Saturday, December 6, 2014

ADITY GAN आदित्यगण :: SUN (5) सूर्य*

आदित्यगण
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:। 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
युञ्जन्ति ब्रध्नमरुषं चरन्तं परि तस्थुश्ष:। 
रोचन्ते रोचना दिवि॥
वे ईश्वर (इन्द्र देव) द्युलोक में आदित्य रूप में, भूमि पर अहिंसक अग्नि रूप में, अंतरिक्ष में सर्वत्र प्रसरणशील वायु रूप में उपस्थित हैं। उन्हें उक्त तीनों लोकों के प्राणी अपने कार्यों में देवत्व रूप से सम्बद्ध मानते है। द्युलोक में प्रकाशित होने वाले नक्षत्र-ग्रह उन्हीं इन्द्र के स्वरूपांश है अर्थात तीनों लोकों की प्रकाशमयी-प्राणमयी शक्तीयों के वे ही एकमात्र संगठक है।[ऋग्वेद 1.6.1]
सूर्य रूप में प्रतिष्ठित इंद्रदेव के अहिंसक रूप से समस्त पदार्थ सम्बन्धी सर्व लोकों के प्राण धारी भी इसी से सम्बन्ध जोड़ते हैं।
The Almighty is present in the three abodes in the form of Sun, fire & air in non violent form. 
Here Indr is used for Almighty-God.
This is the fourth stage of life in Varnashram Dharm i.e., 76-100 years. One who become a wanderer-a recluse, relinquish family life and depend solely over alms collected from just one home, while living a forest.
सुगः पन्था अनृक्षर आदित्यास ऋतं यते। 
नात्रावखादो अस्ति वः॥
हे आदित्यो! आप के यज्ञ में आने के मार्ग अति सुगम और कण्टकहीन हैं। इस यज्ञ में आपके लिए श्रेष्ठ हविष्यान समर्पित हैं।[ऋग्वेद 1.41.4]
हे आदित्यों! यज्ञ को प्राप्त करने के लिए तुम्हारी राह में कोई बाधा नहीं है, इस यज्ञ में तुम्हारे लिए हवि-रूप श्रेष्ठ भाजन प्रस्तुत हैं।
Hey Adityo! Your way to this Yagy site is easy & painless. Excellent-best offerings are presented-reserved for you in this Yagy.
यं यज्ञं नयथा नर आदित्या ऋजुना पथा। 
प्र वः स धीतये नशत्॥
हे आदित्यो! जिस यज्ञ को आप सरल मार्ग से सम्पादित करते हैं, वह यज्ञ आपके ध्यान में विशेष रूप से रहता है। वह भला कैसे विस्मृत हो सकता है!?[ऋग्वेद 1.41.5]
हे पुरुषों! जिस यज्ञ को तुम साधारण विधान से करते हो, वह यज्ञ आदित्यों को प्राप्त हो।
Hey Adityo! The Yagy carried out with simple means remain in your notice for special care. How can you forget it?!
स रत्नं मर्त्यो वसु विश्वं तोकमुत त्मना। 
अच्छा गच्छत्यस्तृतः॥
हे आदित्यो! आपका याजक किसी से पराजित नही होता। वह धनादि रत्न और सन्तानों को प्राप्त करता हुआ प्रगति करता है।[ऋग्वेद 1.41.6]
तुम्हारा तपस्वी किसी से पराजित नहीं होता। वह उपभोग्य धन और सन्तानों को ग्रहण करता है।
Hey Adityo! Your devotee is not defeated by any one. He progress enriched with progeny, jewels and wealth.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :-  कूर्म, गार्त्समद, गृत्समद, देवता :- आदित्य, छन्द :- त्रिष्टुप्।
इमा गिर आदित्येभ्यो घृतस्नूः सनाद्राजभ्यो जुह्वा जुहोमि।
शृणोतु मित्र अर्यमा भगो नस्तुविजातो वरुणो दक्षो अंशः
मैं जुहू द्वारा सर्वदा शोभन आदित्यों को लक्ष्य कर घृत स्त्राविणी स्तुति अर्पण करता हूँ। मित्र, अर्यमा, भग, बहुव्यापक वरुण, दक्ष और अंश मेरी स्तुति श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.27.1]
जुहू  :: पलाश की लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का अर्धचंद्राकार यज्ञ-पात्र,  पूर्व दिशा; a pot made of butea wood in the shape half moon. 
