful.
निये रिणन्त्योजसा वृथा गावो न दुर्धुरः।
अश्मानं चित्स्वर्यं १ पर्वतं गिरिं प्र च्यावयन्ति यामभिः॥
कठिनता से हिंसनीय अश्व के तुल्य जो मरुद्गण अपने बल से सुगमतापूर्वक शत्रुओं को नष्ट करते हैं, वे गमन द्वारा शब्दायमान व्याप्त और संसार को पूर्ण करने वाले जल से युक्त मेघ को जल के लिए प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 5.56.4]
हिंसनीय :: हिंसा करने योग्य, जिसकी हिंसा की जा सके या की जाने को हो; murdered, violently.
The Marud Gan who destroy their enemy easily like the horse who has to be killed violently, inspire the rain clouds making sound by moving for rains.
उत्तिष्ठ नूनमेषां स्तोमैः समुक्षितानाम्।
मरुतां पुरुतममपूर्व्यं गवां सर्गमिव ह्वये॥
हे मरुतो! आप लोग उठें। हम लोग स्तोत्र द्वारा वर्द्धित, जलराशि के समान समृद्धिशाली, बल सम्पन्न और अपूर्व मरुतों का (स्तोत्रों द्वारा) आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.56.5]
समृद्धशाली :: जिसके पास धन-दौलत हो या जो धन से संपन्न हो; prosperous.
Hey Marud Gan! Get up. We invoke-invite you by the recitation of sacred hymns-Strotr, you being prosperous like the vast reservoir of water & mighty.
युङ्ग्ध्वं ह्यरुषी रथे युङ्ग्ध्वं रथेषु रोहितः।
युङ्ग्ध्वं हरी अजिरा धुरि वोळ्हवे वहिष्ठा धुरि वोळ्हवे॥
हे मरुतो! आप लोग रथ में अरुणिम हिरणों को नियोजित करें। रथ समूह में रोहित वर्ण के अश्व को नियोजित करें। भार वाहन के लिए शीघ्र गमन करने वाले हरिद्वय को युक्त करें। जो वहन कार्य में सुदृढ़ हैं, उन्हें भार वहन के लिए इस रथ में नियोजित करें।[ऋग्वेद 5.56.6]
अरुणिम :: उदय होते हुए सूर्य की भांति लाल, रक्त की तरह लाल रंग; red colour like the rising Sun.
Hey Marud Gan! Deploy the red coloured deer, red like the rising Sun, in the charoite. Deploy the red coloured horses in the charoite for carrying load. For moving quickly-fast deploy red horses duo. Those capable of carrying loads, deploy them for carrying load in this charoite.
उत स्य वाज्यरुषस्तुविष्वणिरिह स्म धायि दर्शतः।
मा वो यामेषु मरुतश्चिरं करत्प्र तं रथेषु चोदत॥
हे मरुतो! रथ में नियोजित, दीप्तिमान् प्रभूत ध्वनिकारी और दर्शनीय वह अश्व आप लोगों की यात्रा में विलम्ब न करें। रथ में नियुक्त उस अश्व को आप लोग इस प्रकार से प्रेरित करें, जिससे वह विलम्ब उत्पन्न न करे।[ऋग्वेद 5.56.7]
Hey Marud Gan! Deploy the beautiful, radiant, neighing horse in the charoite to avoid delay. Run the horse in such a manner that it do not delay.
रथं नु मारुतं वयं श्रवस्युमा हुवामहे।
आ यस्मिन्तस्थौ सुरणानि बिभ्रती सचा मरुत्सु रोदसी॥
हम लोग मरुद्गण के उस अन्न पूर्ण रथ का आह्वान करते हैं, जिस रथ के ऊपर सुरमणीय जल को धारित करके मरुतों के साथ उनकी माता अधिष्ठित हैं।[ऋग्वेद 5.56.8]
रमणीय :: सुखद, रमणीय, सुहावना, ख़ुशगवार, मनोरम, रमणीय, सुहावना, ललित, आनंदकर, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला; delightful, delectable, enjoyable.
We invoke the charoite of Marud Gan, full of food grains over which Marud Gan are seated with their mother, possessing delightful water.
तं वः शध रथेशुभं त्वेषं पनस्युमा हुवे।
यस्मिन्त्सुजाता सुभगा महीयते सचा मरुत्सु मीळ्हुषी॥
हे मरुतो! हम आप लोगों के उस रथ का आह्वान करते हैं, जो शोभाकारी, दीप्तिमान् और स्तुति योग्य हैं। जिसके बीच में सुजाता, सौभाग्यशालिनी मीहलुषी मरुद्गणों के साथ पूजित होती हैं।[ऋग्वेद 5.56.9]
We invoke your cohort, gracing the chariot, brilliant and adorable, amidst which the rain-bestowing goddess, of goodly origin and auspicious, is worshipped together with the Maruts.
Hey Marud Gan! We invoke your charoite which is beautiful, radiant and worth praying, in which their lucky cohort-goddess is worshiped along with the Marud Gan.(26.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
आ रुद्रास इन्द्रवन्तः सजोषसो हिरण्यरथाः सुविताय गन्तन।
इयं वो अस्मत्प्रति हर्यते मतिस्तृष्णजे न दिव उत्सा उदन्यवे॥
हे परस्पर सदयचित्त, सुवर्णमय रथारूढ़, इन्द्र देव के अनुसार रुद्र पुत्रों! आप लोग इस उद्देश्य पूर्ण यज्ञ में पधारें। हम आप लोगों के उद्देश्य से यह स्तोत्र पाठ करते हैं। आप लोग तृषार्त और जलाभिलाषी गौतम के निकट जिस प्रकार स्वर्ग से जल लाए थे, उसी प्रकार हम लोगों को अनुगृहीत करें।[ऋग्वेद 5.57.1]
Hey mutually agreeable, riding golden charoite, sons of Rudr, followers of Indr Dev! Join this useful Yagy. We recite this Strotr for you. The way your brought water for the thirsty and needy Gautom from the heavens, oblige us the same way.
वाशीमन्त ॠष्टिमन्तो मनीषिणः सुधन्वान इषुमन्तो निषङ्गिणः।
स्वश्वाः स्थ सुरथाः पृश्निमातरः स्वायुधा मरुतो याथना शुभम्॥
हे सुबुद्धि मरुतों! आप लोगों का भक्षण साधन आयुध, छुरिका, उत्कृष्ट धनुर्बाण, तूणीर और श्रेष्ठ अश्व तथा रथ है। आप लोग अस्त्रों द्वारा सुसज्जित होवें। हे पृश्नि पुत्रो! हमारे कल्याण के लिए आगमन करें।[ऋग्वेद 5.57.2]
सुबुद्धि :: श्रेष्ठ या अच्छी बुद्धि; सदबुद्धि; good sense, good-positive thoughts-ideas, intelligence.
Hey Marud Gan possessing good-positive thoughts-ideas, intelligence! Your means for eating are :- weapons, knife, excellent bows & arrow, excellent horses & charoite. Wield yourself with weapons-armour. Hey sons of Prashni! Arrive here for our welfare.
धूनुथ द्यां पर्वतान्दाशुषे वसु नि वो वना जिहते यामनो भिया।
कोपयथ पृथिवीं पृश्निमातरः शुभे यदुग्राः पृषतीरयुग्ध्वम्॥
हे मरुतो! आप लोग अन्तरिक्ष में मेघों को कम्पायमान करें, हव्य दाता को धन प्रदान करें। आप लोगों के आगमन भय से वन कम्पित होते हैं। हे पृश्नि पुत्रो, हे कोपन शील बलवालो! जब आप लोग जल के लिए अपने पृश्नि अश्व को रथ में नियोजित करते हैं, तब आपके क्राध से पृथ्वी भी क्षुब्ध हो जाती है।[ऋग्वेद 5.57.3]
Hey Marud Gan! Shake-agitate the cloud in the space and grant wealth to one who makes offerings for you. The forests become afraid due to your appearance. Hey sons of Prashni, mighty with anger-furiosity! When you deploy the spotted horses, even the earth shake.
वातत्विषो मरुतो वर्षनिर्णिजो यमाइव सुसदृशः सुपेशसः।
पिशङ्गाश्वा अरुणाश्वा अरेपसः प्रत्वक्षसो महिना द्यौरिवोरवः॥
मरुद्गण दीप्तिमान्, वृष्टि शोधक, यमज के तुल्य रूप, दर्शनीय-मूर्ति, श्याम वर्ण और अरुण वर्ण, अश्वों के स्वामी, निष्पाप और शत्रु क्षयकारी हैं। वे विस्तृत आकाश तुल्य विस्तारित हैं।[ऋग्वेद 5.57.4]
यमज :: जुड़वाँ बच्चे, वह घोड़ा जिसका एक ओर का अंग हीन और दुर्बल हो, अश्विनीकुमार; twins.
