Thursday, February 4, 2016

DEMIGODS-DEITIES (1) देवी देवता (ऋग्वेद)

DEMIGODS-DEITIES
देवी देवता
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयिं सोमो रयिपतिर्दधातु। अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
संसार को प्रसन्नता देने वाले पूषा हमारे कर्म से तृप्ति प्राप्त करें। धनपति सोम हमें धन प्रदान करें। द्युतिमती और शत्रु रहिता अदिति हमारी रक्षा करें। हम सुसंतति युक्त होकर यज्ञ में आपका यशोगान करें।[ऋग्वेद 2.40.6]
संसार को सुख प्रदान करने वाले पूषा हमारे कर्म से संतुष्ट हों। धन से सम्पन्न सोम हमको धन दें। तेजस्विनी, अदिति शत्रुओं से हमारी रक्षा करें। हम पुत्र और पौत्रों से युक्त, यज्ञ में अधिक श्लोक पाठ करेंगे।
Let Pusha who grant happiness-pleasure to the whole world be satisfied with our endeavours-deeds. Let-wealthy Som grant us riches. Let glorious-bright Aditi having no enemy, protect us. We should sing your glory blessed with sons and grandsons. 
अम्बितमे नदीतमे सरस्वति।
अप्रशस्ताइव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि
हे मातृ गण में श्रेष्ठ, नदियों में श्रेष्ठ और देवों में श्रेष्ठ सरस्वती देवी! हम दरिद्र है, हमें धन से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 2.41.16]
माताओं और सरिताओं में श्रेष्ठता प्राप्त सरस्वती हम निर्धनों को धनी बनायें।
Saraswati Devi is best amongest the mothers, the rivers and the goddesses. 
त्वे विश्वा सरस्वति श्रितायूंषि देव्याम्।
शुनहोत्रेषु मत्स्व प्रजां देवि दिदिड्डि नः
हे माता सरस्वती देवी! आप पावन करने वाले (इस) यज्ञ में प्रसन्न होकर उत्तम संतान प्रदत्त करें। आपका आश्रय प्राप्त होने पर ही हम अपने जीवन का सुख प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 2.41.17]
हे सरस्वती! तुम कांतिमय हो। तुम्हारे आश्रय में अन्न का वास है। यज्ञ में सोम पीकर संतुष्ट होओ। हे सरस्वती! तुम हमको पुत्र रूप संतान प्रदान करो।
Hey Maa Saraswati Devi! You should be happy in purifying Yagy and grant us progeny. We will be able to make our lives happy under your patronage-asylum.
इमा ब्रह्म सरस्वति जुषस्व वाजिनीवति। 
या ते मन्म गृत्समदा ऋतावरि प्रिया देवेषु जुह्वति
हे अन्नवती और जलवती सरस्वती देवी! इस हव्य को स्वीकार करें। यह माननीय और देवों के लिए प्रिय हैं। गृत्समद लोग इसे आपको देते हैं।[ऋग्वेद 2.41.18]
अन्न और जल से परिपूर्ण महान देवी सरस्वती इस हवि को स्वीकृत करें। यह हवि रमणीय है, देवगण इसे चाहते हैं। गृत्समदवंशी इस हवि को तुम्हें प्रदान करते हैं।
Hey food and water granting Devi Maa Saraswati! Accept this offering. This is liked-loved by the honourable demigods-deities. Gratsamad  family offer this to you.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- कपिंजल, इन्द्र, छन्द :- जगती, अशिक्वरी।
कनिक्रदज्जनुषं प्रब्रुवाण इयर्ति वाचमरितेव नावम्।
सुमङ्गलच शकुने भवासि त्वा का चिदभिभा विश्या विदत्
बारम्बार शब्दायमान और भविष्य वक्ता कपिञ्जल जैसे कर्णधार नौका को परिचालित करता है, वैसे ही वाक्य को प्रेरित करता है। हे शकुनि! आप कल्याण सूचक हो। किसी और किसी प्रकार की पराजय आपके पास न आवे।[ऋग्वेद 2.42.1]
बार-बार ध्वनि करने वाला भविष्य का निर्देश करने वाला कपिंजल जैसे नौका को चलाता है, वैसे ही वाणी को मार्ग दर्शन देता है। हे शकुनि (कौआ)! तुम मंगलप्रद होओ।किसी प्रकार की हार, कहीं से भी आकार तुमको ग्रहण न हो।
The way a boatman navigate the boat, fortune teller Kapinjal repeatedly pronounce-guide us. Hey Shakuni! You represent welfare. You should not face defeat in any way. 
Crying repeatedly, and foretelling what will come to pass, the Kapinjal gives due-suitable direction to through his voice, as a helmsman, guides a boat, be ominous, bird, of good fortune and may no calamity whatever befall you from any quarter.
कपिञ्जल :: Kapinjal, the Anukramanika has kanimatarupindro devata, francoline partridge.
मा त्वा श्येन उद्वधीन्मा सुपर्णो मा त्वा विददिषुमान्वीरो अस्ता।
पित्र्यामनु प्रदिशं कनिक्रदत्सुमङ्गलो भद्रवादी वदेह
हे शकुनि! आपको श्येन पक्षी न मारे गरुड़ पक्षी भी न मारे। वह बलवान, वीर और धनुर्धारी होकर आपको न प्राप्त करे। दक्षिण दिशा में बार-बार शब्द करके और सुमंगलशंसी होकर हमारे लिए प्रिय वादी बनें।[ऋग्वेद 2.42.2]
हे शकुनि! बाज पक्षी तुम्हारी हिंसा न करें। गरुड भी तुमको न मारे। वह वीर, बली हाथ में धनुष बाण लेकर भी तुम्हें प्राप्त न कर सके। तुम दक्षिण दिशा में लगातार शब्द करते हुए कल्याण सूचक हुए हमारे लिए प्रिय वचनों को बोलो।
Hey Shakuni! Let Shyen bird and Grud do not kill you. They should not kill you on being mighty, brave and bow-arrow wielding. Cry in the South repeatedly and become auspicious to us.   
अव क्रन्द दक्षिणतो गृहाणां सुमङ्गलो भद्रवादी शकुन्ते। 
मा नः स्तेन ईशत माघशंसो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे शकुनि! सुमंगल सूचक और प्रिय वादी होकर घर की दक्षिण दिशा में बोलो, जिससे चोर और दुष्ट व्यक्ति हमारे ऊपर प्रभुत्व न करे। पुत्र और पौत्र वाले होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.42.3]
हे शकुनि! तुम घर की दक्षिणी दिशा में मृदुवाणी से कल्याण की खबर देने वाली ध्वनि उच्चारण करो। दुष्ट वञ्चक या असुर हमारे स्वामी एवं राजा न बन जायें। पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण होकर हम उस अनुष्ठान में श्लोक का उच्चारण करेंगे।
Hey Shakuni! Be auspicious and spell lovely-pleasing words in the south direction of our homes, so that the thieves and the wicked do not over power us. We should have sons and grand sons and conduct out Yagy successfully. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- कपिजल, इन्द्र, छन्द :- जगती, अशिक्वरी।
 प्रदक्षिणिदभि गृणन्तिकारवो वयो वदन्त ऋतुथा शकुन्तयः।
उभे वाचौ वदति सामगाइव गायत्रं च त्रैष्टुभं चानु राजति
समय-समय पर अन्न की खोज करके स्तोताओं की तरह शकुनि गण प्रदक्षिण करके शब्द करें। जिस प्रकार से साम गायक लोग गायत्री और त्रिष्टुप् (दोनों साम) का उच्चारण करते हैं, उसी प्रकार कपिञ्जल भी दोनों वाक्य का उच्चारण करते हुए श्रोताओं को अनुरक्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.43.1]
समय-समय पर अन्न की खोज करने वाले पक्षीगण वदंना करने वालों की तरह परिक्रमा करते हुए सुन्दर ध्वनि उच्चारण करें। सोम गायको द्वारा गायत्री छन्द और त्रिष्टुप छन्द उच्चारण करने के तुल्य, कपिंजल भी दोनों प्रकार की वाणी करता हुआ सुनने वालों को मोहित कर लेता है। 
Time & again the Shkuni Gan (Crows) should produce sound while searching food like the Stota. The Kapinjal should recite two stanzas-Strotr, Mantr, hymns, the first Gayatri and the second Trishtup, both from Sam Ved amusing the listeners. 
उद्गातेव शकुने साम गायसि ब्रह्मपुत्रइव सवनेषु शंससि। वृषेव वाजी शिशुमतीरपीत्या सर्वतो नः शकुने भद्रमा वद विश्वतो नः शकुने पुण्यमा वद
हे शकुनि! जैसे उद्गीता साम गान (ऊँचे स्वर में गाया हुआ) करते हैं, वैसे ही आप भी गावें। यज्ञ में ब्रह्म पुत्र ऋत्विक् की तरह आप शब्द करें। जैसे सेचन समर्थ अश्व अश्वी के पास जाकर शब्द करता है, वैसे ही आप भी करें। हे शकुनि! आप सर्वत्र हमारे लिए मंगल सूचक और पुण्य जनक शब्द का उच्चारण करें।[ऋग्वेद 2.43.2]
हे शकुनि! सोम के उद्गाता जैसे सोम ग्रहण करते हैं, वैसे ही तुम भी सुन्दर गान करो यज्ञ में ऋत्विग्गण जैसे शब्द करते हैं, वैसे ही तुम भी करो। तुम सभी ओर से हमारे लिए पुष्य बढ़ाने वाले कल्याण की सूचना प्राप्त करते हो।
Hey Shakuni! You should sing the hymns of Sam Ved just like the singers of Sam Ved in loud voice. Sing it the way the son of Brahm Ritvik does. You should follow the manner-method in which the horse produce sound-neighing in the company of she horse-mare, inducing her for mating. Hey Shakuni! Always pronounce the words representing auspiciousness, welfare and virtues.
आवदंस्त्वं शकुने भद्रमा वद तूष्णीमासीनः सुमतिं चिकिद्धि नः। 
यदुत्पतन्वदसि कर्करिर्यथा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे शकुनि! जिस समय आप शब्द करते हैं, उस समय हमारे लिए मंगल सूचना करते है। जिस समय चुप रहकर आप बैठते हैं, उस समय हमारे प्रति सुप्रसन्न रहते हैं। उड़ने के समय आप कर्करि (एक बाजा) की तरह शब्द करते है। हम पुत्र और पौत्र वाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.43.3] 
जब तुम चुप होकर बैठ जाते हो तब ऐसा जान पड़ता है कि तुम हमारे से प्रसन्न नहीं हो। जब तुम उड़ते हो तब कर्करि के समान मृदु ध्वनि करते हो। हम पुत्र और पौत्रवान हुए इस अनुष्ठान में रचित हुई प्रार्थनाओं का गान करेंगे।
Hey Shakuni-crow! You always caw-produce sound indicating our welfare. When ever you sit silently we assume that you are unhappy with us. When you fly, you sound like the musical instrument called Karkari. We will accomplish a Yagy, when we are blessed with sons and grandsons.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- आप्रीसूक्त, छन्द :- त्रिष्टुप्।
समित्समित्सुमना बोध्यस्मे शुचाशुचा सुमतिं रासि वस्वः। 
आ देव देवान्यजथाय वक्षि सखा सखीन्त्सुमना यक्ष्यग्ने
हे समिद्ध अग्नि देव! अनुकूल मन से जागृत हों। आप अतीव गतिशील तेज से युक्त होकर हमारे ऊपर धन के लिये अनुग्रह करें। द्योतमान् अग्निदेव! देवों को आप यज्ञ में लावें। आप देवों के मित्र हैं। अनुकूल मन से मित्र देवों का यज्ञ करें।[ऋग्वेद 3.4.1] 
हे अग्नि देव! तुम समृद्धि को प्राप्त होओ। अनुकूल मन से चैतन्य प्राप्त करो। तुम द्रुतगति वाले हो। अपने तेज से हम पर धन-युक्त वृष्टि करो। देवगणों को इस यज्ञ में लाओ, क्योंकि तुम देवताओं के मित्र हो। उत्तम मन से अपने मित्र देवताओं का पूजन करो।
Hey prosperous Agni Dev! Awake favourably through your innerself. Grant us wealth associating yourself with high energy. You are a friend of the demigods-deities. Hey energetic Agni Dev! Bring the demigods-deities to our Yagy with favourable innerself. 
यं देवासस्त्रिरहन्नायजन्ते दिवेदिवे वरुणो मित्रो अग्निः। 
सेमं यज्ञं मधुमन्तं कृधी नस्तनूनपाद्धृतयोनिं विधन्तम्
वरुण, मित्र और अग्नि जिन तनूनपात नामक अग्नि का प्रतिदिन तीन बार करके यज्ञ करते हैं, वे ही हमारे इस जल कारण यज्ञ को वृष्टि आदि फल दें।[ऋग्वेद 3.4.2]
वरुण, मित्र और अग्नि जिनका प्रतिदिन तीनों समय यज्ञ करते हैं, वे तनूनपात अग्नि हमारे जल की कामना वाले यज्ञ का फल वर्षा रूप में दें।
Tanunpat Agni for whom Yagy is conducted thrice by Varun, Mitr and Agni, shall grant us the reward of the Yagy in the form of rains. 
प्र दीधितिर्विश्ववारा जिगाति होतारमिळः प्रथमं यजध्यै। 
अच्छा नमोभिर्वृषभं वन्दध्यै स देवान्यक्षदिषितो यजीयान्
देवों के आह्वानकारी अग्नि के पास सर्वजन प्रिय प्रार्थना गमन करें। इला, प्रसन्नता उत्पन्न करने के लिए, प्रधान, अतीव अभीष्टवर्षी और वन्दनीय अग्नि देव के पास जावें। यज्ञ कर्म में कुशल अग्नि देव हमारे द्वारा प्रेरित होकर यज्ञ करें।[ऋग्वेद 3.4.3]
देवताओं का आह्वान वाले की प्यारी हो। उत्पन्न के लिए इला अभिष्ट पूरक पूज्य अग्नि के समीप पहुँचे। यज्ञ कुशल अग्निदेव हमारे लिए पूजन करें।
Let all of us make prayers for Agni Dev, who invoke-invite the demigods-deities. Ila should go to the leader Agni Dev, who is the leader, grants accomplishments and deserve worship. Agni Dev, an expert in organising-conducting Yagy should be inspired to perform Yagy for us.
बुध और इला

इला :: इन्हें अन्न की और पृथ्वी की अधिष्ठातृ देवी माना जाता है। वैदिक वाङमय में इला को मनु को मार्ग दिखलाने वाली एवं पृथ्वी  पर यज्ञ का विधिवत् नियमन करनेवाली कहा गया है। इला के नाम पर ही जंबूद्वीप के नवखंडों में एक खंड  को इलावृत वर्ष कहते हैं। महाभारत तथा पुराणों की परंपरा में इला को बुध की पत्नी एवं पुरूरवा की माता कहा गया है।
वैवस्वत मनु के दस पुत्र हुए। उनके एक पुत्री भी थी इला, जो बाद में पुरुष बन गई।
वैवस्वत मनु ने पुत्र की कामना से मित्रावरुण यज्ञ किया। उनको पुत्री की प्राप्ति हुई, जिसका नाम इला रखा गया। उन्होंने इला को अपने साथ चलने के लिए कहा किन्तु इला ने कहा कि क्योंकि उसका जन्म मित्रावरुण के अंश से हुआ था, अतः उन दोंनो की आज्ञा लेनी आवश्यक थी। इला की इस क्रिया से प्रसन्न होकर मित्रावरुण ने उसे अपने कुल की कन्या तथा मनु का पुत्र होने का वरदान दिया।
कन्या भाव में उसने चन्द्रमा के पुत्र बुध से विवाह करके पुरूरवा नामक पुत्र को जन्म दिया।
तदुपरान्त वह सुद्युम्न बन गयी और उसने अत्यन्त धर्मात्मा तीन पुत्रों से मनु के वंश की वृध्दि की जिनके नाम इस प्रकार हैं :- उत्कल, गय तथा विनताश्व।
ऊर्ध्वो वां गातुरध्वरे अकार्यूर्ध्वा शोचींषि प्रस्थिता रजांसि। 
दिवो वा नाभा न्यसादि होता स्तृणीमहि देवव्यचा वि बर्हिः
अग्नि और बर्हिरूप अग्नि के लिए यज्ञ में एक उन्नत मार्ग है। दीप्ति युक्त हव्य ऊपर जाता है। दीप्तिमान् यज्ञ घर के नाभिप्रदेश में होता उपविष्ट है। हम देवों के द्वारा व्याप्त कुश को बिछाये।[ऋग्वेद 3.4.4]
अनुष्ठान में अग्नि के लिए उन्नति का मार्ग निश्चित है। उज्जवल हवि ऊपर उठती है। ज्योतिवान यज्ञ के नाभि से होता स्थित है। हम देवों के लिए धरा पर कुश बिछा लेंगे।
There is an elevated path for Agni Dev & Barhirup Agni. Glowing-aurous offerings rise up (to heavens for the sake of demigods-deities). The aurous-brilliant Yagy is placed-organised at the nucleus-center of the house. Let us spread Kush (grass, mat for the demigods-deities).
सप्त होत्राणि मनसा वृणाना इन्वन्तो विश्वं प्रति यन्नृतेन। 
नृपेशसो विदथेषु प्र जाता अभी ३ मं यज्ञं वि चरन्त पूर्वीः
जल द्वारा संसार के प्रसन्नकर्ता देवता लोग सप्त यज्ञ में जाते हैं। वे अकपट चित्त से याचित होकर नररूपी यज्ञजात प्रत्यक्ष होकर हमारे इस यज्ञ में आवें।[ऋग्वेद 3.4.5]
संसार को खुश करने वाले देव जल द्वारा अनुष्ठान को ग्रहण हैं। वे कोमल हृदय विनती किये जाने पर अग्नि रूप द्वार से हमारे यज्ञ में पधारकर प्रकट हों।
The demigods-deities who are please the universe with water, goes to the Sapt Yagy. They should come to our Yagy in the form of humans, clear heatedly-free mind.
The demigods-deities who gratify the universe with rain are present at the seven offerings of the ministering priests, when solicited with sincerity of mind; may the many deities who are engendered in sensible shapes at sacrifices come to this our rite.
आ भन्दमाने उषसा उपाके उत स्मयेते तन्वा ३ विरूपे। 
यथा नो मित्रो वरुणो जुजोषदिन्द्रो मरुत्वाँ उत वा महोभिः
स्तूयमान अग्नि रूप रात और दिन, परस्पर आपस में संगत होकर या पृथक रूप से, सशरीर प्रकाशित होकर आयें। मित्र, वरुण या इन्द्र हमें जिस रूप से अनुगृहीत करते हैं, तेजस्वी होकर उसी रूप को धारित करें।[ऋग्वेद 3.4.6]
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करनेवाला, शोभायमान, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलहप्रिय; majestic, stunning, rattling, fiery.
प्रकाशमान दिन और रात आपस में हँसते हुए विकसित हों। मित्र, वरुण और इन्द्र जिस रूप में हम पर दया करते हैं, वे तेजस्वी उसी रूप को हमारे लिए स्वीकार करें।
Let aurous Agni come-grow during the day & night. Adopt that majestic physical-embodiment form which Mitr, Varun or Indr Dev possess while showering bliss over us.
May the adored Day and Night, combined or separate, be manifest in bodily form, so that Mitr, Varun or Indr may rejoice us by their glories.
दैव्या होतारा प्रथमा न्यृञ्जे सप्त पृक्षासः स्वधया मदन्ति। 
ऋतं शंसन्त ऋतमित्त आहुरनु व्रतं व्रतपा दीध्यानाः
मैं दिव्य और प्रधान अग्नि रूप दोनों होताओं को प्रसन्न करता हूँ। यज्ञाभिलाषी, सप्त और अन्नवान् ऋत्विक् लोग हव्य द्वारा अग्नि को प्रमत्त करते हैं। व्रत के रक्षक और दीप्तिशाली ऋत्विक् लोग प्रत्येक व्रत में यज्ञ रूप अग्नि देव को यही बात कहते हैं।[ऋग्वेद 3.4.7]
दिव्य और मुख्य अग्नि रूप दोनों होताओं की मैं प्रार्थना करता हूँ। यज्ञ की कामना से अन्न चाहने वाले ऋत्विक यज्ञ रूप अग्निदेव की प्रशंसा करते हैं।
I pray-appease the divine and the main-real forms of Agni Dev as the hosts-Ritviz. The seven Ritviz desirous of conducting-holding Yagy, ignite the fire-Agni possessing the food grains & making offerings. The Ritviz possessing aura, protecting the Yagy, appreciate Agni Dev.
I propitiate the two chief divine invokers of the demigods-deities, the seven offerors of sacrificial food, expectant of water, gratify Agni with oblations, the illustrious observers of sacred rites have saluted him in every ceremony as identifiable, verily, with water.
आ भारती भारतीभिः सजोषा इळा देवैर्मनुष्येभिरग्निः। 
सरस्वती सारस्वतेभिरर्वाक् तिस्रो देवीर्बहिरेदं सदन्तु
भारती लोगों के साथ अग्नि-रूप भारती आयें, देवों और मनुष्यों के साथ इला आयें, अग्नि भी आयें। सारस्वत गणों के साथ सरस्वती भी आयें और ये तीनों देवियाँ आकर सम्मुखस्थ कुश पर बैठे।[ऋग्वेद 3.4.8]
सूर्य दीप्ती के साथ अग्नि रूप भारती ग्रहण हों। देवताओं के साथ मनुष्यों को इला ग्रहण हों। तेजस्वी विद्वानों के संग सरस्वती भी यहाँ पर पधारे। ये तीनों देवियाँ कुश के आसन पर विराजमान हों। 
Let Bharti in the form of Agni come, Ila should come, associated with the demigods-deities. Devi Saraswati should come with the enlightened. The three Goddesses should come and occupy the Kushasan.
May Bharati, associated with the Bhartis, Ila with the demigods-deities and men and Agni and Devi Saraswati with the Sarasvatas, may the three goddesses sit down upon the sacred grass-Kushasan strewn before them.
तन्नस्तुरीपमध पोषयित्नु देव त्वष्टर्वि रराणः स्यस्व। 
यतो वीरः कर्मण्यः सुदक्षो युक्तग्रावा जायते देवकामः
अग्नि रूप त्वष्टा देव, जिससे वीर, कर्म कुशल, बलशाली, सोमाभिषव के लिए प्रस्तर हस्त और देवाभिलाषी पुत्र उत्पन्न हो सके, सन्तुष्ट होकर आप हमें वैसा ही त्राण कुशल और पुष्टिकारी वीर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.4.9]
हे त्वष्टा! जिस वीर्य से कर्मवान, पराक्रमी सोम सिद्ध करने वाला, देवों का पूजक पुत्र रचित हो सके, तुम प्रसन्न होकर वैसा ही पुष्ट वीर्य हमको प्रदान करो।
Hey Twasta Dev, a form of Agni Dev! You should be pleased & satisfied with us to provide us with strong-powerful sperms and grant us such sons who are able, posses valour & can extract Somras. 
वनस्पतेऽव सृजोप देवानग्निर्हविः शमिता सूदयाति। 
सेदु होता सत्यतरो यजाति यथा देवानां जानिमानि वेद
हे अग्नि रूप वनस्पति! आप देवों को पास ले आयें। पशु के संस्कारक अग्नि देवों के लिए हव्य दें। वे ही यज्ञ-रूप देवता लोगों को बुलाने वाले अग्नि देव यज्ञ करें; क्योंकि वे ही देवों का जन्म जानते हैं।[ऋग्वेद 3.4.10]
हे वनस्पते! तुम देवों को यहाँ लाओ। प्राणी को संस्कारित करने वाले अग्निदेव आह्वान यज्ञ करें क्योंकि वे ही देवगणों के ज्ञाता हैं।
Hey vegetation, a form of Agni Dev! Bring-invoke demigods-deities here. Make offerings for the sake of Agni Dev who generate virtues in the living beings. Let Agni dev invite-invoke demigods-deities for the Yagy, since he has evolved them.
आ याह्यग्ने समिधानो अर्वाङिन्द्रेण देवैः सरथं तुरेभिः। 
बर्हिर्न आस्तामदितिः सुपुत्रा स्वाहा देवा अमृता मादयन्ताम्
हे अग्नि देव! आप दीप्ति-युक्त होकर इन्द्र और शीघ्रताकारी देवों के साथ एक रथ पर हमारे सम्मुख पधारें। सुपुत्र युक्ता अदिति माता हमारे कुश पर बैठें। नित्य देवगण अग्निरूप स्वाहाकार वाले तृप्ति प्राप्त करें।[ऋग्वेद 3.4.11]
हे अग्नि देव! तुम प्रकाशवान हुए इन्द्र आदि देवताओं के साथ अदिति हमारे कुश को आसन पर विराजमान हों। अग्नि रूप से स्वाहाकार युक्त हुए देवगण संतुष्ट हों।
Hey Agni Dev! You should quickly come to us, in the charoite acquiring aura. Devi Aditi along with her able sons, occupy the Kushasan. Let the demigods-deities be satisfied everyday while making offerings in holy fire-Agni. 
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- नद्य, इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप, अनुष्टुप्।
प्र पर्वतानामुशती उपस्थादश्वेइव विषिते हासमाने। 
गावेव शुभ्रे मातरा रिहाणे विपाट्छुतुद्री पयसा जवेते
जल प्रवाह वती विपाशा और शुतुद्री नाम की दो नदियाँ पर्वत की गोद से सागर सङ्गमा भिलाषिणी होकर घुड़ साल से विमुक्त घोड़ियों के तुल्य स्पर्द्धा करती हुई, दो गायों के तुल्य सुशोभित होकर वत्सलेहाभिलाषिणी हो गायों के तुल्य वेग से समुद्र की ओर जाती है।[ऋग्वेद 3.33.1]
घुड़साल :: अस्तबल, भीड़, गुलमेख, टेक, दुहरा बटन, कफ़-बटन; stud, mews, stable.
जल से परिपूर्ण प्रवाह वाली विपासा और शुतद्री नदियाँ पहले के अंग से निकलकर समुद्र से मिलने की इच्छा वाली होकर, अश्व की शिला से विमुक्त, अश्व के तुल्य स्पर्द्धावान होती हुई, दो गौओं के तुल्य सुशोभित हुई गति से समुद्र की तरफ चलती हैं।
Two rivers named Vipasha and Samudri comes out of the mountains and flow towards the ocean, like the mare released from the stable, decorated like the affectionate cows, moving at high speed. 
इन्द्रेषिते प्रसवं भिक्षमाणे अच्छा समुद्रं रथ्येव याथः। 
समाराणे ऊर्मिभिः पिन्वमाने अन्या वामन्यामप्येति शुभ्रे
नदीद्वय, आपको इन्द्र देव प्रेरित करते हैं। आप उनकी प्रार्थना श्रवण करती है। दो रथियों के तुल्य समुद्र की ओर जाती हैं। आप एक सार प्रवाहित होकर, तरङ्ग द्वारा वर्द्धित होकर, परस्पर आस-पास जाती हुई सुशोभित हो रही हैं।[ऋग्वेद 3.33.2]
हे दोनों नदियों! इन्द्र तुम्हें प्रेरणा प्रदान करते हैं। तुम निरन्तर प्रार्थना सी करती हुई दो रथियों के समान समुद्र को प्राप्त करती हो। प्रवाहमान हुई तरंगों द्वारा बढ़कर निरंतर मिलने का प्रयास करती हुई सी चलती हो और शोभा पाती हो। 
Hey river duo, inspired by Indr Dev! You move responding-listening to Indr Dev, towards the ocean, just as the charoites move. Moving with constant speed, you attain glory, moving side by side.
अच्छा सिन्धुं मातृतमामयासं विपाशमुर्वी सुभगामगन्म। 
वत्समिव मातरा संरिहाणे समानं योनिमनु संचरन्ती
मातृ तुल्य सिन्धु नदी के पास उपस्थित हुआ हूँ, परम सौभाग्यवती विपाशा अर्थात् व्यास के पास उपस्थित हुआ हूँ। ये दोनों बछड़े को चाटने की इच्छा वाली गायों के तुल्य एक स्थान की ओर जाती हैं।[ऋग्वेद 3.33.3]
जननी के समान सिन्धु नदी और उत्तम सौभाग्यशाली विपाशा नदी को ग्रहण होता हूँ। यह दोनों वत्साभिलाषी धेनुओं को समान आश्रय स्थान की ओर जाती हैं।
I am present over the rive Sindhu, highly auspicious Vipasha, which are like mother. They move like the cows who lick their calf towards the ocean-their ultimate resting place to merge with it.
A Hindu respect-pray the rivers like a mother, since the rivers provide water to them for survival, cultivation, irrigation, civilization etc. The rivers are like mother to us. 
एना वयं पयसा पिन्वमाना अनु योनिं देवकृतं चरन्तीः। 
न वर्तवे प्रसवः सर्गतक्तः किंयुर्विप्रो नद्यो जोहवीति
हम दोनों नदियाँ इस जल से धुलकर देवकृत स्थान के सामने जाती हैं। हमारे जाने का उद्योग कार्य बन्द होने वाला नहीं है। किसलिए यह विप्र-ब्राह्मण हम दोनों नदियों को पुकारता है।[ऋग्वेद 3.33.4]
यह नदियाँ जल से पूर्ण हुई प्रदेशों की भूमि सींचती हुई परमात्मा के रचित स्थल पर चलती हैं। इनकी गति कभी रुकती नहीं, हम इन नदियों के अनुकूल होते ही ग्रहण होते हैं।
The rivers move to the places-pilgrim sites, irrigating-fertilizing the land-fields as per directive of Indr Dev. Their flow never stops. The Brahmans worship, pray-call these rivers.
The Brahmans-Priests, Vishwamitr, regularly carry out rituals Arti of the holy rivers.
रमध्वं मे वचसे सोम्याय ऋतावरीरुप मुहूर्तमेवैः। 
प्र सिन्धुमच्छा बृहती मनीषावस्युरह्वे कुशिकस्य सूनुः
जलवती नदियों, मेरे सोम सम्पादक वचन के लिए एक क्षण के लिए जाने से विरत होवें। मैं कुशिक का पुत्र हूँ; प्रसन्नता के लिए महती प्रार्थना के द्वारा नदियों को अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 3.33.5]
हे जल से परिपूर्ण सरिताओं! मेरे सोम संपन्नता के कार्य की बात श्रवण करने के लिए एक क्षण भर के लिए चलते-चलते रुको। मैं कौशिक पुत्र विश्वामित्र बृहती प्रार्थना से प्रसन्नता प्राप्त कर और अपनी अभिष्ट पूर्ति हेतु इन नदियों का आह्वान करता हूँ।
Hey rivers halt for a moment, for me to carry out the task pertaining-related to Som. I Vishwamitr, son of Kaushik requests the rivers to come to help me to accomplish my desires.
इन्द्रो अस्माँ अरदद्वज्रबाहुरपाहन्वृत्रं परिधिं नदीनाम्। 
देवोऽनयत्सविता सुपाणिस्तस्य वयं प्रसवे याम उर्वीः
वज्रबाहु इन्द्र देव ने नदियों के परिवेष्टक वृत्रासुर का वध करके हम दोनों नदियों को खोदा है। जगत्प्रेरक, सुहस्त और द्युतिमान् इन्द्र देव ने हमें प्रेरित किया है। इन्द्र की आज्ञा से हम प्रभूत होकर जाती हैं।[ऋग्वेद 3.33.6]
नदियों को रोकने वाले वृत्र का पतन कर वज्रधारी इन्द्र देन हम दोनों नदियों का मार्ग खोल दिया। श्रेष्ठ भुजाओं वाले, तेजस्वी तथा संसार को शिक्षा प्रदान की है। हम आदेश के निर्देश से विचरण करती हैं।
Indr Dev killed Vratr, who blocked the flow of the rivers and maintained their flow. Luminous Indr Dev, possessing best arks-hands, inspires the universe & he inspired us too. We flow to carry out the orders of Indr Dev.
प्रवाच्यं शश्वधा वीर्यं १ तदिन्द्रस्य कर्म यदहिं विवृश्चत्। 
वि वज्रेण परिषदो जघानायन्नापोऽयनमिच्छमानाः
इन्द्र देव ने जिस तरह अहि-वृत्र को विदीर्ण किया, उनके उस वीर कार्य का सदा कीर्तन करना चाहिए। इन्होंने चारों ओर आसीन अवरोधन करने वाले लोगों को वज्र से विनष्ट किया। तब जल प्रवाह समुद्र से मिलने की इच्छा करते हुए प्रवाहित हुआ।[ऋग्वेद 3.33.7]
इन्द्र देव द्वारा वृत्र पतन के वीरता पूर्ण कर्म का हमेशा गान करना चाहिये। इन्द्र देव ने समस्त दिशाओं से बाधा प्रदान करने वालों को खोजकर वज्र से समाप्त कर डाला। तब विचरणशील जल आने लगा।
The manner in which Indr Dev, eliminated Ahi-Vratr, deserve to be always remembered-appreciated. Indr Dev discovered those who were creating obstructions and vanished-killed them leading to the flow of waters in the rivers.
एतद्वचो जरितर्मापि मृष्ठा आ यत्ते घोषानुत्तरा युगानि। 
उक्थेषु कारो प्रति नो जुषस्व मा नो नि कः पुरुषत्रा नमस्ते
हे स्तोता! आप यह जो वाक्य घोषणा करते हैं। उसे नहीं भूलना। भविष्यत् यज्ञ-दिन में मन्त्र-रचना करके आप हमारी सेवा करें। हम दोनों नदियाँ आपको नमस्कार करती हैं। हमें पुरुष की तरह प्रगल्भ नहीं करना।[ऋग्वेद 3.33.8]
प्रगल्भता :: चतुराई, प्रतिभा; vulnerability, maturity, insolence, impertinence, cheekiness, outspokenness, venturesome ness. 
हे वंदना करने वाले तुम अपने प्रण को मत भूलना। आने वाले युंग के दिवसों में स्तोत्र रचकर तुम हमारी अर्चना करना।
Hey worshiper-devotee! Never forget your proclamation and pray to us with the recitation of Mantr. We river duo salute you. Never ditch-forget us. 
ओ षु स्वसारः कारवे शृणोत ययौ वो दूरादनसा रथेन।
नि षू नमध्वं भवता सुपारा अधोअक्षाः सिन्धवः स्त्रोत्याभिः
हे भगिनीभूत नदीद्वय! मैं विश्वामित्र प्रार्थना करता हूँ; श्रवण करो, मैं दूर देश से रथ और अश्व लेकर आता हूँ। आप निम्नस्थ बनो, ताकि मैं पार हो जाऊँ। हे नदीद्वय! स्रोतवत् जल के साथ रथ चक्र के अधोदेश में गमन करें।[ऋग्वेद 3.33.9]
हे परस्पर बहन रूप दोनों नदियों! मैं कौशिक वंदना करता हूँ। मैं सुदूर से रथ में घोड़ा जोत कर लाया हूँ। तुम नीची हो जाओ जिससे मैं तुम्हें पार कर सकूँ। श्लोक के जल के समान रथ चक्र के आधे भाग तक उच्च रहकर ही प्रवाहित हो। 
Hey sister duo rivers! I Vishwamitr pray to you, listen-respond to my prayers. Please lay down a bit so that I can cross you. Move like the flow of a water fall in the lower part-section of the charoite.
आ ते कारो शृणवामा वचांसि ययाथ दूरादनसा रथेन।
नि ते नंसै पीप्यानेव योषा मर्यायेव कन्या शश्वचै ते
हे स्तोता! हमने आपकी सारी बातें सुनीं। आप दूर से आए हैं, इसलिए रथ और शकट के साथ गमन करें। जिस प्रकार से पुत्र को स्तनपान कराने के लिए माता और जिस प्रकार से मनुष्य को आलिङ्गन करने के लिए युवती स्त्री अवनत होती हैं, उसी प्रकार हम भी आपके लिए अवनत होती हैं।[ऋग्वेद 3.33.10]
आलिंगन :: प्रेमालिंगन, लिंगन, कोल, अंक, अंकवार, पकड़, बकल, बकसुआ; hug, embrace, clasp, hug. 
हे वंदना करने वाले! हम नदियों ने तुम्हारी बात सुन ली है। तुम दूर से पधारे हो। अतः शकट और रथ के साथ जाओ। जिस तरह माता पुत्र को स्तनपान कराने की तथा पत्नी पति से मिलने को झुकती है उसी प्रकार हम भी तुम्हारे लिए झुकती हैं।
Hey worshiper-devotee! We heard-listened to you. Since, you have come from a distant place, hence you move with your charoite and cart. The way mother bend to feed her son and the woman bend to clasp-embrace her husband we too bow before you. 
यदङ्ग त्वा भरताः संतरेयुर्गव्यन्ग्राम इषित इन्द्रजूतः। 
अर्षादह प्रसवः सर्गतक्त आ वो वृणे सुमतिं यज्ञियानाम्
हे नदीद्वय! वास्तविकता तो यह है, भरत कुलोत्पन्न आपको पार करेंगे, चूँकि पार जाने के इच्छुक भरत वंशीय लोग इन्द्र द्वारा प्रेरित और आपके द्वारा अनुज्ञात होकर पार होंगे, चूँकि वे लोग पार होने की चेष्टा करते हैं और आपकी अनुमति पा चुके हैं, इसलिए मैं-विश्वामित्र सभी जगह आपकी प्रार्थना करूँगा। आप यज्ञार्ह हैं।[ऋग्वेद 3.33.11]
दोनों नदियों! भरत वंश वाले, तुम्हें पार करने की कामना वाले भारतीय, इन्द्र द्वारा प्रेरित तुम्हारे द्वारा पार किये जायेंगे। उस पार जाने का प्रयास करने वालों को तुम अनुमति दे चुकी हो। इसलिए मैं, विश्वामित्र तुम्हारी हमेशा प्रशंसा करूँगा। तुम पूजन करने योग्य हो।
Hey river duo! The descendants of Bharat clan will cross you, inspired by Devraj Indr & permitted by you. I will always pray-appreciate you, since you deserve worship. 
अतारिषुर्भरता गव्यवः समभक्त विप्रः सुमतिं नदीनाम्। 
प्र पिन्वध्वमिषयन्तीः सुराधा आ वक्षणाः पृणध्वं यात शीभम्
गोधनाभिलाषी भरतवंशीय लोग पार हो गये, ब्राह्मण लोग नदियों की सुन्दर प्रार्थना करते हैं। आप अन्न कारिणी और धन समन्विता होकर छोटी-छोटी नदियों को तृप्त और परिपूर्ण करते हुए शीघ्र गमन करें।[ऋग्वेद 3.33.12]
गोधन की इच्छा करने वाले भारतीय पार हो गये। विद्वानों ने नदियों का भली-भांति पूजन किया। तुम अन्न की कारण भूत तथा धन से सम्पन्न होकर छोटी नदियों को भी जल से पूर्ण करती हुई द्रुतगति से चलती रहो।
The descendants of Bharat clan crossed the river and the enlightened-Brahmans performed prayers. You are the cause, motive, source of food grains production and support small-inferior rivers filling them with water, while moving at fast speed.  
उद्व ऊर्मिः शम्या हन्त्वापो योक्त्राणि मुञ्चत। 
मादुष्कृतौ व्येनसाध्यौ शूनमारताम्
हे नदीद्वय! आपकी तरह इस प्रकार प्रवाहित हो कि युगकील उसके ऊपर रहे, आप रज्जु अर्थात् रस्सी को नहीं छूना। पाप शून्या, कल्याणकारिणी और अनिन्दनीया विपाशा-व्यास और शुतुद्री-सतलुज नदी इस समय न बढ़ें।[ऋग्वेद 3.33.13]
दोनों नदियों! तुम इस प्रकार से प्रवाहित होओ कि दोनों कीलें ऊपर रहें। तुम रज्जु को छूना नहीं। पाप से रहित कल्याण करने वाली अनिद्य विपाशा और शुतुद्री, तुम्हारी लहर इस समय अधिक ऊँची न उठे।
Hey river duo! Flow in such a manner that the two pointers of time-Yoke (Yug) remain up without touching the cord. The waves of sinless, beneficial Vyas & Satluj rivers, do not rise up at this juncture of time.
These pointers are aligned with Dhruv-a star, the location of which is almost fixed, with respect to Sapt rishi Mandal, aligned with the movements of planets and the Sun.
F1, F2, FOCII OF THE SUN
दो कीलें
Hey rive duo! Let your waves flow in such a manner that the pin of the yoke may be above their waters, leave the traces full and may the two streams, exempt from misfortune or defect and uncensored, exhibit no (present) increase.

 
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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