SUN-BHAGWAN SURY NARAYAN
भगवान् सूर्य नारायण
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ॐ सूर्याय नम:। ॐ भास्कराय नम:। ॐ रवये नम:। ॐ मित्राय नम:। ॐ भानवे नम:। ॐ खगय नम:। ॐ पुष्णे नम:। ॐ मारिचाये नम:। ॐ आदित्याय नम:। ॐ सावित्रे नम:। ॐ आर्काय नम:। ॐ हिरण्यगर्भाय नम:।ऊँ सूर्या नमः आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥
सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्। श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥
लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम्। महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥
हे आदिदेव भास्कर! आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हों, हे दिवाकर! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर! आपको प्रणाम है। सात घोड़ों वाले रथ पर आरुढ़, हाथ में श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यप कुमार सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ। लोहित वर्ण रथारुढ़ सर्वलोक पितामह महापापहारी सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूँ।
All these characters given here pertaining to Bhagwan Sury, resembles with those described in Shri Mad Bhagwat Geeta pertaining to the Almighty. Bhagwan Shri Ram himself is an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu. Geeta describes Sun as a form of the Almighty and simultaneously as his right eye. If one worships Sun as a demigod he attains the abode of Sun. If one prays to Sun as Almighty he gets Vaekunth Lok or Gau Lok. Worship of Sun as Almighty grants Salvation and as a demigod grants success, fame, name worldly amenities, comforts, luxuries, wealth along with repeated reincarnations. This prayer helped Bhagwan Shri Ram in activating his power as Almighty.
ADITY HRADYAM STROTR आदित्य हृदयम स्त्रोत्र :: जब भगवान् राम रावण के साथ युद्ध करते-करते क्लान्त हो गए, तब तान्त्रिक अस्त्र-शस्त्रों के आविष्कारक ऋषि अगस्त्य ने आकर भगवान् राम से कहा कि 3 बार जल का आचमन कर, आदित्य-हृदय स्त्रोत्र का तीन बार पाठ कर रावण का वध करें। भगवान् श्री राम ने इसी प्रकार किया, जिससे उनकी क्लान्ति मिट गई और उनमें नए उत्साह का सञ्चार हुआ। भीषण युद्ध में रावण मारा गया ।
रविवार को जब संक्रान्ति हो, उस दिन सूर्य-मन्दिर में, नव-ग्रह मन्दिर में अथवा अपने घर में सूर्य देवता के समक्ष इस स्तोत्र का 3 बार पाठ करना चाहिये। न्यास, विनियोगादि संक्रान्ति के 5 मिनट पूर्व प्रारम्भ कर दें। प्रयोग के दिन बिना नमक का भोजन किया जाता है। इसका पाठ 108 करना चाहिए। जो लोग केवल तीन ही पाठ करें, वे 108 बार गायत्री-मन्त्र का जप अवश्य करें।
विनियोगः ::
ॐ अस्य आदित्य-हृदय-स्तोत्रस्य-श्रीअगस्त्य ऋर्षिनुष्टुप्छन्दः आदित्य-हृदयभूतो भगवान श्रीब्रह्मा देवता, ॐ बीजं, रश्मि-मते शक्तिः, अभीष्ट-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः (वा) निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जय सिद्धौ च विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः ::
अगस्त्य ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे। ॐ आदित्य-हृदय-भूत-श्रीब्रह्मा देवतायै नमः हृदि। ॐ बीजाय नमः गुह्ये। ॐ रश्मिमते शक्तये नमः पादयोः। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमही धियो यो नः प्रचोदयात् कीलकाय नमः नाभौ।
इस स्तोत्र के अंगन्यास और करन्यास तीन प्रकार से किये जाते हैं। केवल प्रणव से, गायत्री मन्त्र से अथवा `रश्मिमते नमः´ इत्यादि छः नाम मन्त्रों से। यहाँ नाम मन्त्रों से किये जाने वाले न्यास का प्रकार बतलाया गया है।
कर-न्यासः ::
ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः। ॐ देवासुर-नमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां नमः। ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुवनेश्वराय कर-तल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि-न्यासः ::
ॐ रश्मिमते हृदयायं नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। ॐ देवासुर-नमस्कृताय शिखायै वषट्। ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।
इस प्रकार न्यास करके निम्न गायत्री मन्त्र से भगवान् सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिये :-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो
देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
तत्पश्चात् आदित्य हृदय का पाठ करना चाहिये।
पूर्व-पीठिका ::
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥1॥
Tato yuddhaparisrantaṃ samare chintaya sthitam ravaṇaṃ jagrato drastva yuddhay samupasthitam.
महर्षि अगस्त ने देखा कि मानव रूप में अवतरित पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम लीला रुप में युद्ध क्षेत्र में थके-क्लान्त और दुःखी हैं और रावण जो कि युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार था, के साथ युद्ध को लेकर गहरी सोच में डूबे हैं।
When Ram was exhausted in battle field standing with extreme sorrow and deep thought to fight against Ravan who was duly prepared for the battle, Mahrishi August observed that.
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥2॥
Daevataesch samagamy drastumabhyagato ranam upagamyabravidramamagastyo bhagavan rishih.
अगस्त ऋषि देव गणों के साथ भगवान् के पास आये और बोले :-
August along with other demigods approached Bhagwan Shri Ram and said:
राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि॥3॥
Ram rām mahābāho śṛṇu guhyaṃ sanātanam yena sarvānarīn vatsa samare vijayiṣyasi
अगस्त ऋषि ने भगवान् श्री राम के हृदय के भावों को समझा और बोले कि हे राम! आपकी चिन्ता-समस्या का एक समाधान एक रहस्य पूर्ण स्तोत्र है, जिसके पाठ करने से आप युद्ध में विजय प्राप्त करेंगे।
Hey Ram! There is a solution for your worry which is a perennial secret, by reciting it you would be victorious in this war.
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम्॥4॥
Adityahṛdayaṃ puṇyaṃ sarvaśatruvināśanam jayāvahaṃ japennityam akṣayyaṃ paramaṃ śivam
भगवान् सूर्य की अर्चना-पूजा आदित्य हृदयम स्त्रोत्र के द्वारा नित्य-नियम पूर्वक करने से आपके शत्रुओं का विनाश होगा, आपको विजय प्राप्त होगी और स्थाई प्रसन्नता-ख़ुशी मिलेगी।
This is the holy hymn Adity Hradyam which destroys all enemies, brings victory and permanent happiness by enchanting it, regularly.
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनम् आयुर्वर्धनमुत्तमम्॥5॥
Sarvamaṅgalamāṅgalyaṃ sarvapāpapraṇasanam cintasokapraśamanam ayurvardhanamuttamam
भगवान् सूर्य को समर्पित यह उत्तमोत्तम प्रार्थना-स्त्रोत्र शत्रुओं का नाश करके ख़ुशी तथा लम्बी उम्र देता है और चिंताओं का नाश करता है।
This supreme prayer of Sun-Sury Bhagwan always gives happiness, destroys all sins, worries and increase the longevity.
रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥6॥
Raśmimaṃtaṃ samudyantaṃ devāsuranamaskṛtam pūjayasva vivasvantaṃ bhāskaraṃ bhuvaneśvaram
सूर्य भगवान् जो कि इस विश्व के संचालक-शासक हैं, की आराधना इस चराचर में सभी देव और दानवों के द्वारा की जाती है।
Worship the Sun-Sury Bhagwan, the ruler of the worlds and master of the universe, who is worshipped by both Dev-Sur and Asur-Demons and who is worshiped by every one in this universe.
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः॥7॥
Sarvadevatmako hyesa tejasvi rasmibhavanah esa devasuraganamallokan pati gabhastibhih.
सूर्य भगवान् सभी देवों के देव हैं और सबसे तेजस्वी व स्वयं प्रकाशित हैं। वे अपने में समस्त देव और दानवों को समाहित किये हुए हैं अर्थात उनका पालन-पोषण करते हैं।
He has within him all the Dev and He is the brightest among the bright, He is self-luminous and sustains all worlds of Devas and Asur with his rays-Aura-brightness-shine.
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥8॥
Eṣa brahma ca viṣṇuśca śivaḥ skandaḥ prajāpatiḥ mahendro dhanadaḥ kālo yamaḥ somo hyapāṃ patiḥ
वे समस्त देवों यथा ब्रह्मा, विष्णु और शिव, कार्तिकेय, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, यमराज-धर्मराज, चन्द्र और वरुण अदि में विराजमान-निहित हैं।
He is pervading in all viz., Brahma (the creator), Vishnu (the Sustainer, nurturer), Shiv (the destroyer), Skand-Kartikey (the elder son of Bhagwan Shiv), Prajapati (progenitor of human race), the mighty Indr (King of demigods), Kuber (demigod, Yaksh-treasurer of demigods, who awards prosperity), Kal (eternal time), Yam (demigod of death), Som (the moon demigod nourishes and controls-nurturer of all medicines-herbs), and Varun (demigod of rain).
पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥9॥
Pitaro vasavah sadhya hyashvinau maruto manuh vayurvahnih prajapran ritukarta prabhakarah.
सूर्य में ही पितरों, 8 वसुओं (अनल, अनिल, सोम, अहस, धारा, ध्रुव, प्रत्युष और प्रभास), सँध्या, अश्वनी कुमारों, मारुतों, पवन-वायु, मनु, अग्नि, प्राण, छः ऋतुओं का वास है और उन्हीं से प्रकाश उत्पन्न होता है।
He constitutes the ancestors, eight Vasus (viz., Anal, Anil, Som, Ahas, Dhara, Dhruv, Pratyush and Prabhas. He is Sandhya and Ashwani Kumars (physicians of demigods in the heaven). He constitutes the Maruts and Pawan-wind-Vayu demigods responsible for breeze, Agni-the demigod of fire and Manu, Agni-the demigod of fire, Pran (the Life breath of all beings), the maker of six seasons and the giver of light.
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥10॥
adityah savita suryah khagah pusha gabhastiman suvarnsadrsho bhanurhiraṇyareta divakaraḥ
सूर्य भगवान् अदिति के पुत्र हैं जो कि महृषि कश्यप की पत्नी हैं। सूर्य भगवान् सभी को अपनी ओर आकृषित करते हैं। वो ही सविता के रुप में सारे संसार को प्रकाशित करते हैं। वे ही सूर्य-अनन्त प्रकाश पुंज हैं। वो ही खग-पक्षी के समान आकाश में विचरण करने वाले हैं। वो पूषा-संसार का पालन-पोषण करने वाले, वर्षा उत्पन्न करने वाले हैं। वे गभस्तिमान् अर्थात प्रखर-चमकीली किरणों से सजे हैं। वे स्वर्ण के समान दिखते हैं। वे हिरण्य रेता अर्थात सुंदर, चमकीले, स्वर्ण अण्ड के समान हैं; जिससे भगवान् नारायण-विष्णु प्रकट हुए तथा वे ही सृष्टि कर्ता भगवान् ब्रह्मा हैं। वे भानु के रुप में सभी में निवास करते हैं। वे दिवाकर अर्थात सारे विश्व को प्रकाशमान रखते हैं।
He is the son of Aditi-wife of Mahrishi Kashyap, who attracts all towards himself) Savita (brightness, one who glows-brightens the whole universe), Sury (supreme light), Khag (पक्षी, bird, travels in the sky), Poosha (one who protects & feeds the world by rain), Gabhastiman (possessed of bright rays), Suwarn Sadrashy (like the gold, golden hue), coloured Hirany Reta (beautiful, wise, always shining, radiant round shaped like golden egg), he is the creator, day starts with him). Bhanu (pervaded in all) & Diwakar (one who is reason for bright day)
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान्॥11॥
Haridashvah sahasrarchih saptasaptirmarichiman timironmathanah shambhustvashta martand anshuman.
वे हरिदश्वः हैं अर्थात उनके रथ को हरे रंग के अश्वों द्वारा खींचा जाता है जो कि विजय के प्रतीक हैं। वे सहस्रार्चिः हैं अर्थात उनकी हजार रश्मियाँ किरणें हैं जो कि अनन्त किरणों में बँट जाती हैं। सप्तसप्तिर्मरीचिमान् अर्थात उनके घोड़े हरे रंग के हैं जो कि विजय और सात उच्च-स्वर्ग लोकों के प्रतीक हैं। तिमिरोन्मथनः अर्थात अन्धकार को नष्ट करने वाले। शम्भुस्त्वष्टा अर्थात संतुष्टि प्रदायक दुःख का नाश करने वाले और प्रगति के प्रतीक हैं। मार्ताण्ड अर्थात जो कि विनाश-प्रलय के उपरान्त पुनः उत्पत्ति करने वाले हैं। व अंशुमान् जो सभी में विचरण करते हैं उपस्थित हैं।
He is Haridashw (one whose chariot is dragged by green horses, green is a symbol of victory), Sahasrarchi (one who has thousands of rays turning into infinite rays), Sapt Sapti (one who has seven horses, symbol of seven Lok-abodes), Marichiman (whose body radiates rays), Timironmatanh (dispeller of darkness), Shambhu (one who gives contentment, removes sufferings and gives a pleasant life), Twasta (one who removes sorrow and gives elation), Martand (one who comes from annihilated creation and again creates), Amshuman (vastness, pervaded in all with immeasurable amount of rays).
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥12॥
Hiraṇyagarbhaḥ śhiśhirastapano bhāskaro raviḥ agnigarbho'diteḥ putraḥ shaṅkhaḥ śhiśhiranāśhanaḥ
हिरण्यगर्भः अर्थात स्वर्ण गर्भ से प्रकट ब्रह्मा जी जो की ज्ञान, खुशहाली, विवेक, बुद्धिमत्ता के प्रतीक हैं। शिशिर अर्थात जो कि वर्षा के द्वारा ठंड अर्थात श्रद्धालुओं में शांति, संतुष्टि उत्पन्न करते हैं। स्तपनो अर्थात ऊष्मा-पौरुष-कार्यक्षमता प्रदान करते हैं, भास्करो रविः। अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः
He is Hirany Garbh (one who came out of golden coloured egg-shall, has powers of Brahmn, prosperity and who is wise, Gyani, enlightened, learned, scholar), Shishir (one who causes cold through rain, i.e., keeps the devotees calm and quite, satisfied-content)). Satpno (one who generates, bestows heat), Bhaskar (one who gives light Gyan-enlightenment), Ravi (one who is praised by everyone, illuminator (source of light). Agni Garbh (one who has fire within himself. Aditi Putr: He is the son of Aditi and Maha Rishi Kashyap Maharishi. Shankh: He is one who become cool when he sets-merges at night. Shishir Nashnah: He is one who destroyer of the cold, melts snow and fog.
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः॥13॥
Vyomanāthastamobhedī ṛgyajuḥsamaparagaḥ ghanavṛṣṭirapāṃ mitro vindhyavīthīplavaṅgamaḥ
व्योमनाथस्तमोभेदी : सूर्य नारायण सारे संसार के स्वामी हैं और अंतरिक्ष में विस्तृत अंधकार को नष्ट करते हैं। ऋग्यजुः सामपारगः :ऋग्वेद सामवेद और यजुर्वेद के पारगामी विद्वान् हैं। घनवृष्टिरपां मित्रो : उनके प्रभावस्वरूप ही वर्षा होती है और वे जल के देवता वरुण के मित्र हैं। विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः :- वे अपनी विहंगम गति से विंध्याचल पर्वत को पार करके दक्षिणायन में प्रवेश करते हैं।
Vyom Nath: He is one who is the lord of space and the ruler of sky. Tamo Bhedi: He is dispeller of darkness. Rig, Yajur, Sam, Parag: He is one who is the scholar, enlightened with the 3 Veds namely:- Rig, Yajur and Sam. Ghan Vrasti : He is one who is the reason for heavy rain. Apam Mitr: He is one who is friend of demigod of rain i.e., Varun Dev. Vindhy Vithi Palvangam: He is one who swiftly courses in the South direction Vindhy Parwat-mountains like monkeys and sports in the Brahm Nadi (in Dakshinayan-southern hemisphere).
आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः॥14॥
Aatpi Maṇḍali Mṛatyuḥ Pingalaḥ Sarvtapanaḥ; kavirviśvo mahātejāḥ raktaḥ sarvabhavodbhavaḥ
आतपी :- उनसे ही ऊष्मा ऊर्जा उत्पन्न होती है। मण्डली :- वे वृताकार हैं। मृत्यु :- वे शत्रु के लिए भय उत्पन्न करते हैं। पिङ्गल :- वे पीले वर्ण वाले, स्वर्ण-सोने के रंगवाले हैं। सर्वतापन :- वे सभी को ऊर्जा-पालन पोषण प्रदान करने वाले हैं। कविर्विश्वो महातेजा :- वे महान तेज से ओतप्रोत हैं और ज्ञान के भण्डार हैं। रक्त :- वे सबको प्रिय हैं। सर्वभवोद्भव :- संसार में सभी कार्य उनसे ही सम्पन्न होते हैं।
Aatpi :- He is one who is the creator for heat. Mandali :- He is circular in shape. Mratyu :- He is death for the enemy-foes. Pingal :- He is yellow colored he is yellow colored. Sarv Tapan :- He is one who gives heat-energy-nourishment to all living organisms. Kavi :- He is giver of brilliance, shining with great radiance and expert in knowledge. Vishw :- He pervades the in whole universe. Maha Tej :- He is the one who constitutes shin with great radiance. Rakt :- He is one who is dear to everyone. Sarv Bhavodbhav :- He is the creator of all things sustaining the universe and all actions.
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते॥15॥
Nakshatragrahataranamdhipo vihvbhhavanah. tejsamapi tejasvi dvadahatman namostu te.
"नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः" समस्त नक्षत्र मण्डल, ग्रहों, तारों के स्वामी और सम्पूर्ण विश्व तो उत्पन्न करनेवाले भगवान् सूर्य को नमस्कार है। "तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते" बारह रुपों में उदय-प्रकट होने वाले आदित्य को वर्ष के 12 महीनों के रुप भी हैं को नमस्कार है।
Salutations to him who is the Lord of stars, planets and zodiac, and the origin of everything in the universe. Salutations to Adity who appears in twelve forms viz., Indr, Dhata, Bhag, Poosha, Mitr, Aryama, Archi, Vivaswan, Twasta, Savita, Varun and Vishnu (in the shape of twelve months of the year.
