dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com palmistrycncyclopedia.blgspot.com
santoshvedshakti.blogspot.com palmistrycncyclopedia.blgspot.com
santoshvedshakti.blogspot.com
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त (48) :: ऋषि :- प्रस्कण्व कण्व, देवता :- उषा, छन्द :- बाहर्त प्रगाथ (विषमा बृहती, समासतो बृहती)।
उषा शब्द वस् दीप्तौ धातु से निष्पन्न हुआ है। जिसकाअर्थ है, प्रकाशमान होना। इस सौन्दर्य की देवी के उदित् होते ही आकाश का कोना कोना जगमगाने लगता है, तथा विश्व हर्ष के अतिरेक से भर जाता है। यह प्रत्येक प्राणी को अपने कार्य में प्रवृत कर देती है। उषा का रथ चमकदार है और उसे लाल रंग के घोड़े खींचते हैं। उषा को रात्रि की बहन भी कहा गया है। आकाश से उत्पन्न होने के कारण उषा को स्वर्ग की पुत्री भी कहा गया है। उषा सूर्य की प्रेमिका है, इसके अतिरिक्त उषा का सम्बन्ध अश्विनी कुमारो से भी है। उषा अपने भक्तों को धन, यश, पुत्र आदि प्रदान करती हैं। ऋग्वेद में उषा को रेवती, सुभगाः, प्रचेताः, विश्ववारा, पुराणवती मधुवती,ऋतावरी, सुम्नावरी, अरुषीः, अमर्त्या आदि विशेषणों से अलंकृत किया गया है।
सह वामेन न उषो व्युच्छा दुहितर्दिवः।
सह द्युम्नेन बृहता विभावरि राया देवि दास्वती॥
हे आकाश पुत्री उषे! उत्तम तेजस्वी, दान देने वाली, धनों और महान ऐश्वर्यों से युक्त होकर आप हमारे सम्मुख प्रकट हों अर्थात हमें आपका अनुदान-अनुग्रह होता रहे।[ऋग्वेद 1.48.1]
हे क्षितिज पुत्री अत्यन्त यशस्वी उषे! हमको प्रशंसा से परिपूर्ण उपभोग्य और कीर्ति ग्रहण कराने वाली समृद्धि के साथ तुम प्रकट होओ।
Hey Usha, the daughter of sky! Please appear with excellent Tej-energy, donations, wealth-riches and great amenities for us so that we are able obliged-sheltered by you.
अश्वावतीर्गोमतीर्विश्वसुविदो भूरि च्यवन्त वस्तवे।
उदीरय प्रति मा सूनृता उषश्चोद राधो मघोनाम्॥
अश्व, गौ आदि (पशुओं अथवा संचारित होने वाली एवं पोषक किरणों) से सम्पन्न धन्य-धान्यों को प्रदान करने वाली उषाएँ प्राणिमात्र के कल्याण के लिए प्रकाशित हुई हैं। हे उषे! कल्याणकारी वचनों के साथ आप हमारे लिए उपयुक्त धन वैभव प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.48.2]
घोड़ों और गायों से परिपूर्ण, सभी को जानने वाली उषा हमको लगातार ग्रहण होओ। हे उषे! मेरे लिए प्रिय और सत्य बात कहो तथा धन प्रेरित कर धनी बना दो।
You are associated with horses, cows, wealth, food grains for the welfare of all creatures-organism. Hey Usha! Bless us with soothing words & sufficient riches for our welfare
उवासोषा उच्छाच्च नु देवी जीरा रथानाम्।
ये अस्या आचरणेषु दध्रिरे समुद्रे न श्रवस्यवः॥
जो देवी उषा पहले भी निवास कर चुकी हैं, वह रथों को चलाती हुई, अब भी प्रकट हों। जैसे रत्नों की कामना वाले मनुष्य समुद्र की ओर मन लगाये रहते हैं; वैसे ही हम देवी उषा के आगमन की प्रतिक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.48.3]
उषा पहले भी हमारे पास निवास करती थी। वह आज भी प्रकट हो जायें। उसके आने की प्रतीक्षा में हम हैं। जैसे रत्नों की इच्छा करने वाले समुद्र में मन लगाए रहते हैं।
Usha Devi, who had been with us, should come to us driving her chariot. The way the people desirous of gems-jewels looks to the ocean, we wait for her.
उषो ये ते प्र यामेषु युञ्जते मनो दानाय सूरयः।
अत्राह तत्कण्व एषां कण्वतमो नाम गृणाति नृणाम्॥
हे उषे! आपके आने के समय जो स्तोता अपना मन, धनादि दान करने में लगाते हैं, उसी समय अत्यन्त मेधावी कण्व उन मनुष्यों के प्रशंसात्मक स्तोत्र गाते हैं।[ऋग्वेद 1.48.4]
हे उषे! तुम्हारे आगमन के साथ ही जो प्राणी दान की इच्छा करते हैं, उन व्यक्तियों के नाम को कण्व वंशियों में श्रेष्ठ कण्व प्रशंसा वचनों के सहित कहते हैं।
Hey Usha! Extremely intellengent-genious descendants of Kanv Rishi recite hymns in appreciation-praise of those humans who are engaged in donations at the time of your arrival-day break.
आ घा योषेव सूनर्युषा याति प्रभुञ्जती।
जरयन्ती वृजनं पद्वदीयत उत्पातयति पक्षिणः॥
उत्तम गृहिणी स्त्री के समान सभी का भली प्रकार पालन करने वाली देवी उषा जब आती हैं, तो निर्बलों को शक्तिशाली बना देती हैं, पाँव वाले जीवों को कर्म करने के लिए प्रेरित करती है और पक्षियों को सक्रिय होने की प्रेरणा देती है।[ऋग्वेद 1.48.5]
महान मार्ग पर चलती हुई उषा घर-स्वामिनी के तुल्य हमको पालती हैं। वह विचरण शीलों को वृद्धावस्था प्राप्त कराती है। पैर वाले जीवों को कार्य में लगाती और पक्षियों को उड़ाती है।
With her arrival Usha Devi makes-turns the weak strong, inspire two legged beings to perform, activate the birds; like an excellent house wife.
वि या सृजति समनं व्यर्थिनः पदं न वेत्योदती।
वयो नकिष्टे पप्तिवांस आसते व्युष्टौ वाजिनीवति॥
देवी उषा सबके मन को कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं तथा धन इच्छुकों को पुरुषार्थ के लिए भी प्रेरणा देती है। ये जीवन दात्री देवी उषा निरन्तर गतिशील रहती हैं। हे अन्नदात्री उषे! आपके प्रकाशित होने पर पक्षी अपने घोसलों में बैठे नहीं रहते।[ऋग्वेद 1.48.6]
वही उषा युद्धों की ओर प्रेरित तथा कर्मशीलों को कार्य में लगाती है। वह स्वयं विश्राम नहीं करती। हे अन्न प्रदान करने वाली उषा। तुम्हारे आगमन पर पक्षी भी अपने घोंसले छोड़ देते हैं।
Usha Devi engage-inspire the innerself of all beings to function and motivate-encourage the people desirous of riches-wealth to make efforts. The life generating-promoting Usha Devi is always active-movable. The birds leave their nests as soon you arrive.
एषायुक्त परावतः सूर्यस्योदयनादधि।
शतं रथेभिः सुभगोषा इयं वि यात्यभि मानुषान्॥
देवी उषा सूर्य के उदय स्थान से दूरस्थ देशों को भी जोड़ देती हैं। ये सौभाग्यशालिनी देवी उषा मनुष्य लोक की ओर सैंकड़ों रथों द्वारा गमन करती हैं।[ऋग्वेद 1.48.7]
इसने सूर्य उदय स्थल से दूर देशों को जोड़ दिया। यह सौभाग्यशालिनी उषा सौ रथों द्वारा मनुष्य लोक में आती है।
Devi Usha connects hundreds of distant countries. Lucky-auspicious Devi Usha moves towards the abodes of humans-Earth, in hundreds of chariots.
विश्वमस्या नानाम चक्षसे जगज्ज्योतिष्कृणोति सूनरी।
अप द्वेषो मघोनी दुहिता दिव उषा उच्छदप स्रिधः॥
सम्पूर्ण जगत इन देवी उषा के दर्शन करके झुककर उन्हें नमन करता है। प्रकाशिका, उत्तम मार्ग दर्शिका, ऐश्वर्य सम्पन्न आकाश पुत्री देवी उषा, पीड़ा पहुँचाने वाले हमारे बैरियों को दूर हटाती हैं।[ऋग्वेद 1.48.8]
यह संसार इनके दर्शनों का अभिलाषी रहता है और इनके आगे नतमस्तक होता है। यह दीप्ति वती सभी के लिए सुमार्ग बनाती है। क्षितिज की पुत्री, धनवती यह उषा हमारे शत्रुओं और कष्ट देने वालों को दूर भगाएँ।
Entire word bows-prostrate before her. She lightens the world, provide best guidance & riches, daughter of the sky repels the enemies torturing us-humans.
उष आ भाहि भानुना चन्द्रेण दुहितर्दिवः।
आवहन्ती भूर्यस्मभ्यं सौभगं व्युच्छन्ती दिविष्टिषु॥
हे आकाश पुत्री उषे! आप आह्लादप्रद दीप्ती से सर्वत्र प्रकाशित हों। हमारे इच्छित स्वर्ग-सुख युक्त उत्तम सौभाग्य को ले आयें और दुर्भाग्य रूपी तमिस्त्रा को दूर करें।[ऋग्वेद 1.48.9]
हे आकाश पुत्री उषे! आप हमको सौभाग्यशाली बनाती हुई हमारे यज्ञों में प्रकट हो और आनंददायक प्रकाश से सदैव चमकती रहो।
Hey the daughter of sky Usha! You should have the aura granting happiness-pleasure all around-every where. Please bring the comforts of heavens to us, aided by good luck and remove-repel bad luck in the form of darkness.
विश्वस्य हि प्राणनं जीवनं त्वे वि यदुच्छसि सूनरि।
सा नो रथेन बृहता विभावरि श्रुधि चित्रामघे हवम्॥
हे सुमार्ग प्रेरक उषे! उदित होने पर आप ही विश्व के प्राणियों का जीवन आधार बनती हैं। विलक्षण धन वाली, कान्तिमती हे उषे! आप अपने बृहत रथ से आकर हमारा आवाह्न सुनें।[ऋग्वेद 1.48.10]
हे सुमार्ग पर ले चलने वाली उषे! तू प्रकट होती है, इसी में तेरी प्रसिद्धि और जीवन है, तुम कांतिमती, धनवाली हमारी तरफ रथ में आरूढ़ होकर आह्वान को सुनो।
Hey the follower of pious, virtuous, righteous routes, Usha! You forms the basis of life over the earth. The possessor of amazing wealth-riches, Hey Usha! Please come in glittering-shinning chariot and listen to our prayers.
उषो वाजं हि वंस्व यश्चित्रो मानुषे जने।
तेना वह सुकृतो अध्वराँ उप ये त्वा गृणन्ति वह्नयः॥
हे उषा देवी! मनुष्यों के लिये विविध अन्न-साधनों की वृद्धि करें। जो याजक आपकी स्तुतियाँ करते हैं, उनके इन उत्तम कर्मो से संतुष्ट होकर उन्हें यज्ञीय कर्मो की ओर प्रेरित करें।[ऋग्वेद 1.48.11]
हे उषे! मनुष्य के लिए अनेक प्रकार के अन्नों की इच्छा करो। हविदाताओं की वंदनाओं से उनको सुकर्म परिपूर्ण यज्ञों की ओर प्रेरित करो।
Hey Devi Usha! Arrange various means for growing food grains. Inspire those hosts-devotees who pray to you to conduct Yagy, on being satisfied with their pious deeds.
विश्वान्देवाँ आ वह सोमपीतयेऽन्तरिक्षादुषस्त्वम्।
सास्मासु धा गोमदश्वावदुक्थ्यमुषो वाजं सुवीर्यम्॥
हे उषे! सोमपान के लिए अंतरिक्ष से सब देवों को यहाँ ले आयें। आप हमें अश्वों, गौओं से युक्त धन और पुष्टिप्रद अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.48.12]
हे उषे! सोमपान हेतु अंतरिक्ष के सभी देवताओं को यहाँ ले आओ। तुम हमें अश्वों और धेनुओं से परिपूर्ण धन और पराक्रम युक्त अन्न को प्रदान करो।
Hey Usha! Please bring all demigod-deities from the space here, to enjoy Somras. Give us horses, cows, wealth-riches and nourishing food grains.
यस्या रुशन्तो अर्चयः प्रति भद्रा अदृक्षत।
सा नो रयिं विश्ववारं सुपेशसमुषा ददातु सुग्म्यम्॥
जिन देवी उषा की दीप्तिमान किरणें मंगलकारी प्रतिलक्षित होती हैं, वे देवी उषा हम सबके लिए वरणीय, श्रेष्ठ, सुखप्रद धनों को प्राप्त करायें।[ऋग्वेद 1.48.13]
जिनकी चमकती हुई कान्ति मंगल रूप है, वह उषा सबके वरण करने योग्य श्रेष्ठ धनों को हमारे लिए प्राप्त करायें।
Usha Devi, who's glittering rays are auspicious, may grant us excellent comforts, amenities, wealth-riches.
ये चिद्धि त्वामृषयः पूर्व ऊतये जुहूरेऽवसे महि।
सा न स्तोमाँ अभि गृणीहि राधसोषः शुक्रेण शोचिषा॥
हे श्रेष्ठ उषा देवी! प्राचीन ऋषि आपको अन्न और संरक्षण प्राप्ति के लिये बुलाते थे। आप यश और तेजस्विता से युक्त होकर हमारे स्तोत्रों को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.48.14]
हे पूजनीय! प्राचीनकाल के ऋषि भी तुमको अन्न और रक्षा के लिए बुलाते थे। तुम हमारे स्तोत्रों का उत्तर ऐश्वर्य और धन से दे दो।
Hey best Usha Devi! Ancient Rishis-sages, ascetics invited to grant them asylum and food grains. Associated with glory-fame and brilliance-aura; please accept or prayers in the form of hymns.
उषो यदद्य भानुना वि द्वारावृणवो दिवः।
प्र नो यच्छतादवृकं पृथु च्छर्दिः प्र देवि गोमतीरिषः॥
हे देवी उषे! आपने अपने प्रकाश से आकाश के दोनों द्वारों को खोल दिया है। अब आप हमें हिंसकों से रक्षित, विशाल आवास और दुग्धादि युक्त अन्नों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.48.15]
हे उषे! तुमने अपनी दीप्ति से क्षितिज के दोनों द्वारों को खोला है। तुम हमको हिंसकों से पृथक विशाल गृह और गवादि से परिपूर्ण धन प्रदान करो।
Hey Devi Usha! You have opened both the gates of the sky. Protect us from the violent, give spacious houses to us to live and provide food associated with milk and grains.
सं नो राया बृहता विश्वपेशसा मिमिक्ष्वा समिळाभिरा।
सं द्युम्नेन विश्वतुरोषो महि सं वाजैर्वाजिनीवति॥
हे देवी उषे! आप हमें सम्पूर्ण पुष्टिप्रद महान धनों से युक्त करें, गौओं से युक्त करें। अन्न प्रदान करने वाली, श्रेष्ठ हे देवी उषे! आप हमें शत्रुओं का संहार करने वाला बल देकर अन्नों से संयुक्त करें।[ऋग्वेद 1.48.16]
हे उषे! हमको समृद्धिशाली बनाओ और धेनुओं से परिपूर्ण करो। हमारे शत्रुओं का पतन करने वाला और पराक्रम देकर अन्नों से सम्पन्न बनाओ।
Hey Usha Devi! Make us rich & strong with wealth, cows. Hey provider of food, excellent Usha Devi! You should provide us with the strength-power to eliminate the enemy and provide food grains.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त 49 :: ऋषि :- प्रस्कण्व कण्व, देवता :- उषा, छन्द :- अनुष्टुप्।
उषो भद्रेभिरा गहि दिवश्चिद्रोचनादधि।
वहन्त्वरुणप्सव उप त्वा सोमिनो गृहम्॥
हे देवी उषे! द्युलोक के दीप्तिमान स्थान से कल्याणकारी मार्गों द्वारा आप यहाँ आयें। अरुणिम वर्ण के अश्व आपको सोमयाग करनेवाले के घर पहुँचाएँ।[ऋग्वेद 1.49.1]
हे उषे! ज्योतिर्मान क्षितिज से भी उत्तम मार्गों से पधारो। सोमभाग वाले के गृह लाल रंग के अश्व तुम्हें पहुँचाये।
Hey Devi Usha! Let you come here through the glittering-bright, auspicious path like that of the space-heavens. The red coloured horses should take you to the house of the devotee-one performing Som Yagy.
सुपेशसं सुखं रथं यमध्यस्था उषस्त्वम्।
तेना सुश्रवसं जनं प्रावाद्य दुहितर्दिवः॥
हे आकाश पुत्री उषे! आप जिस सुन्दर सुखप्रद रथ पर आरूढ़ हैं, उसी रथ से उत्तम हवि देने वाले याजक की सब प्रकार से रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.49.2]
क्षितिज पुत्री उषे! तुम जिस सुन्दर और सुखदायक रथ पर विराजमान हो, उसके युक्त पधारकर यजमान की सुरक्षा करो।
Hey Usha, the daughter of sky-horizon! You should protect the devotee making best offerings in the Yagy from the chariot you are riding.
One who resort to charity, make donations too is qualified for her blessings. These pious activities too are like Yagy. One perform Varnashram Dharm with dedication, too is qualified for her blessings.
वयश्चित्ते पतत्रिणो द्विपच्चतुष्पदर्जुनि।
उषः प्रारन्नृतूँरनु दिवो अन्तेभ्यस्परि॥
हे देदीप्यमान उषादेवि! आपके आकाश मण्डल पर उदित होने के बाद मानव पशु एवं पक्षी अन्तरिक्ष मे दूर-दूर तक स्वेच्छानुसार विचरण करते हुए दिखायी देते हैं।[ऋग्वेद 1.49.3]
हे उज्ज्वल वर्ण वाली उषे! तुम्हारे आते ही दो पैर वाले व्यक्ति, पंख वाले पक्षी तथा चौपाये पशु आदि सभी ओर विचरने लगते हैं।
Hey shinning-bright Usha Devi! With your arrivals, humans, birds, animals are seen busy in various kinds of activities.
व्युच्छन्ती हि रश्मिभिर्विश्वमाभासि रोचनम्।
तां त्वामुषर्वसूयवो गीर्भिः कण्वा अहूषत॥
हे उषा देवी! उदित होते हुए आप अपनी किरणों से सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करती हैं। धन की कामना वाले कण्व वंशज आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.49.4]
हे उषे! अपनी किरणों से उदय होती हुई सारे संसार को प्रकाशित करती हो। धन की अभिलाषा से कण्ववंशी वंदनाओं द्वारा तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Usha Devi! With your rise your rays lit the whole universe. Kany descendants invite you for want of money, through prayers-worship, singing hymns.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (92) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :-उषा, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्, उष्णिक्।
एता उ त्या उषसः केआपक्रत पूर्वे अर्धे रजसो भानुमञ्जते।
निष्कृण्वाना आयुधानीव घृष्णवः प्रति गावोऽरुषीर्यन्ति मातरः॥
उषा ने आलोक द्वारा प्रकाश किया और वे अन्तरिक्ष की पूर्व दिशा में प्रकाश करती हैं। जैसे अपने सारे शस्त्रों को योद्धा लोग परिमार्जित करते हैं, वैसे ही अपनी दीप्ति के द्वारा संसार का संस्कार करके गमनशीला दीप्तिमती और माताएँ (उषा) प्रतिदिन गमन करती हैं।[ऋग्वेद 1.92.1]
उषायें अन्तरिक्ष के पूर्वार्द्ध में दीप्ति को व्याप्त करती हुई संकेत करती हैं। ये अरुण रंग की धेनुएँ जननी शस्त्रों से सजे हुए पराक्रमियों के समान आगे वृद्धि कर रही है।
The day break illuminated the east. The cows move everyday like the soldiers with arms & ammunition, with dawn.
