By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (114) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- रुद्र छंद :- जगती, त्रिष्टुप्।
इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्र भरामहे मतीः।
यथा शमसद्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्तिन्ननातुरम्॥
महान् कपर्दी या जटाधारी और दुष्टों के विनाश स्थान रुद्र को हम यह मननीय स्तुति अर्पण करते हैं, ताकि द्विपद और चतुष्पद सुस्थ रहें और हमारे इस ग्राम में सब लोग पुष्ट और रोग शून्य रहें।[ऋग्वेद 1.114.1]
पराक्रमियों के स्वामी, जटिल रुद्र के लिए वंदनाएँ करते हैं। दुपाये, चौपाये सुखी हों। इस ग्राम के निवासा समस्त प्राणधारी निरोगी रहते हुए पुष्ट हों।
We offer this great poem (verse, Strotr, Stuti, prayer) to Rudr-Bhagwan Shiv, who has matted hair and who is the slayer of the wicked-sinner & keeps the living being moving over two or four legs remain healthy, happy and to keep all the residents of our locality healthy-free from diseases.
मृळा नो रुद्रोत नो मयस्कृधि क्षयद्वीराय नमसा विधेम ते।
यच्छं च योश्च मनुरायेजे पिता तदश्याम तव रुद्र प्रणीतिषु॥
हे रुद्रदेव! आप सुखी हों; हमें सुखी करें। आप दुष्टों के विनाशक हैं। हम नमस्कार के साथ आपकी प्रार्थना करते हैं। पिता या उत्पादक मनु ने जिन रोगों से उपशम और जिन भयों से उद्धार पाया था; हे रुद्रदेव आपके उपदेश से हम भी वह प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.114.2]
हे रुद्र! दया दृष्टि करो। सुख प्रदान करो। तुम वीरों के स्वामी को हम नमस्कार करें। जिस प्रकार से अनुष्ठान द्वारा मनु ने प्राप्त किया था, उसे हम तुमसे ग्रहण करें।
Hey Rudr Dev! You should be happy and keep us happy-comfortable. You are the destroyer-slayer of the wicked. We prostrate before and sing prayers devoted to you. Let us be granted those means with which Manu over powered the diseases-ailments and the fears, by you.
अश्याम ते सुमतिं देवयज्यया क्षयद्वीरस्य तव रुद्र मीढ्वः।
सुम्नायन्निद्विशो अस्माकमा चरारिष्टवीरा जुहवाम ते हविः॥
हे अभीष्टदाता रुद्रदेव! आप दुष्टों के क्षयकारी अथवा ऐश्वर्यशाली मरुतों से युक्त हैं। हम देवयज्ञ द्वारा आपका अनुग्रह प्राप्त करें। हमारी सन्तानों के सुख की कामना करके उनके पास पधारें। हम भी प्रजा का हित देखकर आपको हव्य प्रदान करेंगे।[ऋग्वेद 1.114.3]
हे रुद्र हम तुम्हारे उपासक देव की अर्चना द्वारा तुम वीरों के दाता की दया दृष्टि प्राप्त करें। तुम हमारी संतान को सुख प्रदान करो। हर्षित वीरों से युक्त हम तुमको हवि भेंट करें।
Hey desire fulfilling-granting Rudr Dev! You are the protector of the brave and slayer of the wicked. You are an associate of the Maruts. We should get your blessings through Dev Yagy. Please come to bless our progeny. We make offering to you to seek the welfare of the general public-populace.
त्वेषं वयं रुद्रं यज्ञसाधं वङ्कुं कविमवसे नि ह्वयामहे।
आरे अस्मद्दैव्यं हेळो अस्यतु सुमतिमिद्वयमस्या वृणीमहे॥
रक्षण के लिए हम दीप्तिमान्, यज्ञ साधक, कुटिल गति और मेधावी रुद्र का आह्वान करते है। वह हमारे पास से अपना क्रोध दूर करें। हम उनका अनुग्रह चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.114.4]
हे रुद्र हम तुम्हारे उपासक देव की अर्चना द्वारा तुम वीरों के दाता की दया दृष्टि प्राप्त करें। तुम हमारी संतान को सुख प्रदान करो। हर्षित वीरों से युक्त हम तुमको हवि भेंट करें। हम क्षितिज के समान घोर रूप वाले, लाल रंग वाले जटाधारी तथा श्रेष्ठतम रुद्र का नमस्कारपूर्वक आह्वान करते हैं।
We invite intelligent & brilliant Rudr, who move with typical-devious speed. He should not be angry with us. We desire his blessings.
दिवो वराहमरुषं कपर्दिनं त्वेषं रूपं नमसा नि ह्वयामहे।
हस्ते बिभ्रद्धेषजा वार्याणि शर्म वर्म च्छर्दिरस्मभ्यं यंसत्॥
हम उन स्वर्गीय उत्कृष्ट वराह की तरह दृढाङ्ग, अरुणवर्ण, कपर्दी, दीप्तिमान् और उज्ज्वल रूप धर रुद्र को नमस्कार करके बुलाते हैं। हाथ में वरणीय भेषज धारण करके वे हमें सुख, वर्म और गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.114.5]
दीप्त, यज्ञ सिद्ध करने वाले, तिरछी गति वाले मेधावी रुद्र का रक्षा हेतु हम आह्वान करते हैं। देवगणों के क्रोध को शांत करें। हम उनका अनुग्रह चाहते हैं। वे वरणीय औषधियों को हाथ में धारण कर हमको सुखी बनाने तथा अपने सुरक्षा साधनों द्वारा निर्भय बनायें।
We salute Rudr Dev who is fair coloured, with long hair, as strong as the Varah (an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu). Let him possess medicines for us and grant us comforts-pleasures, protective shield and house-home.
वर्म :: कवच, जिरह बख्तर; hauberk, protective shield.
इदं पित्रे मरुतामुच्यते वचः स्वादोः स्वादीयो रुद्राय वर्धनम्।
रास्वा च नो अमृत मर्तभोजनं त्मने तोकाय तनयाय मृळ॥
मधु से भी अधिक मधुर यह स्तुति वाक्य मरुतों के पिता रुद्र के उद्देश्य से उच्चारित किया जाता है। इससे स्तोता की वृद्धि होती है। हे मरण रहित रुद्रदेव! मनुष्यों का भोजन रूप अन्न हमें प्रदान करें। मुझको व मेरे पुत्र को तथा पौत्र को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.114.6]
मरुद्गणों के जनक रुद्र के लिए इस आह्वान करते हैं। मरुद्गणों के जनक रुद्र के लिए इस मधुर श्लोक का हम उच्चारण करते हैं। हे अविनाशी रुद्र! हमको सेवनीय पदार्थ प्रदान करो। हम पर और हमारी संतान पर कृपा करो।
This verse as sweet as honey is meant for the father of the Maruts. It helps (leads to the progress of those) those who recite it. Hey immortal Rudr! kindly grant food to the humans. Grant pleasure to me, my son and grand son.
मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्।
मा नो वधिः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः॥
हे रुद्रदेव! हममें से वृद्धों को मत मारना, बच्चों को न मारना, सन्तानोत्पादक युवक को न मारना तथा गर्भस्थ शिशु को भी न मारना। हमारे पिता का वध न करना, माता की हिंसा न करना तथा हमारे प्रिय शरीर में आघात मत करना।[ऋग्वेद 1.114.7]
हे रुद्रदेव! हमारे वृद्ध, बालक, युवा, सब वृद्धि को ग्रहण हों, पुत्र युवावस्था वालों को मृत न करो। हमारे शरीरों को संताप न देना।
Hey Rudr Dev! Please do not kill our elders, children, the youth capable of producing children and the children in the womb. Please do not kill our father & mother and do not harm our bodies.
मा नस्तोके तनये मा न आयौ मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः।
वीरान्मा नो रुद्र भामितो वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे॥
हे रुद्रदेव! हमारे पुत्र, पौत्र, मनुष्य, गौ और अश्व को मत मारना। आप क्रोधित होकर वीरों की हिंसा मत करना, क्योंकि हव्य प्रदान कर हम सदैव आपका ही आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.114.8]
हे रुद्रदेव! हमारे पराक्रमियों के पतन के लिए आक्रोश न करो। हम हमेशा ही हवि प्रदान करते हुए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Rudr Dev! Please do not kill our son, grandson, humans and the horses. Kindly, do not kill our brave warriors on being angry, since we continue to make offerings to you and always invite-remember you.
उप ते स्तोमान्पशुपाइवाकरं रास्वा पितर्मरुतां सुम्नमस्मे।
भद्रा हि ते सुमतिर्मृळयत्तमाथा वयमव इत्ते वृणीमहे॥
जिस प्रकार से चरवाहे सायंकाल अपने स्वामी के पास पशुओं को लौटा देते हैं, हे रुद्रदेव! इसी प्रकार मैं आपके स्तोत्र आपको अर्पित करता हूँ। आप मरुतों के पिता है, हमें सुख प्रदान करें। आपका अनुग्रह अत्यन्त सुखकर और कल्याणकारी है। हम आपका रक्षण चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.114.9]
हे मरुतों के पिता रुद्रदेव! पशु रक्षक अपने पशुओं के दाता को भेंट करता है, वैसे ही मैंने तुम्हारे लिए श्लोक भेंट किये हैं। तुम हमको सुख दो। तुम्हारी बुद्धि कल्याण करने वाली है। हम तमसे रक्षा की प्रार्थना करते हैं।
The way the herds men bring back their cattle back to their master in the evening, Hey Rudr Dev! similarly, I make offerings to you in the form of recitation of the Strotr (Shloks, Mantr, holy verses). Hey the father of the Maruts! Grant us comforts-pleasures. Your blessings are pleasing leading to our welfare. We seek protection, shelter, asylum under you.
आरे ते गोघ्नमुत पूरुषघ्नं क्षयद्वीर सुप्रमस्मे ते अस्तु।
मृळा च नो अधि च ब्रूहि देवाधा च नः शर्म यच्छ द्विवर्हाः॥
हे दुष्टों के विनाशक रुद्रदेव! आपका गौहनन साधन और मनुष्य हनन साधन अस्त्र दूर रहे। हम आपका दिया सुख प्राप्त करें। हे दप्तिमान् रुद्रदेव! हमारे पक्ष में रहना। आप पृथ्वी और अन्तरिक्ष के अधिपति हैं, हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.114.10]
हे पराक्रमियों के स्वामी रूद्र देव! तुम्हारा पशु और मनुष्यों को समाप्त करने वाला अस्त्र दूर पहुँचे। हम पर तुम्हारी कृपा दृष्टि रहे। तुम हम पर दया दृष्टि रखो और हमारा समर्थन प्राप्त करते हुए शरण प्रदान करो। रक्षा की अभिलाषा में "रुद्र को प्रणाम" ऐसा प्रण हमने उच्चारण किया है।
Hey the slayer of the wicked! Please keep the Astr (the weapons which target the enemy just by the recitation of Mantr-coaded verses). We should be able to attain-enjoy the comforts-pleasures granted by you. Hey shinning Rudr Dev! You should always be on our side-in our favour. You are the master of the earth and the space-sky. We salute you with the desire of protection.
अवोचाम नमो अस्मा अवस्यवः शृणोतु न हवं रुद्रो मरुत्वान्।
तन्नो मित्रो वरुणी मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हमने रक्षा की कामना करके कहा है। उन रूद्र देव को नमस्कार है। मरुतों के साथ हमारा आह्वान श्रवण करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी इस प्रार्थना स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.114.11]
वे रुद्र, मरुद्गण के साथ हमारे आह्वान को सुनें। सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आसमान हमारी इस विनती को अनुमोदित करें।
We recited this Shlok-Mantr with the desire of protection, shelter, asylum under you. We salute you. Please listen to our prayers along with the Maruts. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Prathvi-earth and the Akash-sky accept our prayer-worship.
भगवान् का विकराल रूप ही रुद्र है। रुद्र ही शिव-शंकर हैं।
Rudr is the furious form of Bhagwan Shiv. He perform Tandav when angry. He is Mahesh, the destroyer.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- रुद्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ ते पितर्मरुतां सुम्नमेतु मा नः सूर्यस्य संदृशो युयोथाः।
अभि नो वीरो अर्वति क्षमेत प्र जायेमहि रुद्र प्रजाभिः॥
हे मरुतों के पिता रुद्र! आपका दिया हुआ सुख हमारे पास आवे। सूर्य दर्शन से हमें पृथक् न करें। हमारे वीर पुत्र शत्रुओं को पराजित करें। हे रुद्र देव! हम पुत्र और पौत्रों से युक्त हों।[ऋग्वेद 2.33.1]
हे मरुद्गण के जन्मदाता इन्द्रदेव! तुम्हारा सुख दान हमें ग्रहण हो। हम सूर्य के दर्शन से कदापि वंचित न रहें। हमारे पराक्रमी पुत्र शत्रुओं से हमेशा विजयी रहें। हम असंख्य पुत्र-पौत्र वाले बनें।
Hey Rudr, the father of Marud Gan! The pleasure granted by you should prevail with us. Do not isolate us from the Sun rise. Let our brave sons defeat the enemy. Hey Rudr Dev! Let us be blessed with sons & grand sons.
त्वादत्तेभी रुद्र शंतमेभिः शतं हिमा अशीय भेषजेभिः।
व्यस्मद्द्द्वेषो वितरं व्यंहो व्यमीवाश्चातयस्वा विषूचीः॥
हे रुद्र देव! हम आपकी दी हुई सुखकारी औषधि के द्वारा सौ वर्ष जीवित रहें। हमारे शत्रुओं का विनाश करें, हमारा पाप सर्वांशतः दूर करें। शरीर में होने वाली समस्त व्याधियों को दूर करें।[ऋग्वेद 2.33.2]
हे रुद्र! हम तुम्हारे द्वारा प्रदत्त सुख देने वाली औषधि से सौ वर्ष की आयु ग्रहण करें। तुम हमारे शत्रुओं को समाप्त करो। हमारे पाप को बिल्कुल समाप्त कर दो। शरीर में विद्यमान समस्त व्याधियों को हमसे दूर रखो।
Hey Rudr Dev! Let us survive-live for hundred years by virtue of the beneficial medicine, given by you. Destroy our enemies. Remove our sins completely. Keep off all ailments-diseases from us.
श्रेष्ठो जातस्य रुद्र श्रियासि तवस्तमस्तवसां वज्रबाहो।
पर्षि णः पारमंहसः स्वस्ति विश्वा अभीती रपसो युयोधि॥
हे वज्रबाहु रुद्र देव! ऐश्वर्य में आप सबसे श्रेष्ठ है। प्रवृद्धों में आप अतीव प्रवृद्ध हैं। हमें में पाप के उस पार ले चलें, जिससे हमारे पास पाप न आ पावें।[ऋग्वेद 2.33.3]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; बहुत अधिक बढ़ा हुआ, खूब पक्का, फैला हुआ, विस्तृत। अयोध्या के राजा रघु का एक पुत्र जो गुरु के शाप से 12 वर्षों के लिए राक्षस हो गया था। तलवार चलाने के 32 ढंगों या हाथों में से एक जिसे प्रसृत भी कहते हैं; aged.
हे रुद्र! तुम ऐश्वर्यवानों में उत्तम हो। तुम्हारी भुजा में वज्र रहता है। तुम अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होओ। तुम हमें पाप से मुक्त कराओ।
Hey Rudr Dev, possessing strong arms like Vajr! You are best-excellent in grandeur. You should attain extreme growth. Remove our all sins. Protect us from sins.
मा त्वा रुद्र चुक्रुधामा नमोभिर्मा दुष्टुती वृषभ मा सहूती।
उन्नो वीराँ अर्पय भेषजेभिर्भिषक्तमं त्वा भिषजां शृणोमि॥
हे अभीष्ट वर्षी रुद्र देव! वैद्यों से भी उत्तम वैद्य के रूप में आप जानें जाते हैं अर्थात् आप वैद्यों में सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए औषधियों के द्वारा हमारी संतान को बलवान् बनावें। हम झूठी और निन्दित स्तुतियों के द्वारा आपको क्रोधित न करें। साधारण लोगों के समान बुलाकर भी हम आपको क्रोधित न करें।[ऋग्वेद 2.33.4]
तुम अभिष्ट की वर्षा करने वाले हो। हम नियम-विरुद्ध प्रणाम एवं भ्रम युक्त वंदना तथा सहयोग का आह्वान कर तुम्हें रुष्ट न करें। तुम श्रेष्ठ भिषक हो। अतः औषधि से हमारी संतान को शक्तिशाली बनाओ।
Hey desire accomplishing Rudr Dev! You are best amongest the Vaedy-doctors. Make our progeny strong with medicines. We should not make you angry with false prayers-worship, flattery like a common man.
हवीमभिर्हवते यो हविर्भिरव स्तोमेभी रुद्रं दिषीय।
ऋदूदरः सुहवो मा नो अस्यै बभ्रु सुशिप्रो रीरधन्मनायै॥
जो रुद्र देव हव्य के साथ आह्वान द्वारा आहूत होते हैं, उनका स्तोत्र द्वारा मैं क्रोध दूर करूँगा। कोमलोदर, शोभन आह्वान वाले, वभ्रु (पीत) वर्ण और सुनासिक रुद्र देव हमारा वध न करें।[ऋग्वेद 2.33.5]
मैं हवि परिपूर्ण आह्वान से पुकारे जाने वाले रुद्र का आक्रोश वंदना द्वारा निवारण करूँगा। कोमल उदर, पीतरंग और सुन्दर नाक वाले शोभायमान रुद्र हमारी हिंसा न करें।
I will pray to Rudr Dev with the Strotr which will remove his anger. Soft belly, yellow coloured, possessing beautiful nose, Rudr should not kill us.
उन्मा ममन्द वृषभो मरुत्वान्त्वक्षीयसा वयसा नाधमानम्।
घृणीव च्छायामरपा अशीया विवासेयं रुद्रस्य सुम्नम्॥
मैं प्रार्थना करता हूँ कि अभीष्टवर्षी और मरुत वाले रुद्र देव मुझे दीप्त अन्न द्वारा तृप्त करें। जिस प्रकार धूप से पिड़ित मनुष्य छाया को आश्रित करता है, उसी प्रकार से मैं भी पाप शून्य होकर रुद्र प्रदत्त सुख प्राप्त कर रुद्रदेव की सेवा करूँगा।[ऋग्वेद 2.33.6]
मरुद्जनक अभिष्टवर्षी हैं। उत्तम अन्न प्रदान करने की उनसे विनती करता हूँ। धूप से व्यथित मनुष्य छाया की शरण प्राप्त करने के तुल्य मैं भी पाप प्रथक हुआ रुद्र का प्रदान किया हुआ सुख प्राप्त करुँगा। मैं उनकी सेवा करुँगा।
I pray to the accomplishment fulfilling-granting Rudr, the progenitor of Marud Gan, to satisfy me, with best food grains. I will serve Rudr Dev like the person facing Sun who find solace under shadow, having become sinless and attaining the pleasure granted by him.
क्वस्य ते रुद्र मृळयाकुर्हस्तो यो अस्ति भेषजो जलाषः।
अपभर्तारपसो दैव्यस्याभी नु मा वृषभ चक्षमीथाः॥
हे रुद्र देव! आपका वह सुखदाता हाथ कहाँ है, जिससे आप दवा तैयार करके सबको सुखी करते हैं। हे अभीष्ट वर्षी रुद्र देव! दैव पाप के विघातक होकर आप मुझे शीघ्र क्षमा करें।[ऋग्वेद 2.33.7]
हे रुद्र! तुम्हारा सुख का दान करने वाली बाहु कहाँ हैं? उसके द्वारा औषधि देते हुए सबको सुखी बनाओ। तुम अभिष्ट वर्षण में सक्षम हों।
Hey Rudr Dev! Where is your arm with which you prepare comforting medicines. Hey desires-accomplishment granting Rudr Dev! Excuse me, sufferings from the sins, committed towards demigods-deities.
प्र बभ्रुवे वृषभाय श्वितीचे महो महीं सुष्टुतिमीरयामि।
नमस्या कल्मलीकिनं नमोभिर्गृणीमसि त्वेषं रुद्रस्य नाम॥
हे वभ्रु वर्ण! अभीष्ट वर्षी और श्वेत आभा वाले रुद्र देव को लक्ष्य करके अतीव महती स्तुति का हम उच्चारण करते हैं। हे स्तोता! नमस्कार द्वारा तेजस्वी रुद्र की पूजा करें। हम उनके उज्ज्वल नाम का संकीर्तन करते हैं।[ऋग्वेद 2.33.8]
अभीष्ट वर्षा करने वाले पीत वर्ण और श्वेत आभायुक्त रुद्र के प्रति हम महत्वपूर्ण वाणी से वंदना करते हैं। हे स्तोता! तेजवान रुद्र को प्रणाम द्वारा पूजो। हम उनका गुणगान करते हैं।
We pray-worship Rudr Dev with significant Stuti (prayers, hymns) who possess-has yellowish colour & aura and accomplish our desires. Hey Stota-worshiper! Let us worship-honour Rudr Dev with salutations. We sing his names.
स्थिरेभिरङ्गैः पुरुरूप उग्रो बभ्रुः शुक्रेभिः पिपिशे हिरण्यैः।
ईशानादस्य भुवनस्य भूरेर्न वा उ योषद्रुद्रादसुर्यम्॥
दृढांग बहुरूप, उम्र और वधु वर्ण रुद्र देव दीप्त और स्वर्ण के अलंकारों से सुशोभित होते हैं। रुद्र देव समस्त भुवनों के अधिपति और भर्ता है। उनका बल क्षीण नहीं होता।[ऋग्वेद 2.33.9]
अनेक रूप वाले दृढ़ शरीर वाले, विकराल, पीतवर्ण युक्त उज्ज्वल तेज से प्रकाशमान हैं। वे सभी भुवनों के स्वामी और पालन-पोषण करने वाले हैं। वे पराक्रम युक्त हैं।
Rudr Dev possess strong organs, appears in vivid-various shapes-forms, furious, has bright yellow aura. He supports all abodes (Heavens, earth and the nether world). His power-might never decays.
अर्हन्बिभर्षि सायकानि धन्वआर्हन्निष्कं यजतं विश्वरूपम्।
अर्हन्निदं दयसे विश्वमभ्वं न वा ओजीयो रुद्र त्वदस्ति॥
हे पूजा योग्य रुद्र देव! आप धनुर्वाण धारी हैं। हे पूजार्ह! आप नाना रूपों वाले हैं और आपने पूजनीय निष्क को धारण किये हुए हैं। आप समस्त संसार की रक्षा करते हैं। आपकी अपेक्षा अधिक बलवान् कोई नहीं है।[ऋग्वेद 2.33.10]
निष्क शब्द का प्रयोग गले के हार के लिये किया गया है। भगवान् शिव के गले का हार नागराज वासुकि हैं।
निष्क एक सोने का सिक्का जिसकी तौल 1 कर्ष या 16 माशा।
1 निष्क = 16 द्रम्य, 1 द्रम्य = 16 पण, 1 पण = 4 काकिणी, 1 काकिणी = 20 कौड़ी बतायी हैं। 1 निष्क = 20,480 कौड़ियाँ तथा 1 निष्क = 256 पण।[भास्कराचार्य-लीलावती] पहले कौड़ियाँ सबसे छोटे सिक्के की तरह प्रयुक्त होती थीं।
हे वसुधारी अर्चनीय रुद्र! तुम अनेक रूप में विद्यमान होकर सुरक्षा करते हो। तुम्हारे तुल्य बलिष्ठ अन्य कोई नहीं है।
Hey Rudr Dev! You deserve worship. You hold bow & arrow. You acquire different-varied shapes & sizes. You are holding Nag Raj Vasuki as your Necklace. You are protecting the whole world. None is mightier than you.
स्तुहि श्रुतं गर्तसदं युवानं मृगं न भीममुपहत्नुमुग्रम्।
मृळा जरित्रे रुद्र स्तवानोऽन्यं ते अस्मन्नि वपन्तु सेनाः॥
हे स्तोता! विख्यात रथ पर आरूढ़, युवा, पशु की तरह भयंकर और शत्रुओं के विनाशक तथा उग्र रुद्र देव की स्तुति करें। हे रुद्र देव! स्तुति करने पर आप हमें सुख प्रदान करते हैं। आपकी सेना शत्रुओं का विनाश करती है।[ऋग्वेद 2.33.11]
हे प्रार्थनाकारी! प्रसिद्ध, रथ पर सवार हुए, विकराल रूप वाले, शत्रु संहारक जवान रुद्र का पूजन करो। हे रुद्र! तुम वंदना करने पर सुख प्रदान करने वाले हो। तुम्हारी सेना हमारे शत्रु का नाश करें।
Hey devotees! Worship-pray to Rudr Dev, who is the destroyer (of the evil), riding a famous-glorious charoite, young, furious-dangerous like a beast. Hey Rudr Dev! You grant us pleasure on being worshiped. Let your army destroy the enemy.
कुमारश्चित्पितरं वन्दमानं प्रति नानाम रुद्रोपयन्तम्।
भूरेर्दातारं सत्पतिं गृणीषे स्तुतस्त्वं भेषजा रास्यस्मे॥
जिस प्रकार आशीर्वाद देते समय पिता को पुत्र नमस्कार करता है, उसी प्रकार ही हे रुद्र देव! आपके आने के समय हम आपको नमस्कार करते हैं। आप बहुधन दाता और साधुओं के पालक हैं। स्तुति करने पर आप हमें औषधि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 2.33.12]
जिस प्रकार पिता द्वारा आशीर्वाद देने पर पुत्र, प्रणाम करें, उसी प्रकार हे रुद्र! तुम्हारे आने पर हम तम्हें प्रणाम करते हैं। तुम विभिन्न धन को देने वाले सज्जनों के पालनहार हो।
Hey Rudr Dev! The manner in which a son salutes his father when he blesses him; in the same way we salute you when you come. You provide various kinds of riches and support the saintly people. You give us medicine, when we pray to you.
या वो भेषजा मरुतः शुचीनि या शंतमा वृषणो या मयोभु।
यानि मनुवृणीता पिता नस्ता शं च योश्च रुद्रस्य वश्मि॥
हे मरुतो! आपकी जो निर्मल औषधि है, हे अभीष्टवर्षी गण। आपकी जो औषधि अतीव सुखद है, जिस औषधि का हमारे पिता मनु ने चयन किया था, वही सुखकर और भय का नारा करने वाली औषधि हम चाहते हैं।[ऋग्वेद 2.33.13]
हे मरुद्गण! तुम्हारी पवित्र औषधि अत्यन्त सुख प्रदान करने वाली है। जिस औषधि की हमारे पूर्वज मनु ने खोज की थी, वह भय को पतन करने वाली थी। उसी औषधि की हम इच्छा करते हैं।
Hey desires-accomplishments fulfilling Marud Gan! We wish to have the medicines which is pure & comforting. We wish to have the same medicine which remove fear & was discovered by our father Manu.
परि णो हेती रुद्रस्य वृज्याः परि त्वेषस्य दुर्मतिर्मही गात्।
अव्र स्थिरा मघवद्भ्य स्तनुष्व मीढ्वस्तोकाय तनयाय मृळ॥
रुद्र का हेति आयुध हमें छोड़ दे। दीप्त रुद्र की महती दुर्मति भी हमें छोड़ दे। हे सेचन समर्थं रुद्रदेव! धनवान् यजमान के प्रति अपने धनुष की ज्या शिथिल करें। हमारे पुत्र और पौत्रों को सुखी करें।[ऋग्वेद 2.33.14]
हेति :: वज्र, अस्त्र, भाला, घाव, चोट, सूर्य की किरण, आग की लपट, धनुष की टंकार, औजार, अंकुर। वह प्रथम राक्षस राजा जो मधुमास या चैत्र में सूर्य के रथ पर रहता है। यह प्रहेति का भाई और विद्युल्केश का पिता कहा गया है।
सेनापति रुद्र का अस्त्र हम पर न पड़े। तेजस्वी रुद्र की भीषण क्रोध बुद्धि हमारी ओर न हो।
Let the weapons of Rudr Dev avoid us. His Astr should not fall over us. Keep of cord of your bow loose towards the wealthy-devotees. Make our sons & grandson happy-blessed.
May the javelin of Rudr Dev avoid us; may the great displeasure of the radiant deity pass away from us; showerer of benefits, turn away your strong bow from the wealthy offerors of oblations and bestow happiness upon our sons and grandsons.
एवा बभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृणीषे न हंसि।
हवनश्रुन्नो रुद्रेह बोधि बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥
हे अभीष्टवर्षी, वभ्रुवर्ण, दीप्तिमान्, सर्वज्ञ और हमारा आह्वान सुनने वाले रुद्र! हमारे लिए आप यहाँ ऐसी विवेचना करें कि हमारे प्रति कोई क्रोधित न हो, हमें कभी विनष्ट न करें। हम पुत्र और पौत्र वाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.33.15]
है रुद्र! तुम पीत वर्ण वाले हमारे आह्वान को सुनते हो। हमारे पुत्र पौत्रों को सुख प्रदान करो। हम पुत्र-पौत्रादि सहित इस यज्ञ में वंदना उच्चारण करेंगे।
Hey accomplishments granting Rudr Dev! You are glorious, enlightened & your body possess yellow tinge. You listen-respond to our prayers. You should not be angry with us & destroy us. We will promote-conduct Yagy having been blessed with sons & grandsons.
तमु ष्टुहि यः स्विषुः सुधन्वा यो विश्वस्य क्षयति भेषजस्य।
यक्ष्वा महे सौमनसाय रुद्रं नमोभिर्देवमसुरं दुवस्य॥
हे ऋत्विजों! आप रुद्र देव की प्रार्थना करें, जिनके बाण और धनुष सुन्दर हैं, जो विरोधियों के नाशक हैं। जो समस्त औषधियों के ईश्वर हैं, उन्हीं रुद्र देव का यजन करें और महान् कल्याण के लिए द्युतिमान् और बलवान् या प्राण दाता रुद्र देव की सेवा करें।[ऋग्वेद 5.42.11]
Hey Ritviz! Worship-pray Rudr dev who possess beautiful-strong bow & arrow for destroying the opponents, is the lord of all medicines. Serve radiant, mighty and saviour of life Rudr Dev, who look to great welfare measures.
एष स्तोमो मारुतं शर्धो अच्छा रुद्रस्य सूनूँर्युवन्यूँरुदश्याः।
कामो राये हवते मा स्वस्त्युप स्तुहि पृषदश्वाँ अयासः॥
हमारे द्वारा सम्पादित स्तोत्र रुद्र देव के तरुण पुत्र मरुतों के अभिमुख भली-भाँति से उपस्थित हों। हे मन! धन की इच्छा हम लोगों को निरन्तर उत्तेजित करती है। विविध पृषत् वर्ण के अश्वों पर बैठकर जो यज्ञ में आगमन करते हैं; उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 5.42.15]
पृषत् :: चितला हिरन, चीतल पाढ़ा, राजा द्रुपद के पिता का नाम; name of a deer.
Let the Strotr composed by us reach the Marud Gan the young sons of Rudr Dev. Hey innerself-conscience! The desire of wealth continuously excite us. Let us worship those who come to the Yagy riding horses with the colours of Cheetal-deer.
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- सोम, रुद्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
सोमारुद्रा धारयेथामसुर्यं १ प्र वामिष्टयोऽरमश्नुवन्तु।
दमेदमे सप्त रत्ना दधाना शं नो भूतं द्विपदे शं चतुष्पदे॥
हे सोमदेव और रुद्रदेव! आप हमें असुर सम्बन्धी बल प्रदान करें। समस्त यज्ञ आपको प्रतिगृह में अच्छी तरह व्याप्त करें। आप सप्त रत्न धारित करते हैं; इसलिए हमारे लिए आप सुखकर होवें और मनुष्यों और पशुओं के लिए भी कल्याणकारी बनें।[ऋग्वेद 6.74.1]
Hey Som Dev & Rudr Dev! You have granted us strength pertaining to the demons. Let all Yagy pervade your house-Ashram. You wear seven jewels and hence you should be beneficial to us & the animals.
सोमारुद्रा वि वृहतं विषूचीममीवा या नो गयमाविवेश।
आरे बाधेथां निर्ऋतिं पराचैरस्मे भद्रा सौश्रवसानि सन्तु॥
हे सोमदेव और रुद्रदेव! जो रोग हमारे गृह में प्रवेश किया हुआ है, उसी संक्रामक रोग को हमसे दूर करें। ऐसी बाधा दें, जिससे दरिद्रता का नाश हो और हम अन्न सहित सुख से रहें।[ऋग्वेद 6.74.2]
Hey Som Dev & Rudr Dev! Repel the infectious diseases from our homes. Break the hurdles so that the poverty is lost and we are comfortable and have food grains.
सोमारुद्रा युवमेतान्यस्मे विश्वा तनूषु भेषजानि धत्तम्।
अव स्यतं मुञ्चतं यन्नो अस्ति तनूषु बद्धं कृतमेनो अस्मत्॥
हे सोम देव और रुद्र देव! हमारे शरीर के लिए सर्व प्रसिद्ध औषध धारित करें। हमारे किए हुए पाप, जो शरीर में निबद्ध हैं, उसे शिथिल करें, हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 6.74.3]
Hey Som Dev & Rudr Dev! Recommend suitable medicines for our bodies. Repel-calm down the sins present in our bodies as ailments.
तिग्मायुधौ तिग्महेती सुशेवौ सोमारुद्राविह सु मृळतं नः।
प्र नो मुञ्चतं वरुणस्य पाशाद्गोपायतं नः सुमनस्यमाना॥
हे सोमदेव और रुद्रदेव! आपके पास दीप्त धनुष और तीक्ष्ण बाण है। आप लोग सुन्दर सुख प्रदान करते है। शोभन स्तोत्र की अभिलाषा करते हुए हमें इस संसार में अत्यन्त सुखी करें। आप हमें वरुण देव के पाश से मुक्त करके हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.74.4]
Hey Som Dev & Rudr Dev! You have radiant bows & sharp arrows. You grant us comforts. Make us happy with the desire of beautiful Strotr. Make us free from the cutches-cord of Varun Dev & protect us.(10.11.2023)
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा
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