Monday, December 29, 2014

AGNI DEV-DEITY OF FIRE जात वेदा अग्नि देव (RIG VED 1-6 ऋग्वेद)*

अग्नि देव
DEITY OF FIRE
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com palmistrycncyclopedia.blgspot.com
santoshvedshakti.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
देवों में अग्नि देव का प्रमुख स्थान है। देवताओं में इन्द्र के पश्चात अग्नि देव का ही पूजनीय स्थान है। वैदिक मंत्रों के अनुसार अग्नि देव नेतृत्व शक्ति से सम्पन्न, यज्ञ की आहुतियों को ग्रहण करने वाले तथा तेज एवं प्रकाश के अधिष्ठाता हैं।
अग्नि देव द्यावा पृथ्वी के पुत्र हैं। मातरिश्वा भृगु तथा अंगिरा इन्हें भूतल पर लाये। अग्नि पार्थिव देव है। यज्ञाग्नि के रूप में इसका मूर्तिकरण प्राप्त होता है। अतः इसे ऋत्विक होता और पुरोहित बताया गया है। यह यजमानों के द्वारा विभिन्न देवों के उद्देश्य से अपने में प्रक्षिप्त हविष्य को उनके पास पहुँचाता है।
ऋग्वेद में अग्नि को धृतपृष्ठ, शोचिषकेश, रक्तश्मश्रु, रक्तदन्त, गृहपति, देवदूत, हव्यवाहन, समिधान, जातवेदा, विश्वपति, दमूनस, यविष्ठय, मेध्य आदि नामों से सम्बोधित किया गया है।
'मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद् वायुरजायत' पुरुष सूक्त के अनुसार अग्नि और इन्द्र जुडवाँ भाई हैं। उनका रथ सोने के समान चमकता है और दो मनोजवा एवं मनोज्ञ वायुप्रेरित लाल घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। अग्नि का प्रयोजन दुष्टात्माओं और आक्रामक, अभिचारों को समाप्त करना है। अपने प्रकाश से राक्षसों को भगाने के कारण ये रक्षोंहन् कहे गए हैं। देवों की प्रतिष्ठा करने के लिए अग्नि का आह्वान किया जाता है :-
अग्निर्होता कविक्रतु सत्यश्चित्रश्रवस्तमः। देवो देवेभिरागमत्॥
अग्नि-सूक्त ऋग्वेद के प्रथम मण्डल का प्रथम सूक्त है। इसके ऋषि मधुच्छन्दा वैश्वामित्र है। यह विश्वामित्र के पुत्र हैं। इसके देवता अग्नि हैं। इसका छन्द गायत्री-छन्द है। इस सूक्त का स्वर षड्जकृ है। गायत्री-छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन पाद (चरण) होते हैं। इस प्रकार यह छन्द चौबीस अक्षरों (स्वरों) का है। इसमें कुल नौ मन्त्र है।सँख्या की दृष्टि से इऩ्द्र (250 श्लोक) के बाद अग्नि (200 श्लोक) का ही स्थान है, किन्तु महत्ता की दृष्टि से अग्नि का सर्वप्रमुख स्थान है।स्वतन्त्र रूप से अग्नि का 200 सूक्तों में स्तवन किया गया है। सामूहिक रूप से अग्नि का 2483 सूक्तों में स्तवन किया गया है। अग्नि पृथ्वी स्थानीय देवता है। इनका पृथ्वी लोक में प्रमुख स्थान है।
अग्नि का स्वरूप :: अग्नि शब्द "अगि गतौ" (भ्वादि. 5.2) धातु से बना है। गति के तीन अर्थ हैंः - ज्ञान, गमन और प्राप्ति। इस प्रकार विश्व में जहाँ भी ज्ञान, गति, ज्योति, प्रकाश, प्रगति और प्राप्ति है, वह सब अग्नि का ही प्रताप है।
अग्नि में सभी दोवताओं का वास होता  है :- "अग्निर्वै सर्वा देवता" 
अर्थात् अग्नि के साथ सभी देवताओं का सम्बन्ध है।[ऐतरेय-ब्राह्मण 1.1, शतपथ 1.4.4.10] 
अग्नि सभी देवताओँ की आत्मा है :- "अग्निर्वै सर्वेषां देवानाम् आत्मा" [शतपथ-ब्राह्मण 14.3.2.5]
निरुक्ति :- अग्नि की पाँच प्रकार से निरुक्ति  हैं :-
(1). अग्रणीर्भवतीति अग्निः। मनुष्य के सभी कार्यों में अग्नि अग्रणी होती है ।
(2). अयं यज्ञेषु प्रणीयते। यज्ञ में सर्वप्रथम अग्निदेव का ही आह्वान किया जाता है ।
(3). अङ्गं नयति सन्नममानः। अग्नि में पड़ने वाली सभी वस्तुओं को यह अपना अंग बना लेता है ।
(4). अक्नोपनो भवतीति स्थौलाष्ठीविः। न क्नोपयति न स्नेहयति।
यह रूक्ष (शुष्क) करने वाली होती है, अतः इसे अग्नि कहते हैं।[निरुक्तकार स्थौलाष्ठीवि] 
(5). त्रिभ्य आख्यातेभ्यो जायते इति शाकपूणिः, इताद् अक्ताद् दग्धाद्वा नीतात्।
अग्नि शब्द इण्, अञ्जू या दह् और णीञ् धातु से बना है। इण् से "अ", अञ्जू से या दह् से "ग" और णीञ् से "नी" लेकर बना ह।[शाकपूणि आचार्य, यास्क, निरुक्तः 7.4.15]
कोई भी याग अग्नि के बिना सम्भव नहीं है। याग की तीन मुख्य अग्नियाँ होती हैं :- गार्हपत्य, आह्वनीय और दक्षिणाग्नि। गार्हपत्याग्नि सदैव प्रज्वलित रहती है। शेष दोनों अग्नियों को प्रज्वलित किए बिना याग नहीं हो सकता।
फलतः अग्नि सभी देवताओं में प्रमुख है।
अग्नि का स्वरूप भौतिक अग्नि के आधार पर व्याख्यायित किया गया है।
(1). अग्नि का रूप :- अग्नि की पीठ घृत से निर्मित है :- घृतपृष्ठ।  इनका मुख घृत से युक्त है :- घृतमुख। इनकी जिह्वा द्युतिमान् है। दाँत स्वर्णिम, उज्ज्वल तथा लोहे के समान हैं। केश और दाढी भूरे रंग के हैं। जबडे तीखें हैं, मस्तक ज्वालामय है। इनके तीन सिर और सात रश्मियाँ हैं। इनके नेत्र घृतयुक्त हैं :- घृतम् में चक्षुः। इनका रथ युनहरा और चमकदार है जिसे दो या दो से अधिक घोडे खींचते हैं। अग्नि अपने स्वर्णिम रथ में यज्ञशाला में बलि (हवि) ग्रहण करने के लिए देवताओं को बैठाकर लाते हैं। वे अपने उपासकों के सदैव सहायक हैं।
(2). अग्नि का जन्म :- अग्नि स्वजन्मा, तनूनपात् है। ये स्वतः-अपने आप, उत्पन्न होते हैं। अग्नि दो अरणियों के संघर्षण से उत्पन्न होते हैं। इनके लिए अन्य की आवश्यकता नहीं है। इसका अभिप्राय यह है कि अग्नि का जन्म, अग्नि से ही हुआ है। प्रकृति के मूल में अग्नि  है। ऋग्वेद के पुरुष-सूक्त में अग्नि की उत्पत्ति विराट्-पुरुष के मुख से बताई गई है :- मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च। अग्नि द्यावापृथ्वी के पुत्र हैं। 
(3). भोजन :- अग्नि का मुख्य भोजन काष्ठ और घृत है। आज्य उनका प्रिय पेय पदार्थ है। ये यज्ञ में दी जाने वाली हवि को ग्रहण करते हैं।
(4). अग्नि कविक्रतु है :- अग्नि कवि तुल्य है। वे अपना कार्य विचारपूर्वक करते हैं। कवि का अर्थ है :- क्रान्तदर्शी, सूक्ष्मदर्शी, विमृश्यकारी। वे ज्ञानवान् और सूक्ष्मदर्शी हैं। उनमें अन्तर्दृष्टि है। अग्निर्होता कविक्रतुः।[ऋग्वेदः 1.1.5]
(5). गमन :- अग्नि का मार्ग कृष्ण वर्ण का है। विद्युत् रथ पर सवार होकर चलते हैं। जो प्रकाशमान्, प्रदीप्त, उज्ज्वल और स्वर्णिम है। वह रथ दो अश्वों द्वारा खींचा जाता है, जो मनोज्ञा, मनोजवा, घृतपृष्ठ, लोहित और वायुप्रेरित है।
(6). अग्नि रोग-शोक और पाप-शाप नाशक हैं :- अग्नि रोग-शोक, पाप-दुर्भाव, दुर्विचार और शाप तथा पराजय का नाश करते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि जिसके हृदय में सत्त्व और विवेकरूपी अग्नि प्रज्वलित हो जाती है, उसके हृदय से दुर्भाव, दुर्विचार रोग-शोक के विचार नष्ट हो जाते हैं। वह व्यक्ति पराजित नहीं होता :-देवम् अमीवचातनम्।[ऋग्वेदः 1.12.7] और प्रत्युष्टं रक्षः प्रत्युष्टा अरातयः। [यजुर्वेदः-1.7]
(7.) यज्ञ के साथ अग्नि का सम्बन्ध :- यज्ञ के साथ अग्नि का अभिन्न सम्बन्ध है। उसे यज्ञ का ऋत्विक् कहा जाता है। वह पुरोहित और होता है। वह देवाताओं का आह्वान करता है और यज्ञ-भाग देवताओं तक पहुँचाता है :-अग्निमीऴे पुरोहितम्। [ऋग्वेदः 1.1.1]
(8). देवताओं के साथ अग्नि का सम्बन्ध :- अग्नि के साथ अश्विनी और उषा रहते हैं। मानव शरीर में आत्मारूपी अग्नि  विस्तार है। अश्विनी प्राण-अपान वायु हैं। इनसे ही मानव जीवन चलता है। इसी प्रकार उषाकाल में प्राणायाम, धारणा और ध्यान की क्रियाएँ की जाती हैं। अग्नि वायु के मित्र हैं। जब अग्नि प्रदीप्त है, तब वायु उनका साथ देते हैं :- आदस्य वातो अनु वाति शोचिः। [ऋग्वेदः 1.148.4]
(9). मानव-जीवन के साथ अग्नि का सम्बन्ध :: अग्नि मनुष्य के रक्षक पिता हैं :- 
स नः पितेव सूनवेSग्ने सुपायनो भव।[ऋग्वेदः 1.1.9] 
उन्हें दमूनस्, गृहपति, विश्वपति कहा जाता है।
(10). पशुओं से तुलना :- आत्मारूपी अग्नि हृदय में प्रकट होते हैं। ये हृदय में हंस के समान निर्लेप भाव से रहते हैं। ये उषर्बुध (उषाकाल) में जागने वालों के हृदय में चेतना प्रदान करते हैं :- 
हंसो न सीदन्, क्रत्वा चेतिष्ठो, विशामुषर्भुत्, ऋतप्रजातः, विभुः।
[ऋग्वेदः 1.65.5]
(11). अग्नि अतिथि है :- अग्नि रूप आत्मा शरीर में अतिथि के तुल्य रहते हैं और सत्यनिष्ठा से रक्षा करते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति सत्य का आचरण, सत्यनिष्ठ और सत्यवादी है, वे उसकी सदैव रक्षा करते हैं। ये अतिथि के समान शरीर में रहते हैं, जब उनकी इच्छा होती है, तब प्रस्थान कर जाते हैं :- अतिथिं  मानुषाणाम्।[ऋग्वेदः 1.127.8]
(12). अग्नि अमृत है :- संसार नश्वर है। इसमें अग्नि ही अजर-अमर है। यह अग्नि ज्ञानी को अमृत प्रदान करती है। अग्नि रूप परमात्मा मानव हृदय में वाद्यमान अमृत तत्त्व है। जो साधक और ज्ञानी हैं, उन्हें इस अमृतत्व आत्मा का दर्शन होता है :- विश्वास्यामृत भोजन।[ऋग्वेदः 1.44.5]
(13). अग्नि के तीन शरीर हैं :स्थूल-शरीर सू्क्ष्म-शरीर और कारण-शरीर। मानव शरीर अन्नमय-कोश और प्राणमय कोश वाला स्थूल शरीर है। मनोमय और विज्ञानमय कोश वाला शरीर सूक्ष्म शरीर है। आनन्दमय कोश वाला शरीर कारण शरीर है :- तिस्र उ ते तन्वो देववाता।[ऋग्वेद 3.20.2]
ग्रीष्मे पञ्चतपास्तु स्याद्वर्षास्वभ्रावकाशिकः। 
आर्द्रवासास्तु हेमन्ते क्रमशो वर्धयंस्तपः॥
ग्रीष्म में पञ्चाग्नि से अपने को तपावे, वर्षा में जहाँ वर्षा होती हो वहाँ मैदान में रहे और हेमन्त में भीगा कपड़ा पहन कर क्रम से तप को बढ़ावे।[मनु स्मृति 6.23] 
As a part of ascetic practices one should bear the torturous heat, rain and extreme cold.
In summer he should expose himself to the heat of five fires, during the rainy season live under the open sky and during winters be dressed in wet clothes, thus gradually increasing the rigour of his austerities.
पञ्चाग्नि :: अन्वाहार्य, पाचन, गार्हपत्य, आहवनीय और आवसथ्य। इन पञ्चाग्नियों का रूप निम्न प्रकार हैं:
द्युलोक अग्नि :- उसमें सूर्यरूपी समिधा जल रही है। उसकी किरणें धुआँ हैं, दिन उसकी लपटें हैं, चन्द्रमा अंगारे और नक्षत्र चिंगारियां हैं। उसमें देवता श्रद्धा की आहुति देते हैं, जिससे सोम (राजा) पैदा होता है।
पर्जन्य अग्नि :- वायु समिधा, अभ्र धूम, विद्युत् ज्वाला, वज्रपात अंगारे, गर्जन चिंगारियां हैं। उसमें देव सोम (राजा) की आहुति देते हैं। तब वर्षा उत्पन्न होती है।
पृथ्वी अग्नि :- सम्वत्सर समिधा, आकाश धूम, रात्रि ज्वाला, दिशा अंगारे तथा अवान्तर दिशाएं चिंगारियां हैं। इसमें देव वर्षा की आहुति देते हैं। फलत: अन्न उत्पन्न होता है।
शरीर (हमारा) अग्नि :- वाक् उसकी समिधा, प्राण धूम, जिह्वा ज्वाला, चक्षु अंगारे, श्रोत्र चिंगारियां हैं। उसमें देव अन्न की आहुतियां देते हैं। जिससे वीर्य उत्पन्न होता है।
स्त्री देह अग्नि :- उसकी समिधा उपस्थ, उपमन्त्रण धूम, योनि ज्वाला, मैथुन अँगारे और आनन्द चिंगारियाँ हैं। इससे गर्भ उत्पन्न होता है। यहाँ श्रद्धारूपी जल देह में रूपान्तरित होता है। शरीर उत्पन्न होता है।
मृत्यु काल में प्राणाग्नि के निकल जाने से शीतल शरीर को अग्नि (पञ्चमहाभूत) के हवाले कर दिया जाता है। अग्नि आत्मा को वहीं ले जाता है, जहाँ से वह आया था।
अग्नीनात्मनि वैतानान्समारोप्य यथाविधि। 
अनग्निरनिकेतः स्यान्मुनिर्मूलफलाशनः॥
वैतान अग्नि को यथाविधि से अपने में समारोपित करे (अर्थात लौकिक अग्नि और गृह को त्याग कर) मौन व्रत धारण करे और कंद-मूल, फ़ल खाकर निर्वाह करे।[मनु स्मृति 6.25]
One should reject the use of fire (for cooking, protection from cold etc.) and let it dwell in his body by leaving home, maintaining silence and depending over fruits, roots, bulbs, rhizomes of plants.
अग्नि सूक्त (1) ::  ऋग्वेद संहिता 1.1.1-9,  ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री। 
वेद में अग्नि देवता का विशेष महत्व है। ऋग्वेद संहिता में दो सौ सूक्त अग्नि के स्तवन में उपलब्ध है। ऋग्वेद के सभी मण्डलों के आदि में अग्नि सूक्त के अस्तित्व से अग्नि देव की प्रधानता  प्रकट होती है। सर्वप्रधान और सर्वव्यापक होने के साथ अग्नि सर्वप्रथम, सर्वाग्रणी भी हैं। इनका जातवेद नाम इसको विशेषता का द्योतक है। भूमण्डल के प्रमुख तत्वों से अग्नि का सम्बन्ध बताया का जाता है। प्राणि मात्रके सर्वविध कल्याण के लिये इस सूक्त गायन किया जाता है।
अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥
स्वयं आगे बढ़कर लोगों का हित करनेवाले, प्रकाशक, ऋतु के अनुसार यज्ञ करने तथा देवों को बुलाने वाले और रत्नों को धारण करने वाले अग्नि की मैं स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 1.1.1]
आद्य :: आदि, मूल; primitive, primordial.
I pray to the Agni-deity of fire, who illuminates all, performs Yagy as per the season (sowing crops, mating and performing all useful deeds), who invites the demigods-deities, bearing jewels-ornaments. 
सबका हित करने वाले, यज्ञ के प्रकाशक, सदा अनुकूल यज्ञ कर्म करने वाले, विद्वानों के सहायक अग्नि की मैं प्रशंसा करता हूँ।
I praise-appreciate Agni Dev, who is always helpful to all, lit-lightens the Yagy, always perform favourite deeds and is helpful to the learned Brahmns-Pandits.
हे अग्निदेव! हम आपकी स्तुती करते हैं। आप यज्ञ (श्रेष्ठतम पारमार्थिक कर्म) के पुरोहित (आगे बढाने वाले), देवता (अनुदान देनेवाले), ऋत्विज (समयानुकूल यज्ञ का सम्पादन करनेवाले), होता (देवों का आवाहन करनेवाले) और याचकों को रत्नों से (यज्ञ के लाभों से) विभूषित करने वाले हैं।
Hey Agni Dev-the demigod of fire! We glorify (adore, pray, worship) you as the highest priest of sacrifice, the divine, one who invites the demigods, who is the offeror and possessor of greatest wealth.
अग्निः पूर्वेर्भिऋषिभिरीड्यो नूतनैरुत। स देवाँ एह वक्षति॥
सदैव से प्रशंसित अग्नि देव का आवाहन करते हैं। अग्नि के द्वारा ही देवता शरीर में प्रतिष्ठित रहते हैं। शरीर से अग्नि देव के निकल जाने पर समस्त देव इस शरीर को त्याग देते हैं।[ऋग्वेद 1.1.2]
We invite Agni Dev who is always appreciable. Its the Agni Dev who hold the deities-demigods in the body. Demigods-deities leave the body as soon as Agni Dev moves out of it.
जो अग्नि देव पूर्व कालिक ऋषियों (भृगु, अंगिरादि) द्वारा प्रशंसित हैं। जो वर्तमान काल में भी ऋषि कल्प वेदज्ञ विद्वानों द्वारा स्तुत्य हैं, वे अग्निदेव इस यज्ञ में देवों का आवाहन करें। 
देव आवाहन मंत्र :- 
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव। 
यावत्पूजां करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव
May that Agni, who is worthy to be praised by ancient and modern sages, gather the deities-demigods here.
अग्निना रयिमश्नवत् पोषमेव दिवेदिवे। यशसं वीरवत्तमम्॥
अग्नि ही पुष्टि कारक, बल युक्त और यशस्वी अन्न प्रदान करते हैं। अग्नि से ही पोषण होता है, यश बढ़ता है और वीरता से धन प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 1.1.3]
Agni provides nourishing, strengthening and glorifying grains. Agni is nursing and glorifying leading to earning through valour.
स्तोता द्वारा स्तुति किये जाने पर; यश बढ़ाने वाले अग्नि देव मनुष्यों-यजमानों को प्रतिदिन विवर्धमान-बढ़ने वाला धन, यश एवं पुत्र-पौत्रादि, वीर पुरूष आदि प्रदान करनेवाले हैं। 
Agni Dev, the deity of fire grants wealth to the devotees, which keeps on enhancing-increasing day by day along with the devotee's name fame-honour. He is blessed with able progeny.
अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि। स इद् देवेषु गच्छति॥
हे अग्नि! जिस हिंसा रहित यज्ञ को सब ओर से आप सफल बनाते हैं, वही देवों के समीप पहुँचता है।[ऋग्वेद 1.1.4] 
Hey Agni! The Yagy free from violence becomes successful and reaches the demigods-deities.
हे अग्निदेव। आप सबका रक्षण करने में समर्थ हैं। आप जिस अध्वर (हिंसा रहित यज्ञ) को सभी ओर से आवृत किये रहते हैं, वही यज्ञ देवताओं तक पहुँचता है।  
Hey Agni Dev! You are capable of protecting everyone. You keep on surrounding the Hawan Kund-sacrificial pot free from violence (Animal sacrifice, meat) from all sides. These offerings reach the demigods-deities through you.
This verse clearly states that the Yagy, Hawan, Agni Hotr does not allow animal sacrifice, eating of meat.
अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः देवो देवेभिरा गमत्॥
देवों का आवाहन करने वाला, यज्ञ-निष्पादक, ज्ञानियों की कर्म शक्ति का प्रेरक, सत्य परायण, विविध रूपों वाला और अतिशय कीर्ति युक्त यह तेजस्वी अग्नि, देवों के साथ इस यज्ञ में आयें।[ऋग्वेद 1.1.5]
The Agni who is brilliant, glorious, having vivid forms, truthful, directing the enlightened to endeavours-Yagy performances, inviting the demigods-deities, should come to the Yagy along with the demigods-deities.
हे अग्निदेव! आप हवि प्रदाता, ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक, सत्यरूप एवं विलक्षण रूप युक्त है। आप देवों के साथ इस यज्ञ में पधारें। 
O Agni Dev! You provide us with the material for offerings-sacrifices, knowledge-enlightenment and power-strength, inspiration for performing deeds-duties and you are an embodiment of truth, unique in qualities. Kindly oblige us by arriving here at the site of the Yagy along with the demigods-deities.
यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि। तवेत् तत् सत्यमङ्गिरः॥
हे अग्नि! आप दान शील का कल्याण करते हैं। हे शरीर में व्यापक अग्नि! यह आपका नि:संदेह एक सत्य कर्म है।[ऋग्वेद 1.1.6]
Hey Agni! You resort to the welfare of the person who is a donor. Hey body pervading Agni! Its definitely a truthful deed.
हे अग्निदेव! आप यज्ञ करने वाले यजमान का धन, आवास, संतान एवं पशुओं की समृद्धि करके, जो भी कल्याण करते हैं, वह भविष्य के किये जाने वाले यज्ञों के माध्यम से आपको ही प्राप्त होता है। 
Hey Agni Dev! What ever welfare you do-bestow to the devotee-the person performing Yagy; in the form of wealth, live stock (animals), progeny and residence is returned to you through various sacrifices performed by the devotee in his life time-span.
उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम्। नमो भरन्त एमसि॥
हे अग्नि! प्रति दिन, दिन और रात बुद्धि पूर्वक नमस्कार करते हुए हम आपके समीप आते हैं अर्थात् अपनी स्तुतियों द्वारा हमेशा उस प्रकाशक एवं तेजस्वी अग्नि का गुणगान करना चाहिये, दिन और रात्रि के समय उनको सदा प्रणाम करना चाहिये।[ऋग्वेद 1.1.7]
Hey Agni! We always seek your shelter-protection (asylum) every day, during the day & night. One should always seek his blessings.
हे जाज्वलयमान अग्निदेव! हम आपके सच्चे उपासक हैं। श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा आपकी स्तुति करते हैं और दिन-रात, आपका सतत गुणगान करते हैं। हे देव। हमे आपका सान्निध्य प्राप्त हो। 
O Agni Dev possessor of Aura-brilliance! We are your devotees, performing the worship with pure intentions and keep on reciting your praise (qualities, traits) through day & night.
राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम्। वर्धमानं स्वे दमे॥
दीप्यमान, हिंसा रहित यज्ञों के रक्षक, अटल सत्य के प्रकाशक और अपने घर में बढ़ने वाले अग्नि के पास हम नमस्कार करते हुए आते हैं।[ऋग्वेद 1.1.8]
We have come to the Agni who is bright-brilliant, protector of the Yagy, favours the truth and is lit in our homes, to honour him.
हम गृहस्थ लोग दिप्तिमान, यज्ञों के रक्षक, सत्य वचन रूप व्रत को आलोकित करने वाले, यज्ञ स्थल में वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्निदेव के निकट, स्तुति पूर्वक आते हैं। 
We, the house holds leading a family life come to seek asylum (patronage, protection) under you at the site of the Yagy to have growth; you being the illuminator of the Yagy site and our protector requesting you again and again politely.
स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव। सचस्वा नः स्वस्तये॥
हे अग्नि! जिस प्रकार पिता-पुत्र के कल्याणकारी काम में सहायक होता है, उसी प्रकार आप हमारे कल्याण में सहायक हों।[ऋग्वेद 1.1.9] 
Hey Agni! You should be helpful to us, just like the father who is protective to the son.
हे गाहर्पत्य अग्ने! जिस प्रकार पुत्र को पिता (बिना बाधा के) सहज की प्राप्त होता है, उसी प्रकार आप भी (हम यजमानों के लिये) बाधा रहित होकर सुख पूर्वक प्राप्त हों। आप हमारे कल्याण के लिये हमारे निकट रहें। 
O Gaharpaty Agni! The convenience with which a son can approach his father without tension (trouble, hesitation), you should also be accessible to us for our welfare, around-near us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 12 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- अग्नि, छटवी ऋचा के प्रथम पाद के देवता निर्मथ्य अग्नि और आहवनीय अग्नि, छन्द :- गायत्री।
अग्निं दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम्। अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम्॥
हे सर्वज्ञाता अग्निदेव! आप यज्ञ के विधाता हैं, समस्त देवशक्तियों को तुष्ट करने की सामर्थ्य रखते हैं। आप यज्ञ की विधि व्यवस्था के स्वामी हैं। ऐसे समर्थ आपको हम देव दूत रूप में स्वीकार करते है।[ऋग्वेद 1.12.1]
हम देवदूत, आह्वान करने वाले, समस्त सिद्धियों के स्वामी, अनुष्ट सम्पादन करने वाले अग्नि का वरण करते हैं।
Hey all knowing Agni Dev! You are the master of the Yagy with the power to satisfy all divine powers. You are the master of the management of the Yagy. You being capable, we accept you as the messenger of the Almighty-God.
अग्निमग्निं हवीमभिः सदा हवन्त विश्पतिम्। हव्यवाहं पुरुप्रियम्॥
प्रजापालक, देवों तक हवि पहुँचाने वाले, परमप्रिय, कुशल नेतृत्व प्रदान करने वाले हे अग्निदेव! हम याजक गण हवनीय मंत्रों से आपको सदा बुलाते है।[ऋग्वेद 1.12.2]
प्रजा-पोषक, हविवाहक अनेकों के प्रिय अग्नि का मंत्रों द्वारा यजमान आह्वान करते हैं।
Nurturer of the populace, carrier of offerings to the demigods, provider of skilled leadership, Hey Agni Dev! We the organiser, of the Yagy invite you with the help of divine verses. 
अग्ने देवाँ इहा वह जज्ञानो वृक्तबर्हिषे। असि होता न ईड्यः॥
हे स्तुत्य अग्निदेव! आप अरणि मन्थन से उत्पन्न हुये हैं। आस्तीर्ण (बिछे हुये) कुशाओं पर बैठे हुये यजमान पर अनुग्रह करने हेतु आप (यज्ञ की) हवि ग्रहण करने वाले देवताओं  को इस यज्ञ में बुलायें।[ऋग्वेद 1.12.3]
हे अग्ने! कुश बिछाने वाले यजमान के लिए प्रदीप्त हुए तुम देवताओं को आमंत्रित करो, क्योंकि तुम हमारे लिए पूजनीय हो।
Hey Agni Dev! You have evolved by the rubbing of wood. Kindly, invite the demigods to occupy these cushions, made of Kush grass for accepting the offerings in the Yagy. 
ताँ उशतो वि बोधय यदग्ने यासि दूत्यम्। देवैरा सत्सि बर्हिषि॥
हे अग्निदेव! आप हवि की कामना करने वाले देवों को यहाँ बुलाएँ और इन कुशा के आसन पर देवों के साथ प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 1.12.4]
हे अग्ने! तुम देवताओं के दौत्य कर्म में नियुक्त हो, इसलिए हव्य चाहने वाले देवताओं को आमंत्रित करो और उनके साथ इस कुशासन पर विराजमान हो जाओ।
Hey Agni Dev! Please invite the demigods desirous of accepting the offerings and occupy these Kushasan (seats, cushions) made of Kush grass. 
घृताहवन दीदिवः प्रति ष्म रिषतो दह। अग्ने त्वं रक्षस्विनः॥
घृत आहुतियों से प्रदीप्त हे अग्निदेव! आप राक्षसी प्रवृत्तियों वाले शत्रुओं को सम्यक रूप से भस्म करें।[ऋग्वेद 1.12.5]
हे दैदीप्यमान अग्ने! तुम घृत से दीप्तिमान हुए हमारे शत्रुओं को नष्ट करो।
Illuminated by the fire produced with Ghee, Hey Agni Dev! Please turn the enemies with demonic tendencies to ashes.   
अग्निनाग्निः समिध्यते कविर्गृहपतिर्युवा। हव्यवाड्जुह्वास्यः॥
यज्ञ स्थल के रक्षक, दूरदर्शी, चिरयुवा, आहुतियों को देवों तक पहुँचाने वाले, ज्वालायुक्त आहवनीय यज्ञाग्नि को अरणि मन्थन द्वारा उत्पन्न अग्नि से प्रज्वलित किया जाता है।[ऋग्वेद 1.12.6]
मेधावी, गृह रक्षक, हवि वाहक और जुहू मुख वाले अग्नि को अग्नि से प्रज्वलित हैं।
Protector of the site of the Yagy, farsighted, always young, carrier of offerings to the demigods, the fire of the Yagy is produced-ignited by rubbing woods. 
कविमग्निमुप स्तुहि सत्यधर्माणमध्वरे। देवममीवचातनम्॥
हे ऋत्विजो! लोक हितकारी यज्ञ में रोगों को नष्ट करने वाले, ज्ञानवान अग्निदेव की स्तुति आप सब विशेष रूप से करें।[ऋग्वेद 1.12.7]
मेधावी, सत्यनिष्ट, शत्रु नाशक अग्नि की अनुष्ठान-कर्म में पास से वंदना करो।
Hey the organisers of the Yagy! Let us specifically pray to enlightened Agni Dev, who destroys the diseases-sins in the Yagy fire for the sake of the welfare of masses-public.
यस्त्वामग्ने हविष्पतिर्दूतं देव सपर्यति। तस्य स्म प्राविता भव॥
देवगणों तक हविष्यान्न पहुँचाने वाले, हे अग्निदेव! जो याजक, आप (देवदूत) की उत्तम विधि से अर्चना करते हों, आप उनकी भली भाँति रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.12.8]
हे अग्ने! तुम देवदूत की जो यजमान सेवा करता है, उसकी तुम सुरक्षा करने वाले हो।
Hey carrier of offerings to the demigods-deities, Agni Dev! The organisers of the Yagy (with the desires) who pray to you with excellent procedures (Karm Kand), you protect them thoroughly. 
यो अग्निं देववीतये हविष्माँ आविवासति। तस्मै पावक मृळय॥
हे शोधक अग्निदेव! देवों के लिए हवि प्रदान करने वाले जो यजमान आपकी प्रार्थना करते हैं, आप उन्हें सुखी बनायें।[ऋग्वेद 1.12.9]
दे पावक! जो यजमान हवि देने के लिए अग्नि के निकट जाकर प्रार्थना करे, उसका कल्याण करो। 
Hey Agni Dev! Please make the organisers of the Yagy-blissful-happy, who make offerings for the demigods-deities.
स नः पावक दीदिवोऽग्ने देवाँ इहा वह। उप यज्ञं हविश्च नः॥
हे पवित्र दीप्तिमान अग्निदेव! आप देवों को हमारे यज्ञ में हवि ग्रहण करने के निमित्त ले आएँ।[ऋग्वेद 1.12.10]
हे पवित्र अग्नि! को प्राप्त हुए हमारे यज्ञ में हवि ग्रहण करने के लिए देवताओं को यहाँ ले लाओ।
Hey pious-virtuous bright Agni Dev! Please bring the demigods-deities to accept offerings in our Yagy. 
स न स्तवान आ भर गायत्रेण नवीयसा। रयिं वीरवतीमिषम्॥
हे अग्निदेव! नवीनतम गायत्री छन्द वाले सूक्त से स्तुति किये जाते हुये आप हमारे लिये पुत्रादि, ऐश्वर्य और बलयुक्त अन्नों को भरपूर प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.12.11]
हे अग्ने! नवीन श्लोकों से वंदित किये जाते हुए तुम हमको धन पुत्र और अन्न के प्रदाता बनो।
Hey Agni Dev! Being prayed with the new Sukt (prayers) please grant us sons, amenities and sufficient food grains, which have ingredients to grant strength-nourishment. 
अग्ने शुक्रेण शोचिषा विश्वाभिर्देवहूतिभिः। इमं स्तोमं जुषस्व नः॥
हे अग्निदेव! अपनी कान्तिमान दीप्तियों से देवों को बुलाने के निमित्त हमारी स्तुतियों को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.12.12]
हे अग्ने! तुम कांतिमान और देवों को पुकारने में समर्थवान हो। हमारी इस स्तुति-प्रार्थना को स्वीकार करो।
Hey Agni Dev! Please accept our request-prayers to invite demigods-deities with the help of your bright-glittering flames.
सुसमिद्धो न आ वह देवाँ अग्ने हविष्मते। होतः पावक यक्षि च॥
पवित्रकर्ता, यज्ञ सम्पादन कर्ता, हे अग्निदेव! आप अच्छी तरह प्रज्वलित होकर यजमान के कल्याण के लिये देवताओं का आवाहन करें और उनको लक्ष्य करके यज्ञ सम्पन्न करें अर्थात देवों के पोषण के लिये हविष्यान्न ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.13.1]
हे समिधा वाले अग्निदेव! हमारे यजमान के लिए देवों को अनुष्ठान में लाकर उनका अर्चन कराओ।
Hey purifying, Yagy conductor Agni Dev! Please ignite thoroughly for the holding of Yagy, invite the demigods-deities, conduct the Yagy directed towards them and accept the offerings for them. 
मधुमन्तं तनूनपाद् यज्ञं देवेषु नः कवे। अद्या कृणुहि वीतये॥
उर्ध्वगामी, मेधावी हे अग्निदेव! हमारी रक्षा के लिये प्राणवर्धक-मधुर हवियों को देवों के निमित्त प्राप्त करें और उन तक पहुँचायेँ।[ऋग्वेद 1.13.2]
हे मेधावी अग्ने! तुम शरीर की सुरक्षा करने वाले हो, हमारे अनुष्ठान को देवों के उपभोग हेतु ग्रहण कराओ। 
Hey upward moving Agni Dev! Please accept & forward the life sustaining, relishing offerings to the demigods-deities for our protection.
नराशंसमिह प्रियमस्मिन्यज्ञ उप ह्वये। मधुजिह्वं हविष्कृतम्॥
हम इस यज्ञ में देवताओं के प्रिय और आह्लादक (मदुजिह्ल) अग्निदेव का आवाहन करते हैं। वह हमारी हवियों को देवताओं तक पहुँचाने वाले हैं, अस्तु, वे स्तुत्य हैं।[ऋग्वेद 1.13.3]
मनुष्यों द्वारा प्रशंसित प्रिय व अग्नि देव को इस अनुष्ठान में पुकारता हूँ। वह मधुजिह्वा और हवि के सम्पादक हैं।
We invite Agni Dev, who is favourite of demigods-deities and relishes the offerings. He forward the offerings to them and hence deserve worship-prayers.
अग्ने सुखतमे रथे देवाँ ईळित आ वह। असि होता मनुर्हितः॥
मानवमात्र के हितैषी, हे अग्निदेव! आप अपने श्रेष्ठ-सुखदायी रथ से देवताओं को लेकर (यज्ञस्थल पर) पधारें। हम आपकी वन्दना करते है।[ऋग्वेद 1.13.4]
हे हमारे द्वारा पूजनीय अग्निदेव! तुम अत्यन्त सुखकारी रथ में देवताओं को यहाँ पर ले आओ। 
Hey well wisher of the humanity, Agni Dev! We request you to please bring the demigods-deities in your luxurious charoite to the Yagy site. 
ता सुजिह्वा उप ह्वये होतारा दैव्या कवी। यज्ञं नो यक्षतामिमम्॥
उन उत्तम वचन वाले और मेधावी दोनों (अग्नियों) दिव्य होताओं को यज्ञ में यजन के निमित्त हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.13.8]
उन सुन्दर जिह्वा बाले, मेधावी, दोनों अद्भुत होताओं अग्नि व सूर्य को यज्ञ में यजन-कर्म हेतु पुकारता हूँ। 
We invite the two Agni who are intellectuals, speak excellent words as divine performers of Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 14 :: ऋषि :- मेधातिथि काण्व,  देवता :- विश्वेदेवता,  छन्द-गायत्री।
ऐभिरग्ने दुवो गिरो विश्वेभिः सोमपीतये। देवेभिर्याहि यक्षि च॥
हे अग्निदेव! आप समस्त देवों के साथ इस यज्ञ में सोम पीने के लिये आयें एवं हमारी परिचर्या और स्तुतियों को ग्रहण करके यज्ञ कार्य सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 1.14.1]
हे अग्नि देव! इन देवताओं को साथ लेकर सोम पीने के लिए पधारो। हमारी अर्चना और प्रार्थना तुम्हें ग्रहण हों। हमारे यज्ञ में देवताओं की उपासना करो।
परिचर्या :: उत्तर रक्षा, बाद की देखभाल, अनुरक्षण; after-care.
Hey Agni Dev! Please visit our Yagy along with the demigods-deities accept Somras, prayers and our services.
आ त्वा कण्वा अहूषत गृणन्ति विप्र ते धियः। देवेभिरग्न आ गहि॥
हे मेधावी अग्निदेव! कण्व ऋषि आपको बुला रहे हैं, वे आपके कार्यो की प्रशंसा करते हैं। अतः आप देवों के साथ यहाँ पधारे।[ऋग्वेद 1.14.2]
हे अग्नि देवता आपको कण्व-वंश पुकारते हैं। वे तुम्हारे गुण गाते हैं। तुम देवताओं को साथ लेकर सोमपान हेतु पधारो! 
Hey brilliant (sagacious, intelligent) Agni Dev! Kanv Rishi is calling-inviting you. He appreciates your deeds. So, please come here along with the demigods-deities.
इन्द्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगम्। आदित्यान्मारुतं गणम्॥
यज्ञशाला में हम इन्द्र, वायु, बृहस्पति, मित्र, अग्नि, पूषा, भग, आदित्यगण और मरुद्‍गण आदि देवों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.14.3]
वायु, बृहस्पति, सखा, अग्नि, पूषा, भग, आदित्य और मरुद्गणों का आह्वान करो। 
We evocate-invite the demigods-deities Indr, Vayu-Pawan, Mitr, Agni, Pusha, Bhag, Adity Gan, Marud Gan etc.
प्र वो भ्रियन्त इन्दवो मत्सरा मादयिष्णवः। द्रप्सा मध्वश्चमूषदः॥
कूट-पीस कर तैयार किया हुआ, आनन्द और हर्ष बढा़ने वाला यह मधुर सोमरस अग्निदेव के लिये चमसादि पात्रों में भरा हुआ है।[ऋग्वेद 1.14.4]
तृप्त करने वाले प्रसन्नता के पात्रों में ढके बिंदु-रूप सोम यहाँ उपस्थित हैं।
The Somras which boosts pleasure-happiness, has been processed-prepared after smashing-grinding for Agni Dev, has been kept in leather & other pots.
ईळते त्वामवस्यवः कण्वासो वृक्तबर्हिषः। हविष्मन्तो अरंकृतः॥
कण्व ऋषि के वंशज अपनी सुरक्षा की कामना से, कुश आसन बिछाकर हविष्यान्न व अलंकारों से युक्त होकर अग्निदेव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.14.5]
कण्व-वंशीय तुमसे रक्षा याचना करते हुए, कुश बिछाकर हव्यादि सामग्री से युक्त हुए तुम्हारी वन्दना करते हैं।
Descendants of Kanv Rishi pray to Agni Dev for their safety by laying-spreading cushion for him, to offer him various eatables & Somras, having decorated themselves with ornaments-jewels. 
घृतपृष्ठा मनोयुजो ये त्वा वहन्ति वह्नयः। आ देवान्सोमपीतये॥
अतिदीप्तिमान पृष्ठभाग वाले, मन के संकल्प मात्र से ही रथ में नियोजित हो जाने वाले अश्वों (से नियोजित रथ) द्वारा आप सोमपान के निमित्त देवों को ले आएँ।[ऋग्वेद 1.14.6]
तुम्हारी इच्छा मात्र से रथ में जुड़ने वाले अश्व तुम्हें ले जाते हैं। ऐसे तुम सोमपान के लिए यहाँ पधारो।
Please bring the demigods-deities in the chariots with highly shinning front, the horses of which can be controlled-deployed just by mental actions-commands.
तान्यजत्राँ ऋतावृधोऽग्ने पत्नीवतस्कृधि। मध्वः सुजिह्व पायय॥
हे अग्निदेव! आप यज्ञ की समृद्धी एंव शोभा बढा़ने वाले पूजनीय इन्द्रादि देव को सपत्‍नीक इस यज्ञ में बुलायें तथा उन्हें मधुर सोमरस का पान करायें।[ऋग्वेद 1.14.7]
हे अग्ने! उन पूज्य तथा अनुष्ठान की वृद्धि करके देवों को भार्या युक्त मधुर सोम रस का पान कराओ।
Hey Agni Dev! Please invite the demigods-deities on our behalf to enhance-boost the riches and glory of this Yagy, along with the revered Indr Dev and his wife (Shuchi-Indrani) to drink the tasty Somras.  
ये यजत्रा य ईड्यास्ते ते पिबन्तु जिह्वया। मधोरग्ने वषट्कृति॥
हे अग्निदेव! यजन किये जाने योग्य और स्तुति किये जाने योग्य जो देवगण हैं, वे यज्ञ में आपकी जिह्वा से आनन्द पूर्वक मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.14.8]
हे अग्ने! पूजनीय और पूजा योग्य देवगण तुम्हारी जिह्वा के माध्यम से मधुर सोम रस का पान करें।
Hey Agni Dev! The glorious-revered demigods-deities should enjoy the tasty Somras through your tongue with pleasure.  
आकीं सूर्यस्य रोचनाद्विश्वान्देवाँ उषर्बुधः। विप्रो होतेह वक्षति॥
हे मेधावी होता रूप अग्निदेव! आप प्रातः काल में जागने वाले विश्वदेवि को सूर्य रश्मियों से युक्त करके हमारे पास लाते हैं।[ऋग्वेद 1.14.9]
हे मेधावी अग्नि रूप होता! सवेरे जगाने वाले विश्वे देवों को सूर्य मण्डल से पृथक कर यहाँ पर आओ। 
Hey brilliant Agni Dev! You bring the Vishw Devi associated with the rays of Sun to us. 
विश्वेभिः सोम्यं मध्वग्न इन्द्रेण वायुना। पिबा मित्रस्य धामभिः॥
हे अग्निदेव! आप इन्द्र वायु मित्र आदि देवों के सम्पूर्ण तेजों के साथ मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.14.10]
Hey Agni Dev! Please enjoy the tasty-sweet Somras along with Indr Dev and the other demigods-deities with their powers-energies. 
त्वं होता मनुर्हितोऽग्ने यज्ञेषु सीदसि। सेमं नो अध्वरं यज॥
हे मनुष्यों के हितैषी अग्निदेव! आप होता के रूप में यज्ञ में प्रतिष्ठ हों और हमारे इस हिंसा रहित यज्ञ को सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 1.14.11]
हे अग्नि देव! हमारे द्वारा प्रतिष्ठित होता रूप तुम यज्ञ में विराजमान होते हो। अतः इस यज्ञ को सम्पन्न करो। 
Hey human friendly Agni Dev! You should be associated with the Yagy as a host-organiser and carry out our Yagy in which no violence has been done. 
युक्ष्वा ह्यरुषी रथे हरितो देव रोहितः। ताभिर्देवाँ इहा वह॥
हे अग्निदेव! आप रोहित नामक रथ को ले जाने में सक्षम, तेजगति वाली घोड़ियों को रथ में जोतें एवं उनके द्वारा देवताओं को इस यज्ञ में लाएँ।[ऋग्वेद 1.14.12]
हे अग्नि देव! तुम स्वर्णिम और रक्त वर्ण वाले अश्वों को अपने रथ में जोतकर देवगणों को यज्ञ में ले आओ।
Hey Agni Dev! Please deploy the female horses who are capable, fast moving in the charoite named Rohit to bring the demigods-deities in this Yagy.
अग्ने देवाँ इहा वह सादया योनिषु त्रिषु। परि भूष पिब ऋतुना॥
हे अग्निदेव! आप देवों को यहाँ बुलाकर उन्हें यज्ञ के तीनों सवनों (प्रातः, माध्यन्दिन एवं साँय) में आसीन करें। उन्हें  विभूषित करके ऋतु के अनुकूल सोम का पान करें।[ऋग्वेद 1.15.4]
हे अग्नि देव! देवताओं को यहाँ लाकर दोनों यज्ञ स्थानों में बैठाओ, उनको विभूषित करते हुए सोमपान करो। 
Hey Indr Dev! Please bring the demigods-deities to join the Yagy which has to continue during the three parts of the day :- morning, noon & the evening. Let them be honoured and offered Somras as per the season.
द्रविणोदा द्रविणसो ग्रावहस्तासो अध्वरे। यज्ञेषु देवमीळते॥
धन की कामना वाले याजक सोमरस तैयार करने के निमित्त हाथ में पत्थर धारण  करके पवित्र यज्ञ में धन प्रदायक अग्निदेव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.15.7]
धन की इच्छा वाले यजमान सोम तैयार करने के लिए पाषाण धारण कर धन दाता अग्नि की उपासना करते हैं। 
The organisers of the Yagy keep stone in their hands to prepare Somras & pray to Agni Dev, who provides money-riches for the pious Yagy. 
द्रविणोदा ददातु नो वसूनि यानि शृण्विरे। देवेषु ता वनामहे॥
हे धन प्रदायक अग्निदेव! हमें वे सभी धन प्रदान करें, जिनके विषय में हमने श्रवण किया है। वे समस्त धन हम देवगणों को ही अर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 1.15.8]
(देव शक्तियों से प्राप्त विभूतियों का उपयोग देवकार्यों के लिये ही करने का भाव व्यक्त किया गया है।)
हे द्रविणोदा अग्ने! हमको सभी सुने गये धनों को दो, हम उन धनों को देवार्पण करते हैं।
Hey money-riches provider Agni Dev! Please give us all those riches which have been heard by us, to offer them (spend for the sake of demigods-deities) to demigods-deities in their honour. 
द्रविणोदाः पिपीषति जुहोत प्र च तिष्ठत। नेष्ट्रादृतुभिरिष्यत॥
हे धन प्रदायक अग्निदेव! नेष्टापात्र (नेष्टधिष्ण्या स्थान-यज्ञ कुण्ड) से ऋतु के अनुसार सोमरस पीने की इच्छा करते हैं। अतः हे याजक गण! आप वहाँ जाकर यज्ञ करें और पुन: अपने निवास स्थान के लिये प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 1.15.9]
वह धन दाता अग्नि सोमपान के लिए इच्छुक हैं। उन्हें आहुति प्रदान करो और अपने स्थान को प्राप्त हो ओ। शीघ्रता करो। ऋतुओं सहित नेष्टा  पात्र से सोमरस पिलाओ।
Hey riches giver Agni Dev! You wish to drink Somras as per the season with the pot called Neshta. Hey organisers of the Yagy! Please proceed with the conduction of the Yagy and move to your houses.  
यत्त्वा तुरीयमृतुभिर्द्रविणोदो यजामहे। अध स्मा नो ददिर्भव॥
हे धन प्रदायक अग्निदेव! ऋतुओं के अनुगत होकर हम आपके निमित्त सोम के चौथे भाग को अर्पित करते हैं, इसलिये आप हमारे लिये धन प्रदान करने वाले हो।[ऋग्वेद 1.15.10]
है धनदाता! ऋतुओं युक्त आपको चतुर्थ बार सोम अर्पण करते हैं। तुम हमारे लिए धन प्रदान करने वाले बनो।
Hey riches granting Agni Dev! We offer you Somras as per the season, the fourth time, that's why you grant us riches-money.  
गार्हपत्येन सन्त्य ऋतुना यज्ञनीरसि। देवान्देवयते यज॥
हे इष्टप्रद अग्निदेव! आप गार्हपत्य के नियमन में ऋतुओं के अनुगत यज्ञ का निर्वाह करने वाले हैं, अतः देवत्व प्राप्ति की कामना वाले याजकों के निमित्त देवों का यजन करें।[ऋग्वेद 1.15.12]
देवताओं की अभिलाषा करने वाले यजमान के लिए देवार्चन करो।
Hey accomplishment granting Agni Dev! You follow the rules as per the domestic norms-rules for conducting the Yagy. Hence pray to those demigods-deities who grant divinity to the hosts.
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 19 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व,  देवता :- अग्नि और मरुद्‍गण, छन्द :- गायत्री। 
प्रति त्यं चारुमध्वरं गोपीथाय प्र हूयसे। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! श्रेष्ठ यज्ञों की गरिमा के संरक्षण के लिये हम आपका आवाहन करते हैं, आपको मरुतों के साथ आमंत्रित करते हैं, अतः देवताओं के इस यज्ञ में आप पधारें।[ऋग्वेद 1.19.1]
हे अग्नि! सुशोभित अनुष्ठान में सोमपान करने के लिए तुम्हारा आह्वान करता हूँ। मरुद्गणों के संग यहाँ पधारो। 
Hey Agni Dev! We invite you to join this Yagy to maintain its glory &  excellence, along with the Marud Gan. Kindly oblige us.
नहि देवो न मर्त्यो महस्तव क्रतुं परः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! ऐसा न कोइ देव है, न ही कोई मनुष्य, जो आपके द्वारा सम्पादित महान  कर्म को कर सके। ऐसे समर्थ आप मरुद्‍गणों से साथ आप इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.19.2]
हे अग्ने! तुम्हारे तुल्य कोई देवता या मनुष्य श्रेष्ठतम नहीं है, जो तुम्हारी शक्ति का सामना कर सके। तुम मरुतों के संग विराजो।
Hey Agni Dev! There is no human or demigod who matches-equals you and initiate-perform the great deed-Yagy. Having the capability, please join us along with the Marud Gan. 
ये महो रजसो विदुर्विश्वे देवासो अद्रुहः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
मरुद्‍गण पृथ्वी पर श्रेष्ठ जल वृष्टि की विधि जानते है या क्षमता से सम्पन्न हैं। हे अग्निदेव! आप उन द्रोह रहित मरुद्‍गणों के साथ इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.19.3]
जो विश्वेदेवा किसी से शत्रुता नहीं रखते और उत्तम अंतरिक्ष के ज्ञाता हैं। हे अग्ने! उनके सहित आओ।
Hey Agni Dev! The Marud Gan are blessed with the capacity-power & technique to shower rains over the earth. Please join us with the Marud Gan; who have no enemies. 
य उग्रा अर्कमानृचुरनाधृष्टास ओजसा। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! जो अति बलशाली, अजेय और अत्यन्त प्रचण्ड सूर्य के सदृश प्रकाशक हैं। आप उन मरुद्‍गणों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.4]
हे अग्ने! जिन उग्र और अजेय, बलशाली मरुतों ने वृष्टि की थी, श्लोकों से वंदना किये हुए उन मरुतों के साथ यहाँ आओ।
Hey Agni Dev! Please join us along with the Marud Gan who are strong & invincible bearing energy-aura like the Sun
ये शुभ्रा घोरवर्पसः सुक्षत्रासो रिशादसः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
जो शुभ्र तेजों से युक्त तीक्ष्ण, वेधक रूप वाले, श्रेष्ठ बल-सम्पन्न और शत्रु का संहार करने वाले हैं। हे अग्निदेव! आप उन मरुतों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.5]
हे अग्ने! जो शोभायुक्त और उग्र रूप धारण करने वाले हैं जो बलशाली और शत्रुओं के संहारकर्ता हैं, उन्हीं मरुद्गणों सहित आ जाओ। 
Hey Agni Dev! Join us along with the Marud Gan who are penetrating-sharp, have power and are capable of destroying the enemy.
ये नाकस्याधि रोचने दिवि देवास आसते। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! ये जो मरुद्‍गण सबके उपर अधिष्ठित, प्रकाशक, द्युलोक के निवासी हैं, आप उन मरुदगणों के साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.6]
हे अग्ने! स्वर्ग से ऊपर प्रकाशमान संसार में जिन मरुतों का निवास है, उन्हें संग लेकर प्रस्थान करो।
Hey Agni Dev! Please join our venture-Yagy along with the Marud Gan who are designated as the highest (among the demigods), reside over the heavens & are brilliant.
य ईङ्खयन्ति पर्वतान्तिरः समुद्रमर्णवम्। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! जो पर्वत सदृश विशाल मेघों को एक स्थान से दूसरे सुदूरस्थ दूसरे स्थान पर ले जाते हैं तथा जो शान्त समुद्रों में भी ज्वार पैदा कर देते हैं (हलचल पैदा कर देते है), ऐसे उन मरुद्‍गणों को  साथ लेकर आप इस यज्ञ में पधारे।[ऋग्वेद 1.19.7]
हे अग्ने! मेघों का संचालन करने वाले और जल को समुद्र में गिराने वाले मरुतों के संग यहाँ विराजो। 
Hey Agni Dev! Please come here along with the Marud Gan who move the clouds which are like the mountains & shake the ocean waters generating tides in it. 
आ ये तन्वन्ति रश्मिभिस्तिरः समुद्रमोजसा। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! जो सूर्य की रश्मियों के साथ सर्व व्याप्त होकर समुद्र को अपने ओज से प्रभावित करते हैं, उन मरुतों के साथ आप यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.8]
हे अग्ने! सूर्य की किरणों के साथ सर्वत्र व्याप्त और समुद्र को बलपूर्वक चलायमान करने वाले मरुतों के साथ यहाँ आओ।
Hey Agni Dev! Please associate the Marud Gan with us, who adds up their energy with the Sun rays and affect the oceans waters with their aura-energy. 
अभि त्वा पूर्वपीतये सृजामि सोम्यं मधु। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! सर्वप्रथम आपके सेवनार्थ यह मधुर सोमरस हम अर्पित करते हैं, अतः आप मरुतों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.9]
हे अग्ने! आपके पीने के लिए सुमधुर सोम रस प्रस्तुत कर रहा अतः तुम मरुतों के साथ यहाँ आ जाओ।
Hey Agni Dev! We initiate by serving this sweet Somras to you, hence please visit us along with the Marud Gan.
ऋग्वेद संहिता,  प्रथम मंडल सूक्त 21 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व,  देवता :- इन्द्राग्नि,  छन्द :- गायत्री। 
इहेन्द्राग्नी उप ह्वये तयोरित्स्तोममुश्मसि। ता सोमं ओमापातामा॥
इस यज्ञ स्थल पर हम इन्द्र एवं अग्निदेव का आवाहन करते हैं, सोमपान के उन अभिलाषियों की स्तुति करते हुए सोमरस पीने का निवेदन करते हैं।[ऋग्वेद 1.21.1]
इन्द्रदेव और अग्नि का इस अनुष्ठान स्थल पर आह्वान करता हूँ। उन्हीं का पूजन करता हुआ सोमपान करने के लिए दोनों से विनती करता हूँ। 
We invite Dev Raj Indr & Agni Dev to sip Somras at this Yagy site by chanting prayers.
ता यज्ञेषु प्र शंसतेन्द्राग्नी शुम्भता नरः। ता गायत्रेषु गायत॥
हे ऋत्विजो! आप यज्ञानुष्ठान करते हुये इन्द्र एवं अग्निदेव की शास्त्रों (स्तोत्रों) से स्तुति करे, विविध अंलकारों से उन्हें विभूषित करें तथा गायत्री छन्द वाले सामगान (गायत्र साम) करते हुये उन्हें प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 1.21.2]
हे मनुष्यों इन्द्र और अग्नि का पूजन करो, उन्हें अलंकृत कर श्लोक-गान करो।
Hey hosts-Yagy performers! Make Indr Dev & Agni Dev happy-pleased through prayers-verses related to Sam songs (Gayatr Sam), decorate them with various ornaments-jewels while conducting Yagy.  
ता मित्रस्य प्रशस्तय इन्द्राग्नी ता हवामहे। सोमपा सोमपीतये॥
सोमपान की इच्छा करने वाले मित्रता एवं प्रशंसा के योग्य उन इन्द्र एवं अग्निदेव को हम सोमरस पीने के लिये बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.21.3]
इन्द्रदेव और अग्नि को सखा की प्रशंसा हेतु तथा सोमपान करने के लिए बुलाया करते हैं।
We invite Indr Dev & Agni Dev who deserve appreciation and friendship for drinking Somras. 
उग्रा सन्ता हवामह उपेदं सवनं सुतम्। इन्द्राग्नी एह गच्छताम्॥
अति उग्र देवगण एवं अग्निदेव को सोम के अभीष्ट स्थान (यज्ञस्थल) पर आमन्त्रित करते हैं, वे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.21.4]
उग्र :: तीव्र, हिंसक, हिंस्र, प्रचंड, उत्तेजित, प्रंचड, गरम मिज़ाज, अतिक्षुब्ध; furious, fiery, hot blooded, violent. frantic.
उग्रदेव इन्द्र और अग्नि को सोमयज्ञ में आह्वान करते हैं। वे दोनों यहाँ पर पधारें।
We invite the fiery demigods-deities & Agni Dev at this site to participate in Som Yagy. 
ता महान्ता सदस्पती इन्द्राग्नी रक्ष उब्जतम्। अप्रजाः सन्त्वत्रिणः॥
देवों में महान वे इन्द्र अग्निदेव सत्पुरुषों के स्वामी(रक्षक) हैं। वे राक्षसों को वशीभूत कर सरल स्वभाव वाला बनाएँ और मनुष्य भक्षक राक्षसों को मित्र-बान्धवों से रहित करके निर्बल बनाएँ।[ऋग्वेद 1.21.5]
हे उत्तम समाज की रक्षा करने वाले इन्द्र और अग्नि! तुम दोनों दुष्टों को वशीभूत करो। नर भक्षी दानव संतानहीन हों।
Greatest amongst the demigods Indr Dev & Agni Dev, who are the protector of the virtuous, should control and make the demons simple & kill-eliminate the demons-giants along with their friends & relatives i.e., kill their descendant as well; who eat humans. 
तेन सत्येन जागृतमधि प्रचेतुने पदे। इन्द्राग्नी शर्म यच्छतम्॥
हे इन्द्राग्ने! सत्य और चैतन्य रूप यज्ञस्थान पर आप संरक्षक के रूप में जागते रहें और हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.21.6]
हे इन्द्राग्ने! उस सत्य, चैतन्य यज्ञ के हेतु जागकर हमको सहारा प्रदान करें। 
Hey Indr Dev & Agni Dev! You should be awake as the protector of truth and consciousness at the site of the Yagy and grant us comforts-pleasure. 
इहेन्द्राणीमुप ह्वये वरुणानीं स्वस्तये। अग्नायीं सोमपीतये॥12॥
अपने कल्याण के लिए सोमपान के लिए हम इन्द्राणी, वरुणानी और अग्नायी का आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.22.12]
अपने मंगल के लिए इन्द्राणी, वरुण-भार्या और अग्नि देव की भार्या को सोमपान करने के लिए आह्वान करता हूँ। 
We invite Indrani-wife of Dev Raj Indr, Varunani-wife of Varun Dev & the wife of Agni Dev for our welfare.
अग्ने पत्नीरिहा वह देवानामुशतीरुप। त्वष्टारं सोमपीतये॥9॥
हे अग्निदेव! यहाँ आने की अभिलाषा रखने वाली देवों की पत्नियों को यहाँ ले आएँ और त्वष्टादेव को भी सोमपान के निमित्त बुलायेँ।[ऋग्वेद 1.22.9]
हे अग्नि देव! अभिलाषा वाली देव पत्नियों को यज्ञ में लाओ। सोमपान के लिए त्वष्टा को यहाँ ले लाओ।
Hey Agni Dev please bring the wives of the demigods who wish to accompany us and Twasta Dev for accepting-drinking Somras.
आ ग्ना अग्न इहावसे होत्रां यविष्ठ भारतीम्। वरूत्रीं धिषणां वह॥10॥
हे अग्नि देव! देव पत्नियों को हमारी सुरक्षा के निमित्त यहाँ ले आयेँ। आप हमारी रक्षा के लिये अग्नि पत्नि होत्रा, आदित्य पत्नि भारती, वरणीय वाग्देवी धिवणा आदि देवियों को भी यहाँ ले आयें।[ऋग्वेद 1.22.10]
हे युवावस्था प्राप्त अग्नि देव! हमारी सुरक्षा हेतु होता, भारतीय, वरुणी और धिपणा देवियों को यहाँ लाओ। 
Hey Agni Dev! Please bring your wife Hotra, Bharti the wife of Sun, Vag Devi Dhivna for our protection.
आपो अद्यान्वचारिषं रसेन समगस्महि। 
पयस्वानग्न आ गहि तं मा सं सृज वर्चसा॥
आज हमने जल में प्रविष्ट होकर अवभृथ स्नान किया है, इस प्रकार जल में प्रवेश करके हम रस से आप्लावित हुये हैं! हे पयस्वान! हे अग्निदेव! आप हमें वर्चस्वी बनाएँ, हम आपका स्वागत करते हैं।[ऋग्वेद 1.23.23]
आज मैंने जलों को पाया है। उन्होंने मुझे रस से परिपूर्ण किया है। 
Let the bathing after conducting the Yagy make us virtuous. We welcome you. You have filled us with vigour-vitality.
सं माग्ने वर्चसा सृज सं प्रजया समायुषा।
विद्युर्मे अस्य देवा इन्द्रो विद्यात्सह ऋषिभिः॥
हे अग्निदेव! आप हमें तेजस्विता प्रदान करें। हमें प्रजा और दीर्घ आयु से युक्त करें। देवगण हमारे अनुष्ठान को जानें और इन्द्रदेव ऋषियों के साथ इसे जानें।[ऋग्वेद 1.23.24]
हे अग्ने! जलों से युक्त प्रस्थान कर मुझे तेजस्वी बनाओ। हे अग्ने! मुझे तेजस्वी करो। प्रजा और पवन से परिपूर्ण करो। हे देवगण, ऋषिगण और इन्द्रदेव मेरे पूजन को स्वीकार करें।
Hey Agni Dev! Kindly grant us energy-vitality. Make up long lived along with the masses-public. Let the demigods-deities recognise our Yagy-efforts. Hey deities-demigods, Rishi Gan-sages, Indr Dev, accept our prayers-requests.
Two third of human body is made up of water. Water is essential for life. Water is essential for producing medicines. Its basic ingredient of medicines. Fire is embedded in water.
कस्य नूनं कतमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम। 
को नो मह्या अदितये पुनर्दात्पितरं च दृशेयं मातरं च॥
हम अमर देवों में से किस देव के सुन्दर नाम का स्मरण करें? कौन से देव हमें महती अदिति पृथ्वी को प्राप्त करायेंगे? जिससे हम अपने पिता और माता को देख सकेंगे।[ऋग्वेद 1.24.1]
मैं किस देव के सुन्दर नाम का उच्चारण करूँ? कौन मुझे महती अदिति को देगा, जिससे मैं पिता और माता को देख सकूँ!?
Recitation of the honourable & immortal names of which demigod will provide us Aditi & help us make-bring us close to the earth to facilitate us meet our parents!?  
अग्नेर्वयं प्रथमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम। 
स नो मह्या अदितये पुनर्दात्पितरं च दृशेयं मातरं च॥
हम अमर देवों में प्रथम अग्निदेव के सुन्दर नाम का मनन करें। वह हमें महती अदिति को प्राप्त करायेंगे, जिससे हम अपने माता-पिता को देख सकेंगे।[ऋग्वेद 1.24.2]
अमरत्व ग्रहण देवों में सर्वप्रथम अग्नि का नामोच्चार करें। वह मुझे अदिति को देवें और मैं माता-पिता को देख पाऊँ।
Let us recite the names of Agni Dev who stands first in the immortal demigods to provide us Aditi & help us see-meet our parents.
अग्नि सूक्त (2) ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 27 :: ऋषि :- शुन: शेप आजीगर्ति, देवता :- 1-12 अग्नि, 13 देवतागण, छन्द 1-12  गायत्री, 13 त्रिष्टुप।
अश्वं न त्वा वारवन्तं वन्दध्या अग्निं नमोभिः। सम्राजन्तमध्वराणाम्॥
तमोनाशक, यज्ञों के सम्राट स्वरूप हे अग्निदेव! हम स्तुतियों के द्वारा आपकी वन्दना करते हैं। जिस प्रकार अश्व अपनी पूँछ के बालों से मक्खी-मच्छर दूर भगाता है, उसी प्रकार आप भी ज्वालाओं से हमारे विरोधियों को दूर भगायें।[ऋग्वेद 1.27.1]
Hey Agni Dev-the destroyer (remover) of darkness, the king of Yagy! We pray to you with the help of hymns. Please repel our opponents with your flames just like the horse who chase-throws away mosquitoes and flies.
HYMNS :: भजन, स्तोत्र, स्तवन; ode, psalm, prayer, eulogy, panegyric, praise, song of praise.
स घा नः सूनुः शवसा पृथुप्रगामा सुशेवः। मीढ्वाँ अस्माकं बभूयात्॥
हम इन अग्निदेव की उत्तम विधि से उपासना करते हैं। वे बल से उत्पन्न, शीघ्र गतिशील अग्निदेव हमें अभिष्ट सुखों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.27.2]
We pray to Agni Dev with the best procedures. Agni Dev, who was born by force, is fast moving may kindly grant us all comforts, amenities.
Fire is produced when two pieces of wood are rubbed together with force or stones are struck or rubbed with each other with force (force of friction). 
स नो दूराच्चासाच्च नि मर्त्यादघायोः। पाहि सदमिद्विश्वायुः॥
हे अग्निदेव! सब मनुष्यों के हित चिन्तक आप दूर से और निकट से, अनिष्ट चिन्तन से सदैव हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.27.3]
Hey Agni Dev! Please always protect us from the ill will of everyone-humans (colleagues, friends, relatives etc.)
इममू षु त्वमस्माकं सनिं गायत्रं नव्यांसम्। अग्ने देवेषु प्र वोचः॥
हे अग्निदेव! आप हमारे गायत्री परक प्राण पोषक स्तोत्रों एवं नवीन अन्न (हव्य) को देवों तक (देव वृत्तियों के पोषण हेतु) पहुँचाये।[ऋग्वेद 1.27.4]
Hey Agni Dev! Please carry forward our offerings (food grains) and the life protecting hymns  of Gayatri to the demigods-deities. 
आ नो भज परमेष्वा वाजेषु मध्यमेषु। शिक्षा वस्वो अन्तमस्य॥
हे अग्निदेव! आप हमें श्रेष्ठ (आध्यात्मिक), मध्यम (आधिदैविक) एवं कनिष्ठ (आधिभौतिक) अर्थात सभी प्रकार की धन सम्पदा प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.27.5]
Hey Agni Dev! Kindly bless us with all amenities of life, ranging from lower to highest level.
विभक्तासि चित्रभानो सिन्धोरूर्मा उपाक आ। सद्यो दाशुषे क्षरसि॥
सात ज्वालाओं से दीप्तिमान हे अग्निदेव! आप धनदायक हैं। नदी के पास आने वाली जल तरंगों के सदृश आप हविष्यान्न दाता को तत्क्षण (श्रेष्ठ) कर्म फल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.27.6]
Hey Agni Dev glittering with 7 flames! You provide wealth (gold, money) to the worshippers. You grant the best out come-rewards of the deeds-endeavours to the host-one performing Yagy, just like the waves in the river waters, reaching the banks.
यमग्ने पृत्सु मर्त्यमवा वाजेषु यं जुनाः। स यन्ता शश्वतीरिषः॥
हे अग्निदेव! आप जीवन संग्राम में जिस पुरुष को प्रेरित करते हैं, उनकी रक्षा आप स्वयं करते हैं। साथ ही उसके लिये पोषक अन्नों की पूर्ति भी करते हैं।[ऋग्वेद 1.27.7]
Hey Agni Dev! One inspired by in the struggles of life, is protected by you. You provide him with sufficient food grains for his nourishment.
नकिरस्य सहन्त्य पर्येता कयस्य चित्। वाजो अस्ति श्रवाय्यः॥
हे शत्रु विजेता अग्निदेव! आपके उपासक को कोई पराजित नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी (आपके द्वारा प्रदत्त) तेजस्विता प्रसिद्ध है।[ऋग्वेद 1.27.8]
Hey enemy defeating Agni Dev! No one can defeat your worshipers, since they possess the energy-power granted by you.
स वाजं विश्वचर्षणिरर्वद्भिरस्तु तरुता। विप्रेभिरस्तु सनिता॥
सब मनुष्यों के कल्याणकारक वे अग्निदेव जीवन-संग्राम में अश्व रूपी इन्द्रियों द्वारा विजयी बनाने वाले हैं। मेधावी पुरुषों द्वारा प्रशंसित वे अग्निदेव हमें अभीष्ट फल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.27.9]
The Agni Dev, who benefit all humans, help us with the help of our organs-which are like the horse, let us win in the war of life-struggles. Appreciated by the genius, Let Agni Dev grant us the desired rewards-output of our endeavours.
जराबोध तद्विविड्ढि विशेविशे यज्ञियाय। स्तोमं रुद्राय दृशीकम्॥
स्तुतियों से देवों को प्रबोधित करने वाले हे अग्निदेव! ये यजमान, पुनीत यज्ञ स्थल पर दुष्टता, विनाश हेतु आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.27.10]
Hey Agni Dev! The hosts invite you with the help of highly esteemed hymns-prayers, at the Yagy site to vanish the wicked, depraved, sinners, vicious. 
स नो महाँ अनिमानो धूमकेतुः पुरुश्चन्द्रः। धिये वाजाय हिन्वतु॥
अपरिमित धूम्र-ध्वजा से युक्त, आनन्द प्रद, महान वे अग्निदेव हमें ज्ञान और वैभव की ओर प्रेरित करें।[ऋग्वेद 1.27.11]
Agni Dev associated with the flag of smoke, pleasure granting highly esteemed may give us enlightenment and amenities-wealth.  
स रेवाँ इव विश्पतिर्दैव्यः केतुः शृणोतु नः। उक्थैरग्निर्बृहद्भानुः॥
विश्व पालक, अत्यन्त तेजस्वी और ध्वजा सदृश गुणों से युक्त दूर दर्शी वे अग्नि देव वैभवशाली राजा के समान हमारी स्तवन रूपी वाणियों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.27.12]
Let Agni Dev who is the nurturer of the whole world, extremely energetic-possessing aura-brilliance, possessing the characterises of flag, far sighted-visionary accept our prayers-hymns to him.
नमो महद्भ्यो नमो अर्भकेभ्यो नमो युवभ्यो नम आशिनेभ्यः।
यजाम देवान्यदि शक्नवाम मा ज्यायसः शंसमा वृक्षि देवाः॥
बड़ों, छोटों, युवकों और वृद्धों को हम नमस्कार करते हैं। सामर्थ्य के अनुसार हम अग्नि देव सहित देवों का यजन करें। हे देवो! अपने से बड़ो के सम्मान में हमारे द्वारा कोई त्रुटी न हो।[ऋग्वेद 1.27.13]
We salute the elders, youngers, youth and the aged. We honour Agni Dev & the demigods-deities as per our capability. Kindly ensure that no mistake is committed by us in honouring our elders (Pitr Gan, Dev Gan, Rishi Gan Deities & the ALMIGHTY).
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 31:: ऋषि :- हिरण्य स्तूप अंङ्गिरस, देवता :- अग्नि,  छन्द :- जगती 8, 16, 18 त्रिष्टुप।
त्वमग्ने प्रथमो अङ्गिरा ऋषिर्देवो देवानामभवः शिवः सखा।
तव व्रते कवयो विद्मनापसोऽजायन्त मरुतो भ्राजदृष्टयः॥
हे अग्निदेव! आप सर्वप्रथम अंगिरा ऋषि के रूप में प्रकट हुये, तदनन्तर सर्वद्रष्टा, दिव्यता युक्त, कल्याणकारी और देवों के सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में प्रतिष्ठित हुए। आप के व्रतानुशासन से मरूद गण क्रान्तदर्शी कर्मों के ज्ञाता और श्रेष्ठ तेज आयुधों से युक्त हुये हैं।[ऋग्वेद 1.31.1]
Hey Agni Dev! At first, you appeared as Rishi-sage Angira and then established as a visionary of everything (Time, events), associated with divinity, benefiting best friend of demigods-deities. Its you by virtue of who's discipline-determination, the Marud Gan-aware of energetic endeavours, have been armed with the best, sharp weapons (Astr-Shastr, Ayudh). 
त्वमग्ने प्रथमो अङ्गिरस्तमः कविर्देवानां परि भूषसि व्रतम्।
विभुर्विश्वस्मै भुवनाय मेधिरो द्विमाता शयुः कतिधा चिदायवे॥
हे अग्निदेव! आप अंगिराओं में आद्य और शिरोमणि हैं। आप देवताओं के नियमों को सुशोभित करते हैं। आप संसार में व्याप्त तथा दो माताओं वाले दो अरणियों से समुद्भूत होने से बुद्धिमान हैं। आप मनुष्यों के हितार्थ सर्वत्र विद्यमान रहते हैं।[ऋग्वेद 1.31.2]
आद्य :: आदि कालीन, अनगढ़, प्रारम्भिक, प्राचीन, प्रथम, प्रथम जात; proto, primitive, primordial, primeval.
Hey Agni Dev! You are the eldest-senior most and best amongest the Angira (sons of Angira). You promote the rules-regulations for the demigods-deities. You pervade the entire universe and born out of two mothers (pieces of wood) & is unintelligent. You are present every where for the benefit of the humans.
त्वमग्ने प्रथमो मातरिश्वन आविर्भव सुक्रतूया विवस्वते।
अरेजेतां रोदसी होतृवूर्येऽसघ्नोर्भारमयजो महो वसो॥
हे अग्निदेव! आप ज्योतिर्मय सूर्य देव के पूर्व और वायु के भी पूर्व आविर्भूत हुए। आपके बल से आकाश और पृथ्वी काँप गये। होता रूप में वरण किये जाने पर आपने यज्ञ के कार्य का सम्पादन किया। देवों का यजन कार्य पूर्ण करने के लिये आप यज्ञ वेदी पर स्थापित हुए।[ऋग्वेद 1.31.3]
Hey Agni Dev! You evolved prior to brilliant Sury Dev-Sun and Pawan Dev-Air. You might trembled the earth & sky. You performed the deeds pertaining to Yagy, when accepted-appointed as a host. You acquired the holy seat-Yagy Vedi to accomplish the prayers-worship offered to the demigods-deities.
त्वमग्ने मनवे द्यामवाशयः पुरूरवसे सुकृते सुकृत्तरः।
श्वात्रेण यत्पित्रोर्मुच्यसे पर्या त्वा पूर्वमनयन्नापरं पुनः॥
हे अग्निदेव! आप अत्यन्त श्रेष्ठ कर्म वाले हैं। आपने मनु और सुकर्मा-पुरूरवा को स्वर्ग के आशय से अवगत कराया। जब आप मातृ-पितृ रूप दो काष्ठों के मन्थन से उत्पन्न हुये, तो सूर्य देव की तरह पूर्व से पश्चिम तक व्याप्त हो गये।[ऋग्वेद 1.31.4]
Hey Agni Dev! You perform the excellent deeds. You explained the essentials of heaven to Manu & Sukarma (Pururav). You were born out of two woods in the form of mother & father and established like Sun from East to West.
त्वमग्ने वृषभः पुष्टिवर्धन उद्यतस्रुचे भवसि श्रवाय्यः।
य आहुतिं परि वेदा वषट्कृतिमेकायुरग्रे विश आविवाससि॥
हे अग्निदेव! आप बड़े बलिष्ठ और पुष्टि वर्धक है। हवि दाता, स्त्रुवा हाथ में लिये स्तुति को उद्यत है, जो वषटकार (आहुति, हवि) युक्त आहुति देता है, उस याजक को आप अग्रणी पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।[ऋग्वेद 1.31.5]
वषट :: शब्दांश-अव्य, एक शब्द जिसका उच्चारण यज्ञ के समय अग्नि में आहुति देते समय किया जाता है। अंगन्यास और करन्यास में शिखा और मध्यमा के साथ इसका व्यवहार होता है।
Hey Agni Dev! You are mighty and nourishing. One who make offerings & is ready to make offerings using Vashatkar (syllable), you establish him as a leader.  
त्वमग्ने वृजिनवर्तनिं नरं सक्मन्पिपर्षि विदथे विचर्षणे।
यः शूरसाता परितक्म्ये धने दभ्रेभिश्चित्समृता हंसि भूयसः॥
हे विशिष्ट द्रष्टा अग्निदेव! आप पापकर्मियों का भी उद्धार करते है। बहुसंख्यक शत्रुओं का सब ओर से आक्रमण होने पर भी थोड़े से वीर पुरुषों को लेकर सब शत्रुओं को मार गिराते हैं।[ऋग्वेद 1.31.6]
Hey farsighted Agni Dev! You relinquish the sinners as well (who resort to virtues, worship, devotion). You slay the enemy in large numbers with the help of just a few brave soldiers.
त्वं तमग्ने अमृतत्व उत्तमे मर्तं दधासि श्रवसे दिवेदिवे।
यस्तातृषाण उभयाय जन्मने मयः कृणोषि प्रय आ च सूरये॥
हे अग्निदेव! आप अपने अनुचर मनुष्यों को दिन-प्रतिदिन अमरपद का अधिकारी बनाते हैं, जिसे पाने की उत्कट अभिलाषा देवगण और मनुष्य दोनों ही करते रहते हैं। वीर पुरुषों को अन्न और धन द्वारा सुखी बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.31.7]
Hey Agni Dev! You make your followers able to attain immortality, desired by both demigods-deities & the humans. You make the brave happy-comfortable, rich with food grains and wealth.
त्वं नो अग्ने सनये धनानां यशसं कारुं कृणुहि स्तवानः।
ऋध्याम कर्मापसा नवेन देवैर्द्यावापृथिवी प्रावतं नः॥
हे अग्निदेव! प्रशंसित होने वाले आप हमें धन प्राप्त करने की सामर्थ्य दें। हमें यशस्वी पुत्र प्रदान करें। नये उत्साह के साथ हम यज्ञादि कर्म करें। द्यावा-अन्तरिक्ष, पृथ्वी और देव गण सब प्रकार से रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.31.8]
Hey Agni Dev! Having been appreciation (prayed, worshipped) you bless us with wealth and worthy-glorious sons. Let the space, earth and all demigods-deities bless us (due to your patronage).
त्वं नो अग्ने पित्रोरुपस्थ आ देवो देवेष्वनवद्य जागृविः।
तनूकृद्बोधि प्रमतिश्च कारवे त्वं कल्याण वसु विश्वमोपिषे॥
हे निर्दोष अग्निदेव! सब देवों में चैतन्य रूप आप हमारे मातृ-पितृ (उत्पन्न करने वाले) हैं। आप ने हमें बोध प्राप्त करने की सामर्थ्य दी, कर्म को प्रेरित करने वाली बुद्धि विकसित की। हे कल्याणरूप अग्निदेव! हमें आप सम्पूर्ण ऐश्वर्य भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.31.9]
Hey pious (pure) Agni Dev! You are consciousness amongest all the demigods-deities & is like our parents. You provided us the intelligence to understand-analyses & inspired us to perform (endeavours, Karm). Hey embodiment of welfare! Grant us all sorts  of amenities.
त्वमग्ने प्रमतिस्त्वं पितासि नस्त्वं वयस्कृत्तव जामयो वयम्।
सं त्वा रायः शतिनः सं सहस्रिणः सुवीरं यन्ति व्रतपामदाभ्य॥
हे अग्निदेव! आप विशिष्ट बुद्धि-सम्पन्न, हमारे पिता रूप, आयु प्रदाता और बन्धु रूप हैं। आप उत्तम वीर, अटल गुण सम्पन्न, नियम-पालक और असंख्यों धनों से सम्पन्न हैं।[ऋग्वेद 1.31.10]
Hey Agni Dev! Like our father, brother you grants us longevity & has the special intelligence. You are an excellent warrior, gifted with firmness-determination, adhering to rules-regulations having uncountable wealth-riches.
त्वामग्ने प्रथममायुमायवे देवा अकृण्वन्नहुषस्य विश्पतिम्।
इळामकृण्वन्मनुषस्य शासनीं पितुर्यत्पुत्रो ममकस्य जायते॥
हे अग्निदेव! देवताओं ने सर्वप्रथम आपको मनुष्यों के हित के लिये राजा रूप में स्थापित किया। तपश्चात जब हमारे (हिरण्यस्तूप ऋषि) पिता अंगिरा ऋषि ने आपको पुत्र रूप में आविर्भूत किया, तब देवताओं ने मनु की पुत्री इळा को शासन-अनुशासन (धर्मोपदेश) कर्त्री बनाया।[ऋग्वेद 1.31.11]
Hey Agni Dev! At first-initially the demigods-deities installed you as the king of humans. Later when our father Angira fathered you, Manu's daughter Ila was established as the governor of administration-rule & discipline.
त्वं नो अग्ने तव देव पायुभिर्मघोनो रक्ष तन्वश्च वन्द्य।
त्राता तोकस्य तनये गवामस्यनिमेषं रक्षमाणस्तव व्रते॥
हे अग्निदेव! आप वन्दना के योग्य हैं। आप रक्षण साधनों से धन युक्त हमारी रक्षा करें। हमारी शारीरिक क्षमता को अपनी सामर्थ्य से पोषित करें। शीघ्रतापूर्वक संरक्षित करने वाले आप, हमारे पुत्र-पौत्रादि और गवादि पशुओं के संरक्षक हों।[ऋग्वेद 1.31.12]
O Agni Dev! You deserve worship. Please protect us by acquiring weapons (Astr-Shastr). Nourish our physical strength & patronise our son & grand sons along with our cows.
त्वमग्ने यज्यवे पायुरन्तरोऽनिषङ्गाय चतुरक्ष इध्यसे।
यो रातहव्योऽवृकाय धायसे कीरेश्चिन्मन्त्रं मनसा वनोषि तम्॥
हे अग्निदेव! आप याजकों के पोषक हैं, जो सज्जन हविदाता आपको श्रेष्ठ, पोषक हविष्यान्न देते हैं, आप उनकी सभी प्रकार से रक्षा करते हैं। आप साधकों (उपासकों) की स्तुति हृदय से स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.31.13]
Hey Agni Dev! You are the nurturer of those who pray to you. Those hosts performing Yagy, make offerings of best-excellent nourishing food grains are protected by you, by all means. You accept the prayers of the devotees from the depth of your heart.
त्वमग्न उरुशंसाय वाघते स्पार्हं यद्रेक्णः परमं वनोषि तत्।
आध्रस्य चित्प्रमतिरुच्यसे पिता प्र पाकं शास्सि प्र दिशो विदुष्टरः॥
हे अग्निदेव! आप स्तुति करने वाले ऋत्विजों को धन प्रदान करते हैं। आप दुर्बलों को पिता रूप में पोषण देने वाले और अज्ञानी जनों को विशिष्ट ज्ञान प्रदान करने वाले मेधावी हैं।[ऋग्वेद 1.31.14]
Hey Agni Dev! You shower riches over the hosts performing Yagy. You are the genius who nourish the weak & fragile, give special kind of intelligence to the ignorant devotees.
त्वमग्ने प्रयतदक्षिणं नरं वर्मेव स्यूतं परि पासि विश्वतः।
स्वादुक्षद्मा यो वसतौ स्योनकृज्जीवयाजं यजते सोपमा दिवः॥
हे अग्निदेव! आप पुरुषार्थी यजमानों की कवच रूप में सुरक्षा करते हैं। जो अपने घर में मधुर हविष्यान्न देकर सुखप्रद यज्ञ करता है, वह घर स्वर्ग की उपमा के योग्य होता है।[ऋग्वेद 1.31.15]
Hey Agni Dev! You provide a protective shield to the hosts who resort to endeavours-perform Yagy (Karm, studies, social welfare). The host-devotee engaged in such Yagy and make offerings of sweets, finds his home comparable to the heavens.
इमामग्ने शरणिं मीमृषो न इममध्वानं यमगाम दूरात्।
आपिः पिता प्रमतिः सोम्यानां भृमिरस्यृषिकृन्मर्त्यानाम्॥
हे अग्निदेव! आप यज्ञ कर्म करते समय हुई हमारी भूलों को क्षमा करें; जो लोग यज्ञ मार्ग से भटक गये हैं, उन्हें भी क्षमा करें। आप सोम याग करने वाले याजकों के बन्धु और पिता हैं। सद्बुद्धि प्रदान करने वाले और ऋषि कर्म के कुशल प्रणेता है।[ऋग्वेद 1.31.16]
Hey Agni Dev! Please excuse us for the mistakes committed by us. Forgive those as well, who have deviated from their virtuous path while conducting the Yagy. You are like the father & brother of those who conduct Som Yagy. You provide virtuous, righteous, pious intelligence and inspire to perform the duties of the Rishis (saints, sages).
मनुष्वदग्ने अङ्गिरस्वदङ्गिरो ययातिवत्सदने पूर्ववच्छुचे।
अच्छ याह्या वहा दैव्यं जनमा सादय बर्हिषि यक्षि च प्रियम्॥
हे पवित्र अंगिरा अग्निदेव! (अंगों में व्याप्त अग्नि) आप मनु, अंगिरा (ऋषि), ययाति जैसे पुरुषों के साथ देवों को ले जाकर यज्ञ स्थल पर सुशोभित हों। उन्हें कुश के आसन पर प्रतिष्ठित करते हुए सम्मानित करें।[ऋग्वेद 1.31.17]
Hey pious Angira-Agni Dev (son of rishi Angira)! Please be present at the Yagy site along with Manu, Angira, people like Yayati. Let them be seated over the cushions made of Kush grass, honouring them.
एतेनाग्ने ब्रह्मणा वावृधस्व शक्ती वा यत्ते चकृमा विदा वा।
उत प्र णेष्यभि वस्यो अस्मान्सं नः सृज सुमत्या वाजवत्या॥
हे अग्निदेव! इन मंत्र रूप स्तुतियों से आप वृद्धि को प्राप्त करें। अपनी शक्ति या ज्ञान से हमने जो यजन किया है, उससे हमें ऐश्वर्य प्रदान करें। बल बढाने वाले अन्नों के साथ शुभ मति से हमें सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 1.31.18]
Hey Agni Dev! You should grow with the prayers made by us in the form of hymns and gain strength. Provide us with the amenities as per our power-capability, learning-knowledge in conducting the Yagy. Please enrich us with the food grains, which boost our pious mind.
The food we eat affects our brain & working as well. Pure vegetarian food, without any sort of drugs-narcotics, keeps our brain healthy and motivate us to follow the right path, leading to Salvation (emancipation-Moksh).
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 36 :: ऋषि :- कण्व धौर,  देवता :- अग्नि, 13-14 यूप, छन्द :- बाहर्त प्रगाथ-विषमा बृहती, समासतो बृहती, 13 उपरिष्टाद बृहती। 
प्र वो यह्वं पुरूणां विशां देवयतीनाम्।
अग्निं सूक्तेभिर्वचोभिरीमहे यं सीमिदन्य ईळते॥1॥
हम ऋत्विज अपने सूक्ष्म वाक्यों (मंत्र शक्ति) से व्यक्तियों में देवत्व का विकास करने वाली महानता का वर्णन करते हैं; जिस महानता का वर्णन (स्तवन) ऋषियों ने भली प्रकार किया था।[ऋग्वेद 1.36.1]
हे मनुष्यो! तुम बहुसंख्यक मनुष्य देवों की इच्छा करते हो। तुम्हारे लिये हम उन श्रेष्ठ अग्नि के सूक्त संकल्पों द्वारा वन्दना करते हैं। उनकी अन्य मनुष्य भी प्रार्थना करते हैं।
We the practitioners of Veds,  describe the greatness of generating demigod hood in humans with the help of Mantr Shakti-sacred hymns, which was explained  by the sages-Rishis thoroughly. 
जनासो अग्निं दधिरे सहोवृधं हविष्मन्तो विधेम ते।
स त्वं नो अद्य सुमना इहाविता भवा वाजेषु सन्त्य॥
मनुष्यों ने बलवर्धक अग्निदेव का वरण किया। हम उन्हें हवियों से प्रवृद्ध करते हैं। अन्नों के दाता हे अग्निदेव! आज आप प्रसन्न मन से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.36.2] 
प्राणियों ने जिस शक्तिवर्द्धक अग्नि को ग्रहण किया, हम उसको हवियों से सन्तुष्ट करें। दानी! तुम खुश होकर इस युद्ध में हमारी रक्षा करो।
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; grow, to develop.
We grow the Agni-fire which was accepted-followed by us with great determination-firmness. Hey giver-grantor of foods, Agni Dev! Protect us happily. 
प्र त्वा दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम्।
महस्ते सतो वि चरन्त्यर्चयो दिवि स्पृशन्ति भानवः॥
देवों के दूत, होता रुप, सर्वज्ञ हे अग्निदेव! आपका हम वरण करते हैं, आप महान और सत्य रूप हैं। आपकी ज्वालाओं की दीप्ति फैलती हुई आकाश तक पहुँचती है।[ऋग्वेद 1.36.3]
हे सम्पूर्ण ऐश्वर्य वाले देव दूत और होता! हम तुम्हारा वरण करते हैं। तुम श्रेष्ठ और सत्य रूप हो। तुम्हारी लपटें आकाश की ओर उठती हैं।
Hey Agni Dev! You are the messenger of demigods-deities, the embodiment of hosts performing Yagy, all knowing-enlightened. WE follow you. You are great and represents truth. The brightness of your flame reaches the skies.
देवासस्त्वा वरुणो मित्रो अर्यमा सं दूतं प्रत्नमिन्धते।
विश्वं सो अग्ने जयति त्वया धनं यस्ते ददाश मर्त्यः॥
हे अग्निदेव! मित्र, वरुण और अर्यमा ये तीनों देव आप जैसे पुरातन देवदूत को प्रदीप्त करते हैं। जो याजक आपके निमित्त हवि समर्पित करते है, वे आपकी कृपा से समस्त धनों को उपलब्ध करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.4]
हे अग्निदेव! पुरातन पुरुष को वरुण, सखा और अर्यमा प्रकाशमान करते हैं। तुमको हवि प्रदान करने वाला तपस्वी समस्त धनों को ग्रहण करता है।
Hey Agni Dev! Mitr, Varun and Aryma, these three demigods-deities flourish-grow you (make you shine). Those hosts-household who make offerings in the Yagy for you, get all sorts of riches, wealth, amenities, comforts.
मन्द्रो होता गृहपतिरग्ने दूतो विशामसि।
त्वे विश्वा संगतानि व्रता ध्रुवा यानि देवा अकृण्वत॥
हे अग्निदेव! आप प्रमुदित करने वाले, प्रजाओं के पालक, होता रुप, गृह स्वामी और देवदूत हैं। देवों के द्वारा सम्पादित सभी शुभ कर्म आप से सम्पादित होते हैं।[ऋग्वेद 1.36.5]
हे अग्निदेव! तुम हृदय को हर्षित करने वाले, प्रजाओं के स्वामी, घर के पोषक और देवदूत हो। देवों के समस्त कार्य तुमसे मिलते हैं।
प्रमुदित :: मगन, आनंदित, संतोषमय, हँसमुख, विनोदपूर्ण, प्रकुल्ल, उत्साहयुक्त, आनंदपूर्ण, फुरतीला; merry, sprightly.
Hey Agni Dev! You make the followers-worshipers happy, nourishes them as the host-household and is a deity-messenger of the demigods-deities. All auspicious deeds pertaining to the demigods-deities are conducted by you.
Agni Dev is the mouth of the demigods-deities. All offerings made in holy fire  Yagy, Hawan, Agni Hotr reaches the particular demigod-deity.
त्वे इदग्ने सुभगे यविष्ठ्य विश्वमा हूयते हविः।
स त्वं नो अद्य सुमना उतापरं यक्षि देवान्सुवीर्या॥
हे चिर युवा अग्निदेव! यह आपका उत्तम सौभाग्य है कि सभी हवियाँ आपके अन्दर अर्पित की जाती है। आप प्रसन्न होकर हमारे निमित्त आज और आगे भी सामर्थ्यवान देवों का यजन किया करें अर्थात देवों को हमारे अनुकूल बनायें।[ऋग्वेद 1.36.6]
हे युवा अग्नि देव! तुम सौभाग्यशाली हो क्योंकि तुम में भी सभी हवियाँ डाली जाती हैं। तुम प्रसन्न होकर हमारे लिए आज और आगे भी बलशाली देवताओं का पूजन करो
Hey always young Agni Dev! Its your great luck that the offerings for the demigods-deities are made in you. You should be happy with us and make the demigods-deities in our favour at present and in future as well, by conducting Yagy for the mighty-capable demigods-deities.
तं घेमित्था नमस्विन उप स्वराजमासते।
होत्राभिरग्निं मनुषः समिन्धते तितिर्वांसो अति स्रिधः॥
नमस्कार करने वाले उपासक स्वप्रकाशित इन अग्निदेव की उपासना करते हैं। शत्रुओं को जीतने वाले मनुष्य हवन-साधनों और स्तुतियों को प्रदीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.7]
प्रणाम करने वाले प्राणी स्वयं प्रकाशित अग्नि देव की अर्चना करते हैं । शत्रुओं से डरे हुए प्राणी प्रार्थनाओं द्वारा अग्नि को प्रदीप्त करते हैं।
The worshippers bow (salute, prostrate) before self lighting-brilliant Agni Dev. The winners of war keep the fire in Yagy ignited by making prayers, recitations of hymns aimed at him.
घ्नन्तो वृत्रमतरन्रोदसी अप उरु क्षयाय चक्रिरे।
भुवत्कण्वे वृषा द्युम्न्याहुतः क्रन्ददश्वो गविष्टिषु॥
देवों ने प्रहार कर वृत्र का वध किया। प्राणियों के निवासार्थ उन्होंने द्यावा-पृथिवी और अंतरिक्ष का बहुत विस्तार किया। गौ, अश्व आदि की कामना से कण्व ने अग्नि को प्रकाशित कर आहुतियों द्वारा उन्हें बलिष्ठ बनाया।[ऋग्वेद 1.36.8]
देवी ने प्रहारपूर्वक वृत्र को जीतकर त्रिलोकी का विस्तार किया। अभीष्ट वर्षक अग्नि देव आह्वान करने पर मुझ कण्व को गवादि धन प्रदान करें।
The demigods attacked Vrat and killed him. They expanded the higher abodes and the earth worth living for the organism-living beings. Kavy Rishi strengthened Agni Dev for want of cows & horses by making offerings in it.
(Kavy Rishi adopted & took care of Shakuntla, the daughter of Vishwa Mitr & Menka-the nymph.) 
सं सीदस्व महाँ असि शोचस्व देववीतमः।
वि धूममग्ने अरुषं मियेध्य सृज प्रशस्त दर्शतम्॥
यज्ञीय गुणों से युक्त प्रशंसनीय हे अग्निदेव! आप देवता के प्रीति-पात्र और महान गुणों के प्रेरक है। यहाँ उपयुक्त स्थान पर पधारें और प्रज्वलित हों। घृत की आहुतियों द्वारा दर्शन योग्य तेजस्वी होते हुए सघन धूम्र को विसर्जित करें।[ऋग्वेद 1.36.9]
हे अग्ने! आओ, विराजमान हो जाओ। देवताओं को जानने वाले, तुम चैतन्य हो जाओ। श्रेष्ठतम लालिमा लिए सुन्दर धुएँ को फैलाओ।
Hey possessor of the divine qualities of Yagy, Agni Dev! You are the loved one of the demigods-deities and inspire higher values, morals, characterises-qualities, virtues. Please at the auspicious place and get ignited. Discharge the visible-dense smoke produced by the offerings of Ghee.  
यं त्वा देवासो मनवे दधुरिह यजिष्ठं हव्यवाहन।
यं कण्वो मेध्यातिथिर्धनस्पृतं यं वृषा यमुपस्तुतः॥
हे हविवाहक अग्निदेव! सभी देवों ने पूजने योग्य आपको मानव मात्र के कल्याण के लिए इस यज्ञ में धारण किया। मेध्यातिथि और कण्व ने तथा वृषा (इन्द्र) और उपस्तुत (अन्य यजमान) ने धन से सन्तुष्ट करने वाले आपका वरण किया।[ऋग्वेद 1.36.10]
हे हवि वाहक अग्नि देव! तुम पूजने योग्य को देवताओं ने मनु के लिए इस संसार में दृढ़ किया है। तुम धन से सन्तुष्ट करने वाले को कण्व और मेधातिथि ने वृषा और उपस्तु को ग्रहण किया।
Hey the carrier of offerings Agni Dev! The demigods-deities adorned you in this Yagy for the welfare-benefit of the mankind. Medhya Tithi, Kanvy, Vrasha-Indr Dev and the hosts too adorned you for being satisfied by riches. 
यमग्निं मेध्यातिथिः कण्व ईध ऋतादधि।
तस्य प्रेषो दीदियुस्तमिमा ऋचस्तमग्निं वर्धयामसि॥
जिन अग्निदेव को मेध्या तिथि और कण्व ने सत्य रूप कर्मों से प्रदीप्त किया, वे अग्नि देव देदीप्यमान हैं। उन्हीं को हमारी ऋचायें भी प्रवृद्ध करती हैं। हम भी उन अग्निदेव को संवर्धित करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.11]
जिस अग्नि को मेधातिथि और कण्व ने यज्ञ हेतु प्रज्वलित किया, वह अग्नि दीप्तिमान है। इन ऋचाओं द्वारा हम उस अग्नि की वृद्धि करते हैं।
The holy fire-Agni Dev, ignited-lit by Rishi Medhya Tithi & Kavy with truthful Karm-deeds is glittering. to too are enriching-supporting it with the recitation of Hymns.
रायस्पूर्धि स्वधावोऽस्ति हि तेऽग्ने देवेष्वाप्यम्।
त्वं वाजस्य श्रुत्यस्य राजसि स नो मृळ महाँ असि॥
हे अन्नवान अग्ने! आप हमें अन्न-सम्पदा से अभिपूरत करें। आप देवों के मित्र और प्रशंसनीय बलों के स्वामी हैं। आप महान हैं। आप हमें सुखी बनाएं।[ऋग्वेद 1.36.11]
हे अन्न प्रदान करने वाले अग्नि देव! हमारे भण्डारों को भरो। तुम देवताओं के मित्र और समृद्धि के स्वामी हो।
Hey the giver of food grains Agni Dev! Let us be enriched with food grains. You are the friend of demigods-deities and the master of appreciable forces. You are great. Make us happy-comfortable.
ऊर्ध्व ऊ षु ण ऊतये तिष्ठा देवो न सविता।
ऊर्ध्वो वाजस्य सनिता यदञ्जिभिर्वाघद्भिर्विह्वयामहे॥
हे काष्ठ स्थित अग्निदेव! सर्वोत्पादक सविता देव जिस प्रकार अंतरिक्ष से हम सबकी रक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप भी ऊँचे उठकर, अन्न आदि पोषक पदार्थ देकर हमारे जीवन की रक्षा करें। मन्त्रोच्चारण पूर्वक हवि प्रदान करने वाले याजक आपके उत्कृष्ट स्वरूप का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.13]
हे श्रेष्ठ! हम पर कृपा दृष्टि रखो। तुम हमारी सुरक्षा के लिए सर्वोच्च रूप से खड़े हो जाओ। तुम उन्नत बल के प्रदाता हो। हम विद्वजनों की सहायता से पूजन करते हैं। तुम उन्नत हुए पाप से हमारी सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev, present in the wood! The manner the Sun protect us by stationing himself in the space, you should also rise and protect out lives by giving us food grains and nourishing goods. The hosts invite-pray to you in your higher attire-form with the recitation of sacred Hymns.  
ऊर्ध्वो नः पाह्यंहसो नि केतुना विश्वं समत्रिणं दह।
कृधी न ऊर्ध्वाञ्चरथाय जीवसे विदा देवेषु नो दुवः॥
ये यूपस्थ अग्ने! आप ऊँचे उठकर अपने श्रेष्ठ ज्ञान द्वारा पापों से हमारी रक्षा करें, मानवता के शत्रुओं का दहन करें, जीवन मे प्रगति के लिए हमे ऊँचा उठाये तथा हमारी प्रार्थना देवों तक पहुँचाए।[ऋग्वेद 1.36.14]
मनुष्य भक्षकों को भस्म कर हमको जाओ। तुम उन्नत बल के प्रदाता हो। हम विद्वजना का सहायता तुम उन्नत हुए पाप से हमारी सुरक्षा करो। मनुष्य भक्षकों को भस्म कर हमको जीवन में प्रगति करने के लिए ऊपर उठाओ।
यूप :: किसी युद्ध में विजयी होने पर उसकी याद में बना स्तम्भ, वह खंभा जिसमें बलि दिया जाने वाला पशु बाँधा जाता है, यज्ञ का वह खंभा जिसमें बलि पशु बाँधा जाता है, वह स्तम्भ जो किसी विजय अथवा कीर्ति आदि की स्मृति में बनाया गया हो; the post, mast, pole meant to sacrifice animals, the tower made in the memory of a war won, the tower to glorify the winners.
Hey Agni Dev, present in the tower to glorify the winners! Please rise upwards and protect us with the help of your enlightenment, kill the enemies of civilisation, raise us for progress in life and forward our prayers to demigods-deities.
पाहि नो अग्ने रक्षसः पाहि धूर्तेरराव्णः।
पाहि रीषत उत वा जिघांसतो बृहद्भानो यविष्ठ्य॥
हे महान दीप्तिवाले, चिरयुवा अग्निदेव! आप हमें राक्षसों से रक्षित करें, कृपण धूर्तो से रक्षित करें तथा हिंसक और जघन्यों से रक्षित करें।[ऋग्वेद 1.36.15]
हमारे कार्यों को देवताओं के प्रति निवेदित करो। हे अग्नि देव! दैत्यों से हमारी सुरक्षा करो। दान करने वालों की भी सुरक्षा करो। तुम श्रेष्ठ दीप्ति वाले, निपट युवा और हिंसकों से रक्षा करने वाले हो, अत: हमारी रक्षा करो।
Glorious, shining, illustrious, glittering,  immortal Agni Dev! Please protect us from the demons-giants, cunning, depraved, violent, heinous, crafty. 
ILLUSTRIOUS :: प्रसिद्ध, शानदार, चमकीला; magnificent, spectacular, superb, splendid, stunning, famous, renowned, famed, legendary, popular,  vivid, flamboyant, luminous, flashy, brilliant.
धूर्त :: कुटिल, छली, चालाक, शरारती, शातिर, कपटी, धोखेबाज़, चतुर; sly, crafty, artful, Machiavellian.
घनेव विष्वग्वि जह्यराव्णस्तपुर्जम्भ यो अस्मध्रुक्।
यो मर्त्यः शिशीते अत्यक्तुभिर्मा नः स रिपुरीशत॥
अपने ताप से रोगादि कष्टों को मिटाने वाले हे अग्ने! आप कृपणों को गदा से विनष्ट करें। जो हमसे द्रोह करते है, जो रात्रि में जागकर हमारे नाश का यत्न करते हैं, वे शत्रु हम पर आधिपत्य न कर पायें।[ऋग्वेद 1.36.16]
हे संताप देने वाली दाढ़ों वाले अग्नि देव! स्थिर सोटे से मारने के तुल्य दान न देने वाले को समाप्त करो। हमारे विद्रोहियों और रात में हमारे लिए अस्त्र पैनाने वालों के आधिपत्य को रोको। 
Remover of diseases, pains with your heat, hey Agni Dev! Please destroy the wicked with your Mac. Those who deceive-cheat us & the ones who remain awake at night, the enemy should not be able to over power-control us.
अग्निर्वव्ने सुवीर्यमग्निः कण्वाय सौभगम्।
अग्निः प्रावन्मित्रोत मेध्यातिथिमग्निः साता उपस्तुतम्॥
उत्तम पराक्रमी हे अग्निदेव, जिन्होंने कण्व को सौभाग्य प्रदान किया, हमारे मित्रों की रक्षा की तथा मेध्यातिथि और उपस्तुत (यजमान) की भी रक्षा की है।[ऋग्वेद 1.36.17]
अग्नि ने मेरे लिए सौभाग्य की कामना की है। उन्होंने मेधातिथि और उपस्तु की धन ग्रहणता के लिए सुरक्षा की है। 
अग्निना तुर्वशं यदुं परावत उग्रादेवं हवामहे।
अग्निर्नयन्नववास्त्वं बृहद्रथं तुर्वीतिं दस्यवे सहः॥
अग्निदेव के साथ हम तुर्वश, यदु और उग्रदेव को बुलाते है। वे अग्निदेव नववास्तु, ब्रहद्रथ और तुर्वीति (आदि राजर्षियों) को भी ले चलें, जिससे हम दुष्टों के साथ संघर्ष कर सकें।[ऋग्वेद 1.36.18]
तुर्वशु यद् और उग्रदेव को अग्नि के साथ दूर से बुलाते हैं। वे नावस्त्व, बृहद्रथ और तुर्वाति को भी यहाँ बुलाओ।
We invite Turvash, Yadu & Ugra Dev along with Agni Dev. Agni Dev should be associated with Nav Vastu, Brahdrath & Turveeti etc. Raj Rishi (kings turned into sages) so that we can fight the wicked (vicious, sinners).
नि त्वामग्ने मनुर्दधे ज्योतिर्जनाय शश्वते।
दीदेथ कण्व ऋतजात उक्षितो यं नमस्यन्ति कृष्टयः॥
हे अग्निदेव! विचारवान व्यक्ति आपका वरण करते हैं। अनादिकाल से ही मानव जाति के लिए आपकी ज्योति प्रकाशित है। आपका प्रकाश आश्रमों के ज्ञान वान ऋषियों में उत्पन्न होता है। यज्ञ में ही आपका प्रज्वलित स्वरूप प्रकट होता है। उस समय सभी मनुष्य आपको नमन वन्दन करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.19]
हे ज्योतिर्मान अग्ने! तुमको प्राणियों के लिए मनु ने स्थापित किया है। तुम यज्ञ के लिए प्रकट होकर हवि के लिए संतुष्ट हो जाओ। साधक तुमको प्रणाम करते हैं। 
Hey Agni Dev! The thoughtful wise-enlightened person adore you. You are the enlightening source ever since. Your flame-prudence appears in the sages in the Ashram (abode of the Rishis & the Guru, place meant for ascetic practices). Your shining form appears in the Yagy. All humans adore, salute, prostrate before at that moment.
त्वेषासो अग्नेरमवन्तो अर्चयो भीमासो न प्रतीतये ।
रक्षस्विनः सदमिद्यातुमावतो विश्वं समत्रिणं दह॥
अग्निदेव की ज्वालाएं प्रदीप्त होकर अत्यन्त बलवती और प्रचण्ड हुई हैं। कोई उनका सामना नहीं कर सकता। हे अग्ने! आप समस्त राक्षसों, आतताइयों और मानवता के शत्रुओं को नष्ट करें।[ऋग्वेद 1.36.20]
अग्नि की दीप्तिमान ज्वालाएँ शक्तिशाली और उग्र होती हैं, उनका सामना नहीं किया जा सकता। हे अग्निदेव! तुम राक्षसों और मनुष्य भक्षियों (man eaters) को नष्ट करो।
The flames of Agni Dev have become fierce, strong & powerful. No one can face-resist them. Hey Agni Dev! Kindly vanish-destroy the enemies of civilisation (culture, values, morals, ethics, piousness etc.) the demons (man eaters, terrorists, rapists, invaders, cruel).
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
नू चित्सहोजा अमृतो नि तुन्दते होता यद्दूतो अभवद्विवस्वतः।
वि साधिष्ठेभिः पथिभी रजो मम आ देवताता हविषा विवासति
बड़े बल से उत्पन्न और अमर अग्नि, व्यथा दान या ज्वलन में समर्थवान हैं। जिस समय देवाह्वानकारी अग्निदेव यजमान के हव्य वाहन दूत हुए, उस समय समीचीन पथ द्वारा जाकर उन्होंने अन्तरिक्ष का निर्माण किया अथवा वहाँ प्रकाश किया। अग्निदेव यज्ञ में हव्य द्वारा देवों की परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 1.58.1]
शक्ति से रचित अविनाशी अग्नि कभी भी संताप देने वाली नहीं है। वह यजमान के दूत एवं होता नियुक्त हुए। उन्होंने ही अंतरिक्ष को प्रकटाया तथा वे ही अनुष्ठान में हृव्य द्वारा देवी की सेवा करते हैं।
Immortal Agni was created with great power-force (energy, present all around), capable of destroying every thing and burning. As an agent of demigods-deities Agni Dev became the acceptor of the offering made by the hosts performing Yagy,  generated the space-sky and illuminated it. He serve the demigods, deities, the Almighty during the Yagy.
Energy can be converted to mass and plasma. Fire :- heat & light are two forms of energy. 
आ स्वमद्म युवमानो अजरस्तृष्वविष्यन्नतसेषु तिष्ठति। 
अत्यो न पृष्ठं प्रषितस्य रोचते दिवो न सानु स्तनयन्नचिक्रदत्
अजर अग्नि तृण गुल्म आदि अपने खाद्य को ज्वलन शक्ति द्वारा मिलाकर और भक्षण कर तत्काल काठ के ऊपर चढ़ गये। दहन करने के लिए इधर-उधर जाने वाली अग्नि की पृष्ठ देश स्थित ज्वाला गमनशील घोड़े की तरह शोभा पाती हैं। साथ ही देश स्थित ज्वाला गमनशील घोड़े की तरह शोभा पाती है। साथ ही साथ आकाश के उन्नत और शब्दायमान मेघ की तरह शब्द भी करती है।[ऋग्वेद 1.58.2]
जरा रहित अग्नि हवियों को एकत्र कर खाते हुए काष्ठ पर चढ़े। इनकी घृत से चिकनी पीठ घोड़े के समान दमकती है। इन्होंने आकाशस्थ बादलों की गर्जना के समान शब्दों वाली ज्वाला को प्रकट किया। 
Immortal Agni ate the shrubs, plants etc. and digested the eatables riding the wood. Its back started shinning like a moving horse when it moved from one place to another for burning. It roared like the thunderous clouds in the sky rising too high.
Electricity-electric spark produces sound and light. Lightening is associated with dazzling light and thunderous noise.
क्राणा रुद्रेभिर्वसुभिः पुरोहितो होता निषत्तो रयिषाळमर्त्य:। 
रथो न विक्ष्वृञ्जसान आयुषु व्यानुषग्वार्या देव ऋण्वति
अग्निदेव हव्य का वहन करते हैं और रुद्रों तथा वसुओं के सम्मुख स्थान पाए हुए हैं। अग्रिदेव देवाहानकारी और यज्ञ-स्थानों में उपस्थित रहते हैं। वह धन जयी और अमर हैं। दीप्तिमान् अग्निदेव याजकों की स्तुति लाभ करके और रथ की तरह चल करके प्रजाओं के घर में बार-बार वरणीय या श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.58.3] 
अमर अग्नि रुद्रों और वसुओं के सम्मुख स्थान पाते हुए और अनुष्ठान स्थल में उपस्थित रहते हैं। दीप्ति परिपूर्ण अग्नि यजमानों की वंदनाओं को सुनकर कर खाते हुए काष्ठ पर चढ़े हैं।
Immortal Agni Dev is found close to the Rudr & Vasu. Agni Dev is present in all places where the God is worshipped including the Yagy. He comes to the house of the devotees again & again granting them riches-wealth they need.
Fire is produced when two pieces of wood are rubbed together. Water has hydrogen & oxygen. Hydrogen burns & the oxygen helps it in burning.
वि वातजूतो अतसेषु तिष्ठते वृथा जुहूभिः सृण्या तुविष्वणिः।
तृषु यदग्ने वनिनो वृषायसे कृष्णं त एम रुशदूर्में अजर
हे अग्निदेव! वायु द्वारा प्रेरित होकर, महाशब्द, ज्वलन्त जिह्वा और तेज के साथ, अनायास पेड़ों को दग्ध कर देते हैं। हे अग्निदेव! जिस समय आप वन्य वृक्षों को शीघ्र जलाने के लिए साँड़ की तरह व्यग्र होते ही, हे दीप्त-ज्वाल अजर अग्निदेव! आपका जाने का मार्ग काला हो जाता है।[ऋग्वेद 1.58.4]
हे अग्ने! पवन के योग से अधिक शब्दवान हुए। तुम दुरांत के समान जिह्वाओं से काष्ठों को प्राप्त होते हो। तुम जरा रहित दीप्तिमान, ज्वालाओं से युक्त, जंगल और वृक्षों के समान आचरण करते हो। तुम्हारा मार्ग श्यामवर्ण का हो जाता है।
Hey Agni Dev! Associated with Vayu (Pawan, air, wind) you burn the trees (jungles, forests) producing dazzling light and loud sound. When you become furious like a bull, your path becomes dark with smoke.
Oxygen a basic ingredient for burning is present in air (21%). However, metals, rocks too burn at a very temperature in the absence of air-here plasmic state is reached, when all elements break down into ionic form-state. The temperature rises to millions of degrees centigrade. This is how energy is produced in the stars-Sun.
Nuclear explosions-blasts, atom bomb, hydrogen bomb, neutron bomb are some of the forms of Agni-fire.
तपुर्जम्भो वन आ वातचोदितो यूथे न साह्वाँ अव वाति वंसगः। 
अभिव्रजत्रक्षितं पाजसा रजः स्थातुश्चरथं भयते पतत्रिणः
अग्निदेव वायु द्वारा प्रेरित होकर, शिखारूप आयुध धारण करके, महातेज के साथ, अशुष्क वृक्ष रस आक्रमण करके और गो-वृन्द के बीच में साँड़ की तरह सबको पराजित करके चारों ओर व्याप्त होते हैं। सारे स्थावर और जंगम अग्निदेव से भयभीत हो उठते हैं।[ऋग्वेद 1.58.5]
ज्वाला रूप दाढ़ वाले, विजेता पवन द्वारा प्रेरित तुम जब बन में तैरते हुए धेनुओं के पहलू में जाने वाले ऋषभ के तुल्य, क्षितिज की तरफ उठते हो, तब भी जीव कम्पायमान हो जाते हैं।
Inspired-helped by air-Pawan Dev (Agni-fire, Vayu-air, Varun-water are the functional organs of Maa Bhagwati, better left half of the Almighty) your flames engulf the green trees-vegetation just like the bull amongest the cows and the calves. All fixed and movable living beings tremble with fear.
दधुष्टा भृगवो मानुषेष्वा रयिं न चारुं सुहवं जनेभ्यः। 
होतारमग्ने अतिथिं वरेण्यं मित्रं न शेवं दिव्याय जन्मने
हे अग्नि देव! मनुष्यों के बीच में महर्षि भृगु ने दिव्य जन्म पाने के लिये आपको शोभन धन की तरह धारित किया। आप आसानी से लोगों का आह्वान सुनने वाले और स्वयं देवों का आह्वान करने वाले हैं। आप यज्ञ स्थान में अतिथि रूप और उत्तम मित्र की तरह सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.58.6]
हे अग्निदेव! प्राणियों के सुख के लिए आह्वान किये होता एवं वरणीय अतिथि, देवगणों के मित्र, तुम्हें भृगुओं ने मनुष्य में स्थापित किया। 
Hey Agni Dev! Bhragu established you amongest the humans. You easily listen to the prayers-worship done by the hosts-those performing Yagy. You join the Yagy as a guest and provide comfort to the devotee-host as the best friend. 
होतारं सप्त जुह्वो यजिष्ठं यं वाघतो वृणते अध्वरेषु। 
अग्निं विश्वेषामरतिं वसूनां सपर्यामि प्रयसा यामि रत्नम्
सात आह्वान करने वाले ऋत्विक् जो यज्ञों में परम यज्ञार्ह और देवाह्वानकारी अग्नि देवता का वरण करते हैं, उसी सर्व धनदाता अग्निदेव को मैं यज्ञ के अन्न से सेवित करता हूँ और उनसे रमणीय धन की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.58.7]
आह्वान कर्ता सात ऋत्विज श्रेष्ठ एवं पूजनीय होता अग्नि का यज्ञ में वरण करते हैं। उनकी अन्न रूपी हवि से सेवा करता हुआ मैं रमणीक धन की विनती करता हूँ।
Seven people-Ritvij committed to Yagy, ignite the pious fire at the site of the Yagy. I offer food grains to Agni Dev in the Yagy. Using the food grains as Havi-offerings, I request Agni Dev who grants all sorts of amenities-wealth; for riches
अच्छिद्रा सुनो सहसो नो अद्य स्तोतृभ्यो मित्रमहः शर्म यच्छ। 
अग्ने गृणन्तमंहस उरुष्योर्जो नपात्पूर्भिरायसीभिः
हे बलपुत्र और अनुरूप दीप्तियुक्त अग्निदेव! आज हमें श्रेष्ठ सुख प्रदान करें। हे अन्न पुत्र! अपने स्तोताओं को लोहे की तरह दृढ़ रूप से रक्षा करते हुए उन्हें पापों से बचावें।[ऋग्वेद 1.58.8]
हे शक्ति के पुत्र! हे मित्रों को सुखी करने वाले अग्निदेव! हम वंदनाकारियों को श्रेष्ठतम शरण प्रदान करो और सुरक्षा करते हुए मुझे पाप से बचाओ।
Hey glowing Shakti (Maa Bhagwati) Putr Agni Dev! Grant us comforts & protection from sins like an armour made of tough steel.
भवा वरूथं गृणते विभावो भवा मघवन्मघवद्भ्यः शर्म। 
उरुष्याग्ने अंहसो गृणन्तं प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्
हे प्रभावान् अग्निदेव! आप स्तोता के गृह रूप बनें। हे धनवान् अग्निदेव! धनवानों के प्रति कल्याण स्वरूप बनें। हे अग्निदेव! स्तोताओं को पाप से बचावें। हे प्रज्ञारूप धन से सम्पन अग्निदेव! आप प्रातःकाल शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 1.58.9]
हे प्रदीप्तिमान! वंदनाकारी के लिए शरण रूप में होओ। धन वालों को आश्रय दो। आप प्रातःकाल में  शीघ्र ग्रहण होते हुए मुझे पाप से बचायें।
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
वया इदग्ने अग्नयस्ते अन्ये त्वे विश्वे अमृता मादयन्ते। 
वैश्वानर नाभिरसि क्षितीनां स्थूणेव जनाँ उपमिद्ययन्थ
हे अग्निदेव! अन्यान्य जो अग्नि हैं, वे आपकी शाखाएँ हैं अर्थात् सब अंग हैं और आप अङ्गी हैं। आपमें सब अमर देवगण देखे जाते हैं। हे वैश्वानर! आप मनुष्यों की नाभि हैं। आप निखात स्तम्भ के समान मनुष्यों को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.59.1]
हे अग्निदेव! तुम लपटों से परिपूर्ण अमर हो और देवों को हर्षित करने वाले हो। तुम मनुष्यों में नाभि के समान हो। तुम उनको स्तम्भ के तुल्य सहारा प्रदान करते हो।
Hey Agni Dev! Other forms of fire are your branches-tributaries. All demigods-deities are visible-seen in you. You are like the naval of the humans.
Fire is one of the basic ingredient for life.
मूर्धा दिवो नाभिरग्निः पृथिव्या अथाभवदरती रोदस्योः। 
तं त्वा देवासोऽजनयन्त देवं वैश्वानर ज्योतिरिदार्याय
अग्निर्देवता स्वर्ग के मस्तक, पृथिवी की नाभि और द्युलोक तथा पृथिवी के अधिपति हुए। हे वैश्वानर! आप देवता हैं। देवों ने आर्य या विद्वान् मनुष्यों के लिए ज्योति: स्वरूप आपको उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 1.59.2] 
अग्नि क्षितिज की मूर्द्धा और पृथ्वी के अधिपति हैं। तब मनुष्यों में लीन उस अग्नि की दीप्ति रूप से देवताओं ने प्रकट किया है।
Hey Agni Dev! You constitute the head of heaven, naval of the earth & became the master of the heavens & the earth. Hey Vaeshwanar! You are a demigod-deity. Demigods-deities produced you for the enlightened-the Ary (learned) in the form of visibility-aura.
आ सूर्ये न रश्मयो ध्रुवासो वैश्वानरे दधिरेऽग्रा वसूनि। 
या पर्वतेष्वोषधीष्वप्सु या मानुषेष्वसि तस्य राजा
जिस प्रकार निश्चल किरणें सूर्यदेव में स्थापित हुई हैं, उसी प्रकार वैश्वानर अग्निदेव में (सभी) सम्पत्तियाँ स्थापित हुई थीं। पर्वतों, औषधियों, जलों और मनुष्यों में जो धन है, उसके आप ही राजा हैं।[ऋग्वेद 1.59.3]
सूर्य में सदैव रहने वाली रश्मियों के तुल्य देवगणों ने वैश्वानर अग्नि से धनों का निर्माण किया। जो धन पर्वतों में, औषधियों में, जलों में दृढ़ है उसके वही स्वामी हैं।
वैश्वानर :: अग्नि, परमात्मा, चेतन, चित्र, चित्रक-चीता; Fire, God, consciousness, image, spotted tiger.
The way the static rays of light were incorporated in the Sun, all riches-wealth was established in you. You are the king of the wealth available with the mountains, medicines, waters and the humans. 
बृहतीइव सूनवे रोदसी गिरो होता मनुष्योन दक्षः। 
स्वर्वते सत्यशुष्माय पूर्विर्वैश्वानराय नृतमाय यह्वी:
स्वर्ग और पृथिवी वैश्वानर के लिए विस्तृत हुए थे। जैसे बन्दी प्रभु की स्तुति करता है, वैसे ही इस निपुण होता ने सुगति सम्पत्र, प्रकृत बलशाली और नेतृश्रेष्ठ वैश्वानर अग्रिदेव के उद्देश्य से बहुविध महान् स्तुतियों का गायन करते हैं।[ऋग्वेद 1.59.4]
आकाश पृथ्वी के समान भी श्रेष्ठ है। वे होता अग्नि मनुष्य के समान चतुर, प्रकाशित व शक्तिशाली हैं। हे मनुष्यों! उनके लिए पुरातन वंदनाएँ करो। 
Heavens and the earth expanded for incorporating the Vaeshwanar-Vibhuti (esteemed form of the Almighty) of the God. The devotees-Hota conducting Yagy has prayed to you just like a prisoner prays to the God. The skilled Host-Hota who is ensured with suitable next incarnations & is strong, sung excellent hymns in your honour.
दिवश्चित्ते बृहतो जातवेदो वैश्वानर प्र रिरिचे महित्वम्। 
राजा कृष्टीनामसि मानुषीणां युधा देवेभ्यो वरिवश्चकर्थ
हे वैश्वानर! आप सब प्राणियों को जानते हैं। आकाश से भी आपका माहात्म्य अधिक है। आप मानव प्रजाओं के अधिपति हैं। आपने देवों के लिए युद्ध करके धन का उद्धार किया है।[ऋग्वेद 1.59.5]
प्राणियों के दाता, मनुष्यों में वास करने वाले अग्नि देव! तुम्हारी महिमा आकाश से भी अधिक है। तुम मनु द्वारा उत्पन्न प्रजाओं के दाता हो। तुमने युद्ध के द्वारा दिव्य धनों को प्राप्त कराया है। 
Hey Vaeshwanar! You all living beings. You are more significant than the sky-outer space. You are the master-protector of the humans. You extracted-cleansed the wealth for he demigods-deities.
All metals are burnt off for purity. They are extracted from minerals-ores by burning them in a blast furnace. They are subjected to electrolysis, thereafter.
प्र नू महित्वं वृषभस्य वोचं यं पूरवो वृत्रहणं सचन्ते। 
वैश्वानरो दस्युमग्रिर्जघन्वाँ अधूनोत्काष्ठा अव शम्बरं भेत्
मनुष्य जिन वृत्र हन्ता या मेघभेदनकारी वैश्वानर या विद्युदग्नि की बर्षा के लिए अर्चना करते हैं, उन्हीं जलवर्षी वैश्वानर का माहात्म्य मैं शीघ्र कहता हूँ। वैश्वानर अग्निदेव ने राक्षसों का वध किया और वर्षा का जल नीचे गिराया है तथा शम्बर असुर का भेदन किया।[ऋग्वेद 1.59.6] 
अब मैं उन महान पुरुषों की महिमा बताता हूँ। उन वृत्रनाशक वैश्वानर अग्नि ने जलों के चोर को मृत किया। दिशाओं को कम्पायमान किया और शम्बर को काट डाला।
Now let me describe the significance of the killer-slayer of Vratr-who is worshipped by the humans for rains. Vaeshwanar Agni Dev killed the demons-Rakshas and showered rains to earth. They killed the demon called Shambar.
Dev Raj Indr, Agni Dev, Varun Dev, Pawan Dev together work in unison-harmony; being the esteemed components of the Almighty working with the strength of Maa Bhagwati-better half of the Almighty. Induvially, without the strength of Maa Bhagwati, they cannot even lift a straw.
वैश्वानरो महिम्रा विश्वकृष्टिर्भरद्वाजेषु यजतो विभावा। 
शातावनेये शतिनीभिरग्निः पुरुणीथे जरते सूनृतावान्
अपने माहात्म्य द्वारा वैश्वानर सब मनुष्यों के अधिपति और पुष्टिकर तथा अन्नशाली यज्ञ में यजनीय हैं। वैश्वानर अग्निदेव प्रभासम्पन्न और सुकृत वाक्यशाली हैं। शतवन के पुत्र पुरुनीथ राजा के यज्ञ में सत्यवान अग्निदेव की सैकड़ों स्तोत्रों से स्तुति की जाती हैं।[ऋग्वेद 1.59.7]
वे मनुष्यों के स्वामी, अनन्त प्रकाशमान, पूज्य, सत्यवाणी परिपूर्ण वैश्वानर अग्नि शतवान पुत्र राजा पुरुणीथ के वंशधरों द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं।
Due to his significance Vaeshwanar is the protector of the humans and honoured in the Yagy. Agni Dev is intelligent-prudent, truthful, pious and complete in all manners. Agni Dev was honoured-worshipped in the Yagy performed by king Shatwan, the son of Puruneeth and his descendants.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।  
वह्निं यशसं विदथस्य केतुं सुप्राव्यं दूतं सद्योअर्थम्।
द्विजन्मानं रयिमिव प्रशस्तं रातिं भरद्भगवे मातरिश्वा
अग्निदेव हव्यवाहक, यशस्वी, यज्ञप्रकाशक और सम्यक्  रक्षणशील और देवों के दूत हैं; सदा हव्य लेकर देवों के पास जाते हैं। वह दो काष्ठों द्वारा अरणि मन्थन से उत्पन्न और धन की तरह प्रशंसित है। मातरिश्वा उन्हीं अग्निदेव को मित्र के तुल्य भृगु वंशियों के पास ले आयें।[ऋग्वेद 1.60.1] 
अग्रणी, यशस्वी, द्रुतगामी सन्देश वाहक, अरणि मंथन से रचित धन के तुल्य प्रशस्त अग्नि को भृगु के निकट ले आयें।
Agni Dev is the carrier of offerings to the demigods-deities, is honourable-esteemed, high light the Yagy, moves all around & possess equanimity. He is produced by rubbing two pieces of wood one another. Matriksha took Agni Dev to Bragu descendents like a friend.
सम्यक्त्व-equvilance के पच्चीस दोष तथा आठ गुण ::
वसु मद टारि निवारि त्रिशठता, षट अनायतन त्यागों ; 
शंकादिक वसु दोष बिना, संवेगादिक चित पागो। 
अष्ट अंग अरू दोष पचीसों, तिन संक्षेपै कहिये; 
बिन जाने तैं दोष गुननकों, कैसे तजिये गहिये।
आठ मद, तीन मूढ़ता, छह अनायतन (अधर्म-स्थान) और आठ शंकादि दोष; इस प्रकार सम्यक्तत्व के पच्चीस दोष होते हैं। कोई भी जीव अपने अंदर रह रहे दोषों को जाने और समझे बिना उन दोषों को छोड़ नहीं सकता। वह अपनी आत्मा में विराजमान अनंत गुणों को कैसे गृहण करे? अतः सम्यक्त्व के अभिलाषी जीव को सम्यक्त्व के इन पच्चीस दोषों को त्याग करके चैतन्य परमात्मा में मन लगाना चाहिये।  
जीव के मद के आठ दोष :: 
पिता भूप वा मातुल नृप जो, होय न तौ मद ठानै:; 
मद न रूपकौ मद न ज्ञानकौ, धन बलकौ मद भानै।
तपकौ मद न मद जु प्रभुताकौ, करै न सो निज जानै; 
मद धारैं तौ यही दोष वसु समकितकौ मल ठानै।
(1). कुल-मद :- इस संसार में पिता के गोत्र को कुल और माता के गोत्र को जाति कहते हैं। जिस व्यक्ति के पितृपक्ष में पिता आदि राजादि पुरूष होने से उसको मैं राजकुमार हूँ, इस तरह का अभिमान हो जाता है, उसे कुल-मद कहते हैं।
(2). जाति-मद :- स्वयं को उच्च जाति यथा स्वर्ण, ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य होने का मिथ्याभिमान।
(3). रूप-मद :- शारीरिक सौन्दर्य का मद करना, सो रूप-मद होता हैं।
(4) ज्ञान-मद :- अपनी विद्या या ज्ञान का अभिमान करना, सो ज्ञान-मद होता है। 
(5) धन-मद :- अपनी धन-सम्पति का अभिमान करना, सो धन-मद होता है। 
(6) बल-मद :- अपनी शारीरिक शक्ति का गर्व करना, सो बल-मद होता है।
(7) तप-मद :- अपने व्रत-उपवासादि तप का गर्व करना, सो तप-मद होता है। 
(8) प्रभुता-मद :- अपने बड़प्पन और प्रभुता का गर्व करना सो प्रभुता-मद कहलाता है। इस तरह कुल, जाति, रूप, ज्ञान, धन, बल, तप और प्रभुता; यह आठ मद-दोष कहलाते हैं। जो जीव इन आठ मदों का गर्व नहीं करता है, वही आत्मा का ज्ञान कर सकता है। यदि वह इनका गर्व करता है, तो ये मद सम्यकदर्शन के आठ दोष बनकर उसे दूषित करते हैं। 
छह अनायतन तथा तीन मूढ़ता दोष ::
कुदेव-कुगुरू-कुवृष सेवक की नहिं प्रशंस उचरै है; 
जिनमुनि जिनश्रुत विन कुगुरादिक, तिन्हैं न नमन करै है। 
कुगुरू, कुदेव, कुधर्म, कुगुरूसेवक, कुदेवसेवक तथा कुधर्मसेवक; यह छह अनायतन सच्चे धर्म के अस्थान, कुस्थान या दोष कहलाते हैं। उनकी भक्ति, विनय और पूजनादि तो दूर रही, किन्तु सम्यकद्रष्टि जीव उनकी प्रशंसा भी नहीं करता है; क्योंकि उनकी प्रशंसा करने से भी सम्यक्त्व में दोष लगता है। सम्यकद्रष्टि जीव जिनेन्द्रदेव, वीतरागी मुनि और जिनवाणी के अतिरिक्त कुदेव और कुशास्त्रादि को किसी भी भय, आशा, लोभ और स्नेह आदि के कारण नमस्कार नहीं करता है, क्योंकि उन्हें नमस्कार करने मात्र से भी सम्यक्त्व दूषित हो जाता है। कुगुरू-सेवा, कुदेव-सेवा तथा कुधर्म-सेवा यह तीन भी सम्यक्त्व के मूढ़ता नामक दोष होते हैं।
सम्यक्त्व आठ अंग (गुण) और शंकादि आठ दोषों का लक्षण ::
जिन वच में शंका न धार वृष, भव-सुख-वांछा भानै; 
मुनि-तन मलिन न देखे घिनावै, तत्व-कुतत्व पिछानै। 
निज गुण अरू पर औगुण ढांके, वा निजधर्म बढ़ावे; 
कामादिक कर वृषतैं चिगते, निज-परको सु दिढावै।
धर्मी सों गौ-वच्छ-प्रीति सम, कर जिनधर्म दिपावै; 
इन गुणतै विपरीत दोष, तिनकों सतत खिपावै।
(1). नि:शंकित अंग :: सच्चा धर्म या तत्व यही है, ऐसा ही है, अन्य नहीं है तथा अन्य प्रकार से नहीं हो सकता है; इस प्रकार यथार्थ तत्वों में अपार, अचल श्रद्धा होना, सो नि:शंकित अंग कहलाता है। 
अहो, अव्रती सम्यकद्रष्टि जीव भोगों को कभी उचित नहीं मानते हैं; किन्तु जिस प्रकार कोई बन्दी इच्छा न होने पर भी कारागृह में घनघोर दु:खों को सहन करता है, उसी प्रकार अव्रती सम्यकद्रष्टि जीव अपने पुरूषार्थ की निर्बलता से गृहस्थदशा में रहते हैं, किन्तु रूचिपूर्वक भोगों की इच्छा नहीं करते हैं; इसलिए उन्हें नि:शंकित और नि:कांक्षित अंग होने में कोई भी बाधा या रुकावट नहीं आती है। 
(2). नि:कांक्षित अंग :: धर्म का पालन करके उसके बदले में सांसरिक सुखों की इच्छा न करना उसे नि:कांक्षित अंग कहते है।
(3). निर्विचिकित्सा अंग :: मुनिराज अथवा अन्य किसी धर्मात्मा के शरीर को मैला देखकर घृणा न करना, उसे निर्विचिकित्सा अंग कहते है। 
(4). अमूढ़द्रष्टि अंग :: सच्चे और झूठे तत्वों की परीक्षा करके मूढ़ताओं तथा अनायतनों में न फँसना, वह अमूढ़द्रष्टि अंग है।
(5). उपगूहन अंग :: अपनी प्रशंसा कराने वाले गुणों को तथा दूसरे की निंदा कराने वाले दोषों को ढंकना और आत्मधर्म को बढ़ाना (निर्मल रखना) सो उपगूहन अंग होता है। संवेग, अनुकम्पा, आस्तिक्य और प्रशम सम्यकद्रष्टि को होते हैं। 
अस्य शासुरुभयासः सचन्ते हविष्मन्त उशिजो ये च मर्ताः। 
दिवश्चित्पूर्वो न्यसादि होतापृच्छ्यो विश्पतिर्विक्षु वेधाः
हव्यग्राही देव और मानव, दोनों इन शासनकर्ता की सेवा करते हैं, क्योंकि ये पूज्य, प्रजापालक और फलदाता अग्निदेव सूर्योदय से पूर्व ही यजमानों के बीच स्थापित हुए हैं।[ऋग्वेद 1.60.2]
मेधावी और हविदाता मनुष्य अग्नि का सेवन करते हैं। ये प्रजापोषक फल-वर्षक अग्नि सूर्य से भी पूर्व प्रभाओं में दृढ़ होते हैं।
Both demigods-deities & the humans serve him alike, with the depth their hearts, since he nourishes the populace granting them fruits of their endeavours occupying his seat prior to Sun rise.
Fire can be produce by rubbing any hard objects like stone of iron.
तं नव्यसी हृद आ जायमानमस्मत्सुकीर्तिर्मधुजिह्वमश्याः। 
यमृत्विजो वृजने मानुषासः प्रयस्वन्त आयवो जीजनन्त
हृदय या प्राण से उत्पन्न और मिष्ठ जिह्व अग्नि देव के समक्ष हमारी नई स्तुति व्याप्त हैं। मनु पुत्र मानव लोग यथा समय यज्ञ सम्पादन और यज्ञान्न प्रदान करके इन अग्निदेव को संग्राम समय में उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.60.3] 
हृदय से रचित उस मधुर जिह्वा अग्नि को हमारी अभिनव वंदनाएँ ग्रहण हों, जिसे मनुवंशियों ने हवियों से रचित किया।
We are here with our new prayers for worshipping Agni Dev, who talks sweet, who evolved from the heart-life giving force. The descendents of Manu-humans produce him while carrying out Yagy donating food grains-offerings in it during war. 
उशिक्पावको वसुर्मानुषेषु वरेण्यो होताधायि विक्षु। 
दमूना गृहपतिर्दम आँ अग्निर्भुवद्रयिपती रयीणाम्
अग्निदेव कामनापात्र, विशुद्धिकारी, निवास हेतु, वरणीय और देवाह्वानकारी हैं। यज्ञ में प्रविष्ट मनुष्यों के बीच अग्निदेव को स्थापित किया गया। ये अग्निदेव शत्रुदमन में कृत संकल्प और हमारे घरों में पालनकर्ता हों। यज्ञ भवन में धनाधिपति हों।[ऋग्वेद 1.60.4]
वे प्राणियों द्वारा इच्छित पावक धन से युक्त प्रजाओं से वरणीय नियुक्त हुए हैं। घर में आसक्ति वालों की रक्षा करने वाले हमारे घरों में धन की वृद्धि करें।
Agni Dev fulfil desires of the devotees, create-generate, purity-piousness and invite the demigods-deities. He is evolves in Yagy by the hosts-devotees. He nourishes the devotees and vanish the enemy. Let him grant us riches. 
तं त्वा वयं पतिमग्ने रयीणां प्र शंसामो मतिभिर्गोतमासः। 
आशुं न वाजंभरं मर्जयन्तः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्
हे अग्निदेव! हम गौतम वंशज हैं और आप धनपति, रक्षणशील और यज्ञात्न के कर्ता है। जिस प्रकार से घुड़सवार हाथ से घोड़े को साफ़ करता है, वैसे ही हम भी आपको मार्जित करके उत्तम स्तोत्र द्वारा आपकी प्रशंसा करेंगे। प्रज्ञा द्वारा अग्निदेव ने धन प्राप्त किया। अतः इस प्रातःकाल (यज्ञ में) तुरन्त आयें। [ऋग्वेद 1.60.5] 
हे अग्नि देव! हम गौतम वंशी तुम धनाधिप हविवाहक की श्लोकों से अर्चना करते हैं। उषाकाल में हमें प्राप्त हो जाओ।
Hey Agni Dev! We are the descendants of Gautom Rishi and you you are store house of riches, movable-roaming and the source-spirit of all Yagy. The way the rider cleanse the horse with his hands, we too will make offerings and prayers in your honour. Let Agni Dev help us attain riches with our intelligence-prudence & sincere efforts.
Hey glowing Agni Dev! Let you become the protector & beneficial to the devotees performing Yagy shielding them from all sins. Kindly come in the early morning.
"मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद् वायुरजायत" पुरुष सूक्त के अनुसार अग्नि और इन्द्र जुडवां भाई हैं इसका रथ सोने के समान चमकता है और दो मनोजवा एवं मनोज्ञ वायुप्रेरित लाल घोड़ो द्वारा खींचा जाता है। अगि् न का प्रांचीनतम प्रयोजन दुष्टात्माओं और आक्रामक,अभिचारों को समाप्त करना है। अपने प्रकाश से राक्षसों को भगाने के कारण ये रक्षोंहन् कहे गए हैं। देवों की प्रतिष्ठा करने के लिए अग्नि का आह्वान किया जाता है, जैसे :-
अग्निर्होता कविक्रतु सत्यश्चित्रश्रवस्तमः। देवो देवेभिरागमत्॥
अग्नि का सर्वप्रथम स्थान :: पृथ्वी आदि स्थानीय देवों में अग्नि का सर्वप्रथम स्थान है। अग्नि यज्ञीय अग्नि का प्रतिनिधि रूप है। यज्ञ के द्वारा मनुष्य का सम्बन्ध देवों से होता है। अत: यज्ञ की अग्नि मनुष्य और देवता के बीच सम्बन्ध का सूचक है। परन्तु अग्नि का स्वरूप भौतिक भी है। इनका स्वरूप गरजते हुए वृषभ के समान बतलाया गया है। उन्हें सिर और पैर नहीं हैं परन्तु जिह्वा लाल है। उत्पत्ति के समय अग्नि का स्वरूप बछड़े के समान है, परन्तु प्रज्वलित होने पर उनका स्वरूप अश्व के समान है। उनकी ज्वाला को विद्युत के समान कहा गया है। काष्ठ और घृत को उनका भोजन माना गया है। अग्नि धूम पताका के समान ऊपर की ओर जाता है। इसी कारण से अग्नि को धूमकेतु कहा गया है। यज्ञ के समय इनका आह्वान किया जाता है कि ये कुश के आसन पर विराजमान हों तथा देवों के हविष को ग्रहण करें। अग्नि का जन्म स्थान स्वर्ग माना गया है। स्वर्ग से मातरिश्वा इन्हें धरती पर लाये। अग्नि ज्ञान का प्रतीक है। वह सभी प्राणियों के ज्ञाता देव हैं। अत: इन्हें 'जातवेदा:' कहा गया है। अग्नि को द्युस्थानीय देवता सूर्य भी माना गया है। अग्नि को 'त्रिविध' तथा 'द्विजन्मा' भी कहा गया है। उनका प्रथम जन्म स्वर्ग में तथा दूसरा जन्म जल में (पृथ्वी पर) बतलाया गया है। अग्नि दानवों के भक्षक तथा मानवों के रक्षक माने गए हैं। इनका वर्णन दो सौ वैदिक सूक्तों में प्राप्त होता है।
जो ऊपर की ओर जाता है (अगि गतौ, अंगेनलोपश्च, अंग् + नि और नकार का लोप) वह अग्नि है।
धर्म की वसु नामक पत्नी से अग्नि उत्पन्न हुए। उनकी पत्नी स्वाहा से पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए। 
छठे मन्वन्तर में वसु की वसुधारा नामक पत्नी से द्रविणक आदि पुत्र हुए, जिनमें 45 अग्नि-संतान उत्पन्न हुए। इस प्रकार सब मिलाकर 49 अग्नि हैं। विभिन्न कर्मों में अग्नि के भिन्न-भिन्न नाम हैं। लौकिक कर्म में अग्नि का प्रथम नाम पावक है। 
गृहप्रवेश आदि में निम्नांकित अन्य नाम प्रसिद्ध हैं :-
अग्नेस्तु मारुतो नाम गर्भाधाने विधीयते। 
पुंसवने चन्द्रनामा शुगांकर्मणि शोभन:॥ 
सीमन्ते मंगलो नाम प्रगल्भो जातकर्मणि। 
नाग्नि स्यात्पार्थिवी ह्यग्नि: प्राशने च शुचिस्तथा॥
सत्यनामाथ चूडायां व्रतादेशे समुद्भव:। 
गोदाने सूर्यनामा च केशान्ते ह्यग्निरुच्यते॥
वैश्वानरो विसर्गे तु विवाहे योजक: स्मृत:। 
चतुर्थ्यान्तु शिखी नाम धृतिरग्निस्तथा परे॥
प्रायश्चित्ते विधुश्चैव पाकयज्ञे तु साहस:। 
लक्षहोमे तु वह्नि:स्यात कोटिहोमे हुताश्न:॥
पूर्णाहुत्यां मृडो नाम शान्तिके वरदस्तथा। 
पौष्टिके बलदश्चैव क्रोधाग्निश्चाभिचारिके॥
वश्यर्थे शमनी नाम वरदानेऽभिदूषक:। 
कोष्ठे तु जठरी नाम क्रव्यादो मृतभक्षणे॥
विभिन्न रुप :: गर्भाधान में मारुत" कहते हैं। पुंसवन में चन्द्रमा, शुगांकर्म में शोभन, सीमान्त में मंगल, जातकर्म में प्रगल्भ, नामकरण में पार्थिव, अन्नप्राशन में शुचि, चूड़ाकर्म में सत्य, व्रतबन्ध (उपनयन) में समुद्भव, गोदान में सूर्य, केशान्त (समावर्तन) में अग्नि, विसर्ग (अर्थात् अग्निहोत्रादिक्रियाकलाप) में वैश्वानर, विवाह में योजक, चतुर्थी में शिखी धृति में अग्नि, प्रायश्चित (अर्थात् प्रायश्चित्तात्मक महाव्याहृतिहोम) में विधु, पाकयज्ञ (अर्थात् पाकांग होम, वृषोत्सर्ग, गृहप्रतिष्ठा आदि में) साहस, लक्षहोम में वह्नि, कोटि होम में हुताशन, पूर्णाहुति में मृड, शान्ति में वरद, पौष्टिक में बलद, आभिचारिक में क्रोधाग्नि, वशीकरण में शमन, वरदान में अभिदूषक, कोष्ठ में जठर और मृत भक्षण में क्रव्यादम कहा गया है।
ऋग्वेद में अग्नि को देवमण्डल का प्राचीनतम सदस्य माना है। वैदिक संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। अग्नि व्योम में सूर्य, अन्तरिक्ष (मध्याकाश) में विद्युत और पृथ्वी पर साधारण अग्नि के रूप में स्थित है। 
ऋग्वेद में सर्वाधिक सूक्त अग्नि को ही अर्पित हैं। वह गृहपति है और परिवार के सभी सदस्यों से उसका स्नेहपूर्ण घनिष्ठ सम्बन्ध है। वह अन्धकार, निशाचर, जादू-टोना, राक्षस और रोगों को दूर करने वाला है। अग्नि है। पाचन और शक्ति निर्माण में इसका प्रमुख स्थान है। यज्ञीय अग्नि वेदिका में निवास करती है। वह समिधा, धृत और सोम से शक्तिमान होता है। वह मानवों और देवों के बीच मध्यस्थ और सन्देशवाहक है।
अग्नि दिव्य पुरोहित हैं और देवताओं का पौरोहित्य करते हैं।  वे यज्ञों के राजा है।नैतिक तत्वों से भी अग्नि का अभिन्न सम्बन्ध है। अग्नि सर्वदर्शी है। उसकी 1,000 आँखें हैं, जिनसे वे निरन्तर  मनुष्य के सभी कर्मों को निहारते रहते हैं। वे स्वयं गुप्तचर भी हैं और  मनुष्य के गुप्त जीवन को भी जानते हैं। वे ऋतुओं  के संरक्षक हैं। अग्नि पापों को तोलते हैं और पापियों को दण्ड देते हैं। वे पाप को क्षमा भी करते हैं। अग्नि की तुलना बृहस्पति और ब्रह्मणस्पति से भी की गई है। वे  मंत्र, धी (बुद्धि) और ब्रह्म के उत्पादक हैं। 
पञ्चाग्नि ::
पञ्चाग्नयो  मनुष्येण परिचर्या: प्रयत्नत:।
पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभ[विदुर नीति 11]
माता, पिता, अग्नि, आत्मा और गुरु इन्हें पञ्चाग्नि कहा गया है। मनुष्य को इन पाँच प्रकार की अग्नि की सजगता से सेवा-सुश्रुषा करनी चाहिए। इनकी उपेक्षा करके हानि होती है।
Mother, father, fire, soul & the Guru constitute Panchagni-five forms of fire. One must serve them whole heartedly. Negligence in doing so, may lead to losses. 
पञ्चाग्नि :: अन्वाहार्य, पाचन, गार्हपत्य, आहवनीय और आवसथ्य। इन पञ्चाग्नियों का रूप निम्न प्रकार हैं:
द्युलोक अग्नि :- उसमें सूर्यरूपी समिधा जल रही है। उसकी किरणें धुआँ हैं, दिन उसकी लपटें हैं, चन्द्रमा अंगारे और नक्षत्र चिंगारियां हैं। उसमें देवता श्रद्धा की आहुति देते हैं, जिससे सोम (राजा) पैदा होता है।
पर्जन्य अग्नि :- वायु समिधा, अभ्र धूम, विद्युत् ज्वाला, वज्रपात अंगारे, गर्जन चिंगारियां हैं। उसमें देव सोम (राजा) की आहुति देते हैं। तब वर्षा उत्पन्न होती है।
पृथ्वी अग्नि :- सम्वत्सर समिधा, आकाश धूम, रात्रि ज्वाला, दिशा अंगारे तथा अवान्तर दिशाएं चिंगारियां हैं। इसमें देव वर्षा की आहुति देते हैं। फलत: अन्न उत्पन्न होता है।
शरीर (हमारा) अग्नि :- वाक् उसकी समिधा, प्राण धूम, जिह्वा ज्वाला, चक्षु अंगारे, श्रोत्र चिंगारियां हैं। उसमें देव अन्न की आहुतियां देते हैं। जिससे वीर्य उत्पन्न होता है।
स्त्री देह अग्नि :- उसकी समिधा उपस्थ, उपमन्त्रण धूम, योनि ज्वाला, मैथुन अँगारे और आनन्द चिंगारियाँ हैं। इससे गर्भ उत्पन्न होता है। यहाँ श्रद्धारूपी जल देह में रूपान्तरित होता है। शरीर उत्पन्न होता है।
मृत्यु काल में प्राणाग्नि के निकल जाने से शीतल शरीर को अग्नि (पञ्चमहाभूत) के हवाले कर दिया जाता है। अग्नि आत्मा को वहीं ले जाता है, जहाँ से वह आया था।
अग्नि के प्रकार :: (1). गार्हपत्य, (2). आहवनीय, (3). दक्षिणाग्नि, (4). सभ्य, (5). आवसथ्य और (6). औपासन छ: प्रकार  हैं।[जैमिनी, मीमांसा सूत्र- हवि:प्रक्षेपणाधिकरण]
अग्नि को पाँच प्रकार का माना गया है। अग्नि उदात्त तथा विशद है। कर्मकाण्ड का श्रौत भाग और गृह्य का मुख्य केन्द्र अग्निपूजन ही है। देवमण्डल में इन्द्र के अनन्तर अग्नि का ही दूसरा स्थान है। जिसकी स्तुति लगभग दो सौ सूक्तों में वर्णित है। अग्नि के वर्णन में उसका पार्थिव रूप ज्वाला, प्रकाश आदि वैदिक ऋषियों के सामने सदा विद्यमान रहता है। अग्नि की उपमा अनेक पशुओं से दी गई है। प्रज्वलित अग्नि गर्जनशील वृषभ के समान है। उसकी ज्वाला सौर किरणों के तुल्य, उषा की प्रभा तथा विद्युत की चमक के समान है। उसकी आवाज़ आकाश की गर्जन जैसी गम्भीर है। अग्नि के लिए विशेष गुणों को लक्ष्य कर अनेक अभिधान प्रयुक्त करके किए जाते हैं। प्रज्वलित होने पर धूमशिखा के निकलने के कारण धूमकेतु इस विशिष्टिता का द्योतक एक प्रख्यात अभिधान है। अग्नि का ज्ञान सर्वव्यापी है और वह उत्पन्न होने वाले समस्त प्राणियों को जानता है। इसलिए वह 'जातवेदा:' के नाम से विख्यात है। अग्नि कभी द्यावापृथिवी का पुत्र और कभी द्यौ: का सूनु (पुत्र) कहा गया है। उसके तीन जन्मों का वर्णन वेदों में मिलता है। जिनके स्थान हैं :- स्वर्ग, पृथ्वी तथा जल। स्वर्ग, वायु तथा पृथ्वी अग्नि के तीन सिर, तीन जीभ तथा तीन स्थानों का बहुत निर्देश वेद में उपलब्ध होता है। अग्नि के दो जन्मों का भी उल्लेख मिलता है :- भूमि तथा स्वर्ग। अग्नि का जन्म स्वर्ग में ही मुख्यत: हुआ, जहाँ से मातरिश्वा ने मनुष्यों के कल्याणार्थ उसका इस भूतल पर आनयन किया। अग्नि देव को अन्य समस्त देवों में प्रमुख माना गया है। अग्नि का पूजन भारतीय संस्कृति का प्रमुख चिह्न है और वह गृहदेवता के रूप में उपासना और पूजा का एक प्रधान विषय है। इसलिए अग्नि 'गृहा', 'गृहपति' (घर का स्वामी) तथा 'विश्वपति' (जन का रक्षक) कहलाता है।[अवेस्ता]
राहुगण तथा विदेध माधव के नेतृत्व में अग्नि का सारस्वत मण्डल से पूरब की ओर जाने का वर्णन मिलता है।  इस प्रकार अग्नि की उपासना वैदिक धर्म का नितान्त ही आवश्यक अंग है।[शतपथ ब्राह्मण] 
अग्नि के रूप :: 
पिंगभ्रूश्मश्रुकेशाक्ष: पीनांगजठरोऽरुण:। 
छागस्थ: साक्षसूत्रोऽग्नि: सप्तार्चि: शक्तिधारक:॥ 
भौहें, दाढ़ी, केश और आँखें पीली हैं। अंग स्थूल हैं और उदर लाल है। बकरे पर आरूढ़ हैं, अक्षमाला लिये है। इसकी सात ज्वालाएँ हैं और शक्ति को धारण करता है।
अग्नि के शुभ लक्षण :: 
अर्चिष्मान् पिण्डितशिख: सर्पि:काञ्चनसन्निभ:। 
स्निग्ध: प्रदक्षिणश्चैव वह्नि: स्यात् कार्यसिद्धये॥ 
ज्वालायुक्त, पिण्डितशिख, घी एवं सुवर्ण के समान, चिकना और दाहिनी ओर गतिशील अग्नि सिद्धिदायक होता है।
देहजन्य अग्नि में शब्द-ध्वनि उत्पादन की शक्ति होती है :-
आत्मना प्रेरितं चित्तं वह्निमाहन्ति देहजम्। 
ब्रह्मग्रन्थिस्थितं प्राणं स प्रेरयति पावक:॥ 
पावकप्रेरित: सोऽथ क्रमदूर्ध्वपथे चरन्। 
अतिसूक्ष्मध्वनि नाभौ हृदि सूक्ष्मं गले पुन:॥ 
पुष्टं शीर्षे त्वपुष्टञ्च कृत्रिमं वदने तथा। 
आविर्भावयतीत्येवं पञ्चधा कीर्त्यते बुधै:॥ 
नकारं प्राणनामानं दकारमनलं विंदु:। 
जात: प्राणाग्निसंयोगात्तेन नादोऽभिधीयते॥ 
आत्मा के द्वारा प्रेरित चित्त देह में उत्पन्न अग्नि को आहत करता है। ब्रह्मग्रन्थि में स्थित प्रेरित वह प्राण क्रम से ऊपर चलता हुआ नाभि में अत्यन्त सूक्ष्म ध्वनि करता है तथा गले और हृदय में भी सूक्ष्म ध्वनि करता है। सिर में पुष्ट और अपुष्ट तथा मुख में कृत्रिम प्रकाश करता है। विद्वानों ने पाँच प्रकार का अग्नि बताया है। नकार प्राण का नाम है, दकार अग्नि का नाम है। प्राण और अग्नि के संयोग से नाद की उत्पत्ति होती है। सब देवताओं में इसका प्रथम आराध्यत्व ऋग्वेद के सर्वप्रथम मंत्र "अग्निमीले पुरोहितम्" से प्रकट होता है।[संगीतदर्पण]
योगाग्नि अथवा ज्ञानाग्नि के रूप में भी "अग्नि" का प्रयोग होता है :-
ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा। 
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणि तमाहु: पण्डितं बुधा:॥ [श्रीमद्भागवत गीता] 
अग्नि ::
अग्निः त्रिकोणः रक्तः। [ज्ञानसार 57]
अग्नि त्रिकोण व लाल होती है।
अग्नि के अंगारादि भेद :: 
इगालजालअच्ची मुम्मुरसुद्धागणी य अगणी य। 
ते जाण तेउजीवा जाणित्ता परिहरेदव्वा। [मूलाचार 221]
धुआँ रहित अंगार, ज्वाला, दीपक की लौ, कंडाकी आग और वज्राग्नि, बिजली आदिसे उत्पन्न शुद्ध अग्नि, सामान्य अग्नि-ये तेजस्कायिक जीव हैं, इनको जानकर इनकी हिंसाका त्याग करना चाहिए। 
[आचारांग निर्युक्ति 166; पंचसंग्रह-प्राकृत अधिकार संख्या 1.79; धवला पुस्तक संख्या 1.1.1.42.273, गा. 151, भगवती आराधना-विजयोदयी टीका-गाथा संख्या 607.805, 608.805, तत्त्वार्थसार अधिकार संख्या 2.64.]
गार्हपत्य अग्नि का एक प्रकार है। अग्नि तीन प्रकार की है :- (1). पिता गार्हपत्य अग्नि हैं, (2). माता दक्षिणाग्नि मानी गयी हैं और (3). गुरु आहवनीय अग्नि का स्वरूप हैं। [वेद] 
Garhpaty Agni is a type of fire. Veds describe fire by the name of father, mother and the Guru-teacher.
गार्हपत्य आदि तीन अग्नियों का निर्देश व उपयोग ::
त्रयोऽग्नयः प्रणेयाः स्युः कर्मारम्भे द्विजोत्तमैः। 
रत्नत्रितयसंकल्पादग्नीन्द्रमुकुटोद्भवाः॥[महापुराण 40.82] 
क्रियाओं के प्रारंभ में उत्तम द्विजों को रत्नत्रय का संकल्प कर अग्निकुमार देवों के इन्द्र के मुकुट से उत्पन्न हुई तीन प्रकारकी अग्नियाँ प्राप्त करनी चाहिए।  
तीर्थकृद्गणभृच्छेषकेवल्यन्तमहोत्सवे। 
पूजाङ्गत्वं समासाद्य पवित्रत्वमुपागताः[महापुराण 40.83]  
ये तीनों ही अग्नियाँ तीर्थंकर, गणधर और सामान्य केवली के अन्तिम अर्थात् निर्वाणोत्सवमें पूजा का अंग होकर अत्यन्त पवित्रता को प्राप्त हुई मानी जाती है।    
कुण्डत्रये प्रणेतव्यास्त्रय एते महाग्नयः। 
गार्हपत्याहवनीयदक्षिणाग्निः प्रसिद्धयः॥[महापुराण 40.84] 
गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्नि नामसे प्रसिद्ध इन तीनों महाग्नियों को तीन कुण्डोंमें स्थापित करना चाहिए।  
अस्मिन्नग्नित्रये पूजां मन्त्रैः कुर्वन्न द्विजोत्तमः।
आहिताग्निरिति ज्ञेयो नित्येज्या यस्य सद्मनि॥[महापुराण 40.85] 
इन तीनों प्रकार की अग्नियों में मन्त्रों के द्वारा पूजा करनेवाला पुरुष द्विजोत्तम कहलाता है और जिसके घर इस प्रकारकी पूजा नित्य होती रहती है वह आहिताग्नि व अग्निहोत्री कहलाता है।  
हविष्याके च धूपे च दीपोद्बोधनसंविधौ। 
वह्नीनां विनियोगः स्यादमीषां नित्यपूजने॥[महापुराण 40.86] 
नित्य पूजन करते समय इन तीनों प्रकारकी अग्नियों का विनियोग नैवेद्य पकाने में, धूप खेने में और दीपक जलाने में होता है अर्थात् गार्हपत्य अग्निसे नैवेद्य पकाया जाता है, आहवनीय अग्निमें धूप खेई जाती है और दक्षिणाग्नि से दीप जलाया जाता है। 
प्रयत्नेनाभिरक्ष्यं स्यादिदमग्नित्रयं गृहे। 
नैव दातव्यमन्येभ्यस्तेऽन्ये ये स्युरसंस्कृताः॥[महापुराण 40.87] 
घरमें बड़े प्रयत्न से इन तीनों अग्नियों की रक्षा करनी चाहिए और जिनका कोई संस्कार नहीं हुआ है ऐसे अन्य लोगों को कभी नहीं देनी चाहिए। 
न स्वतोऽग्नेः पवित्रत्वं देवतारूपमेव वा। 
किन्त्वर्हद्दिव्यमूर्तीज्यासंबन्धात् पावनोऽनलः॥[महापुराण 40.88]  
अग्निमें स्वयं पवित्रता नहीं है और न वह देवता रूप ही है किन्तु अर्हन्त देवकी दिव्य मूर्तिकी पूजा के सम्बन्ध से वह अग्नि पवित्र हो जाती है।  
ततः पूजाङ्गतामस्य मत्वार्चन्ति द्विजोत्तमाः। 
निर्वाणक्षेत्रपूजावत्तत्पूजातो न दुष्यति॥[महापुराण 40.89]
इसलिए ही द्विजोत्तम लोग इसे पूजाका अंग मानकर इसकी पूजा करते हैं अतः निर्वाण क्षेत्रकी पूजा के समान अग्नि की पूजा करने में कोई दोष नहीं है। 
व्यवहारनयापेक्षा तस्येष्टा पूज्यता द्विजैः। 
जैनैरध्यवहार्योऽयं नयोऽद्यत्वेऽग्रजन्मनः[महापुराण 40.90]   
ब्राह्मणों को व्यवहार नय की अपेक्षा ही अग्निकी पूज्यता इष्ट है, इसलिए जैन ब्राह्मणों को भी आज यह व्यवहार नय उपयोग में लाना चाहिए। 
अन्य संदर्भ :: यज्ञ में आर्ष यज्ञ, प्रकरण मोक्ष 5.1.; भगवती आराधना, विजयोदयी टीका, गाथा संख्या 8.1856,
अर्हत्पूजा से ही अग्नि पवित्र है, स्वयं नहीं[अग्नि 2]
क्रोधादि तीन अग्नियों का निर्देश :: 
  त्रयोऽग्नयः समुद्दिष्टा क्रोधकामोदराग्नयः। 
तेषु क्षमाविरागत्वानशनाहुतिभिर्वने [ 68.202] 
स्थित्वर्षियतिमुन्यस्तशरणाः परमद्विजाः। 
इत्यात्मयज्ञमिष्टार्थमष्टमीमवनीं ययुः॥ [महापुराण 68.203]
क्रोधाग्नि कामाग्नि और उदराग्नि ये तीन अग्नियाँ बतलायी गयी हैं। इनमें क्षमा, वैराग्य और अनशन की आहुतियाँ देनेवाले जो ऋषि, यति, मुनि और अनगार रूपी श्रेष्ठ द्विज वनमें निवास करते हैं वे आत्मयज्ञ कर इष्ट अर्थ की देनेवाली अष्टम पृथिवी मोक्ष-स्थानको प्राप्त होते हैं।
पंचाग्नि का अर्थ पंचाचार :: 
पंचमहागुरु भक्ति-पंचहाचार-पंचग्गिसंसाहया सूरिणो दिंतु मोक्खंगयासंगया। [पंचाचार]   
जो पंचाचार रूप पंचाग्नि के साधक हैं, वे आचार्य परमेष्ठी हमें उत्कृष्ट मोक्ष लक्ष्मी देवें।
प्राणायाम सम्बन्धी अग्निमण्डल :: 
स्फुलिङ्गपिङ्गलं भीममूर्ध्वज्वालाशतार्चितम्।
 त्रिकोणं स्वस्तिकोपेतं तद्बीजं वह्निमण्डलम्[ज्ञानार्णव अधिकार 29.22.289] 
अग्निके स्फुलिंग समान पिंगल वर्ण भीम रौद्र रूप ऊर्ध्वगमन स्वरूप सैकड़ों ज्वालाओं सहित त्रिकोणाकार स्वस्तिक (साथिये) सहित, वह्निबीज से मण्डित ऐसा वह्निमण्डल है। 
बालार्कसंनि-भश्चोर्ध्वं सावर्त्तश्चतुरङ्गुलः। 
अत्युष्णो ज्वलनाभिख्यः पवनः कीर्तितो बुधैः[ज्ञानार्णव अधिकार 29.27.289] 
जो उगते हुए सूर्य के समान रक्त वर्ण हो तथा ऊँचा चलता हो, आवर्तों (चक्रों) सहित फिरता हुआ चले, चार अंगुल बाहर आवे और अति ऊष्ण हो ऐसा अग्निमण्डल का पवन पण्डितोंने कहा है।
आग्नेयी धारणा का लक्षण :: 
ततोअसौ निश्चलाभ्यासात्कमलं नाभिमण्डले। 
स्मरत्यतिमनोहारि षोडशोन्नतपत्रकम्॥ [ज्ञानार्णव अधिकार 37.10.382] 
तत्पश्चात् (पार्थिवी धारणा के) योगी (ध्यानी) निश्चल अभ्यास से अपने नाभिमण्डल में सोलह ऊँचे-ऊँचे पत्रों के एक मनोहर कमल का ध्यान करे। 
प्रतिपत्रसमासीनस्वरमालाविराजितम्। 
कर्णिकायां महामन्त्रं विस्फुरन्तं विचिन्तयेत्॥ [ज्ञानार्णव अधिकार 37.11.382]
तत्पश्चात् उस कमल की कर्णिका में महामन्त्र का (जो आगे कहा जाता है उसका) चिन्तवन करे और उस कमल के सोलह पत्रों पर `अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ लॄ ए ऐ ओ औ अं अः इन 16 अक्षरों का ध्यान करे। 
रेफरुद्धं कलाबिन्दुलाञ्छितं शून्यमक्षरम्। 
लसदिन्दुच्छटाकोटिकान्तिव्याप्तहरिन्मुखम्॥[ज्ञानार्णव अधिकार 37.12.382] 
रेफ से रुद्ध कहिए आवृत और कला तथा बिन्दु से चिह्नित और शून्य कहिए हकार ऐसा अक्षर लसत कहिए दैदीप्यमान होते हुए बिन्दु की छटाकोटिकी कान्ति से व्याप्त किया है दिशा का मुख जिसने ऐसा महामन्त्र "हं" उस कमल की कर्णिका में स्थापन कर, चिन्तवन करे। 
तस्य रेफाद्विनिर्यान्ती शनैर्धूमशिखां स्मरेत्। 
स्फुलिङ्गसंततिं पश्चाज्ज्वालालीं तदनन्तरम्॥[ज्ञानार्णव अधिकार 37.13.382]
तत्पश्चात् उस महामन्त्र के रेफ से मन्द-मन्द निकलती हुई धूम (धुएँ) की शिखा का चिन्तवन करे। तत्पश्चात् उसमें से अनुक्रम से प्रवाह रूप निकलते हुए स्फुलिंगों की पंक्ति का चिन्तवन करै और पश्चात् उसमें से निकलती हुई ज्वाला की लपटों को विचारे।    
तेन ज्वालाकलापेन वर्धमानेन संततम्। 
दहत्यविरतं धीरः पुण्डरीकं हृदिस्थितम्॥ [ज्ञानार्णव अधिकार 37.14.382] 
तत्पश्चात् योगी मुनि क्रम से बढ़ते हुए उस ज्वाला के समूह से अपने हृदयस्थ कमल को निरन्तर जलाता हुआ चिन्तवन करे।
तदष्टकर्मनिर्माणमष्टपत्रमधोमुखम्। 
दहत्येव महामन्त्रध्यानोत्थः प्रबलोअनलः॥[ज्ञानार्णव अधिकार 37.15.382]
वह हृदयस्थ कमल अधोमुख आठ पत्र का है। इन आठ पत्रों पर आठ कर्म स्थित हों। ऐसे नाभिस्थ कमल की कर्णिका में स्थित "र्हं" महामन्त्र के ध्यान से उठी हुई। प्रबल अग्नि निरन्तर दहती है, इस प्रकार चिन्तवन करे, तब अष्ट कर्म जल जाते हैं, यह चैतन्य परिणामों की सामर्थ्य है।  
ततो बहिः शरीरस्य त्रिकोणं वह्निमण्डलम्। 
स्मरेज्ज्वालाकलापेन ज्वलन्तमिव वाडवम्॥[ज्ञानार्णव अधिकार 37.16.382]
उस कमल के दग्ध हुए पश्चात् शरीर के बाह्य त्रिकोण वह्नि का चिन्तवन करै, सो ज्वाला के समूह से जलते हुए बडवानल के समान ध्यान करे।  
वह्निबीजसमाक्रान्तं पर्यन्ते स्वस्तिकाङ्कितम्। 
ऊर्ध्ववायुपुरोद्भूतं निर्धूमं काञ्चनप्रभम्॥[ज्ञानार्णव अधिकार  37.17.382]  
तथा अग्नि बीजाक्षर `र' से व्याप्त और अन्त में साथिया के चिह्न से चिह्नित हो, ऊर्ध्व वायुमण्डल से उत्पन्न धूम रहित कांचन की-सी प्रभावाला चिन्तवन करे। 
अन्तर्दहति मन्त्रार्चिर्बहिर्वह्निपुरं पुरम्। 
धगद्धगितिविस्फूर्जज्वालाप्रचयभासुरम्॥[ज्ञानार्णव अधिकार  37.18.382] 
इस प्रकार वह धगधगायमान फैलती हुई लपटों के समूहों से दैदीप्यमान बाहर का अग्निपुर (अग्निमण्डल) अन्तरंग की मन्त्राग्नि को दग्ध करता है।  
भस्मभावमसौ नीत्वा शरीरं तच्च पङ्कजम्। 
दाह्याभावात्स्वयं शान्तिं याति वह्निः शनैः शनैः॥[ज्ञानार्णव अधिकार  37.19.382]
तत्पश्चात् यह अग्निमण्डल उस नाभिस्थ कमल और शरीरको भस्मीभूत करके दाह्य का अभाव होने से धीरे-धीरे अपने आप शान्त हो जाता है।
स्विष्टकृत् अग्नि :: The fire which performs the sacrifice well.
पञ्चाग्नि :: अन्वाहार्य, पाचन, गार्हपत्य, आहवनीय और आवसथ्य। इन पञ्चाग्नियों का रूप निम्न प्रकार हैं:
द्युलोक अग्नि :- उसमें सूर्यरूपी समिधा जल रही है। उसकी किरणें धुआँ हैं, दिन उसकी लपटें हैं, चन्द्रमा अंगारे और नक्षत्र चिंगारियां हैं। उसमें देवता श्रद्धा की आहुति देते हैं, जिससे सोम (राजा) पैदा होता है।
पर्जन्य अग्नि :- वायु समिधा, अभ्र धूम, विद्युत् ज्वाला, वज्रपात अंगारे, गर्जन चिंगारियां हैं। उसमें देव सोम (राजा) की आहुति देते हैं। तब वर्षा उत्पन्न होती है।
पृथ्वी अग्नि :- सम्वत्सर समिधा, आकाश धूम, रात्रि ज्वाला, दिशा अंगारे तथा अवान्तर दिशाएं चिंगारियां हैं। इसमें देव वर्षा की आहुति देते हैं। फलत: अन्न उत्पन्न होता है।
शरीर (हमारा) अग्नि :- वाक् उसकी समिधा, प्राण धूम, जिह्वा ज्वाला, चक्षु अंगारे, श्रोत्र चिंगारियां हैं। उसमें देव अन्न की आहुतियां देते हैं। जिससे वीर्य उत्पन्न होता है।
स्त्री देह अग्नि :- उसकी समिधा उपस्थ, उपमन्त्रण धूम, योनि ज्वाला, मैथुन अँगारे और आनन्द चिंगारियाँ हैं। इससे गर्भ उत्पन्न होता है। यहाँ श्रद्धारूपी जल देह में रूपान्तरित होता है। शरीर उत्पन्न होता है।
मृत्यु काल में प्राणाग्नि के निकल जाने से शीतल शरीर को अग्नि (पञ्चमहाभूत) के हवाले कर दिया जाता है। अग्नि आत्मा को वहीं ले जाता है, जहाँ से वह आया था।
विवाहाग्नि परिग्रह संस्कार :: विवाह संस्कार में लाजाहोम आदि की क्रियाएँ जिस अग्नि में सम्पन्न की जाती हैं, वह अग्नि आवसथ्याग्नि, ग्रह्याग्नि, स्मार्ताग्नि, वैवाहिकाग्नि तथा औपासनाग्नि नाम से जानी जाती है। विवाह के अनन्तर जब वर-वधू अपने घर आते हैं, तब उस स्थापित अग्नि को घर लाकर यथाविधि स्थापित करके, उसमें प्रतिदिन अपनी कुल परम्परा के अनुसार साँय-प्रातः हवन करने का विधान है। गृहस्थ के लिये प्रतिदिन दो प्रकार के शास्त्रीय कर्मों को करने की विधि हैं :- श्रौत कर्म और स्मार्त कर्म।
पंच महायज्ञ आदि पाकयज्ञ*1 सम्बन्धी जो कर्म हैं, वे स्मार्त कर्म हैं। 
इनके लिये जो पाक-भोजन आदि बनता है, वह इसी स्थापित अग्नि में सम्पादित होता है। गृहस्थ के लिये जो नित्य होम विधि है, वह भी इसी अग्नि द्वारा सम्पन्न होती है। यह अग्नि कभी बुझनी नहीं चाहिये। अतः प्रयत्नपूर्वक इसकी रक्षा की जाती है। 
*1अष्टका श्राद्ध, पार्णवश्राद्ध, श्रावणी-उपाकर्म, आग्रहायणी, चैत्री, आश्वयुजी  एवं औपासन :- ये सात कर्म सात पाकयज्ञ संस्थाएँ कहलाती हैं। [पारस्कर गृह सूत्र] 
वैवाहिकेSग्नौ कुर्वीत गृह्यं कर्म यथाविधि। 
पञ्चयज्ञविधानं च चान्वाहिकीं पक्तिं  गृही॥[मनु स्मृति 3.67] 
गृहस्थ विवाह के समय स्थापित अग्नि में यथाविधि ग्रह्योक्त कर्म-होम करें तथा नित्य पञ्चयज्ञ और पाक करे। 
The holy-sacred fire created at the solemnisation of marriage, should be preserved & used to perform daily Hawan-Agni Hotr and the 5 recommended Yagy along with cooking food.