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥16॥
Namah purvaya giraye pashchimydraye namah. jyotirgananam pataye dinadhipataye namah.
"नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः" उन प्रभु को नमस्कार है जो कि पूर्व में उदित होकर पश्चिम में अस्त होते हैं। "ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः" दिन की रौशनी को देने वाले और समस्त नक्षत्र मण्डल-भौतिक वस्तुओं को प्रकट करने वाले प्रभु को नमस्कार है।
Salutations to the Lord who rises from the mounts of east and sets on mounts of west, Salutations to the Lord of the stellar bodies and to the Lord of daylight.
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥17॥
Jayaya jayabhadraya haryasvāya namo namaḥ namo namaḥ sahasrāṃśo ādityāya namo namaḥ
जयाय : मनुष्यगण और देवगण उस प्रभु की स्तुति करते हैं, जो विजय दिलाते हैं। जयभद्राय : उस प्रभु को नमन करते हैं, जो शुभफल और समृद्धि प्रदान करते हैं। हर्यश्वाय : हम उन प्रभु की पूजा करते हैं, जिनका रथ हरे घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। सहस्रांशो :हम उन प्रभु को प्रणाम करते हैं जिनकी सहस्त्र (-अनन्त) रश्मियाँ हैं। आदित्याय :- अदिति के पुत्र सूर्य भगवान् को नमस्कार है जो सभी को अपनी ओर अकृषित करते हैं।
Jay: One prays the demigod who brings victory. Jay Bhadr: One prays to the God who gives auspiciousness and prosperity. Hary Shravy: One prays to the God who is carried by Green horses. Sahasransho: One prays to the God who has infinite rays. Adity: He is the son of Aditi and is one who attracts all towards Him or has power to attract all towards him.
नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः॥18॥
Nama ugraya vīrāya sāraṅgāya namo namaḥ namaḥ padmaprabodhaya martaṇḍaya namo namaḥ
उग्राय :- मैं परमात्मा के उस उग्र रुप को नमन करता हूँ जो कि पापियों के हृदय में भय उत्पन्न करता है।वीराय : सूर्य रुपी परमात्मा के स्वरुप को नमस्कार है, जो वीर-बहादुर और शत्रु नाशक है। सारङ्गाय : प्रभु के उस रुप को नमन है जो सर्प अथवा घोड़े के समान तेज चलता है। पद्मप्रबोधाय : प्रभु का स्वरुप किसके साथ कमल उदय होते हैं अथवा खिलते हैं को नमस्कार है। मार्ताण्डाय : मार्तण्ड ऋषि के पुत्र, जिनके साथ प्रलयकाल के उपरान्त सृष्टि का पुनः उद्भव होता है।
Ugr: I pray to the terrible-fierce-furious form of the Almighty, which causes fear in the mind & hearts of the wretched-sinner enemies. Veer: I pray to the brave-powerful-mighty, who controls the senses. Sarang (Radiant, Brilliance, Hue, Grace, Deepak-lamp, God, Sun, Moon, Shiv, Shri Krashn, Cupid, Sky, planets, stars and constellations): I pray to the Almighty who moves-travels swiftly-fast like a snake or the horse. Padm Prabodh :- I bow in front of one whose appearance makes the lotus blossom. Martand :- I pray to the son of Martand Rishi who after the annihilation of the creation, is able to create it again
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥19॥
Brahmesanacyuteaya sūryāyādityavarcase bhāsvate sarvabhakṣāya raudrāya vapuṣe namaḥ
उन भगवान् भास्कर को नमन है जो त्रिमूर्ति : भगवान् ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा सभी प्राणियों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत्र हैं। उन भगवान् द्वादश आदित्य को नमस्कार है जो सृष्टि के संहार के लिए रौद्र रुप धारण कर हैं। Salutation to Him who is the inspiration to Trimurti-Trinity (Brahma, Vishnu, Mahesh) and inspiration to all creatures, salutation to who is fierce like Rudr at the end of the creation.
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥20॥
Tamoghnāya himaghnāya śatrughnāyāmitātmane kṛtaghnaghnāya devāya jyotiṣāṃ pataye namaḥ
तमोघ्नाय :- तम-अन्धकार का नाश करने वाले, हिमघ्नाय : बर्फ का नाश करने वाले हैं-सर्दी दूर करने वाले, शत्रुघ्नायामितात्मने : शत्रु को दण्डित करने वाले-नाश करने वाले, कृतघ्नघ्नाय : कृतध्न-धोखेबाज़ को नष्ट करने वाले, देवाय : सारे बृह्माण्ड को प्रकाशित करने वाले और ज्योतिषां पतये : सभी, ग्रहों, नक्षत्रों, आकाश गंगाओं के स्वामी सूर्य भगवान् को नमस्कार है।
Salutations to the dispeller of the darkness-ignorance and cold-one who is the reason for melting of snow, one who punishes ungrateful people, one who is fearful to bad people-evil. Salutations to the annihilator of the ungrateful people, one who has enormous will power and to the Lord of all the stellar bodies, one who is the first amongest all the lights of the Universe i.e., illuminating.
तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥21॥
Taptacāmīkarābhāya vahnaye viśvakarmaṇe namastamo'bhinighnāya rucaye lokasākṣiṇe
तप्तचामीकराभाय :- उन सूर्य भगवान् को नमस्कार है जो पिघले हुए स्वर्ण और अग्नि के रंग वाले हैं. वह्नये : जो सब कुछ भस्म कर देते हैं, विश्वकर्मणे :- देवशिल्पी, निर्माण करने वाले, समस्त कार्य कलाप के साक्षी, नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे : अन्धकार-अज्ञान का नाश करने वाले सभी गतिविधियों के साक्ष्य हैं, फिर भी इस संसार से दूर हैं।
Salutations to Him, whose color is like molten gold and the form of fire, one who burns all, dispeller of darkness, adorable and one who is the reason for all actions, the architect of the universe-the cause of all activity and creation in the world, dispeller of darkness, one who witness all & yet beyond the world.
नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥22॥
Nāśayatyeṣa vai bhūtaṃ tadeva sṛjati prabhuḥ pāyatyeṣa tapatyeṣa varṣatyeṣa gabhastibhiḥ
सूर्य भगवान् को नमस्कार है जो कि अपनी किरणों से सभी कुछ नष्ट और पुनरोत्पत्ति करने में सक्षम हैं तथा जिनकी कृपा से वर्षा होती है और ज्ञान प्राप्त होता है।
Salutation to the Sun God who is able to destroy all with his rays and then create them again, he is the producer of rain and also a showers wisdom as well.
ष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥23॥
Eṣa supteṣu jāgarti bhūteṣu pariniṣṭhitaḥ eṣa evāgnihotraṃ ca phalaṃ caivāgnihotriṇām
सूर्य भगवान् सदैव जाग्रत अवस्था में रहते हैं और सभी प्राणियों के दिल में निवास करते हैं, उन्हें जाग्रत रखते हैं तथा वे यज्ञ में दी गई आहुति और उसके फल स्वरुप हैं।
Sun-Sury Bhagwan is always awake and abides in the heart of all beings and awake them, he is only the sacrifice and fruit of the sacrifice performed by Yagy-sacrifices.
वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥24॥
Vedāśca kratavaścaiva kratūnāṃ phalameva ca yāni kṛtyāni lokeṣu sarva eṣa raviḥ prabhuḥ
सभी वेद, यज्ञ और परिणाम-फल, कर्म उनके फल स्वरुप सूर्य भगवान् सभी जगह उपस्थित रहते हैं।
Behind the all Ved, Yagy and fruits of all Yagy and results of all actions of the world is Sun God only, he is the omnipresent.
फलश्रुतिः ::
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥25॥
Enamāpatsu kṛcchreṣu kāntāreṣu bhayeṣu ca kīrtayan puruṣaḥ kaścinnāvasīdati rāghava
अगस्त ऋषि ने कहा कि हे राघव जो कोई भी इस स्त्रोत का जाप-पाठ करेगा वो सूर्य भगवान् का आशीर्वाद प्राप्त करके शारीरिक, मानसिक और आत्मिक-दैविक संकट से मुक्त हो जायेगा।
Oh Raghav, one who chant this prayer in any critical situation viz., physical, mental and spiritual, for sure he will over come of it and always he is blessed.
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥26॥
Pūjayasvainamekāgro devadevaṃ jagatpatim; etat triguṇitaṃ japtvā yuddheṣu vijayiṣyasi.
जो कोई भी संतुलित मन स्थिति के साथ सूर्य भगवान् के इस स्त्रोत का 3 बार जाप करेगा, वो हर संघर्ष-परिस्थिति में विजय प्राप्त करेगा।
Do worship Adity by chanting this prayer with even minded. If you chant three times for sure you will be the conquer of this battle.
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि।
एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम्॥27॥
Asmin kṣaṇe mahābāho rāvaṇaṃ tvaṃ vadhiṣyasi; evamuktvā tadāgastyo jagāma ca yathāgatam.
मह्रिषी अगस्त ने भगवान् राम से कहा कि आप रावण का एक क्षण में विनाश कर देंगे और भगवान् श्री राम को सूर्य मन्त्र प्रदान करके युद्ध स्थल से वापस चले गए। परमात्मा की महती कृपा से उन्होंने अपनी तपोशक्ति का सहारा लेकर भगवान् श्री राम का उत्साह बढ़ाया।
Maharishi August says to Ram that "you would kill Ravan within a moment," and left that battlefield, August had come to Ram to teach this holy hymn of Sun-Sury Bhagwan. With the grace of Gods he encourages Ram with his meditation power.
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्॥28॥
Etacchrutvā mahātejā naṣṭaśoko'bhavattadā; dhārayāmāsa suprīto rāghavaḥ prayatātmavān.
अगस्त ऋषि के पवित्र वचनों को सुनकर भगवान् श्री राम उत्साहित होकर संतुलित मन से क्षणिक क्लांत करनेवाली परिस्थिति से निकल आए। उनका दुःख और चिंता दूर हो चुकी थी। उन्होंने उत्साहित होकर मन्त्र का जाप शुरू कर दिया।
Hearing the holy words of August with even minded Ram became rejuvenated and came out of momentary fearful situation; his clouds of worry got dispelled, with enthusiastically started chanting the prayer of Sun-Sury Bhagwan.
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्॥29॥
Adityaṃ prekṣya japtva tu paraṃ harṣamavāptavān; trirācamya śucirbhūtvā dhanurādāya vīryavān.
भगवान् श्री राम ने शुद्ध होकर 3 बार प्रार्थना की, जल से आचमन लिया और फिर अपने पवित्र धनुष को उठा कर उस पर प्र्त्यांच चढ़ा दी।
Himself being purified concentrated on Sun-Sury Bhagwan; Ram recited the prayer thrice with achman (-sipping water) then thrilled and lifted his holy bow.
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत्॥30॥
Rāvaṇaṃ prekṣya hṛṣṭātmā yuddhāya samupāgamat
sarvayatnena mahatā vadhe tasya dhṛto'bhavat
भगवान् राम नए उत्साह के साथ रावण का सामना करने को तैयार थे, जब वह उनसे युद्ध करने आया।
Ram facing Ravan with the greater spirit who was coming to fight with his all effort determined to kill Ravan.
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥31॥
Atha raviravadannirīkṣya rāmaṃ muditamanāḥ paramaṃ prahṛṣyamāṇaḥ niśicarapatisaṃkṣayaṃ viditvā suragaṇamadhyagato vacastvareti
इसी समय-वक्त-मौके पर भगवान् सूर्य-आदित्य समस्त देवताओं के साथ प्रकट हो गए और उन्होंने भगवान् श्री राम को युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया। भगवान् श्री राम ने सूर्य वंश जो बाद में इक्ष्वाकु और रघु वंश कहलाया था, में अवतार ग्रहण किया था।
At this juncture Adity surrounded with all demigods appears and blesses Ram with great mental and physical strength and blessed to kill Ravan. Bhagwan Ram took this incarnation in Sury Vansh Sury dynasty-clan, later called Ikshvaku Vansh.
इति वाल्मीकीयरामयणे युद्धकाण्डे, अगस्त्यप्रोक्तमादित्यहृदयस्तोत्रं सम्पूर्णं।
सूर्य वन्दना ::
SUN TEMPLE FACING WEST पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर ::सूर्य वन्दना ::
नमो नम: कारणकारणाय नमो पापविमोचनाय।
नमो नमस्ते दितिजार्दनाय नमो नमो रोगविमोचनाय।
नमो नम: सर्व वरप्रदाय नमो नम: सर्वसुखप्रदाय।
नमो नम: सर्वधनप्रदाय नमो नम: सर्वमतिप्रदाय॥
अथ सूर्य कवचं ::ॐ अम् आम् इम् ईं शिरः पातु ॐ सूर्यो मन्त्रविग्रहः।
उम् ऊं ऋं ॠं ललाटं मे ह्रां रविः पातु चिन्मयः॥1॥
ऌं ॡम् एम् ऐं पातु नेत्रे ह्रीं ममारुणसारथिः।
ॐ औम् अम् अः श्रुती पातु सः सर्वजगदीश्वरः॥2॥
कं खं गं घं पातु गण्डौ सूं सूरः सुरपूजितः।
चं छं जं झं च नासां मे पातु यार्म् अर्यमा प्रभुः॥3॥
टं ठं डं ढं मुखं पायाद् यं योगीश्वरपूजितः।
तं थं दं धं गलं पातु नं नारायणवल्लभः॥4॥
पं फं बं भं मम स्कन्धौ पातु मं महसां निधिः।
यं रं लं वं भुजौ पातु मूलं सकनायकः॥5॥
शं षं सं हं पातु वक्षो मूलमन्त्रमयो ध्रुवः।
लं क्षः कुक्ष्सिं सदा पातु ग्रहाथो दिनेश्वरः॥6॥
ङं ञं णं नं मं मे पातु पृष्ठं दिवसनायकः।
अम् आम् इम् ईम् उम् ऊं ऋं ॠं नाभिं पातु तमोपहः॥7॥
ऌं ॡम् एम् ऐम् ॐ औम् अम् अः लिङ्गं मेSव्याद् ग्रहेश्वरः।
कं खं गं घं चं छं जं झं कटिं भानुर्ममावतु॥8॥
टं ठं डं ढं तं थं दं धं जानू भास्वान् ममावतु।
पं फं बं भं यं रं लं वं जङ्घे मेSव्याद् विभाकरः॥9॥
शं षं सं हं लं क्षः पातु मूलं पादौ त्रयितनुः।
ङं ञं णं नं मं मे पातु सविता सकलं वपुः॥10॥
सोमः पूर्वे च मां पातु भौमोSग्नौ मां सदावतु।
बुधो मां दक्षिणे पातु नैऋत्या गुररेव माम्॥11॥
पश्चिमे मां सितः पातु वायव्यां मां शनैश्चरः।
उत्तरे मां तमः पायादैशान्यां मां शिखी तथा ॥12॥
ऊर्ध्वं मां पातु मिहिरो मामधस्ताञ्जगत्पतिः।
प्रभाते भास्करः पातु मध्याह्ने मां दिनेश्वरः॥13॥
सायं वेदप्रियः पातु निशीथे विस्फुरापतिः।
सर्वत्र सर्वदा सूर्यः पातु मां चक्रनायकः॥14॥
रणे राजकुले द्यूते विदादे शत्रुसङ्कटे।
सङ्गामे च ज्वरे रोगे पातु मां सविता प्रभुः॥15॥
ॐ ॐ ॐ उत ॐ उ औम् ह स म यः सूरोSवतान्मां भयाद्।
ह्रां ह्रीं ह्रुं हहहा हसौः हसहसौः हंसोSवतात् सर्वतः॥16॥
सः सः सः सससा नृपाद्वनचराच्चौराद्रणात् सङ्कटात्।
पायान्मां कुलनायकोSपि सविता ॐ ह्रीं ह सौः सर्वदा॥17॥
द्रां द्रीं द्रूं दधनं तथा च तरणिर्भाम्भैर्भयाद् भास्करो।
रां रीं रूं रुरुरूं रविर्ज्वरभयात् कुष्ठाच्च शूलामयात्॥18॥
अम् अम् आं विविवीं महामयभयं मां पातु मार्तण्डको।
मूलव्याप्ततनुः सदावतु परं हंसः सहस्रांशुमान्॥19॥
बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित ऎतिहासिक त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर अपनी भव्यता के साथ-साथ अपने इतिहास के लिए भी विख्यात है। माना जाता है कि इस सूर्य मंदिर का निर्माण देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया है। देव स्थित भगवान भास्कर का विशाल मंदिर अपने अप्रतिम सौंदर्य और शिल्प के कारण सदियों श्रद्धालुओं, वैज्ञानिकों, मूर्ति चोरों, तस्करों एवं आमजनों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। यह सूर्य मंदिर काले और भूरे पत्थरों की नायाब शिल्पकारी से बना यह सूर्यमंदिर उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से मिलता जुलता है। मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में उसके बाहर ब्राही लिपि में लिखित और संस्कृत में अनुवादित एक श्लोक जड़ा है, जिसके अनुसार त्रेता युग के 12 लाख 16 हजार वर्ष बीत जाने के बाद इलापुत्र परूरवा ऎल ने देव सूर्य मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया। शिलालेख से पता चलता है कि सन् 2,014 ईस्वी में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल को एक लाख पचास हजार चौदह वर्ष पूरे हो गए हैं। यह विश्व का एकमात्र पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर है।
सूर्य देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (प्रात:) सूर्य, मध्याचल (दोपहर) सूर्य, और अस्ताचल (अस्त) सूर्य के रूप में विद्यमान है। पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। करीब एक सौ फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। बिना सीमेंट अथवा चूना-गारा का प्रयोग किए आयताकार, वर्गाकार, आर्वाकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गए पत्थरों को जोड़कर बनाया गया यह मंदिर अत्यंत आकर्षक एवं विस्मयकारी है। जनश्रुतियों के आधार पर इस मंदिर के निर्माण के संबंध में कई किंवदतियां प्रसिद्ध हैं। जिससे मंदिर के अति प्राचीन होने का स्पष्ट पता तो चलता है।
अनुसार ऎल एक राजा किसी ऋषि के शापवश श्वेत कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। वे एक बार शिकार करने देव के वनप्रांत में पहुंचने के बाद राह भटक गए। राह भटकते भूखे-प्यासे राजा को एक छोटा सा सरोवर दिखाई पडा जिसके किनारे वे पानी पीने गए और अंजुरी में भरकर पानी पिया। पानी पीने के क्रम में वे यह देखकर घोर आश्चर्य में पड़ गए कि उनके शरीर के जिन जगहों पर पानी का स्पर्श हुआ उन जगहों के श्वेत कुष्ठ के दाग जाते रहे। इससे अति प्रसन्न और आश्चर्यचकित राजा अपने वस्त्रों की परवाह नहीं करते हुए सरोवर के गंदे पानी में लेट गए और इससे उनका श्वेत कुष्ठ रोग पूरी तरह जाता रहा।