उदपप्तन्नरुणा भानवो वृथा स्वायुजो अरुषीर्गा अयुक्षत।
अक्रनुषासो वयुनानि पूर्वथा रुशन्तं भानुमरुषीरशिश्रयुः॥
अरुण भानुरश्मियाँ (उषाएँ) उदित हुईं, अनन्तर रथ में जोतने योग्य शुभ्रवर्ण रश्मियों को उषाओं ने रथ में लगाया और पूर्व की तरह समस्त प्राणियों को ज्ञानयुक्त बनाया। इसके पश्चात् दीप्तिमती उषाओं ने श्वेत वर्ण सूर्य को भी अपने आश्रित कर लिया।[ऋग्वेद 1.92.2]
अरुण उषा उदय हो गई। उसने शुभ धेनुओं (किरणों) को रथ में संलग्न किया है।
The dawn-day break deploy the rays of Sun making the living beings conscious.
अर्चन्ति नारीरपसो न विष्टिभिः समानेन योजनेना परावतः।
इषं वहन्तीः सुकृते सुदानवे विश्वेदह यजमानाय सुन्वते॥
नेतृस्थानीया उषा उज्ज्वल अस्त्रधारी योद्धाओं के सदृश हैं और प्रयत्न द्वारा ही दूर देशों को अपने तेज से व्याप्त करती हैं। वे शोभन कर्म कर्ता, सोमदाता और दक्षिणादाता यजमान को समस्त अन्न प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.92.3]
सोम निष्पन्न कर्त्ता श्रेष्ठ कर्मवान तथा दानशील यजमान को दूर से आकर भी उषाएँ सभी धनों को पहुँचाती हुई कार्य में व्यस्त नारियों के समान सुसज्जित होती हैं।
Usha fills all around with aura-brilliance, light. The host, Ritviz engage themselves in pious activities like Yagy, Hawan, prayers-worship.
The women engage themselves daily chore-routine home affairs.
अधि पेशांसि वपते नृतरिवापोर्णुते वक्ष उस्त्रेव बर्जहम्।
ज्योतिर्विश्वस्मै भुवनाय कृण्वती गावो न व्रजं व्युषा आवर्तमः॥
नर्त्तकी की तरह उषा अपने रूप को प्रकाशित करती हैं और जैसे दोहनकाल में गायें अपना स्तन भाग प्रकट करती है, उसी प्रकार उषा भी अपना वक्ष प्रकट करती हैं। जैसे गायें गोष्ठ में शीघ्र जाती है, उसी प्रकार उषा भी पूर्व दिशा में जाकर समस्त भुवनों को प्रकाशमय करके अन्धकार को हटा देती हैं।[ऋग्वेद 1.92.4]
उषा नर्तकी के समान विविध रूपों को धारण करती तथा गौ के समान स्तन प्रकट कर देती है। वह सभी लोकों के लिए प्रकाश को भरती और तम को मिटाती है। उषा की चमक चारों ओर फैल रही है, जिसने व्यापक अंधकार को दूर किया।
Usha acts like a dancer who illustrate-shows her beauty. It acts like the cows who's udders are filled with milk in the morning. It destroys the darkness and fills the atmosphere with light-illumination.
प्रत्यर्ची रुशदस्या अदर्शि वि तिष्ठते बाधते कृष्णमभ्वम्।
स्वरुं न पेशो विदथेष्वञ्जञ्चित्रं दिवो दुहिता भानुमश्रेत्॥
पहले उषा का उज्ज्वल तेज पूर्व दिशा में दिखाई देता है, अनन्तर सारी दिशाओं में व्याप्त होता और अन्धकार दूर हो जाता है। जैसे पुरोहित यज्ञ में आज्य द्वारा यूपकाष्ठ को प्रकट करता है, उसी प्रकार उषाएँ अपना रूप प्रकट करती है। स्वर्ग पुत्री उषा दीप्तिमान सूर्यदेव की सेवा करती है।[ऋग्वेद 1.92.5]
आज्य :: वह घी जिससे आहुति दी जाए, दूध या तेल जो घी के स्थान पर आहुति में दिया जाए, यज्ञ में दी जानेवाली हवि, प्रातः कालीन यज्ञ का एक स्त्रोत।
क्षतिज की पुत्री उषा दिव्य ज्योति से परिपूर्ण हुई। हम उस अंधकार से निकल गये।
The east is filled with glow-aura first. Thereafter, all direction become visible. It is just like the opening of goods like oil-ghee prior to Yagy by the Purohit-Ritviz.
अतारिष्म तमसस्पारमस्योषा उच्छन्ती वयुना कृणोति।
श्रिये छन्दो न स्मयते भाती सुप्रतीका सौमनसायाजीगः॥
हम रात्रि के अन्धकार को पार कर चुके हैं। उषा ने समस्त प्राणियों के ज्ञान को प्रकाशित कर दिया। प्रकाशमयी उषा प्रीति प्राप्त करने के लिए अपनी दीप्ति के द्वारा मानों हँस रही है। प्रकाश करने वाली उषा ने हमारे सुख के लिए अन्धकार को भी विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.92.6]
उषा ने जगहों को साफ कर दिया। वह दमकती हुई स्वच्छन्द भाव से हँस रही है। वह प्रसन्न चित्त हुई सुन्दर मुख वाली नारी के समान सुशोभित है।
Usha has cleared the darkness of night. All organisms are awake. It appears as if she is laughing.
भास्वती नेत्री सूनृतानां दिवः स्तवे दुहिता गोतमेभिः।
प्रजावतो नृवतो अश्वबुध्यानुषो गोअग्राँ उप मासि वाजान्॥
दीप्तिमती और सत्य वचनों की उत्पादयित्री आकाश-पुत्री (उषा) की गौतम वंशीय लोग प्रार्थना करते हैं। हे उषे! आप हमें पुत्र-पौत्र, दास-परिजन, अश्व और गौ से युक्त अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.92.7]
प्रिय सत्यवाणी की और प्रेरित की पत्री उषा गौतमों द्वारा पजनीय है और प्रेरित करने वाली, दमकती हुई आकाश की पुत्री उषा गौतमों द्वारा पूजनीय है। हे उषे! तुम हमको पुत्र-पौत्र और अश्वों से युक्त ऐश्वर्य प्रदान करो।
Descendants of Gautom pray-worship Usha. She is brilliant-shinning and invoke truthful words. We pray to her for sons & grandsons, servants-slaves, along with cows, horses and riches.
उषस्तमश्यां यशसं सुवीरं दासप्रवर्गं रयिमश्वबुध्यम्।
सुदंससा श्रवसा या विभासि वाजप्रसूता सुभगे बृहन्तम्॥
हे उषे! हम यश, वीर, दास और अश्व से संयुक्त धन प्राप्त करें। हे सुभगे! आप सुन्दर यज्ञ में स्तोत्र द्वारा प्रसन्न होकर हमें अन्न प्रदान कर यथेष्ट धन भी देवें।[ऋग्वेद 1.92.8]
हे उषे। तू सौभाग्यशाली है। मुझे सुंदर पुत्रों, सेवकों, अश्वों से युक्त उस यश से परिपूर्ण धन को प्राप्त कराओ।
Hey Usha! Please grant us riches, honour-fame, slaves-servants, horses. Hey lucky! You should be pleased in this Yagy through the Strotr recited by us and give us sufficient food grins and riches.
विश्वानि देवी भुवनाभिचक्ष्या प्रतीची चक्षुरुर्विया वि भाति।
विश्वं जीवं चरसे बोधयन्ती विश्वस्य वाचमविदन्मनायोः॥
उज्ज्वल उषा समस्त भुवनों को प्रकाशित करके, प्रकाश द्वारा पश्चिम दिशा में विस्तृत होकर, दीप्तिमयी होती है। उषा समस्त जीवों को अपने-अपने कार्यों में लगाने के लिए जागृत, कर देती हैं। उषा बुद्धिमान् लोगों की बातें अर्थात् प्रार्थना सुनती है।[ऋग्वेद 1.92.9]
जिसे तू अपने पराक्रम से और कर्मों द्वारा प्रेरित करती हुई सभी जगत को देखती हुई देवी पश्चिम की ओर दमकती और समस्त जीवों को गति प्रदान करती हुई चैतन्य करती है। यह चिन्तनशील प्राणधारियों की वाणी को जानने वाली है।
Usha lit all the buildings, spreads and moves to west. It awakes all the living beings to get up and start with their daily chores-routine work. It listens to the demands of the prudent-intelligent beings.
पुनः पुनर्जायमाना पुराणी समानं वर्णमभि शुम्भमाना।
श्वघ्नीव कृत्नुर्विज आमिनाना मर्तस्य देवी जरयन्त्यायुः॥
जैसे व्याध स्त्री उड़ती चिड़िया का पंख काटकर हिंसा करती है, उसी प्रकार पुनः-पुनः आविर्भूत, नित्य और एक रूपधारिणी उषा देवी अनुदिन अर्थात् प्रत्येक दिन समस्त प्राणियों के जीवन का ह्रास करती है।[ऋग्वेद 1.92.10]
बार-बार प्रकट होती हुई और समान रूप से सभी ओर सुसज्जित हुई यह प्राचीन उषा मरणशील जीवों की आयु कमजोर करने वाली है, जैसे व्याघ्र नारियाँ पक्षियों के मारती हुई उनकी गिनती करती हैं।
The way a hunter woman resort to violence by cutting the feather of the flying birds, Usha reduces the life span of all living beings everyday.
व्यूर्वती दिवो अन्ताँ अबोध्यप स्वसारं सनुतर्युयोति।
प्रमिनती मनुष्या युगानि योषा जारस्य चक्षसा वि भाति॥
आकाश से अन्धकार को हटाकर सबके पास उषा जीवों द्वारा विदित होती है। उषा गमनकारिणी अथवा अपनी बहन रात्रि को समाप्त करती है। प्रणयी (सूर्य) की स्त्री उषा मनुष्यों की आयु का ह्रास करके विशेष रूप से प्रकाशित होती है।[ऋग्वेद 1.92.11]
वह नारी क्षितिज की सीमाओं को प्रकट करने वाली है। अपनी बहिन (रात्रि) को दूर कर छिपाती है। वह मनुष्यों से युगों का ह्रास करने वाली अपने प्रेमी दर्शन से चमकती है।
Usha eliminates the darkness & night. It awakes all organisms. She illuminate due to the Sun light. It reduces the age of humans.
With the day break, one day of the life of humans is over-lost.
पशून्न चित्रा सुभगा प्रथाना सिन्धुर्न क्षोद उर्विया व्यश्चैत्।
अमिनती दैव्यानि व्रतानि सूर्यस्य चेति रश्मिभिर्दृशाना॥
जैसे पशु पालक पशुओं को चराता है, वैसे ही सुभगा और पूजनीया उषा अपने तेज को विस्तृत करती है। नदी की तरह विशाल उषा समस्त संसार को व्याप्त करती हैं। उषा देवों के यज्ञ का अनुष्ठान कर, सूर्य रश्मि के साथ दिखाई देती है।[ऋग्वेद 1.92.12]
उज्ज्वल वर्ण शाली सौभाग्यशालिना उषा जीवों के समान वृद्धि को प्राप्त हुई और सरिताओं के समान फैलती है। वह देवगणों के नियमों की आलोचना नहीं करती और सूर्य की किरणों सहित दिखती है।
Usha expand its brightness and pervades the universe. It becomes visible with the rays of Sun. With the day break-dawn, Yagy, rituals begin.
उषस्तच्चित्रमा भरास्मभ्यं वाजिनीवति।
येन तोकं च तनयं च घामहे॥
हे अन्न युक्त उषे! हमें विचित्र धन प्रदान करो, जिसके द्वारा हम पुत्रों और पौत्रों का पालन पोषण कर सकें।[ऋग्वेद 1.92.13]
हे उषे! तू अत्यन्त अन्न वाली है। उस दिव्य अन्न को हमारे लिए लाओ जिससे हम अपने पुत्र आदि का पालन कर सकें।
Hey Usha grant (give, provide) riches (food grains, wealth, cows, horses), so that we can nourish-grow our sons and grand children.
उषो अद्येह गोमत्यश्वावति विभावरि।
रेवदस्मे व्युच्छ सूनृतावति॥
गौ, अश्व और सत्य वचन से युक्त तथा दीप्तिमयी उषे आज यहाँ हमारा धन युक्त यज्ञ जैसे हो, वैसे ही आप प्रकाशित हों।[ऋग्वेद 1.92.14]
गौ, सूर्य, अश्व, सत्यवाणी से परिपूर्ण उषे! तुम हमारे लिए धनवाली होकर आओ।
Hey bright Usha illuminate our Yagy, support it with money, since you posses cows, horses, truthful words.
युक्ष्वा हि वाजिनीवत्यश्वाँ अद्यारुणाँ उषः।
अथा नो विश्वा सौभगान्या वह॥
हे अन्न युक्त उषे! आज अरुण अर्थात् लाल रंग के घोड़े अथवा गौ नियोजित करें और हमारे लिए समस्त सौभाग्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.92.15]
हे अत्यन्त अन्न वाली उषे! अरुण अश्वों को जोड़कर हमारे लिए सभी सौभाग्यों को लाने वाली बनो।
Hey Usha, you possess food grains! Let red horses or cows be deployed to bring us good luck by her.
अश्विना वर्तिरस्मदा गोमद्दस्त्रा हिरण्यवत्।
अर्वाग्रथं समनसा नि यच्छतम्॥
हे शत्रु मर्दक अश्विनी कुमारो! हमारे घर को गौ और रमणीय धन से युक्त करने के लिये समान मनोयोगी होकर अपने रथ को हमारे घर की ओर लाओ।[ऋग्वेद 1.92.16]
हे भयंकर कर्म वाले अश्विनी देवो! तुम एक मन वाले, गाय व अश्वों से युक्त अपने रथ को हमारे भवन के सामने रोको।
Hey enemy slayer Ashwani Kumars! Prepare your mind to bring cows and riches to our house.
यावित्या श्लोकमा दिवो ज्योतिर्जनाय चक्रथुः।
आ न ऊर्जं वहतमश्विना युवम्॥
हे अश्वनी कुमारो! आप लोगों ने आकाश से प्रशंसनीय ज्योति प्रेरित की है। आप हमको शक्तिशाली अन्न भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.92.17]
हे अश्विनी कुमारों! तुमने क्षितिज से साधनों को लाकर मनुष्यों को प्रकाश प्रदान किया है। तुम हमारे लिए भी शक्ति लाने वाले बनो।
Hey Ashwani Kumars! You have inspired the brilliance in the sky. Please five us food grains which can make us strong.
एह देवा मयोभुवा दस्त्रा हिरण्यवर्तनी।
उषर्बुधो वहन्तु सोमपीतये॥
प्रकाशमान, आरोग्यप्रद, सुवर्ण रथ युक्त सुयुक्त एवं विजयी अश्विनी कुमारों को सोमपान करने के लिए उषाकाल में उनके धोड़े जागकर यहाँ ले आयें।[ऋग्वेद 1.92.18]
स्वर्णिम मार्ग वाले सुख प्रदान करने वाले अश्विनी कुमारों को उषा काल में चैतन्य हुए उनके घोड़े सोम पीने के लिए यहाँ लायें।
Let Ashwani Kumars your horses bring illuminated chariot having goods to make us healthy, here, to drink Somras in the morning.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (113) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- उषा, रात्रि आदि, छंद :- त्रिष्टुप् पंक्ति।
इदं श्रेष्ठं ज्योतिषां ज्योतिरागाचित्रः प्रकेतो अजनिष्ट विभ्वा।
यथा प्रसूता सवितुः सवायँ एवा रात्र्युषसे योनिमारैक्॥
ज्योतियों में श्रेष्ठ यह ज्योति (उषा) आई हैं। उषा की विचित्र और जगत्प्रकाशक रश्मि भी व्याप्त होकर प्रकाशित हुई है। जैसे रात्रि सविता द्वारा प्रसूत हैं, वैसे ही रात्रि ने भी उषा की उत्पत्ति के लिए जन्म स्थान की कल्पना की है अर्थात् रात्रि सूर्य की सन्तान है और उषा रात्रि की सन्तान हैं।[ऋग्वेद 1.113.1]
यह दीप्तियों में महान दीप्ति प्रकट हुई। दिव्य प्रकाश सर्वत्र फैल गया। रात ने जैसे सूर्य से जन्म लिया था, वैसे ही उषा के लिए अपना स्थान ने दिया।
Excellent (the best, greatest) amongst the rays of light Usha has come. It spread the divine light in the universe. The way, Ratri-night is born out of Savita, Usha is born out of Savita.
रुशद्वत्सा रुशती श्वेत्यागादारैगु कृष्णा सदनान्यस्याः।
समानबन्यू अमृते अनूची द्यावा वर्णं चरत आमिनाने॥
दीप्तिमती शुभ्र वर्णा सूर्य माता उषा पधारी हैं। कृष्ण वर्णा रात्रि अपने स्थान को गई है। रात्रि और उषा दोनों ही सूर्य की बन्धुत्व सम्पन्ना और भरण रहिता हैं। ये एक-दूसरे के पीछे आती हैं और एक-दूसरे के वर्ण का विनाश करती हैं।[ऋग्वेद 1.113.2]
श्वेत रंग के बछड़े के समान चमकती हुई उषा आ गई। रात्रि ने इसके लिए स्थान छोड़ दिया। ये दोनों आपस में बंधी हुई ऊपर आकाश में क्रमपूर्वक गति करती हुई एक दूसरे के रंग को समाप्त कर देती हैं।
Bright, white coloured, Usha has arrived. The dark coloured night has gone to its place of origin. Both of these Usha and night are complementary of the Sun and vanish the colour of each other, coming one after another.
समानो अध्वा स्वस्त्रोरनन्तस्तमन्यान्या चरता दवाशिष्टे।
न मेथते न तस्थतुः सुमेके नक्तोषासा समनसा विरूपे॥
इन दोनों बहनों (उषा और रात्रि) का एक ही अनन्त सञ्चरण मार्ग दीप्तिमान् सूर्य द्वारा निर्दिष्ट है। वे दोनों एक के पश्चात् एक उसी मार्ग पर भ्रमण करती हैं। समस्त पदार्थों को उत्पन्न करने वाली रात्रि और उषा विभिन्न रूप धारण करने पर भी समान मनयुक्ता है। वे आपस में बाधा नहीं देतीं और न ही कहीं रुकती हैं।[ऋग्वेद 1.113.3]
इन दोनों वाहनों का रास्ता एक ही है, उन पर देवों का शिक्षा से यह बार-बार यात्रा करती है। एक हृदय वाली वह उषा और रात्रि विभिन्न रंग की है और परस्पर टकतराती नहीं है।
The path of both of these sisters is the one followed by the Sun. The travel over the same path one after another. Though they have different shades, yet they are identical in nature (tendencies-working). They do not interfere with one another.