The way the food is essential for the body Yagy is essential for him to modify-improve his deeds-actions & the future births.
वैश्यदेवस्य सिद्धस्य गृह्येSग्नौ विधिपूर्वकम्। 
आभ्यः कुर्याद्देवताभ्यो ब्राह्मणो होममन्वहम्॥[मनु स्मृति 3.84]
वैश्य देव के लिये पकाए अन्न से, ब्राह्मण गार्हपत्य अग्नि में, आगे कहे हुए देवताओं के लिये प्रति दिन हवन करे। 
The Brahmn should perform Hawan as per description that follows, into the Garhpaty Agni, for Vaeshy Dev with the cooked food grains, for the sake-satisfaction, appeasement of deities, demigods.
गार्हपत्य अग्नि का एक प्रकार है। 
अग्नि के प्रकार :: (1). पिता गार्हपत्य अग्नि हैं, (2). माता दक्षिणाग्नि मानी गयी हैं और (3). गुरु आहवनीय अग्नि का स्वरूप हैं॥ वेद॥ 
Garhpaty Agni is a type of fire. Veds describe fire by the name of father, mother and the Guru-teacher.
कर्म स्मार्त विवाहाग्नौ कुर्वीत प्रत्यहं गृही।[याज्ञ वल्कय स्मृति आचा० 97] 
त्रेताग्नि संग्रह संस्कार ::
गृहस्थ को श्रौत्र तथा स्मार्त दो कर्मों का सम्पादन करना पड़ता है। स्मार्त कर्मों का सम्पादन विवाहग्नि में सम्पादित होता है और श्रौत्र कर्मों का सम्पादन त्रेताग्नि में होता है :-
स्मार्तं वैवाहिके वह्नौ श्रौत्रं वैतानिकाग्निषु।[व्यास स्मृति 2.16]
विवाहाग्नि-गृह्याग्नि के अतिरिक्त तीन अग्नियाँ और होती हैं जिन्हें दक्षिणाग्नि, गार्हपत्य तथा आहवनीय नाम से जाना जाता है। इन तीनों अग्नियों का सामूहिक नाम त्रेताग्नि, श्रौताग्नि अथवा वैताग्नि है। 
गृहस्थ सभी श्रौत कर्मों को त्रेताग्नि में सम्पादित करें, विवाहाग्नि  में नहीं। इन तीन अग्नियों की स्थापना, उनकी प्रतिष्ठा, रक्षा तथा उनका हवन कर्म त्रेताग्नि संग्रह संस्कार कहलाता है। सनातन परम्परा के अनुरूप यज्ञों का सम्पादन किया जाता है। 
मुख्य रूप से यज्ञ संस्थान तीन प्रकार के हैं और प्रत्येक संस्था में सात-सात यज्ञ सम्मिलित हैं।
(1). पाकयज्ञ संस्था :- (1.1). अष्टका श्राद्ध, (1.2). पार्वण श्राद्ध, (1.3). श्रावणी-उपाकर्म, (1.4). आग्रहायणी,  (1.5). चैत्री, (1.6). आश्वयुजी और   (1.7).पासन  होम।इनका अनुष्ठान विवाहाग्नि में होता है और हविर्यज्ञ तथा सोमयज्ञ संस्था के कर्म त्रेताग्नि में सम्पन्न होते हैं। 
(2). हविर्यज्ञ संस्था :- (2.1). अग्न्याधेय (अग्निहोत्र), (2.2). दर्श पौर्णमास, (2.3). अग्रहायण, (2.4). चातुर्मास्य, (2.5). निरूढपशुबन्ध, (2.6). सौत्रामणियाग तथा (2.7). पिण्ड पितृ यज्ञ। 
(3). सोमयज्ञ संस्था :- (3.1). अग्निष्टोम, (3.2). अत्यग्निष्टोम, (3.3). उक्थ्य, (3.4). षोडशी, (3.5). वाजपेय, (3.6). अतिरात्र और (3.7). आप्तोर्याम।  
इन प्रधान यज्ञों के भी अनेक भेद और उपभेद हैं, जिनका विस्तृत विवरण गृह्यसूत्र और ब्राह्मण ग्रन्थों में उपलब्ध है। ये सभी यज्ञादिक जातक को अपनी पत्नी के साथ सम्पन्न करने चाहियें। 
वर्तमान काल में अधिकांश संस्कार प्रायः आधुनिकता के शिकार हो गये हैं। 
THREE KINDS OF FIRE तीन प्रकार की अग्नि :: दावानल (jungle fire), बड़वानल fire in the ocean) और जठराग्नि (fire in the stomach)।
बड़वानल :: जल में उपस्थित अग्नि; fire present in water.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- पराशर शाकत्य-शालतया,  देवता :-अग्नि, छंद :- द्विपदा विराट।
पश्वा न तायुं गुहा चतन्तं नमो युजानं नमो वहन्तम्। 
सजोषा धीराः पदैरनु ग्मन्नुप त्वा सीदन्विश्वे यजत्रा:॥1॥
हे अग्निदेव! पशु चुराने वाले चोर की तरह आप भी गुफा में अवस्थान करें। मेधावी और सदृश प्रीति सम्पन्न देवों ने आपके पद चिह्नों को लक्ष्य कर अनुगमन किया था। आप स्वयं हव्य सेवन करें और देवों के लिए हव्य वहन करें।[ऋग्वेद 1.65.1]
अवस्थान :: ठहरना, रहना; sojourn.
हे अग्ने! पशु चराने वाले के पीछे-पीछे जाने वाले मनुष्य के समान तुम्हारे पद चिह्नों पर मेधावी देव चलें। तुम धारण करने वाले देवों को हवि पहुँचाते हो, इसलिए देवता तुमको प्राप्त होते हैं।
Hey Agni! Sojourn in cave like the cattle thief. The enlightened should follow you like the person who follows the foot marks of his cow heard. You yourself enjoy-consume the sacrifices and carry them to the demigods-deities.
ऋतस्य देवा अनु व्रता गुर्भुवत्परिष्टिर्द्यौर्न भूम। 
वर्धन्तीमापः पन्वा सुशिश्विमृतस्य योना गर्भे सुजातम्॥2॥
देव गणों ने अग्नि देवता को भूमि में चारों ओर खोजा। अग्नि देव जल प्रवाहों के गर्भ से पैदा हुए, उत्तम स्तोत्रों से उनकी सम्यक् प्रकार से वृद्धि हुई। देवों ने अग्नि देव के कर्मों का, उनकी प्रेरणा का, अनुकरण किया और भूमि को स्वर्ग के सदृश सुखकारी बनाया।[ऋग्वेद 1.65.2]
देवता अग्नि की खोज में पृथ्वी पर आए। अग्नि जल के गर्भ में जन्में और स्तोत्रों द्वारा उनकी वृद्धि हुई।
The demigods searched Agni Dev all round, over the earth. He evolved in the flowing waters and excellent Strotr increased his intensity. Demigods followed the endeavours of Agni Dev, his inspiration and made the earth comfortable like the heaven.
Oxygen and hydrogen are the two elements which form water. Hydrogen is combustible and burns in the presence of water. Hydrogen as a Proton can lead to formation of several elements.  
पुष्टिर्न रण्वा क्षितिर्न पृथिवी गिरिर्न भुज्म क्षोदो न शंभु।
अत्यो नाज्मन्त्सर्गप्रतक्तः सिन्धुर्न क्षोदः क ईं वराते॥3॥
अभीष्ट फल की पुष्टि की तरह अग्निदेव रमणीय, पृथ्वी की तरह विस्तीर्ण, पर्वत की तरह सबके भोजयिता और जल की तरह सुखकर हैं। अग्निदेव युद्ध में परिचालित अश्व और सिन्धु की तरह शीघ्रगामी हैं। ऐसे अग्निदेव का कौन निवारण कर सकता है अर्थात् इन्हें कौन रोक सकता है?[ऋग्वेद 1.65.3]
ये अग्नि अभीष्ट फल के आश्वासन के समान रमणीय, धरती के समान विशाल, पहाड़ के समान भोजनदाता, जल के समान शांतिप्रद, घोड़े के समान युद्ध में पहले और समुद्र के समान जिनका विस्तार है।  इन्हें कौन रोक सकता है।
भोजयिता :: खिलानेवाला; banquet.  Agni Dev is lovely like the accomplishment one's desires. He is broad-vast like earth, serves meals like mountain and comfortable like water.He is fast like a horse in the war field extensive like the ocean. Who can oppose-block Agni Dev!?
जामिः सिन्यूनां भ्रातेव स्वस्त्रामिभ्यान्न राजा वनान्यत्ति।
यद्वातजूतो वना व्यस्थादग्निर्ह दाति रोमा पृथिव्याः॥4॥
जिस प्रकार बहन का हितैषी भाई हैं, उसी प्रकार सिन्धु के हितैषी अग्निदेव हैं। जैसे राजा शत्रु का विनाश करता है, वैसे ही अग्निदेव वन का भक्षण करते है । जिस समय वायु प्रेरित अग्निदेव वन जलाने में लगते हैं, उस समय पृथ्वी के सब औषधि रूप रोम छिन्न कर डालते हैं।[ऋग्वेद 1.65.4]
बहनों के भाई की भाँति जलों के भाई अग्नि राजा के शत्रुओं के समान वनों का भक्षण करते हैं। पवन के योग से वनों में फलते-फूलते हैं। तब भूमि की वनस्पति रूप तालों को छिन्न-भिन्न कर डालते हैं।
The way-manner the brother is a well wisher of his sister, oceans is a well wisher of Agni Dev. The manner in which a king eliminate the enemy, Agni Dev burns the forests-jungles. Inspired by Pawan-Vayu Dev, when Agni Dev start burning the forests he destroys all vegetation.
श्वसित्यप्सु हंसो न सीदन् क्रत्वा चेतिष्ठो विशामुषर्भुत्।
सोमो न वेधा ऋतप्रजातः पशुर्न शिश्वा विभुर्दुरेभाः॥5॥
जल के भीतर बैठकर हंस के समान अग्निदेव जल के भीतर प्राण धारण करते हैं। उषा काल में जागकर प्रकाश द्वारा अग्निदेव सबको चेतना प्रदान करते हैं। सोम की तरह सारी औषधियों को वर्द्धित करते हैं। अग्निदेव गर्भस्थ पशु की तरह जल के बीच संकुचित हुए थे। अनन्तर प्रवर्द्धित होने पर इनका प्रकाश दूर तक फैल गया।[ऋग्वेद 1.65.5]
अग्नि जलों के भीतर हंस के समान बैठ कर अग्नि देव प्राण धारण करते हैं। उषा बेला में चैतन्य होकर प्राणियों को जगाते हैं। सोमरस के समान औषधियों (जड़ी-बूटी) को बढ़ाते हैं। बच्चे के समान प्रदीप्त हुए अग्नि बढ़ाने पर फैले हुए प्रकाश वाले होते हैं।
Agni Dev acquires life sitting inside the water like a swan. He refreshes all in the morning making them conscious. He grows the medicinal plants like Som Dev-Moon. He shrinks like a child in the bomb. Thereafter, he grew up and its light spreads all around.
 ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- पराशर शाकत्य-शालतया,  देवता :-अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
रयिर्न चित्रा सूरो न संदृगायुर्न प्राणो नित्यो न सूनुः। 
तका न भूर्णिर्वना सिषक्ति पयो न धेनुः शुचिर्विभावा॥1॥
अग्निदेव धन की तरह विलक्षण, सूर्य देव की तरह सब पदार्थों के दर्शक, प्राण वायु की तरह जीवन रक्षक और की तरह हितकारी हैं। अग्नि देव अश्व की तरह संसार को वहन करते और पुत्र दुग्ध दात्री गौ की तरह उपकारी हैं। दीप्त और आलोक युक्त अग्नि देव वन को दग्ध करते हैं।[ऋग्वेद 1.66.1]
अग्नि रमणीक धन के लिए दिव्य, सूर्य के समान अद्भुत, जीवन के समान प्राण वान, पुत्र के समान नित्य संबंधित, घोड़े के समान द्रुतगामी, धेनु के समान उपकारी हैं। वे अपनी ज्योति से वनों को जला देते हैं।
Agni Dev is unique like wealth-riches, makes the objects visible like Sury-Sun Bhagwan, protector of life like air and beneficial in all respects. He carries the world like horse & acts like cow while feeding milk to calf-son. He burns the forests with his energy-aura.   
दाधार क्षेममोको न रण्वो यवो न पको जेता जनानाम्। 
ऋषिर्न स्तुभ्वा विक्षु प्रशस्तो वाजी न प्रीतो वयो दधाति॥2॥
अग्नि देव रमणीय घर की तरह, धन रक्षा में समर्थ और पके जौ की तरह लोक विजयी हैं। अग्नि देव ऋषि की तरह देवों के स्तोता और संसार में प्रशंसनीय तथा अश्व की तरह हर्ष युक्त हैं। ऐसे अग्निदेव हमें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.66.2]
वे अग्नि गृह के समान रमणीक, अन्न के समान परिपक्व, ऋषि के समान प्रशासित तथा स्तोत्र द्वारा पूजनीय हैं।
रमणीक :: मनोहर, रमणीक, आभासी, जाली; delightful, colourful.
Agni Dev is delightful, colourful like a home, capable of protecting wealth and nourishing-mature like food grain-barley. He is honourable between the demigods-deities, revered in the universe and worshiped-prayed with the help of hymns.
दुरोकशोचिः क्रतुर्न नित्यो जायेव योनावरं विश्वस्मै। 
चित्रों यदभ्राट्छेतो न विक्षु रथो न रुक्मी त्वेषः समत्सु॥3॥
दुष्याप्य तेजा अग्नि देव यज्ञकारी की तरह ध्रुव और गृहस्थित गृहिणी की तरह घर के भूषण हैं। जिस समय अग्नि देव विचित्र दीप्ति युक्त होकर प्रज्वलित होते हैं, उस समय वह शुभ्र वर्ण सूर्य देव की तरह हो जाते हैं। अग्निदेव प्रजा के बीच में रथ की तरह दीप्ति युक्त और संग्राम में प्रभा युक्त हैं।[ऋग्वेद 1.66.3]
वे सक्ष्म गृहिणी के समान घर में बसने वाले जब प्रदीप्त होते हैं तब प्रजाओं के समान प्रकाशित होते हैं। चालाक सेना के समान भयग्रस्त करने वाले शस्त्र धारी के समान बलिष्ठ, ज्योति से परिपूर्ण मुख वाले हैं।
Agni Dev is energetic like Dhruv performing Yagy and ornamental like a wife-woman in the family-house. When ignited he shines like the Sun. He is brilliant like a chariot amongest the populace with vivid colours and energetic in a war. 
सेनेव सृष्टामं दधात्यस्तुर्न दिद्युत्वेषप्रतीका। 
यमो ह जातो यमो जनित्वं जारः कनीनां पतिर्जनीनाम्॥4॥
स्वामी के द्वारा संचालित सेना अथवा धनुर्धारी के दीप्ति मुख बाणों की तरह अग्निदेव शत्रुओं में भय का संचार करते हैं। जो उत्पन्न हुआ है और जो उत्पन्न होगा वह सब अग्नि देव है। अग्नि देव कुमारियों के जार और विवाहिता स्त्रियों के पति हैं।[ऋग्वेद 1.66.4]
 रचित हुआ है या जो भविष्य में रचित होगा, वह अग्नि रूप है। अग्नि कन्याओं का कौमार्य नष्ट करने वाले तथा विवाहिता के पति हैं, गार्हपत्य अग्नि का पति के संग नित्य पूजन करती हैं, इस दृष्टि से उनको पति परमेश्वर कहा गया है।
Agni Dev cause fear amongest the enemies like the army governed by the king and glowing like the sharp point of the arrow. Every thing and every thing to be born is Agni Dev. He is the illegitimate relation of the unmarried-virgin and husband of the married woman.
Due to this reason he is titled Almighty. As a matter of fact all the demigods-deities are the superior forms-incarnation of the God.
तं वश्चराथा वयं वसत्यास्तं न गावो नक्षन्त इ्दम्।
सिन्धुर्न क्षोदः प्र नीचीरैनोन्नवन्त गावः स्वर्दृशीके॥5॥
जिस प्रकार गायें घर में जाती हैं, उसी प्रकार हम जंगम और स्थावर अर्थात पशु और धान्य आदि उपहार के साथ प्रदीप्त अग्निदेव के पास जाते हैं। जल प्रवाह की तरह अग्निदेव इधर-उधर ज्वाला प्रेरित करते हैं। आकाश में दर्शनीय अग्निदेव की किरणें ऊँची उठती हैं।[ऋग्वेद 1.66.5]
पशु के दूध (घृत) को मथा अन्न की आहुति से प्रदीप्त अग्नि को हम प्राप्त करें। वह अग्नि बहने वाले जल के समान ज्वालाओं को प्रवाहित करते हैं। उनकी दर्शनीय किरणें आकाश से ऊपर की ओर उठा करती हैं।
The way cows moves to their cow shed, we the stationary and movable living beings move to him with gifts-offerings. Then flames of Agni-fire rises in the sky like the high tides in the ocean.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- पराशर शाकत्य-शालतया,  देवता :-अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
वनेषु जायुर्मर्तेयु मित्रो वृणीते श्रष्टिं रोजेवाजुर्यम्। 
क्षेमो न साधु: क्रतुर्न भद्रो भुवत्स्वायीर्होता हव्यवाट्॥1॥
जैसे राजा सर्वगुण सम्पन्न वीर पुरुष का आदर करते हैं, वैसे ही अग्ण्यजात और मनुष्यों के मित्र अग्निदेव यजमान पर अनुग्रह करते हैं। अग्रिदेव पालक की तरह कर्म साधक, कर्म शील की तरह भद्र, देवों का आवाहन करने वाले और हवि वाहक है। ये अग्रिदेव सम्यक रूप से कल्याणप्रद है।[ऋग्वेद 1.67.1]
जैसे राजा सर्वगुण सम्पन्न पराक्रमी मनुष्य का सम्मान करता है वैसे ही वनों में रचित जयशील अग्नि यजमान पर कृपा करते हैं। वह अग्नि चालक के समान अनुकूल और ज्ञान के तुल्य कल्याणकारी हो।
The manner in which the king honour a brave & virtuous person, Agni Dev, friendly with humans obliges the hosts-holding Yagy. Agni Dev is devoted like a gentle man, invites the demigods-deities and carries the offerings to them. Agni Dev is beneficial to all in all possible manners.
हस्ते दधानो नृम्णा विश्वान्यमे देवान्धाग्नु निषीदन्। 
विदन्तीमत्र नरो धियंधा हृदा यत्तष्टान्मन्त्राँ अशंसन्॥2॥
अग्नि देव सारा हव्य रूप धन अपने हाथ में धारण करके गुफा के बीच छिप गये। ऐसा होने पर देवता लोग भयभीत हो गये। नेता और कर्म धारयिता देवों ने जिस समय हृदय धूत मंत्र द्वारा अग्निदेव की स्तुति की, उस समय उन्होंने अग्निदेव को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.67.2]
अग्नि अन्नों के साथ में ग्रहण कर गुफ़ा हृदय में बैठ गये, इसके परिणाम स्वरूप देवता भयभीत हो गए। इस गुफा स्थिति अग्नि को प्रतापी लोग हृदय से उत्पन्न प्रार्थनाओं के उच्चारण द्वारा पाते हैं।
Agni Dev hide himself in a cave with the offerings, resulting in fear amongest the demigods-deities. In this situation the demigods-deities prayed to him with the help of "Hraday Dhoot Mantr" and thus he appeared before them.
अजो न क्षां दाधार पृथिवीं तस्तम्भ द्यां मन्त्रेभिः सत्यैः। 
प्रिया पदानि पश्चो पाहि विश्वायुरग्ने गुहा गुहं गाः॥3॥
सूर्य देव की तरह अग्नि देव पृथ्वी और अन्तरिक्ष को धारण किये हुए हैं। साथ ही सत्य मंत्र द्वारा आकाश को धारित करते हैं। विश्वायु या सर्वान्न अग्निदेव! पशुओं की प्रिय भूमि की रक्षा करें और पशुओं के चरने की अयोग्य गुफा में जायें।[ऋग्वेद 1.67.3]
जैसे सूर्य धरा को धारण करता है वैसे ही अग्नि ने अंतरिक्ष को धारण किया है। हे अग्ने! तुम पशुओं की सुरक्षा करो। समस्त प्राण धारियों के धातु रूप गुफा में प्रवेश करते हैं।
Agni Dev holds the earth and the ether-space like the Sun. Truth too helps in holding the sky. Hey Agni Dev! Please protect the cattle & their grazing fields and settle in a cave where the cattle do not graze.
य ई चिकेत गुहा भवन्तमा यः ससाद धारामृतस्य। 
वि ये चृतन्त्यृता सपन्त आदिद्वसूनि प्र ववाचास्मै॥4॥
जो पुरुष गुहास्थित अग्निदेव को जानता है और जो यज्ञ को धारण करने वाले अग्निदेव के पास जाते हैं तथा जो लोग यज्ञ का अनुष्ठान करते हुए अग्निदेव की स्तुति करते हैं, ऐसे लोगों के आवाहन करने पर अग्निदेव तुरन्त प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 1.67.4]
जो गुफा में स्थित अग्नि को जानता है, जो यज्ञों के अनुष्ठान में अग्नि को प्रदीप्त करता है, उस यजमान को वे शीघ्र ही धन देते हैं।
Agni Dev appears before those who pray to him, ignite fire for the Yagy and knows him present in the cave. 
वि यो वीरुत्सु रोधन्महित्वोत प्रजा उत प्रसूष्वन्तः। 
चित्तिरपां दमे विश्वायुः द्मेव धीराः संमाय चक्रुः॥5॥
जिन अग्निदेव ने औषधियों में उनके गुणों को स्थापित किया और मातृ रूप औषधियों में उत्पद्यमान पुष्प, फल आदि निहित किए, मेधावी पुरुष जल मध्यस्थ और ज्ञान दाता उन्हीं विश्वायु अग्निदेव की गृह की तरह पूजा करके कर्म करते हैं।[ऋग्वेद 1.67.5]
जो अग्निदेव औषधियों में अपना गुण स्थापित करते हैं, जो लताओं से अनेक पुण्य फल आदि को प्रकट करने वाले हैं। ज्ञानी पुरुष जलों में स्थित उस आयु रूप अग्नि की अर्चना करके शरण प्राप्त करते हैं।
The intellectuals, intelligent prays to Agni Dev and seeks shelter under him, who is established in water, fills the medicinal plants with their properties, grows leaves, flowers & fruits in them.
Fire is a product of water-a compound of hydrogen & oxygen. Still water is used to douse fire.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- पराशर शात्तय,  देवता :- अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
श्रीणन्नुप स्थाद्दिवं भुरण्युः स्थातुश्चरथमन्व्र्यू(न्व् + र्यू)र्णौत्। 
परि यदेवामेको विश्वेषां भुवद्देवो देवानां महित्वा॥1॥ 
हव्य धारक अग्नि देव हव्य द्रव्य को मिलाकर आकाश में उपस्थित करते हैं तथा स्थावर जंगम वस्तुओं और रात्रि को अपने तेज द्वारा प्रकाशित करते हैं। सारे देवों में अग्रिदेव प्रकाशमान और स्थावर जंगम आदि में व्याप्त हैं।[ऋग्वेद 1.68.1]
शीघ्र कार्यकारी अग्नि स्थावर, जंगम, वस्तुओं को परिपक्व कर क्षितिज को ग्रहण हुए। यहाँ किरणों को अंधकार से पृथक करने के कारण अन्य देवताओं से यह अधिक महिमावान हो गये।
The carrier of offerings Agni Dev mixes them and present them in the sky and light the fixed and movable objects with his aura-brightness. Agni Dev is most bright amongest the demigods-deities and present in all fixed and movable objects.
At a certain temperature each & every object start burning.
आदित्ते विश्वे क्रतुं जुषन्त शुष्काद्यद्देव जीवो जनिष्ठाः। 
भजन्त विश्वे देवत्वं नाम ऋतं स्पन्तो अमृतमेवैः॥2॥
हे अनिदेव! आपके सूखे काष्ठ से जलकर प्रकट होने पर सारे यजमान आपके कर्म का अनुष्ठान करते हैं। आप अमर हैं। स्तोत्रों द्वारा आपकी सेवा करके वे सब प्रकृत देवत्व को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.68.2]
हे अग्ने! शुष्क लकड़ी के घर्षण से तुम उत्पन्न हुए। इसके बाद ही वे सब देवता यज्ञ में पहुँच सके। तुम अविनाशी के अनुगमन से ही वे सब देवत्व को प्राप्त कर सके।
Hey Agni Dev! You appear from the dry wood and all the hosts busy with Yagy, perform the endeavours pertaining to you. You are immortal. By worshiping-praying you, they all attain divinity. 
ऋतस्य प्रेषा ऋतस्य धीतिर्विश्वायुर्विश्वे अपांसि चक्रुः। 
यस्तुभ्यं दाशाद्यो वा ते शिक्षात्तस्मै चिकित्वान्रयिं दयस्व॥3॥
अग्नि देव के यज्ञ स्थल में आने पर उनकी स्तुति और यज्ञ किये जाते हैं। अग्नि देव विश्वायु हैं। सब यजमान अग्रिदेव का यज्ञ करते हैं। हे अग्निदेव! जो आपको जानकर आपके निमित्त हवि देता है, उसे आप जानकर हवि प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.68.3]
समस्त प्राणी अग्नि की शिक्षा से अनुष्ठान करते हैं। अग्नि ही पवन हैं। उन्हीं का अनुष्ठान किया जाता है। हे अग्ने! तुम्हारा ज्ञान ग्रहण कर जो तुमको हव्य प्रदान करता है, 
On being present in the Yagy site, Agni Dev is worshiped and Yagy are performed. Agni is the air flowing through the universe-life giving force, force vital. Hey Agni Dev! One who make offerings, knowing you well-aware of you, is recognised by you and then you accept the offerings made by him.
होता निषत्तो मनोरपत्ये स चिन्न्वासां  पती रयीणाम्। 
इच्छन्त रेतो मिथस्तनू षु सं जानत स्वैर्दक्षेरमूराः॥4॥
हे अग्निदेव! आप मनु के पुत्रों में देवों के आह्वानकारी रूप से अवस्थान करते हैं। आप ही उनके धन के अधिपति हैं। उन्होंने पुत्र उत्पन्न करने के लिए अपने शरीर में शक्ति की इच्छा की थी अर्थात् आपके अनुग्रह से उन्होंने पुत्र प्राप्ति की थी। वे मोह का त्याग करके पुत्रों के साथ त्रिकाल तक जीवित रहे।[ऋग्वेद 1.68.4]
उसी को जानकर तुम धन प्रदान करो। मनुष्यों में होता रूप से स्थित अग्नि ही प्रजाओं और धनों के दाता हैं। उन्होंने तुम्हारी शक्ति से संतान की उत्पत्ति की इच्छा की और शक्ति से संतान से युक्त हुए। 
Hey Agni Dev! You are present in the sons of Manu and governs their wealth. Manu prayed-desired for having sons and you obliged him. Manu rejected all desired, relinquished himself and exists in all three forms of time, past, present & future.
Agni Dev appeared from the Agni Kund and gave pudding to king Dashrath leading to incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu as Bhagwan Shri Ram, Bharat Ji, Lakshman Ji and Shatrughan. Dropadi and her brother Dhrashtdhyumn too appeared form Agni Kund. Bhagwan Shri Ram handed over Maa Sita to Agni Dev, prior to trace the golden deer leaving behind image of Maa Sita.
पितुर्न पुत्राः क्रतुं जुषन्त श्रोषन्ये अस्य शासं तुरासः। 
वि राय और्णोहुरः पुरुक्षुः पिपेश नाकं स्तृभिर्दमूनाः॥5॥
जिस प्रकार पुत्र पिता की आज्ञा का पालन करता है, उसी प्रकार यजमान लोग तत्काल अग्निदेव की आज्ञा सुनते और अग्नि द्वारा आदिष्ट कार्य करते हैं। अनन्त धनशाली अग्निदेव यजमानों के यज्ञ के द्वार रूप धन को प्रदान करते हैं। यज्ञ रत गृह में अग्नि आसक्त हैं और उन्होंने ही आकाश को नक्षत्रों से युक्त किया।[ऋग्वेद 1.68.5]
पिता की आज्ञा मानने वाले पुत्र के समान जिन मनुष्यों ने अग्नि का आदेश पालन किया, उनके लिए अग्नि ने अन्न और धनों के भण्डार खोल दिये। अनुष्ठान कार्य वाले घरों में आसक्त अग्नि ने ही नक्षत्रों से क्षितिज को अलंकृत किया है।
The Yajman-Ritvij, hosts performing Yagy immediately follow the directives of Agni Dev like an obedient son and perform the jobs-responsibilities given to them. As a result-sequence, Agni Dev grants infinite wealth to those conducting Yagy. Agni Dev is devoted to those house holds who are engaged in Agni Hotr, Yagy, Hawan. It's he who placed-fixed the constellations in the sky.
Constellations are responsible for the events in the life a person as per his deeds-destiny.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- पराशर शात्तय,  देवता :- अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
शुक्रः शुशक्वाँ उषो न जारः पप्रा समीची दिवो न ज्योतिः। 
परि प्रजात: क्रत्वा बभूथ भुवो देवानां पिता पुत्रः सन्॥1॥
हे शुक्लवर्ण अग्निदेव! आप उषा प्रेमी सूर्य की तरह सर्व पदार्थ प्रकाशक हैं। अग्रिदेव प्रकाशक सूर्य की ज्योति की तरह अपने तेज से द्यौ और पृथ्वी को एक साथ परिपूर्ण करते हैं। हे अग्निदेव! आप प्रकट होकर अपने कर्मों द्वारा सम्पूर्ण संसार को परिव्याप्त करें। आप देवों के पुत्र होकर भी उनके पिता हो, क्योंकि पुत्र की तरह देवों के दूत हो और पिता की तरह देवों को हव्य देते हो।[ऋग्वेद 1.69.1]
उषा प्रेमी सूर्य के तुल्य प्रकाशमान, कांतिमान तुम सूर्य के प्रकाश के तुल्य क्षितिज धरा को पूर्ण करते हो। हे अग्ने! तुम प्रकट होकर शक्ति से मति को ग्रहण हुए। तुम दूत रूप से देवों के पुत्र-तुल्य होते हुए भी हव्य देकर उनके पिता समान हो गये हो।
Hey fair colour Agni Dev! You make the objects visible like the Sun. You fill the universe and the earth with your energy-aura. Hey Agni Dev! Let the world be pervaded by you. Though the son of demigods-deities, you are like their messenger and make-carry offerings to them like a father. 
वेध अदृप्तो अग्निर्विजान्नूधर्न गोनां स्वाद्मा पितूनाम्। 
जने न शेव आहूर्य: सन्मध्ये निषत्तो रण्वो दुरोणे 
हे मेघावी, निरहंकार और कर्मा-कर्म ज्ञाता अग्निदेव! गौ के वन की तरह सारा अन्न स्वादिष्ट करते हैं। संसार में हितैषी पुरुष की तरह अग्निदेव यज्ञ में आहूत होकर यज्ञ स्थल में आकर प्रीति प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.69.2]
बुद्धिमान, अहंकार रहित गौ के दुग्ध के समान स्वादिष्ट अन्न को बरसाने वाले अग्निदेव यज्ञ-कर्म वाले घर में बुलाने पर आकर यजमान को सुखी करते हैं।
Hey intelligent, free from ego, aware of all endeavours-deeds, Agni Dev! You make the entire food grains tasty like the grazing field of cows. You come to the Yagy like a benefactor and oblige with love & affection.
पुत्रो न जातो रण्वो दुरोणे वाजी न प्रीतो विशो वि तारीत् । 
विशो यदह्वे नृभिः सनीळा अग्रिर्देवत्वा विश्वान्यश्याः
घर में पुत्र की तरह उत्पन्न होकर अग्निदेव आनन्द प्रदान करते हैं तथा अश्व की तरह हर्षान्वित होकर युद्ध में शत्रुओं का अतिक्रम करते हैं। जब मैं मनुष्यों के साथ में समान निवासी देवों को बुलाता हूँ, तब आप अग्रिदेव! सब देवों का देवत्व प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.69.3]
गृह में रचित हुए पुत्र के समान सुखदायक अग्नि भर पेट भक्षण कर लेने वाले अश्व के तुल्य मनुष्यों को कष्ट से पार लगाते हैं। मनुष्यों के साथ अनुष्ठान से गृह में रचित हुए पुत्र के समान सुखदायक अग्नि भर पेट भक्षण कर लेने वाले अश्व के तुल्य मनुष्यों को कष्ट से पार लगाते हैं।
Agni Dev appears in the house and grant happiness like the son and over power the enemy in battle field-war like a horse. Hey Agni Dev! You attain divinity with all demigods-deities and remove the worries, troubles, pains, tortures of the humans.
नकिष्ट एता व्रता मिनन्ति नृभ्यो यदेभ्यः श्रुष्टिं चकर्थ। 
तत्तु ते दंसो यदहन्समानैर्नृभिर्यद्युक्तो विवे रपांसि
राक्षसादि आपके व्रत आदि को विध्वंस नहीं करते, क्योंकि आप उन व्रतादि में वर्तमान यजमानों को यज्ञ के फलरूप सुख प्रदान करते हैं। यदि राक्षसादि आपके व्रत का नाश करें, तो अपने साथी नेता मरुद्गणों के साथ आप उन बाधा उत्पन्न करने वाले लोगों को भगा देते हैं।[ऋग्वेद 1.69.4]
जब मैं मनुष्यों के साथ अनुष्ठान से विश्वदेवों का आह्वान करता हूँ, तब वे अग्नि ही सर्व भेद-भाव को ग्रहण हो जाते हैं। हे अग्ने! जिन कर्म नियमों से तुमने प्राणियों को सुखी किया, वे तुम्हारे नियमों को नहीं तोड़ते। तुमने ही पाप रूप असुरों को मनुष्यों के सहयोग से मारकर भगा दिया।
The demons do not disturb your fasts, since you grant comforts to the hosts-Ritvij. In case the demons create trouble, you repel them with the help of Marud Gan. 
The demons too need help from Agni Dev for performing Agni Hotr, Yagy etc. They too follow the rules & regulations meant for the Yagy.
उषो न जारो विभावोस्रः संज्ञातरूपश्चिकेतदस्मै। 
त्मना वहन्तो दुरो व्यृण्वन्नवन्त विश्वे स्वर्दृशीके
उषा प्रेमी सूर्य देव की तरह अग्नि देव ज्योतियुक्त और निवास हेतु हैं। अग्निदेव का रूप संसार जानता है। ये अग्निदेव उपासकों को जानते हैं। इनकी किरण स्वयं हव्य वहन करके यज्ञ गृह के द्वार पर फैलती है, तदनन्तर दर्शनीय आकाश में प्रविष्ट करती है।[ऋग्वेद 1.69.5]
उषा प्रेमी सूर्य के समान प्रकाशमान, प्रख्यात अग्नि मुझे जानें। अग्नि की सुन्दर लपटें, हवि वाहक हुई अनुष्ठान गृह के दरवाजे खोलकर क्षितिज मार्ग को जाती हैं।
Agni Dev too possess aura-energy like the Sun. The world is aware of this fact. Agni Dev recognises his devotees. His aura spreads in the Yagy site carrying the offerings and then enters the space-sky.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (70) :: ऋषि :- पराशर शात्तय,  देवता :- अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
वनेम पूर्वीरर्यो मनीषा अग्निः सुशोको विश्वान्यश्याः। 
आ दैव्यानि व्रता चिकित्वाना मानुषस्य जनस्य जन्म ॥
जो शोभन दीप्ति से युक्त अग्निदेव ज्ञान के द्वारा प्रापणीय हैं, जो सारे देवों के कर्म और मनुष्यों के जन्म रूप कर्म के विषय को समझकर सारे कार्यों में लिप्त हैं, ऐसे अग्निदेव से हम प्रभूत अन्न माँगते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .1]
हे मनुष्यों! हम अनेक अन्न की इच्छा वाले श्लोकों को पढ़ें। श्रेष्ठ ज्योतिर्मान अग्नि देवता मनुष्यों के कर्मों और सृष्टि के रूप को जानते हुए सभी में व्यापक है।
We request Agni Dev, who is enlightened, knows the previous deeds of both the  the demigods & humans to provide us food grains, in the form of  Shloks-hymns.
गर्भो यो अपां गर्भो वनानां गर्भश्च स्थातां गर्भश्चरथाम्। 
अद्रौ चिदस्मा अन्तर्दुरोणे विशां न विश्वो अमृतः स्वाधीः 
जो अग्निदेव जल, वन, स्थावर और जंगम के बीच अवस्थान करते हैं, उन्हें यज्ञ गृह और पर्वत के ऊपर लोग हवि प्रदान करते हैं। जैसे प्रजा वत्सल राजा प्रजा के हित के लिए कार्य करते हैं, वैसे ही अमर अग्निदेव हमारे हितकर कार्यों को सम्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .2]
हे अग्ने! जल, वन, स्थावर, जंगम के बीच विद्यमान अमर ध्यान परिपूर्ण प्राणधारियों को आत्मा के समान तुमको यजमान के गृह या पर्वत पर हलि देते हैं।
The devotees make offerings to the immortal Agni Dev at the site of the Yagy & the mountains, who is present-resides in water, forests, fixed and movable living beings. He acts as the caring king who make efforts to protect his populace.
स हि क्षपावाँ अग्नी रयीणां दाशद्यो अस्मा अरं सुक्तै:
 एता चिकित्वो भूमा नि पाहि देवानां जन्म मर्तांश्च विद्वान्
मंत्रों द्वारा जो यजमान अग्निदेव की यथेष्ट स्तुति करता है, उसे रात्रि में प्रदीप्त अग्निदेव धन देते हैं। हे सर्वज्ञाता अग्निदेव! आप देवों और मनुष्यों के जन्म को जानते हो, इसलिए समस्त जीवों का पालन करें।[ऋग्वेद 1.70 .3]
रात्रि में अग्नि श्रेष्ठ वंदना करने वालों को धन देते हैं। हे चैतन्य देव अग्नि! तुम देवता और प्राणियों को जानते हुए उनकी रक्षा करने वाले हो।
Blessed with intuition, hey Agni Dev you grant wealth at night, to those devotees-hosts, who prays-worship you. You are aware of all the previous deeds of  demigods-deities and the humans. Hence you support-nourish them.
वर्धान्यं पूर्वीः क्षपो विरूपाः स्थातुश्च रथमृतप्रवीतम्। 
अराधि होता स्वर्निषत्तः कृण्वन्विश्वान्यपांसि सत्या
विभिन्न-स्वरूप होकर भी उषादेवी और रात्रि अग्निदेव का वर्द्धन करती हैं। स्थावर और जंगम पदार्थ यज्ञ वेष्टित अग्नि देव को वर्द्धिन करते हैं। देवों के आह्वानकारी वही अग्निदेव पूजन स्थान में बैठकर और सारे यज्ञ कर्मों को सत्य फल सम्पन्न करके पूजित होते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .4]
अनेक रूप वाली उषा और रात जिस अग्नि को बढ़ाती है, वह अग्नि स्थावर और जंगम प्राणियों के लिए यज्ञ में प्रतिष्ठित कर, श्रेष्ठ कर्मों के अनुष्ठानों द्वारा प्रसन्न किये जाते हैं।
Usha Devi and the night helps Agni Dev grow. Praying-worshiping with the help of fixed (stationary, inertial) and movable objects-materials, the devotees make Agni Dev grow-happy with the help of Yagy (Agnihotr, Hawan, holy sacrifices in fire).
गोषु प्रशस्तिं वनेषु धिषे भरन्त विश्वे बलिं स्वर्ण:। 
वि त्वा नरः पुरुत्रा सपर्यन्पितुर्न जिव्रेर्वि वेदो भरन्त
हे अग्रिदेव! हमारे काम में आने योग्य गौओं को उत्कृष्ट करें। सारा संसार हमारे लिए ग्रहण योग्य उपासना रूप धनों से पूर्ण करें। अनेक देव स्थानों में मनुष्य आपकी विविध प्रकार से पूजा करते हैं तथा वृद्ध पिता के पास से पुत्र की तरह आपके पास से धन प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .5]
हे अग्ने! तुम्हारे गुण रश्मियों और नक्षत्रों में भी दृढ़ हैं। वे सभी हमको ज्योति प्रदान करते हैं। अनेक कालों से मनुष्य तुम्हारी अर्चना करता आया है और बूढ़े पिता से पाने के तुल्य तुमसे धन पाता रहा है। 
Hey Agni Dev! Please make the cows excellent, useful to  us. Let the whole world be full of the materials used by us for prayers-worship. Humans make offerings, prayers in various temples-places of worship by different means-modes. Let us obtain riches-money just the way, a son get it from his old parents.
साधुर्न गृध्नुस्तेव शूरो यातेव भीमस्त्वेषः समत्सु। 
साधक की तरह अग्निदेव धन अधिकृत करते हैं। अग्निदेव धनुर्द्धर की तरह शूर, शत्रु की तरह भयंकर और युद्ध क्षेत्र में तेजस्विता की प्रति मूर्ति होते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .6]
वे अग्नि परोपकारी के तुल्य शुभ इच्छा वाले, शस्त्र चलाने वाले के तुल्य पराक्रमी, तुल्य विकराल और रण क्षेत्र में साक्षात तेज हैं। 
Agni Dev authorises-grants wealth like a devotee-practitioner. He is brave like a bow-arrow shooter, fierce and  full of energy in the war-battle fied.
(Normally a Shlok  has two lines, but this one has just one, might be missing. Trying to get full version.)
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- पराशर, शात्तय,  देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
उप प्र जिन्वन्नुशतीरुशन्तं पतिं न नित्यं जनयः सनीळा:। 
स्वसारः श्यावी मरुषी  मजुष्ञ्चित्रमुच्छन्तीमुषसं न गावः
जिस प्रकार से स्त्री पति को प्रसन्न करती है, वैसे ही एक स्थान वर्तिनी और आकांक्षिणी भगिनी रूपिणी अँगुलियाँ अभिलाषी अग्निदेव को हव्य प्रदान द्वारा प्रसन्न करती हैं। पहले उषा कृष्णवर्णा और पीछे शुभ्रवर्णा होती है। उन उषा की जैसे किरणें सेवा करती हैं, वैसे ही सारी अँगुलियाँ अग्निदेव की सेवा करती हैं।[ऋग्वेद 1.71.1]
स्नेह पूर्ण भार्याओं के काम्यपतियों को ग्रहण करने के तुल्य समान संगठित रहने वाली उंगलियाँ अग्नि को हर्षित करती हैं काले रंगवाली, फिर पीले और अरुण रंग वाली उषा की जैसे रश्मियाँ सेवा करती हैं वैसे ही उंगलियाँ अग्नि की सेवा करती हैं।
The manner in which a loving wife makes her husband happy, the fingers serve the Agni Dev, together-unitedly, by making offerings. Usha-the day break is dark in colour initially and later becomes bright-shinning bearing fair colour.
वीळु चिदृळ्हा पितरो न उक्थैरद्रिं रुजन्नङ्गिरसो रवेण। 
चक्रुर्दिवो बृहतो गाआपस्मे अहः स्वर्विविदुः केआपुस्त्राः
हमारे अङ्गिरा नाम के पितरों ने मंत्र द्वारा अग्निदेव की स्तुति करके बली और दृढ़ाङ्ग पणि नामक असुर को स्तुति शब्द द्वारा ही नष्ट किया था और हमारे लिए महान् द्युलोक का मार्ग प्रशस्त किया। इसके बाद ही उन्होंने सुखकर दिवस, आदित्य और पणि द्वारा अपहृत गौओं को पाया था।[ऋग्वेद 1.71.2]
हमारे पूर्वज अंगिरा ने मंत्रों द्वारा अग्नि की वंदना की और पणि नामक दैत्य को नाद से ही नष्ट कर दिया। तब आसमान के रास्ते में दिन में ज्योति रूप सूर्य और ध्वज रूपी किरणों को हमने प्राप्त किया।
Our ancestor-Pitr Angira prayed to Agni Dev and killed the demons called Bali & Pani, just by reciting Mantr (words) & cleared our path to the outer universe, allowing the comfortable Sun light to reach us. Its only then that they recovered the cows, abducted by the demons. 
दधन्नृतं धनयन्नस्य धीतिमादिदर्यो दिधिष्यो ३ विभुत्रा:। 
अतृष्यन्तीरपसो यन्त्यच्छा देवाञ्जन्म प्रयसा वर्धयन्ती:
अहिरावंशियों ने यज्ञ रूप अग्नि देव को धन की तरह धारित किया। अनन्तर धन को तेज और पुष्टि को धारित करने की इच्छुक प्रजाओं ने हवियों द्वारा देवों की पुष्ट करते हुए अग्नि देव को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.71.3]
अंगिरा ने यज्ञाग्नि को धारण किया और अग्नि को ही तपस्या का लक्ष्य बनाया। फिर मनुष्यों ने अग्नि की स्थापना की और उसे धारण कर सेवारत हुए। उनकी हवियाँ देवों और मनुष्यों की वृद्धि करती हुई अग्नि को ग्रहण होती हैं।
The descendants of Angira wore the holy fire as a wealth. Thereafter the populace, masses, common men served Agni Dev and boosted his shine by making offerings and attained him.
मथीद्यदीं विभृतो मातरिश्वा गृहेगृहे श्येतो जेन्यो भूत्। 
आदी राज्ञे न सहीयसे सचा सन्ना दूत्यं १ भृगवाणो विवाय
मातरिश्वा या व्यान वायु के विलोड़ित करने पर शुभ्र वर्ण होकर अग्नि देव समस्त यज्ञ गृह में प्रकट होते है। उस समय जिस तरह मित्र राजा प्रबल राजा के पास अपने आदमी को दूत कर्म में नियुक्त करता है, उसी तरह भृगु ऋषि की तरह यज्ञ सम्पादक यजमान अग्नि को दूत कर्म में नियोजित करता है।[ऋग्वेद 1.71.4]
मातरिश्वा द्वारा अग्नि के मथे जाने पर यह उज्ज्वल ज्योतिवाले घर-घर में प्रकट हुए। फिर भृगु के समान मनुष्यों ने इस अग्नि को दूत बनाया, जैसे कमजोर राजा अधिक शक्तिशाली राजा के पास दूत भेजता है।
On churning by Matrishva, bright Agni Dev appeared in the house meant for Yagy. The way a weak king send his messenger to a friendly powerful king, the host performing Yagy like Bhragu Rishi seek Agni Dev as an ambassador.
महे यत्पित्र ई रसं दिवे करव त्सरत्पृशन्यश्चिकित्वान्। 
सृजदस्ता धृषता दिद्युमस्मै स्वायां देवो दुहितरि त्विरषिं धात्
जिस समय यजमान महान् और पालक देवता को हव्य रूप रस देता है, उस समय अग्निदेव स्पर्शन कुशल राक्षस आदि आपको हविर्वाहक जानकर भाग जाते हैं। बाण प्रक्षेपक अग्निदेव भागते हुए राक्षसों के ऊपर अपने रिपु संहारी धनुष से दीप्तिशाली बाण फेंकते हैं और प्रकाशशाली अग्निदेव अपनी पुत्री उषा में अपना तेज स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 1.71.5]
तब उसके श्रेष्ठ कार्य को जानकर दैत्यादि पलायन करते हैं। उस समय अग्नि अपने प्रदीप्त बाणों को उन पर चलाते और सूर्य रूप से उषा में तेज दृढ़ करते हैं।
The moment the host carrying out Yagy make offerings in the form of liquids, the demons runs away. Agni Dev shot arrows over them with his shinning-stunning bow. Then Agni Dev fills Usha Devi-the daughter of Sun with energy, like his own daughter.
स्व आ यस्तुभ्यं दम आ विभाति नमो व दाशादुशतो अनु द्युन्।   
वर्धो अग्नि वयो अस्य द्विबर्हा यासद्राया सरथं यं जुनासि
हे अग्निदेव। अपने यज्ञ गृह में मर्यादा के साथ जो यजमान आपको चारों ओर प्रज्वलित करता है और अनुदिन अभिलाषा करके आपको अन्न प्रदान करता है। हे दो मध्यम उत्तम स्थानों में वर्धित अग्नि देव! आप उनका अन्न वर्धित करते हैं। जो आपकी प्रेरणा से रथ सहित युद्ध में जाता है, वह धन से युक्त होता है।[ऋग्वेद 1.71.6]
हे अग्ने! अपने गृह में तुम्हें प्रदीप्त करने वाला याचक तुमको हविरूप अन्न प्रदान करता है। तुम उसे अपनी दोगुनी शक्ति से परिपूर्ण करो। तुम्हारी शिक्षा से जो मनुष्य द्वन्द्व में जाता है वह धन ग्रहण करता है। 
Hey Agni Dev! You grant wealth-riches to the host-devotee who lit you all around by making offerings in the form of food grains. You increase his stock of food grains with double speed. One who goes to the battle ground with his chariot (arms and ammunition) inspired by you, gains wealth.
अग्नि विश्वा अभि पृक्षः सचन्ते समुद्रं न स्त्रवतः सप्त यह्वी:। 
न जामिभिर्वि चिकिते वयो नो विदा देवेषु प्रमतिं चिकित्वान्
जिस प्रकार विशाल सातों नदियाँ समुद्र को प्राप्त होती हैं, उसी प्रकार हव्य का अन्न अग्नि देव को प्राप्त होता है। अन्य महान् देवों के लिए यह हाविष्यान्न पर्याप्त है अथवा नहीं, यह हम नहीं जानते। इसलिए आप अन्नादि वैभव हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.71.7]
जैसे सातों सरिताएँ सागर में जा मिलती हैं वैसे ही सभी हवियाँ अग्नि में जा मिलती हैं। हमारा अन्न सम्बन्धी भी नहीं पा सकते। अतः देवगणों से हमको अधिक मात्रा में धन दिलाओ। (जिससे हम उसे संबंधियों तथा अन्य लोगों को दे सकें।)
The way the vast seven rivers join the ocean, the offerings in the form of food grains are obtained by Agni Dev. We are unaware of the fact, whether the offerings made by us are sufficient for the demigods-deities or not. Therefore, you provide us with food grains & amenities which are sufficient in quantity.
आ यदिषे नृपतिं तेज आनट्छुचि रेतो निषिक्तं द्यौरभीके। 
अग्निः शर्धमनवद्यं  युवानं स्वाध्यं जनयत्सूदयच्च
अग्नि देव का विशुद्ध और दीप्तिमान तेज अन्न  प्राप्ति के लिए मनुष्य पालक अथवा  यजमान आदि में व्याप्त है। उसी तेज द्वारा अग्रिदेव गर्भ निषित्त वीर्य बलवान् प्रशस्य युवक और शोभनकर्मा सन्तानों को जन्म दें और उस बलवान् अनिन्द्य युवा शोभन कर्म करने वाले को यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों में प्रेरण करें।[ऋग्वेद 1.71.8]
जब मनुष्यों के स्वामी अग्नि ने अन्न के लिए तेज धारण किया, तब उसने क्षितिज के गर्भ में बीज को डाला। इससे अनिद्य युवा, उत्तम कर्म वाले मरुत रचित हुए, जिन्हें वृष्टि के लिए प्रेरित किया।
The tremendous energy possessed by Agni Dev is present in the humans. He utilise this to seed strong and virtuous progeny and inspire the progeny to conduct Yagy Karm (endeavours).
मनो न योऽध्वनः सद्य एत्येकः सत्रा सूरो वस्व ईशे। 
राजाना मित्रावरुणा सुपाणी गोषु प्रियममृतं रक्षमाणा
मन की तरह शीघ्रगामी जो सूर्यदेव स्वर्गीय पद में अकेले जाते हैं, वे तुरन्त ही विविध धन प्राप्त करते हैं। शोभन और सुबाहु मित्र और वरुणदेव हमारी गौओं के प्रीतिकर और अमृत तुल्य दूध की रक्षा करते हुए अवस्थान करें।[ऋग्वेद 1.71.9]
मन के समान द्रुतगति वाले, मेधावी लोगों को दाता सुन्दर भुजाओं वाले सखा और वरुण हमारी गौओं के श्रेष्ठ और अमृत तुल्य दूध की रक्षा करें। 
Sury Dev who moves fast like the innerself-Man,  becomes alone in his heavenly path and gets various kinds of wealth. Let Mitr & Varun Dev protect the excellent milk of our cows.
मा नो अग्रे सख्या पित्र्याणि प्र मर्षिष्ठा अभि विदुष्कविः सन्। 
नभो न रूपं जरिमा मिनाति पुरा तस्या अभिशस्तेरधीहि
हे अग्निदेव! हमारी पैतृक मित्रता नष्ट न करें, क्योंकि आप भूत दर्शीं और वर्तमान विषय के ज्ञाता हैं। जिस प्रकार से सूर्य की किरणें अन्तरिक्ष को ढँक लेती हैं, उसी प्रकार वृद्धावस्था हमारा विनाश करती है। विनाश कारण वृद्धावस्था जिस प्रकार न आने पाये, वैसा करें।[ऋग्वेद 1.71.10]
हे अग्ने! सर्वज्ञाता और मेधावी तुम हमारी-पैतृक मित्रता को न भूलो। वृद्धावस्था कायर के तुल्य आकार हमको समाप्त करता है। अत: वह हमारे नाश को न आवें, उससे पूर्व ही वह उपाय करो। 
Hey Agni Dev! Please maintain our family friendship. You are aware of the past and present events. Please do something so that we are not affected by the old age.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- पराशर, शात्तय,  देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
नि काव्या वेधसः शश्वतस्कर्हस्ते दधानो नर्या  पुरूणि।
अग्निर्भुवद्रयिपती रयीणां सत्रा चक्राणो अमृतानि विश्वा
ज्ञानी नित्य अग्निदेव की स्तुति आरम्भ करें अथवा नित्य ब्रह्मा के मंत्र अग्निदेव ग्रहण करते हैं। ये मनुष्यों के हित साधक धन हाथ में धारण करते हैं। अग्निदेव स्तुति कर्त्ताओं को अमृत या सुवर्ण प्रदान करते हैं। ये ही सर्वोच्च धन के अधिपति हैं।[ऋग्वेद 1.72.1]
मनुष्य की भलाई करने वाले अग्निदेव अनेक सा धन हाथ में लिए हुए हैं। वे ईश्वर के ज्ञान से समस्त रमणीक धनों को रचित करते हुए समृद्धियों के स्वामी होते हैं।
The enlightened pray-worship Agni Dev utilising the Mantr meant for the worship of Brahma Ji. Agni Dev keeps money in his hands for the welfare of the humans. He grants elixir or gold to the worshippers. He is the ultimate keeper of riches-wealth.
अस्मे वत्सं परि षन्तं न विन्दन्निच्छन्तो विश्वे अमृता अमूराः। 
श्रमयुवः  पदव्यो धियंधास्तस्थुः पदे परमे चार्वग्रेः
समस्त अमरण धर्मा देवगण और मोह रहित मरुद्गण, अनेक कामना करने पर भी प्रिय और सर्वव्यापी अग्निदेव को नहीं पा सके। पैदल चलते-चलते थककर और अग्नि प्रकाश को लक्ष्य कर अन्त में वे लोग अग्निदेव के घर में उपस्थित हुए।[ऋग्वेद 1.72.2]
हमारी प्रिय अग्नि की कामना होते हुए भी अमर और सुमति वाले देवताओं ने उन्हें सही ढंग से नहीं जाना। तब वे थके हुए पैरों से चलते हुए, ध्यानपूर्वक अग्नि के स्थान में पहुँचे।
Immortal demigods-deities and relinquishes-detached Marud Gan could not reach Agni Dev. Then they walked to his abode guided by the light produced by him.
तिस्त्रो यदग्रे शरदस्त्वामिच्छुचिं घृतेन शुचयः संपर्यान्। 
नामानि चि यज्ञियान्यसूदयन्त तन्वः सुजाताः
हे दीप्तिमान् अग्निदेव! दीप्तिमान् मरुतों ने तीन वर्ष तक आपकी घृत से पूजा की। अनन्तर उन्हें यज्ञ में प्रयोग योग्य नाम और उत्कृष्ट अमर शरीर प्राप्त हुआ।[ऋग्वेद 1.72.3]
हे अग्ने! जब मुरुतों ने तीन वर्ष तक तुम्हारा घृत से पूजन किया तब उन्होंने घृत योग्य नामों को धारण कर उच्च देवों में उत्पन्न हो, अमर तत्व को प्राप्त किया।
Hey shinning Agni Dev! Brilliant Marud Gan prayed-worshipped you with the help of Ghee. Thereafter, they attained suitable titles-names for carrying out Yagy and attainted immortal bodies.
आ रोदसी बृहती वेविदानाः प्र रुद्रिया जभ्रिरे यज्ञियासः। 
विदन्ममर्तो नेमधिता चिकित्वानग्निं पदे परमे तस्थिवांसम्
यज्ञार्ह देवों ने विशाल द्युलोक और पृथ्वी में विद्यमान रहकर रुद्र या अग्निदेव के उपयुक्त स्तोत्र किए। मरुद्रणों ने इन्द्रदेव के साथ उत्तम स्थान में निहित अग्निदेव को जानकर उसे प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.72.4]
सर्वश्रेष्ठ धरा और आकाश का ज्ञान कराते हुए पूजनीय मरुतों ने अग्नि के योग्य श्लोकों को भेंट किया, तब उन्होंने श्रेष्ठ स्थान में दृढ़ अग्नि को पाया।
The demigods-deities recited suitable Strotr-hymns in the honour of Agni Dev stationed over the earth & the heavens. Marud Gan attained excellent position close to-proximity of Indr Dev by praying-worshipping Agni Dev.
संजानाना उप सीदन्नभिज्ञु पत्नीवन्तो नमस्यं नमस्यन्। 
रिरिकांसस्तन्वः कृण्वत स्वाः सखा सख्युर्निमिषि रक्षमाणाः
हे अग्निदेव! देवता आपको अच्छी तरह जानकर बैठ गये और अपनी स्त्रियों के साथ सम्मुखस्थ जानुयुक्त अग्नि की पूजा की। अनन्तर मित्र अग्निदेव को देखकर, अग्नि देव के द्वारा
रक्षित, मित्र देवों ने अग्निदेव के शरीर का शोषण कर यज्ञ किया।[ऋग्वेद 1.72.5]
देवगण दत्तचित्त हुए जांघ के बल बैठे और भार्याओं युक्त उनकी अर्चना की। फिर अग्नि को मित्र जानकर शोषण कर अनुष्ठान किया और अपने शरीरों की सुरक्षा की। 
Hey Agni Dev! Having recognised-understood you, the demigods-deities set in Yog postures over their thighs and prayed-worshiped you. Thereafter, the demigods-deities performed Yagy for protecting their bodies.
त्रिः सप्त यद्गुह्यानि त्वे इत्पदाविदन्निहिता यज्ञियास:।
तेभी रक्षन्ते अमृतँ सजोषाः पशूञ्च स्थातृञ्चरथं च पाहि
हे अग्निदेव! आपके अन्दर निहित एकविंशति (21) निगूढ़ पदों या यज्ञों को यजमानों ने जाना है और उन्हीं से आपकी पूजा करते हैं। आप भी यजमानों के प्रति उसी प्रकार स्नेह युक्त होकर उनके पशु और स्थावर जंगम की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.72.6]
हे अग्ने! तुममें स्थित जिन इक्कीस गूढ़ पदों को देवताओं ने प्राप्त किया, वे उनसे अपनी रक्षा करते हैं। हे अग्ने! तुम पशुओं तथा स्थावर-जंगम की रक्षा करो।
Hey Agni Dev! 21 intricate stanzas-hymns available with you, were obtained the demigods-deities and they prayed-worshiped you with them. You should protect the fixed and movable living beings with the help of these hymns. 
विद्वाँ अग्ने वयुनानि क्षितीनां व्यानुषक्छुरुधो जीवसे धाः। 
अन्तर्विद्वाँ अध्वनो देवयानानतन्द्रो दूतो अभवो हविर्वाट्
हे अग्निदेव! समस्त जानने योग्य विषयों को जानकर प्रजाओं के जीवन धारण के लिए क्षुधा निवृत्ति करें। आकाश और पृथ्वी पर जिस मार्ग से देवलोक जाते हैं, यह जानकर और आलस्य का त्याग कर दूत रूप से हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.72.7]
हे अग्ने! प्राणियों के व्यवहारों के ज्ञाता तुमने जीवन के लिए अन्नों की स्थापना की तथा देव मार्गों को जानते हुए तुम निरालस्य हुए, हविवाहक दूत बने।
Hey Agni Dev! You should know every thing, ought to be known and reject your hunger for carrying on life. Accept the offerings by rejecting laziness and identify the routes through which one can move to the heavens from the sky and the earth.
स्वाध्यो दिव आ सप्त यह्वी रायो दुरो व्यृतज्ञा अजानन्। 
विदद्गव्यं सरमा दृळहमूर्वं येना नु कं मानुषी भोजते विट्
हे अग्निदेव! शोभन कर्मयुक्ता विशाल सात नदियाँ द्युलोक से निकली हैं। ये सारी नदियाँ अग्निदेव द्वारा स्थापित हैं। आपकी प्रेरणा से सरमा ने गायों को ढूँढ़ लिया, जिससे सभी मानवी
प्रजाएँ सुखपूर्वक पोषण पाती हैं।[ऋग्वेद 1.72.8]
हे अग्ने! ध्यान से दृष्टि ऋग्वेद के सिद्धान्तों को जानने वाले ऋषियों ने क्षितिज से निकली सप्त नदियों को धन का द्वार रूप समझा। तुम्हारी शिक्षा से सरमा ने गौओं को खोज लिया जिससे मनुष्यों का पालन होता है।
Hey Agni Dev! The 7 divine rivers established by you, emerged from the heavens are put to pious decent uses. Inspired by you, Sarma traced the cows from which the humans obtain nourishment, comfortably-easily.
आ ये विश्वा स्वपत्यानि तस्थुः कृण्वानासो अमृतत्वाय गाआप्। 
ह्ना महाद्भि: पृथिवी वि तस्थे माता पुत्रैरदितिर्धायसे वेः
जो देवगण समस्त उत्तम कर्मों का सम्पादन कर अमरत्व को प्राप्त करने का रास्ता बनाने हैं, उन सभी उत्तम कर्म करने वाले देवपुत्रों के साथ माता अदिति, सम्पूर्ण पृथ्वी को धारणा पोषण के लिए अपनी महिमा से अधिष्ठित हैं। हे अग्निदेव! स्वयं आप उन देवगणों द्वारा सम्पन्न किए जाने वाले यज्ञ की हवियों को स्वीकार (ग्रहण) करें।[ऋग्वेद 1.72.9]
हे अग्ने! जिन्होंने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा अमर तत्व प्राप्ति का प्रयास किया, उन्हीं के सत्कर्मों से यह पृथ्वी महिमा पूर्वक अपने स्थान पर स्थित है।
Hey Agni Dev!  Dev Mata is establishing-maintaining the earth in its orbit with the help of her sons demigods-deities, providing nourishment to the immortal demigods-deities who are committed to all sorts of virtuous, pious, righteous, Satvik deeds. Hey Agni Dev! You yourself accept the offerings in the Yagy performed by them.
अधिश्रियं नि दधुश्चारुस्मिन्दिवो यदक्षी अमृता अकृण्वन्। 
अध क्षरन्ति सिन्धवो न सृष्टाः प्र नीचीरग्ने अरुषीरजानन्
द्युलोक अर्थात् स्वर्गलोक के अमर देवों ने इस संसार में उत्तम सुन्दर, तेज स्थापित किया और दो नेत्र बनायें, तब प्रेरित नदियों के विस्तार की तरह अवतलित होती देवी उषा को मनुष्य जान पाए।[ऋग्वेद 1.72.10]
देवताओं ने इस लोक में सुन्दर शोभा स्थापित कर आकाश को दो नेत्र दिये। इसके बाद ही प्राणी नदियों के समान नीचे उतरती हुई उषा को जान सकें।
The immortal demigods-deities provided two eyes to the sky with their energy & power. Its only after that Usha Devi could be recognised appearing like the rivers descending from the heavens.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (73) :: ऋषि :- पराशर, शात्तय,  देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
रयिर्न यः पितृवित्तो वयोधाः सुप्रणीतिश्चिकितुषो न शासुः। 
स्योनशीरतिथिर्न प्रीणानो होतेव सद्म विधितो वि तारीत्
पिता के धन की तरह अग्निदेव अन्नदाता हैं; शास्त्रज्ञ व्यक्ति के उपदेश के तुल्य उत्तम प्रेरणा देनेवाले हैं, घर में आये हुए अतिथि की तरह प्रिय और होता की तरह यजमान को घर प्रदान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.73.1]
यह अग्निदेव पैतृक धन के समान प्रदान करते हैं, मेधावी के समान सम्राट हैं। अतिथि के तुल्य प्रिय हैं तथा होता के तुल्य यजमान के गृह की वृद्धि करते हैं।
Agni Dev grants food grains like the wealth of the father. He provide inspiration like a scholar. He is dear like a guest in the house. He boosts the wealth of the Ritvij like a host.
देवो न यः सविता सत्यमन्मा क्रत्वा निपाति वृजनानि विश्वा। 
पुरुप्रशस्तो अमतिर्न सत्य आत्मेव शेवो दिधिषाय्यो भूत्
प्रकाशमान सूर्य की तरह यथार्थदर्शी अग्निदेव अपने कार्य द्वारा समस्त दुःखों से (प्राणियों की) रक्षा करते हैं। यजमानों के प्रशंसित अग्निदेव प्रकृति के स्वरूप की तरह परिवर्तन रहित हैं। अग्निदेव आत्मा की तरह सुखकर हैं। ऐसे अग्निदेव सबके धारणीय है।[ऋग्वेद 1.73.2]
जाञ्चल्यमान सूर्य के तुल्य प्रकाशमान अग्निदेव अपने कार्यों द्वारा रक्षक हैं। मनुष्यों से प्रशंसा पाये हुए वे प्रकृति के तुल्य परिवर्तनशील नहीं हैं। वे आत्मा के समान सन्तोषी और यजमान द्वारा प्राप्त किये जाते हैं।
Agni Dev visualises the reality, pains, worries, sorrow of the living beings like shinning Sury Bhagwan-Sun. He does not change like the nature. He provides solace, peace, tranquillity, comforts like the soul. Every one respect him.
देवो न यः पृथिवीं विश्वधाया उपक्षेति हितमित्रो न राजा। 
पुरःसदः शर्मसदो वीरा अनवद्या पतिजुष्टेव नारी
द्युतिमान् सूर्य की तरह अग्निदेव समस्त संसार को धारित करते हैं। अनुकूल सुहृद् से सम्पन्न राजा की तरह अग्निदेव पृथ्वी पर निवास करते हैं। संसार अग्रिदेव के सामने पितृ गृह में पुत्र की तरह विशुद्ध हैं।[ऋग्वेद 1.73.3]
दीप्तिमान सूर्य के समान संसार के धारक यह अग्नि अनुकूल अनुचरों से सम्पन्न राजा के समान निर्भय हैं। सभी जीव उसके पितृ तुल्य आश्रम में रहते हैं और पतिव्रता प्रशंसित नारी के समान अग्नि का अभिनन्दन करते हैं।
Agni Dev bear-nurtures the whole universe like the shinning Sun. He resides over the earth the king who favours the populace. The universe is like a son for Agni Dev, in his parents house.
तं त्वा नरो दम आ नित्यमिद्धमग्ने सचन्त क्षितिषु ध्रुवासु। 
अधि दधुर्भूर्यस्मिन्भवा विश्वायुर्धरुणो रयीणाम्
हे अग्नि देव! संसार उपद्रव शून्य स्थान पर अपने घर में अनवरत काष्ठ को जलाकर आपकी सेवा करता है। साथ ही अनेक यज्ञों में अन्न भी प्रदान करता है। आप विश्वायु अथवा सर्वान्न होकर हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.73.4]
हे अग्ने! उपद्रव रहित घरों में प्रदीप्त हुए तुम्हारी मनुष्यगण सेवा करते हैं। देवगणों ने तुम में अत्यधिक तेज भरा है तुम सबके प्राण रूप हो। हमारे लिए सभी धनों को प्रदान करो।
Hey Agni Dev! The universe continuously serve you at disturbances free places-houses. It provides food grains in the Yagy as well. You should grant us riches-wealth, amenities by becoming nurturer. 
वि पृक्षो अग्ने मघवानो अश्युर्वि सूरयो ददतो विश्वमायुः। 
सनेम वाजं समिथेष्वर्यो भागं देवेषु श्रवसे दधानाः
हे अग्निदेव! धनशाली यजमान अन्न प्राप्त करे। जो विद्वान् आपकी स्तुति करते और हव्य प्रदान करते हैं, वे दीर्घ आयु प्राप्त करें। हम युद्ध के मैदान में शत्रुओं का अन्न लाभ करें।अनन्तर यश के लिए देवों का अंश देवों को अर्पण करें।[ऋग्वेद 1.73.5]
हे अग्ने! सम्पन्न यजमान अन्न ग्रहण करें। हविदाता पूर्ण आयु ग्रहण करें। अनुष्ठान के लिए देवों को हवि प्रदान करते हुए हम संग्राम में शत्रु के अन्न को ग्रहण करें।
Hey Agni Dev! Wealthy hosts-Ritvij should attain food. Those scholars, Pandits, enlightened who worship should get enhanced longevity. We should gain food by winning the enemies and make offerings to the demigods-deities.
ऋतस्य हि धेनवो वावशानाः स्मदूध्नी: पीपयन्त द्युभक्ताः। 
परावतः सुमतिं भिक्षमाणा वि सिन्धवः समया सस्रुरद्रिम्
नित्य दुग्धशालिनी और तेजस्विनी गायें अग्निदेव की अभिलाषा करके यज्ञस्थान में अग्निदेव को दुग्ध पान कराती हैं। प्रवहमाना नदियाँ अग्निदेव के पास अनुग्रह करके पर्वत के देश से प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 1.73.6]
प्रतिदिन दूध देने वाली गौएँ इच्छा पूर्वक अनुष्ठान स्थान में अग्नि को दूध से सींचती हैं। कल्याणकारिणी सरिताएँ, पर्वत के पास से बहती हुई अग्नि के सम्मुख झुकती हैं।
Every day, the milking cows provide milk to Agni Dev, at the Yagy site.  Flowing rivers move to plains from the mountainous regions, due to the mercy-blessings of Agni Dev.
त्वे अग्ने सुमतिं भिक्षमाणा दिवि श्रवो दधिरे यज्ञियासुः। 
नक्ता च चक्रुरुषसा विरूपे कृष्णं च वर्णमरुणं च सं धुः
हे द्युतिमान् अग्निदेव! यज्ञाधिकारी देवों ने आपके अनुग्रह की याचना करके आपके ऊपर हव्य स्थापित किया है। अनन्तर भिन्न-भिन्न अनुष्ठान के लिए उषा और रात्रि को भिन्न रूपिणी किया है। रात्रि को कृष्णवर्ण और उषा को अरुणवर्ण किया है।[ऋग्वेद 1.73.7]
हे अग्ने! बुद्धि की याचना करते हुए पूजनीय देवताओं ने तुमको यशस्वी बनाया है। अनेक रूप वाली रात और उषा को अनेक अनुष्ठानों के लिए नियुक्त किया है। इन दोनों के काले और अरुण रंग हैं।
Hey shinning Agni Dev! The demigods-deities entitled for the offerings have honoured-revered you. Thereafter, they appointed Usha and the night for various rites, Agnihotr, Hawan etc. making Usha bright & Ratri-night black-dark.
यान्राये मर्तान्त्सुषूदो अग्ने ते स्याम मघवानो वयं च। 
छायेव विश्वं भुवनं सिसक्ष्याप्रिवान्रोदसी अन्तरिक्षम्
आप जो मनुष्यों को अर्थ लाभ के लिए यज्ञ कर्म में प्रेरित करते हैं, वे और हम धनवान होंगे। आपने आकाश, पृथ्वी और अन्तरिक्ष को परिपूर्ण किया है। साथ ही आपने इस समस्त संसार पर को छाया की तरह रक्षित किया है।[ऋग्वेद 1.73.8]
हे अग्ने! तुम जिन्हें धन के लिए आकृष्ट करते हो वे और हम धनवान हों। तुम सभी संसार के संग छाया के समान रहते हो। तुम्हीं ने क्षितिज, पृथ्वी और अंतरिक्ष को ग्रहण किया।
You inspired the humans for conducting Yagy for earnings-riches. We will become wealthy by conducting Yagy. You have completed the sky, earth and the space-ether, protecting them side by side.
अर्वद्धिरग्ने अर्वतो नृभि र्नद्दन्वीरैर्वीरान्वनुयामा त्वोताः। 
ईशानासः पितृवित्तस्य यो वि सूरयः शतहिमा नो अश्युः
हे अग्निदेव! हम आपके द्वारा सुरक्षित होकर अपने अश्व से शत्रु के अश्व का वध करेंगे। अपने योद्धाओं के द्वारा शत्रु के योद्धाओं का और अपने वीरों द्वारा शत्रुओं के वीरों का वध करेंगे। हमारे विद्वान् पुत्र पैतृक धन के स्वामी होकर सौ वर्ष जीवन का भोग करें।[ऋग्वेद 1.73.9]
हे अग्ने! तुम्हारी रक्षा में रहते हुए हमने पूर्वजों के धन को प्राप्त किया। हमारे अश्वों से शत्रु के अश्वों को, प्राणी से प्राणियों को, योद्धा से योद्धा को हटाते हुए स्तोता को शतायु प्राप्त हो।
Hey Agni Dev! Having being protected by you we will strike the enemies riding our horses, killing their horses. Our soldiers will kill the enemies warriors. Let our progeny-sons enjoy the ancestral wealth under your patronage for 100 years.
एता ते अग्न उचथानि वेधो जुष्टानि सन्तु मनसे हृदे च। 
शकेम रायः सुधुरो नं तेऽधि श्रवो देवभक्तं दधानाः
हे मेधावी अग्निदेव! हमारे सब स्तोत्र आपके मन और अन्तःकरण को प्रिय हों। हम देवों प्रदत्त धन, वैभव और यश को धारण करते हुए सुख को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.73.10]
हे मेधावी अग्ने! ये श्लोक तुमको प्रिय हों। देवताओं के दिये हुए धन को धारण करते हुए हम तुम्हारे धन वाहक रथ का दृढ़ करने में समर्थ हों।
Hey enlightened Agni Dev! Let our prayers, worship, hymns, appeals please you and your innerself. Let us enjoy the comforts, amenities granted by the demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- गौतमो राहुगणा, देवता :-अग्नि, छन्द :- गायत्री 
उपप्रयन्तो अध्वरं मन्त्रं वोचेमाग्रये। 
आरे अस्मे च शृण्वते
जो अग्निदेव दूर रहकर भी हमारी स्तुति श्रवण करते हैं, यज्ञ में आगमनशील अग्निदेव की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.74.1]
दूर से भी वन्दनाओं को सुनने वाले अग्नि के लिए अनुष्ठान के निकट जाते हुए वन्दना करें।
Though away from us, yet Agni Dev listens to our prayers. We worship Agni Dev who has to arrive to facilitate our Yagy.
No Yagy can be conducted without fire. Its Agni Dev who carries the offerings to the demigods, deities and the Almighty.
यः स्नीहितीषु पूर्व्यः संजग्मानासु कृष्टिषु । 
अरक्षद्दाशुषे गयम्
जो अग्रि देव वधकारिणी शत्रु भूता प्रजाओं के बीच संगत होकर हविदानकारी यजमान के धन की रक्षा करते हैं, उन अग्नि देवता की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.74.2]
जो अग्नि हिंसक स्वभाव वाली प्रजाओं के संगठित होने पर यजमान के गृह की सुरक्षा करते हैं, उनका हम पूजन करते हैं।
We worship-pray Agni Dev who protect our belongings from the violent, cruel enemies.
The demons, giants, Muslims, Christians-Britishers have been restricting the Rishis, Brahmns from conducting prayers, meditation. They are cruel, ruthless, looters. Agni Dev and divine forces protect the people engaged in Yagy, Hawan, Agnihotr and Vedic practices.
उत ब्रुवन्तु जन्तव उदग्रिर्वृत्रहाजनि। 
धनंजयो रणेरणे
शत्रुओं का नाश करने वाले, युद्ध में शत्रुओं को पराजित कर धन जीतने वाले अग्निदेव का प्राकट्य हुआ है। सभी लोग उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.74.3]
अग्नि शत्रु नाशक और युद्ध में धन को जीतने वाली हैं, उनका जयघोष करो।
Agni Dev who destroys the enemies, defeat them in the war and win over their wealth has appeared. All devotees pray-acclaim him. 
यस्य दूतो असि क्षये वेषि हव्यानि वीतये। 
दस्मत्कृणोष्यध्वरम्
हे अग्निदेव! जिस यजमान के यज्ञ-गृह में आप देव-दूत होकर उनके भोजन के लिए हव्य वहन करते हैं, उस घर को आप उत्तम प्रकार से दर्शनीय बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.74.4]
हे अग्ने! जिस भवन में दूत बने तुम देव गणों के लिए हवि वहन करते हो उस भवन में यज्ञ को अभिष्टदायक बनाते हो।
Hey Agni Dev! The house-Yagy site, where you accept the offerings meant for the demigods-deities, becomes capable of fulfilling the desires of the devotees-hosts.
तमित्सुहव्यमङ्गिरः सुदेवं सहसो यहो। 
जना आहुः सुबर्हिषम्
हे बल के पुत्र अग्निदेव! आप यजमान को सुन्दर हवि द्रव्य से युक्त, सुन्दर देवों से और श्रेष्ठ यज्ञ से परिपूर्ण करते हैं, ऐसा लोगों का कहना है।[ऋग्वेद 1.74.5]
हे शक्ति के पुत्र अग्ने! तुम यजमान को सुन्दर हवि से परिपूर्ण सुन्दर देवों से तथा सुन्दर अनुष्ठान से पूर्ण करते हो।
Hey Agni Dev-the son of Maa Shakti-might! Its believed that you decorate the hosts-devotees, those performing Yagy are granted excellent wealth, comforts making the demigods-deities record their presence there.
आ च वहासि ताँ इह देवाँ उप प्रशस्तये। 
हव्या सश्चन्द्र वीतये
हे ज्योतिर्मय अग्निदेव! इस यज्ञ में स्तुति ग्रहण करने के लिए देवों को हमारे समीप लावें और भोजन करने के लिए उन्हें हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.74.6]
हे सुखदाता अग्ने! उन देवताओं को वंदनाएँ सुनने और हवि प्राप्त करने के लिए यहाँ लाओ।
Hey brilliant, comforts granting Agni Dev! Please let the demigods-deities accompany you in this Yagy to accept our prayers and let them dine here.
न योरुपब्दिरश्व्यः शृण्वे रथस्य कच्चन। 
यदग्ने यासि दूत्यम्
हे अग्रिदेव! जिस समय आप देवों के दूत बनकर जाते हैं, उस समय आपके गतिशाली रथ के अश्व का शब्द सुनाई नहीं देता।[ऋग्वेद 1.74.7]
हे अग्ने! जब तुम दूत बनकर चलते हो तब तुम्हारे गतिशील रथ या अश्व की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ती।
Hey Agni Dev! When you move as the ambassador of the demigods-deities the sound of your accelerated chariot & the horses is not heard.
त्वोतो वाज्यह्रयोऽभि पूर्वस्मादपरः।
प्र दाश्वँ अग्रे अस्थात्
जो पुरुष पहले निकृष्ट है, वह आपको हव्य दान करके आपके द्वारा रक्षित और अन्न-युक्त होकर ऐश्वर्यशाली बनता है।[ऋग्वेद 1.74.8]
हे अग्ने! पहले अरक्षित रहा यजमान तुमसे रक्षित होने पर पराक्रम से युक्त साहसी हुआ वृद्धि को प्राप्त होता है।
The incompetent, inactive person too become useful, active, capable after making offerings in holy fire and attain your protection, amenities-wealth and sufficient food grains. He makes progress and become brave.
उत द्युमत्सुवीर्यं बृहदग्रे विवाससि। 
देवेभ्यो देव दाशुषे
हे प्रकाशमान अग्निदेव! जो यजमान देवों को हव्य प्रदान करता है, उसे प्रभूत, दीप्त और वीर्यशाली धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.74.9]
हे अग्ने! तुम हवि दाता के लिए सुन्दर तेज और बल को देव गणों से प्राप्त कराते हो।
Hey shinning-brilliant Agni Dev! You manage to grant sufficient wealth to the devotees-hosts, who make offerings for the sake of demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- गौतमो राहुगण, देवता :-अग्नि, छन्द :- गायत्री
जुषस्व सप्रथस्तमं वचो देवप्सरस्तमम्। 
हव्या जुह्वान आसनी
हे अग्निदेव! मुख में हवियों को ग्रहण करते हुए हमारे द्वारा देवों को अतीव प्रसन्न करने वाली स्तुति वचनों को आप ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.75.1]
हे अग्ने! मुख में हवियों को ग्रहण कर हमारे द्वारा देवताओं को अत्यन्त हर्षित करने वाले श्लोकों को स्वीकृत करो।
Hey Agni Dev! While accepting the offerings in your mouth, please accept our prayers which makes the demigods-deities very happy.
अथा ते अङ्गिरस्तमाग्ने वेधस्तम प्रियम्। 
वोचेम ब्रह्म सानसि
हे अङ्गिरा ऋषि के पुत्रों और मेधावियों में श्रेष्ठ अग्निदेव! हम आपके ग्रहण योग्य और प्रसन्नता दायक स्तोत्र सम्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.75.2]
अंगिराओं में महान अग्ने! हम स्नेह पूर्वक तुम प्रतापी की वंदना करते हैं।
Best-excellent amongest the sons of Angira Rishi and the intellectuals-enlightened , hey Agni Dev! We sing-recite hymns & verses in your honour to please you.
कस्ते जामिर्जनानामग्ने को दाश्वध्वरः। 
को ह कस्मिन्नसि श्रितः
हे अग्निदेव! मनुष्यों में आपका योग्य मित्र कौन है? आपका यज्ञ कौन कर सकता है? आप कौन हैं? कहाँ रहते है?[ऋग्वेद 1.75.3]
हे अग्ने! प्राणियों में तुम्हारा सखा कौन है? तुम्हारा पूजक कौन है? तुम कौन हो तथा किसके सहारे हो?
Hey Agni Dev! Who amongest the humans is fit-able for your friendship? Who can conduct Yagy for you? Who are you? Where do you live?
त्वं जामिर्जनानामग्ने मित्रो असि प्रियः। 
सखा सखिभ्य ईड्य:
हे अग्निदेव! आप सबके बन्धु हैं, आप प्रिय मित्र हैं। आप मित्रों के स्तुति पात्र मित्र हैं।[ऋग्वेद 1.75.4]
हे अग्ने! तुम मनुष्यों में सबके बन्धु हो। पूजक के रक्षक और मित्र के लिए पूजनीय हो।
Hey Agni Dev! You are brotherly, friendly to all. You are the friend of friends, who deserve prayers-worship.
यजा नो मित्रावरुण यजा देवाँ बृहत्।
अग्रे यक्षि स्वं दमम्
हे अग्निदेव! हमारे लिए मित्र और वरुण देव की अर्चना करें और देवों की पूजा करें। विशाल यज्ञ को सम्पादित करें और अपने यज्ञ गृह में गमन करें।[ऋग्वेद 1.75.5]
हे अग्ने! तुम हमारे लिए सखा, वरुण तथा अन्य देवताओं की अर्चना करो। अपने अनुष्ठान वाले गृह में वास करो।
Hey Agni Dev! Please conduct prayers meant for the demigods, deities & Mitra Varun. Initiating the large Yagy, please enter-reside your site of Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (76) :: ऋषि :- गोतमो राहूगण, देवता :- अग्नि,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
का त उपेतिर्मनसो वराय भुवदग्रे शंतमा का मनीषा। 
को वा यज्ञैः परि दक्षं त आप केन वा ते मनसा दाशेम
हे अग्निदेव! आपको प्रसन्न करने का क्या उपाय है? आपकी आनन्ददायिनी स्तुति कैसी है? आपकी क्षमता का पर्याप्त यज्ञ कौन कर सकता है? कैसी बुद्धि के द्वारा आपको हव्य प्रदान किया जाय?[ऋग्वेद 1.76.1]
हे अग्ने! तुम्हारा हृदय संतुष्ट करने के लिए तुम्हारे निकट कौन सी वन्दना करें जो तुमको सुख प्रदान करने वाली हो?तुम्हारे सामर्थ्य के योग्य कौन सा अनुष्ठान करें? किस मति से तुम्हें हवि प्रदान करें? 
Hey Agni Dev! what are the ways & means to appease you?! What type of prayer you love? Who can conduct Yagy as per your capability? What type mentality should be adopted by us to make offerings to you?
एह्यग्न इह होता नि पीदादब्यः सु पुरएता भवा नः। 
अवतां त्वा रोदसी विश्वमिन्वे यजा महे सौमनसाय देवान्
हे अग्निदेव! इस यज्ञ में पधारें। देवों को बुलाकर बैठे। आप हमारे नेता बनें; क्योंकि आपकी कोई हिंसा नहीं कर सकता। सारा आकाश और पृथ्वी आपकी रक्षा करता है एवं आप देवी को अत्यन्त प्रसन्न करने के लिए पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.76.2]
 हे अग्ने! यहाँ इस यज्ञ में "होता" रूप से पधारो। तुम पीड़ा रहित हुए हमारे लिए अग्रणी बनो। सभी व्यापक आकाश और धरती तुम्हारी रक्षा करें। तुम हमको श्रेष्ठ प्रसाद प्राप्त कराने के लिए देवों की अर्चना करो।
Hey Agni Dev! Join our Yagy along with the demigods-deities. Be our leader, since no one can harm you. You are devoted to Devi Bhagwati and worship-pray to her to appease her.
प्र सु विश्वान्रक्षसो धक्ष्यग्रे भवा यज्ञानामभिशस्तिपावा।
अथा वह सोमपतिं हरिभ्यामातिथ्यमस्मै चकृमा सुदाव्ने
हे अग्रिदेव! समस्त राक्षसों का दहन करें तथा हिंसाओं से यज्ञ की रक्षा करें। सोम रक्षक इन्द्रदेव का उनके हरि नाम के दोनों अश्वों के साथ इस यज्ञ में ले आयें। हम सुफल दाता इन्द्रदेव का अतिथि सत्कार कर सकें।[ऋग्वेद 1.76.3]
हे अग्ने! राक्षसों को दग्ध करो। अनुष्ठान को हिंसकों से बचाओ। फिर सोम स्वामी इन्द्रदेव को अश्वों से युक्त हमारे आतिथ्य के लिए लाओ।
Hey Agni Dev destroy-vanish all demons (people with demonic tendencies) and protect our Yagy from all types of violence. Let Indr Dev, the protector of Somras, accompany you along with his two horses named Hari. Let us welcome Indr Dev who grants all pious-virtuous desires.
प्रजावता वचसा वह्निरासा च हुवे नि च सत्सीह देवैः। 
वेषि होत्रमुत पोत्रं यजत्र बोधि प्रयन्तर्जनितर्वसूनाम्
हविभक्षक अग्रिदेव का हम मनुष्यगण स्तोत्रों से आवाहन करते हैं।  यजन के योग्य है आग्रदेव! आप यज्ञ में प्रतिष्ठित और पोता रूप में पोषित किये जाने वाले हैं। आप धनों को उत्पन्न करने वाले हैं। आप धन के नियामक और जन्मदाता होकर हमें जागृत करें।[ऋग्वेद 1.76.4]
तुम अग्रणी का मैं आह्वान करता हूँ। तुम देवताओं के साथ यज्ञ में उपस्थित रहते हो। हे पूज्य! तुम होता और पोता को शक्ति प्रदान करने वाले हो, तुम धनोत्पादक हो, धन के लिए मुझ पर कृपा दृष्टि रखो।
We invite Agni Dev who accept our offerings by the recitation of hymns. Hey Agni Dev! you deserve prayers-worship. You are both the host and the deity during the Yagy. You create wealth, regulate it the one to wake up-warn us, to use it properly.
यथा विप्रस्य मनुषो हविर्भिर्देवाँ अयजः कविभिः कविः सन्। 
एवा होतः सत्यतर त्वमद्याग्रे मन्द्रया जुह्वा यजस्व
हे अग्नि देव! आप होता रूप व सत्यस्वरूप हैं। आप बुद्धिमानों में श्रेष्ठ मेघावी रूप से ज्ञानवान मनुष्यों की हवियों द्वारा देवों के संग पूजित होते हैं। आप प्रसन्नता प्रदान करने वाली आतुतियों को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.76.5]
 हे अग्ने! तुम सत्य रूप तथा होता रूप हो।  तुमने ऋषियों के सहित मेधावी मनु की हवियाँ देवगणों को ग्रहण कराईं थीं। अतः प्रसन्नता देने वाली जुहू (आहुति) ग्रहण  करें।
You are the embodiment of truth. You are worshipped as a genius & enlightened with the offerings of the humans for the sake of demigods-deities. You accept the offerings granting happiness.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (77) :: ऋषि :- गोतमो राहूगण, देवता :- अग्नि,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
कथा दाशेमाग्रये कास्मै देवजुष्टोच्यते भामिने गीः।
यो मर्त्येष्वमृत ऋतावा होता यजिष्ठ इत्कृणोति देवान्
जो अग्निदेव अमर, सत्यवान् देवाह्वानकारी और यज्ञ सम्पादक हैं तथा जो मनुष्यों के बीच रहकर देवों को हवियुक्त करते हैं, उन अग्निदेव के अनुरूप हव्य हम कैसे प्रदान करेंगे? तेजस्वी अग्निदेव की सब देवों के उपयुक्त किस प्रकार की स्तुति करेंगे?[ऋग्वेद 1.77.1]
अग्नि को किस प्रकार हवि प्रदान करें? कौन सी देव प्रिय वंदना कहें? ये मरण धर्म वाले मनुष्यों के लिए उत्तम अनुष्ठान करने वाले, देवों के लिए अनुष्ठान करते हैं।
What is the procedure for making offerings to Agni Dev, who is immortal, incarnation-embodiment of Truth & one who leads to completion of Yagy, who resides amongest the humans and transfer offerings to the demigods-deities?! How will we perform prayers pertaining to brilliant-glorious Agni Dev, suitable-fit for demigods-deities?! 
 यो अध्वरेषु शंतम ऋतावा होता तमू नमोभिरा कृणुध्वम्।
न अग्निर्यद्वेर्मर्ताय देवान्त्स चा बोधाति मनसा यजाति
जो अग्निदेव यज्ञ में अत्यन्त सुखकारी, यथार्थ दर्शी और देवाह्वानकारी है, उन्हें स्तोत्र द्वारा हमारे अभिमुख करें। जिस समय अग्निदेव मनुष्यों के लिए देवों के पास जाते हैं, उस समय वे देवों को जानते और मन अथवा नमस्कार द्वारा पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.77.2]
यज्ञ के कर्म द्वारा अत्यन्त सुख दायक यज्ञ युक्त होता को नमस्कार करो। देवताओं के पास पहुँचने वाले अग्नि उनको जानते हैं और हृदय से उनको पूजते हैं।
Let Agni Dev, who is realistic, grants extreme pleasure, bliss, comfort and invite demigods-deities come to us. When Agni Dev moves to humans, he identifies the demigods-deities and pray to them via innerself-mentally.
स हि क्रतु स मर्यः स साधुर्मित्रो न भूदद्भुतस्य रथीः।
तं मेधेषु प्रथमं देवयन्तीर्विश उप ब्रुवते दस्ममारी:
अग्रिदेव यज्ञ कर्ता हैं, अग्निदेव संसार के उपसंहारक और जनयिता हैं। मित्र की तरह ये बहुत धन देते हैं। देवाभिलाषी प्रजागण उन दर्शनीय अग्निदेव के पास जाकर उन्हीं को ही यज्ञ का प्रथम देवता मानकर स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.77.3]
अग्नि ही अनुष्ठान, यजमान हैं, वे ही अद्भुत धन ग्रहण कराने वाले मित्र के समान परोपकारी हैं तथा देवताओं की इच्छा करते हैं। अनुष्ठानों में पहले उन्हीं दिव्य कर्म वाले का आह्वान किया जाता है।
Agni Dev is the performer of Yagy and destroyer as well as creator. He provides a lot of money as friend. Those devotees who want to see the demigods goes to him and pray to him as the first demigod-deity.
Prior to performing all prayers-Yagy (Hawan, Agni Hotr) Ganpati is worshipped.
स नो नृणां नृतमो रिशादा अग्निग्गिरोऽवसा वेतु धीतिम्।
तना च ये मघवानः शविष्ठा वाजप्रसूता इषयन्त मन्म
अग्नि देव मनुष्यों के बीच उत्कृष्ट नेता और शत्रुओं के विनाशकारी हैं। अग्रिदेव हमारी स्तुति और अन्य मुक्ति यज्ञ की अभिलाषा करते हैं। जो धनशाली और बलशाली यजमान लोग अन्न प्रदान करके अग्निदेव के मननीय स्तोत्र की इच्छा करते हैं, अग्निदेव उन लोगों की स्तुति की भी इच्छा करें।[ऋग्वेद 1.77.4]
प्राणियों में उत्तम शत्रु भक्षक यह अग्नि हमारी प्रार्थनाओं को चाहें। वे उत्तम यश वाले यश प्रेरित करने के लिए हमारी पूजा वन्दना को स्वीकार करें।
Agni Dev is the best leader and slayer of enemies. Agni Dev has the desire of prayers by us & our liberation-relinquishment. Agni Dev accomplish the desires of those hosts-devotees, who are rich and mighty, make offerings of food grains and accept thier prayers.
एवाग्निर्गोतमेभित्ऋतावा विप्रेभिरस्तोष्ट जातवेदाः। 
स एषु द्युम्ं पीपयत्स वाजं स पुष्टिं याति जोषमा चिकित्वान्
यज्ञयुक्त और सर्वज्ञ अग्निदेव इसी प्रकार मेधावी गौतम आदि ऋषियों द्वारा स्तुत हुए। अग्निदेव ने भी उन्हें प्रकाशमान सोमरस का पान और भोजन कराया। हमारी सेवा जानकर अग्निदेव पुष्टि प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.77.5]
अनुष्ठान परिपूर्ण अग्नि की गोतमों ने वंदना की। सर्व प्राणधारियों के ज्ञाता अग्नि ने कीर्ति और धन की वृद्धि कर पोषण बल की वृद्धि की। वे अग्नि अपने तपस्वी की भक्ति को जानकर कृपा दृष्टि करते हैं।
The intellectual Gautom and the other Rishi Gan performed prayers for Agni Dev. In return Agni Dev too offered them Somras and food. Recognising our prayers, (in response to our prayers) let Agni Dev grant us nourishment.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (78) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री। 
अभि त्वा गोतमा गिरा जातवेदो विचर्षणे। 
द्युम्नैरभि प्र णोनुमः
हे उत्पन्न ज्ञाता और सर्वद्रष्टा अग्निदेव! गौतम वंशीयों ने आपकी स्तुति की है। द्युतिमान स्त्रोत्र द्वारा हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.78.1]
द्युतिमान् :: द्युमत्; bright, brilliant.
हे सर्वभूतों के ज्ञाता द्रष्टा अग्ने! गौतमवंशी तुम्हारे लिए अत्यन्त उज्ज्वल वंदनाओं को मृदु संकल्पों से प्रार्थना करते हैं।
Hey Agni Dev! You are aware o the past. The descendants of Gautom clan have recited prayers in your honour. We too make prayers for you with the help of excellent Strotr-hymns. 
तमु त्वा गोतमो गिरा रायस्कामो दुवस्यति। 
द्युप्रैरभि प्र णोनुमः
धनाकाङ्क्षी होकर गौतम जिन अग्निदेव की स्तुति द्वारा सेवा करते हैं, उन्हीं की, गुण प्रकाशक स्तोत्रों द्वारा हम बार-बार स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.78.2]
धन की इच्छा से गौतम वंश तुम्हारी वंदनाएँ करते हैं। हम भी उज्ज्वल मंत्रों से तुम्हारा पूजन करते हैं।
Gautom Rishi prayed to you with the desire for money. We too recite the hymns like him.
तमु त्वा वाजसातममङ्गिरस्वद्धवामहे।
द्युप्रैरभि प्र णोनुमः
अङ्गिराओं की तरह सर्वापेक्षा अधिकतर अन्नदाता अग्नि देव को हम बुलाते है और द्युतिमान् स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.78.3] 
अत्यंत अन्न प्रदान कर्त्ता तुम्हारा हम अंगिराओं के समान आह्वान करते हैं और उज्जवल मंत्रों से तुम्हारी अर्चना करते हैं।
We pray to Agni Dev for food like the Angira and pray with the help of excellent hymns.
तमु त्वा वृत्रहन्तमं यो दस्यूँरवधूनुषे।
द्युप्नैरभि प्र णोनुमः
हे अग्निदेव! आप दस्युओं, अनार्यों या शत्रुओं को स्थान भ्रष्ट करें। आप सर्वापेक्षा शत्रु हन्ता हैं। द्युतिमान् स्तोत्र द्वारा हम आपकी स्तुति करते है।[ऋग्वेद 1.78.4]
व्यक्तियों को शत्रुओं को कंपाने वाले वृत्र नाशक अग्नि को हम मंत्रों द्वारा प्रणाम करते हैं।
Hey Agni Dev! Please dislocate the dacoits wicked, enemies. You are a better-more competent enemy slayer as compared to others. The enemy is afraid of you.
अवोचाम रहूगणा अग्नये मधुमद्वचः।
द्युम्नैरभि प्र णोनुमः
हम राहूगण वंशीय हैं। हम अग्निदेव के लिए माधुर्य युक्त वाक्य का प्रयोग करते और द्युतिमान् स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.78.5]
राहूगण वंशियों ने अग्नि के प्रति मधुर स्तुतियाँ कीं। उन्हीं के लिए हम प्रकाशित मंत्रों द्वारा वंदना करते हैं।
We the descendents of Ragu Gan pray to Agni Dev with brilient hymns.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (79) :: ऋषि :- गोतमो राहूगण, देवता :- अग्नि,  छन्द :- त्रिष्टुप्, उष्णिक् :- गायत्री। 
हिरण्यकेशो रजसो विसारेऽहिर्धुनिर्वातइव ध्रजीमान्।
शुचिभ्राजा उषसो यशस्वतीरपस्युवो न सत्याः
सुवर्ण केशवाले अग्निदेव हननशील मेघ को कम्पित करते और वायु की तरह शीघ्र गामी हैं। वे सुन्दर दीप्ति से युक्त होकर मेघ से जलवर्षण करना जानते हैं। उषा देवी यह बात नहीं जानतीं। उषा अन्नशाली, सरल और निज कार्य परायण प्रजा के तुल्य हैं।[ऋग्वेद 1.79.1]
अग्नि क्षितिज के तुल्य, विशाल व लहराते हुए साँप के तुल्य स्वर्णिम बालों वाले, उम्र के तुल्य वेग वाले, उत्तम दीप्ति परिपूर्ण तथा उषा के ज्ञाता हैं। वे दायित्व में विद्यमान यशस्विनी स्त्री के तुल्य शोभित हैं।
Agni Dev who has golden coloured hair, shake the clouds and moves with the speed of air. He knows how to cause rains. Usha Devi is unaware of this fact. Usha Devi is like a simple woman, devoted to the welfare of populace, who grants food grains.
आ ते सुपर्णा अमिनन्तँ एवैः कृष्णो नोनाव वृषभो यदीदम्। 
शिवाभिर्न स्मयमानाभिरागात्पतन्ति मिहः स्तनयन्त्यभ्रा
हे अग्निदेव! आपकी और पतनशील किरण मरुतों के साथ मेघ को ताड़ित करती हैं। कृष्णवर्ण और वर्षणशील मेघ गरजते हैं। मेघ सुखकर और हास्य युक्त वृष्टि बिन्दु के साथ आते हैं। जल गिर रहा है और मेघ गरज रहे हैं।[ऋग्वेद 1.79.2]
हे अग्ने! काले बादल रूप वाले वृषभ के गर्जन के समान पंखयुक्त तुम्हारी दामिनी दमककर लुप्त हो गई, तब कल्याणकारी वृष्टि हँसती हुई सी बरसाने लगी और बादलों में तुम गर्जना करने लगे।
Hey Agni Dev! The rays of light falling over you, strike the clouds along with the Marud Gan. Dark & Silver coloured clouds roar and come with rain drops bearing happiness-amusment. Rains fall & the clouds roar-thunderclap.
यदीमृतस्य पयसा पियानो नयन्नृतस्य पथिभी रजिष्ठैः। 
अर्यमा मित्रो वरुणः परिज्म त्वचं पृञ्चन्त्युपरस्य योनौ
जिस समय अग्निदेव वृष्टि जल द्वारा संसार को पुष्ट करते हैं तथा जल के व्यवहार का सरल उपाय दिखा देते हैं, उस समय अर्यमा, मित्र, वरुण और समस्त दिग्गामी मरुद्गण मेघों जलोत्पत्ति स्थान का आच्छादन उद्घाटित कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.79.3]
अनुष्ठान के हव्य से वृद्धि को ग्रहण अग्नि आसान रास्ते से देवगणों को अनुष्ठान में पहुँचाते हैं। तब अर्यमा, वरुण और मरुत दिशाओं में बादलों को संगठित करते हैं।
Agni Dev shows the simple method-way of having rains when he nourish the world with the rain water. At that moment Aryma, Mitr, Varun and all the Marud Gan who move through all the directions show the place of the formation of clouds. 
अग्ने वाजस्य गोमत ईशानः सहसो यहो। 
अस्मे धेहि जातवेदो महि श्रवः
हे बल पुत्र अग्निदेव! आप प्रभूत गो युक्त अन्न के स्वामी हैं। हे सर्वभूतज्ञाता! हमें आप बहुत धन-समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.79.4]
हे शक्ति के पुत्र अग्ने! सब उत्पन्न जीवों के ज्ञाता तुम गवादि धन के दाता हमको अत्यन्त प्रतापी बनाओ।
Hey Agni, the son of Shakti! You are the master of all wealth, cows & the food grains. Aware of all past; hey Agni, grant us enough wealth.
स इधानो वसुष्कविरग्रिरीळेन्यो गिरा। 
रेवदस्मभ्यं पुर्वणीक दीदिहि
दीप्ति युक्त, निवास स्थान दाता और मेधावी अग्निदेव स्तोत्रों द्वारा प्रशंसनीय हैं। हे बहुमुख अग्नि देव! जिस प्रकार हमारे पास धनयुक्त अन्न है, उसी प्रकार दीप्ति प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 1.79.5]
वह प्रकाशवान, धनों के परमात्मा, मेधावी अग्नि सर्वश्रेष्ठ वाणियों से वंदना ग्रहण करते हैं। हे बहुकर्मा! तुम धनों से परिपूर्ण हुए दीप्तिमान होओ।
Agni Dev is honoured-appreciated with the help of sagacious-brilliant hymns-Strotr. You have given us place to live, which is lit, full of light. The way you blessed us with wealth, similarly you enlighten us.
क्षपो राजन्नुत त्मनाग्ने वस्तोरुतोषसः। 
स तिग्मजम्भ रक्षसो दह प्रति 
हे उज्ज्वल अग्निदेव! दिन या रात्रि में स्वयं अथवा प्रजाओं द्वारा राक्षसादि का नाश करें। हे तीक्ष्ण मुख अग्निदेव! राक्षस को दहन करें।[ऋग्वेद 1.79.6]
हे तीक्ष्ण दाढ़ वाले! तुम स्वयं प्रकाशित होते हुए रात्रि, दिवस और उषा काल में भी असुरों को भस्म करो।
Hey bright Agni Dev! Let the populace abolish the demons & the like, whether its the day or the night. Hey sharp mouthed Agni Dev! Burn the demons.
अवा नो अग्न ऊतिभिर्गायत्रस्य प्रभर्मणि।
विश्वासु धीषु वन्द्य
हे अग्निदेव! आप सारे यज्ञों में स्तुति भाजन हैं। हमारी गायत्री द्वारा तुष्ट होकर रक्षण कार्य द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.79.7]
हे सम्पूर्ण कर्मों में पूज्य अग्ने! हमारे द्वारा श्लोक निवेदन करने पर तुम अपने रक्षा के साधनों से हमारी रक्षा करो।
Hey Agni Dev! You are the deity in our Yagy. Be satisfied with our prayers-Gayatri Mantr etc. and protect us.
आ नो अग्ने रयिं भर सत्रासाहं वरेण्यम्।
विश्वासु पृत्सु दुष्टरम्॥
हे अग्निदेव! हमें दारिद्रय विनाशी, सबके स्वीकार योग्य और सारे संग्रामों में धन प्रदान करें। [ऋग्वेद 1.79.8]
हे अग्ने! हमारे लिए सदैव जयशील, दूसरों के द्वारा न जीता जा सके, ऐसे गृहणीय धन को ग्रहण कराओ।
Hey Agni Dev! Remove our poverty and grant us wealth acceptable to all.
आ नो अग्ने सुचेतुना रयिं विश्वायुपोषसम्।
मार्डीकं धेहि जीवसे॥
हे अग्निदेव! हमारे जीवन के लिए सुन्दर ज्ञान युक्त, सुख हेतु भूत और समस्त आयु का पुष्टि कारक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.79.9]
हे अग्ने! हमारे लिए सदैव जयशील, दूसरों के द्वारा न जीता जा सके, ऐसे गृहणीय धन को गृहण कराओ।
Hey Agni Dev! Grant us such wealth which is associated with enlightenment, leads to welfare of all, strengthen our health and give us longevity.   
प्र पूतास्तिग्मशोचिषे वाचो गोतमाग्नेये। 
भरस्व सुम्नयुर्गिरः॥
हे धनाभिलाषी गौतम! तीक्ष्ण ज्वाला युक्त अग्नि देवता की विशुद्ध स्तुति करें।[ऋग्वेद 1.79.10]
हे अग्ने! हमारे जीवन में सुख की इच्छा से तेज लपटों वाले अग्नि के लिए शुद्ध संकल्पों वाली वंदनायें उच्चारित करो।
Hey desirous of wealth, Gautom! Pray to sharp mouthed Agni Dev with pure, pious, virtuous hymns, Mantr, Shloks etc.
यो नो अग्नेऽभिदासत्यन्ति दूरे पदीष्ट सः।
अस्माकमिधे भव॥
हे अग्निदेव! हमारे पास या दूर रहकर जो शत्रु हमारी हानि करता है, उन्हें विनष्ट करते हुए आप हमारा वर्द्धन करें।[ऋग्वेद 1.79.11]
हे अग्ने! निकट या दूर वाला जो भी हमको वश में करना चाहे, उसका पतन हो जाये। तुम हमारी वृद्धि करने वाली बनो।
Hey Agni Dev! Grant us progress by abolishing the enemy close or far away from us.
सहस्राक्षो विचर्षणिरग्नि रक्षांसि सेधति। 
होता गृणीत उक्थ्यः॥
सहस्राक्ष या असंख्य ज्वालायुक्त और सर्वदर्शी अग्निदेव राक्षसों को ताड़ित करते हैं। हमारी ओर से स्तुत होकर देवों के आह्वानकारी अग्निदेव उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.79.12]
सहस्राक्ष :: हजार आँखों वाला, ब्रह्मा, इंद्र, विष्णु, उत्पलाक्षी देवी का पीठ स्थान, देवी भगवती। 
हे सहस्त्राक्ष अग्ने! तुम यशस्वी होता और विशेष दृष्टि वाले हो। तुम असुरों को नष्ट करने वाले हो। हम तुम्हारी वन्दना करते हैं।
Hey Agni Dev! You have thousand of eyes, have flames and see-view everything and destroy demons. Having being prayed by us, Agni Dev invite demigods-deities by praying to them.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (93) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- अग्नि, सोम, छन्द :- अनुष्टप, जगती, त्रिष्टुप्, गायत्री, उष्णिक्, पंक्ति
अग्नीषोमाविमं सु मे शृणुतं वृषणा हवम्। 
प्रति सूक्तानि हर्यतं भवतं दाशुषे॥
हे अभीष्टवर्षी अग्नि और सोमदेव! मेरे इस आह्वान को सुनो, स्तुति ग्रहण करके हव्यदाता को सुख प्रदान करो।[ऋग्वेद 1.93.1]
मनुष्यार्थ परिपूर्ण अग्नि और सोम! तुम दोनों मेरे आह्वान को सुनो। मेरे सुन्दर सङ्कल्पों से प्रसन्न चित्त होओ। मुझ हविदाता के लिए सुख स्वरूप बनो।
Hey Agni & Som Dev! You should be happy with the offerings made by me and grant me pleasure-happiness. 
अग्नीषोमा यो अद्य वामिदं वचः सपर्यति। 
तस्मै धत्तं सुवीर्यं गवां पोषं स्वश्र्व्यम्॥
हे अग्नि और सोम! जो आपकी प्रार्थना करता है, उसे बलवान् अश्व और सुन्दर गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.2]
हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों के प्रति विनती करता हूँ, तुम श्रेष्ठ मनुष्यार्थ धारण कर सुन्दर अश्वों गौओं की वृद्धि करो।
Hey Agni & Som Dev! Grant strong horses and beautiful cows to devotee. 
अग्नीषोमा य आहुतिं यो वां दाशाद्धविष्कृतिम्। 
स प्रजया सुवीर्यं विश्वमायु व्यश्नवत्॥
हे अग्नि और सोम! जो आप लोगों को आहुति और हव्य प्रदान करता है, उसे पुत्र-पौत्रादि के साथ वीर्यशाली आयु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.3]
हे अग्ने! हे सोम! जो तुमको घृत परिपूर्ण हवि प्रदान करें, सन्तानवान हो और पूर्ण आयु को प्राप्त हों।
Hey Agni & Som Dev! Grant sons & grand sons to the devotee who make offerings for you in the holy fire and gifts to the Brahmns-needy. Let the devotee be full of energy and attain full life span of hundred years.
अग्नीषोमा चेति तद्वीर्यं वां यदमुष्णीतमवसं पणिं गाः। 
अवातिरतं बृसयस्य षोऽविन्दतं ज्योतिरेकं बहुभ्यः॥
हे अग्नि और सोम! आपने जिस वीर्य के द्वारा पणि के पास से गोरूप अन्न अपहृत किया था, जिस वीर्य के द्वारा वृसय के पुत्र (वृत्र) का वध करके सबके उपकार के लिए एक मात्र ज्योतिपूर्ण सूर्य को प्राप्त किया था, वह सब हमें मालूम है।[ऋग्वेद 1.93.4]
हे अग्ने! तुम दोनों पराक्रम से प्रसिद्ध तुमने “पणि" की अन्न रूपी गायों को हरण किया। "वृषभ" की संतान को तुमने “पणि" की अन्न रूपी गायों को हरण किया। "वृषभ" की संतान को नष्ट किया और असंख्यों के लिए ही प्रकाश (सूर्य) को प्राप्त किया।
Hey Agni & Som! we are aware that you killed the son of Pani Vratr, got food grains and released Sun light for all
युवमेतानि दिवि रोचनान्यग्निश्च सोम सक्रतू अधत्तम्। 
युवं सिन्धूँरभिशस्तेर वद्यादग्नीषोमावमुञ्चतं गृभीतान्॥
हे अग्नि और सोम! समान कर्म सम्पन्न होकर आकाश में आपने इन उज्ज्वल नक्षत्र आदि को धारित कर दोषा क्रान्त नदियों को प्रकाशित दोष से मुक्त किया।[ऋग्वेद 1.93.5]
हे अग्ने! हे ! तुम दोनों एक समान कर्म वाले हो। तुमने आसमान में ज्योतियाँ स्थापित की हैं। दोनों ने हिंसक वृत्र से सरिताओं को मुक्त कराया। 
Hey Agni & Som Dev! You perform identical deeds. You cleared-released the sky and the rivers from the control of Vratr.
आन्यं दिवो मातरिश्वा जभारामथ्नादन्यं परि श्येनो अद्रेः। 
अग्नीषोमा ब्रह्मणा वावृधानोरुं यज्ञाय चक्रथुरु लोकम्॥
हे अग्नि और सोम! आप में से अग्नि को मातरिश्वा आकाश से लाये और सोम को श्येन पक्षी (बाज) पर्वत की चोटी से उखाड़ कर लायें। इस प्रकार स्तोत्रों अर्थात् प्रार्थनाओं से बढ़ने वालों ने यज्ञ के लिए संसार की आपने वृद्धि की।[ऋग्वेद 1.93.6]
मातरिश्वा :: ऋग्वेद (3,5,9) में यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करने वाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है। मनु के लिये मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर प्रदीप्त किया था। ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध यज्ञकर्ता और गरुड़ के पुत्र का भी यही नाम है।
हे अग्ने! हे सोम! तुम में एक मातरिश्वा क्षितिज से लाये, दूसरे को श्येन पक्षी पर्वत के उत्तर से लाया। तुम श्लोकों से वृद्धि करने वालों ने संसार को अनुष्ठान के लिए विशाल किया।
Hey Agni & Som Dev! Matrishva brought Agni (here it is just fire, not the demigod Agni) from the sky and the Som (the herb used for extracting Somras) was brought by Shyen-a bird from the cliff of northern mountains for conducting Yagy. You enlarged-expanded the universe with the help of rituals, Shloks, Strotr etc. 
Its akin to increasing the community of ritualists, the person performing Yagy, Hawan, Agninhotr etc.
अग्नीषोमा हविषः प्रस्थितस्य वीतं हर्यतं वृषणा जुषेथाम्। 
सुशर्माणा स्ववसा हि भूतमथा धत्तं यजमानाय शं योः॥
हे अग्नि और सोम! प्रदत्त अन्न भक्षण करके; हमारे ऊपर अनुग्रह करें। अभीष्टवर्षी, हमारी सेवा ग्रहण करें। हमारे लिए सुख प्रद और रक्षण युक्त बनें और यजमान के रोग और भय का विनाश करें।[ऋग्वेद 1.93.7]
हे वीर्यवान अग्नि, सोम! तुम हमारी हवियों को स्वीकार करके हर्षित हो जाओ। श्रेष्ठ सुख से युक्त रक्षा करो। मुझ यजमान के रोगों को दूर कर शक्ति दो।
Hey Agni & Som Dev! Oblise us by acepting our offerings in the form of food & eatables. Accept our services and become pleasant and protecting to us, eliminating ailments-diseases & fear. 
यो अग्नीषोमा हविषा सपर्याद्देवद्रीचा मनसा यो घृतेन। 
तस्य व्रतं रक्षतं पातमंहसो विशे जनाय महि शर्म यच्छतम्॥
हे अग्नि और सोम! जो यजमान देव परायण हृदय से हव्य अर्थात् घृत द्वारा अग्नि और सोम की पूजा करता है, उसके व्रत की रक्षा करें। उसे पाप से बचावें तथा उस यज्ञ में लगे हुए व्यक्ति को प्रभूत सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.8]
हे अग्नि और सोम! जो देवताओं में मन लगाने वाला घृत, हवि से तुमको पूजता है, उसकी रक्षा करो। उसे पाप से बचाओ और उसके परिजनों को शरणागत करो।
Hey Agni & Som Dev! Protect the devotee & his endeavours, who make offerings in the Yagy for you. Protect him from sins-wickedness and grant him suffficient commodites to survive granting him shelter along with his relatives. 
अग्नीषोमा सवेदसा सहूती वनतं गिरः। 
सं देवत्रा बभूवथुः॥
हे अग्नि और सोम! आप सारे देवों में प्रशंसनीय, समान धन युक्त और एकत्र आह्वान योग्य हैं। आप हमारी प्रार्थना श्रवण करो।[ऋग्वेद 1.93.9]
हे अग्नि और सोम! आप दोनों देव तत्व से परिपूर्ण हो। हमारी वन्दनाओं को स्वीकार करो।
Hey Agni & Som Dev! You are appreciated-honoured by the demigods-deities. Accept our prayers-worship.
अग्नीषोमावनेन वां यो वां घृतेन दाशति। 
तस्मै दीदयतं बृहत्॥
हे अग्नि और सोम! जो आपको घृत प्रदान करे, उसे प्रभूत धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.10]
हे अग्नि और सोम! लिए घृत से परिपूर्ण हवि दे, उसके लिए तुम जाज्वल्यवान बनो।
Hey Agni & Som Dev! Grant sufficient money-riches to the one who offer Ghee-clarifeid butter in the Yagy for your sake. 
अग्नीषोमाविमानि नो युवं हव्या जुजोषतम्। 
आ यातमुप नः सचा॥
हे अग्नि और सोम! हमारा यह हव्य ग्रहण करें और एक साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.93.11]
हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों हमारी हवियों को स्वीकार करो। हमको प्राप्त होओ। 
Hey Agni & Som Dev! Accept our offerings and come here at the site of the Yagy to oblise us.
अग्नीषोसा पिपृतमर्वतो न आ प्यायन्तामुखिया हव्यसूदः। 
अस्मे बलानि मघवत्सु धत्तं कृणुतं नो अध्वरं श्रुष्टिमन्तम्॥
हे अग्नि और सोम! हमारे अश्वों की रक्षा करें। हमारी क्षीर आदि हव्य की उत्पादिका गायें वर्द्धित हों। हम धनशाली हों; हमें बल प्रदान करें। हमारा यज्ञ धनयुक्त हो।[ऋग्वेद 1.93.12] 
हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों हमारे अश्वों को पराक्रम दो। हवि उत्पन्न करने वाली हमारी धेनुएँ वृद्धि को प्राप्त हों। तुम दोनों हम धनवानों को ऐश्वर्य दो। हमारे यज्ञ को सुखकारी बनाओ।
Hey Agni & Som Dev! Make our horses strong and increase our lot-folk of cows who produce offerings for conducting the Yagy. Both of you grant us riches and make our Yagy blissful to us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (94) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, अग्न्यादयः, आदि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
इमं स्तोममर्हते जातवेदसे रथमिव सं महेमा मनीषया।
आद्रा हि नः प्रमतिरस्य संसद्यग्रे सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हम पूजनीय और सर्वभूतज्ञ अग्निदेव की रथ की तरह, बुद्धि द्वारा इस स्तुति का पाठ करते हैं। अग्नि  की अर्चना से हमारी बुद्धि उत्कृष्ट होती है। हे अग्रिदेव! आपको व हमारी मित्रता होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.1] 
हम धनोत्पादक अर्चनीय अग्निदेव के लिए तुल्य मति से इस श्लोक को महत्व दें। हमारी वन्दनाएँ कल्याणकारी हों। हे अग्ने हम तुम्हारे सखा होकर कभी सन्तापित न हों।
We worship Agni Dev, who is aware of all the events in the universe (past, presents & the future), with wisdom & devotion. Praying Agni Dev enlightens us. Hey Agni Dev! Your blessings will protect us from all evil.
यस्मै त्वमायजसे स साधत्यनर्वा क्षेति दधते सुवीर्यम्। 
स तूताव नैनमश्नोत्यंहतिरग्ने  सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! जिसके लिए आप यज्ञ करते हो, उसकी अभिलाषा पूर्ण होती है और वह उत्पीड़ित न होकर निवास करता, महाशक्ति धारण करता और वृद्धि करता है। उसे कभी दरिद्रता होती। हे अग्निदेव! आपके हमारे मित्र होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.2]
हे अग्ने! जिसके लिए तुम देवअर्चन करते हो उसके अभिष्ट पूर्ण होते हैं। वह किसी का सहारा नहीं ढूँढता। श्रेष्ठ वीर्य से युक्त हुआ यह बढ़ता है तथा निर्धन नहीं रहता। हे अग्ने! तुम्हारी मित्रता होने पर दुःखी न रहे। हे अग्ने! हम तुम्हारे सखा होकर कभी सन्तापित न हों।
Your presence in the Yagy, fulfils all desires of the devotee-person conducting Yagy. He do not need further help from elsewhere. He never face poverty and progress gradually. One under protection will never be hurt.
शकेम त्वा समिधं साधया धियस्त्वे देवा हविरदन्त्याहुतम्। 
त्वमादित्याँ आ वह तान्ह्युश्मस्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! हम आपको अच्छी तरह प्रज्वलित कर सकें। आप हमारा यज्ञ साधन करें; क्योंकि आपको प्रदान किया हुआ हव्य देवता लोग भक्षण करते हैं। आप आदित्यों को ले आवें। उन्हें हम चाहते हैं। हे अग्निदेव! आपके मित्र होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.3]
हे अग्ने! हम तुम्हें प्रदीप्त करने की शक्ति प्राप्त करें। तुम हमारे कार्य को सिद्ध करो। तुम्हें दी गई हवियों को देवता ग्रहण करते हैं। हम आदित्यों की इच्छा करते हैं, उन्हें यहाँ लाओ। तुम्हारी मित्रता ग्रहण कर हम दुःखी न हों।
Hey Agni Dev! We should be able to ignite fire properly. The offerings made to you are diverted to the demigods-deities by you. Please bring Aditys along with you. Shelter under you should protect us from all sins-(pains, worries, troubles, tortures). 
भरामेध्मं कृणवामा हवींषि ते चितयन्तः पर्वणापर्वणा वयम्। 
जीवातवे प्रतरं साधया धियोऽग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! हम ईन्धन इकट्ठा करते हैं। आपको ज्ञात कराकर हव्य देते हैं। हमारी आयुर्वृद्धि के लिए आप यज्ञ को सम्पन्न करें। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.4]
हे अग्ने! तुम्हें चैतन्य करने के लिए हम ईंधन एकत्र करें, हवि सम्पादन करें। तुम हमको कर्मवान बनाकर उच्चतम जीवन की ओर प्रेरित करो। तुम्हारी मित्रता प्राप्त करके हम दुःखी न हों।
Hey Agni Dev! We collect fuel for the Yagy-woods. We make offerings in the fire with your permission-knowledge. Bless us with full life span of 100 years. Your friendship will protect us from all evils-wickedness.
विशां गोपा अस्य चरन्ति जन्तवो द्विपच्च यदुत चतुष्पदन्तुभिः। 
चित्रः प्रकेत उपसो महाँ अस्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
अग्नि की किरणें प्राणियों की रक्षा करती हुई भ्रमण करती हैं। दो पैर और चार पैर के जन्तु अग्नि की किरणों में भ्रमण करते हैं। आप विचित्र दीप्ति से युक्त और सारी वस्तुएँ प्रदर्शित करते हैं। आप उषा से भी महान है। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.5]
दोपाए और चौपाए रूपी प्रजा की रक्षा करने वाले इस अग्नि के दूत रात्रि में घूमते हैं। हे अग्ने! तुम उषा का आभास देने वाले श्रेष्ठ हो। हम तुम्हारे मित्र होने पर पीड़ित न हो।
Rays produced by the fire protect all the organisms. The animals with 2 & 4 legs roam in those directions which are pervaded by your radiations (heat & light). your presence makes every thing visible. You are greater than Usha. Your presence will boost our safety.
Usha does not possess light-radiations of its won.
त्वमध्वर्युक्त होतासि पूर्व्यः प्रशास्ता पोता जनुषा पुरोहितः।
विश्वा विद्वाँ आर्त्विज्या धीर पुष्यस्य सख्ये मा रियामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! आप अध्वर्यु, मुख्य होता, प्रशास्ता, प्रशस्ता पोता और जन्म से ही पुरोहित हैं। ऋत्विज के समस्त कार्यों से आप अवगत हैं। इसलिए आप यज्ञ सम्पूर्ण करें। हे अग्निदेव! आपके रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.6]
अध्वर्यु :: यज्ञ करनेवाला, वैदिक कर्म काण्ड  के चार मुख्य ऋत्विजों में अन्यतम त्रत्विज्‌, जो अपने मुख से तो यज्ञ मंत्रों का उच्चारण करता जाता है और अपने हाथ से यज्ञ की सब विधियों का संपादन भी करता है। अध्वर्यु का अपना वेद यजुर्वेद है, जिसमें गद्यात्मक मंत्रों का विशेष संग्रह किया गया है और यज्ञ के विधानक्रम को दृष्टि में रखकर उन मंत्रों का वही क्रम निर्दिष्ट किया गया है।
धार्मिक मामलों में राजा का सलाहकार, यज्ञ करने वाला पुरोहित, यज्ञ के अवसर पर ऋचा पाठ करने वाला पुरोहित, राजा का शिक्षक। 
Head priest conducting the Yagy, reciting the Mantr, Shlok and make offerings with his hands simultaneously.
यज्ञ करानेवाले श्रेष्ठ यजुर्वेदी पुरोहित, आचार्य, पुरोधा, कर्मकांडी ब्राह्मण, यजुर्वेद के अनुरूप कर्म करनेवाला, यज्ञ का संपादन करनेवाला; one who holds-conducts Yagy in accordance with Yajur Ved, best among the priests, enchanters of Yajur Ved, best amongest the priests. 
हे स्थिर विचार वाले अग्निदेव! तुम अध्वर्यु, प्राचीन होता, प्रशस्ता पोता एवं जन्मजात पंडित हो। ऋत्विजों के प्रत्येक कार्य को जानने वाले तुम कर्मों को पुष्ट करते हो। तुम्हारी मित्रता ग्रहण करके हम पीड़ित न हों।
Hey Agni Dev! You are a Brahmn-Purohit by birth, ever since for ever. You empower the Priests with all-intricate knowledge-methodology, procedures. Your help will shield us from all shocks-tensions.
यो विश्वतः सुप्रतीकः सदृड्ङसि दूरे चित्सन्तळिदिवाति रोचसे।  
रात्र्याश्चिदन्धो  अति देव पश्यस्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्रिदेव! आप सुन्दर हैं, तब भी सबके समान है। आप दूर स्थित हो, तो भी पास ही दीप्यमान हैं। हे अग्निदेव! आप रात के अन्धकार का मर्दन करके प्रकाशित होते हैं। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.7]
हे सुन्दर मुख वाले अग्ने! तुम सभी ओर से समान हो, तुम दूर रहते हुए नजदीक ही दिखाई पड़ते हो। तुम रात्रि के अंधकार को चीरकर देखने वाले हो। तुम्हारे मित्र होकर कभी दुःखी न हों।
Hey Agni Dev! You are beautiful and looks alike from all directions. You glow to remove darkness at night. Your friends never face grief. 
पूर्वो देवा भवतु सुन्वतो रथोऽस्माकं शंसो अभ्यस्तु दूढ्यः। 
तदा जानीतोत पुष्यता वचोऽग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्नि के अङ्गभूत देव! सोम का अभिषव करने वाले यजमान का रथ सबसे आगे करें। हमारा अभिशाप शत्रुओं को पराजित करे। हमारी यह प्रार्थना हमें प्रवृद्ध करे। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहते हुए हम कभी हिंसित नहीं होंगें। [ऋग्वेद 1.94.8]
हे देवगण! सोम-निष्पन्नकर्त्ता का रथ पहले हो। उसके श्लोक से पापमति वाले पराजित हो जायें। तुम हमारे संकल्पों में वृद्धि करो। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम कदापि दुःख न पायें।
Hey Agni Dev, governing fire! Let the chariote of the devotee extracting Somras may remain ahead of all. Our curse may vanish the enemy-evil. Let us progress. We should be proteced by you. 
वधैर्दुः शंसाँ अप दूढ्यो जहि दूरे वा ये अन्ति वा के चिदत्रिणः। 
अथा यज्ञाय गृणते सुगं कृध्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
सांघातिक अस्त्र द्वारा आप दुष्टों और बुद्धिहीनों का विनाश करें। दूरवर्ती और निकटस्थ शत्रुओं का भी विनाश करें। इसके पश्चात् अपनी प्रार्थना करने वाले यजमान को सरल मार्ग प्रदान करें। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम हिंसा के शिकार नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.9]
हे अग्ने! जो भक्षक दैत्य पास या दूर हों, उन्हें तथा अपशब्द वक्ता दुष्टों को अस्त्रों से समाप्त करो और वंदनाकारी के अनुष्ठान में सुखमय रास्ता निर्मित करो। हम तुम्हारी मित्रता पाकर दुःखी न हों।
Kill-slay the idiots, wicked-sinners & enemy whether distant or in close proximity. Make the path of your devotee free from all toubles being under your asylum.
यदयुक्था अरुषा रोहिता रथे वातजूता वृषभस्येव ते रवः। 
आदिन्वसि वनिनो धूमकेतुनाग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! जिस समय आप दीप्यमान, लोहितवर्ण और वायुगति दोनों घोड़ों को अपने रथ में नियोजित करते हो, उस समय आप वृषभ अर्थात् बैल की तरह शब्द करते हुए वन के सारे वृक्षों को धर्मरूपी पताका द्वारा व्याप्त करते हो। हे अग्निदेव! आपके मित्र होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.10]
हे अग्ने! तुम पवन जैसे वेग वाले रोहित नामक घोड़े को रथ में जोड़कर बैल के समान शब्द करते हो और धूम ध्वज वाले रथ को पेड़ों की ओर उठाते हो। हम तुम्हारे सखा होकर पीड़ा सहन न करें।
Hey Agni Dev! You generate the sound of the bull-oxen when you deploy both of your shinning-radiant, violet coloured horses who race with the speed of air. Asylum under you gurantees oyur safety.  
अध स्वनादुत बिभ्युः पतत्रिणो द्रप्सा यत्ते यवसादो व्यस्थिरन्। 
सुगं तत्ते तावकेभ्यो रथेभ्योऽग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
आपके शब्द सुनकर चिड़िया भी उड़ती हैं। जिस समय आपकी शाखाएँ तिनके जलाकर चारों दिशाओं में फैलती हैं, उस समय सारा वन आपके और आपके रथ के लिए (स्वयं) सुगम हो जाता है। हे अग्निदेव! आपके मित्र होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.11]
हे अग्ने! जब तुम्हारी लपटें जंगल में व्याप्त होती हैं, तब पक्षी भी डरते हैं। उस समय तुम्हारा रथ निर्भय होकर भ्रमण करता है। तुम्हारे सखा होकर हम कदापि पीड़ित न हों।
The birds start flying with the sound created by you. You engulf the jungle-forests and spread with ease. Those who are protected by you remain unharmed-safe.
अयं मित्रस्य वरुणस्य धायसेऽवयातां मरुतां हेळो अद्भुतः। 
मृळा भूत्वेषां मनः पुनरने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
मित्र और वरुण को धारित करने में अग्निदेव सामर्थवान हैं। नीचे उतरते हुए मरुतों का आवेश भयंकर है। हे अग्निदेव! इन मरुतों की बुद्धि हमारे लिए आनन्ददायक हो। आप हमें सुख प्रदान करें। हे अग्रिदेव! आपके बन्धु रहने पर हम हिंसाग्रस्त नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.12]
वह अग्नि सखा और वरुण को धारण करने में सशक्त हैं। नीचे उतरते हुए मरुतों का क्रोध भयंकर है। हे अग्ने! कृपा करके इस हृदय को हमारे लिये सर्व सुखकारी बनाओ। तुम्हारे मित्र हम कभी दुखी न हों।
Agni Dev is capable of bearing Mitr & Varun Dev. The descending Maruts rush with extreme-high speed. Hey Agni Dev! Let the Maruts be favourable to us. Relations with you will ensure our protection.
देवो देवानामसि मित्रो अद्भुतो वसुर्वसूनामसि चारुरध्वरे। 
शर्मन्त्स्याम तव सप्रथस्तमेऽग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे द्युतिमान् अग्निदेव! आप सारे देवों के परम मित्र हैं। आप सुशोभन और यज्ञ के सारे धनों के निवास स्थान हैं। आपके विस्तृत यज्ञगृह में हम अवस्थान करें। हे अग्निदेव! आपके रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.13]
हे अग्ने! तुम देवताओं के मित्र हो। धन वाले तुम यज्ञ में शोभा पाते हो। हम तुम्हारी शरण में रहें और पीड़ित न हों।
Hey glitting Agni Dev! You are friend of demigods-deities. You take care of all treasures-goods pertaining to Yagy. Let us stay in your broad Yagy site. You will protect us in all conditions.
तत्ते भद्रं यत्समिद्धः स्वे दमे सोमाहुतो जरसे मृळयत्तमः। 
दधासि रत्नं द्रविणं च दाशुषेऽसे सख्ये मा रियामा वयं तव॥
अपने स्थान पर प्रज्वलित सोमरस द्वारा आहूत होकर, जिस समय आप पूजित होते हैं, उस समय आप सुखकर उपभोग प्राप्त करते हैं। आप हमारे लिए सुखकर होकर हव्यदाता को रमणीय फल और धन प्रदान करें। हे अग्निदेव आपके मित्र रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.14]
हे अग्ने! आप अपनी कृपा दृष्टि से घर में दीप्तिमान होते हैं और सोम द्वारा हवि  प्राप्त करते हुए सुखमय ध्वनि करते हैं। आप हवि प्रदान करने वाले को रत्नादि धन प्रदान करते हैं। हम आपकी मित्रता प्राप्त करके सुखी हों। 
Hey Agni Dev! Offerings of Somras are made to you while praying-worshiping you. Grant us comforting-favourable results in addition to wealth & riches. Your presence will keep us unharmed-safe.
यस्मै त्वं सुद्रविणो ददाशोऽनागास्त्वमदिते सर्वताता। 
यं भद्रेण शवसा चोदयासि प्रजावता राधसा ते स्याम॥
हे शोभन धन से युक्त और अखण्डनीय अग्निदेव! सब यज्ञों में वर्तमान जिस यजमान का आप पाप से उद्धार और कल्याणकारी बल प्रदान करते हैं, वह समृद्ध होता है। हम भी आपके स्तोता है। हम भी पुत्र-पौत्रादि के साथ आपके धन से सम्पन्न हों।[ऋग्वेद 1.94.15]
हे सुन्दर ऐश्वर्य रूप अनन्त बलयुक्त अग्ने! आप जिसकी पाप कर्मों से रक्षा करते हैं, जिसे प्रजा युक्त धन देकर कल्याण करते हैं, वे हम हों।
Hey Agni Dev you possess infinite strenght-power! The host-devotee conductiong-organising Yagy is cleared of all sins and gets power to save-protect others. He become rich due to your blessings. We pray to you with the help of Strotr. Let us have sons & grand sons, along with wealth due to your kindness.
स त्वमग्ने सौभगत्वस्य विद्वानस्माकमायुः प्र तिरेह देव।  
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे अग्निदेव! आप सौभाग्य जानते हैं। इस कार्य में आप हमारी आयु बढ़ायें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथिवी और आकाश हमारी उस आयु की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.94.16]
हे अग्निदेव! आप सभी सौभाग्यों के ज्ञाता हैं। हमारी आयु में वृद्धि करें। मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश हमारी विनती को सम्मान दें।
Hey Agni Dev! You are aware of all means of good luck-prosperity. Lengthen-increase our life span. Let Mitr, Varun, Sindhu-oceans, Prathvi-earth and the sky save-protect us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (95) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
द्वे विरूपे चरतः स्वर्थे अन्यान्या वत्समुप धापयेते। 
हरिरन्यस्यां भवति स्वधावाञ्छुक्रो अन्यस्यां ददृशे सुवर्चाः॥
विभिन्न रूपों से संयुक्त दोनों समय (दिन और रात), शोभन प्रयोजन के कारण विचरण करते हैं। दोनों, दोनों के पुत्रों की रक्षा करते हैं। एक (रात्रि) के पास से सूर्य अन्न प्राप्त करते और दूसरे (दिन) के पास से शोभन दीप्ति से युक्त होकर प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 1.95.1]
श्रेष्ठ उद्देश्य वाली दो भिन्न रूपिणी नारियाँ विचरणशील हैं। दोनों एक-दूसरे के बालकों का पालन-पोषण करती हैं। एक से सूर्य अन्न ग्रहण कराता और दूसरी से अग्नि सुन्दर ज्योति से परिपूर्ण होती है।
Two women with excellent aim are roaming. Both of them nourish the offspring of other. The Sun leads to growth of food grains and the other produces beautiful light.
The night leads to nourishment & growth of food grains, pulses and other vegetative functions. The day makes it possible to see-identify objects around us. Both of them are complementary of each other.
दशेमं त्वष्टुर्जनयन्त गर्भमतन्द्रासो युवतयो विभभृत्रम्। 
तिग्मानीकं स्वयशसं जनेषु विरोचमानं परि षीं नयन्ति
दसों अँगुलियाँ इकट्ठी होकर अनवरत काष्ठ घर्षण करके वायु के गर्भ स्वरूप और सब भूतों में वर्तमान अग्निदेव को उत्पन्न करती हैं। यह अग्नि तीक्ष्ण तेजा यशस्वी और समस्त लोकों में दीप्यमान हैं। इन अग्नि को समस्त स्थानों में ले जाया जाता है।[ऋग्वेद 1.95.2]
त्वष्टा के खेलने वाले इस बालक को निरालस्य दसों नारियाँ (दस उंगलियाँ) प्रकट करती हैं। तीक्ष्ण मुख वाले लोकों में यशवान् दीप्तिमान इसे सभी ओर ले जाया जाता है।
Rubbing of wood with the help of 10 fingers produces fire-Agni. This fire is taken to all abodes.
Fire-Agni is a form of energy. Its essential for life every where, weather earth or heavens. Sun too has fire in it. Sun produces various kinds of sub atomic particles as well, in the form of radiations. Fire produces heat & light. 
त्रीणि जाना परि भूषन्त्यस्य समुद्र एकं दिव्येकमप्सु।
पूर्वामनु प्र दिशं पार्थिवानामृतून्प्रशासद्वि दधावनुष्ठु
इन अग्निदेव के तीन जन्मस्थान हैं :– (1). समुद्र, (2). आकाश और (3). अन्तरिक्ष। अग्निदेव ने (सूर्य रूप से) ऋतुओं का विभाग करके पृथ्वी के सारे प्राणियों के हित के लिए पूर्व दिशा का यथाक्रम निष्पादन किया है अर्थात् सूर्य काल (ऋतु) और दिक, दोनों को निर्मित किया।[ऋग्वेद 1.95.3]
यह अग्निदेव तीन जन्म वाला है, एक समुद्र में, एक क्षितिज और एक अंतरिक्ष में। सूर्य रूप अग्नि ने ऋतुओं का विभाग कर धरा के प्राणधारियों के लिए पूर्व दिशा के बाद कर्म पूर्वक दिशाओं को बनाया। पूर्व दिशा का यथाक्रम निष्पादन किया है अर्थात् सूर्यकाल (ऋतु) और दिक, दोनों को निर्मित किया।
Fire is produced in (1). Ocean, (2). Sky & (3). Space. Agni in the form of Sun divided the period of one year into six seasons and set the ten directions.
Sun rises in the East. Ten directions :- East, North-East, North, North-West, West, South-West, South, South-East, up & down.
क इमं वो निण्यमा चिकेत वत्सो मातद्दर्जनयत स्वधाभिः। 
बह्वीनां गर्भो अपसामुपस्थान्महान्कविर्निश्चरति स्वधावान्
जल, वन आदि में अन्तर्हित अग्निदेव को आप में से कौन जानता है? पुत्र होकर भी विद्युद्रूप अग्निदेव अपनी माताओं (जल रूपिणी) को हव्य द्वारा जन्म दान करते हैं। महान् मेधावी और हव्ययुक्त अग्निदेव अनेक जलों के गर्भ सन्तान रूप हैं। सूर्य के रूप में अग्निदेव समुद्र से निकलते हैं।[ऋग्वेद 1.95.4]
छिपे हुए इस अग्नि का स्वामी कौन है? जो पुत्र होकर भी हवि रत्नों द्वारा अपनी जननी को जन्म देता है तथा जो अनेक जलों के गर्भ रूप समूह में प्रकट होता है।
Who is the master-controllar of the hidden-masked Agni-fire! Though a son, it produces the mother by making offerings. Agni-fire appears under water at various sources.
It was complete dark all around when Bhagwan Shri Hari Vishnu (Nar-Narayan) appeared from a golden shell, followed by Sun, fire etc. Slowly and gradually, earth, sky, space, planets, constellations, stars, galaxies appeared. Evolution takes place after great inhalation, devastation. its cyclic process. 
आविष्ट्यो वर्धते चारुरासु जिह्मानामूर्ध्वः स्वयशा उपस्थे।
उभे त्वष्टुर्बिभ्यतुर्जायमानात्प्रतीची सिंहं प्रति जोषयेते 
कुटिल (मेघजल के) पार्श्ववर्ती यशस्वी अग्निदेव ऊपर जलकर शोभन दीप्ति के साथ प्रकाशित होकर बढ़ते हैं। अग्निदेव के दीप्त या त्वष्टा के साथ उत्पन्न होने पर उभयभीत होते हैं और सिंहरूप इस अग्नि की सेविका बनकर सेवा करती हैं।[ऋग्वेद 1.95.5]
जलोत्पन्न अग्नि अनुष्ठान के संग प्रकाशमान हुए वृद्धि करते हैं। इसके उत्पन्न होने पर त्वष्टा की दोनों पुत्रियाँ (अग्नि को रचित करने वाले दोनों काष्ठ या अरणियाँ) भयग्रस्त हुई इस सिंह की पीछे से सेवा करती हैं।
Agni-fire which had appeared out of water produces light. Two daughters of Twasta Wood & Arni serve him due to fear.
Raw wood is shaped to get Arni, the wood rubbed to produce fire.
उभे भद्रे जोषयेते न मेने गावो न वाश्रा उप तस्थुरेवैः।
स दक्षाणां दक्षपतिर्बभूवाञ्जन्ति यं दक्षिणतो हविर्भिः
उभय (काष्ठ या दिन और रात्रि) सुन्दरी स्त्री की तरह उन (अग्नि) की सेवा करते और बोलती हुई गौ की तरह पास में रहकर उनको पुत्र की तरह पालन करते हैं। दक्षिण भाग में अवस्थित ऋत्विक लोग हव्य द्वारा जिस अग्नि का सेवन करते हैं, वह सब बलों के बीच बलाधिपति हुए हैं।[ऋग्वेद 1.95.6]
सुन्दर नारियों के समान आकाश और पृथ्वी, इस अग्नि की सेवा करते हैं। वह अग्नि अत्यन्त पराक्रम से युक्त है और ऋत्विज दक्षिण की ओर खड़े होकर हवियों से इनकी सेवा करते हैं।
The day & night, sky & earth serve the fire-Agni Dev, like beautiful women. The priests-Ritviz keep standing nad make offerings in mighty fire, standing towards the South.
उद्यंयमीति सवितेव बाहू उभे सिचौ यतते ऋञ्जन्।  
उच्छुक्रमत्कमजते सिमस्मान्नवा मातृभ्यो वसना जहाति
अग्निदेव  सूर्य की तरह अपनी किरण रूपिणी भुजाओं को बार-बार बढ़ाते हैं तथा वही अमर आदि उभय (दिवारात्रि) को अलंकृत करके निज कर्म साधित करते हैं। वे सारी वस्तुओं में दीप्त और साररूप रस ऊपर खींचते हैं। वे माताओं (जलों) के पास से आच्छादक अभिनव रस बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.95.7]
वे सूर्य की रश्मियों के तुल्य अपनी भजाओं को फैलाते हैं। वे विकराल रूप वाले दिन-रात की सीमाओं को दक्षिण की ओर खड़े होकर हवियों से इनकी सेवा करते हैं। वे सूर्य की रश्मियों के तुल्य अपनी भुजाओं को फैलाते हैं।
Agni Dev extends his arms in the form of rays of the Sun, again & again. It sucks the extract of all goods in an upward direction forming a distinguished liquid. 
It assumes various furious forms evaporating the saps present in various objects.
त्वेषं रूपं कृणुत उत्तरं यत्संपृञ्चानः सदने गोभिरद्धिः।
कविर्बुध्नं परि मर्मृज्यते धीः सा देवताता समितिर्बभूव
जिस समय अग्निदेव अन्तरिक्ष में गमनशील जल द्वारा संयुक्त होकर दीप्त और उत्कृष्ट रूप धारित करते हैं, उस समय वह मेधावी और सर्वलोक धारक अग्नि (सारे जलों के) मूलभूत (अन्तरिक्ष को) तेज द्वारा आच्छादित भी करते हैं। उज्ज्वल अग्रिदेव द्वारा विस्तारित वह दीप्ति तेजयुक्त हुई थी।[ऋग्वेद 1.95.8]  
वे विकराल रूप वाले दिन-रात की सीमाओं को पहुँचते हुए समस्त वस्तुओं से गुण खींचते हैं और जल रूप जननियों के लिए रस (वृष्टि) छोड़ते हैं। तेजस्वी अग्निदेव जलों से मिल निर्मल रूप धारण करते हैं। वे अपने कर्म से अंतरिक्ष को तेजस्वी बनाते हैं। 
The furious Agni Dev extracts the saps at the juncture of day & night. The space is filled with aura-energy when Agni Dev release energy obtained from the extracts of all objects. He adopts a soft-soothing form when it assimilate in water.
उरु ते ज्रयः पर्येति बुध्नं विरोचमानं महिषस्य धाम। 
विश्वेभिरग्ने स्वयशोभिरिद्धोऽदब्येभिः पायुभिः पाह्यस्मान्
हे अग्निदेव! आप महान् हैं। सबको पराजित करनेवाला आपका दीप्यमान और विस्तीर्ण तेज अन्तरिक्ष को भी व्याप्त किये हुए है। हे अग्निदेव! हमारे द्वारा प्रज्वलित होकर अपने अहिंसित और पालन क्षमतेज द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.95.9]
हे अग्ने! तुम्हारा अत्यन्त उजाले से मुक्त तेज अंतरिक्ष में फैला है। तुम अपने उस अक्षय तेज से हमारी रक्षा करो। 
Hey Agni Dev! You are great. Your britghtness defeats all and filld the space. Hey Agni Dev! You should be non violant and protect us.
धन्वन्त्स्त्रोतः कृणुते गाआपूर्मिं शुक्रैरूर्मिभिरभि नक्षति क्षाम्। 
विश्वा सनानि जठरेषु धत्तेऽन्तर्नवासु चरति प्रसूषु॥
आकाशगामी जलसंध को प्रवाह रूप में अग्नि युक्त करते और उसी निर्मल जलसंघ द्वारा पृथ्वी को व्याप्त कर डालते हैं। अग्रि जठर में अन्न को धारण करते और इसीलिए अभिनव शस्य के बीच में निवास करते हैं।[ऋग्वेद 1.95.10]
अग्नि मरुभूमि से भी जल प्रवाह को प्रेरित करने में सामर्थवान है। वह पृथ्वी को लहरों से परिपूर्ण करते हैं। वह समस्त अन्नों के धारक और मृतभूत औषधियों में रमण करने वाले हैं। 
You purify the water in the sky and spread it over the earth. You live in the vegetation and stomach as well (to digest the food).
एवा नो अग्ने समिधा वृधानो रेवत्पावक श्रवसे वि भाहि। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे विशुद्धकारी अग्निदेव! लकड़ियों द्वारा वृद्धि प्राप्त कर, हमें धनयुक्त अन्न देने के लिए आप दीप्तिमान बने। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस अन्न की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.95.11]  
हे पावक! तुम अग्नि द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुए धन से परिपूर्ण यज्ञ के द्वारा प्रदीप्त हो जाओ। हमारी प्रार्थनाओं को मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आसमान स्वीकार करें। 
Hey Pure Agni Dev! Having grown due to the wood, make us rich with food grains. Let Mitr, Varun, Aditi, Ocean, Earth ant the Sky protect our stock of food grain. 
A certain temperature is essential for the vegetation to survive, grow and mature. For this the joint efforts of the demigods-deities are necessary. Hence the humans seek asylum under them and the Almighty.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (96) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्। 
स प्रत्नथा सहसा जायमानः सद्यः काव्यानि वळधत्त विश्वा। 
आपश्च मित्र धिषणा च साधन्देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्॥
देवताओं ने धन देने वाले अग्निदेव को दूत रूप में धारित किया। शक्ति से उत्पन्न उस अग्नि ने जल समूह और पृथ्वी को अपना सखा अर्थात् मित्र बनाया और पूर्व के सदृश सभी प्रार्थनाओं को धारित किया।[ऋग्वेद 1.96.1]
काष्ठों (बल) के घर्षण से प्रकट अग्नि ने पुरातन के तुल्य समस्त ज्ञानों को शीघ्र प्राप्त किया। धन दाता अग्नि को जलों और धरा ने सखा बनाया तथा देवगणों ने दूत रूप से उनको नियुक्त किया।
The demigods-deities accepted Agni Dev as a messanger. Agni Dev who was born of Shakti (rubbing of woods) was made a friend by the water bodies and the earth. He regained all knowledge-enlightenment as before. 
स पूर्वया निविदा कव्यतायोरिमाः प्रजा अजनयन्मनूनाम्। 
विवस्वता चक्षसा द्यामपश्च देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्
अग्नि ने मनु के प्राचीन और स्तुति गर्भ मंत्र से प्रसन्न होकर मानवी प्रजा की रचना की। उन्होंने आच्छादक तेज द्वारा आकाश और अन्तरिक्ष को व्याप्त किया। देवताओं ने उन धनदाता अग्निदेव को दूत रूप से नियुक्त किया।[ऋग्वेद 1.96.2]
अग्नि से प्रसन्न प्राचीन पूजा मंत्रों से प्राणियों की प्रजा को प्रकट किया और अंतरिक्ष को तेज से फैला दिया। उस धन के स्वामी अग्नि को देवताओं ने दूत रूप से स्वीकार किया है। 
Agni became happy over the recitation of Garbh Mantr and created humans. He spread his aura throughout the universe-space and sky. the demigods-deities appointed him as thier messanger.
तमीळत प्रथमं यज्ञसाधं विश आरीराहुत मृञ्जसानम्। 
ऊर्जः पुत्रं भरतं सुप्रदानुं देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्
हे मनुष्यो! अग्निदेव के पास जाकर उनकी स्तुति करो। वे देवों में मुख्य यज्ञ साधक है। वे हव्य द्वारा आहूत और स्तोत्र द्वारा प्रसन्न होते हैं। वे अन्न के पुत्र प्रजापोषक और दानशील हैं। देवताओं ने उन घनद अग्निदेव को दूत रूप में नियुक्त किया है।[ऋग्वेद 1.96.3]
आदमियों! तुम अनुष्ठान को पूर्ण करने वाले, हवियों द्वारा पूज्य अभिष्ट वाले शक्ति के पुत्र पोषक, धनदाता अग्नि का मुख्य रूप से पूजन करो। उसी धनदाता अग्नि को देवगण ने दूत रूप से धारण किया।
Hey Humans! go to agni Dev and worship-pray to him. He is prime amongest the demigods-deities to carry out the Yagy. He become happy by making offerings and recitation of Strotr, rituals. He nourishes the living beings and grant them riches. The demigods-deities selectred him as the messanger.
स मातरिश्वा पुरुवारपुष्टिर्विद्गातुं तनयाय स्वर्वित्। 
विशां गोपा जनिता रोदस्योर्देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्
वे अन्तरिक्षस्थ अग्निदेव अनेक वरणीय पुष्टि प्रदान करते हैं। अग्नि स्वर्गदाता, सर्वलोक रक्षक और द्यावा पृथ्वी के उत्पादक हैं। अग्निदेव हमारे पुत्र को अनुष्ठान मार्ग दिखायें। देवताओं ने उन धन देने वाले अग्निदेव को ही दूत बनाया।[ऋग्वेद 1.96.4]
बहुतों के द्वारा वरणीय, पोषक, रक्षक, आकाश, पृथ्वी के उत्पत्ति कर्त्ता , मात्रिश्वा अग्नि ने स्वर्ग के मार्ग को प्राप्त किया। उसी धनदाता अग्नि को देवगणों ने ग्रहण किया।
Let the messanger of demigods-deities Agni Dev guide our son to carry out Yagy & its methodoly-procedure. Agni Dev is behind the creation of heavens & the earth and protect them as well. Demigods-deities like him due to his ability to grant wealth-riches. 
नक्तोषासा वर्णमामेम्याने धापयेते शिशुमेकं समीची। 
द्यावाक्षामा रुक्मो अन्तर्वि भाति देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्
दिन और रात्रि परस्पर रूपों का बार-बार परस्पर विनाश करके भी ऐक्य भाव से एक ही शिशु (अग्नि) को पुष्ट करते हैं। वे दीप्तिमान् अग्निदेव आकाश और पृथ्वी में प्रभा विकसित करते हैं। देवों ने उन धनद अग्निदेव को दूत नियुक्त किया।[ऋग्वेद 1.96.5]
एक दूसरे के वर्ण रूप अस्तित्व को नष्ट करती हुई उषा और रात्रि एक बालक (अग्नि) को पालती है। वह बच्चा आकाश और धरती के मध्य प्रदीप्त होता है। उसी को देवगणों ने ग्रहण किया।
The day & night nourish Agni Dev as a child, eliminating the existance of each other. The bright Agni Dev illuminate both the sky and the earth. This Agni Dev is appointed by the demigods-deities as their representative.
रायो बुध्नः संगमनो वसूनां यज्ञस्य केआर्पन्मसाधनो वेः। 
अमृतत्वं रक्षमाणास एनं देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्
अग्निदेव धनमूल, निवास हेतु, अर्थदाता, यज्ञकेतु और उपासक की अभिलाषा के सिद्धिकर्ता हैं। अमर देवों ने उन धनदाता अग्निदेव को दूत बनाया।[ऋग्वेद 1.96.6]
वह समृद्धि के कारण रूप, धन स्थल के ध्वज रूप अग्नि व्यक्ति का अभिष्ट पूर्ण करने में समर्थवान हैं। अमरत्व के रक्षक देवगण ने इन्हीं को धारण किया है।
Agni Dev accomplish the desire of wealth, place to live, money-cash & holding of Yagy. The immortal demigods-deities have made him their communicator. 
नू च पुरा च सदनं रयीणां जातस्य च जायमानस्य च क्षाम्। 
सतश्च गोपां भवतश्च भूरेर्देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्
पहले और इस समय अग्निदेव सारे धनों का आवास स्थान हैं। जो कुछ उत्पन्न हुआ या होगा, उसके निवास स्थान है। जो कुछ है और भविष्य में जो अनेकानेक पदार्थ उत्पन्न होंगे, उनके रक्षक भी हैं। देवताओं ने उन धनद अग्रिदेव को दूतरूप से नियुक्त किया।[ऋग्वेद 1.96.7]
जब और पहले से ही अग्नि धनों के रचनाकार स्थल हैं। जन्में हुए और भविष्य में जन्म लेने वाले प्राणधारियों के रक्षक एवं धनदाता अग्नि को देवगणों ने धारण किया। 
Agni Dev exists in all sorts of wealth, means of living whether new or old. He is the native for every thing evoleved & yet to evolve. He is the protector of all goods-matter, present or to grow-develop in future. The granter of wealth Agni Dev is the ambassdor of the Demigods-deities.
द्रविणोदा द्रविणसस्तुरस्य द्रविणोदाः सनरस्य प्र यंसत्।
द्रविणोदा वीरवतीमिषं नो द्रविणोदा रासते दीर्घमायुः
धन को देने वाले अग्निदेव जंगम धन का भाग हमें प्रदान करें। धनद अग्रिदेव स्थावर धन का अंश हमें प्रदान करें। धनद अग्नि हमें वीरों से युक्त अन्न प्रदान करें। धनद अनिदेव हमें दीर्घ आयु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.96.8]
धन के स्वामी अग्नि हमारे लिए वृद्धि करने योग्य धन प्रदान करें। वे हमें पराक्रम से युक्त धन, संतान, अन्न आदि से पूर्ण दीर्घायु प्रदान करें।
The owner of wealth should grant wealth to us. Let us be provide with progeny & the food grains, which can give us strength, valour and longevity.
एवा नो अग्ने सामधा वृधानो रेवत्पावक श्रवसे वि भाहि। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः
हे विशुद्ध कर्ता अग्निदेव! इस प्रकार काष्ठों से वृद्धि प्राप्त कर आप हमें धनयुक्त अन्न  देने के लिए प्रभा प्रकाशित करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस अन्न की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.96.9]
हे पावक! हमारे ईंधन से वृद्धि को प्राप्त यशपूर्ण धन वाले, प्रदीप्त हो रुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश योग्य धन प्रदान करें। वे हमें पराक्रम से युक्त धन, संतान, अन्न आदि से पूर्ण दीर्घायु प्रदान करें। हे पावक! हमारे ईंधन से वृद्धि को प्राप्त यशपूर्ण धन वाले, प्रदीप्त हो जाओ हमारी इस विनती को मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश अनुमोदित करें।
Hey purifier Agni Dev! On being produced from the woods, grant us wealth, food grains and aura. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Earth and the sky protect out food grains. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (97) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री। 
अप नः शोशुचदघमग्ने ने शुशुग्ध्या रयिम्। 
अप नः शोशुचदघम्॥
हे अग्निदेव! आप हमारे चारों ओर धन, ऐश्वर्य रूप प्रकाशित कर हमारे पापों को नष्ट करें।[ऋग्वेद 1.97.1]
हे अग्ने! हमारे सभी ओर धन को प्रकाशित करो। हमारे पापों का नाश करो।
Hey Agni Dev! Please grant us wealth & luxry and vanish our sins.
सुक्षेत्रिया सुगातुया वसूया च यजामहे 
अप नः शोशुचदघम्॥
शोभनीय क्षेत्र, शोभन मार्ग और धन के लिए आपकी पूजा करते हैं। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.2]
हम सुन्दर क्षेत्र, सुन्दर राह और धन की इच्छा से यज्ञ करते हैं। हमारे अपराधों को नष्ट करो।
We worship you for a pleasant place, roads to live & riches. Please remove our sins-crimes (wickness, evils).
प्र यद्धन्दिष्ठ एषां प्रास्माकासश्च सूरयः। 
अप नः शोशुचदघम्॥
इन स्तोताओं में जैसे कुत्स उत्कृष्ट स्तोता हैं, उसी तरह हमारे स्तोता भी उत्कृष्ट हैं। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.3]
सबसे अधिक प्रार्थना करने वालों में आप अग्रणी हों, हमारा अपराध नष्ट करो।
The way your worshippers include excellent person like Kuts Rishi, our worshipes (the priests performing yagy) should also be best. Let our sins be removed.
प्र यत्ते अग्ने सूरयो जायेमहि प्र ते वयम्। 
अप नः शोशुचदघम्॥
हे अग्निदेव! आपके स्तोता पुत्र-पौत्रादि प्राप्त करते हैं; इसलिए हम भी आपकी प्रार्थना करके पुत्र-पौत्रादि के प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.4]
Hey Agni Dev! Those who worship you are blessed with sons, grandsons & hence we too pray you to have sons and grandsons. Kindly destroy our sins (mistakes, misendeavours).
प्र यदग्नेः सहस्वतो विश्वतो यन्ति भानवः।
अप नः शोशुचदघम्॥
शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाले अग्नि देव की दीप्तियाँ सर्वत्र जाती है, इसलिए आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.5]
हे अग्ने! हम तुम्हारी ज्योति के समान तेजस्वी बनें। हमारा अपराध जलकर भस्म हो।
Hey Agni Dev! You grant us victory over the enemy and let your flames spread-illuminate all directions. We request you to pardon us.
त्वं हि विश्वतोमुख विश्वतः परिभूरसि। 
अप नः शोशुचदघम्॥
हे अग्नि देव! आपका मुख चारों ओर है। हमारे रक्षक बनकर आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.6]
अग्नि की शत्रु विजयी प्रबल ज्वालाएँ सभी ओर बढ़ती हैं। हमारा अपराध समाप्त हो।
Hey Agni Dev! You have mouths in all directions. Please be our saviour and eliminate our sins (relinquish us from sins).
द्विषो नो विश्वतोमुखाति नानेव पारय। 
अप नः शोशुचदघम्॥
हे सर्वतोमुख अग्निदेव! जिस प्रकार से नौका से नदी को पार किया जाता है, उसी प्रकार से हमारे शत्रुओं से हमें पार करें दें। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.7]
हे सर्वतोमुख अग्ने! तुम सभी ओर आकश फैलाने वाले हो। हमारा पाप जलकर भस्म हो जाये।
Hey Agni Dev! The manner in which the river is crossed with the boat, our enemies be over powered by us, similarly, with your help. Let our sins be finished.
स नः सिन्धुमिव नावयाति पर्षा स्वस्तये। 
अप नः शोशुचदघम्॥
नदी पार करने की तरह, हमारे कल्याण के लिए आप हमें हमारे शत्रुओं से पार कराकर पालन करें। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.8]
हे अग्नि देव! तुम हमको नाव के समान शत्रुओं से पार लगाओ, हमारे पाप जल कर भस्म हो जाएं।
Grant us victory over the enemies, just as one is helped to cross the river. Please forgive our sins.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (98) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
वैश्वानरस्य सुमतौ स्याम राजा हि कं भुवनानामभिश्रीः। 
इतो जातो विश्वमिदं वि चष्टे वैश्वानरो यतते सूर्येण॥
हम वैश्वानर अग्निदेव के अनुग्रह में रहे। वे सारे भुवनों द्वारा पूजनीय राजा हैं। इन दो काष्ठों से उत्पन्न होकर ही वैश्वानर ने संसार को देखा और सूर्य के साथ एकत्रित होकर भ्रमण किया।[ऋग्वेद 1.98.1]
हम वैश्वानर अग्नि की कृपा को प्राप्त करें। वे विश्वों के पोषक और संसार को देखने वाले हैं। वे सूर्य के समान हैं।
Vaeshwanar Agni is revered in all abodes as a king. Let us seek protection-asylum under him. Vaeshwanar took birth from the two woods rubbed together and saw the whole world, travelling with the Sun.
पृष्टो दिवि पृष्टो अग्निः पृथिव्यां पृष्टो विश्वा ओषधीरा विवेश। 
वैश्वानरः सहसा पृष्ठो अग्निः स नो दिवा स रिषः पातु नक्तम्॥
सूर्यरूप से आकाश में और गार्हपत्यादि रूप से पृथ्वी में अग्निदेव व्याप्त हैं। बलों से युक्त वैश्वानर अग्निदेव दिन और रात्रि में हिंसा करने वाले प्राणियों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.98.2]
वे अग्नि, क्षितिज, धरती में पूजनीय हैं। वे समस्त औषधियों में व्याप्त हैं। वह बलिष्ठ वैश्वानर अग्नि, हिंसकों से हमारी चौबीस घण्टे रक्षा करें।
Agni Dev is present as Vaeshwanar Agni in the Sun in the sky and Garhpaty Agni etc. in the earth. Let Vaeshwanar Agni decorated- associated with forces-power protect us from the violant organisms throughout the day & night.
वैश्वानर तव तत्सत्यमस्त्वस्मान्रायो मघवानः सचन्ताम्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे वैश्वानर अग्निदेव! आपके सम्बन्ध में यह यज्ञ सफल हैं। हमें बहुमूल्य धन और ऐश्वर्य से युक्त करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस धन की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.98.3]
हे वैश्वानर अग्ने! तुम्हारा कर्म सत्य हो, हमको धन से युक्त ऐश्वर्य प्राप्त हो। सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, पृथ्वी और आकाश हम पर कृपा करें।
Hey Vaeshwanar Agni! This Yagy-endeavour is successful due to your blessings. Please enrich us with valuables & wealth-luxuries. Let Mitr, Varun, Ocean, Earth and the sky protect our wealth, granted by you.

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (99) :: ऋषि :- कश्यप, मारीच, देवता :- अग्नि जातवेदा, छन्द:-  त्रिष्टुप्।

जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो नि दहाति वेदः। 

स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः॥

हम सर्वभूतज्ञ अग्निदेव को उद्देश्य कर सोम का अभिषव करते हैं। जो हमारे प्रति शत्रु की तरह आचरण करते हैं, उनका धन अग्नि जला दें। जिस प्रकार से नाव से नदी पार को जाती है, उसी प्रकार से वे हमें सम्पूर्ण दुःखों से पार लगाकर हमारे पापों को नष्ट कर दें।[ऋग्वेद 1.99.1]

हम धनोत्पादक अग्नि के लिए सोम निष्पन्न करें। शत्रुओं के धनों को नष्ट करें। जैसे नौका सरिता को पार करा देती है, वैसे ही वह अग्नि हमको दुःखों से पार करें और हमारी रक्षा करें।

Let us procure Somras for Agni Dev who produces-grant us wealth, riches, valuables. Let Agni Dev burn those who behave as an enemy with us. Let Agni Dev swim us across-through the pains, sorrow, tortures, just like the boat which crosses the river. He should eliminate our sins and protect us.

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (108) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- इन्द्राग्रि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
य इन्द्राग्नी चित्रतमो रथो वामभि विश्वानि भुवनानि चष्टे। 
तेना यातं सरथं तस्थिवांसाथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्रिदेव! आप लोगों के लिए अतीव विचित्र रथ ने सारे भुवनों को प्रकाशमय किया, उसी रथ पर एक साथ बैठकर पधारे और अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.1]
हे इन्द्राग्ने! तुम दोनों का अलौकिक रथ सभी संसार को देखता है। उस पर आरूढ़ होकर यहाँ पर आओ और निष्पन्न सोम रस का पान करो।
Hey Indr & Agni Dev! Your amazing chariot has spread light in all the abodes. Come to us in that chariot and drink Somras.
यावदिदं भुवनं विश्वमस्त्युरुव्यचा वरिमता गभीरम्। 
तावाँ अयं पातवे सोमो अस्त्वरमिन्द्राग्नी मनसे युवभ्याम्॥
इस बहुव्यापक और अपनी गुरुता से गम्भीर जो सारे भुवनों का परिमाण है, हे इन्द्र और अग्निदेव! आप लोगों के पीने योग्य सोमरस उतना ही प्रभावशाली होकर प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.108.2]
हे इंद्र व अग्ने! जितनी गंभीर और विशाल यह जगह है, उतना विस्तृत होता हुआ यह सोम तुम्हारे लिए पर्याप्त है। 
Hey Indr & Agni Dev! You are the greatest & have pervaded the entire universe. This Somras is sufficient for you to enjoy (drink, relish, enjoy).
चक्राथे हि सध्य्रङ्नाम भद्रं सग्रीचीना वृत्रहणा उत स्थः।
ताविन्द्राग्री सध्य्रञ्चा निषद्या वृष्णः सोमस्य वृषणा वृषेथाम्॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आपकी संयुक्त शक्ति विशेष रूप से वृत्र हन्ताओं! आप संयुक्त रूप में ही निवास करते हैं। हे शक्ति युक्त वीरों! आप दोनों एक साथ बैठकर सोमरस को पीकर अपनी शक्ति में वृद्धि करें।[ऋग्वेद 1.108.3]
हे वृत्रनाशक इन्द्र अग्ने! तुम दोनों साथ-साथ चलकर एकत्रित बैठकर सोमरस को ग्रहण करो।
Hey Indr Dev & Agni Dev! You work together unitedly and killed Vratr-the demon. You are great warriors. Both of you come together to drink Somras.
समिद्धेष्वग्निष्वानजाना यतस्रुचा बर्हिरु तिस्तिराणा। 
तीव्रैः सोमैः परिषिक्तेभिरर्वागेन्द्राग्री सौमनसाय यातम्॥
अग्नि के अच्छी तरह प्रज्ज्वलित होने पर दोनों अध्वर्युओं ने पात्र से घृत सेचन करके कुश विस्तारित किया। हे इन्द्र और अग्निदेव! चारों ओर अभिषुत तीव्र सोमरस द्वारा आकृष्ट होकर कृपा करने के लिए हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 1.108.4]
हे अग्ने! अग्नि के प्रदीप्त होने पर हमने हवियों को घृतयुक्त किया तथा कुश को बिछाया है। हम स्त्रुव लिए खड़े हैं। तुम दोनों आकर सोम रस से संतुष्ट हो जाओ।
Hey Agni! Both of you spreaded the Kush mat, having ignited the fire by pouring ghee in it.  Hey Indr & Agni Dev! Both of you come here to drink Somras.
यानीन्द्राग्नी चक्रथुर्वीर्याणि यानि रूपाण्युत वृष्ण्यानि। 
या वां प्रत्नानि सख्या शिवानि तेभिः सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आप लोगों ने जो कुछ वीरता के कार्य किये हैं, जितने रूप विशिष्ट जीवों की सृष्टि की है, जो कुछ वर्षण किया है तथा आप लोगों का जो कुछ प्राचीन कल्याण कर बन्धुत्व है, वह सब लेकर आवें और अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.5]
हे इन्द्राग्ने! तुम यदि क्षितिज-धरा, पवंत और औषधि, जल आदि में जहां कहीं भी हो वहीं से मेरे निकट आकर सोम का सेवन करो।
Hey Indr Dev & Agni Dev! You are brotherly ever since. You have performed great deeds for the welfare of the living beings. You together cause rains. Come together and drink this Somras extracted & reserved for you.
यदब्रवं प्रथमं वां वृणानो ३ यं सोमो असुरैर्नो विहव्यः। 
तां सत्यां श्रद्धामभ्या हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
पहले ही कहा था कि आप दोनों का वरण करके आपको सोमरस द्वारा प्रसन्न करूँगा, वही कपटहीन श्रद्धा देखकर पधारें और अभिषुत सोमरस पान करें। यह सोमरस हमारे ऋत्विकों की विशेष आहुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 1.108.6]
तुम क्षितिज के बीच में सूर्य के चढ़ने पर स्वेच्छा पूर्वक विश्राम कर रहे हो तो भी यहाँ पधारकर इस सोम को पियो। 
As has been said, we will pray-worship you and please-make you happy. We have extracted this Somras for you and is good enough for making offerings in the holy fire. Please come to us from the houses of those who are busy in the Yagy-prayers and drink Somras. 
यदिन्द्राग्री मदधः स्वे दुरोणे यद्ब्रह्मणि राजनि वा यजत्रा। 
अतः पर वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे यज्ञ पात्र इन्द्र और अग्निदेव! यदि अपने घर में प्रसन्न होकर निवास करते हो, यदि पूजक वा राजा के प्रति प्रसन्न होकर रहते हो तो हे अभीष्ट दातृ द्वय! इन सारे स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.7]
हे पूज्य इन्द्राग्ने! तुम जिस यजमान के घर में पुष्ट हो रहे हो, वहाँ से मेरे समीप आकर सोम रस का पान करो।
Hey mighty Indr & Agni Dev! Please come us to drink Somras from the houses of the devotees & the kings who are too happy with you. 
यदिन्द्राग्नि यदुषु तुर्वशेषु यद्द्रुह्युष्वनुषु पूरुषु स्थः। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! यदि आप लोग तुर्वश, द्रुह्य, अनु और पुरुगण के बीच रहते हो तो हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सब स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.8]
हे पौरुष युक्त इन्द्राग्ने! तुम यदुओं, तुर्वशी, दूहाओ, पुरुषों में रहते हो, वहाँ से आकर सोम रस पियो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! If you reside with the Turvash, Druhy, Anu and Puru Gan, hey duo come to us from all these places and drink Somras. Please fulfil our desires.
यदिन्द्राग्नि अवमस्यां पृथिव्यां मध्यमस्यां परमस्यामुत स्थः। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्राग्नी! यदि आप लोग निम्न पृथ्वी, अन्तरिक्ष अथवा आकाश में रहते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सारे स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.9]
हे वीर्यवान इन्द्राग्ने! तम यदि निम्म्र धरती, अंतरिक्ष और आकाश में स्थित हो तो मेरे समीप आकर सोम पान करो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! If you reside over the lower earth, space or the sky, still you come to us to drink Somras. Please fulfil our desires.
यदिन्द्राग्नि परमस्यां पृथिव्यां मध्यमस्यामवमस्यामुत स्थः। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सामस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्राग्नि! आप लोग यदि उच्च पृथ्वी (आकाश), मध्य पृथ्वी (अन्तरिक्ष) अथवा निम्न पृथ्वी पर निवास करते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सब स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.10]
हे इन्द्राग्ने ! यदि तुम अन्य पृथिव्यादि लोकों में हो तो भी यहाँ आकर सोम रस को पियो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! Even if you reside over the upper earth, middle earth or the lower earth please come to us and drink Somras. Please fulfil our desires.
यदिन्द्रीग्नी दिवि ष्ठो यत्पृथिव्यां यत्पर्वतष्वोषधीष्वप्सु। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! यदि आप आकाश, पृथ्वी, पर्वत, शस्य अथवा जल में निवास करते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सब स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.11]
हे इन्द्राग्ने! तुम यदि क्षितिज धरा, पर्वत औषधि, जल आदि में जहाँ कहीं भी हो वहीं से मेरे निकट आकर सोम रस का सेवन करो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! Even if you are present in the sky, earth, mountains, vegetation or the waters, please come to us, drink Somras and grant our wishes-desires.
यदिन्द्राग्नी उदिता सूर्यस्य मध्ये दिवः स्वधया मादयेथे। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! सूर्य के उदित होने पर दीप्तिमान् अन्तरिक्ष में यदि आप लोग अपने तेज से हृष्ट होते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सारे स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.12]
हे इन्द्राग्ने ! यदि तुम क्षितिज के बीच में सूर्य के चढ़ने पर स्वेच्छा से विश्राम कर रहे हो तो भी यहाँ पधारकर इस सोम को पीयो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! Even if you becoming strong with the rising Sun, please come to us, drink Somras and fulfil our desires-wishes.