Marud Gan are radiant, rain causing, comparable to Ashwani Kumars, gracious, master of black & red coloured horses, sinless and destroyer of the enemy. They are comparable to the limitless, broad sky-space.
पुरुद्रप्सा अञ्जिमन्तः सुदानवस्त्वेषसंदृशो अनवभ्रराधसः।
सुजातासो जनुषा रुक्मवक्षसो दिवो अर्का अमृतं नाम भेजिरे॥
प्रभूत वारि वर्षण कारी, आवरण धारी, दान शील, उज्ज्वल मूर्ति, अक्षय धन सम्पन्न, सुजन्मा, वक्ष स्थल पर हार धारित करने वाले और पूजनीय मरुद्गण द्युलोक से आगमन करके अमृत प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.57.5]
Rain causing, having protective shield, donor, radiant-aurous, possessing non vanishing wealth, born of high origin, bearing rosary over the chest revered-honourable Marud Gan arrive from the heavens to receive nectar-elixir.
ऋष्टयो वो मरुतो अंसयोरधि सह ओजो बाह्वोर्वो बलं हितम्।
नृम्णा शीर्षस्वायुधा रथेषु वो विश्वा वः श्रीरधि तनूषु पिपिशे॥
हे मरुतो! आप लोगों के स्कन्ध देश में आयुष विशेष, दोनों भुजाओं में शत्रु नाशक बल, सिर पर सुवर्ण मय पगड़ी, रथ के ऊपर आयुध प्रभृति और आपके सभी अंग विशिष्ट कान्ति से युक्त हैं।[ऋग्वेद 5.57.6]
स्कन्ध :: प्रकाण्ड, लोहे की पेटी, कन्धा, मेहराब के किसी एक सिरे और उसके छौखट के बीच का अंतर; shoulder, spandrel, trunk.
प्रभृति :: इत्यादि, आदि, वगैरह; etc., influence.
Hey Marud Gan! Your shoulders possess Ayush-longevity, strength to destroy the enemy in both arms, golden cap over the head, weaponry etc. over the charoite and all organs have special aura.
गोमदश्वावद्रथवत्सुवीरं चन्द्रवद्राधो मरुतो ददा नः।
प्रशस्तिं नः कृणुत रुद्रियासो भक्षीय वोऽवसो दैव्यस्य॥
हे मरुतो! आप लोग हम लोगों को बहुत सारी गौवें, अश्व, रथ, प्रशस्त पुत्र और स्वर्ण के साथ अन्न प्रदान करें। हे रुद्र पुत्रो! आप लोग हम लोगों की समृद्धि को बढ़ावें। हम आप लोगों की स्वर्गीय रक्षा का उपभोग करें।[ऋग्वेद 5.57.7]
Hey Marud Gan! Grant us many cows, horses, excellent sons, gold and food grains. Hey sons of Rudr! Enhance-boost our prosperity. Let us utilise-enjoy your heavenly protection.
हये नरो मरुतो मृळता नस्तुवीमघासो अमृता ऋतज्ञाः।
सत्यश्रुतः कवयो युवानो बृहद्गिरयो बृहदुक्षमाणाः॥
हे मरुतो! आप लोग हम लोगों के प्रति अनुकूल होवें। आप लोग नेतृत्व कर्त्ता, अतुल ऐश्वर्यशाली, अविनश्वर, वारिवर्षक, सत्य फल से प्रसिद्ध, ज्ञान सम्पन्न तरुण, प्रचुर स्तुति युक्त और प्रभूत वर्षण कारी हैं।[ऋग्वेद 5.57.8]
Hey Marud Gan! You should be favourable to us. You are leaders, possess unlimited wealth, immortal, rain causing, granting real-true rewards, enlightened-intellectuals and deserve a lot of worship.(27.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- त्रिष्टुप्।
तमु नूनं तविषीमन्तमेषां स्तुषे गणं मारुतं नव्यसीनाम्।
य आश्वश्वा अमवद्वहन्त उतेशिरे अमृतस्य स्वराजः॥
हम आज यज्ञ दिन में दीप्तिमान् और स्तुति योग्य मरुतों की स्तुति करते हैं। मरुद्गण शीघ्रगामी अश्वों के स्वामी, बलपूर्वक सभी जगह गतिशील, जल के अधिपति और निज प्रभा द्वारा प्रभान्वित हैं।[ऋग्वेद 5.58.1]
We will resort to the worship of self radiant Marud Gan, today. They own fast moving horses, reaches every where, preside over-controls ambrosial water-rains and possess aura.
त्वेषं गणं तवसं खादिहस्तं धुनिव्रतं मायिनं दातिवारम्।
मयोभुवो ये अमिता महित्वा वन्दस्व विप्र तुविराधसो नॄन्॥
हे होता! आप दीप्तिमान् बलशाली वलय मण्डित हस्त, कम्पन विधायक, ज्ञान सम्पन्न और धन दाता मरुतों की पूजा करें। जो सुखदाता हैं, जिनका महत्त्व अपरिमित है, जो अतुल ऐश्वर्य के स्वामी हैं, उन मरुतों की वन्दना करें।[ऋग्वेद 5.58.2]
वलय :: कंगन, वृत्त की परिधि; annulus, annulus abdominis.
Hey Hota! Worship the Marud Gan having annulus over their arms, cause trembling-shaking, vibrations, enlightened and providers of wealth. They grant comforts and possess unlimited significance & grandeur.
आ वो यन्तूदवाहासो अद्य वृष्टिं ये विश्वे मरुतो जुनन्ति।
अयं यो अग्निर्मरुतः समिद्ध एतं जुषध्वं कवयो युवानः॥
जो विश्व व्यापी मरुद्गण वर्षा को प्रेरित करते हैं, वे जल वाहक मरुद्गण अभी आप लोगों के निकट पधारें। हे तरुण और ज्ञान सम्पन्न मरुतो! आप लोगों के लिए जो अग्नि प्रज्वलित है, उसी के द्वारा आप लोग हव्यादि का प्रेमपूर्वक सेवन करें।[ऋग्वेद 5.58.3]
Let the entire universe pervading, carriers of waters-rains, inspire-cause rains Marud Gan come to us. Hey young & enlightened Marud Gan! Enjoy the offerings-oblations through the fire lit for you.
यूयं राजानमिर्यं जनाय विभ्वतष्टं जनयथा यजत्राः।
युष्मदेति मुष्टिहा बाहुजूतो युष्मत्सदश्वो मरुतः सुवीरः॥
हे पूजनीय मरुतो! आप लोग याजकगण को अथवा राजा को एक पुत्र प्रदान करें, जो दीप्तिमान्, शत्रुसंहारक और विम्ब द्वारा निर्मित हो। हे मरुतो! आप लोगों से ही अपने भुजबल शत्रुहन्ता, शत्रुओं के प्रति बाहु प्रेरक और असंख्य अश्वों के अधिपति पुत्र उत्पन्न होते हैं।[ऋग्वेद 5.58.4]
Hey honoured-revered Marud Gan! Grant a son either to the king or the Ritviz who is radiant, slayer of the enemy and produced through your cast. Hey Marud Gan! Its you who lead to birth of sons with your cast who destroy the enemy with the power of their arms & possessors of un accounted horses.
अरा इवेदचरमा अहेव प्रप्र जायन्ते अकवा महोभिः।
पृश्नेः पुत्रा उपमासो रभिष्ठाः स्वया मत्या मरुतः सं मिमिक्षुः॥
रथ के पहिए के समान आप लोग एक साथ ही उत्पन्न हुए हैं। दिवसों के तुल्य परस्पर समान हैं। पृश्नि के पुत्र समान रूप से ही उत्पन्न हुए हैं, कोई भी दीप्ति के विषय में निकृष्ट नहीं हैं। वेगगामी मरुद्गण स्वतः प्रवृत्त होकर भली-भाँति जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.58.5]
You are born together like the wheel of the charoite and are mutually equal like days. The sons of Prashni have evolved equally-similarly. None is less in aura-powers as compared to the others. Self inspiring Marud Gan lead to sufficient rains automatically.
यत्प्रायासिष्ट पृषतीभिरश्वैर्वीळुपविभिर्मरुतो रथेभिः।
क्षोदन्त आपो रिणते वनान्यवोस्त्रियो वृषभः क्रन्दतु द्यौः॥
हे मरुतो! जब आप लोग पृषती अश्व द्वारा आकृष्ट दृढ़चक्र रथ पर आरूढ़ होकर आगमन करते हैं, तब वारिराशि गिरती है, वनों का नाश होता है और सूर्य किरण से सम्पृक्त वारिवर्षणकारी पर्जन्य अधोमुख होकर वर्षा के लिए शब्द करते हैं।[ऋग्वेद 5.58.6]
सम्पृक्त :: जिससे संपर्क हुआ हो, संबद्ध, मिश्रित, मिला हुआ, पूर्ण, भरा हुआ, लगा, जुड़ा; सटा हुआ; related.