भास्वती नेत्री सूनृतानामचेति चित्रा वि दुरो न आवः।
प्रार्ष्या जगद्वयु नो रायो अख्यदुषा अजीगर्भुवनानि विश्वा॥
हम प्रभा संयुक्ता सूमृत वाक्य नेत्री विचित्रा उषा देवी को जानते हैं; उन्होंने हमारा द्वार खोल दिया। उन्होंने सम्पूर्ण संसार को प्रकाश युक्त करके हमारे धन को प्रकाशित किया। उन्होंने समस्त लोकों अपनी किरणों से प्रकाशमय कर दिया।[ऋग्वेद 1.113.4]
प्रार्थनाओं से प्राप्त कांतिमयी उषा आयी। उसने हमारे लिए कर्म के क्षेत्र का दरवाजा खोल दिया। संसार को कार्यों में प्रेरित कर धनों को प्रकट किया। उसने सब भुवनों को प्रकाश से परिपूर्ण कर दिया।
We know-identify Usha, who opens our doors (which were shut at night). She lighted the whole universe and our money-wealth. She lighted all abode, higher and lower, with its rays.
जिह्यश्ये चरितवे मघोन्याभोगय इष्टये राय उ त्वम्।
दभ्रं पश्यद्भ्य उर्विया विचक्ष उषा अजीगर्भुवनानि विश्वा॥
जो लोग टेढ़े होकर शयन करते हैं, उनमें से किसी को भोग के लिए, किसी को यज्ञ के लिए और किसी को धन के लिए सबको अपने-अपने कर्मों के लिए उषा देवी को जागरित किया। जो थोड़ा देख सकते हैं, उनकी विशेष रूप से दृष्टि के लिए उषा अन्धकार दूर करती हैं। विस्तीर्ण उषा ने समस्त लोकों को प्रकाशित कर दिया।[ऋग्वेद 1.113.5]
सिकुड़कर सोते हुए यह धनेश्वरी उषा चैतन्य करती है वह भोग, अर्चना, धन, दृष्टि, आरोग्य की शिक्षा प्रदान करती समस्त भुवनों की दीप्ति से भर देती है। राज्य, कीर्ति, अनुष्ठान, अपेक्षित कर्म और आजीविका और मनुष्यों को प्रेरित करने वाली उषा ने समस्त भुवनों पर अधिकार जमा लिया।
Devi Usha wake up, make conscious all those who are sleeping with bended legs. Some of them awake for enjoyment, some for Yagy and others for earning money to accomplish their targets, desires. Usha Devi spread light to all abodes. Even those with low visibility can see now.
क्षत्राय त्वं श्रवसे त्वं महीया इष्टये त्वमर्थमिव त्वमित्यै।
विसदृशा जीविताभिप्रचक्ष उषा अजीगर्भुवनानि विश्वा॥
किसी को धन के लिए, किसी को अन्न के लिए, किसी को महायज्ञ के लिए और किसी को अभीष्ट प्राप्ति के लिए उषा देवी जगाती हैं। उन्होंने विविध जीविकाओं के प्रकाश के लिए समस्त लोकों को प्रकाशमय कर दिया।[ऋग्वेद 1.113.6]
यह निर्मल वसना युवती सभी पार्थिव धना का दाता है। वह आकाश की पुत्री सौभाग्य से खिल उठती है। वह आज यहाँ खिल उठे।
Some are awaken for earning money, some for food grains, some for conducting a huge-large scale Yagy and for attaining the desires targets. She lighted all abodes to make the inhabitants earn their livelihood through various deeds, professions-jobs, endeavours.
एषा दिवो दुहिता प्रत्यदर्शि व्युच्छन्ती युवतिः शुक्रवासाः।
विश्वस्येशाना पार्थिवस्य वस्व उषो अद्येह सुभगे व्युच्छ॥
वह नित्य यौवन सम्पन्ना, शुभ्र वसना, आकाश की पुत्री उषा देवी अन्धकार को दूर करती हुई मनुष्यों को दृष्टिगोचर हुई हैं। वह सम्पूर्ण पार्थिव धनों की अधीश्वरी हैं। हे सुभगे! आप आज यहाँ अन्धकार दूर करें।[ऋग्वेद 1.113.7]
प्रतिदिन आने वाली उषाओं में यह उषा विगत उषाओं की राह पर चलती है। यह जीवित को प्रेरणा देने वाली उषा मृतवत् को भी चैतन्य कर देती है।
सुभगा :: सौभाग्यवती स्त्री, सधवा, ऐसी स्त्री जो अपने पति को प्रिय हो, प्रियतमा पत्नी, कार्तिकेय की एक अनुचरी, पाँच वर्ष की बालिका, संगीत में एक प्रकार की रागिनी, तुलसी, हलदी, नीली दूब, केवटी मोथा, कस्तूरी, प्रियंगु, सोन केला, बेला; deity-goddess who grant god luck.
The ever-always young, clothed in white clothed, the daughter of the sky removes darkness is visualised by the humans. She is the Goddess of all physical-material wealth. Hey Subhage (the deity-goddess of good luck)! Please remove the darkness of this place.
परायतीनामन्वेति पाथ आयतीनां प्रथमा शश्वतीनाम्।
व्युच्छन्ती जीवमुदीरयन्त्युषा मृतं कं चन बोधयन्ती॥
पहले की उषायें जिस अन्तरिक्ष मार्ग से गई हैं, उसी से उषा जाती हैं और आगे अनन्त उषायें भी उसी मार्ग का अनुगमन करती हैं। उषा अन्धकार को दूर करके तथा प्राणियों को जागृत करके मृतवत् संज्ञा शून्य लोगों को चैतन्यता प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.113.8]
हे उषे! तुमने हविदान के लिए अग्नि ज्योर्तिमान की और सूर्य की ज्योति से अंधकार को मिटा दिया। यज्ञ में संलग्न मनुष्यों के लिए प्रकाश प्रदान किया।
The consecutive infinite Ushas follow the same path-tract. The remove the darkness and make the living being conscious. Those busy with Yagy get light.
उषो यदग्निं समिधे चकर्थ वि यदावश्चक्षसा सूर्यस्य।
यन्मानुषान्यक्ष्यमाणाँ अजीगस्तद्देवेषु चकृषे भद्रमनः॥
हे उषादेवी! आपने होमार्थ अग्नि प्रज्वलित की, सूर्य के प्रकाश से अन्धकार को दूर किया और यज्ञरत मनुष्यों को अन्धकार से मुक्त किया; इसलिए आपने देवताओं के उपकार के लिए कार्य किया।[ऋग्वेद 1.113.9]
तुम्हारा यह कर्म देवगणों के लिए भी हितकर है। जो उषाएँ खिली हैं और जो अब खिलेंगी वह निकटस्थ उषा कितनी देर ठहरेगी, जो बीती हुई उषाओं का इतना विचार करती तथा आगे आने वालियों का हर्ष करती है।
Hey Usha Devi! You ignited the fire to perform Yagy, removed darkness with the light from the Sun, cleared the Yagy conducting people from darkness. You did this to do favours for demigods-deities.
कियात्या यत्समया भवाति या व्यूषुर्याश्च नूनं व्युच्छान्।
अनु पूर्वाः कृपते वावशाना प्रदीध्याना जोषमन्याभिरेति॥
उषा कब से उत्पन्न होती है और उत्पन्न होंगी? वर्तमान उषा पूर्व की उषाओं का साग्रह अनुसरण करती हैं और आने वाली उषायें इन दीप्तिमती उषा का अनुधावन करेंगी।[ऋग्वेद 1.113.10]
जिन्होंने पुरानी उषाओं को खिलते हुए देखा, वे मरकर चले गये। इसे हम देखते हैं और आने वाली उषाओं को वे देखेंगे जो आगे आएँगे।
अनुधावन :: वे जो सूत्रों, विनय और अभिधर्म के अनुसार शुद्धि की बारीकी निरूपित करते हैं, (उदाहरण :- केवल पुस्तकों का अनुधावन करते हैं, उनका मर्म या आन्तरिक अभिप्राय नहीं समझते), पीछा, लक्ष्य, धंधा, chase, backside, target, goal, aim, objective, destination, pursuit, trade, pursuit, metier.
Since when, Usha has been appearing and when will it appear (take birth)?! The present Ushas follow the Ushas which appeared earlier. The next-new Ushas will follow the path of the earlier Ushas.
ईयुष्टे ये पूर्वतरामपश्यन्व्युच्छन्तीमुषसं मर्त्यासः।
अस्माभिरू नु प्रतिचक्ष्याभूदो ते यन्ति ये अपरीषु पश्यान्॥
जिन मनुष्यों ने अतीव प्राचीन समय में आलोक प्रकाशित करते हुए देवी उषा को देखा था, वे इस समय नहीं है। हम उषा देवी को देखते हैं; आगे जो लोग उषा देवी को देखेंगे, वे भी आ रहे हैं।[ऋग्वेद 1.113.11]
हे उषे! सत्य की पराजित करने वाली, सिद्धान्तों में दृढ़ वंदनाओं की प्रेरक देवों के लिए, हवि धारक महान तुम आज यहाँ प्रकट होओ। प्राचीन समय में धन से परिपूर्ण उषा प्रकट होती थी।
Those humans who had seen the earlier Ushas lighting the universe are not present-surviving now. We see the Usha Devi at present & ,those who will birth next will also Usha Devi.
यावयद्वेषा ऋतपा ऋतेजाः सुम्रावरी सूनृता ईरयन्ती।
सुमङ्गलीर्बिभ्रती देववीतिमिहाघोषः श्रेष्ठतमा व्युच्छ॥
उषा देवी द्वेष करने वाले निशाचरों को दूर करती हैं, यज्ञ का पालन करती हैं, यज्ञ के लिए आविर्भूत होती हैं, सुख देती हैं और सूनृत शब्द प्रेरण करती हैं। उषा देवी कल्याण कारिणी हैं और देवों का वाञ्छित यज्ञ धारण करती है। हे उषादेवी! आप उत्तम रूप से आज इस स्थान पर आलोक प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 1.113.12]
आज उषा ने संसार को प्रकाशमान किया है। भविष्य में तू भी खिलेगी अजर-अमर यह उषा अपनी कामना से वेगवान है। उषा अपने तेज से आकाश में चमक उठी। उसने काले अंधकार को दूर कर दिया।
सूनृत :: सत्य और प्रिय भाषण, सत्य, धर्म की पत्नी का नाम, उत्तानपाद की पत्नी का नाम, एक अप्सरा का नाम, ऊषा, खाद्य, आहार, उत्कृष्ट संगीत; comfort granting.
Usha Devi target-eliminate the demons-giants, who are active at night (निशाचर) nourish the Yagy & is evolved for the Yagy, grant comfort-pleasure and spread bliss. Usha Devi looks after the welfare and looks after the benefit of living beings. We pray to her to light the place where we live.
शश्वत्पुरोषा व्युवास देव्यथो अद्येदं व्यावो मघोनी।
अथो व्युच्छादुत्तराँ अनु द्यूनजरामृता चरति स्वधाभिः॥
पहले उषा देवी प्रतिदिन उदित होती थीं; आज भी धनवती उषा इस संसार को अन्धकार से मुक्त करती है; इसी प्रकार आगे भी दिन-दिन उदित होंगी, क्योंकि वे अजरा और अमरा होकर अपने तेज से भ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 1.113.13]
जीवों को चैतन्य करती हुई वह अरुण अश्वों वाले रथ में बैठकर जाती है। पालक तथा वरणीय धनों को दिलाने वाली यह उषा ज्ञान के लिए निर्मल प्रकाश को भरती हुई विगत उषाओं को दिलाने वाली यह उषा ज्ञान के लिए निर्मल प्रकाश को भरती हुई विगत उषाआ से भी अत्यधिक महत्त्व वाली है।
Usha Devi used to evolve earlier and still eliminate the darkness of this world. New Ushas will appear day after another day since they are immortal and moves fast.
व्यञ्जिभिर्दिव आतास्वद्यौदप कृष्णां निर्णिजं देव्यावः। प्रबोधयन्त्यरुणेभिरश्वैरोषा याति सुयुजा रथेन॥
आकाश की विस्तृत दिशाओं को आलोक युक्त तेज से उषा देवी दीप्तिमान करती हैं। इन्होंने रात्रि के काले रूप को दूर कर सोये हुए प्राणियों को जगाकर ये अरुण अश्व वाले रथ से आ रही हैं।[ऋग्वेद 1.113.14]
हे मनुष्यों! उठो, हम सभी के प्राण-रूप सूर्य आ गये। अंधकार दूर हो गया। उषा ने सूर्य के लिए रास्ता बनाया। हम उम्र की वृद्धि करने वाली जगह में पहुँच गये। कांतिमती उषाओं की वंदना करने वाला चुने हुए शब्दों को निकालता है।
Usha Devi fills the sky-universe with light. She wakes up the living beings, coming riding the chariot deployed with the horses called Arun.
आवहन्ती पोष्या वार्याणि चित्रं केतुं कृणुते चेकिताना।
ईयुषीणामुपमा शश्वतीनां विभातीनां प्रथमोषा व्यश्चैत्॥
उषा देवी पोषक और वरणीय धन लाकर और सबको चैतन्यता देकर विचित्र रश्मि से प्रकाशित करती हैं। यह विगत उषाओं में अन्तिम हैं और आने वाली उषाओं में सर्वप्रथम हैं, इसलिए अपने उत्तम रूप और श्रेष्ठ आभा से प्रकाशमय हो रही हैं।[ऋग्वेद 1.113.15]
हे उषे! आज उस वंदनाकारी के लिए ग्रहण होकर सन्तति परिपूर्ण उम्र को प्रदान करो। गौ धन और वीर संतान वाली उषाएँ हविदाता के लिए प्रकट होती हैं। उन अश्व देने वालियों को वंदना परिपूर्ण होने पर सोम निष्पन्नकर्त्ता पवन वेग से प्राप्त करें।
Usha Devi makes the world conscious and bring the nourishing money with amazing rays of light. She is the last amongst the previous Ushas and first amongst the next evolving Ushas. That's why she is glittering with excellent aura.
उदीर्ध्वं जीवो असुर्न आगादप प्रागात्तम आ ज्योतिरेति।
आरैक्पन्थां यावे सूर्यायागन्म यत्र प्रतिरन्त आयुः॥
हे मनुष्यों! उठो, हमारा शरीर संचालक जीवन आ गया है। अन्धकार समाप्त हो गया व आलोक आया है। उषा देवी ने सूर्य देव के जाने के लिए रास्ता बना दिया हैं। हे उषादेवी! जिस देश में आप अन्न प्रदान करके उसे बढ़ाती हो, वहाँ हम भी जायेंगे।[ऋग्वेद 1.113.16]
सूर्य के लिए रास्ता बनाया। हम उम्र की वृद्धि करने वाल उषाओं की वंदना करने वाला चुने हुए शब्दों को निकालता है। हे उषादेवी! आज उस वंदनाकारी के लिए ग्रहण होकर सन्तति परिपूर्ण उम्र को प्रदान करो।
Hey humans get up. The time-moment for us to operate, perform live, survive has come. Darkness has ended and the glow of the day has come-arrived. Hey Usha Devi! We will come to the land where you provide food and make it progress.
स्यूमना वाच उदियर्ति वह्निः स्तवानो रेभ उषसो विभातीः।
अद्या तदुच्छ गृणते मघोन्यस्मे आयुर्नि दिदीहि प्रजावत्॥
स्तुति करने वाले मनुष्य प्रभावती उषा की स्तुति करके सुग्रंथित वेदवाक्य का उच्चारण करते है। हे धनवती उषादेवी! आज उन प्रार्थना करने वाले मनुष्यों का अन्धकार दूर कर उन्हें सन्तान और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.113.17]
गौ धन और दर संतान वाली उषाएँ हविदाता के लिए प्रकट होती हैं। उन अश्व देने वालियों को वंदना परिपूर्ण होने पर सोम निष्पन्नकर्त्ता पवन वेग से प्राप्त करें।
The worshiping humans pray to shinning Usha Devi, with the verses in the holy books having the stanzas from the Veds. Hey wealth granting Usha! You give-grant progeny and money to those who pray-worship you.
या गोमतीरुषसः सर्ववीरा व्युच्छन्ति दाशुषे मर्त्याय।
वायोरिव सूनृतोनामुदर्के ता अश्वदा अश्नवत्सोमसुत्वा॥
जो गौ संयुक्त और सर्व वीर सम्पन्न उषायें वायु की तरह शीघ्र सूनृत स्तुति के समाप्त होने पर हव्य देने वाले मनुष्य का अन्धकार विनष्ट करती हैं, वे अश्व दात्री उषाएँ सोम यज्ञ सम्पादित करने वाले साधकों के पास जाती हैं।[ऋग्वेद 1.113.18]
हे वरणीय उषे! तुम देख पाता अदिति के मुख रूप और अनुष्ठान की ध्वजा रूप होकर महत्तापूर्वक चमको हमारी मंत्र रूपी वंदनाओं की प्रशंसा करती प्रकट होओ और हमें यशस्वी बनाओ।
The Ushas associated-accompanied with cows, with all powers moves with the speed of air-wind closer to the humans making offerings in the Hawan Kund, performing Som Yagy, destroy the darkness & grant horses to them.
माता देवानामदितेरनीकं यज्ञस्य केतुर्बृहती वि भाहि।
प्रशस्तिकृद्ब्रह्मणे नो व्युच्छा न जने जनय विश्ववारे॥
हे उषादेवी! आप देवों की माता हैं, अदिति की प्रतिस्पर्द्धिनी है। आप यज्ञ का प्रकाश हैं व विस्तीर्ण होकर किरण प्रदान करती हैं। हमारे स्तोत्र की प्रशंसा करके हमारे ऊपर उदित होती हैं। हे सबकी वरणीया उषे! हमें श्रेष्ठ मार्ग से उत्तम लोकों में ले चलें।[ऋग्वेद 1.113.19]
हे वरणीय उषे! तुम देव माता अदिति के मुखरूप और अनुष्ठान की ध्वजा रूप होकर महत्तापूर्वक चमको। तुम हमारी मंत्र रूपी वंदनाओं की प्रशंसा करती प्रकट होओ और हमें यशस्वी बनाओ।
Hey Usha Devi! You are the mother of demigods-deities and a competitor of Dev Mata Aditi. You are the light-spirit of the Yagy and provide illumination with long-broad rays. You appreciate our prayers and rise over us. Hey all boon granting Usha Devi! You are affectionate-acceptable to all. Please take us-elevate us to the upper abode through the best path.
यच्चित्रमन उषसो वहन्तीजानाय शशमानाय भद्रम्।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
उषायें जो कुछ विचित्र और ग्रहण योग्य धन लाती हैं, वह यज्ञ सम्पादक स्तोता के कल्याण स्वरूप है। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी इस प्रार्थना को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.113.20]
उषाएँ जिन दिव्य गुणों को लाती हैं, वे यज्ञकर्त्ता और स्तोता को मंगलकारी हों। मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश हमारी इस विनती को अनुमोदित करें।
Ushas bring amazing wealth acceptable to all. She is like the Stota-one who conduct Yagy for the welfare of the humanity. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu-ocean, Dharti-earth and Akash-sky accomplish-complete our prayer.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (123) :: ऋषि :- दैर्घतमस, कक्षीवान्, देवता :- उषा, इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
पृथू रथो दक्षिणाया अयोज्यैनं देवासो अमृतासो अस्थुः।
कृष्णादुदस्थादर्या विहायाश्चिकित्सन्ती मानुषाय क्षयाय॥
उषा का रथ अश्वयुक्त हुआ। अमर देवगण उस रथ पर आरूढ़ हुए। कृष्ण वर्ण अन्धकार से उत्थित, पूजनीय, विचित्र गतिमती और मनुष्य के निवास स्थानों का रोग दूर करने वाली उषा उदित हुई।[ऋग्वेद 1.123.1]
दक्षिण की ओर उषा का रथ मुड़ गया। अमर देव इस पर सवार हो गये। व्याधियों का पतन करने वाली उषा क्षितिज से उठ पड़ी।
विचित्र :: चितला, बहुरंगा, रंग-बिरंग, अजीब, अनोखा, विलक्षण; bizarre, quaint, pied.