शरीर में आशर्चजनक परिवर्तन देख प्रसन्नचित राजा ऎल ने इसी वन में रात्रि विश्राम करने का निर्णय लिया। रात्रि में राजा को स्वप्न आया कि उसी सरोवर में भगवान भास्कर की प्रतिमा दबी पड़ी है। प्रतिमा को निकालकर वहीं मंदिर बनवाने और उसमे प्रतिष्ठित करने का निर्देश उन्हें स्वप्न में प्राप्त हुआ। राजा ऎल ने इसी निर्देश के मुताबिक सरोवर से दबी मूर्ति को निकालकर मंदिर में स्थापित कराने का काम किया और सूर्य कुंड का निर्माण कराया लेकिन मंदिर यथावत रहने के बावजूद उस मूर्ति का आज तक पता नहीं है। जो अभी वर्तमान मूर्ति है, वह प्राचीन अवश्य है, लेकिन ऎसा लगता है, मानो बाद में स्थापित की गई हो।[सूर्य पुराण]
मन्दिर निर्माण के संबंध में एक कहानी यह भी प्रचलित है कि इसका निर्माण एक ही रात में देव शिल्पी विश्वकर्मा ने अपने हाथों किया था। कहा जाता है कि इतना सुन्दर मन्दिर कोई साधारण शिल्पी बना ही नहीं सकता। इसके काले पत्थरों की नक्काशी अप्रतिम है और देश में जहाँ भी सूर्य मंदिर है, उनका मुँह पूर्व की ओर है, लेकिन यही एक मन्दिर है, जो सूर्य मन्दिर होते हुए भी प्रात:कालीन सूर्य की रश्मियों का अभिषेक नहीं कर पाता वरन अस्ताचलगामी सूर्य की किरणें ही मन्दिर का अभिषेक करती हैं।
जनश्रुति है कि एक बार बर्बर लुटेरा काला पहाड़ मूर्तियों एवं मन्दिरों को तोड़ता हुआ यहाँ पहुँचा तो देव मन्दिर के पुजारियों ने उससे काफी विनती की कि इस मन्दिर को न तोड़ें, क्योंकि यहाँ के भगवान् का बहुत बड़ा महात्म्य है। इस पर वह हँसा और बोला यदि सचमुच तुम्हारे भगवान् में कोई शक्ति है तो मैं रात भर का समय देता हूँ तथा यदि इसका मुँह पूरब से पश्चिम हो जाए तो मैं इसे नहीं तोडूँगा। पुजारियों ने सिर झुकाकर इसे स्वीकार कर लिया और वे रात भर भगवान् से प्रार्थना करते रहे। सबेरे उठते ही हर किसी ने देखा कि सचमुच मन्दिर का मुँह पूरब से पश्चिम की ओर हो गया था और तब से इस मन्दिर का मुँह पश्चिम की ओर ही है। हर साल चैत्र और कार्तिक के छठ मेले में लाखों लोग विभिन्न स्थानों से यहाँ आकर भगवान् भास्कर की आराधना करते हैं। भगवान् भास्कर का यह मन्दिर सदियों से लोगों को मनोवांछित फल देने वाला पवित्र धर्मस्थल रहा है। साल भर देश के विभिन्न स्थानों से भक्तजन यहाँ मनौतियां माँगने और सूर्य देव द्वारा उनकी पूर्ति होने पर अर्ध्य देने आते हैं।
SUN WORSHIP सूर्य नमस्कार मन्त्र ::
ॐ ध्येयस्सदा सवितृमण्डलमध्यवर्ती नारायणस्सरसिजासनसन्निविष्टः।
केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी हारी हिरण्मयवपुः धृतशङ्खचक्रः॥
ॐ मित्राय नमः। ॐ रवये नमः। ॐ सूर्याय नमः। ॐ भानवे नमः। ॐ खगाय नमः। ॐ पूष्णे नमः। ॐ हिरण्यगर्भाय नमः। ॐ मरीचये नमः। ॐ आदित्याय नमः। ॐ सवित्रे नमः। ॐ अर्काय नमः। ॐ भास्कराय नमः। ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः॥
आदितस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं दोष नाशते॥
अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
सूर्यपादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम्॥
योगेन चित्तस्य पदेन वाचा मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।
योपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि॥
SUN TRANSITION मकर संक्रांति :: मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। यह पूरे भारत, नेपाल और विश्व हिन्दुओं द्वारा किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है, तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्यौहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसे उत्तरायणी भी कहा जाता है।
हर वर्ष 12 सक्रान्ति होती हैं। 12 में से अयान, विश्व, विष्णुपदी एवं षदिति मुखी मुख्य सक्रान्ति हैं। मकर सक्रान्ति पूरे भारत में उत्साह के साथ मनाई जाती है। मकर सक्रान्ति हर वर्ष 14 जनवरी को मनाई जाती है। कभी-कभी 15 जनवरी को भी ऐसा होता है।
दक्षिण भारत में मकर सक्रान्ति चार दिन मनाई जाती है। सक्रान्ति का दिन बहुत ही शुभ एवं दान के लिए अच्छा माना जाता है परन्तु इस अवसर पर कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। मकर सक्रान्ति से शुभ कार्य करने के दिनों की शुरुआत होती है। इस दिन अशुभ काल का अंत होता है, जो कि लगभग दिसंबर महीने के मध्य से प्रारम्भ होता है।
तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं। पँजाब में लोहरी इससे एक दिन पहले मनाई जाती है। कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। हिमाचल प्रदेश, हरियाणा एवं पँजाब में माघी। इस दिन घरों में कई तरह की मिठाईयाँ भी बनाई जाती है। ज्यादातर मक्की की फुल्लियाँ, मूँगफली, रेवड़ी, तिलपट्टी, मूँगफली की पट्टी, गज्जक, गाजर का हलवा-गाजर पाक आदि का आदान-प्रदान किया जाता है। मकर सक्रान्ति बहुत खुशियाँ लेकर आती है और दुखों को भुलाती है।
इस दिन प्रातःकाल उबटन आदि लगाकर तीर्थ के जल से मिश्रित जल से स्नान करें। यदि तीर्थ का जल उपलब्ध न हो तो दूध, दही से स्नान करें। तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। स्नान के उपरान्त नित्य कर्म तथा अपने आराध्य देव की आराधना करें। पुण्यकाल में दाँत माँजना, कठोर बोलना, फसल तथा वृक्ष का काटना, गाय, भैंस का दूध निकालना व मैथुन काम विषयक कार्य वर्जित हैं।
उत्तरायण देवताओं का अयन है। यह पुण्य पर्व है। इस पर्व से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। उत्तरायन में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है। पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्य वर्द्धक होने से साथ-साथ पापों का विनाशक है। सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से तथा 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है।
उत्तरायण का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायण का समय देवताओं की रात्रि है। उत्तरायन को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायन में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।
ज्यादातर त्यौहारों की गणना चंद्रमा पर आधारित पंचांग के द्वारा की जाती है, लेकिन मकर संक्रांति पर्व सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना से मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लम्बे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है।
जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, तब तक सूर्य की अधिक प्रभावशाली नहीं होती। जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें स्वास्थ्य और शान्ति को बढ़ाती हैं। इस वजह से साधु-संत और आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े व्यक्तियों को शान्ति और सिद्धि की प्राप्त होती है। पूर्व के कड़वे अनुभवों को भुलाकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है।
मकर संक्रांति के मौके पर देश के कई शहरों में मेले लगते हैं। खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत में बड़े मेलों का आयोजन होता है। इस मौके पर लाखों श्रद्धालु गंगा और अन्य पावन नदियों के तट पर स्नान और दान, धर्म करते हैं।
इस अवसर पर खिचड़ी का दान किया जाता है और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी जाती है।
भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। अतः यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है।
एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान् श्री हरी विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। मकर संक्रांति के दिन ही भगवान् श्री हरी विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवानभगवान् श्री हरी विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।
मकर संक्रांति का महत्व :: भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 माह के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्म को प्राप्त होता है। महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था।
शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रान्ति को सभी जातकों को चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष सूर्योदय से पूर्व अवश्य ही अपनी शय्या का त्याग कर के स्नान अवश्य ही करना चाहिए ।
देवी पुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता है। वह रोगी और निर्धन बना रहता है।
विशेषकर मकर संक्रांति पर तिल-स्नान को अत्यंत पुण्यदायक बतलाया गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन तिल-स्नान करने वाला मनुष्य सात जन्म तक आरोग्य को प्राप्त करता है, जातक रूपवान होता है उसे किसी भी रोग का भय नहीं होता है।
इस दिन तीर्थों, मन्दिर, देवालय में देव दर्शन, एवं पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है।
मकर सक्रांति के दिन स्नान के बाद भगवान् सूर्य की अवश्य ही पूजा करनी चाहिए। ज्योतिष के अनुसार यदि इस दिन प्रभु सूर्य देव को प्रसन्न करने पर विशेष फल मिलता है और भगवानभगवान् सूर्य के उपाय करने से किस्मत चमक जाती है।
इस दिन प्रातः उगते हुए सूर्य को ताँबे के लोटे के जल में कुंकुम, अक्षत, तिल तथा लाल रंग के फूल डालकर अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय "ॐ घृणिं सूर्य:" आदित्य मंत्र का जप करते रहें।
इस दिन किए गए दान का सहस्त्रों गुना पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन कम्बल, गर्म वस्त्र, घी, दाल-चावल की कच्ची खिचड़ी और तिल आदि का दान विशेष रूप से फलदायी माना गया है। गरीबों को यथासंभव भोजन करवाने से घर में कभी भी अन्न धन की कमी नहीं रहती है।
मकर संक्रांति के दिन तिल का अधिक से अधिक प्रयोग करें। आरोग्य, सुख एवं समृद्धि के लिये तिल का प्रयोग, तिल के जल से स्नान, तिल का दान, तिल का भोजन करें इस दिन स्नान से पूर्व तिल के तेल से मालिश करने, तिल का उबटन लगाने से समस्त पाप नष्ट होते हैं।
मकर संक्रांति के दिन साफ लाल कपड़े में गेहूँ व गुड़ बाँधकर किसी जरूरतमंद अथवा ब्राह्मण को दान देने से भी व्यक्ति की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। ताँबा सूर्य की धातु है, अत: मकर संक्रान्ति के दिन ताँबे का सिक्का या ताँबे का चौकोर टुकड़ा बहते जल में प्रवाहित करने से कुण्डली में स्थित सूर्य के दोष कम होते हैं।
मकर संक्रांति के दिन गुड़ एवं कच्चे चावल बहते हुए जल में प्रवाहित करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन खिचड़ी, तिल-गुड़ और पके हुए चावल में गुड़ और दूध मिलाकर खाने से भी भगवान् सूर्य नारायण शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
मकर संक्रांति के दिन पितरों के लिए तर्पण करने का विधान है। इस दिन भगवान् सूर्य को जल देने के पश्चात अपने पितरों का स्मरण करते हुए तिलयुक्त जल देने से पितर प्रसन्न होते हैं। जातक पर उसके पितरों का सदैव शुभाशीष बना रहता है। तिल युक्त जल पितरों को देने,अग्नि में तिल से हवन करने, तिल खाने-खिलाने एवं दान करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है।
वर्ष 2008 से 2080 तक मकर संक्राति 15 जनवरी को होगी।
विगत 72 वर्षों से (1935 से) प्रति वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही पड़ती रही है।
2081 से आगे 72 वर्षों तक अर्थात 2153 तक यह 16 जनवरी को रहेगी।
सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश (संक्रमण) का दिन मकर संक्रांति के रूप में जाना जाता है। इस दिवस से, मिथुन राशि तक में सूर्य के बने रहने पर सूर्य उत्तरायण का तथा कर्क से धनु राशि तक में सूर्य के बने रहने पर इसे दक्षिणायन का माना जाता है।
सूर्य का धनु से मकर राशि में संक्रमण प्रति वर्ष लगभग 20 मिनिट विलम्ब से होता है। स्थूल गणना के आधार पर तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का तथा 72 वर्षो में पूरे 24 घंटे का हो जाता है।
यही कारण है, कि अंग्रेजी तारीखों के मान से, मकर-संक्रांति का पर्व,72 वषों के अंतराल के बाद एक तारीख आगे बढ़ता रहता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण :: भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। अतः यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है।
एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।
एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।
मन्दिर-देव प्रतिमा और ध्यान साधना :: मूर्ति और मन्दिर भगवान् के प्रतीक हैं। ईश्वर सर्वव्यापी है और इस प्रकार मूर्ति में भी है। यह मनुष्य को ध्यान लगाने में मदद करते हैं। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा-आराधना मनुष्य को शक्ति से जोड़ देती है। मन्दिर का निर्माण पूर्णतया वास्तु शास्त्र के अनुरूप हो तो वह परमात्मा के शरीर का प्रतीक बन जाता है। गर्भ गृह-सर, गोपुरा-मुख्य द्वार चरण, शुकनासी-नाक, अंतराला-निकलने की जगह गर्दन, प्राकरा :-ऊँची दीवारें इन्हें शरीर के हाथ और ह्रदय या दिल में ईश्वर की मूर्ति है। इसी प्रकार मानव शरीर भी ईश्वर का प्रतिरूप ही है।
SURY (रवि) MANTR :: The devotees of Bhagwan Sury Narayan are blessed with success, riches, name, fame, health and vigour. One should recite the Mantr every day, in the morning, after becoming fresh and pour water towards the Sun, such that the Lota, pot, vessel, carrying water is slightly over the head. The water may be allowed to run into Tulsi Plant kept in the open. The day assigned to specific Pooja and Archna is Sunday.
Om Suryay Namo Namah. ॐ सूर्याय नमो: नम:।
Get up early in the morning before Sun rise. Take a bath and offer water-pour water facing east to the Sun.
Om stands for the primordial sound generated when the universe came into being. Sury stands for Sun who regulates the entire universe. Life exists due to the Sun who is a form-incarnation of the God. Stonehenge in Britain constitutes the remains of a marvellous temple dedicated to both Sun & Moon built millions of years ago.
Namah :: I bow in front of you. Just fold your hands and salute the Lord.
Om Suryay Namah. ॐ सूर्याय नम:।
Om Adityay Namo Namah. ॐ आदित्याय नम:।
Om Jyotir Aditay Phat Swaha. ॐ ज्योतिर आदित्य फट स्वाहा:।
Om Bhaskray Namah. ॐ भास्कराय नम:।
Om Bhanuve Namah. ॐ भानुवे नम:।
Om Khakhol Kay Namah. ॐ खखोलकाय नम:।
Om Khakhol Kay Swaha. ॐ खखोलकाय स्वाहा:।
Om Vyam Phat. ॐ व्यं फट।
Om Hram Hreem Sah: Phat Swaha. ॐ ह्रां ह्रीं स: फट स्वाहा:।
Om Hram Hreem Sheh Suryay Namah. ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:।
SURY GAYATRI MANTR ::
आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानुह: प्रचोदयात्।
Om Adityay Vidmahe Bhaskray Dheemahi Tanno Bhanuh Prachodyat.
Its is located at the base of the Sun-Apollo finger, over the Heart Line. This is indicative of the success, name, fame, defamation, relationship, eyes, development of skills in crafts, interest in spirituality and efforts to reach the truth, wealth, honour, respect, vehicles etc.
SUN & THE PLANETS :: Prominence of Sun awards genius and fame. One may reach a very high status in life if the mount is well-developed with pink colour. Such people are of cheerful nature and work in close co-operation with friends. They are successful as Artists, Expert Musicians and Painters. They are inborn genius. They are honest in their dealings and are completely materialistic. Highly developed Mount indicates self-confidence, gentleness, kindness and grandeur. He will face trouble at the age of 49th and 50th years. If Sun is bad, he have face more problems at the age 49th year but 50th year will not be that much troublesome.
If it is not prominent, one would be interested in beauty. But he would not be able to succeed in this field.
Exaggerated Mount makes one egoistic-proudy or a flatterer. He would be having friends from the lower sections. He is extravagant and quarrelsome and may not be successful in life.
If the Mount is absent, then the person would be dull, foolish-ignorant leading an ordinary life.
DEVELOPED SUN :: One will have name, fame and respect, kingly grandeur, relations with high profile people in power. He will be ambitious, ready to help others, with liberal temperament. He may have agriculture, farming, horticulture, animal breeding, dairy business or business pertaining to food art objects or cloths.
DEVELOPED SUN, GOOD SATURN, TWISTED SUN FINGER :: One will have interest in agriculture, farming, horticulture, animal breeding or dairy business.
DEVELOPED SUN, BOTH SUN & SATURN FINGERS TWISTED :: One will achieve success in agriculture and related ventures.
DEVELOPED SUN, SPATULATE HAND :: One will take more interest in business pertaining to food.