पर्जन्य :: वर्षा के देवता के इंद्र, गरजता तथा बरसता हुआ बादल, मेघ, वर्षा, विष्णु, सूर्य, कश्यप ऋषि की स्त्री के एक पुत्र का नाम-जिसकी गिनती गंधर्वों में होती है; rattling clouds, rain clouds.
Hey Marud Gan! When who ride the charoite with strong wheels deploying spotted horses, then the rains fall and the forests-jungles are destroyed. The rain cloud lower in the down ward direction, creating thunderous sound for rains.
प्रथिष्ट यामन्पृथिवी चिदेषां भर्तेव गर्भं स्वमिच्छवो धुः।
वातान्ह्यश्वान्धुर्यायुयुज्रे वर्षं स्वेदं चक्रिरे रुद्रियासः॥
रुद्र मरुतों के आगमन से पृथ्वी उर्वरता को प्राप्त करती है। पति जिस प्रकार से अपनी पत्नी का गर्भ उत्पादन करते हैं, उसी प्रकार मरुद्गण पृथ्वी के ऊपर गर्भ स्थानीय सलिल स्थापित करते के पुत्र शीघ्रगामी अश्वों को रथ के अग्रभाग में नियोजित करके वर्षा उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 5.58.7]
सलिल :: पानी, जल; water.
Arrival of the Rudr Marud Gan increase the fertility of the soil-earth. The manner a husband establish foetus in his wife, the Marud Gan rain water over the earth-soil deploying the fast moving horses in their charoite.
हये नरो मरुतो मृळता नस्तुवीमघासो अमृता ऋतज्ञाः।
सत्यश्रुतः कवयो युवानो बृहद्गिरयो बृहदुक्षमाणाः॥
हे मरुतो! आप लोग हमारे प्रति अनुकूल होवें क्योंकि आप लोग नेता, विपुल ऐश्वर्यशाली, अविनश्वर, वारिवर्षक, सत्य फल से प्रसिद्ध, ज्ञान सम्पन्न, तरुण, प्रचुर स्तुति युक्त और प्रभूत वर्षणकारी हैं।[ऋग्वेद 5.58.8]
Hey Marud Gan! You should be favourable to us since you are leaders, possess a lot of grandeur, immortal, causing sufficient rains, enlightened, young and deserve worship.(28.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्र वः स्पळक्रन्त्सुविताय दावनेऽचर्या दिवे प्र पृथिव्या ऋतं भरे।
उक्षन्ते अश्वान्तरुषन्त आ रजोऽनु स्वं भानुं श्रथयन्ते अर्णवैः॥
हे मरुतो! कल्याण के लिए हव्यदाता होता आप लोगों की स्तुति भली-भाँति से करते हैं। हे होता! आप द्युतिमान द्युदेव का स्तवन करें। हे आत्मा! हम पृथ्वी का स्तवन करते हैं। मरुद्गण सर्वव्यापिनी जल को गिराते हैं। वे अन्तरिक्ष में दूर तक गमन करते हैं और मेघों के साथ अपने तेज को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 5.59.1]
Hey Marud Gan! Those making offerings-oblations properly-duly, worship-pray you for their welfare-well being. Hey Hota! Worship the deity of heavens. Hey soul! We recite sacred hymns for the earth. Marud Gan shower rains all around. They travel widely through the space & shine the clouds with their aura.
अमादेषां भियसा भूमिरेजति नौर्न पूर्णा क्षरति व्यथिर्यती।
दूरेदृशो ये चितयन्त एमभिरन्तर्महे विदथे येतिरे नरः॥
प्राणियों से पूर्ण नौका जिस प्रकार से जल बीच में कम्पित होकर गमन करती है, उसी प्रकार मरुतों के भय से पृथिवी कम्पित होती है। वे दूर से ही दृश्यमान होने पर भी गति द्वारा परिज्ञात होते हैं। ये नेतृत्व कर्ता मरुद्गण द्यावा-पृथिवी के बीच में अधिक हव्य भक्षण के लिए चेष्टा करते हैं।[ऋग्वेद 5.59.2]
The earth tremble with fear of Marud Gan, the way a boat full of living beings shake in waters. They, though away, are identified by virtue of their motion. The leaders-Marud Gan try to consume the offerings between the earth & heavens.
गवामिव श्रियसे शृङ्गमुत्तमं सूर्यो न चक्षू रजसो विसर्जने।
अत्याइव सुभ्व१श्चारवः स्थन मर्या इव श्रियसे चेतथा नरः॥
हे मरुतो! आप लोग शोभा के लिए गौशृङ्ग के सदृश उत्कृष्ट शिरोभूषण धारित करते है। दिवस के नेता सूर्यदेव जिस प्रकार से निज रश्मि विकीर्ण करते हैं, उसी प्रकार आप लोग वृष्टि के लिए सर्वव्यापक अश्वों के तुल्य वेगवान व मनोहर हैं। हे नेता मरुतो! याजकगण आदि जिस प्रकार से यज्ञादि कार्य को जानते हैं, उसी प्रकार आप लोग भी जानते हैं।[ऋग्वेद 5.59.3]
Hey Marud Gan! You wear the excellent ornaments (head gear) of head for grace like the cows head-horns. The way the leader of the day Sun, spread his rays, you too pervade all places for rains & are fast like horses and gracious. Hey Marud Gan, the leaders! The way a Ritviz knows the Yagy, you too know the populace.
को वो महान्ति महतामुदश्नवत्कस्काव्या मरुतः को ह पौंस्या।
यूयं ह भूमिं किरणं न रेजथ प्र यद्धरध्वे सुविताय दावने॥
हे मरुतो! आप सभी पूजनीय है। आप लोगों की पूजा कौन कर सकता है? कौन आप लोगों के स्तोत्र का पाठ करने में समर्थ हो सकता है? कौन आप लोगों के वीरत्व की घोषणा कर सकता है? क्योंकि आप लोगों के द्वारा जलवर्षा होने से भूमि किरण के तुल्य कम्पित होने लगती है।[ऋग्वेद 5.59.4]
Hey Marud Gan! You are worshipable. Who can pray to you!? Who can recite the Strotr committed to you? Who can declare your valour-bravery? The soil start vibrating like the rays when you shower rains.
अश्वाइवेदरुषासः सबन्धवः शूराइव प्रयुधः प्रोत युयुधुः।
मर्याइव सुवृधो वावृधुर्नरः सूर्यस्य चक्षुः प्र मिनन्ति वृष्टिभिः॥
अश्वों के समान वेगगामी, दीप्तिमान् समान बन्धु वाले मरुद्गण वीरों के तुल्य युद्ध कार्य में व्याप्त है। समृद्धि सम्पन्न मनुष्यों के तुल्य नेता मरुद्गण अत्यन्त शक्तिशाली होकर वर्षा द्वारा सूर्य देव के तेज को क्षीण करते हैं।[ऋग्वेद 5.59.5]
As fast as horse, radiant Marud brothers are busy with warfare like brave warriors. The leaders of the rich Marud Gan, become very strong-mighty, powerful and diminish the shine of the Sun by virtue of rains.
ते अज्येष्ठा अकनिष्ठास उद्भिदोऽमध्यमासो महसा वि वावृधुः।
सुजातासो जनुषा पृश्निमातरो दिवो मर्या आ नो अच्छा जिगातन॥
मरुतों के बीच में कोई भी किसी की अपेक्षा, ज्येष्ठ या कनिष्ठ नहीं है। शत्रु संहारक मरुतों के बीच में कोई भी मध्यम नहीं है। सब तेजो विशेष से वर्द्धमान हैं। हे सुजन्मा! मानवों के हितकारी, पृश्निपुत्र मरुतों, आप लोग द्युलोक से हम लोगों के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 5.59.6]
Marud Gan are equal in status and age. They all are equally competent in destroying the enemy. They all posses radiance-aura. Hey born of high origin! Committed to humans welfare, sons of Prashni Marud Gan invoke-come to us from the heavens.
