Monday, December 29, 2014

VARUN DEV-THE DEITY OF WATER वरुण देव (RIG VED ऋग्वेद 1-6)*

VARUN DEV-DEITY OF WATER 
वरुण देव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com palmistrycncyclopedia.blgspot.com
santoshvedshakti.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:। 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
सूर्य-रोशनी, इन्द्र, जल, वायु, अग्नि पृथ्वी पर प्राणियों के हेतु परमावश्यक तत्व हैं।
मरीचि मत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम्।
प्रचेतसं  वशिष्ठन् च भृगुं नारदमेव च॥
मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वशिष्ठ, भृगु और नारद ये दस महर्षि  हैं।[मनु स्मृति 1.35]   
Marichi, Atri, Angira, Pulasty, Pulah, Kratu, Pracheta, Vashishth, Bhragu and Narad are 10 Mahrishi.
प्रचेता दक्ष प्रजापति के पिता थे। 
प्रचेता वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि के भाई थे। प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्मा जी के पुत्र थे। वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे।[मनुस्मृति]
वाल्मीकि के पिता का नाम वरुण और माँ का नाम चार्षणी था। वह अपने माता-पिता के दसवें पुत्र थे। उनके भाई ज्योतिषाचार्य भृगु ऋषि थे। महर्षि बाल्मीकि के पिता वरुण महर्षि कश्यप और अदिति के नौवीं सन्तान थे।[भागवत पुराण]
वरुण का एक नाम प्रचेता भी है, इसलिए बाल्मीकि प्राचेतस नाम से भी विख्यात हैं।
मकर-मगरमच्छ पर विराजमान मित्र (कश्यप ऋषि और अदिति की दसवीं सन्तान) और वरुण देव दोनों भाई हैं और यह जल के देवता है। उनकी गणना देवों और दैत्यों दोनों में की जाती है। भागवत पुराण के अनुसार वरुण और मित्र को 
मित्र और वरुण इन दोनों की सन्तानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणामस्वरूप हुई बताई गई हैं। उदाहरणार्थ वरुण के दीमक की बाँबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि वाल्मीकि की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा उर्वशी की उपस्थिति में एक घड़े में गिर गए तब ऋषि अगस्त्य एवं वशिष्ठ की उत्पत्ति हुई।
मित्र देव और देवगणों के बीच संपर्क का कार्य करते हैं। वे ईमानदारी, मित्रता तथा व्यावहारिक संबंधों के प्रतीक देवता हैं।
देवताओं के तीन वर्गों (पृथ्वी स्थान, वायु स्थान और आकाश स्थान) में वरुण का सर्वोच्च स्थान है।
वरुण देव को समुद्र, विश्व के नियामक और शासक सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन-रात का कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य का नियामक के रूप में जाना जाता है।
वरुण देवता ऋतु के संरक्षक हैं, इसलिए इन्हें ऋतस्यगोप भी कहा जाता था।
वरुण के साथ मित्र का भी उल्लेख है इन दोनों को मिलाकर मित्रावरुण भी कहते हैं। ऋग्वेद के मित्र और वरुण के साथ आप:-जल, पानी, नीर का भी उल्लेख है।
मित्र और वरुण का सहस्र स्तम्भों वाले भवन में निवास करते हैं। 
ऋग्वेद में वरुण को वायु का सांस कहा गया है।
वरुण देव लोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं।
ऋग्वेद का 7 वाँ मण्डल वरुण देव को समर्पित है।
दण्ड के रूप में वरुणदेव मनुष्यों को  जलोदर रोग से पीड़ित करते हैं।
सर्वप्रथम समस्त सुरासुरों को जीत कर राजसूय यज्ञ जलाधीश वरुण ने ही किया था।
वरुण सम्पूर्ण सम्राटों के सम्राट हैं। वरुण पश्चिम दिशा के लोकपाल और जलों के अधिपति हैं। पश्चिम समुद्र-गर्भ में इनकी रत्नपुरी विभावरी है। इनका मुख्य अस्त्र पाश है। वरुण के पुत्र पुष्कर इनके दक्षिण भाग में सदा उपस्थित रहते हैं।
अनावृष्टि के समय देवराज इंद्र के साथ-साथ वरुण देव की पूजा-अर्चना, उपासना का विधान है। 
वरुणदेव जल के अधिपति, दस्युओं के नाशक और देवताओं काे रक्षक हैं। दिक्पाल के रूप में  ये पश्चिम दिशा के अधिपति हैं। इनका अस्त्र पाश है।   
सत्यवादी महाराज हरिश्चंद्र वैधस ने पुत्र प्राप्ति के लिये वरुण देव की उपासना की। वरुण ने देव ने यह वचन लेकर पुत्र प्रदान किया कि उसी पुत्र से तुम मेरा यज्ञ करना। पुत्र का नाम रोहित हुआ। जब वह कुछ बड़ा हुआ और उसे यह पता चला कि मुझे वरुण के यज्ञ में बलिपशु बनना पड़ेगा; तब वह जंगल में भाग गया। वहाँ उसे इंद्र घर लौटने को बराबर मना करते रहे। अंत में राजा ने अजीगर्त नामक एक ऋषि को सौ गौएँ देकर उनके पुत्र शुनःशेफ को बलि के लिये मोल लिया। जब शुनःशेफ यूप में बाँधा गया, तब वह अपने छुटकारे के लिये प्रजापति, अग्नि, सविता आदि कई देवताओं की स्तुति करने लगा। अंत में वरुण की स्तुति करने से उसका उद्धार हुआ। ऋग्वेद में वरुण के कुछ मंत्र वे ही हैं, जिन्हें पढ़कर शुनःशेफ ने स्तुति की थी।
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्। 
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥
नागों में अनन्त-भगवान् शेषनाग और जल-जन्तुओं का अधिपति वरुण मैं हूँ। पितरों में अर्यमा और शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ।[श्रीमद्भगवद्गीता 10.29]  
The Almighty as Shri Krashn revealed the secret to Arjun that HE was Anant-Bhagwan Shesh Nag among the hooded snakes, Varun the administrator of the reptiles-animals residing in water, Aryma among the Pitr and Yam-Dharm Raj among the rulers-administrators.
भगवान् अनन्त-शेष नाग, पृथ्वी को अपने मस्तिष्क पर धारण किये हुए हैं। वही भगवान् श्री हरी विष्णु की शेष शय्या हैं। परमात्मा जब भी अवतार ग्रहण करते हैं, वे भी उनके साथ-साथ जन्म लेते हैं। वो ही लक्ष्मण और वो ही बलराम जी हैं। समस्त जलचरों के स्वामी और अर्जुन को गाण्डीव धनुष प्रदान करने वाले जल के देवता वरुण भी वही हैं। 7 पितरों में प्रमुख अर्यमा हैं। प्राणियों को उनके कर्मों के अनुरूप गति प्रदान करने वाले और सारे संसार के नियंत्रण कर्ता यमराज हैं। ये सभी भगवान् की विभूतियाँ हैं। 
Bhagwan Anant-Shesh Nag has 1,000 hoods. He is bearing the earth over one of his hoods. He forms the bed of Bhagwan Shri Hari Vishnu in the Ksheer Sagar. He takes birth along with incarnation of the Almighty. He was Lakshman when Bhagvan Shri Ram appeared over the earth. This time he accompanied Bhagwan Shri Krashn as Bal Ram Ji. Varun is the nurturer of reptiles and water born animals. He landed his bow named Gandeev, to Arjun. Celestial ancestors-Manes are 7 in number and Aryma is Ultimate-topmost in them. Yam Raj controls the entire living world through their deeds awarding them specific abodes and birth in a particular-specific species, according to the accumulated deeds in infinite births. These four are the Ultimate forms of the deities-demigods in their categories and hence are the forms of the Almighty.
अम्बयो यन्त्यध्वभिर्जामयो अध्वरीयताम्। पृञ्चतीर्मधुना पयः॥
यज्ञ की इच्छा करने वालों के सहायक, मधुर रस-रूप जल प्रवाह माताओं के सदृश पुष्टि प्रद है। वे दुग्ध को पुष्ट करते हुये यज्ञ मार्ग से गमन करते है।[ऋग्वेद 1.23.16]
(यज्ञ द्वारा पुष्टि प्रदायक रस प्रवाहों के विस्तार का उल्लेख है।)
यश की इच्छा करने वालों को मातृ-भूत जल हमारा बंधु रूप है और वह दुग्ध को पुष्ट करता हुआ यज्ञ-मार्ग से चलता है।
He is helpful to those who are performing Yagy by flowing sweet waters just like nursing mothers. He enriches the milk  while flowing along the route of the Yagy.  
अमूर्या उप सूर्ये याभिर्वा सूर्यः सह। ता नो हिन्वन्त्वध्वरम्॥
जो ये जल सूर्य में (सूर्य किरणो में) समाहित है अथवा जिन जलों के साथ सूर्य का सान्निध्य है, ऐसे वे पवित्र जल हमारे यज्ञ को उपलब्ध हों।[ऋग्वेद 1.23.17]
(उक्त दो मंत्रो में  अंतरिक्ष किरणों द्वारा कृषि का वर्णन है। खेत में अन्न दिखता नहीं, किन्तु उससे उत्पन्न होता है। पूषा-पोषण देने वाले देवो (यज्ञ एवं सूर्प आदि) द्वारा सोम (सूक्षम पोषक तत्व) बोया और उपजाया जाता है।)
जो जल सूर्य के पास स्थित है दुग्ध अथवा सूर्य जिनके साथ है, वे हमारे यज्ञ को सींचें।
Let Pusha Dev make available the pure-pious waters, which are embedded in the Sun rays
अपो देवीरुप ह्वये यत्र गावः पिबन्ति नः। सिन्धुभ्यः कर्त्वं हविः॥
हमारी गायें जिस जल का सेवन करती है, उन जलों का हम स्तुतिगान करते हैं। (अंतरिक्ष एवं भूमी पर) प्रवाहमान उन जलों के निमित्त हम हवि अर्पण करते हैं।[ऋग्वेद 1.23.18]
जिन जलों को हमारी गायें पीती हैं, उन जलों को हम चाहते हैं। जो जल बह रहा है, उसे हवि देनी है।
We praise-appreciate the water which is drunk by our cows. We make offerings to these waters. 
अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तये। देवा भवत वाजिनः॥
जल में अमृतोपम गुण है। जल में औषधीय गुण हैं। हे देवो! ऐसे जल की प्रशंसा से आप उत्साह प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.23.19]
जलों में अमृत है, जलों में औषधि है, जलों की महिमा से उत्साह ग्रहण करो।
Hey deities-demigods! You should be encouraged by the appreciation of waters which are just like elixir, nectar, ambrosia having the qualities of medicines. 
अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा। 
अग्निं च विश्वशम्भुवमापश्च विश्वभेषजीः॥
मुझ (मंत्र द्रष्टा मुनि) से सोमदेव ने कहा है कि जल समूह में सभी औषधियाँ समाहित हैं। जल में ही सर्व सुख प्रदायक अग्नितत्व समाहित हैं। सभी औषधियाँ जलों से ही प्राप्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.23.20]
सोम के कथन के अनुसार जल ही औषधि तत्व है। उसने सर्व सुख दाता और आरोग्य देने वाले जलों का गुण वर्णन किया है।
Som told the sage who is addressed in stanza that all medicines are embedded in waters along with pleasure giving Agni.
आपः पृणीत भेषजं वरूथं तन्वे मम। ज्योक्च सूर्यं दृशे॥
हे जल समूह! जीवन रक्षक औषधियों को हमारे शरीर में स्थित करें, जिससे हम निरोग होकर चिरकाल तक सूर्य देव का दर्शन करते रहें।[ऋग्वेद 1.23.21]
हे जलो! चिरकाल तक सूर्य के दर्शन के लिए, निरोग रहने के लिए, शरीर की रक्षा करने वाली औषधि को मेरी काया में स्थित करो।
Hey the cluster of waters! Let the life saving medicines-drugs be inserted in our body, so we may be able to see the Sun with good health for ever.
इदमापः प्र वहत यत्किं च दुरितं मयि। 
यद्वाहमभिदुद्रोह यद्वा शेप उतानृतम्॥
हे जलदेवो! हम याजकों ने अज्ञानवश जो दुष्कृत्य किये हों, जान-बुझकर किसी से द्रोह किया हो, सत्पुरुषों पर आक्रोश किया हो या असत्य आचरण किया हो तथा इस प्रकार के हमारे जो भी दोष हों, उन सबको बहाकर दूर करें।[ऋग्वेद 1.23.22]
हे जलो! मेरे अन्दर जो पाप स्थित है, उसको बहा दो। मेरे द्रोह-भाव, अपगंध और मिथ्याचरण को प्रताड़ित करो। 
Hey deities-demigods of water! Let all our-performers of Yagy, sins, truthless ness, ill treatment-misbehaviour with the virtuous, flow out of body (mind & soul) committed due to ignorance, 
आपो अद्यान्वचारिषं रसेन समगस्महि। 
पयस्वानग्न आ गहि तं मा सं सृज वर्चसा॥
आज हमने जल में प्रविष्ट होकर अवभृथ स्नान किया है, इस प्रकार जल में प्रवेश करके हम रस से आप्लावित हुये हैं! हे पयस्वान! हे अग्निदेव! आप हमें वर्चस्वी बनाएँ, हम आपका स्वागत करते हैं।[ऋग्वेद 1.23.23]
आज मैंने जलों को पाया है। उन्होंने मुझे रस से परिपूर्ण किया है। 
Let the bathing after conducting the Yagy make us virtuous. We welcome you. You have filled us with vigour-vitality.
नहि ते क्षत्रं न सहो न मन्युं वयश्चनामी पतयन्त आपुः। 
नेमा आपो अनिमिषं चरन्तीर्न ये वातस्य प्रमिनन्त्यभ्वम्॥
हे वरुणदेव! ये उड़ने वाले पक्षी आपके पराक्रम, आपके बल और सुनिति युक्त क्रोध (मन्युं) को नही जान पाते। सतत गमनशील जलप्रवाह आपकी गति को नहीं जान सकते और प्रबल वायु के वेग भी आपको नहीं रोक सकते।[ऋग्वेद 1.24.6]
हे वरुण! तुम्हारे अखण्ड राज्य, वय और क्रोध को यह उड़ते हुए पक्षी नहीं पहुँच पाते। लगातार चलते हुए और प्रबल पवन की चाल भी तुम्हारी गति को रोक नहीं पाती।
Hey Varun Dev! These flying birds can not assess your valour-power, anger generated associated with your just policies. Continuously flowing waters too cannot asses your flow-speed, even the strong gust of air can not prevent your movements.
अबुध्ने राजा वरुणो वनस्योर्ध्वं स्तूपं ददते पूतदक्षः। 
नीचीना स्थुरुपरि बुध्न एषामस्मे अन्तर्निहिताः केतवः स्युः॥
पवित्र पराक्रम युक्त राजा वरुण (सबको आच्छादित करने वाले) दिव्य तेज पुञ्ज सूर्य देव को आधार रहित आकाश में धारण करते हैं। इस तेज पुञ्ज सूर्य देव का मुख नीचे की ओर और मूल ऊपर की ओर है। इसके मध्य में दिव्य किरणें विस्तीर्ण होती चलती हैं।[ऋग्वेद 1.24.7]
पवित्र बल युक्त वरुण अंबर के ऊपर की ओर तेज समूह को स्थापित करते हैं। इस तेज़ समूह का मुख नीचे और जड़ ऊपर है। यह हमारे अन्दर स्थित होकर बुद्धि रूप निवास करें।
Varun Dev associated with pious valour establishes Sury Dev (Sun) having bright rays-aura in the sky without any support-base. This aura faces downwards with roots in upper direction. In between the upper and lower surfaces, divine rays shines.
उरुं हि राजा वरुणश्चकार सूर्याय पन्थामन्वेतवा उ। 
अपदे पादा प्रतिधातवेऽकरुतापवक्ता हृदयाविधश्चित्॥
राजा वरुण देव ने सूर्य गमन के लिये विस्तृत मार्ग निर्धारित किया है, जहाँ पैर भी स्थापित न हो, ऐसे अंतरिक्ष स्थान पर भी चलने के लिये मार्ग विनिर्मित कर देते हैं। और वे हृदय की पीड़ा का निवारण करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.24.8]
वरुण ने सूर्य के पैर रखने की व्यवस्था की है। वे वरुण मेरे मन को दुःख देने वाले को भी पराजित करने में समर्थवान हैं।
Varun Dev has established the path for the movement of Sun at a place where there is no place to put the foot. He removes the pain in the heart. (Varun Dev is competent to defeat one who pains my heart.) 
शतं ते राजन्भिषजः सहस्रमुर्वी गभीरा सुमतिष्टे अस्तु। 
बाधस्व दूरे निरृतिं पराचैः कृतं चिदेनः प्र मुमुग्ध्यस्मत्॥
हे वरुणदेव! आपके पास असंख्य उपाय है। आपकी उत्तम बुद्धि अत्यन्त व्यापक और गम्भीर है। आप हमारी पाप वृत्तियों को हमसे दूर करें। किये हुए पापों से हमें विमुक्त करें।[ऋग्वेद 1.24.9]
हे वरुण देव! तुम्हारे निकट अनेक उपाय है। तुम्हारी कल्याणकारी बुद्धि गम्भीर और दूर तक जाने वाली है। तुम पाप की शक्ति को समाप्त करो। हमारे द्वारा किये गये पापों से हमको मुक्त करो। 
Hey Varun Dev! You have numerous means-solutions to eliminate our sins their impact with your excellent intellect, which is very sharp and stable.
अमी य ऋक्षा निहितास उच्चा नक्तं ददृश्रे कुह चिद्दिवेयुः।
अदब्धानि वरुणस्य व्रतानि विचाकशच्चन्द्रमा नक्तमेति॥
ये नक्षत्रगण आकाश में रात्रि के समय दिखते हैं, परन्तु दिन में कहाँ विलीन होते हैं!? विशेष प्रकाशित चन्द्रमा रात में आता है। वरुण राजा के नियम कभी नष्ट नहीं होते हैं।[ऋग्वेद 1.24.10]
ये तारे रूप सकर्षि उन्नत स्थान में बैठे हुए रात में दिखाई देते हैं। वे दिन में कहीं लुप्त हो जाते हैं। चन्द्रमा भी रात्रि में ही प्रकाशित होता चलता है। वरुण के नियम अटल हैं।
The stars & constellations are seen at night but disappears during the day. Specially lit Moon is visible at night. The rules-laws framed by Varun Dev are rigid-unchangeable (questionable).
तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः। 
अहेळमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मा न आयुः प्र मोषीः॥
हे वरुणदेव! मन्त्ररूप वाणी से आपकी स्तुति करते हुये हुए आपसे याचना करते हैं। यजमान हविस्यात्र अर्पित करते हुये कहता है :- हे बहु प्रशंसित देव! हमारी उपेक्षा न करें, हमारी स्तुतियों को जानें। हमारी आयु को क्षीण न करें।[ऋग्वेद 1.24.11]
हे वरुण मंत्रों से युक्त वाणी से वन्दना करता हुए तुमसे ही विनती करता हूँ। हवि वाला यजमान, क्रोध न करने की आपसे प्रार्थना करता हुआ दीर्घायु माँगता है।
Hey Varun Dev! We pray to you by using the Mantr and make requests to you. Please do not neglect-ignore us. Please recognise our prayers & grant us longevity. Please do not reduce our age. 