Chariote of Usha was deployed with the horses. The immortal demigods-deities rode it. Worshipable, Usha rose to illuminate, remove darkness, with bizarre speed to remove diseases the abodes of the humans.
पूर्वा विश्वस्माद्भुवनादबोधि जयन्ती वाजं बृहती सनुत्री।
उच्चा व्यख्यद्युवतिः पुनर्भूरोषा अगन्प्रथमा पूर्वहूतौ॥
समस्त जीवों के पहले उषा जागती हैं। उषा अन्न देने वाली, महती और संसार को सुख प्रदत्त करती हैं। वह युवती हैं; बार-बार आविर्भूत होती हैं और ऊँचे स्थान से सबको देखते हुए हमारे आवाहन पर सबसे पहले आती हैं।[ऋग्वेद 1.123.2]
धन को जीतने वाली उषा सबसे पहले जागी। वह युवती है। बार-बार प्रकट होती है। हमारे आह्वान पर वह सर्वप्रथम पधारती है।
Usha is the first one to awake the creatures-organisms. She grants the food grains and pleasure, comforts. She is young and rise again and again. She is the first one to appears when we call her.
यदद्य भागं विभजासि नृभ्य उषो देवि मर्त्यत्रा सुजाते।
देवो नो अत्र सविता दमूना अनागसो वोचति सूर्याय॥
हे उषादेवी! आप मनुष्यों की पालिका हैं। आप सभी मनुष्यों को जो प्रकाश प्रदान करती हैं, उसी दान के प्रति प्रेरित करने वाले सूर्यदेव के सामने हमें पाप रहित बनावें।[ऋग्वेद 1.123.3]
हे उत्तम प्रकाश से उत्पन्न उषे! तुम प्राणियों को प्रकाश और अन्न का भाग देती हो । दान के प्रेरक, देव, सूर्य उदय होने पर हमको पाप से रहित मानकर ग्रहण करें।
Hey Usha Devi! You are the nurturer of all humans. The light provided to us you, should make us sinless just like the donations from Sun-Sury Dev.
गृहंगृहमहना यात्यच्छा दिवेदिवे अधि नामा दधाना।
सिषासन्ती द्योतना शश्वदागादग्रमग्रामिद्भजते वसूनाम्॥
उषा प्रतिदिन नभ्र भाव से हर एक प्राणी के घर की ओर जाती हैं। ये भोगेच्छाशालिनी और द्युतिमती प्रतिदिन आगमन करतीं और हव्यरूपी धन का श्रेष्ठ भाग ग्रहण करती हैं।[ऋग्वेद 1.123.4]
नित्य उषा अपने श्रेष्ठ रूप से प्रत्येक गृह में जाती है। वह कांतिमयी सदव अभिलाषा करती हुई महान धनो को वितरित करती है।
Usha politely moves to the house of all beings-organism. She comes everyday with fast speed, for the fulfilment of her desires and accept the best component of the offerings.
भगस्य स्वसा वरुणस्य जामिरुषः सूनृते प्रथमा जरस्व।
पश्चा स दध्या यो अघस्य धाता जयेम तं दक्षिणया रथेन॥
हे सूनृता उषादेवी! आप सूर्य की भगिनी और वरुण देव की सहजाता हैं। आप सर्वश्रेष्ठ हैं। समस्त देवता आपकी स्तुति करते हैं। इसके अनन्तर जो दुःख का उत्पादक है, वह आवे। आपकी सहायता से ही हम उसे पराजित करें।[ऋग्वेद 1.123.5]
हे दया मयी उषे! तुम भग (सूर्य) की बहन और वरुण की पुत्री हो। तुम प्रार्थना के स्वर सुनो। पापियों को पीछे फेंक दो, उन्हें हम तुम्हारे द्वारा प्रेरित रथ से हटा दें।
सूनृता :: सत्य और प्रिय भाषण, सत्य, धर्म की पत्नी का नाम, उत्तानपाद की पत्नी का नाम, एक अप्सरा का नाम, ऊषा (को कहते हैं), खाद्य-आहार (को कहते हैं), उत्कृष्ट संगीत; truth and dear speech, truth, name of the wife of Dharm, Uttanapad's wife's name, the name of a heavenly nymph, Usha, Food. Diet, excellent music.
Hey truthful Usha! You are the sister of Sun & daughter of Varun Dev (possess the characters of both Sun-Sury Dev & Varun Dev). You are the best. All demigods-deities pray-worship you. Any one-the sinner who causes pain, sorrow, worries may come and we will expel-repel him.
उदीरतां सूनृता उत्पुरंधीरुदग्नयः शुशुचानासो अस्थुः।
स्पार्हा वसूनि तमसापगूळ्हाविष्कृण्वन्त्युषसो विभातीः॥
अपने मुख द्वारा हम पवित्र स्तोत्रों का गायन करें और अपनी बुद्धि उत्तम कर्मों में लगायें। जलती हुई अग्नि विद्य-वृद्धि को देने वाली हो। तेजस्वी उषा अन्धकार में छुपे हुए धनों को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 1.123.6]
हमारे मुख प्रार्थना गायें, बुद्धियाँ उन्मुख हों, प्रदीप्त अग्नि वृद्धि को ग्रहण हों। अत्यन्त कांतिवाली उषा अंधकार में छिपे हुए धन को प्रकट करें।
Let us recite pious, pure, virtuous, righteous songs :- Strotr, hymns, Mantr, with our mouth and use our intelligence to perform excellent Satvik-virtuous deeds. The burning fire should move us ahead, grant us success. Bright Usha should show the concealed treasures.
अपान्यदेत्यभ्यन्यदेति विषुरूपे अहनी सं चरेते।
परिक्षितोस्तमो अन्या गुहाकरद्यौदुषाः शोशुचता रथेन॥
विलक्षण रूपवान् दोनों अहोरात्र-देवता व्यवधान-रहित होकर चलते हैं। एक जाते हैं, एक आते हैं। पर्यायगामी दोनों देवताओं में एक पदार्थों को छिपाते हैं तथा उषा अतीव दीप्तिमान् हो उसे प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 1.123.7]
एक के हटने पर दूसरा आता है। अलग अलग रूप वाले रात्रि और दिन गतिशील हैं। एक समस्त पदार्थों को छिपाता है और दूसरा दीप्तिमान रथ द्वारा प्रकट करता है।
एक सूर्योदय से अपर सूर्योदय पूर्व का समय अहोरात्र है। अहश्च रात्रश्च अहोरात्र इस प्रकार यह द्वन्द्व समास से बना शब्द है। वैदिक ग्रंथों में तिथि के जगह प्रयुक्त शब्द अहोरात्र है। एक तिथि वह समय होता है, जिसमें सूर्य और चंद्रमा के बीच का देशांतरीय कोण बारह अंश बढ़ जाता है।
एक अहोरात्रम् एक दिन और रात का समय है। एक सूर्योदय से अपर सूर्योदय पूर्वका समय अहोरात्र है। "अहश्च रात्रश्च अहोरात्र" इस प्रकार द्वन्द समास से बना शब्द है। वैदिक ग्रन्थौं में तिथि के जगह प्रयुक्त शब्द अहोरात्र है।
ऊष्ण कटिबन्धीय मापन ::
एक याम = 7½ घटि,
8 याम अर्ध दिवस = दिन या रात्रि,
एक अहोरात्र = नाक्षत्रीय दिवस (जो कि सूर्योदय से आरम्भ होता है)
एक तिथि वह समय होता है, जिसमें सूर्य और चंद्र के बीच का देशांतरीय कोण बारह अंश बढ़ जाता है। वैदक तिथि पत्र के प्रयोग करने वाले कुछ लोग चन्द्रकला विशेष और सूर्योदयसे सम्बद्ध अहोरात्र को ही एक तिथि मानते है। वह अमान्त चन्द्रमास कभी 29 दिन का और कभी 30 दिन का होता है। यदि 14 वें दिन मे ही चन्द्रकला क्षीण हो तो उस दिन कृष्ण चतुर्दशी टुटा हुआ मानकर अमावास्या माना जाता है दोनों दिन के कृत्य उसी दिन किया जाता है। पंचांग सम्बद्ध तिथियाँ तो दिन में किसी भी समय आरम्भ हो सकती हैं और इनकी अवधि उन्नीस से छब्बीस घंटे तक हो सकती है।
एक पक्ष या पखवाड़ा = पंद्रह तिथियाँ,
एक मास = 2 पक्ष (पूर्णिमा से अमावस्या तक कॄष्ण पक्ष और अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष),
एक ॠतु = 2 मास,
एक अयन = 3 ॠतुएं,
एक वर्ष = 2 अयन।
The amazing demigods-deities controlling the day & night, constituting Ahoratr, moves continuously without being interrupted. One comes and the other goes. One of them hides the material objects, while the other is illuminated by Usha.
सदृशीरद्य सदृशीरिदु श्वो दीर्घं सचन्ते वरुणस्य धाम।
अनवद्यास्त्रिंशतं योजनान्येकैका क्रतुं परि यन्ति सद्यः॥
उषा देवी जैसी आज है, वैसी ही कल भी विशुद्ध है। प्रतिदिन वह वरुण या सूर्य के अवस्थित स्थान से तीस योजन आगे अवस्थित होती है। एक-एक उषा उदय-काल में ही गमन-आगमन रूप कार्य को पूर्ण करती है।[ऋग्वेद 1.123.8]
उषा जैसी आज है, कल भी वैसी ही थी। वह वरुण के स्थान में बहुत दूर तक निवास करती है। यह तीसों दिन आकाश के चारों ओर चक्कर काटती रहती है तथा प्रतिदिन अपने नियत स्थान को प्राप्त होती है।
Usha is pure-pious. She is the same today & the tomorrow. She is always ahead of the Sun & Varun (water bodies, ocean) by 30 Yojan. Each Usha-day break, completes the function of arriving completely (The time is fixed and controlled by the Sun and the constellations).
जानत्यह्नः प्रथमस्य नाम शुक्रा कृष्णादजनिष्ट श्वितीची।
ऋतस्य योषा न मिनाति धामाहरहर्निष्कृतमाचरन्ती॥
उषा दिन के प्रथमांश के आगमन का काल जानती है। वह स्वयं ही दीप्त और श्वेतवर्ण है। कृष्णवर्ण से उनकी उत्पत्ति हुई है। वह सूर्यलोक में मिश्रित होती है, किन्तु उनको हानि नहीं पहुँचाती, बल्कि उसकी शोभा बढ़ाती है।[ऋग्वेद 1.123.9]
दिन के प्रारम्भिक समय को जानती हुई अंधकार से चमकती उषा रचित हुई है। यह युवती प्रतिदिन नियत स्थान पर पहुँच जाती है तथा सिद्धान्त का उल्लंघन कभी नहीं करती।
The shinning & fair-white coloured Usha constitutes of the first section-part of the day. She is born out of black colour. She reaches the destination without harming them.
कन्येव तन्वाशाशदानाँ एषि देवि देवमियक्षमाणम्।
संस्मयमाना युवतिः पुरस्तादाविर्वक्षांसि कृणुषे विभाती॥
हे देवि! कन्या की तरह अपने अंगों को विकसित करके आप दान परायण और दीप्तिमान् सूर्य के निकट जावें। अनन्तर युवती की तरह अतीव प्रकाश युक्त होकर, कुछ हँसती हुई, सूर्य के सामने अपना वक्षस्थल प्रकट करो।[ऋग्वेद 1.123.10]
हे देवी! तुम कन्या के समान अपने बदन को विकसित करके प्रकाश वान सूर्य को प्राप्त होती हो। फिर नारी की तरह कांतिमयी तुम मुस्कराती हुई मन के देश को खोल देती हो।
Hey Goddess! Develop your organs and move to the bright Sun who is intended to donations. Thereafter, expose the front part of your body, having light over it, smiling like a young girl.
सुसंकाशा मातृमृष्टेव योषाविस्तन्वं कृणुषे दृशे कम्।
भद्रा त्वमुषो वितरं व्युच्छ न तत्ते अन्या उषसो नशन्त॥
माता के द्वारा सुशोभित की गई नवयुवती के तुल्य ये रूपवती उषा अपनी प्रकाश किरण रूपी शरीर के अंगों को मानों दिखाने के लिए प्रकट हो रही हैं। हे उषे! आप मनुष्यों का कल्याण करती हुई विस्तृत क्षेत्र में प्रकाशित रहें। अन्य उषायें आपके तेज की समानता नहीं कर सकतीं।[ऋग्वेद 1.123.11]
हे उषे! जननी द्वारा उबटन कर शुद्ध की हुई कन्या के तुल्य रूपवती तुम अपनी देह को प्रदर्षित करती हो। हे कल्याणकारिणी! दूर तक प्रकाशमान होओ। विगत उषायें अब तुम्हारी कांति को ग्रहण नहीं करेंगी।
Beautiful Usha is appearing like a young girl decorated by her mother, demonstrating her body organs-parts. Hey Usha you should be engaged in human welfare lighting a vast area. Other Usha, who appeared prior to you can not compare-compete with you in terms of energy-brightness.
अश्वावतीर्गोमतीर्विश्ववारा यतमाना रश्मिभिः सूर्यस्य।
परा च यन्ति पुनरा च यन्ति भद्रा नाम वहमाना उषासः॥
अश्व और गौ से सम्पन्न, सर्वकालीन और सूर्य रश्मियों के साथ तम निवारण के लिए चेष्टा विशिष्ट उषा-देवियाँ कल्याणकर नाम धारण करके जाती और आती हैं।[ऋग्वेद 1.123.12]
घोड़े और गौ से युक्त वरणीय सूर्य की किरणों से स्पर्द्धा वाली उषायें मंगलमयी रूपों को धारण करती हुई चली जाती हैं और लौट-लौट कर आती हैं। Fresh-new Ushas are always accompanied with horses & the cows, removes darkness, adopts new names-nomenclature and attend-intend to human welfare.
ऋतस्य रश्मिमनुयच्छमाना भद्रंभद्रं क्रआपस्मासु धेहि।
उषो नो अद्य सुहवा व्युच्छास्मासु रायो मघवत्सु च स्युः॥
हे उषादेवी! ऋतु या सूर्य की रश्मि का अनुधावन करती हुई हमें कल्याण कारिणी प्रज्ञा (intelligence, prudence, understanding) प्रदान करें। हम आपका आवाहन करते हैं। अन्धकार दूर करें और हमें ऐश्वर्यवानों को प्रचुर मात्रा में धन सम्पदा प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.123.13]
हे उषा! ऋतु की डोरी के अनुकूल चलती हुई हमें सद्बुद्धि दो। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। तुम आसमान से धरती के लोक को भर दो और हमको धन प्रदान करो।
Hey Usha Devi! Please grant us intelligence, prudence, understanding, firmness in our endeavours-actions. We invite you. Please remove darkness and grant us riches in sufficient quantity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (124) :: ऋषि :- कक्षीवान्, दौर्घतमस, देवता :- उषा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
उषा उच्छन्ती समिधाने अग्ना उद्यन्त्सूर्य उर्विया ज्योतिरश्रेत्।
देवो नो अत्र सविता न्वर्थ प्रासावीद् द्विपत्प्र चतुष्पदित्यै॥
अग्नि के प्रदीप्त होने पर उषादेवी, अन्धकार का नाश करती हुई, सूर्योदय की तरह प्रभूत ज्योति फैलाती है। हमारे व्यवहार के लिए सविता द्विपद और चतुष्पद से संयुक्त धन प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.124.1]
अग्नि के प्रदीप्त होने, उषा के आविर्भूत होने और सूर्य के उदय होने पर विशाल ज्योति फैल गयी। फिर सविता देव ने दुपायों और चौपायों को कार्यों में प्रेरित किया।
With the lightening of fire, Usha Devi vanishes the darkness and spreads light initiated-obtained from the Sun. She inspires the two & four legged to start work.
अमिनती दैव्यानि व्रतानि प्रमिनती मनुष्या युगानि।
ईयुषीणामुपमा शश्वतीनामायतीनां प्रथमोषा व्यद्यौत्॥
उषा देवी देव-सम्बन्धी व्रतों में विघ्न नहीं करती, मनुष्यों की आयु का लगातार ह्रास करती हैं। निरन्तर आने वाली विगत उषाओं के अन्त में और भविष्य में आनेवाली उषाओं में यह सबसे पहले प्रकाशित होती हैं।[ऋग्वेद 1.124.2]
देव सिद्धान्तों में उदय व्यक्तियों को क्षीण करने वाली लगातार विमल होती हुई उषा में साकार हुई। भविष्य में आने वाली उषाओं में यह प्रथम उषा मुस्करा रही है।
She never interfere, create trouble, obstruction in the endeavours, goals, targets of the humans, who's age is reducing continuously. She occurs in between the Ushas of the past and the once going to appear in future.
एषा दिवो दुहिता प्रत्यदर्शि ज्योतिर्वसाना समना पुरस्तात्।
ऋतस्य पन्थामन्वेति साधु प्रजानतीव न दिशो मिनाति॥
उषा देवी स्वर्ग-पुत्री हैं। वह प्रकाश-द्वारा आच्छादित होकर धीरे-धीरे पूर्व दिशा की ओर दिखाई देती हैं। उषा मानो सूर्य का अभिप्राय जानकर ही उनके मार्ग पर अच्छी तरह भ्रमण करती है। वह कभी दिशाओं में अवरोधक नहीं बनती।[ऋग्वेद 1.124.3]
ज्योर्तिमय वसन धारण किए यह आकाश की पुत्री अचानक सामने आ गई। यह नियमों में अटल रहती हुई सभी दिशाओं को जानती है और उन्हें समाप्त नहीं होने देती।
She is visible in the east increasing the intensity of the light gradually. She is aware of the wish of the Sun and never create hurdle in any of the directions.
उपो अदर्शि शुन्ध्युवो न वक्षो नोधाइवाविरकृत प्रियाणि।
अद्मसन्न ससतो बोधयन्ती शश्वत्तमागात्पुनरेयुषीणाम्॥
जिस प्रकार से सूर्य देव अपना वक्षःस्थल प्रकटित करते हैं और नोधा ऋषि ने जैसे अपनी प्रिय वस्तु का आविष्कार किया है, उसी प्रकार उषा देवी ने भी अपने को आविष्कृत किया, जैसे गृहिणी जागकर सबको जगाती है, वैसे ही भविष्य में आने वाली उषाओं में सबसे पहले ये देवी उषा दुबारा जागृत करने के लिए पधारी हैं।[ऋग्वेद 1.124.4]
जैसे सूर्य अपना वक्षस्थल दिखाते हैं, नोधा अपनी प्यारी वस्तुओं को बजाते हैं, वैसे ही उषा ने अपने को प्रकट किया है। गृहस्थी वाली पत्नी सबसे पहले जागती और फिर सबको जगाती है। उषा भी उसी के समान व्यवहार करती है।
The way the Sun reveals his front (face, chest) and Nodha Rishi has invented his desired entity-good, Usha too has presented herself and wake up all just like the house wife who wake up first and wake up all.
पूर्वे अर्धे रजसो अप्त्यस्य गवां जनित्र्यकृत प्र केतुम्।
व्यु प्रथते वितरं वरीय ओभा पृणन्ती पित्रोरुपस्था॥
विस्तृत आकाश के पूर्व भाग में उत्पन्न होकर उषा दिशाओं को चेतना युक्त करती है। उषा पितृ स्थानीय स्वर्ग और पृथ्वी के अन्तराल में रहकर अपने तेज से देवों को परिपूर्ण करके विस्तृत और विशिष्ट रूप से प्रख्यात हुई है।[ऋग्वेद 1.124.5]
गवादि को रचित करने वाली उषा ने अंतरिक्ष के बीच में ध्वजा रूप तेज को प्रकट किया। वह क्षितिज-धरा रूप माता-पिता की गोद को भरती हुई सर्वत्र फैलती है।
She rises in the east of the vast sky and makes all directions conscious. She position herself in between the heaven and the earth energise the demigods-deities with her energy and spreads all over-in all directions.