वयो न ये श्रेणीः पप्तुरोजसान्तान्दिवो बृहतः सानुनस्परि।
अश्वास एषामुभये यथा विदुः प्र पर्वतस्य नभनूँरचुच्यवुः॥
हे मरुतो! आप लोग पंक्ति बद्ध होकर उड़ने वाले पक्षी के तुल्य बल पूर्वक विस्तीर्ण और समुन्नत नभो मंडल के उपरि भाग में होकर अन्तरिक्ष पर्यन्त गमन करते हैं। आपके अश्व मेघों को खण्ड-खण्ड करके वृष्टि पात करते हैं। आपके यह कर्म सभी देव और मनुष्य दोनों ही जानते हैं।[ऋग्वेद 5.59.7]
Hey Marud Gan! You move in the upper layers of the vast sky in line formation like the birds. You tear the clouds leading to rain fall. Both humans and the demigods-deities are aware of your endeavour.
मिमातु द्यौरदितिर्वीतये नः सं दानुचित्रा उषसो यतन्ताम्।
आचुच्यवुर्दिव्यं कोशमेत ऋषे रुद्रस्य मरुतो गृणानाः॥
द्युलोक और पृथिवी हम लोगों की पुष्टि के लिए वृष्टि उत्पादन करें। निरतिशय दान शीला उषा हम लोगों के कल्याण के लिए यत्न करें। हे ऋषि! ये रुद्र पुत्र आपके स्तवन से प्रसन्न होकर जल की वर्षा करें।[ऋग्वेद 5.59.8]
निरतिशय :: अद्वितीय, परमात्मा, हद दरज़े का, बेहद, परम, जिसके आगे या जिससे बढ़कर और कुछ न हो, परब्रह्म, ईश्वर; extreme, ultimate, Almighty, relentless.
Heavens & the earth shower rains for our nurture-nourishment. Let Usha resorting to extreme donations-charity, make efforts for our welfare. Hey Rishi-sage! Let the Rudr Putr Marud Gan become happy with your prayers and cause rains.(30.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
ईळे अग्नि स्ववसं नमोभिरिह प्रसत्तो वि चयत्कृतं नः।
रथैरिव प्र भरे वाजयद्भिः प्रदक्षिणिन्मरुतां स्तोममृध्याम्॥
हम श्यावाश्व ऋषि स्तोत्र द्वारा रक्षाकारी अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं। वे अभी यज्ञ में उपस्थित होकर प्रसन्नतापूर्वक उस स्तोत्र को श्रवण करें। जिस प्रकार से रथ अभिमत स्थान को प्राप्त करता है, उसी प्रकार से हम अन्नाभिलाषी स्तोत्रों द्वारा अपने अभीष्ट का सम्पादन करते हैं। प्रदक्षिणा करके हम मरुतों के स्तोत्र को वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 5.60.1]
We worship Agni Dev with the protective Strotr composed by Shyavashv Rishi. Let him be present in the Yagy and happily attend-listen to it. The manner in which the charoite reach its destination, let us accomplish our desire for food grains with the help of Strotrs. We will circumambulate Marud Gan promoting them with the Strotr.
आ ये तस्थुः पृषतीषु श्रुतासु सुखेषु रुद्रा मरुतो रथेषु।
वना चिदुग्रा जिहते नि वो भिया पृथिवी चिद्रेजते पर्वतश्चित्॥
हे उद्यतायुध रुद्र पुत्र मरुतो! आप लोग प्रसिद्ध अश्वों द्वारा आकृष्ट, शोभन तथा अक्ष समन्वित रथ पर आरूढ़ होकर गमन करें। जब आप लोग रथाधिरूढ़ होते हैं, तब वन भी आपके भय से कम्पित होते हैं।[ऋग्वेद 5.60.2]
Hey Marud Gan ready for the war! When you ride your beautiful charoite with balance wheels & axels deploying the famous attractive horses, the forests too start shaking-trembling with fear.
पर्वतश्चिन्महि वृद्धो बिभाय दिवश्चित्सानु रेजत स्वने वः।
यत्क्रीळथ मरुत ऋष्टिमन्त आपइव सध्र्यञ्चो धवध्वे॥
हे मरुतो! आप लोगों के द्वारा भयंकर शब्द किए जाने पर अत्यन्त पुराने और महान् पर्वत भी भयभीत हो जाते हैं और अन्तरिक्ष के उन्नत या विस्तृत प्रदेश भी कम्पायमान हो जाते हैं। हे मरुतो! आप सब आयुधवान हैं। जब आप लोग क्रीड़ा करते हैं तब मेघों के समान सम्मिलित होकर विशेष रूप से दौड़ते हैं।[ऋग्वेद 5.60.3]
क्रीड़ा :: खेल, नाटक, अभिनय, जुआ, क्रियाशीलता, आमोद-प्रमोद, उत्सव, आनंद, विनोद, चहल-पहल, विहार, विलास, आलिंगनों का आदान-प्रदान, रंग-रेली; sport, play, merriment, dalliance.
Hey Marud Gan! When you furious create thunderous-rattling sound very old and great mountains too become fearful and the high rise and broad places too start trembling-shaking. Hey Marud Gan. You all possess-wield weapons. When you sport playfully-fully run with the clouds.
वराइवेद्वैवतासो हिरण्यैरभि स्वधाभिस्तन्वः पिपिश्रे।
श्रिये श्रेयांसस्तवसो रथेषु सत्रा महांसि चक्रिरे तनूषु॥
विवाह के योग्य धनवान युवा जिस प्रकार सुवर्णमय अलंकार तथा उदक के द्वारा अपने शरीर को भूषित करता है, उसी प्रकार सर्वश्रेष्ठ, बलशाली मरुद्गण रथ के ऊपर एक साथ बैठकर अपने शरीर की शोभा के लिए तेज धारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.60.4]
The way a rich young man decorate his body with gold ornaments and water, the best, mighty and powerful Marud Gan ride the charoite and bear aura-radiance over their body.
अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभगाय।
युवा पिता स्वपा रुद्र एषां सुदुघा पृश्निः सुदिना मरुद्भ्यः॥
ये मरुद्गण एक साथ ही उत्पन्न हुए हैं अथवा समान बल वाले हैं। परस्पर श्रेष्ठ और कनिष्ठ भाव से वर्जित हैं। ये मरुद्गण परस्पर भातृभाव से सौभाग्य के लिए वर्द्धमान होते हैं। नित्य तरुण तथा सत्कर्म के अनुष्ठानकारी मरुतों के पिता रुद्र और जननी स्वरूपा दोहन योग्या गौ, मरुतों के लिए उत्तम दिनों का निर्माण करती हैं।[ऋग्वेद 5.60.5]
These Marud Gan took birth together and posses equal might, power & strength. They do not have the feeling of excellence or junior-small, mutually. They grow with mutual brotherhood, good luck. Always youthful Rudr, the father of Marud Gan and motherly cows generate excellent days for them.
यदुत्तमे मरुतो मध्यमे वा यद्वावमे सुभगासो दिवि ष्ठ।
अतो नो रुद्रा उत वा न्व १ स्याग्ने वित्ताद्धविषो यद्यजाम॥
हे सौभाग्यशाली मरुतो! आप लोग उत्तम (उत्कृष्ट) द्युलोक में मध्यम द्युलोक में अथवा अधोद्युलोक में वर्तमान होते हैं। हे रुद्रो! उन स्थानों (तीनों लोकों) से हम लोगों के लिए आगमन करें। हे अग्नि देव! हम आज जो हवि प्रदान करते हैं, उन आहुतियों को आप ही जानें।[ऋग्वेद 5.60.6]
Hey lucky Marud Gan! You occupy the best-upper, middle and lower heavens. Hey Rudr! Move to these heavens for our sake. Hey Agni Dev! You are aware of the offerings made by us, today.
अग्निश्च यन्मरुतो विश्ववेदसो दिवो वहध्व उत्तरादधि ष्णुभिः।
ते मन्दसाना धुनयो रिशादसो वामं धत्त याजकगणाय सुन्वते॥
हे सर्वज्ञ मरुतो! आप और अग्नि देव द्युलोक के उत्कृष्टतर उपरि प्रदेश में अवस्थान करते हैं। आप लोग हमारे स्तवन और हव्य से प्रसन्न होकर शत्रुओं को कम्पायमान करके विनष्ट करें और सोमयाग करने वाले याजकगणों को अभिलषित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.60.7]
Hey enlightened-aware of every thing, Marud Gan! You & Agni Dev occupy the excellent upper abodes in the heavens. You grant desired riches-wealth to the Ritviz who perform Som Yagy & make offerings for you destroying the enemies on being happy with our prayers.