तदिन्नक्तं तद्दिवा मह्यमाहुस्तदयं केतो हृद आ वि चष्टे। 
शुनःशेपो यमह्वद्गृभीतः सो अस्मान्राजा वरुणो मुमोक्तु॥
रात-दिन में (अनवरत) ज्ञानियों के कहे अनुसार यही ज्ञान (चिन्तन) हमारे हृदय में होते रहता है कि बन्धन में पड़े शुनःशेप ने जिस वरुण देव को बुलाकर मुक्ति को प्राप्त किया, वही वरुण देव हमें भी बन्धनों से मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.24.12]
रात और दिन यही बात मेरे मस्तिष्क में उठती है कि बन्धन में पड़े शुनः शेप ने वरुण को पुकारा था, वह हमको भी बन्धनसे स्वतंत्र-मुक्त करें। 
We keep on remembering the words of the enlightened-learned that Shun Shep called-prayed Varun Dev to be liberated from the bonds-ties through the day & night. The Varun Dev should liberate us too i.e., grant us salvation.
शुनःशेपो ह्यह्वद्गृभीतस्त्रिष्वादित्यं द्रुपदेषु बद्धः। 
अवैनं राजा वरुणः ससृज्याद्विद्वाँ अदब्धो वि मुमोक्तु पाशान्॥
तीन स्तम्भों में  बँधे  हुये शुनः शेप ने अदिति पुत्र वरुण देव का आवाहन करके उनसे निवेदन किया कि वे ज्ञानी और अटल वरुण देव उसके पाशों को काटकर उसे बन्धन मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.24.13]
पकड़े जाने पर काष्ठ के तीन स्तम्भों से बाँधे गए शुनः शेप ने अदिति पुत्र वरुण का आह्वान किया वे वरुण विद्वान और कभी धोखा न खाने वाले हैं। वे मेरे पासों को काट कर स्वतंत्र करें।
Shun Shep who was tied to three poles (for human sacrifice) called-prayed to the enlightened & determined Varun Dev, son of Aditi, to cut his bonds and set him free.  
अव ते हेळो वरुण नमोभिरव यज्ञेभिरीमहे हविर्भिः। 
क्षयन्नस्मभ्यमसुर प्रचेता राजन्नेनांसि शिश्रथः कृतानि॥
हे वरुणदेव! आपके क्रोध को शान्त करने के लिये हम स्तुति रूप वचनों को सुनाते हैं। हविर्द्रव्यों के द्वारा यज्ञ में सन्तुष्ट होकर हे प्रखर बुद्धि वाले राजन! आप हमारे यहाँ वास करते हुये हमें पापों के बन्धन से मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.24.14]
हे वरुण! हमारे प्रार्थनीय वचनों से अपने क्रोध को निवारण करो। तुम प्रखर बुद्धि वाले हमारे यहाँ निवास करते हुए हमारे पापों के बन्धनों को ढीला करो।
To pacify you, hey Varun Dev, we make prayers to remove your anger with prayers. Hey King! You are gifted with sharp intellect, be satisfied with the offerings made in the Yagy by us. Please stay with us-here and free us from the sins.
उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यमं श्रथाय। 
अथा वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम॥
हे वरुणदेव! आप तीनों ताप रूपी बन्धनों से हमें मुक्त करें। आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक पाश हमसे दूर हों तथा मध्य के एवं नीचे के बन्धन अलग करें! हे सूर्य पुत्र! पापों से रहित होकर हम आपके कर्मफल सिद्धांत में अनुशासित हों, दयनीय स्थिति में हम न रहें।[ऋग्वेद 1.24.15]
हे वरुण! हमारे ऊपर के पाश को ऊपर और नीचे के पाश को नीचे खींचकर बीच के पाश को काट डालो। हम आपके नियम में चलते हुए अपराध मुक्त रहें। 
Hey Varun Dev! Please liberate us from Adhidaevik, Adhibhotik and Adhyatmik bonds including those bonds-ties which appear in between and later as well. We should be disciplined by disassociating ourselves from the sins as per your reward & punishment (Karm Fal-destiny), principles.  We should be disciplined & never face poverty.
हिरण्यवर्णाः शुचयः पावका यासु जातः सविता यास्वग्निः। 
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु
जो जल सोने के समान आलोकित होने वाले रंग से सम्पन्न, अत्यधिक मनोहर शुद्धता प्रदान करने वाला है, जिससे सविता देव और अग्नि देव उत्पन्न हुए हैं। जो श्रेष्ठ रंग वाला जल अग्नि गर्भ है। वह जल हमारी व्याधियों को दूर करके हम सबको सुख और शान्ति प्रदान करे।[अथर्ववेद 1.33.1]
Water having the aura like gold (when Sun light is reflected & refracted through it), provides extreme level of purity (Its a natural cleanser due to the presence of oxygen in it.), out of which demigods named Savita (Sury-Sun) & Agni-fire have evolved (Nar-water, Bhagwan Narayan Shri Vishnu evolved out it through a golden egg, leading to evolution of Sun). Which is the source of golden coloured fire. It cures all our diseases and provides us pleasure, solace & comforts. 
यासां राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यज्जनानाम्।
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु
जिस जल में रहकर राजा वरुण, सत्य एवं असत्य का निरीक्षण करते चलते हैं। जो सुन्दर वर्ण वाला जल अग्नि को गर्भ में धारण करता है, वह हमारे लिए शान्तिप्रद हो।[अथर्ववेद 1.33.2]
Varun Dev-deity of water resides in it and analyse truth & falsehood. Water which has golden coloured fire in its womb should grant us solace, peace, tranquillity. 
THREE KINDS OF FIRE तीन प्रकार की अग्नि :: दावानल (jungle fire), बड़वानल fire in the ocean) और जठराग्नि (fire in the stomach)। बड़वानल-जल में उपस्थित अग्नि; fire present in water.
यासां देवा दिवि कृण्वन्ति भक्षं या अन्तरिक्षे बहुधा भवन्ति।
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु
जिस जल के सारभूत तत्व तथा सोमरस का इन्द्र आदि देवता द्युलोक में सेवन करते हैं। जो अन्तरिक्ष में विविध प्रकार से निवास करते हैं। अग्निगर्भा जल हम सबको सुख और शान्ति प्रदान करे।[अथर्ववेद 1.33.3]
The water which appeared from the womb of fire, the extract, nectar, elixir of which is sipped by demigods-deities in the higher abodes-heavens, should grant us peace, tranquillity & solace.
शिवेन मा चक्षुषा पश्यतापः शिवया तन्वोप स्पृशत त्वचं में।
घृतश्चुतः शुचयो याः पावकास्ता, न आपः शं स्योना भवन्तु
हे जल के अधिष्ठाता देव! आप अपने कल्याणकारी नेत्रों द्वारा हमें देखें तथा अपने हितकारी शरीर द्वारा हमारी त्वचा का स्पर्श करें। तेजस्विता प्रदान करने वाला शुद्ध तथा पवित्र जल हमें सुख तथा शान्ति प्रदान करे।[अथर्ववेद 1.33.4]
Hey Varun Dev! Please look at us through your eyes granting us pleasure for our welfare and touch our skins through your body. The pure & energy giving water should give us solace, peace & tranquillity.
वरुण सूक्त :: ऋषि :- शुनः शेप आजीगर्ति एवं वशिष्ठ, निवास स्थान :- द्युस्थानीय, ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 25।  
वरुण देव द्युलोक और पृथ्वी लोक को धारण करने वाले तथा स्वर्गलोक और आदित्य एवं नक्षत्रों के प्रेरक हैं। ऋग्वेद में वरुण का मुख्य रूप शासक के रूप में वर्णन है। वे प्राणियों-जीवधारियों के पाप-पुण्य तथ सत्य-असत्य का लेखा-जोखा रखते हैं। ऋग्वेद में वरुण देव का उज्जवल रूप वर्णित है। सूर्य उसके नेत्र हैं। वे सुनहरा चोगा पहनते हैं और कुशा के आसन पर विराजमान हैं। उनका रथ सूर्य के समान दीप्तिमान है तथा उसमें घोड़े जुते हुए हैं। उनके गुप्तचर विश्वभर में फैलकर सूचनाएँ लाते हैं। वरुण देव रात्र और दिवस के अधिष्ठाता हैं। वे संसार को नियमों में चलाने का व्रत धारण किए हुए हैं। ऋग्वेद में वरुण के लिए क्षत्रिय स्वराट, उरुशंश, मायावी, धृतव्रतः दिवः कवि, सत्यौजा, विश्वदर्शन आदि विशेषणों का प्रयोग किया गया है।
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 17 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- इन्द्रा-वरुण, छन्द :- गायत्री।
इन्द्रावरुणयोरहं सम्राजोरव आ वृणे। ता नो मृळात ईदृशे॥
हम इन्द्र और वरुण दोनों प्रतापी देवों से अपनी सुरक्षा की कामना करते हैं। वे दोनों हम पर इस प्रकार अनुकम्पा करें, कि हम सुखी रहें।[ऋग्वेद 1.17.1]
मैं सम्राट इन्द्रदेव और वरुण से चाहता हूँ कि ये दोनों हम पर कृपा दृष्टि रखें।
We expect-desire both the mighty Indr Dev & Varun Dev, to protect us in such a way that we remain happy-comfortable.  
गन्तारा हि स्थोऽवसे हवं विप्रस्य मावतः। धर्तारा चर्षणीनाम्॥
हे इन्द्रदेव और वरुणदेवो! आप दोनों मनुष्यों के सम्राट, धारक एवं पोषक हैं। हम जैसे ब्राह्मणों के आवाहन पर सुरक्षा ले लिये आप निश्चय ही आने को उद्यत रहते हैं।[ऋग्वेद 1.17.2]
हे मनुष्यों के स्वामी! हम ब्राह्मणों के पुकारने पर सुरक्षा के लिए अवश्य पधारो!
Hey Indr Dev & Varun Dev! Both of you are the emperors, sustain and nurturer of the humans. You are always willing-ready to help-protect the Brahmns. 
अनुकामं तर्पयेथामिन्द्रावरुण राय आ। ता वां नेदिष्ठमीमहे॥
हे इन्द्रदेव और वरुणदेवो! हमारी कामनाओं के अनुरूप धन देकर हमें संतुष्ट करें। आप दोनों के समीप पहुचँकर हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.17.3]
हे इन्द्रदेव व वरुण। हमको अभिष्ट धन प्रदान करके संतुष्ट करें। हम तुम्हारी निकटता चाहते हैं।
Hey Indr Dev & Varun Dev! Please grant riches as per our desires to satisfy us. We pray to by approaching you.
The requirements of the Brahmns are minimum. They are content with whatever is available to them. But with changing times, everything is changing.
युवाकु हि शचीनां युवाकु सुमतीनाम्। भूयाम वाजदाव्नाम्॥
हमारे कर्म संगठित हो, हमारी सद्‍बुद्धि संगठित हो, हम अग्रगण्य होकर दान करने वाले बनें।[ऋग्वेद 1.17.4]
शक्ति तथा सुबुद्धि प्राप्ति की कामना से हम तुम्हारी अभिलाषा करते हैं। हम अन्न-दान करने वालों में अग्रणी रहें।
Our efforts and intelligence should function unitedly and we should come forward to donate.
The Brahmn accept money, grants, donations and distribute them to the needy after keeping a fraction of it for their family.
इन्द्रः सहस्रदाव्नां वरुणः शंस्यानाम्। क्रतुर्भवत्युक्थ्यः॥
इन्द्रदेव सहस्त्रों दाताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं और वरुणदेव सहस्त्रों प्रशंसनीय देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 1.17.5]
सहस्त्रों धन दाताओं में इन्द्र ही उत्तम हैं। पूजा को स्वीकार करने वालों में वरुण उत्तम हैं। 
Indr Dev is excellent amongest the donors and Varun Dev is excellent amongest the demigods-deities who deserve appreciation. 
तयोरिदवसा वयं सनेम नि च धीमहि। स्यादुत प्ररेचनम्॥
आपके द्वारा सुरक्षित धन को प्राप्त कर हम उसका श्रेष्ठतम उपयोग करें। वह धन हमें विपुल मात्रा में प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.17.6]
उनकी रक्षा से हम धन को प्राप्त कर उसका उपभोग करें। वह धन प्रचुर परिमाण से संचित हो।
We should put the protected money received from you to its best possible use. We should get such money in abundance. 
इन्द्रावरुण वामहं हुवे चित्राय राधसे। अस्मान्सु जिग्युषस्कृतम्॥
हे इन्द्र-वरुण देवो! विविध प्रकार के धन की कामना से हम आपका आवाहन करते हैं। आप हमें उत्तम विजय प्राप्त कराएँ।[ऋग्वेद 1.17.7]
हे इन्द्र और वरुण। अनेक प्रकार के धनों के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। हमको उत्तम ढंग से जय लाभ करा दो।
Hey Indr Dev & Varun Dev! We invite-invoke (pray) to you to obtain different forms money in various ways. You should grant us success-victory. 
For the Brahmn generally, the riches account in the form of cows, horses & house.
इन्द्रावरुण नू नु वां सिषासन्तीषु धीष्वा। अस्मभ्यं शर्म यच्छतम्॥
हे इन्द्रा-वरुण देवो! हमारी बुद्धि सम्यक् रूप से आपकी सेवा करने की इच्छा करती है, अतः हमें शीघ्र ही निश्‍चय पूर्वक सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.17.8]
हे इन्द्रदेव और वरुण! तुम दोनों प्रेम भाव रखते हुए हमको अपनी शरण प्रदान करो।
Hey Indr Dev & Varun Dev!  We wish to serve you as per our intelligence & prudence. So, grant us comforts with dedication.
The Brahm wish to pray to the Almighty, do social welfare, learn & teach Ved, scriptures peacefully.
प्र वामश्नोतु सुष्टुतिरिन्द्रावरुण यां हुवे। यामृधाथे सधस्तुतिम्॥
हे इन्द्र-वरुण देवो! जिन उत्तम स्तुतियों के लिये हम आप दोनों का आवाहन करते हैं एवं जिन स्तुतियों को साथ-साथ प्राप्त करके आप दोनों पुष्ट होते हैं, वे स्तुतियाँ आपको प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.17.9]
हे इन्द्रदेव और वरुण। जो सुन्दर वन्दना तुम्हारे लिए करता हूँ और जिन वन्दना की तुम पुष्टि करते हो, उन वन्दनाओं को प्राप्त करो।
Hey Indr & Varun! We pray to you with the help of selected, excellent verses (Shlok, Mantr, Sukt, Strotr) to invite-invoke you to make you capable to protect the humans.
वरुण सूक्त (1) ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 25 :: ऋषि :- शुन: शेप आजीगर्ति इत्यादयः, देवता :- वरुण, छन्द :- गायत्री।
वरुण देव द्युलोक और पृथ्वी लोक को धारण करने वाले तथा स्वर्गलोक और आदित्य एवं नक्षत्रों के प्रेरक हैं। ऋग्वेद में वरुण का मुख्य रूप शासक के रूप में वर्णन है। वे प्राणियों-जीवधारियों के पाप-पुण्य तथ सत्य-असत्य का लेखा-जोखा रखते हैं। ऋग्वेद में वरुण देव का उज्जवल रूप वर्णित है। सूर्य उसके नेत्र हैं। वे सुनहरा चोगा पहनते हैं और कुशा के आसन पर विराजमान हैं। उनका रथ सूर्य के समान दीप्तिमान है तथा उसमें घोड़े जुते हुए हैं। उनके गुप्तचर विश्वभर में फैलकर सूचनाएँ लाते हैं। वरुण देव रात्र और दिवस के अधिष्ठाता हैं। वे संसार को नियमों में चलाने का व्रत धारण किए हुए हैं। ऋग्वेद में वरुण के लिए क्षत्रिय स्वराट, उरुशंश, मायावी, धृतव्रतः दिवः कवि, सत्यौजा, विश्वदर्शन आदि विशेषणों का प्रयोग किया गया है।
यच्चिद्धि ते विशो यथा प्र देव वरुण व्रतम्। मिनीमसि द्यविद्यवि॥
हे वरुणदेव! जैसे अन्य मनुष्य आपके व्रत अनुष्ठान में प्रमाद करते है, वैसे ही हमसे भी आपके नियमों में कभी-कभी प्रमाद हो जाता है; कृपया इसे क्षमा करें।[ऋग्वेद 1.25.1]
प्रमाद :: लापरवाही, असावधानी, खिलने वाला पौधा, भारी भूल, भयंकर त्रुटि,  negligence, bloomer, incautiousness, carelessness.
अनुष्ठान :: संस्कार, धार्मिक क्रिया, पद्धति, शास्रविधि, धार्मिक उत्सव, आचार, आतिथ्य सत्कार, समारोह, रसम; ceremonies, rituals, rites.
हे वरुण देव! जैसे तुम्हारे व्रतानुष्ठान में व्यक्ति प्रमाद करते हैं, वैसे ही हम भी तुम्हारे सिद्धान्त आदि को तोड़ डालते हैं। 
Sometimes we become careless-negligent in following the rules & regulations-procedures of prayers-Vrat, rites & rituals. Kindly pardon-forgive us. 
मा नो वधाय हत्नवे जिहीळानस्य रीरधः। मा हृणानस्य मन्यवे॥2॥
हे वरुणदेव! आपने अपने निरादर करने वाले का वध करने के लिये धारण किये गये शस्त्र के सम्मुख हमें प्रस्तुत न करें। अपनी क्रुद्ध अवस्था में भी हम पर कृपा कर क्रोध ना करें।[ऋग्वेद 1.25.2]
हे वरुण! अपमान करने वालों को सजा उसकी हिंसा है। हमको यह सजा मत दो, हम पर क्रोध न करो।
Hey Varun Dev! Please do not subject us to murder with weapons for ignoring-insulting you. Even if angry; please have mercy over us. 
वि मृळीकाय ते मनो रथीरश्वं न संदितम्। गीर्भिर्वरुण सीमहि॥
हे वरुणदेव! जिस प्रकार रथी अपने थके हुए घोड़ों की परिचर्या करते हैं, उसी प्रकार आपके मन को हर्षित करने के लिये हम स्तुतियों का गान करते हैं।[ऋग्वेद 1.25.3]
हे वरुण! प्रार्थना द्वारा हम आपकी कृपा चाहते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे अश्व का स्वामी उसके घावों पर पट्टियाँ बाँधता है।
Hey Varun Dev! We wish to assuage your feelings (make you happy) just like the driver of the charoite who takes care-serve his tired horses. 
परा हि मे विमन्यवः पतन्ति वस्यइष्टये। वयो न वसतीरुप॥
हे वरुणदेव! जिस प्रकार पक्षी अपने घोसलों की ओर दौड़ते हुये गमन करते हैं, उसी प्रकार हमारी चंचल बुद्धियाँ धन प्राप्ति के लिये दूर-दूर तक दौड़ती है।[ऋग्वेद 1.25.4]
घोंसलों की ओर दौड़ने वाली चिड़ियों के समान हमारी क्रोध रहित बुद्धियाँ धन की प्राप्ति के लिए दौड़ती है।
Hey Varun Dev! Our fickle-agile mind looks to various sources of income-earnings far & wide just like the birds which fly to their nest. 