तेजस्वी आदित्यों के लिए जुहू द्वारा घृत सींचते हुए मैं वंदना करता हूँ। मित्र, अर्यमा, भग, वरुण, दक्ष एवं अंश मेरे पूजन पर ध्यान आकृष्ट करें।
I make offerings with ghee to the Adity in a pot made of butea wood in the shape of half crown-moon. Let Mitr, Aryma, Varun, Daksh & Ansh respond to my prayers.
इमं स्तोमं सक्रतवो मे अद्य मित्रो अर्यमा वरुणो जुषन्त। 
आदित्यासः शुचयो धारपूता अवृजिना अनवद्या अरिष्टाः
दीप्तिमान, वृष्टिपूत, अनुग्रह परायण, अनिन्दनीय, हिंसा रहित और एक विध कर्म कर्ता मित्र, अर्यमा और वरुण नामक आदित्य आज मेरे इस स्तोत्र का उपभोग करें।[ऋग्वेद 2.27.2]
दयाभाव वाले, अनिंद्य, अहिंसित यशस्वी कर्मवान मित्र, अर्यमा और वरुण रूप वाले मेरी इस प्रार्थना को ग्रहण करें।
DAZZLING :: बहुत चमकीला, चकाचौंध करने वाला, चौंधियानेवाला; blinding, meteoric. 
Let the dazzling, kind hearted, non violent, honoured-famous, Adity named Mitr, Aryma, Varun accept my prayers.  
न आदित्यास उरवो गभीरा अदब्धासो दिप्सन्ते भूर्यक्षाः। 
अन्तः पश्यन्ति वृजिनोत साधु सर्वं राजभ्यः परमा चिदन्ति
महान्, गंभीर, दुर्दमनीय, दमनकारी और बहुदृष्टिवाले आदित्यगण प्राणियों का अन्तःकरण देखते हैं। दूर देश में रहने वाले पदार्थ भी आदित्यों के पास समीप रहते हैं।[ऋग्वेद 2.27.3]
गंभीर, बहुद्रष्टा दमन करने में समर्थ प्राणियों के हृदय को जानने वाले आदित्य सर्वोपरि हैं। दूर के पदार्थ भी उनसे दूर नहीं हैं।
Serious, far sighted, capable of repressing the wicked-vicious, who understand the feeling of the organism-living being can see the distant objects.
धारयन्त आदित्यासो जगत्स्था देवा विश्वस्य भुवनस्य गोपाः। 
दीर्घाधियो रक्षमाणा असुर्यमृतावानश्चयमाना ऋणानि
आदित्यगण स्थावर और जंगम को अवस्थापित करते और समस्त भुवनों की रक्षा करते हैं। वे बहुयज्ञ वाले और असूर्य अथवा प्राण के हेतुभूत जल की रक्षा करते हैं। वे सत्य वाले और ऋण परिशोधक हैं।[ऋग्वेद 2.27.4]
वे आदित्यगण, स्थावर, जंगम को वास देकर सब भुवनों के रक्षक हैं। वे अनेक कर्म वाले प्राण रूप आदित्य, भय उपस्थित सत्यों के द्वारा ऋण का प्रतिशोधन करते हैं।
Adity Gan are protectors of the stationary and movable abodes. They protect the water necessary for life. They are truthful and relieves (retire, discharge) the debts (Matr Rin, Pitr Rin, Dev Rin, Guru Rin etc.).
