Monday, December 7, 2015

चिंतामणि मंत्र सिद्धि CHNITA MANI MANTR SIDDDHI

BRAHASPATI-BRAHMAN SPATI DEV 
बृहस्पति-ब्रह्मण स्पति देव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
चिंतामणि मंत्र सिद्धि :: 
काव्येऽयं व्यगलन्नलस्य चरिते सर्गो निसर्गाज्ज्वलः। द्विधाभूतं रूपं भगवदभिधेयं भवति यत्। ⁠निराकारं शश्वज्जप नरपते! ऊँ नमो भगवते विश्व चिन्तामणि लाभ दे जयदे जशदे जयदे आनय महेसरि मनवांछितार्थ पूरय-पूरय सर्व सिद्धि रिद्धि वृद्धि सर्वजन वश्यं कुरू कुरू स्वाहा। 
विधि :- इस चिन्तामणि मंत्र को नित्य प्रभात-संध्या में जपें, धूप खेवें तो सर्व सिद्धि होगी।
तस्य द्वादश एष मातृचरणाम्भोजालिमौजेर्महा काव्येऽयं व्यगलन्नलस्य चरिते सर्गो निसर्गाज्ज्वलः। अवामा वामार्द्धे सकलमुभयाकारघटनाद् ⁠द्विधाभूतं रूपं भगवदभिधेयं भवति यत्। तदन्तर्मन मे स्मर हरमयं सेन्दुममलं ⁠निराकारं शश्वज्जप नरपते! सिध्यतु स ते।
[सर्ग 14.85]
इस श्लोक से प्रथम मंत्र मूर्ति भगवान् अर्द्धनारीश्वर की उपासना का अर्थ निकलता है; फिर, हल्ले खात्मक चिंतामणि मंत्र सिद्ध होता है; तदनंतर चिंतामणि-मंत्र के यंत्र का स्वरूप भी इसी से व्यक्त होता है। चिंतामणि-मंत्र का रूप यह है :-
सर्वांगीणरसामृतस्तिमितया वाचा स वाचस्पतिः
⁠स स्वर्गीयमृगीदृशामपि वशीकाराय मारायते;
यस्मै यः स्पृहयत्यनेन स तदेवाप्नोति, किं भूयसा?
⁠येनायं हृदये कृतः सुकृतिना मन्मन्त्रचिन्तामणिः।
[सर्ग 14.86]
जो पुण्यवान पुरुष मेरे इस चिंतामणि मंत्र को हृदय में धारण करता है, वह शृंगारादि समस्त रसों से परिलु त अत्यंत सरस, वाग्वैदग्ध्य को प्राप्त कर के बृहस्पति के समान विद्वान हो जाता है; वह स्वर्गीय संदरी जनों को भी वश करने के लिये कामवत् सौंदर्यवान् दिखाई देने लगता है। अधिक कहने की कोई आवश्यकता नहीं; जिस वस्तु को जिस समय वह इच्छा करता है, उसके मिलने में किंचिन्मात्र भी देरी नहीं लगती।
पुष्पैरभ्यच्य गंधादिभिरपि सुभगैश्चारुहंसेन मां चे
निर्यान्ती मन्त्रमूर्ति जति माय मति न्यस्य मय्येव भक्तः;
सम्प्राप्ते वरसरान्ते शिरसि करमसौ यस्य कस्यापि धत्ते
सोऽपि श्लोकानकाण्डे रचयति रुचिरान कौतुकं दृश्यमस्य।
[सर्ग 14.87]
सुंदर हंस के ऊपर गमन करनेवाली मंत्रमूर्ति मेरा पूजन, उत्तमोत्तम पुष्प-गंधादि से, करके और अच्छी तरह मुझमें मन लगाकर जो मनुष्य मेरे मंत्र का जप करता है, उसकी तो कोई बात ही नही; एक वर्ष के अनंतर वह और जिस किसी के ऊपर अपना हाथ रख देता है, वह भी सहसा सैकड़ों हृदयहारी श्लोक बनाने लगता है। मेरे इस मंत्र का कौतुक देखने योग्य है।
चतुर्दश सर्ग में नल को सरस्वती ने जिस समय वर-प्रदान किया है।
चिंता फिक्र WORRY-CONCERN :: व्यथित या विचलित करने वाली कोई भावना, फ़िक्र, परेशानी, डर, अंदेशा, भय, ध्यान, ख़याल, सोच चिंता का कारण बन सकती है।
आत्म निरीक्षण-चिन्तन करें। 
कहाँ कमी हुई, गलती हुई, क्या कमी रह गई, क्या साधन सही थे? क्या साधनों के इस्तेमाल की विधि सही थी?
क्या कार्य योजना और कार्यान्वयन सही थे?
क्या कर्मचारी, सहयोगी अनुभवी, योग्य, कार्य कुशल थे?
क्या परस्पर सहयोग की भावना थी?
क्या पूंजी की समुचित, उपयुक्त व्यवस्था थी?
क्या आपका उद्यम सरकारी नीतियों, कानून, व्यवस्था और सामाजिकता के अनुकूल है। 
यदि ऋण लिया था क्या उसका भुगतान सही तरीके से करने की व्यवस्था थी? क्या ऋण के भुगतान के स्तोत्रों का सही आकलन किया गया था? 
कहीं पूँजी का अपव्यय तो नहीं हुआ?
क्या आपको सम्बंधित विषय का पर्याप्त अनुभव था ?
क्या आप अपने उद्यम में भाग्य को महत्व देते हैं?
क्या आपकी शारीरिक और मानसिक अवस्था सही-उपयुक्त थी?
क्या अन्य समस्याएं आपको प्रभावित कर रही थीं?
क्या संचार-communication की समुचित व्यवस्था थी?
नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रहकर  करो। यह जन्म हुआ किस अर्थ हुआ सोचो-समझो कुछ व्यर्थ न हो। 
ईश्वर ने हाथ-पैर दिमाँग दिया है। 
अपने भविष्य का अनुसन्धान करो।  
चिंता चिता समान। 
    
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

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