एवेदेषा पुरुतमा दृशे कं नाजामिं न परि वृणक्ति जामिम्।
अरेपसा तन्वा शाशदाना नार्भादीषते न महो विभाती॥
इस तरह अत्यन्त विस्तृत होकर उषा देवी सरलता से दर्शन निमित्त मनुष्यादि और देवादि में से किसी का भी परित्याग नहीं करती। प्रकाश शालिनी उषा छोटों से दूर न रहते हुए बड़ों का भी परित्याग नहीं करती तथा भेद रहित होकर सभी को प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 1.124.6]
प्रत्यक्ष में श्रेष्ठ यह उषा अपने पराये का स्मरण रखे बिना सभी को ग्रहण होती है। यह पाप रहित शरीर से वृद्धि करती हुई छोटे या बड़े किसी से भी नहीं हटती।
She spreads each & every where and makes everything visible to both humans & the demigods-deities. She never distinguish between the large & small, micro or macro. For her all being are equal.
अभ्रातेव पुंस एति प्रतीची गर्तारुगिव सनये धनानाम्।
जायेव पत्य उशती सुवासा उषा हस्रेव नि रिणीते अप्सः॥
भ्रातृ हीन बहन जिस प्रकार निराश्रित होने पर वापस अपने माता-पिता के पास चली जाती है या धन रहित विधवा स्त्री के तुल्य यह उषा देवी नूतन वस्त्रों को धारित कर पति रूप सूर्य से मिलने हेतु मुस्कुराती हुई अपने किरण रूपी सौंदर्य को प्रकट करती हैं।[ऋग्वेद 1.124.7]
बिना भाई की बहिन के समान उषा पश्चिम की ओर मुँह करके चलती है। धन की प्राप्ति के लिए रथारूढ़ होने वाले के समान विजयिनी बनी हुई सुन्दर वस्त्र धारण कर शोभा से युक्त स्त्री के समान अपना स्वरूप दिखाती है।
She moves to the west like the sister who has no brother. She act like one who ride the chariote to win and gain money, wearing beautiful dresses. She smiles exposing her beauty as the rays.
स्वसा स्वस्त्रे ज्यायस्यै योनिमारैगपैत्यस्याः प्रतिचक्ष्येव ।
व्युच्छनती रश्मिभिः सूर्यस्याञ्ज्यङ्क्ते समनगाइव व्रा:॥
भगिनी रूपिणी रात्रि ने बड़ी बहन (उषा) को अपर रात्रि रूप उत्पत्ति स्थान प्रदान करके एवं उषा को जगाकर स्वयं चली जाती है। सूर्य किरणों से अन्धकार हटाकर उषा विद्युद्राशि की तरह जगत् को प्रकाशित करती है।[ऋग्वेद 1.124.8]
रात्रि रूपी बहिन, अपनी ज्येष्ठ बहिन उषा के लिए जगह छोड़ती हुई हटती है। उत्सव में जाने वाली स्त्रियों के तुल्य सूर्य की किरणों से अपने को सजाती है।
Night, like an elder sister give the place to rise and goes off-moves away. Usha lit the universe with the help of Sun and removes darkness like the electric spark-lightening.
आसां पूर्वासामहसु स्वसॄणामपरा पूर्वामभ्येति पश्चात्।
ताः प्रत्लवन्नव्यसीर्जूनमस्मे रेवदुच्छन्तु सुदिना उषासः॥
जो उषायें पहले गमन कर चुकी हैं, उनके बीच में अन्तिम उषा के पीछे से एक-एक नई देवी उषा क्रम से जाती हैं। उन प्राचीन उषाओं के सदृश नई उषा हमें धन से युक्त करने के लिए प्रकट हों।[ऋग्वेद 1.124.9]
इन समस्त बहन रूपिणी उषाओं में पहली दूसरी के पीछे-पीछे प्रतिदिन चलती है। उन प्राचीन उषाओं के समान नवीन तथा उषा प्रकट होकर हमको धनों से परिपूर्ण करें।
The new Usha rises between the Ushas which had occurred earlier and the last Usha. She should give us money-wealth the earlier Ushas.
प्र बोधयोषः पृणतो मघोन्यबुध्यमानाः पणयः ससन्तु।
रेवदुच्छ मघवद्भ्यो मघोनि रेवत्स्तोत्रे सूनृते जारयन्ती॥
हे धनवती उषा! हविर्दाताओं को जागृत करें। पणिलोग न जागकर निद्रा में पड़े रहें। हे धनशालिनी! धनी यजमानों को समृद्धि प्रदान करें। हे सुनृते! आप समस्त प्राणियों को क्षीण करती हुई यजमान को समृद्धि प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.124.10]
हे धनवती उषे! दानशीलों को चैतन्य करो, लोभी लोग सोते रहें। तुम प्राणियों की आयु क्षय करने वाली प्राणियों को धन से युक्त करो और स्तोता के लिए धनवाली होकर फैलो।
Hey wealth-money granting Usha! Awake the Yagy performers to make offerings. Let the greedy keep lying-sleeping. Make the living beings, who are reducing their age-longevity gradually (becoming aged) wealthy-rich and spread all around for the one who is praying to you.
अवेयमश्वैद्युवतिः पुरस्ताद्युङ्क्ते गवामरुणानामनीकम्।
वि नूनमुच्छादसति प्र केतुर्गृहंगृहमुप तिष्ठाते अग्निः॥
युवती उषादेवी पूर्व दिशा से आती हैं। उनके रथ में सात अश्व जुते हैं। वह दिन की सूचना करके रूप रहित अन्तरिक्ष में अन्धकार का निवारण करती है। उनका आगमन होने पर घर-घर में आग जलती है।[ऋग्वेद 1.124.11]
यह युवती पूर्व दिशा से उतर रही है। इसके रथ में अरुण ऋषभ जुते हैं। जब मुस्करायेंगी तब इसका प्रकाश व्याप्त होगा और गृह-गृह में अग्नि प्रदीप्त होगी।
Young Usha Devi rises in the east. Her chariote has deployed 7 horses. She informs of the day break and remove the darkness. Her arrival leads to igniting fire in house to house.
उत्ते वयश्चिद्वसतेरपप्तन्नरश्च ये पितुभाजो व्युष्टौ।
अमा सते वहसि भूरि वाममुषो देवि दाशुषे मर्त्याय॥
हे उषादेवी! आपके उदय होने पर चिड़ियाँ अपने घोंसले से ऊपर उड़ती हैं। अन्न प्राप्ति में आसक्त होकर मनुष्य ऊपर मुँह करके जाते हैं। हे देवि! देव पूजन गृह में अवस्थित हव्य दाता मनुष्य के लिए प्रभूत धन ले आवें।[ऋग्वेद 1.124.12]
हे उषे! तुम्हारे खिलते ही पक्षी भी घोंसले को त्याग देते हैं। मनुष्य भी अन्न के लिए कार्य करने लगते हैं। तुम हविदाता को अत्यन्त धन देने वाली हो।
Hey Usha Devi! The birds fly over their nest with your rise & spread. The humans start making efforts for having food grains. Hey Devi! Bring sufficient money for the one who is preparing for holding Yagy.
अस्तोढं स्तोम्या ब्रह्मणा मेऽवीवृधध्वमुशतीरुषासः।
युष्माकं देवीरवसा सनेम सहस्रिणं च शतिनं च वाजम्॥
हे स्तुति-पात्र उषाओं! मेरे मन्त्र द्वारा आप स्तुत हैं। मेरी समृद्धि की इच्छा करके हमें वर्द्धित करें। हे देवियों! आपकी रक्षा प्राप्त करके ही हम सहस्त्रसंख्यक और शतसंख्यक धन करेंगे।[ऋग्वेद 1.124.13]
हे पूजनीय उषाओं। मेरे श्लोक तुम्हारी वंदना करें। तुम वृद्धि को प्राप्त होओ और तुम्हारे रक्षा के साधनों पर निर्भर रहते हुए हम अनगिनत धन प्राप्त करें।
Hey prayer deserving Ushas! Let you be worshiped through my Strotr. Let me progress through your desire. We will attain hundred-thousand times wealth, due to your worship & protection-shelter.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- उषा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
उषो वाजेन वाजिनि प्रचेताः स्तोमं जुषस्व गृणतो मघोनि।
पुराणी देवि युवतिः पुरंधिरनु व्रतं चरसि विश्ववारे॥
हे अन्नवती व धनवती उषा! प्रकृष्ट ज्ञानवती होकर आप प्रार्थना करने वाले स्तोता की प्रार्थना को स्वीकार करें। हे सभी के द्वारा वरणीया, पुरातनी युवती के तुल्य शोभमाना और बहुस्तोत्रवती उषा! आप यज्ञकर्म को लक्ष्य कर आगमन करें।[ऋग्वेद 3.61.1]
युवती :: लड़की, बालिका; young woman, damsel, miss.
हे उषा! तुम धनेश्वर और अन्न प्रदान करने वाली हो। तुम महान ज्ञान से परिपूर्ण होकर वंदना करने वाले के लिए श्लोक को स्वीकृत करो। तुम सभी के द्वारा वरण करने योग्य हो, अतः प्राचीन कालीन युवती के तुल्य सुशोभित तथा अनेकों के श्लोंकों से परिपूर्ण होकर यज्ञ अनुष्ठान के लिए शीघ्र पधारो।
Hey possessor of food grains & wealth Usha! Possessing enlightenment, accept the prayers-requests of the Stota. Hey Usha, accepted by all, ancient-eternal young woman, beautiful-having grace and many Strotr! Come to participate-involve in the Yagy.
उषो देव्यमर्त्या वि भाहि चन्द्ररथा सूनृता ईरयन्ती।
आ त्वा वहन्तु सुयमासो अश्वा हिरण्यवर्णां पृथुपाजसो ये॥
हे मरण धर्म रहित, सुवर्णमय रथ वाली उषा देवी! आप प्रिय सत्य रूप वचन का उच्चारण करने वाली हैं। आप सूर्य किरण के सम्बन्ध से शोभायमान होवें। प्रभूत बल युक्त जो अरुण वर्ण अश्व हैं, वे सुख पूर्वक रथ में नियोजित किये जा सकते हैं। वे आपको लेकर यज्ञस्थल पर पधारें।[ऋग्वेद 3.61.2]
शोभायमान :: शानदार, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, सुरूप, मंजु, मंजुल, सुंदर, तेजस्वी, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय; beautiful, stunning, rattling.
हे उषा! तुम मरण धर्म से युक्त हो, तुम्हारा रथ स्वर्णयुक्त है। तुम सत्यरूपी वचनों का उच्चारण करने वाली हो। किरणों की शोभा से सुशोभित होती हो। अरुण वर्ण वाले शक्तिशाली अश्व आसानी से तुम्हारे रथ से जुड़ते हैं। वे तुम्हें आहुत करें।
Hey immortal Usha! You speek sweet adorable words. You are lovely, glorious associated & revered with the Sun rays. Let the charoite deploying the horses of the colour of Arun bring you to the Yagy site.
उषः प्रतीची भुवनानि विश्वोर्ध्वा तिष्ठस्यमृतस्य केतुः।
समानमर्थं चरणीयमाना चक्रमिव नव्यस्या ववृत्स्व॥
हे उषा देवी! आप निखिल भूतजात के अभिमुख आगमनशीला, मरण धर्म रहिता और सूर्य की केतु स्वरूपा हैं। आप आकाश में उन्नत होकर रहती है। हे नवतरा उषा! आप एक मार्ग में विचरण करने की इच्छा करती हुई आकाश में चलने वाले सूर्य के रथाङ्ग के तुल्य पुनः-पुनः उसी मार्ग में चलती रहें।[ऋग्वेद 3.61.3]
हे उषे! तुम समस्त संसार के प्राणधारियों के सम्मुख पधारती हो। तुम मरण से रहित तथा सूर्य को सूचना देने वाली, समान रास्ते में चलती हुई, उच्च अम्बर में भ्रमण करती हो। तुम सूर्य के रथ के समान बारम्बार उस रास्ते पर चलो।
Hey Usha Devi! You awake-come to all the creatures in the universe. You are immortal-free from death, follow the same route-routine moving high in the sky, equivalent to the charoite of the Sun.
अव स्यूमेव चिन्वती मघोन्युषा याति स्वसरस्य पत्नी।
स्व१र्जनन्ती सुभगा सुदंसा आन्ताद्दिवः पप्रथ आ पृथिव्याः॥
जो धनवती उषा वस्त्र के तुल्य विस्तीर्ण अन्धकार को दूर करती हुई सूर्य की पत्नी होकर गमन करती है, वही सौभाग्यवती और सत्य कार्य शालिनी उषा द्युलोक और पृथ्वी के अन्तिम भाग तक प्रकाशित होती है।[ऋग्वेद 3.61.4]
वस्त्र के समान ढकने वाली घोर अंधेरे का नाश करने वाली, धन से युक्त उषा सूर्य की पत्नि के रूप में गमन करती है, वह बहुत ही सौभाग्यवती, शालीन और सत्कर्मों की साधिका है वही उषा क्षितिज और धरा को शोभा में प्रकाशमान होती है।
Usha travels like the wife of Sun, removing the darkness which covers the earth like a cloth. Fortunate, truthful Usha illuminate the horizon till the last corner-end of the earth.
अच्छा वो देवीमुषसं विभातीं प्र वो भरध्वं नमसा सुवृक्तिम्।
ऊर्ध्वं मधुधा दिवि पाजो अश्रेत्य रोचना रुरुचे रण्वसंदृक्॥
हे स्तोताओं! आप लोगों के समक्ष उषा देवी शोभायमान होती हैं। आप लोग नमस्कार द्वारा उनकी शोभन प्रार्थना करें। प्रार्थना को धारित करने वाली उषा आकाश में ऊर्ध्वाभिमुख तेज को आश्रित करती है। रोचनशीला और रमणीय दर्शना उषा अतिशय दीप्त होती है।[ऋग्वेद 3.61.5]
हे वंदना करने वालों! तुम्हारे सामने सुशोभित उषा प्रत्यक्ष होती है। तुम नमस्कार करके इनकी प्रार्थना अर्चना करो। उन प्रार्थनाओं को पुष्ट करने वाली उषा अम्बर के उन्नत तेज को धारण करती है।
Hey devotees-worshipers! Praise divine Usha with prostrations, shining upon you, the repository of sweetness manifests her brightness aloft in the sky and radiant and lovely lights the regions.
Hey worshipers-devotees! You come to the populace. Salute-prostrate before her and make prayers. Usha accept the prayers and supports the aura-brightness & illuminate the sky.
ऋतावरी दिवो अर्कैरबोध्या रेवती रोदसी चित्रमस्थात्।
आयतीमग्न उषसं विभाती वाममेषि द्रविणं भिक्षमाणः॥
जो उषा सत्यवती है, उसे सब लोग द्युलोक के तेज प्रभाव से जानते हैं। धनवती उषा नानाविध रूप से युक्त होकर द्यावा-पृथ्वी को व्याप्त करके रहती है। हे अग्नि देव! आपके सम्मुख आने वाली, भास माना उषा देवी से हवि की कामना करने वाले आप रमणीय धन को उपलब्ध करते हैं।[ऋग्वेद 3.61.6]
वह उषा अत्यन्त सुन्दर सुशोभित तथा तेजस्विनी है। उस सत्य से परिपूर्ण उषा को क्षितिज के तेज के रूप में प्रकट होने पर सभी पहचानते हैं । वह उषा धन एवं ऐश्वर्य से परिपूर्ण है और अनेक प्रकार से अम्बर-धरा से व्याप्त होती है। हे अग्नि देव! उषा तुम्हारे सम्मुख आती है। तुम उससे हवि की याचना करते हुए सुखकारी धनों को प्राप्त करते हो।
Everyone is aware of the aura of truthful Usha by virtue of the influence of heavens and she pervades the sky & earth. Hey Agni Dev! Usha come to you and you grant wealth to the desirous expecting offerings.
ऋतस्य बुध्न उषसामिषण्यन्वृषा मही रोदसी आ विवेश।
मही मित्रस्य वरुणस्य माया चन्द्रेव भानुं वि दधे पुरुत्रा॥
वृष्टि द्वारा जल के प्रेरक सूर्य सत्य भूत दिवस के मूल में उषा का प्रेरण करके विस्तीर्ण द्यावा-पृथ्वी के बीच में प्रवेश करते हैं। तदनन्तर महती उषा मित्र और वरुण की प्रभास्वरूपा होकर सोने के तुल्य अपनी प्रभा को चारों ओर प्रसारित करती है।[ऋग्वेद 3.61.7]
आदित्य ही वर्षा द्वारा जल गिराते हैं। वे सत्य रूप दिवस के आरम्भ में उषा को भेजकर आकाश धरती के मध्य प्रवेश करते हैं। फिर वह अत्यन्त महत्त्वशाली उषा मित्रा-वरुण की प्रभा के रूप में प्रकट होकर स्वर्ण के समान अपनी प्रदीप्त रूप में फैलाती है।
The Sun rises in between the sky & the earth inspiring rains and Usha. Thereafter, Usha spread like the aura of Mitra-Varun & the glittering gold.
ते मन्वत प्रथमं नाम धेनोस्त्रिः सप्त मातुः परमाणि विन्दन्।
तज्जानतीरभ्यनूषत व्रा आविर्भुवदरुणीर्यशसा गोः॥
हे अग्नि देव! स्तोत्र करने वाले अङ्गिरा आदि ने ही पहले-पहल जननी वाक के सम्बन्धी शब्दों को जाना, पश्चात् वचन सम्बन्धी सत्ताईस छन्दों को प्राप्त किया। अनन्तर इन्हें जानने वाली उषा की प्रार्थना की एवं सूर्य के तेज के साथ अरुण वर्णा उषा प्रादुर्भत हुई।[ऋग्वेद 4.1.16]
छन्द :: मंत्र को सर्वतोभावेन आच्छादित करने की विधि को छन्द कहते हैं। यह अक्षरों अथवा पदों से बनता है। मंत्र का उच्चारण चूँकि मुख से होता है, अतः छन्द का मुख से न्यास किया जाता है।
वर्ण तथा यति (विराम) के नियमों के अनुरूप वाक्य या पद्यात्मक रचना, छंदशास्त्र में वर्ण या मात्राओं का वह निश्चित मान जिसके आधार पर पद्य लिखा जाता है, इच्छा, अभिलाषा, नियंत्रण, रुचि, अभिप्राय, तरकीब; उपाय; युक्ति, बंधन-गाँठ, स्वेच्छाचार, मन, वर्ण, मात्रा आदि की गिनती से होने वाली पद्यों की वाक्य रचना यथा दोहा, सोरठा, चौपाई; metre.
हे अग्ने! वंदना करने वाले अंगिरा आदि ऋषियों ने ही वाणी रूपिणी जननी से रचित वंदनाओं के साधन का शब्दों में पहली बार ज्ञान प्राप्त किया फिर सत्ताइस छन्दों को जाना। इसके बाद जानने वाली उषा की प्रार्थना की और तभी आदित्य के तेज से परिपूर्ण अरुण रंग वाली उषा का आविर्भाव हुआ।
Hey Agni Dev! rishi Angira at first learned the Strotr pertaining to the voice-speech and there after learned 27 Chhand-metre. Then he prayed to Devi Usha and the Sun-Adity, leading to the arrival of Arun with his aura.
