Tuesday, February 2, 2016

साधन पञ्चक

साधन पञ्चक
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः। निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव॥11.55॥
हे पाण्डव! जो व्यक्ति मेरे ही लिये ही कर्म करने वाला, मेरे ही परायण और मेरा ही प्रेमी भक्त है तथा सर्वथा आसक्ति रहित और प्राणि मात्र के साथ वैर भाव से रहित है, वह भक्त मुझे प्राप्त होता है। 
The Almighty made it clear to Arjun while addressing him as Pandav-son of Pandu, that the one who perform all duties (endeavours, deeds, tasks, Varnashram Dharm etc.) for HIS sake, is devoted to HIM with love under HIS patronage (asylum, shelter, protection), is free from all attachments (bonds, connections, ties), without enmity with the other organism, achieves HIM.
इसे साधन पञ्चक
* भी कहा जाता है और 2 विभागों में बाँटा गया है। 
(1). भगवान् के साथ घनिष्टता;   (1.1). साधक (व्यक्ति, भक्त), जप, कीर्तन, ध्यान, सत्संग, स्वाध्याय आदि भगवत्सम्बन्धी कर्मों को और वर्णाश्रम धर्म, देश, काल, परिस्थिति आदि के अनुसार प्राप्त लौकिक कर्मों को केवल प्रभु की प्रसन्नता के लिए ही करता है। (1.2). जो व्यक्ति परमात्मा को ही परमोत्कृष्ट समझकर, केवल उनके परायण रहता है और उन्हें ही परम ध्येय, परम आश्रय, परम प्रापणीय मानता है। (1.3). जो समस्त देश, काल, परिस्थितियों में केवल परमात्मा की ही भक्ति करता है और केवल उन्हीं से प्रेम करता है।
(2). संसार के साथ सम्बन्ध विच्छेद। (2.1). उसकी संसार में आसक्ति, ममता और कामना नहीं है। उसका प्रभु के साथ अनन्य प्रेम है। उसमें राग का अभाव है। (2.2). उसके ह्रदय में किसी के भी प्रति किञ्चित मात्र का द्वेष भाव नहीं है। इस प्रकार का व्यक्ति परमात्मा को ही प्राप्त हो जाता है अर्थात प्रभु को तत्व से जानता है, दर्शन प्राप्त कर लेता है और उन्हें प्राप्त भी कर लेता है। जिस उद्देश्य के लिये उसका जन्म हुआ था, वह पूरा हो जाता है। इन सब की प्राप्ति हेतु मनुष्य को अपनी चिन्तन शक्ति और दृष्टि को परमात्मा के सिवाय किसी अन्य में नहीं लगाना चाहिये। 
The Almighty described 5 things to Arjun, which are called Sadhak Panchak (5 resolves, determination, Vows, Notion, Conviction, Conception of the practitioner-devotee). They have been subdivided into two groups. (1.1). Pronunciation of God's names, recitation, meditation-concentration, auspicious-holy company, self study of scriptures-holy text, performance of deeds pertaining to the Almighty, following Varnashram Dharm, performances of duties for the pleasure-happiness of the God irrespective of the location, time and situation. (1.2). To remain devoted to the Almighty by considering HIM to be Ultimate goal, shelter and attainable. (1.3). To remain devoted to HIM and love HIM only. (2.1). One is not attached to the world, has no desires or attachments. (2.2). He has no enmity for any one. One who posses these qualities can see the God.  He knows the God through gist, sees HIM and attains HIM, assimilate in HIM i.e., achieves emancipation-Salvation. The goal of his birth is accomplished. To achieve this goal one should not put-divert his thoughts and vision to any other entity.
HRIMAD BHAGWAD GEETA (11) श्रीमद् भगवद्गीता :: विश्व रुप दर्शन योग santoshkipathshala.blogspot.com
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे; श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विश्वरूपदर्शनयोगो नामैकादशोऽध्यायः॥11॥
इस प्रकार ॐ, तत्, सत्;  इन भगवन्नामों के उच्चारण पूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगद्वीतोपनिषद् रुप श्री कृष्णार्जुन संवाद में विश्व रुप दर्शन योग नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ। 
Hence the chapter describing Om, Tat, Sat is completed, in the form of a conversation between the Almighty Shri Krashn and Arjun. It describes the Brahm Vidya and the Ultimate form of the God.
This chapter on Brahm Vidya has been revised with the grace of the Almighty, Ganesh Ji Maha Raj and Maa Bhagwati Saraswati, today i.e., 05.01.2024  at Noida, UP, India.
साधन पंचकम्
* ::
वेदो नित्यमधीयताम्, तदुदितं कर्म स्वनुष्ठीयतां; 
तेनेशस्य विधीयताम-पचितिकाम्ये मतिस्त्यज्यताम्।
पापौघः परिधूयतां भवसुखे दोषोsनुसंधीयतां; 
आत्मेच्छा व्यवसीयतां निज गृहात्तूर्णं विनिर्गम्यताम्॥1॥