कदा क्षत्रश्रियं नरमा वरुणं करामहे। मृळीकायोरुचक्षसम्॥
बल ऐश्वर्य के अधिपति सर्वद्रष्टा वरुण देव को कल्याण के निमित्त हम यहाँ (यज्ञस्थल में) कब बुलायेंगे अर्थात यह अवसर कब मिलेगा?[ऋग्वेद 1.25.5]
अखण्ड समृद्धि वाले दूरदर्शी वरुण की कृपा प्राप्ति हत उन्हें अपने यज्ञ में ले आवेंगे।
When will we have the opportunity of inviting Varun Dev-who is the master of might & amenities and capable of visualising every thing, to the Yagy site
तदित्समानमाशाते वेनन्ता न प्र युच्छतः। धृतव्रताय दाशुषे॥
व्रत धारण करना  वाले (हविष्यमान) दाता यजमान के मंगल के निमित्त, ये मित्र और वरुण देव हविष्यान की इच्छा करते हैं, वे कभी उसका त्याग नहीं करते। वे हमें बन्धन से मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.25.6]
हवि की कामना वाले सखा-वरुण, निष्ठावान यजमान की साधारण हवि को भी नहीं त्यागते।
Mitr & Varun Dev desire to have the offerings of the Yagy for the benefit-welfare of he host conducting Yagy associated with fast. Let them make us free from the cycles of death & rebirth-grant Salvation.
वेदा यो वीनां पदमन्तरिक्षेण पतताम्। वेद नावः समुद्रियः॥
हे वरुण देव! आकाश में उड़ने वाले पक्षियों के मार्ग को और समुद्र में संचार करने वाली नौकाओं के मार्ग को भी आप जानते हैं।[ऋग्वेद 1.25.7]
हे वरुण देव! आप उड़ने वाले पक्षियों के क्षितिज-मार्ग और समुद्र की नौका-मार्ग के पूर्ण ज्ञाता है।
Hey Varun Dev! You are aware of the route followed by the birds flying in the sky and boats navigating in the ocean.
वेद मासो धृतव्रतो द्वादश प्रजावतः। वेदा य उपजायते॥
नियम धारक वरुणदेव प्रजा के उपयोगी बारह महिनों को जानते हैं और तेरहवें मास (मल मास, अधिक मास, पुरुषोत्तम मास) को भी जानते है।[ऋग्वेद 1.25.8]
वे घृत-नियम वरुण, प्रजाओं के उपयोगी बारह महीनों को तथा तेरहवें अधिक मास को भी जानते हैं।
Varun Dev who frame the rules and implement them, knows the twelve months in a year including the Purushottom Mass (thirteenth month-extra month) meant for the welfare of humans.
वेद वातस्य वर्तनिमुरोरृष्वस्य बृहतः। वेदा ये अध्यासते॥
वे वरुणदेव अत्यन्त विस्तृत, दर्शनीय और अधिक गुणवान वायु के मार्ग को जानते हैं। वे उपर द्युलोक में रहने वाले देवों को भी जानते हैं।[ऋग्वेद 1.25.9]
वे मूर्धा रूप से स्थित, विस्तृत, उन्नत, उत्तम वायु के मार्ग को भली-भाँति जानते हैं।
Varun Dev knows well the broad, good looking, scenic, possessing good qualities path of air; in addition to the demigods-deities residing in upper abodes-heavens.  
नि षसाद धृतव्रतो वरुणः पस्त्यास्वा। साम्राज्याय सुक्रतुः॥
प्रकृति के नियमों का विधिवत पालन कराने वाले, श्रेष्ठ कर्मों में सदैव निरत रहने वाले वरुण देव प्रजाओं में साम्राज्य स्थापित करने के लिये बैठते हैं।[ऋग्वेद 1.25.10]
सिद्धान्त में स्थिर, सुन्दर प्रज्ञावान वरुण प्रजाजनों में साम्राज्य विद्यमान करने के लिए विराजते हैं।
Varun Dev who is always inclined to virtuous, righteous, pious deeds, is established to ensure the following-implementations of the rules of nature. 
अतो विश्वान्यद्भुता चिकित्वाँ अभि पश्यति। कृतानि या च कर्त्वा॥
सब अद्‍भुत कर्मो की क्रिया विधि जानने वाले वरुणदेव, जो कर्म संपादित हो चुके हैं और जो किये जाने वाले हैं, उन सबको भली-भाँति देखते हैं।[ऋग्वेद 1.25.11]
जो घटनाएँ हुई या होने वाली हैं, उन सभी को वे मेधावी वरुण इस स्थान से देखते हैं।
Varun Dev is aware of the methodology of the amazing deeds & watches carefully the deeds accomplished and those deeds which remains to be completed.
स नो विश्वाहा सुक्रतुरादित्यः सुपथा करत्। प्र ण आयूंषि तारिषत्॥
वे उत्तम कर्मशील अदिति पुत्र वरुण देव हमें सदा श्रेष्ठ मार्ग की ओर प्रेरित करें और हमारी आयु को बढ़ायें।[ऋग्वेद 1.25.12]
वे महान मति वाले वरुण हमको सदैव सुन्दर मार्ग प्रदान करें और हमको आयुष्मान करें।
Let Varun Dev, son of Aditi (Dev Mata), let us inspire to the virtuous, pious, righteous path (of Bhakti) and enhance our longevity-age.
बिभ्रद्द्रापिं हिरण्ययं वरुणो वस्त निर्णिजम्। परि स्पशो नि षेदिरे॥
सुवर्णमय कवच धारण करके वरुणदेव अपने हृष्ट-पुष्ट शरीर को सुसज्जित करते हैं। शुभ्र प्रकाश किरणें उनके चारों ओर विस्तीर्ण होती हैं।[ऋग्वेद 1.25.13]
स्वर्ण कवच से उन्होंने अपना मर्म भाग ढक लिया है।
Varun Dev has covered his handsome body-figure with golden shield. Bright rays of light spread around him. 
न यं दिप्सन्ति दिप्सवो न द्रुह्वाणो जनानाम्। न देवमभिमातयः॥
हिंसा करने की इच्छा वाले शत्रु-जन (भयाक्रान्त होकर) जिनकी हिंसा नही कर पाते, लोगों के प्रति द्वेष रखने वाले, जिनसे द्वेष नहीं कर पाते, ऐसे वरुणदेव को पापीजन स्पर्श तक नहीं कर पाते।[ऋग्वेद 1.25.14]
उनके चारों ओर समाचार वाहक उपस्थित हैं। जिन्हें शत्रु धोखा नहीं दे सकते, विद्रोह करने वाले जिनसे द्रोह करने में सफल नहीं हो सकते, उन वरुण से कोई शत्रुता नहीं कर सकता।
The violent enemy are unable to harm (kill) him due to fear, those who are envious with others cannot be envious with him. The sinners can not even touch-reach him.
उत यो मानुषेष्वा यशश्चक्रे असाम्या। अस्माकमुदरेष्वा॥
जिन वरुणदेव ने मनुष्यों के लिये विपुल अन्न भण्डार उत्पन्न किया है; उन्होंने ही हमारे उदर में पाचन सामर्थ्य भी स्थापित की है।[ऋग्वेद 1.25.15]
जिस वरुण ने मनुष्य के लिए अन्न की भरपूर स्थापना की है, वह हमारे पेट में अन्न ग्रहण करने की सामर्थ्य प्रदान करता है।
Varun Dev who has generated a big deposit of food grain, has given the power to digest the food in our stomach.
परा मे यन्ति धीतयो गावो न गव्यूतीरनु। इच्छन्तीरुरुचक्षसम्॥
उस सर्वद्रष्टा वरुणदेव की दृष्टि, कामना करने वाली हमारी बुद्धि तक, वैसे ही उन तक पहुँचती है, जैसे गौएँ श्रेष्ठ बाड़े की ओर जाती हैं।[ऋग्वेद 1.25.16]
दूरदर्शी वरुण की इच्छा करती हुई मनोवृत्तियाँ निवृत्त होकर वैसे ही हो जाती हैं, जैसे चरने की जगह की ओर गौएँ जाती हैं।
The sight of all visualising Varun Dev reaches our minds, just like the cows which moves to the beast cowshed.
सं नु वोचावहै पुनर्यतो मे मध्वाभृतम्। होतेव क्षदसे प्रियम्॥
होता (अग्निदेव) के समान हमारे द्वारा लाकर समर्पित की गई हवियों का आप अग्निदेव के समान भक्षण करे, फिर हम दोनों वार्ता करेंगे।[ऋग्वेद 1.25.17]
मेरे द्वारा सम्पादित मधुर हवि को अग्नि के समान प्रीतिपूर्वक भक्षण करो। फिर हम दोनों मिलकर वार्तालाप करेंगे।
Please eat (consume, accept) the offerings made by us, like the host-Agni Dev and thereafter we will talk together.
दर्शं नु विश्वदर्शतं दर्शं रथमधि क्षमि। एता जुषत मे गिरः॥
दर्शनीय वरुण को उनके रथ के साथ हमने भूमि पर देखा है। उन्होंने हमारी स्तुतियाँ स्वीकारी हैं।[ऋग्वेद 1.25.18]
सबके देखने योग्य वरुण को, अनेक रथ सहित पृथ्वी पर मैंने देखा है। उन्होंने मेरी प्रार्थनाएँ स्वीकार कर ग्रहण कर ली हैं।
We have seen beautiful & handsome (admirable) Varun Dev over the earth and he accepted our prayers.
इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृळय। त्वामवस्युरा चके॥
हे वरुणदेव! आप हमारी प्रार्थना पर ध्यान दें, हमें सुखी बनायें। अपनी रक्षा के लिये हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.25.19]
हे वरुणदेव! मेरे आह्वान को सुनो। मुझ पर आज कृपा दृष्टि रखो।
Hey Varun Dev! Please notice our prayers and make us happy. We pray to you for our protection.
त्वं विश्वस्य मेधिर दिवश्च ग्मश्च राजसि। स यामनि प्रति श्रुधि॥
हे मेधावी वरुणदेव! आप द्युलोक, भूलोक और सारे विश्व पर आधिपत्य रखते हैं, आप हमारे आवाहन को स्वीकार कर "हम रक्षा करेंगे" ऐसा प्रत्युत्तर दे।[ऋग्वेद 1.25.20]
मुझ पर कृपा दृष्टि करने की कामना वाले तुम्हें मैंने बुलाया है। हे मेधावी वरुण देव! तुम क्षितिज और धरा के स्वामी हो। तुम हमारे आह्वान का उत्तर दो।
Hey brilliant Varun Dev! You rule the upper abodes, earth and the whole universe. Kindly, accept our invitation and assure us that you will protect us. 
उदुत्तमं मुमुग्धि नो वि पाशं मध्यमं चृत। अवाधमानि जीवसे॥
हे वरुणदेव! हमारे उत्तम (ऊपर के) पाश को खोल दें, हमारे मध्यम पाश काट दें और हमारे नीचे के पाश को हटाकर, हमें उत्तम जीवन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.25.21]
हे वरुण देव। ऊपर के बन्धन को खींचों, मध्य के बन्धन को काटो और नीचे के पाश को भी खींचकर हमको जीवन प्रदान करो।
Hey Varun Dev! Cut the upper, middle & the lower knots and grant us excellent life-longevity.
वरुण सूक्त (2) ऋषि :- शुनःशेप एवं वशिष्ठ, निवास स्थान :- द्युस्थानीय, सूक्त सँख्या 12.
वरुण देव द्युलोक और पृथ्वी लोक को धारण करने वाले तथा स्वर्गलोक और आदित्य एवं नक्षत्रों के प्रेरक हैं। ऋग्वेद में वरुण का मुख्य रूप शासक का है। वह जनता के पाप पुण्य तथ सत्य असत्य का लेखा-जोखा रखते हैं। ऋग्वेद में वरुण देव का उज्जवल रूप वर्णित है। सूर्य उसके नेत्र हैं। वह सुनहरा चोगा पहनते हैं और कुशा के आसन पर बैठते हैं। उसका रथ सूर्य के समान दीप्तिमान है तथा उसमें घोड़े जुते हुए हैं। उसके गुप्तचर विश्वभर में फैलकर सूचनाएँ लाते हैं। वरुण रात्री  और दिन  के अधिष्ठाता हैं। वह संसार के नियमों में चलाने का व्रत धारण किए हुए हैं। ऋग्वेद में वरुण देव के लिए क्षत्रिय स्वराट, उरुशंश, मायावी, धृतव्रतः दिवः कवि, सत्यौजा, विश्वदर्शन आदि विशेषणों का प्रयोग मिलता है।
आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन। 
महे रणाय चक्षसे
हे आप-जल! आप प्राणी मात्र को सुख देने वाले हैं। सुखोपभोग एवं संसार में रमण करते हुए, हमें उत्तम दृष्टि की प्राप्ति हेतु पुष्ट करें।[ऋग्वेद 10.9.1]
Hey water! You provide nourishment. Provide us with excellent eye sight & strength to enjoy the worldly goods.
Two third of human body constitute of water. Its essential for the body. It generate happiness-satisfaction after drinking when one feel thirst.
सुख से आनन्द, अनुकूलता, प्रसन्नता, शान्ति आदि की अनुभूति होती है। इसकी अनुभूति मन से जुड़ी हुई है। बाह्य साधनों से भी सुख की अनुभूति हो सकती है। आन्तरिक सुख आत्मानुभव अनुकूल परिस्थितियों-वातावरण  जुड़ा है। 
अर्थागमो नित्यमरोगिता च, प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यस्य पुत्रो अर्थकरी च विद्या षड् जीवलोकस्य सुखानि राजन्॥ 
देवर्षि नारद ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुख का अर्थ समझते हुए कहा कि किस व्यक्ति के पास ये निम्न 6 वस्तुएँ हों वह सुखी है :- अर्थागम, निरोगी काया, प्रिय पत्नी, प्रिय वादिनी पत्नी, आज्ञाकारी पुत्र, अर्थ करी विद्या।
यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेहः नः।
उशतीरिव मातरः
जिनका स्नेह उमड़ता ही रहता है, ऐसी माताओं की भाँति, आप हमें अपने सबसे अधिक कल्याण प्रद रस में भागीदार बनायें।[ऋग्वेद 10.9.2]
You should be beneficial to us just like the mother who's love overflows for the progeny.
तस्मा अरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ।
आपो जनयथा च नः॥
अन्न आदि उत्पन्न कर प्राणी मात्र को पोषण देने वाले, हे दिव्य प्रवाह! हम आपका सान्निध्य पाना चाहते हैं। हमारी अधिकतम वृद्धि हो।[ऋग्वेद 10.9.3]
Hey divine flowing liquid! You help  the vegetation-food grain grow to nourish the living beings. We desire your company for our maximum growth.
ईशाना वार्याणां क्षयन्तीश्चर्षणीनाम्।
अपो याचामि भेषजम्
व्याधि निवारक दिव्य गुण वाले जल का हम आवाहन करते हैं। वह हमें सुख-समृद्धि प्रदान करे। उस औषधि रूप जल की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.9.4]
Hey water with the divine property of removing illness! We invite you to grant us happiness and prosperity.
These prayers are addressed to Varun Dev-deity of water.
शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। 
शं योरभि स्रवन्तु नः
हे आप-जल! पीते समय आप काम्य दैवी गुणों से युक्त हों। वे काम्य दैवी गुण आप से हम में प्रवाहित हों।[अथर्ववेद 6.1.1] 
O-Hey Water! You should be enriched with divine properties-characterises and these traits should flow into us , when we drink you. 
दैवी गुणों से युक्त आप-जल हमारे लिए हर प्रकार से कल्याणकारी और प्रसन्नता दायक हो। वह आकांक्षाओं की पूर्ति करके आरोग्य प्रदान करे।
May the auspiciousness which supports you, flow to us.
अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा।
अग्निं च विश्वशम्भुवम्
सोम का हमारे लिए उपदेश है कि दिव्य आप-जल हर प्रकार से औषधीय गुणों से युक्त है। उसमें कल्याणकारी अग्नि भी विद्यमान है।[अथर्ववेद 6.1.2]
The Moon says that the divine water is full of medicinal properties and has fire in it.  
आपः प्रणीत भेषजं वरुथं तन्वे 3 मम। 
ज्योक् च सूर्यं दृशे
दीर्घकाल तक मैं सूर्य को देखूँ अर्थात् जीवन प्राप्त करुँ। हे आप-जल! शरीर को आरोग्यवर्धक दिव्य औषधियाँ प्रदान करो।[अथर्ववेद 6.1.3]
Hey water! Let my body be granted with divine medicines to increase (enhance, boost) immunity, so that I am able to see the Sun for long.
शं न आपो धन्वन्याः 3 शभु सन्त्वनूप्याः।
शं नः खनित्रिमा आपः शमु याः कुम्भ आमृताः शिवा नः सन्तु वार्षिकीः
सूखे प्रान्त (मरुभूमि) का जल हमारे लिए कल्याणकारी हो। जलमय देश का जल हमें सुख प्रदान करे। भूमि से खोदकर निकाला गया कुएँ आदि का जल हमारे लिए सुख प्रद हो। पात्र में स्थित जल हमें शान्ति देने वाला हो। वर्षा से प्राप्त जल हमारे जीवन में सुख-शान्ति  की वृष्टि करने वाला सिद्ध हो।[अथर्ववेद 6.1.4] 
Water from various sources like desert, a place with plenty of water, in the pots i.e., stored water  and the rain water should grant us pleasure-comfort. 
अनावृष्टि दूर करने के उपाय :: ऋग्वेद सप्तम मण्डल का 101 वां सूक्त पर्जन्य है। शौनक जी ने बताया है कि सूर्यभिमुख होकर इन छः ऋचाओं के पाठ से अनावृष्टि दूर हो जाती है। और यथेष्ट वर्षा होती है। 
अनश्नतैतज्जप्तव्यं वृष्टिकामेन यन्त्रत:। 
पंचरात्रेSप्यतिक्रान्ते महतीं वृष्टिमाप्नुयात्॥[ऋग्विधान 2.327]
जल वृष्टि  :: निम्न दोनों मंत्रों से सत्तू और जल का ही सेवन करता हुआ, गुड़ तथा दूध में वेतस् की समिधाओं को भिगोकर हवन करे करें तो भगवान् सूर्य नारायण जल बरसाते हैं :- 
"असौ यस्ताम्नो" तथा "असौ योSवसर्पति"। 
दिवो नु मां बृहतो अन्तरिक्षादपांस्तोको अभ्यपप्तद् रसेन।
समिन्द्रियेण पयसाहमग्ने, छन्दोभिर्यज्ञैः सुकृतां कृतेन1
विशाल द्युलोक से दिव्य अप् (जल या तेज) युक्त रस की बूँदें हमारे शरीर पर गिरी हैं। हम इन्द्रियों सहित दुग्ध के समान सार भूत अमृत से एवं छन्दों (मन्त्रों) से सम्पन्न होने वाले यज्ञों के पुण्य फल से युक्त हों।
Drops of water having divine extract have fallen over our body. Let us be filled-embedded with the outcome of Yagy performed with the Mantr which are like the milk-nectar, elixir, ambrosia filling us with divine aura-energy.