DEVELOPED SUN, DEVELOPED JUPITER :: One will establish food factory.
DEVELOPED SUN, DEVELOPED MERCURY :: One will have interest in chemicals or medicines related businesses.
SUN & VENUS DEVELOPED :: One will deal with cinema or hotel business.
SUN & VENUS DEVELOPED, STRAIGHT FINGER & DEFECT FREE SUN LINE :: One will have name, fame & success pertaining to hotel & cinema business.
DEVELOPED SUN WITH GOOD SUN LINE, LUCK LINE RISES OVER LUNA & REACHES SATURN :: One may be a union.
DEVELOPED SUN WITH GOOD SUN LINE, LUCK LINE RISES OVER LUNA & REACHES SATURN, MEDIUM HAND :: One may be a union leader with oratory.
DEVELOPED SUN WITH STRAIGHT FINGERS :: Sun will have special significance in one's life. Events pertaining to Sun will show their impact like fame, defame, wealth,crafts etc. 5th, 6th, 14th, 22nd, 44th, 50th year in his life will be more eventful.
DEPRESSED SUN, TWISTED FINGER OR CRISS CROSS LINES OVER SUN :: One will have erratic temperament-behaviour. He will show off and quarrelsome by nature. He will have numerous chances-occasions of defamation.
MANY LINE OVER SUN WITH GOOD HAND :: One will be very busy.
MANY LINES OVER SUN, HAND IS NOT GOOD :: Undue, unwanted busyness and erratic behaviour.
CIRCLE OVER SUN :: One will get name, fame and honour.
CIRCLE OVER SUN, HEART LINE AND SUN ARE DEFECTIVE :: Eye trouble-defect.
TRIANGLE OVER SUN :: One will be liberal by nature and construct a house. More triangles more houses or one many make modifications-additions in the same house, many times. In case, he has agricultural land, he will have tube well and all necessary equipment.
VERTICAL LINES OVER SUN :: Each line will show a source of income, confirmed by Luck Line.
VERTICAL LINES, NARROW-THIN HAND :: More lines, more earning hands in the family.
FISH FORMATION OVER SUN, OVER RIGHT HAND :: One will be liberal and donate money, obviously a rich person. This formation is made by at least 4 lines, will moves outwards after the formation of a quadrangle-square.
MOLE OVER SUN :: One will be rich. He will face defamation, initially but later he will get name and fame.
FISH FORMATION OVER SUN, OVER LEFT HAND :: Family members of the bearer will be liberal and donate money to needy & poor.
सूर्य अनामिका अर्थात तीसरी अँगुली के नीचे, ह्रदय रेखा के ऊपर है। इसका सम्बन्ध प्रसिद्धि, बदनामी, रिश्तेदारी धन-सम्पत्ति और आँख, शिल्प, सम्बन्धी दक्षता, तत्व ज्ञान-रुचि और अनुसंधान से है। जातक को 49वें और 50वें साल में परेशानी झेलनी होगी। सूर्य दोष पूर्ण हो तो 49 वें वर्ष में अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। 50वें साल में उतनी समस्याएँ नहीं आयेंगी।
उन्नत सूर्य :: जातक सम्मान और प्रसिद्धि को महत्व देने वाला, महत्वाकांक्षी, राजसी शान-शौकत, सम्पत्ति का निर्माण करने वाला, बड़े लोगों से मेल-जोल रखने वाला, उदार प्रवृति और दूसरों की सहायता करने वाला होगा।जातक खेती, कला, खाने-पीने, कपड़े आदि का व्यवसाय करने वाला होगा।
उन्नत सूर्य, शनि अच्छा, सूर्य की अँगुली तिरछी :: जातक कृषि सम्बन्धी कार्यों में रुचि लेगा।
उन्नत सूर्य, शनि और सूर्य दोनों की अँगुली सीधी :: कृषि कार्यों में विशेष सफलता।
उन्नत सूर्य, चमसाकार हाथ (बनावट चमचे जैसी, अँगुलिया भी चमचे की आकृति वाली अर्थात चौड़ी, अँगुलियों के बीच में छिद्र, अँगुलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी नहीं) :: जातक खाने-पीने के व्यापार में अधिक रुचि लेगा।
उन्नत सूर्य, वृहस्पति उत्तम :: जातक खाने-पीने की वस्तुओं का कारखाना लगायेगा।
उन्नत सूर्य, बुध उत्तम :: जातक रसायन, औषधि सम्बन्धी कार्यों में रुचि रखेगा।
सूर्य और शुक्र उत्तम :: जातक सिनेमा या होटल सम्बन्धी कार्य करेगा।
सूर्य और शुक्र उत्तम, सूर्य की अँगुली सीधी, निर्दोष सूर्य रेखा :: जातक को सिनेमा या होटल सम्बन्धी कार्यों में बहुत सफलता और प्रसिद्धि मिलेगी।
उत्तम सूर्य और सूर्य रेखा, भाग्य रेखा चंद्र से निकल कर शनि पर :: जातक जन प्रतिनिधि-नायक होगा।
उत्तम सूर्य और सूर्य रेखा, भाग्य रेखा चंद्र से निकल कर शनि पर, हाथ मध्यम :: जातक श्रमिक संघ की गतिविधियों माँ शामिल होगा और भाषण देने में निपुण होगा।
उन्नत सूर्य, अंगुली सीधी :: जातक के जीवन में सूर्य का विशेष महत्व होगा। सूर्य से सम्बन्ध (प्रसिद्धि, बदनामी, रिश्तेदारी धन-सम्पत्ति और आँख, शिल्प, सम्बन्धी दक्षता, तत्व ज्ञान-रुचि और अनुसंधान) रखने वाले फल और वर्ष (5, 6, 14, 22, 44, 50) विशेष प्रभाव दिखायेंगे।
सूर्य बैठा हुआ, अंगुली तिरछी या सूर्य पर कटी-फटी रेखाएँ :: जातक चिड़चिड़ा, अधिक दिखावा करने वाला, झगड़ालू होगा। जीवन में बदनामी के अवसर अवश्य आयेंगे।
सूर्य पर अधिक रेखाएँ, हाथ अच्छा :: जातक बहुत व्यस्त रहने वाला होगा।
सूर्य पर अधिक रेखाएँ, हाथ अच्छा नहीं :: व्यर्थ की व्यस्तता और चिड़चिड़ापन।
सूर्य पर वृत्त :: जातक यशस्वी होगा।
सूर्य पर वृत्त, हृदय रेखा और सूर्य रेखा में दोष :: जातक की आँखों में दोष होगा।
सूर्य पर त्रिभुज :: जातक उदार और सम्पत्ति का निर्माण करने वाला होगा। जितने त्रिभुज होंगे उतनी ही सम्पत्तियों का निर्माण वह करेगा या एक ही सम्पत्ति अपर एक से अधिक बार कार्य करायेगा। खेती होने पर नलकूप और अन्य यंत्र लगायेगा।
सूर्य पर खड़ी रेखाएँ :: प्रत्येक रेखा एक आय का साधन दिखाती है। शनि पर मौजूद रेखाएँ इसकी पुष्टि करेंगी।
सूर्य पर खड़ी रेखाएँ, हाथ पतला :: जितनी रेखाएँ होंगी, घर में उतने ही कमाने वाले होंगे।
सूर्य पर तिल :: जातक धनी होगा. पहले बदनामी और फिर बाद में प्रसिद्धि होगी।
सूर्य पर मत्स्य रेखा, दाँये हाथ में :: जातक उदार और दानवीर होंगे।
सूर्य पर मत्स्य रेखा, बायें हाथ में :: जातक के कुटुम्ब के व्यक्ति उदार और दानवीर होंगे।
GRID OVER SUN :: (1). One has over confidence in him, due to which he may be involved in a dangerous accident. He should be extremely careful-cautious while driving.
(2). Presence of this sign over the juncture of Mercury, Sun and the Mental Mars pushes one to peak in politics but sinks to bottom as well, like Jag Jeevan Ram and Mrs. Bhandar Nayke-ex Prime Minister of Shri Lanka.
(3). Presence at the junction of Sun and Mental Mars makes one dangerously over ambitious.
(4). Its presence over the junction of Sun & Saturn, indicates paralysis. One will recover if the auspicious planets are present in the horoscope, at this point of time.
सूर्य पर जाली :: (1). यह जातक में अत्यधिक आत्मविश्वास को प्रदर्शित करती है जो कि भयंकर दुर्घटना का कारण बन सकताी है। जातक को किसी भी प्रकार का वाहन बेहद ध्यान के साथ चलाना चाहिये।
(2). सूर्य, बुध और उच्च मङ्गल के संयुक्त क्षेत्र में पाये जाने पर यह चिन्ह जातक को राजनीति के शिखर पर ले जाता है, मगर जगजीवन राम और भंडार नायके की तरह नीचे भी गिरा देता है।
(3). सूर्य और उच्च मंगल की संधि पर स्थित यह चिन्ह जातक को खतरनाक स्तर तक महत्वाकांक्षी बना देता है। (4). सूर्य और शनि की सन्धि पर उपस्थित यह जाली लकवे को प्रदर्शित करती है। यदि जन्म कुण्डली में शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह ठीक भी हो जाता है।
सूर्य शान्ति के उपाय :: वेदों में भगवान् सूर्य को चराचर जगत की आत्मा माना गया है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य का अर्थ है सर्व प्रेरक, सर्व प्रकाशक। सर्व प्रवर्तक होने से भगवान् सूर्य सर्व कल्याणकारी हैं। ऋग्वेद में देवताओं में भगवान् सूर्य को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है और उन्हें परमात्मा का अंश माना गया है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर भगवान् सूर्य को परमात्मा परब्रह्म परमेश्वर का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में भगवान् सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण में भी भगवान् सूर्य को परमात्मा स्वरूप माना गया है। गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन भगवान् सूर्य ही करते है। भविष्य पुराण में भगवान् ब्रह्मा और भगवान् विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त भगवान् श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी।
शुकदेव जी महाराज ने कहा :- भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है।
सूर्य की परिक्रमा का मार्ग मानसोत्तर पर्वत पर इंक्यावन लाख योजन है। मेरु पर्वत के पूर्व की ओर इन्द्रपुरी है, दक्षिण की ओर यमपुरी है, पश्चिम की ओर वरुणपुरी है और उत्तर की ओर चन्द्रपुरी है। मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य परिक्रमा करते हैं इस लिये इन पुरियों में कभी दिन, कभी रात्रि, कभी मध्याह्न और कभी मध्यरात्रि होता है। सूर्य भगवान जिस पुरी में उदय होते हैं उसके ठीक सामने अस्त होते प्रतीत होते हैं। जिस पुरी में मध्याह्न होता है उसके ठीक सामने अर्ध रात्रि होती है।
सूर्य भगवान की चाल पन्द्रह घड़ी में सवा सौ करोड़ साढ़े बारह लाख योजन से कुछ अधिक है। उनके साथ-साथ चन्द्रमा तथा अन्य नक्षत्र भी घूमते रहते हैं। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं। इस रथ की एक धुरी मानसोत्तर पर्वत पर तथा दूसरा सिरा मेरु पर्वत पर स्थित है। इस रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा है तथा अरुण नाम के सारथी इसे चलाते हैं। हे राजन्! भगवान भुवन भास्कर इस प्रकार नौ करोड़ इंक्यावन लाख योजन लम्बे परिधि को एक क्षण में दो सहस्त्र योजन के हिसाब से तह करते हैं।"
सूर्य के रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इससे दुगुना इसका ईषा-दण्ड (जूआ और रथ के बीच का भाग) है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है। उस पूर्वाह्न, मध्याह्न और पराह्न रूप तीन नाभि, परिवत्सर आदि पांच अरे और षड ऋतु रूप छः नेमि वाले अक्षस्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है। सात छन्द इसके घोड़े हैं: गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति। इस रथ का दूसरा धुरा साढ़े पैंतालीस सहस्र योजन लम्बा है। इसके दोनों जुओं के परिमाण के तुल्य ही इसके युगार्द्धों (जूओं) का परिमाण है। इनमें से छोटा धुरा उस रथ के जूए के सहित ध्रुव के आधार पर स्थित है और दूसरे धुरे का चक्र मानसोत्तर पर्वत पर स्थित है।
मानसोत्तर पर्वत के पूर्व में इन्द्र की वस्वौकसारा स्थित है। इस पर्वत के पश्चिम में वरुण की संयमनी स्थित है। इस पर्वत के उत्तर में चंद्रमा की सुखा स्थित है। इस पर्वत के दक्षिण में यम की विभावरी स्थित है।[श्रीमदभागवत पुराण]
ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पाँचवीं राशि सिंह का स्वामी है। सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है। लकड़ी, मिर्च, घास, हिरन, शेर, ऊन, स्वर्ण, आभूषण, ताँबा आदि का भी कारक है। मन्दिर सुन्दर महल जंगल किला एवं नदी का किनारा इसका निवास स्थान है। यह शरीर में पेट, आँख, हृदय और चेहरे का प्रतिधिनित्व करता है। इसके प्रतिकूल प्रभाव से आँख, सिर, रक्तचाप, गंजापन एवं बुखार सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं। सूर्य की जाति क्षत्रिय है। शरीर की बनावट सूर्य के अनुसार मानी जाती है। हड्डियों का ढाँचा सूर्य के क्षेत्र में आता है। सूर्य का अयन 6 माह का होता है। 6 माह यह दक्षिणायन यानी भूमध्य रेखा के दक्षिण में मकर वृत पर रहता है और 6 माह यह भूमध्य रेखा के उत्तर में कर्क वृत पर रहता है। इसका रंग केसरिया है। धातु, ताँबा और रत्न माणिक उप रत्न लाडली हैं। यह पुरुष ग्रह है।
इससे आयु की गणना 50 साल मानी जाती है। सूर्य अष्टम मृत्यु स्थान से सम्बन्धित होने पर मौत आग से मानी जाती है। सूर्य सप्तम दृष्टि से देखता है। सूर्य की दिशा पूर्व है। सबसे अधिक बली होने पर यह राजा का कारक माना जाता है। सूर्य के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु हैं। शत्रु शनि और शुक्र हैं। समान देखने वाला ग्रह बुध है। सूर्य की विंशोत्तरी दशा 6 साल की होती है। सूर्य गेंहू, घी, पत्थर, दवा और माणिक्य पदार्थो पर अपना असर डालता है। पित्त रोग का कारण सूर्य ही है।
वनस्पति जगत में लम्बे पेड़ का कारक सूर्य है। मेष के 10 अंश पर उच्च और तुला के 10 अंश पर नीच माना जाता है। सूर्य का भचक्र के अनुसार मूल त्रिकोण सिंह पर 0-शून्य अंश से लेकर 10 अंश तक शक्तिशाली फ़लदायी होता है।
सूर्य के देवता भगवान् शिव हैं। सूर्य का मौसम ग्रीष्म ऋतु है। सूर्य के नक्षत्र कृतिका है। इस नक्षत्र से शुरु होने वाले नाम अ, ई, उ, ए अक्षरों से शुरु होते हैं। इस नक्षत्र के तारों की सँख्या अनेक है। इसका एक दिन में भोगने का समय एक घंटा है।
सूर्य से उत्पन्न दोष :: अस्थि विकार, सिरदर्द, पित्त रोग, आत्मिक निर्बलता, नेत्र में दोष आदि।
जब सूर्य अशुभ फल देने लगता है, तो जातक के जोड़ की हड्डी दर्द देती है। शरीर अकड़ने लगता है। मुँह में थूक बार-बार आता है। घर में भैंस या लाल गाय हो तो उस पर संकट आता है।
प्रत्येक कार्य करने से पहले मीठा खायें।
बहते पानी में गुड़ व ताँबा बहायें।
रविवार का व्रत करें।
दान का फल उत्तम तभी होता है, जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए। सूर्य से सम्बन्धित वस्तुओं का दान रविवार के दिन दोपहर में 40 से 50 वर्ष के व्यक्ति को देना चाहिए। माणिक्य, गुड़, कमल-फूल, लाल-वस्त्र, लाल-चन्दन, ताँबा, स्वर्ण सभी वस्तुएँ दक्षिणा सहित रविवार के दिन दान करें। रविवार के दिन लाल वस्तुओं का दान करें। गाय का बछड़े समेत दान करें। लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए।
भगवान् विष्णु की आराधना करें।
चरित्र ठीक रखें, गलत कार्यों, गलत सोहबत से बचें।
भगवान् सूर्य को प्रतिदिन ताँबे के पात्र से मिश्री युक्त जल चढ़ायें। सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठकर लाल पुष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए।
किसी भी सूर्य मंत्र का 21 बार जाप करें।
"ॐ घ्रणि सूर्याय नम:" का जाप करें।
आदित्य-ह्रदय स्तोत्र का पाठ करें।
ॐ घृणिः सूर्याय नमः" का जप करें।
लाल चंदन का तिलक लगायें। माणिक्य अनामिका अंगुली में धारण करें।
गाय या बैल को जल में भीगे गेहूँ खिलायें।
किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को गुड़ का खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के विपरीत प्रभाव में कमी आती है। अगर कुण्डली में सूर्य कमज़ोर है तो माता-पिता, गुरु एवं अन्य बुजुर्गों की सेवा करें।
प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य की विपरीत दशा से राहत मिल सकती है।
रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करें।
हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।
लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे उपाय रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
निषेध :: गेंहूँ और गुड़ का सेवन न करें। नहीं करना चाहिए। इस समय ताँबा धारण नहीं करना चाहिए।
KONARK SUN TEMPLE कोणार्क सूर्य मन्दिर :: कोणार्क सूर्य मन्दिर भारत में उड़ीसा राज्य में जगन्नाथ पुरी से 35 किमी उत्तर-पूर्व में कोणार्क नामक शहर में प्रतिष्ठित है। यह भारतवर्ष के चुनिन्दा सूर्य मन्दिरों में से एक है। सन् 1984 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्रदान की है।
यह मन्दिर भगवान् सूर्य को समर्पित है, जिन्हें बिरंचि-नारायण भी कहा जाता है। इस क्षेत्र को अर्क क्षेत्र (अर्क, सूर्य) या पद्म-क्षेत्र कहा जाता है। भगवान् श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्रापवश कोढ़ हो गया था। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्षों तक तपस्या की और भगवान् सूर्य को प्रसन्न किया। भगवान् सूर्य, जो सभी रोगों के नाशक हैं, ने उसके रोग का निवारण कर दिया। तदनुसार साम्ब ने भगवान् सूर्य का एक मन्दिर निर्माण का निश्चय किया। अपने रोग नाश के उपरांत, चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए, उसे भगवान् सूर्य की एक मूर्ति मिली। यह मूर्ति भगवान् सूर्य के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी विश्वकर्मा ने बनायी थी। साम्ब ने अपने बनवाये मित्रवन में मन्दिर में, इस मूर्ति को स्थापित किया।
कोणार्क दो शब्द कोना और अर्का का संयोजन है। अर्का का मतलब सूर्य है। कोणार्क सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी कोने पर स्थित है और भगवान् सूर्य को समर्पित है। कोणार्क को अर्का क्षेत्र भी कहा जाता है।
वर्तमान काल में 13 वीं शताब्दी के मध्य में निर्मित कोणार्क सूर्य मंदिर कलात्मक भव्यता और अभियांत्रिकी-वास्तु निपुणता का उदाहरण है परन्तु इसके निर्माण में वास्तु में कुछ कमियों के कारण इसका विध्वंश हुआ। गंगा राजवंश के महान शासक राजा नरसिम्हादेव प्रथम ने इस मंदिर को 12 साल (1243-1255 ई.) की अवधि के भीतर 1,200 कारीगरों की मदद से बनाया था। कोणार्क सूर्य मंदिर को 24 पहियों पर घुड़सवार एक भव्य सजाए गए रथ के रूप में उकेरा गया है। प्रत्येक व्यास में लगभग 10 फीट और 7 शक्तिशाली घोड़ों द्वारा खींचा गया था।
मंदिर के आधार पर जानवरों, पत्ते, घोड़ों पर योद्धाओं और अन्य रोचक संरचनाओं की छवियाँ उकेरी गई हैं। मंदिर की दीवारों और छत पर सुंदर कामुक मुद्राओं की नक्काशी की गई है। भगवान् सूर्य की तीन छवियाँ हैं, जो सुबह, दोपहर और सूर्यास्त में सूरज की किरणों को पकड़ने के लिए तैनात हैं।
मंदिर के आधार पर जानवरों, पत्ते, घोड़ों पर योद्धाओं और अन्य रोचक संरचनाओं की छवियां उकेरी गई हैं। मंदिर की दीवारों और छत पर सुंदर कामुक आंकड़े नक्काशीदार हैं। सूरज भगवान की तीन छवियां हैं, जो सुबह, दोपहर और सूर्यास्त में सूरज की किरणों को पकड़ने के लिए तैनात हैं। कोणार्क का सूर्य मंदिर ओडिशा के मध्ययुगीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है।
काले ग्रेनाइट से बना कोणार्क मंदिर, शुरुआत में समुद्र तट पर बनाया गया था, लेकिन अब समुद्र का पानी गिर गया है और मंदिर समुद्र तट से थोड़ा दूर है। इस मंदिर को ‘काला पगोडा’ भी कहा जाता था और ओडिशा के प्राचीन नाविकों द्वारा नौसेना के ऐतिहासिक स्थल के रूप में उपयोग किया जाता था। सदियों से क्षय के बावजूद इस स्मारक की सुंदरता अभी भी अद्भुत है। यदि आप वास्तुकला और मूर्तिकला में गंभीर रुचि रखते हैं तो आपको इस विश्व प्रसिद्ध स्मारक का दौरा करना होगा। इसे 1,984 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है
मिट्टी की स्थिति जहां मंदिर का निर्माण किया जाना था, मूल रूप से इतनी बुरी थी कि मुख्य वास्तुकार बिशु महाराणा, जिसको इसके निर्माण काम का साथ सौंपा गया था, बहुत परेशान हो गया। लेकिन जब इसकी पवित्रता के कारण इसी ही स्थान पर निर्माण करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था, तो वह बड़ी कठिनाई के साथ काम करने में कामयाब रहा। राजा और श्रमिकों के बीच एक अनुबंध था, कि पूरा काम पूरा होने तक किसी को भी जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
जब निर्माण कार्य पूरा होने के करीब था, तभी अचानक वास्तुकारों को इसके अन्तिम भाग को पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ गया। इस बीच कोर्णाक मंदिर के मुख्य वास्तुकार का पुत्र धर्मपाड़ा अपने पिता को देखने आया, क्योंकि वह लंबे समय से घर से दूर थे। धर्मपाड़ा का जन्म उनके पिता के प्रस्थान के एक महीने बाद हुआ था और बारह साल बीत चुके थे। वह अपने पिता से मिलने के लिए साइट पर आया और देखा कि प्रमुख वास्तुकार मन्दिर के निर्माण के आखरी भाग को पूर्ण करने में कठिनाईयों का सामना कर रहे है। हालांकि बिशु अपने बेटे को देखकर खुश थे, लेकिन वह इस तथ्य को छुपा नहीं सकते थे कि वह मन्दिर के अन्तिम रूप को सही तरीके से नहीं कर पा रहे है। उन्होंने कहा, बेटा हालांकि निर्माण कार्य लगभग पूरा हो गया है, हम अब इसे अन्तिम रूप देने में कुछ कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। अगर हम इसे एक समय के भीतर करने में असफल रहते हैं, तो राजा हमारे शरीर से हमारे सिर अलग कर देगा। यह सुनकर लड़का तुरन्त ऊपर उठ गया और मन्दिर के काम में हो रही गलती को ढूँढ़ लिया।
BHAGWAN SHRI HARI VISHNU AT KONARK उड़ीसा। कोणार्क मन्दिर के भीतर से जब प्रकाश दूसरी ओर-आर पार निकलता है, तभी भगवान् श्री कृष्ण की इस बहुमूल्य-दुर्लभ विराट रूप प्रतिमा के दर्शन होते हैं। |
वर्तमान काल में 13 वीं शताब्दी के मध्य में निर्मित कोणार्क सूर्य मंदिर कलात्मक भव्यता और अभियांत्रिकी-वास्तु निपुणता का उदाहरण है परन्तु इसके निर्माण में वास्तु में कुछ कमियों के कारण इसका विध्वंश हुआ। गंगा राजवंश के महान शासक राजा नरसिम्हादेव प्रथम ने इस मंदिर को 12 साल (1243-1255 ई.) की अवधि के भीतर 1,200 कारीगरों की मदद से बनाया था। कोणार्क सूर्य मंदिर को 24 पहियों पर घुड़सवार एक भव्य सजाए गए रथ के रूप में उकेरा गया है। प्रत्येक व्यास में लगभग 10 फीट और 7 शक्तिशाली घोड़ों द्वारा खींचा गया था।
मंदिर के आधार पर जानवरों, पत्ते, घोड़ों पर योद्धाओं और अन्य रोचक संरचनाओं की छवियाँ उकेरी गई हैं। मंदिर की दीवारों और छत पर सुंदर कामुक मुद्राओं की नक्काशी की गई है। भगवान् सूर्य की तीन छवियाँ हैं, जो सुबह, दोपहर और सूर्यास्त में सूरज की किरणों को पकड़ने के लिए तैनात हैं।
RAYS OF SUN PASSING THROUGH KONARK AFTER 200 YEARS |
काले ग्रेनाइट से बना कोणार्क मंदिर, शुरुआत में समुद्र तट पर बनाया गया था, लेकिन अब समुद्र का पानी गिर गया है और मंदिर समुद्र तट से थोड़ा दूर है। इस मंदिर को ‘काला पगोडा’ भी कहा जाता था और ओडिशा के प्राचीन नाविकों द्वारा नौसेना के ऐतिहासिक स्थल के रूप में उपयोग किया जाता था। सदियों से क्षय के बावजूद इस स्मारक की सुंदरता अभी भी अद्भुत है। यदि आप वास्तुकला और मूर्तिकला में गंभीर रुचि रखते हैं तो आपको इस विश्व प्रसिद्ध स्मारक का दौरा करना होगा। इसे 1,984 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है
मिट्टी की स्थिति जहां मंदिर का निर्माण किया जाना था, मूल रूप से इतनी बुरी थी कि मुख्य वास्तुकार बिशु महाराणा, जिसको इसके निर्माण काम का साथ सौंपा गया था, बहुत परेशान हो गया। लेकिन जब इसकी पवित्रता के कारण इसी ही स्थान पर निर्माण करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था, तो वह बड़ी कठिनाई के साथ काम करने में कामयाब रहा। राजा और श्रमिकों के बीच एक अनुबंध था, कि पूरा काम पूरा होने तक किसी को भी जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
जब निर्माण कार्य पूरा होने के करीब था, तभी अचानक वास्तुकारों को इसके अन्तिम भाग को पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ गया। इस बीच कोर्णाक मंदिर के मुख्य वास्तुकार का पुत्र धर्मपाड़ा अपने पिता को देखने आया, क्योंकि वह लंबे समय से घर से दूर थे। धर्मपाड़ा का जन्म उनके पिता के प्रस्थान के एक महीने बाद हुआ था और बारह साल बीत चुके थे। वह अपने पिता से मिलने के लिए साइट पर आया और देखा कि प्रमुख वास्तुकार मन्दिर के निर्माण के आखरी भाग को पूर्ण करने में कठिनाईयों का सामना कर रहे है। हालांकि बिशु अपने बेटे को देखकर खुश थे, लेकिन वह इस तथ्य को छुपा नहीं सकते थे कि वह मन्दिर के अन्तिम रूप को सही तरीके से नहीं कर पा रहे है। उन्होंने कहा, बेटा हालांकि निर्माण कार्य लगभग पूरा हो गया है, हम अब इसे अन्तिम रूप देने में कुछ कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। अगर हम इसे एक समय के भीतर करने में असफल रहते हैं, तो राजा हमारे शरीर से हमारे सिर अलग कर देगा। यह सुनकर लड़का तुरन्त ऊपर उठ गया और मन्दिर के काम में हो रही गलती को ढूँढ़ लिया।
बिशु के लड़के ने तत्काल उस गलती को ठीक कर दिया। अब मन्दिर का काम पूरा हो गया था; लेकिन प्रमुख वास्तुकार अभी भी अपने भाग्य के बारे में सोच रहे थे कि अगर राजा को इसके बारे में सब कुछ पता चल जाए, तो वह निश्चित रूप से सोचेंगे कि वास्तुकार ठीक से अपना काम नहीं कर रहे थे, जबकि छोटे से लड़के ने इतने कम समय में यह काम कर दिया था। अपने पिता और कारीगरों की यह बात सुनकर लड़का बहुत चौंक गया था और इस मामले को हल करने के लिए, वह ऊपर उठा और आत्महत्या कर ली।चेंगे कि वास्तुकार ठीक से अपना काम नहीं कर रहे थे, जबकि छोटे से लड़के ने इतने कम समय में यह काम कर दिया था। अपने पिता और कारीगरों की यह बात सुनकर लड़का बहुत चौंक गया था और इस मामले को हल करने के लिए, वह ऊपर उठा और आत्महत्या कर ली।
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 35 :: ऋषि :- हिरण्यस्तूप अङ्गिरस, देवता :- प्रथम मन्त्र का प्रथम पाद :- अग्नि, द्वितिय पाद :- मित्रावरुण, तृतीय पाद :-रात्रि, चतुर्थ पाद :- सविता, 2-11 सविता, छन्द :- त्रिष्टुप, 1.9 जगती।
ह्वयाम्यग्निं प्रथमं स्वस्तये ह्वयामि मित्रावरुणाविहावसे।
ह्वयामि रात्रीं जगतो निवेशनीं ह्वयामि देवं सवितारमूतये॥1॥
कल्याण की कामना से हम सर्वप्रथम अग्निदेव की प्रार्थना करते हैं। अपनी रक्षा के लिए हम मित्र और वरुण देवों को बुलाते हैं। जगत को विश्राम देने वाली रात्रि और सूर्य देव का हम अपनी रक्षा के लिए आह्वान (evoke, invite, call) करते है।[ऋग्वेद 1.35.1]
कल्याण के लिए अग्नि, सखा और वरुण का आह्वान करता हूँ और प्राणधारियों को विश्राम देने वाली रात्रि तथा सूर्य देवता को सुरक्षा के लिए आह्वान करता हूँ।
First of all we pray-worship Agni Dev for our welfare. For our protection we invite demigods-deities Mitr & Varun. The night which gives rest to the universe is invited-invoked along with Sun to protect us.
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥2॥
सविता देव गहन तमिस्त्रा युक्त अन्तरिक्ष पथ में भ्रमण करते हुए, देवों और मनुष्यों को यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों में नियोजित करते हैं। वे समस्त लोकों को देखते (प्रकाशित करते) हुए स्वर्णिम (किरणों से युक्त) रथ से आते हैं।[ऋग्वेद 1.35.2]
अंधकार पूर्ण समय में विचरण करते हुए प्राण धारियों को चैतन्य करने वाले सूर्य स्वर्ण के रथ से हमको ग्रहण होते हैं।
Savita Dev-Sun travelling through the dark path keep busy (engage, involve) the demigods-deities & the humans in excellent (pious, virtuous) deeds like Yagy. He lightens all the abodes coming, in his chariot which has golden colour-hue rays.
याति देवः प्रवता यात्युद्वता याति शुभ्राभ्यां यजतो हरिभ्याम्।
आ देवो याति सविता परावतोऽप विश्वा दुरिता बाधमानः॥
स्तुत्य सविता देव ऊपर चढ़ते हुए और फिर नीचे उतरते हैं, निरंतर गतिशील रहते हैं। वे सविता देव तमरूपी पापों को नष्ट करते हुए अति दूर से उस यज्ञशाला में श्वेत अश्वों के रथ पर आसीन होकर आते हैं।[ऋग्वेद 1.35.3]
वे सूर्य देव निचले मार्गों या उच्च मार्गों पर श्वेत अश्वों से परिपूर्ण रथ पर विचरण करते हैं। वे अंधकार आदि को समाप्त करते हुए नजर आते हैं।
Pray able Savita Dev-Sun gradually rise up and then comes down gradually maintaining his motion-speed. He destroys all sins in the form of darkness visits the Yagy Shala-location of Yagy, riding white horses.
अभीवृतं कृशनैर्विश्वरूपं हिरण्यशम्यं यजतो बृहन्तम्।
आस्थाद्रथं सविता चित्रभानुः कृष्णा रजांसि तविषीं दधानः॥
सतत परिभ्रमण शील, विविध रूपों में सुशोभित, पूजनीय, अद्भूत रश्मि-युक्त सविता देव गहन तमिस्त्रा को नष्ट करने के निमित्त प्रचण्ड सामर्थ्य को धारण करते हैं तथा स्वर्णिम रश्मियों से युक्त रथ पर प्रतिष्ठित होकर आते हैं।[ऋग्वेद 1.35.4]
पूज्य एवं अद्भुत रश्मियों से युक्त सूर्य अंधकार से युक्त लोकों के लिए शक्ति को धारण करते हैं। वे स्वर्ण साधनों से युक्त रथ पर आरूढ़ होते हैं।
Continuously moving Savita Dev, having vivid forms, honourable, having amazing rays destroys the deep darkness with his might & comes in his chariot bearing golden rays-aura.
वि जनाञ्छ्यावाः शितिपादो अख्यन्रथं हिरण्यप्रउगं वहन्तः।
शश्वद्विशः सवितुर्दैव्यस्योपस्थे विश्वा भुवनानि तस्थुः॥
सूर्य देव के अश्व श्वेत पैर वाले हैं, वे स्वर्ण रथ को वहन करते हैं और मानवों को प्रकाश देते हैं। सर्वदा सभी लोकों के प्राणी सविता देव के अंक में स्थित हैं अर्थात उन्हीं पर आश्रित हैं।[ऋग्वेद 1.35.5]
श्वेत आश्रम वाले, जुओं को बाँधने वाले स्नान से युक्त रथ को चलाते हुए सूर्य के अश्वों ने प्राणियों को प्रकाश दिया। समस्त व्यक्ति और लोक सूर्य के अंक में ही स्थित हैं।
The horses of Sury Dev have white legs who pulls his golden chariot and gives Sun light to the humans. The creatures-organisms, living beings of all abodes are dependent over them for their lives.
तिस्रो द्यावः सवितुर्द्वा उपस्थाँ एका यमस्य भुवने विराषाट्।
आणिं न रथ्यममृताधि तस्थुरिह ब्रवीतु य उ तच्चिकेतत्॥
तीनों लोकों में द्यावा और पृथिवी ये दोनों लोक सूर्य के समीप हैं अर्थात सूर्य से प्रकाशित हैं। एक अंतरिक्ष लोक यमदेव का विशिष्ट द्वार रूप है। रथ के धुरे की कील के समान सूर्यदेव पर ही सब लोक (नक्षत्रादि) अवलम्बित हैं। जो यह रहस्य जाने, वे सबको बतायें।[ऋग्वेद 1.35.6]
तीनों लोकों में सूर्य के निकट धरा स्थित है। एक अंतरिक्ष यमलोक का द्वार रूप है। रथ के पहिये की अगली कील पर अवलम्बित रहने के तुल्य समस्त नक्षत्र सूर्य पर अवलम्बित हैं।
Out of the three abodes (heavens, earth and the nether world) the heaven & the earth are near the Sun meaning there by that they are being illuminated by the Sun. One of the abode in the universe acts as the gate of Yam Lok-the abode of the deity of death. All abodes depend over the Sun just like the axel of the chariot. One who knows this secret should reveal it to others.
The gravitational force of the Sun binds the planets, moons which revolves around it.
वि सुपर्णो अन्तरिक्षाण्यख्यद्गभीरवेपा असुरः सुनीथः
क्वेदानीं सूर्यः कश्चिकेत कतमां द्यां रश्मिरस्या ततान॥
गम्भीर, गतियुक्त, प्राणरूप, उत्तम प्रेरक, सुन्दर दीप्तिमान सूर्य देव अंतरिक्षादि को प्रकाशित करते हैं। ये सूर्य देव कहाँ रहते हैं? उनकी रश्मियाँ किस आकाश में होंगी? यह रहस्य कौन जानता है?[ऋग्वेद 1.35.7]
गम्भीर कम्पन से युक्त, सुन्दर प्राण युक्त सविता ने अंतरिक्ष को प्रकाशित किया है। वह सूर्य किधर रहता है, इसकी किरणें किस आकाश में फैली हुई हैं, यह कौन कह सकता है?
Serious, moving, who is like the life giving force, inspiring in excellent ways-manners, beautifully shining Sury Dev-Sun illuminates the universe. Where does he live, what is, where is his abode, where are his rays, who knows this secret!?
अष्टौ व्यख्यत्ककुभः पृथिव्यास्त्री धन्व योजना सप्त सिन्धून्।
हिरण्याक्षः सविता देव आगाद्दधद्रत्ना दाशुषे वार्याणि॥
हिरण्य दृष्टि युक्त (सुनहली किरणों से युक्त) सविता देव पृथ्वी की आठों दिशाओं, उनसे युक्त तीनों लोकों, सप्त सागरों आदि को आलोकित करते हुए दाता (हविदाता) के लिए वरणीय विभूतियाँ लेकर यहा आयें।[ऋग्वेद 1.35.8]
सूर्य ने पृथ्वी की आठों दिशाओं को मिलाने वाले तीनों कोणों और सातों समुद्रों को प्रकाशित किया है। वह स्वर्णिम नेत्र वाले सूर्य साधक को धन देने के लिए यहाँ आयें।
Associated with golden rays, Savita Dev illuminates the 8 directions of the earth, the three abodes connected with it & the seven seas-oceans may bring gifts-excellencies here.
हिरण्यपाणिः सविता विचर्षणिरुभे द्यावापृथिवी अन्तरीयते।
अपामीवां बाधते वेति सूर्यमभि कृष्णेन रजसा द्यामृणोति॥
स्वर्णिम रश्मियों रूपी हाथों से युक्त विलक्षण द्रष्टा सविता देव द्यावा और पृथ्वी के बीच संचरित होते हैं। वे रोगादि बाधाओं को नष्ट कर अन्धकार नाशक दीप्तियों से आकाश को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 1.35.9]
स्वर्ण के हाथ वाले सर्व द्रष्टा सूर्य आकाश और पृथ्वी के बीच गति करते हैं। वे रोग आदि बाधाओं को समाप्त कर अंधकार नाशक तेज से आकाश को व्याप्त कर देते हैं।
Savita Dev who is an excellent visionary, with golden rays like his hands moves-transect through the heavens & the earth. He vanish the obstructions like diseases with his rays which removes the darkness and illuminates the sky.
हिरण्यहस्तो असुरः सुनीथः सुमृळीकः स्ववाँ यात्वर्वाङ्।
अपसेधन्रक्षसो यातुधानानस्थाद्देवः प्रतिदोषं गृणानः॥
हिरण्य हस्त (स्वर्णिम तेजस्वी किरणों से युक्त) प्राणदाता कल्याणकारक, उत्तम सुखदायक, दिव्य गुण सम्पन्न सूर्य देव सम्पूर्ण मनुष्यों के समस्त दोषों को, असुरों और दुष्कर्मियो को नष्ट करते (दूर भगाते) हुए उदित होते हैं। ऐसे सूर्यदेव हमारे लिए अनुकूल हों।[ऋग्वेद 1.35.10]
सुवर्णपाणि, प्राणावान, महान कृपालु, समृद्धिवान सूर्य हमारे सम्मुख पधारें। वे सूर्य प्रतिदिन राक्षसों का दमन करते हुए वहाँ ठहरें।
Sury-Savita Dev associated with divine powers-qualities, having golden hue rays around him, grants life, benefit the organisms, grants comforts, repel the demons and sinners, rise. Such Sun Dev should be favourable to us.
ये ते पन्थाः सवितः पूर्व्यासोऽरेणवः सुकृता अन्तरिक्षे।
तेभिर्नो अद्य पथिभिः सुगेभी रक्षा च नो अधि च ब्रूहि देव॥
हे सवितादेव! आकाश में आपके ये धूलरहित मार्ग पूर्व निश्चित हैं। उन सुगम मार्गों से आकर आज आप हमारी रक्षा करें तथा हम (यज्ञानुष्ठान करने वालों) को देवत्व से युक्त करें।[ऋग्वेद 1.35.11]
हे सूर्य! क्षितिज में तुम्हारे धूल रहित पुराने मार्ग सुनिर्मित हैं। इन रास्तों से प्रस्थान कर हमारी सुरक्षा करो जो मार्ग हमारे अनुकूल हों, बताओ।
Hey Savita Dev! Your path in the sky is free from dust, is fixed. Travelling through comfortable routes please come & protect us and make us divine.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त 50 :: ऋषि :- प्रस्कण्व कण्व, देवता :- सूर्य (11-13) रोगघ्न उपनिषद), छन्द :- गायत्री, 10-13 अनुष्टुप्।
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यम्॥
ये ज्योतिर्मयी रश्मियाँ सम्पूर्ण प्राणियों के ज्ञाता सूर्य देव को एवं समस्त विश्व को दृष्टि प्रदान करने के लिए विशेष रूप से प्रकाशित होती हैं।[ऋग्वेद 1.50.1]
सर्वभूतों के ज्ञाता प्रकाशवान सूरज की किरणें क्षितिज में ही विचरण करती हैं।
The rays of Sun, who knows all creatures, grants vision to the whole world.
अप त्ये तायवो यथा नक्षत्रा यन्त्यक्तुभिः। सूराय विश्वचक्षसे॥
सबको प्रकाश देने वाले सूर्य देव के उदित होते ही रात्रि के साथ तारा मण्डल वैसे ही छिप जाते है, जैसे चोर छिप जाते है।[ऋग्वेद 1.50.2]
सर्वदर्शी के प्रकट होते ही नक्षत्र आदि विख्यात चोर के तुल्य छिप जाते हैं।
With the Sun rise the stars hide alongwith the night just like the thieves.
अदृश्रमस्य केतवो वि रश्मयो जनाँ अनु। भ्राजन्तो अग्नयो यथा॥
प्रज्वलित हुई अग्नि की किरणों के समान सूर्य देव की प्रकाश रश्मियाँ सम्पूर्ण जीव-जगत को प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 1.50.3]
सूर्य की ध्वजा रूप किरणें प्रज्वलित अग्नि के समान मनुष्य की ओर जाती हुई स्पष्ट दिखाई देती हैं।
Rays of Sun lit the whole world like the fire.
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य। विश्वमा भासि रोचनम्॥
हे सूर्य देव! आप साधकों का उद्धार करने वाले हैं, समस्त संसार में एक मात्र दर्शनीय प्रकाशक हैं तथा आप ही विस्तृत अंतरिक्ष को सभी ओर से प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 1.50.4]
हे सूर्य! तुम वेगवान सभी के दर्शन करने योग्य हो। तुम प्रकाश वाले सभी को प्रकाशित करते हो।
उद्धार :: निस्तार, मुक्ति, छुटकारा, बचाव, छुड़ाना; deliverance, extricatio, releasement, rescue.
Hey Sury-Sun Dev! You release the devotee from the cycle of birth & death. You are the only source of light for the whole universe.
प्रत्यङ्देवानां विशः प्रत्यङ्ङुदेषि मानुषान्। प्रत्यङ्विश्वं स्वर्दृशे॥
हे सूर्यदेव! मरुद्गणों, देवगणों, मनुष्यों और स्वर्गलोक वासियों के सामने आप नियमित रूप से उदित होते हैं, ताकि तीन लोकों के निवासी आपका दर्शन कर सकें।[ऋग्वेद 1.50.5]
हे सूर्य! तुम देवताओं, प्राणियों तथा सभी मनुष्यों के लिए साक्षात् हुए तेज को प्रकाशित करने को आकाश में भ्रमण करते हो।
Hey Sury Dev! You rise regularly for the Marud Gan, Dev Gan, the hebitents of heaven and the humans; so that they can see the three abodes viz. earth, heaven and the Nether world.
येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तं जनाँ अनु। त्वं वरुण पश्यसि॥
जिस दृष्टि अर्थात प्रकाश से आप प्राणियों को धारण-पोषण करने वाले इस लोक को प्रकाशित करते हैं, हम उस प्रकाश की स्तुति करतें हैं।[ऋग्वेद 1.50.6]
तुम जिस नेत्र से मनुष्यों की ओर देखते हो उस नेत्र को हम प्रणाम करते हैं।
We pray to the eye-light through which you see the universe and support the living beings.
वि द्यामेषि रजस्पृथ्वहा मिमानो अक्तुभिः। पश्यञ्जन्मानि सूर्य॥
हे सूर्य देव! आप दिन एवं रात में समय को विभाजित करते हुए अन्तरिक्ष एवं द्युलोक में भ्रमण करते हैं, जिसमें सभी प्राणियों को लाभ प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 1.50.7]
हे सूर्य! रात्रियों को दिनों से अलग करते हुए, जीव मात्र को देखते हुए तुम विशाल क्षितिज में विचरण करते हो।
Hey Sury Dev! You move through the space and the heavens, dividing the time into day & night, which helps-supports the organis-living beings.
सप्त त्वा हरितो रथे वहन्ति देव सूर्य। शोचिष्केशं विचक्षण॥
हे सर्वद्रष्टा सूर्य देव! आप तेजस्वी ज्वालाओं से युक्त दिव्यता को धारण करते हुए सप्तवर्णी किरणों रूपी अश्वों के रथ में सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 1.50.8]
हे दूर दृष्टा सूर्य! तेजवन्त रश्मियों सहित रथारोही हुए, तुमको सप्त अश्व खींचते हैं।
Hey all visualizing-seeing Sury Dev! Your chariot is decorated with seven bright rays of light.
अयुक्त सप्त शुन्ध्युवः सूरो रथस्य नप्त्यः। ताभिर्याति स्वयुक्तिभिः॥
पवित्रता प्रदान करने वाले ज्ञान सम्पन्न उर्ध्वगामी सूर्यदेव अपने सप्तवर्णी अश्वों से (किरणों से) सुशोभित रथ में शोभायमान होते हैं।[ऋग्वेद 1.50.9]
सूर्य स्वयं जुड़ने वाले सप्त अश्वों को रथ में जोड़कर आसमान में भ्रमण करते हैं।
Sury Dev possessing the pious knowledge-enlightenment, moves in the glorious chariot decorated with seven horses (colours-rays of light).
उद्वयं तमसस्परि ज्योतिष्पश्यन्त उत्तरम्।
देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
तमिस्त्रा से दूर श्रेष्ठतम ज्योति को देखते हुए हम ज्योति स्वरूप और देवों में उत्कृष्ठतम ज्योति (सूर्य) को प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.50.10]
अंधकार के ऊपर व्याप्त क्षितिज को फैलाते हुए देवों में महान सूर्य को हम ग्रहण हों।
Let us assimilate in the brightest, best amongest the demigods-deities, removing darkness, while looking at it.
उद्यन्नद्य मित्रमह आरोहन्नुत्तरां दिवम्।
हृद्रोगं मम सूर्य हरिमाणं च नाशय॥
हे मित्रों के मित्र सूर्यदेव! आप उदित होकर आकाश में उठते हुए हृदय रोग, शरीर की कान्ति का हरण करने वाले रोगों को नष्ट करें।[ऋग्वेद 1.50.11]
हे सखाओं के सखा सूर्य! तुम उदित होकर क्षितिज में उठते हुए मेरी हृदय व्याधि और पीत रंग को मिटाओ।
Hey friend of the friends Sury Dev! Remove my heart disease and the yelloish colour of the skin (jundice, पीलिया).
शुकेषु मे हरिमाणं रोपणाकासु दध्मसि।
अथो हारिद्रवेषु मे हरिमाणं नि दध्मसि॥
हम अपने हरिमाण (शरीर को क्षीण करने वाले रोग) को शुकों (तोतों), रोपणाका (वृक्षों) एवं हरिद्रवों (हरी वनस्पतियों) में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 1.50.12]
हे सूर्य! मैं अपने पीलेपन को शुक-सारिकाओं में स्थापित करता हूँ।
Hey Sury Dev! I establish my disease weakining the body in the greenary.
Each and every plant, shrub, wine, tree has one or the other medicinal property. That's why one is advised to depend over the vegeterian diet only.
उदगादयमादित्यो विश्वेन सहसा सह।
द्विषन्तं मह्यं रन्धयन्मो अहं द्विषते रधम्॥
हे सूर्य देव! अपने सम्पूर्ण तेजों से उदित होकर हमारे सभी रोगों को वशवर्ती करें। हम उन रोगों के वश में कभी न आयें।[ऋग्वेद 1.50.13]
अपने पूर्ण तेज से समस्त रोगों के विनाश के लिए हुए हैं। मैं उन रोगी के वश में न पड़ सकूँ।
Hey Sury Dev! Rising with your energy, over power-control our diseases, weakness of the body.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (115) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- सूर्य, छन्द :- त्रिष्टुप्।
चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः।
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च॥
विचित्र तेज युक्त तथा मित्र, वरुण और अग्नि के चक्षु स्वरूप सूर्य उदित हुए हैं। उन्होंने द्यावा पृथ्वी और अन्तरिक्ष को अपनी किरणों से परिपूर्ण किया है। सूर्य जंगम और स्थावर दोनों की आत्मा हैं।[ऋग्वेद 1.115.1]
विचित्र :: बहुरंगा, रंग-बिरंगा, अजीब, अनोखा, विलक्षण; weird, bizarre, quaint, pied.
देवगण का विचित्र सुख-रूप रथ तथा सखा, वरुण, अग्नि का नेत्र रूप सूर्य उदित हो गया। जंगम स्थावर को प्राणरूप सूर्य ने क्षितिज धरा और अंतरिक्ष को समस्त तरफ से प्रकाशमान कर दिया।
The Sun as the eye of Mitr, Varun and Agni-fire, rises with amazing-quaint energy. He has filled the earth, all living beings whether movable or fixed with light.
सूर्यो देवीमुषसं रोचमानां मर्यो न योषामभ्येति पश्चात्।
यत्रा नरो देवयन्तो युगानि वितन्वते प्रति भद्राय भद्रम्॥
जिस प्रकार से पुरुष स्त्री का अनुगमन करता है, उसी प्रकार से सूर्य देव भी दीप्तिमयी उषा के पीछे-पीछे आते हैं। इसी समय देवाभिलाषी मनुष्य बहुयुग प्रचलित यज्ञ कर्म को सम्पन्न करते हैं, वहाँ उन साधकों एवं कल्याणकारी यज्ञीय कर्मों को सूर्यदेव अपने प्रकाश से प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 1.115.2]
मनुष्यों के नारी के पीछे जाने के समान, सूर्य कांतिमती उषा के पीछे जाता है। उस समय उपासक जन युगों तक कल्याणकारी प्रभाव डालने के लिए कल्याणदाता यज्ञ को बढ़ाते हैं।
The Sun follows dashing Usha just as the humans follow women. At this moment the devotees, sages, ascetics perform-conduct Yagy with the desire to attain the divine hood-divinity. Sun light the welfare means adopted by those doing Yagy for the welfare of humanity.
भद्रा अश्वा हरितः सूर्यस्त चित्रा एतग्वा अनुमाद्यासः।
नमस्यन्तो दिव आ पृष्ठमस्थुः परि द्यावापृथिवी यन्ति सद्यः॥
सूर्य के कल्याण रूप हरि नाम के विचित्र घोड़े इस मार्ग से जाते हैं। वे सबके स्तुति भाजन है। हम उनको नमस्कार करते हैं। वे आकाश के पृष्ठ देश में उपस्थित हुए हैं। वे घोड़े तत्काल ही द्युलोक और भूलोक की चारों दिशाओं की परिक्रमा कर डालते हैं।[ऋग्वेद 1.115.3]
कल्याण स्वरूप, स्वर्णिम रंग वाले दीप्ति परिपूर्ण मार्ग से विचरण करने वाले लगातार वन्दना किये जाते सूर्य के अश्व क्षितिज की पीठ पर पैर रखते हैं और उसी दिन क्षितिज और धरा का चक्कर काट लेते हैं।
The bizarre horses named Hari, the embodiment of human welfare follows this tract. They are prayed by every one. We salute them. They are present over the surface of the sky. These horses revolve round the entire universe & the earth, in all directions, quickly.
तत्सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्विततं सं जभार।
यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै॥
सूर्य देव का ऐसा ही देवत्व और माहात्म्य है कि वे मनुष्यों के कर्म समाप्त होने से पूर्व ही अपनी विशाल किरण के जाल का उपसंहार कर डालते हैं। जिस समय सूर्य अपने रथ से हरि नाम के घोड़ों को खोलते हैं, उस समय सभी लोकों में रात्रि अन्धकार रूप आवरण विस्तारित करती है।[ऋग्वेद 1.115.4]
अन्धकार को दूरस्थ करना सूर्य का अद्भुत कांतिमती उषा के पीछे प्रभाव डालने के लिए कल्याणदाता यज्ञ को बढ़ाते हैं। कल्याण स्वरूप, स्वर्णिम रंग वाले दीप्ति परिपूर्ण मार्ग से विचरण करने वाले लगातार वंदना किये जाते सूर्य के अश्व क्षितिज की पीठ पर पैर रखते हैं और उसी दिन क्षितिज और धरा का चक्कर काट लेते हैं। अन्धकार को दूरस्थ करना सूर्य का अद्भुत कार्य है।
The divinity & significance of Sury Bhagwan-The Sun, lies in the fact that he accomplish-finish the web-net of the rays, just before the humans complete-accomplish their ventures-endeavours. The moment Sun releases his horses named Hari, all abodes are filled with darkness.
तन्मित्रस्य वरुणस्याभिचक्षे सूर्यो रूपं कृणुते द्योरुपस्थे।
अनन्तमन्यद्रुशदस्य पाजः कृष्णमन्यद्धरितः सं भरन्ति॥
मित्र और वरुण को देखने के लिए आकाश के बीच सूर्य देव अपना ज्योतिर्मय रूप प्रकाशित करते हैं। सूर्य के हरि नाम के घोड़े एक ओर अपना अनन्त दीप्तिमान् बल धारित करते हैं तो दूसरी ओर कृष्ण वर्ण अन्धकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.115.5]
जब वह अपने सुनहरी अश्वों को हटाते हैं तब रात अपना काला वस्त्र फैलाती है। सखा और वरुण के देखने को सूर्य आकाश की गोद में उस विख्यात रूप को प्रकट करते हैं। उनके सुनहरी अश्व अपने प्रकाश से युक्त पराक्रम को प्रत्यक्ष कर दूसरी ओर अंधेरा कर देते हैं।
To see Mitr & Varun, the Sun show his bright form in the sky. The horses of Sury Bhagwan-The Sun, on one side acquire their infinite strength & power and on the other side they cause the darkness of black colour.
अद्या देवा उदिता सूर्यस्य निरंहसः पिपृता निरवद्यात्।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे सूर्य की किरणों! सूर्योदय होने पर आज हमें पाप से मुक्त करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु पृथ्वी और आकाश हमारी इस प्रार्थना को अंगीकार करें।[ऋग्वेद 1.115.6]
हे देवगण! आज सूर्य उदित होने पर हमको पाप कर्मों तथा निंदा से बचाओ। सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, धरा और क्षितिज हमारी इस वंदना को अनुमोदित करें।
Hey the Sun rays! Please release-relieve us of the sins before the dawn-day break. Let Mitr, Varun, Sindhu, Prathvi & Akash accept our this prayer.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (191) :: ऋषि :- अगस्त्य, देवता :-अप्तृण-जल, औषधि, सूर्य , छन्द :- महापंक्ति, महाबृहती, अनुष्टुप्, अत्यन्त।
कङ्कतो न कङ्कतोऽथो सतीनकङ्कतः।
द्वाविति प्लुषी इति न्यदृष्टा अलिप्सत॥
कम विष वाले अधिक विष वाले, जलीय कम विष वाले दो प्रकार के जलचर और स्थलचर जलाने वाले प्राणी और अदृश्य प्राणी मुझे विष द्वारा अच्छी तरह लिप्त किए हुए हैं।[ऋग्वेद 1.191.1]
जहरीले और जहर पृथक, जल में वास करने वाले अल्पविष परिपूर्ण दोनों प्रकार के जलचर और थलचर जलन पैदा करने वाले प्रत्यक्ष और अदृश्य जीव विषय द्वारा घेरे हुए हैं।
I have been surrounded by the poisonous creatures. Some of them have little and some has more poison in them. Water born and those living on land visible and invisible living beings too have contaminated me.
Virus, bacteria, fungus, pathogens, microbes are present all around us and are generally microscopic & invisible. They are present in air and water well. Cow is a carrier of platyhelminths. Other than these, flat worm, ring worm are quite common. Pig contains ascaris. Bird flue is quite common. Still majority of the populace eat meat. Corona too has come to humans from bats. Aids virus came to humans from the anus of the monkey. Malaria-dengue comes from mosquitoes. Bed bug hides in the sofa set, beds etc. Lice reside in the hair.
I live in Noida and its very unfortunate that Noida, Ghaziabad and Delhi are in the highest polluting cities in the world. The smog, air contain harmful dust & antigens. The water supplied too is very filthy. It led to acquiring cancer by me.
अदृष्टान्हन्त्यायत्थो हन्ति परायती।
अथो अबध्नती हन्त्यथो पिनष्टि पिंधती॥
जो औषधि खाता है, वह दिखाई न देने वाले विषधर प्राणी को नष्ट करता है और प्रत्यावर्तन काल में उसे विनष्ट करता है। यह कुटी और पीसी हुई (औषधि) विषधर जीवों के विष को समाप्त कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.2]
प्रत्यावर्तन :: एकान्तरण, परिवर्तन, पुनरावर्तन, पलटाव; repatriation, alternation, reversion, relapse.
औषधि उन अदृश्य जीवों और उनके जहर को मार देती है। वह कूटी, पीसी, जाकर भी विषैले जन्तुओं को नष्ट कर देती है।
One eats the medicine destroys the poisonous organisms during the intake of it. Either are grinded or crushed-smashed medicine vanish the poison.
शरासः कुशरासो दर्भासः सैर्या उत।
मौञ्जा अदृष्टा बैरिणाः सर्वे साकं न्यलिप्सत॥
शर, कुशर, दर्भ, सैर्य, मुज, वीरण आदि धासों में छिपे विषधर जीव-जन्तु अवसर मिलते ही लिपट जाते हैं।[ऋग्वेद 1.191.3]
शर, कुशर, दर्भ, सैर्य, मोंज और वैरिण नामक घासों में छिपे हुए जीव विषयुक्त करते हैं।
The poisonous organism stick to the various kinds of grasses named :- Shar, Kushar, Darbh, Saery, Munj, Viran etc.
नि गावो गोष्ठे असददन्नि मृगासो अविक्षत।
नि केतवो जनानां न्यदृष्टा अलिप्सत॥
जिस समय गाँवें गोष्ठ में बैठी रहती हैं, जिस समय हरिण, अपने-अपने स्थानों पर विश्राम करते हैं और जिस समय मनुष्य निद्रा में रहता है, उस समय अदृश्य विषधर ये जीव बाहर निकलकर उनसे लिपट जाते हैं।[ऋग्वेद 1.191.4]
जब गौएँ अपने गोष्ठ में बैठती हैं, हिरन अपने स्थान पर आराम करते हैं और प्राणी सुप्तावस्था में होता है तब ये विषैले जीव उन्हें विषयुक्त करते हैं।
The poisonous organism stick-attack the cows, deer and the humans while they are either sleeping or taking rest-inactive.
एत उ त्ये प्रत्यदृश्रन्प्रदोषं तस्करेंइव।
अदृष्टा विश्वदृष्टाः प्रतिबुद्धा अभूतन॥
ये विषधर चोरों की तरह रात्रि में ही दिखाई देते हैं। ये छिपे रहने पर भी सभी को देखते है। इसलिए इनसे सावधान रहना चाहिए।[ऋग्वेद 1.191.5]
वे अदृश्य और प्रकट विषैले जीव चोरों के समान रात्रि की प्रतीक्षा करते हैं। इसलिए उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है।
These visible & invisible poisonous being are active at night like a thief. They watch every one, hiding themselves. One has to to very carful with respect to them.
द्यौर्व: पिता पृथिवी माता सोमो भ्रातादितिः स्वसा।
अदृष्टा विश्वदृष्टास्तिष्ठतेलयता सु कम्॥
स्वर्ग पिता, पृथ्वी माता, सोम भ्राता और अदिति बहन है। अदृष्ट समदर्शी लोग आप विश्राम करते हैं। जिस समय मनुष्य निद्रा में रहता है, उस समय अदृश्य विषधर ये जीव बाहर निकलकर उनसे लिपट जाते हैं।
हे जहरीले प्राणियों! आकाश तुम्हारा पिता, धरती माता और सोम भाई, अदिति बहन हैं। तुम प्रकट और अप्रकट दोनों प्रकार के जीव अपने अपने स्थान पर ही रहो, सूख पूर्वक विश्राम करो।
Heaven is your father, earth is your mother, Moon is your brother and Aditi (mother of demigod-deities) is your sister. You-invisible poisonous beings take rest in your places of hiding. As soon as the humans sleep you attack them.
ये अंस्या ये अङ्गया: सूचीका ये प्रकङ्कताः।
अदृष्टाः किं चनेह वः सर्वे साकं नि जस्यत॥
जो विषधर स्कन्ध वाले है, जो अंग वाले (सर्प) हैं, जो सूचीवाले (वृश्चिकादि) हैं, जो अतीव विषधर हैं, वैसे अदृष्ट विषधर जीव-जन्तुओं का यहाँ क्या काम है? ये सभी विषैले जीव एक साथ हमें कष्ट न पहुँचायें अर्थात् हमसे दूर चले जायें।[ऋग्वेद 1.191.7]
हे जहरीले प्राणियों! तुम कन्धे से जलने वाले शरीर से विचरणशील, सुई की तरह डंक मारने वाले, अत्यन्त विष परिपूर्ण अदृश्य एवं प्रत्यक्ष, जितनी तरह के भी हो, हमारे पास से दूर चले जाओ।
Let all poisonous creatures move away from us. All those creatures which move with the help of shoulders, creepers, those who wriggle and those who sting should not harm us move away from us.
उत्पुरस्तात्सूर्य एति विश्वदृष्टो अदृष्टहा।
अदृष्टान्त्सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्यः॥
पूर्व दिशा में सूर्यदेव उदित होते हैं, वे समस्त संसार को देखते और अदृष्ट विषधरों का विनाश करते हैं। वे सभी अदृष्टों और राक्षसी वा महोरगी का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 1.191.8]
सबके सामने प्रयत्न, अदृष्ट जीवों को भी दिखाने वाले, अदृश्य विषधरों और दानव, वृत्ति वाले हिंसक पशुओं को विनाश करने वाले सूर्य पूर्व से उदित होते हो।
The Sun rises in the east and kill all sorts of invisible harmful creatures-organism. He kills the demonic and the canine animals as well.
Sun light is essential in homes and offices in addition to cross ventilation.
उदपप्तदसौ सूर्यः पुरु विश्वानि जूर्वन्।
आदित्यः पर्वतेभ्यो विश्वदृष्टो अदृष्टहा॥
सूर्य देव बड़ी संख्या में विषों का विनाश करते हुए उदित होते हैं। सर्वदर्शी और अदृश्यों के विनाशक सूर्यदेव जीवों के मंगल के लिए उदित होते हैं।[ऋग्वेद 1.191.9]
सभी विश्व द्वारा देखे जाने वाले, अदृष्ट प्राणियों के नाशक अदिति पुत्र सूर्य अनेक प्रकार से सभी विषों का विनाश करने के लिए, शैल से भी ऊँचे उठे हुए हैं।
With the Sun rise majority of harmful-poisonous microscopic organisms are destroyed-killed. Sun rises for the welfare of all living beings.
Ultra violet and infra red rays are capable of killing all sorts of microbes, antigens.
सूर्ये विषमा सजामि दृति सुरावतो गृहे। सो चिन्नु न मसति नो वयं मरामारे अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार॥
शौण्डिक के गृह में चमड़े से बने सुरापात्र की तरह मैं सूर्य मण्डल में विष फेकता हूँ। जिस प्रकार से पूजनीय सूर्यदेव प्राणत्याग नहीं करते। उसी प्रकार से हम भी प्राण त्याग नहीं करते। अपने अश्वों पर आरूढ़ होकर सूर्यदेव इस विष का निवारण करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.10]
शौण्डिक के घर में मद्य पात्र के समान सूर्य मंडल में विष को प्रेरित करता हूँ। सूर्य का उससे पतन नहीं होगा। हम भी नहीं मरेंगे। वे अश्व पर सवार सूर्य विष का अमृत में परिवर्तन कर देते हैं।
Shoundik discard the poisons carried-kept in a skin vessel in the atmosphere-environment. The way Sun is not lost, I too remain alive. Sun riding his horses removes the impact affect of the poison. The science of pathogens tackles this menace and converts the poisons into ambrosia, nectar Amrat.
इयत्तिका शकुन्तिका सका जघास ते विषम्। सो चिन्नु न मराति नो वयं मरामारे अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार॥
जिस प्रकार से क्षुद्र शकुन्तिका पक्षी ने आपका विष खाकर उगल दिया, उसने प्राण त्याग नहीं किया, उसी प्रकार से हम भी प्राण त्याग नहीं करेंगे। अश्व द्वारा परिचालित होकर सूर्यदेव दूर स्थित विष को दूर करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.11]
जैसे क्षुद्र शकुनि (पक्षी) ने तेरा जहर खाकर उगल दिया, वह उससे मरा नहीं, वैसे ही हम भी नहीं मरेंगे, अश्वारूढ़ सूर्य दूर रहकर भी हमसे विष को दूर रखते हैं तथा विष को माधुर्य देते हैं।
The way small Shakuntika bird eats poison and vomit, without being killed, we too shall survive. Driven by the horses the Sun removes the poisons and converts the poisons into nectar by using Madhula Vidya-science of converting poisons into nectar.
त्रिः सप्त विष्णुलिङ्गका विषस्य पुष्पमक्षन्। ताश्चिन्नु न मरन्ति नो वयं मरामार अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार॥
अग्निदेव की सातों जिह्वाओं में से प्रत्येक में श्वेत, लोहित और कृष्णादि तीन वर्ण अथवा इक्कीस प्रकार के पक्षी विष की पुष्टि का विनाश करते हैं। वे कभी नहीं मरते, उसी प्रकार हम भी प्राण त्याग नहीं करते। अश्व द्वारा परिचालित होकर सूर्य देव दूर स्थित विष का हरण करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.12]
अग्नि ने इक्कीस प्रकार के विषों को बल का भक्षण कर लिया। उसकी ज्वालाएँ अमर हैं। हम भी नहीं मर सकते। अश्वारूढ़ सूर्य ने दूरस्थ विष को भी नष्ट कर दिया और विष को मधुरता प्रदान की।
The seven flames of fire-Agni are capable of killing 21 types of poisons present in the birds (germs, virus, bacteria, fungus etc.) The birds carries them without being killed and we too will survive. Madhula Vidya converts these poisons into nectar.
Each and every century finds the out break of epidemic, which kills millions of people. There is mention of Corona in the Shastr. Pure vegetarians can easily survive the onslaught of it. Please refer to :: CORONA-DEADLY CHINES VIRUS over my blogs.
नवानां नवतीनां विषस्य रोपुषीणाम्।
सर्वासामग्रभं नामारे अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार॥
मैं सभी विषनाशक निन्यानबे नदियों के नामों का कीर्तन करता हूँ। अश्व द्वारा चालित होकर सूर्यदेव दूर स्थित विष का निवारण करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.13]
मैंने विष नाशक निन्यानवें क्रियाओं को जान लिया है। रथ पर सवार सूर्य दूर से भी विष को अमृत में बदल देते हैं,
I recite the names of all 99 rivers which are capable of killing germs microbes etc. Driven by the horses Sury Dev-the Sun removes these poisons and the Madhula Vidya converts these poisons into nectar.
Maa Ganga is well knows for containing anti microbes properties. In fact a large number of rivers flowing from the mountains acquires the property of germicide due to the assimilation of vital herbs in them. Rivers flowing from the mountains possessing Sulphur too acquire such properties.
त्रिः सप्त मयूर्यः सप्त स्वसारो अग्रुवः।
तास्ते विषं वि जभ्रिर उदकं कुम्भिनीरिव॥
जिस प्रकार से स्त्रियाँ घड़े में जल ले जाती हैं, उसी प्रकार से इक्कीस मयूरियाँ (पक्षी) और सात नदियाँ आपके विष को दूर करें।[ऋग्वेद 1.191.14]
हे विष, से परिपूर्ण प्राणी! घड़े में नारियाँ जल ले जाती हैं, जैसे ही इक्कीस और भगिनी रूप सात नदियाँ तुम्हारे विष को दूरस्थ करती हैं।
The way the women carries water in the Ghada-earthen pot, picher, 21 female peacock and 7 rivers remove your poisons.
इयत्तकः कुषुम्भकस्तकं भिनद्मयश्मना।
ततो विषं प्र वावृते पराचीरनु संवतः॥
अति सूक्ष्म-सा यह विषैला कीड़ा अर्थात् कीट हैं। हमारी ओर आने वाले छोटे से छोटे कीट को हम पत्थर से मार देते हैं। जिससे उसका विष अर्थात् जहर अन्य दिशाओं में चला जाता है।[ऋग्वेद 1.191.15]
वह छोटा सा नकुल तुम्हारी देह का विष खींच ले अन्यथा उस नीच को मैं पत्थर ढेलों से मार डालूँगा। शरीर का विष चूसकर दूर देशों का चला जाये।
Let the small Nakul suck the poison from your body, move else where otherwise I will kill it with pebbles.
कुषुम्भकस्तदब्रवीगिरेः प्रवर्तमानकः।
वृश्चिकस्यारसं विषमरसं वृश्चिक ते विषम्॥
पर्वत से आने वाले नेवला ने यह कहा कि वृश्चिक अर्थात् बिच्छू का विष प्रभावहीन है। हे वृश्चिक (बिच्छू)! तुम्हारे विष का प्रभाव नहीं।[ऋग्वेद 1.191.16]
नकुल ने शैल से निकल कर कहा, बिच्छू का विष प्रभाव से शून्य है। हे वृश्चिक! तेरे विष प्रभाव नहीं है।
The mongoose coming from the hills told the scorpion that his poison was neutralised.
जल, औषधि और सूर्य में विषनाशक शक्ति है। इसलिए यहाँ इनकी प्रार्थना की गई है।
Water, medicines and Sun kills germs, microbes and antigens, hence they are described her. Flowing waters gradually become free from all sorts of contamination by the addition of atmospheric oxygen in it.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- सविता, छन्द :- त्रिष्टुप, पंक्ति।
उदु ष्य देवः सविता सवाय शश्वत्तमं तदपा वह्निरस्थात्।
नूनं देवेभ्यो वि हि धाति रत्नमथाभजद्वीतिहोत्रं स्वस्तौ॥
प्रकाशक और जगद्बाहक सूर्य देव प्रसव के लिए प्रतिदिन उदित होते हैं, यही उनका कर्म है। वे स्तोताओं को रत्न देते और सुन्दर यज्ञ वाले यजमान को मंगलभागी बनाते हैं।[ऋग्वेद 2.38.1]
संसार को वहन करने वाले ज्योर्तिमान सविता देव प्रसव के लिए प्रतिदिन प्रकट होते हैं। यही उनका नित्य का सिद्धान्त है। वे वंदना करने वालों को रत्नादि धन प्रदान करते और यजमान को कल्याण का भागीदार बनाते हैं।
Illuminating and supporting-sustaining the universe, is the daily routine of Savita-Dev-the Sun. This is his duty. He grants jewels to the host who worship him. He benefit the host-Ritviz as well.