एवेन्द्राग्री पपिवांसा सुतस्य विश्वासमभ्यं सं जयतं धनानि। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! इस प्रकार अभिषुत सोमरस का पान करके हमें समस्त धन प्रदान करें। हमारी मनोवांछित कामना पूर्ति में मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथिवी और आकाश के सभी देव सहायक हो।[ऋग्वेद 1.108.13]
हे इन्द्राग्ने! इस निष्पन्न सोम रस को पीकर सभी धनों को जीतो मित्रवरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश हमारी विनती का अनुमोदन करो।
Hey Indr & Agni Dev! Please come, drink Somras and give us money. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Earth & the sky-space become helpful in the fulfilment of our desires, by supporting us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (109) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- इंद्राग्नि,  छंद :- त्रिष्टुप्।  
वि ह्यख्यं मनसा वस्य इच्छन्निन्द्राग्री ज्ञास उत वा सजातान्। 
नान्या युवत्प्रमतिरस्ति मह्यं स वां धियं वाजयन्तीमतक्षम्॥1॥
इन्द्र और अग्नि देव! मैं धन प्राप्ति के लिए, आप लोगों की मित्रता चाहता हूँ। आपने ही मुझे उत्तम बुद्धि दी है; अन्य किसी ने नहीं। इसलिए आपकी सामर्थ्य, शक्ति प्रभाव और क्षमता को बढ़ाने वाले स्तोत्रों की हम रचना करते हैं।[ऋग्वेद 1.109.1]
हे इन्द्राग्ने! अपने हित के लिए मैंने अपने कुटुम्बियों की तरफ भी देख लिया परन्तु तुम्हारे तुल्य कृपा दृष्टि करने वाले अन्यत्र कहीं नहीं मिला, मैंने तुम्हारे चाहने वाले श्लोक की उत्पत्ति की।
Hey Indr & Agni Dev! I want to be friendly with you for the sake of money. Its you who has awarded me virtuous intelligence, none else. Therefore, I compose the verses which boosts your power, might, capability.
अश्रवं हि भूरिदावत्तरा वां विजामातुरुत वा घा स्यालात्। 
अथा सोमस्य प्रयती युवभ्यामिन्द्राग्नी स्तोमं जनयामि नव्यम्॥2॥
हे इन्द्र और अग्नि देव! आप लोग अयोग्य दामाद अथवा साले की अपेक्षा से भी अधिक बहुत प्रकार का धन प्रदान करते हैं, ऐसा सुना है। इसलिए हे इन्द्र और अग्निदेव! आपके सोमरस प्रदान काल में पढ़ने योग्य एक नया स्तोत्र निष्पादित करता हूँ।[ऋग्वेद 1.109.2]
अयोग्य :: अनुपयुक्त, बेकार, नालायक, मूर्ख, अनाड़ी; ineligible, unfit, unworthy, inept, non deserving, unqualified.
हे इन्द्राग्ने! तुम अयोग्य जामाता और साले से भी अधिक धन दान करने वाले हो। मैं तुम्हें सोम रस भेंट करता हुआ, श्लोक रचता हूँ।
Hey Indr & Agni Dev! I have learnt that you grant money, much more beyond the expectations of unqualified, non deserving son in law of the brother in law. I am composing a verse for you which you can read/listen while drinking Somras.
मा च्छेझ रश्मीरिति नाधमानाः पितॄणां शक्तीरनुयच्छमानाः। 
इन्द्राग्निभ्यां कं वृषणो मदन्ति ता ह्यद्री घिषणाया उपस्थे॥3॥
हमारी सन्तान का हनन न करें। पितरों की शक्ति वंशानुगत हो, ऐसी प्रार्थना से युक्त हमें, हे सामर्थ्यवान् इन्द्र और अग्निदेव! आपकी कृपादृष्टि से सुखदायक आनन्द की प्राप्ति हो। इन देवताओं को सोमरस प्रदत्त करने के लिए दो पत्थर सोमपात्रों के पास स्थापित हो।[ऋग्वेद 1.109.3]
संतान की लड़ी न काटें। इस विनती के साथ पूर्वजों के अनुकरण में शक्तिशाली इन्द्र और अग्नि के द्वारा प्रसन्नता पाने को यह सोम कूटने का पाषाण धर्म पर पड़ा है।
Please do not destroy-kill our progeny. We pray to you that the power of Pitr-Manes to perpetuate the descendents, continue.  Hey mighty Indr & Agni Dev! Let us gain comforts & pleasures due to your blessings. We shall keep two stones to crush Somras for the sake of demigods-deities.
युवाभ्यां देवी धिपणा मदायेन्द्राग्नी सोममुशती सुनोति। 
तावश्विना भद्रहस्ता सुपाणी आ धावतं मधुना पृङ्क्तमप्सु॥4॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आपके लिए दीप्तिमती प्रार्थना की कामना करके आपके हर्ष के लिए सोमरस का निर्माण करते हैं। आप अश्व युक्त, शोभन बाहुयुक्त और सुपाणि हैं। आप लोग शीघ्र आएँ और मधुर सोमरस को जलों से मिश्रित करें।[ऋग्वेद 1.109.4]
सुपाणि :: beautiful-handed; skilful, dexterous, dexterous-handed, a trinket for the nose of females.
हे इन्द्राग्ने! तुम्हारी इच्छा लिए ही यह सोम कूटा जा रहा है। हे सुन्दर कल्याण-रूप हाथों वाले इन्द्राग्नि! शीघ्र पधारो। सोम को मृदुजलों से परिपूर्ण करो।
Hey Indr & Agni Dev! We are extracting Somras for your pleasure, with the prayers for your well being. You possess horses, virtuous hands which perform the welfare of the humans. Please come to us quickly and mix the Somras in water.
युवामिन्द्राग्नी वसुनो विभागे तवस्तमा शुश्रव वृत्रहत्ये। 
तावासद्या बर्हिषि यज्ञे  अस्मिन्प्र चर्षणी मादयेथां सुतस्य॥5॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! प्रार्थना करने वालों के मध्य में धनविभाग में रत रहकर वृत्रहनन में अतीव बल प्रकाशित किया ऐसा सुना है। सर्वदर्शिद्वय! आप लोग हमारे इस यज्ञ में कुश पर बैठकर अभिषुत सोमरस का पान करके हृष्ट बनें।[ऋग्वेद 1.109.5]
हे इन्द्राग्ने! तुम धन वितरित करने और शत्रु का पतन करने में अत्यन्त शक्तिशाली हो। इस अनुष्ठान में कुश पर विराजमान कर निष्पन्न सोम से आनन्द ग्रहण करो।
Hey Indr & Agni Dev! In spite of being busy in the distribution of wealth amongest your worshipers, you killed Vratr-the demon, this is what we have learnt. Please occupy the cushions made of Kush grass and drink Somras and become strong, in our Yagy.
प्र चर्षणिभ्यः पृतनाहवेषु प्र पृथिव्या रिरिचाथे दिवश्च। 
प्र सिन्धुभ्यः गिरिभ्यो महित्वा प्रेन्द्राग्नी विश्वा भुवनात्यन्या॥6॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! युद्ध के समय बुलाये जाने पर आप लोग आकर अपने महत्त्व द्वारा सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ बनें। पृथ्वी, आकाश, नदी और पर्वत आदि की अपेक्षा भी श्रेष्ठ बनें। आप अन्य सभी भवनों की अपेक्षा श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 1.109.6]
हे इन्द्राग्ने! तुम मानवों से बढ़कर लड़ाई में ताड़ना करते हो। तुम पृथ्वी और आकाश से भी श्रेष्ठ हो। तुम शैलों, समुद्रों और अन्य सभी लोकों से भी बढ़कर हो। 
Hey Indr & Agni Dev! On being invited in a war by the humans, you show your might, power & dignity. You are superior to the earth, sky, rivers and the mountains.
आ भरतं शिक्षतं वज्रबाहू अस्माँ इन्द्राग्नी अवतं शचीभिः।
इमे नु ते रश्मयः सूर्यस्य येभिः सपित्वं पितरो न आसन्॥7॥
हे वज्र-हस्त इन्द्र और अग्निदेव! हमारे गृहों को धन से युक्त करें, हमें शिक्षित करें और अपने बड़ों से हमारी रक्षा करें। सूर्य की जिन रश्मियों के द्वारा हमारे पूर्व पुरुष इकट्ठे हुए थे, वे यहीं है।[ऋग्वेद 1.109.7]
हे वज्रिन! हे अग्ने! तुम दोनों धनों को लाकर हमें दो। अपनी शक्ति से हमारी रक्षा करो। ये वही सूर्य किरणें हैं जो हमारे पूर्वजों को भी प्राप्त थीं।
Hey Vajr wearing-yielding Indr & Agni Dev! Please provide money for our homes, educate us and protect us from those, who are mightier than us. Here are the rays of Sun which brought our ancestors together.
पुरंदरा शिक्षतं वज्रहस्तास्माँ इन्द्राग्नी अवतं भरेषु। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥8॥
हे वज्र हस्त पुरन्दर इन्द्र और अग्निदेव! हमें धन प्रदान करें। लड़ाई में हमें बचावें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश सभी हमारी कामना पूर्ति में सहयोग प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.109.8]
हे दुर्ग भंजक इन्द्राग्ने! हमें इच्छित फल दो। युद्धों में हमारी सुरक्षा करो। सखा, वरुण, अदिति और क्षितिज हमारी वंदना को अनुमोदित करें।
Hey Vajr yielding, destroyers of the forts Indr & Agni Dev! Grant us money. Protect us in war-battle. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu-ocean, Earth & Akash (the Sky, space) cooperate with us in the fulfilment of desires-wishes. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (127) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- अग्नि, छन्द :- अत्यष्टि अतिधृति। 
अग्निं होतारं मन्ये दास्वन्तं वसुं सूनुं सहसो जातवेदसं विप्रं न जातवेदसम्। य ऊर्ध्वया स्वध्वरो देवो देवाच्या कृपा। घृतस्य विभ्राष्टिमनु वष्टि शोचिषाजुह्वानस्य सर्पिषः
विद्वान् ब्राह्मण की तरह प्रज्ञावान्, बल के पुत्र स्वरूप, सबके निवास भूमि रूप और अत्यन्त दानशील अग्नि देव को मैं होता कहकर सम्मानित करता हूँ। यज्ञ निर्वाहकारी अग्नि उत्कृष्ट देवपूजन में समर्थ होकर चारों ओर फैली हुई घृत की दीप्ति का अनुसरण करके अपनी शिखा द्वारा उस घृत को स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.1]
मैं सर्व रचित प्राणधारियों के ज्ञाता, शक्ति के पुत्र अग्नि की देवी का आह्वान करने वाला मानता हूँ। वे यज्ञ प्रवर्तक घृत को अपनी लपटों से अनुसरण कर देवगण की कृपाओं को प्राप्त कराते हैं।
I felicitate Agni Dev as the host who is very intelligent, son of might-power (Shakti), like the ground for each & everyone and extremely charitable-resorting to donations. The fire-Agni Dev capable in worshipping the demigods-deities, spreads in all directions, accepting ghee-clarifies butter, with its tip, as offering, accomplishing the Yagy.
यजिष्ठं त्वा यजमाना हुवेम ज्येष्ठमङ्गिरसां विप्र मन्मभिर्विप्रेभिः शुक्र मन्मभिः। परिज्मानमिव द्यां होतारं चर्षणीनाम् शोचिष्केशं वृषणं यमिमा विशः प्रावन्तु जूतये विशः
हे मेघावी शुभ्र दीप्ति अग्निदेव! हम यजमान हैं। हम मनुष्यों के उपकार के लिए मननशील और अत्यन्त प्रसन्नतादायक मन्त्र द्वारा अङ्गिरा लोगों में श्रेष्ठ आपका आवाहन करते हैं। सर्वतोगामी सूर्य की तरह आप यजमानों के लिए देवों का आवाहन करते हैं। केश की तरह विस्तृत ज्वाला विशिष्ट और अभीष्टवर्षी हैं। यजमान लोग मनोवांछित फल पाने के लिए आपको प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.2]
हे मेधावी प्रदीप्तिमान अग्ने! अंगिराओं में तुम सबसे उत्तम श्लोकों से आहूत करते हो। वे तुम्हारे ज्वाला रूप वाले हैं। तुम अभिष्टों की वर्षा करते हो और प्रदीप्त हुए आकाश की ओर जाते हो। तुमको ये प्राणी अपनी रक्षा के निमित्त धारण करते हैं।
यजमान :: यज्ञ करनेवाला व्यक्ति, ब्राह्मणों से धार्मिक कृत्य करानेवाला व्यक्ति; host.
Hey intelligent & bright Agni Dev! We are the priests-hosts conducting the Yagy, pray to you as the best amongest the Angiras (descendents of Rishi Angira) and invite you for the humans welfare, with the help of the Mantr which grant happiness-pleasure. You invite the demigods-deities like the Sun, in all directions for the benefit of the hosts. Your flames are capable of fulfilling the desires of the hosts, who make you happy.
स हि पुरू चिदोजसा विरुक्मता दीद्यानोभवति द्रुहंतर: परशुर्न द्रुहंतरः। वीळु चिद्यस्य समृतौ श्रुवद्वनेव यत्स्थिरम्। निष्षहमाणो यमते नायते धन्वासहा नायते
अग्निदेव अतीव दीप्ति से संयुक्त ज्वाला द्वारा भली-भाँति दीप्यमान हैं। वे शत्रुओं के छेदनार्थ परशु की तरह विनाश करने में दक्ष हैं। उनके साथ मिलने पर दृढ़ और स्थिर वस्तु भी जल की तरह शीर्ण हो जाती है। शत्रुओं का विनाश करने वाले धनुर्धर जैसे नहीं भागते, उसी प्रकार से अग्निदेव भी शत्रुओं को परास्त किये बिना नहीं मानते।[ऋग्वेद 1.127.3]
वे प्रचण्ड रूप से दहकते हुए अग्नि शत्रुओं का शोषण करते हैं। अत्यन्त स्थिर भी उनको छूने से भिन्न-भिन्न हो जाता है। वे तेजस्वी धनुर्धारी के समान डटे रहते हैं, कभी वे पीठ नहीं दिखाते। 
परशु :: फरसा; halberd, hatchet, poleaxe.
Agni Dev is lit with joint flames with great brightness. He is able to destroy the enemy like the Parshu-a weapon like the sharp axe. The solid goods melt just like water on meeting him. The way the archer do not do not leave the battle filed, he too do not retract without killing-vanishing the enemies.
दृळ्हा चिदस्मा अनु दुर्यथा विदे तेजिष्ठाभिररणिभिर्दाष्ट्यवसेऽग्नये दाष्ट्यवसे। प्र यः पुरूणि गाहते तक्षद्वनेव शोचिषास्थिरा चिदन्ना नि रिणात्योजसा नि स्थिराणि चिदोजसा
जैसे विद्वान् पुरुष को द्रव्य दान किया जाता है, उसी प्रकार अग्निदेव को सारवान् हव्य मन्त्रानुक्रम से प्रदान किया जाता है। तेजोविशिष्ट यज्ञादि द्वारा अग्निदेव हमारी रक्षा के लिए स्वर्गादि प्रदान करते हैं। यजमान भी रक्षा के लिए अग्निदेव को हव्य देते हैं। यजमान के द्वारा प्रदत्त हव्य में प्रवेश करके अग्निदेव अपनी ज्योतिः शिखा से उसे वन की तरह जला डालते हैं। अग्निदेव अपनी ज्योति द्वारा अन्नादि का परिपाक करते और तेज के द्वारा दृढ़ द्रव्य को विनष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.4]
अत्यन्त दृढ़ द्रव्यों को समाप्त करने में सामर्थ्यवान हैं। हम इस अग्नि के लिए अन्न धारण करते हैं।
परिपाक :: परिणाम, उत्पादन, तैयार माल, परिपाक, फळ; maturity, aftermath, product. 
The way a scholar-Pandit is granted-provided with money, offerings are made in Agni with sacred hymns. Agni Dev accepts our offerings through the energetic Yagy and grant us heavens. Agni Dev engulf the offerings with his flames, just like burning the forests. Agni Dev digest the offerings including hard objects.
तमस्य पृक्षमुपरासु धीमहि नक्तं यः सुदर्शतरो दिवातरादप्रायुषे दिवातरात्। आदस्यायुर्ग्रभणवद्वीळु शर्म न सूनवे। भक्तमभक्तमवो व्यन्तो अजरा अग्नयो व्यन्तो अजराः
रात्रि में अग्नि देव दिन से भी अधिक दर्शनीय हो जाते हैं। दिन में ये तेजस्विता से शून्य रहते हैं। हम अग्नि के उद्देश्य से वेदी के पास हव्य प्रदान करते हैं। जैसे पिता के पास पुत्र दृढ़ और सुखकर गृह प्राप्त करता है, उसी प्रकार अग्निदेव भी अन्न ग्रहण करते हैं। भक्त और अभक्त को समझकर ही ये दोनों की रक्षा करते हैं। अग्निदेव हव्य भक्षण करके अजर हो जाते हैं।[ऋग्वेद 1.127.5]
ये अग्नि रात में दर्शनीय होते हैं। ये दिन में पूर्ण तेजस्विता प्राप्त नहीं करते। सुत के लिए जनक की शरण के समान सहारा देते हैं। भक्त या अभक्त सभी का अन्न खाते हैं। हवि भक्षण करने वाले ये कभी वृद्ध नहीं होते।
Agni Dev is more visible at night as compared to the day. We make offerings to Agni Dev in the Yagy Kund-fire pot. Agni Dev accepts the food grains, just like the son who feel comfortable with his father. He protects both the devotee and non devotee. Agni Dev accepts the offerings and become free from aging-old age.
स हि शर्धो न मारुतं तुविष्वणिरप्नस्वतीषूर्वरास्विष्टनिरार्तनास्विष्टनिः। आदद्धव्यान्याददिर्यज्ञस्य केतुरर्हणा। अध स्मास्य हर्षतो हृषीवतो विश्वेजुषन्त पन्थां नरः शुभे न पन्थाम्
मरुत् के बल की तरह स्तवनीय अग्निदेव यथेष्ट ध्वनि से युक्त हैं। कर्म कारिणी श्रेष्ठ भूमि से पर अग्निदेव का यज्ञ करना उचित है। सेना विजय करने के लिए अग्निदेव का याग करना उचित है। ये हव्य भक्षण करते हैं। वे सर्वत्र दानशील और यज्ञ की पताका हैं। वे सर्वत्र पूजनीय हैं। यजमानों के लिए हर्षदाता और प्रसन्न अग्निदेव के मार्ग की निर्भय राजपथ की तरह सुख प्राप्ति के लिए सभी लोग सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.6]
मरुतों के तुल्य यह अग्नि उर्वरा और मरुभूमि में अनुष्ठान योग्य हैं। वह अनुष्ठान में ध्वज रूप हुए हव्य भक्षण करते हैं। अग्नि के उत्तम मार्ग का अनुसरण करते हुए इन सभी की उपासना करें।
सेना :: वाहिनी, लाम, लशकर, दल-बल, फौज; army, military, forces.
Agni Dev deserve worship-prayers just like Marud Gan. They are associated with sound while burning. Its better to perform Yagy at a place which is suitable for performances (endeavours, deeds, work). To win an army, Agni worship-prayers may be conducted. Agni Dev resort to charity every where and is the flag mast-sign of the Yagy. He deserve worship every where. He grant pleasure-happiness to the worshipers. He is worshiped-prayed for comforts-pleasure by everyone.
द्विता यदीं कीस्तासो अभिद्यवो नमस्यन्तउपवोचन्त भृगवो मथ्नन्तो दाशा भृगवः। अग्निरीशे वसूनां शुचिर्यो धर्णिरेषाम्। प्रियाँ अपिधीर्वनिषीष्ट मेधिर आ वनिषीष्ट मेधिरः 
श्रौत और स्मार्त्त, उभय प्रकार के अग्निदेव का गुण कहने वाले दीप्तिशाली नमस्कार प्रवीण और हव्य दाता भृगु गोत्रज महर्षि लोग हवि देने के लिए अरणि द्वारा अग्नि देव का मन्थन करके स्तुति करते हैं। प्रदीप्त अग्नि देव सारे धनों के अधीश्वर हैं। ये यज्ञ वाले हैं और भली-भाँति प्रिय हव्य भक्षण करने वाले हैं। अग्निदेव मेधावी हैं और वे अन्य देवताओं को भी उनका भाग प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.7]
श्रुति विहित कर्म को 'श्रौत' एवं स्मृति विहित कर्म को 'स्मार्त' कहते हैं। श्रौत एवं स्मार्त कर्मों के अनुष्ठान की विधि वेदांग कल्प के द्वारा नियंत्रित है। वेदांग छह हैं और उनमें कल्प प्रमुख है। पाणिनीय शिक्षा उसे 'वेद का हाथ' कहती है। कल्प के अंतर्गत श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र समाविष्ट हैं। इनमें श्रौतसूत्र श्रौतकर्म के विधान, गृह्यसूत्र स्मार्तकर्म के विधान, धर्मसूत्र सामयिक आचार के विधान तथा शुल्बसूत्र कर्मानुष्ठान के निमित्त कर्म में अपेक्षित यज्ञशाला, वेदि, मंडप और कुंड के निर्माण की प्रक्रिया को कहते हैं।
श्रौत सूत्र के अनुसार अनुष्ठानों की दो प्रमुख संस्थाएँ हैं, जिन्हें हवि: संस्था तथा सोम संस्था कहते हैं। स्मार्त अग्नि पर क्रियमाण पाक संस्था है। इन तीनों संस्थाओं में सात सात प्रभेद हैं, जिनके योग से 21 संस्थाएँ प्रचलित हैं। हवि: संस्था में देवता विशेष के उद्देश्य से समर्पित हविर्द्रव्य के द्वारा याग किया जाता है। सोम संस्था में श्रौताग्नि पर सोमरस की आहुति की जाती है तथा पश्वालंभन भी विहित है। इसलिए ये पशुययाग हैं। इन संस्थाओं के अतिरिक्त अग्निचयन, राजसूय और अश्वमेध प्रभृति याग तथा सारस्वतसत्र प्रभृति सत्र एवं काम्येष्टियाँ हैं।
श्रौतकर्म के दो प्रमुख भेद हैं। नित्य कर्म जैसे अग्नि होत्र-हवन तथा नैमिति कर्म जो किसी प्रसंगवश अथवा कामना विशेष से प्रेरित होकर यजमान करता है। स्वयं यजमान अपनी पत्नी के साथ ऋत्विजों की सहायता से याग कर सता है। यजमान द्वारा किए जानेवाले क्रिया-कलाप, ऋत्विजों के कर्तव्य, प्रत्येक कर्म के आराध्य देवता, याग के उपयुक्त द्रव्य, कर्म के अंग एवं उपांगों का सांगोपांग वर्णन तथा उनका पौर्वापर्य क्रम, विधि के विपर्यय का प्रायश्चित्त और विधान के प्रकार का विधिवत् विवरण श्रौत सूत्र का एक मात्र लक्ष्य है।
श्रौत कर्मों में कुछ कर्म प्रकृति कर्म होते हैं। इनके सांगोपाग अनुष्ठान की प्रक्रिया का विवरण श्रौत सूत्रों ने प्रतिपादित किया है। जिन कर्मों की मुख्य प्रक्रिया प्रकृति कर्म की रूप रेखा में आबद्ध होकर केवल फल विशेष के अनुसंधान के अनुरूप विशिष्ट देवता या द्रव्य और काल आदि का ही केवल विवेचन है वे विकृति कर्म हैं, कारण श्रौत सूत्र के अनुसार 'प्रकृति भाँति विकृति कर्म करो' यह आदेश दिया गया है। इस प्रकार श्रौत सूत्रों के प्रतिपाद्य विषय का आयाम गंभीर एवं जटिल हो गया है, कारण कर्मानुष्ठान में प्रत्येक विहित अंग एवं उपांग के संबंध में दिए हुए नियमों का प्रतिपालन अत्यंत कठोरता के साथ किया जाना अदृष्ट फल की प्राप्ति के लिए अनिवार्य है।
श्रौत कर्म के अनुष्ठान में चारों वेदों का सहयोग प्रकल्पित है। ऋग्वेद के द्वारा होतृत्व, यजुर्वेद के द्वारा अध्वर्यु कर्म, सामवेद के द्वारा उद्गातृत्व तथा अथर्ववेद के द्वारा ब्रह्मा के कार्य का निर्वाह किया जाता है। अतएव श्रौत सूत्र वेद चतुष्टयी से संबंध रखते हैं। यजमान जिस वेद का अनुयायी होता है उस वेद अथवा उस वेद की शाखा की प्रमुखता है। इसी कारण यज्ञीय कल्प में प्रत्येक वेदशाखानुसार प्रभेद हो गए हैं जिन पर देशाचार, कुलाचार आदि स्वीय विशेषताओं का प्रभाव पड़ा है। इस कारण कर्मानुष्ठान की प्रक्रिया में कुछ अवांतर भेद शाखा भेद के कारण चला आ रहा है और हर शाखा का यजमान अपने अपने वेद से संबद्ध कल्प के अनुशासन से नियंत्रित रहता है। इस परंपरा के कारण श्रौतसूत्र भी वेदचतुष्टयी की प्रभिन्न शाखा के अनुसार पृथक् पृथक् रचित हैं।
भृगुओं ने मुख ऊँचा कर जब इनका यशगान ने किया और अग्नि के पास जाकर हवियाँ दी, तब धनों के दाता अग्नि ने संतुष्ट होने पर प्रसन्नता प्रकट की। हे प्रजाओं के दाता, पालक अग्ने! तुम्हें ग्रहण करने के लिए आहूत करते हैं। तुम प्राणियों के अतिथि हो। जनक के समान तुमसे ये मरण धर्मा प्राणी अमरत्व प्राप्त करते हैं। तुम देवताओं की हवि रूप पराक्रम पहुँचाते हो।
Strotr & Smart are the two kinds of endeavours-deeds, which are performed-conducted by the descendents of Bhragu Rishi, who rub pieces of wood-Arni to obtain fire for the Yagy. Ignited-burning fire (Agni Dev) is the demigod of all sorts of wealth. He resort to Yagy and digest all offerings in the Yagy. He is very intelligent and carry forward the share of the demigods-deities to them.
विश्वासां त्वा विशां पतिं हवामहे सर्वासांसमानं दम्पतिं भुजे सत्यगिर्वाहसं भुजे। अतिथिं मानुषाणां पितुर्न यस्यासया। अमी च विश्वे अमृतास आ वयो हव्या देवेष्वा वयः
समस्त यजमानों के रक्षक व सभी मनुष्यों के एक से गृहपालक, सर्वसम्मत फल विशिष्ट, स्तुति वाहक और मनुष्य आदि के लिए अतिथि की तरह पूज्य अग्निदेव को भोग के लिए हम आवाहित करते हैं। जैसे पुत्र लोग पिता के पास जाते हैं, वैसे ही हव्य के लिए ये सारे देवता अग्रिदेव के पास आते हैं। ऋत्विकगण भी देवों के यज्ञ काल में अग्निदेव को हव्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.8]
हे अग्ने! तुम देव अर्चन के लिए प्रकट होते हो। तुम्हारी खुशी ही शक्ति है। ज्ञान से ही यशस्वी हो। हे जरा पृथक! मनुष्य इसलिए तुम्हारी सेवा करते हैं। आराधकों! शक्ति से विजेता, सवेरे जागने वाले हितकारक अग्नि के लिए तुम्हारी वाणी श्लोक पाठ करें। बन्दीजन जैसे वन्दना करते हैं, वैसी यजमान हवियों से परिपूर्ण हुआ अग्नि का पूजन करता है।
Hey Agni Dev, we invite you, being the protector of the hosts, priests, households, grants the award related to certain endeavours, conveys the prayers to the related deity-demigod and is honourable-revered for the humans. The way a son goes to his father, the demigods-deities comes to you. The priests & host make offerings to you during the period they perform-conduct Yagy. 
त्वमग्ने सहसा सहन्तमः शुष्मिन्तमोजायसे देवतातये रयिर्न देवतातये। शुष्मिन्तमो हि ते मदो द्युम्निन्तम उत क्रतुः। अघ स्मा ते परि चरन्त्यजर श्रुष्टीवानो नाजर
जिस प्रकार से देवों के यजन के लिए धन पैदा होता है, उसी प्रकार हे अग्निदेव! आप भी देवों के यज्ञार्थ उत्पन्न होते हैं। अपने बल से आप शत्रुओं के पराभवकर्ता और अतीव तेजस्वी है। आपका आनन्द अत्यन्त बलदाता है। आपको यज्ञ अत्यन्त फलप्रद है। हे अजर और हे भक्तों के जरा निवारक अग्निदेव! इसीलिए यजमान लोग दूतों की तरह आपकी पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.9]
हे अग्ने! देवगणों के सखा तुम हमारे समीप रहते हुए हितकारी धनों को लाओ। इस धरती में भोगों का उपभोग करने में हमें शक्ति प्रदान करो। अपने स्तोताओं को पराक्रम से युक्त करो।
The way money is grown for worshiping the deities-demigods, you grow for the welfare of demigods-deities. You lead to the defeat of the enemy and is energetic-brilliant. Your pleasure grants extreme strength & power. The Yagy leads to strengthening you. Hey ever young, remover of the old age of the worshippers, Agni Dev! This is the reason why the hosts pray to you like a messenger.
प्र वो महे सहसा सहस्वत उषर्बुधे पशुषे नाग्नये स्तोमो बभूत्वग्नये। प्रति यदीं हविष्मान्विश्वासु क्षासु जोगुवे। अग्रे रेभो न जरत ऋषूणां जूर्णिर्होत ऋषूणाम्
हे स्तोतागण! हविवाले यजमान इन अग्निदेव के लिए सारी वेदी भूमि पर बार-बार गमन करते हैं, इसलिए आपका स्तोत्र उस पूज्य शत्रु पराभवकारी प्रातः काल में जागरणशील और पशुदाता अग्निदेव की प्रीति उत्पन्न करने में समर्थ हैं। धनवान् के पास जैसे बन्दी स्वयं करता है, वैसे ही होतागण पहले देवों में श्रेष्ठ अभिदेव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.10]
आहूत करते है तुम के अतिथि हो। जनक के समान तुमसे ये मरण धर्मा प्राणी अमरत्व प्राप्त करते हैं। तुम देवताओं को हवि रूप पराक्रम पहुँचाते हो। हे -अग्ने! तुम देव अर्चन के लिए प्रकट होते हो। तुम्हारी खुशी ही शक्ति है। ज्ञान से ही यशस्वी हो। हे जरा पृथक! मनुष्य इसलिए तुम्हारी सेवा करते हैं।
Hey hosts! Those who are making sacrifices to Agni Dev move repeatedly to the Yagy Vedi. Hence, the prayers are made by you to the revered Agni Dev, who is capable of defeating the enemy, who gets up early in the morning and grant cattle. The way the needy goes to the rich, the hosts go to the best among the demigods-deities Agni Dev for prayers-worship.
स नो नेदिष्ठं दद्य्शान आ भराग्ने देवेभिः सचनाः सुचेतुना महो रायः सुचेतुना। महि शविष्ठ नस्कृधि संचक्षे भुजे अस्यै। महि स्तोतृभ्यो मघवन्त्सुवीर्यं मथीरुग्रो न शवसा॥
हे अग्निदेव! समीप से दीप्तिमान दिखाई देने वाले आप सभी देवताओं द्वारा पूज्यनीय हैं। आप कृपा करके उत्तम धन से हमें परिपूर्ण करें। हे सामर्थ्यवान् अग्नि देव! दीर्घायुष्य के लिए उपभोग्य पदार्थों को प्रदत्त करके आप हमें यशस्वी बनायें। हे ऐश्वर्य युक्त अग्निदेव! आप अपने याचकों को उत्तम शौर्य सम्पन्न व पराक्रमी बनायें तथा अपनी सामर्थ्य शक्ति द्वारा शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 1.127.11]
आराधकों! शक्ति से विजेता, सवेरे जागने वाले हितकारक अग्नि के लिए तुम्हारी वाणीं श्लोक पाठ करें। बन्दीजन जैसे वन्दना करते हैं, वैसी यजमान हवियों से परिपूर्ण हुआ अग्नि का पूजन करता है। हे अग्ने! देवगणों के सखा तुम हमारे समीप रहते हुए हितकारी धनों को लाओ। इस धरती में भोगों का उपभोग करने में हमें शक्ति प्रदान करो। अपने स्तोताओं को पराक्रम से युक्त करो।
Hey Agni Dev! You have aura visible from near and you are respected by the demigods-deities. Please grant us riches. Grant us the food stuff which will make us strong, long lived and glorious. Hey opulence, grandeur possessing Agni Dev! Grant bravery and strength to your worshipers and destroy the enemy with your might.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (128) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- अग्नि, छन्द :- अत्यष्टि। 
अयं जायत मनुषो धरीमणि होता यजिष्ठ उशिजामनु व्रतमग्निः स्वमनु व्रतम्। विश्वश्रुष्टिः सखीयते रयिरिव श्रवस्यते। अदब्यो होता नि षददिळस्पदे परिवीत इळस्पदे
देवों को बुलाने वाले और अतीव यज्ञशील, ये अग्निदेव फल प्रार्थियों के और अपने हवि भोजन के उद्देश्य से मनुष्यों द्वारा अरणी मन्थन से उत्पन्न होते हैं। मित्रता की भावना करने वालों को यह सर्वस्व और धन की कामना करने वालों के लिए धन का अक्षय भण्डार प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.128.1]
हे पूजनीय होता! अग्नि मनुष्यों द्वारा अरणियों से रचित हुए, तपस्वियों की सभी बात सुनते हैं। वे यशस्वी को धन के समान हैं। कदापि पीड़ित न होने वाले होता रूप से पूजा स्थान में पधारते हैं।
Agni Dev, who invites the demigods-deities to the Yagy, is himself extremely dedicated to the Yagy and evolve by rubbing two pieces of wood, called Arni. He evolves to grant the reward of the endeavours (Pious, Satvik deeds of the hosts) and accept the offerings. He grants imperishable riches-wealth to those who are friendly. 
तं यज्ञसाधमपि वातयामस्मृतस्य पथा नमसा हविष्मता देवताता हविष्मता। स न ऊर्जामुपाभृत्यया कृपा न जूर्यति। यं मातरिश्वा मनवे परावतो देवं भाः परावतः
हम लोग यज्ञानुष्ठान और घृत आदि से युक्त तथा नम्रता से सम्पन्न स्तोत्र द्वारा बहु हव्य वाले और देव यज्ञ में साधक अग्निदेव की परितोष के साथ सेवा करते हैं। वे अग्निदेव हमारे हव्य रूप अत्र को लेने में समर्थ होकर नाश को नहीं प्राप्त होंगे। मनु के लिए मातरिश्वा ने अग्निदेव को दूर से लाकर प्रज्वलित किया। उसी प्रकार हमारे यज्ञस्थल पर दूर से आकर हमारी यज्ञशाला में अग्निदेव हविरूप अन्न को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.128.2]
परितोष :: इच्छा पूर्ति से होनेवाली प्रसन्नता, संतोष; fulfilment, satisfaction, contentment.
हम अत्यन्त विनम्र हुए यज्ञ अनुष्ठान में घृतादि परिपूर्ण हवि भेंट करते हुए अग्नि का पूजन करते हैं। वे हमारी हवियों को प्राप्त कर वृद्धि करेंगे। जैसे मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर जंगल के लिए प्रदीप्त किया, वैसे हमारे यज्ञ स्थान में अग्नि दूर से आकर प्रदीप्त होता है।
We feel satisfied-content when we serve Agni Dev, in the Dev Yagy (Yagy meant for the demigods-deities) in which several offerings like Ghee are made. Agni Dev will not vanish by accepting our offerings in the form of food grains. The way Matrishwa brought Agni Dev from a distant place for Manu, the same way you come to us from a distant place and accept our offerings in the form of foods grains.
एवेन सद्यः पर्येति पार्थिवं मुहुर्गी रेतो वृषभः कनिक्रदद्दधद्रेतः कनिक्रदत्। शतं चक्षाणो अक्षभिर्देवो वनेषु तुर्वणिः सदो दधान उपरेषु सानुष्वग्निः परेषु सानुषु
सदैव स्तुति किये जाने वाले हवि सम्पन्न अभीष्ट फल दाता और सामर्थ्यशाली अग्निदेव शब्द करके जाते हुए तत्काल पार्थिव वेदी के चारों ओर शब्द करके आते हैं। ये अग्निदेव स्तोत्र ग्रहण करके अग्र स्थानीय शिखा द्वारा चारों ओर प्रकाशमान होते हुए उच्च स्थानीय श्रेष्ठ यज्ञ में तत्काल पधारते हैं।[ऋग्वेद 1.128.3]
सदा पूजनीय हवि युक्त, अभीष्ट दाता, समर्थ अग्नि वेदी के चारों ओर शब्द करते हुए प्राप्त होते हैं। वे स्तोत्र ग्रहण करते हुए श्रेष्ठ यज्ञ में तुरन्त प्रदीप्त होते हैं।
Agni Dev, who is always prayed-worshiped & grants the desired rewards-boons, comes making sound round the Yagy place-Vedi. He accept the prayers and shows off with its front place-point around the Yagy Peeth-place in the excellent Yagy. 
स सुक्रतुः पुरोहितो दमेदमेऽग्निर्यज्ञस्याध्वरस्य चेतति कृत्वा यज्ञस्य चेतति। क्रत्वा वेधा इषू यते विश्वा जातानि पस्पशे। यतो घृतश्रीरतिथिरजायत वह्निर्वेधा अजायत
शोभन कर्मा और पुरोहित अग्निदेव, प्रत्येक यजमान के घर में अहिंसा युक्त यज्ञ को जान सकते हैं। ये कर्म के द्वारा यज्ञ को जान सकते हैं। वे कर्मों के विविध फलदाता बनकर यजमान के लिए अन्न की कामना करते हैं। ये हव्यादि को ग्रहण करते हैं; क्योंकि वे घृत भक्षी अतिथि के रूप में उत्पन्न हुए है। इनके प्रवृद्ध होने पर हव्यदाता विविध फल प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.128.4]
पंडित रूप अग्नि यजमान के गृह में अविनाशी अनुष्ठान के ज्ञाता हैं। वे कार्यों की शक्ति देने की कामना से हवि प्राप्त करते हैं। वे अतिथि रूप से घृत भक्षण करने वाले हविदाता को अभिष्ट प्रदान करते हैं। 
Agni Dev who is committed to Satvik-virtuous deeds, can identify the the Yagy free from violence, of the host. He recognises the Yagy by virtue of its nature, Karm-tendency. He become the deity granting rewards of the endeavours to the hosts and blesses them with food grains. On being blessed, the hosts making offerings gets various rewards-fulfilment of their desires-boons.
क्रत्वा यदस्य तविषीषु पृञ्चतेऽग्नेरवेण मरुतां न भोज्येषिराय न भोज्या। स हि ष्मा दानमिन्वति वसूनां च मज्मना। स नस्त्रासते दुरितादभिह्रुतः
जैसे मरुद्गण भक्षणीय द्रव्य को एक में मिलाते हैं, इन अग्नि को जैसे भक्ष्य द्रव्य दिया जाता है, वैसे ही यजमान लोग कर्म द्वारा अग्नि की प्रबल शिखा में तृप्ति के लिए भक्षणीय द्रव्य मिलाते हैं। अपने धन के अनुसार यजमान हव्य प्रदान करता है। जो पाप हमारा हरण करता है, उस हरणकारी दुःख और हिंसक पाप से अग्निदेव हमें बचाये।[ऋग्वेद 1.128.5]
जैसी मरुद्गण भक्ष्य द्रव्य को इकट्ठा करते हैं, वैसे ही प्राणी भक्ष्य पदार्थ को इकट्ठा करके अग्नि को हवि देते हैं। तब वह दान की प्रेरणा करते हुए हविदाता को पाप कर्म से बचाते हैं।
The way Marud Gan mixes the eatable offerings together, Agni Dev is offered the eatables, the same way hosts make offerings to Agni Dev in his brilliant flames. The host make offerings as per his capability. Let Agni Dev protect us from the sins which torture, worry us, giving pain-sorrow.
विश्वो विहाया अरतिर्वसुर्दधे हस्ते दक्षिणे तरिणिर्न शिश्रथच्छ्रवस्यया न शिश्रथत्। विश्वस्मा इदिषुध्यते देवत्रा हव्यमोहिषे विश्वस्मा इत्सुकृते वारमृण्वत्यग्निर्द्वारा व्यृण्वति
हे विश्वात्मक! महान् और विराम रहित अग्नि देव सूर्य की तरह दाहिने हाथ में धन रखते हैं। उनका यह हाथ यज्ञ कारी के लिए मुक्त हस्त खुला रहता है। केवल हवि पाने की आशा से अग्निदेव उसे नहीं छोड़ते। हे अग्निदेव! आप समस्त हवि कामी देवताओं के लिए हवि का वहन करते हैं और उत्तम कर्म करने वालों के निमित्त धन प्रदान करते हैं। आप उनके लिए वहन करते हैं और उत्तम कर्म करनेवालों के निमित्त धन प्रदान करते हैं। आप उनके लिए धनकोश को पूर्ण रूप से खोल देते है।[ऋग्वेद 1.128.6]
अग्नि रूप से समस्त स्थायी दायें हाथ में लेकर हितार्थ त्यागते हैं। वे वंदनाकारी की हवियाँ देवों को पहुँचाते हैं। सुकर्म वालों को महान धन भण्डार के दरवाजे खोल देते हैं।
Hey entire universe pervading Agni Dev! You always have riches in your hands, just like the Sun-Sury Dev. Your feasts are open for the one who is conducting the Yagy. You do not release the riches just for the sake of accepting offerings. You carry the offerings for the demigods-deities and grant amenities to those who perform virtuous deeds. Your purse-treasures are always open for those performing righteous, pious, honest, truthful, virtuous deeds.
स मानुषे वृजने शंतमो हितोग्निर्यज्ञेषु जेन्यो न विश्पतिः प्रियो यज्ञेषु विश्पतिः। स हव्या मानुषाणामिळा कृतानि पत्यते। स नस्त्रासते वरुणस्य धूर्तेर्महो देवस्य धूर्तेः
मनुष्य के पाप निमित्तक यज्ञ में अग्निदेव विशेष हितकारी है। विजयी राजा की तरह यज्ञ के स्थल में ये मनुष्य के पालक और प्रिय है। यजमानों की यज्ञवेदी में रखे हव्य के लिए ये आते हैं। हिंसक यज्ञ बाधक के भय से और उन महान् पाप देव की हिंसा से ये हमारा उद्धार करें।[ऋग्वेद 1.128.7]
वे अग्नि वेदी में राजा के तुल्य विद्यमान किये गये हैं। सभी मनुष्यों की वदंनाएँ के संग दी हुई हवियों के स्वामी हैं। वह हमें वरुणादि देवगण के कोप से बचाते हैं।
Agni Dev is present in the Yagy as the king. He is the master of all prayers-worships conducted during the Yagy, like a king and is dear to humans and nurtures them. He arrives to accept the offerings available in the Yagy. Let him protect us from all types-sorts of violence and the sins. 
अग्निं होतारमीळते वसुधितिं प्रियं चेतिष्ठमरतिं न्येरिरे हव्यवाहं न्येरिरे। विश्वायुं विश्ववेदसं होतारं यजतं कविम्। देवासो रण्वमवसे वसूयवो गीर्भी रण्वं वसूयवः॥ 
धन को धारण करने वाले सभी के प्रिय उत्तम बुद्धि देने वाले और कहीं न रुकने वाले अग्निदेव की ऋत्विक गण स्तुति करते और उन्हें भली-भाँति प्राप्त किये हुए हैं। हव्य वाही प्राणियों के प्राणरूप सर्वप्रज्ञा समन्वित देवों को बुलाने वाले यजनीय और मेधावी अग्निदेव को ऋत्विकों ने अच्छी तरह प्राप्त कर लिया है। ऋत्विकगण धन की कामना से प्रेरित होकर अपने संरक्षण के लिए उन मन को हरण करने वाले अग्निदेव के स्तोत्रों का गान करते हुए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.128.8]
धन धारक अत्यन्त चैतन्य, प्रिय होता अग्नि की यजमान अर्चना करते हैं। सबके प्राण रूपी धनेश यजन योग्य मेधावी अग्नि के पास सभी देवगण धन की कामना वाले की रक्षा के लिए पहुँचते हैं।
Custodian of all wealth, dear to all, granting excellent intelligence-prudence, never stopping-resting Agni Dev is worshiped by the hosts-priests and all of them have attained him. He is the soul of those who make offerings & invites all demigods-deities to the Yagy site. Those who desire money-wealth, riches, amenities pray to him with the help of Strotr, hymns.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (140) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, आदि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
वेदिषदे प्रियधामाय सुद्युते धासिमिव प्र भरा योनिमग्नये। वस्त्रेणेव वासया मन्मना शुचिं ज्योतीरथं शुक्रवर्णं तमोहनम्
अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) वेदी पर बैठे हुए, अपने प्रिय धाम उत्तर वेदी पर, प्रीति सम्पन्न और प्रकाशशील अग्नि के लिए आप अन्नवान् वेदी बनावें। उस पवित्र ज्योति से संयुक्त, दीप्तवर्ण और अन्धकार विनाशी स्थान के ऊपर वस्त्र की तरह मनोहर कुश को बिछावें।[ऋग्वेद 1.140.1]
हे मनुष्यों! वेदी में विद्यमान, ज्योर्तिवान, अग्नि के लिए हवियाँ सम्पादन करो उस शुद्ध दीप्ती रूप रथ वाले, अंधकार के नाशक, अग्नि को अपने श्लोकों से वज्र के तुल्य ढको।
Let the hosts construct seat for sitting, Hawan Kund-Uttar Vedi (fire place) & a Vedi for having food grains to make offerings, with love & devotion to brilliant fire, in conformity with Yajur Ved. Let Kush  (dried grass) be spread over the sitting space lit by light and the fire removing darkness.
अभि द्विजन्मा त्रिवृदन्नमृज्यते संवत्सरे वावृधे जग्धमी पुनः। 
अन्यस्यासा जिह्वया जेन्यो वृषा न्यन्येन वनिनो मृष्ट वारणः
दो काष्ठों के मन्थन द्वारा उत्पन्न अग्नि आज्य, पुरोडाश और सोम नाम के तीन अन्नों को सम्मुख लाकर भक्षण करते हैं। अग्नि के द्वारा भक्षित धन-धान्यादि, संवत्सर के बीच पुनः वृद्धि को प्राप्त होते हैं। अभीष्टवर्षी अग्निदेव! एक ही रूप धारण करके सहायता से वृद्धि को प्राप्त होते हैं। अग्निदेव दूसरे प्रकार का रूप धारित करके, सबको दूर करके, वन वृक्षों को जलाते हैं।[ऋग्वेद 1.140.2]
दो बार प्रकट होने वाली अग्नि तीन प्रकार से अन्नों को ग्रहण करने और भक्षण किये अन्न को वर्ष भर में ही वृद्धि कर देते हैं। हर एक मुख से हवि भक्षण करते और दूसरे से वन वृक्षों को निःशेष करते हैं।
The fire produced by the rubbing of two wood pieces engulf three kinds of grains :- Ajy, Purodas & Som. These grains burnt by fire are again produced seasonally. Agni Dev-the deity of fire engulf the forests as well.
कृष्णप्नुतौ वेविजे अस्य सक्षिता उभा तरेते अभि मातरा शिशुम्। प्राचाजिह्व ध्वसयन्तं तृषुच्युतमा साच्यं कुपयं वर्धनं पितुः
अग्नि के दोनों काष्ठ चलते हैं। कृष्ण वर्ण होकर दोनों ही एक ही कार्य करते हैं और शिशुरूप अग्नि को प्रकाशित करते हैं। शिशु की शिखारूपिणी जिव्हा पूर्वाभिमुखिनी है। यह अन्धकार को दूर कर शीघ्र उत्पन्न होते हैं। धीरे-धीरे लकड़ी के चूर्णों में मिलते हैं। बहुत प्रयत्न से इनकी रक्षा करनी होती है। यह रक्षक को समृद्धि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.140.3] 
इससे प्रज्वलन से काली हुई इसकी दोनों जननी कम्पित होती हैं। यह आगे वाले, गतिवान, भिन्न वर्ण, द्रुतगामी हैं। इनके अश्व पवन की प्रेरणा से जुड़ते हैं।
Both the pieces of wood used for producing fire start burning, become black and produce light. Initially, it bends-moves eastwards and removes darkness. Slowly and gradually it start turning into powder-ashes. The fire thus produced is kept carefully, for use in future. It grants progress to the one, who keep it safe.
मुमुक्ष्योमनवे मानवस्यते रघुद्रुवः कृष्णसीतास ऊ जुवः। 
असमना अजिरासो रघुष्यदो वातजूता उप युज्यन्त आशवः
अग्नि की शिखाएँ लघुगति, कृष्णमार्गी, अस्थिर चित्ता, गमनशीला, कम्पनशीला, वायुचालिता व्याप्ति संयुक्ता मोक्ष मदा और मनस्वी यजमान के लिए उपयोगिनी है।[ऋग्वेद 1.140.4]
यह अग्नि पृथ्वी को सभी ओर से छूती है। यह शब्दवान जब साँस लेते हैं, तब इनकी चिनगारियाँ फैलती हुई, तम का नाश करती हुई बढ़ती हैं।
The flames of fire touches the earth from all sides-directions. They move slowly killing darkness, are unstable like spark, vibrate with air leading to Salvation-Moksh and useful to the organisers of Yagy.
Agni-fire is capable of burning everything to ashes. On acquiring high temperature it decomposes the material into plasma & pure energy forms. One who conform to Yagy with the desire of Moksh may attain it, in due course of time.
आदस्य ते ध्वसयन्तो वृथेरते कृष्णमभ्वं महि वर्पः करिक्रतः। 
यत्सीं महीमवनिं प्राभि मर्मृशदभिश्वसन्त्स्तनयन्नेति नानदत्
जिस समय अग्निदेव गर्जना करके श्वास को फेंककर बार-बार विस्तीर्ण पृथ्वी को छूकर शब्द करते हैं, उस समय अग्नि के सारे स्फुल्लिंग एक साथ चारों ओर जाते हैं। वे अन्धकार का विनाश कर चारों ओर जाते और कृष्णवर्ण मार्ग में उज्ज्वल रूप प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 1.140.5] 
जो अग्नि पीले रंग वाली बूटियों को आच्छादित करने के तुल्य घेरते हैं, ऋषभ के तुल्य गर्जन करते और शक्ति द्वारा शरीर को चमकाते हैं। वह वश में न आने वाले ऋषभ के तुल्य अग्नि लपट रूप सींगों को हिलाते हैं।
Agni Dev make roaring sound like snorting, spread with sparks in all directions remove darkness and lit the way.
The sparks are comparable to the bull moving his horns too frequently-violently.
भूषन्न योऽधि बभ्रूषु नम्नते वृषेव पत्नीभ्येति रोरुवत्। 
ओजायमानस्तन्वश्च शुम्भते भीमो न शृङ्गा दुविधाव दुर्गृभिः
अग्नि देव पीले औषधियों को भूषित करके उनके बीच उतरते हैं। जिस प्रकार से वृषभ गायों की ओर दौड़ता है, वैसे ही शब्द करते हुए अग्निदेव दौड़ते हैं। क्रमशः अधिक तेजस्वी होकर अपने शरीर को प्रकाशित करते हैं। दुर्द्धर्ष रूप धारण करके भयंकर पशु की तरह सींग को घुमाते हैं।[ऋग्वेद 1.140.6]
वह अग्नि देव प्रकट होकर औषधियों को ग्रहण करते हैं। लम्बी शिलाएँ अग्नि को छूती हैं। वे मृत प्रायः होते हुए भी अग्नि से मिलने के लिए प्राणवान हो उठती हैं। 
Agni Dev acquire-engulf (burn) the yellow herbs and run like the bull who rush to the cows. It make him more bright-brilliant (shinning). He acquire dangerous proportions and move all around like a fierce animal.
स संस्तिरो विष्टिरः सं गृभायति जानन्नेव जानतीर्नित्य आ शये। 
पुनर्वर्धन्ते अपि यन्ति देव्यमन्यद्वर्पः पित्रोः कृण्वते सचा
अग्निदेव कभी छिपकर, कभी विराट् होकर औषधियों को व्याप्त करते हैं, मानो यजमान का अभिप्राय जानकर ही अपनी अभिप्राय जानने वाली शिखा को आश्रित करते हैं। शिखाएँ पुनः बढ़कर याग योग्य अग्नि को व्याप्त करती है एवं सब मिलकर पृथ्वी और स्वर्ग का अपूर्व रूप विस्तृत करती है।[ऋग्वेद 1.140.7] 
वे उनके प्रभाव से गति को ग्रहण होती हैं। उनमें अद्भुत गुण भर जाते हैं। फिर ये अग्नि औषधियाँ मिलाकर धरा और क्षितिज को अद्भुत गुण बनाते हैं।
Agni Dev digest the herbs either in hidden state or vide proportions as if he is understanding the desires of he host The flames spread and make extensions over the earth and the heavens. 
Several herbs are used as offerings in the holy fire (Agnihotr, Hawan). These herbs have the power to eliminate several diseases. Their fumes eliminate various germs, virus, bacteria, fungus, harmful microbes. Their impact is experienced over he earth as well as the heavens, since Agni Dev is the mouth of the demigods-deities for accepting offerings. This is called FUME THREPHY.
तमग्रुवः केशिनीः सं हि रेभिर ऊर्ध्वास्तस्आर्पप्रुषीः प्रायवे पुनः। 
तासां जरां प्रमुञ्चन्नेति नानददसुं परं जनयञ्जीवमस्तृतम्
शीर्ष स्थानीय और आगे स्थित शिखायें अग्नि का आलिङ्गन करती हैं, मृतवत् होने पर भी अग्नि का आगमन जानकर ऊर्ध्वमुख होकर ऊपर उठती हैं। अग्निदेव शिखाओं की वृद्धावस्था को छुड़ाकर उन्हें उत्कृष्ट सामर्थ्य और अखण्ड जीवन प्रदान करते हुए गर्जना करते हुए आते हैं।[ऋग्वेद 1.140.8]
अग्नि देव उनका वृद्धापन मिटाते हुए गर्जन करते हैं।
The flames of Agni-fire at the top & front move ahead even though appearing to be dead and rise in an upward direction. Agni Dev frees the flames from their agility, grant them a new lease of life, roaring loudly.
अधीवासं परि मातू रिहन्नह तुविग्रेभिः सत्वभिर्याति वि ज्रयः। 
वयो दधत्पद्वते रेरिहत्सदानु श्येनी सचते वर्तनीरह
पृथ्वी माता के ऊपर के ढक्कन आदि को चाटते-चाटते अग्नि प्रभूत शब्द कर्ता प्राणियों के साथ वेग से गमन करते हैं। पाद विशिष्ट पशुओं को आहार देते हैं। अग्निदेव सदा चाटते हैं और क्रमश: जिस मार्ग से जाते हैं उसे काला करते जाते हैं।[ऋग्वेद 1.140.9]
धरती रूप जननी के परिधान रूप तृण, दवाई आदि को चाटते हुए अग्नि विजयशील के समान चले जाते हैं। फिर दो पायें और चार पार्यों को पराक्रम देते हैं। वे जिधर से निकलते हैं, उधर ही उनके पीछे का रास्ता काला होता जाता है।
Licking the upper surface of the mother earth, Agni Dev produce sound of his own, while spreading-moving fast, leaving the space behind him blackened. He provide food stuff to all two & four legged. 
अस्माकमग्ने मघवत्सु दीदिह्यध श्वसीवान्वृषभो दमूनाः। 
अवास्या शिशुमतीरदीदेर्वर्मेव युत्सु परिजर्भुराणः
हे अग्निदेव! हमारे धनाढ्य घर को अपनी ज्वालाओं से प्रकाशित करें तथा शत्रुओं को नष्ट करने वाले अपने श्वास द्वारा शैशवस्था का त्याग करके संग्राम में हमारा रक्षा कवच बनते हुए प्रकाशमान हों।[ऋग्वेद 1.140.10]
हे अग्नि! तुम दान शील के घर से प्रदीप्त होते हुए ऋषभ के समान सांस लेते हो। फिर ऐसे लगते हो, जैसे कोई किशोरावस्था ग्रहण पराक्रमी कवच धारण कर द्वन्द्व की तरफ आता हुआ चमकता है।
Hey Agni Dev! You should lit our prosperous house with your aura-shine and become a shield for us in the war-battle by rejecting your infancy & ejecting your breath to destroy the enemy. 
इदमग्ने सुधितं दुर्धितादधि प्रियादु चिन्मन्मनः प्रेयो अस्तु ते। 
यत्ते शुक्रं तन्वो३ रोचते शुचि तेनास्मभ्यं वनसे रत्नमा त्वम्
हे अग्निदेव! यह जो लकड़ी के ऊपर सावधानी से हव्य रखा गया है, वह आपकी मनोनुकूल प्रिय वस्तु से भी प्रिय हैं। आपके शरीर की शिक्षा से जो निर्मल और दीप्त तेज निकलता है, उसके साथ आप हमें रत्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.140.11] 
हे अग्ने! यह विशेष प्रकार से निवेदन किया गया श्लोक तुम्हें अधिक प्यारा हो। तुम्हारा निर्मल और प्रकाश से युक्त शरीर चमकता है। हमारे लिए रमणीय धनों को देने वाले बन जाओ।
Hey Agni Dev! The offerings placed over the wood carefully are as your wish-liking. The divine hue (aura, light) coming out of your body should be accompanied with jewels for us.
रथाय नावमुत नो गृहाय नित्यारित्रां पद्वतीं रास्यग्ने। 
अस्माकं वीराँ उत नो मघोनो जनाँश्च या पारयाच्छर्म या च
हे अग्निदेव! आप हमारे घर के सदस्यों और वीरों को इस प्रकार की यज्ञ रूप नौका प्रदत्त करें जो उन्हें संसार-सागर से पार उतार सके और सुखों से सम्पन्न  करें।[ऋग्वेद 1.140.12]
हे अग्ने! तुम हमारे घर के व्यक्तियों को या योद्धा के लिए ऐसी अनुष्ठान रूप नौका प्रदान करो जो हम सभी को पार लगाती शरण रूप बने। 
Hey Agni Dev! You should provide our family members with a boat in the form of a Yagy, which can swim us across the vast ocean in the form of life (worldly affairs) associated-accompanied with all pleasure, comforts & luxuries.
अभी नो अग्न उक्थमिज्जुगुर्या द्यावाक्षामा सिन्धवश्च स्वगूर्ताः। 
गव्यं यव्यं यन्तो दीर्घाहिषं वरमरुण्यो वरन्त
हे अग्निदेव! हमारे स्तोत्र आपकी प्रार्थना करने वाले हैं। आकाश, पृथ्वी और अपने आप प्रवाहित होने वाली (सभी) नदियाँ हमें अन्नादि प्रदान करें। हम गाय के द्वारा दिये गये दूध को पीकर बल प्राप्त करें। दुग्ध यज्ञ को ग्रहण करो।[ऋग्वेद 1.140.13]
हे अग्ने! श्लोको की वृद्धि करो। क्षितिज-धरा और स्वर्ग की विचरण शील नदियाँ हमको वरणीय अन्न, शक्ति ग्रहण कराने वाली हों।
Hey Agni Dev!  Our verses (Strotr, hymns) are meant for your worship-prayers. Let sky, earth and the river flowing of their own provide us  food grains. We should become strong by drinking the milk obtained from the cows. Let is become a Yagy performed with milk for attaining milk.

It has been noticed that the link is lost time & again, in the two translation from Sanskrat to Hindi,  quoted above. The translation by two different people too become mismatch. At places it  gives the impression that its not authentic. Still, effort is made to corelate-comprehend it and make it meaningful.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (141) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, आदि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
बळित्था तद्वपुषे धायि दर्शतं देवस्य भर्गः सहसो यतो जनि। 
यदीमुप ह्वरते साधते मतिर्ऋतस्य धेना अनयन्त सस्रुतः
प्रकाशमान अग्निदेव का दर्शनीय तेज वास्तव में इस प्रकार लोग शरीर के लिए धारण करते हैं। वह तेज शरीर बल या अरणि मन्थन से उत्पन्न हुआ है। अग्नि के तेज का आश्रय प्राप्त कर मेरा ज्ञान अपनी अभीष्ट सिद्धि कर सकता है; इसलिए अग्निदेव के लिए स्तुति और हव्य अर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 1.141.1]
जिस शक्ति से रचित हुए हैं, उसी शक्ति रूप दर्शनीय तेज को धारण करते हैं। उनकी कृपा दृष्टि से ही अभिष्ट सिद्धि प्राप्त होती है। सत्य वाणियाँ प्रवाहमान होती हैं। 
People bear-acquire the energy produced by Agni-fire. This energy-aura is produced by rubbing the wood pieces. This knowledge of this energy produced from fire can help me in my accomplishments. Therefore, Agni Dev is prayed-worshiped and offerings are made in it.
पृक्षो वपुः पिआपान्नित्य आ शये द्वितीयमा सप्तशिवासु मातृषु। 
तृतीयमस्य वृषभस्य दोहसे दशप्रमतिं जनयन्त योषणः
प्रथम भौतिक अग्नि के रूप में अन्न को पकाने वाले और शरीर का पोषण करने वाले, द्वितीय कल्याणवाहिनी सप्त मातृकाओं में रहते हैं, तृतीय इस अभीष्ट वर्षी अग्नि के दोहन के लिए रहते हैं। इस प्रकार से दसों दिशाओं में पूजनीय अग्निदेव को अँगुलियाँ मन्थन के द्वारा उत्पन्न करती हैं।[ऋग्वेद 1.141.2]
सप्त मातृका :: ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, इन्द्राणी, कौमारी, वाराही और चामुण्डा अथवा नारसिंही। इन्हें मातर भी कहते हैं।
अन्न साधक अग्नि देव अन्नों में लीन रहते हैं। दूसरे सात कल्याणकारिणी मातृ रूपी धातुओं में विद्यमान होते हैं, तीसरे अग्नि को सिद्ध करने वाले धूल से अग्नि को रचित किया।
In physical state Agni-fire is meant for cooking and nourishing the body Firstly,  secondly it is present in the beneficial-welfare causing 7 Matraka and thirdly, its meant for accomplishment. In this manner the revered Agni Dev is produced with the use of 10 fingers in all the 10 directions.
निर्यदीं बुध्नान्महिषस्य वर्पस ईशानासः शवसा क्रन्त सूरयः। 
यदीमनु प्रदिवो मध्व आधवे गुहा सन्तं मातरिश्वा मथायति
चूँकि महायज्ञ के मूल से सिद्धि करने वाले ऋत्विक् अरणि मन्थन द्वारा अग्नि को उत्पन्न करते हैं, अनादि काल से अच्छी तरह फैलाने के लिए गुहास्थित अग्निदेव को वायुदेवता चालित करते हैं।[ऋग्वेद 1.141.3]
मातरिश्वा प्राचीन काल से अग्नि को पानी में क्रम-पूर्वक मंथन करते हैं। 
The organisers of the Yagy (hosts, Ritviz) produce fire by rubbing the wood for the accomplishment of their Super sacrifices (Maha Yagy). Vayu-Pawan Dev spreads the Agni-fire, since ancient times.
प्र यत्पितुः परमान्नीयते पर्या पृक्षुधो वीरुधो दंसु रोहति। 
उभा यदस्य जनुषं यदिन्वत आदिद्यविष्ठो अभवद्घृणा शुचिः
अग्नि की उत्कृष्टता की प्राप्ति के लिए अग्नि को उत्पन्न-प्रकट जाता है, आहार के लिए वाञ्छित लताएँ अग्नि की शिखाओं पर चढ़ जाती है और अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने) तथा यजमान दोनों ही अग्नि की उत्पत्ति के लिए चेष्टा करते हैं; तब पावन अग्निदेव प्रकट होकर तेजस्वी और बलवान् होते हैं।[ऋग्वेद 1.141.4]
जब अग्नि को उत्कृष्टता के लिए सभी ओर ले जाते हैं, तभी वे दवाइयों पर चढ़ते हैं। जब वे अरणि मंथन द्वारा प्रकट होते हैं, तब वे पवित्र हुए युवा रूप हो जाते हैं। 
Both, the host & the priests make efforts to produce fire-Agni, because of its excellence. Agni Dev rides the flames to accept the offerings, become aurous-possessing aura, strong-mighty.
आदिन्मातृराविशद्यास्वा शुचिरहिंस्यमान उर्विया वि वावृधे। 
अनु यत्पूर्वा अरुहत्सनाजवो नि नव्यसीष्ववरासु धावते
मातृरूपिणी दिशाओं के मध्य में अग्निदेव हिंसा रहित होकर बढ़े हैं, इस समय प्रदीप्त होकर उन्हीं के मध्य बैठे हैं। स्थापन समय में पहले जो सब औषधियाँ (जड़ी, बूटियाँ) प्रक्षिप्त हुई थी, उनके ऊपर ये चढ़ गये चढ़ गये।[ऋग्वेद 1.141.5]
अग्नि मातृ-रूपिणी दिशाओं में बढ़े तथा उन्हीं में व्याप्त हुए। वे सतत् गतिवान बढ़ी तथा नवीन सभी प्रकार की औषधियों की ओर गति करते हैं। विश्वधारक अग्नि मति शक्ति द्वारा पोषण के लिए मनुष्यों के श्लोकों को ग्रहण होते हैं।
Agni Dev occupies his seat in his brilliant form amongest all the directions with out becoming violent. He rides-ignites, the medicines (herbs) offered to him, prior to being installed-initiation of the Yagy.
आदिद्धोतारं वृणते दिविष्टिषु भगमिव पपृचानास ऋञ्जते। 
देवान्यत्क्रत्वा मज्मना पुरुष्टुतो मर्तं शंसं विश्वाधा वेति धायसे
हवि का सम्पर्क करने वाले यजमान धुलोक निवासियों की प्रसन्नता के लिए होम सम्पादक अग्नि देव का वरण करते हैं और राजा की तरह उनकी आराधना करते हैं। ये अग्नि देवता बहुतों के स्तुति योग्य और विश्वरूप हैं। ये यज्ञ सम्पन्न और बलशाली हैं। ये देवों और स्तुति योग्य मर्त्य यजमानों, दोनों के लिए अन्न की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 1.141.6]
इसलिए उन्हें होता रूप में वरण किया जाता है। वे देवता और यजमान दोनों के लिए अन्न की इच्छा करते हैं।
The organisers of the Yagy conduct Yagy for the pleasure-sake of the residents of the upper abodes (demigods-deities) and accept Agni Dev as the priest to do the desired and pray-worship him as a king. Agni Dev deserve the prayers-worship of several hosts, is eternal & pervades the entire universe. He wishes for sufficient food grains for both the host-Pitrs and the demigods.
वि यदस्थाद्यजतो वातचोदितो ह्वारो न वका जरणो अनाकृतः। 
तस्य पत्मन्दक्षुषः कृष्णजंहसः शुचिजन्मनो रज आ व्यध्वनः
जिस प्रकार से विदूषक आदि बड़ी सरलता से लोगों को हँसा देते हैं, उसी प्रकार से वायु द्वारा परिचालित यजनीय अग्नि चारों और व्याप्त होते हैं। अग्नि दहन कर्ता है, उनका जन्म पवित्र हैं, उनका मार्ग कृष्ण वर्ण है और उनके मार्ग में कुछ भी स्थिरता नहीं है। इसीलिए उनके मार्ग में अन्तरिक्ष स्थित है।[ऋग्वेद 1.141.7]
विदूषक :: दिल्लगीबाज़, ठठोल, ठट्ठेबाज, भांड, गंवार, उजड्ड, मसख़रा, clown, jester, joker, buffoon.
जब पूज्य अग्नि पवन की प्रेरणा से बाधा रहित वेग करती हैं तब उनकी यात्रा समाप्त होने पर काली राह तथा उसमें धूल ही अवशिष्ट रहती है। रथ से यात्रा करने वाले तेजस्वी के समान वे अम्बर की यात्रा करते हैं।
The way-manner in which a joker easily make the public laugh, Agni Dev surrounds the entre space guided-governed by Vayu-Pawan Dev to grant pleasure-happiness. Agni is combustible. His birth is pure-pious. His way-path is black and nothing is stable in his way. Hence he resides in the space-sky.
रथो न यातः शिक्कभिः कृतो द्यामङ्गेभिररुषेभिरीयते। 
आदस्य ते कृष्णासो दक्षि सूरयः शूरस्येव त्वेषथादीषते वयः 
रस्सी में बँधे रथ की तरह अपने चञ्चल अंग की सहायता से अग्निदेव स्वर्ग को जाते हैं। उनका मार्ग कालिमा युक्त है, क्योंकि वे लकड़ियों को जलाने वाले हैं। वीरों से भयभीत होकर शत्रुओं के भागने के समान ही इनकी ज्वालाओं को देखकर पक्षी गण भी भाग जाते हैं।[ऋग्वेद 1.141.8]
चञ्चल ::  बेचैन, सक्रिय, चंचल, शरारती, जीवंत; fickle, active, voluble, perk, volatile. 
हे अग्ने! उन काले दस्युओं को तुम नष्ट करते हो। तुम्हारे उपासक वीरों के समान पराक्रम प्राप्त करते हैं।
Agni Dev moves to the heavens with the help of his active organs. His path is full of darkness, since he burns the woods. The birds fly on visualizing his flames just like the enemy, who fled seeing the brave warriors. 
त्वया ह्यग्रे वरुणो धृतव्रतो मित्रः शाशद्रे अर्यमा सुदानवः। 
यत्सीमनु क्रतुना विश्वथा विभुररान्न नेभिः परिभूरजायथाः
हे अग्निदेव! वरुण, सूर्य और अर्यमा देव आपकी सामर्थ्य के बीच उत्तम दान के व्रतों का निर्वाहन करते हैं। आप विश्वात्मा रूप होकर समस्त संसार में व्याप्त और सर्वत्र बलशाली रूप में प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 1.141.9]
हे अग्ने! घृत नियमा वरुण, दानशील अर्थमा और सखा तुम्हारे द्वारा शिक्षा पाते हैं। जैसे रथ का पहिया अरों (डण्डों) को व्याप्त करके रहता है, उसी प्रकार अनुष्ठान कार्यों द्वारा अग्नि देव प्रकट होते हैं।
Hey Agni Dev! Varun, Sury-Sun, Aryma undergoes excellent deeds pertaining to donations and discharging of decisions-duties. You pervade the entire universe and reveal yourself as powerful-mighty.
त्वमग्ने शशमानाय सुन्वते रत्नं यविष्ठ देवतातिमिन्वसि। 
तं त्वा नु नव्यं सहसो युवन्वयं भगं न कारे महिरत्न धीमहि
हे युवा अग्निदेव! जो आपकी स्तुति करते हैं और आपके लिए अभिषव करते हैं, आप उनका रमणीय हव्य लेकर देवताओं को प्रदान करते हैं। हे तरुण, महाधन और बल पुत्र अग्निदेव! आप स्तवनीय और हवि भोक्ता हैं। स्तुति काल के समय हम राजा की तरह आपकी अर्चना करते हैं।[ऋग्वेद 1.141.10] 
हे अत्यन्त युवा अग्नि देव! तुम सोम निष्पन्न करने वाले वंदनाकारी को वैभव योग्य धन प्रेरित करते हो। हम अपने कर्म के लिए भग के समान तुम्हारी प्रार्थना करते हैं।
Hey youthful Agni Dev! You take-carry the lovely offerings of those devotees, who pray-worship you; to the demigods-devotees. Hey young extremely rich, son of power-might! You deserve to be worshiped and awarded offerings. We pray to you as a king during prayers.
अस्मे रयिं न स्वर्थं दमूनसं भगं दक्षं न पपृचासि धर्णसिम्। 
रश्मीरिव यो यमति जन्मनी उभे देवानां शंसमृत आ च सुक्रतुः
हे अग्निदेव! आप जैसे हमें अत्यन्त प्रयोजनीय और उपास्य धन देते हो, वैसे ही उत्साही, जनप्रिय और विद्याध्ययन में चतुर पुत्र प्रदान करें। जिस प्रकार अग्निदेव अपनी किरणों को विस्तारित करते हैं, उसी प्रकार अपने जन्माधार (आकाश और पृथ्वी) को आप विस्तारित करते हैं। हमारे यज्ञ में यज्ञ करने वाले अग्निदेव की स्तुति को विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.141.11]
हे अग्ने! हमारे कार्य के लिए धन और गृह के लिए सौभाग्य प्रदान करो। तुम दोनों लोकों को रासों के हम अपने कर्म के लिए धन और गृह के लिए सौभाग्य प्रदान करो।
Hey Agni Dev! The way you grant us preplanned-organised, wealth-riches, grant us sons who as energetic, admired by the masses and intelligent in acquiring knowledge. The way Agni Dev boosts his rays-energy, similarly the your parents (The Sun & the Earth) do propagate you. Those who are attending-participating in our Yagy boosts-propagate the prayers meant for Agni Dev.
उत नः सुद्योत्मा जीराश्वो होता मन्द्रः शृणवच्चन्द्ररथः। 
स नो नेषन्नेषतमैरमूरोऽग्निर्वामं सुवितं वस्यो अच्छ
अग्निदेव प्रकाशशील, द्रुतगामी अश्व से संयुक्त होता, आनन्दमय, सोने के रथ वाले, अप्रतिहत शक्ति और प्रसन्न स्वभाव वाले हैं। क्या वे हमारा आवाहन सुनेंगे? क्या वे हमें सिद्धि दाता कर्म द्वारा अनायास लक्ष्य और अभिवांछित स्वर्ग की ओर ले जायेंगे?[ऋग्वेद 1.141.12]
तुम दोनों लोकों को रासों के समान वश में रखने और हवन में हमारी प्रार्थना को देवता के समीप पहुँचाते हो। अत्यन्त तेजस्वी अश्वों से युक्त दमकते हुए रथ वाले अग्ने! हमारे आह्वान को सुनो। तुम हमको काम्य सुख देते हुए हमारा कल्याण करो।
Agni Dev is the possessor shinning-brilliant, chariote deploying fast moving horses, has unlimited power-might with always happy postures-mood. Will he respond to our prayers!? Will he take us to the heaven unexpectedly, craved by us?!
अस्ताव्यग्निः शिमीवद्भिरर्कै: साम्राज्याय प्रतरं दधानः। 
अमी च ये मघवानो वयं च मिहं न सूरो अति निष्टतन्युः
जिस प्रकार से सूर्यदेव मेघों में ध्वनि उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार से अग्निदेव के लिए यजमान और ऋषिगण अर्थात् ऋत्विक् लोग उच्च स्वर में इनकी स्तुति करते हैं। तभी ये अग्निदेव स्तोत्र युक्त वाणियों द्वारा आनन्दित होते हैं। [ऋग्वेद 1.141.13]
हमने श्रेष्ठ समृद्धि के लिए अत्यन्त बलिष्ठ अग्नि देव का पूजन किया है। वे अत्यन्त वृद्धि को ग्रहण हों और हम भी उसी प्रकार से वृद्धि करें जैसे बादल ऊपर की ओर चढ़ता है।
The way-manner in which the Sun induce-produce roaring sound in the clouds, the hosts-organisers of the Yagy too pray-worship Agni Dev loudly-rhythmically. It then, that Agni Dev become happy-pleased.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (142) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, आदि, छन्द :- अनुष्टुप, उष्णिक
समिद्धो अग्र आ वह देवाँ अद्य यतस्रुचे। 
तन्तुं तनुष्व पूर्व्यं सुतसोमाय दाशुषे
हे समिद्ध नामक अग्निदेव! जो यजमान स्रुक् ऊँचा किये हुए हैं, उनके लिए आज आप देवों को बुलावें। जिस हव्यदाता यजमान ने होम का अभिषव किया है, उसकी वृद्धि के लिए पूर्वकालीन यज्ञ को विस्तारित करें।[ऋग्वेद 1.142.1]
समिद्ध :: जलता हुआ, प्रज्वलित, प्रदीप्त,  उत्तेजनायुक्त, उत्तेजित,  अग्नि में डाला हुआ, अग्नि में न्यस्त; perfect, inflamed, ignited.
हे अग्ने! तुम दीप्तिमान होकर वृद्धि करते हुए आज इस यजमान के लिए देवगण को लाओ। इस सोम अभिकर्त्ता के लिए प्राचीन अनुष्ठान की वृद्धि करो। 
Hey ignited-inflamed Agni Dev! Please bring the demigods-deities for the sake of the host-Yagy organiser, who has raised the Struk (spoon for making offerings in holy fire-Agnihotr like Ghee). Let the Yagy organised previously be extended for the sake of the growth-progress of the host-devotee.
घृतवन्तमुप मासि मधुमन्तं तनूनपात्। 
यज्ञं विप्रस्य मावतः शशमानस्य दाशुषः
हे तनूनपात् नामक अग्निदेव! मेरे समान जो हव्यदाता और मेघावी यजमान आपकी स्तुति करता है, उसके घृत और मधु से संयुक्त यज्ञ में आकर यज्ञ समाप्ति पर्यन्त रहें।[ऋग्वेद 1.142.2]
तनूनपात् :: अग्नि, आग, चीते का वृक्ष-औषधि के रूप में काम आने वाला एक पेड़, चीता, चीतावर, चित्रक, प्रजापति के पोते का नाम, घी-घृत, मक्खन; son of himself, self-generated (as in lightning or by the attrition of the wood, a sacred form of fire (mainly-generally used in some verses-hymns).
हे अग्ने! तुम मुझ वंदनाकारी हविदाता के घी, शहद से परिपूर्ण अनुष्ठान में अनुष्ठान की समाप्ति तक वास करो।
Hey self-automatically appearing Agni Dev! You should join the Yagy using Ghee & honey, conducted by people like us and stay till it lasts. 
शुचिः पावको अद्भुतो मध्वा यज्ञं मिमिक्षति। 
नराशंसस्त्रिरा दिवो देवो देवेषु यज्ञियः
देवों में स्वच्छ, पवित्र, अद्भुत, द्युतिमान् और यज्ञ सम्पादक नाराशंस नामक अग्निदेव स्वर्ग लोक से आकर हमारे यज्ञ को मधु से मिश्रित करें।[ऋग्वेद 1.142.3]
नाराशंस :: मनुष्यों की प्रशंसा या स्मृति से संबंध रखने वाला, तीन पितृगण :- ऊम, और्व और आत्र्य, यज्ञादि में उक्त पितृगणों के निमित्त छोड़ा जाने वाला सोमरस, वह पात्र जिसमें उक्त सोमरस छोड़ा जाता है, वैदिक रुद्र दैवत्य मंत्र जिसमें मनुष्यों की प्रशंसा की गई है।
पवित्र कर्त्ता, प्रकाशवान देवताओं में देव, प्राणियों द्वारा पूजनीय अग्नि हमारे यज्ञ को तीन बार मधुर रस से सीचें।
Let pious, clean, pure, possessed with brightness and revered-appreciation deserving Agni Dev come to our Yagy to make offerings with honey & Somras. 
ईळितो अग्न आ वहेन्द्रं चित्रमिह प्रियम्। 
इयं हि त्वा मतिर्ममाच्छा सुजिह्व वच्यते
हे अग्नि देव! आपका नाम ईलित है। आप विचित्र और प्रिय इन्द्र को यहाँ ले आयें। हे सुजिह्व (सुन्दर जीभ वा वाणी से युक्त, शोभन ज्वाला वाली) देव! आपके लिए मैं स्तोत्रों का पाठ करता हूँ।[ऋग्वेद 1.142.4]
ईलित :: प्रशंसित, praised, implored, requested.
सुजिह्व :: सुन्दर जीभ वा वाणी से युक्त; शोभन ज्वालावाली; fire, flame, virtuous, demeanour, the Sun, lustrous, purifying, to make pure-free from anything that debases, pollutes, adulterates or contaminates, burning gas or vapor, as from wood or coal, that is undergoing combustion, a portion of ignited gas or vapor, a state, process or instance of combustion in which fuel or other material is ignited and combined with oxygen, giving off light, heat, and flame.
हे अग्नि देव! हम तुम्हारी वंदना करते हैं। तुम इन्द्र को यहाँ लाओ, मेरा यह श्लोक तुम्हारे लिए ही कहा गया है। 
 Hey Agni Dev! Ilit-praised, is of your names. Please bring amazing and lovely Indr Dev here. Hey Sujivh (pleasing words spoken-possessing admirable voice)! I recite hymns-prayers in your honour.
स्तृणानासो यतस्रुचो बर्हिर्यज्ञे स्वध्वरे। 
वृञ्जे देवव्यचस्तममिन्द्राय शर्म सप्रथः
स्रुक धारण करने वाले ऋत्विक् लोग इस यज्ञ में अग्नि रूप कुश को फैलाते हैं और देवों के आवाहन कर्ता विशाल यज्ञ स्थल को इन्द्रदेव के लिए शोभायमान करते हैं।[ऋग्वेद 1.142.5]
स्रुक धारण करने वाले ऋत्विज अनुष्ठान स्थान में कुशाओं को बिछाते तथा देवताओं को आह्वान करने वाले व्यापक अनुष्ठान मंडल को इन्द्रदेव के लिए सजाते हैं।
The Ritviz (hosts & the priests) holding Yagy spread the Kush-used for sitting as cushion, which is a form of fire (when ignited) and decorate the Yagy site to welcome Indr Dev.
वि श्रयन्तामृतावृधः प्रयै देवेभ्यो महीः। 
पावकासः पुरुस्पृहो द्वारो देवीरसश्चतः
महिमा युक्त यज्ञ की वृद्धि करने वाले पवित्र, सर्वथा अलग-अलग दिव्य दरवाजे अर्थात द्वार यज्ञ के निमित्त देवताओं के लिए खोल दिये जायें।[ऋग्वेद 1.142.6]
यज्ञ की वृद्धि वाले, शुद्ध, इच्छा के योग्य, देवों के लिए विशाल यज्ञ द्वार को खोल दो।
Let the glorious, divine doors-gates be opened for the demigods-deities meant for the glorious-majestic Yagy.
आ भन्दमाने उपाके नक्तोषासा सुपेशसा। 
यह्वी ऋतस्य मातरा सीदतां बर्हिरा सुमत्
सभी के स्तुति पात्र, परस्पर सन्निहित, सुन्दर, महान्, यज्ञ निर्माता और अग्नि रूप रात्रि और उषा स्वयं आकर विस्तृत कुशाओं पर विराजें।[ऋग्वेद 1.142.7]
सन्निहित :: समीपस्थ, निकट या साथ का, पड़ोस का, साथ या पास रखा हुआ, ठहरा हुआ, स्थित, आसन्न, उपस्थित, ठहराया या टिकाया हुआ, जमाया हुआ; near & dear, close to each other.
सबके पूजनीय पात्र, सुन्दर कांति वाले, उत्तम, अग्नि रूप रात-दिन हमारी कुशाओं पर आकर विराजें। 
Let Usha in the form of night, deserving prayers-worship from all, beautiful, near & dear, close to each, other conducting Yagy should come and occupy the broad mates made of Kush.
मन्द्रजिह्वा जुगुर्वणी होतारा दैव्या करौ। 
यज्ञं नो यक्षतामिमं सिध्रमद्य दिविस्पृशम्
देवों की उन्मादक शिक्षा से युक्त, सदा स्तुति शील यजमानों के मित्र, अग्रि रूप दिव्य दोनों होता हमारे इस सिद्धि प्रद और स्वर्ग स्पर्शी यज्ञ का अनुष्ठान करें।[ऋग्वेद 1.142.8]
सुन्दर जिह्वा वाले, स्तोताओं की अभिलाषा वाले, शक्तिशाली अग्नि रूप दोनों होता इस सिद्धि दायक यज्ञ को बढ़ाएँ।
Both the hosts-organisers possessing the knowledge-education (pious, virtuous, righteous knowledge) from the demigods-deities, always busy in prayers-worship conduct our Yagy which grants accomplishments and the heavens.
शुचिर्देदेष्वर्पिता होत्रा मरुत्सु भारती। 
इळा सरस्वती मही बर्हिः सीदन्तु यज्ञियाः
शुद्ध, देवों की मध्यस्था, होम सम्पादिका भारती, इला और सरस्वती; ये अग्नि की तीनों मूर्तियाँ यज्ञ के उपयुक्त होकर कुशों पर विराजमान हों।[ऋग्वेद 1.142.9]
देवताओं द्वारा स्थापित अनुष्ठानों को सिद्ध करने वाली, शुद्ध वाणीरूप भारती, सरस्वती और इला ये तीनों हमारी कुशाओं पर विराजमान हों।
Let Mata Bharti, Ila and Saraswati-the three form of Agni, who accomplish the commitments-endeavours of the demigods-deities, occupy suitable seats made of Kush in the Yagy. 
तन्नस्तुरीपमद्भुतं पुरु वारं पुरु त्मना। 
त्वष्टा पोषाय वि ष्यतु राये नाभा नो अस्मयु:
त्वष्टा हमारे मित्र हैं। वे स्वयं अच्छी तरह हमारी पुष्टि और समृद्धि के लिए मेघ के नाभि स्थित व्याप्त अद्भुत और असंख्य प्राणियों की भलाई करने वाला जल बरसावें।[ऋग्वेद 1.142.10]
हमारे सखा स्वामी त्वष्टा अपने आप ही हमको पुष्ट करने वाले अन्न के लिए जल वृष्टि करें।
Let Twasta-our friend, make clouds to rain for our nourishment, wealth-progress, placing himself at the amazing navel-centre of the clouds, for the welfare-benefit of innumerable organisms-living beings.
अवसृजन्नुप त्मना देवान्यक्षि वनस्पते। 
अग्निर्हव्या सुषूदति देवो देवेषु मेधिरः
हे अग्नि रूप वनस्पति! इच्छानुसार ऋत्विकों को भेजकर स्वयं देवों का यज्ञ सम्पन्न करें। द्युतिमान् और मेघावान् अग्निदेव देवताओं के बीच हव्य भेजते हैं।[ऋग्वेद 1.142.11]
मेघावान् :: धारणा-धारणा शक्तिवाला जिसकी स्मरण शक्ति तीव्र हो, संकल्प शक्ति; One with determination, memory, reminder power is intense.
हे वनस्पते! तुम स्वयं ही देवताओं के पास जाकर यज्ञ करो। बुद्धिमान अग्निदेव देवताओं हेतु प्रेरित करते हैं।
Hey vegetation in the form of Agni Dev! Depute, hosts-Ritviz of your choice to accomplish the Yagy.
पूषण्वते मरुत्वते विश्वदेवाय वायवे। 
स्वाहा गायत्रवेपसे हव्यमिन्द्राय कर्तन
पूषा और मरुतों से युक्त समस्त देवता, वायु और इन्द्रदेव के लिए हवियाँ प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.142.12] 
पूषा और मरुतों से युक्त विश्वदेव रूपी पवन के लिए हवन करो। इन्द्र को लक्ष्य कर हवियों को दो। 
Let us make offerings for the sake of Pusha, Marud Gan, all demigods-deities, Pawan-Vayu & Indr Dev.
स्वाहाकृतान्या गह्युप हव्यानि वीतये। 
इन्द्रा गहि श्रुधी हवं त्वां हवन्ते अध्वरे
हे इन्द्रदेव! हमारा स्वाहा कार युक्त हव्य खाने के लिए पधारें। ऋत्विक् लोग यज्ञ में आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.142.13] 
हे इन्द्रदेव! हमारे श्लोकों की ओर आकर हवि का सेवन करो। हे इन्द्रदेव! हमारे मंत्रों की ओर पधारकर हवि का सेवन करो। हमारे आह्वान को सुनो। हम तुम्हें अनुष्ठान में बुलाते हैं।
Hey Indr Dev! Please come to accept our offerings with the pronouncing Swaha. The Ritviz are inviting you.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (143) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्र तव्यसीं नव्यसीं धीतिमग्नये वाचो मतिं सहसः सूनवे भरे। 
अपां नपाद्यो वसुभिः सह प्रियो होता पृथिव्यां न्यसीदत्वियः
अग्नि बल के पुत्र, जल के नप्ता, यजमान के प्रियतम और होम के सम्पादक हैं। वे यथा समय धन के साथ वेदी पर विराजते हैं। उनके लिए मैं यह नवीन और शुभ फल वर्द्धक यज्ञ आरम्भ करता हूँ और स्तुति पाठ करता हूँ।[ऋग्वेद 1.143.1]
अग्निदेव शक्ति के पुत्र हैं। उनके लिए नवीन श्लोक भेट करता हूँ, वे जलों से रचित हैं और होता के रूप में धनों के साथ अनुष्ठान स्थान में विराजमान हैं।
Agni Dev is the son of Bal (power, might), is a creation of water, dear to the organisers & the patron of Yagy. He occupies the seat of the Yagy at the due-opportunate time. I am praying to him and reciting this Strotr (hymn, prayer) in his honour prior to beginning the auspicious Yagy..
स जायमानः परमे व्योमन्याविरग्निरभवन्मातरिश्वने। 
अस्य क्रत्वा समिधानस्य मज्मना प्र द्यावा शोचिः पृथिवी अरोचयत्
परम आकाश देश में उत्पन्न होकर अग्नि देवता सबसे पहले मातरिश्वा अथवा वायु के पास प्रकट हुए। अनन्तर इन्धन द्वारा अग्नि देव बढ़े और प्रबल कर्म द्वारा उनकी दीप्ति से स्वर्ग और पृथ्वी प्रदीप्त हुई।[ऋग्वेद 1.143.2]
वह अग्नि मातरिश्वा के लिए उच्चस्थ क्षितिज में प्रकट हुए हैं। उनके उज्जवल कर्म से क्षितिज और धरा दोनों प्रकाशमान हुए। 
Having born in space-sky, he appeared before Vayu-Pawan Dev, close to Matrishwa. Thereafter he enhanced with the availability of the fuel. Due to his strong endeavours, both the earth and the heavens were illuminated.
अस्य त्वेषा अजरा अस्य भानवः सुसंदृशः सुप्रतीकस्य सुद्युतः। 
भात्वक्षसो अत्यक्तुर्न सिन्धवोऽग्ने रेजन्ते अजराः
इन अग्नि देव की प्रचण्ड तेजस्विता जीर्णता से हीन है। सुन्दर मुखार विन्दु वाली इनकी तेजस्वी किरणें सभी ओर संव्याप्त होकर प्रकाशित होती हैं, दीप्तिमान शक्ति युक्त और रात्रि के अन्धकार को पार करते हुए इन अग्निदेव की ज्वालारूपी किरणें सदैव जागृत और क्षय रहित होकर कभी भयभीत न होते हुए सदैव जागृत रहती हैं।[ऋग्वेद 1.143.3]
उनके अजर प्रकाश और चमकती चिनगारी रूपी रश्मियाँ शक्तिशाली हैं।
Brilliance of Agni Dev is free from aging. His bright rays spread in all directions. He clears darkness of night and keep awake all the time.
यमेरिरे भृगवो विश्ववेदसं नाभा पृथिव्या भुवनस्य मज्मना। 
अग्निं तं गीर्भिर्हिनुहि स्व आ दमे य एको वस्वो वरुणो न राजति
भृगु वंश में उत्पन्न यजमानों ने अपने सामने जीवों के बल के लिए उत्तर वेदी पर जिन संवर्धनशाली अग्निदेव को स्थापित किया है, अपने घर में ले जाकर उनकी स्तुति करें क्योंकि अग्नि देव प्रधान हैं और वरुण की तरह सम्पूर्ण धनों के स्वामी है।[ऋग्वेद 1.143.4]
उन समुद्र के समान शव को भृगुओं ने अपने पराक्रम से प्रेरित किया, उनकी वंदना करें। हे वरुण के समान सभी धनों के एक मात्र दाता हैं।
The Ritviz-hosts who got birth in Bhragu Vansh (Bhragu clan) have established the Yagy Vedi in the east for the growth of Agni Dev. Take this fire to homes and pray to him, since Agni Dev is the leader and the master of all amenities-wealth. 
न यो वराय मरुतामिव स्वनः सेनेव सृष्टा दिव्या यथाशनिः। अग्निर्जम्भैस्तिगितैरत्ति भर्वति योधो न शत्रून्त्स वना न्यृञ्जते
जिस प्रकार से वायु के शब्द, पराक्रमी राजा की सेना और द्युलोक में उत्पन्न वज्र का कोई निवारण नहीं कर सकता, उसी प्रकार जिन अग्निदेव का कोई निवारण नहीं कर सकता, वे ही अग्निदेव वीरों की तरह तीखे दाँतों से शत्रुओं का भक्षण और विनाश तथा वनों का दहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.143.5]
जो अग्नि मरुतों के ध्वनि, आक्रामक सेना और अम्बर के वज्र के समान बाधा विमुख हैं, वे वनों को नष्ट करते हैं और वनों को योद्धाओं द्वारा शत्रुओं को भून डालने के समान ही जला डालते हैं।
The manner in which the flow of air & the sound produced by it while moving, cannot be curtailed by the army of a might king & the Vajr produced in the heavens, none can eat-digest the Agni Dev; since Agni Dev eats-digest the enemies biting the enemy with his sharp teeth and burn the forests-jungles.
कुविन्नो अग्निरुचथस्य वीरसद्वसुष्कुविद्वसुभिः काममावरत्। 
चोदः कुवित्तुतुज्यात्सातये धियः शुचिप्रतीकं तमया धिया गृणे
अग्निदेव बार-बार हमारे उक्त स्तोत्र को सुनने की इच्छा करें। हे धनशाली अग्निदेव! धन द्वारा बार-बार आप हमारी इच्छा पूर्ण करें। हे यज्ञ-प्रवर्त्तक अग्निदेव! यज्ञ-लाभ के लिए, हमें बार-बार प्रेरित करें; मैं ऐसी स्तुति द्वारा सुदृश्य अग्नि देवता की प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.143.6]
अग्नि हमारे श्लोक की इच्छा करते हुए धन की कामना को पूर्ण करें। हमारे लाभ के लिए कार्यों को प्रेरित करें। मैं अग्नि की प्रार्थना करता हूँ। 
Let Agni Dev desire to listen to the Shlok-hymn sung by us, above. Hey rich-wealthy Agni Dev! You should fulfil our desire for riches-money, again and again. Inspire us to conduct Yagy for the accomplishment our wishes. I pray to beautiful-lovely Agni Dev with the help of such hymns-verses. 
घृतप्रतीकं व ऋतस्य धूर्षदमग्निं मित्रं न समिधान ऋञ्जते। 
इन्धनो अक्रो विदथेषु दीद्यच्छुक्रवर्णामुदु नो यंसते धियम्
आपके यज्ञ निर्वाहक और प्रदीप्त अग्नि को मित्र की तरह जलाकर विभूषित किया जाता है। अच्छी तरह चमकती ज्वाला वाले अग्नि देव यज्ञ स्थल में प्रदीप्त होकर हमारी विशुद्ध यज्ञ विषयक बुद्धि को प्रबुद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 1.143.7]
अग्नि को जलाने वाले यजमान धूर्त चिह्न को सखा बनाने की इच्छा रखते हैं। ये उजाले के दुर्ग के समान यज्ञ में प्रज्वलित होकर हमारे मन को उत्तम वंदना की ओर प्रेरित करते हैं।
Agni Dev who supports-sustain the Yagy, is decorated by making-energising him. Let Agni Dev with his bright flames at the Yagy site grow-develop our intelligence (prudence) pertaining to the Yagy.
अप्रयुच्छन्नप्रयुच्छद्भिरग्ने शिवेभिर्नः पायुभिः पाहि शग्मैः। 
अदब्येभिरदृपिते-भिरिष्टेऽनिमिषद्भिः परि पाहि नो जाः
हे अग्निदेव! हमारे ऊपर कृपा करके सदैव अवहित, माङ्गलिक और सुखकर आश्रय देकर हमारी रक्षा करें। हे सर्वजन वाञ्छनीय अग्निदेव! उत्पन्न होकर आप हिंसा न करते हुए व अजेय और एकनिष्ठ भाव से हमारी रक्षा अच्छी प्रकार से करें।[ऋग्वेद 1.143.8]
हे अग्निदेव! लगातार विश्राम-विमुख कल्याण रूप तुम हमारी सुरक्षा करो, तुम क्लेश रहित और निद्रा रहित सामर्थ्यो से परिपूर्ण हों। हमारी संतान की सभी ओर से सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev! You should protect us-grant us asylum & fulfil our auspicious (virtuous, righteous) wishes. Hey Agni Dev, desired by all! Having lit-grown, protect us unilaterally as a winner.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (144) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती।
एति प्र होता व्रतमस्य माययोर्ध्वा दधानः शुचिपेशसं धियम्। 
अभि स्रुचः क्रमते दक्षिणावृतो या अस्य धाम प्रथमं ह निंसते
बहुदर्शी होता, अपनी उच्च और शोभन बुद्धि के बल से अग्नि की सेवा करने के लिए जा रहे हैं और प्रदक्षिणा करके स्रुक् धारण कर रहे हैं। इसी स्रुक् से अग्नि में प्रथम आहुति देते हैं।[ऋग्वेद 1.144.1]
CIRCUMAMBULATION
 प्रदक्षिणा
देवह्वाता अग्नि यज्ञ की ओर श्लोंको को शक्ति प्रदान करते हुए जाते हैं। वे स्त्रुचों से आहुति ग्रहण करते हुए उठते हैं। अग्नि की लपटें देवस्थान में वेदों से घिरे हुए अनुष्ठान से निकलती हैं।
The hosts-organisers of the Yagy wilt multiple aims-targets (desires, wishes) are moving to serve the Agni with their intelligence, circumambulating (प्रदक्षिणा) the Yagy site, holding Struv in their hands making first offerings to Agni-fire with it. 
अभीमृतस्य दोहना अनूषत योनौ देवस्य सदने परीवृताः।
अपामुपस्थे विभृतो यदावसदध स्वधा अधयद्याभिरीयते
सूर्य की किरणों में चारों ओर फैली जल धारा उनकी उत्पत्ति के स्थान सूर्य लोक में फिर नई होकर उत्पन्न होती है। जिस समय जिसकी गोद में आदर के साथ अग्नि देव रहते हैं, उसी समय लोग अमृतमय जल पीते हैं और अग्नि, विद्युत् अग्नि के रूप में मिलते हैं।[ऋग्वेद 1.144.2]
जलों की गोद में अन्तर्हित रहे अग्नि देव ने प्रकट होकर अपना गुण प्राप्त किया।
The flowing water present in the the rays of Sun, refreshes itself in the Sun-its origin. Agni Dev resides with love & honour in its lap making humans consume it as nectar, leading Agni-fire to combine with electric spark-lightening.
युयूषतः सवयसा तदिद्वपुः समानमर्थं वितरित्रता मिथः। 
आदीं भगो न हव्यः समस्मदा वोळ्हुर्न रश्मीन्त्समयंस्त सारथिः
समान अवस्था वाले होता और अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) एक ही प्रयोजन की सिद्धि के लिए परस्पर सहायता देकर अग्नि के शरीर में अपना-अपना कार्य पूर्ण करते हैं। अनन्तर जैसे सूर्य देव अपनी किरणें विस्तारित करते हैं, वैसे ही आहवनीय अग्नि देव हमारी दी हुई घृताहुति को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.144.3]
एक रूप वाली दोनों अरणियाँ आपस में मिलकर उज्ज्वल रूप वाले की अभिलाषा करती हैं। वे अग्नि देव आह्वान के योग्य हैं। द्वारा रास पकड़ने की तरह अग्नि देव हमारी घृत धारा को स्वीकार करते हैं।
People of the same age and those performing Yagy as per directions-instructions of Yajur Ved are making offerings in the holy fire. It leads to extension of the Sun light and Agni Dev respond to the prayers by accepting the offerings of Ghee.
There is close relation between the rays of Sun, water and fire. Hydrogen-protons are the basic ingredients for formation of higher elements, compounds. They lead to formation of oxygen & water.
यमीं द्वा सवयसा सपर्यतः समाने योना मिथुना समोकसा। 
दिवा न नक्तं पलितो युवाजनि पुरू चरन्नजरो मानुषा युगा
समान अवस्था वाले, एक यज्ञ में वर्तमान और एक कार्य में नियुक्त दोनों मनुष्य जिन अग्नि देव की दिन-रात पूजा करते हैं, वे अग्निदेव चाहे वृद्ध हों, चाहे युवा, उन दोनों मनुष्यों का हव्य भक्षण करते हुए अजर हुए हैं।[ऋग्वेद 1.144.4]
समान आयु वाले दो प्राणी अग्नि दे व की दिन-रात अर्चना करते हैं। वे अग्नि देव कभी वृद्ध नहीं होते। युवा रहते हुए भी हवि भक्षण करते हैं।
Two people of the same age, busy with the Yagy praying-worshiping (serve) Agni Dev, making Agni Dev to remain young consuming the offerings made by them. 
तमीं हिन्वन्ति धीतयो दश व्रिशो देवं मर्तास ऊतये हवामहे। 
धनोरधि प्रवत आ स ऋण्वत्यभिव्रजद्धिर्वयुना नवाधित
दसों अँगुलियों आपस में अलग होकर उन प्रकाश देने वाले अग्निदेव को प्रसन्न करती हैं। हम मनुष्य है। अपनी रक्षा के लिए अग्निदेव को बुलाते हैं। जैसे धनुष से वाण निकलता है, उसी प्रकार अजयलित अग्नि चारों ओर स्नोताओं की स्तुतियों अर्थात् प्रार्थनाओं को ग्रहण करता है।[ऋग्वेद 1.144.5]
दस उँगलियाँ उस अग्नि देव की सेवा करती हैं। हम उन्हें सुरक्षा के लिए आहूत करते हैं। वे बाण की गति के समान चलते हुए नवीन वंदनाओं को धारण करते हैं।
The ten fingers together amuse Agni Dev producing light. The humans invite-call (pray) to Agni Dev for their defence. The speed with which an arrow is shot from the bow, Agni Dev accept the prayers-offerings of the devotees with the same speed.
त्वं ह्यग्ने  दिव्यस्य राजसि त्वं पार्थिवस्य पशुपाइय त्मना। 
एनी त एते बृहती अभिश्रिया हिरण्ययी वकरें बर्हिराशाते
अग्नि देव पशुओं की रक्षा करने वालों के तुल्य अपनी शक्ति से स्वर्ग और पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के ईश्वर हैं। इसलिए महती ऐश्वर्यवती, हिरण्यमयी, मंगल शब्द कारिणी शुभवर्णा और प्रसन्ना द्यावा पृथ्वी आपके यज्ञ में आती हैं।[ऋग्वेद 1.144.6]
हे अग्नि देव! तुम क्षितिज और पृथ्वी के प्राणधारियों के स्वामी हो। वह समृद्धि संयुक्त दोनों ही तुम्हारे अनुष्ठान को ग्रहण होते हैं।
Agni Dev is the God of the inhabitants of heavens & earth, being the protector of all animals. Due to this reason magnificent, golden looking, producing auspicious words-chants, amusing earth participate in the Yagy. 
अग्रे जुषस्व प्रति हर्य तद्वचो मन्द्र स्वधाव ऋतजात सुक्रतो। 
यो विश्वतः प्रत्याङ्ङसि दर्शतो रण्वः संदृष्टौ पिआपाँइव क्षयः
हे अग्निदेव! आप हव्य का उपभोग करें, अपना स्तोत्र सुनने की इच्छा करें। हे स्तुत्य, अन्नवान् और यज्ञ के लिए उत्पन्न तथा यज्ञशाली अग्निदेव! आप सम्पूर्ण संसार के अनुकूल, सबके दर्शनीय, आनन्दोत्पादक और यथेष्ट अन्नशाली व्यक्ति की भाँति सबके आश्रय स्थान है।[ऋग्वेद 1.144.7] 
हे प्रसन्न मन वाले, अपनी इच्छानुसार बली, यज्ञोत्पन्न अग्ने! प्रसन्न होकर इस श्लोक को स्वीकार करो। तुम अत्यन्त रमणीक और ऐश्वर्यों से परिपूर्ण हो।
Hey Agni Dev! Consume our offerings and listen to the Strotr sung in your honour. Hey worship-prayers deserving, possessor of food grains born-produced for Yagy, Agni Dev! You are favourable to the whole world, glorious, amusing and protector of the all humans-organisms (living beings) like one who possess sufficient food grains.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (145) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
तं पृच्छता स जगामा स वेद स चिकित्वाँ ईयते सा न्वीयते। 
तस्मिन्सन्ति प्रशिषस्तस्मिन्निष्टयः स वाजस्य शवसः शुष्मिणस्पतिः
हे मनुष्यों! आप अग्निदेव से पूछें, क्योंकि वे सर्वत्र गमनशील, सर्वज्ञाता, ज्ञानी, निश्चित रूप से सर्वत्र व्याप्त हैं, वही चैतन्य हैं, वे ही यान हैं, वे ही शीघ्रगन्ता है, उन्हों के पास शासन करने की योग्यता है, अभीष्ट वस्तु भी उन्हीं के पास है। वह अन्न, बल आदि के अधिष्ठाता है।[ऋग्वेद 1.145.1]
यान :: Going, moving, walking, riding,  voyage, journey, Marching against, attacking, (one of the six Guns-characterises or expedients in politics), अहितान् प्रत्यभीतस्य रणे यानम् A procession, train, A conveyance, vehicle, carriage, chariot; यानं सस्मार कौबेरम् A litter, palanquin, A ship, vessel, The method of arriving at knowledge in Buddhism, the means of release from repeated births, महायान, हीनयान, An aeroplane विमान, A road, way, आसनम् marching and sitting quiet, आस्तरणम् a carriage cushion, a carpenter, riding in a carriage-a ship, boat, a small boat. भङ्गः shipwreck, मुखम् the forepart of a carriage, the part where the yoke is fixed. यात्रा :- a sea-voyage; Buddh. यानम् driving or riding in a carriage. शाला :- a coach house; यानशालां जगाम ह, स्वामिन् the owner of a vehicle; यानस्य चैव यातुश्च यानस्वामिन एव च। 
हे अग्निदेव! सर्वज्ञाता, सर्वत्र विचरणशील, सभी के वंदनापात्र, अभिष्ट परिपूर्ण एवं महाशक्तिशाली हो।
Hey humans! Let us ask-question to Agni Dev, who is capable of moving every where, knows every thing, enlightened, pervades all, conscious, fast moving-reacting (listening, a fast moving carrier possessed with the power-ability to rule. He has all desired commodities being the leader-administrator.  
तमित्पृच्छन्ति न सिमो वि पृच्छति स्वेनेव धीरो मनसा यदग्रभीत्। 
न मृष्यते प्रथमं नापरं वचोऽस्य क्रत्वा सचते अप्रदॄषितः
बुद्धिमान् लोग ही अधिक जिज्ञासु होते हैं, इसलिए धैर्यशाली लोग प्रत्येक कार्य को समय से पहले ही पूर्ण कर लेते हैं। वह किसी के कथन को श्रवण नहीं करते। ऐसे ही लोग अग्निदेव की क्षमता को प्राप्त कर पाते हैं। यदि यह कहा जाये दम्भ विहीन मनुष्य ही अग्निदेव का आश्रय प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.145.2]
उस अग्नि देव को सभी जानते हैं। उनके विषय में पूछना अनुचित है। दृढ़ हृदय वाला किसी पहले और पश्चात की बातें नहीं भूलता। इसलिए अहंकार से शून्य अग्नि का सहारा लेता है।
The intelligent (prudent, clever) is more curious-anxious; hence he, possessing patience, is able to complete his target before time. He will not wait for orders-instructions from any one. He do not care-regard the advice of anyone. Only such people are able to achieve the calibre-power of Agni Dev. A person free from falls pride, Id, ego, super ego is able to attain asylum ,shelter  protection under Agni Dev.
Listen to what others say, but do what you decide-desire.
तमिद्गच्छन्ति जुह्वस्तमर्वतीर्विश्वान्येकः शृणवद्वचांसि मे। पुरुप्रैषस्ततुरिर्यज्ञसाधनोऽच्छिद्रोतिः शिशुरादत्त सं रभः
सब जुहू अग्नि को लक्ष्य कर जाते हैं। स्तुतियाँ भी अग्नि के लिए ही हैं। अग्नि देव मेरी समस्त स्तुतियाँ सुनते हैं। वह बहुतों के प्रवर्तक, तारयिता और यज्ञ के साधन हैं। उनकी रक्षा शक्ति छिद्र शून्य है। वह शिशु की तरह शान्त और यज्ञ के अनुष्ठाता है।[ऋग्वेद 1.145.3]
जुहू :: पलाश की लकड़ी का बना हुआ एक अर्ध चंद्राकार यज्ञ पात्र जिससे घृत की आहुति दी जाती हैं, पूर्व दिशा, अग्नि की जिह्वा, अग्निशिखा,अध्यर्यु, चंद्रमा।  
इसी अग्नि को आहुतियाँ और प्रार्थनाएँ प्राप्त होती हैं। वह आह्वानों को सुनने वाले हैं। यज्ञ को सिद्ध करने वाला तथा शिशु के समान पराक्रम बुद्धि को ग्रहण होता है।
This Agni is prayed-worshipped by all. All Strotr prayers are meant-targeted for him. He listens to our prayers. He is the saviour of many and a means for the Yagy. His protection is unquestionable. He is quite like an infant.
उपस्थायं चरति यत्समारत सद्यो जातस्तत्सार युज्येभिः। 
अभि श्वान्तं मृशते नान्द्ये मुदे यदीं गच्छन्त्युशतीरपिष्ठितम्
जब यजमान अग्नि को उत्पन्न करने की चेष्टा करता है, तभी अग्निदेव प्रकट होते हैं। उत्पन्न होकर ही तुरन्त योजनीय वस्तु के साथ मिल जाते हैं। तब यह अग्निदेव यजमानों को अभीष्ट फल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.145.4]
अग्नि देव प्रकट होते ही विचरण शील हैं। वे तुरन्त ही हवियों को प्राप्त कर लेते हैं और थके हुए मनुष्यों की थकावट को मिटाकर खुशी प्रदान करते हैं।
As soon as the Ritviz-host tries to evolve fire, Agni Dev appears. He dissolves in the desired commodities and grant the boons (fulfil the wishes-desires of the devotees).
स ईं मृगो अप्यो वनर्गुरुप त्वच्युपमस्यां नि धायि। 
व्यब्रवीद्वयुना मर्त्येभ्योऽग्निर्विद्वाँ ऋतचिद्धि सत्यः
अन्वेषण परायण और प्राप्तव्य वन के गामी अग्निदेव त्वचा की तरह इन्धन के बीच स्थापित हुए हैं। विद्वान्, यज्ञ ज्ञाता और यथार्थवादी अग्निदेव मनुष्य को यज्ञकर्म से प्रेरित करते हुए उसे ज्ञान युक्त बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.145.5]
वन में विचरण करने वाले अग्निदेव ईंधन से प्राप्त होते हैं। मेधावी यज्ञ ज्ञाता अग्नि प्राणियों में रहकर यज्ञ-कर्म में प्रेरित करता हुआ ज्ञान देता है।
Agni Dev is obtained from the woods as fuel (calibre, power to perform) to the ones who search him. The enlightened aware of Yagy and the realistic Agni Dev encourages the humans busy in endeavours (Yagy) and provide them knowledge.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (146) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्रिमूर्धानं सप्तरश्मिं गृणीषेऽनूनमग्निं पित्रोरुपस्थे। 
निषत्तमस्य चरतो ध्रुवस्य विश्वा दिवो रोचनापप्रिवांसम्
पिता-माता की गोद में अवस्थित, सवनत्रयरूप, मस्तकत्रय से युक्त, सप्त छन्दोरू, सप्त रश्मियों से युक्त और विकलता शून्य अग्नि देव की स्तुति करें। सर्वत्रगामी, अविचलि प्रकाशमान और अभीष्ट वर्षक अग्निदेव का तेज चारों ओर व्याप्त हो रहा है।[ऋग्वेद 1.146.1] 
विकलता :: व्यग्रता, हैरानी, परेशानी, बाधा, रुकावट; perplexity. 
हे मनुष्य! तीन मस्तक वाले, सात रश्मियों वाले, पूर्ण रूप वाले, क्षितिज और धरा के बीच विराजमान और प्रकाशमान नक्षत्रों में तेज रूप से लीन इस अग्नि का पूजन करो। इस वीर अग्नि ने आकाश और धरती को सभी ओर से व्याप्त किया है। 
Present in the lap of his parents, having three heads and seven rays with complete form, free from perplexity, prayed-worshiped with seven Strotr, stationed between the horizon and the earth, Agni Dev should be prayed. The aura of Agni Dev who fulfils the desires-motives of the devotees is spreading in all directions uniformly.
उक्षा महाँ अभि ववक्ष एने अजरस्तस्थावितऊतिर्ऋष्वः। 
उर्व्याः पदो दधाति सानौ रिहन्त्यूधो अरुषासो अस्य
फलदाता अग्निदेव अपनी महिमा से स्वर्ग और पृथ्वी को व्याप्त किये हुए हैं। अजर और पूज्य अग्निदेव हमारी रक्षा करके अवस्थित है। भूमि के शीर्ष पर अपने पैरों को रखकर खड़े हुए इनकी प्रदीप्त ज्वालाएँ आकाश में सर्वत्र व्याप्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.146.2] 
वह जरा रहित और साधनों से परिपूर्ण है। धरती के सिर पर अपने पैरों को रखकर खड़े हुए इसकी ज्वालाएँ बादल रूपी सन्तान को चाटती हैं।
The glory of wish fulfilling Agni Dev spread-pervades the heavens & the earth. Never aging, honourable-revered Agni Dev is ready for our protection. He station his feet over the earth and his flames spread all around in the sky.
समानं वत्समभि संचरन्ती विष्वग्धेनू वि चरतः सुमेके। 
अनपवृज्याँ अध्वनो मिमाने विश्वान्केताँ अघि महो दधाने
सेवा कार्य में चतुर दो गायें एक बछड़े के सामने जाती है। वह निन्दनीय विषय से शून्य मार्ग का निर्माण और सब तरह की बुद्धि या प्रज्ञा अधिक मात्रा में धारित करती हैं।[ऋग्वेद 1.146.3]
ये धरा रूप धेनु साझे के बछड़े रूप अग्नि को ग्रहण कर समस्त इच्छाओं को धारण करती हुई विचरण करती हैं।
The earth in the form of cow adopts Agni Dev as her calf and roam all around fulfilling the wishes of the devotees. She discard the  condemnable-blameable subjects, make her way through the space, possessing the intelligence. 
धीरासः पदं करेंयो नयन्ति नाना हृदा रक्षमाणा अजुर्यम्। 
सिषासन्तः पर्यपश्यन्त सिन्धुमाविरेभ्यो अभवत्सूर्यो नॄन्
विद्वान् और मेघावी लोग अज्ञेय अग्नि देव को अपने स्थान पर स्थापित करते हैं; बुद्धि बल से, नाना उपायों द्वारा उनकी रक्षा करते हैं। यज्ञ फल का भोग करने की इच्छा से फल दाता अग्नि देव की सेवा करते हैं। उनके पास सूर्य रूप में अग्नि देव प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 1.146.4]
मेधावी ऋषिगण की रक्षा करते हुए उनको राह दिखाते हैं, उन्होंने अग्नि की चाहना से समुद्र को सभी ओर से देखा, तब प्राणियों का कल्याण करने वाला सूर्य उत्पन्न हुआ।
The intellectuals & the learned establish Agni Dev at his proper place and protect him through several means, using their wisdom.  The organisers of Yagy serve Agni Dev in all possible ways to seek the rewards of their endeavours. Agni Dev appear before them in the form of Sun for their welfare.
दिदृक्षेण्यः परि काष्ठासु जेन्य ईळेन्यो महो अर्भाय जीवसे। 
पुरुत्रा यदभवत्सूरहैभ्यो गर्भेभ्यो मघवा विश्वदर्शतः
अग्निदेव चाहते हैं कि उन्हें सब दिशाओं के निवासी देख सकें। वे सदा जयशील और स्तुति योग्य हैं। वे शुद्ध और महान्, सबके जीवन स्वरूप हैं। धनवान् और सबके दर्शनीय अग्निदेव अनेक स्थानों में बालक के समान, यजमानों के लिए पिता के समान रक्षक और पालनकर्ता हैं।[ऋग्वेद 1.146.5]
दिशाओं के विजेता अग्नि देव छोटे-बड़े शरीर धारियों के लिए जीवन दाता हुए। वे धन और प्रजाओं को प्रकट करने में समर्थ हैं।
Agni Dev wish to be seen by the humans in all directions. He, as the winner deserve worship. He is like the life for every one, being great and pure. Agni Dev is wealthy-rich & beautiful like a child at many places and yet like father for the protection of the Ritviz-organisers of the Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (147) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
कथा ते अग्ने शुचयन्त आयोर्ददाशुर्वाजेभिराशुषाणाः। 
उभे यत्तोके तनये दधाना ऋतस्य सामन्रणयन्त देवाः
हे अग्निदेव! आपकी उज्ज्वल और शोषक शिखाएँ किस प्रकार से अन्न के साथ आयु प्रदान करती हैं, जिससे पुत्र, पौत्र आदि के लिए अन्न और आयु प्राप्त कर यजमान लोग याज्ञिक सामवेद का गायन कर सकते हैं?[ऋग्वेद 1.147.1]
हे अग्निदेव! तुम्हारी प्रकाशमान रश्मियाँ बल से परिपूर्ण जीवन प्रदान करती हैं। वे पुत्र-पौत्रादि की वृद्धि करती हुई पुष्टि करती हैं।
Hey Agni Dev! How the bright and nourishing your flames provide-grant food grains and longevity, so that the hosts-Ritviz (organisers of the Yagy) are able to recite the verses of Sam Ved for acquiring food stuff and longevity for their sons & grand son!? 
बोधा मे अस्य वचसो यविष्ठ मंहिष्ठस्य प्रभृतस्य स्वधावः। 
पीयति त्वो अनु त्वो गृणाति वन्दारुस्ते तन्वं वन्दे अग्ने
हे युवा और अन्नवान् अग्निदेव! मेरे द्वारा अत्यन्त पूज्य और अच्छी तरह सम्पादित स्तुति ग्रहण करें। कोई आपकी हिंसा करता और कोई आपकी पूजा करता है। मैं तो आपका उपासक हूँ, इसलिए मैं आपकी पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 1.147.2]
हे अत्यन्त युवा अग्ने! मेरे इस सम्मान योग्य श्लोक को सुनो। एक मनुष्य आपको कष्ट पहुँचाता है और एक वंदना करता है। मैं तो आपकी वंदना करने वाला हूँ।
Hey ever-always young, possessing food grains, Agni Dev! Please accept the prayers sung by me with great honour. Some people hurt-dishonour (contempt) you and the others worship-pray you. I am your devotee and thus I worship you. 
ये पायवो मामतेयं ते अग्ने पश्यन्तो अन्धं दुरितादरक्षन्। 
ररक्ष तान्सुकृतो विश्ववेदा दिप्सन्त इद्रिपवो नाह देभुः
हे अग्निदेव! आपकी जिन प्रसिद्ध और पालक रश्मियों ने (ममता के पुत्र और अन्धे दीर्घतमा को) नेत्र हीन होने से बचाया था, उन सुखकर शिखाओं की सर्व प्रज्ञा युक्त आप रक्षा करें। विनाश की कामना करने वाले शत्रु लोग (कभी भी) हिंसा न करने पावें।[ऋग्वेद 1.147.3]
प्रज्ञा :: भेदभाव, विवेक, पक्षपात, विभेदन, निर्णय, समझना, समझौता, जानना, बूझ, ज्ञप्ति, बुद्धि, बुद्धिमत्ता, बुद्धिमानी, सूचना, ज्ञान; intelligence, understanding, discrimination.
हे अग्नि देव! तुम्हारी रक्षा से युक्त भक्तों ने ममता के अंधे सुत को बचाया। उन श्रेष्ठ कर्मों वाले की तुमने रक्षा की। तुम्हें शत्रु किसी प्रकार छल नहीं सकते।
Hey Agni Dev! Protect us with your comfortable and discriminating flames with which you saved Deerghtma, the son of Mamta from being blind. Do not let the enemy planning to destroy us through violence. 
यो नो अग्ने अररिवाँ अघायुररातीवा मर्चयति द्वयेन। 
मन्त्रो गुरुः पुनरस्तु सो अस्मा अनु मृक्षीष्ट तन्वं दरुक्तैः
हे अग्नि देव! जो हमारे लिए पाप चाहते हैं, स्वयं दान नहीं करते, मानसिक और वाचनिक दो प्रकार के मंत्रों द्वारा हमारी निन्दा करते हैं, ऐसे कपटी लोगों का स्वभाव ही उन्हीं के सर्वनाश का कारण बनें।[ऋग्वेद 1.147.4]
हे अग्ने! ईर्ष्या से युक्त अदानशील पापी हमको कपट से दुःख देता है। उसका वह कुविचार उसी को भार स्वरूप हो और वह उसी को समाप्त करे।
Hey Agni Dev! Let the nature of deceptive enemies who always think ill of us (wish to harm us), never donate and defame-slur us, with both thoughts-mental and speech, destroy themselves. 
उत वा यः सहस्य प्रविद्वान्मर्तो मर्तं मर्चयति द्वयेन। 
अतः पाहि स्तवमान स्तुवन्तमग्ने माकिर्नो दुरिताय धायीः
हे बल के पुत्र अग्निदेव! जो मनुष्य जान-बूझकर दोनों तरह के मंत्रों से मनुष्य की निन्दा करता है, मैं प्रार्थना करता हूँ, हे स्तूयमान अग्नि देव! उनके द्वारा हमारी रक्षा करते हुए हमें पापकर्मों से मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.147.5]
स्तूयमान :: Being praised.
हे बलशाली! जो मनुष्य छल से किसी को कष्टमय करना चाहता है, उससे वंदनाकारी की सुरक्षा करो। हम दुःखी न हों।
Hey, the son of might-power, Agni Dev! I pray to you, the praise worthy Agni Dev, for protection against those people, who knowing-willingly, deprave-slur (torture) us and free us from all sorts of sinful acts. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (148) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
मथीद्यदीं विष्टो मातरिश्वा होतारं विश्वाप्सुं विश्वदेव्यम्। 
नि यं दधुर्मनुष्यासु विक्षु स्वर्ण चित्रं वपुषे विभावम्
वायु देवता ने लकड़ी के अन्दर प्रवेश कर विविध रूपशाली, समस्त देवों के कार्य में नपुण और देवों का आवाहन करने वाले अग्निदेव को बढ़ाया। पहले देवों ने इनको विलक्षण प्रकाशवाले सूर्य की तरह मनुष्यों और ऋत्विकों की यज्ञ सिद्धि के लिए स्थापित किया।[ऋग्वेद 1.148.1]
उन सर्वस्वरूप वाले देव-स्वरूप होता का मातरिश्वा ने मन्थन किया और उस सूर्य के तुल्य दैदीप्यमान अग्नि को देवगण ने मनुष्यों में स्थापित किया।
Vayu-Pawan Dev entered the wood and promoted-ignited fire-Agni Dev, who has several-various forms, invites the demigods-deities and perform their various functions.  
ददानमिन्न ददभन्त मन्याग्निर्वरूथं मम तस्य चाकन्। 
जुषन्त विश्वान्यस्य कर्मोपस्तुतिं भरमाणस्य कारोः
अग्नि देव को सन्तोष दायक हव्य देने से ही शत्रु लोग मुझे नष्ट नहीं कर सकते। ये मेरे द्वारा प्रदत्त स्तोत्र आदि के अभिलाषी है। जिस समय स्तोता अग्रि की स्तुति करते हैं, उस समय सारे देवता उनके दिये हुए हव्य को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.148.2]
श्लोक उच्चारण करते हुए मुझे शत्रु पीड़ित न कर पाये। मेरी वंदना सुनकर अग्नि ने आश्रय प्रदान किया और मेरे श्लोकों को सभी देवताओं ने स्वीकार किया।
Just by making satisfactory offerings to Agni Dev, the enemies fail to destroy me. He wish to accept the Strotr-prayers recited by me for him. When the hosts-Ritviz pray to Agni Dev, all the demigods-deities accept the offerings.
नित्ये चिन्नु यं सदने जगृभ्रे प्रशस्तिभिर्दधिरे यज्ञियासः। 
प्र सू नयन्त गृभयन्त इष्टावश्वासो न रथ्यो रारहाणाः
याज्ञिक लोग जिन अग्नि देव को नित्य अग्नि गृह में ले जाते और स्तुति के साथ स्थापित करते हैं, उसे वे तीव्रगामी अर्थात् अति तेज चलने वाले रथ के अश्वों के तुल्य उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.148.3]
यजमानों ने जिसे स्वीकार कर प्रार्थनाओं में स्थापित किया और रथ में अश्व जोड़ने के समान आगे बढ़ाया।
The Ritviz carry Agni Dev to the spot of the Yagy, make prayers and energise it, like the fastest moving horses. 
पुरूणि दस्मो नि रिणाति जम्भैराद्रोचते वन आ विभावा। 
आदस्य वातो अनु वाति शोचिरस्तुर्न शर्यामसनामनु द्यून्
विनाशक अग्निदेव सब प्रकार के वृक्षों को वनों में अपनी शिखाओं या दाँतों से विनष्ट करके जंगल में सभी ओर प्रकाश विखेरते हैं। इसके अनन्तर जैसे धनुर्द्धारी के पास से वेग के साथ तीर जाता है, उसी तरह अग्नि की ज्वाला वायु की अनुकूलता पाकर छोड़े गये तीर तुल्य वेग से आगे जाती हैं।[ऋग्वेद 1.148.4]
अद्भुत अग्नि वृक्षों का वर्णन करता है और प्रकाश वन में चमकता है। इसकी दमकती हुई ज्वाला को पवन तीक्ष्ण रूप में बढ़ाता है।
Destroyer Agni Dev burn all sorts of vegetation (trees, plants, shrubs etc.) with his hair locks and teeth and spread light throughout the forest-jungle. Thereafter, the flames spread like the arrow shot by an archer aided by Vayu-Pawan Dev.
Air-oxygen is essential for fire.
न यं रिपवो न रिषण्यवो गर्भे सन्तं रेषणा रेषयन्ति। 
अन्धा अपश्या न दभन्नभिख्या नित्यास ई प्रेतारो अरक्षन्
अरणि के गर्भ में अवस्थित जिन अग्निदेव को शत्रु या अन्य हिंसक दुःख नहीं दे सकते, अन्धा भी जिनका माहात्म्य नष्ट नहीं कर सकता, उन्हीं की अविचल भक्ति वाले यजमान विशेष रूप से तृप्ति प्रदान करके रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.148.5]
माहात्म्य :: महानता; greatness, glory, efficacy of a deity or god.
जिसे अप्रकट रहने पर हिंसक पीड़ित न कर सकें और अंधे इसके महात्मय को न मिटा सकें। इसके स्नेह करने और प्रतिदिन धारण करने वाले ही इस अग्नि की सुरक्षा करते रहे हैं।
The devotees of Agni Dev, who is present in the wood, cannot be troubled-tortured by the enemy, even a blind cannot vanish his glory-greatness. Having satisfied him with their wisdom, offerings, they are protected by him.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (149) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- विराट्।
महः स राय एषते पतिर्दन्निन इनस्य वसुनः पद आ। 
उप ध्रजन्तमद्रयो विधन्नित्
जब वे अग्निदेव धन-सम्पदा प्रदत्त करने के लिए हमारे यज्ञों में पधारते हैं, तब पत्थरों द्वारा कूटकर बनाये गये सोमरस से उनका अभिनन्दन किया जाता है। [ऋग्वेद 1.149.1] 
वह अत्यन्त समृद्धिवान धन प्रदान करने के लिए यज्ञ में पधारते हैं। सोम कूटने के पाषाण उनके लिए रस तैयार करते हैं।
Agni Dev is welcomed when he come to our Yagy to us grant-provide wealth-riches, Somras extracted by crushing with stones,  is offered to him. 
स यो वृषा नरां न रोदस्योः श्रवोभिरस्ति जीवपीतसर्गः। 
प्र यः सत्राणः शिश्रीत योनौ
मनुष्यों की तरह जो अग्निदेव स्वर्ग और पृथ्वी में यश के साथ रहते हैं, वे प्राणियों के लिए उपयुक्त सृष्टि का निर्माण करते हैं। वे प्रदीप्त होकर यज्ञ वेदी में स्थापित होते हैं।[ऋग्वेद 1.149.2]
जो क्षितिज और धरा में यशस्वी रहते हैं, उन्हें छोड़कर जीव कष्ट भोगते हैं। वह अग्निदेव वेदी में वास करते हैं।
Agni Dev resides both in the heavens & the earth with glory & honour. He create excellent habitat for the living beings. He is lit and established-placed in the Yagy Vedi. 
आ यः पुरं नार्मिणीमदीदेदत्यः कविर्नभन्योनार्वा। 
सूरो न रुरुकाञ्छतात्मा
वे अग्निदेव मेधावी हैं, वे सूर्य के समान तेजस्वी, शीघ्रगामी अश्व एवं वायु के सदृश गतिशील हैं। यजमान यज्ञ वेदी पर इन्हीं को प्रज्ज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 1.149.3]
जिसने प्राणी और शरीर में दोहन किया, वह अग्नि शीघ्रगामी अश्वों के समान प्रसंशनीय है।
Agni Dev is brilliant. He is shinning like Sun, fast moving like the horses and the wind (air, Pawan-Vayu Dev). The Ritviz ignite fire in the Yagy Vedi.  
अभि द्विजन्मा त्री रोचनानि विश्वा रजांसि शुशुचानो अस्थात्। 
होता यजिष्ठो अपां सधस्थे
द्विजन्मा अग्निदेव दीप्यमान तीनों लोकों में प्रकाश करते और सारे रचनात्मक संसार का भी प्रकाशित करते हैं। वे देवों के आह्वानकर्ता हैं। ये होता अग्निदेव जलों के मध्य में भी विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 1.149.4]
दो जन्म वाले अग्नि देव तीनों ज्योतियों और सभी लोकों को प्रकाशित करते हैं। ये अत्यन्त पूजनीय होता के रूप में नियुक्त हुए हैं।
Twice born Agni Dev lit the three abodes (Heavens, earth & the netherworld) and lit the constructive structural universe as well. He invite the demigods-deities in the Yagy (on behalf of the hosts, organisers, Ritviz priests). The Agni Dev station himself in between the water bodies.
अयं स होता यो द्विजन्मा विश्वा दधे वार्याणि श्रवस्या। 
मर्तो यो अस्मै सुतुको ददाश
जो अग्निदेव द्विजन्मा हैं, वे ही होता हैं, वे ही हव्य प्राप्ति की अभिलाषा से सारा वरणीय धन धारित करते हैं। जो मनुष्य इनको हव्य प्रदान करता है, वह उत्तम पुत्र प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.149.5]
वह दो जन्म वाले दैवों को पुकारने वाले हैं। जो मनुष्य इनको हवि प्रदान करते हैं, उसे वह वरणीय धन और कीर्ति देने वाले हैं।
Twice born Agni Dev is the host bearing the riches-wealth for the sake of receiving offerings. One who make offerings for him in the Yagy is blessed with a son.
Agni Dev carry out the job of inviting demigods-deities when someone organise the Yagy. He is the mouth of the demigods-deities. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (150) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- उष्णिक्।
पुरु त्वा दाश्वान्वोचेऽरिरग्ने तव स्विदा । 
तोदस्येव शरण आ महस्य
हे अग्निदेव! मैं आपको हव्य प्रदान कर आपके लिए नाना प्रकार की प्रार्थनाएँ करता हूँ। जैसे महान् स्वामी के घर में सेवक होता है, उसी प्रकार मैं आपके पास हूँ।[ऋग्वेद 1.150.1]
हे अग्निदेव! आपकी शरण लेने का इच्छुक वंदनाकारी हवि प्रदान करता हुआ बार-बार आह्वान करता है।
Hey Agni Dev! I make offering for you and make several-different kinds of requests-prayers. I serve you considering you a mighty master. 
I seek your protection, shelter, asylum.
व्यनिनस्य धनिनः प्रहोषे चिदररुषः। 
कदा चन प्रजिगतो अदवयोः
हे अग्नि देव! जो धनी होते हुए श्रद्धाहीन व कृपण है और देवों के अनुशासन को नहीं मानने वाले ऐसे स्वेच्छाचारी नास्तिकों को आप अपनी कृपादृष्टि कदापि प्रदान न करें।[ऋग्वेद 1.150.2] 
कृपण :: सूम, कंजूस, लोभी, लालची; miserly, niggard.
स्वेच्छाचारी :: सनकी, अपनी मन-मर्जी करने वाले, नैतिक नियमों की अनिवार्यता स्वीकार न करने वाला; autocratic, wayward, antinomian, vagrant. 
वे अग्नि देवों से द्वेष करने वालों के आग्रह पूर्ण आह्वान पर नहीं जाते।
Hey Agni Dev! You should not be kind to those who are rich but faithless-devotion less & miserly-niggard; do not follow the dictates of the demigods-deities, are atheist & wayward. 
स चन्द्रो विप्र मर्त्यो महो व्राधन्तमो दिवि। 
प्रप्रेत्ते अग्ने वनुषः स्याम
हे मेधावी अग्निदेव! जो मनुष्य आपका यज्ञ करता है, वह स्वर्ग में चन्द्रमा की तरह सबको आनन्द देने वाला होता है; इसलिए हम सदैव आपके प्रति श्रद्धा भावना से प्रेरित रहें।[ऋग्वेद 1.150.3]
मेधावी :: प्रतिभाशाली, चमकदार, प्रतिभावान, चमकीला, शिक्षित, बुद्धिमान, शिक्षित, प्रज्ञ, बुद्धिजीवी का, सुजान, समझदार, चतुर, दूरंदेश, प्रखर-तीक्ष्ण बुद्धि वाला; meritorious, brilliant, sagacious, intelligent. 
हे मेधावी अग्निदेव! वह प्राणी अत्यन्त प्रतापी होता है, वह सबको प्रसन्न करता है। तुम्हारे साधक सदैव वृद्धि को प्राप्त हों।
Hey sharp minded Agni Dev! One who conduct-organises Yagy for yourself-in your honour, enjoy in the heavens like Chandr Dev-Moon. Hence we should always be devoted to you.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (188) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :-अग्नि,  छन्द :- अनुष्टुप, बृहती, गायत्री।
समिद्धो अद्य राजसि देवो देवैः सहस्त्रजित्। दूतो हव्या कविर्वह
हे अग्नि देव। ऋत्विकों द्वारा भली-भाँति आज समिद्ध नामक अग्नि सुशोभित होते हैं। हे  सहस्रजित् देव! आप कवि और दूत हैं। आप भली भाँति हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.188.1]
समिद्ध, तनूनपात्, इड्य अग्नि के रूप हैं।  
हे सहस्त्रों के विजेता अग्नि! तुम ऋत्विजों द्वारा शोभायमान किये जाते हो। तुम हवि वाहक दौत्य कर्म में निपुण हो।
Hey Agni Dev! The Ritviz worship the Agni named Samiddh. He winner of thousands! You are a poet and messenger. Accept the offerings whole heartedly. 
तनूनपादृतं यते मध्वा यज्ञः समज्यते। दधत्सहस्त्रिणीरिषः
पूजनीय तनूनपात् नामक अग्रिदेव हजारों प्रकार से अन्न धारण करके यजमान के लिए मधुर रसों का संचार करते हैं।[ऋग्वेद 1.188.2]
नियम पालक मनुष्य के लिए अनुष्ठान माधुर्य परिपूर्ण होता है। देहों के रक्षक अग्नि हजारों प्रकार के रसों को धारण करते हैं।
Revered fire in the form of Tanunpat bears thousands of food grains and flow the sweet sap for the hosts-Ritviz.
आजुह्वानो न ईड्यो देवाँ आ वक्षि यज्ञियान्। अग्ने सहस्रसा असि
हे इड्य नामक अग्नि देव! आप हमारे द्वारा आहूत होकर हमारे लिए यज्ञ भागी देव गणों को बुलावें। हे अग्निदेव! आप असीम अन्न के दाता है।[ऋग्वेद 1.188.3]
हे अग्ने! तुम आहूत होकर अनुष्ठान में भाग ग्रहण करने वाले देवों को पुकारो। तुम असंख्य अन्नों के दाता हो।
Hey Idy Agni!  Having invited by us, invite the demigods-deities to accept their share of offerings. Hey Agni Dev! You grant us unlimited food grains. 
प्राचीनं बर्हिरोजसा सहस्रवीरमस्तृणन्। यत्रादित्या विराजथ
हजारों वीरों वाले और पूर्वाभिमुख में अग्र भाग से युक्त जिस अग्निरूप कुश पर आदित्य लोग बैठे हैं, उसे ऋत्विकगण मंत्र के द्वारा आच्छादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.188.4]
हे आदित्यों! जिस हजार वीरों के योग्य अग्नि रूप कुश को ऋत्विज मंत्र द्वारा बिछाते हैं, उस पर तुम विराजमान हो।
The Ritviz treat the Kush mat over which Adity Gan equivalent to thousands warriors, sit facing east.
विराट् सम्राडिभ्वीः प्रभ्वीर्बहीश्च भूयसीश्च याः। दुरो घृतन्यक्षरन्
अनेकानेक यज्ञों द्वारा से घृत की वर्षा करने वाले अग्निदेव परमात्मा के तुल्य विभु, तेजस्वी और विराट् शासक हैं।[ऋग्वेद 1.188.5]
विभु :: सर्वव्यापक, महान्, ब्रह्म, जीवात्मा।
सबके शासक, बलवान, सशक्त अग्नि-रूप यज्ञ द्वारों पर घी की बरसात करते हैं।
Agni Dev is equivalent to the God energetic, pervading all and is a great ruler, showering ghee in the Yagy.
All demigods-deities are forms of God which perform the specific function assigned to them. A soul is the smallest component of the God present in each and living being. 
सुरुक्मे हि सुपेशसाधि श्रिया विराजतः। उषासावेह सीदताम् 
दीप्त आभरण से युक्त और सुन्दर रूप से संयुक्त अग्नि रूप दिवा-रात्रि अतीव शोभायमान होकर विराजते हैं।[ऋग्वेद 1.188.6]
सुन्दर रूप और शोभा से परिपूर्ण उष्ण रात्रि में सुशोभित होती है, वे यहाँ विराजमान हों।
Agni Dev bears beautiful ornaments accompanied by the flames, make the night beautiful.
प्रथमा हि सुवाचसा होतारा दैव्या करी। यज्ञं नो यक्षतामिमम् 
सबसे उत्तम प्रखर वाणी के प्रयोक्ता, दिव्य गुणों से युक्त, मेधावी होता हमारे इस यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.188.7]
प्रिय भाषी, मेधावी, प्रमुख अद्भुत होता अग्नि हमारे अनुष्ठान में पधारें।
The Yagy performers associated by divine characterises possessing excellent speech-voice accomplish-carry out our Yagy.
भारतीळे सरस्वति या वः सर्वा उपब्रुवे। ता नश्चोदयत श्रिये
हे अग्नि रूपिणी भारती, सरस्वती और इला! मैं आप सबका आवाहन करता हूँ। आप तीनों हमें ऐश्वर्य विभूतियों की ओर प्रेरित करें।[ऋग्वेद 1.188.8]
हे भारती इला और सरस्वती देवियों! तुम्हारे पास आकार प्रार्थना करता हूँ, जिससे मुझे ऐश्वर्य प्राप्त हो सके, वही करो।
Hey Bharti, Saraswati and Ila in the form of fire-Agni! I invite you all. You three direct-motivate us to all sorts of opulence, grandeur.
ऐश्वर्य :: वैभव, शोभा, ईश्वरता-ईश्वरीय गुण, आधिपत्य, ईश्वरीय संपदा, ईश्वरीय विभूति, धन संपत्ति, अणिमा, शोभा, महिमा आदि आठों सिद्धियों से प्राप्त अलौकिक शक्ति; opulence, grandeur, glory.
विभूति :: बहुतायत, वृद्धि, बढ़ती, विभव, ऐश्वर्य, संपत्ति-धन, लक्ष्मी, विविध सृष्टि, प्रभुत्व, बड़ाई, सृष्टि, ताकत, शक्ति, महत्ता, प्रतिष्ठा, उच्च पद, विस्तार, प्रसार, प्रवृत्ति, प्रकृति, स्वभाव; Majesty, ash, magnificence, an outstanding personality, personage. 
दिव्य या अलौकिक शक्ति जिसके अंतर्गत अणिमा, महिमा, गरिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियाँ हैं। योगदर्शन के विभूतिपाद में इसका वर्णन है कि किन-किन साधनाओं से कौन-कौन सी विभूतियाँ प्राप्त होती हैं।
भगवान् शिव के अंग में चढ़ाने की राख या भस्म। देवी भागवत, शिवपुराण आदि में भस्म या विभूति धारण करने का माहत्म्य विस्तार से वर्णित है।
भगवान् विष्णु का वह ऐश्वर्य जो नित्य और स्थायी माना जाता है।
एक दिव्यास्त्र जो राजऋषि विश्वामित्र ने भगवान् श्री राम को दिया था।
त्वष्टा रूपाणि हि प्रभुः पशून्विश्वान्त्समानजे। तेषां नः स्फातिमा यज 
अग्नि स्वरूप त्वष्टा रूप देने में समर्थवान् हैं। वह समस्त पशुओं का रूप व्यक्त करते हैं। हे त्वष्टा! हमें अत्यधिक पशु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.188.9]
अग्नि स्वरूप त्वष्टा रूप देने वाले हैं। उन्होंने पशुओं को प्रकट किया है।
Twasta like the Agni, is capable of giving various forms to the organism. They exhibit the forms of all animals. Hey Twasta! Grant us a lot of cattle. 
उप त्मन्या वनस्पते पाथो देवेभ्यः सृज। अग्निर्हव्यानि सिष्वदत्
हे अग्निरूप वनस्पति! आप देवों का पशु रूप अन्न उत्पन्न करें। अग्नि देव सम्पूर्ण हव्यों को स्वादिष्ट करें।[ऋग्वेद 1.188.10]
हे त्वष्टा! यज्ञ द्वारा हमारे पशुओं की वृद्धि करो। हे अग्नि स्वरूप वनस्पते! अपनी शक्ति से अद्भुत अन्न रचित करो। हे अग्ने! हमारे हव्य को सुस्वादु बनाओ। 
Hey vegetation in the form of fire-Agni! Create the food grains-stuff for the demigods-deities in the form of animals. Let Agni Dev, make all eatables tasty.
पुरोगा अग्निर्देवानां गायत्रेण समज्यते। स्वाहाकृतीषु रोचते
देवों के अग्रगामी अग्निदेव गायत्री छन्द से लक्षित हुआ करते हैं। स्वाहा देने के समय
वे प्रदीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 1.188.11] 
देवों में अग्रणी अग्नि गायत्री छन्द द्वारा आयोजित किये जाते हैं। वह स्वाहा करने पर दीप्तीमान होते हैं।
Hey Agni Dev moving ahead of demigods-deities! You are organised by the recitation of Gayatri Mantr and ignite when we recite Swaha (Ahuti).
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (189) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :-अग्नि,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। 
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम
हे दीप्ति विशिष्ट अग्नि देव! आप समस्त प्रकार के ज्ञान जानते हैं, इसलिए हमें अच्छे मार्ग से धन की ओर ले जावें। आप कुटिल पाप को हमारे पास से हटावें। हम बारम्बार आपको प्रणाम करते हैं।[ऋग्वेद 1.189.1]
हे अश्विदेव! तुम सिद्धान्तों के ज्ञाता हो। हमको सुमार्गगामी बनाओ। पाप को दूरस्थ करो। हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। 
Hey bright Agni Dev! You are enlightened. Take us to the acquisition of wealth through pious means. Remove the sins away from us. We repeatedly salute you; pay our obeisance to you. 
OBEISANCE :: अभिवादन, आदर, श्रद्धा, सम्मान, इज़्ज़त, दण्डवत प्रणाम; paying respect-honour.
अग्ने त्वं पारया नव्यो अस्मान्त्स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा।
पूश्च पृथिवी बहुला न उर्वी भवा तोकाय तनयाय शं योः
हे अग्नि देव आप नूतन हैं। स्तुति के कारण हमें आप समस्त दुर्गम पापों से मुक्त करें। हमारा नगर व हमारी भूमि प्रशस्त हैं। आप हमारे पुत्रों और हमारी सन्तानों को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.189.2]
हे अग्निदेव! वंदना किये जाने पर तुम हमको कष्टों से पार लगाओ। तुम हमारे लिए प्रशस्त नगरी वाले बनो। तुम हमारी संतानों की बीमारियों को शांत करने और डर का पतन करने वाले हो। 
Hey Agni Dev! You are always new-fresh! Make us free from sins on account of Stuti-obeisance, prayers offered to. Our abodes :- city and homes should be safe. Grant comforts-pleasure to our sons and progeny.
अग्ने त्वमस्मद्युयोध्यमीवा अनग्नित्रा अभ्यमन्त कृष्टीः। 
पुनरसम्भ्यं सुविताय देव क्षां विश्वेभिरमृतेभिर्यजत्र
हे अग्निदेव! आप हमारे पास से सभी रोगों को दूर करें। जो अग्निहोत्र नहीं करते या जो हमारे विद्रोही हैं, उन्हें भी हटावें। हे देव! आप हमें उत्तम फल देने के लिए जिनकी मृत्यु कभी नहीं होती, ऐसे देवों के साथ यज्ञशाला में पधारें।[ऋग्वेद 1.189.3]
हे अग्नि देव! तुम बीमारियों को हमसे दूर रखो जो व्यक्ति अग्नि से परे हैं उन्हें ही बीमारी होनी चाहिये। तुम देवताओं के साथ हमारी धरती को सुख से परिपूर्ण बनाओ।
Hey Agni Dev! Remove all diseases-ailments, illness away from us. Remove the detractors & those who do not conduct Yagy-Agni Hotr. Hey Dev! Come to our Yagy Shala-site along with the demigods-deities who are immortal.
None is for ever. One who is born has to die. The demigods-deities too have a specific life span and they assimilate themselves into Brahma Ji after one Kalp-one day of Brahma Ji. This is a continuous cycle.
पाहि नो अग्ने पायुभिरजस्त्रैरुत प्रिये सदन आ शुशुकान्। 
मा ते भयं जरितारं यविष्ठ नूनं विदन्मापरं सहस्वः
हे अग्नि देव! आप सतत आश्रयदान द्वारा हमारा पालन करें। हमारे प्रिय यज्ञगृह में चारों और दीप्त युक्त बने हैं। हे युवा अग्नि देव आपके स्तोता समस्त प्रकार के भय से मुक्त रहें तथा आपकी सामर्थ्य से अन्य संकटों में समय (हम) भी निर्भय रहे।[ऋग्वेद 1.189.4]
निर्भय :: निडर; fearless, intrepid.
हे अग्निदेव! हमारे प्रिय भवन में प्रदीप्त हुए तुम अपने रक्षा के साधनों से हमारा हमेशा पालन पोषण करो। तुम्हारे वंदनाकारी को कभी भी भय न लगे। 
Hey Agni Dev! You nourish-protect us regularly-continuously. Our lovely Yagy shade should be lit from all sides. Hey young Agni Dev! Your devotees should remain free from all fears and we too should be fearless.
मा नो अग्नेSव सृजो अघायाविष्यवे रिपवे दुछुनायै। 
मा दत्वते दशते मादते नो मा रीषते सहसावन्परा दाः॥
हे अग्नि देव! हमें अन्न ग्रासि, हिंसक और शुभ का नाश करने वाले शत्रुओं के हाथ में न देना। हमें दन्त विशिष्ट और दंशक सर्प आदि के हाथ में नहीं सौपना। दन्त शून्य शृंगादि वाले पशुओं को नहीं सौपना। हे बलवान् अग्नि देव! हिंसा करने वाले राक्षसों के हाथ भी हमें न सौपना।[ऋग्वेद 1.189.5]
हमको डंक मारने वाले! (सर्पादि) या बिना दाँत वाले, सींग आदि से परिपूर्ण हिंसकों के ही सुपुर्द करो। 
Hey Agni Dev! Do not hand over-surrender us to the violent and impious enemy, canine animals, snakes, with-without horns animals, demons. 
वि घ त्वार्वांऋतजात यंसद्गृणानो अग्ने तन्वे वरूथम्।
विश्वाद्रिरिक्षोरुत वा निनित्सोरभिद्रुतामसि हि देव विष्पट्
हे यशोत्पन्न अग्नि देव। आप वरणीय हैं। शरीर पुष्टि के लिए स्तुति करते हुए लोग आपको प्राप्त करके समस्त हिंसक और निन्दक व्यक्तियों के हाथों से अपने को बचाते हैं। हे अग्नि देव! जो आपके सामने कुटिल आचरण करते हैं, ऐसे दुष्टों का आप दमन करें।[ऋग्वेद 1.189.6]
वरणीय :: धारण करने योग्य; selectable, worthy of being chosen, splendid, fine.
हे सिद्धान्तों के लिए रचित अग्नि देव! तुम वंदना किये जाने पर निंदकों और हिंसकों से बचने वाले और कुटिल मनुष्यों का पतन करने वाले हो।
Hey revered Agni Dev! You deserve to be selected. We pray for the nourishment-growth of our body reciting prayers-Stuti and protect us from the depraved, violent persons. hey Agni Dev! Punish those who are crooked-thugs leading to their down fall. 
त्वं ताँ अग्र उभयान्वि विद्वान्वेषि प्रपित्वे मनयो यजत्र। 
अभिषित्वे मनवे शांस्यो भूर्ममृजेन्य उशिग्भिर्नाक्र:
हे यजनीय अग्नि देव! आप यज्ञ करने वाले और न करनेवाले इन दोनों से परिचित होते हुए उषा काल में यज्ञकर्ता को प्राप्त होते हैं और यज्ञ में उपस्थित यजमान को आप अभीष्ट फल प्रदत्त करते हैं तथा उसे अच्छे मार्ग की ओर प्रेरित करते हैं। (इसलिए) यजमान भी आपको सदैव सुशोभित करते हैं।[ऋग्वेद 1.189.7]
हे अग्ने! तुम यज्ञ कर्त्ता और यज्ञहीन दोनों प्रकार के प्राणियों को जानकर ही उषाकाल में यज्ञकर्त्ता को प्राप्त होते हो। तुम सूर्य अस्त के बाद भी साधक से विमुक्त न हो। यजमान तुम्हें हमेशा सुशोभित करते हैं।
Hey honourable worth inviting in the Yagy, Agni Dev! You are aware of both :- the one ones who perform Yagy and the ones who abstain from Yagy and is available to those at dawn who conduct Yagy. You accomplish the desires of the hosts-Ritviz and reward them as well, inspiring them to pious, righteous, way. Hence the hosts too welcome and honour you.
अवोचाम निवचनान्यस्मिन्मानस्य सूनुः सहसाने अग्नौ। 
वय सहस्त्रमृषिभिः सनेम विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
यज्ञ के उत्पन्नकर्ता और शत्रुओं का संहार करने वाले इन अग्नि देवता के लिए हम सभी प्रकार के स्तोत्रों का गान करते हैं। हम इन इन्द्रिय रूपी ऋषियों को सामर्थ्यवान् बनाकर नाना प्रकार के ऐश्वर्यो का उपभोग करें तथा अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त कर [ऋग्वेद 1.189.8]
हम मान के पुत्रों ने इस विजयशील अग्नि की वंदना की ऋषियों के साथी असंख्य धनों का उपयोग करें और धन, बल एवं उदार मनोवृत्ति से युक्त हों।
We pray Agni Dev through all means, who begin the Yagy and destroy all enemies; with the help of Strotr (hymns, Mantr). We maintain-nourish, make strong, our senses & functional organs and enjoy all amenities-pleasures and get strength and longevity. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (1) ::  ऋषि :- गृत्स्मद, देवता :-अग्नि,  छन्द :- जगती।
त्वमग्ने द्युभिस्त्वमाशुशुक्षणिस्त्वमद्भयस्त्वमश्मनस्परि। 
त्वं वनेभ्यस्त्वमोषधीभ्यस्त्वं नृणां नृपते जायसे शुचिः
हे मनुष्यों के स्वामी अग्निदेव के दिन में आप उत्पन्न होवें। सभी जगह दीप्तिशाली होकर उत्पन्न होवें। पवित्र होकर उत्पन्न होते। जल से उत्पन्न होवें। पाषाण से उत्पन्न होवें। वन से उत्पन्न होवें। औषधि से उत्पन्न होवें।[ऋग्वेद 2.1.1]
हे अग्ने! तुम यज्ञ समय में प्रकट होकर ज्योति से परिपूर्ण और शुद्ध होओ। तुम जल, पाषाण, वन, और औषधि में हर्षित रहते हो।   
Hey master of humans Agni Dev! You should appear-ignite during the day. You should be bright-brilliant every where. You should appear out of water, rocks, forests & medicines.
तवाने होत्रं तव पोत्रमृत्वियं तव नेष्ट्रं  त्वमग्नितायतः। 
तव प्रशास्त्रं त्वमध्वरीयसि ब्रह्मा चासि गृहपतिश्च नो दमे
हे अग्निदेव! होता, पोता, ऋत्विक् और नेष्टा आदि का कार्य आपका ही कर्म है। आप अग्रीध्र हैं। जिस समय आप यज्ञ की इच्छा करते हैं, उस समय प्रशास्ता का कर्म भी आपका हो है। आपही अध्वर्यु और ब्रह्मा नाम के ऋषि हैं। हमारे घर में आप ही गृहपति है।[ऋग्वेद 2.1.2]
नेष्टा :: सोम यज्ञ में प्रधान ऋत्विकों में से एक ऋत्विक् जो कि क्रम में 16 वें ऋत्विक् हैं, त्वष्टा देवता।
हे अग्ने! होता आदि कर्म तुम्हारा ही है। अनुष्ठान की इच्छा करने पर अध्वर्यु और ब्रह्मा भी तुम्हीं हो। हमारे घरों के तुम्हीं पोषक हो।
Hey Agni Dev! Its you who performs the duties of Hota-Yagy performer, Pota-grandson, Ritviz and the chief priest. You are the first deity in the Yagy. When you decide to conduct Yagy you perform all duties of the host. You are the Adharvaryu and Brahma Rishis. You are the leader in our home-family.
त्वमग्न इन्द्रो वृषभः सतामसि त्वं विष्णुरुरुगायो नमस्यः। 
त्वं ब्रह्मा रयिविद् ब्रह्मणस्यते त्वं विधर्तः सचसे पुरंध्या
हे अग्निदेव! आप साधुओं का मनोरथ पूर्ण करते हैं, इसलिए आप विष्णु हैं, आप बहुतों के स्तुति पात्र हैं; आप नमस्कार के योग्य हैं। धनवान् स्तुति के अधिपति, आप मन्त्रों के स्वामी है, आप विविध पदार्थों की सृष्टि करते और विभिन्न बुद्धियों में रहते हैं।[ऋग्वेद 2.1.3]
हे अग्ने! तुम सज्जनों की मनोकामना पूर्ण करने वाले एवं अनेकों द्वारा पूजनीय हो। तुम विष्णु रूप, वंदनाओं के स्वामी तथा अघीश्वर एवं बुद्धि प्रेरणा में समर्थवान हो।
Hey Agni Dev! You accomplish the desires of the saints-sages, hence you are a form of Bhagwan Shree Hari Vishnu. You are the lord of several people for worship and deserve to be saluted. You are the lord of the great prayers (Strotr) and the lord of Mantr as well. You create various commodities and reside in the intelligence-brain, mind.
त्वमग्ने राजा वरुणो धृतव्रतस्त्वं मित्रो भवसि दस्म ईड्यः।
त्वमर्यमा सत्पतिर्यस्य संभुजं त्वमंशो विदथे देव भाजयुः
हे अग्नि देव! आप धृतव्रत हैं; इसलिए आप राजा वरुण हैं। आप शत्रुओं के विनाशक और स्तुति योग्य हैं, इसलिए आप भिन्न हैं। आप साधुओं के रक्षक हैं, इसलिए आप अर्यमा हैं। अर्यमा का दान सर्वव्यापी है। आप सूर्य अंश है। हे अग्निदेव! आप हमारे यज्ञ में फल दान करें।[ऋग्वेद 2.1.4] 
धृतव्रत :: जिसने कोई व्रत धारण किया हो, धार्मिक क्रिया करने वाला, निष्ठाशील, जिसकी निष्ठा द्दढ़ हो, पुरुवेशीय जयद्रथ के पुत्र विजय का पौत्र।
अर्यमा :: पितरों का एक गण या वर्ग, अर्यमा को सर्वश्रेष्ठ पितृ माना जाता है।
हे अग्ने! तुम नियमों में दृढ़ वरुण स्वरूप हो। तुम शत्रुओं को मारने वाले, साधकों के पालक हो। तुम्हीं अर्थमारूप से व्यापक दान के दाता हो। तुम ही सूर्य हो। हमारे हवन में अभीष्ट फल प्रदान करो।
Hey Agni Dev! You are firm and determined. You are a destroyer and deserve worship. You are a protector of the sages and saints, hence you are like Aryma-the best amongest the Manes-Pitr. Donations-offerings made for the sake of Aryma are ever lasting. You are a component of the Sun. Hey Agni Dev! Grant us the reward of the Yagy. 
त्वमग्ने त्वष्टा विधते सुवीर्यं तव ग्नावो मित्रमहः सजात्यम्। 
त्वमाशुहेमा ररिषे स्वश्वयं त्वं नरां शर्धो असि पुरूवसुः
हे अग्नि देव! आप त्वष्टा हैं। आप अपने सेवक के वीर्य रूप हैं। सारी स्तुतियाँ आपकी ही हैं। आपका तेज हितकारी है। आप हमारे मित्र हैं। आप शीघ्र उत्साहित करते हैं और हमें उत्तम अश्व युक्त धन प्रदान करते आपके पास बहुत है। आप मनुष्यों के बल है।[ऋग्वेद 2.1.5] 
हे अग्ने! तुम तपस्वी के पुरुषार्थ रूप, वंदनाओं के स्वामी और त्वष्टा हो। तुम सखा भाव से परिपूर्ण शिक्षाप्रद एवं तेजवान हो। तुम अत्यन्त धनी और शक्ति के स्वरूप हो। महान अश्व परिपूर्ण धनों को प्रदान करने वाले हो।
Hey Agni Dev! You are Twasta. You are like the sperm-energy of your servants. All prayers are meant for you. Your warmth is beneficial to us and you are our friend. You encourage us quickly and provide us riches along with horses. You are the strength of the humans.
त्वमग्ने रुद्रो असुरो महो दिवस्त्वं शर्धो मारुत पृक्ष ईशिषे। 
त्वं वातैररुणैर्यासि शंगयस्त्वं पूषा विधतः पासि नु त्मना
हे अग्नि देव! आप महान् आकाश के असुर रुद्र है। आप मरुतों के बल स्वरूप हैं। आप अन्न के ईश्वर है। आप सुख के आधार स्वरूप है। लोहित वर्ण और वायु के समान अश्व पर जाते हैं। आप पूषा हैं, आप स्वयं कृपा करके परिचालक मनुष्यों की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 2.1.6]
कृपा :: अनुग्रह, दया, दयालुता, रहम, रहमत, तरस, सदयता; courtesy, mercy, graciousness, compassion.
दया, तरस, सहानुभूति, कृपा, कस्र्णा, क्षमाहे अग्नि देव! तुम उग्रकर्मा रुद्र एवं मरुद्गण की शक्ति स्वरूप हो। तुम अन्नों के दाता, सुख के आधार हो। रक्त वर्ण के घोड़े पर घूमने वाले हो तुम ही पूषा रूप से प्राणियों के हर प्रकार से रक्षक हो।
 Hey Agni Dev! You are the furious Rudr in the sky. You are the strength of the Marud Gan. You are the God of all sorts of food grains. You ride the red coloured horses which runs like wind. You are Pusha-a demigod. You gracious to the humans and protect them. त्वमग्ने द्रविणोदा अरंकृते त्वं देवः सविता रत्नधा असि। 
त्वं भगो नृपते वस्व ईशिषे त्वं पायुर्दमे यस्तेऽविधत्
हे अग्नि देव! अलंकारकारी यजमान के लिए आप स्वर्गदाता है। आप प्रकाशमान सूर्य और रत्नों के आधार स्वरूप हैं। हे नृपति! आप भजनीय धनदाता हैं। यज्ञगृह में जो यजमान आपकी सेवा करता है, उसकी आप रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 2.1.7] 
हे अग्ने! तुम यजमान को दिव्य लोक दिलाते हो। तुम सूर्य रूप से प्रकाशित रत्न रूपी धनों के आधार एवं ऐश्वर्य के देने वाले हो। तुम अपने साधक यजमान के पालनकर्त्ता हो।
Hey Agni Dev! You help the Ritviz in attaining heavens. You are bright and basis-source of jewels. Hey master of the humans! You deserve to be prayed as an entity who grant riches-wealth the devotee. The performer of the Yagy is protected by you. 
त्वामग्ने दम आ विश्पतिं विशस्त्वां राजानं सुविदत्रमृञ्जते। 
त्वं विश्वानि स्वनीक पत्यसे त्वं सहस्त्राणि शता दश प्रति
हे अग्नि देव! लोग अपने-अपने घर में आपको प्राप्त करते और आपको विभूषित करते है। आप मनुष्यों के पालक, दीप्तिमान् और हमारे प्रति अनुग्रह सम्पन्न हैं। आपकी सेवा अत्युत्तम है। आप सारे हव्यों के ईश्वर हैं। आप हजारों, सैकड़ों और दसों फल देते हैं।[ऋग्वेद 2.1.8] 
हे अग्ने! तपस्वी तुम्हें गृहों में प्रज्वलित करते हैं। तुम रक्षक, प्रकाशवान और अनुग्रह मति वाले हो। तुम हवि स्वामी अनेक फलों के प्रदान करने वाले हो।
Hey Agni Dev! The devotees pray-worship you in their homes. You are brilliant, the nurturer-supporter of the humans  and ready to support them. The out come of your service is excellent. You are the master of offerings (accept them and carries them to the demigods-deities). You grant rewards in thousands, hundreds and tens.  
त्वामग्ने पितरमिष्टिभिर्नरस्त्वां भ्रात्राय शम्या तनूरुचम्। 
त्वं पुत्रो भवसि यस्तेऽविधत्त्वं सखा सुशेव: पास्याधृषः
हे अग्निदेव! यश द्वारा लोग आपको तृप्त करते हैं, क्योंकि आप पिता है। आपका भ्रातृत्व करने के लिए लोग कर्म द्वारा आपको तृप्त करते हैं। आप भी उनका शरीर प्रदीप्त कर है। जो आपकी सेवा करता है, आप उसके पुत्र है। आप सखा, शुभकर्ता और शत्रु निवारक होकर हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 2.1.9]
हे अग्नि देव! अनुष्ठानों में पिता के समान तृप्त किये जाते हो। कार्यों द्वारा संतुष्ट करके मित्र बनाये जाते हो। तुम अपने सेवक के पुत्र रूप होते हुए उसे यशस्वी बनाते हो तुम हमारी सखा रूप से सुरक्षा करो।
Hey Agni dev! The devotees satisfy you with the help of regards-honour as a father. Devotees satisfy you with virtuous, pious, righteous deeds to attain you as a friend. You make their body aurous-glittering. You treat one who serves you, like a son. You should become our friend, beneficial and eliminate our enemies. 
त्वम ऋभुराके नमस्यस्त्वं वाजस्य क्षुमतो राय ईशिषे। 
त्वं वि भास्यनु दक्षि दावने त्वं विशिक्षुरसि यज्ञमातनिः
हे अग्नि देव! आप ऋभु है। आप प्रत्यक्ष स्तुति योग्य है। आप सर्वत्र विश्रुत धन और अन्न के स्वामी है, आप अतीव उज्ज्वल हैं। अंधकार के विनाश के लिए आप धीरे-धीरे काष्ठ आदि का दहन करते हैं। आप भली भाँति यज्ञ का निर्वाह और उसके फल को विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 2.1.10]
ऋभु :: बुद्धिमान, कौशलपूर्ण, शोधकर्ता, नवाचारी, शिल्पी, रथकार, गण देवता, देवों का अनुचर वर्ग, अर्ध देवता के रूप में कथित सुधन्वा के तीन पुत्र ऋभु, वाज और विभ्वन् जिनका बोध ज्येष्ठ ऋभु के नाम से होता है।
हे पावक! तुम ऋभु रूप से स्तुतियों के योग्य हो। तुम अन्न, धन के दाता एवं प्रकाशमय हो। तुम यज्ञ-निर्वाहक और उसके फल को बढ़ाने वाले हो।
Hey Agni Dev! You are intelligent and deserve worship, prayers. You are the master of all wealth spread all over the world. You are aurous-bright. You burn the wood slowly to lit-remove darkness. You conduct the Yagy properly and extend the rewards-out come of the Yagy. 
त्वमग्ने अदितिर्देव दाशुषे त्वं होत्रा भारती वर्धसे गिरा। 
त्वमिळा शतहिमासि दक्षसे त्वं वृत्रहा वसुपते सरस्वती
हे अग्नि देव! आप हव्यदाता के लिए अदिति है। आप होत्रा और भारती है। स्तुति द्वारा आप वृद्धि प्राप्त करते है। आप सौ वर्षों की भूमि है। आप दान में समर्थ है। हे धन पालक आप वृत्रहन्ता और सरस्वती है।[ऋग्वेद 2.1.11]
हे अग्ने! तुम अदिति रूप हो, होता और वाणी भी हो। प्रार्थनाओं द्वारा बढ़ाते हो। तुम्ही धनों की रक्षा करने वाले एवं वृत्र को मारने वाले हो।
Hey Agni Dev! You are Aditi for the host making offerings. You are a host and speech (voice, sound) as well. You grow-flourish by virtue of the prayers. You are like the land for cultivation for hundred years. You are the protector of wealth, slayer of Vratr and Saraswati as well.
त्वमग्ने सुभृत उत्तमं वयस्तव स्पार्हे वर्ण आ संदृशि श्रियः। 
त्वं वाजः प्रतरणो बृहन्नसि त्वं रविर्बहुलो विश्वतस्पृथुः
हे अग्नि देव! अच्छी तरह पुष्ट होने पर आप ही उत्तम अन्न है। आपके स्पृहणीय और उत्तम वर्ण में ऐश्वर्य रहता है। आप ही अन्न, त्राता, बृहत्, घन, बहुल और सर्वत्र विस्तीर्ण हैं।[ऋग्वेद 2.1.12]
हे अग्ने! तुम्हीं अन्न रूप एवं ऐश्वर्यवान हो। तुम दुःखों से उबारने वाले और अंतर्यामी हो।
Hey Agni Dev! On being nourished thoroughly, you become excellent kind of food grains. Your touch and the excellent colour possess all sorts amenities. You are protector, food grain, abundance granting of riches and pervade all around. 
त्वामग्न आदित्यास आस्यत्वां जिह्वां शुचयश्चकिरे करें। 
त्वां रातिषाचो अध्वरेषु सश्चिरे त्वे देवा हविरदन्त्याहुतम्
हे अग्नि देव! आदित्यों ने आपको मुख दिया है। हे कवि! पवित्र देवताओं ने आपको जीभ दी। दान के समय एकत्र देवता यज्ञ में आपको ही आहुति रूप में दिया हुआ हव्य भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 2.1.13]
हे अग्ने! तुम आदित्यों के मुख एवं देवगणों के जीभ रूप हो। यज्ञों में अभीष्ट देने के लिए एकत्रित हुए देवगण तुम्हारी इच्छा करते हुए तुम्हें दी गई हवियाँ ग्रहण करते हैं।
Hey Agni Dev! The Adity Gan provided you mouth. Hey poet! The pious demigods-deities provided you tongue. The demigods-deities gathered at the Yagy, eat the offerings made in you.
त्वे अग्ने विश्वे अमृतासो अद्रुह आसा देवा हविरदन्त्याहुतम्। 
त्वया मर्तासः खदन्त आसुतिं त्वं गर्भो वीरुधां जज्ञिषे शुचिः
हे अग्नि देव! सारे अमर और दोष रहित देवगण आपके मुख में, आहुति रूप में प्रदत्त हवि का भक्षण करते हैं। मर्त्य गण भी आपके द्वारा अन्नादि का आस्वाद पाते हैं। आप लता आदि के गर्भ (उत्ताप) रूप हैं। पवित्र होकर आपने जन्म ग्रहण किया है।[ऋग्वेद 2.1.14]
हे पावक! समस्त अमरधर्मा देव तुम्हारे मुख में दी गई हवियाँ भक्षण करते हैं। मरणधर्मा वाले जीव तुम्हारे अन्न को ग्रहण करते हैं। तुम औषधि आदि के गर्भस्थ रूप हो।
Hey Fire! All pious-pure immortal demigods-deities eats the offerings made in you. The Marty Gan (All those who have died) too enjoy-taste the food grains etc. You have taken birth after becoming pure-pious. 
Agni Dev is the mouth of he demigods-deities. 
त्वं तान्त्सं च प्रति चासि मज्मनाग्रे सुजात प्र च देव रिच्यसे। 
पृक्षो यदत्र महिना वि ते भुवदनु द्यावापृथिवी रोदसी उभे
हे अग्निदेव! बल द्वारा आप प्रसिद्ध देवों के साथ मिलें और उनसे पृथक होवें। हे सुजात देव! आप उनसे बलिष्ठ बने, क्योंकि आपकी ही महिमा से यह यज्ञस्थित अन्न शब्दायमान द्यावा पृथ्वी के बीच व्याप्त होता है।[ऋग्वेद 2.1.15]
हे अग्ने! तुम देवताओं से मिलकर भी अलग रहते हो। तुम श्रेष्ठ प्रकार से उत्पन्न होकर बल स्वीकार करते हो। तुम्हारी महिमा से आसमान धरती के मध्य यज्ञ स्थित अग्नि देव व्याप्त होते हैं।
Hey Agni Dev! You meet the famous, dignified demigods-deities and then separate from them.  
DIGNIFIED :: महान आलीशान, ऊँचा; conceited, haughty, proud, pretentious, elevated, high, exalted, towering, tall, stately, posh, kingly, spacious, palatial. Hey pious! You should be mightier than them. Since, its your greatness-mercy that the food grain offered in the Yagy grow due to your blessings and pervades in the sky & the earth.
ये स्तोतृभ्यो गोअग्रामश्वपेशसमग्ने रातिमुपसृजन्ति सूरयः। 
अस्माञ्च तांश्च प्र हि नेषि वस्य आ बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे अग्निदेव! जो मेधावी स्तोताओं को गौ और अश्व आदि दान करते हैं, उन्हें तथा हमें श्रेष्ठ स्थान में ले चलें। हम वीरों से युक्त होकर यज्ञ में विशाल मंत्र का उच्चारण करेंगे।[ऋग्वेद 2.1.16]
हे अग्निदेव! विद्वान तपस्वियों को गवाधि धन-दान वालों को महान निवास प्रदान करो। हम पराक्रमी संतान से परिपूर्ण हुए अनुष्ठान में महान वंदनायें करते हैं।
Hey Agni Dev! Take us and along with those who donated cows and horses to brilliant Strotas; to the excellent-best place. We will recite the large Mantr associated with the brave in the Yagy.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (2) ::  ऋषि :- गृत्स्मद, देवता :-अग्नि,  छन्द :- जगती।
यज्ञेन वर्धत जातवेदसमग्निं यजध्वं हविषा तना गिरा। 
समिधानं सुप्रयसं स्वर्णरं द्युक्षं होतारं वृजनेषु धूर्षदम्
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान्, शोभन, अन्न युक्त, स्वर्गदाता, उद्दीप्त, होम-निष्पादक और बल प्रदाता हैं। उन सर्व भूतज्ञ अग्नि को यज्ञ द्वारा वर्द्धित करें और यज्ञ तथा विस्तृत स्तुति द्वारा पूजा करें।[ऋग्वेद 2.2.1]
उद्दीप्त :: दहकता हुआ, तमतमाया हुआ तापोज्ज्वल, उद्दीप्त; luminous, stimulated, incited, glowing.
दीप्तिमान, सुन्दर, अन्न परिपूर्ण, अनुष्ठान संपादक, शक्तिदाता अग्नि को अनुष्ठान में वृद्धि करो। अनुष्ठान के लिए उनका पूजन करो।
Hey Agni Dev! You are bright, (aurous, glittering), beautiful, grants food grains and heavens, luminous, grants home and strength. Let us promote Agni who is aware of the past and worship him. 
अभि त्वा नक्तीरुषसो ववाशिरेऽग्ने वत्सं न स्वसरेषु धेनवः। 
दिवइवेदरतिर्मानुषा युगा क्षपो भासि पुरुवार संयतः
हे अग्नि देव! जिस प्रकार से दिन में गायें बछड़े की इच्छा करती हैं, उसी प्रकार आपके यजमान लोग दिन और रात्रि में आपकी कामना करते हैं। हे अनेकों के माननीय अग्निदेव! आप संयत होकर धुलोक में व्याप्त है। मनुष्यों के यज्ञों में सदा रहते हैं। रात में प्रदीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 2.2.2]
हे अग्ने! धेनु द्वारा बछड़ों की कामना करने के समान, यजमान दिवस-रात्रि तुम्हारी अभिलाषा करते हैं। तुम असंख्यकों के पूजक, आकाश व्यापी और यज्ञों में निवास करने वाले हो।
Hey Agni dev! The way the cow desire & is affectionate with the calf, the hosts-Ritviz desire for you throughout the day & night. Hey Agni revered by many! You have placed your self in the sky with care. You are always present in the Yagy conducted by the humans (Hindus, Aryans, Sanatani). You shine-glow at night. 
तं देवा बुध्ने रजसः सुदंससं दिवस्पृथिव्योररतिं न्येरिरे। 
रथमिव वेद्यं शुक्रशोचिषमग्निं मित्रं न क्षितिषु प्रशंस्यम्
हे अग्नि देव! सुदर्शन, द्यावा पृथ्वी के ईश्वर, धन पूर्ण रथ के सदृश, दीप्तवर्ण, ज्वाला स्वरूप, कार्य साधक और यज्ञ भूमि में प्रशंसित हैं। देवता लोग उन्ही अग्नि देव को संसार के मूल देश में स्थापित करते है।[ऋग्वेद 2.2.3]
हे अग्नि देव! तुम प्रदीप्त हुए धनयुक्त रथ वाले, आसमान धरती के दाता कार्यों को सिद्ध करने वाले और स्तुत्य हो। देवगण तुमको ही संसार में मातृभूमि रूप से स्थापित करते हो।
Hey Agni Dev! You are beautiful, the master of the sky & the earth, like the chaoite carrying wealth, bright coloured in the form of flames, helps in attaining the goal-targets and appreciated-honoured at the Yagy site. The demigods-deities establish Agni dev at the core-nucleus in the mother land-Matr Bhumi. 
तमुक्षमाणं रजसि स्व आ दमे चन्द्रमिव सुरुचं ह्वार आ दधुः। 
पृश्न्याः पतरं चितयन्तमक्षभिः पाथो न पायुं जनसी उभे अनु
हे अग्नि देव! अन्तरिक्ष वृष्टि-जल दाता, चन्द्रमा की तरह दीप्ति विशिष्ट, अन्तरिक्ष गामी ज्वाला द्वारा लोगों को चैतन्यता प्रदान करने वाले, जल की तरह रक्षक और सबकी जनयित्री द्यावा पृथ्वी को व्याप्त करने वाले हैं। उन्हीं अग्नि  देव को उस विजन गृह में स्थापित किया गया है।[ऋग्वेद 2.2.4]
हे अग्ने! तुम अपनी क्षितिज स्पर्श करने वाली लपटों से चन्द्रमा के वाले चैतन्यप्रद हो। तुम जलों के तुल्य सुरक्षा हेतु क्षिति भरा में लीन होते हो। तुम को अनुष्ठान मंडप में यजमान विद्यमान करते हैं।
Hey Agni Dev! You generate rains in the space, shines like the Moon, makes the humans-organisms conscious by virtue of flames in the sky, protector like water, pervades all, including the producer of life the sky & the earth. Agni dev is established in the Yagy house-site. 
स होता विश्वं परि भूत्वध्वरं तमु हव्यैर्मनुष ऋञ्जते गिरा। 
हिरिशिप्रो वृधसानासु जर्भुरद्द्यौर्न स्तृभिश्चितयद्रोदसी अनु
होम निष्पादक होकर अग्निदेव सारे यज्ञों को व्याप्त करें। मनुष्यों ने हव्य और स्तुति द्वारा उन्हें अलंकृत किया। दाहक शिखा युक्त अग्निदेव वर्द्धमान औषधियों के बीच जलकर, जैसे नक्षत्र आकाश में चमकते हैं, वैसे ही द्यावा पृथ्वी को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 2.2.5]
हवि सम्पादक अग्नि यज्ञों को प्राप्त करें यह औषधियों में प्रचलित होकर लक्षणों के समान आकाश और पृथ्वी को प्रकाशित करते हैं। यज्ञों में साधकगण उन्हें सुसज्जित करते हैं।
Hawan accomplishing Agni Dev pervades all Yagy ceremonies. The humans have honoured-glorified him with the offerings & Stuti-prayers. Agni Dev shines like the constellations in the sky amongest the burning herbs (Jadi-Buti Ayur Vedic medicines) lighting the sky and the earth.
स नो रेवत्समिधानः स्वस्तये संददस्वान्रयिमस्मासु दीदिहि। 
आ नः कृणुष्व सुविताय रोदसी अग्ने हव्या मनुषो देव वीतये
हे अग्नि देव! हमारे मंगल के लिए क्रम से वर्द्धित धन देते हुए आप प्रज्वलित होकर प्रकाशित हों। हे अग्नि देव! द्यावा पृथिवी में हमें फल प्रदान करें। मनुष्यों द्वारा प्रदत्त हव्य देवताओं के भक्षण के लिए ले आवें।[ऋग्वेद 2.2.6] 
हे अग्ने! तुम कल्याण रूप से धन दान करते हुए दीप्तिमान होओ। अम्बर और धरा में अन्न धन ग्रहण करो। मनुष्यों द्वारा दी गई हवियाँ देवों को ग्रहण कराओ। 
Hey Agni Dev! Shine for our welfare increasing our riches-wealth sequentially. Hey Agni Dev! Let the sky & the earth reward us. Please carry the offerings made by the humans to the demigods-deities.
दा नो अग्ने बृहतो दाः सहस्रिणो दुरो न वाजं श्रुत्या अपा वृधि । 
प्राची द्यावापृथिवी ब्रह्मणा कृधि स्वर्ण शुक्रमुषसो वि दिद्युतुः
हे अग्नि देव! हमें यथेष्ट गौ, अश्व आदि तथा सहस्र संख्यक पुत्र, पौत्र आदि दें। कीर्ति के लिए अन्न प्रदान करें और अन्न का द्वार खोल दें। उत्कृष्ट यज्ञ द्वारा द्यावा पृथ्वी को हमारे अनुकूल करें। आदित्य की तरह उषाएँ आपको प्रकाशित करती है।[ऋग्वेद 2.2.7]
हे अग्नि देव! गवादि धन, संतान आदि बहुसंख्यक समृद्धि को प्रदान कर प्रशस्वी बनाओ। तुम्हें उथायें प्रकाशमय करती हैं, उस अनुष्ठान द्वारा धरा को हमारे अनुकूल बनाओ। 
Hey Agni Dev! Grant us sufficient number of cows & horses along with hundred sons and grand sons. Open the store house containing food grains for our glory, so that we can donate them. Make earth and the sky suitable-favourable to us by means of excellent Yagy. The rays of Sun-Usha lit you.
स इधान उषसो राम्या अनु स्वर्ण दीदेदरुषेण भानुना। 
होत्राभिरग्निर्मनुषः स्वध्वरो राजा विशामतिथिश्चारुरायवे
रमणीय उषा में अग्नि प्रज्वलित होकर सूर्य की तरह उज्ज्वल किरणों में देदीप्यमान होते मनुष्यों के होम साधक, स्तुति द्वारा स्तूयमान, उत्तम यज्ञ वाले और प्रजाओं के स्वामी अग्निदेव यजमान के पास प्रिय अतिथि की तरह आते हैं।[ऋग्वेद 2.2.8]
उषा बेला में प्रज्ज्वलित अग्नि सूर्य के समान तेजस्वी होते हुए प्रार्थनाओं द्वारा पूजे जाते हैं। वे यज्ञकर्त्ता के पास यज्ञदाता और अतिथी  के रूप में आते हैं। 
The Agni-fire ignite in the morning at dawn, in a pleasant environment-atmosphere, spread its rays like the Sun, come to the Ritviz conducting excellent Yagy like a guest.
एवा नो अग्ने अमृतेषु पूर्व्य धीष्पीपाय बृहद्दिवेषु मानुषा। 
दुहाना धेनुर्वृजनेषु कारवे त्मना शतिनं पुरुरूपमिषणि
हे अग्नि देव! आप यथेष्ट द्युति वाले हैं। देवों के पूर्ववर्ती मनुष्यों की स्तुति आपको प्रसन्न करती है। दूध वाली गौवों की तरह यह स्तुति यज्ञ स्थित स्तोताओं को स्वयं अनन्त और विविध प्रकार धन प्रदान करती है।[ऋग्वेद 2.2.9]
हे अग्ने! तुम तेजस्वी हो। मनुष्यों द्वारा कृत प्रार्थनाएँ तुम्हें व्यापक बनाती हैं। पयस्विनी धेनु के समान, यज्ञ में की हुई वंदना असंख्य धन प्रदात्री हैं।
Hey Agni Dev! You possess suitable aura-energy. The prayers by the humans prior to the demigods-deities make you happy-please you. This Yagy involving prayers-Strotr, grants various kinds of assets-wealth to the performers of Yagy like a milch cow. 
वयमग्ने अर्वता वा सुवीर्यं ब्रह्मणा वा चितयेमा जनाँ अति। 
अस्माकं द्युम्रमधि पञ्च कृष्टिषूच्चा स्वर्ण शुशुचीत दुष्टरम्
हे अग्नि देव! हम आपके लिए अन्न और अश्व से यथेष्ट सामर्थ्य प्राप्त करके सबको लाँघ जायेंगे और इससे हमारी अनन्त और दूसरों के लिए अप्राप्य धनराशि सूर्य की तरह पाँच वर्णों (चार वर्ण और पंचम निषाद) के ऊपर दीप्तिमान् होगी।[ऋग्वेद 2.2.10]
हे अग्नि देव! तुम्हारे द्वारा प्रचुर शक्ति पाकर हम दुःखों से दूर रहें। दूसरों का अप्राप्य धन हमारे पास असंख्यक रूप में हो, हम सूर्य के समान यशस्वी हों।
Hey Agni Dev! Having received sufficient quantity of food grains & horses, we will become ahead of all and our infinite wealth will shine over the 5 Varn (main castes) i.e., it will help all organisms.
स नो बोधि सहस्य प्रशंस्यो यस्मिन्त्सुजाता इषयन्त सूरयः। 
यमग्ने यज्ञमुपयन्ति वाजिनो नित्ये तोके दीदिवांसं स्वे दमे
हे शत्रु पराजेता अग्निदेव! आप हमारी स्तुति योग्य है। हमारा स्तोत्र श्रवण करें। सुजन्मा स्तोता लोग आपके ही उद्देश्य से स्तुति करते हैं। रस और पुत्र की प्राप्ति के लिए हव्य विशिष्ट यजमान के यज्ञ गृह में दीप्यमान और यजनीय अग्निदेव की पूजा की जाती है।[ऋग्वेद 2.2.11]
हे अग्ने तुम वंदना सुनो, तुम शत्रु को पराजित करने वाले हो। अन्न, धन, संतान प्राप्ति के लिए मनुष्य तुम्हारे अनुष्ठानों में अर्चना करते हैं। 
Hey enemy defeating Agni Dev! You deserve worship. Listen-answer to our prayers. Upper caste born Ritviz-hosts pray for your glory. Agni is worshiped in the Yagy for seeking extracts (fruits-vegetation juices) and son.
उभयासो जातवेदः स्याम ते स्तोतारो अग्ने सूरयश्च शर्माणि। 
वस्वो रायः पुरुश्चन्द्रस्य भूयसः प्रजावतः स्वपत्यस्य शग्धि नः
हे सर्वभूतज्ञ अग्निदेव! स्तोता और मेघावी यजमान; हम दोनों सुख प्राप्ति के लिए आपके ही आश्रित होंगे। हमारे निवास हेतु अतिशय आह्लादप्रद प्रभूत और पुत्र प्रपौत्र आदि से युक्त धन से प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.2.12]
हे अग्निदेव! बुद्धिमान वंदनाकारी और यजमान सुख पाने के लिए तुम्हारे सहारे हुए हैं। तुम हमें श्रेष्ठ आवास, हर्षिता देने वाला धन, संतान आदि प्रदान करो।
Hey Agni Dev! You are aware of entire past. Let the Strota and the intelligent Ritviz depend over you for the sake of comforts-pleasure. Grant us best place to live, sons, grand sons and wealth to nourish them.  
ये स्तोतृभ्यो गोअग्रामश्वपेशसमग्ने रातिमुपसृजन्ति सूरयः। 
अस्माञ्च तांश्च प्र हि नेषि वस्य आ बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे अग्नि देव! जो मेधावी लोग स्तोताओं को गौ और अश्व आदि धन प्रदान करते हैं, उन्हें तथा हमें श्रेष्ठ स्थान में ले चलें। वीरयुक्त होकर हम यज्ञ में बृहत् मंत्र का उच्चारण करेंगे।[ऋग्वेद 2.2.13]
हे अग्नि देव! जो मेधावी यजमान स्तोताओं को गवादि धन दान करते हैं उनको और हमको श्रेष्ठ निवास दो। हम वीर संतान वाले होकर यज्ञ में उत्तम प्रार्थनाओं को गायेंगे।
Hey Agni Dev! Take us and those intelligent people, who donate cows & horses to the Stota to best places. We will sing Brahat Mantr on being the parents of brave progeny.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (3) ::  ऋषि :- गृत्स्मद,  इत्यादि, देवता :- अग्नि,  आदि, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
समिद्धो अग्निर्निहितः पृथिव्यां प्रत्यङ्विश्वानि भुवनान्यस्थात्। 
होता पावकः प्रदिवः सुमेधा देवो देवान्यजत्वग्निरर्हन्
वेदी पर निहित समिद्ध नामक अग्नि देव समस्त गृह के समक्ष अवस्थित हैं। होम निष्पादक, विशुद्धताकारी, प्राचीन, प्रजा से युक्त, द्योतमान और पूजा योग्य अग्नि देव देवों की पूजा करें।[ऋग्वेद 2.3.1]
दीप्तिमान, सुन्दर, अन्न परिपूर्ण, अनुष्ठान संपादक, शक्तिदाता अग्नि को अनुष्ठान में वृद्धि करो। अनुष्ठान के लिए उनका पूजन करो।
Agni Dev named Samiddh, is present over the Vedi (Yagy site-Hawan Kund) in the house. Let the Hawan performer, purity generating, eternal, populace supporting, glittering-brilliant, worship deserving  Agni Dev pray to the demigods-deities. 
नराशंसः प्रति धामान्यञ्जन् तिस्रो दिवः मह्ना स्वर्चिः। 
घृतप्रुषा मनसा हव्यमुन्दन्मूर्धन्यज्ञस्य समनक्तु देवान्
हे नराशंस नामक अग्नि देव! सुन्दर ज्वालाओं से युक्त होकर अपनी महिमा से प्रत्येक आहुति स्थल और प्रकाशमान तीनों लोकों को व्यक्त करते हुए घृत वर्षा की इच्छा से हव्य स्निग्ध करके यज्ञ के समक्ष देवों को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 2.3.2]
नराशंस नाम वाले अग्नि देव अपनी महत्ता से ज्योर्तिमान हुए त्रिलोकी को विद्यमान करते हैं। वह हवि परिपूर्ण घृत सिंचन की इच्छा वाले, देवों का अनुष्ठान में पुकारें। प्रसन्न मन वाले यज्ञ में सक्षम होते हुए देवगणों का पूजन करें।
Hey Agni Dev, named Narashans! Accompanied with beautiful flames you you lit the Yagy site and the three abodes (earth, heavens & Nether world) with the desire for the Ahuti of Ghee and offerings, glorify-lit the demigods-deities.
ईळितो अग्ने मनसा नो अर्हन्देवान्यक्षि मानुषात्पूर्वो अद्य। 
स आ वह मरुतां शर्धो अच्युतमिन्द्रं नरो बर्हिषदं यजध्वम्
हे इला नामक अग्निदेव! हम पर प्रसन्न चित्त से यागकर्म के योग्य होकर आज हमारे लिए मनुष्यों के पूर्ववर्ती होकर देवों का यज्ञ करें। मरुतों और अच्युत इन्द्रदेव का सम्बोधन करें। हे ऋत्विको। कुश पर बैठे हुए इन्द्रदेव का यज्ञ करें।[ऋग्वेद 2.3.3]
हे इला नामक अग्निदेव! वह हवि परिपूर्ण घृत सिंचन की इच्छा वाले, देवों का अनुष्ठान में पुकारें। प्रसन्न मन वाले यज्ञ में सक्षम होते हुए देवगणों का पूजन करें।
Hey Agni Dev with the name, Ila! Let us become suitable-able for Yagy Karm happily & conduct the Yagy for the sake of the Manes-Pitre Gan, those who have deceased-died. Let us address Indr Dev and the Marud Gan. The Yagy for the sake of Indr Dev is performed while sitting over Kush mate.
देव बर्हिवर्धमानं सुवीरं स्तीर्णं राये सुभरं वेद्यस्याम्। 
घृतेनाक्तं वसवः सीदतेदं विश्वे देवा आदित्या यज्ञियासः
हे द्योतमान कुशस्वरूप अग्निदेव! हमारे धन लाभ के लिए इस वेदी पर अच्छी तरह विस्तारित हो जावें। आप सदा बढ़ने वाले और वीर प्रदाता हैं। वसुओं, विश्वदेवों, यज्ञ योग्य आदित्यों, सहित आप घृत लगाये कुश पर बैठे।[ऋग्वेद 2.3.4]
हे ऋत्विजों! मरुद्गण और अविनाशी इन्द्र के प्रति रूपना करो। कुश पर स्थित इन्द्र अर्चना करो। हे कुश पर स्थापित अग्नि! हमको विशाल धन दिलाने के लिए वृद्धि करो। तुम मतिमय और पराक्रम से परिपूर्ण हो। हे विश्वेदेवो! हे आदित्यो! तुम घृत सिंचित कुश पर पधारो। 
Hey brilliant Agni Dev in the form of Kush! Let you grow-ignite for the sake of favouring us for wealth. You are for ever and grants us valour. You should occupy-sit the over the Kushasan treated with Ghee . 
वि श्रयन्तामुर्विया हूयमाना द्वारो देवीः सुप्रायणा नमोभिः। 
व्यचस्वतीर्वि प्रथन्तामजुर्या वर्णं पुनाना यशसं सुवीरम्
हे द्योतमान द्वार रूप अग्निदेव! आप प्रकट होवें। आप महान् हैं। लोग नमस्कार करते हुए आपके लिए हवन करते और सरलता से आपके पास जाते हैं। आप व्यापक, अहिंसनीय, वीर विशिष्ट, यशोयुक्त और वर्णनीय रूप के सम्पादक हैं। आप भली भाँति प्रसिद्ध होवें।[ऋग्वेद 2.3.5]
हे प्रकाशित अग्नि देव! तुम यज्ञ द्वार का उद्घाटन करो। प्राणियों में तुम महान के प्रति हाक देते हुए सामिष्य प्राप्त करते हो। तुम वीरता युक्त, यशस्वी, व्यापक और करने वाले योग्य अत्यन्त ऐश्वर्य प्राप्त हो।
Hey glittering Agni Dev! Appear before us-ignite. You are great. Populace salute before you and come closer to you performing the Hawan. You are broad, non violent brave possessing glory and beautiful figure which deserve description (singing songs in your honour).
साध्वपांसि सनता न उक्षिते उषासानक्ता वय्येव रण्विते । 
तन्तुं ततं संवयन्ती समीची यज्ञस्य पेशः सुदुघे पयस्वती
हमें अच्छे कर्म फल देने वाली अग्निरूप उषायें रात्रि को वयन (बुनाई में) चतुर दो रमणियों की तरह सहायता के लिए परस्पर जाते-आते यज्ञ का रूप बनाने के लिए परस्पर अनुकूल होकर बड़े तन्तु का वयन करती हैं। वे अतीव फलदाता और जलयुक्त हैं।[ऋग्वेद 2.3.6]
उत्तम कार्यों में प्रेरित करने वाली उषा और रात्रि, दो नारियों की भांति एक दूसरे के अनुकूल हुई कीर्ति का स्वरूप बनाती हुई बुनने वाली के समान चलती हैं। वे जल सींचने वाली तथा अभिष्ट फल प्रदान करने वाली हैं।
The Usha in the form of Agni-fire,  come close to each other for conducting Yagy suitably, become mutually beneficial and weave the long threads. They us grant excellent rewards.
दैव्या होतारा प्रथमा विदुष्टर ऋजु यक्षतः समृचा वपुष्टरा। 
देवान्यजन्तावृतुथा समञ्जतो नाभा पृथिव्या अधि सानुषु त्रिषु
अग्नि रूप दिव्य दो होता पहले ही यज्ञ के योग्य हैं। वे सर्वापेक्षा विद्वान् और विशाल शरीर से संयुक्त हैं। वे मंत्र द्वारा अच्छी तरह पूजा करते और यथा समय देवों के लिए यज्ञ करते हैं। वे पृथ्वी की नाभि रूपिणी उत्तर वेदी के गार्हपत्य आदि तीन अग्नियों के प्रति गमन करते हैं।[ऋग्वेद 2.3.7]
विद्वानों में देवता के समान पूज्य अग्नि होता रूप हैं वे प्रार्थनाओं द्वारा पूजन करते हुए देव यज्ञ सम्पन्न करते हैं। वे धरती की नाभि रूप उत्तम वेदी में तीनों करणीय धर्मों के लिए सुसंगत होते हैं।
Two hosts-Ritviz having divine aura are able to conduct Yagy. They are scholars having huge bodies (of knowledge). They perform worship-prayers (Pooja-Archna) with the help of Mantr thoroughly for the sake of demigods-deities. They move towards, prostrate before the three kinds of fire-Agni located at the centre-nucleus of the earth.
सरस्वती साधयन्ती धियं न इळा देवी भारती विश्वतूर्तिः। 
तिस्रो देवीः स्वधया बर्हिरेदमच्छिद्रं पान्तु शरणं निषद्य
हमारे यज्ञ की निष्पादिका अग्नि रूप सरस्वती, इला और सर्वव्यापिका भारती, ये तीनों देवियाँ यज्ञगृह का आश्रय करके, हव्यलाभ के लिए, निर्दोष रूप से हमारे यज्ञ का पालन करें।[ऋग्वेद 2.3.8]
हमारी मति को कार्यों में प्रेरित करती हुई सरस्वती, इला और भारती अनुष्ठान मंडप में अन्न आश्रय ग्रहण करती हुई. हमारे अनुष्ठान की सुरक्षा करें।
Let the three deities Saraswati, Ila and all pervading Bharti help us conduct & protect our Yagy free from all defects-impurities, leading to gain of offerings.
पिशङ्गरूपः सुभरो वयोधाः श्रुष्टी वीरो जायते देवकामः। 
प्रजां त्वष्टा वि ष्यतु नाभिमस्मे अथा देवानामप्येतु पाथः
अग्नि स्वरूप त्वष्टा की दया से हमारे पिशंग वर्ण, यज्ञ कर्त्ता, अन्न दाता, क्षिप्र कर्ता, देवाभिलाषी और वीर पुत्र उत्पन्न होवें। त्वष्टा हमें कुल रक्षक संतान प्रदान करें। देवों का अन्न हमें प्राप्त होवे।[ऋग्वेद 2.3.9]
अग्नि रूप त्वष्टा की कृपा से हमें शीर्घ कर्मकारी अन्नों उत्पादक कीर्ति और देवों की इच्छा वाला पराक्रमी पुत्र ग्रहण हो। हमारी संतान अपने वंश का पोषण करने वाली हो और हमें अन्न की ग्रहणता हो।
पिशंग :: पीलापन लिए भूरा रंग, धूमल रंग; brown, chestnut, greyish.
Let us have brave sons with the blessings of Twasta, possessing brownish colour, who conduct Yagy, making donations in the form of food grains, desirous of seeing the demigods-deities and are brave. They should be able to protect our clan-hierarchy. Let us get the food stuff of the demigods-deities. 
वनस्पतिरवसृजन्नुप स्थादग्निर्हविः सूदयाति प्र धीभिः। 
त्रिधा समक्तं नयतु प्रजानन्देवेभ्यो दैव्यः शमितोप हव्यम्
वनस्पति रूप अग्निदेव हमारे कर्म जानकर हमारे पास है। विशेष कर्म द्वारा अग्निदेव भली-भाँति हव्य पकाते हैं। दिव्य शमिता नाम के अग्नि देव तीन प्रकार से अच्छी तरह सिक्त हव्य को जानकर उसे देवों के निकट ले जायें।[ऋग्वेद 2.3.10]
हमारे कर्मों के ज्ञाता अग्नि देव हमको प्राप्त हों। आपने उत्तम कर्मों से हव्यान्न का परिवाक कर देवों को पहुँचायें। घृत अग्नि का आश्रय स्थान एवं प्रकाश है।
Agni in the form of vegetation is with us, having learnt out working. Agni-fire cooks properly the offerings with special treatment. Divine Shamita named Agni-fire carries the saturated offerings to the demigods-deities.
घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम।
अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम्
मैं अग्नि में घृत डालता हूँ। घृत ही उनकी जन्मभूमि, आश्रय स्थान और दीप्ति है। हे अभीष्टवर्षी अग्निदेव! हव्य देने के समय देवों को बुलाकर उनको प्रसन्नता प्रदान करें और अग्रिरूप स्वाहाकार में प्रदत्त हव्य ले जावें।[ऋग्वेद 2.3.11]
मैं अग्नि में घृत हो गया हूँ। हे मनोरथ वर्षक अग्ने! हविर्दान के समय देवों को आमंत्रित कर उनकी प्रसन्नता प्राप्त करते हुए उनको हव्य दो।
I pour Ghee in Agni. Ghee is his birth place, shelter and brightness of Agni Dev. Desires fulfilling Agni Dev! Call the demigods-deities at the time of making offerings and make them happy-pleased.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (4) ::  ऋषि :- सोमाहुति,  भार्गव, देवता :- अग्नि,  आदि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
समिद्धो अग्निर्निहितः पृथिव्यां प्रत्यविश्वानि भुवनान्यस्थात्। 
होता पावकः प्रदिवः सुमेधा देवो देवान्यजत्वग्निरर्हन्
वेदी पर निहित समिद्ध नामक अग्नि देव समस्त गृह के समक्ष अवस्थित हैं। होम निष्पादक, विशुद्धताकारी, प्राचीन, प्रजा से युक्त, द्योतमान और पूजा योग्य अग्निदेव देवों की पूजा करें।[ऋग्वेद 2.4.1]
वेदी में विद्यमान अग्नि समस्त अनुष्ठान स्थान में लीन हैं। वे अनुष्ठान सम्पादक पावक, प्रकाशमान होकर देवा का अर्चन करने वाले हो।
Agni Dev named Samiddh, is present over the Yagy Vedi in front of the whole house. Let us worship-pray Agni Dev who is ancient-eternal, helps in conducting the Yagy, support-nurture the populace, brilliant-shinning, pure-pious & purity causing.
नराशंसः प्रति धामान्यञ्जन् तिस्त्रो दिवः मह्ना स्वर्चिः। 
घृतप्रुषा मनसा हव्यमुन्दन्मूर्धन्यज्ञस्य समनक्तु देवान्
हे नराशंस नामक अग्निदेव! सुन्दर ज्वालाओं से युक्त होकर अपनी महिमा से प्रत्येक आहुति स्थल और प्रकाशमान तीनों लोकों को व्यक्त करते हुए घृत वर्षा की इच्छा से हव्य स्निग्ध करके यज्ञ के समक्ष देवों को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 2.4.2]
नराशंस नाम वाले अग्नि देव अपनी महत्ता से ज्योर्तिमान हुए त्रिलोकी को विद्यमान करते हैं। वह हवि परिपूर्ण वृत सिंचन की इच्छा वाले, देवों का अनुष्ठान में पुकारें।
Hey Agni Dev by the name of Narashans! Please  lit the Yagy site and the three abodes (Earth, Heavens & the nether world) by virtue of your grace, associated with beautiful flames, with the desire of showering Ghee and offerings in front of the demigods-deities. 
ईळितो अग्ने मनसा नो अर्हन्देवान्यक्षि मानुषात्पूर्वो अद्य। 
स आ वह मरुतां शर्धो अच्युतमिन्द्रं नरो बर्हिषदं यजध्वम्
हे इला नामक अग्नि देव! हम पर प्रसन्न चित्त से याग कर्म के योग्य होकर आज हमारे लिए मनुष्यों के पूर्ववर्ती होकर देवों का यज्ञ करें। मरुतो और अच्युत इन्द्रदेव का सम्बोधन करें। हे ऋत्विको! कुश पर बैठे हुए इन्द्रदेव का यज्ञ करें।[ऋग्वेद 2.4.3]
प्रसन्न मन वाले यज्ञ में सक्षम डोले हा देवाणी का पूजन करें। है ऋत्विजों! मरुद्गण और अविनाशी इन्द्र के प्रति वाणी रूप वन्दना करो। कुश पर स्थित इन्द्र की अर्चना करो। 
Hey Agni Dev bearing the name Ila! Let us conduct Yagy happily for the sake of our ancestors-Manes. Let us address the Marud Gan and Dev Raj Indr. Hey Ritviz! Let us perform Yagy in the honour of Indr Dev occupying a Kush seat-cushion.
Ila, Narashans & Samiddh are the three names according to the characterises, properties, qualities born by Agni Dev.
अस्य रण्वा स्वस्येव पुष्टिः संदृष्टिरस्य हियानस्य दक्षोः। 
वि यो भरिभ्रदोषधीषु जिह्वामत्यो न रथ्यो दोधवीति वारान्॥
अपने शरीर की पुष्टि करने के सदृश अग्नि देव शरीर की पुष्टि करना भी रमणीय है। जिस समय ये चारों ओर फैलते और काष्ठ को भस्म करते हैं, उस समय उनका शरीर अत्यन्त सुन्दर हो जाता है। जिस प्रकार से रथ का अश्व बार-बार पूँछ हिलाता है, उसी प्रकार अग्नि देव भी लकड़ियों को अपनी शिखा से कम्पाय मान करते हैं।[ऋग्वेद 2.4.4]
जैसे रथ में हुआ अश्व अपनी पूंछ हिलाता है, वैसे उनकी ज्वालाएँ काष्ठ पर हिलती हैं। अग्नि की श्रेष्ठता का गुणगान करने पर वे अपना रूप प्रदर्शित करते हैं। 
Nourishment of of Agni dev is essential just like our own body, which is admirable. When he spreads in all directions burning-consuming the wood, it waves-vibrates like the tail of the horse, which he wages too frequently.
आ यन्मे अभ्वं वनदः पनन्तोशिग्भ्यो नामिमीत वर्णम्। 
स चित्रेण चिकिते रंसु भासा जुजुर्वां यो मुहुरा युवा भूत्
मेरे सहयोगी स्तोता लोग अग्नि देव के महत्त्व की स्तुति करते हैं, वे आग्रही ऋत्विजों के पास अपना रूप प्रदर्शित करते हैं। अग्नि देव रमणीय हव्य के लिये विचित्र किरणमाला से प्रकाशित होते हैं। ये वृद्ध होकर भी बार-बार उसी युवा भी होते है।[ऋग्वेद 2.4.5]
वे हव्य प्राप्त करने को ज्वाला से परिपूर्ण होते हैं तथा वे कभी बुढ़ापे को ग्रहण नहीं करते।
My associate Ritviz make prayers giving importance-significance to Agni Dev. Agni Dev shows-exposes his figure in front of the Ritviz who stress over it. Agni Dev is shinning with different of vivid rays due to the offerings. Even after becoming old he acquires his youth again & again.
The offering have different elements and compounds in it and these substances burn with different colours.
आ यो वना तातृषाणो न भाति वार्ण पथा रथ्येव स्वानीत्। 
कृष्णाध्वा तपू रणवश्चिकेत द्यौरिव स्मयमानो नभोभिः
तृषातुर की तरह जो अग्नि देव वनों को दग्ध करते हैं, जल की तरह इधर-उधर जाते हैं; रथ वाहक अश्व की तरह शब्द करते हैं, वे कृष्ण मार्ग और तापक होने पर भी नभो मण्डल वाले द्युलोक की तरह शोभन हैं।[ऋग्वेद 2.4.6]
प्यासे के समान अग्निदेव वनों को जलाते और जलों के तुल्य विचरण करते हैं। वे रथ में जुड़े हुए घोड़े के समान ध्वनि करते तथा अपने काले रास्ते को प्रकट करते हुए भी सूर्य मंडल के समान शोभायमान होते हैं। 
Agni Dev burns the forests-jungles, vegetation just like a thirsty person who move thither & thither in search of water. He makes sounds like the carrier charoite. Though present in dark route and possessing heat, he glitters and lit the space. 
स यो व्यस्थादभि दक्षदुर्वीं पशुर्नैति स्वयुरगोपाः। 
अग्नि शोचिष्माँ अतसान्युष्णन्कृष्णव्यथिरस्वदयन्न भूम
जो अग्निदेव विश्व को व्याप्त करते हैं, जो अग्नि देव विस्तृत पृथ्वी पर बढ़ते हैं, जो अग्नि देव रक्षक रहित पशु की तरह अपनी इच्छा से गमन कर विचरण करते हैं, वही दीप्तिमान् अग्नि देव सूखे वृक्ष आदि को जलाकर, व्यथाकारी कंटक आदि को दूरकर अच्छी तरह रसास्वादन करते हैं।[ऋग्वेद 2.4.7]
संसार व्यापक अग्नि पृथ्वी पर बढ़ते और स्वामीहीन पशु के समान घूमते हैं। यही प्रदीप्त अग्वि देव वनों को भस्म कर कष्ट पहुँचाने वाले काँटों को भी मिटा देते हैं।
Agni Dev who pervades the universe and increase-spread over the earth and wander like an animal, who is not protected by the demigods-deities, of his own; and enjoy-relish the burning of dry trees and the pain causing thorns.
नू ते पूर्वस्यावसो अधीतौ तृतीये विदथे मन्म शंसि। 
अस्मे अग्रे संयद्वीरं बृहन्तं क्षुमन्तं वाजं रयिं दाः
हे अग्नि देव! आपने पहले प्रथम सवन में जो रक्षा की थी, उसे हम आज भी स्मरण करके तृतीय सवन में मनोहर स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं। आप हमें वीर विशिष्ट करें। आप हमें महान् कीर्तिमान बनायें हमें सुन्दर संतान और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.4.8]
हे अग्ने! तुम्हारे प्रथम सवन की रक्षा को स्मरण करके आज हम तृतीय सवन में रमणीय प्रार्थनाएँ करते हैं। तुम हमें वीरत्व, ऐश्वर्य और सुन्दर वन प्रदान करो।
Hey Agni Dev! We remember the protection granted by you in the first cycle and pray to you reciting the lovely-beautiful Mantr in the third cycle seeking shelter under you. Let us become great warriors. Please make us glorious and grant us beautiful progeny and wealth.
त्वया यथा गृत्समदासो अग्ने गुहा वन्वन्त उपराँ अभि ष्यु:। 
सुवीरासो अभिमातिषाहः स्मत्सूरिभ्यो गृणते तद्वयो धा:
हे अग्नि देव! गृत्समद वंशीय ऋषि लोग आपको रक्षक पाकर छन्द का पाठ करते हुए, कन्दरा में अवस्थित उत्कृष्ट स्थान पर वर्तमान धन विशेष प्राप्त करेंगे। ये उत्तम पुत्र आदि को प्राप्त कर शत्रुओं को परास्त करेंगे। मेधावी और स्तुतिकारी यजमानों को बहुत अधिक और प्रसिद्ध धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.4.9]
हे अग्नि देव! गुफा में विराजमान ऋषि गण तुम्हारे द्वारा रक्षित हुए अद्भुत श्लोक उच्चारित करते हुए अद्भुत धन ग्रहण करते हैं। वे महान सन्तान आदि प्राप्त कर शत्रुओं को पराजित करने में समर्थ होंगे। तुम विद्वानजन वंदना करने वालों को वरणीय धन प्रदान करें। 
Hey Agni Dev! Rishis of Gratsamad  clan recite the Chhand under your protection-asylum and receive special riches-wealth in the den. They will defeat the enemy after receiving the excellent sons etc. Grant lots of riches to the intelligent and worshipping devotees-Ritviz.
 ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (5) ::  ऋषि :- सोमाहुति,  भार्गव, देवता :- अग्नि,  आदि, छन्द :- अनुष्टुप्
होताजनिष्ट चेतनः पिता पितृभ्य ऊतये। 
प्रयक्षञ्जेन्यं वसु शकेम वाजिनो यमम्
हे होता! चैतन्य दाता और पिता अग्नि देव पितरों की रक्षा के लिए उत्पन्न हुए। हम भी हव्य युक्त होकर अतीव पूजनीय, जीतने और रक्षा करने योग्य धन प्राप्त करने में समर्थ होंगे।[ऋग्वेद 2.5.1]
होता रूप चैतन्य प्रद पिता के समान अग्नि देव पहले मनुष्यों की सुरक्षा हेतु प्रकट हुए थे। हम भी हवि से परिपूर्ण होकर पूजनीय विजेता और सुरक्षा के साधन अग्नि से धन ग्रहण करेंगे।
Hey hosts-organisers of the Yagy! Agni Dev evolved-appeared to protect the Manes-Pitr Gan. We shall be successful in having wealth for protection, victory, possess offerings & adorable-respected (honourable). 
आ यस्मिन्त्सप्त रश्मयस्तता यज्ञस्य नेतरि। 
मनुष्वद्दैव्यमष्टमं पोता विश्वं तदिन्वति
यज्ञ के नेता अग्नि देव में सात रश्मियाँ विस्तृत हैं। देवों के पोता के समान अग्निदेव मनुष्यों के पोता की तरह यज्ञ के अष्टम स्थानीय होकर व्याप्त होते हैं।[ऋग्वेद 2.5.2]
अनुष्ठान के नायक अग्नि में सात किरणें जुड़ी हैं। देवताओं के पौत्र समान अग्नि देव मनुष्यों में पौत्र रूप हुए। अनुष्ठान के आठवें स्थान में लीन होते हैं। 
As the leader of the Yagy, Agni Dev possess seven rays. Just like the grandson of the demigods-deities & the humans, Agni Dev pervades the Yagy in eight locations-places.
दधन्वे वा यदीमनु वोचद्ब्रह्माणि वेरु तत्। 
परि विश्वानि काव्या नेमिश्चक्र मिवाभवत्
इस यज्ञ में ऋत्विक गण जो हव्यादि धारण करते, जो मंत्र आदि पढ़ते हैं, वो सब अग्नि देव को जानते हैं।[ऋग्वेद 2.5.3]
इस अनुष्ठान में ऋत्विजों द्वारा धारण किये हव्य अन्न और गायी हुई प्रार्थनाओं को वे अग्निदेव भली-भांति जानते हैं।
The Ritviz-hosts who possess the offerings, reciting the Mantr knows Agni Dev, very well, in this Yagy.
साकं हि शुचिना शुचिः प्रशास्ता क्रतुनाजनि। 
विद्वाँ अस्य व्रता ध्रुवा वयाइवानु रोहते
पवित्र प्रशास्ता अग्नि देव पुण्य क्रतु के साथ उत्पन्न हुए है। जिस प्रकार से लोग फल तोड़ने के लिए एक डाल से दूसरी डाल पर जाते हैं, उसी प्रकार यजमान अग्नि देव के यज्ञ को फलदाता समझकर एक के बाद दूसरा अनुष्ठान करते हैं।[ऋग्वेद 2.5.4]
वह अग्नि अत्यन्त पवित्रता से उत्पन्न हुई है। एक डाली से दूसरी डाली पर जाकर फल तोड़ने के समान, यजमान यज्ञ को अभिष्ट दाता जानते हुए एक के बाद दूसरा यज्ञ करते हैं।
Pious-pure Agni Dev evolved with Puny Kratu. The manner in which, people move from one branch to another for plucking the fruits, the hosts-Ritviz conduct-perform, one after another Yagy, since it guarantees desired-rewards. 
ता अस्य वर्णमायुवो नेष्टुः सचन्त धेनवः। 
कुवित्तिसृभ्य आ वरं स्वसारो या इदं ययुः
जो अंगुलियाँ इस कार्य में लगी रहती है, वे इन नेष्टा अग्नि देव के लिए धेनु स्वरूप है और इनकी सेवा करती है तथा अग्रि रूप होकर इनके गार्हपत्य आदि तीन उत्कृष्ट रूपों की सेवा करती है।[ऋग्वेद 2.5.5]
नेष्टा :: अध्वर्यु के सहायक ऋत्विक् को नेष्टा कहते हैं; one assisting the head priest or he host in rituals. 
नेष्टा अग्नि की सेवा में दस उंगलियां धेनु रूप से सींचने वाली होती हैं तथा इनके गार्हपत्य आदि रूपों की अर्चना में लग जाती हैं।
The fingers which are engaged in the Yagy serves Agni Dev as a cow in three different ways like Garhpaty. 
यदी मातुरूप स्वसा घृतं भरन्त्यस्थित। 
तासामध्वर्युरागतौ यवो वृष्टीव मोदते
जिस समय जुहू मातृ रूपिणी वेदी के पास बहन के समान घृत पूर्ण करके रखा जाता है, उस समय जिस प्रकार से वृष्टि में यव पुष्ट होता है, उसी प्रकार से ही अध्वर्यु रूप (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) अग्नि देव भी दृष्ट होते हैं।[ऋग्वेद 2.5.6]
जुहू :: पलाश की लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का अर्ध चंद्राकार यज्ञ-पात्र,  पूर्व दिशा; a pot made of Butea wood used in Yagy performances, kept near the Yagy Vedi. 
अध्वर्यु :: यज्ञ में प्रमुख आहुति दाता; the main person conducting Yagy.
मातृ भूमि वेदी के निकट भग्नि के समान जुहू को घी से पूर्ण करके रखते हैं। तब वर्षा से वृद्धि करने वाले जौं के तुल्य अग्नि भी पुष्टि को ग्रहण होते हैं।
When the pot called Juhu is kept near the Yagy Vedi, icon to mother, like a sister full of Ghee the offerings called Yav are saturated by it, leading to the ignition-appearance of Agni Dev.
स्व: स्वाय धायसे कृणुतामृत्विगृत्विजम्। 
स्तोमं यज्ञं चादरं वनेमा ररिमा वयम्
ये ऋत्विक रूप अग्निदेव अपने कर्म के लिए ऋत्विक का कर्म करते हैं। हम भी उनके अनन्तर ही स्तोम, यज्ञ और हव्य प्रदान करेंगे।[ऋग्वेद 2.5.7]
यह अग्नि महान कार्य के लिए ऋत्विक के तुल्य होते हैं। हम उनके लिए श्लोक और हवि प्रदान करते हुए अनुष्ठान करें।
Agni Dev acts as the primary host in the Yagy. We too participate in recitation of hymns, conduction of Yagy and making offerings.
यथा विद्वाँ अरं करेंद्वश्वेभ्यो यजतेभ्यः। 
अयमग्ने त्वे अपि यं यज्ञं चकृमा वयम्॥
हे अग्नि देव! आपकी महिमा जानने वाला यजमान जिस प्रकार से समस्त देवताओं को भली भाँति तृप्ति कर सके, वैसा ही करें। हम जिस यज्ञ को करेंगे, वह भी अग्निदेव आपका ही है।[ऋग्वेद 2.5.8]
हे अग्नि देव! तुम्हारी महत्ता को जानने वाला यजमान समस्त देवों को तृप्त कर सके, वह कर्म करो। हम जिस अनुष्ठान को करते हैं, वह तुम्हारा ही है।
Hey Agni Dev! Please acts in such a way the host who is aware of the glory of the demigods-deities is able to satisfy them and we too act similarly. The Yagy performed-conducted by us too belong to you. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (6) ::  ऋषि :- सोमाहुति,  भार्गव, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री
इमां मे अग्ने समिधमिमामुपसदं वनेः। इमा उ षु श्रुधी गिरः
हे अग्नि देव! आप मेरी इस समिधा और आहुति का उपभोग करें, मेरी यह स्तुति श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.6.1]
हे अग्नि देव! मेरी समिधा और आहुतियों को प्राप्त करो, मेरे श्लोकों को सुनो।
Hey Agni Dev! Accept & utilise my wood and offerings, listening to my prayers. 
अया ते अग्ने विधेमोर्जो नपादश्वमिष्टे। एना सूक्तेन सुजात
बल पुत्र, विस्तीर्ण-यज्ञशाली और सुजन्मा अग्निदेव! हम इस आहुति के द्वारा आपकी सेवा करेंगे। हे अग्निदेव! इस स्तुति से आपको हम प्रसन्न करेंगे।[ऋग्वेद 2.6.2]
हे अग्नि देव! हम तुम्हें आहुतियों से हर्षित करें। तुम महान जन्म वाले शक्ति के पुत्र हो। तुम यज्ञ को विस्तृत करते हो। हमारी प्रार्थना से प्रसन्न होओ।
hey Agni Dev! You are born out of great purity-piousness, the son of Bal, extensive, busy in the Yagy. We will make offerings and offer prayers-Stuti to make to you happy. 
तं त्वा गीर्भिर्गिर्वणसं द्रविणस्युं द्रविणोदः। सपयंम सपर्यवः
हे धनद अग्नि देव! आप स्तुति के योग्य और यज्ञ के अभिलाषी है। हम आपके सेवक स्तुति द्वारा आपकी सेवा करेंगे।[ऋग्वेद 2.6.3]
हे धनदाता, अग्नि देव! तुम अनुष्ठान की अभिलाषा करने वाले, वंदना के योग्य हो। हम तुम्हारे साधक वंदनाओं से प्रार्थना करते हैं।
Hey wealth-riches granting Agni Dev! We will serve you by making prayers as your servants. You deserve the Stuti-prayers and is desirous of Yagy. 
स बोधि सूरिर्मघवा वसुपते वसुदावन्। युयोध्यस्मद्वेषांसि
हे अग्नि देव! आप धनवान्, विद्वान् और धन देने वाले हैं। उठें और हमारे शत्रुओं को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 2.6.4]
हे अग्नि देव! तुम मेधावी धन प्रदान करने वाले हो। उनको हमारे शत्रुओं को बता दो।
Hey Agni Dev! You are sagacious, enlightened possessing wealth. Get up and repel our enemies. 
स नो वृष्टिं दिवस्परि स नो वाजमनर्वाणम्। स नः सहस्रिणीरिषः 
वही अग्नि देव हमारे लिए अन्तरिक्ष से वर्षा प्रदान करते हैं। वे हमें महान् बल और नाना प्रकार का अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.6.5]
अग्नि हमारे लिए अंतरिक्ष में जल की वर्षा करते हैं। वह हमें महाबली बनाएँ और असंख्य अन्न प्रदान करें।
Agni Dev make-generate rains for us in the space. Let him make us powerful-mighty and grant us various kinds of food grains.  
ईळानायावस्यवे यविष्ठ दूत नो गिरा। यजिष्ठ होतरा गहि
हे तरुणतम देवदूत, अतिशय यजनीय अग्निदेव! मैंने आपकी स्तुति की है, इसलिए पधारें। मैं आपका पूजक हूँ और आपका आश्रय चाहता हूँ।[ऋग्वेद 2.6.6]
हे अति युवा अग्नि देव! मेरी प्रार्थनाओं को सुनकर यहाँ पर पधारो। मैं तुम्हारे सहारे की कामना से अर्चना करता हूँ।
Hey youngest Agni Dev! You deserve worship-prayers with extremities-beyond limits. I am worshiping you to call-invite you here. I worship you and desire shelter-protection under you. 
अन्तर्ह्यग्न ईयसे विद्वान् जन्मोभया करें। दूतो जन्येव मित्र्यः
हे मेधावी अग्नि देव! आप मनुष्यों के हृदय को पहचानते हैं, आप उभय रूप जन्म जानते है। आप संसार और बन्धुओं के दूत रूप हैं।[ऋग्वेद 2.6.7]
हे अग्नि देव! तुम मनुष्यों के हृदयों की बात समझते हो, तुम उनके दोनों जन्मों की बात जानते हो। तुम ज्ञानी, मित्रों की भलाई करने वाले तथा दूत रूप हो।
Hey intelligent Agni Dev! You understand what is there in the hearts-minds of the humans. You know their past lives and is the well wisher-brother and the messenger of the demigods-deities.
स विद्वाँ आ च पिप्रयो यक्षि चिकित्व आनुषक्। 
आ चास्मिन्त्सत्सि बहिर्षि
यथाक्रम आप देवों का यज्ञ करें और कुश के ऊपर बैठे। अग्निदेव आप विद्वान् हैं आप हमारी मनोकामना पूर्ण करें, क्योंकि आप चैतन्य युक्त हैं। [ऋग्वेद 2.6.8] 
हे अग्निदेव! तुम ज्ञानी हो। हमारी इच्छाएँ पूरी करो। तुम चैतन्यप्रद हो। देवताओं का करने के लिए कुश पर पधारो।
Hey Agni Dev! You are enlightened. Perform the Yagy for the sake of demigods-deities occupying Kush mate. Full-accomplish our desires since you are conscious-awake. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (7) ::  ऋषि :- सोमाहुति,  भार्गव, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री
श्रेष्ठं यविष्ठ भारताग्ने द्युमन्तमा भर। वसो पुरुस्पृहं रयिम्
हे तरुणतम, भरणकर्ता और व्याप्त अग्नि देव! अतिशय प्रशंसनीय, दीप्तिमान् और बहुजन वाञ्छित धन ले आवे।[ऋग्वेद 2.7.1]
हे अतियुवा अग्निदेव! तुम पोषक, पालक, प्रशंसनीय तथा ज्योर्तिवान हो। अनेकों म्पूर्ण जगत् के सजीव एवं जीव द्वारा अभिलाषी धनों को यहाँ लाओ। 
Hey youngest  nourishing-nurturing, all pervading Agni Dev! Bring the best appreciated, shinning wealth desirable by most of the people.
मा नो अरातिरीशत देवस्य मर्त्यस्य च पर्षि तस्या उत द्विषः
हे अग्नि देव! मनुष्यों या देवों की शत्रुता हमें पराजित न करे हमें दोनों प्रकार के शत्रुओं से बचायें।[ऋग्वेद 2.7.2]
हे अग्नि देव! शत्रुओं का पक्ष लेकर हमको पराजित न करो। हमारी प्रत्येक प्रकार से सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev! Protect us from defeat due the enmity with either the demigods-deities or the humans.
विश्वा उत त्वया वयं धारा उदन्याइव। अति गाहेमहि द्विषः
हे अग्नि देव! जल की धारा की तरह हम समस्त शत्रुओं को स्वयं ही लाँघ जायेंगे।[ऋग्वेद 2.7.3]
हे अग्नि देव! तुम्हारी कृपा दृष्टि से हम अपने आप समर्थवान बन जायेंगे।
Hey Agni Dev! Let us over power the enemies like the flow of waters our self.  
शुचिः पावक वन्द्योऽग्ने बृहद्वि रोचसे। त्वं घृतेभिराहुतः
हे अग्नि देव! आप शुद्ध, पवित्र कर्ता और वन्दनीय है। घृत द्वारा आहूत होकर आप अत्यन्त दीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 2.7.4]
हे पावक! तुम पूजनीय हो। घृत की आहुतियों द्वारा तुम अत्यन्त प्रकाशवान हो।
Hey Agni Dev! You are pious-pure, purity generating and deserve worship. You become bright by pouring-offering Ghee. 
त्वं नो असि भारताग्ने वशाभिरुक्षभिः। अष्टापदीभिराहुतः
हे भरणकर्ता अग्निदेव! आप हमारे हैं। आप बन्ध्या गौ, वृष और गर्भिणी गौवों द्वारा पूजित हुए हैं।[ऋग्वेद 2.7.5]
हे अग्नि देव! तुम पालनकर्त्ता हो। हमारी सुन्दर गौ, बैलों और बछड़ों द्वारा पूजे जाते हो।
Hey Agni Dev! Yu belong to us. You are worshipped by the infertile cows, bulls and the pregnant cows. 
द्व्रन्नः सर्पिरासुतिः प्रत्नो होता वरेण्यः। सहसस्पुत्रो अद्भुतः
जिनका अन्न  समिधा है, जिनमें घृत सिक्त होता है, वे ही पुरातन, होम निष्पादक, वरणीय और बल के पुत्र अग्निदेव अतीव रमणीय है।[ऋग्वेद 2.7.6]
सिक्त :: सींचा हुआ, गीला; moistened, soaked.
प्रतापी, बल के पुत्र, यज्ञ संपादक, प्राचीन समिधा रूप अन्न वाले, घृत सिंचन की इच्छा करने वाली अग्नि अत्यन्त उत्तम है।
The son of Bal, Agni Dev who is admirable & ancient, Yagy conducting, acceptable and soaked with Ghee (butter oil). His food is Samidha-wood.
 ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :-  गुत्समद,  देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्
वाजयन्निव नू रथान्योगां अग्नेरुप स्तुहि। यशस्तमस्य मीळ्हुषः
हे होता! अन्नाभिलाषी पुरुष की तरह प्रभूत यश वाले और अभीष्टदाता अग्नि देव के अश्वों की स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.8.1]
जो अग्नि देव अश्व के समान तुल्य वाले, रमणीय अन्न वाले तथा अभिलाषी वृष्टि करने वाले हैं, उनका गुणगान करो।
Hey Ritviz-Yagy organisers! Desirous of food grains, pray-worship Agni Dev, who possess the qualities of horse, accomplish desires.
यः सुनीथो ददाशुषेऽजुर्यो जरयन्नरिम्। चारुप्रतीक आहुतः
सुनेता, अजर और मनोहर गति वाले अग्नि देव हवि प्रदान करने वाले यजमान के शत्रुओं के नाश के लिए आहूत हुए।[ऋग्वेद 2.8.2]
जो अग्निदेव नायक रूप से उत्तम चाल वाले हैं, उनको हविदाता, शत्रु के पतन हेतु पुकारता हूँ।
Agni Dev, who has evolved to kill the enemy, is immortal, a good leader and moves with rhythm-beautifully. 
य उ श्रिया दमेष्वा दोषोषसि प्रशस्यते। यस्य व्रतं न मीयते
सुन्दर ज्याला वाले जो अग्नि देव गृह में आते हुए दिन-रात स्तुत होते हैं, उनका व्रत कभी क्षीण नहीं होता।[ऋग्वेद 2.8.3]
जो अग्नि महान लपटों से परिपूर्ण हुए घरों में विद्यमान हुए प्रतिदिन पूजे जाते हैं, उनका कार्य अक्षुण रहता है।
Glory of Agni Dev is never lost, who is prayed-worshiped everyday in the homes.
आ यः स्वर्ण भानुना चित्रो विभात्यर्चिषा। अञ्जानो अजरैरभि
जिस प्रकार से किरण रूप सूर्य प्रकाशित होते हैं, विचित्र अग्नि देव भी अजर शिखाओं द्वारा चारों ओर प्रकाशित होकर उसी प्रकार से रश्मियों द्वारा सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 2.8.4]
रश्मिवान् सूर्य के समान ही जरा-रहित अग्नि देव भी लपटों के साथ प्रकाशित होते रश्मियों से शोभायमान होते हैं। 
The way in which Sun lights with his rays, Agni Dev too lights with his flames in all directions.
अत्रिमनु स्वराज्यमग्निमुक्थानि वावृधुः। विश्वा अधि श्रियो दधे
शत्रुओं के विनाशक और स्वयं सुशोभित अग्नि देव के लिए समस्त ॠङ् मन्त्र प्रयुक्त होते हैं। इन्होंने सारी शोभाएँ धारण की है।[ऋग्वेद 2.8.5]
शत्रु नाशक और सुशोभित अग्नि अत्यन्त तेजोमय है। इनकी शोभा अद्भुत है।
The glory of Agni Dev is amazing. He kills the enemy and displays himself energetically.
अग्नेरिन्द्रस्य सोमस्य देवानामूतिभिर्वयम्। 
अरिष्यन्तः सचेमह्यभि ष्याम पृतन्यतः
हमने अग्नि देव, इन्द्र देव, सोम देव और अन्य देवताओं का आश्रय प्राप्त किया है। (अंतः) हमारा कोई अनिष्ट नहीं कर सकता। हम शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 2.8.6]
हम अग्नि, इन्द्र, सोम तथा अन्य देवों का आश्रय प्राप्त कर चुके हैं। अब कोई हमारा बुरा नहीं कर सकता। हम शत्रुओं को हराने में सक्षम हों।
We have attained shelter, protection, asylum under Agni Dev, Indr Dev, Som Dev and the other demigods-deities, hence non can harm us. We will conquer-win the enemy.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (9) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्
नि होता होतृषदने विदानस्त्वेषो दीदिवाँ असदत्सुदक्षः। 
अदब्धव्रतप्रमतिर्वसिष्ठः सहस्रंभरः शुचिजिह्वो अग्निः
अग्निदेव देवताओं के होता, विद्वान्, प्रज्वलित, दीप्तिमान्, प्रकृष्ट बलशाली, अप्रतिहत, अनुग्रह विशिष्ट, निवास दाता, सबके भरणकर्ता और विशुद्ध शिखावाले हैं। होता के भवन में अग्निदेव अच्छी तरह प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 2.9.1]
वह अग्निदेव मेधावी, ज्योतिवान, शक्तिशाली, अद्भुत होता, शरणाभूत, सत्यवक्ता और लपट परिपूर्ण हैं। अनुष्ठानशाला में महान आसन पर विराजमान हों।
Agni Dev is the host of the demigods-deities, enlightened, glowing, powerful, grants shelter-asylum and home, support-nurture all, possess a pure-bright flame. Occupy a privileged seat in the house of the host. 
त्वं दूतस्त्वमु नः परस्यास्त्वं वस्य आ वृषभ प्रणेता। 
अग्ने तोकस्य नस्तने तनूनामप्रयच्छन्दीद्यद्बोधि गोपाः
हे अभीष्ट वर्षक अग्नि देव! आप हमारे दूत बनें। हमें विपत्ति से बचावें। हमें धन प्रदान करें। अहंकार शून्य और दीप्तिशाली होकर हमारे और हमारे पुत्रों के रक्षक बनें। हे अग्निदेव! जागृत होवें।[ऋग्वेद 2.9.2]
हे अभिलाषी वृष्टि करने वाले अग्निदेव! हमारा दौत्य कार्य सम्पन्न करो। हमारी और पुत्रों की सुरक्षा करो।
Hey accomplishment-desires granting Agni Dev! Become our messenger. Grant us riches. Become ego free, shinning and protect our sons. Hey Agni Dev! Wake up. 
विधेम ते परमे जन्मन्नग्ने विधेम स्तोमैरवरे सधस्थे। 
यस्माद्योनेरुदारिथा यजे तं प्र त्वे हवींषि जुहरे समिद्धे
हे अग्नि देव! हम आपके उत्तम जन्म स्थान में आपकी सेवा करेंगे। जिस स्थान से आप उद्भुत हुए है, उसकी भी पूजा करेंगे। वहाँ आपके प्रज्वलित होने पर अध्वर्यु (यजुर्वेद चिह्नित कार्य करने वाले) लोग आपको लक्ष्य कर हव्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 2.9.3]
हे अग्नि देव! तुम्हारे जन्म स्थान में तुम्हें पूजेंगे। जहाँ प्रकट हुए हो उस जगह की अर्चना करेंगे। वहाँ प्रदीप्त होने पर तुम्हें हवियाँ दी जाती हैं। 
Hey Agni Dev! We will worship-pray at your excellent birth place. We will that place as well, where you are born. The priests make offerings for you at that place. 
अग्ने यजस्व हविषा यजीयाजुष्टी देष्णमभि गृणीहि राधः।
त्वं ह्यसि रविपती रयीणां त्वं शुक्रस्य वचसो मनोता
हे अग्नि देव! याज्ञिकों में आप श्रेष्ठ है। हव्य द्वारा आप यज्ञ करें। तत्पर होकर आप देवों के पास हमारे दिये जाने योग्य अन्न की प्रशंसा करें। आप धनों में उत्कृष्ट धन के अधिपति हैं। आप हमारे प्रदीप्त स्तोत्र को श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.9.4]
हे अग्ने! तुम श्रेष्ठ यज्ञकर्त्ता हो। हमको दिये जाने वाले योग्य अन्नों को देवगणों से दिलवाओ। तुम धन के दाता हो। हमारी सुति के ज्ञाता बनो।
Hey Agni Dev! You are the best amongest the Yagy performers. Perform the Yagy with the help of offerings. Appreciate the food grains offered by us to the demigods-deities dedicatedly. You are the possessor of the best wealth. Listen to our brilliant composition-Strotr.  
उभयं ते न क्षीयते वसव्यं दिवेदिवे जायमानस्य दस्म। 
कृधि क्षुमन्तं जरितारमग्ने  कृधि पतिं स्वपत्यस्य रायः
हे दर्शनीय अग्निदेव! आप प्रतिदिन उत्पन्न होते है। आपका दिव्य और पार्थिव धन नष्ट नहीं होता। फलस्वरूप आप स्तोत्र कर्ता यजमान को अन्न युक्त करें। उसे सुन्दर अपत्य वाले धन का स्वामी बनायें। 
[ऋग्वेद 2.9.5]
अपत्य :: औलाद, संतान, वंशज; offspring, progeny, children. 
हे अग्ने! तुम दर्शनीय एवं कष्ट नाशक हो। तुम्हारा अद्भुत या पार्थिव, कोई भी समृद्धि समाप्त नहीं होती। वंदनाकारी को अन्न प्रदान करो और उसे धनों का अधिपति बनाओ।
Hey beautiful Agni Dev! You evolve every day. Your divine and material form of wealth destroy. Make the Ritviz performing Yagy possessor of food stuff, grains. Let the host-Ritviz be blessed with beautiful-handsome offspring-progeny. 
सैनानीकेन सुविदत्रो अस्मे यष्टा देवाँ आयजिष्ठः स्वस्ति। 
अदब्धो गोपा उत नः परस्या अग्रे द्युमदुत रेवद्दिदीहि
हे अग्नि देव! आप अपने बल के साथ हमारे प्रति अनुग्रह करें। आप देवों के याजक, सर्वापेक्षा उत्तम यज्ञकर्ता, देवों के रक्षक और हमारे पालक हैं। आपकी कोई हिंसा नहीं कर सकता। धन और कान्ति से युक्त होकर आप चारों ओर देदीप्यमान होवें।[ऋग्वेद 2.9.6] 
हे अग्निदेव! तुम अपने मित्रों सहित हम पर अपनी दया दृष्टि करो। तुम देवों के पालनकर्त्ता, हमारे रक्षक और अहिंसित हो। समृद्धि से परिपूर्ण तुम सर्वत्र ज्योर्तिवान हो।
Hey Agni Dev! Oblige us with your might and power. You are the priest of the demigods-deities, excellent Yagy performer, protector of the demigods-deities and our nurturer. No one can harm you. You should become aurous-glorious  possessing wealth.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (10) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्
जोहूत्रो अग्निः प्रथमः पितेवेळस्पदे मनुषा यत्समिद्धः। 
श्रियं वसानो अमृतो विचेता मर्मृजेन्यः श्रवस्यः स वाजी
अग्नि देव सबसे प्रथम होतव्य और पिता के समान हैं। ये मनुष्यों के द्वारा यज्ञस्थान में प्रज्वालित हुए सेवनीय हैं। हैं। वह दीप्तिपूर्ण, मरणरहित, विभिन्न प्रज्ञायुक्त, अन्नवान्, बलवान् और सबके सेवनीय हैं।[ऋग्वेद 2.10.1]
सेवनीय :: सेवा करने योग्य, पूज्य; consumable.
अग्नि देव होता और पिता रूप हैं। वे मनुष्यों द्वारा अनुष्ठान स्थान में प्रदीप्त किये जाते हैं। वे ज्योर्तिवान, अमर, मेधावी, अन्न और शक्ति से परिपूर्ण सभी के द्वारा सेवा करने योग्य हैं।
Agni Dev is host as well as like a father. He is honourable & deserve to be served in the Yagy. He is ignited at the site of Yagy-Hawan by the humans. He is aurous, bright, immortal, intelligent, possessor of food grains, power-might and deserved to to be served by all. 
श्रूया अग्निश्चित्रभानुर्हवं मे विश्वाभिर्गीर्भिरमृतो विचेताः। 
श्यावआ रथं वहतो रोहिता वोतारुषाह चक्रे विभृत्रः
अमर, विशिष्ट प्रज्ञा वाले, विचित्र दीप्ति युक्त अग्नि देव मेरे सब स्तुति युक्त आह्वान को श्रवण करें। दो लाल घोड़े अग्नि देव का रथ वहन करते हैं। वे विविध स्थानों में जाते हैं।[ऋग्वेद 2.10.2]
मतिवान, दिव्य ज्योतिवाले अविनाशी अग्नि देव मेरे आह्वान को सुनो। उनके लाल रंग के अश्व उन्हें विभिन्न स्थानों में पहुँचाते हैं।
Immortal, possessing special intelligence ag brightness and amazing Agni Dev respond-listen to the my prayers. Two red horses drive his charoite. He visits various places.  
उत्तानायामजनयन्त्सुषूतं भुवदग्निः पुरुपेशासु गर्भ:। 
शिरिणायां चिदक्तुना महोभिरपरीवृतो वसति प्रचेताः
अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) लोगों ने उर्ध्वमुख अरणि या काष्ठ में प्रेरित अग्नि को उत्पन्न किया है। अग्नि देव विविध औषधियों में गर्भ रूप से अवस्थित हैं। रात में उत्तम ज्ञानवान् अग्नि देव, महादीप्ति युक्त होकर वास करते हैं। उन्हें अन्धकार छिपा नहीं सकता।[ऋग्वेद 2.10.3]
अध्वर्युओं ने दो अरणियों से अग्नि को उत्पन्न किया। वे विविध बेलों में गर्भ रूप में व्याप्त होते और रात में अत्यन्त प्रकाश से युक्त और सभी लोकों के पालक हैं।
The priests ignite the fire rising upwards in the wood. Agni Dev is present in the form of various medicines in the wood. The enlightened Agni Dev reside-shows his presence with extremely bright light. The darkness can not hide him. 
जिघर्म्यग्निं हविषा घृतेन प्रतिक्षियन्तं भुवनानि विश्वा। 
पृथुं तिरश्चा वयसा बृहन्तं व्यचिष्ठमन्नै रभसं दृशानम्
सारे भुवनों के अधिष्ठाता, महान् सर्वत्र गामी, शरीरवान्, प्रवृद्ध हव्य द्वारा व्याप्त, बलवान् और सबके दृश्यमान अग्नि देव की हम हव्य और घृत के द्वारा पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 2.10.4]
अधिष्ठाता :: देखभाल करनेवाला, अध्यक्ष, नियामक; installer, dean, director, laird, manager, ruler.
वे बुद्धि को प्राप्त हुए। हवियों द्वारा व्याप्त होते होते हैं। सर्वव्यापी यज्ञ की कामना वाले अग्नि देव को हम घृत से सींचते हैं।
We worship-pray Agni Dev, who is the manager of all abodes, fast moving, possessing body, enriched with offerings, powerful, visible to all; with offerings & Ghee. 
आ विश्वतः प्रत्यञ्चं जिघर्म्यरक्षसा मनसा तज्जुषेत। 
मर्यश्रीः स्पृहयद्वर्णो अग्निर्नाभिमृशे तन्वा जर्भुराणः
सर्वव्यापी और यज्ञ के अभिमुख आने की इच्छा करते हुए अग्नि देव को घृत द्वारा हम सिक्त करते हैं। वे शान्त चित्त से उस घृत को ग्रहण करें। मनुष्यों के भजनीय और श्लाघनीय वर्ण वाले अग्निदेव के पूर्ण प्रज्वलित होने पर उन्हें कोई स्पर्श नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.10.5]
श्लाघनीय :: प्रशंसनीय; praiseworthy.
वे शांति पूर्वक उसे सेवन करें। अग्नि के पूर्ण प्रदीप्त होने पर उन्हें स्पर्श करने में कोई सक्षम नहीं हैं।
We offer Ghee to Agni Dev with the desire to participate in the Yagy. Let him accept Ghee with peaceful mind. None can touch Agni Dev, who is praiseworthy when he is ignited in his full-ultimate form. 
ज्ञेया भागं सहसानो वरेण त्वादूतासो मनुवद्वदेम। 
अनूनमग्निं जुह्वा वचस्या मधुपृचं घनसा जोहवीमि
अपने तेजो बल से शत्रुओं को पराजित करते समय अग्निदेव; आप हमारी सम्भोग योग्य स्तुति को श्रवण करें। आपका आश्रय पाकर हम मनु की तरह प्रार्थना करते हैं। उन बहुल मधुस्पर्शी और धन प्रद अग्निदेव का जुहू और स्तुति द्वारा मैं आह्वान करता हूँ।[ऋग्वेद 2.10.6]
हे अग्निदेव! अपने तेज से शत्रुओं को पराजित करते हुए हमारी इच्छा योग्य वंदनाओं को समझो। तुम्हारी शरण में हम मनुष्य के तुल्य वंदना करते हैं। तुम धन दाता हो, हाथ में जुहू लेकर मैं तुम्हें श्लोकों से पुकारता हूँ।
Hey Agni Dev listen to our prayers while you defeat the enemy with your might-power. We pray to you under your patronage, like Manu. I pray to you using a pot made of butea for the sake of-grant of riches.
  ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- अपान्नपात् (अग्नि पौत्र), छन्द :- त्रिष्टुप्।
अपान्नपात् :: जल पौत्र अग्नि जो निथुद्रुप अग्नि होगा, पानी में प्रकाशित होता है। इसे अग्नि कहा गया है। उसी प्रकार अग्नि को अपांनपात् कहा गया है। grandson of the waters, अग्नि or fire as sprung from water.
उपेमसृक्षि वाजयुर्वचस्यां चनो दधीत नाद्यो गिरो मे। 
अपां नपादाशुहेमा कुवित्स सुपेशसस्कर्रेत जोषिषद्धि
मैं अन्न की इच्छा से इस स्तुति का उच्चारण करता हूँ। शब्द कर्ता और शीघ्रगन्ता अपां नपात् (जल पौत्र अग्नि) नाम के देवता हमें प्रचुर अन्न और सुन्दर रूप दे। मैं उनकी स्तुति करता हूँ। वे स्तुति से आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 2.35.1]
अन्न की इच्छा से मैं इस श्लोक को बोलता हूँ। शीघ्रगामी और ध्वनिवान जल पौत्र अग्नि हमको प्रचुर अन्न और मनोहर रूप प्रदान करें। वे वंदना की इच्छा करते हैं। इसलिए मैं इनकी वंदना करता हूँ। 
I recite this prayer for the sake-want of food grains. Let Apannpat-grandson Agni Dev, who make sound and move swiftly, give us sufficient food and beautiful-handsome bodies. He wish us to make prayer and he become happy with it.
इमं स्वस्मै हृद आ सुतष्टं मन्त्रं वोचेम कुविदस्य वेदत्। 
अपां नपादसुर्यस्य मह्ना विश्वान्यर्यो भुवना जजान
उनके लिए हम हृदय से सुरचित इस मंत्र का अच्छी तरह उच्चारण करें; वे उसे बार बार जानें। स्वामी अपांनपात् ने शत्रु क्षेपणकारी बल से समस्त लोकों को उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 2.35.2]
हम उनके द्वारा निमित्त भाव से यह प्रार्थना करेंगे। वे हमारी प्रार्थना को जानें। उन्होंने जीवों के हितार्थ शक्ति द्वारा सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति की है। 
We will make prayers from the depth of our hearts and recite this Mantr properly till he listen to it and respond. Apannpat created all abodes with the desire of welfare & to repel the enemies. 
समन्या यन्त्युप यन्त्यन्याः समानमूर्वं नद्यः पृणन्ति। 
तमू शुचिं शुचयो दीदिवांसमपां नपातं परि तस्थुरापः
कोई-कोई जल इकट्ठा होता है, उसके साथ दूसरा मिलता है। वे सब समुद्र के बड़वानल को प्रसन्न करते हैं। विशुद्ध जल निर्मल और दीप्तिमान् अपांनपात् नामक देवता को चारों ओर से घेर लेते हैं।[ऋग्वेद 2.35.3]
जलों के संग जल मिलते हैं। वे सभी समस्त समुद्र में बड़वानल की वृद्धि करते हैं। कोमल और शुद्ध जल अपान्नपात नामक देवता को घेरे रहता है।
Let the water from various sources come to a single point and get mixed to flow towards the ocean to appease Badvanal-fire underneath in the ocean. Let the pure water surround the aurous-shining demigod Apannpat from all sides.
तमस्मेरा युवतयो युवानं मर्मृज्यमानाः परि यन्त्यापः। 
स शुक्रेभिः शिकभी रेवदस्मे दीदायानिध्मो घृतनिर्णिगप्सु
जिस प्रकार से अहंकार से रहित युवती अपने युवा पति को प्राप्त होती है, उसी प्रकार से ही अपांनपात् देवता को अलंकृत और परिवेष्टित करती है। ये अपांनपात् देव हमें अपने तेजस्वी स्वरूप में धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.35.4]
अहंकार प्रथक युवती, शृंगार से सजी हुई अपने तेजस्वी पति को ग्रहण होती है। वैसे ही ईंधन- विमुख घृत से सिंचित अग्नि धन परिपूर्ण अन्न की प्राप्ति के लिए जलों के बीच तेज से ज्योतिवान होते हैं।
They manner in which a young woman free from ego, meets her husband, she serves Apannpat Dev as well. Let Apannpat Dev grant us riches in his aurous-shinning form.
अस्मै तिस्रो अव्यथ्याय नारीर्देवाय देवीर्दिधिषन्त्यन्नम्। 
कृताइवोप हि प्रसर्खे अप्सु स पीयूषं धयति पूर्वसूनाम्
इला, सरस्वती और भारती नाम की तीनों देवियाँ दुःख रहित अपांनपात् देवता के लिए अन्न धारण करती हैं। वे जल के बीच उत्पन्न पदार्थ के लिए प्रसारित होती हैं। अपांनपात् सबसे पहले उत्पन्न जल के सारभूत सोमरस को पीते हैं।[ऋग्वेद 2.35.5]
इला, सरस्वती, भारती ये तीन देवियाँ त्रास रहित अपान्न पात देव से निमित्त अन्न धारण करती हैं। ये जल से उत्पन्न पदार्थ को बढ़ाती हूँ। अपान्नपात (सर्व प्रथम प्रकट जल) के सार का हम पान करते हैं।
The deities-goddess Ila, Saraswati and Bharti bears food stuff for Apannpat Dev. They grow-nourish the materials produced in water. Apannpat drinks the Somras as the extract of the eatables-Som Valli grown in waters.   
अश्वस्यात्र जनिमास्य च स्वर्द्रुहो रिषः संपृचः पाहि सूरीन्।
आमासु पूर्षु परो अप्रमृष्यं नारातयो वि नशन्नानृतानि
अपांनपात् द्वारा अधिष्ठित समुद्र में उच्चैःश्रवा नामक अश्व का जन्म होता है, यह अश्व उत्तम सुख को देने वाला है। हे अपांनपात् देव! आप हिंसा करने वाले द्रोहियों से स्तोताओं की रक्षा करें। दान शून्य और झूठे लोग अपरिपक्व अथवा परिपाक योग्य जल में रहकर भी इस अहिंसनीय देवता को नहीं प्राप्त कर सकते।[ऋग्वेद 2.35.6]
अपान्नपात परिपूर्ण समुद्र में उच्चैश्रवा अश्व रचित हुआ। हे विद्वान! तुम विद्रोही हिंसकों से वंदना करने वालों को बचाओ। अदानशील, मिथ्याचारी, व्यक्ति इस देवता को ग्रहण नहीं होते।
The divine horse Uchcheshrava of Dev Raj Indr, took birth in the ocean.  He grants excellent comforts. Hey Apannpat Dev! Protect the Stota-Ritviz, hosts from the violent people. The species which lives inside water and do not make-resort to charity-donations and speak untruth-lies can never approach this non violent demigod-deity. 
स्व आ दमे सुदुघा यस्य धेनुः स्वधां पीपाय सुभ्वन्नमत्ति। 
सो अपां नपादूर्जयन्न प्स्वन्तर्वसुदेयाय विधते वि भाति
जो अपने घर में हैं और जिनकी गाय को सरलता से दुहा जाता है, वे ही अपानपात् देवता वृष्टि का जल बढ़ाते और उत्तम अन्न भक्षण करते हैं। वे जल के बीच प्रबल होकर यजमान को धन देने के लिए भली-भाँति दीप्ति युक्त होते हैं।[ऋग्वेद 2.35.7]
जो देवता अपने गृह में निवास करते हैं, उनका दोहन आसानी से किया जाता है। हे देवता, वर्षा के लिए जल की वृद्धि करके उत्तम अन्न का सेवन करते हैं, वे जल में सशक्त हुए यजमान को धन और दान के लिए भली प्रकार शोभित होते हैं।
The cows of the demigods-deities who reside in their home, can be milked easily. Apannpat Dev boosts the rains and consume best grains. He become strong & shines-glow in the water to grant riches to the devotees. 
यो अप्स्वा शुचिना दैव्येन ऋतावाजस्त्र उर्विया विभाति। 
वया इदन्या भुवनान्यस्य प्र जायन्ते वीरुधश्च प्रजाभिः
जो अपांनपात् सत्यवान, सदा एक रूप से रहने वाले और अति विस्तीर्ण है, जो जल के बीच पवित्र देव तेज के द्वारा प्रकाशित होते हैं, सारे भूत उन्हीं की शाखाएं हैं। फल-फूल के साथ सारी उन्हीं से उत्पन्न हुई हैं।[ऋग्वेद 2.35.8]
जो अपांनपात सत्य रूप, विस्तारित, शुद्ध, तेजस्वी जलों में सदैव तुल्य रूप से निवास करने वाले प्रकाशमान होते हैं। समस्त प्राण उनके अंश मात्र हैं। फल परिपूर्ण औषधियों को उन्होंने रचित किया है।
Every things-events in the past are the extension of Apannpat, who resides & glows with piousness in water, is truthful, always bears the same form and is too vast. All fruits and flowers are his creations. 
अपां नपादा ह्यस्थादुपस्थं जिह्यानामूर्ध्वो विद्युतं वसानः। 
तस्य ज्येष्ठं महिमानं वहन्तीर्हिरण्यवर्णाः परि यन्ति यह्वीः॥
अपांनपात् कुटिल गति मेघ के बीच स्वयं ऊर्ध्व भाव से अवस्थित होने पर भी बिजली को पहनकर अन्तरिक्ष में चढ़े हैं। सर्वत्र उनके उत्तम माहात्म्य का कीर्त्तन करते हुए हिरण्यवर्णा नदियाँ प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 2.35.9]
वे अपान्नपात टेढ़ी चाल चलने वाले मेघ के बीच उच्च होकर प्रकाश को ग्रहण करते हैं। उनके यश को पाती हुई सरिताएँ प्रवाहित होती हैं।
Apannpat rides the lightening and remains stationary amongest the irregular moving clouds. The rivers flowing with golden tinge keep on reciting his glory. 
हिरण्यरूपः स हिरण्यसंदृगपां नपात्सेदु हिरण्यवर्णः। 
हिरण्ययात्परि योनेर्निषद्या हिरण्यदा ददत्यन्नमस्मै
वे हिरण्यरूप, हिरण्याकृति और हिरण्यवर्ण हैं। वे हिरण्यमय स्थान के ऊपर बैठकर शोभा पाते हैं। हिरण्यदाता उन्हें अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 2.35.10]
उनका रूप आकृति और वरुण, सुवर्ण के समान है, उनका स्थान भी हिरण्य युक्त है। सुवर्ण दान वाले उन्हें अन्न भेंट करते हैं।
His shape, form and colour are like gold. He sits over a golden place-seat and looks beautiful. The donors of gold offer him food grains.
तदस्यानीकमुत चारु नामापीच्यं वर्धते नप्तुरपाम्। 
यमिन्धते युवतयः समित्था हिरण्यवर्णं घृतमन्नमस्य
अपांनपात् का रश्मि समूह रूप शरीर और नाम सुन्दर हैं। ये दोनों गूढ़ होने पर भी वृद्धि को प्राप्त होते हैं। युवती जल संहति उन हिरण्यवर्ण को अन्तरिक्ष में भली-भाँति दीप्ति युक्त करती है; क्योंकि जल ही उसका अन्न है।[ऋग्वेद 2.35.11] 
अपानपात का रश्मि रूप शरीर सुन्दर नामवाली है। यह गंभीर होते हुए भी वृद्धि करते हैं। जल युक्त विद्युत उन्हें अंतरिक्ष में ज्योति से परिपूर्ण करती हैं। उनका अन्न जल ही है।
The rays and aura of Apannpat, his body & name are beautiful. Though intricate yet they grows. The lightening complement him in the space-sky properly. Water is his food.  
अस्मै बहूनामवमाय सख्ये यज्ञैर्विधेम नमसा हविर्भिः। 
सं सानु मार्ज्मि दिधिषामि बिल्मैर्दधाम्यन्नैः परि वन्द ऋग्भिः
अपने मित्र और बहुत देवों के आदि अपानिपात् देवता को यज्ञ, हव्य और नमस्कार द्वारा हम सेवा करते हैं। हम पर्वतों के शिखरों की भाँति उनके स्वरूप को अलंकृत करते हैं। मैं काष्ठ और अन्न के द्वारा उनको धारण करते हुए मंत्र द्वारा उनकी स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 2.35.12]
हम अपने सखा रूप अपान्नपात की अनुष्ठान हविदाता और नमस्कार से आराधना करेंगे। मैं उनके उच्च भाग को सजाऊँगा। मैं उन्हें काष्ठ और अन्न द्वारा धारण करता हुआ श्लोक उच्चारण करता हूँ।
We respect-honour & serve Apannpat Dev along with with our friends, demigods-deities through Yagy and offerings. We decorate his forms like the peak of the mountains. I will accept him with the wood and grains through the recitation of Mantr.
स ईं वृषाजनयत्तासु गर्भ स ई शिशुर्धयति तं रिहन्ति। 
सो अपां नपादनभिम्लातवर्णोऽन्यस्येवेह तन्वा विवेष
सेचन समर्थ उन अपनिपात् ने इस सारे जल के मध्य में गर्भ उत्पन्न किया। वे ही कभी पुत्र रूप होकर जल पीते हैं। सारा जल उन्हीं को चाटता है। दीप्ति युक्त वे ही स्वर्गीय अग्नि देव इस पृथ्वी पर अन्य शरीर से व्याप्त है।[ऋग्वेद 2.35.13]
सेचन :: भूमि को पानी से सींचना, सिंचाई, पानी के छींटे देना, छिड़काव, अभिषेक, धातुओं की ढलाई; irrigation of soil.
उन सेवन समर्थ अपान्नपात ने जल में गर्भ प्रकट किया। वे पुत्र रूप में जलपान करते हैं। कभी जल उनको चाहता है। वे प्रदीप्त दिव्य, अपान्नपात नामक अग्नि पृथ्वी पर अन्न रूप से रहते हैं।
Capable of irrigation, Apannpat took birth in waters. He sucks the water as a son. The water keep on liking him. Glowing Agni Dev the inhabitant of the heaven, pervades the other bodies over the earth. 
अस्मिन्पदे परमे तस्थिवांसमध्वस्मभिर्विश्वहा दीदिवांसम्। 
आपो नप्त्रे घृतमन्नं वहन्तीः स्वयमत्कैः परि दीयन्ति यहीः
अपान्नपात उत्कृष्ट स्थान में रहते हैं। वे तेज द्वारा प्रति दिन दीप्ति युक्त होते हैं। महान् जल समूह उन अविनाशी तेजस्वी देव के लिए पोषक रस पहुँचाते हुए उन्हें घेरे रहते हैं।[ऋग्वेद 2.35.14]
अपान्नपात का महान स्थान है। वे तेजस्वी और ज्योर्तिमान हैं। जल संगठन उनके लिए वहन करते और गतिमान रहते हुए उनको ढके रहते हैं।
Apannpat occupies excellent abode. He shines everyday with energy-glow. The vast quantum of waters carries nourishing saps to him. 
अयांसमग्ने सुक्षितिं जनायायांसमु मघवद्भ्यः सुवृक्तिम्। 
विश्वं तद्भद्रं यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे अग्नि देव! आप शोभनीय हैं। पुत्र लाभ के लिए मैं आपके पास आया हूँ। यजमान के हित के लिए सुरचित स्तुति लेकर आया हूँ। समस्त देवगण जो कल्याण करते हैं, वह सब हमारा है। पुत्र और पौत्र वाले होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति कर सकें।[ऋग्वेद 2.35.15] 
हे अग्ने! तुम सुन्दर हो! पुत्र प्राप्ति के लिए तुम्हारे सम्मुख उपस्थित हुआ हूँ। यजमान की भलाई के लिए सुन्दर श्लोक वाला हूँ। देवगण का समस्त कल्याण हमको प्राप्त हो। हम पुत्र-पौत्र वाले होकर इस दल से तुम्हारी वंदना करेंगे।
Hey Agni Dev! You are glowing-beautiful. I have come to you with the desire of having a son. I recite a beautiful Strotr for the welfare of the host-Ritviz. The acts of welfare by the demigods-deities may shower over us-reach us. We will conduct a Yagy blessed with sons & grandsons and recite excellent Strotr. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- द्रविणोद, छन्द :- जगती।
मन्दस्व होत्रादनु जोषमन्धसोऽध्वर्यवः स पूर्णां वष्ट्यासिचम्। 
तस्मा एतं भरत तद्वशो ददिर्होत्रात्सोमं द्रविणोदः पिब ऋतुभिः
हे धनप्रिय अग्निदेव! होतृ-कृत यज्ञ में अन्न ग्रहण करके प्रसन्न और हृष्ट बनें। हे अध्वर्युगण! द्रविणोदा पूर्णाहुति चाहते हैं; इसलिए उनके लिए यह सोमरस प्रदान करें। सोमाभिलाषी द्रविणोदा अभीष्ट फल देने वाले हैं। हे द्रविणोदा! होता के यज्ञ में ऋतुओं के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.1]
द्रविणोदा :: धन प्रदान करने वाले देवता। 
हे अन्नदाता अग्ने! होता द्वारा किये गये अनुष्ठान में अन्न प्राप्त कर हृष्ट-पुष्ट बनो। हे अध्वर्युओं! अग्नि पूर्णाहुति की इच्छा करते हैं, उन्हें सोम भेंट करो। यह धनदाता अग्नि मनोकामना पूर्ण करते हैं।
Hey Agni Dev! You provide both food grains and wealth. Accept offerings in the Yagy in the form of food grains and become strong. The demigods granting money desire the final offerings, provide him Somras. The riches granting demigod wish to have Somras. Hey Dravinota! Accept Somras in the Yagy of the Ritviz along with the the Ritus-seasons.
Be gratified, Dravinota, by the sacrificial food presented as the offering of the Hota-Ritviz, he desires, priests, a fall libation; present it to him and influenced by it, he will be your benefactor, drink, Dravinota, along with the Ritus, the Somras, the offering of the Hota.
यमु पूर्वमहुवे तमिदं हुवे सेदु हव्यो ददिर्यो नाम पत्यते। 
अध्वर्युभिः प्रस्थितं सोम्यं मधु पोत्रात्सोमं द्रविणोदः पिब ऋतुभिः
हमने पहले जिनको बुलाया, इस समय भी उन्हीं को बुलाते हैं। वे आह्रान योग्य हैं; क्योंकि वे दाता और सबके अधिपति हैं। उनके लिए अध्वर्युओं द्वारा सोमरूप मधु तैयार किया गया है। हे द्रविणोदा! इस पवित्र यज्ञ में ऋतु के अनुरूप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.2]
हे अग्निदेव! होता के अनुष्ठान में ऋतुओं से युक्त सोमपान करो। हमने पूर्व काल में जिनका आह्वान किया था, हम अब भी उसी का आह्वान करते हैं। वे दाता और सुख के दाता आह्वान करने योग्य हैं। अध्वर्युओं ने उनके लिए मधुर सोम सिद्ध किया है। हे द्रव्यदाता अग्ने! होता के यज्ञ में ऋतुओं सहित सोमयान करो।
We call-invite those whom we invoked earlier. They deserve to be welcomed-honoured. since they are the Lord of all and provide money. Somras has been kept ready for them by the hosts managing Yagy. Hey Dravinota! Accept Somras according to the season-Ritu.  
मेद्यन्तु ते वह्नयो येभिरीयसेऽरिषण्यन्वीळयस्वा वनस्पते। 
आयूया घृष्णो अभिगूर्या त्वं नेष्ट्रात्सोमं द्रविणोदः पिब ऋतुभिः
हे द्रविणोदा! आप जिस अश्व पर जाते हैं, यह तृप्त है। वनस्पति, किसी की हिंसा न करके दूर है। पर्षणकारी नेष्टा के यज्ञ में आकर ऋभुओं के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.3]
ऋभु :: Please refer to santoshhindukosh.blogspot.com
हे द्रव्यदाता अग्ने! तुम्हारा वाहन घोड़े परिपूर्ण हों। हे वनस्पते! तुम दृढ़ अहिंसक बनो नेष्टा के अनुष्ठान में ऋतुओं युक्त सोमपान करो।
Hey Dravinota Agni Dev! The horse on which you ride is satisfied-content. Hey Vanaspati-vegetation, keep off violence. Join the Yagy conducted by Neshta and drink the Somras along with the Ribhu Gan & Ritus-seasons. 
अपाद्धोत्रादुत पोत्रादमत्तोत नेष्ट्रादजुषत प्रयो हितम्। 
तुरीयं पात्रममृक्तममर्त्यं द्रविणोदाः पिबतु द्राविणोदसः
हे द्रविणोदा! जिन्होंने होता के यज्ञ में सोमरस का पान किया है, जो पिता के यज्ञ में हृष्ट हुए हैं, जिन्होंने नेष्टा के यज्ञ में प्रदत्त अन्न भक्षण किया है, वे ही सुवर्ण दाता ऋत्विक् के अशोधित और मृत्यु निवारक चतुर्थ सोमरस के पात्र का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.4]
हे धनदाता अग्निदेव! जिन्होंने होता के अनुष्ठान में सोमपान किया और पिता के अनुष्ठान में दृष्ट-पष्ट हुए नेष्टा के अनुष्ठान में अन्न का सेवन किया, वे स्वर्ण देने वाली ऋत्विक की मृत्यु निवारक सोमरस को पान करो।
Hey Dravinota wealth generating-granting Agni Dev! Those who have sipped Somras in the Yagy of the host-Ritviz, have become strong in the Yagy of their father, eaten the offerings in the Yagy, should sip the Somras which frees-makes one free from the clutches of death.
Whether he has drunk the Soma from the offering of the Hota, whether he has been exhilarated by the offering of the Pota; whether he has been plural aged with the sacrificial food presented as the act of the Neshta, still let Dravinota quaff the unstrained ambrosial cup, the fourth offered by the priest.
QUAFF :: ख़ाली करना, खलाना, गड़गड़ाकर पीना, एक ही साँस में पीना; deplete, deplenish, drink off, drink up, sup.
जोष्यग्ने  समिधं जोष्याहुतिं जोषि ब्रह्म जन्यं जोषि सुष्टुतिम्। 
विश्वेभिर्विश्वाँ ऋतुना वसो मह उशन्देवाँ उशतः पायया हविः
हे अग्रिदेव! आप समिधा आहुति लोगों के हितकर स्तोत्र और सुन्दर स्तुति से युक्त होवें। आप सबके आश्रय दाता और हमारे हव्य के अभिलाषी होवें। हमारा हव्य चाहने वाले सारे देवों, ऋभुओं और विश्वदेवों के साथ सोमरस का पान करायें।[ऋग्वेद 2.37.6] 
हे अग्ने!' तुम समिधा, आहुति, श्लोक द्वारा वन्दना ग्रहण करो। तुम हमारी छवियों  अभिलाषा वाले सभी के शरण दाता हो। हमारी हवि की अभिलाषा वाले देवों, ऋभुओं और विश्वेदेवों के साथ सोमपान करो।
Hey Agni Dev! You should be associated with the wood for the Yagy, beneficial Strotr and Stuti-prayers. You are the protector of all and desire offerings from us. You should provide Somras to the Ribhus, Vishw Dev and all demigods-deities for drinking.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- वैद्या, देवता :- अग्रिछन्द :- त्रिष्टुप्।
सोमस्य मा तवसं वक्ष्यग्ने वह्निं चकर्थ विदथे यजध्यै। 
देवाँ अच्छा दीद्युञ्जे अद्रि शमाये अग्ने तवं जुषस्व
हे अग्रि देव! यज्ञ करने के लिए आपने मुझे सोम का वाहक बनाया, इसलिए मुझे बलवान् बनायें। हे अग्नि देव! मैं प्रकाशमान होकर देवों को लक्ष्य कर, अभिषवण के लिए, प्रस्तर खंड ग्रहण और प्रार्थना करता हूँ। आप मेरे शरीर की रक्षा करें-पुष्ट करें।[ऋग्वेद 3.1.1]
हे अग्नि देव! अनुष्ठान हेतु मुझे सोम रस प्रस्तुत करने को कहा, इसलिए मुझे शक्ति प्रदान करो। तेजस्वी होता देवताओं के प्रति सोम कूटने के लिए पत्थर हाथ में ग्रहण करता और वंदना करता है। तुम मेरे शरीर की सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev! You have appointed me as the carrier of Somras for the Yagy. Make me capable of doing this. Hey Agni Dev! I hold stone in my hands to crush-extract Somras for the aurous demigods-deities. I pray to you. Protect my body. 
प्राञ्चं यज्ञं चकृम वर्धतां गीः समिद्धिरग्निं नमसा दुवस्यन्। 
दिवः शशासुर्विदथा कवीनां गृत्साय चित्तवसे गातुमीषुः
हे अग्नि देव! हमने भली-भाँति यज्ञ किया है। हमारी प्रार्थना वर्द्धित है। समिधा और हव्य द्वारा लोग अग्नि देव की परिचर्या करें। द्युलोक से आकर देवताओं ने स्तोताओं को स्तोत्र सिखाया। स्तोता गण स्तवनीय और प्रवृद्ध अग्निदेव की प्रार्थना करने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 3.1.2]
हे अग्ने! हमने उत्तम रूप से यज्ञ किया है, हमारी वंदना में वृद्धि हो। समिधा और हवि से हम अग्नि की सेवा करें। क्षितिज निवासी देवताओं ने वंदना करने वालों को श्लोक बताया। वदंनाकारी, वंदना के योग्य अग्नि की प्रार्थना करना चाहते हैं।
Hey Agni Dev! We have conducted the Yagy properly. Let the quantum of prayers-worship enhance further. Let us serve Agni Dev with Samidha (wood for Yagy) & offerings. Demigods-deities descended over the earth and taught Strotr-hymns to the Stota-Ritviz. The Stota wish to serve Agni Dev with prayers, who deserve it.
मयो दधे मेधिरः पूतदक्षो दिवः सुबन्धर्जनुषा पृथिव्याः। 
अविन्दन्नु दर्शतम प्स्व १ न्तर्देवासो अग्निमपसि स्वसदृणाम्
जो मेघावी, विशुद्ध बलशाली और जन्म से ही उत्कृष्ट बन्धु हैं, जो द्युलोक के सुख का विधान करते हैं, उन्हीं दर्शनीय अग्नि देव को देवों ने यज्ञ कार्य के लिए, वहनशील नदियों के जल के बीच प्राप्त किया है।[ऋग्वेद 3.1.3]
जो प्रतापी अत्यन्त शक्तिशाली और जन्मजात श्रेष्ठमित्र हैं, जो नभ में सुख को स्थापित करते हैं, उन दर्शनीय अग्निदेव को देवताओं ने नदियों के जल में यज्ञ हेतु प्राप्त किया।
The demigods-deities have procured Agni Dev, who is intelligent, mighty & pure; who programmes the comforts-pleasures in the heavens, for the sake of Yagy in the waters of the rivers who could support-bear him.
अवर्धयन्त्सुभगं सप्त यह्वीः श्वेतं जज्ञानमरुषं महित्वा। 
शिशुं न जातमभ्यारुरश्वा देवासो अग्निं जनिमन्वपुष्यन्
शोभन धन वाले, शुत्र और अपनी महिमा से दीप्तिशाली अग्निदेव के पैदा होते ही उन्हें सात नदियों ने संवर्धित किया। जिस प्रकार से अश्वी नवजात शिशु के पास जाती है, उसी प्रकार नदियाँ नवजात अग्निदेव के पास गई थीं। उत्पत्ति के साथ ही अग्नि देव को देवों ने दीप्तिमान् किया।[ऋग्वेद 3.1.4]
सुशोभित धन से परिपूर्ण, उज्ज्वल महिमावान दीप्तिमय अग्नि के प्रकट होते ही सप्त नदियों ने वृद्धि की। जैसे घोड़ी नवजात बालक को ग्रहण होती है वैसे ही नदियाँ संघ रचित अग्नि के निकट पहुँची। अग्नि के रचित होते ही देवताओं ने उन्हें दीप्ति से परिपूर्ण किया।
Seven rivers nourished Agni Dev, who glitters with beautiful wealth, glow with his own and enemies glory. The 7 rivers went to newly born-nascent Agni Dev just like a mare goes to her new born baby. Demigod-deities granted shine to Agni dev as soon as he was born.
शुक्रेभिरङ्गै रज आततन्वान् क्रतुं पुनानः कविभिः पवित्रैः। 
शोचिर्वसानः पर्यायुरपां श्रियो मिमीते बृहतीरनूनाः
शुभ्रवर्ण तेज के द्वारा अन्तरिक्ष (आकाश) को व्याप्त करके अग्निदेव याजकगण को स्तुति के योग्य और पवित्र तेज के द्वारा परिशोधित करते हुए दीप्ति का परिधान करके याजकगण को अन्न और प्रभूत एवं सम्पूर्ण सम्पत्ति देते हैं।[ऋग्वेद 3.1.5]
उज्ज्वल रंग के तेज से अंतरिक्ष को ग्रहण कर अग्नि वंदनाकारी को तेज से शुद्ध करते तथा उसे अन्न धनादि प्रदान करते हैं।
Fare-bright coloured Agni Dev, deserving prayers-worship, pervades the sky, grant food & wealth to the devotees purifying them.
वव्राजा सीमनदतीरदब्धा यह्वीरवसाना अनग्नाः। 
सना अत्र युवतयः सयोनीरेकं गर्भ दधिरे सप्त वाणीः
अग्नि देव जल के चारों ओर जाते हैं। यह जल अग्नि को नहीं बुझाता। अन्तरिक्ष के अपत्यभूत अग्नि से आच्छादित नहीं है, तो भी जल से वेष्ठित होने के कारण, नग्न भी नहीं है। सनातन, नित्य, तरुण एवं एक स्थान से उत्पन्न सात नदियोँ एक अग्रि का गर्भ धारित करती है।[ऋग्वेद 3.1.6]
अग्निदेव जल के चारों ओर गमन करते हैं। वह जल अग्नि को नहीं बुझाता और जल अग्नि के द्वारा नहीं सूखता। अंतरिक्ष के पुत्र रूप अग्नि देव वस्त्र द्वारा ढके नहीं जाते। परन्तु जल से ढके होने के कारण नंगे भी नहीं है। सनातन, नित्य और तरुण सात नदियाँ अग्नि को गर्भ रूप से धारण करती हैं।
Agni Dev circumambulate the water. The water does not extinguish fire-Agni. Unborn Agni Dev is not naked though uncovered, yet due to its presence in water its not naked.  Eternal, regularly flowing, young born from the same source the 7 rivers bears Agni dev in their womb.
स्तीर्णा अस्य संहतो विश्वरूपा घृतस्य योनौ स्रवथे मधूनाम्अ। 
अस्युरत्र धेनवः पिन्वमाना मही दस्मस्य मातरा समीची
जल-वर्षण के अनन्तर जल के गर्भ स्वरूप और अन्तरिक्ष में पुञ्जीभूत नानावर्ण अग्नि की किरणें रहती हैं। इस अग्नि में जल रूप स्थान गौएं सबकी प्रीति दायिका होती है। सुन्दर और महान द्यावा-पृथ्वी दर्शनीय अग्नि के माता-पिता है।[ऋग्वेद 3.1.7]
जल वृष्टि के पश्चात जल के गर्भ रूप अग्नि देव की विभिन्न रूप वाली रश्मियाँ विद्यमान होती हैं। उस सुन्दर अग्नि के माता-पिता धरा और अम्बर हैं।
Vivid coloured rays of Agni a form of womb of water, remain in the space after rain fall. Cows present in Agni as a form of water are loved by all. Great & beautiful sky & earth the parents of Agni.
Aggregated in the womb of the waters, rays of Agni spread abroad and omni form, are here effective for the diffusion of the sweet (Soma), like kine-cows full uddered, the mighty Heaven and Earth are the fitting parents of the graceful Agni.
बभ्राणः सूनो सहसो व्यद्यौद्दधानः शुक्रा रमसा वपूंषि। 
श्रोतन्ति धारा मधुरो घृतस्य वृषा यत्र वावृधे काव्येन
हे बल के पुत्र अग्नि देव! सभी के द्वारा आपको धारित करने पर आप उज्ज्वल और वेगवान किरण धारित करके प्रकाशित हों। जिस समय अग्नि याजक गण के स्त्रोत्र द्वारा बढ़ते है, उस समय मधुर जलधारा गिरती है।[ऋग्वेद 3.1.8]
हे शक्ति पुत्र अग्नि देव! सभी के द्वारा धारण करने पर तुम उज्ज्वल और गति से परिपूर्ण किरणों द्वारा प्रकाशमान रहो। जब अग्नि यजमान के श्लोक में वृद्धि ग्रहण होती है तब महान जल की वृष्टि होती है।
Hey Agni Dev, son of Shakti (power, might)! On being help by all, should be more brilliant and shine by holding fast moving rays. When the Ritviz, (hosts of Yagy, singers of hymns) recite Strotr in your honour, it showers heavily. 
पितुश्चिदूधर्जनुषा विवेद व्यस्य धारा असृजद्वि धेनाः। 
गुहा चरन्तं सखिभिः शिवेभिर्दिवो यह्वीभिर्न गुहा बभूव
जन्म के साथ ही अग्रि ने पिता अन्तरिक्ष के अधसन जल-प्रदेश को जाना और अधस्तन सम्बन्धिनी धारा या वृष्टि और अन्तरिक्ष चारी वज्र को गिराया। हे अग्नि देव शुभकर्ता पवन आदि बन्धुओं के साथ अवस्थान करते और अन्तरिक्ष के अपत्यभूत जल के साथ गुहा में वर्तमान रहते हैं। इन अग्नि देव को कोई नहीं पाता।[ऋग्वेद 3.1.9]
प्रकट होते ही अग्नि ने अंतरिक्ष के निचले स्तर के जल प्रदेश को जान लिया और वृष्टि के लिए वज्र को गिराया। यह अग्नि श्रेष्ठ कर्मवाले वायु आदि बाँधवों सहित चलते और अतंरिक्ष में संतान भूत जलों सहित रहते हैं। तब तक अग्नि को कोई नहीं जान सकता।
As soon as he took birth, he identified the water bodies present in the sky and struck them Vajr leading to rain fall. Agni Dev is accompanied with his brothers Pawan (air, wind, Marud Gan) etc. remains in the water bodies. No one identifies Agni Dev.
At his birth he knew the udder of his parent and let forth its torrents and the sound of thunder, there was no one to detect him, lurking in the deep, with his auspicious associates, the winds-Marud Gan and the many waters reservoirs of the firmament-sky.
पितुश्च गर्भं जनितुश्च बच्ने पूर्वीरको अधयत्यीप्यानाः। 
वृष्णे सपत्नी शुचये सबन्धू उभे अस्मै मनुष्ये ३ नि पाहि
अग्नि पिता (अन्तरिक्ष) और जनयिता का गर्भ धारित करते हैं। एक अग्नि बहुतर वृद्धि को प्राप्त औषधि का भक्षण करते हैं। सपत्नी और मनुष्यों को हित कारिणी द्यावा -पृथ्वी अभीष्ट वर्षी अग्नि के बन्धु है। हे अग्नि देव! आप द्यावा-पृथ्वी को अच्छी तरह बचाओ।[ऋग्वेद 3.1.10]
अग्नि देव माता-पिता की गोद को अकेले ही भर देते हैं। वह बढ़े हुए अग्नि औषधियों का भक्षण करते हैं। तुल्यरूप पति-पत्नी के तुल्य अम्बर धरा अग्नि के पोषककर्त्ता हैं। हे अग्ने ! तुम अम्बर और पृथ्वी की सुरक्षा करो।
Agni Dev blesses the parents with progeny. He consumes the medicines (herbs which grows quickly). Sky & earth like husband & wife, are related to Agni Dev, who is beneficial for humans, nourishing him. Hey Agni Dev! Protect the sky and the earth.  
उरौ महाँ अनिबाधे ववर्थापो अग्निं यशसः सं हि पूर्वीः। 
ऋतस्य योनावशयद्दमूना जामीनामग्निरपसि स्वसृणाम्
महान् अग्नि असम्बाध और विस्तीर्ण अन्तरिक्ष में वर्द्धित होते हैं, क्योंकि बहु अन्नवान् जल उनको अच्छी तरह वर्द्धित करता है। जल के जन्मस्थान अन्तरिक्ष में स्थित अग्नि भगिनी स्थानीया नदियों के जल में प्रशान्त चित्त से शयन करते हैं।[ऋग्वेद 3.1.11]
यह महान अग्नि विस्तार वाले अंतरिक्ष में बढ़ते हैं, वहाँ बहुत अन्न वाला जल उनकी भली-भाँति वृद्धि करता है। जल के गर्भ स्थान में निवास करने वाले अग्निदेव अपनी बहिन रूप नदियों के जल में क्रांतिपूर्वक रहते हैं।
Great Agni Dev grows in the broad sky-space, since the water having various food grains, nourishes him. Placed in the space, the birth place of rivers, Agni Dev lives in the rivers which are like his sisters. 
अक्रो न बभ्रिः समिथे महीनां दिदृक्षेयः सूनवे भाजीकः। 
उदुस्त्रिया जनिता यो जजानापां गर्भो नृतमो यह्वो अग्निः
जो अग्रिदेव समस्त संसार जनक (पिता), जल के गर्भभूत, मनुष्यों के सुरक्षक, महान, शत्रुओं के आक्रमणकर्ता, संग्राम में अपनी महती सेना के रक्षक, सभी के दर्शनीय और अपनी दीप्ति से प्रकाशमान हैं, उन्होंने ही याजकगण के लिए जल उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 3.1.12]
जो अग्नि संसार के पिता, जल से उत्पन्न प्राणियों की रक्षा करने वाले शत्रुओं पर हमला करने वाले, युद्ध में सेना की रक्षा करने वाले, सभी को देखने योग्य तथा अपने तेज से प्रकाशित हैं। सुन्दर अरणि ने जल और औषधियों के गर्भ भूत तेजस्वी अग्नि को रचित किया।
The Agni Dev, who is the producer of the entire universe & water, protector of humans & the armies in the war, is admired-loved by all, is beautiful and shines with his own light.
अपां गर्भं दर्शतमोषधीनां वना जजान सुभगा विरूपम्।  
देवासश्चिन्मनसा सं हि जग्मुः परिष्ठं जातं तव दुवस्यन्
सौभाग्यशाली अरणी ने दर्शनीय, विविध रूपवान तथा जल और औषधियों के गर्भभूत अग्नि देव को उत्पन्न किया। समस्त देवता लोग भी स्तुति-योग्य प्रमृद्ध तथा सद्योजात अग्नि के पास युक्त होकर गए। उन्होंने अग्नि की परिचर्या भी की।[ऋग्वेद 3.1.13]
समस्त देवता वंदना के योग्य वृद्धि किये गये तुरन्त अग्नि देव के निकट अत्यन्त वंदना परिपूर्ण हुए पहुँचे, अग्नि की उन्होंने सेवा की। 
The lucky Arni (wood used for rubbing and producing fire)  produced Agni Dev who is beautiful, has various shapes & sizes and is the basis of water and medicines (Ayur Vedic, herbs). All demigods-deities too went to Agni Dev enriched with hymns (prayers). They served Agni Dev, as well.
बृहन्त इद्भानवो भाऋजीकमग्निं सचन्त विद्युतो न शुक्राः। 
गुहेव वृद्धं सदसि सो अन्तरपार कर्वे अमृतं दुहानाः
विद्युत् के समान महान सूर्यगण अगाध समुद्र के मध्य अमृत का दोहन करके, गुहा के तुल्य, अपने भवन अन्तरिक्ष में प्रवृद्ध और प्रभा द्वारा प्रदीप्त अग्नि का आश्रय प्राप्त करते है।[ऋग्वेद 3.1.14]
विद्युत के समान अत्यन्त कांतियुक्त सूर्य अत्यन्त गंभीर समुद्र में अमृत मंथन करने के समान अपने घर अंतरिक्ष में बढ़ते हुए प्रकाशमान अग्नि का आश्रय पाते हैं।
Great like the lightening-thunder volt, Sun-Sury Dev, churn elixir-nectar in the ocean & attain asylum under Agni Dev, in the space enriched with aura. 
ईळे च त्वा याजकगणो हविर्भिरीळे सखित्वं सुमतिं निकामः। 
देवैरवो मिमीहि सं जरित्रे रक्षा च नो दम्येभिरनीकैः
हव्य द्वारा मैं याजक आपको प्रार्थना करता हूँ। धर्म-क्षेत्र में बुद्धि पाने की इच्छा से आपके साथ बन्धुत्व के लिए प्रार्थना करता हूँ। देवों के साथ मुझे स्तोता के पशु आदि की और मेरी दुर्दम्य तेज के द्वारा रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.1.15]
हे अग्निदेव! देवताओं सहित मुझ वंदना करने वाले के पशु आदि को तथा मेरी दमन योग्य सेना से रक्षा करो।
I, a Ritviz, pray to you. I request for intelligence-prudence in the Dharm Kshetr along with your brotherhood. Along with demigods-deities, protect me, my cattle-animals and my aura, along with demigods-deities. 
उपक्षेतारस्तव सुप्रणीतेऽग्ने विश्वानि धन्या दधानाः। 
सुरेतसा श्रवसा तुञ्जमाना अभि ष्याम पृतनायूँरदेवान्
हे सुनेता अग्नि देव! हम आपका आश्रय चाहते हैं। हम समस्त धन की प्राप्ति के लिए कारणीभूत कर्म करते और हव्य प्रदान करते हैं। हम आपको वीर्यशाली अन्न प्रदान करते हैं, जिससे अदेवों और अहितकारी शत्रुओं को जीत सकें।[ऋग्वेद 3.1.16]
हे नीतिवान अग्नि देव! हम तुम्हारा आश्रय चाहते हैं। हम समस्त धनों को ग्रहण करने वाला कार्य करते हुए हवि प्रदान करते हैं। हम तुमको पुष्टि दायक हवि प्रदान कर देव विरोधी शत्रुओं पर विजय ग्रहण कर सकें।
Hey real diplomatic leader! We wish asylum-shelter under you. We perform deeds essential for earning money-wealth and make offerings to you. We offer you that grain which is nourishing-energetic and helps in winning over powering the enemy.  
आ देवानामभवः केतुरग्ने मन्द्रो विश्वानि काव्यानि विद्वान्। 
प्रति मर्तां अवासयो दमूना अनु देवान्रथिरो यासि साधन्
हे अग्नि देव! आप देवों के स्तवनीय दूत हैं। आप समस्त स्तोत्रों के ज्ञाता हैं। आप मनुष्यों को उनके अपने-अपने घर में वास देते है। आप रथी हैं। आप देवों का कार्य साधन करते हैं और उनके पीछे-पीछे जाते है।[ऋग्वेद 3.1.17]
हे अग्नि देव! तुम देवों से प्रदर्शित इनके दूत हो। तुम समस्त श्लोकों को जानते हो। तुम मनुष्यों के वृष्टि करने वाले रथी हो। तुम देवताओं का कार्य साधन करने के लिए उनका अनुसरण करते हो। 
Hey Agni Dev! You are the ambassador of the demigods-deities, who deserve worship. You are enlightened with all Strotr (hymns meant for worship). You grant protection to every human in his home. You are a great charioteer who make rain showers for the humans. You serve as a means to accomplish the motives of the demigods-deities and follow them. 
नि दुरोणे अमृतो मर्त्यानां राजा ससाद विदधानि साधन्। 
घृतप्रतीक उर्विया व्यद्यौदग्निर्विश्वानि काव्यानि विद्वान्
नित्य राजा अग्रि यश का साधन करके मनुष्यों के घर में बैठते हैं। अग्रि समस्त स्त्रोत्र 
जानते हैं। अग्नि का अंग घृत के द्वारा दीप्तियुक्त है। विशाल अग्नि देव प्रकाशमान होते हैं।[ऋग्वेद 3.1.18]
नृप के सम्मुख अग्नि देव यज्ञ-साधन करते हुए साधक के घर में पधारते हो। आप स्तोत्रों समस्त धनों को ग्रहण करने वाला कार्य करत हुए हव्य प्रदान कर हम तुमको पुष्टि दायक हवि प्रदान कर देव विरोधी शत्रुओं पर विजय ग्रहण कर सकें। वे अग्नि देव सूर्य के समान प्रकाशित होते हैं
The king Agni resides the houses of the humans to generate glory, name-fame for them. Agni Dev is aware of all Strotr. The physique of Agni Dev is lit with Ghee. Huge-broad Agni Dev shines-is aurous.  
आ नो गहि सख्येभिः शिवेभिर्महान्महीभिरूतिभिः सरण्यन्। 
अस्मे रयिं बहुलं सन्तरुत्रं सुवाचं भागं यशसं कृधी नः
हे गमनेच्छु महान अग्रि देव! मंगल मयी मैत्री और महान रक्षा के साथ मेरे पास आयें और हमें बहुल निरुपद्रव शोभन स्तुति वाला और कीर्ति शाली धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.1.19]
हे विचरण करने के अभिलाषी अग्निदेव! कल्याणकारी मित्रता और महती सुरक्षा से परिपूर्ण हुए हमारे नजदीक पधारो और हमको अधिक संख्या में सुखप्रद सुशोभित प्रशंसा योग्य धन प्रदान करो।
Hey great Agni Dev, desirous of movement! Come to us for auspicious relations and protect us. Grant us the wealth which may grant us glory-respect & comforts.
एता ते अग्ने जनिमा सनानि प्र पूर्व्याय नूतनानि वोचम्। 
महान्ति वृष्णे सवना कृतेमा जन्मञ्जन्मन् विहितो जातवेदाः
हे अग्नि देव! आप पुराण पुरुष है व आपको लक्ष्य करके इन सब सनातन और नवीन स्त्रोत्रों का हम पाठ करते हैं। सर्व-भूतज्ञ अग्नि मनुष्यों के बीच निहित है। उन अभीष्ट वर्षी को लक्ष्य करके हमने यह सब सवन किया है।[ऋग्वेद 3.1.20]
हे अग्नि देव! तुम प्राचीनतम हो। तुम्हारे प्रति हम प्राचीन और नये श्लोकों से प्रार्थना करते हैं। समस्त प्राणधारियों में विद्यमान अग्निदेव मनुष्यों में वास करते हैं। उन अभिष्टवर्षी अग्नि के प्रति ही हमने यह प्रार्थना की है।
Hey Agni Dev! You are eternal. We recite the ancient and new Strotr  for you. All knowing Agni Dev is present in all humans. We have prayed to Agni Dev who accomplish all of our desires.
We humans, address you, hey Agni Dev! You make recitation of eternal as well as recent adorations & sacrifices solemnly to the showerer of benefits, who in every birth is established among men, cognizant of all that exists.
जन्मञ्जन्मन् निहितो जातवेदा विश्वामित्रेभिरिष्यते अजस्त्रः। 
तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्थाम
सम्पूर्ण मनुष्यों में निहित और सर्व भूत अग्नि विश्वामित्र द्वारा अनवरत प्रदीप्त होते हैं। हम उसका अनुग्रह प्राप्त करके यगार्थ अग्नि देव का अभिलक्षणीय अनुग्रह प्राप्त करें।[ऋग्वेद 3.1.21]
सभी प्राणियों में व्याप्त अग्नि देव को विश्वामित्र ने चैतन्य किया। हम उनकी कृपा से यज्ञ योग्य अग्नि के प्रति उत्तम भाव रखें।
Agni Dev present in every human is kept lit-conscious by Vishwa Mitr. We make endeavours by having his blessings and attain accomplishments from glorious Agni Dev, who deserve our excellent feelings-regards. 
इमं यज्ञं सहसावन् त्वं नो देवत्रा घेहि सुक्रतो रराणः। 
प्र यंशी होतर्बृहतीरिषो नोऽग्ने महि द्रविणमा यजस्व
हे बलवान और शोभन कर्म वाले अग्रि देव! आप सदा बिहार करते-करते हमारे यश को देवों के पास ले जाते। देवों के बुलाने वाले हे अग्नि देव! हमें अन्न दो।[ऋग्वेद 3.1.22]
हे अग्नि देव! तुम शक्तिशाली और महान कार्य वाले हो। तुम हमारे अनुष्ठान को देवताओं के पास पहुँचाओ। हे देवताओं का आह्वान करने वाले अग्नि देव! हमको अन्न और धन प्रदान करो।
Hey mighty Agni Dev! You perform great deeds. Carry forward our endeavours (in the form of Yagy-auspicious jobs). You are the one who invoke demigods-deities. Hey Agni Dev! Grant us food grains.  
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे
हे अग्नि देव! स्तोता को अनेक कर्मों के हेतुभूत और धेनु प्रदात्री भूमि हमें देवें। हमारे वंश का विस्तार करने वाला और सन्तति जनयिता एक पुत्र उत्पन्न हो। हे अग्नि देव! हमारे प्रति आपका अनुग्रह सदैव कायम रहे।[ऋग्वेद 3.1.23]
हे अग्नि देव! स्तुति करने वालों को अनेक कर्मों की साधक तथा गौ देने वाली जमीन प्रदान करो। हमारे वंश की वृद्धि करने वाला और संतान को जन्म देने वाला पुत्र प्रदान करो। हे अग्नि देव! हम पर दया करो।
Hey Agni Dev! Grant us that land which enables us for doing various auspicious jobs in addition to having cows. Grant us a son who should prolong our dynasty. Hey Agni Dev! You affection should always remain -continue with us. 
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- वैश्वानर, अग्रिछन्द :- जगती।
वैश्वानराय पृथुपाजसे विपो रत्ना विधन्त धरुणेषु गातवे। 
अग्निर्हि देवाँ अमृतो दुवस्यत्यथा धर्माणि सनता न दूदुषत्
मेधावी स्तोता लोग, सन्मार्ग की प्राप्ति के लिए, बहु-बलशाली वैश्वानर को लक्ष्य कर यज्ञ में रमणीय स्तोत्रों का पाठ करते हैं। अमर अग्नि में हव्य प्रदान के द्वारा देवों की परिचर्या करते हैं। इसलिए कोई भी सनातन यज्ञ को दूषित नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 3.3.1]
सन्मार्ग ग्रहण के हेतु बुद्धिवान वंदनाकारी अत्यन्त बलिष्ठ वैश्वानर के प्रति यज्ञ में सुन्दर वन्दना करते हैं। अविनाशी अग्नि देव हवि वहन करते देवों की सेवा करते हैं। इस प्राचीन अनुष्ठान को कोई अशुद्ध नहीं कर सकता।
Intelligent hymns reciters chant enchanting Strotr for attaining the righteous, pious, virtuous path by praying to Vaeshwanar Agni. They make offerings in the immortal Agni for the sake of demigods-deities to serve them. Hence none can contaminate eternal Yagy. 
अन्तदूर्तो रोदसी दस्म ईयते होता निषत्तो मनुषः पुरोहितः।
क्षयं बृहन्तं परि भूषति द्युभिर्देवेभिरग्निरिषितो धियावसुः
हे दर्शनीय होता अग्नि देव! देवों के दूत होकर द्यावा-पृथ्वी के मध्य जाते हैं। देवों द्वारा प्रेरित धीमान् अग्नि याजक गण के सामने स्थापित और उपविष्ट होकर महान् यज्ञ घर को अलंकृत करते हैं।[ऋग्वेद 3.3.2]
ज्योतिवान होता अग्नि देवों के दूत हुए अम्बर-धरा के बीच विचरण करते हैं। देवताओं द्वारा प्रेरित मतिवान अग्नि वंदनाकारी के निकट दृढ़ हुए यज्ञशाला को सुशोभित करते हैं।
Aurous Agni Dev! You visit the earth and the sky (heavens) as the ambassador of the demigods-deities. Inspired by the demigods-deities, Agni Dev glorify the Yagy site in front of the devotees conducting Yagy. 
केतुं यज्ञानां विदथस्य साधनं विप्रासो अग्नि महयन्त चित्तिभिः। 
अपांसि यस्मिन्नधि संदधुर्गिरस्तस्मिन्त्सुम्नानि याजकगण आ चके
मेधावी लोग यज्ञ के केतु स्वरूप और यज्ञ के साधन भूत अग्नि को अपने वीर कर्म द्वारा पूजित करते हैं। जिन अग्नि में स्तोता लोग अपने-अपने करने योग्य कर्मों को अर्पण करते हैं, उन्हीं अग्नि देव से याजक गण सुख की आशा करते हैं।[ऋग्वेद 3.3.3]
यज्ञों को बढ़ाने वाले, यज्ञ कार्य को साधन करने वाले अग्नि को विद्वानजन अपने कर्म द्वारा पूजते हैं। स्तोताजन अपने कर्मों को जिस अग्नि को भेंट करते हैं, उन्हीं अग्नि में यजमान की कामनाएँ आश्रय प्राप्त करती हैं।
The enlightened worship Agni Dev as a form of Ketu (Dragon Tail), with the bravery-valour. The devotees offer their virtuous deeds to Agni Dev and expect comforts-pleasure from him.
पिता यज्ञानामसुरो विपश्चितां विमानमग्निर्वयुनं च वाघताम्। 
आ विवेश रोदसी भूरिवर्पसा पुरुप्रियो भन्दते धामभिः कविः
यज्ञ के पिता, स्तोताओं के बल दाता, ऋत्विकों के ज्ञान हेतु और यज्ञादि कर्मों के साधन भूत अग्नि देव पार्थिव और वैद्युतादि रूप के द्वारा द्यावा-पृथ्वी में प्रवेश करते हैं। अत्यन्त प्रिय और तेजस्वी अग्नि देव याजकगण द्वारा प्रार्थित होते हैं।[ऋग्वेद 3.3.4]
यज्ञ, पिता, वंदना करने वालों को बल देने वाले बुद्धि के कारण तथा कर्मों के साधक अग्नि देव अपने पार्थिव और विद्युतादि रूप से लोकों में व्याप्त हुए यजमान द्वारा पूजित होते थे।
Agni Dev is worshipped by the Ritviz-devotees being the patron of Yagy, grants strength to the Ritviz, who are desirous of enlightenment, source of means for the Yagy enters the earth & sky in the form of material as well electricity.
The parent of sacrifices, the invigorator of the wise, the end of the rite, the instrumental action of the priests, Agni, who has pervaded heaven and earth in many forms, the friend of man, wise and endowed with splendours, is glorified by the worshipper.
चन्द्रमग्निं चन्द्ररथं हरिव्रतं वैश्वानरमप्सुषदं स्वर्विदम्। 
विगाहं तूर्णिं तविषीभिरावृतं भूर्णि देवास इह सुश्रियं दधुः
आह्लादक, आह्लादजनक रथवाले, पिङ्गलवर्ण, जल के मध्य निवास करने वाले, सर्वज्ञ, सभी जगह व्याप्त, शीघ्रगामी, बलशाली, भर्ता और दीप्ति वाले वैश्वानर अग्नि देव को देवों ने इस लोक में स्थापित किया।[ऋग्वेद 3.3.5]
सबको आनन्द प्रदान करने वाले, सुवर्णमय रथ वाले, पीतरंग वाले, जल में निवास करने वाले, सर्वव्यापी द्रुतगामी, बलिष्ठ, ज्योतिमान, वैश्वानर अग्नि को देवों ने दृढ़ किया।
Pleasure granting, possessing the charoite full of comforts-pleasure, having yellow colour, resides in the middle of water, all knowing, pervading all, fast moving, mighty-powerful supporting-nurturing, aurous Vaeshwanar Agni Dev was established by the demigods-deities in this abode. 
अग्निर्देवेभिर्मनुषश्च जन्तुभिस्तन्वानो यज्ञं पुरुपेशसं धिया। 
रथीरन्तरीयते साधदिष्टिभिर्जीरो दमूना अभिशस्तिचातनः
जो यज्ञ-साधक देवों और ऋत्विकों के साथ कर्म द्वारा याजक गण के नानाविध यज्ञों को सम्पादित करते हैं, जो नेता, शीघ्रगामी, दान शील और शत्रुओं के नाशक हैं, वे ही अग्नि द्यावा पृथ्वी के बीच जाते हैं।[ऋग्वेद 3.3.6]
जो यज्ञ साधन करने वाले देवताओं और ऋत्विजों की संगति से विविध यज्ञ कर्मों को सम्पादित करते हैं। जो तीव्रगामी, दानी, अग्रणी और शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं, वे अग्नि देव आकाश पृथ्वी के मध्य गमनशील हैं।
 Agni Dev, who accomplish the Yagy, conduct it along with the humans & the demigods-deities in various ways. He is a leader, destroyer of the enemy, tends to make charity, moves to the earth & the sky.
अग्ने जरस्व स्वपत्य आयुन्यूर्जा पिन्वस्व समिषो दिदीहि नः। 
वयांसि जिन्व बृहतश्च जागृव उशिग्देवानामसि सुक्रतुर्विपाम्
सुपुत्र और दीर्घ आयु हम प्राप्त करेंगे; इसलिए, हे अग्नि देव! आप देवों की प्रार्थना करें। अन्न द्वारा उन्हें प्रसन्न करें। हमारे धान्य के लिए भली-भाँति वृष्टि को संचालित करें। अन्न दान करें। सदा जागरणशील अग्निदेव! आप महान याजक गण को अन्न प्रदान करें; क्योंकि आप सुकर्मा और देवों के प्रिय हैं।[ऋग्वेद 3.3.7]
हे अग्ने! हमको सुन्दर पुत्र और लम्बी आयु ग्रहण कराने के लिए देवों का पूजन करो। हवि द्वारा उनको प्रसन्न करो। अन्न के लिए वर्षा को माँगो। तुम हमेशा चैतन्य रहते हो। इस यजमान को अन्न ग्रहण कराओ। तुम महान कार्य करने वाले देवताओं के मित्र हो।
Hey Agni Dev pray to demigods-deities (on our behalf) to bless us with obedient sons & long life. Appease them by offering them food grains. Properly control the rains for growing food grains. Donate food grains. Hey always awake Agni Dev! Grant food grains to the great devotees, since you perform auspicious deeds and is loved by the demigods-deities.
विश्पतिं यह्वमतिथिं नरः सदा यन्तारं धीनामुशिजं च वाघताम्। 
अध्वराणां चेतनं जातवेदसं प्रशंसन्ति नमसा जूतिभिर्वृधे
मनुष्यों के प्रति महान, अतिथि भूत, बुद्धि नियन्ता, ऋत्विकों के प्रिय, यज्ञ के ज्ञापक, वेग युक्त और सर्व भूतज्ञ अग्नि देव की नेता लोग समृद्धि के लिए नमस्कार और प्रार्थना के द्वारा प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 3.3.8]
ज्ञापक :: ज्ञान प्राप्त कराने वाला, बोधक, बतलाने, जतलाने या परिचय देने वाला,  सूचक या व्यंजक; गुरु या स्वामी।  
मनुष्यों के स्वामी, अतिथि रूप, महान बुद्धि प्रेरक ऋत्विजों के स्नेह पात्र, यज्ञ का ज्ञापन करने वाले गतिवान अग्नि को श्रेष्ठ पुरुष प्रणामपूर्वक पूजा करते हैं।
The humans pray-worship Agni Dev, who is affectionate, eternal, controls the intelligence, dear to the Ritviz, accelerated and aware of all past; guides he humans for their growth.
The leaders the of holy rites praise with prostration, for the sake of increase, the mighty lord of people, the guest of men, the regulator eternally of acts, desired by the priests, the exposition of sacrifices, Jat Ved, endowed with divine energies.
विभावा देवः सुरणः परि क्षितीरग्निर्बभूव शवसा सुमद्रथः। 
तस्य व्रतानि भूरिपोषिणो वयमुप भूषेम दम आ सुवृक्तिभिः
दीप्तिमान् स्तूयमान, कमनीय और सुन्दर रथ वाले अग्नि देव बल के द्वारा सारी प्रजा को व्याप्त करते हैं। हम अनेक के पालक और घर में निवासी अग्नि देव के समस्त कर्मों को सुन्दर स्तोत्र द्वारा प्रकाशित करेंगे।[ऋग्वेद 3.3.9]
प्रकाशवान, सुन्दर रथ से युक्त अग्नि देव शक्ति से अपनी प्रजा को व्याप्त करते हैं। उन अनेकों के पालनहार अग्नि देव के सभी कर्मों को हम श्रेष्ठ मंत्रों द्वारा प्रदीप्त करेंगे।
Aurous-shinning, beautiful-attractive, possessing beautiful charoite, Agni Dev pervades all organism. We will high light the glory of Agni Dev with the help of beautiful compositions-Strotr, hymns.
वैश्वानर तव धामान्या चके येभिः स्वर्विदभवो विचक्षण। 
जात आपृणो भुवनानि रोदसी अग्ने ता विश्वा परिभूरसित्मना
हे विज्ञ वैश्वानर! आप जिस तेज के द्वारा सर्वज्ञ हुए हैं, मैं आपके उसी तेज का स्तवन करता हूँ। जन्म के साथ ही आप द्यावा-पृथ्वी और समस्त भुवनों को व्याप्त कर लेते है। हे अग्नि देव! आप अपने समस्त भूतों को व्याप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.3.10]
हे मेधावी वैश्वानर अग्निदेव! तुम अपने जिस तेज द्वारा सर्वज्ञ बनें, मैं तुम्हारे उसी तेज को प्रणाम करता हूँ तुम प्रकट होते हो। तुम धरा-अम्बर आदि सस्त संसारों में विद्यमान होते हुए जीव मात्र में रम जाते हो। 
Hey enlightened Vaeshwanar! I pray to that aura-glory with which you became enlightened. You pervade the earth and the sky as soon as you are born. Hey Agni Dev! You pervades the entire past.
वैश्वानरस्य दंसनाभ्यो बृहदरिणादेकः स्वपस्यया कविः। 
उभा पितरा महयन्नजायताग्निर्द्यावापृथिवी भूरिरेतसा
वैश्वानर के सन्तोष जनक कर्म से महान् धन होता है, क्योंकि वे सुन्दर यज्ञ आदि कर्म की इच्छा से याजक गणों को धन देते हैं। वे वीर्यशाली है। माता-पिता द्यावा-पृथ्वी की पूजा करते हुए उत्पन्न हुए है।[ऋग्वेद 3.3.11]
वैश्वानर अग्नि की दुःखनाशिनी क्रिया द्वारा श्रेष्ठ धन प्राप्त होता है। वे यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों की कामना से यजमान को धन दिया करते हैं। वह पौरुष युक्त अग्नि, नभ, पृथ्वी युक्त माता-पिता की वंदना करते हुए प्रकट होते हैं।
The endeavours of Vaeshwanar generate great wealth, since he grants the desirous Ritviz money for the sake of successful Yagy. He possess energy. He is born worshiping his parents i.e., the earth and the sky.
 ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रत्यग्निरुषसश्चेकितानोऽबोधि विप्रः पदवीः कवीनाम्। 
पृथुपाजा देवयद्भिः समिद्धोऽप द्वारा तमसो वह्निरावः
अग्नि उषा को जानते हैं। मेधावी अग्नि ज्ञानियों के मार्ग पर जाने के लिए जागते हैं। अत्यन्त तेजस्वी अग्नि देवाभिलाषी व्यक्तियों के द्वारा प्रदीप्त होकर ज्ञान का द्वार उद्घाटित करते हैं।[ऋग्वेद 3.5.1]
अग्नि उषा के ज्ञाता हैं, वे विद्वानों का अनुकरण करने हेतु चैतन्य होते हैं। वे बहुत ही तेजस्वी हैं। देवताओं की इच्छा करने वाले मनुष्य उन्हें प्रज्वलित करते हैं, तब वे ज्ञान के द्वार खोलते हैं।
Agni Dev knows Usha. He become conscious to follow the path followed by the enlightened-intelligent. Majestic Agni Dev opens the gates of knowledge-enlightenment for those who wish to invoke-meet the demigods-deities.
प्रेद्वग्निर्वावृधे स्तोमेभिर्गीर्भिः स्तोतॄणां नमस्य उक्थैः। 
पूर्वीर्ऋतस्य संदृशश्चकानः सं दूतो अद्यौदुषसो विरोके
पूज्य अग्नि स्तोताओं के स्तोत्र, वाक्य और मंत्र द्वारा वृद्धि पाते हैं। देवदूत अग्नि अनेक यज्ञों में दीप्ति प्राप्त करने की इच्छा से प्रातःकाल प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 3.5.2]
अर्चनीय अग्नि वन्दना करने वालों के श्लोक, वाणी और मंत्र से वृद्धि करते हैं। वे अग्नि देवों के सन्देश वाहक रूप से ज्योर्तिमय होने के अभिलाषी हुए उषा काल में प्रचलित होते हैं।
Honourable Agni Dev flourish-grow due to the Strotr, compositions-sentences and the Mantr. As the messenger of the demigods-deities Agni Dev, seek shine-aura in the morning.
   अधाव्यग्निर्मानुषीषु विश्व१पां गर्भो मित्र ऋतेन साधन्। 
आ हर्यतो यजतः सावस्थादभूद् विप्रो हव्यो मतीनाम्
याजकगणों के मित्र, यज्ञ के द्वारा अभिलाषा पूरी करने वाले और जल के पुत्र अग्नि देव मनुष्यों के मध्य स्थापित हुए हैं। अग्नि स्पृहणीय और यजनीय है। वे उन्नत स्थान पर बैठे है। ज्ञानी अग्रिदेव स्तोताओं की प्रार्थना के योग्य हुए हैं।[ऋग्वेद 3.5.3]
स्पृहणीय :: प्राप्त करने योग्य, वांछनीय; covetable, admirable
यजमानों के मित्र रूप अग्नि यज्ञ का अभिष्ट फल देने के लिए प्राणियों में विराजमान होते हैं। वे मतिवान स्तुति करने वालों की वन्दना के पात्र हैं।
Friend of the humans, accomplishing desires of the organisers of Yagy, son of Varun, Agni Dev has established himself amongest the humans. Desirable Agni Dev deserve worship-prayers. He has seated himself seated at an elevated site-place. Enlightened Agni Dev deserve prayers by the Ritviz.
मित्रो अग्निर्भवति यत्समिद्धो मित्रो होता वरुणो जातवेदाः। 
मित्रो अध्वर्युरिषिरो दमूना मित्रः सिन्धूनामुत पर्वतानाम्
जिस समय अग्रिदेव समिद्ध होते हैं, उस समय मित्र बनते हैं। वे ही मित्र होता और सर्वज्ञ वरुण है। वे ही मित्र, दानशील अध्वुर्य और प्रेरक वायु हैं। वे ही नदियों और पर्वतों के मित्र होते हैं।[ऋग्वेद 3.5.4]
समिद्ध :: जलता हुआ, प्रज्वलित; rich.
अध्वर्यु :: यजुर्वेद के अनुरूप कर्म करनेवाला।
यज्ञ का संपादन करनेवाला। जब अग्निदेव प्रबुद्ध होते हैं, तब वे मित्र भाव से परिपूर्ण होते हैं। वे मित्र होता और सब को जानने वाले वरुण हैं। वे सखा भाव वाले दानमयी स्वभाव परिपूर्ण अध्वर्यु और शिक्षा देने वाले पवन रूप हैं। वे सरिताओं से भी मित्र भाव रखते हैं।
Agni Dev becomes a friend when he ignites. He is the friend host-Hota, Ritviz and all knowing Varun. He is Mitr-friend, organiser of the Yagy and the inspiring Pawan-Vayu Dev. He is a friend of the rivers and the mountains. 
पाति प्रियं रिपो अग्रं पदं वेः पाति यहश्चरणं सूर्यस्य। 
पाति नाभा सप्तशीर्षाणमग्निः पाति देवानामुपमादमृष्वः
सुन्दर अग्निदेव सर्वव्याप्त पृथ्वी के प्रिय स्थान की रक्षा करते हैं। महान अग्नि सूर्य के विहरण स्थान अन्तरिक्ष-आकाश की रक्षा करते हैं। अन्तरिक्ष के बीच मरुतों की रक्षा करते हैं और आकाश में देवों के प्रसन्नता हेतु यज्ञ की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 3.5.5]
सर्वव्यापक अग्नि पृथ्वी के प्रिय स्थान के रक्षक हैं। वे सूर्य के विचरण के स्थान की सुरक्षा करते हैं। अंतरिक्ष में मरुद्गण को पोषण करते और देवों को हर्षित करने वाले अनुष्ठान को पुष्ट करते हैं।
All pervading beautiful Agni Dev protects the spots loved by the earth. Great Agni Dev protects the path adopted by the Sun. He protects the Maruts in the space. He protects the Yagy for the happiness of the demigods-deities, in the space-sky. 
ऋभुश्चक्र ईड्यं चारु नाम विश्वानि देवो वयुनानि विद्वान्। 
ससस्य चर्म घृतवत्पदं वेस्तदिदग्नी रक्षत्यप्रयुच्छन्
महान और समस्त ज्ञातव्यों के ज्ञाता अग्नि प्रशंसनीय और सुन्दर जल उत्पन्न करते हैं। अग्नि के निद्रित रहने पर भी उनका रूप दीप्तिमान रहता है। वे अग्नि सावधानी से उसकी रक्षा करते है।[ऋग्वेद 3.5.6]
सबके ज्ञाता महान, अग्नि प्रशंसा योग्य रमणीय जल को उत्पन्न करने वाले हैं। अग्नि की सुप्त रहने पर भी उनका रूप चमकता रहता है। वे अग्नि सावधानी से अपने रूप की सुरक्षा करते हैं।
Enlightened & great Agni Dev produces appreciable and admirable water. The aura of Agni Dev is visible even though he is sleeping. Agni dev carefully protect his form.   
आ योनिमग्निर्घवन्तमस्थात्पृथुप्रमाणमुशन्तमुशानः। 
दीद्यानः शुचिर्ऋष्व: पावकः पुनः पुनर्मातरा नव्यसी कः
दीप्तिमान विशेष रूप से प्रार्थना और स्वस्थान प्रिय अग्नि देव अधिरूढ़ हुए हैं। दीप्तिशाली शुद्ध, महान और पवित्र अग्नि माता-पिता द्यावा-पृथ्वी को नवीनतर करते हैं।[ऋग्वेद 3.5.7]
वंदना किये प्रकाशयुक्त अपने स्थान से प्रेम करने वाले अग्निदेव विराजमान हुए। वे प्रकाशवान, तेजस्वी, पवित्र, अग्नि, आकाश, पृथ्वी क्षेप अपने माता पिता को अभिनवता देते हैं।
Aurous Agni Dev deserving special prayers, took the seat, he loved. The great, bright, pure, Agni Dev grant new-unique forms (postures) to his parents the earth & the the sky.  
Agni has taken his station-position in an asylum, brilliant, much lauded and as desirous of receiving him as he is to repair to it; radiant, pure, vast and purifying, he repeatedly renovates his parents, Heaven and the Earth.
सद्यो जात ओषधीभिर्ववक्षे यदी वर्धन्ति प्रस्वो घृतेन। 
आपइव प्रवता शुम्भमाना उरुष्यदग्निः पित्रोरुपस्थे
जन्म लेते ही अग्निदेव औषधियों द्वारा घृत होते हैं। उस समय पथ प्रवाहित जल के तुल्य शोभित औषधियाँ जल द्वारा वर्द्धित होकर फल देती है। माता-पिता द्यावा-पृथ्वी के क्रोड में बढ़कर अग्नि हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.5.8]
अग्नि अपने जन्म से औषधियों द्वारा रचित किये जाते हैं। उसी समय मार्ग में बहते हुए पानी के समान सुशोभित औषधियाँ जल द्वारा वृद्धि को ग्रहण होती और फल से परिपूर्ण होती हैं। धरा से आकाश तक उठती हुई अग्निदेव हमारे रक्षक हों।
Agni Dev is nurtured-nourished by the herbal medicines. The herbal medicines flowing in water grow and produce fruits. Let Agni Dev become our protector from the earth to sky.   
उदु ष्टुतः समिधा यह्वो अद्यौद्वर्ष्मन्दिवो अधि नाभा पृथिव्याः। 
मित्रो अग्निरीड्यो मातरिश्वा दूतो वक्षद्यजथाय देवान्
हमारे द्वारा प्रार्थना और दीप्ति द्वारा महान अग्नि ने पृथ्वी की नाभि या उत्तर वेदी पर स्थित होकर अन्तरिक्ष-आकाश को प्रकाशित किया। सभी के मित्र और स्तुति-योग्य अरणी प्रदीप्त अर्थात आकाश अग्नि देवों के दूत होकर यज्ञ में देवों को बुलायें।[ऋग्वेद 3.5.9]
हमारे द्वारा प्रदीप्त और स्तुत्य अग्नि सबके मित्र, पूजनीय और अरणियों द्वारा प्रदीप्त होते हैं। वे देवगणों के दूत होकर अनुष्ठान में उन्हें आमंत्रित करें।
Agni Dev ignited by us, lit the great earth & sky,  positioned at the center of the earth, located in the northern site-hemisphere, having been worshiped-prayed by us. Worshiped by all, friend of all, lit by the woods, messenger of the demigods-deities, Agni Dev should invite the demigods-deities at the Yagy site.
Praised and nourished by the woodl, the mighty Agni, stationed on the altar-the navel-nucleus of the earth, in the form of the firmament, has shone brightly; may the friendly and adorable Agni who respires in the mid-heaven, the messenger of the demigods-deities, bring them to the sacrifice site-Yagy.
उदस्तम्भीत्समिधा नाकपृष्वो ३ ग्निर्भवन्नुत्तमो रोचनानाम्। 
यदी भृगुभ्यः पति मातरिश्वा गुहा सन्तं हव्यवाहं समीधे
जिस समय मातरिक्षा ने भृगुओं या आदित्य-रश्मियों के लिए गुहास्ति और हव्य वाहक अग्नि को प्रज्वलित किया था, उस समय तेजस्वियों में श्रेष्ठ महान अग्नि देव ने अपने तेज द्वारा स्वर्ग को स्तब्ध कर दिया।[ऋग्वेद 3.5.10] 
जब मातरिश्वा ने भृगुओं के लिए गुफा में विराजमान हवि वाहक अग्नि देव को चैतन्य किया तब तेजस्वी, श्रेष्ठ अग्नि देव ने अपने तेज से से सूर्य लोक को भी स्तब्ध कर दिया।
When Matrishwa ignited fire for the Bhragus, in the cave and brought Agni Dev to consciousness, the carrier of offerings, the excellent amongest the aurous-energetic stunned the heavens.  
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध। 
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे
हे अग्नि देव! आप स्तोताओं को अनेक कर्मों के हेतुभूत और धेनु प्रदात्री भूमि सदा प्रदत्त-प्रदान करें। हमारे वंश का विस्तारक और सन्तति जनयिता एक पुत्र है। यह हमारे प्रति आपका अनुग्रह है।[ऋग्वेद 3.5.11] 
हे अग्ने! तुम अपने वंदनाकारी को असंख्य कार्यों के फल स्वरूप गवादि धन परिपूर्ण धरा सदैव देते रहो। हमारे वंश की वृद्धि करने वाला सन्तानोत्पादन में समर्थ पुत्र हों। यह सब तुम्हारी कृपा दृष्टि से ही सम्भव होगा।
Hey Agni Dev! Grant land & cows etc. to the worshipers as a result of their several deeds. We should have a son capable of continuing our clan. Its possible due to your blessings.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र कारवो मनना वच्यमाना देवद्रीचीं नयत देवयन्तः। 
दक्षिणावाडाजिनी प्राच्येति हविर्भरन्त्यग्नये घृताची
हे यज्ञ कर्ताओं! आप स्तोत्रों के मन्त्रोच्चारण के साथ देवताओं के पूजन में प्रयुक्त होने वाली अन्न युक्त स्त्रुवा को दक्षिण दिशा से लाकर पूर्व दिशा में हवि और घृत से परिपूर्ण कर अग्नि देव को अर्पित करो।[ऋग्वेद 3.6.1]
हे यज्ञ को करने वालों! तुम सोम की इच्छा करते हो। मंत्र से शिक्षा प्राप्त कर देवी आराधना में साधन रूप स्त्रुवा को यहाँ पर लाओ जिससे आह्वानीय अग्नि देव दक्षिण दिशा में ले जाते हैं। जिसका अगला भाग पूर्व दिशा में रहता है। वही धन परिपूर्ण अग्नि के लिए अन्न धारण करता है। 
Hey organisers of Yagy-Ritviz! Move the Struva filled with Ghee & grains from South to east, with the recitation of Mantr-sacred hymns, making offerings in the Holy fire-Agni. 
आ रोदसी अपृणा जायमान उत प्र रिक्था अथ नु प्रयज्यो। 
दिवश्चिद्गने  महिना पृथिव्या वच्यन्तां ते वह्नयः सप्तजिह्वाः
जन्म के साथ ही आप द्यावा-पृथ्वी को पूर्ण करें। याग-योग्य, महिमा द्वारा आप अन्तरिक्ष और पृथ्वी से प्रकृष्टतर हों और आपके अंशभूत विशिष्ट अग्नि देव की सप्त जिह्वाएं पूजित हों।[ऋग्वेद 3.6.2]
हे अग्नि देव! तुम प्रकट होते ही द्यावा-पृथ्वी को पूर्ण करो। यज्ञ के योग्य, महिमा से बढ़े हुए तुम अंतरिक्ष और पृथ्वी पर उठो और तुम्हारे अंश भूत पार्थिव अग्नि को प्राप्त जिह्वाएँ पूजी जायें।
Complete-pervade the sky & earth as soon as you are born. Good-suitable for the Yagy, you & fragment of you as special form of Agni Dev, should rise over the space & the earth and his 7 flames be worshiped.
As soon as Agni is born, it occupy both heaven and earth. You, for whom sacrifice is to be made, exceed in magnitude the firmament and the earth, may your seven-tongued fires be glorified.
द्यौश्च त्वा पृथिवी यज्ञियासो नि होतारं सादयन्ते दमाय। 
यदी विशो मानुषीर्देवयन्ती प्रयस्वतीरीळते शुक्रमर्चिः॥
हे अग्नि देव! आप होता हैं, जिस समय देवाभिलाषी और हव्य युक्त मनुष्य आपके दीप्त तेज की प्रार्थना करते हैं, उस समय अन्तरिक्ष, पृथ्वी और यज्ञार्ह देवगण, यज्ञ-सम्पादन के लिए, आपकी ही स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 3.6.3]
हे अग्नि देव! तुम होता हो। जब देवी की इच्छा वाले हविदाता मनुष्य तुम्हारे तेज की प्रशंसा करते हैं, तब अंतरिक्ष, पृथ्वी और देव यज्ञ कर्म को सफल करने हेतु तुम्हें उपासित करते हैं। 
Hey Agni Dev! You are the host-organiser of the Yagy. When the humans desirous of invoking the demigods-deities, with offerings, pray your shine-aura; the space, earth and demigods-deities desirous of making the Yagy successful, worship-pray you. 
महान्त्सधस्थे ध्रुव आ निषत्तोऽन्तर्द्यावा माहिने हर्यमाणः। 
आस्क्रे सपत्नी अजरे अमृक्ते सबदुघे उरुगायस्य धेनू
हे महान् व यजमानों के प्रिय अग्नि देव! द्यावा-पृथ्वी के बीच, महिमावाले अपने स्थान पर बैठे हैं। आक्रमणशील, सपत्नीभूता, जरारहिता, अहिंसिता और क्षीर प्रसविनी द्यावा-पृथ्वी अत्यन्त गमनशील अग्नि देव की गायें हैं।[ऋग्वेद 3.6.4]
यजमानों के मित्र श्रेष्ठ अग्नि आकाश और पृथ्वी के मध्यस्थ विराजमान हैं। समान प्रीति वाली, अजर, अहिंसित, आसमान-पृथ्वी, गतिमान अग्नि देव के लिए दूध देने वाली गाय के समान हैं।
Hey great and dear to the hosts Agni Dev! You have occupied the honourable seat-space between the space & earth. Earth & the sky are the cows of the attacker Agni Dev, accompanied with his wife, without old age, non violent, yielding milk for him. 
व्रता ते अग्ने महतो महानि तव क्रत्वा रोदसी आ ततन्थ। 
त्वं दूतो अभवो जायमानस्त्वं नेता वृषभ चर्षणीनाम्
हे अभीष्ट वर्षी अग्नि देव! आप सर्वोत्कृष्ट हैं। आपका कर्म महान् है। आपने यज्ञ द्वारा द्यावा-पृथ्वी को विस्तारित किया है। आप दूत हैं। उत्पन्न होने के साथ ही आप याजक गण के नेता बने।[ऋग्वेद 3.6.5]
हे अग्नि देव! तुम सर्वश्रेष्ठ हो। तुम उत्तम कार्य करने वाले हो। तुमने आकाश-धरती को अनुष्ठान कर्म द्वारा विस्तृत किया है। तुम दौत्य कर्म में कुशल हो। अभिष्टों को वृष्टि करने वाले, जन्म से ही यजमान के पूज्य बनते हैं।
Hey accomplishment showering Agni Dev! You are excellent. Your endeavours are great. You elongated the sky & the earth through the Yagy. You are a messenger-ambassador. You became the worship able leader- supreme for the hosts-Ritviz.
ऋतस्य वा केशिना योग्याभिर्धृतस्नुवा रोहिता घुरि धिष्व। 
अथा वह देवान्देव विश्वान्त्स्वध्वरा कृणुहि जातवेदः
हे द्युतिमान् अग्नि देव! प्रशस्त केश वाले, रज्जु युक्त और घृत स्त्रावी रोहित नामक दोनों घोड़ों को यज्ञ के सम्मुख नियोजित करें। अनन्तर आप समस्त देवों को बुलावें। हे सर्वभूतज्ञ! आप उन्हें सुन्दर यज्ञ युक्त कीजिए।[ऋग्वेद 3.6.6]
हे तेजस्वी अग्नि देव! तुम सुन्दर केश वाले रस्सी से युक्त घृतस्त्रावी घोड़ों को सबके सम्मुख जोड़ो। फिर सभी देवताओं को अमंत्रित करो। तुम सबको यज्ञमय बनाओ।
Hey bright-brilliant Agni Dev! Deploy the horse with beautiful hair, tied with the cord, 
Harness with traces, to your car, your long-maned, ruddy steeds, to come to the Yagy, bring hither, divine Jat Ved, all the demigods and make them propitious to the oblation.
दिवश्चिदा ते रुचयन्त रोका उषो विभातीरनु भासि पूर्वीः। 
अपो यदग्न उशधग्वनेषु होतुर्मन्द्रस्य पनयन्त देवाः
हे अग्नि देव! जिस समय आप वन में जल का शोषण करते हैं, उस समय सूर्य से भी अधिक आपकी दीप्ति होती है। आप भली-भाँति प्रकाशमान पुरातन उषा के पीछे शोभित होते हैं। स्तोता लोग स्तुति योग्य अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 3.6.7]
हे अग्नि देव! तुम वन में जल को सुखाते हो। तब तुम्हारा प्रकाश सूर्य से भी अधिक प्रतीत होता है। तुम सुन्दर कांतिमती उषा के पीछे प्रकाशवान होते हो। स्तोतागण वंदना के पात्र होता रूप अग्नि देव की वंदना करते हैं।
Hey Agni Dev! When you absorb water in the forests-jungles, you brilliance is higher as compared to the Sun. You are visible behind the eternal-ancient Usha. The worshipers pray to Agni Dev, who deserve worship.
When, Agni, you abide in the woods, consuming the waters at your plural forms, then your rays illuminate the heavens and you shine like many former radiant dawns, the demigods-deities themselves commend the brilliancy of their praise-meriting invoker.
उरौ वा ये अन्तरिक्षे मदन्ति दिवो वा ये रोचने सन्ति देवाः। 
ऊमा वा ये सुहवासो यजत्रा आयेमिरे रथ्यो अग्ने अश्वाः
विस्तीर्ण अन्तरिक्ष में जो देवगण हर्षित हैं, आकाश की दीप्ति में जो सब देवता हैं, 'उम' संज्ञक जो यजनीय पितर लोग भली-भाँति आहूत होकर आगमन करते हैं, रथी अग्नि के वो सब अश्व है।[ऋग्वेद 3.6.8]
जो देवगण विशाल अंतरिक्ष में सुखी हैं, जो देवता ज्योर्तिमान क्षितिज में वास करते हैं, जो "ऊम" संज्ञक पितरगण आह्वान पर आते हैं, वे समस्त रथ परिपूर्ण अग्नि देव के अश्व रूप हैं। 
The happy-amused aurous demigods-deities in the broad space, the Pitres-Manes named Um invoke on being properly welcomed-invited and become the horses of Agni Dev driving the charoite.
ऐभिरग्ने सरथं याह्यर्वाङ्नानारथं वा विभवो ह्यश्वाः। 
पत्नीवतस्त्रिंशतं त्रींश्च देवाननुष्वधमा वह मादयस्व
हे अग्नि देव! उक्त सब देवों के साथ एक रथ अथवा नाना रथों पर चढ़कर हमारे सामने आवें, क्योंकि आपके अश्व गण समर्थ हैं। तैंतीस देवों की उनकी स्त्रियों के साथ अन्न के लिए ले आवें और सोमरस द्वारा प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 3.6.9]
हे अग्नि देव! उन सब देवों के युक्त रथारूढ़ हुए हमारे निकट पधारो। तुम्हारे अश्व तुम्हें यहाँ पर लायें। यहाँ पधारकर उन्हें सोम द्वारा बलिष्ठ बनाओ।
Hey Agni dev! Come riding either one or many charoites along with the 39 demigods-deities associated with their wives for food grains, since your horses are capable and treat them with Somras.
स होता यस्य रोदसी चिदुर्वी यज्ञंयज्ञमभि वृधे गृणीतः। 
प्राची अध्वरेव तस्थतुः सुमेके ऋतावरी ऋतजातस्य सत्ये
देवताओं का आवाहन करने वाले अग्नि देव की आकाश-पृथ्वी समस्त यज्ञों में प्रार्थना करते हैं। रूप, जल और सत्य से परिपूर्ण पृथ्वी यज्ञाग्नि के अनुकूल स्थित है।[ऋग्वेद 3.6.10]
विस्तृत पृथ्वी सभी यज्ञों में जिन अग्निदेव की समृद्धि के लिए करती है। 
Agni Dev is worshiped in all Yagy Karm, who invite-invoke the demigods-deities, by the sky & earth. Earth is favourable for  carrying out Yagy with its form, water and truth.
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध। 
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे
हे अग्नि देव! आप स्तोता को अनेक कर्मों के हेतुभूत और धेनुदात्री भूमि सदैव प्रदान करें। हमारे वंश का विस्तार करने वाला और सन्तति जनयिता एक पुत्र दें। हे अग्नि देव! हमारे प्रति आपका अनुग्रह है।[ऋग्वेद 3.6.11]
वे देवताओं के होता, बल सम्पन्न सुन्दर रूप वाले को विविध कर्मों की कारण भूत गौ-युक्त भूमि प्रदान करो। हमको वंश की वृद्धि करने वाला, संतान उत्पादन में समर्थ पुत्र प्रदान करो, यही तुम्हारा अनुग्रह होना चाहिये।
Hey Agni Dev! Grant land to the devotees for carrying various deeds-Karm, which has cows. Grant us a son who can further continue with our clan. Hey Agni dev! you should be favourable to us.
Hey Agni Dev! Grant land to the devotees for carrying various deeds-Karm, which has cows. Grant us a son who can further continue with our clan. Hey Agni dev! you should be favourable to us.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र य आरुः शितिपृष्ठस्य धासेरा मातरा विविशुः सप्त वाणीः।
परिक्षिता पितरा सं चरेते प्र सर्स्त्राते दीर्घमायुः प्रयक्षे
श्वेत पृष्ठ वाले और सभी के धारक अग्रि देव की जो किरणें उत्तमता के साथ उठती हैं, वे मातृ-पितृ, रूपा द्यावा-पृथ्वी की चारों दिशाओं में प्रविष्ट होती हैं, सातों नदियों में भी प्रविष्ट होती हैं। चारों ओर वर्तमान मातृ-पितृ भूता द्यावा-पृथ्वी भली-भाँति फैली हुई हैं और अच्छी तरह यज्ञ करने के लिए अग्नि को दीर्घ जीवन प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 3.7.1]
उज्ज्वल पीठ वाले सर्वधारक अग्नि की ज्वालाएँ उत्तमत्ता से उन्नत होती हैं, आकाश पृथ्वी माता-पिता की भांति समस्त दिशाओं में विद्यमान होती है। अम्बर धरा माता-पिता समस्त और विस्तारिक हुए यज्ञ के लिए अग्नि देव को लम्बी उम्र प्रदान करते हैं।
The auspicious rays which evolve from the front portion-chest of Agni Dev enters the sky-earth, who are like father & mother, enter in all directions and the 7 rivers.  Sky-earth pervade in all directions like father & mother, grants long life to Agni for conducting the Yagy smoothly.
दिवक्षसो धेनवो वृष्णो अश्वा देवीरा तस्थौ मधुमद्वहन्तीः। 
ऋतस्य त्वा सदसि क्षेमयन्तं पर्येका चरति वर्तनिं गौः
द्युलोक वासी धेनु ही अभीष्ट वर्षी अग्रि का अश्व है। मधुर जल वाहिनी और प्रकाशवती नदियों में अग्नि देव निवास करते हैं। हे अग्नि देव! आप ऋत या सत्य के घर में रहना चाहते हुए अपनी ज्वाला देते है। हे अग्नि देव! एक गौ या मध्यमिका वाक् आपकी सेवा करती है।[ऋग्वेद 3.7.2]
ऋत (1). :: मुक्ति, मोक्ष, सत्य, उज्ज्वल दीप्त, पूजित; liberation, emancipation, truth, bright light, worshiped. (2). शीलोञ्छ वृत्ति से प्राप्त अन्न; food grains collected from the harvested crop fields left over by the farmers.
आकाशवासी धेनु ही अग्निदेव का अश्व है। मथुर जल को प्रवाहित करने वाली निर्मल नदियों में अग्नि का नाम है। हे अग्नि देव! तुम सत्य में निवास करना चाहते हो। हे अग्निदेव! तुम्हारी प्रेरणा से ही यह पृथ्वी सत्य व्यवहार पर अटल रहती है।
The cow present is the heavens is the horse of Agni Dev who make accomplishments. Agni Dev resides in the river possessing aura and carrying sweet water. Hey Agni Dev! You produce heat residing in the house of emancipation & the truth. Hey Agni Dev! Either a cow or Vak-speech serves you.
The sky-traversing steeds of the showerer of benefits are the kine of Agni; as he attains the divine rivers, bearers of sweet water. One sacred sound glorifies you and you are desirous of repose, pacifying your flames in the abode of the water in the firmament-heavens, sky.
आ सीमरोहत्सुयमा भवन्तीः पतिश्चिकित्वान्नयिविद्रयीणाम्। 
प्र नीलपृष्ठो अतसस्य घासेस्ता अवासयत्पुरुधप्रतीकः
धनों में श्रेष्ठ धन के स्वामी, ज्ञानवान् और अधिपति अग्नि सुख से संयमनीय वड़वाओं में चढ़ गए। श्वेत पृष्ठ वाले और चारों ओर प्रसूत अग्रि ने वड़वाओं को सतत् गमन करने के लिए छोड़ दिया।[ऋग्वेद 3.7.3]
महान समृद्धि के स्वामी अर्थात अग्नि बड़वानलों में गढ़े रहते हैं। उज्जवल पीठ अग्नि देव में सदैव यशवान रहने हेतु बड़वानलों को विमुक्त किया।
The possessor of great wealth, enlightened and the leader; Agni Dev has occupied the Vadva-fire present under waters. Agni with bright exterior, has worshiped the Vadava (fire under the ocean) and has liberated them to move ahead, further. 
महि त्वाष्ट्रमूर्जयन्तीरजुर्यं स्तभूयमानं वहतो वहन्ति। 
व्यङ्गे भिर्दिद्युतानंः सद्यस्थ एकामिव रोदसी आ विवेश
बलकारिणी और प्रवहमाना नदियाँ अग्रि को धारित करती हैं। वे महान, त्वष्टा के पुत्र, जरा रहित और सम्पूर्ण संसार को धारित करने के अभिलाषी है। जिस प्रकार से पुरुष एक स्त्री के पास जाता है, उसी प्रकार अग्नि देव जल के पास प्रदीप्त होकर द्यावा-पृथ्वी में प्रवेश करते हैं।[ऋग्वेद 3.7.4]
प्रवाहमान नदियाँ अग्नि देव का पोषण करती हैं। त्वष्टा के पुत्र, अजर, श्रेष्ठ तथा समस्त संसार को धारण करने की कामना करते हैं। युवा पुरुष की भार्या के पास जाने के तुल्य जल के पास प्रदीप्त हुए अग्नि देव आकाश और पृथ्वी में विद्यमान होते हैं।
Rivers with strong current support Agni. The ageless great son of Twasta, wish to support the whole universe. The way a person goes to a woman, Agni Dev enters the sky & earth. 
जानन्ति वृष्णो अरुषस्य शेवमुत ब्रघ्नस्य शासने रणन्ति। 
दिवोरुचः सुरुचो रोचमाना इळा येषां गण्या माहिना गीः
लोग अभीष्टवर्षी और अहिंसक अग्नि के आश्रय जन्य सुख को जानते हुए महान अग्रि की आज्ञा में रत रहते हैं। जिन मनुष्यों के श्रेष्ठ स्तुति रूप वाक्य गणनीय होते हैं, वे द्युलोक के दीप्ति कर्ता और शोभन दीप्ति युक्त होकर देदीप्यमान होते हैं।[ऋग्वेद 3.7.5]
अभिलाषाओं के वर्षक, अहिंसक अग्नि की शरण से रचित सुख को जानने वाले उनकी आज्ञा में उपस्थित रहते हैं। जिन स्तोताओं की स्तुति रूपवाणी उल्लेखनीय होती है, वे नभ को प्रकाशित करने वाले सुशोभित हुए स्वयं ही प्रकाशमान होते हैं।
Populace who understand the comforts-pleasure under the asylum-protection of accomplishment-desires granting and non violent Agni Dev, obeys-follow him.  The people who's excellent prayers are remarkable, turn into the source of glow-aura in the heavens-sky and establish them selves with aura-glow. 
उतो पितृभ्यां प्रविंदानु घोषं महो महद्धयामनयन्त शूषम्। 
उक्षा ह यत्र परि धानकोरनु स्वं धाम जरितुर्ववक्ष
महान से भी महान मातृ-पितृ स्थानीय द्यावा-पृथ्वी के ज्ञान के उपरान्त ऊँचे स्वर में की गई प्रार्थना से उत्पन्न सुख अग्नि के निकट जाता है। जलसेचन कर्ता अग्नि देव रात्रि के चारों ओर व्याप्त स्वकीय तेज स्तोता के पास भेजते हैं।[ऋग्वेद 3.7.6]
मातृ-पितृ भूता आकाश-पृथ्वी के प्रति की जाने वाली वंदना से प्रकट कल्याण भावनाएँ अग्नि देव को ग्रहण होती हैं, जल सींचने में समर्थवान अग्नि देव रात्रि में ज्योर्तिमान अपने तेज को प्रार्थना करने वाले को प्रेषित करते हैं।
The pleasure generated through the prayers sung in loudest voice, in favour of the earth & sky, who are like mother and father reaches Agni Dev. Creator of water Agni Dev, transfers his energy-aura pervading the night, to the recitators of hymns. 
अध्वर्युभिः पञ्चभिः सप्त विप्राः प्रियं रक्षन्ते निहितं पदं वेः। 
प्राञ्चो मदन्त्युक्षणो अजुर्या देवा देवानामनु हि व्रता गुः
पाँच अध्वर्युओं के साथ, सात होता गमनशील अग्रि के प्रिय स्थान की रक्षा करते हैं। सोम पान के लिए पूर्व की ओर जाने वाले अजर और सोम रस वर्षी स्तोता लोग प्रसन्न होते हैं, क्योंकि देवता लोग देव तुल्य स्तोताओं के यज्ञ में ही जाते हैं।[ऋग्वेद 3.7.7]
अध्वर्यु :: The chief priest, one who perform rituals of sacrifice in the Yagy. 
पाँच से मुक्त सप्त होता, अग्निदेव के प्रियवास यज्ञ की रक्षा को सींचने वाले, मेहनत से न हारने वाले स्तोता हर्ष पाते हैं, क्योंकि उन देवताओं के सामने स्तोताओं के यज्ञ में देवता विराजते हैं। 
7 Ritviz-hosts save-protect the site-place dear to Agni Dev, along with the 5 head priests. The ageless-immortal extractors of Somras going to the east become happy, since demigods-deities visits the Yagy of only those Yagy organisers who themselves are like the demigods-deities (virtuous). 
दैव्या होतारा प्रथमा न्यृञ्जे सप्त पृक्षासः स्वधया मदन्ति। 
ऋतं शंसन ऋतमित्त आहुरनु व्रतं व्रतपा दीध्यानाः
दैव्य होतृ द्वय स्वरूप दो मुख्य अग्रियों को मैं अलंकृत करता हूँ। सात जन होता सोम द्वारा प्रसन्न होते हैं। स्तोत्र कर्ता, यज्ञ रक्षक और दीप्ति शाली होता लोग "अग्रि ही सत्य है", ऐसा बोलते है।[ऋग्वेद 3.7.8]
अद्भुत होता स्वरूप दो अग्नियों को सजाता हूँ। सप्त होता सोम सिद्ध होने पर हर्षित होते हैं। ये होता वंदना करते हुए यज्ञ की सुरक्षा करते हुए अग्नि को ही सत्य बताते हैं।
I decorate the two main amazing forms of Agni (duo who are like the divine hosts). 7 organisers of Yagy become happy due to the accomplishment of Som. Those reciting Strotr, protectors of Yagy and the possessing aura-glow, say, "Agni is truth"
वृषायन्ते महे अत्याय पूर्वीर्वृष्णे चित्राय रश्मयः सुयामाः। 
देव होतर्मन्द्रतरश्चिकित्त्वान्महो देवान्रोदसी एह वक्षि
देदीप्यमान और देवों को बुलाने वाले, हे अग्नि देव! आप महान, सभी का अतिक्रम करके रहनेवाले, नाना वर्णों वाले और अभीष्टवर्षक हैं। आपके लिए प्रभूत, अतीव विस्तृत और सभी जगह व्याप्त ज्वालाएँ वृष (बैल) के समान आचरण करती हैं। आप मादयिता और ज्ञानी हैं। आप पूज्य देवों और द्यावा-पृथ्वी को इस कर्म में बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.7.9]
अतिक्रम  :: सीमा से आगे बढ़ना, नियम या मर्यादा का उल्लंघन, विपरीत व्यवहार, लाँघना।
देव आह्वान कर्त्ता एवं प्रकाशमान अग्नि श्रेष्ठ एवं अभिष्टवर्धक हैं। हे अग्निदेव! तुम्हारी आज्ञा के अनुसार ज्वालाएँ विस्तृत होती हुई, सर्वत्र व्याप्ती हैं तथा वृषभ तुल्य प्रभाव वाली होती हैं। तुम ज्ञानवान हो। हमारे यज्ञ कर्म में देवगणों, पृथ्वी और आकाश को बुलाने वाले हो।
Hey Agni Dev, possessing aura, you are one to invite the demigods-deities. You are great and remain independently, possessing various-several colours-shades and accomplish the desires. Your flames pervade each and every place like a bull. You are enlightened. You invite the revered-honoured deities-demigods & the sky-earth in our Yagy Karm.
Divine invoker of the demigods, the vast and widespreading rays shed moisture for you, the mighty, the victorius, the wonderful, the showerer of benefits, you are all well known, joy-bestowing, bring hither the great demigods & heaven and earth.
पृक्षप्रयजो द्रविणः सुवाचः सुकेतव उषसो रेवदृषुः। 
उतो चिदग्ने महिना पृथिव्याः कृतं चिदेनः सं महे दशस्य
हे सतत गमनशील अग्नि देव! जिस उषा काल में भली-भाँति अन्न द्वारा यज्ञ प्रारम्भ किया जाता है, जो उषाकाल शोभन वाक्य युक्त तथा पक्षियों और मनुष्यों के शब्दों से सुचिह्नित है, वही सब उषा काल धन युक्त होकर प्रकाशित होते हैं। हे अग्नि देव! अपनी विशाल महिमा के कारण आप याजकगण के किए हुए पापों को नाश करते हैं।[ऋग्वेद 3.7.10]
हमेशा गतिमान अग्नि देव के लिए जिस उषाकाल में हवि प्रदान करते हुए अनुष्ठान किया जाता है, वह उषाकाल सुसज्जित है। वह उषाकार धन ऐश्वर्य से परिपूर्ण हुआ प्रकाशमान होता है। हे अग्नि देव! तुम अपनी महती दया द्वारा यजमान कृत पापकर्म कर विनाश करते हो।
Hey continuously moving-wandering Agni Dev! The day break-Usha, in which the Yagy is begun with grains, accompanied with the human voices, -Strotr, is lit associated by wealth. Hey Agni Dev! Due to your divine glory the devotees become sinless. 
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध। 
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे
हे अग्नि देव! स्तोता को आप अनेक कर्मों की कारणभूता और धेनु प्रदात्री भूमि अथवा गो रूप देवता सदा प्रदान करें। हमें वंश विस्तारक और सन्तति जनयिता एक पुत्र प्रदान करें। हे अग्निदेव! हमारे प्रति आपका अनुग्रह है।
[ऋग्वेद 3.7.11]
हे अग्नि देव! स्तुति करने वाले को विविध कर्म और गौ आदि धन से युक्त जमीन दो। हमें वंश को बढ़ाने वाला, संतान उत्पन्न करने में सक्षम पुत्र प्रदान करो। हम तुम्हारा अनुग्रह चाहते हैं।
Hey Agni Dev! Grant land to the devotee to perform-conduct several activities-deeds and cows in the form of wealth. Grant us a son who should prolong our dynasty. We wish your blessing.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्निछन्द :- बृहती, त्रिष्टुप्।
सखायस्त्वा ववृमहे देवं मर्तास ऊतये।
अपां नपातं सुभगं सुदीदितिं सुप्रतूर्ति मनेहसम्
हे अग्नि देव! आप जल के नप्ता, सुन्दर धन वाले, दीप्तिमान्, निरुपद्रवी एवं संसार के प्राप्तव्य हैं। हम आपके मित्र भूत मनुष्य हैं। अपनी रक्षा के लिए हम आपका वरण करते हैं।[ऋग्वेद 3.9.1]
हे अग्नि देव! तुम महान समृद्धिशाली, अविनाशी प्रकाशमान, उपद्रव पृथक संसार को ग्रहण होने वाले हो। हम मनुष्य तुम्हारे मित्र के समान हैं। तुमको अपने रक्षक रूप वरण करते हैं।
Hey Agni Dev! You are born out of water, possess good wealth, shinning-aurous, free from disturbances and accept the world-universe. We-humans are like your friends. We accept you as our protector.
कायमानो वना त्वं यन्मातॄरजगन्नपः।
न तत्ते अग्ने प्रमृषे निवर्तनं यद्दूरे सन्निहाभवः
हे अग्नि देव! आप समस्त वनों की रक्षा करते हैं। आप मातृ रूप जल में पैठकर शान्त होवें। आपका शान्त भाव सदा नहीं सहा जाता, इसलिए आप दूर में रहकर भी हमारे काठ के बीच उत्पन्न होते है।[ऋग्वेद 3.9.2]
हे अग्नि देव! तुम सभी वनों के रक्षक हो। तुम अपने शरणभूत जलों में निवास कर शांत होओ। तुम अपने शांत स्वभाव से जब उकता जाते हो, तब दूर रहते हुए भी हमारे कोष्ठ में प्रकट होते हो।
Hey Agni Dev! You protect the forests-jungles. You become quite by entering water, which is like your mother. Your inactiveness too can not be accepted, hence you appear in our wood, even though far-away from us.
अति तृष्टं ववक्षिथाथैव सुमना असि। 
प्रप्रान्ये यन्ति पर्यन्य आसते येषां सख्ये असि श्रितः
हे अग्नि देव! स्तोता की अभिलाषा को आप विशेष रूप से वहन करने की इच्छा करते है। आप सन्तुष्ट रहते हैं। आप जिन सोलह ऋत्विकों के साथ मित्रता के साथ रहते हैं, उनमें से कुछ विशेष रूप से होम करने के लिए जाते हैं, अवशिष्ट मनुष्य चारों ओर ही बैठते हैं।[ऋग्वेद 3.9.3]
हे अग्निदेव! वंदना करने वालों की अभिलाषा की पूर्ति का तुम विचार करते हो। तुम हमेशा संतुष्ट रहते हो।
Hey Agni Dev! You are capable of fulfilling-accomplishing the desires of the devotee-one singing hymns in your honour.  You remain satisfied. Some of the Ritviz come specially for Yawan-Yagy, out of the sixteen, with whom you are friendly. Remaining Ritviz sit around, to perform Yagy. 
ईयिवांसमति स्त्रिधः शश्वतीरति सश्चतः।
अन्वीमविन्दन्निचिरासो अद्रुहोऽप्सु सिंहमिव श्रितम्
गुहा स्थित सिंह के सदृश, जल में छिपे हुए तथा शत्रुओं और बहु सेनाओं को हराने वाले अग्नि को द्रोह-रहित और चिरन्तन विश्व देवों ने प्राप्त किया था।[ऋग्वेद 3.9.4]
तुम्हारे मित्र भाव को प्राप्त करने वाले शत्रु और उनकी सेनाओं को हराने वाले अग्नि देव को, शून्य विश्वे देवताओं ने प्राप्त कर लिया।
Vishw Dev, free from enmity attained Agni Dev, who is like the lion inside the cave, hidden under waters and defeats the enemy and his several armies.
ससृवांसमिव त्मनाग्निमित्था तिरोहितम्।
ऐनं नयन्मातरिश्वा परावतो देवेभ्यो मथितं परि
जिस प्रकार से स्वच्छन्दगामी पुत्र को पिता खींच ले आता है, उसी प्रकार मातरिश्वा स्वेच्छा से छिपे हुए और मन्थन द्वारा प्राप्त अग्नि को देवों के लिए लाए थे।[ऋग्वेद 3.9.5]
जैसे स्वेच्छाकारी पुत्र को पिता अपनी ओर आकृष्ट करता है, वैसे ही इच्छापूर्वक समाये हुए अग्निदेव को मथकर मातरिश्वा देवों के लिए ले आये।
Matrishwa brought Agni to the demigods-deities, who had hidden himself of his own, like a father who brings his son who move freely.
प्रा तं त्वा मर्ता अगृभ्णत देवेभ्यो हव्यवाहन।
विश्वान्यद्यज्ञाँ अभिपासि मानुष तव क्रत्वा यविष्ठ्य
मनुष्यों के हितैषी और सदा तरुण हे अग्नि देव! अपनी महिमा से आप सभी यज्ञों का विशेष रूप से पालन करते हैं। इसलिए हे हव्य वाहन! मनुष्यों ने आपको देवीं के लिए ग्रहण किया है।[ऋग्वेद 3.9.6]
जैसे स्वेच्छाकारी पुत्र को पिता अपनी ओर आकृष्ट करता है, वैसे ही इच्छापूर्वक समाये हुए अग्निदेव को मथकर मातरिश्वा देवों के लिए ले आये।हे मनुष्यों के हितसाधक सतत युवा अग्निदेव! तुम अपनी महत्ता से यज्ञ के रक्षक हो। तुम हवि वहन करने वाले को प्राणियों ने देवताओं के लिए चुना है। 
Always young and beneficial to the humans, hey Agni Dev! You support every Yagy due to your glory. Hey carrier of offerings to demigods-deities! You have been selected by the demigods-deities for this job.  
तद्भद्रं तव दंसना पाकाय चिच्छदयति।
त्वां यदग्ने पशवः समासते समिद्धम पिशर्वरी
हे अग्नि देव! चूँकि सायंकाल में आपके सिद्ध होने पर आपके पास समस्त पशु बैठते हैं; इसलिए आपका यह सुन्दर कर्म बालक के तुल्य यज्ञ को भी फल प्रदान करके सन्तुष्ट करता है।[ऋग्वेद 3.9.7]
हे अग्निदेव! सायंकाल में प्रदीप्त होने पर पशु तुम्हारी शरण में बैठ जाते हैं। तुम्हारा उत्तम कर्म बच्चों के समान मूर्ख को भी अभिष्ट प्रदान कर संतुष्ट करता है।
Hey Agni Dev! The animals sits near you in the evening. Hence this gesture of yours, grants the reward like Yagy carried over small scale-comparable to a child.
आ जुहोता स्वध्वरं शीरं पावकशोचिषम्।
आशुं दूतमजिरं प्रत्नमीड्यं श्रुष्टी देवं सपर्यत
पवित्र दीप्ति वाले, काष्ठादि के मध्य सोए हुए और सुकर्मा अग्नि का होम करें। बहु व्याप्त, दूत स्वरूप, शीघ्रगामी, पुरातन स्तुति योग्य और दीप्तिमान अग्नि देव की शीघ्र पूजा करें।[ऋग्वेद 3.9.8]
उन काष्ठादि में सुप्त श्रेष्ठ कार्य वाले तथा शुद्ध दीप्ति वाले अग्निदेव का यजन करो। द्रुतगामी, प्राचीन, सर्व व्याप्त, सन्देशवाहक रूप पूजनीय अग्नि का यजन करो।
Worship-pray to aurous Agni Dev, hidden in the wood, performing auspicious-virtuous deeds. Pray quickly to Agni Dev, who is pervading in multiple objects, acts like an ambassador, eternal-ancient, who is like a demigod-deity. 
त्रीणि शता त्री सहस्राण्यग्निं त्रिंशञ्च देवा नव चासपर्यन्। 
औक्षन्घृतैरस्तृण न्बर्हिरस्मा आदिद्धोतारं न्यसादयन्त
तीन हजार तीन सौ उनतालीस देवों ने अग्नि की पूजा की है, घृत द्वारा उन्हें सिक्त किया है और उनके लिए कुश विस्तृत किया। तदुपरान्त उन्होंने अग्नि को होता मानकर कुशों के ऊपर बैठाया।[ऋग्वेद 3.9.9]
उन अग्निदेव को तैंतीस सौ उन्तालिस देवताओं ने पूजा, घृत से उन्हें सिंचित किया और उनके लिए कुश बिछाये हैं। फिर उन्होंने अग्नि को होता रूप में धारण कर कुश पर प्रतिष्ठित किया।
3,339 demigods worshiped-prayed Agni Dev and satisfied him with Ghee offering him a Kushasan. Later, they recognised Agni Dev as the Ritviz-host and let him be seated over the Kush cushion.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्निछन्द :- उष्णिक्
त्वामग्ने मनीषिणः सम्राजं चर्षणीनाम्। देवं मर्तास इन्धते समध्वरे
हे अग्नि देव! आप प्रजाओं के अधिपति और दीप्तिमान् हैं। आपको बुद्धिमान् मनुष्य उद्दीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.10.1]
हे प्रजा स्वामी अग्निदेव तुम ज्योर्तिमान हो। तुम्हें मेधावीजन चैतन्य करते हैं।
Hey Agni Dev! You are aurous & the leader of populace. Intelligent humans glow-lit you.
त्वां यज्ञेष्वृत्विजमग्ने होतारमीळते। गोपा ऋतस्य दीदिहि स्वे दमे
हे अग्नि देव! आप होता और ऋत्विक् हैं। यज्ञ में अध्वर्यु आपकी प्रार्थना करते हैं। यज्ञ
के रक्षक होकर अपने घर (यज्ञशाला) में दीप्त होवें।[ऋग्वेद 3.10.2]
हे अग्नि देव! तुम होता हो। तुम ऋत्विक हो। अध्वर्युगण अनुष्ठान में तुम्हारा पूजन करते हैं। तुम अनुष्ठान घर में प्रकाशमान होकर अनुष्ठान की सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev! You are the host-Ritviz (organiser of the Yagy). You are prayed-worshiped by the Priests. Become the protector of  the Yagy and glow in the Yagy Shala-site of Yagy.
स घा यस्ते ददाशति समिधा जातवेदसे। सो अग्ने धत्ते सुवीर्यं स पुष्यति
हे अग्नि देव! आप जातवेदा हैं। आपको जो याजकगण समिन्धनकारी हव्य प्रदत्त करते हैं, वह सुवीर्य पुत्र प्राप्त करते और पशु, पुत्र आदि के द्वारा समृद्ध होते हैं।[ऋग्वेद 3.10.3]
हे अग्नि देव! तुम जन्म से ही मेधावी हो। जो यजमान तुमको हवि प्रदान करते हैं, वे श्रेष्ठ वीर्यवान पुत्र ग्रहण करते हुए पशु, पुत्र एवं समृद्धि द्वारा समृद्ध होते हैं।
Hey Agni Dev! You are intelligent since your birth.  The hosts-Ritviz who make offerings to you obtain great-mighty son & cattle and become prosperous-rich.  
स केतुरध्वराणामग्निर्देवेभिरा गमत्। अञ्जानः सप्त होतृभिर्हविष्मते 
यज्ञ के प्रज्ञापक वही अग्नि सात होताओं द्वारा सिक्त होकर, याजकगण के लिए देवों के साथ आवें।[ऋग्वेद 3.10.4]
यज्ञ को प्रकाशित करने वाले अग्नि देव सात होताओं द्वारा घृत से सिंचित किये जाते हैं।
Agni Dev highlighting the Yagy, should accompany demigods-deities being offered Ghee by 7 hosts-Ritviz, priests.
प्र होत्रे पूर्व्यं वचोऽग्नये भरता बृहत्। विषां ज्योतींषि बिभ्रते न वेधसे
हे ऋत्विकों! मेधावी व्यक्तियों का तेज धारित करने वाले संसार के विधाता और देवों
को बुलाने वाले अग्नि को लक्ष्य करके आप लोग महान और प्राचीन वाक्य का सम्पादन करें।[ऋग्वेद 3.10.5]
वे संसार के रचियता देवगणों के आह्वानकर्त्ता अग्नि के लिए प्राचीन एवं महान श्लोकों का संपादन करने वाले हैं।
Hey Ritviz! You should begin-promote the ancient-eternal compositions, addresses to great Agni Dev who invite-invoke the Almighty and the demigods-deities.
अग्निं वर्धन्तु नो गिरो यतो जायत उक्थ्यः। महे वाजाय द्रविणाय दर्शतः 
महान् अन्न एवं धन के लिए अग्नि देव दर्शनीय अर्थात् दर्शन करने योग्य हैं। जिस वाक्य के द्वारा अग्नि देव प्रशंसनीय होते हैं, हमारी वही स्तुति-रूप वाक्य उन्हें वर्द्धित करे।[ऋग्वेद 3.10.6]
अग्नि देव अन्न और धन के लिए दर्शन के योग्य हैं। जिस वाणी से उनकी प्रशंसा होती है, हमारी वही वाणी वंदना रूप में उन अग्नि देव को बढ़ाएँ।
Presence of Agni Dev is essential for the sake of food grains and wealth. The compositions, which praise Agni Dev, should be used as prayers-hymns for his growth. 
अग्ने यजिष्ठो अध्वरे देवान्देवयते यज। होता मन्द्रो वि राजस्यति स्त्रिधः
हे अग्नि देव! आप यज्ञ कर्ताओं में श्रेष्ठ है। यज्ञ में याजकगणों के लिए देवों का याग करें। आप होता और यजमानों को हर्ष देते हैं। आप शत्रुओं को पराजित कर शोभा युक्त होते हैं।[ऋग्वेद 3.10.7]
हे अग्नि देव! अनुष्ठानकर्त्ताओं में तुम महान हो। यजमानों के लिए अनुष्ठान में देवों के प्रति यजन करो। तुम यजमानों को सुख प्रदान करने वाले देव रूप हो, शत्रुओं को हराकर सुशोभित होते हो।
Hey Agni Dev! You are the best amongest the organisers-performers of the Yagy. Conduct Yagy in the favour-honour of the demigods-deities for the sake of hosts-Ritviz. You fill the hosts & the Ritviz with happiness-pleasure. You attain glory by defeating the enemy.  
स नः पावक दीदिहिं द्यमदस्मे सुवीर्यम्। भवा स्तोतृभ्यो अन्तमः स्वस्तये
हे पावक! आप हमें कान्तिवाला और शोभन शक्तिवाला धन प्रदान करें। स्तोताओं के कल्याण के लिए उनके पास जावें।[ऋग्वेद 3.10.8]
 हे अग्निदेव! तुम पवित्र हो। हमको अत्यधिक सुशोभित, दमकता हुआ यश देकर वंदना करने वालों का मंगल करने के लिए उन्हें प्राप्त हो।
Hey Agni-Pavak! Make us aurous and grant us the wealth which deserve display. Visit the devotees-reciters of Strotr. 
तं त्वा विप्रा विपन्यवो जागृवांसः समिन्धते। हव्यवाहममर्त्यं सहोवृधम् 
हे अग्नि देव! हव्य वाहक, अमर और मंथन रूप बल द्वारा आप वर्द्धमान हैं। प्रबुद्ध मेधावी स्तोता लोग आपको भली-भाँति उद्दीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.10.9] 
हे अग्निदेव! तुम हवि वाहक हो। मंथन रूप बल से बढ़े हुए हो। अत्यन्त विद्वान वंदना करने वाले तुम्हें उत्तम प्रकार चैतन्य करते हैं।
Hey Agni Dev! You are immortal, carrier of offerings & vast due to the impact of strength obtained by churning. The enlightened-intelligent Stota-reciters glow you properly.
 ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्निछन्द :- गायत्री
अग्निर्होता पुरोहितोऽध्वरस्य विचर्षणिः। स वेद यज्ञमानुषक्
अग्नि देव होता, पुरोहित और यज्ञ के विशेष द्रष्टा हैं। वे यज्ञ के स्वरूप को क्रम बद्ध जानते हैं।[ऋग्वेद 3.11.1]
अग्नि देव यज्ञ के होता, पंडित और विशेष द्रष्टा हैं। वे अनुष्ठान कार्य के पूर्ण ज्ञाता हैं।
Agni Dev is the host-Ritviz, priest and the enlightened viewer of the Yagy. He know the systematic method-procedure of the Yagy. 
स हव्यवाळमर्त्य उशिग्दूतश्चनोहितः। अग्निर्धिया समृण्वति
हव्य वाहक, अमर, हव्याभिलाषी, देवों के दूत और अन्न प्रिय अग्नि देव प्रज्ञावान् हो रहे हैं।[ऋग्वेद 3.11.2]
वे हवि वहन करने वाले, अविनाशी, देवों के दूत, अग्नि रूप हवियों की इच्छा वाले, अग्निदेव अत्यन्त मेधावी हैं।
Agni Dev is desirous & carrier of the offerings, ambassador of the demigods-deities, likes food grains and is intelligent. 
अग्निर्धिया स चेतति केतुर्यज्ञस्य पूर्व्यः। अर्थं ह्यस्य तरणि
हे यज्ञ के कर्त्ता स्वरूप और प्राचीन अग्नि देव! प्रज्ञा के बल से सब कुछ जानते हैं। इन अग्नि देव का तेज अन्धकार का विनाश करता है।[ऋग्वेद 3.11.3]
अनुष्ठान में कर्त्ता रूप, प्राचीन अग्नि अपनी मति की शक्ति से समस्त कार्यों के ज्ञाता हैं। इनका तेज अंधेरे को नष्ट करने में समर्थवान हो।
Hey patron of the Yagy & ancient-eternal Agni Dev! You know every thing on the strength of intelligence. The aura of Agni Dev removes darkness.
अग्निं सूनुं सनश्रुतं सहसो जातवेदसम्। वह्निं देवा अकृण्वत
हे बल के पुत्र! सनातन कहकर प्रसिद्ध तथा जातवेदा अग्नि को देवों ने हव्य वाहक नियुक्त किया है।[ऋग्वेद 3.11.4]
जातवेदा :: अग्नि, चित्रक वृक्ष, चीते का पेड़, अंतर्यामी, परमेश्वर, सूर्य; fire, Chitrak tree, God, omniscient.
प्राचीन रूप में विख्यात जन्म से ही मतिवान, शक्ति के पुत्र उन अग्नि देव को देवताओं ने हवि ग्रहण करने वाला बनाया। 
Hey the son of strength-might! The demigods-deities have appointed you as the carrier of offerings recognising you as omniscient, ancient-eternal.
अदाभ्यः पुरएता विशामग्निर्मानुषीणाम्। तूर्णी रथः सदा नवः
हे मनुष्यों के नेता! शीघ्रकारी रथ के समान और सदा नवीन अग्नि देव की कोई हिंसा नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 3.11.5]
मनुष्य के नायक जल्दी से कर्म करने वाले, रथ के समान और सतत युवा अग्नि देव की हिंसा करने में कोई सक्षम नहीं है। 
Hey leader-well wisher of the humans! No one can harm always new Agni Dev who is comparable to fast moving charoite.
साह्वान्विश्वा अभियुजः क्रतुर्देवानाममृक्तः अग्निस्तुविश्रवस्तमः
सम्पूर्ण शत्रु सेना के विजेता, शत्रुओं द्वारा अवध्य और देवों के पोषण कर्ता अग्नि देव यथेष्ट मात्रा में विविध अन्नों से युक्त है।[ऋग्वेद 3.11.6]
शत्रु की समस्त सेना को हराने वाले, शत्रुओं द्वारा अवर्धनीय तथा देवताओं को पुष्ट करने वाले अग्नि देव अन्न से परिपूर्ण हैं।
The defeater of the enemy armies Agni Dev, who can not be killed by the enemy, nourishing the demigods-deities, possess sufficient quantity of food grains.
अभि प्रयांसि वाहसा दाश्वाँ अश्नोति मर्त्यः। क्षयं पावकशोचिषः
हव्य दाता मनुष्य, हव्य वाहक अग्नि द्वारा सम्पूर्ण अन्न प्राप्त करता है। ऐसा मनुष्य पवित्र कारक और दीप्ति विशिष्ट अग्नि देव से घर प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 3.11.7]
हवि प्रदान करने वाला मनुष्य, हवि वहन करने वाले देव, अग्नि से समस्त अन्नों को प्राप्त करता है। वह शुद्ध करने वाली ज्योतिवान अग्नि को सुन्दर-वास स्थान ग्रहण कराते हैं। 
One who makes offerings, gets all sorts of food grains from Agni Dev.  He obtains house from purifying and aurous Agni Dev. 
परि विश्वानि सुधिताग्नेरश्याम मन्मभिः विप्रासो जातवेदसः 
हम मेघावी और जातवेदा अग्नि देव के स्तोत्रों द्वारा समस्त अभिलषित धन प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 3.11.8]
स्वयं भू विद्वान, अग्नि देव की वंदना करते हुए हम सम्पूर्ण इच्छित धनों को प्राप्त करने वाले हों।
Let us get desired wealth-money from intelligent and omniscient Agni Dev by the recitation of Strotr-hymns. 
अग्ने विश्वानि वार्या वाजेषु सनिषामहे। त्वे देवास एरिरे
हे अग्रि देव! हम सम्पूर्ण अभिलषणीय धन प्राप्त कर सकें। देवता लोग आपके ही भीतर प्रविष्ट हुए है।[ऋग्वेद 3.11.9]
हे अग्नि देव! हम सभी इच्छित धनों को प्राप्त करें, सभी देवता तुम्ही में वास हैं।
Hey Agni Dev! Let us obtain desired wealth-riches. The demigods-deities reside in you. 
ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन,
इन्द्राग्नी आ गतं सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम्। अस्य पातं धियेषिता
हे इन्द्र और अग्नि देव! स्तुति-द्वारा आहूत होकर आप लोग स्वर्ग से तैयार किए हुए और वरणीय इस सोमरस को लक्ष्य कर पधारें। हमारी भक्ति के कारण आकर इस सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.12.1]
हे इन्द्राग्ने! श्लोकों द्वारा पुकारे जाने पर तुम अद्भुत वरण करने योग्य सोम के लिए यहाँ पर पधारो। हमारी तपस्या से हर्षित हुए इस सोम रस का पान करो।
Hey Indr & Agni Dev! On being addressed with the help of prayers, you should target this Somras, extracted in the heaven and drink it to oblige us due to our devotion. 
इन्द्राग्नी जरितुः सचा यज्ञो जिगाति चेतनः। अया पातमिमं सुतम्
हे इन्द्र और अग्नि देव! स्तोता का सहायक, यज्ञ का साधक और इन्द्रियों का हर्ष वर्द्धक सोम प्रस्तुत है। इस अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.12.2]
हे इन्द्राग्ने। वंदना करने वाले की सहायता करने वाला, अनुष्ठान की साधन भूत इन्द्रियों को पुष्ट करने वाला सोम प्रस्तुत है। निचोड़े हुए सोम रस का पान करो।
Hey Indr & Agni Dev! Somras that helps the host, Yagy and the senses is ready to be served. Drink this Somras. 
इन्द्रमग्निं कविच्छदा यज्ञस्य जूत्या वृणे। ता सोमस्येह तृम्पताम्
यज्ञ के साधक सोम द्वारा प्रेरित होकर स्तोताओं के सुख दाता इन्द्र और अग्नि देव की मैं सेवा करता हूँ। वे इस यज्ञ में सोमपान करके तृप्त होवें।[ऋग्वेद 3.12.3]
यज्ञ का साधन करने वाले सोम के द्वारा प्रेरणा प्राप्त कर स्तुति करने वालों को सुखी बनाने वाले, इन्द्र और अग्नि का मैं पूजन करता हूँ। ये दोनों इस यज्ञ में सोम रस का पान कर संतुष्ट हों।
I serve Indr & Agni Dev, who grant comforts-pleasure to the recitators of hymns, inspired by Somras. Consume the extracted Somras. 
तोशा वृत्रहणा हुवे सजित्वानापराजिता। इन्द्राग्नी वाजसातमा
मैं शत्रु नाशक, वृत्रहन्ता, विजयी, अपराजिता और प्रचुर परिमाण में अन्न देने वाले इन्द्र और अग्नि देव को मैं बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 3.12.4]
शत्रु का पतन करने वाले, वृत्र-संहारक, विजयशील, किसी के द्वारा न जीते जाने वाले और अनेक या अन्न प्रदान करने वाले इन्द्राग्नि का आह्वान करता हूँ।
I invoke Indr & Agni Dev who destroy the enemy, slayed Vratr, victorious, undefeated and grants unlimited food grains.
प्र वामर्चन्त्युक्थिनो नीथाविदो जरितारः। इन्द्राग्नी इष आ वृणे
हे इन्द्र और अग्रि देव! मन्त्र शाली होकर लोग आपकी पूजा करते हैं। स्तोत्र ज्ञाता स्तोता लोग आपकी अर्चना करते हैं। अन्न प्राप्ति के लिए मैं आपकी पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 3.12.5] 
हे इन्द्राग्ने! स्तोतागण मंत्र द्वारा तुम्हें पूजते हैं। श्लोकों के ज्ञाता मेधावीजन तुम्हारी अर्चना करते हैं। अन्न प्राप्ति के लिए मैं तुम्हारी उपासना करता हूँ।
Hey Indr & Agni Dev! The devotees pray-worship you with the Mantr-sacred Mantr. The expert in Strotr, recite Strotr in your honour. I pray you for the sake of food grains.  
इन्द्राग्नी नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतम्। साकमेकेन कर्मणा
हे इन्द्र और अग्नि देव! आप लोगों ने एक ही बार की चेष्टा से दासों के नब्बे नगरों को एक साथ कम्पायमान किया था।[ऋग्वेद 3.12.6]
हे इन्द्राग्ने! तुम प्रथम चेष्टा में ही असुरों के नब्बे नगरों को एक साथ कंपित कर दिया।
Hey Indr & Agni Dev! You shacked-trembled 90 cities of the demons in single attempt. 
इन्द्राग्नी अपसस्पर्युप प्र यन्ति धीतयः। ऋतस्य पथ्या३ अनु
हे इन्द्र और अग्नि देव! स्तोता लोग यज्ञ के मार्ग का लक्ष्य करके हमारे कर्म के चारों ओर आते हैं।[ऋग्वेद 3.12.7]
हे इंद्राग्ने! वंदना करने वाले विद्वान यज्ञ के पथ पर चलते हुए हमारे कर्मों को विस्तृत करते हैं। 
Hey Indr & Agni Dev! The recitators of hymns target the goal of our Yagy and extend-enhance our deeds Y(agy Karm).
इन्द्राग्नी तविषाणि वां सधस्थानि प्रयांसि च। युवोरप्तूर्यं हितम्
हे इन्द्र और अग्नि देव! आपका बल और अन्न आप दोनों के मध्य में एक साथ ही है। वृष्टि प्रेरण कार्य आप दोनों के बीच ही निहित है।[ऋग्वेद 3.12.8]
हे इन्द्राग्ने ! तुम दोनों की शक्ति और अन्न एक सा ही है। वृष्टि को प्रेरित करने वाला कार्य तुम्हीं दोनों में विद्यमान हैं।
Hey Indr & Agni Dev! You have combined strength and eatables. Both of you perform-conduct the job of producing rains. 
इन्द्राग्नी रोचना दिवः परि वाजेषु भूषथः। तद्वां चेति प्र वीर्यम्
हे इन्द्र और अग्नि देव! आप स्वर्ग को प्रकाशित करने वाले हैं। आप युद्ध में सभी जगह विभूषित होवें आपकी सामर्थ्य उस युद्ध-विजय को भली-भाँति विदित करती है।[ऋग्वेद 3.12.9]
हे इन्द्राग्ने! तुम अद्भुत संसार को शोभायमान करते हो। संग्राम में होने वाली विजय तुम्हारी ही शक्ति का फल है।
Hey Indr & Agni Dev! You light the heavens. You should gain honours in every war-battle. Your strength-might is reflected in the victory of the war.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- ऋषभ, विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्निछन्द :- अनुष्टुप्।
प्र वो देवायाग्नये बर्हिष्ठमर्चास्मै। 
गमद्देवेभिरा स नो यजिष्ठो बर्हिरा सदत्॥
हे अध्वर्युओं! अग्नि देव को लक्ष्य करके यथेष्ट प्रार्थना करें। देवों के साथ वह हमारे पास आवें और याजक श्रेष्ठ अग्नि कुश पर बैठें।[ऋग्वेद 3.13.1]
हे अध्वर्युओ! अग्निदेव के लिए प्रार्थना करो। यह अग्नि देवों से युक्त पधारे। यजन करने वालों में सर्वोपरि अग्नि देव कुश को आसन पर विराजमान हों। 
Hey priests! Let us perform Yagy for the sake of Agni Dev. Let him come to us with the demigods-deities. Let Agni Dev, best amongest the devotees, occupy the best cushion.  
ऋतावा यस्य रोदसी दक्षं सचन्त ऊतयः। 
हविष्मन्तस्तमीळते तं सनिष्यन्तोऽवसे
जिनके वशीभूत द्यावा-पृथ्वी हैं, जिनके बल की सेवा देवता लोग करते हैं, उनका संकल्प व्यर्थ नहीं होता।[ऋग्वेद 3.13.2]
आकाश जिसके आधीन है, देवगण जिनकी शक्ति की सेवा करते हैं, उन अग्नि का व्रत निरर्थक नहीं होता।
Who is served by the demigods-deities and who controls the earth & sky, prayers-worship meant for him never goes waste.  
स यन्ता विप्र एषां स यज्ञानामथा हि षः। 
अग्निं तं वो दुवस्यत दाता यो वनिता मघम्
वे मेधावी अग्नि ही इन याजक गणों के प्रवर्त्तक हैं। वे यज्ञ के प्रवर्तक हैं। वे सभी के प्रवर्तक है। अग्नि देव कर्म फल और धन के दाता हैं। आप उनकी सेवा करें।[ऋग्वेद 3.13.3]
मेधावी अग्निदेव यजमानों को शिक्षा देने वाले हैं। वे पुनः पुनः यह कर्म करते हैं। वे सबको लगातार कर्मों में लगाते हैं। वे प्राणियों को उनके कर्मों का फल देते हैं। वे धन प्रदान करते हैं। उन अग्नि देव की सेवा करनी चाहिये।
Intellectual Agni Dev is the mentor of the people performing Yagy. Agni Dev grants the reward of deeds and wealth. He should be served-worshiped. 
स नः शर्माणि वीतयेऽग्निर्यच्छतु शंतमा। 
यतो नः प्रुष्णवद्वसु दिवि क्षितिभ्यो अप्स्वा॥
वे अग्नि देव! हमारे भोग के लिए अतीव सुखकर घर प्रदान करें। समृद्धि-युक्त पृथ्वी आकाश और स्वर्ग लोक का धन अग्नि देव के पास से हमारे पास ले आवें।[ऋग्वेद 3.13.4]
वे अग्निदेव हमारे भोगने के योग्य महान धन और गृह प्रदान करें। अम्बर-धरा और अंतरिक्ष श्रेष्ठ अग्नि में संयुक्त हैं। वह हमको ग्रहण होता है।
Hey Agni Dev! Grant us an extremely comfortable house. Let Agni Dev bring the wealth of the earth, sky & heavens to us. 
दीदिवांसमपूर्व्यं वस्वीभिरस्य धीतिभिः। 
ऋक्वाणो अग्निमिन्धते होतारं विश्पतिं विशाम्
स्तोता लोग दीप्तिमान्, प्रतिक्षण नवीन, देवों के आह्वानकारी और प्रजाओं के पालक अग्नि देव को श्रेष्ठ स्तुति-द्वारा उद्दीपित करते हैं।[ऋग्वेद 3.13.5]
वंदना करने वाले मेधावीजन, प्रकाशमान नये देवों को पुकारने वाले, प्रजाओं का पोषण करने वाले अग्नि देव को मनोरम श्लोकों द्वारा प्रदीप्त करते हैं। 
The recitators of hymns keep on glowing-burning of fire-Agni Dev, who invokes the demigods-deities and nourish the living beings; with the help of best Strotr-payers.
उत नो ब्रह्मन्नविष उक्थेषु देवहूतमः। 
शं नः शोचा मरुद्धोऽग्ने सहस्रसातमः
हे अग्नि देव! स्तोत्र के समय में हमारी रक्षा करें। आप देवों के मुख्य आह्नानकर्ता हैं। मन्त्रोच्चारण-काल में हमारी रक्षा करें। आप सहस्र धनों के दाता है। मरुत लोग आपको वर्द्धित करते हैं। आप हमारे सुख की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 3.13.6]
हे अग्ने स्तुति के समय हमारी रक्षा करो। तुम सहस्त्र संख्यक धन वाले हो, मरुद्गण तुम्हें बढ़ाते हैं। तुम हमारे सुख में वृद्धि करो। 
Hey Agni Dev! Protect us, while we recite Strotr-hymns. You are the chief amongest those who invoke the demigods-deities. You grant us thousands kinds of wealth. Marud Gan support-encourage, promote you. Boost our comforts-pleasures. 
नू नो रास्व सहस्रवत्तोकवत्पुष्टिमद्वसु। 
द्युमदग्ने सुवीर्यं वर्षिष्ठमनुपक्षितम् 
हे अग्नि देव! आप हमें पुत्र-युक्त, पुष्टि कारक, दीप्तिमान्, सामर्थ्यशाली, अत्यधिक और अक्षय्य सहस्र संख्यक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.13.7]
हे अग्नि देव! तुम हमको पुत्र सहित पालने करने योग्य, ऐश्वर्य देने वाला, सभी कार्यों में समर्थ, क्षय न होने वाला बहुत सा या सहस्त्र संख्या वाला धन दो।
Hey Agni Dev! Grant us thousands types-kinds of imperishable wealth which nourishes us, can shine-glow us, grant us might, along with  son.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- ऋषभ, विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्निछन्द :- त्रिष्टुप्
आ होता मन्द्रो विदथान्यस्थात्सत्यो यज्वा कवितमः स वेधाः।
विद्युद्रथः सहसपुत्रो अग्निः शोचिष्केशः पृथिव्यां पाजो अश्रेत्
देवों को बुलाने वाले, स्तोताओं के आनन्द वर्द्धक, सत्य प्रतिज्ञ, यज्ञकारी, अतीव मेघा एवं संसार के विधाता अग्नि देव हमारे यज्ञ में अवस्थान करते हैं। उनका रथ द्युतिमान् है। उनकी शिखा उनका केश है। वे बल के पुत्र हैं। वे इस पृथ्वी पर प्रभा को प्रकट करते हैं।[ऋग्वेद 3.14.1]
प्रभा :: प्रकाश, कांति, शुभ्रता, दीप्ति, ज्वाला, लौ, प्रभा, चमक; effulgence, blaze, radiance.
प्रकट करना :: जताना, उधेड़ना, प्रकाशित करना, फैलाना, खोलना, प्रत्यक्ष करना, प्रकाशित करना; evince, reveal, unfold. 
देवों का आह्वान करने वाले, वंदना करने वालों का सुख वृद्धि करने वाले, सत्यनिष्ठ यज्ञ का कार्य करने वाले, अत्यधिक बुद्धिमान, संसार के स्वामी, अग्निदेव हमारे यज्ञ में पधारते हैं। उनका रथ ज्योर्तिवान है। उनकी शिखा ही केशरूप हैं। वे शक्ति के पुत्र पृथ्वी पर अपना तेज रचित करते हैं।
Agni Dev invokes the demigods-deities, grant pleasure to the recitators of hymns, truthful, extremely intelligent, the master of the universe visits our Yagy. His charoite possess golden hue. His flames are his hair locks. He is born of might-Bal. He reveals radiance over the earth. 
अयामि ते नमउक्तिं जुषस्व ऋतावस्तुभ्यं चेतते सहस्वः।
विद्वों आ वक्षि विदुषो नि षत्सि मध्य आ बर्हिरूतये यजत्र
हे यज्ञवान् अग्नि देव! आपको लक्ष्य करके नमस्कार करता हूँ। आप बलवान् और कर्म ज्ञापक है। आपको लक्ष्य करके नमस्कार किया जाता है, उसे ग्रहण अर्थात् स्वीकार करें। हे यजनीय! आप विद्वान हैं; विद्वानों को लेकर आयें। हमें आश्रय देने के लिए कुश पर बैठें।[ऋग्वेद 3.14.2]
हे यज्ञ युक्त अग्निदेव! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। तुम शक्तिशाली तथा कर्मों को प्रकट करने वाले हो। तुम्हारे प्रति जो प्रणाम किया है, उसे ग्रहण करो। हे यज्ञ योग्य अग्निदेव! तुम बुद्धिमान हो। विद्वानों के साथ आकार हमें आश्रय देने देने के लिए कुश पर बैठें।
Hey Agni Dev, associated with the Yagy! I salute you. You are mighty and working. Accept our salutations. Hey honourable-revered! You are enlightened. bring learned-scholars with you. Hey asylum granting, occupy the Kush Asan-cushion.
द्रवतां त उषसा वाजयन्ती अग्ने वातस्य पथ्याभिरच्छ।
यत्सीमञ्जन्ति पूर्व्यं हविर्भिरा वन्धुरेव तस्थतुर्दुरोणे
अन्न सम्पादक उषा और रात्रि आपको लक्ष्य करके जाते हैं। हे अग्नि देव! वायु मार्ग से आप उनके सम्मुख जायें, क्योंकि ऋत्विक् लोग हव्य द्वारा पुरातन अग्नि को भली-भाँति सिक्त करते है। युगद्वय के तुल्य परस्पर संसक्त उषा और रात्रि हमारे घर में बार-बार आकर निवास करें।[ऋग्वेद 3.14.3]
तुम वायु मार्ग से उनको ग्रहण होओ। ऋत्विग्गण उस प्राचीन अग्नि को हवि द्वारा भली-भांति सींचते हैं। दम्पत्ति के समान उषा और रात्रि बारबार आते हुए हमारे घरों में निवास करें। परस्पर संसक्त उषा और रात्रि तुम्हें प्राप्त होती हैं।
The growers-nourishers of food grains Usha-day break & Ratri-night target you to reach their goal. Hey Agni Dev! You should follow the arial route to reach them, since the Ritviz satisfy the ancient-eternal Agni-fire. Let the companions Usha and Ratri come to our house again & again. 
मित्रश्च तुभ्यं वरुणः सहस्वोऽग्ने विश्वे मरुतः सुम्नमर्चन्। 
यच्छोचिषा सहसस्पुत्र तिष्ठा अभि क्षितीः प्रथयन्त्सूर्यो नॄन्
हे बलवान् अग्नि देव! मित्र, वरुण और समस्त देवता आपको लक्ष्य करके स्तोत्र करते है; क्योंकि हे बल के पुत्र अग्नि देव! सूर्य आप है। मनुष्यों की पथ-प्रदर्शक किरणों को फैलाकर प्रभा में समान स्थित हैं।[ऋग्वेद 3.14.4]
हे शक्तिशाली अग्निदेव! मित्र, वरुणादि सभी देवता तुम्हारे प्रति स्तोत्र उच्चारण करते हैं, क्योंकि तुम शक्ति के पुत्र तथा साक्षात् सूर्य हो। तुम अपना पथ-प्रदर्शन करने वाली रश्मियों को विस्तृत कर आलोक में स्थित रहते हो।
Hey mighty-powerful Agni Dev! Mitr, Varun and all demigods-deities address you, while reciting the Strotr-hymns, since you are the son of Power-Bal. You are Sun. You are established in the aura (light, glow, rays) to guide the humans.
वयं ते अद्य ररिमा हि काममुत्तानहस्ता नमसोपसद्य।
यजिष्ठेन मनसा यक्षि देवानस्त्रेधता मन्मना विप्रो अग्ने
आज हाथ उठाकर अग्नि देव हम आपको शोभन हव्य प्रदान करेंगे। आप मेधावी हैं। नमस्कार से प्रसन्न होकर आप अपने मन में यज्ञाभिलाषा करते हुए प्रभूत स्तोत्रों द्वारा देवों की पूजा करें।[ऋग्वेद 3.14.5]
हे अग्निदेव! हम अपने हाथों से आज तुम्हें श्रेष्ठ हवि प्रदान करेंगे। तुम मेधावी और नमस्कार से हर्षित हुए यज्ञ की इच्छा करते हो। हमारे द्वारा देवों की उपासना करो।
Today, we will make beautiful offering to you by raising our hands. You are intelligent. Having been pleased by salutations, worship the demigods-deities in your innerself, with the help of powerful Strotr-hymns.
त्वद्धि पुत्र सहसो वि पूर्वीर्देवस्य यन्त्यूतयो वि वाजाः। 
त्वं देहि सहस्रिणं रयिं नोऽद्रोघेण वचसा सत्यमग्ने
हे बल के पुत्र अग्नि देव! आपके पास से होकर याजकगण के पास प्रभूत रक्षण और अन्न प्राप्त होता है। प्रिय वचन द्वारा आप हमें अचल और सहस्र-संख्यक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.14.6]
हे शक्ति से उत्पन्न अग्नि देव! तुम्हारी रक्षण शक्ति यजमान को ग्रहण होती है। तुम्हीं से वह अन्न ग्रहण करता है। तुम हमारे प्रिय श्लोकों से हर्षित हुए अनेकों संख्या वाला धन प्रदान करो।
Hey the son of might Agni Dev! The desirous get asylum-protection and food grains in your company. Having been pleased with our prayers-worship dear to you; you grant us unlimited wealth.  
तुभ्यं दक्ष कविक्रतो यानीमा देव मर्तासो अध्वरे अकर्म।
त्वं विश्वस्य सुरथस्य बोधि सर्वं तदग्ने अमृत स्वदेह
हे समर्थ, सर्वज्ञ और दीप्तिमान् अग्नि देव! हम मनुष्य अर्थात् मानव हैं। हम आपको उद्देश्य करके यज्ञ में यह जो हव्य देते हैं, वह सब हव्य आप आस्वादित करो और समस्त याजकगणों की रक्षा करने के लिए जागृत होवें।[ऋग्वेद 3.14.7]
हे अग्निदेव! तुम समर्थ, सर्वत्र और प्रकाशमान हो। हम प्राणी तुम्हारे लिए जो हवि यज्ञ में देते हैं उस हवि को तुम स्वादिष्ट बनाओ और सभी यजमानों की रक्षा हेतु चैतन्य होओ।
Hey capable, enlightened-all knowing, shinning Agni Dev! We are humans. We make offerings in the Yagy for you. Make these offerings tasty and be alert to protect all the desirous-Ritviz. 
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- उत्कील, कात्य, देवता :- अग्निछन्द :- त्रिष्टुप्
वि पाजसा पृथुना शोशुचानो बाधस्व द्विषो रक्षसो अमीवाः। 
सुशर्मणो बृहतः शर्मणि स्यामग्नेरहं सुहवस्य प्रणीतौ
हे अग्नि देव! विस्तीर्ण तेज के द्वारा आप अतीव प्रकाशवान् हैं। आप शत्रुओं और दुष्ट राक्षसों का विनाश करें। अग्रि देव उत्कृष्ट, सुख दाता, महान् और उत्तम आह्वान वाले हैं। मैं उनके ही रक्षण में रहूँगा।[ऋग्वेद 3.15.1]
हे अग्ने! विशाल तेज वाले तुम अत्यन्त प्रकाशमान हो। तुम शत्रुओं और दुष्ट राक्षसों का पतन करो। सर्वश्रेष्ठ महान, सुख दाता और श्रेष्ठ आह्वान से परिपूर्ण हो। मैं तुम्हारी शरण में आने का इच्छुक हूँ।
Hey Agni Dev! You are possess extreme energy-aura. You kill the enemy and wicked demons. Agni Dev is great, grant excellent comforts-pleasure and has to be invoked. I would seek asylum, protection, shelter under him.
त्वं नो अस्या उषसो व्युष्टौ त्वं सूर उदिते बोधि गोपाः। 
जन्मेव नित्यं तनयं जुषस्व स्तोमं मे अग्ने तन्वा सुजात
हे अग्नि देव! आप उषा के प्रकट होने और सूर्य के उदित होने पर हमारी रक्षा के लिए जागृत होवें। हे अग्नि देव! आप स्वयम्भू हैं। जिस प्रकार से पिता पुत्र को ग्रहण करता है, उसी प्रकार आप हमारी स्तुतियों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 3.15.2]
हे अग्नि देव! तुम उषा के प्रकट होने के पश्चात सूर्योदय काल में हमारी रक्षा के लिए प्रज्जवलित हो। तुम स्वयं प्रकट होने वाले हो। पिता के पुत्र को प्राप्त करने के समान तुम भी हमारी वंदना को प्राप्त करो।
Hey Agni Dev! You should be ready for our protection with the day break and Sun rise. Hey Agni Dev! You evolve of your own. You accept our requests-prayers as a father does for his son.
त्वं नृचक्षा वृषभानु पूर्वी: कृष्णास्वग्ने अरुषो वि भाहि। 
वसो नेषि च पर्षि चात्यंहः कृधी नो राय उशिजो यविष्ठ
हे अभीष्ट वर्षक अग्नि देव! आप मनुष्यों के दर्शक है। आप अँधेरी रात में अधिक दीप्तिमान् होते है। आप बहुत ज्वाला विस्तृत करते हैं। हे पिता! हमें कर्म फल प्रदान करें। हमारे पाप का निवारण करें। हे युवा अग्नि देव! आप हमें धनाभिलाषी करें।[ऋग्वेद 3.15.3]
हे अग्नि देव! तुम अभिलाषीवर्षक हो। मनुष्यों को देखने वाले हो। तुम अंधकार से परिपूर्ण रात्रि में अधिक प्रकाशमान होते हो। तुम्हारी अनेकों ज्वालाएँ हैं। तुम पितृरूप से हमको कार्यों का परिणाम देते हो। हमारे पाप दूरस्थ करते हुए धन अभिलाषा वाले बनाओ।
Hey accomplishment granting Agni Dev! You keep an eye over the humans. You shine more during darkness. Your flames are wide-vast. Hey father! Grant us the reward of our deeds-endeavours. Eliminate our sins. Hey young Agni Dev! Generate desire for wealth in us. 
अषाळहो अग्ने वृषभो दिदीहिं पुरो विश्वाः सौभगा संजिगीवान्। 
यज्ञस्य नेता प्रथमस्य पायोर्जातवेदो बृहतः सुप्रणीते
हे अग्नि देव! शत्रु लोग आपको परास्त नहीं कर सकते। आप अभीष्टवर्षक है। आप समस्त शत्रु-पुरी और धन जीत करके प्रदीप्त होवें। हे सुप्रणीत और जातवेदा अग्नि देव! आप महान् आश्रयदाता और प्रथम यज्ञ के निर्वाहक होवें।[ऋग्वेद 3.15.4]
हे अग्नि देव! तुम्हें शत्रु परास्त नहीं कर सकते। तुम अभिष्टों की वर्षा करने वाले हो। तुम शत्रुओं की नगरी को धन सहित जीतकर प्रकाशित होते हो। तुम जन्म से ही मेधावी, उत्तम एवं आश्रय प्रदान करने वाले हो। तुम हमारे यज्ञ के सम्पादन करने वाले बनो। 
Hey Agni Dev! The enemy can not defeat you. You accomplish the desires. You win the territories of the enemy with their  wealth and shine. You are enlightened since birth. You should grant us asylum and accomplish our Yagy.
अच्छिद्रा शर्म जरितः पुरूणि देवाँ अच्छा दीद्यानः सुमेधाः। 
रथो न सस्निरभि वक्षि वाजमग्ने त्वं रोदसी नः सुमेके
हे जगज्जीर्ण कर्ता अग्नि देव! आप सुमेधा और दीप्तिमान् हैं। देवों के लिए आप समस्त कर्मों को छिद्र-रहित करें। हे अग्नि देव! आप यहीं ठहरकर रथ के तुल्य देवों को लक्ष्य करके हमारा हव्य वहन करें। आप द्यावा-पृथ्वी को उत्तम रूप से युक्त करें।[ऋग्वेद 3.15.5]
हे अग्नि देव! तुम संसार को रोज प्राचीन बनाते हो। तुम महान बुद्धि वाले और ज्योर्तिमान हो। देवताओं के लिए तुम हमारे समस्त कार्यों को निर्दोष बनाओ। तुम रथ के समान यहाँ ठहरकर देवताओं के लिए हमारी हवियाँ पहुँचाओ। क्षितिज और धरा को हमारे अनुष्ठान से व्याप्त करो।
Hey Agni Dev! You torn-decay the world everyday. You possess the great intelligence and is aurous. Make all endeavours-Yagy meant for the demigods-deities free from defects. Grant better shape to the earth and the sky. 
प्र पीपय वृषभ जिन्व वाजानग्ने त्वं रोदसी नः सुदोघे। 
देवेभिर्देव सुरुचा रुचानो मा नो मर्तस्य दुर्मतिः परि ष्ठात्
हे अभीष्टवर्षक अग्नि देव! आप हमें वर्द्धित करें। हमें अन्न प्रदत्त करें। सुन्दर दीप्ति द्वारा आप सुशोभित होकर देवों के साथ हमारी द्यावा-पृथ्वी को दोहन के योग्य बनावें। जिससे मनुष्यों की दुर्बुद्धि हमारे पास न आवें।[ऋग्वेद 3.15.6]
हे अग्नि देव! तुम अभिष्टों की वर्षा करने वाले हो। तुम हमको अन्न प्रदान करो। श्रेष्ठ प्रकाश द्वारा शोभायमान तुम देवताओं के साथ मिलकर पृथ्वी-आकाश को अन्न दोहन के उपयुक्त करो। दुष्ट बुद्धि कभी भी हमारे पास न आने पाये।
Hey desire accomplishing Agni Dev! Grow us, make us progressive. Grant us food grains. Make the earth suitable for growing food grains in association with the demigods-deities. Donot let the wicked-viceful come to us.
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध। 
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे
हे अग्नि देव! आप स्तोता को अनेक कर्मों की कारणीभूत और धन प्रदात्री भूमि सदा प्रदत्त करें। हमें वंशवर्द्धक और सन्तति-जनक एक पुत्र प्राप्त है। हे अग्नि देव! हमारे प्रति आपका (यह) अनुग्रह है।[ऋग्वेद 3.15.7]
हे अग्नि देव! तुम असंख्य कार्यों के कारणभूत, धन की वर्षा करने वाली पृथ्वी की वंदना करने वाले को वंश की वृद्धि करने वाला, सन्तानोत्पादन में समर्थवान पुत्र हमको मिले। तुम्हारी यह कृपा दृष्टि हम पर बनी रहनी चाहिये।
Hey Agni Dev! Grant fertile land to the recitators of Strotr-hymns to perform multiple deeds. Grant us a son who can prolong our dynasty. Hey Agni Dev! This your obligation upon us.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- उत्कील, कात्य, देवता :- अग्निछन्द :- प्रगाथ।
अयमग्निः सुवीर्यस्येशे महः सौभगस्य। 
राय ईशे स्वपत्यस्य गोमत ईशे वृत्रहथानाम्
हे अग्नि देव! उत्तम सामर्थ्य वाले, महासौभाग्य के स्वामी, गौ आदि से युक्त, अपत्य वाले धन के अधिपति और वृत्र हन्ताओं के ईश्वर है।[ऋग्वेद 3.16.1]
हे अग्नि देव! तुम श्रेष्ठ सामर्थ्य से परिपूर्ण, महान सौभाग्य के अधिपति गवादिधनों से सम्पन्न, संतान से परिपूर्ण समृद्धियों के स्वामी तथा वृत्र को समाप्त करने वालों के नायक हो।
Hey Agni Dev! You are highly lucky, possess excellent capabilities, have cows, wealth and sons & is the leader of the slayers of Vratr. 
इमं नरो मरुतः सश्चता वृधं यस्मिन्रायः शेवृधासः। 
अभि ये सन्ति पृतनासु दूढ्यो विश्वाहा शत्रुमादभुः
हे नेता मरुतों! सौभाग्यवर्द्धक अग्नि में मिलो। अग्नि में सुख वर्द्धक धन है। मरुद्गण सेना वाले संग्राम में शत्रुओं को परास्त करते हैं। वे सदा ही शत्रुओं की हिंसा करते हैं।[ऋग्वेद 3.16.2]
हे मरुद्गण। तुम नायक रूप में सौभाग्य को बढ़ाने वाले अग्नि देव से युक्त हो जाओ। यह अग्निदेव सुख में वृद्धि करने वाले धन से युक्त हैं, जिस भूमि पर सेनाएँ युद्ध करती हैं, उसमें मरुद्गण के शत्रुओं को पराजित करते हैं। वे शत्रुओं के संहारक हैं।
Hey Marud Gan! You should join Agni Dev as a leader, promoting good luck. Agni Dev possess the wealth, which boosts pleasure-comforts. Marud Gan! Defeat the enemy in the battle field-war. You always destroy the enemy. 
स त्वं नो रायः शिशीहि मीढ्वो अग्ने सुवीर्यस्य। 
तुविद्युम्न वर्षिष्ठस्य प्रजावतोऽनमीवस्य शुष्मिणः
बहुधनशाली और अभीष्ट वर्षक अग्नि देव! हमें आप प्रभूत, प्रजा युक्त एवं आरोग्य, बल और सामर्थ्ययुक्त धन देकर तीक्ष्ण करें।[ऋग्वेद 3.16.3]
हे अग्नि देव! तुम अत्यन्त धन वाले एवं अभिष्टों की वर्षा करने वाले माने जाते हो। हमको संतान से परिपूर्ण, आरोग्य, शक्तिशाली और सामर्थ्य से परिपूर्ण धन प्रदान करके बढ़ोत्तरी प्रदान करो।
Possessor of vivid wealth desires accomplishing Agni Dev! Grant us wealth along with sons, good health, might and capability.
चक्रिर्यो विश्वा भुवनाभि सासहिश्चक्रिर्देवेष्वा दुवः। 
आ देवेषु यतत आ सुवीर्य आ शंस उत नृणाम्
जो अग्नि देव संसार के कर्ता हैं, वे समस्त संसार में अनुप्रविष्ट होते हैं। भार को सहन करके अग्नि देवों के पास हव्य ले आते हैं। अग्नि स्तोताओं के सामने आते है, यज्ञ नेताओं के स्तोत्र में आते हैं और मनुष्यों के युद्ध में आते हैं।[ऋग्वेद 3.16.4]
वे अग्नि देव संसार के समस्त कार्यों को पूर्ण करते हुए उनमें विद्यमान हैं। वे समस्त भार को सहन करते हुए देवताओं को हवि पहुँचाते हैं। वे अग्नि की वंदना करने वालों से साक्षात्कार करते हैं। वे यज्ञों के अनुष्ठान करने वालों की स्तुतियों के प्रति आते हैं तथा युद्ध काल में रणक्षेत्र में विराजमान रहते हैं।
Agni Dev conduct all deeds in the universe, pervading it. He bears the entire load and carries the offerings to the demigods-deities. Agni Dev comes to the Strota and is a part of the hymns of the recited by them. He present himself in the battle field.
मा नो अग्नेऽमतये मावीरतायै रीरधः। 
मागोतायै सहसस्पुत्र मा निदेऽप द्वेषस्या कृधि
हे बल के पुत्र अग्नि देव! आप हमें शत्रु ग्रस्त, वीर-शून्य, पशु हीन या निन्दनीय अर्थात् अपमानित नहीं करना। हमारे प्रति द्वेष न करें।[ऋग्वेद 3.16.5]
हे बलोत्पन्न अग्निदेव! तुम हमकों शत्रु से दुःखी न होने देना। हम वीरों से शून्य न होने पायें। पशुओं से रहित तथा निन्दा के पात्र भी न हों। तुम हमसे कभी नाराज न होना।
Hey Agni Dev produced by might! Do not let us be captured by the enemy maintaining our bravery. We should not be either without cattle or insulted. You should not be angry with us.
शग्धि वाजस्य सुभग प्रजावतोऽग्ने बृहतो अध्वरे। 
सै राया भूयसा सृज मयोभुना तुविद्युम्न यशस्वता
हे सुभग अग्नि देव! आप यज्ञ में प्रभूत, अपत्यशाली और अन्न के अधीश्वर हैं। हे महाधन! आप हमें प्रभूत, सुखकर और यश को बढ़ाने वाला धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.16.6] 
हे अग्नि देव! तुम यज्ञ में प्रकट हुए सन्तानवान समृद्धियों के स्वामी हो। हे वरणीय अग्नि देव! तुम अत्यन्त वैभवशाली हमको सुख प्रदान करने वाला, अनुष्ठान वृद्धि करने वाला, धन सम्पत्ति प्रदान करो।
Hey auspicious Agni Dev! You are the master of the various goods-wealth evolved through the Yagy, which grant sons and food grains. Hey ultimate wealth! Grant us the wealth which can give us pleasure & comforts, honour-respect.
ऋषि :- 
समिध्यमानः प्रथमानु धर्मा समक्तुभिरज्यते विश्ववारः। 
शोचिष्केशो घृतनिर्णि क्पावकः सुयज्ञो अग्निर्यजथाय देवान्
हे धर्म धारक अग्नि देव! ज्वालावाले केश से संयुक्त, सभी के स्वीकरणीय दीप्ति-रूप, पवित्र और सुक्रतु है। वे यज्ञ के आरम्भ में क्रमशः प्रज्वलित होकर देवों के यज्ञ के लिए घृतादि द्वारा सिक्त होते हैं।[ऋग्वेद 3.17.1]
अग्नि देव धर्म को धारण करने वाले, लपटों रूपी केश वाले, परम प्रदीप्त शुद्ध और सत्कर्मों के कर्त्ता हैं। वे यज्ञ के आरम्भ समय में प्रज्वलित होकर वृद्धि करते हुए देव यज्ञ को घृतादि से परिपूर्ण हवियों से सींचते हैं।
Hey Agni Dev, supporting-bearing Dharm!  His flames are like hair. He is glowing, pious and producer of virtuous, righteous deeds. He ignites in the beginning of the Yagy and receives the offerings in the form of Ghee etc.
यथायजो होत्रमग्ने पृथिव्या यथा दिवो जातवेदश्चिकित्वान्। 
एवानेन हविषा यक्षि देवान्मनुष्वद्यज्ञं प्र तिरेममद्य
हे अग्नि देव, हे जातवेदा! आप सर्वज्ञ हैं। पृथ्वी-द्युलोक को जिस प्रकार से हव्य प्रदान किया है, उसी प्रकार हमारे हव्य के द्वारा देवों का यज्ञ करें। मनु के तुल्य हमारे इस यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.17.2]
हे अग्नि देव! तुम जन्म से ही मेधावी और सर्वज्ञ हो। तुमने जैसे धरती और आकाश को हवियाँ दी थी, वैसे ही हमारी हवियों को देते हुए देवताओं का पूजन करो। हमारे यज्ञ को मनु के समान ही सम्पन्न करो।
Hey Agni Dev! You are intelligent since your birth. The way you made offerings to the earth & the heaven, in the same manner perform the Yagy for the demigods-deities with our offerings, like Manu. 
त्रीण्यायूंषि तव जातवेदस्तिस्र आजानीरुषसस्ते अग्ने। 
ताभिर्देवानामवो यक्षि यज्ञ विद्वानथा भव याजकगणाय शं योः॥
हे जात वेदा! आपका अन्न आज्य, औषधि और सोम के रूप से तीन प्रकार का है। हे अग्नि देव! एकाह, आहोन और समगत नामक तीन उषा देवताएँ आपकी माताएँ हैं। आप उनके साथ देवों को हव्य प्रदान करें। आप विद्वान् है। आप याजकगण के सुख और कल्याण के कारण बनें।[ऋग्वेद 3.17.3]
आज्य :: वह घी जिससे आहुति दी जाए, दूध या तेल जो घी के स्थान पर आहुति में दिया जाए, यज्ञ में दी जानेवाली हवि, प्रातः कालीन यज्ञ का एक स्त्रोत।
हे जन्म से बुद्धिमान अग्निदेव! तुम्हारा अन्न आज्य (घी, घी की जगह काम आनेवाला पदार्थ तेल, दूध आदि) औषधि और सोम, तीनों रूपों वाला है। हे मेधावी! तुम उनके युक्त देवों को हवियाँ प्रदान करो। तुम यजमानों को सुख और कल्याण ग्रहण कराने में समर्थवान होओ।
Hey Agni Dev, intelligent from your birth! Your food grains are like the Ghee, medicines and Som. Hey Agni Dev! You make offerings with them. Ekah, Ahon and Samgat, the three Ushas, are your mothers. Carry out the offerings for the demigods-deities with them. You are enlightened. You should become the cause of pleasure & comforts for the Ritviz. 
अग्निं सुदीतिं सुदृशं गृणन्तो नमस्यामस्त्वेड्यं जातवेदः। 
त्वां दूतमरतिं हव्यवाहं देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिम्
हे जातवेदा! आप दीप्तिशाली, सुदर्शन और स्तुति योग्य अग्नि है। हम आपको नमस्कार करते हैं। देवों ने आपको आसक्ति शून्य और हव्य-वाहक दूत बनाया तथा अमृत का केन्द्र मानकर आपका आस्वादन किया है।[ऋग्वेद 3.17.4]
हे अग्ने! तुम स्वयं दीप्तिमान, मेधावी, उत्तम दर्शन वाले स्तुत्य हो हम तुमको प्रणाम करते हैं। देवताओं ने तुमको मोह रहित हवि पहुँचाने वाले दौत्य कर्म (सन्देश देना, दूत का कार्य) में नियुक्त किया है। तुम अमृत के नाभि रूप हो।सन्देश वाहक 
Hey Agni Dev! You are shinning-aurous, beautiful and prayer deserving. We salute you. The demigods-deities have made you free from attachments, carrier of offerings, courier and the center of nectar-elixir.
यस्त्वद्धोता पूर्वो अग्ने यजीयान्द्विता च सत्ता स्वधया च शंभुः। 
तस्यानु धर्म प्र यजा चिकित्वोऽथा नो धा अध्वरं देववीतौ
हे अग्नि सर्वज्ञ देव! आपसे पहले और विशेष यज्ञ कर्ता जो होता मध्यम और उत्तम नामक दो स्थानों पर, स्वधा के साथ, बैठकर सुखी हुए थे, उनके धर्म को लक्ष्य करके विशेष रूप से यज्ञ करें। अनन्तर देवों की प्रसन्नता के लिए हमारे इस यज्ञ को धारित करें।[ऋग्वेद 3.17.5]
हे अग्नि देव! जो अनुष्ठान कर्त्ता होता मध्यम और उत्तम स्थानों पर स्वधा परिपूर्ण हुए सुखी हैं, तुम उनके दायित्व को देखते हुए अनुष्ठान करो। फिर देवताओं को हर्षित करने हेतु हमारे इस यज्ञ को धारण करो।
Hey Agni Dev! Target-the aim of those performers of Yagy, who have become happy-comfortable, occupying middle and the excellent positions in the Yagy along with Swadha-wood for performing Yagy. Carry out the Yagy for the pleasure of the demigods-deities.
ऋषि :- 
भवा नो अग्ने सुमना उपेतौ सखेव सख्ये पितरेव साधुः। 
पुरुद्रुहो हि क्षितयो जनानां प्रति प्रतीचीर्दहतादरातीः
हे अग्नि देव! जिस प्रकार से मित्र के प्रति और माता-पिता पुत्र के प्रति हितैषी होते हैं, उसी प्रकार हमारे सामने आने में प्रसन्न होकर हमारे हितैषी बनें। मनुष्यों के द्रोही मनुष्य हैं; इसलिए आप विरुद्धाचारी शत्रुओं को भस्मीभूत करें।[ऋग्वेद 3.18.1]
हे अग्नि देव! सखा अथवा माता-पिता के तुल्य हितैषी बनो। हमसे हर्षित रहो। जो हम मनुष्यों के शत्रु अन्य विरुद्ध व्यवहार वाले मनुष्य हैं, उनका पतन कर डालो। 
Hey Agni Dev! You should be our well wisher like the friend and parents & be happy with us. The humans are the enemy of humans. Destroy those who act against humanity.
Be favourably disposed Agni Dev, on approaching us at this rite; be the fulfiller of our objects like a friend to a friend or parents to a child; since men are the grievous oppressors of men, destroy-perish the foes who come against us.
तपो ष्वग्ने अन्तराँ अमित्रान् तपा शंसमररुषः परस्य। 
तपो वसो चिकितानो अचित्तान्वि ते तिष्ठन्तामजरा अयासः
हे अग्नि देव! अभिभवकर्ता शत्रुओं को भली-भाँति बाधा हो। जो सब शत्रु हव्य दान नहीं करते, उनके अभिलाषाओं को व्यर्थ कर दो। निवास दाता और सर्वज्ञ अग्नि देव! आप चञ्चल चित्त मनुष्यों को सन्तप्त करें। इसिलिए आपकी किरणें अजर और बाधा शून्य हैं।[ऋग्वेद 3.18.2]
हे अग्नि देव! शत्रुओं के मार्ग में बाधक बनो। जो दुष्ट हवि नहीं देते उनके अभिष्ट व्यर्थ हों। तुम पृथक निवास स्थान देने वाले एवं सर्वज्ञाता हो। जिनका हृदय चलायमान हो उन प्राणियों को दुःख दो। उनके लिए तुम्हारी जरा रहित रश्मियाँ बाधक बनें।
Hey Agni Dev! All sorts of troubles be created for the enemy. The enemy who do not make offerings in Yagy, all of their endeavours be nullified. Trouble the people whose innerself is flirters. Your rays are immortal and free from obstacles.
इध्मेनाग्न इच्छमानो घृतेन जुहोमि हव्यं तरसे बलाय। 
यावदीशे ब्रह्मणा वन्दमान इमां धियं शतसेयाय देवीम्
हे अग्नि देव! मैं धनाभिलाषी होकर आपके वेग और बल के लिए समिक्षा और घृत के साथ हव्य प्रदान करता हूँ। स्तोत्र द्वारा आपकी प्रार्थना करके मैं जब तक रहूँ, तब तक मुझे धन प्रदान करें। इस प्रार्थना को अपरिमित धन दान के लिए दीप्त करें।[ऋग्वेद 3.18.3]
हे अग्ने! मैं धन की इच्छा से तुम गतिवान और शक्तिशाली को समिधा और घृत परिपूर्ण हवि प्रदान करता हूँ। मैं तुम्हारी वंदना करके जब तक शरीर में प्राण रहें तब तक मुझे धन प्रदान करते रहो। धन देने के लिए मेरी प्रार्थना को ज्योर्तिवान बनाओ। 
Hey Agni Dev! I make offerings with Ghee for boosting your might & to have money (wealth, riches). I should continue reciting hymns in your favour till I survive. Make my prayers effective.
उच्छोचिषा सहसस्पुत्र स्तुतो बृहद्वयः शशमानेषु धेहि। 
रेवदग्ने विश्वामित्रेषु शै योर्मर्मृज्मा ते तन्वं १ भूरि कृत्वः
हे बल के पुत्र अग्नि देव! आप अपनी दीप्ति से दीप्तिमान् बनें। प्रार्थित होकर आप प्रशंसक विश्वामित्र के वंशधरों को धन-युक्त करें, प्रभूत अन्न दान करें तथा आरोग्य और अभय प्रदान करें। कर्म कारक अग्नि देव! हम लोग बार-बार आपके शरीर का शोधन करते हैं।[ऋग्वेद 3.18.4]
हे बलोत्पन्न अग्निदेव! तुम अपने तेज से प्रदीप्त हो जाओ। तुम वैश्वामित्र के वंशजों द्वारा स्तुति किये जाकर उन्हें धन सम्पन्न बनाओ। अन्न देते हुए आरोग्य और निर्भयता भी प्रदान करो। तुम कर्म करने वाले हो। हम साधक निरन्तर साधना करेंगे। 
Hey the son of might Agni Dev! You should shine-glow with your aura. Having being prayed-worshiped, you should grant money and food stuff to the off springs of Vishwa Mitr. We repeatedly keep on cleansing your body.
कृधि रत्नं सुसनितर्धनानां स घेदग्ने भवसि यत्समिद्धः।
स्तोतुर्दुरोणे सुभगस्य रेवत्प्रा करस्ना दधिषे वपूंषि
हे दाता अग्नि देव! धनों में श्रेष्ठ धन प्रदान करें। जिस समय आप समिद्ध होवें उस समय वैसा ही धन प्रदान करें। भाग्यवान् स्तोता के घर की और अपनी रूपवती दोनों भुजाओं को धन देने के लिए फैलावें।[ऋग्वेद 3.18.5]
हे अग्नि देव! तुम समस्त धनों के ज्ञाता हो, हमको धनों में जो महान धन है, वह धन प्रदान करो। तब तुम समिधाओं से परिपूर्ण होओ, तभी हमको प्रबुद्ध धन प्रदान करो। तुम अपने प्रकाशमान भुजाओं को वंदना करने वाले के गृह की तरफ धन के लिए बढ़ाओ।
Hey Agni Dev! Grant us the excellent wealth-riches. Grant us the money when you lit up through the Samidha-wood for Yagy. Extend your beautiful arms towards the house of the lucky Strota-Ritviz. 
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- गाथी कौशिकी, देवता :- अग्निविश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप।
अग्नि होतारं प्र वृणे मियेधे गृत्सं कविं विश्वविदममूरम्। 
स नो यक्षदेवताता यजीयान्ये वाजाय वनते मधानि
देवों के स्तोता, मेधावी, सर्वज्ञ और अमूढ़ अग्रि देव को हम इस यज्ञ में होत्र रूप से स्वीकार करते हैं। वे अग्नि सर्वापेक्षा यज्ञ परायण होकर हमारे लिए देवों का यज्ञ करें। धन और अन्न के लिए वे हमारे हव्य को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 3.19.1]
अमूढ़ :: पंचतन्मात्र में से एक, अविशेष, महाभूत, अशांत और अधीर ।
हे अग्नि देव! तुम देवताओं के वंदनाकारी, सर्वज्ञ प्रज्ञावान हो। हम इस अनुष्ठान में तुम्हें होता रूप में प्राप्त करते हैं। वे अग्नि अनुष्ठान कार्यों में लगाकर देवों का यजन करें। वे धन और अन्न देने की कामना करते हुए हमारी हवियाँ स्वीकार करें।
We accept Agni Dev, who is the Stota of the demigods-deities, intelligent, eternal all knowing as the Hota-performer of Yagy. He should conduct this Yagy for he demigods-deities. He should accept the offerings praying for the food grains and money.
प्र ते अग्ने हविष्मतीमियर्म्यच्छा सुद्युम्नां रातिनी घृताचीम्। 
प्रदक्षिणिद्देवतातिमुराणः सं रातिभिर्वसुभिर्यज्ञमश्रेत्
हे देव! मैं हव्य युक्त, तेजस्वी, हव्यदाता और धृत समन्वित जुहू को आपके सामने प्रदत्त करता हूँ। देवों के बहुमानकर्ता अग्निदेव हमारे दातव्य धन के साथ प्रदक्षिणा करके यज्ञ में सम्मिलित होवें।[ऋग्वेद 3.19.2]
जुहू :: पलाश की लक़ड़ी का बना हुआ एक प्रकार का अर्द्ध चंद्राकार यज्ञ-पात्र,  पूर्व दिशा; a pot made of butea-wood having the shape of half moon, east.
हे अग्नि देव! मैं हवियुक्त हवि देने का साधन, धृत से पूर्ण जुहू को तुम्हारे सामने करता हूँ। वे देवगणों का सम्मान करने वाले अग्निदेव हमको देने वाले धन के सहित यज्ञ में भाग लें।
Hey Agni Dev! I place the butea-wooden pot filled with offerings, enriched with Ghee in front of you. Hey demigods-deities honouring Agni Dev circumambulate the Yagy site and join the Yagy with the money meant for us.
स तेजीयसा मनसा त्वोत उत शिक्ष स्वपत्यस्य शिक्षोः। 
अग्ने रायो नृतमस्य प्रभूतौ भूयाम ते सुष्टुतयश्च वस्वः
हे अग्रि देव! जिसकी आप रक्षा करते हैं उसका मन अत्यन्त तेजस्वी हो जाता है। उसे उत्तम अपत्यवाला धन प्रदान करें। हे फलदानेच्छुक अग्नि देव! आप अतीव धन दाता है। हम आपकी महिमा से रक्षित होंगे तथा आपकी प्रार्थना करते हुए धनाधिपति होंगे।[ऋग्वेद 3.19.3]
हे अग्नि देव! तुम्हारी सुरक्षा ग्रहण कर साधक का मन अत्यन्त शक्ति प्राप्त करता है। उसे संतान परिपूर्ण धन प्रदान करो। तुम फल प्रदान करने की कामना वाले एवं श्रेष्ठ धन प्रदान करने वाले हो। हम तुम्हारी महती सुरक्षा से निर्भय होते हुए तुम्हारी प्रार्थना करेंगे और धन के स्वामी बनेंगे।
Hey Agni Dev! The innerself of one protected by you become energetic. Grant him money as well as progeny. You grant riches and protect us. We will worship-pray to you to become rich. 
भूरीणि हि त्वे दधिरे अनीकाग्ने देवस्य यज्यवो जनासः। 
स आ वह देवतातिं यविष्ठ शर्धो यदद्य दिव्यं यजासि
हे द्युतिमान् अग्नि देव! यज्ञ कर्ताओं ने आपको प्रभूत दीप्ति प्रदान की है। हे अग्नि देव! चूंकि आप यज्ञ में स्वर्गीय तेज की पूजा करते हैं; इसलिए देवों को बुलावें।[ऋग्वेद 3.19.4]
हे अग्नि देव! तुम प्रकाशवान हो। यज्ञ करने वालों ने तुम्हें प्रदीप्त किया है। तुम यज्ञ में विश्व तेज की साधना करने वाले हो, अतः देवगणों को आहूत करो।
Hey shinning Agni Dev! The organisers of Yagy have ignited you. Hey Agni Dev! Since you worship the divine aura, invoke-invite the demigods-deities. 
यत्त्वा होतारमनजन्मियेधे निषादयन्तो यजथाय देवाः। 
स त्वं नो अग्नेऽवितेह बोध्यधि श्रवांसि घेहि नस्तनूषु
हे अग्नि देव! चूंकि यज्ञ के लिए बैठे हुए दीप्तिशाली ऋत्विक् लोग यज्ञ में आपको होता कहकर सिक्त करते हैं, अतः आप हमारी रक्षा के लिए जागृत होवें और हमारे पुत्रों को अधिक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.19.5]
हे अग्नि देव! अनुष्ठान में विराजमान मेधावी ऋषि गण तुम्हारे होता हैं। तुम हमारी सुरक्षा के लिए पधारो। हमारे पुत्रों को अन्नवान करो।
Hey Agni Dev! Since the aurous Ritviz nominate you as the Hota-organiser, light up for our protection and grant food grains to our sons.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- गाथी कौशिकी, देवता :- अग्निविश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप।
अग्निमुषसमश्विना दधिक्रां व्युष्टिषु हवते वह्निरुक्थैः।
सुज्योतिषो नः शृण्वन्तु देवाः सजोषसो अध्वरं वावशानाः
हे अग्नि देव! हव्य वाहक उषा के अधिकार दूर करते समय उषा, अश्विनी कुमारों और दधिक्रा नामक देवता को प्रार्थना के द्वारा बुलाते हैं। सुन्दर द्युतिमान् और परस्पर मिलित देवता लोग हमारे यज्ञ की अभिलाषा करके उस स्तुति को श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.20.1]
हे हवि वाहक अग्नि देव! उषाकाल में अन्धकार का पतन करते हुए उषा अश्विद्वय और दधिक्रा नामक देवताओं को ऋचाओं से आहूत करते हैं। देवगण हमारे यज्ञ में आने की इच्छा करते हुए उन ऋचाओं को श्रवण करें। 
Hey Carrier of offerings Agni Dev! Usha, Ashwani Kumars and Dadhikra-a demigod, are invoked with the recitation of hymns. Let the demigods-deities listen to the hymns to attend our Yagy.
अग्ने त्री ते वाजिना त्री षधस्था तिस्रस्ते जिल्हा ऋतजात पूर्वीः।
तिस्त्र उ ते तन्वो देववातास्ताभिर्नः पाहि गिरो अप्रयुच्छन्
हे अग्नि देव! आपका अन्न तीन प्रकार का है, आपका स्थान तीन प्रकार का है। हे यज्ञ सम्पादक अग्नि देव! देवों की उदर-पूर्ति करने वाली आपकी तीन जिव्हायें हैं। आपके तीन प्रकार के शरीर देवों के द्वारा अभिलषित है। अप्रमत्त होकर आप उन्हीं तीनों शरीरों के द्वारा हमारी स्तुति की रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.20.2]
हे अग्नि देव! तुम्हारा तीन तरह का अन्न तथा तीन प्रकार का ही वास स्थान है, तुम यज्ञ को संपादन करने वाले हो। देवगणों को संतुष्ट करने वाली तीन जिह्वाओं से युक्त हो। तुम्हारे शरीर के तीन रूप हैं, जिनकी देवता अभिलाषा किया करते हैं। तुम आलस्य से रहित हुए अपने तीनों रूपों में हमारे श्लोकों की रक्षा करो।
Hey Agni Dev! Your food grains and residence are of three types. You possess three tongues to feed the demigods-deities. Your three types of bodies are desired by the demigods. Protect-save our prayers through your three bodies-configurations.
अग्ने भूरीणि तव जातवेदो देव स्वधावोऽमृतस्य नाम। 
याश्च माया मायिनां विश्वमिन्व त्वे पूर्वीः संदधुः पृष्टबन्धो
हे द्युतिमान्, जातवेदा, मरण-शून्य और अन्नवान् अग्नि देव! देवों ने आपको अनेक प्रकार के तेज दिए हैं। हे संसार के तृप्तिकर्ता और प्रार्थित फलदाता अग्नि देव! मायावियों की जिन मायाओं को देवों ने आपको प्रदान किया है, वह सब आपमें ही निहित है।[ऋग्वेद 3.20.3]
हे अग्नि देव! तुम प्रकट हो। ज्ञानी, ज्योर्तिवान, अमर और अन्न परिपूर्ण हो । देवताओं ने तुम्हें तेज प्रदान किया है। तुम संसार को तृप्त करने वाले अभीष्ट फल प्रदान करने वाले हो। देवताओं ने तुमको जिन शक्तियों से परिपूर्ण किया है, वे शक्तियाँ हमेशा तुम में व्याप्त रहती हैं। 
Hey eternal, immortal and the possessor of food grains Agni Dev! The demigods-deities have granted you three types of aura. Hey satisfying and granter of the material goods Agni Dev! Various types of enchanting powers granted by the demigods-deities, are embedded in you.
अग्निर्नेता भग इव क्षितीनां दैवीनां देव ऋतुपा ऋतावा। 
स वृत्रहा सनयो विश्ववेदाः पर्षद्विश्वाति दुरिता गृणन्तम्
ऋतु कर्ता सूर्य के तुल्य जो अग्रि देवों और मनुष्यों के नियन्ता है, जो अग्नि सत्यकारों, वृत्र हन्ता, सनातन, सर्वज्ञ और धुतिमान् हैं, वे स्तोता के समस्त पापों को लंघाकर, पार ले जायें।[ऋग्वेद 3.20.4]
ऋतुओं को प्रकट करने वाले आदित्य के समान विश्व के नियंता सत्यकर्मों में प्रवृत्त वृत्र को मारने वाले, प्राचीन, सर्वज्ञाता और प्रकाशवान अग्निदेव, स्तुति करने वाले को सभी पापों से दूर करें। 
Agni Dev, who is comparable to Bhagwan Sury-Sun is the regulator of the humans, is devoted to truth, is the slayer of Vratr, enlightened-all knowing and brilliant, should help the worshiper cross all the sins committed by him.
दधिक्रामग्निमुषसं च देवीं बृहस्पतिं सवितारं च देवम्। 
अश्विना मित्रावरुणा भगं च वसून्रुद्र आदित्याँ इह हुवे
मैं दधिक्रा, अग्नि देव, देवी उषा, बृहस्पति, द्युतिमान् सविता, अश्विनी कुमार, भग, वसु, रुद्र और आदित्यों को इस यज्ञ में बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 3.20.5]
दधिका, अग्नि, उषा, बृहस्पति, तेजस्वी, सूर्य दोनों अश्विनी कुमार, भव, वसु और समस्त आदित्यों का इस यज्ञानुष्ठान में आह्वान करता हूँ।
I invite-invoke the demigods-deities named Dadhikra, Agni dev, Usha, Brahaspati, Savita, Ashwani Kumars, Bhag, Vasu, Rudr and Aditys.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- गाथी कौशिकी, देवता :- अग्नि छन्द :- अनुष्टुप् वादिना।
इमं नो यज्ञममृतेषु धेहीमा हव्या जातवेदो जुषस्व। 
स्तोकानामग्ने मेदसो घृतस्य होतः प्राशान प्रथमो निषद्य
हे जातवेदा अग्नि देव! हमारे इस यज्ञ को देवों के पास समर्पित करें। वे हमारे हव्य का सेवन करें। हे होता! बैठकर सबसे पहले मेद और घृत के बिन्दुओं को भली-भाँति भक्षण करें।[ऋग्वेद 3.21.1]
हे अग्नि देव! हमारे इस यज्ञ को देवताओं के प्रति पहुँचाओ। हमारी हवियों का भक्षण करो।
Hey Agni Dev! Carry our offerings to the demigods-deities. Let them eat-enjoy our offerings beginning with fat & Ghee. 
घृतवन्तः पावक ते स्तोकाः श्चोतन्ति मेदसः। 
स्वधर्मन्देववीतये श्रेष्ठं नो धेहि वार्यम्
हे पावक! इस साङ्ग यज्ञ में घृत से दो बिन्दु आपके और देवों के पीने के लिए गिर रहे हैं। अतः हमें श्रेष्ठ और वरणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.21.2] 
तुम होता रूप हो। तुम हमारे अनुष्ठान में पधारकर प्राणवान घृत का भक्षण करो। हे हे अग्नि देव! तुम शुद्ध हो। इस यज्ञ में तुम्हारे तथा देवों के लिए घृत की बूदें टपक रही हैं। तुम हमको वरण करने योग्य श्रेष्ठ धन प्रदान करो।
Hey Agni Dev! You are like the Ritviz-organiser of the Yagy. Join our Yagy and enjoy nourishing-energetic Ghee. Grant us the excellent wealth.
तुभ्यं स्तोका घृतश्चतोऽग्ने विप्राय सन्त्य। 
ऋषिः श्रेष्ठः समिध्यसे यज्ञस्य प्राविता भव
भजन के योग्य हे अग्नि देव! आप मेधावी हैं। घृतस्रावी सभी बिन्दु आपके लिए हैं। आप ऋषि और श्रेष्ठ हैं। आप प्रज्वलित होते हैं। इसलिए यज्ञपालक बनें।[ऋग्वेद 3.21.3]
हे अग्नि देव! तुम बुद्धिवान और यजन करने योग्य हो। घृत की टपकती हुई बूंदे तुम्हारे लिए हैं। तुम ऋषियों में उत्तम हो। तुम स्वयं प्रदीप्त होते हो। हमारे यज्ञ के रक्षक बनो।
Hey worship able Agni Dev! You are intelligent. The dropping drops of Ghee are meant for you. You are a Rishi-sage and excellent being. Ignite and support this Yagy. 
तुभ्यं श्चोतन्त्यध्रिगो शचीवः स्तोकासो अग्ने मेदसो घृतस्य। 
कविशस्तो बृहता भानुनागा हव्या जुषस्व मेधिर
हे सतत् गमनशील और शक्तिमान् अग्नि देव! आपके लिए मेदोरूप हव्य के सब बिन्दु क्षरित होते है। कवि लोग आपकी प्रार्थना करते है। महान् तेज के साथ पधारें। हे मेधावी! आप हमारे हव्य का सेवन करें।[ऋग्वेद 3.21.4]
हे अग्नि देव! तुम हमेशा गतिशील रहने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न हो प्रेम रूप हवि की बूंदे तुमको। सींचती हैं। मेधावीजन तुम्हारा पूजन करते हैं। तुम श्रेष्ठ तेजस्वी और प्रज्ञावान हो। हमारी हवियों को प्राप्त करो।
Hey continuously moving-dynamic, mighty Agni Dev! The offerings saturated with the drops of Ghee, are meant for you. The poets pray-worship you. Come to us with the great aura. Hey intelligent! Enjoy the offerings.
ओजिष्ठं ते मध्यतो मेद उद्धृतं प्र ते वयं ददामहे। 
श्चोतन्ति ते वसो स्तोका अधि त्वचि प्रति तान्देवशो विहि
हे अग्नि देव! हम अतीव सार-युक्त मेद, पशु के मध्य भाग से, उठाकर आपको देंगे। हे निवास प्रद अग्नि देव! चमड़े के ऊपर जो सब बिन्दु आपके लिए गिरते हैं, वे देवों में से प्रत्येक को विभाग करके प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.21.5] 
हे अग्नि देव! हम अत्यन्त साररूप स्नेह तुम्हें देंगे। निवासदाता, हे अग्नि देव! हवि की जो बूँदें तुम्हारे लिए गिरती हैं उनको देवगणों में बाँट दो।
Hey Agni Dev! We will offer you the fat, which is the extract of all eatables. Hey house-home granting Agni Dev! The drops of Ghee which drop over the skin be distributed amongest the demigods-deities. 
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- गाथी कौशिकी, देवता :- पुरीष्य, अग्नि विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
अयं सो अग्निर्यस्मिन्त्सोममिन्द्रः सुतं दधे जठरे वावशानः।
सहस्रिणं वाजमत्यं न सप्ति ससवान्सन्स्तूयसे जातवेदः
सोमाभिलाषी इन्द्र देव ने जिन अग्नि में अभिषुत सोमरस को अपने उदर में रखा था, वे ही अग्नि देव हैं। हे सर्वज्ञ अग्नि देव! जो हव्य नाना रूप वाला और अश्व के तुल्य वेग शाली है, उसकी आप सेवन करें। संसार आपकी प्रार्थना करता है।[ऋग्वेद 3.22.1]
सोम की इच्छा करने वाले इन्द्र देव ने छोड़े गये सोम को जिस अग्नि रूप पेट में रखा था, वह यह अग्नि ही है। हे अग्निदेव! तुम सर्वज्ञ हो। तुम उस अश्व के तुल्य तीव्र  गति हवि का सेवन करो। संसार के सब प्राणधारी तुम्हारा पूजन करते हैं। 
This is the Agni in who's stomach Indr Dev desirous of Som kept Som. Hey all knowing Agni Dev! The living beings in the universe prays to you to consume the offerings of different magnitude, having the speed of horse.
अग्ने यत्ते दिवि वर्चः पृथिव्यां यदोषधीष्वप्स्वा यजत्र। 
येनान्तरिक्षमुर्वाततन्य त्वेषः स भानुरर्णवो नृचक्षाः
हे यज्ञनीय अग्नि देव! आपका जो तेज द्युलोक, पृथ्वी, औषधियों और जल में है, जिसके द्वारा आपने अन्तरिक्ष को व्याप्त किया है, वह तेज उज्ज्वल, समुद्र के तुल्य विशाल और मनुष्यों के लिए दर्शनीय है।[ऋग्वेद 3.22.2]
हे अग्नि देव! तुम यजन योग्य हो। तुम्हारा जो प्रकाश धरती, औषधि और जल में व्याप्त है तथा तुम्हारे जिस तेज के द्वारा अंतरिक्ष भी व्याप्त हुआ है, वह तेज समुद्र के समान गंभीर, सूर्य के सामान प्रकाशित एवं प्राणियों के लिए अद्भुत हैं।
Hey revered-honourable, worship able Agni Dev! Your energy-aura which pervades the heavens, earth, medicines, space and water is amazing, bright, as vast as the ocean and worth visualizing for the humans.
अग्ने दिवो अर्णमच्छा जिगास्यच्छा देवाँ ऊचिषे धिष्ण्या ये। 
या रोचने परस्तात्सूर्यस्य याश्चावस्तादुपतिष्ठन्त आपः
हे अग्नि देव! आप द्युलोक के जल के समक्ष जा रहे हैं, प्राणात्मक देवों को एकत्र करते हैं। सूर्य के ऊपर अवस्थित रोचन नाम के लोक में और सूर्य के नीचे जो जल हैं, उन दोनों को आप ही प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 3.22.3]
हे अग्नि देव! तुम क्षितिज के जल के समान प्रवाहमान हो। प्राणभूत देवगण को संगठित करने वाले हो । सूर्य के ऊपर संसार में या अतरिक्ष में जो जल है, उसे प्रेरित करने वाले हो।
Hey Agni Dev! You are dynamic like the water in heavens and unite the demigods-deities. You regulate the water in the abode, located above the Sun and below it.
It indicate the presence of vast ocean of water beyond the Sun in which the earth was submerged by Hiranykashipu and recovered by Bhagwan Shri Hari Vishnu through his incarnation Varah Avtar. Nasa has confirmed the presence of such reservoir of water. 
पुरीष्यासो अग्नयः प्रावणेभिः सजोषसः। 
जुषन्तां यज्ञमद्रुहोऽनमीवा इषो महीः
हे सिकता संमिश्रित अग्नि देव! खनन करने वाले हथियारों में मिलकर इस यज्ञ का सेवन करें। द्रोह रहित, रोगादि शून्य और महान् अन्न हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.22.4]
सिकता :: रेत-बालू, रेतीली भूमि, चीनी।
हे अग्नि देव! युद्ध क्षेत्र में हथियारों की संगति करते हुए युद्ध क्षेत्र को प्राप्त हो जाओ। तुम ऐसा धन हमको प्रदान करो, जिसके पराक्रम से हम शत्रुओं को दबाने वाले बनें तथा निरोगी रहें।
Hey Agni Dev mixed with sand! Participate in this Yagy associated the with the instruments-tools used for mining (tiling the fields). Grant us the best food grains free from ailments, capable of supressing the enemy.
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध। 
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे
हे अग्नि देव! आपने स्तोता को अनेक कर्मों की कारणभूत और धेनु प्रदात्री भूमि सदैव प्रदान की है। हमारे वंश का विस्तारक और सन्तति-जनयिता एक पुत्र है। हे अग्नि देव! हमारे प्रति आपका अनुग्रह है।
हे अग्नि देव! वंदना करने वालों को कार्यों की प्रेरक और गवादि धन से परिपूर्ण धरा तुम प्रदान करते हो। हमारे वंश की वृद्धि करने वाला, सन्तानोत्पादन में समर्थवान पुत्र हमको प्रदान करो। यह कृपा हमारे प्रति होनी चाहिये।
Hey Agni Dev! You have always granted such land to the worshiper-devotees which is subjected to various uses. Grant us a son capable of promoting-continuing our clan. Your support-blessing should always be with us. 
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- भारत पुत्र देवश्रवा, देववात्, देवता :- अग्नि विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
निर्मथितः सुधित आ सधस्थे युवा कविरध्वरस्य प्रणेता। 
जूर्यत्स्वग्निरजरो वनेष्यत्रा दधे अमृतं जातवेदाः
जो अग्रि मन्थन द्वारा उत्पन्न, याजक गण के घर में स्थापित, युवा, सर्वज्ञ, यज्ञ के प्रणेता, आसवेदा और महारण्य का विनाश करके भी स्वयं अजर हैं, वे ही अग्नि देव इस यज्ञ में अमृत धारित करते हैं।[ऋग्वेद 3.23.1]
घर्षण से रचित यजमान के घर में विद्यमान, सर्वज्ञाता, यज्ञकार्य के सम्पन्नकर्त्ता, स्वयं प्रज्ञावान, घोर वन का विनाश करने वाले अग्निदेव जरा विमुख हैं। वे यज्ञ में अमृत धारण करने वाले हैं। 
Generated by rubbing-churning, present in the homes of the devotees, young, all knowing, inspirer of the Yagy, destroyer of the vast forests-jungles, immortal Agni dev bears elixir for the Yagy.
अमन्थिष्टां भारता रेवदग्निं देवश्रवा देववातः सुदक्षम्। 
अग्ने वि पश्य बृहताभि रायेषां नो नेता भवतादनु द्यून्
भरत के पुत्र देवश्रवा और देववात सुदक्ष और धनवान अग्नि देव को मंथन द्वारा उत्पन्न करते हैं। हे अग्नि देव! आप बहुत धन साथ हमारी ओर देखें और प्रतिदिन हमारे लिये अन्न को लावें।[ऋग्वेद 3.23.2]
भारत के पुत्रों ने इन धन सम्पन्न अग्निदेव की अरणि मंथन द्वारा प्रकट किया है। हे अग्निदेव! बहुत से धन सहित तुम हमारी ओर देखो और हमको नित्य प्रति अन्न ग्रहण कराओ।
Devshrava & Devvat, the sons of Bharat generate skilled Agni-fire, the possessor of wealth by churning-rubbing woods.  Hey Agni Dev! Look at us with a lot of money-riches and bring food stuff for us every day.
दश क्षिपः पूर्व्यं सीमजीजनन्त्सुजातं मातृषु प्रियम्। 
अग्नि स्तुहि दैववातं देवश्रवो यो जनानामसद्वशी
दस अँगुलियों ने इन पुरातन और कमनीय अग्नि को उत्पन्न किया है। हे देवश्रवा! अरणि रूप माताओं के मध्य सुजात और प्रिय तथा देववात द्वारा उत्पादित अग्नि देव की प्रार्थना करें। वे ही अग्नि लोगों के वशवर्ती होते हैं।[ऋग्वेद 3.23.3]
हे पुरातन रमणीय अग्नि देव दसों अँगुलियों द्वारा उत्पन्न होते हैं। हे देवश्रवा! अरणि से उत्पन्न, अलौकिक, पवन से प्रकट हुए अग्नि देव की वंदना करो। वे अग्नि वंदना करने वालों के ही वशीभूत होते हैं।
वशीभूत :: मातहत, वशीभूत, अधीन किया हुआ, नरम किया हुआ; subdued, subjugated.
Devvat has generated this eternal-ancient and useful fire, with his ten fingers. Hey Devshrava! Pray to dear newly born Agni Dev amongest the woods. The Agni Dev worshiped by the humans is subdued, subjugated by them.  
नि त्वा दधे वर आ पृथिव्या इळायास्पदे सुदिनत्वे अह्नाम्। 
दृषद्वत्यां मानुष आपयायां सरस्वत्यां रेवदग्ने दिदीहि
हे अग्नि देव! सुदिन की प्राप्ति के लिए हम गोरूपिणी पृथ्वी के उत्कृष्ट स्थान में आपको स्थापित करते हैं। हे अग्नि देव! आप दृषद्वती (राजपूताने की सिकता में विनष्ट घग्घर नदी), आपया (कुरुक्षेत्रस्थ नदी) और सरस्वती (कुरुक्षेत्रीय सरस्वती नदी) के तटों पर रहने वाले मनुष्यों के घर में धन-युक्त होकर दीप्त होवें।[ऋग्वेद 3.23.4]
हे अग्नि देव! उत्तम दिवस की प्राप्ति के लिए हम इस धरा के शुद्ध स्थान में तुम्हें विद्यमान करते हैं। तुम दृषद्वती, आपया और सरस्वती इन तीनों नदियों के पास निवास करने वाले के घरों में धन से परिपूर्ण प्रदीप्त होओ।
Hey Agni Dev! We establish you in the earth possessing the form of a cow for having excellent period. Hey Agni Dev! You should shine-illuminate in the homes of the humans residing over the banks of Drashdwayati-Ghagghar in arid land-Rajasthan, Apya in Kurukshetr and Saraswati (in present day Haryana).
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध। 
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे
हे अग्नि देव! आप स्तोता को अनेक कर्मों के कारण और धेनु प्रदात्री भूमि सदैव प्रदान करें। हमें वंश विस्तारक और सन्तति जनयिता एक पुत्र प्रदान करें। हे अग्नि देव! हमारे ऊपर आपका अनुग्रह है।[ऋग्वेद 3.23.5]
हे अग्नि देव! तुम वंदना करने वालों को कर्म युक्त तथा गवादि युक्त धरती प्रदान करो। हमारे वंश की वृद्धि करने वाला, संतान उत्पादन में सक्षम पुत्र को देकर यह अनुग्रह हम पर करो।
Hey Agni Dev! Grant fertile-cultivable land producing cows to the Strota-worshiper. Grant us son to prolong our clan-dynasty. Hey Agni Dev! Your blessings (protection, shelter, asylum) should always be available to us.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- अग्नि विश्वेदेवा, छन्द :- अनुष्टुप् गायत्री
अग्ने सहस्व पृतना अभिमातीरपास्य। 
दुष्टरस्तरन्नरातीर्वर्चो धा यज्ञवाहसे
हे अग्नि देव! आप शत्रु सेना को पराभूत अर्थात् परास्त करें। विघ्न-कर्ताओं को दूर करें। आपको कोई जीत नहीं सकता। आप शत्रुओं को जीत कर याजकगण को अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.24.1]
हे अग्निदेव! इस शत्रु नेता को पराजित करो। बाधा पहुँचाने वालों को भगा दो। तुम्हें कोई हरा नहीं सकता। तुम शत्रुओं को पराजित करके अपने यजमान को अन प्रदान करो।
Hey Agni Dev! Defeat the enemy army. Remove the obstacles. None can win you. Win the enemy and provide food grains to the needy, requesting for it.  
अग्न इळा समिध्यसे वीतिहोत्रो अमर्त्यः। जुषस्व सू नो अध्वरम्
हे अग्रि देव! आप यज्ञ में प्रीतमान व अमर है। आपको उत्तर वेदी पर प्रज्वलित किया जाता है। आप हमारे यज्ञ को भली-भाँति सेवा करें।[ऋग्वेद 3.24.2]
हे अग्निदेव! तुम यज्ञ से प्रीति रखते हो। तुम मरणरहित हो। तुम उत्तम वेदी पर प्रज्वलित होते हो। तुम हमारे यज्ञ को उत्तम ढंग से संपादित करो।
Hey Agni Dev! You are immortal and have affinity-love for Yagy. You are ignited over the Uttar Vedi-Yagy site situated in the North direction. Take care-execute our Yagy properly. 
अग्ने द्युम्नेन जागृवे सहसः सूनवाहुत। एवं बर्हिः सदो मम
हे अग्नि देव! आप अपने तेज से सदा जागृत हैं। आप बल के पुत्र हैं। मैं आपको बुलाता हूँ। मेरे इस कुश पर बैठें।[ऋग्वेद 3.24.3]
हे अग्नि देव! तुम अपने तेज से चैतन्य हो। तुम शक्ति के पुत्र का मैं आह्वान करता हूँ। मेरे कुश पर पधारो।
Hey Agni Dev! You are always awake with your aura. You are the son of might. I invoke you. Occupy this seat made of Kush grass. 
अग्ने विश्वेभिरग्निभिर्देवेभिर्महया गिरः। यज्ञेषु य उ चायवः
हे अग्रि देव! जो आपके पूजक हैं, उनके यज्ञ में समस्त तेजस्वी अग्नियों के संग प्रार्थना की मर्यादा की रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.24.4]
हे अग्निदेव! तुम अपनी प्रार्थना करने वालों के यज्ञ में समस्त ज्योतिमात अग्नियों से युक्त प्रार्थनाओं की पर्यादा को सुरक्षित करो।
Hey Agni Dev! Maintain the dignity of the worshipers along with the various forms of fire.  
अग्ने दा दाशुषे रयिं वीरवन्तं परीणसम्। शिशीहि नः सनुमतः
हे अग्नि देव! आप हव्यदाता को वीर्य युक्त और प्रभूत धन प्रदान करें। हम पुत्र-पौत्र वाले हैं। हमें तीक्ष्ण करें।[ऋग्वेद 3.24.5]
हे अग्नि देव! तुम हवि प्रदान करने वालों को पौरुष से परिपूर्ण धन को प्रदान करो। धन से संतान परिपूर्ण हो, हमारी वृद्धि करो।
Hey Agni Dev! Grant mighty sons & wealth-riches to the ones who make offerings. We should have sons and grand sons. Make us progress.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- अग्नि इन्द्रानिछन्द :- विराट्।
अग्ने दिवः सूनुरसि प्रचेतास्तना पृथिव्या उत विश्ववेदाः। 
ऋधग्देवाँ इह यजा चिकित्वः
हे अग्नि देव! आप सर्वज्ञ, चित्रवान, द्युदेवता के पुत्र और पृथ्वी के तनय है। हे चेतनावान् अग्नि देव! आप देवों के इस यज्ञ में पृथक-पृथक यज्ञ करें।[ऋग्वेद 3.25.1]
हे अग्नि देव! तुम दिव्य, सर्वज्ञाता, अम्बर धरा के पुत्र तथा चैतन्य परिपूर्ण हो। तुम इस देव अनुष्ठान में पृथक-पृथक यजन कार्य करो। 
Hey Agni Dev! You are divine, all knowing-enlightened, aware, son of the sky & the earth. Hey conscious Agni Dev! You should carry out-conduct Yagy in this programme, separately for the demigods-deities.
अग्निःसनोति वीर्याणि विद्वान्त्सनोति वाजममृताय भूषन्। 
स नो देवाँ एह वहा पुरुक्षो
विद्वान् अग्नि देव सामर्थ्य प्रदान करते है। ये अपने को विभूषित करके देवों को अन्न प्रदान करते है। हे बहुविधि अन्न वाले अग्नि देव! हमारे लिए देवों को इस यज्ञ में उपस्थित करें।[ऋग्वेद 3.25.2]
अग्नि देव मेधावी हैं, सामर्थ्यदाता हैं और स्वयं शोभायमान होकर देवताओं को हवि पहुँचाते हैं। उनका अन्न विभिन्न तरह का है। हे अग्नि देव! देवगणों को हमारे यज्ञ में लाओ। 
Enlightened Agni Dev provides calibre, power & strength. He grants food grains to the demigods-deities. The possessor of different types-varieties food grains Agni Dev, be present in our Yagy.
अग्निर्द्यावापृथिवी विश्वजन्ये आ भाति देवी अमृते अमूरः। 
क्षयन्वाजैः पुरुश्चन्द्रो नमोभिः
सर्वज्ञ, जगत्पति, बहुदीप्ति युक्त, बल और अन्न वाले अग्नि संसार की माता, द्युतिमती और मरण-शून्या द्यावा पृथ्वी को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 3.25.3]
सर्वज्ञानी, संसार के दाता, प्रदीप्तिमान शक्ति और अन्न से सम्पन्न अग्नि देव विश्व माता, तेजस्विनी, मरण रहित आकाश पृथ्वी को प्रकाशवान बनाते हो। 
Enlightened, master of the universe, possessing various kinds of shine, aura, might and food grains Agni; light the mother of the universe, immortal, brilliant earth.
अग्न इन्द्रश्च दाशुषो दुरोणे सुतावतो यज्ञमिहोप यातम्। 
अमर्धन्ता सोमपेयाय देवा
हे अग्नि देव! आप और इन्द्र देव यज्ञ की हिंसा न करके अभिषव प्रदाता इस घर में सोम पान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 3.25.4]
हे अग्नि देव! तुम इन्द्र देव युक्त अनुष्ठान की सुरक्षा करते हुए सोम छानकर अर्पित करने वाले को इस गृह में सोम के लिए पधारो।
Hey Agni Dev! You accompanied with Indr Dev, protect the Yagy and come to home for accepting Somras.
अग्ने अपां समिध्यसे दुरोणे नित्यः सूनो सहसो जातवेदः। 
सधस्थानि महयमान ऊती
हे बल के पुत्र, नित्य और सर्वज्ञ अग्नि देव! आश्रयदान द्वारा आप जीव लोकों को अलंकृत करले स्थान अन्तरिक्ष में सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 3.25.5] 
हे जलोत्पन्न अग्नि देव! तुम सर्वज्ञानी और नित्य हो। तुम अपनी शरण में प्राणियों को शोभित करते हुए जल के आश्रय स्थान अंतरिक्ष में स्थापित हो।
Hey the son of water-Varun, enlightened, for ever Agni Dev! You grant asylum to the living beings in the universe, establishing yourself in the space.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, आत्मा, देवता :- वैश्वानर  अग्नि, मरुतादिछन्द :- जगती।
वैश्वानरं मनसाग्निं निचाय्या हविष्मन्तो अनुषत्यं स्वर्विदम्।
सुदानुं देवं रथिरं वसूयवो गीर्भी रण्वं कुशिकासो हवामहे
हम कुशिक गोत्रोद्भूत है। धन की अभिलाषा से हव्य को एकत्रित करते हुए भीतर ही भीतर वैश्वानर अग्नि देव को जानकर स्तुति द्वारा उन्हें बुलाते हैं। वे सत्य के द्वारा अनुगत है; स्वर्ग का विषय जानते हैं, यज्ञ का फल देते हैं, उनके पास रथ है, वे इसलिए वह यज्ञ में आते हैं।[ऋग्वेद 3.26.1]
हम कौशिक जन धन की इच्छा से हवि संगठित करते हुए, वैश्वानर अग्नि का आह्वान करते हैं। वे सत्य मार्ग गामी, स्वर्ग के संबंध में जानने वाले हैं। यज्ञ का फल देने वाले हैं। वे अपने रथ से अनुष्ठान स्थल को ग्रहण होते हैं। 
We the members of Kaushik family-clan make offerings and invoke Vaeshwanar Agni for the sake of wealth, money. He is truthful, understands-knows the heaven, possess the charoite and grant the rewards for the Yagy. That's why, he visits the Yagy.
तं शुभ्रमग्निमवसे हवामहे वैश्वानरं मातरिश्वानमुक्थ्यम्।
बृहस्पतिं मनुषो देवतातये विप्रं श्रोतारमतिथिं रघुष्यदम्
आश्रय प्राप्ति और याजक गण के यज्ञ के लिए उन शुभ, वैश्वानर, मातरिश्वा ऋचा योग्य, यज्ञपति, मेधावी, श्रोता, अतिथि और क्षिप्रगामी अग्नि देव को हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.26.2]
क्षिप्रगामी :: त्वरित, फुर्तीला, तेज; quick, fast, nimble, agile.
उन उज्ज्वल रंग वाले वैश्वानर, विद्युत रूप यज्ञ में शरण ग्रहण करने के लिए आहूत करते हैं।
We invoke-invite Vaeshwanar Agni in our Yagy for seeking asylum under him. He is intelligent, enlightened, listener, guest, auspicious, quick and the deity of the Yagy.
We invoke you for our own protection and for the devotions of mankind, the radiant Agni, Vaeshwanar, the illuminator of the firmament-world, the adorable lord of sacred rites, the wise, the hearer of supplications, the guest of man, the quick-moving.
अश्वो न क्रन्दञ्जनिभिः समिध्यते वैश्वानरः कुशिकेभिर्युगेयुगे।
स नो अग्निः सुवीर्यं स्वश्व्यं दधातु रत्नममृतेषु जागृविः
हिनहिनाने वाले घोड़े के बच्चे जिस प्रकार से अपनी माता के द्वारा वर्द्धित होते हैं, उसी प्रकार प्रतिदिन वैश्वानर अग्नि कौशिकों के द्वारा वर्द्धित होते है। देवों में जागरूक अग्निदेव हमें उत्तम अश्व, उत्तम वीर्य और उत्तम धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.26.3]
घोड़े का बच्चा :: colt, foal.  
उच्च आवाज करने वाले अश्व का शिशु जैसे माता की शरण में वृद्धि पाता है। हे अग्नि देव! तुम देवताओं में चैतन्य हो। हमको उत्तम अश्व, पौरुष और श्रेष्ठ धन प्रदान करो।
The way the colt-foal is protected by its mother Vaeshwanar Agni is nursed by the Kaushiks. Let brilliant Agni Dev grant us horse, strength and excellent wealth. 
प्र यन्तु वाजास्तविषीभिरग्नयः शुभे संमिश्लाः पृषतीरेयुक्षत।
बृहदुक्षो मरुतो विश्ववेदसः प्र वेपयन्ति पर्वतों अदाभ्याः
अग्रि रूप अश्व गण गमन करें; बली मरुतों के साथ मिलकर पृषती वाहनों को संयुक्त करें। सर्वज्ञ और अहिंसनीय मरुद्गण अधिक जलशाली और पर्वत समान मेघ को कम्पित करते हैं।[ऋग्वेद 3.26.4]
पृषत :: वायु का वाहन, पवन की सवारी; vehicle of Pawan-Vayu Dev.
अग्नि रूप अश्व, विद्वान मरुद्गण से संयुक्त हुए पृषती वाहनों को मिलावें। सर्वज्ञाता किसी के द्वारा भी हिंसित न होने वाले मरुद्गण जल राशि परिपूर्ण तथा पर्वत के समान बादल को कम्पायमान करते हैं।
Let the horses in the form-shape of Agni-fire move, along with the Marud Gan. Enlightened, non violent Marud Gan shake the clouds, like the mountains, possessing excess water.
अग्निश्रियो मरुतो विश्वकृष्टय आ त्वेषमुग्रमव ईमहे वयम्।
ते स्वानिनो रुद्रिया वर्षनिर्णिजः सिंहा न हेषक्रतवः सुदानवः
मरुद्रण अग्रि के आश्रित और संसार के आकर्षक है। उन्हीं मरुतों के दीप्त और उग्र आश्रय के लिए हम भली-भाँति याचना करते हैं। वर्षण रूप धारी, हरेवा (हिनहिनाना) शब्द कारी और सिंह के सदृश गरजने वाले मरुद्गण विशेष रूप से जल देते हैं।[ऋग्वेद 3.26.5]
हिनहिनाना :: हींसना; snort, neigh, horselaugh.
अग्नि के सहारे मरुत सागर को आकृष्ट करते हैं। हम उन्हीं मरुतों के उत्कृष्ट आश्रय की अभिलाषा करते हैं। वे वर्षा रूप वाले सिंह के समान गर्जनशील मरुद्गण जल दाता के रूप में विख्यात हैं।
Marud Gan dependent over the fire-Agni, attract the ocean. We desire-pray to seek asylum under these Marud Gan. Marud Gan who neigh-sound like the horse and roar like the lion specially, grant water-shower rains.
व्रातंव्रातं गणंगणं सुशस्तिभिरग्नेर्भामं मरुतामोज ईमहे। 
पृषदश्वासो अनवभ्रराधसो गन्तारो यज्ञं विदथेषु धीराः
दल के दल और झुण्ड के झुण्ड स्तुति मंत्रों द्वारा हम अग्नि के तेज और मरुत् के बल
की याचना करते हैं। बिन्दु चिह्नित अश्व वाले और अक्षय धन-संयुक्त तथा धीर मरुद्गण हव्य के उद्देश्य से यज्ञ में जाते हैं।[ऋग्वेद 3.26.6]
अनेक श्लोकों द्वारा हम अग्नि के तेज और मरुदगण को शक्ति की अभिलाषा करते हैं। वे बिन्दु चिह्न वाले अश्व-युक्त मरुद्गण नष्ट न होने वाले धन के साथ हवि के लिए यज्ञ को प्राप्त होते हैं।
We request-pray for the strength-might of Agni Dev and Marud Gan, with the recitation of numerous-in bunches, Stuti Mantr (hymns meant for prayers). Patient Marud Gan, possessing spotted horses & imperishable wealth, come to the Yagy with the desire of offerings.
अग्निरस्मि जन्मना जातवेदा घृतं मे चक्षुरमृतं म आसन्। 
अर्कस्त्रिधातू रजसो विमानोऽजत्रो धर्मों हविरस्मि नाम
मैं अग्नि या परब्रह्म जन्म से ही जातवेदा अथवा परतत्त्व-रूप हूँ। घृत अथवा प्रकाश ही मेरा नेत्र है। मेरे मुख में अमृत है। मेरे प्राण त्रिविध अर्थात् वायु, सूर्य, दीप्ति हैं। मैं अन्तरिक्ष को मापने वाला हूँ। मैं अक्षय उत्ताप हूँ। मैं हव्य रूप हूँ।[ऋग्वेद 3.26.7]
प्राण :: मार्मिकता, बड़ा जीवन बल, बड़ी जीवन-शक्ति, आत्मा, जी, जीव, व्यक्ति, रूह, जीवन काल, जन्म, जीव, जीवनी; life sustaining vital force, soul, vitality.
उत्ताप :: अत्यधिक गर्मी, दुःख; candescence, heat.
मैं अग्नि देव जन्म से ही मेधावी हूँ। अपने रूप को स्वयं प्रकट करता हूँ। रोशनी मेरी आँखें हैं। जिह्वा में अमृत है। मैं विविध प्राण परिपूर्ण एवं अंतरिक्ष का मापक हैं, मेरे तार का भी क्षय नहीं होता। मैं ही साक्षात हवि हूँ। 
I am Agni or the Ultimate Almighty enlightened since birth. Ghee and light are my eyes. My mouth possess elixir-nectar. My vitals are air, Sun and aura. I measure the sky-universe. I am candescence, heat in the form of offerings.
त्रिभिः पवित्रैरपुपोद्ध्य १ र्कं हृदा मतिं ज्योतिरनु प्रजानन्। 
वर्षिष्ठं रत्नमकृत स्वधाभिरादिद्द्यावापृथिवी पर्यपश्यत्
अन्तःकरण द्वारा मनोहर ज्योति को भली-भाँति जानकर अग्नि देव ने अग्नि, वायु, सूर्य रूप तीन पवित्र स्वरूपों से पूजनीय आत्मा को शुद्ध किया है। अग्नि देव ने अपने रूपों द्वारा अपने को अतीव रमणीय किया और दूसरे ही क्षण द्यावा-पृथ्वी को देखा।[ऋग्वेद 3.26.8]
सुन्दर ज्योति को मन से जानने वाले अग्निदेव ने अग्नि, पवन और सूर्य रूप धारण कर अपने को सक्षम बनाया। अग्नि ने इन रूपों में प्रकट होकर आकाश और पृथ्वी के दर्शन किये थे।
Agni Dev recognised the beautiful aura through his innerself and purified his soul by the three pious forms viz. fire, air and the Sun. Agni Dev; made himself very attractive and looked at sky & the earth immediately.
शतधारितुत् समक्षीयमाणं विपश्चितं पितरं वक्त्वानाम्।
मेळिं मदन्तं पित्रोरुपस्थे तै रोदसी पिपृतं सत्यवाचम्
शत (सौ) धार वाले स्त्रोत के तुल्य अविच्छिन्न प्रवाह वाले, विद्वान् पालक, वाक्यों का मेल कराने वाले माता-पिता की गोद में प्रसन्न और सत्य स्वरूप अग्नि को, हे द्यावा पृथ्वी! आप परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.26.9]
हे अम्बर-धरती! सौ धार वाले बादल की तरह अक्षुण, प्रवाह परिपूर्ण, मेधावी पोषणकर्त्ता, वाक्यों को मिलाकर बतलाने वाले, माता-पिता की गोद में हर्षित, सत्य स्वरूप अग्नि को परिपूर्ण करो।
Hey sky & earth! Replete the Agni, who is like the hundred branches of Strotr-clouds, enlightened, connecting sentences, truthful, happy in the lap of his parents. 
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- ऋतव छन्द :- जगती।
प्र वो वाजा अभिद्यवो हविष्मन्तो घृताच्या। देवाञ्जिगाति सुम्नयुः
ऋतुओं, स्रुक एवं हविवाले देवता, पशु, मास, अर्द्ध मास आदि आपके याजक गण के लिए सुख की इच्छा करते हैं और याजक गण देवों को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.27.1]
हे ऋत्विजों! स्नुक-परिपूर्ण, हवि वाले देवता, माह, अर्ध-माह आदि यजमान के लिए सुखी करने के अभिलाषी हैं। वह यजमान देवों की कृपादृष्टि ग्रहण करता है। 
Hey Ritviz-organisers of Yagy! The demigods-deities pertaining to Struk, offerings, animals, months and half month etc., pray for the welfare of the desirous-Ritviz. The Ritviz attains the well wishes of the demigods-deities.
ईळे अग्नि विपश्चितं गिरा यज्ञस्य साधनम्। श्रुष्टीवानं धितावानम्
मेधावी, यज्ञ-निर्वाहक, वेगवान् और धनवान् स्तुति वचनों के द्वारा अग्नि देव की मैं पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 3.27.2]
यज्ञ सम्पन्नकर्त्ता, प्रज्ञावान, समृद्धिवान, गतिशील अग्नि देव को मैं श्लोकों द्वारा यजन करता हूँ।
I pray to Agni Dev, who is intelligent, accomplishes the Yagy, is accelerated-fast and wealthy, with the Strotr-sacred hymns.
अग्ने शकेम ते वयं यमं देवस्य वाजिनः। अति द्वेषांसि तरेम
हे दीप्तिमान् अग्नि देव! हव्य तैयार करके हम आपको यहीं रखेंगे और पाप से मुक्त होंगे।[ऋग्वेद 3.27.3]
हे अग्निदेव! तुम प्रकाशवान हो। हम हव्य तैयार कर तुम्हारी सेवा करेंगे और पाप से बच जायेंगे।
Hey glowing Agni Dev! We will prepare the offerings-Havy and keep it here & free ourselves from sins.  
समिध्यमानो अध्वरे ३ग्निः पावक ईड्यः। शोचिष्केशस्तमीमहे
यज्ञ के समय प्रज्वलित, ज्वाला वाले केश से संयुक्त, पावक तथा पूजनीय अग्नि देव के हम अभिलषित फल की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 3.27.4]
यज्ञ समय में प्रकट होने वाले ज्वाला युक्त केश वाले, पवित्रकर्त्ता, पूज्य, अग्निदेव के पास उपस्थित होकर मनवांछित फल मांगते हैं।
We desires our boons to be accomplished by Agni Dev, who is pious-pure, has hairs in the form of flames, worship able, ignited at the time of the Yagy. 
पृथुपाजा अमर्त्यो घृतनिर्णिक्स्वाहुतः अग्निर्यज्ञस्य हव्यवाट्
प्रभूत तेज वाले, मरण-शून्य, घृत शोधन कर्ता और सम्यक् पूजित अग्नि देव यज्ञ का हव्य ले जायें।[ऋग्वेद 3.27.5]
रचित तेज से परिपूर्ण, अमृत, घृत को पवित्र करने वाले मानस रूप से अर्चन किये अग्नि देव यज्ञ की हवि को वहन करें। 
Immortal, full of energy, Ghee purifying and worshiped mentally Agni Dev should take-collect the offerings.
तं सबाधो यतस्त्रुच इत्था धिया यज्ञवन्तः। आ चक्रुरग्निमूतये 
यज्ञ विघ्न नाशक और हव्य युक्त ऋत्विकों ने स्रुक को संयत करके आश्रय प्राप्ति के लिए एवं प्रार्थना के द्वारा उन अग्नि देव को अपने अभिमुख किया।[ऋग्वेद 3.27.6]
यज्ञ में उपस्थित बाधाओं को समाप्त करने वाले, हवि से परिपूर्ण ऋत्विजों ने स्तुक को उठाकर शरण के लिए श्लोकों द्वारा अग्नि देव की पूजा करते हुए बढ़ाया।
To eliminate the obstacles in the Yagy, the Ritviz moved the Struva full of offerings, towards Agni Dev to worship him, chanting Shloks (Mantr-hymns). 
होता देवो अमर्त्यः पुरस्तादेति मायया। विदथानि प्रचोदयन्
होम निष्पादक, अमर और द्युतिमान् अग्नि देव यज्ञ कार्य में लोगों को उत्तेजित करके यज्ञ कार्य की अभिज्ञता के सहयोग से अग्रगन्ता होते हैं।[ऋग्वेद 3.27.7]
यज्ञ सम्पादक, मरण रहित, प्रकाश युक्त अग्नि देव यज्ञ के अनुष्ठान में सबको प्रेरणा देते हुए सहयोग पूर्वक यज्ञ में अग्रणी बनते हैं।
Immortal and aurous leader Agni Dev, inspire all the people to accomplishing the Yagy.
वाजी वाजेषु धीयतेऽध्वरेषु प्र णीयते। विप्रो यज्ञस्य साधनः
बलवान् अग्रि देव को युद्ध में आगे स्थापित किया जाता है। यज्ञ काल में वे यथा स्थान निक्षिप्त होते है। वे मेधावी और यज्ञ-सम्पादक हैं।[ऋग्वेद 3.27.8]
अग्नि देव शक्तिशाली हैं। वे युद्ध में सब से पहले स्थान प्राप्त करते हैं। यज्ञ के समय अपने स्थान पर प्रतिष्ठित होते हैं। वे यज्ञ कार्यों के सम्पादनकर्त्ता और प्रज्ञावान हैं।
Mighty & intelligent Agni Dev acquires the front line in the battle-war. He is present at his place during the Yagy. He accomplishes all the procedures in the Yagy.
धिया चक्रे वरेण्यो भूतानां गर्भमा दधे। दक्षस्य पितरं तना
जो अग्नि देव कर्म द्वारा वरणीय है, भूतों के गर्भ रूप से अवस्थित है, पितृ स्वरूप है, उन्हीं अग्नि को दक्ष की पुत्री यज्ञ भूमि धारण करती है।[ऋग्वेद 3.27.9]
कार्यों के द्वारा वरण करने योग्य, भूतों के कारण रूप, पिता समान अग्नि देव को धरा धारण करती है, जो दक्ष पुत्री हैं।
Agni Dev who deserve to be accepted (is eligible) through the endeavours, possess all past, is like a father & is supported by the Yagy site-Dhara, the daughter of Daksh.
नि त्वा दधे वरेण्यं दक्षस्येळा सहस्कृत अग्ने सुदीतिमुशिजम्
हे बल सम्पादित अग्नि देव! आप उत्कृष्ट दीप्ति से युक्त, हव्याभिलाषी और वरणीय है। आपको दक्ष की तनया इला (वेदी-रूपा भूमि) धारित करती हैं।[ऋग्वेद 3.27.10]
हे शक्ति द्वारा रचित अग्नि देव! तुम महान दीप्तिवाले, हवियों की अभिलाषा वाले और वरण करने योग्य हो। तुम्हें दक्ष पुत्री इला धारण करती है।
Hey Agni Dev created by Shakti! You possess excellent aura, desirous of offerings and acceptable-eligible. You are supported by the daughter of Daksh, Ila. 
अग्निं यन्तुरमप्तुरमृतस्य योगे वनुषः। विप्रा वाजैः समिन्धते
मेधावी भक्त लोग संसार के नियामक और जल के प्रेरक अग्नि देव को यज्ञ के सम्पादन के लिए अन्न द्वारा भली-भाँति उद्दीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.27.11]
संसार के नियामक और जल को प्रेरित करने वाले अग्नि को यज्ञ कार्य सम्पन्न करने के लिए ज्ञानी व्यक्ति हवि द्वारा अच्छी जरह से प्रदीप्त करते हैं।
The enlightened-intelligent devotees invoke Agni Dev (ignite fire), who inspire water & is the regulator of the Yagy properly, by using food grains, 
ऊर्जो नपातमध्वरे दीदिवांसमुप द्यवि। अग्निमीळे कविक्रतुम्
अन्न के नप्ता, अन्तरिक्ष के पास दीप्तिमान् एवं सर्वज्ञ अग्नि की या यज्ञ की मैं प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.27.12]
प्राणियों को अन्न से वंचित न होने देने वाले अंतरिक्ष के पास प्रकाशवान अग्नि देव की मैं वंदना करता हूँ।
I pray-worship enlightened, aurous Agni Dev, close to the space, who do not let the living beings without food grains.
ईळेन्यो नमस्यस्तिरस्तमांसि दर्शतः। समग्निरिध्यते वृषा
पूजनीय, नमस्कार-योग्य, दर्शनीय और अभीष्टवर्षी अग्रि अन्धकार को दूर करते हुए
प्रज्वलित होते हैं।[ऋग्वेद 3.27.13]
वे अग्नि देव नमस्कार करने के योग्य, पूज्य दर्शनीय तथा अभिलाषाओं की वर्षा करने वाले हैं। वे प्रज्वलित होते ही अंधेरे का पतन करते हैं।
Revered-honourable, beautiful and desires accomplishing Agni Dev ignite and remove darkness. 
वृषो अग्निः समिध्यतेऽश्वो न देववाहनः। तं हविष्मन्त ईळते
अभीष्टवर्षी और अश्व के तुल्य देवों के हव्य वाहक अग्नि प्रज्वलित होते हैं। हविष्मान् अग्नि देव की मैं पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 3.27.14]
अश्व के समान हवि वहन करने वाले, कामनाओं के वर्षक अग्नि देव प्रज्वलित होते हैं। मैं उन अग्नि की प्रार्थना करता हूँ।
Accomplishment granting and the carrier of offerings for the demigods-deities like the horse, Agni is ignited. I pray-worship Agni Dev.
वृषणं त्वा वयं वृषन्वृषणः समिधीमहि। अग्ने दीद्यतं बृहत्
हे अभीष्टवर्षी अग्नि देव! हम घृत आदि का सेचन करते हैं, आप जल का सेचन करते हैं। हम आपको दीप्त करते हैं। क्योंकि आप दीप्तिमान् और बृहत् हैं।[ऋग्वेद 3.27.15]
हे अग्नि देव! तुम इच्छाओं की वृष्टि करने वाले हो। तुम घृत आदि से सींचते हैं। तुम जल सींचते हो। हम तुम्हें प्रज्वलित करते हैं। तुम ज्योर्तिमान और श्रेष्ठ हो।
Hey accomplishments fulfilling Agni Dev! We nourish you with Ghee and water. We ignite you. You are aurous and excellent. 
ऋषि :- 
अग्ने जुषस्व नो हविः पुरोळाशं जातवेदः। प्रातः सावे धियावसो
हे जातवेदा अग्नि देव! आपका स्तोत्र ही धन प्रदायक है। प्रातः सवन में आप हमारे पुरोडाश और हव्य का सेवन करें।[ऋग्वेद 3.28.1]
पुरोडास :: यज्ञ में दी जाने वाली आहुति, जौ के आटे की टिकिया, सोमरस; cake of ground barley offered as an oblation in fire, sacrificial oblation offered to the demigods-deities, Ghee-clarified butter is offered in oblations to holy fire, with cakes of ground meal.
हे अग्नि देव! तुम जन्म से ही ज्योति से परिपूर्ण हों तुम्हारे श्लोक से शक्ति मिलती है। तुम हमारे पुरोडाश और हव्य का सवेरे समय से सेवन करो।
Hey Agni Dev! You possess illumination-brilliance since birth. Recitation of your Strotr grants strength. Make use of Purodas & offerings in the morning
पुरोळा अग्ने पचतस्तुभ्यं वा घा परिष्कृतः। तं जुषस्व यविष्ठ्य
हे युवतम अग्नि देव! आपके लिए पुरोडाश का पाक किया गया है; उसे संस्कृत किया गया है, आप उसका सेवन करें।[ऋग्वेद 3.28.2]
हे अग्ने! तुम अत्यन्त युवा हो। तुम्हारे लिए ही पुरोडाश पक्व किया और सिद्ध किया गया है। उसका सेवन करो।
Hey young Agni Dev! We have cooked Purodas for you & treated it with the recitation of sacred hymns. Eat it.
अग्ने वीहि पुरोळाशमाहुतं तिरोअह्न्यम्। सहसः सूनुरस्यध्वरे हितः
हे अग्नि देव! दिनान्त में सम्यक् प्रदत्त पुरोडास का भक्षण करें। आप बल के पुत्र हैं, अत: इस यज्ञ में निहित होवें।[ऋग्वेद 3.28.3]
हे अग्नि देव! श्रेष्ठ प्रकार से दिवस के अंत में दिये गये पुरोडाश का सेवन करो। तुम शक्ति के पुत्र हो, यज्ञ के कार्य में लगो।  
Hey Agni dev! Eat the Purodas at the end of the day (dinner). You being the son of strength-Bal, participate in the Yagy.
Eat, Agni, the cakes and butter offered as the day disappears; you, son of strength, are stationed by us at the sacrifice site.
माध्यंदिने सवने जातवेदः पुरोळाशमिह कवे जुषस्व। 
अग्ने यह्वस्य तव भागधेयं न प्र मिनन्ति विदथेषु धीराः
हे जात वेदा और मेधावी अग्नि देव! माध्यन्दिन सवन में पुरोडाश का सेवन करें।  अध्वर्यु लोग यज्ञ में आपका भाग नष्ट नहीं करते (क्योंकि) आप महान हैं।[ऋग्वेद 3.28.4]
जातवेद :: अग्नि, चित्रक वृक्ष, चीते का पेड़, अंतर्यामी, परमेश्वर, सूर्य।
हे अग्नि देव! तुम विज्ञानी हो। मध्य सेवन में पुरोडाश स्वीकार करो। अध्वर्युगण तुम्हारे यज्ञ का भाग का विनाश नहीं करते।
Hey all knowing-omniscient (possess intuition), Agni Dev! You are intelligent. Eat the Purodas during the day (lunch). The priests-Ritviz do not waste your share of offerings in the Yagy.
अग्ने तृतीये सवने हि कानिषः पुरोळाशं सहसः सूनवाहुतम्। 
अथा देवेष्वध्वरं विपन्यया या रत्नवन्तममृतेषु जागृविम्
हे बल के पुत्र अग्नि देव! तृतीय सवन में दिए गए पुरोदाश की आप इच्छा करें। अनन्तर अविनाशी, रत्नवान् और जागरणकारी सोम को प्रार्थना के साथ अमर देवों के पास स्थापित करें।[ऋग्वेद 3.28.5]
हे शक्ति रचित अग्निदेव! आप तीसरे सवन में दिये जाने वाले पुरोडाश की इच्छा करो। फिर उस समृद्धिवान चैतन्य सोम को देवगण के निकट वंदनापूर्वक विद्यमान करो।
Hey the son Bal-strength Agni Dev! You should desire-expect the Purodas in the third sacrifice as well. Thereafter, pray to imperishable, awake possessing jewels Som-Moon and establish-invoke the immortal demigods-deities.
अग्ने वृधान आहुतिं पुरोळाशं जातवेदः। जुषस्व तिरोअह्रयम्
हे जातवेदा अग्नि देव! दिन के अन्त में आप पुरोडाश रूप आहुति का सेवन करें।[ऋग्वेद 3.28.6] 
हे विज्ञानी अग्निदेव! तुम पुरोडाश रूप आहुति को दिन के अन्त में प्राप्त करो।
Hey intuitive Agni Dev! Use the offerings made of Purodas in the evening.
ऋषि :- 
अस्तीदमधिमन्थनमस्ति प्रजननं कृतम्। 
एतां विश्पत्नीमा भराग्निं मन्थाम पूर्वथा
यही अग्रिमन्थन एवं उत्पत्ति के साधन है। संसार रक्षक अरणि को ले आयें। पूर्व की तरह हम अग्रि का मन्थन करेंगे।[ऋग्वेद 3.29.1]
अरणि जगत की सुरक्षा करने में समर्थवान हैं, उसे लाओ। इसी के मंथन द्वारा अग्नि की उत्पत्ति होती है। पूर्वकाल की अपेक्षा हम अग्नि को मंथन के द्वारा प्रकट करेंगे।
Arni-wood, is the source of fire. It protects the world as well. We will produce fire by rubbing wood as before.
Fire can be produced by rubbing the wood with each other. Jungles fires lit up when dried wood stalk, bamboo ignite due to friction with the gust of high speed winds. It produced when stones strike each other as well, but the material for catching fire is essential.
अरण्योर्निहितो जातवेदा गर्भइव सुधितो गर्भिणीषु। 
दिवेदिव ईड्यो जागृवद्भिर्ह विष्मद्भिर्मनुष्येभिरग्निः
गर्मिणी के गर्भ के तुल्य जातवेदा अग्नि काष्ठ (अरणि) द्वय में निहित है। अपने कर्म में जागरूक और हवि से युक्त अग्रि देव मनुष्यों के लिए प्रतिदिन पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 3.29.2] 
अरणियों में अग्निदेव गर्भयुक्त नारी के गर्भ के समान दृढ़ हैं। वे अपने कार्य में सदैव तैयार रहते हैं उन हवि से परिपूर्ण अग्नि को मनुष्य प्रतिदिन अर्चना करते हैं।
Fire is embedded in the wood. Agni Dev is awake, devoted to his duties, accept offerings by humans and is honoured-revered by them.
  उत्तानायामव भरा चिकित्वान्त्सद्यः प्रवीता वृषणं जजान। 
अरुषस्तूपो रुशदस्य पाज इळायास्पुत्रो वयुनेऽजनिष्ट
हे ज्ञानवान् अध्वर्यु! ऊर्ध्वमुख अरणि पर अधोमुख अरणि रखें। सद्यो गर्भयुक्त अरणि ने अभीष्टवर्षी अग्नि को उत्पन्न किया। उसमें अग्नि का दाहकत्व था। उज्ज्वल तेज से युक्त इला के पुत्र अग्नि देव अरणि में उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 3.29.3]
हे ज्ञानवान अध्वर्युओ! उर्ध्व मुख वाली अरणि पर नीचे मुख वाली अरणि रखो। तत्काल गरम होने वाली अरणि ने इच्छाओं की वर्षा करने वाले अग्निदेव को उत्पन्न किया। उस अग्नि में दाहक गुण था। श्रेष्ठ प्रकाश वाले इला पुत्र अग्निदेव अरणि द्वारा उत्पन्न हुए।
Hey enlightened-learned priests-Ritviz! Pile the top facing wood over the down ward facing wood. The woods which function as the womb of fire, ignite it. The fire captured the ability to burn. Accompanied with brightness Agni Dev, the son of Ila, appeared out of it.  
इळायास्त्वा पदे वयं नाभा पृथिव्या अधि। 
जातवेदो नि धीमहाग्ने हव्याय वोळ्हवे
हे जातवेदा अग्नि देव! हम आपको पृथ्वी के ऊपर, उत्तर वेदी के नाभि स्थल में हव्य वहन करने के लिए स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 3.29.4]
हे विज्ञानी अग्नि देव! हम तुम्हें पृथ्वी की नाभि रूप उत्तर वेदी में वहन करने के लिए विद्यमान करते हैं।
Hey enlightened Agni Dev! We establish you over the earth at the nucleus-center of the Uttar Vedi, to carry offerings. 
मन्थता नरः कविमद्वयन्तं प्रचेतसममृतं सुप्रतीकम्। 
यज्ञस्य केतुं प्रथमं पुरस्तादग्निं नरो जनयता सुशेवम्
नेता अध्वर्युगण, कवि, द्वैध-शून्य, प्रकृष्ट ज्ञानवान्, अमर, सुन्दर शरीर वाले अग्नि देव को मन्थन-द्वारा उत्पन्न करें। नेता अध्वर्युगण यज्ञ के सूचक, प्रथम और सुखदाता अग्नि को कर्म के प्रारम्भ में उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 3.29.5]
हे अध्वर्युओं! महान ज्ञानी, अविनाशी कवि, दीप्ति से परिपूर्ण शरीर वाली अग्नि को अरणि मंथन से प्रकट करो। तुम अनुष्ठान कार्य में व्यक्ति का नेतृत्व करने वाले हो । जो अग्निदेव अनुष्ठान सूचक, सुख प्रदान करने वाले, प्रथम पूजनीय हैं, उन्हें पहले प्रकट करो।
Hey head priests! Invoke the immortal, enlightened, poet, free from duality Agni Dev possessing beautiful body.  Let the head priests invoke the first one to be worshiped-prayed, comforting, representative Agni Age at the beginning of the Karm-Yagy.
यदी मन्थन्ति बाहुभिर्वि रोचतेऽश्वो न वाज्यरूपी वनेष्वा। 
चित्रो न यामन्नश्विनोरनिवृतः परिवृणक्त्यश्मनस्तृणा दहन्
जिस समय हाथों से मन्थन किया जाता है, उस समय काष्ठ अग्नि देव अश्व के तुल्य, सुशोभित होकर और द्रुतगामी अश्विनी कुमार के विचित्र रथ के तुल्य शीघ्र गन्ता होकर शोभा धारित करते हैं। कोई भी अग्नि का मार्ग अवरूद्ध नहीं कर सकता। अग्नि ने तृण और उपल को भस्मीभूत कर उसे स्थान का परित्याग कर दिया।[ऋग्वेद 3.29.6]
उपल :: पत्थर, ओला, रत्न-जवाहरात, बादल-मेघ।
हाथों द्वारा अरणि-मंथन करने पर दो लकड़ियों से उत्पन्न वह अग्नि अश्व के समान शोभित तथा अश्विनी कुमारों के रथ के समान तीव्रगामी होकर सुशोभित होते हैं। उनके रास्ते को रोकने की शक्ति किसी में नहीं है। अग्नि देव रचित होते ही अपने कार्य में विज्ञ होते हैं।
When the wood is rubbed with the hands, Agni Dev decorated like the horse and fast moving Ashwani Kumar's charoite; is adorned. None can block the track-path of Agni Dev.  Agni Dev consumed the straw & stone and leave that place.
जातो अग्नी रोचते चेकितानो वाजी विप्रः कविशस्तः सुदानुः। 
यं देवास ईडयं विश्वविदं हव्यवाहमदधुरध्वरेषु
उत्पन्न अग्नि भी सर्वज्ञ, अप्रतिहत गमन और कर्म-कुशल है, इसलिए मेधावी लोग उनकी प्रार्थना करते हैं। वह कर्म फल प्रदान करके शोभा प्राप्त करते हैं। देवता लोगों ने पूजनीय और सर्वज्ञ अग्नि देव को यज्ञ में हव्य वाहक नियुक्त किया।[ऋग्वेद 3.29.7]
वे सब कार्यों के ज्ञाता तथा तेजस्वी हैं। अतः ज्ञानीजन इनकी पूजा करते हैं। वह कार्यों का फल प्रदान करते हुए शोभायमान होते हैं। उन पूज्य सर्वज्ञ अग्निदेव को देवों ने अनुष्ठान कार्य में हवि वहन करने वाला नियुक्त किया।
The enlightened-learned people worship-pray the ignited Agni, who is intuitive-all knowing. He grant the rewards of deeds and is adorned. The demigods-deities have appointed him as the carrier of offerings. 
सीद होतः स्व उ लोके चिकित्वान्त्सादया यज्ञं सुकृतस्य योनौ। 
देवावीर्देवान्हविषा यजास्यग्ने बृहद्यजमाने वयो धाः
हे होम-निष्पादक अग्नि देव! अपने ही स्थान पर बैठें। आप सर्वज्ञ है। याजकगण को पुण्य लोक में स्थापित करें। आप देवों के रक्षक है। हव्य के द्वारा देवों की पूजा करें। मैं यज्ञ करता हूँ, मुझे यथेष्ट अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.29.8] 
हे अग्नि देव! तुम यज्ञ सम्पादक हो। अपने स्थान पर पधारो। तुम सबके जानने वाले हो यजमान को अलौकिक लोक प्राप्त कराओ। तुम देवगणों की रक्षा करने वाले हो हवि द्वारा देवताओं की अर्चना करो और मुझ यज्ञकर्त्ता को इच्छित धन प्रदान करो।
Hey Yagy accomplishing Agni Dev! Occupy your seat. You are aware of all events. Grant the abodes for the pious, to the desirous. You are the protector of demigods-deities. Pray the demigods-deities with the offerings.  I perform the Yagy. Grant me desired-sufficient food grains. 
कृणोत धूमं वृषणं सखायोऽस्रेधन्त इतन वाजमच्छ। 
अयमग्निः पृतनाषाट्  सुवीरो येन देवासो असहन्त दस्यून्
हे अध्वर्युगण! अभीष्टवर्षी धूम उत्पन्न कीजिये। आप सबल होकर युद्ध के समक्ष जायें। अग्नि वीर-प्रधान और सेना विजेता हैं। इन्हीं की सहायता से देवों ने असुरों को परास्त किया।[ऋग्वेद 3.29.9]
हे अध्वर्युओ! तुम अभिलाषाओं की वृष्टि करने वाले धूम को रचित करो। उससे शक्तिशाली होकर संग्राम में पहुँचो अग्निदेव पराक्रमियों में महान हैं। वे शत्रु सेना के विजेता हैं। देवताओं ने उन्हीं की सहायता से दैत्यों पर विजय प्राप्त की थी।
Hey Yagy performers! Generate the smoke which can accomplish-fulfil desires. Acquire strength and face the war. Agni Dev is brave, head-leader and the winner of the army. The demigods-deities defeated the demons with his help.
अयं ते योनिर्ऋत्वियो यतो जातो अरोचथाः। 
तं जानन्नग्न आ सीदाथा वर्धया गिरः
हे अग्रि देव! ऋतु-काष्ठ (पलाश-अश्वत्यादि) वान् यह अरणि आपका उत्पत्ति स्थान इससे उत्पन्न होकर आप शोभा प्राप्त करें। यह जानकर आप बैठ जावे। इससे उत्पन्न होकर आप शोभा प्राप्त करें। आप यह जानकर उपवेशन (बैठे, पधारें) करें। हमारी प्रार्थना को वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 3.29.10]
हे अग्निदेव! काष्ट वाली अरणि तुम्हारा प्राकट्य स्थल है। तुम इससे प्रकट होकर शोभायमान होओ। उसे पहचानते हुए पधारो और हमारी वंदना को बढ़ाओ।
Hey Agni Dev! You appear out of wood. Sit and be adorned. Promote our worship-prayers.
तनूनपादुच्यते गर्भ आसुरो नराशंसो भवति यद्विजायते। 
मातरिश्वा यदमिमीत मातरि वातस्य सर्गो अभवत्सरीमणि
गर्भस्थ अग्नि को तनूनपात् कहा जाता है। जिस समय अग्रि देव प्रत्यक्ष होते हैं, उस समय यह आसुर नराशंस होते है। जिस समय अन्तरिक्ष में तेज का विकास करते हैं, उस समय मातरिश्वा (अग्निनाम) होते हैं। अग्नि देव के प्रसूत होने पर वायु की उत्पत्ति होती है।[ऋग्वेद 3.29.11]
मातरिश्वा :: यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करने वाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है
सुनिर्मथा निर्मथितः सुनिधा निहितः कविः। 
अग्ने स्वध्वरा कृणु देवान्देवयते यज
हे अग्निदेव! आप मेधावी और मन्थन के द्वारा उत्पन्न होते हैं। आपको अच्युत्तम स्थान में स्थापित किया जाता है। हमारा यज्ञ निर्विघ्न करें और देवाभिलाषी के लिए देवों की पूजा करें।[ऋग्वेद 3.29.12]
हे अग्नि देव! तुम ज्ञानवान तथा मन्थन से रचित हो। तुम महान स्थान में विद्यमान हो। हमारे यज्ञ को बिना बाधा के पूर्ण करो। हम देवताओं की इच्छा करने वाले के लिये, देवताओं का पूजन करो।
Agni Dev, who is pronounced by reverential attrition and deposited with reverential care and who is far-seeing, render our rites exempt from defects and worship the demigods-deities on behalf of the devout worshippers.
Hey Agni Dev! You are intelligent and evolve by rubbing-churning. You established at the best place. Accomplish our Yagy and pray for the devotees who wish to evoke demigods-deities.
अजीजनन्नमृतं मर्त्यासोSस्रेमाणं तरणि वीळुजम्भम्।
दश स्वसारोअग्रुव: समीची: पुमांसं जातमभि सं रभन्ते
मर्त्य ऋत्विक् लोगों ने अमर, अक्षय, दृढ़, दन्त विशिष्ट और पाप तारक अग्नि देव को उत्पन्न किया है। पुत्र सन्तान के तुल्य उत्पन्न अग्नि को को लक्ष्य करके बहन स्वरूप दस अँगुलियाँ परस्पर मिलकर आनन्द-सूचक शब्द करती है।[ऋग्वेद 3.29.13]
अक्षय :: अक्षीण, अटूट, सदा भरपूर होनेवाला; renewable, inexhaustible, unspent, unabated.
मरणधर्मा ऋत्विजों ने अक्षय, अविनाशी, अटल दाँतों वाले और पाप से उद्धार करने वाले अग्नि देव को प्रकट किया। संतान के समान उत्पन्न हुए उन अग्नि के प्रति भगिनी रूपिणी दसों अंगुलियाँ हर्ष-सूचक ध्वनि करती हैं।
Perishable Ritviz evolved Agni Dev who is immortal, inexhaustible, bearing rigid teeth and sin removing. Over the evolution of Agni Dev, who is like son, ten fingers create voices showing pleasure-happiness, like sisters. 
प्र सप्तहोता सनकादरोचत मातुरुपस्थे यदशोचदूधनि। 
न नि मिषति सुरणो दिवेदिवे यदसुरस्य जठरादजायत
अग्नि सनातन हैं। जिस समय सात मनुष्य उनका हवन करते हैं, उस समय वे शोभा पाते है। जिस समय वे माता के स्तन और क्रोड़ पर शोभा पाते हैं, उस समय देखने में वे सुन्दर मालूम पड़ते हैं। ये प्रतिदिन सजग रहते हैं, क्योंकि वे असुर के जहर से उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 3.29.14]
अग्नि प्राचीन है। सप्त होताओं द्वारा किये जाने वाले अनुष्ठान में अत्यन्त सुशोभित होते हैं। जब वे वनों में खेल करते हैं तब अत्यन्त यश से परिपूर्ण लगते हैं। वे हमेशा चैतन्य रहते हैं। वे राक्षसों के मध्य से रचित हुए हैं।
Agni Dev is eternal. When seven people conduct Yagy, he appears beautiful. When he lies over the breast and stomach of his mother, he appears beautiful. He is always alert, since he took birth amongest the demons.
अमित्रायुधो मरुतामिव प्रयाः प्रथमजा ब्रह्मणो विश्वमिद्विदुः। 
द्युम्नवद्ब्रह्म कुशिकास एरिर एकएको दमे अग्निं समीधिरे
मरुतों के सदृश शत्रुओं के साथ युद्ध करने वाले और ब्रह्मा से प्रथम उत्पन्न कुशिक गोत्रोत्पन्न ऋषि लोग निश्चय ही सम्पूर्ण संसार को जानते है। अग्नि को लक्ष्य करके हव्य युक्त स्त्रोत्र का पाठ करते हैं। वे लोग अपने-अपने घर में अग्नि को दीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.29.15] 
शत्रुओं से मरुद्गण के समान युद्ध करने वाले ब्रह्म द्वारा उत्पन्न कौशिक ऋषियों ने समस्त संसार को जाना। वे अपने गृह में अग्नि को प्रदीप्त करते और उनके प्रति हवि देते हुए प्रार्थनाएँ करते हैं।
The Rishis born in the Kaushik clan, initially born out of Brahma Ji, fights like the Marud Gan. They recite Strotr for Agni Dev, making offerings simultaneously. They lit fire in their homes. 
यदद्य त्वा प्रयति यज्ञे अस्मिन्होतश्चिकित्वोऽवृणीमहीह। 
ध्रुवमया ध्रुवमुताशमिष्ठाः प्रजानन्विद्वाँ उप याहि सोमम्
होम-निष्पादक, विद्वान और सर्वज्ञ अग्नि देव! इस प्रवर्तित यज्ञ में आपका हम वरण करते है, इसलिए आप इस यज्ञ में देवों को हव्य प्रदान करें। नित्य स्तव करें। सोम की बात को जानकर उनके पास आये।[ऋग्वेद 3.29.16] 
प्रवर्तित :: पदोन्नत, प्रवर्तित, (कक्षा में) चढ़ाया गया, उन्नत, प्रख्यापित; promulgated, promoted.
यज्ञ कर्म सम्पन्न करने वाले, मेधावी, सर्वज्ञाता अग्निदेव को हम इस अनुष्ठान में दृढ़ करते हैं। हे अग्नि देव! इस यज्ञ में देवताओं को हवि प्रदान करो। उनकी प्रति दिन वंदना करो। सोम को सिद्ध हुआ जानकर उनको ग्रहण होओ।
Yagy performing, scholar and all knowing Agni Dev! We accept you in this promulgated Yagy. Hence, you make offerings to the demigods-deities in this Yagy. Pray to them every day & accept Somras extracted by us for you.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अग्नि, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्पादि
त्वां ह्यग्ने सदमित्समन्यवो देवासो देवमरतिं न्येरिर इति क्रत्वा न्येरिरे।अमर्त्य यजत मर्त्येष्वा देवमादेवं जनत प्रचेतसं विश्वमादेवं जनत प्रचेतसम्
हे अग्नि देव! आप द्योतमान और शीघ्र गामी हैं। स्पर्द्धा वान देवगण आपको सर्वदा ही युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं; इसलिए याजक गण लोग आपको स्तुति द्वारा प्रेरित करें। हे यजनीय अग्नि देव! आप अमर, द्युतिमान् और उत्कृष्ट ज्ञान विशिष्ट हैं। यज्ञ करने वाले मनुष्यों के बीच में आने के लिए देवों ने आपको उत्पन्न किया है। आप कर्माभिज्ञ हैं। समस्त यज्ञों में उपस्थित रहने के लिए देवों ने आपको उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 4.1.1]
स्पर्द्धा :: होड़, प्रतियोगिता, अभिलाषा, तीव्र इच्छा, प्रतिद्वंद्विता, ईर्ष्या न करते हुए भी किसी के समान होने की इच्छा, किसी लक्ष्य को पूरा करने की चुनौती, किसी से बराबरी करने की अभिलाषा अथवा तीव्र इच्छा; competition, emulous-motivated by a spirit of rivalry.
EMULOUS :: motivated by a spirit of rivalry.
हे अग्नि देव! तुम ज्योर्तिवान हो। गति से चलते हो। शत्रु पर विजय प्राप्त करने की कामना स्पर्द्धा से परिपूर्ण देव तुम्हें युद्ध के लिए ग्रहण करते हैं। यजमान तुम्हारी वंदना करते हुए आकृष्ट करते हैं। तुम अविनाशी ज्योर्तिवान अत्यन्त ज्ञानी हो, मनुष्यों को यज्ञ कार्य के लिए प्राप्त करने के लिए देवों ने तुमको प्रकट किया है। तुम कार्यों के ज्ञाता हो, समस्त अनुष्ठानों में प्रत्यक्ष रहने के लिए देवों ने तुम्हारी रचना की है।
Hey adorable Agni Dev! The emulous demigods-deities excite you, being swift to move-act. Therefore, the worshippers urge you by their devotions to bring the deities to their sacrifices-Yagy. You are immortal, divine, all wise, as the present divinity among men.
Hey Agni Dev! You are radiant-aurous and dynamic-fast moving. Demigods-deities seek your help-cooperation against the competitors. The Ritviz worship-pray to you. You are enlightened, immortal and evolved by the demigods-deities for the accomplishment of the Yagy by the humans. You are aware of the endeavours, goal, targets of the humans. 
स भ्रातरं वरुणमग्न आ ववृत्स्व देवाँ अच्छा सुमती यज्ञवनसं ज्येष्ठं यज्ञवनसम्। ऋतावानमादित्यं चर्षणीधृतं राजानं चर्षणीधृतम्
हे अग्नि देव! आपके भ्राता वरुण देव हैं। वे हव्य भाजन, यज्ञ भोक्ता, अतिशय प्रशंसनीय, उदकवान, अदिति-पुत्र, जलदान द्वारा मनुष्यों के धारक, सुबुद्धि युक्त और राजमान हैं। आप ऐसे वरुण देव को स्तोताओं के अभिमुख करें।[ऋग्वेद 4.1.2]
राजमान :: चमकता हुआ; radiant, aurous, shinning.  
हे अग्ने! वरुण तुम्हारे भ्राता हैं। वे हवियों के पात्र, यज्ञ का उपभोग करने वाले, जल वाले, प्रशंसित, अदिति के पुत्र हैं। वे जल वृद्धि द्वारा प्राणी को धारण करने वाले हैं। वे सुन्दर प्रज्ञा वाले एवं शोभनीय हैं। इन वरुण की प्रार्थना करने वालों के तुल्य लाओ।
Hey Agni Dev! Involve Varun Dev with the worshippers in the Yagy, as a willing participant. He the ruler of the water, the son of Aditi, the supporter of men the sovereign venerated by mankind.
Hey Agni Dev! Varun dev is your brother. He deserve offerings, participant of Yagy, appreciable, son of Dev Mata Aditi, supporter of humans by granting-providing water, pious, righteous, virtuous, truthful, aurous. Let the worshipers-Ritviz come to him.
सखे सखायमभ्या ववृत्स्वाशुं न चक्रं रथ्येव रंह्यास्मभ्यं दस्म रंह्या।
अग्ने मृळीकं वरुणे सचा विदो मरुत्सु विश्वभानुषु। तोकाय तुजे शुशुचान शं कृध्यस्मभ्यं दस्म शं कृधि
हे सखिभूत दर्शनीय अग्नि देव! आप अपने मित्र वरुण देव को हमारे अभिमुख करें, जिस प्रकार से गमन कुशल और रथ में युक्त अश्व द्वय शीघ्रगामी चक्र को लक्ष्य देश के अभिमुख ले जाते हैं। हे अग्नि देव! आपकी सहायता से वरुण देव ने सुखकर हव्य लाभ किया है। हे दीप्तिमान अग्नि देव! हम लोगों का कल्याण करें।[ऋग्वेद 4.1.3] 
हे अग्नि देव! तुम सखाभाव से परिपूर्ण हो। जैसे गमन युक्त रथ में जुड़े दो अश्व शीघ्र चलने वाले पहियों को लक्ष्य पर पहुँचाते हैं, वैसे ही तुम अपने वरुण को हमारे लाओ। हे अग्नि देव! तुम्हारे सहयोग से वरुण ने सुखमय हवियाँ ग्रहण की हैं तथा अत्यन्त तेजस्वी मरुतों के लिए भी सुखकारक हव्य अर्जन किया है।
Hey Agni Dev! You possess the feelings of brotherhood-companionship. Bring Varun Dev to us, the way an expert-skilled charioteer negotiate the two horses deployed in the charoite towards the destination. Hey Agni Dev! Varun Dev attained-obtained the comfortable offerings, gratifying oblation along with the aurous Marud Gan. Hey Agni Dev! Resort to our welfare bringing happiness to our sons & grand sons.
त्वं नो अग्रे वरुणस्य विद्वान्देवस्य हेळोऽवयासिसीष्ठाः।
यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषांसि प्र मुमुग्ध्यस्मत्
हे अग्नि देव! आप समस्त पुरुषार्थ के साधना के उपायों को जानते हैं। हम लोगों के प्रति द्योतमान वरुण देव के क्रोध का अपनोदन करें। आप सबकी अपेक्षा अधिक याज्ञिक, हविर्वाही और अतिशय दीप्तिमान् हैं। आप हम लोगों को सब प्रकार के पापों से विशेष रूप से दूर अर्थात् विमुक्त करें।[ऋग्वेद 4.1.4]
हे अग्नि देव! तुम हमारी संतान को सुख प्रदान करो और हमको कल्याण प्रदान करो। हे अग्नि देव! तुम सभी कर्मों के स्वामी हो। प्रकाशवान वरुण को हमारे प्रति क्रोधित न होने दो। तुम यज्ञ करने वालों में उत्तम हवियों को वहन करने वाले अत्यन्त प्रकाशवान हो। तुम प्रत्येक प्रकार के पापों से हमारी सुरक्षा करो।
Hey wise Agni Dev! Avert from us the wrath of Varun Dev. You are the most frequent sacrificer, the most diligent bearer of oblations, the most resplendent liberate us from all animosities.
Hey Agni Dev! You are aware all means of achieving ambitions. Ensure that Varun Dev do not become angry with us. You are radiant, carrier of offerings of the Yagy. Remove our all sorts of sins.
स त्वं नो अग्रेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ।
अव यक्ष्व नो वरुणं रराणो वीहि मृळीकं सुहवो न एधि
हे अग्नि देव! रक्षा दान द्वारा आप हम लोगों के होवें। उषा के विनष्ट होने पर प्रातः काल में अग्नि होत्रादि कार्य की सिद्धि के लिए हम लोगों के अत्यन्त पास होवें। हम लोगों के लिए जो वरुण कृत जलोदरादि रोग और पाप हैं, उनका विनाश करे। आप लिए अत्यन्त फल प्रद हैं। आप इस सुखकर हवि का भक्षण करें। हम आपके उत्तम रूप का आह्वान करते हैं; हमारे निकट आगमन करें।[ऋग्वेद 4.1.5]
हे अग्नि देव! रक्षण कार्यों द्वारा हमारे अत्यन्त निकट आओ। उषा की समाप्ति पर प्रातः की बेला में यज्ञादि कार्यों की सिद्धि के लिए हमारे अत्यन्त पास पधारो। हमारे लिए जल से उत्पन्न व्याधियों को पहले ही समाप्त कर दो। तुम यजमानों को अभीष्ट फल प्रदान करते हो। तुम तुष्टिप्रद हवि का सेवन करो। हम तुम्हें भली-भाँति आहूत करते हैं। तुम हमारे निकट पधारो।
Hey Agni Dev! Come near to protect us, in the morning for carrying out Yagy and accomplishment of our endeavours. Vanish our ailments-diseases developed through water. You grant desired rewards to the Ritviz. Accept the nourishing offerings. We should honour, worship, pray you.
अस्य श्रेष्ठा सुभगस्य संदृग्देवस्य चित्रतमा मर्त्येषु।
शुचि घृतं न तप्तमघ्न्यायाः स्पार्हा देवस्य महनेव धेनोः
उत्तम रूप से भजनीय अग्नि देव का प्रशंसनीय अनुग्रह मनुष्यों के लिए अत्यन्त भजनीय तथा स्पृहणीय होता है। जिस प्रकार से क्षीराभिलाषी देवों के लिए गौओं का तेजोयुक्त, क्षरणशील और उष्ण दुग्ध स्पृहणीय होता है तथा जैसे मनुष्यों के लिए दूध देने वाली गाय भजनीय होती है।[ऋग्वेद 4.1.6]
स्पृहणीय :: प्राप्त करने योग्य, वांछनीय; coveted, enviable, preferable, admirable.
उत्तम ऐश्वर्यवान अग्नि देव की प्राणियों के बीच अत्यन्त महान तथा अद्भुत दृष्टि हो। जैसे दूध की कामना वाले प्राणियों को गाय का पवित्र दूध थन से निकलकर उष्ण को प्राप्त होता है, जैसे गौदान की कामना वाले को दान स्पृहणीय होता है, जैसे अग्नि का तेज भी गौ के समान पोषण योग्य एवं स्पृहणीय होता है।
Your favours to the humans deserve appreciation. The way warm coveted cow milk, full of energy-nourishment is desired by the demigods-deities, cow is worship able for the humans.
त्रिरस्य ता परमा सन्ति सत्या स्पार्हा देवस्य जनिमान्यग्नेः।
अनन्ते अन्तः परिवीत आगाच्छुचिः शुक्रो अर्यो रोरुचानः
अग्नि देव का प्रसिद्ध उत्तम और यथार्थ भूत अग्नि, वायु तथा सूर्यात्मक तीन जन्म सभी के द्वारा स्पृहणीय हैं। अनन्त आकाश में अपने तेज द्वारा परिवेष्टित, सभी के शोधक, दीप्ति युक्त और अत्यन्त दीप्यमान स्वामी अग्नि देव हमारे यज्ञ स्थल पर पधारें।[ऋग्वेद 4.1.7]
अग्नि के तीन रूप अग्नि, पवन और सूर्य विख्यात एवं महान हैं। अनन्त अम्बर में अपने तेज से व्याप्त सभी को पवित्र करने वाले, ज्योति से परिपूर्ण और अत्यन्त तेजस्वी अग्निदेव हमारे अनुष्ठान को ग्रहण हों।
Three form of Agni viz. fire, air and the Sun are admirable for all. Let extremely radiant Agni Dev present in the infinite sky with his aura-energy, purifier of all, obelize us by visiting-participating in our Yagy.
सदूतो विश्वेदभि वष्टि सद्मा होता हिरण्यरथो रंसुजिह्वः।
रोहिदश्वो वपुष्यो विभावा सदा रण्वः पितुमतीव संसत्
हे दूत! देवों के आह्वानकारी, सुवर्णमय रथोपेत एवं रमणीय ज्वाला विशिष्ट अग्नि देव! समस्त यज्ञ की कामना करते हैं। रोहिताश्व, रूपवान और सदा कान्ति युक्त अग्नि देव धन-धान्य से सम्पन्न घर की तरह सुखकारी हैं।[ऋग्वेद 4.1.8]
वे अग्नि देवगणों को आमंत्रित करने वाले दूत, स्वर्ण रथ वाले, अभिलाषित ज्वालाओं वाले, यज्ञों के प्राप्त होने की अभिलाषा करते हैं। सुसज्जित अश्व वाले, प्रदीप्त अग्नि अन्न से सम्पन्न गृह के समान सुखदायक हैं।
Agni Dev present in the golden charoite, with his beautiful flames, is the messenger-ambassador inviting-invoking demigods-deities, desires-wish to attend the Yagy. Agni Dev possessing decorated horse, accompanied with brilliant flames is comfortable like a house possessing food grains.
स चेतयन्मनुषो यज्ञबन्धुः प्र तं मह्या रशनयां नयन्ति।
स क्षेत्यस्य दुर्यासु साधन्देवो मर्तस्य सधनित्वमाप
अग्नि देव यज्ञ में विनियुक्त होते हैं। वे यज्ञ में प्रवृत्त मनुष्यों को जानते हैं। अध्वर्यु गण महती रशना द्वारा उत्तर वेदि में उनका प्रणयन करते हैं। याजक गण के गृहों में अभीष्ट साधन करते हुए वे निवास करते हैं। वे द्योतमान अग्नि देव धनियों के साथ एकत्र वास करते हैं।[ऋग्वेद 4.1.9]
अनुष्ठान :: संस्कार, समारोह, विधि, रस्म, धार्मिक प्रक्रिया (संस्कार, उत्सव, पद्धति), शास्र विधि, आचार, आतिथ्य सत्कार; rituals, rites, ceremonies.
अग्नि देव अनुष्ठान में व्याप्त होते हैं। वे यज्ञ कर्मों की कामना वाले प्राणियों को जानते हैं। अध्वर्युगण उन्हें उत्तर वेदी में नियम पूर्वक स्थापित करते हैं। यजमानों का अभिष्ट सिद्धि करते हुए उनके भवनों में रहते हैं। वे प्रकाशवान अग्नि देव धन सम्पन्नों सहित वास करते हैं।
Agni Dev is engaged-busy with religious ceremonies. He is aware of the humans who are engaged in the Yagy. The Ritviz establish him over the North end of the Vedi. He resides in the homes of the devotees to fulfil-accomplish their desires-motives. Radiant-aurous Agni Dev resides with the rich collectively.
स तू नो अग्निर्नयतु प्रजानन्नच्छा रत्नं देवभक्तं यदस्य।
धिया यद्विश्वे अमृता अकृण्वन्द्यौष्पिता जनिता सत्यमुक्षन्
स्तोताओं द्वारा भजनीय जो उत्कृष्ट रत्न अग्नि का है, उस रत्न को सर्वज्ञ अग्नि देव हमारे सम्मुख प्रेरित करें। मरण धर्म रहित समस्त देवों ने यज्ञ के लिए अग्नि का उत्पादन किया। द्युलोक उनके पालक और पिता हैं। अध्वर्यु गण घृतादि आहुतियों द्वारा यथार्थ भूत अग्नि को सिञ्चित करते हैं।[ऋग्वेद 4.1.10]
जिन रमणीय समृद्धि को प्रार्थना करने वाले भजते हैं, अग्नि देव की वह उत्तम समृद्धि और हमारे सम्मुख उपस्थित हो। अविनाशी देवों ने अग्नि देव को अनुष्ठान करने के लिए रचित किया है। अम्बर उनके पोषक पितृ रूप हैं। अध्वर्यु मनुष्य घृत आदि की से उस सत्य को सींचते हैं।
Let wise Agni Dev conduct us to that wealth which is desired by the devout-devotees. The fire has been produced by the immortals for the performance of sacred oblations, the most resplendent, liberate us from all animosities.
None is immortal. Even Maha Dev, Bhagwan Shri Hari Vishnu and brahma Ji have a fixed life span of 8 Prardh, 4 Parardh and 2 Parardh respectively.
ANIMOSITY :: शत्रुता, वैरभाव; द्वेष; a strong feeling of anger and dislike.
Let the excellent-marvellous prayers recited by the devotees in the honour of Agni Dev, be available to us. Immortal demigods-deities have ignited fire for the Yagy. The heavens are their nurturers and patrons-father. The Ritviz makes offerings of Ghee in fire.
स जायत प्रथमः पस्त्यासु महो बुध्ने रजसो अस्य योनौ।
अपादशीर्षा गुहमानो अन्तायोयुवानो वृषभस्य नीळे
अग्नि ही श्रेष्ठ हैं। वे याजक गणों के गृहों में और महान् अन्तरिक्ष के मूल स्थान में उत्पन्न हुए हैं। अग्नि पाद रहित और शिरोवर्जित हैं। वे शरीर के अन्तर्भाग का गोपन करके जलवर्षी मेघ-बादलों के निलय में अपने को घूमाकार बनाते हैं।[ऋग्वेद 4.1.11]
अग्नि देव सब में सर्वोत्तम हैं। वे गृहों निवास करने वाले प्राणियों के मध्य ग्रहों के मुखिया पुरुष के समान वास करते हैं। हे श्रेष्ठ जन समूह के आश्रय स्थान रूप एवं बिना पाँव वाले हैं। वे सभी के शीर्ष होते हुए भी शिरों से परे हैं। वे सभी के अन्दर रमे रहते हैं।
He is first engendered in the habitation-houses of the sacrificers, then upon his station-the altar, the base of the vast firmament-sky, space; without feet, without head, concealing his extremities, combining with smoke in the nest of the rain-cloud.
Agni Dev is best-excellent. He has evolved in the homes of the performers of Yagy and the centre of the space, configuring himself round, combining with the rain clouds. He has no legs-feet and head (specific shape & size). Though the head of all, he himself is without head. He is embedded in all.
प्र शर्ध आर्त प्रथमं विपन्याँ ऋतस्य योना वृषभस्य नीळे।
स्पार्हो युवा वपुष्यो विभावा सप्त प्रियासोऽजनयन्त वृष्णे
हे अग्नि देव! आप स्तुति युक्त उदक के उत्पत्ति स्थान में मेघ के कुलाय भूत अन्तरिक्ष में वर्तमान हैं। तेज आपके निकट सर्वप्रथम उपस्थित होता है। जो अग्नि स्पृहणीय, नित्य तरुण, कमनीय और दीप्तिमान् हैं, उन्हीं अग्नि देव के उद्देश्य से सप्त होता प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.1.12]
हे अग्नि देव! तुम जलों के रचित स्थान में बादल के नीड़ रूप अंतरिक्ष में प्रार्थनाओं से परिपूर्ण हुए व्याप्त रहते हो। सर्व महान तेज तुम्हारे पास उपस्थित होता है। जो अग्निदेव सभी के चाहने योग्य, सततयुवा कमनीय एवं ज्योति से परिपूर्ण हैं, सप्त होता इन्हीं के लिए वंदनाएँ उच्चारित करते हैं।
Hey Agni Dev! You are present in the clouds being worshipped-prayed. The Tej, aura-energy is present-associated with him. The Strotr-reciters of hymns, pray always young, beautiful, glittering, coveted, enviable, preferable, admirable Agni Dev.
अस्माकमत्र पितरो मनुष्या अभि प्र सेदुर्ऋतमाशुषाणाः।
अश्मव्रजाः सुदुघा वव्रे अन्तरुदुस्रा आजन्नुषसो हुवानाः
इस लोक में हमारे पितृ पुरुषों ने यज्ञ करने के लिए अग्नि के अभिमुख गमन किया। प्रकाश के लिए उषा देवी का आह्वान करते हुए उन लोगों ने अग्नि देव की परिचर्या के बल से पर्वत विलान्तर्वर्ती अन्धकार के बीच से दुधारु धेनुओं को मुक्त किया।[ऋग्वेद 4.1.13] 
इस संसार में हमारे पूर्वज यज्ञ साधन के लिए अग्नि के सामने उपस्थित हुए, उन्होंने उषा का आह्वान किया और अग्नि की पूजा से प्राप्त हुए बल के माध्यम से शैल की गुफाओं में छाए हुए अंधेरे में से दुहने योग्य पयस्विनी गौओं को बाहर किया।
Our ancestors-Manes presented themselves before Agni Dev in this universe. They invoked Usha Devi, worshiped Agni Dev and released the milch cows from the caves under darkness in the mountains.
ते मर्मृजत ददृवांसो अद्रिं तदेषामन्ये अभितो वि वोचन्।
पश्वयन्त्रासो अभि कारमर्चन्विदन्त ज्योतिश्चकृपन्त धीभिः
उन लोगों ने पर्वत को विदीर्ण करते समय अग्नि की परिचर्या की। अन्य ऋषियों ने उनके कर्म का कीर्तन सर्वत्र किया। उन्हें पशुओं को बचाने के उपाय मालूम थे। अभिमत फलप्रद अग्नि की प्रार्थना करते हुए उन्होंने ज्योति लाभ किया और अपने विवेक द्वारा यज्ञ किया।[ऋग्वेद 4.1.14] 
उन्होंने पर्वत को ध्वंस करते समय अग्नि की अर्चना की। अन्य ऋषियों ने भी उनके कार्यों का सब जगह बखान किया। उन्हें पशु सुरक्षा करके उपायों को पूर्ण ज्ञान था। उन्होंने अभीष्ट फल प्रदान करने वाली अग्निदेव की प्रार्थना दोबारा देखने वाली इंद्रिय को लाभ ग्रहण किया तथा अपनी उत्तम मति द्वारा यज्ञ कार्य का साधन किया।
They destroyed the mountains and circumambulated Agni Dev. Other Rishi Gan sung their endeavours every where. They were aware of the means to liberate the cattle. Having achieved their target they prayed-worshiped Agni Dev performing Yagy prudently and gained vision.
ते गव्यता मनसा दृधमुब्धं गा येमानं परि षन्तमद्रिम्।
दृळ्हं नरो वचसा दैव्येन व्रजं गोमन्तमुशिजो वि वव्रुः
अङ्गिरा आदि कर्मों के नेता और अग्नि की कामना वाले थे। उन्होंने मन से गौ लाभ की इच्छा करके द्वार निरोधक, दृढ़ बद्ध, सुदृढ़, गौओं के अवरोधक एवं सर्वतः व्याप्त गोपूर्ण गोष्ठ रूप पर्वत का अग्नि विषयक स्तुति द्वारा उद्घाटन किया।[ऋग्वेद 4.1.15]
पूर्व जन्म के कर्मों के करने में वे अग्रगण्य थे। वे अग्नि की हमेशा इच्छा करते थे। उन्होंने गौ के प्राप्त करने की कामना से अत्यन्त अटल गौओं से भरे हुए गौशाला के समान शैल की अग्नि की प्रार्थनाओं से प्राप्त बल द्वारा खोला।
Angira and other Rishi were expert in the procedures-methodology of performing Yagy & Agni worship. They desired to have-release the cows, destroyed the gates in the yard-cowshed possessing cows in captivity, reciting prayers devoted-addressed to Agni Dev.
ते मन्वत प्रथमं नाम धेनोस्त्रिः सप्त मातुः परमाणि विन्दन्।
तज्जानतीरभ्यनूषत व्रा आविर्भुवदरुणीर्यशसा गोः
हे अग्नि देव! स्तोत्र करने वाले अङ्गिरा आदि ने ही पहले-पहल जननी वाक के सम्बन्धी शब्दों को जाना, पश्चात् वचन सम्बन्धी सत्ताईस छन्दों को प्राप्त किया। अनन्तर इन्हें जानने वाली उषा की प्रार्थना की एवं सूर्य के तेज के साथ अरुण वर्णा उषा प्रादुर्भत हुई।[ऋग्वेद 4.1.16]
छन्द ::  मंत्र को सर्वतोभावेन आच्छादित करने की विधि को छन्द कहते हैं। यह अक्षरों अथवा पदों से बनता है। मंत्र का उच्चारण चूँकि मुख से होता है, अतः छन्द का मुख से न्यास किया जाता है।
वर्ण तथा यति (विराम) के नियमों के अनुरूप वाक्य या पद्यात्मक रचना, छंदशास्त्र में वर्ण या मात्राओं का वह निश्चित मान जिसके आधार पर पद्य लिखा जाता है, इच्छा, अभिलाषा, नियंत्रण, रुचि, अभिप्राय, तरकीब; उपाय; युक्ति, बंधन-गाँठ, स्वेच्छाचार, मन, वर्ण, मात्रा आदि की गिनती से होने वाली पद्यों की वाक्य रचना यथा दोहा, सोरठा, चौपाई; metre.
हे अग्ने! वंदना करने वाले अंगिरा आदि ऋषियों ने ही वाणी रूपिणी जननी से रचित वंदनाओं के साधन का शब्दों में पहली बार ज्ञान प्राप्त किया फिर सत्ताइस छन्दों को जाना। इसके बाद जानने वाली उषा की प्रार्थना की और तभी आदित्य के तेज से परिपूर्ण अरुण रंग वाली उषा का आविर्भाव हुआ।
Hey Agni Dev! rishi Angira at first learned the Strotr pertaining to the voice-speech and there after learned 27 Chhand-metre. Then he prayed to Devi Usha and the Sun-Adity, leading to the arrival of Arun with his aura.
नेशत्तमो दुधितं रोचत द्यौरुद्देव्या उषसो भानुरर्त।
आ सूर्यो बृहतस्तिष्ठदज्राँ ऋजु मर्तेषु वृजिना च पश्यन्
रात्रि कृत अन्धकार उषा द्वारा प्रेरित होने पर विनष्ट हुआ। अन्तरिक्ष दीप्त हुआ। उषा देवी की प्रभा उद्गत हुई। मनुष्यों के सत् और असत् कर्मों का अवलोकन करते हुए सूर्य देव महान् अजर पर्वत के ऊपर आरूढ़ हुए।[ऋग्वेद 4.1.17]
रात्रि के द्वारा उत्पन्न तम उषा की प्रेरणा से अटल हुआ, फिर अंतरिक्ष प्रकाशमय हुआ। उषा की आभा प्रकट हुई फिर प्राणियों के सत्य कर्मों को देखने में सक्षम अटल शैल पर चढ़ गये।
The darkness due to the night vanished as soon Devi Usha appeared,  leading the the aura spread by her. The space-sky lightened. Sury Dev-Sun rose to the immortal mountain to see virtuous-wicked, pious-vices the deeds-endeavours of the humans. 
आदित्पश्चा बुबुधाना व्यख्यन्नादिद्रलं धारयन्त द्युभक्तम्।
विश्वे विश्वासु दुर्यासु देवा मित्र धिये वरुण सत्यमस्तु
सूर्योदय के अनन्तर अङ्गिरा आदि ने पणियों द्वारा अपहृत गौओं को जानकर पीछे की ओर से उन गौओं को अच्छी तरह से देखा एवं दीप्ति युक्त धन धारित किया। इनके समस्त घरों में यजनीय देवगण आवें। वरुण जनित उपद्रवों का निवारण करने वाले हे मित्रभूत अग्निदेव! जो आपकी उपासना करता है, उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हों।[ऋग्वेद 4.1.18]
सूर्य के उदित होने पर अंगिरा आदि ऋषियों ने पणियों के द्वारा चुराई गई धेनुओं को जाना तथा पीछे से उन्हें भली-भाँति देखा। इसके समस्त साधनों को अनुष्ठान कार्य में हिस्सा ग्रहण करने के पात्र देवता ग्रहण हुए। हे सखा की भावना से ओत-प्रोत अग्निदेव! तुम वरुण के क्रोध को शांत करने वाले हो। तुम्हारी उपासना करने वालों को फल ग्रहण हो।
After the Sun rise Angira and the other Rishis carefully examined the released cows from behind and accepted the glittering wealth (gems & jewels). Let revered-honoured demigods-deities visit their houses. Hey Agni Dev! Any one wo worship-pray you is released from the troubles generated-created by Varun Dev, leading to accomplishment of all of his desires.
अच्छा वोचेय शुशुचानमग्निं होतारं विश्वभरसं यजिष्ठम्।
शुच्यूधो अत्रंण गवामन्धो न पूतं परिषिक्तमंशोः
हे अग्नि देव! आप अत्यन्त दीप्तिमान्, देवों के आह्वाता, विश्व पोषक और सर्वापेक्षा यागशील है। आपके उद्देश्य से हम प्रार्थना करते हैं। याजक गण लोग आपको आहुति देने के लिए गौओं के ऊधः प्रदेश से शुद्ध पवित्र दुग्ध नहीं दुहा तथा सोम को अभिषुत (भी) नहीं किया, वे लोग केवल आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.1.19]
हे अग्ने! तुम देवगणों का आह्वान करने वाले, अत्यन्त प्रदीप्त वाले, संसार के पालनकर्त्ता, सबकी उपेक्षा अत्यधिक यज्ञ-कर्म करने वाले हो। हम तुम्हारी वन्दना करते हैं। तुम्हारे लिए आहुति देने के लिए तुम्हारी अर्चना करते हैं।
Hey radiant-aurous Agni Dev! You invoke the demigods-deities, nourish-nurture the whole world and is comparatively worshiped more. We worship-pray you and make offerings for you with cow's Ghee. 
विश्वेषामदितिर्यज्ञियानां विश्वेषामतिथिर्मानुषाणाम्।
अग्निर्देवानामव आवृणानः सुमृळीको भवतु जातवेदाः
अग्नि देव समस्त यज्ञीय देवताओं को पैदा (उत्पन्न) करने वाले हैं तथा अग्नि देव सम्पूर्ण मनुष्यों के लिए अतिथिवत् पूज्य हैं। स्तोताओं के अन्न भोजी अग्नि देव स्तोताओं के लिए सुखकर हों [ऋग्वेद 4.1.20] 
अग्नि देव यज्ञ के लिए अतिथि के समान पूजने योग्य हैं। स्तोताओं का हृव्य भक्षण करने वाले अग्नि देव वंदना करने वाले को सुखी करें।
Agni Dev invoke all demigods-deities for the Yagy and is respectable like a guest. Let Agni Dev accepting the offerings of the Ritviz-Strota be blissful to them.(13.1.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अग्नि,  छन्द :- त्रिष्टुप
यो मर्त्येष्वमृत ऋतावा देवो देवेष्वरतिर्निधायि।
होता यजिष्ठो मह्ना शुचध्यै हव्यैरग्निर्मनुष ईरयध्यै
जो मरण धर्म-रहित अग्नि देव मनुष्यों के बीच में सत्यवान होकर निहित है, जो दीप्तिमान अग्नि देव इन्द्रादि देवताओं के बीच में शत्रुओं के पराभव कर्ता है, वे ही अग्नि देव देवों के आह्वाता और सबकी अपेक्षा अधिक यज्ञ करने वाले हैं। वे अपनी महिमा से प्रदीप्त होने के लिए उत्तर वेदि पर स्थापित हुए हैं एवं हवि द्वारा याजक गणों को स्वर्ग लोक भेजने के लिए स्थापित हुए हैं।[ऋग्वेद 4.2.1]
अविनाशी अग्नि के साथ स्वरूप से मनुष्य के मध्य रहते हैं। जो ज्योर्तिवान अग्नि देव इन्द्रादि देवों के संग मिलकर शत्रुओं को पराजित करने वाले हैं। वे अग्नि देवों को पुकारने में समर्थ हैं तथा सबसे अधिक यज्ञानुष्ठान करते हैं। वे उत्तर वेदी पर अपनी महिमा द्वारा ही प्रदीप्त होने के लिए पधारते हैं तथा हवि वहन करते हुए यजमानों को मोक्ष प्राप्त कराने के लिए प्रकट हुए हैं।
Immortal, truthful Agni Dev is present amongest the humans. Radiant Agni Dev present amongest the demigods-deities defeats the enemies with them. He has been established in the North of the Vedi to help the Ritviz attain heavens. 
इह त्वं सूनो सहसो नो अद्य जातो जाताँ उभयाँ अन्तरग्ने।
दूत ईयसे युयुजान ऋष्व ऋजुमुष्कान्वृषणः शुक्रांश्च
हे बल पुत्र अग्नि देव! आप आज हमारे इस कार्य में प्रकट हुए हैं। हे दर्शनीय अग्निदेव! आप ऋजु, मांसल, दीप्तिमान् और बलवान् अश्वों को रथ में युक्त करके जन्म विशिष्ट देव और मनुष्यों के बीच में हव्य पहुँचाने के लिए दूत बनकर पहुँचते हैं।[ऋग्वेद 4.2.2]
ऋजु :: सीधा, ईमानदार और सच्चा; unbent, straight, honest & truthful.
हे बलोत्पन्न अग्नि देव! तुम आज हमारे कार्य में सिद्ध हुए हो, तुम दर्शनीय हो अपने पुष्ट तेजस्वी, शक्तिशाली अश्वों को रथ में जोतकर देवताओं और प्राणियों के मध्य हवि वाहक दूत रूप से प्राप्त हो।
Hey Agni Dev born out of might! You have invoked in our endeavour. Hey beautiful Agni Dev! You are honest & truthful radiant, muscular; deploy the horses in the charoite and become the messenger-ambassador between the demigods-deities and the living beings.  
अत्या वृधस्नू रोहिता घृतस्नू ऋतस्य मन्ये मनसा जविष्ठा। 
अन्तरीयसे अरुषा युजानो युष्मांश्च देवान्विश आ च मर्तान्
हे अग्नि देव! आप सत्य भूत हैं। मैं आपके रोहित वर्ण वाले अश्वद्वय की प्रार्थना करता हूँ। वे अश्व मन की अपेक्षा भी अधिक वेगवान हैं, वे अन्न और जल का क्षरण करते हैं। आप दीप्तिमान अश्वद्वय को रथ में नियोजित करके देवों और मनुष्यों के बीच में प्रवेश करें।[ऋग्वेद 4.2.3]
रोहित :: लाल रंग का, रक्त वर्ण, लोहित, रोहु मछली, एक प्रकार का मृग, रोहितक नाम का पेड़, इंद्रधनुष, कुसुम का फूल, बरे का फूल, केसर, रक्त, लहु, खून, वाल्मीकि रामायण के अनुसार गंधर्बों की एक जाति, लोमड़ी, लाल रंग का घोड़ा, राजा हरिश्चंद्र के पुत्र का नाम, अयोध्या के राजा।
हे अग्नि देव! तुम सत्य के रूप हो। मैं तुम्हारे दोनों लाल रंग वाले अश्वों की प्रार्थना करता हूँ। तुम्हारे अश्व हृदय से भी अधिक गति वाले हैं। वे अन्न और जल की वृष्टि करते हैं। तुम उन तेजस्वी अश्वों को अर्पण रथ में जोड़कर देवों और मनुष्यों के मध्य में पधारो।
Hey truthful Agni Dev! I pray-worship your red coloured two horses. They are faster than the speed of mind. They grant food grains and rains. Join the humans & the demigods-deities riding your charoite deploying the red horses.
अर्यमणं वरुणं मित्रमेषामिन्द्राविष्णू मरुतो अश्विनोत।
स्वश्वो अग्ने सुरथः सुराधा एदु वह सुहविषे जनाय
हे अग्नि देव! आपका अश्व उत्तम है, रथ उत्तम है और धन भी उत्तम है। इन मनुष्यों के बीच में शोभन हवि वाले याजक गण के लिए अर्यमा, वरुण, मित्र, इन्द्र, विष्णु, मरुद्गण और अश्विनी कुमारों को इस यज्ञ स्थल पर ले आयें।[ऋग्वेद 4.2.4]
हे अग्ने! तुम्हारे अश्व, रथ एवं कीर्ति सभी में उत्तम हैं। अर्यमा, वरुण, मित्र, इन्द्र, विष्णु, मरुद्गण तथा दोनों अश्विनी कुमारों को हवि से युक्त यजमानों के लिए इन प्राणियों के बीच बुलाओ।
Hey Agni Dev! Your horses, charoite & the wealth are excellent-superb. Accompany-bring Aryma, Varun, Mitr, Indr, Vishnu, Marud Gan and Ashwani Kumars to the Yagy site for the sake of the humans, using-making best offerings.
गोमाँ अग्नेऽविमाँ अश्वी यज्ञो नृवत्सखा सदमिदप्रमृष्यः।
इळावाँ एषो असुर प्रजावान्दीर्घो रयिः पृथुबुध्नः सभावान्
हे बलवान् अग्नि देव! हमारा यह यज्ञ गौ विशिष्ट, मेष-भेड़ विशिष्ट और अश्व विशिष्ट है। जो यज्ञ अध्वर्यु और याजक गण विशिष्ट है, वह यज्ञ सर्वदा अप्रधृष्य, हविरन्न से युक्त तथा पुत्र-पौत्रवान हो एवं अविच्छिन्न अनुष्ठान से संयुक्त, धन सम्पन्न, बहुत धनों का हेतुभूत और उपदेष्टाओं से युक्त हो।[ऋग्वेद 4.2.5]
अप्रधृष्य :: अजेय, जिसे दबाया या हटाय़ा न जा सके; unassailable, unconquerable, invincible.
उपदेष्टा :: उपदेशक, preceptorial.
हे शक्ति शाली अग्नि देव! हमारा अनुष्ठान ऋषभ, धेनु और घोड़े लाभ करने वाले हों। जो अध्वर्युओं और यजमानों द्वारा किया जाता है। वह अनुष्ठान हव्य से सम्पन्न तथा संतानों से परिपूर्ण हो और अनुष्ठान धन तथा समृद्धियों का कारण भूत और उपदेश से पूर्ण हो।
Hey mighty Agni Dev! Let our Yagy performed-conducted by the Ritviz and the priests help us in securing cows, sheep and the horses. It should be invincible, include offerings of food grains, various kinds of wealth, associated by the sons & grand sons and  preceptorial.
यस्त इध्मं जभरत्सिष्विदानो मूर्धानं वा ततपते त्वाया।
भुवस्तस्य स्वतवाँ: पायुरग्ने विश्वस्मात्सीमघायत उरुष्य
हे अग्नि देव! जो मनुष्य आपके लिए स्वेद (पसीने से) युक्त होकर लकड़ियों को ढोता है, जो आपको प्राप्त करने की कामना से अपने मस्तक को लकड़ी के भार से उत्तप्त करता है, उसे आप धनवान बनाते हुए उसका पालन करते हैं। जो कोई उनके अनिष्ट-कामना करता है, उससे आप उनकी रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.2.6]
हे अग्निदेव! तुम्हारे लिए लकड़ियों को ढोने वाला जो प्राणी पसीने से युक्त होता है, जो तुम्हारी अभिलाषा से अपने माथे को काष्ठ के बोझ से भारी करता है तुम उसका पालन करते हुए उसे धन से युक्त करते हो। तुम उसके अहित-चिंतकों से भी उसके रक्षक हों।
Hey Agni Dev! A person who carry a load of wood over his head, sweating, desirous of invoking you is enriched, nourished-nurtured & protected by you from those who wish to harm him.
यस्ते भरादन्नियते चिदन्नं निशिषन्मन्द्रमतिथिमुदीरत्।
आ देवयुरिनधते दुरोणे तस्मिन्रयिध्रुवो अस्तु दास्वान्
हे अग्नि देव! अन्न की इच्छा करने पर जो कोई आपको देने के लिए हविष्यान्न धारित करता है, जो आपको हर्ष कर सोमरस प्रदान करते हैं, जो अतिथि रूप से आपका उत्तर वेदि पर प्रणयन करता है और जो व्यक्ति देवत्व की इच्छा करके आपको घर में प्रदीप्त करता है, उसका पुत्र धर्म पथ में निश्चल और औदार्य विशिष्ट हो।[ऋग्वेद 4.2.7]
औदार्य :: उदारता; frankness, liberalism.
हे अग्ने! अन्न की इच्छा से जो तुम्हें उत्तर वेदी पर अतिथि रूप से विद्यमान करता है तथा जो मनुष्य देवत्व की इच्छा से अपने गृह में तुम्हें विद्यमान करता है, उसका पुत्र धर्ममार्गी, स्थिर और उदार हो।
Hey Agni Dev! A devotee desirous of food grains, who establish you over the east of the Uttar Vedi (Yagy site) like-as a guest, provides you Somras for your pleasure-happiness, lit you inside his house for the grant of demigodhood-deity hood, his son always abide by the Dharm-perform his duties religiously firmly, accompanied by frankness, liberalism.
यस्त्वा दोषा य उषसि प्रशंसात्प्रियं वा त्वा कृणवते हविष्मान्।
अश्वो न स्वे दम आ हेम्यावान्तमंहसः पीपरो दाश्वांसम्॥
हे अग्नि देव! जो मनुष्य रात्रि काल में और जो व्यक्ति उषा काल में आपकी प्रार्थना करता है एवं जो याजक गण प्रिय हव्य से युक्त होकर आपको प्रसन्न करता है, आप अपने घर में सुवर्ण निर्मित सज्जा (काठी) विशिष्ट अश्व के तुल्य विचरण करते हुए उस याजक गण की दरिद्रता से रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.2.8]
हे अग्ने! जो प्राणी रात्रि के समय या उषा बेला में तुम्हारी वंदना करता है, तुम उस यजमान की, सुवर्ण से बनी झूल वाले अश्व के समान चलते हुए आकर रक्षक हो।
Hey Agni Dev! A devotee who pray to you both in the morning & evening making offerings, pleases you is granted a horse having golden rug over its body & is protected by you. 
यस्तुभ्यमग्ने अमृताय दाशद्दुवस्त्वे कृणवते यतस्रुक्।
न स राया शशमानो वि योषन्नैनमंहः परि वरदघायोः॥
हे अग्नि देव! आप अमर हैं। जो याजक गण आपके लिए हव्य प्रदान करता है, जो आपके लिए स्रुक को संयत करता है, जो आपकी परिचर्या करता है, वह प्रार्थना करने वाला याजक गण धन शून्य न हो तथा हिंसक प्राणी उन्हें कष्ट न दे सकें।[ऋग्वेद 4.2.9]
हे अग्ने! तुम्हारा कभी पतन नहीं होता। जो यजमान तुमको हवि प्रदान करता है, जो यजमान तुम्हारे लिए स्नुक को सही करता है तथा जो यजमान तुम्हारी अर्चना सेवा करता है, वह प्रार्थना करने वाला यजमान कभी भी निर्धन न हो।हिंसकों की हिंसा उसे कभी भी स्पर्श न करे।
Hey immortal Agni Dev! A devotee who make offerings to you holding the Struck firmly, pray-worship you should not become poor and the beasts should never trouble-harm him.
यस्य त्वमग्ने अध्वरं जुजोषो देवो मर्तस्य सुधितं रराणः।
प्रीतेदसद्धोत्रा सा यविष्ठासाम यस्य विधतो वृधासः
हे अग्नि देव! आप आनन्द युक्त दीप्तिमान हैं। आप जिस मनुष्य का सुसम्पादित और हिंसा रहित अन्न भक्षण करते हैं, हे युवतम! वह होता निश्चय ही हर्षित होता है। अग्नि देव के परिचर्याकारी जो याजक गण यज्ञ के वर्द्धयिता हैं, हम उन्हीं के होंगे।[ऋग्वेद 4.2.10]
हे सद्य युवा अग्ने! तुम प्रसन्न रहते हो तथा प्रकाशवान हो। जिस यजमान का भली प्रकार संपादित तथा हिंसा शून्य भावना से दिया हुआ अन्न सेवन करते हो, यह होता निश्चय ही प्यार करने वाला है। अग्नि की सेवा करने वाले जो यजमान यज्ञ को बढ़ाते हैं हम उन्हीं का अनुसरण करेंगे।
सद्य :: आज ही, इसी समय, अभी, तुरंत, शीघ्र, झट, तत्काल, कुछ ही समय पूर्व, भगवान् शिव का एक नाम, सद्योजात; current.
Hey Agni Dev! You are happy and radiant. The Ritviz-devotee who's food grains-offerings are accepted by you, become happy-blissful. Hey youthful! We will accompany-associate ourselves with those Ritviz who prolong-continue with the Yagy-rituals.
चित्तिमचित्तिं चिनवद्वि विद्वान्पृष्ठेव वीता वृजिना च मर्तान्।
राये च नः स्वपत्याय देव दितिं च रास्वादितिमुरुष्य
अश्व पालक जिस प्रकार से अश्वों के कान्त एवं दुर्वह पृष्ठों को पृथक कर सकते हैं, उसी प्रकार विद्वान अग्नि देव पाप और पुण्य को पृथक करें। हे अग्नि देव! हम लोगों को सुन्दर पुत्र से युक्त धन दें। आप दाता को धन दें और अदाता के समीप से उसकी रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.2.11]
जैसे घोड़े की पोषण करने वाला उसकी पीठ के कसे हुए साज को पृथक कर देता है, वैसे ही अग्नि देव पाप-पुण्य को पृथक करें। हे अग्ने ! हमको पुत्र से परिपूर्ण धन प्रदान करो। तुम दान देने वाले को धन प्रदान करो और उसका नजदीक से पोषण करो। 
The way the caretaker of the horse removes the rug from its back, let enlightened Agni Dev separate his sins and virtues. Hey Agni Dev! Bless us with obedient-virtuous sons and wealth. Grant wealth-riches to the donor and protect him.
कविं शशासुः कवयोऽदब्धा निधारयन्तो दुर्यास्वायोः।
अतस्त्वं दृश्याँ अग्न एतान्पड्भिः पश्येरद्भुताँ अर्य एवैः
हे अग्नि देव! मनुष्यों के घरों में निवास करने वाले अतिरस्कृत देवों ने आपको मेधावी होता होने के लिए कहा है। हे अग्नि देव! आप मेधावी हैं, यज्ञ स्वामी हैं; इसलिए आप अपने चञ्चल तेज से दर्शनीय और अद्भुत देवों को देखें।[ऋग्वेद 4.2.12]
चंचल :: जो बराबर गतिशील हो, हिलने-डुलनेवाला, अस्थिर; playful, fickle.
हे अग्ने! प्राणियों के गृहों में वास करने वाले तथा कभी भी निरादृत न होने वाले देवगणों से तुमने अत्यधिक ज्ञानी को होता नियुक्त किया है। हे अग्निदेव! तुम यज्ञ के पालनकर्त्ता हो तथा मेधावी हो। तुम अपने चंचल तेज के माध्यम से देवगणों को दर्शनीय बनाओ।
Hey Agni Dev! The revered-honoured demigods-deities have requested you to accept the priesthood of the humans being enlightened in who's house you are present-worshiped. Hey Agni Dev! You are the master-deity of the Yagy. Perceive the amazing demigods-deities with your aurous-radiant playful eyes.
त्वमग्ने वाघते सुप्रणीतिः सुतसोमाय विधते यविष्ठ।
रत्नं भर शशमानाय घृष्वे पृथु श्चन्द्रमवसे चर्षणिप्राः
हे दीप्तिमान युवतम अग्नि देव! आप मनुष्यों की अभिलाषा के पूरक एवं उत्तर वेदि पर प्रणयन के योग्य हैं। जो याजक गण आपके लिए सोमाभिषव करता है, आपकी परिचर्या करता है और आपकी प्रार्थना करता है, उसकी रक्षा के लिए आप उसे प्रभूत, आह्लादकर तथा उत्तम धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.2.13]
हे सद्ययुवा अग्नि देव! तुम अत्यन्त तेजस्वी हो। तुम मनुष्यों की कामनाओं को पूर्ण करते हो। तुम उत्तर वेदी पर विद्यमान किये जाने के पात्र हो। जो यजमान तुम्हारे लिए सोम का अभिषव करता है, तुम्हारी सेवा करता हुआ श्लोक उच्चारण करता है, उसी की सुरक्षा के लिए उसे हर्षिता, महान, धन प्रदान करो।
Hey young radiant Agni Dev! You fulfil-accomplish the desires of devotees-worshipers and deserve to be present over the Uttar Vedi of Yagy site. The devotee who recite prayers in your honour, while extracting Somras for you, is granted best comforts, wealth  and protection.
अधा ह यद्वयमग्ने त्वाया पड्भिर्हस्तेभिश्चकृमा तनूभिः।
रथं न क्रन्तो अपसा भुरिजोर्ऋतं येमुः सुध्य आशुषाणाः
हे अग्नि देव! जिस लिए हम लोग आपकी कामना से हाथ, पैर और शरीर द्वारा कार्य करते हैं, जिस प्रकार से शिल्पिकार रथ निर्माण करते हैं। उसी प्रकार यज्ञरत और शोभनकर्मा अङ्गिरा आदि ने बाहु द्वारा काष्ठ मन्थन करके आप सत्यभूत को उत्पन्न अर्थात् पैदा किया।[ऋग्वेद 4.2.14]
हे अग्नि देव! जिस कारण से हम तुम्हारी कामना करते हुए हाथ-पाँव तथा शरीर को कार्यरत करते हैं, उसी कारण उसमें कर्म वाले, यज्ञ कार्य में लगे हुए अंगिरा आदि ऋषियों ने अपने हस्त से अरणी मंथन के माध्यम से शिल्पों को पथ निर्माण करने के समान तुमने सत्य के कारण रूप प्रकट किया।
Hey Agni Dev! We wish to have-acquire you by using our hands, legs and the body, just like the artisan-wood smith, carpenter construct the charoite. Similarly, Angira and other Rishis-sages rub the wood with their hands and evolve truthful fire-Agni.
अधा मातुरुषसः सप्त विप्रा जायेमहि प्रथमा वेधसो नॄन्।
दिवस्पुत्रा अङ्गिरसो भवेमाद्रिं रुजेम धनिनं शुचन्तः
हम सात व्यक्ति (वामदेव और छः अङ्गिरा) प्रथम मेधावी हैं। हम लोगों ने माता उषा के समीप से अग्नि के परिचालकों या रश्मियों को पैदा किया। हम द्योतमान आदित्य के पुत्र अङ्गिरा हैं। हम दीप्तिमान सूर्य होकर उदक विशिष्ट पर्वत या बादलों का भेदन करेंगे।[ऋग्वेद 4.2.15]
हम सात विप्र आरिम्भक मेधावी हैं। हमको माता रूप उषा के आरम्भिक समय में अग्नि ने रचित किया है। हम ज्योर्तिवान आदित्य के पुत्र अंगिरा हैं। हम तेजस्वी होकर जल से पूर्ण बादल को विदीर्ण करेंगे।
We 7 people, Vamdev and 6 Angira are the first intelligent people. We generated the rays-flames in fire with the day break-Usha. We are the sons of radiant-aurous Angira. We will become radiant Sun-Adity & shine tearing off rains from the clouds. 
अधा यथा नः पितरः परासः प्रत्नासो अग्न ऋतमाशुषाणाः।
शुचीदयन्दीधितु मुक्थशासः क्षामा भिन्दन्तो अरुणीरप व्रन्
हे अग्नि देव! हम लोगों के श्रेष्ठ, पुरातन और सत्य भूत यज्ञ में रत पितृ पुरुषों ने दीप्त स्थान तथा तेज प्राप्त किया। उन्होंने स्तोत्रों का उच्चारण करके अन्धकार का नाश किया तथा पणियों द्वारा अपहृत अरुण वर्णा गौओं को या उषा को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 4.2.16]
हे अग्नि देव! हमारे पूर्वजों ने उत्तम, परम्परागत और सत्य के कारण यज्ञ-कर्मों को करके श्रेष्ठ पद और तेज को प्राप्त किया। उन्होंने उक्थों के माध्यम से अंधेरे का विनाश किया और पणियों द्वारा अपहृत गायों को ढूँढा।
Hey Agni Dev! Our great, ancient and truthful ancestors attained the brilliant positions. They recited the Strotr, removed darkness & released the cows abducted by the Pani-demons.
सुकर्माणः सुरुचो देवयन्तोऽयो न देवा जनिमा धमन्तः।
शुचन्तो अग्निं ववृधन्त इन्द्रमूर्वं गव्यं परिषदन्तो अग्मन्
सुन्दर यज्ञादि कार्य में रत दीप्ति युक्त तथा देवाभिलाषी स्तोता धौंकनी द्वारा निर्मल लोहे के मनुष्य जन्म को यागादि कार्य द्वारा निर्मल करते हैं। वे अग्नि देव को दीप्त तथा इन्द्र देव को प्रवृद्ध करते हैं। चारों ओर उपवेशन करके उन्होंने महान गौ समूह को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 4.2.17]
धोंकनी के द्वारा पवित्र हुए लोहे के तुल्य, अनुष्ठान आदि महान कर्मों में लगे, देवों के द्वारा पवित्र करते हैं। वे अग्नि को ज्योर्तिवान करते हुए इन्द्र देव की वृद्धि करते हैं। उन्होंने चारों तरफ आराधना करते हुए वृहद गौ संगठन को पराजित किया था।
The aurous recitators busy with the rituals and the Yagy, purify-cleanse their actions-acts just like the red hot iron is purified by the blower. They ignite the fire and worship-pray to strengthen Indr Dev. They prayed all around and attained a large cattle herd.
आ यूथेव क्षुमति पश्वो अख्यद्देवानां यज्जनिमान्त्युग्र।
मर्तानां चिदुर्वशीरकृप्रन्वृधे चिदर्य उपरस्यायोः
हे अग्नि देव! अन्न विशिष्ट घर में पशु समूह रहता है, उसी प्रकार अङ्गिरा आदि देवों के गौ समूह के निकट हैं। उनके द्वारा लाई गई गौओं से प्रजा सामर्थवान हुई। आर्य अपत्य वर्द्धन समर्थवान और मनुष्य पोषण समर्थ हुए।[ऋग्वेद 4.2.18]
हे अग्नि देव! तुम तेजवान हो। अन्न से युक्त गृह में पशुओं के निवास करने के समान देवगणों की गायों का सामीप्य अंगिरादि को प्राप्त है। उनके द्वारा लाई गई गायों ने प्रजाओं को पुष्ट किया। वर्द्धन सामर्थ्य से युक्त प्राणी संतानवान एवं पोषण सामर्थ्य से युक्त हो।
Hey brilliant Agni Dev! The way food grains are available in the house having cattle, Angira and demigods-deities are near the cow herd. The populace gained strength by virtue of the cows brought by them. The Ary had progeny turned strong and duly nourished-nurtured.
अकर्म ते स्वपसो अभूम ऋतमवस्त्रन्नुषसो विभातीः।
अनूनमग्निं पुरुधा सुश्चन्द्रं देवस्य मर्मृजतश्चारु चक्षुः
हे अग्नि देव! हम आपकी उपासना करते हैं, जिससे हम शोभन कर्म वाले होते हैं। तम निवारिका उषा सकल तेज धारित करती है। वह पूर्ण रूप से आह्लादकर अग्नि देव को बहुधा धारित करती है। आप द्योतमान है। हम आपके मनोहर तेज की परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 4.2.19]
हे अग्नि देव! हम तुम्हारी अर्चना करते हैं, उसी से हम महान कर्म वाले बनते हैं। अंधकार का पतन करने वाली उषा समस्त तेजों से परिपूर्ण हुई प्रदान करने वाली अग्नि को धारण करने वाली है। तुम ज्योति से परिपूर्ण हो। हम तुम्हारे रमणीय तेज की आराधना करते हैं।
Hey Agni Dev! We worship you and perform virtuous, righteous, auspicious deeds. You support bright Usha-day break. Usha generally-normally possess pleasant Agni Dev.  You are radiant and we appreciate your delightful energy. 
एता ते अग्न उचथानि वेधोऽवोचाम कवये ता जुषस्व।
उच्छोचस्व कृणुहि वस्यसो नो महो रायः पुरुवार प्र यन्धि
हे विधाता अग्नि देव! आप मेधावी हैं। हम आपके उद्देश्य से इस सम्पूर्ण स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं, आप इसका सेवन करें। आप उद्दीप्त होकर हमें विशेष रूप से धनवान् करें। आप बहुतों द्वारा वरणीय हैं। आप हम लोगों को महान् धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.2.20]
हे अग्नि देव! तुम मेधावी हो। हम तुम्हारे लिए श्लोकों का उच्चारण करते हैं, तुम इनको स्वीकार करो। तुम प्रदीप्त होकर वृद्धि करो। तुम अनेक द्वारा प्रदान करो।
Hey Agni Dev! You are brilliant-intelligent. Accept the prayers-Strotr we recite in your honour. You glow and make us rich. Grant us lots of wealth. You are revered-honoured by many.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अग्नि,  रुद्र, छन्द :- त्रिष्टुप
आ वो राजानमध्वरस्य रुद्रं होतारं सत्ययजं रोदस्योः।
अग्निं पुरा तनयित्नोरचित्ताद्धिरण्यरूपमवसे कृणुध्वम्
हे याजक गणों! चंचल विद्युत की तरह आने वाली मृत्यु के पहले ही अपनी रक्षा के लिए यज्ञ के स्वामी, देवों के आवाहक, रुद्र रूप, द्यावा-पृथ्वी के बीच वास्तविक यजन प्रक्रिया चलाने वाले, स्वर्णिम आभा युक्त अग्नि देव का पूजन करें।[ऋग्वेद 4.3.1]
हे मनुष्यों! देवों के आह्वान करने वाले, अनुष्ठान के स्वामी अम्बर धरा को अन्न से पूर्ण करने वाले, स्वर्ण के समान शोभा वाले तथा शत्रुओं को रुलाने में समर्थ क्रोधित रूप वाले अग्नि देव की, मृत्यु के पहले ही सुरक्षा ग्रहण करने के लिए उपासना करो। 
Hey humans-worshipers! Let us pray-worship Agni Dev-the deity of Yagy, possessing golden hue, a form of Rudr, present between the heaven & earth, who invite the demigods-deities in the Yagy, prior to the arrival of death as quickly as lightening, 
अयं योनिश्चकृमा यं वयं ते जायेव पत्य उशती सुवासाः।
अर्वाचीनः परिवीतो नि षीदेमा उ ते स्वपाक प्रतीचीः
हे अग्नि देव! पति कामिनी एवं सुवस्त्राच्छादिता स्त्री जिस प्रकार पति के लिए स्थान प्रस्तुत करती है, उसी प्रकार हम लोग भी उत्तर वेदि रूप प्रदेश प्रदान करते हैं, यही आपका स्थान है। हे सुकर्मा अग्नि देव! आप तेज द्वारा परिवृत होकर हम लोगों के अभिमुख उपवेशन करें। यह सकल प्रार्थना आपके अभिमुख उपवेशन करे।[ऋग्वेद 4.3.2]
हे अग्ने! पति की अभिलाषा वाली एवं सुन्दर कपड़ों से सुसज्जित नारी जिस प्रकार पति के लिए स्थान देती है, वैसी ही हम उत्तर वेदी रूप स्थान तुम्हारे लिए प्रदान करते हैं। तुम्हारा यही स्थान है। हे अग्निदेव! तुम उत्तम कर्मों को करने वाले हो, तुम अपने तेज से सुसज्जित हुए हमारे सम्मुख पधारो। यह वंदना तुम्हारी पूजा में पहुंचे। 
Hey Agni Dev! Let us provide the place over the Uttar Vedi, the way a woman desirous of husband decorate herself in beautiful cloths. Please stay with us possessing radiance. We are reciting this prayer for you. 
आशृण्वते अदृपिताय मन्म नृचक्षसे सुमृळीकाय वेधः।
देवाय शस्तिममृताय शंस ग्रावेव सोता मधुषुद्यमीळे
हे स्तोता! स्तोत्र श्रवण परायण, अप्रमत्त, मनुष्यों के द्रष्टा, सुखकर और अमर अग्नि देव के उद्देश्य से स्तोत्र और शस्त्र का पाठ करें। प्रस्तर के तुल्य सोमाभिषवकारी याजक गण अग्नि की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.3.3]
हे वंदनाकारी! तुम श्लोकों को सुनने वाले, निरालस्य, द्रष्टा एवं अविनाशी की इच्छा से वंदनाओं को उच्चारण करो। पाषाण, जैसे सोम का अभिषव करने में समर्थवान हैं, उसी प्रकार यजमान अग्निदेव के लिए प्रार्थना करने में तल्लीन रहते हैं।
Hey Stota-devotee! Recite Strotr for immortal, blissful Agni Dev, without laziness. The way stone is capable of extracting Somras, the devotees-Ritviz keep performing his prayers.
त्वं चिन्नः शम्या अग्ने अस्या ऋतस्य बोध्यृतचित्स्वाधीः।
कदा त उक्था सधमाद्यानि कदा भवन्ति सख्या गृहे ते
हे अग्नि देव! हम लोगों के इस कर्म के आप देवता होवें। हे सत्यज्ञ अग्नि देव! आप सुकर्मा हैं। आपको हमारी प्रार्थना ज्ञात है। उन्मादकारक आपके स्तोत्र कब उच्चारित होंगे? हमारे घर में आपके साथ कब मित्र भाव होगा?[ऋग्वेद 4.3.4]
हे अग्नि देव! हमारे इस यज्ञ अनुष्ठान में तुम देवता बनो। तुम सत्य को जानने वाले तथा महान कर्मों को करते हो। तुम हमारे श्लोकों को जानों। तुम आह्लाद उत्पन्न करने वाले हो। तुम हमारे स्तोत्र को समझो। आह्लाद उत्पन्न करने वाले तुम्हारे स्तोत्र कब कहे जायेंगे? तुम हमारे घर में कब मैत्री भाव से व्याप्त होगे?
Hey Agni Dev! You should be deity-patron in our Yagy. Hey truthful Agni Dev! You perform-conduct virtuous, righteous, pious deeds. You are aware of our request. When will our pleasant-pleasure generating Strotr be recited-responded?! When will you be present in our homes as a friend?!
कथा ह तद्वरुणाय त्वमग्ने कथा दिवे गर्हसे कन्नः आगः।
कथा मित्राय मीळ्हुषे पृथिव्यै ब्रवः कदर्यम्णे कद्भगाय
हे अग्नि देव! वरुण के निकट आप हम लोगों की पापजन्य निन्दा क्यों करते हैं? अथवा सूर्य के निकट क्यों निन्दा करते हैं? हम लोगों का क्या अपराध है? अभिमत फलदाता मित्र और पृथ्वी को आपने क्यों कहा? अथवा अर्यमा और भग नामक देवों से ही आपने क्यों कहा?[ऋग्वेद 4.3.5]
हे अग्नि देव! हमारे पापों की बात वरुण देव के सामने क्यों करते हो? हमारी निन्दा सूर्य से क्यों करते हो? हमसे तुम्हारे प्रति कौन सा अपराध हुआ है? अभीष्ट फल प्रदान करने वाले सखा, धरा, अर्यमा और भग से तुमने क्या बात कही है?
Hey Agni Dev! Why did you reproach us for our sins to Varun Dev, the Sun? What is our offence? Why repeat it to the bountiful Mitr, to earth, to Aryaman or to Bhag?
Hey Agni Dev! Why do you describe our sins to Varun Dev, Sury Bhagwan, Mitr, Prathvi, Aryma, Bhag!?  What's our fault? 
कद्धिष्ण्यासु वृधसानो अग्ने कद्वाताय प्रतवसे शुभंये।
परिज्मने नासत्याय क्षे ब्रवः कदग्ने रुद्राय नृघ्ने
हे अग्नि देव! जब आप यज्ञ में वर्द्धमान होते हैं, तब उस कथा को क्यों कहते हैं? प्रकृष्ट बल युक्त, शुभ प्रद, सर्वत्र गामी, सत्य के नेता वायु से आप वह कथा क्यों कहते हैं? पृथ्वी से क्यों कहते हैं? हे अग्नि देव! पापी मनुष्यों को मारने वाले रुद्र देव से वह कथा क्यों कहते हैं?[ऋग्वेद 4.3.6]
हे अग्नि देव! तुम जब यज्ञ में वृद्धि करते हो तब उस बात को क्यों करते हो? श्रेष्ठ बलवान लाभकारी सर्वत्र वेगवान, सत्य में अग्रणी आयु से भी यह बात क्यों करते उसी प्रकार यजमान अग्निदेव के लिए प्रार्थना करने में तल्लीन रहते हैं।
Hey Agni Dev! Why do you describe-discuss the story-tale of our sins while you are busy with the Yagy? Hey mighty, auspicious, dynamic, truthful! Why do you narrate our sins to Prathvi, Rudr?
कथा महे पुष्टिंभराय पूष्णे कद्रुद्राय सुमखाय हविर्दे।
कद्विष्णव उरुगायाय रेतो ब्रवः कदग्ने शरवे बृहत्यै
हे अग्नि देव! महान् एवं पुष्टि प्रद पूषा से आप वह पाप कथा क्यों कहते हैं? यज्ञ भाजन, हवि प्रद रुद्र से वह क्यों कहते हैं? बहुस्तुति भाजन श्री विष्णु से पाप की कथा क्यों कहते हैं? बृहत् संवत्सर अथवा निर्ऋति से वह कथा क्यों कहते हैं?[ऋग्वेद 4.3.7]
उन महान एवं पालक पूषा यज्ञ के पात्र एवं हवि युक्त रुद्र से अनेक प्रार्थनाओं के पात्र विष्णु से श्रेष्ठ संवत्सर के समक्ष यह बात क्यों कहते हो? 
Hey Agni Dev! Do not spell the tale of our sins to great and nourishing Pusha, the acceptor and offerings of Yagy Rudr, multiple Strotr-prayers deserving Bhagwan Shri Hari Vishnu, either the solar year-Samvatsar or Nirshrati?
कथा शर्धाय मरुतामृताय कथा सूरे बृहते पृच्छ्यमानः।
प्रति ब्रवोऽदितये तुराय साधा दिवो जातवेदश्चिकित्वान्
हे अग्नि देव! सत्य भूत मरुद्गण से आप वह कथा क्यों कहते हैं? पूछे जाने पर महान सूर्य से वह कथा क्यों कहते हैं? देवी अदिति से और त्वरितगमन वायु से क्यों कहते हैं? हे सर्वज्ञ जात वेदा (अग्निः, वह्निः, हुतासनः, अनलः, वैश्वानरः, पुरोहितः, अंगिरा)! आप द्युलोक के कार्य का साधन करें।[ऋग्वेद 4.3.8]
जातवेदा :: अग्निः, वह्निः, हुतासनः, अनलः, वैश्वानरः, पुरोहितः, अंगिरा, अग्नि, चित्रक वृक्ष, चीते का पेड़, अंतर्यामी, परमेश्वर, सूर्य; fire, Chitrak tree, God, omniscient.
हे अग्नि देव! सत्य के कारण रूप मरुद्गण से ये बात क्यों बताते हो? पूछे जाने पर भी सूर्य से, अदिति से तथा द्रुतगामी पवन से क्यों कहते हो? हे सभी को जानने वाले मेधावी अग्नि देव! तुम श्रेष्ठ कार्यों को सिद्ध करो।
Hey truthful Agni Dev! Why you discuss  our sins with Marud Gan, the great Sun, Devi Aditi, dynamic Vayu-Pawan Dev. Hey all knowing Agni! Perform the duties of the heavens-space, sky.
ऋतेन ऋतं नियतमीळ आ गोरामा सचा मधुमत्पकमग्ने।
कृष्णा सती रुशता धासिनैषा जामर्येण पयसा पीपाय
हे अग्नि देव ! हम सत्य भूत यज्ञ के संग नित्य सम्बद्ध दुग्ध की याचना गौओं के निकट करते हैं। अपक्व होकर भी वह गौ मधुर और पक्व दुग्ध धारित करती है। वह कृष्ण वर्णा होकर भी शुभ्र, पुष्टि कारक और प्राण धारक दुग्ध द्वारा मनुष्यों का पालन करती है।[ऋग्वेद 4.3.9]
हे अग्नि देव! हम सत्य के कारण भूत यज्ञ से संबंधित दूध को गायों को धारण करती हैं। उनमें काली गाय भी पुष्टिदायक, प्राण दाता, सफेद दूध देकर, प्राणियों को पुष्ट करती है।
Hey Agni Dev! We request the cows to yield milk for the truthful Yagy. Though immature, yet she grant sweet, nourishing milk. Though black in colour she is nourishing, Pran-life supporting-sustaining for the humans.
ऋतेन हि ष्मा वृषभश्चिदक्तः पुमाँ अग्निः पयसा पृष्ठ्येन।
अस्पन्दमानो अचरद्वयोधा वृषा शुक्रं दुदुहे पृश्निरूधः
अभिमत फलवर्षक और श्रेष्ठ अग्नि देव सत्य भूत और पुष्टिकर दुग्ध द्वारा सिक्त होते हैं। अन्नद अग्नि देव एकत्र अवस्थिति करके सभी जगह तेज द्वारा विचरण करते हैं। जल वर्षक सूर्य अन्तरिक्ष या मेघ से जल का दोहन करते हैं।[ऋग्वेद 4.3.10]
इच्छित फल की वर्षा करने वाले महान अग्नि देव पोषक दूध द्वारा सींचे जाते हैं। अन्न दाता अग्निदेव अपने समस्त तेज को संगठित करके विचरण करते हैं। जल की वर्षा करने वाले आदित्य अंतरिक्ष का दोहन करते हैं।
Desires accomplishing excellent, truthful Agni Dev is nourished by the milk. Food grains granting radiant Agni Dev roam-every where. Sun-Adity leads to rains by condensing water in the space-sky.
ऋतेनाद्रिं व्यसन्भिदन्तः समङ्गिरसो नवन्त गोभिः।
शुनं नरः परि षदन्नुषासमाविः स्वरभवज्जाते अग्नौ
मेधातिथि आदि ने यज्ञ द्वारा गौ निरोधक पर्वत को विदीर्ण करके फेंक दिया और गौओं के साथ मिले। कर्मों के नेता उन अङ्गिरोगण ने सुख पूर्वक उषा को प्राप्त किया। तदनन्तर सूर्य देव मन्थन द्वारा अग्नि के उत्पन्न होने पर उदित हुए।[ऋग्वेद 4.3.11]
गायों को रोकने वाले पर्वत को मेधातिथि आदि ने फाड़ डाला तथा गायों को पाया। कर्मों में अग्रसर अंगिराओं ने उषा को सुख से प्राप्त किया। फिर अरणि मंथन से अग्नि के प्रकट होने पर सूर्य उदय हुआ।
मेधातिथि :: काण्ववंश में उत्पन्न एक ऋषि जो ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 12-23 सूक्तों के द्रष्टा थे, शाकद्वीप के अधिपति जो प्रियव्रत के पुत्र कहे गये हैं, कर्दम प्रजापति के एक पुत्र।अरुन्धती मेधातिथि की पुत्री थी जो उन्हें यज्ञ से प्राप्त हुई थीं।
Medhatithi Rishi Gan etc. destroyed-powered the mountain which was blocking the cows, with the Yagy and joined the cows. Endeavours inspiring Angira Gan attained Usha-day break. Thereafter, wood was rubbed to ignite fire and then the Sun arose.
ऋतेन देवीरमृता अमृक्ता अर्णोभिरापो मधुमद्भिरग्ने।
वाजी न सर्गेषु प्रस्तुभानः प्र सदमित्स्रवितवे दधन्युः
हे अग्नि देव! मरण रहिता, विघ्न शून्या और मधुर जल युक्ता देवी नदियाँ यज्ञ द्वारा प्रेरित होकर जाने के लिए प्रोत्साहित अश्व के तुल्य सर्वदा प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 4.3.12]
हे अग्ने! अविनाशी, मधुर जल वाली नदियाँ यज्ञ द्वारा प्रेरणा प्राप्त कर चलने के लिए उगमिव अश्व के समस्त निर्विघ्न रूप से हमेशा बहती हैं।
Hey Agni Dev! The immortal, free from obstacles, possessing sweet water, inspires by the Yagy maintain their flow, like the encouraged horse.
मा कस्य यक्षं सदमिद्धुरो गा मा वेशस्य प्रमिनतो मापेः।
मा भ्रातुरग्ने अनृजोर्ऋणं वेर्मा सख्युर्दक्षं रिपोर्भुजेम
हे अग्नि देव! जो कोई हमारी हिंसा करता है, उसके यज्ञ में आप कभी न जाना। किसी दुष्ट बुद्धि वाले प्रतिवासी (पड़ोसी) के यज्ञ में न जाना। हमें छोड़कर दूसरे बन्धु के यज्ञ में न जाना। आप कुटिल चित्त भ्राता के ऋण (हवि) की कामना न करना। हम लोग भी मित्र या शत्रु द्वारा प्रदत्त धन का भोग नहीं करेंगे। केवल आपके ही द्वारा प्रदत्त धन का भोग करेंगे।[ऋग्वेद 4.3.13]
दुष्ट बुद्धि :: कुटिल मति; crooked, knavish, impious, cruel.
हे अग्नि देव! जो कोई भी हमारी हिंसा करे, उसे यज्ञ में तुम कभी नहीं पहुँचना, किसी क्रूर पड़ौसी के यज्ञ में तुम कभी मत पधारना। हमारे अतिरिक्त किसी अन्य को सखा न बनाना। तुम कुटिल मति वाले बन्धु की हवियों की अभिलाषा मत करना। हम भी शत्रु के दिये अन्न का सेवन नहीं करते। केवल तुम्हारे दिये धन को ही भोगें।
Hey Agni Dev! Do not lit in the Yagy of those who tease-trouble, torture, harm us physically. Never join the Yagy of our neighbour who is crooked, knavish, impious, cruel. Do not accept the offerings of the brothers who are crooked. We do not consume the food grains of the crooked. Let us consume-use the food grains-stuff granted by you.
रक्षा णो अग्ने तव रक्षणेभी रारक्षाणः सुमख प्रीणानः।
प्रति ष्फुर वि रुज वीड्वहो जहि रक्षो महि चिद्वावृधानम्
हे सुयज्ञ अग्नि देव! आप ही हम लोगों के रक्षक हैं। आप हव्य द्वारा प्रीत होकर आश्रय दान द्वारा हमारी रक्षा करें। आप हम लोगों को प्रदीप्त करें। हम लोगों के दृढ़ पाप का आप विध्वंस कर भयंकर राक्षसों का विनाश करें।[ऋग्वेद 4.3.14]
सुयज्ञ :: सुयज्ञ विष्णु के प्रसिद्ध चौबीस अवतारों में से एक अवतार का नाम है; an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu.
भयंकर :: उग्र, क्रूर, प्रखर, क्रुद्ध, चंड; terrifying, fierce, awful.
भयंकर, घोर, महिमामयहे अग्ने! तुम महान यज्ञ वाले हो तुम हमारे रक्षक हो। तुम हवि द्वारा हर्षोल्लासित होकर अपना आश्रय देते हुए हमारे रक्षक बनो। हमारे घोर पाप का नाश करते हुए इस बढ़े हुए अज्ञान को समाप्त कर डालो।
Hey Suyagy Agni Dev! You are the protector of the public-populace. Become our protector pleased by our offerings. Destroy our sin-felony and destroy the furious-terrifying demons.
एभिर्भव सुमना अग्ने अर्कैरिमान्त्स्पृश मन्मभिः शूर वाजान्।
उत ब्रह्माण्यङ्गिरो जुषस्व सं ते शस्तिर्देववाता जरेत
हे अग्नि देव! आप हमारे अर्चन योग्य स्तोत्रों द्वारा हर्षित मन वाले हों। हे शूर! हमारे इस स्तोत्र सहित अन्न को ग्रहण करें। हे हविरन्न के गृहीता अग्निदेव! मन्त्रों का सेवन करें। देवों के उद्देश्य से प्रयुक्त प्रार्थना आपको करे।[ऋग्वेद 4.3.15]
हे अग्नि देव! हमारी आराधना योग्य श्लोकों द्वारा तुम हम पर स्नेह बनाये रखो। हमारी प्रार्थनाओं से परिपूर्ण हवियों को स्वीकृत करो। तुम हवि रूप अन्न को प्राप्त करने वाले हो, हमारे श्लोकों को प्राप्त करो। देवों के लिए की जाने वाली वंदनाएँ तुम्हारी वृद्धि करें। 
Hey Agni Dev! You should be pleased, have pleasure by this Strotr of ours, recited by us. Hey brave! Accept this Strotr of ours, along with food grains. Hey granter of food grains for offerings Agni Dev! Accept our offerings for the sake of demigods-deities.
एता विश्वा विदुषे तुभ्यं वेधो नीथान्यग्ने निण्या वचांसि।
निवचना कवये काव्यान्यशंसिषं मतिभिर्विप्र उक्थैः
हे विधाता अग्नि देव! आप कर्म विषय को जानने वाले और उत्कृष्ट द्रष्टा हैं। हम विप्रगण आपके उद्देश्य से फल प्रापक, गूढ़, अतिशय वक्तव्य और हम कवियों द्वारा ग्रथित इस समस्त वाक्य का स्तोत्रों के साथ उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 4.3.16]
हे अग्नि देव! तुम विधायक हो, तुम कार्यों के ज्ञाता एवं प्राणियों के स्रष्टा हो। हम मेधावी प्राणी तुम्हारी इच्छा से फलदायी, अत्यन्त गूढ़ उच्चारण के योग्य हमारे द्वारा रचित इस पूरे श्लोक का भली-भाँति उच्चारण करते हैं।
Hey destinate-the deity of fate Agni Dev! You know the intricate deeds and is an excellent visionary. We prudent-intelligent Brahmans recite the Strotr with the complete stanza, which has deep meaning with the desire of rewards.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- रक्षोहाऽग्नि छन्द :- त्रिष्टुप
कृणुष्व पाजः प्रसितिं न पृथ्वीं याहि राजेवामवाँ इभेन।
तृष्वीमनु प्रसितिं द्रूणानोऽस्तासि विध्य रक्षसस्तपिष्ठैः
हे अग्नि देव! आप अपने तेज पुञ्ज को बढ़ावें, जिस प्रकार से व्याघ्र अपने जाल को विस्तारित करता है। जिस प्रकार अमात्य के साथ राजा हाथी के ऊपर बैठकर जाता है, उसी प्रकार आप भय शून्य तेज समूह के साथ गमन करें। आप शीघ्रगामिनी सेना का अनुगमन करके शत्रु सैन्य को हिंसित करें और शत्रुओं को नष्ट करें। अत्यन्त तीक्ष्ण तेज द्वारा आप राक्षसों का भेदन करें।[ऋग्वेद 4.4.1]
हे अग्नि देव! तुम अपनी तेज राशि को व्याघ्र द्वारा अपने जल को वृद्धि करने के तुल्य विशाल करो। मंत्री को साथ लेकर राजा के विचरण करने के समान तुम अपने भय विमुख तेज के साथ विचरण करो। तुम अपनी द्रुत गति वाली सेना के साथ शत्रु की सेना का पतन करो। शत्रुओं को समाप्त कर दो। तुमने अपने तेज से असुरों को विदीर्ण कर डाला।
Hey Agni Dev! Boost-enhance your radiance-aura, like the hunter who increase the width of his net. The manner in which the king rides the elephant with his minister without fear, you should also move with your brilliance-brightness uninteruptly-disturbance. Destroy-vanish the army of the enemy and the demons by your fast moving army. 
तव भ्रमास आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।
तपूंष्यग्ने जुह्वा पतङ्गानसंदितो वि सृज विष्वगुल्काः
हे अग्नि देव! आपकी भ्रमण कारिणी और शीघ्र गामिनी रश्मियाँ सभी जगह प्रसृत होती हैं। आप अत्यन्त दीप्तिमान हैं। अभिभव समर्थ तेजोराशि द्वारा आप शत्रुओं को दग्ध करें। शत्रु आपको निरुद्ध नहीं कर सकते। इस हेतु टूटकर गिरने वाले तारे की गति से अपने तेज को प्रेरित करें।[ऋग्वेद 4.4.2]
हे अग्नि देव! तुम्हारी गतिमती, तीव्र गामिनी रश्मियाँ सभी जगह पहुँचती हैं। तुम अत्यन्त तेजस्वी हो। शत्रुओं को हराने में सक्षम तेज द्वारा शत्रुओं को नष्ट कर डालो। शत्रु तुमको बाधित नहीं कर सकते। तुम नभ से गिरने वाले तारों के समान गति से जीने वाले अपने तेज को प्रेरित करें।
Hey Agni Dev! Your fast moving rays reach every where. You are radiant. Burn the enemy with your fierce flames. The enemy can not block you. Spread your heat like the shooting-falling stars.
प्रति स्पशो वि सृज तूर्णितमो भवा पायुर्विशो अस्या अदब्धः।
यो नो दूरे अघशंसो यो अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्
हे अग्नि देव! आप अतिशय वेगवान हैं। शत्रुओं को बाधा देने वाली रश्मियों को आप शत्रुओं के प्रति प्रेरित करें। कोई भी आपकी हिंसा नहीं कर सकता। जो कोई दूर से हम लोगों की अनिष्ट कामना करता है अथवा जो निकट से अनिष्ट करने की इच्छा करता है, आप उसके निकट से इस समस्त प्रजा की रक्षा करें। हम लोग आपके हैं। जिससे कोई शत्रु हम लोगों को पराजित न कर सके।[ऋग्वेद 4.4.3]
हे अग्नि देव तुम अत्यन्त तेज चाल वाले हो । शत्रुओं को रोकने वाले अपने बल को शत्रुओं के प्रति चलाओ। तुम्हें कोई हिंसित नहीं कर सकता। पास या दूर से हमारा अनिष्ट करने वालों से हमारी संतानों की सुरक्षा करो। हमें कोई भी शत्रु अपने वश में न कर सकें। हम तुम्हारे ही साधक होने से इस बात का ध्यान रखो।
Hey Agni Dev! Your speed is too fast. Spread your flames to block-stop the enemy. None can harm you. Protect the entire populace from the person who wish to harm us, from far or near, considering us your own. Do not let the enemy defeat-over power, control us. 
उदग्ने तिष्ठ प्रत्या तनुष्व न्य १ मित्राँ ओषतात्तिग्महेते।
यो नो अरातिं समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यतसं न शुष्कम्
हे तीक्ष्ण ज्वाला विशिष्ट अग्नि देव! उठो, राक्षसों को मारने के लिए उद्यत हों। शत्रुओं के ऊपर ज्वालाजाल का विस्तार करें। तेजोराशि द्वारा शत्रुओं को भली-भाँति दग्ध करें। हे समिद्ध अग्नि देव! जो व्यक्ति हमारे साथ शत्रुता करता है, उस व्यक्ति को सूखी लकड़ी के तुल्य आप जला दें।[ऋग्वेद 4.4.4]
हे तीक्ष्ण ज्वाला वाले अग्नि देव! दुष्टों का सर्वविनाश करने हेतु तत्पर हो जाओ। शत्रुओं पर तुम अपनी ज्वालाओं का आवरण डालकर उन्हें नष्ट कर डालो। हे अग्नि देव! हमारे साथ शत्रुता का व्यवहार करने वाले दुष्ट को सूखे काष्ठ के समान भस्म कर डालो।
Hey Agni Dev with fierce flames! Rise-get up and be ready to kill the demons. Hey Samiddh Agni Dev! Spell your cast over the enemies & burn-roast them like dry wood.
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याध्यस्मदाविष्कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।
अव स्थिरा तनुहि यातुजूनां जामिमजामिं प्र मृणीहि शत्रून्
हे अग्नि देव! आप राक्षसों को मारने के लिए उद्यत होवें। हमसे जितने अधिक बलवान हैं, उन सबको एक-एक करके मारें। अपने देव सम्बन्धी तेज को आविष्कृत करें। प्राणियों को क्लेश देने वालों के दृढ़ धनुष को ज्या शून्य करें और पूर्व में पराजित अथवा अपराजित शत्रुओं को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 4.4.5]
तुम राक्षसों का पतन करने को तैयार हो जाओ। हमसे अधिक ताकतवर शत्रुओं को एक-एक करके समाप्त कर डालो। अपने अद्भुत तेज को प्रत्यक्ष करो। जीवों को संतापित करने वाले दुष्टों को मारकर हमसे अलग करो। पूर्व पराजित हुए या अपराजित शत्रुओं का पतन कर डालो।
Hey Agni Dev! You should be inclined to kill the demons. Kill those who are stronger than us, one by one. Invoke your divine radiance. Kill enemies who teased-troubled the living beings whether defeated or undefeated in the past with your bow.
स ते जानाति सुमतिं यविष्ठ य ईवते ब्रह्मणे गातुमैरत्।
विश्वान्यस्मै सुदिनानि रायो द्युम्नान्यर्यो वि दुरो अभि द्यौत्
हे युवतम अग्नि देव! आप गमनशील और मुख्य हैं। जो कोई आपके लिए प्रार्थना करता है, वह पुरुष आपके अनुग्रह को प्राप्त करता है। आप यज्ञ के स्वामी हैं। आप उसके लिए समस्त शोभन दिनों को, धनों को और रत्नों को ग्रहण करें। आप उसके घर के समक्ष प्रकाशित हों।[ऋग्वेद 4.4.6]
हे अत्यन्त युवा अग्निदेव! तुम वेगवान एवं प्रमुख हो। तुम्हारे प्रति वंदना करने वाला प्राणी तुम्हारी कृपा चाहता है। हे यज्ञ स्वामिन! तुम उसके लिए सभी सौभाग्यशाली दिवसों की, अन्न एवं रत्न आदि धनों को स्वीकार करें। तुम उसके सम्मुख प्रकाशवान हो जाओ।
Hey too youthful Agni Dev! You are dynamic and significant. One who pray-worship you is granted your favours-grace. You are the deity of Yagy. Accept the jewels, riches-offerings on auspicious days-the days of Yagy, by the Ritviz and lit in front of his house.
सेदग्ने अस्तु सुभगः सुदानुर्यस्त्वा नित्येन हविषा य उक्थैः।
पिप्रीषति स्व आयुषि दुरोणे विश्वेदस्मै सुदिना सासदिष्टिः
हे अग्नि देव! जो व्यक्ति नित्य सङ्कल्पित हव्य द्वारा अथवा उक्त मन्त्र द्वारा आपको प्रसन्न करने की इच्छा करता है, वह पुरुष सौभाग्यवान् और सुदाता है। वह कठिनता से लाभ करने के योग्य अपनी सौ वर्षों की आयु को प्राप्त करता है। उस याजकगण के लिए सब दिन शोभन हो। वह यज्ञ फल साधन समर्थ हों।[ऋग्वेद 4.4.7]
हे अग्नि देव! जो मनुष्य प्रतिदिन हवि दान एवं मंत्र रूप वंदनायें प्रेरित करने के उद्देश्य से तुम्हारे स्नेह की अभिलाषा करता है, वह व्यक्ति और सौभाग्यशाली एवं दानशील हो। वह कठिनाई से प्राप्त होने वाली और अपनी सौ वर्ष की आयु को भोगे, उस यजमान के लिए समस्त दिन सौभाग्य की वर्षा करने वाला हो। वह यज्ञ का पोषण करने के साधनों से सम्पन्न हों।
Hey Agni Dev! A person who pleases you with offerings and Mantr-hymns, should become a lucky donor. He should enjoy longevity for 100 years. Each and every day should be auspicious for him. He should be capable of performing Yagy.
अर्चामि ते सुमतिं घोष्यर्वाक्सं ते वावाता जरतामियं गीः।
स्वश्वास्त्वा सुरथा मर्जयेमास्मे क्षत्राणि धारयेरनु द्यून्
हे अग्नि देव! हम आपकी अनुग्रह बुद्धि की पूजा करते हैं। आपके उद्देश्य से उच्चारित वाक्य प्रतिध्वनित होकर, आपकी प्रार्थना करें। हम लोग पुत्र-पौत्रादि के साथ उत्तम रथ और उत्तम अश्वों से युक्त होकर आपकी याचना करेंगे। आप हम लोगों के लिए प्रतिदिन धन धारित करें।[ऋग्वेद 4.4.8]
हे अग्नि देव! हम आपकी कृपा पूर्ण बुद्धि की वंदना करते हैं। तुम्हारे लिए उचारण किये हुए वाक्य प्रति ध्वनित होते हुए तुम्हारी वंदना करें, हम अपने पुत्र-पौत्र आदि एवं उत्तम रथ और अश्वों से युक्त तुम्हारी सेवा करने वाले हों। तुम हमारे लिए प्रतिदिन शोभन अन्न धारण करो।
Hey Agni Dev! We worship you to have your favours-grace. Our prayers dedicated to you, should echo-reverberate. We will worship-pray you, being blessed with sons & grandsons, possessing excellent horses and charoite. Keep-provide, grant wealth and food grains to us, every day.
इह त्वा भूर्या चरेदुप त्मन्दोषावस्तर्दीदिवांसमनु द्यून्।
क्रीळन्तस्त्वा सुमनसः सपेमाभि द्युम्ना तस्थिवांसो जनानाम्
हे अग्नि देव! आप सदैव प्रज्वलित रहते हैं। इस लोक में पुरुष आपके समीप आपकी सेवा प्रतिदिन करते हैं। हम भी शत्रुओं के धन को आत्मसात करके अपने घर में पुत्र-पौत्रों के साथ विहार करते हुए प्रसन्नतापूर्वक आपकी परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 4.4.9]
हे अग्नि देव! तुम दिन रात प्रदीप्त होते हो। इस संसार के पुरुष तुम्हारी निकटता ग्रहण कर नित्य-प्रति तुम्हारी सेवा करते हैं। शत्रुओं के धन को अपनाते हुए हम भी अपने घरों में संतानों से युक्त मोद करते हुए हर्षित मन से तुम्हारी विविध रूप से सेवा करते हैं।
Hey Agni Dev! You should be lit continuously for ever. The humans pray-worship you in this world. We enjoy with our sons & grandsons utilising the wealth-riches obtained from the enemy.
यस्त्वा स्वश्वः सुहिरण्यो अग्न उपयाति वसुमता रथेन।
तस्य त्राता भवसि तस्य सखा यस्त आतिथ्यमानुषग्जुजोषत्
हे अग्नि देव! जो पुरुष सुन्दर अश्व युक्त होकर याग-योग्य धन विशिष्ट होकर और व्रीहि आदि धन से संयुक्त रथ के साथ आपके निकट पहुँचते हैं, उस पुरुष के आप रक्षक बनें। जो पुरुष अनुक्रम से अतिथि योग्य पूजा आपको प्रदान करता है, उसके आप मित्र होवें।[ऋग्वेद 4.4.10]
व्रीहि :: धान, चावल, अन्न, धान का खेत, चावल का बीज या दाना; rice.
हे अग्नि देव! जो व्यक्ति यश के योग्य सुंदर अश्वों से युक्त धन से सम्पन्न रथ के साथ तुम्हारे पास जाता है, तुम उस प्राणी के रक्षक बन जाते हो। जो व्यक्ति तुम्हें अतिथि मानकर तुम्हारी वंदना करता है, तुम उसके साथ मित्रता का भाव रखते हो
Hey Agni Dev! The person who comes to you with food grains-offerings over his charoite deploying strong & beautiful horses, should be protected-sheltered by you. You should be friendly with that person, who worship-pray you like a guest.
महो रुजामि बन्धुता वचोभिस्तन्मा पितुर्गोतमादन्वियाय।
त्वं नो अस्य वचसश्चिकिद्धि होतर्यविष्ठ सुक्रतो दमूनाः
हे होता, युवतम और प्रज्ञावान अग्नि देव! स्तुति द्वारा जो मित्रता उत्पन्न हुई हैं, उसके द्वारा हम महान राक्षस रूप शत्रुओं को भग्न करें। यह स्तोत्रात्मक वचन पिता गौतम के निकट से हमारे पास आया है। आप शत्रुओं के विनाशक हैं। आप हमारी प्रार्थना श्रवण करें।[ऋग्वेद 4.4.11]
हे अग्नि देव! तुम अत्यन्त युवा, बुद्धिमान एवं होता रूप हो। श्लोक द्वारा तुम से जो हमारा भ्रातृ भाव रचित हुआ है उसके द्वारा हम आसुरी वृत्ति वाले शत्रुओं को विदीर्ण करें। यह वंदना रूपी वाणी गौतमों द्वारा हमको ग्रहण हुई है। तुम शत्रुओं का विनाश करने वाले हो। हमारी वंदना रूपी संकल्पों पर पूरी तरह ध्यान देने की कृपा दृष्टि करो।
Hey patron of the Yagy, youngest, intelligent Agni Dev! The friendship, which has evolved by virtue of prayers should destroy the demons-giants. These prayers-hymns have evolved from our father Gautom. Being the destroyer of the demons-enemies, respond to our prayers.
अस्वप्नजस्तरणयः सुशेवा अतन्द्रासोऽवृका अश्रमिष्ठाः।
ते पायवः सध्रय्ञ्चौ निषद्याग्ने तव नः पान्त्वमूर
हे सर्वज्ञ अग्नि देव! आपकी रश्मियाँ सतत जागरूक, सर्वदा गमनशील सुखान्वित, आलस्य रहित, अहिंसित, अश्रान्त, परस्पर सङ्गत और रक्षा करने में समर्थ हैं। वे इस स्थान पर उपवेशन करके हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.4.12]
अश्रान्ति :: अथक; un weary, un tired. 
संगत :: अनुकूल, मुताबिक़, अविस्र्द्ध, तर्कयुक्त, सिलसिलेवार, अविरोधी, प्रासंगिक, संगत, उचित, अनुरूप, योग्य, प्रस्तुत; consistent, compatible, relevant.
हे अग्नि देव! तुम सर्वोपरि हो। तुम्हारी किरणें सदा ही चैतन्य रहती हैं। वे हमेशा गमनशील, प्रमाद रहित, अहिंसित, अश्रान्त एवं सुसंगति हुई हमारी रक्षा कर्म में समर्थ हैं। वे रश्मियाँ इस यज्ञ में रमण करती हुई हमारी रक्षा करें।
Hey enlightened-all knowing Agni Dev! Your rays are awake-alert, movable-dynamic, free from laziness, non violent, un weary, un tired, mutually consistent, compatible, relevant and capable of protection-shelter to us, spreaded all over in the Yagy. 
ये पायवो मामतेयं ते अग्ने पश्यन्तो अन्धं दुरितादरक्षन्।
ररक्ष तान्त्सुकृतो विश्ववेदा दिप्सन्त इद्रिपवो नाह देभुः
हे अग्नि देव! रक्षा करने वाली आपकी इन रश्मियों ने कृपा करके ममता के पुत्र चक्षुहीन दीर्घतमा की शाप से रक्षा की। आप सर्व प्रज्ञावान हैं। आप आदरपूर्वक उन रश्मियों का पालन करते हैं। आपके शत्रु आपको विनष्ट करने की इच्छा करके भी आपका विनाश नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 4.4.13]
हे अग्निदेव! तुम्हारी इन रक्षणप्रद किरणों ने ममता के नेत्र हीन पुत्र दीर्घमान पर कृपा दृष्टि कर उसकी श्राप से सुरक्षा की है। हे अग्नि देव! तुम अत्यन्त मेधावी हो। अपनी उन किरणों का प्रेम पूर्वक पोषण करते हो। तुम्हारे शत्रु तुम्हारा पतन करने की कामना करते हुए भी अपने प्रयास में असफल रहते हैं।
Hey Agni Dev! Your protective rays blessed the son of Mamta Dirghtama from the curse. You are enlightened-intelligent. You nurse the rays with love & affection. Your enemy desirous harming you can not harm you.
त्वया वयं सधन्य १ स्त्वोतास्तव प्रणीत्यश्याम वाजान्।
उभा शंसा सूदय सत्यतातेऽनुष्ठुया कृणुह्यह्रयाण
हे अग्नि देव! आपका गमन लज्जा शून्य है। हम स्तोता आपके अनुग्रह से समान धन वाले होकर आपके द्वारा रक्षित हों। आपकी प्रेरणा से अन्न लाभ करें। हे सत्य विस्तारक और पाप नाशक अग्नि देव! आप हमारे निकटस्थ या दूरस्थ शत्रुओं को विनष्ट करें तथा क्रम से समस्त कार्य करें।[ऋग्वेद 4.4.14]
हे अग्नि देव! तुम निःसंकोच गमन करते हो। हम वंदना करने वाले तुम्हारी कृपा से धनवान बनकर तुम्हारी शरण प्राप्त करें। तुम्हारी प्रेरणा से हमको अन्नलाभ हो । हे अग्निदेव! तुम सत्य का विस्तार करने वाले हो। तुम पाप का पतन करने में समर्थवान हो। पास या दूर शत्रुओं का आप पतन करो और सभी कर्मों का साधन करो।
Hey Agni Dev! Your movements are free from hesitation. We the Stota, be protected by you, having attained wealth, due to your blessings-grace. We should be inspired to have-gain food grains. Hey the nurturer of truth and destroyer of sins, Agni Dev! Destroy our enemies near or far-distant enemies, sequentially. Let all our endeavours be accomplished.
अया ते अग्ने समिधा विधेम प्रति स्तोमं शस्यमानं गृभाय।
दहाशसो रक्षसः पाह्य१स्मान्द्रुहो निदो मित्रमहो अवद्यात्
हे अग्नि देव! इस प्रदीप्त स्तुति द्वारा हम आपकी सेवा करें। हमारे इस स्तोत्र को ग्रहण करें। स्तुति विहीन राक्षसों को भस्म सात करें। हे मित्रों के पूजनीय अग्नि देव! शत्रु और निन्दकों के परिवाद से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.4.15]
परिवाद :: निन्दा, तिरस्कार, परिवाद, धिक्कार, भला-बुरा, निंद लेख, अभियोग पत्र, reproach, complaint, libel. 
हे अग्नि देव! प्रस्तुत प्रार्थना द्वारा हम तुम्हारी सेवा करते रहें। हमारे स्तोत्र को स्वीकार करो। जो दुष्ट प्रकृति वाले वंदना नहीं करते उन्हें समाप्त कर डालो। हे अग्नि देव! आप मित्रों द्वारा पूजनीय हो। हमको शत्रुओं और निन्दकों की निंदा पूर्ण बातों से हमारी रक्षा करें।
Hey Agni Dev! We should continue serving you with this prayer-hymn. Accept our prayer. Burn the demons who do not pray-worship you. Hey Agni Dev, worshiped by the friends! Protect us from the enemies and those who reproach, libel, disgrace us.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- वैश्वानर छन्द :- त्रिष्टुप
वैश्वानराय मीळ्हुषे सजोषाः कथा दाशेमाग्नये बृहद्धाः।
अनूनेन बृहता वक्षथेनोप स्तभायदुपमिन्न रोधः
समान रूप से प्रीति युक्त होकर हम याजक गण वैश्वानर नामक अभीष्टवर्षी, एवम् महान, दीप्तियुक्त अग्नि देव को किस प्रकार से हव्य प्रदान करें? स्तम्भ जिस प्रकार से छप्पर को धारित करता है, उसी प्रकार से वे सम्पूर्ण इसलिए बृहत् शरीर द्वारा द्युलोक को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.5.1]
हम सभी समान स्नेह वाले तपस्वी यजमान उस अनिष्ट की वर्षा करने वाले ज्योर्तिमान वैश्वानर अग्नि को हर्षित करते के लिए किस प्रकार हवि प्रदान करें? जैसे छप्पर को स्तम्भ धारण करता है, उसी प्रकार अग्नि देव अपने समस्त रूपों द्वारा क्षितिज को धारण करते हैं।
What is the method, procedure of making offerings to Vaeshwanar Agni Dev by us-the worshipers, who is radiant-aurous, great, accomplish desires. The way-manner in which a pole supports the thatched hut roof, Agni Dev supports the entire universe in his vast-gigantic form till the horizon.
मा निन्दत य इमां मह्यं रातिं देवो ददौ मर्त्याय स्वधावान्।
पाकाय गृत्सो अमृतो विचेता वैश्वानरो नृतमो यह्वो अग्निः
हे होताओ! जो अग्नि देव हव्य युक्त होकर मरणशील और परिपक्व बुद्धि विशिष्ट हम याजक गणों को धन प्रदान करते हैं, उनकी आलोचना न करें। वे मेधावी, अमर और प्रज्ञावान् हैं। वे वैश्वानर, नेतृश्रेष्ठ एवं महान् हैं।[ऋग्वेद 4.5.2]
हे होताओ! हवि युक्त होकर तुम मरणधर्म परिपक्व बुद्धि वाले यजमानों को अग्निदेव धन प्रदान करते हैं, उनका आदर करो।
Hey Hotas! Do not criticise Agni Dev who grants wealth-riches to mortals, matured, intelligent worshipers on making offerings-prayers. He is intelligent, immortal and prudent. He is Vaeshwanar, excellent leader and great.
साम द्विबर्हा महि तिग्मभृष्टिः सहस्ररेता वृषभस्तुविष्मान्।
पदं न गोरपगूळ्हं विविद्वानग्निर्मह्यं प्रेदु वोचन्मनीषाम्
मध्यम और उत्तम रूप स्थान द्वय को परिव्याप्त करने वाले, तीक्ष्ण तेजो विशिष्ट, प्रभूत सारवान अभीष्ट वर्षी और धनवान अग्नि देव अत्यन्त गुप्त गोपद के सदृश रहस्यमय हैं। वे ज्ञातव्य हैं। विद्वानों के सहयोग से हम उनका ज्ञान प्राप्त करें।[ऋग्वेद 4.5.3]
ज्ञातव्य :: जानने योग्य, जो जाना जा सके, बोधगम्य, जिसे जानता हो अथवा जिसे जानना उचित हो, ज्ञेय, वेद्य, बोधगम्य, श्रुति उपनिषद आदि में आत्मा को ही एक मात्र ज्ञातव्य माना है उसे जान लेने पर फिर कुछ जानना बाकी नहीं रह जाता; cognoscible.
वे अविनाशी अग्नि देव अत्यन्त मध्यम एवं उत्तम दोनों स्थानों में व्याप्त अपने तीव्र तेज से युक्त हों। वे अभीष्टों की वृष्टि करने वाले, सार परिपूर्ण एवं धन सम्पन्न होते हुए भी पर्वत में छिपे गृह के तुल्य रहस्यपूर्ण हैं। उनका ज्ञान ग्रहण करना उचित है। विद्वानजन श्रेष्ठ श्लोकों के अध्ययन द्वारा हमकों उनका स्वरूप ज्ञात करवायें।
Immortal, rich, desires fulfilling, Agni Dev is like the secret cave in the mountain, pervade both the mediocre and best places possessing high level of radiance-brightness, aura. Let us be enlightened about him with the help of scholars. He deserve to be known.
प्र ताँ अग्निर्बभसत्तिग्मजम्भस्तपिष्ठेन शोचिषा यः सुराधाः।
प्र ये मिनन्ति वरुणस्य धाम प्रिया मित्रस्य चेततो ध्रुवाणि
विद्वान मित्र देव और वरुण के प्रिय एवं स्थित तेज को जो द्वेषी हिंसित करता है, उसे सुन्दर धन विशिष्ट और तीक्ष्ण दन्त अग्नि देव अत्यन्त सन्तापकर तेज-द्वारा भष्मसात करें।[ऋग्वेद 4.5.4]
जो प्राणी मेधावी मित्र और वरुण के प्रिय की हिंसा करता है, उसे तीव्र दाँत वाले, सुन्दर धनयुक्त अग्निदेव अपने अत्यन्त क्लेशदायी तेज के द्वारा नष्ट कर दें।
Let Agni Dev burn-roast, one who tease-torture the affectionate-dear of Mitr & Varun Dev with his sharp, torturous teeth and heat. 
अभ्रातरो न योषणो व्यन्तः पतिरिपो न जनयो दुरेवाः।
पापासः सन्तो अनृता असत्या इदं पदमजनता गभीरम्
भ्रातृ रहिता, विपथ गामिनी योषित (स्त्री, नारी) के तुल्य तथा पति विद्वेषिणी दुष्टाचारिणी स्त्री के तुल्य यज्ञ विहीन, अग्नि विद्वेषी, सत्य रहित और सत्य वचन शून्य पापी नरक स्थान को उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 4.5.5]
जैसे पोषण करने वाले भ्राता से द्वेष करने वाली नारी तथा पति से द्वेष करने वाली झूठी नारी कष्ट देने वाली गंभीर दशा को ग्रहण हो जाती है, वैसे ही कीर्ति विमुख एवं अग्नि से द्वेष करने वाले सत्य पृथक तथा सत्य वाणी से शून्य पापाचारी का अध: पतन होवे।
अध:पतन ::  अधोगमन-नर्क में जाना, पतन, गिरावट, नीचे गिरना, अवनति, दुर्दशा, दुर्गति, विनाश, क्षय; down fall, degrade to hell, degeneration, degression.
द्वेष :: राग का विरोधी भाव, वैमनस्यता, विरोध, शत्रुता, वैर; malice, hatred, enmity.
The way-manner in which a corrupt woman envy her brother supporting-nourishing her, those who hate Agni Dev, speak untruth sinners too degrade to hell.
इदं मे अग्ने कियते पावकामिनते गुरुं भारं न मन्म।
बृहद्दधाथ धृषता गभीरं यह्वं पृष्ठं प्रयसा सप्तधातु
हे शोधक अग्नि देव! हम आपके कर्म का परित्याग नहीं करते। क्षुद्र व्यक्ति को जिस प्रकार से गुरु भार दिया जाता है, उसी प्रकार आप हमें प्रभूत धन प्रदान करें। वह धन शत्रु घर्षक, अन्न युक्त, दूसरों के द्वारा अनवगाहनीय महान स्पर्शन योग्य एवं सात प्रकार (सात ग्राम्य पशु और सात वन्य पशु) का है।[ऋग्वेद 4.5.6]
हे पावक! हम तुम्हारे द्वारा प्राप्त किये जाने वाले व्रत को नहीं छोड़ते, जैसे कमजोर प्राणी को कोई भारी बोझ से लाद दे उसी प्रकार तुम हमको सुंदर धन दो। वह धन शत्रु का संहार करने वाला, अन्न से युक्त पोषण करने में समर्थ, ज्ञानवर्धक एवं श्रेष्ठ सप्त धातुओं से युक्त हो।
Hey pious-pure Agni Dev! We do not reject our endeavours, goals, targets. Over load us with riches just like an inferior-weak person is given some tough job-task. That wealth associated with food grains capable of nourishing-nurturing, 7 metals, 7 cattle, scholarly, should be destructible-destroyer for the enemy.
तमिन्न्वे ३ व समना समानमभि क्रत्वा पुनती धीतिरश्याः।
ससस्य चर्मन्नधि चारु पृश्नेरग्रे रुप आरुपितं जबारु
यह सुयोग्य एवं सभी के प्रति समान शोधयित्री स्तुति उपयुक्त पूजा विधि के साथ वैश्वानर के निकट शीघ्र गमन करे। वह वैश्वानर के आरोहणकारी दीप्त मण्डल पृथ्वी के निकट से अचल द्युलोक के ऊपर विचरण करने के लिए पूर्व दिशा में आरोपित हुई है।[ऋग्वेद 4.5.7]
वह समस्त प्रकार से उपयुक्त, समान शोधन करने वाली वंदना पूजन विधि के द्वारा वैश्वानर अग्नि को ग्रहण हो। वंदना वैश्वानर अग्नि की वृद्धि करने वाली उज्जवल पृथ्वी के पास से अचल अम्बर पर भ्रमण करने के लिए पूर्व दिशा में प्रकट हुई है।
The hymns-Strotr followed by proper-methodical prayers, suitable by all means, should be accepted by Vaeshwanar Agni. The prayers should enhance-boost fire-Agni, appear in the east over the earth, travelling in the stationary sky-space.
प्रवाच्यं वचसः किं मे अस्य गुहा हितमुप निणिग्वदन्ति।
यदुस्त्रियाणामप वारिव व्रन्पाति प्रियं रुपो अग्रं पदं वेः
विद्वान् कहते हैं कि दोग्धागण जल के तुल्य जिस दुग्ध का दोहन करते हैं, उस दुग्ध को वैश्वानर गुफा में छिपाकर रखते हैं। वे विस्तीर्ण पृथ्वी के प्रिय एवं श्रेष्ठ स्थान की रक्षा करते हैं। मेरे इस वाक्य के अतिरिक्त और क्या वक्तव्य हो सकता है?[ऋग्वेद 4.5.8]
महापुरुषों का कहना है कि दूध निकालने वाले जिस दूध को जल के समान दुहते हैं, उस दूध को वैश्वानर अग्नि गुफाओं में रहस्यमय रखते हैं। वे विशाल भूमण्डल के प्यारे स्थान की रक्षा करते हैं, यह वचन कितना अद्भुत तथा अधिक बल वाला कहा जाने में समर्थ है।
The scholars-philosophers state milk drawn-extracted like water by the milkman, is kept by Vaeshwanar in the secret cave. He protects that excellent vast place over the earth. What else can I say better than this!? 
इदमु त्यन्महि महामनीकं यदुस्त्रिया सचत पूर्व्यं गौः।
ऋतस्य पदे अधि दीद्यानं गुहा रघुष्यद्रघुयद्विवेद
क्षीर प्रसविणी गौ अग्नि होत्रादि कर्म में जिनकी सेवा करती है, जो अन्तरिक्ष में अत्यन्त दीप्तिमान् हैं, जो गुफा में निहित हैं, जो शीघ्र स्पन्दमान हैं और जो शीघ्र गमनकारी हैं, वे महान और पूज्य हैं। सूर्य मण्डलात्मक वैश्वानर को हम जानते हैं।[ऋग्वेद 4.5.9]
जिन अग्नि देव की दुग्ध देने वाली गायें अनुष्ठान आदि शुभ कार्य में सेवा करती हैं, जो अग्नि स्वयं ज्योर्तिवान है, जो गुफा में वासित है, जो शीघ्र गतिमान एवं वेगवान हैं। वे महान पूजनीय हैं। सूर्य मण्डल में विद्यमान उन वैश्वानर अग्नि को हम भली-भाँति जानते हैं।
Extremely bright Agni Dev placed in the space inside a cave, is served by the  milch cows, quickly moves fast, is revered-honoured. We thoroughly know-identify Vaeshwanar Agni present in the solar elliptical path.
अध द्युतानः पित्रोः सचासामनुत गुह्यं चारु पृश्नेः।
मातुष्पदे परमे अन्ति षद्गोर्वृष्णः शोचिषः प्रयतस्य जिह्वा
पिता-माता स्वरूप द्यावा-पृथ्वी के बीच में व्याप्त होकर दीप्तिमान् वैश्वानर गौ के ऊधः प्रदेश में निगूढ़ रमणीय दुग्ध को मुख द्वारा पान करने के लिए प्रबोधित हों। बलशाली, तेजोयुक्त और प्रयत्नशील वैश्वानर की जिह्वा, माता गौ के उत्कृष्ट स्थान में स्थित दुग्ध को पीने की इच्छा करती है।[ऋग्वेद 4.5.10]
माता-पिता के समान नभ-धरती के मध्य में व्याप्त हुए प्रकाशवान वैश्वानर गौ के भाग में उत्तम तथा स्वादिष्ट दूध को पीने के लिए चैतन्य हो। उन अभिष्टों की वर्षा करने वाले, प्रकाशवान वैश्वानर, अग्नि की जिह्वा मातृरुपिणी गौ उर्ध्व स्थान में पेय-पान करने की इच्छा करती हैं।
Then, radiant in association with the parents, heaven and earth, he is awakened to drink the milk of the cow with the tongue of the assiduous (performer of holy rites), the resplendent showerer of benefits, approaching the excellent station of the maternal cow, seeks to drink the milk.
Vaeshwanar Agni! Establish yourself between the sky & earth who are like father & mother. Mighty radiant Vaeshwanar wish to drink milk with his tongue from the udder of the cow.
ऋतं वोचे नमसा पृच्छ्यमानस्तवाशसा जातवेदो यदीदम्।
त्वमस्य क्षयसि यद्ध विश्वं दिवि यदु द्रविणं यत्पृथिव्याम्
किसी के द्वारा पूछे जाने पर नमस्कार पूर्वक सत्य बोलते हैं। हे जात वेदा! आपकी प्रार्थना द्वारा यदि हम इस धन को प्राप्त करें, तो आप ही इस धन के स्वामी होवें। आप सम्पूर्ण धन के स्वामी होवें। पृथ्वी में जितने धन हैं और द्युलोक में जितने धन हैं, उन सब ऐश्वर्यों के भी आप स्वामी हैं।[ऋग्वेद 4.5.11]
मुझ से कोई अत्यन्त सम्मान पूर्वक पूछे तो हे अग्नि देव! मैं अवश्य ही सत्य बात कहूँ। हे अग्ने! तुम्हारी वंदना करते हुए हम इस सुन्दर धन को ग्रहण करें तुम धन के अधिपति बनो। क्योंकि तुम समस्त धनों के स्वामी हो। पृथ्वी और अम्बर में जितने भी धन हैं, उन सभी के तुम अधीश्वर हो।
If someone question me with due respect, I will speak the truth. Hey Agni Dev! We should get wealth-riches due to your favours & if we get it, you should be its master-owner. You are the master-owner of the wealth & grandeur in the heavens & the earth.
किं नो अस्य द्रविणं कद्ध रत्नं वि नो वोचो जातवेदश्चिकित्वान्।
गुहाध्वनः परमं यन्नो अस्य रेकु पदं न निदाना अगन्म
हे जात वेदा! इस धन का साधन भूत धन क्या है? इसका हितकर धन क्या है? आप जानते हो, हमें बतावें! इस धन की प्राप्ति के लिए जो मार्ग है, उसका गूढ़ और उत्कृष्ट उपाय हमसे कहो? लक्ष्य पूर्ति के अभाव में निन्दित होकर अपने घर न लौटें।[ऋग्वेद 4.5.12]
इस धन की साधन भूत शक्ति क्या है? इसका हितकारी धन कौन-सा है? हे अग्नि देव! तुम जो जानते हो वह हमें बतलाओ, इस धन को ग्रहण करने को जो आसान रास्ता है, उसका महान तरीका बताओ। जिससे हम अपने ध्येय को प्राप्त करने में सफल हो सकें।
Hey Agni Dev! Tell us the  source of this useful wealth!? Explain the intricate secrets of attaining this wealth. We should not be insulted on being unsuccessful, on returning home.
का मर्यादा वयुना कद्ध वाममच्छा गमेम रघवो न वाजम्।
कदा नो देवीरमृतस्य पत्नीः सूरो वर्णेन ततनन्नुषासः
पूर्व आदि सीमा क्या है? पदार्थ ज्ञान क्या है? रमणीय पदार्थ समूह क्या है? शीघ्र गामी अश्व जिस प्रकार से संग्राम के अभिमुख गमन करता है, उसी प्रकार हम इन्हें अधिगत करेंगे। द्युतिमती, मरण रहिता और आदित्य की पत्नी प्रसवित्री उषा किस समय हम लोगों के लिए प्रकाशित होकर व्याप्त होंगी?[ऋग्वेद 4.5.13]
मर्यादा क्या है? करने योग्य दायित्व कौन से है? जानने योग्य ज्ञान कौन से हैं? गतिमान घोड़ा जैसे संग्राम को जाता है एवं शीघ्र कार्य-क्षय निरालस्य हुआ ज्ञान विद्वानों को ग्रहण करता है, वैसे ही हम भी कब गतिमान होंगे और ज्ञानैश्वर्य को ग्रहण करेंगे? उज्जवल ज्योति वाली अविनाशी उषा सूर्य की रोशनी से परिपूर्ण हुई कब हमारे लिए प्रकाशमान होगी?
What is our limit, responsibility, material, enlightenment? We should adopt-obtain, acquire them just like the fast moving horses. When will dynamic, immortal, Usha appear with the rays-light of Sun?
अनिरेण वचसा फल्ग्वेन प्रतीत्येन कृधुनातृपासः।
अधा ते अग्ने किमिहा वदन्त्यनायुधास आसता सचन्ताम्
हे अग्नि देव! अन्न रहित, उक्थ मन्त्र और आरोपणीय अल्पाक्षर वाणी द्वारा अतृप्त मनुष्य अभी इस लोक में आपकी क्या प्रार्थना करेंगे। हविर्विहीन वाक्य द्वारा कुछ लाभ नहीं सकता। हविरादि साधन से हीन जन दुःख प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.5.14]
अन्न वंचित, विरुद्ध ज्ञान वाला अतृप्त मनुष्य इस संसार में स्वल्प प्रण से तुम्हारे प्रति क्या कहता है? वह हथियारों से दूर निहत्थे प्राणी की भाँति असत ज्ञान से युक्त हुए क्लेश पाता है।
Hey Agni Dev! Tell us the prayers, powerful Mantr, which should be adopted-recited by a unsatisfied person, facing troubles-pain, sorrow, who has no food grains, for making offerings.
अस्य श्रिये समिधानस्य वृष्णो वसोरनीकं दम आ रुरोच।
रुशद्वसानः सुदृशीकरूपः क्षितिर्न राया पुरुवारो अद्यौत्
समिद्ध, अभीष्टवर्षी और निवासप्रद अग्नि का तेजः समूह यज्ञ घर में दीप्त होता है। याजकगण के मङ्गल के लिए वे दीप्त तेज का परिधान करते हैं; इसलिए उनका रूप रमणीय है। वे अनेक यजमानों द्वारा प्रार्थित होकर द्योतित होते हैं, जिस प्रकार से अश्व आदि धन से राजा द्योतित होता है।[ऋग्वेद 4.5.15]
हम सुखपूर्वक दैदीप्यमान अग्नि की तेज राशि यज्ञ स्थान में प्रदीप्त होते हैं। यजमान को सुख प्रदान करने के लिए वे उज्जवल तेज को धारण करते हैं। अतः उनका स्वरूप अत्यन्त सुन्दर है। जैसे अश्वादि धनों से परिपूर्ण हुआ राजा चमकता है, वैसे ही अग्निदेवः अनुष्ठान की वंदनाओं द्वारा पूजनीय होकर चमकते हैं।
The Yagy-site, house is lit by the radiance of fire-Agni. He adopts the specific high intensity aura for the benefit of the Ritviz, devotee, with his beautiful-attractive postures. He shines on being revered-worshiped by the hosts, just like the king who glitters-shines, riding a horse wearing ornaments-jewels.(30.01.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-अग्नि छन्द :- त्रिष्टुप
ऊर्ध्व ऊ षु णो अध्वरस्य होतरग्ने तिष्ठ देवताता यजीयान्।
त्वं हि विश्वमभ्यसि मन्म प्र वेधसश्चित्तिरसि मनीषाम्
हे यज्ञ होता अग्नि देव! आप सर्वश्रेष्ठ याज्ञिक हैं। आप हम लोगों से ऊर्ध्व स्थान में अवस्थिति करें। आप सम्पूर्ण शत्रुओं के धन को जीतें। आप स्तोताओं की प्रार्थना को प्रवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 4.6.1]
हे होता अग्नि देव! तुम याज्ञिकों में महान हो। तुम हमसे सर्वोच्च पद पर अवस्थित होओ। तुम समस्त शत्रुओं को जीतने वाले हो। वंदना करने वालों की वंदनाओं को प्रशस्त करो।
Hey Hota Agni Dev! You are the best-superb Ritviz. Establish yourself at the highest level from us. Win the wealth of the enemy. Accomplish the desires-requests of the worshipers.
अमूरो होता न्यसादि विश्व१ग्निर्मन्द्रो विदथेषु प्रचेताः।
ऊर्ध्वं भानुं सवितेवान्तेव धूमं स्तभायदुप द्याम्
प्रगल्भ, होमनिष्पादक, हर्षयिता और प्रकृष्ट ज्ञान विशिष्ट अग्नि देव यज्ञ में प्रजाओं के बीच में स्थापित होते हैं। वे उदित सूर्य के तुल्य ऊद्धर्व मुख होते हैं और स्तम्भ के तुल्य द्युलोक के ऊपर धूम को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.6.2]
प्रगल्भ :: वाक्चातुर्य, प्रतिभा, मुखरता, प्रौढ़ता, निःशंकता, प्रसिद्धि; intelligent, maturity, prudent.
अग्नि देव अनुष्ठान का सम्पादन करने वाले, प्रसन्नता को रचित करने वाले, अत्यन्त ज्ञान और मेधावी हैं। वे अनुष्ठान मंडप में यजमानों के मध्य विराजमान होते हैं। वे उदित होते ही सूर्य के समान ऊँचे उठे रहते हैं और स्तम्भ के तुल्य धूप को धारण करते हैं।
Intelligent, enlightened Agni Dev is the organiser of the Yagy who has established himself amongest the populace. He is elevated like the Sun and support the Sun light like a pole-pillar.
यता सुजूर्णी रातिनी घृताची प्रदक्षिणिद्देवतातिमुराणः।
उदु स्वरुर्नवजा नाक्रः पश्वी अनक्ति सुधितः सुमेकः
संयत और पुरातन जुहू घृत पूर्ण हुआ है। यज्ञ को दीर्घ करनेवाले अध्वर्युगण प्रदक्षिण करते हैं। नवजात यूप उन्नत होता है। आक्रमणकारी और सुदीप्त कुठार पशुओं के निकट गमन करता है।[ऋग्वेद 4.6.3]
पुरातन एवं संयत जुहू घृत से पूरा हुआ है। यज्ञ की वृद्धि करने वाले अध्वर्यु प्रदक्षिणा करते हुए अपनी अभिलाषा को प्राप्त करते हैं। नव उत्पन्न यूप ऊपर उठता हुआ मंगलकारी होता है। हित करने वाला यजमान गाय आदि पशुओं को प्राप्त करता है।
Ancient & balanced pot made of Butea wood is full of Ghee. The Ritviz who prolong the Yagy circumambulate the Yagy site. Newly fixed pole-pillar rise up. The performers of Yagy get cows as Dakshina-gifts, fee.
स्तीर्णे बर्हिषि समिधाने अग्ना ऊर्ध्वो अध्वर्युर्जुजुषाणो अस्थात्।
पर्यग्निः पशुपा न होता त्रिविष्ट्येति प्रदिव उराणः
कुश के विस्तृत होने पर और अग्नि समिद्ध होने पर अध्वर्यु, दोनों को प्रीत करने के लिए उत्थित होते है। होम निष्पादक और पुरातन अग्नि देव अल्प हव्य को भी बहुत कर देते हैं तथा पशु पालकों के तुल्य पशुओं के चारों ओर तीन बार गमन करते हैं।[ऋग्वेद 4.6.4]
कुश के बिछ जाने पर तथा अग्नि के समृद्ध होने पर अध्वर्युगण दोनों का आदर करने के लिए प्रस्तुत होते हैं। यज्ञ का सम्पादन करने वाले पुरातन अग्नि देव अश्व से हव्य को भी प्रचुर करते हैं। वे पालकों के समान यश में वृद्धि करते हुए श्रेष्ठ, मध्यम, अधम तीनों श्रेणी के जीवों पर अनुग्रह करते हैं।
When the sacred grass-Kush is strewn and the fire is kindled, the Adhvaryu-hosts, priests, Ritviz rises, propitiating the demigods-deities and Agni, the offeror of the oblation, ancient and multiplying the offering, thrice circumambulates the cattle like a keeper of cattle.
The priests become ready to honour both :- demigods-deities and Agni Dev. A little quantity of offerings too yield a lot for the Hawan performers. They circumambulate thrice around the cattle.
परि त्मना मितगुरेति होताग्निर्मन्द्रो मधुवचा ऋतावा।
द्रवन्त्यस्य वाजिनो न शोका भयन्ते विश्वा भुवना यदभ्राट्
होता, हर्षदाता, मिष्टभाषी और यज्ञवान अग्नि देव परिमित गति होकर पशुओं के चारों ओर गमन करते हैं। अग्नि का दीप्ति समूह अश्व के तुल्य चारों ओर धावित होता है। अग्नि देव जब प्रदीप्त होते हैं, तब समस्त लोक भयभीत हो जाते हैं।[ऋग्वेद 4.6.5]
हर्षिता प्रदान करने वाले, होता रूप मृदुभाषी यज्ञ से परिपूर्ण अग्नि देव परिमित चाल वाले होकर सब जगह विचरण करते हैं। उनकी ज्योतिपुंज अश्व के समान सब तरफ दौड़ता है। वे जब दीप्तीमान होते हैं, तब अखिल विश्व के प्राणधारी डर जाते हैं ।
Sweet spoken and dedicated to the Yagy, Agni Dev circumambulate the cattle, as a host with restricted-controlled speed. The shinning groups of fire run like a horse. When Agni Dev shines-glitters, all abodes are filled with fear.
भद्रा ते अग्ने स्वनीक संदृग्घोरस्य सतो विषुणस्य चारुः।
न यत्ते शोचिस्तमसा वरन्त न ध्वस्मानस्तन्वी ३ रेप आ धुः
हे सुन्दर ज्वाला विशिष्ट अग्नि देव! आप भीति जनक हो और सभी जगह व्याप्त हो। आपकी मनोहर और कल्याणकारी मूर्ति अच्छी तरह से दिखाई देती है। रात्रि अन्धकार द्वारा आपकी दीप्ति को ढक नहीं सकती। राक्षस आदि आपके शरीर में पाप को नहीं रख सकते हैं।[ऋग्वेद 4.6.6]
हे अग्नि देव! तुम्हारी ज्वालाएँ सुन्दर हैं, तुम दुष्टों को डराने वाले एवं सर्व व्यापक हो, तुम्हारा मनोहर और मंगलकारी स्वरूप भली प्रकार दर्शनीय है। रात्रि का अंधेरा भी तुम्हारे प्रकाश को रोकने में सक्षम नहीं हैं। असुर आदि दुष्ट तुम्हारे शरीर पर पापमय प्रयोग करने में सफल नहीं हो सकते।
Hey beautiful Agni Dev, with a special flame! You create fear for the enemy and pervade the whole world. Your attractive and beneficial figure is seen all around. Night can not cover your radiance by darkness. The wicked & the demons can not perform sins by using you-your body.
न यस्य सातुर्जनितोरवारि न मातरापितरा नू चिदिष्टौ।
अधा मित्रो न सुधितः पावको ३ ग्निर्दीदाय मानुषीषु विक्षु॥
हे वृष्टि को उत्पन्न करने वाले वैश्वानर! आपका दान किसी के द्वारा निवारित नहीं हो सकता। पिता-माता स्वरूप द्यावा-पृथ्वी जिसे प्रेषित करने में शीघ्र समर्थ नहीं होते हैं, वे तृप्त और शोधक अग्नि देव मनुष्यों के बीच में मित्र की तरह दीप्तिमान होते हैं।[ऋग्वेद 4.6.7]
हे वैश्वानर अग्नि देव! तुम वर्षा के कारण भूत हो। तुम्हारा दान किसी के द्वारा रोका नहीं जा सकता। जिस अग्नि को प्रेरित करने में माता-पिता रूपी आकाश-पृथ्वी शीघ्र ही समर्थवान नहीं होते हैं, वे अग्नि संतृप्त होकर शुद्ध करने वाली हैं और पुरुषों के मध्य सखा के समान विद्यमान हुए ज्योर्तिवान होते हैं।
Hey rain creating Vaeshwanar Agni Dev! Your donations can not be blocked by any one. Heavens & the earth, like father & mother, are unable to move-inspire quickly that saturated-satisfied and purifying Agni Dev who shines-glitter amongest the humans like friend.
द्विर्यं पञ्च जीजनन्त्संवसानाः स्वसारो अग्निं मानुषीषु विक्षु।
उषर्बुधमथर्यो ३ न दन्तं शुक्रं स्वासं परशुं न तिग्मम्
मनुष्यों की दसों अँगुलियाँ, स्त्री के तुल्य जिन अग्नि को उत्पन्न करती हैं, वे अग्नि उषाकाल में बुध्यमान, हव्यभाजी, दीप्तिमान, सुन्दर वदन और तीक्ष्ण फरसे के तुल्य शत्रु रूपी राक्षसों के हन्ता है।[ऋग्वेद 4.6.8]
पुरुषों की दसों उंगलियाँ, स्त्री के समान जिस अग्नि को प्रदीप्त करती हैं, वे अग्नि देव उषा काल में जागने वाले, हव्य स्वीकार करने वाले, श्रेष्ठ प्रकाश में चमकने वाले एवं सुन्दर स्वरूप वाले हैं। वे तीखे मुखवाले फरसे के समान शत्रुओं का विनाश करते हैं।
The beautiful Agni which is ignited-evolved by the ten fingers of the humans, like a woman, is shinning-radiant, accepts the offerings  and acts like the sharp edged Farsa-sword, a killer of demons.
तव त्ये अग्ने हरितो घृतस्ना रोहितास ऋज्वञ्चः स्वञ्चः।
अरुषासो वृषण ऋजुमुष्का आ देवतातिमह्वन्त दस्माः॥
हे अग्नि देव! आपके वे अश्व हमारे यज्ञ के अभिमुख आहूत होते हैं। उनकी नासिका से फेन निलकता है। वे लोहित वर्ण, अकुटिल, सुन्दरगामी, दीप्तिमान, युवा, सुगठित और दर्शनीय हैं।[ऋग्वेद 4.6.9]
हे अग्नि देव! तुम्हारे उन अश्वों को हम अपने सम्मुख पुकारते हैं। उनके मुख से फेन निकलता है । वे लाल रंग वाले, सीधे मार्ग पर चलने वाले हैं। उनकी चाल सुन्दर है और वे चमकती हुई देह वाले, युवावस्था से परिपूर्ण, शक्तिशाली तथा देखने योग्य हैं।
Hey Agni Dev! Your red coloured horses join-come to our Yagy. Foam evolve-come out of their nostrils. They are fast moving, young, strong-able bodied and beautiful.
ये ह त्ये ते सहमाना अयासस्त्वेषासो अग्ने अर्चयश्चरन्ति।
श्येनासो न दुवसनासो अर्थं तुविष्वणसो मारुतं न शर्धः
हे अग्नि देव! आपके वे शत्रुओं को अभिभूत करने वाली, गमनशील, दीप्ति और पूजनीय रश्मियाँ, मरुतों के तुल्य अत्यन्त ध्वनि करती हैं, जब वे अश्व की तरह निर्धारित स्थान में जाती है।[ऋग्वेद 4.6.10]
हे अग्नि देव! तुम्हारी किरणें शत्रुओं को वश में करने में सक्षम हैं। वे गमनशील दमकती हुई और अर्चना के लायक रश्मियाँ मरुतों के समान विविध नाद करने वाली है तथा वे अश्वों के समान गंतव्य तुम्हारे लिए ही हमने किया है।
Hey Agni Dev! Your rays are capable of enchanting the enemy, fast moving, revered, sounds like the Marud Gan & move to their destination like the horses.
अकारि ब्रह्म समिधान तुभ्यं शंसात्युक्थं यजते व्यू धाः।
होतारमग्निं मनुषो नि षेदुर्नमस्यन्त उशिजः शंसमायोः
हे समिद्ध अग्नि देव! आपके लिए हम लोगों ने स्तोत्र रचित किए हैं। होता उक्थ (शस्त्र रूप स्तोत्र) का उच्चारण करते हैं। यजमान आपका यजन करते हैं। इसलिए आप हम लोगों को धन प्रदान करें। मनुष्यों के प्रशंसनीय होता अग्नि देव की पूजा करने के लिए ऋत्विक आदि पशु आदि व धन की कामना से उपविष्ट हुए हैं।[ऋग्वेद 4.6.11]
वे देदीप्यमान अग्नि देव! यह श्रेष्ठ श्लोक तुम्हारे लिए ही हमने किया है। तुम्हारे लिए ही विद्वान मनुष्य महान वचनों का उच्चारण करते हैं। यजमान द्वारा तुम्हारा अनुष्ठान करते हैं। इसलिए तुम हमकों धन ऐश्वर्य प्रदान करो। पुरुषों के होता अग्नि देव की उपासना करने के लिए तथा पशु आदि धनों की इच्छा के संग ऋत्विक आदि विद्वान यहाँ विराजे हैं।
Hey radiant Agni Dev! We have composed this hymn-Strotr in your honour. The Ritviz-host worship-pray you, for wealth and comforts. The Ritviz have gathered here with the desire to have cattle and riches.(01.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-अग्नि छन्द :- त्रिष्टुप,जगती, अनुष्टुप्
अयमिह प्रथमो धायि धातृभिर्होता यजिष्ठो अध्वरेष्वीड्यः।
यमन्पवानो भृगवो विरुरुचुर्वनेषु चित्रं विभ्वं विशेविशे
न्पवान् आदि भृगुवंशीयों ने वन के बीच में दावाग्नि रूप से दर्शनीय एवम् समस्त लोक के ईश्वर अग्नि देव को प्रदीप्त किया। वे होता, याज्ञिक श्रेष्ठ, स्तुति भाजन और देव श्रेष्ठ अग्नि यज्ञकारियों द्वारा संस्थापित हुए।[ऋग्वेद 4.7.1]
दावाग्नि :: वन या जंगल में स्वतः लगने वाली आग, दावानल; forest fire which evolve by itself.
यह अग्निदेव सभी में महान, सभी के आदि में वर्तमान, सर्व सुखों के दाता पूजनीय तथा समस्त यज्ञों में वंदना करने के समान हैं। इन्हें आदि काल में भृगुओं ने ज्योर्तिमान किया था। अग्नि याज्ञिकों में महान, तेजस्वी एवं पाप नाशक हैं। इन परमेश्वर अग्नि को हवन करने वाले विद्वान विद्यमान करते हैं।
The Bhragus Anpvan, etc. visualised-saw Dawagni in the forest and evolved-ignited Agni as the God of all abodes. Agni Dev, best amongest the demigods-deities was established by the Yagy doers-performers being the host-Hota, best as a Yagyik (performer of Yagy) and worship-prayers deserving.
अग्ने कदा त आनुषग्भुवद्देवस्य चेतनम्।
अधा हि त्वा जगृभिरे मर्तासो विक्ष्वीड्यम्
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान् और मनुष्यों द्वारा स्तुति योग्य है। आपकी दीप्ति कब प्रसृत होगी? मर्त्य लोग आपको ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 4.7.2]
हे अग्ने! तुम प्राणियों के द्वारा पूजने योग्य हो, तुम अत्यन्त दीप्तिवान हो। तुम्हारा प्रकाश कब अनुकूल होगा?
Hey Agni Dev! You are radiant and deserve worship by the humans. The immortals avail you.
ऋतावानं विचेतसं पश्यन्तो द्यामिव स्तृभिः। 
विश्वेषामध्वराणां हस्कर्तारं दमेदमे
माया रहित, विज्ञ, नक्षत्र परिवृत स्वर्ग की तरह और समस्त यज्ञ के वृद्धि कारक अग्नि देव के दर्शन करके ऋत्विक् आदि प्रत्येक यज्ञ गृह में उनको ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 4.7.3]
वे अग्निदेव अनेक ज्ञानों से युक्त, माया से परे, नक्षत्रों से युक्त आकाश के समान सभी यज्ञों को सम्पन्न करने वाले हैं। दर्शनीय अग्नि को ऋत्विक आदि मेधावी जन प्रत्येक अनुष्ठान स्थान में विद्यमान करते हैं।
The Ritviz accept Agni Dev, contemplating him in every dwelling, truthful intelligent, brilliant with sparks like the sky with stars, the perfecter of all sacrifices.
The Ritviz establish Agni Dev, the promoter of the Yagy, free from cast-spell, enlightened, pervading the constellations like the heavens, in the Yagy house.
आशुं दूतं विवस्वतो विश्वा यश्चर्षणीरभि।
आ जभ्रुः केतुमायवो भृगवाणं विशेविशे
जो अग्नि देव प्रजाओं को अभिभूत करते हैं, उन्हीं शीघ्रगामी याजकगण के दूत, केतु स्वरूप और दीप्तिमान् अग्नि देव का आनयन समस्त प्रजाओं के लिए मनुष्य गण करते हैं।[ऋग्वेद 4.7.4]
अभिभूत :: पराजित किया हुआ, पीड़ित; overwhelmed, surrendered, overcome.
जो अग्नि देव प्रजाओं के सुख के लिए अपना तेजोप्रद ज्योति प्रदान करते हैं, वे शीघ्रतम विचरण शील, यजमान के दूत-सन्देश वाहक स्वरूप एवं ज्ञान की रोशनी से परिपूर्ण हैं। अग्नि देव का प्रकट होना प्रत्येक प्रजाजन के लिए मंगलकारी होगा।
Agni Dev who cast a spell over the populace, grant radiance-light, possessor enlightenment, is fast moving, is the ambassador of the hosts & is like Ketu-dragon tail. Evolution of Agni Dev is favourable- beneficial to the populace.
तमीं होतारमानुषक्चिकित्वांसं नि षेदिरे।
रण्वं पावकशोचिषं यजिष्ठं सप्त धामभिः
उन होता और विद्वानों ने अग्नि देव को अध्वर्यु आदि मनुष्यों ने यथा स्थान पर उपविष्ट कराया है। वे रमणीय, पवित्र दीप्ति विशिष्ट, याज्ञिक श्रेष्ठ और सप्त-तेजो युक्त हैं।[ऋग्वेद 4.7.5]
उन होता रूप अग्नि को अध्वर्यु आदि ने उचित स्थान पर प्रतिष्ठित किया है। वे तेजस्वी तथा शुद्ध करने वाली प्रदीप्ति से युक्त हैं। वे अत्यन्त दानशील तथा सभी के मित्र रूप हैं। वे सात तेजों से युक्त अनुकूल होकर यज्ञ स्थान में निर्वाह करें।
The Hota & the learned-scholars, priests evolved Agni Dev, established him at his proper place. He is aurous, attractive, pious, excellent-best amongest the Yagyik and the possessor of 7 types of energy (rays).
तं शश्वतीषु मातृषु वन आ वीतमश्रितम्।
चित्रं सन्तं गुहा हितं सुवेदं कूचिदर्थिनम्
मातृ स्वरूप जल समूह में और वृक्ष समूह में विद्यमान, कमनीय, दाह भय से प्राणियों द्वारा असेवित, विचित्र गुफा में निहित, सुविज्ञ और सभी जगह हव्य ग्राही उन अग्नि देव को अध्वर्यु आदि मनुष्यों ने उपविष्ट कराया है।[ऋग्वेद 4.7.6]
उपविष्ट ::  जमकर बैठा हुआ; contained.
विचित्र :: अजीब, अनोखा, चितला, बहुरंगा, रंग-बिरंगा, विलक्षण; weird, bizarre, quaint, pied.
मातृभूत जलों में तथा वृक्षों में युक्त जलने के भय से अनेकों प्राणधारियों द्वारा असेवित गुहा में अवस्थित, दिव्य मेधावी और सब जगह हव्य सामग्री को प्राप्त करने वाले अग्नि देव की पुरुषों ने आराधना की है।
Humans-priests worshiped-prayed attractive Agni Dev, who is present in water, wood, feared by the humans due to its burning nature, present is weird-bizarre, caves, is well informed-enlightened & accepts offerings every where.
ससस्य यद्वियुता सस्मिन्नूधव्रतस्य धामन्रणयन्त देवाः।
महाँ अग्निर्नमसा रातहव्यो वेरध्वराय सदमिदृतावा
देवगण निद्रा से विमुक्त होकर अर्थात् उषाकाल में जल के स्थान स्वरूप सम्पूर्ण यज्ञ में जिन अग्नि देव को प्रार्थना आदि के द्वारा प्रसन्न करते हैं, वे महान एवं सत्यवान अग्नि देव नमस्वरपूर्वक दत्त हव्य को ग्रहण करके सदैव याजक गण कृत यज्ञ को अवगत करें, जानें।[ऋग्वेद 4.7.7]
देव निद्रा को छोड़कर उषा काल में जिस अग्नि को यज्ञ स्थल में वंदनाओं द्वारा हर्षित करते हैं। सत्य से युक्त श्रेष्ठ अग्नि देव प्रणामपूर्वक दिए हव्य को ग्रहण करते हुए यजमान द्वारा किये गये यज्ञ को जानते रहें।
The demigods-deities free from sleep, pleased through worship-prayers notice the Yagy site, at dawn-morning Usha Kal, meets-accepts Agni Dev, who is great & truthful by saluting him accepts & offerings.
वेरध्वरस्य दूत्यानि विद्वानुभे अन्ता रोदसी संचिकित्वान्।
दूत ईयसे प्रदिव उराणो विदुष्टरो दिव आरोधनानि
हे अग्नि देव! आप विद्वान् है। आप यज्ञ के दूत कार्य को जानते है। इन दोनों द्यावा-पृथ्वी के मध्य में अवस्थित अन्तरिक्ष को आप भली-भाँति जानते है। आप पुरातन है। आप अल्प व्य को बहुत कर देते है। आप विद्वान्, श्रेष्ठ और देवों के दूत है। आप देवताओं को हवि देने के लिए स्वर्ग के आरोहण योग्य स्थान में जाते हैं।[ऋग्वेद 4.7.8]
हे अग्नि देव! तुम ज्ञानवान हो यज्ञों में, दौत्य कर्म करते हो। तुम इन जनों और धरती गगन के मध्य अवस्थित हुए अंतरिक्ष को सही ढंग से जानते हो। हे अग्नि देव! तुम प्राचीन हो। अतः अनुष्ठान को भी बढ़कर अत्यधिक कर देते हो। तुम अत्यन्त मेधावी हो। महान एवं देवों के सन्देशवाहक हो। तुम देवों के लिए हवि पहुँचाने के लिए स्वर्ग के उच्चतम स्थान को भी ग्रहण होओ।
अनुष्ठान :: संस्कार, धार्मिक क्रिया (उत्सव, संस्कार), पद्धति, शास्रविधि, आचार, आतिथ्य सत्कार, समारोह, विधि, रसम; ritual, rite, ceremony.
Hey enlightened Agni Dev! You function as an ambassador in the Yagy. You are aware of the space-sky between the heavens & the earth. You are immortal-ancient, for ever. You enhance-boosts the scope of the rituals. You are excellent conveyor, learned, intelligent-prudent, carries the offerings to the demigods-deities, attaining highest place-position in the heavens.
कृष्णं त एम रुशतः पुरो भाश्चरिष्णव १ र्चिर्वपुषामिदेकम्।
यदप्रवीता दधते ह गर्भं सद्यश्चिज्जातो भवसीदु दूतः
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान् है। आपका गमन मार्ग कृष्ण वर्ण है। आपकी दीप्ति पुरोवर्तिनी है। आपका सञ्चरणशील तेज सम्पूर्ण तैजस पदार्थों के बीच में श्रेष्ठ है। आपको न पाकर याजकगण लोग आपकी उत्पत्ति के कारण स्वरूप काष्ठ को धारित करते हैं। आप उत्पन्न होकर तत्काल ही याजकगण के दूत होते है।[ऋग्वेद 4.7.9]
पुरोवर्तिनी :: पहले रहने वाला, पहले होने वाला; predecessor, preceding, antecedents.
हे अग्निदेव! तुम प्रकाश से युक्त हो। तुम्हारा चलने का रास्ता काले रंग का है। तुम्हारी कांति आगे से दिखाई देती है। तुम्हारा तेज सभी तेजोमय पदार्थों में उत्तम है। तुम्हारी प्राप्ति के लिए तुम्हारे उत्पत्ति कारण लकड़ी को स्वीकार किया जाता है और तुम उत्पन्न होते ही यजमान के दूत बन जाते हो। 
Hey Agni Dev! You are radiant-aurous. Your path is dark-black. Your brilliance is ever since. You are best amongest the dynamic-movable. In your absence the worshiper ignite woods. You immediately evolve and act as their ambassador.
सद्यो जातस्य ददृशानमोजो यदस्य वातो अनुवाति शोचिः।
वृणक्ति तिग्मामतसेषु जिह्वां स्थिरा चिदन्ना दयते वि जम्भैः
तृषु यदन्ना तृषुणा ववक्ष तृषु दूतं कृणुते यह्वो अग्निः।
वातस्य मेळिं सचते निजूर्वन्नाशुं न वाजयते हिन्वे अर्वा
अग्नि देव क्षिप्रगामी रश्मि समूह द्वारा अन्न रूप काष्ठ आदि को शीघ्र दग्ध करते हैं। वे काष्ठ समूह को विशेष रूप से दग्ध करके वायु के बल के साथ सङ्गत होते हैं। घुड़सवार जिस प्रकार से अश्व को बलवान् करता है, उसी प्रकार गमन शील अग्नि देव अपनी रश्मि को बलवान करते हुए प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 4.7.10-11]
अग्निदेव क्षिप्रगामी रश्मिसमूह द्वारा अन्नरूप काष्ठ आदि को शीघ्र दग्ध करते हैं। महान् अग्निदेव अपने को क्षिप्रगामी दूत बनाते हैं। अरणियों को मथने के पश्चात रचित होने वाले अग्नि के तेज को ऋत्विज आदि ही देखते हैं। जब अग्नि की शाखा रूपी लपटों के लक्ष्य पर पवन प्रवाहमान होती है तब अग्नि देव अपनी तीव्र लपटों से वृक्षों के संगठन में विद्यमान कर देते हैं तथा अन्न रूपी काष्ठ आदि को अपने तेज से भक्षण कर जाते हैं। 
अग्नि देव शीघ्रगामी रश्मियों के माध्यम से अन्न आदि काष्ठ को शीघ्र ही जला देते है। अग्नि देव सबमें श्रेष्ठ हैं। वे शीघ्र गमन करने वाले दूत बन जाते हैं। वे लकड़ियों को जलाकर पवन के सहित मिल जाते हैं जैसे अश्वारोही अपने अश्व को पुष्ट करते हैं और प्रेरणा प्रदान करते हैं।
Agni Dev burn the wood with his destructive rays. He acts as a fast moving ambassador. The Ritviz watch the glow after rubbing wood. When the flames of fire accompany air, Agni Dev assimilate his flames in the trees and eat-consume the food grains.(02.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-अग्नि छन्द :- गायत्री
दूतं वो विश्ववेदसं हव्यवाहममर्त्यम्। यजिष्ठमृञ्जसे गिरा
हे अग्नि देव! आप सम्पूर्ण धन के स्वामी, देवताओं को हव्य पहुँचाने वाले, मरण धर्म रहित, अतिशय यजनशील और देवदूत हैं। हम स्तुति द्वारा आपको वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 4.8.1]
हे अग्नि देव! तुम सभी धनों के स्वामी, देवता को हवि पहुँचाने वाले, अविनाशी, अत्यन्त अनुष्ठान करने वाले एवं देवों के लिए दौत्यकर्म करने वाले हो। तुम अग्निदेव को हम साधारण वंदनाओं द्वारा वृद्धि करते हैं।
Hey Agni Dev! You are the master of entire wealth, carrier of offerings to demigods-deities & their messenger, immortal, best performer of  Yagy. We make prayers for your well being-promotion.
स हि वेदा वसुधितिं महाँ आरोधनं दिवः। स देवाँ एह वक्षति
अग्नि देव याजक गणों के अभीष्ट फल साधक धन के दान को जानते हैं। वे महान् हैं। वे दिव्य लोक के आरोहण स्थान को जानते हैं। वे इन्द्रादि देवताओं का हमारे इस यज्ञ में आवाहन करें।[ऋग्वेद 4.8.2]
आरोहण :: चढ़ना, सवार होना, नृत्य, अभिनय आदि के लिए बना हुआ मंच, अँखुआ फूटना; climb, ascent, ascension, embarkation, mounting.
अग्निदेव श्रेष्ठ हैं। वे यजमानों की मनोकामना सिद्ध करने वाली अग्नि ज्योर्तिवान हैं। वे इन्द्रादि देवों को नमस्कार करने के कर्मों के भी ज्ञाता हैं। वे अग्नि देवों को हमारे अनुष्ठान में पुकारें।
Agni Dev is great, accomplishes the desire for wealth of the devotees, to help them make donations. He is aware of the ascent of the heavens. Let him invite Indr Dev along with the demigods-deities in out Yagy.
स वेद देव आनमं देवाँ ऋतायते दमे। दाति प्रियाणि चिद्वसु
वे द्युतिमान् हैं। इन्द्रादि देवताओं को याजक गणों द्वारा क्रम पूर्वक नमस्कार करना जानते हैं। वे यज्ञ गृह में यज्ञाभिलाषी याजक गण को अभीष्ट ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.8.3]
वे अग्नि प्रकाशवान हैं। वे इन्द्रादि देवताओं को नमस्कार करने के क्रम के ज्ञाता हैं। वे यज्ञ की कामना करने वाले यजमान को यज्ञ स्थान में अभीष्ट धन प्रदान करते हैं।
He is radiant. He is aware of the sequence of praying-saluting the demigods-deities. He grant desired grandeur-wealth to those who wish to conduct Yagy.
स होता सेदु दूत्यं चिकित्वाँ अन्तरीयते। विद्वाँ आरोधनं दिवः
अग्नि देव होता हैं। वे दूत कर्म को जान करके और स्वर्ग के आरोहण योग्य स्थान को जान करके द्यावा-पृथ्वी के बीच में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 4.8.4]
दौत्य कर्म के ज्ञाता अग्निदेव होता रूप हैं। स्वर्गारोहण योग्य स्थल को जानने वाले हैं एवं अम्बर और धराके मध्य विचरण करते हैं।
Agni Dev is the Hota-initiator, organiser of the Yagy. He stations-establishes himself between the heavens & the earth, identifying the place for ascent, having understood the procedures-methodology of rituals, Hawan, Agni Hotr &  the Yagy.
ते स्याम ये अग्नये ददाशुर्हव्यदातिभिः। य ईं पुष्यन्त इन्धते
जो हव्य दान देकर अग्नि देव को प्रसन्न करता है, जो उन्हें वर्द्धित करता है और जो याजक गण उन्हें काष्ठ द्वारा प्रदीप्त करता है, उसी यजमान के सदृश हम भी आचरण करें।[ऋग्वेद 4.8.5]
जो यजमान, उन्हें काष्ठ के द्वारा प्रज्वलित करता है, उन्हें हव्य द्वारा वृद्धि करता हुआ हर्षित करता है, हम भी उस यजमान के समान कार्य करते हुए अग्नि को हर्षित करें। यजमान अग्नि की पूजन आदि परिचर्या करते हैं।
We should also behave-act like one, who provide offerings, Samidha-wood, to enhance-promote him. 
ते राया ते सुवीर्यैः ससवांसो वि शृण्विरे। ये अग्ना दधिरे दुवः
जो याजक गण अग्नि देव की परिचर्या करते हैं, वे अग्नि देव का सम्भजन करके धन द्वारा विख्यात होते हैं और पुत्र-पौत्र आदि के द्वारा भी विख्यात होते हैं।[ऋग्वेद 4.8.6]
धन से परिपूर्ण होते हुए अनेक ऐश्वर्य को भोगते हुए, अन्न आदि सुख से पूर्ण होते हैं।
Those hosts, Ritviz, priests who pray, worship, serve Agni Dev acquire grandeur-wealth, enjoy it and have sons & grandsons.
अस्मे रायो दिवेदिवे सं चरन्तु पुरुस्पृहः। अस्मे वाजास ईरताम्
ऋत्विक आदि के द्वारा अभिलषित धन हम यजमानों के पास प्रतिदिन आगमन करें। अन्न हम लोगों को यज्ञ कार्य में प्रेरित करें।[ऋग्वेद 4.8.7]
ऋत्विक आदि द्वारा अभिलाषित किया धन प्रतिदिन हमारे समीप आएँ और उसके द्वारा हमको अनेक ज्ञान विज्ञान तथा बल आदि प्राप्त हों।
Let the riches pour to us-the Ritviz, everyday. Let the money inspire us to attain enlightenment, knowledge and strength.
स विप्रश्चर्षणीनां शवसा मानुषाणाम्। अति क्षिप्रेव विध्यति 
हे अग्नि देव! आप मेधावी हैं। बल द्वारा मनुष्यों के विनाश योग्य पाप को विशेष रूप से विनष्ट करें।[ऋग्वेद 4.8.8]
वे अग्नि देव महान विद्वान हैं। वे मनुष्यों के कष्ठों को गति से चलने वाले बाणों के तुल्य अपनी शक्ति से प्रहार करके समाप्त कर डालें।
Hey enlightened Agni Dev! remove-destroy the sins of the humans-devotees with your intelligence.(03.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-अग्नि छन्द :- गायत्री
अग्ने मृळ महाँ असि य ईमा देवयुं जनम्। इयेथ बर्हिरासदम्
हे अग्निदेव! आप हम लोगों को सुखी बनावें। आप महान् है। आप देवों की कामना करने वाले हैं। आप याजकगण के निकट कुश पर बैठने के लिए आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 4.9.1]
हे अग्नि देव! हमको सुख प्रदान करो। तुम देवताओं की कामना करने वाले एवं श्रेष्ठ हो। तुम यजमान के निकट कुश पर विराजमान होने की कामना से आते हो।
Hey Agni Dev! Make us blissful-happy. You are great. You come to acquire the Kush Mat by the side of the devotee.
समानुषीषु दूळभो विक्षु प्रावीरमर्त्यः। दूतो विश्वेषां भुवत्
राक्षसों आदि द्वारा अहिंसनीय अग्नि देव मनुष्य लोक में प्रकर्ष रूप से गमन करते हैं। वे मृत्यु विवर्जित हैं। वे समस्त देवों के दूत हैं।[ऋग्वेद 4.9.2]
राक्षस आदि दुष्टों द्वारा भी जिनकी हिंसा नहीं हो सकती, जो मृत्यु जगत में स्वच्छन्द भ्रमण करने में समर्थवान हैं, वे अग्नि देव अविनाशी हैं। वे समस्त देवों के सन्देश वाहक हैं।
Immortal Agni Dev can not be killed by the demons. He is capable of moving over the earth freely. He is the messenger of the demigods-deities.
स सद्म परि णीयते होता मन्द्रो दिविष्टिषु। उत पोता नि षीदति
यज्ञ घर में ऋत्विक आदि के द्वारा नीयमान होकर अग्नि देव यज्ञों में स्तुति योग्य होते हैं। अथवा होता होकर यज्ञ गृह में प्रवेश करते हैं।[ऋग्वेद 4.9.3]
ऋत्विक गण आदि के यज्ञ भवन में लाए जाकर अग्नि देव वंदना के पात्र होते हैं या वे स्तुति द्वारा यज्ञ स्थान में आते हैं।
Established in the house of the Ritviz, Agni Dev is honoured-prayed, worshiped, on being requested.
उत ग्ना अग्निरध्वर उतो गृहपतिर्दमे। उत ब्रह्मा नि षीदति
यज्ञ में अग्नि देव देव पत्नी या अध्वर्यु होते हैं। अथवा यज्ञगृह में वे गृहपति होते हैं। ब्रह्मा नामक ऋत्विक होकर उपवेशन करते हैं।[ऋग्वेद 4.9.4]
वे अग्नि देव अध्वर्यु तथा देव पत्नी रूप होते हैं अथवा यज्ञ भवन में बृहस्पति रूप से प्रतिष्ठित होते हैं। अथवा यज्ञ में ब्रह्मा रूप से विराजमान होते हैं।
Agni Dev may be the officiating priest at the sacrifice or the master of the house in the sacrificial chamber or he sits down as the Brahman.
Agni Dev is either Goddess or priest in the Yagy. He is like Dev Guru Brahaspati or Brahma  Ji in the Yagy house. 
वेषि ह्यध्वरीयतामुपवक्ता जनानाम्। हव्या च मानुषाणाम्
हे अग्नि देव! आप यज्ञाभिलाषी मनुष्यों के लिए हव्य की कामना करते हैं। आप अध्वर्यु आदि के सम्पूर्ण कर्मों को जानने वाले ब्रह्मा हैं। आप यज्ञ कर्मों के अविकल उपद्रष्टा या सदस्य हैं।[ऋग्वेद 4.9.5]
हे अग्नि देव! तुम अनुष्ठान की इच्छा करने वाले मनुष्यों की हवियों की इच्छा करते हो। तुम अध्वर्यु आदि के कार्यों के ज्ञाता ब्रह्मा रूप हो। तुम अनुष्ठान कार्यों के उपदेष्टा स्वरूप हो।
Hey Agni Dev! You are desirous of offerings from those who wish to perform Yagy. You are like Brahma Ji aware of the duties of the priests. You are like the preceptor of the rituals, Yagy.
वेषीद्वस्य १ दूत्यं यस्य जुजोषो अध्वरम्। हव्यं मर्तस्य वोळ्हवे
हे अग्नि देव! आप हव्य वहन करने के लिए जिस याजक गण के यज्ञ की सेवा करते हैं, उसके दूत कार्य की भी आप कामना करते हैं।[ऋग्वेद 4.9.6]
हे अग्ने! तुम हवियों को वहन करने के लिए जिस यजमान के अनुष्ठान को सेवन करते हो उस यजमान के अनुष्ठान में दौत्य कर्म करने के लिए भी तुम अभिलाषा करते हो।
Hey Agni Dev! You serve as a messenger and acceptor of the offerings of the Ritviz.
अस्माकं जोष्यध्वरमस्माकं यज्ञमङ्गिरः। अस्माकं शृणुधी हवम्
हे अग्नि देव! आप हमारे यज्ञ की सेवा करें, हमारे हव्य का सेवन करें और हमारे आह्वान कारक स्तोत्र को भी श्रवण करें।[ऋग्वेद 4.9.7]
हे तेजस्वी! तुम हमारे यज्ञ का सेवन करो। हमारे हव्य को स्वीकार करो और आह्वान करने वाले हमारे श्लोक को श्रवण करने का अनुग्रह करो।
Hey Agni Dev! Take care of our Yagy, accept our offerings and the Strotr inviting you.
परि ते दूळभो रथोऽस्माँ अश्नोतु विश्वतः। येन रक्षसि दाशुषः
हे अग्नि देव! आप जिस रथ द्वारा समस्त दिशाओं में गमन करके हवि देने वाले याजक गणों की रक्षा करते हैं, आपका वही अहिंसनीय रथ हम याजकगणों के चारों ओर व्याप्त हो।[ऋग्वेद 4.9.8]
हे अग्नि देव! तुम अपने जिस रथ पर चढ़कर सभी दिशाओं में गमन करते हुए हव्यदाता यजमान के रक्षक हो, तुम्हारा वह रथ हमारी हिंसा से रक्षा करे। 
Hey Agni Dev! Your charoite in which you move all around, accepting offerings & protecting the hosts-Ritviz should shield-pervade around the hosts-Ritviz.(04.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-अग्नि छन्द :- पदपंक्ति, महापदपंक्ति, उष्णिक्। 
अग्ने तमद्याश्वं न स्तोमैः क्रतुं न भद्रं हृदिस्पृशम्। ऋध्यामा त ओहैः
हे अग्नि देव! आज हम ऋत्विकगण, इन्द्रादि प्रापक स्तुति द्वारा आपको वर्द्धित करते हैं। अश्व जिस प्रकार से सवार का वहन करता है, उसी प्रकार आप हव्य वाहक है। आप यज्ञकर्ता के सदृश उपकारक है। आप भजनीय हैं और अतिशय प्रिय हैं।[ऋग्वेद 4.10.1]
हे अग्नि देव! हम ऋत्विग्गण वंदना द्वारा तुमको बढ़ाते हैं। जैसे अश्व सवार को चढ़ाता है, वैसे ही तुम हवियों को वहन करते हो। तुम यज्ञ करने वाले उपकार करते हो, तुम यजन करने योग्य तथा अत्यन्त प्रिय एवं सुखकारी हो।
Hey Agni Dev! We the Ritviz-hosts, priest worship you. The way the horse carries a man over his back, you carry the offerings to demigods-deities. You are as good-beneficial as the Yagy. You deserve worship.
अधा ह्यग्ने क्रतोर्भद्रस्य दक्षस्य साधोः। रथीर्ऋतस्य बृहतो बभूथ 
हे अग्नि देव! आप इसी समय हमारे भजनीय, प्रवृद्ध, अभीष्ट फल साधक, सत्य भूत और महान यज्ञ के नेता है।[ऋग्वेद 4.10.2]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़, तलवार के 32 हाथों में से एक जिसे प्रसृत भी कहते हैं, इनमें तलवार की नोक से शत्रु का शरीर छू भर जाता है, अयोध्या के राजा रघु का एक पुत्र जो गुरु के शाप से 12 वर्ष के लिये राक्षस हो गया था, वृद्धि युक्त, खूब बढ़ा हुआ, खूब पक्का, विस्तृत, खूब फैला हुआ, विशाल, उग्र, घमंडी, गर्विष्ठ (को कहते हैं); grown up, mature, grown tremendously, aged.
हे अग्नि देव! तुम हमारे यजन के योग्य हो। तुम बढ़ोत्तरी हुए अभीष्ट फल को सिद्ध करने वाले, सत्य के आधारभूत एवं श्रेष्ठ हो तथा रथी के तुल्य नेतृत्व करने वाले हो।
Hey Agni Dev! You deserve worship-prayers, grants-accomplish desires.  You are truthful, vast, grown up & mature leader.  
एभिर्नो अर्कैर्भवा नो अर्वाङ् १ स्वर्ण ज्योतिः।
अग्ने विश्वेभिः सुमना अनीकैः
हे अग्नि देव! आप ज्योतिर्मान सूर्य के तुल्य समस्त तेज से युक्त और शोभन अन्त:करण वाले हैं। आप हम लोगों के अर्चनीय स्तोत्र द्वारा नीत होवें और हम लोगों के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 4.10.3]
हे अग्नि देव! तुम प्रकाश से परिपूर्ण, सूर्य के समान तेज से परिपूर्ण एवं उत्तम अंतःकरण करने वाले हो। तुम हमारे द्वारा उत्तम चित्त होकर हमारे सम्मुख आ जाओ।
Hey Agni Dev! You possess brightness-radiance, aura like the Sun possessing pure, virtuous heart, innerself (mind, heart & soul). Come to us and be worshiped-honoured with appreciable-best Strotr.
आभिष्टे अद्य गीर्भिर्गृणन्तोऽग्ने दाशेम। प्र ते दिवो न स्तनयन्ति शुष्माः
हे अग्नि देव! आज हम ऋत्विक वचनों द्वारा प्रार्थना करके आपको हव्य प्रदान करेंगे। सूर्य की रश्मि के तुल्य आपकी शोधक ज्वाला शब्द करती है अथवा मेघ के तुल्य आपकी ज्वाला शब्द करती है।[ऋग्वेद 4.10.4]
हे अग्नि देव! हम आज वाणी द्वारा स्तुति करके तुम्हारे लिए हव्य प्रदान करेंगे। सूर्य रश्मि के समान तुम्हारी शुद्ध करने वाली ज्वाला है। तथा मेघ के समान गर्जनशील है।
Hey Agni Dev! We the Ritviz-hosts make offerings to you associated with prayers. What is the nature of your flames generating purifying sound like the rays of Sun or they-flames sound like the clouds?
तव स्वादिष्ठाग्ने संदृष्टिरिदा चिदह्न इदा चिदक्तोः।
श्रिये रुक्मो न रोचत उपाके
हे अग्नि देव! आपकी प्रियतम दीप्ति अहर्निश अलङ्कार के तुल्य पदार्थों को आश्रयित करने के लिए उनके समीप शोभा पाती है।[ऋग्वेद 4.10.5]
अहर्निश :: निरन्तर, दिन-रात; photeolic, round the clock.
हे अग्नि देव! तुम्हारी परम प्रिय ज्योति अलंकार के समान पदार्थों को भूषित करने के लिए उनके निकट दिन-रात सुशोभित होती है।
Hey Agni Dev! Your round the clock glare is present with the matter-material like an ornament.
घृतं न पूतं तनूररेपाः शुचि हिरण्यम्। तत्ते रुक्मो न रोचत स्वधावः
हे अन्न वान अग्नि देव! आपकी मूर्ति शोधित घृत के तुल्य पाप रहित है। आपका पवित्र एवं रमणीय तेज अलङ्कार के तुल्य दीप्त होता है।[ऋग्वेद 4.10.6]
हे अग्नि देव! तुम अन्न से परिपूर्ण हो। तुम्हारा स्वरूप पवित्र घृत के समान पाप से शून्य है। तुम्हारा शुद्ध एवं पवित्र तेज आभूषण के समान ज्योर्तिवान हैं।
Hey Agni Dev! You possess food grains. Your figure is like the purified butter-Ghee. You are pious, attractive, beautiful & your aura is comparable to ornaments-jewels.
कृतं चिद्धि ष्मा सनेमि द्वेषोऽग्न इनोषि मर्तात्। इत्था याजकगणादृतावः
हे सत्यवान अग्नि देव! आप याजकगणों द्वारा निर्मित हैं; तथापि चिरन्तन हैं। आप याजक गणों के पाप को निश्चय ही दूर कर देते हैं।[ऋग्वेद 4.10.7]
हे सत्य से परिपूर्ण अग्ने! तुम लगातार होते हुए भी यजमानों द्वारा उत्पन्न होते हो। तुम यजमानों के पाप को दूर करने में अवश्य ही सक्षम हो।
Hey truthful Agni Dev! You are evolved by the desirous, worshipers. You certainly remove-destroy the sins of he devotees.
शिवा नः सख्या सन्तु भ्रात्राग्ने देवेषु युष्मे।
सा नो नाभिः सदने सस्मिन्नूधन्
हे अग्नि देव! आप द्युतिमान् है। आपके प्रति जो हम लोगों का मित्र और भ्रातृभाव है, वह मङ्गल जनक है। वह मित्र भाव और भ्रातृ कार्य देवों के स्थान में और सम्पूर्ण यज्ञ में हम लोगों का नाभिबन्धन हो।[ऋग्वेद 4.10.8]
हे अग्नि देव! तुम प्रकाशवान हो। तुम्हारे प्रति हमारा जो बंधु और मैत्री भाव है, वह मंगलकारी हो। यह मैत्रीभाव एवं भ्रातृत्व संपूर्ण यज्ञ में हमारे कल्याण स्वरूप हो।
Hey Agni Dev! You are radiant. Your feeling-affection for us is like a friend ship & brotherhood. This friendly & brotherly relation should become bonding-tying for our welfare.(06.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अग्नि छन्द :- त्रिष्टुप्।
भद्रं ते अग्ने सहसिन्ननीकमुपाक आ रोचते सूर्यस्य।
रुशदृशे ददृशे नक्तया चिदरूक्षितं दृश आ रूपे अन्नम्
हे बलवान अग्नि देव! आपका भजनीय तेज सूर्य के समीपभूत दिवस में चारों ओर दीप्तिमान् होता है। आपका सुन्दर और दर्शनीय तेज रात्रि में भी दिखाई देता है। आप रूपवान् हैं। आपके उद्देश्य से स्निग्ध और दर्शनीय अन्न बहुत होता है।[ऋग्वेद 4.11.1]
हे अग्नि देव! तुम अपने पराक्रम से युक्त हो। तुम्हारा पूजन योग्य तेज सूर्य के दैदीप्यमान तेज के समान है। तुम्हारा तेज सुंदर एवं दर्शनीय है, वह रात में छिपता नहीं है। तुम अत्यन्त रूप वाले हो। तुम्हारी प्रेरणा से घृत आदि से युक्त अन्न उत्पन्न होता है।
Hey mighty Agni Dev! Your worship serving radiance-aura is like that of the Sun spread all around. Your beautiful-attractive radiance is visible during the night as well. You are beautiful-handsome. The food grains grow by the inspiration from you, soaked with Ghee-possessing oil-fat.
वि षाह्यग्ने गृणते मनीषां खं वेपसा तुविजात स्तवानः।
विश्वेभिर्यद्वावनः शुक्र देवैस्तन्नो रास्व सुमहो भूरि मन्म
हे बहु जन्मा अग्नि देव! आप यज्ञकारियों द्वारा प्रार्थित होकर स्तुतिकारी याजकगण के लिए पुण्य लोक के द्वार को खोल दें। हे सुन्दर तेजोविशिष्ट अग्नि देव! देवों के साथ याजकगण को आप जो धन देते हैं, हमें भी वही प्रभूत और अभिलषित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.11.2]
हे अनेक जन्म वाले अग्निदेव! तुम अनुष्ठान करने वालों के द्वारा पूजित हुए वंदनाकारी यजमान के लिए पुण्यलोक का दरवाजा खोलो, तुम सुन्दर तेज से परिपूर्ण हो। देवों के संग तुम यजमान को जो धन प्रदान करते हो, हमको भी इच्छित धन को प्रदान करो।
Hey Agni Dev, reborn several times! On being worshiped-prayed you open the doors of the abodes meant for the virtuous, righteous, pious. Hey Agni Dev, possessing brilliance-aura! Grant us the riches you grant to the Ritviz, in association with the demigods-deities.
त्वदग्ने काव्या त्वन्मनीषास्त्वदुक्था जायन्ते राध्यानि।
त्वदेति द्रविणं वीरपेशा इत्थाधिये दाशुषे मर्त्याय
हे अग्नि देव! हविर्वहन और देवतानयन आदि अग्नि सम्बन्धी कार्य आपसे ही उत्पन्न हुए हैं, स्तुति रूप वचन आपसे ही उत्पन्न हुए हैं और आराधनयोग्य स्तोत्र आपसे ही उत्पन्न हुए हैं। सत्य कर्म और हव्यदाता याजकगण के लिए वीर्य युक्त रूप और धन भी आपसे ही उत्पन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 4.11.3]
हे अग्नि देव! हवियों का वहन करना तथा देवताओं के आगमन संबंधी कार्य तुम्हारे द्वारा ही प्रकट हुए हैं। वंदना रूपिणी वाणी तुम्हारे द्वारा ही उत्पन्न हुई है।
Hey Agni Dev! The endeavours like carrying of offerings and invoking demigods-deities have evolved from you. Hymns pertaining to worship-prayers evolved from you. Truthful endeavours, wealth for the Ritviz making offerings, evolved from you, granting valour-might. 
त्वद्वाजी वाजंभरो विहाया अभिष्टिकृज्जायते सत्यशुष्मः।
त्वद्रयिर्देवजूतो मयोभुस्त्वदाश्रुर्जूजुवाँ अग्ने अर्वा
हे अग्नि देव! बलवान्, हव्य वाहक, महान् यज्ञकारी और सत्य बल विशिष्ट पुत्र आपसे ही उत्पन्न हुए हैं। देवों द्वारा प्रेरित सुखप्रद धन आपसे ही उत्पन्न होता है और शीघ्रगामी, गतिविशिष्ट और वेगवान् अश्व आपसे ही उत्पन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 4.11.4]
हे अग्नि देव! बलशाली, हव्य वहन करने वाले, यज्ञ कार्यों के तपस्वी, महान और सत्य शक्ति से परिपूर्ण पुत्र तुम्हारे द्वारा ही प्रकट हुए हैं। देवताओं के द्वारा प्रेरित, कल्याणकारी, समृद्धि तुम्हारे द्वारा प्रकट होता है, विशेष चाल वाला, गतिवान, शीघ्रगामी छोड़ा भी तुम्हारे द्वारा ही रचित हुआ है।
Hey Agni Dev! Mighty, carriers of offerings, performers of Yagy and truthful sons have evolved from you. Inspired by the demigods-deities; the comforts, pleasures, bliss evolved from you. Fast running horses having specific speeds modes of running evolved from you.
त्वामग्ने प्रथमं देवयन्तो देवं मर्ता अमृत मन्द्रजिह्वम्।
द्वेषोयुतमा विवासन्ति धीभिर्दमूनसं गृहपतिममूरम्
हे अमर अग्नि देव! देवाभिलाषी मनुष्य स्तुति द्वारा आपकी परिचर्या करते हैं। आप देवों में आदि देव है। आप प्रकाशवान है। आपकी जिह्वा देवों को हर्षित करने वाली है। आप पापों को दूर करने वाले हैं और राक्षसों का संहार करने की इच्छा वाले हैं। आप गृहपति और प्रगल्भ हैं।[ऋग्वेद 4.11.5]
प्रगल्भ :: वाक्चातुर्य, प्रतिभा, मुखरता, प्रौढ़ता, निःशंकता, चतुर, होशियार, प्रतिभाशाली, संपन्न बुद्धिवाला, उत्साही, हिम्मती, साहसी, प्रायः बढ़-चढ़कर बोलने वाला, अधिक बोलने वाला, वाचाल, निडर, निर्भय, पुष्ट, प्रौढ़, उद्धत, जिसमें नम्रता न हो, हाज़िरजवाब, समय पर ठीक उत्तर देने वाला, प्रसिद्धि; intelligent, maturity, prudent, forward, magniloquent 
हे अग्नि देव! तुम अविनाशी हो। देवताओं की अभिलाषा करने वाले प्राणी स्तुतियों द्वारा तुम्हारी सेवा करते हैं। तुम देवताओं में आदि देवता हो। तुम दीप्तिमान हो। तुम्हारी जिह्वा देवगणों को शक्तिशाली करने वाली है। तुम पापों को दूर करते हो तथा असुरों का संहार करने की अभिलाषा करते हो।
Hey immortal Agni Dev! Living beings desirous of invoking demigods-deities worship-pray you. You are radiant. You words please the demigods-deities. You remove the sins and destroy the demons. You are intelligent-prudent household.
आरे अस्मदमतिमारे अंह आर विश्वां दुर्मतिं यन्निपासि।
दोषा शिवः सहसः सूनो अग्ने यं देव आ चित्सचसे स्वस्ति
हे बलपुत्र अग्नि देव! आप रात्रि काल में मङ्गलजनक और द्युतिमान होकर हमारे कल्याण के लिए सेवा करते हैं। जिस कारण आप याजकगणों का विशेष रूप से पालन करते हैं, आप हम लोगों के निकट से अमंगल को दूर करें। हम लोगों के निकट से पाप को दूर करें और हमारे निकट से समस्त दुर्मति को दूर करें।[ऋग्वेद 4.11.6]
कुबुद्धि :: दुर्मति, दुष्ट, बद, द्रोही, बदख़्वाह; bad sense, malevolent.
हे शक्ति रचित अग्नि देव! तुम रात्रि के समय मंगलकारी एवं ज्योर्तिवान होकर हमारे कल्याण के लिए जागरुक रहते हो। जिस कारणवश तुम यजमानों को पुष्ट करते हो, उसी से हमारे निकट रचित हुई बुद्धि हीनता को हटाओ। हमारे निकट से पाप को हटा दो। हमारे पास से कुबुद्धि को दूर करो।
Hey Agni Dev born out of might-power! You become beneficial and radiant for our welfare. Remove our idiocy by the same reason for which you nurture-nourish the Ritviz, hosts. Remove the sinners and malevolent-wicked away from us.(06.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (12) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अग्नि छन्द :- त्रिष्टुप्।
यस्त्वामग्न इनधते यतस्रुक्त्रिस्ते अन्नं कृणवत्सस्मिन्नहन्।
स सु द्युम्नैरभ्यस्तु प्रसक्षत्तव क्रत्वा जातवेदश्चिकित्वान्
हे अग्नि देव! जो याजकगण स्रुक को संयत करके आपको प्रदीप्त करता है, जो व्यक्ति आपको प्रतिदिन तीनों सघनों में हविरूप अन्न देता है, हे जातवेदा! वह व्यक्ति आपके तृप्तिकर कार्य द्वारा आपके प्रसहमान (त्वदीय तेज अर्थात्‌ जीतने वाला) तेज को जानकर धन द्वारा शत्रुओं को पराभूत करता है।[ऋग्वेद 4.12.1]
हे अग्निदेव! स्त्रुक को दृढ़ कर जो यजमन तुमको दीप्तिमान करता है एवं जो तुम्हें नित्यप्रति तीनों सवनों में हविरूपी अन्न दान करता है वह तुम्हें संतुष्टि प्रदान करने वाले कार्य द्वारा तुम्हारे तेज का ज्ञान ग्रहण करके अपने शत्रुओं को विजय करता है।
One who who ignite you, balancing the Struk, offer you food grains, satisfies you, understand-acquires your knowledge; wins-over powers the enemies.
इध्मं यस्ते जभरच्छश्रमाणो महो अग्ने अनीकमा सपर्यन्।
स इधानः प्रति दोषामुषासं पुष्यन्रयिं सचते घ्नन्नमित्रान्
हे अग्नि देव! जो आपके लिए होम साधन समिधाएँ लाते हैं, हे महान अग्नि देव! जो व्यक्ति काष्ठ के अन्वेषण में श्रान्त होकर आपके तेज की परिचर्या करते हैं और रात्रि काल तथा दिवाकाल में जो आपको प्रदीप्त करते हैं, वह याजकगण प्रजा और पशुओं द्वारा पुष्ट होकर शत्रुओं को विनष्ट करते हुए धन प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.12.2]
हे अग्नि देव! जो व्यक्ति तुम्हारे लिए यज्ञ साधक लकड़ी लाता है तथा जो व्यक्ति की तलाश थककर तुम्हारी अर्चना करता है एवं रात्रि और दिन में तुम्हें प्रज्वलित करता है, वह यजमान संतान और पशुओं से सम्पन्न होकर शत्रुओं का विनाश करता है और धन को प्राप्त करता है।
Hey Agni Dev! One-The Ritviz, who brings Samidha-wood for Yagy-for you, takes rest after being tired and ignite you in the morning is strengthened with progeny & cattle, destroys the enemy and gets riches-wealth.
अग्निरीशे बृहतः क्षत्रियस्याग्निर्वाजस्य परमस्य रायः।
दधाति रत्नं विधते यविष्ठो व्यानुषङ्मर्त्याय स्वधावान्
हे अग्नि देव! आप महान बल के ईश्वर तथा उत्कृष्ट अन्न और पशु स्वरूप धन के स्वामी हैं। युक्तम और अन्नवान् अग्निदेव परिचर्या करने वाले याजकगण को रमणीय धन से संयुक्त करें।[ऋग्वेद 4.12.3]
वे अग्नि देव श्रेष्ठतम शक्ति के स्वामी तथा महन अन्न और पशु रूपी धन के अधिपति हैं। अत्यन्त युवा एवं अन्नवान अग्नि देव सेवा करने वाले यजमान को सुन्दर धन से सम्पन्न करें।
Agni Dev is possess ultimate strength, excellent food grains & cattle as wealth-riches, is young, has food grains and grants wealth to the Ritviz-host.
यचिद्धि ते पुरुषत्रा यविष्ठाचित्तिभिश्चकृमा कच्चिदागः।
कृधी ष्व १ स्माँ अदितेरनागान्व्येनांसि शिश्रथो विष्वगग्ने
हे युवतम अग्नि देव! यद्यपि आपके परिचारकों के बीच में हम अज्ञानवश कुछ पाप करते हैं, तथापि आप पृथ्वी के निकट हमें सम्पूर्ण रूप से निष्पाप कर दें। हे अग्नि देव! सभी जगह विद्यमान हमारे पापों को आप शिथिल करें।[ऋग्वेद 4.12.4]
हे सद्य युवा अग्नि देव! तुम्हारे सेवकों के मध्य हम अज्ञान के वशीभूत हुए तुम्हारा अपराध करते हैं, तुम धरा के पास हमको उन अपराधों और पापों से बचा दो। हे अग्नि देव! तुम सर्वत्र ग्रहण हो। हमारे द्वारा हुए पापों को नष्ट कर दो।
Hey youthful Agni Dev! We commit sins due to ignorance amongest your devotees over the earth, still you pardon us & make us sinless. Hey Agni Dev! Protect us from sins at all places-locations.
 महश्चिदग्न एनसो अभीक ऊवद्दिवानामुत मर्त्यानाम्।
मा ते सखायः सदमिद्रिषाम यच्छा तोकाय तनयाय शं योः
हे अग्नि देव! हम आपके मित्र हैं। हमने इन्द्रादि देवों के निकट अथवा मनुष्यों के निकट जो पाप किये हैं, उस महान और विस्तृत पाप से हम कभी भी कष्ट न पावें। आप हमारे पुत्र और पौत्र को उपद्रवों से शान्ति और सुकृत जनित सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.12.5]
उपद्रव :: दुक्की, विकार, अव्यवस्था, अशांति, विशृंखलता, शैतान, दो, पिशाच, ताश की दुक्की, अशांति, बाधा; nuisance, deuce, disturbance, disorder.
हे अग्नि देव! तुम हमारे मित्र हो। हमने इन्द्र आदि देवताओं तथा सभी प्राणियों का जो अपराध या पाप किया है, उस घोर अपराध से हम कभी भी बाधाओं को न पाएं। तुम हमारी संतानों को भी पाप रूप से बचाते हुए सुख दो।
Hey Agni Dev! Being our friend, protect-shield us from the sins committed by us, pertaining to the demigods-deities & Indr Dev. We should never be punished for them. Grant comforts, peace, tranquillity, solace, pleasure to our sons & grand sons calming down the troubles-disturbances. 
यथा ह त्यद्वसवो गौर्यं चित्पदि षिताममुञ्चता यजत्राः।
एवो ष्व१स्मन्मुञ्चता व्यंहः प्र तार्यग्ने प्रतरं न आयुः
हे पूजनीय और निवासयिता अग्नि देव! आपने जिस प्रकार आपने पैर बँधी गौ को छुड़ाया, उसी प्रकार हम लोगों को पाप से विमुक्त करें। हे अग्नि देव! हमारी आयु आपके द्वारा प्रवृद्ध है, आप इसे और बढ़ावें।[ऋग्वेद 4.12.6]
हे अग्निदेव! तुम पूजनीय एवं निवास से परिपूर्ण हो। तुमने जिस प्रकार पांवों से बंधी हुई धेनु को बचाया था, उसी प्रकार हमको पाप से बचाओ। हे अग्नि देव! हमारी आयु तुम्हारे द्वारा बढ़ायी गई है। तुम इसमें और भी वृद्धि करो।
Hey honourable-revered Agni Dev! The way-manner in which you released the cows who's legs were tied, us as well from the sins. Hey Agni Dev! Enhance our life span-longevity.(08.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अग्नि छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रत्यग्निरुषसामग्रमख्यद्विभातीनां सुमना रत्नधेयम्।
यातमश्विना सुकृतो दुरोणमुत्सूर्यो ज्योतिषा देव एति
शोभन मन वाले अग्नि देव तमोनिवारिणी उषा के धन प्रकाशकाल के पूर्व ही प्रवृद्ध होते हैं। हे अश्विनी कुमारों! आप याजकगण के गृह में गमन करें। ऋत्विक् आदि के प्रेरक सूर्य देव अपने तेज के साथ उषाकाल में प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 4.13.1]
हे महान हृदय वाले अग्नि देव! तम का पतन करने वाली उषा की ज्योति से पहले तुम प्रबुद्ध होते हो। हे अश्विनी कुमारों! तुम यजमान के ग्रह में विचरण करो। ऋत्विक आदि को शिक्षा देने वाले सूर्य अपने तेज से परिपूर्ण उषा समय में उदित हो होते हो।
Hey Agni Dev, possessing great innerself (mind, heart & soul)! Agni Dev become active prior to dawn-day break. Usha bring light prior to Sun rise. Hey Ashwani Kumars! Move to the houses of the Ritviz-devotees. Inspiring the Ritviz, Sury Bhagwan-Sun, appear with his aura-radiance with Usha in the morning.
ऊर्ध्वं भानुं सविता देवो अश्रेद्द्रप्सं दविध्वद्गविषो न सत्वा।
अनु व्रतं वरुणो यन्ति मित्रो यत्सूर्यं दिव्यारोहयन्ति
सवितादेव उन्मुख किरण को विकासित करते हैं। रश्मियाँ जब सूर्य को द्युलोक में आरूढ़ कराती हैं, तब वरुण, मित्र और अन्यान्य देवगण अपने-अपने कर्मों का अनुगमन करते हैं, जिस प्रकार से बलवान वृषभ गौओं की कामना करके धूलि विकीर्ण करता हुआ गौओं का अनुगमन करता है।[ऋग्वेद 4.13.2]
सूर्य देव किरणों को विकसित करते हैं। जब किरणें सूर्य को आकाश में चढ़ाती हैं, तब वरुण, मित्र और अग्नि सभी देवता अपने कर्मों के पीछे चलते हैं, उसी तरह जिस तरह बलिष्ठ बैल गायों की कामना कर धूल उड़ाता हुआ गायों के पीछे चलता है।
Savita Dev-Sun, boosts his rays establishing himself in the heavens. Varun Dev, Mitr and other demigods-deities begin with their work-routine just like the bull who chase the cows raising dust.
यं सीमकृण्वन्तमसे विपृचे ध्रुवक्षेमा अनवस्यन्तो अर्थम्।
तं सूर्यं हरितः सप्त यह्वीः स्पशं विश्वस्य जगतो वहन्ति
सृष्टि करने वाले देवों ने संसार के कार्य का परित्याग न करके सर्वतोभाव से अन्धकार को दूर करने के लिए जिस सूर्य को सृष्ट किया, उस समस्त प्राणि समूह के विज्ञाता सूर्य को धारित महान हरिनामक सप्ताश्व करते हैं।[ऋग्वेद 4.13.3]
सृष्टि के रचनाकार देवताओं ने संसार के कर्म को न छोड़कर तम को समाप्त करने के लिए जिस सूर्य की उत्पत्ति की, वह सूर्य सभी प्राणधारियों को जानने वाले हैं । हें प्रकाशवान सूर्य देव! तुम संसार का पालन करने वाले अन्न के लिए रश्मियों की वृद्धि करते हो। तुम ही उस काले रंग की रात्रि को भगाते हो और अत्यधिक बोझ को भी ढो लेने वाले अश्वों द्वारा गमन करते हो।
Seven great courses convey that Sun, whom the deities, occupants of enduring mansions and not heedless of their offices, have formed for the driving away of darkness and who is the animator of the whole world.
The demigods-deities continued with their endeavours and created-evolved the Sun-Sury Dev, to eliminate the darkness, who ride the charoite pulled by seven horses called Hari.
वहिष्ठेभिर्विहरन्यासि तन्तुमवव्ययन्नसितं देव वस्म।
दविध्वतो रश्मयः सूर्यस्य चर्मेवाधुस्तमो अप्स्व १ न्तः
हे द्युतिमान सूर्य! आप जगन्निर्वाहक रस को ग्रहण करने के लिए तन्तु स्वरूप रश्मि समूह को विस्तारित करते हैं, कृष्ण वर्णा रात्रि को तिरोहित करते हैं और अत्यन्त वहन समर्थ अश्वों द्वारा गमन करते हैं। कम्पन युक्त सूर्य की रश्मियाँ अन्तरिक्ष के बीच में स्थित चर्म सदृश अन्धकार को दूर करती हैं।[ऋग्वेद 4.13.4]
हे प्रकाशवान सूर्य देव! तुम संसार का पालन करने वाले अन्न के लिए रश्मियों की वृद्धि करते हो। तुम ही उस काले रंग की रात्रि को भगाते हो और अत्यधिक बोझ को भी ढो लेने वाले अश्वों द्वारा गमन करते हो । सूर्य की गतिमान रश्मियाँ अंतरिक्ष में स्थित तम को भगाती हैं।
Hey Illuminated Sury Dev-Sun! You sip-absorb the juices for the welfare of the world, by spreading your rays, like a web, removing the darkness of the night, being carried by the mighty horses. Sun associated with vibrations-waves removes the darkness spreaded like the skin.
अनायतो अनिबद्धः कथायं न्यङ्ङुत्तानोऽव पद्यते न।
कया याति स्वधया को ददर्श दिवः स्कम्भः समृतः पाति नाकम्
अदूरवर्ती अर्थात् प्रत्यक्ष उपलभ्यमान सूर्य का कोई भी बन्धन नहीं कर सकता। अधोमुख सूर्य किसी प्रकार भी हिंसित नहीं होते। ये किस बल से ऊद्धर्वमुख भ्रमण करते हैं? द्युलोक (स्वर्गलोक) में समवेत स्तम्भ स्वरूप सूर्य स्वर्ग का पालन करते हैं। इसे किसने देखा है? अर्थात् इस तत्त्व को कोई भी नहीं जानता।
प्रत्यक्ष प्राप्त सूर्य को कोई बाँध नहीं सकता। नीचे रहने वाले सूर्य की कोई हिंसा नहीं कर सकता। वे किस शक्ति से ऊँचे उठते हुए चलते हैं? क्षितिज में स्तम्भ के समान उठे हुए सूर्य अपने आप को शरण प्रदान करते हैं। इसे कौन देखता है? सूर्य की कोई हिंसा नहीं कर सकता। वे किस शक्ति से ऊँचे उठते हुए चलते हैं?
Neither, none can tie the Sun, nor can he be harmed-attacked by any one. What is the strength-force behind him, which moves him around. Sury Dev support-nurture the heavens like pole. Who has seen this!? None is aware of he source-secret of his strength.(09.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अग्नि छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रत्यग्निरुषसो जातवेदा अख्यद्देवो रोचमाना महोभिः।
आ नासत्योरुगाया रथेनेमं यज्ञमुप नो यातमच्छ
जातवेदा अग्नि देव के तेज से दीप्यमाना उषा प्रवृद्ध हुई है। हे प्रभूत गमनशाली अश्विनी कुमारों! आप दोनों रथ द्वारा हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 4.14.1]
हे महान हृदय वाले अग्निदेव! तम का पतन करने वाली उषा की ज्योति से पहले तुम प्रबुद्ध होते हो। हे अश्विद्वय! तुम भ्रमणशील हो। रथ पर सवार होकर तुम दोनों इस यज्ञ को प्राप्त हो जाओ। 
Hey Agni Dev! Shinning Usha has appeared by virtue of your energy-aura. Hey dynamic Ashwani Kumars! Join our Yagy by coming here by your charoite.  
ऊर्ध्वं केतुं सविता देवो अश्रेज्ज्योतिर्विश्वस्मै भुवनाय कृण्वन्।
आप्रा द्यावा-पृथिवी अन्तरिक्षं वि सूर्यो रश्मिभिश्चेकितानः
सविता देवता समस्त भुवन को आलोक युक्त करके उन्मुख किरण का आश्रय लेते हैं। सबको विशेष रूप से देखने वाले सूर्य ने अपनी किरणों से द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष को परिपूर्ण किया है।[ऋग्वेद 4.14.2]
प्रकाशवान सूर्य सभी संसार को प्रकाशित करके किरणों के आश्रय पर चलते हैं। सबके दृष्टा सर्य ने अपनी किरणों के माध्यम से गगन, धरती और अंतरिक्ष को पूर्ण किया है।
Savita Dev-Sun illuminate the universe with his rays. He has completed-supplemented the earth, heaven and the space through his rays.
आवहन्त्यरुणीर्ज्योतिषागान्मही चित्रा रश्मिभिश्चेकिताना।
प्रबोधयन्ती सुविताय देव्यु १ षा ईयते सुयुजा रथेन
धन को धारण करने वाली, रक्त वर्णा, ज्योति: शालिनी महती, रश्मि विचित्रिता और विदुषी उषा आई हैं। प्राणियों को जगाकर करके उषा देवी सुयोजित रथ द्वारा सुख प्राप्ति के लिए गमन करती हैं।[ऋग्वेद 4.14.3]
धनों को धारण करने वाली, महती दीप्तिमय, अरुण रंगवाली उषा रश्मियों के द्वारा तेजवाली बनकर प्रकट होती है। वह उषा जीव मात्र को चैतन्य करती हुई अपने सुशोभित रथ द्वारा कल्याण के लिए विचरणशील होती है।
Possessor of all riches-wealth, radiant, lighted, great, enlightened, with amazing rays Usha Devi, has appeared-arrived. She awake the organism-living beings and keep on moving further.
आ वां वहिष्ठा इह ते वहन्तु रथा अश्वास उषसो व्युष्टौ।
इमे हि वां मधुपेयाय सोमा अस्मिन्यज्ञे वृषणा मादयेथाम्
हे अश्विनी कुमारों! उषा के प्रकाशित होने पर अत्यन्त वहन क्षम और गमनशील अश्व आपको इस यज्ञ में ले आवें। हे अभीष्ट वर्षिद्वय! यह सोमरस आपके लिए हैं। इस यज्ञ में सोमपान करके आनन्दित होवें।[ऋग्वेद 4.14.4]
हे अश्विनी कुमारों! उषा के उदय होने पर वहन करने की अत्यन्त क्षमता वाले गमनशील अश्व तुमको उस यज्ञ में ले जाएँ। तुम दोनों अभिलाषाओं की वर्षा करने वाले हो। यह सोम तुम्हारे लिए है। अतः इस अनुष्ठान में सोमपान करके संतुष्टि को प्राप्त होओ।
Hey Ashwani Kumars! Let your mighty, capable horses bring you here, on the arrival of Usha Devi. Hey desires-accomplishment granting duo! This Somras is for you. Seek pleasure by drinking Somras in this Yagy.
अनायतो अनिबद्धः कथायं न्यङ्ङुत्तानोऽव पद्यते न।
कया याति स्वधया को ददर्श दिवः स्कम्भः समृतः पाति नाकम्
अदूरवर्ती अर्थात् प्रत्यक्ष उपलभ्यमान सूर्य का कोई भी बन्धन नहीं कर सकता है। अधोमुख सूर्य किसी प्रकार हिंसित नहीं होते हैं। ये किस बल से ऊद्धर्व मुख भ्रमण करते हैं? द्युलोक में समवेत स्तम्भ स्वरूप सूर्य स्वर्ग का पालन करते हैं। इसे किसने देखा है? अर्थात् इस तत्त्व को कोई भी नहीं जान सकता।[ऋग्वेद 4.14.5] 
प्रत्यक्ष उपलब्ध सविता देव को बाँधने में कोई भी समर्थवान नहीं है। यह नीचे रहे तब भी उनकी हिंसा किया जाना सम्भव नहीं है। वे किस पराक्रम से ऊँचे उठते हुए चलते हैं? वे अम्बर स्तम्भ के तुल्य स्वर्ग के शरण भूत हैं। इसे कौन जानता है? अर्थात इस तत्व का ज्ञाता कोई नहीं है।
None is capable of binding-harming visible Sun. What is source-reason, power behind his motion!? He supports the heaven like a pole. None is aware of this secret-intricate fact.(10.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अग्निदेव, अश्विनी कुमार,  छन्द :- गायत्री 
अग्निर्होता नो अध्वरे वाजी सन्परि णीयते। देवो देवेषु यज्ञियः
होम निष्पादक देवों के बीच में दीप्त और यज्ञार्ह अग्नि देव हमारे यज्ञ में द्रुतगामी अश्व के तुल्य लाए जाते हैं।[ऋग्वेद 4.15.1]
अनुष्ठान का संपादन करते वाले देवों के हवन योग्य एवं दीप्तिवान अग्निदेव को हमारे यज्ञ में लाने वाले तीव्र गति से चलने वाले घोड़ों से आयें।
Let radiant Agni Dev, desirous of Yagy, join in between the demigods by fast moving horses.
परि त्रिविष्ट्यध्वरं यात्यग्नी रथीरिव। आ देवेषु प्रयो दधत्
अग्नि देव देवों के लिए अन्न धारित करके प्रति दिन रथी के तुल्य यज्ञ स्थल में तीन बार चक्कर लगाते है।[ऋग्वेद 4.15.2]
अग्नि देव देवों के लिए अन्न धारित करके, नित्य प्रति तीन बार विचरणशील रथ के समान चलते हैं।
Agni Dev offerings-carry food grains and come thrice to the Yagy, like a charoite driver.
परि वाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत्। दधद्रत्नानि दाशुषे
अन्न के पालक मेधावी अग्निदेव हवि देने वाले याजकगण को रमणीय धन देकर हवि को चारों ओर से व्याप्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.15.3]
अन्नों की सुरक्षा करने वाले मेधावी अग्निदेव! हविदाता यजमान को सुन्दर धन को प्रदान करते हुए हवि रत्न को समस्त ओर से विद्यमान करते हैं।
Intelligent Agni Dev protects the food grains-offerings, from all sides  & grants valuables to the Ritviz-desirous.
अयं यः सृञ्जये पुरो दैववाते समिध्यते। द्युमाँ अमित्रदम्भनः
जो अग्नि देवता के पुत्र सृञ्जय के लिए पूर्व दिशा में स्थित होते हैं और उत्तर वेदी पर समिद्ध होते हैं, वे शत्रु नाशकारी अग्नि दीप्ति युक्त हों।[ऋग्वेद 4.15.4]
जो अग्नि देव पवन के सम्पर्क से अधिक प्रकाशित होते हुए शत्रुओं को भस्म करते हैं वह तेजस्वी अग्नि महान पुरुषों द्वारा प्राप्त होने योग्य हैं, वह शत्रु विजय के कार्य में सबसे आगे प्रदीप्ति युक्त होते हैं।
Radiant as Agni, the subduer of foes, who is kindled on the altar of the cast as he was kindled for Sranjay the son of Demigod.
Destroyer of the enemies, Sranjay, son of demigod, who is established in the east and present over the North Vedi, should be associated with Agni Dev.
अस्य घा वीर ईवतोऽग्नेरीशीत मर्त्यः। तिग्मजम्भस्य मीळ्हुषः
प्रार्थना करने वाले वीर मनुष्य तीक्ष्ण तेज वाले, अभीष्ट वर्षी और गमन शील अग्नि देव के ऊपर आधिपत्य का विस्तार करें।[ऋग्वेद 4.15.5]
वीर स्तोता, तेज वाले, शत्रुओं पर अस्त्र आदि की वर्षा करने वाले एवं गमनशील अग्नि पर अपना अधिकार करने वाले हो।
Let the worshiping brave humans extend their sphere-influence over dynamic Agni Dev.
तमर्वन्तं न सानसिमरुषं न दिवः शिशुम्। मर्मृज्यन्ते दिवेदिवे
याजकगण लोग अश्व के तुल्य हव्यवाही, द्युलोक के पुत्रभूत सूर्य के तुल्य दीप्तिमान और सम्भजनीय अग्नि देव की नित्य बारम्बार परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 4.15.6]
यह हवन घोड़े के समान हवि वाहक, अम्बर के पुत्र के समान सूर्य की तरह दीप्ति वाले तथा समान यजनीय अग्नि देव की यजमान गण बार-बार सेवा को करो।
The worshipers pray Agni Dev, every day, several times like the horse of the Hawan & the Sun-the son of the sky.(10.02.2023)
दधिक्राव्ण इदु नु चर्किराम विश्वा इन्मामुषसः सूदयन्तु।
अपामग्नेरुषसः सूर्यस्य बृहस्पतेराङ्गिरसस्य जिष्णोः
हम बारम्बार दधिक्रा देव की प्रार्थना करेंगे। सम्पूर्ण उषा हमें कर्म में प्रेरित करें। हम जल, अग्निदेव, उषा, सूर्य, बृहस्पति और अङ्गिरा गोत्रोत्पन्न जिष्णु की प्रार्थना करेंगे।[ऋग्वेद 4.40.1]
जिष्णु :: विजयी; triumphant, victorious, winner.
उन दधिक्रादेव की हम बारम्बार उपासना करेंगे। समस्त उषायें हमको कार्यों में संलग्न करें। जल, अग्नि, उषा, सूर्य, बृहस्पति और अंगिरा वंशज विष्णु का हम समर्थन करेंगे।
We will worship-pray Dadhikra Dev repeatedly. Let Usha inspire us endeavours, every morning. We will pray to the winners in the dynasty Agni Dev, Sun, Brahaspati and Angira.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- वामदेव, गौतम, देवता :- अग्नि देव, सूर्य, वाष्प, गौ या घृत, छन्द :- त्रिष्टुप्,  जगती।
समुद्रादूर्मिर्मधुमाँ उदारदुपांशुना सममृतत्वमानट्।
घृतस्य नाम गुह्यं यदस्ति जिह्वा देवानाममृतस्य नाभिः॥
समुद्र (अग्नि, अन्तरिक्ष, आदित्य अथवा गौओं के ऊध: प्रदेश) से मधुमान ऊर्मि उद्भूत होती है। मनुष्य किरण द्वारा अमृतत्व प्राप्त करते हैं। घृत का जो गोपनीय नाम है, वह देवों का नाम है, वह देवों की जिव्हा और अमृत की नाभि है।[ऋग्वेद 4.58.1]
आकाश से मीठा जल उमड़ पड़ता है;  मनुष्य सौर किरण द्वारा अमरत्व प्राप्त करता है; वह जो स्पष्ट मक्खन का गुप्त नाम है वह देवताओं की जीभ है, अमृत की नाभि है।
ऊर्मि :: छोटी लहर, प्रवाह, बहाव, तरंग, हल्की लहर, वेग, किरण-प्रकाश की रश्मि; small wave, flow.
The sweet water swells up from the sky-space; by virtue of the rays of Sun and the humans attain immortality. The secret name of Ghee-clarified butter constitute the tongue of the demigods-deities and it form the  navel of nectar-ambrosia.
Small waves arise in the ocean sweetened by honey. Rays of light emerge from fire, Adity-Sun, the lower segment of the cows inducing immortality in the humans. Ghee obtained from the cows is the basis of nectar licked by the demigods-deities.
वयं नाम प्र ब्रवामा घृतस्यास्मिन्मज्ञे धारयामा नमोभिः।
उप ब्रह्मा शृणवच्छस्यमानं चतुःशृङ्गोऽवमीद्गौर एतत्॥
हम उस याजक घृत की प्रशंसा करते हैं। इस यज्ञ में नमस्कार द्वारा उसे धारित करते हैं। ब्रह्माजी इस प्रार्थना को श्रवण करें। वेद चतुष्टय रूप शृङ्ग विशिष्ट गौर वर्ण देव इस संसार का निर्वाह करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.2]
हम इस यज्ञ-हवन, अग्निहोत्र में घी की प्रशंसा करते हुए उसे धारण करते हैं। चार रूपों वाले वेद और गौर वर्ण देवता ऐसे धारण करते हैं। ब्रह्मा जी हमारी प्रार्थना स्वीकार करें। 
We celebrate the name Ghee at this sacrifice, we offer it with adoration. Let the Veds in the form of fair coloured demigods-deities nurture-support the universe. Let Brahma Ji endorse our prayers.
We appreciate the Ghee and accept it in the Yagy. Let Brahma Ji listen to our prayer. The four Veds support the universe in the form of fair coloured demigods-deities.
चत्वारि शृङ्गा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य। 
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मत्य आ विवेश॥
इस यज्ञात्मक अग्नि के चार शृङ्ग हैं अर्थात् शृङ्ग स्थानीय चार देव हैं। इसे सवन स्वरूप तीन पाद हैं। ब्रह्मोदन एवं प्रवग्य स्वरूप दो मस्तक हैं। छन्द स्वरूप सात हाथ हैं। ये अभीष्ट वर्षी हैं। ये मंत्र, कल्प एवं ब्राह्मण द्वारा तीन प्रकार से बद्ध हैं। ये अत्यन्त शब्द करते हैं। वे महान देव मर्त्यों के बीच में प्रवेश करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.3]
The holy-sacred fire of the Yagy has 4 elevations-horns-demigods. The three segments of the day are its legs. It has two heads, seven arms in the form of hymns-stanzas. They grant accomplishments and are tied-associated with Mantr, Kalp & the Brahman. They produce enormous sound. The great deity enters the perishables.
त्रिधा हितं पणिभिर्गुह्यमानं गवि देवासो घृतमन्वविन्दन्।
इन्द्र एकं सूर्य एकं जजान वेनादेकं स्वधया निष्टतक्षुः॥
प्राणियों ने गौओं के बीच में तीन प्रकार के दीप्त पदार्थों (क्षीर, दधि और घृत) को छिपाकर रखा। देवों ने उन्हें प्राप्त किया। इन्द्र देव ने एक क्षीर को उत्पन्न किया तथा सूर्य ने भी एक को उत्पन्न किया। देवों ने कान्तिमान् अग्नि या गमनशील वायु को निकट से अन्न द्वारा और एक पदार्थ घृत को निष्पन्न किया।[ऋग्वेद 4.58.4]
क्षीर :: दूध, खीर, किसी वृक्ष आदि का सफ़ेद रस, कोई तरल पदार्थ, जल; latex.
The cows have three divine objects :- milk, curd and Ghee. The demigods-deities obtained them. Indr Dev created one kind of milk-sap, latex followed by another by the Sun. The aurous demigods evolved fire, air, food grains & the ghee.
एता अर्षन्ति ह्यद्यात्समुद्राच्छतव्रजा रिपुणा नावचक्षे।
घृतस्य धारा अभि चाकशीमि हिरण्ययो वेतसो मध्य आसाम्॥
अपरिमित गति विशिष्ट यह जल हृदयङ्गम अन्तरिक्ष से अधोदेश में प्रवाहित होता है। प्रतिबन्धकारी शत्रु उसे नहीं देख सकते। उस सकल घृत धारा को हम देख सकते हैं। इसके बीच में अग्नि को भी देख सकते हैं।[ऋग्वेद 4.58.5]
The Ghee (sap-water) flow from the space to the earth unseen-undetected  by the enemy. We can see the flowing Ghee and the fire in it.
सम्यक्त्रवन्ति सरितो न धेना अन्तहृदा मनसा पूयमानाः।
एते अर्षन्त्यूर्मयों घृतस्य मृगा इव क्षिपणोरीषमाणाः॥
घृत की धारा प्रीति प्रद नदी के तुल्य क्षरित होती है। यह सकल जल हृदय मध्यगत चित्त के द्वारा पूत होता है। घृत की ऊर्मि प्रवाहित होती है। जैसे शिकारी के पास से मृग भाग जाता है।[ऋग्वेद 4.58.6]
घृत की धारा प्रीति प्रद नदियों की तरह निर्बाध रूप से बहती हैं, जो हृदय में विराजमान मन से शुद्ध होती हैं; घी की ये धाराएँ (आग पर) उतरती हैं, जैसे हिरण शिकारी से उड़ता है।
The current of Ghee appears like the dear-lovely river, purified-cleansed by the innerself. The waves formed by the Ghee flow like the deer who escape the hunter.
सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातुप्रमियः पतयन्ति यह्वाः।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः॥
नदी का जल जिस प्रकार नीचे की ओर शीघ्र गमन करता है, उसी प्रकार वायु के तुल्य वेग शालिनी होकर महती घृत-धारा द्रुत वेग से गमन करती है। यह धृत राशि परीधि भेद करके ऊर्मि द्वारा वर्द्धित होती है, जिस प्रकार से गर्ववान अश्व गमन करता है।[ऋग्वेद 4.58.7]
The way the water in the river flow in the down ward direction quickly, strong current of Ghee flow at a very fast speed just like the air. It moves like the waves and horses, breaking barriers.
अभि प्रवन्त समनेव योषाः कल्याण्य १: स्मयमानासो अग्निम्।
घृतस्य धाराः समिधो नसन्त ता जुषाणो हर्यति जातवेदाः॥
कल्याणी और हँसने वाली स्त्री जिस प्रकार से एक चित्त होकर पति के प्रति आसक्त होती है, उसी प्रकार घृत धारा अग्नि देव के प्रति गमन करती है, वह सम्यक् रूप से दीप्ति प्रद होकर सभी जगह व्याप्त होती है। जातवेदा हर्षित होकर इस सकल धाराओं की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.8]
कल्याणी :: कल्याण या मंगल करनेवाली, भाग्य शालिनी, रूपवती, सुन्दरी, कामधेनु, गाय, गौ, एक देवी का नाम, माषपर्णी
The way-manner in which a devoted and smiling wife is attached-attracted towards her husband, the current of Ghee bows-assimilate in Agni Dev, glow uniformly and illuminate all places. Agni Dev pleased-happy with it, desires to have its all currents. 
कन्याइव वहतुमेतवा उ अञ्ज्यञ्जाना अभि चाकशीमि।
यत्र सोमः सूयते यत्र यज्ञो घृतस्य धारा अभि तत्पवन्ते॥
कन्या (अनूढ़ा बालिका) जिस प्रकार से पति के निकट जाने के लिए अलंकृत होती है, हम देखते हैं, यह सकल घृत धारा उसी प्रकार से करती है। जिस स्थल में सोमरस अभिषुत होता है अथवा जिसके स्थल में यज्ञ विस्तीर्ण होता है, उसी को लक्ष्य कर वह धारा गमन करती है।[ऋग्वेद 4.58.9]
The current of Ghee behaves like a newly wed girl to accompany her husband, the entire Ghee current behaves similarly. The Ghee current moves to the place where Somras is extracted and the Yagy is conducted.
अभ्यर्षत सुष्टुतिं गव्यमाजिमस्मासु भद्रा द्रविणानि धत्त।
इमं यज्ञं नयत देवता नो घृतस्य धारा मधुमत्पवन्ते॥
हे हमारे ऋत्विकों! गौओं के निकट आगमन करें, उनकी शोभन प्रार्थना करें। हम याजकों के लिए वह प्रार्थना योग्य धन धारित करें। हमारे इस यज्ञ को देवों के निकट ले जावें। घृत की धारा मधुर भाव से गमन करती है।[ऋग्वेद 4.58.10]
Hey Ritviz! Move close to the cows and pray-worship them. Let these prayers grant us wealth and make our Yagy close to the demigods-deities. The current of Ghee flow to the Yagy happily.
धामन्ते विश्वं भुवनमधि श्रितमन्तः समुद्रे हृद्य १ न्तरायुषि।
अपामनीके समिथे य आभृतस्तमश्याम मधुमन्तं त ऊर्मिम्॥
आपका तेज समुद्र के बीच में वड़वाग्नि रूप से, अन्तरिक्ष के बीच में सूर्य मण्डल रूप से, हृदय के मध्य में वैश्वानर रूप से, अन्न में आहार रूप से, जल समूह में विद्युत रूप से और संग्राम में शौर्याग्नि रूप से विद्यमान है। समस्त लोक आपके आश्रित हैं। उसमें जो घृत रूप रस स्थापित हुआ है, उस मधुर रस को हम प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.58.11]
Your energy is embedded in the ocean as Vadvagni, as Vaeshwanar in the heart of the solar system, as food in the food grains, as electricity in the water and bravery-valour in the war-battle. All abodes are dependent upon you. The Ghee established-present in them is required-desired by us.
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- बुध, गविष्ठि या आत्रेय, देवता :- अग्नि, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अबोध्यग्निः समिधा जनानां प्रति धेनुमिवायतीमुषासम्।
यह्वाइव प्र वयामुज्जिहाना: प्र भानवः सिस्रते नाकमच्छ
गौओं के तुल्य आगमनकारिणी उषा के उपस्थित होने पर अग्रि देव अध्वर्युओं के काष्ठ द्वारा प्रबुद्ध होते हैं। उनका शिखा समूह महान है एवं शाखा विस्तारकारी वृक्ष के तुल्य वह अन्तरिक्षाभिमुख प्रसूत होता है।[ऋग्वेद 5.1.1]
गाय के समान आने वाली उषा के पश्चात्‌ अध्वर्यु आदि की समिधाओं द्वारा अग्नि प्रज्वलित होते हैं। अग्नि की शिखाएं महान्‌ हैं। अग्नि विस्तृत शाखाओं वाले वृक्ष के समान आकाश की ओर बढ़ते हैं। 
After the Usha that comes like a cow, Agni is ignited by the committees of Adhwaryu etc. The crests of Agni are great. The Agni moves towards the sky like a tree with wide branches.
Arrival of Usha-dawn, like the cows leads the priests to ignite fire. Its flames are great-too high, directed towards the sky and broad like a vast tree.
अबोधि होता यजथाय देवानूर्ध्वो अग्निः सुमनाः प्रातरस्थात्।
समिद्धस्य रुशददर्शि पाजो महान्देवस्तमसो निरमोचि
होता अग्नि देव देवों के यजन के लिए प्रबुद्ध होते हैं। अग्नि देव प्रातः काल में प्रसन्न मन से ऊद्धर्वाभिमुख उत्थित होते हैं। समिद्ध अग्नि देव का दीप्तिमान् बल दृष्ट होता है। इस प्रकार के महान् देव अन्धकार से मुक्त कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.1.2]
उत्थित :: उठा हुआ, जागा हुआ; elevated, extended, stretched.
The hosts become ready for the Yagy for the sake of Agni Dev. Agni Dev elevate in the morning happily. Power-might of glowing Agni Dev is visible. In this manner Agni Dev removes darkness.
यदीं गणस्य रशनामजीगः शुचिरङ्क्ते शुचिभिर्गोभिरग्निः।
आद्दक्षिणा युज्यते वाजयन्त्युत्तानामूर्ध्वो अधयज्जुहूभिः
जब अग्नि देव सङ्घात्मक जगत् के रज्जु रूप अन्धकार को ग्रहण करते हैं, तब वे प्रदीप्त हो करके दीप्त रश्मि द्वारा इस जगत् को प्रकाशमय करते हैं। इसके अनन्तर वे प्रवृद्धा और अन्नाभिलाषी घृत धारा के साथ युक्त होते हैं एवं उन्नत होकर ऊपरी भाग में विस्तृत उस घृतधारा को जिह्वाओं द्वारा पान करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.3]
Agni Dev glow and removes darkness with his light. Thereafter, he is accompanied with the offerings of food grains & Ghee and rise upwards.
अग्निमच्छा देवयतां मनांसि चक्षूंषीव सूर्ये सं चरन्ति।
यदीं सुवाते उषसा विरूपे श्वेतो वाजी जायते अग्रे अह्नाम्
प्राणियों की आँखे जिस प्रकार से सूर्य देव के अभिमुख सञ्चरण करती हैं, उसी प्रकार से याजक गणों का मानस अग्नि देव के अभिमुख सञ्चरण करता है। जब विरूपा द्यावा-पृथ्वी उषा के साथ अग्नि देव को उत्पन्न करती है, तब प्रकृष्ट वर्ण (श्वेत) से युक्त होकर वाजी स्वरूप अग्नि देव प्रातः काल में उत्पन्न होते हैं।[ऋग्वेद 5.1.4]
The way the eyes of the living beings operate in front of the Sun, innerself-mind of the Ritviz operates around Agni Dev. Glowing white-brilliant Agni Dev is created-ignited by the heavens & earth in the morning.
जनिष्ट हि जेन्यो अग्रे अह्नां हितो हितेष्वरुषो वनेषु।
दमेदमे सप्त रत्ना दधानोऽग्निर्होता नि षसादा यजीयान्
उत्पादनीय अग्नि देव उषाकाल में प्रादुर्भूत होते हैं और दीप्ति युक्त होकर बन्धु भूत वन समूह में स्थापित होते हैं। इसके अनन्तर वे रमणीय सात ज्वाला (शिखा) धारित करके होता और याग योग्य होकर प्रत्येक घर में उपवेशन करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.5]
Agni, capable of birth, is born in the beginning of the day; radiant-shinning, he is deposited in the friendly woods and then the adorable Agni, the offeror of the oblation, displaying seven precious rays, is seated in every house.
Agni dev gets up in the morning with Usha-dawn. He shines and establishes himself in the forests-jungles. Thereafter, he acquire 7 flames and then he is transferred to the houses.
अग्निर्होता न्यसीदद्यजीयानुपस्थे मातुः सुरभा उ लोके।
युवा कविः पुरुनिः ष्ठ ऋतावा धर्ता कृष्टीनामुत मध्य इद्धः
होता और यष्टव्य हो करके अग्रि देव माता पृथ्वी की गोद में आज्य आदि से सुगन्ध युक्त वेदरूप स्थान पर उपविष्ट होते हैं। वे पुत्र, कवि, बहुस्थान विशिष्ट यज्ञवान् और सभी के धारक हैं। याजक गणों के बीच में समिद्ध होकर रहते हैं।[ऋग्वेद 5.1.6]
The adorable Agni Dev, the offeror of the oblation, has sat down in a fragrant places in the lap of  mother earth; youthful, wise, many-stationed, the celebrator of sacrifice, the sustainer of all, kindled he abides amongest the humans.
Agni Dev establishes himself at the site of the Yagy as per directives of the Ved, in the lap of mother earth possessing fragrances. He is the supporter-nurturer of the son, poets and presents himself at several places simultaneously amongest the Ritviz, aided with the woods.  
प्र णु त्यं विप्रमध्वरेषु साधुमग्निं होतारमीळते नमोभिः।
आ यस्ततान रोदसी ऋतेन नित्यं मृजन्ति वाजिनं घृतेन
जो द्यावा-पृथ्वी को उदक द्वारा विस्तारित करते हैं, उन मेधावी, यज्ञफल साधक और होता अग्नि देव की स्तुति द्वारा याजक गण शीघ्र प्रार्थना करते हैं। यजमान अन्नवान अग्नि देव की घृत द्वारा नित्य परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.7]
The Ritviz glorify Agni Dev with hymns, who is intelligent, the fulfiller of desires at sacrifices, the offer of oblations, who has charged heaven and earth with water and whom the Ritviz-hosts always worship with clarified butter as the bestower of food.
The Ritviz worship-pray intelligent Agni Dev, who is host of the Yagy, grants reward for the Yagy and nourish the earth & heavens with water. The hosts-Ritviz make offerings of Ghee for the sake of food grain possessor Agni Dev.
मार्जाल्यो मृज्यते स्वे दमूना: कविप्रशस्तो अतिथिः शिवो नः।
सहस्रशृङ्गो वृषभस्तदोजा विश्वाँ अग्ने सहसा प्रास्यन्यान्
संमार्जनीय अग्नि देव अपने स्थान में पूजित होते हैं। वेदान्त (प्रशान्त) मना है। कविगण उनकी प्रार्थना करते हैं। वे हम लोगों के लिए अतिथि के तुल्य पूज्य और सुखकर हैं। उनकी अपरिमित शिखाएँ हैं। वे अभीष्ट वर्षी और प्रसिद्ध बलशाली हैं। हे अग्नि देव! आप अपने से अतिरिक्त अन्य सब लोगों को बल द्वारा परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.8]
संमार्जनीय :: झाड़ू, बुहारी, कूँचा; mop cloth, eraser, wiper.
Agni Dev is entitled to worship & is worshipped in his own abode; humble-minded, eminent among sages, our auspicious guest, the multiple-infinite rayed, the showerer of benefits, of well-known might. Hey Agni Dev! Surpass all others in strength.
Destroyer (wiper-eraser) of all evil Agni Dev is worshiped at his place-abode. The poets-intelligent people pray to him. He is like a guest for us and beneficial. His has infinite branches-flames. He grant-accomplish desires and is powerful-mighty. Hey Agni Dev! You enrich each one of us with strength.
प्र सद्यो अग्ने अत्येष्यन्यानाविर्यस्मै चारुतमो बभूथ।
ईळेन्यो वपुष्यो विभावा, प्रियो विशामतिथिर्मानुषीणाम्
हे अग्नि देव! आप यज्ञ को प्राप्त कर जिसके निकट चारुतम रूप से आविर्भूत होते हैं, उसके निकट से आप शीघ्र ही दूसरों को अतिक्रान्त करके गमन करते हैं। आप स्तुति योग्य, दीप्तिकर एवं विशिष्ट दीप्तिमान् है। आप प्राणियों के प्रिय और मनुष्यों के पूज्य है।[ऋग्वेद 5.1.9]
Hey Agni Dev! You quickly move to others as the beneficiary of the Yagy. You have been manifest; most beautiful, adorable, radiant-shining, loved-revered by the people, the guest of humans & deserve worship.
तुभ्यं भरन्ति क्षितयो यविष्ठ बलिमग्ने अन्तित ओत दूरात्।
आ भन्दिष्ठस्य सुमतिं चिकिद्धि बृहत्ते अग्ने महि शर्म भद्रम्
हे युवतम अग्निदेव! मनुष्यगण निकट से और दूर से आपकी पूजा करते हैं। जो आपकी अधिक प्रार्थना करता है, उसी की आप प्रार्थना ग्रहण करते हैं। हे अग्नि देव! आपके द्वारा प्रदत्त सुख बृहत्, महान् और स्तुति योग्य है।[ऋग्वेद 5.1.10]
Hey youthful Agni Dev! The humans worship you from far & wide. You accept the prayers of those who perform them regularly. Hey Agni Dev! The comforts-luxuries granted by you are great and appreciable.
आद्य रथं भानुमो भानुमन्तमग्ने तिष्ठ यजतेभिः समन्तम्।
विद्वान्पथीनामुर्व १ न्तरिक्षमेह देवान्हविरद्याय वक्षि
हे दीप्तिमान् अग्नि देव! आप आज दीप्तिमान् और समीचीन प्रान्त युक्त रथ पर देवों के साथ आरोहण करें। आपको रास्ता ज्ञात है। प्रभूत अन्तरिक्ष प्रदेश से होकर आप देवों को हव्य भक्षण के लिए इस स्थान में ले आते हैं।[ऋग्वेद 5.1.11]
समीचीन :: यथार्थ, ठीक, उचित, वाजिब; accurate, appropriate, suitable.
Hey radiant-aurous Agni Dev!  Ride the suitable shining charoite and come to us with the demigods-deities. You are aware of the route. Bring-invoke the demigods-deities to the Yagy site for accepting offerings.
अवोचाम कवये मेध्याय वचो वन्दारु वृषभाय वृष्णे।
गविष्ठिरो नमसा स्तोममग्नौ दिवीव रुक्ममुरुव्यञ्चमश्रेत्
हम अत्रिवंशी लोग मेधावी, पवित्र, अभीष्टवर्षी और युवा अग्नि देव के उद्देश्य से वन्दना योग्य स्तवन का उच्चारण करते हैं। गविष्ठिर ऋषि आकाश में दीप्यमान, विस्तीर्ण गति विशिष्ट आदित्य के अग्नि देव के उद्देश्य से नमस्कार युक्त स्तोत्र का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.12]
We the descendants of Atri Vansh-clan, recite sacred hymns for the intelligent, accomplishments granting, youthful Agni Dev. Gavishthir Rishi recite the special Strotr meant for vast & radiant Adity in the sky, in the honour of Agni Dev.(12.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- कुमार आत्रेय, वृश या जान, देवता :- अग्नि, छन्द :- शक्वरी, त्रिष्टुप्।
कुमारं माता युवतिः समुब्धं गुहा बिभर्ति न ददाति पित्रे।
अनीकमस्य न मिनज्जनासः पुरः पश्यन्ति निहितमरतौ
कुमार को पैदा करने वाली यौवन वती माता ने मार्ग में सञ्चरण करने वाले रथ चक्र द्वारा निहत देखकर गुहा बीच में धारित किया उसके पिता को नहीं दिया। लोग उसे हिंसित रूप में नहीं देख सके; किन्तु अरणि स्थान में स्थापित होने पर उसे फिर देख सके।[ऋग्वेद 5.2.1]
युवा माता अपने क्षत-विक्षत पुत्र को गुप्त रूप से पालती है और उसे पिता को नहीं देती; पुरुष उसके क्षत-विक्षत रूप को नहीं देखते हैं। उसे अरणि स्थान में देखें।
The young mother cherishes her mutilated boy in secret and do not give it to his father. The people can not see his mutilated body. When he was brought to the Yagy site (Arni Sthan) he could be seen.
कमेतं त्वं युवते कुमारं पेषी बिभर्षि महिषी जजान।
पूर्वीर्हि गर्भः शरदो ववर्धापश्यं जातं यदसूत माता
हे युवती! आप पिशाची होकर किस कुमार को धारित करती हो? पूजनीय अरणि ने इसे उत्पन्न किया है। अनेक संवत्सर पर्यन्त अरणि सम्बन्धी गर्भ वर्द्धित हुआ। इसके अनन्तर माता अरणि ने जिस पुत्र को उत्पन्न किया, उसे हमने देखा।[ऋग्वेद 5.2.2]
पिशाची :: पिशाच स्त्री; elfin.
Hey damsel! You are bearing the boy in spite of being elfin. The pious wood has evolved him. The womb related to the wood has grown for several years. Thereafter, the son produced by the Arni as mother has been seen by us.
हिरण्यदन्तं शुचिवर्णमारात्क्षेत्रादपश्यमायुधा मिमानम्।
ददानो अस्मा अमृतं विपृक्वत्किं मामनिन्द्राः कृणवन्ननुक्थाः
हमने समीपवर्ती प्रदेश से हिरण्य सदृश ज्वाला युक्त प्रदीप्त वर्ण और आयुध स्थानीय ज्वाला निर्माण करने वाले अग्नि देव को देखा। हम (वृश) ने उन्हें सर्वतोव्याप्त और अविनाशी स्तोत्र प्रदत्त किया। जो इन्द्र देव (परमैश्वर्युक्त अग्नि) को नहीं मानते हैं और जो उनकी प्रार्थना नहीं करते हैं, वे हमारा क्या कर लेंगे?[ऋग्वेद 5.2.3]
We have seen Agni Dev in golden attire, wearing arms-ammunition, producing flames in the nearby area. We worshiped him with the help of all pervading immortal Strotr-hymn. Indr Dev who do not recognise-worship him, can not harm us.
क्षेत्रादपश्यं सनुतश्चरन्तं सुमद्युथं न पुरु शोभमानम्।
न ता अगृभ्रन्नजनिष्ट हि षः पलिक्नीरिद्युवतयो भवन्ति
हम (वृश) ने गो समूह के तुल्य क्षेत्र में निगूढ़ भाव से सञ्चरण करने वाले एवं अनेक प्रकार से स्वयं शोभायमान अग्नि देव को देखा। पिशाची के आक्रमण काल वाली निर्वीर्य ज्वाला को वे ग्रहण नहीं करते हैं। अग्नि देव बार-बार प्रादुर्भूत होते हैं एवं उनकी वृद्धा ज्वाला युवती होती है।[ऋग्वेद 5.2.4]
निगूढ़ :: जो जल्दी समझ में न आए; दुरूह; दुर्बोध, अत्यंत गुप्त, रहस्यपूर्ण,  छिपा हुआ,  अव्यक्त, अप्रकट; hidden and not obvious at the moment, cryptic.
We found-observed radiant-beautiful Agni Dev in those regions where cow herds are present, passing quietly-secretly. He do not support-accept the weak flames generated while the ghosts attack. Agni Dev evolve again and again and his old flames renew their vigour (heat & light). 
के मे मर्यकं वि यवन्त गोभिर्न येषां गोपा अरणश्चिदास।
य ईंजगृभुरव ते सृजन्त्वाजाति पश्व उप नश्चिकित्वान्
कौन हमारे राष्ट्र को गौओं के साथ नियुक्त करता है? उनके साथ क्या रक्षक नहीं था? जो हमारे राष्ट्र समूह पर आक्रमण करता है, वह विनष्ट है। अग्नि देव हम लोगों की अभिलाषा को जानते हैं, इसलिए वे हम लोगों के पशुओं के निकट आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.2.5]
Who appoints the protectors-country with the cows? Were there no protectors with them? One who attacks our country is vanished-destroyed. Agni dev is aware of desires-motive. Hence he roam closely with our cows.
वसां राजानं वसतिं जनानामरातयो नि दधुर्मर्त्येषु।
ब्रह्माण्यत्रेरव तं सृजन्तु निन्दितारो निन्द्यासो भवन्तु
प्राणियों के स्वामी और लोगों के आवास भूत अग्नि देव को शत्रु गण मृत्यु लोक में छिपाकर रखते हैं। अत्रिगोत्रोत्पन्न वृश का स्तोत्र उन्हें मुक्त करें। निन्दा करने वाले लोग निन्दनीय होवें।[ऋग्वेद 5.2.6]
निन्दा :: बुराई करना, लानत, कलंक, धिक्कार, शाप, फटकार, गाली, तिरस्कार, परिवाद, भला-बुरा कहना; धिक्कार; blasphemy, reproach, damn, reprehension, taunt, decry.
The enemy hide Agni Dev, who is the master of living beings and supporter-nurturer, over the earth. Let the Strotr composed by Vrash, a descendent of Atri release him. Let the people who resort to blasphemy be condemned.
शुनश्चिच्छेपं निदितं सहस्राद्यूपादमुञ्चो अशमिष्ट हि षः।
एवास्मदग्ने वि मुमुग्धि पाशान्होतश्चिकित्व इह तू निषद्य
हे अग्नि देव! आपने अत्यन्त बद्ध शुनःशेप ऋषि को सहस्रों यूप से मुक्त किया; क्योंकि उन्होंने आपका स्तवन किया था। हे होता और विद्वान् अग्नि देव! आप इस वेदी पर उपवेशन करें। इस प्रकार से हम लोगों को सकल बन्धनों से करें।[ऋग्वेद 5.2.7]
Hey Agni Dev! You released-untied Shun Shep who was tied with the Yagy mast-poles, since he remembered you, recited Strotr. Hey host-Ritviz and enlightened Agni Dev! Occupy your seat at this Yagy site and release us from all bonds-ties.
हृणीयमानो अप हि मदैयेः प्र मे देवानां व्रतपा उवाच।
इन्द्रो विद्वाँ अनु हि त्वा चचक्ष तेनाहमग्ने अनुशिष्ट आगाम्
हे अग्नि देव! जब आप क्रोधित होते हैं, तब हमसे दूर हो जाते हैं। देवों के व्रत पालक इन्द्र देव ने हमसे यह कहा कि वे विद्वान हैं, उन्होंने आपको देखा है। हे अग्नि देव! उनके द्वारा अनुशिष्ट होकर हम आपके निकट उपस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 5.2.8]
अनुशिष्ट :: अनुशासित, शिक्षित, आदिष्ट, निदेशित, पूछा हुआ, आदेश, शिक्षा, शासन; disciplined, ordered, directed.
Hey Agni Dev! You drift away from us on being angry. Enlightened Dev Raj Indr who accomplish the motives of demigods-deities informed us that he has seen you. On being disciplined-ordered by him, you stay with us.
वि ज्योतिषा बृहता भात्यग्निराविर्विश्वानि कृणुते महित्वा।
प्रादेवीर्मायाः सहते दुरेवाः शिशीते शृङ्गे रक्षसे विनिक्षे
वे अग्नि महान् विशेष तेजों से दीप्त होते हैं। वे अपनी महिमा के बल से समस्त पदार्थों को प्रकट करते हैं। अग्नि देव प्रवृद्ध होकर दुःख जनक आसुरी माया का नाश करते हैं। राक्षसों को विनष्ट करने के लिए अपनी ज्वालाओं को तीक्ष्ण करते हैं।[ऋग्वेद 5.2.9]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़, तलवार के 32 हाथों में से एक जिसे प्रसृत भी कहते हैं, इनमें तलवार की नोक से शत्रु का शरीर छू भर जाता है, अयोध्या के राजा रघु का एक पुत्र जो गुरु के शाप से 12 वर्ष के लिये राक्षस हो गया था, वृद्धि युक्त, खूब बढ़ा हुआ, खूब पक्का, विस्तृत, खूब फैला हुआ, विशाल, उग्र, घमंडी, गर्विष्ठ (को कहते हैं); grown up, mature, grown tremendously, aged.
Agni Dev is associate with great aura-radiance. He evolve all materials by virtue of his power. Agni Dev grow and destroy the demonic cast-spell. He sharpened-grow his flames to destroy the demons.
उत स्वानासो दिवि षन्त्वग्नेस्तिग्मायुधा रक्षसे हन्तवा उ।
मदे चिदस्य प्र रुजन्ति भामा न वरन्ते परिबाधो अदेवीः
अग्नि देव की शब्द करने वाली ज्वाला तीक्ष्ण आयुधों के तुल्य राक्षसों को विनष्ट करने के लिए द्युलोक में प्रादुर्भूत होती है। हर्ष के उत्पन्न होने पर अग्नि देव का क्रोध या दीप्ति समूह राक्षसों को पीड़ा देता है। बाधा देने वाली असुरों की सेना अग्नि देव को बाधा नहीं दे सकती।[ऋग्वेद 5.2.10]
Fierce flames of Agni Dev making sound, evolve to destroy the demons; like weapons. On being happy Agni Dev penalise the demons with his ferocity. Obstructing demon army can not block Agni Dev.
एतं ते स्तोमं तुविजात विप्रो रथं न धीरः स्वपा अतक्षम्।
यदीदग्ने प्रति त्वं देव हर्याः स्वर्वतीरप एना जयेम
हे बाहुभाव प्राप्त अग्नि देव! हम आपके स्तोता हैं। धीर और कर्म-कुशल व्यक्ति जिस प्रकार से रथ का निर्माण करता है, उसी प्रकार से हम आपके लिए इस स्तोत्र का निर्माण करते हैं। हे अग्नि देव! आप इन स्तोत्रों से प्रसन्न होकर विजय प्राप्त करने वाले स्वर्गिक सुख युक्त हों।[ऋग्वेद 5.2.11]
Hey Agni Dev attained by devotion! We are your worshipers. The manner in which an expert-skilled workman-craftsman build the charoite, we have composed this Strotr in your honour. Hey Agni Dev! Enjoy our prayers and be blessed with heavenly pleasure, comforts.
तुविग्रीवो वृषभो वावृधानोऽशत्रु १ र्यः समजाति वेदः। इतीममग्निममृता अवोचन्बर्हिष्मते मनवे शर्म यंसद्धविष्मते मनवे शर्म यंसत्
बहु ज्वाला विशिष्ट, अभीष्ट वर्षी तथा वर्द्धमान अग्नि देव निष्कण्टक भाव से शत्रुओं के धन का संग्रह करते हैं। इस बात को देवों ने अग्नि देव से कहा था कि वे यज्ञ करने वाले मनुष्यों सुख प्रदान करें और हव्य देने वाले याजकों को भी सुख प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 5.2.12]
Growing, accomplishments granting Agni Dev accompanied with his special powers-furious flames, collects the wealth-booty of the demons. The demigods-deities asked Agni dev to grant comforts-luxuries to the Ritviz who make offerings in the Yagy.(14.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- वसुश्रुत, आत्रेय, देवता :- अग्नि, वरुण, छन्द :- विराट, त्रिष्टुप्।
त्वमग्ने वरुणो जायसे यत्त्वं मित्रो भवसि यत्समिद्धः।
त्वे विश्वे सहसस्पुत्र देवास्त्वमिन्द्रो दाशुषे मर्त्याय
हे अग्नि देव! आप उत्पन्न होते ही वरुण देव के सदृश गुण वाले होते हैं। समिद्ध होकर आप हितकारी होते है। समस्त देवगण जब आपका अनुवर्तन करते हैं। हे बल पुत्र! आप हव्यदाता यजमान के लिए इन्द्र देव के सदृश पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 5.3.1]
अनुवर्तन :: अनुसरण, समानता, उपयुक्तता, आज्ञा पालन, परिणाम; नतीजा, अनुकरण, समान आचरण; compliance, consequentiality.
Hey Agni Dev! You possess the charctrices-qualities, traits like Varun Dev, as soon as you evolve. You become beneficial when wood are offered to you. All demigods-deities follow you. Hey the son of might! You are worship able for the Ritviz-hosts just like Indr Dev.
त्वमर्यमा भवसि यत्कनीनां नाम स्वधावन्गुह्यं बिभर्षि।
अञ्जन्ति मित्र सुधितं न गोभिर्यद्दम्पती समनसा कृणोषि
हे अग्नि देव! आप कन्याओं के सम्बन्ध में अर्यमा-सूर्य होते हैं। हे हव्यवान् अग्नि देव! आप गोपनीय नाम धारण करते है। जब आप पति-पत्नी को एक मन वाला बना देते हैं, तब वे आपके मित्र के तुल्य गव्य द्वारा सिक्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.3.2]
Hey Agni Dev! you are like Aryma-Sun for the girls. Hey offerings accepting Agni Dev! You possess un disclosed names-qualities. When you make the husband & wife possess same innerself, they behave like a friend with you and make offerings of milk, ghee, curd etc. for you.
तव श्रिये मरुतो मर्जयन्त रुद्र यत्ते जनिम चारु चित्रम्।
पदं यद्विष्णोरुपमं निधायि तेन पासि गुह्यं नाम गोनाम्
हे अग्नि देव! आपके आश्रय के लिए मरुद्गण अन्तरिक्ष का मार्जन करते हैं। हे रुद्र! आपके लिए वैद्युत लक्षण, अति विचित्र और मनोहर जो श्री विष्णु का अगम्य पद है, वह स्थापित हुआ है। उनके द्वारा आप उदक (जल, पानी) के गुह्य नाम का पालन करें।[ऋग्वेद 5.3.3]
मार्जन :: सफ़ाई, भूल, दोष आदि का परिहार; sweep, clear.
Hey Agni Dev! Marud Gan clear the space-sky for you. Hey Rudr! You have been awarded the lovely, amazing highest abode of Bhagwan Shri Hari Vishnu, with the charctrices of electricity. Hence, you cherish the mysterious name of the waters.
तव श्रिया सुदृशो देव देवाः पुरू दधाना अमृतं सपन्त।
होतारमग्निं मनुषो नि षेदुदुर्दशस्यन्त उशिजः शंसमायोः
हे अग्नि देव! आपकी समृद्धि के द्वारा इन्द्रादि देवगण दर्शनीय होते हैं। वे देवगण आपके प्रति अत्यन्त प्रीति धारित करके अमृत का स्पर्श करते हैं। ऋत्विक गण फलाभिलाषी मनुष्यों के लिए हव्य वितरण करते हुए होता अग्नि देव की सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 5.3.4]
Hey Agni Dev ! Your grandeur make the demigods-deities glorious. The demigods-deities possess extreme love & affection for you while touching the elixir-Nectar. The Ritviz serve Agni Dev while distributing offerings to the humans.
न त्वद्धोता पूर्वो अग्ने यजीयान्न काव्यैः परो अस्ति स्वधावः।
विशश्च यस्या अतिथिर्भवासि स यज्ञेन वनवद्देव मर्तान्
हे अग्नि देव! आपसे भिन्न कोई अन्य होता नहीं है, यज्ञकारी नहीं है और कोई पुरातन भी नहीं है। हे अन्नवान्! भविष्यकाल में भी आपकी अपेक्षा कोई स्तुति योग्य नहीं होगा। हे देव! आप जिस ऋत्विक् के अतिथि रूप होते हैं, वह यजमान यज्ञ द्वारा शत्रु मनुष्यों को विनष्ट करता है।[ऋग्वेद 5.3.5]
Hey Agni Dev! No host-Ritviz, performer of Yagy neither exist nor is eternal. Hey possessor of food grains! None will be as revered as you for worship, in the future as well. Hey Dev! The Ritviz whose guest you are, is capable of vanishing the enemy.
वयमग्ने वनुयाम त्वोता वसूयवो हविषा बुध्यमानाः।
वयं समर्ये विदथेष्वह्नां वयं राया सहसस्पुत्र मर्तान्
हे अग्नि देव! हम आपके द्वारा रक्षित होकर शत्रुओं को पीड़ा प्रदान करेंगे। हम धनाभिलाषी हैं। हम लोग आपको हव्य द्वारा प्रवृद्ध करते हैं। हम लोग युद्ध में विजय प्राप्त करें और प्रतिदिन यज्ञ में बल प्राप्त करें। हे बल पुत्र! हम लोग धन व पुत्र प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.3.6]
Hey Agni Dev! Having been protected by you we will trouble the enemy. We wish to have riches-wealth. We make offerings to you to boost you. We should win the war and gain might-valour everyday in the Yagy. Hey the son of might-power! Let us get riches & son.
यो न आगो अभ्येनो भरात्यधीदघमघशंसे दधात।
जही चिकित्वो अभिशस्तिमेतामग्ने यो नो मर्चयति द्वयेन
जो मनुष्य हम लोगों के प्रति अपराध या पाप करता है, उस पाप कारी व्यक्ति के प्रति अग्नि पापाचरण करें-उसे पापी बनावें। हे विद्वान् अग्नि देव! जो हम लोगों को अपराध और पाप द्वारा प्रताड़ित करता है, उस पापकारी का आप नाश करें।[ऋग्वेद 5.3.7]
Hey Agni Dev! Ruin-vanish the person-evil doer, who commit sin-crime against us, torture-assault us, pay him in the same coin.
त्वामस्या व्युषि देव पूर्वे दूतं कृण्वाना अजयन्त हव्यैः।
संस्थे यदग्न ईयसे रयीणां देवो मर्तैर्वसुभिरिध्यमानः
हे अग्नि देव! पुरातन याजकगण आपको देवों का दूत बनाकर उषाकाल में यज्ञ करते हैं। हे अग्नि देव! हव्य संग्रह होने के अनन्तर आप द्युतिमान् होकर भी निवासप्रद मनुष्यों द्वारा समिद्ध होकर आगमन करते है।[ऋग्वेद 5.3.8]
Hey Agni Dev! The old-former Ritviz perform Yagy during dawn-Usha, establishing you as the messenger of the demigods-deities. You glow brightly on adding wood and making offerings-oblations arriving at the Yagy site.
अव स्पृधि पितरं योधि विद्वान्पुत्रो यस्ते सहसः सून ऊहे। 
कदा चिकित्यो अभि चक्षसे नोऽग्ने कदाँ ऋतचिद्यातयासे
हे बल पुत्र! आप पिता है। जो विद्वान पुत्र आपके लिए हव्य प्रदान करता है, आप उसे पार कर देते हैं और उसे पाप से पृथक करते हैं। हे विद्वान् अग्निदेव! कब आप हम लोगों को देखेंगे? हे यज्ञ के प्रेरक कब आप हम लोगों को सन्मार्ग में प्रेरित करेंगे?[ऋग्वेद 5.3.9]
Hey son of might-power! You are a father. The enlightened son who make offerings-oblations for you isolate-shield him from sins. Hey enlightened Agni Dev! When will you take care-support us? Hey inspirer of Yagy, inspire us to righteous-virtuous path.
भूरि नाम वन्दमानो दधाति पिता वसो यदि तज्जोषयासे।
कुविद्देवस्य सहसा चकानः सुम्नमग्निर्वनते वावृधानः
हे निवासप्रद अग्नि देव! आप पालक है। आप उस हवि का सेवन करते हैं, जो आपके नाम की वन्दना करके दिया जाता है। याजक गण उससे पुत्र प्राप्त करता है। याजक गण के बहुत हव्य की अभिलाषा करने वाले और वर्द्धमान अग्नि देव बल युक्त होकर सुख प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.3.10]
Hey comfortable-granting residence, Agni Dev! You accept the offerings which are given in your name during worship-prayers. The Ritviz gets a son with that. Agni Dev empowered by the several offerings of the Ritviz Agni Dev grant them comforts.
त्वमङ्ग जरितारं यविष्ठ विश्वान्यग्ने दुरिताति पर्षि।
स्तेना अदृश्रन्रिपवो जनासोऽज्ञातकेता वृजिना अभूवन्
हे युवतम अग्नि देव! आप स्तोताओं को अनुगृहीत करने के लिए समस्त दुरितों (विघ्न) से पार कर देते हैं। चोर दिखाई देने लगते हैं। अपरिज्ञात चिह्न वाले शत्रु भूत मनुष्य हमारे द्वारा वर्जित किये जाते हैं।[ऋग्वेद 5.3.11]
Hey youthful Agni Dev! You clear all obstructions, troubles, difficulties, all calamities to obelize the Strota. The thieves are identified-detected along with the enemies and are isolated by us.
इमे यामासस्त्वद्रिगभूवन्वसवे वा तदिदागो अवाचि।
नाहायमग्निरभिशस्तये नो न रीषते वावृधानः परा दात्
ये स्तोम आपके अभिमुख गमन करते हैं अथवा हम निवासप्रद अग्नि देव के निकट उस याचमान अपराध का उच्चारण करते हैं। अग्नि देव हमारी स्तुति द्वारा वर्द्धित होकर हमें निन्दकों अथवा हिंसकों की ओर जाने से बचायें।[ऋग्वेद 5.3.12] 
स्तोम :: यज्ञ करने वाला व्यक्ति, स्तुति, प्रार्थना, यज्ञ, एक प्रकार का यज्ञ, यज्ञकारी, समूह, राशि, दस धन्वंतर अर्थात् चालीस हाथ की एक माप, मस्तक, सिर, धन-दौलत, अनाज-शस्य, एक प्रकार की ईंट, लोहे की नोकवाला डंडा या सोंटा, बड़ी मात्रा, विशाल राशि, दूसरे को किराए पर मकान देना, सोम का दिन-दिवस; performer of the Yagy-Ritviz.
The performer of the Yagy move to you, and accept their guilt-sin. Let Agni Dev become powerful become happy with our worship-prayers and protect us from the  cynic and the violent.(16.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- वसुश्रुत, आत्रेय, देवता :- अग्नि, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वामग्ने वसुपतिं वसूनामभि प्र मन्दे अध्वरेषु राजन्।
त्वया वाजं वाजयन्तो जयेमाभि ष्याम पृत्सुतीर्मर्त्यानाम्
हे अपार धन के स्वामी अग्नि देव! हम आपके उद्देश्य से यज्ञ में प्रार्थना करते हैं। हे राजन्!  हम अन्नाभिलाषी हैं। आपकी अनुकूलता से हम अन्न लाभ करें और शत्रु सेना को पराजित करें।[ऋग्वेद 5.4.1]
Hey master of unlimited wealth Agni Dev! We worship-pray you in the Yagy. Hey king-emperor! We desire food grains. Your favours will grant us food grains and enable us to defeat the enemy.
हव्यवाळग्निरजरः पिता नो विभुर्विभावा सुदृशीको अस्मे।
सुगार्हपत्याः समिषो दिदीह्यस्मद्र्य १ क्सं मिमीहि श्रवांसि
हव्य वाहक अग्नि देव वृद्धावस्था से रहित होकर हम लोगों के पालक बनें। हम लोगों के निकट वे सर्वव्याप्त दीप्यमान और दर्शनीय हों। हे अग्निदेव! आप शोभन गार्हपत्य युक्त अन्न को भली-भाँति से प्रदान करें। आप हम लोगों को प्रचुर मात्रा में अन्न-प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.4.2]
Hey carrier of offerings-oblations, Agni Dev support-nurture us. You should be aurous-bright and illuminate entire space. Hey Agni Dev! Grant us sufficient food grains for our family.
विशां कविं विश्पतिं मानुषीणां शुचिं पावकं घृतपृष्ठमग्निम्।
नि होतारं विश्वविदं दधिध्वे स देवेषु वनते वार्याणि॥
हे ऋत्विको! आप लोग मनुष्यों के स्वामी, मेधावी, विशुद्ध, दूसरों को शुद्ध करने वाले, घृतपृष्ठ, होमनिष्पादक और सर्वविद अग्नि देव को धारित करें। अग्नि देव देवों के बीच में संग्रहणीय धन को हम लोगों के लिए विभाजित करें।[ऋग्वेद 5.4.3]
Hey Ritviz-priests! Own-patronise Agni Dev, who is intelligent, pure, capable of purifying others, has ghee over his back and aware of every thing. Let Agni Dev, divide-distribute the storable wealth amongest us.
जुषस्वाग्न इळया सजोषा यतमानो रश्मिभिः सूर्यस्य।
जुषस्व नः समिधं जातवेद आ च देवान्हविरद्याय वक्षि
हे अग्नि देव! इला (वेदी भूमि) के साथ समान प्रीति युक्त होकर और सूर्य को रश्मियों द्वारा यतमान होकर आप सेवा करें। हे जातवेदा! हम लोगों के काष्ठ की सेवा करें। हव्य भोजन करने के लिए देवों का आह्वान कर हव्य वहन करें।[ऋग्वेद 5.4.4]
Hey Agni Dev! Serve affectionately, accompanying the Sun rays as a host, over the Yagy site. Hey Jat Veda! Serve-consume our wood. Invite the demigods-deities for accepting offerings and carry the offerings-oblations.
जुष्टो दमूना अतिथिर्दुरोण इमं नो यज्ञमुप याहि विद्वान्।
विश्वा अग्ने अभियुजो विहत्या शत्रूयतामा भरा भोजनानि
आप पर्याप्त, दान्तमना और घर में आये हुए अतिथि के तुल्य पूज्य होकर हम लोगों के इस यज्ञ में आगमन करें। हे विद्वान् अग्निदेव! आप समस्त शत्रुओं को विनष्ट करें और शत्रुता करने वालों के धन का नाश करें।[ऋग्वेद 5.4.5]
Join our Yagy happily like a worship able guest. Hey intelligent Agni Dev! Destroy all enemies and their wealth-possessions.
वधेन दस्युं प्रहि चातयस्व वयः कृण्वानस्तन्वे ३ स्वायै।
पिपर्षि यत्सहसस्पुत्र देवान्त्सो अग्ने पाहि नृतम वाजे अस्मान्
हे अग्नि देव! आप अपने यजमानादि रूप पुत्र को अन्न प्रदान करते हैं और आयुध द्वारा दस्युओं का विनाश करते हैं। हे बल पुत्र! जिस कारण आप देवों को तृप्त करते हैं, उसी कारण से हे नेतृ श्रेष्ठ! आप हम लोगों की संग्राम में रक्षण करें।[ऋग्वेद 5.4.6]
Hey Agni Dev! You grant son and food grains to hosts-Ritviz, priests. Destroy the enemy with arms & ammunition. Hey son of might-power! The reason due to which you satisfy the demigods-deities, protect us in the war as a leader with the same logic.
वयं ते अग्न उक्थैर्विधेम वयं हव्यैः पावक भद्रशोचे।
अस्मे रयिं विश्ववारं समिन्वास्मे विश्वानि द्रविणानि धेहि
हे अग्नि देव! हम लोग शास्त्र द्वारा आपकी परिचर्या करेंगे। हम लोग हव्य द्वारा आपकी परिचर्या करेंगे। हे शोधक तथा हे कल्याणकर-दीप्ति विशिष्ट अग्नि देव! आप हम लोगों को सभी के द्वारा वरणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.4.7]
Hey Agni Dev! We will serve you with the hymns-Strotr. We will serve you with offerings-oblations. Hey purifier and well wisher Agni Dev, possessing special qualities-traits! Grant us suitable & sufficient wealth.
अस्माकमग्ने अध्वरं जुषस्व सहसः सूनो त्रिषधस्थ हव्यम्।
वयं देवेषु सुकृतः स्याम शर्मणा नस्त्रिवरूथेन पाहि
हे बल के पुत्र अग्नि देव! जल, थल और पर्वत इन तीन स्थानों में निवास करने वाले आप हमारे यज्ञ में उपस्थित होकर हविष्यान्न का सेवन करें। हम देवों के लिए अच्छे कर्म करने वाले हों। आप तीनों (कायिक, वाचिक, मानसिक) पापों से हमारी रक्षा करते हुए हमें उत्तम आश्रय स्थान प्रदान कर सुखी करें।[ऋग्वेद 5.4.8]
Hey the son of might-power Agni Dev! The resident-possessor of water, land and mountains, join our Yagy and accept the offerings. We should perform pious, righteous, virtuous sacred deeds for the sake of demigods-deities. Protect us from the sins pertaining to the body, speech and the innerself and grant-comfort us with grant of the excellent place to live-survive. 
विश्वानि नो दुर्गहा जातवेदः सिन्धुं न नावा दुरिताति पर्षि।
अग्ने अत्रिवन्नमसा गृणानो ३ स्माकं बोध्यविता तनूनाम्
हे जातवेदा! नाविक नौका द्वारा जिस प्रकार से नदी को पार करता है, उसी प्रकार से आप हम लोगों को समस्त दुःसह दुखों से पार करें। हे अग्नि देव! अत्रि के तुल्य हम लोगों के स्तोत्रों द्वारा प्रार्थित होकर आप हम लोगों के शरीर की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.4.9]
Hey Jat Veda Agni Dev! Sail us through the extreme pains-tortures just as a boats man crosses the river. Protect our bodies just like Atri Rishi, on being prayed-worshiped.
यस्त्वा हृदा कीरिणा मन्यमानोऽमर्त्यं मर्त्यो जोहवीमि।
जातवेदो यशो अस्मासु धेहि प्रजाभिरग्ने अमृतत्वमश्याम्
हे अग्नि देव! हम मरणशील है और आप अमर है। हम स्तुति युक्त हृदय से स्तवन करके बार-बार आपका आह्वान करते हैं। हे जातवेदा! हम लोगों को सन्तान प्रदान करें। हम जिससे सन्ततियों के अविच्छेद से अमरत्व लाभ प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 5.4.10]
POSTERITY :: The offspring of one progenitor to the furthest generation, all future generations.
Hey Agni Dev! we are mortals and you are immortal. We repeatedly worship-pray you with pure heart and invoke you. He Jat Veda! grant us progeny. We should be able to attain immortality by virtue of our posterity.
यस्मै त्वं सुकृते जातवेद उ लोकमग्ने कृणवः स्योनम्  
अश्विनं स पुत्रिणं वीरवन्तं गोमन्तं रयिं नशते स्वस्ति
हे जातवेदा अग्नि देव! आप जिस सुकर्म कृत याजक गण के प्रति सुखकर अनुग्रह करते है, वह याजकगण अश्व युक्त, पुत्र युक्त, वीर्य युक्त और गो युक्त होकर अक्षय धन-लाभ प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 5.4.11]
Hey Jat Veda Agni Dev! The Ritviz obliged by you for conducting pious-virtuous deeds attain horses, sons, might-power, cows and imperishable wealth.(17.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- वसुश्रुत, आत्रेय, देवता :- आप्रीसूक्त, छन्द :- गायत्री।
सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन। अग्नये जातवेदसे 
हे ऋत्विको! जातवेदा, दीप्तिमान् और सुसमिद्ध नामक अग्नि देव के लिए आप प्रभूत घृत से हवन करें।[ऋग्वेद 5.5.1]
प्रभूत :: उत्पन्न, उद्‌गम; ample, abundant.
Hey Ritviz! Perform Hawan-Yagy for the sake of shinning Jat Veda Agni Dev and fed with him wood with abundant Ghee.
नराशंसः सुषूदतीमं यज्ञमदाभ्यः। कविर्हि मधुहस्त्यः
नराशंस नामक अग्नि देव इस यज्ञ को प्रदीप्त करें। वे अहिंसनीय, मेधावी एवं हस्त विशिष्ट हैं।[ऋग्वेद 5.5.2]
Let Agni Dev named Narashans lit the Yagy. He is non violent, intelligent & animated.
ईळितो अग्न आ वहेन्द्रं चित्रमिह प्रियम्। सुखै रथेभिरूतये
हे अग्नि देव! आप प्रार्थित है। हम लोगों की रक्षा के लिए विचित्र एवं प्रिय इन्द्र देव को सुखकारी रथ द्वारा आप इस यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 5.5.3]
Hey Agni dev! We are requesting you to bring amazing and affectionate Indr Dev along with you, for our safety, in this Yagy, in the comfortable charoite.
ऊर्णप्रदा वि प्रथस्वाभ्य १ र्का अनूषत। भवा नः शुभ्र सातये
हे बर्हि! आप कम्बल के तुल्य मृदुभाव से विस्तृत होवें। स्तोता लोग प्रार्थना करते हैं। हे दीप्त! आप हम लोगों के लिए धनप्रद होवें।[ऋग्वेद 5.5.4]
Hey Barhi! Expand-extend like the blanket affectionately. The Stota are conducting prayers. Hey aurous! Grant us wealth.
देवीर्द्वारो वि श्रयध्वं सुप्रायणा न ऊतये। प्रप्र यज्ञं पृणीतन
हे सुगमन-साधिका यज्ञद्वार की अभिमानिनी देवियों! आप सब विमुक्त होवें और हम लोगों की रक्षा के लिए यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.5.5]
Hey easily pleasing goddesses protecting the gates-door! You should be free and complete-accomplish the Yagy for our safety.
सुप्रतीके वयोवृधा यह्वी ऋतस्य मातरा। दोषामुषासमीमहे
सुरूपा, अन्न वर्द्धयित्री, महती और यज्ञ या उदक की निर्मात्री रात्रि तथा उषा देवी की हम लोग प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.5.6]
We worship beautiful, granting a lot of food grains, promoting the Yagy and producing water, goddesses Night & Usha. 
वातस्य पत्मन्नीळिता दैव्या होतारा मनुषः। इमं नो यज्ञमा गतम्
हे अग्नि देव और आदित्य रूप दिव्य होताओं! आप दोनों हम मनुष्यों के इस यज्ञ में स्तुति से प्रेरित होकर वायु की गति से पधारें।[ऋग्वेद 5.5.7]
Hey divine hosts-Ritviz, with the characterices-traits of Agni dev & Adity! Both of you attend this Yagy moving-coming with the speed of air.
इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुवः। बर्हिः सीदन्त्वस्त्रिधः
इला, सरस्वती और मही नामक तीनों देवियाँ सुख प्रदान करें। वे हिंसा शून्य होकर हम याजक गणों के इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 5.5.8]
Let goddesses Ila, Saraswati and Mahi grant comforts. They should be non violent & join our (Ritviz-hosts) Yagy.
शिवस्त्वष्टरिहा गहि विभुः पोष उत त्मना। यज्ञेयज्ञे न उदव
हे त्वष्टा देव! आप सुखकर होकर इस यज्ञ में आगमन करें। आप पोषक रूप से व्याप्त है। सब यज्ञों से आप हम लोगों की उत्कृष्ट रूप से रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.5.9]
Hey Twasta Dev! Come to us comfortably in the Yagy. You pervade as a nurturer. Protect us excellently with the grace of all Yagy.
यत्र वेत्थ वनस्पते देवानां गुह्या नामानि। तत्र हव्यानि गामय
हे वनस्पति! आप जिस स्थान में देवों के गुप्त स्थानों को जानते हैं, उन स्थानों में हव्यादि पहुँचायें।[ऋग्वेद 5.5.10]
Hey Vegetation-Vanaspati Dev! Carry the oblations-offerings to the secret abodes of the demigods-deities, known to you.
स्वाहाग्नये वरुणाय स्वाहेन्द्राय मरुद्भ्यः। स्वाहा देवेभ्यो हविः
यह हव्य अग्नि देव और वरुण देव को स्वाहा रूप से प्रदत्त है, इन्द्र देव और मरुतों को भी स्वाहा रूप से प्रदत्त है तथा देवों को भी स्वाहा रूप से प्रदत्त है।[ऋग्वेद 5.5.11]
स्वाहा :: हविर्दान के समय उच्चारण किया जाने वाला एक शब्द, जो जलकर नष्ट हो गया हो, पूर्णतः विनष्ट; burnt completely.
This offering is meant for Agni Dev, Varun Dev, Indr Dev, Marud Gan and other demigods-deities as Swaha, to be burnt completely.(18.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- वसुश्रुत, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- पंक्ति
अग्निं तं मन्ये यो वसुरस्तं यं यन्ति धेनवः।
अस्तमर्वन्त आशवोऽस्तं नित्यासो वाजिन इषं स्तोतृभ्य आ भर
जो निवासप्रद हैं, जो सभी के लिए गृह के तुल्य आश्रय भूत हैं और जिन्हें गौएँ, शीघ्रगामी घोड़े तथा नित्य प्रवृत्त हव्य देने वाले याजकगण प्रसन्न करते हैं, हम उन अग्नि देव की स्तुति करते हैं। हे अग्नि देव! ऐसे याजकों के लिए धन-धान्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.6.1]
We worship Agni Dev who provide asylum-dwellings, fast moving horses, cows & make offerings to please him. Hey Agni Dev! Grant wealth and eatables to the devotees. 
सो अग्निर्यो वसुर्गृणे सं यमायन्ति धेनवः।
समर्वन्तो रघुद्रुवः सुजातासः सूरय इषं स्तोतृभ्य आ भर
जो अग्नि देव निवासप्रद रूप से प्रार्थित होते हैं, जिनके निकट गौएँ होमार्थ समागत होती हैं, द्रुतगामी घोड़े समागत होते हैं और सत्कुलोत्पन्न मेधावी भी समागत होते हैं, वे ही अग्निदेव है। हे अग्निदेव! स्तोताओं के लिए धन-धान्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.6.2]
समागत :: जिसका आगमन हुआ हो, आगत, आया हुआ, प्रत्यावर्तित, वापस आया हुआ। 
Agni Dev, who is worshiped by the intelligent people born in honourable families-clan, for granting asylum, cows & high speed horses; should grant wealth & eatables to the worshipers.
अग्निर्हि वाजिनं विशे ददाति विश्वचर्षणिः।
अग्नी राये स्वाभुवं स प्रीतो याति वार्यमिषं स्तोतृभ्य आ भर
सभी के कर्मों के दर्शक अग्निदेव यजमानों को अन्न व पुत्र प्रदत्त करते हैं। अग्निदेव प्रसन्न होकर सभी जगह व्याप्त और सभी के द्वारा वरणीय धन देने के लिए आते हैं। हे अग्निदेव! आप स्तोताओं को पर्याप्त पोषण प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.6.3]
Agni Dev watches the deeds of every one, grant food grains and sons, pervades every place & grant wealth. Hey Agni Dev! Grant sufficient nourishment to the Stota. 
आ ते अग्न इधीमहि द्युमन्तं देवाजरम्।
यद्ध स्या ते पनीयसी समिद्दीदयति द्यवीषं स्तोतृभ्य आ भर
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान् और वृद्धावस्था से रहित हैं। आपको हम सर्वतोभाव से प्रदीप्त करते हैं। आपकी वह स्तुति योग्य दीप्ति द्युलोक में दीप्त होती है। हे अग्नि देव! स्तोताओं को आप अन्न से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.4]
सर्वतोभाव :: सब प्रकार से, पूर्ण रूप से, अच्छी तरह, भली-भाँति; properly, by all means.
Hey Agni Dev! You are radiant-aurous and free from old age. We lit you properly. Your light spread in the heavens. Grant sufficient food grains to the worshipers.
आ ते अग्न ऋचा हविः शुक्रस्य शोचिषस्पते।
सुश्चन्द्र दस्म विश्पते हव्यवाट् तुभ्यं हूयत इषं स्तोतृभ्य आ भर
हे दीप्ति समूह के स्वामी, आह्लादक, शत्रुओं के विनाशक, प्रजापालक और हव्य वाहक अग्निदेव! आप दीप्त है। आपके उद्देश्य से मन्त्रों के साथ हव्य दिया जाता है। हे अग्निदेव! स्तोताओं को ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.6.5]
Hey master of the radiance, pleasure-happiness granting, destroyer of the enemy, nurturer of the populace, carrier of the oblations-offerings Agni Dev. You are kindled. Offerings are made to you with the recitation of hymns. Hey Agni Dev! Grant grandeur to the worshipers.
प्रो त्ये अग्नयोऽग्निषु विश्वं पुष्यन्ति वार्यम्।
ते हिन्विरे त इन्विरे त इषण्यन्त्यानुषगिषं स्तोतृभ्य भर
ये लौकिकाग्नि गार्हपत्यादि अग्नि में समस्त वरणीय या अपेक्षित धन का पोषण करते हैं। ये प्रीतिदान करते है, ये चारों ओर व्याप्त होते हैं और ये अनवरत अन्न की इच्छा करते है। हे अग्रि देव! स्तोताओं को अभिष्ट अन्नादि से समृद्ध करें।[ऋग्वेद 5.6.6]
The Agni over the earth named Garhpaty etc., cherish, nurture-nourish the desired-cherished wealth. He spread love & affection and pervade all around. He crave for sacrificial food stuff. Hey Agni Dev! Enrich the worshipers-adorers with the desired goods and food grains.
तव त्ये अग्ने अर्चयो महि व्राधन्त वाजिनः।
ये पत्वभिः शफानां व्रजा भुरन्त गोनामिषं स्तोतृभ्य आ भर
हे अग्निदेव! आपकी वे रश्मियाँ अत्यन्त अधिक अन्न युक्त होकर वर्द्धित हो। वे रश्मियाँ पतन के द्वारा खुर युक्त गो समूह की इच्छा करें अर्थात् होम की आकांक्षा करें। हे अग्नि देव! स्तोताओं को अन्नादि से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.7]
Hey Agni Dev! Let your rays enrich-grow accompanied by the food grains-offerings. Let the rays fall over the hoofed cows, cattle  etc. & the Hawan-Yagy. Hey Agni Dev! Enrich the worshipers with food grains etc.
नवा नो अग्न आ भर स्तोतृभ्यः सुक्षितीरिषः।
ते स्याम य आनृचुस्त्वादूतासो दमेदम इषं स्तोतृभ्य आ भर
हे अग्नि देव! हम सब आपके स्तोता हैं। आप हम लोगों को नूतन गृह युक्त अन्न प्रदान करें। हम लोग जिससे आपकी प्रत्येक यज्ञगृह में अर्चना करके आपको दूत रूप से पाकर सुखी हो। हे अग्निदेव! स्तोताओं को अन्नादि से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.8]
Hey Agni Dev! We are your worshipers. Grant-provide us new houses with food grains, so that we pray you in the Yagy house  and become comfortable by having you as an ambassador. Hey Agni Dev! Enrich the worshipers with food grains etc.
  उभे सुश्चन्द्र सर्पिषो दर्वी श्रीणीष आसनि।
उतो न उत्पुपूर्या उक्थेषु शवसस्पत इषं स्तोतृभ्य आ भर
हे आह्लादक अग्रि देव! आप घृत पूर्ण दर्वी द्वय को मुख में ग्रहण करते हैं। हे बल के पालयिता! आप इस यज्ञ में हम लोगों को फल द्वारा पूर्ण करें। हे अग्निदेव! स्तोताओं को अन्नादि से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.9]
Hey granter of happiness and nourished by power-might, Agni Dev! Accept two spoon full of butter in your mouth. Hey Agni Dev! Reward us for the Yagy with food grains etc.
एवाँ अग्निमजुर्यमुर्गीर्भिर्यज्ञेभिरानुषक्।
दधदस्मे सुवीर्यमुत त्यदाश्वश्व्यमिषं स्तोतृभ्य आ भर
इस प्रकार से लोग अनुषक्त अग्नि देव के निकट प्रार्थना और यज्ञ के साथ गमन करते हैं और उन्हें स्थापित करते हैं। वे हम लोगों को शोभन पुत्र-पौत्रादि और वेगवान् अश्व प्रदान करें। हे अग्निदेव! स्तोताओं को अन्नादि से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.10]
अनुषक्त :: संबद्ध, संलग्न; attached.
In this manner the populace-devotees worship-pray to Agni Dev, perform Yagy and establish him. Let Agni Dev grant us excellent sons, grandsons and fast moving horses. Hey Agni Dev! Enrich the Stota with food grains etc.(19.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- इष, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
सखायः सं वः सम्यञ्चमिषं स्तोमं चाग्नये।
वर्षिष्ठाय क्षितीनामूर्जो नप्त्रे सहस्वते
हे मित्र ऋत्विजों! आप याजकगणों के लिए अत्यन्त प्रवृद्ध, बल के पुत्र और बलशाली अग्नि देव के उद्देश्य से अर्चना योग्य अन्न और प्रार्थना प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.7.1]
Hey Ritviz! Request-pray to highly developed, grown up, son of might Agni Dev, food grains for the  needy. 
कुत्रा चिद्यस्य समृतौ रण्वा नरो नृषदने।
अर्हन्तश्चिद्यमिन्धते सञ्जनयन्ति जन्तवः
जिन्हें प्राप्त करके ऋत्विक गण प्रीत युक्त होते है, यज्ञ गृह में पूजा करके जिन्हें प्रदीप्त करते हैं एवं जिनके लिए जन्तुओं का उत्पादन करते हैं, वे अग्नि देव कहाँ है?[ऋग्वेद 5.7.2]
The Ritviz affectionately pray, lit & look for Agni Dev, for the evolution of living beings. 
सं यदिषो वनामहे सं हव्या मानुषाणाम्।
उत द्युम्नस्य शवस ऋतस्य रश्मिमा ददे
जब हम अग्निदेव को अन्न प्रदान करते हैं और जब वे हम मनुष्यों के हव्य की सेवा करते हैं, तब वे द्योतमान अन्न की सामर्थ्य से उदक ग्राहक रश्मि को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 5.7.3]
Agni Dev accept the offerings of humans beings through the rays which collect-suck water, by virtue of the food grains as oblation.
स स्मा कृणोति केतुमा नक्तं चिद्दूर आ सते।
पावको यद्वनस्पतीन्प्र स्मा मिनात्यजरः
जब पावक और जरा रहित अग्नि देव वनस्पतियों को दग्ध करते हैं, तब वे रात्रि काल में भी दूर स्थित व्यक्ति को प्रज्ञापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.7.4]
प्रज्ञापित :: जिसका प्रज्ञापन हुआ हो, जिसे सूचना दी गई हो; intimate, advertised, noticed.
When immortal free from aging Agni Dev, burn the forests-vegetation, people standing-located far away, too notice this.
अव स्म यस्य वेषणे स्वेदं पथिषु जुह्वति।
अभीमह स्वजेन्यं भूमा पृष्ठेव रुरुहुः
अग्नि देव की परिचर्या के कार्य में क्षरित घृतों को अध्वर्यु आदि ज्वालाओं के बीच में प्रक्षिप्त करते हैं। पुत्र जिस प्रकार से पिता की गोद में बैठता है, उसी प्रकार से घृत धारा इन अग्नि देव के ऊपर आरोहण करती है।[ऋग्वेद 5.7.5]
The priests pour Ghee into the flames of fire-Agni. The way son occupy the lap of his father, ghee too act like that.
यं मर्त्यः पुरुस्पृहं विदद्विश्वस्य धायसे।
प्र स्वादनं पितूनामस्ततातिं चिदायवे
याजक गण अग्नि देव के गुणों को जानते हैं। अग्नि देव अनेकों के द्वारा स्पृहणीय, सभी के धारक अन्नों के आस्वादक और याजक गणों के निवास प्रद हैं।[ऋग्वेद 5.7.6]
स्पृहणीय :: स्पृहा के योग्य, वांछनीय, प्राप्त करने योग्य,  चाहने योग्य; enviable, preferable, preferential, desirable.
The priests-Ritviz are aware of the characterices-qualities of Agni Dev. He is desired by all, tastes food grains and grant residence to the hosts-Ritviz.
स हि ष्मा धन्वाक्षितं दाता न दात्या पशुः।
हिरिश्मश्रुः शुचिदन्नृभुरनिभृष्टत विषिः
अग्नि देव तृणच्छेदक पशुओं के तुल्य निर्जल एवं तृणकाष्ठ पूर्ण प्रदेश को भस्मि भूत करते हैं। वे सुवर्ण श्मश्रु विशिष्ट, उज्ज्वल दन्त, महान् और अप्रतिहत बल युक्त हैं।[ऋग्वेद 5.7.7]
Agni Dev destroys the straw, places where no one lives and has wood. He has golden beard, shinning teeth and great might-power.
शुचिः ष्म यस्मा अन्रिवत्प्र स्वधितीव रीयते।
सुषूरसूत माता क्राणा यदानशे भगम्
जिनके निकट लोग अत्रि के तुल्य गमन करते हैं, जो कुठार के तुल्य वृक्षादि का विनाश करते हैं, वे अग्नि देव दीप्त हैं। जो अन्न ग्रहण करते हैं और जो संसार के उपकारक हैं, माता अरणि ने उन्हीं अग्नि देव का प्रसव किया।[ऋग्वेद 5.7.8]
Agni Dev, who is visited by the people like Atri Rishi, destroys the trees like an axe and is radiant. He is produced by the wood, benefits the world and accept food grains as offerings-oblation.
आ यस्ते सर्पिरासुतेऽग्ने शमस्ति धायसे।
ऐषु द्युम्नमुत श्रव आ चित्तं मर्त्येषु धाः
हे हव्य भोजी अग्नि देव! आप सभी के धारक है। हम लोगों की स्तुतियों से आपको सुख प्राप्त होता है। आप स्तोताओं को धन व अन्न प्रदान करते हुए अन्तःकरण से दान करें।[ऋग्वेद 5.7.9]
Hey Agni Dev, eating-accepting offerings! You are the supporter-nurturer of all. You find pleasure in the sacred hymns recited by us for you. Grant wealth, food grains to the Stota-devotees and bless them from your innerself.
इति चिन्मन्युमध्रिजस्त्वादातमा पशुं ददे।
आदग्ने अपृणतोऽत्रिः सासह्याद्दस्यूनिषः सासह्यानॄन्
हे अग्नि देव! इसी प्रकार से दूसरों के द्वारा अकृत्य स्तोत्रों के उच्चारणकारी ऋषि आपसे पशु ग्रहण करते हैं। जो अग्नि देव को हव्य दान नहीं करता है, उस दस्यु को अत्रि ऋषि बारम्बार विनष्ट करें और विरोधियों को भी अनेकानेक बार विनष्ट करें।[ऋग्वेद 5.7.10]
Hey Agni Dev! The Rishis accept animals-cattle from you by the recitation of the Strotr which do not pertain to procedures. Let Atri rishi destroy the dacoits-demons and opponents, who do not make offerings in holy fire for Agni Dev.(22.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- इष, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती
त्वामग्न ऋतायवः समीधिरे प्रत्नं प्रलास ऊतये सहस्कृत।
पुरुश्चन्द्रं यजतं विश्वधायसं दमूनसं गृहपतिं वरेण्यम्
हे बलकर्ता अग्नि देव! आप पुरातन है। अतः पुरातन यज्ञकारी आश्रय लाभ के लिए आपको भली-भाँति से प्रदीप्त करते हैं। आप अत्यन्त प्रीतिदायक, यागयोग्य, बहु अन्न विशिष्ट, गृहपति और वरणीय है।[ऋग्वेद 5.8.1]
Hey mighty-powerful Agni Dev! You are ancient-eternal. Hence, the ancient Yagy performers lit you properly, for asylum under you. You are affectionate, suitable-fit for the Yagy, possess several food grains, owner of the house and is acceptable.
त्वामग्ने अतिथिं पूर्व्यं विशः शोचिष्केशं गृहपतिं नि षेदिरे।
बृहत्केतुं पुरुरूपं धनस्पृतं सुशर्माणं स्ववसं जरद्विषम्
हे अग्नि देव! याजकगणों ने आपको गृहस्वामी के रूप से स्थापित किया। आप अतिथि के समान पूज्यनीय है। आप पुरातन, दीप्त शिखा विशिष्ट, प्रभूत केतु विशिष्ट, बहुरूप, धनदाता, सुखप्रद, सुरक्षक और जीर्णवृक्षों के विनाशक हैं।[ऋग्वेद 5.8.2]
Hey Agni Dev! The Ritviz-priests have established you as the lord of the house. You are adorable-revered like the guest. You are ancient-eternal, possess specific flames, has several shapes-sizes, grantor of ample abundant wealth, comforts, protection and destroyer of old dried trees.
त्वामग्ने मानुषीरीळते विशो होत्राविदं विविचिं रत्नधातमम्।
गुहा सन्तं सुभग विश्वदर्शतं तुविष्वणसं सुयजं घृतश्रियम्
हे सुन्दर धन विशिष्ट अग्नि देव! मनुष्यगण आपकी प्रार्थना करते हैं। आप होमविद्, विवेचक, रत्न दाताओं के बीच में श्रेष्ठ, गुहास्थित, सभी के दर्शन योग्य, प्रभूत ध्वनि युक्त यज्ञकारी और घृत ग्राहक हैं।[ऋग्वेद 5.8.3]
Hey possessor of beautiful wealth Agni Dev! Humans worship-pray you. You are a analyser, best amongest the gems-jewels donors, established in the cave, fit to be visible by all, having ample sound, performer-
त्वामग्ने धर्णसिं विश्वधा वयं गीर्भिर्गृणन्तो नमसोप सेदिम।
स नो जुषस्व समिधानो अङ्गिरो देवो मर्तस्य यशसा सुदीतिभिः
हे अग्नि देव! आप सबको धारण करने वाले हैं। हम लोग बहुत प्रकार के स्तोत्र और नमस्कार द्वारा आपकी स्तुति करके आपके निकट उपस्थित होते हैं। आप हम लोगों को धन प्रदान करके प्रसन्न करें। हे अङ्गिरा के पुत्र अग्नि देव! आप भली-भाँति से प्रदीप्त होकर शिखाओं के साथ हम मनुष्यों को कीर्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.8.4]
Hey Agni Dev! you support-nurture every one. We come to you with salutations and recitation of Strotr-sacred hymns. Make us happy by granting us wealth. Angira's son, hey Agni Dev! You should be lit thoroughly with your flames and grant fame-glory to the us-humans.
त्वमग्ने पुरुरूपो विशेविशे वयो दधासि प्रत्नथा पुरुष्टुत। 
पुरूण्यन्ना सहसा वि राजसि त्विषिः सा ते तित्विषाणस्य नाधृषे
हे अग्नि देव! आप बहुरूप युक्त होकर समस्त याजक गणों को पुराकाल के तुल्य अन्न प्रदान करते हैं। हे बहु स्तुत! आप अपने बल से ही बहुत अन्नों के स्वामी होते हैं। आप दीप्तिमान् हैं। आपकी तेजस्वी दीप्तियों का कोई दमन नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 5.8.5]
Hey Agni Dev! You acquire several shapes-forms and provide food grains to the desirous, ever since. Hey worshiped by several! You become the master of several grains by virtue of your might-power. You are glorious-radiant. None can over power your flames-radiance.
त्वामग्ने समिधानं यविष्ठ्य देवा दूतं चक्रिरे हव्यवाहनम्।
उरुज्रयसं घृतयोनिमाहुतं त्वेषं चक्षुर्दधिरे चोदयन्मति॥
हे युवतम अग्नि देव! आप उत्तम प्रकार से प्रदीप्त होने वाले हैं। देवों ने आपको हवि वहन करने वाले दूत के रूप में प्रतिष्ठित किया है। देवों और मनुष्यों ने प्रभूत वेगशाली, घृतयोनि और आहूत अग्निदेव को बुद्धिप्रेरक, दीप्त और चक्षुः स्थानीय बनाकर धारण किया है।[ऋग्वेद 5.8.6]
Hey youngest Agni Dev! You lit in the best manner. The demigods-deities have established as the carrier of offerings-oblations. The demigods-deities & humans have accepted Agni Dev as the accelerated, acceptor of Ghee, revered as the inspirer of intelligence, radiant and locally visible with the eyes.
त्वामग्ने प्रदिव आहुतं घृतैः सुम्नायवः सुषमिधा समीधिरे।
स वावृधान ओषधीभिरुक्षितो ३ भि ज्रयांसि पार्थिवा वि तिष्ठसे
हे अग्नि देव! घृत द्वारा आहूत करके पुरातन तथा सुखाभिलाषी याजकगण आपको सुन्दर काष्ठों द्वारा प्रज्ज्वलित करते हैं। आप वर्द्धित होकर औषधियों द्वारा सिक्त होकर और पार्थिव अन्नों को व्यक्त करके अवस्थित करते हैं।[ऋग्वेद 5.8.7]
Hey Agni Dev! On being worshiped with Ghee, the desirous of comforts humans, ignite you in the beautiful pots. You grow, nurture the vegetation and engross the food grains.(23.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- गय, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
त्वामग्ने हविष्मन्तो देवं मर्तास ईळते।
मन्ये त्वा जातवेदसं स हव्या वक्ष्यानुषक्
हे अग्नि देव! आप दीप्यमान देव है। होम साधक द्रव्यों से युक्त होकर हम आपकी प्रार्थना करते हैं। आप चराचर भूतजात को जानने वाले हैं। हम आपकी प्रार्थना करते हैं। आप हवन साधन हव्य का निरन्तर वहन करते हैं।[ऋग्वेद 5.9.1]
वहन :: धारक, शुद्ध लाभ, प्रभार, परिवहन, ले जाना; affordable, bearing, carry, carriage. 
भूतजात :: मृत, दिवंगत, पितृगण; deceased, Manes-Pitres.
Hey Agni Dev! You are an aurous-radiant deity. We worship-pray you, equipped with the material required for the Hawan-Yagy. You know the entire deceased, Manes, Pitre Gan. You always carry the offerings-oblations to the demigods-deities.
अग्निर्होता दास्वतः क्षयस्य वृक्तबर्हिषः।
सं यज्ञासश्चरन्ति यं सं वाजासः श्रवस्यवः
समस्त (श्रौत-स्मार्त) यज्ञ जिन अग्नि देव का अनुगमन करते हैं, याजक गण की प्रभूत कीर्ति के सम्पदक हव्य जिन अग्नि देव को प्राप्त करते हैं, वह अग्नि देव हव्य दाता और कुशच्छेदक के गृह में होता रूप से प्रतिष्ठित होते हैं।[ऋग्वेद 5.9.2]
All Yagy-Hawan follow Agni Dev, who is established as the breaker of Kush grass, host for the offerings-oblations in the house of the performer-Ritviz for his progress and glory.
उत स्म यं शिशुं यथा नवं जनिष्टारणी।
धर्तारं मानुषीणां विशामग्निं स्वध्वरम्
आहारादि के पाक द्वारा मनुष्यों के पोषक और यज्ञ शोभाकारी अग्नि देव को अरणि द्वय नव शिशु के तुल्य उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 5.9.3]
The wooden logs evolve Agni Dev, the nurturer of humans and glorified in the Yagy, as a newly born baby supported by food grains-offerings.
उत स्म दुर्गृभीयसे पुत्रो न ह्वार्यार्णाम्।
पुरू यो दग्धासि वनाग्ने पशुर्न यवसे
हे अग्नि देव! कुटिल गति सर्प या वक्र गति अश्व के शिशु के तुल्य आप कष्ट पूर्वक धारित करने के योग्य है। तृण बीच में परित्यक्त पशु जिस प्रकार से तृण भक्षण करता है, उसी प्रकार से आप समग्र वन को भस्म कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.9.4]
Hey Agni Dev! You can be born-possessed either like a wicked snake or the horse moving with curved-irregular speed. The way a lost-abandoned animal eats the straw, you burn-destroy the entire forest. 
अध स्म यस्यार्चयः सम्यक्संयन्ति धूमिनः।
यदीमह त्रितो दिव्युप ध्मातेव धमति शिशीते ध्मातरी यथा
धूमवान अग्नि देव की शिखाएँ शोभन रूप से सभी जगह व्याप्त होती हैं। तीनों स्थानों में व्याप्त अग्नि देव अपनी ज्वाला को स्वयमेव अन्तरिक्ष में उपवर्द्धित करते हैं, जिस प्रकार से अस्त्रादि के द्वारा कर्मकार इन्हें संवर्द्धित करते हैं। ये कर्मकार द्वारा सन्धुक्षित अग्नि देव के तुल्य अपने को तीक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 5.9.5]
सन्धुक्षित :: प्रज्वलित या उद्दीप्त किया हुआ; burning, glowing.
Flames of fire possessing smoke spread all around. Agni Dev present in the three abodes :- earth, heaven and the nether world, boost himself in the space-sky. He increase his fierceness-intensity just like the artisan.
तवाहमग्न ऊतिभिर्मित्रस्य च प्रशस्तिभिः।
द्वेषोयुतो न दुरिता तुर्याम मर्त्यानाम्
हे अग्रि देव! आप सभी के मित्र स्वरूप है। आपकी रक्षा द्वारा और आपका स्तवन करके हम शत्रु भूत मनुष्यों के पाप साधन कर्मों से दूर हों। आपकी रक्षा और आपके स्तोत्रों (रक्षा कवच) के द्वारा हम बाह्याभ्यन्तर शत्रुओं से दूर हो।[ऋग्वेद 5.9.6]
बाह्याभ्यंतर :: अंदर और बाहर, बाहरी और अंदर, बाह्य और आंतरिक रूप से, प्राणायाम का एक भेद जिसमें भीतर से निकलते हुए श्वास को धीरे धीरे रोकते हैं; inhaling and exhaling air in the lungs during Pranayam-Yog.
Hey Agni Dev! You should be friendly with every one. Protected by you and by worshiping-praying you, we should be away-saved, protected from the sins which are like enemies. We should be distanced with the external-unknown & internal-known enemies, by the recitation of the Protection Strotr.
तं नो अग्ने अभि नरो रयिं सहस्व आ भर।
स क्षेपयत्स पोषयद्भुवद्वाजस्य पृत्सु नो वृधे
हे अग्रि देव! आप बलवान् और हव्य वाहक है। आप हम लोगों के निकट प्रसिद्ध धन का आहरण करें। हम लोगों के शत्रुओं को पराभूत करके हम लोगों का पोषण करें। अन्न प्रदान कर युद्ध में हम लोगों के समृद्धि का विधान करें।[ऋग्वेद 5.9.7]
समृद्धि :: सफलता, कुशल, सौभाग्य, श्री, संपन्नता, धन, प्रचुरता, प्रफुल्लता, ख़ुशहाली; prosperity, affluence, flourishing.
Hey Agni Dev! You are mighty carrier of oblations-offerings. Grant us the famous wealth. Defeat our enemies and nourish us. Grant us food grains-stuff and ensure our victory-prosperity in the war-battle.(24.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- गय, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अग्न ओजिष्ठमा भर द्युम्नमस्मभ्यमध्रिगो।
प्र नो राया परीणसा रत्सि वाजाय पन्थाम्
हे अग्नि देव! आप हम लोगों के लिए अत्युत्कृष्ट धन प्रदान करें। आपकी अप्रतिहत गति है। आप हम लोगों को सभी जगह व्याप्त धन से युक्त करें और अन्न लाभ के लिए हम लोगों के पथ का निर्माण करें।[ऋग्वेद 5.10.1]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous.
Hey Agni Dev! Grant us excellent wealth-riches. Your movements can not be blocked-checked by any one. Pave way for us to have sufficient wealth and food grains.
त्वं नो अग्ने अद्भुत क्रत्वा दक्षस्य महना।
त्वे असूर्य १ मारुहत्काणा मित्रो न यज्ञियः
हे अग्नि देव! आप सभी के बीच में आश्चर्यभूत हैं। आप हम लोगों के यज्ञादि कर्मों से प्रसन्न होकर के हम लोगों के लिए बल और धन को प्रदान करें। आपका जल असुरों को विनष्ट करने वाला है। आप सूर्य देव के समान यज्ञ कार्य को सम्पादित करें।[ऋग्वेद 5.10.2]
Hey Agni Dev! You are amazing. Be happy-pleased with us by virtue of deeds like Yagy-Hawan and grant us strength & wealth. Your might is destroying-destructive for the demons. Conduct-organise the Yagy like Sury Dev.
त्वं नो अग्न एषां गयं पुष्टिं च वर्धय।
ये स्तोमेभिः प्र सूरयो नरो मघान्यानशुः
हे अग्नि देव! प्रसिद्ध स्तवकारी मनुष्यगण आपकी प्रार्थना करके उत्कृष्ट धन लाभ करते हैं। हम भी आपकी प्रार्थना करते हैं। हम लोगों के लिए आप धन और पुष्टि का वर्द्धन करें।[ऋग्वेद 5.10.3]
Hey Agni Dev! The worshiper-the devout men who have propitiated you, who pray with the Strotr; get-attain excellent wealth-dwelling and prosperity. We too worship you. Give-provide us riches and nourishment.
ये अग्ने चन्द्र ते गिरः शुम्भन्त्यश्वराधसः।
शुष्मेभिः शुष्मिणो नरो दिवश्चिद्येषां बृहत्सुकीर्तिर्बोधति त्मना
हे आनन्ददायक अग्नि देव! जो लोग सुन्दर रूप से आपकी प्रार्थना करते हैं, वे अश्व व धन का लाभ करते हैं और वे बलशाली होकर अपने बल से शत्रुओं को विनष्ट करते हैं एवं स्वर्ग से भी बड़ी सुकीर्ति प्राप्त करते हैं। गय ऋषि ने आपको स्वयं जागृत किया है।[ऋग्वेद 5.10.4]
Hey pleasure granting Agni Dev! Those who worship-pray you as a beautiful entity, get horses & wealth, become powerful, defeat their enemy and attain name & fame much greater than the heavens. Gay Rishi invoked-evolved you himself.
तव त्ये अग्ने अर्चयो भ्राजन्तो यन्ति धृष्णुया।
परिज्मानो न विद्युतः स्वानो रथो न वाजयुः
हे अग्नि देव! आपकी अत्यन्त प्रगल्भ और दीप्तिमती रश्मियाँ सभी जगह व्याप्त विद्युत् के सदृश, शब्दायमान् रथ के सदृश और अन्नार्थियों के सदृश सभी जगह जाती हैं।[ऋग्वेद 5.10.5]
प्रगल्भ :: चतुर, होशियार, प्रतिभाशाली, संपन्न बुद्धि वाला, उत्साही, साहसी, हिम्मती, समय पर ठीक उत्तर देने वाला, हाजिर जवाब, निर्भय, निडर, बोलने में संकोच न रखने वाला, बकवादी, गंभीर, भरापुरा, प्रधान, मुख्य; profound 
Hey Agni Dev! Your brilliant-profound rays reach every place just like electricity, the charoite making sound and the seekers of food grains.
नू नो अग्न ऊतये सबाधसश्च रातये।
अस्माकासश्च सूरयो विश्वा आशास्तरीषणि
हे अग्नि देव! आप शीघ्र ही हम लोगों की रक्षा धन प्रदान करके दारिद्रय दुःख का निवारण करें। हमारे पुत्र और मित्र आपकी स्तुतियाँ करके अपने मनोरथ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.10.6]
Hey Agni Dev! Grant us wealth quickly to protect us from poverty. Our son and friends worship-pray you with the recitations of hymns-Strotr to get their desires accomplished.
त्वं नो अग्ने अङ्गिरः स्तुतः स्तवान आ भर।
होतर्विभ्वासहं रयिं स्तोतृभ्यः स्तवसे च न उतैधि पृत्सु नो वृधे
हे अङ्गिरा! पुरातन महर्षियों ने आपकी प्रार्थना की है और इस समय के महर्षि भी आपकी प्रार्थना कर रहे हैं। धन महान् व्यक्तियों को भी अभिभूत करने वाला है, वह धन हमारे लिए लावें। हे देवों के आह्वानकारी! हम आपकी प्रार्थना करते हैं। आप हमें प्रार्थना करने का सामर्थ्य प्रदान करें एवं युद्ध में हमारी समृद्धि को बढ़ावें।[ऋग्वेद 5.10.7]
Hey Angira! Ancient-eternal Rishis & present the Mahrishis too are worshiping you. The wealth which mesmerise the great rich be awarded to us. Hey invoked by the demigods-deities! We are worshiping you. Grant us strength to pray you and encourage us, increase our prosperity in the war.(26.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- सुतम्भर, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती
जनस्य गोपा अजनिष्ट जागृविरग्निः सुदक्षः सुविताय नव्यसे।
घृतप्रतीको बृहता दिविस्पृशा मद्वि भाति भरतेभ्यः शुचिः
लोगों के रक्षक, सदा प्रबुद्ध और सभी के द्वारा श्लाघनीय बल वाले अग्नि देव लोगों के नूतन कल्याण के लिए उत्पन्न हुए हैं। घृत द्वारा प्रज्वलित होने पर तेजोयुक्त और शुद्ध अग्नि देव ऋत्विकों के लिए द्युतिमान् होकर प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 5.11.1]
प्रबुद्ध :: चैतन्य, सचेत, जागा हुआ, जाग्रत, ज्ञानी, विद्वान, पंडित; illuminated, enlightened. 
Protector of humans, always conscious, mighty Agni dev has evolved for the welfare of humans. Aurous-radiant Agni Dev shines on being fed with Ghee by the Ritviz.
यज्ञस्य केतुं प्रथमं पुरोहितमग्निं नरस्त्रिषधस्थे समीधिरे।
इन्द्रेण देवैः सरथं स बर्हिषि सीदन्नि होता यजथाय सुक्रतुः
अग्नि देव यज्ञ के केतु स्वरूप हैं। ये याजकगणों द्वारा पुरस्कृत होते हैं, पुरोभाग में स्थापित होते हैं। अग्नि देव इन्द्रादि देवों के तुल्य हैं। याजकों ने तीन स्थानों में इन्हें प्रज्वलित किया। शोभनकर्मा और देवों के आह्वानकारी अग्नि देव उस कुश युक्त स्थान पर यज्ञ के लिए प्रतिष्ठित होते हैं।[ऋग्वेद 5.11.2]
पुरोभाग :: अगला हिस्सा, अग्रभाग; anterior part.
Agni Dev is the host of Yagy, like the Ketu-dragon tail. He is rewarded by the Ritviz-priests and established in the anterior part of the Yagy site. He is icon to Indr Dev, demigods-deities. The Ritviz kindle him at three places. Doer of virtuous acts-deeds, affectionate of the demigods-deities Agni Dev acquires his Kush seat-Asan in the Yagy. 
ICON :: लोकप्रिय, कठिनाई, मूर्ति, चित्र, प्रतिमा, प्रतिरूप, अनुसंकेत, अनुप्रतीक; looks like-identical.
असंमृष्टो जायसे मात्रोः शुचिर्मन्द्रः कविरुदतिष्ठो विवस्वतः।
घृतेन त्वावर्धयन्नग्न आहुत धूमस्ते केतुरभवद्दिवि श्रितः
हे अग्नि देव! आप मातृ स्वरूप अरणि द्वय से निर्विघ्न होकर जन्म ग्रहण करते है। आप पवित्र, कवि और मेधावी है। आप यजमानों द्वारा उदित होते है। पूर्व महर्षियों ने घृत द्वारा आपको वर्द्धित किया। हे हव्य वाहक! आपका अन्तरिक्ष व्यापी धूम केतु स्वरूप है; आपका प्रज्ञापक या अनुमापक है।[ऋग्वेद 5.11.3]
कवि :: शायर, चारण, भाट, सूत, सारिका, बन्दी, गवैया; minstrel, poet, bard.
प्रज्ञापक :: सूचित करनेवाला; illustrator, prompter.
Hey Agni Dev! You get birth out of the two wood pieces by rubbing. You are pious, poet, intelligent. You evolved by the Ritviz. Ancient Rishis evolved from Ghee. Hey carrier of offerings-oblations! You smoke engulf the entire space showing your presence.
अग्निर्नो यज्ञमुप वेतु साधुयाग्निं नरो वि भरन्ते गृहेगृहे।
अग्निर्दूतो अभवद्धव्यवाहनोऽग्निं वृणाना वृणते कविक्रतुम्
समस्त पुरुषार्थों के साधक अग्नि देव हमारे यज्ञ में आगमन करें। मनुष्य प्रत्येक घर में इन्हें स्थापित करते हैं। हव्य वाहक अग्नि देव देवों के दूत स्वरूप हैं। यज्ञ सम्पादक कहकर लोग अग्नि देव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 5.11.4]
Progenitor of all endeavours Agni Dev, join our Yagy. The humans establish him in their homes. He is the carrier of offerings-oblations to demigods-deities, like an ambassador. Humans worship-pray him as the doer-performer of the Yagy.
तुभ्येदमग्ने मधुमत्तमं वचस्तुभ्यं मनीषा इयमस्तु शं हृदे।
त्वां गिरः सिन्धुमिवावनीर्महीरा पृणन्ति शवसा वर्धयन्ति च
हे अग्नि देव! आपके उद्देश्य से यह सुमधुर वाक्य प्रयुक्त होता है। यह प्रार्थना आपके हृदय में सुख उत्पन्न करे। महानदियाँ जिस प्रकार से समुद्र को पूर्ण कर सबल करती है, उसी प्रकार से स्तुतियाँ आपको पूर्ण कर सबल करती हैं।[ऋग्वेद 5.11.5]
Hey Agni Dev! This composition is addressed to you. Let this poem-hymn create pleasure in your heart. The manner in which the mighty-great rivers nurture the ocean, let these hymns strengthen you.  
त्वामग्ने अङ्गिरसो गुहा हितमन्वविन्दञ्छिश्रियाणं वनेवने।
स जायसे मथ्यमानः सहो महत्त्वामाहुः सहसस्पुत्रमङ्गिरः
हे अग्नि देव! आप गुहा बीच में निगूढ़ होकर और वन का आश्रय ग्रहण करके अवस्था करते हैं। अङ्गिराओं ने आपको प्राप्त किया। हे अङ्गिरा! आप विशेष बल के साथ मथित होने पर उत्पन्न होते हैं; इसी कारणवश सब आपको बल पुत्र कहते हैं।[ऋग्वेद 5.11.6]
Hey Agni Dev! You remain inside the caves and grow in the forests. Angiras obtained you. Hey Angira-Agni Dev! You evolve by the application of force in churning the wood and hence you are nick named Bal Putr.(27.05.2023)
ऋषि :- 
प्राग्नये बृहते यज्ञियाय ऋतस्य वृष्णे असुराय मन्म।
घृतं न यज्ञ आस्ये ३ सुपूतं गिरं भरे वृषभाय प्रतीचीम्
अग्नि देव सामर्थ्यातिशय से महान्, याग योग्य और जलवर्षणकारी, असुर और अभीष्टवर्षी हैं। यज्ञ में इनके मुख के तुल्य हमारी स्तुतियाँ अग्नि देव के लिए प्रीतिकर हों।[ऋग्वेद 5.12.1]
Agni Dev is great, capable & fit for Yagy, causes rains, demonic and accomplish desires. Let our Stuti-prayers be adorable to him, like his mouth in the Yagy.
He becomes demonic, cruel, ruthless when he engulf the material objects & living beings.
ऋतं चिकित्व ऋतमिच्चिकिद्ध्यृतस्य धारा अनु तृन्धि पूर्वीः।
नाहं यातुं सहसा न द्वयेन ऋतं सपाम्यरुषस्य वृष्णः
हे अग्नि देव! हम यह प्रार्थना करते हैं, आप इसे जानें एवं इसका अनुमोदन करें तथा प्रचुर जल वृष्टि के लिए अनुकूल होवें। हम बल पूर्वक यज्ञ में विघ्नोत्पादक कार्य नहीं करते और न अवैध वैदिक कार्य में प्रवृत्त होते। आप दीप्तिमान् हैं और कामनाओं के पूरक हैं। हम आपकी ही प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.12.2]
Hey Agni Dev! We are worshiping-praying you, recognise-respond to our prayers favourably and cause rains. We neither create trouble in the Yagy forcibly nor inclined to practices against the Veds-traditions. You are aurous-radiant and accomplish the desires. We pray to you.
कया नो अग्न ऋतयन्नृतेन भुवो नवेदा उचथस्य नव्यः।
वेदा मे देव ऋतुपा ऋतूनां नाहं पतिं सनितुरस्य रायः
हे जलवर्षणकारी अग्नि देव! आप स्तुति योग्य है। हम लोगों के किस सत्य कार्य द्वारा आप हम लोगों की प्रार्थना को जानने वाले होंगे? ऋभुओं के रक्षा कर्ता और दीप्तिमान् अग्नि देव हमें जाने। हम अग्नि देव सम्भजनकर्ता हैं। अपने पशु आदि धन के स्वामी अग्नि देव को हम नहीं जानते अर्थात् निश्चित रूप से ही जानते है।[ऋग्वेद 5.12.3]
Hey bestower of rains Agni Dev! You deserve worship. Our which truthful acts will please you to respond to (accept-recognise) our prayers. Let the protector of Ribhus, aurous-radiant Agni Dev recognise us. We certainly know-recognise Agni Dev (his might & powers), the protector of cattle & wealth.
के ते अग्ने रिपवे बन्धनासः के पायवः सनिषन्त द्युमन्तः।
के धासिमग्ने अनृतस्य पान्ति क आसतो वचसः सन्ति गोपाः
हे अग्नि देव! कौन शत्रुओं का बन्धनकारी है? कौन संसार का रक्षक है? कौन दीप्तिमान् और कौन-कौन दानशील हैं? कौन असत्य धारकों का आश्रयदाता है? अथवा कौन अभिशापादि रूप दुष्ट वचन का उत्साहदाता है? अर्थात् अग्नि देव जैसा कोई पुरुष इस प्रकार का नहीं है।[ऋग्वेद 5.12.4]
दानशीलता :: दान देने की प्रवृति; generosity, tendency to donate-charity.
दुष्ट :: परेशान करने वाला, दूषित, सदोष; wicked, vicious.
Hey Agni Dev! Who tie-trap the enemies? Who is the protector of the universe? Who is radiant-aurous and generous? Who grants asylum to falsehood, encourages the curse and harsh words i.e., no human being is like Agni Dev is of this type.
सखायस्ते विषुणा अग्न एते शिवासः सन्तो अशिवा अभूवन्।
अधूर्षत स्वयमेते वचोभिर्ऋजूयते वृजिनानि ब्रुवन्तः
हे अग्नि देव! सभी जगह व्याप्त आपके ये मित्र जन पूर्व में आपकी उपासना के त्याग से असुखी हुए, पश्चात् आपकी आराधना करके फिर सौभाग्यशाली हुए। हम सरल आचरण करते हैं; फिर भी जो हमें असाधुभाव से कुटिलाचारी कहता है, वह हमारा शत्रु स्वयं अपना अनिष्ट करता है।[ऋग्वेद 5.12.5]
Hey Agni Dev! Your friends located all over became uncomfortable, when they stopped your worship, but later when they worshiped you again, they became lucky. We act in a simple manner. Still if a cunning, wicked, vicious become our enemy, he invite trouble for himself.
यस्ते अग्ने नमसा यज्ञमीट्ट ऋतं स पात्यरुषस्य वृष्णः।
तस्य क्षयः पृथुरा साधुरेतु प्रसर्स्त्राणस्य नहुषस्य शेषः
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान् और अभीष्ट पूरक हैं। जो हृदय से आपकी प्रार्थना करता है और आपके लिए यज्ञ का सम्यक् रूप से पालन करता है, उस याजकगण का घर विस्तीर्ण होता है। जो भली-भाँति से आपकी परिचर्या करता है। उस मनुष्य को सभी कामनाओं को सिद्ध करनेवाला पुत्र प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 5.12.6]
विस्तीर्ण :: फैला हुआ, लंबा-चौड़ा, विशाल, विस्तृत; roomy, spacious, vast.
Hey Agni Dev! You are radiant-aurous and accomplish desires. One who worship you whole heartedly and conform to the Yagy; his house become spacious. One who serve you, is blessed with a son who accomplish all of his desires.(28.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- सुतम्भर, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री
अर्चन्तस्त्वा हवामहे ऽर्चन्तः समिधीमहि। अग्ने अर्चन्त ऊतये
हे अग्नि देव! हम आपकी पूजा करके आह्वान करते हैं एवं प्रार्थना करके हम लोग अपनी रक्षा के लिए आपको प्रज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 5.13.1]
Hey Agni Dev! We worship-pray, ignite and invoke you for our safety-welfare.
अग्नेः स्तोमं मनामहे सिध्रमद्य दिविस्पृशः। देवस्य द्रविणस्यवः
आज हम लोग धनार्थी होकर दीप्तिमान् और आकाश स्पर्शी अग्नि देव की पुरुषार्थ साधक प्रार्थना का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 5.13.2]
We desirous of wealth, today perform-recite prayers devoted to radiant-aurous, Agni Dev towering-touching the sky to accomplish our endeavours. 
अग्निर्जुषत नो गिरो होता यो मानुषेष्वा। स यक्षद्दैव्यं जनम्
जो अग्नि देव मनुष्यों के बीच में अवस्थान करके देवों का आह्वान करते हैं, वे अग्नि देव हम लोगों की स्तुतियों को ग्रहण करें और यज्ञीय हव्य को देवों को पहुचाएँ।[ऋग्वेद 5.13.3]
Agni Dev who invoke demigods-deities sitting amongest the humans, accept our prayers and carry the oblations-offerings to the demigods-deities. 
त्वमग्ने सप्रथा असि जुष्टो होता वरेण्यः। त्वया यज्ञं वि तन्वते
हे अग्नि देव! आप सर्वदा हर्ष देने वाले हैं। आप होता और लोगों द्वारा वरणीय होकर स्थूल होते हैं। आपको प्राप्त कर याजकगण यज्ञ सम्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 5.13.4]
Hey Agni Dev! You always create pleasure-happiness. You accomplish the desires of the hosts and others becoming visible acquiring figure, shape & size. The Ritviz perform-conduct Yagy having assessed you. 
त्वामग्ने वाजसातमं विप्रा वर्धन्ति सुष्टुतम्। स नो रास्व सुवीर्यम्
हे अग्नि देव! आप अन्नदाता और स्तुति योग्य है। मेधावी स्तोता समुचित स्तुति द्वारा आपको संवर्द्धित करते हैं। आप हम लोगों को तेजस्वी बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.13.5]
Hey Agni Dev! You grant us food grains and deserve worship. Intelligent Stota-worshipers boost-grow you. Grant us energetic strength, might & power.
अग्ने नेमिरराँ इव देवाँस्त्वं परिभूरसि। आ राधश्चित्रमृञ्जसे
हे अग्नि देव! नेमि जिस प्रकार से चक्र के अरों को वेष्टित करती है, उसी प्रकार से आप देवों के सब ओर हैं। आप हम लोगों को विभिन्न प्रकार का धन-धान्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.13.6]
नेमि :: घेरा, पहिए का ढाँचा; rim.
वेष्टित :: लपेटा हुआ, आच्छादित; ढका हुआ, घेरा हुआ, लपेटा हुआ, रोका हुआ, अवरुद्ध, ऐंठा हुआ; enveloped.
अरे :: spokes.  
Hey Agni Dev! The way the rim of the wheel is fixed tightly with the spokes rigidly, you too is attached with the demigods-deities. Grant us all kinds of wealth-riches.(29.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- सुतम्भर, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री
अग्निं स्तोमेन बोधय समिधानो अमर्त्यम्। हव्या देवेषु नो दधत्
हे यजमान! आप अमर अग्नि देव को उत्तम स्तोत्र द्वारा प्रबोधित करें। इनके प्रदीप्त होने पर वे देवों के समक्ष हम लोगों के लिए हव्य पदार्थों को पहुँचावें।[ऋग्वेद 5.14.1]
प्रदीप्त :: जलता हुआ, जलाया हुआ, प्रकाशित, जगमगाता हुआ, उज्ज्वल, प्रकाशमान, उत्तेजित; alight, ablaze.
Hey Ritviz-host! Ignite-ablaze fire using excellent Strotr. When Agni Dev is radiant-ablaze, he will carry oblations-offerings to demigods-deities. 
तमध्वरेष्वीळते देवं मर्ता अमर्त्यम्। यजिष्ठं मानुषे जने
मनुष्यगण दीप्तिमान्, अमर और मनुष्यों के बीच में परमाराध्य अग्निदेव की यज्ञस्थल में प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.14.2] 
Humans worship highly esteemed, radiant, immortal Agni Dev at the Yagy site.
तं हि शश्वन्त ईळते स्रुचा देवं घृतश्श्रुता। अग्निं हव्याय वोळ्हवे
यज्ञस्थल में बहुत से स्तोता घृतसिक्त स्रुक के सहित देवों के निकट हव्य वहनार्थ दीप्तिमान् अग्निदेव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.14.3] 
Several Stota-Ritviz make offerings with the Struck lacked-full of  Ghee at the Yagy site, requesting Agni Dev to carry the offerings-oblations to the demigods-deities.
अग्निर्जातो अरोचत घ्नन्दस्युञ्ज्योतिषा तमः। अविन्दद्गा अपः स्वः
अरणि मन्थन से उत्पन्न अग्नि देव अपने तेज प्रभाव से अन्धकार को और यज्ञ विघातक राक्षसों को विनष्ट कर प्रदीप्त होते हैं। गौ, अग्नि और सूर्य, अग्नि देव से ही उत्पन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 5.14.4]
Agni Dev, who evolve by rubbing the two wood pieces, remove darkness and destroy the demons who create hindrances in the Yagy. Cows, fire and Sun have evolved out of Agni Dev.
अग्निमीळेन्यं कविं घृतपृष्ठं सपर्यत। वेतु मे शृणवद्धवम्
हे मनुष्यों! आप उस ज्ञानी और आराध्य अग्नि देव की पूजा करें, जो ऊर्ध्वभाग में घृताहुति द्वारा प्रदीप्त होते हैं। ये हमारे इस आह्वान को सुनें और जानें।[ऋग्वेद 5.14.5]
Hey humans! Worship enlightened deity Agni Dev, who evolve in the front by making offerings of Ghee. Let him listen to our prayers and respond to them.
अग्निं घृतेन वावृधुः स्तोमेभिर्विश्वचर्षणिम्। स्वाधीभिर्वचस्युभिः
ऋत्विक गण घृत और स्तोम द्वारा स्तुत्यभिलाषी और ध्यान गम्य देवों के साथ सर्वद्रष्टा अग्नि देव को संवर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 5.14.6]
The Ritviz-hosts boost Agni Dev, who visualise every thing along with the demigods-deities, who desire worship-prayers and invoked by concentrating in them.(30.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- धरुण, आंगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र वेधसे कवये वेद्याय गिरं भरे यशसे पूर्व्याय।
घृतप्रसत्तो असुरः सुशेवो रायो धर्ता धरुणो वस्वो अग्निः
हवि स्वरूप घृत से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं। वे बलवान्, सुख स्वरूप, धन के अधिपति, हविवार्हक गृहदाता, विधाता, क्रान्तदर्शी, स्तुति योग्य, यशस्वी और श्रेष्ठ हैं। ऐसे अग्निदेव के लिए हम स्तुतियों की रचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.15.1]
Agni Dev become happy with the Ghee as offering. He is Godly, mighty, comfortable, master of riches, grant home-house to one who make offerings, radiant, deserve prayers, glorious-revered and excellent. We compose prayers in the honour of Agni Dev, who possessing such virtues-qualities.
ऋतेन ऋतं धरुणं धारयन्त यज्ञस्य शाके परमे व्योमन्।
दिवो धर्मन्धरुणे सेदुषो नॄञ्जातैरजाताँ अभि ये ननक्षुः
जो याजकगण स्वर्ग के धारक, यज्ञस्थल में आसीन, देवों को ऋत्विकों द्वारा प्राप्त करते हैं, वे याजकगण यज्ञधारक, सत्य स्वरूप अग्नि देव को यज्ञ के लिए उत्तम स्थान में अर्थात् उत्तम वेदी पर स्तोत्र द्वारा धारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.15.2]
The hosts welcome demigods-deities who support heavens, positioned at the Yagy site. They establish Agni Dev at the best site-Vedi, with the help of Strotr.
अंहोयुवस्तन्वस्तन्वते वि वयो महद्दुष्टरं पूर्व्याय।
स संवतो नवजातस्तुतुर्यात्सिंहं न क्रुद्धमभितः परिष्ठुः
जो याजकगण मुख्य अग्नि देव के लिए राक्षसों द्वारा दुष्प्राप्य हवि स्वरूप अन्न प्रदान कर हैं, वे याजकगण निष्पाप कलेवर होते हैं। नवजात अग्नि देव क्रोधित सिंह के तुल्य संगत शत्रुओं को दूर करें। सभी जगह वर्त्तमान शत्रु मुझे छोड़कर दूर में अवस्थिति करें।[ऋग्वेद 5.15.3]
Those hosts-Ritviz who make offerings of food grains for Agni Dev rare for the demons become sinless. Let nascent Agni Dev repel the enemy like an angry lion. Let the current-present enemies settle away from me.
मातेव यद्भरसे पप्रथानो जनञ्जनं धायसे चक्षसे च।
वयोवयो जरसे यद्दधानः परि त्मना विषुरूपो जिगासि
सभी जगह प्रख्यात अग्नि देव जननी के तुल्य निखिल जन को धारित करते हैं। धारित करने के लिए और दर्शन देने के लिए सब लोग उनकी प्रार्थना करते हैं। जब वे धार्यमाण होते हैं, तब वे सब अन्न को जीर्ण कर देते हैं। नानारूप होकर ये सर्वभूतजात का परिगमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.15.4]
निखिल :: अखिल, संपूर्ण, सारा, समस्त; complete, universal.
धार्यमाण :: धैर्यवान; being held, patience.
सर्वत्र प्रसिद्ध अग्नि सभी मनुष्यों को माता के समान धारण करते हैं। सब लोग धारण एवं दर्शन के निमित्त अग्नि की प्रार्थना करते हैं। धार्यमाण होते समय अग्नि सब अन्नों को पका देते हैं एवं नाना रूप होकर स्वयं सब प्राणियों के समीप जाते हैं। 
Famous Agni Dev treat-nurture all human beings as mother, every where. Everyone prays for him for the sake of holding and seeing. At the time of grinding, the he cooks all the grains and in various forms, it goes close to all beings themselves.
Famous every where, Agni Dev support all living beings. Every one seek his support and pray to invoke him. He cooks the food grains on having patience and become close to living beings acquiring various forms. 
वाजो नु ते शवसस्पात्वन्तमुरुं दोघं धरुणं देव रायः।
पदं न तायुर्गुहा दधानो महो राये चितयन्नत्रिमस्पः
हे द्युतिमान् अग्नि देव! पृथु कामनाओं के पूरक और धनधारक हविर्लक्षण अन्न आपके सम्पूर्ण बल की रक्षा करे। चोर जिस प्रकार से गुफा के बीच में छिपाकर चोरी किए हुए धन की रक्षा करता है, उसी प्रकार आप प्रचुर धन लाभ के लिए उत्तम मार्ग को प्रकाशित करें और अत्रि मुनि को प्रसन्न करें। [ऋग्वेद 5.15.5]
Hey radiant-aurous Agni Dev! Let Prathu accomplishing desires, possessor of riches and food grains for the offerings, protect your strength-might. The way a thief protect the stolen wealth and food grains inside the cave, you too guide the best route for abundant riches and please Atri Muni-sage.(31.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- पूरु आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति
बृहद्वयो हि भानवेऽर्चा देवायाग्नये।
यं मित्रं न प्रशस्तिभिर्मर्तासो दधिरे पुरः
याजकगण जिन मित्रभूत अग्नि देव की याजक प्रकृष्ट स्तुतियों द्वारा प्रार्थना करके पुरोभाग में स्थापित करते हैं, उन द्युतिमान् अग्नि देव को महान् हविर्लक्षण अन्न आहुति में दिया जाता है।[ऋग्वेद 5.16.1]
Food grains are offered to friendly radiant Agni Dev, who is worshiped by the Ritviz, hosts, priests in the front-forward section of the Yagy site.
स हि द्युभिर्जनानां होता दक्षस्य बाह्वोः।
वि हव्यमग्निरानुषग्भगो न वारमृण्वति
जो अग्नि देव देवों के लिए हव्य वहन करते हैं, जो बाहुबल की प्रार्थना से युक्त हैं, वे अग्नि देव याजकगणों के लिए देवों का आह्वान करते हैं, वे सूर्य के सदृश मनुष्यों को विशेष रूप से वरणीय धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.16.2]
Agni Dev carries offerings-oblations to the demigods-deities, enabled by the might of worship-prayers and invoke them. He grants riches-wealth to the humans like the Sun.
अस्य स्तोमे मघोनः सख्ये वृद्धशोचिषः।
विश्वा यस्मिन्तुविष्वणि समर्ये शुष्ममादधुः
सभी ऋत्विक् हव्य और स्तोत्र द्वारा जिन बहुशब्द विशिष्ट स्वामी अग्नि देव में बल का आधान भली-भाँति से करते हैं, हम लोग उन्हीं प्रवृद्ध तेज वाले और धनवान् अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं। हम लोग उनके साथ मैत्री करते हैं।[ऋग्वेद 5.16.3]
आधान :: स्थापन, रखना, ग्रहण, लेना, धारण, प्रयत्न, अग्निहोत्र के लिए अग्नि का स्थापन, गर्भ, गर्भाधान से पहले किया जाने वाला संस्कार, रेहन, बंधक रखना, पात्र; transfusion.
All hosts-Ritviz invoke Agni Dev, infuse might-power in him by virtue of offerings & Strotr-sacred hymns properly. We worship radiant, wealthy Agni Dev. We are friendly with him.
अधा ह्यग्न एषां सुवीर्यस्य महना।
तमिद्यह्वं न रोदसी परि श्रवो बभूवतुः
हे अग्नि देव! हम याजकगणों को आप सभी के द्वारा स्पृहणीय बल प्रदान करें। द्यावा-पृथ्वी ने सूर्य के तुल्य श्रवणीय अग्नि देव को परिगृहीत किया।[ऋग्वेद 5.16.4]
स्पृहणीय :: प्राप्त करने योग्य, वांछनीय, स्पृहा के योग्य, चाहने योग्य, ललचाने योग्य, covetable, coveted, enviable, preferable, admirable.
परिगृहीत :: पूरी तरह से ग्रहण करना, धारण करना; accession, received.
Hey Agni Dev! Grant us strength, power & might which is admirable by all. The earth and heavens have invested him with glory like the vast Sun.
नू न एहि वार्यमग्ने गृणान आ भर।
ये वयं ये च सूरयः स्वस्ति धामहे सचोतैधि पृत्सु नो वृधे
हे अग्नि देव! हम याजकगण आपकी प्रार्थना करते हैं। आप शीघ्र ही हमारे यज्ञ में पधारें और हमारे लिए वरणीय धन का सम्पादन करें। हम याजकगण स्तोता आपके लिए प्रार्थना करते हैं। हम लोगों को आप युद्ध में रक्षण साधनों से समृद्धि करें।[ऋग्वेद 5.16.5]
Hey Agni Dev! We Ritviz-hosts worship-pray you. Come quickly in our Yagy and arrange-give necessary money for it. Equip you with the means of protection in the battle-war.(31.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- पूरु आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति
आ यज्ञैर्देव मर्त्य इत्था तव्यांसमूतये।
अग्निं कृते स्वध्वरे पूरुरीळीतावसे
हे देव! ऋत्विक्गण अपने तेज से प्रवृद्ध अग्नि देव को स्तोत्रों द्वारा तृप्त करने के लिए आहूत करते हैं। स्तोतागण यज्ञकाल में रक्षा के लिए अग्निदेव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.17.1]
Hey Dev! The Ritviz make sacrifices, offerings-oblations to satisfy Agni Dev endowed with lustre for protection, by the recitation of Strotr, when the sacred rites are solemnized.
अस्य हि स्वयशस्तर आसा विधर्मन्मन्यसे।
तं नाकं चित्रशोचिषं मन्द्रं परो मनीषया
हे धर्म विशिष्ट स्तोतागण! आपका यश श्रेष्ठ है। आप प्रकृष्ट बुद्धि द्वारा उन्हीं अग्नि देव की वचन से प्रार्थना करें, जो दुःख रहित हैं, जिनका तेज विचित्र है और जो स्तुति योग्य है।[ऋग्वेद 5.17.2]
प्रकृष्ट :: खींचा या निकाला हुआ, उत्तम, श्रेष्ठ, मुख्य, प्रधान, तीव्र, प्रखर  तेज; excellent, intensive.
Hey Ritviz performing specific rites! Your fame-glory is excellent. Worship Agni Dev with your excellent, intensive intelligence, who is free from sorrow-pains, whose radiance is amazing and who deserve worship.
अस्य वासा उ अर्चिषा य आयुक्त तुजा गिरा।
दिवो न यस्य रेतसा बृहच्छोचन्त्यर्चयः
जो अग्नि देव जगद्रक्षण समर्थ बल से और प्रार्थना से युक्त हैं, जो सूर्य के तुल्य द्युतिमान् हैं, जिनकी प्रभा से संसार व्याप्त है, जिन अग्नि देव की बृहती दीप्ति प्रकाशित होती है, उन्हीं अग्नि देव की प्रभा से आदित्य प्रज्ञावान् होते हैं।
[ऋग्वेद 5.17.3]
प्रज्ञावान :: बुद्धिमान, दूरदर्शी, प्राज्ञ;  intelligent, prudent. 
Agni Dev who is associated with worship-prayers, is capable of protecting the universe-world, is radiant-aurous like the Sun, whose lustre is pervades the whole universe, makes the Adity-Sun, prudent-intelligent.
अस्य क्रत्वा विचेतसो दस्मस्य वसु रथ आ।
अधा विश्वासु हव्योऽग्निर्विक्षु प्र शस्यते
सुन्दर बुद्धि वाले ऋत्विक् दर्शनीय अग्नि देव का यज्ञ करके धन और रथ प्राप्त करते हैं। यज्ञार्थ आहूत होने वाले अग्नि देव उत्पन्न होते ही सम्पूर्ण प्रजाओं द्वारा प्रार्थित होते हैं।[ऋग्वेद 5.17.4]
Ritviz blessed with prudence-intelligence perform Yagy devoted to Agni Dev to seek wealth-riches and charoite. As soon Agni Dev is invoked for the Yagy, by making offerings-oblations, he is worshiped by the masses.
नू न इद्धि वार्यमासा सचन्त सूरयः।
ऊर्जा नपादभिष्टये पाहि शग्धि स्वस्तय उतैधि पृत्सु नो वृधे
हे अग्नि देव! हम लोगों को शीघ्र ही वह वरणीय धन प्रदान करें, जिस धन को स्तोता लोग आपकी प्रार्थना करके प्राप्त करते हैं। हे बल पुत्र! हमें अभिलषित अन्न प्रदान करें, हम लोगों की रक्षा करें। हम मंगलकारक पशु आदि की याचना करते हैं। हे अग्नि देव! आप संग्राम में हम लोगों की समृद्धि के लिए सदैव उपस्थित रहें।[ऋग्वेद 5.17.5]
Hey Agni Dev! We should quickly get-attain that wealth for which the Stota worship you. Hey the son of might-power! Grant us desired food grains and protect us. We pray-request you for the auspicious-virtuous cattle. Hey Agni dev! You should always be present with us in the war-battle for our prosperity.(01.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- पूरु आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति
प्रातरग्निः पुरुप्रियो विशः स्तवेतातिथिः।
विश्वानि यो अमर्त्यो हव्या मर्तेषु सायति॥
अग्नि देव बहुप्रिय हैं, याजक गणों के लिए धनदाता हैं और याजक गणों के गृहों में अभिगमन करते हैं। इस प्रकार के अग्नि देव प्रातः काल में प्रार्थित होते हैं। अमरणशील अग्नि देव याजकगणों के बीच में स्थित निखिल हव्य की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 5.18.1]
Agni Dev is popular! He grants money to the Ritviz-hosts and visit their homes. He is worshiped in the morning. Immortal Agni Dev desires a comprehensive Yagy, present amongest the Ritviz.
द्विताय मृक्तवाहसे स्वस्य दक्षस्य मंहना।
इन्दुं स धत्त आनुषक्स्तोता चित्ते अमर्त्य
हे अग्नि देव! अत्रि पुत्र द्वित ऋषि विशुद्ध हव्य वहन करते हैं, आप उन्हें अपना बल प्रदान करें, क्योंकि वे सब काल में आपके लिए सोमरस का आनयन करते हैं और आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.18.2]
आनयन :: ले आना, लाना, उपनयन संस्कार; fetch.
Hey Agni Dev! Dwit Rishi, son of Atri conduct pure, pious, virtuous, righteous Yagy. Grant him strength since he extract-fetch Somras for you in every season & worship you.
तं वो दीर्घायुशोचिषं गिरा हुवे मघोनाम्।
अरिष्टो येषां रथो व्यश्वदावन्नीयते
हे अग्नि देव, हे अश्व दाता ! आप दीर्घगमन दीप्ति वाले है। धनवालों के लिए हम आपका आह्वान, स्तोत्रों द्वारा करते हैं, जिससे उन धनिकों का रथ शत्रुओं द्वारा अहिंसित होकर युद्ध में गमन करे।[ऋग्वेद 5.18.3]
Hey Agni Dev granting horses! You glow for a long time. We invoke you for the rich with the help of Strotr-sacred hymns so that the charoite of the rich is able to move unhurt by the enemies in the war.
चित्रा वा येषु दीधितिरासन्नुक्था पान्ति ये।
स्तीर्णं बर्हिः स्वर्णर श्रवांसि दधिरे परि
जिन ऋत्विकों द्वारा नाना प्रकार से यज्ञ विषयक कार्य सम्पादित होता है, जो मुख द्वारा स्तोत्रों की रक्षा करते हैं, उन ऋत्विकों द्वारा याजक गणों के स्वर्ग प्रापक यज्ञ में विस्तीर्ण कुशों के ऊपर अन्न स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.18.4]
The Ritviz who perform the activities related with the Yagy and protect it with Strotr, food grains are spread over the broad Kush leading the hosts to heavens.
ये मे पञ्चाशतं ददुरश्वानां सधस्तुति।
द्युमदग्ने महि श्रवो बृहत्कृधि मघोनां नृवदमृत नृणाम्
हे अमर अग्नि देव! आपकी प्रार्थना के अनन्तर जो धनदाता मुझे पचास घोड़े प्रदान करता है, आप उन धनवान मनुष्यों को दीप्ति शील परिचारक युक्त महान् अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.18.5]
Hey Immortal Agni Dev! The rich who grant me 50 horses during the prayers, is provided with the servants and ample food grains.(02.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- वव्रि आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्, विरारूपा।
अभ्यवस्थाः प्र जायन्ते प्र वव्रेर्वत्रिश्चिकेत। उपस्थेमातुर्वि चष्टे
जो अग्नि देव माता पृथ्वी के पास स्थित होकर पदार्थ जात को देखते हैं, वे ही अग्नि देव वव्रि ऋषि की अशोभन दशा को जानें और उनके हव्य को ग्रहण कर उसका अपनोदन करें।[ऋग्वेद 5.19.1]
PATHETIC :: दिल को छूनेवाला, दयनीय, निराश, नाउम्मेद; disappointed, frustrated, hopeless, desperate, despondent, pathetic, heart warming, moving, dying, halcyon, low-spirited.
Agni Dev, who visualize-watch every thing closely over the earth, should be aware of the pathetic state-condition of Vavri Rishi. He should accept the offerings and help him.
जुहुरे वि चितयन्तोऽनिमिषं नृम्णं पान्ति। आ दृळ्हां पुरं विविशुः
आपके प्रभाव को जानकर जो लोग यज्ञ के लिए सदा आपका आह्वान करते हैं तथा जो लोग हवि और स्तुतियों के द्वारा आपके बल की रक्षा करते हैं, वे शत्रुओं द्वारा दुर्गम्य पुरी में प्रवेश करते हैं।[ऋग्वेद 5.19.2]
Those who are aware of your impact might-power, invoke you and hold Yagy. Those who protect your power by virtue of offerings-oblations & worship-prayers; enter-penetrate the highly protected cities of the enemies.
आ श्वैत्रेयस्य जन्तवो द्युमद्वर्धन्त कृष्टयः।
निष्कग्रीवो बृहदुक्थ एना मध्वा न वाजयुः
महान् स्तोत्रों का उच्चारण करने वाले अन्नाभिलाषी सुवर्णालङ्कार को गले में धारित करने वाले उत्पन्नशील मनुष्य ऋत्विगादि स्तोत्र द्वारा अन्तरिक्षवर्ती वैद्युत अग्रि देव के दीप्तिमान् बल को वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 5.19.3]
Progressive humans, reciting great-excellent sacred hymns-Strotr, desirous of food grains wearing gold ornaments-jewels in their neck, boost the power-might of radiant Agni Dev as electric spark-electricity in the space.
प्रियं दुग्धं न काम्यमजामि जाम्योः सचा।
धर्मो न वाजजठरोऽदब्धः शश्वतो दभः
पयोमिश्रित हव्य के तुल्य जिन अग्नि देव के जठर में अन्न है, जो स्वयं शत्रुओं द्वारा अहिंसित होकर सदा शत्रुओं के हिंसक हैं, द्यावा-पृथ्वी के सहायभूत वे ही अग्रि देव दुग्ध के तुल्य कमनीय और निर्दोष होकर हमारे स्तोत्र को सुनें।[ऋग्वेद 5.19.4]
Agni Dev who possess food grains in his stomach like offerings mixed with cow products (ghee, milk, curd), remain unharmed by the enemy but is always violent against the enemy, is always ready-willing to help earth & the heavens, should listen to our defectless attractive Strotr.
क्रीळन्नो रश्म आ भुवः सं भस्मना वायुना वेविदानः।
ता अस्य सन्धृषजो न तिग्माः सुसंशिता वक्ष्यो वक्षणेस्थाः
हे प्रदीप्त अग्नि देव! आप अपने द्वारा किए गए भस्म से वन में क्रीड़ा करते हैं। प्रेरक वायु द्वारा भली-भाँति से ज्ञायमान होकर आप हमारे अभिमुख होवें। आपकी शत्रु नाशक ज्वालाएँ हम याजक गणों के निकट सुकोमल हो अर्थात् कष्टकारी न हो।[ऋग्वेद 5.19.5]
Hey ignited-lit Agni Dev! You play with the ash of the forests converted to ashes by you. Inspired by Pawan-Vayu Dev you should be directed to us. Your flames should be soft i.e., trouble free towards us.(03.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- प्रयस्वान् त्रिगण, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
यमग्ने वाजसातम त्वं चिन्मन्यसे रयिम्।
तं नो गीर्भिः श्रवाय्यं देवत्रा पनया युजम्
हे अग्नि देव, हे अत्यन्त अन्न प्रद! हम लोगों द्वारा प्रदत्त जो हवि स्वरूप अन्न आप स्वीकार करते हैं, हम लोगों की स्तुतियों के साथ उसी हव्य रूप धन को आप देवों के निकट ले जावें।[ऋग्वेद 5.20.1]
Hey food grains granting Agni Dev! Carry the offerings-oblations made by us in the form of food grains along with the prayers-worship, to the demigods-deities. 
ये अग्ने नेरयन्ति ते वृद्धा उग्रस्य शवसः।
अप द्वेषो अप ह्वरोऽन्यव्रतस्य सश्चिरे
हे अग्नि देव! जो भी मनुष्य पशु आदि धन से समृद्ध होकर आपको हव्य प्रदान नहीं करता है, वह अन्न या बल से अत्यन्त हीन होता है। जो व्यक्ति वेद से भिन्न अन्य कर्म करता है, वह असुर आपका विरोध भाजन होता है और आपके द्वारा हिंसित होता है।[ऋग्वेद 5.20.2]
Hey Agni Dev! The person who do not make offerings to you, in spite of being blessed with food grains-stuff, cattle, animals & might become too inferior-weak. A demonic person who act against the Ved become your target and is punished-hurt by you.
होतारं त्वा वृणीमहेऽग्ने दक्षस्य साधनम्।
यज्ञेषु पूर्व्यं गिरा प्रयस्वन्तो हवामहे
हे अग्नि देव! आप देवों के आह्वानकर्ता और बल के साधयिता है। हम लोग अन्नवान् आपका वरण करते हैं। यज्ञों में हम श्रेष्ठ अग्नि देव की स्तुति करते हैं।
[ऋग्वेद 5.20.3]
साध्यता :: साध्य होने की अवस्था, गुण या भाव, शक्यता, करणीयता, संभावना, रोग आदि को ठीक किए जाने की स्थिति में होना; practicability, feasibility.
Hey Agni Dev! You are the one who invoke the demigods-deities and the means of strength-power. We the possessors of food grains, adopt you. We worship-pray excellent Agni Dev in the Yagy.
इत्था यथा त ऊतये सहसावन्दिवेदिवे। 
राय ऋताय सुक्रतो गोभिः ष्याम सधमादो वीरैः स्याम सधमादः
हे बलवान् अग्नि देव! हम प्रतिदिन जिससे आपकी रक्षा प्राप्त करें, वैसा करें। हे सुक्रतु! हम लोग जिससे धन लाभ कर सकें और यज्ञ कर सकें, वैसा करें। हम लोग जिससे गौओं को प्राप्त करें और वीर पुत्रों को प्राप्त कर सुखी हों, वैसा ही करें।[ऋग्वेद 5.20.4]
सुक्रतु :: सत्कर्म करने वाला, पुण्यशील, अग्नि, शिव, इन्द्र, सूर्य, सोम, वरुण; performer of righteous, pious, virtuous deeds.
Hey mighty-powerful Agni Dev! Act in such a way that we attain your protection-shield. Hey Sukratu-performer of righteous, pious, virtuous deeds! Act in such a way that we are able to perform Yagy, earn money; have cows & get brave sons.(04.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- सस आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
मनुष्वत्त्वा नि धीमहि मनुष्वत्समिधीमहि।
अग्ने मनुष्वदङ्गिरो देवान्देवयते यज
हे अग्नि देव! मनु के तुल्य हम आपको स्थापित और प्रज्ज्वलित करते हैं। हे अङ्गारात्मक अग्नि देव! देवाभिलाषी मनुष्य याजकगणों के लिए आप देवों का यजन करें।[ऋग्वेद 5.21.1]
Hey Agni Dev! We meditate, upon you; like Manu, we kindle you & worship the demigods-deities on behalf of the worshippers, devout as Manu.
Hey Agni Dev! We establish-ignite you like Manu. Hey Agni Dev, a form of Rishi Angira! Invoke the demigods-deities for the humans who wish to worship-pray them.
त्वं हि मानुषे जनेऽग्ने सुप्रीत इध्यसे।
स्रुचस्त्वा यन्त्यानुषक्सुजात सर्पिरासुते
हे अग्नि देव! स्तोत्रों द्वारा प्रसन्न होकर आप मनुष्यों के लिए दीप्त होते है। हे सुजात! घृत युक्तान्न, हव्य विशिष्ट पात्र आपको निरन्तर प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 5.21.2]
सुजात :: उत्तम कुल में उत्पन्न सुजन्मा, कुलीन, सुंदर; true-born, true-bred, born in a reputed-respected family-clan.
Hey Agni Dev! We lit-illuminate on being happy with the humans. Hey Sujat (born in glorious family)! The special pot filled with food grains mixed with Ghee, is continuously-regularly offered to you.
त्वां विश्वे सजोषसो देवासो दूतमक्रत।
सपर्यन्तस्त्वा कवे यज्ञेषु देवमीळते
हे क्रान्त दर्शी अग्नि देव! प्रसन्न होकर समस्त देवताओं ने आपको दूत बनाया, इसलिए परिचर्या करने वाले याजकगण आपके यज्ञ में देवों को बुलाने के लिए स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 5.21.3]
Hey illuminated-radiant Agni Dev! The demigods-deities appointed you as their ambassador, hence the Ritviz-hosts, pray-worship you for inviting them. 
देवं वो देवयज्ययाग्निमीळीत मर्त्यः।
समिद्धः शुक्र दीदिह्यतस्य योनिमासदः ससस्य योनिमासदः
हे दीप्ति शील अग्नि देव! मनुष्य लोग देव यज्ञ के लिए आपकी प्रार्थना करते हैं। हवि द्वारा प्रवृद्ध होकर आप दीप्त होवें। आप सत्यभूत सृस ऋषि के स्वर्ग साधन यज्ञस्थल में देवरूप से प्रकट हों।[ऋग्वेद 5.21.4]
Hey radiant Agni Dev! The humans always worship you for the Dev Yagy. On making offerings, you should be illuminated. Invoke at the Yagy site of truthful Srasy Rishi as a deity.(05.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- विश्वसामा आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
प्र विश्वसामन्नत्रिवदर्चा पावकशोचिषे।
यो अध्वरेष्वीड्यो होता मन्द्रतमो विशि
हे विश्वसामा ऋषि! आप अत्रि ऋषि के तुल्य शोधक दीप्ति वाले उन अग्नि देव की अर्चना करें, जो यज्ञ में सब ऋत्विकों द्वारा स्तुत्य हैं, देवों के आह्वाता हैं और जो अत्यन्त स्तवनीय हैं।[ऋग्वेद 5.22.1]
Hey Vishwsama Rishi! Pray-worship Agni Dev, who is radiant like Atri Rishi, revered by all the Ritviz in the Yagy, invoke the demigods-deities and highly esteemed-revered.
न्य१ग्निं जातवेदसं दधाता देवमृत्विजम्।
प्र यज्ञ एत्वानुषगद्या देवव्यच स्तमः
हे याजकों! आप सब जातवेदा, द्युतिमान् और यज्ञ कारक अग्नि देव को स्थापित करें, जिससे आज देवों के प्रिय, यज्ञ साधन और हम लोगों के द्वारा दिये गये हव्य को अग्नि देव प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.22.2]
Hey Ritviz-hosts! You should ignite, establish Agni-fire for the Yagy so that Agni Dev dear to the demigods-deities, accomplishing the motive of the Yagy, accepts the offerings.
चिकित्विन्मनसं त्वा देवं मर्तास ऊतये।
वरेणस्य तेऽवस इयानासो अमन्महि
हे दीप्तिशील अग्नि देव! आपका हृदय ज्ञान युक्त है। आप हम लोग रक्षा के लिए हमारे निकट उपस्थित होते हैं। हम मनुष्य सम्भजनीय अग्नि देव को तृप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.22.3]
Hey radiant-illuminate Agni Dev! You are enlightened. You come to us for protecting us. We humans, worship-pray Agni Dev to satisfy him.
अग्ने चिकिद्ध्य१स्य न इदं वचः सहस्य।
तं त्वा सुशिप्र दम्पते स्तोमैर्वर्धन्त्यत्रयो गीर्भिः शुम्भन्त्यत्रयः
हे बल पुत्र अग्नि देव! आप हमारे इस परिचरण स्तवन को जानें। हे सुन्दर हनू नासिका वाले, हे गृहपति! अत्रि के पुत्र स्तोत्रों द्वारा आपको वर्द्धित करते हैं और वचनों द्वारा अलंकृत करते हैं।[ऋग्वेद 5.22.4]
Hey the son of might Agni Dev! Listen-respond to our our prayer. Hey possessor of beautiful chin and nose, Hey Grah Pati! The sons of Atri boost you with Strotr and adore with words.(05.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- धुम्र विश्वचर्षणि, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
अग्ने सहन्तमा भर द्युम्नस्य प्रासहा रयिम्।
विश्वा यश्चर्षणीरभ्या ३ सा वाजेषु सासहत्
हे अग्नि देव! आप मुझ धुम्र ऋषि के लिए एक बलशाली शत्रु विजेता पुत्र प्रदान करें। जो पुत्र स्तोत्रों से युक्त होकर संग्राम में निखिल शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 5.23.1]
Hey Agni Dev! Grant me-Dhumr Rishi, a mighty-powerful son who can win the enemy. Let him become protected by the Strotr and defeat-destroy the enemy.
तमग्ने पृतनाषहं रयिं सहस्व आ भर।
त्वं हि सत्यो अद्भुतो दाता वाजस्य गोमतः
हे बलवान् अग्नि देव! आप सत्य भूत, अद्भुत और गोयुक्त अन्न के दाता है। आप इस तरह का एक पुत्र प्रदत्त करें, जो सेनाओं का पराजित करने में समर्थ हो।[ऋग्वेद 5.23.2]
Hey mighty Agni Dev! You are truthful, amazing and grant food grains along with cows. Grant me a son who can defeat the enemy armies.
विश्वे हि त्वा सजोषसो जनासो वृक्तबर्हिषः।
होतारं सद्मसु प्रियं व्यन्ति वार्या पुरु
हे अग्नि देव! आप देवों के आह्वाता और सभी के प्रियकर है। समान प्रीति वाले और कुशच्छेद करने वाले निखिल ऋत्विक् यज्ञशाला में बहुविध धरणीय धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.23.3]
Hey Agni Dev! You are the invoker of the demigods-deities and dear to every one. We request-pray for the wealth which can be put to various-several uses in the whole Yagy by the Ritviz-hosts, who pierce-clip the Kush grass.
स हि ष्मा विश्वचर्षणिरभिमाति सहो दधे।
अग्न एषु क्षयेष्वा रेवन्नः शुक्र दीदिहि द्युमत्पावक दीदिहि
हे अग्नि देव! लोक प्रसिद्ध विश्व चर्षिणि ऋषि शत्रुओं के हिंसक बल को धारित करें। हे द्युतिमान्! आप हमारे घर में धनयुक्त प्रकाश करें। हे पापशोधक अग्निदेव! आप दीप्तियुक्त और यशोयुक्त होकर दीप्यमान् होवें।[ऋग्वेद 5.23.4]
Hey Agni Dev! Let Charshini Rishi famous all over the whole world, bear-block the violent force-strength of the enemy. Hey radiant-aurous! Lit-illuminate our house with wealth. Hey cleanser of sins Agni Dev! You should be illuminated and have fame.(06.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- बन्धु सुबन्धु, देवता :- अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
अग्ने त्वं नो अन्तम उत त्राता शिवो भवा वरूथ्यः
हे अग्निदेव! आप सम्भजनीय, रक्षक और सुखकर है। आप हमारे निकट पधारें।[ऋग्वेद 5.24.1]
सम्भजनीय :: एक साथ प्रार्थित; to be shared in or enjoyed or liked.
Hey Agni Dev! You are worshiped together, protector and blissful-comfortable. You should be close to us.
वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमं रयिं दाः
हे गृहदाता और अन्न दाता! आप हम लोगों के प्रति अनुकूल होकर अतिशय दीप्तिशील पशु स्वरूप धन हम लोगों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.24.2]
Hey provider of house and food grains! You should be favourable to us and grant us extremely radiant-useful cattle and wealth to us.
स नो बोधि श्रुधी हवमुरुष्या णो अघायतः समस्मात्
हे अग्नि देव! हम लोगों को आप जानें। हम लोगों के आह्वान को श्रवण करें। समस्त पापाचारियों से हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.24.3]
Hey Agni Dev! Recognise-identify us. Respond to our prayers-invocation. Protect us from all the sinners.
तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः॥
हे अपने तेज से प्रदीप्त अग्नि देव! हम लोग सुख के लिए और पुत्र के लिए आपसे याचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.24.4]
Brightened with your own aura, hey Agni Dev! We worship-pray, request you for comforts, bliss and sons.(06.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- वसूयू आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्।
अच्छा वो अग्निमवसे देवं गासि स नो वसुः।
रासत्पुत्र ऋषूणामृतावा पर्षति द्विषः
हे वसूयू ऋषियों! रक्षा के लिए आप लोग अग्नि देव का स्तवन करें। अग्निहोत्र के लिए याजक गणों के घर में रहने वाले अग्नि  देव हम लोगों की कामना पूर्ण करें। ऋषियों के पुत्र सत्यवान् अग्नि देव हम लोगों की शत्रुओं से रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.25.1]
Hey Basusu Rishis! Worship-pray to Agni dev for protection. Let Agni Dev present in the homes of the hosts, fulfil their desires. Let the son of Rishis truthful Agni Dev protect us from the enemies.
स हि सत्यो यं पूर्वे चिद्देवासश्चिद्यमीधिरे।
होतारं मन्द्रजिह्वमित्सुदीतिभिर्विभावसुम्
पूर्ववर्ती महर्षियों और देवताओं ने जिन अग्नि देव को प्रज्ज्वलित किया, जो अग्नि देव मोदन जिह्वा, शोभन दीप्ति से युक्त, अतिशय प्रभावान् और देवों के आह्वाता है, वे अग्नि देव सत्य संकल्पों से अटल हैं।[ऋग्वेद 5.25.2]
मोदन :: प्रसन्न होना, बात-चीत, हँसी-मजाक, खेल-तमाशे आदि के द्वारा मन का बहलना तथा चित्त-वृत्तियों का प्रफुल्लित होना, सुगन्ध फैलाना, मोद उत्पन्न करनेवाला, हँसी मज़ाक करना।
Rejoicing-bright-tongued Agni Dev who is ignited-kindled by the ancient Rishis and demigods-deities, brilliant, enlightened and invoker of demigods-deities is firm & determined.
स नो धीती वरिष्ठया श्रेष्ठया च सुमत्या।
अग्ने रायो दिदीहि नः सुवृक्तिभिर्वरेण्य
हे स्तुतियों द्वारा स्तूयमान और वरणीय अग्नि देव! आप हम लोगों के अतिशय प्रशस्य और अत्यन्त श्रेष्ठ परिचरणात्मक कर्म से और स्तोत्र से प्रसन्न होकर हम लोगों को धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.25.3]
प्रशस्य :: प्रंशसा के योग्य, प्रशंसनीय, श्रेष्ठ, उत्तम; praiseworthy, excellent.
Hey praise worthy, desirable worshiped with Stuti-sacred hymns, Agni Dev! Be happy with our excellent endeavours, serving others, Stuti-Strotr and grant us wealth.
अग्निर्देवेषु राजत्यग्निर्मर्तेष्वाविशन्।
अग्निर्नो हव्यवाहनोऽग्निं धीभिः सपर्यत
जो अग्नि देव देवों के बीच में देव रूप से प्रकाशित होते हैं, जो मनुष्यों के बीच आहवनीय रूप से प्रविष्ट होते हैं और जो हम लोगों के यज्ञों में देवता के लिए हव्य वहन करते हैं, हे यजमानों! स्तुतियों द्वारा आप लोग उन अग्नि देव की सेवा करें।[ऋग्वेद 5.25.4]
Agni Dev appear as a demigod amongest the demigods-deities, invoked by the humans, carry offerings to the demigods-deities, in our Yagy. Hey Ritviz, priests, hosts! Serve Agni Dev with the Strotr-prayers.
अग्निस्तुविश्रवस्तमं तुविब्रह्माणमुत्तमम्।
अतूर्तं श्रावयत्पतिं पुत्रं ददाति दाशुषे
हविदाता यजमानों को अग्नि देव एक ऐसा पुत्र प्रदान करें, जो बहुविध अन्नों से युक्त, बहुत स्तोत्र वाला उत्तम शत्रुओं द्वारा अहिंसित और अपने कर्म से पिता-पितामह आदि के यश को संसार में प्रख्यात करने वाला हो।[ऋग्वेद 5.25.5]
Let Agni Dev grant such a son to the Ritviz, who should possess various kinds of food grains, recite many Strotr, unharmed by the enemies and bringing good name-good will, glory for his father & forefathers,
अग्निर्ददाति सत्पतिं सासाह यो युधा नृभिः।
अग्निरत्यं रघुष्यदं जेतारमपराजितम्
अग्नि देव हम लोगों को उस तरह का पुत्र प्रदान करें, जो सत्य का पालन करने वाला हो और अपने परिजनों के साथ युद्ध में शत्रुओं को पराजित करने वाला हो इसके साथ ही हमें द्रुत वेग वाला और शत्रुओं को जीतने वाला अश्व भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.25.6]
Let Agni Dev grant us a truthful son, capable of defeating the enemies with friends & relatives, along with a fast running horse.
यद्वाहिष्ठं तदग्नये बृहदर्च विभावसो।
महिषीव त्वद्रयिस्त्वद्वाजा उदीरते
जो श्रेष्ठतम स्तोत्र हैं, उससे अग्नि देव के लिए स्तुति की। हे तेजोधन अग्नि देव! हम लोगों को बहुत धन प्रदान करें; क्योंकि आपसे महान् धन उत्पन्न हुए हैं और निखिल अन्न भी आपसे हैं।[ऋग्वेद 5.25.7]
We should worship-pray Agni Dev with best compositions-prayers. Hey radiant Agni Dev! Grant us a lot of wealth since extreme-ultimate wealth has evolved out of you.  Give us lots of food grains.
तव द्युमन्तो अर्चयो ग्रावेवोच्यते बृहत्।
उतो ते तन्यतुर्यथा स्वानो अर्त त्मना दिवः
हे अग्नि देव! आपकी शिखाएँ दीप्तिमती हैं। आप सोमलता पोषक पाषाण के सदृश महान् कहे जाते हैं। आप द्युतिमान् हैं। आप बादलों की गर्जना के सदृश्य शब्द से युक्त हैं।[ऋग्वेद 5.25.8]
Hey Agni Dev! Your flames are radiant-brilliant. You nourish-nurture Som Lata and termed-considered as strong as a rock. You possess roar like the clouds.
एवाँ अग्निं वसूयवः सहसानं ववन्दिम।
स नो विश्वा अति द्विषः पर्षन्नावेव सुक्रतुः
इस प्रकार से हम बलवान् अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं। शोभनकर्ता अग्नि देव हम लोगों को समस्त शत्रुओं से उसी प्रकार पार करें, जिस प्रकार से नौका द्वारा नदी पार की जाती है।[ऋग्वेद 5.25.9]
We worship-pray Agni Dev, like this. Agni Dev preforming excellent-glorious deeds should swim-protect us from the enemies just as the river is crossed in a boat.(07.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- वसूयू आत्रेय, देवता :- अग्नि, विश्वेदेवा, छन्द :- गायत्री।
अग्ने पावक रोचिषा मन्द्रया देव जिह्वया। आ देवान्वक्षि यक्षि च
हे शोधक और द्युतिमान् अग्नि देव! आप अपनी दीप्ति से और देवताओं को प्रसन्न करने वाली जिह्वा से यज्ञ में देवताओं को आमन्त्रित करें और उनका यजन करें।[ऋग्वेद 5.26.1]
Hey purifying-cleansing & radiant Agni Dev! Invite-invoke demigods-deities with your brightness and pleasing tongue and organise Yagy for them.
तं त्वा घृतस्नवीमहे चित्रभानो स्वर्दृशम्। देवाँ आ वीतये वह
हे घृतोत्पन्न और हे बहुविध रश्मि वाले अग्नि देव! आप सर्वद्रष्टा हैं। हम लोग आपसे याचना करते हैं कि हव्य भक्षण के लिए आप देवों को यहाँ बुलावें।[ऋग्वेद 5.26.2]
Hey Agni Dev evolved by Ghee and possessing several rays! You are aware of every thing. You request-pray you to invite demigods for eating-accepting offerings here.
वीतिहोत्रं त्वा कवे द्युमन्तं समिधीमहि। अग्ने बृहन्तमध्वरे
हे ज्ञान सम्पन्न अग्नि देव! आप हव्य-भक्षणशील, दीप्तिमान् और महान् है। हम लोग आपको यज्ञस्थल में प्रज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 5.26.3]
Hey enlightened Agni Dev! You eat the oblations-offerings, radiant-aurous and great. We ignite-invoke at the Yagy site.
अग्ने विश्वेभिरा गहि देवेभिर्हव्यदातये। होतारं त्वा वृणीमहे
हे अग्नि देव! सब देवताओं के साथ आप हव्यदाता याजक गण के यज्ञ में उपस्थित होवें । आप देवों के आह्वानकारी हैं। हम लोग आपसे प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.26.4]
Hey Agni Dev! You should come to the Yagy of the hosts making offerings, along with the demigods-deities. You are the invoker of demigods-deities. We pray-worship you.
याजकगणाय सुन्वत आग्ने सुवीर्यंवह। देवैरा सत्सि बर्हिषि
हे अग्नि देव! अभिषव करने वाले याजकगण को आप शोभन बल प्रदान करें एवं देवों के साथ कुशाओं पर विराजित हों।[ऋग्वेद 5.26.5]
अभिषव :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, यज्ञ, शराब चुआना, आसवन, काँजी; religious bathing, ablution preparatory to religious rites.
Hey Agni Dev! Grant extreme power-might to the Ritviz who takes bath prior to performing Yagy and occupy the Kush seat-mats along with the demigods-deities.
समिधानः सहस्रजिदग्ने धर्माणि पुष्यसि। देवानां दूत उक्थ्यः
हे सहस्रों को जीतने वाले अग्नि देव! हवि द्वारा प्रज्वलित होकर, प्रशस्यमान होकर और देवों के दूत होकर आप हम लोगों के यज्ञकर्म का पोषण करते हैं।[ऋग्वेद 5.26.6]
Hey winner of hundreds, Agni Dev! Ignited by the oblations, admired and being the ambassador of the deities-demigods, you support-nurture the Yagy.
न्य१ग्निं जातवेदसं होत्रवाहं यविष्ठ्यम्। दधाता देवमृत्विजम्
हे याजकों! आप लोग अग्नि देव को संस्थापित करें। वे भूतजात को जानने वाले, यज्ञ के प्रापक, युवतम द्युतिमान् और ऋत्विक् हैं।[ऋग्वेद 5.26.7]
Hey Ritviz-hosts! Establish-invoke Agni Dev. He is aware of the past, supporter of the Yagy, youngest, radiant and a Ritviz.
प्र यज्ञ एत्वानुषगद्या देवव्यचस्तमः। स्तृणीत बर्हिरासदे 
तेजस्वी स्तोताओं द्वारा प्रदत्त हविष्यान्न आज देवताओं के निकट निरन्तर गमन करें। हे ऋत्विक्! आप अग्नि देव के बैठने के लिए कुश बिछावें।[ऋग्वेद 5.26.8]
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलहप्रिय majestic, stunning, rattling, fiery, full of aura-brightness.
Let the food grains-offerings made by the majestic Stota, move to the demigods-deities regularly. Hey Ritviz! Spread the Kush mat for seating Agni Dev.
एदं मरुतो अश्विना मित्रः सीदन्तु वरुणः। देवासः सर्वया विशा॥
मरुद्गण, देवभिषक अश्विनीकुमार, सूर्य, वरुण आदि देव अपने परिजनों के साथ कुश पर अधिष्ठित हों।[ऋग्वेद 5.26.9]
Let Marud Gan, Ashwani Kumars, Sun, Varun & other demigods-deities sit over the Kush mat along with their friends & relatives.(09.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- त्रैवृष्ण, त्र्यरुण, पुरु, कुत्स, अश्वमेध, देवता :- अग्नि,  इन्द्राग्री, छन्द :- त्रिष्टुप, अनुष्टुप्।
अनस्वन्ता सत्पतिर्मामहे मे गावा चेतिष्ठो असुरो मघोनः।
त्रैवृष्णो अग्ने दशभिः सहस्त्रैर्वैश्वानर त्र्यरुणश्चिकेत
हे मनुष्यों के नेता अग्नि देव! आप साधुओं के पालक, ज्ञान सम्पन्न, बलवान् और धनवान् है। त्रिवृष्ण के पुत्र त्र्यरुण नामक राजर्षि ने शकट संयुत दो वृषभ और दस सहस्र सुवर्ण मुद्राएँ मुझे प्रदान करके ख्याति प्राप्त की अर्थात् उसी दान के कारण सब लोगों ने उन्हें जाना।[ऋग्वेद 5.27.1]
Hey leader of the humans, Agni Dev! You are the nurturer of sages-ascetics, enlightened, mighty-powerful and rich. Trivrashn's son Raj Rishi Trayrun granted me a cart deploying two oxen and ten thousand gold coins, earning great name, fame-glory, the reason due to which public recognised him.
यो मे शता च विंशतिं च गोनां हरी च युक्ता सुधुरा ददाति।
वैश्वानर सुष्टुतो वावृधानोऽग्ने यच्छ त्र्यरुणाय शर्म
जिस त्र्यरुण ने मुझे सौ सुवर्ण मुद्राएँ, बीस गौएँ और रथ से युक्त भार वहन करने वाले दो अश्व दिये, हे वैश्वानर अग्निदेव! हम लोगों के द्वारा प्रार्थित होकर और हवि द्वारा वर्द्धमान होकर आप उस त्र्यरुण को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.27.2]
Hey Vaeshwanar Agni Dev! On being requested-worshiped and grown by the offerings by us, grant comforts to Trayvarn who gave me hundred gold coins, twenty cows and a charoite deploying two horses, full of useful commodities.. 
एवा ते अग्ने सुमतिं चकानो नविष्ठाय नवमं त्रसदस्युः।
यो मे गिरस्तुविजातस्य पूर्वीर्युक्तेनाभि त्र्यरुणो गृणाति
हे अग्नि देव! हम बहुत सन्तान वालों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर त्र्यरुण ने जैसे हमसे कहा, “यह ग्रहण करें, यह ग्रहण करें"। हे स्तुति योग्य अग्नि देव! उसी प्रकार आपकी प्रार्थना कामना करने वाले त्रसदस्यु ने भी मुझसे प्रार्थना की “यह ग्रहण करें, यह ग्रहण करें"[ऋग्वेद 5.27.3]
Hey Agni Dev! Trayrun became happy with us, having many children and said "accept this, accept this". Hey Agni Dev deserving worship! On these lines, Trasdasyu too worshiped you & requested me, "accept this, accept this". 
यो म इति प्रवोचत्यश्वमेधाय सूरये।
दददृचा सनिं यते ददन्मेधामृतायते
हे अग्नि देव! जब कोई भिक्षाभिलाषी आपकी प्रार्थना के साथ, धनदाता राजर्षि अश्वमेघ के निकट जाकर कहता है कि "हमें धन दें", तब वे उस याचक को धन देते हैं। हे अग्नि देव! यज्ञ की इच्छा करने वाले को अश्वमेध यज्ञ करने की बुद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.27.4]
Hey Agni Dev! When someone desirous of alms worship you, goes to Rajrishi and pray him to donate him wealth, then Rajrishi grant him riches. Hey Agni Dev! Inspire one desirous of conducting Yagy to resort to Ashwmedh Yagy.
यस्य मा परुषाः शतमुद्धर्षयन्त्युक्षणः।
अश्वमेधस्य दानाः सोमाइव त्र्याशिरः
राजर्षि अश्वमेध द्वारा प्रदत्त अभिलाषाओं के पूरक सौ बैलों ने हमें हर्षित किया। हे अग्निदेव! दही, सत्तू और दूध आदि तीन द्रव्यों के मिश्रित सोम के समान वे बैल आपको आनन्दित करें।[ऋग्वेद 5.27.5]
Hundred oxen granted by Rajrishi Ashwmedh accomplishing desires have filled us with happiness. Hey Agni Dev! Let the bulls please you like Somras, just as the curd, roasted gram & barley and milk etc. pleases you.
इन्द्राग्नी शतदाव्यश्वमेधे सुवीर्यम्।
क्षत्रं धारयतं बृहद्दिवि सूर्यमिवाजरम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप दोनों याचकों के लिए अपरिमित धन के दाता राजर्षि अश्वमेध को अन्तरिक्ष स्थित सूर्य की तरह शोभन बल के साथ महान् और अक्षय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.27.6]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Both of you grant-bestow upon unlimited wealth to Rajrishi Ashwmedh, like the glorious Sun in the space; for the needy.(11.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- विश्र्वारात्रेयी, देवता :- अग्निछन्द :- जगती आदि।
समिद्धो अग्निर्दिवि शोचिरश्रेत्प्रत्यङ्ङ्गषसमुर्विया वि भाति।
एति प्राची विश्ववारा नमोभिर्देवाँ ईळाना हविषा घृताची
सम्यक् प्रकार से दीप्त अग्नि देव द्युतिमान् अन्तरिक्ष में तेज को प्रकाशित करते हैं और उषा के अभिमुख विस्तृत होकर विशेष शोभा पाते हैं। इन्द्रादि देवताओं का स्तवन करती हुई और पुरोडाश आदि से युक्त स्रुक को लेकर विश्व धारा पूर्व की ओर मुँह करके अग्नि देव के अभिमुख गमन करती है।[ऋग्वेद 5.28.1]
Properly lit Agni Dev fill the space with his aura and is glorified facing Usha-dawn. Vishw Dhara moves to east facing Agni Dev, praying Indr Dev & other demigods-deities, possessing Purodas in the Struk.
समिध्यमानो अमृतस्य राजसि हविष्कृण्वन्तं सचसे स्वस्तये।
विश्वं स धत्ते द्रविणं यमिन्वस्यातिथ्यमग्ने नि च धत्त इत्पुरः
हे अग्नि देव! आप भली-भाँति से प्रज्वलित होकर उदक के ऊपर प्रभुत्व करते हैं और हव्यदाता याजकगण द्वारा मङ्गलार्थ सेवित होते है। आप जिस याजकगण के निकट गमन करते हैं, वह पशु आदि समस्त धन को धारित करता है। हे अग्नि देव! आपके आतिथ्य योग्य हव्य को वह याजकगण आपके सम्मुख स्थापित करता है।[ऋग्वेद 5.28.2] 
Hey Agni Dev! You ignite-glow properly, command water & served by the Ritviz-host making offerings for his welfare. The host in your proximity attain cattle-animals and wealth. Hey Agni Dev! The host place the offerings-oblations suitable to welcome you, in front of you.
अग्ने शर्ध महते सौभगाय तव द्युम्नान्युत्तमानि सन्तु।
सं जास्पत्यं सुयममा कृणुष्व शत्रूयतामभि तिष्ठा महांसि
हे अग्नि देव! आप हम लोगों के प्रभूत ऐश्वर्य के लिए और शोभन धन के लिए शत्रुओं का दमन करें। आपका धन या तेज उत्कृष्ट हों। हे अग्नि देव! आप दाम्पत्य कार्य को अच्छी तरह से सुनियमित करें और शत्रुओं के तेज को नष्ट करें।[ऋग्वेद 5.28.3]
Hey Agni Dev! Destroy the enemy for our grandeur and excellent wealth. Your aura and riches are excellent. Hey Agni dev! Ensure & regularise the married life, destroy the power-might of the enemy. 
समिद्धस्य प्रमहसोऽग्ने वन्दे तव श्रियम्।
वृषभो द्युम्नवाँ असि समध्वरेष्विध्यसे
हे अग्नि देव! जब आप प्रज्वलित और दीप्तिमान् होते हैं, तब हम याजकगण आपकी दीप्ति का स्तवन करते हैं। आप कामनाओं के पूरक, धनवान् और यज्ञस्थल में भली-भाँति से दीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 5.28.4]
Hey Agni Dev! We worship your aura-glow when you are lit. You accomplish desires, wealthy and glow properly at the Yagy site.
समिद्धो अग्न आहुत देवान्यक्षि स्वध्वर। त्वं हि हव्यवाळसि
हे अग्नि देव! याजकगणों द्वारा आहूत, शोभन यज्ञ वाले, भली-भाँति से दीप्त होकर आप इन्द्रादि देवों का यजन करें; क्योंकि आप हव्य का वहन करते हैं।[ऋग्वेद 5.28.5]
Hey Agni Dev! Worshiped by the Ritviz-priests in the Yagy, glow properly, pray to the demigods-deities since you support the Yagy.
आ जुहोता दुवस्यताग्निं प्रयत्यध्वरे। वृणीध्वं हव्यवाहनम्
हे ऋत्विक्! आप लोग हमारे यज्ञ में प्रवृत्त होकर हव्य वाहक अग्नि में हवन करें और उनका परिचरण तथा सम्भजन-स्वीकार करें एवं देवताओं के निकट हव्यवहनार्थ उनका वरण करें।[ऋग्वेद 5.28.6] 
Hey Ritviz! You should be engaged in the Yagy and conduct Hawan in the fire, regulate it, accept Agni Dev for making offerings to the demigods-deities.(12.06.2023)
भद्रमिदं रुशमा अग्ने अक्रन्गवां चत्वारि ददतः सहस्रा। 
ॠणंचयस्य प्रयता मघानि प्रत्यग्रभीष्म नृतमस्य नृणाम्
हे अग्नि देव! ऋणञ्चय राजा के किंकर रुशम देश वासियों ने मुझे चार हजार गौएँ देकर कल्याण कारक कर्म किया। नेताओं के बीच श्रेष्ठ नेता ऋणञ्चय राजा द्वारा प्रदत्त गौरूप रत्नों को मैंने ग्रहण किया।[ऋग्वेद 5.30.12]
Hey Agni Dev! King Rinachy's citizens of Kinkar country gave me four thousand cows as a welfare measure. I accepted cows amongest the best leaders like jewels.
सुपेशसं माव सृजन्त्यस्तं गवां सहस्त्रै रुशमासो अग्ने।
तीव्रा इन्द्रमममन्दुः सुतासोऽक्तोर्व्युष्टौ परितक्म्यायाः
हे अग्नि देव! ऋणञ्चय राजा के किंकर रुशम देश वासियों ने मुझे अलंकार और आच्छादन आदि से सुसज्जित घर तथा हजारों गौएँ दी। रात्रि के बीतने पर अर्थात् उषाकाल में सरस सोम ने इन्द्र देव को प्रसन्न किया। (गौओं को पाकर बभ्रु ने तुरन्त ही इन्द्र देव को सोमरस पिलाया)।[ऋग्वेद 5.30.13]
Hey Agni Dev! The residents-citizens of country Rusham King Rinachay decorated me, gave a house and thousands of cows. In the morning Indr Dev drunk Somras and became amused-happy.
चतुः सहस्रं गव्यस्य पश्वः प्रत्यग्रभीष्म रुशमेष्वग्ने।
घर्मश्चित्तप्तः प्रवृजे य आसीदयस्मयस्तम्वादाम विप्राः
हे अग्नि देव! हमने रुशम देशवासियों से चार हजार गौएँ प्राप्त की। हम मेधावी हैं। यज्ञ के लिए महावीर के तुल्य सन्तप्त सुवर्ण कलश को हमने रुशम देश वासियों से दूध दूहने के लिए प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.30.15]
Hey Agni Dev! We the inhabitants of the country Rusham got four thousand cows. We obtained a golden pot comparable to Mahavir, for milking cows for the Yagy.
आ नो महीमरमतिं सजोषा ग्नां देवीं नमसा रातहव्याम्।
मधोर्मदाय बृहतीमृतज्ञामाग्ने वह पथिभिर्देवयानैः॥
हे अग्नि देव! आप हम लोगों के साथ प्रीयमाण होकर मधुर सोमपान से प्रहर्षित होने के लिए देव गन्तव्य मार्ग द्वारा गुना देवी को हम लोगों के निकट लावें। वह बलशालिनी देवी सभी जगह गमन करें और समस्त यज्ञ को जानें। हम स्तोत्रों के साथ उस देवी को हव्य समर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 5.43.6]
Hey Agni Dev! Please bring Guna Devi to us happily, to be pleased by drinking Somras. Let that mighty goddess move all around and recognise our Yagy. We make offerings to her reciting Strotr.
आ नामभिर्मरुतो वक्षि विश्वाना रूपेभिर्जातवेदो हुवानः।
यज्ञं गिरो जरितुः सुष्टुतिं च विश्वे गन्त मरुतो विश्व ऊती
हे उत्पन्न मात्र को जानने वाले अग्नि देव! हम लोगों के द्वारा आवाहित होकर आप विविध (इन्द्र देव, वरुण आदि) नामधारी और विभिन्नाकृति निखिल मरुतों का यज्ञ में वहन करते है। हे मरुतों! आप सब रक्षा के साथ याजकगण के यज्ञ में शोभन फलवाली प्रार्थना में और पूजा में पधारें।[ऋग्वेद 5.43.10]
Hey Agni Dev, knowing the born-created! On being invited-invoked by us you support Marud Gan in the Yagy. Hey Marudu Gan! All of you should come-join the Yagy, associated with attractive rewarding prayers and Pooja.
आ धर्णसिर्बृहद्दिवो रराणो विश्वेभिर्गन्त्वोमभिर्हुवानः।
ग्ना वसान ओषधीरमृधस्त्रिधातुशृङ्गो वृषभो वयोधाः
अग्नि देव सभी को धारित करते है। वे अत्यन्त दीप्तिशाली, अभीष्टवर्षी तथा शिखा और औषधि समूह द्वारा आच्छादित हैं। वे अप्रतिहत गति और त्रिविध शृङ्ग विशिष्टि (लोहित, शुक्ल और कृष्णवर्ण की ज्वालाओं से व्याप्त) हैं। वे वषर्ण कारी और अन्न दाता हैं। हम लोग उनका आह्वान करते हैं। वे सम्पूर्ण रक्षा के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.43.13]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; dynamic, continuous.
Agni Dev support all. He is extremely radiant, accomplish desires and is covered by hair lock and the group of medicines (herbs). He is covered with unstoppable speed with three horns-peaks having red, white and black flames. He causes-leads to rains and grant food grains. Let him arrive here for our complete defence.
अत्यं हविः सचते सच धातु चारिष्टगातुः स होता सहोभरिः।
प्रसर्स्राणो अनु बर्हिर्वृषा शिशुर्मध्ये युवाजरो विस्रुहा हितः
अग्नि देव नित्य, फल साधक और विश्व धारक हव्य को सदैव वहन करते हैं। अग्नि देव अप्रतिहत गति, होम निर्वाहक और बल विधायक हैं। वे विशेषत: कुश के ऊपर बैठकर गमन करते हैं। फल वर्षणकारी, शिशु, युवा, वृद्धावस्था से रहित और औषधियों के मध्य स्थित है।[ऋग्वेद 5.44.3]
Agni Dev is for ever, grant rewards every day-regularly, carry the oblations-offerings for supporting the world. His movements are non stop able, support the house-home and strengthening. He occupy the Mat while travelling-moving. Grants the desires. He is free from childhood, youth and old age & established amongest the medicines.
सञ्जर्भुराणस्तरुभिः सुतेगृभं वयाकिनं चित्तगर्भासु सुस्वरुः।
धारवाकेष्वृजुगाथ शोभसे वर्धस्व पत्नीरभि जीवो अध्वरे
हे अग्नि देव! आपका स्तोत्र अत्यन्त मनोहर है। जब निःसृत सोमरस काष्ठमय पात्र में गृहीत होता है और आप उस सोमरस को ग्रहण करके मनोहर स्तोत्र को सुनकर हर्षित होते हैं, तब उपासकों के बीच में आपकी विशेष शोभा होती है। हे जीवन दाता! यज्ञ में आप रक्षण करने वाली शिखा को सभी जगह वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 5.44.5]
शोभा :: सौंदर्य, शोभा, सौम्यता, सौष्ठव, चमक, द्युति, आभा, आलोक, तेज, महिमा, प्रताप, प्रतिष्ठा, गर्व, यश, सुंदरता, चमक, कांति; glory, beauty, grace, lustre.
Hey Agni Dev! Your Strotr-prayer touches-reaches the heart. When the extracted Somras is stored in the wooden pot, you accept it and become happy listening to the pleasing-amusing Strotr-sacred hymns. At this moment you have a glorious-beautiful look. Hey life sustaining! Spread your life sustaining flames all around.
ज्यायांसमस्य यतुनस्य केतुन ऋषिस्वरं चरति यासु नाम ते।
यादृश्मिन्धायि तमपस्यया विदद्य उ स्वयं वहते सो अरं करत्
हे देव श्रेष्ठ सूर्य देव या अग्नि देव! याजकगण आपके निकट आगमन करते हैं। आप उदयादि लक्षण द्वारा परिज्ञात होते हैं। ऋषि लोग आपका स्तवन करते हैं, जिससे आपका नाम वर्द्धित होता है। वे जिस वस्तु की कामना करते हैं, कार्य द्वारा उसे प्राप्त करते हैं और जो अपनी इच्छा से पूजा करते हैं, वे प्रचुर पुरस्कार प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.8]
Hey deity Sury Dev/Agni Dev! The Ritviz move closer to you. You are recognised with dawn. The Rishi-sages worship-recite hymns in your favour to prolong your name. They attain the desired commodities by virtue of their endeavours.  Those who worship you of their own, get plenty of rewards.
यो जागार तमृचः कामयन्ते यो जागार तमु सामानि यन्ति।
यो जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः
जो देवता सर्वदा गृह में जागृत रहते हैं, ऋचाएँ उनकी कामना करती हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, स्तोत्रादि उन्हें प्राप्त करते हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, उनसे यह अभिषुत सोम कहें कि "हमें स्वीकार करें। हे अग्निदेव! हम आपके नियत स्थान में सहवास करें"।[ऋग्वेद 5.44.14]
Sacred-holy hymns desires for the demigods-deities who are always awake. Sacred hymns-verses are obtained by those demigods-deities who are always awake. Extracted Somras should ask the awake demigods-deities that it was acceptable to them. Hey Agni Dev! Let us stay at your abode.
अग्निर्जागार तमृचः कामयन्तेऽग्निर्जागार तमु सामानि यन्ति।
अग्निर्जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः
जो देवता सर्वदा गृह में जागृत रहते हैं, ऋचाएँ उनकी कामना करती हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, स्तोत्रादि उन्हें प्राप्त करतें हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, उनसे यह अभिषुत सोम कहें कि "हमें स्वीकार करें। हे अग्नि देव! हम आपके नियत स्थान में सहवास करें।[ऋग्वेद 5.44.15]
हे मनुष्यो! जो अग्नि के सदृश जागृत होता है, उसकी प्रशंसित बुद्धि वाले विद्यार्थी गण कामना करते हैं और जो अग्नि के सदृश वर्त्तमान जागृत होता है उसको भी सामवेद में कहे हुए विज्ञान प्राप्त होते हैं। अग्नि के सदृश वर्तमान जागृत होता है, उसको यह निश्चित स्थान युक्त सोमविद्या और ऐश्वर्य्य की इच्छा करने वाला, "आपकी मित्रता में मैं हूँ" ऐसा कहता है।
Hey humans! One who is awake like the fire, is desired by the intelligent student-scholar. One who is presently awake like the fire, too gets the sciences explained in Sam Ved. One who is awake-alert like fire-Agni Dev & desires of a pre determined abode  along with Som Vidya (Ved); should say that I am friendly with you.
सूक्तेभिर्वो वचोभिर्देवजुष्टैरिन्द्रा न्व १ ग्नी अवसे हुवध्यै।
उक्थेभिर्हि ष्मा कवयः सुयज्ञा आविवासन्तो मरुतो यजन्ति
हे इन्द्र देव, हे अग्नि देव! हम रक्षा के लिए देवों के द्वारा सेवनीय उत्कृष्ट स्तोत्रों से आप दोनों का आह्वान करते हैं। उत्तम प्रकार से यज्ञ करने वाले मरुतों के सदृश कर्म तत्पर परिचरण करने वाले ज्ञानी लोग स्तोत्रों द्वारा आप दोनों की पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 5.45.4]
सेवनीय :: सेवन करने के योग्य, आराध्य, पूज्य; edible.
Hey Indr Dev & Agni Dev! We invoke you with the recitation of best Strotr-sacred hymns, liked-admired by the demigods-deities for our safety. The quickly moving enlightened people, worship-pray with the recitation of Strotr like the Marud Gan, who perform the Yagy in best possible manner.
अग्ने सुतस्य पीतये विश्वैरूमेभिरा गहि देवेभिर्हव्यदातये
हे अग्नि देव! आप सोमरस के पान के लिए इन्द्रादि सम्पूर्ण रक्षक देवों के साथ हव्य देने वाले हम याजकगणों के पास पधारें।[ऋग्वेद 5.51.1]
Hey Agni Dev! Visit us, the Ritviz along with Devraj Indr and other protector demigods-deities, for drinking Somras.
ऋतधीतय आ गत सत्यधर्माणो अध्वरम्। अग्नेः पिबत जिह्वया
हे सत्य स्तुति वाले देवों! हे सत्य को धारित करने वालों आप सभी हमारे यज्ञ में आगमन करें और अग्नि की जिह्वा द्वारा घृत अथवा सोमरस आदि का पान करें।[ऋग्वेद 5.51.2]
Hey truly worshipable Deities! Hey truthful demigods-deities join our Yagy and sip-drink the Ghee and Somras with the tongue of Agni Dev.
विप्रेभिर्विप्र सन्त्य प्रातर्यावभिरा गहि। देवेभिः सोमपीतये
हे मेधाविन् अग्नि देव! प्रातः काल में आने वाले मेधावी देवताओं के साथ सोमरस के पान के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.51.3]
Hey intelligent Agni Dev! Come to drink Somras alongwith the intelligent demigods-deities in the morning.
सजूर्विश्वेभिर्देवेभिरश्विभ्यामुषसा सजूः। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण
हे अग्नि देव! आप देवों के साथ मिलकर तथा अश्विनी कुमारों और उषा के साथ समान प्रीति स्थापित करके आगमन करें। यज्ञ में जिस प्रकार से अत्रि रमण करते हैं, उसी प्रकार आप भी अभिषुत सोमरस में रमण करें।[ऋग्वेद 5.51.8]
Hey Agni Dev! Come with demigods-deities, Ashwani Kumars & Usha friendly. Participate in the Yagy the way Atri Rishi does it.
सजूर्मित्रावरुणाभ्यां सजूः सोमेन विष्णुना। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण॥
हे अग्नि देव! आप मित्र, वरुण, सोम तथा विष्णु के साथ मिलकर आगमन करें। यज्ञ में जिस प्रकार से अत्रि रमण करते हैं, उसी प्रकार आप भी अभिषुत सोमरस में रमण करें।[ऋग्वेद 5.51.9]
Hey Agni Dev! Come alongwith Mitr, Varun, Som-Moon and Bhagwan Shri Hari Vishnu. Participate in the Yagy the way Atri Rishi does it.
सजूरादित्यैर्वसुभिः सजूरिन्द्रेण वायुना। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण
हे अग्नि देव! आप सूर्य, वसु गण, इन्द्र देव और वायु देव के साथ मिलकर यहाँ आगमन करें। यज्ञ में जिस प्रकार से अत्रि रमण करते हैं, उसी प्रकार आप भी अभिषुत सोमरस में रमण करें।[ऋग्वेद 5.51.10]
Hey Agni dev! Come here alongwith Sury-Sun, Vasu Gan, Indr Dev and Vayu Dev. Participate in the Yagy the way Atri Rishi does it.
विश्वे देवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये।
देवा अवन्त्वृभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्वंहसः
इस यज्ञ में सम्पूर्ण देवता हम लोगों का कल्याण करें और रक्षा करें। मनुष्यों के नेता और गृहदाता अग्निदेव हम लोगों का कल्याण करें और रक्षा करें। दीप्तिमान् ऋभुगण भी हम लोगों का कल्याण व रक्षा करें। रुद्रदेव हम लोगों का कल्याण कर पाप से रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.51.13]
Let all the demigods-deities resort to our welfare and protect us, in this Yagy. Let protector of humans and grantor of homes to us, resort to our welfare. Radiant-aurous Ribhu Gan too resort to our welfare and protect us. Let Rudr Dev resort to our welfare and protect us from sins.
स्वस्ति मित्रावरुणा स्वस्ति पथ्ये रेवति।
स्वस्ति न इन्द्रश्चाग्निश्च स्वस्ति नो अदिते कृधि
हे अहोरात्राभिमानी मित्र और वरुण देव! आप दोनों मंगल करें। हे हित मार्गाभिमानिनी धनवती देवी! कल्याण करें। इन्द्र देव और अग्नि देव दोनों ही हम लोगों का कल्याण करें। हे अदिति देवी! आप हम लोगों का कल्याण करें।[ऋग्वेद 5.51.14]
Hey Mitr & Varun Dev regulating day and night! Resort to our welfare. Hey Dhanwati Devi, adopting the welfare route! Resort to our welfare. Let both Indr Dev & Agni Dev resort to our welfare. Hey Aditi Devi! Resort to our welfare.
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (86) :: ऋषि :- भौम अत्रि; देवता :- इन्द्राग्नी;  छन्द :- विराट्पूर्वा, अनुष्टुप्।
इन्द्राग्नी यमवथ उभा वाजेषु मर्त्यम्।
दृळ्हा चित्स प्र भेदति द्युम्ना वाणीरिव त्रितः
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप दोनों युद्धों में मनुष्यों की रक्षा करते हैं। वे शत्रु सम्बन्धी द्युतिमान् धन को अतिशय भिन्न करते हैं। वे प्रति वादियों के वाक्य का खण्डन करते हैं और शत्रुओं के वाक्य के सदृश तीनों स्थानों में उपस्थित रहते हैं।[ऋग्वेद 5.86.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Both of you protect the human beings in war. You differentiate-separate, distinguish the shinning wealth. You reject the statements of the opponents and occupy the three abodes like the words of the enemies.
या पृतनासु दुष्टरा या वाजेषु श्रवाय्या।
या पञ्च चर्षणीरभीन्द्राग्नी ता हवामहे
जो इन्द्र देव और अग्नि देव संग्राम में अनभिभवनीय हैं, जो संग्राम में या अन्न के विषय में स्तवनीय हैं और जो पञ्च श्रेणी के मनुष्यों की रक्षा करते हैं, उन दोनों महानुभावों का हम लोग स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.86.2]
We invoke Indr Dev and Agni Dev, who are irresistible in conflicts, renowned in battles & protect the five classes of humans.
We worship-pray Indr Dev and Agni Dev who are winners in war-conflict, worshiped for food grains and protector of humans.
तयोरिदमवच्छवस्तिग्मा दिद्युन्मघोनोः।
प्रति द्रुणा गभस्त्योर्गवां वृत्रघ्न एषते
इन दोनों का बल शत्रुओं को पराजित करने वाला है। क्योंकि जब ये दोनों देव एक रथ पर आरूढ़ होकर धेनुओं के उद्धारार्थ और वृत्रासुर के विनाशार्थ गमन करते हैं, तब इन दोनों धनवानों के हाथों में तीक्ष्ण वज्र विराजमान रहता है।[ऋग्वेद 5.86.3]
Their might defeats the enemy, since when they ride the charoite to release the cows and destruction of Vrata Sur, they possess sharp Vajr in their hands.
ता वामेषे रथानामिन्द्राग्नी हवामहे।
पती तुरस्य राधसो विद्वांसा गिर्वणस्तमा
हे गमनशील, धन के अधिपति सर्वज्ञ तथा निरतिशय वन्दनीय इन्द्र देव और अग्नि देव! युद्ध में रथ को प्रेरित करने के लिए हम लोग आप दोनों का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.86.4]
Hey dynamic, lords of wealth, enlightened and worshipable Indr Dev & Agni Dev! We invoke you both, to inspire the charoite in war-battle.
ता वृधन्तावनु द्यून्मर्ताय देवावदभा।
अर्हन्ता चित्पुरो दधें ऽ शेव देवावर्वते
हे अहिंसनीय देवद्वय! आप दोनों अहिंसनीय हैं। हम लोग अश्व प्राप्ति के लिए आप दोनों की प्रार्थना करते हैं और सोमरस के तुल्य आगे स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.86.5]
Hey unhurt demigod duo! Both of you can not be harmed-hurt. We pray-request you both to have horses and establish you in front like Somras.
एवेन्द्राग्निभ्यामहावि हव्यं शूष्यं घृतं न पूतमद्रिभिः।
ता सूरिषु श्रवो बृहद्रयिं गृणत्सु दिघृतमिषं दिधृतम्
पत्थरों द्वारा कूटे हुए सोमरस के सदृश बल कारक हव्य सम्प्रति प्रवृत्त हुआ। आप दोनों ज्ञानियों को अन्न प्रदान करें। स्तोताओं को प्रभूत धन और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.86.6]
Oblations-offerings capable of granting strength like the smashed Somras have been intended. Both of you should grant food grains to the intellectuals. Give wealth and food grains to the Stotas-hosts.(21.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्रि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वं ह्यग्ने प्रथमो मनोतास्या धियो अभवो दस्म होता।
त्वं सीं वृषन्नकृणोर्दुष्टरीतु सहो विंश्वस्मै सहसे सहध्यै
हे अग्नि देव! आप देवताओं के बीच में प्रकृष्टतम है। देवताओं का मन आप में निहित है। हे दर्शनीय! इस यज्ञ में आप ही देवों के आह्वान करने वाले हैं। हे अभीष्ट वर्षी! समस्त बलशाली शत्रुओं को पराजित करने के लिए आप हमें अपरिमित बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.1.1]
प्रकृष्ट :: खींचा या निकाला हुआ, उत्तम, श्रेष्ठ, मुख्य, प्रधान, तीव्र, तेज; excellent.
निहित :: अंतर्निहित, जन्मजात, सहज, अंतर्निहित, निर्विवाद, स्थापित, सौंपा हुआ; inherent, vested, implied, implicit.
Hey Agni Dev! You are the best amongest the demigods-deities. You are vested in the innerself of demigods. Hey adorable! You are host to invite the demigods-deities in this Yagy. Hey desires accomplishing! Defeat the powerful enemies and grant us unlimited strength.
अधा होता न्यसीदो यजीयानिळस्पद इषयन्नीड्यः सन्।
त्वं त्वा नरः प्रथमं देवयन्तो महो राये चितयन्तो अनु ग्मन्
हे अग्नि देव! आप अतिशय यज्ञकर्ता और होम निष्पादक हैं। आप हव्य ग्रहण करके स्तुति योग्य होते हैं। आप वेदी रूप स्थान पर उपवेशन करें। धर्मानुष्ठानकारी ऋत्विक् लोग महान् धन प्राप्त करने की इच्छा से देवों के बीच में पहले आपका ही अनुसरण करते हैं।[ऋग्वेद 6.1.2]
Hey Agni Dev! You are extreme-great Yagy performer. You accept oblations-offerings and deserve worship. Establish your self at the Yagy Vedi-site. The Ritviz who make great endeavours for the sake of Dharm seek great wealth from the demigods and follow you.
वृतेव यन्तं बहुभिर्वसव्यै ३ स्त्वे रयिं जागृवांसो अनु ग्मन्।
रुशन्तमग्निं दर्शतं बृहन्तं वपावन्तं विश्वहा दीदिवांसम्
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान्, दर्शनीय, महान् हव्य भोजी और सम्पूर्ण काल में दीप्तिमान् हैं। आप वसुओं के मार्ग से अर्थात् अन्तरिक्ष से गमन करते हैं। धनाभिलाषी याजकगण आपका अनुसरण करते हैं।[ऋग्वेद 6.1.3]
दर्शनीय :: प्रसिद्ध, मशहूर; beautiful, visible, notable.
Hey Agni Dev! You are radiant, visible, great consumer of the offerings and shine all the time. You travel through the space, the path followed by Vasus. Wealth seeking Ritviz follow you.
पदं देवस्य नमसा व्यन्तः श्रवस्यवः श्रव आपन्नमृक्तम्।
नामानि चिद्दधिरे यज्ञियानि भद्रायां ते रणयन्त संदृष्टौ
अन्नाभिलाषी होकर याजकगण लोग स्तोत्र के साथ दीप्तिमान् अग्नि देव के आहवनीय स्थान में गमन करते हैं और अप्रतिहत भाव से अथवा अबाध्य रूप से प्रचुर अन्न प्राप्त करते हैं। हे अग्निदेव! दर्शन होने पर वे स्तुतियों से आनन्दित होते हैं और आपके यागयोग्य नामों को धारण करते हैं। जातवेदा, वैश्वानर इत्यादि नामों का संकीर्तन करते हैं।[ऋग्वेद 6.1.4]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, बिना रुकावट, निर्विघ्न, जिसे कोई रोकने-टोकने वाला न हो, जिसमें बाधा उपस्थित न हुई हो, अक्षुण्ण, जो हारा न हो, अपराजित, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous, unrequited.
Ritviz desirous of food grains recite the Strotr and move to the place of invoking Agni Dev and get sufficient food grains continuously. Hey Agni Dev! Hey Agni Dev! On seeing you they become happy and get pleasure through the recitation of sacred hymns and adopt titles suitable for the Yagy. They recite the names like Jatveda and Vaeshwanar.
त्वां वर्धन्ति क्षितयः पृथिव्यां त्वां राय उभयासो जनानाम्।
त्वं त्राता तरणे चेत्यो भूः पिता माता सदमिन्मानुषाणाम्
हे अग्नि देव! मनुष्यगण आपको वेदी के ऊपर स्थापित करते हैं। आप याजकगणों के पशु और अपशु रूप दोनों प्रकार के धन को वर्द्धित करते हैं। अध्वर्यु आदि भी उभयविध धन प्राप्त करने के लिए आपको वर्द्धित करते हैं। हे दुःख विनाशक अग्नि देव! आप स्तुति भाजन होकर मनुष्यों के रक्षक और माता-पिता के तुल्य अनुदान एवं संरक्षण प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.1.5]
Hey Agni Dev! The humans establish you over the Vedi. You increase the wealth of the worshipers both as animals-cattle and materials. The priests etc. promote-boost you for having various kinds of wealth. Hey destroyer of sorrow Agni Dev! You accept the worship and protect them like parents and grant protection.
सपर्येण्यः स प्रियो विश्व१ ग्निर्होता मन्द्रो नि षसादा यजीयान्।
तं त्वा वयं दम आ दीदिवांसमुप जुबाधो नमसा सदेम
पूजनीय, अभीष्टवर्षी, प्रजाओं के बीच में होम निष्पादक, मोहप्रद और अतिशय यजनीय अग्नि देव वेदी के ऊपर उपस्थित होते हैं। हे अग्नि देव! आप घर में प्रज्वलित होते हैं। हम लोग जानु को अवनत करके स्तोत्र के साथ आपके निकट उपस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 6.1.6]
Revered, desires fulfilling, performer of Yagy amongest the populace, enchanting and worshipable Agni Dev establish over the Yagy Vedi. Hey Agni Dev! You lit in the houses. We bend our thigh and recite Strotr close to you.
तं त्वा वयं सुध्यो ३ नव्यमग्ने सुम्नायव ईमहे देवयन्तः।
त्वं विशो अनयो दीद्यानो दिवो अग्ने बृहता रोचनेन
हे अग्नि देव! आप स्तुति योग्य है। हम शोभन बुद्धि वाले, सुखाभिलाषी और आपकी कामना करने वाले हैं। हम आपका स्त्वन करते हैं। हे अग्नि देव! आप दीप्यमान हैं। महान् रोचमान मार्ग से अर्थात् आदित्य मार्ग से आप हम स्तोताओं को स्वर्ग लोक पहुँचावें।[ऋग्वेद 6.1.7]
रोचमान :: चमकता हुआ, शोभित होता हुआ, घोड़े की गरदन पर की एक भंवरी, शोभा युक्त, भगवान् कार्तिकेय-स्कन्द के एक अनुचर का नाम, रोचमान अश्वमेध यज्ञकर्ता एक राजा था जो अश्वग्रीव असुर का अंशावतार था; shinning, radiant, glittering, aurous.
Hey Agni Dev! You are worshipable. We possessors of good-pure intelligence, desirous of comforts-pleasure, desire you. We worship-pray you. Hey Agni Dev! You are radiant. Take us to the heavens through the shinning route-Adity Marg.
विशां कविं विश्पतिं शश्वतीनां नितोशनं वृषभं चर्षणीनाम्।
प्रेतीषणिमिषयन्तं पावकं राजन्तमग्निं यजतं रयीणाम्
नित्य स्वरूप ऋत्विक् याजक गण आदि के स्वामी, ज्ञान सम्पन्न, शत्रु विनाशक, कामनाओं के पूरक, स्तोता मनुष्यों के प्राप्तव्य, अन्न विधायक, शुद्धता सम्पादक, धनार्थियों के द्वारा यष्टव्य और दीप्यमान अग्नि देव का हम लोग स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.1.8]
We worship radiant Agni Dev who is the lord of the Ritviz-hosts, enlightened, slayer of the enemy, accomplisher of desires, attainable by the Stotas, provider of food grains, maintainer of purity, grants wealth to the desirous. 
सो अग्न ईजे शशमे च मर्तो यस्त आनट् समिधा हव्यदातिम्।
य आहुतिं परि वेदा नमोभिर्विश्वेत्स वामा दधते त्वोतः
हे अग्नि देव! जो याजकगण आपका यजन करता है, जो स्तवन करता है, जो याजकगण प्रज्वलित ईंधन के साथ आपको हव्य प्रदान करता है, जो प्रार्थना के साथ आपको आहुति प्रदान करता है, वह यजमान आपके द्वारा रक्षित होता है और समस्त अभिलषित धन प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.1.9]
Hey Agni Dev! The Ritviz-host who worship-pray you, make offerings in the fire, is protected by you and gets desired wealth.
अस्मा उ ते महि महे विधेम नमोभिरग्ने समिधोत हव्यैः।
वेदी सूनो सहसो गीर्भिरुक्थैरा ते भद्रायां सुमतौ यतेम
हे अग्नि देव! आप महान् हैं। हमारा आपको नमस्कार है। ईंधन और हव्य के द्वारा आपकी परिचर्या करते हैं। हे बलपुत्र! हम लोग स्तोत्र और शस्त्र के साथ वेदी के ऊपर आपकी अर्चना करते हैं। हम लोग आपका शोभन अनुग्रह प्राप्त करने के लिए यत्न करते हैं। हम लोग सफल होवें।[ऋग्वेद 6.1.10]
Hey Agni Dev! You are great. We salute you and serve you with the fuel and oblations-offerings. Hey, son of Bal! We worship you over the Vedi with Strotr & weapons. Let us succeed in attaining good wealth by virtue of your kindness.
आ यस्ततन्थ रोदसी वि भासा श्रवोभिश्च श्रवस्य १ स्तरुत्रः।
बृहद्भिर्वाजैः स्थविरेभिरस्मे रेवद्भिरने वितरं वि भाहि
हे अग्नि देव! दीप्ति द्वारा आपने द्यावा-पृथ्वी को विस्तृत किया। आप परित्राणकर्ता और स्तुति द्वारा पूजनीय हैं। आप प्रचुर अन्न और विशिष्ट धन के साथ हम लोगों के निकट भली-भाँति से दीप्त होवें।[ऋग्वेद 6.1.11]
Hey Agni Dev! You extended the heaven & earth with your aura. You are protector and worshipable. You should shine close to us with sufficient food grains and special wealth.
नृवद्वसो सदमिद्धेह्यस्मे भूरि तोकाय तनयाय पश्वः।
पूर्वीरिषो बृहतीरारेअघा अस्मे भद्रा सौश्रवसानि सन्तु
हे धनवान् अग्नि देव! मनुष्यों से युक्त अर्थात् पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन आप हमें प्रदान करें। हमारे पुत्र-पौत्रों को प्रभूत पशु प्रदान करें। कामनाओं के पूरक और पाप रहित पर्याप्त अन्न तथा सौभाग्य भी हमें प्राप्त हो।[ऋग्वेद 6.1.12]
Hey rich Agni Dev! Grant us sons & grand sons. Grant a number of animals-cattle to our sons & grandsons. Let us have good luck, desires accomplishment and sinless food grains. 
पुरूण्यग्ने पुरुधा त्वाया वसूनि राजन्वसुता ते अश्याम्।
पुरूणि हि त्वे पुरुवार सन्त्यने वसु विधते राजनि त्वे॥
हे दीप्तिमान अग्नि देव! हम आपके निकट से गौ, अश्वादिरूप बहुविध धन प्राप्त करें। आप धनवान् है। हे सर्ववरणीय अग्निदेव! आप शोभन है। आप प्रचुर धन के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 6.1.13]
Hey Radiant Agni Dev! Let us receive various kinds of riches, cows and horses from you. You are rich-wealthy. Hey accepted by all, Agni Dev! You are adorable-beautiful and possessor of a lot of wealth.(22.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्रि;  छन्द :- अनुष्टुप् शक्वरी।
त्वं हि क्षैतवद्यशोऽग्ने मित्रो न पत्यसे।
त्वं विचर्षणे श्रवो वसो पुष्टिं न पुष्यसि
हे अग्नि देव! आप मित्र देव के तुल्य शुष्क काष्ठ के द्वारा हवि के ऊपर अभिपतित होते हैं; इसलिए हे सर्वदर्शी, धन सम्पन्न अग्नि देव! आप अन्न और पुष्टि द्वारा हम लोगों को वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 6.2.1]
Hey Agni Dev! You are present over the wooden offerings like Mitr Dev. Hence, hey viewer of every thing, rich Agni Dev! Nourish & grow us with food grains.
त्वां हि ष्मा चर्षणयो यज्ञेभिर्गीर्भिरीळते।
त्वां वाजी यात्यवृको रजस्तूर्विश्व चर्षणिः
हे अग्नि देव! मनुष्य लोग हव्य साधन, हव्य और प्रार्थना के द्वारा आपकी अर्चना करते हैं। हिंसा वर्जित जल प्रेरक अथवा लोगों में अभिगमन करने वाले, सर्व द्रष्टा सूर्य देव आपको ही प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.2.2]
Hey Agni Dev! Humans worship you with offerings and other means. You inspire water-rains, avoid hurting anyone, moves between the humans and Sury Dev-Sun ultimately meets you.
सजोषस्त्वा दिवो नरो यज्ञस्य केतुमिन्धते।
यद्ध स्य मानुषो जनः सुम्नायुर्जुह्वे अध्वरे
हे अग्नि देव! समान प्रीति धारित करने वाले ऋत्विक् लोग आपको प्रज्वलित करते हैं। आप यज्ञ के प्रज्ञापक है। मनु के अपत्य याजकगण लोग सुखाभिलाषी होकर यज्ञ में आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 6.2.3]
प्रज्ञापक :: मोटे या बड़े अक्षरों में लिखा हुआ विज्ञापन, प्रज्ञापन करने वाला,  सूचित करने वाला; informer.
अपत्य :: औलाद, संतान, वंशज; offspring, progeny, children.
Hey Agni Dev! The Ritviz with equal-same love, ignite you. You are the informer of Yagy. Hey offspring of Manu hosts-Ritviz desirous of comforts-pleasure invoke you in the Yagy.
ऋधद्यस्ते सुदानवे धिया मर्तः शशमते।
ऊती ष बृहतो दिवो द्विषो अंहो न तरति
हे अग्नि देव! आप दान शील हैं, जो मरण शील याजकगण यज्ञकर्म में रत होकर आपका स्तवन करता है, वह समृद्धिशाली होता है। हे अग्निदेव! आप दीप्तियुक्त हैं। वह याजकगण आपके द्वारा रक्षित होकर भीषण पाप के सदृश शत्रुओं को नष्ट करता है।[ऋग्वेद 6.2.4]
Hey Agni Dev! You are a donor. The mortal host-Ritviz who involve in Yagy worshiping you, turn wealthy. Hey Agni Dev! You are aurous-radiant. Such Ritviz who on being protected by you destroy the enemies who are the worst sinners.
समिधा यस्त आहुतिं निशितिं मर्त्यो नशत्।
वयावन्तं स पुष्यति क्षयमग्ने शतायुषम्
हे अग्नि देव! जो मनुष्य काष्ठ द्वारा आपकी मन्त्र संस्कृत आहुति को पुष्ट करता है, वह मनुष्य पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर अपने घर में सौ वर्षों की आयु प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.2.5]
Hey Agni Dev! The human being who strengthen-nourish the offerings-fire with wood and recitation of Mantr, is blessed with sons & grandsons and live-survive for hundred years.
त्वेषस्ते धूम ऋण्वति दिवि षञ्छुक्र आततः।
सूरो न हि द्युता त्वं कृपा पावक रोचसे
हे अग्नि देव! आप दीप्तिशाली है। आपका शुभ्र वर्ण का धूम अन्तरिक्ष में विस्तारित होता है और मेघरूप में परिणत होता है। हे पावक! आप स्तोत्र द्वारा प्रसन्न होकर सूर्य के सदृश दीप्ति द्वारा रुचिमान होते हैं।[ऋग्वेद 6.2.6]
Hey Agni Dev! You are radiant-aurous. Your smoke of white colour spread over the space-sky and convert into rain clouds. Hey Pavak-Agni Dev! You become happy with the Strotr and shine like the Sun.
अधा हि विक्ष्वीड्योऽसि प्रियो नो अतिथिः।
रण्वः पुरी जूर्यः सूनुर्न त्रययाय्यः
हे अग्नि देव! आप प्रजाओं के स्तुति भाजन हैं; क्योंकि आप अतिथि के सदृश हम लोगों के प्रिय है। नगर में वर्त्तमान हितोपदेष्टा वृद्ध के सदृश आप आश्रय योग्य हैं एवं पुत्र के तुल्य पालन करने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.2.7]
Hey Agni Dev! You are worshiped by the populace and is loved-dear like the guest. You provide shelter like an old person performing welfare and nurturer like the son.
क्रत्वा हि द्रोणे अज्यसेऽग्रे वाजी न कृत्व्यः।
परिज्मेव स्वधा गयोऽत्यो न ह्वार्यः शिशुः
हे अग्नि देव! अरणि मन्थन रूप कर्म से आपकी विद्यमानता प्रकाशित होती है। अश्व जिस प्रकार से अपने आरोही का वहन करता है, उसी प्रकार से आप हव्य वहन करें। आप वायु की तरह सभी जगह गमन करते हैं। आप हमें अन्न और घर प्रदान करें। (क्योंकि) आप शिशु और अश्व के सदृश कुटिलगामी हैं।[ऋग्वेद 6.2.8]
Hey Agni Dev! Your presence is confirmed-ensured with the rubbing of wood. Accept the offerings like the horse who accept his rider. You are capable of moving every where like the air. Grant us food grains and house. You are like a new born child and the dynamic horse.
त्वं त्या चिदच्युताग्ने पशुर्न यवसे।
धामा ह यत्ते अजर वना वृश्चन्ति शिक्वसः
हे अग्नि देव! तृण आदि चरने के लिए छोड़ा गया पशु जिस प्रकार सम्पूर्ण तृण का भक्षण कर लेता है, उसी प्रकार आप प्रौढ़ काष्ठों को क्षण मात्र में भक्षण कर लेते हैं। हे अविनश्वर अग्नि देव! आप दीप्तिशाली हैं। आपकी शिखाएँ वनों को भस्म कर देती हैं।[ऋग्वेद 6.2.9]
Hey Agni Dev! The manner in which an animal eats the straw on being released, you consume the mature wood within seconds. Hey immortal Agni Dev! You are radiant-aurous. Your flames engulf the forests and burn them.
वेषि ह्यध्वरीयतामग्ने होता दमे विशाम्।
समृधो विश्पते कृणु जुषस्व हव्यमङ्गिरः
हे अग्नि देव! आप यज्ञाभिलाषी याजकगणों के घर में होता रूप से प्रविष्ट होते हैं। हे मनुष्यों के पालक अग्निदेव! आप हम लोगों की समृद्धि का विधान करें। हे अंगार रूप अग्नि देव! आप को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 6.2.10]
अंगार :: दहकता कोयला या पत्थर, लाल रंग; cinder, ember.
Hey Agni Dev! You enter the homes of the Ritviz like a host. Hey nurturer of humans, Agni Dev! Ensure our growth. Hey  Agni Dev in the form of cinder-ember! Accept us. 
अच्छा नो मित्रमहो देव देवानने वोचः सुमतिं रोदस्योः। वीहि स्वस्ति सुक्षितिं दिवो नृन्द्विषो अंहांसि दुरिता तरेम ता तरेम तवावसा तरेम
हे अनुकूल दीप्ति वाले देव-दानवादि गुण युक्त और द्यावा-पृथ्वी में वर्त्तमान अग्नि देव! आप देवों के समीप हम लोगों की प्रार्थना का उच्चारण करें। हम स्तोताओं को शोभन निवास युक्त सुख में ले जावें। हम लोग शत्रुओं, पापों और कष्टों का अतिक्रमण करें। हम लोग जन्मान्तर में कृतपापों मुक्त हों। हे अग्नि देव! आपकी रक्षा के द्वारा रक्षित होकर हम निर्विघ्न जीवनयापन करें।[ऋग्वेद 6.2.11]
Hey Agni Dev, with favourable aura-shine for the demigods-deities, demons etc. and present over the heavens & the earth! Recite  our prayers before the demigods-deities. Take us-the Stotas, to the beautiful, comfortable houses. We should be able to over come the sins and torture by the enemy. Hey Agni Dev! We should survive under your protection and live stress free-trouble free life.(23.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्नि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
अग्रे स क्षेषदृतपा ऋतेजा उरु ज्योतिर्नशते देवयुष्टे।
यं त्वं मित्रेण वरुणः सजोषा देव पासि त्यजसा मर्तमंहः
हे अग्नि देव! वह याजकगण चिरकाल पर्यन्त जीवन धारित करे, याजकगण यज्ञ का पालन करता है और यज्ञ के निमित्त उत्पन्न हुआ है। वरुण देव और मित्र देव के साथ समान धारित करके तेज द्वारा आप पाप से जिसकी रक्षा करते हैं, वह देवाभिलाषी याजकगण आपकी विस्तीर्ण ज्योति प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.3.1]
विस्तीर्ण :: जो दूर तक फैला हुआ हो, विस्तृत, बहुत लंबा समय, विशाल; covering vast area.
चिरकाल :: बहुत समय, दीर्घकाल, सदा, सदैव; long period of time, forever.
Hey Agni Dev! Let the Ritviz survive for a long period of time. He perform Yagy and is born for this. The Ritviz desirous of demigods-deities, protected by you like Varun & Mitr Dev by your energy from sins, gets your light covering a vast area.
ईजे यज्ञेभिः शशमे शमीभिर्ऋधद्वारायाग्नये ददाश।
एवा चन तं यशसामजुष्टिर्नांहो मर्तं नशते न प्रदृप्तिः
वरणीय धन से समृद्धिमान् अग्नि देव के लिए जो याजकगण हव्य प्रदान करता है, वह सम्पूर्ण यज्ञ के द्वारा यज्ञवान् अर्थात् सफल यज्ञ होता है तथा कृच्छ्र चान्द्रायणादि कर्म द्वारा शान्त होता है अर्थात् अग्नि कर्म द्वारा वह सम्पूर्ण फल प्राप्त करता है। वह याजकगण यशस्वी पुत्रों के अभाव को भी नहीं प्राप्त करता। उसे पाप और अनर्थक गर्व स्पर्श नहीं करते।[ऋग्वेद 6.3.2]
यशस्वी :: सुख्यात, कीर्तिमान्; glorious, celebrated.
The Ritviz who make offerings of acceptable-pure money for Agni Dev, become successful in performing the Yagy. He has glorious, celebrated sons and is not touched-affected by sins and proud.
सूरो न यस्य दृशतिररेपा भीमा यदेति शुचतस्त आ धीः।
हेषस्वतः शुरुधो नायमक्तोः कुत्रा चिद्रण्वो वसतिर्वनेजाः
सूर्य देव के समान अग्नि देव का दर्शन पाप रहित है। हे अग्नि देव! आपकी प्रज्वलित ज्वाला भयंकर है और सभी जगह गमन करती है। अग्नि देव रात्रि में शब्दायमान गौओं के तुल्य विस्तृत होते हैं। सभी के आवासभूत अर्थात् निवासप्रद और अरण्यजात अग्निदेव पर्वत के अग्रभाग में शोभायमान होते हैं।[ऋग्वेद 6.3.3]
दर्शन :: राय, नज़र, आलोकन, दर्शनशास्र, तत्त्वज्ञान, तत्त्वविज्ञान, शास्र, विद्या का प्रेम, भेंट, मुलाक़ात, जांच, मुआयना, मुआइना; visit, philosophy, view.
View of Agni Dev like Sury Dev is free from sin. Hey Agni Dev! Your flames are furious and spread every where. Agni Dev spread around like the sound of cows during night. Agni Dev born in forests, occupies the mountain peak-cliff & provides shelter-houses to all.
तिग्मं चिदेम महि वर्पो अस्य भसदश्वो न यमसान आसा।
विजेहमानः परशुर्न जिह्वां द्रविर्न द्रावयति दारु धक्षत्
अग्नि देव का मार्ग तीक्ष्ण है। इनका रूप अत्यन्त दीप्तिमान् है। ये अश्व के सदृश मुख द्वारा तृणादि को प्राप्त करते हैं। कुठार जिस प्रकार से अपनी धार को काष्ठ पर प्रक्षिप्त करता है, उसी प्रकार अग्नि देव अपनी ज्वाला को तरु गुल्म आदि पर प्रक्षिप्त करते हैं। स्वर्णकार जिस प्रकार से सुवर्ण आदि को द्रवीभूत करता है, उसी प्रकार सम्पूर्ण धन को ये द्रवित करते हैं अर्थात् सम्पूर्ण वस्तु को अग्नि देव भस्मीभूत कर देते हैं।[ऋग्वेद 6.3.4]
Agni Dev follows a sharp route. His figure is radiant. He receives the straw etc. in his mouth like the horse. The way the axe strikes the wood Agni Dev strikes the vegetation trees-flowers etc. The way a gold smith melt the gold, Agni Dev melt every thing.
स इदस्तेव प्रति धादसिष्यञ्छिशीत तेजोऽयसो न धाराम्।
चित्रध्रजतिररतिर्यो अक्तोर्वेर्न द्रुपद्वा रघुपत्मजंहाः
बाण चलाने वाला जिस प्रकार से लक्ष्य के अभिमुख बाण चलाता है, उसी प्रकार अग्नि देव अपनी ज्वालाओं को प्रदिप्त करते हैं। कुठार आदि को चलाने वाला जिस प्रकार से कुठार आदि की धार को तीक्ष्ण करता है, उसी प्रकार अग्नि देव भी अपनी ज्वाला को फेंकते समय तीक्ष्ण करते हैं। वृक्ष के ऊपर निवास करने वाले और लघुपतन समर्थ पाद विशिष्ट पक्षी के सदृश विचित्र गति अग्नि देव रात्रि का अतिक्रमण करते हैं अर्थात् धीरे-धीरे अन्धकार का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 6.3.5]
विचित्र :: अजीब, अनोखा, चितला, बहुरंगा, रंग-बिरंगा, विलक्षण, पुराने ढंग का; weird, bizarre, quaint, pied.
The way an archer shoots arrow at his goal, Agni Dev ignite his flames. He sharpens his flames like an axe sharpened by its user. He moves-spread like the birds covering short distances with weird- bizarre speeds destroying darkness.
स ईं रेभो न प्रति वस्त उस्राः शोचिषा रारपीति मित्रमहाः।
नक्तं य ईमरुषो यो दिवा नॄनमर्त्यो अरुषो यो दिवा नॄन्
वे अग्नि देव स्तवनीय सूर्य देव के सदृश दीप्त ज्वाला को आच्छादित करते हैं। सभी के अनुकूल प्रकाश को विस्तारित करके वे तेज द्वारा अत्यन्त शब्द करते हैं। ये रात्रि में शोभित होकर मनुष्यों को दिवस के समान अपने-अपने कार्यों में लगाते हैं। अमरणशील और सुन्दर अग्निदेव द्युतिमान् तेज द्वारा अपनी किरणों को नेताओं के लिए प्रेरित करते हैं अथवा सुन्दर अग्नि देव दिन में देवों को हवि से संयुक्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.3.6]
आच्छादित :: छाया हुआ, ढका हुआ; covers, clad.
Agni Dev clad-covers his flames like worshipable Sury Dev-Sun. He make favourable sound extending his rays-light. He put the humans in their jobs lighting during the night. Immortal glorious Agni Dev spreads his radiations to inspire the leaders; alternatively he shares the offerings with the demigods-deities during the day.
दिवो न यस्य विधतो नवीनोषा रुक्ष ओषधीषु नूनोत्।
घृणा न यो ध्रजसा पत्मना यन्ना रोदसी वसुना दं सुपत्नी
दीप्तिमान सूर्य देव के सदृश रश्मि विस्तीर्ण करने वाले जिस अग्नि देव का महान् शब्द हुआ, वे अभीष्टवर्षी और दीप्त अग्नि देव औषधियों के बीच में अत्यन्त शब्द करते हैं। जो दीप्त और गमनशील तथा इतस्तत: ऊद्धर्वगामी तेज द्वारा गमन करते हैं, वे अग्नि देव हमारे शत्रुओं का विनाश करते हुए शोभन पति सम्पन्न स्वर्ग और पृथ्वी को धन द्वारा परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 6.3.7]
इतस्ततः :: वास्तव में, हकीकत में; in fact.
Desires accomplishing Agni Dev creates loud-extreme sounds amongest the medicinal herbs like the radiant Sun who extends his rays. Let Agni Dev who is radiant, dynamic and in fact accelerated in the upward direction, destroy our enemies and enrich the heavens & earth with wealth.
धायोभिर्वा यो युज्येभिरर्कैविद्युन्न दविद्योत्स्वेभिः शुष्मैः।
शर्धो वा यो मरुतां ततक्ष ऋभुर्न त्वेषो रभसानो अद्यौत्
जो अग्नि देव अश्व के समान स्वयमेव युज्यमान अर्चनीय दीप्ति के साथ गमन करते हैं, वे अग्नि देव अपने तेज के द्वारा विद्युत् के सदृश चमकते हैं। जो अग्नि देव मरुत्गणों के बल को क्षीण करते हैं, वे अग्नि देव निरतिशय दीप्तिशाली, सूर्यदेव के सदृश प्रदीप्त और वेगयुक्त प्रकाशमान होते हैं।[ऋग्वेद 6.3.8]
निरतिशय :: बेहद, अद्वितीय, परम, जिसके आगे या जिससे बढ़कर और अतिशय और कुछ न हो सके, चश्म, परमात्मा, ईश्वर, परब्रह्म; हद दरजे का; extreme, Almighty, unique, ultimate, God.
युज्यमान :: गतिशील; dynamic.
प्रकाशमान :: प्रकाशयुक्त, चमकदार, सुबोध गम्य, स्पष्ट, चमकीला, उज्ज्वल, दीप्तिमान, किरणें फैलानेवाला, शुभ्र; luminous, lucent, radiant.
Agni Dev dynamic like the horse; moves with extreme worshipable aura and shines like electricity-lightening. He reduces-checks the power of Marud Gan. Agni Dev dynamic and luminous, possess ultimate shine & is radiant like the Sun-Sury Dev. (24.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्नि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
यथा होतर्मनुषो देवताता यज्ञेभिः सूनो सहसो यजासि।
एवा नो अद्य समना समानानुशन्नग्न उशतो यक्षि देवान्
हे देवों के आह्वान करने वाले बल पुत्र अग्नि देव! जिस प्रकार ब्रह्मा के यज्ञ में आपने हव्य द्वारा देवों का यजन किया, उसी प्रकार हम लोगों के इस यज्ञ में आज यजनीय इन्द्रादि देवों को अपने समान समझकर आप उनका शीघ्र यजन करें।[ऋग्वेद 6.4.1]
Hey Agni Dev, invoker of demigods-deities! The manner in which you worshiped-honoured the demigods-deities making offerings-oblations to them, in the Yagy conducted by Brahma Ji, in the same way invite-invoke Dev Raj & other demigods-deities considering them equivalent to you in our Yagy.
स नो विभावा चक्षणिर्न वस्तोरग्निर्वन्दारु वेद्यश्चनो धात्।
विश्वायुर्यो अमृतो मर्त्येषूषर्भुद्भूदतिथिर्जातवेदाः
जो दिन के प्रकाशक हैं, जो सूर्य के तुल्य अत्यन्त दीप्तिमान् हैं, जो सभी के बोध गम्य हैं, जो सभी के जीवन भूत है, जो अविनश्वर हैं, जो अतिथि हैं, जो जातवेदा हैं और जो मनुष्यों के बीच में उषाकाल में प्रबुद्ध होते हैं, वे अग्नि देव हम लोगों को उत्कृष्ट धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.4.2]
बोध :: महसूस-अनुभव करना, गणनीय-अगणनीय संज्ञा, feel, feeling, perception, realization, sense, understanding, intelligence, realisation, cognition, perceptible, comprehensibility.
Let Agni Dev who is radiant like the Sury-Sun, invoke senses, basis of life, eternal, guest, God, grow at dawn-Usha,  grant us beast-excellent wealth.
द्यावो न यस्य पनयन्त्यभ्वं भासांसि वस्ते सूर्यो न शुक्रः।
वि य इनोत्यजरः पावकोऽश्नस्य चिच्छिश्नथत्पूर्व्याणि
स्तोता लोग अभी जिन अग्नि देव के महान् कर्म की प्रार्थना करते हैं, वे सूर्य देव के सदृश शुभ्रवर्ण अग्नि देव अपने तेज को आच्छादित करते हैं। वृद्धावस्था रहित और पवित्र बनाने वाले अग्नि देव दीप्ति द्वारा सब पदार्थों को प्रकाशित करते हैं और व्यापनशील राक्षसादि को तथा पुरातन नगरों को विनष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 6.4.3] 
Agni Dev who is worshiped-prayed by the Stotas for his great endeavours, possessing white-bright light coloured like Sury Dev, pervade every one with his aura-light. Free from old age, purifying Agni Dev light all goods-materials and destroy the demons and their old-ancient cities.
वद्मा हि सूनो अस्यद्मसद्वा चक्रे अग्निर्जनुषाज्मान्नम्।
स त्वं न ऊर्जसन ऊर्जं धा राजेव जेरवृके क्षेष्यन्तः
हे सभी के प्रेरक अग्नि देव! आप वन्दनीय हैं। अग्नि देव हव्य के ऊपर आसीन होकर स्वभावतः ही उपासकों को गृह और अन्न प्रदान करते हैं। हे अन्न प्रदायक अग्नि देव! आप हम लोगों को अन्न प्रदान कर राजा के तुल्य हमारे शत्रुओं को जीतें एवं यज्ञ वेदी पर प्रतिष्ठित होवें।[ऋग्वेद 6.4.4]
Inspiring all, Agni Dev is worshipable! Agni Dev accepts the offerings and grant house and food grains to the worshipers. Hey food granting Agni Dev! Grant us food grains and win our enemies like a king occupying the Yagy Vedi.
नितिक्ति यो वारणमन्नमत्ति वायुर्न राष्ट्र्यत्येत्यक्तून्।
तुर्याम यस्त आदिशामरातीरत्यो न ह्रुत्त: परिह्रुत्
जो अग्नि देव अन्धकार के निवारक हैं, जो अपने तेज को तीक्ष्ण करते हैं, जो हवि का भक्षण करते हैं और जो वायुदेव के समान सब पर शासन करते हैं, वे अग्नि देव रात्रि के अन्धकार का विनाश करते हैं। हे अग्नि देव! हम आपके प्रसाद से उस व्यक्ति को जीतें, जो आपको हव्य प्रदान नहीं करता। आप अश्व के तुल्य वेगगामी होकर हमारे आक्रमण करने वाले शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 6.4.5]
Agni Dev who eliminate darkness, sharpens his aura-brightness, consume the offerings  and rule every one like Vayu Dev, destroy the darkness of night. Hey Agni Dev! Let us win the person who do not make offerings for you. You should be dynamic like the horse and win kill the enemies who attack us.
आ सूर्यो न भानुमद्भिरर्कैरग्ने ततन्थ रोदसी वि भासा।
चित्रो नयत्परि तमांस्यक्तः शोचिषा पत्मन्नौशिजो न दीयन्
हे अग्नि देव! आप द्यावा-पृथ्वी को विशेषरूप से आच्छादित करते हैं,  जिस प्रकार से सूर्य देव अपनी दीप्तिमान् और पूजनीय किरणों से द्यावा-पृथ्वी को आच्छादित करते हैं तथा अपने मार्ग से गमन करने वाले सूर्य देव के सदृश विचित्र अग्नि देव अन्धकारों को दूर करते हैं।[ऋग्वेद 6.4.6]
Hey Agni Dev! You specially cover the heavens & the earth with your light just as the Sun lit them with his bright and pious rays. You remove amazing darkness from your path-route like the Sun-Sury Dev. 
त्वां हि मन्द्रतममर्कशोकैर्ववृमहे महि नः श्रोष्यग्ने।
इन्द्रं न त्वा शवसा देवता वायुं पृणन्ति राधसा नृतमाः
हे अग्नि देव! आप अत्यन्त स्तवनीय, पूजार्ह और दीप्तियुक्त हैं। हम लोग आपकी स्तुति करते हैं; इसलिए आप हमारे महान् स्तोत्र को श्रवण करें। हे अग्नि देव! नेता रूप ऋत्विक् लोग आपको हविर्लक्षण धन से सन्तुष्ट करते हैं। आप बल में वायु देव के सदृश और इन्द्र देव के तुल्य देव स्वरूप हैं।[ऋग्वेद 6.4.7]
Hey Agni Dev! You are worshipable and radiant. Listen-respond to our great Strotr-hymns. Hey Agni Dev! The Ritviz who are the chief performers satisfy you with the offerings. You are like Vayu Dev in terms  of might and possess divinity like Indr Dev.
नू नो अग्नेऽवृकेभिः स्वस्ति वेषि रायः पथिभिः पर्ष्यंहः।
ता सूरिभ्यो गृणते रासि सुम्नं मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे अग्नि देव! आप शीघ्र ही वृक से रहित मार्ग द्वारा हम लोगों को निर्विघ्न पूर्वक ऐश्वर्य के समीप ले जावें। पाप से हम लोगों का उद्धार करें। आप स्तोताओं को जो सुख प्रदान करते हैं, वही सुख हमें प्रदान करें। हम लोग सुसन्तति युक्त होकर सौ वर्ष पर्यन्त सुख भोग करें।[ऋग्वेद 6.4.8] 
Hey Agni Dev! Take us to the grandeur through the trouble free route. Elevate-cleanse, purify us from the sins. The pleasure-comforts granted to the Stotas by you should be available to us as well. We should enjoy pleasure-comforts for hundreds of years along with decent progeny.(25.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्नि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
हुवे वः सूनुं सहसो युवानमद्रोघवाचं मतिभिर्यविष्ठम्।
य इन्वति द्रविणानि प्रचेता विश्ववाराणि पुरुवारो अध्रुक्
हे अग्नि देव! हम स्तोत्रों द्वारा आपका आह्वान करते हैं। आप बल पुत्र, नित्य तरुण, प्रशस्त स्तुति द्वारा स्तवनीय, अत्यधिक युवा, प्रकृष्ट ज्ञान वाले, बहुतों के द्वारा प्रार्थित और द्रोह रहित हैं। इस प्रकार के अग्नि देव स्तोताओं को अभिलषित धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.5.1]
Hey Agni Dev! We invoke you with the help of Strotr. You are the son of Bal, always young, worshipable with excellent prayers, enlightened, worshiped by many people and free from revenge. Agni Dev grant desired wealth to the Stotas on being worshiped. 
त्वे वसूनि पुर्वणीक होतर्दोषा वस्तोरेरिरे यज्ञियासः।
क्षामेव विश्वा भुवनानि यस्मिन्त्सं सौभगानि दधिरे पावके
हे बहुज्वाला विशिष्ट देवों के आह्वान करने वाले अग्नि देव! याग योग्य याजकगण आपको हव्य रूप धन को अहर्निश समर्पित करते हैं। देवों ने जिस प्रकार सम्पूर्ण जीवों को पृथ्वी पर स्थापित किया, उसी प्रकार अग्नि देव समस्त धन व ऐश्वर्य धारण करते हैं।[ऋग्वेद 6.5.2]
अहर्निश :: हर एक पल, हर समय, लगातार, दिन-रात, आठों पहर, सदा, नित्य; always, every moment, regularly, continuously.
Hey Agni Dev having several flames, invoking the deities! Ritviz continuously make offerings to you in the Yagy. The way the demigods-deities established the living beings over the earth, in the same manner Agni Dev possess all wealth and grandeur.
त्वं विक्षु प्रदिवः सीद आसु क्रत्वा रथीरभवो वार्याणाम्।
अत इनोषि विधते चिकित्वो व्यानुषग्जातवेदो वसूनि
हे अग्नि देव! आप प्राचीन तथा परिदृश्य मान प्रजाओं में सर्वतोभाव से अवस्थान करते हैं एवं अपने कार्य द्वारा याजक गणों को वाञ्छित धन प्रदान करते हैं। हे ज्ञानी जात वेदा! इसलिए आप परिचर्याकारी याजकगणों को निरन्तर धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.5.3]
सर्वतोभाव :: सर्व प्रकार से, संपूर्ण रूप से, अच्छी तरह, भली भाँति; by all means, properly.
Hey Agni Dev! You act properly with the old and visible populace and grant desired wealth to the Ritviz through your actions. Hey enlightened Jat Veda! You continuously grant money to the Ritviz who serve you.
यो नः सनुत्यो अभिदासदग्ने यो अन्तरो मित्रमहो वनुष्यात्। तमजरेभिर्वृषभिस्तव स्वैस्तपा तपिष्ठ तपसा तपस्वान्
हे अनुकूल दीप्ति वाले अग्नि देव! जो शत्रु अन्तर्हित देश में वर्त्तमान होकर हम लोगों को बाधित करता है और जो शत्रु अभ्यन्तर वर्ती होकर हम लोगों को बाधित करता है, उन दोनों प्रकार के शत्रुओं को आप अपने तेज द्वारा भस्मि भूत कर दें। आपका तेज वृद्धावस्था से रहित वृष्टि हेतु भूत और असाधारित है।[ऋग्वेद 6.5.4]
अंतर्हित :: अंदर समाया हुआ; inherent.
अभ्यन्तर :: अंदरूनी, अंदर होने वाला, आंतरिक, भीतरी; interior.
Hey Agni Dev, with favourable-bearable shine! Burn, turn into ashes the inherent enemy who trouble us here-interior (hidden) or else where. Your aura is free from old age, favourable for rains and extraordinary.
यस्ते यज्ञेन समिधा य उक्थैरर्केभिः सूनो सहसो ददाशत्।
स मर्त्येष्वमृत प्रचेता राया द्युम्नेन श्रवसा वि भाति
हे बल पुत्र अग्नि देव! जो याजकगण यज्ञ द्वारा आपकी परिचर्या करता है, जो ईंधन शस्त्र और अर्चनीय स्तोत्रों द्वारा आपकी परिचर्या करता है, हे अमर अग्निदेव! वह याजकगण मनुष्यों के बीच में प्रकृष्ट ज्ञान से युक्त होता है और धन तथा द्युतिमान् अन्न से अत्यधिक शोभित होता है।[ऋग्वेद 6.5.5]
Hey immortal Agni Dev, son of Bal! The Ritviz who serve you with fuel, weapons and excellent Strotr, become enlightened amongest the humans and is blessed with wealth, food grains by you.
स तत्कृधीषितस्तूयमग्ने स्पृधो बाधस्व सहसा सहस्वान्।
यच्छस्यसे द्युभिरक्तो वचोभिस्तज्जुषस्व जरितुर्घोषि मन्म
हे अग्नि देव! आप जिस कार्य के लिए प्रेषित हुए हैं, उस कार्य को शीघ्र ही करें। आप बलवान् हैं; इसलिए दूसरों को अभिभूत करने वाले बल से शत्रुओं को विनष्ट करें। स्तुति रूप वचन से जो स्तोता आपका स्तवन करता है, उस स्तोता के उच्चारित स्तोत्र का आप सेवन करें। हे अग्नि देव! आप द्युतिमान् तेज से युक्त हैं।[ऋग्वेद 6.5.6]
Hey Agni Dev possessing aura-shine! Quickly perform the job indebted-assigned to you. Being mighty, destroy the enemy who trouble-torture others. Respond to the prayers recited by the Stota.
अश्याम तं काममग्ने तवोती अश्याम रयिं रयिवः सुवीरम्।
अश्याम वाजमभि वाजयन्तोऽश्याम द्युम्नमजराजरं ते
हे अग्नि देव! आपकी रक्षा द्वारा हम अभिलषित फल प्राप्त करें। हे धनाधिपति! हम शोभन पुत्रादि से युक्त धन प्राप्त करें। अन्नाभिलाषी होकर हम आपके द्वारा प्रदत्त अन्न लाभ करें। हे वृद्धावस्थारहित अग्निदेव! हम आपके अजर और द्युतिमान् यश को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.5.7]
Hey wealthy Agni Dev, free from old age! Let us achieve the desired rewards-accomplishments. Let us have brilliant sons and wealth. We should get food grains being needy. We should be blessed with your immortal-ever lasting glory.(26.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्नि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र नव्यसा सहसः सूनुमच्छा यज्ञेन गातुमव इच्छमानः।
वृश्चद्वनं कृष्णयामं रुशन्तं वीती होतारं दिव्यं जिगाति
प्रार्थना के योग्य बल पुत्र अग्नि देव के निकट अन्न की अभिलाषा करने वाले याजकगण नवीन यज्ञ से युक्त होकर गमन करते हैं। अग्नि देव वन को दग्ध करने वाले, कृष्णवर्त्मा, श्वेत वर्ण, कमनीय, होता और स्वर्गीय हैं।[ऋग्वेद 6.6.1]
कमनीय  :: जिसकी कामना की जाए, काम्य, सुंदर, आकर्षक, मनोहर, चाहने योग्य, कामना योग्य; desirable, beautiful, attractive.
People desirous of food grains worship Agni Dev, son of Bal and prostrate before him performing a new Yagy-endeavour. Agni Dev is attractive, fair coloured, shinning brightly, heavenly host who burn-roast the forests following dark path.
स श्वितानस्तन्यतू रोचनस्था अजरेभिर्नानदद्भिर्यविष्ठः।
यः पावकः पुरुतमः पुरूणि पृथून्यग्निरनुयाति भर्वन्
अग्नि देव श्वेत वर्ण, शब्द कारी, अन्तरिक्ष में वर्तमान, अजर और अत्यन्त शब्दकारी मरुतों के साथ मिलित एवं युवतम हैं। ये पावक और सुमहान् हैं। वे असंख्य स्थूल काष्ठों का भक्षण करके अनुगमन करते हैं।[ऋग्वेद 6.6.2]
Agni Dev is fair skinned, sound producing, present in the sky-space with the Marud Gan, immortal and youth. He is great and proceed further engulfing unlimited woods.
वि ते विंष्वग्वातजूतासो अग्ने भामासः शुचे शुचयश्चरन्ति।
तुविप्रक्षासो दिव्या नवग्वा वना वनन्ति धृषता रुजन्तः
हे विशुद्ध अग्नि देव! आपकी प्रदीप्त शिखाएँ पवन द्वारा सञ्चालित होकर बहुत से काष्ठों को भक्षण करती हैं और सभी जगह व्याप्त होती हैं। प्रदीप्त अग्नि देव से सम्भूत नवोत्पन्न रश्मियाँ घर्षणकारी दीप्ति द्वारा वनों को मज्जित करती हुई जलाती हैं।[ऋग्वेद 6.6.3]
मज्ज :: pulp.
Hey pure-pious Agni Dev! Your bright flames aided by the air-Pawan Dev, consume several woods pervading all places. Newly raised flames of radiant Agni Dev burn the forests-trees rubbing together.
ये ते शुक्रासः शुचयः शुचिष्मः क्षां वपन्ति विषितासो अश्वाः।
अध भ्रमस्त उर्विया विभाति यातयमानो अधि सानु पृश्नेः
हे दीप्ति सम्पन्न अग्नि देव! आपकी जो सम्पूर्ण शुभ्र रश्मियाँ पृथ्वी के केश स्थानीय औषधियों को जलाती हैं, वे विमुक्त अश्वों के समान इतस्ततः गमन करती है। आपकी भ्रमणशील शिखाएँ विचित्र रूप पृथ्वी के ऊपर स्थित उन्नत प्रदेश पर आरोहण करके विराजित होती है।[ऋग्वेद 6.6.4]
Hey radiant Agni Dev! Your bright flames burn the herbs-vegetation which are like the hair of earth. They move further like a free horse, continuously. Your movable flames amazingly step up over the heights. 
अध जिह्वा पापतीति प्र वृष्णो गोषुयुधो नाशनिः सृजाना।
शूरस्येव प्रसितिः क्षातिरग्नेर्दुर्वर्तुर्भीमो दयते वनानि
वर्षणकारी अग्नि देव की शिखाएँ बारम्बार निर्गत होती हैं, जिस प्रकार से गौओं के लिए युद्ध करने वाले इन्द्र देव के द्वारा प्रयुक्त वज्र बारम्बार निर्गत होता है। वीरों के पौरुष के समान अग्नि देव की शिखा दुःसह, दुर्निवार है। भयंकर अग्निदेव वनों को जलाते हैं।[ऋग्वेद 6.6.5]
दुर्निवार :: जिसे जल्दी न रोका जा सके, जिसका निवारण कठिन हो; unrestrainable, inevitable, irrepressible.
Flames-arms of Agni Dev evolve again and again leading to rains, like the Vajr of Indr Dev which is launched to release the cows. The peaks-high rise flames of  furious Agni Dev are irrepressible, un tolerable and roast the forests.
आ भानुना पार्थिवानि ज्रयांसि महस्तोदस्य धृषता ततन्थ।
स बाधस्वाप भया सहोभिः स्पृधो वनुष्यन्वनुषो नि जूर्व
हे अग्नि देव! आप प्रबल और उत्तेजक रश्मियों द्वारा पृथ्वी के गन्तव्य स्थानों को दीप्ति द्वारा आच्छादित करें। आप सम्पूर्ण विपत्तियों को दूर करें एवं अपने तेजः प्रभाव से स्पर्द्धाकारियों को अभिभूत करके शत्रुओं को नष्ट करें।[ऋग्वेद 6.6.6]
Hey Agni Dev! You pervade the distant-destined places of earth with your strong-powerful and exciting rays. Remove all obstacles and destroy the competing enemies.
स चित्र चित्रं चितयन्तमस्मे चित्रक्षत्र चित्रतमं वयोधाम्।
चन्द्रं रयिं पुरुवीरं बृहन्तं चन्द्र चन्द्राभिर्गृणते युवस्व
हे विचित्र अद्भुत बल सम्पन्न, आनन्ददायक अग्नि देव! हम लोग, आह्लादक स्तोत्रों द्वारा आपका स्तवन करते हैं। आप हमें अद्भुत, अत्यद्भुत् यशस्कर, अन्न दायक और पुत्र-पौत्रादि समन्वित विपुल ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.6.7]
Hey amazingly powerful, pleasure granting Agni Dev! We worship you with pleasing Strotr-sacred hymns. Ensure that we are blessed with grandeur, amazing wealth, food grains, sons & grandsons.(28.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- वैश्वानर; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
मूर्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत आ जातमग्निम्।
कविं सम्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रं जनयन्त देवाः
वैश्वानर अग्नि देव स्वर्ग के शिरोभूत, भूमि में गमन करने वाले, यज्ञ के लिए उत्पन्न, ज्ञान सम्पन्न, भली-भाँति से राजमान, याजकगणों के अतिथि स्वरूप, मुख स्वरूप और रक्षा विधायक हैं। हे देवों! ऋत्विकों ने ही अग्नि देव को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 6.7.1]
Vaeshwanar Agni Dev is like the apex of heavens, moving over the earth, evolved for the Yagy, enlightened, shining, host of the Ritviz, mouth of demigods-deities and planer of protection. Hey demigods-deities! The Ritviz have evolved-created fire-Agni Dev.
नाभिं यज्ञानां सदनं रयीणां महामाहावमभि सं नवन्त।
वैश्वानरं रथ्यमध्वराणां यज्ञस्य केतुं जनयन्त देवाः
स्तोता लोग यज्ञ के बन्धक, धन के स्थान और हव्य के आश्रय स्वरूप अग्नि देव का भली-भाँति से स्तवन करते हैं। देवगण यज्ञीय द्रव्यों के वहनकारी और यज्ञ के केतु स्वरूप वैश्वानर अग्नि देव को उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 6.7.2]
The Stotas properly pray-worship the Yagy site, place of keeping wealth and Agni Dev who is the protector of offerings. The demigods-deities evolve the Vaeshwanar Agni Dev who carries forward the Yagy related materials.
त्वद्विप्रो जायते वाज्यग्ने त्वद्वीरासो अभिमातिषाहः।
वैश्वानर त्वमस्मासु धेहि वसूनि राजन्त्स्पृहयाय्याणि
हे अग्नि देव! हवीरूप अन्न से युक्त पुरुष आपके समीप से ही ज्ञानवान् होता है। वीर लोग आपके समीप से ही शत्रुओं को पराजित करते हैं। इसलिए हे दीप्तिशाली वैश्वानर! आप हम लोगों को मनोवाञ्छित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.7.3]
Hey Agni Dev! A person possessing food grains become enlightened when he comes to you. The brave warriors defeat the enemy in your presence. Hence, hey Vaeshwanar! Grant us desired wealth. 
त्वां विश्वे अमृत जायमानं शिशुं न देवा अभि सं नवन्ते।
तव क्रतुभिरमृतत्वमायन्वैश्वानर यत्पित्रोरदीदेः
हे अमरण शील अग्नि देव! आप पुत्र के तुल्य अरणिद्वय से उत्पन्न हुए हैं। समस्त देवगण आपका स्तवन करते हैं। हे वैश्वानर! जब आप पालक द्यावा-पृथ्वी के बीच दीप्यमान होते हैं, तब याजकगण लोग आपके यज्ञकार्य द्वारा अमरत्व प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.7.4]
Hey immortal Agni Dev! You evolve out of wood like a son. All demigods-deities worship you. Hey Vaeshwanar! When you establish yourself between the heavens & the earth, the Ritviz attain immortality by virtue of performing Yagy.
वैश्वानर तव तानि व्रतानि महान्यग्ने नकिरा दधर्ष।
यज्जायमानः पित्रोरुपस्थेऽविन्दः केतुं वयुनेष्वह्नाम्
हे वैश्वानर! आपके उन प्रसिद्ध महान् कर्मों में कोई भी बाधा उपस्थित नहीं कर सकता। पितृ-मातृ स्वरूप द्यावा-पृथ्वी के क्रोड़भूत अन्तरिक्ष मार्ग में उत्पन्न होकर आपने दिवसों के प्रज्ञापक सूर्य देव को अन्तरिक्ष पथ में स्थापित किया।[ऋग्वेद 6.7.5]
Hey Vaeshwanar! None can interfere in your great endeavours-deeds. You established Sun-Sury Dev in the revolving cycle arising between the heavens & the earth, like nucleus.
वैश्वानरस्य विमितानि चक्षसा सानूनि दिवो अमृतस्य केतुना।
तस्येदु विश्वा भुवनाधि मूर्धनि वया इव रुरुहुः सप्त विस्रुहः
वैश्वानर के वारिप्रज्ञापक तेज द्वारा द्युलोक के उन्नत स्थल निर्मित हुए। वैश्वानर के शिरः स्थान में जलराशि अवस्थान करती हैं एवं उससे सात नदियाँ शाखा के सदृश उद्भूत होती हैं अर्थात् आहुति द्वारा सम्पूर्ण जगत् अग्नि देव से उत्पन्न होता है।[ऋग्वेद 6.7.6]
The elevated sites of heavens evolved by virtue of Vaeshwanar's water creating energy. Water reservoirs are seated over the head of Vaeshwanar, from where the seven pious rivers have originated. The entire universe originated from the offerings made to Agni Dev.
वि यो रजांस्यमिमीत सुक्रतुर्वैश्वानरो वि दिवो रोचना कविः।
परि यो विश्वा भुवनानि पप्रथेऽदब्धो गोपा अमृतस्य रक्षिता
शोभन कर्म करने वाले जिन वैश्वानर अग्नि देव ने लोकों का निर्माण किया, ज्ञान सम्पन्न होकर जिन्होंने द्युलोक के दीप्तिमान् नक्षत्रों को सृष्ट किया और जिन्होंने समस्त भूतजात को चतुर्दिक प्राप्त किया, वे अजेय, पालक और वारि रक्षक अग्नि देव विराजित होते हैं।[ऋग्वेद 6.7.7]
Vaeshwanar Agni Dev who created the various abodes in the universe and on being enlightened who created the constellations, created four directions over the earth, that invincible, nurturer and protector of water is seated-established.(29.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- वैश्वानर; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
पृक्षस्य वृष्णो अरुषस्य नू सहः प्र नु वोचं विदथा जातवेदसः।
वैश्वानराय मतिर्नव्यसी शुचिः सोमइव पवते चारुरग्नये
हम लोग सर्वव्यापी, वारि वर्षक और दीप्तिमान् जातवेदा के बल के लिए इस यज्ञ में भली-भाँति से स्तुति करते हैं। वैश्वानर अग्नि देव के सम्मुख नवीन, निर्मल और शोभन स्तोत्र सोमरस के तुल्य निर्गत होता है।[ऋग्वेद 6.8.1]
We worship for the strength of Jat Veda-Agni Dev in the Yagy properly. The new, pure and beautiful Strotr, is evolved like Somras. 
स जायमानः परमे व्योमनि व्रतान्यग्निव्रतपा अरक्षत।
व्य१न्तरिक्षममिमीत सुक्रतुर्वैश्वानरो महिना नाकमस्पृशत्
सत्कर्म पालक वैश्वानर उत्कृष्ट आकाश में प्रकाशित होकर लौकिक तथा वैदिक दोनों कर्मों की रक्षा करते हैं और अन्तरिक्ष का परिमाण करते हैं। शोभन कर्म करने वाले वैश्वानर अपनी महिमा से स्वर्ग का स्पर्श करते हैं।[ऋग्वेद 6.8.2]
The protector of virtuous, both divine and Vaedic deeds, Vaeshwanar asses the quantum of the space. Performer of glorious deeds Vaeshwanar touches the heavens by virtue of his deeds.
व्यस्तभ्नाद्रोदसी मित्रो अद्भुतोऽन्तर्वावदकृणोज्ज्योतिषा तमः।
वि चर्मणीव धिषणे अवर्तयद्वैश्वानरो विश्वमधत्त वृष्ण्यम्
सभी के मित्रभूत और महान् आश्चर्यभूत वैश्वानर ने द्यावा-पृथ्वी को अपने-अपने स्थान पर विशेष रूप से स्तम्भित किया। तेज द्वारा उन्होंने अन्धकार को अन्तर्हित किया। आधारभूत द्यावा-पृथ्वी को उन्होंने पशुचर्म के तुल्य विस्तृत किया। वैश्वानर अग्निदेव समस्त देवों को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 6.8.3]
स्तंभित :: निश्चल, निस्तब्ध, सुन्न; benumbed, flabbergasted.
Vaeshwanar, friendly with all, benumbed the earth & heavens. He removed darkness with his aura. He extended-stretched the heavens & the earth like the skin of animals. Vaeshwanar Agni Dev support all demigods-deities.
अपामुपस्थे महिषा अगृभ्णत विशो राजानमुप तस्थुर्ऋग्मियम्।
आ दूतो अग्निमभरद्विवस्वतो वैश्वानरं मातरिश्वा परावतः
महान् मरुतों ने अन्तरिक्ष के बीच में अग्नि देव को धारित किया और मनुष्यों ने पूजनीय स्वामी कहकर इनकी प्रार्थना की। देवों के दूत दूर देश स्थित सूर्य मण्डल से वैश्वानर अग्नि देव को इस लोक में ले आये।[ऋग्वेद 6.8.4]
The great Marud Gan supported Agni Dev in the space and the humans worshiped him. The ambassador of demigods-deities brought Vaeshwanar Agni Dev to earth from the solar system.
युगेयुगे विदथ्यं गृणद्भ्योऽग्ने रयिं यशसं धेहि नव्यसीम्।
पव्येव राजन्नघशंसमजर नीचा नि वृश्च वनिनं न तेजसा
हे अग्नि देव! आप याग योग्य है। आपके उद्देश्य से जो नवीन स्तोत्र का उच्चारण करते हैं, उन्हें आप धन और यशस्वी पुत्र प्रदान करें। हे जरा रहित और राजमान अग्नि देव! आप अपने तेज द्वारा शत्रुओं को उसी प्रकार नष्ट करें, जिस प्रकार से वज्र वृक्ष को नष्ट करता है।[ऋग्वेद 6.8.5]
Hey Agni Dev! You deserve worship. Grant great-glorious sons & wealth to one who recite new Strotr for you. Free from old age, radiant Agni Dev! You destroy the enemies with your power-energy just like the Vajr destroys the trees.
अस्माकमग्ने मघवत्सु धारयानामि क्षत्रमजरं सुवीर्यम्।
वयं जयेम शतिनं सहस्रिणं वैश्वानर वाजमग्ने तवोतिभिः
हे अग्नि देव! हम लोग हविर्लक्षण धन से युक्त हैं। हमें आप अनपहार्य, अक्षय और सुवीर्ण धन प्रदान करें। हे वैश्वानर अग्नि देव! हम आपके द्वारा रक्षित होकर हजारों गुना अन्न लाभ प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.8.6]
अनपहार्य :: विकल्प हीन; indispensable, inalienable.
Hey Agni Dev! We possess the offerings and wealth. Grant us indispensable-inalienable wealth. Hey Vaeshwanar Agni Dev! We will gain thousands times food grains on being protetced by you.
अदब्धेभिस्तव गोपाभिरिष्टेऽस्माकं पाहि त्रिषधस्थ सूरीन्।
रक्षा च नो ददुषां वैशालय प च तारी: स्तवानः
हे तीनों लोकों में स्थित अग्नि देव! किसी के द्वारा भी अहिंसित और रक्षाकारी बल द्वारा आप स्तोताओं और याजकों की रक्षा करें। हे वैश्वानर अग्नि देव! आप हम हव्य दाताओं के बल की रक्षा करें। हम लोग आपका स्तवन करते हैं, आप हमें समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.8.7]
Hey Agni Dev, present in the three abodes! Protect the Stotas & the Ritviz unharmed by any one with protective means-devices. Hey Vaeshwanar Agni Dev! Protect us the people, making offerings. We worship you. Grant us prosperity. (29.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अहश्च कृष्णमहरर्जुनं च वि वर्तेते रजसी वेद्याभिः।
वैश्वानरो जायमानो न राजावातिरज्ज्योतिषाग्निस्तमांसि
कृष्ण वर्ण रात्रि और शुक्ल वर्ण दिवस अपनी-अपनी ज्ञातव्य प्रवृत्ति द्वारा सम्पूर्ण जगत् को रञ्जित करके नियत परिवर्तित होते हैं। वैश्वानर अग्नि देव राजा के सदृश प्रकाशित होकर दीप्ति द्वारा अन्धकार का नाश करते हैं।[ऋग्वेद 6.9.1]
Dark coloured night and white coloured day pervade the whole universe according to their nature. Vaeshwanar Agni Dev shine like a king and remove darkness.
नाहं तन्तुं न वि जानाम्योतुं न यं वयन्ति समरेऽतमानाः।
कस्य स्वित्पुत्र इह वक्त्वानि परो वदात्यवरेण पित्रा
हम तन्तु (सूत्र) अथवा ओतु (तिरश्चीन सूत्र) नहीं जानते हैं एवं सतत् चेष्टा द्वारा जो वस्त्र बुने जाते हैं, वह भी हमें अवगत नहीं है। इस लोक में अवस्थित पिता द्वारा उपदिष्ट होकर किसका पुत्र अन्य जगत् के वक्तव्य वाक्यों को बोलने में समर्थ होता है?[ऋग्वेद 6.9.2]
ओतु :: ताना, बिल्ली, बिड़ाल, मार्जार; thread used in weaving.
ताना-बाना :: cross threads used to weave cloths, vertical & horizontal threads used to weave cloth.
Neither we know about the vertical & horizontal threads used to weave cloth nor the efforts used to weave it. Who's son of a father of this abode, speaks the words-sentences of other abodes?!
स इत्तन्तुं स वि जानात्योतुं स वक्त्वान्यृतुथा वदाति।
य ईं चिकेतदमृतस्य गोपा अवश्चरन्परो अन्येन पश्यन्
एकमात्र वैश्वानर ही तन्तु एवं ओतु को जानते हैं। वे समय-समय पर वक्तव्यों को कहते हैं। जलरक्षक और भूलोक में संचरण करने वाले अग्नि देव अन्तरिक्ष में सूर्यरूप से सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करते हुए इन परिदृश्यमान भूतों को अवगत करते हैं।[ऋग्वेद 6.9.3]
Its only Vaeshwanar who is aware of cross threads of a cloth. He recite such statements time and again. Agni Dev who is the protector of water, moves over the earth, shines in the space like Sun-Sury Dev, is aware of this all.
अयं होता प्रथमः पश्यतेममिदं ज्योतिरमृतं मर्त्येषु।
अयं स जज्ञे ध्रुव आ निषत्तो ऽ मर्त्यस्तन्वा ३ वर्धमानः
हे मनुष्यों! ये वैश्वानर अग्नि देव ही प्रथम होता हैं। आप लोग अग्निदेव का भजन करें। अमरणशील अग्नि देव मरणशील शरीर में जाठर रूप से स्थित रहते हैं। निश्चल, सर्वव्यापी, अक्षय अग्नि शरीर, धारणपूर्वक उत्पन्न और वर्द्धमान् होते हैं।[ऋग्वेद 6.9.4]
अक्षय :: अविनाशी; inexhaustible, unspent.
Hey humans! Vaeshwanar Agni Dev is the first host. Worship Agni Dev. Immortal Agni Dev is present in the stomach-body of person ready to die. Stationary, pervading all, inexhaustible Agni Dev become with form-shape, evolve and grow.
ध्रुवं ज्योतिर्निहितं दृशये कं मनो जविष्ठं पतयत्स्वन्तः।
विश्वे देवाः समनसः सकेता एकं क्रतुमभि वि यन्ति साधु
मन की अपेक्षा भी अतिशय वेगवान् निश्चल ज्योति सुख के मार्गों को प्रदर्शित करने के लिए जंगम जीवों में अन्तर्निहित रहती हैं। सम्पूर्ण देवगण एकमत और समान प्रज्ञ होकर सम्मान के साथ प्रधान कर्मकर्ता वैश्वानर के सम्मुख अर्थात् सामने आते हैं।[ऋग्वेद 6.9.5]
Much faster than the mind, stationary flame, aura-radiance to show the path  is present in the organism. All demigods-deities come to the head priest Vaeshwanar & honour him in one voice.
वि मे कर्णा पतयतो वि चक्षुर्वी ३ दं ज्योतिर्हृदय आहितं यत्।
वि मे मनश्चरति दूरआधीः किं स्विद्वक्ष्यामि किमु नू मनिष्ये
आपके गुण को श्रवण करने के लिए हमारे कर्णद्वय और आपके रूप को देखने के लिए हमारे चक्षु लालायित होते हैं। हृदय कमल में जो ज्योति (बुद्धि) निहित है, वह भी आपके स्वरूप को अवगत करने के लिए उत्सुक होती है। दूरस्थ विषयक चिन्ता से युक्त हमारा हृदय आपके अभिमुख धावित होता है। हम वैश्वानर के किस प्रकार के स्वरूप का वर्णन करें अथवा किस रूप में उन्हें हृदय में धारण करें।[ऋग्वेद 6.9.6]
धावित :: साफ, शुद्ध ; clean, pure.
Our ears are eager-ready to listen to your virtues and our eyes are willing to see you. Our intelligence to is eager to be aware of your embodiment. Our heart possessing all sorts of problems become clean-pure in front of you. How to describe the image of Vaeshwanar and keep him in the heart and keep it in our hearts?!
विश्वे देवा अनमस्यन्भियानास्त्वाम तमसि तस्थिवांसम्।
वैश्वानरोऽवतूतये नोऽमर्त्योऽवतूतये नः
हे वैश्वानर! समस्त देवगण आपको नमस्कार करते हैं। आप अन्धकार में स्थित हैं। वैश्वानर अपनी रक्षा द्वारा हम लोगों की रक्षा करें। अमर अग्नि देव अपनी रक्षा द्वारा हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.9.7]
Hey Vaeshwanar! All demigods-deities salute you. You are present in the darkness. Let Vaeshwanar protect us by protecting himself. Immortal Agni Dev should protect himself and us.(30.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्, द्विपदा, विराट्।
पुरो वो मन्द्रं दिव्यं सुवृक्तिं प्रयति यज्ञे अग्निमध्वरे दधिध्वम्।
पुर उक्थेभिः स हि नो विभावा स्वध्वरा करति जातवेदाः
हे यजमानों! आप लोग इस प्रवर्तमान, विघ्न रहित यज्ञ में स्तवनीय, स्वर्गोद्भव और सब प्रकार से दोष विवर्जित अग्नि देव को स्तोत्रों द्वारा सम्मुख में स्थापित करें; क्योंकि जातवेदा यज्ञ में हम लोगों का समृद्धि विधान करते हैं।[ऋग्वेद 6.10.1]
प्रवर्तमान :: चलने-होने वाले; in operation, unrepealed.
Hey hosts! Install-establish Agni Dev in the Yagy in operation, free from disturbances with Strotrs, since Jatveda make efforts for our progress in the Yagy.
तमु द्युमः पुर्वणीक होतरग्ने अग्निभिर्मनुष इधानः।
स्तोमं यमस्मै ममतेव शूषं घृतं न शुचि मतयः पवन्ते
हे दीप्तिमान् बहुज्वाला विशिष्ट देवों के आह्वान कर्ता अग्नि देव! अपने अवयवभूत अन्य अग्नियों के साथ समिद्धमान होकर आप मनुष्य स्तोता के इस स्तोत्र का श्रवण करें। स्तोता लोग ममता के सदृश अग्नि देव के उद्देश्य से मनोहर स्तोत्रों को घृत के तुल्य अर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 6.10.2]
आव्हान  :: बुलाना, निमन्त्रण देना, पुकारना, आमंत्रित करना, मंत्र द्वारा देवता को बुलाना,  किसी नेक अभियान में कर्मरत होने के लिए सामूहिक आमंत्रण; evoke, invite, call. 
Hey radiant, possessing several flames, invoker of specific demigods-deities Agni Dev! Listen-respond to the Strotr of the Stota. The hosts-Stota make offerings of beautiful Strotr like Ghee due to their affection for you. 
पीपाय स श्रवसा मर्त्येषु यो अग्नये ददाश विप्र उक्थैः।
चित्राभिस्तमूतिभिश्चित्रशोचिर्वजस्य साता गोमतो दधाति
जो यजमान स्तोत्र के साथ अग्नि में हव्य प्रदान करता है, वह मनुष्यों के बीच में अग्निदेव द्वारा समृद्धि प्राप्त करता है। विचित्र दीप्ति वाले अग्नि देव! विचित्र या आश्चर्यभूत रक्षा के द्वारा उस याजकगण को गौयुक्त गोष्ठ के भोग का अधिकारी बनाते हैं।[ऋग्वेद 6.10.3]
The Ritviz who makes offerings with the recitation of Strotr in the fire is granted prosperity-progressed by Agni Dev. Hey Agni Dev, with amazing brilliance! You make the Ritviz owner of cow shed through wonderful protection.
आ यः प्रपौ जायमान उर्वी दूरेदृशा भासा कृष्णाध्वा।
अध बहु चित्तम ऊर्म्यायास्तिरः शोचिषा ददृशे पावकः
प्रादुर्भूत होकर कृष्णवर्त्मा अग्नि देव ने दूर से ही दृश्यमान दीप्ति द्वारा विस्तीर्ण द्यावा-पृथ्वी को पूर्ण किया। वह पावक अग्नि देव रात्रि के घनघोर अन्धकार को अपनी ज्वालाओं द्वारा नष्ट करते हैं और परिदृश्यमान होते हैं।[ऋग्वेद 6.10.4]
वर्त्म (वर्त्मा) :: पलक; eyelid, blepharon.
After evolution Agni Dev with black eyelids covered the earth & heavens with his light. Agni Dev removes dense-deep darkness with his flames and make every thing visible.
नू नश्चित्रं पुरुवाजाभिरूती अग्ने रयिं मघवद्भ्यश्च धेहि।
ये राधसा श्रवसा चात्यन्यान्त्सुवीर्येभिश्चाभि सन्ति जनान्
हे अग्नि देव! हम लोग हविर्लक्षण धन से युक्त हैं। हमें आप शीघ्र ही बहुत अन्न और रक्षा के साथ ही विचित्र धन प्रदान करें। धन, अन्न और उत्कृष्ट वीर्य द्वारा अन्य मनुष्यों को जो पराजित कर सके, ऐसा पुत्र हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.10.5]
Hey Agni Dev! We possess various offerings and riches. Protect us and grant us a lots of food grains and amazing wealth. Grant us a son with wealth, food grains and excellent valour-power, who can not be defeated by other people.
इमं यज्ञं चनो धा अग्न उशन्यं त आसानो जुहुते हविष्मान्।
भरद्वाजेषु दधिषे सुवृक्तिमवीर्वाजस्य गध्यस्य सातौ
हे अग्नि देव! बैठकर जो हव्य युक्त याजकगण आपके लिए हवन करता है, आप हव्याभिलाषी होकर उस यज्ञ में आहुति को ग्रहण करें। भरद्वाज वंशीयों के निर्दोष स्तोत्र को ग्रहण करें। उनके प्रति अनुग्रह करें, जिससे वे नाना प्रकार का अन्न प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 6.10.6]
Hey Agni Dev! Accept the offerings of the Ritviz in the Yagy, who possess offerings and conduct Hawan. Accept the flawless Strotr of the descendants of Bhardwaj Rishi. Be kind to them, so that they are able to have various kinds of food grains.
विद्वेषांसीनुहि वर्धयेळां मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे अग्नि देव! हमारे शत्रुओं को नष्ट करें। हम लोगों के अन्न को वर्द्धित करें। हम लोग शोभन पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर सौ हेमन्तपर्यन्त सुख का भोग कर सकें।[ऋग्वेद 6.10.7]
Hey Agni Dev! Destroy our enemies. Grow our food grain stock. Let us survive for hundred years comfortably, with decent-lovely sons & grandsons.(31.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
यजस्व होतरिषितो यजीयानग्ने बाधो मरुतां न प्रयुक्ति।
आ नो मित्रावरुणा नासत्या द्यावा होत्राय पृथिवी ववृत्याः
हे देवों के आह्वानकारी तथा यजन करने वालों में श्रेष्ठ! हम लोग आपकी प्रार्थना करते हैं। आप अभी हम लोगों के इस आरब्ध यज्ञ में शत्रु बाधक मरुतों का यजन करें। आप मित्र, वरुण, अश्विनी कुमारों को और द्यावा-पृथ्वी को हमारे यज्ञ में आहूत करें।[ऋग्वेद 6.11.1]
आरब्ध :: आरंभ किया हुआ, शुरू किया हुआ; begun, started.
Hey invoker of demigods-deities and the best amongest Ritviz! We worship you. Invite Marud Gan who restrain the enemies, in our Yagy which has begun. Invoke Mitr-Varun, Ashwani Kumars and the earth-heavens in our Yagy.
त्वं होता मन्द्रतमो नो अध्रुगन्तर्देवो विदथा मर्त्येषु।
पावकया जुह्वा ३ वह्निरासाग्ने यजस्व तन्वं १ तव स्वाम्
हे अग्रि देव! आप अतिशय स्तवनीय, हम लोगों के प्रति द्रोह रहित और दानादि गुण युक्त है। आप हव्य वहन करने वाले हैं। आप शुद्धि विधायक और देवों के मुख स्वरूप ज्वाला के द्वारा अपने शरीर का पोषण करें।[ऋग्वेद 6.11.2]
द्रोह :: दुष्टता, हानिकरता, द्वेष, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता, नुक़सान देहता, कपट, नमक हरामी, बेवफ़ाई, राज-द्रोहिता; treachery, malignancy, disloyalty, malevolence.
Hey Agni Dev! You are highly worshipable and possess the quality of donation without treachery, malignancy. You are the mouth of the demigods-deities,  nourish your body and maintain purity-virtues, piousness.
धन्या चिद्धि त्वे धिषणा वष्टि प्र देवाञ्जन्म गृणते यजध्यै।
वेपिष्ठो अङ्गिरसां यद्ध विप्रो मधुच्छन्दो भनति रेभ इष्टौ
हे अग्नि देव! धनाभिलाषिणी स्तुति आपकी कामना करती हैं; क्योंकि आपके प्रादुर्भाव से इन्द्रादि देवों के यजन में याजकगण सफल होते हैं। ऋषियों के बीच में अंगिरा प्रार्थना के अतिशय प्रेरक हैं और मेधावी भारद्वाज यज्ञ में हर्ष कारक स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 6.11.3]
Hey Agni Dev! We pray with the desire of wealth. The Ritviz become successful in the worship of Indr Dev etc. demigods-deities, by virtue of your evolution. Amongest the sages Angira's prayers are inspiring. Intelligent Bhardwaj recite Strotr which produce happiness-pleasure.
अदिद्युतत्स्वपाको विभावाने यजस्व रोदसी उरूची।
आयुं न यं नमसा रातहव्या अञ्जन्ति सुप्रयसं पञ्च जनाः
बुद्धिमान् और दीप्तिमान् अग्नि देव भली-भाँति से शोभा पाते हैं। हे अग्नि देव! आप विस्तृत द्यावा-पृथ्वी का हव्य द्वारा पूजन करें। आप शोभन हव्य युक्त है। मनुष्य याजकगण के समान अग्नि देव को हवि देने वाले ऋत्विक् याजकगणादि हव्य द्वारा तृप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.11.4]
शोभा :: सौंदर्य, सुंदरता, सौष्ठव, सौम्यता, छवि, महिमा, प्रताप, प्रतिष्ठा, गर्व, यश, चमक, द्युति, आभा, आलोक, तेज; glory, beauty, lustre.
शोभन :: ललित,  शोभनीय, पयुक्त, उपयुक्त, स्वच्छ, संगत; suitable, seemly, decent, nice.
Intelligent and radiant Agni Dev is properly glorified. Hey Agni Dev! Worship vast earth-heavens with offerings. You possess nice offerings. Humans satisfy Agni Dev by making offerings, like the Ritviz.
वृञ्जे ह यन्नमसा बर्हिरग्नावयामि स्रुग्घृतवती सुवृक्तिः।
अम्यक्षि सद्म सदने पृथिव्या अश्रायि यज्ञः सूर्ये न चक्षुः
जब अग्नि देव के समीप हव्य के साथ कुश आनीत होता है एवं दोष वर्जित घृत पूर्ण स्रुक कुश के ऊपर रखा जाता है, तब भूमि के ऊपर अग्नि देव के लिए आधारभूत वेदि निर्मित की जाती है। जिस प्रकार से सूर्य देव से नेत्र आश्रय पाते हैं, उसी प्रकार याजकगण का यज्ञकार्य पूर्ण होता है।[ऋग्वेद 6.11.5]
Kush Mat is laid near the offerings and defectless Struk full of Ghee is kept over the Kush, Vedi is made over the site-earth for the sake of Agni Dev. The manner in which the eyes obtain shelter from the Sun, similarly the Yagy is accomplished by the Ritviz.
दशस्या नः पुर्वणीक होतर्देवेभिर अग्निभिरिधानः।
रायः सूनो सहसो वावसाना अति स्त्रसेम वृजनं नांहः
हे बहुज्वाला विशिष्ट देवों के आह्वान कर्ता अग्नि देव! आप दीप्तिशाली अन्य अग्नियों के साथ प्रदीप्त होकर हम लोगों को धन प्रदान करें। हे बल पुत्र ! हम लोग हवि द्वारा आपको आच्छादित करते हैं। शत्रुवत् पाप से हम लोगों को मुक्त करें।[ऋग्वेद 6.11.6]
Hey invoker of  deities Agni Dev, possessing specific flames with multiple branches! Hey radiant Agni dev grant us wealth along with other Agnis. Hey son of Bal! We cover you with offerings. Save us from the sin as an enemy.(31.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (12) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
मध्ये होता दुरोणे बर्हिषो राळग्निस्तोदस्य रोदसी यजध्यै।
अयं स सूनुः सहस ऋतावा दूरात्सूर्यो न शोचिषा ततान
देवों के आह्वानकारी और यज्ञ के अधिपति अग्नि देव द्यावा-पृथ्वी का यजन करने के लिए याजकगण के घर में उपस्थित होते हैं। यज्ञ सम्पन्न, बल पुत्र अग्नि देव दूर से ही दीप्ति के द्वारा सम्पूर्ण जगत् को सूर्य देव के सदृश प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 6.12.1]
Invoker of the demigods-deities, deity of the Yagy Agni Dev present himself at the house of the Ritviz to worship the earth-heavens. Accomplisher of the Yagy, son of Bal, Agni Dev lit the whole universe like the Sun-Sury Dev from a distance.
आ यस्मिन्त्वे स्वपाके यजत्र यक्षद्राजन्त्सर्वतातेव नु द्यौः।
त्रिषधस्थस्ततरुषो न जंहो हव्या मघानि मानुषा यजध्यै
हे यागार्ह, दीप्ति सम्पन्न अग्नि देव! आप बुद्धि सम्पन्न है। सम्पूर्ण याजकगण आपको आग्रह पूर्वक प्रचुर हव्य समर्पण करते हैं। आप तीनों लोकों में अवस्थित होकर मनुष्य के द्वारा दिए गए उत्कष्ट हव्य को देवताओं के समीप वहन करने के लिए सूर्य देव के सदृश वेगशाली हों।[ऋग्वेद 6.12.2] 
Desirous of Yagy, radiant Agni Dev! You possess intelligence. Every Ritviz insist upon making offerings to you. You should pervade the three abodes and carry the excellent offerings-oblations to the demigods-deities with the speed of Sun.
तेजिष्ठा यस्यारतिर्वनेराट् तोदो अध्वन्न वृधसानो अद्यौत्।
अद्रोघो न द्रविता चेतति त्मन्नमर्त्योऽवर्त्र ओषधीषु
जिनकी सर्वव्यापिनी और अतिशय तेजस्विनी ज्वाला वन में दीप्त होती है, वे प्रवृद्धमान् अग्नि देव सूर्य देव के सदृश अन्तरिक्ष मार्ग में विराजमान होते हैं। सभी का कल्याण करने वाले वायु देव के तुल्य अक्षय और अनिवार्य औषधियों के बीच में वेग पूर्वक गमन करते हैं और अपनी दीप्ति द्वारा सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 6.12.3]
Progressive Agni Dev whose bright flames shine in the forests, establish himself in the space like the Sun. He move through the necessary imperishable medicines like Pawan Dev for the benefit of all and lit the entire universe.
सास्माकेभिरेतरी न शूषैरग्निः ष्टवे दम आ जातवेदाः।
द्र्वन्नो वन्वन् क्रत्वा नार्वोस्त्रः पितेव जारयायि यज्ञैः
जातवेदा अग्नि देव याजकों के सुख दायक स्तोत्र के तुल्य हम लोगों के स्तोत्र द्वारा हमारे यज्ञ गृह में प्रार्थित होते हैं। याजक गण द्रुमभोजी, अरण्याश्रयकारी और बछड़ों के पिता बैल के सदृश क्षिप्र कर्मकारी अग्नि देव का स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.12.4]
द्रुम :: वृक्ष, पेड़; trees.
क्षिप्र :: सुश्रुत के अनुसार शरीर के एक सौ सात मर्म स्थानों में से एक, जो अँगूठे और दूसरी उँगली के बीच में है, एक मुहूर्त का पंद्रहवाँ भाग; a fraction of time.
Jatveda Agni Dev is worshiped by us in our Yagy house with the Strotr like the pleasure yielding Strotr of the Ritviz. The Ritviz worship Agni Dev who is the eater of trees, protector of forests, like the calf for the bull, acts quickly.
अध स्मास्य पनयन्ति भासो वृथा यत्तक्षदनुयाति पृथ्वीम्।
सद्यो यः स्पन्द्रो विषितो धवीयानृणो न तायुरति धन्वा राट्
जब अग्नि देव अनायास वनों को भस्म करके पृथ्वी के ऊपर विस्तृत होते हैं, तब स्तोता लोग इस लोक में अग्नि देव की शिखाओं का स्तवन करते हैं। अप्रतिहत भाव से विचरण करने वाले और चोर के तुल्य द्रुतगमन करने वाले अग्निदेव मरुभूमि के ऊपर विराजित होते हैं।[ऋग्वेद 6.12.5]
When Agni Dev burn the forests instantaneously and spread over the earth, then the Stotas worship his flames. Agni Dev who move continuously like a thief quickly and establish himself over the deserts.
स त्वं नो अर्वन्निदाया विश्वेभिर अग्निभिरिधानः।
वेषि रायो वि यासि दुच्छुना मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे शीघ्र गमन करने वाले अग्नि देव! आप समस्त अग्नियों के साथ प्रज्वलित होकर हम लोगों की निन्दा से रक्षा करें। आप हम लोगों को धन प्रदान करें। दुःखदायक शत्रुओं को नष्ट करें। हम लोग शोभन पुत्र-पौत्र से युक्त होकर सौ हेमन्त अर्थात् सौ वर्ष पर्यन्त सुख का भोग करें।[ऋग्वेद 6.12.6]
Hey quickly moving Agni Dev! Ignite with all of your forms and protect us from reproach. Grant us money. Destroy the painful enemies. Let us enjoy-survive for hundred years with our sons & grandsons.(01.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वद्विश्वा सुभग सौभगान्यग्ने वि यन्ति वनिनो न वयाः।
श्रुष्टी रयिर्वाजो वृत्रतूर्ये दिवो वृष्टिरीड्यो रीतिरपाम्
हे शोभन धन वाले अग्नि देव! विविध प्रकार के धन आपसे ही उत्पन्न हुए हैं। जिस प्रकार से वृक्ष से विविध प्रकार की शाखाएँ उत्पन्न होती हैं। आपसे पशु समूह शीघ्र ही उत्पन्न होता है। संग्राम में शत्रुओं को जीतने के लिए बल भी आपसे ही उत्पन्न होता है। अन्तरिक्ष से वर्षा आपसे ही उत्पन्न होती है; इसलिए आप सभी के स्त्वनीय हैं।[ऋग्वेद 6.13.1]
Hey possessor of glorious wealth, Agni Dev! All sorts of wealth has emanated from you, just like the branches of the trees. The groups of animals evolve out of you. The strength of winning the enemy is produced by you. Rains are caused by you in the space. Hence, you deserve worship from all.
त्वं भगो न आ हि रत्नमिषे परिज्मेव क्षयसि दस्मवर्चाः।
अग्ने मित्रो न बृहत ऋतस्यासि क्षत्ता वामस्य देव भूरेः
हे अग्नि देव! आप संभजनीय है। आप हमें रमणीय धन प्रदान करें। हे दर्शनीय दीप्ति! आप सर्वव्यापी वायु देव के सदृश सभी जगह उपस्थित हों। हे दीप्तिमान् अग्नि देव! आप मित्र के सदृश प्रचुर यज्ञ और पर्याप्त वाञ्छित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.13.2]
Hey Agni Dev! You are worshiped by all. Grant us comfortable wealth. Hey beautiful flame-fire! You should be present like all pervading Vayu Dev every where. Hey radiant Agni Dev! Grant us desired money and sufficient Yagy like a friend.
स सत्पतिः शवसा हन्ति वृत्रमग्ने विप्रो वि पणेर्भर्ति वाजम्।
यं त्वं प्रचेत ऋतजात राया सजोषा नप्त्रायां हिनोषि
हे प्रकृष्ट ज्ञान सम्पन्न और यज्ञ के लिए समुद्भूत अग्नि देव! आप जल पुत्र वैद्युतानि के साथ संगत होकर धन के लिए जिस व्यक्ति को प्रेरित करते हैं, वह साधुओं का रक्षाकारी और बुद्धिमान् व्यक्ति बल द्वारा शत्रुओं का संहार करता है एवं वही पणि को नष्ट करता है।[ऋग्वेद 6.13.3]
समुद्भूत :: जात, उत्पन्न; उभरा हुआ; embossed, gibbous, protuberant, pulvinate.
Hey possessor of enlightenment and embossed for the Yagy Agni Dev! When you associate with the lightening and rains and inspire an intelligent person, he become protector of the sages and destroy the enemies and Pani.
यस्ते सूनो सहसो गीर्भिरुक्थैर्यज्ञैर्मर्तो निशितिं वेद्यानट्।
विश्वं स देव प्रति वारमने धत्ते धान्यं १ पत्यते वसव्यैः
हे बल पुत्र और द्युतिमान् अग्नि देव! जो याजकगण स्तुति, उपासना और यज्ञ द्वारा यज्ञ भूमि आपकी तीक्ष्ण दीप्ति को आकृष्ट करता है; वह मनुष्य समस्त प्राचुर्य धान्य धारित करते हुए धन से युक्त होता है।[ऋग्वेद 6.13.4]
Hey radiant son of Bal, Agni Dev! A Ritviz who worship, recite prayers and attract your sharp flames in the Yagy over the Yagy site, become possessor of a lot of food grains and wealth.
ता नृभ्य आ सौश्रवसा सुवीराग्ने सूनो सहसः पुष्यसे धाः।
कृणोषि यच्छवसा भूरि पश्वो वयो वृकायारये जसुरये
हे बल पुत्र अग्नि देव! आप हम लोगों के पोषणार्थ शत्रुओं से लाकर उत्कृष्ट पुत्रों के साथ शोभन अन्न प्रदान करें। द्वेषकर्ता शत्रुओं से बल द्वारा जो पशु सम्बन्धी दध्यादि अन्न आप ग्रहण करते हैं, वह प्रचुर मात्रा में हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.13.5]
दध्यादि :: गोरस अर्थात्‌ गौ से मिले द्रव्य; milk products obtained from the cows like milk, butter, curd, ghee.
Hey son of Bal, Agni Dev! Grant us excellent wealth for nourishment taken from the enemies; excellent sons and good quality food grains. Give us the food grains taken from the envious enemies by force and the animals related cow products like milk, food grains in sufficient quantity.
वद्मा सूनो सहसो नो विहाया अग्ने तोकं तनयं वाजि नो दाः।
विश्वाभिर्गीर्भिरभि पूर्तिमश्यां मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे बल पुत्र अग्नि देव! आप बलशाली हैं। आप हम लोगों के उपदेष्टा होवें। हम लोगों को अन्न के साथ पुत्र और पौत्र प्रदान करें। हमारी स्तुतियों के द्वारा हमारा मनोरथ पूर्ण करें। हम लोग शोभन पुत्र-पौत्रों के साथ सौ हेमन्त अर्थात् सौ वर्ष पर्यन्त सुख का भोग करें।[ऋग्वेद 6.13.6]
उपदेष्टा :: उपदेशक, शिक्षक, गुरु, आचार्य; guide, teacher, preacher, preceptorial.
Hey Agni Dev, son of Bal! You are mighty. You should become our preacher. Grant us food grains with sons & grand sons. Accomplish our desire through our prayers. We should survive for hundred years with our sons & grandsons comfortably.(01.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्नि; छन्द :- अनुष्टुप् शक्वरी।
अग्ना यो मर्त्यो दुवो धियं जुजोष धीतिभिः।
भसन्नु ष प्र पूर्व्य इषं वुरीतावसे
जो मनुष्य स्तोत्र के साथ अग्नि देव की परिचर्या करता है और यज्ञादि कार्य करता है, वह मनुष्यों के बीच में शीघ्र ही प्रधान होकर प्रकाशमान होता है। अपने पुत्र आदि की रक्षा के लिए वह शत्रुओं के समीप प्रचुर अन्न प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.14.1]
The person who serve Agni Dev with the recitation of Strotr and perform Yagy-Hawan etc. becomes a leader and aurous quickly. He gets sufficient food grains for the safety of his son, even though very near to the enemies.
अग्निरिद्धि प्रचेता अग्निर्वेधस्तम ऋषिः।
अग्निं होतारमीळते यज्ञेषु मनुषो विशः
एक मात्र अग्निदेव ही प्रकृष्ट ज्ञान से युक्त है और दूसरा कोई भी नहीं है। वे यज्ञ कार्य के अतिशय निर्वाहक और सर्व द्रष्टा है। याजक गणों के पुत्र आदि यज्ञ में अग्नि देव को देवों के आह्वानकर्ता कहकर स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.14.2]
None other than Agni Dev has excellent enlightenment-knowledge. He perform-conduct the Yagy related deeds and is aware of every thing. The sons of Ritviz worship Agni Dev as the invoker of demigods-deities in the Yagy.
नाना ह्य १ ग्नेऽवसे स्पर्धन्ते रायो अर्यः।
तूर्वन्तो दस्युमायवो व्रतैः सीक्षन्तो अव्रतम्
हे अग्नि देव! शत्रुओं का धन उनके निकट से पृथक होकर आपके स्तोताओं की रक्षा करने के लिए परस्पर स्पर्द्धा करते हैं। शत्रु विजयी आपके स्तोता लोग आपका यज्ञ करके व्रत विरोधियों को पराजित करने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 6.14.3]
Hey Agni Dev! The wealth of the enemies desert them and protect the Stotas competing with one another. The Stotas who win the enemy perform Yagy for your sake and wish to defeat the opponents of Vrat, Yagy, Hawan etc.
अग्निरप्सामृतीषहं वीरं ददाति सत्पतिम्।
यस्य त्रसन्ति शवसः संचक्षि शत्रवो भिया
अग्नि देवता स्तोताओं को सुन्दर कार्य करने वाला, शत्रु विजयी और साधु जनोचित कार्यों का पालन करने वाला पुत्र प्रदान करते हैं, जिसे देखकर ही शत्रु गण उसके बल से भयभीत होकर कम्पायमान होने लगते हैं।[ऋग्वेद 6.14.4]
Agni Dev grant son to those who are virtuous, pious, righteous, wins the enemy and perform welfare of the society. The enemy start trembling on sighting-seeing him.
अग्निर्हि विद्मना निदो देवो मर्तमुरुष्यति।
सहावा यस्यावृतो रयिर्वाजेष्ववृतः
जिस मनुष्य का हव्य रूप धन यज्ञ में राक्षसों के द्वारा निर्विघ्न होता है और अन्यान्य याजक गणों के द्वारा असंभक्त होता है, बलशाली और ज्ञान सम्पन्न अग्नि देव उस याजक गण की निन्दकों से रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 6.14.5]
Mighty & enlightened Agni Dev protect the Ritviz who's riches in the form of offerings-oblation are safe and unshared by other Stotas in the Yagy from demons and protect him from the cynic.
अच्छा नो मित्रमहो देव देवानग्ने वोचः सुमतिं रोदस्योः। वीहि स्वस्तिं सुक्षितिं दिवो नृद्विषो अंहांसि दुरिता तरेम ता तरेम तवावसा तरेम
हे अनुकूल दीप्ति वाले, दानादि गुण युक्त और द्यावा-पृथ्वी में वर्त्तमान अग्नि देव! आप देवों के निकट हम लोगों की प्रार्थना का उच्चारण करें। हम स्तोताओं को शोभन निवास युक्त सुख में ले जावें। हम लोग शत्रुओं, पापों और कष्टों का अतिक्रमण करें। हम लोग जन्मान्तर में किए हुए पापों से मुक्त हों। हे अग्नि देव! हम आपकी रक्षा के द्वारा शत्रुओं से उद्धार पावें।[ऋग्वेद 6.14.6]
Hey Agni Dev possessor of favourable radiance, charity and present over the earth & heavens! Recite over prayers-sacred hymns before the Deities-demigods. Take us to residence with comforts-pleasure. We should over power the sins, enemies and troubles-tortures. Hey Agni Dev! Let us get reprieve-protection from the enemy by virtue of your asylum.(02.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप् शक्वरी, जगती, अतिशक्वरी, बृहती,
अनुष्टुप्।
इममू षु वो अतिथिमुषर्बुधं विश्वासां विशां पतिमृञ्जसे गिरा।
वेतीद्दिवो जनुषा कच्चिदा शुचिर्ज्योत्चिदत्ति गर्भो यदच्युतम्
हे भरद्वाज ऋषि! आप उषा काल में प्रबुद्ध, लोक रक्षक और जन्म से ही अथवा स्वभाव से ही शुद्ध या निर्मल अतिथि रूप अग्नि देव को प्रसन्न करें। अग्नि देव सब समय स्वर्ग से अवतीर्ण होकर अक्षय हव्य का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.1]
Hey Bhardwaj Rishi! Make happy Agni Dev early in the morning with the on set of dawn-Usha Kal,  as a pious-virtuous guest, who is a enlightened & a protector. Agni Dev descent from the heaven and accept-eat the offerings.
मित्रं न यं सुधितं भृगवो दधुर्वनस्पतावीड्यमूर्ध्वशोचिषम्। स त्वं सुप्रीतो वीतहव्ये अद्भुत प्रशस्तिभिर्महयसे दिवेदिवे
हे अद्भुत अग्नि देव! आप अरणि के बीच में निहित, स्तुति वाही और ऊर्ध्व ज्वाला वाले हैं। आपको भृगु लोग घर में मित्र तुल्य स्थापित करते हैं। वीत हव्य अथवा भरद्वाज प्रतिदिन उत्कृष्ट स्तोत्र द्वारा आपकी पूजा करते हैं। आप उनके प्रति प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 6.15.2]
Hey Amazing Agni Dev! You are present-embedded in the wood, carrier of prayers having flames rising up wards. The descendants of Bhragu Rishi establish you as a friend. Bhardwaj Rishi worship you every day with excellent Strotr. Be happy with them.
स त्वं दक्षस्यावृको वृधो भूरर्यः परस्यान्तरस्य तरुषः। रायः सूनो सहसो मर्त्येष्वा छर्दिर्यच्छ वीतहव्याय सप्रथो भरद्वाजाय सप्रथः
हे अग्नि देव! जो यागादि के अनुष्ठान में निपुण है, उसे आप समृद्ध बनाते हैं और दूरस्थ तथा समीपस्थ शत्रुओं से उसकी रक्षा करते है। हे महान अग्नि देव! आप मनुष्यों के बीच में भरद्वाज वंशीय को धन, अन्न और गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.15.3]
Hey Agni Dev! You make the person who is expert in the Yagy-Hawan etc., rich-prosperous and protect him the enemy either near or far. Hey great Agni Dev! grant wealth, food grains and houses to the descendants of Bhardwaj Rishi.
द्युतानं वो अतिथिं स्वर्णरमग्निं होतारं मनुषः स्वध्वरम्। विप्रं न द्युक्षवचसं सुवृक्तिभिर्हव्यवाहमरतिं देवमृञ्जसे
हे वीतहव्य! आप शोभन स्तुति द्वारा हव्य वाहक, दीप्तिमान्, अतिथिवत पूजनीय; स्वर्ग प्रदर्शक मनु के यज्ञ में देवों का आह्वान करने वाले यज्ञ सम्पादक, मेधावी और ओजस्वी वक्ता अग्नि देव को प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 6.15.4]
वीतहव्य :: वह जो यज्ञ में आहुति या हव्य देता हो, a person who make offerings in a Yagy-Hawan, Agni Hotr.
ओजस्वी :: रोचक, तीव्र, तीक्ष्ण, रंगीन, जीवित, सजीव, जीवंत, सीधा प्रसारण, शक्तिपूर्ण; energetic, vigorous, live, lively.
Hey host making offerings in the Yagy! You use beautiful prayers, for Manu, who is radiant, worshipable as a guest, guides to heavens & make Agni Dev happy who is performer of Yagy, invoke the demigods-deities in the Yagy, intelligent and energetic orator.
पावकया यश्चितयन्त्या कृपा क्षामन्नुरुच उषसो न भानुना। तूर्वन्न यामन्नेतशस्य नू रण आ यो घृणे न ततृषाणो अजरः
हे वीतहव्य! जिस प्रकार से उषा प्रकाश से शोभित होती है, उसी प्रकार जो पृथ्वी के ऊपर पवित्रता कारक और चेतना विधायक दीप्ति के द्वारा विराजित होते हैं, जो युद्ध में शत्रु संहारकारक वीर के सदृश एतश ऋषि की सहायता करने के लिए शीघ्र प्रदीप्त हुए और जो सर्वभक्षण शील हैं, उन्हें आप प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 6.15.5]
Hey host making offerings in the Yagy! Make Agni Dev happy who cause piousness, consciousness, helps Atash Rishi in the war destroying the enemy, ignites quickly and eats every thing.
अग्निमग्निं वः समिधा दुवस्यत प्रियंप्रियं वो अतिथिं गृणीषणि। उप वो गीर्भिरमृतं विवासत देवो देवेषु वनते हि वार्यं देवो देवेषु वनते हि नो दुवः
हे हमारे स्तोताओं! अत्यन्त प्रिय और अतिथि के सदृश पूजनीय अग्नि देव का ईंधन द्वारा आप लोग निरन्तर पूजन करें। देवों के बीच में दानादि गुण सम्पन्न अग्निदेव ईंधन ग्रहण करते हैं और हम लोगों का पूजन ग्रहण करते हैं, इसलिए अविनश्वर अग्नि देव के सम्मुख होकर स्तोत्र द्वारा उनकी पूजा करें।[ऋग्वेद 6.15.6]
Hey, our Stotas! Keep on praying worshipable Agni Dev continuously, providing fuel-wood, offerings ghee etc. like the dearest guest. Agni Dev a donor who accept our prayers & fuel. Let us worship immortal Agni Dev.(03.09.2023)
समिद्धमग्निं समिधा गिरा गृणे शुचिं पावकं पुरो अध्वरे ध्रुवम्।
विप्रं होतारं पुरुवारमद्रुहं कविं सुम्नैरीमहे जातवेदसम्
हम समिधाओं से प्रदीप्त अग्नि देव को स्तुतियों द्वारा प्रसन्न करते हैं। स्वतः शुद्ध, पवित्रता-विधायक और निश्चल अग्नि देव को हम यज्ञ में स्थापित करते हैं। ज्ञान सम्पन्न देवों को बुलाने वाले सभी के द्वारा वरणीय, सदाशय सम्पन्न, सर्व दर्शी और सर्व भूतज्ञ अग्नि देव का हम सुखकर स्तोत्रों से भजन करते हैं अथवा अग्नि देव के निकट धन के लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.7]
We make Agni Dev lit with woods, happy with the recitation of sacred hymns. We establish Agni Dev who is pure, pious and stationary, in the Yagy. We worship Agni Dev for wealth, who is the invoker of the demigods-deities, acceptable to every one, watches every thing, aware of every event in the past with pleasant Strotr. 
त्वां दूतमग्ने अमृतं युगेयुगे हव्यवाहं दधिरे पायुमीड्यम्।
देवासश्च मर्तासश्च जागृविं विभुं विश्पतिं नमसा नि षेदिरे
हे अग्नि देव! देवता और मनुष्य आपको दूत बनाते हैं। आप अमरणशील, प्रत्येक समय में हव्य वहन करने वाले, पालक और स्तवनीय हैं। वे दोनों (वीतहव्य और भरद्वाज) जागरणशील, व्याप्त और प्रजाओं के पालक अग्नि देव को हव्य द्वारा स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.8]
Hey Agni Dev! Both humans & demigods-deities appoint you as their ambassador. You are immortal, carry offerings every time, nurturer and worshipable. Both Veeethavy & Bhardwaj establish Agni Dev for the awake-alert, pervading all and nurturer of the populace with offerings-oblations.
विभूषन्नग्न उभयाँ अनु व्रता दूतो देवानां रजसी समीयसे।
यत्ते धीतिं सुमतिमावृणीमहेऽध स्मा नस्त्रिवरूथः शिवो भव
हे अग्नि देव! आप देवों और मनुष्यों को विशेष प्रकार से अलंकृत करके और यज्ञ में देवों का दूत होकर द्यावा-पृथ्वी में सञ्चरण करते हैं। हम लोग शोभन स्तुति द्वारा और यज्ञ द्वारा आपका सम्भजन करते हैं; इसलिए आप त्रिभुवनवर्त्ती होकर हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.15.9]
Hey Agni Dev! You specifically decorate the demigods & humans, become ambassador of demigods-deities and move over the earth & heavens. We worship you with beautiful prayers in the Yagy, hence your grant us comfort-pleasure, establishing yourself in the three abodes.
तं सुप्रतीकं सुदृशं स्वञ्चमविद्वांसो विदुष्टरं सपेम।
स यक्षद्विश्वा वयुनानि विद्वान्प्र हव्यमग्निरमृतेषु वोचत्
हम अल्पबुद्धि वाले सर्वज्ञ, शोभनाङ्ग, मनोज्ञमूर्ति और गमनशील अग्नि देव का परिचरण करते हैं। ज्ञातव्य वस्तुओं को जानने वाले अग्नि देव देवों का यजन करें और देवों के बीच में हमारे हव्य को प्रचारित करें।[ऋग्वेद 6.15.10]
We the people with little intelligence, adore wise-enlightened, beautiful organed and movable-dynamic Agni Dev. Let Agni Dev aware of the noticeable goods-materials, worship the demigods-deities and distribute the our offerings amongest them.
तमग्ने पास्युत तं पिपर्षि यस्त आनट् कवये शूर धीतिम्।
यज्ञस्य वा निशितिं वोदितिं वा तमित्पृणक्षि शवसोत राया
हे शौर्य सम्पन्न अग्नि देव! आप दूरदर्शी हैं। जो पुरुष आपका स्तवन करता है, आप उसकी रक्षा करते हैं और उसका मनोरथ भी पूर्ण करते हैं। जो यज्ञसम्पादन करता है और जो हव्य प्रदान करता है, उसको आप बल और धन से पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.11]
Hey mighty Agni Dev! You are far sighted. You protect the person who worship you and accomplish his desires. One who conduct Yagy and make offerings is granted strength and wealth by you.
त्वमग्ने वनुष्यतो नि पाहि त्वमु नः सहसावन्नवद्यात्।
सं त्वा ध्वस्मन्वदभ्येतु पाथः सं रयिः स्पृहयाय्यः सहस्त्री
हे अग्नि देव! आप शत्रुओं से हम लोगों की रक्षा करें। हे बल सम्पन्न अग्नि देव! आप हम लोगों को पापों से बचावें। आपके समीप हम लोगों द्वारा प्रदत्त पवित्र हव्य उपस्थित है। आपके द्वारा प्रदत्त सहस्र प्रकार का धन हमारे समीप उपस्थित है।[ऋग्वेद 6.15.12]
Hey Agni Dev! Protect us from the enemies. Hey mighty Agni Dev! Save us from the sins of others. You have the pour-pious offerings made by us, by your side. The riches of thousands kind are available with us.
अग्निर्होता गृहपतिः स राजा विश्वा वेद जनिमा जातवेदाः।
देवानामुत यो मर्त्यानां यजिष्ठः स प्र यजतामृतावा
देवों को बुलाने वाले, दीप्तिमान अग्नि देव घर के अधिपति और सर्वज्ञ हैं; अतएव वे सम्पूर्ण प्राणियों को जानते हैं। जो अग्नि, देवों और मनुष्यों के बीच में अतिशय यज्ञकारी हैं, वे सत्य सम्पन्न अग्नि देव उत्तम रूप से यज्ञ करें।[ऋग्वेद 6.15.13]
Invoker of demigods-deities, radiant, deity of the house and all knowing-enlightened Agni Dev, knows every one. Let truthful Agni Dev, who is the performer of the extreme Yagy amongest the humans & the demigods-deities, conduct the Yagy in best way.
अग्ने यदद्य विशो अध्वरस्य होतः पावकशोचे वेष्ट्वं हि यज्वं।
ऋता यजासि महिना वि यद्भूर्हव्या वह यविष्ठ या ते अद्य
हे यज्ञ निष्पादक और शोधन दीप्ति वाले अग्नि देव! इस समय जो याजकगण का कर्तव्य है, उसकी आप कामना करें। आप देवों का यजन करने वाले हैं, इसलिए आप यज्ञ में देवों का यजन करें। हे युवतम अग्नि देव! आप अपने माहात्म्य से सर्वव्यापी हैं। आज आपके लिए जो हव्य हम प्रदान कर रहे हैं, उसे आप स्वीकार करें।[ऋग्वेद 6.15.14]
Hey conductor-performer of the Yagy Agni Dev! Think of the duty of the Ritviz at this moment. You hold the Yagy for the demigods-deities, therefore pray to them. Hey youthful-youngest Agni Dev! You are pervading every place by virtue of your greatness. Accept the offerings presented by us today.
अभि प्रयांसि सुधितानि हि ख्यो नि त्वा दधीत रोदसी यजध्यै। अवा नो मघवन्वाजसातावग्ने विश्वानि दुरिता तरेम ता तरेम तवावसा तरेम
हे अग्नि देव! वेदी के ऊपर यथाविधि स्थापित हव्य को देखें। याजक गण ने आपको द्यावा-पृथ्वी में यज्ञ के लिए स्थापित किया। हे ऐश्वर्य सम्पन्न अग्नि देव! आप युद्ध में हम लोगों की रक्षा करें, जिससे हम समस्त दुखों से बच जावें।[ऋग्वेद 6.15.15] 
Hey Agni Dev! Look at the offerings placed over the Yagy Vedi-site. The Ritviz have established you over the earth-heavens. Hey grandeur possessing Agni Dev! Protect us in the war, so that we are saved from all sorts of misery.
अग्ने विश्वेभिः स्वनीक देवैरूर्णावन्तं प्रथमः सीद योनिम्।
कुलायिनं घृतवन्तं सवित्रे यज्ञं नय याजकगणाय साधु
हे शोभन शिखा सम्पन्न अग्नि देव! आप समस्त देवों के सहित सर्वाग्र गण्य होकर ऊर्णा (कम्बल) युक्त, कुलाय सदृश और घृत संयुक्त उत्तर वेदी पर अवस्थान करें। हव्य दाता याजक गण के यज्ञ को समुचित रूप से देवों के निकट ले जावें।[ऋग्वेद 6.15.16]
कुलाय :: शरीर, घोंसला; nest, body.
Hey Agni Dev with beautiful flames! Become ahead-forward amongest the demigods-deities and place-establish the offerings-oblations over the Yagy Vedi, which are like blanket, nest and the Ghee. Take the offerings of the Ritviz to the demigods-deities.
इममु त्यमथर्ववदग्निं मन्थग्निं वेधसः।
यमङ् कूयन्तमानयन्नमूरं श्याव्याभ्यः
यज्ञ करने वाले, ज्ञानी ऋत्विकगण अथर्वा ऋषि के सदृश मंथन करके अग्नि देव को उत्पन्न करते है। चारों ओर भ्रमण करने वाले ज्ञानी अग्नि देव को अन्धकार से लाकर यज्ञवेदि पर (ऋत्विक्) स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.17]
The performers of Yagy produce fire by rubbing wood like Arthva Rishi. The enlightened who roam every where bring Agni Dev out of darkness and establish him over the Yagy Vedi.
जनिष्वा देववीतये सर्वताता स्वस्तये।
आ देवान्वक्ष्यमृताँॠतावृधो यज्ञं देवेषु पिस्पृशः
हे अग्नि देव! देवाभिलाषी याजक गण के कल्याण को अविनश्वर करने के लिए आप यज्ञ में मध्यमान होकर प्रादुर्भूत होवें। यज्ञ वर्द्धक और अमरणशील देवों का आवाहन करें। अनन्तर देवों के निकट हमारे यज्ञ को पहुँचावें।[ऋग्वेद 6.15.18]
Hey Agni Dev! Appear in the middle of the Yagy, for the for ever welfare of the Ritviz who wish to invoke the deities. Invoke the immortal and promoter of Yagy demigods-deities. Thereafter, take our Yagy to them.
वयमु त्वा गृहपते जनानामग्ने अकर्म समिधा बृहन्तम्।
अस्थूरि नो गार्हपत्यानि सन्तु तिग्मेन नस्तेजसा सं शिशाधि
हे यज्ञपालक अग्नि देव! प्राणियों के बीच में हम लोग ही आपको प्रज्वलित करते हैं। इसलिए हम लोगों के गार्हपत्य अग्निदेव! हमें पुत्र, पशु और धनादि द्वारा सम्पूर्णता प्रदान करें। अपने तीक्ष्ण तेज द्वारा आप हमें तेजस्विता प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.15.19]
Hey nurturer of the Yagy, Agni Dev! We invoke you amongest the living beings. Therefore, hey our Garhpaty Agni Dev! Enrich us with son, animals-cattle, wealth, aura-radiance.(04.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- गायत्री, त्रिष्टुप्, वर्धमाना, अनुष्टुप्।
त्वमग्ने यज्ञानां होता विश्वेषां हितः। देवेभिर्मानुषे जने
हे अग्नि देव! आप सम्पूर्ण यज्ञ के होम निष्पादक हैं अथवा देवों के आह्वान कर्ता हैं। आप मनु सम्बन्धी मनुष्य के यज्ञ में देवों द्वारा होतृ कार्य में नियुक्त होवें।[ऋग्वेद 6.16.1]
Hey Agni Dev! You accomplish the whole Yagy & invoke the demigods-deities. You should become the priest of Manu's Yagy pertaining to Humans as per the desire of demigods-deities demigods.
स नो मन्द्राभिरध्वरे जिह्वाभिर्यजा महः। आ देवान्वक्षि यक्षि च
हे अग्नि देव! आप हम लोगों के यज्ञ में मद कारक ज्वाला द्वारा महान देवों की स्तुति करें। इन्द्रादि देवों का आवाहन करें और उन्हें हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.16.2]
Hey Agni Dev! Worship the demigods-deities in our Yagy with intoxicating flames. Invokes Indr Dev and other demigods-deities and make offerings for them.
वेत्था हि वेधो अध्वनः पथश्च देवाञ्जसा। अग्ने यज्ञेषु सुक्रतो
हे विधाता, हे शोभन कर्म करने वाले दानादि गुण विशिष्ट अग्नि देव! आप दर्श पूर्ण मासादि यज्ञ में महान और क्षुद्र मार्गों को वेग द्वारा जानते हैं; इसलिए यज्ञ मार्ग से भ्रष्ट याजक गण को पुनः सन्मार्ग की ओर ले जावें।[ऋग्वेद 6.16.3]
Hey God, hey Agni Dev possessing specific charters like donation-charity! You are aware of the Yagy spread over ten months called Darsh Purn Mas and the fine routes speed, hence bring back the misguided-mislead Ritviz back to the righteous, pious, virtuous path.
त्वामळे अध द्विता भरतो वाजिभिः शुनम्। ईजे यज्ञेषु यज्ञियम्
हे अग्नि देव! दुष्यन्त पुत्र भरत हव्यदाता ऋत्विकों के साथ सुख के उद्देश्य से आपका स्तवन करते हैं। क्योंकि आपसे इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट का निवारण होता है। स्तवन के उपरान्त आपकी प्रार्थना करते हैं। आप याग योग्य हैं।[ऋग्वेद 6.16.4]
Hey Agni Dev! Bharat, son of Dushyant worship you for the comforts-pleasure of the Ritviz. You accomplish the desires and remove the undesired-unpleasant. After worship-recitation of Strotr, they pray to you. You are fit for the Yagy.
त्वमिमा वार्या पुरु दिवोदासाय सुन्वते। भरद्वाजाय दाशुषे
हे अग्नि देव! सोमाभिषवकारी राजा दिवोदास को आपने जिस प्रकार से बहुविध रमणीय धन प्रदान किया, उसी प्रकार से हव्य प्रदान करने वाले भरद्वाज ऋषि को बहुविध रमणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.16.5]
Hey Agni Dev! The manner in which you granted wealth to Divodas who conducted Somabhishav-extraction of Somras, in the same way grant various kinds of wealth-riches to Rishi Bhardwaj, who make offerings-oblation to you.
त्वं दूतो अमर्त्य आ वहा दैव्यं जनम्। शृण्वन्विप्रस्य सुष्टुतिम्
हे अग्नि देव! आप अमरणशील और दूत है। मेधावी भरद्वाज ऋषि की शोभन प्रार्थना श्रवण कर आप हमारे यज्ञ में देवों को ले आवें।[ऋग्वेद 6.16.6]
Hey Agni Dev! You are immortal and a messenger. Listen-attend to the prayer of Bhardwaj Rishi and invoke the demigods-deities to our Yagy.
त्वामग्ने स्वाध्यो ३ मर्तासो देववीतये। यज्ञेषु देवमीळते
हे द्युतिमान अग्नि देव! सुन्दर चिन्ता करने वाले मनुष्य देवों को तृप्त करने के लिए यज्ञ में आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.7]
Hey radiant Agni Dev! Humans who are virtuous, worship you for the contentment of demigods-deities   in the Yagy.
तव प्र यक्षि संदृशमुत क्रतुं सुदानवः। विश्वे जुषन्त कामिनः
हे अग्नि देव! हम आपके दर्शनीय तेज का पूजन भली-भाँति से करते हैं और आपके शोभन दानशील कार्य का भी पूजन करते हैं। अकेले हम ही नहीं; किन्तु दूसरे याजकगण भी आपके अनुग्रह से सफल होकर आपके यज्ञ का सेवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.8]
Hey Agni Dev! We pray your beautiful aura properly and the tendency of charity. Its we alone other Ritviz as well participate in your Yagy on being successful.
त्वं होता मनुर्हितो वह्निरासा विदुष्टरः। अग्ने यक्षि दिवो विशः
हे अग्नि देव! होतृकार्य में मनु ने आपको नियुक्त किया। आप ज्वालारूप मुख द्वारा हव्य वहन करने वाले और अतिशय विद्वान् हैं। आप द्युलोक सम्बन्धिनी देवों का यजन करें।[ऋग्वेद 6.16.9]
Hey Agni Dev! Manu appointed you for the Hawan-Yagy. You are enlightened and consume the offerings with your blaze shaped mouth. Worship the demigods-deities of heavens.  
अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये। नि होता सत्सि बर्हिषि
हे अग्नि देव! आप हव्य भक्षण करने के लिए आगमन करें और देवों से समीप हव्य वहन करने के लिए स्तुति भाजन होकर होता रूप से कुश के ऊपर उपवेशन करें।[ऋग्वेद 6.16.10]
Hey Agni Dev! Come to accept-eat the offerings and occupy the Kush Mat near the demigods-deities to accept offerings & prayers and as a priest.
तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्धयामसि। बृहच्छोचा यविष्ठ्य
हे अङ्गार रूप अग्नि देव! हम लोग लकड़ी और घृत द्वारा आपको प्रवर्द्धित करते हैं; इसलिए हे युवतम अग्नि देव! आप अत्यन्त दीप्तिमान् होवें।[ऋग्वेद 6.16.11]
अंगार :: राख, भस्म, खंगर, मिट्टी, छार; embers, cinder.
Hey Agni Dev in the form of cinders-embers! We promote you with Ghee and wood. Hey Youthful Agni Dev! You should have high shine.
स नः पृथु श्रवाय्यमच्छा देव विवाससि। बृहदग्ने सुवीर्यम्
हे द्युतिमान् अग्नि देव! आप हम लोगों को विस्तीर्ण, प्रशंसनीय और महान् धन प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 6.16.12]
विस्तीर्ण :: फैला हुआ, विशाल, विस्तृत, व्यापक, लंबा-चौड़ा, प्रचुर, प्रभूत, दूर, महासागर संबंधी, विशाल, प्रशस्त;  wider, wide, commodious, oceanic, extensive, roomy, ample, spacious, vast.
Hey radiant Agni Dev! Grant us a lot of appreciable and great oceanic-wealth.
त्वामने पुष्करादध्यथर्वा निरमन्यत। मूर्ध्वो विश्वस्य वाघतः
हे अग्नि देव! मस्तक की भाँति संसार के धारक पुष्कर पत्र के ऊपर अरणि द्वय के बीच से आपको अथर्वा ऋषि ने उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 6.16.13]
पुष्कर :: जल, पानी, जलाशय, पोखरा, कमल; lotus, pool, pond.
Hey Agni Dev! Athrva Rishi produced-evolved you by rubbing two pieces of wood over the lotus leaves like the nurturer of the universe at the fore head.
तमु त्वा दध्यङ्ङ्गषिः पुत्र ईधे अथर्वणः। वृत्रहणं पुरंदरम्
हे अग्नि देव! अथर्वा के पुत्र दध्यङ् ऋषि ने आपको समुज्ज्वलित किया। आप शत्रुओं का संहार करके उनके नगरों को नष्ट करने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.16.14]
Hey Agni Dev! Dadhyn Rishi son of Athrva too ignited you. You are the destroyer of the enemies and their cities.
तमु त्वा पाथ्यो वृषा समीधे दस्युहन्तमम्। धनञ्जयं रणेरणे
हे अग्नि देव! आपको पाथ्यवृषा नाम के किसी ऋषि ने प्रदीप्त किया। आप असुर हन्ता और प्रत्येक युद्ध में विजयी होने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.16.15]
Hey Agni Dev! Pathyvrasha Rishi ignited-evolved you. You are destroyer of demons and winner in the war-battle.
एह्यू षु ब्रवाणि तेऽग्न इत्थेतरा गिरः। एभिर्वर्धास इन्दुभिः
हे अग्नि देव! आप यहाँ आगमन करें; क्योंकि हम आपके लिए जिस प्रकार का स्तोत्र उच्चारित करते हैं, उसे आप श्रवण करें। यहाँ आकर आप इस सोमरस से अपनी महानता का विस्तार करें।[ऋग्वेद 6.16.16]
Hey Agni Dev! Come here to listen to the Strotr we recite for you and expand your glory through this Somras.
यत्र क्व च ते मनो दक्षं दधस उत्तरम्। तत्रा सदः कृणवसे
हे अग्नि देव! आपका अनुग्रहात्मक अन्तःकरण जिस देश में और जिस याजकगण में स्थित होता है, वह श्रेष्ठ बल और अन्न धारित करता है। आप उसी याजक गण में अपना स्थान बनाते है।[ऋग्वेद 6.16.17] 
अनुग्रह :: कृपा; grace, favour.
Hey Agni Dev! Your grace-favour of innerself generate great might and food grains in the country and Ritviz making him your abode. 
नहि ते पूर्तमक्षिपद्भुवन्नेमानां वसो। अथा दुवो वनवसे
हे अग्नि देव! आपका दीप्ति पुञ्ज नेत्र विघातक नहीं हैं, वह हमें सदा दर्शन समर्थ बनावें। हे कतिपय याजक गणों के गृह प्रदाता! आप हम याजक गणों की प्रार्थना को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.16.18]
कतिपय :: कुछ, थोड़े से, कई-एक, चंद; certain, divers.
Hey Agni Dev! Your blaze is not harmful to the eyes. Let it make capable of viewing-seeing. Hey granter of homes to the certain Ritviz! Accept our prayers.
आग्निरगामि भारतो वृत्रहा पुरुचेतनः। दिवोदासस्य सत्पतिः
स्तुतियों के द्वारा हम लोग अग्नि देव का अभिगमन करते हैं। अग्नि देव हवि के स्वामी, दिवोदास राजा के शत्रुओं को विनष्ट करने वाले, सर्वज्ञ और याजकगणों के पालक हैं।[ऋग्वेद 6.16.19]
We follow Agni Dev with the prayers. Agni Dev is the lord of oblations-offerings, enlightened, aware of every thing-event;  destroyer of enemies and nurturer of the Ritviz.
स हि विश्वाति पार्थिवा रयिं दाशन्महित्वना। वन्वन्नवातो अस्तृतः
अग्नि देव अपनी महिमा के द्वारा हम लोगों की सम्पूर्ण पार्थिव धन प्रचुर मात्रा में प्रदान करें। अग्नि देव अपने तेज से शत्रुओं या काष्ठों के विनाशक, शत्रुओं के द्वारा अजेय और किसी के भी द्वारा अहिंसित हैं।[ऋग्वेद 6.16.20]
Let Agni Dev grant us sufficient wealth through his glory. Agni Dev is the destroyer of enemies & wood, invincible and can not be harmed by any one.
स प्रत्नवन्नवीयसाने घुम्नेन संयता। बृहत्ततन्थ भानुना
हे अग्नि देव! आप प्राचीनवत नवीन दीप्ति द्वारा इस विस्तीर्ण अन्तरिक्ष को विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.21]
Hey Agni Dev! You extend the universe with your nascent radiance as before. 
प्र वः सखायो अग्नये स्तोमं यज्ञं च धृष्णुया। अर्च गाय च वेधसे
हे मित्रभूत ऋत्विजों! आप लोग शत्रु हन्ता और विधाता स्वरूप अग्नि देव का स्तोत्र द्वारा गान करें एवं यज्ञ साधन हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.16.22]
Hey friendly Ritviz! Make offerings and recite Strotr in favour of Agni Dev for the Yagy.(06.09.2023)
स हि यो मानुषा युगा सीदद्धोता कविक्रतुः। दूतश्च हव्यवाहनः
वह अग्नि देव हमारे यज्ञ में कुशों के ऊपर प्रतिष्ठित हों, जो अग्नि देवों के आह्वाता, अतिशय बुद्धिमान्, मनुष्य सम्बन्धी यज्ञकाल में देवों के दूत और हव्य के वाहक हैं।[ऋग्वेद 6.16.23]
Let Agni Dev, who is the invoker of the demigods-deities, carrier of offerings & their messenger and very intelligent, sit over the Kush Mat during the period of Yagy.
ता राजाना शुचिव्रतादित्यान्मारुतं गणम्। वसो यक्षीह रोदसी
गृह प्रदाता अग्नि देव! आप इस यज्ञ में आवें और प्रसिद्ध, राजमान, सुन्दर कर्म करने वाले मित्रा-वरुण, अदिति पुत्र, मरुद्गण और द्यावा-पृथ्वी का यजन करें।[ऋग्वेद 6.16.24]
Hey house provider Agni Dev! Come to this Yagy and worship shining, performer of virtuous deeds Mitr-Varun, son of Aditi Marud Gan, Earth & the heaven. 
वस्वी ते अग्ने संदृष्टिरिषयते मर्त्याय। ऊर्जो नपादमृतस्य
बल पुत्र अग्नि देव! आप मरण रहित है। आपकी प्रशस्त दीप्ति मनुष्य याजक गणों को अन्न प्रदान करती है।[ऋग्वेद 6.16.25]
Hey son of Bal, Agni Dev! You are immortal. Your radiance grant food grains to the Ritviz.
क्रत्वा दा अस्तु श्रेष्ठोऽद्य त्वा वन्वन्त्सुरेक्णाः। मर्त आनाश सुवृक्तिम्
हे अग्नि देव! आज हवि देने वाले याजकगण परिचरण कर्म द्वारा आपका संभजन करके अतिशय प्रशंसनीय और शोभन धन वाले हों। वे सदैव ही उत्तम सम्भाषण करें।[ऋग्वेद 6.16.26]
Hey Agni Dev! Let the Ritviz who make offerings and perform Yagy related deeds worship you; be appreciated and granted beautiful wealth. They should always make excellent discussions. 
ते ते अग्ने त्वोता इषयन्तो विश्वमायुः।
तरन्तो अर्यो अरातीर्वन्वन्तो अर्यो अरातीः
हे अग्नि देव! आपके स्तोता लोग आपके द्वारा रक्षित होते हैं, वे सब अभिलाषी होकर सम्पूर्ण आयु और अन्न प्राप्त करते हैं। वे आक्रमणकारी शत्रुओं को पराजित और विनष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.27]
Hey Agni Dev! Your Stotas are protected by you. They desire complete age-100 years and food grains and get it. They defeat the invaders and destroys them.
अग्निस्तिग्मेन शोचिषा यासद्विश्वं न्य१त्रिणम्। अग्निर्नो वनते रयिम्
अग्नि देव अपने तीक्ष्ण तेज के द्वारा सब वस्तुओं के भोजन कर्ता, राक्षसों के संहार कर्ता और हम लोगों के धन प्रदाता हैं।[ऋग्वेद 6.16.28]
Agni Dev is the eater of all goods by his sharp radiance, destroyer of demons and provider of wealth to us.
सुवीरं रयिमा भर जातवेदो विचर्षणे। जहि रक्षांसि सुक्रतो
हे जात वेदा अग्नि देव! आप शोभन पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन का आहरण करें। हे शोभन कर्म करने वाले! आप राक्षसों का विनाश करें।[ऋग्वेद 6.16.29]
आहरण :: लेना, आकर्षित करना, बलाद्ग्रहण, बल से ग्रहण, ऐंठना, बल से ग्रहण, ऐंठना, बलपूर्वक ग्रहण, लेना, चित्र बनाना, आकर्षित करना, निकालना; withdrawal, draw, exaction.
Hey Jatveda Agni Dev! Grant us sons & grandsons along with wealth. Hey performer of beautiful deeds, destroy the demons.
त्वं नः पाह्यंहसो जातवेदो अघायतः। रक्षा णो ब्रह्मणस्कवे
हे जातवेदा! आप पाप से हम लोगों की रक्षा करें। हे प्रार्थना रूप मन्त्रों के कर्ता अग्निदेव! आप विद्वेषकारियों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.16.30]
Hey Jatveda! Protect us from the sins. Hey the deity of the Mantr in the form of prayers Agni Dev! Protect us from the envious.
यो नो अग्ने दुरेव आ मर्तो वधाय दाशति। तस्मान्नः पाह्यंहसः
हे अग्नि देव! जो मनुष्य दुष्ट अभिप्राय से हम लोगों को मारने के लिए आयुध द्वारा हमारी हिंसा करता है, उस मनुष्य से और पाप से आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.16.31]
Hey Agni Dev! Protect us from the wicked who wish to kill us with a weapon and the sins.
त्वं तं देव जिह्वया परि बाधस्व दुष्कृतम्। मर्तो यो नो जिघांसति
हे द्युतिमान् अग्नि देव! जो मनुष्य हम लोगों को मारने की इच्छा करता है, उस दुष्कर्मकारी मनुष्य को आप अपनी ज्वाला द्वारा भस्म करें।[ऋग्वेद 6.16.32]
Hey radiant Agni Dev! Roast the wicked who wish to kill us, with your flames.
भरद्वाजाय सप्रथः शर्म यच्छ सहन्त्य। अग्ने वरेण्यं वसु
हे शत्रुओं को अभिभूत करने वाले अग्नि देव! आप हमें अर्थात् भरद्वाज ऋषि को विस्तीर्ण सुख अथवा गृह प्रदान करें और वरणीय धन भी देवें।[ऋग्वेद 6.16.33]
Hey Agni Dev mesmerising the enemy! Grant us-the descendants of Bhardwaj Rishi, lots of comforts-pleasure, houses and wealth.
अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद्द्रविणस्युर्विपन्यया। समिद्धः शुक्र आहुतः
भली-भाँति से दीप्त; इसलिए शुक्ल वर्ण और हवि द्वारा आहूत अग्नि देव प्रार्थना से प्रसन्न होकर हवि की इच्छा करते हैं। ऐसे अग्नि देव शत्रुओं का अथवा अन्धकार का विनाश करें।[ऋग्वेद 6.16.30]
Lit properly, fair coloured and worshiped with offerings-oblations, Agni Dev desire oblations. Let him destroy the enemy and darkness.
गर्भे मातुः पितुष्पिता विदिद्युतानो अक्षरे। सीदन्नृतस्य योनिमा
माता पृथ्वी की गर्भ स्थानीय और क्षरण रहित वेदी पर अग्नि देव विद्युतिमान् होते हैं और हवि द्वारा स्वर्ग के पालक अग्नि देव यज्ञ की उत्तर वेदी पर उपविष्ट होकर शत्रुओं का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.35]
Nurturer of heavens Agni Dev occupy the Uttar Vedi free from depreciation, over the earth and destroy the enemies.
ब्रह्म प्रजावदा भर जातवेदो विचर्षणे। अग्ने यद्दीदयद्दिवि
हे सर्वदर्शी जातवेदा! आप पुत्र-पौत्रों के साथ उस अन्न का आनयन करें, जो अन्न द्युलोक में देवों के बीच में प्रश्स्त अन्न होकर शोभित होता है।[ऋग्वेद 6.16.37]
Hey Jatveda, viewing every thing-event! Grant us the appreciated food grains of the heavens, along with sons & grandsons. 
उप त्वा रण्वसंदृशं प्रयस्वन्तः सहस्कृत। अग्रे ससृज्महे गिरः
हे बल द्वारा उत्पाद्यमान अग्नि देव! आपका दर्शन अत्यन्त रमणीय है। हवी रूप अन्न लेकर हम लोग आपके समीप स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.37]
Hey Agni Dev, son of Bal! Your view-exposure is very attractive. On possess offerings in the form of food grains & we recite Strotr near-close to you.
उपच्छायामिव घृणेरगन्म शर्म ते वयम्। अग्ने हिरण्यऽसंदृशः
हे अग्निदेव! आपका तेज सोने के सदृश रोचमान है और आप दीप्ति युक्त हैं। आपकी शरण से हमें वैसा ही सुख मिलता है, जिस प्रकार से थके हुए प्राणियों को छाया में मिलता है।[ऋग्वेद 6.16.38]
Hey Agni Dev! Your aura is like the gold. The comfort we get under your shelter is like the pleasure obtained by tired living beings under the shadow of the tree.
य उग्र इव शर्यहा तिग्मशृङ्गो न वंसगः। अग्ने पुरो रुरोजिथ
अग्नि देव प्रचण्ड बलशाली धानुष्क के समान बाणों द्वारा शत्रुओं के हन्ता हैं और तीक्ष्ण शृङ्ग बैल के सदृश हैं। हे अग्नि देव! आपने ही त्रिपुरा सुर के तीनों पुरों को विनष्ट किया।[ऋग्वेद 6.16.39]
Agni Dev is the slayer of the enemy, like the mighty archer and the sharpened horns of the bull. Hey Agni Dev! You burnt the three abodes of Tripurasur.
आ यं हस्ते न खादिनं शिशुं जातं न बिभ्रति। विशामग्निं स्वध्वरम्॥
अध्वर्यु लोग अरणि मन्थन से उत्पन्न जिस सद्योजात अग्नि देव को पुत्र के समान हाथ में अर्थात् अभिमुख धारित करते हैं, उस हव्य भक्षक और मनुष्यों के शोभन यज्ञ के निष्पादक अग्निदेव का, हे ऋत्विक गण! आप लोग परिचरण करें।[ऋग्वेद 6.16.40]
Hey Ritviz! You should circumambulate Agni Dev who eats the offerings and conduct the Yagy of the humans, who is produced by rubbing the wood by the priests, like a nascent son holding him in front.
प्र देवं देववीतये भरता वसुवित्तमम्। आ स्वे योनौ नि षीदतु
हे अध्वर्युगण! आप लोग देवों के भक्षणार्थ आहवनीय अग्नि में प्रक्षेप करें। अग्नि देव द्युतिमान् और धनों के ज्ञाता हैं। अग्नि देव अपने आहवनीय स्थान में उपवेशन करें।[ऋग्वेद 6.16.41]
Hey priests! Make offerings in fire for the demigods-deities to be eaten by them. Radiant Agni Dev possess the knowledge of wealth. Let Agni Dev appear at the place, where he is invoked.
आ जातं जातवेदसि प्रियं शिशीतातिथिम्। स्योन आ गृहपतिम्
हे अध्वयों! आप अतिथि तुल्य पूजनीय, गृह स्वामी अग्नि देव को यज्ञ वेदी पर स्थापित कर, ज्ञानी, सुखकर अग्नि देव को उत्तम हवि अर्पित करें।[ऋग्वेद 6.16.42]
Hey Priests! Let the house owner establish Agni Dev who is like a honoured guest, pleasure granting, enlightened; over the Yagy Vedi and make excellent offerings. 
अग्ने युक्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः। अरं वहन्ति मन्यवे
हे द्युतिमान अग्नि देव! आप उन समस्त सुशील अश्वों को अपने रथ में नियोजित करें, जो आपको यज्ञ के प्रति पर्याप्त रूप से वहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.43]
सुशील :: सज्जन तथा सदाचारी, सरल, सीधा; gentle.
Hey radiant Agni Dev! Deploy the obedient-gentle horses in your charoite who carry you to the Yagy site.
अच्छा नो याह्या वहाभि प्रयांसि वीतये। आ देवान्त्सोमपीतये
हे अग्नि देव! आप हमारे सम्मुख पधारें। हव्य भोजन और सोमरस का पान करने के लिए आप देवों को भी प्रकट करें।[ऋग्वेद 6.16.44]
Hey Agni Dev! Come to us. Accept the offerings, drink Somras and invoke the demigods-deities.
उदग्ने भारत द्युमदजस्त्रेण दविद्युतत्। शोचा वि भाह्यजर
हे हव्य वाहक अग्नि देव! आप अत्यन्त ऊद्धर्व तेज होकर दीप्यमान होवें। हे जरा रहित अग्नि देव! आप अजस्त्र द्युतिमान् तेज से प्रकाशित होवें। आप पहले उद्दीप्त होकर पुन: अपने तेज से सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 6.16.45]
अजस्त्र :: अविच्छिन्न, लगातार, निरंतर, सतत; evergreen, ever young.
Hey Agni Dev, carrier of offerings! You should possess extreme Tej-energy in the upward direction & shine. Free from old age, Agni Dev! You being evergreen, ever young, shine with Tej-aura. On being lit, light the whole world.
वीती यो देवं मर्तो दुवस्येदग्निमीळीताध्वरे हविष्मान्।
होतारं सत्ययजं रोदस्योरुत्तानहस्तो नमसा विवासेत्
हवि से युक्त जो याजकगण हविलक्षण अन्न द्वारा जिस किसी देवता की परिचर्या करता है, उस यज्ञ में भी अग्रिदेव प्रार्थित होते हैं अर्थात् अग्निदेव की पूजा सभी यज्ञों में होती है। अग्नि देव द्यावा पृथ्वी में वर्तमान देवों के आह्वानकर्ता और सत्यरूप हवि द्वारा यष्टव्य है। याजकगण लोग बद्धाञ्जलि होकर नमस्कार पूर्वक ऐसे अग्नि देव की परिचर्या करें।[ऋग्वेद 6.16.46]
Agni Dev is worshiped in every Yagy with offerings meant for the demigods-deities. He is the invoker of demigods-deities over the earth & heavens and worshiped. Let the Ritviz serve-pray Agni Dev with folded hands.
आ ते अन ऋचा हविर्हृदा तष्टं भरामसि।
ते ते भवन्तूक्षण ऋषभासो वशा उत
हे अग्निदेव! हम आपको संस्कृत ऋक्रूप हव्य प्रदान करते हैं अर्थात् ऋचा को ही हव्य बनाकर प्रदान करते हैं। ऋक्स्वरूप वह हवि आपके भक्षण के लिए संचन समर्थ बैल और गौरूप में प्राप्त हों।[ऋग्वेद 6.16.47]
Hey Agni Dev! We make offerings to you in the form sacred hymns. Let this offering be available to you for your meals present in the capable bull in cows.
अग्निं देवासो अग्रियमिन्धते वृत्रहन्तमम्।
येना वसून्याभृता तृळ्हा रक्षांसि वाजिना
जिस बलवान् अग्नि देव ने यज्ञ विरोधी राक्षसों का वध किया, जिस अग्नि देव ने असुरों के समीप से धन का हरण किया, उस वृत्र हन्ता प्रधान अग्नि देव को देवगण प्रदीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.48]
Demigods-deities lit that mighty Agni Dev, who killed the demons opposing Yagy, snatched their wealth and leader in the killing of Vratr.(07.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- शंयु, बार्हस्पत्य; देवता :- अग्निदेव, मरुत, मरुतो लिङ्गोक्ता या पूषा, पृश्नि, द्यावा, भूमी; छन्द :- बृहती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप्पादि।
यज्ञायज्ञा वो अग्नये गिरागिरा च दक्षसे।
प्रप्र वयममृतं जातवेदसं प्रियं मित्रं न शंसिषम्
हे स्तोताओं! आप प्रत्येक यज्ञ में स्तोत्र द्वारा शक्तिमान अग्नि देव की बार-बार प्रार्थना करें। हम उन अमर, सर्वद्रष्टा और मित्र के सदृश अनुकूल अग्नि देव की प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 6.48.1]
Hey Stotas! Pray-worship mighty Agni Dev in every Yagy repeatedly. We appreciate-applaud Agni Dev who is like a friend, favourable, visualize every thing, immortal.
APPLAUD :: ताली बजाना, सराहना, प्रशंसा करना, appreciate, panegyrize, eulogize, hymn, praise, extol, exalt, admire, extoll.
ऊर्जो नपातं स हिनायमस्मयुर्दाशेम हव्यदातये।
भुवद्वाजेष्वविता भुवद्वृध उत त्राता तनूनाम्
हम शक्ति पुत्र की प्रशंसा करते हैं; क्योंकि वे वस्तुतः हमसे प्रसन्न हैं। हव्य वहन करने वाले अग्नि देव को हम हव्य प्रदान करते हैं। वे संग्राम में हमारे रक्षक और समृद्धि विधायक हों। वे हमारे पुत्रों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.48.2]
We appreciate Shakti Putr since he is happy-pleased with us. We make offerings to the carrier of offerings. Let him become our protector and the factor-cause, increasing-enhancing our prosperity. He should protect our sons.
वृषा ह्यग्ने अजरो महान्विभास्यर्चिषा।
अजस्त्रेण शोचिषा शोशुचच्छुचे सुदीतिभिः सुदीदिहि
हे अग्नि देव! आप मनोवांछित फलों के देने वाले वृद्धावस्था से रहित, महान् और दीप्ति से सुशोभित हैं। हे दीप्तानि, अविच्छिन्न तेज से दीप्यमान! आप अपनी दीप्ति द्वारा हमें भी प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 6.48.3]
Hey Agni Dev! You accomplish desires, free form old age, great and possess brightness. Hey bright Agni possessing continuous aura! You should light us with your aura, radiance.
महो देवान्यजसि यक्ष्यानुषक्तव क्रत्वोत दंसना।
अर्वाचः सीं कृणुह्यग्नेऽवसे रास्व वाजोत वंस्व॥
हे अग्नि देव! आप महान देवों का यज्ञ किया करते हैं; इसलिए हमारे यज्ञ में सदैव देवों का यज्ञ करें। हमारी रक्षा के लिए अपनी बुद्धि और कार्य से देवों को हमारे समक्ष ले आयें। आप हमें हव्यरूप अन्न प्रदान करें और स्वयं इसे स्वीकार करें।[ऋग्वेद 6.48.4]
Hey Agni Dev! You conduct the great Yagy of great deities-demigods, thus perform the Yagy of deities in our Yagy. Invoke the demigods-deities in front of us by virtue of your intelligence. Grant us food grains as offerings and accept them as well.
यमापो अद्रयो वना गर्भमृतस्य पिप्रति।
सहसा यो मथितो जायते नृभिः पृथिव्या अधि सानवि
आप यज्ञ के गर्भ हैं, आपको सोम में मिलाने के लिए जल, अभिषव पत्थर और अरणि काष्ठ पुष्ट करते हैं। आप ऋत्विकों द्वारा बल पूर्वक मथे जाने पर पृथ्वी के अत्युन्नत स्थान में प्रादुर्भूत होवें।[ऋग्वेद 6.48.5]
You are the womb of the Yagy. You condense-nourish the water, stones for crushing and the wood. Invoke at the highly elevated place on being churned by the Ritviz.
आ यः पप्रौ भानुना रोदसी उभे धूमेन धावते दिवि।
तिरस्तमो ददृश ऊर्म्यास्वा श्यावास्वरुषो वृषा श्यावा अरुषो वृषा
जो अग्नि देव दीप्ति द्वारा स्वर्ग और पृथ्वी को पूर्ण करते हैं, जो धुएँ के साथ आकाश में उठते हैं, वही दीप्तिमान् और अभीष्ट वर्षी अग्नि देव अँधेरी रात का तम नष्ट करते देखे जाते हैं। दीप्तिमान् और अभीष्ट वर्षी वही अग्नि देव रात्रियों के ऊपर अधिष्ठान करते हैं।[ऋग्वेद 6.48.6]
Accomplishment granting Agni Dev who light the heavens & the earth with his radiance and rise with the smoke in the sky, destroy the darkness of night. Aurous Agni Dev rule-reign the nights.
बृहद्भिर अर्चिभिः शुक्रेण देव शोचिषा। भरद्वाजे समिधानो यविष्ठ्य रेवन्नः शुक्र दीदिहि द्युमत्पावक दीदिहि
हे देव! देवों में कनिष्ठ और प्रदीप्त अग्नि देव आप हमारे भ्राता भरद्वाज द्वारा समिध्यमान होकर हमें धन प्रदान करते हुए निर्मल और प्रबल दीप्ति के साथ प्रज्वलित हों।[ऋग्वेद 6.48.7]
Hey deity! Junior amongest the demigods-deities radiant Agni dev, have woods from our brother Bhardwaj, grant us wealth becoming pure-pious with strong beam-of light.
विश्वासां गृहपतिर्विशामसि त्वमग्ने मानुषीणाम्। शतं पूर्भिर्यविष्ठ पाह्यंहसः समेद्वारं शतं हिमाः स्तोतृभ्यो ये च ददति
हे अग्नि देव! आप सभी मनुष्यों के गृहपति हैं। मैं आपको सौ हेमन्तों तक प्रज्वलित करता हूँ। आप मुझे सैंकड़ों रक्षाओं द्वारा पाप कर्मों से बचावें, जो आपके स्तोताओं को अन्न देते हैं, उन्हें भी बचावें।[ऋग्वेद 6.48.8]
Hey Agni Dev! Your are the house master-lord of the household. I ignite-light you for hundred years. Protect me and your Stotas who make offerings of food grains to you, from the sins.
त्वं नश्चित्र ऊत्या वसो राधांसि चोदय।
अस्य रायस्त्वमग्ने रथीरसि विदा गाधं तुचे तु नः
हे गृह दाता विचित्र अग्नि देव! आप हमारे पास रक्षक के साथ धन भेजें; क्योंकि आप ही समस्त धनों के प्रेरक है। शीघ्र ही हमारी सन्तानों को प्रतिष्ठित करें।[ऋग्वेद 6.48.9]
प्रतिष्ठित :: सम्मान प्राप्त, आदर प्राप्त, विष्णु; prestigious, honourable.
Hey house granting Agni Dev! Send us wealth with our protector, since its you who inspire all wealth-riches. Make our progeny honourable quickly.
पर्षि तोकं तनयं पर्तृभिष्ट्वमदब्धैरप्रयुत्वभिः।
अग्ने हेळांसि दैव्या युयोधि नोऽदेवानि ह्वरांसि च
हे अग्नि देव! समवेत और हिंसा रहित रक्षा के द्वारा हमारे पुत्र-पौत्र का पालन करें। आप हमारे यहाँ से देवों का क्रोध और मनुष्यों का विद्वेष हटावें।[ऋग्वेद 6.48.10]
समवेत :: एकत्र, संचित; together, ensemble.
Hey Agni Dev! Nourish our sons & grandsons free from accumulation and violence. Remove the anger-anguish of the demigods-deities and the enemy of the humans.
आ सखायः सबर्दुघां धेनुमजध्वमुप नव्यसा वचः। सृजध्वमनपस्फुराम्
हे बन्धु गण! नये स्तोत्रों के साथ आप दूध देने वाली गौ को ले आवें। इसके पश्चात् लिए उसे कोई हानि न होने पावे।[ऋग्वेद 6.48.11]
Hey brother-relatives! Bring milch cows with newly composed hymns and ensure that it is not harmed thereafter.
या शर्धाय मारुताय स्वभानवे श्रवोऽमृत्यु धुक्षत।
या मृळीके मरुतां तुराणां या सुन्मैरेवयावरी
जो सहिष्णु, स्वाधीन तेजा, मरुतों को अमरण हेतु पयोरूप अन्न देती है, जो वेग मरुतों के सुख-साधन में तत्पर हैं और जो वर्षाजल के साथ सुख वर्षण करके अन्तरिक्ष मार्ग में घूमती हैं, उस धेनु के पास आवें।[ऋग्वेद 6.48.12]
सहिष्णु :: सहनशीलता; tolerant.
Bring that cow to us which roam independently-freely in the sky-space, tolerant, possess independent aura-radiance, grant food grains to Marud Gan & loos after their comforts, shower rains and comfort.(10.10.2023)
भरद्वाजायाव धुक्षत द्विता। धेनुं च विश्वदोहसमिषं च विश्वभोजसम्
हे मरुतो! भरद्वाज के लिए विशेष दूध देने वाली गौ और सभी के खाने के लिए यथेष्ट अन्न, इन दो सुखों का दोहन करें।[ऋग्वेद 6.48.13]
Hey Marud Gan! Let us obtain two comforts,  a special cow for Bhardwaj yielding milk and sufficient food grains for all. 
तं व इन्द्रं न सुक्रतुं वरुणमिव मायिनम्।
अर्यमणं न मन्द्रं सृप्रभोजसं विष्णुं न स्तुष आदिशे
हे मरुतों! आप इन्द्र देव के महान् कर्मों के अनुष्ठाता हैं, वरुण देव के सदृश बुद्धिमान् हैं, अर्यमा के समान स्तुति के पात्र हैं, श्री विष्णु के सदृश दानशील हैं। धन के लिए मैं आपकी प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 6.48.14]
Hey Marud Gan! You are executor of the great deeds of Indr Dev, intelligent like Varun Dev, worshipable like Aryma and donor like Shri Hari Vishnu. We pray-request you for money.
त्वेषं शर्धो न मारुतं तुविष्वण्यनर्वाणं पूषणं सं यथा शता। सं सहस्रा कारिषच्चर्षणिभ्य आँ आविर्गूळ्हा वसू करत्सुवेदा नो वसू करत्
मरुद्गण सैकड़ों-हजारों प्रकार के धन हमें एक ही समय में प्रदान करें। इसके लिए मैं उच्च शब्दकारी हूँ, अप्रतिहत-प्रभाव और पुष्टिकारक मरुतों के दीप्तबल की प्रार्थना करता हूँ। वे ही मरुद्गण हमारे पास गुप्त धन को प्रकट करें और समस्त धन उपलब्ध करावें।[ऋग्वेद 6.48.15]
Let Marud Gan grant us hundreds-thousands kinds of wealth at a time. I make loud sounds for this and pray for the continuous & nourishing radiance of Marud Gan. Let Marud Gan reveal our hidden treasures and make all sorts of wealth available to us.
आ मा पूषन्नुप द्रव शंसिषं नु ते अपिकर्ण आघृणे। अघा अर्यो अरातयः
हे पूषा देव! आप शीघ्र मेरे पास आवें। दीप्तिमान देव भीषण आक्रमण करने वाले शत्रुओं को पीड़ा पहुँचावें। मैं भी आपके कर्ण (कान) के पास आकर गुणगान करता हूँ।[ऋग्वेद 6.48.16]
Hey Pusha Dev! Come to me quickly. Hey radiant deity torture the invading enemies. I sing songs of your glory near-close to your ears.
मा काकम्बीरमुद्वृहो वनस्पतिमशस्तीर्वि हि नीनशः।
मोत सूरो अह एवा चन ग्रीवा आदधते वेः
हे पूषा देव! आप कौओं के आश्रयभूत वनस्पति को नष्ट मत करना। मेरे निन्दकों को पूर्णतः नष्ट कर दें। जिस प्रकार से व्याध चिड़ियों को फँसाने के लिए जाल फैलाता है, उसी प्रकार शत्रु लोग मुझे किसी भी प्रकार से बाँध न सकें।[ऋग्वेद 6.48.17]
Hey Pusha Dev! Do not destroy the vegetation sheltering the crows. Destroys my cynics. The enemy should not be able to bind-tie me like the hunter who spread net to catch the birds. 
दृतेरिव तेऽवृकमस्तु सख्यम्। अच्छिद्रस्य दधन्वतः सुपूर्णस्य दधन्वतः
हे पूषा देव! आपसे हमारी मैत्री छिद्र रहित दधि पात्र के सदृश निर्बाध एवं अविच्छिन्न बनी रहे।[ऋग्वेद 6.48.18]
Hey Pusha Dev! Let our friendship with you, remain free from holes like the pot containing curd; continuously and unbroken.
परो हि मर्त्यैरसि समो देवैरुत श्रिया।
अभि ख्यः पूषन् पृतनासु नस्त्वमवा यथा पुरा
हे पूषा देव! आप मनुष्यों का अतिक्रम करके अवस्थित हैं। धन में देवों के तुल्य हैं। इसलिए संग्राम में हमारी ओर अनुकूल दृष्टि रखें। प्राचीन समय में आपने मनुष्यों की जिस प्रकार से रक्षा की, उसी प्रकार इस समय हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.48.19]
अतिक्रम :: मर्यादा का उल्लंघन, दुरुपयोग; deviation.
Hey Pusha Dev! You are stabilized by deviating from the norms set for the humans. You are like the demigods-deities in granting-possessing wealth. You should be favourable to us in war. The way you safe guarded the humans protect us as well now.
वामी वामस्य धूतयः प्रणीतिरस्तु सूनृता।
देवस्य वा मरुतो मर्त्यस्य वेजानस्य प्रयज्यवः
हे कम्पनकारी और भली-भाँति स्तुति पात्र महतो! आपकी जो प्रशस्त वाणी देवों और याजक गणों को मनोवाञ्छित धन प्रदान करती है, वही सदय और सूनृत वाणी हमारी पथ प्रदर्शिका बनें।[ऋग्वेद 6.48.20]
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; expansive, smashing, praise worthy.
सूनृत :: सत्य और प्रिय भाषण जो सदाचरण के पाँच गुणों में से एक है,  आनंद, मंगल, कल्याण, अनुकूल, दयालु, प्रिय, सदाशापूर्ण, truthful and dear words, beautiful.
सदय :: मेहरबान, रहमदिल, कृपालु, कृपाशोल, कृपालु, सज्जनतापूर्ण, समवेदनापूर्ण; clement, kindly, kind.
Hey trembling-vibrating and worship deserving Mahto! Your praiseworthy speech-words grant desired wealth to the Ritviz. Let your kind, truthful and dear words guide us.
सद्याचिद्यस्य चर्वृतिः परि द्यां देवो नैति सूर्यः।
त्वेषं शवो दधिरे नाम यज्ञियं मरुतो वृत्रहं शवो ज्येष्ठं वृत्रहं शवः
जिन मरुतों के समस्त कार्य दीप्तिमान सूर्य देव के सदृश सहसा आकाश में व्याप्त होते हैं, वे ही मरुद्गण दीप्त, शत्रु विजयी, पूजनीय और शत्रु नाशक बल धारित करते हैं। शत्रु नाशक बल सर्वापेक्षा प्रशस्त होता है।[ऋग्वेद 6.48.21]
The endeavours of Marud Gan which pervade the space-sky like the Sun-Sury Dev suddenly, are winner of the enemy, worshipable, possessor of the strength capable to crush the enemy and praiseworthy.
सकृद्ध द्यौरजायत सकृद्भूमिरजायत।
पृश्न्या दुग्धं सकृत्पयस्तदन्यो नानु जायते
एक ही बार स्वर्ग उत्पन्न हुआ और एक ही बार पृथ्वी। एक ही बार पृष्णि या मरुतों की माता गौ से दूध दुहा गया। इनके समय और कुछ उत्पन्न नहीं हुआ अर्थात् अन्य कोई पदार्थ उत्पन्न नहीं हुआ।[ऋग्वेद 6.48.22]
The heavens and the earth evolved only once. Prashni milked the mother cow-earth only once. Since then, nothing-new material has evolved.(11.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :-  भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र देव, अग्रि; छन्द :- बृहती, अनुष्टुप्।
प्र नु वोचा सुतेषु वां बीर्या३यानि चक्रथुः।
हतासो वां पितरो देवशत्रव इन्द्राग्री जीवथो युवम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आपने जो वीरता प्रकट की है, उसी वीरता का वर्णन हम सोमरस के अभिषुत होने पर बड़े आग्रह के साथ करते हैं। देवद्वेष्टा असुर आपके द्वारा मारे गये हैं और आप लोग रक्षक हैं।[ऋग्वेद 6.59.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! We describe-stress over your valour on extracting Somras. Demons envious of demigods-deities are killed by you. You are the protectors of humans.
बळित्या महिमा वामिन्द्राग्नी पनिष्ठ आ।
समानो वां जनिता भ्रातरा युवं यमाविहेहमातरा
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप लोगों का जो जन्म माहात्म्य प्रतिपादित होता है, वह सब यथार्थ और अतीव प्रशस्य है। आप दोनों के एक ही पिता हैं। आप यम के भाई हैं और आपकी माता सभी जगह विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 6.59.2]
Hey Indr Dev and Agni Dev! The glory associated with your birth-evolution is real and deserve appreciation. Father of both of you is the same. You are the brothers of Yam-Dharm Raj. Your mother is omnipresent.
ओकिवांसा सुते सचाँ उ श्वा सप्ती इवादने।
इन्द्रान्व १ ग्री अवसेह वज्रिणा वयं देवा हवामहे
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! जिस प्रकार से तेज चलने वाले दोनों अश्व भक्षणीय घास की ओर जाते हैं आप भी उसी प्रकार सोमरस के अभिषुत होने पर एक साथ जाते हैं। अपनी रक्षा के लिए आज हम वज्रधर और दानादि गुण से युक्त इन्द्रदेव और अग्निदेव को इस यज्ञ में बुलाते हैं।[ऋग्वेद 6.59.3]
Hey Indr Dev & Agni Dev! The way fast moving horses are attracted towards grass, you invoke as soon as Somras is extracted. We invite Vajr wielder donor Indr Dev and Agni Dev for our protection in the Yagy.
य इन्द्राग्नी सुतेषु वां स्तवत्तेष्वृतावृधा।
जोषवाकं वदतः पज्रहोषिणा न देवा भसथश्चन
हे यज्ञ के समृद्धिदाता इन्द्र देव और अग्नि देव! आपका स्तोत्र प्रसिद्ध है। जो व्यक्ति सोमरस के अभिषुत होने पर प्रेम रहित स्तोत्र द्वारा कुत्सित रूप से आपकी प्रार्थना करता है, उसका दिया हुआ सोमरस आप स्पर्श नहीं करते।[ऋग्वेद 6.59.4]
Hey enricher of the Yagy Indr Dev & Agni Dev! Your Strotr is famous. You do not touch the Somras extracted by a person with impious prayers associated with the Strotr without affection & love.
इन्द्राग्नी को अस्य वां देवो मर्तश्चिकेतति।
विषूचो अश्वान्युयुजान ईयत एकः समान आ रथे
हे दीप्ति सम्पन्न इन्द्र देव और अग्नि देव! जिस समय आपमें से एक सूर्यात्मक इन्द्र देव नाना प्रकार से गमन करने वाले अश्वों को जोतकर अग्नि देव के साथ एक रथ पर आरूढ़ होकर जाते हैं, उस समय कौन मनुष्य आपके इस कार्य का विचार करेगा या जानेगा (कोई भी नहीं)?[ऋग्वेद 6.59.5]
Hey radiant Indr Dev & Agni Dev! The manner in which one of you, Indr Dev deploy the horses in the charoite with vivid movements and ride it along with Agni Dev, who will not think of this action by you.
इन्द्राग्नी अपादियं पूर्वागात्पद्वतीभ्यः।
हित्वी शिरो जिह्वया वावदचरत्त्रिंशत्पदा न्यक्रमीत्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! पैरों से रहित यही उषा प्राणियों के शिरोवेश को उत्तेजित करके और उनकी जिह्वाओं से उच्च शब्द कराकर पैरों से युक्त और निद्रित जीवों की अभिमुखवर्त्तिनी हो रही हैं और इसी प्रकार तीस पद (मुहूर्त) अतिक्रम करती हैं।[ऋग्वेद 6.59.6] 
मुहूर्त :: कार्य हेतु निश्चित किया गया विशिष्ट समय, काल गणना के अनुसार कार्य हेतु निश्चित किया गया समय; auspicious moment, auspicious beginning.
Hey Indr Dev & Agni Dev! Usha without legs, activate the minds of the humans, make them speak, awake the slept living beings, moves forward and continue like this for thirty feet i.e., Muhurt (designated auspicious time period).
इन्द्राग्नी आ हि तन्वते नरो धन्वानि बाह्वोः।
मा नो अस्मिन्महाधने परा वर्कतन वर्क्तं गविष्टिषु
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! योद्धा लोग दोनों से हाथों धनुष फैलाते हैं। इस महासंग्राम में गौवों के अनुसन्धान के समय हमें न छोड़ना।[ऋग्वेद 6.59.7]
Hey Indr Dev and Agni Dev! The warriors expend-stretch the bow with both hands. Do not discard us during the great war for the recovery of cows. 
इन्द्राग्नी तपन्ति माघा अर्यो अरातयः। अप द्वेषांस्या कृतं युयुतं सूर्यादधि
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! हनन परायण और आक्रमण कर्ता शत्रु हमें पीड़ित कर रहे हैं। उन्हें आप दूर करें और उन्हें सूर्य दर्शन से भी वञ्चित करें।[ऋग्वेद 6.59.8]
Hey Indr Dev & Agni Dev! The attacker-invader enemies are torturing us. Repel them and prohibit them from seeing the Sun.
इन्द्रानी युवोरपि वसु दिव्यानि पार्थिवा।
आ न इह प्र यच्छतं रथिं विश्वायुपोषसम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप लोग दिव्य और पार्थिव समस्त धनों के स्वामी हैं; इसलिए इस यज्ञ में हमें जीवन पोषक समस्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.59.9]
Hey Indr Dev & Agni Dev! You are the lord of divine and material wealth, hence grant us all sorts of riches for sustaining life & carrying out the Yagy.
इन्द्रानी उक्थवाहसा स्तोमेभिर्हवनश्रुता।
विश्वाभिर्गीर्भिरा गतमस्य सोमस्य पीतये
स्तोत्र द्वारा आकर्षणीय इन्द्र देव और अग्नि देव! हमारे इस सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें, क्योंकि आप लोग स्तोत्रों और उपासनाओं से युक्त आह्वान श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 6.59.10]
Hey Indr Dev & Agni Dev invoked by the Strotr! Come for drinking our Somras, since you respond to the prayers-worship and recitation of Strotr-sacred hymns.(24.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्राग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्, बृहती, अनुष्टुप् गायत्री।
शनाथद्वृत्रमुत सनोति वाजमिन्द्रा यो अग्नी सहुरी सपर्यात्।
इरज्यन्ता वसव्यस्य भूरे: सहस्तमा सहसा वाजयन्ता
जो विशाल धन के स्वामी हैं, जो बलात शत्रु हन्ता हैं और जो अन्नाभिलाषी इन्द्र देव और अग्नि देव की सेवा करते हैं, वे शत्रुओं का संहार करते हुए और अन्न प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.60.1]
Those who possess a lot of wealth, kills the enemy at once, desirous of food grains and server Indr Dev & Agni Dev, they obtain food grains while killing the enemies.
ता योधिष्टमभि गा इन्द्र नूनमपः स्वरुषसो अग्न ऊळहाः।
दिशः स्वरुषस इन्द्र चित्रा अपो गा अग्ने युवसे नियुत्वान्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आपने अपहरण की गई गौओं, जलराशि, सूर्य और उषा के लिए युद्ध किया। हे इन्द्रदेव! आपने दिशाओं, सूर्य, उषाओं, विचित्र जल और गौओं को सार के साथ योजित किया। हे अश्वों के अधिपति अग्निदेव! आपने भी ऐसे कार्य किये।[ऋग्वेद 6.60.2]
योजित :: मिलाया हुआ, युक्त, बनाया हुआ, जिसकी योजना की गई हो, योजना के रूप में लाया हुआ, जोड़ा या मिलाया हुआ, किसी काम या बात में लगाया हुआ, बनाया या रचा हुआ, रचित, नियमों आदि से बँधा हुआ, नियमबद्ध; ; connected,  planned, organised.
Hey Indr Dev & Agni Dev! You fought the war for cows, water, Sun and Usha. Hey Indr Dev! You connected the directions, Sun, Ushas, amazing water and the cows through their extract. Hey Lord of horses Agni Dev! You too performed such jobs-deeds.
आ वृत्रहणा वृत्रहभिः शुष्मैरिन्द्र यातं नमोभिरग्ने अर्वाक्।
युवं राधोभिरकवेभिरिन्द्राग्ने अस्मे भवतमुत्तमेभिः
हे वृत्रहन्ता इन्द्र देव और अग्नि देव! आप हमारे हव्यान्न द्वारा परिपुष्ट होने के लिए शत्रुनाशक बल के साथ हमारे सामने पधारें। आप लोग अनिन्द्य और अत्युत्कृष्ट धन के साथ हमारे पास आविर्भूत होवें।[ऋग्वेद 6.60.3]
अनिंद्य :: प्रशंसनीय, जिसकी निंदा न की जा सकती हो, श्रेष्ठ, सुंदर; appreciable, irreproachable, unexceptionable, beautiful.
Hey slayer of Vratr, Indr Dev & Agni Dev! Invoke before us with your might to destroy the enemy & to be nourished with our offerings. Come to us with appreciable and excellent wealth.
ता हुवे ययोरिदं पप्ने विश्वं पुरा कृतम्। इन्द्राग्नी न मर्धतः
प्राचीन समय में ऋषियों द्वारा जिनके समस्त वीरकार्य कीर्त्तित हुए, मैं उन्हीं इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करता हूँ। वे स्तोताओं की हिंसा नहीं करते।[ऋग्वेद 6.60.4]
I invoke Indr Dev & Agni Dev whose bravery and valour were appreciated by the Rishis during ancient times-periods. They do not harm their Stotas-worshipers.
उग्रा विघनिना मृध इन्द्राग्नी हवामहे। ता नो मृळात ईदृशे
हम प्रचण्ड बलशाली, शत्रु हन्ता इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करते हैं। वे हमें ऐसे में कृत कार्य करके सुखी बनावें।[ऋग्वेद 6.60.5]
प्रचण्ड ::  कठोर, उग्र, तीक्ष्ण, कड़ा; terrific, severe.
We invoke terrific, mighty and destroyer of the enemy Indr Dev & Agni Dev. Let should make us comfortable.
हतो वृत्राण्यार्या हतो दासानि सत्पती। हतो विश्वा अप द्विषः॥
हे साधुओं के रक्षक इन्द्र देव और अग्नि देव! धार्मिकों और अधार्मिकों द्वारा कृत समस्त उपद्रवों का निवारण करते हैं। उन्होंने समस्त विरोधियों का संहार किया।[ऋग्वेद 6.60.6]
निवारण :: रोकना, दूर करना, हटाना; prevention, eradication, prohibit.
Hey protector of the sages Indr Dev and Agni Dev! You eradicate the misdeeds and troubles created by the religious and irreligious. You killed all opponents.
इन्द्राग्नी युवामिमे३भि स्तोमा अनूषत। पिबतं शंभुवा सुतम्
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव और अग्नि देव! ये स्तोता आपकी प्रार्थना करते हैं। हे सुखदाता इंद्रदेव और अग्निदेव! आप इस अभिषुत सोमरस का पान करें। [ऋग्वेद 6.60.7]
Hey killer of Vratr Indr Dev & Agni Dev! These Stotas worship-pray you. Hey comforter Indr Dev & Agni Dev! Drink this extracted Somras.
या वां सन्ति पुरुस्पृहो नियुतो दाशुषे नरा। इन्द्राग्नी ताभिरा गतम्॥
हे नेता इन्द्रदेव और अग्निदेव! याजकों द्वारा प्रशंसा किए जाते हुए, आप दोनों उनसे प्रदत्त हविष्यान्न के लिए यज्ञशाला में अपने तेज चलने वाले अश्व की सहायता से आकर दान देने वालों की सहायता करें।[ऋग्वेद 6.60.8]
Hey leaders Indr Dev & Agni Dev! Come riding your fast moving horses to the Yagy house to accept the offerings on been appreciated and help the donors.
ताभिरा गच्छतं नरोपेदं सवनं सुतम्। इन्द्राग्नी सोमपीतये
हे नेता इन्द्र देव और अग्नि देव! इस सवन में अभिषुत सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 6.60.9]
Hey leaders Indr Dev & Agni Dev! Come to drink the extracted Somras during this period-part of the day.
तमीळिष्व यो अर्चिषा वना विश्वा परिष्वजत्। कृष्णा कृणोति जिह्वया
हे स्तोता! जो अग्नि देव अपनी शिखा द्वारा समस्त वनों को ढक लेते हैं और ज्वालारूप जिव्हा द्वारा उन्हें काला कर देते हैं, आप उन्हीं अग्नि देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 6.60.10]
Hey Stota! Worship Agni Dev who cover the forests with their tip and make them black with their tongue in the form of flames.
य इद्ध आविवासति सुम्नमिन्द्रस्य मर्त्यः। द्युम्नाय सुतरा अपः
जो मनुष्य प्रज्वलित अग्नि में इन्द्र देव के लिए सुखकर हव्य प्रदान करते है, इन्द्र देव उन्हीं मनुष्यों के दीप्ति सम्पन्न अन्न के लिए कल्याणकारी जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 6.60.11]
Indr Dev make rains for the welfare of those humans who make pleasure giving offerings in the ignited fire. 
ता नो वाजवतीरिष आशून्पिपृतमर्वतः। इन्द्रमग्निं च वोळ्हवे 
हे इन्द्र देव और अग्रि देव! हमें बल युक्त अन्न प्रदान करें और हमारे हव्य को बलवान करने के लिए हमें वेगवान अश्व प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.60.12]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Grant us food grains which grant strength and give us fast moving horses to make our offerings powerful.
उभा वामिन्द्राग्नी आहुवध्या उभा राधसः सह मादयध्यै।
उभा दाताराविषां रयीणामुभा वाजस्य सातये हुवे वाम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! होम द्वारा आपको अनुकूल करने के लिए मैं आप दोनों का आवाहन करता हूँ। हव्य द्वारा तत्काल तृप्ति करने के लिए मैं आप दोनों का आवाहन करता हूँ। आप दोनों अन्न और धन को देने वाले हैं; इस लिए मैं अन्न प्राप्ति के लिए आप दोनों का आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 6.60.13]
Hey Indr Dev & Agni Dev! I invoke both of you to make favourable. I invoke you to have satisfaction with the offerings immediately-instantaneously. Both of you grant wealth & food grains, hence I invoke you to seek food grains. 
आ नो गव्येभिरश्यैर्वसव्यैरुप ३ गच्छतम्।
सखायौ देवौ सख्याय शंभुवेन्द्राग्नी ता हवामहे
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप गौओं, अश्वों और विपुल धन के साथ हमारे सम्मुख पधारें। हम मित्रता के लिए मित्रभूत, दानादि गुणों से युक्त और सुख देने वाले इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.60.14]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Come to us with cows, horses and a lot of wealth. We invoke Indr Dev & Agni Dev who are like friends, possess virtues like donation and comforts-pleasure for friendship.
इन्द्रानी शृणुतं हवं याजकगणस्य सुन्वतः।
वीतं हव्यान्या गतं पिबतं सोम्यं मधु
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप सोमरस रस तैयार करने वाले याजकगण का आह्वान श्रवण करें। हवि की इच्छा से आएँ और मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 6.60.15]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Respond to the invocation of the Ritviz who extract Somras. Come with the desire of offerings and drink sweet Somras.(25.10.2023)
 
Contents of these above mentioned blogs are covered under copyright and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS ARE RESERVED WITH THE AUTHOR.
संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

No comments:

Post a Comment