SOM DEV
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (91) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :-सोम, छन्द :- गायत्री, उष्णिक्।
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठमनु नेषि पन्थाम्। तव प्रणीतो न इन्दो देवेषु रत्नमभजन्त धीराः॥
हे सोम देव! अपनी बुद्धि द्वारा हम आपको अच्छी तरह से जानते हैं। आप हमें सरल मार्ग से ले जाना। हे सोम! आपके द्वारा लाये जाने पर हमारे पितरों ने देवों के बीच रत्न प्राप्त किया था।[ऋग्वेद 1.91.1]
हे सोम, मति से हम तुमको जान सकें। तुम हमें सुन्दर मार्ग बतलाते हो। तुम्हारे अनुसरण में हमारे पिता देवों से रमणीक सुख को ग्रहण करने में सामर्थ्यवान हुए।
Hey Som Dev-Moon! We have recognised you through of our intelligence-(mind, brain). Please accompany us through a simple (trouble free) path-way. Our ancestors-Manes got jewels, when you took them to the demigods-deities.
त्वं सोम क्रतुभिः सुक्रतुर्भूस्त्वं दक्षैः सुदक्षो विश्ववेदाः।
त्वं वृषा वृषत्वेभिर्महित्वा द्युम्नेभिद्युम्न्यभवो नृचक्षाः॥
हे सोम! आप अपने यज्ञ के द्वारा शोभन यज्ञ से संयुक्त और अपने बल द्वारा शोभन बल स्व युक्त हैं। आप सर्वज्ञ है। आप अनिष्ट फल के वर्षण से वर्षणकारी हैं और आप महिमा में महान् यजमान के अभिमत फल का प्रदर्शन करके यजमान के द्वारा दिये गये अन्न से आप अत्यधिक अन्न से युक्त हैं।[ऋग्वेद 1.91.2]
हे सोम तुम उत्तम प्रज्ञा वाले समस्त धनों से परिपूर्ण, हृदय की शक्ति द्वारा चालाक हुए। तुम मनुष्यों को श्रेष्ठतम सीख देने वाली महिमा से पुरुषार्थ परिपूर्ण तथा तेजस्वी बनें।
Hey Som! You are decorated with the strength of Yagy and your own power-might. You enlightened the humans by granting them excellent knowledge of endeavours-self sufficiency, efforts.
राज्ञो नु ते वरुणस्य व्रतानि बृहद्गभीरं तव सोम धाम।
शुचिष्टमसि प्रियो न मित्रो दक्षाय्यो अर्यमेवासि सोम॥
हे सोम! राजा वरुण के सारे कार्य आपके ही हैं। आपका तेज विस्तीर्ण और गम्भीर है। प्रिय बन्धु के समान आप सबके संस्कारक हैं। अर्यमा की तरह आप सबके वर्द्धक हों।[ऋग्वेद 1.91.3]
गम्भीर :: गहरा, गम्भीर, अगाध, कर्कश, भारी, गम्भीर, अपने आप में शान्त; serious, profound, raucous, sober.
हे सोम! वरुण के सभी नियम तुममें सम्मिलित हैं। तुम अत्यन्त तेजस्वी हो। तुम निर्मल, सखा के समान प्रिय और अर्यमा के समान वृद्धि के कारक हो।
Hey Som! You perform like Varun Dev, possessing aura-power & strength, are broad and you are serious-contained in yourself. You should grant growth to all like Aryma.
या ते धामानि दिवि या पृथिव्यां या पर्वतेष्वोषधीष्वप्सु।
तेभिर्ने विश्वैः सुमना अहेळन्राजन्त्सोम प्रति हव्या गृभाय॥
हे सोम! धुलोक, पृथ्वी, पर्वत, ओषधि और जल में आपका जो तेज है, उसी तेजी से युक्त होकर सुमना और क्रोध-रहित राजन्, हमारा हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.91.4]
हे नृप सोम! तुम हमारे जो तेज आकाश, धरती, शैलों, औषधियों और जलों में हो, उनके साथ क्रोध रहित मुद्रा में, प्रसन्नतापूर्वक हमारी हवियों को स्वीकार करो।
Hey Som Dev! Please accept our offerings free from anger, associated-accompanied with your aura-energy present in the outer space, earth, mountains, medicines and water.
त्वं सोमासि सत्पतिस्त्वं राजोत वृत्रहा।
त्वं भद्रो असि क्रतुः॥
हे सोम! आप सत्कर्म में वर्तमान ब्राह्मणों के अधिपति हैं। आप राजा हैं। आप शोभन यज्ञ भी हैं।[ऋग्वेद 1.91.5]
हे सोम! तुम श्रेष्ठ मनुष्यों के पोषक वृत्र नाशक एवं उत्तम शक्ति के साक्षात रूप हो।
hey Som Dev! You are the king of Brahmns in performing virtuous, righteous, pious deeds. You are a decorated Yagy as well.
त्वं च सोम नो वशो जीवातुं न मरामहे।
प्रियस्तोत्रो वनपस्पतिः॥
स्तुतिप्रिय और सारी औषधियों के पालक, हे सोम! यदि आप हमारे जीवनौषध की अभिलाषा करें, तो हम मृत्युरहित हो जायें।[ऋग्वेद 1.91.6]
हे सोम! प्रिय श्लोकों से परिपूर्ण वन-राज! तुम हमारे जीवन की चाहना करो, जिससे हम मृत्यु को प्राप्त न हों।
Hey Som! You like the people to pray to you. You grow-protect all medicinal plants (जड़ी-बूटी, औषध). If you desire to provide us life saving medicines we will become immortal.
त्वं सोम महे भगं त्वं यून ऋतायते।
दक्षं दधासि जीवसे॥
हे सोम! आप वृद्ध और तरुण याजक को उसके जीवन के उपयोग योग्य धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.91.7]
हे सोम! यज्ञों के अभिलाषी युवक अथवा वृद्धों की कीर्ति और जीवन के लिए आप शक्ति धारक हो।
Hey Som (Moon, Luna)! You provide-grant wealth, riches, money to both young & the old devotees, who ask you for money.
त्वं नः सोम विश्वतो रक्षा राजन्नघायतः।
न रिष्येत्त्वावतः सखा॥
हे राजा सोम! हमें दुःख देने के अभिलाषी लोगों से बचावें। आप जैसे का मित्र कभी विनष्ट नहीं होता।[ऋग्वेद 1.91.8]
हे सोम! पापी लोगों से हमारी रक्षा करो। तुम्हारे मित्र हम कभी दुःख न उठायें।
Hey king Som! Protect us from those who want to trouble, tease, torture us. one who has a friend like you will never perish.
सोम यास्ते मयोभुव ऊतयः सन्ति दाशुषे।
ताभिर्नेऽविता भव॥
हे सोम! आपके पास यजमानों के लिए सुखकर रक्षण हैं, उनके द्वारा हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.91.9]
हे सोम! हविदाता को सुखी करने वाले सुरक्षा साधनों से तुम हमारे रक्षक हो।
Hey Som! You have means to protect your devotees who make offerings to you in the Yagy, Hawan, Agni Hotr.
इमं यज्ञमिदं वचो जुजुषाण उपागहि।
सोम त्वं नो वृधे भव॥
हे सोम! आप हमारा यह यज्ञ और स्तुति ग्रहण करके पधारें और हमें वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 1.91.10]
हे सोम! इस यज्ञ में हमारी इन वंदनाओं को प्राप्त कर हमारी वृद्धि के लिए विराजमान होओ।
Hey Som! Please come-join us and accept our prayers in the Yagy and ensure our progress.
चन्द्र देव ब्राह्मणों के राजा, औषधियों के स्वामी और मन के नियन्ता हैं। मनुष्य की हथेली पर इनका स्थान सीधे हाथ में बाईं तरफ़ होता है। इसे निम्न, मध्यम और उच्च चन्द्र के रूप में जाना जाता है। यह यात्रा का द्योतक भी है। इसके ऊपर चढ़ी हुई मस्तिष्क रेखा जातक के मन-मस्तिष्क की स्थिति का बयान करती है। बायें हाथ में यह दायेीं ओर होता है और स्त्रियों की मनोस्थिति को बयान करता है।
चन्द्र देव और काम देव दोनों ही ब्रह्मा जी के रूप हैं और दोनों ही मनुष्य के मन को भटकाने वाले हैं।
सहज बोध-ज्ञान रेखा (LINE OF INTUITION) चन्द्र पर्वत पर वलयाकार होकर स्थिर होती है। यह मनुष्य को अंर्तज्ञान, भविष्य ज्ञान कराती है।
यहीं से बुध रेखा (LINE OF MERCURY) का आविर्भाव होता है और वह जातक के स्वास्थ्य, व्यापार को नियंत्रित करती है।
मस्तिष्क रेखा (LINE OF HEAD) निम्न चन्द्र पर आ जाये तो उसे बेहद संवेदनशील और अस्थिर चित्त बना देती है और जातक आत्महत्या भी कर सकता है।
भाग्य रेखा यदि यहाँ से प्रारम्भ हो तो जातक अपनी मेहनत से काम-धंधे में सफलता पाता है। सूर्य रेखा (SUN LINE) का यहाँ से उदय उसे लोकप्रिय-जनप्रिय बना देता है और जातक समाज में सम्मान पाता है।
सोमवल्ली एक लता-बेल है जो कि चन्द्र के प्रकाश में बढ़ती है। इसका रस सोमरस कहलाता है। यह स्फूर्ति दायक, उम्र में वृद्धि करने वाला, वृद्धावस्था को रोकने वाला है। देवराज इसको पीकर प्रसन्न होते हैं। समस्त देवगण इसको प्राप्त करने के लिये लालायित रहते हैं।
Please refer to :: "SOMRAS-THE EXTRACT OF SOMVALLI सोमवल्ली-लता और सोमवृक्ष" santoshsuvichar.blogspot.com
अधिक समझने हेतु कृप्या "INNER SELF मन, चित्त, अन्तः करण" santoshsuvichar.blogspot.com का अध्ययन करें।
सोम गीर्भिष्टा वयं वर्धयामो वचोविदः।
सुमृळीको न आ विश॥
हे सोम! हम लोग स्तुति ज्ञाता हैं; स्तुति द्वारा आपकी प्रार्थना करते हैं। सुखद होकर आप पधारें।[ऋग्वेद 1.91.11]
हे सोम! वंदनीय वचनों के ज्ञाता हम तुम्हें प्रार्थनाओं से सम्पन्न करते हैं। तुम कृपा करके हमारे शरीरों में प्रवेश करो।
Hey Som Dev! We pray-worship you with the help decent words, verse (Strotr, Shlok, hymns) to please you and make you comfortable. Please come to us.
गयस्फानो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्धनः।
सुमित्रः सोम नो भव॥
हे सोम! आप हमारे धनवर्द्धक, रोगहन्ता, धनदाता और सुमित्र युक्त होवें।[ऋग्वेद 1.91.12]
हे सोम! तुम हमारे धन की वृद्धि करने वाले, रोग नाशक, पुष्टिदायक और श्रेष्ठ हो जाओ।
Hey Som! You increase our wealth, grant us riches, remove our diseases-ailments, gives us growth-nutrition and is our friend.
सोम रारन्धि नो हृदि गावो न यवसेष्वा।
मर्य इव स्व ओक्ये॥
हे सोम! जैसे गौ सुन्दर तृण से तृप्त होती हैं, जैसे मनुष्य अपने घर में प्रसन्न होता है, उसी प्रकार आप भी हमारे हृदय में तृप्त होकर निवास करें।[ऋग्वेद 1.91.13]
हे सोम! गाय घासों के दल में और प्राणियों के भवन में रमण करने के समान, तुम हमारे हृदय में रमण करो।
Hey Som! You should reside in our hearts just like the cows enjoy in green grass and the humans feel satisfied in their home-house.
यः सोम सख्ये तव रारणद्देव मर्त्यः।
तं दक्षः सचते कविः॥
हे सोमदेव! जो मनुष्य बन्धुता के कारण आपकी स्तुति करता है, हे अतीतज्ञाता और निपुण सोम! आप उस पर अनुग्रह करते हो।[ऋग्वेद 1.91.14]
अनुग्रह :: दया, सुघड़ता, इनायत, सुन्दर ढ़ंग, श्री, पक्षपात, अनुमति, अति कृपा, पत्र, इनायत; grace, favour, graciousness.
हे सोम! जो मनुष्य तुम्हारी मित्रता का अभिलाषी है, तुम मेधावी और शक्तिमान सदैव उसके मित्र रहते हो।
Hey Som Dev! You shower bliss-favours over those who prays to you. You know the past and is an expert in this job.
उरुष्या णो अभिशस्तेः सोम नि पाह्यंहसः।
सखा सुशेव एधि नः॥
हे सोम! हमें अभिशाप या निन्दा से बचायें। पाप से बचायें हमें सुख देकर हमारे हितैषी बनें।[ऋग्वेद 1.91.15]
हे सोम! हमको अकीर्ति से बचाओ, पाप से हमारी सुरक्षा करो, तुम हमारे लिए सुखकारी सखा बनो।
Hey Som Dev! Please protect us from sin, defamation, scorn and curses. You should be helpful-beneficial to us.
आ प्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यम्।
भवा वाजस्य संगथे॥
हे सोम! आप वर्द्धित हों, आपको चारों ओर से शक्ति प्राप्त हो। आप हमारे अन्नदाता बनो।[ऋग्वेद 1.91.16]
हे सोम! तुम वृद्धि को प्राप्त होओ। तुम शक्तिशाली बनो। युद्धकाल में सम्मिलित होने पर हमारे सहायक बनो।
Hey Som! Let your powers grow from all directions. You should be our food provider.
आ प्यायस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिरंशुभिः।
भवा नः सुश्रवस्तमः सखा वृधे॥
अताव मद से युक्त साम समस्त लतावयवों द्वारा वर्धित हों। शोभन अन्न से युक्त होकर आप हमारे मित्र बनें।[ऋग्वेद 1.91.17]
हे अत्यन्त प्रसन्न करने वाले सोम! तुम सुन्दर यश रूपी रश्मियों से तेजस्वी बनो। तुम हमारे मित्र बनकर अच्छी बुद्धि की ओर प्रेरित करते रहो।
Hey bliss-pleasure providing Som! You should acquire aura-brilliance. You should be friendly with us and inspire us to acquire-possess better intelligence-wisdom, prudence.
सं ते पयांसि समु यन्तु वाजाः सं वृष्ण्यान्यभिमातिषाहः।
आप्यायमानो अमृताय सोम दिवि श्रवांस्युत्तमानि धिष्व॥
हे सोम! आप शत्रुनाशक हैं। आपमें रस, यज्ञान्न और वीर्य संयुक्त हैं। आप वर्द्धित होकर हमारे अमरत्व के लिए स्वर्ग में उत्कृष्ट अन्न धारित करें।[ऋग्वेद 1.91.18]
हे सोम! तुम शत्रुओं को वशीभूत करने वाले हो। हमको अन्न, शक्ति और वीर्य की ग्रहणता हो। अमरत्व की इच्छा में वृद्धि करते हुए क्षितिज के समान श्रेष्ठ कीर्ति तुम्हें प्राप्त हो।
Hey Som! You are the slayer of enemy. You should boost our power, energy and excellent food grains to generate immortality in us.
या ते धामानि हविषा यजन्ति ता ते विश्वा परिभूरस्तु यज्ञम्।
गयस्फानः प्रतरणः सुवीरोऽवीरहा प्र चरा सोम दुर्यान्॥
यजमान लोग हव्य द्वारा जो आपके तेज की पूजा करते हैं, वह समस्त तेज हमारे यज्ञ को व्याप्त करे। धनवर्द्धक, पाप त्राता, वीर पुरुषों से युक्त और पुत्र रक्षक सोम! आप हमारे घर में पधारें।[ऋग्वेद 1.91.19]
हे सोम! तुम्हारे जिन तेजों से यजमान हविदाता अनुष्ठान करते हैं, वे समस्त तेज हमारे अनुष्ठान के सभी तरफ़ विद्यमान हों। तुम धन की वृद्धि करने वाले, पाप से बचाने वाले, पराक्रम जिन तेजों से यजमान हविदाता अनुष्ठान करते हैं, वे समस्त तेज हमारे अनुष्ठान के सभी तरफ विद्यमान हों।
Hey Som! The devotees-hosts make offerings to you while conducting prayers. The aura generated by you should spread in our Yagy as well. You increase our riches, destroy-eliminate our sins, protect our sons and boost our power-energy. We invite you to our house.
सोमो धेनुं सोमो अर्वन्तमाशुं सोमो वीरं कर्मण्यं ददाति।
सादन्यं विदथ्यं सभेयं पितृश्रवणं यो ददाशदस्मै॥
जो सोमदेव को हव्य देता है, उसे सोम गौ और शीघ्रगामी अश्व देते हैं और उसे लौकिक कार्य दक्ष, गृह कार्य परायण, यज्ञानुष्ठान्तत्पर माता द्वारा आदृत और पिता का नाम उज्ज्वल करने वाला पुत्र प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.91.20]
तुम धन की वृद्धि करने वाले, पाप से बचाने वाले, पराक्रम से परिपूर्ण संतानों के रक्षक हमारे ग्रहों में निवास करो। गाय अश्व देने वाले तथा कर्मवान घर के कार्यों में कुशल, यज्ञों के अधिकारी, पूर्वजों को यश दिलाने वाले पुत्र के दाता सोम को हवि देनी चाहिये।
Any one who make offerings for Som Dev in Yagy, gets cows & fast moving horses. Som Dev give him him the son who is obedient, expert in domestic rituals-work and bring name & fame to his parents.
अषाहळं युत्सु पृतनासु पप्रिं स्वर्षामप्सां वृजनस्य गोपाम्।
भरेषुजां सुक्षितिं सुश्रवसं जयन्तं त्वामनु मदेम सोम॥
हे सोम! आप युद्ध में अजेय हैं, सेना के बीच विजयी हैं, स्वर्ग के प्रापयिता हैं। आप जल दाता, बल रक्षक, यज्ञ में अवस्थाता, सुन्दर निवास और यश से युक्त और जयशील हैं। आपको लक्ष्य कर हम प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 1.91.21]
हे सोम! हम युद्धों में प्रबल, पावक, प्रकाश दाता, जलों के पोषक, शक्ति रक्षक, श्लोक रूप श्रेष्ठ वास करने वाले, प्रतापी और अजेय होते हुए तुम्हारे पराक्रम से प्रसन्न रहें।
Hey Som! You are invincible in war. You are brave, protector of the fighters, provide water, manage the Yagy and has a seat in the heavens. We feel pleasure when we address you i.e., make prayers-recitations devoted to you.
त्वमिमा ओषधीः सोम विश्वास्त्वमपो अजनयस्त्वं गाः।
त्वमा ततन्थोर्व अन्तरिक्षं त्वं ज्योतिषा वि तमो ववर्थ॥
हे सोम! आपने समस्त औषधियाँ, वृष्टि, जल और सारी गायें बनाई है। आपने इस व्यापक अन्तरिक्ष को विस्तृत कर ज्योति द्वारा उसका अन्धकार नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.91.22]
हे सोम! तुमने औषधि, जल और धेनुओं को रचित किया, अंतरिक्ष को चारों तरफ व्याप्त कर विशाल किया तथा अंधकार को दूर कर दिया।
Hey Som! You are the creator of all medicines, rain fall, water, cows. Your light illuminate the entire space and remove its darkness (at night).
देवेन नो मनसा देव सोम रायो भागं सहसावन्नभि युध्य।
मा त्वा तनदीशिषे वीर्यस्योभयेभ्यः प्र चिकित्सा गविष्टौ॥
हे बलशाली सोम! अपनी कान्तिमय बुद्धि द्वारा हमें धन का अंश प्रदान करें। कोई शत्रु आपकी हिंसा न करे। लड़ाई करने वाले दोनों पक्षों में आप ही बलवान हैं। युद्ध में हमें दुष्टों से बचावें।[ऋग्वेद 1.91.23]
हे बलशाली सोम! तुम अद्भुत मन वाले संग्राम में हमारे लिए धन भाग जीत कर लाओ। इस कार्य में तुम्हें कोई रोक न सके। तुम शक्ति के स्वामी हो, संग्राम में दोनों पक्षों को समझ लो कि कौन मित्र है और कौन शत्रु है?
Hey mighty Som! Provide us riches & prudence and the wealth earned during war. The enemy should not be able to harm you. You should be winner in war-dual. Protect us in the war from the demons, wicked, sinners.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (93) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- अग्नि, सोम, छन्द :- अनुष्टप, जगती, त्रिष्टुप्, गायत्री, उष्णिक्, पंक्ति।
अग्नीषोमाविमं सु मे शृणुतं वृषणा हवम्।
प्रति सूक्तानि हर्यतं भवतं दाशुषे॥
हे अभीष्टवर्षी अग्नि और सोमदेव! मेरे इस आह्वान को सुनो, स्तुति ग्रहण करके हव्यदाता को सुख प्रदान करो।[ऋग्वेद 1.93.1]
मनुष्यार्थ परिपूर्ण अग्नि और सोम! तुम दोनों मेरे आह्वान को सुनो। मेरे सुन्दर सङ्कल्पों से प्रसन्न चित्त होओ। मुझ हविदाता के लिए सुख स्वरूप बनो।
Hey Agni & Som Dev! You should be happy with the offerings made by me and grant me pleasure-happiness.
अग्नीषोमा यो अद्य वामिदं वचः सपर्यति।
तस्मै धत्तं सुवीर्यं गवां पोषं स्वश्र्व्यम्॥
हे अग्नि और सोम! जो आपकी प्रार्थना करता है, उसे बलवान् अश्व और सुन्दर गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.2]
हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों के प्रति विनती करता हूँ, तुम श्रेष्ठ मनुष्यार्थ धारण कर सुन्दर अश्वों गौओं की वृद्धि करो।
Hey Agni & Som Dev! Grant strong horses and beautiful cows to devotee.
अग्नीषोमा य आहुतिं यो वां दाशाद्धविष्कृतिम्।
स प्रजया सुवीर्यं विश्वमायु व्यश्नवत्॥
हे अग्नि और सोम! जो आप लोगों को आहुति और हव्य प्रदान करता है, उसे पुत्र-पौत्रादि के साथ वीर्यशाली आयु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.3]
हे अग्ने! हे सोम! जो तुमको घृत परिपूर्ण हवि प्रदान करें, सन्तानवान हो और पूर्ण आयु को प्राप्त हों।
Hey Agni & Som Dev! Grant sons & grand sons to the devotee who make offerings for you in the holy fire and gifts to the Brahmns-needy. Let the devotee be full of energy and attain full life span of hundred years.
अग्नीषोमा चेति तद्वीर्यं वां यदमुष्णीतमवसं पणिं गाः।
अवातिरतं बृसयस्य षोऽविन्दतं ज्योतिरेकं बहुभ्यः॥
हे अग्नि और सोम! आपने जिस वीर्य के द्वारा पणि के पास से गोरूप अन्न अपहृत किया था, जिस वीर्य के द्वारा वृसय के पुत्र (वृत्र) का वध करके सबके उपकार के लिए एक मात्र ज्योतिपूर्ण सूर्य को प्राप्त किया था, वह सब हमें मालूम है।[ऋग्वेद 1.93.4]
हे अग्ने! तुम दोनों पराक्रम से प्रसिद्ध तुमने “पणि" की अन्न रूपी गायों को हरण किया। "वृषभ" की संतान को तुमने “पणि" की अन्न रूपी गायों को हरण किया। "वृषभ" की संतान को नष्ट किया और असंख्यों के लिए ही प्रकाश (सूर्य) को प्राप्त किया।
Hey Agni & Som! we are aware that you killed the son of Pani Vratr, got food grains and released Sun light for all
युवमेतानि दिवि रोचनान्यग्निश्च सोम सक्रतू अधत्तम्।
युवं सिन्धूँरभिशस्तेर वद्यादग्नीषोमावमुञ्चतं गृभीतान्॥
हे अग्नि और सोम! समान कर्म सम्पन्न होकर आकाश में आपने इन उज्ज्वल नक्षत्र आदि को धारित कर दोषा क्रान्त नदियों को प्रकाशित दोष से मुक्त किया।[ऋग्वेद 1.93.5]
हे अग्ने! हे ! तुम दोनों एक समान कर्म वाले हो। तुमने आसमान में ज्योतियाँ स्थापित की हैं। दोनों ने हिंसक वृत्र से सरिताओं को मुक्त कराया।
Hey Agni & Som Dev! You perform identical deeds. You cleared-released the sky and the rivers from the control of Vratr.
आन्यं दिवो मातरिश्वा जभारामथ्नादन्यं परि श्येनो अद्रेः।
अग्नीषोमा ब्रह्मणा वावृधानोरुं यज्ञाय चक्रथुरु लोकम्॥
हे अग्नि और सोम! आप में से अग्नि को मातरिश्वा आकाश से लाये और सोम को श्येन पक्षी (बाज) पर्वत की चोटी से उखाड़ कर लायें। इस प्रकार स्तोत्रों अर्थात् प्रार्थनाओं से बढ़ने वालों ने यज्ञ के लिए संसार की आपने वृद्धि की।[ऋग्वेद 1.93.6]
मातरिश्वा :: ऋग्वेद (3,5,9) में यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करने वाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है। मनु के लिये मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर प्रदीप्त किया था। ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध यज्ञकर्ता और गरुड़ के पुत्र का भी यही नाम है।
हे अग्ने! हे सोम! तुम में एक मातरिश्वा क्षितिज से लाये, दूसरे को श्येन पक्षी पर्वत के उत्तर से लाया। तुम श्लोकों से वृद्धि करने वालों ने संसार को अनुष्ठान के लिए विशाल किया।
Hey Agni & Som Dev! Matrishva brought Agni (here it is just fire, not the demigod Agni) from the sky and the Som (the herb used for extracting Somras) was brought by Shyen-a bird from the cliff of northern mountains for conducting Yagy. You enlarged-expanded the universe with the help of rituals, Shloks, Strotr etc.
Its akin to increasing the community of ritualists, the person performing Yagy, Hawan, Agninhotr etc.
अग्नीषोमा हविषः प्रस्थितस्य वीतं हर्यतं वृषणा जुषेथाम्।
सुशर्माणा स्ववसा हि भूतमथा धत्तं यजमानाय शं योः॥
हे अग्नि और सोम! प्रदत्त अन्न भक्षण करके; हमारे ऊपर अनुग्रह करें। अभीष्टवर्षी, हमारी सेवा ग्रहण करें। हमारे लिए सुख प्रद और रक्षण युक्त बनें और यजमान के रोग और भय का विनाश करें।[ऋग्वेद 1.93.7]
हे वीर्यवान अग्नि, सोम! तुम हमारी हवियों को स्वीकार करके हर्षित हो जाओ। श्रेष्ठ सुख से युक्त रक्षा करो। मुझ यजमान के रोगों को दूर कर शक्ति दो।
Hey Agni & Som Dev! Oblise us by acepting our offerings in the form of food & eatables. Accept our services and become pleasant and protecting to us, eliminating ailments-diseases & fear.
यो अग्नीषोमा हविषा सपर्याद्देवद्रीचा मनसा यो घृतेन।
तस्य व्रतं रक्षतं पातमंहसो विशे जनाय महि शर्म यच्छतम्॥
हे अग्नि और सोम! जो यजमान देव परायण हृदय से हव्य अर्थात् घृत द्वारा अग्नि और सोम की पूजा करता है, उसके व्रत की रक्षा करें। उसे पाप से बचावें तथा उस यज्ञ में लगे हुए व्यक्ति को प्रभूत सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.8]
हे अग्नि और सोम! जो देवताओं में मन लगाने वाला घृत, हवि से तुमको पूजता है, उसकी रक्षा करो। उसे पाप से बचाओ और उसके परिजनों को शरणागत करो।
Hey Agni & Som Dev! Protect the devotee & his endeavours, who make offerings in the Yagy for you. Protect him from sins-wickedness and grant him suffficient commodites to survive granting him shelter along with his relatives.
अग्नीषोमा सवेदसा सहूती वनतं गिरः।
सं देवत्रा बभूवथुः॥
हे अग्नि और सोम! आप सारे देवों में प्रशंसनीय, समान धन युक्त और एकत्र आह्वान योग्य हैं। आप हमारी प्रार्थना श्रवण करो।[ऋग्वेद 1.93.9]
हे अग्नि और सोम! आप दोनों देव तत्व से परिपूर्ण हो। हमारी वन्दनाओं को स्वीकार करो।
Hey Agni & Som Dev! You are appreciated-honoured by the demigods-deities. Accept our prayers-worship.
अग्नीषोमावनेन वां यो वां घृतेन दाशति।
तस्मै दीदयतं बृहत्॥
हे अग्नि और सोम! जो आपको घृत प्रदान करे, उसे प्रभूत धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.10]
हे अग्नि और सोम! लिए घृत से परिपूर्ण हवि दे, उसके लिए तुम जाज्वल्यवान बनो।
Hey Agni & Som Dev! Grant sufficient money-riches to the one who offer Ghee-clarifeid butter in the Yagy for your sake.
अग्नीषोमाविमानि नो युवं हव्या जुजोषतम्।
आ यातमुप नः सचा॥
हे अग्नि और सोम! हमारा यह हव्य ग्रहण करें और एक साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.93.11]
हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों हमारी हवियों को स्वीकार करो। हमको प्राप्त होओ।
Hey Agni & Som Dev! Accept our offerings and come here at the site of the Yagy to oblise us.
अग्नीषोसा पिपृतमर्वतो न आ प्यायन्तामुखिया हव्यसूदः।
अस्मे बलानि मघवत्सु धत्तं कृणुतं नो अध्वरं श्रुष्टिमन्तम्॥
हे अग्नि और सोम! हमारे अश्वों की रक्षा करें। हमारी क्षीर आदि हव्य की उत्पादिका गायें वर्द्धित हों। हम धनशाली हों; हमें बल प्रदान करें। हमारा यज्ञ धनयुक्त हो।[ऋग्वेद 1.93.12]
हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों हमारे अश्वों को पराक्रम दो। हवि उत्पन्न करने वाली हमारी धेनुएँ वृद्धि को प्राप्त हों। तुम दोनों हम धनवानों को ऐश्वर्य दो। हमारे यज्ञ को सुखकारी बनाओ।
Hey Agni & Som Dev! Make our horses strong and increase our lot-folk of cows who produce offerings for conducting the Yagy. Both of you grant us riches and make our Yagy blissful to us.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- सोम, पूषा, अदिति, छन्द :- त्रिष्टुप।
सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्याः।
जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिम्॥
आप धन, द्युलोक और पृथ्वी के पिता है। जन्म के अनन्तर ही आप सारे संसार के रक्षक हुए हैं। देवों ने आपको अमृत का केन्द्र बनाया है।[ऋग्वेद 2.40.1]
तुम धन, अम्बर, और धरा के पिता हो। जन्म लेने के बाद ही तुम संसार के रक्षक बन गये। देवताओं ने तुम्हें अमरत्व प्रदान करने वाला बनाया।
You are the father of the heavens, wealth and the earth. You turned into the protector of the universe soon after your birth. The demigods-deities have made you the centre of nectar, elixir, ambrosia, Amrat.
इमौ देवौ जायमानौ जुषन्तेमौ तमांसि गूहतामजुष्टा।
आभ्यामिन्द्रः पक्वमामास्वन्तः सोमापूषभ्यां जनदुत्रियासु॥
जन्मते ही द्युतिमान् सोम और पूषा की देवों ने सेवा की। ये दोनों अप्रिय अन्धकार का विनाश करते हैं। इनके साथ इन्द्र देव तरुणी, धेनुओं के अधः प्रदेश में पक्व दुग्ध उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 2.40.2]
तेजस्वी सोम और पूषा के जन्म लेते ही देवों ने उनकी सेवा की। इन दोनों ने अहितकर अंधकार को मिटाया। इनकी सहायता से इन्द्र युवती धेनुओं के निम्नवत हिस्से वाले भाग में दुग्ध को रचित करते हैं।
The demigods-deities served bright Som-Moon and Pusha as soon as they took birth. Indr Dev evolved milk in the udder of the cows.
सोमापूषणा रजसो विमानं सप्तचक्रं रथमविश्वमिन्वम्।
विषूवृतं मनसा युज्यमानं तं जिन्वथो वृषणा पञ्चरश्मिम्॥
हे अभीष्ट वर्षी सोम और पूषा! आप संसार के विभाजक, सप्त चक्र (सात ऋतु, मलमास लेकर) वाले संसार के लिए अविभाज्य, सर्वत्र वर्तमान और पंच रश्मि (पाँच ऋतू, हेमन्त और शीत को एक में करके) वाले हैं। इच्छा उत्पन्न होते ही योजित रथ हमारे सामने प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 2.40.3]
इच्छित वर्षों में सोम और पूषा! तुमने संसार का विभाजन किया, तुम मल मास रहित सातों ऋतुओं से युक्त संसार के लिए पांच किरणों से युक्त हो। कामना करते ही अपना जाता हुआ रथ हमारे सम्मुख लाते हो।
Accomplishment fulfilling Som & Pusha! You divide the universe-year in seven cycles i.e., seasons and join the five seasons with Hemant and winter. Your charoite come to us as soon we desire.
In general we observe 4 seasons but in reality they are 6 in number. Though there are 12 months in a year according to ancient Hindu calendars and yet the 13th month is added for correction, since lunar mass varies considerably in number of days from 27 to 31.
Please refer to :: ANCIENT HINDU CALENDAR काल गणना santoshkipathshala.blogspot.com
दिव्य १ न्यः सदनं चक्र उच्चा पृथिव्यामन्यो अध्यन्तरिक्षे।
तावस्मभ्यं पुरुवारं पुरुक्षं रायस्पोषं वि ष्यतां नाभिमस्मे॥
आप में से एक जन (पूषा) उन्नत द्युलोक में रहते हैं। दूसरे (सोम) औषधि रूप से पृथ्वी और चन्द्र रूप से अन्तरिक्ष में रहते हैं। आप दोनों अनेक लोगों में वरणीय, बहुकीर्तिशाली हमारे भाग का कारण और पशु-रूप धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.40.4]
सोम पूषा औषधि रूप से पृथ्वी पर तथा चन्द्रमा रूप से उन्नतशील अम्बर में निवास करते हैं। तुम दोनों प्रशंसा योग्य, वरण करने के योग्य, सुन्दर पशु धन प्रदान करो।
One of you, Pusha resides-lives in the heaven and the second i.e., Som lives over the earth in the form of medicines (Ayur Vedic Medicines herbs). Som lives in space as a material object-satellite of earth. Both of you are appreciable & acceptable to most of the people. Grant our share of riches in the form of cattle.
विश्वान्यन्यो भुवना जजान विश्वमन्यो अभिचक्षाण एति।
सोमापूषणाववतं धियं मे युवाभ्यां विश्वाः पृतना जयेम॥
हे सोम और पूषा! आपमें से एक (सोम) ने सारे भूतों को उत्पन्न किया। दूसरे (पूषा) सारे संसार का पर्यवेक्षण करते हैं। हे सोम और पूषा! आप हमारे कर्म की रक्षा करें। आपकी सहायता से हम शत्रु सेना पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 2.40.5]
हे सोम और पूजन! तुमने समस्त भूतों को प्रकट किया। पूषा समस्त संसार को देखते हैं। तुम दोनों हमारे कार्यों के रक्षक हो। तुम्हारी शक्ति से हम शत्रु सेना को विजय कर लें।
Hey Som & Pusha! Som is the creator of all that which has been perished-past. Pusha observes the universe. Hey Som & Pusha! Let both of you become the protector of our endeavours-duty. We should win the enemy with your help.
धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयिं सोमो रयिपतिर्दधातु।
अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥
संसार को प्रसन्नता देने वाले पूषा हमारे कर्म से तृप्ति प्राप्त करें। धनपति सोम हमें धन प्रदान करें। द्युतिमती और शत्रु रहिता अदिति हमारी रक्षा करें। हम सुसंतति युक्त होकर यज्ञ में आपका यशोगान करें।[ऋग्वेद 2.40.6]
संसार को सुख प्रदान करने वाले पूषा हमारे कर्म से संतुष्ट हों। धन से सम्पन्न सोम हमको धन दें। तेजस्विनी, अदिति शत्रुओं से हमारी रक्षा करें। हम पुत्र और पौत्रों से युक्त, यज्ञ में अधिक श्लोक पाठ करेंगे।
Let Pusha who grant happiness-pleasure to the whole world be satisfied with our endeavours-deeds. Let-wealthy Som grant us riches. Let glorious-bright Aditi having no enemy, protect us. We should sing your glory blessed with sons and grandsons.
सोमो जिगाति गातुविद्देवानामेति निष्कृतम्। ऋतस्य योनिमासदम्॥
पथज्ञ सोम जाने वालों को स्थान दिखाते हैं। उपवेशन कारी देवों के लिए श्रेष्ठ यज्ञ-स्थान में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.13]
सोम मेधावी जनों की प्रशंसा करता हुआ अनेक साधन सम्पन्न कर्मों के कारण उनकी शरण को प्राप्त करता है। वह अत्यन्त तुष्ट और सत्य के आश्रय से यज्ञ स्थान को जाता है।
Som, aware of the right path, proceeds by it; to the excellent seat of the demigods-deities, the place of sacrifice-Yagy.
Som aware of the right path, follows it & guide the intellectuals to the excellent Yagy spot for the demigods-deities.
सोमो अस्मभ्यं द्विपदे चतुष्पदे च पशवे। अनमीवा इषस्करत्॥
हे सोम! हम स्तोताओं के लिए एवम् द्विपदों, चतुष्पदों और पशुओं के लिए रोग रहित अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.62.14]
वह सोम हम दो पैर वाले मनुष्य के लिए तथा चार पैर वाले पशुओं के लिए भी व्याधि विमुख, स्वास्थ्यप्रद अन्नों को रचित करने में समर्थवान हो।
Hey Som Dev! Let us grant the Ritviz food grains for the double hoofed, four hoofed and the humans which can keep them free from ailments-diseases.
अस्माकमायुर्वर्धयन्निभिमातीः सहमानः। सोमः सधस्थमासदत्॥
हे सोम देव! हम लोगों की आयु को बढ़ाते हुए और कर्म विघातक शत्रुओं को अभिभूत करते हुए हम लोगों के यज्ञस्थान में प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 3.62.15]
वह सोम हमारी आयु में वृद्धि करता हुआ तथा शरीर की समस्त व्याधियों को शत्रु के समान पतन करता हुआ हमारे अनुष्ठान स्थान में हमारे साथ आकर निवास करें।
Hey Som Dev! Enhance our longevity & control-over power the enemies who create hurdles in our endeavours; establishing yourself at the Yagy site along with us.
स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः।
बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः॥
कल्याण के लिए हम लोग वायु देव की प्रार्थना करते हैं और सोमरस का भी स्तवन करते हैं। सोम निखिल लोक के पालक हैं। सब देवों के साथ मन्त्र पालक बृहस्पति देव की प्रार्थना कल्याण के लिए करते हैं। अदिति के पुत्र देवगण अथवा अरुणादि द्वादश देव हम लोगों के लिए कल्याणकारी हों।[ऋग्वेद 5.51.12]
We worship Vayu Dev for our welfare and extract Somras for him. Som nourish-nurture the whole world. We worship Brahaspati Dev with all demigods-deities, who is the supporter of Mantr Shakti, for our welfare. Let the son of Aditi Demigods and the twelve Adity Gan be helpful to us i.e., resort to our welfare.
स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि॥
सूर्य देव और चन्द्र देव जिस प्रकार से निरालम्ब मार्ग में राक्षसादि के उपद्रव के बिना विचरण करते हैं, उसी प्रकार से हम लोग भी मार्ग में सुख पूर्वक विचरण करें। प्रवास में चिरकाल हो जाने से भी अक्रुद्ध और स्मरण करने वाले मित्रों से हम मिलकर रहें।[ऋग्वेद 5.51.15]
The way-manner in which Sury Dev & Chandr Dev revolve without being disturbed by the demons on their orbits-path, we too move comfortably on our way. We should live friendly with those friends who are away from us without being angry and live together on being remembered.
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्रदेव, सोमा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्रासोमा महि तद्वां महित्वं युवं महानि प्रथमानि चक्रथुः।
युवं सूर्यं विविदथुर्युवं स्व ९ विश्वा तमांस्यहतं निदश्च॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! आपकी महिमा महान है। आपने महान और मुख्य भूतों को बनाया आपने सूर्य और जल को प्राप्त किया। आपने समस्त अन्धकारों और निन्दकों को दूर किया।[ऋग्वेद 6.72.1]
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी; चुगलखोर, आक्षेपक, निन्दोपाख्यान लेखक, उपहासात्मक; detractor, slanderer, cynical, cynic, backbiter, denigrator, satirist, satirical.Hey Indr Dev & Som Dev! Your glory is great-ever lasting. You created great material and obtained Sun and water. You repelled all sorts of darkness and detractor, slanderer, satirical.
इन्द्रासोमा वासयथ उषासमुत्सूर्य नयथो ज्योतिषा सह।
उप द्यां स्कम्भथुः स्कम्भनेनाप्रथतं पृथिवीं मातरं वि॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! आप उषा को प्रकाशित करें और सूर्य देव को ज्योति के साथ ऊपर उठावें तथा अन्तरिक्ष के द्वारा द्युलोक को स्तम्भित करें। माता पृथ्वी को प्रसिद्ध करें।[ऋग्वेद 6.72.2]
Hey Indr Dev and Som Dev! Let Usha appear and the Sun rise up with his light and make the heavens stable in respect of the space. Make mother earth famous.
इन्द्रासोमावहिमपः परिष्ठां हथो वृत्रमनु वा द्यौरमन्यत।
प्रार्णांस्यैरयतं नदीनामा समुद्राणि पप्रथुः पुरूणि॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! जल को रोकने वाले अहि वृत्रासुर का वध करें। द्युलोक ने आपको संवर्द्धित किया। नदी के जल को प्रेरित करके, जल द्वारा समुद्र को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 6.72.3]
Hey Indr Dev & Som Dev! Kill Vratra Sur who blocked the flow of water. The heavens have grown-nourished, nurtured you. Inspire the river waters to fill the oceans.
इन्द्रासोमा पकमामास्वन्तर्नि गवामिद्दद्यथुर्वक्षणासु।
जगृभथुरनपिनद्धमासु रुशच्चित्रासु जगतीष्वन्तः॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! आपने कम उम्र वाली गौओं के थनों में परिपक्व दूध को स्थापित किया। नाना वर्ण की गौओं में आपने आबद्ध और शुक्लवर्ण दुग्ध को धारित कराया।[ऋग्वेद 6.72.4]
Hey Indr Dev & Som Dev! You generated ripe milk in the udders of immature cows. Cows of various colours produce white milk.
इन्द्रासोमा युवमङ्ग तरुत्रमपत्यसाचं श्रुत्यं रराथे।
युवं शुष्मं नर्यं चर्षणिभ्यः सं विव्यथुः पृतनाषाहमुग्रा॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! आप लोग तारक, सन्तानयुक्त और श्रवणयोग्य धन हमें शीघ्र प्रदान करें। हे उग्र इन्द्र देव और सोम देव! मनुष्यों के लिए हितकर और शत्रु सेना को पराजित करने वाले बल को आप हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.72.5]
Hey Indr Dev & Som Dev! Grant us the wealth which is purifying, help in release from reincarnations, associated with progeny, good to listen-heard, quickly. Hey furious Indr Dev & Som Dev! Grant us might which is beneficial to the humans and capable of defeating the enemy army.(10.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- सोम, रुद्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
सोमारुद्रा धारयेथामसुर्यं १ प्र वामिष्टयोऽरमश्नुवन्तु।
दमेदमे सप्त रत्ना दधाना शं नो भूतं द्विपदे शं चतुष्पदे॥
हे सोमदेव और रुद्रदेव! आप हमें असुर सम्बन्धी बल प्रदान करें। समस्त यज्ञ आपको प्रतिगृह में अच्छी तरह व्याप्त करें। आप सप्त रत्न धारित करते हैं; इसलिए हमारे लिए आप सुखकर होवें और मनुष्यों और पशुओं के लिए भी कल्याणकारी बनें।[ऋग्वेद 6.74.1]
Hey Som Dev & Rudr Dev! You have granted us strength pertaining to the demons. Let all Yagy pervade your house-Ashram. You wear seven jewels and hence you should be beneficial to us & the animals.
सोमारुद्रा वि वृहतं विषूचीममीवा या नो गयमाविवेश।
आरे बाधेथां निर्ऋतिं पराचैरस्मे भद्रा सौश्रवसानि सन्तु॥
हे सोमदेव और रुद्रदेव! जो रोग हमारे गृह में प्रवेश किया हुआ है, उसी संक्रामक रोग को हमसे दूर करें। ऐसी बाधा दें, जिससे दरिद्रता का नाश हो और हम अन्न सहित सुख से रहें।[ऋग्वेद 6.74.2]
Hey Som Dev & Rudr Dev! Repel the infectious diseases from our homes. Break the hurdles so that the poverty is lost and we are comfortable and have food grains.
सोमारुद्रा युवमेतान्यस्मे विश्वा तनूषु भेषजानि धत्तम्।
अव स्यतं मुञ्चतं यन्नो अस्ति तनूषु बद्धं कृतमेनो अस्मत्॥
हे सोम देव और रुद्र देव! हमारे शरीर के लिए सर्व प्रसिद्ध औषध धारित करें। हमारे किए हुए पाप, जो शरीर में निबद्ध हैं, उसे शिथिल करें, हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 6.74.3]
Hey Som Dev & Rudr Dev! Recommend suitable medicines for our bodies. Repel-calm down the sins present in our bodies as ailments.
तिग्मायुधौ तिग्महेती सुशेवौ सोमारुद्राविह सु मृळतं नः।
प्र नो मुञ्चतं वरुणस्य पाशाद्गोपायतं नः सुमनस्यमाना॥
हे सोमदेव और रुद्रदेव! आपके पास दीप्त धनुष और तीक्ष्ण बाण है। आप लोग सुन्दर सुख प्रदान करते है। शोभन स्तोत्र की अभिलाषा करते हुए हमें इस संसार में अत्यन्त सुखी करें। आप हमें वरुण देव के पाश से मुक्त करके हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.74.4]
Hey Som Dev & Rudr Dev! You have radiant bows & sharp arrows. You grant us comforts. Make us happy with the desire of beautiful Strotr. Make us free from the cutches-cord of Varun Dev & protect us.(10.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (104) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्रासोमा तपतं रक्ष उब्जतं न्यर्पयतं वृषणा तमोवृधः।
परा शृणीतमचितो न्योषतं हतं नुदेथां नि शिशीतमत्रिणः॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! आप राक्षसों को दुःख देकर मारें। हे अभीष्ट वर्षक द्वय! अन्धकार में आगे बढ़ते हुए राक्षसों का विनाश करें। अज्ञानी राक्षसों को विमुख करके हिंसित करें, जलाएँ, मार फेकें और दूर कर दें। दूसरों का भक्षण करने वाले राक्षसों को जर्जर करके फेंक दें।[ऋग्वेद 7.104.1]
जर्जर :: नीच, दरिद्र, कंजूस, मलीन, अन्यायी, फटा, लज्जाजनक, अपमानपूर्ण, बेइज़्ज़त, खाज का, गंदा, खुजली का, मैला, कीचड़दार; dilapidated, shabby, disreputable, mangy.
Hey Indr Dev & Som Dev! Torture the demons & kill them. Hey desires accomplishing duo! Destroy the demons marching ahead in darkness. Divert the ignorant demons and harm them, kill them and throw them away. Make the demons too weak-dilapidated who kill others.
इन्द्रासोमा समघशंसमभ्य१घं तपुर्ययस्तु चरुरग्निवाँइव।
ब्रह्मद्विषे क्रव्यादे घोरचक्षसे द्वेषो धत्तमनवायं किमीदिने॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! अनर्थ प्रशंसक और आक्रामक राक्षस को शीघ्र ही दबा दें। आपके तेज से तपे हुए राक्षस को अग्नि में फेंके गये "चरु" की तरह विलुप्त करें। ब्राह्मणों के द्वेषी, मांस भक्षक, घोर नेत्र तथा कठोर बोलने वाले राक्षसों के प्रति सदैव वैमनस्य रखें।[ऋग्वेद 7.104.2]
अनर्थ :: अर्थहीन, भिन्न अर्थवाला, उल्टा अर्थ, अर्थहानि; disaster, perversion.
वैमनस्यता :: दुश्मन या शत्रु होने की अवस्था या भाव; animosity.
Hey Indr Dev & Som Dev! Supress the attacking demons who appreciate disaster. The demons should be roasted by your aura & eliminated like the Charu thrown in fire. You should have animosity towards the demons who are envious to Brahmans, eat meat, have furious eyes and are harsh spoken.
इन्द्रासोमा दुष्कृतो वने अन्तरनारम्भणे तमसि प्र विध्यतम्।
यथा नातः पुनरेकश्चनोदयत्तद्वामस्तु सहसे मन्युमच्छवः॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! आप दुष्कर्मी राक्षसों को धारक मध्यस्थल में निरबलम्ब अन्धकार में फेंककर मारें, ताकि वहाँ से एक भी राक्षस फिर ऊपर न उठ सकें। आपका वह प्रसिद्ध क्रोधयुक्त बल शत्रुओं को पराजित करने में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 7.104.3]
Hey Indr Dev & Som Dev! Kill the wicked-vicious demons, throw them in desert in darkness, where they can not find any support so that not even a single demons can rise again. You are capable of defeating the enemies with your might associated with furiosity.
इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवो वधं सं पृथिव्या अघशंसाय तर्हणम्।
उत्तक्षतं स्वर्य १ पर्वतेभ्यो येन रक्षो वावृधानं निजूर्वथः॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! आप अन्तरिक्ष से घातक आयुध उत्पन्न करें। अनर्थकारियों के लिए इस से घातक आयुध उत्पन्न करें। मेघ से वह संतापक वज्र उत्पन्न करें, जिससे प्रवृद्ध राक्षस को नष्ट किया जा सके।[ऋग्वेद 7.104.4]
Hey Indr Dev & Som Dev! Produce your lethal weapons from the space and kill the disastrous demons with them. Produce your torturing Vajr from the clouds to destroy the growing demons.
इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवस्पर्यग्नितप्तेभिर्युवमश्महन्मभिः। तपुर्वधेभिरजरेभिरत्रिणो नि पर्शाने विध्यतं यन्तु निस्वरम्॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! अन्तरिक्ष से चारों ओर आयुध फेंकें। अग्नि से संतप्त तापक प्रहार वाले अजर और पत्थर के विकारभूत घातक अस्त्रों से राक्षसों के पार्श्व स्थानों को फाड़ डालें, जिससे वे राक्षस चुप-चाप भाग जाएँ।[ऋग्वेद 7.104.5]
Hey Indr Dev & Som Dev! Throw weapons from all directions in the space. Tear the chest of the demons with immortal heated weapons made of rocks leading to their escape quickly-quietly.
इन्द्रासोमा परि वां भूतु विश्वत इयं मतिः कक्ष्याश्वेव वाजिना।
यां वां होत्रां परिहिनोमि मेधयेमा ब्रह्माणि नृपतीव जिन्वतम्॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! रस्सी जिस प्रकार से बगल में होकर अश्व को चारों ओर बाँधती हैं, उसी प्रकार यह स्तुति भी आपको परिव्याप्त करें। आप बली हैं। स्मरण शक्ति के बल से मैं इस स्तोत्र को प्रेरित करता हूँ। राजाओं के समान इन स्तुतियों को आप सफल अर्थात् फलीभूत करें।[ऋग्वेद 7.104.6]
बग़ल :: पहलू, पार्श्व, समीप का स्थान; armpit.
Hey Indr Dev & Som Dev! The way a cord ties the horse from the armpit in all directions, this prayer should tie-pervade you. You are mighty. I am able to inspire this Strotr by virtue of my memory. Make these prayers successful like the kings.
प्रति स्मरेथां तुजयद्भिरेवैर्हतं द्रुहो रक्षसो भङ्गुरावतः।
इन्द्रासोमा दुष्कृते मा सुगं भूद्यो नः कदा चिदभिदासति गुहा॥
हे इन्द्र देव और सोम देव! शीघ्रगामी अश्व की सहायता से अभिगमन करें। द्रोही और भनक राक्षसों का वध करें। पापी राक्षस को सुख न दें, क्योंकि द्रोहयुक्त होकर वह राक्षस हमारा कभी न कभी वध कर सकते हैं।[ऋग्वेद 7.104.7]
भनक :: मंद ध्वनि, उड़ती ख़बर; inking, clue.
Hey Indr Dev & Som Dev! Move with fast moving horses. Kill the inkling and scab demons. Do not grant comforts-pleasure to the sinner demons since they can kill us any time.
ये पाकशंसं विहरन्त एवैर्ये वा भद्रं दूषयन्ति स्वधाभिः।
अहये वा तान्प्रददातु सोम आ वा दधातु निर्ऋतेरुपस्थे॥
सत्यवादी मुझे जो अपने स्वार्थ के लिए लाञ्छित करते हैं एवं मुझ जैसे कल्याण वृत्ति वालों को भी दोष युक्त बनाते हैं, उन्हें सोम देव साँप के ऊपर फेंक दें या धनहीन बना दें।[ऋग्वेद 7.104.9]
hey Som Dev! The truthful who accuse me for their selfishness and target a person like me, resorting to others welfare either throw them over the snakes or make then pauper.
न वा उ सोमो वृजिनं हिनोति न क्षत्रियं मिथुया धारयन्तम्।
हन्ति रक्षो हन्त्यासद्वदन्तमुभाविन्द्रस्य प्रसितौ शयाते॥
सोमदेव पापी और बलयुक्त मिथ्यावादी को कभी नहीं छोड़ते, मार देते हैं। वह राक्षस को मारते हैं और असत्यवादी को भी मारते हैं। वे मरकर इन्द्रदेव के बन्धन में रहते हैं।[ऋग्वेद 7.104.13]
Som Dev do not spare the sinners, followers of falsehood, kill them. He kills the demons and the propounder of falsehood. Even after their death they remain under the clutches of Indr Dev.
All these Slocks describe the Muslims who are the replica of demons. Each and every action of islamists is merely a carbon copy of demons.(08.03.2024)
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)