विद्यामादित्या अवसो वो अस्य यदर्यमन्भय आ चिन्मयोभु। 
युष्माकं मित्रावरुणा प्रणीतौ परि श्वभ्रेव दुरितानि वृज्याम्
हे आदित्य गण! हम आपका आश्रय प्राप्त करें। भय आने पर आपका आश्रय सुख प्रदान करता है। हे अर्यमा, मित्र और वरुणदेव! गड्ढे वाली उबड़-खाबड़ जमीन की भाँति हम भी पाप कर्मों का परित्याग कर दें।[ऋग्वेद 2.27.5]
हे आदित्यों! भय उपस्थित होने पर तुम्हारी शरण सुख का हेतु बनता है। हम तुम्हारी उस शरण को ग्रहण करें। अर्यमा सखा, वरुण का अनुगत हुआ मैं पापों को दूरस्थ करूँ।
Hey Adity Gan! Let us attain protection, shelter, asylum under you. You grant us safety as and when there is a danger. Hey Aryma, Mitr and Varun Dev let me reject all sins, wickedness like the uneven ground.  
सुगो हि वो अर्यमन्मित्र पन्था अनृक्षरो वरुण साधुरस्ति। 
तेनादित्या अधि वोचता नो यच्छता नो दुष्परिहन्तु शर्म
हे अर्यमा, मित्र और वरुण देव! आपका मार्ग सुगम, कण्टक रहित और सुन्दर है। हे आदित्य गण! उसी मार्ग से आप हमें ले जायें, मीठे वचन बोलें और अविनाशी सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.27.6]
हे अर्यमा ! मित्रावरुण तुम्हारी राह सुगम और निष्कंटक है। हे आदित्यों! हमें भी उसी मार्ग पर चलाओ। मधुर वचन बोलते हुए अलौकिक सुख प्रदान करो। 
Hey Aryma, Mitr and Varun Dev! Your path is free from trouble-dangers, and beautiful. Hey Adity Gan! Take us through that route, speak pleasant-sweet words and grant us comforts-pleasure.
पिपर्तु नो अदिती राजपुत्राति द्वेषांस्यर्यमा सुगेभिः। 
बृहन्मित्रस्य वरुणस्य शर्मोप स्याम पुरुवीरा अरिष्टाः
हे राज माता अदिति! आप शत्रुओं को लाँघकर हमें दूसरे देश में ले जावें। हे अर्यमा! आप हमारे निमित्त गमना-गमन का रास्ता प्रशस्त करें। मित्र और वरुण देव हमारी रक्षा करें, जिससे हम संतान आदि के साथ सुख पूर्वक रहें।[ऋग्वेद 2.27.7]
माता अदिति हमको शत्रुओं से दूर रखें। अर्यमा हमको सरल पथ पर ले जायें। हम अनेक वीरों से युक्त अहिंसक रहें तथा मित्र और वरुण हमें सुख प्रदान करें।
Hey Dev Mata Aditi! Take us to another safe land-place (country) protecting us from the enemy. Hey Aryma! Make our path free from hurdles-obstacles. Let Mitr & Varun Dev protect us so that our progeny can live-survive comfortably with us. 
तिस्त्रो भूमीर्धारयन् त्रींरुत द्यून्त्रीणि व्रता विदथे अन्तरेषाम्। 
ऋतेनादित्या महि वो महित्वं तदर्यमन्वरुण मित्र चारु
ये पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग तथा मर्त्य लोक, जन और सत्य लोकों को धारण करते हैं। इनके यज्ञ में तीन व्रत (तीन सवन) हैं। हे आदित्य गण! यज्ञ द्वारा आपकी महिमा श्रेष्ठ हुई है। हे अर्यमा, मित्र और वरुण देव! आपका वह महत्त्व सुन्दर है।[ऋग्वेद 2.27.8]
सवन :: प्रसव-बच्चा जनना; श्योनाक वृक्ष, सोनापाठा; यज्ञस्नान; सोमपान, यज्ञ,  चंद्रमा; भृगु के एक पुत्र का नाम; वशिष्ठ के एक पुत्र का नाम; रोहित मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक ऋषि का नाम; स्वायंभुव मनु के एक पुत्र का नाम; अग्नि का एक नाम;  सोमलता को निचोड़कर रस निकालना; उपहार।  
सवन काल :- आहुति देने, तर्पण आदि का समय। 
सवन क्रम :- यज्ञादि के विभिन्न कृत्यों का क्रम। 
सवन संस्था :- यज्ञ कर्म का अंत या समाप्ति।
आदित्य, धरा, अंतरिक्ष, स्वर्ग, मत्य, जल तथा सत्य संसार के धारणकर्त्ता हैं। ये तीन सवन परिपूर्ण यज्ञ वाले, अनुष्ठान से ही महिमावान हुए हैं। 
The Adity support earth, space and the heaven, the abode of Mahar-the perishable, Jan Lok and the Saty Lok. Their Yagy constitute of three aims-targets (absorption, retention and redistribution of dew on rain). Hey Adity Gan! The Yagy has increased-enhanced your glory. Hey Mitr, Aryma Varun Dev!