यदि वृक्षादभ्यपप्तत् फलं तद् यद्यन्तरिक्षात् स उ वायुरेव।
यत्रास्पृक्षत् तन्वो 3 यच्च वासस आपो नुदन्तु निर्ऋतिं पराचैः॥2
वृक्ष के अग्र भाग से गिरी वर्षा की जल बूँद, वृक्ष के फल के समान ही है। अन्तरिक्ष से गिरा जल बिन्दु निर्दोष वायु के फल के समान है, शरीर अथवा पहने वस्त्रों पर उसका स्पर्श हुआ है। वह प्रक्षालनार्थ जल के समान निर्ऋति देव (पापों को) हमसे दूर करें।
The drops of water falling from the tips of the trees are like their fruits. Water-rain drops falling over our cloths-bodies, from the outer space should be like the fruit of uncontaminated air. These droplets meant for purity, should remove our sins like the Nirati Dev-demigods granting pleasure, comforts.
अभ्यञ्जनं सुरभि सा समृद्धिर्हिरण्यं वर्चस्तदु पूत्रिममेव।
सर्वा पवित्रा वितताध्यस्मत् तन्मा तारीन्निर्ऋतिर्मो अरातिः॥3
यह अमृत वर्षा उबटन, सुगंधित द्रव्य, चन्दन आदि सुवर्ण धारण तथा वर्चस् की तरह समृद्धि रूप है। यह पवित्र करने वाला है। इस प्रकार पवित्रता का आच्छादन होने के कारण पाप देवता और शत्रु हम से दूर रहें।
वर्चस् :: रूप, तेज, कांति, दीप्ति, अन्न, विष्ठा, शक्ति-शौर्य, शुक्र-वीर्य, प्रताप, श्रेष्ठता।
The rain like the nectar-elixir should act like body scrub, fragrances, sandal wood paste & granting progressive like the aura. Its purifying. Having gained purity the sins should remain away from us.

यं रक्षन्ति प्रचेतसो वरुणो मित्रो अर्यमा। 
नू चित्स दभ्यते जनः॥
जिस याजक को, ज्ञान सम्पन्न वरुण, मित्र और अर्यमा आदि देवों का संरक्षण प्राप्त है, उसे कोई भी नहीं दबा सकता।[ऋग्वेद 1.41.1]
उत्कृष्ट ज्ञानी वरुण, सखा और अर्यमा जिसकी सुरक्षा करें, उस व्यक्ति को कोई दबा नहीं कर सकता। 
The host-conducting Yagy, having been protected by enlightened demigods Varun, Mitr and Aryma can not be defeated.
यं बाहुतेव पिप्रति पान्ति मर्त्यं रिषः। 
अरिष्टः सर्व एधते॥
अपने बाहुओं से विविध धनों को देते हुए, वरुणादि देवगण जिस मनुष्य की रक्षा करते हैं, वह शत्रुओं से अंहिसित होता हुआ वह वृद्धि पाता है।[ऋग्वेद 1.41.2]
अपने हाथ से विभिन्न धन प्रदान करते हुए वरुणादि देवगण इसकी सुरक्षा करते हैं, उसे कोई शत्रु समाप्त नहीं कर सकता, बल्कि वह समस्त ओर से वृद्धि करता है।
The practioner of Yagyic prayers under the protection of demigods like Varun can not be killed by the enemies. He progress more & more. 
वि दुर्गा वि द्विषः पुरो घ्नन्ति राजान एषाम्। 
नयन्ति दुरिता तिरः॥
राजा के सदृश वरुणादि देवगण, शत्रुओं के नगरों और किलों को विशेष रूप से नष्ट करते हैं। वे याजकों को दुःख के मूल भूत कारणों (पापों) से दूर ले जाते हैं।[ऋग्वेद 1.41.3]
वरुणादि देवता साधकों के कष्टों का नाश करते, शत्रुओं को मारते और दुखों को दूर कर देते हैं।  
The demigods like Varun Dev acts like a king and destroy the cities and forts of the enemy. The cleanse-eliminate the sins of the devotees. 
कथा राधाम सखाय स्तोमं मित्रस्यार्यम्णः। 
महि प्सरो वरुणस्य॥
हे मित्रो! मित्र, अर्यमा और वरुण देवों के महान ऐश्वर्य साधनों का किस प्रकार वर्णन करें? अर्थात इनकी महिमा अपार है।[ऋग्वेद 1.41.7]
हे मित्रों और अर्यमा के श्लोक का हम कैसे साधन करें। सपा के हविरूप भोजन को किस प्रकार सिद्ध करें। 
Hey Mitro! How can the towering amenities-riches, virtues of the Mitr, Varun and Aryma be described?! Its beyond the limits of words-speech.

Varun Dev is friendly with demigods-deities & the demons; the way Bhagwan Shiv is worshipped by both demigods-deities & the demons.
षष्ठः सूक्त :: अपां भेषज (जल चिकित्सा) सूक्त, मन्त्रदृष्टा :- सिन्धु द्वीप ऋषि, कृति अतवा अतर्वा, देवता :- अपांनपात्, सोम और आप, छन्द :- 1, 2, 3 गायत्री, 4 पथ्यापंक्ति।
शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्रवन्तु नः॥1॥
दैवीगुणों से युक्त आपः (जल) हमारे लिए हर प्रकार से कल्याणकारी और प्रसन्नतादायक हो। वह आकांक्षाओं की पूर्ति करके आरोग्य प्रदान करे।
विशेष-दृष्टव्य है कि वर्तमान में इस मन्त्र का विनियोग ‘शनि’ की पूजा में किया जाता है।
अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा।
अग्निं च विश्वशम्भुवम्॥2॥
‘सोम’ का हमारे लिए उपदेश है कि ‘दिव्य आपः’ हर प्रकार से औषधीय गुणों से युक्त है। उसमें कल्याणकारी अग्नि भी विद्यमान है।
आपः प्रणीत भेषजं वरुथं तन्वे 3 मम।
ज्योक् च सूर्यं दृशे॥3॥
दीर्घकाल तक मैं सूर्य को देखूँ अर्थात् जीवन प्राप्त करुँ। हे आपः! शरीर को आरोग्यवर्धक दिव्य औषधियाँ प्रदान करो।
शं न आपो धन्वन्याः 3 शभु सन्त्वनूप्याः।
शं नः खनित्रिमा आपः शमु याः कुम्भ आमृताः शिवा नः सन्तु वार्षिकीः॥4॥
सूखे प्रान्त (मरुभूमि) का जल हमारे लिए कल्याणकारी हो। ‘जलमय देश’ का जल हमें सुख प्रदान करे। भूमि से खोदकर निकाला गया कुएँ आदि का जल हमारे लिए सुखप्रद हो। पात्र में स्थित जल हमें शान्ति देने वाला हो। वर्षा से प्राप्त जल हमारे जीवन में सुख-शांति की वृष्टि करने वाला सिद्ध हो।
33वाँ सूक्त :: ‘आपः सूक्त’, मन्त्रदृष्टा-शन्ताति ऋषि, देवता-चन्द्रमा/आपः, छन्दः-त्रिष्टुप्।
हिरण्यवर्णाः शुचयः पावका यासु जातः सविता यास्वग्निः।
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु॥1॥
जो जल सोने के समान आलोकित होने वाले रंग से सम्पन्न, अत्यधिक मनोहर शुद्धता प्रदान करने वाला है, जिससे सविता देव और अग्नि देव उत्पन्न हुए हैं। जो श्रेष्ठ रंग वाला जल ‘अग्निगर्भ’ है। वह जल हमारी व्याधियों को दूर करके हम सबको सुख और शान्ति प्रदान करे।
यासां राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यज्जनानाम्।
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु॥2॥
जिस जल में रहकर राजा वरुण, सत्य एवं असत्य का निरीक्षण करते चलते हैं। जो सुन्दर वर्ण वाला जल अग्नि को गर्भ में धारण करता है, वह हमारे लिए शान्तिप्रद हो।
यासां देवा दिवि कृण्वन्ति भक्षं या अन्तरिक्षे बहुधा भवन्ति।
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु॥3॥
जिस जल के सारभूत तत्व तथा सोमरस का इन्द्र आदि देवता द्युलोक में सेवन करते हैं। जो अन्तरिक्ष में विविध प्रकार से निवास करते हैं। अग्निगर्भा जल हम सबको सुख और शान्ति प्रदान करे।
शिवेन मा चक्षुषा पश्यतापः शिवया तन्वोप स्पृशत त्वचं में।
घृतश्चुतः शुचयो याः पावकास्ता, न आपः शं स्योना भवन्तु॥4॥
हे जल के अधिष्ठाता देव! आप अपने कल्याणकारी नेत्रों द्वारा हमें देखें तथा अपने हितकारी शरीर द्वारा हमारी त्वचा का स्पर्श करें। तेजस्विता प्रदान करने वाला शुद्ध तथा पवित्र जल हमें सुख तथा शान्ति प्रदान करे।
षष्ठकाण्ड, 124वाँ सूक्त :: निर्ऋत्यपस्तरण सूक्त, मन्त्रदृष्टा :- अथर्वा ऋषि, देवता :- दिव्य आपः, छन्द :- त्रिष्ठुप्।
दिवो नु मां बृहतो अन्तरिक्षादपांस्तोको अभ्यपप्तद् रसेन।
समिन्द्रियेण पयसाहमग्ने, छन्दोभिर्यज्ञैः सुकृतां कृतेन॥1॥
विशाल द्युलोक से दिव्य-अप् (जल या तेज) युक्त रस की बूँदें हमारे शरीर पर गिरी हैं। हम इन्द्रियों सहित दुग्ध के समान सारभूत अमृत से एवं छन्दों (मन्त्रों) से सम्पन्न होने वाले यज्ञों के पुण्यफल से युक्त हों।
यदि वृक्षादभ्यपप्तत् फलं तद् यद्यन्तरिक्षात् स उ वायुरेव।
यत्रास्पृक्षत् तन्वो 3 यच्च वासस आपो नुदन्तु निर्ऋतिं पराचैः॥2॥
वृक्ष के अग्रभाग से गिरी वर्षा की जल बूँद, वृक्ष के फल के समान ही है। अन्तरिक्ष से गिरा जल बिन्दु निर्दोष वायु के फल के समान है। शरीर अथवा पहने वस्त्रों पर उसका स्पर्श हुआ है। वह प्रक्षालनार्थ जल के समान ‘निर्ऋतिदेव’ (पापो को) हमसे दूर करें।
अभ्यञ्जनं सुरभि सा समृद्धिर्हिरण्यं वर्चस्तदु पूत्रिममेव।
सर्वा पवित्रा वितताध्यस्मत् तन्मा तारीन्निर्ऋतिर्मो अरातिः॥3॥
यह अमृत वर्षा उबटन, सुगंधित द्रव्य, चन्दन आदि सुवर्ण धारण तथा वर्चस् की तरह समृद्धि रूप है। यह पवित्र करने वाला है। इस प्रकार पवित्रता का आच्छादन होने के कारण ‘पापदेवता’ और शत्रु हम से दूर रहें।
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :-  कूर्म, गार्त्समद, गृत्समद, देवता :- वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
इदं करेंरादित्यस्य स्वराजो विश्वानि सान्त्यभ्यस्तु मह्ना। 
अति यो मन्द्रो यजाय देवः सुकीर्ति भिक्षे वरुणस्य भूरेः
कवि और स्वयं सुशोभित वरुण देव के लिए यह हव्य है। वे अपनी महिमा के द्वारा समस्त भूतों को पराजित करते हैं। प्रकाशमान स्वामी वरुण देव यजमान को प्रसन्नता प्रदान करते हैं। मैं उनकी स्तुति द्वारा प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 2.28.1]
अपने आप प्रकाशमान और अपनी महिमा से संसार के जीवों को पैदा करने वाले वरुण के लिए यह हवि रूप अन्न है। वे अत्यन्त तेजस्वी वरुण यजमान को सुख प्रदान करते हैं। मैं उनकी पूजा करता हूँ।
We make offerings or the sake of Varun Dev who is aurous. He defeats all past with his glory. Varun Dev grants pleasure to the devotee. I pray-worship him.
The worshipper repeats this praise of the sage; the self-radiant Adity; may he preside over all beings by his power; I beg for fame of the sovereign Varun Dev, a deity who, when much plural used is propitious to his adorer.
PROPITIOUS :: अनुकूल, मेहरबान, अनुग्राही; suited, favourable, compatible, congruent, congenial, clement, complaisant, merciful, propitious, warm hearted, tender hearted.
तव व्रते सुभगासः स्याम स्वाध्यो वरुण तुष्टुवांसः। 
उपायन उषसां गोमतीनामग्नयो न जरमाणा अनु द्यून्
हे वरुण देव! हम भली-भाँति आपकी स्तुति, ध्यान और सेवा करके सौभाग्यशाली हो सकें। किरण युक्त उषा देवि के आने पर अग्नि देव की तरह हम प्रतिदिन आपकी स्तुति करके प्रकाशमान हों।[ऋग्वेद 2.28.2]
हे वरुण देव! हम तुम्हारी प्रार्थना, तपस्या और सेवा करते हुए सौभाग्यशाली बनें। किरणों वाली उषा के प्रकट होने पर सदैव तुम्हारी वंदना करते हुए हम तेजस्वी बनें।
Hey Varun Dev! Let us have good luck by virtue of your prayers, concentration in you, meditation and service. Let us pray to you as and when Usha Devi appear with her rays and in the presence of Agni Dev and become visible like a source of light. 
तव स्याम  पुरुवीरस्य शर्मन्नुरुशंसस्य वरुण प्रणेतः। 
यूयं नः पुत्रा अदितेरदब्धा अभि क्षमध्वं युज्याय देवाः
हे विश्व नायक वरुण देव! आप बहुतों के द्वारा प्रशंसित हैं। हम वीर संतान से युक्त होकर आपके अधिनस्थ रहें। हम आपसे मित्रता की कामना करते हुए अपनी अपराधों के लिए क्षमा-याचना करते हैं।[ऋग्वेद 2.28.3]
हे संसार के स्वामी वरुण! तुम वीरों के अधिपति के बहुत से साधक अर्चना करते हैं। हम तुम्हारे दिये हुए वास-स्थान को प्राप्त करें। हे अहिंसक तेजस्वी आदित्यो! हमारे प्रति मित्रता रखो। हमारे संकट दूर करो।
Hey the leader of the world, Varun Dev! You are praised-appreciated by many. We wish to remain be under your shelter, having brave progeny. We wish to be friendly with you and be pardoned for our sins.
प्र सीमादित्यो असृजद्विधर्तां ऋतं सिन्धवो वरुणस्य यन्ति। 
न श्राम्यन्ति न वि मुचन्त्येते वयो न पप्तू रघुया परिज्मन्
विश्व धारक और देव माता अदिति और वरुण देव ने अच्छी तरह जल की सृष्टि की है। वरुण देव की महिमा से नदियाँ प्रवाहित होती हैं। ये कभी विश्राम नहीं करती, लौटती भी नहीं। ये पक्षियों की तरह वेग के साथ पृथ्वी पर जाती हैं।[ऋग्वेद 2.28.4]
विश्व को धारण करने वाले अदिति वरुण जल को उत्पत्ति करते हैं और उन्हीं की महिमा से नदियाँ बहती हैं। ये सदैव बहती रहती हैं और पीछे की तरफ नहीं लौटती। गति सहित धरा पर आती हैं।
Supporter of the universe Dev Mata Aditi & Varun Dev created the water. The rivers flow due to the glory of Varun Dev. They neither take rest nor they return back. They flow over the earth with fast speed.
वि मच्ग्र्थाय रशनामिवाग ॠध्याम ते वरुण खामृतस्य। 
मा तन्तुश्छेदि वयतो धियं मे मा मात्रा शार्यपसः पुर ऋतोः
हे वरुण देव! मेरे पाप ने मुझे रस्सी की तरह बाँध रखा है; मुझे मुक्त करें। हम आपकी जल पूर्ण नदी प्राप्त करें। बुनने के समय हमारा तन्तु कभी टूटने न पावे। असमय में यज्ञ की मात्रा कभी विफल न हो।[ऋग्वेद 2.28.5]
हे वरुण! मैं पाप के बंधन में रस्सी के समान बंधा हूँ। मुझे मुक्त करो। हम तुम्हारे द्वारा नदियों को जल से पूर्ण रखें। हमारे यज्ञ की समृद्धि कभी न रुके।
Hey Varun Dev! Release me the cord of my sins which has tied me badly. We should get the water from the rivers. Our Yagy should never go waste.
अपो सु म्यक्ष वरुण भियसं मत्सम्राळृतावोऽनु मा गृभाय। 
दामेव वत्साद्वि मुमुग्ध्यंहो नहि त्वदारे निमिषश्चनेशे
हे वरुण देव! मेरे पास से भय दूर करें। हे सम्राट् और सत्यवान्! मुझ पर कृपा करें। जिस प्रकार रस्सी से बछड़े को छुड़ाया जाता है, उसी प्रकार आप पाप से मुझे बचायें, क्योंकि आपसे अलग होकर कोई एक पल के लिए भी आधिपत्य नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.28.6]
आधिपत्य :: प्रभुता, स्वामित्व, प्रभुत्व, विजय, श्रेष्ठता, महत्त्व, अधिपति का शासन; status,  hegemony, lordship, suzerainty, mastery.
हे वरुण! मुझे अभय करो। हे सत्य से परिपूर्ण स्वामिन! हम पर कृपा दृष्टि रखो। रस्सी से गौवत्स को मुक्त कराने के तुल्य मुझे पापों से छुड़ाओ। तुम्हारी कृपा दृष्टि के बिना कोई सामर्थवान नहीं बन सकता। 
Hey Varun Dev! Grant me asylum. Hey truthful emperor, have pity on me. Relieve me from the sins the way a calf is released from the cord. None can acquire a status even for a blink of the eye. 
मा नो वधैर्वरुण ये त इष्टावेनः कृण्वन्तमसुर भ्रीणन्ति। 
मा ज्योतिषः प्रवसथानि गन्म वि षू मृधः शिश्रथो जीवसे नः
हे वरुण देव! आपके यज्ञ में अपराध करने वालों को जो आयुध मारते हैं, वे हमें न मारे। हम प्रकाश से हीन न हो। हमारे जीवन से हिंसकों को हटायें।[ऋग्वेद 2.28.7]
हे वरुण देव! यज्ञ में अपराध करने वालों को जो अस्त्र दंड देते हैं वह हमको दंडित न करें। हम प्रकाश से वंचित न हों। हमारे हिंसकों को हमसे दूर करो।
Hey Varun Dev! The weapons which kill the guilty in your Yagy, should not kill us. We should not deprived of light. Keep off the violent-sinners from life. 
नमः पुरतेवरुणोतनूनमुतापरं तुविजातब्रवाम। 
त्वे हि कं पर्वते न श्रितान्यप्रच्युतानि दूळभ व्रतानि
हे बहुस्थानोत्पन्न वरुणदेव! हम भूत, वर्तमान और भविष्य समयों में आपके लिए नमस्कार करेंगे, क्योंकि हे अहिंसनीय वरुण देव! पर्वत की तरह आपमें सभी अच्युत (imperishable)  कर्म आश्रित हैं।[ऋग्वेद 2.28.8]
निहित :: अंतर्निहित, जन्मजात, सहज, अंतर्निहित, निर्विवाद; implied, inherent, vested, implicit.