नेशत्तमो दुधितं रोचत द्यौरुद्देव्या उषसो भानुरर्त।
आ सूर्यो बृहतस्तिष्ठदज्राँ ऋजु मर्तेषु वृजिना च पश्यन्॥
रात्रि कृत अन्धकार उषा द्वारा प्रेरित होने पर विनष्ट हुआ। अन्तरिक्ष दीप्त हुआ। उषा देवी की प्रभा उद्गत हुई। मनुष्यों के सत् और असत् कर्मों का अवलोकन करते हुए सूर्य देव महान् अजर पर्वत के ऊपर आरूढ़ हुए।[ऋग्वेद 4.1.17]
रात्रि के द्वारा उत्पन्न तम उषा की प्रेरणा से अटल हुआ, फिर अंतरिक्ष प्रकाशमय हुआ। उषा की आभा प्रकट हुई फिर प्राणियों के सत्य कर्मों को देखने में सक्षम अटल शैल पर चढ़ गये।
The darkness due to the night vanished as soon Devi Usha appeared, leading the the aura spread by her. The space-sky lightened. Sury Dev-Sun rose to the immortal mountain to see virtuous-wicked, pious-vices the deeds-endeavours of the humans.
अधा मातुरुषसः सप्त विप्रा जायेमहि प्रथमा वेधसो नॄन्।
दिवस्पुत्रा अङ्गिरसो भवेमाद्रिं रुजेम धनिनं शुचन्तः॥
हम सात व्यक्ति (वामदेव और छः अङ्गिरा) प्रथम मेधावी हैं। हम लोगों ने माता उषा के समीप से अग्नि के परिचालकों या रश्मियों को पैदा किया। हम द्योतमान आदित्य के पुत्र अङ्गिरा हैं। हम दीप्तिमान सूर्य होकर उदक विशिष्ट पर्वत या बादलों का भेदन करेंगे।[ऋग्वेद 4.2.15]
हम सात विप्र आरिम्भक मेधावी हैं। हमको माता रूप उषा के आरम्भिक समय में अग्नि ने रचित किया है। हम ज्योर्तिवान आदित्य के पुत्र अंगिरा हैं। हम तेजस्वी होकर जल से पूर्ण बादल को विदीर्ण करेंगे।
We 7 people, Vamdev and 6 Angira are the first intelligent people. We generated the rays-flames in fire with the day break-Usha. We are the sons of radiant-aurous Angira. We will become radiant Sun-Adity & shine tearing off rains from the clouds.
अधा यथा नः पितरः परासः प्रत्नासो अग्न ऋतमाशुषाणाः।
शुचीदयन्दीधितु मुक्थशासः क्षामा भिन्दन्तो अरुणीरप व्रन्॥
हे अग्नि देव! हम लोगों के श्रेष्ठ, पुरातन और सत्य भूत यज्ञ में रत पितृ पुरुषों ने दीप्त स्थान तथा तेज प्राप्त किया। उन्होंने स्तोत्रों का उच्चारण करके अन्धकार का नाश किया तथा पणियों द्वारा अपहृत अरुण वर्णा गौओं को या उषा को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 4.2.16]
हे अग्नि देव! हमारे पूर्वजों ने उत्तम, परम्परागत और सत्य के कारण यज्ञ-कर्मों को करके श्रेष्ठ पद और तेज को प्राप्त किया। उन्होंने उक्थों के माध्यम से अंधेरे का विनाश किया और पणियों द्वारा अपहृत गायों को ढूँढा।
Hey Agni Dev! Our great, ancient and truthful ancestors attained the brilliant positions. They recited the Strotr, removed darkness & released the cows abducted by the Pani-demons.
का मर्यादा वयुना कद्ध वाममच्छा गमेम रघवो न वाजम्।
कदा नो देवीरमृतस्य पत्नीः सूरो वर्णेन ततनन्नुषासः॥
पूर्व आदि सीमा क्या है? पदार्थ ज्ञान क्या है? रमणीय पदार्थ समूह क्या है? शीघ्र गामी अश्व जिस प्रकार से संग्राम के अभिमुख गमन करता है, उसी प्रकार हम इन्हें अधिगत करेंगे। द्युतिमती, मरण रहिता और आदित्य की पत्नी प्रसवित्री उषा किस समय हम लोगों के लिए प्रकाशित होकर व्याप्त होंगी?[ऋग्वेद 4.5.13]
मर्यादा क्या है? करने योग्य दायित्व कौन से है? जानने योग्य ज्ञान कौन से हैं? गतिमान घोड़ा जैसे संग्राम को जाता है एवं शीघ्र कार्य-क्षय निरालस्य हुआ ज्ञान विद्वानों को ग्रहण करता है, वैसे ही हम भी कब गतिमान होंगे और ज्ञानैश्वर्य को ग्रहण करेंगे? उज्जवल ज्योति वाली अविनाशी उषा सूर्य की रोशनी से परिपूर्ण हुई कब हमारे लिए प्रकाशमान होगी?
What is our limit, responsibility, material, enlightenment? We should adopt-obtain, acquire them just like the fast moving horses. When will dynamic, immortal, Usha appear with the rays-light of Sun?
द्विर्यं पञ्च जीजनन्त्संवसानाः स्वसारो अग्निं मानुषीषु विक्षु।
उषर्बुधमथर्यो ३ न दन्तं शुक्रं स्वासं परशुं न तिग्मम्॥
मनुष्यों की दसों अँगुलियाँ, स्त्री के तुल्य जिन अग्नि को उत्पन्न करती हैं, वे अग्नि उषाकाल में बुध्यमान, हव्यभाजी, दीप्तिमान, सुन्दर वदन और तीक्ष्ण फरसे के तुल्य शत्रु रूपी राक्षसों के हन्ता है।[ऋग्वेद 4.6.8]
पुरुषों की दसों उंगलियाँ, स्त्री के समान जिस अग्नि को प्रदीप्त करती हैं, वे अग्नि देव उषा काल में जागने वाले, हव्य स्वीकार करने वाले, श्रेष्ठ प्रकाश में चमकने वाले एवं सुन्दर स्वरूप वाले हैं। वे तीखे मुखवाले फरसे के समान शत्रुओं का विनाश करते हैं।
The beautiful Agni which is ignited-evolved by the ten fingers of the humans, like a woman, is shinning-radiant, accepts the offerings and acts like the sharp edged Farsa-sword, a killer of demons.
ससस्य यद्वियुता सस्मिन्नूधव्रतस्य धामन्रणयन्त देवाः।
महाँ अग्निर्नमसा रातहव्यो वेरध्वराय सदमिदृतावा॥
देवगण निद्रा से विमुक्त होकर अर्थात् उषाकाल में जल के स्थान स्वरूप सम्पूर्ण यज्ञ में जिन अग्नि देव को प्रार्थना आदि के द्वारा प्रसन्न करते हैं, वे महान एवं सत्यवान अग्नि देव नमस्वरपूर्वक दत्त हव्य को ग्रहण करके सदैव याजक गण कृत यज्ञ को अवगत करें, जानें।[ऋग्वेद 4.7.7]
देव निद्रा को छोड़कर उषा काल में जिस अग्नि को यज्ञ स्थल में वंदनाओं द्वारा हर्षित करते हैं। सत्य से युक्त श्रेष्ठ अग्नि देव प्रणामपूर्वक दिए हव्य को ग्रहण करते हुए यजमान द्वारा किये गये यज्ञ को जानते रहें।
The demigods-deities free from sleep, pleased through worship-prayers notice the Yagy site, at dawn-morning Usha Kal, meets-accepts Agni Dev, who is great & truthful by saluting him accepts & offerings.
प्रत्यग्निरुषसामग्रमख्यद्विभातीनां सुमना रत्नधेयम्।
यातमश्विना सुकृतो दुरोणमुत्सूर्यो ज्योतिषा देव एति॥
शोभन मन वाले अग्नि देव तमोनिवारिणी उषा के धन प्रकाशकाल के पूर्व ही प्रवृद्ध होते हैं। हे अश्विनी कुमारों! आप याजकगण के गृह में गमन करें। ऋत्विक् आदि के प्रेरक सूर्य देव अपने तेज के साथ उषाकाल में प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 4.13.1]
हे महान हृदय वाले अग्नि देव! तम का पतन करने वाली उषा की ज्योति से पहले तुम प्रबुद्ध होते हो। हे अश्विनी कुमारों! तुम यजमान के ग्रह में विचरण करो। ऋत्विक आदि को शिक्षा देने वाले सूर्य अपने तेज से परिपूर्ण उषा समय में उदित हो होते हो।
Hey Agni Dev, possessing great innerself (mind, heart & soul)! Agni Dev become active prior to dawn-day break. Usha bring light prior to Sun rise. Hey Ashwani Kumars! Move to the houses of the Ritviz-devotees. Inspiring the Ritviz, Sury Bhagwan-Sun, appear with his aura-radiance with Usha in the morning.
आवहन्त्यरुणीर्ज्योतिषागान्मही चित्रा रश्मिभिश्चेकिताना।
प्रबोधयन्ती सुविताय देव्यु १ षा ईयते सुयुजा रथेन॥
धन को धारण करने वाली, रक्त वर्णा, ज्योति: शालिनी महती, रश्मि विचित्रिता और विदुषी उषा आई हैं। प्राणियों को जगाकर करके उषा देवी सुयोजित रथ द्वारा सुख प्राप्ति के लिए गमन करती हैं।[ऋग्वेद 4.14.3]
धनों को धारण करने वाली, महती दीप्तिमय, अरुण रंगवाली उषा रश्मियों के द्वारा तेजवाली बनकर प्रकट होती है। वह उषा जीव मात्र को चैतन्य करती हुई अपने सुशोभित रथ द्वारा कल्याण के लिए विचरणशील होती है।
Possessor of all riches-wealth, radiant, lighted, great, enlightened, with amazing rays Usha Devi, has appeared-arrived. She awake the organism-living beings and keep on moving further.
आ वां वहिष्ठा इह ते वहन्तु रथा अश्वास उषसो व्युष्टौ।
इमे हि वां मधुपेयाय सोमा अस्मिन्यज्ञे वृषणा मादयेथाम्॥
हे अश्विनी कुमारों! उषा के प्रकाशित होने पर अत्यन्त वहन क्षम और गमनशील अश्व आपको इस यज्ञ में ले आवें। हे अभीष्ट वर्षिद्वय! यह सोमरस आपके लिए हैं। इस यज्ञ में सोमपान करके आनन्दित होवें।[ऋग्वेद 4.14.4]
हे अश्विनी कुमारों! उषा के उदय होने पर वहन करने की अत्यन्त क्षमता वाले गमनशील अश्व तुमको उस यज्ञ में ले जाएँ। तुम दोनों अभिलाषाओं की वर्षा करने वाले हो। यह सोम तुम्हारे लिए है। अतः इस अनुष्ठान में सोमपान करके संतुष्टि को प्राप्त होओ।
Hey Ashwani Kumars! Let your mighty, capable horses bring you here, on the arrival of Usha Devi. Hey desires-accomplishment granting duo! This Somras is for you. Seek pleasure by drinking Somras in this Yagy.
पूर्वीरुषसः शरदश्च गूर्ता वृत्रं जघन्वाँ असृजद्वि सिन्धून्।
परिष्ठिता अतृणद्बद्बधानाः सीरा इन्द्रः स्त्रवितवे पृथिव्या॥
वृत्रासुर को मारकर इन्द्र ने तमिस्रा द्वारा आच्छादित अनेक उषाओं को तथा संवत्सरों को विमुक्त किया एवं वृत्र द्वारा निरुद्ध जल को भी विमुक्त किया। इन्द्र देव ने मेघ के चारों ओर वर्तमान तथा वृत्र द्वारा अवरुद्ध नदियों को प्रवाहित कर पृथ्वी को तृप्त किया।[ऋग्वेद 4.19.8]
तमिस्रा से ढकी हुई असंख्य उषाओं और वृष्टि को इन्द्र देव ने वृत्र को समाप्त करके विमुक्त किया और वृत्र द्वारा रोकी गई नदियों को धरा पर प्रवाहमान होने के लिए छोड़ा।
Indr Dev killed Vrata Sur and released many Usha & days from darkness releasing waters blocked by Vrata Sur. Dev Raj made the cloud rain and maintained the flow of rivers.
कथा कदस्या उषसो व्युष्टौ देवो मर्तस्य सख्यं जुजोष।
कथा कदस्य सख्यं सखिभ्यो ये अस्मिन्कामं सुयुजं ततस्त्रे॥
द्योतमान इन्द्र देव उषा के प्रारम्भ में (प्रभात में) किस प्रकार और कब मनुष्यों के बन्धुत्व की सेवा करते हैं? जो होता इनके उद्देश्य से सुयोग तथा कमनीय हव्य को विस्तारित करते हैं, उन बन्धुओं के प्रति कब और किस प्रकार से अपनी मित्रता को इन्द्र देव प्रकाशित करते हैं?[ऋग्वेद 4.23.5]
प्रकाशवान इन्द्र उषा बेला में कब और किस प्रकार प्राणियों में सखा भाव बनाते हैं? इन्द्र देव के लिए जो होता सुन्दर हव्य को बढ़ाते हैं। तब उनके प्रति इन्द्र कब और कैसे अपना सखा भाव प्रदर्शित करते हैं?
How & when does Indr Dev generate brotherhood with the humans in the morning-dawn, Usha? How & when does Indr Dev extend friendship with the hosts-Ritviz accepting the beautiful offerings by them?
द्रुहं जिघांसन्ध्वरसमनिन्द्रां तेतिक्ते तिग्मा तुजसे अनीका।
ऋणा चिद्यत्र ऋणया न उग्रो दूरे अज्ञाता उषसो बबाधे॥
द्रोह करने वाली, हिंसा करने वाली तथा इन्द्र देव को न जानने वाली राक्षसी को मारने के लिए पूर्व से ही तीक्ष्ण आयुधों को अत्यन्त तीक्ष्ण करते हैं। ऋण भी हम लोगों को उषा काल में बाधित करता है, ऋण विनाशक बलवान इन्द्र देव उन उषाओं को दूर से ही अज्ञात भाव से पीड़ित करते हैं।[ऋग्वेद 4.23.7]
द्रोह :: नमकहरामी, बेवफ़ाई, राज-द्रोहिता, दुष्टता, हानिकरता, नुक़सानदेहता, कपट, द्वेष, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता; malignancy, disloyalty, malevolence.द्रोह और हिंसा करने वाली, इन्द्र की शक्ति को न जानने वाली असुरों को मारने के लिए वे पहले से ही शस्त्रों को तेज रखते हैं। जैसे ऋणि व्यक्ति सभी धन को समाप्त करता है, वैसे ही इन्द्र देव उन उषाओं को पीड़ित करते हैं।
The weapons are sharpened prior-before killing the demoness possessing envy, malevolence and violence. Indr Dev discharge loans that trouble a person in the morning-dawn calming Usha.
Loans haunt every one. Payment of loans start troubling right with the beginning of the day.
एतद्धेदुत वीर्य १ मिन्द्र चकर्थ पौंस्यम्।
स्त्रियं यद्दुर्हणायुवं वधीर्दुहितरं दिवः॥
हे इन्द्र देव! आपने बल को इस प्रकार से सामर्थ्य युक्त किया। आपने सूर्य देव तथा द्युलोक की दुहिता पुत्री उषा का भी वध किया।[ऋग्वेद 4.30.8]
हे इन्द्र देव! तुम पुरुषोचित्त वीर कर्मों को करने वाले हो। जैसे सूर्य अपने उजाले से उषा को नष्ट कर देता है, वैसे ही तुम एकत्र हुई शत्रु सेना को समाप्त कर दो।
Hey Indr Dev! You performed like a great warrior. The way Sun shines and replace Usha-day break, you destroyed the enemy armies.
दिवश्चिद्धा दुरितं महन्मदीययानाम्। उषासमिन्द्र स पिणक्॥
हे महान इन्द्र देव! आपने द्युलोक की दुहिता तथा पूजनीया उषा को सम्पिष्ट किया।[ऋग्वेद 4.30.9]
संपुष्टि :: पुष्टिकरण; पक्का करना; nourish.
Hey mighty Indr Dev! You have enriched revered, glorious dawn Usha-the daughter of heaven-Sun.
Hey great Indr Dev! You nourished Usha, the honoured daughter of heaven.
अपोषा अनसः सरत्संपिष्टादह बिभ्युषी। नि यत्सीं शिश्नथद्वृषा॥
अभीष्टवर्षी इन्द्रदेव ने जब उषा के शकट को भग्न किया, तब उषा भयभीत होकर इन्द्र देव द्वारा भग्न शकट के ऊपर से अवतीर्ण हुई।[ऋग्वेद 4.30.10]
अभिलाषाओं के वर्षक इन्द्र देव जब तुमने उषा के रथ को छिन्न-भिन्न कर डाला था, तब उषा भयभीत होकर इन्द्र द्वारा तोड़े हुए रथ के ऊपर से प्रकट हुई थी।
Hey great, desires accomplishing Indr Dev! When you destroyed the charoite of Usha, she appeared over the broken charoite.
एतदस्या अनः शये सुसंपिष्टं विपाश्या। ससार सीं परावतः॥
इन्द्र देव द्वारा विचूर्णित उषा देवी का शकट विपाशा नदी के किनारे पर गिर पड़ा। शकट के टूट जाने पर उषा देवी दूर देश में चली गई।[ऋग्वेद 4.30.11]
इन्द्र द्वारा तोड़ा गया वह उषा का रथ विपाशा नदी के किनारे जा पड़ा। रथ के भस्म होने पर उषा दूर देश में अचेत अवस्था में जाकर गिरी।
Powdered-broken cart of Usha fell over the bank of river Vipasha. Usha shifted else where-other region, due to the breaking of her cart.
आशुं दधिक्रां तमु नु ष्टवाम दिवस्पृथिव्या उत चर्किराम।
उच्छन्तीर्मामुषसः सूदयन्त्वति विश्वानि दुरितानि पर्षन्॥
हम लोग शीघ्रगामी उसी दधिक्रा देव की शीघ्र प्रार्थना करेंगे। द्यावा-पृथ्वी के समीप से उनके सम्मुख विक्षेप करेंगे। तमोनिवारिणी उषा देवी हमारी रक्षा करें एवं समस्त विपत्तियों से हमें पार करें।[ऋग्वेद 4.39.1]
उन शीघ्रगामी दधिक्रा देव की हम पुरुष शीघ्र ही उपासना करेंगे। अम्बर-धरा के पास से उनके सम्मुख घास डालेंगे। अंधकार को दूर करने वाली उषा हमारी रक्षिक बनकर सभी कष्टों को हमसे दूर करें।
Verily we praise that swift Dadhikra Dev and scatter (proved before him) from heaven and earth; may the gloom-dispelling dawns preserve for me (all good things) and bear me beyond all evils.
We will worship-pray fast-quick moving Dadhikra Dev and scatter before him in the presence of sky-heaven and earth. let Usha Devi protect us and swim us across all trouble.
दधिक्राव्ण इदु नु चर्किराम विश्वा इन्मामुषसः सूदयन्तु।
अपामग्नेरुषसः सूर्यस्य बृहस्पतेराङ्गिरसस्य जिष्णोः॥
हम बारम्बार दधिक्रा देव की प्रार्थना करेंगे। सम्पूर्ण उषा हमें कर्म में प्रेरित करें। हम जल, अग्निदेव, उषा, सूर्य, बृहस्पति और अङ्गिरा गोत्रोत्पन्न जिष्णु की प्रार्थना करेंगे।[ऋग्वेद 4.40.1]
जिष्णु :: विजयी; triumphant, victorious, winner.