They uphold the three worlds (earth, firmament-sky and heaven), the three heavens and in their sacrifices three ceremonies (are comprised) by truth. Adity, has great might-most excellent. 
FIRMAMENT :: sky, space. 
The three luminous deities :- Agni, Vayu & Sury. 
The three acts :- absorption, retention and redistribution of dew on rain.
त्री रोचना दिव्या धारयन्त हिरण्ययाः शुचयो धारपूताः। 
अस्वप्नजो अनिमिषा अदब्या उरुशंसा ऋजवे मर्त्याय
स्वर्णालङ्कार भूषित, दीप्तिमान्, वृष्टिपूत, निद्रा रहित, अनिमेष नयन, हिंसा रहित और सबके स्तुति योग्य आदित्य गण सरल स्वभाव संसार के लिए तीन प्रकार (अग्नि, वायु और सूर्य) के स्वर्गीय तेज धारण करते हैं।[ऋग्वेद 2.27.9]
हे अर्यमा! हे सखा! और हे वरुण! तुम्हारा कार्य प्रशंसनीय है। स्वर्ग के समान तेजस्वी वर्ण वाले दीप्तिमान वृष्टि के कारण भूत सचेष्टन झुकने वाले नेत्रों से युक्त अहिंसित पूजनीय, आदित्यगण, संसार के लिए अग्नि, पवन और सूर्य का रूप धारण करते हैं।
Decorated with golden ornaments, dazzling, free from sleep, creator of rains, non violent, deserving worship-prayers from all; you support-bear the three kinds of heavenly aura in the form of fire, air and the Sun.
त्वं विश्वेषां वरुणासि राजा ये च देवा असुर ये च मर्ताः। 
शतं नो रास्व शरदो विचक्षेऽश्यामायूंषि सुधितानि पूर्वा
हे वरुण देव! आप देवता है या मनुष्य, सबके राजा है। हमें सौ वर्ष देखने दें, ताकि हम पूर्वजों की उपभुक्त आयु को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 2.27.10]
हे वरुण! तुम देवता हो या मनुष्य सबके दाता हो। सौ वर्ष देखने के योग्य करो जिससे हम पितरों की आयु को भोग सकें।
Hey Varun Dev! Whether you are a human being or a demigod-deity, you are the king of all. Grant us a life span of 100 years and let us enjoy the life span of our Pitre-Manes.
न दक्षिणा वि चिकिते न सव्या न प्राचीनमादित्या नोत पश्चा। 
पाक्या चिद्वसवो धीर्या चिद्युष्मानीतो अभयं ज्योतिरश्याम्
हे वास प्रदाता आदित्यों! हम न तो दाहिने जानते, न बायें जानते, न सामने जानते और न पीछे जानते हैं। मैं अपरिपक्व बुद्धि और अतीव कातर हूँ। मुझे आप ले जायेंगे, तो मैं निर्भय ज्योति को प्राप्त करूंगा।[ऋग्वेद 2.27.11]
हे वास प्रदान करने वाले आदित्यों! हम दाहिने, बायें, सम्मुख, संदेह के वहम में नहीं पड़ते। कच्ची बुद्धि वाला, अधीर होकर भी भ्रम में न पड़े। मैं तुम्हारे द्वारा आसान मार्ग पर चलाया जाता हुआ आनन्द रूप तेज ग्रहण करूँ।
Hey shelter granting Adity! We do not know right or left, front or rear. I am immature and in extreme distress.  If you support me I will become fearless and attain aura (Tej-energy). 