हे बहु कर्मा इन्द्र! हमने भूतकाल में तुमको प्रणाम किया, वर्तमान और भविष्य काल में भी तुम्हें प्रणाम करेंगे। तुम हिंसा के योग्य नहीं हो। तुमसे सभी पराक्रम युक्त कर्म पर्वत के समान निहित हैं।
Hey Varun Dev, evolving from various sources! We will salute-worship you all time i.e., present, past and future, since you are non violent all imperishable efforts-Karm are vested-dependent in you like a mountain. 
पर ऋणा सावीरध मत्कृतानि माहं राजन्नन्यकृतेन भोजम्। 
अव्युष्टा इन्नु भूयसीरुषास आ नो जीवान्वरुण तासु शाधि
हे वरुण देव! हमें ऋण मुक्त (मातृ, पितृ, ऋषि, गुरु etc.) करें। दूसरों के द्वारा एकत्रित की गई सम्पत्ति का हम उपभोग न करें। बहुत-सी उषाएँ जो प्रकाशित हो सकी, उनके द्वारा हमारा जीवन सुखमय करें।[ऋग्वेद 2.28.9]
हे वरुण देव! हमारे पुरखों ने जो कर्ज किया था, उससे उॠण करो । अब मैंने जो ऋण किया है, उससे भी मुक्त करो। मुझे दूसरे से धन माँगने की आवश्यकता न पड़े। उषाओं को इस प्रकार व्याप्त करो कि वे ऋणग्रस्त ही न होने दें। हम कर्ज सहित उषाओं में जीवित रहें। 
Hey Varun Dev! Clear us from all debts pertaining to our parents, saints-sages, Guru-teacher, Brahman, Manes, Rishi etc. We should not use-discard others wealth. Let Usha-day break make our life full of pleasure-comfortable. 
यो मे राजन्युज्यो वा सखा वा स्वप्ने भयं भीरवे मह्यमाह। 
स्तेनो वा यो दिप्सति नो वृको वा त्वं तस्माद्वरुण पाह्यस्मान्
हे राजा वरुण देव! मैं भीरू  हूँ। मुझसे जो मित्र लोग स्वप्न की भयंकर बातें करते हैं, उनसे मुझे बचायें। डाकू या वृक मुझे मारना चाहते हैं। उससे मुझे बचायें।[ऋग्वेद 2.28.10]
हे वरुण! मैं भय ग्रस्त हूँ। मित्रों द्वारा बतायी गयी भयंकर स्वप्नों की बातों से मेरी सुरक्षा करो। मैं उनमें न पड़ें। मुझे जो दस्यु समाप्त करना चाहे उससे भी सुरक्षा करो।
Hey Varun Dev! I am a coward. Save me from those who talk of dangerous events of dreams. Protect me from the dacoits and the wolves. 
माहं मघोनो वरुण प्रियस्य भूरिदाव्न आ विदं शूनमापेः। 
मा रायो राजन्त्सुयमादव स्थां बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे वरुण देव! मुझे किसी धनी और प्रभूत दानशील व्यक्ति के पास जाति की दरिद्रता की बात न कहनी पड़े। हे राजन्। मुझे आवश्यकता पड़ने पर धन का अभाव न हो। हम पुत्र और पौत्र से युक्त होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.28.11]
हे वरुण! किसी उदार, धनिक को मुझे अपनी गरीबी की कहानी न सुनानी पड़े। आवश्यक धन की कभी कमी न पड़े। हम संतान वाले होकर यज्ञ में वंदना करेंगे।
Hey Varun Dev! I should not be compelled to narrate my poverty or caste details in front of a wealthy person who make donation-charity. I should never face scarcity of money. We should organise-arrange a great Yagy having blessed with sons and grand sons.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- अग्नि, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्पादि
त्वां ह्यग्ने सदमित्समन्यवो देवासो देवमरतिं न्येरिर इति क्रत्वा न्येरिरे।अमर्त्य यजत मर्त्येष्वा देवमादेवं जनत प्रचेतसं विश्वमादेवं जनत प्रचेतसम्
हे अग्नि देव! आप द्योतमान और शीघ्र गामी हैं। स्पर्द्धा वान देवगण आपको सर्वदा ही युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं; इसलिए याजक गण लोग आपको स्तुति द्वारा प्रेरित करें। हे यजनीय अग्नि देव! आप अमर, द्युतिमान् और उत्कृष्ट ज्ञान विशिष्ट हैं। यज्ञ करने वाले मनुष्यों के बीच में आने के लिए देवों ने आपको उत्पन्न किया है। आप कर्माभिज्ञ हैं। समस्त यज्ञों में उपस्थित रहने के लिए देवों ने आपको उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 4.1.1]
स्पर्द्धा :: होड़, प्रतियोगिता, अभिलाषा, तीव्र इच्छा, प्रतिद्वंद्विता, ईर्ष्या न करते हुए भी किसी के समान होने की इच्छा, किसी लक्ष्य को पूरा करने की चुनौती, किसी से बराबरी करने की अभिलाषा अथवा तीव्र इच्छा; competition, emulous-motivated by a spirit of rivalry.
EMULOUS :: motivated by a spirit of rivalry.
हे अग्नि देव! तुम ज्योर्तिवान हो। गति से चलते हो। शत्रु पर विजय प्राप्त करने की कामना स्पर्द्धा से परिपूर्ण देव तुम्हें युद्ध के लिए ग्रहण करते हैं। यजमान तुम्हारी वंदना करते हुए आकृष्ट करते हैं। तुम अविनाशी ज्योर्तिवान अत्यन्त ज्ञानी हो, मनुष्यों को यज्ञ कार्य के लिए प्राप्त करने के लिए देवों ने तुमको प्रकट किया है। तुम कार्यों के ज्ञाता हो, समस्त अनुष्ठानों में प्रत्यक्ष रहने के लिए देवों ने तुम्हारी रचना की है।
Hey adorable Agni Dev! The emulous demigods-deities excite you, being swift to move-act. Therefore, the worshippers urge you by their devotions to bring the deities to their sacrifices-Yagy. You are immortal, divine, all wise, as the present divinity among men.
Hey Agni Dev! You are radiant-aurous and dynamic-fast moving. Demigods-deities seek your help-cooperation against the competitors. The Ritviz worship-pray to you. You are enlightened, immortal and evolved by the demigods-deities for the accomplishment of the Yagy by the humans. You are aware of the endeavours, goal, targets of the humans. 
स भ्रातरं वरुणमग्न आ ववृत्स्व देवाँ अच्छा सुमती यज्ञवनसं ज्येष्ठं यज्ञवनसम्। ऋतावानमादित्यं चर्षणीधृतं राजानं चर्षणीधृतम्
हे अग्नि देव! आपके भ्राता वरुण देव हैं। वे हव्य भाजन, यज्ञ भोक्ता, अतिशय प्रशंसनीय, उदकवान, अदिति-पुत्र, जलदान द्वारा मनुष्यों के धारक, सुबुद्धि युक्त और राजमान हैं। आप ऐसे वरुण देव को स्तोताओं के अभिमुख करें।[ऋग्वेद 4.1.2]
राजमान :: चमकता हुआ; radiant, aurous, shinning.  
हे अग्ने! वरुण तुम्हारे भ्राता हैं। वे हवियों के पात्र, यज्ञ का उपभोग करने वाले, जल वाले, प्रशंसित, अदिति के पुत्र हैं। वे जल वृद्धि द्वारा प्राणी को धारण करने वाले हैं। वे सुन्दर प्रज्ञा वाले एवं शोभनीय हैं। इन वरुण की प्रार्थना करने वालों के तुल्य लाओ।
Hey Agni Dev! Involve Varun Dev with the worshippers in the Yagy, as a willing participant. He the ruler of the water, the son of Aditi, the supporter of men the sovereign venerated by mankind.
Hey Agni Dev! Varun dev is your brother. He deserve offerings, participant of Yagy, appreciable, son of Dev Mata Aditi, supporter of humans by granting-providing water, pious, righteous, virtuous, truthful, aurous. Let the worshipers-Ritviz come to him.
सखे सखायमभ्या ववृत्स्वाशुं न चक्रं रथ्येव रंह्यास्मभ्यं दस्म रंह्या।
अग्ने मृळीकं वरुणे सचा विदो मरुत्सु विश्वभानुषु। तोकाय तुजे शुशुचान शं कृध्यस्मभ्यं दस्म शं कृधि
हे सखिभूत दर्शनीय अग्नि देव! आप अपने मित्र वरुण देव को हमारे अभिमुख करें, जिस प्रकार से गमन कुशल और रथ में युक्त अश्व द्वय शीघ्रगामी चक्र को लक्ष्य देश के अभिमुख ले जाते हैं। हे अग्नि देव! आपकी सहायता से वरुण देव ने सुखकर हव्य लाभ किया है। हे दीप्तिमान अग्नि देव! हम लोगों का कल्याण करें।[ऋग्वेद 4.1.3] 
हे अग्नि देव! तुम सखाभाव से परिपूर्ण हो। जैसे गमन युक्त रथ में जुड़े दो अश्व शीघ्र चलने वाले पहियों को लक्ष्य पर पहुँचाते हैं, वैसे ही तुम अपने वरुण को हमारे लाओ। हे अग्नि देव! तुम्हारे सहयोग से वरुण ने सुखमय हवियाँ ग्रहण की हैं तथा अत्यन्त तेजस्वी मरुतों के लिए भी सुखकारक हव्य अर्जन किया है।
Hey Agni Dev! You possess the feelings of brotherhood-companionship. Bring Varun Dev to us, the way an expert-skilled charioteer negotiate the two horses deployed in the charoite towards the destination. Hey Agni Dev! Varun Dev attained-obtained the comfortable offerings, gratifying oblation along with the aurous Marud Gan. Hey Agni Dev! Resort to our welfare bringing happiness to our sons & grand sons.
त्वं नो अग्रे वरुणस्य विद्वान्देवस्य हेळोऽवयासिसीष्ठाः।
यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषांसि प्र मुमुग्ध्यस्मत्
हे अग्नि देव! आप समस्त पुरुषार्थ के साधना के उपायों को जानते हैं। हम लोगों के प्रति द्योतमान वरुण देव के क्रोध का अपनोदन करें। आप सबकी अपेक्षा अधिक याज्ञिक, हविर्वाही और अतिशय दीप्तिमान् हैं। आप हम लोगों को सब प्रकार के पापों से विशेष रूप से दूर अर्थात् विमुक्त करें।[ऋग्वेद 4.1.4]
हे अग्नि देव! तुम हमारी संतान को सुख प्रदान करो और हमको कल्याण प्रदान करो। हे अग्नि देव! तुम सभी कर्मों के स्वामी हो। प्रकाशवान वरुण को हमारे प्रति क्रोधित न होने दो। तुम यज्ञ करने वालों में उत्तम हवियों को वहन करने वाले अत्यन्त प्रकाशवान हो। तुम प्रत्येक प्रकार के पापों से हमारी सुरक्षा करो।
Hey wise Agni Dev! Avert from us the wrath of Varun Dev. You are the most frequent sacrificer, the most diligent bearer of oblations, the most resplendent liberate us from all animosities.
Hey Agni Dev! You are aware all means of achieving ambitions. Ensure that Varun Dev do not become angry with us. You are radiant, carrier of offerings of the Yagy. Remove our all sorts of sins.
स त्वं नो अग्रेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ।
अव यक्ष्व नो वरुणं रराणो वीहि मृळीकं सुहवो न एधि
हे अग्नि देव! रक्षा दान द्वारा आप हम लोगों के होवें। उषा के विनष्ट होने पर प्रातः काल में अग्नि होत्रादि कार्य की सिद्धि के लिए हम लोगों के अत्यन्त पास होवें। हम लोगों के लिए जो वरुण कृत जलोदरादि रोग और पाप हैं, उनका विनाश करे। आप लिए अत्यन्त फल प्रद हैं। आप इस सुखकर हवि का भक्षण करें। हम आपके उत्तम रूप का आह्वान करते हैं; हमारे निकट आगमन करें।[ऋग्वेद 4.1.5]
हे अग्नि देव! रक्षण कार्यों द्वारा हमारे अत्यन्त निकट आओ। उषा की समाप्ति पर प्रातः की बेला में यज्ञादि कार्यों की सिद्धि के लिए हमारे अत्यन्त पास पधारो। हमारे लिए जल से उत्पन्न व्याधियों को पहले ही समाप्त कर दो। तुम यजमानों को अभीष्ट फल प्रदान करते हो। तुम तुष्टिप्रद हवि का सेवन करो। हम तुम्हें भली-भाँति आहूत करते हैं। तुम हमारे निकट पधारो।
Hey Agni Dev! Come near to protect us, in the morning for carrying out Yagy and accomplishment of our endeavours. Vanish our ailments-diseases developed through water. You grant desired rewards to the Ritviz. Accept the nourishing offerings. We should honour, worship, pray you.
अस्य श्रेष्ठा सुभगस्य संदृग्देवस्य चित्रतमा मर्त्येषु।
शुचि घृतं न तप्तमघ्न्यायाः स्पार्हा देवस्य महनेव धेनोः
उत्तम रूप से भजनीय अग्नि देव का प्रशंसनीय अनुग्रह मनुष्यों के लिए अत्यन्त भजनीय तथा स्पृहणीय होता है। जिस प्रकार से क्षीराभिलाषी देवों के लिए गौओं का तेजोयुक्त, क्षरणशील और उष्ण दुग्ध स्पृहणीय होता है तथा जैसे मनुष्यों के लिए दूध देने वाली गाय भजनीय होती है।[ऋग्वेद 4.1.6]
स्पृहणीय :: प्राप्त करने योग्य, वांछनीय; coveted, enviable, preferable, admirable.
उत्तम ऐश्वर्यवान अग्नि देव की प्राणियों के बीच अत्यन्त महान तथा अद्भुत दृष्टि हो। जैसे दूध की कामना वाले प्राणियों को गाय का पवित्र दूध थन से निकलकर उष्ण को प्राप्त होता है, जैसे गौदान की कामना वाले को दान स्पृहणीय होता है, जैसे अग्नि का तेज भी गौ के समान पोषण योग्य एवं स्पृहणीय होता है।
Your favours to the humans deserve appreciation. The way warm coveted cow milk, full of energy-nourishment is desired by the demigods-deities, cow is worship able for the humans.
त्रिरस्य ता परमा सन्ति सत्या स्पार्हा देवस्य जनिमान्यग्नेः।
अनन्ते अन्तः परिवीत आगाच्छुचिः शुक्रो अर्यो रोरुचानः
अग्नि देव का प्रसिद्ध उत्तम और यथार्थ भूत अग्नि, वायु तथा सूर्यात्मक तीन जन्म सभी के द्वारा स्पृहणीय हैं। अनन्त आकाश में अपने तेज द्वारा परिवेष्टित, सभी के शोधक, दीप्ति युक्त और अत्यन्त दीप्यमान स्वामी अग्नि देव हमारे यज्ञ स्थल पर पधारें।[ऋग्वेद 4.1.7]
अग्नि के तीन रूप अग्नि, पवन और सूर्य विख्यात एवं महान हैं। अनन्त अम्बर में अपने तेज से व्याप्त सभी को पवित्र करने वाले, ज्योति से परिपूर्ण और अत्यन्त तेजस्वी अग्निदेव हमारे अनुष्ठान को ग्रहण हों।
Three form of Agni viz. fire, air and the Sun are admirable for all. Let extremely radiant Agni Dev present in the infinite sky with his aura-energy, purifier of all, obelize us by visiting-participating in our Yagy.
सदूतो विश्वेदभि वष्टि सद्मा होता हिरण्यरथो रंसुजिह्वः।
रोहिदश्वो वपुष्यो विभावा सदा रण्वः पितुमतीव संसत्
हे दूत! देवों के आह्वानकारी, सुवर्णमय रथोपेत एवं रमणीय ज्वाला विशिष्ट अग्नि देव! समस्त यज्ञ की कामना करते हैं। रोहिताश्व, रूपवान और सदा कान्ति युक्त अग्नि देव धन-धान्य से सम्पन्न घर की तरह सुखकारी हैं।[ऋग्वेद 4.1.8]
वे अग्नि देवगणों को आमंत्रित करने वाले दूत, स्वर्ण रथ वाले, अभिलाषित ज्वालाओं वाले, यज्ञों के प्राप्त होने की अभिलाषा करते हैं। सुसज्जित अश्व वाले, प्रदीप्त अग्नि अन्न से सम्पन्न गृह के समान सुखदायक हैं।
Agni Dev present in the golden charoite, with his beautiful flames, is the messenger-ambassador inviting-invoking demigods-deities, desires-wish to attend the Yagy. Agni Dev possessing decorated horse, accompanied with brilliant flames is comfortable like a house possessing food grains.
स चेतयन्मनुषो यज्ञबन्धुः प्र तं मह्या रशनयां नयन्ति।
स क्षेत्यस्य दुर्यासु साधन्देवो मर्तस्य सधनित्वमाप
अग्नि देव यज्ञ में विनियुक्त होते हैं। वे यज्ञ में प्रवृत्त मनुष्यों को जानते हैं। अध्वर्यु गण महती रशना द्वारा उत्तर वेदि में उनका प्रणयन करते हैं। याजक गण के गृहों में अभीष्ट साधन करते हुए वे निवास करते हैं। वे द्योतमान अग्नि देव धनियों के साथ एकत्र वास करते हैं।[ऋग्वेद 4.1.9]
अनुष्ठान :: संस्कार, समारोह, विधि, रस्म, धार्मिक प्रक्रिया (संस्कार, उत्सव, पद्धति), शास्र विधि, आचार, आतिथ्य सत्कार; rituals, rites, ceremonies.
अग्नि देव अनुष्ठान में व्याप्त होते हैं। वे यज्ञ कर्मों की कामना वाले प्राणियों को जानते हैं। अध्वर्युगण उन्हें उत्तर वेदी में नियम पूर्वक स्थापित करते हैं। यजमानों का अभिष्ट सिद्धि करते हुए उनके भवनों में रहते हैं। वे प्रकाशवान अग्नि देव धन सम्पन्नों सहित वास करते हैं।
Agni Dev is engaged-busy with religious ceremonies. He is aware of the humans who are engaged in the Yagy. The Ritviz establish him over the North end of the Vedi. He resides in the homes of the devotees to fulfil-accomplish their desires-motives. Radiant-aurous Agni Dev resides with the rich collectively.
स तू नो अग्निर्नयतु प्रजानन्नच्छा रत्नं देवभक्तं यदस्य।
धिया यद्विश्वे अमृता अकृण्वन्द्यौष्पिता जनिता सत्यमुक्षन्
स्तोताओं द्वारा भजनीय जो उत्कृष्ट रत्न अग्नि का है, उस रत्न को सर्वज्ञ अग्नि देव हमारे सम्मुख प्रेरित करें। मरण धर्म रहित समस्त देवों ने यज्ञ के लिए अग्नि का उत्पादन किया। द्युलोक उनके पालक और पिता हैं। अध्वर्यु गण घृतादि आहुतियों द्वारा यथार्थ भूत अग्नि को सिञ्चित करते हैं।[ऋग्वेद 4.1.10]
जिन रमणीय समृद्धि को प्रार्थना करने वाले भजते हैं, अग्नि देव की वह उत्तम समृद्धि और हमारे सम्मुख उपस्थित हो। अविनाशी देवों ने अग्नि देव को अनुष्ठान करने के लिए रचित किया है। अम्बर उनके पोषक पितृ रूप हैं। अध्वर्यु मनुष्य घृत आदि की से उस सत्य को सींचते हैं।
Let wise Agni Dev conduct us to that wealth which is desired by the devout-devotees. The fire has been produced by the immortals for the performance of sacred oblations, the most resplendent, liberate us from all animosities.