अग्ने मरुद्भिः शुभयद्भिर्ऋक्वभिः सोमं पिब मन्दसानो गणश्रिभिः। पावकेभिर्विश्वमिन्वेभिरायुभिर्वैश्वानर प्रदिवा केतुना सजूः॥
हे वैश्वानर अग्नि देव! आप अपनी तेजस्वी ज्वालाओं से युक्त होकर शोभायमान, पूजनीय, गणभाव का आश्रय करने वाले, पवित्रता विधायक, प्रीति दायक और दीर्घ जीवी मरुतों के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.60.8]
Hey Vaeshwanar Agni Dev! Enjoy Somras along with long life Marud Gan. On being happy, you possess radiant flames nurturing the feeling of Gan for the Marud Gan who are revered-honourable, pious-pure, lovely.(30.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- तरन्तमहिषी शशीयसी, छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्, बृहती, प्रकृति।
के ष्ठा नरः श्रेष्ठतमा य एकएक आयय। परमस्याः परावतः॥
हे श्रेष्ठतम नेताओं! आप लोग कौन हैं? दूर देश अर्थात् अन्तरिक्ष से आप लोग एक- एक करके उपस्थित होवें।[ऋग्वेद 5.61.1]
Hey greatest leaders! Who are you? Come-invoke from the space one by one.
क्व १ वोऽश्वाः क्वा ३ भीशवः कथं शेक कथा यय। पृष्ठे सदो नसोर्यमः॥
हे मरुतो! आप लोगों के अश्व कहाँ हैं? लगाम कहाँ है? शीघ्र गमन में समर्थ होते हैं? यह किस प्रकार का गमन है? अश्वों के पीठ पर की जीन और नासिका द्वय में बाँधने वाली रस्सी कहाँ स्थित है।[ऋग्वेद 5.61.2]
अश्व की जीन :: घोड़े आदि की पीठ पर रखने की गद्दी, चारजामा, काठी, कजाव; saddlebag.
Hey Marud Gan! Where are your horses? Where are their reins? Get ready for moving fast. What type of movement is this? where are the saddlebag and cord for passing through the two nostrils?
जघने चोद एषां वि सक्थानि नरो यमुः। पुत्रकृथे न जनयः॥
अश्वों के जघन देश में शीघ्र गमन के लिए कशाघात होता है। पुत्रोत्पादन काल में जिस प्रकार से रमणियाँ उरुद्वय को विवृत करती हैं, उसी प्रकार नेता मरुद्गण को उरुद्वय विवृत करने के लिए बाध्य करते हैं।[ऋग्वेद 5.61.3]
The goad is applied to their flanks, the riders make them spread their thighs apart, like women in bringing forth children.
परा वीरास एतन मर्यासो भद्रजानयः। अग्नितपो यथासथ॥
हे वीर शत्रु संहारको, हे मनुष्यों के लिए कल्याण करने वालों, हे शोभन जन्म वालों, मरुत्पुत्रों! आप लोग अग्नि में तपाये गए ताम्र के सदृश प्रदीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 5.61.4]
Hey destroyers of enemy, resorting to humans welfare, born of high origin Marud Gan! You appear like copper heated in fire.
सनत्साश्र्व्यं पशुमुत गव्यं शतावयम्।
श्यावाश्वस्तुताय या दोर्वीरायोपब-र्बृहत्॥
श्यावाश्व ने जिसकी प्रार्थना की, जिसने वीर तरन्त को भुजपाश में बद्ध किया, उसी तरन्त महिषी शशीयसी ने हमें अश्व, गौ और सौ भेड़ें प्रदान कीं।[ऋग्वेद 5.61.5]
Whom Shyavashrv prayed, who enclosed brave Tarant in his arms, the same great person Tarant Shashiyasi granted us horse, cow and hundred sheep.
उत त्वा स्त्री शशीयसी पुंसो भवति वस्यसी। अदेवत्रादराधसः॥
जो पुरुष देवों की आराधना और धनदान नहीं करता, उस पुरुष की अपेक्षा स्त्री शशीयसी सब प्रकार से श्रेष्ठ है।[ऋग्वेद 5.61.6]
The person who do not worship demigods-deities and donate, woman Shashiyasi is better than him in all respects.
वि या जानाति जसुरिं वि तृष्यन्तं वि कामिनम्। देवत्रा कृणुते मनः॥
वह शशीयसी देवी व्यथित (ताड़ित-उपेक्षित) को जानती है, प्यासे को जानती है और धनाभिलाषी को जानती है अर्थात् कृपावश हो अभिमत धन प्रदान करती है। वह देवों के प्रीत्यर्थ बुद्धि प्रदान करती है अर्थात् देवों के प्रति अपने चित्त को समर्पित करती है।[ऋग्वेद 5.61.7]
That Shashiyasi Devi knows the troubled, thirsty and the one desirous of money & grant sufficient money to him. She grant intelligence creating love to demigods-deities or devote her innerself to them.
उत घा नेमो अस्तुतः पुमाँ इति ब्रुवे पणिः। स वैरदेय इत्समः॥
शशीयसी के अर्द्धाङ्गभूत पुरुष तरन्त की प्रार्थना करके भी हम कहते हैं कि उनका सम्पूर्ण रूप से स्तवन नहीं हुआ; क्योंकि वे दान के विषय में सदैव एकरूप हैं।[ऋग्वेद 5.61.8]
Even after worshiping the man Tarant; better half of Shashiyasi, we often say that she has not been worshiped-prayed properly, since for donations they constitute one entity.
उत मेऽरपद्युवतिर्ममन्दुषी प्रति श्यावाय वर्तनिम्।
वि रोहिता पुरुमीळ्हाय येमतुर्विप्राय दीर्घयशसे॥
यौवनवती शशीयसी ने मुदित मन से श्यावाश्व को पथ प्रदर्शित किया। उनके द्वारा प्रदत्त लोहित वर्ण वाले दोनों अश्व हमें यशस्वी, विज्ञ, पुरुमीह्न के निकट वहन करते हैं अर्थात् सुसज्जित रथ पर बैठाकर उसने ही हमें पुरुमीह्न के घर तक पहुँचा दिया।[ऋग्वेद 5.61.9]
Young Shashiyasi happily showed the path to Shyavashrv. The red coloured horse duo deployed in the decorated charoite carried us to famous, enlightened Purumihn.
यो मे धेनूनां शतं वैददश्विर्यथा ददत्। तरन्तइव मंहना॥
विददश्र्व के पुत्र पुरुमीह्न ने भी हमें तरन्त की ही तरह सौ गौवें और महामूल्यवान् धनादि प्रदान किया।[ऋग्वेद 5.61.10]
Vidadshrv's son Purumihn too granted us hundred cows and valuables.
य ई वहन्त आशुभिः पिबन्तो मदिरं मधु। अत्र श्रवांसि दधिरे॥
जो मरुद्गण शीघ्रगामी अश्वों पर आरूढ़ होकर हर्षविधायक सोमरस का पान करते हुए इस स्थान में आते हैं, वे मरुद्गण इस स्थान पर विविध स्तवन धारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.61.11]
Those Marud Gan who ride the fast moving horses, drink Somras granting happiness, come to this place and are honoured with prayers-sacred hymns.
येषां श्रियाधि रोदसी विभ्राजन्ते। दिवि रुक्मइवोपरि॥
जिन मरुतों की कान्ति से द्यावा-पृथिवी भी परिव्याप्त होती है। ऊपर द्युलोक में रोचमान आदित्य के सदृश वे मरुद्गण रथ के ऊपर विशेष दीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 5.61.12]
The earth & the heavens are pervaded with the radiance-aura of Marud Gan. They are specially glittering like Rochman Adity seated over the charoite.
युवा स मारुतो गणस्त्वेषरथो अनेद्यः। शुभंयावाप्रतिष्कुतः॥
वे मरुद्गण नित्य तरुण, दीप्त रथ विशिष्ट, अनिन्द्य, शोभन रूप से गमन करने वाले और अप्रतिहत गति हैं।[ऋग्वेद 5.61.13]
अनिंद्य :: प्रशंसनीय, सुंदर; appreciable, beautiful.
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous.
Those youthful Marud Gan occupy the special charoite, are extremely beautiful and move with un breakable, continuous speed.
को वेद नूनमेषां यत्रा मदन्ति धूतयः। ऋतजाता अरेपसः॥
जलवर्षणार्थ उत्पन्न अथवा यज्ञ में प्रादुर्भूत, शत्रुओं के कम्पक और निष्पाप मरुद्गण जिस स्थान पर हर्षित हुए, मरुतों के उस स्थान को कौन व्यक्ति जानता है?[ऋग्वेद 5.61.14]
Who knows the place-residence of sinless Marud Gan where they became happy, born to create rains or Yagy, torturing-shaking the enemies.
यूयं मर्तं विपन्यवः प्रणेतार इत्था धिया। श्रोतारो यामहूतिषु॥
हे स्तवाभिलाषी मरुतो! जो मनुष्य यजमान इस प्रकार प्रार्थना कर्म-द्वारा आप लोगों को आहूत होने प्रसन्न करता है, उसे आप लोग अभिमत स्वर्गादि स्थान प्रदान करते हैं। यज्ञ में पर आहूत होने आप लोग उस आह्वान को श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 5.61.15]
Hey worship loving Marud Gan! You grant desired heavens to the person who worship & make you happy with deeds-endeavours. On being worshiped in the Yagy you listen-respond to their prayers.
ते नो वसूनि काम्या पुरुश्चन्द्रा रिशादसः। आ यज्ञियासो ववृत्तन॥
हे शत्रु संहारक, पूजनीय, विविध धनशाली मरुतो! आप लोग हम लोगों को वाञ्छित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.61.16]
Hey worshipable Marud Gan, possessing various kinds of wealth! Grant desired wealth to us.
एतं मे स्तोममूर्म्ये दार्भ्याय परा वह। गिरो देवि रथीरिव॥
हे रात्रि देवी! आप हमारे निकट से रथवीति के निकट इस मरुत्प्रार्थना को प्राप्त करें। यह प्रार्थना मरुतों के लिए की गई है। हे देवी! रथी जिस प्रकार से रथ के ऊपर विविध वस्तु रख कर गन्तव्य स्थान पर उसे ले जाता है, उसी प्रकार आप हमारे इन सकल स्तवन को वहन करें।[ऋग्वेद 5.61.17]
Hey Ratri Devi-goddess of night! Accept our prayers close to the Rathviti for the sake of Marud Gan. Hey Goddess! The way a charoite driver keep goods over it and lead them to the destination, you transfer our worship-prayers to them.
उत मे वोचतादिति सुतसोमे रथवीतौ। न कामो अप वेति मे॥
हे रात्रि देवी! सोमयज्ञ के पूर्ण होने पर रथवीति को आप यह कहना कि आपकी पुत्री के प्रति हमारी कामना कम नहीं हुई।[ऋग्वेद 5.61.18]
Hey Goddess of night! On completion of Som Yagy ask Rathviti that our love-desires for your daughter has not diminished.
एष क्षेति रथवीतिर्मघवा गोमतीरनु। पर्वतेष्वपश्रितः॥
वे धनवान रथवीति गोमती नदी के तट पर निवास करते हैं और बर्फ के पर्वतों में भी उनका निवास है।[ऋग्वेद 5.61.19]
Rich Rathviti resides by the side of Gomti river and the ice clade mountains too are her abode.(31.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (87) :: ऋषि :- एवयामरुत् आत्रेय; देवता :- मरुत; छन्द :- अति जगती।
प्र वो महे मतयो यन्तु विष्णवे मरुत्वते गिरिजा एवयामरुत्।
प्र शर्धाय प्रयज्यवे सुखादये तवसे भन्ददिष्टये धुनिव्रताय शवसे॥
एवया नामक ऋषि के वचन निष्पन्न स्तोत्र मरुतों के साथ श्री विष्णु के निकट उपस्थित हों एवं वे ही स्तोत्र बलशाली, पूजनीय, शोभनालंकृत, शक्ति सम्पन्न, स्तुति प्रिय, मेघ सञ्चालनकारी और द्रुत गामी मरुतों के निकट उपस्थित हों।[ऋग्वेद 5.87.1]
Let the Strotr recited by Rishi Avy be present by the Marud Gan & Bhagwan Shri Hari Vishnu. Let them reach fast moving Marud Gan who are praise-loving, mighty, worshipable, adorable, controlling the clouds.
प्र ये जाता महिना ये च नु स्वयं प्र विद्मना ब्रुवत एवयामरुत्।
क्रत्वा तद्वो मरुतो नाधृषे शवो दाना मह्ना तदेषामधृष्टासो नाद्रयः॥
जो महान् इन्द्र देव के सहित प्रादुर्भूत हुए हैं, जो यज्ञ-गमन विषयक ज्ञान के साथ प्रादुर्भूत हुए हैं, उन मरुतों का एवया मरुत् स्तवन करते हैं। हे मरुतों! आप लोगों का बल अभिमत फल दान से महान् है और अनभिभवनीय है। आप लोग पर्वत के तरह अटल हैं।[ऋग्वेद 5.87.2]
Avy Rishi worship the Marud Gan who took birth along with Indr Dev, possess the knowledge of Yagy and related subjects. Hey Marud Gan! Your strength is great and is not resisted being infinite & you are immoveable as mountains.
प्र ये दिवो बृहतः शृण्विरे गिरा सुशुकानः सुभ्व एवयामरुत्। न येषामिरी सधस्थ ईष्ट आँ अग्नयो न स्वविद्युतः प्र स्पन्द्रासो धुनीनाम्॥
जो दीप्त और स्वच्छन्दतया विस्तीर्ण स्वर्ग से आह्वान श्रवण करते हैं, अपने घर में अवस्थिति करने पर जिन्हें चालित करने में कोई समर्थ नहीं है, जो अपनी दीप्ति द्वारा दीप्तिमान् हैं, जो अग्नि के सदृश नदियों को संचालित करते हैं; एवयामरुत् प्रार्थना द्वारा उनकी उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.87.3]
Avy Marut worship aurous-radiant, responding from the vast heavens, can not be moved when stationed-present inside their homes, regulate the rivers like Agni Dev.
स चक्रमे महतो निरुरुक्रमः समानस्मात्सदस एवयामरुत्। यदायुक्त त्मना स्वादधि ष्णुभिर्विष्पर्धसो विमहसो जिगाति शेवृधो नृभिः॥
मरुतों के स्वेच्छानुसार गमन करने वाले अश्व जब रथ में नियोजित होते हैं, तब एवयामरुत् उनके लिए अपेक्षा करते हैं। सर्वव्यापी मरुद्गण महान् तथा सर्वसाधारित स्थान अन्तरिक्ष से निर्गत हुए तथा परस्पर स्पर्द्धाकारी, बलशाली और सुखदाता मरुद्गण निर्गत हुए।[ऋग्वेद 5.87.4]
निर्गत :: बाहर आया हुआ, निःसृत; निकला हुआ; come forth, gone forth, issued, come forth.
Avy Marut awaits Marud Gan, when their horses capable of moving freely are deployed in the charoite. Pervading all, mighty, comforting, great, supporting the space-sky, Marud Gan appear-invoke.
स्वनो न वो ऽ मवान्रेजयषा त्वेषो ययिस्तविष एवयामरुत्। येना सहन्त ऋञ्जत स्वरोचिषः स्थारश्मानो हिरण्ययाः स्वायुधास इष्मिणः॥
हे मरुतों! आप लोग स्वाधीन तेजा, स्थिर दीप्ति, स्वर्गा भरण-भूषित और अन्न दाता हैं। आप लोग जिस शब्द से शत्रुओं को अभिभूत करके अपना कार्य सिद्ध करते हैं, वह प्रबल वारि वर्षणकारी, दीप्त, विस्तृत और प्रबुद्ध ध्वनि एवयामरुत् को कम्पित न करें।[ऋग्वेद 5.87.5]
Hey Marud Gan! You possess aura, shine, wear heavenly golden ornaments and are donor of food grains. The sound with which you control-over power the enemy and get your job accomplished is strong raining, radiant, loud; should not tremble Rishi Avy.
अपारो वो महिमा वृद्धशवसस्त्वेषं शवोऽवत्वेवयामरुत्। स्थातारो हि प्रसितौ संदृशि स्थन ते न उरुष्यता निदः शुशुक्कांसो नाग्नयः॥
हे समधिक बलशाली मरुतों! आप लोगों की महिमा अपार है, निरवधि है। आप लोगों की शक्ति एवयामरुत् की रक्षा करे। नियम युक्ति यज्ञ के सन्दर्शन विषय में आप लोग ही नियामक है। आप लोग प्रज्वलित अग्निदेव के सदृश दीप्त है। निन्दकों से आप लोग हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.87.6]
निरवधि :: सीमारहित, निसीम, लगातार, निरंतर; limitless.
संदर्शन :: अच्छी तरह देखने की क्रिया, अवलोकन, घूरना, अपलक देखना, टकटकी लगाकर देखना, दृष्टि, निगाह, नज़र, परीक्षा, इम्तहान, ज्ञान, आकृति, सूरत, शक्ल, व्यवहार, दिखाना, प्रदर्शित करना; vision.
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी; चुगलखोर, आक्षेपक, निन्दोपाख्यान लेखक; cynical, cynic, detractor, backbiter, denigrator, satirist, slanderer, satirical.
Hey mighty Marud Gan! Your glory is boundless and limitless. let your strength protect Avy Rishi. You are the visionary of Niyam Yukti Yagy. You are radiant like burning fire. Protect us from the cynical-backbiters.
ते रुद्रासः सुमखा अग्नयो यथा तुविद्युम्ना अवन्त्वेवयामरुत्।
दीर्घं पृथु पप्रथे सद्म पार्थिवं येषामज्मेष्वा महः शर्धांस्यद्भुतैनसाम्॥
हे पूजनीय और अग्नि देव के तुल्य प्रभूत दीप्ति शाली रुद्र पुत्रो! एवयामरुत् की रक्षा करें। अन्तरिक्ष सम्बन्धी दीर्घ और विस्तीर्ण गृह मरुतों के द्वारा विख्यात होता है। निष्पाप मरुद्गण गमनकाल में प्रभूत शक्ति प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 5.87.7]
Hey adorable and abundantly radiant, son of Rudr Dev! Protect Avy Rishi. The long & vast house related to the sky-space is famous by virtue of Marud Gan. Sinless Marud Gan demonstrate their abundant strength.
अद्वेषो नो मरुतो गातुमेतन श्रोता हवं जरितुरेवयामरुत्।
विष्णोर्महः समन्यवो युयोतन स्मद्रथ्यो३न दंसनाप द्वेषांसि सनुतः॥
हे विद्वेष हीन मरुतों! आप लोग हमारे स्तोत्र के सन्निहित होवें एवं स्तवनकारी एवयामरुत् का आह्वान श्रवण करें। हे इन्द्र देव के साथ एकत्र यज्ञभाग प्राप्त करने वाले मरुतों! योद्धा लोग जिस प्रकार से शत्रुओं को पराजित करते हैं, उसी प्रकार से आप लोग हमारे गुप्त शत्रुओं को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 5.87.8]
सन्निहित :: समाविष्ट, दिए हुए, अंगभूत, संस्पर्शी, समीप, लगा हुआ; embedded, embodied, contiguous.
Hey Marud Gan, free from envy! You should be contiguous to our Strotr and attend to the invitation of Avy Rishi. Hey Marud Gan collecting the offerings of the Yagy along with Indr Dev! The way warriors defeat the enemy repel our secret enemies.
गन्ता नो यज्ञं यज्ञियाः सुशमि श्रोता हवमरक्ष एवयामरुत्।
ज्येष्ठासो न पर्वतासो व्योमनि यूयं तस्य प्रचेतसः स्यात दुर्धर्तवो निदः॥
हे यजन योग्य मरुतों! आप लोग हमारे यज्ञ में आगमन करें, जिससे यह यज्ञ सुसम्पन्न हो। आप लोग विघ्नों का नाश करने वाले हैं। हमारा आह्वान श्रवण करें। हे प्रकृष्ट ज्ञानसम्पन्न मरुतों! अत्यन्त वर्द्धमान विन्ध्यादि पर्वत के तुल्य अन्तरिक्ष में अवस्थान करके आप लोग निन्दकों के बीच में अजेय होकर उनके शासक बनें।[ऋग्वेद 5.87.9]
Hey worshipable Marud Gan! Join our Yagy for its success. You are the destroyer of our troubles. Listen our invocation. Hey enlightened Marud Gan! Become the ruler of the extra grown up mountains like Vindhyachal in the space and come through the backbiters unscathed.(21.08.2023)
या शर्धाय मारुताय स्वभानवे श्रवोऽमृत्यु धुक्षत।
या मृळीके मरुतां तुराणां या सुन्मैरेवयावरी॥
जो सहिष्णु, स्वाधीन तेजा, मरुतों को अमरण हेतु पयोरूप अन्न देती है, जो वेग मरुतों के सुख-साधन में तत्पर हैं और जो वर्षाजल के साथ सुख वर्षण करके अन्तरिक्ष मार्ग में घूमती हैं, उस धेनु के पास आवें।[ऋग्वेद 6.48.12]
सहिष्णु :: सहनशीलता; tolerant.
Bring that cow to us which roam independently-freely in the sky-space, tolerant, possess independent aura-radiance, grant food grains to Marud Gan & loos after their comforts, shower rains and comfort.
भरद्वाजायाव धुक्षत द्विता। धेनुं च विश्वदोहसमिषं च विश्वभोजसम्॥
हे मरुतो! भरद्वाज के लिए विशेष दूध देने वाली गौ और सभी के खाने के लिए यथेष्ट अन्न, इन दो सुखों का दोहन करें।[ऋग्वेद 6.48.13]
Hey Marud Gan! Let us obtain two comforts, a special cow for Bhardwaj yielding milk and sufficient food grains for all.
तं व इन्द्रं न सुक्रतुं वरुणमिव मायिनम्।
अर्यमणं न मन्द्रं सृप्रभोजसं विष्णुं न स्तुष आदिशे॥
हे मरुतों! आप इन्द्र देव के महान् कर्मों के अनुष्ठाता हैं, वरुण देव के सदृश बुद्धिमान् हैं, अर्यमा के समान स्तुति के पात्र हैं, श्री विष्णु के सदृश दानशील हैं। धन के लिए मैं आपकी प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 6.48.14]
Hey Marud Gan! You are executor of the great deeds of Indr Dev, intelligent like Varun Dev, worshipable like Aryma and donor like Shri Hari Vishnu. We pray-request you for money.
त्वेषं शर्धो न मारुतं तुविष्वण्यनर्वाणं पूषणं सं यथा शता। सं सहस्रा कारिषच्चर्षणिभ्य आँ आविर्गूळ्हा वसू करत्सुवेदा नो वसू करत्॥
मरुद्गण सैकड़ों-हजारों प्रकार के धन हमें एक ही समय में प्रदान करें। इसके लिए मैं उच्च शब्दकारी हूँ, अप्रतिहत-प्रभाव और पुष्टिकारक मरुतों के दीप्तबल की प्रार्थना करता हूँ। वे ही मरुद्गण हमारे पास गुप्त धन को प्रकट करें और समस्त धन उपलब्ध करावें।[ऋग्वेद 6.48.15]
Let Marud Gan grant us hundreds-thousands kinds of wealth at a time. I make loud sounds for this and pray for the continuous & nourishing radiance of Marud Gan. Let Marud Gan reveal our hidden treasures and make all sorts of wealth available to us.
वामी वामस्य धूतयः प्रणीतिरस्तु सूनृता।
देवस्य वा मरुतो मर्त्यस्य वेजानस्य प्रयज्यवः॥
हे कम्पनकारी और भली-भाँति स्तुति पात्र महतो! आपकी जो प्रशस्त वाणी देवों और याजक गणों को मनोवाञ्छित धन प्रदान करती है, वही सदय और सूनृत वाणी हमारी पथ प्रदर्शिका बनें।[ऋग्वेद 6.48.20]
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; expansive, smashing, praise worthy.
सूनृत :: सत्य और प्रिय भाषण जो सदाचरण के पाँच गुणों में से एक है, आनंद, मंगल, कल्याण, अनुकूल, दयालु, प्रिय, सदाशापूर्ण, truthful and dear words, beautiful.
सदय :: मेहरबान, रहमदिल, कृपालु, कृपाशोल, कृपालु, सज्जनतापूर्ण, समवेदनापूर्ण; clement, kindly, kind.
Hey trembling-vibrating and worship deserving Mahto! Your praiseworthy speech-words grant desired wealth to the Ritviz. Let your kind, truthful and dear words guide us.
सद्याचिद्यस्य चर्वृतिः परि द्यां देवो नैति सूर्यः।
त्वेषं शवो दधिरे नाम यज्ञियं मरुतो वृत्रहं शवो ज्येष्ठं वृत्रहं शवः॥
जिन मरुतों के समस्त कार्य दीप्तिमान सूर्य देव के सदृश सहसा आकाश में व्याप्त होते हैं, वे ही मरुद्गण दीप्त, शत्रु विजयी, पूजनीय और शत्रु नाशक बल धारित करते हैं। शत्रु नाशक बल सर्वापेक्षा प्रशस्त होता है।[ऋग्वेद 6.48.21]
The endeavours of Marud Gan which pervade the space-sky like the Sun-Sury Dev suddenly, are winner of the enemy, worshipable, possessor of the strength capable to crush the enemy and praiseworthy.
सकृद्ध द्यौरजायत सकृद्भूमिरजायत।
पृश्न्या दुग्धं सकृत्पयस्तदन्यो नानु जायते॥
एक ही बार स्वर्ग उत्पन्न हुआ और एक ही बार पृथ्वी। एक ही बार पृष्णि या मरुतों की माता गौ से दूध दुहा गया। इनके समय और कुछ उत्पन्न नहीं हुआ अर्थात् अन्य कोई पदार्थ उत्पन्न नहीं हुआ।[ऋग्वेद 6.48.22]
The heavens and the earth evolved only once. Prashni milked the mother cow-earth only once. Since then, nothing-new material has evolved.
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- मरुत; छन्द :- त्रिष्टुप्।
वपुर्नु तच्चिकितुषे चिदस्तु समानं नाम धेनु पत्यमानम्।
मर्तेष्वन्यद्दोहसे पीपाय सकृच्छुक्रं दुदुहे पृश्निरूधः॥
मरुतों के समान स्थिर पदार्थों में भी स्थिर प्रीति कर और गति परायणरूप, विद्वान स्तोता के निकट शीघ्र प्रकट हों। वह अन्तरिक्ष में एक बार शुक्ल वर्ण जल धारित करता है और मृत्युलोक में अन्य पदार्थों का दोहन करने के लिए बढ़ता है।[ऋग्वेद 6.66.1]
Let the dynamic enlightened Stota appear quickly possessing affection even for the static materials like the Marud Gan. He possess white coloured water in the space and extract other materials in the perishable world.
ये अग्नयो न शोशुचन्निधाना द्विर्यत्त्रिर्मरुतो वावृधन्त।
अरेणवो हिरण्ययास एषां साकं नृम्णैः पौंस्येभिश्च भूवन्॥
जो धनवान अग्नि देव के समान दीप्त होते हैं, जो इच्छानुसार द्विगुण और त्रिगुण बढ़ते हैं, उन मरुतों के रथ धूलि शून्य और सुवर्णालङ्कार वाले हैं। वे ही मरुत धन और बल के साथ प्रादुर्भूत होते हैं।[ऋग्वेद 6.66.2]
Marud Gan who are radiant like Agni Dev, enhances the characterices to double or triple, their charoites are free from dust and decorated with golden ornaments. They appear with wealth and might.
रुद्रस्य ये मीळ्हुषः सन्ति पुत्रा यांश्चो नु दाधृविर्भरध्यै।
विदे हि माता महो मही षा सेत्पृश्निः सुभ्वे ३ गर्भमाधात्॥
सेचनकारी रुद्र देव के जो मरुद्गण पुत्र हैं और जिनको धारितकर्ता अन्तरिक्ष धारण करने में समर्थ हैं, उन्हीं महान मरुतों की माता महती हैं। वह माता मनुष्यों की उत्पत्ति के लिए गर्भ या जल धारित करती हैं।[ऋग्वेद 6.66.3]
Nourishing Marud Gan are the sons of Rudr Dev and capable of supporting the space. Prashni is the mother of great Marud Gan. She support water for the evolution of the humans.
न य ईषन्ते जनुषोऽया न्व १ न्तः सन्तोऽवद्यानि पुनानाः।
निर्युद्दुह्रे शुचयोऽनु जोषमनु श्रिया तन्वमुक्षमाणाः॥
जो स्तोताओं के पास यान पर नहीं जाते; परन्तु उनके अन्तःकरण में रहकर पापों को विनष्ट करते हैं, जो दीप्तिमान हैं, जो स्तोताओं की अभिलाषा के अनुसार जल का दोहन कर लेते हैं, जो दीप्ति युक्त होकर अपने को प्रकाशित कर भूमि का सिंचन करते हैं।[ऋग्वेद 6.66.4]
They do not visit the Stotas in aeroplanes but reside in their innerself and make them sinless. They are radiant and extract water as per the wish-need of the Stotas and irrigate the soil.
मक्षू न येषु दोहसे चिदया आ नाम धृष्णु मारुतं दधानाः।
न ये स्तौना अयासो मह्ना नू चित्सुदानुरव यासदुग्रान्॥
जिनको उद्देश्य करके इस समय समीपवर्ती स्तोता मरुत्संज्ञक शस्त्र का उच्चारण करते हुए शीघ्र मनोरथ प्राप्त करते हैं, जो अपहरण कर्ता, गमनशील और महत्त्व युक्त हैं, उन्हीं उग्र मरुतों को इस समय दान करने वाला याजकगण क्रोध रहित करता है।[ऋग्वेद 6.66.5]
The Stotas accomplish their desires by the recitation of their names. The Marud Gan who are angry, dynamic and significant-important, are satisfied-calmed down by the Ritviz who makes donations.
त इदुग्राः शवसा धृष्णुषेणा उभे युजन्त रोदसी सुमेके।
अध स्मैषु रोदसी स्वशोचिरामवत्सु तस्थौ न रोकः॥
वे उग्र और बलशाली हैं। वे घर्षण करने वाली सेना को सुरूपिणी द्यावा-पृथ्वी के सहित योजित करते हैं। इनकी रोदसी स्वदीप्ति से संयुक्त हैं। इन बलवान् मरुतों में दीप्ति नहीं है।[ऋग्वेद 6.66.6]
They are mighty and furious. They manage their army which cause friction and support the heavens & earth. Their abode possess its own light. However, these mighty Marud Gan lack aura-shine.
अनेनो वो मरुतो यामो अस्त्वनश्वश्चिद्यमजत्यरथीः।
अनवसो अनभीशू रजस्तूर्वि रोदसी पथ्या याति साधन्॥
हे मरुतों! आपका रथ पाप रहित है। सारथि न होकर भी स्तोता जिसे चलाता है, वही रथ अश्वरहित होकर भी भोजनशून्य और पाशरहित होकर भी, जलप्रेरक और अभीष्टप्रद होकर द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष में विचरण अर्थात् भ्रमण करता है।[ऋग्वेद 6.66.7]
Hey Marud Gan! Your charoite is sinless. The Stota drives it himself. This charoite has no horses. It do not need fuel or cords. It inspire water, accomplish the desires and roam in the space, the earth & heavens.
नास्य वर्ता न तरुता न्वस्ति मरुतो यमवथ वाजसातौ।
तोके वा गोषु तनये यमप्सु स व्रजं दर्ता पार्ये अध द्योः॥
हे मरुतो! आप लोग संग्राम में जिसकी रक्षा करते हैं, उसका कोई भी प्रेरक नहीं होता और न उसकी कोई हिंसा ही होती है। आप पुत्र, पौत्र, गौ और जल के संचरण में जिसकी रक्षा करते हैं, वह संग्राम में शत्रुओं की गौओं को भी जीत सकता है।[ऋग्वेद 6.66.8]
Hey Marud Gan! One who is protected by you in the war is not inspired by anyone and he is not killed. One protected by you alongwith sons, grandsons, cows and water navigation; wins the cows of the enemy in the war.
प्र चित्रमर्कं गृणते तुराय मारुताय स्वतवसे भरध्वम्।
ये सहांसि सहसा सहन्ते रेजते अग्ने पृथिवी मखेभ्यः॥
हे अग्नि देव! जो बल द्वारा शत्रुओं को पराजित कर देते हैं, जिन महान् मरुतों से पृथ्वी काँपती है, उन्हीं शब्दकर्ता शीघ्र बलवान् मरुतों को दर्शनीय अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.66.9]
Hey Agni Dev! The earth tremble due to the power of great Marud Gan, who defeat the enemy with their might. Let these mighty Marud Gan grant quality food grains.
त्विषीमन्तो अध्वरस्येव दिद्युत्तृषुच्यवसो जुह्वो ३ नाग्नेः।
अर्चत्रयो धुनयो न वीरा भ्राजज्जन्मानो मरुतो अधृष्टाः॥
मरुद्गण यज्ञ की तरह प्रकाशमान हैं। जो शीघ्रगामी अग्नि देव के शिखा के सदृश दीप्तिमान् और पूजनीय हैं, वे शत्रुओं के प्रकम्पक व्यक्तियों के समान वीर, दीप्त शरीर से युक्त और कभी पराभूत नहीं होते।[ऋग्वेद 6.66.10]
Marud Gan are aurous like the Yagy. They are radiant and worshipable like the apex flames of Agni-fire. They are brave like the enemies who cause waves, possess radiant bodies and never defeated.
तं वृधन्तं मारुतं भ्राजदृष्टिं रुद्रस्य सूनुं हवसा विवासे।
दिवः शर्वाय शुचयो मनीषा गिरयो नाप उग्रा अस्पृध्रन्॥
मैं उन्हीं वर्द्धमान और दीप्तिमान् खड्ग से युक्त रुद्र पुत्र मरुतों की स्तोत्रों द्वारा स्तुति करता हूँ। स्तोता की निर्मल स्तुतियाँ उग्र होकर मेघ के सदृश मरुद्गणों को और अधिक बल प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 6.66.11]
I worship growing Marud Gan sons of Rudr, who possess radiant sword, with Strotr. Pious prayers-sacred hymns of the Stota become furious and make the Marud Gan even more powerful-strong.(03.11.2023)
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