Monday, February 29, 2016

SHRI KRASHN WORSHIP PRAYERS श्री कृष्ण आराधना

SHRI KRASHN WORSHIP PRAYERS 
श्री कृष्ण आराधना
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj 
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

संतान गोपाल मंत्र :: भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करना निसंतान दंपत्तियों के लिए बेहद शुभ है। संतान बाल गोपाल मंत्र एक ऐसा ही मंत्र है जो निसंतान दंपत्तियों के लिए आशीर्वाद समान माना जाता है।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
shrim hrim klim glaum devakisuta govinda vasudeva jagatpate
dehi me tanayam krishana tvamaham saranam gatah.
इस मंत्र का प्रतिदिन 108 जाप करने से जातक को संतान प्राप्ति अवश्य होती है। मंत्र जाप के साथ-साथ  शयन कक्ष में श्रीकृष्ण की बाल रूप की प्रतिमा रखना चाहिए। इस प्रतिमा की श्रद्धाभाव से पूजा करते हुए उन्हें लड्डू, माखन मिसरी का भोग लगाना चाहिए।
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच॥ 
Sarvadharman parityajya mamekam Saranam vraja.
Aham tva sarvapapebhyo moksayisyami ma sucha.

नटवर नागर नंदा भजो रे मन गोविंदा
Natvar Nagar Nanda Bhajo Re Mun Govinda.
नटवर नागर नंदा, भजो रे मन गोविंदा।
सब देवोँ में देव बड़े हैं, श्याम बिहारी नंदा, भजो रे मन गोविंदा॥
सब सखिओं में राधा बड़ी हैं, जैसे तारों में चन्दा, भजो रे मन गोविंदा॥
सब देवोँ में राम बड़े हैं, जिन के सीता संगा, भजो रे मन गोविंदा॥
सब सखिओं में सीता बड़ी हैं, जैसे तारोँ में चंदा, भजो रे मन गोविंदा॥
सब देवोँ में शिव जी बड़े हैं, जिन की जटा में गंगा, भजो रे मन गोविंदा॥
सब देविओं में गौरा बड़ी हैं, जैसे तारोँ में चंदा, भजो रे मन गोविंदा॥

भगवान श्री कृष्ण के 108 नाम ::
(1). अचला :- भगवान।
(2). अच्युत :- अचूक प्रभु, या जिसने कभी भूल ना की हो।
(3). अद्भुतह :- अद्भुत प्रभु।
(4). आदिदेव :- देवताओं के स्वामी।
(5). अदित्या :- देवी अदिति के पुत्र।
(6). अजंमा :- जिनकी शक्ति असीम और अनंत हो।
(7). अजया :- जीवन और मृत्यु के विजेता।
(8). अक्षरा :- अविनाशी प्रभु।
(9). अम्रुत :- अमृत जैसा स्वरूप वाले।
(10). अनादिह :- सर्वप्रथम हैं जो।
(11). आनंद सागर :- कृपा करने वाले
(12). अनंता :- अंतहीन देव
(13).अनंतजित :- हमेशा विजयी होने वाले।
(14). अनया :- जिनका कोई स्वामी न हो।
(15). अनिरुध्दा :- जिनका अवरोध न किया जा सके।
(16). अपराजीत :- जिन्हें हराया न जा सके।
(17). अव्युक्ता :- माणभ की तरह स्पष्ट।
(18). बालगोपाल :- भगवान कृष्ण का बाल रूप।
(19). बलि :- सर्व शक्तिमान।
(20). चतुर्भुज :- चार भुजाओं वाले प्रभु।
(21). दानवेंद्रो :- वरदान देने वाले।
(22). दयालु :- करुणा के भंडार।
(23). दयानिधि :- सब पर दया करने वाले।
(24). देवाधिदेव :- देवों के देव
(25). देवकीनंदन :- देवकी के लाल (पुत्र)।
(26). देवेश :- ईश्वरों के भी ईश्वर। 
(27). धर्माध्यक्ष :- धर्म के स्वामी। 
(28). द्वारकाधीश :- द्वारका के अधिपति।
(29). गोपाल :- ग्वालों के साथ खेलने वाले।
(30). गोपालप्रिया :- ग्वालों के प्रिय
(31). गोविंदा :- गाय, प्रकृति, भूमि को चाहने वाले।
(32). ज्ञानेश्वर :- ज्ञान के भगवान
(33). हरि :- प्रकृति के देवता।
(34). हिरंयगर्भा :- सबसे शक्तिशाली प्रजापति।
(35). ऋषिकेश :- सभी इंद्रियों के दाता।
(36). जगद्गुरु :- ब्रह्मांड के गुरु। 
(37). जगदिशा :- सभी के रक्षक। 
(38). जगन्नाथ :- ब्रह्मांड के ईश्वर।
(39). जनार्धना :- सभी को वरदान देने वाले।
(40). जयंतह :- सभी दुश्मनों को पराजित करने वाले।
(41). ज्योतिरादित्या :- जिनमें सूर्य की चमक है।
(42). कमलनाथ :- देवी लक्ष्मी की प्रभु
(43). कमलनयन :- जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
(44). कामसांतक :- कंस का वध करने वाले।
(45). कंजलोचन :- जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
(46). केशव :- केशी-नामक दैत्य का वध करने वाले।
(47). कृष्ण :- सांवले रंग वाले।
(480. लक्ष्मीकांत :- देवी लक्ष्मी की प्रभु।
(49). लोकाध्यक्ष :- तीनों लोक के स्वामी।
(50). मदन :- प्रेम के प्रतीक।
(51). माधव :- ज्ञान के भंडार।
(52). मधुसूदन :- मधु-नामक दानवों का वध करने वाले।
(53). महेंद्र :- इन्द्र के स्वामी।
(54). मनमोहन :- सबका मन मोह लेने वाले।
(55). मनोहर :- बहुत ही सुंदर रूप रंग वाले प्रभु।
(56). मयूर :- मुकुट पर मोर-पंख धारण करने वाले भगवान।
(57). मोहन :- सभी को आकर्षित करने वाले।
(58). मुरली : बांसुरी बजाने वाले प्रभु।
(59). मुरली धर :- मुरली धारण करने वाले।
(60). मुरली मनोहर :- मुरली बजाकर मोहने वाले।
(61). नंद्गोपाल :- नंद बाबा के पुत्र।
(62). नारायण  :- सबको शरण में लेने वाले।
(63). निरंजन :- निष्पाप, बेदाग, Pure, uncontaminated, without collyrium. 
(64). निर्गुण :- जिनमें कोई अवगुण नहीं।
(65). पद्महस्ता :- जिनके  हाथ कमल की तरह हैं।
(66). पद्मनाभ :- जिनकी कमल के आकार की नाभि हो।
(67). परब्रह्मन :- परम सत्य।
(68). परमात्मा :- सभी प्राणियों के प्रभु।
(69). परमपुरुष :- श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले।
(70). पार्थसार्थी :- अर्जुन के सारथी।
(71). प्रजापती :- सभी प्राणियों के नाथ।
(72). पुंण्य :- निर्मल व्यक्तित्व।
(73). पुरुषोत्तम :- उत्तम पुरुष।
(74). रविलोचन :- सूर्य जिनका नेत्र है।
(75). सहस्राकाश :- हजार आंख वाले प्रभु।
(76). सहस्रजित :- हजारों को जीतने वाले।
(77). सहस्रपात :- जिनके हजारों पैर हों।
(78). साक्षी :- समस्त देवों के गवाह।
(79). सनातन :- जिनका कभी अंत न हो।
(80). सर्वजन :- सब कुछ जानने वाले।
(81). सर्वपालक :- सभी का पालन करने वाले।
(82). सर्वेश्वर :- समस्त देवों से ऊंचे।
(83). सत्यवचन :- सत्य कहने वाले।
(84). सत्यव्त :- श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले देव।
(85). शंतह :- शांत भाव वाले।
(86). श्रेष्ट :- महान।
(87). श्रीकांत :- अद्भुत सौंदर्य के स्वामी।
(88). श्याम :- जिनका रंग सांवला हो।
(89). श्यामसुंदर :- सांवले रंग में भी सुंदर दिखने वाले।
(90). सुदर्शन :- रूपवान।
(91). सुमेध :- सर्वज्ञानी।
(92). सुरेशम :- सभी जीव- जंतुओं के देव।
(93). स्वर्गपति :- स्वर्ग के राजा।
(94). त्रिविक्रमा :- तीनों लोकों के विजेता
(95). उपेंद्र :- इन्द्र छोटे के भाई।
(96). वैकुंठनाथ :- वैकुंठ निवासी-के रहने वाले।
(97). वर्धमानह :- जिनका कोई आकार न हो।
(98). वासुदेव :- सभी जगह विद्यमान रहने वाले।
(99). विष्णु :- भगवान विष्णु के स्वरूप।
(100). विश्वदक्शिनह :- निपुण और कुशल।
(101). विश्वकर्मा :- ब्रह्मांड के निर्माता
(102). विश्वमूर्ति :- पूरे ब्रह्मांड का रूप।
(103). विश्वरुपा :- ब्रह्मांड-हित के लिए रूप धारण करने वाले।
(104). विश्वात्मा :- ब्रह्मांड की आत्मा।
(105). वृषपर्व :- धर्म के भगवान।
(106). यदवेंद्रा :- यादव वंश के मुखिया।
(107). योगि :- प्रमुख गुरु।
(108). योगिनाम्पति :- योगियों के स्वामी।

कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नन्दनाय च। नन्दगोप कुमाराय गोविन्दाय नमो नमः॥
Krashnay Vasudevay Devki Nandanay Cha; Nand-Gop Kumaray Govinday Namo Namah.
I repeatedly pray to Bhagwan Shri Krashn who is the son of Vasu Dev and Devki, Nand Gop & who him self is the almighty addresses to as Govind.
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम, नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम। 
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि, गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥ 
Kasturi Tilakam Lalat Patale, Vakshah Sthale Kaustubham;
Nasagre Varmauktikam Karatale, Venu Kare Kankanam.
Sarvange Hari Chandanam Sulalitam, Kanthe Cha Muktavali;
Gopstree Parveshtitho Vijayate, Gopal Choodamani.
I repeatedly pray-bow before Bhagwan Shri Krashn who is adorned with the Sacred Marks of Kasturi (Musk) on His Forehead and Kaustubh Many-Jewel on His Chest. His Nose is decorated with the exquisite pearl, the Palms of His Hands are gently holding a beautiful Flute and the Hands themselves are beautifully decorated with Bracelets.
His Whole Body is smeared with Sandal Paste and His Neck is decorated with a Necklace of Pearls. Surrounded by the Cowherd Woman, Bhagwan Shri Krashn is shining in their middle in Celebration like a Jewel on the Head. I bow before you again & again.
This Mantr is used to invocation-please Bhagwan Shri Krashn. It should be recited in the morning & evening. It has to be chant in front of his idol-statue-picture with fully attention mind to get a peaceful and happiness life. One may cast a mental image and then recite the prayer-rhyme. 
Coconut fruits are offered to him while reciting this Mantr ::
Idam Falam May Dev Sthapit Pur-Tastav; Ten Me Safalanitti Bharavejanmani Janmani.
Beetle leaves are offered to him while reciting this Mantr इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री कृष्ण को पान-बीड़ा समर्पण करना चाहिए :-
ॐ पूंगीफ़लं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्। एला-चूर्णादि संयुक्तं ताम्बुलं प्रतिगृहयन्ताम्॥ 
Om Poongifalam Mahadivyam Nagvalle Dalairyutam; 
Ela-Choornadi Sanyuktam Tambulam Pratigrihayantam. 
Sandal wood paste is  offered to him while reciting this Mantr इस मंत्र को पढ़ते हुए बाल गोपाल भगवान श्री कृष्ण को चन्दन अर्पण करना चाहिए :-
ॐ श्रीखण्ड-चन्दनं दिव्यं गंधाढ़्यं सुमनोहरम्। विलेपन श्री कृष्ण चन्दनं प्रतिगृहयन्ताम्॥
Om Shrikhand-Chandanam Divyam Gandhadhyam Sumanoharam;
Vilepan Shri Krashn Chandanam Pratigrihayantam. 
Fragrant incense  is  offered to him while reciting this Mantr श्री कृष्ण की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सुगन्धित धूप अर्पण करना चाहिए :-
वनस्पति रसोद भूतो गन्धाढ़्यो गन्ध उत्तमः। आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोढ़्यं प्रतिगृहयन्ताम्॥ 
Vanaspati Rasod Bhooto Gandhaadhyo Gandh Uttamah;
Aaghreyah Sarv Devaanaam Dhoopodhyam Pratigrihayantaam. 
Sacred Thread  is  offered to him while reciting this Mantr इस मंत्र के द्वारा नंदलाल भगवान श्री कृष्ण को यज्ञोपवीत समर्पण करना चाहिए :-
नव-भिस्तन्तु-भिर्यक्तं त्रिगुणं देवता मयम्। उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः॥ 
Nav-Bhistantu-Bhiryaktam Trigunam Mayam;
Upveetam Maya Dattam Grihan Parmeshwarah. 
Cloths are  offered to him while reciting this Mantr भगवान देवकी नंदन की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए श्री कृष्ण जी को वस्त्र समर्पण करना चाहिए :-
शति-वातोष्ण-सन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। देहा-लंकारणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में॥ 
Shati-Vatoshn-Santranam Lajjaya Rakshanam Param;
Deha-Lankaranam Vastramatah Shanty Prayachchha Men. 
Bhagwan Shri Krashn's status is immersed in honey while reciting this Mantr भगवान् श्री कृष्ण पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए बाल गोपाल को शहद स्नान करना चाहिए :-
पुष्प रेणु समुद-भूतं सुस्वाद मधुरं मधु। तेज-पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृहयन्ताम्॥ 
Pushp Renu Samud-Bhutam Suswaad Madhuram Madhu;
Tej-Pushtikaram Divyam Snaanartham Pratigrihayantaam.
While reciting this Mantr water is offered to Bhagwan Shri Krashn भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते समय इस मंत्र के द्वारा उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए :-
ॐ पालनकर्ता नमस्ते-स्तु गृहाण करूणाकरः। अर्घ्य च फ़लं संयुक्तं गन्धमाल्या-क्षतैयुतम्॥ 
Om Paalankartaa Namaste-Stu Grihaan Karunaakarah;
Arghya Ch Falam Sanyuktam Gandhmaalya-Kshataiyutam.
While reciting this Mantr seat-cushion is offered to Bhagwan Shri Krashn भगवान श्री कृष्ण के पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें आसन समर्पण करना चाहिए-
ॐ विचित्र रत्न-खचितं दिव्या-स्तरण-सन्युक्तम्। स्वर्ण-सिन्हासन चारू गृहिश्व भगवन् कृष्ण पूजितः॥ 
Om Vichitra Ratna-Khanchitam Divya-Staran-Sanyuktam;
Swarn-Singhasan Chaaru Grihishch Bhagvan Krishna Poojitah.
While reciting this Mantr Bhagwan Shri Krashn is invited to attend the prayer & bless the devotees इस मंत्र के द्वारा भगवान श्री कृष्ण का आवाहन करना चाहिए :-
ॐ सहस्त्र शीर्षाः पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्र-पातस-भूमिग्वं सव्वेत-सत्पुत्वायतिष्ठ दर्शागुलाम्। 
आगच्छ श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव॥ 
Om Sahastra Sheershah Purushah Sahastrakshah Sahastra-Paatas-Bhumigvam Savvet-Satputvaayatishth Darshaagulam;
Aagachchha Shri Krishna Devah Sthaane-Chaatra Sitharo Bhav.

श्री कृष्ण चालीसा
॥दोहा॥
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम। अरुण अधर जनु बिम्बा फल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पिताम्बर शुभ साज। जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
॥चौपाई॥
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन। जय वसुदेव देवकी नन्दन॥ 
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर नाग नथैया। कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरी तेरी। होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजयंती माला॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे। कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो। अका बका कागासुर मारयो॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला। भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई। मसूर धार वारि वर्षाई॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो। गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो। कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो। कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई। उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मारयो। भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो। तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे। दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी। ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके। लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये। भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥
मीरा थी ऐसी मतवाली। विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी। शालिग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो। उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करी तत्काला। जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई। दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला। बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥
अस नाथ के नाथ कन्हैया। डूबत भंवर बचावत नैया॥
सुन्दरदास आस उर धारी। दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो। क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै। बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥
॥दोहा॥
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि। अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥
 भगवान् श्री हरी विष्णु जी पूर्णावतार भगवान कृष्ण की विधिपूर्वक अराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री कृष्ण जी को देवकी नंदन, वासुदेव, बालगोपाल के नाम से भी जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें नारियल फल समर्पण करना चाहिए :-
इदं फ़लं मया देव स्थापित पुर-तस्तव। 
तेन मे सफ़लानत्ति भरवेजन्मनि जन्मनि॥ 

    
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