None is immortal. Even Maha Dev, Bhagwan Shri Hari Vishnu and brahma Ji have a fixed life span of 8 Prardh, 4 Parardh and 2 Parardh respectively.
ANIMOSITY :: शत्रुता, वैरभाव; द्वेष; a strong feeling of anger and dislike.
Let the excellent-marvellous prayers recited by the devotees in the honour of Agni Dev, be available to us. Immortal demigods-deities have ignited fire for the Yagy. The heavens are their nurturers and patrons-father. The Ritviz makes offerings of Ghee in fire.
स जायत प्रथमः पस्त्यासु महो बुध्ने रजसो अस्य योनौ।
अपादशीर्षा गुहमानो अन्तायोयुवानो वृषभस्य नीळे
अग्नि ही श्रेष्ठ हैं। वे याजक गणों के गृहों में और महान् अन्तरिक्ष के मूल स्थान में उत्पन्न हुए हैं। अग्नि पाद रहित और शिरोवर्जित हैं। वे शरीर के अन्तर्भाग का गोपन करके जलवर्षी मेघ-बादलों के निलय में अपने को घूमाकार बनाते हैं।[ऋग्वेद 4.1.11]
अग्नि देव सब में सर्वोत्तम हैं। वे गृहों निवास करने वाले प्राणियों के मध्य ग्रहों के मुखिया पुरुष के समान वास करते हैं। हे श्रेष्ठ जन समूह के आश्रय स्थान रूप एवं बिना पाँव वाले हैं। वे सभी के शीर्ष होते हुए भी शिरों से परे हैं। वे सभी के अन्दर रमे रहते हैं।
He is first engendered in the habitation-houses of the sacrificers, then upon his station-the altar, the base of the vast firmament-sky, space; without feet, without head, concealing his extremities, combining with smoke in the nest of the rain-cloud.
Agni Dev is best-excellent. He has evolved in the homes of the performers of Yagy and the centre of the space, configuring himself round, combining with the rain clouds. He has no legs-feet and head (specific shape & size). Though the head of all, he himself is without head. He is embedded in all.
प्र शर्ध आर्त प्रथमं विपन्याँ ऋतस्य योना वृषभस्य नीळे।
स्पार्हो युवा वपुष्यो विभावा सप्त प्रियासोऽजनयन्त वृष्णे
हे अग्नि देव! आप स्तुति युक्त उदक के उत्पत्ति स्थान में मेघ के कुलाय भूत अन्तरिक्ष में वर्तमान हैं। तेज आपके निकट सर्वप्रथम उपस्थित होता है। जो अग्नि स्पृहणीय, नित्य तरुण, कमनीय और दीप्तिमान् हैं, उन्हीं अग्नि देव के उद्देश्य से सप्त होता प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.1.12]
हे अग्नि देव! तुम जलों के रचित स्थान में बादल के नीड़ रूप अंतरिक्ष में प्रार्थनाओं से परिपूर्ण हुए व्याप्त रहते हो। सर्व महान तेज तुम्हारे पास उपस्थित होता है। जो अग्निदेव सभी के चाहने योग्य, सततयुवा कमनीय एवं ज्योति से परिपूर्ण हैं, सप्त होता इन्हीं के लिए वंदनाएँ उच्चारित करते हैं।
Hey Agni Dev! You are present in the clouds being worshipped-prayed. The Tej, aura-energy is present-associated with him. The Strotr-reciters of hymns, pray always young, beautiful, glittering, coveted, enviable, preferable, admirable Agni Dev.
अस्माकमत्र पितरो मनुष्या अभि प्र सेदुर्ऋतमाशुषाणाः।
अश्मव्रजाः सुदुघा वव्रे अन्तरुदुस्रा आजन्नुषसो हुवानाः
इस लोक में हमारे पितृ पुरुषों ने यज्ञ करने के लिए अग्नि के अभिमुख गमन किया। प्रकाश के लिए उषा देवी का आह्वान करते हुए उन लोगों ने अग्नि देव की परिचर्या के बल से पर्वत विलान्तर्वर्ती अन्धकार के बीच से दुधारु धेनुओं को मुक्त किया।[ऋग्वेद 4.1.13] 
इस संसार में हमारे पूर्वज यज्ञ साधन के लिए अग्नि के सामने उपस्थित हुए, उन्होंने उषा का आह्वान किया और अग्नि की पूजा से प्राप्त हुए बल के माध्यम से शैल की गुफाओं में छाए हुए अंधेरे में से दुहने योग्य पयस्विनी गौओं को बाहर किया।
Our ancestors-Manes presented themselves before Agni Dev in this universe. They invoked Usha Devi, worshiped Agni Dev and released the milch cows from the caves under darkness in the mountains.
ते मर्मृजत ददृवांसो अद्रिं तदेषामन्ये अभितो वि वोचन्।
पश्वयन्त्रासो अभि कारमर्चन्विदन्त ज्योतिश्चकृपन्त धीभिः
उन लोगों ने पर्वत को विदीर्ण करते समय अग्नि की परिचर्या की। अन्य ऋषियों ने उनके कर्म का कीर्तन सर्वत्र किया। उन्हें पशुओं को बचाने के उपाय मालूम थे। अभिमत फलप्रद अग्नि की प्रार्थना करते हुए उन्होंने ज्योति लाभ किया और अपने विवेक द्वारा यज्ञ किया।[ऋग्वेद 4.1.14] 
उन्होंने पर्वत को ध्वंस करते समय अग्नि की अर्चना की। अन्य ऋषियों ने भी उनके कार्यों का सब जगह बखान किया। उन्हें पशु सुरक्षा करके उपायों को पूर्ण ज्ञान था। उन्होंने अभीष्ट फल प्रदान करने वाली अग्निदेव की प्रार्थना दोबारा देखने वाली इंद्रिय को लाभ ग्रहण किया तथा अपनी उत्तम मति द्वारा यज्ञ कार्य का साधन किया।
They destroyed the mountains and circumambulated Agni Dev. Other Rishi Gan sung their endeavours every where. They were aware of the means to liberate the cattle. Having achieved their target they prayed-worshiped Agni Dev performing Yagy prudently and gained vision.
ते गव्यता मनसा दृधमुब्धं गा येमानं परि षन्तमद्रिम्।
दृळ्हं नरो वचसा दैव्येन व्रजं गोमन्तमुशिजो वि वव्रुः
अङ्गिरा आदि कर्मों के नेता और अग्नि की कामना वाले थे। उन्होंने मन से गौ लाभ की इच्छा करके द्वार निरोधक, दृढ़ बद्ध, सुदृढ़, गौओं के अवरोधक एवं सर्वतः व्याप्त गोपूर्ण गोष्ठ रूप पर्वत का अग्नि विषयक स्तुति द्वारा उद्घाटन किया।[ऋग्वेद 4.1.15]
पूर्व जन्म के कर्मों के करने में वे अग्रगण्य थे। वे अग्नि की हमेशा इच्छा करते थे। उन्होंने गौ के प्राप्त करने की कामना से अत्यन्त अटल गौओं से भरे हुए गौशाला के समान शैल की अग्नि की प्रार्थनाओं से प्राप्त बल द्वारा खोला।
Angira and other Rishi were expert in the procedures-methodology of performing Yagy & Agni worship. They desired to have-release the cows, destroyed the gates in the yard-cowshed possessing cows in captivity, reciting prayers devoted-addressed to Agni Dev.
ते मन्वत प्रथमं नाम धेनोस्त्रिः सप्त मातुः परमाणि विन्दन्।
तज्जानतीरभ्यनूषत व्रा आविर्भुवदरुणीर्यशसा गोः
हे अग्नि देव! स्तोत्र करने वाले अङ्गिरा आदि ने ही पहले-पहल जननी वाक के सम्बन्धी शब्दों को जाना, पश्चात् वचन सम्बन्धी सत्ताईस छन्दों को प्राप्त किया। अनन्तर इन्हें जानने वाली उषा की प्रार्थना की एवं सूर्य के तेज के साथ अरुण वर्णा उषा प्रादुर्भत हुई।[ऋग्वेद 4.1.16]
छन्द ::  मंत्र को सर्वतोभावेन आच्छादित करने की विधि को छन्द कहते हैं। यह अक्षरों अथवा पदों से बनता है। मंत्र का उच्चारण चूँकि मुख से होता है, अतः छन्द का मुख से न्यास किया जाता है।
वर्ण तथा यति (विराम) के नियमों के अनुरूप वाक्य या पद्यात्मक रचना, छंदशास्त्र में वर्ण या मात्राओं का वह निश्चित मान जिसके आधार पर पद्य लिखा जाता है, इच्छा, अभिलाषा, नियंत्रण, रुचि, अभिप्राय, तरकीब; उपाय; युक्ति, बंधन-गाँठ, स्वेच्छाचार, मन, वर्ण, मात्रा आदि की गिनती से होने वाली पद्यों की वाक्य रचना यथा दोहा, सोरठा, चौपाई; metre.
हे अग्ने! वंदना करने वाले अंगिरा आदि ऋषियों ने ही वाणी रूपिणी जननी से रचित वंदनाओं के साधन का शब्दों में पहली बार ज्ञान प्राप्त किया फिर सत्ताइस छन्दों को जाना। इसके बाद जानने वाली उषा की प्रार्थना की और तभी आदित्य के तेज से परिपूर्ण अरुण रंग वाली उषा का आविर्भाव हुआ।
Hey Agni Dev! rishi Angira at first learned the Strotr pertaining to the voice-speech and there after learned 27 Chhand-metre. Then he prayed to Devi Usha and the Sun-Adity, leading to the arrival of Arun with his aura.
नेशत्तमो दुधितं रोचत द्यौरुद्देव्या उषसो भानुरर्त।
आ सूर्यो बृहतस्तिष्ठदज्राँ ऋजु मर्तेषु वृजिना च पश्यन्
रात्रि कृत अन्धकार उषा द्वारा प्रेरित होने पर विनष्ट हुआ। अन्तरिक्ष दीप्त हुआ। उषा देवी की प्रभा उद्गत हुई। मनुष्यों के सत् और असत् कर्मों का अवलोकन करते हुए सूर्य देव महान् अजर पर्वत के ऊपर आरूढ़ हुए।[ऋग्वेद 4.1.17]
रात्रि के द्वारा उत्पन्न तम उषा की प्रेरणा से अटल हुआ, फिर अंतरिक्ष प्रकाशमय हुआ। उषा की आभा प्रकट हुई फिर प्राणियों के सत्य कर्मों को देखने में सक्षम अटल शैल पर चढ़ गये।
The darkness due to the night vanished as soon Devi Usha appeared,  leading the the aura spread by her. The space-sky lightened. Sury Dev-Sun rose to the immortal mountain to see virtuous-wicked, pious-vices the deeds-endeavours of the humans. 
आदित्पश्चा बुबुधाना व्यख्यन्नादिद्रलं धारयन्त द्युभक्तम्।
विश्वे विश्वासु दुर्यासु देवा मित्र धिये वरुण सत्यमस्तु
सूर्योदय के अनन्तर अङ्गिरा आदि ने पणियों द्वारा अपहृत गौओं को जानकर पीछे की ओर से उन गौओं को अच्छी तरह से देखा एवं दीप्ति युक्त धन धारित किया। इनके समस्त घरों में यजनीय देवगण आवें। वरुण जनित उपद्रवों का निवारण करने वाले हे मित्रभूत अग्निदेव! जो आपकी उपासना करता है, उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हों।[ऋग्वेद 4.1.18]
सूर्य के उदित होने पर अंगिरा आदि ऋषियों ने पणियों के द्वारा चुराई गई धेनुओं को जाना तथा पीछे से उन्हें भली-भाँति देखा। इसके समस्त साधनों को अनुष्ठान कार्य में हिस्सा ग्रहण करने के पात्र देवता ग्रहण हुए। हे सखा की भावना से ओत-प्रोत अग्निदेव! तुम वरुण के क्रोध को शांत करने वाले हो। तुम्हारी उपासना करने वालों को फल ग्रहण हो।
After the Sun rise Angira and the other Rishis carefully examined the released cows from behind and accepted the glittering wealth (gems & jewels). Let revered-honoured demigods-deities visit their houses. Hey Agni Dev! Any one wo worship-pray you is released from the troubles generated-created by Varun Dev, leading to accomplishment of all of his desires.
अच्छा वोचेय शुशुचानमग्निं होतारं विश्वभरसं यजिष्ठम्।
शुच्यूधो अत्रंण गवामन्धो न पूतं परिषिक्तमंशोः
हे अग्नि देव! आप अत्यन्त दीप्तिमान्, देवों के आह्वाता, विश्व पोषक और सर्वापेक्षा यागशील है। आपके उद्देश्य से हम प्रार्थना करते हैं। याजक गण लोग आपको आहुति देने के लिए गौओं के ऊधः प्रदेश से शुद्ध पवित्र दुग्ध नहीं दुहा तथा सोम को अभिषुत (भी) नहीं किया, वे लोग केवल आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.1.19]
हे अग्ने! तुम देवगणों का आह्वान करने वाले, अत्यन्त प्रदीप्त वाले, संसार के पालनकर्त्ता, सबकी उपेक्षा अत्यधिक यज्ञ-कर्म करने वाले हो। हम तुम्हारी वन्दना करते हैं। तुम्हारे लिए आहुति देने के लिए तुम्हारी अर्चना करते हैं।
Hey radiant-aurous Agni Dev! You invoke the demigods-deities, nourish-nurture the whole world and is comparatively worshiped more. We worship-pray you and make offerings for you with cow's Ghee. 
विश्वेषामदितिर्यज्ञियानां विश्वेषामतिथिर्मानुषाणाम्।
अग्निर्देवानामव आवृणानः सुमृळीको भवतु जातवेदाः
अग्नि देव समस्त यज्ञीय देवताओं को पैदा (उत्पन्न) करने वाले हैं तथा अग्नि देव सम्पूर्ण मनुष्यों के लिए अतिथिवत् पूज्य हैं। स्तोताओं के अन्न भोजी अग्नि देव स्तोताओं के लिए सुखकर हों [ऋग्वेद 4.1.20] 
अग्नि देव यज्ञ के लिए अतिथि के समान पूजने योग्य हैं। स्तोताओं का हृव्य भक्षण करने वाले अग्नि देव वंदना करने वाले को सुखी करें।
Agni Dev invoke all demigods-deities for the Yagy and is respectable like a guest. Let Agni Dev accepting the offerings of the Ritviz-Strota be blissful to them.(13.1.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र देव, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्रा को वां वरुणा सुम्नमाप स्तोमो हविष्माँअमृतो न होता।
यो वां हृदि क्रतुमाँ अस्मदुक्तः पस्पर्शदिन्द्रावरुणा नमस्वान्
हे इन्द्र देव, हे वरुण! हमारे द्वारा ज्ञान पूर्वक और विनम्रता पूर्वक उच्चारण किया हुआ कौन-सा स्तोत्र है, जो आपके हृदय को स्पर्श कर सके? हे इन्द्र देव, हे वरुण! अविनाशी और आहुति से युक्त अग्नि देव के तुल्य प्रदिप्त वह स्तोत्र आपके अन्तःस्थल में प्रवेश करे।[ऋग्वेद 4.41.1]
हे इन्द्र देव! हे वरुण! अमरतत्व-ग्रहण होता! अग्नि के तुल्य हवि परिपूर्ण कौन सा श्लोक तुम दोनों की कृपा दृष्टि ग्रहण कर सकता है? वह श्लोक हमारे द्वारा अर्पण हुआ हवियों से परिपूर्ण होकर तुम दोनों के अन्तः करण में प्रवेश करें।
Hey Indr Dev! Hey Varun Dev! Let us know the Strotr learnt by us which touches your heart. Which excellent Shlok can please you like the offerings in imperishable holy fire-Agni Dev?!
इन्द्रा ह यो वरुणा चक्र आपी देवौ मर्त सख्याय प्रयस्वान्।
स हन्ति वृत्रा समिथेषु शत्रूनवोभिर्वा महद्भिः स प्र शृण्वे
हे प्रसिद्ध इन्द्र और वरुण देव! जो मनुष्य हवि लक्षण अन्नवान होकर संख्या के लिए आप दोनों से मित्रता करता है, वह मनुष्य पापों का नाश करता है, युद्ध में शत्रुओं का विनाश करता हैं और महती रक्षा द्वारा प्रख्यात होता है।[ऋग्वेद 4.41.2]
हे इन्द्र, वरुण! तुम दोनों विख्यात हो। जो व्यक्ति पापों का विनाश करने में सक्षम है, वह संग्राम में शत्रु को मार देता है और विशाल रक्षा साधनों द्वारा विख्याति प्राप्त करता है।
Hey famous Indr Dev, Varun Dev! The humans who is friendly with you, makes offerings of food grains; destroys his sins. He kills the enemy in the war and becomes famous under your protection-shelter.
इन्द्रा ह रत्नं वरुणा धेष्ठेत्था नृभ्यः शशमानेभ्यस्ता।
यदी सखाया सख्याय सोमैः सुतेभिः सुप्रयसा मादयैते
हे प्रसिद्ध इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों देव हम स्तोत्र करने वाले मनुष्यों के लिए रमणीय धन देने वाले होवें। यदि आप दोनों परस्पर मित्र हैं और मित्रता के लिए अभिषुत सोमरस तथा उत्तम अन्नों से प्रसन्न हैं, तो ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हो।[ऋग्वेद 4.41.3]
हे प्रख्यात इन्द्र व वरुण! तुम दोनों देवता हम स्तोताओं को सुन्दर धन प्रदान करने वाले बनो। यदि तुम यजमान के मित्र रूप हो सखा भाव लिए सिद्ध किये गये इस सोम रस से पुष्टि को ग्रहण होओ और धन ग्रहण करने वाले बनो।
Hey famous Indr Dev & Varun Dev! You should be able to grant us grandeur, reciting hymns-verses in your honour. If both of you are friends and ready to drink Somras for the sake of friendship and pleased with the excellent grains used for extracting Somras, grant us grandeur.
इन्द्रा युवं वरुणा विद्युमस्मिन्नोजिष्ठमुग्रा नि वधिष्टं वज्रम्।
यो नो दुरेवो वृकतिर्दभीतिस्तस्मिन्मिमाथामभिभूत्योजः
हे उग्र इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों इस शत्रु के ऊपर दीप्त और अतिशय तेजो विशिष्ट वज्र का प्रक्षेप करें। जो शत्रु हम लोगों के द्वारा दुर्दमनीय, अत्यन्त अदाता और हिंसक है, उस शत्रु के विरुद्ध आप दोनों अभिभव कर वज्र का प्रयोग करें।[ऋग्वेद 4.41.4]
हे इन्द्रदेव और वरुण! तुम दोनों विकराल कार्य वाले हो। हमारे शत्रु पर तुम दोनों ही अत्यन्त तेज वाले शस्त्र का प्रहार करो। जो शत्रु अदानशील, हिंसक तथा हमारे दमन किए हुए जाने योग्य नहीं हैं, उस शत्रु के विरुद्ध तुम दोनों उसे पराजित करने वाले शक्ति से हराओ।
Hey furious Indr Dev & Varun Dev! Strike radiant Vajr possessing enormous energy, over this enemy. Defeat the enemies who do not donate, are violent & not qualified to be vanished by us.