विश्वस्य हि श्रुष्टये देव ऊर्ध्वः प्र बाहवा पृथुपाणिः सिसर्ति।
आपश्चिदस्य व्रत आ निमृग्रा अयं चिद्वातो रमते परिज्मन्॥
प्रलम्बाहु और प्रकाशवाले सविता देव, संसार के आनन्द के लिए उदित होकर बाहु प्रसारित करते हैं। उनके कार्य के लिए अतीव पवित्र जल समूह प्रवाहित होता है और वायु भी सर्वतोव्यापी अन्तरिक्ष में विहरण करता है।[ऋग्वेद 2.38.2]
लम्बी भुजा और ज्योति से परिपूर्ण सवितादेव संसार को आनन्दमय करने के लिए हाथ फैलाते हैं। उनके लिए अत्यन्त शुद्ध जल प्रवाहमान होता और पवन अंतरिक्ष में विचरता है।
Long armed Savita Dev illuminate and extend his arms for the pleasure of the world. Extremely pure water flow and the air flows through the sky-space.
आशुभिश्चिद्यान्वि मुचाति नूनमरीरमदतमानं चिदेतोः।
अह्यर्षूणां चिन्त्र्ययाँ अविष्यामनु व्रतं सविआर्पोक्यागात्॥
जिस समय सविता शीघ्रगामी किरणों द्वारा विमुक्त होते हैं, उस समय वे निरन्तरगामी पथिक को भी अलग करते हैं। जो शत्रु के विरुद्ध जाते हैं; सविता देव उनकी जाने की इच्छा को भी निवृत्त करते हैं। सविता के कर्म के पश्चात् ही रात्रि का आगमन होता है।[ऋग्वेद 2.38.3]
जब सविता देव तीव्र गति से किरणों द्वारा छोड़े जाते हैं, तब निरन्तर चलने वाले राही भी रुक जाते हैं । शत्रु के विरुद्ध आक्रमण के लिए जाने वाले की इच्छा भी उस समय निवृत्त हो जाती सविता देव के कर्म कर लेने पर रात आलोक को छिपा लेती है।
When Savita Dev stops his fast moving rays, the traveller stops moving further and the night falls. Savita Dev checks the desire of moving-attacking the enemy at this hour-juncture. Once the task of Savita Dev is over, the night engulfs the universe-world.
पुनः समव्यद्विततं वयन्ती मध्या कर्तोर्न्यधाच्छक्म धीरः।
उत्संहायास्थाद्व्यृ १ तुँरदर्धररमतिः सविता देव आगात्॥
वस्त्र बुनने वाली रमणी की तरह रात्रि पुनः आलोक को भली-भाँति वेष्टित करती है। बुद्धिमान् लोग जो कर्म करते हैं, वह करने में समर्थ होने पर भी मध्य मार्ग में रख देती है। विराम रहित और ऋतु विभाग कर्ता प्रकाशक सविता जिस समय पुनः उदित होते हैं, उस समय लोग शय्या को त्याग देते हैं।[ऋग्वेद 2.38.4]
आलोक :: देखना, दर्शन, दृष्टि, प्रकाश, रोशनी; light, lustre.
बुद्धिमानों के लिए हुए कार्य हिस्सा बीच के भाग में रुक जाते हैं, ऋतुओं का विभाजन करने वाले सूर्य जब दुबारा उदित होते हैं, तब व्यक्ति बिस्तारों को छोड़ देते हैं।
The night cover the light properly, like the young woman who knit the cloth. The intelligent post pone their endeavours even though they are competent-capable. The Sun rises again and move continuously creating-causing the seasons. People leave their bed with the Sun rise.
नानौकांसि दुर्यो विश्वमायुर्वि तिष्ठते प्रभवः शोको अग्नेः।
ज्येष्ठं माता सूनवे भागमाधादन्वस्य केतमिषितं सवित्रा॥
अग्नि के गृह में स्थित प्रभूत तेज यजमान के भिन्न-भिन्न गृह और समस्त अन्न में अधिष्ठित है। माता उषा ने सविता द्वारा प्रेरित प्रज्ञापक यज्ञ का श्रेष्ठ भाग पुत्र अग्नि को दान किया।[ऋग्वेद 2.38.5]
अग्नि ग्रह में उत्पन्न तेज यजमान के अन्न कोष्ठों में व्याप्त हैं। उषा माता सविता प्रेरित यज्ञ का उत्तम भाग अग्नि को दे चुकी हैं।
The energy generated in the house of Agni has pervaded the entire property and the food grains of the hosts-Ritviz. Mother Usha has granted the excellent portion of the Yagy to her son Agni, transferred to her by Savita i.e., Sun.
समाववर्ति विष्ठितो जिगीषुर्विश्वेषां कामश्चरताममाभूत्।
शश्वाँ अपो विकृतं हित्व्यागादनु व्रतं सवितुर्दैव्यस्य॥
स्वर्गीय सविता के व्रत की समाप्ति होने पर जयाभिलाषी राजा युद्ध यात्रा कर चुकने पर भी लौट आता है। सारे जंगम पदार्थ घर की अभिलाषा करते और सदा कार्यरत् व्यक्ति अपने किये आधे कर्म को भी छोड़कर घर की ओर लौट आते हैं।[ऋग्वेद 2.38.6]
सविता के दिव्य व्रत की समाप्ति पर रथ से विजय की कामना करने वाला राजा लौटता है। सभी जंगम पदार्थ अपने पास की अभिलाषा करते और कर्म में लगे प्राणी अपने कार्यों के अधूरा रहने पर भी घर की ओर चल देते हैं।
The winning kings too return to their camps, from the battle field as soon as the Sun sets. All movable-living beings busy with their work return home, leaving behind their work unfinished (to complete the next day).
त्वया हितमप्यमप्सु भागं धन्वान्वा मृगयसो वि तस्थुः।
वनानि विभ्यो नकिरस्य तानि व्रता देवस्य सवितुर्मिनन्ति॥
हे सविता देव! अन्तरिक्ष में आपने जो जल-भाग रख छोड़ा है, जलान्वेषण कर्त्ता लोग चारों ओर उसे पाते हैं। आपने पक्षियों के लिए वृक्षों का विभाग किया है। कोई भी सविता के कार्य की हिंसा नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.38.7]
हे सवितादेव! अंतरिक्ष में तुम्हारे द्वारा दृढ़ जल भाग को खोज करने वाले पाते हैं। तुमने पक्षियों के निवास के लिए वृक्षों का विभाजन किया। तुम्हारे कर्म को कोई नहीं रोक सकता।
Hey Savita Dev! The water left over in the sky-space, is found by those who wish to trace-find it. You have reserved the trees for the residence of the birds. No one can challenge your authority.
याद्राध्य वरुणो योनिमप्यमनिशितं निमिषि जर्भुराणः।
विश्वो मार्ताण्डो व्रजमा पशुर्गात्स्थशो जन्मानि सविता व्याकः॥
सविता के अस्त होने पर सदा गमनशील वरुण देव सारे जंगम पदार्थों को सुखकर, वाञ्छनीय और सुगम वास स्थान प्रदान करते हैं। जिस समय सविता सारे भूतों को स्थान-स्थान पर अलग अलग कर देते हैं, उस समय पशु-पक्षी गण भी अपने-अपने स्थान को चले जाते हैं।[ऋग्वेद 2.38.8]
सूर्य अस्त होने पर गतिमान वरुण समस्त जंगम पदार्थों को सुख प्रदान करने वाले, आवश्यक और आसान निवास को ग्रहण होते हैं।
Varun Dev provide appropriate-comfortable shelter to each and every living being after the Sun set. When Savita dev distinguishes-separates the place of living, all animals & birds return to their habitat.
The ever-going Varun Dev grants a cool, accessible and agreeable place for rest, to all moving creatures-beings on the closing of the eyes of Savita Dev and every bird and every beast repairs to its lair when Savita Dev has dispersed all beings in various directions.
न यस्येन्द्रो वरुणो न मित्रो व्रतमर्यमा न मिनन्ति रुद्रः।
नारातयस्तमिदं स्वस्ति हुवे दैवं सवितारं नमोभिः॥
इन्द्र देव जिसके व्रत की हिंसा नहीं करते, वरुण, मित्र, अर्यमा और रुद्र भी हिंसा नहीं करते, शत्रुगण भी हिंसा नहीं करते, उन्हीं द्युतिमान् सविता को कल्याण के लिए इस प्रकार नमस्कार द्वारा हम आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 2.38.9]
इन्द्र, वरुण, मित्र, अर्यमा, रुद्र और शत्रु भी जिसके वृत्र को नहीं रोक सकते। उसी प्रकाशवान सूर्य को मंडल के लिए हम मस्तक नवाकर आमंत्रित करते हैं।
We invoke Savita Dev-Sun, who is not opposed by Indr, Varun, Mitr, Aryma, Rudr and even the enemies, by lowing our heads in his honour.
भगं धियं वाजयन्तः पुरंधिं नराशंसो ग्नास्पतिर्नो अव्याः।
आये वामस्य संगथे रयीणां प्रिया देवस्य सवितुः स्याम॥
जिनकी स्तुति सारे मनुष्य करते हैं, जो देवपत्नियों के रक्षक हैं, वे ही सवितादेव हमारी रक्षा करें। हम भजनीय, बहुप्रज्ञ और ध्यान योग्य सविता को बलवान् करते हैं। हम धन और पशु की प्राप्ति के और संचय के सम्बन्ध में सवितादेव के प्रिय होकर रहें।[ऋग्वेद 2.38.10]
सभी प्राणी जिसकी वंदना करते हैं जो देव पत्नियों के रक्षक हैं वे सूर्य हमारे रक्षक हों। भजन और ध्यान के योग्य प्रतापी सूर्य को हम प्रसन्न करते हैं। धन और पशु को प्राप्त कर सुरक्षित रहने की कामना से हम सविता देव का सद्भाव चाहते हैं।
Let Savita Dev, who is the protector of goddesses-wives of the demigods and worshiped prayed by all humans, protect us. We worship-pray Sun through hymns and meditation, to keep him happy and healthy. We wish to have wealth and cattle and remain protected by Savita Dev along with his goodwill.
अस्मभ्यं तद्दिवो अद्भ्यः पृथिव्यास्त्वया दत्तं काम्यं राध आ गात्।
शं यत्स्तोतृभ्य आपये भवात्युरुशंसाय सवितर्जरित्रे॥
हे सविता देव! आपने हमें जो प्रसिद्ध और रमणीय धन प्रदान किया है, वह द्युलोक, भूलोक और अन्तरिक्ष लोक से हमारे पास आवे। जो धन स्तोताओं के वंशजों के लिए शुभकर है। मैं बहुत-बहुत स्तुति करता हूँ कि मुझे वही धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.38.11]
हे सूर्यदेव! तुमने हमें जो प्रसिद्ध और मनोरम धन प्रदान किया है, वह अद्भुत संसार, धरा और अंतरिक्ष से हमको प्राप्त हो। जो धन प्रार्थना करने वालों के वंशजों के लिए कल्याणकारी है, वही धन मुझे प्रदान करो। मैं तुम्हारी भली-भांति अत्यन्त वदंना करता हूँ।
Hey Sury Dev! The wealth granted by you, should come to us from the heavens, earth and the space. It should be auspicious to our next generation-progeny. We pray to you again and again to be given that auspicious wealth.
यत्रोत बाधितेभ्यश्चक्रंकुत्साय युध्यते। मुषाय इन्द्र सूर्यम्॥
हे इन्द्र देव! जिस युद्ध में आपने युद्धकारी कुत्स एवं उसके सहायकों के लिए सूर्य के रथ चक्र का भी अपहरण कर लिया।[ऋग्वेद 4.30.4]
तब तुमने युद्धरत कुत्स और उसके सहायकों के लिए सूर्य पर चक्र को घुमाया और अपने व्यक्तियों की सुरक्षा की थी।
Hey Indr Dev! You controlled the cycle of the Sun, while fighting with Kuts-demon & his warriors.
यत्रोत मर्त्याय कमरिणा इन्द्र सूर्यम्। प्रावः शचीभिरेतशम्॥
हे इन्द्र देव! जिस संग्राम में आपने एतश ऋषि के लिए सूर्य की भी हिंसा की, उस समय युद्ध कर्म द्वारा आपने एतश की रक्षा की।[ऋग्वेद 4.30.6]
हे इन्द्र देव! तुम जिस संग्राम में एतश के लिए सूर्य पर भी आक्रमण किया था, उस घोर संग्राम द्वारा तुमने एतश मुनि की भली-भांति रूप से रक्षा की थी।
Hey Indr Dev you discomfited Sun, for protecting Etash by your exploits.
DISCOMFIT :: परेशान, अशांत; make (someone) feel uneasy or embarrassed.
Hey Indr Dev! You protected Etash Muni in that furious war with your fighting skills and disturbed the Sun.
प्रवता हि क्रतूनामा हा पदेव गच्छसि। अभक्षि सूर्वे सचा॥
हे इन्द्र देव! आप यज्ञ के प्रवण प्रदेश में अपने स्थान को जानकर आगमन करते हैं। हम सूर्य के साथ आपकी उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 4.31.5]
हे इन्द्र देव! तुम यज्ञ में अपने स्थान को समझते हुए यहाँ पधारो। सूर्य के साथ हम तुम्हारा पूजन करते हैं।
Hey Indr Dev! Maintaining your dignity in the Yagy, you arrive here. WE worship you along with the Sun.
सं यत्त इन्द्र मन्यवः सं चक्राणि दधन्विरे। अध त्वे अध सूर्ये॥
हे इन्द्र देव! आपके लिए सम्पादित प्रार्थना और कर्म जब हम लोगों के द्वारा अनुमन्यमान होते हैं, तब वे पहले आपके होते हैं और उसके पश्चात सूर्य देव के होते हैं।[ऋग्वेद 4.31.6]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे लिए सम्पादन की गई वंदना तथा कार्य जब एक साथ ऊपर उठते हैं तब वे पहले तुम्हारे और फिर सूर्य के होते हैं।
Hey Indr Dev! When we perform prayers and make offerings we worship you first, followed by the Sun.
अस्माकमुत्तमं कृषि श्रवो देवेषु सूर्य। वर्षिष्ठं द्यामिवोपरि॥
हे सभी के प्रेरक सूर्य देव! आपने जिस प्रकार से सेचन समर्थ द्युलोक को ऊपर में स्थापित कर दिया, उसी प्रकार से देवों के बीच में हम लोगों के यश को उत्कृष्ट करें।[ऋग्वेद 4.31.15]
हे सूर्य! तुम सबको प्रेरणा प्रदान करते हो। तुमने बरसात में समर्थ नभ को जैसे उच्च स्थापित किया है, वैसे ही देवताओं के बीच हमारे यज्ञ को बढ़ाओ।
Hey Sury Dev-Sun, inspiring all! The way-manner in which you have established the heavens at a high altitude in the sky, enhance-boost the glory of our Yagy, amongest the demigods-deities.
आ सूर्यो यातु सप्ताश्वः क्षेत्रं यदस्योर्विया दीर्घयाथे।
रघुः श्येनः पतयदन्धो अच्छा युवा कविर्दीदयद्गोषु गच्छन्॥
सात अश्वों के स्वामी सूर्य देव हम लोगों के सम्मुख उपस्थित हों; क्योंकि उन्हें दीर्घ प्रवास के लिए सुदूरवर्ती गन्तव्य स्थान में उपस्थित होना होगा। वे श्येन पक्षी के समान शीघ्रगामी होकर प्रदत्त हव्य के उद्देश्य से भ्रमण करते हैं। वे स्थिर यौवन तथा दूरदर्शी देव निज रश्मि के बीच में अवस्थान करके प्रभा विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.45.9]
Let Sury Dev-Sun, the lord of seven horses, invoke before us; since he has be away from us at a distant place. He moves quickly like a falcon for accepting oblations-offerings. Far sighted deity-Sun present in his own rays, spread aura-light.
आ सूर्यो अरुहच्छुक्रमर्णोऽयुक्त यद्धरितो वीतपृष्ठाः।
उद्ना न नावमनयन्त धीरा आशृण्वतीरापो अर्वागतिष्ठन्॥
उज्जवल जलराशि के ऊपर सूर्य देव आरोहण करते हैं। जब वे कान्त पृष्ठ वाले अश्वों को रथ में नियोजित करते हैं, तब उन्हें बुद्धिमान् याजकगण, जिस प्रकार से जल के ऊपर नाव हो, उसी प्रकार से आनयन करते हैं। जलराशि उनके आदेश को श्रवण करके नीचे अवतीर्ण होती है।[ऋग्वेद 5.45.10]
कांत :: कोमल और मनोहर, प्रिय और रुचिकर, पति, शौहर, प्रेमी, जो व्यक्ति किसी के प्रति प्रेम या अनुराग रखता हो, रौनक, मन को लुभाने का कार्य, बसंत, पंसदीदा, प्रेमिका, मालिक; soft and lovely, dear.
Sury Dev rises up the bright-clean water. When he deploy his horses having soft and lovely back; the intelligentsia moves like the boat moving over water. Water acts-emerge following their orders.
स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि॥
सूर्य देव और चन्द्र देव जिस प्रकार से निरालम्ब मार्ग में राक्षसादि के उपद्रव के बिना विचरण करते हैं, उसी प्रकार से हम लोग भी मार्ग में सुख पूर्वक विचरण करें। प्रवास में चिरकाल हो जाने से भी अक्रुद्ध और स्मरण करने वाले मित्रों से हम मिलकर रहें।[ऋग्वेद 5.51.15]
The way-manner in which Sury Dev & Chandr Dev revolve without being disturbed by the demons on their orbits-path, we too move comfortably on our way. We should live friendly with those friends who are away from us without being angry and live together on being remembered.
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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