यो राजभ्य ऋतनिभ्यो ददाश यं वर्धयन्ति पुष्टयश्च नित्याः। 
स रेवान्याति प्रथमो रथेन वसुदावा विदथेषु प्रशस्तः
यज्ञ के नायक और राजा आदित्यों को जो हव्य प्रदान करता है, उनका नित्य अनुग्रह जिसकी पुष्टि करता है, वही व्यक्ति धनवान्, विख्यात, ददान्य और प्रशंसित होकर तथा रथ पर आरूढ़ होकर यज्ञस्थल में जाता है।[ऋग्वेद 2.27.12]
यज्ञ दाता आदित्य गण की हवि देने वाले यजमान को उनकी दया से पोषण-सामर्थ्य प्राप्त होती । वे धन युक्त प्रसिद्धि एवं प्रशंसित हुआ रथ पर सवार होकर यज्ञ स्थान को प्राप्त होता है।
One who conduct Yagy for the sake of Adity and make offerings; attain his favours, become rich, famous, honoured and ride the charoite to reach the Yagy site.
शुचिरपः सूयवसा अदब्ध उप क्षेति वृद्धवयाः सुवीरः। 
नकिष्टं घ्नन्त्यन्तितो न दूराद्य आदित्यानां भवति प्रणीतौ
वह दीप्तिमान्, हिंसा रहित, प्रचुर अन्न शाली और सुपुत्रवान् होकर उत्तम शस्य वाले जल के पास निवास करता है। जो आदित्यों का अनुसरण करता है, उसका दूर या निकट का शत्रु वध नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.27.13]
यह यजमान तेजमान, अहिंसित, अन्नवान, पुत्रवान हुआ महान जल के पास निवास करता है। आदित्यों की शरण में रहने वाले को कोई शत्रु समाप्त नहीं कर सकता।
The devotee of the Adity is blessed with sons, possess enough stock of food grains, become non violent and resides by the side of water reservoirs. One who follows the Adity remains safe from the far or near enemies, who can not kill him.
अदिते मित्र वरुणोत मृळ यद्वो वयं चक्रमा कचिदागः। 
उर्वश्यामभयं ज्योतिरिन्द्र मा नो दीर्घा अभि नशन्तमिस्राः
हे अदिति, मित्र और वरुण देव! हम यदि आपके पास कोई अपराध करें, तो कृपा कर उसे क्षमा करें। हे इन्द्र देव! हम विस्तीर्ण और निर्भय ज्योति प्राप्त कर सकें। अन्धकार मयी रात्रि हमें छिपा न सके।[ऋग्वेद 2.27.14]
हे आदित्य! मित्र! हे वरुण! यदि हम तुम्हारे प्रति कोई अपराध करे तो उसे क्षमा करो। हे इन्द्र! हमें तेज और अभय प्रदान करो। हमको तम रात्रि नष्ट न करें।
Hey Aditi, Mitr & Varun Dev! Forgive our crimes we commit against you. Hey Indr Dev! Grant us broad & shinning light-aura. The darkness of night should not engulf us.
उभे अस्मै पीपयतः समीची दिवो वृष्टिं सुभगो नाम पुष्यन्। 
उभा क्षयावाजयन्याति पृत्सूभावर्धी भवतः साधू अस्मै
जो आदित्यों का अनुसरण करता है, उसकी द्यावा पृथ्वी एकत्र होकर पुष्टि करती हैं। वह सौभाग्यशाली होता है और स्वर्गीय जल प्राप्त करके समृद्धि प्राप्त करता है। युद्धकाल में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता हुआ दोनों लोकों में जाता है और दोनों लोक उसके लिए मंगलदायी होते हैं।[ऋग्वेद 2.27.15]
आदित्यों का अनुसरण करने वाले को अम्बर, धरा, सन्तुष्ट करते हैं। वह भाग्यवान अद्भुत रस ग्रहण कर समृद्ध होता है। संग्राम में शत्रु को पराजित करता हुआ चलता है। संसार के आधे भाग में ( धरा पर ) वह कर्म साधन करने वाला होता है।
One who follows-worship Adity, is nourished by the earth as well as the heavens. He has good luck. He make progress having attained the heavenly waters. He wins over the enemy and goes to the heavens. Let both the earth and heaven be auspicious for him.