इन्द्रा युवं वरुणा भूतमस्या धियः प्रेतारा वृषभेव धेनोः।
सा नो दुहीयद्यवसेव गत्वी सहस्त्रधारा पयसा मही गौः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! बैल जिस प्रकार से गाय से प्रेम करता है, उसी प्रकार आप दोनों स्तुतियों से प्रसन्न होवें। तृणादि का भक्षण करके सहस्र धारा महती गौ जिस प्रकार से दुग्ध दोहन के लिए उपस्थित रहती है, उसी प्रकार से स्तुति रूपा धेनु हम लोगों की अभिलाषाओं को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 4.41.5]
तृणादि को भक्षण कर जैसे गौ दूध देती है, वैसे ही तुम्हारी वंदना रूपी धेनु इच्छाओं को सदैव प्रदान करती रहे।
Hey Indr Dev & Varun Dev! Be happy-affectionate with our hymns, the way the bull loves the cow.  The manner in which the cow yield milk by eating straw, the prayers-worship should accomplish our desires.
तोके हिते तनय उर्वरासु सूरो दृशीके वृषणश्च पौंस्ये।
इन्द्रा नो अत्र वरुणा स्यातामवोभिर्दस्मा परितक्म्यायाम्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों रात्रि में रक्षा युक्त होकर शत्रुओं की हिंसा करने के लिए अवस्थान करें, जिससे हम लोग पुत्र, पौत्र और उपजाऊ भूमि से लाभ प्राप्त कर सकें एवं चिरकाल पर्यन्त सूर्य देव को देख सकें अर्थात् चिरजीवी हों तथा सन्तान उत्पन्न करने की शक्ति को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 4.41.6]
हे इन्द्र और वरुण देव! शीघ्रकाल से तुम दोनों अपने सुरक्षा साधनों से परिपूर्ण होकर शत्रुओं का पतन करने के लिए चल दो जिससे हम सन्तान आदि धन एवं उर्वरा धरा को पास के उम्र पर्यन्त सूर्य के दर्शन करते रहें। हे इन्द्र और वरुण! गाय जैसे बैल को प्रेम करती है वैसे ही तुम दोनों स्तुतियों को प्रेम करने वाले बनो।
Hey Indr Dev & Varun Dev! Move to destroy the enemy at night, well equipped with the means of protections. We wish to survive for long accompanied by our sons & grandsons.
To see Sun means survival for long. Power to produce progeny means having sons & grandsons.
युवामिद्ध्यवसे पूर्व्याय परि प्रभूती गविषः स्वापी।
वृणीमहे सख्याय प्रियाय शूरा मंहिष्ठा पितरेव शंभू
हे इन्द्रदेव और वरुण देव! हम लोग धेनु लाभ की अभिलाषा से आप लोगों के निकट प्राचीन रक्षा की प्रार्थना करते हैं। आप दोनों क्षमता शाली, बन्धु स्वरूप, शूर एवं अतिशय पूजनीय हैं। हम लोग आप दोनों के निकट सुखदायक पिता के तुल्य मित्रता और स्नेह की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.41.7]
हे इन्द्र वरुण! गाय की अभिलाषा करने वाले हम तुमसे हमारे पुरातन काल से चले आ रहे पोषण सामर्थ्य की विनती करते हैं। तुम दोनों ही सभी कर्मों को करने वाले हो, सखा रूप एवं अत्यन्त पूजनीय हो। तुम दोनों से हम पुत्र को प्रदान करने वाले पिता के तुल्य अत्यन्त प्रेम प्रदान करने की विनती करते हैं।
Hey Indr Dev & Varun Dev! We pray-request you to grant us cows from ancient times. You are mighty, brave, revered-worship able and brotherly with us. We expect fatherly love & affection from you.
ता वां धियोऽवसे वाजयन्तीराजिं न जग्मुर्युवयूः सुदानू।
श्रिये न गाव उप सोममस्थुरिन्द्रं गिरो वरुणं मे मनीषाः
हे शोभन फल देने वाले देवद्वय! योद्धा जिस प्रकार से संग्राम की कामना करता है, उसी प्रकार से हम लोगों की रत्नाभिलाषिणी स्तुतियाँ आप दोनों की कामना करती हुई रक्षा लाभ के लिए आप दोनों के निकट गमन करते हैं। दध्यादि द्वारा शोभन करने के लिए जिस प्रकार से गौएँ सोम के पास रहती हैं। उसी प्रकार हमारी आन्तरिक स्तुतियाँ इन्द्र देव और वरुण देव के पास जाती हैं।[ऋग्वेद 4.41.8]
हे इन्द्रा-वरुण! तुम दोनों देवता सुन्दर फल प्रदान करने वाले हो। जैसे शक्तिशाली पुरुष युद्ध की कामना करते हैं, वैसे ही हमारी स्तुतियाँ रत्नादि धन की कामना से रक्षा प्राप्ति के लिए तुम्हारे समीप जाती हैं। जैसे गायें दूध दही आदि सुन्दर पदार्थों के लिए तुम्हारे समीप जाती हैं, वैसे ही हमारी हार्दिक वंदनाएँ इन्द्र के समीप पहुँचती हैं।
Hey beautiful reward granting duo! The way a warrior desire to take part in the war, we desirous of jewels-gems recite hymns and move closer to you for safety. The way the cows move to you for milk & curd, our heartiest prayers reach Indr Dev & Varun Dev.
इमा इन्द्रं वरुणं मे मनीषा अग्मन्नुप द्रविणमिच्छमानाः।
उपेमस्थुर्जोष्टार इव वस्वो रघ्वीरिव श्रवसो भिक्षमाणाः
धन-लाभ के लिए जिस प्रकार से सेवक धनवानों के निकट गमन करते हैं, उसी प्रकार हमारी स्तुतियाँ सम्पत्ति लाभ की इच्छा से इन्द्र देव और वरुण देव के निकट गमन करें। भिक्षुक स्त्रियों के तुल्य अन्न की भिक्षा माँगते हुए इन्द्र देव के पास जावें।[ऋग्वेद 4.41.9]
जैसे सेवक गणा धन के लिए धनिकों की सेवा करने को जाते हैं, वैसे ही हमारी वंदनाएँ धन की इच्छा करती और वरुण के निकट जावें। वंदनाएँ अन्न की भीख माँगने वाले भिखारियों के तुल्य इन्द्र देव के पास पहुँचे।
The way the servants move closer to the wealthy, our prayers-hymns reach Indr Dev & Varun Dev for the sake of riches. Let our prayers fruitily like the bagger women, who go to Indr Dev expecting food grains.
अश्व्यस्य त्मना रथ्यस्य पुष्टेर्नित्यस्य रायः पतयः स्याम।
ता चक्राणा ऊतिभिर्नव्यसीभिरस्मत्रा रायो नियुतः सचन्ताम्
हम लोग बिना प्रयत्न के अश्व समूह, रथ समूह, पुष्टि एवं अविचल धन के स्वामी हों। वे दोनों देव गमन शील हों एवं नूतन रक्षा के साथ हम लोगों के अभिमुख अश्व और धन नियुक्त करें।[ऋग्वेद 4.41.10]
वे इन्द्र देव और वरुण दोनों देवता गमनशील हैं। अपने अभिनव रक्षा साधनों के साथ हमारे सम्मुख अश्व आदि पशु धन सम्पादित करें। तब हम बिना प्रयास किये ही अश्वों, रथों, बैलों और स्थिर धनों के अधीश्वर होंगे।
Hey Indr Dev & Varun Dev! You are the master of horses, charoites, might and immovable wealth. You both are dynamic. Appoint-grant horses and new wealth for our safety.
आ नो बृहन्ता बृहतीभिरूती इन्द्र यातं वरुण वाजसातौ।
यद्दिद्यवः पृतनासु प्रक्रीळान्तस्य वां स्याम सनितार ओजः
हे महान इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों महान रक्षा के साथ आगमन करें। जिस अन्न प्रापक युद्ध में शत्रु सेना के आयुध क्रीड़ा करते हैं, उस युद्ध में हम लोग आप दोनों के अनुकम्पा से विजय प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 4.41.11]
हे इन्द्रा-वरुण! तुम सर्वश्रेष्ठ हो। तुम अपने श्रेष्ठ सुरक्षा साधनों से युक्त यहाँ पधारो। अन्न प्राप्ति के जिस युद्ध में शत्रु सेना के हथियार आघात करते हैं, उस संग्राम में हम तपस्वी गण तुम दोनों देवों की कृपा दृष्टि से विजय ग्रहण करें।
Hey mighty-great Indr Dev & Varun Dev! Come to us with your great means of protection. We should be victorious in that war, in which you fight with your weapons for us & which yield food grains.(17.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- त्रसदस्यु, पुरुकुत्सदेवता :- आत्मा, इन्द्र देव, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप।
मम द्विता राष्ट्रं क्षत्रियस्य विश्वायोर्विश्वे अमृता यथा नः।
क्रतुं सचन्ते वरुणस्य देवा राजामि कृष्टेरुपमस्य वव्रेः
हम क्षत्रिय जाति में उत्पन्न (अतिशय बलवान) और सम्पूर्ण मनुष्यों के स्वामी हैं। हमारा राज्य दो प्रकार का है। सम्पूर्ण देवगण जिस प्रकार से हमारे हैं, उसी प्रकार समस्त प्रजा भी हमारी ही है। हम रूपवान और समीपस्थ वरुण देव है। देवगण हमारे यज्ञ की सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 4.42.1]
हम क्षत्रिय हैं। समस्त व्यक्तियों के हम स्वामी हैं। हमारा राष्ट्र दो प्रकार का है। जैसे समस्त देव हमारे हैं, उसी प्रकार समस्त प्रजाजन भी हमारे ही हैं। हम सुन्दर रूप वाले एवं वरुण के समान यशस्वी हैं।
We are born in Kshatriy clan, mighty & king of all humans. Our kingdom is of two types. The manner in which the demigods-deities belong to us, the humans too belong to us. We are beautiful-handsome like Varun Dev. 
Kshatriy is the second Varn in the Hindus. The British referred them as marshal castes. Generally, they are warriors and constitute the army.
अहं राजा वरुणो मह्यं तान्यसुर्याणि प्रथमा धारयन्त।
क्रतं सचन्ते वरुणस्य देवा राजामि कृष्टेरुपमस्य वव्रे:
हम ही राजा वरुण देव हैं। देवगण हमारे लिए ही असुर विघातक श्रेष्ठ बल धारण करते है। हम रूपवान और समीपस्थ वरुण देव हैं। देवगण हमारे यज्ञ की सेवा करते हैं, हम मनुष्य के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 4.42.2]
देवता हमारे यज्ञ की सुरक्षा करते हैं। हम तरुण तेजस्वी सम्राट हैं। देवता हमारे लिए ही असुरों को समाप्त करने वाला बल धारण करते हैं। हम सुन्दर रूप वाले वरुण के अंतकस्थ हैं। हमारे यज्ञ के देवता रक्षक हैं और हम प्राणियों के दाता हैं।
We are like the king Varun Dev. We are close to Varun Dev and beautiful-youthful. The demigods-deities protect our Yagy. We are the king of humans.
अहमिन्द्रो वरुणस्ते महित्वोर्वी गभीरे रजसी सुमेके।
त्वष्टेव विश्वा भुवनानि विद्वान्त्समैरयं रोदसी धारयं च
हम इन्द्र देव और वरुण देव हैं। अपनी महत्ता के कारण विस्तीर्ण, दुरवगाहा, सुरूपा, द्यावा-पृथ्वी हम ही हैं। हम विद्वान हैं। हम सकल भूतजात को प्रजापति के तुल्य प्रेरित करते हैं। हम द्यावा-पृथ्वी को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.42.3]
महत्ता :: महत्त्व, अहमियत, महिमा, प्रभुता, प्रभाव, अर्थ, अभिप्राय, गौरव, प्रतिष्ठा, महानता, विपुलता, विस्तार, अधिकता; importance, significance, greatness.
भूतजात :: मृत, दिवंगत, पितृगण; deceased, Manes-Pitres.
हम इन्द्र, वरुण और पृथ्वी भी स्वयं हैं। हम प्राणधारी मात्र को प्रजापति के तुल्य शिक्षा प्रदान करने वाले हैं। हम आकाश और पृथ्वी के धारण करने वाले तथा प्रज्ञावान हैं।
We are Indr Dev & Varun Dev. We constitute the sky-space (heaven) & the earth due to our significance & greatness and support them. We are learned-enlightened. We inspire the deceased, Manes-Pitres like Prajapati.
अहमपो अपिन्वमुक्षमाणा धारयं दिवं सदन ऋतस्य।
ऋतेन पुत्रो अदितेर्ऋतावोत त्रिधातु प्रथयद्वि भूम
हमने ही सिचमान जल की वर्षा की, उदक या आदित्य के स्थान भूत द्युलोक को धारित किया अथवा आकाश में आदित्य को धारित किया। जल के निमित्त से हम अदिति पुत्र ऋतावा (यज्ञवान) हुए। हमने व्याप्त आकाश को तीन प्रकार से प्रथित किया अर्थात परमेश्वर ने हमारे लिए ही क्षिति आदि तीन लोकों को बनाया।[ऋग्वेद 4.42.4]
क्षिति :: पृथ्वी, निवास स्थान; earth.
हमने ही वर्षा रूप जल को सींचा हैं। सूर्य के आश्रित जगत अम्बर को हमने ही धारण किया है। हम अदिति पुत्र जल के लिए यज्ञवान हुए हैं। हमने ही व्यापक नभ के तीनों लोकों के रूप में परिवर्तित किया है।
We showered rains for irrigation and supported the space-sky the abode of Sun. For the sake of water we turned into Ritava-the son of Aditi i.e., became performers of Yagy. We divided the space-sky into three abodes (earth, heavens and the Nether world).
मां नरः स्वश्वा वाजयन्तो मां वृताः समरणे हवन्ते।
कृणोम्याजिं मघवाहमिन्द्र इयर्मि रेणुमभिभूत्योजाः
सुन्दर अश्व वाले और युद्ध के इच्छुक नेता अनुगमन करते हैं। वे सब वृत होकर युद्ध के लिए संग्राम में हमारा ही आह्वान करते हैं। हम धनवान इन्द्र देव होकर युद्ध करते हैं। हम पराजित करने वाले बल से युक्त होकर धूल उड़ाते हैं।
युद्ध में नेतृत्व करने वाले, सुन्दर अश्ववान वीर हमारे पीछे चलते हैं। वे सभी संकल्पवान हुए युद्ध में हमकों ही आमंत्रित करते हैं। हम समृद्धिशाली इन्द्रदेव के रूप में अनुष्ठान करते हैं। हम शत्रु को पराजित करने वाली शक्ति से युक्त हैं। हमारी प्रबल गति से संग्राम स्थान में धूल उड़कर अम्बर में छा जाती है।
The warriors-stalwarts desirous of war, possessing beautiful horses follow us. They decide to fight and invoke us. We become wealthy Indr Dev and fight in the war.  Our might produces-spread dust in the sky. 
अहं ता विश्वा चकरं नकिर्मा दैव्यं सहो वरते अप्रतीतम्।
यन्मा सोमासो ममदन्यदुक्थोभे भयेते रजसी अपारे
हमने उन सभी कार्यों को किया। हम अप्रतिहत दैव बल से युक्त हैं। कोई भी हमे रोक नहीं सकता। जब सोमरस हमें हर्षित करता है एवं उक्थ समूह हमें हर्षित करता है, तब अपार और उभय द्यावा-पृथ्वी भयभीत हो जाती हैं।[ऋग्वेद 4.42.6]
हम अलौकिक पराक्रम से परिपूर्ण हैं। हमको हमारे कार्यों में कोई बाधित नहीं कर सकता। हमने इन सभी कार्यों को पूर्ण किया है। जब सोमरस और श्लोक हमें पुष्ट करते हैं, तब हमारे पराक्रम को देखकर विस्तृत नभ और भू-मण्डल दोनों ही चलायमान हो जाते हैं।
We possess extreme might and none can block us. We accomplished the current deeds. When Somras & hymns nourish-nurse us, the earth and the sky become movable-dynamic.
Each & every thing in the universe is movable-dynamic.
विदुष्टे विश्वा भुवनानि तस्य ता प्र ब्रवीषि वरुणाय वेधः।
त्वं वृत्राणि शृण्वषे जघन्वान्त्वं वृताँ अरिणा इन्द्र सिन्धून्
हे वरुण देव! आपके कर्म को सकल लोक जानते हैं। हे स्तोता! वरुण देव की प्रार्थना करें। हे इन्द्र देव! आपने रिपुओं का वध किया; यह आपकी प्रसिद्धि है। हे इन्द्र देव! आपने अवरुद्ध की हुई नदियों को प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 4.42.7]
हे वरुण! तुम्हारे कार्य को सभी प्राणधारी जानते हैं। वंदना करने वालों! वरुण देव की प्रार्थना करो। हे इन्द्र देव! तुमने शत्रुओं का पतन किया है, तुम्हारे इस कार्य को सभी जानते हैं। तुमने रुकी हुई नदियों को भी प्रवाहित किया है।
Hey Varun Dev! Entire universe is aware of your might-power. Hey Stota! Pray-worship Varun Dev. Hey Indr Dev! You are famous since  you killed the enemies. Hey Indr Dev! You made the dry-blocked rivers flow.
अस्माकमत्र पितरस्त आसन्त्सप्त ऋषयो दौर्गहे बध्यमाने।
त आयजन्त त्रसदस्युमस्या इन्द्रं न वृत्रतुरमर्धदेवम्
दुर्गह के पुत्र पुरुकुत्स के बन्दी होने पर इस देश या पृथ्वी के पालयिता सप्तर्षि हुए। उन्होंने इन्द्र देव और वरुण देव के अनुग्रह से पुरुकुत्स की स्त्री के लिए यज्ञ करके त्रसदस्यु को उपलब्ध किया। त्रसदस्यु इन्द्र देव के तुल्य शत्रु विनाशक और अर्द्धदेव देवताओं के समीप में वर्तमान या देवताओं के अर्द्धभूत इन्द्र देव के तुल्य थे।[ऋग्वेद 4.42.8]
पुरुकुत्स के बन्धन में पड़ने पर सप्तऋर्षि इस पृथ्वी के पालनकर्त्ता हुए। उन्होंने इन्द्र और वरुण की दया से पुरुकुत्स की पत्नी के लिए यज्ञ किया और त्रसदस्यु को पाया। वह त्रसदस्यु इन्द्र के समान शत्रुओं का नाश करने वाला हुआ और वह अर्द्ध देवत्व का भी अधिकारी हुआ।
When Purukuts, son of Durgah was arrested-imprisoned, Sapt Rishi Gan became the nurturers of the earth. They made Trasdasyu, who was as capable as Indr Dev in destroying the enemies, available for conducting the Yagy of the wife of Purukuts & the semi demigods by virtue of the grace of Indr Dev & Varun Dev.