वेदों का नियमित अध्ययन करें, उनमें निर्देशित (कहे गए) कर्मों का पालन करें, उस परम प्रभु के विधानों (नियमों) का पालन करें, व्यर्थ के कर्मों में बुद्धि को न लगायें। समग्र पापों  को जला दें, इस संसार के सुखों में छिपे हुए दुखों को देखें, आत्म-ज्ञान के लिए प्रयत्नशील रहें, अपने घर की आसक्ति को शीघ्र त्याग दें।  
Study the Veds regularly. Abide by the actions mentioned there. Be disciplined as per Almighty's rules. Keep the mind away from unnecessary actions (illusions, allurements, sensuality). Burn all your sins. Scrutinise the pleasures of this world to know that they are surrounded by pain. Constantly try for Self-Knowledge. Give up the attachment for home promptly. 
संगः सत्सु विधीयतां भगवतो भक्ति: दृढाऽऽधीयतां; 
शान्त्यादिः परिचीयतां दृढतरं कर्माशु संत्यज्यताम्।  
सद्विद्वानुपसृप्यतां प्रतिदिनं तत्पादुका सेव्यतां; 
ब्रह्मैकाक्षरमर्थ्यतां श्रुतिशिरोवाक्यं समाकर्ण्यताम्॥2॥
सज्जनों का साथ करें, प्रभु में भक्ति को दृढ़ करें, शांति आदि गुणों का सेवन करें, कठोर कर्मों का परित्याग करें, सत्य को जानने वाले विद्वानों की शरण लें, प्रतिदिन उनकी चरण पादुकाओं की पूजा करें, ब्रह्म के एक अक्षर वाले नाम ॐ के अर्थ पर विचार करें, उपनिषदों के महावाक्यों को सुनें। 
Have the company of noble men. Establish in the God. Practice virtues like peace etc., stop harder activities. Take refuge in the persons knowing the absolute truth, serve him. Contemplate on single syllable name (Om) of the God. Follow the dictates of the scriptures.
वाक्यार्थश्च विचार्यतां श्रुतिशिरःपक्षः समाश्रीयतां;
दुस्तर्कात् सुविरम्यतां श्रुतिमतस्तर्कोऽनुसंधीयताम्।  
ब्रम्हास्मीति विभाव्यता-महरहर्गर्वः परित्यज्यताम्;  
देहेऽहंमति रुझ्यतां बुधजनैर्वादः परित्यज्यताम्॥3॥  
वाक्यों के अर्थ पर विचार करें, श्रुति के प्रधान पक्ष का अनुसरण करें, कुतर्कों से दूर रहें, श्रुति पक्ष के तर्कों का विश्लेषण करें, मैं ब्रह्म हूँ, ऐसा विचार करते हुए मैं रुपी अभिमान का त्याग करें, मैं शरीर हूँ, इस भाव का त्याग करें, बुद्धिमानों से वाद-विवाद न करें। 
Contemplate on the meaning of Maha Vaky-Ultimate truth of the Veds, scriptures. Follow the tenets of the Veds. Avoid  perverse arguments and  scrutinise the logic of the arguments abiding by scriptures. Keep remembering, "I am Brahm" and leave aside the egoistic I (my, me, mine, pride). Destroy the misconception, "I am this body". Never argue with wise men. 
क्षुद्व्याधिश्च चिकित्स्यतां प्रतिदिनं भिक्षौषधं भुज्यतां; 
स्वाद्वन्नं न तु याच्यतां विधिवशात् प्राप्तेन संतुष्यताम्।  
शीतोष्णादि विषह्यतां न तु वृथा वाक्यं समुच्चार्यतां; औदासीन्यमभीप्स्यतां जनकृपानैष्ठुर्यमुत्सृज्यताम्॥4॥
भूख को रोग समझते हुए प्रतिदिन भिक्षा रूपी औषधि का सेवन करें, स्वाद के लिए अन्न की याचना न करें, भाग्यवश जो भी प्राप्त हो उसमें ही संतुष्ट रहें। सर्दी-गर्मी आदि विषमताओं को सहन करें, व्यर्थ वाक्य न बोलें, निरपेक्षता की इच्छा करें, लोगों की कृपा और निष्ठुरता से दूर रहें। 
Treat hunger as a disease and consume the alms. Do not strive for delicious food. Be content with whatever is available. Endure heat and cold and the like. Avoid speaking unnecessarily. Wish for being indifferent. Maintain distance from the kindness and harshness of the common men. 
एकान्ते सुखमास्यतां परतरे चेतः समाधीयतां;
पूर्णात्मा सुसमीक्ष्यतां जगदिदं तद्वाधितं दृश्यताम्।
प्राक्कर्म प्रविलाप्यतां चितिबलान्नाप्युत्तरैः श्लिश्यतां; 
प्रारब्धं त्विह भुज्यतामथ परब्रह्मात्मना स्थीयताम्॥5॥ 
एकांत के सुख का सेवन करें, परब्रह्म में चित्त को लगायें, परब्रह्म की खोज करें, इस विश्व को उससे व्याप्त देखें, पूर्व कर्मों का नाश करें, मानसिक बल से भविष्य में आने वाले कर्मों का आलिंगन करें, प्रारब्ध का यहाँ ही भोग करके परब्रह्म में स्थित हो जायें। 
Enjoy in solitude, meditate & concentrate over the Almighty. Consider the universe pervaded in the God. Destroy the effects of the previous deeds, welcome the future with full mental strength. Exhaust the remaining effects of past actions here and get established in the God. 


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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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