उन दधिक्रादेव की हम बारम्बार उपासना करेंगे। समस्त उषायें हमको कार्यों में संलग्न करें। जल, अग्नि, उषा, सूर्य, बृहस्पति और अंगिरा वंशज विष्णु का हम समर्थन करेंगे।
We will worship-pray Dadhikra Dev repeatedly. Let Usha inspire us endeavours, every morning. We will pray to the winners in the dynasty Agni Dev, Sun, Brahaspati and Angira.
सत्वा भरिषो गविषो दुवन्यसच्छ्रवस्यादिष उषसस्तुरण्यसत्।
सत्यो द्रवो द्रवरः पतङ्गरो दधिक्रावेषमूर्जं स्वर्जनत्॥
गमनशील, पालन-पोषण में कुशल, गौओं के प्रेरक और परिचारकों के साथ निवास करने वाले दधिक्रा देव अभिलषणीय उषा काल में अन्न की कामना करें। शीघ्र गामी, सत्य गमन शील, वेग वान और उत्प्लवन द्वारा गमन शील दधिक्रा देव अन्न, बल और हर्ष उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 4.40.2]
भरण-पोषण कर्म चालक, विचरणशील, धेनुओं को प्रेरणा प्रदान करने वाले, परिचारिकों के साथ रहने वाले दधिक्रा कामना गोग्य उषा बेला में अन्न की इच्छा करें। ये वेगवान, शीघ्र चलने वाले दधिक्रा देव अन्न, बल और अलौकिक गुणों को प्रकट करने वाले हों।
Let dynamic, expert in nourishment-nurturing and inspirer of cows along with his care takers, desire for food grains at dawn. Let fast moving, truthful, accelerated, possessing thrust Dadhikra Dev show the divine characters of food grains, force-might.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- उषा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
इदमु त्यत्पुरुतमं पुरस्ताज्ज्योतिस्तमसो वयुनावदस्थात्।
नूनं दिवो दुहितरो विभागीर्गातुं कृणवन्नुषसो जनाय॥
हम लोगों के द्वारा स्तुति, सर्व प्रसिद्ध, अत्यन्त प्रभूत और कान्तिशाली तेज पूर्व दिशा से अन्धकार के बीच से उदय होता है। आदित्य पुत्री और दीप्तिमती उषा याजकगणों के गमन कार्य में वास्तव में सामर्थ्य युक्ता हों।[ऋग्वेद 4.51.1]
यह व्यापक रूप से फैली हुई और इंद्रिय प्रदत्त रोशनी पूर्व में अंधेरे से बाहर निकली है; वास्तव में उज्ज्वल उषाएँ, स्वर्ग की बेटियाँ, मनुष्य को (कार्य करने की क्षमता) दे रही हैं।
Prayed-worshiped by us, the shine appears in the east removing darkness. Radiant Usha, the daughter of Sury Bhagwan makes the Ritviz move-perform their activities like Yagy.
अस्थुरु चित्रा उषसः पुरस्तान्मिता इव स्वरवोऽध्वरेषु।
व्यू व्रजस्य तमसो द्वारोच्छन्तीरव्रञ्छुचयः पावकाः॥
यज्ञखात के यूपकाष्ठ के तुल्य शोभमाना होकर विचित्रा उषा पूर्व दिशा को व्याप्त कर अवस्थिति करती हैं। वे बाधा जनक अन्धकार के द्वार का उद्घाटन करके एवं दीप्त और पवित्र हो करके प्रकाशित होती हैं।[ऋग्वेद 4.51.2]
The many-limbed dawns rise up in the east, like the pillars at sacrifices round the altar; radiant and purifying, they are manifested, opening the gates of the obstructing gloom.
Beautiful Usha is lighting east like the pillar-mast of wood at the Yagy site. She removes the obstructing darkness, purify & shines.
उच्छन्तीरद्य चितयन्त भोजान्राधोदेयायोषसो मघोनीः।
अचित्रे अन्तः पणयः ससन्त्वबुध्यमानास्तमसो विमध्ये॥
आज तमोनिवारिका और धनवती उषा भोज्य दाता याजक गण को सोमादि धन प्रदान करने के लिए जाग्रत करती हैं। अत्यन्त गाढ़ अन्धकार के बीच में बनियों के तुल्य अदातृगण अप्रबुद्धभाव से शयन करते रहें।[ऋग्वेद 4.51.3]
The gloom-dispelling, affluent Usha animate the pious worshippers to offer sacrificial treasure; may the churlish traffickers sleep on unawaken, in the unlovely depth of darkness.
Usha having-granting riches, is rising removing darkness awake the Ritviz to provide Somras & offerings. Those who do not wish to donate keep on sleeping like imprudents comparable to the businessmen.
कुवित्स देवी: सनयो नवो वा यामो बभूयादुषसो वो अद्य।
येना नवग्वे अङ्गिरे दशग्वे सप्तास्ये रेवती रेवदूष॥
हे द्योतमान उषाओं! जिस रथ द्वारा आप लोगों ने सप्त छन्दोयुक्त मुख वाले नवग्व और दशग्व अङ्गिराओं को धनशाली रूप से प्रदीप्त किया, हे धनवती उषाओं! आप लोगों का वही पुरातन अथवा नूतन रथ आज इस यज्ञगृह में अनेकानेक बार आगमन करे।[ऋग्वेद 4.51.4]
Hey shinning-brilliant Usha-dawn! The charoite riding which you illuminated-enlightened the Angiras with 7 Strotr-stanzas, having 9 & 10 cows, granted them wealth-riches. Let your ancient-eternal charoite arrive at the Yagy site again & again.
यूयं हि देवीर्ऋतयुग्भिरश्वैः परिप्रयाथ भुवनानि सद्यः।
प्रबोधयन्तीरुषसः ससन्तं द्विपाच्चतुष्पाच्चरथाय जीवम्॥
हे द्युतिमती उषाओं! आप लोग निद्रित द्विपदों और चतुष्पदों को अर्थात मनुष्यों और गौओं आदि को अपने-अपने गमन आदि कार्यों में प्रबोधित करके यज्ञ में गमनकारी अश्वों के द्वारा भवनों का क्षणमात्र में परिभ्रमण करें।[ऋग्वेद 4.51.5]
Hey shinning Usha! Awake the 4 & 2 legged, animals & humans respectively and let them initiate their daily routine, illuminate-lit the buildings-Yagy site, riding your horses.
क स्विदासां कतमा पुराणी यया विधाना विदधुर्ऋभूणाम्।
शुभं यच्छुभ्रा उषसश्चरन्ति न वि ज्ञायन्ते सदृशीरजुर्याः॥
जिन उषा के लिए ऋभुओं ने चमस आदि का निर्माण किया, वे पुरातन उषा कहाँ हैं? दीप्त, नित्य नूतन, समान रूप विशिष्ट उषाएँ, जब दीप्ति प्रकाश करती हैं, तब वे विज्ञात नहीं होती हैं अर्थात् वे सब दिनों में एकरूप सदृश रहती हैं, इसलिए ये पुरातन और ये नूतन उषा हैं, इस तरह से वे पहचानी नहीं जा सकती हैं।[ऋग्वेद 4.51.6]
Where are the ancient-eternal Ushas for whom Ribhu Gan created Chamas? When illuminated, ever new, similar-identical Ushas appear, they can not be identified-distinguished as old or new.
ता घा ता भद्रा उषसः पुरासुरभिष्टिद्युम्ना ऋतजातसत्याः।
यास्वीजानः शशमान उक्थैः स्तुवञ्छंसन्द्रविणं सद्य आप॥
यज्ञकर्ता गण जिन उषाओं का उक्थों द्वारा प्रार्थना करके एवं स्तोत्रों और शस्त्रों द्वारा उच्चारण करके शीघ्र धन लाभ करते हैं, वे ही कल्याण कारिणी उषाएँ पुरातन काल से ही अभिगमन करके धन प्रदान करें। वे यज्ञ के लिए उत्पन्न हुई हैं और सत्य फल प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 4.51.7]
Verily those auspicious dawns-Ushas have been of old, rich with desired blessings, truthful bestower of the results of sacrifice; at which the sacrificer, adoring with silent praise, glorifying with hymns, has quickly obtained wealth.
Let the Ushas accomplishing welfare-beneficial means grant wealth to the Ritviz, who pray-glorify them with the recitation of Strotr for quick earning. They are born for the Yagy and grant truthful rewards.
ता आ चरन्ति समना पुरस्तात्समानतः समना पप्रथानाः।
ऋतस्य देवी: सदसो बुधाना गवां न सर्गा उषसो जरन्ते॥
एकरूप विशिष्ट और समान विख्यात उषाएँ पूर्व दिशा में एक मात्र अन्तरिक्ष देश से सभी जगह भ्रमण करती है। द्युति मती उषाएँ यज्ञगृह को प्रबेधित करके जल सृष्टि कारिणी रश्मियों की तरह प्रशंसित होती हैं।[ऋग्वेद 4.51.8]
Famous Ushas bearing identical shape & sizes, rise in the east & travel through the space. Radiant-glowing Ushas enter the Yagy site with their water forming-producing rays.
ता इन्न्वे३ व समना समानीरमीतवर्णा उषसश्चरन्ति।
गृहन्तीरभ्वमसितं रुशद्भिः शुक्रास्तनूभिः शुचयो रुचानाः॥
वे उषाएँ एक समान, एक रूप विशिष्ट, अपरिमित वर्ण युक्त, दीप्त, शुद्ध और कान्ति पूर्ण शरीर द्वारा दीप्ति युक्त हैं। वे अत्यन्त महान अन्धकार का नाश करके भ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 4.51.9]
The Ushas are identical, have the same form, infinite-unlimited colours, pure and radiant-glowing bodies. They destroy the extreme darkness while travelling-moving.
रयिं दिवो दुहितरो विभातीः प्रजावन्तं यच्छतास्मासु देवीः।
स्योनादा वः प्रतिबुध्यमानाः सुवीर्यस्य पतयः स्याम॥
हे द्योतमान आदित्य की दुहिताओं! आप हम लोगों को पुत्र-पौत्रादि से युक्त कर धन प्रदान करें। हे देवियों! हम लोग सुख लाभ के लिए आप लोगों से निवेदन करते हैं, जिससे हम लोग पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन के स्वामी हो सकें।[ऋग्वेद 4.51.10]
Hey the daughters of glowing-shinning Sun-Adity! Grant us wealth along with sons & grandsons. Hey goddess! We pray you for the sake of riches and comforts.
तद्वो दिवो दुहितरो विभातीरुप ब्रुव उषसो यज्ञकेतुः।
वयं स्याम यशसो जनेषु तद्द्यौश्च धत्तां पृथिवी च देवी॥
हे द्योतमान आदित्य की दुहिताओं! हम लोग यज्ञ के निदेशक हैं। आपके निकट हम लोग प्रार्थना करते हैं, जिससे लोगों के बीच में हम लोग कीर्ति और अन्न के स्वामी हो सकें। द्युलोक और द्युतिमती पृथ्वी वह यश धारित करें।[ऋग्वेद 4.51.11]
Hey the daughters of shinning Sun-Adity! We are the organisers of the Yagy. We worship you so that we earn goodwill (name & fame) and have food grains. Let the heavens and radiant earth bear the fame.(29.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- उषा, छन्द :- गायत्री।
प्रति ष्या सूनरी जनी व्युच्छन्ती परि स्वसुः। दिवो अदर्शि दुहिता॥
वह आदित्य की पुत्री उषा दृष्ट होती है। वह प्रार्थित है और प्राणियों की नेत्री है एवं सुन्दर फलों की उत्पादयित्री हैं। वह बहन स्वरूपा रात्रि के अन्त में अन्धकार का विनाश करती है।[ऋग्वेद 4.52.1]
Daughter of Adity, Usha become appears. She is worshiped-prayed, is like the eye of the living beings and the producer of beautiful-tasty fruits. She is like the sister of darkness eliminating it, at the end of night.
अश्वेंव चित्रारुषी माता गवामृतावरी। सखाभूदश्विनोरुषाः॥
अश्व के तुल्य मनोहरा, दीप्तिमती, रश्मियों की माता और यज्ञवती उषा अश्विनी कुमारों के साथ स्तूयमान हो अर्थात अश्विनी कुमारों की मित्र हैं।[ऋग्वेद 4.52.2]
Usha is like a beautiful mare, the radiant, mother of the rays of light, performing Yagy-the object of sacrifice, is the friend of the Ashwani Kumars.
उत सखास्यश्विनोरुत माता गवामसि। उतोषो वस्व ईशिषे॥
आप अश्विनी कुमारों की मित्र और रश्मियों की माता हैं। हे उषा! आप धन की ईश्वरी हैं।[ऋग्वेद 4.52.3]
Hey Usha! You are the friend of Ashwani Kumars and the source of rays of light & the goddess of wealth-money.
यावयद् द्वेषसं त्वा चिकित्वित्सूनृतावरि। प्रति स्तोमैरभुत्स्महि॥
हे सुनृता उषा! आप रिपुओं को पृथक कर दें, आप ज्ञान युक्त हैं। हम स्तुतियों द्वारा आपको प्रबोधित करते हैं।[ऋग्वेद 4.52.4]
सूनृता :: सत्य और प्रिय भाषण, सत्य, धर्म की पत्नी का नाम, उत्तानपाद की पत्नी का नाम, एक अप्सरा का नाम, ऊषा, खाद्य, आहार, उत्कृष्ट संगीत; truthful, speaks dearly-lovely.
Hey truthful Enlightened Usha speaking lovely words! Repel-separate enemies. We worship you with Strotr-Stuti, hymns.
प्रति भद्रा अदृक्षत गवां सर्गा न रश्मयः। ओषा अप्रा उरु ज्रयः॥
स्तुति योग्य रश्मियाँ दृष्ट होती हैं। उषा ने इस संसार को वर्षा की धारा के तुल्य महान तेज से परिपूर्ण किया है।[ऋग्वेद 4.52.5]
Rays of light deserving worship-prayers become visible. Usha filled the universe with energy like the rains showers.
आपप्रुषी विभावरि व्यावर्ज्योतिषा तमः। उषो अनु स्वधामव॥
हे कान्ति मती उषा! आप संसार को अपने तेज द्वारा परिपूर्ण करें, तेज द्वारा अन्धकार को दूर करें उसके अनन्तर नियमानुसार हविर्लक्षण अन्न की रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.52.6]
Hey radiant-aurous Usha! Fill the universe-world with your energy-aura, remove darkness and protect the food grains meant for offerings, methodically following procedures.
आ द्यां तनोषि रश्मिभिरान्तरिक्षमुरु प्रियम्। उषः शुक्रेण शोचिषा॥
हे उषा! आप दीप्त तेजोयुक्त होकर रश्मि द्वारा द्युलोक को एवं विस्तीर्ण और प्रिय अन्तरिक्ष को पूर्ण कर देती हैं।[ऋग्वेद 4.52.7]
Hey Usha! You become radiant-aurous, fill the heavens & the vast space-sky, with the rays of light.(30.04.2023)
विदा दिवो विष्यन्नद्रिमुक्थैरायत्या उषसो अर्चिनो गुः।
अपावृत व्रजिनीरुत्स्वर्गाद्वि दुरो मानुषीर्देव आवः॥
अङ्गिराओं की स्तुतियों से इन्द्र देव ने स्वर्ग से वज्र निक्षेप करके पणियों द्वारा अपहृत निगूढ़ गौओं का पुनः उद्धार किया। आगामिनी उषा की रश्मियाँ सभी जगह व्याप्त होती है। पुञ्जीभूत अन्धकार को विनष्ट करके सूर्य उदित होते हैं। मनुष्यों के गृह द्वारों को उन्होंने उन्मुक्त किया।[ऋग्वेद 5.45.1]
Indr Dev released the cows abducted by the demons named Panis, acknowledging the prayers-Stuti of Angiras. Rays at dawn cover the entire area. The Sun rises and vanish the darkness leading to opening of the doors by the household.
वि सूर्यो अमतिं न श्रियं सादोर्वाद् गवां माता जानती गात्।
धन्वर्णसो नद्य: १ खादोअर्णाः स्थूणेव सुमिता दृंहत द्यौः॥
पदार्थ जिस प्रकार से भिन्न-भिन्न रूप प्रकाशित करते हैं, उसी प्रकार से सूर्य देव अपनी दीप्ति विस्तारित करते हैं। किरण जाल की जननी उषा देवी सूर्य देव के आने की प्रतिक्षा करके विस्तृत अन्तरिक्ष से अवतीर्ण होती है। तट को विध्वंस करने वाली नदियाँ प्रवाहमान जल राशि के साथ प्रवाहित होती हैं। गृह में स्थापित स्तम्भ तुल्य स्वर्ग सुदृढ़ भाव से अवस्थान करता है।[ऋग्वेद 5.45.2]
अवस्थान :: ठहरना, स्थिति, सत्ता, स्थान, जगह, निवास स्थान, रहना, वास करना, रहने-ठहरने का स्थान, घर, रहने-ठहरने की अवधि, मौका; sojourn.
तट :: किनारा, पार, समुद्र-तट, तीर; coast, bank.
The Sun spread its rays, the way an object is seen in different forms. Usha appears from the space after waiting for the Sun. The river break the bank flowing the water. The pillars in the house sojourn like the heaven strongly.
विश्वे अस्या व्युषि माहिनायाः सं यद्गोभिरङ्गिरसो नवन्त।
उत्स आसां परमे सधस्थ ऋतस्य पथा सरमा विदद्गाः॥
इस पूजनीय उषा के उदयकाल में जब अङ्गिरा लोग प्राप्त गौओं के साथ मिले, तब उस उत्कृष्ट यज्ञशाला में उपयुक्त दुग्धस्राव होने लगा; क्योंकि सत्यमार्ग से सरमा ने गौओं को देखा था।[ऋग्वेद 5.45.8]
When Angiras met revered-honoured Usha with the cows, milk started flowing in the Yagy Shala-site, since Sarma had visualised the cows from Saty Marg-path to truth.
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (79) :: ऋषि :- सत्यश्रवा आत्रेय, देवता :- उषा, छन्द :- पंक्ति।
महे नो अद्य बोधयोषो राये दिवित्मती।
यथा चिन्नो अबोधयः सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते॥
हे दीप्तिमती उषा! आपने हम लोगों को जिस प्रकार से पहले प्रबोधित किया, उसी प्रकार आज भी प्रचुर धनप्राप्ति के लिए प्रबोधित करें। हे शोभन प्रादुर्भाव वाली! अश्वप्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं। आप वय्यपुत्र सत्यश्रवा के प्रति अनुग्रह करें।[ऋग्वेद 5.79.1]
प्रबोधित :: जगाया हुआ, ज्ञान दिया हुआ; enlightened.
Hey radiant Usha! The manner in which you had awaken us earlier, awake us today as well for earning enough money. Hey beautiful affect possessing! We worship you for having horses. Please oblige Satyshrava, son of Vayy.
या सुनीथे शौचद्रथे व्यौच्छो दुहितर्दिवः।
सा व्युच्छ सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते॥
हे सूर्यतनया उषा! आपने शुचद्रथ के पुत्र सुनीथि का अन्धकार दूर किया। हे शोभन प्रादुर्भाव वाली! अश्व प्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं। आप वय्यपुत्र अतिशय बलवान् सत्यश्रवा का तमो निवारण करें।[ऋग्वेद 5.79.2]
Hey daughter of Sun, Usha! You remover the darkness-ignorance of Sunithi, son of Shuchdrath. Hey beautiful affect possessing! Remove the ignorance of mighty Satyshrava, son of Vayy.
सा नो अद्याभरद्वसुर्क्युच्छा दुहितर्दिवः।
यो व्यौच्छः सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते॥
हे द्युलोक की दूहिता! आप धन आहरण करने वाली हैं। आप आज हम लोगों के तम का निवारण करें। हे सुजाता! अश्वप्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं। आपने वय्यपुत्र अतिशय बलवान् सत्यश्रवा के तम का नाश किया।[ऋग्वेद 5.79.3]
दुहिता :: पुत्री, बेटी; daughter.
आहरण :: लेना, चित्र बनाना, आकर्षित करना, निकालना, बलाद्ग्रहण, बल से ग्रहण, ऐंठना, आहरण, बलपूर्वक ग्रहण; withdrawal, draw, exaction.
Hey daughter of heavens! You extract money. Remove our ignorance, today. Hey Sujata! We worship-pray you for possessing horses. You removed the darkness-ignorance of extremely powerful Satyshrava, the son of Vayy.
अभि ये त्वा विभावरि स्तोमैर्गृणन्ति वह्नयः।
मधैर्मघोनि सु॒श्रियो दामन्वन्तः सुरातयः सुजाते अश्वसूनृते॥
हे प्रकाशवती उषा ! जो ऋत्विक् स्तोत्र द्वारा आपका स्तवन करते हैं, वे ऐश्वर्य द्वारा समृद्धि-सम्पन्न और दान शील होते हैं। हे धनशालिनी सुजाता उषा! लोग अश्व प्राप्ति के लिए आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.4]
Hey aurous Usha! The Ritviz who worship you with Strotr, get grandeur, prosperity and become donors. Hey rich Sujata Usha! People worship you for having horses.
यच्चिद्धि ते गणा इमे छदयन्ति मघत्तये।
परि चिद्वष्टयो दधुर्ददतो राधो अह्नयं सुजाते अश्वसूनृते॥
हे उषा देवी! धनप्राप्ति के लिए स्तोतागण आपकी प्रार्थना करते हैं। वे निश्चय ही ऐश्वर्य को धारित करते हैं और अक्षय हव्यादिरूप धन देते रहते हैं। हे जन्म से शोभावती उषादेवी! अश्वप्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.5]
Hey Usha Devi! The Stotas worship-pray you for money. They certainly get grandeur and keep on donating offerings (goods, food, etc.)-money. Hey lucky-auspicious since birth Usha Devi! People worship you for having horses.
ऐषु धा वीरवद्यश उषो मघोनि सूरिषु।
ये नो राधांस्यह्रया मघवानो अरासत सुजाते अश्वसूनृते॥
हे धनशालिनी उषा देवी! आप याजकगण स्तोताओं को वीर पुत्रादि से युक्त अन्न प्रदान करें, जिससे वे धनवान् होकर हम लोगों को प्रचुर परिमाण में धन प्रदान करें। हे शोभन जन्म वाली उषा देवी! अश्व प्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.6]
Hey Usha Devi, possessing wealth! Grant brave sons and food grains to the Ritviz-Stotas, so that they become rich and grant us money in sufficient quantity. Hey Usha Devi with beautiful evolution-occurrence! People worship you for having horses.
तेभ्यो द्युम्नं बृहद्यश उषो मघोन्या वह।
ये नो राधांस्यश्रव्या गव्या भजन्त सूरयः सुजाते अश्वसूनृते॥
हे धनशालिनी उषा देवी! जिस धनवान् ने हम लोगों को अश्व और गौओं से युक्त धन प्रदान किया, उस सम्पूर्ण याजकगण को आप धन और प्रभूत अन्न प्रदान करें। हे शोभन जन्म वाली उषा देवी! अश्व प्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.7]
Hey wealthy Usha Devi! Grant sufficient food grains and wealth to the donors who gave us horses, cows and money. Hey Usha Devi with beautiful evolution-occurrence! People worship you for having horses.
उत नो गोमतीरिष आ वहा दुहितर्दिवः।
साकं सूर्यस्य रश्मिभिः शुक्रै: शोचद्भिरर्चिभिः सुजाते अश्वसूनृते॥
हे द्युलोक की पुत्री उषा! आप सूर्य की शुभ्र रश्मि एवं प्रज्वलित अग्नि की प्रदीप्त ज्वाला के साथ हम लोगों की निकट अन्न और गौओं का आनयन करें। हे शोभन उत्पन्न वाली! अश्व प्राप्ति के लिये लोग आपका सत्वन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.8]
Hey daughter of heavens Usha! Come to us with the bright rays of Sun and ignited fire granting us cows and food grains. Hey born of beautiful origin! People worship you for having horses.
व्युच्छा दुहितर्दिवो मा चिरं तनुथा अपः।
नेत्त्वा स्तेनं यथा रिपुं तपाति सूरो अर्चिषा सुजाते अश्वसूनृते॥
द्युलोक की दुहिता उषादेवी! आप प्रकाश उत्पादित करें। हम लोगों के प्रति विलम्ब न करना। राजा शत्रुओं को जिस प्रकार से प्रताड़ित करते हैं, उसी प्रकार सूर्यदेव आपको रश्मि द्वारा सन्तप्त न करें। हे शोभन उत्पन्न वाली! अश्व प्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.9]
Hey daughter of heavens Usha! Generate light. Do not delay. Sury Dev-Sun should not punish-torture you like the king who punish his enemies. Hey born of beautiful origin! People worship you for having horses.
एतावद्वेदुषस्त्वं भूयो वा दातुमर्हसि।
या स्तोतृभ्यो विभावर्युच्छन्ती न प्रमीयसे सुजाते अश्वसूनृते॥
हे उषा देवी! जो प्रार्थित हुआ और जो प्रार्थित नहीं हुआ, यह सब हमें प्रदान करने में आप समर्थ है। हे दीप्तिमती! आप स्तोताओं के तम का नाश करती हैं किन्तु उनकी हिंसा नहीं करती। हे शोभन उत्पन्न वाली! अश्वप्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.10]
Hey Usha Devi! You are empowered to grant-give us the things whether they are requested or not. Hey radiant-shinning! You destroy the darkness-ignorance of the worshipers, but do not harm them. Hey born of beautiful origin! People worship you for having horses.(13.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (80) :: ऋषि :- सत्यश्रवा आत्रेय, देवता :- उषा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
द्युतद्यामानं बृहतीमृतेन ऋतावरीमरुणप्सुं विभातीम्।
देवीमुषसं स्वरावहन्तीं प्रति विप्रासो मतिभिर्जरन्ते॥
दीप्तिमान् रथ पर आरोहित, सर्वव्यापिनी, यज्ञ में भली-भाँति पूजित, अरुण वर्ण, सूर्य की पुरोवर्तिनी और दीप्तिमती उषा का स्तवन ऋत्विक् लोग स्तोत्रों द्वारा करते हैं।[ऋग्वेद 5.80.1]
पूर्ववर्ती :: पहले रहनेवाला, पहले होनेवाला; predecessor, preceding.
Riding radiant charoite, all pervading, worshiped-prayed properly in the Yagy, red coloured, preceding-following the Sun and aurous Usha is worshiped by the Ritviz with the recitation of Strotr-sacred hymns.
एषा जनं दर्शता बोधयन्ती सुगान्यथः कृण्वती यात्यग्रे।
बृहद्रथा बृहती विश्वमिन्वोषा ज्योतिर्यच्छत्यग्रे अह्नाम्॥
दर्शनीय उषादेवी प्रसुप्त जनों को चैतन्य करती हैं और मार्गों को सुगम करके प्रभूत रथ पर आरोहण करती हैं एवं सूर्य देव के पुरोभाग में गमन करती हैं। महती और विश्व व्यापिनी उषा दिन के आरम्भ में प्रकाश का विस्तार करती हैं।[ऋग्वेद 5.80.2]
Beautiful Usha awake the sleeping people and make the roads easier, riding the charoite and moves ahead of the Sun. great and pervading the universe Usha extends the day.
एषा गोभिररुणेभिर्युजानास्त्रेधन्ती रयिमप्रायु चक्रे।
पथो रदन्ती सुविताय देवी पुरुष्टुता विश्ववारा वि भाति॥
रथ में अरुण वर्ण के बलीवर्दों को युक्त करके वे अक्षीण धनों को अविचलित करती हैं। दीप्तिमती, बहुस्तुता और सभी के द्वारा वरणीया उषादेवी मार्गों को प्रकाशित करके प्रकाशित होती है।[ऋग्वेद 5.80.3]
बलीवर्द :: बैल, सांड़; bull.
क्षीण :: जिसका क्षय हुआ हो, कमज़ोर, निर्बल; weak, emaciated, feeble.
Deploying the red coloured oxen in the charoite, she stabilize the imperishable wealth. Radiant, worshiped by numerous people accepted to all, desires accomplishing Usha Devi lit the roads.
एषा व्येनी भवति द्विबर्हा आविष्कृण्वाना तन्वं पुरस्तात्।
ऋतस्य पन्थामन्वेति साधु प्रजानतीव न दिशो मिनाति॥
प्रथम और मध्यम स्थान में अर्थात् ऊर्द्ध और बीच अन्तरिक्ष में अवस्थिति करके उषा अपनी मूर्ति को पूर्व दिशा में प्रकटित करती हैं। विशेष श्वेत वर्ण वाली उषा अभी ब्रह्माण्ड को प्रबोधित करके आदित्य के मार्ग को भली-भाँति से अनुधावन करती हैं। वे दिशाओं की हिंसा नहीं करती, बल्कि दिशाओं को प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 5.80.4]
Usha present in the up or middle space-sky arises in the east. Possessing special white colour, she energise-conscious, awake the universe and cleanse the path of Adity-Sun clear. She does not harm the directions, instead lit them.
एषा शुभ्रा न तन्वो विदानोर्ध्वेव स्नाती दृशये नो अस्थात्।
अप द्वेषो बाधमाना तमांस्युषा दिवो दुहिता ज्योतिषागात्॥
युक्त रमणी स्त्री के तुल्य अपने शरीर को प्रकाशित करती हुई और स्नान कर चुकने वाली के तुल्य उषा देवी हम लोगों के पुरोभाग में पूर्व की ओर उदित होती हैं। द्युलोक की पुत्री उषादेवी द्वेषक अन्धकार को बाधित करके तेज के साथ आगमन करती हैं।[ऋग्वेद 5.80.5]
Exhibiting her body like the woman who has taken bath, Usha Devi arises in the east. Daughter of the heavens Usha Devi remove darkness with her aura.
एषा प्रतीची दुहिता दिवो नॄन्योषेव भद्रा नि रिणीते अप्सः।
व्यूर्ण्यती दाशुषे वार्याणि पुनर्ज्योतिर्युवतिः पूर्वथाकः॥
द्युलोक की पुत्री उषादेवी पश्चिमाभिमुखी होकर कल्याण कारक वेश धारित करने वाली रमणी के तुल्य अपने रूप को प्रेरित करती हैं। वह हव्य देने वाले याजकगण को वरणीय धन प्रदान करती हैं। नित्य यौवन वाली उषा पूर्व के तुल्य अपनी दीप्ति प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 5.80.6]
Daughter of the heavens Usha Devi become helpful turning to West, like the young woman exposing her beauty. She grants offerings to the Ritviz and grant acceptable wealth. Always young Usha exhibit her ever young-new aura in the east.(14.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- उषा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
उदु श्रिय उषसो रोचमाना अस्थुरपां नोर्मयो रुशन्तः।
कृणोति विश्वा सुपथा सुगान्यभूदु वस्वी दक्षिणा मघोनी॥
दीप्तिमती और शुक्लवर्ण उषाएँ शोभा के लिए आप जल लहरी की तरह ऊपर को आ रही हैं। उषा समस्त स्थानों को प्रशस्ता और समृद्धिवान बनाती हैं।[ऋग्वेद 6.64.1]
Radiant and white coloured Ushas rise up like the water waves. Ushas make all places prosperous and smashing-glorious.
भद्रा ददृक्ष उर्विया वि भास्युत्ते शोचिर्भानवो द्यामपप्तन्।
आविर्वक्षः कृणुषे शुम्भमानोषो देवि रोचमाना महोभिः॥
हे उषा देवी! आप कल्याणी के सदृश दिखाई दे रही हैं और विस्तृत होकर शोभा पा रही है। आपकी दीप्तिमती किरणें शोभा पा रही हैं। आपकी दीप्तिमती किरणें अन्तरिक्ष में उठ रही हैं। आप तेजों में शोभमाना और दीप्यमाना होकर प्रकाश कर सभी का कल्याण करती हैं।[ऋग्वेद 6.64.2]
कल्याण
पुल्लिंग :: मंगल, शुभ, सुख, मंगलकारी; सौभाग्यशाली; welfare, well being.
Hey Usha Devi! You are appearing like one who cause welfare and spreading, becoming glorious-auspicious. Your radiant rays too are glorious. Your radiant rays are rising up. You light every one causing welfare.
वहन्ति सीमरुणासो रुशन्तो गावः सुभगामुर्विया प्रथानाम्।
अपेजते शूरो अस्तेव शत्रून् बाधते तमो अजिरो न वोळ्हा॥
लोहितवर्ण और दीप्तिमान रश्मियाँ सुभगा, विस्तीर्ण और प्रथमा उषा को वहन कर ऊपर लाती हैं। जिस प्रकार से शस्त्र फेंकने में निपुण वीर शत्रुओं को दूर करता है, उसी प्रकार उषा देवी अन्धकार को दूर कर शीघ्रगामी सेनापति के समान अन्धकार को रोकती हैं।[ऋग्वेद 6.64.3]
Auspicious red coloured broad and radiant rays brings first Usha up. The way a brave warrior expert in throwing weapons repel the enemies, Usha Devi block the darkness like a fast-quick moving commander.
सुगोत ते सुपथा पर्वतेष्ववाते अपस्तरसि स्वभानो।
सा न आ वह पृथुयान्नृष्वे रयिं दिवो दुहितरिषयध्यै॥
पर्वत और वायु रहित प्रदेश आपके लिए सुपथ और सरल हो जाते हैं। हे स्वप्रकाश युक्त! आप अन्तरिक्ष को विशाल रथ वाली और सुदृश्य द्युलोक की कन्या, हमें अभिलषणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.64.4]
Mountainous and air free regions become easy and navigable-simple for you. Hey possessor of your own light. Hey possessor of large charoite in the space like the daughter of heavens grant us desired wealth.
सा वह योक्षभिरवातोषो वरं वहसि जोषमनु।
त्वं दिवो दुहितर्या ह देवी पूर्वहूतौ मंहना दर्शता भूः॥
हे द्युलोक की पुत्री उषा देवी! मुझे धन प्रदान करें। आप अप्रतिगत होकर प्रीतिपूर्वक अश्व द्वारा धन वहन करती है। आप दीप्तमती हैं। प्रथम आह्वान में पूजनीया हैं। इसलिए आप दर्शनीया हैं।[ऋग्वेद 6.64.5]
Hey daughter of heavens Usha Devi! Grant me riches. Unopposed you affectionately carry wealth over the horses. You are aurous. You are worshipable at the first invocation, hence beautiful.
उत्ते वयश्चिद्वसतेरपप्तन्नरश्च ये पितुभाजो व्युष्टौ।
अमा सते वहसि भूरि वाममुषो देवि दाशुषे मर्त्याय॥
उषा देवी आपके प्रकट होने पर चिड़ियाँ घोसलों से निकलती हैं और अन्न के उपार्जक मनुष्य निद्रा से उठकर अपने कार्य में उद्यत होते हैं। समीप में वर्तमान हव्य देने वाले मनुष्य को यथेष्ट धन प्रदान करती है।[ऋग्वेद 6.64.6]
Hey Devi! The birds comes out of their nests when you appear. The humans who earn food grains, get up and become ready for their work. You grant desired riches to the one who make offerings for you.(31.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- उषा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
एषा स्या नो दुहिता दिवोजाः क्षितीरुच्छन्ती मानुषीरजीगः।
या भानुना रुशता राम्यास्वज्ञायि तिरस्तमसश्चिदक्तून्॥
जो उषा देवी दीप्तिमान किरणों से युक्त होकर रात्रि में तेज पदार्थ (नक्षत्रादि) और अन्धकार को दूर करती दिखाई देती है, वही द्युलोकोत्पन्ना पुत्री उषा हमारे लिए अन्धकार दूर करके प्रजाओं को जागृत करती हैं।[ऋग्वेद 6.65.1]
Usha Devi who hide the stars and constellations at night with her radiant rays and remove darkness; born in the heaven, she remove the darkness and awake the populace.
वि तद्ययुररुणयुग्भिरश्वैश्चित्रं भान्त्युषसश्चन्द्ररथाः।
अग्रं यज्ञस्य बृहतो नयन्तीर्वि ता बाधन्ते तम ऊर्म्यायाः॥
कान्ति युक्त रथ वाली उषा देवी उसी समय बृहत यज्ञ का प्रथम चरण सम्पादित करके लाल रंग के अश्व से विस्तृत रूप से गमन करती हैं। वे विचित्र रूप से शोभा पाती हैं और रात्रि के अन्धकार को नष्ट करती है।[ऋग्वेद 6.65.2]
Usha Devi riding the radiant charoite accomplish the first phase of the Yagy performed at large scale and moves over the red coloured horse thoroughly. She possess amazing glory and remove the darkness of night.
श्रवो वाजमिषमूर्जं वहन्तीर्नि दाशुष उषसो मर्त्याय।
मघोनीर्वीरवत्पत्यमाना अवो धात विधते रत्नमद्य॥
हे उषा देवियो! आप हव्य दाता मनुष्य को कीर्त्ति, बल, अन्न और रस प्रदान करती हैं। आप धनशालिनी और गमनशीला है। आप सेवा करने वाले को पुत्र-पौत्र आदि से युक्त अन्न और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.65.3]
Hey deity Ushas! You grant fame-glory, strength, food grains and saps to the one who make offerings for you. You are dynamic and wealthy. You grant sons & grandsons along with food grains and wealth to the one who serve you.
इदा हि वो विधते रत्नमस्तीदा वीराय दाशुष उषासः।
इदा विप्राय जरते यदुक्था नि ष्म मावते वहथा पुरा चित्॥
हे उषा देवियों! जिस प्रकार आपने स्तोताओं को पूर्व में धन प्रदत्त किया, उसी प्रकार इस समय भी आप हवि देने वाले एवं स्तोताओं को वे रत्न प्रदान करें जो आपके पास हैं।[ऋग्वेद 6.65.4]
Hey deity Ushas! The way you granted wealth to the Stotas in the past, similarly grant jewels to those who make offerings for you now.
इदा हि त उषो अद्रिसानो गोत्रा गवामङ्गिरसो गृणन्ति।
व्य१र्केण बिभिदुर्ब्रह्मणा च सत्या नृणामभवद्देवहूतिः॥
हे गिरितटप्रिय उषा देवी! अङ्गिराओं ने आपकी कृपा से तत्काल ही गायों को छोड़ दिया और पूजनीय स्तोत्र द्वारा अन्धकार का नाश किया। हे मनुष्यों की ईश! अब आपकी प्रार्थना फलवती हुई।[ऋग्वेद 6.65.5]
Hey Usha Dev loving the mountain terminals! Angiras released the cows immediately due to your grace and terminated the darkness with revered Strotr. Hey deity of the humans! Your worship is rewarding.
उच्छा दिवो दुहितः प्रत्नवन्नो भरद्वाजवद्विधते मघोनि।
सुवीरं रयिं गृणते रिरीह्युरुगायमधि धेहि श्रवो नः॥
हे द्युलोक की पुत्री उषा! प्राचीन लोगों के सदृश हमारे लिए भी अन्धकार को दूर करें। हे धनशालिनी उषा देवी! भरद्वाज के समान प्रार्थना करने वाले हम स्तोताओं को पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.65.6]
Hey daughter of the heavens Usha! Remove darkness as you did for the ancient people. Hey wealthy Usha! Grant sons and grandsons to us the Stotas; along with wealth.(01.11.2023)
Contents of these above mentioned blogs are covered under copyright and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS ARE RESERVED WITH THE AUTHOR.
संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)