या वो माया अभिद्रुहे यजत्राः पाशा आदित्या रिपवे विचृत्ताः। 
अश्वीव ताँ अंति येषं रथेनारिष्टा उरावा शर्मन्त्स्याम
हे पूजनीय आदित्य गण! द्रोह कारियों के लिए आपकी जो माया बनाई गई है और जो पाश शत्रुओं के लिए ग्रथित हुआ है, हम उनको अश्वारोही पुरुष की तरह अनायास लाँघ जायें। हम हिंसा शून्य होकर परम सुख में निवास करें।[ऋग्वेद 2.27.16]
हे पूज्य आदित्यों विद्रोहियों को तुमने माया पूर्वक वश में किया शत्रु के लिए पाश रचा। हम उस माया और पाश को घोड़े पर सवार प्राणी के समान लांघें और हिंसा रहित हुए। परम सुख के सुंदर भवन में निवास करें।
Hey revered-honourable Adity Gan! The illusion-scheme created by you for capturing the enemy, should be crossed by us like the horse riders comfortably-easily. We should be free from violence to live peacefully.  
माहं मघोनो वरुण प्रियस्य भूरिदाव्न आ विदं शूनमापेः।
मा रायो राजन्त्सुयमादव स्थां बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे वरुण देव! मुझे किसी धनी और प्रभूत दान शील व्यक्ति के पास गरीबी की दरिद्रता की बात न कहनी पड़े। हे राजन्! मुझे आवश्यकता पड़ने पर धन का अभाव न हो। हम पुत्र और पौत्र से युक्त होकर इस यज्ञ में आपकी स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.27.17]
हे वरुण! मुझे किसी समृद्धिवान मनुष्य के निकट अपनी गरीबी की कहानी न बताओ। मुझे आवश्यक धन की कभी कमी प्रतीत न हो। हम संतान से परिपूर्ण हुए इस अनुष्ठान में वंदना करेंगे।
Hey Varun Dev! I may not have to narrate my story of poverty. Hey king! I should never face poverty. We should be blessed with sons and grand sons & pray-worship you in this Yagy.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- विश्वामित्र, देवता :- मित्र, आदित्य, छन्द :- त्रिष्टुप्, गायत्री
मित्रो जनान्यातयति ब्रुवाणो मित्रो दाधार पृथिवीमु॒त द्याम्।
मित्रः कृष्टीरनिमिषाभि चष्टे मित्राय हव्यं घृतवज्जुहोत
स्तुत होने पर देवता सकल लोक को कृष्यादि कार्य में प्रवर्तित करते हैं। वृष्टि द्वारा अन्न और यज्ञ को उत्पन्न करते हुए मित्र देवता पृथ्वी और द्युलोक दोनों को धारित करते हैं। कर्मवान् मनुष्यों को चारों ओर से मित्र देवता अनुग्रह दृष्टि से देखते हैं। मित्र देव के निमित्त घृत विशिष्ट हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.59.1]
देवगण उपासित होने पर समस्त संसार को कृषि आदि कार्यों के लिए प्रेरित करते हैं। वृष्टि द्वारा अन्न आदि को रचित करने वाले सखा, देवता, धरा और अम्बर दोनों को धारण करने वाले हैं। वे सखा देवता कार्य वाले मनुष्यों को सभी प्रकार से कृपा दृष्टि से देखते हैं। उन सखा देव के लिए घृत परिपूर्ण हवियाँ प्रदान करो। 
On being worshiped, prayed the demigods-deities inspire the entire world to perform agriculture and other professions. Mitr Dev evolve the crops and Yagy, supporting the earth & heavens. Mitr helps-bless the endeavourers. Let the offerings made to Mitr Dev be specially prepared by mixing Ghee.