पुरुकुत्सानी हि वामदाशब्द्धव्येभिरिन्द्रावरुणा नमोभिः।
अथा राजानं त्रसदस्युमस्या वृत्रहणं ददथुरर्धदेवम्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! ऋषियों द्वारा प्रेरित होने पर पुरुकुत्स की पत्नी ने आप दोनों को हव्य और स्तुति द्वारा प्रसन्न किया। अनन्तर आप दोनों ने उसे शत्रु नाशक अर्द्ध देव राजा त्रसदस्यु को प्रदान किया।[ऋग्वेद 4.42.9]
हे इन्द्रा-वरुण! मुनि की शिक्षा से पुरुकुत्स की पत्नी ने तुम दोनों को हविरत्न और प्रार्थनाओं के द्वारा हर्षित किया। फिर तुम दोनों ने उसे अर्द्ध देवत्व ग्रहण शत्रुओं का पतन करने वाले त्रसदस्यु को प्रदान करके संतुष्ट होगी।
Hey Indr Dev & Varun Dev! On being inspired by the Rishis, the wife of Purukuts pleased both of you with offerings and prayers. Thereafter, you both sent her to Trasdasyu, who has had obtained semi demigod hood and was the slayer of of the enemy.
राया वयं ससवांसो मदेम हव्येन देवा यवसेन गावः।
तां धेनुमिन्द्रावरुणा युवं नो विश्वाहा धत्तमनपस्फुरन्तीम्
हम लोग आप दोनों की प्रार्थना करके धन द्वारा परितृप्त होंगे। देवगण हव्य द्वारा तृप्त हों और गौएँ तृणादि द्वारा परितृप्त हों। हे इन्द्र और वरुण! आप दोनों विश्व के हन्ता हैं। आप दोनों हम लोगों को सदा अहिंसित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.42.10]
देवता हविरत्न से तथा गाय तृणादि से संतुष्टि को प्राप्त होती है। हे इन्द्रा वरुण! तुम दोनों विश्व की उत्पत्ति और संहार करने वाले हो। हमको स्थिर धन प्रदान करो।
You both are pleased with prayers-worship and the cow is satisfied by the straw. Hey Indr Dev & Varun Dev! You are the creator & destroyer of the universe. Grant us wealth which cannot be snatched from us.(18.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (85) :: ऋषि :- भौम अत्रि; देवता :- वरुण;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र सम्राजे बृहदर्चा गभीरं ब्रह्म प्रियं वरुणाय श्रुताय।
वि यो जघान शमितेव चर्मोपस्तिरे पृथिवीं सूर्याय॥
हे अत्रि! आप भली-भाँति से राजमान, सभी जगह प्रसिद्ध और उपद्रवों के निवारक वरुण देव के लिए प्रभूत, दुरवगाह और प्रिय स्तोत्र का उच्चारण करें। पशुहन्ता जिस प्रकार से निहत पशुओं के चर्म को विस्तृत करता है, उसी प्रकार वे सूर्य देव के आस्तरणार्थ अन्तरिक्ष को विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.1]
राजमान :: चमकता हुआ,  दीप्त, शोभित; shinning, aurous.
दुरवगाह :: समझने में मुश्किल; difficult to understand.
आस्तरण :: ढकने या बिछाने की क्रिया, बिछौना; lining.
Hey Atri! Recite a solemn, profound and acceptable prayer to the royal and renowned Varun Dev, who has spread the sky-space as a bed for the Sun, just like a butcher who spreads the skin of the victim.
Hey Atri! You are aurous, famous. Recite such Strotr which are abundant and dear to Varun Dev. The way a butcher extend-spread the skin of animals the universe-sky expand for Sury Dev.
वनेषु व्य १ न्तरिक्षं ततान वाजमर्वत्सु पय उस्त्रियासु।
हृत्सु क्रतुं वरुणो अप्स्व १ ग्निं दिवि सूर्यमदधात्सोममद्रौ
वरुण देव वृक्षों के उपरिभाग में अन्तरिक्ष को विस्तारित करते हैं। अश्वों में बल, गौओं में दुग्ध और हृदय में संकल्प विस्तारित करते हैं। वे जल में अग्नि देव, अन्तरिक्ष में सूर्य और पर्वतों पर सोमलता स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.2]
Varun Dev expand-extend the space in its upper segment. He boost strength in the horses, increase milk in the cows and makes determination in the heart. He establish water in Agni-fire, Sun in the space and Som Lata in the mountains.
नीचीनबारं वरुणः कवन्धं प्र ससर्ज रोदसी अन्तरिक्षम्।
तेन विश्वस्य भुवनस्य राजा यवं न वृष्टिर्व्युनत्ति भूम
वरुण देव स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष के हित के लिए मेघ के निम्न भाग को सछिद्र करते हैं। वर्षा जिस प्रकार से यव आदि शश्य को सिक्त करती है, उसी प्रकार अखिल भुवन के अधिपति वरुणदेव समग्र भूमि को आर्द्र करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.3]
शस्य :: घास, तृण, दूब, तिनका, कुश; crops, grass.
Varun Dev condense the clouds in favour of the heavens, earth and the space. The way rains irrigate the vegetation, the lord of all abodes Varun Dev make the soil wet.
उनत्ति भूमिं पृथिवीमुत द्यां यदा दुग्धं वरुणो वष्ट्यादित्।
समभ्रेण वसत पर्वतासस्तविषीयन्तः श्रथयन्त वीराः॥
वरुण देव जब वृष्टि रूप जल की कामना करते हैं, तब वे पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग को आर्द्र करते हैं। अनन्तर पर्वत समूह वारिदों के द्वारा शिखरों को आवृत्त करते हैं। मरुद्गण अपने बल से उत्साहित होकर मेघों को शिथिल करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.4]
वारिद :: पहुँचा हुआ, दक्ष, आनेवाला, आगामी, आया हुआ, आगत, दूत, आगन्तुक, पहुँचने वाला, दाख़िल होने वाला, मौजूद, हाज़िर, प्रकट, वाक़िआ, घटना, नतीजा, अंजाम, जो पानी की तरफ़ जाता हो, शामिल या शरीक होने वाला, दाख़िल होने वाला, घटित होने वाला, reached, moving towards water.
Varun Dev wet the earth, space and the heavens when he think-desire of water. Thereafter, he covers the mountain cliffs with water. Marud Gan slows down the clouds with their might.
इमामू ष्वासुरस्य श्रुतस्य महीं मायां वरुणस्य प्र वोचम्।
मानेनेव तस्थिवाँ अन्तरिक्षे वि यो ममे पृथिवीं सूर्येण
हम प्रसिद्ध असुर हन्ता वरुण देव की इस महती प्रज्ञा की घोषणा करते हैं। जो वरुण देव अन्तरिक्ष में अवस्थित होकर मानदण्ड के समान सूर्य द्वारा पृथ्वी और अन्तरिक्ष को परिच्छिन्न करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.5]
प्रज्ञा :: बुद्धि, बुद्धिमत्ता, सूचना, ज्ञान, भेदभाव, विवेक, पक्षपात, विभेदन, निर्णय, समझना, जानना, समझ-बूझ, समझ; intelligence, understanding, prudence, discrimination.
परिच्छिन्न :- परिच्छेद किया हुआ, घिरा हुआ; परिच्छेद, सीमायुक्त, परिमित, मर्यादित, विभक्त, विभाजित, अलग अलग किया हुआ, चारों ओर से कुछ कटा हुआ, जिसका उपचार किया गया हो; determinate, intersecting, determinate, quantity means a specified or determinate number or amount of something.
We declare the extreme understanding of demon slayer Varun Dev,  who separate the earth and the space like a determinate, establishing himself in the space-sky. 
इमामू नु कवितमस्य मायां महीं देवस्य नकिरा दधर्ष।
एकं यदुद्ना न पृणन्त्येनीरासिञ्चन्तीरवनयः समुद्रम्
प्रकृष्ट ज्ञान सम्पन्न और द्युतिमान् वरुण देव की सर्व प्रसिद्ध महती प्रज्ञा की हिंसा कोई नहीं कर सकता। जल सेचन कारिणी शुभ्र नदियाँ वारि द्वारा एक मात्र समुद्र को भी पूर्ण नहीं कर सकती है। यह वरुण देव का महान् कर्म है।[ऋग्वेद 5.85.6]
Enlightened with extreme knowledge aurous-shinning Varun Dev can not be harmed by any one. River can not fill the ocean with water completely. Its done by Varun Dev.
अर्यम्यं वरुण मित्र्यं वा सखायं वा सदमिद् भ्रातरं वा।
वेशं वा नित्यं वरुणारणं वा यत्सीमागश्चकृमा शिश्रथस्तत्
हे वरुण देव! यदि हम लोग कभी किसी दाता, मित्र, वयस्य, भ्राता, पड़ोसी अथवा गूँगे के प्रति कोई अपराध करे, तो उन अपराधों से हमें विमुक्त करें।[ऋग्वेद 5.85.7]
वयस्य :: मित्र, बराबर की उमर वाले; person of the same age.
Hey Varun Dev! Release us of the sins caused by harming a donor, friend, brother, a person of the same age, neighbour and dumb.
कितवासो यद्रिरिपुर्न दीवि यद्वा घा सत्यमुत यन्न विद्म।
सर्वा ता वि ष्य शिथिरेव देवाधा ते स्याम वरुण प्रियासः
हे वरुण देव! द्यूत क्रीड़ा में यदि हमने कोई प्रवञ्चना की हो तो बन्धनों को ढीला करने के तुल्य हमें उन समस्त अपराधों से मुक्त करें, जिससे हम आपके प्रिय पात्र हों।[ऋग्वेद 5.85.8]
Hey Varun Dev! If we have done cheating in gambling, release us from its sin, so that we become your affectionate-dear.(20.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र देव, वरुण; छन्द :- त्रिष्टुप जगती।
श्रुष्टी वां यज्ञ उद्यतः सजोषा मनुष्वद् वृक्तबर्हिषो यजध्यै।
आ य इन्द्रावरुणाविषे अद्य महे सुम्नाय मह आववर्तत्
हे महान इन्द्र देव और वरुण देव! मनु के सदृश कुश-विस्तारक याजकगण के अन्न और सुख के लिए जो यज्ञ आरम्भ होता है, आज आप लोगों के लिए वही क्षिप्र यज्ञ ऋत्विकों के द्वारा प्रवृत्त किया गया।[ऋग्वेद 6.68.1]
Hey great Indr Dev & Varun Dev! The Yagy which initiate by spreading Kush Mat-cushion like Manu for food grains & benefit-comforts of the Ritviz, has been directed towards you. 
ता हि श्रेष्ठा देवताता तुजा शूराणां शविष्ठा ता हि भूतम्।
मघोनां मंहिष्ठा तुविशुष्म ऋतेन वृत्रतुरा सर्वसेना
आप श्रेष्ठ हैं, यज्ञ में धन देने वाले हैं और वीरों में अतीव बलवान हैं। दाताओं में श्रेष्ठ दाता तथा बहुबलशाली सत्य के द्वारा शत्रुओं के हिंसक और सब प्रकार की सेना से युक्त हैं।[ऋग्वेद 6.68.2]
You are excellent, grant lots of wealth for the Yagy and mightiest amongest the brave. Best amongest the donors, your mighty-truthful powers destroy the violent enemies and are have all sorts of armies.
ता गृणीहि नमस्येभिः शूषैः सुम्नेभिरिन्द्रावरुणा चकाना।
वज्रेणान्यः शवसा हन्ति वृत्रं सिषकयन्यो वृजनेषु विप्रः
स्तुति, बल और सुख के द्वारा स्तुत इन्द्र देव और वरुण देव की प्रार्थना करें। उनमें से एक इन्द्र देव वृत्रासुर का वध करते हैं, दूसरे प्रजा में युक्त (वरुण) उपद्रवों से रक्षा करने के लिए बलशाली होते हैं।[ऋग्वेद 6.68.3]
Let us worship Indr Dev & Varun Dev with Stuti, strength and comforts. One of them Indr Dev kills Vrata Sur and the other one i.e., Varun Dev protect the populace from all sorts of trouble.
ग्नाश्च यन्नरश्च वावृधन्त विश्वे देवासो नरां स्वगूर्ताः।
प्रैभ्य इन्द्रावरुणा महित्वा द्यौश्च पृथिवि भूतमुर्वी
हे इन्द्र देव और वरुण देव! समस्त पुरुष और स्त्री एवं समस्त देवगण द्यावा- पृथ्वी स्वतः उद्यत होकर जब आपको स्तुति द्वारा वर्द्धित करते हैं, तब महमिान्वित होकर आप लोग उनके प्रभु बनें।[ऋग्वेद 6.68.4]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You should become the lord of the all men & women with all demigods-deities who will automatically worship-pray to grow-promote you.
स इत्सुदानुः स्वँवा ऋतावेन्द्रा यो वां वरुण दाशति त्मन्।
इषा स द्विषस्तरेद्दास्वान्वंसद्रयिं रयिवतश्च जनान्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! जो याजक आपको स्वयं हवि देता है, वह सुन्दर दान वाला और यज्ञशाली होता है। वही दाता जय प्राप्त अन्न के साथ शत्रुओं के हाथ से सुरक्षित रहकर धन और सम्पत्तिशाली पुत्र प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.68.5]
GRACIOUS :: वैभवपूर्ण, सुख-सुविधापूर्ण, व्‍यक्ति या उसका अच्छा आचरण,  दयालु, नम्र और उदार; descent behaviour of a person, kind, polite and generous, showing the easy comfortable way of life that rich people can have.
Hey Indr Dev & Varun Dev! The Ritviz who make offerings to you become a gracious-glorious donor and performer of Yagy. That donor wins the enemies & remain protected, gets wealth and prosperous son.
यं युवं दाश्वध्वराय देवा रयिं धत्थो वसुमन्तं पुरुक्षुम्।
अस्मे स इन्द्रावरुणावपि ष्यात्प्र यो भनक्ति वनुषामशस्तीः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप हविदाता को धनानुगामी और बहु अन्नशाली जो धन देते हैं और जिससे हम अपनी निन्दा करने वालों को दूर कर सकें, वैसा ही धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.68.6]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You grant wealth and various food grains to the one (who makes offerings in the Yagy for you). Grant us riches so that we can repel those who reproach us.
उत नः सुत्रात्रो देवगोपाः सूरिभ्य इन्द्रावरुणा रयिः ष्यात्।
येषां शुष्मः पृतनासु साह्रान्प्र सद्यो द्युम्ना तिरते ततुरिः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! हम आपके स्तोता हैं। जो धन सुरक्षित है और जिसके रक्षक देवगण हैं, वही धन हम स्तोताओं को प्रदान करें। हमारा बल संग्राम में शत्रुओं को परास्त करने वाला और हिंसक होकर तत्काल उनके यज्ञ को नष्ट करे।[ऋग्वेद 6.68.7]
Hey Indr Dev & Varun Dev! We are your worshipers-Stotas. Grant us the wealth which is safe and protected by the demigods-deities. Our strength and power should be such that we are able to defeat the enemy in the war and destroy his Yagy-endeavours by becoming violent immediately.
नू न इन्द्रावरुणा गृणाना पृङ्क्तं रयिं सौश्रवसाय देवा।
इत्था गृणन्तो महिनस्य शर्धोऽपो न नावा दुरिता तरेम
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप लोग प्रार्थित होकर सुअन्न के लिए हमें शीघ्र धन प्रदान करें। हे देवों! आप लोग महान हैं। हम इस प्रकार आपके बल की प्रार्थना करते हैं। हम नौका द्वारा जल के समान पापों से मुक्त हो जावें।[ऋग्वेद 6.68.8]
Hey Indr Dev & Varun Dev! On being worshipped you grant us pious food grains quickly. Hey deities! You are great. In this manner we worship your might & power. Let us become free from the sins caused by water through boat.
I Delhi Yamuna river is extremely polluted. Maa ganga else where too face the same agony-trouble. Any one who take a dip in them invite numerous diseases-sins for him. Its advised not to enter these river for a bath or cross them. The governments are gross failure.
प्र सम्राजे बृहते मन्म नु प्रियमर्च देवाय वरुणाय सप्रथः।
अयं य उर्वी महिना महिव्रतः क्रत्वा विभात्यजरो न शोचिषा
जो वरुण देव महिमान्वित, महाकर्मा, प्रज्ञायुक्त तेज युक्त और अजर हैं, जो विस्तीर्ण हैं, वहीं धन हम स्तोताओं को प्रदान करें। हमारा बल संग्राम में शत्रुओं को परास्त करने वाला और हिंसक होकर तत्काल उनके यज्ञ को नष्ट करे।[ऋग्वेद 6.68.9]
Varun Dev, who is free form old age, glorious, performer of great deeds, aurous and vast; grant us-Stotas wealth-riches. Our war should be aimed-able to defeat the enemy by becoming violent and destroy their endeavours at the same moment.
इन्द्रावरुणा सुतपाविमं सुतं सोमं पिबतं मद्यं धृतव्रता।
युवो रथो अध्वरं देववीतये प्रति स्वसरमुप याति पीतये
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप सोमरस का पान करने वाले हैं; इसलिए इस मादक और अभिषुत सोमरस का पान करें। हे धृतव्रत मित्र और वरुणदेव! देवों के पान के लिए आपका रथ यज्ञ की ओर आता है।[ऋग्वेद 6.68.10]
धृतव्रत :: (1). जिसने कोई व्रत धारण किया हो, धार्मिक क्रिया करनेवाला, निष्ठाशील, जिसकी निष्ठा द्दढ़ हो, पुरुवेशीय जयद्रथ के पुत्र विजय का पौत्र।etermined-firm.
(2). वरुण देव के नियम सर्वदा ही निश्चित तथा दृढ हैं और इसीलिए उन्हें धृतव्रत कहा जाता है। स्वयं देवता भी इनके नियम का पालन करते हैं। शब्द का प्रयोग सविता-सूर्य  देव के लिये भी किया गया है।[ऋग्वेद 4.53.4]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You drink Somras, hence drink this intoxicating and extracted Somras. Hey determined-firm Mitr & Varun Dev! Your charoite approaches the Yagy for the demigods  to drink Somras.
इन्द्रावरुणा मधुमत्तमस्य वृष्णः सोमस्य वृषणा वृषेथाम्।
इदं वामन्धः परिषिक्तमस्मे आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयेथाम्
हे कामवर्षी इन्द्र देव और वरुण देव! आप अतीव मधुर और मनोरथवर्षक सोमरस का पान करें। आपके लिए इस सोमरूप अन्न को बनाया गया है; इसलिए कुश के आसन पर बैठकर इस यज्ञ में सोमरस को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.68.11]
Hey desires accomplishing Indr & Varun Dev! You should drink extremely-highly sweet and ambitions fulfilling Somras. Somras has been extracted for you from the food grains, hence sit over the Kush Mat and accept Somras in this Yagy.(06.11.2023)
 
Contents of these above mentioned blogs are covered under copy right and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS ARE RESERVED WITH THE AUTHOR.
संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा