Thursday, February 4, 2016

SOMRAS सोमरस-SOMVALLI सोमवल्ली

SOMRAS  SOMVALLI
सोमरस-सोमवल्ली
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
इयं सोमकला नाम 
वल्ली परमदुर्लभा। 
अनया बद्ध सूतेन्द्रो लक्षवेधी प्रजायते॥
जिसके पन्द्रह पत्ते होते हैं, जिसकी आकृति सर्प की तरह होती है, जहाँ से पत्ते निकलते हैं, वे गाँठें लाल होती हैं, ऐसी वह पूर्णिमा के दिन लाई हुई पँचांग (मूल, डंडी, पत्ते, फूल और फल) से युक्त सोमवल्ली पारद को बद्ध कर देती है।[रसेन्द्र चूड़ामणि 6.6-9]
SOM VALLI
पूर्णिमा के दिन लाया हुआ पँचांग (मूल, छाल, पत्ते, फूल और फल) से युक्त सोम वृक्ष भी पारद को बाँधना, पारद की भस्म बनाना आदि कार्य कर देता है। सोम वल्ली और सोमवृक्ष, इन दोनों में सोम वल्ली अधिक गुण वाली है। इस सोम वल्ली का कृष्ण पक्ष में प्रति दिन एक-एक पत्ता झड़ जाता है और शुक्ल पक्ष में पुनः प्रतिदिन एक-एक पत्ता निकल आता है। इस तरह लता बढ़ती रहती है। 
इसके पंद्रह पत्ते होते हैं, जो शुक्ल पक्ष में, प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक, एक-एक करके उत्पन्न होते हैं और फिर कृष्ण पक्ष में, प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक, पंद्रह दिनों में एक-एक करके वे सब पत्ते गिर जाते हैं। इस प्रकार अमावस्या को यह लता पत्रहीन हो जाती है।
पूर्णिमा के दिन इस इस लता का कन्द निकाला जाय तो वह बहुत श्रेष्ठ होता है। धतूरे के सहित इस कन्द में बँधा हुआ पारद देह को लोहे की तरह दृढ़ बना देता है और इससे बँधा हुआ पारद लक्ष भेदी हो जाता है अर्थात एक गुणा बद्ध पारद लाख गुणा लोहे को सोना बना देता है। यह सोम नाम की लता अत्यन्त दुर्लभ है। 
देवताओं के द्वारा पीया जाने वाला अद्भुत पेय इससे से तैयार किया जाता है। इसको मदिरा-शराब कहना सर्वथा मतिभ्रम है।
सोमवल्ली पन्द्रह पत्ते से युक्त एक छोटी लता होती है, जो पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है। अमावस्या को यह बेल बिना पत्तों के होती है। पूर्णिमा को पूरे पत्ते रहते हैं। इसका प्रयोग सोमयज्ञ, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अवरोध शक्ति को बढ़ाने हेतु किया जाता है। यह गहरे बादामी रंग का पौधा है।
यत्र ग्रावा पृथुबुध्न ऊर्ध्वो भवति सोतवे।
उलूखलसुतानामवेद्विन्द्र जल्गुलः॥
हे इन्द्रदेव! जहाँ (सोमवल्ली) कूटने के लिए बड़ा मूसल उठाया जाता है (अर्थात सोमरस तैयार किया जाता है), वहाँ (यज्ञशाला में) उलूखल से निष्पन्न सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.28.1]
हे इन्द्रदेव! जहाँ कूटने के लिए दृढ़ पत्थर का मूसल उठाया जाता है, वहाँ निष्पन्न किये सोमों को बारम्बार सेवन करो।
Hey Indr Dev! Please come to drink Somras at the place-The Yagy Shala, where big pestle is raised to crush Somvalli to extract Somras in the mortar.
Som Valli & Somras constitute an integral part of Rig Ved. Till ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 28 almost every Sukt has it as the favourite drink of demigods-deities, especially Dev Raj Indr.
सोमयाग में तृतीय सवन को आर्भव पवमान कहा गया है। तृतीय सवन से पूर्व प्रातः और माध्यन्दिन सवन में जो सोमरस देवों को प्रस्तुत किया जाता है, वह सोमलता को कूट-पीस कर निकाला जाता है। तृतीय सवन तक आते-आते सोमरस तो समाप्त हो जाता है, केवल सोमलता का अवशिष्ट भाग, जिसे ऋजीष कहते हैं, शेष रह जाता है। इस ऋजीष को जल में डालते हैं और फिर उसमें मथी हुई दधि मिलाते हैं।
ओषधियाँ पहले सोम का सम्पादन करती हैं, फिर पशु उन ओषधियों का भक्षण कर अपने दुग्ध में उस सोम का सम्पादन करते हैं। अतः उस दुग्ध से निर्मित दधि को मिलाने से सोम की, रस की कमी पूरी हो जाती है।[ब्राह्मण ग्रन्थ]
Those sinless humans, who perform the deeds with motive as directed in the 3 Veds and drink the Som Ras-extract of vital herbs, worship the Almighty in the form of Indr-the King of demigods-Heaven, attain the heaven on the strength of the meritorious-virtues-piousity and enjoy the divine-celestial pleasures. 
Rig Ved, Sam Ved & Yajur Ved have described the procedure-methodology for attaining the heaven after death. Those who wish, even more pleasures, perform Yagy-Agnihotr-prayers to attain heaven. They pray to the God in the form of Indr-the king of heaven. They drink the extract of Som-a creeper which eliminates their sins which are obstruction in the path-journey to heaven. They enjoy there till the period of their stay is not over, in the heaven. Once the reward-outcome of the virtuous deeds performed with the motive is over, they are back to earth. The pleasure in heaven are better as compared to earth. there is s misconception about Som Ras. Some people regard it as wine-alcoholic beverage, which is untrue. In fact it a nourishing extract which provide health, vigour and vitality. Some people believe that the root of that creeper contain these qualities.
त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक-मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्॥
तीनों वेदों में कहे हुए सकाम कर्म-अनुष्ठान को करने वाले और सोम रस को पीने वाले जो पाप रहित मनुष्य यज्ञों के द्वारा, इंद्र रूप से मेरा पूजन करके स्वर्ग प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं, वे पुण्यों के फलस्वरूप पवित्र इन्द्रलोक को प्राप्त करके, वहाँ स्वर्ग के देवताओं के दिव्य भोगों को भोगते हैं।[श्रीमद् भगवद्गीता 9.20]  
Those humans return to the mortal world-earth after enjoying the heavenly pleasures upon exhaustion of the fruits of their Karm-deeds, performed with the motive of attaining the heaven-higher abodes. Thus following the injunctions of the 3 Veds, persons working for the fruit of their actions take repeated birth and death.
ऋक्, साम और यजुः, इन 3 वेदों में सकाम कर्मों का और उनके फलों का वर्णन है। पृथ्वी के निवासी यहाँ के भोगों की अपेक्षा स्वर्ग के भोगों का लालच करने लगते हैं और इसी कारणवश यज्ञों का अनुष्ठान करने में लग जाते हैं। इन अनुष्ठाओं का फल नाशवान है। सोमलता-सोमवल्ली नामक लता के रस को ऐसे लोग वैदिक मन्त्रों से अभिमंत्रित करके पीते हैं। जिसका पान करने से उसको पीने वाले मनुष्यों के स्वर्ग के प्रतिबन्धक पाप नष्ट हो जाते हैं। इन्द्र स्वर्ग के राजा हैं और देवता भी हैं। वे भगवान् के प्रतीक-विभूति हैं। स्वर्ग प्राप्ति हेतु इन्द्र का पूजन किया जाता है। इंद्र की स्तुति-याचना को ही प्रार्थना कहा गया है। स्वर्ग के भोग दिव्य भोग हैं। और पृथ्वी की अपेक्षा विलक्षण हैं। इन भोगों की पूर्ति के उपरान्त मनुष्य फिर से पृथ्वी पर लौट आता है।
सोम एक वनस्पति है जो कि मुंजवान पर्वत पर पैदा होती है। इसका रस अत्यधिक शक्तिशाली एवं स्फूर्तिदायक है। सोम रस इन्द्र और देवताओं का प्रिय पेय पदार्थ है। सोम रस का पान करके ही उन्होंने वृत्र का वध किया था। सोम रस देवताओं को अमरत्व प्रदान करता है। सोम का वास्तविक निवास स्थान स्वर्ग ही है। इसको श्येन पक्षी के द्वारा पृथ्वी पर औषधि के रूप में लाया गया। ऋग्वेद में सोम को त्रिषधस्थ, विश्वजित्, अमर उद्दीपक, अघशंस, स्वर्वित्, पवमान आदि नाम दिये गये हैं। [ऋग्वेद]
सोम लता का रस पीले रंग का था, जिसे देवता और ऋषि पीते थे। इसे पत्थर से कुचल कर रस निकालते थे और वह रस किसी ऊनी कपड़े में छान लेते थे। यह रस यज्ञ में देवताओं को चढ़ाया जाता था और अग्नि में इसकी आहुति भी दी जाती थी। इसमें दूध या मधु भी मिलाया जाता था।  
इसका उत्पत्ति स्थान मुंजवान पर्वत है; इसी लिये इसे मौजवत् भी कहते थे। श्येन पक्षी, इसे स्वर्ग से देवराज इंद्र से पृथ्वी पर लाये।[ऋक् संहिता]
ऋग्वेद में सोम की शक्ति और गुणों की बड़ी स्तुति है। यह यज्ञ की आत्मा और अमृत कहा गया है। देवताओं को यह परम प्रिय है। यह बहुत अधिक बलवर्धक, उत्साहवर्धक, पाचक और अनेक रोगों का नाशक है। यह अमृत के समान बहुत ही दिव्य पेय है जिसके पान से हृदय से सब प्रकार के पापों का नाश तथा सत्य और धर्म भाव की अभिवृद्धि होती है। यह सब लताओं का पति और राजा है। वैद्यक में सोम लता की गणना दिव्योषधियों में है। यह परम रसायन है। 
इसके अन्य नाम :- सोमवल्ली, सोमा, क्षीरी, द्विजप्रिया, शणा, यश-श्रेष्ठा, धनुलता, सोमाह्नी, गुल्मवल्ली, यज्ञवल्ली, सोम-क्षीरा और यज्ञाह्मा।
एक अन्य सोम लता दक्षिण की सूखी पथरीली जमीन में होती है। इसका क्षुप झाड़दार और गाँठदार तथा पत्रहीन होता है। इसकी शाखा राजहंस के पर के समान मोटी और हरी होती है और दो गाँठों के बीच की शाखा 4 से 6 इंच तक लंबी होती है। इसके फूल ललाई लिए बहुत हलके रंग के होते हैं और फलियाँ 4-5 इंच लंबी और तिहाई इंच गोल होती हैं। इसके बीज चपटे और 1/4 से 1/6 इंच तक लंबे होते हैं।
ॐ रेतो मूत्रं वि जहाति योनिं प्रविशदिन्द्रियम्। गर्भों जरायुणाSSवृतं उलबं जहाति जन्मना॥ ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्थस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोSमृतं मधु
मनुष्य की जननेंद्रिय योनि में प्रविष्ट होकर उसमें वीर्य का आधान करती है, परन्तु वही अन्यत्र मूत्र का परित्याग करती है। इसी प्रकार जरायु से लिपटा हुआ गर्भ जन्म लेने पर झिल्ली को छोड़ देता है। इस सत्य नियम से यही सत्य निकलता है कि उचित का साथ स्वीकार्य है। अतः शुद्ध करके पिया गया सोम इन्द्रियों को बल देने वाला होता है। यह दूध भी इन्द्र के लिये अमृत स्वरूप हो।[शु.यजु. 19.76] 
The pennies discharges sperms in the vagina. It rejects urine else where. The foetus rejects the membrane soon after birth. Its a law. The association of right-correct is acceptable. The Som drink (Som Ras) after purifying gives strength-power to the sense organs, body. The milk should be like elixir to the Indr. 
Som is rare but milk can be consumed by the person to gain strength. Indr is synonym to Indriy-senses, here. Indr represents the Almighty as well.
त्रित मुनि का यज्ञ :: भरतश्रेष्ठ! जैसे पापी मनुष्य अपने-आपको नरक में डूबा हुआ देखता है, उसी प्रकार तृण, वीरुध और लताओं से व्याप्त हुए उस कुँए में अपने आपको गिरा देख मृत्यु से डरे और सोमपान से वंचित हुए विद्वान त्रित अपनी बुद्धि से सोचने लगे कि मैं इस कुँए में रहकर कैसे सोमरस का पान कर सकता हूँ। इस प्रकार विचार करते-करते महातपस्वी त्रित ने उस कुँए में एक लता देखी, जो दैव योग से वहाँ फैली हुई थी। मुनि ने उस बालू भरे कूप में जल की भावना करके उसी में संकल्प द्वारा अग्नि की स्थापना की और होता आदि के स्थान पर अपने आपको ही प्रतिष्ठित किया। तत्पश्चात् उन महातपस्वी त्रित ने उस फैली हुई लता में सोम की भावना करके मन ही मन ऋग, यजु और साम का चिन्तन किया। नरेश्वर! इसके बाद कंकड़ या बालू-कणों में सिल और लोढ़े की भावना करके उस पर पीस कर लता से सोमरस निकाला। फिर जल में घी का संकल्प करके उन्होंने देवताओं के भाग नियत किये और सोमरस तैयार करके उसकी आहुति देते हुए वेद-मन्त्रों की गम्भीर ध्वनि की। राजन! ब्रह्म वादियों ने जैसा बताया है, उसके अनुसार ही उस यज्ञ का सम्पादन करके की हुई त्रित की वह वेदध्वनि स्वर्ग लोक तक गूँज उठी। महात्मा त्रित का वह महान यज्ञ जब चालू हुआ, उस समय सारा स्वर्ग लोक उद्विग्न हो उठा, परन्तु किसी को उसका कोई कारण नहीं जान पड़ा। तब देव गुरु बृहस्पति ने वेद मन्त्रों के उस तुमुलनाद को सुनकर देवताओं से कहा, "देवगण! त्रित मुनि का यज्ञ हो रहा है, वहाँ हम लोगों को चलना चाहिये"।
वे महान तपस्वी हैं। यदि हम नहीं चलेंगे तो वे कुपित होकर दूसरे देवताओं की सृष्टि कर लेंगे। बृहस्पति जी का यह वचन सुनकर सब देवता एक साथ हो उस स्थान पर गये, जहाँ त्रित मुनि का यज्ञ हो रहा था। वहाँ पहुँच कर देवताओं ने उस कूप को देखा, जिसमें त्रित मौजूद थे। साथ ही उन्होंने यज्ञ में दीक्षित हुए महात्मा त्रित मुनि का भी दर्शन किया। वे बड़े तेजस्वी दिखायी दे रहे थे। उन महाभाग मुनि का दर्शन करके देवताओं ने उनसे कहा, "हम लोग यज्ञ में अपना भाग लेने के लिये आये हैं"। उस समय महर्षि ने उनसे कहा, "देवताओं! देखो, में किस दशा में पड़ा हूँ। इस भयानक कूप में गिरकर अपनी सुधबुध खो बैठा हूँ"। महाराज! तदनन्तर त्रित ने देवताओं को विधिपूर्वक मन्त्रोच्चारण करते हुए उनके भाग समर्पित किये। इससे वे उस समय बड़े प्रसन्न हुए। विधि पूर्वक प्राप्त हुए उन भागों को ग्रहण करके प्रसन्न चित्त हुए देवताओं ने उन्हें मनोवान्छित वर प्रदान किया। मुनि ने देवताओं से वर माँगते हुए कहा, "मुझे इस कूप से आप लोग बचावें तथा जो मनुष्य इसमें आचमन करे, उसे यज्ञ में सोमपान करने वालों की गति प्राप्त हो"। राजन! मुनि के इतना कहते ही कुँए में तरंगमालाओं से सुशोभित सरस्वती लहरा उठी। उसने अपने जल के वेग से मुनि को ऊपर उठा दिया और वे बाहर निकल आये। फिर उन्होंने देवताओं का पूजन किया।[महाभारत शल्य पर्व 36.20-55]
यत्र द्वाविव जघनाधिषवण्या कृता।
उलूखलसुतानामवेद्विन्द्र जल्गुलः॥
हे इन्द्रदेव! जहाँ दो जंघाओ के समान विस्तृत, सोम कुटने के दो फलक रखे है, वहाँ (यज्ञशाला में) उलूखल से निष्पन्न सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.28.2]
हे इन्द्र देव! जहां दो जंघाओ के तुल्य सोम कूटने वाले सिल-बट्टे या दो फलक रखे हैं, उनमें तैयार किये हुए सोम रस का पान करो।
Hey Indr Dev! Come to the Yagy Shala where two big panels like the thighs have been kept to extract Somras & drink Somras.
यत्र नार्यपच्यवमुपच्यवं च शिक्षते। उलूखलसुतानामवेद्विन्द्र जल्गुलः॥
हे इन्द्रदेव! जहाँ गृहिणी सोमरस कूटने का अभ्यास करती हैं, वहाँ (यज्ञशाला में) उलूखल से निष्पन्न सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.28.3]
जहाँ नारी सोमरस तैयार करने के लिए मूसल से कूटने के लिए डालने निकालने का अभ्यास करती हैं, हे इन्द्र देव! वहाँ जाकर सोम रस को ग्रहण करो। 
Hey Indr Dev! Please sip Somras at a place-site, where the housewives practice crushing of Somras with mortar.
यत्र मन्थां विबध्नते रश्मीन्यमितवा इव। 
उलूखलसुतानामवेद्विन्द्र जल्गुलः॥
हे इन्द्रदेव! जहाँ सारथी द्वारा घोड़े को लगाम लगाने के समान (मथनी को) रस्सी से बाँधकर मन्थन करते है, वहाँ (यज्ञशाला में) उलूखल से निष्पन्न सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.28.4]
सारथी द्वारा अश्व को रास से बाँधने की तरह जहाँ मंथन-दंड ( मथानी) को रस्सी में बाँधकर मंथन करते हैं, उस स्थान को प्राप्त कर सोम रस का सेवन करो।
Hey Indr Dev! Please come to the site where the horses churn the dasher for extracting Somras, while the Charioteer holds the reins of the horses to use the dasher.
यच्चिद्धि त्वं गृहेगृह उलूखलक युज्यसे। 
इह द्युमत्तमं वद जयतामिव दुन्दुभिः॥
हे उलूखल! यद्यपि घर-घर में तुम से काम लिया जाता है, फिर भी हमारे घर में विजय दुन्दुभि के समान उच्च शब्द करो।[ऋग्वेद 1.28.5]
हे अरवल! तुम घर-घर में कार्य हेतु जाते हो, फिर भी हमारे इस गृह में विजय-दुंदभि के तुल्य ध्वनि करो। 
Hey Mortar! Please sound like the trumpet in a war after victory in war, in our house, even though you are used from door to door.
उत स्म ते वनस्पते वातो वि वात्यग्रमित्। 
अथो इन्द्राय पातवे सुनु सोममुलूखल॥
हे उलूखल-मूसल रूपे वनस्पति! तुम्हारे सामने वायु विशेष गति से बहती है। हे उलूखल! अब इन्द्रदेव के सेवनार्थ सोमरस का निष्पादन करो।[ऋग्वेद 1.28.6]
हे ऊखल-मूसल वनस्पते! वायु तुम्हारे सामने विशेष चाल से चलती है। 
Hey Pastel & mortar made of wood! Air blows a specific speed in front of you, when Somvalli is crushed in you. Hey mortar! Please make Somras ready to be sipped by Indr Dev.
आयजी वाजसातमा ता ह्युच्चा विजर्भृतः। हरी इवान्धांसि बप्सता॥
यज्ञ के साधन रूप पूजन योग्य वे उलूखल और मूसल दोनों, अन्न (चने) खाते हुये इन्द्रदेव के दोनों अश्वों के समान उच्च स्वर से शब्द करते हैं।[ऋग्वेद 1.28.7]
हे ऊखल! उस इन्द्रदेव को पीने के लिए सोम सिद्ध करो। महान बल को देने वाले पूजन योग्य ये ऊखल और मूसल दोनों अन्नों का सेवन करते हुए अश्व के समान ऊँची ध्वनि से बोलते हैं। 
The pastel & mortar make roaring sound like the two horses deployed in the charoite of Indr Dev, when grains (gram) are crushed in them.
ता नो अद्य वनस्पती ऋष्वावृष्वेभिः सोतृभिः। इन्द्राय मधुमत्सुतम्॥
दर्शनीय उलूखल एवं मूसल रूपे वनस्पते! आप दोनों सोमयाग करने वालों के साथ इन्द्रदेव के लिये मधुर सोमरस का निष्पादन करो।[ऋग्वेद 1.28.8]
हे ऊखल-मूसल रूप वनस्पते! तुम सोम! सिद्ध करने वालों के लिए मधुर सोमों का इन्द्रदेव के लिए निष्पीड़ित करो। 
Hey wood stock in the form of beautiful-good looking pastel & mortar! Get ready sweet Somras with the help of the hosts conducting Som Yagy for Indr Dev.
उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज। नि धेहि गोरधि त्वचि॥
उलूखल और मूसल द्वारा निष्पादित सोम को पात्र से निकाल कर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और अवशिष्ट को छानने के लिये पवित्र चर्म पर रखें।[ऋग्वेद 1.28.9]
ऊखल और मूसल द्वारा कूटे गए सोम को पात्र से निकालकर पवित्र कुश पर रखो, अवशिष्ट को चर्म-पात्र में रखो।
The Som Valli crushed with the help of pastel & mortar, be placed over the cushion made of Kush grass and after extracting Somras, place it over pious skin.
ऋतुर्जनित्री तस्या अपस्परि मक्षू जात आविशद्यासु वर्धते। 
तदाहना अभवत्पिप्युषी पयोऽशो: पीयूषं प्रथमं तदुक्थ्यम्
वर्षा ऋतु सोम की माता है। उत्पन्न होकर सोम जल में बढ़ता है, इसलिए उसी में प्रवेश करता है। जो सोमलता जल की सारभूत होकर वृद्धि को प्राप्त होती है, वह अभिषव के उपयुक्त है। उसी सोमलता का पीयूष इन्द्रदेव का हव्य है।[ऋग्वेद 2.13.1]
पीयूष :: देवाहार, देवताओं का भोजन, सुधा; ambrosia.
सोम वर्षा से रचित होता है। जल में वृद्धि करता है। जल की सारभूत सोमलता वृद्धि करती निचोड़े जाने के योग्य होती है। वही अमृत समान सोम इन्द्रदेव का पेय है।
Rainy season is the mother of Som Valli. Som Valli grows in water. Its good to be extracted. Its extract Somras is the food of demigods-deities i.e., ambrosia.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (14) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
अध्वर्यवो भरतेन्द्राय सोममामत्रेभिः सिञ्चता मद्यमन्यः। 
कामी हि वीरः सदमस्य पीतिं जुहोत वृष्णे तदिदेष वष्टि
हे अध्वर्युगण! इन्द्रदेव के लिए सोमरस ले आवे। चमस के द्वारा मादक अन्न अग्नि में फेंकें। बलशाली इन्द्रदेव सदा सोमरस के पान के अभिलाषी रहते हैं। अभीष्टवर्षी इन्द्रदेव के लिए सोमरस प्रदान करें। इन्द्रदेव उसे चाहते हैं।[ऋग्वेद 2.14.1]
हे अध्वर्युओं! इन्द्रदेव के लिए सोम लाओ। चमस द्वारा अग्नि में हवि दो। सोमपान के इच्छुक इन्द्रदेव को सोम रस भेंट करो।
Hey Yagy conducting-performing people-devotees! Bring Somras for Indr Dev. Make offerings of food grains in the holy fire with the help of Chamas (wooden spoon). Mighty desire accomplishment-fulfilling Indr Dev is always eager to enjoy Somras. 
अध्वर्यवो यो अपो वव्रिवांसं वृत्रं जघानाशन्येव वृक्षम्। 
तस्मा एतं भरत तद्वशायँ एष इन्द्रो अर्हति पीतिमस्य
हे अध्वर्युगण! जिन इन्द्रदेव ने जल को आच्छादित करने वाले वृत्रासुर का वज्र द्वारा वृक्ष की तरह विनाश किया, उन्हीं सोमाभिलाषी इन्द्रदेव के लिए सोमरस ले आवे। इन्द्र देव सोमपान के उपयुक्त पात्र हैं।[ऋग्वेद 2.14.2] 
वज्र द्वारा, जल को रोकने वाले वृत्र के वधकर्त्ता इन्द्रदेव के लिए सोम लाओ। इन्द्रदेव सोमपान के योग्य है।
Hey Yagy performers! Bring Somras for Indr Dev who killed Vrata Sur, who stopped the waters, with Vajr like felling a tree. He is eligible for drinking Somras.  
अध्वर्यवो यो दृभीकं जघान यो गा उदाजदप हि वलं वः। 
तस्मा एतमन्तरिक्षे न वातमिन्द्रं सोमैरोर्णुत जून वस्त्रैः
हे अध्वर्युगण! जिन इन्द्रदेव ने दृभाीक का विनाश किया, जिन्होंने बलपूर्वक असुरों द्वारा अवरुद्ध गायों का उद्धार करके उन्हें विनष्ट किया, उन्हीं इन्द्र देव के लिए, जिस प्रकार वायु अन्तरिक्ष में व्याप्त है, उसी प्रकार सोमरस को सर्वत्र व्याप्त करें। जिस प्रकार जीर्ण को वस्त्र द्वारा आच्छादित किया जाता है, उसी प्रकार से सोमरस द्वारा इन्द्र देव को आच्छादित करें।[ऋग्वेद 2.14.3]
 जिस इन्द्रदेव ने गायों का उद्धार किया और असुरों को समाप्त किया उन इन्द्रदेव के लिए सोम रस को विद्यमान करो और परिधान से आच्छादित करने के तुल्य इन्द्रदेव को सोम से ढँक दो। 
Hey Yagy organisers! Indr Dev killed Drabheek, released the cows from the captivity of the demons and destroyed the demons. Air pervades the sky-space for Indr Dev. Let Somras pervade each & every place. The way a feeble-badly injured, hurt person is covered with cloths, cover Indr Dev with Somras.   
अध्वर्यवो य उरणं जघान नव चख्वांसं नवतिं च बाहून्। 
यो अर्बुदमव नीचा बबाधे तमिन्द्रं सोमस्य भृथे हिनोत
हे अध्वर्यु  गण! जिन इन्द्र देव ने निन्नानबे बाहु दिखाने वाले उरण का विनाश किया तथा अबुद को अधोमुख करके विनष्ट किया, सोमरस तैयार होने पर उन्हीं इन्द्रदेव को प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 2.14.4]
जिन इन्द्रदेव ने निन्यानवें भुजाओं वाले उरण तथा अर्बुध को मार डाला, उन्हीं इन्द्र देव को सोम सिद्ध होने पर भेंट करो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Prepare Somras to please Indr Dev, who killed Uran having 99 arms and Abud turning them upside down. 
अध्वर्यवो यः स्वश्नं जघान यः शुष्णमशुषं यो व्यंसम्।
यः पिप्रुं नमुचिं यो रुधिक्रां तस्मा इन्द्रायान्धसो जुहोत
हे अध्वर्युगण! जिन इन्द्र देव ने सरलता से स्वशन का विनाश किया, जिन्होंने अशोषणीय शुष्ण को स्कन्ध हीन करके मारा, जिन्होंने पित्रु, नमुचि और रूधिक्ता का विनाश किया, उन्हीं इन्द्र देव के लिए अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.14.5]
जिस इन्द्र देव ने स्वशन को मारा, शुष्ण के कंधे काट डाले, पिप्रु, नमुचि और तुधिक को मार डाला, उन्हीं इन्द्र को हवि प्रदान करो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Make offerings of food grains to Indr Dev who killed Swashan, Sushn by cutting shoulders, Pitru, Namuchi and Rudhikta
अध्वर्यवो यः शतं शम्बरस्य पुरो बिभेदाश्मनेव पूर्वीः। 
यो वर्चिनः शतमिन्द्रः सहस्त्रमपावपद्भरता सोममस्मै
हे अध्वर्यु गण! जिन इन्द्र देव ने प्रस्तर के सदृश वज्र द्वारा शम्बर की अतीव प्राचीन नगरियों को छिन्न-भिन्न कर दिया, जिन्होंने वर्ची के सौ हजार पुत्रों को भूमिशायी कर दिया, उन्हीं इन्द्र देव के लिए सोमरस ले आवें।[ऋग्वेद 2.14.6]
जिन इन्द्रदेव ने वज्र से शम्बर के पाषाण नगरों को तोड़ दिया तथा वर्चा के एक लाख भक्तों को मारा, उन्हीं इन्द्रदेव के लिए सोमरस ले लाओ।
Hey organisers-participants in the Yagy! Bring Somras for the sake of Indr Dev, who destroyed the ancient cities of Shambar, killed hundred thousand sons of Varchi. 
अध्वर्यवो यः शतमा सहस्स्रं भूम्या उपस्थेऽवपज्जघन्वान्। 
कुत्सस्यायोरतिथिग्वस्य वीरान्न्यवृणग्भरता सोममस्मै
हे अध्वर्युगण! जिन शत्रु हन्ता इन्द्र देव ने भूमि की गोद में सौ हजार असुरों को मार गिराया, जिन इन्द्र देव ने कुत्स, आयु और अतिथिग्ध के प्रतिद्वन्द्वियों का वध किया, उनके लिए सोमरस ले आवे।[ऋग्वेद 2.14.7]
जिस शत्रुनाशक इन्द्रदेव ने एक लाख असुरों को धराशायी किया तथा कुत्स और अतिथिग्व के द्वेषियों को समाप्त कर दिया उसी इन्द्रदेव के लिए सोमरस लेकर पधारो। 
Hey organisers-participants in the Yagy! Bring Somras for enemy slayer Indr Dev, who killed hundred thousand demons and rivals named Kuts, Ayu and Atithigdh
अध्वर्यवो यन्नरः कामयाध्वे श्रुष्टी वहन्तो नशथा तदिन्द्रे। 
गभस्तिपूतं भरत श्रुतायेन्द्राय सोमं यज्यवो जुहोत
हे नेता अध्वर्युगण! आप जो चाहते हैं, वह इन्द्रदेव को सोमरस प्रदान करने पर तुरन्त मिल जायेगा। प्रसिद्ध इन्द्र देव के लिए हस्त द्वारा शोधित सोमरस ले आवें। हे याज्ञिक गण! इन्द्र देव के लिए उसे प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.14.8]
हे अध्वर्युओं! इन्द्र को सोम रस भेंट करने पर तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। हाथों से सिद्ध किए हुए इस सोम रस को इन्द्रदेव को दो।
Hey organisers-participants in the Yagy! You will immediately achieve the desired by offering Somras extracted manually to Indr Dev. 
अध्वर्यवः कर्तना श्रुष्टिमस्मै वने निपूतं वन उन्नयध्वम्। 
जुषाणो हस्त्यमभि वादशे व इन्द्राय सोम मंदिर जुहोत
इन्द्र देव के लिए सुखकर सोमरस तैयार करें। संभोग योग्य जल में शोधित सोमरस ऊपर ले आवें। इन्द्र देव प्रसन्न होकर आपके हाथों से तैयार किया हुआ सोमरस चाहते हैं। इन्द्र देव के लिए आप लोग मद कारक सोमरस प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.14.9] 
हे अध्वर्युओ! उनको खुश करने वाला सोम रस तैयार करो। जल में शुद्ध किया हुआ सोमरस लाओ। इन्द्र देव तुमसे सोमरस चाहते हैं। उनके लिए आह्लादकारी सोम रस भेंट करो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Produce pleasant-comfortable Somras for Indr Dev. Bring Somras purified with water. Indr Dev wish to have Somras produced by you with your hands on being happy.
अध्वर्यवः पयसोधर्यथा गो: सोमेभिरी पुणता भोजमिन्द्रम्वे। 
वेदाहमस्य निभृतं म एतिदृत्सन्तं भूयो यजतश्चिकेत
हे अध्वर्युगण! गाय का अधोदेश जैसे दुग्ध से पूर्ण रहता है, उसी प्रकार इन फल प्रदाता इन्द्रदेव को सोमरस द्वारा पूर्ण करें। सोमरस का गूढ़ स्वभाव मैं जानता हूँ। यजनीय इन्द्र देव सोमप्रद यजमान को अच्छी तरह जानते हैं।[ऋग्वेद 2.14.10]
हे अध्वर्युओं! गाय के निचले अंग (थन) में दूध भरे रहने के समान इन्द्रदेव को सोम से भर दो। मैं सोम रस के स्वभाव का राजा हूँ। इन्द्र देव उससे प्रसन्नचित्त होकर यजमान को सुखी करते हैं।
Hey organisers-participants in the Yagy! Let Indr dev be satisfied-saturated with Somras just like the milk in the udders of a cow. I am aware of the nature (properties, utility) of Somras. Indr Dev recognises the host providing Somras in the Yagy for him & grants comforts to him on being happy.
अध्वर्यवो यो दिव्यस्य वस्वो यः पार्थिवस्य क्षम्यस्य राजा। 
तमूर्दरं न पृणता यवेनेन्द्रं सोमेभिस्तदपो वो अस्तु
हे अध्वर्यु गण! इन्द्र देव, स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष के धन के राजा है। जैसे यव (जौ) से धान्य रखने का स्थान पूर्ण किया जाता है, उसी प्रकार सोमरस द्वारा इन्द्र देव को पूर्ण करें। वह कार्य आप लोगों के द्वारा पूर्ण होता है।[ऋग्वेद 2.14.11]
इन्द्र देव आसमान, धरती और अंतरिक्ष के ऐश्वर्य के श्लोक हैं। जैसे बर्तन भरा जाता है वैसे सोमरस से इन्द्रदेव को सन्तुष्ट कर दो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Indr Dev is the master of all riches-wealth, property over the earth, heavens and the space-sky. The way a pot-container is filled with barley, satisfy Indr Dev with Somras. 
अस्मभ्यं तद्वसो दानाय राधः समर्थयस्व बहु ते वसव्यम्। 
इन्द्र यच्चित्रं श्रवस्या अनु द्यून्बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे निवास प्रद इन्द्र देव! हमें भोग के लिए धन प्रदान करें। वह धन प्रभूत, वास योग्य और विचित्र है। हम प्रतिदिन उसी धन को भोग करने की इच्छा करते हैं। हम उत्तम पुत्र-पौत्रादि प्राप्त करके इस यज्ञ में प्रभूत स्तोत्र का पाठ करेंगे।[ऋग्वेद 2.14.12] 
हे उत्तम वास देने वाले इन्द्रदेव! हमें योग्य एवं भोग्य धन प्रदान करो। तुम्हारा दान अद्भुत है। हम नित्य इसकी कामना करते हैं। श्रेष्ठ संतानों से युक्त इस यज्ञ में हम तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey residence-home granting-providing Indr Dev! The riches-wealth granted by you is valuable, suitable for residing and amazing. We will recite excellent Strotr in the Yagy in your honour, on being granted sons and grand sons. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (15) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
प्र घा न्वस्य महतो महानि सत्या सत्यस्य करणानि वोचम्। 
त्रिकद्रुकेष्वपिबत्सुतस्यास्य मदे अहिमिन्द्रो जघान
मैं बलवान् हूँ। सत्य-संकल्प इन्द्र देव की यथार्थ और महती कीर्त्तियों का वर्णन करता हूँ। इन्द्र देव ने त्रिकद्र यज्ञ में सोमरस का पान किया। सोम जन्य प्रसन्नता होने पर इन्द्र देव ने अहि का वध किया।[ऋग्वेद 2.15.1]
मैं शक्तिशाली हूँ। सच्चे विचार वाले के श्रेष्ठ यशों का वर्णन करता हूँ। इन्द्र देव ने सोमपान से रचित शक्ति से वृद्धिकर “अहि" को समाप्त किया।
I am mighty. I describe the various glorious deeds-endeavours of truthful Indr Dev. Indr Dev sipped Somras in the Yagy and then killed the demon called Ahi.
अवंशे द्यामस्तभायद्बृहन्तमा रोदसी अपृणदन्तरिक्षम्। 
स धारयत्पृथिवीं पप्रथच्च सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
आकाश में इन्द्र देव ने द्युलोक को रोक रखा है। द्यावा पृथ्वी और अन्तरिक्ष को अपने तेज से पूर्ण किया। विस्तीर्ण पृथ्वी को धारण किया और उसे प्रसिद्ध किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब काम किया।[ऋग्वेद 2.15.2]
इन्द्रदेव ने सूर्य मंडल को रोक रखा है। अम्बर, धरा और अंतरिक्ष को तेज प्रदान किया है।
Indr Dev is supporting the Solar System in the space. He has lighted the space, earth and the sky with his aura-brilliance. He supported the earth and gave it stability. He did this by enjoying Somras.
Here Indr is one of the names of the Almighty. 
सद्मेव प्राचो वि मिमाय मानैर्वज्रेण खान्यतृणन्नदीनाम्। 
वृथासृजत्पथिभिर्दीर्घयाथैः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
यज्ञ गृह की तरह इन्द्र देव ने माफ करके समस्त संसार को पूर्वाभिमुख करके बनाया। उन्होंने वज्र द्वारा नदी के निकलने वाले दरवाजों को खोल दिया। उन्होंने अनायास ही दीर्घ काल तक जाने योग्य मार्गों से नदियों को प्रेरित किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्र देव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.3]
इन्द्रदेव ने इस आखिल संसार का मुँह पूर्व दिशा की ओर कर रखा है। उन्होंने बच से नदी के द्वारों को खोलकर दीर्घ समय तक प्रवाहमान रहने योग्य रास्तों पर बहाया। इन्द्रदेव ने ये कर्म सोम से रचित शक्ति से किये।
Indr Dev moved the gate-opening of the Yagy site in the east along with the entire world. He opened the places blocked for the flow of rivers. He made the rivers to keep flow for long time and usable for navigation. He did this, on being happy after drinking Somras.
स प्रवोळ्हॄन्परिगत्या दभीतेर्विश्वमधागायुधमिद्धे अग्नौ। 
सं गोभिरश्वैरसृजद्रथेभिः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
जो असुर दभीति ऋषि को उनके नगर के बाहर ले जा रहे थे, मार्ग में उपस्थित होकर इन्द्र ने उनके सारे आयुधों को दीप्यमान अग्नि में जला डाला। इसके बाद दभीति को अनेक गायें, घोड़े और रथ प्रदान किये। सोमजन्य हर्ष के उत्पन्न होने पर इन्द्र देव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.4]
दभीति ऋषि को नगर से बाहर ले जाते हुए दानवों को रोककर उनके हथियारों को इन्द्र ने भस्म कर दिया। इसके बाद दभीति को गौ आदि धन प्रदान किया। सोम द्वारा उत्पन्न शक्ति में इन्द्र ने यह कर्म दिया।
Indr Dev intercepted the demons who were taking Dabhiti Rishi out of his abode-residence, burnt their weapons with blazing-glowing fire. He granted many cows, horses and chariots to him. He did this on being pleased by drinking Somras (under the impact of Somras). 
Encountering the (demons-asuras), carrying off Dabhiti, he burnt all their weapons in a kindled fire and enriched (the prince) with their cattle, their horses and their chariots, in the exhilaration of the Somras, Indr has done these (deeds).
EXHILARATION :: रसिकता, ज़िंदादिली; jocundity, sentimentality.
स ईं महीं धुनिमेतोररम्णात्सो अस्नातॄनपारयत्स्वस्ति। 
त उत्स्नाय रयिमभि प्र तस्थुः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
उन इन्द्र देव ने द्युति, इरावती या परुष्णी नामक महानदी को पार जाने के लिए शान्त किया। नदी के पार जाने में असमर्थ लोगों को निरापद पार किया। वे नदी पार होकर धन को लक्ष्य करके गये थे। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.5]
असमर्थ :: अक्षम, अयोग्य, शक्तिहीन, विकलांग, अपात्र, निर्बल, अपाहिज  होना; inability, incapability, disability. 
इन्द्र देव ने पार जाने के लिए नदी को शांत कर असहाय प्राणियों को पार लगाया। वे धन को लक्ष्य करते हुए सरिता से पार हुए। इन्द्रदेव ने सोम के आनन्द में यह कार्य किया।
Indr Dev calmed down-pacified the rivers Dyuti, Irawati-Parushni to be crossed by the incompetent-disabled. Such people crossed the river and targeted riches (made endeavours for both & meet, surviving, living, livelihood). Indr Dev did this, since he became happy-amused after drinking Somras.
सोदञ्चं सिन्धुमरिणान्महित्वा वज्रेणान उषसः सं पिपेष। 
अजवसो जविनीभिर्विवृश्चन्त्सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
अपनी महिमा से इन्द्र देव ने सिन्धु को उत्तर वाहिनी किया वेगवती सेना के द्वारा दुर्बल सेना को भिन्न करके वज्र द्वारा उषा के रथ को चूर्ण किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.6]
इन्द्र ने अपनी महिमा से सिन्धु नदी को उत्तर की ओर प्रवाहित किया। वज्र द्वारा उषा के रथ को ध्वंस किया। यह कार्य इन्द्रदेव ने सोम की शक्ति से किया।
Indr Dev made the river Sindhu flow towards North with his power-might, destroyed the weak army with the fast moving army and destroyed the charoite of Usha with Vajr-thunderbolt. He did this because of the joy produced in him by the drinking of Somras.
By his great power-might he turned the Sindhu river towards the north, with his thunderbolt he ground to pieces the wagon of the Usha-dawn, scattering the tardy enemy with his swift forces, in the exhilaration of the Somras, Indr has accomplished-done these deeds.
स विद्वाँ अपगोहं कनीनामाविर्भवन्नुदतिष्ठत्परावृक्। 
प्रति श्रोणः स्थाद्व्यनगचष्ट सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
अपने विवाह के लिए आई हुई कन्याओं का भागना जानकर परावृज ऋषि सबके सामने ही उठकर खड़े हो गये। पंगु होने पर भी कन्याओं के प्रति दौड़े, चक्षुहीन होने पर भी उन्हें देखा; क्योंकि स्तुति से प्रसन्न होकर इन्द्र देव ने उन्हें पैर और आँखें दे दी थीं। सोमजन्य हर्ष होने पर इन्द्र देव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.7]
अपनी शादी को आयी हुई कन्याओं को दौड़ता देखकर परावृक पंगु होते उठकर दौड़ पड़े। नेत्रहीन होने पर भी देखने में समर्थवान हुए। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर इन्द्रदेव ने उन्हें पैर और आँखें प्रदान की। यह कर्म उन्होंने सोम जनित हर्षिता में किया। 
पंगु :: लुंज-पुँज ,लँगड़ा-लूला; paralyzed, crippled, lacerated. 
Paravraj Rishi ran towards towards the girls who run away when they noticed-found that he was incompetent (paralyzed, crippled) unable to move and blind since Dev Raj Indr grant him eye sight and removed his paralysis-crippling. Dev Raj became happy with his prayers and cured him having enjoyed Somras.
भिनद्वलमङ्गिरोभिर्गृणानो वि पर्वतस्य दृंहितान्यैरत्। 
रिणग्रोधांसि कृत्रिमाण्येषां सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
अंगिराओं द्वारा स्तुति करने पर इन्द्र देव ने बल को विदीर्ण किया। पर्वत के सुदृढ़ द्वारों को खोला। इनकी रुकावट को भी हटाया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.8]
अंगिरा वंशियों की प्रार्थना पर इन्द्र देव ने बल को विमुक्त किया और पर्वतों हुए भी के द्वारों को खोला और इनकी बाधाएँ दूर कीं। सोमरस की प्रसन्नता में इन्द्र ने यह में काम किया।
Over the request of Angiras, Indr Dev released Bal and opened the gates of strong mountains. He cleared the obstacles as well. He did this under the pleasure granted to him by Somras.
Praised by the Angiras, Indr Dev destroyed Bal, forced upon the firmly shut doors of the mountain, broke down their artificial defences in the exhilaration of the Somras Indr Dev has done these deeds.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- गायत्री ।
इन्द्र त्वा वृषभं वयं सुते सोमे हवामहे। स पाहि मध्वो अन्धसः 
हे इन्द्र देव! आप अभीष्टपूरक हैं। अभिषुत सोमपान के लिए हम आपको बुलाते हैं। मद कारक और अन्न मिश्रित सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.40.1]
मद :: नशा, निंदनीय अहंकार, गर्व, उन्मत्तता, पागलपन, मतिभ्रम, मस्ती, मद्य, शराब; intoxicating.
मस्ती :: नशा, मदहोशी, खुमार, अर्द्धोन्मत्तता, बेसुधपन, गंदापन, मस्ती, पंकिलता, क्रमहीनता, बेढ़ंगापन; fun, inebriation, slobbery, sloppiness.हे इन्द्र देव! तुम इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हो। इस संस्कारित सोम के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। आनन्ददायक अन्न मिश्रित सोम का पान करो।
INTOXICATING :: alcoholic drink or a drug liable to cause someone to lose control of their faculties or behaviour, inebriating, spirituous, spiritous
vinous, exhilarating or exciting, rousing, stirring, stimulating, invigorating, electrifying, inspiring.
Hey Indr Dev! You accomplish the desires. We invite you to drink-enjoy the Somras extracted by us. This Somras mixed with food grains (wheat, barley, Sorghum vulgare-ज्वारgives fun-pleasure, intoxication-inebriation.
Little quantity of wine, Ethyl Alcohol may help but large dozes are intoxicating. Somras is not wine.
इन्द्र क्रतुविदं सुतं सोमं हर्य पुरुष्टुत। पिबा वृषस्व तातृपिम्
हे बहुजन स्तुत इन्द्र देव! यह अभिषुत सोमरस बुद्धि वर्द्धक है। इसे पान करने की अभिलाषा को प्रकट करें और इस तृप्ति कारक सोमरस से जठर का सिञ्चन करें।[ऋग्वेद 3.40.2]
हे इन्द्र देव! तुम अनेकों द्वारा वंदित किये गये हो। यह छाता हुआ सोमरस बुद्धि की वृद्धि करने वाला है। इसे पान करने की इच्छा प्रकट करते हुए इस तृप्त करने वाले सोम से अपने उदर को सींचो।
Worshiped by majority, hey Indr Dev! This Somras boosts intelligence. Drink this Somras, which grant satisfaction as per your wish. 
इन्द्र प्रणो धितावानं यज्ञं विश्वेभिर्देवेभिः। तिर स्तवान विश्पते
हे स्तूयमान, मरुत्पति इन्द्र देव! सम्पूर्ण यजनीय देवों के साथ आप हमारे इस हवि वाले यज्ञ में हवि स्वीकार कर इस यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.40.3]
हे मरुतों के स्वामी इन्द्र सभी पूजन योग्य देवगणों के साथ हमारे इस हव्य युक्त यज्ञ की भली-भाँति वृद्धि करो।
Hey praiseworthy, leader of the Marud Gan, Indr Dev! Join our Yagy with the demigods-deities and complete it by accepting-making offerings.
इन्द्र सोमाः सुता इमे तव प्र यन्ति सत्यते। क्षयं चन्द्रास इन्दवः
हे सत्पति इन्द्र देव! हमारे द्वारा प्रदत्त, आह्लादक, दीप्त, अभिषुत सोमरस आपके जठर देश में जा रहा है। इसे धारित करें।[ऋग्वेद 3.40.4]
हे सत्य के स्वामी इन्द्रदेव! हमारे द्वारा दिया गया प्रसन्न मुख तेज से परिपूर्ण निष्यन्न सोम तुम्हारे पेट में प्रविष्ट हो रहा है। इसे धारण करो।
Hey truthful Indr Dev! Somras offered by us happily, aurous is entering your stomach. Bear it.
दधिष्वा जठरे सुतं सोममिन्द्र वरेण्यम्। तव द्युक्षास इन्दवः
हे इन्द्र देव! यह अभिषुत सोमरस सभी के द्वारा वरणीय है। इसे आप अपने जठर में धारित करें। यह सब दीप्त सोमरस आपके साथ द्युलोक में रहता है।[ऋग्वेद 3.40.5]
हे इन्द्र देव! यह निष्यत्र सोम सभी के लिए वरण करने योग्य है। इसे अपने उदर में रखो। यह अत्यन्त उज्जवल सोमरस तुम्हारे साथ स्वर्ग में वास करता है।
Hey Indr Dev! This Somras extract deserve to be accepted by all. Store-stock it in your stomach. This extremely pure, aurous-bright Somras stays in heavens, with you. 
गिर्वणः पाहि नः सुतं मधोर्धाराभिरज्यसे। इन्द्र त्वादातमिद्यशः
हे स्तुति के योग्य इन्द्र देव! मदकारक सोम की धारा से आप प्रसन्न होते हैं; अतः हमारे अभिषुत सोमरस का पान करें। आपके द्वारा वर्द्धित अन्न ही हम लोगों को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 3.40.6]
हे इन्द्र देव! तुम पूजा के योग्य हो। तुम आह्वान योग्य सोम की धारा से प्रसन्न होते हो। हमारे इस प्रसिद्ध सोम को ग्रहण करो। तुम्हारे द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुआ अन्न हमको प्राप्त होता है। 
Hey worship deserving Indr Dev! You become happy by the stimulating, invigorating, electrifying, inspiring Somras. The food grains offered by us are accepted by you. 
अभि द्युम्नानि वनिन इन्द्रं सचन्ते अक्षिता। पीत्वी सोमस्य वावृधे 
देव याजकों की द्युतिमान्, क्षय रहित सोम आदि सम्पूर्ण हवि इन्द्र देव के अभिमुख जाती है। सोमरस का पान कर इन्द्रदेव वर्द्धित होते हैं।[ऋग्वेद 3.40.7]
देवगणों का यज्ञ करने वालों की उज्जवल, अक्षुण्ण, सोम युक्त हवियाँ इन्द्र के समक्ष उपस्थित होती हैं। इन्द्र देव की सोम पीने से वृद्धि होती है।
Indr Dev grows-progress by the energetic imperishable Somras and the offerings made by the devotees-Ritviz. 
अर्वावतो न आ गहि परावतश्च वृत्रहन्। इमा जुषस्व नो गिरः
हे वृत्र विदारक इन्द्र देव! निकटतम प्रदेश से या अत्यन्त दूर देश से हमारी ओर पधारें। हमारी इस स्तुति-वाणी को आकर ग्रहण करें।[ऋग्वेद 3.40.8]
हे इन्द्र देव! तुमने वृत्र का शोषण किया था। तुम पास या दूरस्थ कहीं भी हो, वहीं से हमारी और आते हुए हमारी प्रार्थना को स्वीकार करो। 
Hey slayer of Vratr, Indr Dev! Accept our prayers and come to us from the distant or near place.
यदन्तरा परावतमर्वावतं च हूयसे। इन्द्रेह तत आ गहि
हे इन्द्र देव! यद्यपि आप अत्यन्त दूर देश, निकटतम प्रदेश और बीच भाग देश में आहूत होते हैं; फिर भी सोमपान के लिए इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 3.40.9]
हे इन्द्र देव! तुम दूर, निकट, या मध्य भाग में लाये जाते हो। तुम इस यज्ञ में सोमपान करने के लिए पधारो।
Hey Indr dev!  Though you are present at a far away-distant place, yet come to us for drinking Somras in our Yagy.
आ तू न इन्द्र मद्र्यग्घुवानः सोमपीतये। हरिभ्यां याह्यद्रिवः
हे वज्रधर इन्द्र देव! होताओं के द्वारा आहूत होने पर हमारे पास यज्ञ में आप सोमपान के लिए हरि नामक घोड़ों के साथ शीघ्र आवें।[ऋग्वेद 3.41.1]
हे वज्रिन! होताओं द्वारा पुकारे जाने पर हमारे इस अनुष्ठान में अपने अश्वों से युक्त सोमपान हेतु पधारो।
Hey Vajr wielding-holding Indr Dev! Come to the Yagy quickly, to accept Somras offered by the Ritviz-organisers of Yagy, along with your horses named Hari.
सत्तो होता न ऋत्वियस्तिस्तिरे बहिरानुषक्। अयुञ्जन्प्रातरद्रयः
हमारे यज्ञ में यथा समय ऋत्विज होता आपको बुलाने के लिए बैठे हैं। कुश परस्पर सम्बद्ध करके बिछा दिए गए हैं। प्रात: सवन में सोमाभिषेक के लिए प्रस्तर सब भी परस्पर सम्बद्ध किये हुए हैं, इसलिए सोमपान के लिए आये।[ऋग्वेद 3.41.2]
हे इन्द्र देव! ऋत्विक होता तुम्हारे आह्वान के लिए हमारे अनुष्ठान में पधारे हैं। एक-दूसरे से मिलाकर कुश बिछाये गये हैं। सेवेरे सवन में सोम सिद्ध हेतु पाषाण भी प्रस्तुत हैं। इसलिए सोमपान के लिए पधारो।
The Ritviz-Hota (organisers of Yagy) are ready to invoke you. The Kush Mat have been laid by connecting them together.  The stones too have been joined together for the morning session (of Yagy) of Somabhishek-extracting Somras.
मतयः सोमपामुरुं रिहन्ति शवसस्पतिम्। इन्द्रं वत्सं न मातरः 
महान सोमपायी और बलपति इन्द्र देव को स्तुतियाँ उसी प्रकार चाटती है, जिस प्रकार से गौ बछड़े को चाटती है।[ऋग्वेद 3.41.5] 
सोम पान करने वाले, बलदाता, श्रेष्ठ इन्द्र को गौओं द्वारा बछड़ों को चाटने के समान स्तुतियाँ चाटती हैं।
Prayers, hymns lick great Somras drinking & mighty Indr Dev, just like the cows lick their calf.
स मन्दस्वा ह्यन्धसो राधसे तन्वा महे। न स्तोतारं निदे करः
हे इन्द्र देव! प्रभूत धन दान के लिए सोमरस के द्वारा आप शरीर को प्रसन्न करें, परन्तु मुझ स्तोता की निन्दित मत करें।[ऋग्वेद 3.41.6] 
निन्दा :: बुराई करना, लानत, कलंक, धिक्कार, शाप, फटकार, गाली, तिरस्कार, परिवाद, भला-बुरा कहना; blasphemy, reproach, damn, reprehension, taunt, decry. 
हे इन्द्र देव! धन प्रदान करने के लिए इस सोम के द्वारा अपनी देह को पुष्ट करो।मुझसे वंदना करने वाले की कभी निन्दा न हो।
Hey Indr Dev!  Nourish your body to make donations-charity by drinking this Somras. I should not reproach those who pray-worship you.
मारे अस्मद्वि मुमुचो हरिप्रियार्वाड् याहि। इन्द्र स्वधावी मत्स्वेह
हे हरि अश्व प्रिय! हमसे दूर देश में घोड़ों को रथ से मत खोलो। हमारे निकट आयें। हे सोमवान इन्द्रदेव! आप इस यज्ञ में हर्षित बनें।[ऋग्वेद 3.41.8]
हे इन्द्र देव! तुम अपने अश्वों से प्यार करते हो। अश्वों को हमसे दूर खोलो। हमारे समीप आओ। इस यज्ञ में सोम से आनंद प्राप्त करो।
Hey Hari named horses, loving Indr Dev! Come to us, do not release the horses. Hey Somras enjoying Indr Dev! Enjoy this Yagy.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- गायत्री।वृतासुर 
उप नः सुतमा गहि सोममिन्द्र गवाशिरम्। हरिभ्यां यस्ते अस्मयुः 
हे इन्द्र देव! हमारे दुग्ध मिश्रित अभिषुत सोमरस के पास आवें; क्योंकि आपका अश्व-संयुक्त रथ हमारी कामना करता है।[ऋग्वेद 3.42.1]
हे इन्द्र देव! हमारा सोम दुग्ध मिलाया हुआ प्रसिद्ध है। उसके निकट पधारो। तुम्हारा रथ अश्व युक्त हमसे मिलाने की कामना करता है।
Hey Indr Dev! Somras mixed with milk is ready for you. Come riding your charoite to participate-bless us in our Yagy. 
तमिन्द्र मदमा गहि बर्हिःष्ठां ग्रावभिः सुतम्। कुविन्वस्य तृष्णवः 
हे इन्द्र देव! इस सोमरस के पास पधारें। यह पत्थरों पर पीस कर निकाला गया है और कुशों पर रखा गया है। इसका प्रचुर परिमाण में पान करके आप शीघ्र तृप्त होवें।[ऋग्वेद 3.42.2]
हे इन्द्र देव! पाषाण से कूट कर छाना गया यह सोम कुश पर विराजमान है। तुम इसकी निकटकता ग्रहण करो। तम इसे यथेष्ट मात्रा में पान करके तृप्ति को ग्रहण होओ।
Hey Indr Dev! We have extracted Somras for you by crushing Som Valli with stones. Drink it in sufficient quantity and satisfy yourself. 
इन्द्रमित्था गिरो ममाच्छागुरिषिता इतः। आवृते सोमपीतये
इन्द्र देव के लिए कही गई हमारी यह स्तुति-वाणी इन्द्र देव को सोमपानार्थ बुलाने के लिए इस यज्ञ देश से इन्द्र के निकट जावे।[ऋग्वेद 3.42.3]
हमारी वंदना रूप वाणी इन्द्रदेव के लिए उच्चारित होती हुई सोम ग्रहण के लिए इन्द्र का आह्वान करती हुई, यज्ञ स्थान में चलकर इन्द्र का सामीप्य ग्रहण करें।
Let our prayers, chants, hymns attract Indr Dev to this site of Yagy for enjoying Somras. 
इन्द्रं सोमस्य पीतये स्तोमैरिह हवामहे। उक्थेभिः कुविदागमत्
स्तोत्रों और उकथों द्वारा सोमपान के लिए यज्ञ में हम इन्द्र देव को बुलाते हैं। अनेकों बार आह्वान करने पर ही इन्द्र देव यज्ञ में आते हैं।[ऋग्वेद 3.42.4]
स्तोत्रों द्वारा प्रशंसनीय प्रार्थनाओं द्वारा यज्ञ में सोम ग्रहण करने के लिए हम इन्द्र का आह्वान करते हैं। वे अनेक बार आह्वान किये गए इन्द्र हमारे यज्ञ में पधारें।
We invoke Indr Dev by the recitation of Strotr-sacred hymns and prayers to drink Somras in the Yagy. He comes-oblise after making requests several times. 
इन्द्र सोमाः सुता इमे तान्दधिष्व शतक्रतो। जठरे वाजिनीवसो 
हे शतक्रुत इन्द्र देव! आपके लिए सोमरस तैयार है, इसे जठर में धारित करें। आप अन्न धन हैं।[ऋग्वेद 3.42.5]
हे इन्द्रदेव! तम सैकड़ों कार्यों से परिपूर्ण हो। तुम्हारे लिए अनुष्ठान संस्कारित सोम प्रस्तुत है। इसे अपने उदर में धारण करो और हमारे लिए अन्न तथा धन प्रदान करो।
Hey, performer of hundred Yagy, Indr Dev! Somras is ready for you to drink and stoke it in the stomach. Grant us food grains.
विद्मा हि त्वा धनञ्जयं वाजेषु दघृषं करें। अघा ते सुम्नमीमहे
हे कवि इन्द्रदेव! युद्ध में आप शत्रुओं के अभिभव-कर्ता और धन विजेता है। हम आपको ऐसा ही जानते हैं, इसलिए हम आपसे धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 3.42.6]
हे विद्वान, हे इन्द्रदेव! युद्ध भूमि में शत्रुओं को पराजित करने वाले तथा उनके धनों को जीतने वाले हो। ऐसा जानते हुए तुमसे धन माँगते हैं।
Hey enlightened-learned Indr Dev! You defeat the enemy in the war and wealth. We recognise you like this and request you for riches.
इममिन्द्र गवाशिरं यवाशिरं च नः पिब। आगत्या वृषभिः सुतम् 
हे इन्द्र देव! हमारे इस यज्ञ में आकर गव्य मिश्रित तथा यव मिश्रित अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.42.7]
हे इन्द्र! हमारे यज्ञ में आकर यह दूध से मिला हुआ निष्पन्न सोमरस को पियो।
Hey Indr Dev! Join our Yagy and drink Somras mixed with milk.
तुभ्येदिन्द्र स्व ओक्ये सोमं चोदामि पीतये। एष रारन्तु ते हृदि 
हे इन्द्र देव! आपके पीने के लिए ही इस अभिषुत सोमरस को हम आपके जठर में प्रेरित करते हैं। क्योंकि यह सोमरस आपके हृदय को तृप्त करेगा।[ऋग्वेद 3.42.8]
हे इन्द्र देव! इस सुसंस्कारित सोमरस को तुम्हारे ग्रहण करने के लिए ही हम तुम्हारे उदर में प्रवेश करते हैं। इससे तुम्हारा हृदय तृप्त होता हुआ संतुष्टि को ग्रहण करेगा।
Hey Indr Dev! We inspire you to drink this Somras since it will satisfy you.
त्वां सुतस्य पीतये प्रत्न मिन्द्र हवामहे। कुशिकासो अवस्यवः
हे पुरातन इन्द्र देव! हम कुशिक वंशोत्पन्न आपके द्वारा रक्षित होने की इच्छा करते हुए अभिषुत सोमपान के लिए स्तुति वचनों द्वारा आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.42.9] 
हे इन्द्रदेव! तम प्राचीन हो। हम कौशिकवंश ऋषिगण तुम्हारे द्वारा रक्षा साधन ग्रहण करने की इच्छा करते हुए, हम संस्कारित सोम को पीने के लिए सुन्दर प्रार्थना रूप वाणी से तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey ancient-eternal Indr Dev! We the sages born in Kaushik clan desire asylum-shelter, protection under you. We request to drink this Somras extracted by while reciting Shloks.
ऋषि :- 
आ याह्यर्वाङुप वन्धुरेष्ठास्तवेदनु प्रदिवः सोमपेयम्। 
प्रिया सखाया वि मुचोप बर्हिस्त्वामिमे हव्यवाहो हवन्ते
हे इन्द्र देव! जूए वाले रथ पर बैठकर आप हमारे पास आवें। यह सोम प्राचीन काल से ही आपके उद्देश्य से प्रस्तुत है, आप अपने प्रियतम सखा स्वरूप अश्व को कुश के निकट खोलें। ये ऋत्विक् सोमपान के लिए आपको बुला रहे हैं।[ऋग्वेद 3.43.1]
हे इन्द्र देव! तुम अपने जुते हुए परिपूर्ण रथ द्वारा हमको प्राप्त होओ। यह प्राचीन समय का सोम तुम्हारे लिए ही तैयार हुआ है। तुम अपने प्रिय मित्र रूप घोड़े को कुओं के निकट खोलो। यह ऋत्विजगण सोमपान के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! Come to us riding your charoite. This Somras is meant for you, ever since. Free your horses, which like dearest friend to you, near the Kush Mat. The organisers-Ritviz are inviting fro drinking Somras.
आ याहि पूर्वीरति चर्षणीराँ अर्य आशिष उप नो हरिभ्याम्। 
इमा हि त्वा मतयः स्तोमतष्टा इन्द्र हवन्ते सख्यं जुषाणाः
हे स्वामी इन्द्र देव! आप समस्त पुरातन प्रजा का अतिक्रमण करके आवें। घोड़ों के साथ यहाँ आकर सोमपान करें, यही हमारी प्रार्थना है। स्तोताओं के द्वारा प्रयुक्त संख्याभिलाषिण स्तुतियाँ आपका आह्वान कर रही हैं।[ऋग्वेद 3.43.2]
हे इन्द्र देव! हे प्रभु! तुम सभी प्राचीन प्राणियों को लांघकर यहाँ आओ। अपने अश्व के साथ यहाँ आकर सोम ग्रहण करो। हमारी इस विनती पर ध्यान दो। यह मित्रता की अभिलाषी वाली प्रार्थनाओं स्तोताओं के मुख से उच्चारण की जाती हुई तुम्हें बुलाती है।
Hey Lord Indr Dev! Come to us discarding-ignoring your ancient populace. We request you to come here along with your horses to drink Somras. The sacred hymns by the worshipers are sung in loud voice in your honour to invoke-invite you.
आ नो यज्ञं नमोवृधं सजोषा इन्द्र देव हरिभिर्याहि तूयम्। 
अहं हि त्वा मतिभिर्जोहवीमि घृतप्रयाः सधमादे मधूनाम्
हे द्योतमान इन्द्र देव! हमारे अन्न वर्द्धक यज्ञ में घोड़ों के साथ आप शीघ्र पधारें। घृत सहित अन्न रूप हवि लेकर हम सोमपान करने के स्थान में आपका स्तुति-द्वारा प्रभूत आह्वान कर रहे हैं।[ऋग्वेद 3.43.3]
हे इन्द्र देव! तुम ज्योर्तिवान हो। हमारे अन्न की वृद्धि करने वाले इस अनुष्ठान में अपने घोड़ों से युक्त शीघ्र पध करो। घृत सहित अन्न से परिपूर्ण हवि युक्त सोम पीने के लिए वंदनाओं द्वारा तुम्हें पुकारते हैं।
Hey aurous-glowing Indr Dev! Join our Yagy meant for growing more food grains, along with your horses. We invite-request you to drink Somras mixed with food grains and Ghee singing hymns-prayers.
आ च त्वामेता वृषणा वहातो हरी सखाया सुधुरा स्वङ्गा। 
धानावदिन्द्रः सवनं जुषाणः सखा सख्युः शृणवद्वन्दनानि
हे इन्द्र देव! सेचन समर्थ, सुन्दर धुरा और शोभन अंग वाले, सखा स्वरूप ये दोनों घोड़े आपको यज्ञभूमि में रथ पर ले जाते हैं। भूँजे जौ से युक्त यज्ञ की सेवा करते हुए मित्र-स्वरूप इन्द्र देव हम स्तोताओं की स्तुतियाँ श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.43.4]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे सेवन कार्य में समर्थ सुन्दर धुरा युक्त दोनों मित्र रूप रमणीय अश्व तुम्हें यज्ञ स्थान को प्राप्त कराते हैं। भुने हुए धान-युक्त सोम का सेवन करते हुए तुम मित्र भाव से हुई स्तुति करने वालों की वंदना सुनो।
Hey Indr Dev! Capable of serving you, possessing beautiful organs, friendly both horses deployed in the charoite having axel, take you to the Yagy site. Like a friend listen to our prayers while making offerings with roasted barley.
कुविन्मा गोपां करसे जनस्य कुविद्राजानं मघवन्नृजीषिन्। 
कुविन्म ऋषिं पपिवांसं सुतस्य कुविन्मे वस्वो अमृतस्य शिक्षाः
हे इन्द्र देव! मुझे सभी का रक्षक बनावें। हे मघवन्, हे सोमवान् इन्द्र देव! मुझे सबका स्वामी बनावें। मुझे अतीन्द्रिय द्रष्टा (ऋषि) बनावें तथा अभिषुत सोम का पानकर्ता बनावें और मुझे अक्षय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.43.5]
हे इन्द्रदेव! मुझे प्राणियों की सुरक्षा करने की सामर्थ्य प्रदान करो। तुम सोम से परिपूर्ण रहते हो, मुझे सभी का आधिपत्य प्रदान करो। मुझे ऋषि बनाओ और सोम को पीने योग्य बनाते हुए, कभी भी क्षय न होने वाला धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Enable me to protect all living beings. Hey Somras possessing Indr Dev let me become lord of all. Enable to become a sage-Rishi capable of seeing future, drink Somras and possessor of imperishable wealth.
आ त्वा बृहन्तो हरयो युजाना अर्वागिन्द्र सधमादो वहन्तु। 
प्र ये द्विता दिव ऋञ्जन्त्याताः सुसंमृष्टासो वृषभस्य मूराः
हे इन्द्र देव! महान् और रथ में संयुक्त हरि नामक मत्त घोड़े आपको हमारे समक्ष ले आवें। कामनाओं के वर्षक इन्द्र देव के अश्व शत्रुओं के विनाशक हैं। इनके हाथों से संस्पृष्ट होने पर वे घोड़े आकाश मार्ग से अभिमुख आते हुए और दिशाओं को द्विधा करते हुए गमन करते हैं।[ऋग्वेद 3.43.6]
हे इन्द्र देव! रथ में जुते हुए श्रेष्ठ अश्व तुम्हें हमारे सम्मुख लाएँ। तुम अभीष्ट वर्षक हो। तुम्हारे अश्व शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं। इन्द्र के हाथों से चलते हुए वह अश्व दिशाओं में घूमते रहते हैं।
Hey Indr Dev! Let, the great horses named Hari, deployed in the charoite, bring you to us. Accomplishment granting Indr Dev's horses are destroyer of he enemy. Driven by Indr Dev, these horses are capable of moving in all directions.  
इन्द्र पिब वृषधूतस्य वृष्ण आ यं ते श्येन उशते जभार। 
यस्य मदे च्यावयसि प्र कृष्टीर्यस्य मदे अप गोत्रा ववर्थ
हे इन्द्र देव! आप सोमाभिलाषी है। आप अभीष्ट फल दायक और प्रस्तर द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करें। सुपर्ण पक्षी आपके लिए सोमरस को लाया है। सोमपान जन्य हर्ष के उत्पन्न होने पर आप शत्रु भूत मनुष्यादि को पातित करते हैं एवं सोमजन्य हर्ष के उत्पन्न होने पर आप वर्षा ऋतु में मेघों को अपावृत करते हैं।[ऋग्वेद 3.43.7]
हे इन्द्र देव! तुम सोम की इच्छा करते हो। तुम इच्छित फल प्रदान करने वाले और पोषण द्वारा सिद्ध किये गये सोमरस को पीने वाले हो। श्येन तुम्हारे लिए सोम लाता है। सोम से रचित खुशी द्वारा तुम शत्रुता करने वाले व्यक्तियों को धराशायी करते हो। 
Hey Indr Dev! You are desirous of drinking Somras. Drink the Somras extracted by crushing with stone, which accomplish desires. Shyen-Suparn bird has brought Somras for you. On being happy by drinking Somras you destroy the humans who are like enemy and condense-shower the clouds during the raining season.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। आप युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान् प्रभूत, ऐश्वर्यवाले, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रवण कर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन विजेता हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.43.8] 
हे इन्द्र देव! तम अन्न लाभ वाले बुद्धि में हर्ष से वृद्धि करते हो। धन और ऐश्वर्य से युक्त नायकों में श्रेष्ठ तथा स्तुतियों को श्रवण करने वाले हो। भयंकर युद्ध में शत्रु का नाश कर धन जीतते हो। सहारा प्राप्त करने के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You collet the food grains and create pleasure in the mind. You possess grandeur, wealth, listen to the excellent prayers, is a great leader, furious & on being encouraged you destroy the enemy, win wealth.
ऋषि :- 
अयं ते अस्तु हर्यतः सोम आ हरिभिः सुतः।
जुषाण इन्द्र हरिभिर्न आ गह्या तिष्ठ हरितं रथम्
हे इन्द्र देव! पत्थरों द्वारा अभिषुत, प्रीति वर्द्धक कमनीय सोमरस आपके लिए है। हरि नामक घोड़ों से युक्त, हरि द्वर्ण रथ पर आप बैठकर हमारे सम्मुख आगमन करें।[ऋग्वेद 3.44.1]
हे इन्द्र! यह सोम पाषाणों से कूटकर सिद्ध किया गया है। यह रति की वृद्धि करने वाला तथा रमणीय सोम तुम्हारे लिए है। तुम घोड़ों से परिपूर्ण रथ पर चढ़कर हमारे सम्मुख पधारो।
Hey Indr Dev! The Somras obtained after crushing with stone, that boosts sexual power-potency, is ready for you. Come riding the charoite called Hari Dwarn in which the horses named Hari are deployed.
Dev Raj Indr is the deity of senses and the sex organs. He regulate the sexual desires, sensuality in the mind. Chandr Dev and Kam Dev along with Rati and Preeti help him. He invited trouble for himself due to lust and lasciviousness. Undue sex drags one to hells and severe punishments.
हर्यन्नुषसमर्चयः सूर्यं हर्यन्नरोचयः।
विद्वांश्चिकित्वान्हर्यश्च वर्धस इन्द्र विश्वा अभि श्रियः
हे इन्द्र देव! सोमाभिलाषी होकर आप उषा की अर्चना करते हैं तथा सोमाभिलाषी होकर आप सूर्य को भी प्रदीप्त करते हैं। हे हरि नामक घोड़ों वाले! आप विद्वान् है, हमारी मनोकामना के ज्ञाता हैं तथा अभिमत फल प्रदान से आप हमारी सम्पूर्ण सम्पत्ति को परिवर्तित करें।[ऋग्वेद 3.44.2]
हे इन्द्रदेव! तुम सोम की कामना वाले होकर सूर्य को प्रकाशवान बनाते हो। हे अश्वयुक्त इन्द्रदेव! तुम बुद्धिमान तथा इच्छाओं को जानने वाले हो। तुम मनवांछित फल देते हो तथा हमारे धन की वृद्धि करते हो।  
Hey Indr Dev! Desirous of Somras you pray to Usha-day break and shine the Sun. Hey enlightened Indr Dev, having horses named Hari! You are aware of desires, fulfil them & increase our wealth.
द्यामिन्द्रो हरिधायसं पृथिवीं हरिवर्पसम्।
अधारयद्धरितोर्भूरि भोजनं ययोरन्तर्हरिश्चरत्
हरिद्वर्ण रश्मि वाले द्युलोक को तथा औषधियों से हरिद्वर्ण वाली पृथ्वी को इन्द्र देव ने धारित किया। हरिद्वर्ण वाली द्यावा-पृथ्वी के बीच में अपने घोड़ों के लिए ये प्रभूत भोजन प्राप्त करते हैं। इन्द्रदेव इसी द्यावा-पृथ्वी के बीच में भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 3.44.3]
हरे वर्ण वाली रश्मियों से परिपूर्ण सूर्य जगत और हरे रंग वाली औषधियों से हरी हुई पृथ्वी को इन्द्र देव धारण करते हैं। हरित रंग वाले अम्बर-पृथ्वी के बीच इन्द्र अपने घोड़े के लिए भोजन लेते हैं तथा इसी अम्बर धरा के बीच विचरण करते हैं।
Indr Dev support the heaven possessing green rays and the earth full of green herbs. His horses gets sufficient food in between the green sky & earth roaming here.
जज्ञानो हरितो वृषा विश्वमा भाति रोचनम्।
हर्यश्वो हरितं धत्त आयुधमा वज्रं बाह्वोर्हरिम्
कामनाओं के पूरक, हरिद्वर्ण वाले इन्द्र देव जन्म ग्रहण करते ही सम्पूर्ण दीप्तिमान् लोकों को प्रकाशित करते हैं। हरि नामक घोड़ों वाले इन्द्र देव हाथों में हरिद्वर्ण आयुध धारित करते हैं। तथा शत्रुओं का प्राण संहारक वज्र धारित करते हैं।[ऋग्वेद 3.44.4]
अभीष्टों का फल प्रदान करने वाले इन्द्र उत्पन्न होते ही सभी लोकों को प्रकाशित करते हैं। हरे अश्वों वाले इन्द्र अपने हाथ में हरे रंग के शस्त्र धारण करते हुए शत्रुओं का विनाश करने वाला वज्र उठाते हैं।
Desires accomplishing Indr Dev possess green aura and fills all abodes with light. He has green coloured horses, hold green coloured arms & ammunition. To eliminate the enemy he hold Vajr which kills them. 
इन्द्रो हर्यन्तमर्जुनं वज्रं शुक्रैरभीवृतम्। 
अपावृणोद्धरिभिरद्रिभिः सुतमुद्रा हरिभिराजत
इन्द्र देव ने कमनीय, शुभ्र, क्षीरादि के द्वारा व्याप्त होने के कारण शुभ्र, वेगवान् और प्रस्तरों द्वारा अभिषुत सोमरस को अपावृत किया। पणियों द्वारा अपहृत गौओं को इन्द्र देव ने अश्वयुक्त होकर गुफा से बाहर निकाला।[ऋग्वेद 3.44.5]
इन्द्र ने उज्ज्वल दूध आदि द्वारा मिश्रित तथा पाषाणों द्वारा निष्पन्न सोम को प्रकट किया। उन्होंने घोड़ों को संग लेकर पणियों द्वारा चुराई गई गौओं को बाहर निकाला था।
Indr Dev drank the Somras extracted by crushing with white coloured stones, striking with speed-force, mixed with milk. He released the cows with the help of horses from the cave, stolen by the Panis.
प्र मात्राभी रिरिचे रोचमानः प्र देवेभिर्विश्वतो अप्रतीतः।
प्र मज्मना दिव इन्द्रः पृथिव्याः प्रोरोर्महो अन्तरिक्षादृजीषी
दीप्यमान् और सब प्रकार से अपरिमित सोमवान इन्द्र देव पर्वतों से भी श्रेष्ठ, बल में देवताओं से भी अधिक, द्यावा-पृथ्वी से भी अधिक श्रेष्ठ हैं और विस्तीर्ण, महान् अन्तरिक्ष से भी श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 3.46.3] 
यह इन्द्र देव सोमयुक्त हैं, सभी प्रकार से असीमित तथा शैल से भी अधिक अडिग है। वह प्रकाशयुक्त देवगणों से भी अधिक शक्तिशाली है। यह आकाश और धरा से भी विस्तृत है तथा विशाल और महान अंतरिक्ष से भी उत्कृष्ट है। 
Indr Dev is Aurous, infinite, possessor of Somras, mightier than the mountains, better than all demigods-deities in strength & power, better the the sky & earth, great, all pervading-vast and superior to the space.
उरुं गभीरं जनुषाभ्यु १ ग्रं विश्वव्यचसमवतं मतीनाम्।
इन्द्रं सोमासः प्रदिवि सुतासः समुद्रं न स्त्रवत आ विशन्ति
हे इन्द्र देव! आप महान् हैं, इसलिए गंभीर हैं तथा स्वभाव से ही शत्रुओं के लिए भयङ्कर हैं। आप सभी जगह व्याप्त है, स्तोताओं के रक्षक है। नदियाँ जिस प्रकार से समुद्र के अभिमुख गमन करती हैं, उसी प्रकार यह पूर्वकालिक अभिषुत सोमरस इन्द्र देव के अभिमुख गमन करे।[ऋग्वेद 3.46.4]
हे इन्द्रदेव! तुम अत्यन्त गंभीर एवं श्रेष्ठतम हो। तुम अपने स्वभाव से ही शत्रुओं के प्रति विकराल हो जाते हो। तम सर्व व्यापक एवं वंदना करने वालों की सुरक्षा करने वाले हो। जैसे नदियाँ समुद्र की ओर प्रस्थान करती हैं, वैसे ही यह पुराने समय से व्यहृत सोम सुविख्यात होकर इन्द्र देव की तरफ जाने वाला हो।
Hey Indr Dev! You are great, serious and furious to the enemy by nature. You pervade all, protect the devotees-worshipers. The way the rivers move towards the ocean, the Somras extracted earlier comes to you. 
यं सोममिन्द्र पृथिवीद्यावा गर्भं न माता बिभृतस्त्वाया।
तं ते हिन्वन्ति तमु ते सृजन्यध्वर्यवो वृषभ पातवा उ
हे इन्द्र देव! माता जिस प्रकार गर्भधारित करती है, उसी प्रकार द्यावा-पृथ्वी आपकी कामना से सोमरस को धारित करती है। हे कामनाओं के पूरक, उसी सोम को अध्वर्यु लोग आपके लिए प्रेरित करते हैं और उसे आपके पीने के लिए शुद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 3.46.5]
हे इन्द्र देव! गर्भ धारण करने वाली माता के समान तुम्हारी अभिलाषा करने वाले आसमान और धरती सोम को धारण करती है। तुम कामनाओं के पूर्ण करने वाले हो। अधवर्युगण उसी सोम को ग्रहण करते हैं।
Hey Indr Dev! The way the mother nourish-sustain the child in her womb, the sky & earth, sustain Somras. Hey desire accomplishing! The Ritviz-priests inspire you to drink Somras.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्
इन्द्रः स्वाहा पिबतु यस्य सोम आगत्या तुभ्रो वृषभो मरुत्वान्।
ओरुव्यचाः पृणतामेभिरन्नैरास्य हविस्तन्व १: काममृध्याः
हे इन्द्र देव! यज्ञ में आकर स्वाहाकृत इस सोमरस का पान करें। जिन इन्द्र देव का यह सोमरस है, वे विघ्नकारियों के हिंसक याजकों के अभिमतफल वर्धक और मरुद्वान् हैं। अतिशय  व्यापक इन्द्र देव हम लोगों के द्वारा दिए गए अन्न से तृप्त होवें। यह हव्य इन्द्र देव की अभिलाषा पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.50.1]
हे इन्द्र देव! हमारे यज्ञ में पधार कर इस सोम रस का पान करो। यह सोम जिन इन्द्र देव के लिए हैं, वे बाधा डालने वालों की हिंसा करने में समर्थ हैं। वे मरुतों से परिपूर्ण इन्द्र देव यज्ञ कर्त्ताओं पर पुष्पों की वर्षा करते हैं। वे अत्यन्त व्यापक हैं। हमारे द्वारा अर्पित अन्न से ही वे तृप्त हों। हवि उनको संतुष्ट करें।
Hey Indr Dev! Oblige us by participating and drinking Somras in this Yagy. This Somras is for Indr Dev who destroy the enemy in association with Marud Gan. Vast-broad Indr Dev should be satisfied with our offerings of food grains.
आ ते सपर्यू जवसे युनज्मि ययोरनु प्रदिवः श्रुष्टिमावः।
इह त्वा घेयुर्हरयः सुशिप्र पिबा त्व१स्य सुषुतस्य चारोः
हे इन्द्र देव! आपको यज्ञ में आने के लिए हम रथ को परिचारक अश्व युक्त करते हैं। आप पुरातन है, घोड़ों के वेग का अनुगमन करते हैं। हे शोभन हनु इन्द्र देव! घोड़े आपको यज्ञ में धारित करें। आप आकर इस कमनीय और भली-भाँति अभिषुत सोमरस का शीघ्र पान करें।[ऋग्वेद 3.50.2]
हे इन्द्र देव! तुम्हें अनुष्ठान में बुलाने के लिए हम रथ में अश्वों को जोड़ते हैं। वे तुम्हें प्राचीन काल से अश्वों का अनुगमन करने वालों को इस यज्ञ में लायें। तुम इस श्रेष्ठ प्रकार से सिद्ध किये गये सोमरस को यहाँ पधारकर पान करो।
Hey Indr Dev! Let the care takers deploy the horses in the charoite to bring you to our Yagy. You are ancient-eternal. Hey Indr Dev possessing beautiful chin! Come quickly and drink this excellent Somras extracted for you. 
गोभिर्मिमिक्षं दधिरे सुपारमिन्द्रं ज्यैष्ठ्याय धायसे गृणानाः।
मन्दानः सोमं पपिवाँ ऋजीषिन्त्समस्मभ्यं पुरुधा गा इषण्य
स्तोताओं के अभिमत फल वर्षक और स्तुति द्वारा प्रसन्न करने योग्य इन्द्र देव को स्तोत्र करने वाले ऋत्विक लोग श्रेष्ठत्व और चिरकालीन प्राप्ति के लिए गव्य मिश्रित सोमरस के द्वारा धारित करते हैं। हे सोमवान् इन्द्र देव! प्रसन्न होकर आप सोमपान करें और स्तोताओं को अग्रिहोत्रादि कार्य सिद्धि के लिए बहुविध गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.50.3]
वंदना किये जाने वाले, अभीष्टों की वृद्धि करने वाले तथा प्रार्थनाओं से प्रसन्न होने वाले इन्द्र देव के वंदनाकारी ऋत्विक महान तत्व की प्राप्ति हेतु दुग्ध से परिपूर्ण सोम धारण करते हैं। हे इन्द्र देव! तुम सोम रस से परिपूर्ण हो। तुम हर्षिता पूर्वक सोम का पान करो और वंदना करने वालों को अनुष्ठान सिद्धि के लिए धेनु प्रदान करो। 
The Ritviz pray-worship Indr Dev, offer him Somras mixed with cow milk to seek fulfilment of their desires and longevity. Hey Indr! Be cheerful, drink Somras and grant cows to the worshipers-Ritviz for conducting Agnihotr-Yagy, Hawan.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, गायत्री
आकरे वसर्जरिता पनस्यतेऽनेहसः स्तुभ इन्द्रो दुवस्यति।
विवस्वतः सदन आ हि पिप्रिये सत्रासाहमभिमातिहनं स्तुहि
इन्द्र देव शत्रुओं के बल संहारक हैं, संग्राम में वे सबसे प्रार्थित होते हैं। वे निष्पाप स्तुतियों को सम्मानित करते हैं। अग्रिहोत्रादि करने वाले याजक गण के घर में सोमपान कर वे अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। विश्वामित्र, मरुतों के साथ शत्रुओं के अभिभवकर्ता और शत्रु संहारक इन्द्र देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 3.51.3]
युद्ध के मैदान में सभी वंदना करते हैं। वे शत्रुओं के समूह का पतन करते हैं। वे हृदय से की गई वंदनाओं का सम्मान करते हैं। वे यज्ञकर्त्ता यजमान के घर में सोमपान करके परमानंद को प्राप्त होते हैं। हे विश्वामित्र! मरुद्गण सहित शत्रुओं को विनाश करने वाले इन्द्र देव की वंदना करो।
Indr Dev destroys the enemy in the battle field. He is honoured-revered by every one. He  accepts the prayers performed with pure heart. He become very happy by drinking Somras at the house of the Ritviz-Yagy performers. Vishwamitr should pray to the destroyer of the enemy & their down fall, along with Marud Gan. 
इन्द्र मरुत्व इह पाहि सोमं यथा शायते अपिबः सुतस्य।
तव प्रणीती तव शूर शर्मन्ना विवासन्ति कवयः सुयज्ञाः
हे मरुतों से युक्त इन्द्र देव! शर्याति राजा के यज्ञ में जिस प्रकार से आपने अभिषुत सोमरस का पान किया, उसी प्रकार इस यज्ञ में सोमरस का पान करें। हे शूर! आपके निर्बाध निवास स्थान में स्थिर और सुन्दर यज्ञ करने वाले मेधावी याजकगण हवि के द्वारा आपकी परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 3.51.7]
हे मरुतवान इन्द्र देव! जिस प्रकार तुमने शर्यात के अनुष्ठान में सोमपान किया था, उसी प्रकार इस अनुष्ठान में भी करो। तुम पराक्रमी हो। तुम्हारे रुकने के स्थान में मेधावी अनुष्ठानकर्त्ता हवि द्वारा तुम्हारी सेवा करते हैं।
Hey Indr Dev associated by the Marud Gan! The way you drank Somras in the Yagy conducted by the king Sharyati, drink it in this Yagy as well. Hey brave-mighty! The intelligent Ritviz-devotees conducting beautiful Yagy, serve to you with the offerings at the site of your stay.
स वावशान इह पाहि सोमं मरुद्भिरिन्द्र सखिभिः सुतं नः।
जातं यत्त्वा परि देवा अभूषन्महे भराय पुरुहूत विश्वे
हे इन्द्र देव! सोमरस की कामना करते हुए आप अपने मित्र मरुतों के साथ हमारे इस यज्ञ में अभिषुत सोमरस का पान करें। हे पुरुओं द्वारा आहूत इन्द्र देव! आपके जन्म-ग्रहण करते ही सब देवताओं ने आपको महासंग्राम के लिए भूषित किया।[ऋग्वेद 3.51.8]
महासंग्राम :: महासमर; great war,  epic battle.
हे इन्द्र देव! सोम की कामना से अपने सखा मरुतों सहित हमारे यज्ञ में सुसंस्कारित सोम को ग्रहण करो। तुमको पुरुवंशियों ने आमंत्रित किया था। तुम्हारे उत्पन्न होते ही समस्त देवताओं ने महासमर के लिए तुम्हें प्रतिष्ठित किया था।
Hey Indr Dev! Drink Somras along with your friends Marud Gan in this Yagy. Hey Indr Dev, worshiped-prayed by the Puru dynasty! The demigods-deities designated you for the epic battle as soon you were born, evolved, appeared. 
अप्तूर्ये मरुत आपिरेषोऽमन्दन्निन्द्रमनु दातिवाराः।
तेभिः साकं पिबतु वृत्रखादः सुतं सोमं दाशुषः स्वे सधस्थे
हे मरुतों! जल के प्रेरणा से इन्द्र देव आपके मित्र होते हैं। उन्हें आपने प्रसन्न किया। वृत्र विनाशक इन्द्र देव आपके साथ हवि देने वाले याजकगण के घर में अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.51.9]
हे मरुद्गण! जल को प्रेरित करने के कारण इन्द्र देव तुम्हारे मित्र बने हैं। जिनको तुमने हर्षित किया है वे वृत्र का विनाश करने वाले इन्द्रदेव, हविदाता यजमान के गृह मैं सुसिद्ध किये गये सोम का तुम्हारे संग विराजमान होकर पान करें। 
Hey Marud Gan! Indr Dev is friendly with you, since you inspire the water (to evaporate and form clouds for rains). You made him happy. Let the slayer of Vratr Indr Dev drink clarified Somras at the house of the devotee-worshiper with you. 
इदं ह्यन्वोजसा सुतं राघानां पते। पिबा त्वस्य गिर्वणः
हे धन के स्वामी स्तूयमान इन्द्र देव! उद्देश्यानुक्रम से बल द्वारा इस अभिषुत सोमरस का शीघ्र पान करें।[ऋग्वेद 3.51.10] 
हे इन्द्र देव! तुम धनों के ईश्वर हो। तुम अभिलाषा पूर्वक इस सोम को अपनी शक्ति से शीघ्र पान करो। 
Hey Indr Dev, lord of wealth! Drink this Somras quickly in the order of priorities of functions-targets, goals with your strength.
यस्ते अनु स्वधामसत्सुते नि यच्छ तन्वम्। स त्वा ममत्तु सोम्यम्
हे इन्द्र देव! आपके लिए जो अन्न मिश्रित सोमरस अभिषुत हुआ है, उसमें अपने शरीर को निमग्न करें। आप सोमपान के योग्य हैं। आपको वह सोमरस प्रसन्न करे।[ऋग्वेद 3.51.11] 
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे लिए जो अन्न से युक्त सोम संस्कारित किया है, वह अपने हृदय को उसमें लगाओ। तुम सोम ग्रहण करने के पात्र हो? यह सोम तुम्हें प्रसन्न रखें।
Hey Indr Dev! Accept this Somras mixed with the extracts of food grains. Its meant for you. It suits you and give you pleasure.
Food grains release ethyl alcohol-basic component of wine. 
प्र ते अश्नोतु कुक्ष्योः प्रेन्द्र ब्रह्मणा शिरः। प्र बाहू शूर राधसे
हे इन्द्र देव! वह सोमरस आपकी दोनों कुक्षियों को व्याप्त करे, स्तोत्रों के साथ वह आपके शरीर को व्याप्त करे। हे शूर! धन के लिए वह आपकी दोनों भुजाओं को भी व्याप्त करे।[ऋग्वेद 3.51.12] 
कुक्षि :: कोख, पेट; stomach, abdomen.
हे इन्द्र देव! यह सोम तुम्हारी दोनों कुक्षियों में व्याप्त हो। श्लोकों से युक्त हुआ सोम तुम्हारे शरीर में व्याप्त हो। हे वीर! यह सोम धन के लिए तुम्हारी दोनों भुजाओं को पुष्ट बनाएं।
Hey Indr Dev! Let this Somras  spread in both segments of your stomachs and pervade your body with the recitation of sacred hymns. Let it spread over your arms to possess wealth.
धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम्। इन्द्र प्रातर्जुषस्व नः
हे इन्द्र देव! भुने हुए जौ से युक्त, दधि मिश्रित, सत्तू से युक्त, सवनीय पुरोडाश से युक्त और शस्त्र वाले हमारे सोमरस का प्रातःसवन में आप सेवन करें।[ऋग्वेद 3.52.1]
सत्तू :: भुने हुए चने और जौ का आटा जिसे सामान्यतया गुड़ या शक़्कर मिलाकर गर्मियों में खाया जाता है। इसे उत्तर भारत, बिहार आदि हिंदी भाषी क्षेत्रों ज्यादातर प्रयोग किया जाता है। Its is mixture of roasted gram and barley flour is eaten during summers by adding jaggary or Shakkar-jaggary power, raw sugar, in Northern India, UP & Bihar. Its nourishing, easy to digest. 
हे इन्द्र देव! इस मिश्रित दही, सत्तू और पुरोडाश से परिपूर्ण पाषाण द्वारा प्रस्तुत हमारे सोम को प्रातः सवन में ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! Consume flour of roasted gram and barley by mixing it in curd, lobes of bread along with Somras in the morning as breakfast.
पूषण्वते ते चक्रमा करम्भं हरिवते हर्यश्वाय धानाः।
अपूपमद्धि सगणो मरुद्धिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्
हे शूर इन्द्र देव! आप पूषा नामक देव वाले हैं। आपके लिए हम वही मिला सत्तू बनाते हैं। आप हरि नामक घोड़े वाले हैं। आपके खाने के लिए हम भुना जौ तैयार करते हैं। मरुतों के साथ आप पुरोडाश का भक्षण करें। आप वृत्रासुर का वध करने वाले विद्वान् हैं अतः सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.52.7]
हे इन्द्र! तुम पूषा देवता से युक्त हो, तुम्हारे लिए यह दही से मिश्रित सत्तू तैयार है तथा अश्वान के लिए हम भुना हुआ जौं प्रस्तुत करते हैं, मरुद्गण सहित आकर पुरोडाश स्वीकार करो। तुमने वृत्र का संहार किया, तुम बुद्धिमान हो, इस सोम को ग्रहण करो। 
Hey mighty-brave Indr Dev! You are associated with Pusha Dev. We are preparing Sattu mixed with curd for you. You possess the horses named Hari. We are preparing roasted barley for you.  Eat Purodash along with Marud Gan. You are the enlightened who killed Vrata Sur. Hence drink Somras.
प्रति धाना भरत तूयमस्मै पुरोळाशं वीरतमाय नृणाम्।
दिवेदिवे सदृशीरिन्द्र तुभ्यं वर्धन्तु त्वा सोमपेयाय धृष्णो
हे अध्वर्युओं! इन्द्र देव के लिए शीघ्र भुना जौ प्रदान करें। यह नेतृतम हैं। इन्हें पुरोडाश प्रदत्त करें। हे शत्रुओं के अभिभव कर्ता इन्द्र देव! आपको लक्ष्य कर प्रतिदिन की गई प्रार्थना आपको सोमपान के लिए उत्साहित करे।[ऋग्वेद 3.52.8]
हे अध्वर्युओं! इन्द्र के लिए भुने जौं प्रस्तुत करो। यह नायकों में श्रेष्ठ हैं। इन्हें पुरोडाश प्रदान करो। हे इन्द्र देव । तुम शत्रुओं को दूर करने वाले हो। तुम्हारे लिए प्रतिदिन की जाने वाली वंदनाएँ सोमपान के कार्य में तुम्हें प्रोत्साहित करें।
Hey priests organising Yagy! Keep the roasted barley ready for Indr Dev. He is the supreme leader-commander. Offer him Purodash. Hey destroyer of the enemy Indr Dev! We have recited the prayer for you to sip Somras.
आ वां वहिष्ठा इह ते वहन्तु रथा अश्वास उषसो व्युष्टौ।
इमे हि वां मधुपेयाय सोमा अस्मिन्यज्ञे वृषणा मादयेथाम्
हे अश्विनी कुमारों! उषा के प्रकाशित होने पर अत्यन्त वहन क्षम और गमनशील अश्व आपको इस यज्ञ में ले आवें। हे अभीष्ट वर्षिद्वय! यह सोमरस आपके लिए हैं। इस यज्ञ में सोमपान करके आनन्दित होवें।[ऋग्वेद 4.14.4]
हे अश्विनी कुमारों! उषा के उदय होने पर वहन करने की अत्यन्त क्षमता वाले गमनशील अश्व तुमको उस यज्ञ में ले जाएँ। तुम दोनों अभिलाषाओं की वर्षा करने वाले हो। यह सोम तुम्हारे लिए है। अतः इस अनुष्ठान में सोमपान करके संतुष्टि को प्राप्त होओ।
Hey Ashwani Kumars! Let your mighty, capable horses bring you here, on the arrival of Usha Devi. Hey desires-accomplishment granting duo! This Somras is for you. Seek pleasure by drinking Somras in this Yagy.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वा युजा तव तत्सोम सख्य इन्द्रो अपो मनवे सस्रुतस्कः।
अहन्नहिमरिणात्सप्त सिन्धूनपावृणोदपिहितेव खानि
हे सोम! इन्द्र देव के साथ आपकी मैत्री होने पर इन्द्र देव ने आपकी सहायता से मनुष्यों के लिए सरणशील जल को प्रवाहित किया, वृत्रासुर का वध किया, सर्पणशील जल को प्रेरित किया और वृत्रा सुर द्वारा तिरोहित जल द्वारों को खोल दिया।[ऋग्वेद 4.28.1]
हे सोम! जब इन्द्र देव तुम्हारे सखा बने हुए तब तुम्हारी सहायता से उन्होंने पुरुषों के लिए जल को प्रवाहमान किया और वृत्र का पतन किया। वृत्र द्वारा रोके हुए द्वार को खोलकर तुमने जल को शिक्षित किया।
Hey Som! When you became a friend of Indr Dev, he made the water flow and killed Vrata Sur & opened the blockade of water created by Vrata Sur. 
त्वा युजा नि खिदत्सूर्यस्येन्द्रश्चक्रं सहसा सद्य इन्दो।
अधि ष्णुना बृहता वर्तमानं महो द्रुहो अप विश्वायु धायि
हे सोम! इन्द्र देव ने आपकी सहायता से क्षण भर में प्रेरक सूर्य के रथ के ऊपर स्थित बृहत अन्तरिक्ष में वर्तमान द्विचक्र रथ के एक चक्र को बलपूर्वक तोड़ डाला। प्रभूत द्रोहकारी सूर्य के सर्वतोगामी चक्र को इन्द्र देव ने अपहृत कर लिया।[ऋग्वेद 4.28.2]
चक्र :: आवर्तन, वृत्त, मंडली, घेरा, चक्कर, क्षेत्र, पहिया, चक्र, चाक, चक्का; cycle, circle, wheel.
हे सोम! तुम्हारी सहायता से ही इन्द्र ने सूर्य के रथ के ऊपर स्थित दो चक्रों वाले रथ के एक चक्र को पल भर में अलग कर दिया। सूर्य के सर्वत्र गतिमान चक्रों को स्पर्धा के कारण इन्द्र देव ने ले लिया।
Hey Som! Indr Dev destroyed one of the two disc-cycles over the charoite of Sun in the sky with might. He took away, snatched the competitive disc moving in all directions.
अहन्निन्द्रो अदहदग्निरिन्दो पुरा दस्यून्मध्यन्दिनादभीके।
दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्त्रा शर्वा नि बर्हीत्
हे सोम! आपके पान से बलवान इन्द्र देव ने मध्याह्नकाल के पहले ही संग्राम में शत्रुओं को मार डाला और अग्नि देव ने भी कितने शत्रुओं को जला डाला। किसी कार्य से रक्षा शून्य दुर्गम स्थान से जाने वाले व्यक्ति को जिस प्रकार से चोर मार डालते हैं, उसी प्रकार इन्द्र देव ने सहस्र शत्रु सेनाओं का वध किया।[ऋग्वेद 4.28.3]
हे सोम! तुमको पान कर वीर इन्द्र देव ने मध्याह्न समय से पूर्व ही शत्रुओं को युद्ध में समाप्त कर दिया और अग्नि ने भी असंख्य शत्रुओं को समाप्त कर दिया। जैसे अरक्षित मार्ग से जाने वाले धनिक को चोर मार देता है वैसे असंख्य शत्रु सेनाओं को इन्द्रदेव ने समाप्त कर डाला।
Hey Som! After drinking you, mighty Indr Dev killed the enemies in the mid day and Agni Dev burnt several enemies. Indr Dev killed the thousands of enemies like the rich being killed while moving through an unsafe route.
विश्वस्मात्सीमधमाँ इन्द्र दस्यून्विशो दासीरकृणोरप्रशस्ताः।
अबाधेथाममृणतं नि शत्रूनविन्देथामपचितिं वधत्रैः
हे इन्द्र देव! आप इन दस्युओं को सभी सदगुणों से रहित करते हैं। आप कर्महीन मनुष्यों (दासों) को गर्हित (निन्दित) बनाते हैं। हे इन्द्र देव और सोम! आप दोनों शत्रुओं को बाधा दो और उनका वध करें। उन्हें मारने के लिए लोगों से सम्मान ग्रहण करें।[ऋग्वेद 4.28.4]
हे इन्द्र देव! तुम समस्त दुष्टों को सद्गुणों से विहीन करते हो। तुम उन वस्तुओं को निंदा के योग्य करते हो। हे इन्द्र देव और सोम! तुम दोनों ही शत्रुओं के आक्रमण-कार्य में विघ्न डालते हुए उनका विनाश करो, उनका वध करने हेतु की जाने वाली प्रार्थनाओं को स्वीकार करो।
Hey Indr Dev! You devoid the dacoits of virtues and make the humans vulnerable, who avoid work-efforts, endeavours. Hey Indr Dev & Som! You apply breaks to both the enemies and kill them. Accept the prayers felicitations by the humans, pertaining to the slaying of the enemies.
एवा सत्यं मघवाना युवं तदिन्द्रश्च सोमोर्वमश्व्यं गोः।
आदर्दृतमपिहितान्यशृना रिरिचथुः क्षाश्चित्ततृदाना
हे सोम! आप और इन्द्र देव ने महान अश्व समूह और गो समूह को दान किया एवं पणियों द्वारा आच्छादित गोवृन्द और भूमि को बल द्वारा विमुक्त किया। हे धन युक्त इन्द्र देव और सोम! आप दोनों शत्रुओं के हिंसक है। आप दोनों ने इस प्रकार से जो कुछ किया है, वह सत्य है।[ऋग्वेद 4.28.5]
हे सोम! तुम और इन्द्र देव ने विशाल अश्वों और गौओं के संगठन को दान किया था। हे इन्द्र देव और सोम! तुम दोनों ही अत्यन्त समृद्धिशाली हो। तुम दोनों शत्रुओं का नाश करने में समर्थ हों। तुम दोनों जो भी कार्य करते हो, वह सभी सच है।
Hey Som! You and Indr Dev donated a large group of horses and the cows, released the land under the control of Ahi-demons with force-might having cows herds. Hey wealthy Indr Dev & Som! You are the destroyer of the enemy. What ever you did in this manner is true.(15.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-  इन्द्र देव, वायु देव, छन्द :- गायत्री
अग्रं पिबा मधूनां सुतं वायो दिविष्टिषु। त्वं हि पूर्वपा असि
हे वायु देव! स्वर्ग प्रापक यज्ञ में आप सर्वप्रथम अभिषुत सोमरस का पान करें; क्योंकि आप सबसे पहले सोमरस का पान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 4.46.1]
हे वायु! स्वर्ग में स्थान बनाने वाले अनुष्ठान में इस अभिषुत सोम रस को आकर पीओ क्योंकि तुम सबसे पहले सोमरस का पान करने वाले हो।
Hey Vayu Dev! Drink this freshly extracted Somras first of all, since you are one who clears the way to heavens and you are entitled to drink it first.
शतेना नो अभिष्टिभिर्नियुत्वाँ इन्द्रसारथिः। वायो सुतस्य तृम्पतम्
हे वायु देव! आप नियुद्वान् हैं और इन्द्र देव आपके सारथि हैं। आप अपरिमित कामनाओं को पूर्ण करने के लिए आगमन करें। आप अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 4.46.2]
हे वायु देव! हे इन्द्र देव! तुम दोनों सोमपान के द्वारा संतुष्टि को प्राप्त हो जाओ। हे वायु! तुम संसार के कल्याणकारी कर्म में नियुक्त हुए हो। तुम इन्द्र देव के सारथी होकर हमारी दृढ़ कामनाओं को पूरा करने के लिए यहाँ आओ।
Hey Vayu Dev! Indr Dev is your charioteer & you are appointed to perform the welfare of the humans-world.  Invoke to accomplish our unfulfilled desires. Drink the freshly extracted Somras.
आ वां सहस्रं हरय इन्द्रवायू अभि प्रयः। वहन्तु सोमपीतये
हे इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों को हजारों संख्या वाले अश्व युक्त रथ द्रुतगति से सोमपान के लिए ले आवें।[ऋग्वेद 4.46.3]
हे इन्द्र और वायु! तुम दोनों को हजारों अश्व शीघ्रतापूर्वक सोमपान के लिए यहाँ ले आएँ।
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come here fast, riding the charoite pulled by thousands of horses, to drink the Somras.
रथं हिरण्यवन्धुरमिन्द्रवायू स्वध्वरम्। आ हि स्थाथो दिविस्पृशम्
हे इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों हिरण्मय निवासाधार काष्ठ से युक्त द्युलोक स्पर्शी और शोभन यज्ञशाली रथ पर आरोहण करें।[ऋग्वेद 4.46.4]
हे इन्द्रदेव और वायु! तुम दोनों स्वर्ण के उज्जवल काष्ठ के मूल वाले तथा अम्बर से तुम दोनों ही महान शक्तिशाली रथ से ही हवि प्रदान करने वाले यजमान के निकट पधारो।
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come to the Yagy of the Ritviz, for accepting offerings riding the charoite in which wood is studded with gold, from the heavens.
रथेन पृथुपाजसा दाश्वांसमुप गच्छतम्। इन्द्रवायू इहा गतम्
हे इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों प्रभूत बल सम्पन्न रथ द्वारा हव्य दाता याजक गण के निकट आगमन करें तथा इस यज्ञ मण्डप में पधारें।[ऋग्वेद 4.46.5]
तुम दोनों यजमान के लिए ही इस महान अनुष्ठान में पधारो।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! Visit the Yagy of the Ritviz making offerings, riding the charoite associated with your might.  
इन्द्रवायू अयं सुतस्तं देवेभिः सजोषसा। पिबतं दाशुषो गृहे
इन्द्र देव और वायु देव! यह सोमरस आपके लिए अभिषुत किया गया है। आप दोनों देवताओं के साथ समान प्रीति युक्त होकर हव्य दाता याजक गण की यज्ञशाला में उसका पान करें।[ऋग्वेद 4.46.6]
हे इन्द्र देव! हे वायो! यह प्रसिद्ध सोम रखा है। तुम दोनों समान प्रीति वाले होकर हविदाता यजमान के यज्ञ स्थल में आकार सोम रस पीओ।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! This Somras has been extracted for you. Drink it along with the demigods-deities happily, in the Yagy Shala-house of the Ritviz.
इह प्रयाणमस्तु वामिन्द्रवायू विमोचनम्। इह वां सोमपीतये
हे इन्द्र देव और वायु देव! इस यज्ञ में आप दोनों का आगमन हो। यहाँ पधार कर सोमपान के निमित्त आप दोनों अपने अश्वों को रथ से मुक्त करें।[ऋग्वेद 4.46.7]
हे इन्द्रदेव! हे वायो! इस अनुष्ठान में तुम्हें सोमरस पान करने के लिए अश्व खोल दिए जाएँ। तुम दोनों इस यज्ञ स्थल में आओ।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! Join this Yagy. Come here and release your horses from the charoite.(23.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-  इन्द्र देव, वायु देव, छन्द :- गायत्री
वायो शुक्रो अयामि ते मध्वो अग्रं दिविष्टिषु।
आ याहि सोमपीतये स्पार्हो देव नियुत्वता
हे वायु देव! व्रतचर्यादि के द्वारा दीप्त-पवित्र होकर हम द्युलोक जाने की अभिलाषा से आपके लिए मधुर सोमरस का प्रथम आनयन करते हैं। हे वायु देव! आप स्पृहणीय हैं। आप अपने अश्व वाहन द्वारा सोमपान के लिए यहाँ आगमन करें।[ऋग्वेद 4.47.1]
हे वायो! महान कर्मानुष्ठानों द्वारा शुद्ध बने हुए हम अद्भुत संसार प्राप्ति की इच्छा करते हुए पहले तुम्हारे लिए ही सोमरस को लाते हैं। तुम अभिलाषा के योग्य हो। अपने वाहन के युक्त सोमपान करने के लिए उस स्थान से पधारो।
Hey Vayu Dev! We extract the sweet Somras with great efforts for you, adopting penances, fasts etc. You are desirable. Ride your charoite deploying horses and come here to drink Somras.
इन्द्रश्च वायवेषां सोमानां पीतिमर्हथः।
युवां हि यन्तीन्दवो निम्नमापो न सध्र्यक्
हे वायु देव! आप और इन्द्र देव इस गृहीत सोमरस के पान योग्य हो, आप दोनों ही सोमरस को प्राप्त करते हैं; क्योंकि जल जिस प्रकार से गर्त की ओर गमन करता है, उसी प्रकार से सकल सोमरस आप दोनों के अभिमुख गमन करते हैं।[ऋग्वेद 4.47.2]
हे वायो! उस ग्रहण किये हुए सोम पीने के पात्र तुम हो और इन्द्रदेव हैं। जैसे जल गड्ढे की ओर जाता है, वैसे ही सभी प्रकार के सोम तुम्हारे समीप जाते हैं।
Hey Vayu Dev! You and Indr dev are qualified to drink Somras. The way water moves to low lying areas, all sorts of Somras comes to you automatically.
वायविन्द्रश्च शुष्मिणा सरथं शवसस्पती।
नियुत्वन्ता न ऊतय आ यातं सोमपीतये
हे वायु देव! आप ही इन्द्र देव हैं। आप दोनों बल के स्वामी है। आप दोनों पराक्रमशाली और नियुद्गण से युक्त हैं। आप दोनों एक ही रथ पर आरोहण करके हम लोगों को आश्रय प्रदान करने के लिए और सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 4.47.3]
तुम दोनों अत्यन्त शक्तिशाली एवं अश्वों से युक्त हो। तुम दोनों एक ही रथ पर विराजमान होकर सोमरस का पान करो तथा हमें आश्रय प्रदान करने के लिए यहाँ पर पधारो।
Hey Vayu Dev! You are Indr Dev. Both of you are mighty and possess the horses. Ride the same charoite and come to us for drinking Somras and grant us asylum-protection.
या वां सन्ति पुरुस्पृहो नियुतो दाशुषे नरा। 
अस्मे ता यज्ञवाहसेन्द्रवायू नि यच्छतम्
हे नायक तथा यज्ञ वाहक इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों के पास अनेकों द्वारा कामना किए जाने योग्य जो अश्व हैं, उन अश्वों को मुझ दान देने वाले यजमान को प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.47.4]
हे इन्द्रदेव और वायो! तुम दोनों ही यज्ञ हवन करने वालों एवं समस्त देवों में अग्रणी हो। हम तुमको हवि रत्न प्रदान करने वाले यजमान हैं। तुम्हारे पास अभिलाषा के योग्य जो अश्व हैं उन्हें हमें प्रदान करो।
Hey leaders and supporter of the Yagy Vayu Dev & Indr Dev! Grant me-the Ritviz, the horses which several people desire to have-possess.(23.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-  वायु देव, छन्द :- अनुष्टुप्
विहि होत्रा अवीता विपो न रायो अर्यः।
वायवा चन्द्रेण रथेन याहि सुतस्य पीतये
हे वायु देव! शत्रुओं को कम्पायमान करने वालों को राजा की तरह आप पूर्व ही दूसरे के द्वारा अपीत सोमरस का पान करें एवं स्तोताओं के धन का सम्पादन करें। हे वायु देव! आप सोमपान के लिए शीतलता दायक रथ द्वारा पधारें।[ऋग्वेद 4.48.1]
हे वायो! शत्रुओं को कम्पित करने वाले सम्राट के तुल्य तुम अन्यों के द्वारा व पान किये गये सोमरस को पूर्व ही पान करो और प्रार्थना करने वालों के लिए धनों को ग्रहण कराओ। तुम अपने कल्याणकारी रथ के द्वारा सोम को पान करने के लिए यहाँ पधारो।
Hey Vayu Dev! Arrive here in your charoite, which is cooled and trembles-hake the enemy, to drink Somras prior to others and grant wealth-money to the hosts-organisers of the Yagy.
निर्युवाणो अशस्तीर्नियुत्वाँ इन्द्रसारथिः।
वायवा चन्द्रेण रथेन याहि सुतस्य पीतये
हे वायु देव! आप अभिशस्ति का नि:शेष नियोग करते है। आप नियुद्गण से युक्त हैं और इन्द्र देव आपके सारथि हैं। हे वायु देव! आप सोमपान के लिए आह्लादकर रथ द्वारा पधारें।[ऋग्वेद 4.48.2]
हे वायु! तुम इन्द्र देव सहित सारथी के रूप में सुवर्णमय रथ द्वारा अश्वादि से युक्त होकर सौम्य स्वभाव वाले शक्तिवान प्राणियों से युक्त तथा अनेक दुष्ट प्राणियों से परे हो। तुम हर्षकारी सोम को पीने के लिए यहाँ पधारो।
Hey Vayu Dev! Arrive here to drink stimulating Somras in your golden charoite driven by Indr Dev.
अनु कृष्णे वसुधिती येमाते विश्वपेशसा।
वायवा चन्द्रेण रथेन याहि सुतस्य पीतये
हे वायु देव! कृष्ण वर्ण, वसुओं की धात्री, विश्व रूपा द्यावा-पृथ्वी आपका अनुगमन करती है। हे वायु देव! आप सोमपान के लिए तेजस्वी रथ द्वारा पधारें।[ऋग्वेद 4.48.3]
हे वायु! काले रंग वाली, वसुओं को धारण करने वाली विश्वरूप अम्बर-धरा तुम्हारे पदचिह्नों पर चलती है। तुम अपने हर्षिता परिपूर्ण रथ के द्वारा सोम को पीने के लिए यहाँ विराजमान होओ।
Hey Vayu! Blackish heaven & earth constituting the universe, who supports the Vasus, follows you. Come to drink Somras in your radiant charoite.
वहन्तु त्वा मनोयुजो युक्तासो नवतिर्नव।
वायवा चन्द्रेण रथेन याहि सुतस्य पीतये
हे वायु देव! मन के तुल्य वेगवान, परस्पर संयुक्त, निन्यान्वें अश्व आपका वहन करते है। हे वायु देव! आप सोमपान के लिए आह्लादकर रथ द्वारा पधारें।[ऋग्वेद 4.48.4]
हे वायु! मन के समान वेगवान आपस में मिले हुए निन्यानवें अश्व तुम्हें यहाँ लाते हैं। तुम सोम पीने के लिए प्रसन्नतापूर्वक सुन्दर रथ पर पधारो।
Hey Vayu Dev! Come here to drink Somras producing joy-pleasure, in your charoite, supported by 99 horses, which moves as fast as the brain. 
वायो शतं हरीणां युवस्व पोष्याणाम्।
उत वा ते सहस्रिणो रथ आ यातु पाजसा
हे वायु देव! आप सैकड़ों सँख्या वाले पोषणीय अश्वों को रथ में नियोजित करें अथवा सहस्र संख्यक अश्वों को रथ में नियोजित करें। उनसे युक्त होकर आपका रथ वेग पूर्वक यहाँ आवें।[ऋग्वेद 4.48.5]
हे वायु! तुम सैकड़ों अश्वों को रथ में जोड़ो और उनके साथ यहाँ आओ।
Hey Vayu Dev! Let your charoite driven by hundred or thousands of well nourished-stout horses, running fast come here.(24.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र देव, बृहस्पति,  छन्द :- गायत्री।
इदं वामास्ये हविः प्रियमिन्द्राबृहस्पती। उक्थं मदश्च शस्यते
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों के मुँह में हम इस प्रिय सोमरूप हवि का प्रक्षेप करते हैं। हम आप दोनों को उक्थ (शस्त्र) और मद जनक सोमरस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.49.1]
हे इन्द्रदेव और बृहस्पति! तुम परमप्रिय सोमरूपी हविरत्न को तुम दोनों के मुख में डालते हैं। तुम दोनों को हम हर्षकारक सोमरस प्रदान करते हैं।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! We pour Somras as offering in your mouth. Somras gives joy-pleasure.
अयं वां परि षिच्यते सोम इन्द्राबृहस्पती। चारुर्मदाय पीतये
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव ! आप दोनों के मुँह में पान के लिए और हर्ष के लिए यह मनोहर सोमरस भली-भाँति से दिया जाता है।[ऋग्वेद 4.49.2]
हे इन्द्रदेव और बृहस्पति! तुम दोनों की दृष्टि के लिए तथा पान करने के लिए वह सुस्वादु सोमरस हम तुम्हारे मुख में डालते हैं।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! For your pleasure we provide you tasty Somras, to drink.
आ न इन्द्राबृहस्पती गृहमिन्द्रश्च गच्छतम्। सोमपा सोमपीतये
हे सोमरस पान करने वाले इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों सोमरस पान के लिए हमारे यज्ञगृह में पधारें।[ऋग्वेद 4.49.3]
हे इन्द्र देव और बृहस्पति! आप दोनों सोमरस पीने वाले हो। आप दोनों हमारे यज्ञ भवन में सोम पीने के लिए आओ।
Somras drinking Indr Dev & Brahaspati Dev! Visit our Yagy site to drink Somras.
अस्मे इन्द्राबृहस्पती रयिं धत्तं शतग्विनम्। अश्वावन्तं सहस्रिणम्
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों हमें सैकड़ों गौएँ और हजारों अश्वों से युक्त ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.49.4]
हे इन्द्र और बृहस्पति! आप दोनों ही हमें सैकड़ों गायों और हजारों अश्वों से युक्त धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! Grant us grandeur constituting of hundreds of cows & thousands of horses.
इन्द्राबृहस्पती वयं सुते गीर्भिर्हवामहे। अस्य सोमस्य पीतये
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! सोमरस के अभिषुत होने पर हम स्तुति द्वारा आप दोनों का सोमरस पान के लिए आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.49.5]
हे इन्द्र और बृहस्पते! हम तुम्हें सोम रस पीने के लिए बुलाते हैं।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! We invite-invoke your enjoying Somras.
सोममिन्द्राबृहस्पती पिबतं दाशुषो गृहे। मादयेथां तदोकसा
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों हव्यदाता याजकगण के घर में सोमरसपान करें और उसके घर में निवास करके हर्षित होवें।
हे इन्द्र देव और बृहस्पते! हवि प्रदान करने वाले यजमान के गृह में निवास करते हुए आप दोनों सोम पान करके हर्षित हो जाओ।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! Both of you enjoy Somras at the residence of the Ritviz and be pleased with them.(25.04.2023)
देवेभ्यो हि प्रथमं यज्ञियेभ्योऽमृतत्वं सुवसि भागमुत्तमम्।
आदिद्दामानं सवितर्व्यूर्णुषेऽनूचीना जीविता मानुषेभ्यः
आप पहले यज्ञार्हदेवों के लिए अमरत्व के साधन भूत सोम के उत्कृष्टतम भाग को उत्पन्न करें। हे सविता देव! उसके अनन्तर आप हव्य दाता को प्रकाशमय करें, इस प्रकार पिता, पुत्र और पौत्रादि क्रम से मनुष्यों को जीवन दान करें।[ऋग्वेद 4.54.2]
Initially you evolve the excellent segment of Som for the immorality of the demigods-deities. Hey Savita Dev! Thereafter you enlighten-lit the hosts-Ritviz and grant life-longevity to father, sons and grandsons.
ये ते त्रिरहन्त्सवितः सवासो दिवेदिवे सौभगमासुवन्ति।
इन्द्रो द्यावापृथिवी सिन्धुरद्भिरादित्यैर्नो अदितिः शर्म यंसत्
हे सविता देव! जो याजक गण आपके उद्देश्य से प्रति दिन तीन बार सौभाग्य जनक सोम का अभिषव करता है, इन्द्र देव, द्यावा-पृथ्वी, जल विशिष्ट सिन्धु, देवता और आदित्यों के साथ अदिति उस याजक गण को और हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.54.6]
Hey Savita Dev! Grant comforts to the Ritviz who extract auspicious Somras for you, thrice during the day along with Indr Dev, earth & heavens, Aditi and us.
TASTELESS SOMRAS :: 
दिवो न तुभ्यमन्विन्द्र सत्रासुर्यदेवेभिर्धायि विश्वम्।
अहिं यद्वृत्रमपो वव्रिवांसं हन्नृजीषिन्विष्णुना सचानः
हे इन्द्र देव! स्तोताओं ने स्तोत्रों द्वारा सूर्य देव के सदृश आप में वास्तव में समस्त बल अर्पित किया। हे नीरस सोमरस का पान करने वाले इन्द्र देव! आपने श्रीविष्णु के साथ युक्त होकर बल द्वारा जल निरोधक वृत्रासुर का वध किया।[ऋग्वेद 6.20.2]
Hey Indr Dev! The Stotas have filled you with might with the help of Strotrs, like the Sun. Hey drinker of tasteless Somras Indr Dev! You joined Shri Hari Vishnu and eliminated Vratr.
त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक-मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्॥
तीनों वेदों में कहे हुए सकाम कर्म-अनुष्ठान को करने वाले और सोम रस को पीने वाले जो पाप रहित मनुष्य यज्ञों के द्वारा, इंद्र रूप से मेरा पूजन करके स्वर्ग प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं, वे पुण्यों के फल स्वरूप पवित्र इन्द्र लोक को प्राप्त करके, वहाँ स्वर्ग के देवताओं के दिव्य भोगों को भोगते हैं।[श्रीमद्भगवद्गीता 9.20] 
Those humans return to the mortal world-earth after enjoying the heavenly pleasures upon exhaustion of the fruits-rewards, outcome of their Karm-deeds, performed with the motive of attaining the heaven-higher abodes. Thus, following the injunctions of the 3 Veds, persons working for the fruit-rewards of their actions take repeated birth and death.
ऋक्, साम और यजुर्वेद  :- 3 वेदों में सकाम कर्मों का और उनके फलों का वर्णन है। पृथ्वी के निवासी यहाँ के भोगों की अपेक्षा स्वर्ग के भोगों का लालच करने लगते हैं और इसी कारणवश यज्ञों का अनुष्ठान करने में लग जाते हैं। इन अनुष्ठाओं का फल नाशवान है। सोमलता-सोमवल्ली नामक लता के रस को ऐसे लोग वैदिक मन्त्रों से अभिमंत्रित करके पीते हैं। जिसका पान करने से उसको पीने वाले मनुष्यों के स्वर्ग के प्रतिबन्धक पाप नष्ट हो जाते हैं। इन्द्र स्वर्ग के राजा हैं और देवता भी हैं। वे भगवान् के प्रतीक हैं। स्वर्ग प्राप्ति हेतु इन्द्र का पूजन किया जाता है। इंद्र की स्तुति-याचना को ही प्रार्थना कहा गया है। स्वर्ग के भोग दिव्य भोग हैं और पृथ्वी की अपेक्षा विलक्षण हैं। इन भोगों की पूर्ति के उपरान्त मनुष्य फिर से पृथ्वी पर लौट आता है।
Please refer to :: SOMRAS-THE EXTRACT OF SOMVALLI सोमवल्ली-लता और सोमवृक्ष santoshsuvichar.blogspot.com
इयं सोमकला नाम वल्ली परमदुर्लभा।
अनया बद्ध सूतेन्द्रो लक्षवेधी प्रजायते॥[रसेन्द्र चूड़ामणि 6.6-9]
Those sinless humans, who perform the deeds with motive as directed in the 3 Veds and drink the Som Ras-extract of vital herbs-vine, worship the Almighty in the form of Indr-the King of demigods-Heaven, attain the heaven on the strength of the meritorious, virtues, piousity and enjoy the divine-celestial pleasures. 
जिसके पन्द्रह पत्ते होते हैं, जिसकी आकृति सर्प की तरह होती है, जहाँ से पत्ते निकलते हैं :- वे गाँठें लाल होती हैं, ऐसी वह पूर्णिमा के दिन लाई हुई पँचांग (मूल, डंडी, पत्ते, फूल और फल) से युक्त सोमवल्ली पारद को बद्ध कर देती है। पूर्णिमा के दिन लाया हुआ पँचांग (मूल, छाल, पत्ते, फूल और फल) से युक्त सोमवृक्ष भी पारद को बाँधना, पारद की भस्म बनाना आदि कार्य कर देता है। परन्तु सोमवल्ली और सोमवृक्ष, इन दोनों में सोमवल्ली अधिक गुण वाली है। इस सोमवल्ली का कृष्णपक्ष में प्रतिदिन एक-एक पत्ता झड़ जाता है और शुक्ल पक्ष में पुनः प्रतिदिन एक-एक पत्ता निकल आता है। इस तरह लता बढ़ती रहती है। पूर्णिमा के दिन इस इस लता का कन्द निकाला जाय तो वह बहुत श्रेष्ठ होता है। धतूरे के सहित इस कन्द में बँधा हुआ पारद देह को लोहे की तरह दृढ़ बना देता है और इससे बँधा हुआ पारद लक्षभेदी हो जाता है अर्थात एक गुणा बद्ध पारद लाख गुणा लोहे को सोना बना देता है। यह सोम नाम की लता अत्यन्त दुर्लभ है। 
Rick, Sam & Yuj Ved have described the procedure-methodology for attaining the heaven after death. Those who wish, even more pleasures, perform Yagy, Hawan, Agnihotr, prayers to attain heaven. They pray to the God in the form of Indr-the king of heaven. They drink the extract of Som-a creeper which eliminates their sins which are obstruction in the path-journey to heaven. They enjoy there till the period of their stay is not over, in the heaven. Once the reward-outcome of the virtuous deeds performed with the motive is over, they are back to earth. The pleasure in heaven are more-better as compared to the earth. 
There is misconception about Som Ras. Some people regard it as wine-alcoholic beverage, which is untrue. In fact it a nourishing extract which provide health, vigour and vitality. Some people believe that the root of that creeper contain these qualities.
COLOUR OF SOMRAS :: 
प्रो द्रोणे हरयः कर्माग्मन्युनानास ऋज्यन्तो अभूवन्।
इन्द्रो नो अस्य पूर्व्यः पपीयाद्युक्षो मदस्य सोम्यस्य राजा
हरित वर्ण सोमरस हमारे यज्ञ में प्रवाहित होता है और पवित्र होकर कलशों में भरा जाता है। पुरातन, दीप्ति सम्पन्न और मदकारक सोमरस के अधिपति इन्द्र देव हमारे सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 6.37.2]
Green coloured Somras flow in our Yagy and purified-cleansed & filled in urn-pitchers. Let the Lord of Somras Indr Dev drink our intoxicating Somras.
SPOILING OF SOMRAS BY AIR (BACTERIA) ::
आसस्राणासः शवसानमच्छेन्द्रं सुचक्रे रथ्यासो अश्वाः।
अभि श्रव ऋज्यन्तो वहेयुर्नू चिन्नु वायोरमृतं वि दस्येत्
चतुर्दिक् गमन करने वाले, रथ में युक्त और सरलता पूर्वक गमन करने वाले अश्वगण सुदृढ़ रथ चक्र पर अवस्थित बलशाली इन्द्र देव को हमारे समक्ष ले आवें। अमृतमय सोमलक्षण हवि वायु से नष्ट न हों अर्थात् सोमरस के बिगड़ने के पहले ही इन्द्र देव सोमरस को पीवें।[ऋग्वेद 6.37.3]
Let the horses deployed in the charoite roaming in all directions bring Indr Dev to us. Let Indr Dev drink the Somras which is like the elixir prior to be spoiled by air.
मन्द्रस्य कवेर्दिव्यस्य वह्नेर्विप्रमन्मनो वचनस्य मध्वः।
अपा नस्तस्य सचनस्य देवेषो युवस्व गृणते गोअग्राः
हे इन्द्र देव! आप हमारे उस सोमरस को पिवें, जो मदकारक पराक्रमकर्ता, स्वर्गीय, विज्ञ सम्मत फलदाता प्रसिद्ध और सेवनीय है। हे देव! आप हमें गो दुग्धादि एवं अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.39.1]
Hey Indr Dev! Drink our Somras which is famous for intoxication, valour, heavenly, in accordance with the learned-experts and useful. Hey deity! grant us cows, milk and food grains.
अयं द्योतयदद्युतो व्य१क्तून्दोषा वस्तोः शरद इन्दुरिन्द्र।
इमं केतुमदधुर्नू चिदह्नां शुचिजन्मन उषसश्चकार
हे इन्द्र देव! इस सोमरस ने दीप्ति शून्य रात्रि, दिन और वर्ष; सबको प्रदीप्त किया। प्राचीन समय में देवों ने इस सोमरस को दिन का केतु स्वरूप स्थापित किया। इसी सोमरस ने अपनी दीप्ति से उषाओं को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 6.39.3]
Hey Indr Dev! This Somras has lighted the dark nights, days and the years. During ancient periods the demigods established this Somras as the motive for the day. This Somras lighted the Usha with its aura-radiance.
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- मेधातिथि काण्व, प्रियमेध व अंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्।
इदं वसो सुतमन्धः पिबा सुपूर्णमुदरम्। अनाभयिन् ररिमा ते
हे वासयिता इन्द्र देव! इस अभिषुत सोमरस का पान करें। आपका उदर पूर्ण हो। हे अकुतोभय इन्द्र देव! आपके लिए यह सोमरस अर्पित है।[ऋग्वेद 8.2.1]
Hey Indr Dev, granter of residence! Drink this extracted Somras to fill your belly-stomach. Hey undaunted Indr Dev! We offer this Somras to you.
नृभिर्धूतः सुतो अश्नैरव्यो वारैः परिपूतः। अश्वो न निक्तो नदीषु
अश्वों को जिस प्रकार जलाशय में नहलाकर स्वच्छ किया जाता है, उसी प्रकार सोमलता को स्वच्छ कर और पाषाण से कूटकर एवं छलनी में छानकर सोमरस निकाला जाता है।[ऋग्वेद 8.2.2]
छलनी :: चलनी, छाननी, झक्की, गप्पी, बकवादी, झरनी, छन्ना, strainer, sieve, strainer.
The way horse is cleaned by bathing him in the pond, similarly Som Lata is cleaned, crushed with stone and sieved to filter Somras.
तं ते यवं यथा गोभिः स्वादुमकर्म श्रीणन्तः। इन्द्र त्वास्मिन्त्सधमादे
हे इन्द्र देव! हमने जौ की तरह उक्त सोमरस आपके लिए क्षीर आदि में मिलाकर स्वादिष्ठ बनाया है। इसलिए हे इन्द्र देव! इस यज्ञ में उसी तरह का सोमरस पीने के लिए मैं आपका आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 8.2.3]
Hey Indr Dev! We have made Somras tasty by mixing it in pudding-Kheer like barley. Hence, Hey Indr Dev! I invoke you for drinking Somras in this Yagy.
इन्द्र इत्सोमपा एक इन्द्रः सुतपा विश्वायुः। अन्तर्देवान् मर्त्यांश्च
देवताओं और मनुष्यों के बीच इन्द्र देव ही समस्त सोमरस के पान के अधिकारी हैं। अभिषुत सोमरस पीने वाले इन्द्र देव ही सब प्रकार के अन्नों से युक्त हैं।[ऋग्वेद 8.2.4]
Amongest the demigods-deities & humans, only Indr Dev is entitled to drink Somras. Only Indr Dev who drink extracted Somras, possess all kind of food grains.
न यं शुक्रो न दुराशीर्न तृप्रा उरुव्यचसम्। अपस्पृण्वते सुहार्दम्
जिन विस्तृत व्यापक इन्द्र देव को प्रदीप्त सोम अप्रसन्न नहीं करता, दुर्लभ आश्रयण द्रव्य (क्षीरादि) वाला सोम जिन्हें अप्रसन्न नहीं करता और तृप्ति करने वाले अन्य पुरोडाशादि जिन्हें अप्रसन्न नहीं करते, उन इन्द्र देव की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.5]
अप्रसन्न :: उदास, मलिनमुख, म्लान, अभागा, बदकिस्मत, बेचारा, हतभाग्य, अनुपयुक्त, ख़फ़ा; unhappy, displeased, glum.
We worship vast-huge Indr Dev who is not displeased by radiant Som, possessor of rare aurous Som ingredients like base and Purodas etc. do not make him unhappy.
गोभिर्यदीमन्ये अस्मन्मृगं न व्रा मृगयन्ते। अभित्सरन्ति धेनुभिः
जाल आदि से रोके गये हिरण को जिस प्रकार शिकारी खोजते हैं, उसी प्रकार हमसे दूसरे जो ऋत्विक् और यजमान आदि संस्कृत सोमरस द्वारा इन्द्र देव का अन्वेषण करते हैं और जो स्तुतियों से कुत्सित रूप से इन्द्र देव के पास जाते हैं, वे उनको प्राप्त नहीं कर पाते।[ऋग्वेद 8.2.6]
कुत्सित :: निंदित, अधम, नीच, निंदा, नीच व्यक्ति; sickening, snotty.
The way the hunters search the deer obstructed by net, other Ritviz who wish to approach Indr Dev can not do so since they make efforts with sickening means-Stutis.
त्रय इन्द्रस्य सोमाः सुतासः सन्तु देवस्य। स्वे क्षये सुतपाव् नः
यज्ञ स्थल पर इन्द्र देव के पान के निमित्त स्तोता यजमान तीनों सवनों में निचोड़ हुए सोमरस को तैयार रखें।[ऋग्वेद 8.2.7]
Let the Stotas keep extracted extracted Somras for Indr Dev for drinking, during the the segments of the day.
त्रयः कोशासः श्चोतन्ति तिस्त्रश्चम्व १ः सुपूर्णाः। समाने अधि भार्मन्
ऋत्विकों का एक मात्र भरण करने वाले यज्ञ में तीन प्रकार के कोश सोम का श्रवण करते है। तीन भरी सुचियों से आहुति प्रदान की जाती है।[ऋग्वेद 8.2.8]
आहुति :: होम, बलि जिस को जला दे, बलि, नैवेद्य, हव्य; sacrifice, oblation, holocaust.
एक ही यज्ञ में तीन तरह के कलश सोमरस को धारण करते हैं।
Three types of vessels possess Somras in a Yagy.  Three ladles full of offerings are used to make Ahuti-sacrifices.
शुचिरसि पुरुनिः ष्ठाः क्षीरैर्मध्यत आशीर्तः। दध्ना मन्दिष्ठः शूरस्य
हे सोम देव! आप पवित्र और अनेक पात्रों में अवस्थित हैं और बीच में क्षीर तथा दधि द्वारा मिश्रित हैं। आप वीर इन्द्र देव को ही सबसे अधिक प्रमत्त करें।
क्षीर :: दूध, खीर; latex.
Hey Som Dev! You are present in many pure vessels, mixed with curd and pudding. You should intoxicate brave Indr Dev as compared to others.
इमे त इन्द्र सोमास्तीव्रा अस्मे सुतासः। शुक्रा आशिरं याचन्ते
हे इन्द्र देव! आपके ये सोम तीव्र हैं। हमारे अभिषुत और दीप्त मिश्रण द्रव्य (क्षीरादि) आपकी कामना करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.10]
Hey Indr Dev! Your Som is strong. Our extracted and aurous fluid mixtures wish to be consumed by you.
 
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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