प्र स मित्र मर्तो अस्तु प्रयस्वान्यस्त आदित्य शिक्षति व्रतेन।
न हन्यते न जीयते त्वोतो नैनमंहो अश्नोत्यन्तितो न दूरात्
हे आदित्य! यज्ञ युक्त होकर जो मनुष्य आपको मित्र देव के साथ हविष्यान्न प्रदान करता है, वह अन्नवान होता है। आपके द्वारा रक्षित होकर वह मनुष्य किसी से भी विनष्ट और अभिभूत नहीं होता। आपको जो हवि देता है, उस पुरुष को दूर अथवा निकट से पाप छू नहीं सकता।[ऋग्वेद 3.59.2]
हे आदित्य! तुम्हें मित्र के साथ जो प्राणी हवियाँ प्रदान करता है, वह अन्न दाता हो। जो प्राणी तुम्हारा रक्षक है, उसकी हिंसा कोई नहीं कर सकता। तुम्हारे लिए जो प्राणी हवि देता है, उसके पास पाप नहीं फटकता। 
Hey Adity! A person who makes offerings to you along with Mitr Dev for the Yagy become self sufficient in food grains. A person protected by you is never destroyed-killed and is not affected by the sins. One who makes offerings to you is free from sins either from far or near.
अनमीवास इळया मदन्तो मितज्ञवो वरिमन्ना पृथिव्याः।
आदित्यस्य व्रतमुपक्षियन्तो वयं मित्रस्य सुमतौ स्याम
हे मित्र! रोग वर्जित होकर अन्न लाभ से हर्षित होकर और पृथ्वी के विस्तीर्ण प्रदेश में मितजानु होकर हम सर्वत्र गामी सूर्य के व्रत (कर्म) के निकट अवस्थिति करते हैं। हम लोगों के ऊपर सूर्य देव सदैव अनुग्रह करते रहें।[ऋग्वेद 3.59.3]
अनुग्रह :: मेहरवानी, कृपा; grace, favour.
हे सखा! हम व्याधियों से बचें, अन्न प्राप्ति द्वारा पुष्ट हों। हम इस विशाल धरा पर अपनी जाँघों को सिकोड़कर आदित्य के व्रत का पोषण करते हैं। वे आदित्य हमारे प्रति अपनी कृपा दृष्टि रखें।
May we, exempt from disease, rejoicing in abundant food stuff, roaming free over the wide-expanse of the earth, diligent in the worship of Adity-Sun, ever be in the grace-favour of Mitr.
Hey Mitr Dev! Let us be protected from ailments-diseases, become happy due to the receipt of food grains, in the broad area-region of the earth, sitting contracting our thighs, observe fast for Adity Dev-Sun. Let Sun always favour us.
अयं मित्रो नमस्यः सुशेवो राजा सुक्षत्रो अजनिष्ट वेधाः।
तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्याम
नमस्कार योग्य, सुन्दर मुख विशिष्ट, स्वामी, अत्यन्त बल विशिष्ट और सभी के विधाता ये सूर्य देव प्रादुर्भूत हुए हैं। ये यज्ञार्ह हैं। इनके अनुग्रह और कल्याणकर वात्सल्य को हम याजकगण प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 3.59.4]
यह आदित्य सुन्दर प्रकाश वाले पराक्रम में पड़े हुए, सबके दाता तथा प्रणाम करने योग्य हैं। हम यजमान इनकी दया और कल्याणकारी वात्सल्य भाव को प्राप्त करें। उन श्रेष्ठ संसार के प्रवर्तक आदित्यों की नमस्कारों से परिपूर्ण उपासना करनी चाहिए, वंदना करने वालों से वे आदित्य हर्षित होते हैं।
Sun who deserve worship-prayers, possess beautiful face, specific powers-might and the destiny of all, has evolved-arisen. He has arisen for Yagy to commence. Let us-the Ritviz, devotees attain his favours and affection.
महाँ आदित्यो नमसोपसद्यो यातयज्जनो गृणते सुशेवः।
तस्मा एतत्पन्यतमाय जुष्टमग्नौ मित्राय हविरा जुहोत
जो आदित्य देव महान हैं, जो सकल लोक के प्रवर्त्तक हैं, नमस्कार द्वारा उनकी उपासना करना उचित है। वे प्रार्थना करने वालों के प्रति प्रसन्न मुख होते हैं। स्तुति योग्य मित्र के लिए प्रीतिकर हवियाँ अग्नि में समर्पित करें।[ऋग्वेद 3.59.5]
हे वंदना कारियों! सखा देवता वंदना के पात्र हैं, उनके लिए स्नेहदायक हवियाँ अग्नि में अर्पित करो।
Its proper to worship-pray to the Sun who is the inspirer of all abodes, with salutations. He become happy with those, who pray-worship him. Let us make offerings for Mitr Dev deserving worship-prayers in the sacred fire.
मित्रस्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि। द्युम्नं चित्रश्रवस्तमम्
जल वृष्टि द्वारा मनुष्यों के धारक मित्र देव का अन्न और सभी के द्वारा भजनीय धन अतिशय कीर्ति युक्त है।[ऋग्वेद 3.59.6]
वर्षा के द्वारा प्राणियों को धारण करने वाले सखा देवता का प्रभाव अन्न आदि धन, यश और ज्ञान से परिपूर्ण होकर सभी के लिए सेवन करने योग्य तथा प्रदान करने वाला हो।
The food grains and wealth-riches of Mitr Dev, who is the supports-nurture the humans by making rain fall, deserve appreciation, glory & honour. 
अभि यो महिना दिवं मित्रो बभूव सप्रथाः। अभि श्रवोभिः पृथिवीम् 
जिन मित्र देव ने अपनी महिमा से द्युलोक को अभिभूत किया, उसी ने कीर्त्ति युक्त होकर पृथ्वी को प्रचुर अन्न विशिष्टा भी किया।[ऋग्वेद 3.59.7]
मित्र देवता ने अपनी महत्ता से नभ को वशीभूत किया है। उन्होंने कर्मों द्वारा अत्यन्त यशस्वी पृथ्वी को सेवन योग्य अन्न से युक्त किया।
Renowned Mitr Dev, who by his might presides over heavens, is the one who presides over the earth as well by the gifting of food grains-stuff.
Mitr Dev has pervaded the heavens-sky with his glory-greatness. He prepared the earth to produce food grains.
मित्राय पञ्च येमिरे जना अभिष्टिशवसे। स देवान्विश्वान्विभर्ति
निषाद को लेकर पाँचों वर्ण शत्रु जयक्षम और बल विशिष्ट मित्र के उद्देश्य से हव्य प्रदान करते हैं। वे मित्र देव अपने स्वरूप से समस्त देवगणों को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 3.59.8]
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा निषाद यह पाँचों वर्ण शत्रुओं को विजय करने की क्षमता वाले सखा के प्रति सम्मान को प्रदर्शित करें। वे सखा अपने स्वरूप द्वारा ही समस्त देवों का पोषण करते हैं।
Let the 5 Varn :- Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr & Nishad honour-revere make offerings for Mitr Dev, who wins over the enemy. He support-nourish the demigods-deities with his powers.
मित्रो देवेष्वायुषु जनाय वृक्तबर्हिषे। इष इष्टव्रता अकः
देवों और मनुष्यों के बीच में जो व्यक्ति कुशच्छेदन करता है, उसे मित्र देव कल्याणकारी अन्नादि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 3.59.9]
प्राणी विद्वानों, देवगणों एवं अन्य प्राणियों के कुश को काट कर लाता है, वह मित्र देवता उसके लिए कल्याणकारी अन्न देते हैं।
Mitr Dev is the deity who among demigods-deities and humans bestows food as the reward of pious acts upon the man who has prepared for him the lopped sacred grass-Kush.
A person who cuts Kush-sacred grass between the demigods-deities & the humans, is rewarded by Mitr Dev with beneficial food grains.
स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः।
बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः
कल्याण के लिए हम लोग वायु देव की प्रार्थना करते हैं और सोमरस का भी स्तवन करते हैं। सोम निखिल लोक के पालक हैं। सब देवों के साथ मन्त्र पालक बृहस्पति देव की प्रार्थना कल्याण के लिए करते हैं। अदिति के पुत्र देवगण अथवा अरुणादि द्वादश देव हम लोगों के लिए कल्याणकारी हों।[ऋग्वेद 5.51.12]
We worship Vayu Dev for our welfare and extract Somras for him. Som nourish-nurture the whole world. We worship Brahaspati Dev with all demigods-deities, who is the supporter of Mantr Shakti, for our welfare. Let the son of Aditi Demigods and the twelve Adity Gan be helpful to us i.e., resort to our welfare. 
 
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा