Sunday, August 17, 2014

DEV RAJ INDR - THE KING OF DEMIGODS देवराज इन्द्र (ऋग्वेद 1-6)*

DEV RAJ INDR 
देवराज इन्द्र
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
हिन्दु धर्म में 33 प्रमुख देवताओं साथ-साथ 33 कोटि-करोड़ देवताओं का उल्लेख है। 
इन्द्र के भ्राता श्री वरुण देव देवता और असुर दोनों को प्रिय हैं। देवता और असुर दोनों ही कश्यप ऋषि की सन्तानें हैं। उनकी माताएँ क्रमशः अदिति और दिति हैं।
अदिति ऋषि कश्यप की दूसरी पत्नी थीं। ऋग्वेद में इन को ब्रह्म शक्ति माना गया है। इनके बारह पुत्र हुए जो आदित्य कहलाए (अदितेः अपत्यं पुमान् आदित्यः)। उन्हें देवता भी कहा जाता है। अतः अदिति को देवमाता कहा जाता है। अदिति का अर्थ  है, असीम।
अदिति दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। इनका विवाह कश्यप ऋषि से हुआ। अदिति के बारह पुत्र हुए जिनके नाम हैं :- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (भगवान् वामन)। अन्तरिक्ष में द्वादश आदित्य भ्रमण करते हैं, वे आदित्य अदिति के पुत्र हैं। अदिति के पुण्यबल से ही उनके पुत्रों को देवत्व प्राप्त हुआ।
अदिति का एक पुत्र गर्भ में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था, परन्तु अदिति ने अपने तपोबल से उसे पुनर्जीवित किया था। उस पुत्र का नाम मार्तण्ड था। वह मार्तण्ड विश्वकल्याण के लिये अन्तरिक्ष में गतिमान् है।
देवराज इन्द्र मनुष्यों के हित में वर्षा को नियंत्रित करते हैं। वे स्वर्ग की रक्षा में सदैव तत्पर रहते हैं। वे ईश्वर की विभूति हैं। यदि कोई व्यक्ति छल-छन्द अथवा तपस्या के बल पर स्वर्ग पर कब्जा करने का प्रयास करता है तो वे उसकी तपस्या को भी भंग करने में नहीं चूकते। इस प्रयास में उन्हें अनेक बार कष्टों का सामना भी करना पड़ता है। इसी कारण उन्हें अक्सर अहंकार भी हो जाता है। तब परमात्मा उनकी बुद्धि को भृष्ट होने से रोकते हैं। परमात्मा में देवों में अग्रणी, उन्हें स्वयं का स्वरूप ही कहा है। देवराज ने एक हजार यज्ञ करके इस पदवी को प्राप्त किया। क्योंकि इन्द्र वेदों में उल्लिखित हैं, यह एक पद, समय की इकाई भी है। हर मन्वन्तर में इन्द्र अन्य व्यक्ति होता है।
देवराज इन्द्र और माता लक्ष्मी संवाद :: 
किसी समय माता लक्ष्मी इन्द्र के दरवाजे पर पहुँची। उन्होंने देवराज यहाँ निवास  इच्छा जाहिर की।  
इन्द्र माता कहा कि वे तो असुरों यहाँ बड़े आनन्दपूर्वक रहती थीं; उन्हें छोड़कर वे स्वर्ग में क्यों पधारीं!? 
माता लक्ष्मी ने कहा कि कुछ समय पूर्व राक्षस बड़े धर्मात्मा थे। वे कर्तव्य परायण थे, परन्तु उनके सद्गुण धीरे-धीरे नष्ट होने लगे। प्रेम के पर ईर्ष्या-द्वेष और क्रोध-कलह निवास उनके घरों में गया। अतः उन्होंने असुरों  परित्याग  कर दिया।
माता भगवती लक्ष्मी ने कहा कि असुर लोग वृद्ध और गुरुजनों के सम्मान का विचार न करके उनकी बराबरी आसन पर बैठते थे। सत्कार, शिष्टाचार और अभिवादन भी  वे  भूल गये। लड़के माता-पिता से मुँह में आया कहने लगे। शिष्य आचार्यों की तरफ मुँह मटकाने लगे। समाज की समस्त मान-मर्यादाएँ जाती रहीं।
वे लोग सुपात्रों को दान और लँगड़े-लूलों भिक्षा न देकर धन को विलास, ऐशो-आराम में खर्च कर लगे। घर के बच्चों की परवा न करके असुर बड़े-बूढ़े पुरुष चुपचाप मधुर मिष्टान्न अकेले ही खाते।
असुर फलदार और छायादार हरे-भरे वृक्षों काटने लगे। दिन तक सोते रहते थे, प्रहर गये तक खाते रहते भक्ष्य और अभक्ष्य का कतई विचार नहीं करते। स्वयं सत्कर्म न करके दूसरों सत्कर्मों से रोकते और
 उसमें भी विघ्न उपस्थित करते थे।
स्त्रियाँ शृंगार, आलस्य और व्यस्त रहने लगीं। घर में अनाज का अनादर होने लगा, अन्न को चूहे कर नष्ट करने लगे। खाद्य पदार्थ खुले पड़े रखते जिन्हें कुत्ते-बिल्ली चाटते रहते। 
घर में हो पापाचार स्वार्थ, पक्षपात बढ़ गया। असुरों को वृत्ति मादक द्रव्यों में जुए, शराब, माँस, नाच, तमाशों में बढ़ने लगी। उनके ऐसे आचरण देखकर दुखी होकर एक दिन मैं चुपचाप असुरों के घरों से चली आयी। अब वहाँ दरिद्रता का ही निवास होगा।
हे इन्द्र में परिभ्रमी, मितव्ययी जागरूक और नयमित उद्योग करते रहनेवाले यहाँ निवास करती हूँ। जब तक तुम्हारा आचरण धर्म परायण रहेगा, तब तक तुम्हारे यहाँ मैं बनी रहूँगी। लक्ष्मी जी के इस कथन ने इन्द्र को एक नयी शक्ति दी।
लक्ष्मी जी ने इन्द्र से कहा :- 
जितकाशिनि शूरे च संग्रामेष्वनिवर्तिनि। 
निवसामि मनुष्येन्द्रे सदैव बलसूदन॥ 
धर्मनित्ये महाबुद्धौ ब्रह्मण्ये सत्यवादिनि। 
प्रश्रिते दानशीले च सदैव निवसाम्यहम्॥ 
असुरेष् पूर्व सत्यधर्मनिबन्धना। 
विपरीतांस्तु तान् बुद्ध्वा त्वयि वासमरोचयम्॥ 
बलसूदन! संग्राम से पीछे न हटने वाले तथा विजय से सुशोधित होने वाले शूरवीर नरेश के शरीर में भी मैं सदा ही मौजूद रहती हूँ। निर्माण करने वाले परम बुद्धिमान् ब्राह्मण भक्त सत्यवादी विनयी तथा दानशील पुरुष में भी मैं सदा ही निवास करती हूँ। सत्य और धर्म से बँधकर पहले मैं असुरों के यहाँ रहती थी। अब उन्हें धर्म के विपरीत देखकर मैंने तुम्हारे यहाँ रहना पसन्द किया है।
देवराज इन्द्र ने बड़ी श्रद्धा और आदर पूर्वक लक्ष्मी जी का अभिवादन किया और कहा कि मैं ऐसा कोई अधर्ममय आचरण नहीं करूँगा, जिससे नाराज होकर आपको मेरे घर से जाना पड़े।[महाभारत, शान्तिपर्व]
ऋग्वेद में परमात्मा का वर्णन इन्द्र रुप में किया गया है, जिसके लगभग एक चौथाई सूक्त इन्द्र से सम्बन्धित हैं। 250 सूक्तों के अतिरिक्त 50 से अधिक मन्त्रों में उनका स्तवन प्राप्त होता है। इन्द्र पृथ्वी पर मनुष्यों की रक्षा, भरण-पोषण और वर्षा के अधिपति हैं। मनुष्यों की राक्षसों से रक्षा हेतु वे पवन देव, वरुण देव तथा मेघों के साथ युद्ध का संचालन करते हैं। 
ऋग्वेद में इन्द्र का नाम सात देव-युग्मों में भी आता है। ऐसे 
युग्मों में 11 सूक्त इन्द्र-अग्नि के लिए हैं, 9 सूक्त इन्द्र-वरुण के लिए, 7 इन्द्र-वायु के लिए, 2 इन्द्र-सोम, 2 इन्द्र-बृहस्पति, 1 इन्द्र-विष्णु और 1 सूक्त इन्द्र-पूषण के लिए हैं।इनमें से सबके साथ इन्द्र की समानता होने के साथ भिन्नताएँ भी हैं। उदाहरण के लिए इन्द्र और वरुण के युग्म को लिया जा सकता है। यद्यपि वरुण का वर्णन काफी कम सूक्तों में है, परन्तु वे इन्द्र के बाद सर्वाधिक महनीय माने गये हैं। 9 सूक्तों में इन्द्र और वरुण का संयुक्त वर्णन है। दोनों में अनेक समानताएँ हैं। कहा गया है कि जगत् के अधिपति इन्द्रा-वरुण ने सरिताओं के पथ खोदे और सूर्य को द्युलोक में गतिमान बनाया। वे वृत्र को पछाड़ते हैं। युद्ध में सहायक हैं। उपासकों को विजय प्रदान करते हैं। क्रूरकर्मा पामरों पर अपना अमोघ वज्र फेंकते हैं।
देवराज इन्द्र, वरुण देव, अग्नि देव, पवन देव इत्यादि एक दूसरे के पूरक और माता भगवती के अंग हैं। 
एक (इन्द्र) युद्ध में शत्रुओं को मारता है। दूसरा (वरुण) सर्वदा व्रतों का रक्षण करता है।
वरुण मनुष्यों को विवेक प्रदान कर पोषण करता है और इन्द्र शत्रुओं को इस प्रकार मारता है कि वे पुनः उठ न सके। इसलिए इन्द्र को युद्ध प्रिय माना गया है और वरुण को शान्तिप्रिय, बुद्धिदाता।
वरुण का अपना अस्त्र पाश कहा गया है।
वरुण व्रत का उल्लंघन करने वाले को दण्ड देते हैं पर पाश को ढीला भी कर देते हैं।
वरुण सम्पूर्ण भुवनों के राजा हैं।
वरुण की वेश-भूषा जल है।
सप्त सिन्धु वरुण के मुख में प्रवाहित है तथा वे समुद्र में चलने वाली नाव (जहाज) को भी जानते हैं। वरुण का गहरा सम्बन्ध समुद्र से भी है।
वरुण औषधियों के भी स्वामी हैं। उनके पास 100 या 1,000 औषधियाँ हैं जिनसे वे मृत्यु को जीत लेते हैं तथा भक्तों का पाप-भंजन करते हैं।
वरुण अत्यधिक क्षमाशील हैं और जीवन का अंत भी कर सकते हैं तो आयु बढ़ा देने वाले के रूप में भी उनका स्मरण किया गया है। अपवाद रूप में इन्द्र ने भी शुनः शेप की आयु बचायी थी पर वरुण का सामान्य रूप से ऐसा उल्लेख किया गया है। दोनों में और भी कतिपय विभिन्नताएँ हैं। जिस प्रकार इन्द्र भौतिक स्तर पर सबसे बड़े देवता थे उसी प्रकार वरुण नैतिक स्तर पर महनीय देवता थे।
1 Indr's age = 1 Manvantar = Divine 71 Yug. 
1 Divine Maha Yug = 1,000 Divine Chatur Yug = 14 Manu’s Period.
1 Manu’s Period = Slightly more than 716/14 Manvanters.
1 Manvantar = 30, 67, 20,000 Solar years = 8, 52,000 Divine years.
Bhagwan Shiv’s Age = 8 Prardh. 
Bhagwan Vishnu’s Age = 4 Prardh.
Bhagwan Brahma’s Age = 2 Prardh = Divine-Deity’s 108 years. Second half-Prardh of Brahma’s life is running currently. 
Brahma’s one day (Kalp) = 1 Divine Night.
1 Kalp = 1,000 Chatur Yug = 4,32,00,00,000 years. 
1 Year of Brahma = 1,000 Kalp.
1 Yug of Brahma Ji = 8,000 Divine Years of Brahma Ji. 
1,000 Divine Chatur Yug make the day of 12 hours for Brahma Ji (the Creator) and during another 12 hours, Brahma Ji takes rest and there is no creation during this period. 
1 day for Brahma Ji constitutes 1,000 Chatur Yug (= 4,320,000,000 years).
1 Year constitutes 360 x 4,320,000,000 = 1,555,200,000,000 years; 
Life span of Brahma Ji is 100 years = 100 x 1,555,200,000,000 = 155,520,000,000,000 years.
1 Day of Bhagwan Vishnu = 1,000 Yug of Brahma
1 Day of Bhagwan Sada Shiv (Kalatma-Maha Kal) = 9,000 Days of Bhagwan Vishnu. 
Brahma's 1 Day Night = 28 Indr's.
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इन्द्र एक पद के साथ-साथ समय की इकाई भी है। यह पद प्राप्त करने हेतु जातक को एक शस्त्र यज्ञ करने होते हैं। 
वर्तमान इन्द्र महर्षि कश्यप और देवमाता अदिति के पुत्र और शचि के पति हैं। उनसे पहले पाँच इन्द्र और हो चुके हैं। देवराज इन्द्र को सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, देवेश, शचीपति, वासव, सुरपति, शक्र, पुरंदर आदि भी कहा जाता है। देवराज इन्द्र का शरीर विशाल, शीर्ष भुजाऐं और बड़े उदर बड़ा है। उसका वर्ण हरित् है। उसके केश और दाढ़ी भी हरित्वर्णा है। वह स्वेच्छा से विविध रूप धारण कर सकते हैं
 इन्द्र एक वृहदाकार देवता है। उसका शरीर पृथ्वी के विस्तार से कम से कम दस गुना है। वह सर्वाधिक शक्तिमान् है। इसीलिए वह सम्पूर्ण जगत् का एक मात्र शासक और नियन्ता है। उसके विविध विरुद शचीपति (शक्ति का स्वामी), शतक्रतु (सौ शक्तियों वाला) और शक्र (शक्तिशाली), आदि उसकी विपुला शक्ति के ही प्रकाशक हैं।
सोमरस इन्द्र का परम प्रिय पेय है। वह विकट रूप से सोमरस का पान करता है। उससे उसे स्फूर्ति मिलती है। वृत्र के साथ युद्धके अवसर पर पूरे तीन सरोवरों को उसने पीकर सोम-रहित कर दिया था। दशम मण्डल के 119वें सूक्त में सोम पीकर मदविह्वल बने हुए स्वगत भाषण के रूप में अपने वीर-कर्मों और शक्ति का अहम्मन्यतापूर्वक वर्णन करते हुए इन्द्र को देखा जा सकता है। सोम के प्रति विशेष आग्रह के कारण ही उसे सोम का अभिषव करने वाले अथवा उसे पकाने वाले यजमान का रक्षक बतलाया गया है।
इन्द्र का प्रसिद्ध आयुध ‘वज्र’ है, जिसे कि विद्युत्-प्रहार से अभिन्न माना जा सकता है। इन्द्र के वज्र का निर्माण ‘त्वष्टा’ नामक देवता-विशेष द्वारा किया गया था। इन्द्र को कभी-कभी धनुष-बाण और अंकुश से युक्त भी बतलाया गया है। उसका रथ स्वर्णाभ है। दो हरित् वर्ण अश्वों द्वारा वाहित उस रथ का निर्माण देव-शिल्पी ऋभुओं द्वारा किया गया था।
‘नृमणस्य मह्ना स जनास इन्द्रः’ कह कर गृत्समद ऋषि ने उसके बलविक्रम का उद्घोष किया है। पर्वत उससे थर-थर काँपते हैं। द्यावा-पृथिवी अर्थात वहाँ के लोग भी इन्द्र के बल से भयभीत रहते हैं। वह शत्रुओं की धन-सम्पत्ति को जीत कर उसी प्रकार अपने लक्ष्य की पूर्ति कर लेता है, जिस प्रकार एक आखेटक कुक्कुरों की सहायता से मृगादिक का वध कर व्याध अपनी लक्ष्य-सिद्धि करता है अथवा विजय-प्राप्त जुआरी जिस प्रकार जीते हुए दाँव के धन को समेट कर स्वायत्त कर लेता है। इतना ही नहीं वह शत्रुओं की पोषक समृद्धि को नष्ट-विनष्ट भी कर डालता है। वह एक विकट योद्धा है और युद्ध में वृक् (भेड़िया) के समान हिंसा करता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि वह ‘मनस्वान्’ (मनस्वी) हैं।
इन्द्रा याहि चित्रभानो सुता इमे त्वायव:। अण्वीभिस्तना पूतास:॥
हे अद्भुत दीप्तिमान इन्द्रदेव! अँगुलियों द्वारा स्रवित, श्रेष्ठ पवित्ररा युक्त यह सोम रस आपके निमित्त है। आप आयें और सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.3.4]
हे कांतिमान इन्द्र! दसों अंगुलियों से सिद्ध किये पवित्रता पूर्वक तुम्हारे सम्मुख रखे इस सोम रस के लिए यहाँ पधारो।
Hey Indr Dev! You possess aura (around your body). This Somras purified with the help of 10 fingers is meant for you. Please come & accept it.   
इन्द्रा याहि धियेषितो विप्रजूतः सुतावत:। उपब्रम्हाणि वाघत:॥
हे इन्द्रदेव! श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा जानने योग्य आप, सोमरस प्रस्तुत करते हुये ऋत्विजों के द्वारा बुलाये गये हैं। उनकी स्तुति के आधार पर आप यज्ञशाला में पधारें।[ऋग्वेद 1.3.5]
हे इन्द्र मस्तिष्कों से प्रार्थना किया हुआ तुम सोम सिद्ध करने वाले वंदनाकारी के पूजन से उसे ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! You can be recognised through pure mind only. We the people performing Yagy invite-pray to you to come to the Yagy site.  
इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रम्हाणि हरिव:। सुते दधिष्व नश्चन:॥
हे अश्व युक्त इन्द्रदेव! आप स्तवनों के श्रवणार्थ एवं इस यज्ञ में हमारे द्वारा प्रदत्त हवियों-हविष्यों का सेवन करने के लिये यज्ञ शाला मे शीघ्र ही पधारें।[ऋग्वेद 1.3.6]
हे अश्व परिपूर्ण इन्द्रदेव! तुम हमारी वन्दना सुनने को शीघ्रता से यहाँ पधारो और यज्ञ में हमारी हवियों को प्राप्त करो।
Hey Indr Dev! You deserve to be invited through prayers, please come to us-the site of the Yagy to accept the offerings.
सुरूपकृलुमूतये सुदुघामिव गोदुहे। जुहूमसि द्यविद्यवि॥
गो दोहन करने वाले के द्वारा, प्रतिदिन मधुर दूध प्रदान करने वाली गाय को जिस प्रकार बुलाया जाता है, उसी प्रकार हम अपने संरक्षण के लिये सौन्दर्य पूर्ण यज्ञ कर्म सम्पन्न करने वाले इन्द्र देव का आह्वान करते है।[ऋग्वेद 1.4.1]
दुहने हेतु गौ को पुकारने वाले के समान, अपनी सुरक्षा के लिए हम उत्तम कर्मा इन्द्रदेव का आह्वान करते हैं।
The manner in which a person who extract milk from the cow calls her, with affection & regard, we invite Indr Dev who perform excellent deeds, for the protector of our Yagy. 
उप न: सवना गहि सोमस्य सोमपा: पिब। गोदा इन्द्रेवतो मद:॥
सोम रस का पान करने वाले हे इन्द्रदेव! आप सोम ग्रहण करने हेतु हमारे सवन (यज्ञ, सोमरस का तर्पण और पान) यज्ञों में पधार कर, सोम रस पीने के बाद प्रसन्न होकर याजकों को यश, वैभव और गौंए प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.4.2]
हे सोमपान इन्द्रदेव! सोमपान के लिए हमारे अनुष्ठान का सामिप्य करो। तुम समृद्धिवान हर्षित होकर हमको गवादि धन प्रदान करने वाले हो। 
Hey Indr Dev you enjoy Somras! Please come to our Yagy, have Somras and grant name-fame, wealth-amenities and cows. 
अथ ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम्। मा नो अति ख्य आ गहि॥
सोमपान कर लेने के अनन्तर हे इंद्रदेव! हम आपके अत्यन्त समीपवर्त्ती श्रेष्ठ प्रज्ञावान पुरूषों की उपस्थिति में रहकर आपके विषय में अधिक ज्ञान प्राप्त करें। आप भी हमारे अतिरिक्त अन्य किसी के समक्ष अपना स्वरूप प्रकट न करें अर्थात अपने विषय में न बताएँ।[ऋग्वेद 1.4.3]
तुमसे निकट संपर्क प्राप्त कर, बुद्धिमानों के संपर्क में रहकर, हमने तुम्हें जाना है। तुम हमारे विपरीत न रहना, तुम हमें न त्याग कर हमें प्राप्त हो जाओ।
Hey Indr Dev! After drinking the Somras let us be very close to you along with genius & prudent people to attain more knowledge-information about you.
परेहि विग्नमस्तृतमिन्द्रं पृच्छा विपश्चितम्। यस्ते सखिभ्य् आ वरम्॥
हे ज्ञान वानों! आप उन विशिष्ट बुद्धि वाले, अपराजेय इन्द्रदेव के पास जाकर मित्रों बन्धुओं के लिये धन ऐश्वर्य के निमित्त प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 1.4.4]
हे मनुष्यों! तुम अपराजित, कर्मवान, इन्द्रदेव के निकट जाकर अपने भाई-बन्धुओं के लिए महान समृद्धि को ग्रहण करो।
Hey learned-enlightened! Please go the Indr Dev who has special-specific intelligence, talent, who is undefeated and pray-request for money, wealth & amenities for your friends and relatives.
उत ब्रुवन्तु नो निदो निरन्यतश्चिदारत। दधाना इन्द्र इद्दुव:॥
इन्द्रदेव की उपासना करने वाले उपासक इन्द्रदेव के निन्दकों को यहाँ से अन्यत्र निकल जाने हो कहें; ताकि वे यहाँ से दूर हो जायें।[ऋग्वेद 1.4.5] 
इंद्रदेव के उपासक उसी की आराधना करते हुए इन्द्रदेव के निन्दकों को यहाँ से दूर जाने को कहें, जिससे वे दूर से भी दूर भाग जायें। 
Those who are devoted to Indr Dev, should ask the people who speak against him to go away. 
उत न: सुभगाँ अरिर्वोचेयुर्दस्म कृष्टय:। स्यामेदिन्द्रस्य शर्मणि॥
हे इन्द्रदेव! हम आपके अनुग्रह से समस्त वैभव प्राप्त करें, जिससे देखने वाले सभी शत्रु और मित्र हमें सौभाग्यशाली समझें।[ऋग्वेद 1.4.6]
हे शत्रु नाशक इन्द्र! तुम्हारे सम्पर्क में रहने से शत्रु और मित्र सभी हमको कीर्तिवान बनाते हैं। 
Hey Indr Dev! We shall attain all sorts of amenities-wealth, such that all those enemies and friends who watch us, should consider us lucky-blessed.
एमाशुमाशवे भर यज्ञश्रियं नृमादनम्। पतयन्मन्दयत् सखम्॥
(हे याजको!) यज्ञ को श्री सम्पन्न बनाने वाले, प्रसन्नता प्रदान करने वाले, मित्रों को आनन्द देने वाले, इस सोम रस को शीघ्र गामी इन्द्रदेव को अर्पित करें।[ऋग्वेद 1.4.7]
Hey the performer of the Yagy! Please offer Somras to Indr Dev, who is quick to make the Yagy successful, grant pleasure to friends-devotees.
अस्य पीत्वा शतक्रतो घनो वृत्राणामभव:। प्रावो वाजेषु वाजिनम्॥
हे सैकड़ों यज्ञ सम्पन्न करने वाले इन्द्रदेव! इस सोमरस को पीकर आप वृत्र-प्रमुख शत्रुओं के संहारक सिद्ध हुये है, अत: आप संग्राम भूमि में वीर योद्दाओं की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.4.8]
यज्ञ को प्रकाशित करने वाले, आनन्दप्रद, प्रसन्नता पूर्वक तथा यज्ञ वाले इन्द्र! इस सोमपान से बलिष्ठ तुम, राक्षसों के नाशक हुए इसी पराक्रम से युद्धों में सेनाओं की रक्षा करते हो। 
Hey Indr Dev you have successfully organised hundreds of Yagy! Please drink this Somras and protect the armies of demigods-humans by killing the demons headed by Vrata Sur.
तं त्वा वाजेषु वाजिनं वाजयाम: शतक्रतो। धनानामिन्द्र सातये॥
हे शतकर्मा इन्द्रदेव! युद्धों में बल प्रदान करने वाले आपको हम धन की प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ हविष्यान्न अर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 1.4.9]
हे शतकर्मा इन्द्रदेव! युद्धों में शक्ति प्रदान करने वाले तुमको हम समृद्धि के लिए हविष्यान्न भेंट करते हैं। धन रक्षक कष्टों को दूर करने वाले, अनुष्ठान करने वालों से स्नेह करने वाले इन्द्रदेव की वंदनाएँ गाओ।
Hey the performer of hundreds of Yagy, Indr Dev! We offer excellent sacrifices to you to seek strength for the war and money-wealth to conduct it. 
यो रायो३वनिर्महान्त्सुपार: सुन्वत: सखा। तस्मा इन्द्राय गायत॥
हे याजको! आप उन इन्द्रदेव के लिये स्तोत्रों का गान करें, जो धनों के महान रक्षक, दु:खों को दूर करने वाले और याज्ञिकों से मित्रवत भाव रखने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.4.10]
Hey the performers of Yagy! Let us sing verses in the honour of Indr Dev, who is the great protector of wealth and is friendly with the performs of Yagy and relieves them of pains, sorrow.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त 5 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री। 
आ त्वेता नि षिदतेन्द्रमभि प्र गायत। सखाय: स्तोमवाहस:॥
हे याज्ञिक मित्रो! इन्द्रदेव को प्रसन्न करने ले लिये प्रार्थना करने हेतु शीघ्र आकर बैठो और हर प्रकार से उनकी स्तुति करो।[ऋग्वेद 1.5.1]
हे वंदना करने वाले साथियों! यहाँ पर पधारो और इंद्रदेव के गुणों का वर्णन करो।
Hey friends conducting-participating in Yagy! Come here to please Indr Dev by reciting his prayers.
पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम्। इन्द्रं सोमे सचा सुते॥
हे याजक मित्रो! सोम के अभिषुत होने पर एकत्रित होकर संयुक्त रूप से सोमयज्ञ में शत्रुओं को पराजित करने वाले ऐश्वर्य के स्वामी इन्द्रदेव की अभ्यर्थना करो।[ऋग्वेद 1.5.2]
सभी संगठित होकर सोमरस को सिद्ध करो और इंद्रदेव की वंदनाओं गाओ।
Hey friends conducting-participating in Yagy! Let us jointly conduct prayers in the honour of Indr Dev who is the master of all amenities & defeats the enemies by offering him Somras (extracting Somras).
स घा नो योग आ भुवत् स राये स् पुरन्द्याम्। गमद् वाजेभिरा स न:॥
वे इन्द्रदेव हमारे पुरुषार्थ को प्रखर बनाने में सहायक हों, धन-धान्य से हमें परिपूर्ण करें तथा ज्ञान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुये पोषक अन्न सहित हमारे निकट आयें।[ऋग्वेद 1.5.3]
वह इन्द्र ग्रहण योग्य धन को हमें ग्रहण करायें तथा सुमति प्रदान करे अपने विभिन्न बलों से युक्त हमको ग्रहण हों। 
Let Indr Dev be helpful in making us capable in enabling us in achieving our targets-endeavours. Let him make us rich & enlightened. He should always be with us (behind our back to support us.). 
यस्यं स्ंस्थे न वृण्व्ते हरी समत्सु शत्रव:। तस्मा इन्द्राय गायत॥
हे याजको! संग्राम में जिनके अश्वों से युक्त रथों के सम्मुख शत्रु टिक नहीं सकते, उन इन्द्रदेव के गुणों का आप गान करें।[ऋग्वेद 1.5.4]
जिसके घोड़े जुते हुए रथ के पास शत्रु डट नहीं सकते, उन्हीं इंद्रदेव के गीत गाओ।
The enemy can not stand before the chariot of Indr Dev when the horses are ready to drive it, let us pray him.
सुतओआव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये। सोमासो दध्याशिर:॥
यह निचोड़ा और शुद्ध किया हुआ दही मिश्रित सोमरस, सोमपान की इच्छा करने वाले इन्द्रदेव के निमित्त प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.5.5]
यहाँ शोभित सोमरस सोमपायी इनके लिए स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।
The finely extracted Somras mixed with curd, should be ready for Indr Dev, who is desirous of drinking it (ready to accept it as an offering). 
त्वं सुतस्य पीतवे सद्यो वृद्धो अजायथा:। इन्द्र ज्यैष्ठय्याय सुक्रतो॥
हे उत्तम कर्म वाले इन्द्रदेव! आप सोमरस पीने के लिये देवताओं में सर्वश्रेष्ठ और ज्येष्ठ हैं।[ऋग्वेद 1.5.6]
हे उत्तम कर्ता इन्द्र! तुम सोमपान द्वारा उन्नत के लिए हमेशा तत्पर रहते हो।
Performer of excellent deeds, hey Indr Dev! You are senior most amongest the demigods to drink Somras. 
आ त्वा विशन्त्वाशव: सोमास इन्द्र गिर्वण:। शं ते सन्तु प्रचेतसे॥
हे इन्द्रदेव! तीनों सवनों में व्याप्त रहने वाला यह सोम, आपके सम्मुख उपस्थित रहे एवं आपके ज्ञान को सुखपूर्वक समृद्ध करे।[ऋग्वेद 1.5.7]
हे पूजनीय! यह सोमरस तेरे मन में समा जाए तुझे प्रसन्नता प्रदान करे। ज्ञानी व्यक्ति तुझे सुख कारक हों। 
Hey Indr Dev! Let this Somras be always to ready-available to you throughout the day (three phases of the day :- morning, noon and evening) and enhance-enrich your enlightenment.
त्वा स्तोमा अवीवृधन् त्वामुक्था शतक्रतो। त्वां वर्धन्तु नो गिर:॥
हे सैकड़ों यज्ञ करने वाले इन्द्रदेव! स्तोत्र आपकी वृद्धि करें। यह उक्थ (स्तोत्र) वचन और हमारी वाणी आपकी महत्ता बढाये।[ऋग्वेद 1.5.8]
हे शतकर्मा इन्द्र इस स्तोत्र मधुर वाणियों से प्रतिष्ठा को प्राप्त होने की सामर्थ्य में कमी नहीं आती, जिसमें समस्त शक्तियों का समावेश है, वह इन्द्रदेव हजारों के पोषण करने की सामर्थ्य हमको प्रदान करें।
Hey the performer of thousand Yagy, Indr Dev! We pray for strengthening you. Let our prayers enhance-boost your significance-importance i.e., you should be capable of protecting us.  
अक्षितोति: सनेदिमं वाजामिन्द्र: सहस्त्रिणम्। यस्मिन्ं विश्वानि पौंस्या॥
रक्षणीय की सर्वथा रक्षा करने वाले इन्द्रदेव बल पराक्रम प्रदान करने वाले विविध रूपों में विद्यमान सोम रूप अन्न का सेवन करे।[ऋग्वेद 1.5.9]
जिसकी सामर्थ्य  कमी नहीं आती, जिनमें समस्त शक्तियों का समावेश है, वे इन्द्रदेव हजारों का पोषण  करने की सामर्थ्य हमें प्रदान करें।
Indr Dev capable of protecting the entitled-deserving, should consume the various grains which contain Somras.  
मा नो मर्ता अभि द्रुहन् तनूमामिन्द्र गिर्वण:। ईशानो यवया वधम्॥
हे स्तुत्य इन्द्रदेव! हमारे शरीर को कोई भी शत्रु क्षति न पहुँचाये। हमारी कोई हिंसा न कर सके। आप हमारे संरक्षक रहे।[ऋग्वेद 1.5.10]
हे पूजनीय इन्द्र! हमारे शरीर को भी शत्रु हानि न पहुँचा सके, हमारी कोई हिंसा न कर सके। तुम सब तरह से समर्थ हो।
Hey prayer deserving Indr Dev! Let no enemy be capable of harming us. You should be our protector.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 6 :: ऋषि-मधुच्छन्दा वैश्वामित्र। देवता :- 1-3, 5, 7-8, 10 इन्द्र, 4-9 मरुद् गण, छन्द :- गायत्री। 
युञ्जन्ति ब्रध्नमरुषं चरन्तं परि तस्थुश्ष:। रोचन्ते रोचना दिवि॥
वे ईश्वर (इन्द्र देव) द्युलोक में आदित्य रूप में, भूमि पर अहिंसक अग्नि रूप में, अंतरिक्ष में सर्वत्र प्रसरणशील वायु रूप में उपस्थित हैं। उन्हें उक्त तीनों लोकों के प्राणी अपने कार्यों में देवत्व रूप से सम्बद्ध मानते है। द्युलोक में प्रकाशित होने वाले नक्षत्र-ग्रह उन्हीं इन्द्र के स्वरूपांश है अर्थात तीनों लोकों की प्रकाशमयी-प्राणमयी शक्तीयों के वे ही एकमात्र संगठक है।[ऋग्वेद 1.6.1]
सूर्य रूप में प्रतिष्ठित इंद्रदेव के अहिंसक रूप से समस्त पदार्थ सम्बन्धी सर्व लोकों के प्राण धारी भी इसी से सम्बन्ध जोड़ते हैं।
The Almighty is present in the three abodes in the form of Sun, fire & air in non violent form. 
Here Indr is used for Almighty-God.
युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे।शोणा धृष्णू नृवाहसा॥
इन्द्रदेव के रथ में दोनों ओर रक्तवर्ण, संघर्षशील मनुष्यों को गति देने वाले दो घोड़े नियोजित रहते हैं।[ऋग्वेद 1.6.2]
उस इन्द्रदेव के रथ में के शत्रु का मर्दन करने वाले पराक्रमी मनुष्यों को सवार कराकर युद्ध स्थल में हेतु अश्व जुते हुए रहते हैं।
Two horse having red colour are deployed in the chariot of Indr Dev to help the humans struggling to attain their goal.
The humans and all other species having two hands make efforts to survive in this world. The pious, virtuous make efforts to attain Salvation-Moksh.
केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्धिरजायथा:॥
हे मनुष्यो! तुम रात्रि में निद्राभिभूत होकर, संज्ञा शून्य निश्चेष्ट होकर, प्रात: पुन: सचेत और सचेष्ट होकर मानों प्रतिदिन नवजीवन प्राप्त करते हो। प्रति दिन जन्म लेते हो।[ऋग्वेद 1.6.3]
हे मनुष्यो! अज्ञानी को ज्ञान देने वाला, असुन्दर को सुन्दर बनाता हुआ यह सूर्य रूपी इन्द्र किरणों द्वारा प्रज्वलित होता है।
Hey Humans! You sleep during the night relieving all your senses and become active during the day.
With the Sun rise, the rays of Sun fills the humans with vigour & vitality and he strive for their growth. They have to act in such a manner that all their responsibilities-duties to Varnashram Dharm are fulfilled and then they have to make effort for social welfare, equanimity and the Moksh ultimately. 
आदह स्वधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे। दधाना नाम यज्ञियम्॥
यज्ञीय नाम वाले, धारण करने में समर्थ मरुत वास्तव में अन्न की (वृद्धि की) कामना से बार-बार (मेघ आदि) गर्भ को प्राप्त होते है।[ऋग्वेद 1.6.4]
अन्न प्राप्ति की इच्छा से यज्ञोपयोगी हुए मरुद्गण गर्भ को बादल में रचने वाले हैं।
The Marut Gan, bearing the names as per the Yagy-endeavour, effort, turn the air into clouds with the desire to produce food grain.  
वीळु चिदारुजत्नुभिर्गुहा चिदिन्द्र वह्रिभि:। अविन्द उस्त्रिया अनु॥
हे इन्द्रदेव! सुदृढ़ किले को ध्वस्त करने में समर्थ, तेजस्वी मरुद् गणों के सहयोग से आपने गुफा में अवरुद्ध गौओं (किरणों) को खोजकर प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.6.5]
हे इन्द्र! सुदृढ़ दुर्गों के भी भेदक हो। तुमने गुफा में छपी हुई गायों को मरुद्गण की सहायता से प्राप्त किया है।
Hey Indr Dev! Being capable of demolishing a strong fort with the help of Marud Gan you released the cows trapped in the cave. 
देवयन्तो यथा मतिमिच्छा विदद्वसुं गिर:। महानूषत् श्रुतम्॥
देवत्व प्राप्ति की कामना वाले ज्ञानी ऋत्विज्, महान यशस्वी, ऐश्वर्यवान वीर मरुद्गणों की बुद्धिपूर्वक स्तुति करते है।[ऋग्वेद 1.6.6] 
देवत्व-ग्रहणता की अभिलाषा से वन्दना करने वाले उन समृद्धिवान और ज्ञानी मरुद्गणों को अपनी तेज बुद्धि से वंदना करते हैं। 
The enlightened performer of Yagy, pray the Marud Gan who are famed-honourable, possessed with all amenities and are brave; through their intelligence.
इन्द्रेण सं हि दृक्षसे सञ्जग्मानो अबिभ्युषा। मन्दू समानवर्चसा॥
सदा प्रसन्न रहने वाले, समान् तेज वाले मरुद् गण निर्भय रहने वाले इन्द्रदेव के साथ संगठित अच्छे लगते है।[ऋग्वेद 1.6.7]
यह इन्द्र के सहगामी मरुद्गण निडर हैं और इन्द्र देव तथा मरुद्गण एक से ही तेज वाले हैं। 
The Marud Gan who are always happy, fearless, having aura, associate themselves with Indr Dev. 
अनवद्यैरभिद्युभिर्मख: सहस्वदर्चति। गणैरिन्द्रस्य काम्यै:॥
इस यज्ञ में निर्दोष, दीप्तिमान्, इष्ट प्रदायक, सामर्थ्यवान मरुद् गणों के साथी इन्द्रदेव के सामर्थ्य की पूजा की जाती है।[ऋग्वेद 1.6.8]
इस यज्ञ में निर्दोष और यशस्वी मरुद्गणों के सखा इन्द्र को शक्तिमान समझकर अर्चना की जाती है।
In this Yagy the Indr, who is sinless, glittering, capable of granting boons, associate of mighty Marud Gan is prayed-worshipped. 
अत: परिज्मन्ना गहि दिवो वा रोचनादधि। समस्मिन्नृञ्जते गिर:॥
हे सर्वत्र गमनशील मरुद् गणों! आप अंतरिक्ष से, आकाश से अथवा प्रकाशमान द्युलोक से यहाँ पर आयें, क्योंकि इस यज्ञ में हमारी वाणी आपकी स्तुति कर रही है।[ऋग्वेद 1.6.9] 
हे सर्वत्र विचरने प्रीतो! तुम अंतरिक्ष, पाताल या सूर्य लोक से यहाँ आ जाओ। इस अनुष्ठान में संगठित समस्त तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey Marud Gan! You are capable of movement every where, the space, sky and the divine abodes. Please come here to bless us. We are enchanting verses (Shlok-Mantr) in your honour.  
इतो वा सातिमीमहे दिवो वा पार्थिवादधि। इन्द्र महो वा रजस:॥
इस पृथ्वी लोक, अन्तरिक्ष लोक अथवा द्युलोक से कहीं से भी प्रभूत धन प्राप्त कराने के लिये, हम इन्द्रदेव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.6.10] 
धरा, क्षितिज और अंतरिक्ष से धन ग्रहण कराने के लिए हम इंद्रदेव की विनती करते हैं।
We pray-worship Indr Dev who is capable of helping us in bringing wealth from earth, space and the heavenly abodes (for conducting Yagy). 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 7 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
इन्द्रमिद् गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किण:। इन्द्रं वाणीरनूषत॥
सामगान के साधकों द्वारा गाये जाने योग्य बृहत्साम की स्तुतियों (गाथा) से देवराज इन्द्र को प्रसन्न किया जाता है। इसी तरह याज्ञिकों ने भी मन्त्रोच्चारण के द्वारा इन्द्रदेव की प्रार्थना की है।[ऋग्वेद 1.7.1]
सोम गाय को और विद्वानों ने मंत्रों द्वारा इंद्रदेव की आराधना की। हमारी वाणी भी इन्द्रदेव का पूजन करती है।
Dev Raj Indr is pleased by the practitioners of Sam Gan by singing the verses (Mantr-Shlok) of Brahtsam. Similarly, those performing-organising Yagy too prayed to Indr Dev using Mantr.
इन्द्र इद्धर्यो: सचा सम्मिश्ल आ वचोयुजा। इन्द्रो वज्री हिरण्य:॥
संयुक्त करने की क्षमता वाले वज्रधारी, स्वर्ण मण्डित इन्द्रदेव, वचन मात्र के इशारे से जुड़ जाने वाले अश्वों के साथी है।[ऋग्वेद 1.7.2] 
इन्द्रदेव अपने संकल्प मात्र से दोनों अश्वों को एक साथ जोड़ते हैं। वे वज्र के धारण करने वाले और स्वर्ण के समान रूपमान हैं। 
Indr Dev holding Vajr-thunderbolt, has a body glittering like gold. The horses of his charoite joins it just by thinking about it. 
The horses represent valour, strength and might. Indr is a friend of those who unite just by indication. He is not with those who nurse ego-grudge in their minds. 
"वीर्य वा अश्व:" के अनुसार पराक्रम ही अश्व है। जो पराक्रमी समय के संकेत मात्र से संगठित हो जायें, इन्द्र देवता उनके साथी हैं। जो अंहकारवश बिखरे रहते है, वे इन्द्र के प्रिय नही है।
इन्द्रो दीर्घाय चक्षस आ सूर्य रोहयद् दिवि। वि गोभिरद्रियमैरयत्॥
देव शक्तियों के संगठक इन्द्रदेव ने विश्व को प्रकशित करने के महान उद्देश्य से सूर्य देव को उच्चाकाश में स्थापित किया, जिसने अपनी किरणों से पर्वत आदि समस्त विश्व को दर्शनार्थ प्रेरित किया।[ऋग्वेद 1.7.3]
सुदूर दिखाई पड़ने के लिए इन्द्र ने सूर्य को स्थापित किया और सूर्य की किरणों से अंधकार रूपी राक्षस को मिटाया।
Indr Dev who united the pious-virtuous demigods, established Sun-Sury Dev to illuminate the world-universe. 
इन्द्र वाजेषु नो२व सहस्त्रप्रधेनेषु च। उग्र उग्राभिरूतिभि:॥
हे वीर इन्द्रदेव! आप सहस्त्रों प्रकार के धन लाभ वाले छोटे-बड़े संग्रामों में वीरता पूर्वक हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.7.4]
हे प्रचण्ड योद्धा इन्द्र! तुम सहस्त्र प्रकार के भयंकर युद्धों में अपनी रक्षा के साधनों द्वारा हमारी रक्षा करो।
Hey Indr Dev! Please protect us in the wars of large & small dimensions through your might, power & valour leading to the earning of thousands kinds of amenities-wealth.  
इन्द्र वयं महाधन इन्द्रमभें हवामहे। युंज वृत्रेषु वज्रिणम्॥
हम छोटे-बड़े सभी जीवन संग्रामों में वृत्रासुर के संहारक, वज्रपाणि इन्द्रदेव जो सहायतार्थ बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.7.5] 
हमारे बंधुओं की रक्षा के लिए इन्द्र वज्र धारण करते हैं। वह इन्द्र हमको धन या अधिक से अधिक ऐश्वर्य के लिए प्राप्त हों।
We call-request the slayer of Vrata Sur, Indr Dev holding Vajr for protecting-helping us, in all our fights whether small to large. 
स नो वृषन्नमुं चरुं सत्रापदावन्नापा वृधि। अस्मभ्यमप्रतिष्कुत:॥
सतत दानशील, सदैव अपराजित; हे इन्द्रदेव! आप हमारे लिये मेघ से जल की वृष्टि करें।[ऋग्वेद 1.7.6]
हे पराक्रमी एवं दाता इन्द्रदेव! हमारे लिए उस बादल को छिन्न-भिन्न करो। तुम कभी भी हमारे लिए नहीं, नहीं कहते हो।
Hey undefeated Indr Dev! You keep on performing donations-charity. Please let the clouds shower rains for us. 
तुञ्जेतुञ्जे य उत्तरे स्तोमा इन्द्रस्य वज्रिण:। न विन्धे अस्य सुष्टुतिम्॥
प्रत्येक दान के समय, वज्रधारी इन्द्र के सदृश दान की (दानी की) उपमा कहीं अन्यंत्र नहीं मिलती। इन्द्रदेव की इससे अधिक उत्तम स्तुति करने में हम समर्थ नहीं हैं।[ऋग्वेद 1.7.7]
इन्द्रदेव के दान की उपमा मुझे कहीं ना मिलती। उसकी अधिकतम उत्तम वन्दना किस प्रकार से करें।
There is no parallel to Indr Dev for charity. We are unable to sing a better verse as compered to this in your honour. 
Indr Dev attained this title only after performing 1,000 Yagy in which enormous amount of goods were distributed amongest the Brahmn & the needy, poor. 
वृषा यूथेव वंसग: कृष्टीरियर्त्योजसा। ईशानो अप्रतिष्कुत:॥
सबके स्वामी, हमारे विरूद्ध कार्य न करने वाले, शक्तिमान इन्द्रदेव अपनी सामर्थ्य के अनुसार, अनुदान बाँटने के लिये मनुष्यों के पास उसी प्रकार जाते हैं जैसे वृषभ गायों के समूह में जाता है।[ऋग्वेद 1.7.8]
गायों के झुण्ड में चल बल के समान वह सर्वश्रेष्ठ इन्द्र अपने पराक्रम से प्राणियों को प्रेरित करते हैं। 
Our protector-master Indr Dev comes to the humans for distributing grants-rewards as per their deeds as  a bull goes to the cows. 
य एकश्चर्षणीनां वसूनामिरन्यति। इन्द्र: पञ्व क्षितिनाम्॥
इन्द्रदेव, पाँचों श्रेणियों के मनुष्य (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद) और सब ऐश्वर्य संपदाओं के अद्वितीय स्वामी हैं।[ऋग्वेद 1.7.9]
इन्द्र पाँचों श्रेणियों के मानवों और ऐश्वर्यों के एक मात्र स्वामी हैं।
Indr Dev is the sole headmaster of the 5 kinds of humans :- Brahmn, Kshatriy, Vaeshy, Shudr and the Nishad and he is the unique-unquestionable owner-master of all amenities, wealth, comforts. 
इन्द्र वो विश्वतस्परि हवामहे जनेभ्य:। अस्माकमस्तु केवल:॥
हे ऋत्विजो! हे यजमानों! सभी लोगों में उत्तम, इन्द्रदेव को, आप सब के कल्याण के लिये हम आमंत्रित करते हैं, वे हमारे ऊपर विशेष कृपा करें।[ऋग्वेद 1.7.10]
मित्रों हम तुम कल्याण के लिए सभी के अग्र पुरुष इंद्रदेव का आह्वान करते हैं, यह केवल  हमारे हैं।
Hey the performer of Yagy and the guests! Hey Indr Dev, you are best amongest all people, we invite you-worship you, for the benefit of all. Please grant us benevolence-favours.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 8 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र,  देवता :- इन्द्र,  छन्द :- गायत्री।
एन्द्र सानसिं रयिं सजित्वानं सदासहम्। वर्षिष्ठमूतये भर॥
हे इन्द्रदेव! आप हमारे जीवन संरक्षण के लिये तथा शत्रुओं को पराभूत करने के निमित्त हमें ऐश्वर्य से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.8.1]  
हे इंद्रदेव! हमारे उपभोग के लिए उपयुक्त अन्न ग्रहण कराने वाले तथा सुरक्षा करने में समर्थवान धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Kindly bless us with sufficient money to sustain and overpower our enemies. 
नि येन मुष्टिहत्यया नि वृत्रा रुणधामहै। त्वोतासो न्यवर्ता॥
उस ऐश्वर्य के प्रभाव और आपके द्वारा रक्षित अश्वों के सहयोग से हम मुक्के का प्रहार कर (शक्ति प्रयोग द्वारा) शत्रुओं को भगा दें।[ऋग्वेद 1.8.2] 
उस धन की शक्ति से बलिष्ठ हुए हम मुक्के के वार द्वारा रक्षित अश्वों के सहयोग से अपने देश के शत्रुओं को भगा दें।
By making use of the money granted-provided by you and the horses protected by you, we should be able to repel the enemy just by giving it a punch.  
इन्द्र त्वोतास आ वयं वज्रं घना ददीमहि। जयेम सं युधि स्पृध:॥
हे इन्द्रदेव! आपके द्वारा संरक्षित होकर तीक्ष्ण वज्रों को धारण कर हम युद्ध में स्पर्धा करने वाले शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.8.3]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारी सुरक्षा से उत्साहित हुए हम तीव्र शस्त्रों को धारण कर विद्रोह करने वालों पर विजय हासिल करें।
Hey Indr Dev! Having been protected by you, we should wear the arm & ammunition and win the enemy & the competitors, compelling us for the war.
वयं शूरेबिरस्तृभिरिन्द्र त्व्या युजा वयम्। सासह्याम पृतन्यत:॥
हे इन्द्रदेव! आपके द्वारा संरक्षित कुशल शस्त्र चालक वीरों के साथ हम अपने शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 1.8.4]
हे इन्द्र देव! हम कुशल वीरों सहित सेना से युक्त हुए, तुम्हारी सहायता से अपने शत्रुओं को वशीभूत करें। 
Hey Indr Dev! We should be able to over power the enemy with the help of warriors who are thoroughly trained-skilled in the use of weapons under your protection.
महाँ इन्द्र: परश्च नु महित्वमस्तु वज्रिणे। द्यौर्न प्रथिना शव:॥
हमारे इन्द्रदेव श्रेष्ठ और महान है। वज्रधारी इन्द्रदेव का यश द्युलोक के समान व्यापक होकर फैले तथा इनके बल की चतुर्दिक प्रशंसा हो।[ऋग्वेद 1.8.5]
इन्द्र महान और सर्वश्रेष्ठ महिमावान हैं, उन वज्रधारी का बल अम्बर के समान विशाल है।
Indr Dev is great & excellent. Name & fame of Vajr wearing-holding Indr may spread to every nook & corner of the universe-three abodes :- earth, heaven & the nether world & and his ability, prudence and might be appreciated every where.
समोहे वा य आशत नरस्तोकस्य सनितौ। विप्रासो वा धियायव:॥
जो संग्राम में जुटते हैं, जो पुत्र के निर्माण में जुटते हैं और बुद्धि पूर्वक ज्ञान-प्राप्ति के लिये यत्न करते हैं, वे सब इन्द्रदेव की स्तुति से इष्टफल पाते हैं।[ऋग्वेद 1.8.6]
रणक्षेत्र को प्रस्थान करने वाले, सन्तान की इच्छा से युक्त अथवा ज्ञान को चाहने वाले सभी इन्द्रदेव की आराधना से अभीष्ट फल प्राप्त करते हैं।
Those who assemble in the battle field, make efforts for having a son & attaining knowledge by using intelligence, get the rewards-fruit of worshiping-praying to Indr Dev.
य: कुक्षि: सोमपातम: समुद्र इव पिन्वते। उर्वीरापो ब काकुद:॥
अत्यधिक सोमपान करने वाले इन्द्रदेव का उदर समुद्र की तरह विशाल हो जाता है। वह (सोमरस) जीभ से प्रवाहित होने वाले रसों की तरह सतत द्रवित होता रहता है। सद आद्र बनाये रहता है।[ऋग्वेद 1.8.7] 
सोमपायी इन्द्रदेव की समृद्धि के तुल्य विशाल है।वह जिह्वा से जल के तुल्य हमेशा एक रस रहता है। 
The belly of Indr Dev spread like the ocean by consuming Somras and the serum-liquid which grow at his tongue maintain the humidity levels. 
Humidity is essential for rains. Indr Dev is the deity of rains-rain God. 
एवा ह्यस्य सूनृता विरप्शी गोमती मही। पक्वा शाखा न दाशुषे॥
इन्द्रदेव की अति मधुर और सत्यवाणी उसी प्रकार सुख देती है, जिस प्रकार गो धन के दाता और पके फल वाली शाखाओं से युक्त वृक्ष यजमानों (हविदाता) को सुख देते हैं।[ऋग्वेद 1.8.8]
इन्द्र देव की मीठी और सत्यवाणी अनेक से गौ-धन के दाता एवं पके फलवाली शाखा के समान भरी-पूरी है। 
Sweet voice associated with truth grant comforts & pleasures to the performer of Yagy, just like the donors of cows and the trees giving away ripe fruit. 
एवा हि ते विभूतय ऊतय इन्द्र मावते। सद्यश्चित् सन्ति दाशुषे॥
हे इन्द्रदेव! हमारे लिये इष्टदायी और संरक्षण प्रदान करने वाली जो आपकी विभूतियाँ है, वे सभी दान देने (श्रेष्ठ कार्य मे नियोजन करने) वालों को भी तत्काल प्राप्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.8.9]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारी सामर्थ्य मुझ जैसे उपासक के लिए तुरन्त रक्षा करने वाली और अभिष्टदात्री है।
Hey Indr Dev! Your various titles-powers grant us (the protected), the desired accomplishments and are available to those who make donations, immediately (at once). 
एवा ह्यस्य काम्या स्तोम् उक्थं च शंस्या। इन्द्राय सोमपीतये॥
दाता की स्तुतियाँ और उक्त वचन अति मनोरम एवं प्रशंसनीय है। ये सब सोमपान करने वाले इन्द्रदेव के लिये हैं।[ऋग्वेद 1.8.10] 
इन्द्र देव का गुणगान और वंदनाएँ सोम-पान के लिए गाई जाती हैं। 
Prayers-worship by the donor and his above words deserve appreciation, generate pleasure addresses to Indr Dev.
इंद्रदेव परमात्मा  विभूति हैं और सभी प्रकार से सम्मान प्रशंसा योग्य हैं। 
Indr Dev represents the greatness, majesty, power & the valour of the Almighty and deserve all sorts of appreciation.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 9 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
इन्द्रेहि, मत्स्यन्धसो विश्वेभि: सोमपर्वभि:। महाँ अभिष्टिरोजसा॥
हे इन्द्रदेव! सोमरूपी अन्नों से आप प्रफुल्लित होते हैं। अत: अपनी शक्ति से दुर्दान्त शत्रुओं पर विजय श्री वरण करने की क्षमता प्राप्त करने हेतु आप (यज्ञशाला में) पधारें।[ऋग्वेद 1.9.1]
हे इंद्रदेव! पधारो! सोमपान करके हर्षित हो। तो अपनी शक्ति के द्वारा  पूजनीय हो। हर्षिता प्रद सोम को समस्त कर्मों और पुरुषार्थों के करने वाले के लिए सिद्ध करो। 
Hey Indr Dev! You are pleased-become happy, by the grains like the Som. Please come to our Yagy Shala-place of holding Yagy to attain the ability to over power-over come the dreaded enemy by your power-might. 
एमेनं सृजता सुते मन्दिमिन्द्राय मन्दिने। चक्रिं विश्वानि चक्रये॥
हे याजको! प्रसन्नता देने वाले सोमरस को निचोड़कर तैयार करो तथा सम्पूर्ण-समस्त कार्यो के कर्ता इन्द्र देव के सामर्थ्य बढ़ाने वाले इस सोम को अर्पित करो।[ऋग्वेद 1.9.2]
हर्षिता प्रद सोम समस्त कर्मों और पुरुषार्थों के करने वाले  लिए सिद्ध करो।
Hey worshipers! Extract the Somras which produce happiness-pleasure, offer it to Dev Raj Indr to boost his ability, capability, strength.  
मतस्वा सुशिप्र मन्दिभि: स्तोमेभिर्विश्वचर्षणे। सचैषु सवनेष्वा॥
हे उत्तम शस्त्रों से सुसज्जित (अथवा शोभन नासिका वाले), इन्द्रदेव! हमारे इन यज्ञों में आकर प्रफुल्लता प्रदान करने वाले स्तोत्रों से आप आनन्दित हो।[ऋग्वेद 1.9.3]
हे सुन्दर रूप वाले सर्वेश्वर इन्द्रदेव! इस सोम के उत्सव में विराजो और श्लोकों से हर्षिता को ग्रहण होओ। 
Hey Indr Dev decorated with excellent weapons (having a beautiful nose)! Please come to our Yagy and enjoy the verses granting pleasure.
असृग्रमिन्द्र ते गिर: प्रति त्वामुदहासत। अजोषा वृषभं पतिम्॥
हे इन्द्रदेव! आपकी स्तुति के लिये हमने स्तोत्रों की रचना की है। हे बलशाली और पालनकर्ता इन्द्रदेव! इन स्तुतियों द्वारा की गई प्रार्थना को आप स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.9.4]
इंद्रदेव! तुम्हारे लिए जो प्रार्थनायें की गई हैं वे सभी तुमको ग्रहण हुई हैं। 
Hey Indr Dev! We have written-composed verses in your honour. Hey mighty, nourishing Indr Dev! Please accept our prayers in the form of these verses. 
सं चोदय चित्रमर्वाग्राध इन्द्र वरेण्यम्। असदित्ते विभु प्रभु॥
हे इन्द्रदेव! आप ही विपुल ऐश्वर्यो के अधिपति हैं, अत: विविध प्रकार के श्रेष्ठ ऐश्वर्यों को हमारे पास प्रेरित करें अर्थात हमें श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.9.5]
हे इन्द्रदेव! विभिन्न श्रेष्ठ समृद्धियों को हमारी ओर प्रेरित क्योंकि तुम भी प्राप्त सिद्धियों के स्वामी हो।
Hey Indr Dev! You are the master of-possessor of all sorts of amenities, pleasures, comforts. Kindly grant us amenities. 
अस्मान्त्सु तत्र चोदयेन्द्र राते रभस्वत:। तुविद्युम्न यशस्वत:॥
हे प्रभूत् ऐश्वर्य सम्पन्न इन्द्रदेव! आप वैभव की प्राप्ति के लिये हमें श्रेष्ठ कर्मो में प्रेरित करें, जिससे हम परिश्रमी और यशस्वी हो सकें।[ऋग्वेद 1.9.6]
दे अनन्त ऐश्वर्य वाले इन्द्रदेव! पराक्रम-वीर्य से सम्पन्न व्यक्तियों को कर्म के लिए उत्तम प्रेरणा दो।
Hey possessor of unlimited amenities! Kindly inspire, guide, direct us to perform such deeds, which can help us in attaining such amenities, comforts, pleasures & make us laborious, celebrity & glorious. 
सं गोमदिन्द्र वाजवदस्मे पृथु श्रवो बृहत्। विश्वायुर्धेह्याक्षितम्॥
हे इन्द्रदेव! आप हमें गौओ, धन-धान्य से युक्त अपार वैभव एवं अक्षय पूर्णायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.9.7]
हे इन्द्रदेव! गाय, पराक्रम आयु से परिपूर्ण, अमर कीर्ति को हमें प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Kindly bless us with cows, riches-wealth associated with glory and imperishable complete age. 
अस्मे धेहि श्रवो बृहद् द्युम्न सहस्रसातमम्। इन्द्र रा रथिनीरिष:॥
हे इन्द्रदेव! आप हमें प्रभूत यश एवं विपुल ऐश्वर्य प्रदान करें तथा बहुत से रथों में भरकर अन्नादि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.9.8]
हे इन्द्र! उत्तम यश, सहस्त्र-संख्यक, धन और रथों से पूर्ण ऐश्वर्य हमको प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Kindly bless us with imperishable glory, riches-wealth, all sorts of amenities and chariots loaded with food grain etc. 
वसोरिन्द्र वसुपतिं गीर्भिर्गृणन्त ऋग्मियम्। होम गन्तारमूतये॥
धनों के अधिपति, ऐश्वर्यों के स्वामी, ऋचाओं से स्तुत्य इन्द्रदेव का हम स्तुति पूर्वक आवाहन करते हैं। वे हमारे यज्ञ में पधार कर, हमारे ऐश्वर्य की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.9.9]
ऐश्वर्य के स्वामी, पूजनीय गतिशील इन्द्र को वन्दना पूर्वक धन की रक्षा के लिए आह्वान करते हैं। 
We invite Indr Dev-the master of all amenities, pleasures, prayed-worshiped through verses in his honour, in our Yagy to protect our amenities, pleasures, comforts. 
सुतेसुते न्योकसे बृहद् बृहत एदरि:। इन्द्राय शूषमर्चति॥
सोम को सिद्ध (तैयार) करने के स्थान यज्ञ स्थल पर यज्ञकर्ता, इन्द्रदेव के पराक्रम की प्रशंसा करते है।[ऋग्वेद 1.9.10]
सोम को सिद्ध  करने स्थान  पर उपासक गण इंद्र  बुलाते हैं।
Those who perform-conduct Yagy, praise the valour & might of Indr Dev at the place of extracting Somras & invite him.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 10 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- अनुष्टुप्। 
गायन्ति त्वा गायत्रिणो ऽर्चन्त्यर्कमर्किण:। 
ब्रह्माणस्त्वा शतक्रत उद्वंशमिव येमिरे॥
हे शतक्रतो (सौ यज्ञ या श्रेष्ठ कर्म करने वाले) इन्द्रदेव! उद्‍गातागण (गायन करने वाला, सामवेद का गान करने वाला ऋत्विज; the Yagy performers singers praising the deity, singers of Sam Ved) आपका आवाहन करते है। स्तोता गण पूज्य इन्द्रदेव का मंत्रोच्चारण द्वारा आदर करते हैं। बाँस के ऊपर कला प्रदर्शन करने वाले नट के समान ब्रह्मा नामक ऋत्विज श्रेष्ठ स्तुतियों द्वारा इन्द्रदेव को प्रोत्साहित करते हैं।[ऋग्वेद 1.10.1]
हे शतकर्मा इन्द्रदेव! गायक तुम्हारा कीर्तिगान करते और अर्चना करने वाले तुम्हें पूजते हैं  तथा वन्दनाकारी अपनी प्रार्थनाओं  तुम्हें उन्नत करते हैं।
Hey hundred Yagy conducting Indr Dev! The organisers of the Yagy sing in favour of you, your excellent acts to invite you in the Yagy. The organisers of the Yagy called Brahma acting like a juggler-acrobats pray to you with decent prayers for you. 
यत्सानो: सानुमारुहद् भूर्यस्पष्ट कर्त्वम्। 
तदिन्द्रो अर्थं चेतति यूथेन वृष्णिरेजति॥
जब यजमान सोमवल्ली, समिधादि के निमित्त एक पर्वत शिखर से दूसरे पर्वत शिखर पर जाते है और यजन कर्म करते है, तब उनके मनोरथ को जानने वाले इष्ट प्रदायक इन्द्रदेव यज्ञ में जाने को उद्यत होते हैं।[ऋग्वेद 1.10.2]
एक स्थान दूसरे स्थान पर पहुँचने वाले यजमान से अभिष्ट के ज्ञानी इन्द्र देव मरुद्गण युक्त अभिष्ट वर्णन के लिए अनुष्ठान में पहुँचते हैं।
Indr Dev gets excited to reach the Yagy site, when the performer of Yagy move from one mountain cliff to another to collect Samidha-special kind of wood-herbs (Jadi-Booti) for offering sacrifices in the Yagy-holy fire.
युक्ष्वा हि केशिना हरी वृषणा कक्ष्यप्रा। 
अथा न इन्द्र सोमपा गिरामुअपश्रुतिं चर॥
हे सोमरस ग्रहिता इन्द्रदेव! आप लम्बे केश युक्त, शक्तिमान, गन्तव्य तक ले जाने वाले दोनों घोड़ों को रथ मे नियोजित करें। तपश्चात् सोमपान से तृप्त होकर हमारे द्वारा की गयी प्रार्थनायेँ सुने।[ऋग्वेद 1.10.3]
हे सोमपायी इन्द्रदेव! बालों वाले अपने अश्वों को रथ में जोतकर हमारी प्रार्थना सुनने के लिए आओ।
Hey receptor of Somras Indr Dev! Please deploy your strong-divine horses bearing hair around their neck, come to us, get satisfied by drinking Somras and listen to the prayers sung by us. 
एहि स्तोमाँ अभि स्वराभि गृणीह्या रुव। 
ब्रम्ह च नो वसो सचेन्द्र यज्ञं च वर्धय॥
हे सर्व निवासक इन्द्रदेव! हमारी स्तुतियों का श्रवण कर आप उद्‍गाताओं, होताओं एवं अध्वर्युवों (यज्ञ करानेवाले श्रेष्ठ यजुर्वेदी पुरोहित, आचार्य, पुरोधा, कर्मकांडी ब्राह्मण; Best among the priests), को प्रशंसा से प्रोत्साहित करें।[ऋग्वेद 1.10.4]
हे इन्द्रदेव! यहाँ आ हमारी प्रार्थनाओं का अनुमोदन करो। हमारे साथ गाओ और हमारे कर्मों का अनुम करते हुए वृद्धिकारक बनो।
Hey Indr Dev you are capable of residing at all places! Please encourage the singers of Sam Ved, organisers of Yagy and the expert Brahmans skilled in organising the Yagy.
उक्थमिन्द्राय शंस्यं वर्धनं पुतुनिष्षिधे। 
शक्रो यथा सुतेषु णो रारणत् सख्येषु च॥
हे स्तोताओ! आप शत्रु संहारक, सामर्थ्यवान इन्द्रदेव के लिये, उनके यश को बढ़ाने वाले उत्तम स्तोत्रों का पाठ करें जिससे उनकी कृपा हमारी सन्तानों एवं मित्रों पर सदैव बनी रहे।[ऋग्वेद 1.10.5]
शत्रु-संहारक इंद्रदेव की वृद्धि के लिए श्लोकों का गान करो, जिनसे व सभी के मध्य पधारकर हर्ष ध्वनि करें।
Hey the singers, recite the verses in the honour of Indr Dev to extend-spread his glory & honour to please him for blessing our progeny & friends.
Normally, we conduct prayers of deities, demigods & the God to please them and extract favours from him. Those who perform prayers of the Almighty without motive-selflessly, devote themselves to the God, does better.    
तमित् सखित्व ईमहे तं राते त्ं सुवीर्ये। 
स शक्र उत न्: शकदिन्द्रो वसु गयमानः॥
हम उन इन्द्रदेव के पास मित्रता के लिये धन प्राप्ति और उत्तम बल वृद्धि के किये स्तुति करने जाते हैं। वे इन्द्रदेव बल एवं धन प्रदान करते हुये हमें संरक्षित करते हैं।[ऋग्वेद 1.10.6]
मित्रता, धन-प्राप्ति और सामर्थ्य के लिये इन्द्रदेव से ही प्रार्थना करते हैं। वही इन्द्रदेव हमको धनवान और बलशाली बनात सुरक्षा करता है।
We approach Indr Dev for his friendship, seeking riches-wealth & money, gathering strength. Indr Dev grant us asylum-protection, strength & wealth. 
सुविवृत्तं सुनिरजमिन्द्र त्वादातमिद्यशः। 
गवामप व्रजं वृधि कृणुष्व राधो अद्रिवः॥
हे इन्द्रदेव! आपके द्वारा प्रदत्त यश सब दिशाओ में सुविस्तृत हुआ है। हे वज्रधारक इन्द्रदेव! गौओ को बाड़े से छोड़ने के समान हमारे लिये धन को प्रसारित करें।[ऋग्वेद 1.10.7]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा दिया हुआ यश सब ओर फैल गया है। हे व्रजिन! गौशालाओं को खोलकर हमको बहुत सा गौ धन प्राप्त कराओ।
Hey Indr Dev! Your glory has reached far & wide, in all (10) directions, all over the universe. Hey Thunder Volt wearing Indr Dev! Kindly open the cow sheds to grant us sufficient cows.
Cows are at the root of economy. In fact they form the backbone of any economy. They give us milk (curd, cheese, Ghee & several sweets), calf, bull-oxen (transport, agriculture), dung-manure (fuel, gas, compost), leather, horns, boons. Their urine can cure several diseases. They contain hundreds of enzymes in their body beneficial for the humans. Those who eat their meat-beef, invite trouble for themselves, since they are primary hosts for dangerous worms and the virus capable of spreading dangerous diseases.
नहि त्वा रोदसी उभे ऋघायमाणमिन्वतः। 
जेषः स्वर्वतीरपः सं गा अस्मभ्यं धूनुहि॥
हे इन्द्रदेव! युद्ध के समय आपके यश का विस्तार पृथ्वी और् द्युलोक तक होता है। दिव्य जल प्रवाहों पर आपका ही अधिकार है। उनसे अभिषिक्त (Anointed, Consecrated) कर हमें तृप्त करें।[ऋग्वेद 1.10.8]
हे इन्द्रदेव! आपकी क्रोधित अवस्था में आकाश या धरती पर कोई भी आपको धारण करने में सक्षम नहीं होता।  तुम आकाश से वृद्धि करो और हमको गौएँ प्रदान करो।
अभिषेक :: मन्त्रोच्चारण करते हुए शंख से सुगन्धित जल छोड़ने को अभिषेक कहते हैं।
अभिषिक्त  :: Anoint, consecrate. 
Hey Indr Dev! During war your glory spreads all over the universe including earth. You are the master of divine sources of water (medicines).  Please anoint, consecrated us with that divine water. 
आशुत्कर्ण श्रुधी हवं नू चिद्दधिष्व मे गिरः। 
इन्द्र स्तोममिमं मम कृष्वा युजश्चिदन्तरम्॥
भक्तों की स्तुति सुनने वाले, हे इन्द्रदेव! हमारे आवाहन को सुनें। हमारी वाणियों को चित्त में धारण करें। हमारे स्तोत्रों को अपने मित्र के वचनों से भी अधिक प्रीति पूर्वक धारण करें।[ऋग्वेद 1.10.9]
हे सभी की सुनने वाले इन्द्रदेव! मेरी भी प्रार्थना सनो। इन प्रार्थनाओं को स्वीकृत करो। अपने मित्र से भी अधिक निकटस्थ मानों।
Hey Indr Dev! You listen-respond to the prayers of the devotees. Please bear with our words-prayers & keep them in your inner self-mind. Kindly, accept our prayers like a person close to you, more than a friend. 
विद्मा हि त्वा वृषन्तमं वाजेषु हवनश्रुतम्। 
वृषन्तमस्य हूमह ऊर्तिं सहस्त्रासातमाम्॥
हे इन्द्रदेव! हम जानते हैं कि आप बल सम्पन्न हैं तथा युद्धों में हमारे आवाहन को आप सुनते हैं। हे बलशाली इन्द्रदेव! आपके सहस्त्रों प्रकार के धन के साथ हम आपका संरक्षण भी चाहते हैं ।[ऋग्वेद 1.10.10]
हे इन्द्रदेव! हम जानते हैं कि आप श्रेष्ठ पुरुषार्थी हैं। आप संग्राम काल में हमारी वंदनाओं को सुनते हैं। हे अभीष्ट! अपनी सुरक्षा के लिए हम आपका आह्वान करते हैं। 
Hey Indr Dev! We are aware that you are powerful and respond to our requests during war (endeavours, efforts). We seek asylum, shelter, protection under you with thousands of amenities possessed by you. 
आ तू न इन्द्र कौशिक मन्दसानः सुतं पिब। 
नव्यमायुः प्र सू तिर कृधी सहस्त्रासामृषिम्॥
हे कुशिक के पुत्र इन्द्रदेव! आप इस निष्पादित सोम का पान करने के लिये हमारे पास शीघ्र आयें। हमे कर्म करने की सामर्थ्य के साथ नवीन आयु भी दें। इस ऋषि को सहस्त्र धनों से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.10.11]
हे कुशिक के पुत्र! तुम सोम रस के पीने के लिए यहाँ आ जाओ। मेरी उम्र की वृद्धि करते हुए इस सहस्त्र संख्यक धन का उत्तम स्वामी बनाओ।
[कुशिक पुत्र विश्वामित्र के समान उत्त्पत्ति के कारण इन्द्र को कुशिक पुत्र सम्बोधन दिया गया है।]
Hey the son of Kushik-Indr Dev! Please come here to drink Somras. Please grant us strength to do our works in addition to new lease of life. Please grant thousands of amenities to this Rishi-prayer.
परि त्वा गिर्वणो गिर इमा भवन्तु विश्वतः। 
वृद्धायुमनु वृद्द्यो जुष्ता भवन्तु जुष्टयः॥
हे स्तुत्य इन्द्रदेव! हमारे द्वारा की गई स्तुतियाँ सब ओर से आपकी आयु को बढ़ाने वाली सिद्ध हो।[ऋग्वेद 1.10.12] 
हे पूजनीय इन्द्र! हमारी ये पूजन सब ओर फैली हुई हैं। तुम बढ़ी हुई उम्र वाले हो, इन पूजनीय से तुम्हारी प्रीति हो। 
Hey prayer deserving Indr Dev! Let our prayers enhance-boost your life-longevity in all directions.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 11 :: ऋषि :- जेतामाधुच्छन्दस,  देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्।
इन्द्रं विश्वा अवीवृधन्त्समुद्रव्यचसं गिरः। 
रथीतमं रथीनां वाजानां सतपर्ति पतिम्॥
समुद्र के तुल्य व्यापक, सब रथियों में महानतम, अन्नों के स्वामी और सत्प्रवृत्तियों के पालक इन्द्रदेव को समस्त स्तुतियाँ अभिवृद्धि प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.11.1]
अंतरिक्ष के तुल्य विशाल, रथियों में महान, अन्न के स्वामी तथा आराष्ट सुरक्षा करने वाले इन्द्र की हमारे श्लोक वृद्धि करते हैं।
RATHI रथी :: Rathi is an ancient unit which describes number soldiers in an army unit or column. 
The prayers sung in favour of Indr Dev, who is as broad as the ocean, excellent-at the top of all army commanders (supreme commander), master of all sorts of food grains and possesses Satvik Gun-divine qualities to enhances-boosts his powers.
अर्द्धरथी :: पत्ती, सेनामुख, गुल्म तथा गण के नायक। एक प्रशिक्षित योद्धा, जो एक से अधिक अस्त्र अथवा शस्त्रों का प्रयोग जानता हो तथा वो युद्ध में एक साथ 2,500 सशस्त्र योद्धाओं का सामना अकेले कर सकता हो। 
रथी :: वाहिनी, पृतना, चमु और अनीकिनी के नायक। एक ऐसा योद्धा जो दो अर्धरथियों या 5,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सके। इसके अतिरिक्त उसकी योग्यता एवं निपुणता कम से कम दो अस्त्र एवं दो शस्त्र चलाने में हो। 
अतिरथी :: अनेक अस्त्र एवं शस्त्रों को चलने में माहिर। युद्ध में 12 रथियों या 60,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सकता हो।  एक अक्षौहिणी सेना का नायक। 
महारथी :: सभी ज्ञात अस्त्र शस्त्रों को चलने में माहिर, दिव्यास्त्रों का ज्ञाता। 12 अतिरथियों अथवा 7,20,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना करने में समर्थ। ब्रह्मास्त्र का  ज्ञाता। एक से अधिक अक्षौहिणी सेना का नायक। 
अतिमहारथी :: 12 महारथी श्रेणी के योद्धाओं अर्थात 86,40,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना अकेले कर सकता हो साथ ही सभी प्रकार के दैवीय शक्तियों का ज्ञाता हो। वाराह, नृसिंह, राम, कृष्ण एवं कहीं-कहीं परशुराम को भी अतिमहारथी की श्रेणी में रखा जाता है। देवताओं में कार्तिकेय, गणेश तथा वैदिक युग में इंद्र, सूर्य, यम, अग्नि एवं वरुण को भी अतिमहारथी माना जाता है। आदिशक्ति की दस महाविद्याओं और रुद्रावतार विशेषकर वीरभद्र और हनुमान जी महाराज को भी अतिमहारथी कहा जाता है। मेघनाद की गिनती अतिमहारथियों में की जाती है, ऐसा कोई भी दिव्यास्त्र नहीं था जिसका ज्ञान उसे न था। वह ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र का ज्ञाता था। केवल पाशुपतास्त्र को छोड़ कर लक्ष्मण जी को भी समस्त दिव्यास्त्रों का ज्ञान था, अतः उन्हें भी  इस श्रेणी में रखा जाता है।
महामहारथी :: 24 अतिमहारथियों अर्थात 20,73,60,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना करने  में समर्थ। दैवीय एवं महाशक्तियाँ का स्वामी। केवल त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र) एवं आदिशक्ति को ही इतना शक्तिशाली समझा जाता है। 
सख्ये त इन्द्र वाजिनो मा भेम शवसस्पते। 
त्वामभि प्र णोनुमो जेतारमपराजितम्॥
हे बल रक्षक इन्द्रदेव! आपकी मित्रता से हम बलशाली होकर किसी से न डरें। हे अपराजेय-विजयी इन्द्रदेव! हम साधक गण, आपको प्रणाम करते हैं।[ऋग्वेद 1.11.2]
हे शक्ति के स्वामी इंद्र! तुम्हारी मित्रता हमारे भय को दूर कर हमें शक्तिशाली बनाये। तुम हमेशा विजय प्राप्त करते हो। हम तुम्हारा पूजन करते हैं।
Hey protector of power Indr Dev! Having become strong after becoming your friend, we should not be afraid with anyone. Hey undefeated Indr Dev! We, the devotees; salute you. 
पूर्वीरिन्द्रस्य रातयो न वि दस्तन्त्यूतयः। 
यदी वाजस्य गोमतः स्तोतृभ्यो मंहते मघम्॥
देवराज इन्द्र की दानशीलता सनातन है। ऐसी स्थिति में आज के यजमान भी स्तोताओं को गवादि सहित अन्न दान करते हैं, तो इन्द्रदेव द्वारा की गई सुरक्षा अक्षुण्ण रहती है।[ऋग्वेद 1.11.3]
इन्द्रदेव का दान प्रसिद्ध है। स्तोताओं आदि धन तथा बल देने वाला इन्द्र साधकों को निरन्तर देता ही रहता है।
Indr Dev's tendency to donate is eternal. In this state, the hosts of today, who donate food grain & cows etc. remain protected by Indr Dev. 
पुरां भिन्दुर्युवा कविरमितौजा अजायत। 
इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्ता वज्री पुरुष्टुतः॥
शत्रु के नगरों को विनष्ट करने वाले हे इन्द्रदेव! युवा, ज्ञाता, अतिशक्तिशाली, शुभ कार्यों के आश्रयदाता तथा सर्वाधिक कीर्ति-युक्त होकर विविधगुण सम्पन्न हुये हैं।[ऋग्वेद 1.11.4]
इन्द्र स्तुत्य, दुर्गों का भेदन करने वाले, युवा, होशियार, महापराक्रमी, कर्मों के करने वज्रधारी प्रकट हुए।
Hey the destroyer of enemies forts Indr Dev! The young, learned, extremely powerful, protector of virtuous deeds, anointed with glory have been associates with various qualities. 
त्वं वलस्य गोमतोऽपावरद्रिवो बिलम्। 
त्वा देवा अबिभ्युषस्तुज्यमानस आविषुः॥
हे वज्रधारी इन्द्रदेव! आपने गौओं (सूर्य की किरणों) को चुराने वाले असुरों के व्युह को नष्ट किया, तब असुरों से पराजित हुये देवगण आपके साथ आकर संगठित हुए।[ऋग्वेद 1.11.5]
हैं वर्जिन! वृत्त और गौओं वाली गुफा के खोले जाने पर पीड़ित देवताओं ने तुमसे अभय प्राप्त किया।
Hey the Thunder Volt wearing Indr Dev! When you destroyed the formations of the Asur-wicked (demons, Rakshas, giants) the demigods defeated by the demons came and joined you. 
तवांह शूर रातिभिःप्रत्यायं सिन्धुमावदन्। 
उपातिष्ठन्त गिर्वणो विदुष्टे तस्य कारवः॥‍
संग्रामशूर हे इन्द्रदेव! आपकी दानशीलता से आकृष्ट होकर हम होतागण (यज्ञ या हवन कराने वाला, पुरोहित, यज्ञ में आहुति देने वाला) पुनः आपके पास आये हैं। हे स्तुत्य इन्द्रदेव! सोमयाग मे आपकी प्रशंसा करते हुये, ये ऋत्विज एवं यजमान आपकी दानशीलता को जानते है।[ऋग्वेद 1.11.6]
हे इन्द्र! निष्पन्न सोम का गुण सभी को बताकर तुम्हारे धन दान देने के प्रभाव से मैं फिर पधारा हूँ। 
Hey great warrior Indr Dev! We the performers of Yagy have come to you attracted by tendency to donate-charity. Hey prayer deserving Indr Dev! Enchanting your glory with the verses of Sam Ved, these performers of Yagy are aware of tendency to donate-charity. 
विदुष्टे तस्य मेधिरास्तेषां श्रवांस्युत्तिर॥
हे इन्द्रदेव! अपनी माया द्वारा आपने शुष्ण (एक राक्षस) को पराजित किया। जो बुद्धिमान आपकी इस माया को जानते हैं, उन्हें यश और बल देकर वृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.11.7]
हे पूजनीय इन्द्रदेव! तुम्हारी निकटता ग्रहण करने वाले तुम्हें भली-भाँति जानते हैं। हे इंद्रदेव!अपने अपनी माया से उस मायावी दुष्ट शुष्ण नामक राक्षस पर विजय प्राप्त।तुम्हारी इस महिमा को जो मेधावी जानते हैं उनकी वृद्धि करो।
Hey Indr Dev! You defeated the demon called Shushn with your illusionary powers. Please grant progress to those intellectuals who know-identify your calibre in this art of illusion. 
इन्द्रमीशानमोजसाभि स्तोमा अनूषत। 
सहस्त्र यस्य रातय उत वा सन्ति भूयसी:॥
स्तोतागण, असँख्यों अनुदान देने वाले, ओजस् (बल प्राक्रम) के कारण जगत के नियन्ता इन्द्रदेव की स्तुति करने लगे।[ऋग्वेद 1.11.8]  
अपने बल से संसार पर शासन करने वाले इन्द्र का स्तोतातों द्वारा  यशगान किया। वे अनेकों प्रकार से भी अधिक ऐश्वर्यों के दाता हैं।
The devotees, Yagy performers begun with the prayers of Indr Dev who grants unlimited doles-amenities, due to his powers, majesty.
स्वाहा यज्ञं कृणोतनेन्द्राय यज्वनो गृहे। तत्र देवाँ उप ह्वये॥
हे अध्वर्यु! आप याजकों के घर में इन्द्रदेव की तुष्टी के लिये आहुतियाँ समर्पित करें। हम होता वहाँ देवों को आमन्त्रित करते हैं।[ऋग्वेद 1.13.12]
हे ऋत्विजों! यजमान के घर में "स्वाहा' करते हुए इन्द्र के लिए यज्ञ करो। उसमें हम देवताओं का आह्वान करते हैं।
अध्वर्यु :: यजुर्वेद के अनुरूप कर्म करनेवाला, यज्ञ का संपादन करनेवाला; one who holds-conducts Yagy in accordance with Yajur Ved.
Hey performer of Yagy! Please give offerings to those conducting the Yagy to serve them to Indr Dev. We-the people conducting Yagy invite the demigods-deities.
इन्द्र सोमं पिब ऋतुना त्वा विशन्त्विन्दवः। मत्सरासस्तदोकसः॥
हे इन्द्रदेव! ऋतुओं के अनुकूल सोमरस का पान करें, ये सोमरस आपके शरीर में प्रविष्ट हो, क्योंकि आपकी तृप्ति का आश्रयभूत साधन यही सोम है।[ऋग्वेद 1.15.1]
हे इन्द्रदेव! ऋतु युक्त सोमपान करो। ये सोम तुम्हारे शरीर में प्रविष्ट होकर सन्तुष्टि के साधन बने।
Hey Indr Dev! please drink Somras according to the season. Let it become the source of contentment-satisfaction in you. 
ब्राह्मणादिन्द्र राधसः पिबा सोममृतूँरनु। तवेद्धि सख्यमस्तृतम्॥
हे इन्द्रदेव! आप ब्रह्म को जानने वाले साधक के पात्र से सोमरस का पान करे, क्योंकि उनके साथ आपकी अविच्छिन्न मित्रता है।[ऋग्वेद 1.15.5]
हे इन्द्र! ब्राह्मणाच्छसि पात्र में ऋतुओं के अनुसार सोमरस ग्रहण करो। क्योंकि तुम्हारी मित्रता कभी नष्ट नहीं होती। 
Hey Indr Dev! Please consume Somras through the pot of the devotee-practitioner who knows the Brahm since you are inseparable from him.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 16 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व,  देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री। 
आ त्वा वहन्तु हरयो वृषणं सोमपीतये। इन्द्र त्वा सूरचक्षसः॥
हे बलवान इन्द्रदेव! आपके तेजस्वी घोड़े सोमरस पीने के लिये आपको यज्ञस्थल पर लाएँ तथा सूर्य के समान प्रकाशयुक्त ऋत्विज् मन्त्रों द्वारा आपकी स्तुति करें।[ऋग्वेद 1.16.1]
हे अभिष्टक वर्षक इन्द्रदेव! तुम अपने प्रकाशमान रूप वाले अश्वों को सोम पान के लिए यहाँ पर पधारो। 
Hey desires granting-fulfilling Indr Dev! Let your energetic horses bring you at the site of the Yagy, to drink Somras and those (hosts) performing Yagy, bearing the aura like the Sun worship you with the most powerful Mantr. 
इमा धाना घृतस्नुवो हरी इहोप वक्षतः। इन्द्रं सुखतमे रथे॥
अत्यन्त सुखकारी रथ में नियोजित इन्द्रदेव के दोनों हरि (घोड़े) उन्हें (इन्द्रदेव को) घृत से स्निग्ध हवि रूप धाना (भुने हुये जौ) ग्रहण करने के लिये यहाँ ले आएँ।[ऋग्वेद 1.16.2]
इन्द्रदेव के दोनों अश्व उन्हें सुख दायक रूप में विराजम कर घृत से स्निग्ध धान्य के पास ले आयें। 
The two horses driving the comfortable charoite of Indr Dev, should bring him to accept the barley roasted in Ghee.
इन्द्रं प्रातर्हवामह इन्द्रं प्रयत्यध्वरे। इन्द्रं सोमस्य पीतये॥
हम प्रातःकाल यज्ञ प्रारम्भ करते समय मध्याह्नकालीन सोमयाग प्रारम्भ होने पर तथा सांयकाल यज्ञ की समाप्ति पर भी सोमरस पीने के निमित्त इन्द्रदेव का आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.16.3]
हम उषाकाल में इन्द्र देव का आह्वान करते हैं। अनुष्ठान सम्पादन समय में सोमपान करने के लिए इन्द्र देवता का आह्वान करते हैं।
We invite Indr Dev to participate in the Yagy, drink Somras at the beginning of day prior to beginning of the Yagy, noon and the evening at the close of the Yagy. 
उप नः सुतमा गहि हरिभिरिन्द्र केशिभिः। सुते हि त्वा हवामहे॥
हे इन्द्रदेव! आप अपने केसर युक्त अश्‍वों से सोम के अभीष्ट स्थान के पास आएँ। सोम के अभिषुत होने पर हम आपका आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.16.4]
हे इन्द्र! अपने लम्बे केश वाले अश्वों के साथ यहाँ पर पधारो। सोमरस छानंकर तैयार हो जाने पर हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। 
Hey Indr Dev we invite you to the Yagy to begin with the rites of the Yagy along with your horses who have long hairs & smell of saffron.
सेमं न स्तोममा गह्युपेदं सवनं सुतम्। गौरो न तृषितः पिब॥
हे इन्द्रदेव! हमारे स्तोत्रों का श्रवण कर आप यहाँ आएँ। प्यासे गौर मृग के सदृश व्याकुल मन से सोम के अभीष्ट स्थान के समीप आकर सोम का पान करें।[ऋग्वेद 1.16.5]
व्याकुल :: बेचैन, परेशान, व्यस्त; distraught, disturbed.
हे इन्द्र! सोम रस ग्रहण करने के लिए हमारे श्लोकों से यहाँ पर आकर प्यासे हिरन के समान सोमपान करो। 
Hey Indr Dev! Please come here-at the destination of the Yagy & Somras, hearing-listening to our enchantments of verses (Shlok, Mantr, Sukt, Strotr) like a thirsty deer, to sooth your disturbed innerself.
इमे सोमास इन्दवः सुतासो अधि बर्हिषि। ताँ इन्द्र सहसे पिब॥
हे इन्द्रदेव! यह दीप्तिमान सोम निष्पादित होकर कुशाआसन पर सुशोभित है। शक्ति वर्धन के निमित्त आप इसका पान करें।[ऋग्वेद 1.16.6]
है इन्द्रदेव! यह परम बलवाले, निष्पन्न सोम कुशासन पर रखे हैं, तुम उन्हें शक्तिवर्द्धन के लिए पान करो। 
Hey Indr Dev! The aura bearing Somras has been placed over the cushion made of Kush grass. Please drink it to boost your energy-strength.
अयं ते स्तोमो अग्रियो हृदिस्पृगस्तु शंतमः। अथा सोमं सुतं पिब॥
हे इन्द्रदेव! यह स्तोत्र श्रेष्ठ, मर्मस्पर्शी और अत्यन्य सुखकारी है। अब आप इसे सुनकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.16.7]
हे इन्द्रदेव! यह महान श्लोक मर्मस्पर्शी और सुख का कारणभूत हैं। तुम इसे सुनकर तुरन्त ही इस निष्पन्न सोम का पान करो। 
Hey Indr Dev! This piece of verse (stanza, Sukt, Strotr)) is excellent touches the heart and grant bliss. Please have Somras listening to it.
विश्वमित्सवनं सुतमिन्द्रो मदाय गच्छति। वृत्रहा सोमपीतये॥
सोम के सभी अभीष्ट स्थानों की ओर इन्द्रदेव अवश्य जाते हैं। दुष्टों का हनन करने वाले इन्द्रदेव सोमरस पीकर अपना हर्ष बढाते हैं।[ऋग्वेद 1.16.8]
जिस स्थान पर सोम रस छाना जाता है, वहीं पर सोमपान के लिए उससे उत्पन्न प्रसन्नता प्राप्ति के लिए राक्षसों को मारने वाले इन्द्र अवश्य ही पहुँचते हैं।
Indr Dev who is the killer of the demons-Rakshas (wicked, sinners), reaches the site of the Somras, drink it and gather bliss.
सेमं नः काममा पृण गोभिरश्वैः शतक्रतो। स्तवाम त्वा स्वाध्यः॥
हे शतकर्मा इन्द्रदेव! आप हमारी गौओं और अश्वों सम्बन्धी कामनायें पूर्ण करें। हम मनोयोग पूर्वक आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.16.9]
हे महाशक्तिशाली इन्द्र! गाय और अश्वादि-युक्त धनों वाली हमारी सभी इच्छाएँ पूर्ण करें। हम ध्यान पूर्वक तुम्हारी वन्दना करते हैं।
Hey 100 Yagy performing Indr Dev! Please accomplish our desire for cows & horses. We are praying with full concentration-attention of mind.
Deposits of coal & petroleum are present over the earth even since, but our ancestors never touched them, since they caused pollution. Sucking of petroleum disturbs the inner balance of earth and causes earthquakes. Cows & horses were deployed in numerous ways for human welfare. These practices, skills have almost have forgotten after Maha Bharat. 
यो रध्रस्य चोदिता यः कृशस्य यो ब्रह्मणो नाधमानस्य कीरेः।
युक्तग्राव्णो योऽविता सुशिप्रः सुतसोमस्य स जनास इन्द्रः॥[ऋग्वेद 2.12.6]
योद्धा-गण विजय व अपनी रक्षा के लिये देवराज इन्द्र का आह्वान व पूजा-अर्चना करते हैं। उनकी सहायता के बिना विजय लाभ असम्भव है। इस लिये योद्धा-गण विजय के लिए और अपनी रक्षा के लिये उसका आवाहन करते हैं। यह बात निम्नलिखित मन्त्र से और भी स्पष्ट हो जाती है :- 
यं क्रन्दसी संयती विह्वयेते परेऽवर उभया अमित्राः। 
समानं चिद्रथमातस्थिवांसा नाना हवेते स जनास इन्द्रः॥
1 मन्वंतर 14 इन्द्र :: स्वर्ग पर राज करने वाले 14 इन्द्र माने गए हैं। इन्द्र एक काल-समय की इकाई भी है। 1 मन्वंतर में 14 इन्द्र होते हैं। 14 इन्द्रों के नाम पर ही मन्वंतरों के नाम भी रखे गए हैं। प्रत्येक मन्वंतर में एक इन्द्र हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं :- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। 
उपरोक्त में से शचिपति इन्द्र पुरंदर के पूर्व पाँच इन्द्र हो चुके हैं। 
इन्द्र के  भाई :: विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (भगवान्  वामन) था। ये सभी भाई सुर या देव कहलाते थे।
माना जाता है कि इन्द्र के भाई विवस्वान् ही सूर्य नाम से जाने जाते थे और विष्णु इन्द्र के सखा थे। इन्द्र के एक अन्य भ्राता अर्यमा को पितरों का देवता माना जाता है, जबकि भ्राता वरुण को जल का देवता माना गया है।
इन्द्र की पत्नी और पुत्र :: इन्द्र का विवाह असुरराज पुलोमा की पुत्री शचि के साथ हुआ था। इन्द्र की पत्नी बनने के बाद उन्हें इन्द्राणी कहा जाने लगा। इन्द्राणी के पुत्रों में से ही दो वसुक्त तथा वृषा ऋषि हुए जिन्होंने वैदिक मंत्रों की रचना की। 
देवराज इन्द्र के आयुध :: सफेद हाथी पर सवार इन्द्र का अस्त्र वज्र है और वे अपार शक्तिशाली देव हैं। इन्द्र मेघ और बिजली के माध्यम से अपने शत्रुओं पर प्रहार करने की क्षमता रखते थे।
इन्द्र ने अस्थिर पृथ्वी को स्थैर्य प्रदान किया है। इधर-उधर उड़ते-फिरते पर्वतों के पंख-छेदन कर इन्द्र ने ही उन्हें तत्तत् स्थान पर प्रस्थापित किया है। उसने द्यु-लोक को भी स्तब्ध किया और इस प्रकार अन्तरिक्ष का निर्माण किया। दो मेघों के मध्य में वैद्युत् अग्नि अथवा दो प्रस्तर-खण्डों के मध्य में सामान्य अग्नि का जनक इन्द्र ही है। इन्द्र को सूर्य और हवा उषा का उद्भावक भी कहा गया है। वह अन्तरिक्ष-गत अथवा भूतलवर्ती जलों का प्रेरक है। इसीलिए उसे वर्षा का देवता मानते हैं। पृथ्वी को ही नहीं प्रत्युत सम्पूर्ण लोकों को स्थिर करने वाला अथवा उन्हें रचने वाला भी इन्द्र से भिन्न कोई और नहीं है। इससे ‘उसने सभी पदार्थों को गतिमान बनाया’ यह अर्थ ग्रहण करने पर भी इन्द्र का माहात्म्य नहीं घटता।
त्वं वलस्य गोमतोऽपावरद्रिवो बिलम्। 
त्वा देवा अबिभ्युषस्तुज्यमानस आविषुः॥
हे वज्रधारी इन्द्रदेव! आपने गौओ (सूर्य किरणो) को चुराने वाले असुरो के व्युह को नष्ट किया, तब असुरो से पराजित हुये देवगण आपके साथ आकर संगठित हुए।[ऋग्वेद 1.11.5]
हैं वर्जिन! वृत्त और गौओं वाली गुफा के खोले जाने पर देवताओं ने तुमसे अभय प्राप्त किया।
Hey the destroyer of enemies forts Indr Dev! The young, learned, extremely powerful, protector of virtuous deeds, anointed with glory have been associates with various qualities. 
इन्द्र सोमं पिब ऋतुना त्वा विशन्त्विन्दवः। मत्सरासस्तदोकसः॥
हे इन्द्रदेव! ऋतुओं के अनुकूल सोमरस का पान करें, ये सोमरस आपके शरीर में प्रविष्ट हो, क्योंकि आपकी तृप्ति का आश्रयभूत साधन यही सोम है।[ऋग्वेद 1.15.1]
हे इन्द्रदेव! ऋतु युक्त सोमपान करो। ये सोम तुम्हारे शरीर में प्रविष्ट होकर सन्तुष्टि के साधन बने।
Hey Indr Dev! please drink Somras according to the season. Let it become the source of contentment-satisfaction in you. 
ब्राह्मणादिन्द्र राधसः पिबा सोममृतूँरनु। तवेद्धि सख्यमस्तृतम्॥
हे इन्द्रदेव! आप ब्रह्म को जानने वाले साधक के पात्र से सोमरस का पान करे, क्योंकि उनके साथ आपकी अविच्छिन्न मित्रता है।[ऋग्वेद 1.15.5]
हे इन्द्र! ब्राह्मणाच्छसि पात्र में ऋतुओं के अनुसार सोमरस ग्रहण करो। क्योंकि तुम्हारी मित्रता कभी नष्ट नहीं होती। 
Hey Indr Dev! Please consume Somras through the pot of the devotee-practitioner who knows the Brahm since you are inseparable from him.
इन्द्र सूक्त (1) :: ऋग्वेद :- मण्डल 1, ऋषि :- मधुच्छन्दा:, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री, अनुवाक :- 2. 
इन्द्रमिद गाथिनो बर्हदिन्द्रमर्केभिरर्किणः। इन्द्रं वाणीरनूषत॥1॥ 
साम वेदियों ने साम-गान द्वारा, ऋग्वेदियों ने वाणी द्वारा और यजुर्वेदियों ने वाणी द्वारा इन्द्र की स्तुति की है। 
Devraj Indr has been prayed-felicitated by the practitioners of Sam Ved with the verses of Sam Ved, those of Rig Ved with Rig Ved verses & the Yajur Ved practitioners with the verses of Yajur Ved.
इन्द्र इद धर्योः सचा सम्मिश्ल आ वचोयुजा। इन्द्रो वज्रीहिरण्ययः॥2॥ 
इन्द्र अपने दोनों घोड़ों को बात की बात में जोत कर सबके साथ मिलते हैं। इन्द्र वज्रयुक्त और हिरण्यमय हैं।
Devraj Indr glittering like gold, holding Vajr-thunderbolt, deploy his horses in the chariot and joins others quickly.
इन्द्रो दीर्घाय चक्षस आ सूर्यं रोहयद दिवि। वि गोभिरद्रिमैरयत॥3॥
दूरस्थ मनुष्यों को देखने के लिए ही इन्द्र ने सूर्य को आकाश में रक्खा है। सूर्य अपनी किरणों द्वारा पर्वतों को आलोकित किये हुए हैं।
Dev Raj Indr hold Sun (Bhagwan Sury) in the sky to see those humans, who are away from him. Sun is lightening the mountains with his rays. 
इन्द्र वाजेषु नो अव सहस्रप्रधनेषु च। 
उग्र उग्राभिरूतिभिः॥4॥ 
उग्र इन्द्र! अपनी अप्रतिहत रक्षण-शक्ति द्वारा युद्ध और लाभकारी महासमर में हमारी रक्षा करो। 
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous, who can not be blocked by any one.
Hey furious Indr! Protect us with your unblock able power, in the big gainful-productive war.
इन्द्रं वयं महाधन इन्द्रमर्भे हवामहे। युजं वर्त्रेषु वज्रिणम॥5॥ 
इन्द्र हमारे सहायक और शत्रुओं के लिए वज्रधर हैं; इसलिए हम धन और महाधन के लिए इन्द्र का आह्वान करते हैं।
Since, Indr is our associate and thunder volt holder for the enemy, we invite him for riches and ultimate comforts. 
स नो वर्षन्नमुं चरुं सत्रादावन्नपा वर्धि। अस्मभ्यमप्रतिष्कुतः॥6॥ 
अभीष्ट फलदाता और वृष्टिप्रद इन्द्र! तुम हमारे लिए इस मेघ को भेदन करो। तुमने कभी भी हमारी प्रार्थना अस्वीकार नहीं की। 
Hey desired results producing and rain showering Indr Dev! You should make these clouds rain. You never rejected our prayers.
तुञ्जे-तुञ्जे य उत्तरे सतोमा इन्द्रस्य वज्रिणः। न विन्धेस्य सुष्टुतिम॥7॥
जो विवध स्तुति वाक्य विभिन्न देवताओं के लिए प्रयुक्त होते हैं, सो सब वज्रधारी इन्द्र के हैं। इन्द्र की योग्य स्तुति मैं नहीं जानता। 
All those prayers meant for the other demigods-deities are used for praying Devraj Indr. I do not know a suitable prayer meant for the Thunder Volt wearing-holding, Devraj Indr.
वर्षा यूथेव वंसगः कर्ष्टीरियर्त्योजसा। ईशानो अप्रतिष्कुतः॥8॥
जिस तरह विशिष्ट गतिवाला बैल अपने गो बल को बलवान करता है, उसी प्रकार इच्छित वितरण करता इन्द्र मनुष्य को बलशाली करते हैं। इन्द्र शक्ति संपन्न हैं और किसी की याचना को अग्राह्य नहीं करते।
The manner in which a bull having a special speed (breed) strengthen his flock of cows, Devraj Indr makes the humans (who pray to him) strong & powerful. He never reject the requests-prayers of anyone.   
य एकश्चर्षणीनां वसूनामिरज्यति। इन्द्रः पञ्च कसितीनाम॥9॥
इन्द्र मनुष्यों, धन और पञ्चक्षिति के ऊपर शासन करने वाले हैं।
 Indr rules humans, wealth-riches and the five horizons.
इन्द्रं वो विश्वतस परि हवामहे जनेभ्यः। अस्माकमस्तु केवलः॥10॥
सबके अग्रणी इन्द्र को तुम लोगों के लिए हम आह्वान करते हैं। इन्द्र हमारे ही हैं।
We invite Devraj Indr who stands first for you. Indr belongs to us.
इन्द्र-सूक्त (2) :: ऋषि :- अप्रतिरथ, देवता :- इन्द्र तथा आर्षी,  छन्द :- त्रिष्टुप्। इन्द्र वेद के प्रमुख देक्ता है। इन्द्र के विषय में अन्य देवताओं की अपेक्षा अधिक कथाएँ प्रचलित हैं। इनका समस्त स्वरूप स्वर्णिम तथा अरुण है। ये सवाधिक सुन्दर रूपों को धारण करते हैं तथा सूर्य की अरुण  आभा को धारण करते हैं। अतः इन्हें हिरण्य कहा जाता है। 
आशु: शिशानोवृषभो न भीमो धनाधन: क्षोभणश्चर्षणीनाम्
संक्रन्दनोSनिमिष एकवीरशत ँ ् सेना अजयत् साकमिन्द्रः॥1॥ 
वेगगामी, वज्रतीक्ष्णकारी, वर्षण (Precipitation, Testis) की उपमा वाले, भयंकर, मेघ तुल्य वृष्टि करनेवाले, मानवों के मोक्षकर्ता, निरन्तर गर्जना युक्त, अपलक, अद्वितीय वीर इन्द्र ने शत्रुओं की सैकड़ों सेनाओं को एक साथ जीत लिया है।
Indr is fast moving, strikes hard with Thunderbolt, has the title of Varshan (sperm producing-too sexy), makes having-furious rains, grants Salvation-Moksh to humans, roaring continuously, unparalleled warrior-brave (valour) and wins hundreds of armies at a time.
संक्रन्दनोSनिमिषेण जिष्णुना युत्कारेण दुश्च्यवनेन धृष्णुना। 
तदिन्द्रेण जयत तत्सहध्वं युधो नर इषुहस्तेन वृष्णा॥2॥
हे योद्धाओ! गर्जन कारी, अपलक, जयशील, युद्धरत, अपराजेय, प्रतापी, हाथ में वाण सहित, कामनाओं की वृष्टि करने वाले इन्द्र की कृपा से शत्रु को जीतो और उसका संहार करो।
Hey warriors! Win the enemy by the grace of Indr Dev who is roaring stunning, thundering), do not blink his eyes, winning, engaged in war, undefeated, glorious, has arrows in his hands, showers desires-amenities. 
सइषुहस्तैः सनिषङ्गिभिर्वशी ँ ् स्रष्टा सयुधइन्द्रोगणेन। 
 ँ ् सृष्टजित्सोमपा बाहुशर्ध्युग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता॥3॥
वह संयमी, युद्धार्थ उपस्थितों को जीतने वाला, शत्रु समूहों से युद्ध करने वाला, सोम पान करने वाला, बाहुबल से युक्त, कठोर धनुष वाला इन्द्र, बाण धारी एवं तूणीर धारी शत्रुओं से भिड़ जाता है और अपने फेंके गये बाणों से उन्हें परास्त करता है।
संयमी :: कड़ा, चुप्पा, अल्पभाषी, उपवास करनेवाला, शांत, गम्भीर, सादा, परहेज़गार, उद्वेग रहित; One who practice self restraint, self control. Spartan, abstinent, sober.
He is self controlled-restrained, wins those who have come to fight, fights with groups of enemies, drinks Somras, possessed with muscle power, wears a hard-strong bow & arrows, strike the enemies and defeat them by his arrows.
बृहस्यते परिदीया रथेन रक्षोहामित्राँ अपबाधमानः। 
प्रभञ्जन्सेनाः प्रमणो युधा जयन्न स्माकमेध्यविता रथानाम्॥4॥ 
हे व्याकरण कर्ता! तुम रथ से संचरण करने वाले, राक्षस-विनाशक, शत्रु पीड़ा कारक, उनकी सेनाओं के विध्वंस कर्ता एवं युद्ध द्वारा हिंसाकारियों के विजेता हो। हमारे रथों के रक्षक बनो।
Hey Indr (grammarian)! You control the war in a chariot, kills the demons-giants, causes pain to the enemy, destroys their armies and is winner of the violent traitors in the war. Please protect our chariots. 
बनविज्ञायः स्थविरः प्रवीरः सहस्वान् वाजी सहमान उग्रः।
अभिवीरो अभित्त्वा सहोजा जैत्रमिन्द्र रथमा तिष्ठ गोवित्॥5॥ 
हे दूसरों के बल को जानने वाले, पुरातन शासक, शूर, साहसी, अन्रवान्, उग्र, वीरों से युक्त, परिचरों से युक्त, सहज ओजस्वी, स्तुति के ज्ञाता एवं शत्रुओं के तिरस्कर्ता इन्द्र! तुम अपने जयशील रथ पर आरूढ हो जाओ।
तिरस्कार :: घृणा, अवहेलना, घृष्टता, निन्दा, परिवाद, धिक्कार, भला-बुरा, घिन, हँसी, नफ़रत, मज़ाक; disdain, reproach, scorn.  
Hey Indr! You assess the power-strength of the enemy, ancient ruler, brave possessing valour, possess food grain, fiery (violent, furious), possess aura, aware of prayers (of the Almighty), subjects the enemy to humiliation-reproach. Please ride your winning chariot.
गोत्रभिदं गोविदं वजबाहु जयन्तमज्म प्रमुणन्तमोजसा। 
इम ँ ् सजाता अनुवीरयध्वमिन्द्र ँ ् सखायो अनुस ँ ् रभव्यम्॥6॥
है तुल्य जन्मा इन्द्र सखा देवो! इस असुर संहारक, वेदज्ञ, वज्रबाहु, रणजेता, बलपूर्वक शत्रु-संहर्ता इन्द्र के अनुरूप ही तुम लोग भी शौर्य दिखाओ और इसकी ओर से तुम भी आक्रमण करो।
Hey demigods with the equivalent origin-ancestry! You should join Indr, who destroys the demons-giants, enlightened in Veds, wears thunder volt-Vajr, wins the war, kills the enemies with force-might and show bravery just like him and raid the enemies. 
अभिगोत्राणि सहसा गाहमानोऽदयो वीरः शतमन्युरिन्द्र।  
दुश्च्यवनः पृतनाषाडयुध्योऽस्माक ँ ् सेना अवतु प्र युत्सु॥7॥ 
शत्रुओं को निर्दयतापूर्वक, विविध क्रोधयुक्त हो और सहसा मर्दित करनेवाला और अडिग होकर उनके आक्रमणों को झेलने वाला वीर इन्द्र हमारी सेना की सर्वथा रक्षा करे।
Brave Indr, who faces-tolerates the enemies without fear, unmoved, possess vivid angers (means to strike), grants honours at once should protect our armies completely-thoroughly.
इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः।
देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रम्॥8॥ 
शत्रुओं का मानमर्दन करनेवाली, विजयोन्मुखी, इन देव सेनाओं का नेता वेदज्ञ इन्द्र है। विष्णु इसके दाहिने ओर से आयें, सोम सामने से आयें तथा गण देवता आगे-आगे चलें। 
Indr is the leader of the winning mighty demigods-deities armies which destroys the pride of the enemies. Let Bhawan Shri Hari Vishnu by his right side, Som-Chandr Dev in front the Gan Devta moves ahead-forward. 
इन्द्रस्य वृष्णोवरुणस्य राज्ञआदित्यानां मरुता ँ ् शर्धउग्रम्।
महामनसां भुवनच्यवानां घोषो देवानां जयतामुदस्थात्॥9॥
वर्षण शील इन्द्र की, राजा वरुण की, महामनस्वी आदित्यों और मरुतों की तथा भुवनों को दबाने वाले  विजयी देवताओं की सेना का उग्र घोष हुआ।
The winning-striking armies of the demigods-deities, which targets-presses the abodes of the demons-enemies, ready to shower Indr Dev, king Varun Dev, enlightened Adity Gan and the Marud Gan  made winning sound.
उद्धर्षय मधवन्नायुधान्युत्सत्वनां मामकानां मना ँ ्सि। 
उदवृत्रहन्वाजिनां वाजिनान्युद्रधानां जयतां यन्तु घोषाः॥10॥
हे इन्द्र! आयुधों को उठाकर चमका दो। हमारे जीवों के मन प्रसन्न कर दो। हे इन्द्र! घोड़ों की गति तीव्र कर दो और जयशील रथों के घोष तुमुल (Boisterous) हों।
Hey Indr! Let the weapons be polished making our hearts fill with pleasure & let the horses run fast making boisterous sound of the chariots.
अस्माकमिन्द्र: समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु। 
अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँ उ देवा अवता हवेषु॥11॥
हमारी ध्वजाओं के शत्रु ध्वजाओं से जा मिलने पर इन्द्र हमारी रक्षा करें। हमारे बाण विजयी हों। हमारे वीर शत्रु वीरों से उत्कृष्ट हों तथा युद्ध में देवता हमारी रक्षा करें।
Let Dev Raj Indr protect us if our flags joins the flags of the enemy i.e., we are defeated. Our arrows should be victorious. Our soldiers should be better than those of the enemy. Let demigods-deities protect us in war.
अमीषां चित्तं प्रतिलोभयन्ती गृहाणाङ्गान्यप्वे परेहि। 
अभि प्रेहिनिर्दह हृत्सु शोकैरन्धेनामित्रास्तमसा सचन्ताम्॥12॥
हे व्याधि देवि! इन शत्रुओं के चित्तों को मोहित करती हुई पृथक् हो जा। चारों ओर से अन्यान्य शत्रुओं को भी समेटती हुई पृथक् हो जा। उनके हृदयों को शोकाकुल कर दो और वे हमारे शत्रु तामस अहंकार से ग्रस्त हो जायँ।
Hey Vyadhi Devi-deity causing trouble! Please cast your spell over the enemy move away. Surround the enemy from all sides and move away. Let their hearts be filled with pain-sorrow. Let our enemy be overpowered by Tamas (making them lazy-immovable) proud-arrogance.
अवसृष्टा परापत शरव्ये ब्रह्मस ँ ्शिते।
गच्छामित्रान् प्रपद्यस्व मामीषां कंचनोच्छिषः॥13॥
ब्रह्म मन्त्र से अभिमन्त्रित हे हमारे बाण-ब्रह्मास्त्रो! हमारे द्वारा छोड़े जाने पर तुम शत्रुओं पर जा पड़ो। उनके पास जाओ और उनके शरीरों में प्रविष्ट हो जाओ तथा  उनमें से किसी को भी न छोड़ो।
Hey our arrows-Brahmastr! You should fall over the enemy. Move to them and penetrate their bodies. Don't spare even a single enemy. 
प्रेता यजता नर इन्द्रो वः शर्म यच्छतु। 
उग्रा वः सन्तु बाहवोऽनाधृष्या यथाऽसथ॥14॥ 
हे हमारे नरो! जाओ और विजय करो। इन्द्र तुम्हें विजय-सुख दें। तुम्हारी भुजाएँ उग्र हों, जिससे तुम अघर्षित होकर टिके रहो। 
घर्षित :: रगड़ा हुआ, घिसा, पिसा हुआ, अपहृत, अपहृता, घर्षित, घर्षिताअच्छी तरह धुला हुआ, माँजा हुआ; abject, victim of abduction.
Hey warriors-soldiers! Move and win-over power the enemy. Let Devraj Indr provide you with the pleasure-happiness of victory. Your hands-arms should be fiery, strong enough and quick, so that you remain un abducted.
असौ या सेना मरुतः परेषामभ्यैति न ओजसा स्पर्धमाना।
तां गृहत तमसाऽपव्रतेन यथाऽमी अन्यो अन्यं न जानन्॥15॥ 
हे मरुद्गण! यह जो शत्रु सेना बल में हम से स्पर्धा करती हुई हमारी ओर चली आ रही है, उसे कर्म हीनता के अन्धकार से आच्छादित कर दो, ताकि वे आपस में ही एक-दूसरे को न जानते हुए लड़ मरें।
Hey Marud Gan! Let the enemy army, which is moving towards us, competing with us, should be shrouded with the cover of inability-imprudence so that they fight one another, without recognising themselves. 
यत्र बाणा: सम्पतन्ति कुमारा विशिखा इव।
तत्र इन्द्रोबृहस्पतिरदितिः शर्म यच्छतु विश्वाहा शर्मयच्छतु॥16॥ 
शिखा हीन कुमारों की भाँति शत्रु प्रेरित बाण जहाँ-जहाँ पड़ें, वहाँ-वहाँ इन्द्र, बृहस्पति और अदिति हमारा कल्याण करें। विश्व संहारक हमारा कल्याण करें।
Let the destroyer of the world (Bhagwan Mahesh-Shiv) do our welfare. Where ever the arrows shot by the enemy, like the youth without hair coil over the head, fall Dev Raj Indr, Dev Guru Brahaspati and Mata Aditi look to our welfare i.e., protect us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 16 :: ऋषि :- मेधातिथि काण्व,  देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री। 
आ त्वा वहन्तु हरयो वृषणं सोमपीतये। इन्द्र त्वा सूरचक्षसः॥
हे बलवान इन्द्रदेव! आपके तेजस्वी घोड़े सोमरस पीने के लिये आपको यज्ञस्थल पर लाएँ तथा सूर्य के समान प्रकाशयुक्त ऋत्विज् मन्त्रों द्वारा आपकी स्तुति करें।[ऋग्वेद 1.16.1]
हे अभिष्टक वर्षक इन्द्रदेव! तुम अपने प्रकाशमान रूप वाले अश्वों को सोम पान के लिए यहाँ पर पधारो। 
Hey desires granting-fulfilling Indr Dev! Let your energetic horses bring you at the site of the Yagy, to drink Somras and those (hosts) performing Yagy, bearing the aura like the Sun worship you with the most powerful Mantr. 
इमा धाना घृतस्नुवो हरी इहोप वक्षतः। इन्द्रं सुखतमे रथे॥
अत्यन्त सुखकारी रथ में नियोजित इन्द्रदेव के दोनों हरि (घोड़े) उन्हें (इन्द्रदेव को) घृत से स्निग्ध हवि रूप धाना (भुने हुये जौ) ग्रहण करने के लिये यहाँ ले आएँ।[ऋग्वेद 1.16.2]
इन्द्रदेव के दोनों अश्व उन्हें सुख दायक रूप में विराजम कर घृत से स्निग्ध धान्य के पास ले आयें। 
The two horses driving the comfortable charoite of Indr Dev, should bring him to accept the barley roasted in Ghee.
इन्द्रं प्रातर्हवामह इन्द्रं प्रयत्यध्वरे। इन्द्रं सोमस्य पीतये॥
हम प्रातःकाल यज्ञ प्रारम्भ करते समय मध्याह्नकालीन सोमयाग प्रारम्भ होने पर तथा सांयकाल यज्ञ की समाप्ति पर भी सोमरस पीने के निमित्त इन्द्रदेव का आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.16.3]
हम उषाकाल में इन्द्र देव का आह्वान करते हैं। अनुष्ठान सम्पादन समय में सोमपान करने के लिए इन्द्र देवता का आह्वान करते हैं।
We invite Indr Dev to participate in the Yagy, drink Somras at the beginning of day prior to beginning of the Yagy, noon and the evening at the close of the Yagy. 
उप नः सुतमा गहि हरिभिरिन्द्र केशिभिः। सुते हि त्वा हवामहे॥
हे इन्द्रदेव! आप अपने केसर युक्त अश्‍वों से सोम के अभीष्ट स्थान के पास आएँ। सोम के अभिषुत होने पर हम आपका आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.16.4]
हे इन्द्र! अपने लम्बे केश वाले अश्वों के साथ यहाँ पर पधारो। सोमरस छानंकर तैयार हो जाने पर हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। 
Hey Indr Dev we invite you to the Yagy to begin with the rites of the Yagy along with your horses who have long hairs & smell of saffron.
सेमं न स्तोममा गह्युपेदं सवनं सुतम्। गौरो न तृषितः पिब॥
हे इन्द्रदेव! हमारे स्तोत्रों का श्रवण कर आप यहाँ आएँ। प्यासे गौर मृग के सदृश व्याकुल मन से सोम के अभीष्ट स्थान के समीप आकर सोम का पान करें।[ऋग्वेद 1.16.5]
व्याकुल :: बेचैन, परेशान, व्यस्त; distraught, disturbed.
हे इन्द्र! सोम रस ग्रहण करने के लिए हमारे श्लोकों से यहाँ पर आकर प्यासे हिरन के समान सोमपान करो। 
Hey Indr Dev! Please come here-at the destination of the Yagy & Somras, hearing-listening to our enchantments of verses (Shlok, Mantr, Sukt, Strotr) like a thirsty deer, to sooth your disturbed innerself.
इमे सोमास इन्दवः सुतासो अधि बर्हिषि। ताँ इन्द्र सहसे पिब॥
हे इन्द्रदेव! यह दीप्तिमान सोम निष्पादित होकर कुशाआसन पर सुशोभित है। शक्ति वर्धन के निमित्त आप इसका पान करें।[ऋग्वेद 1.16.6]
है इन्द्रदेव! यह परम बलवाले, निष्पन्न सोम कुशासन पर रखे हैं, तुम उन्हें शक्तिवर्द्धन के लिए पान करो। 
Hey Indr Dev! The aura bearing Somras has been placed over the cushion made of Kush grass. Please drink it to boost your energy-strength.
अयं ते स्तोमो अग्रियो हृदिस्पृगस्तु शंतमः। अथा सोमं सुतं पिब॥
हे इन्द्रदेव! यह स्तोत्र श्रेष्ठ, मर्मस्पर्शी और अत्यन्य सुखकारी है। अब आप इसे सुनकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.16.7]
हे इन्द्रदेव! यह महान श्लोक मर्मस्पर्शी और सुख का कारणभूत हैं। तुम इसे सुनकर तुरन्त ही इस निष्पन्न सोम का पान करो। 
Hey Indr Dev! This piece of verse (stanza, Sukt, Strotr)) is excellent touches the heart and grant bliss. Please have Somras listening to it.
विश्वमित्सवनं सुतमिन्द्रो मदाय गच्छति। वृत्रहा सोमपीतये॥
सोम के सभी अभीष्ट स्थानों की ओर इन्द्रदेव अवश्य जाते हैं। दुष्टों का हनन करने वाले इन्द्रदेव सोमरस पीकर अपना हर्ष बढाते हैं।[ऋग्वेद 1.16.8]
जिस स्थान पर सोम रस छाना जाता है, वहीं पर सोमपान के लिए उससे उत्पन्न प्रसन्नता प्राप्ति के लिए राक्षसों को मारने वाले इन्द्र अवश्य ही पहुँचते हैं।
Indr Dev who is the killer of the demons-Rakshas (wicked, sinners), reaches the site of the Somras, drink it and gather bliss.
सेमं नः काममा पृण गोभिरश्वैः शतक्रतो। स्तवाम त्वा स्वाध्यः॥
हे शतकर्मा इन्द्रदेव! आप हमारी गौओं और अश्वों सम्बन्धी कामनायें पूर्ण करें। हम मनोयोग पूर्वक आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.16.9]
हे महाशक्तिशाली इन्द्र! गाय और अश्वादि-युक्त धनों वाली हमारी सभी इच्छाएँ पूर्ण करें। हम ध्यान पूर्वक तुम्हारी वन्दना करते हैं।
Hey 100 Yagy performing Indr Dev! Please accomplish our desire for cows & horses. We are praying with full concentration-attention of mind.
Deposits of coal & petroleum are present over the earth even since, but our ancestors never touched them, since they caused pollution. Sucking of petroleum disturbs the inner balance of earth and causes earthquakes. Cows & horses were deployed in numerous ways for human welfare. These practices, skills have almost have forgotten after Maha Bharat.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 17 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- इन्द्रा-वरुण, छन्द :- गायत्री।
इन्द्रावरुणयोरहं सम्राजोरव आ वृणे। ता नो मृळात ईदृशे॥
हम इन्द्र और वरुण दोनों प्रतापी देवों से अपनी सुरक्षा की कामना करते हैं। वे दोनों हम पर इस प्रकार अनुकम्पा करें, कि हम सुखी रहें।[ऋग्वेद 1.17.1]
मैं सम्राट इन्द्रदेव और वरुण से चाहता हूँ कि ये दोनों हम पर कृपा दृष्टि रखें।
We expect-desire both the mighty Indr Dev & Varun Dev, to protect us in such a way that we remain happy-comfortable.  
गन्तारा हि स्थोऽवसे हवं विप्रस्य मावतः। धर्तारा चर्षणीनाम्॥
हे इन्द्रदेव और वरुणदेवो! आप दोनों मनुष्यों के सम्राट, धारक एवं पोषक हैं। हम जैसे ब्राह्मणों के आवाहन पर सुरक्षा ले लिये आप निश्चय ही आने को उद्यत रहते हैं।[ऋग्वेद 1.17.2]
हे मनुष्यों के स्वामी! हम ब्राह्मणों के पुकारने पर सुरक्षा के लिए अवश्य पधारो!
Hey Indr Dev & Varun Dev! Both of you are the emperors, sustain and nurturer of the humans. You are always willing-ready to help-protect the Brahmns. 
अनुकामं तर्पयेथामिन्द्रावरुण राय आ। ता वां नेदिष्ठमीमहे॥
हे इन्द्रदेव और वरुणदेवो! हमारी कामनाओं के अनुरूप धन देकर हमें संतुष्ट करें। आप दोनों के समीप पहुचँकर हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.17.3]
हे इन्द्रदेव व वरुण। हमको अभिष्ट धन प्रदान करके संतुष्ट करें। हम तुम्हारी निकटता चाहते हैं।
Hey Indr Dev & Varun Dev! Please grant riches as per our desires to satisfy us. We pray to by approaching you.
The requirements of the Brahmns are minimum. They are content with whatever is available to them. But with changing times, everything is changing.
युवाकु हि शचीनां युवाकु सुमतीनाम्। भूयाम वाजदाव्नाम्॥
हमारे कर्म संगठित हो, हमारी सद्‍बुद्धि संगठित हो, हम अग्रगण्य होकर दान करने वाले बनें।[ऋग्वेद 1.17.4]
शक्ति तथा सुबुद्धि प्राप्ति की कामना से हम तुम्हारी अभिलाषा करते हैं। हम अन्न-दान करने वालों में अग्रणी रहें।
Our efforts and intelligence should function unitedly and we should come forward to donate.
The Brahmn accept money, grants, donations and distribute them to the needy after keeping a fraction of it for their family.
इन्द्रः सहस्रदाव्नां वरुणः शंस्यानाम्। क्रतुर्भवत्युक्थ्यः॥
इन्द्रदेव सहस्त्रों दाताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं और वरुणदेव सहस्त्रों प्रशंसनीय देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 1.17.5]
सहस्त्रों धन दाताओं में इन्द्र ही उत्तम हैं। पूजा को स्वीकार करने वालों में वरुण उत्तम हैं। 
Indr Dev is excellent amongest the donors and Varun Dev is excellent amongest the demigods-deities who deserve appreciation. 
तयोरिदवसा वयं सनेम नि च धीमहि। स्यादुत प्ररेचनम्॥
आपके द्वारा सुरक्षित धन को प्राप्त कर हम उसका श्रेष्ठतम उपयोग करें। वह धन हमें विपुल मात्रा में प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.17.6]
उनकी रक्षा से हम धन को प्राप्त कर उसका उपभोग करें। वह धन प्रचुर परिमाण से संचित हो।
We should put the protected money received from you to its best possible use. We should get such money in abundance. 
इन्द्रावरुण वामहं हुवे चित्राय राधसे। अस्मान्सु जिग्युषस्कृतम्॥
हे इन्द्र-वरुण देवो! विविध प्रकार के धन की कामना से हम आपका आवाहन करते हैं। आप हमें उत्तम विजय प्राप्त कराएँ।[ऋग्वेद 1.17.7]
हे इन्द्र और वरुण। अनेक प्रकार के धनों के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। हमको उत्तम ढंग से जय लाभ करा दो।
Hey Indr Dev & Varun Dev! We invite-invoke (pray) to you to obtain different forms money in various ways. You should grant us success-victory. 
For the Brahmn generally, the riches account in the form of cows, horses & house.
इन्द्रावरुण नू नु वां सिषासन्तीषु धीष्वा। अस्मभ्यं शर्म यच्छतम्॥
हे इन्द्रा-वरुण देवो! हमारी बुद्धि सम्यक् रूप से आपकी सेवा करने की इच्छा करती है, अतः हमें शीघ्र ही निश्‍चय पूर्वक सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.17.8]
हे इन्द्रदेव और वरुण! तुम दोनों प्रेम भाव रखते हुए हमको अपनी शरण प्रदान करो।
Hey Indr Dev & Varun Dev!  We wish to serve you as per our intelligence & prudence. So, grant us comforts with dedication.
The Brahm wish to pray to the Almighty, do social welfare, learn & teach Ved, scriptures peacefully.
प्र वामश्नोतु सुष्टुतिरिन्द्रावरुण यां हुवे। यामृधाथे सधस्तुतिम्॥
हे इन्द्र-वरुण देवो! जिन उत्तम स्तुतियों के लिये हम आप दोनों का आवाहन करते हैं एवं जिन स्तुतियों को साथ-साथ प्राप्त करके आप दोनों पुष्ट होते हैं, वे स्तुतियाँ आपको प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.17.9]
हे इन्द्रदेव और वरुण। जो सुन्दर वन्दना तुम्हारे लिए करता हूँ और जिन वन्दना की तुम पुष्टि करते हो, उन वन्दनाओं को प्राप्त करो।
Hey Indr & Varun! We pray to you with the help of selected, excellent verses (Shlok, Mantr, Sukt, Strotr) to invite-invoke you to make you capable to protect the humans.
ऋग्वेद संहिता,  प्रथम मंडल सूक्त 21 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व,  देवता :- इन्द्राग्नि,  छन्द :- गायत्री। 
इहेन्द्राग्नी उप ह्वये तयोरित्स्तोममुश्मसि। ता सोमं ओमापातामा॥
इस यज्ञ स्थल पर हम इन्द्र एवं अग्निदेव का आवाहन करते हैं, सोमपान के उन अभिलाषियों की स्तुति करते हुए सोमरस पीने का निवेदन करते हैं।[ऋग्वेद 1.21.1]
इन्द्रदेव और अग्नि का इस अनुष्ठान स्थल पर आह्वान करता हूँ। उन्हीं का पूजन करता हुआ सोमपान करने के लिए दोनों से विनती करता हूँ। 
We invite Dev Raj Indr & Agni Dev to sip Somras at this Yagy site by chanting prayers.
ता यज्ञेषु प्र शंसतेन्द्राग्नी शुम्भता नरः। ता गायत्रेषु गायत॥
हे ऋत्विजो! आप यज्ञानुष्ठान करते हुये इन्द्र एवं अग्निदेव की शास्त्रों (स्तोत्रों) से स्तुति करे, विविध अंलकारों से उन्हें विभूषित करें तथा गायत्री छन्द वाले सामगान (गायत्र साम) करते हुये उन्हें प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 1.21.2]
हे मनुष्यों इन्द्र और अग्नि का पूजन करो, उन्हें अलंकृत कर श्लोक-गान करो।
Hey hosts-Yagy performers! Make Indr Dev & Agni Dev happy-pleased through prayers-verses related to Sam songs (Gayatr Sam), decorate them with various ornaments-jewels while conducting Yagy.  
ता मित्रस्य प्रशस्तय इन्द्राग्नी ता हवामहे। सोमपा सोमपीतये॥
सोमपान की इच्छा करने वाले मित्रता एवं प्रशंसा के योग्य उन इन्द्र एवं अग्निदेव को हम सोमरस पीने के लिये बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.21.3]
इन्द्रदेव और अग्नि को सखा की प्रशंसा हेतु तथा सोमपान करने के लिए बुलाया करते हैं।
We invite Indr Dev & Agni Dev who deserve appreciation and friendship for drinking Somras. 
उग्रा सन्ता हवामह उपेदं सवनं सुतम्। इन्द्राग्नी एह गच्छताम्॥
अति उग्र देवगण एवं अग्निदेव को सोम के अभीष्ट स्थान (यज्ञस्थल) पर आमन्त्रित करते हैं, वे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.21.4]
उग्र :: तीव्र, हिंसक, हिंस्र, प्रचंड, उत्तेजित, प्रंचड, गरम मिज़ाज, अतिक्षुब्ध; furious, fiery, hot blooded, violent. frantic.
उग्रदेव इन्द्र और अग्नि को सोमयज्ञ में आह्वान करते हैं। वे दोनों यहाँ पर पधारें।
We invite the fiery demigods-deities & Agni Dev at this site to participate in Som Yagy. 
ता महान्ता सदस्पती इन्द्राग्नी रक्ष उब्जतम्। अप्रजाः सन्त्वत्रिणः॥
देवों में महान वे इन्द्र अग्निदेव सत्पुरुषों के स्वामी(रक्षक) हैं। वे राक्षसों को वशीभूत कर सरल स्वभाव वाला बनाएँ और मनुष्य भक्षक राक्षसों को मित्र-बान्धवों से रहित करके निर्बल बनाएँ।[ऋग्वेद 1.21.5]
हे उत्तम समाज की रक्षा करने वाले इन्द्र और अग्नि! तुम दोनों दुष्टों को वशीभूत करो। नर भक्षी दानव संतानहीन हों।
Greatest amongst the demigods Indr Dev & Agni Dev, who are the protector of the virtuous, should control and make the demons simple & kill-eliminate the demons-giants along with their friends & relatives i.e., kill their descendant as well; who eat humans. 
तेन सत्येन जागृतमधि प्रचेतुने पदे। इन्द्राग्नी शर्म यच्छतम्॥
हे इन्द्राग्ने! सत्य और चैतन्य रूप यज्ञस्थान पर आप संरक्षक के रूप में जागते रहें और हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.21.6]
हे इन्द्राग्ने! उस सत्य, चैतन्य यज्ञ के हेतु जागकर हमको सहारा प्रदान करें। 
Hey Indr Dev & Agni Dev! You should be awake as the protector of truth and consciousness at the site of the Yagy and grant us comforts-pleasure.
इहेन्द्राणीमुप ह्वये वरुणानीं स्वस्तये। अग्नायीं सोमपीतये॥12॥
अपने कल्याण के लिए सोमपान के लिए हम इन्द्राणी, वरुणानी और अग्नायी का आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.22.12]
अपने मंगल के लिए इन्द्राणी, वरुण-भार्या और अग्नि देव की भार्या को सोमपान करने के लिए आह्वान करता हूँ। 
We invite Indrani-wife of Dev Raj Indr, Varunani-wife of Varun Dev & the wife of Agni Dev for our welfare.
मरुत्वन्तं हवामह इन्द्रमा सोमपीतये। सजूर्गणेन तृम्पतु॥
मरुद्‍गणों के सहित इन्द्रदेव को सोमपान के निमित्त बुलाते हैं। वे मरुद्‍गणों के साथ आकर तृप्त हों।[ऋग्वेद 1.23.7]
मरुतों से युक्त इन्द्रदेव का हम आह्वान करते हैं। वे सोमपान हेतु यहाँ पधारकर तृप्त हों।
We invite Indr Dev along with Marud Gan to come and drink Somras. Let him be satisfied. 
इन्द्रज्येष्ठा मरुद्गणा देवासः पूषरातयः। विश्वे मम श्रुता हवम्॥
दानी पूषादेव के समान इन्द्रदेव दान देने में श्रेष्ठ हैं। वे सब मरुद्‍गणों के साथ हमारे आवाहन को सुने।[ऋग्वेद 1.23.8]
पूषा दाता हैं और दाताओं में प्रमुख हैं। वे मरुदगण हमारे आह्वान को सुनें।
Indr Dev is an excellent donor like the Pusha Dev. He should come-accept our invitation along with all Marud Gan 
हत वृत्रं सुदानव इन्द्रेण सहसा युजा। मा नो दुःशंस ईशत॥
हे उत्तम दानदाता मरुतो! आप अपने उत्तम साथी और बलवान इन्द्र के साथ दुष्टों का हनन करें। दुष्टता हमारा अतिक्रमण न कर सके।[ऋग्वेद 1.23.9]
हे सुशोभित दानी मरुतो! तुम बलिष्ठ और सहायक इन्द्रदेव से युक्त शत्रुओं को समाप्त कर डालो। कहीं दुष्ट व्यक्ति हम पर शासन न करने लगें। 
दुष्ट :: पापी, दोषपूर्ण, बुरा, नटखट, हानिकारक, उत्पाती; evil, wicked, vicious. 
Hey excellent donor Marud Gan! Please crush the evil-wicked with the help of your best friend and powerful Indr Dev. Don't let the evil over power us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 32  :: ऋषि :- हिरण्यस्तूप अङ्गिरस,  देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्रस्य नु वीर्याणि प्र वोचं यानि चकार प्रथमानि वज्री।
अहन्नहिमन्वपस्ततर्द प्र वक्षणा अभिनत्पर्वतानाम्॥
मेघों को विदिर्ण कर पानी बरसाने वाले, पर्वतीय नदियों के तटों (embankments) को निर्मित करने वाले वज्रधारी, पराक्रमी इन्द्रदेव के कार्य वर्णनीय है। उन्होंने जो प्रमुख वीरतापूर्ण कार्य किये, वे ये ही हैं[ऋग्वेद 1.32.1] 
Accomplishments of thunder volt wearing Indr Dev as a warrior are praiseworthy-descriptive. He made the clouds rain, built embankments of mountainous rivers. 
अहन्नहिं पर्वते शिश्रियाणं त्वष्टास्मै वज्रं स्वर्यं ततक्ष।
वाश्रा इव धेनवः स्यन्दमाना अञ्जः समुद्रमव जग्मुरापः॥
इन्द्र देव के लिये त्वष्टा देव ने शब्द चालित वज्र का निर्माण किया, उसी से इन्द्र देव ने मेघो को विदिर्ण कर जल बरसाया। रंभाती हुयी गौओ के समान वे जल प्रवाह वेग से समुद्र की ओर चले गये[ऋग्वेद 1.32.2]
Twasta Dev made thunder volt for Indr Dev, which functions just uttering words-orders, used by him to shower rains from the clouds. The rain waters moved to the oceans making roaring sounds like the cows.
वृषायमाणोऽवृणीत सोमं त्रिकद्रुकेष्वपिबत्सुतस्य।
आ सायकं मघवादत्त वज्रमहन्नेनं प्रथमजामहीनाम्॥
अतिबलशाली इन्द्रदेव ने सोम को ग्रहण किया। यज्ञ में तीन विशिष्ट पात्रों में अभिषव (यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान) किये हुये सोम का पान किया। ऐश्वर्यवान इन्द्रदेव ने बाण और वज्र को धारण कर मेघों में प्रमुख मेघ को विदीर्ण किया[ऋग्वेद 1.32.3]
Mighty Indr Dev accepted Som Ras after bathing for the Yagy. Indr Dev having riches-amenities shot arrows & Thunder Volt to tear clouds (for rains).
यदिन्द्राहन्प्रथमजामहीनामान्मायिनाममिनाः प्रोत मायाः।
आत्सूर्यं जनयन्द्यामुषासं तादीत्ना शत्रुं न किला विवित्से॥
हे इन्द्रदेव! आपने मेघों में प्रथम उत्पन्न मेघ को वेध दिया। मेघ रूप में छाये धुन्ध (मायावियों) को दूर किया, फिर आकाश में उषा और सूर्य को प्रकट किया। अब कोई भी अवरोधक शत्रु शेष न रहा[ऋग्वेद 1.32.4]
Hey Indr Dev! You targeted the first cloud from amongest the clouds and tore it, cleared the fog (& mist) and unfolded-cleared Usha (the morning break, first rays of light) and Bhawan Sury Narayan. Now, no enemy was left.
अहन्वृत्रं वृत्रतरं व्यंसमिन्द्रो वज्रेण महता वधेन।
स्कन्धांसीव कुलिशेना विवृक्णाहिः शयत उपपृक्पृथिव्याः॥
इन्द्र देव ने घातक दिव्य वज्र से वृत्रासुर का वध किया। वृक्ष की शाखाओं को कुल्हाड़े से काटने के समान उसकी भुजाओं को काटा और तने की तरह इसे काटकर भूमि पर गिरा दिया[ऋग्वेद 1.32.5]
Indr Dev killed Vrata Sur with deadly-fearsome divine Vajr (thunder Volt). Cut his arms like the branches of a tree, the way an axe cuts the stem of the tree and downed him over the ground.
अयोद्धेव दुर्मद आ हि जुह्वे महावीरं तुविबाधमृजीषम्।
नातारीदस्य समृतिं वधानां सं रुजानाः पिपिष इन्द्रशत्रुः॥
अपने को अप्रतिम योद्धा मानने वाले मिथ्या अभिमानी वृत्र ने महाबली, शत्रु वेधक, शत्रु नाशक इन्द्र देव को ललकारा और इन्द्र देव के आघातों को सहन न कर गिरते हुये नदियों के किनारों को तोड़ दिया[ऋग्वेद 1.32.6]
Vrat who nourished false pride-ego challenged Indr Dev who penetrates the enemy and destroyed him. Vrata Sur could not bear the strikes made by Indr Dev and fell down, breaking the banks of rivers.
अपादहस्तो अपृतन्यदिन्द्रमास्य वज्रमधि सानौ जघान।
वृष्णो वध्रिः प्रतिमानं बुभूषन्पुरुत्रा वृत्रो अशयद्व्यस्तः॥
हाथ और पाँव के कट जाने पर भी वृत्र ने इन्द्रदेव से युद्ध करने का प्रयास किया। इन्द्र देव ने उसके पर्वत सदृश कन्धों पर वज्र का प्रहार किया। इतने पर भी वह वर्षा करने में समर्थ इन्द्र देव के सम्मुख वह डटा रहा। अन्ततः इन्द्र देव के आघातों से ध्वस्त होकर भूमि पर गिर पड़ा[ऋग्वेद 1.32.7]
In spite of cutting his hands and legs he tried to fight-resist Indr Dev. Indr Dev then struck his shoulders. Still he did not escape and resisted Indr dev. Ultimately he fell down due to the strikes made by Indr Dev.
नदं न भिन्नममुया शयानं मनो रुहाणा अति यन्त्यापः।
याश्चिद्वृत्रो महिना पर्यतिष्ठत्तासामहिः पत्सुतःशीर्बभूव॥
जैसे नदी की बाढ़ तटों को लाँघ जाती है, वैसे ही मन को प्रसन्न करने वाले जल (जल अवरोधक) वृत्र को लाँघ जाते हैं। जिन जलों को वृत ने अपने बल से आबद्ध किया था, उन्हीं के नीचे वृत्र मृत्यु शय्या पर पड़ा सो रहा है[ऋग्वेद 1.32.8]
The way the river crosses the banks, the waters which makes one happy, crossed Vrata Sur. The water bodies (oceans, rivers, lakes) controlled by Vrata Sur covered his dead remains-body.
नीचावया अभवद्वृत्रपुत्रेन्द्रो अस्या अव वधर्जभार।
उत्तरा सूरधरः पुत्र आसीद्दानुः शये सहवत्सा न धेनुः॥
वृत्र की माता झुककर कर वृत्र का संरक्षण करने लगी, इन्द्र देव के प्रहार से बचाव के लिये वह वृत्र पर सो गयी। फिर भी इन्द्र देव ने नीचे से उस पर प्रहार किया। उस समय माता ऊपर और पुत्र नीचे था, जैसे गाय अपने बछड़े के साथ सोती है[ऋग्वेद 1.32.9]
Vrata Sur's mother tried to protect him, the way a cow tries to save her calf. She covered him by her body but Indr Dev struck him from below. 
अतिष्ठन्तीनामनिवेशनानां काष्ठानां मध्ये निहितं शरीरम्।
वृत्रस्य निण्यं वि चरन्त्यापो दीर्घं तम आशयदिन्द्रशत्रुः॥
एक स्थान पर न रुकने वाले अविश्रांत (मेघ रुप) जल-प्रवाहों के मध्य वृत्र का अनाम शरीर छिपा रहता है। वह दीर्घ निद्रा में पड़ा रहता है, उसके ऊपर जल प्रवाह बना रहता है[ऋग्वेद 1.32.10]
Vrata Sur's unidentified body remains covered under the waters just like the clouds moving hither & thither. He remains in deep sleep and waters keep on flowing over him.
दासपत्नीरहिगोपा अतिष्ठन्निरुद्धा आपः पणिनेव गावः।
अपां बिलमपिहितं यदासीद्वृत्रं जघन्वाँ अप तद्ववार॥
पणि नामक असुर ने जिस प्रकार गौओं अथवा किरणों को अवरूद्ध कर रखा था, उसी प्रकार जल-प्रवाहों को अगतिशील वृत्र ने रोक रखा था। वृत्र का वध कर वे प्रवाह खोल दिये गये[ऋग्वेद 1.32.11]
Vrata Sur had blocked the flow of waters just like the demon named Pani, who had blocked the path of cows and rays of light. These water bodies were made to flow by killing Vrata Sur.
अश्व्यो वारो अभवस्तदिन्द्र सृके यत्त्वा प्रत्यहन्देव एकः।
अजयो गा अजयः शूर सोममवासृजः सर्तवे सप्त सिन्धून्॥
हे इन्द्रदेव! जब कुशल योद्धा वृत्र ने वज्र पर प्रहार किया, तब घोड़े की पूँछ हिलाने के तरह, बहुत आसानी से आपने अविचलित भाव से उसे दूर कर दिया। हे महाबली इन्द्रदेव! सोम और गौओं को जीतकर आपने (वृत्र के अवरोध को नष्ट कर) गँगादि सरिताओं को प्रवाहित किया[ऋग्वेद 1.32.12]
Hey Indr Dev! When skilled warrior Vrata Sur attacked Vajr, you repelled him just as the horse moves his tail, you repelled him without being disturbed. Hey mighty warrior Indr Dev! You won Somras and cows and let the rivers like Maa Ganga flow.
नास्मै विद्युन्न तन्यतुः सिषेध न यां मिहमकिरद्ध्रादुनिं च।
इन्द्रश्च यद्युयुधाते अहिश्चोतापरीभ्यो मघवा वि जिग्ये॥
युद्ध में वृत्र द्वारा प्रेरित भीषण विद्युत, भयंकर मेघ गर्जन, जल और हिम वर्षा भी इन्द्र देव को रोक नही सके। वृत्र के प्रचण्ड घातक प्रयोग भी निरर्थक हुए। उस युद्ध मे असुर के कर प्रहार को इन्द्रदेव ने निरस्त करके उसे जीत लिया[ऋग्वेद 1.32.13]
Strikes by Vrata Sur in the war with dangerous electricity-currents (lightening), thunderous sound of clouds, heavy rainfall and his deadly strikes could not stop Indr Dev & he won Vrata Sur. Indr Dev countered all his strikes and nullified them.
अहेर्यातारं कमपश्य इन्द्र हृदि यत्ते जघ्नुषो भीरगच्छत्।
नव च यन्नवतिं च स्रवन्तीः श्येनो न भीतो अतरो रजांसि॥
हे इन्द्रदेव! वृत्र का वध करते समय यदि आपके हृदय में भय उत्पन्न होता तो किस दूसरे वीर को असुर वध के लिये देखते? ऐसा करके आपने निन्यानबे (लगभग सम्पूर्ण) जल प्रवाहों को बाज पक्षी की तरह सहज ही पार कर लिया[ऋग्वेद 1.32.14]
Hey Indr Dev! How could we see-observe any other warrior kill-slay Vrata Sur, had you not been fearless throughout. While achieving this feat you crossed 99 (categories of water bodies, almost all water bodies) like an hawk-eagle easily.
इन्द्रो यातोऽवसितस्य राजा शमस्य च शृङ्गिणो वज्रबाहुः।
सेदु राजा क्षयति चर्षणीनामरान्न नेमिः परि ता बभूव॥
हाथों में वज्र धारण करने वाले इन्द्र देव मनुष्य, पशु आदि सभी स्थावर-जंगम प्राणियों के राजा हैं। शान्त एवं क्रूर प्रकृति के सभी प्राणी उनके चारों ओर उसी प्रकार रहते है, जैसे चक्र की नेमि के चारों ओर उससे अरे होते हैं[ऋग्वेद 1.32.15]
Thunder Volt bearing Indr Dev is the king of all humans, animals, fixed species and gigantic organisms. All sorts of organisms-living beings keep on revolving him, like the spikes of a Chakr-disk.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल  सूक्त 51 :: ऋषि :- सव्य आंगिरस,  देवता :- इन्द्र,  छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
अभि त्यं मेषं पुरुहूतमृग्मियमिन्द्रं गीर्भिर्मदता वस्वो अर्णवम् यस्य द्यावो। 
विचरन्ति मानुषा भुजे मंहिष्ठमभि विप्रमर्चत
जिन्हें लोग बुलाते हैं, जो स्तुति-पात्र और धन के सागर हैं, उन्हीं मेष या बलवान इन्द्रदेव की प्रार्थना करो। सूर्य-किरणों की तरह जिनका कार्य मनुष्यों का हित करना है, उन्हीं क्षमता शाली और मेधावी इन्द्रदेव की सुख प्राप्ति के लिए अर्चना करें।[ऋग्वेद 1.51.1]
हे व्यक्तियों! अनेकों द्वारा पुकारे गये पूजनीय धन सागर, महान पराक्रमी इन्द्रदेव को हर्षित करो। मनुष्यों के हितार्थ में किये गये जिसके कर्म प्रसिद्ध हैं, तुम बुद्धि द्वारा उसी की अर्चना करो।
Pray to Indr Dev who deserve prayers, worship, is a source of wealth & is mighty. He helps the humans like the Sun rays. Let us pray to intelligent-prudent, powerful Indr Dev for attaining comforts.
अभीमवन्वन्त्स्वभिष्टिमूतयोऽन्तरिक्षप्रां तविषीभिरावृतम्। 
इन्द्रं दक्षास ऋभवो मदच्युतं शतक्रतुं जवनी सूनृता वृहत्
इन्द्र का आगमन सुशोभन है। अपने तेज से इन्द्र अन्तरिक्ष को पूर्ण करते हैं। वे बली, दर्प हर और शतक्रतु हैं। रक्षण और वर्द्धन में तत्पर होकर ऋभुगण या मरुद्गण इन्द्र के समक्ष आये और उनकी सहायता की। उन्होंने उत्साह वर्धक वाक्यों द्वारा इन्द्र को उत्साहित किया।[ऋग्वेद 1.51.2]
सहायता देने वाले, कार्यों में कुशल, ऋभुओं में पूजनीय, अत्यन्त साहस वाले इन्द्र की वन्दना करने वालों की प्रिय वाणी बहुकर्मा इन्द्र को उत्साहवर्द्धक हुई!
Arrival of Indr leads to human welfare. He fills the space-sky with his energy. He is strong-powerful, removes ego and destroys the enemy. Ribhu Gan & Marud Gan came to Indr Dev to support him, well prepared for protection and growth of humans and encouraged him.
त्वं गोत्रमङ्गिरोभ्योऽवृणोरपोतात्रये शतदुरेषु गातुवित्। 
ससेन चिद्विमदायावहो वस्वाजावद्रिं वावसानस्य नर्तयन्
हे इन्द्र देवता! आपने अङ्गिरा ऋषि के लिए मेघ से वर्षा कराई। जब असुरों ने रात्रि के ऊपर शतद्वार नाम का अस्त्र फेंका, तब भागने के लिए आपने अत्रि ऋषि को मार्ग बता दिया। आपने विमद ऋषि को अन्न व धन से युक्त किया। इसी प्रकार युद्ध में विद्यमान स्तोता की अपने वज्र के द्वारा रक्षा की। इसलिए आपकी महिमा का वर्णन कौन कर सकता है? [ऋग्वेद 1.51.3]
तुमने अंगिरा और रात्रि के लिए धेनुओं को संगठन ग्रहण कराया। वंदनाकारी विमद के वज्र द्वारा अन्न परिपूर्ण धनों को ग्रहण कराते हुए उनकी सुरक्षा की। वज्र के द्वारा उनकी रक्षा की। इस लिए आपकी महिमा का वर्णन कौन कर सकता है।
Hey Indr Dev! You managed rain fall for Angira Rishi. When Asur-demons, giants attacked Ratri-night, you projected the Astr-weapon called Shatdwar over them and showed the way to Atri to escape. You provided food grains and riches to Vimad Rishi. You protected the Stota-devotees with your Vajr. That why its difficult to describe your glory might.
  त्वमपामपिधानावृणोरपाधारयः पर्वते दानुमद्वसु। 
वृत्र यदिन्द्र शवसावधी, रहिमादित्सूर्य दिव्यारोहयो दृशे
हे इन्द्र देव! आपने जल-वाहक मेघ को मुक्त किया और पर्वत के दस्यु वृत्र के धन को धारण किया। आपने हत्यारे के पुत्र का वध किया और संसार को देखने के लिए सूर्य को आकाश में प्रकाशित कर दिया।[ऋग्वेद 1.51.4]
हे इन्द्र देव! आपने जलों वाले बादल को खोला। पर्वत पर धन ग्रहण करने के लिये वृत्र को समाप्त किया और सूर्य देव को दर्शन के लिये प्रेरित किया है।
Hey Indr Dev! You released the clouds-carriers of water and  collected the wealth of dacoit of mountain called Vrat. You killed the murderer's son. You inspired Sun to make the world visible. 
त्वं मायाभिरप मानिनोऽघमः स्वधाभिर्ये अधि शुप्तावजुह्वत। 
त्वं पिप्रोप्रोर्नृमणः प्रारुजः पुरः प्र ऋजिश्वानं दस्युहत्येष्वाविथ॥
हे इन्द्रदेव! जिन असुरों ने यज्ञीय अस्त्र को अपने शोभन मुख में डाला, उन मायावियों को माया द्वारा आपने परास्त किया। मनुष्यों के लिए आप प्रसन्न चित्त है। आपने पिप्रु नामक असुर का निवास स्थान ध्वस्त किया और ऋजिश्वा ऋषि की रक्षा की।[ऋग्वेद 1.51.5]   
तुमने पिप्रु नामक असुर का गढ़ तोड़कर युद्ध में असुरों को विनाश कर ऋजिश्वा की रक्षा की। 
मायावी :: हाथ न आनेवाला, टाल-मटोल वाला, कपटी, धूर्त, धोखे से भरा हुआ, मायिक; elusive, deceptive, those who cast a magic spell. 
Hey Indr Dev! Those enchanter Asur who put the astr of Yagy in their mouth, were defeated by you with your Maya-enchantment. You defended Rijishrva, protected Kuts after a fight with Shushn and destroyed the fort of Pipru named demon.
त्वं कुत्सं शष्णहत्येष्वाविथारन्धयोऽतिथिग्वाय शम्बरम्। 
महान्तं चिदर्बुदं नि क्रमीः पदा सनादेव दस्युहत्याय जज्ञिषे
हे इन्द्रदेव! शुष्ण असुर के साथ युद्ध में आपने कुत्स ऋषि की रक्षा की और आपने अतिथि-वत्सल दिवोदास की रक्षा के लिए, शम्बरासुर राक्षस का वध किया। आपने महान् अर्बुद नाम के असुर को अपने पैरों से कुचल डाला। इन सब कारणों से विदित होता है कि आपने असुरों के वध के लिए ही जन्म ग्रहण किया है।[ऋग्वेद 1.51.6]
हे इन्द्रदेव! तुमने शुष्ण के साथ संग्राम कर कुत्स की रक्षा की। शम्बर को अतिथिग्व से पराजित कराया। अर्बुदा नामक असुरों को पैरों से रौंदा। तुम असुरों का पतन करने को ही रचित हुए हो।
Hey Indr Dev!  You protected Kuts Rishi fighting Shushn-a demon and killed Shambrasur named demon for the safety of Divodas, a sage well known for welcoming-serving the guests. You killed the demon known as Arbud by crushing him under your feet. this shows that you were born to kill the demons to protect the demigods-deities and the humans.
त्वे विश्वा तविषी सध्यग्घिता तव राध: सोमपीथाय हर्षते। 
तव वज्रश्चिकिते बाह्वोर्हितो वृश्चा शत्रोरव विश्वानि वृष्ण्या॥
नि:सन्देह आपके अन्दर समस्त बल निहित है। सोमपान करने पर आपका मन प्रसन्न होता है। आपके दोनों हाथों में वज्र है, यह हम जानते हैं जिससे आप शत्रुओं के सारे बलों को नष्ट कर डालते हैं।[ऋग्वेद 1.51.7]
सोम पीने के लिए तुम इसे ग्रहण कर वज्र हाथ में लिए हो। उसी से शत्रुओं की समस्त शक्तियों को समाप्त करते हो। हे इन्द्र! तुम समस्त शक्तियों से पूर्ण हो। सोमरस पीने के लिए हर्ष प्राप्त कर वज्र हाथ में लिए हो। उसी से शत्रुओं के सम्पूर्ण बलों को नष्ट करते हो।
Power, strength, might are inborn in you. Drinking of Somras makes you happy. You have Vajr in both of your hands, with which you eliminate the powers of the enemies. 
वि जानीह्यार्यान्ये च दस्यवो बर्हिष्पते रन्धया शासदव्रतान्। 
शाकी भव यजमानस्य चोदिता विश्वेत्ता ते सधमादेषु चाकन॥
हे इन्द्रदेव! कौन आर्य और कौन दस्यु है, यह बात जानें। कुश वाले यज्ञ के विरोधियों का शासन करके उन्हें यजमानों के वश में करें। आप शक्तिमान् हैं, इसलिए यज्ञानुष्ठाताओं की सहायता करते हैं। मैं आपके हर्ष उत्पादक यज्ञ में आपके उन समस्त कर्मों की प्रशंसा करने की इच्छा करता हूँ।[ऋग्वेद 1.51.8]
हे इन्द्र! तुम आर्यों और अनार्यों को भली-भाँति जानते हो। कर्महीनों को ललकारते हुए कुश-आसन बिछाने वाले यजमान को वशीभूत करो। यज्ञों के अनुष्ठान के प्रेरक तुम्हारा मैं यज्ञों में आह्वान करता हूँ। 
Hey Indr Dev! You know well, who is Ary and who is a dacoit-depraved. Please control those who oppose the Yagy carried out with Kush and put them under the control of the hosts carrying Yagy. You are mighty, so you help those who perform Yagy. I appreciate your endeavours which leads to happiness through the Yagy.
अनुव्रताय रन्धयन्नपव्रतानाभूभिरिन्द्रः श्नथयन्ननाभुवः। 
वृद्धस्य चिद्वर्धतो द्यामिनक्षतः स्तवानो वम्रो वि जघान संदिह:॥
ये इन्द्रदेव! यज्ञ-विमुखों को यज्ञप्रिय यजमानों के वशीभूत करके और अभिमुख स्तोताओं द्वारा स्तुति पराङ्मुखों को विनष्ट करते हैं। वे द्युलोक को हानि पहुँचाने वाले राक्षसों का वध करते हैं। ऐसे प्राचीन पुरुष इन्द्रदेव के बढ़ते हुए यश और पराक्रम की वन ऋषि ने स्तुति की।[ऋग्वेद 1.51.9]
हे इन्द्रदेव! तुम कर्महीनों को कर्मवान के वश में करने एवं प्रशंसकों द्वारा निन्दा करने वालों को मृत करते हो। वभ्र ऋषि ने वृद्धि करते हुए इन्द्रदेव से अद्भुत समृद्धि को ग्रहण किया है।
Hey Indr Dev! You bring those who are not interested in Yagy Karm to the fore of the hosts performing Yagy. Indr Dev kills the demons who harm the heaven. Van Rishi prayed to the ancient-prolonged Indr Dev, describing his valour & glory.
तक्षद्यत्त उशना सहसा सहो वि रोदसी मज्मना बाधते शवः। 
आ त्वा वातस्य नृमणो मनोयुज आ पूर्यमाणमवहन्नभि श्रवः॥
हे इन्द्र देव! जबकि उशना ऋषि के बल-द्वारा आपका बल तीक्ष्ण हुआ, तब विशुद्ध तीक्ष्णता-द्वारा आपके बल ने द्युलोक और पृथिवीलोक को भयभीत कर दिया। हे इन्द्र! आपका मन मनुष्य के प्रति अति प्रसन्न है। आपके बलशाली होने पर आपकी इच्छा से संयोजित और वायु की तरह वेगवान् विशिष्ट घोड़े आपको हमारे यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 1.51.10]
हे इन्द्र देव! उशना ने प्रार्थनाओं द्वारा तुम्हारा बल बढ़ाया। उस पराक्रम ने आकाश और धरती को भी कम्पित किया है। हे मनुष्यों पर कृपा करने वाले! सभी ओर से प्रसन्नचित्त होकर मन से जुतने वाले घोड़ों के साथ हवि रूप अन्न के सभी ओर से प्रसन्नचित्त होकर मन से जुतने वाले घोड़ों के साथ हवि रूप अन्न के सेवन के लिए यहाँ आओ।
Hey Indr Dev! Ushn Rishi's prayers added to your might, power, strength. It trembled the heaven and earth causing fear. Hey Indr! You are happy with the humans. Let your horses bring you here at the Yagy site, being deployed with the commands of Man-innerself and accept the offerings-Havy & Kavy. 
मन्दिष्ट यदुशने काव्ये सचाँ इन्द्रो वङ्क वङ्कतराधि तिष्ठति। 
उग्रो यिं निरपः स्त्रोतसासृजद्वि शुष्णस्य दंहिता ऐरयत्पुरः॥
जबकि शोभन उशना ऋषि ने इन्द्रदेव की स्तुति की, तब इन्द्र तेज गति वाले दोनों धोड़ों पर सवार हुए। उग्र इन्द्रदेव ने गमनशील मेघों से प्रवाह रूप में जल बरसाया। साथ ही शुष्ण असुर के दृढ़ नगरों को ध्वस्त किया।[ऋग्वेद 1.51.11]
उशना की प्रार्थना से हर्षित हुए इन्द्रदेव वेगवान घोड़ों पर सवार हुए फिर उन्होंने बादलों से प्रवाह रूप जल को परिपूर्ण किया और शुष्ण के किलों को नष्ट किया। 
उग्र :: तीव्र, हिंसक, प्रचण्ड, हिंस्त्र, उत्तेजित, घबराया हुआ, अतिक्षुब्द,  furious, violent, frantic.
Hey Indr Dev! You became happy with the prayers of Ushn Rishi and rode the high speed horses. He showered rains furiously and destroyed the fort of the demon Shushn.
आ स्मा रथं वृषपाणेषु तिष्ठसि शार्यातस्य प्रभृता येषु मन्दसे। 
इन्द्र यथा सुतसोमेषु चाकनोऽनर्वाणं श्लोकमा रोहसे दिवि॥
हे इन्द्रदेव! सोमपान करने के लिए रथ पर चढ़कर आवें। जिस सोमरस से आप प्रसन्न होते हैं, वही सोम शाय्यात राजर्षि ने तैयार किया है। जैसे अन्य यज्ञों में आप प्रस्तुत सोमपान करते है, उसी प्रकार शार्यात के सोमरस का पान करें। ऐसा करने पर दिव्यलोक में आपको अविचल यश प्राप्त होगा।[ऋग्वेद 1.51.12]
हे वीर्यवान! तुम सोमरस पीने के लिए रथ पर चढ़ते हो । जिन सोमों से तुम प्रसन्न होते हो वे शय्याति ने सिद्ध किये थे। सोम निष्पन्न करने वाले यज्ञ की जितनी अभिलाषा करते हैं। उतना ही विमल यश तुम्हें प्राप्त होता है। 
Hey Indr Dev! Come riding chariot, to enjoy Somras, prepared by Sharyat-Raj Rishi, just like the way you drink in other Yagy. This will grant you unending glory in divine abodes.
अददा अ्भा महते वचस्यवे कक्षीवते वृचयामिन्द्र सुन्वते। 
मेनाभवो वृषणश्वस्य सुक्रतो विश्वेत्ता ते सवनेषु प्रवाच्या॥
हे इन्द्रदेव! आपने अभिषवकारी और स्तुत्याकाङ्क्षी वृद्ध कक्षीवान् राजा को वृचया नाम युवती प्रदान की। हे शोभनकर्मा इन्द्रदेव! आपने वृषणश्च राजा के निमित्त प्रेरक वाणियाँ प्रकट कीं। आपके ये सभी कर्म सोम सवनों (सोमलता, सौम्यता के अर्थों में बहुधा प्रयुक्त सोम शब्द के वर्णन में इसका निचोड़ा-पीसा जाना, इसका जन्मना या निकलना, सवन है और इन्द्र द्वारा पीया जाना प्रमुख है। अलग-अलग स्थानों पर इंद्र का अर्थ आत्मा, राजा, ईश्वर, बिजली आदि है) में वर्णन के योग्य हैं।[ऋग्वेद 1.51.13]
हे इन्द्र देव! तुमने वन्दना करने वाले सम्राट कक्षीवान को वृचया नामक पत्नी प्रदान की। तुम महान कर्म वाले, वृषणश्व सम्राट के लिए वाणीरूप बने, इस बात को भली-भाँति कहना चाहिये।
अभिषव :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, आसवन, ख़मीर, काँजी, मद्य खींचना- शराब चुवाना, सोमलता को कुचलकर गारना या निचोड़ना, सोमरस पान, राज्यारोहण, अधिकार; coronation, bath prior to Yagy, process of extracting from fermented vegetation, herbs.
Hey Indr Dev! You gave a woman called Vrachya to the old-aged king Kakshivan. Hey pious, virtuous, righteous deeds performing Indr Dev! You served tool of speech for king Vrashnshrch and gave him inspiring advices. Your pious deeds deserve mention. 
इन्द्रो अश्रायि सुध्यो निरेके पञ्नेषु स्तोमो दुर्यो न यूपः। 
अश्वयुर्गव्यू रथयुर्वसूयुरिन्द्र इन्द्रायः क्षयति प्रयन्ता॥
निराश्रितों को एकमात्र इन्द्र ही आश्रय प्रदान करते हैं। दरवाजे में स्तम्भ के तुल्य इन्द्र देवता के आश्रय के लिए प्रजाओं में इनकी स्तुति अनवरत स्थिर रहती है। घोड़ों, गायों, रथों और धनों के शासक इन्द्र देवता ही प्रजाओं को अभीष्ट ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.51.14]
अंगिरा वंश वालों के श्लोक रूप द्वार में स्तम्भ के समान स्थिर इन्द्र श्रेष्ठ कर्म वालों को अश्व, धेनु, रथ तथा इच्छित यश प्रदान करते हैं। हे महान! तुम ज्योर्तिमान, बलिष्ठ और उन्नतिशील को हमारा प्रणाम है। हे इन्द्रदेव! इस संग्राम में अपने समस्त पराक्रमियों से युक्त हम आपके आश्रय में स्थापित हैं।
You support those who have no one to look after-support. The populace has faith in Indr Dev just like the pillar supporting the door, that's why they keep on praying him. Indr Dev grants horses, cows, chariots desired wealth, comforts, amenities to the populace-humans.
त्रिष्टुप् :: त्रिष्टुप् वेदों में प्रयुक्त छंद है, जिसमें 44 कुल वर्ण होते हैं, जो 11-11-11-11 वर्णों के चार पदों में व्यवस्थित होते हैं, यथा :- 
अबोधि होता यजथाय देवानुर्ध्वो अग्निः सुमनाः प्रातरस्थात्।
समिद्धस्य रुशददर्शि पाजो महान् देवस्तमंसो निरमोचि॥[ऋग्वेद 5.1.2]
एक पदा त्रिष्टुप (11 वर्ण), द्विपदा (11 + 11), पुरस्ताज्योतिः, विराट् पूर्वा, विराट रूपा इत्यादि, इसके अन्य भेद हैं। 
इदं नमो वृषभाय स्वराजे सत्यशुष्माय तवसेऽवाचि। 
अस्मिन्निन्द्र वृजने सर्ववीराः स्मत्सूरिभिस्तव शर्मन्त्स्या
हे इन्द्रदेव! वृष्टि दान करें। आप अपने तेज से स्वराज करते हैं। आप प्रकृत, बल सम्पन्न और अतीव महान् हैं। हमने आपके लिए इस स्तुति वाक्य का प्रयोग किया है। हम इस युद्ध में समस्त वीरों द्वारा युक्त होकर आपके दिये हुए शोभनीय गृह में विद्वानों या ऋत्विकों के साथ निवास करें।
हे महान! तुम ज्योतिर्मान, बलिष्ठ और उन्नतिशील को हमारा प्रणाम है। हे इन्द्र देव! इस संग्राम में समस्त पराक्रमियों से युक्त हम आपके आश्रय में स्थापित हैं।
Hey Indr Dev! Make rains shower. You govern by virtue of your might-energy. You are mighty and great. We pray to you with this hymn. Let us reside in the decorated houses under your shelter along with the enlightened, Yagy performing people and the warriors in this war.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल  सूक्त (52) :: ऋषि :- सव्य आंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :-जगती, त्रिष्टुप्। 
त्यं सु मेषं महया स्वर्विदं शतं यस्य सुभ्वः साकमीरते। 
अत्यं न वाजं हवनस्यदं रथमेन्द्रं ववृत्यामवसे सुवृत्तिभिः॥
जिनके स्तुति-कार्य में सौ स्तोता एक साथ ही प्रवृत्त होते हैं और जो स्वर्ग दिखा देते हैं, उन बली इन्द्रदेव की पूजा करें। गतिशील घोड़े की तरह वेग से इन्द्रदेव का रथ यज्ञ की ओर गमन करता है। मैं अपनी रक्षा के लिये उसी रथ पर चढ़ने के निमित्त स्तुतियों द्वारा इन्द्र से प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.52.1]
स्वर्ग प्रदान कराने वाले इन्द्रदेव का भली-भाँति अर्चन करो। गतिमान घोड़ों के रथ में प्रार्थनाओं से इन्द्रदेव शीघ्र आते हैं। मैं आगत इन्द्रदेव का नमस्कार पूर्वक स्वागत करता हूँ।
We pray to Indr Dev, for our protection, who is worshipped by hundreds of hosts-devotees, who can take us to heaven. Indr Dev moves to the site of the Yagy with great speed in his chariot pulled by his fast running horses, to oblige the hosts-devotees, conducting the Yagy. 
स पर्वतो न धरुणेष्वच्युतः सहस्त्रमूतिस्तविषीषु वावृधे।
इन्द्रो यत्रमवधीन्नदी वृतमुब्जन्नर्णांसि जर्हृषाणो अन्धसा
जिस समय यज्ञान्न प्रिय इन्द्रदेव ने वर्षा करके नदी का प्रतिरोध करने वाले वृत्र का वध किया, उस समय इन्द्र धारावाही जल के बीच पर्वत की तरह अचल होकर प्रजा की हजारों प्रकार से रक्षा करके, यथेष्ट बल प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.52.2]
जब जलों में पर्वत के समान अविचल रूप से प्रजाओं को सुरक्षा के लिए इन्द्रदेव ने जलों को रोकने वाले राक्षसों को समाप्त किया, तब वे बहुत ही शक्तिशाली बन गये। इन्द्रदेव ने जलों को रोकने वालों पर विजय प्राप्त की। 
Indr Dev showered rains, stood like a mountain in the flowing river, killed Vrat who resisted the flow of river waters and protected the populace in thousands of ways, acquiring sufficient strength by consuming the offerings in the Yagy.
स हि द्वरो द्वरिषु वव्र ऊर्धनि चन्द्रबुध्नो मदवृद्धो मनीषिभि:।
इन्द्रं तमह्वे स्वपस्यया धिया मंहिष्ठरातिं स हि पप्रिरन्धसः
इन्द्रदेव ने आक्रमणकारी शत्रुओं को जीता। इन्द्रदेव जल की तरह अन्तरिक्ष में व्याप्त हैं। इन्द्रदेव सबको हर्ष प्रदान करते हैं। क्योंकि वह सोमपान से वर्द्धित हुए हैं। मैं, विद्वान् ऋत्विकों के साथ, उन प्रवृद्ध और धन सम्पन्न इन्द्रदेव को शोभन कर्मयोग्य अन्तःकरण के साथ आवाहित करता हूँ, क्योंकि इन्द्रदेव अन्न के पूरयिता हैं।[ऋग्वेद 1.52.3]
इन्द्रदेव आकाशव्यापी हैं। ये आनन्द के मूल और विद्वानों द्वारा सोमरस से वृद्धि को प्राप्त हैं। मैं उन महान स्वामी इन्द्रदेव का अन्न के लिए आह्वान करता हूँ। 
Indr Dev won the invaders. He pervades the space like water. He grants happiness to every one being nourished with Somras. I invite great Indr Dev along with the enlightened-learned hosts conducting Yagy, to supply food grains.
आ यं पृणन्ति दिवि सद्मबर्हिषः समुद्रं न सुभ्वः स्वा अभिष्टयः।
तं वृत्रहत्ये अनु तस्थुरूतयः शुष्मा इन्द्रमवाता अह्रुतप्सवः
जिस प्रकार समुद्र की आत्मभूता और अभिमुखगामिनी नदियाँ समुद्र को परिपूर्ण करती हैं, उसी प्रकार कुशस्थित सोमरस दिव्यलोक में इन्द्र को पूर्ण करते हैं। शत्रुओं के शोषक, अप्रतिहतवेग और सुशोभन मरुद्गण, वृत्रहनन के समय उन्हीं इन्द्रदेव के सहायक होकर नजदीक-करीब उपस्थित हुए।[ऋग्वेद 1.52.4]
समुद्र में गिरती हुई सरिताएँ से समुद्र को भरती हैं वैसे ही कुश पर रखे हुए सोम इन्द्रदेव को परिपूर्ण करते हैं। शत्रुओं का शोषण करने वाले वह इन्द्रदेव अविचल मरुद्गण को सहायक बनाते हैं।
The manner in which rivers fill the ocean, Somras placed over Kush grass (extracted from grass) fills Indr Dev with valour-energy and supplement him in the divine abode. Marud Gan who moves very fast became helpful to Indr Dev who killed Vrat and remained very close to him.
अभि स्ववृष्टिं मदे अस्य युध्यतो रघ्वीरिव प्रवणे सस्रुरूतयः। 
इन्द्रो यद्वज्री धृषमाणो अन्धसा भिनद्वलस्य परिधीरिव त्रितः॥
जिस प्रकार गमनशील जल नीचे जाता है, उसी प्रकार इन्द्रदेव के सहायक मरुद्गण सोमपान द्वारा हृष्ट होकर युद्धलिप्त इन्द्रदेव के सामने वृष्टि सम्पन्न वृत्र के समीप गये। जिस प्रकार त्रित ने परिधि समुदाय का भेदन किया, उसी प्रकार इन्द्रदेव ने यज्ञ के अन्न से प्रोत्साहित होकर बल नाम के असुर का भेदन किया।[ऋग्वेद 1.52.5]
हृष्ट :: हर्षित, आनंदित, प्रसन्न, रोमांचित,  कुंठित, लोचहीन, कड़ा; happy, tough.
हृष्ट-पुष्ट :: हट्टा-कट्टा, दृढ़, बलवान, तगड़ा, स्वस्थ, तंदुरुस्त; strong, athletic, hefty. 
त्रित :: ब्रह्मा जी के मानस पुत्र, गौतम मुनि के तीन पुत्रों में से एक।
अभिमुख भ्रमण करने वाली सरिताओं के समान वृत्र से युद्ध करने वाले इन्द्र और उनके सहायक मरुतों को सोमरस का आनन्द प्राप्त हुआ। तब सोमरस पान से साहस में बढ़े हुए इन्द्र ने उसके दुर्गो को तहस-नहस कर डाला।
Marud Gan went to Indr Dev, happy by drinking the Somras who was busy in warfare with Vrat who was enriched with rains. The way Trit entered the circular formation of the army, Dev Raj became strong by the offerings received by him and destroyed Bal a demon along with his forts.
परीं घृणा चरति तित्विषे शवोऽपो वृत्वी रजसो बुध्नमाशयत्। 
वृत्रस्य यत्प्रवरणे दुर्गुभिश्वनो निजघन्थ हन्वोरिन्द्र तन्यआप्॥
जल रोककर वृत्रासुर अन्तरिक्ष में स्थित था। वहाँ शक्तियाँ अत्यधित थीं। इन्द्रदेव ने वृत्र पर वज्र द्वारा प्रहार किया। इससे उनकी शत्रु विजयिनी दीप्ति सर्वत्र फैली और बल प्रकाशित हुआ।[ऋग्वेद 1.52.6]
हे इन्द्रदेव! तुम अत्यन्त तेजस्वी हो। शक्ति से उत्तेजित हुए तुमने वृत्र के जबड़े के नीचे वज्र से प्रहार किया है।
Vratr-Vrata Sur stopped the flow of waters and stationed himself in the space, where his powers were too large. Indr Dev struck him with Vajr at the jaws. It led to spread of his glory every where i.e., in the heavens, earth and the nether world.
हृदं न हि त्वा न्यृषन्त्यूर्मयो ब्रह्माणीन्द्र तव यानि वर्धना। 
त्वष्टा चित्ते युज्यँ वावृधे शवस्ततक्ष वज्रमभिभूत्योजसम्॥
जिस प्रकार जलाशय को जल-प्रवाह प्राप्त करता है, उसी प्रकार आपके लिए कहे हुए स्तोत्र आपको प्राप्त होते हैं। त्वष्टादेव ने अपने बल को नियोजित कर आपके बल को बढ़ाया और शत्रुओं को पराजित करने में समर्थवान आपके वज्र को भी तीक्ष्ण किया।[ऋग्वेद 1.52.7]
हे इन्द्रदेव! प्रवाहित जल के जलाशय को ग्रहण करने के तुल्य ये श्लोक तुम को ग्रहण होते हैं। त्वष्टा ने तुम्हारे बल की समद्धि की और जीतने वाले बल से तुम्हारे वज्र का निर्माण किया।
The way-manner the flowing waters move to the reservoirs-water bodies, the hymns sung for you are received by you i.e., they increase your strength. Twasta Dev enhanced your powers and sharpened Vajr to overcome-overpower the enemies.
जघन्वाँ उ हरिभिः संभृतक्रतविन्द्र वृत्रं मनुषे गातुयत्रप:। 
अयच्छथा बाह्वोर्वज्रमायसमधारयो दिव्या सूर्यं दृशे
हे सिद्धकर्मा इन्द्रदेव! मनुष्यों के पास आने के लिए आपने अश्च पर आरुढ़ होकर वृत्र का विनाश किया। वृष्टि की, दोनों हाथों में लौह-वज्र धारण किया और हमारे देखने के लिए आकाश में सूर्य को स्थापित किया।[ऋग्वेद 1.52.8]
हे इन्द्र! अपने अश्व पर आरुढ़ होकर प्राणियों के हित के लिए वृत्र का नाश करो । इस समय लोहे का वज्र हाथ में लेकर हमारे दर्शन के लिए सूर्य को स्थापित किया।
Hey Indr Dev! You rode the horse and killed Vratr for the safety of humans. You had Vajr made of iron in your both hands and established Sun in the sky to make every thing visible to the creatures, organism, living beings. 
बृहत्स्वश्चन्द्रममवद्यदुक्थ्य१ मकृण्वत भियसा रोहणें दिवः।
यन्मानुषप्रधना इन्द्रमूतयः स्वर्नृषाचो मरुतोऽमदन्ननु
वृत्र के भय से मनुष्यों ने स्तोत्रों की रचना की। वे स्तोत्र बृहत् आह्वादयुक्त, बल सम्पन्न और स्वर्ग की सीढ़ियाँ है। स्वर्ग रक्षक मरुद्रणों ने उस समय मनुष्यों के लिए युद्ध करके और उनका पालन करके, इन्द्रदेव को प्रोत्साहित किया।[ऋग्वेद 1.52.9]
आनन्द प्रदान करने वाली शक्ति परिपूर्ण तथा वन्दना के योग्य प्रार्थना को मनुष्यों ने वृत्र के डर से बचने के लिए उत्पत्ति की। तब मनुष्यों के लिए युद्ध करने वाले, उपकार करने वाले इन्द्रदेव की मरुतों ने सहायता की।
The humans wrote hymns (Shloks, Mantr) which reduced the fear of Vratr, were comprehensive, enhanced-boosted might and led to heavens. At this moment, Marud Gan, the protectors of heavens fought for the humans and encouraged Indr Dev.
द्यौश्चिदस्यामवां अहे: स्वनादयोयवीद्धियसा वज्र इन्द्र ते। 
वृत्रस्य यद्बद्बधानस्य रोदसी मदे सुतस्य शवसाभिनच्छिरः
हे इन्द्रदेव! अभिषुत सोमपान करके आपके हृष्ट होने पर जिस समय आपके वज्र ने वृत्र का मस्तक वेग से काट दिया, उस समय बलवान आकाश भी उसके शब्द भय से कम्पित हुआ था।[ऋग्वेद 1.52.10]
हे इन्द्र! वृत्र के भय से विशाल आकाश कम्पायमान हो गया। तब तुमने उसे वज्र से मार डाला।
अभिषुत :: जो यज्ञ के लिए स्नान कर चुका हो, निचोड़ा हुआ; bathed for the Yagy, squeezed.
Hey Indr Dev! Having consumed squeezed Somras and gaining strength, you cut the throat-head of Vratr, with speed, leading a thunderous sound which trembled the heavens, earth and the Nether world.
यदिन्न्विन्द्र पृथिवी दशभुजिरहानि विश्वा ततनन्त कृष्टयः। 
अत्राह ते मघवन्विश्रुतं  सहो द्यामनु शवसा वर्हणा भुवत्
हे इन्द्र देव! यदि पृथिवी दसगुनी बड़ी होती और यदि मनुष्य सदा जीवित रहते, तब आपकी गति, आपकी शक्ति, प्रकृत रूप में, सर्वत्र प्रसिद्ध होती। आपकी बल-साधित क्रिया आकाश के तुल्य विशाल है।[ऋग्वेद 1.52.11]
हे इन्द्र! पृथ्वी दस गुने भोगवाली हो और मनुष्य उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त हो। ऐश्वर्य स्वामिन! तुम्हारा पराक्रम धरती और आकाश में सब जगह फैले!
Hey Indr Dev! Let the earth become ten time more comfortable and humans continue to progress further & further. Hey the master of all comforts-amenities! Let your valour & glory spread throughout the earth and the outer space-heavens.
त्वमस्य पारे रजसी व्योमनः व्योमनः स्वभूत्योजा अवसे धृषन्मन:। 
चकृषे भूमिं प्रतिमानमोजसोऽपः स्वः परिभूरेष्या दिवम्
हे अरिमर्दन इन्द्रदेव! इस व्यापक अन्तरिक्ष के ऊपर रहकर अपनी निज भुजाओं के बल से आपने, हमारी रक्षा के लिए, पृथ्वी की रचना की। आपका बल अनन्त हैं। आप सुगन्तव्य अन्तरिक्ष और स्वर्ग व्याप्त किए हुए हैं।[ऋग्वेद 1.52.12]
हे निर्भयी इन्द्र! तुमने अंतरिक्ष के ऊपर रहते हुए हमारी सुरक्षा के लिए पृथ्वी को उत्पन्न किया। 
Hey the killer of the enemy, fearless Indr Dev! Stationing over the vast space, you created the earth for our protection-survival with your hands. Your strength is infinite. You have pervaded the space and the heaven. (This describe the Almighty in the form of Indr Dev.)
त्वं भुवः प्रतिमानँ पृथिव्या ऋष्ववीरस्य बृहतः पतिर्भू:। 
विश्वमाप्रा अन्तरिक्षं महित्वा सत्यमद्धा नकिरन्यस्त्वावान्
हे इन्द्रदेव! आप विशाल भूमि के प्रतिरूप हैं, आप दर्शनीय देवों के बृहत् स्वर्ग के पालनकारी है। सचमुच आप अपनी महिमा-द्वारा समस्त अन्तरिक्ष को व्याप्त किये हुए हैं। फलतः आपके तुल्य कोई नहीं।[ऋग्वेद 1.52.13]
तुम जल और दीप्ति के पुत्र हुए स्वर्ग में निवास करते हो। हे इन्द्रदेव! तुम अंतरिक्ष को पूर्ण करने वाले हो। वास्तव में तुम्हारे तुल्य कोई नहीं है। 
Hey Indr Dev! Hey the son of Jal-water & Deepti, representative of large-vast earth, you support the vast heaven. You pervade the entire space. Thus none is parallel-equivalent to you.(This describe the Almighty in the form of Indr Dev.)
न यस्य द्यावापृथिवी अनु व्यचो न सिन्धवो न सिन्धवो रजसो अन्तमानशुः। 
नोत स्ववृष्टिं मदे अस्य युध्यत एको अन्यच्चकृषे विश्वमानुषक्
जिन इन्द्रदेव की व्याप्ति को धुलोक और पृथिवीलोक नहीं पा सके, अन्तरिक्ष के ऊपर का प्रवाह, जिनके तेज का अन्त नहीं पा सका, वही आप अकेले अन्य सारे भूतों को अपने वश में किये हैं।[ऋग्वेद 1.52.14]
जिसकी समानता-तुलना क्षितिज और पृथ्वी नहीं कर सकते, अंतरिक्ष के जल जिसकी सीमा को नहीं पाते, वृत्र के प्रति संग्राम करते हुए जिसकी तुलना नहीं की जा सकती। 
Indr Dev's spread can not be discovered in the space-heavens and the earth, whose flow in the heavens-space, whose energy's can not be discovered, has controlled the entire past. His strength can not compared with any one when he fought Vratr. (This describe the Almighty in the form of Indr Dev.)
आर्चन्नत्र मरुतः सस्मिन्नाजौ विश्वे देवासो अमदन्ननु त्वा। 
वृत्रस्य यभ्दृष्टिमता वधेन नि त्वमिन्द्र प्रत्यानं जघन्थ
इस लड़ाई में मरुतों ने आपकी प्रार्थना की। जिस समय आपने तीक्ष्ण-घातक वज्र द्वारा वृत्र के मुँह पर प्रहार किया, उस समय सारे देवगण संग्राम में आपको आनन्दित देखकर प्रसन्न हुए।[ऋग्वेद 1.52.15]
उस युद्ध-लड़ाई में मरुतों ने आपकी वन्दना की और सभी देवता प्रसन्न हुए। तब हे इन्द्रदेव! आपने वृत्र के मुख पर वज्र से प्रहार किया।
The Marut prayed you in the battle against Vratr. The demigod-deities became happy when you shot Vajr at the mouth of Vratr.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- सव्य आंगिरसः, देवता :- इन्द्र, छंद :- जगती, त्रिष्टुप्।
न्यू षु वाचं प्र महे भरामहे गिर इन्द्राय सदने विवस्वतः। 
नू चिद्धि रत्नं ससतामिवाविदन्न दुष्टुतिर्द्रविणोदेषु शस्यते
हम महापुरुष इन्द्रदेव के उद्देश्य से शोभनीय वाद्य का प्रयोग करते हैं और सेवाव्रती यजमान के घर शोभनीय स्तुति वाक्य प्रयोग करते हैं। इन्द्रदेव ने असुरों के धन पर उसी प्रकार तत्काल अधिकार कर लिया, जिस प्रकार सोये हुए मनुष्यों के धन पर अधिकार जमाया जाता हैं। इसलिए धनदान करने वालों की निन्दा करना सराहनीय नहीं है।[ऋग्वेद 1.53.1]
हम इन्द्रदेव के लिए सुन्दर श्लोकों का उच्चारण करते हैं। इन्द्रदेव ने राक्षसों के धनों को सोते हुए मनुष्यों के धन पर अधिकार करने के तुल्य छीन लिया। धन देने वालों की महान वंदना की जाती है। 
We appreciate and honour Indr Dev by using excellent prayers-hymns. He captured the belonging of the demons, just like taking over the riches of the sleeping humans. That's why those who donate money are appreciated.
दुरो अश्वस्य दुर इन्द्र गोरसि दुरो यवस्य वसुन इनस्पतिः। 
शिक्षानरः प्रदिवो अकामकर्शनः सखा सखिभ्यस्तमिदं गृणीमसि
हे इन्द्रदेव! आप अश्व, गौ और धन-धान्य प्रदान करने वाले है। आप निवास हेतु प्रभूत धन के स्वामी और रक्षक हैं। आप दान के नेता और प्राचीनतम देव हैं। आप कामना व्यर्थ नहीं करते, आप याजकों के मित्र है। उन्हीं के उद्देश्य से हम यह स्तुति पढ़ते हैं।[ऋग्वेद 1.53.2]
हे इन्द्रदेव! तुम अश्व, धेनु, धन, धान्य आदि के दाता हो। तुम प्राचीन काल से दान करते आए हो, तुम किसी को आशा भंग नहीं कर सकते तथा मित्रता रखने वालों के सखा हो। हम तुम्हारे लिए यह प्रार्थना करते हैं।
Hey Indr Dev! You grant horses, cows, riches (wealth and food). You not only give us money to survive but protect it as well. Your prayers never go waste. You are friendly with those who seek money and help. We sing prayers Mantr, Shloks, hymns) to please him.
शचीव इन्द्र पुरुकृद्द्युमत्तम तवेदिदमभितश्चेकिते वसु। 
अतः संगृभ्याभिभूत आ भर मा त्वायतो जरितुः कामूनयीः
हे प्रज्ञावान्, प्रभूतकर्मा और अतिशय दीप्तिमान् इन्द्रदेव! चारों ओर जो धन है, वह आपका ही है, यह हम भी जानते हैं। हे शत्रुविध्वंसी इन्द्रदेव! वही धन ग्रहण करके हमें दान करें। जो स्तोता आपको चाहते हैं, उनकी अभिलाषा पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.53.3]
हे मेधावी, बहुकर्मा, धनों को प्रकाशमान करने वाले इन्द्रदेव! समस्त धन तुम्हारा ही बतलाया गया है। उसे हमारे लिए लाओ। अपने वन्दनाकारी की इच्छा व्यर्थ न करो।
प्रभूत :: जो हुआ हो, निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर, पूर्ण, पूरा,पक्व, पका हुआ, उन्नत; progressive.  
प्रज्ञा :: Pragya is used to refer to the highest and purest form of wisdom, intelligence and understanding. It is the state of wisdom which is higher than the knowledge obtained by reasoning and inference.
Hey brilliant, matured, wise-visionary Indr Dev! Wealth all around belongs to you. Hey destroyer of enemies Indr Dev! Please give us the money you have obtained by eliminating the enemies. Fulfil the needs (demands, desires) of your devotees.
एभिर्द्युभिः सुमना एभिरिन्दुभिर्निरुन्धानो अमतिं गोभिरश्चिना। 
इन्द्रेण दस्युं दरयन्त इन्दुभिर्युतद्वेषसः समिषा रभेमहि
हे इन्द्रदेव! इस प्रकार हवियों और सोमरस से तुष्ट होकर गौ और घोड़े के साथ धन दान कर और हमारा दारिद्र दूर कर प्रसन्न हो जायें। इस सोमरस से तुष्ट इन्द्र की सहायता से हम दस्युओं का नाश कर और शत्रुओं से मुक्ति प्राप्त कर अच्छी तरह अन्न का उपभोग करें।[ऋग्वेद 1.53.4]
हे इन्द्रदेव! चमकती हुई हवियों और सोमों से प्रसन्नचित्त हुए तुम धेनुओं, अश्वों से परिपूर्ण धन देकर हमारी निर्धनता को समाप्त करो। हमारे शत्रुओं को समाप्त कर द्वेष रहित शक्ति हमको प्रदान करो।
Hey Indr Dev! On being satisfied-happy, with the offerings, prayers and Somras grant us horses, cows along with wealth-amenities and remove our poverty. Eliminate the demons, dacoits and the enemies and give us strength so that we can enjoy the grants received from you.
समिन्द्र राया समिषा रभेमहि सं वाजेभि: पुरुश्चन्द्वैरभिद्युभिः। 
सं देव्या प्रभत्या वीरशुष्मया गोअग्रयाश्वावत्या रभेमहि
हे इन्द्रदेव! हम धन, अन्र और आह्लादक और दीप्तिमान् बल प्राप्त करें। आपकी प्रकाशमान बुद्धि हमारी सहायिका हो। वह बुद्धि वीर शत्रुओं का वध करें और वह स्तोताओं को गौ आदि पशु और अश्व प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.53.5]
हे इन्द्रदेव! हम अन्न, धन वाले बनें, अनेकों को हर्षित करने वाली शक्ति से सम्पन्न हों। पराक्रम परिपूर्ण अश्वों, धेनुओं को ग्रहण करने की उत्तम मति से सम्पन्न हों।
Hey Indr Dev! Make us strong-powerful by giving us wealth & food grains. Let your wisdom guide us. Guidance received from you should be able to remove our-devotees enemies and help us in acquiring cattle, cows, horses.
ते त्वा मदा अमदन्तानि वृष्ण्या ते सोमासो वृत्रहत्येषु सत्पते। 
यत्कारवे दश वृत्राण्यप्रति बर्हिष्मते नि सहस्त्राणि बर्हयः
हे साधु-रक्षक इन्द्रदेव! वृत्रासुर के वध के समय आपको आनन्ददाता मरुद्गणों ने प्रसन्न किया। हे वर्षक इन्द्रदेव! जिस समय आपने शत्रुओं द्वारा अप्रतिहत होकर स्तोता और हव्यदाता यजमान के लिए दस हजार शत्रुओं का विनाश किया, उस समय विविध हव्य और सोमरस ने आपको उत्साहित किया।[ऋग्वेद 1.53.6]
हे सज्जनों के रक्षक इन्द्रदेव! वृत्र को मारने वाले युद्ध में सोमों से प्राप्त आनन्द ने तुम्हें बढ़ाया। तब यजमान की विनती से दस हजार दुश्मनों को तुमने मारा।
विभूति Vibhuti :: majesty, ash, magnificence, an outstanding personality, personage. 
Hey protector of the gentle men (virtuous-pious) Indr Dev! The Marud Gan pleased when you killed Vrata Sur. You killed ten thousand enemies-demons when the devotees (Strota Gan) prayed you with the help of Strotr-hymns. They made offerings of various kinds and you sipped Somras.
Its a very offending features of various commentators over the various sites available over the net, when they criticise Indr Dev as a villain, which is offending. A king has to protect his populace along with his kingdom. The king is supposed to act Bhagwan Shri Hari Vishnu as a protector. Indr Dev has been projected in the Shastr as a Vibhuti (majesty, best trait) of the God and he is. However, when he is struck by ego, the Almighty comes into being and shun-control his false pride.
युधा युधमुप घेदेषि धृष्णुया पुरा पुरं समिदं हंस्योजसा। 
नम्या यदिन्द्र सख्या परावति निबर्हयो नमुचिं नाम मायिनम्
हे इन्द्रदेव! आप शत्रुओं के धर्षणकारी हैं। आप युद्धान्तर में जाते हैं। आप बल द्वारा एक नगर के बाद दूसरे नगर को ध्वंस करते हैं। उन नमनशील, योग्य, मित्र, मरुद्रणों की सहायता से आपने प्रपंची असुर नमुचि नामक मायावी का वध कर दिया।[ऋग्वेद 1.53.7]
हे इन्द्र! तुम लड़ाई में निःशंक जाते हो। तुम एक के बाद दूसरे दुर्ग को तोड़ते हो। तुमने अपने वज्र से नमुचि नामक राक्षस को दूर ले जाकर मार डाला। 
Hey Indr Dev! You are the destroyer of the enemy. You destroy their forts one after another. You killed Namuchi-a Rakshas-demon with your Vajr, with the help of respectable-honourable Marud Gan.
Marud Gan are always by the side of Indr Dev along with Pawan Dev, Varun Dev and the Agni.
त्वं करञ्जमुत पर्णयं वरधीस्तेजिष्ठयातिथिग्वस्य वर्तनी। 
त्वं शता वङ्गृदस्या भिनत्पुरोऽनानुदः परिषूता ऋजिश्वना
हे इन्द्रदेव! आपने अतिथिग्व नाम के राजा के लिए करञ्ज और पर्णय नामक असुरों का तेजस्वी शत्रुनाशक वज्र से वध किया। अनन्तर आपने अकेले ऋजिश्वान् नामक राजा के द्वारा चारों और वेष्टित वंगृद नामक असुर के सैकड़ों नगरों को गिरा दिया।[ऋग्वेद 1.53.8]
हे इन्द्रदेव! जिसके समान कोई दानी नहीं, ऐसे तुमने अतिथिग्व के लिए करञ्ज और पर्णय नामक असुरों को अत्यन्त दमकते हुए अस्त्र से समाप्त किया। तुमने ऋजिश्वा सम्राट के द्वारा वंगृद नामक दैत्य को हराया।
Hey Indr Dev! You killed demons named Karanj & Parnay, to protect the king called Atithigavy, with the help of your glittering Vajr. Thereafter, you defeated Vangrad with the help of emperor Rijishrawan destroying his hundreds of forts. 
त्वमेताञ्जनराज्ञो द्विर्दशाबन्धुना सुश्रवसोपजग्मुषः।
षष्टिं सहस्रा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक्
हे प्रसिद्ध इन्द्रदेव! असहाय सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए जो बीस नरपति और उनके साठ हजार निन्यान्बे सैनिकों को आपने दुष्प्राप्य चक्र द्वारा नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.53.9]
हे इन्द्रदेव! तुमने सुश्रवा से युद्ध के लिए आते हुए बीस नृपों को उनके साठ हजार निन्यानवें अनुचरों के साथ रथ के पहिये से भगा दिया। 
Hey Indr Dev! You pushed back the twenty kings who had attacked the weak king Sushrawa, with their ninety nine thousand soldiers by springing your disc over them and killing them.
Indr Dev is always with the righteous, pious, virtuous, the person having Satvik Gun-characterises.
त्वमाविथ सुश्रवसं तवोतिभिस्तव त्रामभिरिन्द्र तूर्वयाणम्। 
त्वमस्मै कुत्समतिथिग्वमायुं महे राज्ञे यूने अरन्धनायः 
आपने अपनी रक्षा शक्ति के द्वारा सुश्रवस राजा की रक्षा की। तूर्वयाण राजा को अपनी परित्राण शक्ति द्वारा बचाया। आपने इस महान तरुण राजा के लिए कुत्स, अतिथिग्व और आयु नामक राजाओं को अपने वश में किया।[ऋग्वेद 1.53.10] 
हे इन्द्रदेव! तुमने रक्षा के लिए साधनों से सुश्रवा को पोषण साधनों से तूर्वयाण को बचाया। तुमने ही कुत्स, अतिथिग्व और आयु नामक राजाओं को सुश्रवा के आधीन कराया। 
Hey Indr Dev! You protected king Sushrwa and Turyan with your might. You controlled kings Kuts, Atithigav to stop interfering the kings called Ayu.
य उदृचीन्द्र देवगोपाः सखायस्ते शिवतमा असाम। 
त्वां स्तोषाम त्वया सुवीरा द्राघीय आयुः प्रतरं दधानाः
हे इन्द्रदेव! यज्ञ में जिनकी स्तुति की जाती है और जो देवों द्वारा रक्षित, हम आपके मित्र हैं। हम सदैव सुखी हों। आपकी कृपा से हम श्रेष्ठ बलों से युक्त, दीर्घायु को अच्छी प्रकार से धारित करते हैं और आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.53.11]
हे इन्द्रदेव! देवों द्वारा रक्षित हम तुम्हारे सखा हैं। हम सभी भविष्य में सुखी रहें। हम अनेक से पराक्रमियों से परिपूर्ण लम्बी आयु को धारण करते हुए तुम्हारा पूजन करते रहें।
Hey Indr Dev! We are friendly with you, who is worshipped-prayed in the Yagy. Let us be happy. We should be associated with valour, might and long age and keep on worshipping you.
असमं क्षत्रमसमा मनीषा प्र सोमपा अपसा सन्तु नेमे। 
ये त इन्द्र ददुषो वर्धयन्ति महि क्षत्रं स्थविरं वृष्ण्यं च
इन्द्रदेव का बल व उनकी बुद्धि अतुल है। जो आपको हव्य दान करके आपके महान बल और स्थूल पौरुष को बढ़ाते हैं, वही सोमपायी लोग यज्ञ कर्म द्वारा प्रवृद्ध होते हैं।[ऋग्वेद 1.54.8]
सोमपायी इन्द्रदेव की शक्ति मति की तुलना नहीं हो सकती। हे इन्द्रदेव! तुम दानशील के राज्य और शक्ति की वृद्धि करने वाले हो। 
The might and intellect of Indr Dev who sips Somras is beyond compare. Those who make offerings to you, boosts your strength & power, through Yagy Karm
तुभ्येदेते बहुला अद्रिदुग्धाश्चमूषदश्चमसा इन्द्रपानाः। 
व्यश्नुहि तर्पया कामेषामथा मनो वसुदेवाय कृष्व
यह सोमरस पत्थर के द्वारा तैयार किया गया है, बर्तन में रखा हुआ है और इन्द्रदेव के पीने योग्य है। यह आपके ही लिए हुआ है। आप इसे ग्रहण करें। अपनी इच्छा तृप्त करें। तदुपरान्त उत्साहपूर्वक हमें अपार धन-वैभव प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.54.9]
हे इन्द्र! पाषणों से कूटकर और छानकर यह पेय सोम रस रखे हैं। इनका उपभोग करो। यह तुम्हारे लिए ही है। अपनी अभिलाषा को तृप्त करने के बाद हमको देने की सोचो।
Hey Indr Dev! The Somras has been extracted by crushing with stone and kept for you. Please enjoy it and grant us riches. 
अपामतिष्ठब्धरुणह्वरं तमोऽन्तर्वृत्रस्य जठरेषु पर्वतः। 
अभीमिन्दो नद्यो वव्रिणा हिता विश्वा अनुष्ठाः प्रवणेषु जिघ्नते
जल प्रवाहों को रोकने वाले पर्वत रूप वृत्र ने अपने पेट में जलों को स्थिर कर लिया। जिससे तमिस्रा फैल गई तभी इन्द्रदेव ने वृत्र द्वारा जल प्रवाहों को मुक्त करके नीचे की ओर प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 1.54.10]
जब जलों की धाराओं को रोकने वाला पर्वत दृढ़ था और बादल (अन्धकार) वृत्र के उदित प्रदेश में थे। तब इन्द्रदेव ने उन जलों को नीचे जगहों की ओर बहाया।
Mountainous Vratr sucked entire water in his stomach leading to darkness. Indr Dev released the water and made it flow in the down ward direction. 
स शेवृधमधि धा द्युप्नमस्मे महि क्षत्रं जनाषाळिन्द्र तव्यम् । 
रक्षा च नो मघोनः पाहि सूरीन्राये च नः स्वपत्या इषे धाः
हे इन्द्रदेव! हमें वर्द्धमान यश दें। महान् शत्रुओं का पराजयकर्ता और प्रभूत बल प्रदान करें। हमें धनवान् करके हमारी रक्षा करें। विद्वानों का पालन करें और हमें धन, शोभनीय अपत्य (औलाद, offspring, progeny, children) और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.54.11]
हे इन्द्रदेव! सुख, कीर्ति, मनुष्यों को वश में करने वाला राज्य और शक्ति की हम में स्थापना करो। तुम हमारे प्रमुख जलों की सुरक्षा करते हुए समृद्धि महान संतान और शक्ति को हमारी ओर प्रेरित करो।
Hey Indr Dev! Enhance our honour-glory. Grant us strength to over power the enemy. Make us rich and protect us. Protect the enlightened, give us wealth, able children and food grain. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- सव्य आंगिरस,  देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती।
दिवश्चिदस्य वरिमा वि पप्रथ इन्द्रं न महोबा न मह्ना पृथिवी चन प्रति। 
भीमस्तुविष्माञ्चर्षणिभ्य आतपः शिशीते व्रजं तेजसे न वंसगः॥
आकाश की अपेक्षा भी इन्द्र देवता का प्रभाव बड़ा है। महत्त्व में पृथ्वी भी इन्द्रदेव की बराबरी नहीं कर सकती। भयावह और बली इन्द्रदेव मनुष्यों के लिए शत्रुओं को दग्ध करते हैं। जैसे साँड़ अपने सींग से रगड़ता है, उसी प्रकार तीखा करने के लिए इन्द्रदेव अपना वज्र रगड़ते हैं।[ऋग्वेद 1.55.1]
इन्द्रदेव का यश सब ओर व्याप्त है। पृथ्वी भी इनके समान नहीं है। विकराल, शक्तिशाली मनुष्यों को संतापित करने वालों का नाश करने वाले, इन्द्र ऋषभ के तुल्य तीक्षण वज्र को तेज करते हैं।
विकराल :: भयानक, वीभत्स, भयावह, भयाबना; horrible, ghastly. 
Indr Dev influences the entire universe. Even the earth can not equate it. He become horrible-ghastly for those who trouble-torture the humans and sharpen his Vajr like the bull who sharpen his horns by rubbing.  
सो अर्णवो न नद्यः समुद्रियः प्रति गृभ्णाति विश्रिता वरीमभिः। 
इन्द्रः सोमस्य पीतये वृषायते स्नात्स युध्म ओजसा पनस्यते॥
हे अन्तरिक्ष व्यापी इन्द्रदेव! आप समुद्र की तरह अपनी व्यापकता के द्वारा बहुव्यापी जल ग्रहण करते हैं। इन्द्रदेव सोमपान के लिए साँड़ की तरह वेग से दौड़ते हैं। चिरकाल से वे युद्धों में अपनी सामर्थ्य के बल पर प्रशंसा को प्राप्त होते रहे हैं।[ऋग्वेद 1.55.2]
अंतरिक्ष व्यापी इन्द्रदेव प्रवाहित जलों को समुद्र द्वारा नदियों को ग्रहण करने के समान भाव से प्राप्त करते हैं। वे सोम पीने के लिए ऋषभ के तुल्य बेग करते हैं। वहाँ शक्तिशाली इन्द्रदेव प्रार्थनाओं को चाहते हैं।
Hey universe pervading Indr Dev! You accept waters just like the ocean who assimilate rivers in it. He rushes to get Somras like a bull. He has been appreciate in war ever since due to his might, power, strength.
त्वं तमिन्द्र पर्वतं न भोजसे महो नृम्णस्य घर्मणामिरज्यसि। 
प्र वीर्येण देवताति चेकिते विश्वस्मा उग्रः कर्मणे पुरोहितः॥
हे इन्द्रदेव! आप अपने भोग के लिए मेघों को छिन्न-भिन्न  नहीं करते। आप महान् धनाढ्यों के ऊपर आधिपत्य करते हैं। इन्द्रदेव अपने धैर्य के कारण से अच्छी तरह परिचित है। समस्त देवों ने उग्र इन्द्रदेव को उनके कर्मों के कारण ही श्रेष्ठ माना है।[ऋग्वेद 1.55.3]
हे इन्द्र! तुम तेज के दाता और सभी प्रकार के धनों के धारणकर्ता हो। तुम शक्ति में बढ़े हुए भयंकर कर्म वालों में अग्रगण्य हो।
Hey Indr Dev! You do not segregate clouds for your use. You rule the wealthy. You are well known for your patience. The demigods-deities consider him superior due to his horrifying deeds. 
स इद्वने नमस्युभिर्वचस्यते चारु जनेषु प्रब्रुवाण इन्द्रियम्। 
वृषा छन्दुर्भवति हर्यतो वृषा क्षेमेण धेनां मघवा यदिन्वति 
इन्द्र जंगल में स्तोता ऋषियों द्वारा स्तुत होते हैं। मनुष्यों के बीच में अपना वीर्य प्रकट करके बड़ी सुन्दरता से अवस्थित होते हैं। जिस समय हव्यदाता धनी यजमान इन्द्र द्वारा रक्षित होकर स्तुति वाक्य का उच्चारण करता है, उस समय अभीष्टवर्षी इन्द्र यज्ञेच्छु को यज्ञ में तत्पर करते हैं।[ऋग्वेद 1.55.4]
वह इंद्र प्राणियों में वीर्य रूप, पूजकों में स्तुत्य, पूजनीय, अभीष्ट वर्षक हैं। जब हव्यदाता यजमान, श्लोक वाक्य उच्चारण करता है, उस समय अभीष्ट प्रदायक इन्द्र उसे यज्ञ में तत्पर करते हैं। 
The sages pray to Indr Dev in the forests while engaged in ascetic practices for their protection. He discloses his might to the humans (by protecting them) and gets respected. Indr Dev become active when the hosts begin with the offerings in the Yagy to grant them the desired.
स इन्महानि समिथानि मज्मना कृणोति युध्म ओजसा जनेभ्यः। 
अधा चन श्रद्दधति त्विषीमत इन्द्राय वज्रं निरघनिघ्नते वघम्
योद्धा इन्द्र मनुष्यों के लिए सर्व विशुद्धकारी बल द्वारा महान् युद्धों में उपस्थित होते हैं। जिस समय इन्द्र शत्रुओं के वध के लिए वज्र फेंकते हैं, उस समय दीप्तिमान् इन्द्रदेव को सब लोग बलशाली कहकर उनका आदर करते हैं।[ऋग्वेद 1.55.5]
वही पराक्रमी इन्द्रदेव अपनी पवित्र शक्ति से मनुष्यों के लिए संग्राम करते हैं। मनुष्यगण वज्रधारी इन्द्रदेव को आस्था पूर्वक नमस्कार करते हैं।
The warrior Indr Dev fights for the humans with his pious might. Every one praises him when he target his Vajr over the enemy to eliminate them. The humans honour him with devotion.
स हि श्रवस्युः सदनानि कृत्रिमा क्ष्मया वृधान ओजसा विनाशयन्। 
ज्योतींषि कृण्वन्नवृकाणि यज्यवेऽव सुक्रतुः सर्तवा अप: सृजत्
शोभनकर्मा इन्द्र अपने तेजस्वी बलों द्वारा शत्रुओं अर्थात् असुर गृहों का विनाश करके वृद्धि को प्राप्त हुए। सूर्यादि नक्षत्रों के प्रकाश को रोकने वाले आवरणों को उन्होंने दूर किया और याजक के लिए जलों के प्रवाह को खोल दिया।[ऋग्वेद 1.55.6]
उस यश की कामना करने वाले महान कार्य वाले इन्द्रदेव ने असुरों के गृहों को ध्वस्त करते हुए क्षितिज के नक्षत्रों को निवारण कर जल दृष्टि की।
Indr Dev destroyed the forts of the demons-enemy and became invincible. He removed the obstruction in the way of Sun (Rahu-Ketu) and the constellations unplugging the flow of waters for the devotees-those who worship him.
दानाय मनः सोमपावन्नस्तु तेऽर्वाञ्चा हरी वन्दनश्रुदा कृधि। 
यमिष्ठासः सारथयो य इन्द्र ते न त्वा केता आ दभ्नुवन्ति भूर्णयः
हे सोमपायी इन्द्रदेव! दान में आपका मन रत है। हे स्तुति प्रिय! अपने हरि नाम के घोड़ों को हमारे यज्ञ के अभिमुख करें। हे इन्द्रदेव! आपके सारथि घोड़ों को वश में करने में अति दक्ष हैं, इसलिए आपके विरोधी शत्रु हथियार लेकर आपको पराजित नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 1.55.7]
हे सोमपायी इंद्रदेव! तुम देने में मन लगाओ। तुम प्रार्थनाओं को सुनते हो, तुम अपने अश्वों को हमारे सम्मुख लाओ। तुम अश्व विद्या में निपुण सारथी हो, जो राह नहीं भूलते हैं। 
Hey Somras thirsty Indr Dev! You are inclined to donations-charity. You like appreciation. Direct your horses named Hari towards the site of the Yagy. Your chariot driver is highly skilled in manoeuvring the horses. Hence, your opponents-enemy can not defeat you.
अप्रक्षितं वसु बिभर्षि हस्तयोरषाळ्हं सहस्तन्वि श्रुतो दधे। 
आवृतासोऽवतासो न कर्तृभिस्तनूषु ते क्रतव इन्द्र भूरयः॥
हे इन्द्रदेव! आप दोनों हाथों में अनन्त धन धारण करते हैं। आप यशस्वी हैं। अपनी देह में पराजित न होने वाला बल धारण करते हैं। जैसे जलार्थी मनुष्य कुँओं को घेरे रहते हैं, उसी प्रकार आपके सारे अंग वीरतापूर्ण कर्मों द्वारा घेरे रहते हैं। आपके शरीर में अनेक कर्म विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 1.55.8]
हे इन्द्र! तुम्हारे दोनों हाथों में अक्षय धन है। तुम्हारे शरीर में श्रेष्ठ बल है। वन्दना करने वालों ने तुम्हारे पराक्रम को बढ़ाया है।
Hey Indr Dev! You are capable of holding infinite treasures in your hands. You are esteemed, glorious. You possess the power to win in your body. The valour occupies your body just like those who surround the well for water. You have the expertise in several field.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- सव्य आंगिरस,  देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती। 
एष प्र पूर्वीरव तस्य चम्रिषोऽत्यो न योषामुदयंस्त भुर्वणिः। 
दक्षं महे पाययते हिरण्ययं रथमावृत्या हरियोग मृभ्वसम्
जिस प्रकार घोड़ा घोड़ी की ओर दौड़ता है, उसी प्रकार प्रभुताहारी इन्द्रदेव उस यजमान के यथेष्ट पात्र-स्थित सोमरूप खाद्य की ओर दौड़ते हैं। इन्द्र स्वर्णमय, अश्वयुक्त और रश्मियुक्त रथ को रोककर सोमपान करते हैं। वे इस कार्य में अति निपुण है।[ऋग्वेद 1.56.1]
यह इन्द्रदेव यजमान के पात्रों में रखे सोमों को पान करने की कामना से उठाते हैं। वह अपने रथ को रोककर सोमपान करते हैं।
Dev Raj Indr stops his chariot glittering like gold, driven by horses with golden hue, picks up the pots filled with Somras offered to him by the devotees performing Yagy and drink it. He is expert in carrying out this job.
तं गूर्तयो नेमन्निषः परीणसः समुद्रं न संचरणे सनिष्यवः। 
पतिं दक्षस्य विदथस्य नू सहो गिरिं न वेना अधि रोह तेजसा
जिस प्रकार धनाभिलाषी वणिक् घूम-घूमकर समुद्र को चारों ओर व्याप्त किये रहते हैं, उसी प्रकार हव्य-वाहक स्तोता लोग चारों ओर से इन्द्र को घेरे हुए हैं। जिस प्रकार ललनाएँ फूल चुनने के लिए पर्वत पर चढ़ती हैं, उसी प्रकार आपकी स्तुतियाँ महान् बलों के स्वामी, यज्ञ के स्वामी, संघर्षक इन्द्रदेव को अपनी तेजस्विता से घेर लेती हैं।[ऋग्वेद 1.56.2]
हविदाता यजमान धन के लिए समृद्ध होने वाले मनुष्यों के समान शक्ति और अनुष्ठान के स्वामी इन्द्रदेव को ग्रहण करते हैं।
The way the traders moves around the oceans to collect gems, the devotees surround Indr Dev with offerings. The prayers devoted to Indr Dev surrounds him and boosts his energy-power, just like the young girls rising the mountains for collecting flowers.
स तुर्वणिर्महाँ अरेणु पौंस्ये गिरेर्भृष्टिर्न भ्राजते तुजा शवः। 
येन शुष्णं मायिनमायसो मदे दुध्र आभूषु रामयन्नि दामनि
इन्द्रदेव शत्रुहन्ता और महान् हैं। इनका दोष शून्य और शत्रु विनाशक बल पुरुषोचित संग्राम में पहाड़ के श्रृंग की तरह विराजमान है। शत्रु मर्दक और लौह करेंच देही इन्द्रदेव ने सोमपान द्वारा हृष्ट होकर बल द्वारा, मायावी शुष्ण को हथकड़ी डालकर कारागृह में बन्द कर रखा था।[ऋग्वेद 1.56.3]
हे मनुष्य! तू भी उससे आत्मशक्ति ग्रहण कर। वे तीव्र वेग वाले श्रेष्ठ इन्द्र युद्ध क्षेत्र में पर्वत के शिखर के समान चमकते हैं। उन्होंने बली मायावी शुष्ण को बाँधकर रखा था।
Indr Dev is enemy slayer and great. His power without defects, meant for killing enemy is like the peak of a mountain. He consumed Somras, boost his might & handcuffed Shushn, expert in casting enchantments and put him in the prison. 
देवी यदि तविषी त्वावृधोतय इन्द्रं सिषक्त्युषसं न सूर्यः। 
यो धृष्णुना शवसा बाधते तम इयर्ति रेणुं बृहदर्हरिष्वणिः॥
जैसे सूर्यदेव उषादेवी का सेवन करते हैं, उसी प्रकार दीप्तिमान् बल, रक्षा के लिए, स्तोत्र द्वारा वर्द्धित इन्द्र की सेवा करता है। वही इन्द्र विजयी बल द्वारा अन्धकाररूपी वृत्र का वध करते और शत्रुओं को रुलाकर अच्छी तरह उनका विध्वंस करते हैं।[ऋग्वेद 1.56.4]
हे स्तोता! सूर्य के द्वारा उषा को प्राप्त करने के समान तेरे द्वारा बढ़ाया गया पराक्रम इन्द्र को प्राप्त होता है। तब वह शत्रुओं में आर्तनाद उठाकर बुरे कर्मों को मिटाते हैं।
Hey devotee! The way Sury Dev-Sun, is associated with Usha Devi, day break, the prayers made by you helps Indr Dev. Having recharged his energy-power, he killed Vratr who was like darkness-shadow, making him cry bitterly due to his sinful acts
वि यत्तिरो धरुणमच्युतं रजोऽतिष्ठिपो दिव आतासु बर्हणा। 
स्वर्मीळ्हे यन्मद इन्द्र हष्याहन्वृत्रं निरपामौब्जो अर्णवम्
हे शत्रु हन्ता इन्द्रदेव! जिस समय आपने वृत्र द्वारा अवरुद्ध, जीवन रक्षक और विनाश रहित जल को आकाश से चारों ओर वितरित किया, उस समय सोमपान से हर्ष युक्त होकर लड़ाई में वृत्र का वध आपने किया और जल के समुद्र की तरह मेघ को नीचे की ओर कर दिया।[ऋग्वेद 1.56.5]
हे इन्द्रदेव! तुमने क्षितिज की दिशाओं में जल धारण करने वाले अंतरिक्ष को निर्मित किया। सोम का आनन्द ग्रहण कर तुमने अपने वृत्र को समाप्त कर जलों के नीचे की ओर प्रवाहमान किया। 
Hey the slayer of enemy Indr Dev! You released the water meant for saving life-survival, obstructed by Vratr and distributed it all around, enjoying Somras. Then you killed Vratr and poured water over the earth, as raining clouds moving to ocean.
त्वं दिवो धरुणं धिष ओजसा पृथिव्या इन्द्र सदनेषु माहिनः। 
त्वं सुतस्य मदे अरिणा अपो वि वृत्रस्य समया पाष्यारुजः
हे इन्द्रदेव! आप महान् हैं। अपने बल के द्वारा सारे जगत् के धारक वृष्टि जल को अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर स्थापित किया। आपने सोमरस का पान करके उत्साहपूर्वक संघर्षक बल बारा वृत्र का वध किया और पृथ्वी के समस्त स्थानों को जलों से तृप्त किया।[ऋग्वेद 1.56.6]
हे इन्द्रदेव! तुमने अपनी शक्ति से क्षितिज-धरा के बीच जल दृढ़ किया। तुमने निष्पन्न सोम के आनन्द में जलों को मुक्त कराया और पाषाण किलों का खण्डन किया।
Hey Indr Dev, you are great! You released water for the earth, after sipping Somras & killing Vratr destroying his forts side by side.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- सव्य आंगिरस, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- जगती। 
प्र मंहिष्ठाय बृहते बृहद्रये सत्यशुष्माय तवसे मतिं भरे। 
अपामिव प्रवणे यस्य दुर्घरं राधो विश्वायु शवसे अपावृतम् 
अतीव दानी, महान, प्रभूत धनशाली, अमोघ बल सम्पन्न और प्रकाण्ड देह विशिष्ट इन्द्रदेव के उद्देश्य से हम बुद्धि पूर्वक स्तुति करते हैं। निम्न गामिनी जलधारा की तरह इन्द्रदेव का बल कोई नहीं धारण कर सकता। स्तोताओं के बल साधन के लिए इन्द्रदेव सर्वव्यापी सम्पद् का प्रकाश करते हैं।[ऋग्वेद 1.57.1]
अत्यन्त दानी, श्रेष्ठ, धनी, वीर बढ़ोत्तरी को ग्रहण इन्द्र देव को अपनी वृद्धि से नमस्कार करता हूँ। नीचे की ओर जाते हुए जल की गति के तुल्य जिसकी शक्ति कोई भी धारण कर सकता है तथा जिस शक्ति के लिए समृद्धि को ज्योर्तिमय किया।
We pray to Indr Dev who is extreme-highest donor, great-mighty, master of riches, possessing unlimited power and has a strong body, with our intellect-prudence, wisdom. The strength-power & might of Indr Dev, which is like the river in the down ward direction, can not be contained by any one. Indr Dev exhibit-demonstrate his vast power for protecting the devotees.   
अध ते विश्वमनु हासदिष्टय आपो निम्नेव सवना हविष्मतः। 
यत्पर्वते न समशीत हर्यत इन्द्रस्य वज्रः श्नथिता हिरण्ययः
हे इन्द्रदेव! यह सम्पूर्ण संसार आपके यज्ञ में हव्य दाताओं का अभिषुत सोमरस आपकी ओर प्रवाहित हुआ। इन्द्र का शोभनीय, सुवर्णमय और हननशील वज्र मेघों को विदीर्ण करने को तत्पर हुआ।[ऋग्वेद 1.57.2]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा मारक वज्र प्रहार करते समय सोता नहीं रहा। यह संसार तुम्हारे लिए यज्ञ कर्मियों में लगा और हविदाता यजमान गिरते हुए जल के समान तुम्हारी शरण में पहुँचा।
Hey Indr Dev! The entire universe channelized-directed its energy towards you with the help of Yagy, offerings and Somras. The glittering golden Vajr got ready to pounce over the clouds.
अस्मै भीमाय नमसा समध्वर उषो न शुभ आ भरा पनीयसे। 
यस्य धाम श्रवसे नामेन्द्रियं ज्योतिरकारि हरितो नायसे
हे शुभ उषे! भयावह और अतीव स्तुति पात्र इन्द्रदेव को इस यज्ञ में इस समय यज्ञान्न प्रदान करें। उनकी विश्व धारक, प्रसिद्ध और इन्द्रत्व चिह्न युक्त ज्योति, घोड़े की तरह उनको यज्ञान्न प्राप्ति करने के अर्थ में इधर-उधर ले जाती हैं।[ऋग्वेद 1.57.3]
हे प्रकाशवती उषे! इस पूजनीय और विकराल इन्द्रदेव के लिए अनुष्ठान में नमस्कार के संग हवि सम्पादन करो। उस इन्द्रदेव का नाम शक्ति और यश सुनने के लिए ही उत्पन्न किये गये हैं।
Hey Usha Devi! Let the offerings be ready for the sake of Indr Dev, in this Yagy. His aura capable of holding the universe, carries the food grains meant for the Yagy, all around like the horse who roam hither-thither.
इमे त इन्द्र ते वयं पुरुष्टुत ये त्वारभ्य चरामसि प्रभूवसो। 
नहि त्वदन्यो गिर्वणो गिरः सघत्क्षोणीरिव प्रति नो हय तद्वचः
हे प्रभूत धनशाली और बहु लोक स्तुत इन्द्रदेव! हम आपका अवलम्बन करके यज्ञ सम्पादित करते हैं। हम आपके ही है। हे स्तुति पात्र! आपके समान अन्य स्तुत्य देवता के न रहने के कारण हम आपकी स्तुति करते हैं। जैसे पृथ्वी अपने प्राणियों को धारण करती है, उसी प्रकार आप भी हमारे स्तुति वचनों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.57.4]
प्रभूत :: जो हुआ हो, निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर, पूर्ण,  पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत; a lot of, complete, ripe, born, ready to act, too large.  
हे अनेकों द्वारा पूजनीय इन्द्र! तुम्हारा सहारा पाने वाले हम तुम्हारे ही हैं। तुम हमारी वंदनाओं को स्वीकार करने वाले हो, अन्य कोई नहीं। जैसे पृथ्वी अपने प्राणियों की शरणदात्री है, वैसे ही तुम भी हमें आश्रय प्रदान करते हो।
The possessor of extreme wealth, prayed in various abodes Indr Dev! We seek protection-shelter under you to carry out the Yagy. We belong to you. You deserve prayers. The way the earth nourishes-bears the various living beings, the same way-manner, you provide asylum to us.
भूरि त इन्द्र वीर्यंतव स्मस्यस्य स्तोआर्पघवन्काममा पृण। 
अनु ते द्यौर्बृहती वीर्यं मम इयं च ते पृथिवी नेम ओजसे
हे इन्द्रदेव! आपका वीर्य महान् है। हम आपके ही हैं। हे मघवन्! इस स्तोता की कामना पूरी करें। विशाल आकाश ने भी आपकी वीरता का लोहा माना था। यह पृथ्वी  भी आप बल के आगे झुकती है।[ऋग्वेद 1.57.5]
हे धन के स्वामी इन्द्रदेव! वंदनाकारी का अभीष्ट पूर्ण करो। तुम अत्यन्त शक्तिशाली हो। आकाश भी तुम्हारी शक्ति का लोहा मानता है और धरा तुम्हारे सम्मुख झुकी हुई है।
Hey Indr Dev! Your powers are unlimited. We belong to you. Please fulfil our desires. Broad sky too accept your might. This earth too bows before you. 
त्वं तमिन्द्र पर्वतं महामुरुं वज्रेण वज्रिन्पर्वश्चकर्तिथ। 
अवासृजो निवृता: सर्तवा आपः सत्रा विश्वं दधिषे केवलं सहः 
हे वज्रधारी इन्द्रदेव! आपने उस विस्तीर्ण मेघ को, वज्र द्वारा, टुकड़े-टुकड़े कर दिया जिससे उस मेघ के द्वारा आवृत जल को बहने के लिए, आपने नीचे छोड़ दिया। केवल आप ही विश्वव्यापी बल धारण करते हैं। यही सत्य है।[ऋग्वेद 1.57.6]
हे वज्रिन! तुमने उस फैले हुए वृत्र को खण्ड-खण्ड किया और जलों को छोड़ा। तुम अवश्य ही बहुत शक्तिशाली हो।
Hey Indr Dev! You teared off the clouds-Vratr with your Vajr into pieces and allowed the waters to flow to the earth. Its only you who bears the might-power pervading the whole universe. This is a fact-truth.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।  
अस्मा इदु प्र तवसे तुराय प्रयो न हर्मि स्तोमं माहिनाय। 
ऋचीषमायाध्रिगव ओहमिन्द्राय ब्रह्माणि राततमा
इन्द्रदेव बली, क्षिप्तकारी, गुण द्वारा महान्, स्तुति पात्र और अबाध गति हैं। जैसे बुभुक्षित को अन्न दिया जाता है, वैसे ही मैं इन्द्र देवता की ग्रहण योग्य स्तुति और पूर्व वर्ती यजमान द्वारा दिया हुआ यज्ञान प्रदान करता हूँ।[ऋग्वेद 1.61.1]
वृद्धि को ग्रहण, शीघ्र कर्म करने वाले, मंत्रों से वर्णित यश वाले इन्द्रदेव को अन्न के तुल्य ही श्लोक अर्पित करता हूँ। वे मेरी हवियों को प्राप्त करें।
The hosts-devotees performing Yagy make offerings for the sake Indr Dev who is  powerful-strong, destroyer of the evil, possessor of great qualities, fit for worship, having fast speed. Let him accept my prayers.
अस्मा इदु प्रयइव प्र यंसि भराम्याङ्गूषं बाधे सुवृत्ति। 
इन्द्राय हृदा मनसा मनीषा प्रत्नाय पत्ये धियो मर्जयन्त
हम उन इन्द्रदेव के लिए हविष्य के तुल्य स्तोत्र अर्पित करते हैं। शत्रु पराजय के साधन स्वरूप स्तुति-वाक्यों का मैंने सम्पादन किया है। अन्य स्तोता भी उस पुरातन स्वामी इन्द्रदेव के लिए हृदय, मन और ज्ञान से स्तुति सम्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.61.2]
मैं उस इन्द्रदेव के लिए हवि से परिपूर्ण श्लोक अर्पित करता हूँ। उन शत्रु पीड़क के लिए वंदना करता हूँ। ऋषिगण उस प्राचीन इन्द्रदेव के लिए हृदय गति से वंदनाएँ करते हैं।
We pray to Indr Dev with the Strotr-Shloks as offerings. The stanzas which grants success in defeating the enemy have been incorporated by us in these prayers. Other host-devotees performing Yagy too are inclined to his prayers-worship with their mind, heart and the knowledge directed to him.
अस्मा इदु त्यमुपमं स्वर्षां भराम्याङ्गूषमास्येन। 
मंहिष्ठमच्छोक्तिभिर्मतीनां सुवृत्तिभिः सूरिं वावृध्यै॥
उन्हीं उपमान भूत, वरणीय धन दाता और विज्ञ इन्द्र देव का वर्द्धन करने के लिये मैं मुख द्वारा उत्कृष्ट और निर्मल स्तुति वचनों से युक्त तथा अति महान शब्द करता हूँ।[ऋग्वेद 1.61.3]
वृद्धि को प्राप्त मेधावी इन्द्र को आकर्षित करने वाली उपमा योग्य वंदना का सुन्दर नादपूर्वक उधारण करता हूँ। 
I recite excellent Strotr-Shloks, Mantr in loud voice, addressed to intelligent-enlightened Indr Dev who grants riches, to boost his might-powers. 
अस्मा इदु स्तोमं सं हिनोमि रथं न तष्टेव तत्सिनाय। 
गिरश्च गिर्वाहसे सुवृक्तीन्द्राय विश्वमिन्वं मेधिराय
जिस प्रकार रथ निर्माता रथ को स्वामी के पास लाता है, उसी प्रकार मैं भी इन्द्रदेव के उद्देश्य से स्तोत्र प्रेरण करता हूँ। स्तुति पात्र इन्द्र के लिए शोभन स्तुति वचन प्रेरण करता हूँ। मेधावी इन्द्र के लिए विश्वव्यापी हवि प्रेरण करता हूँ।[ऋग्वेद 1.61.4]
जिस प्रकार रथ को बनाने वाला उसे तैयार करके स्वामी के पास ले जाता है, उसी प्रकार मैं मेधावी इन्द्र को आकर्षित करने को इस वन्दना को उनके निकट पहुँचाता हूँ।
The manner the chariot maker brings it to the person who ordered it, I make prayers to please Indr Dev. I recite the prayers-hymns in the praise of Indr Dev, who deserve appreciation & make offerings to him. 
अस्मा इदु सप्तिमिव श्रवस्येन्द्रायार्कं जुह्वासमञ्जे। 
वीरं दानौकसं वन्दध्यै पुरां गूर्तश्रवसं दर्माणम्
जिस प्रकार से घोड़े को रथ में लगाया जाता है, वैसे ही मैं भी अन्न  प्राप्ति की इच्छा से स्तुति रूप मंत्र उच्चारण करता हूँ। उन्हीं नीर, दानशील, अन्न विशिष्ट और असुरों के नगर विदारी इन्द्र देव की वन्दना में प्रवृत्त होता हूँ।[ऋग्वेद 1.61.5]
अश्वों को रथ में जोड़ने के तुल्य कीर्ति प्राप्ति के लिए इन्द्रदेव का श्लोक गान करता हूँ। यह असुरों के किलों को ध्वस्त करने वाले दानशील, गुण गान योग्य यशस्वी इन्द्रदेव को ग्रहण हो।
Let my prayers for having food grains reach, Indr Dev just like the horses who are deployed in the chariot. I worship Indr Dev who is  donor & the destroyer of the forts-cities of demons. 
अस्मा इदु त्वष्टा तक्षदव्रं स्वपस्तमं स्वर्यं रणाय। 
वृत्रस्य चिद्विदद्येन मर्म तुजन्नीशानस्तुजता कियेधाः
इन्द्रदेव के लिए त्वष्टा ने युद्ध के निमित्त शोभन कर्मा और सुप्रेरणीय वज्र का निर्माण किया। शत्रुओं के नाश के लिए तैयार होकर ऐश्वर्य वान और अपरिमित बलशाली इन्द्रदेव ने हननकर्ता वज्र से वृत्र के मर्मस्थान पर प्रहार करके उसे मारा।[ऋग्वेद 1.61.6]
त्वष्टा ने इन्द्रदेव के लिए कार्य सिद्ध करने वाले, घोर ध्वनि युक्त वज्र का निर्माण किया। इन्द्रदेव ने उससे वृत्र के मर्म स्थल का पतन किया।
Mighty Indr Dev possessing great power-strength, struck Vratr at his softest point of the body-heart to kill him, with the Vajr-built by Twasta, which produced thunderous noise-sound. 
अस्येदु मातुः सवनेषु सद्यो महः पितुं पपिवाञ्चार्वन्ना। 
मुषायद्विष्णुः पचतं सहीयान्विध्यद्वराहं तिरो अद्रिमस्ता॥
सृष्टि के निर्माणकर्ता इन्द्रदेव को इस महायज्ञ में जो तीन अभिषेक किये गये हैं, इन्द्रदेव ने उनमें तुरन्त सोमरूप का पान किया। साथ ही शोभनीय हव्य रूप अन्न का भक्षण भी किया। सारे संसार में इन्द्रदेव व्यापक हैं। उन्होंने असुरों का घन हरण किया। क्योंकि वे शत्रु विजयी और वज्र चलाने वाले हैं। उन्होंने मेघ पर प्रहार कर जलवृष्टि की।[ऋग्वेद 1.61.7]
जगत के रचनाकार इन्द्र के यद्यपि यज्ञ में तीन अभिषेक किये गये, तथापि उन्होंने सोम रस को  तुरन्त पी लिया। वे विजेता, वज्र धारी और बादल का भेदन करने वाले हैं।
अभिषेक :: प्रतिष्ठापन, समझाना, बतलाना, स्नान; consecration, anointment, ablution.
Indr Dev who pervades the whole universe was consecrated thrice, consumed-drunk the Somras out of them immediately, since he has the Vajr over the enemy-demons. He struck Megh to cause rains.
Indr Dev is prayed during famine to cause rains. Some of his prayers are extremely effective-powerful leading to rains in case of scarcity.
अस्मा इदु ग्राश्चिद्देवपत्नीरिन्द्रायार्कमहिहत्य ऊवुः। 
परि द्यावापृथिवी जभ्र उर्वी नास्य ते महिमानं परि ष्टः॥
इन्द्र देवता द्वारा अहि या वृत्र का विनाश होने पर नमनशील देव पत्नियों ने इनकी स्तुति की। इन्द्र ने विस्तृत आकाश और पृथ्वी  का अतिक्रम भी किया; किन्तु द्युलोक और पृथ्वी लोक इन्द्र की मर्यादा का अतिक्रम नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 1.61.8]
वृत्र के मृत होने पर देव भार्याओं ने इन्द्रदेव की प्रार्थना की। इन्द्र देव ने क्षितिज धरा को घेर लिया, परन्तु क्षितिज और धरा इन्द्रदेव की मर्यादा को नहीं पार कर सकते।
On killing Vratr (Ahi), the women folk in the heavens recited prayers in his honour. Indr Dev breached the limits of the earth & the heavens-outer space, but both of these can not cross the barriers (limits, boundaries of Indr Dev. 
अस्येदेव प्र रिरिचे महित्वं दिवस्पृथिव्याः पर्यन्तस्क्षिा त्।
स्वराळिन्द्रो दम आ विश्वगूर्तः स्वरिरमत्रो ववक्षे रणाय
लोक, भूलोक और अन्तरिक्ष की अपेक्षा भी इन्द्र की महिमा अधिक है। अपने अधिवास में अपने तेज से इन्द्रदेव स्वराज करते हैं। ये सर्व कार्य सक्षम हैं। इन्द्र का शत्रु सुयोग्य है और इन्द्र युद्ध में निपुण हैं। इन्द्रदेव मेघरूप शत्रुओं को युद्ध में बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.61.9 ]
आकाश, पृथ्वी, अंतरिक्ष से भी इन्द्र की महिमा श्रेष्ठ है। स्वयं प्रकाशित सबको प्रिय, असीमित पराक्रम वाले इन्द्र वृद्धि को प्राप्त हुए हैं।
Indr Dev is more glorious as compared to the earth, sky & the space. he rules the heaven by virtue of might. He is capable of doing every thing. The enemy of Indr Dev is well equipped he is skilled in warfare. His enemies attack him acquiring the form of clouds.
The demons are called Mayavi-one who can assume any form, shape & size, creating illusion, mirage, confusion. They can hide themselves in the thin air as well. Though they are restricted to Sutal Lok by Bhagwan Shri Hari Vishnu, yet they move to desired place as per their wish, like Prahlad Ji who came to earth to fight Nar Narayan Rishis performing ascetics loaded with bow & arrow and then moved to Vaekunth Lok to complain about them to Bhagwan Shri Hari Vishnu. 
 अस्येदेव शवसा शुषन्तं वि वृश्चद्वज्रेण वृत्रमिन्द्रः। 
गा न व्राणा अवनीरमुञ्चदर्भ श्रवो दावने सचेताः
अपने वज्र द्वारा इन्द्रदेव ने जल शोषक वृत्र को छिन्न-भिन्न कर दिया। साथ ही चोरों के द्वारा अपहृत गायों की तरह वृत्रासुर द्वारा अवरुद्ध तथा संसार के रक्षक जल को हव्य देने वाले को इन्द्रदेव उसकी इच्छा के अनुसार अन्न दान करते हैं।[ऋग्वेद 1.61.10]
 इन्द्र के पराक्रम से क्षीण होता हुआ वृत्र इन्द्र के द्वारा वज्र से मारा गया। इससे अपहृत धेनुओं के समान जल भी मुक्त हुआ। हवि दाता को वे इन्द्र अभीष्ट अन्न देते हैं।
वर दान :: लाभ; boon, bridesmaid, finance, advantage, benefit, profit, gain, mileage.
Vratr who sucked entire water was torn into pieces by Indr Dev, leading to release abducted cows along with waters. Indr Dev grants boons & food grains to those who make offering to him.
अस्येदु त्वेषसा रन्त सिन्धवः परि यद्वज्रेण सीमयच्छत्।
ईशानकृद्दाशुषे दशस्यन्तुर्वीतये गाधं तुर्वणिः कः
इन्द्रदेव की दीप्ति के द्वारा नदियाँ अपने-अपने स्थान पर शोभा पाती है; क्योंकि वज्र द्वारा इन्द्र ने उनकी सीमा निर्दिष्ट कर दी है। अपने को ऐश्वर्यवान् करके और हव्यदाता को फल प्रदान करके इन्होंने तुरन्त  तुर्वणि ऋषि के निवास योग्य एक स्थान बनाया।[ऋग्वेद 1.61.11]
इन्द्र की दीप्ति से नदियाँ सुशोभित हैं क्योंकि इन्द्रदेव ने व्रज से उनको सीमित कर दिया। हविदाता को धन प्रदान करते हुए समृद्धि युक्त इन्द्रदेव ने तुर्वीति के लिए उचित स्थान दिया।
Indr Dev set up limits-boundaries for the rivers and they are worshipped at their positions. He empowered himself with riches-wealth and granted the fruits of their worship to the devotees. He immediately created a place of living-performing ascetics for the Rishi-sage called Turvani.
अस्मा इदु प्र भरा तूतुजानो वृत्राय वज्रमीशानः कियेधा:। 
गोर्न पर्व वि रदा तिरश्चेष्यन्नर्णांस्यपां चरध्यै
इन्द्रदेव क्षिप्तकारी, सर्वेश्वर और अपरिमित बलशाली हैं। हे इन्द्रदेव! आप इस वृत्र के ऊपर वज्र-प्रहार करें। पशु की तरह वृत्र के शरीर की संधियाँ तिर्यग भाव से अवस्थित वज्र से काटें; ताकि वृष्टि बाहर हो सके और पृथ्वी पर जल प्रवाहित हो सके।[ऋग्वेद 1.61.12]
हे शीघ्र कार्यकारी, महाबली, इन्द्र रूप ईश्वर! तुम इस वृत्र पर वज्र को फेंको और उसके अश्वों को वधिक पशुओं को काटने के समान काट डालो।
Hey destroyer, master-beneficial to all, possessing unending power, Indr Dev! project-throw the Vajr over Vratr so that it cuts his body at various angles, horizontally, vertically just like the animals are butchered to let the flow of rains.
अस्येदु प्र ब्रूहि पूर्व्याणि तुरस्य कर्माणि नव्य उक्थैः। 
युधे यदिष्णान आयुधान्यृघायमाणो निरिणाति शत्रून्
हे मनुष्य! इन्द्रदेव के प्राचीन कर्मों की आप प्रशंसा करें। वे युद्ध के लिए बार-बार सारे शस्त्र फेंककर और शत्रुओं का वध कर उनके सम्मुख जाते हैं।[ऋग्वेद 1.61.14 ]
हे मनुष्यों! इन्द्र के प्राचीन बलों को वर्णित करो। वे उत्तेजित हुए अस्त्रों को चलाकार शत्रुओं को पीड़ित करते हैं। 
Hey humans! Describe the old-previous deeds of Indr Dev to encourage-provoke him to use his weapons to kill-destroy the enemy.
अस्येदु भिया गिरयश्च दृळ्हा द्यावा च भूमा जनुषस्तुजेते। 
उपो वेनस्य जोगुवान ओणिं सद्यो भुवद्वीर्याय नोधाः
इन्हीं इन्द्रदेव के भय से पर्वत निश्चल हो जाते हैं और इनके प्रकट होने पर आकाश और पृथ्वी काँपने लगते हैं। नोधा ऋषि ने इन्हीं कमनीय इन्द्र की रक्षण शक्ति के स्तोत्रों द्वारा बार-बार प्रार्थना करते हुए, उनके अनुग्रह बलवान हुए।[ऋग्वेद 1.61.14]
इन प्रत्यक्ष हुए इन्द्र के भय से दृढ़ पर्वत, आकाश तथा पृथ्वी सभी काँपते हैं। नोधा ऋषि इन्द्र के रक्षण सामों का वर्णन करते हुए पराक्रम प्राप्त कर सकें।
Appearance of Indr Dev makes the mountains stationary & the earth along with the sky start trembling. Nodha Rishi-sage, sung-recited prayers in the honour of Indr Dev with the help of protective stanzas-verses in the form of Sam and became strong-powerful.
Initially the mountains used to fly and created terror-trouble for the humans. It led Indr Dev to cut their wings, which made them stable.
अस्मा इदु त्यदनु दाय्येषामेको यद्व्ने भूरेरीशानः। 
प्रैतशं सूर्ये पस्पृधानं से सौवश्रव्ये सुष्विमावदिन्द्रः
इन्द्रदेव अकेले ही शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते है। वह बहुविध धनों के स्वामी हैं। स्तोताओं के पास से इन्द्रदेव ने जिस स्तोत्र की याचना की थी, उसे ही इन्द्र को दिया गया। स्व के पुत्र सूर्यदेव के साथ युद्ध के समय सोमाभिषवकारी एतश ऋषि को इन्द्र ने बचाया था।[ऋग्वेद 1.61.15]
अत्यन्त धन वाले इन्द्र देव ने जो कामना की वही अर्पित किया। सोम साधक एतश ऋषि ने प्रतियोगिता करने वाले स्वश्व पुत्र सूर्य को हराया।
 Indr Dev is capable of winning wars single handily-alone. He is the guardians of wealth of various nature. He was gifted the Strotr which he desired-requested from the Stotas. He protected Etash Rishi who prepared Somras from Sury, the son of Swa. 
एवा ते हारियोजना सुवृक्तीन्द्र ब्रह्माणि गोतमासो अक्रन्। 
ऐषु विश्वपेशसं धियं धाः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्
हे अश्व युक्त, रथेश्वर इन्द्रदेव! आपको यज्ञ में उपस्थित करने के लिए गौतम गोत्रीय ऋषियों ने स्तुति रूप मंत्रों का उच्चारण किया। इनका आप ध्यानपूर्वक श्रवण करें। विचारपूर्वक अपार धन और वैभव प्रदत्त करने वाले इन्द्रदेव हमें प्रात: (यज्ञ में) शीघ्र प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.61.16]
दो घोड़ों से परिपूर्ण रथ वाले इन्द्रदेव गौतमों ने तुम्हें आकृष्ट करने वाली मंत्र रूप प्रार्थनाओं को किया। तुम सवेरे प्रस्थान कर हमको सर्वसिद्ध करने वाली मति प्रदान करो।
Hey Indr Dev riding the chariot deployed with horses! The descendants of Goutam Rishi recited prayers in your honour to invite you at the Yagy site, early in the morning. Listen to these requests carefully and oblige them with wealth-riches (to carry out the Yagy).
A sage, Rishi, Brahman do not crave for accumulation of wealth. He is satisfied-content with the money sufficient to make a simple living, while carrying out Yagy, Hawan, Agnihotr, sacrifices in holy fire & feed the guests.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- नोधा गौतम,  देवता :- इन्द्र,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र मन्महे शवसानाय शूषमाङ्गूपं गिर्वणसे अङ्गूिरस्वत्। 
सुवृत्तिभिः स्तुवत ऋग्मियायार्चामार्क नरे विश्रुताय॥1॥
वीर्यशाली और स्तवन पात्र इन्द्रदेव को लक्ष्य कर हम, अङ्गिरा की तरह, मन में कल्याणवाहिनी स्तुति धारित करते हैं। इन्द्र शोभन स्तोत्रों द्वारा स्तुति कर्त्ता ऋषि के पूजा पात्र हैं। हम स्तोत्र द्वारा पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.62.1]
हम इन्द्रदेव के प्रति अंगिराओं के तुल्य वंदनाओं को धारण करते हैं। हम अत्यन्त आकर्षक मंत्रों का उच्चारण करें।
We pray to Indr Dev with the help of very effective-powerful hymns-Mantr, who is very strong and deserve these prayers-worship; like the sage Angira.
प्र वो महे महि नमो भरध्वमाङ्गूष्यँ शवसानाय साम। 
येना नः पूर्वे पितरः पदज्ञा अर्चन्तो अङ्गिरसो गा अविन्दन्॥2॥
हे ऋत्विजो! हम लोग उस विशाल और बलवान् इन्द्र देवता को लक्ष्य कर महान् और ऊँचे स्वर से गाये जाने वाले स्तोत्र अर्पित करते हैं। इन्द्र देव की सहायता से हमारे पूर्व पुरुष अंगिरा  ने पद चिह्नों को देखते हुए, अर्चनापूर्वक पणि नामक असुर द्वारा अपहत गौ का उद्धार किया था।[ऋग्वेद 1.62.2]
हे मनुष्यों! उस श्रेष्ठ इन्द्रदेव को नमस्कार करो। जिसकी वंदना से अंगिराओं ने धेनुओं को ग्रहण किया था, उसकी उच्च स्वर से वंदनाओं का गान करो।
Hey Ritvij (hosts, people performing Yagy)! Let us sing Strotr Verses) in the honour of Indr Dev loudly. Our ancestor Angira traced the hoof marks of cows abducted by the demon Pani and killed him with the help of Indr Dev.
इन्द्रस्याङ्गिरिरसां चेष्टौ विदत्सरमा तनयाय धासिम्।
बृहस्पतिर्भिनदद्रिं विदद्गा: समुस्त्रियाभिर्वावशन्त नरः॥3॥
इन्द्र और अङ्गिरा के गौ खोजते समय सरमा नाम की कृतिया ने, अपने बच्चे के लिए इन्द्रदेव से अन्न अथवा दुग्ध प्राप्त किया। उस समय इन्द्रदेव ने असुरों का वध कर गौ का उद्धार किया था। देवों ने भी गायों के साथ आह्लादकर शब्द किया था।[ऋग्वेद 1.62.3]
इन्द्रदेव और अंगिराओं की कामना से सरमा ने अपनी संतान के लिए अन्न प्राप्त किया। इन्द्रदेव ने असुरों को समाप्त किया। धेनुओं को प्राप्त किया तथा उनके संग देवगण ने भी हर्ष परिपूर्ण नाद किया।
Indr Dev & the Angiras provided food to a bitch called Sarma. Indr Dev killed the demons and recovered the cows. demigods-deities and the cows together produced a cheerful loud sound.
स सुष्टुभा स स्तुभा सप्त विप्रैः स्वर्यो  नवग्वै:। 
सरन्युभिः फलिगमिन्द्र शक्र वलं रवेण दरयो दशग्वैः॥4॥
सर्वशक्तिमान् इन्द्रदेव! जिन्होंने नौ महीनों में यज्ञ पूर्ण किये हैं और जिन्होंने दस महीनों में यज्ञ का समापन किया, वे सप्तसंख्यक और सद्गति कामी मेधावियों के सुखकारी स्वर युक्त स्तोत्रों से आप स्तुत किये गये। आपके शब्द से पर्वत और मेघ भी भयभीत हो जाते हैं।[ऋग्वेद 1.62.4]
हे शक्ति शालिन! श्रेष्ठ वंदना से गाने योग्य तुमने शीघ्रता पूर्वक नौ अथवा दस महीने यज्ञ सम्पन्न करने वाले सप्त ऋषियों की विनती सुनी। तुम्हारे शब्द से शैल और बादल भी काँप उठे।
Hey mighty Indr Dev! Having accomplished the Yagy in a period of just 9-10 months, Indr Dev was honoured by the Sapt Rishis with the help of verses Strotr, hymns which grant pleasure to the intellectuals-enlightened, leading to renunciation. Your voice trembled the mountains and the clouds to reverberated.
गृणानो अङ्गिरोभिर्दस्म वि वरुषसा सूर्येण गोभिरन्धः।
वि भूम्या अप्रथय इन्द्र सानु दिवो रज उपरमस्तभायः॥5॥
हे सुदृश्य इन्द्रदेव! अङ्गिरा लोगों के द्वारा स्तुत होकर आपने उषा और सूर्य किरणों से अन्धकार का विनाश किया। हे इन्द्रदेव! आपने पृथ्वी  का ऊबड़-खाबड़ प्रदेश समतल और अन्तरिक्ष का मूल प्रदेश सु दृढ़ किया।[ऋग्वेद 1.62.5]
हे विचित्र कर्मा इन्द्र! तुमने अंगिराओं की स्तुतियाँ प्राप्त की और उषा, सूर्य तथा रश्मियों द्वारा अंधकार हटाया। तुमने पृथ्वी पर पर्वतों को बढ़ाया तथा आकाश के नीचे अंतरिक्ष को दृढ़ किया।
Hey fantastic deeds performer Indr Dev! Having being prayed-worshiped by the Angiras you removed darkness with the help of Usha Devi & the rays of Sun. You levelled the uneven lands over the earth.
तदु प्रयक्षतममस्य कर्म दस्मस्य चारुतममस्ति दंसः। 
उपह्वरे यदुपरा अपिन्वन्मध्वर्ण  सो नद्यश्चतस्रः॥6॥
पृथ्वी की मधुर जल पूर्ण चार नदियों को इन्द्र देव ने जल से पूर्ण किया, यह उन दर्शनीय इन्द्र देव का अत्यन्त पूज्य और सुन्दर कर्म है।[ऋग्वेद 1.62.6]
अद्भुत कर्मा इन्द्रदेव का यह कर्म प्रशंसनीय है। इसने नदियों को जल से परिपूर्ण कर दिया।
Well known for performing amazing deeds, Indr Dev filled four rivers with sweet water, which is one of his appreciable acts.
द्विता वि वव्रे सनजा सनीळे अयास्यः स्तवमानेभिरर्कै:। 
भगो न मेने परमे व्योमन्नधारयद्रोदसी सुदंसाः॥7॥
जिस इन्द्र देव का युद्ध रूप प्रयत्न से नही पाया जा सकता, स्तोताओं  की स्तुति द्वारा ही पाया जा सकता है। उन्हीं इन्द्रदेव ने एकत्र संलग्न द्यौ और पृथ्वी को अलग-अलग करके स्थित किया। उन्हीं शोभन कर्मा इन्द्र देव ने सुन्दर और उत्तम आकाश में, सूर्य की तरह, द्यौ और पृथिवी को धारित किया।[ऋग्वेद 1.62.7]
ऋषियों द्वारा पूजनीय इन्द्रदेव ने एक-दूसरे से मिले हुए पुराने क्षितिज और धरा को अलग-अलग किया। फिर महान कार्य वाले ने क्षितिज में सूर्य के तुल्य उन दोनों को धारण किया।
Indr Dev who can not be  won through war-fight can be easily pleased by prayers-worship. Revered by the Rishis-sages Indr Dev separated the earth and the heavens-outer space filling it with ether. He supports the entire universe.
सनाद्दिवं परि भूमा विरूपे पुनर्भुवा युवती स्वेभिरेवैः।
कृष्णेभिरक्तोषा रुशद्धिर्वपुर्भिरा चरतो अन्यान्या॥8॥
विषम रूपिणी, प्रतिदिन सञ्जायमाना और तरुणी रात्रि तथा उषा, द्यावा-पृथ्वी पर, सदा से आ-आकर विचरण करती हैं। रात्रि काली और उषा तेजोमयी है।[ऋग्वेद 1.62.8]
श्याम वर्ण से रात्रि और दीप्ति युक्त वर्ण से उषा अपनी कृतियों से निरन्तर उत्पन्न होती हैं तथा आकाश और धरती के चारों ओर पुरातन काल से ही चक्कर काटती है। 
Night & day break are at odds-opposite of each other and always young. Night is dark and day break is full of energy-light, brightness. They have been encircling the earth and the heavens ever since-eternal.
सनेमि सख्यं स्वपस्यमानः सूनुर्दाधार शवसा सुदंसा:।
आमासु चिद्दधिषे पकमन्तः पयः कृष्णासु रुशद्रोहिणीषु॥9॥
शोभन कर्म कर्ता, अतीव बली और उत्तम कर्म से सम्पन्न इन्द्र देव याजकों से पहले से मित्रता करते आए हैं। आपने अपरिपक्व गायों को भी दूध दान किया और कृष्ण तथा लोहित वर्णों वाली गायों में भी शुल्क वर्ण का दूध प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.62.9]
श्रेष्ठ कर्म वाले महाबली यजमानों से मित्रता रखते हैं। हे इन्द्र! तुम अपरिपक्व गौओं में भी दूध स्थापित करते हो। काले वर्ण वाली धेनुओं में भी सफेद रंग का दूध देते हो। 
Hey Indr Dev! You are committed to Satvik Karm & have been friendly with those who perform pious, virtuous, righteous deeds. You developed the faculty to produce milk in immature cows along with white milk in black colour colour.
सनात्सनीळा अवनीरवाता व्रता रक्षन्ते अमृताः सहोभिः। 
पुरू सहस्त्रा जनयो पत्नीर्दुवस्यन्ति स्वसारो अह्रयाणम्॥10॥
जिन गति विहीन अंगुलियों ने सदा सन्नद्ध होकर स्थिति करने पर भी निरालसी बनकर अपने बल पर, हजारों व्रतों का पालन किया अथवा इन्द्रदेव का व्रत अनुष्ठित किया, वे ही सेवा तत्परा अँगुलियाँ रूपिणी भगिनी अथवा पत्नी या पालयित्री की तरह प्रगल्भ इन्द्रदेव की सेवा करती हैं।[ऋग्वेद 1.62.10]
सदैव से एक संग रहने वाली उंगलियाँ अनेक कार्यों को करती हैं। वे समस्त बहनें गृहस्थ भार्याओं के तुल्य गति करती हुई इन्द्रदेव की सेवा करती हैं।
The fingers are themselves joint to the hands, unable to move and yet perform thousands of Vrat-ascetice practices, Yagy without laziness. They perform-serve Indr Dev like the devoted wife.  
सनायुवो नमसा नव्यो अर्कैर्वसूयवो मतयो दस्म दद्रु:। 
पतिं न पत्नीरुशतीरुशन्तं स्पृशन्ति त्वा शवसावन्मनीषाः॥11॥
हे दर्शनीय इन्द्र देव! आप मन्त्र और प्रणाम से स्तुत होते हैं। जो बुद्धिमान् अग्रिहोत्रादि सनातन कर्म और धन की इच्छा करते हैं, वे बड़े यत्न के बाद आपको प्राप्त होते हैं। हे बली इन्द्रदेव! जैसे कामिनी स्त्रियाँ आकांक्षी पति को प्राप्त करती है, वैसे ही बुद्धिमानों की स्तुतियाँ आपको प्राप्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.62.11]
हे दिव्य कर्म वाले! पुराने धर्म की कामना से अभिनव श्लोकों के संग ऋषि गण आपको शांत-प्रसन्न करते हैं। इच्छा युक्त पतियों को ग्रहण होने वाली भार्याओं के तुल्य यह वंदनाएँ तुम्हें ग्रहण होती हैं।
Hey decorated-beautiful Indr Dev! You are worshiped with Mantr-Strotr and respect-salutations. Those intelligent-prudent people who pray to you, take a lot of time & effort to see you-get your blessings. The manner in which the desirous women get the husband the prayers to join you.
सनादेव तव रायो गभस्तौ न क्षीयन्ते नोप दस्यन्ति दस्म। 
द्युमाँ असि क्रआपॉँ इन्द्र धीर: शिक्षा शचीवस्तव नः शचीभिः॥12॥
हे सुदृश्य इन्द्रदेव! जो सम्पत्ति, सदा से, आपके पास है, वह कभी विनष्ट नहीं होती। आप मेधावी, तेजशाली और यज्ञ सम्पन्न हैं। हे कर्मी इन्द्रदेव! अपने कर्मों के द्वारा हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.62.12]
सुदृश्य :: Specious, presenting a pleasing appearance; pleasing in form or look, showy, apparently right; superficially fair, just or correct but not so in reality; appearing well at first view; plausible. As specious reasoning, a specious argument.
हे विचित्र इन्द्रदेव! तुम्हारी सम्पत्ति का नाश नहीं होता, वह कम भी नहीं होती। तुम दीप्ति युक्त ज्ञान से युक्त, दृढ़ विचार वाले हो। हमको धन और बल प्रदान करो।
Hey good looking-pleasing Indr Dev! Your wealth is never lost. You possess the aura due to enlightenment, Yagy Karm & is determined.
सनायते गोतम इन्द्र नव्यमतक्षद्ब्रह्म हरियोजनाय। 
सुनीथाय नः शवसान नोधाः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥13॥
हे सुलोचन और बलवान् इन्द्रदेव! आप सबके आदि हैं। आप रथ में घोड़े नियोजित करते हैं। गौतम ऋषि के पुत्र नोधा ऋषि ने नवीन स्तोत्रों की रचना की है। फलतः कर्म द्वारा जिन इन्द्रदेव ने धन प्राप्त किया, आप प्रात: काल हमारे पास शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 1.62.13] 
हे इन्द्र! पुरातन पुरुष! तुम अग्रणी रथ में अश्वों को जोतने वाले हो। गौतम ने अभिनव स्तोत्रों की रचना की है। प्रात: काल के समय शीघ्रता पूर्वक पधारो।
Hey good looking & mighty Indr Dev! You deploy the horses in the chariot which is ready to move fast to the devotees-performing Yagy Karm. Nodha, the son of Gautom Rishi created new stanzas-verses for your welcome-reception, honour. You should come fast to us in the morning.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- नोधा गौतम,  देवता :- इन्द्र,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वं महाँ इन्द्र यो ह शुष्मैर्द्यावा जज्ञानः पृथिवी अमे धाः।
यद्ध ते विश्वा गिरयश्चिदभ्वा भिया दुळ्हासः किरणा नैजम्॥1॥
हे इन्द्र देव! आप सर्वोत्तम गुणी हैं। भय उपस्थित होने पर अपने रिपु शोषक बल द्वारा आपने द्यौ और पृथिवी को धारित किया। संसार के सारे प्राणी और पर्वत तथा दूसरे जो विशाल और सुदृढ़ पदार्थ हैं, वे सब भी आकाश में सूर्य किरणों की तरह आपके भय से काँपते हैं।[ऋग्वेद 1.63.1] 
हे इंद्र! तुम श्रेष्ठ हो। तुमने प्रकट होते ही पराक्रम से आसमान और धरती को ग्रहण किया। तब तुम्हारे भय से सभी मनुष्य और महान् पर्वत भी किरणों के समान काँपने लगे।
Hey Indr Dev! You possess excellent qualities, traits, characterises. You supported the earth & the heavens when conditions of fear prevailed. All organism and the mountains which are too large and too strong, too tremble due to your fear, like the rays of light in the sky.
आ यद्धरी इन्द्र विव्रता वेरा ते वज्रं जरिता बाह्वोर्धात्। 
येनाविहर्यतक्रतो अमित्रान्युर इष्णासि पुरुहूत पूर्वी:॥2॥
हे बहुलोकाहूत इन्द्रदेव! जिस समय आप विभिन्न गतिशाली अश्वों को रथ में संयुक्त करते हैं, उस समय आपके हाथ में स्तोता वज्र देता है और आप उसी वज्र से शत्रुओं का अनभीष्ट कर्म करके उनका वध करते हैं। आपने असुरों के अनेक नगरों को भी ध्वस्त किया है।[ऋग्वेद 1.63.2]
हे निष्काम, पूजनीय इन्द्रदेव जब तुम अपने अश्वों को लाते हो, तब वंदनाकरी तुम्हारे हाथों में वज़ देता है। उससे तुम शत्रुओं पर प्रहार करते हुए उनके किलों को ध्वस्त करते हो।
Hey Indr Dev, devoted to the welfare of all! When you deploy the fast moving horses in your chariot, those praying to you , handover Vajr to you & you eliminate the enemy & destroy their forts.
त्वं सत्य इन्द्र घृष्णुरेतान्त्वमृभुक्षा नर्यस्त्वं षाट्। 
त्वं शुष्णं वृजने पृक्ष आणौ यूने कृत्साय धुमते सचाहन्॥3॥
हे इन्द्र देव आप सर्वोत्कृष्ट हैं। आप समस्त शत्रुओं के विनाशक हैं। आप ऋभु गण के स्वामी, मनुष्यगण के उपकर्ता  और शत्रु के नाशक हैं। संहारक और आपुल युद्ध में आपने प्रकाशक और तरुण कुत्स के सहायक बनकर शुष्ण नामक असुर को मारा।[ऋग्वेद 1.63.3]
हे सत्य रूप इन्द्र देव! तुम शत्रुओं को वशीभूत करने वाले और श्रेष्ठ हो। तुम मनुष्यों की भलाई करने वाले विजेता हो। तुमने युवक कुत्स के सहायक होकर संग्राम में शुष्ण को मारा। Hey Indr Dev! You are excellent-best. You control-mesmerize the enemies and kill them. You are the master of Ribhu Gan, benefactor of humans and slayer of enemies. You became helpful to young Kuts and killed Shushn in fight-war.
त्तं ह त्यदिन्द्र चोदी: सखा वृत्रं यद्वज्रिन्वृषकर्मन्नुभ्नाः। 
यद्ध शूर वृषमणः पराचैर्वि दस्दूँर्योनावकृती वृथापाट्॥4॥
हे वृष्टि वर्षक और वज्रधर इन्द्रदेव! जिस समय आपने शत्रुओं का वध किया था, हे वीर अभीष्टवर्षक कामी और शत्रुजयी इन्द्रदेव! उस समय आपने लड़ाई के मैदान में दानवों को परांङ्मुख करके उन्हें ध्वस्त किया और कुत्स के सहायक होकर उनको यशस्वी बनाया।[ऋग्वेद 1.63.4]
हे वीर कर्मा वजिन! तुम मित्रता को निभाने वाले हो। वृत्र को मारकर असुरों को भवन सहित तुमने नष्ट किया।
Hey rain producing and Vajr holding Indr Dev! Hey Indr Dev you grant-cause accomplishments and is a winner! You became helpful to Kuts leading to his honour in the war, killed the demons & defeated them in all possible manner.
त्वं ह त्यदिन्द्रारिषण्यन्दृळ्हस्य चिन्ममर्ता नामजुष्टौ। 
व्य स्मदा काष्ठा अर्वते वर्धनेव वञ्रिञ्छ्नथिह्यामित्रान्॥5॥
हे वज्रधर इन्द्रदेव! आप अपने तेजस्वी वज्र से शत्रुओं का विनाश करते हैं, किन्तु किसी सुदृढ़ व्यक्ति की हानि करने की इच्छा आप कदापि नहीं करते, शत्रुओं के द्वारा मनुष्यों पर उपद्रव होने पर आप उनके अश्वों को भ्रमण के लिए चारों ओर खोल देते हैं अर्थात् केवल अपने भक्तों के लिए चारों द्वारों को खोल देते हैं।[ऋग्वेद 1.63.5]
हे इन्द्रदेव! तुम किसी दृढ़ प्राणी से भी पीड़ित नहीं हो सकते। तुम वज्रधारी हमारे अश्वों के लक्ष्य को बाधा रहित करो। कठोर वज्र से हमारे शत्रुओं का सर्वनाश करो। 
Hey Indr Dev! You destroy the enemies with your sharp-energetic Vajr. Neither you tease-trouble a pious, virtuous, righteous person not harmed by the mighty-powerful. Make the path of our horses trouble free-smooth.
त्वां ह त्यदिन्द्रार्णसातौ स्वर्मीळ्हे नर आजा हवन्ते।
तव स्वधाव इयमा समर्य ऊतिर्वाजेष्वतसाय्या भूत्॥6॥
हे बली इन्द्रदेव! जिस युद्ध में योद्धा लोग लाभ और धन पाते हैं, उसमें सहायता के लिए मनुष्य आपका आवाहन करते हैं। रणक्षेत्र में आपके ये रक्षण कार्य हमारी ओर प्रसारित हों। योद्धा लोग आपकी रक्षा के पात्र हैं।[ऋग्वेद 1.63.6]
हे इन्द्रदेव! धन ग्रहणता और यश के लिए मनुष्य संग्राम में सहायतार्थ तुम्हारा आह्वान करते हैं। संग्राम क्षेत्र में तुम्हारी सुरक्षा लगातार ग्रहण होती है।
Hey mighty Indr Dev! The humans invite to for help to the wars in which the warriors obtain benefits and wealth. You should protect the warriors & us during war.
त्वं ह त्यदिन्द्र सप्त युध्यन्पुरो वज्रिन्पुरुकुत्साय दर्द:। 
बर्हिर्न यत्सुदासे वृथा वर्गंहो राजन्वरिवः पूरवे कः॥7॥
हे वजिन् इन्द्रदेव! आपने, पुरुकुत्स नाम के ऋषि के सहायक होकर, शत्रुओं के सात नगरों का विध्वंस किया था और सुदास नामक राजा के लिए शत्रुओं को कुश के समान सहसा काट दिया। आपने ही पुरु के लिए धन प्रदत्त किया।[ऋग्वेद 1.63.7]
हे वजिन! पुरुकुत्स के लिए संग्राम करते हुए तुमने सातों किले तोड़ दिये। तुमने सुदास के लिए शत्रुओं को कुश के तुल्य काट डाला। राजा पुरु की निर्धनता दूर करने को धन प्रदान किया।
Hey Vajr holding Indr Dev! You became protective to the Rishi Purukuts and destroyed 7 cities-forts of the enemy. You killed the enemies of king Sudas like Kush grass suddenly-at once. Its you who provided wealth-riches to king Puru. 
त्वं त्यां न इन्द्र देव चित्रामिषमापो न पीपयः परिज्मन्य। 
यया शूर प्रत्यस्मभ्यंयंसि त्मनमूर्ज न विश्वध क्षरध्यै॥8॥
हे वीर इन्द्रदेव! आप हमारा विलक्षण या संग्रहणीय घन, व्याप्त पृथ्वी पर जल की तरह वर्द्धित करें। जैसे चारों ओर जल को आपने क्षरित किया है, उसी प्रकार उस अन्न द्वारा हमें जीवन देवे।[ऋग्वेद 1.63.8]
हे इन्द्र जल के समान अनेक अन्नों की वृद्धि करो। आप हमें जीवन और पराक्रम प्रदान करें।
Hey brave Indr Dev! Grow our amazing, collectible wealth over the earth just like water. The manner in which you have spreaded water all around, give us food grains to sustain life. 
अकारि त इन्द्र गोतमेभिर्ब्रह्माण्योक्ता नमसा हरिभ्याम्। 
सुपेशसं वाजमा भरा नः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥9॥
हे इन्द्र देव! आप अश्व-सम्पन्न हैं। आपके लिए गौतम वंशियों ने भक्ति पूर्वक स्तोत्र या मन्त्र कहे हैं। आप हमें नाना प्रकार के अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.63.9] 
हे इन्द्र देव! गौतम ने आपकी मंत्रों से युक्त वंदना की। आपके अश्वों को प्रणाम किया। आप हमको उत्तम धन दो। प्रातः काल में शीघ्र यहाँ पधारें।
Hey Indr Dev! You possess descent horses. The descendants of Gautom composed Strotr & Mantrs in your honour. Please arrive early in the morning & provide us with various kinds of food grains.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (80) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- पंक्ति।
इत्था हि सोम इन्मदे ब्रह्मा चकार वर्धनम्। 
शविष्ठ वज्रिन्नोजसा पृथिव्या निः शशा अहिमर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे बलशाली और वज्रधर इन्द्रदेव! आपके इस हर्षकारी सोमरस का पान करने पर स्तोता ने आपकी वृद्धिकारिणी स्तुति की। आपने बल द्वारा पृथ्वी पर से अहि को ताड़ित किया और अपना प्रभुत्व या स्वराज्य प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.1]
हे महाबलिष्ठ इन्द्रदेव! हर्ष दायक सोम के प्रभाव से वंदनाकारी ने प्रशसां की। तुम वज्रधारी ने अपनी शक्ति से वृत्र को दंडित किया। तुम स्वराज्य में प्रकाशमान हुए विद्यमान हो। 
Hey powerful-mighty Indr Dev! The devotee prayed to you, when you consumed the Somras which grant pleasure. You attacked Ahi-Vratr from the earth and showed-established your might.
स त्वामदषा मदः सोमः श्येनाभृतः सुतः। 
येना वृत्रं निरद्भयो  जघन्थ वज्रिन्नोजसार्चन्ननु स्वराज्यम्
हे इन्द्रदेव! सेचन स्वभाव, हर्षकर और श्येन पक्षी द्वारा आनीत तथा अभिषुत सोमरस ने आपको प्रसन्न किया। हे वज्रिन्! अपने बल द्वारा अन्तरिक्ष के पास से आपने वृत्र का विनाश कर अपना प्रभुत्व प्रकट किया[ऋग्वेद 1.80.2]
हे वज्रिन! श्येन से लाये निष्पन्न बल से युक्त सोम ने तुमको प्रसन्नताप्रद और शक्तिशाली बनाया, उससे तुमने वृत्र को जलों से अलग कर पीड़ित किया, तुम स्वराज्य में प्रकाशित हो।
Hey Indr Dev! The Somras brought by Shyen-a bird, gave you vigour and pleasure. You killed Vratr and established your might-power, suprimacy. 
प्रेह्यभीहि धृष्णुहि न ते वज्रो नि यँसते। 
इन्द्र नृम्णं हि ते शवो हनो वृत्रं जया अपोऽर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे इन्द्रदेव! जाकर शत्रुओं का सामना करें और उन्हें पराजित करें। आपके वज्र के वेग को कोई रोकने वाला नहीं है। आपका बल पुरुष विजयी है। इसलिए आप वृत्र का वध कर वृत्र द्वारा रोका हुआ जल प्रवाहित करें और अपना प्रभुत्व प्रकट करें।[ऋग्वेद 1.80.3]
हे इन्द्रदेव! वृद्धि करो, शत्रु का सामना करो। तुम निडर हो। तुम्हारे व्रज का कोई सामना नहीं कर सकता। तुम्हारा वीर्य ही शक्ति है। तुमने वृत्र को पृथ्वी से खींचकर समाप्त किया और क्षितिज से खींचकर वध किया।
Hey Indr Dev! Go and face the enemy and defeat him. There is none who can face-resist the speed of your Vajr. Thus, you killed Vratr and released the water blocked by him & established your power-might.
निरिन्द्र भूम्या अधि वृत्रं जघन्थ निर्दिवः। 
सृजा मरुत्वतीरव जीवधन्या इमा अपोऽर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे इन्द्रदेव! आपने भूलोक और धुलोक, दोनों लोकों में वृत्र का वध किया। मरुतों से संयुक्त और जीवों के तृप्तिकर वृष्टि जल को गिराकर, अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.4]
तुम जीव रक्षक मरुतों से परिपूर्ण जलों की वृष्टि करो। अपने में तुम अपने आप प्रकाशमान हो। क्रोधित इन्द्र ने भय से कांपते हुए वृत्र पर प्रहार किया और जलों को प्रवाह में प्रेरित किया।
Hey Indr Dev! You killed Vratr by positioning your self over the earth and the outer space. You joined the Marud Gan and  rained to satisfy the living beings and proved your suprimacy.
इद्रो वृत्रस्य दोधतः सानुं वज्रेण हीळितः।
अभिक्रम्याव जिघ्नतेऽपः सर्माय चोदयन्नर्चनन्नु स्वराज्यम्
क्रोधित इन्द्रदेव ने सामना करके कम्पमान वृत्र की ठुड्डी पर वज्र से प्रहार किया, वृष्टि का जल बहने दिया और अपना प्रभुत्व प्रकट किया[ऋग्वेद 1.80.5]
वे इन्द्र स्वयं प्रकाशमान हैं। सोम से आनन्दित इन्द्र ने गांठों वाले वज्र से जल पर प्रहार किया।
Angy Indr Dev struck the jaws of Vratr, allowed the water to flow and established his suprimacy.

अधि सानौ नि जिघ्नते वज्रेण शतपर्वणा। 
मन्दान इन्द्रो अन्धसः सखिभ्यो गातुमिच्छत्यर्चन्ननु स्वराज्यम्
सोमरस से आनन्दित हुए इन्द्रदेव ने सौ तीक्ष्ण सूँड़ वाले वज्र से वृत्रासुर की ठुड्डी पर आघात किया। इन्द्रदेव ने प्रसन्न होकर स्तोताओं के लिए अन्न को जुटाने की इच्छा की और अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.6]
वे मित्रों के लिए धन की अभिलाषा करते हुए प्रकाशमान हैं। 
After drinking Somras, Indr Dev became happy and struck the jaws of Vratr with Vajr, which had hundred sharp heads-points. He became happy with the prayers offered to him and showed the desire to collect food grains, showing his authority.
इन्द्र तुभ्यमिदद्रिवोऽनुत्तं वज्रिन्वीर्यम्। 
यद्ध त्यं मायिनं मृगं तमु त्वं माययावधीरर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे मेघ वाहन और वज्रधर इन्द्रदेव! शत्रु लोग आपकी क्षमता की अवहेलना नहीं कर सकते; क्योंकि आप मायावी हैं, माया द्वारा आपने मृग रूपधारी वृत्र का वध कर अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.7]
हे वज्रिन! शत्रुओं का बहिष्कार करने वाला पुरुषार्थ तुम्हारा ही है। तुम्हीं ने पशु रूप मायावी वृत्र को समाप्त किया। तुम स्वयं ज्योर्तिमान हो।
Hey carrier of clouds and bearer of Vajr Indr Dev! The enemy cannot disrespect-avoid your powers, since you have the powers, to cast illusion. You killed Vratr who had acquired the shape of deer and demostrated your authority.
वि ते वज्रासो अस्थिरन्नवतिं नाव्या अनु। 
महत्त इन्द्र वीर्यं बाह्वोस्ते बलं हितमर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे इन्द्रदेव! आपके वज्र नब्बे नदियों के ऊपर विस्तृत हुए। हे इन्द्रदेव! आपका पराक्रम यथेष्ट हैं। आपकी भुजाएँ बहुबलधारिणी हैं। आप अपना प्रभुत्व प्रकट करें।[ऋग्वेद 1.80.8]
हे इन्द्रदेव! नब्बे बड़ी सरिताओं के समान तुम्हारा वज्र विशाल है। तुम्हारा बल श्रेष्ठ है। तुम्हारी दोनों भुजाएं दृढ़ हैं। तुम स्वयं प्रकाशमय हो। इन्द्रदेव ने अपने बल से वृत्र के बल का विनाश किया पराभूत करनेवाले शस्त्र से उन्होंने वृत्र का शस्त्र विनष्ट किया। इनके पास असीम शक्ति है, क्योंकि उन्होंने वृत्र का वध करके वृत्र द्वारा रोका गया जल निर्गत किया। इस प्रकार इन्द्र ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।
Hey Indr Dev! Your Vajr is as broad as 90 water streams. Your valour is significant. Your arms have several powers. Demonstrate your authority-powers.
सहस्रं साकमर्चत परि ष्टोभत विंशतिः। 
शतैनमन्वनोनवुरिन्द्राय ब्रह्मोद्यतमर्चन्ननु स्वराज्यम्
एक साथ हजार मनुष्यों ने इन्द्रदेव की पूजा की। बीस मनुष्यों ने इन्द्र की स्तुति की। सौ ऋषियों ने इनकी बार-बार स्तुति की। इनके लिए हव्य अन्न ऊपर रखा गया। तब इन्द्रदेव ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.9]
हे मनुष्यों! तुम हजारों संख्या में एकत्र होकर इन्द्रदेव की वंदना अर्चना करो। बीस प्रार्थनाएँ गाओ। ये इन्द्र बहुतों द्वारा स्तुत्य हैं। ऋषि ने इन्द्र के लिए मंत्र रूपी प्रार्थनाओं को उन्नत किया है।
Indr Dev demostratred his powers when 1,000 men worshipped him together, 20 men prayed him, the Rishis repeatedly prayerd to him with excellent hymns by making offerings of food grains. 
इन्द्रो वृत्रस्य तविर्षी निरहन्त्सहसा सहः। 
महत्तदस्य पौंस्यं वृत्रं जघन्वाँ असृजदर्चन्ननु स्वराज्यम्
इन्द्रदेव ने अपने बल से वृत्र के बल का विनाश किया पराभूत करनेवाले शस्त्र से उन्होंने वृत्र का शस्त्र विनष्ट किया। इनके पास असीम शक्ति है, क्योंकि उन्होंने वृत्र का वध करके वृत्र द्वारा रोका गया जल निर्गत किया। इस प्रकार इन्द्र ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.10]
ये स्वयं प्रकाशवान हैं। इन्द्र ने वृत्र का पराक्रम क्षीण किया। अपने पराक्रम से उसे साहस विहीन बनाया। वृत्र को मारना इनका पराक्रम है। अपने राज्य में ये स्वयं प्रकाशित हैं।
Indr Dev killed Vratr with his powers, nullified the arms  of Vratr with his arms. He possess unlimited powers. He killed Vratr and released the waters blocked by him. This is how Indr Dev showed his galour-might.
इमे चत्तव मन्यवे वेपेते भियसा मही। 
यदिन्द्र वज्रिन्नोजसा वृत्रं मरुत्वां अवधीरर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे वज्रधारी इन्द्रदेव! आपके भय से यह आकाश और पृथ्वी कम्पायमान हुए; क्योंकि आपने मरुतों से मिलकर वृत्र का वध किया और अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.11]
हे वज्रिन! तुम्हारे डर से क्षितिज और पृथ्वी भी कम्पायमान होते हैं। तुमने मरुतों के सहयोग से वृत्र को समाप्त किया।
Hey Vajr holding Indr Dev! The earth and sky trembled due to your fear since, you vanished Vratr in association with the Marud Gan and proved your might. 
न वेपसा न तन्यतेन्द्रं वृत्रो वि बीभयत्। 
अभ्येनं वज्र आयसः सहस्त्रभृष्टिरायतार्चन्ननु स्वराज्यम्
अपने कम्पन या गर्जन से वृत्र इन्द्र देव को भयभीत न कर सका। इन्द्र देव के लौहमय और सहस्त्र धारायुक्त वज्र ने वृत्र को आक्रान्त किया और इन्द्र ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.12]
इन्द्रदेव को वह वृत्र कंपायमान न कर सका, न गर्जना से भयभीत कर सका। उस पर इन्द्र देव का लौह वज्र गिरा।
Vratr could not cause fear in the mind of Indr Dev, either with his roar or shaking. Indr Dev punished Vratr with his Vajr made of iron, having 1,000 sharp points and demonstrated his might. 
यत्रं तव चाशनिं वज्रेण समयोधयः। 
अहिमिन्द्र जिघांसतो दिवि ते बद्बधे शवोऽर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे इन्द्रदेव! जिस समय आपने वृत्र पर प्रहार किया, उस समय आपको अहि के वध के लिए, कृत संकल्प होने पर आपका बल आकाश में व्याप्त हुआ। तब आपने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.13]
हे इन्द्रदेव! जब वृत्र के फेंके हुए वज्र से तुमने अपना वज्र टकराया तब उसे मारने की इच्छा से अपने पराक्रम को आकाश में स्थापित किया।
Hey Indr Dev! The moment you decided to relinquish Vratr and targeted him, your valour spread across the sky & you showed your power. 
अभिष्टने ते अद्रिवो यत्स्था जगच्च रेजते। 
त्वष्टा चित्तव मन्यव भियार्चन्ननु स्वराज्यम्
हे वज्रधारी इन्द्रदेव! आपके गर्जन करने पर स्थावर और जंगम कँप जाते हैं। वज्र निर्माता त्वष्टा भी आपके कोप भय से कम्पित हो जाते हैं। अपनी सामर्थ्य के अनुकूल आप कर्तृत्व प्रस्तुत करते हैं।[ऋग्वेद 1.80.14]
वज्रिन! तुम्हारी गर्जना से स्थावर-जंगम सभी काँपते हैं। त्वष्टा भी भय से काँपता है। तुम अपने राज्य को स्वयं प्रकाशित करते हो।
Hey Vajr holding Indr Dev! Your roar shakes both the fixed and movable organisms. Even Twasta who made Vajr, too tremble with the fear of your anger. You perform as per your will-power and duty.
नहि नु यादधीमसीन्द्रं को वीर्या परः। 
तस्मिन्नृम्णमुत क्रतुं देवा ओजांसि सं दधुरर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
सर्व व्यापक इन्द्रदेव को हम नहीं जान सकते। अत्यन्त दूर में अवस्थित इनको अपने सामर्थ्य से कौन जान सकता है!? इन्द्रदेव में देवताओं ने धन, पराक्रम और बल स्थापित किया, इन्द्रदेव ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.15]
पुरुषार्थ में इन्द्रदेव से अधिक कोई नहीं है। देवगण ने उनमें ज्ञान, शक्ति, पुंसत्व की दृढ़ता की है। वे अपने राज्य को स्वयं प्रकाशमय करते हैं।
Its not possible for us to know Indr Dev! Who can recognise his capabolity located far away from him!? The demigods-deities transferred their wealth, power, capability to him & he proved it.  
यामथर्वा मनुष्पिता दध्यङ्  धियमत्नत।
तस्मिन्ब्रह्माणि पूर्वथेन्द्र उक्था समग्मतार्चन्ननु स्वराज्यम्॥
अथर्वा नामक ऋषि और समस्त प्रजा के पितृ भूत मनु और अथर्वा के पुत्र दध्यङ् ऋषि ने जितने यज्ञ किये, सबमें प्रयुक्त हव्य, अन्न और स्तोत्र प्राचीन यज्ञों की तरह इन्द्रदेव को ही प्राप्त हुए।[ऋग्वेद 1.80.16]
अथर्वा, पिता, मनु, दह्यड़ ने जो-जो कार्य किये उनकी हवियाँ और वंदनाएँ इन्द्र देव में संगठित हुई।
The offerings used by Rishi Arthva, entire populace, Pitr Gan, Manu Maharaj and Arthva's son Dadhny Rishi etc., in the Yagy, were received by Indr Dev. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (81) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- पंक्ति।
इन्द्रो मदाय वावृधे शवसे वृत्रहा नृभिः। 
तमिन्महत्स्वाजिषूतेमर्भे हवामहे स वाजेषु प्र नोऽविषत्
वृत्र हन्ता इन्द्रदेव मनुष्यों की स्तुति द्वारा बल और हर्ष से प्रवर्द्धित हुए। उन्हीं इन्द्र देव को हम महान् और क्षुद्र संग्रामों में बुलाते हैं। इन्द्रदेव हमारी संग्राम में रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.81.1]
वृत्र को मारने वाले इन्द्रदेव की हर्षिता और शक्ति में मनुष्यों द्वारा वृद्धि की जाती है। इन इन्द्रदेव की शक्ति छोटे युद्ध में सुरक्षा के लिए आह्वान करते हैं।
Indr Dev became powerful by the prayers, well wishes of the humans and filled with joy. We call Indr Dev for help in minor and major battle.
असि हि वीर सेन्योऽसि भूरि पराददिः। 
असि दभ्रस्य चिधो  यजमानाय शिक्षसि सुन्वते भूरि ते वसु॥
हे वीर इन्द्रदेव! एकाकी होने पर भी आप सेना सदृश है। आप प्रभूत शत्रुओं का धन दान कर देते हैं। आप क्षुद्र स्तोता को भी वर्द्धित करते हैं। सोमरस दाता यजमान को आप धन प्रदान करते हैं, क्योंकि आपके पास अक्षय धन है।[ऋग्वेद 1.81.2]
हे पराक्रमी इन्द्रदेव! तुम सेना में महान तथा अत्यन्त धन दाता हो। तुम छोटे की वृद्धि करते हो। तुम सोमवाले यजमान को अनेक धन प्रदान करते हो।
Hey brave Indr Dev! You are like an army even if you are alone. You  donate the money received from the defeated enemies. You promote-help even the minor devotees. You grant riches to the person who offer you Somras, since you have plenty of wealth.
यदुदीरत आजयो धृष्णवे धीयते धना। 
युक्ष्वा मदच्युता हरी कं हनः कं वसौ दधोऽस्माँ इन्द्र वसौ दधः॥
जिस समय युद्ध होता है, उस समय शत्रुओं का विजेता ही धन प्राप्त करता है। हे इन्द्रदेव! रथ में शत्रुओं के गर्वनाशकारी अश्व संयोजित करें। किसी का नाश करें, किसी को धन दें। हे इन्द्रदेव! हमें आप धनशाली बनावें।[ऋग्वेद 1.81.3]
द्वन्द्वों में अभय देने वाले इन्द्रदेव! तुम दोनों अश्वों को रथ में जोड़ो। तुम मारते भी हो, धन भी प्रदान करते हो। हमें धन प्रदान करो। 
During the battle its the winner who control-occupies the waelth of the enemy. Hey Indr Dev! deploy the horses in the chariote who can hit-tarnish, destroy the ego of the enemy. You destroy one and grant riches to the other. Hey Indr Dev! Please make us rich.
क्रत्वा महाँ अनुष्वधं भीम आ वावृधे शवः। 
श्रिय ऋष्व उपाकयोर्नि शिप्री हरिवान्दधे हस्तयोर्वज्रमायसम्
यज्ञ द्वारा इन्द्रदेव विशाल और भयंकर हैं और सोमपान द्वारा इन्द्रदेव ने अपना बल बढ़ाया। इन्द्र देव दर्शनीय नासिका से युक्त तथा हरि नाम के अश्वों से युक्त हैं। इन्द्रदेव ने हमारी रक्षा के लिए अपने दाहिने हाथ में लौहमय वज्र को अलंकार के रूप में धारण किया।[ऋग्वेद 1.81.4]
श्रेष्ठ बुद्धि वाले विकराल इन्द्र ने अपनी इच्छित बल की वृद्धि की और अश्वों से युक्त दृढ़ दाढ़ वाले इन्द्र ने यश के लिए लोह वज्र को धारण किया।
The Yagy makes Indr Dev large-huge and furious. He boosts his energy, powers & strength by drinking Somras. His nose is beautiful and the horses are called Hari. Indr Dev bears Vajr for our protection in the right hand as an ornament.
आ पप्रौ पार्थिवं रजो बद्बधे रोचना दिवि। 
न त्वावाँ इन्द्र कश्चन न जातो न जनिष्यतेऽति विश्वं ववक्षिथ॥
अपने तेज से इन्द्रदेव ने पृथ्वी और अन्तरिक्ष को परिपूर्ण किया है। धुलोक में चमकते हुए नक्षत्र स्थापित किए। इन्द्रदेव आपके समान न कोई हुआ, न होगा। आप विशेष रूप से सारे जगत् को धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.81.5]
इन्द्र ने पृथ्वी से सम्बन्धित अंतरिक्ष को पूर्ण किया और आकाश में नक्षत्र स्थापित किये। हे इन्द्र! उत्पन्न हुए मनुष्यों में तुम्हारे समान कोई नहीं है। तुम अत्यन्त महान हो।
Entire earth and the space is pervaded by the energy of Indr Dev. He placed shinning constellations in the space. There has been none to meet your status either earlier or in future. You hold the entire universe.
यो अर्यो मर्तभोजनं पराददाति दाशुषे। 
इन्द्रो अस्मभ्यं शिक्षतु वि भजा भूरि ते वसु भक्षीय तव राधसः
हे इन्द्रदेव! यजमान को मनुष्योपभोग्य अन्न प्रदान करते हैं, वे हमें वैसा ही अन्न दें। आपके पास असंख्य धन है, इसलिए हमारे लिए धन का विभाग करें, ताकि हम उसका एक अंश प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.81.6]
जो इन्द्रदेव हविदाता को मनुष्यों के उपभोग्य पदार्थों को देते हैं, वह हमको भी दें! हे इन्द्रदेव! तुम्हारे निकट अनन्त धन है, उसे बांट दो। मैं भी तुम्हारे धन में भाग को ग्रहण करूँ।
Hey Indr Dev! You provide food grains fit for consumption for the humans, to those who resort to your prayers. Please provide us the same food. You have plenty of wealth. Please give a fraction of it to us.
मदेमदे हि नो ददिर्यूथा गवामृजुक्रतुः। 
सं गृभाय पुरू शतोभयाहस्त्या वसु  शिशीहि राय आ भर
सोमपान करके हृष्ट हुए होने पर सरल कर्मा इन्द्रदेव हमें गो समूह देते हैं। इन्द्र देव! हमें देने के लिए बहुशत संख्यक या अपरिमेय अन्न अपने दोनों हाथों में ग्रहण करें। हमें तीक्ष्ण बुद्धि से युक्त करें और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.81.7]
हृष्ट ::  प्रसन्न, सन्तुष्ट; pleased, thrilled by happiness, glad. 
श्रेष्ठ बुद्धि वाले इन्द्रदेव हमें धेनु इत्यादि धन प्रदान करते हैं। हे इन्द्रदेव! हमको दोनों हाथों से धन प्राप्त करने के लिए हमारी बुद्धि को तीव्र करो।
After consuming Somras Indr Dev become happy and give us cows. Indr Dev should possess food grains to give in plenty, in his both hands. He should grant us sharp intelligence and riches.
मादयस्व सुते सचा शवसे शूर राधसे।
विद्या हि त्वा पुरूवसुमुप कामान्त्ससृज्महे ऽथा नोऽविता भव॥
हे शूर इन्द्रदेव! हमारे बल और धन के लिए हमारे साथ सोमरस का पान करके तृप्त होवें। आपको हम बहु धनशाली जानते हैं। आप कामनाओं को पूर्ण करके हमारी रक्षा करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.81.8]
हे वीर इन्द्रदेव! सोम सिद्ध होने पर तुम धन के निमित्त उससे हर्ष प्राप्त करो। तुम अत्यन्त धन वाले माने गये हो तुम हमारी अभिलाषा पर ध्यान आकृष्ट करते हुए हमारी सुरक्षा करो।
Hey brave Indr Dev! Be satisfied with our strength and the wealth, drink Somras and become content. We recognise you as the one who possess a lot of wealth. You fulfil our desires and protect us.
एते त इन्द्र जन्तवो विश्वं पुष्यन्ति वार्यम्। 
अन्तर्हि ख्यो जनानासर्यो वेदो अदाशुषां तेषां नो वेद आ भर॥
हे इन्द्रदेव! ये सभी मनुष्य आपके वरण करने योग्य पदार्थों की वृद्धि करने वाले हैं। हे स्वामी इन्द्रदेव! आप कृपणों के छुपे हुए धन को जानते हैं, उस धन को प्राप्त कर हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.81.9]
हे इन्द्रदेव! ये मनुष्य आपके प्राप्त करने योग्य पदार्थों की वृद्धि करते हैं। तुम दान करने वालों के धनों को जानकर हमारे लिए ले आओ।
Hey Indr Dev! The humans increases-provides you the goods which are used by you. Hey master Indr Dev! You are aware of the secret money of the misors. You get that money and give it to us. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (82) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- पंक्ति, जगती।
उपो षु शृणुही गिरो मघवन्मातथाइव। 
यदा नः सूनृतावतः कर आदर्थयास इद्योजा न्विन्द्र ते हरी॥
हे धनशाली इन्द्रदेव! पास आकर हमारी स्तुति श्रवण करें। आप हमें सत्य बोलने वाला बनायें। हमारी स्तुतियों को ग्रहण करने वाले, आप अश्वों को आगमन के निमित्त रथ में नियोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.1]
हे धन के स्वामी इन्द्रदेव! तुम हमारी वंदनाओं को पास से सुनो। तुम पूर्वकाल के तुल्य ही सुनने वाले हो। तुमने हमको सत्य और प्रियवाणी से परिपूर्ण किया है। तुम वन्दनाओं के सुनने के अभिलाषी भी हो। अपने रथ में अश्वों को जोड़कर यहाँ पधारो।
Hey wealthy Indr Dev! Please make us truthful. Listen to our prayers. Please deploy your horses in the chariot and come to us. 
अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत। 
अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजा न्विन्द्र ते हरी॥
आपका दिया हुआ भोजन करके यजमान लोग तृप्त होते हैं और अतिशय रसास्वादन से अपने सिर को हिलाते हैं। दीप्तिमान् मेधावियों ने अभिनव स्तुति द्वारा आपकी प्रार्थना की। हे इन्द्रदेव! अब आप अपने अश्वों को यज्ञ में प्रस्थान के लिए नियोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.2]
प्रिय मनुष्यों ने तुम्हारा प्रसाद रूप स्तोत्र पड़ा। इन्द्रदेव! रथ में अश्वों को जोड़ों हे मधुवन! तुम कृपा पूर्ण दृष्टि वाले को हम प्रणाम करते हैं। तुम वन्दना प्रसन्न हुए धनों से पूर्ण रथ सहित पधारो।
The food provided by you, satisfies the hosts and they move their head after eating the extremely tasty food to show their happiness. Intelligent-brilliant scholars have prayed to you with the nice hymns.  
सुसंदृशं त्वा वयं मघवन्वन्दिषीमहि। 
प्र नूनं पूर्णवन्धुरः स्तुतो याहि वशाँ अनु योजा न्विन्द्र ते हरी॥
हे मघवन्! आप सबको कृपापूर्ण दृष्टि से देखते हैं। हम आपकी स्तुति करते हैं। स्तुत होकर तथा स्तोताओं द्वारा देय धन से पूरित रथ युक्त होकर उन यजमानों के पास पधारें, जो आपकी कामना करते हैं। हे इन्द्रदेव! अपने दोनों अश्व रथ में नियोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.3]
वह अभिष्ट वर्धक धेनुओं को दिलाने धान्य युक्त सोम की अभिलाषा वाले इन्द्र रथ पर चढ़कर अवश्य पधारें। हे इन्द्रदेव तुम अत्यन्त बलिष्ठ हो, तुम्हारे रथ के दोनों ओर अश्व जुते हैं।
Hey Maghvan-Indr! You look to all kindly. We offer prayers to you. Having prayed-worshiped, please come to the devotees in a chariot full of wealth-riches for them. Hey Indr Dev! Please deploy both of your horses in the chariot.
स घा तं वृषणं रथमधि तिष्ठाति गोविदम्। 
यः पात्रं हारियोजनं पूर्णामिन्द्र चिकेतति योजा न्विन्द्र ते हरी॥
जो रथ अभीष्ट वस्तु का वर्षण करता है, गाय और धान्य से मिश्रित पूर्ण पात्र देता है, हे इन्द्रदेव! उसी रथ पर आरुढ़ होने के लिए अपने घोड़े शीघ्र नियोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.4]
हे शत यज्ञ कर्ता इन्द्रदेव! आपके रथ में दाहिनी और बायीं ओर दो अश्व जुते हैं।
Hey Indr Dev! Deploy your horses in your chariot which grants cows, food grains and wealth and come to us soon.
युक्तस्ते अस्तु दक्षिण उत सव्यः शतक्रतो। 
तेन जायामुप प्रियां मन्दानो याह्यन्धसो योजा न्विन्द्र ते हरी॥
सोमपान से हृष्ट होकर आप उस रथ द्वारा अपनी प्रिय पत्नी के पास जाएँ और अपने घोड़े संयोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.5] 
सोम से तेज परिपूर्ण हुए रथ में अश्वों को जोड़कर अपनी प्रिय भार्या के निकट जाओ।
Having been satisfied-happy by drinking Somras visit your wife in the chariot.
युनज्मि ते ब्रह्मणा केशिना हरी उप प्र याहि दधिषे गभस्त्योः। 
उत्त्वा सुतासो रभसा अमन्दिषुः पूषण्वान्वज्रिन्त्समु पत्ल्यामदः 
आपके केश सम्पन्न दोनों घोड़ों को मैं स्तोत्र द्वारा रथ में संयोजित करता हूँ। अपनी दोनों दाहिनी और बाँया और दो अश्व जुते हैं। सोमपान से हृष्ट होकर आप उस रथ द्वारा अपनी प्रिय पत्नी के पास जाएँ और अपने घोड़े संयोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.6]
हे वाजिन! मैं तुम्हारे दोनों अश्वों को लोक में रक्ष में जोतता हूँ। तुम हाथ में रस लेकर जाओ। सोम से प्रसन्न हुए भार्या के नजदीक जाओ।
Your horses having hair over the neck are deployed in the chariot on the left & right. Being satisfied with the Somras, move to your wife. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (83) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- पंक्ति, जगती।
अश्वावति प्रथमो गोषु गच्छति सुप्रावीरिन्द्र मर्त्यस्तवोतिभिः। 
तमित्पृणक्षि वसुना भवीयसा सिन्धुमापो यथाभितो विचेतसः॥
हे इन्द्र देव! आपकी रक्षा द्वारा जो मनुष्य रक्षित हैं, वह अश्व वाले घर में रहकर सर्व प्रथम गौ प्राप्त करता है। जैसे विशिष्ट ज्ञानदात्री नदियाँ चारों ओर से समुद्र को परिपूर्ण करती हैं, वैसे ही आप भी अपने रक्षित मनुष्य को यथेष्ट धन से परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.83.1]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे द्वारा रक्षित मनुष्य गौओं से परिपूर्ण धन वालों में प्रमुख होता है। समस्त ओर से जल समुद्र में जाते हैं, वैसे ही तुम उसी को धनों से परिपूर्ण करते हो, जो धन वालों में प्रमुख होता है।
Hey Indr Dev! A devotee protected by you, gets cows initially. You grant wealth-riches to one, who is protected by you, the way rivers fill the ocean with water.
आपो न देवीष्प यन्ति होत्रियमवः पश्यन्ति विततं यथा रजः। 
प्राचैर्देवासः प्र णयन्ति देवयुं ब्रह्मप्रियं जोषयन्ते वराइव
जैसे द्युतिमान् जल यज्ञ पात्र में जाता है, वैसे ही ऊपर रहने वाले देवता लोग यज्ञ पात्र को देखते हैं। उनकी वृष्टि सूर्य किरण की तरह व्यापक है। जिस प्रकार से अनेक वर एक ही कन्या से विवाह करने की इच्छा करते हैं, उसी प्रकार देवता लोग सोमपूर्ण और देवाभिलाषी पात्र को उत्तर वेदी के सम्मुख लाना चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.83.2]
होता के चमस पात्र को जैसे जल प्राप्त होता है, वैसे ही स्तोता को स्नेह करने वाले देवता आकाश से नीचे की ओर देखते हुए साधक को प्राप्त होते हैं और कन्या की प्रीति करने वाले घर के समान श्रेष्ठ मार्गों से ले जाते हैं। 
The demigods-deities look at the Yagy site just as the water flows to the Yagy pots. The demigods-deities want to move the Yagy pots-utensils to Uttar Vedi, Yagy site in the east, full of Somras to the hosts conducting Yagy, who is desirous of seeing them, just like the several men desirous of marring a girl.
अधि द्वयोरदधा उक्थ्यं वचो यतस्रुचा मिथुना या सपर्यतः। 
असंयत्तो व्रते ते क्षेति पुष्यति भद्रा शक्तिर्यजमानाय सुन्वते॥
हे इन्द्रदेव! जो हव्य और धान्य यज्ञ पात्र में आपको समर्पित किया गया है, उसमें आपने मंत्र वचन संयुक्त किया है। यजमान, युद्ध में न जाकर, आपके काम में लगा रहता है एवं पुष्टि प्राप्त करता है, क्योंकि सोमाभिषव दाता बल प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.83.3]
हे इन्द्रदेव! तुमने अपने उपासकों में प्रशंसा योग्य संकल्पों की दृढ़ता की है। वह पूजक तुम्हारे सिद्धान्तों पर कायम रहता है और वर्षा को ग्रहण करता है। तुम उस सोम वाले को मंगलप्रद शक्ति प्रदान करते हो।
Hey Indr Dev! The offerings made to you in the form of food grains are enriched by you with Mantr Shakti. The hosts, who do not want to go to war and instead remain busy with his work of extracting Somras too gain strength.
आदङ्गिराः प्रथमं दधिरे वय इद्धाग्नयः शम्या ये सुकृत्यया। 
सर्वं पणे: समविन्दन्त भोजनमश्वावन्तं गोमन्तमा पशुं नरः
पहले अर्थात् पूर्व में अङ्गिरा लोगों ने इन्द्रदेव के लिए अन्न सम्पादित किया। अनन्तर उन्होंने अग्नि जलाकर सुन्दर योग द्वारा इन्द्र की पूजा की। यज्ञ नेता अङ्गिरावंशियों ने अश्व, गौ और अन्य पशुओं से युक्त सारा धन प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.83.4]
जिन अंगिराओं ने उत्तम कर्मों से अग्नि को प्रदीप्त कर पहले हविरूप अन्न संपादित किया। फिर उन्होंने गवादि से युक्त धनों की प्राप्ति की। 
The descendants of Angira had conducted food grain Yagy to please Indr Dev in the past. Thereafter, they ignited fire and worshiped Indr Dev at an auspicious time & got cows and other cattle with a lot of wealth.
यज्ञैरथर्वा प्रथमः पथस्तते ततः सूर्यो व्रतपा वेन आजानि। 
आ गा काव्यः सचा यमस्य जातममृतं यजामहे
अथर्वा नाम के ऋषि ने पहले यज्ञ द्वारा चुराई हुई गायों का मार्ग प्रदर्शित किया। अनन्तर व्रत पालक और कान्ति विशिष्ट सूर्य रूप इन्द्र आविर्भूत हुए। गौओं को अथर्वा ऋषि ने प्राप्त किया। कवि के पुत्र उशना या भृगु ने इन्द्रदेव की सहायता की। असुरों के दमन के लिए उत्पन्न और अमर इन्द्रदेव की हम पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.83.5]
पहले अथर्वा ने स्वर्ग मार्गों की वृद्धि की फिर घृत नियमा सूर्य रूपी इंद्र प्रकट हुए।  तब उन शत्रुओं को मृत करने वाले इंद्र प्रकट हुए। तब "उशना" से धेनुओं को हांका। हम उन शत्रुओं को मृत करने वाले इन्द्रदेव की अर्चना करते हैं।
Rishi Atharva showed the way to the cows who were stolen, prior to the Yagy. As a result, thereafter Indr Dev appeared before him like the Sun. The cows were granted to Atharva. Ushna, the son of Kavi and  Bhragu helped Indr Dev. We worship Indr Dev who was born to eliminate the demons-giants and is immortal. 
बर्हिर्वा यत्स्वपत्याय वृज्यतेऽर्को वा श्लोकमाघोषते दिवि। 
ग्रावा यत्र वदति कारुरुक्थ्यस्तस्येदिन्द्रो अभिपित्वेषु रण्यति॥
सुन्दर फल युक्त यज्ञ के लिए जिस समय कुश का छेदन किया जाता है, उस समय स्तोत्र सम्पादक होता द्युतिमान् यज्ञ में स्तोत्र उद्घोषित करता है। जिस समय सोम निस्यन्दी प्रस्तर, शास्त्रीय स्तवनकारी स्तोता की तरह, शब्द करता है, उस समय इन्द्रदेव प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 1.83.6] 
जब उत्तम अनुष्ठान के लिए कुशा काटते हैं तब साधकगण श्लोक पाठ करते हैं, सोम कूटने वाला पाषाण श्लोक के तुल्य ध्वनिवान होता है, इन्द्रदेव हर्षित होते हैं।
Indr Dev becomes happy when Kush is cut to perform the Yagy granting excellent results & the sound produced by stones meant for crushing Som.
य एक इद्विदयते वसु मर्ताय दाशुषे। 
ईशानो अप्रतिष्कृत इन्द्रो अङ्ग॥
जो इन्द्रदेव केवल हव्यदाता यजमान को हव्य प्रदान करते हैं, वह समस्त संसार के शीघ्र स्वामी हो जाते हैं।[ऋग्वेद 1.84.7]
जो हविदाता को अकेला ही धन देने में सक्षम हैं, वह इन्द्र किसी के द्वारा पीछे नहीं हटाया जा सकता।
Indr Dev who is capable of making offerings in the Yagy became the master of the whole world. He can not be repelled or forced to move back.
He is the protector of the earth.
कदा मर्तमराधसं पदा क्षुम्पमिव स्फुरत्।   
कदा नः शुश्रवद्गिर इन्द्रो अङ्ग॥
जो हव्य नहीं देता, उसे मण्डलाकर सर्प की तरह इन्द्रदेव कब पैरों से रौदेंगे तथा वह कब हमारी स्तुति श्रवण करेंगे!?[ऋग्वेद 1.84.8] 
दान न देने वाले व्यक्ति को यह इन्द्रदेव सांप की छतरी, (कुकरमुत्ता) के तुल्य कब कुचल डाले? वे कब हमारी वंदनाओं को सुनेंगे?
A person who abstains from Yagy (efforts, devotion, virtues) may be crushed by Indr Dev  just like a serpent who coils around the wicked-sinner. We are waiting for Indr Dev to listen to over prayers.
यश्चिद्धि त्वा बहुभ्य आ सुतावाँ आविवासति। 
उग्रं तत्पत्यते शव इन्द्रो अङ्ग
हे इन्द्रदेव! जो अभिषुत सोमरस द्वारा आपकी सेवा करता है, उसे आप शीघ्र धन प्रदान करते हैं [ऋग्वेद 1.84.9]
असंख्यकों में जो कोई सोम निष्पन्न कर श्रद्धा भक्ति से तुम्हें पूजता है, वही अनन्त शक्ति ग्रहण करता है। वह इन्द्रदेव उसकी अवश्य सुनते हैं।
Hey Indr Dev! One who offer you Somras is enriched by you.
स्वादोरित्था विषूवतो मध्वः पिबन्ति गौर्यः। 
या इन्द्रेण सयावरीर्वृष्णा शोभसे वस्वीरनु स्वराज्यम्॥
गौर वर्ण की गायें सुस्वादु एवं सब यज्ञों में व्याप्त मधुर सोमरस का पान शोभा के लिए वे गायें अभीष्टदाता इन्द्रदेव के साथ गमन करके प्रसन्न होती हैं। ये इन्द्रदेव के स्वराज्य को लक्ष्य कर अवस्थित हैं।[ऋग्वेद 1.84.10]
सुस्वादु देह में रम जाने वाले मृदु सोम को सफेद रंग वाली धेनुएँ ही सेवन करती हैं। ये आनन्द के लिए इन्द्रदेव की अनुगत होती हुई उन्हीं के शासन में रहती हैं।
White coloured cows tastes the sweat Somras and becomes happy in the company of Indr Dev and lives in his abode-heaven. 
ता अस्य पृशनायुवः सोमं श्रीणन्ति पृश्नयः। 
प्रिया इन्द्रस्य धेनवो हिन्वन्ति सायकं वस्वीरनु स्वराज्यम्॥
इन्द्र देवता के राज्य में रहने वाली गौएँ अपने दुग्ध को सोमरस में मिलाकर इन्द्रदेव के वज्र को प्रेरणा प्रदान करती है।[ऋग्वेद 1.84.11]
इन्द्र देव को वे प्रिय गौएँ सोम में अपना दूध मिलाती हुई, उनके वज्र को प्रेरणा देती हैं।
The white cows mix Somras in their milk, consumed by Indr Dev and inspires his Vajr. 
ता अस्य नमसा सहः सपर्यन्ति प्रचेतसः। 
व्रतान्यस्य सश्चिरे पुरूणि पूर्वचित्तये वस्वीरेनु स्वराज्यम्
ये प्रकृष्ट ज्ञान युक्त गायें अपने दुग्ध रूपी अन्न द्वारा इन्द्र देवता के बल की पूजा करती हैं। ये गायें युद्धकामी शत्रुओं को पहले से ही परिज्ञान के लिए इन्द्र के शत्रु विनाश आदि अनेक कामों को घोषित करती हैं। ये गायें इन्द्र का राजत्व लक्ष्य कर अवस्थित होती हैं।[ऋग्वेद 1.84.12]
ये आनन्द के लिए इन्द्रदेव को अनुगत होती हुई उन्हीं के शासन में रहती हैं। इन्द्रदेव को वे प्रिय गौएँ सोम में अपना दूध मिलाती हुई, उनके वज्र को प्रेरणा देती हुई उनके राज्य में निवास करती हैं। उत्तम ज्ञान से युक्त वे गौएँ इन्द्रदेव के पराक्रम को नमस्कार करती हुई उनके आश्रम में रहती हैं तथा उनके नियमों को घोषित करती हैं। 
These enlightened cows prays to-worship Indr Dev and his might. They pronounce the victory in the war for Indr Dev and destruction of the enemy. These cows are determined for the welfare of Indr Dev's regime.
इन्द्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कृतः।
जघान नवतीर्वन॥
अप्रतिद्वन्दी इन्द्रदेव ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से बने वज्र द्वारा वृत्र आदि असुरों को आठ सौ दस बार मारा था।[ऋग्वेद 1.84.13]
शत्रुओं से कभी न हारने वाले इन्द्रदेव ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से बने वज्र द्वारा वृ आदि आठ सौ दस असुरों को मार डाला था।
Indr Dev killed the demons-giants 810 time with the Vajr made from the bones of Dadhichi Rishi.
इच्छन्नश्वस्य यच्छिरः पर्वतेष्वपश्रितम्।
तद्विदच्छर्यणावति॥
पर्वत में छिपे हुए दधीचि के अश्व मस्तक को पाने की इच्छा से इन्द्रदेव ने उस मस्तक को शर्यणावत् नाम के सरोवर से प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.84.14]
घोड़े का सिर दूर स्थित शैल पर जाकर गिरा था, इन्द्र ने उसे शर्य्यणाबान सरोवर में पड़ा पाया।
Indr Dev found the head of Rishi Dadhichi in a reservoir named Sharynavat, which had acquired the shape of the horse head.
अत्राह गोरमन्वत नाम त्वष्टुरपीच्यम्।  
इत्था  चन्द्रमसो गृहे॥ 
इस गमनशील चन्द्र मण्डल में अन्तर्हित जो त्वष्ट तेज अथवा सूर्य तेज हैं, वह आदित्य रश्मि ही हैं, ऐसा जानना चाहिए।[ऋग्वेद 1.84.15]
देवगणों ने चन्द्र ग्रहों में छिपे हुए त्वष्टा के तेज को जाना।
The aura around the Moon is by virtue of Twasta or Sury Bhagwan. Its in the form of the rays of Sun light in the sky. 
को अद्य युङ्क्ते घुरि गा ऋतस्य शिमीवतो भामिनो दुर्हणायून्। 
आसन्निषून्हृत्स्वसो मयोभून्य एषां भृत्यामृणधत्स जीवात्
आज इन्द्र की गतिशील रथ की धुरी में वीर्ययुक्त, तेजोमय, दुःसह क्रोध सम्पन्न घोड़े को कौन संयोजित कर सकता है? उन घोड़ों के मुख में वाम आवद्ध है। कौन शत्रुओं के हृदयों में पादक्षेप और मित्रों को सुख प्रदान करते हैं अर्थात वे ही अश्व, जो इन अश्वों के कार्यों की प्रशंसा करते हैं। इसलिए वे दीर्घ जीवन प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.84.16]
आज कौन कर्मवीर अत्यन्त तेज से परिपूर्ण, आक्रोश से सम्पन्न इन्द्रदेव के घोड़ों को जोड़ सकता है? कौन शत्रु की छातियों, सीनों को रोंदकर सखाओं को सुख प्रदान करता है? कौन इनकी शक्ति में वृद्धि करता हुआ लम्बी आयु ग्रहण करता है?
Who can deploy the horses, who have unbearable anger, in the accelerated chariot of Indr Dev, which is shinning. These horses are tamed. Those who appreciate these horses gets longevity.
क ईषते तुज्यते को बिभाय को मंसते सन्तमिन्द्रं को अन्ति। 
कस्तोकाय क इभायोत रायेऽधि ब्रवत्तन्वे को जनाय॥
शत्रुओं के भय से कौन निकलेगा? शत्रुओं के द्वारा कौन नष्ट होता है? समीपस्थ इन्द्रदेव को कौन रक्षक रूप से जानता है? कौन पुत्र के लिए, अपने लिए, धन के लिए शरीर की रक्षा के लिए अथवा परिवार के लोगों की रक्षा के लिए इन्द्रदेव से प्रार्थना करता है?[ऋग्वेद 1.84.17]
कौन चलता है? कौन कष्ट उठाता है? कौन इन्द्र से भयभीत होने वाला उनका सत्कार करता है? कौन पास से इन्द्र को जानता है? कौन संताप, भृत्य एवं परिजनों की रक्षा के लिए इन्द्र देव से आश्वासन माँगता है?
People do not come out in the open due to the fear of the enemy. Enemy can destroy them. one who recognizes Indr Dev as the protector, prays to him for the safety of his family, sons, servants. 
को अग्निमीट्टे हविषा घृतेन स्रुचा यजाता ऋतुभिर्ध्रुवेभिः। 
कस्मै देवा आ वहानाशु होम को मंसते वीतिहोत्रः सुदेवः॥
इन्द्र देवता के लिए अग्निदेव की स्तुति कौन करता है? वसन्त आदि नित्य ऋतुओं को उपलक्ष्य कर पात्रस्थित हव्य धूत द्वारा कौन पूजा करता है? इन्द्र देवता के अतिरिक्त अन्य कौन देवता किस यजमान को तत्काल प्रशंसनीय धन प्रदान करते हैं। यज्ञ निरत और देव प्रसाद सम्पन्न कौन यजमान इन्द्रदेव को अच्छी तरह जानता है।[ऋग्वेद 1.84.18]
कौन अग्नि की स्तुति करता है? कौन घृत से युक्त हवि से यज्ञ करता है? किसके लिए देवता धन लाते हैं? कौन देवगणों सहित इन्द्र को जानता है?
Who prays to Agni Dev for the sake of Indr Dev?! Who worship regularly in all seasons with offerings for the sake of Indr Dev? Who other than Indr Dev grant wealth-riches to the devotees? Who recognises-prays to Indr Dev busy in Yagy?
त्वमङ्ग प्र शंसिषो देवः शविष्ठ मर्त्यम्। 
न त्वदन्यो मघवन्नस्ति मर्डितेन्द्र ब्रवीमि ते वचः
हे बलिष्ठ इन्द्रदेव! स्तुति परायण मनुष्यों की आप प्रशंसा करें। आपको छोड़कर और कोई सुखदाता नहीं है। इसलिए मैं आपको स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 1.84.19]
हे महाबलिष्ठ इन्द्रदेव! तुम मरणशील मनुष्यों को उत्साहवर्धन करते हो। तुम धैर्यदाता हो। मैं तुम्हारे लिए सत्य वाणी से प्रार्थना करता हूँ।
Hey Indr Dev! Praise those who are busy in your worship. None other than you grants comforts, pleasures. I worship you from the depth of my heart.
मा ते राधांसि मा त ऊतयो वसोऽस्मान्कदा चना दभन्। 
विश्वा च न उपमिमीहि मानुष वसूनि चर्षणिभ्य आ॥
हे निवास स्थान दाता इन्द्रदेव आपके भूतगण और सहायक रूप शत्रुगण या मरुद्रण हमारा कभी विनाश न करें। हे मनुष्य हितैषी इन्द्रदेव! हम मंत्रद्रष्टा है, आप हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.84.20]  
हे धनरूप इन्द्रदेव! तुम्हारे दान और रक्षाओं से हम कभी वंचित न रहें। तुम्हीं मनुष्य की हमारे लिए समस्त प्रकार के धनों को लाओ।
Hey Indr Dev! You grants us place to live. Your helpers ghosts, Marud Gan should never destroy us. You are the well wisher of humans. We pray to you with the help of Mantr (Shloks, hymns). Grant us wealth-riches.
 ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (100) :: ऋषि :- ऋज्राश्व, अम्बरीष, सहदेव, भयमान, सुराधस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्। 
स यो वृषा वृष्ण्येभिः समोका महो दिवः पृथिव्याश्च सम्राट्। 
सतीनसत्वा हव्यो भरेषु मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
जो इन्द्र अभीष्टवर्षी, वीर्यशाली, दिव्य लोक और पृथ्वी के राजा और वृष्टिदाता तथा रणक्षेत्र में बुलाने के योग्य हैं, वे मरुतों के साथ हमारी रक्षा में संलग्न हों।[ऋग्वेद 1.100.1]
हे पराक्रमी, पुरुषार्थी, क्षितिज-धरा के स्वामी एवं जलों को ग्रहण कराने वाले संग्रामों में आह्वान किये जाने वाले इन्द्रदेव! मरुतों से युक्त हमारी सुरक्षा करो। 
Let Indr Dev, who fulfils all our desires-grants boons, has valour-might & power, is the ruler of divine abodes and the earth, cause rains, deserve to be invited to the battle field, along with the Marud Gan for our protection.
यस्थानाप्तः सूर्यस्येव यामो भरेभरे वृत्रहा शुष्मो अस्ति। 
वृषन्तमः सखिभिः स्वेभिरेवैर्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
सूर्य की तरह जिनको गति दूसरे के लिए अप्राप्य है, जो युद्ध में शत्रुहन्नता और रिपुशोषक हैं और जो अपने गमनशील मित्र मरुतों के साथ यथेष्ठ परिमाण में अभीष्ट द्रव्य प्रदान करते हैं, वे इन्द्रदेव मरुतों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.2]
सूर्य के समान श्रेष्ठतम चाल वाले, बल से वृत्र को समाप्त करने वाले अत्यन्त वीर्यवान मरुतों से युक्त हमारे रक्षक हों।
He moves with the speed of the Sun, which is not possible-available for others, who kills the enemies in war and exploit the unfriendly, who grants money in sufficient quantity along with his friends Marud Gan; should be ready to protect us.
दिवो न यस्य रेतसो दुघानाः पन्थासो यन्ति शवसापरीताः। 
तरद्वेषाः सासहिः पौंस्येभिर्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
इन्द्रदेव का निर्विघ्न मार्ग सूर्य की किरणों के तुल्य अन्तरिक्ष के जलों का वर्षा करने वाला है। यह अपने पराक्रम से विरोधियों या द्वेषियों का नाश करने और शत्रुओं पर विजय पाने एवं बलपूर्वक आगे-आगे चलने वाले हैं। मरुतों के साथ यह इन्द्रदेव हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.3]
जिसके राह का आकाश के जलों का दोहन करते (वर्षा के रूप में) चलते हैं।वह विजय शील इन्द्र अपने शूलों से शत्रुओं का पतन करते हुए चलते हैं। वीरों श्रेष्ठ, सखाओं में सखा, स्तोताओं में स्तोता, गायकों में गायक, इस सभी में उत्तम हैं। मरुतों से युक्त वे हमारे रक्षक हों। 
The path of Indr Dev is free from troubles like the rays of Sun and leads to rains. He destroy his opponents and the enemies with his might while leading. Let Indr Dev & Marud Gan protect us.
सो अङ्गिरोभिरङ्गिरस्तमो भूषा वृषभिः सखिभिः सखा सन्।  
ग्मिभिर्ऋग्मी गातुभिर्ज्येष्ठो मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
वे गमनशील लोगों में अत्यन्त शीघ्रगामी, अभीष्टदाताओं में प्रधान, अभीष्टदाता और मित्रों में श्रेष्ठ मित्र होकर, पूजनीयों में विशेष पूजा के पात्र तथा स्तुति पात्रों में श्रेष्ठ हैं। वे मरुतों के साथ हमारे रक्षण में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.4]
वीरों श्रेष्ठ, सखाओं में सखा, स्तोताओं में स्तोता, गायकों में गायक, इस सभी में उत्तम हैं। मरुतों से युक्त वे हमारे रक्षक हों।
Indr Dev is fastest moving amongest the movables, leader amongest those who grant boons-satiate desires, best friend amongest the friends, special among the revered-honourable and best among those who can be prayed-worshiped. Let Marud Gan be active with him in protecting us. 
Indr Dev is a great form of  the Almighty. 
स सूनुभिर्न रुद्रेभिर्ऋभ्वा नृषाह्ये सासह्वाँ अमित्रान्। 
सनिळेभिः श्रवस्यानि तूर्वन्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥ 
हे इन्द्र देव! रुद्रपुत्र मरुतों की सहायता से बलशाली होकर मनुष्यों के संग्राम में शत्रुओं को परास्त करके और अपने साथ में रहने वाले मरुतों की अन्नोत्पादक जल की वर्षा कर मरुतों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.5]
उस दूरस्थ दमकते हुए सूर्य ने पुत्रों के तुल्य अपने सखा मरुतों से युक्त कीर्ति योग्य कार्यों को करते हुए शत्रुओं को परास्त किया। वह इन्द्रदेव मरुतों से युक्त हमारी रक्षा करें।
Hey Indr Dev! You should gain strength with the help of Marud Gan- the sons of Rudr (Bhagwan Shiv) defeat the enemy, initiate rains and get ready to save us.  
स मन्युमीः समदनस्य कर्तास्माकेभिर्नृभिः सूर्य सनत्। 
अस्मिन्नहन्त्सत्पतिः पुरुहूतो मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
शत्रुहन्ता, संग्रामकर्ता, सल्लोकाधिपति और बहुत लोकों द्वारा आहूत इन्द्रदेव हम ऋषियों को आज सूर्य के आलोक का भोग करने दें और शत्रुओं को अन्धकार प्रदान कर मरुतों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.6]
अहंकारियों का विनाश करने वाला, युद्धकर्म में प्रवृत्त रहने वाले सभी लोकों के अधिकारी इन्द्र सूर्य को ग्रहण करें। वे पालक और आह्वान किये हुए इन्द्र मरुतों के साथ हमारी रक्षा करें। सहायक मरुतों ने इन्द्रदेव को युद्ध में आक्रोषित किया।
Slayer of the enemy, a great-furious warrior, master of the heavens and the administrator of various abodes, Dev Raj Indr should accept Sun to his side and let the Rishis-sages enjoy his aura. Let darkness-absence of Sun light prevail for the enemies. Please protect us with the help of Marud Gan. 
तमूतयो रणयञ्छूरसातौ तं क्षेमस्य क्षितयः कृण्वत त्राम्। 
स विश्वस्य करुणस्येश एको मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
सहायता करने वाले मरुद्गण युद्ध में इन्द्रदेव को शब्द द्वारा उत्तेजित करते हैं। मनुष्य इन्द्रदेव को धन का रक्षक बनावें। इन्द्रदेव सर्वफलदायी कर्मों के ईश्वर हैं। मरुतों के साथ इन्द्रदेव हमारा रक्षण करें।[ऋग्वेद 1.100.7]
मनुष्यों ने अपनी कुशलता के लिए उन्हें रक्षक स्वीकार किया। वह अकेले ही हम समस्त कर्मों के स्वामी हैं। इन्द्रदेव मरुतों से युक्त हमारी सुरक्षा करें। युद्धों में प्राणी इन्द्रदेव को धन और रक्षा के लिए आमंत्रित करते हैं। वे अधंकार में भी प्रकाश करने वाले हैं।
The Marud Gan who help Indr Dev during war encourage him in the war and protect the belongings of the humans. Indr Dev is  the God of the all the endeavours of the humans. Let Indr Dev help us along with the Marud Gan. 
तमप्सन्त शवस उत्सवेषु नरो नरमवसे तं धनाय। 
सो अन्धे चित्तमसि ज्योतिर्विदन्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
युद्ध में मैदान में रक्षा और धन की प्राप्ति के लिए नेता लोग इन्द्रदेव की शरण ग्रहण करते हैं, क्योंकि इन्द्रदेव दृष्टि प्रतिबन्धक अन्धकार में आलोक प्रदान करके युद्ध में विजय प्रदान करते हैं। मरुतों के साथ इन्द्रदेव हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.8]
वह इन्द्र मरुतों के साथ आमंत्रित करते हैं। वे अधंकार में भी प्रकाश करने वाले हैं। वह इन्द्र मरुतों के साथ हमारी रक्षा करें।
The humans seek shelter under Indr Dev for the protection of their wealth, since Indr Dev remove the darkness with his aura, leading to their victory. Let, Indr Dev save us with the Marud Gan. 
स सव्येन यमति व्राधतश्चित्स दक्षिणे संगृभीता कृतानि। 
स कीरिणा चित्सनिता धनानि मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
इन्द्र देव बायें हाँथ द्वारा हिंसा करने वाले का विनाश करते हैं और दाहिने हाँथ द्वारा यजमान का दिया हुआ हव्य ग्रहण करते हैं। प्रार्थनाओं द्वारा प्रसन्न होकर वे धन प्रदान करते हैं। मरुतों के साथ इन्द्रदेव हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.9]
वे इन्द्र उल्टे हाथ से हिंसकों को रोकते हैं और दायें हाथ से यजमान की हवियाँ स्वीकार करते हैं। वे स्तोता को धन देते हैं। मरुतों सहित वे हमारे रक्षक हों।
Indr Dev slay-kill the enemies with his left hand and accept the offerings of the devotees with his right hand. He become happy with the prayers of the devotees and grant riches. Let, Indr Dev save us with the Marud Gan. 
स ग्रामेभिः सनिता स रथेभिर्विदे विश्वाभिः कृष्टिभिन्र्वद्य। 
स पौंस्येभिरभिभूरशस्तीर्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥ 
वे अपने सहायक मरुद्गणों के साथ धन प्रदान करते हैं। आज इन्द्रदेव अपने रथ द्वारा सारे मनुष्यों से परिचित हो रहे हैं। इन्द्रदेव ने अपने पराक्रम से दुष्ट शत्रुओं का वध किया। वे मरुद्रणों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.10]
वे हमारी सहायता के लिए धन ग्रहण कराते हैं। शत्रुओं को शक्ति से वश में करने वाले वे इन्द्रदेव वज्र युक्त हमारी सुरक्षा करें।
Indr Dev provide riches & wealth along with his associates-accomplice Marud Gan to the devotees. He is acquainting himself with the humans-devotees, while sitting in his charoite. He killed the demons-giants with his might. Let, Indr Dev save us with the Marud Gan. 
स जामिभिर्यत्समजाति मीळ्हेऽजामिभिर्वा पुरुहूत एवैः। 
अपां तोकस्य तनयस्य जेषे मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
अनेक लोगों द्वारा बुलाये जाने पर मित्रों के संग मिलकर अथवा जो मित्र नहीं हैं, उनको भी साथ लेकर युद्धभूमि में इन्द्रदेव जाते हैं। उन शरण में आये हुए पुरुषों और पुत्र-पौत्रों को जय प्रदान करते हैं। वे मरुद्गणों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.11]
अनेकों द्वारा आहुत इन्द्रदेव कुटुम्बियों या दूसरे पुरुषों के संग युद्ध यात्रा करते हैं। तब वे मरुतों से युक्त हमारी सुरक्षा के लिए तैयार रहें।
On being invites-requested by various people, whether they are his friends or not, goes to the battle field. He grants victory to those under his asylum along with their sons & grandsons. Let, Indr Dev be prepared to save us along with the Marud Gan. 
स वज्रभृद्दस्युहा भीम उग्रः सहस्रचेताः शतनीथ ऋभ्वा। 
चम्रीषो न शवसा पाञ्चजन्यो मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
इन्द्रदेव वज्र को धारण करने वाले दस्युहन्ता, भीम, उग्र, सहस्त्र ज्ञानयुक्त, बहुस्तुति भाजन और महान् हैं। इन्द्रदेव सोमरस की तरह बल द्वारा पञ्चश्रेणी के रक्षक हैं। वे मरुद्गणों के साथ हमारे रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.12]
वे वज्रधारी इन्द्रदेव, असुरों को समाप्त करने वाले, विकराल, शक्तिशाली, अनेकों पर दया करने वाले मार्ग दर्शक, प्रकाशवान, सोम के लिए समान पूज्य हैं। वे मरुतों के साथ हमारी रक्षा करें।
Indr Dev who wield Vajr, is the slayer of the enemy (demons & giants), bulky, furious, enlightened, makes several kinds of prayers devoted to the Almighty is great. He is the protector of the fifth-highest category. Let, Indr Dev be prepared to save us along with the Marud Gan. 
तस्य वज्रः क्रन्दति स्मत्स्वर्षा दिवो न त्वेषो रवथः शिमीवान्। 
तं सचन्ते यस्तं धनानि मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
इन्द्रदेव का चमकता हुआ तीव्र वज्र गर्जना करता है। वह स्वर्गलोक के सदृश तेजयुक्त इन्द्रदेव प्रार्थना करने वालों की स्तुतियों से प्रसन्न होकर उन्हें उत्तम सुख और उत्तम धनादि देकर प्रसन्न करते हैं। मरुद्गणों के साथ वे हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.13]
इन्द्र का चमकता हुआ वज्र घोर शब्द करता हुआ गरजता है। उनकी वंदनाएँ एवं ऐश्वर्य सेवा करते हैं। मरुतों के साथ वही इन्द्र हमारे रक्षक बनें।
The shinning Vajr of Indr Dev make thunderous-loud sound. He grant all sorts of amenities to those who make prayers to him. Let, Indr Dev be prepared to save us along with the Marud Gan.
यस्याजस्रं शवसा मानमुक्थं परिभुजद्रोदसी विश्वतः सीम्। 
स पारिषत्क्रतुभिर्मन्दसानो मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
समस्त बलों का उपमानभूत जिनका बल पृथ्वी और अन्तरिक्ष लोकों का सदैव चारों ओर से पालन करता है। वे हमारे यज्ञ से प्रसन्न होकर हमारे पापों से हमें पार करें दें। वे मरुद्गणों साथ हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.14]
जिनकी शक्ति क्षितिज, धरा का पोषण करती है, वे हमारे यज्ञकर्म से गरजता है। उनकी वंदनाएँ एवं ऐश्वर्य सेवा करते हैं। मरुतों के साथ वही इन्द्र हमारे रक्षक बनें।
The sustentative forces of Indr Dev protect the space and the earth from all sides. Let him be happy with our prayers and reduce-forgive our sins. He should be ready-willing to protect us in association with Marud Gan.  
न यस्य देवा देवता न मर्ता आपश्चन शवसो अन्तमापुः। 
स प्ररिका त्वक्षसा देवश्च मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
जिन इन्द्र देवता के बल का ज्ञान या उसकी थाह देव, मनुष्य और जल भी नहीं जान सकते वह इन्द्रदेव इस पृथ्वी और आकाश से भी श्रेष्ठ हैं। वे मरुद्गणों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.15]
जिनकी शक्ति का पार देव या मनुष्य कोई भी नहीं पाते, वे अपनी शक्ति से पृथ्वी और क्षितिज से भी श्रेष्ठ हैं। वे मरुतों से युक्त हमारी सुरक्षा करें।
The might, power, strength of Indr Dev is not revealed to the demigods-deities, humans and the water (Varun Dev). He is superior to the earth and the sky as well.  He should be ready-willing to protect us in association with Marud Gan. 
रोहिच्छ्यावा सुमदंशुर्ललामीद्युक्षा राय ऋज्राश्वस्य।
वृषण्वन्तं बिभ्रती धूर्षु रथं मन्द्रा चिकेत नाहुषु विक्षु॥
लाल और काले रंग के अश्व इन्द्रदेव के रथ में नियोजित होकर प्रसन्नतापूर्वक शब्द करते चलते हैं। ऋजाश्व नामक राजर्षि को इन्द्रदेव ऐश्वर्य प्रदत्त करने वाले हैं। अतः मनुष्य धन की कामना के लिए उन्हीं की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.100.16] 
रोहित और श्याम अत्यन्त सुंदर रूप वाले अश्व धन के लिए पुरुषार्थी इन्द्र के रथ को ले जाते हुए प्रसन्नता पूर्वक शब्द करते हैं। इन्द्र "ऋजाश्व" को धन दान करते हैं।
The red and black horse deployed in the chariot of Indr Dev pull-move it happily. He is going to granting amenities to Rajashrv Rishi. Hence the humans pray to him for riches, comforts, amenities. 
एतत्त्यत्त इन्द्र वृष्ण उक्थं वार्षागिरा अभि गृणन्ति राधः।
ऋज्राश्वः प्रष्टिभिरम्बरीषः सहदेवो भयमानः सुराधाः॥
हे अभीष्टदाता इन्द्रदेव! वृषागिर के पुत्र ऋजाश्व, अम्बरीष, सहदेव, भयमान और सुराध के लिए आपका यह स्त्रोत्र उच्चारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.100.17]
हे इन्द्र! तुम्हारे लिए वृषागिर के पुत्र ऋजाश्व, अम्बरीय, सहदेव, भयमान और सुराध इस प्रसिद्ध श्लोक का उच्चारण करते हैं।
Hey boon-desire granting Indr Dev! The sons of Vrashagir named Rajashrv, Ambrish, Sahdev, Bhayman and Suradh recite-verse this Strotr in your honour. 
दस्यूञ्छिम्यूँश्च पुरुहूत एवैर्हत्वा पृथिव्यां शर्वा नि बर्हीत्। 
सनत्क्षेत्रं सखिभिः श्वित्न्येभिः सनत्सूर्यं सनदपः सुवज्रः॥
इन्द्रदेव ने अनेक लोगों द्वारा बुलाये जाने पर गतिशील मरुद्गणों से युक्त होकर पृथ्वी पर निवास करने वाले शत्रुओं और दुष्टों पर अपने तीक्ष्ण वज्र से प्रहार करके उनका जड़मूल विनाश कर दिया। तब उन वज्र को धारित करने वाले इन्द्रदेव ने श्वेत वस्त्रों और अलंकारों विभूषित मरुद्गणों के साथ भूमि, जल और सूर्य को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.100.18]
अनेकों द्वारा आहूत इन्द्रदेव ने हिंसकों को समाप्त कर गिरा दिया। उस उत्तम वज्र वाले ने मनुष्यों के संग भूमि को, सूर्य को और जलों को प्राप्त किया। 
answering to the prayers Indr Dev along with Marud Gan killed the violent, wicked-sinners by striking them with his sharp Vajr and vanished their clan-roots. At this moment Sun, Earth and the water honoured Indr Dev & Marud Gan decorated in white cloths and ornaments.
विश्वाहेन्द्रो अधिवक्ता नो अस्त्वपरिह्वता सनुयाम वाजम्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
समस्त कालों में वर्त्तमान इन्द्रदेव हमारे पक्ष में ही रहें। हम भी अकुटिल गति होकर अन्न का भोग करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश उनका पूजन करें।[ऋग्वेद 1.100.19]
इन्द्रदेव हमारे पक्ष को सबल करें। हम सीधे मार्ग से अन्न का सेवन करें। हमारी इस वन्दना को सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, धरा और क्षितिज सुने।
Let Indr Dev make our side strong by remaining with us for ages in all times. Let us enjoy freely all amenities under his patronage. Mitr, Varun, Aditi, Ocean, Earth and he sky pray-worship him. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (101) :: ऋषि :- कुत्स आङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
प्र मन्दिने पिआपदर्चता वचो यः कृष्णगर्भा निरहन्नृजिश्वना।
अवस्यवो वृषणं वज्रदक्षिणं मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
जिन इन्द्रदेव ने ऋजिश्वा राजा के साथ कृष्ण नाम के असुर की गर्भवती स्त्रियों का वध किया, उन्हीं हृष्ट इन्द्रदेव को लक्ष्य कर अन्न के साथ स्तुति अर्पित कर हम उनका रक्षण पाने के लिए उन अभीष्टदाता और दाहिने हाथ में वज्र धारण करने वाले इन्द्रदेव का मरुद्रणों के साथ अपना मित्र होने के लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.1]
हे मित्रों इस हर्षित हुए इन्द्रदेव के लिए अन्न परिपूर्ण वंदनाएँ अर्पित करो, जिसने राजा ऋजिश्रवा के साथ कृष्ण नामक दैत्य की प्रजाओं का पतन किया, हम उस वज्रधारी, वीर्यवान, इन्द्रदेव का मरुतों से युक्त सुरक्षा हेतु आह्वान करते हैं।
We worship-pray to Indr Dev who is friendly with the Marud Gan, holds the Vajr in his right hand, is strong, grants us boons-fulfils our desires, killed the pregnant women of the demon called Krashn, with king Rijishrava, to be friendly with us.
A Hindu always abstain from killing women and the children. But one has to slay the women folk of the Demons and the wicked-wretched, impious. Bhagwan Parshu Ram freed the earth 21 times from the clutches of the Kshatriy, who became impious, wretched, uncontrollable, undisciplined. The traitors, barbarians,  often kept the cows in forefront of their army to befool the Hindus successfully. The result is obvious. So, never care for such tactics of the intruders and strike them with might. Remember war is war. No leniency, no mercy, no cruelty.
यो व्यंसं जाहृषाणेन मन्युना यः शम्बरं यो अहन्पिप्रुमव्रतम्। 
इन्द्रो यः शुष्णमशुषं न्यावृणङ्मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
भयंकर क्रोध के साथ जिन इन्द्रदेव ने विगत भुज वृत्र या व्यंस नामक असुर का वध किया। जिन्होंने शम्बर और यज्ञरहित पिप्रु का वध किया तथा जिन्होंने दुर्जन शुष्ण का समूल नाश किया, उन्हीं इन्द्र देवता को मरुद्गणों के साथ अपना मित्र बनाने के लिए हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.2]
जिसने अपने अत्यन्त क्रोध से व्यस, शम्बर, वप्तु और शुष्ण नामक दैत्यों को नष्ट किया। हम उस इंद्र को मरुतों के साथ आमंत्रित करते हैं।
Full of anger-fury Indr Dev killed the demons called Vigat Vratr, Vyans. He killed Shambar and Pipru who did not believe in Yagy, Durjan-bad man Shushn along with their families. We invite Indr Dev who is friendly with the Marud Gan for friendship.
यस्य द्यावापृथिवी पौंस्यं महद्यस्य व्रते वरुणो यस्य सूर्यः। 
यस्येन्द्रस्य सिन्धवः सश्चति तं मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
जिनके विपुल बल का आकाश और पृथ्वी भी अनुधावन करती हैं, जिनके नियम से वरुण और सूर्य चलते हैं और जिनके नियम के अनुसार नदियाँ भी प्रवाहित होती है, उन्हीं इन्द्रदेव को मरुतों के साथ अपना सखा होने के लिए हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.101.3]
जिनके पराक्रम से आकाश और पृथ्वी प्रेरित हैं, जिसके नियम में वरुण, सूर्य और सरिताएँ स्थित हैं, उस इन्द्र को मरुद्गणों के साथ बुलाते हैं।
We invite for friendship the friend of Marud Gan who's power-might make the earth and the sky make a balance-maintain equilibrium,  the rivers follow the rules framed by whom-Dev raj Indr. 
यो अश्वानां यो गवां गोपतिर्वशी य आरितः कर्मणिकर्मणि स्थिरः। 
वीळोश्चिदिन्द्रो यो असुन्वतो वधो मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥4
जो अश्चों के अधिपति, गोपों के ईश, स्वतंत्र स्तुति प्राप्त कर जो सम्पूर्ण कर्मों में स्थिर और अभिषव शून्य दूर्द्धर्ष शत्रुओं का वध करने वाले हैं; उन्हीं इन्द्रदेव को मरुतों के साथ अपना मित्र बनाने के लिए हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.4]
घोड़ों, गायों के स्वामी, पूजनीय, कार्यों में दृढ़, सोम विरोधी दुष्टों के शत्रु इन्द्रदेव को मरुद्गण युक्त पुकारते हैं।
We invite for freindship Dev Raj Indr, who is the master of the horses, the God of the cows & their herds men, is present in each & every deed (watches, perceives), capable of destroying the worst possible enemies & is the friend of Marud Gan.
यो विश्वस्य जगतः प्राणतस्पतिर्यो ब्रह्मणे प्रथमो गा अविन्दत्। 
इन्द्रो यो दस्यूँरधराँ अवातिरन्मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥ 
जो गतिशील और निश्वास सम्पन्न जीवों के स्वामी हैं और जिन्होंने अङ्गिरा आदि ब्राह्मणों के लिए पणि द्वारा अपहृत गौ का सबसे पहले उद्धार किया एवं जिन्होंने पापियों का नाश किया; उन्हीं इन्द्रदेव को मरुतों के साथ अपना मित्र बनाने के लिए हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.5]
जो गतिमान और श्वास के स्वामी हैं, जिन्होंने ब्राह्मणों की अपहृत धेनुओं का भी उद्धार किया तथा दुष्टों को नष्ट किया, वे इन्द्रदेव मरुद्गण सहित हमारे मित्र हों।
We invite for friend ship Dev raj Indr who is the God-master of all movable & immovable organism, living beings, released the cows of Angira Rishi abducted-snatched by the demon Pani and killed the sinners-wicked, is friendly with the Marud Gan.
यः शूरेभिर्हव्यो यश्च भीरुभिर्यो धावद्भिहूयते यश्च जिग्युभिः। 
इन्द्रं यं विश्वा भुवनाभि संदधुर्मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
जो शत्रुओं और भीरुओं दोनों के आह्वान योग्य हैं, जिन्हें युद्ध से भागने वाले और युद्ध में विजय प्राप्त करने वाले दोनों ही आह्वान करते हैं एवं जिन्हें समस्त प्राणी, अपने-अपने कार्यों के सम्मुख, स्थापित करते हैं, उन्हीं इन्द्रदेव को मरुतों के साथ अपना मित्र बनाने के लिए हम आमंत्रित-आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.6]
जो वीरों द्वारा तथा कायरों द्वारा भी बुलाये जाते हैं, जो विजेताओं और पलायन कर्त्ता के द्वारा आहूत किये जाते हैं, उन इन्द्रदेव को विद्वजन सभी लोकों का दाता मानते हैं। वे मरुतों के साथ हमारे मित्र बनें।
We call-invite Indr Dev for friendship, who deserves to be friendly with both the cowards & the enemies, those leave-desert the battle field, all organisms wish his presence to witness in all of their endeavours, is friendly with the Marud Gan.
रुद्राणामेति प्रदिशा विचक्षणो रुद्रेभिर्योषा तनुते पृथु ज्रयः। 
इन्द्रं मनीषा अभ्यर्चति श्रुतं मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
सूर्य रूप से प्रकाशमय इन्द्र देव समस्त प्राणियों के प्राण स्वरूप रुद्र पुत्र मरुद्गणों को अंगिकार कर उदित होते हैं और उन्हीं रुद्र पुत्र मरुतों द्वारा वाक्य वेग युक्त होकर विस्तारित भी होते हैं। प्रख्यात इन्द्रदेव को प्रार्थनाओं से पूजित करते हैं। उन्हीं इन्द्रदेव को मरुद्गणों के साथ अपना मित्र होने के लिए हम आवाहन-आमंत्रित  करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.7] 
दीप्तिवान इन्द्रदेव रुद्र पुत्र मरुतो की सहायता से प्रकट होकर अपना महत्त्व दिखाते हैं। उन विख्यात इन्द्रदेव की वंदनाएँ सेवा करती हैं। वे मरुतों से युक्त हमारे सखा बनें।
Indr Dev rise in the form of Sun, accept the sons of Rudr Dev, the Marud Gan and extend by the Marud Gan with speed (The air blow all around for the sake of living beings). We worship pray to the famous Indr Dev with the help of verses-Strotr. We invite him for friendship with us.
यद्वा मरुत्वः परमे सधस्थे यद्वावमे वृजने मादयासे। 
अत आ याह्यध्वरं नो अच्छा त्वाया हविश्चकृमा सत्यराधः॥
हे मरुत संयुक्त इन्द्रदेव! आप उत्कृष्ट घर में ही हृष्ट हो अथवा सामान्य स्थान में ही हृष्ट हो, हमारे यज्ञ में पधारें। हे सत्यधन इन्द्रदेव! आपकी कृपा के आकांक्षी हम आपके लिए यज्ञ में हव्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.8]
हे मरुतों युक्त इंद्रदेव! तुम ऊपर नीचे कहीं भी रहो, वहीं से हमारे यज्ञ के स्थान को प्राप्त हो जाओ। तुम सत्य धन से युक्त के लिए हम हवि देते हैं।
Hey Marud Gan in association with Indr Dev, are strong all around. Please join us in the Yagy. We make offerings in Yagy with the desire of well wishes, mercy, graciousness from you.
त्वायेन्द्र सोमं सुषुमा सुदक्ष त्वाया हविश्चकृमा ब्रह्मवाहः। 
अधा नियुत्वः सगणो मरुद्भिरस्मिन्यज्ञे बर्हिषि मादयस्व॥
हे शोभनबल से युक्त इन्द्रदेव! हम आपके लिए उत्सुक होकर सोमरस का निष्पादन कर है। आपको स्तुति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। हम आपको लक्ष्य कर हव्य प्रदान करते हैं। अश्व युक्त इन्द्र देव मरुतों के साथ दलबद्ध होकर इस यज्ञ कुश पर बैठकर सोमरस का सेवन करें।[ऋग्वेद 1.101.9]
हे शक्तिशालिन! तुम्हारे लिए यह सोम निष्पन्न किया है। तुम श्लोक द्वारा प्राप्त होते हो। तुम्हारे लिए हवि प्रस्तुत है। मरुतों के साथ इस कुशासन पर आनन्द करो। 
Hey mighty Indr Dev! We have extracted Somras for you. You can be pleased with the help of prayers. We are making offerings for your sake in the Yagy. Please occupy the Kushasan (carpet made of Kush grass) meant for you and the Marud Gan and accept-drink Somras.
मादयस्व हरिभिर्ये त इन्द्र वि ष्यस्व शिप्रे वि सृजस्व धेने। 
आ त्वा सुशिप्र हरयो वहन्तूशन्हव्यानि प्रति नो जुषस्व॥
हे इन्द्रदेव! अपने घोड़ों के साथ प्रसन्न होकर अपने दोनों शिप्र हनु या जबड़े खोलें, सोमपान के लिए अपनी जिह्वा और उपजिह्वा खोलें। हे सुशिघ्र इन्द्रदेव! आपको आपके यहाँ घोड़े आवें। आप हमारे प्रति प्रसन्न होकर हमारा हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.101.10]
हे इन्द्र देव! अपने अश्वों सहित हर्षित होओ। अपने जबड़ों और होठों को खोलो। तुम सुन्दर ठोड़ी वाले अश्वों को लाओ। हम पर हर्षित हुए हवियों को स्वीकार करो। 
Hey Indr Dev! Open the jaws of your horses.  Open your mouth to sip Somras. Hey fast moving Indr Dev please come here and obelise us. Be happy with us and accept the offerings made by us.
मरुत्स्तोत्रस्य वृजनस्य गोपा वयमिन्द्रेण सनुयाम वाजम्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
जिन इन्द्रदेव का मरुतों के साथ स्तोत्र है, उन शत्रुओं का नाश करने वाले इन्द्र देव के द्वारा रक्षित होकर आप उनसे अन्न प्राप्ति की याचना करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस अन्न की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.101.11]
इन्द्रदेव का श्लोक मरुतों के साथ है। हम इन्द्रदेव के द्वारा अन्न ग्रहण करें, सखा वरुण, अदिति, समुद्र, धरा, क्षितिज हमारे प्रति उदार हों।
Indr Dev is friendly with the Marud Gan. Let us be protected by Indr Dev who vanish the enemies and ask him for food grains. Let demigods-deities Mitr, Varun, Ocean-Sindhu, Earth and the Sky too support us in our prayers to Indr Dev for food.
 ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (102) :: ऋषि :- कुत्स, आङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
इमां ते धियं प्र भरे महो महीमस्य स्तोत्रे धिषणा यत्त आनजे। 
तमुत्सवे च प्रसवे च सासहिमिन्द्रं देवासः शवसामदन्ननु॥
आप महान् हैं। आपके उद्देश्य से मैं इस महती स्तुति को सम्पादित करता हूँ, क्योंकि आपका अनुग्रह मेरी स्तुति पर निर्भर करता है। ऋत्विकों ने सम्पत्ति और धन लाभ के लिए स्तुति बल द्वारा उन शत्रु विजयी इन्द्रदेव को प्रसन्न किया।[ऋग्वेद 1.102.1]
हे इन्द्रदेव! मैं इस अत्यन्त उत्तम श्लोक को तुम्हारे प्रति निवेदन करता हूँ। तुम्हारी मेरे ऊपर कृपा इस श्लोक पर निर्भर है।
Hey Indr Dev! You are great. I am performing this prayer to please you. The Ritviz perform Yagy to seek wealth-riches and make Indr Dev happy, who over powered-defeated  the enemy. 
अस्य श्रवो नद्यः सप्त बिभ्रति द्यावाक्षामा पृथिवी दर्शतं वपुः। 
अस्मे सूर्याचन्द्रमसाभिचक्षे श्रद्धे कमिन्द्र चरतो वितर्तुरम्॥
सात नदियाँ इन्द्र देव की कीर्ति धारित करती है। आकाश, पृथ्वी और अन्तरिक्ष उनका दर्शनीय रूप धारण करते हैं। इन्द्र, सूर्य और चन्द्र हमारे सामने प्रकाश देने और हमारा विश्वास उत्पन्न करने के लिए बार-बार एक के बाद एक भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 1.102.2]
इन्द्रदेव के साथ देवगण इस विजयोत्सव में निष्पन्न सोम द्वारा पुष्ट हुए हैं। इस इन्द्रदेव के अनुष्ठान को सप्त सरितायें, इसके रूप को क्षितिज धरा और अन्तरिक्ष धारण करते हैं। हे इन्द्रदेव! हमारे मन में श्रद्धाभाव रचित करने के लिए सूर्य और चन्द्रमा भ्रमण करते हैं। 
Seven rivers wears-flow by virtue of the honour of Indr Dev. The sky, earth and the space are his visible incarnations. Indr Dev, Sun & the moon revolve and fill us with faith and grant us light-visibility. 
तं स्मा रथं मघवन्प्राव सातये जैत्रं यं ते अनुमदाम संगमे।  
आजा न इन्द्र मनसा पुरुष्टुत त्वाय द्भयो मघवञ्छर्म यच्छ नः॥
हे इन्द्रदेव! अपने अन्तःकरण से हम आपकी अत्यधिक प्रार्थना करते हैं। आपके विजयी रथ को शत्रुओं के युद्ध में देखकर हम प्रसन्न होते हैं। आप उसी रथ को हमारी विजय के लिए प्रेरित करें। आप हमारे आश्रयदाता हैं, इसलिए हमने अनेकानेक बार आपकी प्रार्थना की है।[ऋग्वेद 1.102.3]
हे इन्द्रदेव! तुम वैभव से युक्त विजेता हो, तुम्हारे रथ को युद्ध भूमि में, देखकर हम प्रसन्नचित होते हैं। उस रथ को धन की प्राप्ति के लिए हमारी ओर प्रेरित करो। तुम हमारे द्वारा बहुत बार वंदना किये गये हो। हम तुम्हारे सहारे को प्राप्त हों।
Hey Indr Dev! We pray to you from the depth of our heart-inner self. We become happy when you win the enemy. You grant us asylum, shelter, protection. Hence we pray-worship you again & again.
It has been mentioned that Indr Dev is a prime form-incarnation (विभूति) of the Almighty. Hence, when we pray to him, we are indirectly praying-worshiping the God.
हम परमात्मा, परब्रह्म परमेश्वर की प्रार्थना-आराधना करते हैं, ताकि हमें उनकी अनन्त, अनन्य, प्रेममयी सात्विक भक्ति प्राप्त हो सके। 
वयं जयेम त्वया युजा वृतमस्माकमंशमुदवा भरेभरे। 
अस्मभ्यमिन्द्र वरिवः सुगं कृधि प्र शत्रूणां मघवन्वृष्ण्या रुज॥
आपको अपना सहायक पाकर हम अवरोध करने वाले शत्रुओं को पराजित करेंगे। युद्ध में हमारे अंश की रक्षा करें। हे मघवन्! हम सरलता से धन प्राप्त कर सकें। ऐसा उपाय करें जिससे शत्रुओं की शक्ति क्षीण हो जाये।[ऋग्वेद 1.102.4]
समृद्धि शालीन! हम तुम्हारे सहायक रूप से लड़ते हुए सम्पत्ति को ग्रहण हों। तुम हमारे पक्ष की सुरक्षा करो। हम धन को आसानी से प्राप्त करें। शत्रु की शक्ति का पतन करें।
Having attained your blessings we will be able to defeat those who create hurdles, problems for us. You should protect our progeny in the war. Please help us in gaining riches easily and to make the enemy weak.
नाना हि त्वा हवमाना जना इमे धनानां धर्तरवसा विपन्यवः। 
अस्माकं स्मा रथमा तिष्ठ सातये जैत्रं हीन्द्र निभृतं मनस्तव॥
हे धनाधिपति! ये जो अपनी रक्षा के लिए हम आपकी प्रार्थना करते हुए आपका आवाहन करते हैं। वे अनेकानेक प्रकार के हैं, इनमें हमें ही धन देने के लिए रथ पर आरुढ़ होवें। हे इन्द्रदेव! आपका स्थिरता युक्त हृदय हमें विजयी बनाने में सक्षम हों।[ऋग्वेद 1.102.5]
हे धनों के धारक इन्द्रदेव! ये रक्षा की विनती करने वाले प्राणी तुम्हारा हार्दिक आह्वान करते हैं। तुम हमको सम्पत्ति प्राप्त कराने के लिए रथ पर आरुढ़ होओ। तुम्हारा स्थिर हृदय विजय प्राप्त करने में कुशल है।
Hey the protector of the wealth, Indr Dev! We seek protection under you. Please ride your chariot to regain our property, wealth, riches. You are capable of helping us in granting us success. 
गोजिता बाहू अमितक्रतुः सिमः कर्मन्कर्मञ्छतमूतिः खजंकरः। 
अकल्प इन्द्रः प्रतिमानमोजसाथा जना वि ह्वयन्ते सिषासवः॥
प्रत्येक कार्य में रक्षा-साधनों से युक्त इन्द्रदेव की भुजाएँ गौओं को जीतने में सक्षम हैं। धन की इच्छा करने वाले यजमान इन्हीं इन्द्रदेव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.102.6]
इन्द्र की भुजाओं में अत्यन्त पराक्रम है। वे गौओं के लिए लाभकारी हैं। इन्द्र रक्षा के साधनों से सम्पन्न, बाधा से रहित, शत्रु में क्षोभ उत्पन्न करने वाले एवं शक्ति से याचक जन इनका आह्वान करते हैं। 
The arms of Indr Dev are capable of winning the cows. The devotees desirous of wealth, riches invite him (pray to him).
उत्ते शतान्मधवन्नुच्च भूयस उत्सहस्त्राद्रिरिचे कृष्टिषु श्रवः। 
अमात्रं त्वा धिषणा तित्विषे मह्यधा वृत्राणि जिघ्नसे पुरंदर॥
हे इन्द्रदेव! आप मनुष्यों को जो अन्नदान करते हैं, वह शतसंख्यक धन से भी अधिक है अथवा उससे भी अधिक है वा सहस्त्र संख्यक धन से भी अधिक है। आप परिमाण रहित है। हमारे स्तुति वचनों ने आपको दीप्त किया। हे पुरन्दर। आपने शत्रुओं का वध किया।[ऋग्वेद 1.102.7]
हे समृद्धिशाली तुम्हारी कीर्ति सहस्त्रों गुणा व्यापक है। धन की इच्छा से याचक जन इनका आह्वान करते हैं। तुम अमोघ किलों को ध्वस्त करने असीम शक्ति वाले हो। तुमको वेदवाणी प्रकाशमान करती है।
Hey Indr Dev! The food grains granted to the humans are more significant as compared to various kinds of wealth. You are unlimited in shape, size and dimensions (these are the qualities of the God). Our prayers have amused you. Hey Purandar (one who demolishes the forts)! You have killed the enemies.
त्रिविष्टिधातु प्रतिमानमोजसस्तित्रो भूमीर्नृपते त्रीणि रोचना। 
अतीदं विश्वं भुवनं ववक्षिथाशत्रुरिन्द्र जनुषा सनादसि॥
हे नर रक्षक इन्द्र देव! आप तिगुनी हुई रस्सी की तरह समस्त प्राणियों के बल के परिमाण स्वरूप हो। आप तीनों लोकों में तीन प्रकार (सूर्य, विद्युत और अग्नि) के तेज हों। आप इस संसार को चलाने में पूर्ण समर्थ हैं; क्योंकि हे इन्द्रदेव! आप जन्म से ही शत्रु विहीन हैं।[ऋग्वेद 1.102.8]
हे इन्द्रदेव! शत्रुओं का पतन करो। हे मनुष्यों के स्वामिन! तुम तीन लोकों में तीन रूप (सूर्य, अग्नि) से विद्यमान हो। तिलड़ी रस्सी के समान मनुष्यों के बल स्वरूप जीवों में श्रेष्ठ और शत्रु से रहित हो।
Hey protector of humans, Indr Dev! You represent the strength of the organisms-living, being just like the rope having three bands. You are the energy-aura of the Sun, lightening-electricity and the Fire. You are capable of maintaining the universe, since you are able to vanish the enemies since your infancy.
त्वां देवेषु प्रथमं हवामहे त्वं बभूथ पृतनासु सासहिः। 
सेमं नः कारुमुपमन्युमुद्भिदमिन्द्रः कृणोतु प्रसवे रथं पुरः॥
आप देवताओं में प्रथम व युद्ध में शत्रु विजयी हैं। हम आपका आवाहन करते हैं। वे इन्द्र हमारे युद्ध योग्य तेजस्वी और विभेदकारी रथ को युद्ध में अन्य रथों के आगे रखें।[ऋग्वेद 1.102.9]
हे इन्द्रदेव! तुम देवताओं में मुख्य हो। हम तुम्हारा हार्दिक आह्वान करते हैं। तुम हमेशां विजयी रहे हो। हमको सम्पत्ति प्राप्त कराने के लिए रथ पर आरुढ़ होओ। तुम्हारा स्थिर हृदय विजय प्राप्त करने में कुशल है। इस वंदनाकारी को मति देकर कर्म कुशल बनाओ। युद्ध क्षेत्र में अपने रथ को आगे रखो।
Hey Indr Dev! You are first (number one) amongest the demigods-deities. We invite you in all our endeavours-Yagy. Please keep our chariot, which is glittering-shinning, fit for the war, ahead of other chariots.
त्वं जिगेथ न धना रुरोधिथार्भेष्वाजा मघवन्महत्सु च। 
त्वामुग्रमवसे सं शिशीमस्यथा न इन्द्र हवनेषु चोदय॥
आप विजय प्राप्त कर जीते हुए धन को छिपाकर नहीं रखते। छोटे अथवा बड़े समर अर्थात् युद्ध में अपनी रक्षा के लिए योद्धा गण आपका ही आवाहन करते हैं। इसलिए आप हमारा मार्गदर्शन करें।[ऋग्वेद 1.102.10]
हे इन्द्रदेव! तुमने छोटे या बड़े किसी भी युद्ध में पराजय नहीं देखी। तुमने विजयी धन को कभी नहीं रोका।
You do not hide the assets (wealth, possessions) won in the war. The warriors seek protection under you in the war of all sizes-quantum. Hence, you should guide-lead us. 
विश्वाहेन्द्रो अधिवक्ता नो अस्त्वपरिहवृताः सनुयाम वाजम्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे इन्द्रदेव! आप सदैव हमारे पक्ष में रहे। हम भी द्वेषपूर्ण व्यवहार से अलग होकर अन्नादि प्राप्त करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी  और आकाश उन्हें सभी हमें धन और ऐश्वर्य की प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.102.11]
हम प्रार्थना द्वारा तुमको युद्धार्थ बुलाते हैं। तुम हमको श्रेष्ठ प्रेरणा दो। हे इन्द्र देव! हमारे पक्ष में रहो, कुटिल बुद्धि से पृथक हम अन्नों का प्रयोग करें। सखा, वरुण, अदिति, धरा और क्षितिज हमारी विनती पर ध्यान दें।
Hey Indr Dev! You should always on our side (favour us). We should be away from enmity and gain food grains. Demigod-deities Mitr, Varun, Aditi, Sindhu-ocean, earth & the sky should also favour us & grant us riches, wealth amenities.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (103) :: ऋषि :- कुत्स, आङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
तत्त इन्द्रियं परमं पराचैरधारयन्त करेंयः पुरेदम्। 
क्षमेदमन्यद्दिव्यन्यदस्य समी पृच्यते समनेव केतुः
हे इन्द्रदेव! पहले मेधावियों ने आपके इस प्रसिद्ध परमबल को साक्षात् धारण किया। इन्द्रदेव की अग्निरूप एक ज्योति पृथ्वी पर और दूसरी सूर्य रूप आकाश में है। युद्ध में दोनों पक्षों की पताकायें जैसे मिलती हैं, उसी तरह उक्त उभय ज्योतियाँ परस्पर संयुक्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.103.1]
मेधावी :: च्यवन ऋषि के पुत्र का नाम, बुद्धिमान, मेधायुक्त, जिसकी मेधा या धारण शक्ति तीव्र हो, पंडित, विद्वान।
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा विख्यात सूर्य रूप उत्तम शक्ति क्षितिज में स्थित है। पृथ्वी पर इस अग्नि रूप शक्ति को ऋषियों ने यज्ञरूप से धारण किया है। ये दोनों शक्ति ध्वजाओं के तुल्य हिलते हैं।
लहराना :: फड़फड़ाना,  घड़कना, बेचैन होना, धबराना; billow, make a fuss, flutter. 
Hey Indr Dev! The intelligent & capable Rishis, wore-supported you in establishing you as fire over the earth and the Sun in the sky. These forms of light flutter together as the two flags of the enemies in the battle field.
स धारयत्पृथिंवीं पप्रथच्च वज्रेण हत्वा निरपः ससर्ज। अहन्नहिमभिनद्रौहिणं व्यहन्व्यंसं मघवा शचीभिः
इन्द्रदेव ने पृथ्वी को धारित व विस्तृत किया। इन्होंने ने वज्र द्वारा वृत्रासुर का वध कर वृष्टिजल बाहर किया। अहि को मारा। रौहिण नामक असुर का अन्त किया। इन्द्रदेव ने अपने कार्य द्वारा विगत भुज वृत्रासुर का नाश किया।[ऋग्वेद 1.103.2]
उस इन्द्र देव ने धरा को विशाल किया। वृत्र का पतन कर जलों की वृष्टि की। अहि और रोहिण असुरों को विदीर्ण किया। व्यंस को समाप्त किया।
Indr Dev supported-wore the earth and made it broad-extensive. He killed the demon called Vratr released the water meant for rains by him. He killed the demons called Ahi & Rohin. He killed Vyans as well.
स जातूभर्मा श्रद्दधान ओजः पुरो विभिन्दन्नचरद्वि दासीः।
विद्वान्वज्रिन्दस्यवे हेतिमस्यार्यं सहो वर्धया द्युम्नमिन्द्र
उन्होंने वज्र स्वरूप अस्त्र लेकर वीर्य कार्य में उत्साह पूर्ण होकर शत्रुओं के नगरों का विनाश करके भ्रमण किया। हे वज्रधर इन्द्रदेव! हमारी प्रार्थनाओं को सुनकर शत्रुओं के प्रति अपने अस्त्रों को चलावें। हे इन्द्रदेव आर्यों के बल और यश को बढ़ावें।[ऋग्वेद 1.103.3]
उत्साह :: याद दिलाने की क्रिया, बढ़ावा, उकसावा, जोश, उमंग, राग; enthusiasm, excitement, prompting, zeal.
अस्त्र :: weapon, guided missiles. The weapons which could be launched just the recitation of a verse-few words, Shlok-Mantr.
उत्साह, जोश, धुन, सरगर्मीवे वज्रधारी इन्द्र शत्रु के दुर्गों का विनाश करने के लिए जाते हैं। हे इन्द्रदेव! राक्षसों पर वज्र का प्रयोग करो और आर्यों के पराक्रम और कीर्ति की वृद्धि करो।
He destroyed the cities, forts of the enemies by using Vajr enthusiastically with great zeal. Hey Vajr wearing Indr Dev! Please listen to our prayers & use the Astr over the enemies, enhance the power, capability, strength of the Ary.    
तदूचुषे मानुषेमा युगानि कीर्तेन्यं मघवा नाम बिभ्रत्। 
उपप्रयन्दस्युहत्याय वज्री यद्ध सूनुः श्रवसे नाम दधे
हे वज्रधर और अरिमर्दन इन्द्रदेव शत्रुओं के विनाश के लिए निकलकर यश के लिए जो बल आपने धारित किया उस कीर्त्तन योग्य उस बल को धारण कर धनवान् इन्द्रदेव, स्तोता यजमानों के लिए मनुष्यों के युगों का सूर्य रूप से निष्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.103.4]
प्राणियों में कीर्तन योग्य मधवा नाम को धारण करते हुए इन्द्र ने साधक के शत्रुओं को मारने से प्राप्त हुए ऐश्वर्य और पराक्रम को ग्रहण किया। हे मनुष्यों! इन्द्रदेव की विख्यात वीरता को देखो, उसकी शक्ति का सम्मान करो।
Indr Dev adopted the name Madhav, which is fit for prayers-recitations. He came out to kill the enemies of the devotee-worshiper. The humans should visualise the powers of Indr Dev and honour his powers.
तदस्येदं पश्यता भूरि पुष्टं श्रदिन्द्रस्य धत्तन वीर्याय।
स गा अविन्दत्सो अविन्ददश्वान्त्स ओषधीः सो अपः स वनानि
गौओं, अश्वों, औषधियों, जलों और वनों को इन्द्रदेव ने अपनी शक्ति से प्राप्त किया। अतः हे मनुष्यों! इन इन्द्रदेव के प्रसिद्ध पराक्रम को देखकर उनके बल का सम्मान करो।[ऋग्वेद 1.103.5]
उसने धेनुओं और अश्वों को ग्रहण किया। औषधियों, जलों और वनों को भी ग्रहण किया। हम बहुत कर्मों में श्रेष्ठ पुरुषार्थी पराक्रम वाले इन्द्र के लिए सोम निष्पन्न करें।
Indr Dev obtained cows, horses, medicines, water bodies and the forests due to his power-might. Therefore, the humans should recognise his might-powers and honour them.
भूरिकर्मणे वृषभाय वृष्णे सत्यशुष्माय सुनवाम सोमम्। 
य आदृत्या परिपन्थीव शूरोऽयज्वनो विभजन्नति वेदः
प्रभूतकर्मा, श्रेष्ठ, अभीष्टदाता और सत्यबल इन्द्रदेव को लक्ष्य कर हम सोमरस अभिषव करते हैं। जिस पथनिरोधक चौर पथिकों के पास से धन ले लेता है, उसी प्रकार से वीर इन्द्रदेव धन का आदर करके यज्ञहीन मनुष्यों के पास से उस धन का भाग कर यज्ञ परायण मनुष्यों को प्रदत्त कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.103.6]
वे बहुत कर्मों में श्रेष्ठ पुरुषार्थी पराक्रम वाले इन्द्र के लिए सोम निष्पन्न कर व लालची, बिना कर्म के दुष्टों के धन को छीनकर कर्मशील उपासकों में बाँटते हैं। 
We prepare-extract Somras for the sake of Indr Dev who is  excellent-best, truthful, grants boons and perform exceptional-dare devil jobs. The manner the thief steals the money from the travellers, Indr Dev takes away money-riches from those who do not honour Yagy and give it to those who perform Yagy. 
तदिन्द्र प्रेव वीर्यं चकर्थ यत्ससन्तं वज्रेणाबोधयोऽहिम्। 
अनु त्वा पत्नीर्हषितं वयश्च विश्वे देवासो अमदन्ननु त्वा
हे इन्द्रदेव! आपने वह प्रसिद्ध वीर कार्य किया। उस शयन करते हुए अहि को वज्र प्रहार द्वारा जागृत किया। यह आपकी परम वीरता है। उस समय आपको प्रसन्न देखकर समस्त देवताओं ने अपनी पत्नियों के साथ अत्यधिक हर्ष अथवा प्रसन्नता का अनुभव किया।[ऋग्वेद 1.103.7]
हे इन्द्रदेव! सोते हुए वृत्र को वज्र से जगाना वास्तव में तुम्हारा परम शौर्य है। उस समय तुमको पुष्ट देखकर देवगणों ने अपनी पत्नियों के साथ अत्यन्त प्रसन्नता प्राप्त की।
Hey Indr Dev! You performed the brave deed by awakening & killing Ahi-the demon, while he was asleep with the Vajr. At that moment you became too happy. The demigods-deities too expressed their pleasure along with their wives.
शुष्णं पिप्रं कुयवं वृत्रमिन्द्र यदावधीर्वि पुरः शम्बरस्य। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः
हे इन्द्रदेव! आपने शुष्ण, पिप्रु, कुयव और वृत्रसुर का वध करके शम्बर के नगरों का विनाश किया। इसलिए मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी उस स्तुत्य वस्तु को पूजित करें।[ऋग्वेद 1.103.8] 
हे इन्द्रदेव जब तुमने "शुष्ण", विपु, कुयव, और वृत्र को मृत किया और शम्बर के.. किलो को ध्वस्त किया तब हमारी वंदना सफल हुई। मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरा और क्षितिज हमारी वंदनाओं का अनुमोदन करें।
Hey Indr Dev! You killed the demons named Shushn, Pipru, Kuyav, and Vratasur and destroyed the cities-forts of Shambar. Hence, Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, earth and the sky should endorse our prayers meant for Indr Dev, his might & power.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (104) :: ऋषि :- कुत्स आङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
योनिष्ट इन्द्र निषदे अकारि तमा नि षीदस्वानो नार्वा। 
विमुच्या वयोSवसायाश्वान्दोषा वस्तोर्वहीयसः प्रपित्वे
हे इन्द्र देव! आपके बैठने के लिए जो वेदी बनी हुई है, उस पर शब्दायमान अश्व की तरह बैठें। अश्वों को बाँधने वाली रस्सियों को छुड़ाकर अश्वों को मुक्त कर दें। वे अश्व यज्ञकाल आने पर दिन-रात आपका आरोहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.104.1]
हे इन्द्रदेव! तुमने स्वयं के लिए जो स्थान बनाया है, उस पर अपने अश्वों को रथ से खोलकर विराजो। वे अश्व अनुष्ठान का अवसर आने पर दिन-रात चौबीस घंटे तुम्हारे रथ को चलाते हैं।
Hey Indr Dev! Please occupy your seat and release the horses from the rope with which they are tied. These horses are deployed at the time of performing Yagy through out the day & the night.
ओ त्ये नर इन्द्रमूतये गुर्नू चित्तान्त्सद्यो अध्वनो जगम्यात्। 
देवासो मन्युं दासस्य श्चमन्ते न आ वक्षन्त्सुविताय वर्णम्
मनुष्य इन्द्रदेव के पास रक्षा के लिए आते हैं। इन्द्रदेव उन्हें उसी समय अनुष्ठान मार्ग में जाने देते हैं। देवता शत्रुओं के क्रोध का विनाश कर हमारे सुख-साधन स्वरूप यज्ञ में अनिष्ट निवारक इन्द्रदेव को आने दें।[ऋग्वेद 1.104.2]
हे मनुष्यों रक्षा के लिए इन्द्रदेव के पास जाओ। वे बुरे कर्म करने वालों के गुस्से को नष्ट करें। प्राणी जगत की श्रेष्ठ प्रगति करें।
The humans come under the fore-shelter of Indr Dev. He immediately allows them-protect them to continue with their endeavours. Let the demigods destroy our enemies and promote our amenities, comforts. Let him prevent all obstacles in our path.
अव त्मना भरते केतवेदा अव त्मना भरते फेनमुदन्। 
क्षीरेण स्नातः कुयवस्य योषे हते ते स्यातां प्रवणे शिफायाः
कुयव नामक असुर दूसरे के धन का पता प्राप्त कर स्वयं अपहरण करता है। वह जल में रहकर स्वयं फेन युक्त जल को भी चुराता है। कुयव की दो स्त्रियाँ उसी जल में स्नान करती हैं। वे स्त्रियाँ शिफा नामक नदी की धार से मृत्यु को प्राप्त होवें।[ऋग्वेद 1.104.3]
जैसे जल पर फेन स्वयं ही उठता है, वैसे ही अपने आश्रय इन्द्र हैं। "कुयव' नामक दैत्य की स्त्रियाँ दूध से स्नान करती हैं। वे नदी के गहरे जल में जाकर डूब मरें।
Kuyav-the demon stole the wealth of others. He stayed in water and stole the water as well. His two wives bathed in that water. Let these women be dead-drowned in deep waters.
युयोप नाभिरुपरस्यायोः प्र पूर्वाभिस्तिरते राष्टि शूरः। 
अञ्जसी कुलिशी वीरपत्नी पयो हिन्वाना उदभिर्भरन्ते
उपद्रव के लिए इधर-उधर जाने वाला कुयव जल के मध्य में रहता है। उसका निवास स्थान गुप्त था। वह शूर पूर्व अपहृत जल के साथ वृद्धि प्राप्त करता और दीप्त होता है। अंजसी और कुलिशी इसकी दोनों वीर पत्नियाँ जलों से तृप्त करती रहती हैं।[ऋग्वेद 1.104.4]
आर्यों का सम्बन्ध इन्द्र से टूट गया। वह शक्तिशाली "कुयव" पूर्व की नदियों के पार राज्य करता था। उसकी अंजसी और कुलिशी और पराक्रमी भार्या नामक नदियाँ जल के साथ दूध को ले जाती हैं।
Kuyav moved hither & thither for creating trouble and hide in water, thereafter. His residence was secret. He grew-flourished with the stolen waters. His two wives named Anjasi and Kulshi remained content with the waters.
प्रति यत्स्या नीथादर्शि दस्योरोको नाच्छा सदनं जानती गात्। 
अध स्मा नो मघवञ्चर्कृतदिन्मा नो मघेव निष्षपी परा दाः
गौ जैसे अपनी शाला या गोष्ठ का रास्ता जानती है, उसी प्रकार  हमने भी उस असुर के घर की ओर गये हुए रास्ते को देखा है। उस असुर के बार-बार किये गये उपद्रव से हमें बचावें। जिस प्रकार से कामुक (व्यक्ति) धन का त्याग करता है, उसी प्रकार आप हमें त्याग न दे।[ऋग्वेद 1.104.5]
गोष्ठ को जाने वाली गौ के समान असुरों ने भी हमारे निवास स्थान का मार्ग देख लिया है। हे इन्द्र! हमारे अब भी रक्षक बनो। जैसे कामुक धन का परित्याग करता है, वैसे ही हमें कभी न त्यागना।
We have seen the demon moving to his hide out, the way the cows move to their homes. Let us be protected from the troubles created by the demon. You should not reject us like a lascivious person who reject his passions, sensuality, sexuality.
As a king Indr Dev protect both demigods & the humans. he controls weather & rains over the earth. He kills the humans who behave like demons with his Vajr as well. Human being pray-worship as an incarnation of the God. 
स त्वं न इन्द्र सूर्ये सो अप्स्वनागास्त्व आ भज जीवशंसे। 
मान्तरां भुजमा रीरिषो नः श्रद्धितं ते महत इन्द्रियाय
हे इन्द्र देव! हमें सूर्य और जल समूह के प्रति भक्ति पूर्ण करें। जो लोग पाप शून्यता के लिए जीव मात्र के प्रशंसनीय है, उनके प्रति भक्ति पूर्ण करें। आप हमारी गर्भ स्थित सन्तान को पिड़ित न करें। हम आपके महान् बल पर पूर्ण श्रद्धा करते है।[ऋग्वेद 1.104.6]
हे इन्द्रदेव! हमें सूर्य और जलों के प्रति वंदना करने वाला, पापों से पृथक बनाओ। तुम हमारी गर्भस्थ सन्तान का पतन न करो। हमको तुम्हारी शक्ति पर पूरा भरोसा है।
Hey Indr Dev! Let us be filled with devotion to the Sun and water-Varun Dev. We should be devoted to those who are sinless. Please do not torture-trouble our infants in the womb. We honour your might, have full faith in you. 
अधा मन्ये श्रत्ते अस्मा अधायि वृषा चोदस्व महते धनाय।  
मा नो अकृते पुरुहूत योनाविन्द्र क्षुध्यभ्द्यो  वय आसुतिं दाः
अन्तःकरण से हम आपको जानते है। आपके उस बल पर हमने श्रद्धा की है। आप अभीष्टदाता हैं; हमें प्रभूत धन प्रदान करें। हे इन्द्रदेव! आप बहुत लोगों के द्वारा पूजित होते हैं। हमें धन विहीन घर में न रखें। भूखों को अन्न और जल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.104.7]
बहुतों द्वारा आहूत इन्द्रदेव! मैं आपके पराक्रम में विश्वास करता हूँ। तुम हमको उत्तम ऐश्वर्य की ओर प्रेरित करो। हमकों अन्न से विहीन भुवन में भूखा मत रखना।
Our inner self (mind & heart) recognises-respects you. We have honour-respect for you. You grant our boons-fulfil our desires. Hey Indr Dev! You are worshiped by many-many people. Please grant us house which have sufficient basic amenities, riches, food & water.
मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा नः प्रिया भोजनानि प्र मोषी: 
आण्डा मा नो मघवञ्छक्र निर्भेन्मा नः पात्रा भेत्सहजानुषाणि
हे इन्द्रदेव! हमें मत मारना। हमें न छोड़ना। हमारे प्रिय भक्ष्य उपभोग आदि को न लेना। हे समर्थ धनपति इन्द्रदेव! हमारे गर्भस्थित शिशुओं को नष्ट न करें। घुटने के बल चलने वाले शिशुओं को नष्ट न करें।[ऋग्वेद 1.104.8]
हे समर्थवान इन्द्र देव। तुम हमारी हिंसा न करो। हमें मत छोड़ो। हमारे उपभोग पदार्थों को समाप्त न करो। 
Hey Indr Dev! Do not kill or desert us. Do not snatch our usable goods & the food. Hey competent wealthy Indr Dev! Do not kill our progeny in the womb or the ones-infants who move over their knees.
अर्वाङोहि सोमकामं त्वाहुरयं सुतस्तस्य पिबा मदाय। 
उरुव्यचा जठर आ वृषस्व पितेव नः शृणुहि हूयमानः
हमारे समक्ष आवें। लोगों ने आपको सोमप्रिय बना दिया है। सोमरस तैयार है; इसे पी कर तृप्त होवें। विस्तीर्णाङ्ग होकर जठर में सोमरस की वर्षा करें। जिस प्रकार से पिता पुत्र की बात सुनता है, उसी प्रकार हमारे द्वारा आहूत होकर हमारी बातों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.104.9]
सोमाभिलाषी इन्द्रदेव! हमारे सम्मुख आओ। यह निष्पन्न सोम रखे हैं। इसे आनन्द के लिए पान करो। पुकारे जाने पर पिता के समान हमारी वंदना को सुनो।
Please come to us. The populace have made you thirsty for Somras. Somras is ready, please drink it and be satisfied with us. Please come to help us like a father, on been called.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (108) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- इन्द्राग्रि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
य इन्द्राग्नी चित्रतमो रथो वामभि विश्वानि भुवनानि चष्टे। 
तेना यातं सरथं तस्थिवांसाथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्रिदेव! आप लोगों के लिए अतीव विचित्र रथ ने सारे भुवनों को प्रकाशमय किया, उसी रथ पर एक साथ बैठकर पधारे और अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.1]
हे इन्द्राग्ने! तुम दोनों का अलौकिक रथ सभी संसार को देखता है। उस पर आरूढ़ होकर यहाँ पर आओ और निष्पन्न सोम रस का पान करो।
Hey Indr & Agni Dev! Your amazing chariot has spread light in all the abodes. Come to us in that chariot and drink Somras.
यावदिदं भुवनं विश्वमस्त्युरुव्यचा वरिमता गभीरम्। 
तावाँ अयं पातवे सोमो अस्त्वरमिन्द्राग्नी मनसे युवभ्याम्॥
इस बहुव्यापक और अपनी गुरुता से गम्भीर जो सारे भुवनों का परिमाण है, हे इन्द्र और अग्निदेव! आप लोगों के पीने योग्य सोमरस उतना ही प्रभावशाली होकर प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.108.2]
हे इंद्र व अग्ने! जितनी गंभीर और विशाल यह जगह है, उतना विस्तृत होता हुआ यह सोम तुम्हारे लिए पर्याप्त है। 
Hey Indr & Agni Dev! You are the greatest & have pervaded the entire universe. This Somras is sufficient for you to enjoy (drink, relish, enjoy).
चक्राथे हि सध्य्रङ्नाम भद्रं सग्रीचीना वृत्रहणा उत स्थः।
ताविन्द्राग्री सध्य्रञ्चा निषद्या वृष्णः सोमस्य वृषणा वृषेथाम्॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आपकी संयुक्त शक्ति विशेष रूप से वृत्र हन्ताओं! आप संयुक्त रूप में ही निवास करते हैं। हे शक्ति युक्त वीरों! आप दोनों एक साथ बैठकर सोमरस को पीकर अपनी शक्ति में वृद्धि करें।[ऋग्वेद 1.108.3]
हे वृत्रनाशक इन्द्र अग्ने! तुम दोनों साथ-साथ चलकर एकत्रित बैठकर सोमरस को ग्रहण करो।
Hey Indr Dev & Agni Dev! You work together unitedly and killed Vratr-the demon. You are great warriors. Both of you come together to drink Somras.
समिद्धेष्वग्निष्वानजाना यतस्रुचा बर्हिरु तिस्तिराणा। 
तीव्रैः सोमैः परिषिक्तेभिरर्वागेन्द्राग्री सौमनसाय यातम्॥
अग्नि के अच्छी तरह प्रज्ज्वलित होने पर दोनों अध्वर्युओं ने पात्र से घृत सेचन करके कुश विस्तारित किया। हे इन्द्र और अग्निदेव! चारों ओर अभिषुत तीव्र सोमरस द्वारा आकृष्ट होकर कृपा करने के लिए हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 1.108.4]
हे अग्ने! अग्नि के प्रदीप्त होने पर हमने हवियों को घृतयुक्त किया तथा कुश को बिछाया है। हम स्त्रुव लिए खड़े हैं। तुम दोनों आकर सोम रस से संतुष्ट हो जाओ।
Hey Agni! Both of you spreaded the Kush mat, having ignited the fire by pouring ghee in it.  Hey Indr & Agni Dev! Both of you come here to drink Somras.
यानीन्द्राग्नी चक्रथुर्वीर्याणि यानि रूपाण्युत वृष्ण्यानि। 
या वां प्रत्नानि सख्या शिवानि तेभिः सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आप लोगों ने जो कुछ वीरता के कार्य किये हैं, जितने रूप विशिष्ट जीवों की सृष्टि की है, जो कुछ वर्षण किया है तथा आप लोगों का जो कुछ प्राचीन कल्याण कर बन्धुत्व है, वह सब लेकर आवें और अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.5]
हे इन्द्राग्ने! तुम यदि क्षितिज-धरा, पवंत और औषधि, जल आदि में जहां कहीं भी हो वहीं से मेरे निकट आकर सोम का सेवन करो।
Hey Indr Dev & Agni Dev! You are brotherly ever since. You have performed great deeds for the welfare of the living beings. You together cause rains. Come together and drink this Somras extracted & reserved for you.
यदब्रवं प्रथमं वां वृणानो ३ यं सोमो असुरैर्नो विहव्यः। 
तां सत्यां श्रद्धामभ्या हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
पहले ही कहा था कि आप दोनों का वरण करके आपको सोमरस द्वारा प्रसन्न करूँगा, वही कपटहीन श्रद्धा देखकर पधारें और अभिषुत सोमरस पान करें। यह सोमरस हमारे ऋत्विकों की विशेष आहुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 1.108.6]
तुम क्षितिज के बीच में सूर्य के चढ़ने पर स्वेच्छा पूर्वक विश्राम कर रहे हो तो भी यहाँ पधारकर इस सोम को पियो। 
As has been said, we will pray-worship you and please-make you happy. We have extracted this Somras for you and is good enough for making offerings in the holy fire. Please come to us from the houses of those who are busy in the Yagy-prayers and drink Somras. 
यदिन्द्राग्री मदधः स्वे दुरोणे यद्ब्रह्मणि राजनि वा यजत्रा। 
अतः पर वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे यज्ञ पात्र इन्द्र और अग्निदेव! यदि अपने घर में प्रसन्न होकर निवास करते हो, यदि पूजक वा राजा के प्रति प्रसन्न होकर रहते हो तो हे अभीष्ट दातृ द्वय! इन सारे स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.7]
हे पूज्य इन्द्राग्ने! तुम जिस यजमान के घर में पुष्ट हो रहे हो, वहाँ से मेरे समीप आकर सोम रस का पान करो।
Hey mighty Indr & Agni Dev! Please come us to drink Somras from the houses of the devotees & the kings who are too happy with you. 
यदिन्द्राग्नि यदुषु तुर्वशेषु यद्द्रुह्युष्वनुषु पूरुषु स्थः। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! यदि आप लोग तुर्वश, द्रुह्य, अनु और पुरुगण के बीच रहते हो तो हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सब स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.8]
हे पौरुष युक्त इन्द्राग्ने! तुम यदुओं, तुर्वशी, दूहाओ, पुरुषों में रहते हो, वहाँ से आकर सोम रस पियो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! If you reside with the Turvash, Druhy, Anu and Puru Gan, hey duo come to us from all these places and drink Somras. Please fulfil our desires.
यदिन्द्राग्नि अवमस्यां पृथिव्यां मध्यमस्यां परमस्यामुत स्थः। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्राग्नी! यदि आप लोग निम्न पृथ्वी, अन्तरिक्ष अथवा आकाश में रहते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सारे स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.9]
हे वीर्यवान इन्द्राग्ने! तम यदि निम्म्र धरती, अंतरिक्ष और आकाश में स्थित हो तो मेरे समीप आकर सोम पान करो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! If you reside over the lower earth, space or the sky, still you come to us to drink Somras. Please fulfil our desires.
यदिन्द्राग्नि परमस्यां पृथिव्यां मध्यमस्यामवमस्यामुत स्थः। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सामस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्राग्नि! आप लोग यदि उच्च पृथ्वी (आकाश), मध्य पृथ्वी (अन्तरिक्ष) अथवा निम्न पृथ्वी पर निवास करते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सब स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.10]
हे इन्द्राग्ने ! यदि तुम अन्य पृथिव्यादि लोकों में हो तो भी यहाँ आकर सोम रस को पियो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! Even if you reside over the upper earth, middle earth or the lower earth please come to us and drink Somras. Please fulfil our desires.
यदिन्द्रीग्नी दिवि ष्ठो यत्पृथिव्यां यत्पर्वतष्वोषधीष्वप्सु। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! यदि आप आकाश, पृथ्वी, पर्वत, शस्य अथवा जल में निवास करते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सब स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.11]
हे इन्द्राग्ने! तुम यदि क्षितिज धरा, पर्वत औषधि, जल आदि में जहाँ कहीं भी हो वहीं से मेरे निकट आकर सोम रस का सेवन करो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! Even if you are present in the sky, earth, mountains, vegetation or the waters, please come to us, drink Somras and grant our wishes-desires.
यदिन्द्राग्नी उदिता सूर्यस्य मध्ये दिवः स्वधया मादयेथे। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! सूर्य के उदित होने पर दीप्तिमान् अन्तरिक्ष में यदि आप लोग अपने तेज से हृष्ट होते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सारे स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.12]
हे इन्द्राग्ने ! यदि तुम क्षितिज के बीच में सूर्य के चढ़ने पर स्वेच्छा से विश्राम कर रहे हो तो भी यहाँ पधारकर इस सोम को पीयो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! Even if you becoming strong with the rising Sun, please come to us, drink Somras and fulfil our desires-wishes.
एवेन्द्राग्री पपिवांसा सुतस्य विश्वासमभ्यं सं जयतं धनानि। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! इस प्रकार अभिषुत सोमरस का पान करके हमें समस्त धन प्रदान करें। हमारी मनोवांछित कामना पूर्ति में मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथिवी और आकाश के सभी देव सहायक हो।[ऋग्वेद 1.108.13]
हे इन्द्राग्ने! इस निष्पन्न सोम रस को पीकर सभी धनों को जीतो मित्रवरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश हमारी विनती का अनुमोदन करो।
Hey Indr & Agni Dev! Please come, drink Somras and give us money. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Earth & the sky-space become helpful in the fulfilment of our desires, by supporting us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (109) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- इंद्राग्नि,  छंद :- त्रिष्टुप्।  
वि ह्यख्यं मनसा वस्य इच्छन्निन्द्राग्री ज्ञास उत वा सजातान्। 
नान्या युवत्प्रमतिरस्ति मह्यं स वां धियं वाजयन्तीमतक्षम्॥1॥
इन्द्र और अग्नि देव! मैं धन प्राप्ति के लिए, आप लोगों की मित्रता चाहता हूँ। आपने ही मुझे उत्तम बुद्धि दी है; अन्य किसी ने नहीं। इसलिए आपकी सामर्थ्य, शक्ति प्रभाव और क्षमता को बढ़ाने वाले स्तोत्रों की हम रचना करते हैं।[ऋग्वेद 1.109.1]
हे इन्द्राग्ने! अपने हित के लिए मैंने अपने कुटुम्बियों की तरफ भी देख लिया परन्तु तुम्हारे तुल्य कृपा दृष्टि करने वाले अन्यत्र कहीं नहीं मिला, मैंने तुम्हारे चाहने वाले श्लोक की उत्पत्ति की।
Hey Indr & Agni Dev! I want to be friendly with you for the sake of money. Its you who has awarded me virtuous intelligence, none else. Therefore, I compose the verses which boosts your power, might, capability.
अश्रवं हि भूरिदावत्तरा वां विजामातुरुत वा घा स्यालात्। 
अथा सोमस्य प्रयती युवभ्यामिन्द्राग्नी स्तोमं जनयामि नव्यम्॥2॥
हे इन्द्र और अग्नि देव! आप लोग अयोग्य दामाद अथवा साले की अपेक्षा से भी अधिक बहुत प्रकार का धन प्रदान करते हैं, ऐसा सुना है। इसलिए हे इन्द्र और अग्निदेव! आपके सोमरस प्रदान काल में पढ़ने योग्य एक नया स्तोत्र निष्पादित करता हूँ।[ऋग्वेद 1.109.2]
अयोग्य :: अनुपयुक्त, बेकार, नालायक, मूर्ख, अनाड़ी; ineligible, unfit, unworthy, inept, non deserving, unqualified.
हे इन्द्राग्ने! तुम अयोग्य जामाता और साले से भी अधिक धन दान करने वाले हो। मैं तुम्हें सोम रस भेंट करता हुआ, श्लोक रचता हूँ।
Hey Indr & Agni Dev! I have learnt that you grant money, much more beyond the expectations of unqualified, non deserving son in law of the brother in law. I am composing a verse for you which you can read/listen while drinking Somras.
मा च्छेझ रश्मीरिति नाधमानाः पितॄणां शक्तीरनुयच्छमानाः। 
इन्द्राग्निभ्यां कं वृषणो मदन्ति ता ह्यद्री घिषणाया उपस्थे॥3॥
हमारी सन्तान का हनन न करें। पितरों की शक्ति वंशानुगत हो, ऐसी प्रार्थना से युक्त हमें, हे सामर्थ्यवान् इन्द्र और अग्निदेव! आपकी कृपादृष्टि से सुखदायक आनन्द की प्राप्ति हो। इन देवताओं को सोमरस प्रदत्त करने के लिए दो पत्थर सोमपात्रों के पास स्थापित हो।[ऋग्वेद 1.109.3]
संतान की लड़ी न काटें। इस विनती के साथ पूर्वजों के अनुकरण में शक्तिशाली इन्द्र और अग्नि के द्वारा प्रसन्नता पाने को यह सोम कूटने का पाषाण धर्म पर पड़ा है।
Please do not destroy-kill our progeny. We pray to you that the power of Pitr-Manes to perpetuate the descendants, continue.  Hey mighty Indr & Agni Dev! Let us gain comforts & pleasures due to your blessings. We shall keep two stones to crush Somras for the sake of demigods-deities.
युवाभ्यां देवी धिपणा मदायेन्द्राग्नी सोममुशती सुनोति। 
तावश्विना भद्रहस्ता सुपाणी आ धावतं मधुना पृङ्क्तमप्सु॥4॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आपके लिए दीप्तिमती प्रार्थना की कामना करके आपके हर्ष के लिए सोमरस का निर्माण करते हैं। आप अश्व युक्त, शोभन बाहुयुक्त और सुपाणि हैं। आप लोग शीघ्र आएँ और मधुर सोमरस को जलों से मिश्रित करें।[ऋग्वेद 1.109.4]
सुपाणि :: beautiful-handed; skilful, dexterous, dexterous-handed, a trinket for the nose of females.
हे इन्द्राग्ने! तुम्हारी इच्छा लिए ही यह सोम कूटा जा रहा है। हे सुन्दर कल्याण-रूप हाथों वाले इन्द्राग्नि! शीघ्र पधारो। सोम को मृदुजलों से परिपूर्ण करो।
Hey Indr & Agni Dev! We are extracting Somras for your pleasure, with the prayers for your well being. You possess horses, virtuous hands which perform the welfare of the humans. Please come to us quickly and mix the Somras in water.
युवामिन्द्राग्नी वसुनो विभागे तवस्तमा शुश्रव वृत्रहत्ये। 
तावासद्या बर्हिषि यज्ञे  अस्मिन्प्र चर्षणी मादयेथां सुतस्य॥5॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! प्रार्थना करने वालों के मध्य में धनविभाग में रत रहकर वृत्रहनन में अतीव बल प्रकाशित किया ऐसा सुना है। सर्वदर्शिद्वय! आप लोग हमारे इस यज्ञ में कुश पर बैठकर अभिषुत सोमरस का पान करके हृष्ट बनें।[ऋग्वेद 1.109.5]
हे इन्द्राग्ने! तुम धन वितरित करने और शत्रु का पतन करने में अत्यन्त शक्तिशाली हो। इस अनुष्ठान में कुश पर विराजमान कर निष्पन्न सोम से आनन्द ग्रहण करो।
Hey Indr & Agni Dev! In spite of being busy in the distribution of wealth amongest your worshipers, you killed Vratr-the demon, this is what we have learnt. Please occupy the cushions made of Kush grass and drink Somras and become strong, in our Yagy.
प्र चर्षणिभ्यः पृतनाहवेषु प्र पृथिव्या रिरिचाथे दिवश्च। 
प्र सिन्धुभ्यः गिरिभ्यो महित्वा प्रेन्द्राग्नी विश्वा भुवनात्यन्या॥6॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! युद्ध के समय बुलाये जाने पर आप लोग आकर अपने महत्त्व द्वारा सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ बनें। पृथ्वी, आकाश, नदी और पर्वत आदि की अपेक्षा भी श्रेष्ठ बनें। आप अन्य सभी भवनों की अपेक्षा श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 1.109.6]
हे इन्द्राग्ने! तुम मानवों से बढ़कर लड़ाई में ताड़ना करते हो। तुम पृथ्वी और आकाश से भी श्रेष्ठ हो। तुम शैलों, समुद्रों और अन्य सभी लोकों से भी बढ़कर हो। 
Hey Indr & Agni Dev! On being invited in a war by the humans, you show your might, power & dignity. You are superior to the earth, sky, rivers and the mountains.
आ भरतं शिक्षतं वज्रबाहू अस्माँ इन्द्राग्नी अवतं शचीभिः।
इमे नु ते रश्मयः सूर्यस्य येभिः सपित्वं पितरो न आसन्॥7॥
हे वज्र-हस्त इन्द्र और अग्निदेव! हमारे गृहों को धन से युक्त करें, हमें शिक्षित करें और अपने बड़ों से हमारी रक्षा करें। सूर्य की जिन रश्मियों के द्वारा हमारे पूर्व पुरुष इकट्ठे हुए थे, वे यहीं है।[ऋग्वेद 1.109.7]
हे वज्रिन! हे अग्ने! तुम दोनों धनों को लाकर हमें दो। अपनी शक्ति से हमारी रक्षा करो। ये वही सूर्य किरणें हैं जो हमारे पूर्वजों को भी प्राप्त थीं।
Hey Vajr wearing-yielding Indr & Agni Dev! Please provide money for our homes, educate us and protect us from those, who are mightier than us. Here are the rays of Sun which brought our ancestors together.
पुरंदरा शिक्षतं वज्रहस्तास्माँ इन्द्राग्नी अवतं भरेषु। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥8॥
हे वज्र हस्त पुरन्दर इन्द्र और अग्निदेव! हमें धन प्रदान करें। लड़ाई में हमें बचावें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश सभी हमारी कामना पूर्ति में सहयोग प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.109.8]
हे दुर्ग भंजक इन्द्राग्ने! हमें इच्छित फल दो। युद्धों में हमारी सुरक्षा करो। सखा, वरुण, अदिति और क्षितिज हमारी वंदना को अनुमोदित करें।
Hey Vajr yielding, destroyers of the forts Indr & Agni Dev! Grant us money. Protect us in war-battle. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu-ocean, Earth & Akash (the Sky, space) cooperate with us in the fulfilment of desires-wishes. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (121) :: ऋषि :- औशिज, कक्षीवान्, देवता :- विश्वेदेवा,   इन्द्र, छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्।
कदित्या नृँ: पात्रं देवयतां श्रवग्दिरो अङ्गिरसां तुरण्यन्। 
प्र यदानड्विश आ हर्म्यस्योरु क्रंसते अध्वरे यजत्रः॥
मनुष्यों के पालन कर्ता और गौरूप धन के दाता इन्द्र देव कब देवाभिलाषी अङ्गिरा लोगों की स्तुति श्रवण करेंगे? जिस समय वे गृहपति यजमान के ऋत्विकों को सामने देखते हैं, उस समय वे यज्ञ में यजनीय होकर प्रभूत उत्साह से कामनाओं को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.121.1]
मनुष्यों के रक्षक इन्द्रदेव भक्त अंगिराओं की वंदना कब सुनेंगे? ये जब गृहस्थ यजमान के सभी यज्ञकर्त्ताओं को अपने सभी तरफ देखोगे तब अत्यन्त उत्साह पूर्वक जल्दी से प्रकट होंगे।
When will the protector and nurture of humans, Indr Dev listen-respond to the prayers of the Angiras? When he observe the priests busy with the Yagy for the household-host, he accomplish their desires with great zeal.
स्तम्भीद्ध द्यां स धरुणं प्रुषायदृभुर्वाजाय द्रविणं नरो गोः। 
अनु स्वजां महिषश्चक्षत व्रां मेनामश्वस्य परि मातरं गोः॥
उन्होंने स्थिररूप से आकाश को धारित किया। वे असुरों द्वारा अपहृत गायों के नेता हैं। वे विस्तीर्ण प्रभा से युक्त होकर सारे प्राणियों के द्वारा सेवनीय हैं और खाद्य के लिए जीवन धारक वृष्टिजल की वर्षा करते हैं। महान् सूर्यरूप इन्द्रदेव अपनी पुत्री उषा के पञ्चात् उदित होते हैं। उन्होंने घोड़ी से गायें उत्पन्न की।[ऋग्वेद 1.121.2]
बुद्धिमान वीर पुरुष ने आकाश को ग्रहण किया। अन्न के लिए धेनुओं को पुष्ट किया और धन के लिए धरती को सींचा। उन्होंने अपनी श्रेष्ठता से उत्पन्न प्रजाओं पर दया की। अश्व-घोड़ा (सूर्य) की नारी को धरती माता बनाया। उषाओं के स्वामी इन्द्र अंगिराओं के आह्वान पर नित्य जाते थे।
He supports-stabilize the sky. He nourished the earth (as a cow) for yielding the food grains. He resort to rainfall for irrigating the soil for producing food grains. He adopts the form of horse to support earth as cow. He rises in the morning as Sun with his daughter Usha.
Here Dev Raj Indr represents Bhagwan Shri Hari Vishnu, since the God is addressed as Indr else where.
Dev raj Indr is a prime-supreme form of Bhagwan Shri Hari Vishnu.
नक्षद्धवमरुणी: पूर्व्यं राट् तुरो विशामङ्गिरसामनु द्यून्। 
तक्षद्वज्रं नियुतं तस्तम्भद्द्यां  चतुष्पदे नर्याय द्विपादे॥
वे अरुण वर्ण उषा को रंजित करके हमारा उच्चारित पुरातन मंत्र श्रवण करें। वे प्रतिदिन अङ्गिरा गोत्र वालों को अन्न प्रदान करें। उन्होंने हननशील वज्र बनाया। वे मनुष्यों, चतुष्पदों और द्विपदों के हित के लिए, दृढ़ रूप से आकाश को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.121.3]
उन्होंने शोषणशील वज्र निर्मित किया और दुपाये, चौपाये के लिए क्षितिज को धारण किया।
Let the bright yellow coloured (Dev Raj Indr) amuse Usha and listen to the ancient Mantr recited by us. Let him provide food grains to the descendants of Angira clan. He made the Vajr, a destroyer-weapon. He bears-holds the horizon-sky for the sake of the humans, two & four legged animals.
अस्य मदे स्वर्यं दा ऋतायापीवृतमुस्त्रियाणामनीकम्। 
यद्ध प्रसर्गे त्रिककुम्निवर्तदप द्रुहो मानुषस्य दुरो वः
इस सोमपान से प्रसन्न होकर आपने स्तुतिपात्र और पणि द्वारा छिपाई हुई गौओं को यज्ञ के लिए दान किया। जिस समय त्रिलोक श्रेष्ठ इन्द्र देव युद्ध में रत होते हैं, उस समय वे मनुष्यों के क्लेशदाता पणि असुर का द्वार गौओं के निकलने के लिए खोल देते हैं।[ऋग्वेद 1.121.4]
हे इन्द्रदेव! तुमने इस सोम से संतुष्ट होकर धेनुओं का संगठन सचमुच दान किया। जब तुम्हारा त्रिकोण वज्र शत्रुओं का हनन करता है तब, मनुष्यों को कष्ट देने वाले पणि के दरवाजों को धेनुओं को निकलने के लिए खोल देता है।
On being happy with the offering-drinking of Somras, you opened the gates of Pani-a demon, who had hidden the cows, for those who were praying to you (for donation to Brahman, priests). When Indr Dev is busy in a war, his Vajr, opens the gates of the demon Pani, so that the cows move out of his prison-holding.
तुभ्यं पयो यत्पितरावनीतां राधः सुरेतस्तुरणे भुरण्यू।
शुचि यत्ते रेक्ण आयजन्त सबदुघायाः पय उस्त्रियायाः॥
क्षित्रकारी आपके लिए संसार के पालक पिता द्यौ और माता पृथ्वी समृद्धिशाली और उत्पादन शक्ति युक्त दुग्ध लावें। जिस समय उन्होंने दुग्धवती गौओं का विशुद्ध दुग्ध आपके सामने रखा था, उस समय आपने पणि के द्वार को खोल दिया।[ऋग्वेद 1.121.5]
जल्दी कार्य करने वाले इन के लिए माता-पिता, धरती और आकाश उत्पादन शक्ति से युक्त बलशाली दूध लाए थे। उस समय अमृत रूपी दूध वाली धेनु का दूध रूप धन तुमको प्रस्तुत किया था।
Let the worshippers bring milk for you which provide strength, prosperity, affluence to you; being the nurturer of the heavens & the earth. When they served you, the cows pure milk, you opened the gates of Pani withholding the cows, after abducting them.
अध प्र जज्ञे तरणिर्ममत्तु प्र रोच्यस्या उषसो न सूरः।
इन्दुर्येभिराष्ट्र स्वेदुहव्यैः स्रुवेण सिञ्चञ्जरणाभि धाम॥
इस समय इन्द्रदेव प्रकट होकर उषा के समीप में विद्यमान सूर्य की तरह दीप्तिमान् हुए हैं। उत्तम मधुर पदार्थों की हवि प्रदत्त करने वाले यजमानों द्वारा देवराज इन्द्र के लिये यज्ञस्थल पर स्रुव द्वारा सोमरस प्रदत्त किया जाता है। इस प्रकार के सोमरस से अभिषिंचित होकर वे आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 1.121.6]
तब द्रुतगामी सूर्य रूप इन्द्रदेव उषा के निकट दीप्तिमय हुए। यह शत्रु विजयी हमको हर्षित करें। जैसे दमकती हुई हवियों से स्रुवा के द्वारा सिंचन करता हुआ सोम साधकों के मनों को ग्रहण होता है।
At present Indr Dev has appeared and is seen with Usha. Those hosts who make offerings with the best goods, provide Somras to Indr Dev with Struv-a wooden spoon, at the Yagy site. Dev raj Indr is amused by drinking Somras.
स्विध्मा यद्वनधितिरपस्यात्सूरो अध्वरे परि रोधना गोः। 
यद्ध प्रभासि कृत्व्याँ अनु द्यूननर्विशे पश्विषे तुराय॥
जिस समय सूर्य किरण द्वारा प्रकाशित मेघमाला जल वर्षण करने के लिए तत्पर होती है, उस समय प्रेरक इन्द्रदेव यज्ञ के लिए वर्षा के आवरण का निवारण करते हैं। हे इन्द्रदेव जिस समय आप सूर्य रूप से कर्म के दिन में किरण प्रदान करते हैं, उस समय गाड़ीवान, पशुओं की रक्षा करने वाले और गतिशील पुरुष अपने-अपने कार्यों को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.121.7]
हे इन्द्रदेव! महापुरुषों के यज्ञ में इंद्रियों को निग्रह करने वाला तेज चमकता है। गाड़ीवान् पशुओं की रक्षा करने वाले और तीव्रता से कार्य करने वाले सभी मनुष्य अपने कर्मों को करते हैं। वह तुम्हारे किरण दान का ही प्रतिफल है।
When the clouds are ready for showering by the inspiration of the rays of Sun, you prepare a protective shield for the Yagy. When you appear as Sun, the cart drivers, animal protectors and the dynamic-great people complete-accomplish their jobs. 
अष्टा महो दिव आदो हरी इह द्युम्राम्ना  साहमभि योधान उत्सम्।  
हरिं यत्ते मन्दिनं दुक्षन्वृधे गोरभसमद्रिभिर्वाताप्यम्
जिस समय ऋत्विक् लोग आपके वर्द्धन के लिए मनोहर, प्रसन्नकर, बलदायक और आपके उपभोग्य सोम को पत्थरों द्वारा कूटकर रस निकालते हैं, उस समय हर्षदायक सोमरस के उपभोक्ता अपने हरि नाम के दोनों घोड़ों को दस्त्रयज्ञ में सोमपान करावें। आप युद्ध निपुण हैं। हमारे धन हरण करने वाले शत्रुओं का नाश करें।[ऋग्वेद 1.121.8]
हे इन्द्रदेव! दीप्ति के छिपाने वाले कूप का खंडन करने के लिए तुम व्यापक क्षितिज से आठ अश्वों को लाये। उसी समय साधकों ने तुम्हारे लिए दूध में भीगे हुए सोम रस को पाषाणों से कूटा।
Let the devotees-hosts conducting the Dastr Yagy, smash Som with stones, extract Somras which grants happiness, strength and serve it to your horses named Hari. You are an expert in war fare. Crush those who abduct-snatch, loot our money-wealth. 
त्वमायसं प्रति वर्तयो गोर्दिवो अश्मानमुपनीतमृभ्वा। 
कुत्साय यत्र पुरुहूत वन्वज्छुष्णमनन्तैः परियासि वधैः॥
हे बहुलोक पूजापात्र इन्द्रदेव! आपने ऋभु द्वारा आकाश से लाये गये शीघ्रगामी और लौहमय वज्र को तीव्र गति से शुष्ण असुर की ओर फेंका, उस समय आप कुत्स ऋषि की रक्षा के लिए शुष्ण को चारों ओर से घेरकर अनेकानेक हननशील अस्त्रों द्वारा मार रहे थे।[ऋग्वेद 1.121.9]
अनेकों द्वारा आहूत इन्द्र ने त्वष्टा द्वारा प्रयुक्त लौह वज्र को चर्म द्वारा आकाश से फेंका। उस समय शुष्ण को अस्त्रों से घेरकर कुत्स की रक्षा की। (वज्र को फेंकते समय चमड़े के दस्ताने पहन लिये जाते हैं।) 
Hey prayer deserving in various abodes-Loks, Indr Dev! You launched the Iron Vajr brought by Ribhu through the sky, over the demon called Shushn and protected Kuts Rishi, by surrounding the demon Shushn from all sides-directions, with various Astr-Shastr (weapons) capable of killing-destroying the target.
पुरा यत्सूरस्तमसो अपीतेस्तमद्रिवः फलिगं हेतिमस्य। 
शुष्णस्य चित्परिहितं यदोजो दिवस्परि सुग्रथितं तदादः॥
हे वज्रधारिन्! जिस समय सूर्य अन्धकार के साथ संग्राम से मुक्त हुए, उस समय आपने उनके मेघ रूप शत्रु का विनाश कर दिया। उस शुष्ण का जो बल सूर्य को आच्छादित किए हुए था और सूर्य को ग्रसित किये हुए था, उसे आपने नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.121.10]
हे वज्रिन! सूर्य के अधकार में विलीन होने से पहले ही वृत्र की ओर वज्र छोड़ो। क्षितिज के ऊपर शुष्ण (अनावृष्टि रूपी दैत्य) की जो अमोघ शक्ति है, उसे भेद डालो। 
Hey Vajr holder Dev Raj Indr! You destroyed the enemy in the form of clouds, when the Sun came out of darkness. The power-cast of Shushn, which had engulfed the Sun was destroyed by you. 
अनु त्वा मही पाजसी अचक्रे द्यावाक्षामा मदतामिन्द्र कर्मन्। 
त्वं वृत्रमाशयानं सिरासु महो वज्रेण सिष्वपो वराहुम्॥
हे इन्द्रदेव! महान् बली और सर्वव्यापक द्युलोक और भूलोक ने वृत्रासुर के वध में आपको उत्साहित किया। आपने उस सर्वत्र व्यापक और श्रेष्ठ हारयुक्त वृत्रासुर को अपने महान् वज्र से गहरे जल में फेंक दिया।[ऋग्वेद 1.121.11]
हे इन्द्रदेव! श्रेष्ठ क्षितिज और धरा तुम्हारे वृत्र-वध कर्म से अत्यन्त पुष्ट हुए हैं। तुमने उस वाराह के तुल्य वृत्र को अपने घोर वृण से समाप्त जलाशायी कर दिया।
Hey Indr Dev! Most powerful, all pervading heavens and the earth inspired-encouraged you to kill-eliminate Vrata Sur, a demon. You throw the excellent necklace wearing Vrata Sur who had pervaded all directions, with your great Vajr. 
The demons were experts in casting spell over all living beings. In Hindi it is called मायाजाल-Maya Jal, मरीचिका-Marichika. 
त्वमिन्द्र नर्यो याँ अवो नॄन्तिष्ठा वातस्य सुयुजो वहिष्ठान्। 
यं ते काव्य उशना मन्दिनं दावृत्रहणं पार्यं ततक्ष वज्रम्॥
हे इन्द्रदेव! आप मनुष्यों के मित्र है। आप जिन अश्वों की रक्षा करते हैं, उन वायुतुल्य शोभन और वाहक अश्वों पर विराजें। कवि के पुत्र उना ने जो हर्षदायक वज्र आपको दिया था, आपने उसी वृत्रध्वंसक और शत्रुनाशक वज्र को तीक्ष्ण बनाया।[ऋग्वेद 1.121.12]
हे इन्द्र देव! तुम जिन प्राणियों का हित करने वाले अश्वों का पालन करते हो, उन पर चढ़ो। कवि के पुत्र उशना ने वृत्र नाशक वज्र तुम्हें दिया था, उसे तीक्ष्ण करो। 
Hey Indr Dev! You are a friends of the humans. Come here riding those horses which are protected by you and are decorated like the air. You sharpened the amusing Vajr, capable of destroying the enemy, which was given to you by the son of Kavi called Una and you killed the demon Vratr with it. 
त्वं सूरो हरितो रामयो नॄन्भरच्चक्रमेतशो नायमिन्द्र। 
प्रास्य पारं नवतिं नाव्यानामपि कर्तमवर्तयोऽयज्यून्॥
हे सूर्यरूप इन्द्रदेव! हरि नामक अश्वों को रोकें। इनका एतश नाम का घोड़ा रथ का चक्का खींचता है। आपने नौका द्वारा नब्बे नदियों के पार पहुँच कर, वहाँ यज्ञ का विरोध करने वालों को फेंककर विलक्षण कार्य पूर्ण किया।[ऋग्वेद 1.121.13]
हे इन्द्र! तुमने सूर्य के स्वर्णिम अश्वों को मार्ग रोक दिया था। वह रथ के पहिए को नहीं चला सका। तुमने अनाज्ञिकों और असुरों को नब्बे नदियों के पार फेंक दिया। 
Hey Indr Dev having the form of Sun-Sury! Stop-control the horses named Hari. The horse called Etash pulls the wheel of the charoite. You crossed the 90 rivers and threw away those opposing the conduction of Yagy and accomplished the amazing feat.
त्वं नो अस्या इन्द्र दुर्हणायाः पाहि वज्रिवो दुरितादभीके। 
प्र नो वाजान्रथ्योअश्वबुध्यानिषे यन्धि श्रवसे सूनृतायै॥
हे वज्रधर इन्द्रदेव! आप हमें इस दुर्दान्त दरिद्रता से बचावें, निकट में होने वाले युद्ध में हमें पाप कर्मों से बचाये। उन्नत कीर्ति और सत्य के लिए हमें रथ, अश्व और धन आदि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.121.14]
 हे वज्रिन! तुम इस निकटवर्ती दारिद्रय रूप पाप से हमारी सुरक्षा करो। अन्न, कीर्ति, प्रिय एवं सत्यवाणी, रथ, अश्व आदि हमकों प्रदान करो।
Hey Vajr holding Indr Dev! Protect us from the troubling-torturous poverty and the sins which may occur in near future. Provide us horses, charoite and money for extreme progress and truth. 
मा सा ते अस्मत्सुमतिर्वि दसद्वाजप्रमहः समिषो वरन्त।
आ नो भज मघवन्गोष्वर्यो मंहिष्ठास्ते सघमादः स्याम॥
हे धन के लिए पूजनीय इन्द्रदेव! हमारे पास से अपना अनुग्रह न हटावें। हमें अन्न से पुष्ट करें। हे मघवन्! आप धनपति हैं। हमें गौ प्रदान करें। हम आपकी पूजा में तत्पर है इसलिए, हमें पुत्र, पौत्र आदि के साथ धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.121.15]
हे शक्ति के कारण भूत प्रतापी, समृद्धिवान इन्द्रदेव! तुम्हारी जो दयामति हमारी ओर है वह कम न हो। हमारे निकट अन्न का भण्डार रहे। हमको धेनु प्रदान करो। हम तुम्हारी प्रार्थना करते हुए तुष्टि को प्राप्त हों।
Hey Indr Dev, worshiped for money! Maintain your grace over us. Nurture us with food grains. Make us rich. You are the master of all riches. We are devoted to you. Grant us sons, grand sons, riches, money & wealth.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (129) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अत्यष्टि, शक्वरी
यं त्वं रथमिन्द्र मेधसातयेऽपाका सन्त मिषिर प्रणयसि प्रानवद्य नयसि। सद्यश्चित्तमभिष्टये करें वशश्च वाजिनम्। सास्माकमनवद्य तूतुजान वेघसामिमां वाचं न वेघसाम्
हे हर्ष सम्पन्न यज्ञगामी इन्द्रदेव! यज्ञ लाभ के लिए रथ पर चढ़कर जिस प्रभूत ज्ञान युक्त यजमान के पास जाते हो और जिसे धन और विद्या में उन्नत करते हो, उसे तुरन्त सफल मनोरथ और हव्यशाली बना दें। हे हर्षयुक्त इन्द्रदेव! हम पुरोहितों में भी पुरोहित हैं, हमारे स्तवन करने पर आप शीघ्रता से हमारी स्तुति और हव्य ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.129.1]
हे बलिष्ठ इन्द्रदेव! तुम अपने रुके हुए रथ को अनुष्ठान में पहुँचाने के लिए वृद्धि करते हो। तुम हमारी सुरक्षा करो, शक्ति और हमारी वाणी को ज्ञानियों की वाणी के तुल्य सुनो।
Hey Indr Dev, filled with bliss! You ride your chariote to reach the Yagy spot of the talented-enlightened host, grant him riches, wisdom-knowledge and make his endeavours successful. We are the priests of the enlightened. Please come to us quickly, when we pray-worship you and accept he offerings.
स श्रुधि यः स्मा पृतनासु कासु चिद्दक्षाय्य इन्द्र भरहूतये नृभिरसि प्रतूर्तये नृभिः। यः शूरैः स्वः सनिता यो विप्रैर्वाजं तरुता। तमीशानास इरधन्त वाजिनं पृक्षमत्यं न वाजिनम्
हे इन्द्रदेव! आप युद्ध के नायक है। आप मरुतों के साथ प्रधान-प्रधान युद्धों में स्पर्द्धा के साथ शत्रु-संहार करने में समर्थ हैं। वीरों के साथ आप स्वयं संग्राम में सुख का अनुभव करते हैं। ऋत्विकों की स्तुति करने पर आप उन्हें अन्न प्रदान कर हमारी स्तुति श्रवण करें। प्रार्थना परायण ऋत्विक लोग गमनशील अन्नवान इन्द्रदेव की अश्व की तरह सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 1.129.2]
हे इन्द्रदेव! तुम युद्ध में आहूत होने पर शक्ति देने में समर्थवान हो। मतिवान के संग अनुष्ठान की शिक्षा प्रदान करते हो। द्वन्द्व के लिए वेगवान अश्वों को पुकारने के तुल्य समृद्धिवान तपस्वी तुम्हारी तपस्या करते हैं।
Hey Indr Dev! You are the commander-chief in the battle-war. You are capable in destroying the enemy with the help of Marud Gan. You find pleasure in fighting with the brave. You grant food stuff to those who worship you. The host serve you as a horse for attaining riches.
दस्मो हि ष्मा वृषणं पिन्वसि त्वचं कं चिद्यावीरररुं शूर मर्त्यं परिवृणक्षि मर्त्यम्। इन्द्रोत तुभ्यं तद्दिवे तद्रुद्राय स्वयशसे। मित्राय वोचं वरुणाय सप्रथः सुमृळीकाय सप्रथः
हे इन्द्रदेव! आप शत्रुओं का नाश करके वृष्टि पूर्ण त्वचा रूप मेघ का भेदन कर जल गिराते हो और मर्त्य की तरह गमनशील मेघ को पकड़कर उसे वृष्टि रहित करके छोड़ देते हो। ये इन्द्रदेव शत्रुओं के विनाश के लिए रुद्र के तुल्य भयंकर, मित्र के समान हितैषी, श्रेष्ठ, सुखप्रद और सभी के द्वारा वरणीय है।[ऋग्वेद 1.129.3] 
हे वीर! तुम त्वचा रूपी बादल को तोड़ते हो। विरोधियों के समीप नहीं जाते! मैं तुम्हारे लिए आकाश, रुद्र और वरुण के लिए उस प्रसद्धि श्लोक को कहता हूँ। 
Hey Indr Dev! You destroy the enemy, make the clouds rain, squeeze their water and allow them to go. You are furious like the Rudr for the enemy, well wisher like a friend, excellent, blissful and acceptable to all.
अस्माकं व इन्द्रमुश्मसीष्टये सखायं विश्वायुं प्रासहं युजं वाजेषु प्रासहं युजम्। अस्माकं ब्रह्मोतयेऽवा पृत्सुषु कासु चित। नहि त्वा शत्रुः स्तरते स्तृणोषि यं विश्वं शत्रुं स्तृणोषि यम्
हे ऋत्विकों! हम अपने यज्ञ में इन्द्रदेव को चाहते हैं। ये हमारे मित्र सर्वयज्ञ गामी शत्रुओं के अभिभव कारी और हमारे सहायक हैं। वे यज्ञ विघ्नकारियों को पराभूत करके मरुतों में सम्मिलित है। हे इन्द्रदेव! आप हमारे पालन के लिए हमारी रक्षा करें। रण क्षेत्र में आपके विरुद्ध कोई शत्रु खड़ा नहीं हो सकता। आप ही समस्त शत्रुओं का नाश करते हैं।[ऋग्वेद 1.129.4]
 मनुष्यों! हमारी रक्षा के लिए सबके प्राण इन्द्र से प्रार्थना करते हैं। इन्द्र! सभी युद्धों में हमारे रक्षक हों। तुम्हारा पराक्रम उल्लंघन के योग्य नहीं है। तुम सभी शत्रुओं के दल पर छा जाते हो।
Hey priests! We want the presence of Indr Dev in our Yagy. He is our friend who participate in every Yagy, destroyer of the enemy and helpful to us. He defeats the trouble creators with the help of Marud Gan. Hey Indr Dev! Please protect & nurture us. None can face you in the battle-war. You destroyer every enemy.
नि षू नमातिमतिं कयस्य चित्तेजिष्ठाभिररणिभिर्नेतिभिरुप्राभिरुग्रोतिभिः। नेषि णो यथा पुरानेनाः शूर मन्यसे। विश्वानि पूरोरप पर्षि वह्निरासा वह्निनों अच्छ
हे उग्र इन्द्रदेव! अपने भक्त यजमान के विरुद्धाचारी को उग्र रक्षण कार्य रूप तेजो मय उपायों से विदीर्ण कर देते हैं। जैसे आप पहले हमारे पूर्वजों को मार्ग दिखाकर ले गये थे, वैसे हो हमें भी ले जायें। संसार आपको निष्पाप जानता है। हे इन्द्रदेव! आप संसार के पालन कर्ता होकर मनुष्यों के सारे पापों को दूर करते हुए हमारे समक्ष यज्ञ फल लाकर अनिष्टों का विनाश करें।[ऋग्वेद 1.129.5]
 हे उग्र कर्म वाले इन्द्रदेव! शत्रु के मिथ्याभिमान को भंग करो। अपने सुरक्षा साधनों से उचित मार्ग पर चलो। तुम पाप रहित हो, अग्रणी होकर मनुष्यों के पाप दूर करते हो। तुम हमारे निकट ठहरो।
अनिष्ट :: अवांछित, अशुभ, अहित, अमंगल; unwelcome, forbidden, undesirable.
Hey furious Indr Dev! You protect your worshiper and neutralise the person who act against your worshiper, with the help of energetic means. You guided our ancestors earlier and now show us the right path. Whole universe recognises you as free from sins. Hey Indr Dev! You nurture-support the entire universe, abolish the sins and bring-grant us the reward of our Yagy, vanishing the forbidden-unwelcome, bad omens.  
प्र तद्वोचेयं भव्यायेन्दवे हव्यो न य इषवान्मन्म रेजति रक्षोहा मन्म रेजति। स्वयं सो अस्मदा निदो वधैरजेत दुर्मतिम्। अव स्रवेदघशंसोऽवतरमव क्षुद्रमिव स्रवेत्
भव्य चन्द्र के लिए हम इस स्तोत्र को उच्चारित करते हैं। चन्द्र आग्रह के साथ हमारे कर्म के उद्देश्य से राक्षस विनाशी और बुलाने योग्य इन्द्रदेव की तरह आते हैं। वे स्वयं हमारे निन्दक व दुर्बुद्धि के वध का उपाय उद्भूत करके उसे दूर कर देंगे। अल्प जल के समान ही शत्रुओं का समूल नाश करें।[ऋग्वेद 1.129.6]
मैं सोम से विनती करुं जो इन्द्र को आमंत्रित करने योग्य श्लोक की प्रेरणा देते हैं। वह निदंक की कुमति को हमसे दूर करें। पाप का साधक नष्ट होकर गिरे।
We recite this Strotr for the glorious Chandr Dev-Moon. He comes to us on being stressed-invited, requested for killing demons like the always welcome Indr Dev. He will remove the wickedness, vices, foul thoughts in our mind. Let him vanish all enemies with the roots. 
Lasciviousness, imprudence, ego, wickedness, vices, foul thoughts, thinking of undesirable are our enemies. 
वनेम तद्धोत्रया चितन्त्या वनेम रयिं रयिवः सुवीर्यं रण्वं सन्तं सुवीर्यम्। दुर्मन्मानं सुमन्तुभिरेमिषा पृचीमहि। आ सत्याभिरिन्द्रं द्युम्नहूतिभिर्यजत्रं द्युम्नहूतिभिः
हे इन्द्रदेव! हम स्तोत्र द्वारा आपका गुण-कीर्तन करके आपको भजते हैं। हे धनवान् इन्द्रदेव! हम सामर्थ्यवान्, रमणीय, सदा वर्त्तमान और पुत्र भृत्यादि विशिष्ट धन का उपभोग कर, आपकी महिमा अज्ञेय महिमा का गुणगान करते हैं। हम उत्तम स्तोत्र और अन्न प्राप्त करते हुए यज्ञ निष्पादक इन्द्र देव को यज्ञाभिलाष फल देने वाले और यशोवर्द्धक आह्वान द्वारा प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.129.7]
अज्ञेय :: रहस्यपूर्ण, गूढ़, अज्ञानी, निर्बोध; enigmatic, nascent. 
हे इन्द्र! हम ध्यान से पराक्रम से युक्त रमणीय, रक्षा वाले धन को माँगते हैं। सुन्दर श्लोक और हवियों से हर्ष प्राप्त करते हैं। सत्य हार्दिक आह्वान करते हुए तुम्हें पूजते हैं। 
Hey Indr Dev! We pray to you with the help of Strotr, hymns. Hey rich Indr Dev! We praise you for being blessed with amenities-wealth, sons, servants, specific riches, provided by you. Let us attain Indr Dev with the help of excellent Strotr-hymns, who grant us the desired result-outcome of the Yagy conducted by us, boosting our glory.
Generally, the humans crave-desire for heavens, but that is not the Ultimate. We must crave for the Ultimate, the Almighty,.
Heaven is a place where we can enjoy sensualities, lasciviousness, sexuality alienating our self from the God. One has to come back to earth after having a temporary stay in the heaven. But once we are with the God no rebirth-reincarnation.
प्रप्रा वो अस्मे स्वयशोभिरूती परिवर्ग इन्द्रो दुर्मतीनां दरीमन्दुर्मतीनाम्। स्वयं सा रिषयध्यै या न उपेषे अत्रैः। हतेमसन्न वक्षति क्षिप्ता जूर्णिर्न वक्षति
हे ऋत्विको! आपके और हमारे लिए इन्द्र देव यशस्कर आश्रय दान द्वारा दुर्बुद्धि लोगों के विनाशक संग्राम में प्रवृद्ध हों और उन्हें विदीर्ण करें। हमारे भक्षक शत्रुओं ने हमारे विरुद्ध हमारे नाश के लिए जो वेगवती सेना भेजी थी, वह सेना स्वयं हत हो गई है, हमारे पास पहुँची भी नहीं, शत्रुओं के पास भी नहीं लौटी।[ऋग्वेद 1.129.8]
हे मनुष्यों! तुम्हारे और हमारे रक्षक इन्द्रदेव बुरी मति वालों को दूरस्थ करें। उन्हें चीर डाले। जो बर्धी हमारे लिए दैत्यों ने चलाई है, वह लौटकर उन्हीं को समाप्त करे।
Hey priests, hosts, humans! Let Indr Dev protect us by fighting the wicked and eliminate them. The army sent to us by our enemies could not reach us. It got killed (by Indr Dev. Marud Gan) and it did not return back.
त्वं न इन्द्र राया परीणसा याहि पथाँ अनेहसा पुरो याह्यरक्षसा। सचस्व नः पराक आ सचस्वास्तमीक आ। पाहि नो दूरादारादभिष्टिभिः सदा पाह्यभिष्टिभिः
हे इन्द्र देव! राक्षस शून्य और पाप रहित मार्ग से प्रचुर धन लेकर हमारे पास आवें। आप दूर देश और निकट से आकर हमारे साथ मिलें। आप दूर और निकट प्रदेश से, यज्ञ निर्वाह के लिए हमारी रक्षा करें। यज्ञ निर्वाह करके सदा हमें पालित करें।[ऋग्वेद 1.129.9]
हे इन्द्रदेव! तुम धन के लिए हमको ग्रहण होओ। तुम दूरस्थ हो तो भी हमारे संग रहो। दूर या पास जहाँ कहीं भी रहो हमारी सुरक्षा करो।
Hey Indr Dev! Let the demons free from sins, come to us with sufficient money from space. Whether far or near, you should be with us and protect us for the successful conduction of our Yagy. Support-nurture us for the Yagy.  
त्वं न इन्द्र राया तरूषसोग्रं चित्त्वा महिमा सक्षदवसे महे मित्रं नावसे। ओजिष्ठ त्रातरविता रथं कं चिदमर्त्य। अन्यमस्माद्रिरिषेः कं चिदद्रिवो रिरिक्षन्तं चिदद्रिवः
हे इन्द्र देव! जिस धन से हमारी विपत्तियों का नाश हो सकता है, उसी धन से हमारा उद्धार करें। आप उग्र रूप है। जैसी मित्र की महिमा है, हमारी रक्षा के लिए आपकी भी वैसी हो महिमा है। हे बलवत्तम, हमारे रक्षक, त्राता और अमर इन्द्रदेव! किसी भी रथ पर चढ़कर पधारें। शत्रुओं का नाश करने वाले इन्द्र देव हमें छोड़कर सभी को बाधा दें। शत्रुओं का वध करने वाले तथा जो कुकर्म में लगे हुए हैं, ऐसे शत्रुओं का नाश करें।[ऋग्वेद 1.129.10]
हे अत्यन्त बलिष्ठ, पालक, अमर इन्द्र! तुम हमको धन के साथ प्राप्त हो जाओ। 
Hey Indr Dev! Please rescue us with that money, which can remove-destroy all of our troubles. You are furious. You have the glory which a friend should possess for our safety. Hey strong, protector and immortal Indr Dev! Come riding any vehicle-charoite. Hey the slayer of the enemy, block everyone (trouble creators) except us. Kill those enemies who are engaged in sins, wickedness, vices.
पाहि न इन्द्र सुष्टुत स्त्रिघोऽवयाता सदमिद्दुर्मतीनां देवः सन्दुर्मतीनाम्। हन्ता पापस्य रक्षसस्त्राता विप्रस्य मावतः। अधा हि त्वा जनिता जीजनद्वसो रक्षोहणं त्वा जीजनद्वसो
हे शोभन स्तुति से युक्त इन्द्र देव! दुःख से हमें बचाओ; क्योंकि आप सदा दुष्टों को नीचा दिखाते हैं। हमारी स्तुति से प्रसन्न होकर यज्ञ विघ्नकारियों का दमन करें। आप पाप एवं राक्षसों के हन्ता और हमारे समान बुद्धिमानों के रक्षक हैं। हे जगन्निवास इन्द्रदेव! इसीलिए परमेश्वर ने आपको उत्पन्न किया क्योंकि राक्षसों के विनाश के लिए आपकी उत्पत्ति हुई है।[ऋग्वेद 1.129.11] 
पापियों का विनाश करने वाले असुरों के नाशक, स्तोताओं के रक्षक, पीड़ाओं से हमारी रक्षा करो। हे धनेष, वज्रिन! इसलिए तुम प्रकट हुए हो।
Hey Indr Dev! You are worshiped-prayed with the lovely Strotr. You dominate the wicked-vicious, so protect us from worries, pains, sorrow. Be happy with our prayers and repress those, who create trouble in the Yagy. You are the destroyer of the sin, the demons and protector of the intelligent-prudent. Hey supporter of the humans, the Almighty has created you for the destruction of the demons-giants.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (130) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अत्यष्टि, त्रिष्टुप्
एन्द्र याह्युप नः परावतो नायमच्छा विदथानीव सत्पतिरस्तं राजेव सत्पतिः। हवामहे त्वा वयं प्रयस्वन्तः सुते सचा। पुत्रासो न पितरं वाजसातये मंहिष्ठं वाजसातये
जिस प्रकार यज्ञशाला में ऋत्विकों के पति यजमान हैं और जैसे नक्षत्रों के पति चन्द्रमा अस्ताचल हो जाते हैं, वैसे ही आप भी पुरोवर्ती सोम की तरह स्वर्ग से हमारे पास पधारें। जैसे पुत्र लोग अन्न भक्षण के लिए पिता को बुलाते हैं, वैसे ही हम आपका सोमाभिषव के लिए आवाहन करते हैं। ऋत्विकों के साथ हव्य ग्रहण करने के लिए महान् इन्द्रदेव को हम यहाँ बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.130.1]
जैसे अग्नि अनुष्ठान को ग्रहण होती है, वैसे ही हे इन्द्रदेव! तुम दूरस्थ हो तो भी हमको ग्रहण होओ। हम सोम निचोड़कर शक्ति के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं। पुत्र द्वारा पिता को पुकारने के समान हम तुम्हें पुकारते हैं।
The way the leader of the Yagy, in the Yagy Shala (spot where Yagy is being held) of the Ritviz-priests is the host, the leader of the constellations Moon sets, the same way you should also come to us from the heaven. The way the sons call their father to accept food, we too invite to have Somras and the offerings.
पिबा सोममिन्द्र सुवानमद्रिभिः कोशेन सिक्तमवतं न वंसगस्तातृषाणो न वंसगः। मदाय हर्यताय ते तुविष्टमाय धायसे। आ त्वा यच्छन्तु हरितो न सूर्यमहा विश्वेव सूर्यम्
जैसे शोभन गति वृषभ पिपासित होकर कुएँ के जल के को पीता है, हे रमणीय गति इन्द्रदेव! वैसे ही तृप्ति, पराक्रम, महत्त्व और आनन्दोत्पत्ति के लिए प्रस्तर द्वारा अभिषुत और जलसिक्त अथवा दशापवित्र द्वारा शोधित सोमरस का आप पान करें। जैसे हरि नामक अश्व सूर्य को लाते हैं, वैसे ही आपके अश्वगण प्रतिदिन आपको लेकर आवें।[ऋग्वेद 1.130.2]
हे इन्द्रदेव! पत्थर से निचोड़े गये इस सोम का पान करो। यह तुम्हारी शक्ति, कांति और पुष्टि का वर्द्धक हो। तुम्हारे अश्व सूर्य के अश्वों के तुल्य यहाँ प्रस्थान करें।
The way a beautifully decorated ox-bull moving with attractive speed, moves to the well and drink water, the same  way, hey Indr Dev, you should come to us and drink the Somras, which has been extracted by crushing it with stones, treated with water and purified in ten ways. The way the horses named Hari of the Sun brings him, your horses should also bring you here.
अविन्दद्दिवो निहितं गुहा निधिं वेर्न गर्भं परिवीतमश्मन्यनन्ते अन्तरश्मनि। व्रजं वज्री गवामिव सिषासन्नङ्गिरस्तमः। अपावृणोदिष इन्द्रः परीवृता द्वार इषः परीवृताः
जैसे चिड़ियाँ दुर्गम स्थान में अपने बच्चों की रक्षा करके उन्हें प्राप्त करती है, वैसे ही इन्द्रदेव ने भी अत्यन्त गोपनीय स्थान में स्थापित और अनन्त तथा महान् प्रस्तर राशि में परिवेष्टित सोमरस को स्वर्ग से प्राप्त किया। अङ्गिरा लोगों ने अग्रगण्य वज्रधारी इन्द्रदेव को जिस प्रकार पहले, सोमपान की इच्छा से गोशाला को प्राप्त किया था, वैसे ही सोमरस को भी पाया। इन्द्र देव ने चारों ओर मेघावृत और अन्न विस्तारित किया।[ऋग्वेद 1.130.3]
अंगिराओं के प्रधान इन्द्र ने पावन की गुफा में छिपे हुए खजाने को ढूंढकर पाया। उन्होंने गाँओं के गोष्ठ के समान उसे खोल दिया।
The way the birds hide their chickens in very tough & secret places, Indr Dev too hide the Somras and then got it, in the heaven. The manner Angira clan-descendents welcomed Indr Dev in the cow shed, they got Somras in the cow shed. Indr Dev created clouds in all directions and spread the food grains (to grow). 
दाद्दहाणो वज्रमिन्द्रो गभस्त्योः क्षद्मेव तिग्ममसनाय से श्यदहिहत्याय सं श्यत्। संविव्यान ओजसा शवोभिरिन्द्र मज्मना। तष्टेव वृक्षं वनिनो नि वृश्चसि परश्चेव नि वृश्चसि
इन्द्रदेव दोनों हाथों में अच्छी तरह वज्र धारण करके, जैसे मंत्रों द्वारा जल को तीक्ष्ण किया जाता है, वैसे ही शत्रु के प्रति फेंकने के लिए वज्र के तीक्ष्ण होने पर भी उसे और भी तीक्ष्ण करते हैं, वृत्रासुर के विनाश के लिए अपने वज्र को और भी तीक्ष्ण करते हैं। हे इन्द्रदेव जैसे वृक्ष काटने वाले वृक्ष को काटते हैं, वैसे ही आप अपनी शक्ति, तेज और शारीरिक बल से वर्द्धित होकर हमारे शत्रुओं का वध करते हैं, मानो उन्हें कुल्हाड़ी से काटते हैं।[ऋग्वेद 1.130.4]
इन्द्र ने वज्र को खूब तेज किया। हे इन्द्र! तुम पराक्रम से युक्त होकर उस वृत्र को बढ़ई के समान काटते हो। 
Indr Dev sharpens the Vajr the way the Mantrs are made more effective with the help of water and sharpen it prior to striking it over Vrata Sur. Indr Dev kills the enemies the way a wood-tree cutter cuts the trees with his might and physical strength.
त्वं वृथा नद्य इन्द्र सर्तवेऽच्छा समुद्रमसृजो रथाँइव वाजयतो रथाँइव इत। ऊतीरयुञ्जत समानमर्थमक्षितम्। धेनूरिव मनवे विश्वदोहसो जनाय विश्वदोहसः
हे इन्द्रदेव! आपने समुद्र की ओर गमन करने के लिए रथ की तरह नदियों को अनायास बनाया। जैसे योद्धा रथ को बनाते हैं, वैसे ही आपने भी बनाया। जैसे मनु के लिए गायें सर्वार्थदाता है और जैसे समर्थ मनुष्य के लिए गायें सर्व दुग्धप्रद है, वैसे ही हमारी अभिमुखिनी नदियाँ एक ही प्रयोजन से जल एकत्रित करती है।[ऋग्वेद 1.130.5]
हे इन्द्रदेव! तुमने नदियों को समुद्र की ओर जाने के लिए रथों के तुल्य त्यागा है। इन नदियों के पतन न होने वाले धन का संपादन किया है, जैसे धेनु मनुष्यों को पुष्टि-प्रद धन प्रदान करती हैं।
Hey Indr Dev! You created the rivers negotiable, for moving towards the ocean just like the chariote, at random. The way warriors keep the chariote ready, you too prepare it. The way the cows provide every thing to Manu and the capable humans yielding milk, the rivers too have water.
The cows & the rivers are essential for civilisation.
इमां ते वाचं वसूयन्त आयवो रथं न धीरः स्वपा अतक्षिषुः सुम्नाय त्वामतक्षिषुः। शुम्भन्तो जेन्यं यथा वाजेषु विप्र वाजिनम। अत्यमिव शवसे सातय घना विश्वा धनानि सातये
जैसे कर्म कुशल और धीर मनुष्य रथ बनाता है, वैसे ही धनाभिलाषी मनुष्यों ने आपकी यह स्तुति की है। उन्होंने अपने कल्याण के लिए आपको प्रसन्न किया। जिस प्रकार संसार में दिग्विजयी की प्रशंसा की जाती है, वैसे ही हे मेधावी और दुर्द्धर्ष इन्द्रदेव! उन्होंने आपकी प्रशंसा की है। जैसे युद्ध में अश्व की प्रशंसा होती है, वैसे ही बल, धन रक्षण और मंगलों की प्राप्ति के लिए आपकी प्रशंसा होती है।[ऋग्वेद 1.130.6]
दुर्द्धर्ष :: जिसका दमन करना कठिन हो, जिसे जल्दी दबाया या वश में न किया जा सके, जिसे परास्त करना या हराना कठिन हो, प्रचंड,  प्रबल, धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम, रावण की सेना का एक राक्षस; one who can not be controlled-over powered, won.
दिग्विजयी :: The conqueror who has won-controlled territories world wide, conquest of territory in all directions, widespread fame. 
हे इन्द्रदेव! धन के इच्छुक प्राणियों ने तुम्हारे लिए श्लोकों की रचना की। उसी प्रकार जैसे कुशल कारीगर रथ बनाता है, वे तुम्हारा शृंगार करते हैं। तुम्हारे अश्वों को सजाते हैं। धन की प्राप्ति के लिए वह सब करते हैं।
The way a skilled artisan constructs a charoite with patience, the humans desiring money-riches have sung this prayer in your glory-honour. They have amused you for their welfare. The way a conqueror is praised-appreciated in the world, hey Indr Dev! You are praised an an intelligent and furious person who cannot be controlled-defeated, won, over powered. They way the horse is praised in the war, you are praised for protection of wealth, auspicious events & power-strength.
भिनत्पुरो नवतिमिन्द्र पूरवे दिवोदासाय महि दाशुषे नृतो वज्रेण दाशुषे नृतो। अतिथिग्वाय शम्बरं गिरेरुग्रो अवाभरत् महो धनानि दयमान् ओजसा विश्वा घनान्योजसा
युद्ध के समय नृत्यकर्ता इन्द्रदेव! आपने हविःप्रद और अभीष्टदाता दिवोदास राजा के लिए नब्बे नगरों को अपने वज्र से नष्ट किया। हे उग्र इन्द्रदेव! आपने अतिथि सेवक दिवोदास राजा के लिए पर्वत से शम्बर असुर को नीचे फेंक दिया और दिवोदास राजा को अपनी शक्ति से अपार धन प्रदान किया इतना ही नहीं उन्हें समस्त प्रकार के धन दिये।[ऋग्वेद 1.130.7]
हे इन्द्रदेव! तुमने पुरु और दिवोदास के लिए शत्रु के किलों को ध्वस्त किया। अपने तेज से अति विश्व को श्रेष्ठ धन प्रदान किया और शम्बर को पर्वत से गिरा दिया। 
Hey Indr Dev! You dance (kill the enemies) while fighting. You destroyed 90 cities with your Vajr, for the sake of king Divo Das, who used to make offerings, regularly. Hey furious Indr Dev! You threw Shambar, a demon from the mountains for protecting Divo Das and granted him immense wealth.  
इन्द्रः समत्सु यजमानमार्यं प्रावद्विश्वेषु शतमूतिराजिषु स्वमीळ्हेष्वाजिषु। मनवे शासदव्रतान्त्वचं कृष्णामरन्धयत्। दक्षन्न विश्वं ततृषाणमोषति न्यर्शसानमोषति
युद्ध में इन्द्रदेव आर्य यजमान की रक्षा करते हैं। असँख्य बार रक्षा करने वाले ये समस्त युद्धों में उसकी रक्षा करते हैं। ये मनुष्यों के लिए व्रत शून्य व्यक्तियों पर शासन करते हैं। इन्होंने कृष्ण नामक असुर की काली त्वचा उखाड़कर उसका वध किया और उसे जला डाला। इतना ही नहीं इन्होंने समस्त हिंसकों को जला डाला और समस्त निष्ठुर व्यक्तियों को भरभूत कर दिया।[ऋग्वेद 1.130.8]
निष्ठुर :: हृदयहीन, कठोर, दयाभाव से शून्य; vandal, Strict, feeling lees, heartless, ruthless, stonyhearted.
आर्य ::
सर्वदाभिगत: सद्भि: समुद्र इव सिन्धुभि:।
आर्य: सर्वसमश्चैव सदैव प्रियदर्शन:॥ 
जिस प्रकार नदियाँ समुद्र में पहुँचती हैं, उसी प्रकार उसके पास सदा सज्जनों का समागम रहता है। वे आर्य हैं, वे समदृष्टि हैं और सदा प्रिय दर्शन है।[बाल्मी.बाल. 1.16]
आर्य शब्द में उदारता, नम्रता, श्रेष्ठता, सरलता, साहस, पवित्रता, दया, निर्बल-संरक्षण, ज्ञान के लिए उत्सुकता, सामाजिक कर्तव्य-पालन आदि सब उत्तम गुणों का समावेश हो जाता है। मानवीय भाषा में इससे उत्तम और कोई शब्द नहीं है।
इन्द्रदेव ने आपने तपस्वी की अत्यन्त सुरक्षा की, व्रतहीनों को दण्ड दिया। वे दस्युओं और लालचियों को समाप्त करने वाले हैं।
Indr Dev protects the Ary in battle-war. He protected the Ary innumerable times in the battle field. He controls those who do not follow the tenants of Dharm-one who do not follow Dharm, Varnashram Dharm. He killed the demon called Krashn, having black skin by removing his skin. He burnt off those who were ruthless & violent. 
Just being Hindu or Sanatani does not mean that one is a Ary. 
सूरश्चक्रं प्र वृहज्जात ओजसा प्रपित्वे वाचमरुणो मुषायतीशान आ मुषायति। उशना यत्परावतोऽजगन्नूतये करे। सुम्नानि विश्वा मनुषेव तुर्वणिरहा विश्वेव तुर्वणिः
सूर्य देवता का रथ चक्र ग्रहण करने पर इन्द्र देव के शरीर में बल की वृद्धि हुई। इन्द्र देव ने उस चक्र को फेंका और अरुण वर्ण रूप धारित करके शत्रुओं के पास जाते ही उन्हें शान्त कर दिया। हे वीर कर्मा इन्द्रदेव! उशना की रक्षा के लिए जैसे आप दूरस्थित स्वर्ग से पधारे थे, वैसे ही हमारे समस्त सुख-साधन धन के साथ हमारे पास शीघ्र आवें। दूसरों के पास भी आप इसी प्रकार आते हैं, हमारे पास प्रतिदिन पधारें।[ऋग्वेद 1.130.9]
सूर्योदय होते ही प्रकाश पुंज बढ़ा, उसकी लाली ने पापियों की वाणी छीन ली। हे इन्द्र! तुम स्नेहवश दूर से रक्षा के लिए यहाँ आए। तुम जल्दी से सभी धनों को प्राप्त कराते हो। 
Indr Dev adopted the Rath Chakr-the elliptical path of Bhagwan Sury and had enormous energy in his body. He came out of the elliptical path and had the colour of the Sun-golden hue leading to silencing-neutralising (making them energy less-powerless) the enemy. He Indr Dev! Please come to us quickly, the way, you reached to protect Ushna from the heavens and grant us all sorts of amenities, comforts, luxuries. The way you visit the other Ritviz, hosts, priests, Purohits who conduct Yagy everyday, you come to us too, in this manner.
स नो नव्येभिर्वृषकर्मन्नुक्थैः पुरां दर्तः पायुभिः पाहि शग्मैः। दिवोदासेभिरिन्द्र स्तवानो वावृधीथा अहोभिरिव द्यौः
हे जल वर्षक और नगर विदारक इन्द्र देव! हमारे नये मन्त्र से संतुष्ट होकर विविध प्रकार की रक्षा और सुख देते हुए हमारा पालन करें। हम दिवोदास के गोत्रज हैं; आपकी हम स्तुति करते हैं। आप दिन में सूर्य की तरह हमारी स्तुति से प्रसन्न हो जावें।[ऋग्वेद 1.130.10]
शत्रु दुर्ग-भंजक इन्द्रदेव! तुम नये श्लोकों, अनुष्ठानों और सहायताओं से हमारी सुरक्षा करो। दिवोदास के वंशजों की वंदना से दिन से क्षितिज के वृद्धि करने के तुल्य मति को ग्रहण होओ।
Hey rain shower creator Indr Dev! You should be happy-satisfied with our new prayer-Mantr and protect us, granting all sorts of facilities. We belong to the Devi Das clan-dynasty and pray-worship you. You should become happy with us, with our prayer, like the Sun, who become happy with us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (131) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अत्यष्टि
इन्द्राय हि द्यौरसुरो अनम्नतेन्द्राय मही पृथिवी वरीमभिर्द्युम्नसाता वरीमभिः। इन्द्रं विश्वे सजोषसो देवासो दधिरे पुरः। इन्द्राय विश्वा सवनानि मानुषा रातानि सन्तु मानुषा
विशाल द्युलोक स्वयं इन्द्रदेव के पास नतमस्तक हुआ है। विस्तृता पृथ्वी वरणीय स्तुति द्वारा इन्द्र के पास नतमस्तक हुई। अन्न के लिए यजमान लोग वरणीय हव्य द्वारा नतमस्तक हुए। समस्त देवों ने एक मत से इन्द्रदेवता को अग्रणी माना। मनुष्यों के सारे यज्ञ और मनुष्यों के सारे दानादि इन्द्रदेव के सुख के निमित्त हों।[ऋग्वेद 1.131.1]
इन्द्रदेव के लिए क्षितिज नत हुआ, धरा झुक गई, यजमान अनेक अन्न के लिए झुका है। समस्त देवों ने संगठित होकर एक मत से इन्द्रदेव को अग्रगण्य बनाया। मनुष्यों द्वारा दी गई सोम परिपूर्ण आहुतियाँ इन्द्रदेव को ग्रहण हों।
Entire universe bowed before Indr Dev. Prathvi sung a prayer and bowed before Dev Raj Indr. The priests bowed before him for the sake of food grains-stuff, making offerings. All demigods-deities considered-accepted him as their leader. Let all Yagy, Hawans, Agni Hotr be meant for the demigods-deities. 
विश्वेषु हि त्वा सवनेषु तुञ्जते समानमेकं वृषमण्यवः पृथक् स्वः सनिष्यवः पृथक्। तं त्वा नावं न पर्षाणिं शूषस्य धुरि धीमहि। इन्द्रं न यज्ञैश्चितयन्त आयव: स्तोमेभिरिन्द्रमायवः
हे इन्द्रदेव! आपके पास अभिमत फल की प्राप्ति की आशा में प्रत्येक सवन में यजमान लोग आपको हव्य प्रदान करते हैं। आप सबके लिए एक तुल्य हैं। स्वर्ग प्राप्ति के लिए केवल आपको ही हव्य दिया जाता है। जैसे नदी पार होने के समय नौका खड़ी की जाती है, वैसे ही हम सेना के आगे आपको खड़ा करते हैं। यज्ञ व स्तुति द्वारा हम मनुष्यगण इन्द्रदेव को प्रसन्न करते हैं।
[ऋग्वेद 1.131.2]
सवन :: बलि, उपहार, अग्नि का एक नाम, वशिष्ठ के एक पुत्र का नाम, चंद्रमा, यज्ञ, सोमपान, यज्ञस्नान, सोनापाठा, श्योनाक वृक्ष, बच्चा जनना, प्रसव
भृगु के एक पुत्र का नाम; रोहित मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक ऋषि का नाम; स्वायंभुव मनु के एक पुत्र का नाम, सोमलता को निचोड़कर रस निकालना; offerings, gifts, a name of Agni-fire, Yagy, drinking Somras.
हे इन्द्र! सभी सोमयागों में यजमान सभी के प्रतिनिधि रूप तुम्हें हव्य देते हैं। नौका के समान पार लगाने वाले इन्द्र को यज्ञ द्वारा चैतन्य करते हुए सेना के सम्मुख स्थापित करते हैं। प्राणी श्लोकों द्वारा उसका ध्यान करते हैं।
Hey Indr Dev! People come to you all the time with the expectation of being rewarded-granting of desires, wishes, making offerings. You consider them at par-equal. People make offerings for you with the desire of attaining heaven. The way a boat is deployed to cross the river, we place you in front of the army. We the humans make you pleased with the help of Yagy and prayers-worship.
वि त्वा ततस्त्रे मिथुना अवस्यवो व्रजस्य साता गव्यस्य निःसृजः सक्षन्त इन्द्र निःसृजः। यद्गव्यन्ता द्वा जना स्वर्यन्ता समूहसि। आविष्करिक्रषणं सचाभुवं वज्रमिन्द्र सचाभुवम्
हे इन्द्रदेव! आपके सेवक और निष्पाप यजमान अपनी पत्नी के साथ आपकी तृप्ति के लिए, बहुसंख्यक गोधन की प्राप्ति के लिए बहुत हव्य दान करते हुए आपके उद्देश्य से यज्ञ विस्तारित करते हैं। वे गोधन चाहते हैं और स्वर्ग जाने के लिए उत्सुक है। आप उनको अभीष्ट प्रदान करें। क्योंकि आप अभीष्टवर्धक है। आपने अपने सहजन्मा और चिर-सहचर वज्र को प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.131.3]
हे इन्द्रदेव! सुरक्षा को चाहने वाले गृहस्थ अपनी भार्या युक्त धेनुओं की ग्रहणता के लिए तुम्हारे चारो ओर एकत्रित होते हैं। उनके अनुष्ठान आदि कार्यों से अभीष्ट फल ग्रहण होता है। तुमने अपने साथ रहने वाले वज्र को प्रकट किया है।
Hey Indr Dev! Your servants-followers and the sinless hosts-priests, conduct Yagy along with their wife with the desire of getting lots of cows and the heaven, making numerous offerings. You should grant them, what they desire (deserve) since, you are capable of granted boons. You have evolved Vajr, who is always with you & born with you. 
विदुष्टे अस्य वीर्यस्य पूरवः पुरो यदिन्द्र शारदीरवातिरः सासहानो अवातिरः। शासस्तमिन्द्र मर्त्यमयज्युं शवसस्पते। महीममुष्णाः पृथिवीमिमा अपो मन्दसान इमा अपः
हे इन्द्रदेव! मनुष्य आपकी महिमा जानते हैं। आपने जिन शत्रुओं की परिखा आदि से दृढ़ीकृत नगरियों को नष्ट कर उन्हें पराजित किया, वह कथा मनुष्य जानते हैं। हे दलपति इन्द्रदेव! आपने यज्ञ विघातक मनुष्य पर शासन किया तथा असुरों की विशाल पृथ्वी और जलराशि को सरलता से जीतकर अन्नादि को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.131.4]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारी शक्ति को प्राणी-जानते है। तुमने अयाज्ञिकों के गढ़ों को नष्ट किया है। तुमने उन शत्रुओं का दंड दिया है। तुमने विस्तृत धरती और जलों पर विजय प्राप्त की है।
Hey Indr Dev! Humans are aware of your glory. They know the story of the destruction of the cities-fortifications of the demons-enemies. Hey group leader Indr Dev! You ruled-tamed the humans who used to destroy Yagy and won the land & the oceans-captured occupied by the demons and gained food stuff-grains.
आदित्ते अस्य वीर्यस्य चर्किरन्मदेषु वृषन्नुशिजो यदाविथ सखीयतो यदाविथ। चकर्थ कारमेभ्यः पृतनासु प्रवन्तवे। ते अन्यामन्यां नद्यं सनिष्णत श्रवस्यन्तः सनिष्णत
हे इन्द्रदेव! सोमपान कर प्रसन्न होने पर मनोरथ पूर्ण करने वाले बनें। आप यजमानों व बन्धुता कामी यजमानों की रक्षा किया करते हैं, इसलिए वे आपकी वृद्धि के निमित्त अपने यज्ञों में बार-बार सोमरस प्रदान करते हैं। युद्ध सुख के भोग के लिए आपने सिंहनाद किया। यजमान लोग आपसे नाना प्रकार की भोग्य वस्तुएँ पाते हैं, विजय द्वारा प्राप्त अन्न की इच्छा करते हुए आपके पास आते हैं।[ऋग्वेद 1.131.5]
हे इन्द्र देव! सोम रस से आनन्द ग्रहण कर अभीष्ट फल देने वाले बनो, तपस्वियों के रक्षक बनो। आप यजमान के लिए तुम द्वन्द्रों में प्रवृत्त होते हो। समस्त प्राणी आपसे अन्न ग्रहणता की कामना करते हैं। 
Hey Indr Dev! Have Somras and be amused to fulfil the desires of the devotees. You protect the devotees, hosts, priests and those performing Yagy for your sake and hence they make offerings in their Yagy for your growth & glory, offering you Somras. You roared to enjoy the comforts gained in the war-battle. Those performing Yagy get numerous goods for comforts, enjoyment and they come to you for having the food stuff-grains after the victory.
उतो नो अस्या उषसो जुषेत ह्यर्कस्य बोधि हविषो हवीमभिः स्वर्षाता हवीमभिः। यदिन्द्र हन्तवे मृधो वृषा वज्रिञ्चिकेतसि। आ मे अस्य वेधसो नवीयसो मन्म श्रुधि नवीयसः
हे इन्द्रदेव! आप प्रातःकाल में आहुतियों को ग्रहण करने वाले व यज्ञादि कार्यों के समय उच्चारण होने वाली स्तुतियों को सुनें। हे इन्द्र देव! नये-नये रचित स्तोत्रों द्वारा स्तोताओं की इच्छाओं को आप जाने तथा उन कार्यों के प्रति सजग रहें, जो शत्रुओं का संहार करने वाले हैं। हे इन्द्रदेव! मैं मेधावी व असाधारण स्तुतिवाला हूँ, मेरा दिव्य स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.131.6]
हे इन्द्र देव! हमारे प्रातःकालीन यज्ञ में हमारी हवियाँ स्वीकार करो और हमारी प्रार्थनाओं पर ध्यान दो। हे वज्रिन! तुम शत्रुओं को मारने वाले हो। मुझ असाधारण बुद्धि वाले के सुन्दर श्लोक को सुनो।
Hey Indr Dev! Please accept the offerings made in the morning by us and listen to the Strotr, prayers sung in you glory-honour. Know the desires-wishes of those who pray to you with the help of newly written-composed prayers, be alert towards their deeds-endeavours which are meant for destroying the enemy. Hey Indr Dev! I am brilliant and composed of extra ordinary prayers, in your honour-glory. Listen to my divine compositions.
त्वं तमिन्द्र वावृधानो अस्मयुरमित्रयन्तं तुविजात मर्त्यं वज्रेण शूर मर्त्यम्। जहि यो नो अघायति शृणुष्व सुश्रवस्तमः। रिष्टं न यामन्नप भूतु दुर्मतिविश्वाप भूतु दुर्मतिः
अनेकानेक गुण विशिष्ट हे शूर इन्द्रदेव! आपने हमारी स्तुति से वृद्धि पाई है और हमारे प्रति संतुष्ट हुए। जो व्यक्ति हमारे प्रति शत्रुता का आचरण करता है और जो हमें दुःख पहुँचाता है, उसे वज्र द्वारा नष्ट करें। हे श्रवण के लिए उत्कण्ठित इन्द्रदेव! मार्ग में थके-माँदै व्यक्ति को दुर्बुद्धि मनुष्य कष्ट पहुँचाते हैं, ऐसे सभी दुर्मति मनुष्य हमारे पास से दूर हो जावें।[ऋग्वेद 1.131.7]
हे इन्द्रदेव! तुम हमारी सुरक्षा के लिए वृद्धि करते हुए उन लोगों का शोषण करो जो हमको कष्टमय करता है। हे पराक्रमी! तुम्हारे वज्र की मार से दुष्टमति वाले पीड़ित दूर भाग जायें।
Hey possessor of numerous abilities-characterises, brave Indr Dev! You progressed with our prayers and got satisfied with our prayers. One who has anonymity with us and who pains-tortures us, be relinquished by your Vajr.  Hey Indr Dev! You are eager to listen to our requests-prayers. Those depraved, who inflict injuries, pain to the tired persons be repelled away from us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (132) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप, गायत्री, धृति, अत्यष्टि।
त्वया वयं मघवन्पूर्व्ये धन इन्द्रत्वोताः सासह्याम पृतन्यतो वनुयाम वनुष्यतः। नेदिष्ठे अस्मिन्नहन्यधि वोचा नु सुन्वते। अस्मिन्यज्ञे वि चयेमा भरे कृतं वाजयन्तो भरे कृतम्
हे सुख संयुक्त इन्द्रदेव! आपके द्वारा रक्षित होकर हम हिंसक प्रवृत्ति वाले शत्रुओं को परास्त करेंगे। आप हिंसा करने वाले दुष्टों का वध करें। इन समीपस्थ दिवसों में आप अपने साधकों को प्रेरित करें। उत्तम कर्मों के लिए संघर्ष करने वाले हम याजकगण इस यज्ञ में आपका वरण करते हैं। हम शक्ति से युक्त होकर युद्ध नेतृत्व की योग्यता में दक्ष हो।[ऋग्वेद 1.132.1]
हे इन्द्रदेव! हम तुम्हारी सुरक्षा साधनों से सम्पन्न होकर शत्रुओं को पराजित करें। उनको अधिक कष्ट दें। सोम निष्पन्न कर्त्ता को उत्साहित करो जिससे हम द्वन्द्व में अपार धनों को जीतें। इन्द्रदेव ने प्रातः जागकर आह्वान करने वाले यजमान के लिए प्रकट शत्रुओं का नाश किया है।
Hey Indr Dev, you are associated with comforts (sensual pleasure, passions)! Under your protection-shelter, we will be able to defeat those who are violent. You should destroy-kill the wicked, villains, sinners, depraved who resort to violence. You should inspire your devotees for performing virtuous deeds. We the devotees, accept you as a deity for conducting the Yagy. We should be strengthened and trained in leadership qualities in the war-battle.
स्वर्जेषे भर आप्रस्य वक्मन्युषर्बुधः स्वस्मिन्नञ्जसि क्राणस्य स्वस्मिन्नञ्जसि अहन्निन्द्रो यथा विदे शीर्ष्णाशीर्ष्णोपवाच्यः। अस्मत्रा ते सध्रय्क्सन्तु रातयो भद्रा भद्रस्य रातयः
शत्रु वध के लिए इधर-उधर दौड़ने वाले वीर पुरुषों के स्वर्ग साधन तथा कपटादि रहित मार्ग स्वरूप संग्राम के आगे इन्द्र देवता प्रातः काल में जागृत हुए याज्ञिकों के शत्रुओं का विनाश करते हैं। सर्वज्ञ की तरह इन्द्र देवता की मस्तक झुकाकर स्तुति करना हम सबका कर्त्तव्य है। हे इन्द्र देव! आपका दिया हुआ धन हमारे लिए ही स्थिर हैं।[ऋग्वेद 1.132.2]
इन्द्र  देव ने प्रातः जागकर आह्वान करने वाले यजमान के प्रकट शत्रुओं का नाश किया। है उस इन्द्र को सर्वज्ञ मानकर प्रार्थना करो। हे इन्द्र! तुम्हारा प्रदान किया ऐश्वर्य हमारा कल्याण करे। 
 Indr Dev vanish the enemies of the hosts-priests, who get up in the morning. Indr Dev grant heaven to the brave, who chase the enemies. We should bow before Indr Dev, considering him as enlightened, all knowing. Hey Indr Dev! The wealth granted to us by you be stable with us.
तत्तु प्रयः प्रत्नथा ते शुशुक्वनं यस्मिन्यज्ञे वारमकृण्वत क्षयमृतस्य वारसि क्षयम्वि। तद्वोचेरध द्वितान्तः पश्यन्ति रश्मिभिः। स घा विदे अन्विन्द्रो गवेषणो बन्युक्षिद्धयो गवेषणः
हे इन्द्रदेव! जिस यश को आपने प्रतिष्ठित स्थान बनाया है, वहाँ पूर्ववत् ही लाभ के लिए तेजस्वी अन्न उपलब्ध है। सत्य की महिमा से सुशोभित उस स्थान पर पहुँचाने वाले आप उसी सत्य मार्ग को हमें दिखायें। सूर्य रश्मियों से सभी लोग दोनों लोकों के मध्य में स्थित मेघरूप में आपके ही दर्शन होते हैं। आप ही गौओं के प्रदाता होने के साथ सत्यधाम के ज्ञाता है और यजमानों को गौ प्रदान करने वाले हैं, ऐसा सर्वप्रसिद्ध है।[ऋग्वेद 1.132.3]
ये पुष्टिकारक हविया तुम्हारे लिए हैं। तुम्हारे पितरों ने यज्ञ द्वारा काया क्षय को पराक्रम से रोक दिया। वे इन्द्र यजमानों के लिए गौओं के देने की कामना वाले माने गये हैं।
Hey Indr Dev! Energetic food stuff be available at those places which have been glorified by you. Show us the way leading to truth-glorified for truth. You are visible between the two abodes (heaven & the earth) in the form of clouds. You grant-provide us cows and aware of the abode of truth. You are famous for giving cows to the priests-hosts.
नू इत्था ते पूर्वथा च प्रवाच्यं यदङ्गिरोभ्योऽवृणोरप व्रजमिन्द्र शिक्षन्त्रप व्रजम्। ऐभ्यः समान्या दिशास्मभ्यं जेषि योत्सि च। सुन्वद्ध्यो रन्धया कं चिदव्रतं हृणायन्तं चिदव्रतम्
हे इन्द्र देव! पूर्वकाल की तरह आपका कर्म इस समय भी सबकी प्रशंसा के योग्य है। आपने अङ्गिरा लोगों के लिए वर्षा कर उनकी अपहृत गौओं को जीतकर कर उन्हें ले जाने का मार्ग दिखाया। उसी प्रकार ही आप हमारे लिए भी ऐश्वर्यों को जीतकर प्रदत्त करें। आपने यज्ञ का विरोध करने वाले व क्रोधित होकर पापकर्म करने वालों को यज्ञादि श्रेष्ठ कर्म करने वाले के हित के लिए विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.132.4]
हे इन्द्रदेव! पिछले के समान तुम्हारे वर्तमान पराक्रम का भी कीर्तिगान करना चाहिये। तुमने अंगिराओं को धेनु जीत कर दी। तुम द्वन्द्व में विजय प्राप्त कराने वाले होओ। अनुष्ठान विरोधियों को सोम निष्पन्न कर्त्ता के आधीन करो।
Hey Indr Dev! Your deeds are appreciable-commanding like the previous ones. You showered-rains for the Angiras, won back their abducted cows and showed them the way to reach their destination. Similarly, you should win amenities-comforts for us. You destroyed those who opposed Yagy and the ones who indulged in sinful acts on being angry, for the welfare of those, who were engaged in pious, virtuous, righteous deeds, acts, endeavours.
सं यञ्जनान् क्रतुभिः शूर ईक्षयद्धने हिते तरुषन्त श्रवस्यवः प्र यक्षन्त श्रवस्यवः। तस्मा आयुः प्रजावदिद्वाधे अर्चन्त्योजसा। इन्द्र ओक्यं दिधिषन्त धीतयो देवाँ अच्छा न धीतयः
हे शूर इन्द्रदेव! कर्म द्वारा मनुष्यों के विषय में आप यथार्थ विचार करते हैं, इसलिए अन्नाभिलाषी यजमानगण अभिमत धन प्राप्त करके शत्रुओं का विनाश करते हैं। वे अन्नाभिलाषी होकर विशेष रूप से यज्ञ करते हैं। आपके उद्देश्य से प्रदत्त अन्न पुत्रादि प्राप्ति का कारण है। अपनी शक्ति से शत्रुओं के निवारण के लिए लोग आपकी पूजा करते हैं। यज्ञ करने वाले लोग आपके पास ही निवास स्थान प्राप्त करते हैं, जिस प्रकार से याज्ञिकगण देवों के पास ही रहते हैं।[ऋग्वेद 1.132.5]
इन्द्रदेव प्राणियों को विवेक बुद्धि देते हैं। यज्ञ की कामना से शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं। यजमान यज्ञ करते हुए तुमसे सम्पत्ति माँगते हैं। उनके श्लोक सभी देवगणों को लक्ष्य करते हुए इन्द्र में ही फैल जाते हैं।
Hey brave Indr Dev! You consider & analyse the deeds of the humans, grant them desired money & food stuff and they destroy their enemies. They perform-organise Yagy with the desire of food grains, sons etc. They pray-worship you, so that they can destroy their enemies. Those perform Yagy to get their abode near you, the way Ritviz reside by the side of the demigods-deities.
युवं तमिन्द्रापर्वता पुरोयुधा यो नः पृतन्यादप तंतमिद्धतं वज्रेण तंतमिद्धतम्। दूरे चत्ताय च्छंत्सद्गहनं यदिनक्षत्। अस्माकं शत्रून्परि शूर विश्वतो दर्मा दर्षीष्ट विश्वतः
हे पर्वत और इन्द्रदेव! आप दोनों अग्र गामी होकर जो शत्रु हमारे विरोध में सेना एकत्रित करते हैं, उन सबको विनष्ट करें। वज्र प्रहार द्वारा उन सबको विनष्ट करें। यह वज्र अत्यन्त दूरगामी शत्रुओं का भी विनाश करने में सक्षम और अति गहन स्थान पर भी व्याप्त होता है। हे शूर इन्द्रदेव! आप हमारे समस्त शत्रुओं को त्रिविध उपायों द्वारा विदीर्ण करते हैं। आपका शत्रु विदारक वज्र विविध उपायों से शत्रुओं को विदीर्ण करता है।[ऋग्वेद 1.132.6]
हे इन्द्र! हमसे युद्ध करने की इच्छा करने वालों को तुम आगे बढ़कर हटाओ। तुम्हारा वज्र दूर से ही शत्रुओं को नष्ट करने में सक्षम है। हे इन्द्रदेव! शत्रुओं को सभी ओर से चीर डालो।
Hey Indr Dev & the mountains! You should be present in the front row of the army, to destroy the enemy armies gathered against us. Destroy them by striking Vajr over them. The Vajr is capable of locating & destroying distant enemies and is capable of striking at unreachable-secret places. Hey brave Indr Dev! You destroy our enemies in three ways. Your Vajr is capable of destroying-eliminating the enemy by different methods-ways. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (133) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप, गायत्री, धृति, अत्यष्टि।
उभे पुनामि रोदसी ऋतेन द्रुहो दहामि सं महीरनिन्द्राः। 
अभिव्लग्य यत्र हता अमित्रा वैहस्थानं परि तृळ्हा अशेरन्
हम इन्द्र देवता का विरोध और द्रोह करने वालों का हनन करते हैं, जो यज्ञ की शक्ति से दोनों लोकों को पवित्र बनाते हैं। जहाँ बहुत सँख्या में भी शत्रुओं का वध होता है, वहाँ मृत शरीरों से रणभूमि श्मशान से भी अत्यधिक भयंकर लगती है।[ऋग्वेद 1.133.1]
मैं क्षितिज और पृथ्वी को अनुष्ठान द्वारा शुद्ध करता हूँ। इन्द्रदेव के विद्रोहियों और उनकी धरा को जलाता हूँ। उस स्थान पर शत्रु द्वारा मारे गये और खड्डों में डाल दिये गये।
We eliminate-kill, destroy those who opposes or revolt against Indr Dev who purify the two abodes (earth & the heaven) with his might. The war-battle field where enemy is killed in large numbers; looks even more furious-dangerous than the cremation ground.
अभिव्लग्या चिदद्रिवः शीर्षा याआपतीनाम्। 
छिन्धि वटूरिणा पदा महावटूरिणा पदा
हे शत्रु भक्षक इन्द्रदेव! शत्रुओं की सेना के सिर आप अपने वाहन ऐरावत हाथी के पैरों से कुचल दें क्योंकि उसके पैर अत्यधिक विस्तीर्ण हैं।[ऋग्वेद 1.133.2]
हे वज्रिन! शत्रु सेनाओं को हाथी के पैरों से कुचल डालो।
Hey destroyer of the enemy, Indr Dev! Crush the heads of the enemy army with the feet of Eravat (your divine elephant), since his feet are too broad.  
अवासां मघवञ्जहि शर्धो याआपतीनाम्। 
वैहस्थानके अर्मक महावैलस्थे अर्मके
हे मघवन् इन्द्रदेव! इस हिंसावती सेना का बल आप नष्ट कर उसे महान् श्मशान में फेंक दें।[ऋग्वेद 1.133.3]
मघवन् :: देवराज इन्द्र, 12 जैन चक्रवर्ती सम्राटों में से एक, एक उल्लू, शची-देवराज इन्द्र की पत्नी।
हे इन्द्रदेव! उनकी शक्ति का पतन करो और कुचलकर गहरे खड्डे में डाल दो।
Hey Indr Dev! Destroy this violent army and throw it in the vast-great cremation ground.
यासां तिस्रः पञ्चाशतोऽभिव्लङ्गैरैपावपः। 
तत्सु ते मनायति तकत्सु ते मनायति
हे इन्द्रदेव! इस प्रकार आपने त्रिगुणित पचास सेनाओं का विनाश किया। आपके इस कार्य को लोग अत्यधिक प्रशंसा करते हैं, किन्तु आपके लिए तो यह कार्य अत्यन्त सामान्य है।[ऋग्वेद 1.133.4]
हे इन्द्रदेव! तुमने उनकी तीन गुना सेनाओं को नष्ट कर डाला, तुम्हारा यह कार्य श्रेष्ठतम है। तुम्हारे लिए यह काम बहुत छोटा है।
Hey Indr Dev! You vanished fifty armies with triple strength of the enemies. Your efforts are lauded-appreciated by the humans open heartedly, but this a small-ordinary thing for you.
पिशङ्गभृष्टिमम्भृणं पिशाचिमिन्द्र सं मृण। 
सर्वं रक्षो नि बर्हय
हे इन्द्रदेव! कुछ रक्तवर्ण, अति भयंकर और शब्दकारी असुरों को नष्ट करते हुए समस्त अनार्यों का अन्त कर दें।[ऋग्वेद 1.133.5]
हे इन्द्रदेव! क्रोध से लाल हुए उन तुच्छ असुरों का सर्वनाश करो। सभी दानवों को समाप्त कर दो।
Hey Indr Dev! Vanish all the slightly red coloured, very dangerous and loud sound making demons & the wretched-Anary.
अवर्मह इन्द्र दादृहि श्रुधी नः शुशोच हि द्यौः क्षा न भीषाँ अद्रिवो घृणान्न भीषाँ अद्रिवः शुष्मिन्तमो हि शुष्मिभिर्वधैरुग्रेभिरीयसे। अपूरुषघ्नो अप्रतीत शूर सत्वभिस्त्रिसप्तैः शूर सत्वभिः
हे इन्द्र देव! आप हमारी प्रार्थना पर भयंकर राक्षसों की सामर्थ्य शक्ति को क्षीण करके उनका अन्त करें। दिव्यलोक भी पृथ्वी पर हो रहे अत्याचारों से शोकातुर हो गया है। हे वज्रधारी इन्द्रदेव! जिस अग्नि से सभी वस्तुएँ भस्म हो जाती हैं, उसी प्रकार से आपके भय से शत्रु भी दुःखित हो जाते हैं। बलवान सेना को सुदृढ़ शस्त्रबल द्वारा सुसज्जित करके आप शत्रुओं के पास जाते हैं। क्योंकि आप अपने शूरवीरों की रक्षा करने में तत्पर रहते हैं। हे शूरवीर इन्द्रदेव! आप विशाल सैन्य शक्ति के साथ रणक्षेत्र में पधारते हैं।[ऋग्वेद 1.133.6]
हे वज्रिन! तुम उन भयंकर असुरों को विदीर्ण करो। हमारी वंदना सुनो। दिप्तीमान अग्नि से डर कर जिस प्रकार कोई शोक प्रकट करे, उसी प्रकार तुम्हारे डर से सभी शत्रु शोक प्रकट करें। तुम शत्रुओं से द्वन्द्व करने को जाते हो। तुम पराक्रमी किसी से पराजित होने वाले तथा यजमानों को पीड़ित नहीं होने देते हो।
 Hey Indr Dev! Please remove the strength-power of the demons and kill them, taking notice of our prayers-requests. The divine abodes too are worried because of the tortures meted out to the inhabitants of the earth by the Anary. Hey Vajr yielding Indr Dev! The fire which destroy every thing causes fear amongest the enemies as well. You attack the enemies by properly managing the mighty armed forces, since you are ready to protect the brave. Hey brave Indr Dev! You reach the battle field with larger armies.
Humans like Muchukund Ji, king Dashrath were always willing to help the demigods against the demons, giants, Anary. Both of them led the demigods-deities to victory over the demons. 
Anary (Mallechchh, the inhabitants of the Arab world had always been troublesome for the civilised, disciplined, cultured) like today. 
वनोति हि सुन्वन्क्षयं परीणसः सुन्वानो हि ष्मा यजत्यव द्विषो देवानामव द्विषः सुन्वान इत्सिषासति सहस्खा वाज्यवृतः। सुन्वानायेन्द्रो ददात्याभुवं रयिं ददात्याभुवं रयिं ददात्याभुवम्
हे इन्द्रदेव! अभिषव करने वाला यजमान गृह प्राप्त करता है। सोमयज्ञ करने वाला चारों ओर के शत्रुओं का विनाश करता है। देवताओं के शत्रुओं का भी विनाश करता है। मुक्त इन्द्रदेव यजमानों को हजारों प्रकार के धन प्रदत्त कर उन्हें वैभव प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.133.7]
सोम निष्पन्नकर्त्ता यजमान, गृह स्वामी देवगणों के शत्रुओं को भगाता है और अजेय होकर सहस्त्रों धनों की कामना करता है। इंद्र उसे अधिक धन देते हैं।
Hey Indr Dev! The host who takes bath (prior to Yagy, prayers, worship, rituals) gets a house. One who conducts Som Yagy eliminates the enemies all around, in addition to the detractors-enemies of the demigods-deities. Indr Dev freely grant amenities, comforts. luxuries to the hosts & the priest performing prayers-Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (165) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्रादि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
कया शुभा सवयसः सनीळाः समान्या मरुतः सं मिमिक्षुः। 
कया मती कुत एतास एतेऽर्चन्ति शुष्मं वृषणो वसूया
समान वयस्क और एक स्थान निवासी मरुद्गण सर्वसाधारण की दुर्जेय शोभा से युक्त होकर पृथ्वी पर सिञ्चन करते हैं। मन में क्या सोचकर वे किस देश से आये हैं? आकर जल वर्षीय गण धन लाभ की कामना से क्या बल की अर्चना करते है?[ऋग्वेद 1.165.1]
इन्द्र समव्यस्क और बराबर स्थान वाले मरुद्गण तुल्य शोभा से परिपूर्ण हैं। ये किस मत में, किस देश से पधारे हैं? क्या वे पराक्रमी धन लाभ की कामना से शक्ति की अर्चना करते हैं।
Marud Gan of the same age, live together at one place (in Marut Lok) and cause rains-showers to nurse the earth. Where have they come from with plans & programmes? Do they want to have wealth-riches & strength 
कस्य ब्रह्माणि जुजुषुर्युवानः को अध्वरे मरुत आ ववर्त। 
श्येनाँइव ध्रजतो अन्तरिक्षे केन महा मनसा रीरमाम
तरुण वयस्क मरुद्गण किसका हव्य ग्रहण करते हैं? वे अन्तरिक्षचारी श्येन पक्षी की तरह है। यज्ञ से उन्हें कौन हटा सकता है? किस प्रकार के महास्तोत्रों द्वारा हम उन्हें आनन्दित करें?[ऋग्वेद 1.165.2]
तरुण मरुद्गण किसकी हवियाँ प्राप्त करते हैं? उनको यज्ञ में कौन हटा सकता है? अंतरिक्ष में भ्रमण करने वाले बाज पक्षी के तुल्य इन मरुतों को किस महान श्लोक से पूजन करें।
How do the young Marud Gan accept the offerings? They are like the Shyen bird flying in the sky. Who can replace in the Yagy? With which Strotr-hymns we please them-make them happy?
कुतस्त्वमिन्द्र माहिनः सन्नेको यासि सत्पते किं त इत्था। 
सं पृच्छसे समराणः शुभानैर्वोचेस्तन्नो हरिवो यत्ते अस्मे 
हे साधु पालक और पूज्य इन्द्रेव! आप अकेले कहाँ जा रहे हैं? आप क्या ऐसे ही हैं? हमारे साथ मिलकर आपने ठीक ही पूछा है। हे हरि वाहन! हमारे लिए जो वक्तव्य है, वह मीठे वचनों से कहें।[ऋग्वेद 1.165.3]
हे श्रेष्ठ कर्मवालों का पालन करने वाले इन्द्र! तुम स्वयं कहाँ जाते हो? तुम्हारा अभिष्ट क्या है? हे शोभनीय! तुम सबकी बात पूछते हो, हमसे जो कहना चाहो, कहो।
Hey virtuous, pious, righteous people's supporter Indr Dev! Where are going alone? What is your aim-goal, target? You should guide us-tell us what to do.
ब्रह्माणि मे मतयः शं सुतासः शुष्म इयर्ति प्रभृतो मे अद्रिः। 
आ शासते प्रति हर्यन्त्युक्थेमा हरी वहतस्ता नो अच्छ
समस्त हव्य मेरा है, सभी स्तुतियाँ मेरे लिए सुखकर है, प्रस्तुत सोमरस मेरा है। मेरा दृढ़ वज्र शत्रुओं पर फेंके जाने पर व्यर्थ नहीं होता। यजमान लोग मेरी ही प्रार्थना करते हैं, स्तुतियाँ मेरी प्रशंसा करती हुई मेरी ओर आती हैं। ये हरि नाम के दोनों घोड़े हव्य लाभ के लिए मेरा ही वहन करते हैं। ऐसा इन्द्रदेव का कथन है।[ऋग्वेद 1.165.4]
इन्द्र :- ये वंदनायें और निष्पक्ष सोम मुझे सुख प्रदान करते हैं। मेरा दृढ़ वज्र शत्रुओं पर व्यर्थ नहीं जाता। मनुष्य मेरी अर्चना करते और उनके श्लोक मुझे ग्रहण होते ये दोनों घोड़े मुझे ले जाते हैं।
Dev Raj Indr says that the entire offerings belong to me, all prayers-wishes gives pleasure to me. Som Ras is offered to me is mine. Thunder volt targeted by me over the enemy never mis the target. The hosts-priests pray to me. Prayers, Strotr come to me praying me. These two horses named Hari, carry the offerings made to me. 
अतो वयमन्तमेभिर्युजानाः स्वक्षत्रेभिस्तन्वः शुम्भमानाः। 
महोभिरेताँ उप युज्महे न्विन्द्र स्वधामनु हि नो बभूथ
हे इन्द्रदेव! हम महातेज से अपने शरीर को अलंकृत करके, निकटवर्ती और बली अश्वों से युक्त होकर यज्ञस्थान में जाने के लिए शीघ्र ही तैयार हुए हैं। आप बल के संग हमारे साथ ही रहें।[ऋग्वेद 1.165.5]
मरुद्गण :- हे इन्द्र! समीप रहने वालों के समान हम अपनी शक्ति से शरीरों को ससज्जित करते हैं। अपने पराक्रम से इन घोड़ों को रथ में जोतते हैं। तुम हमारे स्वभाव को जानते हो।
Marud Gan said, "We have contained extreme aura-radiance in our body, to move to the nearest place of Yagy, readied the horses with valour. You are aware of our might".
क स्या वो मरुतः स्वधासीद्यन्मामेकं समधत्ताहिहत्ये।
अहं ह्युग्रस्तविषस्तुविष्मा न्विश्वस्य शत्रोरनमं वधस्नैः
हे मरुद्गणों! आपका वह बल कहाँ था, जिसे आपने वृत्रासुर के वध के समय अकेले मुझ में स्थापित किया था? मैं (इन्द्र) स्वयं ही शक्तिशाली, बलवान् और शूरवीर हूँ, मैंने अपने वद्र द्वारा कठोर से कठोर शत्रुओं को भी झुकने के लिए बाध्य कर दिया।[ऋग्वेद 1.165.6]
इन्द्र :- हे मरुद्गण! वृत्र वध के कार्य में तुमने मुझे अकेले ही लगाया। तब तुम्हारा पूर्वत स्वभाव कहाँ था? मैं विकराल बलिष्ठ और दुर्जय हूँ। मैंने अपने शत्रुओं पर वज्र से विजय प्राप्त कर ली।
Hey Marud Gan! You empowered me with your power & might when I killed Vrata Sur. I posses power, strength & valour. I have to defeat the worst possible enemies with my Thunder Volt.
भूरि चकर्थ युज्येभिरस्मे समानेभिर्वृषभ पौंस्येभिः। 
भूरीणि हि कृणवामा शविष्ठेन्द्र क्रत्वा मरुतो यद्वशाम॥
हे अभीष्ट वर्षी इन्द्रदेव! हम एक तुल्य पौरुषवाले हैं। हमारे साथ मिलकर आपने बहुत कुछ किया है। हे बलवत्तम इन्द्रदेव! हमने भी बहुत कार्य किये हैं। हम मरुत हैं, इसलिए कार्य द्वारा हम वर्षा आदि की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 1.165.7]
मरुद :- हे वीर! तुमने हमारे सहित मिलकर बहुत वीर कर्म किया है। हे महाबली इन्द्र! हम मरुद्गण भी अपने मनोबल से जो चाहें कर सकते हैं।
Hey boons-accomplishment granting Indr Dev! We possess same level of valour-might. We have accomplished several feats-deeds together. Hey mighty Indr Dev! We too accomplished many feats. We are Marud Gan, hence we desire for rain showers.
वधीं वृत्रं मरुत इन्द्रियेण स्वेन भामेन तविषो बभूवान्। 
अहमेता मनवे विश्वश्चन्द्राः सुगा अपश्चकर वज्रबाहुः
हे मरुतो! मैंने क्रोध के समय विशाल पराक्रमी बनकर अपने बाहुबल से वृत्रासुर को पराजित किया। मैं वज्रबाहु हूँ। मैं मनुष्यों के लिए व सबकी प्रसन्नता के लिए सुन्दर वर्षा किया करता हूँ।[ऋग्वेद 1.165.8]
इन्द्र :- हे मरुतो! मैंने अपने क्रोध से, पराक्रम से वृत्र का वध किया। मैंने ही वज्र धारण कर, प्राणियों के लिए जल-वर्षा की।
Hey Marud Gan! I turned into a great warrior due to anger and defeated Vrata Sur with my muscle power. I am Vajr Bahu (one who's arms made of thunder volt). I shower rains for the appeasement of humans and all others.
अनुत्तमा ते मघवन्नकिर्नु न त्वावँ अस्ति देवता विदानः। 
न जायमानो नशते न जातो यानि करिष्या कृणुहि प्रवृद्ध॥
हे इन्द्रदेव! आपका सभी कर्म उत्तम है। आपके समान कोई देवता विद्वान् नहीं है। हे अतीव बलशाली इन्द्रदेव! आपने जो कर्त्तव्य कर्मों को किया हैं, उन्हें न तो कोई पहले कर सका, न आगे कर सकेगा।[ऋग्वेद 1.165.9]
मरुद :- हे समृद्धि शालिन! हे इन्द्रदेव! तुमसे बढ़कर कोई धनवान नहीं है। तुम्हारे तुल्य कोई विख्यात देव नहीं है। तुम्हारे कार्यों की समानता न कोई पूर्व में कर सका और न ही अब कर सकता है।
Hey Indr Dev! All your deeds-functions are superb-excellent. None of the demigods-deities matches you, in terms of knowledge-enlightenment. Hey extremely powerful Indr Dev! The deeds accomplished by you are unmatched and none will be able to achieve that in future.
एकस्य चिन्मे विभ्वस्त्वोजो या नु दधृष्वान्कृणवै मनीषा। 
अहं ह्युग्रो मरुतो यानि च्यवमिन्द्र इदीश एषाम्
मैं अकेला हूँ। मेरा ही बल सर्वत्र व्याप्त है; मैं जो चाहूँ, तत्काल कर सकता हूँ; क्योंकि हे मरुतो! मैं उग्र और विद्वान् हूँ एवं जिन धनों का मुझे पता है, उनका मैं ही स्वामी हूँ।[ऋग्वेद 1.165.10]
इन्द्र :- हे मरुद गण! एक मेरा बल ही फैला हुआ रहता है। मैं अत्यन्त बुद्धिमान और प्रसिद्ध उग्रकर्मा हूँ। मैं जो चाहूँ वही करने में सक्षम हूँ, जो धन संसार में है, उसका मैं दाता हूँ।
I am alone. My power pervades all around and I am capable of doing the desired immediately-at once. Hey Marud Gan! I am furious and enlightened. I am the master of entire wealth known to me. 
अमन्दन्मा मरुतः स्तोमो अत्र यन्मे नरः श्रुत्यं ब्रह्म चक्र। 
इन्द्राय वृष्णे सुमखाय मह्यं सख्ये सखायस्तन्वे तनूभिः
हे मरुतो! इस सम्बन्ध में आपने मेरा जो प्रसिद्ध स्तोत्र किया है, वह मुझे आनन्दित करता है। मैं अभीष्ट फलदाता, ऐश्वर्यशाली, विभिन्न रूपों वाला और आपके योग्य मित्र हूँ।[ऋग्वेद 1.165.11] 
इन्द्रदेव :- हे मरुतो! तुम्हारे श्लोक से मैं आनंदित हुआ। वह श्लोक तुमने  मुझे मानकर रचा है। मैं तुम्हारा सखा अभीष्ट फल प्रदान करने वाला हूँ। 
Hey Marud Gan! You have composed a famous hymn devoted to me, which amuses me. I grant the desired boons-accomplishments, capable of possessing different-various forms and your friend.
एवेदेते प्रति मा रोचमाना अनेद्यः श्रव एषो दधानाः। 
संचक्ष्या मरुतश्चन्द्रवर्णा अच्छान्त मे छदयाथा च नूनम्
हे मरुतो! आप सोने के रंग के हैं। मेरे लिए प्रसन्न होकर दूरस्थ कीर्ति और अन्न धारण करते हुए मुझे अच्छी तरह से प्रकाश और तेज द्वारा आच्छादित करें।[ऋग्वेद 1.165.12]
इन्द्रदेव :- हे मरुतो तुमने अनिद्य कीर्ति और महान शक्तियों को धारण कर मेरे लिए प्रकट होकर आनंदित किया। मैं अब भी तुम्हारे कार्यों से प्रसन्नचित्त हूँ।
Hey Marud Gan! You body possess golden hue-colour. On being happy-delighted, you granted long lasting fame to me and covered me bright light-aura.
को न्वत्र मरुतो मामहे वः प्र यातन सखींरच्छा सखायः। 
मन्मानि चित्रा अपिवातयन्त एषां भूत नवेदा म ऋतानाम्
हे मरुतो! कौन मनुष्य आपकी पूजा करता है? आप सबके मित्र हैं। आप यजमान के सामने आवें। हे मरुतो! आप दिव्य धन की प्राप्ति के उपायभूत बनें और सत्य कर्म को जानें।[ऋग्वेद 1.165.13]
अगस्त्य :- हे मरुतो! यहाँ कौन तुम्हारी वंदना करता है? तुम सबके सखा हो। अपने मित्र उपासक के समीप जाओ। तुम श्रेष्ठ धनों की प्राप्ति में कारणभूत बनते हुए कर्मों की प्रेरणा करो। 
Hey Marud Gan! Who worships you here? You are friendly with everyone. You should come face to face with the hosts. Hey Marud Gan! You should become cause-means for attaining the divine wealth  and discover the truth.
आ यद्दुवस्याद्दुवसे न कारुरस्माञ्चक्रे मान्यस्य मेधा। 
ओ षु वर्त्त मरुतो विप्रमच्छेमा ब्रह्माणि जरिता वो अर्चत्
हे मरुतो! स्तोत्र द्वारा परिचरण समर्थ, स्तुति कुशल और मान्य ऋत्विक् की बुद्धि आपकी सेवा के लिए हमारे सामने आती है। हे मरुतो! मैं मेधावी हूँ। मेरे सामने आवें। आपके प्रसिद्ध कर्म को लक्ष्य कर स्तोता आपका पूजन करते है।[ऋग्वेद 1.165.14]
सेवा करने वाले से हर्षित होकर पारितोषिक देने के तुल्य इन्द्र देव ने मुझे कवित्व प्रदान किया है। हे मरुदगण! तुम प्रार्थनाकर्त्ता के सम्मुख पधारो।
Hey Marud Gan! The Ritviz-hosts conducting Yagy-prayers come to us for worship. Hey Marud Gan ! I am genius. Come to me. The devotees pray to you for your divine functions.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः। 
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे मरुतो! यह स्तोत्र और यह स्तुति माननीय और प्रसन्नतादायक है। यह शरीर पुष्टि के लिए आपके पास जाती है। हम अन्न, बल और दीर्घ आयु अथवा विजय, शील और दान प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.165.15] 
हे मरुद्गण! मान पुत्र मान्दार्य कवि का यह श्लोक तुम्हारे लिए हो। तुम मेरे शरीर को बल प्रदान करने के लिए अन्न से परिपूर्ण प्रस्थान करो। हम अन्न, शक्ति और दान मति को ग्रहण करें।
Hey Marud Gan! Let this hymn by the poet Mandary, son of Man be pleasing to you. Let us attain donations, food grains, might-power, longevity, victory and modesty-piety.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (167) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, मरुत्, छन्द :- त्रिष्टुप्।
सहस्रं त इन्द्रोतयो नः सहस्त्रमिषो हरिवो गूर्ततमाः। 
सहस्रं रायो मादयध्यै सहस्रिण उप नो यन्तु वाजाः
हे इन्द्रदेव! आप हजारों प्रकार से (हमारी) रक्षा करें। आपकी रक्षाएँ हमारे पास आवें। हे हरि नामक अश्ववाले इन्द्रदेव! आपके पास हजार प्रकार के प्रशंसनीय अन्न हैं; वे हमें प्राप्त हो। हे इन्द्रदेव! आपके पास हजारों प्रकार का धन है। हमारी तृप्ति के लिए वे भी हमें प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.167.1]
हे अश्व सम्पन्न इन्द्रदेव! तुम्हारे अनेक सुरक्षा पालक हमको प्राप्त हों, अनेक सा अन्न और प्रचुर धन राशि हमको असीमित शक्ति के साथ मिले।
Hey Indr Dev! Protect us through all thousands-means available with you. Hey the possessor of the horse named Hari, Indr Dev! We should get thousands kinds of food grains available with you. You have thousands of types of possessions-wealth. Let them be available to us for our comforts-satisfaction.
आ नोऽवोभिर्मरुतो यान्त्वच्छा ज्येष्ठेभिर्वा बृहद्दिवैः सुमायाः। 
अध यदेषां नियुतः परमाः समुद्रस्य चिद्धनयन्त पारे
आश्रय देने के लिए मरुद्गण हमारे पास आवें। सद्बुद्धि मरुद्गण प्रशस्यतमः और महादीप्ति संयुक्त धन के साथ हमारे पास पधारें, क्योंकि उनके नियुत नाम के श्रेष्ठ अश्व समुद्र के उस पार से भी धन ले आते हैं।[ऋग्वेद 1.167.2]
अत्यन्त मेधावी मरुद्गण अपने सुरक्षा साधनों और श्रेष्ठतम धन के साथ हमारी ओर पधारो! उनके अश्व समुद्र के पार हिन-हिनाते हुए प्रतीत होते हैं।
Let intellectual Marud Gan come to us with appreciable wealth. Their excellent horses named Niyut bring wealth across the oceans. 
मिम्यक्ष येषु सुधिता घृताची हिरण्यनिर्णिगुपरा न ऋष्टिः। 
गुहा चरन्ती मनुषो न योषा सभावती विदथ्येव सं वाक्
सुव्यवस्थित, जलवर्षक और सुवर्ण वर्ण विद्युत् मेघमाला की तरह अथवा निगूढ़ स्थान में अवस्थित मनुष्य की पत्नि की तरह या कही गई यज्ञीय वाणी की तरह इन मरुतों के साथ मिलती है।[ऋग्वेद 1.167.3]
प्राणियों की गुप्त रूप से रहने वाली पत्नियों के समान उन मरुद्गण की चमकती हुई स्वर्णिम कटार, म्यान में रहती और निकलती है। वह विद्युत रूपा विदुषी के समान ओजस्वी वाणी से युक्त है। बिजली कभी चमकती, कभी छिपती और कभी कड़कती है) द्रुत गतिमान मरुद्गण को यह विद्युत एकांत निवासिनी भार्या के तुल्य या अनुष्ठान में उच्चारण की जाने में वाली वेद वाणी के तुल्य ग्रहण होती है। 
Well organised-systematic, rain showering and lightening; like the shy-hidden wives, meets the Marud Gan and becomes visible like the hymns-recitations of the Veds.
परा शुभ्रा अयासो थव्या साधारण्येव मरुतो मिमिक्षुः। 
न रोदसी अप नुदन्त घोरा जुषन्त वृधं सख्याय देवाः
साधारण स्त्री की तरह आलिंगन-परायण विद्युत् के साथ शुभवर्ण, अतिगमन शील और उत्कृष्ट मरुद्रण मिलते है। भयंकर मरुद्रण द्यावा-पृथ्वी को नहीं हटाते। देवता लोग मैत्री के कारण उनकी समृद्धि का उपाय करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.4] 
साधारण स्त्री के तुल्य इस चमकती हुई बिजली ने मरुद्गण को वरण किया। तब वह सूर्य के तुल्य चाल वाली मरुद्गण को के ग्रहण हुई।
The extremely fast-quick moving Marud Gan meets like lightening & hugging a common woman. They do not disturb the sky and the earth. The demigods-deities make efforts for their progress due to friendship.
जोषद्यदीमसुर्या सचध्यै विषितस्तुका रोदसी नृमणाः। 
आ सूर्येव विधतो रथं गात्त्वेषप्रतीका नभसो नेत्या
मरुतों की अपनी पत्नी बिजली आलुलायित केश और अनुरक्त मन से मरुतों के संगम के लिए उनकी सेवा करती है। जिस प्रकार से सूर्या अश्विनी कुमारों के रथ पर आरूढ़ होती है, उसी प्रकार प्रदीप्ता वयवा रोदसी चंचल मरुतों के रथ पर चढ़कर शीघ्र आती है।[ऋग्वेद 1.167.5]
हे मरुद्गण! तुमने अन्यन्त तेज वाली युवावस्था प्राप्त दामिनी को अपने रथ पर चढ़ाया।
Lightening, the wife of Marud Gan serves them with love. The way the Surya (Sun light) rides the charoite of Ashwani Kumars bright lightening rides the charoite of the naughty (playful-fickle) Marud Gan. 
आस्थापयन्त युवतिं युवानः शुभे निमिश्लां विदथेषु पज्राम्। 
अर्को यद्वो मरुतो हविष्मान्गायद्गाथं सुतसोमो दुवस्यन्
यज्ञ आरम्भ होने पर वर्षादान के लिए तरुण युवा तरुणी रोदसी को रथ पर बैठाते हैं। बलवती रोदसी (पृथ्वी, स्वर्ग) नियमानुरूप उनके साथ मिलती है। उसी समय अर्चन मंत्रयुक्त हव्यदाता और सोमाभिषवकारी यजमान मरुतों की सेवा करते हुए स्तोत्रों का पाठ करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.6]
उस समय सोम अभिषवकर्त्ता हवि देते हुए श्लोक गान करने लगे। इन मरुदगण के कथन बल का मैं यथावत वर्णन करता हूँ। 
The earth & the sky rides (takes part in the process) the charoite prior to the Yagy leading to showers. It interact with them as per rule-process. The hosts making offerings make prayers using Mantr-hymns for the service of the Marud Gan.
प्र तं विवक्मि वक्म्यो य एषां मरुतां महिमा सत्यो अस्ति। 
सचा यदीं वृषमणा अहंयुः स्थिरा चिज्जनीर्वहते सुभागाः
मरुतों की महिमा सबकी प्रशंसनीय और अमोघ है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। उनकी रोदसी वर्षणाभिलाषिणी, अहंकारिणी और अविनश्वरा है। यह सौभाग्यशालिनी, उत्पत्तिशील और प्रजा को धारण करती है।[ऋग्वेद 1.167.7]
अमोघ :: अचूक (औषधिया अस्त्र), जो निष्फल न हो, जो निरर्थक या व्यर्थ न हो,  सफल, लक्ष्यभेदी।
उसकी मानिनी वर्षाणाभिलाषी, अटल विचार वाली है। वह मानिनी सौभाग्यवती हुई प्रजाओं को ग्रहण करती है।
Glory-majesty of the Marud Gan deserve appreciation and it never goes waste. The earth and the sky desires rains which leads to growth & good luck. It supports the populace-living beings.
पान्ति मित्रावरुणाववद्याच्चयत ईमर्यमो अप्रशस्तान्। 
उत च्यवन्ते अच्युता ध्रुवाणि वावृध ई मरुतो दातिवारः
मित्र, वरुण और अर्यमा इस यज्ञ को निन्दा से बचाते हैं और उसके अयोग्य पदार्थ का विनाश करते हैं। हे मरुतों! आपके जल देने का समय जब आता है, तब वे मेघों के बीच एकत्रित जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.8]
सखा और वरुण, यज्ञ निंदकों से सुरक्षा करते हैं। अर्यमा उनको नष्ट करते हैं। हे मरुद्गण जब तुम्हारा जल त्यागने का समय आता है और तब निश्चल बादल भी डिग जाते हैं।
Mitr, Varun & Aryma protects this Yagy from blasphemy, reproach & damn. They destroy the unwanted-unsuitable (undesirable) goods. Hey Marud Gan! When the time for showers arrives, they set themselves in the clouds and shower the accumulated water.
नहीं नु वो मरुतो अन्त्यस्मे आरात्ताच्चिच्छवसो अन्तमापुः । 
ते धृष्णुना शवसा शूशुवांसोऽर्णो न द्वेषो धृषता परि ष्ठू: 
हे मरुतो! हमारे बीच किसी ने भी अत्यन्त दूर से भी आपके बल का अन्त नहीं पाया।
दूसरों को पराजित करने वाले बल के द्वारा वृद्धि कर जलराशि की तरह अपनी शक्ति से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.9]
हे मरुद्गण! तुम्हारा बल असीमित हैं। उसका पता न समीप से लगता है न दूर से। तुम अत्यन्त सामर्थ्यवान हो। तुम जल के समान बढ़कर शक्तिशाली हुए शत्रुओं को हरा देते हो। 
Hey Marud Gan! None of us has been able to assess your might-power either from near or far. By increasing the might to defeat others, like the stores-accumulated water you win-over power the enemy.
वयमद्येन्द्रस्य प्रेष्ठा वयं श्वो वोचेमहि समर्थे। 
वयं पुरा महि च नो अनु द्यून्तन्न ऋभुक्षा नरामनु ष्यात्
आज हम इन्द्रदेव के प्रियतम होकर यज्ञ में उनकी महिमा का गान करेंगे। हमने पहले भी इनके माहात्म्य का गान किया और प्रतिदिन गान करते है। इसलिए ये महान् इन्द्रदेव हमारे लिए अनुकूल बने रहें।[ऋग्वेद 1.167.10]
आज हम इन्द्रदेव के अत्यन्त प्रिय बनेंगे। कल हम उन्हीं को पुकारेंगे। पूर्व में भी उनको पुकारते रहे हैं। वे श्रेष्ठतम इन्ददेव और हमारे अनुकूल हों।
Let us become dear to Indr Dev and sing his glory. We earlier sung described this glory. Let great-mighty Indr Dev be favourable to us.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः। 
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे मरुतो! कवि मान्दर्य की यह स्तुति आपके लिए है। इच्छानुसार उसकी शरीर पुष्टि के लिए आपके पास आती है। हम भी अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.167.11]
हे मरुद्गण! मान पुत्र मान्दार्य का श्लोक तुम्हारे लिए है। तुम शरीर को शक्ति देने हेतु समृद्धि से युक्त यहाँ पर पधारो और अन्न, शक्ति तथा दानशील स्वभाव को ग्रहण कराओ।
Hey Marud Gan! Poet-Rishi Mandary has composed this prayer for you. You should arrive here to nourish us. Let us obtain food grains, might-power and long life.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (169) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, छन्द :- चतुष्पदा, विराट्।
महश्चित्त्वमिन्द्र यत एतान्महश्चिदसि त्यजसो वरूता। 
स नो वेधो मरुतां चिकित्वान्त्सुम्ना वनुष्व तव हि प्रेष्ठा
हे इन्द्र देव! आप निश्चय ही महान् हैं; क्योंकि आप रक्षक और महान् मरुतों का परित्याग नहीं करते। आप मरुतों के स्वामी हैं और हमें भली-भाँति जानते हैं। आप अपनी प्रिय वस्तु हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.169.1]
हे उत्पत्ति करने वाले इन्द्रदेव! तुम उद्वेग और आक्रोश से बचाते हो। तुम मरुतों के स्वामी हो। हम पर कृपा दृष्टि रखो और हमें सुखी बनाओ।
Hey Indr Dev! You are definitely great, since do not part away-separate with the great Marud Gan. You are the master of the Marud Gan. Please grant us the commodities dear to you.
अयुज्रन्त इन्द्र विश्वकृष्टीर्विदानासो निष्षिधो मर्त्यत्रा। 
मरुतां पृत्सुतिर्हासमाना स्वर्मीळ्हस्य प्रधनस्य सातौ
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं को युद्ध में भगाने वाले, सम्पूर्ण मनुष्यों के ज्ञाता मरुद्गणों का सहयोग पाने वाले हैं। मरुद्गणों की सेना युद्ध के प्रारम्भ होने पर आनन्दित होते हुए सुख का अनुभव प्राप्त करती है।[ऋग्वेद 1.169.2]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे दान को जानने वाली प्रजाएँ  तुम्हें ग्रहण करती हैं। मरुतों की सेना द्वन्द्व में तुम्हें अत्यन्त संग्राम साधन ग्रहण कराती हैं।
Hey Indr Dev! You make the enemy retreat-run away from the battle ground. You know all humans and seek-obtain the help of Marud Gan. The army of the Marud Gan feel pleasure at the onset of war with the enemy.
अम्यक्सा त इन्द्र ॠष्टिरस्मे सनेम्यभ्वं मरुतो जुनन्ति। 
अग्निश्चिद्धि ष्यातसे शुशुकानापो न द्वीपं दधति प्रयांसि
हे इन्द्र देव! आपका प्रसिद्ध वज्रायुध ॠष्टि हमारे लिए मेघ के पास जाता है। ये मरुद्रण सदैव वर्षा करते हैं। विस्तृत यज्ञ के लिए अग्निदेव प्रदीप्त हुए। जिस प्रकार से जल द्वीप को धारण करता है, उसी प्रकार से अग्निदेव हव्य को धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.169.3]
हे इन्द्र देव! तुम्हारा विख्यात शस्त्र वज्र मेघ की ओर जाता है। मरुद्गण हमारे लिए जलों को गिराते हैं। जैसे अग्नि लकड़ी में शीघ्रता से चलती है और जल टापुओं के चारों ओर रहता है, वैसे ही मरुद्गण इसको अन्नों से पूर्ण करते हैं।
Hey Indr Dev! Your famous Vajr moves towards the clouds. The Marud Gan produce rains for us. The way water support an island, Agni Dev contain offerings.
त्वं तू न इन्द्र तं रयिं दा ओजिष्ठया दक्षिणयेव रातिम्। 
स्तुतश्च यास्ते चकनन्त वायोः स्तनं न मध्वः पीपयन्त वाजैः
हे इन्द्र देव! आप अपने दान योग्य धन का दान करें। आप दाता हैं। हम लोग प्रचुर दक्षिणा द्वारा आपको प्रसन्न करते हैं, क्योंकि आप शीघ्र वर प्रदान करने वाले हैं। स्तोता लोग आपकी स्तुति करते हैं। जिस प्रकार स्तन मधुर और पौष्टिक दुग्ध से पुष्ट होते हैं, उसी प्रकार से हम भी आपको अन्न आदि के द्वारा पुष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 1.169.4]
हे इन्द्र देव! दक्षिणा के समान वृद्धि किया हुआ जो धन अपने सखा को प्रदान किया है, वही धन हमें भी प्रदान करो। मधुर दुग्ध से जैसे नारी के स्तन पुष्ट होते हैं वैसे ही हमारी वंदनाओं से तुम अन्नादि से पुष्ट करो।
Hey Indr Dev! Donate your wealth which is suitable for charity. You are a donor. We please-make you happy with lots of offerings. The hosts-performers of Yagy pray-worship you. The way the udder are filled with milk, we too make you strong with the food grains etc. 
त्वे राय इन्द्र तोशतमाः प्रणेतारः कस्य चिद्य्तायोः। 
ते षु णो मरुतो मृळयन्तु ये स्मा पुरा गातूयन्तीव देवाः
हे इन्द्र देव! आपका धन अत्यन्त प्रीति दाता और यजमान का यज्ञ निर्वाह कारी है। जो मरुद्गण पहले ही यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो जाते हैं, वे हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.169.5]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा धन अत्यन्त सत्यताप्रद, तृष्टिप्रद तथा आगे बढ़ाने वाला है। जो मरुद्गण प्राचीन समय से नियमों पर अटल रहते आये हैं, वे हम पर अत्यन्त अनुग्रह करें।
Hey Indr Dev! You possessions-wealth grants affection & love and helps the hosts in conducting the Yagy. The Marud Gan who willing -ready for the Yagy grant us pleasure-comforts.
प्रति प्र याहीन्द्र मीळ्हुषो नॄन्महः पार्थिवे सदने यतस्व। 
हे इन्द्र देव! तुम पुरुषार्थी बादलों के निकट पधारकर अपना पुरुषार्थ प्रकट करो। मरुतों के वाहन बादलों पर धावा बोलने को प्रस्तुत हैं।
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (170) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्, बृहती, त्रिष्टुप्। 
न नूनमस्ति नो श्वः कस्तद्वेद यदद्भतम्। 
अन्यस्य चित्तमभि संचरेण्यपुताधीतं वि नश्यति
आज या कल कुछ नहीं है। अद्भुत कार्य की बात कौन कह सकता है? अन्य मनुष्यों का मन अत्यन्त चञ्चल होता है, जो अच्छी तरह पढ़ा जाता है, वह भी विस्मृत हो जाता है।[ऋग्वेद 1.170.1]
हे इन्द्र देव! आज और कल कुछ भी नहीं है। जो नहीं हुआ उसे कौन जानता है? जिन मनुष्यों का मन चंचल है, वे चिन्तन किये हुए को भी भूल जाते हैं।
There is nothing like today or tomorrow. What can one say of the amazing deeds. The humans whose innerself (mind, heart, psyche, mood) is fickle  forget whatever is learnt or meditated.
किं न इन्द्र जिघांससि भ्रातरो मरुतस्तव। 
तेभिः कल्पस्व साधुया मा नः समरणे वधीः
अगस्त्य ने कहा, हे इन्द्र देव! आप क्यों मुझे मारना चाहते हैं? मरुद्रण तो आपके भाई हैं। उनके साथ यज्ञ का भाग अच्छी तरह ग्रहण करें। युद्ध के समय हमें विनष्ट न करें। ([ऋग्वेद 1.170.2]
हे इन्द्र देव! तुम क्या मुझे समाप्त करना चाहते हो? मरुद्गण तुम्हारे भ्राता हैं। उनके संग भली-भांति यज्ञ भाव ग्रहण करते करो। हमको संग्राम काल में समाप्त मत करना। 
Hey Indr Dev! Why do you want to kill me? Marud Gan are your brothers. Accept the share of offerings from the Yagy. Do not kill us in the war.
किं नो भ्रातरगस्त्य सखा सन्नति मन्यसे। 
विद्मा हि ते यथा मनोऽस्मभ्यमिन्न दित्ससि
हे भ्राता अगस्त्य! मित्र होकर आप हमें क्यों अपमानित कर रहे हैं? आपका मन जिस
भावना से ग्रसित है, उसे हम भली-भाँति जानते हैं, आप हमारा भाग हमें नहीं देना चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.170.3]
इन्द्र देव ने कहा, हे अगस्त्य! सखा होकर हमारा आदर नहीं करते हो? हम तुम्हारे मन को जानते हैं! तुम हमें देना नहीं चाहते?
Hey bother August! Why are you insulting us, in spite of our friend? We understand your inner feeling-sentiments. You do not want to share of offerings with us.
अरं कृण्वन्तु वेदिं समग्निमिन्धतां पुरः। तत्रामृतस्य चेतनं यज्ञं ते तनवावहै
ऋत्विकगण आप वेदी को सजावें और समक्ष अग्नि को प्रज्वलित करें। उसके बाद उसमें आप और हम अमृत के सूचक यज्ञ को करें।[ऋग्वेद 1.170.4]
हे ऋत्विजों! वेदो को सुसज्जित करो। अग्नि को प्रदीप करो। फिर हम अमृत के समान गुणदाता यज्ञ का विस्तार करें।
Hey Ritviz! You decorate the Vedi-site of Yagy and ignite the fire. Thereafter let us hold the Yagy which is like ambrosia, nectar. 
त्वमीशिषे वसुपते वसूनां त्वं मित्राणां मित्रपते धेष्ठः। 
इन्द्र त्वं मरुद्भिः सं वदस्वाध प्राशान ऋतुथा हवींषि
हे धन के अधिपति, हे मित्रों के मित्रपति! आप ईश्वर हैं, आप सबके आश्रय स्वरूप हैं। आप मरुद्गणों से कहें कि हमारा यज्ञ पूर्ण हुआ है। हमारे द्वारा दी गई आहुतियों का सेवन करें।[ऋग्वेद 1.170.5]
अगस्त्य ने कहा हे धनपते! तुम धनों के स्वामी हो। हे मित्रपते! तुम मित्रों के शरण रूप हो। हे इन्द्रदेव! तुम मरुतों के साथ समानता शरण रूप हो। हे इन्द्रदेव! तुम मरुतों के साथ बराबरी वाले हो, हमारी हवियाँ ग्रहण करो।
Hey the overlord, hegemonic of wealth! You are the lord of friendship. You are the protector of all. Ask the Marud Gan that our Yagy has been accomplished. Accept the offerings made by us.
 ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (171) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, मरुत्,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रति व एना नमसाहमेमि सूक्तेन भिक्षे सुमतिं तुराणाम्। 
रराणता मरुतो वेद्याभिर्नि हेळो धत्त वि मुचध्यमश्वान्
हे मरुतो! मैं नमस्कार और स्तुति करता हुआ आपके पास आता हूँ और आपकी दया चाहता हूँ। हे मरुतो! स्तुति द्वारा आनन्दित चित्त से क्रोध का परित्याग कर रुकने की कृपा करें।[ऋग्वेद 1.171.1] 
हे मरुतो! मैं प्रणाम करता हुआ तुम्हारे नजदीक आता हूँ। तुम गतिवानों से दया की विनती करता हूँ। तुम वंदनाओं से प्रसन्न होकर आक्रोश को शांत करो। अपने रथ से अश्वों को खोल दो।
Hey Marud Gan! I have come to you to greet and pray you and desire your favours-mercy, kindness. Hey Marud Gan! Be happy with our requests & prayers, reject your anger & stay with us. Release-untie the horses from your charoite.
एष वः स्तोमो मरुतो नमस्वान्हृदा तष्टो मनसा धायि देवाः। 
उपेमा यात मनसा जुषाणा यूयं हि ष्ठा नमस इधासः
हे मरुतो! हमारे स्तोत्रों को ध्यान पूर्वक श्रवण करें। इन स्तोत्रों से आनन्दित होकर आप हमारे पास आयें और हमारे हविरूप अन्न की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 1.171.2]
हे मरुदगण! प्रणामों से युक्त हमारा तुम्हारा यह श्लोक मन से रचा गया और मन में स्वीकार किया गया है। इसलिए इसे स्वीकार करते हुए स्नेह वश यहाँ आओ। तुम निश्चय ही हव्यान्न को बढ़ाते हो।
Hey Marud Gan! Listen to the prayers by us. Be happy, come to us, accept the offerings and increase our stock of food stuff.
स्तुतासो नो मरुतो मृळयन्तूत स्तुतो मघवा शंभविष्ठः। 
ऊर्ध्वा नः सन्तु कोम्या वनान्यहानि विश्वा मरुतो जिगीषा
हे मरुद्गण हे इन्द्रदेव! हमारी प्रार्थनाओं से प्रसन्न होकर आप हमें सुख और सौभाग्य प्रदत्त करे, जिससे हमारा शेष जीवन सुखमय, प्रशंसनीय और वैभव युक्त हो।[ऋग्वेद 1.171.3]
वंदना किये जाने पर मरुद्गण हम पर कृपा दृष्टि करें। वंदना करने पर इन्द्रदेव भी शांति दाता हों। हे मरुतो! हमारी आयु के दिन रमणीय सुख से परिपूर्ण महान और विजय पूर्ण रहें।
Hey Marud Gan & Indr Dev! Being happy with our prayers-worship, grant us comforts and good luck so that rest of our life is appreciable and full of majesty.
अस्मादहं तविषादीषमाण इन्द्राद्भिया मरुतो रेजमानः। 
युष्मभ्यं हव्या निशितान्यासन्तान्यारे चकृमा मृळता नः
हे मरुतो! हम इस बलवान् इन्द्रदेव के भय से भयभीत होकर कम्पायमान होते हुए पलायित होते हैं। आपके निमित्त रखी हुई हवियों को हमने एक ओर हटा दिया है। हम अपने सुख के लिए आपकी कृपा दृष्टि चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.171.4]
हे मरुद्गण! हम इन शक्तिशाली इन्द्र के डर से भागते हुए एक कम्पायमान होते रहते हैं। तुम्हारे लिए जो हव्य तैयार रखा था, उसे हमने दूर कर लिया। अब तुम हम पर दया करो।
Hey Marud Gan! We are trembling & running away due to the fear of Indr Dev. We have kept the offerings aside and seek your favours-mercy. 
येन मानासश्चितयन्त उस्त्रा व्युष्टिषु शवसा शश्वतीनाम्। 
स नो मरुद्भिर्वृषभ श्रवो धा उग्र उग्रेभिः स्थविरः सहोदाः
हे इन्द्र देव! आप बल स्वरूप हैं। आपके माननीय अनुग्रह से किरणें प्रतिदिन उषा के उदयकाल में प्राणियों को चैतन्यता प्रदान करती हैं। हे अभीष्टवर्षी, उग्र बलप्रदायी और पुरातन इन्द्रदेव! आप उग्र मरुतों के साथ अन्न ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.171.5] 
हे वीर इन्द्रदेव! तुम्हारी शक्ति से प्रेरित हुई उषायें नित्य खिलती और प्राणधारियों को जाग्रत करती हैं। तुम विकराल कार्य वाले, मरुतो के संग हमारे लिए अन्न को धारण करो।
Hey Indr Dev! You are a form of strength & might. Due to your grace-kindness, Usha make the living beings conscious. Hey accomplishments-desires fulfilling eternal Indr Dev! You should accept food along with the Marud Gan.
त्वं पाहीन्द्र सहीयसो नॄन्भवा मरुद्भिरवयातहेळाः। 
सुप्रकेतेभिः सासहिर्दधानो विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे इन्द्र देव! प्रभूत बलशाली मरुतों की रक्षा करें। उनके प्रति क्रोधी न बनें। मरुद्गण उत्तम प्रजा वाले हैं। उनके साथ शत्रुओं के विनाशक बनें और हमारी रक्षा करें, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.171.6]
हे अजेय इन्द्र देव! तुम उन मेधावी मरुतों के साथ अपने क्रोध को शांत करो। शत्रुओं को पराजित करते हुए हमारी रक्षा करो। हम अन्न, बल प्राप्त करें और हमारा स्वभाव दानशील हो।
Hey invincible Indr Dev! Protect the Marud Gan possessing abundant might. Do not be angry with them. Marud Gan are the protector of the populace. Join them to vanish-kill the enemy and protect us, so that we get food and strength.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (172) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- विराट्।
गायत्साम नभन्यं १ यथा वेरर्चाम तद्वावृधानं स्वर्वत्। 
गावो धेनवो बर्हिष्यदव्धा आ यत्सद्मानं दिव्यं विवासान्
हे स्वर्गीय इन्द्र देव! उद्गाता अर्थात् सामवेद पाठी प्रसन्नता पूर्वक सामवेद का गान करते हैं, जिसे आप समझ सकें। हम उस वर्द्धमान और स्वर्ग प्रदाता स्तोत्र की पूजा करते हैं। दुग्धवती और हिंसा रहित गायें जिस प्रकार कुशासन पर बैठने के समय आपकी सेवा करती हैं, उसी प्रकार मैं भी पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 1.173.1]
उद्गाता :: उच्च स्वर में सामवेद का गान करने वाला ऋत्विज। सोमयज्ञों के अवसर पर साम या स्तुति मंत्रों के गाने का कार्य उद्गाता का अपना क्षेत्र है। यज्ञ में सामवेदीय कृत्य करने वाला गायन करने वाला ऋत्विज्।
स्थाना गायक पक्षी के तुल्य अद्भुत सोम को पायें। हम उससे ज्ञान की ज्योति करते हुए उसका मान करें। हिंसा से पृथक पयस्विनी धेनु कुश पर विराजमान इन्द्र देव की सेवा करती हैं। हविदाता यजमान अध्वर्युओ के साथ हव्य प्रदान करते हुए इन्द्र देव को अर्चन करते हैं।
Hey the lord of heavens Indr Dev! The Ritviz reciting-sing Sam Ved in loud voice, in such a way you are able to understand-grasp it. We-The Ritviz pray this Strotr which give us progress and grant us heaven. 
अर्चषा वृषभिः स्वेदुहव्यैमृगो नाश्नो अति यज्जुगुर्यात्। 
प्र मन्दयुर्मनां गूर्त होता भरते मर्यो मिथुना यजत्रः
हव्य देने वाले यजमान हव्य प्रदाता अध्वर्यु आदि के साथ अपने दिए हव्य द्वारा इन्द्र देव की पूजा करते हैं। उस समय हवि सेवन के इच्छुक इन्द्र देव सिंह के तुल्य अपने भक्ष्य की कामना करते हैं और तेजस्वी ऋत्विक् का सामर्थ्य वर्धक अपना हविष्यान इन्हें समर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.2]
हे इन्द्र देव! तुम अत्यन्त पूजनीय हो। तुम्हारी स्मृति की इच्छा से प्राणी होता यज्ञ का आयोजन करते हैं। होता रूप सूर्य चारों ओर फैला है। 
Hey Indr Dev! The Riviz-Hota (organiser of the Yagy) pray to you and make offerings. You accept the offerings like a lion to enhance-boost the capabilities of the devotee.  
नक्षद्धोता परि सद्म मिता यन्भरद्गर्भमा शरदः पृथिव्याः। 
क्रन्ददश्वो नयमानो रुवद्गौरन्तर्दूतो न रोदसी चरद्वाक्
होम सम्पादक अग्निदेव परिमित गार्हपत्यादि स्थान में चारों ओर व्याप्त हैं और शरत्काल के और पृथ्वी के गर्भस्थानीय अन्न को ग्रहण करते हैं। अश्व की तरह शब्द करके (हिनहिनाना), बैल को तरह शब्द करके अन्न लेकर आकाश और पृथ्वी के मध्य में दूत स्वरूप वार्ता करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.3]
हिनहिनाना :: हींसना; snort, neigh, horse laugh. 
हिनहिनानावे शरद से पूर्व रूप अन्न को पृथ्वी में धारण करते हैं। अश्व की तरह शब्द करते हुए अन्न युक्त, गगन और धरती के बीच दूत के समान कार्य करते हैं। 
Agni Dev as the organiser-conductor of the Yagy pervades all around the Yagy site. He accepts the food grains from the earth during chilly winters. He neigh like a horse and bellow like a bull and acts like a mediator-middle man between the earth and the sky.
ता कर्माषतरास्मै प्र च्यौलानि देवयन्तो भरन्ते। 
जुजोषदिन्द्रो दस्मवर्चा नासत्येव सुग्म्यो रथेष्ठाः
हम इन्द्र देव के उद्देश्य से अत्यन्त व्यापक हव्य प्रदान करते हैं। देवाभिलाषी यजमान सुन्दर स्तोत्र का पाठ करते हैं। दर्शनीय तेज वाले अश्विनी कुमारों की तरह जानने योग्य और रथ पर अवस्थित इन्द्रदेव हमारे स्तोत्र को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.173.4]
इन्द्रदेव के लिए यह हव्य अधिक रुचिकर किया है। यजमान महान श्लोकों को अर्पण करते हैं। अश्विनी कुमारों के तुल्य तेजस्वी रथ उन्हें स्वीकृत करें। 
We make offerings for the pleasure (to please) of Indr Dev. The devotees who wish to attain (see, visualise, to be face to face with) the demigods-deities recite beautiful compositions. Let Indr Dev accept our prayers seated over the charoite like the Ashwani Kumars. 
तमु ष्टुहीन्द्रं यो ह सत्वा यः शूरो मघवा यो रथेष्ठाः।
प्रतीचश्चिद्योधीया न्वृषण्वान्ववव्रुषश्चित्तमसो विहन्ता
हे होता! जो इन्द्रदेव अनन्त बलवाले, शौर्य्यवान्, बलवान् रथ पर आरूढ़, सामने के योद्धाओं में श्रेष्ठ योद्धा, वन आदि वाले और मेघ आदि के विनाशक हैं, उनकी स्तुति करें।[ऋग्वेद 1.173.5]
हे मनुष्यों! उस महाबलिष्ठ दृढ़ इन्द्रदेव की वंदना करो। यह सभी से अधिक वीर एवं अंधकार को समाप्त करने वाले हैं।
Hey hosts-humans! Let us pray to Indr Dev, who is a great warrior, riding a strong charoite, capable of destroying great enemy warriors, forests and the clouds. 
प्र यदित्था महिना नृभ्यो अस्त्यरं रोदसी कक्ष्ये नास्मै।
सं विव्य इन्द्रो वृजनं न भूमा भर्ति स्वधावाँ ओपशमिव द्याम्
हे इन्द्र देव! अपनी महिमा से कर्मनिष्ठ यजमानों को स्वर्ग आदि फल देने में आप समर्थ हैं। द्यावा पृथ्वी उनकी कक्षा की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है। जिस प्रकार अन्तरिक्ष पृथ्वी को वेष्टित करता है, उसी प्रकार वे भी अपनी प्रतिभा से तीनों लोकों को व्याप्त करते हैं। जिस प्रकार बैल अनायास श्रृंग धारण करता है, उसी प्रकार अन्नवान् इन्द्रदेव भी स्वर्ग को अनायास धारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.6]
जो इन्द्रदेव अपनी महिमा से अग्रगण्य हैं, उनकी पूर्ति के लिए गगन और धरती भी पर्याप्त नहीं है। उन इन्द्रदेव ने धरती को बालों के समान और नभ को मुकुट के समान स्वीकार किया है।
Hey Indr Dev! You are capable of accomplishing the wishes of devotees who make efforts and desire to be granted a place in the heavens. Neither the sky nor the earth are capable of approving their desires. The manner in the sky sustain-support the earth, you are capable of pervading the three abodes (earth, heavens, the Nether world)
समत्सु त्वा शूर सतामुराणं प्रपथिन्तमं परितंसयध्यै। 
सजोषस इन्द्रं मदे क्षोणी: सूरिं चिद्ये अनुमदन्ति वाजैः
हे शूर इन्द्र देव! युद्ध भूमि में साधुओं के बल प्रद और उत्तम मार्ग रूप हैं। मरुद्गण आपको स्वामी कहकर आनन्दित होते हैं। वे आपके परिजन हैं। आपके आनन्द के लिए सब लोग समान आनन्दित होकर आपको अलंकृत करने की चेष्टा करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.7]
हे परक्रमी इन्द्र देव! धरा आदि संसार तुम एक हृदय वाले सत्पुरुषों को वरण करने योग्य पराक्रमी को शोभायवान करते हैं और तुम्हारे उपास्य को अन्नादि से परिपूर्ण करते हैं।
Hey might Indr Dev! You are a patron & protector of the saintly in the war. The Marud Gan consider you as their patron. You are friendly with them and maintain family relations & ties. All humans make efforts to please you. 
एवा हि ते शं सवना समुद्र आपो यत्त आसु मदन्ति देवीः। 
विश्वा ते अनु जोष्या भूद्गौ: सूरीश्चिद्यदि धिषा वेषि जनान्
यदि अन्तरिक्ष स्थित और प्रकाशमान जल प्रजाओं के लिए आपको सुखा कर यदि सारे स्तोत्र आदि आपको प्रसन्न करें और यदि आप वृष्टि-प्रदान आदि कर्म द्वारा स्तोताओं की कामना पूर्ण करें, तो आपका सवन सुखकर हैं।[ऋग्वेद 1.173.8]
हे इन्द्रदेव! सोम की आहुतियाँ अंतरिक्ष में लीन होकर प्रजा को सुखी करें। ये वंदनाएँ तुम्हें प्रसन्न करती हैं, तब वाणी तुम्हारी सेवा करती है। तुम वंदना करने वालों की प्रार्थना की इच्छा करते हो।
Your worship leads to comforts-happiness, when you release rains leading to endeavours by the humans. They make you happy by the recitation of hymns Strotr.
असाम यथा सुषखाय एन स्वभिष्टयो नरां न शंसैः। 
असद्यथा न इन्द्रो वन्दनेष्ठास्तुरो न कर्म नयमान उक्था
हे प्रभु इन्द्र देव! हम मित्र के तुल्य आपके साथ जैसा व्यवहार करते हैं, वैसा ही व्यवहार आप भी हमारे साथ करें। हमारी स्तोत्र रूप वाणियाँ आपसे अभीष्ट की पूर्ति करावें। आप हमारी स्तुतियों को सुनकर हमें कर्म करने की प्रेरणा प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.173.9]
हे स्वामिन! तुम वही करो जिससे हम तुम्हारे सखा बन सके और हमारी प्रार्थनाएँ तुमसे अभिष्ट प्राप्त कर सकें। तुम्हारी प्रार्थनाओं को श्रवण करते हुए कर्म सम्पादन करने वाले बनो।
Hey lord Indr Dev! We treat you as a friend & you should also reciprocate. Let our prayers inspire you to help us in accomplishment of our desired goals-targets. Motivate-inspire us to perform, responding-answering to our calls-payers.
विष्पर्धसो नरां शंसैरस्माकासदिन्द्रो वज्रहस्तः। 
मित्रायुवो न पूर्पतिं सुशिष्टौ मध्यायुव उप शिक्षन्ति यज्ञैः
याज्ञिकों के सदृश ही स्तोता लोग भी इन्द्र देव की स्तुति अर्थात् प्रार्थना करते हैं, ताकि वज्र धारण करने वाले इन्द्र देव की मित्रता उन्हें प्राप्त हो। जिस प्रकार नगर के स्वामी की हितैषी लोग पूजा करते हैं, उसी प्रकार ही हमारे बीच अवस्थानाभिलाषी अध्वर्यु लोग हव्यादि द्वारा इन्द्रदेव की पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.10]
जैसे प्रशंसा करने पर स्पर्द्धा वाला मनुष्य सहृदय बन जाता है, वैसे ही वज्रधारी इन्द्रदेव हमारे प्रति हो जायें। जैसे नगर के योग्य अधिकारी के सुशासन से सभी वंदना करते हैं वैसे ही हम इन्द्रदेव की अर्चना करेंगे।
The Ritviz pray to Indr Dev to seek the blessings of Vajr yielding Indr Dev as a friend. The way the governors of the cities pray to Indr Dev as a lord, the devotees too pray to him.
यज्ञो हि ष्मेन्द्रं कश्चिदृन्धञ्जुहुराणश्चिन्मनसा परियन्। 
तीर्थे नाच्छा तातृषाणमोको दीर्घो न सिध्रमा कृणोत्यध्वा
जिस प्रकार यज्ञ परायण व्यक्ति यज्ञ द्वारा इन्द्र की वृद्धि करता है और कुटिल गति व्यक्ति मन ही मन सदा चिन्ता परायण रहता है, जिस प्रकार तीर्थ मार्ग में सम्मुख स्थित जल तत्काल जल प्यासे व्यक्ति को निराश करता है।[ऋग्वेद 1.173.11]
यदि कोई व्यक्ति मन से कुटिल हुआ यज्ञ में इन्द्र की अर्चना करता है तो लम्बी राह से प्यासे को शीघ्र जल प्राप्त होने के समान उस कुटिल मन वाले का यज्ञ फल की ओर नहीं जाता।
The efforts, prayers (worship) of the person engaged in Yagy (pious, virtuous, righteous activities) leads to rewards while a cheat-fraudsters fail to achieve his  nasty designs.
मो षू ण इन्द्रात्र पृत्सु देवैरस्ति हि ष्मा ते शुष्मिन्नवयाः।
महश्चिद्यस्य मीळ्हुषो यव्या हविष्मतो मरुतो वन्दते गीः
हे बलवान् इन्द्र देव! युद्ध काल में मरुतों के साथ आप हमें नहीं छोड़ना; क्योंकि आपके लिए यज्ञ का भाग स्वतंत्र है। हमारी फल-समन्वित स्तुति महान, हविष्मान् और जलदाता मरुद्गणों की वन्दना करती है।[ऋग्वेद 1.173.12]
हे शक्तिशाली इन्द्रदेव तुम संग्राम में हमसे विमुक्त न रहो। हे देवगण के साथ तुम्हारा हव्य भाग भी प्रस्तुत है। तुम्हारे साक्षी मरुद्गण को भी हम हवि प्रदान करते हैं।
Hey might Indr Dev! Do not desert the Marud Gan in the war. We have reserved a portion of offerings in the Yagy for you. We pray-request the Marud Gan with the desire of rains and make offerings in the form of fruits and flowers
एष स्तोम इन्द्र तुभ्यमस्मे एतेन गातुं हरिवो विदो नः। 
आ नो ववृत्याः सुविताय देव विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे हरि वाहन इन्द्र देव! हमारे यह स्तोत्र आपके निमित्त है। आप हमारे यज्ञ के उद्देश्य को समझें और हमें अन्न और धनादि से पूर्ण करें, जिससे हमारा कल्याण हो सके।[ऋग्वेद 1.173.13]
हे घोड़ों के सहित इन्द्रदेव! यह श्लोक तुम्हारा ही है। इसके द्वारा हमारे रास्ते पर आओ। कल्याण के लिए हमारी ओर भ्रमण करो। हम अन्न और बल की प्राप्ति करते हुए उत्तम स्वभाव वाले हों।
Hey Indr Dev, rider of the horses named Hari! This hymn-Strotr is for you. You should realise our desire-endeavour grant us food stuff, riches leading to our benefit.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (174) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
त्वं राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नॄन्याह्यसुर त्वमस्मान्। 
त्वं सत्पतिमघवा नस्तर्मत्रस्त्वं सत्यो वसवानः सहोदाः
हे इन्द्र देव! आप समस्त संसार के और सभी देवताओं के राजा हैं। आप मनुष्यों को रक्षा करते हैं। असुर से आप हमारी रक्षा करें। आप साधुओं के पालक, धनवान् और हमारा उद्धार करने वाले हैं। आप सत्य और बल प्रदान करने वाले हैं। आपने अपने तेज से सबको आच्छादित कर दिया है।[ऋग्वेद 1.174.1]
उद्धार कर्ता :: saviour, emancipator
मुक्तिदाता, उद्धारक, उद्धारकर्ताहे इन्द्र देव! तुम समस्त संसार के स्वामी हो तुम हमारी भी पोषण करो। हमारे पराक्रमियों की सुरक्षा करो। तुम सत्कर्म कर्त्ताओं के उद्धार कर्त्ता हो। तुम धन और शक्ति के दाता हो।
Hey Indr Dev! You are the protector, lord of the humans and the demigods-deities. Save us from the wicked-demons. You nurse the saints-sages and our saviour-emancipator. You grant us truth, riches & power-might. You have pervades all with your aura. 
दनो विश इन्द्र मृध्रवाचः सप्त यत्पुरः शर्म शारदीर्दर्त्। 
ऋणोरपो अनवद्यार्णा यूने वृत्रं पुरुकुत्साय रन्धीः
हे अनिन्दनीय इन्द्र देव! जिस समय आपने संवत्सर पर्यन्त दृढ़ी कृत सात भवनों को नष्ट किया था, उसी समय कठोर वचन बोलने वाले शत्रु सैनिकों को भी नष्ट कर दिया था। आपने गति शील जल दिये और आपने युवा पुरुकुत्स राजा के लिए वृत्रासुर का वध किया।[ऋग्वेद 1.174.2]
संवत्सर :: Its a Sanskrat term for a year which refer to Jovian year, that is a year based on the relative position of the planet Jupiter.
हे इन्द्र देव! तुमने अपमान करने वाले व्यक्तियों को धनहीन और शक्तिहीन बना दिया। तुमने उनके किलों को ध्वस्त कर दिया और जल को प्रवाहमान किया। युवा पुरुकुत्स के शत्रु को उसके अधिकार में कराया।
Hey revered Indr Dev! You destroyed the seven buildings (enemy forts) over a Jovian year and killed the harsh spoken soldiers of the enemy. You made the water move and killed Vrata Sur for the sake of young Purukuts.
अजा वृत इन्द्र शूरपत्नीर्द्यां च येभिः पुरुहूत नूनम्र। 
रक्षो अग्निमशुषं तूर्वयाणं सिंहो न दमे अपांसि वस्तोः
हे इन्द्र देव! आप राक्षसों की सारी नगरियों में जाते हैं और वहाँ से हे पुरुहूत! अनुचरों के साथ स्वर्ग लोक में जाते हैं। वहाँ अशोषक और शीघ्रकारी अग्नि की सिंह की तरह रक्षा करते हैं, जिससे कि वह अपने गृह में अपना कर्तव्य पूर्ण कर सके।[ऋग्वेद 1.174.3]
पुरुहूत :: जिसका आह्रान बहुतों ने किया हो, जिसकी बहुत से लोगों ने स्तुति की हो,
इन्द्र। 
हे बहुतों द्वारा आहुत इन्द्रदेव! तुम वीरों द्वारा रक्षा करने वालों की सेनाओं को प्रेरित करो। तुम जिस अग्नि से प्रकाश को प्राप्त होते हो उस वन राज के समान अग्नि को हमारे गृह में स्थापित करो।
Hey Indr Dev! You attack the cities-forts of the demons and move to heavens thereafter along with your followers. There you protect the fire which is like the lion so that the domestic works, duties, functions can be completed-accomplished.
शेषन्नु त इन्द्र सस्मिन्योनौ प्रशस्तये पवीरवस्य मह्ना। 
सृजदर्णांस्यव यद्युधा गास्तिष्ठद्धरी धृषता मृष्ट वाजान्
हे इन्द्र देव! आपकी महिमा को बढ़ाने के लिए वज्र के प्रहार से रण भूमि में असुर लोग धराशायी होकर गिर पड़े। जिस समय आपने योद्धा शत्रुओं के पास जाकर उनके द्वारा रोके हुए जलों को पुनः प्रवाहित किया, उसी समय आप अपने दोनों अश्वों पर आरूढ़ हो गये। आपने अपनी घर्षक और आसुरी-संहारक क्षमता से अपने सैनिकों को संरक्षित किया।[ऋग्वेद 1.174.4]
हे इन्द्र! तुम्हारी प्रशंसा के लिए वज्र के पराक्रम से शत्रु मारकर सो गए। उस समय तुमने जल और गौओं को छोड़ा तथा शत्रु को धनहीन बनाया।
Hey Indr Dev! Your glory boosted up by the slaying of the wicked-demons when they fell down in the war field by the striking of Vajr. You released the water blocked by them and rode your two horses protecting the own soldiers from the demonic strike. 
वह कुत्समिन्द्र यस्मिञ्चाकन्त्स्यूमन्यू ॠज्रा वातस्याश्वा। 
प्र सूरश्चक्रं वृहतादभीकेऽभि स्पृधो यासिषद्वज्रबाहुः
हे इन्द्र देव! आप जिस यज्ञ में कुत्स ऋषि की कामना करते हैं, उसमें अपने वशीभूत, सरलगामी और वायु के समान वेगशाली अश्वों को परिचालित करते हैं। युद्ध में सूर्यदेव अपने चक्र को और इन्द्र देव अपने वज्र को शत्रु सेना की ओर उन्मुख करें।[ऋग्वेद 1.174.5]
हे इन्द्र देव! तुम कुत्स की इच्छा करते हुए शीघ्रगामी, सुखदायक अश्वों को चलाते हो। तब सूर्य अपने रथ चक्र को निकट लाते हैं और तुम वज्र धारण कर शत्रुओं का सामना करते ह्मे।
Hey Indr Dev! You move your fast running horses, who move fast like the wind-storm, towards the Yagy site of Kuts Rishi. Let Sun divert his disc-wheel and Indr Dev his Vajr towards the enemy army.
जघन्वाँ इन्द्र मित्रेरूञ्चोदप्रवृद्धो हरिवो अदाशून्। 
प्र ये पश्यन्नर्यमणं सचायोस्त्वया शूर्ता वहमाना अपत्यम्
हे हरि वाहन इन्द्र देव! आपने स्तोत्र द्वारा प्रवृद्ध होकर दान-रहित और यजमानों के विघ्नकारी लोगों का विनाश किया। जिन्होंने आपको आश्रयदाता रूप से देखा और जो आपको हव्य प्रदान करते हैं, वे आपसे संतान प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.174.6]
हे इन्द्र देव! तुमने अपने मित्रों को संतान देने वाले अदानशीलों का विनाश किया जो तुम्हें प्राणियों के प्रिय रूप से देखते हैं वे संतानयुक्त हुए सदैव स्थिर रहते हैं।
Hey Indr Dev, riding the horses named Hari! You destroy those who do not donate and kill the disturbing elements, in response to the Strotr recited by the hosts-devotees. They look at you as a protector granting them asylum and they make offerings for you. You bless them with progeny.
रपत्कविरिन्द्रार्कसातौ क्षां दासायोपबर्हणीं कः। 
कर्रेत्तस्रो मघवा दानुचित्रा नि दुर्योणे कुयवाचं मृधि श्रेत्
हे इन्द्र देव! पूजनीय अन्न की प्राप्ति के लिए विद्वान् लोग आपकी स्तुति करते हैं। तब आपने शत्रुओं का वघ करके उन्हें पृथ्वी रूपी शय्या पर शयन करा दिया। इन्द्र देव ने तीन भूमियों के दान द्वारा विचित्र कार्य किये और दुर्योणि राजा के लिए कुयवाच राक्षस का वध किया।[ऋग्वेद 1.174.7]
हे इन्द्र देव! अन्न की प्राप्ति हेतु ऋषियों ने तुम्हारी वंदना की। तुमने तीन भूमियों का दिव्य दान दिया। संग्राम में दुर्योण के लिए कुयवाच को मरवाया।
Hey Indr Dev! The enlightened-learned worship you for the sake of quality foods stuff. At this moment you kill the enemy and lay them over the soil. Indr Dev donation three pieces of land and performed amazing deeds. You killed demon called Kuywach  for the sake of Duryon in the war. 
सना ता त इन्द्र नव्या आगुः सहो नभोऽविरणाय पूर्वी:। 
भिनत्पुरो न भिदो अदेवरियो वधरदेवस्य पीयोः
हे इन्द्र देव! नये ऋषिगण आपके सनातन प्रसिद्ध वीर कर्म की स्तुति करते हैं। आपने अनेक हिंसकों को संग्राम में विनष्ट किया। आपने देवशून्य विपक्ष नगरों को नष्ट किया और शत्रुओं का अस्त्र भी नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.174.8]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे प्राचीन वीरता की नये ऋषियों ने वंदना की। तुमने किलों को ध्वस्त कर डाकुओं को छिन्न-भिन्न किया तथा देव शून्य निन्दक का अस्त्र नीचे झुकाया।
Hey Indr Dev! New Rishi Gan pray-worship mentioning your bravery and killing of the many violent enemies in the war. You destroyed the forts belonging to the opposition, along with their arms and ammunition.
त्वं धुनिरिन्द्र धुनिमतीर्ऋणोरषः सीरा न स्त्रवन्तीः। 
प्र यत्समुद्रमति शूर पर्षि पारया तुर्वशं यदुं स्वस्ति
हे शूर इन्द्र देव! आप शत्रुओं में कोलाहल उत्पन्न करने वाले हैं। इसीलिए आप प्रवहमाना सीरा नाम की नदी की तरह तरंग युक्त जल पृथ्वी पर गिराते हैं। जिस समय आप समुद्र को परिपूर्ण करते हैं, उस समय आपने तुर्वश और यदु के मंगल के लिए उनको पार उतारा।[ऋग्वेद 1.174.9]
हे इन्द्र देव! तुम शत्रुओं को कंपित करने वाले हो। तुमने जलों को नदियों के रूप में प्रवाहित किया। तुमसे समुद्र को परिपूर्ण किया। तुर्वश और यदु को पार लगाया।
Hey brave-mighty Indr Dev! You generate unrest uproar-clamour in the enemy. You make the rain showers fall over the earth like the river Seera creating waves-vibrations. When you fill the ocean, you move Turvash and Yadu cross it.
त्वमस्माकमिन्द्र विश्वध स्या अवृकतमो नरां नृपाता। 
स नो विश्वासां स्मृधां सहोदा विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
है इन्द्र देव! आप सदा हमारे श्रेष्ठ रक्षक बने और प्रजाओं का पालन करें। हमारे सैनिकों को बल प्रदान करें, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त हो सके।[ऋग्वेद 1.174.10]
हे इन्द्र! तुम हमारे हो। तुम प्राणियों की हिंसा के रक्षक हो। तुम हमको युद्धों में विजय हासिल कराते हो। हम ज्ञान, अन्न और लम्बी आयु प्राप्त करें।
Hey Indr Dev! You are our best protector. Grant strength to our warriors so that we are able to gain food grains, strength and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (175) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्, बृहती। 
मत्स्यपायि ते महः पात्रस्येव हरिवो मत्सरो मदः। 
वृषा ते वृष्ण इन्दुर्वाजी सहस्त्रसातमः
हे हरिवाहन इन्द्रदेव! हर्षकर, अभीष्टवर्षी, आह्लादकारी, अन्नवान्, असीम दान वाले और महानुभावों द्वारा सोमरस जिस प्रकार पात्र में स्थापित किया जाता है, उसी प्रकार आप भी प्रसन्न होकर सोमरस का पान करते हुए आनन्द की अनुभूति करें।[ऋग्वेद 1.175.1]
महानुभाव :: excellency, gentleman.
सज्जन, महानुभाव, भद्र मनुष्य, भद्रपुस्र्ष, शिष्ट मनुष्य, भलामानुसहे इन्द्र देव! आह्लादकारी सोम का पान किया, तुम पुष्ट हो गए। वह वीर्यवान पौष्टिक, विजेता सोम तुम्हारे लिए ही है।
Hey the rider of the horses named Hari Indr Dev! Pleasure creating, accomplishments fulfilling, food grains producing, donors store Somras in a pot for you to drink it and enjoy.
आ नस्ते गन्तु मत्सरो वृषा मदो वरेण्यः। 
सहावाँ इन्द्र सानसिः पृतनाषाळमर्त्यः
हे इन्द्र देव! हर्षकर, अभीष्ट वर्षी, तर्पयिता, वरणीय, सहायवान्, शत्रु सैन्य विनाशक और अविनाशी सोमरस आपको प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.175.2]
हे इन्द्र देव! हमारा वह पौष्टिक एवं आह्लादकारी पेय तुम्हें ग्रहण हो। तुम बलिष्ठ, धन ग्रहण करने वाले शत्रु की वशीभूत करने वाले अमर हो।
Hey Indr Dev! Please accept the pleasure generating, accomplishment fulfilling, acceptable, helpful, enemy destroyer and imperishable Somras.
त्वं हि शूरः सनिता चोदयो मनुषो रथम्। 
सहावान्दस्युमव्रतमोषः पात्रं न शोचिषा
हे इन्द्र देव! आप शूर और दाता है। मैं मनुष्य हूँ, मेरा मनोरथ पूर्ण करें। आप सहायवान् है। जिस प्रकार से अग्नि अपनी ज्वाला से पात्र को जलाता है, उसी प्रकार से आप व्रत रहित असुरों को जलायें।[ऋग्वेद 1.175.3]
हे इन्द्र देव! तुम शक्तिशाली तथा धन प्राप्त करके प्राणियों की ओर प्रेरित करने वाले हो। पात्र को ज्वाला से जलाने के तुल्य तुम राक्षसों को दंड देते हो।
Hey Indr Dev! You are brave and giver. I am a human being. Please accomplish my endeavours-desires. The way the fire heats up the pot, you burn the demons (wicked, sinners, immoral).
मुषाय सूर्य करें चक्रमीशान ओजसा। 
वह शुष्णाय वधं कुत्सं वातस्याश्चैः
हे मेधावी इन्द्र देव! आप ईश्वर हैं। अपनी सामर्थ्य से अपने सूर्य के दो चक्रों में से एक का हरण कर लिया। शुष्ण का वध करने के लिए कर्त्तन साधन वज्र लेकर वायु के समान वेग वाले अश्व के साथ आयें।[ऋग्वेद 1.175.4]
हे प्रतापी इन्द्र! तुम ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए सूर्य के रथ से गति प्राप्त करते हो। शुष्णवध के लिए पवन के घोड़ों में वज्र सहित प्राप्त हो जाओ।
Hey genius Indr Dev! You are a form of God. You reduced the two cycles of the Sun to one with your might-capability. Come to us riding the horses which moves fast like wind for killing Shusn-a demon with the Vajr.
शुष्मिन्तमो हि ते मदो द्युम्रिन्तम उत क्रतुः। 
वृत्रघ्ना वरिवोविदा मंसीष्ठा अश्वसातमः
हे अनेक अश्व दाता इन्द्र देव! आपकी प्रसन्नता सब को शक्ति देने वाली एवं आपके श्रेष्ठ कर्म प्रचुर अन्न प्रदत्त करने वाले हैं। हमें वृत्रासुर का संहार करने वाले आयुध प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.175.5]
हे इन्द्र! तुम्हारी खुशी ही शक्ति है। तुम्हारा वचन कीर्ति है। तुम अश्व आदि के दाता, वृत्र नाशक और धन ग्रहण करने वालों के स्वामी हो।
Hey many horses provider Indr Dev! Your happiness grant strength to all and your excellent endeavours provide sufficient food grains. Grant us the weapons to kill Vrata Sur.
यथा पूर्वेभ्यो जरितृभ्य इन्द्र मयइवापो न तृष्यते बभूथ। 
तामनु त्वा निविदं जोहवीमि विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे इन्द्र देव! हम स्तुतियों द्वारा आपका आवाहन करते हैं, जिससे हम अन्न, धन, बल और दीर्घायु को प्राप्त करें। दुःखी स्तोताओं को आप सुखी करें और प्यासे स्तोताओं को जल प्रदान कर तृप्त करें।[ऋग्वेद 1.175.6]
हे इन्द्रदेव! जैसे तुमने प्राचीन वंदना करने वालों को सुख प्रदान किया। वैसे ही प्यासे को जल देने के समान मुझे भी सुख प्रदान करो।
Hey Indr Dev! We pray to you with the help of Stuti-hymns and invite you give us food grains, wealth, strength and longevity. Make the worried devotees happy. Grant water to the thirsty.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (176) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्। 
मत्सि नो वस्यइष्टय इन्द्रमिन्दो वृषा विश। 
ऋघायमाण इन्वसि शत्रुमन्ति न विन्दसि
हे सोम देव! धन प्राप्ति के लिए इन्द्र देव को प्रसन्न करें। अभीष्ट वर्षी इन्द्र देव के मध्य में प्रवेश करें। प्रसन्न होकर शत्रुओं का विनाश करते हुए क्रमश: आप व्याप्त होते हैं, इसलिए किसी शत्रु को समीप नहीं आने देते।[ऋग्वेद 1.176.1]
हे इन्द्र देव! हमें कल्याण प्राप्त कराने हेतु आह्लाद से परिपूर्ण होओ। यह सोम तुम्हारे शरीर में प्रवेश करे। तुम क्रोध में भर रहे हो परन्तु शत्रु हमारे सामने नहीं आना चाहता।
Hey Som Dev (Moon)! Let us make Indr Dev happy for the sake of wealth. Join Indr Dev. You eliminate the enemy on being happy and do not let the enemy come close. 
तस्मिन्ना वेशया गिरो य एकश्चर्षणीनाम्। 
अनु स्वधा यमुप्यते यवं न चर्कृषद् वृ
हे इन्द्र देव! आप मनुष्यों के अद्वितीय अधीश्वर हैं। आप यथारीति जौ की तरह हमारा अभीष्ट सार्थक करते हैं।[ऋग्वेद 1.176.2]
उसे इन्द्रदेव की प्रार्थनाएँ भेंट करो, उन मनुष्यों के अद्वितीय अधीश्वर की हवियाँ प्रदान करो। वे हमारे कर्म सिद्ध करते हैं।
Hey Indr Dev! you are the lord of the humans. You accomplish our desires- (goals, targets, endeavours). Let us make offerings to him.
यस्य विश्वानि हस्तयोः पञ्च क्षितीनां वसु। 
स्पाशयस्व यो अस्मध्रुग्दिव्ये वाशनिर्जहि
जिन इन्द्र देव के हाथों में ब्राह्मणादि चार वर्ण और निषाद की वैभव सम्पदा है, ऐसे ही आप हमारे विद्रोहियों को पराजित करें और आकाश से गिरने वाली तड़ित विद्युत के समान उनको नष्ट करें।[ऋग्वेद 1.176.3]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे हाथें से प्राणी की पाँच जातियों का सम्पूर्ण धन है। वह इन्द्र हमारे विरोधियों को वज्र से नष्ट करें।
The assets of the four Varn & the Nishad etc. are with you (protected by you). You should defeat our enemy and destroy them like the strike of lightening-thunder Volt.
असुन्वन्तं समं जहि दूणाशं यो न ते मयः। 
अस्मभ्यमस्य वेदनं दद्धि सूरिश्चिदोहते
हे इन्द्र देव! जो लोग सोम रस का अभिषव नहीं करते और जिनका विनाश करना दुःसाध्य है, उनका वध करें; क्योंकि वे आपके सुख के कारण नहीं हैं। उनकी धन-सम्पदा को हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.176.4]
अभिषव  :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, यज्ञ, सोमरस चुआना, आसवन, ख़मीर, काँजी, यज्ञ में स्नान, सोमरस खींचना-चुवाना, सोमलता को कुचलकर गारना या निचोड़ना, सोमरस पान, राजायारोहण, अधिकारप्राप्ति।
हे इन्द्र देव! सोम का अभिषव न करने वालों तथा मुश्किल से वश में आने वालों को मार दो। क्योंकि वे तुम्हें सुखी नहीं कर सकते। उनका धन हमें प्रदान करो। तुम्हारा स्तोता धन प्राप्त के योग्य है।
Hey Indr Dev! Those who do not extract Somras (for the sake of demigods, deities) are sure to perish. Kill them, since they cause worries-trouble. Let their wealth, assets, riches be given to us.
आवो यस्य द्विबर्हसोऽर्केषु सानुषगसत्। 
आजाविन्द्रस्येन्दो प्रावो वाजेषु वाजिनम्
हे सोम देव! स्तोत्रों के उच्चारण के समय उपस्थित रहकर आपने जिन दो प्रकार के (स्तोत्र :- ज्ञानयज्ञ, आहुपरक :- हविर्यज्ञ) यज्ञों को करने वाले यजमानों की रक्षा की, उसी प्रकार युद्ध के समय इन्द्रदेव की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.176.5]
हे सोम! इन्द्रदेव के श्लोक में जो लगातार लीन रहता है, तुम उसकी सहायता करते हो तुम उस वेगवान इन्द्रदेव की संग्राम में सुरक्षा करो।
Hey Som Dev! The way you protected the hosts-Ritviz in the Yagy, by presenting your self at the time of the recitation of sacred hymns-Strotr by them, you should also protect Indr Dev. 
यथा पूर्वेभ्यो जरितृभ्य इन्द्र मयइवापो न तृष्यते बभूथ। 
तामनु त्वा निविदं जोहवीमि विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे इन्द्र देव! आपकी प्राचीन स्तुतियों द्वारा हम आपका आवाहन करते हैं, ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.176.6]
हे इन्द्र देव! तुम प्यासे को पानी के समान प्राचीन स्तोता को सुख देने वाले हुए। मैं भी उसी प्रार्थना से तुम्हारा आह्वान करता हूँ। तुम अन्न, पराक्रम और धनशील स्वभाव प्राप्त करो।
Hey Indr Dev! We invite you by the recitation of the eternal-ancient hymns-Strotr to get food grains, strength and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (177) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
आ चर्षणिप्रा वृषभो जनानां राजा कृष्टीनां पुरुहूत इन्द्रः। 
स्तुतः श्रवस्यन्नवसोप मद्रिग्युक्त्वा हरी वृषणा याह्यर्वाङ्
मनुष्यों के प्रीतिदायक, सबके इच्छित वर्षक, मनुष्यों के स्वामी और बहुतों के द्वारा आहूत इन्द्रदेव हमारे पास आवें। हे इन्द्रदेव! हमारी स्तुति श्रवण कर दोनों तरुण अश्वों को रथ में नियोजित कर हव्य ग्रहण करने और रक्षा के लिए हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 1.177.1]
आहूत :: संयोजित, आहूत, बुलायी गयी, आमन्त्रित; summoned, convened.
मनुष्यों के पोषक, महान स्वामी, स्तुत्य अनुष्ठान की इच्छा करने वाले इन्द्रदेव अपने शक्तिशाली अश्वों को रथ में जोड़कर सुरक्षा के लिए यहाँ पधारें।
Hey dear to humans, accomplishment-desires fulfilling of everyone, lord of humans and invited by many, Indr Dev! Hey Indr Dev! Listen-Answer our prayers, deploy the young horses in the charoite, come to us, accept the offerings and protect us.
ये ते वृषणो वृषभास इन्द्र ब्रह्मयुजो वृषरथासो अत्याः। 
ताँ आ तिष्ठ तेभिरा याह्यर्वाङ हवामहे त्वा सुत इन्द्र सोमे
हे इन्द्र देव! आपके जो तरुण, उत्तम मंत्र द्वारा रथ में योजनीय वर्षक और रथ से युक्त घोड़े हैं, उन पर आरूढ़ होकर हमारे समक्ष आवें।[ऋग्वेद 1.177.2]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे पुष्ट, उन्नतशील श्लोक द्वारा रथ में जुतने वाले अश्व हैं, उन पर सवार होकर पधारो।
Hey Indr Dev! Deploy your young horses in the charoite, treat them with the excellent hymns leading to success of all plans & programs and come to us.
आ तिष्ठ रथं वृषणं वृषा ते सुतः सोमः परिषिक्ता मधूनि। 
युक्त्वा वृषभ्यां वृषभ क्षितीनां हरिभ्यां याहि प्रवतोप मद्रिक्
हे इन्द्र देव! आप अभीष्ट वर्षक रथ पर आरूढ़ होवें, क्योंकि आपके लिए मनोरथ दाता सोमरस तैयार है, मधुर घृत आदि भी तैयार है।[ऋग्वेद 1.177.3]
हम सोम निचोड़कर तुम्हारा आह्वान करते हैं। हे इन्द्र देव! तुम्हारे लिए सोम रस अभिषव किया गया है। तुम अभीष्ट वर्षक रथ पर चढ़ो।
Hey Indr Dev! Ride the charoite that leads to fulfilment of wills and come to us. Somras is ready for you along with sweet Ghee.
अयं यज्ञो देवया अयं मियेध इमा ब्रह्माण्ययमिन्द्र सोमः। 
स्तीर्णं बर्हिरा तु शक्र प्र याहि पिबा निषद्य वि मुचा हरी इह
हे इन्द्र देव! देवों के उद्देश्य से यह यज्ञ किया जाता है। यह यज्ञीय पशु ये मंत्र, यह सोमरस और यह बिछाया हुआ कुश आपके लिए तैयार है। आप शीघ्र पधारें और यहाँ आसन पर बैठकर सोमरस का पान करें और यहीं पर आप अपने हरि नाम के दोनों घोड़ों की खोल दें।[ऋग्वेद 1.177.4]
शक्तिवान अश्वों से युक्त रथ को यहाँ पर लाओ। हे इन्द्रदेव! देवताओं द्वारा किया जाने वाला यह यज्ञ, श्लोक, यह सोम और यह कुश का आसन है। तुम शीघ्रता से आकर अपने अश्वों को ले लो और आसन पर विराजमान होकर सोम का पान करो।
Hey Indr Dev! This Yagy has been organised of the sake of demigods-deities. The animals for the Yagy, Mantr, Somras and the cushion made of Kush are ready. Come here fast, be seated over the cushion of Kush and enjoy Somras. Release your both of your versatile horses
ओ सुष्टुत इन्द्र याह्यर्वाङुप ब्रह्माणि मान्यस्य कारोः। 
विद्याम वस्तोरवसा गुणन्तो विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
इन्द्र देव हमारे द्वारा अच्छी तरह स्तुत होकर माननीय स्तोता के मंत्र को उपलक्ष्य करके हमारे समक्ष पधारें। हम स्तुति करते हुए आपका आश्रय प्राप्त कर अनायास निवास स्थान प्राप्त करेंगे। साथ ही अन्न, बल और दीर्घायु भी प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 1.177.5]
हे इन्द्र देव! तुम मान पुत्र के श्लोकों को सुनकर प्रत्यक्ष होओ। हम वंदना करते हुए तुम्हारी सुरक्षा ग्रहण करें और अन्न शक्ति तथा दानशील स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey Indr Dev! Having noticed our prayed-worshipped with revered hymns-Strotr respond to us. We will attain your support and get food grains, might and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (178) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
यद्ध स्या त इन्द्र श्रुष्टिरस्ति यया बभूथ जरितृभ्य ऊती। 
मा नः कामं महयन्तमा घग्विश्वा ते अश्यां पर्याप आयोः
हे इन्द्र देव! जिस समृद्धि के द्वारा आप स्तोताओं की रक्षा करते हैं, वह सर्वत्र प्रसिद्ध है। आप हमें महान् बनाने की अभिलाषा को नष्ट न करे। आपके लिए जो वस्तु प्राप्तव्य और भोग्य है, वह सब हमें भी प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.178.1]
हे इन्द्र देव! तुम अपने जिस साधन से प्रार्थनाकारी की सुरक्षा करते हो, उसे रोकने से हमारी इच्छा नष्ट हो जायेगी, अतः ऐसा न करो मैं प्राप्तव्य और उपभोग्य वस्तुओं को ग्रहण करुँ।
Hey Indr Dev! Its well known that you protect your devotees who perform Yagy and grant him sufficient riches. Do not kill our desire to become great. Let all useful goods and comforts be available to us.
न घा राजेन्द्र आ दमनें या नु स्वसारा कृणवन्त योनौ। 
आपश्चिदस्मै सुतुका अवेषन्गमन्न इन्द्रः सख्या वयश्च
परस्पर भगिनी स्वरूप अहोरात्र अपने जन्म स्थान में जो वृष्टि रूप कर्म करते हैं, राजा इन्द्रदेव वह हमारा कर्म नष्ट न करें। बल का कारण हव्य इन्द्रदेव के लिए व्याप्त होता है। इन्द्र देव हमें मित्रता और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.178.2]
मंगल की दात्री, रात्रि और उषा दोनों बहनें जो कर्म करती हैं, इनके कर्मों को न रोकें। इन्द्र हमको मैत्री और अन्न प्रदान करें।
Datri, Ratri and Usha perform for our welfare at the place of their origin, leading to rains. Do not obstruct them & our endeavours. The offerings may reach Indr Dev. Let Indr Dev grant us friend ship and food stuff.
जेता नृभिरिन्द्रः पृत्सु शूरः श्रोता हवं नाधमानस्य कारोः। 
प्रभर्ता रथं दाशुष उपाक उद्यन्ता गिरो यदि च त्मना भूत्
हे विक्रमशाली इन्द्र देव! युद्ध नेता मरुद्गणों के साथ युद्ध में जय-लाभ करते हुए अनुग्रहार्थी स्तोता का आह्वान श्रवण करें। जिस समय स्वयं स्तुति वाक्य को वरण करने की इच्छा करते हैं, उस समय हव्य देने वाले यजमान के पास (अपना) रथ से जाते हैं।[ऋग्वेद 1.178.3] 
इन्द्र विजेता, याचक की पुकार सुनने वाले, उपासक के सम्मुख रथ को ले जाने वाले हैं। वे स्वयं ही स्तुतियों को प्रेरित करते हैं।
Hey valour possessing Indr Dev! Accept the offerings of the Ritviz-hosts while fighting along with Marud Gan and accept our invitation. When you wish to accept the prayers of the hosts, you move your charoite to them. You inspire the hosts for prayers.
एवा नृभिरिन्द्रः सुश्रवस्था प्रखादः पृक्षो अभि मित्रिणो भूत्। 
समर्य इषः स्तवते विवाचि सत्राकरें यजमानस्य शंसः
इन्द्र देव उत्तम धन लाभ की इच्छा से यजमान द्वारा दिया हुआ अन्न, प्रचुर मात्र में भक्षण हुए और सहायता करने वाले यजमान के शत्रुओं को पराजित करते हैं। विभिन्न आह्वानों की ध्वनियों से युक्त युद्ध में सत्य पालक इन्द्र यजमान के कर्म की प्रसिद्धि करते हुए हव्य को स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.178.4]
उत्तम यज्ञ की अभिलाषा वाले इन्द्रदेव अपने यजमान की हवियों को रुचिपूर्वक प्राप्त करते हैं। यजमान की वंदना को सत्य सिद्ध करने वाले ध्वनियों के श्लोक से वन्दनीय किये जाते हैं। 
Indr eat the offerings made by the hosts-Ritviz in enough quantity and defeat their enemy. Associated by various sounds-enchantments of various invitations, truthful Indr Dev promote the cause-endeavours of the devotees and accept their offerings.
त्वया वयं मघवन्निन्द्र शत्रूनभि ष्याम महतो मन्यमानान्। 
त्वं त्राता त्वमु नो वृधे भूर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे इन्द्र देव! आपकी सहायता लेकर हम उन शत्रुओं का वध करेंगे, जो अपने को अवध्य समझते हैं। आप हमारे भ्राता है। आप हमारे धन के वर्धक बनें ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.178.5]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारे पराक्रम से शत्रुओं को वश में करें। तुम हमारी रक्षा करो और तुम बुद्धिकर्त्ता हो। हम अन्न, बल और दानमय स्वभाव को प्राप्त करें।
Hey Indr Dev! We will kill those enemies who consider them selves immortal, with your help. You are our brother. You should promote-increase our wealth-riches granting us food stuff, might and longevity.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (11) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- विरास्थाना, त्रिष्टुप्।
 श्रुधी हवमिन्द्र मा रिषण्यः स्याम ते दावने वसूनाम्। 
इमा हि त्वामूर्जो वर्धयन्ति वसूयवः सिन्धवो न क्षरन्तः
हे इन्द्र देव! आप मेरी स्तुति श्रवण करें। तिरस्कार न करें। हम आपके धनदान के पात्र हैं। नदी की तरह प्रवाहशाली यह हव्य यजमान के लिए धनेच्छा करता है। यह आपको भी वर्द्धित करता है।[ऋग्वेद 2.11.1]
हे इन्द्र देव! मेरी वंदना श्रवण करो। मेरा अपमान न करो। हम तुमसे धन लेने के योग्य हैं। यह नदी की भांति प्रवाह से परिपूर्ण हवि यजमान के लिए धन की इच्छा तुम्हारे वज्र की ध्वज की ओर अश्वों की स्तुति करते हैं।
Hey Indr Dev!  Respond to my prayers. Do not avoid-reject, discard us. We deserve to be the recipients of wealth (money, riches) from you. This flow of offerings like the river, desire money for the hosts-Ritviz. This will boost you as well. 
सृजो महीरिन्द्र या अपिन्वः परिष्ठिता अहिना शूर पूर्वी। 
अमर्त्यं चिद्दासं मन्यमानमवाभिनदुक्थैर्वावृधानः
हे शूर इन्द्र देव! आपने जो जल बरसाया, वृत्रासुर ने उसी प्रभूत जल पर आक्रमण किया। आपने उस जल को छोड़ दिया। उस दस्यु वृत्रासुर ने अपने को अमर समझा। स्तुति द्वारा वर्द्धित होकर उसको आपने नीचे पटक दिया।[ऋग्वेद 2.11.2]
हे वीर इन्द्र! तुम्हारे द्वारा किये गये पानी पर वृत्र ने हमला किया, तुमने उस पानी को मुक्त कर दिया। वह वृत्र अपने को अमर मानता था, परन्तु प्रार्थनाओं से वृद्धि प्राप्त कर तुमने उसे धराशायी बनाया है।
Hey brave Indr Dev! Vrata Sur attacked over the waters rained by you. You released that water. Vrata Sur considered himself to be immortal. The prayers made you strong and you threw Vrata Sur down.
उक्थेष्विन्नु शूर येषु चाकन्स्तोमेष्विन्द्र रुद्रियेषु च। 
तुभ्येदेता यासु मन्दसानः प्र वायवे सिस्रते न शुभ्राः
हे शूर इन्द्र देव! जिस सुखकर या रुद्रकृत ॠङ्-मंत्र और स्तोत्र की आप इच्छा करते हैं और जिसमें आपको आनन्द मिलता है, वह सब शुभ और दीप्यमान स्तुति, यज्ञ के प्रति आपके लिए प्रसूत होती है।[ऋग्वेद 2.11.3]
हे पराक्रमी इन्द्रदेव! तुम जिन सुखकारी श्लोकों की इच्छा करते थे, वे श्लोक ज्योर्तिमान हुए अनुष्ठान में तुम्हारे लिए प्रकट होते हैं। 
Hey brave & mighty Indr Dev! The pious, auspicious, aurous Strotr that you desired to hear-listen and relished, evolve for you in the Yagy.
शुभ्रं नु ते शुष्मं वर्धयन्तः शुभ्रं वज्रं बाह्वोर्दधानाः। 
शुभ्रस्त्वमिन्द्र वावृधानो अस्मे दासीर्विशः सूर्येण सह्याः
हे इन्द्र देव! स्तोत्र द्वारा हम आपके सुखकर बल को बढ़ाते तथा आपके हाथों में दीप्त वज्र अर्पण करते हैं। वर्द्धित और तेज युक्त होकर आप शत्रुओं को सूर्य रूप आयुध द्वारा पराजित करते हैं।[ऋग्वेद 2.11.4]
हे इन्द्र देव! वंदनाओं से हम तुम्हारी शक्ति में वृद्धि करते और वज्र भेंट करते हैं। तुम उन वस्तुओं को सूर्य के समान तेज से पराजित करते हो।
Hey Indr Dev! We increase (boost, enhance) your power-might by the recitation of Strotr which makes you comfortable and hand over the Vajr to you. Defeat the enemy with the increased power with the weapon like Sun. 
गुहा हितं गुहां गूळ्हमप्स्वपीवृतं मायिनं क्षियन्तम्। 
उतो अपो द्यां तस्तभ्वांसपहन्नहिं शूर वीर्येण
हे शूर इन्द्र देव! गुफा में अवस्थित अप्रकाश्य, लुक्काति, तिरोहित और जल में अवस्थित जिस वृत्रासुर ने अपनी शक्ति से अन्तरिक्ष और द्युलोक को विस्मित किया था, उसको वज्र द्वारा आपने विनष्ट किया।[ऋग्वेद 2.11.5]
तिरोहित :: अदृश्य; लुप्त, अंतर्हित, ओझल, ढका हुआ या छिपा हुआ; invisible, hidden, disappeared. 
हे इन्द्र देव! गुफा में छिपे हुए जिस वृत्र ने अपने अद्भुत पराक्रम से अतंरिक्ष और नभ को आश्चर्यजनक किया उसे तुमने वज्र से मार डाला।
Hey brave Indr Dev! Vrata Sur who amazed the heavens with his mystic powers and was hidden-invisible in the cave, deeper inside waters, was killed by you with your Vajr. 
स्तवा नु त इन्द्र पूर्व्या महान्युत स्तवाम नूतना कृतानि। 
स्तवा वज्रं बाह्वोरुशन्तं स्तवा हरी सूर्यस्य केतू
हे इन्द्र देव! हम आपकी प्राचीन महत्कीर्तियों की स्तुति करते हैं तथा आपके आधुनिक कृत कर्मों की स्तुति करते हैं। आपके दोनों हाथों में दीप्यमान वज्र की स्तुति करते हैं। आप सूर्य देव की आत्मा है। आपके पताका स्वरूप हरि नाम के अश्वों की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 2.11.6]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारे महान ऐश्वर्य का गुणगान करते हैं और तुम्हारे अद्भुत कर्मों की प्रशंसा करते हैं। तुम्हारे वज्र की ध्वज की ओर अश्वों की स्तुति करते हैं।
Hey Indr Dev! We appreciate your present & past  deeds-ventures. We worship pray the shinning Vajr present in your hands. You are the soul of Sun. We pray your horses who represent your flag. 
हरी नु त इन्द्र वाजयन्ता घृतश्चुतं स्वारमस्वार्ष्टाम। 
वि समना भूमिरप्रथिष्टारंस्त पर्वतश्चित्सरिष्यन्

हे इन्द्र देव! आपके शीघ्रगामी दोनों घोड़े जलवर्षी मेघ ध्वनि करते हैं। समतल पृथ्वी मेघ गर्जन सुनकर प्रसन्न हुई। मेघों ने भी इधर-उधर घूमकर शोभा प्राप्त की।[ऋग्वेद 2.11.7]
तुम्हारे अश्व जलवर्षक बादल की ध्वनि वाले हैं। भूमि भी मेघ गर्जन सुनकर प्रसन्न हुई और बादल भी सभी और वर्षा  करते हुए शोभायमान हैं।
Hey Indr Dev! Your fast running horses produce the sound of showering clouds. Flat earth became happy with the sound of clouds. The clouds appeared beautiful moving around.  
नि पर्वतः साद्यप्रयुच्छन्त्सं मातृभिर्वावशानो अक्रान्। 
दूरे पारे वाणीं वर्धयन्त इन्द्रेषितां धमनिं पप्रथन्नि
प्रमाद शून्य मेघ अन्तरिक्ष में आया और मातृभूत जल के साथ इधर-उधर घूमने लगा। मरुतो ने अत्यन्त दूर अन्तरिक्ष में अवस्थित शब्द को बढ़ाते हुए, इन्द्रदेव द्वारा प्रेरित उस शब्द को चारों ओर फैला दिया।[ऋग्वेद 2.11.8]
बादल की ध्वनि वाला है। भूमि को गर्जना से प्रसन्न होती और बादल भी सभी ओर वर्षा करते हुए सुशोभित होते हैं। बादल अंतरिक्ष में पहुँचकर जल के साथ विचरण करने लगा। मरुद्गण ने उसकी ध्वनि को वृद्धि करते हुए सब जगह विद्यमान किया। 
The clouds appeared in the sky carrying waters and started roaming around. The Marud Gan spreaded the thunderous sound of the clouds, inspired by Indr Dev, every where. 
इन्द्रो महां सिन्धुमाशयानं मायाविनं वृत्रमस्फुरन्निः। 
अरेजेतां रोदसी भियाने कनिक्रदतो वृष्णो अस्य वज्रात्
बलवान् इन्द्रदेव ने इधर-उधर संचारी मेघ में अवस्थित मायावी वृत्रासुर को मार गिराया। जल वर्षक इन्द्र देव के वज्र के व्यापक शब्द से भय पाकर द्यावा पृथ्वी भी कम्पायमान् हो गई।[ऋग्वेद 2.11.9]
मायावी :: हाथ न आनेवाला, टाल-मटोल वाला, कपटी, धूर्त, मायावी, धोखे से भरा हुआ; elusive, deceptive.
महाबलिष्ठ इन्द्रदेव ने बादल में छिपे वृत्र का पतन किया। इन्द्रदेव ने वज्र द्वारा जल वृष्टि समाप्त से अम्बर, धरा, कम्पित होकर भयीभत हुई।
Mighty Indr Dev killed elusive, deceptive Vrata Sur, hiding himself in the clouds here or there. The earth trembled by the sound of Vajr of Indr Dev who produces rains. 
अरोरवीष्णो अस्य वज्रोऽमानुषं यन्मानुषो निजूर्वात्। 
नि मायिनो दानवस्य माया अपादयत्पपिवान्त्सुतस्य
जिस समय मनुष्यों के हितकारी इन्द्र देव ने मनुष्यों के शत्रु वृत्रासुर के विनाश की इच्छा की थी, उस समय अभीष्ट वर्षक इन्द्र देव का वज्र बार-बार गर्जन करने लगा। इन्होंने अभिषुत सोमरस का पान करके मायावी दानव की सारी माया को नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 2.11.10]
माया :: कठवैधता, छल, वंचना, प्रतारणा, नीमहक़ीमी, छल, प्रवंचना; caste, spell,  charlatanry, charlatanism
प्राणियों का हित करने वाले इन्द्र ने वृत्र को मारने की अभिलाषा की तो उनका व्रज गरजने लगा। इन्द्र ने सोमरस पीकर दानवों की माया को अलग-थलग कर दिया।
Vajr started thundering again & again, when well wisher of humans Indr Dev desired to destroy Vrata Sur. He used Somras (sipped, drunk) and destroyed the elusive powers, spell-cast of the demon. 
पिबापिबेदिन्द्र शूर सोमं मन्दन्तु त्वा मन्दिनः सुतासः। 
पृणन्तस्ते कुक्षी वर्धयन्त्वित्था सुतः पौर इन्द्रमाव
हे इन्द्र देव! आप अभिषुत सोमरस का पान करें। मददाता सोमरस आपको प्रसन्न करे। सोमरस आपके उदर की पूर्ति करके आपको प्रसन्न करे। इस प्रकार उदरपूरक सोमरस इन्द्र को तृप्त करें।[ऋग्वेद 2.11.11]
हे इन्द्र देव! इस निचोड़े हुए सोम रस को पियो वह तुम्हें हर्ष प्रदान करें। उससे तुम्हारी उदर पूर्ति हो। उदर को पूर्ण करने वाला सोमरस तुम्हें तृप्त करे। 
Hey Indr Dev! Consume the extracted-distilled Somras. Let the refreshing-intoxicating Somras refresh you. Let it fill your stomach-belly. In this way the Somras which satisfy hunger satisfy Indr Dev. 
त्वे इन्द्राप्य भूम विप्रा धियं वनेम ऋतया सपन्तः। 
अवस्यवो धीमहि प्रशस्तिं सद्यस्ते रायो दावने स्याम
इन्द्र देव हम मेधावी हैं। हम आपके अन्दर स्थान पावें। कर्म फल की कामना से हम आपकी सेवा करके यज्ञ करेंगे। आपका आश्रय पाने की इच्छा से हम आपकी प्रशंसा का ध्यान करते हैं, ताकि हम इसी क्षण आपके धनदान के पात्र हो सकें।[ऋग्वेद 2.11.12]
हे इन्द्र देव! हम बुद्धिवान पुरुष तुम्हारे मन में जगह ग्रहण करेंगे। कर्म फल की कामना से तुम्हारी शरण के लिए तुम्हारी प्रार्थना करते हैं, जिससे हम तुम्हारा दिया हुआ धन शीघ्र प्राप्त कर सकें।
Hey Indr Dev! We are brilliant. Let us secure ourselves under you. We will organise Yagy to serve you, with the desire of reward of our deeds-ventures. We seek shelter, asylum, protection under you & appreciate you so that we become eligible to receive money-riches from you. 
स्याम ते त इन्द्र ये त ऊती अवस्यव ऊर्जं वर्धयन्तः। 
शुष्मिन्तमं यं चाकनाम देवास्मे रयिं रासि वीरवन्तम्
हे द्युतिमान् इन्द्रदेव! आपके आश्रय लाभ की इच्छा से जो आपको हव्य वर्द्धित करते हैं, हम भी उन्हीं तरह आपके अधीन हो जावें। हम जिस धन की इच्छा करते हैं, आप हमें सर्वापेक्षा बलवान् और वीर पुत्र युक्त वही धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.11.13]
द्युतिमान् :: स्वायंभुव मनु के एक पुत्र का नाम, शाल्व देश के एक राजा का नाम (महाभारत), प्रियव्रत राजा के पुत्र जिन्हें क्रौंच द्वीप का राज्य मिला था (विष्णुपुराण), प्रकाशवाला, जिसमें चमक या आभा हो, जो तेज से भरा हुआ या मंडित हो; one who is possessing aura, energy. 
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे सहारे की इच्छा से तुम्हें हवियों से वृद्धि करने वालों के तुल्य शरण ग्रहण करें। हे के इन्द्रदेव! तुम हमको वीर पुत्र युक्त धन प्रदान कराओ।
Hey aurous Indr Dev! We should be alike those who make offerings to you to seek asylum-protection under you. You should provide-give us the wealth which we desire from you i.e., the son who is powerful-mighty, strong as compared to others. 
रासि क्षयं रासि मित्रमस्मे रासि शर्ध इन्द्र मारुतं नः। 
सजोषसो ये च मन्दसानाः प्र वायवः पान्त्यग्रणीतिम्
हे इन्द्र देव! आप हमें गृह दें, मित्र दें और महापुरुषों की तरह वीर्य दें, प्रसन्नचित्त वायुगण अतीव आनन्दित होकर आगे लाया हुआ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.11.14]
हे इन्द्रदेव हमें निवास बंधु और उत्तम पौरुष प्रदान करो। पवन के साथ पराक्रम वाले देवता इस सोम रस को पीएँ।
Hey Indr Dev! Give us house-home, friends and energetic masculine power. Let the Demigods-deities drink Somras along with Pawan Dev amusingly-happily. 
व्यन्त्विन्नु येषु मनदसानस्तृपत्सोमं पाहि द्रह्यदिन्द्र। 
अस्मान्त्सु पृत्स्वा तरुत्रावर्धयो द्यां बृहद्भिरर्कैः
हे शत्रु नाशक इन्द्र देव! जिन मरुतों के सहायक होने पर आप प्रसन्न होते हैं, वे शीघ्र सोमरस का पान करें। आप भी अपने को दृढ़ करके तृप्तिकर सोमरस का पान करें। बलवान् और पूजनीय मरुतों के साथ आप युद्ध में हमें वर्द्धित करें, घुलोक को भी वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 2.11.15]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे सहायक मरुद्गण सोम रस ग्रहण करें। तुम भी इस संतुष्ट करने वाले सोमरस को पियो। तुम शत्रुओं का नाश करने वाले हो। पूज्य मरुतो सहित हमको युद्ध में आगे बढ़ायें।
Hey enemy slayer Indr Dev! The Marud Gan with whom you become happy, should drink Somras when they help you. You too drink Somras with firmness and firm determination. You should promote-help us & the heavens in war along with mighty Marud Gan.  
बृहन्त इन्नू ये ते तरुत्रोक्थेभिर्वा सुग्नमाविवासान्। 
स्तृणानासो बर्हिः पस्त्यावत्त्वोता इदिन्द्र वाजमग्मन्
हे अनिष्ट निवारक इन्द्र देव! आप सुखप्रद हैं। जो पुरुष स्तोत्रों द्वारा आपकी सेवा करता है, वह शीघ्र ही महान् हो जाता है। जो कुश बिछाकर आपकी सेवा करते हैं, वे आपका आश्रय प्राप्तकर गृह के साथ अन्न प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.11.16]
अनिष्ट :: अनभिलाषित, घृणा उत्पन्न करनेवाला; unwelcome, forbidding, unwished, harmful, undesirable. 
हे इन्द्र देव! तुम अनिष्ट का समाधान करते हो। तुम्हारा सेवक शीघ्र ही श्रेष्ठता ग्रहण करता है। कुश बिछाकर तुम्हारी अर्चना करने वाले तुम्हारी शरण से घर और अन्न पाते हैं।
Hey undesirable forbidding Indr Dev! You grant comforts-luxuries. One who worship-pray you with the help of Strotr-hymns becomes great-honourable soon. One who who pray, sitting over the Kush mate, under your shelter, soon get house, food snakes. 
उग्रेष्विन्नु शूर मन्दसानस्त्रिकुद्रकेषु पाहि सोममिन्द्र। 
प्रदोधुवच्छ्मश्रुषु प्रीणानो याहि हरिभ्यां सुतस्य पीतिम्
हे शूर इन्द्र देव! आप उग्र त्रिकद्रु दिन विशेषों में अत्यन्त हृष्ट होकर सोमरस का पान करें। अनन्तर प्रसन्न होकर और अपनी दाढ़ी-मूँछ में लगे सोमरस को झाड़कर सोमरस के पान के लिए हरि नामक घोड़े पर चढ़कर पधारें।[ऋग्वेद 2.11.17]
हे पराक्रमी इन्द्र देव! तुम त्रिलोकों में सूर्य के तुल्य हुए सोमपान करो। फिर अपनी मूछों को पोंछकर हर्षिता पूर्वक अश्वों के द्वारा यहाँ आओ।
Hey brave-mighty Indr Dev! Enjoy the Somras in the three abodes like the Sun. Remove the Somras struck over your beard & moustaches, ride your horse named Hari and come to receive Somras. 
धिष्वा शवः शूर येन वृत्रमवाभिनदानुमौर्णवाभम्। 
अपावृणोर्ज्योतिरार्याय नि सव्यतः सादि दस्युरिन्द्र
हे इन्द्र देव ! जिस बल के द्वारा आपने दनु के पुत्र वृत्रासुर को ऊर्णनाभि कीट की तरह विनष्ट किया, वही बल धारण करें। आर्य के लिए आपने ज्योति दी है। दस्युओं के आप विरोधी हैं।[ऋग्वेद 2.11.18]
हे इन्द्रदेव जिस पराक्रम से तुमने असुर वृत्र को कीड़े के समान मसल डाला उसी पराक्रम को ग्रहण करो। जैसे प्राणियों के लिए आपने सूर्य का प्रकाश दिखाया और दस्युओं को हटा दिया।
Hey Indr Dev! Possess that might-power with which you killed the son of Danu Vrata Sur like an insect. You favour the virtuous-Ary and oppose the Asur-demons.  
सनेम ये त ऊतिभिस्तरन्तो विश्वाः स्पृध आर्येण दस्यून्। 
अस्मभ्यं तत्त्वाष्ट्रं विश्वरूपमरन्धयः साख्यस्य त्रिताय
हे इन्द्र देव! जिन लोगों ने आपका आश्रय प्राप्त करके समस्त अहंकारी मनुष्यों का अतिक्रम किया और आर्यभाव द्वारा दस्यु का अतिक्रम किया, हम उनको भजते हैं। आपने त्रित की मित्रता के लिए त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप का वध किया। हमारे लिए भी वैसा ही करें।[ऋग्वेद 2.11.19]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे जिस आश्रित ने दंभियों या डाकुओं को भगा दिया, हम उसकी वंदना करते हैं। तुमने त्रित की मित्रता के लिए त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप को समाप्त किया। हमारे लिए वैसे ही सखा भाववाले बनो।
Hey Indr Dev! We pray-worship those who virtuous, who over powered-defeated the arrogant. You killed Vishwroop the son of Twasta for the sake of friendship with Trit. Treat us just just like a friend.
अस्य सुवानस्य मन्दिनस्त्रितस्य न्यर्बुदं वावृधानो अस्तः। 
अवर्तयत्सूर्यो न चक्रं भिनद्बलमिन्द्रो अङ्गिरस्वान्
इन हृष्ट और सुतवान् त्रित द्वारा वर्द्धित होकर इन्द्र देव ने अर्बुद का विनाश किया। जिस प्रकार से सूर्य रथ चक्र चलाते हैं, उसी प्रकार से इन्द्र देव ने अंगिरा लोगों की सहायता प्राप्त करके वज्र को घुमाया और उनके बल को विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 2.11.20]
त्रित द्वारा बढ़े हुए इन्द्र ने अर्व को मारा। सूर्य द्वारा अपने रथ के पहियों को चलाने के समान अंगिराओं की सहायता से वज्र घुमाकर शत्रु का दमन किया।
Indr Dev killed Arbud, being nourished-served by the strong-mighty Trit possessing-supported by his sons. Indr Dev rotated Vajr like the movement of the charoite of the Sun and removed the power-might of of the enemy with the help of Angira.  
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तोता का मनोरथ पूर्ण करती है, वह हमें भी प्रदान करें। आप भजनीय है। हमें छोड़कर और किसी को भी न देना। हम पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.11.21]
हे इन्द्र देव! तुम्हारी समृद्धिवाली वह दक्षिणा वंदना करने वालों का अभिष्ट पूर्ण करती है, उसे हमको प्रदान करो। उसे हमारे अतिरिक्त किसी भी अन्य को मत देना। हम संतन से परिपूर्ण हुए इस अनुष्ठान में तुम्हारी वंदना करें।
Hey Indr Dev! Give us the donations, gifts which fulfils the desires of the Ritviz-Stota. You deserve prayers-worship. Give all that to us, none else. We will pray-worship you through this Yagy, along with our sons-progeny.  
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (12) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- विराट्स्थाना, त्रिष्टुप्।
यो जात एव प्रथमो मनस्वान्देवो देवान्क्रतुना पर्यभूषत्। 
यस्य शुष्माद्रोदसी अभ्यसेतां नृभ्णस्य मह्ना स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जो प्रकाशित हैं, जिन्होंने जन्म के साथ ही देवों में प्रधान और मनुष्यों में अग्रणी होकर वीरकर्म द्वारा समस्त देवों को विभूषित किया, जिनके शरीर बल से द्यावा पृथ्वी भीत हुई थी और जो महती सेना के नायक थे, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.1]
जो अपनी शक्ति से परिपूर्ण प्रकट होकर मनुष्यों में अग्रगण्य हुए और जिन्होंने देवगणों को पराक्रमी कार्यों से वशीभूत किया, अम्बर और पृथ्वी जिनकी शक्ति से डर गयी, वह इन्द्र देव हैं।
Hey humans, one who is illuminated-aurous, became the leader-forward amongest the humans  & the demigods-deities, whose might created fears in the earth and the heavens, is leader-supreme commander of the huge army, is Indr Dev.  
यः पृथिवीं व्यथमानामद्दंहद्यः पर्वतान्प्रकुपिताँ अरम्णात्। 
यो अन्तरिक्षं विममे वरीयो यो द्यामस्तभ्नात्स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने व्यथित पृथ्वी को दृढ़ किया, जिन्होंने प्रकुपित पर्वतों को नियमित किया, जिन्होंने प्रकाण्ड अन्तरिक्ष को बनाया और जिन्होंने द्युलोक को निस्तब्ध किया, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.2]
निस्तब्ध :: निश्चेष्ट, गतिहीन; quiet, motionless.
जिन्होंने कांपती पृथ्वी को स्थिरता प्रदान की और भड़कते हुए पर्वतों को शान्त किया, जिन्होंने अंतरिक्ष को बनाकर अम्बर को सहरा दिया, वे और कोई नहीं अपितु इन्द्र देव हैं!
Hey humans! Its Indr Dev, who made the earth firm-rigid, regularised the mountains, created the wide-enormous space and made the heavens quite.
यो हत्वाहिमरिणात्सप्त सिन्धून्यो गा उदाजदपधा वलस्य। 
यो अश्मनोरन्तरग्निं जजान संवृक्समत्सु स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने वृत्रासुर का विनाश करके सात नदियों को प्रवाहित किया, जिन्होंने थल से असुरों द्वारा रोकी हुई गायों का उद्धार किया, जो दो मेघों के बीच से अग्नि को उत्पन्न करते हैं और जो समर भूमि में शत्रुओं का नाश करते हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.3] 
जिन्होंने वृत्र का वध करके सात सरिताओं को बहा दिया और असुरों के बंधन से गायों को मुक्त कराया, जो मेघों में अग्नि उत्पन्न करके और शत्रुओं को युद्ध में परास्त करते हैं, वह इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its Indr Dev who destroyed Vrata Sur and made the 7 river flow, released the cows, from the captivity of the demons, produce electric spark-fire in the clouds & kills the enemy in the battle field
येनेमा विश्वा च्यवना कृतानि यो दासं वर्णमधरं गुहाकः। 
श्वघ्नीव यो जिगीवां लक्षमाददर्य: पुष्टानि स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने समस्त विश्व का निर्माण किया, जिन्होंने दासों को निकृष्ट और गूढ़ स्थान में स्थापित किया, जो लक्ष्य जीतकर व्याध की तरह शत्रु के सारे धन को ग्रहण किया, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.4] 
जिन्होंने संसार को रचा और दुष्टों को गुफाओं में बसाया, जो शत्रुओं के धन को जीतते हैं, वह इन्द्रदेव हैं। 
Hey humans! Its Indr Dev who created the universe, posted the slaves at the worst and complicated place-position, snatched the wealth of the enemy like a tiger.  
यं स्मा पृच्छन्ति कुह सेति घोरमुतेमाहुर्नैषो अस्तीत्येनम्। 
सो अर्यः पुष्टीविक्षजइवा मिनाति श्रदस्मै धत्त स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यो! जिन भयंकर देव के सम्बन्ध में लोग जिज्ञासा करते हैं, वे कहाँ है? जिनके विषय में लोग बोलते हैं कि वे नहीं हैं और जो शासक की तरह शत्रुओं का सारा धन विनष्ट करते हैं; विश्वास करें, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.5]
जिनके विषय में जनता चर्चा करती है। शत्रुओं के धन को शासक के समान जो छीन लेते हैं, वे इन्द्र हैं।
Hey humans! Its Indr Dev who is furious, people enquire about whom & where. People say he does not exist, snatches the wealth of the enemy like a ruler, believe its the Indr Dev.
यो रध्रस्य चोदिता यः कृशस्य यो ब्रह्मणो नाधमानस्य कीरेः। 
युक्तग्राव्णो योऽविता सुशिप्रः सुतसोमस्य स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जो समृद्ध धन प्रदान करते हैं, जो दरिद्र याचक और स्तोता को धन देते हैं और जो शोभन हनु या केहुनी (elbow) वाले होकर सोमाभिषवकर्ता और हाथों में पत्थर वाले यजमान के रक्षक हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.6]
हनु :: ठोड़ी, चिबुक; chin. 
अत्यन्त धन प्रदान करने वाले, निर्धन, याचक और प्रार्थना करने वालों को धन दाता सुशोभित यजमानों के जो पोषक हैं, वही इन्द्रदेव हैं।
Hey Humans! Its Indr Dev who grants riches, comforts, gives money to the poor requesting money, possess beautiful chin & elbow, is the protector of the hosts-Ritviz offering Somras to him. 
यस्याश्वासः प्रदिशि यस्य गावो यस्य ग्रामा यस्य विश्वे रथासः। 
यः सूर्यं य उषसं जजान यो अपां नेता स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! घोड़े, गौवें, गाँव और रथ जिनकी आज्ञा के अधीन हैं, जो सूर्य और उषा को उत्पन्न करते हैं और जो जल प्रेरित करते हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.7]
जिनके आदेश में घोड़े, गायें, रथ आदि हैं, जो सूर्य उषा के नियामक और जल को शिक्षा देने वाले हैं, वह इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its the Indr Dev who controls the horses, cows, villages and the charoites, produces the Sun and the day break-Usha and inspires the water.
Here the Almighty is addressed as Indr Dev. 
यं क्रन्दसी संयती विह्वयेते परेऽवर उभया अमित्राः। 
समानं चिद्रथमातस्थिवांसा नाना हवेते स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! दो सेना बल परस्पर मिलने पर जिन्हें बुलाते हैं, उत्तम-अधम दोनों प्रकार के शत्रु जिन्हें बुलाते हैं और एक ही तरह के रथों पर बैठे हुए दो मनुष्य जिन्हें नाना प्रकार से बुलाते हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.8] 
युद्ध में जिन्हें हम आमंत्रित करते हैं। वह इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its Indr Dev who is invited by the two armies when they meet, excellent & depraved enemies call him, two people riding one type of charoite call him in different ways.  
यस्मान्न ऋते विजयन्ते जनासो यं युध्यमाना अवसे हवन्ते। 
यो विश्वस्य प्रतिमानं बभूव यो अच्युतच्युत्स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यो! जिनके न रहने से कोई विजयी नहीं हो सकता, युद्धकाल में रक्षा के लिए जिन्हें लोग बुलाते हैं, जो समस्त संसार के प्रतिनिधि हैं और जो क्षय रहित पर्वतादि को भी नष्ट करते हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.9]
जिनकी उपेक्षा करने से लाभ नहीं होता उनकी वंदना की जाती है। जो अटल शैलों को भी नष्ट करने में समर्थ हैं। वह इन्द्र हैं।
Hey humans! Its Indr Dev in whose absence no one can win, who is called-prayed in the battle for security-protection, who represent the whole world and who is capable of destroying the imperishable mountains.
यः शश्वतो मह्येनो दधानानमन्यमानाञ्छर्वा जघान। 
यः शर्धते नानुददाति शृध्यां यो दस्योर्हन्ता स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने वज्र द्वारा अनेक महापापी अपूजकों का विनाश किया, जो गर्वकारी मनुष्यों को सिद्धि प्रदान करते हैं और जो दस्युओं के विनाशक हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.10]
स्वाभिमानी :: घमंडी, अभिमानी, दंभी, शानदार, अभिमानपूर्ण; self respecting, proud.
जिन्होंने पापियों को नष्ट किया है, जो स्वाभिमानी को सिद्धि देते हुए दुष्टों को मारते हैं वह इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its Indr Dev, who killed the atheists with his Vajr, who grants accomplishment to self respecting, kills the dacoits.
यः शम्बरं पर्वतेषु क्षियन्तं चत्वारिंश्यां शरद्यन्वविन्दत्। 
ओजायमानं यो अहिं जघान दानुं शयानं स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने पर्वत में छिपे शम्बर असुर को चालीस वर्ष में खोजकर प्राप्त किया और जिन्होंने बलप्रकाशव, अहि नाम के सोये हुए दैत्य का विनाश किया, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.11]
जिन्होंने धरा में अदृश्य शम्बर नामक दैत्य तथा विश्राम करते हुए महाबलिष्ठ अहि को समाप्त किया वे इन्द्रदेव हैं।
Hey Humans! Its Indr Dev who traced the demon Shambar hidden in the mountains in forty years. He killed the sleeping demon Ahi .
यः सप्तरश्मिर्वृषभस्तुविष्मानवासृजत्सर्तवे सप्त सिन्धून्। 
यो रौहिणमस्फुरद्वज्र बाहुर्द्यामारोहन्तं स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जो सप्तवर्ण या वराह, स्वपत, विद्युत्, महः, धूप, स्वापि, गृहमेध आदि सात रश्मियों वाले, अभीष्टवर्षी और बलवान् है, जिन्होंने सात नदियों को प्रवाहित किया और जिन्होंने वज्रवाह होकर स्वर्ग जाने को तैयार रौहिण को विनष्ट किया, वे ही इन्द्र देव है।[ऋग्वेद 2.12.12]
जो वराह रूप वाले श्रेष्ठ विद्युत के समान तेजस्वी, किरणों से युक्त अभिलाषी वर्षक एवं सात नदियों को प्रवाहमान करने वाले, भुजा में वज्र धारण करते हैं तथा जिन्होंने स्वर्गाकांक्षिणी रोहिणी को रोक दिया, वे इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its Indr Dev, who possess seven colours, is quick like the electric spark, accepts-bears the shape-form of boar, accomplishment granting, flows the seven rivers, destroyed Rohini who desired to move to heavens. 
द्यावा चिदस्मै पृथ्वी नमेते शुष्माच्चिदस्य पर्वता भयन्ते। 
यः सोमपा निचितो वज्रबाहुर्यो वज्रहस्तः स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! द्यावा पृथिवी उन्हें प्रणाम करती हैं। उनके बल के सामने पर्वत काँपते हैं और जो सोमरस का पानकर्ता, दृढ़ांग, वज्रबाहु और वज्र युक्त हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.13]
जिनके सम्मुख पर्वत कांपते हैं, आकाश और पृथ्वी जिन्हें प्रणाम करती हैं, जो सोमपायी सुदृढ़ अंग वाले, वज्र भुजाओं वाले हैं, वे इन्द्र देव हैं।
Hey humans! Its the Indr Dev who is respected by the earth & the space-sky, the mountains tremble before him, drinks Somras, possesses the arms like Vajr, bears Vajr. 
यः सुन्वन्तमवति यः पचन्तं यः शंसन्तं यः शशमानमूती।
यस्य ब्रह्म वर्धनं यस्य सोमो यस्येदं राधः स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जो सोमाभिषव कर्ता यजमान की रक्षा करते हैं, जो पुरोडाश आदि पकाने वाले, स्तोता और स्तुति पाठक यजमान की रक्षा करते हैं और जिनके वर्द्धक स्तोत्र, सोम और हमारा अन्न हैं, वे ही इन्द्र देव है।[ऋग्वेद 2.12.14]
जो सोम छानने वालों के रक्षक पुरोडाश सिद्ध करने वाले स्तोत्रों के पालक हैं। जिनके श्लोक हमारे लिए अन्न के समान हैं, वह इन्द्र हैं। हे इन्द्र देव!
Hey humans! Its Indr Dev who protects the hosts-Ritviz who distil Somras, cooks offerings in holy fire, protects the Stota and the hosts, who's growing-nourishing Strotr are like Som and food grains. 
यः सुन्वते पचते दुध्र आ चिद्वाजं दर्दर्षि स किलासि सत्यः। 
वयं त इन्द्र विश्वह प्रियासः सुवीरासो विदथमा वदेम
हे इन्द्र देव! दुर्धर्ष होकर सोमाभिषव कर्ता और पाककारी यजमान को अन्न प्रदान करते हैं, इसलिए आप ही सत्य हैं। हम प्रिय और वीर पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर चिरकाल तक आपके स्तोत्र का पाठ करेंगे।[ऋग्वेद 2.12.15] 
दुर्धर्ष :: जिसे वश में करना कठिन हो, जिसे परास्त करना या हराना कठिन हो,  प्रबल, प्रचंड, उग्र, जिसे दबाया न जा सके, दुर्व्यवहारी,  धृतराष्ट्र का एक पुत्र, रावण की सेना का एक राक्षस; difficult to be assaulted.
तुम सोम छानने वाले और यजमान को अन्न प्रदान करते हो तुम सत्य स्वरूप हो। हम प्रिय संतान आदि से परिपूर्ण हुए तुम्हारी प्रार्थना का गान करेंगे।
Hey Indr Dev! You are difficult to be controlled (over powered, tamed), producer of Som, grants food grains to the Ritviz-hosts (One who is organising Yagy). You are the Ultimate truth. We will recite the Strotr-hymns, prayers devoted to you for ever. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (13) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- विराट्स्थाना, त्रिष्टुप्, जगती
ऋतुर्जनित्री तस्या अपस्परि मक्षू जात आविशद्यासु वर्धते। 
तदाहना अभवत्पिप्युषी पयोऽशो: पीयूषं प्रथमं तदुक्थ्यम्
वर्षा ऋतु सोम की माता है। उत्पन्न होकर सोम जल में बढ़ता है, इसलिए उसी में प्रवेश करता है। जो सोमलता जल की सारभूत होकर वृद्धि को प्राप्त होती है, वह अभिषव के उपयुक्त है। उसी सोमलता का पीयूष इन्द्रदेव का हव्य है।[ऋग्वेद 2.13.1]
पीयूष :: देवाहार, देवताओं का भोजन, सुधा; ambrosia.
सोम वर्षा से रचित होता है। जल में वृद्धि करता है। जल की सारभूत सोमलता वृद्धि करती निचोड़े जाने के योग्य होती है। वही अमृत समान सोम इन्द्रदेव का पेय है।
Rainy season is the mother of Som Valli. Som Valli grows in water. Its good to be extracted. Its extract Somras is the food of demigods-deities i.e., ambrosia.
संध्रीमा यन्ति परि बिभ्रती: पयो विश्वप्स्न्याय प्र भरन्त भोजनम्। 
समानो अध्वा प्रवतामनुष्यदे यस्ताकृणोः प्रथमं सास्युक्थ्यः
परस्पर मिली हुई उदक वाहिनी नदियाँ चारों ओर बह रही है और समस्त जलों के आश्रयभूत समुद्र को भोजन प्रदान करती है। निम्म्रगामी जल का गन्तव्य मार्ग एक ही है। इन्द्रदेव आपने पहले ये सब काम किया है, इसलिए आप स्तुति योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.2]
जल बहाने वाली नदियाँ सब जगह प्रवाहमान होती हुई समुद्र में समर्पण करती हैं? जल निचले रास्ते पर चलता है। हे इन्द्रदेव! तुम वह समस्त कर्म कर चुके हो, अतः प्रशांसा के योग्य हो। 
The rivers joint together, carrying water flow to the ocean. Its the ultimate reservoir for the water flowing in the down ward direction. Hey Indr Dev! You deserve appreciation since you have done it before-prior as well.
The aggregated (streams) come, bearing everywhere the water and conveying it as sustenance for the asylum of all rivers, (the ocean); the same path is (assigned) to all the descending (currents) to follow and as he, who has (assigned) them (their course), you, (Indra), are especially to be praised.
अन्वेको वदति यद्ददाति तद्रूपा मिनन्तदपा एक ईयते। 
विश्वा एकस्य विनुदस्तितिक्षते यस्तकृणोः प्रथमं सास्युक्थ्यः
एक यजमान जो दान करता है, दूसरा उसका अनुवाद करता है। एक जल पशु हिंसा करके हिंसा कर्ता बन जाता है, दूसरा सारे बुरे कर्मों का शोधन करता है। हे इन्द्रदेव! आपने पहले ये सब कर्म किया है, इसलिए आप स्तुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.13.3]
यजमान :: यज्ञ करने वाला व्यक्ति, ब्राह्मणों से धार्मिक कृत्य कराने वाला व्यक्ति, यज्ञ, हवन, अग्निहोत्र हेतु ब्राह्मण-पुरोहित को निमन्त्रित करने वाला गृहस्वामी-व्यक्ति; host, parishioner.
एक यजमान दान करता है, दूसरा उसका गुणगान करता है। एक जल उत्तम पदार्थों को नष्ट करता है तो दूसरा प्रशंसित करता है। हे इन्द्र देव! गृहस्थी जैसे अभ्यागतों को धनदान करते हैं, वैसे ही तुम्हारा धन प्रजाओं में व्याप्त है।
One host-parishioner make donations, resort to charity, while the other one appreciate-use his gifts. A water born animal resort to violence, while the other one cleanse-nullify his wicked-bad deeds. Hey Indr Dev! You have accomplished all these deeds earlier as well and hence you deserve honours, glory, appreciation. 
प्रजाभ्यः पुष्टिं विभजन्त आसते रयिमिव पृष्ठं प्रभवन्तमायते। 
असिन्वन्दंष्ट्रैः पितुरत्ति भोजनं यस्ताकृणोः प्रथमं सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! जैसे गृहस्थ लोग अभ्यागत अतिथि को प्रचुर धन देते हैं, उसी प्रकार से आपको दिया धन प्रजाओं में विभक्त होता है। लोग पिता द्वारा दिया भोजन दाँतों से खाते हैं। हे इन्द्र देव! आपने पहले ये सब कार्य किया है; इसलिए स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.4]
हे इन्द्र देव! गृहस्थी जैसे अभ्यागतों को धनदान करते हैं, वैसे ही तुम्हारा धन प्रजाओं में व्याप्त है। जैसे भोजन को चबाता है वैसे ही तुम प्रलयकाल में इस सृष्टि को चबा जाते हो। हे इन्द्रदेव! अपने कार्यों से ही तुम वंदना के पात्र हो।
Hey Indr Dev! The way the house hold grants sufficient money to the visitors-guest, your donations are distributed amongest the populace. The populace eat-enjoy this wealth with their teeth. (You eat away the living beings at the time of annihilation like eating of the food.)  Hey Indr Dev! You have performed such deeds before as well. Hence you deserve worship-prayers. 
Distributing nourishment to their progeny, they, (the householders), abide (in their dwellings), as if offering ample and sustaining wealth to a guest; constructing (useful works, a man) eats with his teeth the food (given him) by (his) protector and as he, who has enjoined these (things to be done), you, (Indra), are especially to be praised.
अधाकृणोः पृथिवीं संदृशे दिवे यो धौतीनामहिहन्नारिणक्पथः। 
तं त्वा स्तोमेभिरुदभिर्न वाजिनं देवं देवा अजनन्त्सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! आपने आकाश के लिए पृथ्वी को दर्शनीय किया। आपने प्रवाहित नदियों का मार्ग गमन योग्य किया। हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव! जिस प्रकार जल अश्व को तृप्त करते हैं, उसी प्रकार से स्तोता लोग स्तोत्र द्वारा आपको तृप्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.13.5]
हे इन्द्र देव! तुमने आकाश को सुन्दर बनाया। नदियों के रास्ते का निर्माण किया। तुम वृत्र को समाप्त करने वाले हो। जैसे तुम घोड़े को पानी पिलाते हो, वैसे ही तपस्वी तुम्हें वंदनायें भेंट करते हैं।
Hey Indr Dev! You made the sky beautiful to be seen from the earth. You made the river suitable for navigation. Hey the killer of Vratr Indr Dev! The way the the water satisfy the horse the Ritviz-recitators of Strotr satisfy-make you happy.
In as much as you have rendered earth visible to heaven and have set open the path of the rivers by slaying Ahi; therefore the gods have rendered you divine by praises, as (men) invigorate a horse by water (and) you are, (Indr), to be praised.
यो भोजनं च दयसे च वर्धनमार्द्रादा शुष्कं मधुमहुदोहिथ। 
सः शेवधिं नि दधिषे विवस्वति विश्वस्यैक ईशिषे सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! आप भोजन और वर्द्धमान धन देते हैं और आर्द्र काण्ड से शुष्क और मधुर रस वाले शस्य आदि का दोहन करते हैं। सेवक यजमान को आप धन देते हैं। संसार में आप अद्वितीय हैं। हे इन्द्र देव! आप स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.6]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न और धन प्रदान करने वाले हो। गीले वृक्ष से सूखे फल उपजाते तथा वर्षा से सूखा अन्न प्राप्त कराते हो। तुम्हारे समान कोई दूसरा नहीं है, इसलिए वंदना के योग्य हो।
Hey Indr Dev! You grant nourishing food and extract sweet sap from the trees. The devotees-hosts grant money to the priests. You are unique-unparalled in the world. Hence, hey Indr Dev, you deserve worship-prayers. You are prayer worthy. 
You are the one who bestows both food and increase and milk the dry nutritious grains out of the humid stalk. You gives wealth to the worshipper and are sole sovereign of the universe you are the one who is to be praised.
यः पुष्पिणीश्च प्रस्वश्च धर्मणाधि दाने व्यवनीरधारयः। 
यश्चासमा अजनो दिद्युतो दिव उरुरूर्वां अभितः सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! कर्म द्वारा आपने खेत में फूल और फल वाली औषधि की रक्षा की। प्रकाशमान सूर्य की नाना प्रकार की ज्योति को उत्पन्न किया। आपने महान् होकर चारों ओर महान् प्राणियों को उत्पन्न किया। आप स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.7]
कर्म द्वारा फल-फूल से युक्त वनस्पति के रक्षक हो, सूर्य को ज्योति देकर उसे प्रकाशमान करते हो। अपनी महत्ता से ही सभी प्राणियों को प्रकट किया, इसलिए प्रशंसा के योग्य हो।
Hey Indr Dev! You endeavoured to protect the flowers, fruits and the medicines (Jadi-Buti). You created various types of rays-light, luminaries in the Sun. You being great, produced the great personalities, living beings, organism. You deserve glory, honours. 
You who have caused, by culture, the flowering and fruitful to spread over the field, who have genitive rated the various luminaries of heaven and who, of vast bulk, comprehend vast (bodies); you are he who is to be praised.
यो नार्मरं सहवसुं निहन्तवे पृक्षाय च दासवेशाय चावहः। 
ऊर्जयन्त्या अपरिविष्टमास्यमुतैवाद्य पुरुकृत्सास्युक्थ्यः
हे बहुकर्म कर्ता इन्द्र देव! आपने हव्य प्राप्ति और दासों के विनाश के उद्देश्य से नृमर के पुत्र सहस वसु का विनाश करने के लिए बलवती वज्रधारा का निर्मल मुख प्रदेश इसको दिया। आप स्तुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.13.8]
हे असंख्य इन्द्र देव! हवि ग्रहण करने और असुरों का पतन करने के लिए तुमने वज्र का मुँह खोला। तुम प्रशंसा के योग्य हो।
Hey various-vivid jobs performing Indr Dev! You granted the powerful Vajr Dhara (river with high potential) to this land to eliminate Sahas Vasu, the son of Nramar and seek offerings leading to destruction of the wicked-viceful slaves. 
You, who are (famed for) many exploits, put on today an unclouded countenance, (as prepared) to slay Sahas Vasu, the son of Nramar, with the sharpened (edge of the thunderbolt), in defence of the (sacrificial) food, and for the destruction of dasyu-dacoits, you are he who is to be praised.
शतं वा यस्य दश साकमाद्य एकस्य श्रुष्टौ यद्ध चोदमाविथ। 
अरज्जौ दस्यून्त्समुनब्दभीतये सुप्राव्यो अभवः सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव आप एक है। आपके सुख के लिए दस सौ घोड़े हैं। आपने दधीचि ऋषि के लिए रज्जु रहित दस्युओं का विनाश किया। आप सबके प्राप्य है, इसलिए स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.9]
हे इन्द्र देव! तुम हजारों धनों के स्वामी हो। ऋषि के लिए तुमने असुरों को बिना रस्सी ही घेरकर मार डाला। इसलिए तुम प्रशंसा के योग्य हो।
Hey Indr Dev! You are unique. You possess thousands of kinds of wealth-riches. You killed the unstringed dacoits for the sake-welfare of Dadhichi Rishi. You are available to all and hence you deserve prayers, worship.  
You, for whose sole plural assure a thousand (steeds are ready), by whom all are to be fed and who protects the instrumental tutor (of the sacrifice), who, for the sake of Dadhichi, has caste the Dasyu into unfettered (captivity) and who are to be approached (by all), you are he who is to be praised.
विश्वेदनु रोधना अस्य पौंस्यं ददुरस्मै दधिरे कृलवे धनम्। 
षळस्तभ्ना विष्टिरः पञ्च संदृशः परि परो अभवः सास्युक्थ्यः
सारी नदियाँ इन्द्र देव की शक्ति का अनुवर्तन करती है। यजमान लोग इन्द्रदेव को अन्न प्रदान करते हैं और सब लोग कर्म कर्ता इन्द्र देव के लिए धन धारण करते हैं। आपने विशाल द्यू, पृथ्वी, दिन-रात्रि, जल और औषधि नाम के छः पदार्थों को निश्चित किया। आप पञ्चजन के पालक है। हे इन्द्र देव! आप सबके स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.10]
अनुवर्तन :: अनुषंग, परिणामत; Compliance, consequentiality.
सभी नदियाँ इन्द्र के पराक्रम से चलती हैं। साधक इन्द्रदेव को हवि देते हैं। हे इन्द्र! तुमने आकाश, पृथ्वी, दिन, रात्रि, जल एवं दवाई आदि को स्थापित किया है। अतः तुम प्रशंसा के पात्र हो।
All rivers follow the dictates of Indr Dev. The hosts-devotees offer food grains to Indr Dev. All beings-people bear wealth for the sake of endeavouring Indr Dev. You ensured the existence of six (6) entities :- the space-sky, earth, day & night, water and medicines. You the nurturer of the Panch Jan, five races-species.  
You are he, from whose manhood all the rivers (have proceeded), to whom (the pious) have given (offerings), to whom, doer of mighty deeds, they have presented wealth, you are he, who have regulated the six expansive (objects) and are the protector of the five (races), that look up to you, you are he who is to be praised.
सुप्रवाचनं तव वीर वीर्यं यदेकेन क्रतुना विन्दसे वसु। 
जातूष्ठिरस्य प्र वयः सहस्वतो या चकर्थ सेन्द्र विश्वास्युक्थ्यः
आपका वीर्य सबके लिए श्लाघनीय है। आपने एक कर्म द्वारा शत्रुओं का धन प्राप्त किया। आपने बलिष्ट जातुष्ठिर को अन्न दिया। चूंकि ये सब कार्य आपने किया है, इसलिए आप सबके स्तुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.13.11]
श्लाघनीय :: प्रशंसनीय; praiseworthy. 
आपका वीर्य सबके लिए श्लाघनीय है। आपने एक कर्म द्वारा शत्रुओं का धन प्राप्त किया। आपने बलिष्ठ जातुष्ठिर को अन्न दिया। चूंकि ये सब कार्य आपने किया है, इसलिए आप सबके स्तुति के योग्य हैं।
Your potential (sperms, mighty, power) is appreciable. You got the wealth of the enemies with just one stroke. You granted food grain to mighty Jatushthir. Since, you performed all these deeds, you deserve worship-prayers. 
Your heroism, hero, is to be glorified, by which, with single effort, you have acquired wealth, (wherewith) the (sacrificial) food of (every) solemn and constant (ceremony is provided), for all (the acts) you have performed, you, Indr, are he who is to be praised.
अरमय: सरपसस्तराय कं तुर्वीतये च वय्याय च स्रुतिम्। 
नीचा सन्तमुदनयः परावृजं प्रान्धं श्रोणं श्रवयन्त्सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! सरलता से प्रवाह शील जल के पार जाने के लिए आपने तुर्वीति और वय्य को मार्ग दिया। आपने अन्धे और पंगु पराबृज का तल से उद्धार करके अपने को कीर्तिशाली बनाया, इसलिए आप स्तुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.13.12]
उद्धार :: उबारना, मुक्त करना, ऊपर ले जाना, extrication, releasement.
पंगु :: लँगड़ा, गतिहीन, वात रोग से ग्रस्त व्यक्ति; crippled, lacerated.
इन समस्त कर्मों के कारण तुम वंदना के पात्र हो। हे इन्द्र देव! तुमने तुव्रीति और वय्य को जल के पार और अंधे एवं अपाहिज परावृज का प्रहार किया। तुम वंदना के योग्य हो।
Hey Indr Dev! You provided way to Turviti & Vayy to cross the cold waters easily. You supported blind and crippled-lame Parabraj. You are suitable for worship-prayers.   
अस्मभ्यं तद्वसो दानाय राधः समर्थयस्व बहु ते वसव्यम्। 
इन्द्र यच्चित्रं श्रवस्या अनु द्यून्बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे निवास दाता इन्द्रदेव! हमें भोग के लिए धन दें। आपका वह धन प्रभूत, वास योग्य और विचित्र है। हम प्रतिदिन उस धन के भोग की इच्छा करते हैं। हम उत्तम पुत्र-पौत्रादि प्राप्त करके इस यज्ञ में आपका स्तवन् करते हैं।[ऋग्वेद 2.13.13]
प्रभूत :: भूत, उत्पन्न, उद्‌गम; ample, abundant.
हे इन्द्र! हमको उपभोग के लिए धन प्रदान करो। तुम्हारा दान वास योग्य तथा अलौकिक है। तुम नित्य इसकी अभिलाषा करते हैं। हम संतान आदि से युक्त तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey house-residence providing Indr Dev! Grant us money for use. The money granted by you is suitable to live, sufficient, abundant and amazing. You desire to utilize that money-riches every day. Having obtained sons, grandsons, we worship-pray you in this Yagy. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (14) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
अध्वर्यवो भरतेन्द्राय सोममामत्रेभिः सिञ्चता मद्यमन्यः। 
कामी हि वीरः सदमस्य पीतिं जुहोत वृष्णे तदिदेष वष्टि
हे अध्वर्युगण! इन्द्रदेव के लिए सोमरस ले आवे। चमस के द्वारा मादक अन्न अग्नि में फेंकें। बलशाली इन्द्रदेव सदा सोमरस के पान के अभिलाषी रहते हैं। अभीष्टवर्षी इन्द्रदेव के लिए सोमरस प्रदान करें। इन्द्रदेव उसे चाहते हैं।[ऋग्वेद 2.14.1]
हे अध्वर्युओं! इन्द्रदेव के लिए सोम लाओ। चमस द्वारा अग्नि में हवि दो। सोमपान के इच्छुक इन्द्रदेव को सोम रस भेंट करो।
Hey Yagy conducting-performing people-devotees! Bring Somras for Indr Dev. Make offerings of food grains in the holy fire with the help of Chamas (wooden spoon). Mighty desire accomplishment-fulfilling Indr Dev is always eager to enjoy Somras. 
अध्वर्यवो यो अपो वव्रिवांसं वृत्रं जघानाशन्येव वृक्षम्। 
तस्मा एतं भरत तद्वशायँ एष इन्द्रो अर्हति पीतिमस्य
हे अध्वर्युगण! जिन इन्द्रदेव ने जल को आच्छादित करने वाले वृत्रासुर का वज्र द्वारा वृक्ष की तरह विनाश किया, उन्हीं सोमाभिलाषी इन्द्रदेव के लिए सोमरस ले आवे। इन्द्र देव सोमपान के उपयुक्त पात्र हैं।[ऋग्वेद 2.14.2] 
वज्र द्वारा, जल को रोकने वाले वृत्र के वधकर्त्ता इन्द्रदेव के लिए सोम लाओ। इन्द्रदेव सोमपान के योग्य है।
Hey Yagy performers! Bring Somras for Indr Dev who killed Vrata Sur, who stopped the waters, with Vajr like felling a tree. He is eligible for drinking Somras.  
अध्वर्यवो यो दृभीकं जघान यो गा उदाजदप हि वलं वः। 
तस्मा एतमन्तरिक्षे न वातमिन्द्रं सोमैरोर्णुत जून वस्त्रैः
हे अध्वर्युगण! जिन इन्द्रदेव ने दृभाीक का विनाश किया, जिन्होंने बलपूर्वक असुरों द्वारा अवरुद्ध गायों का उद्धार करके उन्हें विनष्ट किया, उन्हीं इन्द्र देव के लिए, जिस प्रकार वायु अन्तरिक्ष में व्याप्त है, उसी प्रकार सोमरस को सर्वत्र व्याप्त करें। जिस प्रकार जीर्ण को वस्त्र द्वारा आच्छादित किया जाता है, उसी प्रकार से सोमरस द्वारा इन्द्र देव को आच्छादित करें।[ऋग्वेद 2.14.3]
 जिस इन्द्रदेव ने गायों का उद्धार किया और असुरों को समाप्त किया उन इन्द्रदेव के लिए सोम रस को विद्यमान करो और परिधान से आच्छादित करने के तुल्य इन्द्रदेव को सोम से ढँक दो। 
Hey Yagy organisers! Indr Dev killed Drabheek, released the cows from the captivity of the demons and destroyed the demons. Air pervades the sky-space for Indr Dev. Let Somras pervade each & every place. The way a feeble-badly injured, hurt person is covered with cloths, cover Indr Dev with Somras.   
अध्वर्यवो य उरणं जघान नव चख्वांसं नवतिं च बाहून्। 
यो अर्बुदमव नीचा बबाधे तमिन्द्रं सोमस्य भृथे हिनोत
हे अध्वर्यु  गण! जिन इन्द्र देव ने निन्नानबे बाहु दिखाने वाले उरण का विनाश किया तथा अबुद को अधोमुख करके विनष्ट किया, सोमरस तैयार होने पर उन्हीं इन्द्रदेव को प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 2.14.4]
जिन इन्द्रदेव ने निन्यानवें भुजाओं वाले उरण तथा अर्बुध को मार डाला, उन्हीं इन्द्र देव को सोम सिद्ध होने पर भेंट करो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Prepare Somras to please Indr Dev, who killed Uran having 99 arms and Abud turning them upside down. 
अध्वर्यवो यः स्वश्नं जघान यः शुष्णमशुषं यो व्यंसम्।
यः पिप्रुं नमुचिं यो रुधिक्रां तस्मा इन्द्रायान्धसो जुहोत
हे अध्वर्युगण! जिन इन्द्र देव ने सरलता से स्वशन का विनाश किया, जिन्होंने अशोषणीय शुष्ण को स्कन्ध हीन करके मारा, जिन्होंने पित्रु, नमुचि और रूधिक्ता का विनाश किया, उन्हीं इन्द्र देव के लिए अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.14.5]
जिस इन्द्र देव ने स्वशन को मारा, शुष्ण के कंधे काट डाले, पिप्रु, नमुचि और तुधिक को मार डाला, उन्हीं इन्द्र को हवि प्रदान करो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Make offerings of food grains to Indr Dev who killed Swashan, Sushn by cutting shoulders, Pitru, Namuchi and Rudhikta
अध्वर्यवो यः शतं शम्बरस्य पुरो बिभेदाश्मनेव पूर्वीः। 
यो वर्चिनः शतमिन्द्रः सहस्त्रमपावपद्भरता सोममस्मै
हे अध्वर्यु गण! जिन इन्द्र देव ने प्रस्तर के सदृश वज्र द्वारा शम्बर की अतीव प्राचीन नगरियों को छिन्न-भिन्न कर दिया, जिन्होंने वर्ची के सौ हजार पुत्रों को भूमिशायी कर दिया, उन्हीं इन्द्र देव के लिए सोमरस ले आवें।[ऋग्वेद 2.14.6]
जिन इन्द्रदेव ने वज्र से शम्बर के पाषाण नगरों को तोड़ दिया तथा वर्चा के एक लाख भक्तों को मारा, उन्हीं इन्द्रदेव के लिए सोमरस ले लाओ।
Hey organisers-participants in the Yagy! Bring Somras for the sake of Indr Dev, who destroyed the ancient cities of Shambar, killed hundred thousand sons of Varchi. 
अध्वर्यवो यः शतमा सहस्स्रं भूम्या उपस्थेऽवपज्जघन्वान्। 
कुत्सस्यायोरतिथिग्वस्य वीरान्न्यवृणग्भरता सोममस्मै
हे अध्वर्युगण! जिन शत्रु हन्ता इन्द्र देव ने भूमि की गोद में सौ हजार असुरों को मार गिराया, जिन इन्द्र देव ने कुत्स, आयु और अतिथिग्ध के प्रतिद्वन्द्वियों का वध किया, उनके लिए सोमरस ले आवे।[ऋग्वेद 2.14.7]
जिस शत्रुनाशक इन्द्रदेव ने एक लाख असुरों को धराशायी किया तथा कुत्स और अतिथिग्व के द्वेषियों को समाप्त कर दिया उसी इन्द्रदेव के लिए सोमरस लेकर पधारो। 
Hey organisers-participants in the Yagy! Bring Somras for enemy slayer Indr Dev, who killed hundred thousand demons and rivals named Kuts, Ayu and Atithigdh
अध्वर्यवो यन्नरः कामयाध्वे श्रुष्टी वहन्तो नशथा तदिन्द्रे। 
गभस्तिपूतं भरत श्रुतायेन्द्राय सोमं यज्यवो जुहोत
हे नेता अध्वर्युगण! आप जो चाहते हैं, वह इन्द्रदेव को सोमरस प्रदान करने पर तुरन्त मिल जायेगा। प्रसिद्ध इन्द्र देव के लिए हस्त द्वारा शोधित सोमरस ले आवें। हे याज्ञिक गण! इन्द्र देव के लिए उसे प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.14.8]
हे अध्वर्युओं! इन्द्र को सोम रस भेंट करने पर तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। हाथों से सिद्ध किए हुए इस सोम रस को इन्द्रदेव को दो।
Hey organisers-participants in the Yagy! You will immediately achieve the desired by offering Somras extracted manually to Indr Dev. 
अध्वर्यवः कर्तना श्रुष्टिमस्मै वने निपूतं वन उन्नयध्वम्। 
जुषाणो हस्त्यमभि वादशे व इन्द्राय सोम मंदिर जुहोत
इन्द्र देव के लिए सुखकर सोमरस तैयार करें। संभोग योग्य जल में शोधित सोमरस ऊपर ले आवें। इन्द्र देव प्रसन्न होकर आपके हाथों से तैयार किया हुआ सोमरस चाहते हैं। इन्द्र देव के लिए आप लोग मद कारक सोमरस प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.14.9] 
हे अध्वर्युओ! उनको खुश करने वाला सोम रस तैयार करो। जल में शुद्ध किया हुआ सोमरस लाओ। इन्द्र देव तुमसे सोमरस चाहते हैं। उनके लिए आह्लादकारी सोम रस भेंट करो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Produce pleasant-comfortable Somras for Indr Dev. Bring Somras purified with water. Indr Dev wish to have Somras produced by you with your hands on being happy.
अध्वर्यवः पयसोधर्यथा गो: सोमेभिरी पुणता भोजमिन्द्रम्वे। 
वेदाहमस्य निभृतं म एतिदृत्सन्तं भूयो यजतश्चिकेत
हे अध्वर्युगण! गाय का अधोदेश जैसे दुग्ध से पूर्ण रहता है, उसी प्रकार इन फल प्रदाता इन्द्रदेव को सोमरस द्वारा पूर्ण करें। सोमरस का गूढ़ स्वभाव मैं जानता हूँ। यजनीय इन्द्र देव सोमप्रद यजमान को अच्छी तरह जानते हैं।[ऋग्वेद 2.14.10]
हे अध्वर्युओं! गाय के निचले अंग (थन) में दूध भरे रहने के समान इन्द्रदेव को सोम से भर दो। मैं सोम रस के स्वभाव का राजा हूँ। इन्द्र देव उससे प्रसन्नचित्त होकर यजमान को सुखी करते हैं।
Hey organisers-participants in the Yagy! Let Indr dev be satisfied-saturated with Somras just like the milk in the udders of a cow. I am aware of the nature (properties, utility) of Somras. Indr Dev recognises the host providing Somras in the Yagy for him & grants comforts to him on being happy.
अध्वर्यवो यो दिव्यस्य वस्वो यः पार्थिवस्य क्षम्यस्य राजा। 
तमूर्दरं न पृणता यवेनेन्द्रं सोमेभिस्तदपो वो अस्तु
हे अध्वर्यु गण! इन्द्र देव, स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष के धन के राजा है। जैसे यव (जौ) से धान्य रखने का स्थान पूर्ण किया जाता है, उसी प्रकार सोमरस द्वारा इन्द्र देव को पूर्ण करें। वह कार्य आप लोगों के द्वारा पूर्ण होता है।[ऋग्वेद 2.14.11]
इन्द्र देव आसमान, धरती और अंतरिक्ष के ऐश्वर्य के श्लोक हैं। जैसे बर्तन भरा जाता है वैसे सोमरस से इन्द्रदेव को सन्तुष्ट कर दो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Indr Dev is the master of all riches-wealth, property over the earth, heavens and the space-sky. The way a pot-container is filled with barley, satisfy Indr Dev with Somras. 
अस्मभ्यं तद्वसो दानाय राधः समर्थयस्व बहु ते वसव्यम्। 
इन्द्र यच्चित्रं श्रवस्या अनु द्यून्बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे निवास प्रद इन्द्र देव! हमें भोग के लिए धन प्रदान करें। वह धन प्रभूत, वास योग्य और विचित्र है। हम प्रतिदिन उसी धन को भोग करने की इच्छा करते हैं। हम उत्तम पुत्र-पौत्रादि प्राप्त करके इस यज्ञ में प्रभूत स्तोत्र का पाठ करेंगे।[ऋग्वेद 2.14.12] 
हे उत्तम वास देने वाले इन्द्रदेव! हमें योग्य एवं भोग्य धन प्रदान करो। तुम्हारा दान अद्भुत है। हम नित्य इसकी कामना करते हैं। श्रेष्ठ संतानों से युक्त इस यज्ञ में हम तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey residence-home granting-providing Indr Dev! The riches-wealth granted by you is valuable, suitable for residing and amazing. We will recite excellent Strotr in the Yagy in your honour, on being granted sons and grand sons. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (15) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
प्र घा न्वस्य महतो महानि सत्या सत्यस्य करणानि वोचम्। 
त्रिकद्रुकेष्वपिबत्सुतस्यास्य मदे अहिमिन्द्रो जघान
मैं बलवान् हूँ। सत्य-संकल्प इन्द्र देव की यथार्थ और महती कीर्त्तियों का वर्णन करता हूँ। इन्द्र देव ने त्रिकद्र यज्ञ में सोमरस का पान किया। सोम जन्य प्रसन्नता होने पर इन्द्र देव ने अहि का वध किया।[ऋग्वेद 2.15.1]
मैं शक्तिशाली हूँ। सच्चे विचार वाले के श्रेष्ठ यशों का वर्णन करता हूँ। इन्द्र देव ने सोमपान से रचित शक्ति से वृद्धिकर “अहि" को समाप्त किया।
I am mighty. I describe the various glorious deeds-endeavours of truthful Indr Dev. Indr Dev sipped Somras in the Yagy and then killed the demon called Ahi.
अवंशे द्यामस्तभायद्बृहन्तमा रोदसी अपृणदन्तरिक्षम्। 
स धारयत्पृथिवीं पप्रथच्च सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
आकाश में इन्द्र देव ने द्युलोक को रोक रखा है। द्यावा पृथ्वी और अन्तरिक्ष को अपने तेज से पूर्ण किया। विस्तीर्ण पृथ्वी को धारण किया और उसे प्रसिद्ध किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब काम किया।[ऋग्वेद 2.15.2]
इन्द्रदेव ने सूर्य मंडल को रोक रखा है। अम्बर, धरा और अंतरिक्ष को तेज प्रदान किया है।
Indr Dev is supporting the Solar System in the space. He has lighted the space, earth and the sky with his aura-brilliance. He supported the earth and gave it stability. He did this by enjoying Somras.
Here Indr is one of the names of the Almighty. 
सद्मेव प्राचो वि मिमाय मानैर्वज्रेण खान्यतृणन्नदीनाम्। 
वृथासृजत्पथिभिर्दीर्घयाथैः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
यज्ञ गृह की तरह इन्द्र देव ने माफ करके समस्त संसार को पूर्वाभिमुख करके बनाया। उन्होंने वज्र द्वारा नदी के निकलने वाले दरवाजों को खोल दिया। उन्होंने अनायास ही दीर्घ काल तक जाने योग्य मार्गों से नदियों को प्रेरित किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्र देव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.3]
इन्द्रदेव ने इस आखिल संसार का मुँह पूर्व दिशा की ओर कर रखा है। उन्होंने बच से नदी के द्वारों को खोलकर दीर्घ समय तक प्रवाहमान रहने योग्य रास्तों पर बहाया। इन्द्रदेव ने ये कर्म सोम से रचित शक्ति से किये।
Indr Dev moved the gate-opening of the Yagy site in the east along with the entire world. He opened the places blocked for the flow of rivers. He made the rivers to keep flow for long time and usable for navigation. He did this, on being happy after drinking Somras.
स प्रवोळ्हॄन्परिगत्या दभीतेर्विश्वमधागायुधमिद्धे अग्नौ। 
सं गोभिरश्वैरसृजद्रथेभिः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
जो असुर दभीति ऋषि को उनके नगर के बाहर ले जा रहे थे, मार्ग में उपस्थित होकर इन्द्र ने उनके सारे आयुधों को दीप्यमान अग्नि में जला डाला। इसके बाद दभीति को अनेक गायें, घोड़े और रथ प्रदान किये। सोमजन्य हर्ष के उत्पन्न होने पर इन्द्र देव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.4]
दभीति ऋषि को नगर से बाहर ले जाते हुए दानवों को रोककर उनके हथियारों को इन्द्र ने भस्म कर दिया। इसके बाद दभीति को गौ आदि धन प्रदान किया। सोम द्वारा उत्पन्न शक्ति में इन्द्र ने यह कर्म दिया।
Indr Dev intercepted the demons who were taking Dabhiti Rishi out of his abode-residence, burnt their weapons with blazing-glowing fire. He granted many cows, horses and chariots to him. He did this on being pleased by drinking Somras (under the impact of Somras). 
Encountering the (demons-asuras), carrying off Dabhiti, he burnt all their weapons in a kindled fire and enriched (the prince) with their cattle, their horses and their chariots, in the exhilaration of the Somras, Indr has done these (deeds).
EXHILARATION :: रसिकता, ज़िंदादिली; jocundity, sentimentality.
स ईं महीं धुनिमेतोररम्णात्सो अस्नातॄनपारयत्स्वस्ति। 
त उत्स्नाय रयिमभि प्र तस्थुः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
उन इन्द्र देव ने द्युति, इरावती या परुष्णी नामक महानदी को पार जाने के लिए शान्त किया। नदी के पार जाने में असमर्थ लोगों को निरापद पार किया। वे नदी पार होकर धन को लक्ष्य करके गये थे। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.5]
असमर्थ :: अक्षम, अयोग्य, शक्तिहीन, विकलांग, अपात्र, निर्बल, अपाहिज  होना; inability, incapability, disability. 
इन्द्र देव ने पार जाने के लिए नदी को शांत कर असहाय प्राणियों को पार लगाया। वे धन को लक्ष्य करते हुए सरिता से पार हुए। इन्द्रदेव ने सोम के आनन्द में यह कार्य किया।
Indr Dev calmed down-pacified the rivers Dyuti, Irawati-Parushni to be crossed by the incompetent-disabled. Such people crossed the river and targeted riches (made endeavours for both & meet, surviving, living, livelihood). Indr Dev did this, since he became happy-amused after drinking Somras.
सोदञ्चं सिन्धुमरिणान्महित्वा वज्रेणान उषसः सं पिपेष। 
अजवसो जविनीभिर्विवृश्चन्त्सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
अपनी महिमा से इन्द्र देव ने सिन्धु को उत्तर वाहिनी किया वेगवती सेना के द्वारा दुर्बल सेना को भिन्न करके वज्र द्वारा उषा के रथ को चूर्ण किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.6]
इन्द्र ने अपनी महिमा से सिन्धु नदी को उत्तर की ओर प्रवाहित किया। वज्र द्वारा उषा के रथ को ध्वंस किया। यह कार्य इन्द्रदेव ने सोम की शक्ति से किया।
Indr Dev made the river Sindhu flow towards North with his power-might, destroyed the weak army with the fast moving army and destroyed the charoite of Usha with Vajr-thunderbolt. He did this because of the joy produced in him by the drinking of Somras.
By his great power-might he turned the Sindhu river towards the north, with his thunderbolt he ground to pieces the wagon of the Usha-dawn, scattering the tardy enemy with his swift forces, in the exhilaration of the Somras, Indr has accomplished-done these deeds.
स विद्वाँ अपगोहं कनीनामाविर्भवन्नुदतिष्ठत्परावृक्। 
प्रति श्रोणः स्थाद्व्यनगचष्ट सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
अपने विवाह के लिए आई हुई कन्याओं का भागना जानकर परावृज ऋषि सबके सामने ही उठकर खड़े हो गये। पंगु होने पर भी कन्याओं के प्रति दौड़े, चक्षुहीन होने पर भी उन्हें देखा; क्योंकि स्तुति से प्रसन्न होकर इन्द्र देव ने उन्हें पैर और आँखें दे दी थीं। सोमजन्य हर्ष होने पर इन्द्र देव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.7]
अपनी शादी को आयी हुई कन्याओं को दौड़ता देखकर परावृक पंगु होते उठकर दौड़ पड़े। नेत्रहीन होने पर भी देखने में समर्थवान हुए। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर इन्द्रदेव ने उन्हें पैर और आँखें प्रदान की। यह कर्म उन्होंने सोम जनित हर्षिता में किया। 
पंगु :: लुंज-पुँज ,लँगड़ा-लूला; paralyzed, crippled, lacerated. 
Paravraj Rishi ran towards towards the girls who run away when they noticed-found that he was incompetent (paralyzed, crippled) unable to move and blind since Dev Raj Indr grant him eye sight and removed his paralysis-crippling. Dev Raj became happy with his prayers and cured him having enjoyed Somras.
भिनद्वलमङ्गिरोभिर्गृणानो वि पर्वतस्य दृंहितान्यैरत्। 
रिणग्रोधांसि कृत्रिमाण्येषां सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
अंगिराओं द्वारा स्तुति करने पर इन्द्र देव ने बल को विदीर्ण किया। पर्वत के सुदृढ़ द्वारों को खोला। इनकी रुकावट को भी हटाया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.8]
अंगिरा वंशियों की प्रार्थना पर इन्द्र देव ने बल को विमुक्त किया और पर्वतों हुए भी के द्वारों को खोला और इनकी बाधाएँ दूर कीं। सोमरस की प्रसन्नता में इन्द्र ने यह में काम किया।
Over the request of Angiras, Indr Dev released Bal and opened the gates of strong mountains. He cleared the obstacles as well. He did this under the pleasure granted to him by Somras.
Praised by the Angiras, Indr Dev destroyed Bal, forced upon the firmly shut doors of the mountain, broke down their artificial defences in the exhilaration of the Somras Indr Dev has done these deeds.
स्वप्नेनाभ्युप्या चुमुरिं धुनिं च जघन्य दस्युं प्र दभीतिमावः। 
रम्भी चिदत्र विविदे हिरण्यं सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
हे इन्द्र देव! आपने चुमुरि और धुनि नाम के असुरों को दीर्घ निद्रा में प्रविष्ट करके विनष्ट किया। दधीचि नामक राजर्षि की रक्षा की। उनके वेत्रधारी दौवारिक ने भी शत्रु का हिरण्य प्राप्त किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.9]
वेत्रधारी :: a staff-bearer, macebearer, warder, usher.
हिरण्य :: सोना-एक बहुमूल्य पीली धातु जिसके गहने आदि बनते हैं, वह शक्ति या तत्व जिसके योग से वस्तुओं आदि का रूप आँख को दिखाई देता है, एक नदी वह तरल पदार्थ-अमृत जिसे पीने से जीव अमर हो जाता है, शरीर की वह धातु जिससे उसमें बल, तेज और कान्ति आती है और सन्तान उत्पन्न होती है, एक पौधा जिसके फलों के बीज बहुत विषैले होते हैं,  घोंघे की तरह के एक समुद्री कीड़े का कड़ा अस्थि आवरण, सोना-सुवर्ण, शुक्राणु-वीर्य, सृष्टि का नित्य तत्त्व, हिरण्यमय नामक भू खंड या वर्ष, ज्ञान ज्योति, धतूरा, कौड़ी।
हे इन्द्र देव! चुमीरि और धुनि नामक दानवों को तुमने समाप्त किया तथा दभीति ऋषि की रक्षा की। सोमरस की प्रसन्नता में तुमने यह कर्म किया है। 
Hey Indr Dev! You killed the demons named Chumuri & Dhuni by making them asleep. Protected the Rishi called Dabheeti. His mace bearing gate keeper collected-snatched the gold of the enemy. 
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तुतिकारी का मनोरथ पूरा करती है, वही दक्षिणा आप हमें प्रदान करें। आप भजनीय हैं, हमें छोड़कर और किसी को न देना। हम पुत्र पौत्रादियुक्त होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.15.10]
हे इन्द्र देव! तुम्हारी समृद्धि वाली दक्षिणा वंदनाकारी का अभीष्ट पूरा करती है। वही हमें प्रदान करो। किसी अन्य को मत देना। हम संतान से परिपूर्ण होकर अनुष्ठान में तुम्हारी वंदना करेंगे।
Hey Indr Dev! Grant us those gifts-goods which accomplish-fulfil the desires of the person praying to you. You deserve worship-prayers. Give the desired commodities to us, non else. We will hold-participate in the Yagy having attained sons and grand sons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (16) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
प्र वः सतां ज्येष्ठतमाय सुष्टुतिमग्नाविव समिधाने हविर्भरे। 
इन्द्रमजुर्यं जरयन्तमुक्षितं सनाद्युवानमवसे हवामहे
आपके उपकार के लिए देवताओं में ज्येष्ठतम इन्द्र देव के लिए दीप्यमान अग्नि में हम हव्य प्रदान करते हैं। अनन्तर उनकी मनोहर स्तुति करते हैं। अपनी रक्षा के लिए स्वयं जरा रहित, समस्त संसार को जला देने वाले सोमसिक्त, सनातन और तरुण वयस्क इन्द्र देव को हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 2.16.1]
उपकार :: भलाई, सहायता; countenance, benefit, favour, promote, alms deed, behoof, benefaction, beneficence, benevolence, charity, protection. 
हम तुम्हारे लिए उन श्रेष्ठ इन्द्र देव के प्रति ज्योर्तिमान अग्नि में हवि प्रदान करते हैं और सुन्दर वंदना गाते हैं। उन अजर, परन्तु संसार को वृद्धावस्था देने वाले सोमपायी इन्द्रदेव का आह्वान करते हैं।
We make offerings in holy fire for your benefit-favours for the sake of Indr Dev who is the leader of demigods-deities. Thereafter we sing lovely-pleasing prayers in his honour. We invite Indr Dev for our protection, who is free from agedness-old age, Somras liking, ancient, always young.
यस्मादिन्द्राद्बृहतः किं चनेमृते विश्वान्यस्मिन्त्संभृताधि वीर्या। 
जठरे सोमं तन्वीं सहो महो हस्ते वज्रं भरति शीर्षणि क्रआप्
विराट् इन्द्र देव के बिना संसार नहीं है। जिन इन्द्र देव में सारी शक्तियों है, वही इन्द्र देव उदर में सोमरस धारण करते हैं। उनके शरीर में बल और तेज है। उनके हाथ में वज्र और मस्तक में ज्ञान है।[ऋग्वेद 2.16.2]
इन्द्रदेव के बिना संसार कैसा? वह सर्वशक्तिमान और विराट हैं। सोमरस धारण करने वाले शीक्तवान और तेजस्वी हैं। वे ज्ञानी और वज्रधारी हैं।
There is no world-universe in the absence of Indr Dev who is large-huge. He possess all powers-might and has Somras in his stomach. His body possess strength and aura. He is enlightened and his hands possess Vajr.
न क्षोणीभ्यां परिभ्वे त इन्द्रियं न समुद्रैः पर्वतैरिन्द्र ते रथः। 
न ते वज्रमन्वश्नोति कश्चन यदाशुभिः पतसि योजना पुरु
हे इन्द्र देव! जबकि आप शीघ्रगामी अश्व पर चढ़कर अनेक योजन जाते हैं, तब द्यावा पृथ्वी आपके बल को पराजित नहीं कर सकती। समुद्र और पर्वत आपके रथ का परिभव नहीं कर सकते। कोई भी व्यक्ति आपके बल का परिभव नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.16.3]
हे इन्द्र देव! तुम अपने अश्व पर सुदूर गमन करते हो। तब आकाश और पृथ्वी तुम्हारे बल को जीत नहीं सकती। समुद्र और पर्वत तुम्हारे रथ को रोक नहीं सकते। तुम्हारी शक्ति का मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
Hey Indr Dev! When you travel several Yojan riding your horse neither earth nor sky can obstruct-defeat you. Neither ocean nor mountains can block the way of your charoite. None (neither humans nor demons) can destroy your power. 
विश्वे ह्यस्मै यजताय धृष्णवे क्रतुं भरन्ति वृषभाय सश्चते। 
वृषा यजस्व हविषा विदुष्टरः पिबेन्द्र सोमं वृषभेण भानुना
सब लोग यजनीय, शत्रु नाशक, अभीष्ट वर्षी और सदा सज्जित इन्द्र देव का यज्ञ करते हैं। आप सोमदाता और विद्वान् है। इन्द्र देव के लिए आप भी यज्ञ करें। हे इन्द्र देव! अभीष्टवर्षी और दीप्यमान अग्नि देव के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.16.4]
यजन योग्य शत्रुहन्ता वर्षक इन्द्रदेव का सभी यज्ञ करते हैं। हे विद्वानजन! तुम सोम प्रदान करने वाले हो। इन्द्रदेव के लिए यज्ञ करो। हे इन्द्र देव! अभिलाषाओं की वृष्टि करने वाले अग्नि देव के साथ सोमपान करो।
All humans perform Yagy for the sake-in the honour of Indr Dev who is always willing-ready to protect them, destroys their enemy, accomplish their desires. You (humans) are learned-enlightened and produce-grant Somras. Hey Indr Dev! Enjoy Somras along with Agni Dev who too accomplish their desires and aurous. 
वृष्णः कोशः पवते मध्व ऊर्मिर्वृषभान्नाय वृषभाय पातवे।
वृषणाध्वर्यू वृषभासो अद्रयो वृषणं सोमं वृषभाय सुष्वति
अभीष्ट वर्षी और मादक सोमरस अनुष्ठाताओं के लिए उत्तेजक होकर बल प्रद, अन्न विशिष्ट और अभोष्ट वर्षी अभिषव प्रस्तर सोमरस का आपके लिए अभिषवण करते हैं।[ऋग्वेद 2.16.5]
अहंकारी और अभिष्ट इच्छित वर्षा, सोमपान करने वालों के निमित्त इन्द्र देव की ओर जाता है। अध्वर्यु पाषाण द्वारा सोमरस को कूटते हैं और छानते हैं।
Somras helps in attainment-accomplishment of desires & grants strength. Its crushed with stones, filtered & distilled. 
हे इन्द्र देव! तुम शत्रु हन्ता हो। वंदनाकारी को संग्राम में नौका की तरह बचाते हो। अनुष्ठान में तुम्हारी वंदना करता हुआ मैं तुमको ग्रहण होता हूँ। हमारे श्लोक को अच्छी प्रकार से समझो। हम तुम्हारा सिंचन करेंगे।
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (17) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
तदस्मै नव्यमङ्गिरस्वदर्चत शुष्मा यदस्य प्रत्नथोदीरते। 
विश्वा यद्गोत्रा सहसा परीवृता मदे सोमस्य दृंहितान्यैरयत्
हे स्तोताओं! आप लोग अङ्गिराओं की तरह नवीन स्तुति द्वारा इन्द्र देव की उपासना करें; क्योंकि इनका शोषक तेज पूर्वकाल की तरह उदित होता है। सोम जनित हर्ष के उत्पन्न होने पर इन्होंने वृत्रासुर द्वारा आक्रान्त सारी मेघ राशि को उद्घाटित किया।[ऋग्वेद 2.17.1]
हे मनुष्यों! अंगिराओं के समान नये श्लोकों से इन्द्रदेव का अर्चन करो। इन्द्रदेव का तेज सूर्य रूप से उदित होता है। सोम से रचित खुशी के कारण इन्द्र देव ने वृत्र के द्वारा रोके हुए बादल को खोला।
Hey worshipers! Pray to Indr Dev with the help of a new hymn-composition, to evolve his powers-energies like the Sun, as before. Having enjoyed Somras he cleared the blockade of the clouds by Vrata Sur.  
स भूतु यो ह प्रथमाय धायम् ओजो मिमानो महिमानमातिरत्। 
शूरो यो युत्सु तन्वं परिव्यत शीर्षणि द्यां महिना प्रत्यमुञ्चत
जिन इन्द्र देव ने बल का प्रकाश करके प्रथम सोमरस के पान के लिए अपनी महिमा को बढ़ाया और जिन शत्रु हन्ता इन्द्र देव ने युद्ध काल में अपने शरीर को सुरक्षित रखा, वे इन्द्र देव प्रसन्न हों। उन्होंने अपनी महिमा से अपने मस्तक पर धुलोक को धारण कर लिया।[ऋग्वेद 2.17.2]
इन्द्रदेव ने संग्राम काल में, शत्रु पतन की कामना से सोमपान के लिए अपनी महिमा की वृद्धि की। वे इन्द्र देव प्रसन्न हों। उन्होंने अपने मस्तक पर सूर्य लोक धारण किया।
Let Indr Dev become happy. He strengthened his powers-might by consuming Somras. He supported the space, sky and the horizon by his power.
अधाकृणोः प्रथमं वीर्यं महद्यदस्याग्रे ब्रह्मणा शुष्ममैरयः। 
रथेष्ठेन हर्यश्वेन विच्युताः प्र जीरयः सिस्रते सध्यक् पृथक्
हे इन्द्र देव! आपने अपना महावीर्य प्रकट किया; क्योंकि स्तोत्र द्वारा प्रसन्न होकर आपने शत्रु विनाशक बल को प्रकट किया। आपके स्थस्थित हरि नामक अश्वों के द्वारा स्वस्थान से विच्युत होकर अनिष्टकारी लोगों में से कुछ दल बाँधकर और कुछ अलग-अलग होकर पलायित हो गये।[ऋग्वेद 2.17.3]
हे इन्द्र देव तुम पुरुषार्थी हो। वंदना से प्रसन्न होकर तुमने शत्रु को नष्ट करने वाली शक्ति को प्रकट किया। तुम्हारे रथ में जुड़े हुए अश्वों के कारण दुष्ट लोग दल बद्ध होकर और कुछ इधर-उधर बिखर कर भाग गए।
Hey Indr Dev! You are courageous, daring. You were pleased by the Strotr-hymns sung in your honour and used your might to displace-dislocate the enemy. Some of them moved in groups while others moved individually when you deployed your horses named Hari in the charoite.  
अधा यो विश्वा भुवनाभि मज्मनेशानकृत्प्रवया अभ्यवर्धत। 
आद्रोदसी ज्योतिषा वह्निरातनोत्सीव्यन्तमांसि दुधिता समव्ययत्
हे बहुत अन्न वाले इन्द्र देव! अपने बल से समस्त भुवनों को अभिभूत करके और अपने को सबका अधिपति करके वर्द्धित हुए। अनन्तर संसार के वाहक इन्द्र देव ने द्यावा पृथ्वी को व्याप्त किया। इन्होंने दुःस्थित तमोराशि को चारों ओर फेंकते हुए संसार को व्याप्त किया।[ऋग्वेद 2.17.4]
अनेक अन्न वाले इन्द्रदेव समस्त संसार के स्वामी हैं। उन्होंने अम्बर पृथ्वी को विद्यमान किया। उन्होंने अंधकार को सब जगह प्रेरित करते हुए संसार को ढक दिया।
Hey possessor of ample quantity of food grains, Indr Dev! You grew by powers (strength & might) by becoming the leader of all abodes enchanting them. Thereafter, the supporter of the earth and the sky  Indr Dev removed the sorrow-pain of the earth & other abodes and threw it away all around. 
स प्राचीनान्पर्वतान्दृंहदोजसाधराचीनमकृणोदपामपः। 
अधारयत्पृथिवीं विश्वधायसमस्तभ्नान्मायया द्यामवस्त्रसः
इन्द्र देव ने इधर-उधर घूमने वाले पर्वतों को अपने बल से अचल किया। मेघ स्थित जलराशि को नीचे गिराया। उन्होंने संसार धारयित्री पृथ्वी को अपने बल से धारित किया और बुद्धि बल से धुलोक को पतन से बचाया।[ऋग्वेद 2.17.5]
इन्द्रदेव ने विचरण शील पर्वतों को अचल किया। बादल ने जल को गिराया। संसार को धारण करने वाली धरा को अपनी शक्ति से धारण किया और क्षितिज को इस प्रकार दृढ़ किया जिससे वह गिर न सके।
Indr Dev made the mountains stationary-stable. Prior to this they use to move freely. Unlocked the water present in the clouds. He supported the earth with his powers and protected the sky & space from falling by making use of his intellect.
सास्मा अरं बाहुभ्यां यं पिताकृणोद्विश्वस्मादा जनुषो वेदसस्परि। 
येना पृथिव्यां नि क्रिविं शयध्यै वज्रेण हत्व्यवृणक्तुविष्वणिः
हे इन्द्र देव! इस संसार के लिए आप पर्याप्त है। आप सबके रक्षक हैं। आपने समस्त जीवों की अपेक्षा उत्कृष्ट ज्ञान बल से अपने हाथों संसार का निर्माण किया। विविध कीर्तिमान् इन्द्र देव ने इस ज्ञान से क्रिवि को वज्र द्वारा मारते हुए पृथ्वी पर रेंगने के लिए बाधित किया।[ऋग्वेद 2.17.6]
Hey Indr Dev! You are sufficient for this earth. You are the protector of all. You created the universe by virtue of your  excellent intellect. He struck Krivi-a demon with Vajr-thunder volt and made him cripple over the earth.
Sufficient-enough was he, for (the protection of) this world-universe, which he, its defender, fabricated with his two arms for the sake of all mankind, over whom he was supreme by his wisdom; whereby, also, he the loud-shouting, having struck Krivi-Asur with the thunderbolt, consigned him to eternal slumber on the earth.
अमाजूरिव पित्रोः सचा सती समानादा सदसस्त्वामिये भगम्। 
कृधि प्रकेतमुप मास्या भर दद्धि भागं तन्वोयेन मामहः
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार से आमरण माता-पिता के साथ रहने वाली पुत्री अपने पितृ कुल से ही अंश के लिए प्रार्थना करती है, उसी प्रकार मैं आपके पास धन की याचना करता हूँ। उस धन को आप सबके पास प्रकट करें, उस धन को मापें और उसे सम्पादित करें। मेरे शरीर के भोगने योग्य धन प्रदान करें। इस धन से स्तोताओं को सम्मानित करें।[ऋग्वेद 2.17.7]
इन्द्र देव संसार के रक्षक, समस्त प्राणियों को प्रकट करने वाले, माँ-बाप के भवन में हमेशा निवास करने वाली बेटी जैसे पितर कुल से भरण पोषण के लिए धन का भाग चाहती हैं, वैसे ही मैं तुमसे धन की विनती करता हूँ। उस धन को प्रकट करो।
Hey Indr Dev! The manner in which an unmarried daughter requests her parents for financial support, I too request you to help me. Grant me sufficient money to survive. Let this money to used to honour the worshipers.
भोजं त्वामिन्द्र वयं हुवेम ददिष्टमिन्द्रापांसि वाजान्। 
अविड्ढीन्द्र चित्रया न ऊती कृषि वृषन्निन्द्र वस्यसो नः
हे अभीष्टवर्षी इन्द्र देव! आप पालक है। हम आपका आह्वान करते हैं। आप कर्म और अन्न के दाता है। नाना प्रकार से आश्रय प्रदान कर आप हमें बचायें। आप हमें अत्यन्त धनशाली बनावें।[ऋग्वेद 2.17.8]
मुझे उपभोग्य धन प्रदान करो और प्रार्थना करने वालों को भी धन से संतुष्ट करो। हे पोषणकर्त्ता इन्द्रदेव! तुम कर्म और अन्न के प्रेरक हो। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। तुम हमको अत्यन्त धनवान बना दो।
Hey accomplishments fulfilling Indr Dev! We call you. You are the giver of working capability and food grains. You support us in different-different ways. Make us rich. 
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तोता के सभी मनोरथ पूर्ण करती है, वही दक्षिणा आप हमें प्रदान करें। आप भजनीय हैं। हमें छोड़कर अन्य किसी को न दें। हम पुत्र पौत्रादि से युक्त होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.17.9]
हे इन्द्र देव! तुम्हारी धनयुक्त दक्षिणा सबकी कामना पूरी करती है तुम पूजने के योग्य हो। वह दक्षिणा हमको दो किसी दूसरे को नहीं हम संतान युक्त हुए यज्ञ में तुम्हारी वंदना करेंगे।
Hey Indr Dev! Grant us the money, riches, donations which accomplish all desires. You deserve worship-prayers. Do not give to any one else except us. We will make offerings in this Yagy having obtained sons & grandsons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (18) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
प्राता रथो नवो योजि सस्निश्चतुर्युगस्त्रिकशः सप्तरश्मिः। 
दशारित्रो मनुष्यः स्वर्षा: स इष्टिभिर्मतिभी रंह्यो भूत्
प्रातःकाल में प्रारम्भ किये गए इस रथ में चार युग, तीन कोड़े, सात किरणें और दस चक्र हैं। यह इष्ट प्रयोजनों के लिए मति के अनुरूप गतियों से युक्त हैं। यह मनुष्यों को स्वर्ग के पहुँचाने वाला है।[ऋग्वेद 2.18.1]
हे विद्वान् शिल्पियों से जो (दशारित्रः) दश अरित्रों वाला अर्थात् जिसमें दश रुकावट के साधन हैं (सस्निः) और जिसमें सोते हैं (चतुर्युगः) जो चार स्थानों में जोड़ा जाता (त्रिकशः) तीन प्रकार के गमन वा गमन साधन जिसमें विद्यमान (सप्त रश्मिः) जिसकी सात प्रकार की किरणें (नव) ऐसा नवीन (रथः) रथ और (स्वर्षा) जिससे सुख उत्पन्न हो ऐसा और (मनुष्यः) विचारशील मनुष्य (प्रातः) प्रभात समय में (योजि) युक्त किया जाता (सः) वह (इष्टिभिः) संगत प्राप्त हुई (मतिभिः) प्रज्ञाओं से (रंह्यः) चलाने योग्य (भूत्) होता है। जो मनुष्य ऐसे यान से जाने-आने को चाहें, वे निर्विघ्न गतिवाले हों।
अरित्र :: एक सरल युक्ति है जो जलयान, नौका, पनडुब्बी, होवरक्राफ्ट, वायुयान आदि को वांछित दिशा में मोड़ने के काम आता है, बल्ला जिससे नाव खेते हैं, डाँड़, क्षेपणी, निपातक, जल की थाह लेने की ड़ोरी, लंगर, शत्रु से रक्षा करने वाला, आगे बढ़ाने वाला। 
The charoite deployed in the morning possess ten device to control it to move-navigate in three directions and seven kinds of rays-beams to show detect-the path (Just like radar or sonar). Its devised to move one to safely.
Virtually it represents Sun. 
यह वंदना के योग्य शुद्ध अनुष्ठान उषा काल में शुरू हुआ। इसमें चार पाषाण, तीन स्वर, सात छन्द और दस प्रकार के पात्र हैं। यह मनुष्यों को दिव्यता प्रदान करता है।
A laudable and pure sacrifice, has been instrumental at dawn; having four pairs (of stones for bruising the Som); three tones (of prayer); seven metres and ten vessels, beneficial to man, conferring heaven and sanctifiable with solemn rites and praises. Its joined-fixed at four places. 
Four different sources gives different versions-translations of the Shlok.
सास्मा अरं प्रथमं स द्वितीयमुतो तृतीयं मनुषः स होता। 
अन्यस्यागर्भमन्य ऊजनन्तसोअन्येभिः सचते जेन्योवृषा
यह यज्ञ इन इन्द्र देव के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय सवन में यथेष्ट हुआ। यह मनुष्यों लिए शुभ फल लाता है। दूसरे ऋत्विक् लोग भी दूसरे सिद्ध वाक्यों को गर्भ से उत्पन्न करते हैं। अभीष्टवर्षी और जयशील यज्ञ अन्य देवों के साथ सम्मिलित होता है।[ऋग्वेद 2.18.2]
यह रमणीय श्लोक और हवियों से सिद्ध होगा। यह अनुष्ठान तीनों सवनों में इन्द्र देव को संतुष्ट करने वाला है। यह मनुष्यों के लिए शुभ फल दाता है।
This Yagy has been conducted in three phases for the sake of Indr Dev and leads to auspicious results-rewards for the humans. Other participants in the Yagy too contribute in the form of hymns. This accomplishment granting Yagy is shared by the demigods-deities.
That sacrifice is sufficient for Indr Dev, whether offered for the first, the second or the third time. It is the bearer of good to man. Other priests-hosts engender the embryo of a different rite for this victorious sacrifice. The shower of benefits combines with other ceremonies.
 हरी नु कं रथ इन्द्रस्य योजमायै सूक्तेन वचसा नवेन। 
मो षु त्वामत्र बहवो हि विप्रा नि रीरमन्यजमानासो अन्ये
इन्द्र देव के रथ में नये स्तोत्रों के द्वारा शीघ्र जाने के लिए हरिनाम के अश्वों को जोड़ा जाता है। इस यज्ञ में अनेक मेधावी स्तोता है। दूसरे यजमान लोग आपको अच्छी तरह तृप्त नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 2.18.3]
ऋत्विगण सिद्ध श्लोकों द्वारा इन्द्र देव के रथ में घोड़े संयोजित किये जाते हैं। इस अनुष्ठान में अत्यन्त बुद्धिमान वंदनाकारी हैं। हे इन्द्रदेव! अन्य यजमान तुम्हारी तृप्ति करने में असमर्थ हैं।
The charoite of Indr Dev is deployed with the horses named Hari along with the recitation of newly composed sacred hymns. The Yagy has many intellectual recitators of Strotr-hymns. Other hosts can not satisfy Indr Dev. 
The style of recitation of Mantr-Strotr is very-very specific. Loudness, pitch, wavelength, amplitude, frequency, time period and velocity etc., has to be practiced for perfection and purity.
I harness quickly and easily the horses to the car of Indr for its journey, by new and well-recited prayer, many wise worshippers are present here, let not other instrumental tutors of sacred rites tempt you away.
HARNESS :: घोड़े का साज, कवच; musical instrument, materials, accompaniment, armour, shield, armature, harness, coat of mail.
आ द्वाभ्यां हरिभ्यामिन्द्र याह्या चतुर्भिरा षड्भिहूयमानः। 
आष्टाभिर्दशभिः सोमपेयमयं सुतः सुमख मा मृधस्कः
हे शोभन धन वाले इन्द्र देव! आप बुलाये जाने पर दो, चार, छः, आठ अथवा दस हरि नामक घोड़ों के द्वारा सोमरस के पान के लिए पधारें। यह सोमरस आपके लिए ही निर्मित हुआ है। आप उसे नष्ट न करें।[ऋग्वेद 2.18.4]
हे इन्द्र देव! आहुत किये हुए तुम अपने विभिन्न संरक्षक अश्वों द्वारा सोम ग्रहण करने के लिए आओ। यह सोम तुम्हारे लिए है। इसे त्यागना नहीं।
Hey Indr Dev, possessing glorious wealth-riches! Come by riding-deploying 2, 4, 6, 8 or 10 horses on being invited for drinking Somras. The Somras has been extracted for you, do not let it go waste. 
आ विंशत्या त्रिंशता याह्यर्वाङा चत्वारिंशता हरिभिर्युजानः। 
आ पञ्चाशता सुरथेभिरिन्द्रा षष्ट्या सप्तत्या सोमपेयम्
हे इन्द्र देव! आप उत्तम गति वाले बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ अथवा सत्तर घोड़ों के द्वारा हमारे सामने सोमरस के पान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 2.18.5]
हे इन्द्र देव! तुम बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ और सत्तर गति वाले घोड़ों को रथ में जोड़कर सोमपान करने के लिए यहाँ पधारो। 
hey Indr Dev! Come to us by riding-deploying 20, 30, 40, 50, 60 or 70 fast moving (accelerated) horses in your charoite for drinking Somras.
आशीत्या नवत्या याह्यर्वाङा शतेन हरिभिरुह्यमानः। 
अयं हि ते शुनहोत्रेषु सोम इन्द्र त्वाया परिषिक्तो मदाय
हे इन्द्र देव! अस्सी, नब्बे अथवा सौ अश्वों के द्वारा वहन किये जाने पर हमारे सामने आवें, क्योंकि आपके आनन्द के लिए पात्र में सोमरस रखा हुआ है।[ऋग्वेद 2.18.6]
हे इन्द्र देव! अस्सी, नब्बे और सौ घोड़ों द्वारा हमको ग्रहण होओ। तुम्हारी हर्षिता के लिए पात्र में सोम प्रस्तुत है।
Hey Indr Dev! Come (quickly) riding 80, 90 or 100 horses, since Somras has been kept for your pleasure.
मम ब्रह्मेन्द्र याह्यच्छा विश्वा हरी घुरि धिष्वा रथस्य। 
पुरुत्रा हि विहव्यो बभूथास्मिञ्छूर सवने मादयस्व
हे शूर इन्द्र देव! मेरी स्तुति से सम्मुख आवें। जगद् व्यापी दोनों अश्वों को रथ के अग्रभाग में नियोजित करें। बहुसंख्यक यजमान आपका आवाहन करते हैं। आप इस यज्ञ में प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 2.18.7]
हे इन्द्र देव! मेरी प्रार्थना से हर्षित होओ। संसार व्यापी अपने दोनों अश्वों को रथ में जोड़ो। तुम्हें अनेक यजमान पुकारते हैं। तुम इस यज्ञ में शक्ति प्राप्त करो।
Hey brave (great warrior) Indr Dev! Please listen (respond) to my request-prayer. Let entire universe pervading both the horses, be deployed in the front segment of the charoite. Worshippers in large quantity-numbers are inviting you. You should become happy with this Yagy.
न म इन्द्रेण सख्यं वि योषदस्मभ्यमस्य दक्षिणा दुहीत। 
उप ज्येष्ठे वरूथे गभस्तौ प्रायेप्राये जिगीवांसः स्याम
इन्द्र देव के साथ मेरी मित्रता का सम्बन्ध सदैव बना रहे। इनकी यह दक्षिणा हमें अभिमत फल प्रदान करे। हम उनके उत्तम दायें हाथ के पास रहें। इनके द्वारा हमें निरन्तर दान मिलता रहे। इनके संरक्षण में हम प्रत्येक युद्ध में विजयी बनें।[ऋग्वेद 2.18.8] 
इंद्र देव की मित्रता कभी न छूटे। यह दक्षिणा हमको मनवांछित फल दे। हम दुखों को दूर करने वाले इन्द्रदेव को चाहते हैं। हम सभी युद्धों में विजय प्राप्त करें।
Let my friendship with Indr Dev prevail-continue. His donations grant us the desires rewards. Let us continue getting benefits-donations from him. Let his shelter-protection grant us victory in every war.
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तोता के मनोरथ पूर्ण करती है, वही दक्षिणा हमें प्रदान करें। आप यजनीय हैं। हमें छोड़कर दूसरे को दक्षिणा न देना। हम पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर इस में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.18.9] 
हे इन्द्र देव! तुम्हारी समृद्धि वाली दक्षिणा वंदना करने वालों की कामना पूर्ण करने वाली है, वह हमारे अतिरिक्त अन्य को ग्रहण न हो। तुम प्रार्थना के योग्य हो। हम संतान से परिपूर्ण हुए इस यज्ञ में वंदना करेंगे।
Hey Indr Dev! Your rewards-donations (generosity) which accomplish our wishes may please be granted. Do not make donations to any one else. We will pray-worship you on being the granted sons & grandsons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (19) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
अपाय्यस्यान्धसो मदाय मनीषिणः सुवानस्य प्रयसः। 
यस्मिन्निन्द्रः प्रदिवि वावृधान ओको दधे ब्रह्मण्यन्तश्च नरः
सोमाभिषव कर्ता मनीषी यजमान का मादक अन्न, आनन्द के लिए, इन्द्र देव भक्षण करें। इस प्राचीन अन्न में वर्द्धमान होकर इन्द्र देव इसमें निवास करते हैं। इन्द्र देव के स्तोत्राभिलाषी ऋत्विक् भी इसमें निवास कर चुके हैं।[ऋग्वेद 2.19.1] 
सोम छानने वाले यजमान की हर्ष वर्द्धक हवियों को प्रसन्न करने के लिए इन्द्र देव सेवन करें। इसमें वृद्धि किये हुए इन्द्रदेव इसी में निवास करते हैं। इन्द्रदेव के श्लोकों की इच्छा वाले ऋत्विक भी इसमें निवास किये हुए हैं।
Let Indr Dev eat the offerings made by the performer of Yagy-hosts, devotees who have extracted Somras for him. Indr Dev is present in the ancient food grains along with the hosts who too desire the Strotr.
It has been partaken by Dev Raj Indr for his exhilaration, of this agreeable sacrificial food, the libation of his devout worshipper, thriving by which ancient Somras, he has bestowed a fitting dwelling, where the adoring conductors of the ceremony abide.
अस्य मन्दानो मध्वो वज्रहस्तोऽहिमिन्द्रो अर्णोवृतं वि वृश्चत्।
प्र यद्वयो नः स्वसराण्यच्छा प्रयांसि च नदीनां चक्रमन्त
इस मदकर सोमरस से आनन्द निमग्न होकर इन्द्र देव ने हाथों में वज्र धारण करके जल के आवरक अहि राक्षस का वध किया। उस समय प्रसन्नतादायक जल राशि, जिस प्रकार से पक्षिगण पुष्करिणी के सामने जाते हैं, उसी प्रकार से ये समुद्र के सामने जाने लगी।[ऋग्वेद 2.19.2]
ENTHRALLED :: रोमांचित; filled with wonder and delight, beguiled, captivated, charmed, delighted, entranced.
इस हर्ष सम्पन्न सोमरस से आह्लादित इन्द्र ने वज्र ग्रहण कर जल रोकने वाले अहि को मार डाला। उस सयम पक्षियों के पुष्करिणी (छोटा जलाशय) के सामने जल के समान प्रसन्नता जल-राशि समुद्र के सामने पहुंचने लगी।
पुष्करिणी :: कमलों से भरा हुआ तालाब, छोटा तालाब-जलाशय, कमल का पौधा, कमलिनी, सौ धनुष की नाप का एक प्रकार का चौकोर तालाब, हथिनी, स्थलपद्मिनी; a small pond full of lotus flowers.
Indr Dev got enthralled by  drinking Somras and took Vajr in his hands to kill Ahi, a demon who was obstructing the flow of water. The water started flowing into the ocean just as the birds move towards Pushkarni.
स माहिन इन्द्रो अर्णो अपां प्रैरयदहिहाच्छा समुद्रम्। 
अजनयत्सूर्यं विदद्गा अक्तुनाह्वां वयुनानि साधत्
अहिहन्ता और पूजनीय इन्द्र देव ने जल प्रवाह को समुद्र के सामने प्रेरित किया। उन्होंने समुद्र को उत्पन्न करके गौवें प्राप्त की तथा तेजोबल से दिवसों को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 2.19.3]
अर्चनीय एवं अहिमर्दक इन्द्रदेव ने जल प्रवाह को समुद्र के सम्मुख भेजा। समुद्र को निर्मित कर उसने गौ ग्रहण की और अपने तेज की शक्ति से सूर्य को प्रकाशमान किया।
Revered-honourable Indr Dev, the slayer of Ahi-the demon, moved the waters flow into the ocean. He created the ocean and attained cows. He granted light-energy, power to Sun to light the earth-universe.
सो अप्रतीनि मनवे पुरूणीन्द्रो दाशद्दाशुषे हन्ति वृत्रम्। 
सद्यो यो नृभ्यो अतसाव्यो भूत्पस्पृधानेभ्यः सूर्यस्यसातौ
इन्द्र देव ने हव्य दाता मनुष्य को यजमान के लिए बहु संख्यक उत्कृष्ट धन प्रदान किया। वृत्रासुर का विनाश कर सूर्य की प्राप्ति के लिए स्तोताओं में विरोध उपस्थित होने पर इन्द्र देव आश्रय देने वाले हुए।[ऋग्वेद 2.19.4] 
हविदाता यजमान को इन्द्र देव ने महान धन प्रदान किया। वृत्र को समाप्त किया और सूर्य को पान करने के लिए वंदना करने वालों में विरोध होने पर इन्द्र देव ने अपने तपस्वियों को आश्रय दिया।
Indr Dev granted-provided a lot of excellent riches-wealth to the hosts,  conducting Yagy. On killing Vrata Sur confrontation developed-evolved amongest the recitators of hymns for attaining the Sun, Indr Dev granted asylum to those who were practicing asceticism.
स सुन्वत इन्द्रः सूर्यमा देवो रिणङ्मर्त्याय स्तवान्। 
आ यद्रयिं गुहदवद्यमस्मै भरदंशं नैतशो दशस्यन्
जैसे पिता अपने पुत्र को अपने द्वारा संचित धन का एक अंश प्रदान करता है, उसी प्रकार जब इन्द्र देव को दान करने वाले एतश ने यज्ञ के समय अमूल्य और उत्तम धन प्रदान किया, तब पूज्य और तेजस्वी इन्द्र देव ने यज्ञ की कामना करने वाले मनुष्यों के लिए सूर्य देव को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 2.19.5]
सोम छानने वाले एतश के लिए वंदना किये जाने पर इन्द्र देव सूर्य को लाये क्योंकि पिता को पुत्र द्वारा धन देने के तुल्य एतश ने यज्ञ में इन्द्र देव को सोमरस भेंट किया था।
Revered & honourable Indr Dev brought forward the Sun (energised the Sun) for the sake of the humans who wished to organise-conduct Yagy, when  Atash offered Somras to him & donated his valuable (priceless) and excellent wealth, like the father share a part of his earnings with his son.
(Sun might be covered by the intense-dense clouds causing complete darkness over the earth).
स रन्धयत्सदिवः सारथये शुष्णमशुषं कुयवं कुत्साय। 
दिवोदासाय नवतिं च नवेन्द्रः पुरो व्यैरच्छम्बरस्य
अपने सारथि राजर्षि कुत्स के लिए दीप्ति युक्त इन्द्र देव ने शुष्ण, अशुष और कुपव को वशीभूत किया और दिवोदास के लिए शम्बर नामक असुर के निन्नानबे नगरों को नष्ट किया।[ऋग्वेद 2.19.6] 
इन्द्र देव ने अपने सारथी कुत्स के लिए शुष्ण, अशूष और कुयव को अपने वश में कर लिया और दिवोदास के लिए शम्बर के निन्यानवें नगरों को तोड़ा। 
Indr Dev over powered-captured Shushn, Ashush and Kupav for the sake of his charioteer Kuts and destroyed the 99 cities under the control of Shamber for the welfare of Divodas.
एवा त इन्द्रोचथमहेम श्रवस्या न त्मना वाजययन्तः। 
अश्याम तत्साप्तमाशुषाणा ननमो वधरदेवस्य पीयोः
हे इन्द्र देव! अन्न की अभिलाषा से हम आपको बलवान् करके आपकी स्तुति करते हैं। आपको प्राप्त करके हम सप्तपदी मित्रता का लाभ करें। देवशून्य पीयु के विरोध में आप अपना वज्र फेंकें।[ऋग्वेद 2.19.7] 
हे इन्द देव! इनकी अन्न की इच्छा से हम तुम्हें प्रार्थनाओं से बलशाली बनाते हैं। हम तुम्हें प्राप्त सप्तपदि मित्रता का लाभ उठाएँ। देव विरोधी पीयु के लिए वज्र चलाओ!
Hey Indr Dev! We will offer prayers for your might-valour for seeking food grains. We should be benefited by the friendship generated by moving 7 steps together. Strike-project your Vajr over the atheist Peeyu.
एवा ते गृत्समदाः शूर मन्मावस्यवो न वयुनानि तक्षुः।
ब्रह्मण्यन्त इन्द्र ते नवीय इषमूर्जं सुक्षितिं सुप्रमश्युः
हे बलिष्ठ इन्द्र देव! जिस प्रकार से गमनाभिलाषी पथिक मार्ग साफ करता है, उसी प्रकार से गृत्समद गण आपके लिए मनोरम स्तुति की रचना करते हैं। आप सर्वापेक्षा नूतन हैं। आपके स्तोत्राभिलाषी गृत्समदगण अन्न, बल, गृह और सुख प्राप्त करें।[ऋग्वेद 2.19.8]
हे इन्द्र देव! जाने के लिए रास्ता स्वच्छ करने वाले के समान हम तुम्हारे लिए सुन्दर श्लोक बनाते हैं। तुम्हारे श्लोकों की इच्छा कर अन्न शक्ति, निवास और सुख को ग्रहण करें।
Hey mighty Indr Dev! The way a passenger clears his way-path prior to travelling, the Gratsamad Gan compose attractive-pleasing poems for you. You are young-new as compared to others. Let Gratsamad Gan desirous of a dialogue-blessings from you to get food grains, residence and pleasure-comforts.
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तोता के सभी मनोरथ पूर्ण करती है, वहीं दक्षिणा हमें प्रदान करें। आप भजनीय हैं। हमें छोड़कर अन्य किसी को न दें। हम पुत्र और पौत्रादि से युक्त होकर यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.19.9] 
हे इन्द्र! देव! तुम्हारी धनवाली दक्षिणा स्तोत्रों की कामनाएँ पूर्ण करती हैं। वे हमारे अतिरिक्त अन्य को प्राप्त न हों। हम संतानयुक्त हुए इस यज्ञ में तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey Indr Dev! Grant us the donations which accomplish the desires of all. You deserve prayers-worship. Do not provide such things-gifts, (rewards) to others, except us. We will pray to you in the Yagy along with our sons & grand sons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (20) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्, विराङ् रूपा
वयं ते वय इन्द्र विद्धि षु णः प्र भरामहे वाजयुर्न रथम्। 
विपन्यवो दीध्यतो मनीषा सुम्नमियक्षन्तस्त्वावतो नॄन्
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार अन्न की कामना करने वाला व्यक्ति रथ तैयार करता है, उसी प्रकार हम भी आपके लिए अन्न तैयार करते हैं। आप हमें अच्छी तरह जानते हैं। हम स्तुति द्वारा आपको दीप्यमान करते हैं। हम आप जैसे पुरुष से सुख की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 2.20.1] 
हे इन्द्र देव! अन्न की प्राप्ति के लिए ही जैसे रथ का निर्माण करने वाला, रथ को बनाता है, उसी प्रकार हम तुम्हारे लिए अन्न प्रस्तुत करते हैं। तुम हमसे भली भांति परिचित हो। हम वंदना से तुम्हें प्रकाशमान करते हैं और तुमसे सुख की विनती करते हैं।Hey Indr Dev! The way a person desirous of having food grains, prepare his charoite (keeps it ready), we too prepare food grains for you. You know us well. We make prayers in your honour. We request-pray to you, for comforts-pleasure. 
त्वं न इन्द्र त्वाभिरूती त्वायतो अभिष्टिपासि जनान्। 
त्वमिनो दाशुषो वरूतेत्याधीरभि यो नक्षति त्वा
हे इन्द्र देव! आप हमारा पालन करते हुए हमारी रक्षा करें। जो आपको चाहते हैं, उनकी आप शत्रुओं से रक्षा करते हैं। आप हव्यदाता यजमान के ईश्वर और उसके शत्रु को दूर करने वाले हैं। हव्य द्वारा जो आपकी सेवा करता है, उसके लिए आप यह सब कर्म करते हैं।[ऋग्वेद 2.20.2]
हे इन्द्र देव! हमारे पोषक और रक्षक होओ। तुम हमारे उपासकों की शत्रु से रक्षा करते हो। तुम हविदाता के दाता हो और उसके शत्रुओं को भगाते हो। हवि में सेवा करने वाले के लिए तुम यह कर्म करते हो। 
Hey Indr Dev! Nurture us while protecting us. You protect those who like-respect you. You are the God of the host-house hold who make offerings to you and repel his enemy. You protect-shelter the person who make offerings to you.
स नो युवेन्द्रो जोहूत्रः सखा शिवो नरामस्तु पाता। 
यः शंसन्तं यः शशमानमूती पचन्तं च स्तुवन्तं च प्रणेषत्
हम यज्ञ कार्य करते हैं। तरुण वयस्क, आह्वान योग्य, मित्र तुल्य और सुखदाता इन्द्र देव हमारी रक्षा करें। जो स्तोत्र का उच्चारण करता है, क्रिया का समाधान करता है, हव्य का पाक करता है और स्तुति करता है, उसे आश्रय देकर इन्द्र देव कर्म के पार ले जाते हैं।[ऋग्वेद 2.20.3]
हम यज्ञानुष्ठान करते हैं, वंदनाकारी हविदाता और कर्मवान व्यक्ति को इन्द्र देव शरण देते और कार्यों में निपुण बनाते हैं।
We conduct Yagy. Let young, deserving invitation, like a friend, pleasure-comforts, creating-granting Indr Dev protect us. One who recite Strotr-hymns in his honour, accomplish his duties, prepare offerings, pray-worship him, Indr Dev protect him and move him across the barriers of deeds towards Salvation-Moksh. 
तमु स्तुष इन्द्रं तं गृणीषे यस्मिन्पुरा वावृधुः शाशदुश्च। 
स वस्वः कामं पीपरदियानो ब्रह्मण्यतो नूतनस्यायोः
मैं उन्हीं इन्द्र देव की स्तुति करता हूँ, उन्हीं की प्रशंसा करता हूँ। उनके स्तोता पहले वर्द्धित हुए और उन्होंने शत्रुओं का विनाश किया। इन्द्र देव के निकट प्रार्थना करने पर इन्द्र देव स्तोत्राभिलाषी नये यजमान की धन प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करते है।[ऋग्वेद 2.20.4] 
मैं इन्द्र देव का प्रार्थनाकारी और उनका प्रशंसक हूँ। उनके प्रार्थनाकारी पहले वृद्धि को ग्रहण हुए और फिर शत्रु का पतन कर सके। जो नया वंदनाकारी इन्द्रदेव के पास स्तुति पाठ करते हैं उनकी धन की इच्छा को इन्द्रदेव पूरा करते हैं।
I appreciate-honour and pray-worship Indr Dev. Those who worshiped him grew in strength and destroyed the enemy. Those who pray-worship Indr Dev for riches-wealth are obliged by him.
सो अङ्गिरसामुचथा जुजुष्वान्ब्रह्मा तूतोदिन्द्रो गातुमिष्णन्। 
मुष्णनुपसः सूर्येण स्तवानश्नस्य चिच्छिश्नथत्पूर्व्याणि
तेजस्वी एवं दर्शनीय इन्द्र तपस्वी के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वे शत्रुहन्ता इन्द्रदेव प्राणधारियों को कष्ट देने वाली वस्तु का मस्तक काटकर फेंक देते हैं।[ऋग्वेद 2.20.5]
The worshipers provided the strength boosting food grains to Indr Dev. Indr Dev took his Vajr, killed the demons and destroyed the cities occupied by the demons which were made of Iron.
स ह श्रुत इन्द्रो नाम देव ऊर्ध्वो भुवन्मनुषे दस्मतमः। 
अव प्रियमर्शसानस्य साह्वाञ्छिरो भरद्दासस्य स्वधावान्
हे द्युतिमान्, कीर्त्तिमान् और अतीव दर्शनीय इन्द्रदेव! आप मनुष्य के लिए सदैव तैयार रहते हैं। शत्रुहन्ता और बलवान् इन्द्रदेव संसार के अनिष्टकर्ता शत्रुओं का प्रिय मस्तक नीचे फेंकते हैं।[ऋग्वेद 2.20.6]
तेजस्वी एवं दर्शनीय इन्द्र तपस्वी के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वे शत्रुहन्ता इन्द्रदेव प्राणधारियों को कष्ट देने वाली वस्तु का मस्तक काटकर फेंक देते हैं।
Hey glorious, aurous, beautiful Indr Dev! You are always ready to help the humans. You cut-chop off the heads of those enemies who are mighty, strong & bent upon creating trouble for the universe-living being, humans.
स वृत्रहेन्द्रः कृष्णयोनी: पुरंदरो दासीरैरयद्वि। 
अजनयन्मनवे क्षामपश्च सत्रा शंसं यजमानस्य तूतोत्
वृत्रहन्ता और पुरनाशक इन्द्र देव ने कृष्ण जन्मा दास सेना का विनाश किया। मनु के लिए पृथ्वी और जल की सृष्टि की है। वह यजमानों के अभिष्ट को पूर्ण करने वाले है।[ऋग्वेद 2.20.7]
वृत्र को समाप्त करने वाले तथा किले ध्वंस करने वाले इन्द्रदेव ने अंधकार को रचित  करने वाले शत्रुओं का नाश किया। उन्होंने मनुष्यों के लिए पृथ्वी और जल का निर्माण किया।
The slayer of Vratr and destroyer of forts Indr Dev vanished those enemies who created darkness. He created the earth & water for the humans. He fulfils the desires-accomplishes the wants-needs of the devotees. 
तस्मै तवस्थ्मनु दायि सत्रेन्द्राय देवेभिरर्णसातौ। 
प्रति यदस्य वज्रं बाह्वोर्धर्हत्वी दस्यून्पुर आयसीर्नि तारीत्
स्तोताओं ने जल प्राप्ति के लिए उन इन्द्र देव के लिए सदैव बल वर्द्धक अन्न प्रदान किया। जिस समय इन्द्र देव के हाथ में वज्र दिया गया, उस समय उन्होंने उसके द्वारा राक्षसों का हनन करके उनकी लौह मयी पुरी को ध्वस्त कर दिया।[ऋग्वेद 2.20.8]
वह यजमान की सुन्दर अभिलाषाओं को पूर्ण करें। जल की प्राप्ति हेतु स्तोताओं ने हमेशा इन्द्र को बढ़ाया। जब इन्द्र ने हाथ में वज्र लिया, तब उससे दानवों का नाश करके उनके लौह दुर्गों को तहस नहस कर दिया। 
The Stota always make offerings of nourishing, high energy food grains for Indr Dev for want of water. Indr Dev held Vajr in his hands and destroyed the iron Forts of the demons. 
Here Dev Raj Indr is prayed as Bhagwan Shiv who destroyed the three forts made of Gold, Silver and Iron respectively, as soon as they came in a straight line.
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥
हे इन्द्र देव! आपकी धनवती दक्षिणा स्तोता के सभी मनोरथ पूर्ण करती है। उसी दक्षिणा को हमें प्रदान करें। आप भजनीय हैं। हमारा अतिक्रम करके अन्य किसी को न देना। पुत्र और पौत्रादि से युक्त होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.20.9] 
हे इन्द्र देव! तुम्हारी समृद्धिशाली दक्षिणा वंदनाकारी का अभिष्ट पूर्ण करती है। उस दक्षिणा को हमारे अतिरिक्त अन्य को प्रदान नहीं करना। हम सन्तान से परिपूर्ण हुए यज्ञ में वंदना करेंगे।
Hey Indr Dev! The money (riches, wealth) given-provided to us by you accomplish all our needs-desires. Give us that money. You deserve worship. Do not give-sanction it to any one other than your devotees-worshipers. We will worship you, organise-perform Yagy for your sake having been blessed with sons & grand sons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
विश्वजिते धनजिते स्वर्जिते सत्राजिते नृजित उर्वराजिते। 
अश्वाजिते गोजिते अब्जिते भरेन्द्राय सोमं यजताय हर्यतम्
धनजयी, स्वर्गजयी, सदाजयी, मनुष्यजयी, उर्वरा भूमिजयी, अश्वजयी, गोजयी, जलजयी; इसलिए सर्वजयी और यजनीय इन्द्रदेव को लक्ष्य करके वांछनीय सोमरस ले आवें।[ऋग्वेद 2.21.1]
संसार को विजय करने वाले, धन, मनुष्य, धरा, अश्व, धेनु और जल आदि को विजय करने वाले, अजेय इन्द्र के प्रति उनका इच्छित सोम लाओ।
Let Somras be served to worship able Indr Dev, victorious over every one, wealth-money, humans, heavens, horses, cows, water fertile land.
अभिभुवेऽभिभङ्गाय वन्वतेऽषाळ्हाय सहमानाय वेधसे। 
तुविग्रये वह्नये दुष्टरीतवे सत्रासाहे नम इन्द्राय वोचत
सबके पराजयकर्ता, विमर्दक, भोक्ता, अजेय, सर्वसह, पूर्णग्रीव, सर्वविधाता, सर्ववोढ़ा, दूसरों के लिए दुर्द्धर्ष और सर्वदा जयशील इन्द्र देव को लक्ष्य करके नमः शब्द का उच्चारण करते हुए स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.21.2] 
विमर्दक :: खूब मर्दन करनेवाला, मसल डालने वाला, चूर-चूर करने वाला, पीस डालनेवाला, नष्ट-भ्रष्ट करनेवाला, ध्वस्त करने वाला, उपराग, एक पौधा, चक्रमर्द, चकवँड़; destroyer.
अजेय :: अपराजेय, न जीते जाते योग्य, दुर्गम, दुस्तर, अलंघ्य, असामान्य, अदम्य, अनभ्यस्त, ग़ैरमामूली; invincible, insurmountable, unbeaten.
सर्वसह :: सहनशील; tolerant. 
सभी को पराजित करने वाले विकराल कर्म द्वारा उल्लंघन न करने योग्य, संसार के उत्पत्तिकर्त्ता, हमेशा जयशील इन्द्रदेव के लिए नमस्कार परिपूर्ण अभिवादन करो।
Always winning, defeating, destroyer of the enemy, invincible, experiencer, who can not be defeated, Godly for others should be prayed by using Namah:, "Om Indray Namah:"
सत्रासाहो जनभक्षो जन॑सहश्र्च्यवनो युध्मो अनु जोषमुक्षितः। 
वृतंचयः सहुरिर्विक्ष्वारित इन्द्रस्य वोचं प्र कृतानि वीर्या
बहुतों के जयकर्ता, लोगों के भजनीय, बलवानों के विजेता, शत्रु निवारक, योद्धा, हर्षकार, सोमासिक्त, शत्रु हिंसक, अभिभवकर्ता और प्रजापालक इन्द्रदेव के उत्कृष्ट वीरकर्म की सब स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 2.21.3]
अनेकों को पराजित करने वाले, पूजने योग्य, विजेता, शत्रुसंहारक, सोम रस से आह्लादित, प्रजा का पालन करने वाले इन्द्र के पुरुषार्थ का यशगान करते हैं।
Every one admire-praise the victorious over several, worship able, winner of the strong-mighty, protector from the enemy, lover of Somras, defeat causing and nurturer of the populace Indr Dev is prayed-worshiped by all.
अभिभव :: पराजय, हार, तिरस्कार, अपयश; defeat causing.
अनानुदो वृषभो दोधतो वधो गम्भीर ऋष्वो असमष्टकाव्यः। 
रध्रचोदः श्नथनो वीलितस्पृथुरिन्द्रः सुयज्ञ उषसः स्वर्जनत्
अतुल दान सम्पन्न, अभीष्ट वर्षी, हिंसकों के हन्ता, गंभीर, दर्शनीय, कर्म में अपराजेय, समृद्ध लोगों के उत्साहदाता, शत्रुओं के कर्तन कारी, दृढाङ्ग, जगद्व्यापी और सुन्दर यज्ञ विशिष्ट इन्द्र देव ने दया से सूर्य को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 2.21.4]
जिनके दान की तुलना न हो सके, हिंसकों का विनाश करने वाले, इच्छित वर्षा करने वाले, दर्शनीय, कर्मों में कभी पराजित न करने वाले, कर्मवान को उत्साहित करने वाले, संसार व्यापी महान इन्द्रदेव ने उषा द्वारा सूर्य को प्रकट किया।
Great Indr Dev make unlimited donations, grants accomplishments , slay-kill the violent & the enemy, is beautiful-handsome, perform undefeated, victorious, encouraging, pervading the universe, rose the Sun after Usha-day break.  
यज्ञेनगाआपप्तुरो विविद्रिरे धियो हिन्वाना उशिजो मनीषिणः। 
अभिस्वरा निषदा गा अवस्यव इन्द्रे हिन्वाना द्रविणान्याशत
इन्द्र देव के स्तोता, इन्द्राभिलाषी और मनीषी अङ्गिरा लोगों ने यज्ञ द्वारा जल प्रेरक इन्द्र देव के पास चुराई हुई गायों का मार्ग जाना। अनन्तर रक्षा के अभिलाषी इन्द्र देव के स्तोता अङ्गिरा लोगों ने स्तोत्र और पूजा के द्वारा गोधन प्राप्त किया।[ऋग्वेद 2.21.5]
इन्द्र देव की वंदना करने वाले अंगिराओं ने अनुष्ठान द्वारा जल को अभिप्रेरित करने वाले इन्द्र देव से हरित धेनु का रास्ता मालूम किया।
Worshipers of Indr Dev who inspires rains by means of Yagy, thoughtful Angira decedents found the way to trace the stolen cows. Thereafter, shelter seeking Angira decedents prayed-worshiped Indr Dev and got the cows.
इन्द्र श्रेष्ठानि द्रविणानि घेहि चित्तिं दक्षस्य सुभगत्वमस्मे। 
पोषं रयीणामरिष्टिं तनूनां स्वाद्यानं वाचः सुदिनत्वमह्नाम्
हे इन्द्र देव! हमें उत्तम धन प्रदान करें। हमें निपुणता की प्रसिद्धि प्रदान करें। हमें सौभाग्य प्रदान करें। हमारे धन की वृद्धि करें। हमारे शरीर की रक्षा करें। वाणी में मीठास देते हुए दिन की सुदिन करें।[ऋग्वेद 2.21.6] 
हे इन्द्र देव! हमको महान धन और ख्याति प्रदान करो। सौभाग्य दान कर धन की वृद्धि करो। हमारी वाणी में माधुर्य का संचार करो, हमारे शरीर की सुरक्षा करो। हमारे लिए समस्त दिन सुख से पूर्ण हों।
Hey Indr Dev! Grant us the best wealth. Grant us perfection, good luck and increase our wealth. Protect our bodies. Grant us sweet voice and make our day an auspicious one. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अष्टि, अतिशक्वरी
त्रिकद्रुकेषु महिषो यवाशिरं तुविशुष्मस्तृपत्सोममपिबद्विष्णुना। सुतं यथावशत्। स ई ममाद महि कर्म कर्तवे महामुरुं सैनं सश्चद्देवो देवं सत्यमिन्द्रं सत्य इन्दुः
पूजनीय, बहु बलशाली और तृप्ति कर इन्द्र देव ने जिस प्रकार पहले इच्छा की थी, उसी प्रकार इन्द्र देव ने तीनों लोकों में व्याप्त बल की वृद्धि करने वाले सोमरस को जौ के सार भाग के साथ मिश्रित कर श्री विष्णु सहित इच्छानुसार सेवन किया।[ऋग्वेद 2.21.1]
अत्यन्त शक्तिशाली पूजनीय इन्द्र देव ने अपनी इच्छानुसार त्रिकद्रु को यज्ञ में सोम ने इन्द्र देव को श्रेष्ठ कर्म सिद्धहस्त करने के लिए हर्षित किया। सत्य रूप उज्जवल सोम तेजस्वी इन्द्र देव को हर्षित करें।
Worship deserving, mighty and satisfying Indr Dev enjoyed-drunk the Somras along with Bhagwan Shri Hari Vishnu mixed with the extract of barley to boost the powers in the three abodes; as per his wish-desire.
अध त्विषीमाँ अभ्योजसा क्रिविं युधाभवदा रोदसी अपृणदस्य मज्मना प्र वावृधे। अधत्तान्यं जठरे प्रेमरिच्यत सैनं सश्चद्देवो देवं सत्यमिन्द्रं सत्य इन्दुः
दीप्तिमान् इन्द्र देव ने अपने बल से युद्ध द्वारा क्रिवि को जीता। अपने तेज से इन्होंने द्यावा पृथ्वी को चारों ओर से पूर्ण किया। वे सोमरस के बल से बहुत बढ़े। इन्द्र देव ने एक के भाग अपने पेट में धारण करके अन्य भागों को देवताओं को प्रदान किया। सत्य स्वरूप दीप्तिमान् दिव्य सोमरस सत्य स्वरूप तेजस्वी इन्द्र देव पुष्ट करता है।[ऋग्वेद 2.21.2]
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करनेवाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, तेजस्वी, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलहप्रिय; majestic, stunning, rattling, fiery.
तेजस्वी इन्द्रदेव ने क्रिवि को अपने पराक्रम से जीता। अपने तेज से आसमान और पृथ्वी को पूर्ण किया। वे सोम के बल से वृद्धि को प्राप्त हुए। इन्द्र ने सोम का एक भाग अपने उदर में ग्रहण किया तथा शेष भाग को देवगणों को प्रदान किया। यह सत्य रूप निर्मल सोम इन्द्रदेव को प्राप्त हो। 
Majestic, mighty Indr Dev won Krivee. He surrounded the space & the earth with his energy. His powers enhanced-boosted by the sipping of Somras. He consumed a fraction of Somras himself and distributed the rest amongest the demigods-deities. Somras increased the powers of Indr Dev.
अधत्त साकं जातःक्रतुना साकमोजसा ववक्षिथ साकं वृद्धो वीर्यैः सासहिर्मृधो विचर्षणिः। दाता राधः स्तुवते काम्यं वसु सैनं सश्चद्देवो देवं सत्यमिन्द्रं सत्य इन्दुः
हे इन्द्र देव! आप यज्ञ के साथ सबल उत्पन्न हुए हैं। आप सब ले जाने की इच्छा करते है। आपने पराक्रम के साथ बढ़कर हिंसकों को जीता। आप सत्य और असत् के विचारक हैं। आप स्तोताओं को कर्म साधक और वाञ्छनीय धन प्रदान करें। सत्य और द्योतमान् सोमरस सत्य और प्रकाशमान् इन्द्रदेव को प्राप्त होवें।[ऋग्वेद 2.21.3]
हे इन्द्र देव तुम शक्ति रहित यज्ञ से प्रकट हुए। तुमने पौरुष में वृद्धि ग्रहण कर हिंसा करने वाले दुष्टों पर विजय प्राप्त की। तुम सत्या-सत्य के ज्ञाता हो। वंदनाकारी को पुष्ट करें। सिद्ध करने वाला इच्छित समृद्धि को प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You appeared out of the Yagy along with majestic powers. You desire to carry forward every thing. You won the volant with your valour. You analyse the truth and untruth. Provide us the means of performing endeavours and desired wealth. Let the truth boosting and aurous Somras be granted to Indr Dev.
तव त्यन्नर्यं नृतोऽप इन्द्र प्रथमं पूर्व्यं दिवि प्रवाच्यं कृतम्। यद्देवस्य शवसा प्रारिणा असुं रिणन्नपः। भुवद्विश्वमभ्यादेवमोजसा विदादूर्जं शतक्रतुर्विदादिषम्
हे इन्द्र देव! आप सबको नचाने वाले हैं। आपने जो पूर्वकाल में मनुष्यों के हितकर कर्म को किया, वह द्युलोक में श्लाघनीय हुआ। अपने पराक्रम से आपने देव (वृत्र) की प्राण-हिंसा करके उसके द्वारा जल को बहा दिया। इन्द्र देव ने अपने बल से वृत्रासुर या अदेव को पराजित किया। शतकर्मा इन्द्र देव ने अन्न एवं बल प्राप्त किया।
[ऋग्वेद 2.21.4] 
हे इन्द्रदेव तुम संसार को नचाते हो। तुमने जो हितकारी कार्य पहले किये थे वे सूर्य मंडल में प्रशंसा के योग्य हुए। अपने पराक्रम से वृत्र को मारकर तुमने जल को बहाया। तुम शतकर्मा हो। अन्न और शक्ति के ज्ञाता हो।
Hey Indr Dev! You regulate the entire universe. Your deeds-endeavours to help the humans are praised in the heavens. You killed Vratr and released the waters. He defeated Vrata Sur and the wicked-Asur. Hundreds of accomplishments attaining obtained food grains and mighty-powers. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :-  गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
ऋतं देवाय कृण्वते सवित्र इन्द्रायाहिघ्ने न रमन्त आपः।
अहरहर्यात्यक्तुरपां कियात्या प्रथमः सर्ग आसाम्
वृष्टिकारी, द्युतिमान्, सबके प्रेरक और वृत्र नाशक इन्द्र देव के निमित्त यज्ञादि कर्म कभी नहीं रुकते। जब से यज्ञादि कर्म प्रचलित हुए, तब से याजक गण निरन्तर यज्ञ करते हैं।[ऋग्वेद 2.30.1]
वर्षक, तेजस्वी, शिक्षाप्रद वृत्रनाशक, इन्द्रदेव के यज्ञ के लिए जल नहीं रुकता। उसका श्लोक गतिमान रहता है। उसकी सृष्टि अन्य कर्म के लिए नहीं हुई थी।
Yagy in the honour of Indr Dev, who causes rains, possess aura-energy, inspires all and killed Vrata Sur; never stops. Ever since the Yagy started by the worshipers, its continuing till today.
यो वृत्राय सिनमत्राभरिष्यत्प्र तं जनित्री विदुष उवाच।
पथो रदन्तीरनु जोषमस्मै दिवदिवे धुनयो यन्त्यर्थम्
जिस व्यक्ति ने वृत्रासुर को अन्न प्रदान किया, उसकी बात माता अदिति ने इन्द्र से कह ने दी। इन्द्र की इच्छा के अनुसार नदियाँ अपना मार्ग बनाती हुई, प्रतिदिन समुद्र की ओर जाती है।[ऋग्वेद 2.30.2] 
वृत्र को पुष्ट बनाने वाले की बात अदिति ने इन्द्रदेव को बतायी। ये नदियाँ प्रतिदिन अपने रास्ते पर चलती हुई इन्द्रदेव की कामनानुसार समुद्र में प्रस्थान करती हैं। 
Dev Mata Aditi revealed the truth pertaining to nourishing Vrata Sur. Rivers flow towards the ocean as per the desire of Indr Dev, carving-make their own way. 
ऊर्ध्वो ह्यस्थादध्यन्तरिक्षेऽधा वृत्राय प्र वधं जभारम। 
मिहं वसान उप हीमदुद्रोत्तिग्मायुधो अजयच्छत्रुमिन्द्रः
चूँकि अन्तरिक्ष में उठकर वृत्रासुर ने सभी पदार्थों को घेर डाला था, इसलिए इन्द्रदेव ने ने उसके ऊपर वज्र फेंका। वृष्टिप्रद मेघ से आच्छादित होकर वृत्रासुर इन्द्र के सामने दौड़ा। उसी समय तीक्ष्णायुधधारी इन्द्रदेव ने उसको पराजित कर दिया।[ऋग्वेद 2.30.3]
अंतरिक्ष में उठाकर सभी पदार्थों को आच्छादित कर लेने के कारण वृत्र पर इन्द्र ने वज्र चलाया। वृष्टिप्रद मेघ से ढका हुआ वृत्र इन्द्र के सम्मुख आया तब तीक्ष्ण शस्त्र वाले इन्द्र ने उसे पराजित किया।
Vrata Sur had cornered all material objects in the space, hence  Indr Dev launched-throw his Vajr over him. Surrounded by the clouds causing rains, Vrata Sur attacked Dev Raj Indr. At that moment, Dev Raj Indr defeated him. 
बृहस्पते तपुषाश्नेव विध्य वृकद्वरसो असुरस्य वीरान्। 
यथा जघन्थ घृषता पुरा चिदेवा जहि शत्रुमस्माकमिन्द्र
हे बृहस्पति देव! वज्र के समान दीप्त अस्त्र से वृक द्वारा असुर के पुत्रों को नष्ट करें। हे इन्द्र देव! जिस प्रकार प्राचीन समय में आपने शक्ति द्वारा शत्रुओं को पराजित किया, उसी प्रकार इस समय हमारे शत्रुओं का विनाश करें।[ऋग्वेद 2.30.4]
हे बृहस्पते! वज्र के तुल्य दमकते हुए आयुध से वृत्र द्वारा दस्यु पुत्रों को समाप्त करो। हे इन्द्रदेव! जैसे प्राचीन काल में तुमने अपनी शक्ति से शत्रुओं को मृत किया था, वैसे ही हमारे शत्रु को समाप्त करो।
Hey Brahaspati Dev! Destroy the sons of the Demon by using Astr shining like the Vajr-thunder volt, through the lupine-wolf. Hey Indr Dev! Defeat our enemy through your power-might, as you did in ancient times.
Pierce, Brahaspati, with a radiant shaft,  as with a thunderbolt, the sons of the asur guarding his gates; in like manner as you did formerly slay Vrat by your own prowess, so do you now destroy our enemy.
अव क्षिप दिवो अश्मानमुच्चा येन शत्रुं मन्दसानो निजूर्वाः। 
तोकस्य सातौ तनयस्य भूरेरस्माँ अर्धं कृणुतादिन्द्र गोनाम्
हे इन्द्र देव! आप ऊपर रहते हैं। स्तोताओं के स्तव करने पर आपने जिसके द्वारा शत्रु का विनाश किया, वही पत्थर की तरह कठिन वज्र द्युलोक से नीचे की ओर फेकें। जिससे हम लोग यथेष्ट पुत्र, पौत्र और गोधन प्राप्त कर सकें, वैसी ही आप हमें समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.30.5]
हे इन्द्र! तुम उन्नतशील हो। वंदना करने वालों के मंत्र से तुमने जिस पाषाण वज्र से शत्रुओं का वध किया था, उसी वज्र को नभ से नीचे की ओर चलाओ। जिस समृद्धि को पाकर हम पुत्र-पौत्र तथा गौ आदि धन प्राप्त कर सकें, वह हमें प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You reside in the heaven. Launch-throw the Vajr, strong-tough like a rock, over the places below the sky, the way you destroyed the enemy on being requested-prayed by the devotees. Ensure our growth, so that we can acquire the desired sons, grand sons and cows. 
प्र हि क्रतुं वृहथो यं वनुथो रध्रस्य स्थो यजमानस्य चोदौ।
इन्द्रासोमा युवमस्माँ अविष्टमस्मिन्मयस्थे कृणुतमु लोकम्
हे इन्द्र देव और सोम देव! जिसकी आप हिंसा करते हैं, उस द्वेषी का उन्मूलन करें। यजमानों को शत्रुओं के विरुद्ध प्रेरित करें। आप मेरी रक्षा करें। इस भय स्थान को भय रहित बनावें।[ऋग्वेद 2.30.6]
हे इन्द्र! हे सोम! तुम जिसे समाप्त करना चाहते हो, उसका समूल नाश करो। शत्रुओं के विरुद्ध अपने तपस्वियों को शिक्षा दो। तुम मेरी सुरक्षा करो तथा इस स्थान से भय को दूर भगाओ।
Hey Indr Dev & Som Dev! Kill the person who envy you, along with his roots-base. Incite the Ritviz against the enemy. Protect me. Make this place safe.
INCITE :: उत्तेजित, प्रवृत्त करना; agitate, rouse, excite, stimulate, quicken, dispose, urge, influence.
One must pray to the demigods-deities as was done by Arjun on being asked to do by Bhagwan Shri Krashn in the battle field, when he invoked Maa Bhagwat Kali. But he should be prepared to handle the enemy and ready to repel. The priest just prayed to the God to protect them from the attack of Muslim invaders in Som Nath temple. Be Arjun, rise against the enemy of the humanity.
न मा तमन्न श्रमन्नोत तन्द्रन्न वोचाम मा सुनोतेति सोमम्।
यो मे पृणाद्यो ददद्यो निबोधाद्यो मा सुन्वन्तमुप गोभिरायत्
हे इन्द्र देव! मुझे क्लेश न दें, श्रान्त न करें, आलसी न बनावें। हम कभी यह न कहे कि सोमाभिषव न करें। यह मेरी अभिलाषा पूर्ण करते, अभीष्ट दान करते, यज्ञ को जानते और गो समूह लेकर अभिषव कर्ता के पास उपस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 2.30.7]
हे इन्द्र देव! तुम कलेश से बचाकर आलस्य को दूर करो। हम सोम के अभिष्व का हमेशा समर्थन करें। तुम मेरा अभीष्ट पूर्ण करते और मनवांछित फल प्रदान करते हो। तुम यज्ञ को जानकर अभिषव करने वालों के समान गौ सहित आते हो।
Hey Indr Dev! Do not torture-disturb me. Do not make make me mentally imbalanced. Protect me from laziness. We should never obstruct any one from performing either Som Yagy or extracting Somras for the demigods-deities. You invoke in front of the person who has bathed for the Yagy-you are aware of, having accomplished his desire and granting rewards with cows & making donations.
सरस्वति त्वमस्माँ अविड्ढि मरुत्वती घृषती जेषि शत्रून्।
त्यं चिच्छर्धन्तं तविषीयमाणमिन्द्रो हन्ति वृषभं शण्डिकानाम्
हे सरस्वती देवी! आप हमें बचावें। मरुद्गणों के साथ एकत्रित होकर दृढ़तापूर्वक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें। इन्द्र देव ने शूराभिमानी और शण्डिकों के प्रधान (शण्डामर्क) को मारा था।[ऋग्वेद 2.30.8]
हे सरस्वती! हमारी सुरक्षा करो। मरुद्गण युक्त पधारकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करो। इन्द्रदेव ने धीरता का अहंकार करने वाले युद्ध के अभिलाषी का वध किया था।
Hey Mata Saraswati! Protect-shelter us. Attain victory over the enemy joining the Marud Gan with firm determination. Indr Dev killed the egoistic Shandik-Shandamark and the head of Shandiks.
यो नः सनुत्य उत वा जिघत्नुभिख्याय तं तिगितेन विध्य।
बृहस्पत आयुधैर्जेषि शत्रून्द्रुहे रीषन्तं परि धेहि राजन्
हे बृहस्पति देव! जो अन्तर्हित देश में छिपकर हमारा प्राण नाश करने का अभिलाषी है, उसे खोजकर तीक्ष्ण हथियार से मारे। आयुध से हमारे शत्रुओं को जीते। हे राजा बृहस्पति! द्रोहकारियों के विरुद्ध प्राणनाशक वज्र चारों ओर फेंके।[ऋग्वेद 2.30.9]
हे बृहस्पते! जो अदृश्य होकर हमें मारना चाहता हो उसे ढूंढकर अपने शत्रुओं पर सभी ओर से वज्र का प्रहार करो।
Hey Brahaspati Dev! Kill those who wish to kill us, hiding themselves, with sharp weapons. Win our enemy with the help of arms & ammunition. Hey king Brahaspati! Launch-throw, project killer Vajr over the enemy.
अस्माकेभिः सत्वभिः शूर शूरैर्वीर्या कृधि यानि ते कर्त्वानि।
ज्योगभूवन्ननुधूपितासो हत्वी तेषामा भरा नो वसूनि
हे शूर इन्द्र देव! हमारे शत्रुहन्ता वीरों के साथ अपने सम्पादनीय वीर कार्यों को सम्पन्न करें। हमारे शत्रु बहुत दिनों से गर्वपूर्ण हो रहे हैं। उनका विनाश कर उनका धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.30.10]
हे वीर इन्द्र शत्रुओं का संहार करने वाले हमारे वीर कर्मों का संपादन करो। हमारे शत्रुओं ने सिर उठा लिया। उनका संहार करके उनका धन हमें प्रदान करो।
Hey mighty-brave Indr Dev! Accomplish the job-act of bravery along with our warriors, who wish-have to eliminate the enemy. Our enemies are becoming arrogant for long. Destroy them and grant us riches.
तं वः शर्धं मारुतं सुम्नयुर्गिरोप ब्रुवे नमसा दैव्यं जनम्।
यथा रयिं सर्ववीरं नशामहा अपत्यसाचं श्रुत्यं दिवेदिवे
हे मरुद्गणों! हम सुख की अभिलाषा से स्तुति और नमस्कार द्वारा आपका दैव और प्रादुर्भूत तथा एकत्र बल की स्तुति करते हैं, ताकि उसके द्वारा हम प्रतिदिन वीर अपत्य वाले होकर प्रशंसनीय धन का उपभोग कर सकें।[ऋग्वेद 2.30.11] 
हे मरुद्गण सुख प्राप्ति की अभिलाषा से नमस्कार परिपूर्ण वंदना द्वारा हम तुम्हारी अद्भुत शक्ति का पूजन करते हैं। जिसके द्वारा हम पराक्रम वाले होकर प्रशंसा प्राप्त करें और समृद्धि का भोग करने में समर्थवान हों।
अपत्य :: संतान, वंशज; progeny, offspring.
Hey Marud Gan! We pray-worship the might and amazing divine powers, with the motive-desire of comforts & pleasure, so that we can enjoy-utilize the riches with our progeny. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र और मध्वा (इंद्रमध्वाश्चः), छन्द :- जगती।
तुभ्यं हिन्वानो वसिष्ट गा अपोऽधुक्षन्त्सीमविभिरद्रिभिर्नरः।
पिबेन्द्र स्वाहा प्रहुतं वषट्कृतं होत्रादा सोमं प्रथमो य ईशिषे
हे इन्द्र देव! आपके उद्देश्य से प्रेरित यह सोम रस गव्य और जल से युक्त है। यज्ञ के नेता लोग इस सोम रस को प्रस्तर खण्ड द्वारा अभिषुत करके मेष लोममय दशा पर्व द्वारा इसे संस्कृत करते हैं। हे इन्द्र देव! आप सारे संसार के ईश्वर हैं। इसलिए याजकों द्वारा वषट्कार पूर्वक स्वाहा के साथ समर्पित किए गए सोम रस को यज्ञ में आकर सबसे पहले आप पान करें।[ऋग्वेद 2.36.1]
वषट्कार  :: देवताओं के उद्देश्य से किया हुआ यज्ञ, होम, होत्र; वेदोक्त तैतीस देवताओं में से एक। स्वाहा, स्वधा और वषट तीनों ही होतृकार हैं अर्थात होत्री द्वारा बोले गए अकार जिनसे किसी देव, पितृ, मनुष्य को हवि दी जाती है।
यज्ञ तीन प्रकार के होते हैं, पितृ यज्ञ, देव यज्ञ और मनुष्य यज्ञ। ऐसे में पितृ यज्ञ में हवि स्वधा के उच्चारण से दी जाती है। स्वाहा और वषट देव यज्ञ में प्रयुक्त होते हैं। मनुष्य यज्ञ में हंतः का प्रयोग होता है।
यह तीनों ही शब्द किसी कर-क्रिया के घोतक हैं। इनके द्वारा होतृ अर्थात जो हवन के मंत्र पढ़ने वाला ब्राह्मण होता है, वह अध्वर्यु को हवि डालने के लिए उत्साहित करता है।
हे इन्द्र देव! सोम तुम्हारे किये दूध और रस से परिपूर्ण हैं। विद्वज्जन इसे पत्थर से कूटकर सिद्ध करते हैं। तुम संसार के स्वामी हो।
Hey Indr Dev! The Somras has been prepared for by mixing milk in it. The intellectuals obtain by crushing it with stones. You are the God of the entire universe. Hence, you should accept it in the Yagy, first of all, with the pronunciation of Swaha.   
यज्ञैः संमिश्लाः पृषतीभिर्ऋष्टिभिर्यामञ्छुभ्रासो अञ्जिषु प्रिया उत।
आसद्या बर्हिर्भरतस्य सूनवः पोत्रादा सोमं पिबता दिवो नरः
यज्ञ के साथ संयुक्त, पृषती योजित रथ पर अवस्थित, अपने आयुध से शोभित, आभरण प्रिय, भरत या रुद्र के पुत्र और अन्तरिक्ष के नेता मरुतो! आप यज्ञ में विराजमान होकर पवित्र सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 2.36.2]
हे मरुतों! तुम रथ पर सवार रथ से परिपूर्ण, अस्त्रों से सुशोभित, रुद्र के पुत्र और अंतरिक्ष अग्रणी हो। तुम कुशा पर विराजमान होकर होता से सोम प्राप्त करो। 
Hey Marud Gan! Enjoy the Somras by participating in the Yagy. You are the sons of Rudr and the leaders of the universes. Ride your charoite with the help of Prashti, having arms & weapons.
Maruts, together worshipped with sacrifices, standing in the charoite drawn by spotted mares, radiant with lances and delighted by ornaments, sons of Bharat, leaders in the firmament, seated on the sacred grass, drink the Soma presented by the Pota.
अमेव नः सुहवा आ हि गन्तन नि बर्हिषि सदतना रणिष्टन।
अथा मन्दस्व जुजुषाणो अन्धसस्त्वष्टर्देवेभिर्जनिभिः सुमद्गणः
हे शोभन आह्वानवाले देवो! आप हमारे साथ आयें, कुशासन में विराजित होकर सुशोभित हों। हे त्वष्टा देव! आप देव गणों और दैवी शक्तियों के सोमरस का पान करके हर्षित हों।[ऋग्वेद 2.36.3]
हे उत्तम आह्वान वाले विद्वानों! तुम हमारे साथ आकर कुशासन पर विराजमान होकर प्रसन्न हो जाओ। हे अग्नि देव! तुम विद्वान हो। इस यज्ञ में देवताओं के साथ सोम सेवन कर संतुष्ट हो जाओ।
Hey demigods-deities deserving glorious invitation! Come with us, occupy the Kushasan (cushion made of Kush grass). You are enlightened. Enjoy Somras in this Yagy become happy-satisfied.  
आ वक्षि देवाँ इह विप्र यक्षि चा शन्होतर्नि षदा योनिषु त्रिषु।
प्रति वीहि प्रस्थितं सोम्यं मधु पिबाग्नीध्रात्तव भागस्य तृष्णुहि
हे मेधावी अग्निदेव! इस यज्ञ में देवों को बुलावें और उनके लिए यज्ञ करें। देवों के आह्वानकारी अग्निदेव, आप हमारे हव्य के अभिलाषी होकर गार्हपत्य आदि के तीनों स्थानों पर विराजित हों। होम के लिए उत्तर वेदी पर लाये हुए सोम-रूप मधु स्वीकार करें। अग्नीध्र के पास से सोमपान करें और अपने अंश में तृप्त होवें।[ऋग्वेद 2.36.4]
हे अग्नि देव! तुम विद्वान हो। इस यज्ञ में देवताओं के आह्वान के लिए पूजन करो। तुम देवताओं को आमंत्रित करने वाले हो । उत्तम वेदी को प्राप्त सोम रूप मधु को स्वीकार करो। अग्नि के रखने के स्थान से अपने अंश में सोमपान कर तृप्त हो जाओ। 
Hey enlightened Agni Dev! Invite the demigods-deities in this Yagy and conduct it for them. Accept the Somras at the Uttar Vedi. Accept your share of Somras and become content.
एष स्य ते तन्वो नृम्णवर्धनः सह ओजः प्रदिवि बाह्वोर्हितः।
तुभ्यं सुतो मघवन्तुभ्यमाभृतस्त्वमस्य ब्राह्मणादा तृपत्पिब
हे धनवान् इन्द्र देव! आप प्राचीन हैं। जिस सोम द्वारा आपके हाथ में शत्रु विजयी सामर्थ्य और बल है, वही आपके लिए अभिषुत और आहूत हुआ है। आप तृप्त होकर ब्राह्मण ऋत्विक् के पास से सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.36.5]
हे धनेश इन्द्र! तुम प्राचीन हो। तुम जिससे शत्रु को जीतने वाली शक्ति और सामर्थ्य प्राप्त करते हो, वही तुम्हारे लिए छाना जाकर लाया गया है। तुम ऋत्विज के निकट से सोमपान करते हुए तृप्त होओ।
Hey wealthy Indr Dev! You are ancient. The Somras which grants you strength and might to over power-win the enemy, has been extracted for you. You should be content-satisfied and enjoy the Somras with the Ritviz-host. 
जुषेथां यज्ञं बोधतं हवस्य मे सत्तो होता निविदः पूर्व्या अनु।
अच्छा राजाना नम एत्यावतं प्रशास्त्रादा पिबतं सोम्यं मधु
हे मित्रा-वरुण! आप हमारे यज्ञ की सेवा करें। होता बैठकर चिरन्तनी स्तुति का उच्चारण करते हैं। आप हमारा आह्वान श्रवण करें। आप शोभायुक्त है। ऋत्विकों द्वारा परिवेष्टित अन्न आपके सामने है। अतः हमारे इस यज्ञ में आकर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.36.6]
हे सखा वरुण! हमारे अनुष्ठान का सेवन करो। होता गण श्लोक पाठ करते हैं। हमारे आह्वान को सुनो। ऋत्विजों द्वारा सुसंस्कारित अन्न उपस्थित है, तुम सुशोभनीय, हम सोम को प्रशस्ता के निकट प्राप्त करो।
Hey Mitra Varun! Serve-participate in our Yagy. The Hota-Ritviz sits and recite the Stuti-prayer. Answer our requests-call, prayer. You are glorious. The food stuff prepared by the hosts is ready in front of you. Join our Yagy and enjoy Somras.
शुक्रस्याद्य गवाशिर इन्द्रवायू नियुत्वतः। आ यातं पिबतं नरा 
हे नेता इन्द्र देव और वायु देव! आप आज नियुत्गण से युक्त होकर और सोम के लिए आकर गव्य मिला सोमरस पीवें।[ऋग्वेद 2.41.3]
हे इन्द्र और वायु! तुम मरुद्गण से युक्त हुए सोम के लिए यहाँ पर आओ और दूध मिश्रित सोम रस को पीयें।
Hey Indr Dev & Vayu-Pawan Dev! Come to us along with Marud Gan and drink the Somras mixed with cow milk.  
  इन्द्रो अङ्ग महद्भयमभी षदप चुच्यवत्। स हि स्थिरो विचर्षणिः 
इन्द्र देव अधिक और अभिभवकारी भय को दूर करते हैं। वे स्थिर प्रज्ञावान् हैं।[ऋग्वेद 2.41.10]
वे इन्द्र अत्यन्त मेधावी हैं। वे हमको संसार के अपमानजनक और पराजयकारी भय से छुड़ाते हैं। 
Indr Dev relieves from the fears of defeat and insult. He is intelligent, prudent and firm.
इन्द्रश्च मृळ्याति नो न नः पश्चादघं नशत्। भद्रं भवाति नः पुरः
यदि इन्द्र देव हमें सुखी करें, तो हमारे संग पाप नहीं आएगा; हमारे सामने कल्याण उपस्थित होगा।[ऋग्वेद 2.41.11]
इन्द्र देव हमको सुख प्रदान करने की कामना करें तो पाप हमारे निकट नहीं आयेगा, हमको कल्याणप्रद होगा। 
Indr Dev's wishes for our welfare will keep the sins off.
इन्द्र आशाभ्यस्परि सर्वाभ्यो अभयं करत्। जेता शत्रून्विचर्षणिः
प्रज्ञावान् और शत्रु जेता इन्द्र चारों ओर से हमें भय से मुक्त करें।[ऋग्वेद 2.41.12]
इन्द्र देव मतिवान शत्रुओं को विजय करने की शक्ति रखते हैं। वे ही हमें अभय बनायें।
Let intelligent, prudent, winner of the enemy Indr Dev free-relieve us from fear.
इन्द्रज्येष्ठा मरुद्गणा देवासः पूषरातयः। विश्वे मम श्रुता हवम्
जिन मरुतों में इन्द्र देव श्रेष्ठ हैं, जिनके दाता पूषा हैं, वे ही मरुद्गण हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.41.15]
जिन मरुद्गण में इन्द्रदेव सर्वश्रेष्ठ हैं, जिनको पूषा दान प्रदान करने वाले हैं, वे मरुद्गण हमारे आह्वान को सुनें।
The Marud Gan, amongest whom, Indr Dev is the best, who's benefactor is Pusha Dev, listen-respond to our prayers.
ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन,
इन्द्राग्नी आ गतं सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम्। अस्य पातं धियेषिता
हे इन्द्र और अग्नि देव! स्तुति-द्वारा आहूत होकर आप लोग स्वर्ग से तैयार किए हुए और वरणीय इस सोमरस को लक्ष्य कर पधारें। हमारी भक्ति के कारण आकर इस सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.12.1]
हे इन्द्राग्ने! श्लोकों द्वारा पुकारे जाने पर तुम अद्भुत वरण करने योग्य सोम के लिए यहाँ पर पधारो। हमारी तपस्या से हर्षित हुए इस सोम रस का पान करो।
Hey Indr & Agni Dev! On being addressed with the help of prayers, you should target this Somras, extracted in the heaven and drink it to oblige us due to our devotion. 
इन्द्राग्नी जरितुः सचा यज्ञो जिगाति चेतनः। अया पातमिमं सुतम्
हे इन्द्र और अग्नि देव! स्तोता का सहायक, यज्ञ का साधक और इन्द्रियों का हर्ष वर्द्धक सोम प्रस्तुत है। इस अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.12.2]
हे इन्द्राग्ने। वंदना करने वाले की सहायता करने वाला, अनुष्ठान की साधन भूत इन्द्रियों को पुष्ट करने वाला सोम प्रस्तुत है। निचोड़े हुए सोम रस का पान करो।
Hey Indr & Agni Dev! Somras that helps the host, Yagy and the senses is ready to be served. Drink this Somras. 
इन्द्रमग्निं कविच्छदा यज्ञस्य जूत्या वृणे। ता सोमस्येह तृम्पताम्
यज्ञ के साधक सोम द्वारा प्रेरित होकर स्तोताओं के सुख दाता इन्द्र और अग्नि देव की मैं सेवा करता हूँ। वे इस यज्ञ में सोमपान करके तृप्त होवें।[ऋग्वेद 3.12.3]
यज्ञ का साधन करने वाले सोम के द्वारा प्रेरणा प्राप्त कर स्तुति करने वालों को सुखी बनाने वाले, इन्द्र और अग्नि का मैं पूजन करता हूँ। ये दोनों इस यज्ञ में सोम रस का पान कर संतुष्ट हों।
I serve Indr & Agni Dev, who grant comforts-pleasure to the recitators of hymns, inspired by Somras. Consume the extracted Somras. 
तोशा वृत्रहणा हुवे सजित्वानापराजिता। इन्द्राग्नी वाजसातमा
मैं शत्रु नाशक, वृत्रहन्ता, विजयी, अपराजिता और प्रचुर परिमाण में अन्न देने वाले इन्द्र और अग्नि देव को मैं बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 3.12.4]
शत्रु का पतन करने वाले, वृत्र-संहारक, विजयशील, किसी के द्वारा न जीते जाने वाले और अनेक या अन्न प्रदान करने वाले इन्द्राग्नि का आह्वान करता हूँ।
I invoke Indr & Agni Dev who destroy the enemy, slayed Vratr, victorious, undefeated and grants unlimited food grains.
प्र वामर्चन्त्युक्थिनो नीथाविदो जरितारः। इन्द्राग्नी इष आ वृणे
हे इन्द्र और अग्रि देव! मन्त्र शाली होकर लोग आपकी पूजा करते हैं। स्तोत्र ज्ञाता स्तोता लोग आपकी अर्चना करते हैं। अन्न प्राप्ति के लिए मैं आपकी पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 3.12.5] 
हे इन्द्राग्ने! स्तोतागण मंत्र द्वारा तुम्हें पूजते हैं। श्लोकों के ज्ञाता मेधावीजन तुम्हारी अर्चना करते हैं। अन्न प्राप्ति के लिए मैं तुम्हारी उपासना करता हूँ।
Hey Indr & Agni Dev! The devotees pray-worship you with the Mantr-sacred Mantr. The expert in Strotr, recite Strotr in your honour. I pray you for the sake of food grains.  
इन्द्राग्नी नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतम्। साकमेकेन कर्मणा
हे इन्द्र और अग्नि देव! आप लोगों ने एक ही बार की चेष्टा से दासों के नब्बे नगरों को एक साथ कम्पायमान किया था।[ऋग्वेद 3.12.6]
हे इन्द्राग्ने! तुम प्रथम चेष्टा में ही असुरों के नब्बे नगरों को एक साथ कंपित कर दिया।
Hey Indr & Agni Dev! You shacked-trembled 90 cities of the demons in single attempt. 
इन्द्राग्नी अपसस्पर्युप प्र यन्ति धीतयः। ऋतस्य पथ्या३ अनु
हे इन्द्र और अग्नि देव! स्तोता लोग यज्ञ के मार्ग का लक्ष्य करके हमारे कर्म के चारों ओर आते हैं।[ऋग्वेद 3.12.7]
हे इंद्राग्ने! वंदना करने वाले विद्वान यज्ञ के पथ पर चलते हुए हमारे कर्मों को विस्तृत करते हैं। 
Hey Indr & Agni Dev! The recitators of hymns target the goal of our Yagy and extend-enhance our deeds Y(agy Karm).
इन्द्राग्नी तविषाणि वां सधस्थानि प्रयांसि च। युवोरप्तूर्यं हितम्
हे इन्द्र और अग्नि देव! आपका बल और अन्न आप दोनों के मध्य में एक साथ ही है। वृष्टि प्रेरण कार्य आप दोनों के बीच ही निहित है।[ऋग्वेद 3.12.8]
हे इन्द्राग्ने ! तुम दोनों की शक्ति और अन्न एक सा ही है। वृष्टि को प्रेरित करने वाला कार्य तुम्हीं दोनों में विद्यमान हैं।
Hey Indr & Agni Dev! You have combined strength and eatables. Both of you perform-conduct the job of producing rains. 
इन्द्राग्नी रोचना दिवः परि वाजेषु भूषथः। तद्वां चेति प्र वीर्यम्
हे इन्द्र और अग्नि देव! आप स्वर्ग को प्रकाशित करने वाले हैं। आप युद्ध में सभी जगह विभूषित होवें आपकी सामर्थ्य उस युद्ध-विजय को भली-भाँति विदित करती है।[ऋग्वेद 3.12.9]
हे इन्द्राग्ने! तुम अद्भुत संसार को शोभायमान करते हो। संग्राम में होने वाली विजय तुम्हारी ही शक्ति का फल है।
Hey Indr & Agni Dev! You light the heavens. You should gain honours in every war-battle. Your strength-might is reflected in the victory of the war.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप, अनुष्टुप, जगती।
इच्छन्ति त्वा सोम्यासः सखायः सुन्वन्ति सोमं दधति प्रयांसि। 
तितिक्षन्ते अभिशस्तिं जनानामिन्द्र त्वदा कश्चन हि प्रकेतः
हे इन्द्र देव! सोमार्ह अर्थात् सोमयाग करने के लिए ऋत्विक् लोग आपकी प्रार्थना करने की इच्छा करते हैं। मित्र लोग आपके लिए सोमरस का अभिषवण करते हैं; कुछ हव्य धारित करते हैं; शत्रुओं की हिंसा को सहते हैं। आपकी अपेक्षा इस संसार में कौन दूसरा अधिक प्रसिद्ध है?[ऋग्वेद 3.30.1]
हे इन्द्र देव! सोम धारण करने वाले ऋत्विगण तुम्हारी वंदना करने की इच्छा करते हैं। सखागणा तुम्हारे लिए सोम को छानते हैं। उनमें से शत्रुओं की बाधाओं को वहन करते हुए हवि को धारण करते हैं। तुम्हारे अतिरिक्त संसार में अधिक प्रसिद्धि प्राप्त अन्य कौन है?
Hey Indr Dev! The Ritviz pray to you for extracting Somras. Friends extract-filter it  and tolerate-bear the violence of the enemy. Who else other than you is more famous in the universe!?
न ते दूरे परमा चिद्रजांस्या तु प्र याहि हरिवो हरिभ्याम्। 
स्थिराय वृष्णे सवना कृतेमा युक्ता ग्रावाणः समिधाने अग्नौ
हे हरि वर्ण अश्व वाले इन्द्र देव! दूरस्थ स्थान भी आपके लिए दूर नहीं हैं। हरि वर्ण अश्व से युक्त होकर शीघ्र पधारें। आप दृढ़ चित्त और अभीष्टवर्षी हैं। आपके ही लिए यह सब सवन किया। गया है। अग्नि देव के समिद्ध होने पर सोमाभिषव के लिए आप प्रस्तर खण्ड प्रयुक्त हुए हैं।[ऋग्वेद 3.30.2]
हे हरित रंग वाले घोड़े के साथ शीघ्र विराजो! तुम अटल विचार वाले तथा कामनाओं की वर्षा करने वाले हो। यह यज्ञ तुम्हारे लिए ही किया गया है। अग्नि के प्रदीप्त होने पर सोम कूटने के लिए पत्थर कार्य में लिए जाते हैं।
Hey Indr Dev possessing yellowish green coloured horse! Distant places are not far away for you. You are firm-determined and grants-accomplish desires. This Som Yagy has been committed for you. After igniting fire the job of crushing Som Valli is done, with the help of stones.
इन्द्रः सुशिप्रो मघवा तरुत्रो महाव्रातस्तुविकूर्मिऋघावान्। 
यदुल्यो धा बाधितो मर्त्येषु क्व १ त्या ते वृषभ वीर्याणि
हे अभीष्टवर्षी इन्द्रदेव! आप परम ऐश्वर्यवाले है। आपका शिरत्राण सुन्दर है। आप धनवान्, विजेता, महान् मरुद्गण वाले, संग्राम में नानाविध कर्म करने वाले, शत्रु हिंसक और भयंकर है। युद्ध में बाधा प्राप्त करके मनुष्यों के प्रति आपने जो वीर्य धारित किया है, आपका वह वीर्य कहाँ है?[ऋग्वेद 3.30.3]
हे अभिलाषाओं की पुष्टि करने वाले इन्द्र देव! तुम श्रेष्ठ समृद्धिशाली हो। तुम्हारा शिरस्त्राण देखने के योग्य है। विजयशील, धन से परिपूर्ण, मरुतों से परिपूर्ण, विविध कार्य वाले, शत्रुओं का पतन करने वाले तथा विकराल हो। तुमने मनुष्यों के लिए जो काम युद्धों में किये वह वीरता से परिपूर्ण कर्म कहाँ है?
Hey desire fulfilling Indr Dev! Your grandeur is ultimate. Your head gear is beautiful strong. You are wealthy, victorious, great, friend of Marud Gan, perform various kinds of acts in the war, enemy destroyer and furious. 
त्वं हि ष्मा च्यावयन्नच्युतान्येको वृत्रा चरसि जिघ्नमानः। 
तव द्यावापृथिवी पर्वतासोऽनु व्रताय निमितेव तस्थुः
हे इन्द्र देव! आपने अकेले ही दृढ़मूल राक्षसों को उनके स्थानों से मार गिराया है। वृत्रादि को मारा है। आपकी आज्ञा से द्यावा-पृथ्वी और पर्वत अचल हैं।[ऋग्वेद 3.30.4]
हे इन्द्र देव! तुमने अकेले ही अत्यन्त अटल राक्षसों को मार डाला। वृत्रादि का विनाश किया, आसमान धरती और शैल तुम्हारे कार्य से ही अचल हुए हैं।
Hey Indr Dev! You alone killed the firmly stationed-stabilized demons like Vrata Sur at their own pitch. Earth and sky and the mountains fixed due to your order.
Earth revolves round the Sun in its elliptical fixed orbit, in the sky and the mountains are fixed-stationary over it. Other speeds of the earth like spinning round its own axis too is fixed. Its north and south poles too are fixed.
उताभये पुरुहूत श्रवोभिरेको दृळ्हमवदो वृत्रहा सन्। 
इमे चिदिन्द्र रोदसी अपारे यत्संगृभ्णा मघवन्काशिरित्ते
हे इन्द्र देव! बहुत लोगों के द्वारा आप आहूत और वीर्य युक्त हैं। अकेले ही आपने वृत्रासुर का वध करके देवों को जो अभय वाक्य प्रदान किया, वह ठीक है। हे मघवन्! आप अपार द्यावा-पृथ्वी को संयोजित करते हैं। आपकी ऐसी महिमा प्रख्यात है।[ऋग्वेद 3.30.5]
हे इन्द्र देव! तुम अनेकों द्वारा आहूत किये गये हो। तुम बहुत ही शक्तिशाली हो। तुमने अकेले ही वृत्र का वध कर देवगणों को निर्भय बनाया। तुम्हीं आसमान और पृथ्वी को कर्मों में लगाते हो। हे ईश्वर! तुम्हारी माया विख्यात है।
Hey Indr Dev! You have been worship by many people. You are mighty. You granted protection to the demigods-deities by killing Vrata Sur. Hey Madhvan! Its you who engage-coordinate the sky and the earth in their respective jobs-functions. you glory is spread all around. 
प्र सू त इन्द्र प्रवता हरिभ्यां प्र ते वज्रः प्रमृणन्नेतु शत्रून्। 
जहि प्रतीचो अनूचः पराचो विश्वं सत्यं कृणुहि विष्टमस्तु
हे इन्द्र देव! आपका अश्व युक्त रथ शत्रु को लक्ष्य करके निम्न मार्ग से शीघ्र आगमन करे। शत्रु का वध करते-करते आपका वज्र आवें। अपने सामने आने वाले शत्रुओं का विनाश करें। भागने वाले शत्रुओं का वध करें। संसार को यज्ञ युक्त करें। आपके अन्दर ऐसी सामर्थ्य निविष्ट है।[ऋग्वेद 3.30.6]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा अश्व परिपूर्ण रथ शत्रु के विरुद्ध शीघ्र पधारे। शत्रु को मृत करने वाला तुम्हारा वज्र कर्म करे। अपने निकट शत्रुओं का पतन करो। वाले शत्रुओं को समाप्त करो। संसार को अनुष्ठान कार्य करने वाला बनाओ तुममें ही ऐसी सामर्थ्य है।
Hey Indr Dev! Move your charoite towards the enemy, deploying the horses. Bring your Vajr with you, while killing the enemy. Kill every each & enemy who comes in front of you. Kill those enemies as well, who run away from the battle field. Let the whole world adopt Yagy practices, since this power is embedded in you. 
यस्मै धायुरदधा मर्त्यायाभक्तं चिद्भजते गेह्यं१सः। 
भद्रा त इन्द्र सुमतिघृताची सहस्त्रदाना पुरुहूत रातिः
हे इन्द्र देव! आप निरन्तर ऐश्वर्य को धारित करते हैं। आप जिस मनुष्य को दान करते हो, वह पहले अप्राप्त गृह सम्बन्धी वस्तुएँ, पशु, सुवर्ण आदि धन प्राप्त करता है। अनेक लोकों से आहूत, घृत, हव्य आदि से युक्त आपका अनुग्रह कल्याणदायी होता है। आपकी धन देने की शक्ति असीम है।[ऋग्वेद 3.30.7]
हे इन्द्र देव! तुम हमेशा ऐश्वर्यवान रहते हो। तुम जिसे प्रदान करते हो, वह उसे पहले प्राप्त नहीं था। यह ग्रह उपयोगी पशु सुवर्ण आदि को पाता है। तुम अनेकों द्वारा पूजित तथा मृतयुक्त हवि युक्त हो। तुम्हारे अनुग्रह में ही मंगल है। अन्न दान करने की तुम में असीम शक्ति है।
Hey Indr Dev! You always possess grandeur. One who is benefited by your donations-charity, first get house hold items, cattle, gold and other types of riches. Your are worshiped in various abodes & your obligation-kindness is always beneficial, which constitute of Ghee, offerings etc. You power to donate is great.  
सहदानुं पुरुहूत क्षियन्तमहस्तमिन्द्र सं पिणक्वुणारुम्। 
अभि वृत्रं वर्धमानं पियारुमपादमिन्द्र तवसा जघन्थ
अनेक लोकों से आहूत हे इन्द्र देव! आप दानवीर के साथ वर्त्तमान हैं। बाधक और गर्जनशील वृत्रासुर को हस्तहीन करके आपने चूर्ण-विचूर्ण कर डाला। हे इन्द्र देव! अपने बल से वर्द्धमान और हिंस्र वृत्रासुर को पैरों से हीन करके विनष्ट किया।[ऋग्वेद 3.30.8]
हे इन्द्र देव! तुम बहुतों द्वारा वन्दना किये गये हो। तुम दान से परिपूर्ण हो। तुम विघ्न प्रदान करने वाले गर्जनकारी वृत्र को हस्तविहीन तथा छिन्न-भिन्न करते हो। उस वृद्धि किये वृत्र को पंगु बनाकर अपनी सामर्थ्य से तुमने समाप्त कर दिया।
Hey Indr dev! You are revered-honoured in many abodes-Lok. You are bountiful-munificent. You destroyed Vrata Sur who used to create problems-obstacles loudly, chopping his arms and legs with your might. 
नि सामनामिषिरामिन्द्र भूमिं महीमपारां सदने ससत्य। 
अस्तभ्नाद्दयां वृषभो अन्तरिक्षमर्षन्त्वापस्त्वयेह प्रसूताः
हे इन्द्र देव! आपने महती अनन्ता और चला पृथ्वी को समभावापन्न करके उसके स्थान में निविष्ट किया। अभीष्टवर्षक इन्द्र देव ने द्युलोक और अन्तरिक्ष जिस प्रकार से पतित न हो, इस प्रकार धारित किया। हे इन्द्र देव! आपका प्रेरित जल पृथ्वी पर आवे।[ऋग्वेद 3.30.9]
हे इन्द्र देव! तुमने अनन्त, विस्तृत और वेगवान धरती को स्थापित किया। तुमने आसमान और धरती को ऐसे धारण किया जिससे वह न गिरे। हे इन्द्र देव! तुम्हारी प्रेरणा से जल धरती को प्राप्त हो।
Hey Indr Dev! You established earth which accelerates fast at its proper place (in solar orbit) by virtue of your might. You have balanced the earth and the sky-space so that they remain in their position-place. Hey Indr Dev! The water inspired by you showed shower over the earth.
The gravitational attraction keep the celestial objects in their place. Other forces are magnetic, electrostatic attraction etc.
अलातृणो वल इन्द्र व्रजो गोः पुरा हन्तोर्भयमानो व्यार। 
सुगान्यथो अकृणोन्निरजे गाः प्रावन्वाणीः पुरुहूतं धमन्तीः
हे इन्द्र देव! अतीव हिंसक बल नाम का गोष्ठ भूत मेघ वज्र प्रहार के पहले ही डर कर टुकड़े-टुकड़े हो गया। गौ के निकलने के लिए इन्द्र देव ने मार्ग सुगम कर दिया। रमणीय शब्दायमान जल अनेक लोकों से आहूत इन्द्र देव के सम्मुख आए।[ऋग्वेद 3.30.10]
हे इन्द्र देव! जलों का श्रेष्ठ भूत बादल वज्र प्रहार से टुकड़े-टुकड़े हो गया। जल रूप गौ को निकालने का रास्ता तुमने आसान बनाया। ध्वनि करता हुआ रमणीय जल असंख्यों द्वारा वंदनीय होकर इन्द्रव के पास उपस्थित हुआ।
Hey Indr Dev! The potentially dangerous ghost named Bal teared into parts due to the fear of Vajr. The path for the liberation-movement of the cows was cleared-made easy. Lovely-tasty water from various abodes came forward to the revered-honourable Indr Dev.
एको द्वे वसुमती समीची इन्द्र आ पप्रौ पृथिवीमु॒त द्याम्। 
उतान्तरिक्षादभि नः समीक इपो रथी: सयुजः शूर वाजान्
अकेले इन्द्रदेव ने ही पृथ्वी और द्युलोक को परस्पर संगत और धन युक्त करके परिपूर्ण किया। हे शूर! आप रथ वाले हैं। हमारे पास रहने के अभिलाषी होकर योजित अश्वों को अन्तरिक्ष से हमारे समक्ष प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.30.11]
इन्द्र देव ने अपने कर्म द्वारा नभ और पृथ्वी को असंगत कर अन्न धन से पूरा किया है। हे वीर इन्द्र! तुम रथी हो। हमारा साथ करने की इच्छा से रथ में जुते अश्वों को हमारे सम्मुख लाओ।
Indr Dev alone balanced the earth and the space-sky (heavens) mutually, and provided it with food grains. Hey mighty! You possess the charoite. You should desire-guide your horses to bring you to us from the heaven.
दिशः सूर्यो न मिनाति प्रदिष्टा दिवेदिवे हर्यश्वप्रसूताः। 
सं यदानळध्वन आदिदश्वैर्विमोचनं कृणुते तत्त्वस्य
सूर्य इन्द्र देव के द्वारा प्रेरित है। वे अपने गमन के लिए प्रकाशित दिशाओं का प्रतिदिन अनुसरण करते हैं। जिस समय वह अश्व के द्वारा अपना मार्ग गमन समाप्त कर देते हैं, तब हमें मुक्त कर देते हैं, यह भी इन्द्रदेव के लिए ही करते हैं।[ऋग्वेद 3.30.12]
इन्द्र देव से ही सूर्य शिक्षा पाते हैं। वे ज्योर्तिवान दिशाओं में रोजाना विचरण करते हैं। जब वे अपने घोड़े युक्त अपना रास्ता पूर्ण कर लेते हैं। 
Indr Dev guides-inspire the Sun to lit all the directions every day. when he complete his cycle with the horses, he releases us. He do it for the sake of Indr Dev. 
दिदृक्षन्त उषसो यामन्नक्तोर्विवस्वत्या महि चित्रमनीकम्। 
विश्वे जानन्ति महिना यदागादिन्द्रस्य कर्म सुकृता पुरूणि
गमनशील रात्रि के पश्चात् उषा के गत होने पर सब लोक महान् तथा विचित्र सूर्य तेज का दर्शन करने की इच्छा करते हैं। जिस समय उषा काल आ जाता है, उस समय सभी अग्रिहोत्र आदि कर्म को कर्तव्य समझने लगते हैं। कितने ही सत्कार्य इन्द्रदेव के हैं।[ऋग्वेद 3.30.13]
तब गतिमान रात्रि के पश्चात् उषा के चले जाने पर उन दिव्य श्रेष्ठ और तेजस्वी सूर्य के दर्शन करने को सभी उत्सुक होते हैं। जब उषा समय समाप्त हो जाता है तब व्यक्ति यज्ञादि कार्य में लग जाते हैं। इस प्रकार असंख्य महान कर्म इन्द्रदेव के ही हैं। 
All abodes desire for the invocation of the Sun with his aura after the expiry-completion of night. With the day break-Usha, every one become busy his duties-job and Agnihotr etc. Such are the pious, righteous, virtuous deeds of Indr Dev.
महि ज्योतिर्निहितं वक्षणास्वामा पक्कं चरति विभ्रती गौः। 
विश्वं स्वाद्म संभृतमुस्त्रियायां यत्सीमिन्द्रो अदधाद्भोजनाय
इन्द्र देव ने नदियों में महान् तेज वाला जल स्थापित किया। इन्होंने जल से स्वादुतर दधि, घृत और आदि, भोजन के लिए गौ में संस्थापित किया। नव प्रसूता गो दुग्ध धारित करके भ्रमण करती है।[ऋग्वेद 3.30.14]
इन्द्र देव ने उत्तम गुण वाले जल को नदियों में प्रयुक्त किया, इन्द्र ने अत्यन्त सुस्वादु दही घृत, खीर आदि भोजन को जल रूप से गौ में धारण किया। वह सभी प्रसूता धेनु दूध वाली हुई विचरण करती हैं।
Indr Dev established the water with great energy in the rivers. He established the tasty curd, Ghee, pudding-Kheer etc. in the cows for food stuff. Neonatal cows roam possessing milk. 
इन्द्र दृह्य यामकोशाः अभूवन्यज्ञाय शिक्ष गृणते सखिभ्यः।
दुर्मायवो दुरेवा मर्त्यासो निषङ्गिणो रिपवो हन्त्वासः
हे इन्द्र देव! आप दृढ़ बनो। शत्रुओं ने मार्ग अवरूद्ध किया है। यज्ञ और प्रार्थना करने वाले तथा मित्रों को अभीष्ट फल प्रदान करें। शत्रुओं का वध करना उचित है। वे धीरे-धीरे जाते और हथियार फेंकते हैं। वे हत्यारे और तूणीर वाले हैं।[ऋग्वेद 3.30.15]
हे इन्द्र देव! तुम स्थिर हो जाओ। शत्रुओं ने बाधा उपस्थित की है। तुम अनुष्ठानकर्ता वंदनाकारी तथा किसी को उनका अभिष्ट फल प्रदान करो। शत्रुगण मन्दगति से चलते हुए अस्त्र चलाते हैं। वे धनुष बाण से परिपूर्ण हिंसक हैं। उनका विनाश करना उचित है। 
Hey Indr Dev! You should become strong-determined & firm. The enemy has blocked your way. Grant the rewards to those, who conduct Yagy & prayers along with their friends & associates (for your success). Its justified to kill the enemy. The enemy slowly and gradually become unarmed. They are killers and posses bow & arrow.
The reward is in the form of asylum-protection granted to humanity. During this period the terrorists, traitors, assailants, murderers, abductors, butchers, rapists deserve death penalty. 
सं घोषः शृण्वेवमैरमित्रैर्जही न्येष्वशनिं तपिष्ठाम्। 
वृश्चेमधस्ताद्वि रुजा सहस्व जहि रक्षो मघवन् रन्ययस्व
हे इन्द्र देव! समीपस्थ शत्रुओं द्वारा छोड़ा हुआ वज्र नाद हम सुनते हैं। अतीव सन्ताप देने वाली इन सब अशनियों को इन सब शत्रुओं के सामने ही रखकर इनका विनाश कर समूल छेदन करे, विशेष रूप से बाधा से अभिभूत करे। आप राक्षसों का वध करें; तब हम यज्ञ सम्पन्न करेंगे।[ऋग्वेद 3.30.16]
हे इन्द्र देव! शत्रुओं द्वारा फेंके गये वज्र का शब्द हमको सुनाई देता है। घोर दुःख देने वाली तोप इत्यादि को शत्रुओं के सम्मुख नष्ट कर दो। शत्रुओं के कार्य में विघ्न देते हुए उन्हें समाप्त कर डालो। हे इन्द्र देव! राक्षसों का पतन करके अनुष्ठान कार्यों में लगी। 
Hey Indr Dev! we hear the loud sounds generated by the launching of missiles. Destroy these guns-cannons with their origin-roots, in front of the enemy-demons, demonic people. Obstruct the enemy from doing any more-further harm. We will conduct Yagy as soon as you eliminate the enemies. 
उद् रक्षः सहमूलमिन्द्र वृश्चा मध्यं प्रत्यग्रं वृहशृणीहि। 
आ कीवतः सललूकं चकर्थ ब्रह्मद्विषे तपुषिं हेतिमस्य
हे इन्द्र देव! राक्षस कुल का समूल उन्मूलन अर्थात् नाश करें। उनका बीच भाग छेदे अग्रभाग विनष्ट करें। गमन शील राक्षस को दूर करें। यज्ञ विद्वेषी के प्रति सन्तापप्रद अस्त्र फेंकें।[ऋग्वेद 3.30.17]
हे इन्द्र देव! दैन्यों के वंश को जड़ से समाप्त करो। उनके बीच के भाग पर प्रहार करो। अगले हिस्से को नष्ट करते हुए उन्हें दूर करो। अनुष्ठान से द्वेष करने वाले पर कष्ट दायक रथियार चलाओ।
Hey Indr Dev! Destroy the demon's entire clan, family along with their roots ( the children and those in the womb). Strike at their middle-nucleus, navel. Remove the demons who are leaving and launch such arms-weapons over them which can cause pain to them.
स्वस्तये वाजिभिश्च प्रणेतः सं यन्महीरिष आसत्सि पूर्वीः। 
रायो वन्तारो बृहतः स्यामास्मे अस्तु भग इन्द्र प्रजावान्
हे संसार के निर्वाहक इन्द्र देव! हमें आप अश्व से युक्त करें। हमें अविनाशी करें। आप जब हमारे निकट रहेंगे, तब हम महान् अन्न और प्रभूत धन का भोग करके बड़े हो सकेंगे और हमें पुत्र, पौत्रादि से युक्त धन प्राप्त हो।[ऋग्वेद 3.30.18]
हे इन्द्र देव! तुम संसार के पोषक हो। हमको अश्व युक्त बनाओ। हमको अमरत्व प्रदान करो। तुम्हारी समीपता प्राप्त कर हम श्रेष्ठ अन्न, धन, के उपभोग द्वारा वृद्धि को प्राप्त हों। हमको पुत्र-पौत्रादि के साथ धन प्रदान करो।
Hey nurturer of the universe Indr Dev! Provide us horses. Make us immortal. We will enjoy the great food grains and wealth, sons, grandsons in your proximity. 
आ नो भर भगमिन्द्र द्युमन्तं नि ते देष्णस्य धीमहि प्ररेके।
ऊर्वइव पप्रथे कामो अस्मे तमा पृण वसुपते वसूनाम्
हे इन्द्र देव! हमारे लिए दीप्ति से युक्त धन ले आयें। आप दान शील हैं और हम आपके दान के पात्र हैं। हमारी अभिलाषा वडवानल के तुल्य बढ़ी हुई हैं। हे धनपति! हमारी अभिलाषा पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.30.19]
हे इन्द्र देव! हमारे लिए उज्जवल धन लेकर पधारो। तुम दान करने वाले हो और हम तुम्हारे दान को पाने योग्य हैं। हमारी अभिलाषा अत्यन्त वृद्धि की हुई है, तुम धन के स्वामी हो। हमारी इच्छा की पूर्ति करो।
Hey Indr Dev! Bring the clean-un stained wealth for us. You are a charitable person and we deserve donation-charity. Our desires have grown like the jungle fire.  Hey the master of riches! Accomplish our desires-wishes.
इमं कामं मन्दया गोभिरश्वैश्चन्द्रवता राधसा पप्रथश्च। 
स्वर्यवो मतिभिस्तुभ्यं विप्रा इन्द्राय वाहः कुशिकासो अक्रन्
हे इन्द्र देव! हमारी इस अभिलाषा को गौ, अश्व और दीप्ति वाले धन के द्वारा पूर्ण तथा उसके द्वारा हमें विख्यात करें। स्वर्गादि सुखाभिलाषी और कर्म कुशल कुशिक नन्दनों ने मन्त्र द्वारा आपकी स्तुति की है।[ऋग्वेद 3.30.20]
हे इन्द्र देव! हमारी गौ, अश्व और रमणीय फल वाली अभिलाषा को अपने दान द्वारा पूर्ण करो। उनसे हमको प्रसिद्धि प्राप्त हो। स्वर्ग की इच्छा करने वाले तथा सुख की प्राप्ति की इच्छा वाले कर्मवान कौशिकों ने उत्तम मंत्रों से तुम्हारी वंदना की है। 
Hey Indr Dev! Accomplish our desires for cows, horses and the neat-clean wealth and make us famous. The skilled descendants of Kaushik who perform their duties, have prayed-worshiped you for the sake of the comforts-pleasures of the heavens. 
आ नो गोत्रा दर्दृहृ गोपते गाः समस्मभ्यं सनयो यन्तु वाजाः। 
दिवक्षा असि वृषभ सत्यशुष्मोऽस्मभ्यं सु मघवन्बोधि गोदाः
हे स्वर्गाधिपति इन्द्र देव! मेघ अर्थात् बादलों को विदीर्ण करके हमें जल दें। उपभोग के योग्य अन्न लेकर हमारे पास आयें। हे अभीष्ट वर्षक! आप धुलोक को व्याप्त करके स्थित होवें। हे सत्य बल मघवन्! हमें गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.30.21]
हे स्वर्ग के स्वामी इन्द्र देव! बादलों को छिन्न-भिन्न करके हमको जल प्रदान करो। उपभोग्य अन्न हमको ग्रहण हो। तुम अभिष्ट के वर्षक हो। अम्बर को विद्यमान करते हुए रहते हो, तुम सत्य की शक्ति से परिपूर्ण हो हमको धेनु प्रदान करो।
Hey the king of heaven Indr Dev! Converts the clouds into rains for us. Bring the useful food grains to us. Hey desires accomplishing! You pervade the universe and stabilize. Hey truthful Madhvan! Grant-give us cows. 
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। आप युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्यवाले, नेतृ-श्रेष्ठ, स्तुति-श्रवण कर्ता, उम्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन-विजेता है। आश्रय प्राप्ति के लिए हम ही आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.30.22]
हे इन्द्र देव तुम अन्नवान हो युद्ध में उत्साहवर्द्धक बड़े हुए तुम अत्यन्त धन वाले, ऐश्वर्यशाली, नायकों में उत्तम, स्तुतियों को श्रवण करने वाले, भयंकर शत्रुओं का विनाश करने वाले और धनों को जीतने वाले हो हम तुम्हारे आश्रय के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You are the possessor of food grains. You are the energetic, leader with zeal, grandeur, destroyer of the enemy & worship-prayers deserving. We invoke your for asylum under you.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- कुशिक, विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप।
शासद्वह्निर्दुहितुर्नत्पय्ं  गाद्विद्वाँ ऋतस्य दीधितिं सपर्यन्। 
पिता यत्र दुहितः सेकमृञ्जन्त्सं शग्म्येन मनसा दधन्वे
पुत्र हीन (जिसे पुत्र नहीं हैं) पिता रेतोधा जामाता को सम्मान युक्त करते हुए शास्त्र के अनुशासन के अनुसार पुत्री से उत्पन्न पौत्र (दौहित्र) के पास गया। अपुत्र पिता पुत्री को गर्भ रहेगा, ऐसा विश्वास करके शरीर धारित करता है।[ऋग्वेद 3.31.1]
जिसके पुत्र न हो, ऐसा मनुष्य अपनी पुत्री का योग्य व्यक्ति से विवाह करता हुआ दौहित्र को ग्रहण करता है। 
The father without son, honoured his son in law and went to his daughter's son. A sonless father survive with the expectation that his daughter will produce a son. 
The sonless father, regulating the contract, refers to his grandson-the son of his daughter and relying on the efficiency of the rite, honours his son in law) with valuable gifts; the father, trusting to the impregnation of the daughter, supports himself with a tranquil mind.
न जामये तान्वो रिक्थमारैक्चकार गर्भं सनितुर्निधानम्। 
यदी मातरो जनयन्त वह्निमन्यः कर्ता सुकृतोरन्य ऋन्धन्
औरस पुत्र-पुत्री को धन नहीं देता। वह पुत्री को उसके भर्ता (पति) के रेतः सेचन का आधार बनाता है। यदि माता-पिता, पुत्र और कन्या, दोनों का ही उत्पादन करते हैं, तब उनमें से एक (पुत्र) उत्कृष्ट क्रिया-कर्म का अधिकारी होता है और दूसरा (पुत्री) सम्मान युक्त होता है।[ऋग्वेद 3.31.2]
वह पुत्र हीन मनुष्य पुत्री के गर्भ धारण के विश्वास पर जीवित रहता है और पुत्र से पुत्री को धन नहीं मिलता। वह पुत्री को उसके पति से सेचन कर्म द्वारा माता बनाता है। यदि माता-पिता के पुत्र और पुत्री दोनों ही रचित हों तो उनमें से पुत्र क्रिया कर्म करने का अधिकारी है तथा पुत्री सम्मान की अधिकारिणी है।
The sonless depends-survive over the embryo of his daughter (her son will perform the last rites of the maternal grand parents). If the parents produce the son as well as daughter, the son become entitled for their last rites and the daughter has to be honoured. (For details please refer to  :: Manu Smrati-santoshkipathshala.blogspot.com)
A son born of the body, does not transfer paternal wealth to a sister; he has made her the receptacle of the embryo of the husband; if the parents procreate children of either sex, one is the performer of holy acts, the other is to be enriched with gifts. 
RECEPTACLE :: गोदाम, संदूक; storehouse, godown, storeroom, pantry, stockroom, box, chest, log cabin.
अग्निर्जज्ञे जुह्वा ३ रेजमानो महस्पुत्राँ अरुषस्य प्रयक्षे। 
महान्र्भो मह्या जातेमेषां मही प्रवृद्धर्यश्वस्य यज्ञैः
हे इन्द्र देव! आप दीप्ति युक्त हैं। आपके यज्ञ के लिए ज्वाला द्वारा कम्पमान अग्नि ने यथेष्ट पुत्र रूप रश्मियों को उत्पन्न किया। इन रश्मियों का जल रूप गर्भ महान् है; औषधि रूप जन्म महान है। हे हर्यश्व, आपकी सोमाहुति द्वारा प्रयुक्त इन रश्मियों की प्रवृत्ति बड़ी है।[ऋग्वेद 3.31.3]
हे इन्द्र देव! तुम तेजस्वी हो, तुमने हमारे यज्ञ के लिए कंपित अग्नि के बल रूपी रश्मियों को प्रकट किया है। इस किरणों का गर्भ जल रूप है। इनका उत्तम जन्म औषधि रूप है। हे हरे घोड़े वाले इन्द्र देव! सोम द्वारा प्रेरित तुम्हारी इन किरणों के गर्भ महत्त्वपूर्ण होते हैं। 
Hey Indr Dev! You possess glow-aura. The flickering flames have produced rays, as son, for your Yagy. The origin of these rays lies in water and birth as medicines. Hey Indr Dev, possessing green horses! The offerings made as Som, inspired as Som, are important for these rays.
अभि जैत्रीरसचन्त स्पृधानं महि ज्योतिस्तमसो निरजानन्। 
तं जानतीः प्रत्युदायन्नुषासः पतिर्गवामभवदेक इन्द्रः
विजेता मरुद्गण वृत्र के साथ युद्ध करने वाले इन्द्र के साथ संगत हुए। सूर्य संज्ञक महान् तेज तमो रूप वृत्र से निर्गत होता है, इस बात को मरुतों ने जाना। जब उषाएँ इन्द्र देव को सूर्य जान करवे उनके समक्ष गई। इसलिए अकेले इन्द्र देव सारी रश्मियों के पति हुए।[ऋग्वेद 3.31.4]
वृत्र से युद्ध रत इन्द्र देव के संग मरुद्गण मिले थे। सूर्य रूप श्रेष्ठ तेज अंधकार रूप वृत्र के आवरण में भी मार्ग दर्शक हैं। इसे मरुद्गण जान गये। उषाओं ने इन्द्र देव को सूर्य समझा और उनके निकट पहुँची। तक एक मात्र इन्द्र देव ही समस्त रश्मियों के स्वामी हुए।
The Marud Gan associated themselves with Indr Dev in the war against Vratr. They realised that the Sun light shows the way in the darkness generated by Vratr. The Ushas, then went to Indr Dev considering him as Sun. Its then, that Indr Dev became their master.
वीळौ सतीरभि धीरा अतृन्दन्प्राचाहिन्वन्मनसा सप्त विप्राः। 
विश्वामविन्दन्यथ्या मृतस्य प्रजानन्नित्ता नमसा विवेश
बुद्धिमान् और मेधावी सात अङ्गिरा लोगों ने सुदृढ़ पर्वत पर रोकी हुई गायों को खोज निकाला। वे गायें पर्वत पर  हैं, ऐसा निश्चय करके जिस मार्ग से वहाँ गए, उसी मार्ग से लौट आयें। उन्होंने यज्ञ मार्ग में सभी गायों को प्राप्त किया। यह सब जानकर इन्द्र देव नमस्कार द्वारा, अङ्गिरा लोगों की सम्भावना करके पर्वत पर गए।[ऋग्वेद 3.31.5]
प्रज्ञावान सात अंगिराओं ने सुदृढ़ पर्वत पर रोकी हुई धेनुओं को ढूंढा पर्वत पर धेनुएँ हैं। यह विश्वास कर वे जिस पथ से वहाँ गये, उसी से लौटे। उन्होंने यज्ञ मार्ग द्वारा सभी धेनुओं को प्राप्त किया। अंगिराओं की प्रणामपूर्वक पूजा से प्रभावित इन्द्रदेव इस बात को जानकर पर्वत पर पहुँचे।
The enlightened & intelligent seven Angiras went to the mountain, where the cows were held. They returned by the same route, attaining all the cows for the Yagy. Having understood all this Indr Dev, reached the mountain to accompany Angiras.
विदद्यदी सरमा रुग्णभद्रेर्महि पाथः पूर्व्यं सध्र्यक्कः। 
अग्रं नयत्सुपद्यक्षराणामच्छा रवं प्रथमा जानती गात्
जिस समय सरमा पर्वत के टूटे हुए द्वार पर पहुँची, उस समय इन्द्र देव ने अपने कहे हुए यथेष्ट अन्न को अन्यान्य सामप्रियों के साथ, उसे दिया। अच्छे पैरों वाली सरमा, शब्द पहचानकर सामने जाते हुए अक्षय गायों के पास पहुँच गई।[ऋग्वेद 3.31.6]
सरमा :: जाड़ा, सर्दी का मौसम, ठंड, शीतकाल; A strong, cold wind that blows down the valley of the Sarma river (which acts as a natural wind tunnel), reaching hurricane strength (uprooting trees) by the time it blows across the western shore and into Lake Baikal, speech-cheers in which the demigods delight together.
पर्वत के टूटे हुए द्वार पर जब सरमा गयी, तब इन्द्र देव ने अपने विचारानुसार उसे उसका मनचाहा प्रचुर अन्न तथा धन प्रदान किया। वह श्रेष्ठ पाँव वाली सरमा धेनुओं की ध्वनि को पहचानती हुई उनके निकट पहुँच गयी।
When Sarma reached the torn outlet-door of the mountain, Indr Dev granted her desired food grains and riches-wealth. Sarma having excellent feet, reached the imperishable cows recognising their voice.
अगच्छदु विप्रतमः सखीयन्नसूदयत्सुकृते गर्भमद्रिः। 
ससान मर्यो युवभिर्मख स्वन्नथाभवदङ्गिराः सद्यो अर्चन्
अतीव मेधावी इन्द्र देव अंगिरा लोगों की मित्रता की इच्छा से गये। पर्वत ने महायोद्धा के लिये अपने गर्भस्थ गोधन को बाहर निकाला।  शत्रु हन्ता इन्द्र देव ने तरुण मरुतों के साथ उन्हें प्राप्त किया। अंगिरा ने तत्काल उनकी पूजा की।[ऋग्वेद 3.31.7]
अत्यन्त प्रज्ञ संपन्न इन्द्र अंगिराओं के प्रति मैत्री पूर्ण कामना से वहाँ पहुँचे। पर्वत ने अपने छिपे हुए धन को श्रेष्ठ योद्धा के लिए प्रकट किया। शत्रु को मारने वाले इन्द्रदेव ने युवा मरुतों की सहायता से उन्हें प्राप्त किया। तब अंगिराओं ने उनकी अर्चना की।
Genius Indr Dev moved to the mountains with the desire of Angiras friendship.  The mountain released the cows & the hidden wealth from its chest-inside. Slayer of Indr Dev received these along with the Marud Gan. Angira immediately worshiped them.
सतः सतः प्रतिमानं पुरोभूर्विश्वा वेद जनिमा हन्ति शुष्णम्। 
प्र णो दिवः पदवीर्गव्युरर्चन्त्सखा सखीरँमुञ्चन्निरवद्यात्
जो इन्द्र देव उत्तम पदार्थ के प्रतिनिधि हैं, जो युद्ध भूमि में अग्रगामी हैं, जो सब उत्पन्न पदार्थों को जानते हैं, जिन्होंने शुष्ण का वध किया, वे ही दूरदर्शी और गोधन के अभिलाषी इन्द्र देव द्युलोक का सम्मान करते हुए हमें पाप से बचायें।[ऋग्वेद 3.31.8]
जो सभी ऐश्वर्यवानों में अग्रगण्य हैं, जो युद्ध क्षेत्र में सबसे आगे चलते हैं, जो सभी सम्पन्न पदार्थों के ज्ञाता हैं, जिन्होंने शुष्ण को समाप्त किया था जो इन्द्रदेव गौ धन की इच्छा वाले तथा अत्यन्त दूरदर्शी हैं वे हमको सम्मान प्रदान करते हुए पाप से सुरक्षा करते हैं।
Indr Dev who is the possessor of all grandeur and moves ahead of the army identifies all goods-creations in nature. He killed Shushn. He is intuitive, far sighted-can look into the future, desirous of cows; protect us from sins, while maintaining the glory of the heavens. 
नि गव्यता मनसा सेदुरकैः कृण्वानासो अमृतत्वाय गातुम्। 
इदं चिन्नु सदनं भूर्येषां येन मासाँ असिषासन्नृतेन
भीतर ही भीतर गोधन की प्राप्ति की इच्छा करके, स्तुति के द्वारा अमरता प्राप्त करने की युक्ति करते हुए यज्ञ-कार्य में लगें। इनके इस यज्ञ में यथेष्ट उपवेशन हैं। इन्होंने इस सत्य भूत यज्ञ के द्वारा महीनों को अलग करने की इच्छा की थी।[ऋग्वेद 3.31.9]
मेधावीजन अन्तःकरण में गौधन प्राप्ति की कामना से श्लोक द्वारा अमरत्व प्राप्ति का प्रयास करते हुए यज्ञ-कर्म में लगें। उनका यज्ञ ही श्रेष्ठ आश्रय रूप है। इन्होंने इस सत्य के कारण भूतयज्ञ के बल से महीनों को विभक्त किया। 
The intelligent devote themselves to Yagy with the desire of cows & immortality with the help of sacred hymns. The Yagy performed-conducted by them is like the excellent asylum. They desired to have separate-different months by means of this Yagy.
संपश्यमाना अमदन्नभि स्वं पयः प्रलस्य रेतसो दुघानाः। 
वि रोदसी अतपद्घोष एषां जाते निःष्ठामदधुर्गोषु वीरान्
अङ्गिरा लोग अपने गोधन को लक्ष्य करके पहले के उत्पन्न पुत्र की रक्षा के लिए दूध दुहकर हर्षित हुए। उनकी आनन्द ध्वनि द्यावा-पृथ्वी में व्याप्त हुई। पूर्व की ही तरह वे संसार में अवस्थित हुए और गायों की रक्षा के लिए वीर पुरुषों को नियुक्त किए।[ऋग्वेद 3.31.10]
अंगिरा वंशियों ने पहले रचित पुत्रों की सुरक्षा के लिए गौ-धन ग्रहण कर उनका दोहन किया और शरीर को पुष्ट बनाया। उनकी हर्ष अम्बर-धरा में विद्यमान हो गयी। वे पूर्वकाल के तुल्य ही संसार में रहे और धेनुओं की सुरक्षा के लिए उन्होंने पराक्रमियों को नियुक्त किया। 
Angiras became happy by milking the cows for their already exiting sons. The sound of their pleasure echoed through the earth & sky. They appointed brave warriors for the protection of cows.
स जातेभिर्वृत्रहा सेदु हव्यैरुदुस्त्रिया असृजदिन्द्रो अर्कैः। 
उरूच्यस्मै घृतवद्धरन्ती मधु स्वाद्म दुदुहे जेन्या गौः
इन्द्र देव ने मरुतों की सहायता से वृत्रासुर का वध किया। वे ही पूजनीय और होम योग्य है। मरुतों के साथ गायों का, यज्ञ के लिए दान किए थे। घृत युक्त हव्य धारिणी, प्रभूत हव्य दात्री और प्रशस्ता गौ ने इनके लिए स्वादुतर क्षीर आदि दिए।[ऋग्वेद 3.31.11]
क्षीर :: दूध, खीर, किसी वृक्ष आदि का सफ़ेद रस, कोई तरल पदार्थ, जल; latex.
इन्द्र देव ने मरुद्गणों सहित वृत्र का विनाश किया। वे ही पूजनीय हैं तथा यजन करने योग्य हैं। उन्होंने मरुद्गणों के साथ यज्ञ हेतु गायों का दान किया। घृत युक्त हवि वाली तथा श्रेष्ठ हवि देने वाली धेनु ने इनके लिए स्वादिष्ट क्षीर दिया।
Indr Dev vanished Vrata Sur with the help of Marud Gan. He deserve worship. He donated cows for the sake of Yagy, with Marud Gan. The honourable cows which provides offerings laced with Ghee, provides milk and pudding.
पित्रे चिच्चक्रुः सदनं समस्मै महि त्विषीमत्सुकृतो वि हि ख्यन्। 
विष्कभ्नन्तः स्कम्भनेना जनित्री आसीना ऊर्ध्वं रभसं वि मिन्वन्
अङ्गिराओं ने पालक इन्द्र देव के लिए महान् और दीप्तिमान् स्थान संस्कार किए। सुकर्म शाली अंगिरा लोगों ने इन्द्र के उपयुक्त इस स्थान को विशेष रूप से दिखा दिया। यज्ञ में बैठकर उन लोगों ने जनयित्री द्यावा-पृथ्वी को स्तम्भ-रूप अन्तरिक्ष द्वारा रोककर वेगवान् इन्द्र देव को द्युलोक में संस्थापित किया।[ऋग्वेद 3.31.12]
उन पोषण कर्त्ता इन्द्र देव के लिए अंगिराओं ने अपने पवित्र एवं उज्जवल महान स्थान का संस्कार किया। श्रेष्ठ कर्म वाले अंगिराओं ने इन्द्र देव के योग्य इस सुन्दर स्थल को दिखाया। उन्होंने अनुष्ठान में विराजमान होकर अम्बर धरा के मध्य अतंरिक्ष रूप खम्बे का आरोपण कर इन्द्र देव को स्वर्ग में विद्यमान किया था।
The Angiras performed ritualistic procedures pertaining to auspicious and aurous sites for the nurturer Indr Dev. They showed these places to Dev Raj Indr. They sat in the Yagy and established Indr Dev in the heavens by blocking the sky & earth just like a column.
This is vertical alignment. The planets are aligned in horizontal positions around the Sun.
मही यदि धिषणा शिश्नथे धात्सद्योवृधं विभ्वं १ रोदस्योः। 
गिरो यस्मिन्ननवद्याः समीचीर्विश्वा इन्द्राय तविषीरनुत्ताः
द्यावा-पृथ्वी के आपस में विश्लिष्ट होने पर यदि महान प्रार्थना इन्द्र देव को तत्क्षणात् वृद्धि प्राप्त और धारित क्षम करे, तो इन्द्र के प्रति दोष रहित सङ्गत है। फलतः इन्द्र का सारा बल स्वभाव सिद्ध है।[ऋग्वेद 3.31.13]
विश्लिष्ट :: विश्लेषण किया गया, अलग किया हुआ; specific. 
आसमान धरती धिषणा में संयुक्त वाणी, उनके वर्णन में समर्थ न हो तो भी इन्द्र की वंदना द्वारा वृद्धि को प्राप्त होती हुई सुसंगत होती है। इन इन्द्र की सभी शक्तियाँ सामर्थ्य वाली हैं।
धिषणा :: ज्ञान, भजन, बुद्धि, देवी।
The prayers made by the sky & the earth separately grants growth to Indr Dev immediately. All the powers embedded in Indr Dev are self generating-growing.
The ritualistic sacrifices made by the devotees in the Yagy automatically help Indr Dev in rejuvenating. 
मह्या ते सख्यं वश्मि शक्तीरा वृत्रघ्ने नियुतो यन्ति पूर्वीः। 
महि स्तोत्रमव आगन्म सूरेरस्माकं सु मघवन्बोधि गोपाः
हे इन्द्र देव! मैं आपकी महती मित्रता के लिए प्रार्थना करता हूँ। आपकी शक्ति के लिए प्रार्थना करता हूँ। आप वृत्र हन्ता है। आपके पास अनेक अश्व वहन करने के लिए आते हैं। आप विद्वान् है। हम आपको महत संख्य, स्तुति और हव्य प्रदत्त करेंगे। हे इन्द्रदेव! आप ज्ञान रक्षक हैं। हमें दिव्य ज्ञान से प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.31.14]
हे इन्द्र देव! मैं तुम्हारे श्रेष्ठ मित्र भाव की वन्दना करता हूँ। तुम्हारी शक्ति के लिए विनती करता हूँ। तुम बहुत ही मेधावी हो। हम तुम्हें अपने हृदय से सखा भाव श्लोक और हवियाँ अर्पण करेंगे। हे इन्द्र देव! तुम हमारे रक्षक हो हमको मतिवान बनाओ।
Hey Indr Dev! I request your friendship. I pray for boosting-enhancement of your might-powers. You are the slayer of Vratr. We will make offerings to you like a friend. You are enlightened. You are the protector of learning. Grant us the divine knowledge i.e., the elixir-nectar of Brahm Gyan-Parmatm Tattv.
Please refer to :: ULTIMATE KNOWLEDGE  ब्रह्म ज्ञान-परमात्म तत्व ALMIGHTY-THE GOD (2) GIST-EXTRACT santoshsuvichar.blogspot.com
महि क्षेत्रं पुरु श्चन्द्रं विविद्वानादित् सं खिभ्यश्चरथं समैरत्। 
इन्द्रो नृभिरजनद्दीद्यानः साकं सूर्यमुषसं गातुमग्निम्
भली-भाँति समझकर इन्द्र देव ने मित्रों को महान क्षेत्र और यथेष्ट हिरण्य (सुवर्ण) दान किया। इसके अनन्तर उन्होंने उन लोगों को गौ आदि भी दान किया। वे दीप्तिमान् है। उन्होंने नेता मरुद्गण के साथ सूर्य, उषा, पृथ्वी और अग्नि को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 3.31.15]
इन्द्र देव ने भली-भांति विचारकर मित्रों को धरती और सुवर्ण रूप धन प्रदान किया। फिर उन्होंने गौआदि धन भी प्रदान किया। वे अत्यन्त तेजस्वी हैं। उन्होंने ही मरुद्गण सूर्य, उषा, धरती और अग्नि को उत्पन्न किया है।
Indr Dev donated vast tracts of land and sufficient gold to the friends. Thereafter, he donated cows as well. He & the Marud Gan produced the Sun, Usha, earth and Agni-fire.
अपश्चिदेष विभ्वो ३ दमूनाः प्र सध्रीचीरसृजद्विश्वश्चन्द्राः।
मध्वः पुनानाः कविभिः पवित्रैर्द्युभिर्हिन्वन्त्यक्तुभिर्धनुत्रीः
शान्त मना इन इन्द्र देव ने विस्तीर्ण परस्पर सङ्गत और संसार के लिये आनन्द दायक जल को उत्पन्न किया। वह माधुर्य युक्त सोम समूह को पवित्र अथवा अग्नि देव, सूर्य और वायु के द्वारा शोधित करके और समस्त संसार को प्रसन्न करके दिन-रात संसार को अपने व्यापार में प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 3.31.16]
उन्होंने अत्यन्त गति वाले सुसंगत और संसार को परमानन्द देने वाले जल को प्रकट किया। वह मृदु सोमों को शुद्ध करते तथा अग्नि, सूर्य और पवन के द्वारा संग्राम करते हैं। वे ही समस्त संसार को आनन्द प्रदान करते हुए इस संसार को दिन और रात्रि में भी अपने कार्यों में लगाते हैं।
Indr Dev invoked-produced water for the pleasure of the vast universe. He inspire the entire world to engage in their routine duties, with the purification of Somras, by Agni Dev, the Sun and the Vayu-air.
अनु कृष्णे वसुधिती जिहाते उभे सूर्यस्य मंहना यजत्रे। 
परि यत्ते महिमानं वृजध्यै सखाय इन्द्र काम्या ऋजिप्याः
सूर्य की महिमा से समस्त पदार्थों के धारित कर्ता और यज्ञार्ह दिन-रात क्रमानुसार घूम रहे हैं। ऋजु गति, मित्र-भूत और कमनीय मरुद्गण शत्रुओं को परास्त करने के लिए आपकी शक्ति का ही अनुसरण करने योग्य होते हैं।[ऋग्वेद 3.31.17]
सूर्य की महिमा से सभी पदार्थों को ग्रहण करने वाले एवं यश निर्वाहक दिन-रात्रि क्रम से घूमते रहते हैं। ॠतु रूप, मित्र भाव वाले मरुद्गण शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए तुम्हारी शक्ति का आश्रय ग्रहण करते हैं।
Its by virtue of the glory (gravitational force-attraction ) of the Sun that all material objects are revolving in a cyclic order; the day & night occurs for performance-conducting Yagy. Formation of seasons, friendly behaviour of Marud Gan in conquering the enemy by them, occurs due to your might.
पतिर्भव वृत्रहन्त्सूनृतानां गिरां विश्वायुर्वृषभो वयोधाः। 
आ नो गहि सख्येभिः शिवेभिर्महान्महीभिरूतिभिः सरण्यन्
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव! आप अविनाशी, अभीष्ट वर्षी और अन्नदाता है। हमारी प्रियतम प्रार्थना के स्वामी बनें। आप महान् है। यज्ञ में आप जाने के अभिलाषी हैं। महान् आश्रय और कल्याण वाहिनी मित्रता के लिए हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 3.31.18]
हे इन्द्र देव! तुम वृत्र संहारक होकर अभिलाषाओं की वृष्टि करने वाले, अजर तथा अन्न प्रदान करने वाले हो। तुम हमारी प्रिय वंदनाओं के अधिपति होओ। तुम यज्ञ में पधारने की कामना वाले एवं उत्तम हो। तुम अपनी कल्याण वहन करने वाली मित्रता युक्त तथा श्रेष्ठ शरण से परिपूर्ण हुए हमको ग्रहण होओ।
Hey slayer of Vratr! You are imperishable-immortal, grants accomplishment food grains. You should be theme of dearest prayers. You are great. You desire to visit the Yagy. Come to us for granting welfare means & asylum.
तमङ्गिरस्वन्नमसा सपर्यन्नव्यं कृणोमि सन्यसे पुराजाम्। 
द्रुहो वि याहि बहुला अदेवी: स्वश्च नो मघवन्त्सातये धाः
हे इन्द्र देव! आप पुरातन है। अङ्गिरा लोगों के तुल्य मैं आपकी पूजा करता हूँ। मैं आपकी प्रार्थना करने के लिए अभिनवता लाता हूँ। आप देव रहित द्रोहियों को मार डालते हैं। हे इन्द्र देव! हमें उपभोग के योग्य धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.31.19]
हे इन्द्र देव! तुम प्राचीन हो। अंगिराओं के समान मैं तुम्हारी प्रार्थना करता हूँ। मैं तुम्हारी वंदना हेतु नई प्रार्थनाएँ प्रस्तुत करता हूँ। तुम देवों के शत्रुओं को नष्ट करने वाले हो। हे इन्द्र देव! हमें उपयोग करने हेतु धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You are ancient. I pray to you like the Angiras. I compose new hymns for worshiping you. You kill those who oppose the demigods-deities. Hey Indr Dev! Grant us useful commodities. 
मिहः पावकाः प्रतता अभूवन्त्स्वस्ति नः पिपृहि पारमासाम्। 
इन्द्र त्वं रथिर: पाहि नो रिषो मक्षूमक्षू कृणुहि गोजितो नः
हे इन्द्र देव! पवित्र जल चारों ओर फैला है। हमारे लिए अविनाशी जल-समूह के तीर को जल से पूर्ण करें। आप रथ वाले है। हमें शत्रु से बचायें। हमें शीघ्र गायों के विजेता बनावें।[ऋग्वेद 3.31.20]
हे इन्द्रदेव! अग्नि का तेज सब दिशाओं में व्याप्त हो गया है। हमारे इस महान तट को जल से पूर्ण करो। तुम रथ से परिपूर्ण हो, शत्रुओं से हमारी सुरक्षा करो, हमें धेनुओं को विजय करने योग्य शक्ति प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Auspicious-pious, pure water is spread all around. Secure the shore with imperishable water for us. You possess the charoite. Protect us from the enemy. Make us the winners of cows.
अदेदिष्ट वृत्रहा गोपतिर्गा अन्तः कृष्णाँ अरुषैधामभिर्गात्। 
प्र सूनृता दिशमान ऋतेन दुरश्च विश्वा अवृणोदप स्वाः
वृत्र हन्ता और गायों के स्वामी इन्द्र देव हमें गौ प्रदान करें। कृष्णों अथवा यज्ञ-विघातक असुरों को दीप्ति युक्त तेज के द्वारा विनष्ट करें। उन्होंने सत्य वचन से अङ्गिरा लोगों को प्रियतम गायें दान करके समस्त द्वारों को बन्द कर दिया।[ऋग्वेद 3.31.21]
वृत्र को मारने वाले हे इन्द्र! हमें गौएँ प्रदान करो। यज्ञ में बाधा उत्पन्न करने वाले राक्षसों को अपने प्रकाश युक्त तेज से समाप्त कर दो। उन्होंने सत्य के द्वारा अंगिराओं को रमणीय गाय दान कर तथा असत्य के सभी नामों को रोक दिया।
Hey slayers of Vratr and the master of cows, give us cows. Kill the demons & those who obstruct Yagy by the bright aura-energy. He stopped all the routes of demons by truthful means & granted best cows to Angiras.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न लाभ कर्ता, युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य युक्त नेतृ श्रेष्ठ स्तुति श्रवण कर्ता, उग्र, संग्राम में शत्रु विनाशकारी और धन-जेता हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए (हम) आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.31.22]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न का लाभ कराने वाले संग्राम में उल्लास द्वारा वृद्धि को ग्रहण हुए, धन से परिपूर्ण, समृद्धिशालियों में महान, स्तुतियों को सुनने वाले, विकराल, युद्धस्थल में शत्रुओं का विनाश करने वाले तथा धनों को जीतने वाले हो। शरण ग्रहण करने हेतु तुम्हारा आह्वान करता हूँ।
Hey Indr Dev! You grant food grains, encourage in the war-battle, possess grandeur, listens to excellent prayers, furious, kill the enemy in the war and wins wealth. We seek asylum-shelter, protection under you.(01.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्र सोमं सोमपते पिबेमं माध्यंदिनं सवनं चारु यत्ते। 
प्रप्रुथ्या शिप्रे मघवन्नृजी षिन्विमुच्या हरी इह मादयस्व
हे सोमपति इन्द्रदेव! इस माध्यन्दिन सवन के अवसर पर आप सोमपान करें; क्योंकि यह आपका प्रिय है। हे धनवान और ऋजीष सोम से युक्त इन्द्र देव! दोनों घोड़ों को रथ से खोलकर और उनके जबड़ों को घास से पूर्ण करके इस यज्ञ में उन्हें प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 3.32.1]
हे इन्द्र देव! तुम सोम के स्वामी हो, इस मध्य सवन में सोमपान करो। यह सोम तुमको अत्यन्त प्रिय है। तुम धन से परिपूर्ण सोम से युक्त हो। अपने अश्वों को रथ से प्रथक करके उनके मुख को उत्तम घास से पूर्ण करते हुए उन्हें इस यज्ञ में आनन्द प्राप्त कराओ।
Hey master of Som, Indr Dev! Enjoy Somras during mid day, since you like it-its your favourite drink. You possess wealth & Som. Release both the horses from the charoite and feed them with grass to make them happy in the Yagy.
गवाशिरं मन्थिनमिन्द्र शुक्रं पिबा सोमं ररिमा ते मदाय। 
बह्मकृता मारुतेना गणेन सजोषा रुद्रैस्तृपदा वृषस्व
हे इन्द्र देव! गव्य संयुक्त और मन्थन सम्पन्न नूतन सोमरस का पान करें। आपके हर्ष के लिए हम उसे प्रदान करते हैं। स्तोता मरुतों और रुद्रों के साथ जब तक तृप्ति न हो, तब तक सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.32.2]
हे इन्द्र देव! दुग्धादि से परिपूर्ण संस्कारित नवीन सोम का पान करो। तुम्हारी प्रसन्नता हेतु हम उसे भेंट करते हैं। तुम मरुद्गण और रुद्रों के साथ तृप्त होने तक सोमपान करो।
Hey Indr Dev! Drink Somras enriched with the milk. We offer it for pleasing you. Enjoy Somras along with the Stota, Marud Gan and the Rudr, till you are satisfied.  
ये ते श्रुष्मं ये तविषीमवर्धन्नर्चन्त इन्द्र मरुतस्त ओजः। 
माध्यन्दिने सवने वज्रहस्त पिबा रुद्रेभिः सगणः सुशिप्र
हे इन्द्र देव! जो मरुद्गण आपके शत्रु शोषक तेज को बढ़ाते हैं, वे ही मरुद्गण आपका बल वर्द्धित करते हैं, वे ही मरुद्रण प्रार्थना करके आपकी युद्ध-शक्ति को बढ़ाते हैं। हे वज्र हस्त शोभन शिरस्त्राण युक्त इन्द्र देव! माध्यन्दिन सवन में रुद्रों के साथ सोमपान करें।[ऋग्वेद 3.32.3]
हे इन्द्र देव! जो मरुद्गण शत्रु को सुखाने वाले तुम्हारे तेज की वृद्धि करते हैं, वे मरुद्गण ही तुम्हारे पराक्रम को बढ़ाने वाले भी हैं। वे मरुत ही वंदना से तुम्हारे युद्ध सामर्थ्य की वृद्धि करते हैं। तुम वज्र धारण कर, सुशोभित शिरस्त्राण हुए मुख्य सवन में रुद्रों के साथ सोम ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! The Marud Gan who enhance-boost your power to suck-reduce the energy-strength of the enemy, increase your power-mighty as well. These Marud Gan pray and promote your power to fight in the war. Hey Vajr holding and head gear bearing Indr Dev! Drink Somras during the midday along with the Rudr.  
 त इन्न्वस्य मधुमद्विविप्र इन्द्रस्य शर्धो मरुतो य आसन्। 
येभिर्वृत्रस्येषितो विवेदामर्मणो मन्यमानस्य मर्म
मरुद लोग इन्द्र के सहायक हुए। वृत्रासुर समझता था कि मेरा रहस्य कोई नहीं जानता। परन्तु मरुतों के द्वारा प्रेरित होकर इन्द्र देव ने वृत्रासुर का रहस्य जान लिया। ये ही मरुद्गण आपके लिए शीघ्र माधुर्य युक्त उत्साह वचन बोले।[ऋग्वेद 3.32.4]
वृत्र के विश्वास था कि मेरा भेद कोई नहीं जानता। परन्तु मरुतों की सहायता और प्रेरणा द्वारा इन्द्रदेव ने वृत्र का भेद जान लिया। उन्हीं मरुतों ने हर्षवद्धित वाणी से तुम्हें प्रसन्न किया था।
Marud Gan assisted Indr Dev. Vrata Sur thought that none is aware of his secrets. Inspired by Marud Gan, Indr Dev decoded the secrets of Vrata Sur. These Marud Gan spoke sweet words to encourage you.
मनुष्वदिन्द्र सवनं जुषाणः पिबा सोमं शश्वते वीर्याय। 
स आ ववृत्स्व हर्यश्व यज्ञैः सरण्युभिरपो अर्णा सिसर्षि
हे इन्द्र देव! मनु के यज्ञ के तुल्य आप मेरे इस यज्ञ का सेवन करते हुए शाश्वत बल के लिए सोमपान करें। हे हर्यश्व! यज्ञ योग्य मरुतों के साथ आप पधारें। गमनशील मरुतों के साथ अन्तरिक्ष से जल प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.32.5]
हे इन्द्र देव! मनु अनुष्ठान के तुल्य तुम मेरे यज्ञ को ग्रहण करते हुए स्थायी शक्ति के लिए सोमपान करो। तुम्हारे अश्व हरे रंग वाले हों। यज्ञ के पात्र मरुद्गण के साथ पधारो और अंतरिक्ष से जल की वर्षा करो।
Hey Indr Dev! Conduct the Yagy like Manu to attain eternal strength & drink the Somras. Hey possessor of green horses! Come with the Marud Gan to participate in the Yagy. Inspire the heavenly waters to produce rains.
त्वमपो यद्ध वृत्रं जघन्वाँ अत्याँइव सर्तवाजौ।  
शयानमिन्द्र चरता वधेन वद्रिवांसं परि देवीरदेवम्
हे इन्द्र देव! चूँकि आप दीप्तिमान् जल के आवरण कर्ता है, दीप्ति शून्य और शायन किए हुए वृत्रासुर को युद्ध में मार गिराया; इसलिए आपने युद्ध-समय में अश्व के सदृश जल को छोड़ दिया।[ऋग्वेद 3.32.6]
हे इन्द्र देव! तुम निर्मल जल को ढकते हो। तुमने उस सोते हुए वृत्र को युद्ध में गिराया है। तुमने संग्राम में अश्व के समान जल को छोड़ दिया। 
Hey Indr Dev! Since you cover the pure waters, you killed Vrata Sur in the war causing darkness. You released waters during the war as you free the horses during the war. 
यजाम इन्नमसा वृद्धमिन्द्रं बृहन्तमृष्वमजरं युवानम्। 
यस्य प्रिये ममतुर्यज्ञियस्य न रोदसी महिमानं ममाते
फलत: हम हव्य द्वारा प्रवृद्ध और महान्, अजर और नित्य तरुण स्तोतव्य इन्द्र देव की पूजा करते हैं। परिमाण शून्य, द्यावा-पृथ्वी यज्ञार्ह इन्द्र देव की महिमा को वर्णित नहीं कर सकती।[ऋग्वेद 3.32.7]
हवि द्वारा वृद्धि को प्राप्त अविनाशी, उत्तम, सतत युवा, स्तुति के पात्र इन्द्र की हम अर्चना करते हैं। महती आकाश और पृथ्वी भी इन्द्र की महिमा को सीमित करने में समर्थ नहीं हैं।
Hence, we pray to Indr Dev who is deserve worship, great, immortal, ever young, with the help of offerings in the Yagy. Vast space-sky and the earth too are incapable in describing the glory of Indr Dev. 
Therefore, we sacrifice with reverence to the vast and mighty Indr Dev, who is adorable, undecaying-immortal, young, whose magnitude the unbounded heaven and earth have not measures, nor can measure.
इन्द्रस्य कर्म सुकृता पुरूणि व्रतानि देवा न मिनन्ति विश्वे। 
दाधार यः पृथिवीं द्यामुतेमां जजान सूर्यमुषसं सुदंसाः
समस्त देवगण इन्द्र के कर्म सुकृत और बहुतर यज्ञादि की हिंसा नहीं कर सकते। इन्द्र देव भूलोक, द्युलोक और अन्तरिक्ष लोक को धारित किए हुए हैं। उनका कर्म रमणीय है। उन्होंने सूर्य और उषा को उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 3.32.8]
रमणीय :: रमण योग्य, सुंदर; delightful, delectable.
इन्द्र देव के महान कार्य, यज्ञादि वीरता में समस्त देवता मिलकर भी बाधा उत्पन्न नहीं कर सकते। वे अम्बर-पृथ्वी और अंतरिक्ष के धारण कर्त्ता हैं। उनके कार्य उत्तम हैं। उन्हीं ने सूर्य और उषा को प्रकट किया है।
Demigods-deities can not obstruct the great functions, Yagy etc. of Indr Dev. Indr Dev is supporting the space-sky and the earth. His deeds-endeavours are delightful, delectable. He has created the Sun and Usha.
देवराज इंद्र परमात्मा की एक विभूति हैं। 
Dev Raj Indr is one of the superior-great forms-incarnations of the Almighty. Thus, here Indr is used for Almighty.
अद्रोध सत्यं तव तन्महित्वं सद्यो यज्जातो अपिबो ह सोमम्। 
न द्याव इन्द्र तवसस्त ओजो नाहा न मासाः शरदो वरन्त
हे दौरात्म्य शून्य इन्द्र देव! आपकी महिमा ही यथार्थ महिमा है, क्योंकि आप उत्पन्न होकर ही सोमरस का पान करते है। आप बलवान् है। स्वर्गादि लोक आपके तेज का निवारण नहीं कर सकते, दिन, मास और वर्ष भी नहीं निवारण कर सकते।[ऋग्वेद 3.32.9]
हे इन्द्र देव! तुम्हारी अभिलाषा उत्तम है। तुम्हारी महिमा भी महान है। तुम प्रकट होकर ही सोमपान करते हो। तुम्हारे तेज को स्वर्गादि संसार, दिवस, माह, वर्ष कोई भी नहीं रोक सकता है।
Hey Indr Dev! Your glory & desires are supreme. You are mighty.  He invoke and drink Somras. None, i.e., day, month or year can stop your aura-energy (your powers can not be restricted, blocked).
त्वं सद्यो अपिबो जात इन्द्र मदाय सोमं परमे व्योमन्। 
यद्ध द्यावापृथिवी आविवेशीरथाभवः पूर्व्यः कारुधायाः
हे इन्द्र देव! उत्पन्न होने के साथ ही आपने सर्वोच्च स्वर्ग प्रदेश में रहकर तुरंत आनन्द प्राप्ति के लिए सोमरस का पान किया। जिस समय आप द्यावा-पृथ्वी में अनुप्रविष्ट हुए, उसी समय आप प्राचीन सृष्टि के विधाता हुए।[ऋग्वेद 3.32.10]
हे इन्द्र देव! तुमने उत्पन्न होते ही सबसे उत्तम लोक स्वर्ग में पधारकर हर्ष के लिए सोम ग्रहण किया। जब तुम नभ पृथ्वी में व्याप्त हुए तभी संपूर्ण सृष्टि के विधाता बन गए।
Hey Indr Dev! You enjoyed Somras soon after your evolution in the heaven. You became the nurturer-supporter of the earth & sky as soon as you pervaded.
अहन्नहिं परिशयानमर्ण ओजायमंनं तुविजात तव्यान्। 
न ते महित्वमनु भूदध द्यौर्यदन्यया स्फिग्या ३ क्षामवस्थाः
हे इन्द्र देव! आपसे अनेक उत्पन्न हुए हैं। जो अहि अपने को बलवान् समझकर जल को परिवेष्टित किया, उसी अहि को प्रवृद्ध होकर आपने विनष्ट किया, परन्तु जिस समय आप पृथ्वी को एक कटि में छिपाकर अवस्थान करते हैं, उस समय स्वर्ग भी आपकी महिमा की तुलना नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 3.32.11]
 कटि :: कमर, सिकुड़ जाना,  कूल्हा; waist, waistline, loin.
हे इन्द्र देव! तुमने बहुतों को रचित किया, जल को रोकने वाले अहंकारी अहि को तुमने समाप्त कर दिया। जब तुम धरा को कटि में छिपाकर चलते हो। तब स्वर्ग भी तुम्हारी महिमा की समता करने में समर्थवान नहीं होता। 
Hey Indr Dev! You have evolved many objects & species. You killed demon Ahi when he tried to block water, hiding earth in waist. At this juncture, even the heaven could not describe your glory-greatness.
यज्ञो हि त इन्द्र वर्धनो भूदुत प्रियः सुतसोमो मियेधः। 
यज्ञेन यज्ञमव यज्ञियः सन्यज्ञस्ते वज्रमहिहत्य आवत्
हे इन्द्र देव ! हमारा यज्ञ आपकी वृद्धि करता है। जिस कार्य में सोम अभिषुत होता है, वह आपका प्रिय है। हे यज्ञ योग्य, यज्ञ के लिए अपने याजक गण की आप रक्षा करें। अहि का विनाश करने के लिए यह यज्ञ आपके वज्र को दृढ़ करे।[ऋग्वेद 3.32.12]
हे इन्द्र देव! हमारा अनुष्ठान तुम्हारी वृद्धि करता है। जिस कार्य में सोम का संस्कार किया जाता है, वह कार्य तुमको प्रिय होता है। तुम यज्ञ के योग्य हो। अपने यजमान की अनुष्ठान कर्म के लिए सुरक्षा करो। अहि नाश करने के लिए यह यज्ञ तुम्हारे वज्र को शक्तिशाली बनावे।
Hey Indr Dev! Our Yagy boosts your powers. You love-like, the endeavours in which the Somras is extracted. You qualify to perform Yagy. Let the Yagy of the Ritviz-organisers be protected by you. Let this Yagy strengthen your Vajr for killing demob Ahi.
यज्ञेनेन्द्रमवसा चक्रे अर्वागैनं सुम्नाय नव्यसे ववृत्याम्। 
यः स्तोमेभिर्वावृधे पूर्व्येभिर्यो मध्यमेभिरुत नूतनेभिः
पुरातन, मध्यतन और अधुनातन प्रार्थना द्वारा जो इन्द्र देव वर्द्धित होते हैं, उन्हीं इन्द्र देव को यजमान रक्षक यज्ञ के द्वारा, अपने समक्ष ले आते है; नवीन अर्थात् नूतन धन के लिए उन्हें आवर्तित करते हैं।[ऋग्वेद 3.32.13]
प्राचीन, मध्यकालीन तथा नवीन श्लोक से जो इन्द्रदेव वृद्धि करते हैं, उन्हीं इन्द्र को यजमान अपने रक्षक यज्ञ द्वार आमंत्रित करते हैं। नए धन के लिए वह उनका आह्वान करता है। 
Ancient, in between the present & past and the new compositions-hymns strengthen you. Indr Dev is invited-invoked by the hosts-organisers, Ritviz through their protective routes. They invite Indr Dev for the sake of new kinds of wealth. 
विवेष यन्मा धिषणा जजान स्तवै पुरा पार्यादिन्द्रमह्नः। 
अंहसो यत्र पीपरद्यथा नो नावेव यान्तमुभये हवन्ते
जिस समय मैं मन ही मन में इन्द्र देव की प्रार्थना करने की इच्छा करता हूँ, तभी प्रार्थना करता हूँ। मैं दूरवर्ती अशुभ दिन के पूर्व ही इनकी प्रार्थना करता हूँ। अतः ये हमें दुःख के पार ले जावे। इसलिए दोनों तटों के रहनेवाले लोग जिस प्रकार से नौका चलाने वाले को पुकारते हैं, उसी प्रकार हमारे मातृ-पितृ कुलों के लोग इन्द्र देव को पुकारते हैं।[ऋग्वेद 3.32.14]
इन्द्रदेव की वंदना करने की जब मैं अभिलाषा करता हूँ, तभी प्रार्थना करने लगता हूँ। मैं उस अशुभ दूरवर्ती दिवस की शंका से पूर्व ही इन्द्रदेव का पूजन करता हूँ। वे इन्द्र देव हमें मुसीबतों से बचायें। नदी के दोनों किनारों के व्यक्ति जैसे नौका वाले को पुकारते हैं, वैसे ही हमारे मातृवंश के मनुष्य इन्द्र देव को बुलाते हैं।
I pray to Indr Dev by invoking him in my innerself. I perform-conduct prayers prior to the inauspicious events-day in future. Hence, he should take us away from pain-sorrow, misery. The way the people standing over the two banks of the river call the boats man, the people from my maternal side call him.
आपूर्णो अस्य कलशः स्वाहा सेक्तेव कोशं सिसिचे पिबध्यै। 
समु प्रिया आववृत्रन्मदाय प्रदक्षिणिदभि सोमास इन्द्रम्
इन्द्र देव का कलश पूर्ण हुआ पानार्थ 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण हुआ। जिस प्रकार से जल सेक्ता जल पात्र में जल सेक करता है, उसी प्रकार मैं सोम का सेचन करता हूँ। सुस्वादु सोम प्रदक्षिण करता हुआ इनके सम्मुख इनकी प्रसन्नता के लिए गमन करता है।[ऋग्वेद 3.32.15]
इन्द्र का कथन पूर्ण हो गया। पान के लिए स्वाहाकार की ध्वनि हुई जैसे जल सींचने वाला पात्र से जल सींचता है, वैसे ही मैं सोम को सिंचित करता हूँ। सुन्दर, सुस्वादु वाला सोम इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए उनके सम्मुख जाता है।
The vase is filled for him with Som to welcome Indr Dev. I pour it out for you to drink, as a water-carrier pours water from his jar; may the grateful Som flow in reverence round Indr for his exhilaration.
The pot-jar of Indr Dev is filled with Somras, creating sound Swaha. The way a person driving water, I too extract Somras. The tasty-sweet Somras is offered to please him.
न त्वा गभीरः पुरुहूत सिन्धुर्नाद्रयः परि षन्तो वरन्त। 
इत्था सखिभ्य इषितो यदिन्द्रा दृळ्हं चिदरुजो गव्यमूर्वम्
बहुलोकाहूत इन्द्र देव! गम्भीर सिन्धु अर्थात् सागर आपका निवारण नहीं कर सकता। उसके चारों ओर वर्त्तमान उपसागर आपका निवारण नहीं कर सकते; क्योंकि बन्धुओं द्वारा इस प्रकार प्रार्थित होकर आपने अति प्रबल गव्य उर्व का निवारण कर डाला।[ऋग्वेद 3.32.16]
हे इन्द्र देव! तुम अनेकों द्वारा आह्वान किये गये हो। गंभीर समुद्र तभी तुम्हें रोक नहीं सकता। समुद्र के चारों तरफ का उप समुद्र भी तुम्हें निवारण करने में समर्थवान नहीं हैं क्योंकि मित्रों की वंदना पर तुमने महावलिष्ठ वृत्र का निवारण कर दिया है।
Hey Indr Dev invoked by several people, demigods-deities! The calm-composed ocean too can not disobey-discard you. Seas around it, too can not reject-discard you, since strengthened by the friends & relatives you eliminated the highly powerful-mighty Vratr. 
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्नमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्रापक, युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य सम्पन्न नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति-श्रवण कर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन जेता हैं। आश्रय-प्राप्ति के लिए हम आपको बाते है।[ऋग्वेद 3.32.17]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न का लाभ करने वाले उत्साह से बढ़े हुए, धन और ऐश्वर्य से सम्पन्न, नायकों, में उत्तम, स्तुति श्रवण करने वाले, भयंकर युद्ध में समुद्र का विनाश करने वाले तथा धनों को विजय करने वाले हो। शरण प्राप्त करने के लिए मैं तुम्हारा आह्वान करता हूँ।
Hey Indr Dev! You are the giver of food grains, encouraging in the war, wealthy,  a leader possessing grandeur, listens-reply to prayers,  protected-safe in the war and winner of wealth. We invoke you for attaining protection, shelter, asylum under you.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्रः पूर्भिदातिरद्दासमर्कैर्विदद्वसुर्दयमानो वि शत्रून्। 
ब्रह्मजूतस्तन्वा वावृधानो भूरिदात्र आपणद्रोदसी उभे
पुर भेदी, महिमावाले और धनशाली इन्द्र देव ने शत्रुओं को मारते हुए तेज के द्वारा दासों को जीता। स्तोत्र द्वारा आकृष्ट, वर्द्धित शरीर और बहु अस्त्रधारी इन्द्र देव ने द्यावा-पृथ्वी को परिपूर्ण किया है।[ऋग्वेद 3.34.1]
अस्त्र :: स्वचालित-मन अथवा शब्दों से नियंत्रित युद्ध सामग्री, ब्रह्मास्त्र, नागास्त्र, पशुपात्र आदि; projectiles, missiles. 
नगरों को ध्वस्त करने वाले, महिमावान, धनवान इन्द्र देव ने अपने तेज से दस्युओं का पतन कर उन्हें विजय कर लिया। उस मंत्र द्वारा आकृष्ट बनें और वृद्धि को पूर्ण किया।
Destroyer of the enemy forts, glorious, wealthy Indr Dev killed the enemies with his aura-mighty, valour, bravery and won-released the slaves. The Strotr recited by the devotees-worshipers made his body handsome-attractive and enlarged possessing various-several Astr and enriched the sky & earth.
मखस्य ते तविषस्य प्र जूतिमियर्मि वाचममृताय भूषन्। 
इन्द्र क्षितीनामसि मानुषीणां विशां दैवीनामुत पूर्वयावा
हे इन्द्र देव! आप पूजनीय और बलवान् है। आपको अलंकृत करके, अन्न के लिए, आपकी प्रेरित प्रार्थना का मैं उच्चारण करता हूँ। आप मनुष्यों और देवों के अग्रगामी है।[ऋग्वेद 3.34.2] 
हे इन्द्रदेव! तुम पूज्य और बलशाली हो। अन्न के लिए मैं तुमको सजाकर, तुम्हारी शिक्षा से ही श्लोक उच्चारण करता हूँ। तुम देवता और मनुष्य दोनों में अग्रगण्य हो। 
Hey Indr Dec! You are revered & mighty. I decorate-worship you and pray to for food grains. You are the forward looking-moving (leader) amongest the humans & the demigods-deities. 
इन्द्रो वृत्रमवृणोच्छर्धनीतिः प्र मायिनामभिनाद्वर्पणीतिः। 
अहन्व्यंसमुशधग्व नेष्वाविर्धेना अकृणोद्राम्याणाम्
हे इन्द्र देव! आपका कर्म प्रसिद्ध है। आपने वृत्र को रोका। शत्रुओं के आक्रमण निवारक आपने मायावियों का विशेष रूप से वध किया। शत्रु वधाभिलाषी इन्द्र देव ने वन में छिपे स्कन्धहीन शत्रुओं का विनाश कर रात्रियों की गायों को आदिष्कृत किया।[ऋग्वेद 3.34.3]
हे इन्द्रदेव! तुम विख्यातकर्मा हो, तुमने वृत्र का निवारण किया था। शत्रुओं के आक्रमण को रोकने वाले इन्द्र ने उन माया करने वालों का विनाश किया। शत्रु को समाप्त करने की इच्छा करने वाले इन्द्र ने वन में छिपे हुए कंधाविहीन शत्रु को मार डाला। उन्होंने रमणीय गाओं को उत्पन्न किया।
Hey Indr dev! You are famous for your fabulous-wonderful deeds. You restrained Vrata Sur. You specially killed the elusive demons, being the obstructer of the attackers. You, desirous of eliminating the enemy, killed the headless beings-Skandh, hidden in the jungles-forests and evolved beautiful cows.
इन्द्रः स्वर्षा जनयन्नहानि जिगायोशिग्भिः पृतना अभिष्टिः। 
प्रारोचयन्मनवे केतुमह्नामविन्दज्ज्योतिबृहते रणाय
स्वर्गदाता इन्द्र देव ने दिन को उत्पन्न करके युद्धाभिलाषी अङ्गिरा लोगों के सात परकीय सेना का अभिभव करके परास्त किया और मनुष्यों के लिए दिन के पताका स्वरूप सूर्य को प्रदीप्त किया। तब महायुद्ध के लिए ज्योति प्रकट हुई।[ऋग्वेद 3.34.4]
हे इन्द्र देव स्वर्ग ग्रहण करने वाले हैं। उन्होंने दिन को प्रकट कर युद्ध की इच्छा वाले अंगिराओं का साथ देकर उनके विरोधियों की सेना को परास्त किया। जिसके ध्वजरूपी सूर्य को मनुष्यों के लिए प्रकाशमान किया। इस प्रकार भीषण युद्ध के लिए तेज ग्रहण किया। 
Heaven awarding Indr Dev helped the Angiras against the seven layered enemy army and evolved the Sun and gained energy, strength, power to fight a furious great war.
इन्द्रस्तुजो बर्हणा आ विवेश नृवद्दधानो नर्या पुरूणि। 
अचेतयद्धिय इमा जरित्रे प्रेमं वर्णमतिरच्छुक्रमासाम्
बहुत धन का ग्रहण करके बाधा दात्री और वर्द्धमान शत्रु सेना के बीच इन्द्र देव बैठे। स्तोता के लिए, उन्होंने उषा को चैतन्यता प्रदान की और उनके शुक्र वर्ण तेज को वर्द्धित किया।[ऋग्वेद 3.34.5]
विघ्न पैदा करने वालों तथा पराक्रम में बढ़ी हुई शत्रु सेना के बीच धन को स्वीकार कर इन्द्र गए। प्रार्थना करने वालों के लिए उन्होंने उषा को चैतन्य कर श्वेत वर्ण को बढ़ाया। 
Having accumulated a lot of wealth, Indr Dev seated himself in the mighty obstructing enemy army. He made Usha conscious and enhanced-increased the white colour for the sake of the devotees.
महो महानि पनयन्त्यस्येन्द्रस्य कर्म सुकृता पुरूणि। 
वृजनेन वृजिनान्त्सं पिपेष मायाभिर्दस्यूँरभिभूत्योजाः
इन्द्र महान् है। उपासक लोग उनके प्रभूत सत्कर्मों की प्रशंसा करते हैं। बल द्वारा वे बलवानों को चूर-चूर करते हैं। पराभव-कर्ता ज्या सम्पन्न इन्द्र देव ने माया द्वारा दस्युओं को मार डाला।[ऋग्वेद 3.34.6]
उन श्रेष्ठ इन्द्र देव द्वारा किये गये श्रेष्ठ कर्मों का तपस्वी गण कीर्तन करते हैं। वे इन्द्र देव अपनी शक्ति से बड़े-बड़े शक्तिशालियों को कुचल डालते हैं उन विजेता इन्द्रदेव ने दस्युओं को अपनी अन्तर-नीति द्वारा कुचल डाला।
Indr Dev is great. The worshipers appreciate his auspicious, virtuous, righteous deeds. He destroy the enemy, the traitors-dacoits with diplomacy, might & elusive powers.
युधेन्द्रो मह्ना वरिवश्चकार देवेभ्यः सत्पतिश्चर्षणिप्राः। 
विवस्वतः सदने अस्य तानि विप्रा उक्थेभिः कवयो गृणन्ति
देवताओं के स्वामी और मानवों के वर प्रदाता इन्द्र देव ने महायुद्ध में धन प्राप्त करके स्तोताओं को दान दिया। मेधावी स्तोता लोग याजकगण के घर में मन्त्र द्वारा इनकी कीर्ति की प्रशंसा करते है।[ऋग्वेद 3.34.7]
देवों के स्वामी और व्यक्तियों को शक्ति देने वाले इन्द्रदेव ने बृहद युद्ध में धन ग्रहण करने वंदना करने वालों को प्रदान किया। विद्वान स्तुतिकर्त्ता जब यजमान के भवन में मंत्रों द्वारा इन्द्र का ऐश्वर्य कीर्तन करते हैं।
The king of demigods-deities and the boons accomplishing of humans-devotees, Indr Dev collected lots of wealth and donated it to the devotees. The intelligent Ritviz, Strota praise this act of Indr dev with the help of sacred hymns.
सत्रासाहं वरेण्यं सहोदां ससवांसं स्वरपश्च देवीः। 
 ससान यः पृथिवीं द्यामुतेमामिन्द्रं मदन्त्यनु धीरणासः
स्तोता लोग सभी के जेता, वरणीय, जल प्रद, स्वर्ग और स्वर्गीय जल के स्वामी इन्द्र देव के आनन्द में आनन्दित होते हैं। इन्द्र ने पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग को दान कर दिया है।[ऋग्वेद 3.34.8]
सर्व विजयी, वरण करने योग्य, स्वर्ग के दाता, अलौकिक जलों के प्रतिनिधि इन्द्र के हर्षोल्लास होने पर स्तोतागण हर्ष प्राप्त करते हैं। वह इन्द्रदेव धरती आकाश और अंतरिक्ष को धारण करने वाले हैं।
The Strota-devotees feel pleasure when Indr Dev the conquer of all, acceptable-possessor water is amused. Indr Dev donated to earth, space & the heaven, supporting them. 
ससानात्याँ उत सूर्य ससानेन्द्रः ससान पुरुभोजसं गाम्। 
हिरण्ययमुत भोगं ससान हत्वी दस्यून्प्रार्थं वर्णमावत्
इन्द्र देव ने अश्व का दान किया, सूर्य का दान किया, अनेक लोगों के उपभोग के योग्य गोधन का दान किया, सुवर्णमय धन का दान किया तथा दस्युओं का वध करके आर्य वर्ण अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य जातियों की रक्षा की।[ऋग्वेद 3.34.9]
घोड़े, सूर्य, गोधन, रत्न और स्वर्ण आदि यह सभी इन्द्रदेव के दान रूप हैं। इन्होंने पापियों का पतन कर आर्यों की सदैव सुरक्षा की है। इन्द्र देव ने ही दान रूप दिन बनाया।
Indr Dev donated horses, Sun, cows, gold, jewels. He killed the demons and protected the Aryans-Brahmans, Kshatriy and the Vaeshy. 
इन्द्र ओषधीरसनोदहानि वनस्पतीरँसनोदन्तरिक्षम्। 
बिभेद बलं नुनुदे विवाचोऽथाभवद्दमिताभिक्रतूनाम्
इन्द्र देव ने प्राणियों के कल्याण के लिए औषधियों प्रदत्त की। दिन का अनुदान दिया, वनस्पतियों और अन्तरिक्षों को प्रदान किया। उन्होंने बलासुर का विभेदन किया, विरोधियों को दूर किया और युद्ध के आए हुए शत्रुओं का दमन किया।[ऋग्वेद 3.34.10]
दमन :: रोक, निरोध, नियंत्रण, पराजय, आधिपत्य, वशीकरण, शमन, दबाव, अवरोध, छिपाव, स्तंभन; suppression, repression, subjugation.
इन्होंने ही औषधियाँ प्रदान कीं तथा अंतरिक्ष और वनस्पतियाँ प्रदान कीं। उन्होंने बादल को विदीर्ण कर शत्रुओं को समाप्त किया। इन्द्र देव के सम्मुख जो भी विरोधी उपस्थित हुआ, उसी को उन्होंने समाप्त कर डाला।
Indr Dev provided medicines for the benefit of living beings. He made provision for the day in addition to vegetation and the space. He destroyed Bala Sur and repelled the opponents and subjugated them.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त कर्ता हैं। आप युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध होवें। आप धनवान् होवे, प्रभूत, वैभव, सम्पन्न होवें, नेतृ श्रेष्ठ होवें, स्तुति-श्रोता होवें, उम्र होवे, संग्राम में अरि-मर्दन और धन-विजेता होयें। आश्रयप्राप्ति के लिए हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 3.34.11] 
हे इन्द्रदेव! तुम अन्न प्राप्त करने में सक्षम हो। युद्ध में उल्लास द्वारा बढ़ाते हो। तुम धन से उत्पन्न हुए अपने वैभव से ही ऐश्वर्यवान हो। तुम नायकों में उत्तम तथा स्तुति को श्रवण करने वाले हो। तुम अपने उग्र कर्मों द्वारा युद्ध में शत्रु का नाश करते हुए धन जोतते हैं। हम आश्रम-धनों के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You are capable of receiving food grains. Involve in the war with enhance morale. You should be wealthy, winner of wealth-riches, possess grandeur, provide excellent leadership, become a listen of prayers, destroy the enemy. We invoke you for having asylum, protection, shelter under you.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप।
तिष्ठा हरी रथ आ युज्यमाना याहि वायुर्न नियुतो नो अच्छ। 
पिबास्यन्धो अभिसृष्टो अस्मे इन्द्र स्वाहा ररिमा ते मदाय
हे इन्द्र देव ! हरि नाम के दोनों अश्व रथ में नियोजित किए जाते हैं। जिस प्रकार से वायु देव अपने नियुत नामक अश्वों की प्रतीक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप भी इन दोनों की कुछ क्षण प्रतीक्षा करके हमारे सामने आवें और हमारा दिया हुआ सोमरस पिएँ। हम 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण करके आपके आनन्द के लिए सोमरस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 3.35.1]
हे इन्द्र! तुम्हारे हरे घोड़े रथ में जोड़े जाते हैं। जैसे पवन अपने अश्वों की प्रतीक्षा करते हैं वैसे ही तुम भी कुछ पल अपने अश्वों की प्रतीक्षा करके उनके साथ यहाँ पधारो। हम सोम को अर्पण करते हैं।
Hey Indr Dev! Your horses named Hari have been deployed in the charoite. The way Vayu Dev wait for his horses named Niyut, you too wait for a while and come to sip-enjoy Somras. We enchant Swaha and offer Somras for your pleasure. 
उपाजिरा पुरुहूताय सप्ती हरी रथस्य धूर्ष्वा युनज्मि। 
द्रवद्यथा संभृतं विश्वतश्चिदुपेमं यज्ञमा वहात इन्द्रम्
अनेक लोकों में आहूत इन्द्र देव के शीघ्र गमन के लिए रथ के अग्र भाग में द्रुतगामी अश्व द्वय को हम संयोजित करते हैं। विधिवत् अनुष्ठित इस यज्ञ में अश्व द्वय इन्द्र देव को ले आवें।[ऋग्वेद 3.35.2]
संयोजित :: संबद्ध, जोड़ा हुआ, बद्ध, मिला हुआ, युक्त, संगठित, संघटित; coordinated, connected, organized.
अनेकों द्वारा बुलाये गये इन्द्र के शीघ्र आने के लिए रथ के आगे दोनों घोड़ों को हम जोड़ते हैं। विधि पूर्वक किये जाते इस यज्ञ के अनुष्ठान में इन्द्र के दोनों घोड़े उन्हें यहाँ ले आयें।
We connect-deploy the high speed, fast moving horses in the front segment of the charoite for Indr Dev, who is revered in several abodes. The horse duo should bring Devraj Indr to this Yagy, initiated methodically-following all procedures.
उपो नयस्व वृषणा तपुष्पोतेमव त्वं वृषभ स्वधावः। 
ग्रसेतामश्वा वि मुचेह शोणा दिवेदिवे सदृशीरद्धि धानाः
हे अभीष्टवर्षक और अन्नवान् इन्द्र देव! अपने वीर्यवान् और शत्रुभयत्राता अश्व द्वय को हमारे निकट ले आवें। आप इन याजक गण की रक्षा करें। रक्त वर्ण हरि नाम के अश्व द्वय को इस देव यजन स्थान में छोड़ दें। वे खावें। आप समान रूप वाले उपयुक्त धान्य अथवा भूँजे हुए जौ का भक्षण करें।[ऋग्वेद 3.35.3]
 हे इन्द्रदेव! तुम इच्छाओं की वृष्टि करने वाले तथा अन्नों के स्वामी हो। शत्रु के भय से स्वतंत्र करने वाले अपने दोनों वीर अश्वों को यहां ले आओ और इस यजमान के रक्षक बनो। तुम दोनों अश्वों को खोलो। वे यहाँ भक्षण करें, तुम भी समान रूप वाले उपभोग्य धान्य का भक्षण करते हो।
Hey accomplish fulfilling, desires granting Indr Dev, having food grains! Bring your two powerful red coloured horses, which cause fear in the enemy, release them here  to eat food in the sites close to the Yagy site,  close to us. You should also take roasted food grains or barley.
ब्रह्मणाते ब्रह्मयुजा युनज्मि हरी सखाया सधमाद आशू। 
स्थिरं रथं सुखमिन्द्रा धितिष्ठन्प्रजानन्विद्वाँ उप याहि सोमम्
हे इन्द्र देव! मन्त्र-द्वारा आपके अश्व द्वय नियोजित होते हैं तथा युद्ध में जिनकी समान प्रसिद्धि है, उन्हीं दोनों अश्वों को मन्त्र द्वारा हम नियोजित करते है। हे इन्द्र देव! आप विद्वान् हैं। आप समझकर सुदृढ़ और सुखकर रथ पर आरोहण कर सोमरस के पास आवें।[ऋग्वेद 3.35.4]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे अश्व मंत्रों के द्वारा जुड़ते हैं। तुम्हारे युद्ध में सौ घोड़े प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। उन्हीं को हम मंत्रों द्वारा जोड़ते हैं। हे इन्द्र देव! तुम बुद्धिमान हो। अपनी बुद्धि से सुखदायक रथ पर बैठकर सोम के समीप विराजो।
Hey Indr Dev! You connect your red horses, which are famous for participating in hundred wars, in the charoite by reciting Mantr. We too deploy them-control them with the help of the Mantr. Hey Indr Dev! You are enlightened. Be seated in the comfortable strong charoite and come to accept Somras.
मा ते हरी वृषणा वीतपृष्ठा नि रीरमन्याजकगणासो अन्ये। 
अत्यायाहि शश्वतो वयं तेऽरं सुतेभिः कृणवाम सोमैः
हे इन्द्र देव! दूसरे याजक गण आपके वीर्यवान् और कमनीय पृष्ठों वाले हरिद्वय को आनन्दित करें, हम अभिषुत सोमरस के द्वारा यथेष्ट रीति से आपकी तृप्ति करेंगे। आप अनेक यजमानों का अतिक्रम करके शीघ्र आवें।[ऋग्वेद 3.35.5]
हे इन्द्र देव! यजमान तुम्हारे वीर, सुन्दर पीठ वाले दोनों अश्वों को आनन्द प्रदान करें। हम तुम्हें श्रेष्ठ प्रकार से सिद्ध किये गये सोम के द्वारा तृप्त करेंगे। तुम अनेक से यजमानों को पारकर शीघ्र यहाँ पधारो।
Hey Indr Dev! Let the Yajak (People performing Yagy)-Ritviz make your horse duo happy. We will serve you Somras and satisfy you. You should come to us, skipping many Yajak-Ritviz.
तवायं सोमस्त्वमेह्यर्वाङ् शश्वत्तमं सुमना अस्य पाहि। 
अस्मिन्यज्ञे बर्हिष्या निषद्या दधिष्वेमं जठर इन्दुमिन्द्र
यह सोमरस आपका है। इसके सामने आवें और प्रसन्न चित्त होकर इस प्रभूत सोमरस का पान करें। हे इन्द्र देव! इस यज्ञ में कुश के ऊपर बैठकर इस सोम को जठर में रखें।[ऋग्वेद 3.35.6]
हे इन्द्र देव! यह सोम तुम्हारे लिए है, इसके समक्ष पधारो प्रसन्न मुख द्वारा इस सिद्ध सोम को ग्रहण करो। इस यज्ञ में कुश पर विराजमान होकर इस सोम को ग्रहण करो।
This Somras is for you. Come and accept it happily. Hey Indr Dev! Sit over the Kush cushion-mate, in this Yagy and sip Somras. 
स्तीर्ण ते बर्हिः सुत इन्द्र सोमः कृता धाना अत्तवे ते हरिभ्याम्। 
तदोकसे पुरुशाकाय वृष्णे मरुत्वते तुभ्यं राता हवींषि
हे इन्द्र देव! आपके लिए कुश फैलाए गए हैं। सोम अभिषुत हुआ है। आपके अश्व द्वय के भोजन के लिए धान्य तैयार है। आपका आसन कुश है, अनेक लोग आपकी प्रार्थना करते हैं। आप अभीष्ट वर्षी है। आपके पास मरुत्सेना है। आपके लिए हव्य विस्तृत है।[ऋग्वेद 3.35.7]
हे इन्द्र देव! यह कुश तुम्हारे लिए बिछाये गये हैं और सोम का संस्कार किया गया है। तुम्हारे दोनों अश्वों के लिए धान्य प्रस्तुत है। कुश तुम्हारा आसन है। अनेक विद्वान तुम्हारा पूजन करते हैं। तुम इच्छाओं की वर्षा करने वाले हो, तुम्हारे निकट मरुद्गण रूप सेना है तुम्हारे लिए विशाल हवियाँ प्रस्तुत हैं।
Hey Indr Dev! This Kush has been spread for you. Som has been extracted. Food grains are ready for your horses. Several people are worshiping-praying you. You accomplish desires. You have the army of Marud Gan. Offerings are ready for you.
इमं नरः पर्वतास्तुभ्यमापः समिन्द्र गोभिर्मधुमन्तमक्रन्। 
तस्यागत्या सुमना ऋष्व पाहि प्रजानन्विद्वान्पथ्या ३ अनु स्वाः
हे इन्द्र देव! आपके लिए अध्वर्युगण, प्रस्तर और जल ने इस सोम दुग्ध को मधुर रस विशिष्ट किया है। दर्शनीय और विद्वान इन्द्र देव प्रसन्नचित्त होकर अपनी हितकर प्रार्थना को जान करके सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.35.8]
हे इन्द्र देव! अध्वर्यु, पाषाण और जल ने इस दूध से मिले हुए सोम को तुम्हारे लिए मधुरता से पूर्ण किया है। तुम मेधावी एवं दर्शनीय हो। हमारी इन प्रार्थनाओं को अपने हित में जानते हुए प्रसन्न मुख से सोम ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! The priests have extracted Som, crushing it with stone, mixing milk & water in it happily. You are intelligent and beautiful. Accept our prayers and drink Somras.
याँ आभजो मरुत इन्द्र सोमे ये त्वामवर्धन्नभवन्गणस्ते। 
तेभिरेतं सजोषा वावशानो ३ग्नेः पिब जिह्वया सोममिन्द्र
हे इन्द्र देव! सोम पान के समय में जिन मरुतों को आप सम्मानान्वित करते हैं, युद्ध में जो आपको वर्द्धित करते और आपके सहायक होते हैं, उन्हीं सभी मरुतों के साथ सोमपानाभिलाषी होकर अग्नि की जिह्वा (जीभ) द्वारा सोमपान करें।[ऋग्वेद 3.35.9]
हे इन्द्र देव! जिन मरुद्गण को सोमपान करते समय सम्मान परिपूर्ण करते हो उन मरुद्गण के संग सोम पीने की कामना करते हुए, अग्नि रूप जिह्वा द्वारा सोम रस पान करो।
Hey Indr Dev! Offer Somras to Marud Gan whom you honour and who assist you in the war. Enjoy Somras with them with the tongue in the form  of fire-Agni.
इन्द्र पिब स्वधया चित्सुतस्याग्नेर्वा पाहि जिह्वया यजत्र। 
अध्वर्योर्वा प्रयतं शक्र हस्ताद्धोतुर्वा यज्ञं हविषो जुषस्व
हे यजनीय इन्द्र देव! स्वधा अथवा अग्नि की जिव्हा द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करें। शक्र, अध्वर्यु के हाथ से प्रदत्त सोम अथवा होता के भजनीय हव्य का भी सेवन करें।[ऋग्वेद 3.35.10] 
शक्र :: ब्रह्माण्ड शास्त्र के अनुसार तैंतीसवें स्वर्ग (त्रयत्रिंश स्वर्ग) के राजा है। उन्हें "शक्रो देवानां इन्द्रः" (शक्र, देवताओं का राजा) भी कहा जाता है, शक्तिशाली; king of heaven, mighty.
दैत्यों का नाश करने वाले इंद्र, कुटज वृक्ष, कोरैया, अर्जुन वृक्ष, इंद्रजौ-कुटज बीज, 
ज्येष्ठा नक्षत्र, जिसके अधिष्ठता देवता इंद्र हैं, उलुक पक्षी, चौदह की संख्या, भगवान् शिव का एक नाम,  स्वामी-राजा, समर्थ-योग्य। 
हे इन्द्र देव! तुम यजन के योग्य हो, अग्नि रूप जिह्वा द्वारा इस संस्कारित सोम का पान करो। अध्वर्युं द्वारा अर्पण किया सोम और होता द्वारा आहुति योग्य हवि को प्राप्त करो।
Hey revered-honoured Indr Dev! Drink-enjoy Somras with help of wood or the tongue as fire. Hey Shakr! Eat the offerings by the priests-devotees.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्रापक युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध हैं। आप धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य वाले, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रोता, उग्र, संग्राम में शत्रुओं को मारने वाले और धन-विजेता हैं। आश्रय-प्राप्ति के लिए हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 3.35.11] 
हे इन्द्र देव! तुम अन्न लाभ वाले युद्ध में उल्लास से बढ़ते हो। तुम धन और ऐश्वर्य से युक्त नायकों की उत्तम स्तुति को श्रवण करने वाले, भयंकर युद्ध में शत्रु को मारने वाले और धन जीतने वाले हो। हम शरण प्राप्त करने हेतु तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You grant-provide food grains, boosts moral in the war-battle. You are wealthy-rich, excellent leader, speaker and listener as well, slayer of the enemy in the war field, winner of wealth possessing grandeur. 
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, घोर आंगिरस, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप।
इमामू षु प्रभृतिं सातये धाः शश्वच्छश्वदूतिभिर्यादमानः। 
सुतेसुते वावृधे वर्धनेभिर्यः कर्मभिर्महद्भिः सुश्रुतो भूत्
हे इन्द्र देव! धन दान के लिए मरुतों के साथ सदा आकर विशेष रूप को धारित करें। जो इन्द्र विशाल कर्म के कारण प्रसिद्ध हैं, वे प्रत्येक सोमाभिषव में पुष्टिकर हव्य द्वारा वर्द्धित हुए हैं।[ऋग्वेद 3.36.1]
हे इन्द्र देव! धन प्रदान करने हेतु मरुद्गण के युक्त यहाँ पधारकर, विशेष तरह से सिद्ध किये गये इस सोम को प्राप्त करो। इन्द्र देव अपने श्रेष्ठ कार्यों के द्वारा प्रसिद्ध हैं तथा सोम सिद्ध किये जाने वाले कार्य में प्रत्येक बार पुष्टिदायक हवियों के द्वारा वृद्धि करते हैं।
Hey Indr Dev! Come here for donating money along with Marud Gan and drink Somras. Indr Dev who is famous for his gigantic tasks, has flourished-grown due to the nourishing offerings and Somras.
FLOURISH :: निखरा, विकास पाना, सफल होना, महत्त्व दिखलाना; be a success, succeed, be lucky to, be lucky enough to, prosper.
The offerings in the Hawan, Agni Hotr & Yagy made to the deities-demigods gives them strength, power & might and they in turn help the devotees and protect them. Its a two way process, give & take.
इन्द्राय सोमाः प्रदिवो विदाना ऋभुर्येभिर्वृषपर्वा विहायाः। 
प्रयम्यमानान्प्रति षू गृभायेन्द्र पिब वृषधूतस्य वृष्णः
पूर्व समय में इन्द्र को लक्ष्य करके सोम दिया गया, जिससे इन्द्र देव कालात्मक, दीप्त और महान् हुए। हे इन्द्र देव! आप इस प्रदत्त सोम को ग्रहण करें। स्वर्गादि फल देनेवाले और प्रस्तर द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करो।[ऋग्वेद 3.36.2]
पुरातन काल में इन्द्र के लिए सोम अर्पित किया गया था, जिससे वे नियम पालक, प्रकाशवान और श्रेष्ठ बने। हे इन्द्र! इस अर्पित सोम को ग्रहण करो। यह पत्थर द्वारा कूटा हुआ सोम अलौकिक फल देने वाला है। इसका तुम पालन करो।
In ancient times, Indr Dev was served Somras which made him aurous and great. Hey Indr Dev! You accept this Somras. This Somras extracted by crushing with stones grants-rejuvenate and awards the pleasures of the heavens. 
Though elixir-nectar grants longevity-immortality to the demigods-deities yet regular dose Somras is essential for them; since it gives them good health, vigour and vitality. 
पिबा वर्धस्व तव घा सुतास इन्द्र सोमासः प्रथमा उतेमे।
यथापिवः पूर्व्यां इन्द्र सोमाँ एवा पाहि पन्यो अद्या नवीयान्
इन्द्र देव सोमरस पान करें और परिपुष्ट बने। आपके लिए प्राचीन और नवीन सोम अभिषुत हुआ है। हे इन्द्र देव! आप स्तुति योग्य है। जिस प्रकार से आपने प्राचीन सोमरस का पान किया था, उसी प्रकार इस क्षण में नूतन सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.36.3]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे लिए प्राचीन काल से विख्यात सोम अभिनव रूप में संस्कारित किया गया है, इसे पान करके पुष्ट होओ। तुम वंदना के योग्य हो। जैसे तुमने पुराने समय में सोम पिया था, वैसे ही इस समय सोम को पियो।
पुष्ट :: बलवान, तगड़ा, हट्टा-कट्टा, मज़बूत अंगवाला, प्रबल, मज़बूत, दबंग; strong, athletic, robust, sturdy. 
Hey Indr Dev! Drink this Somras and become sturdy, strong & robust. This Somras has ben extracted for you with old and new techniques. Hey Indr Dev! You deserve worship. They way you drank Somras in ancient time, do it at present as well.
महाँ अमत्रो वृजने विरप्श्यु १ ग्रं शवः पत्यते घृष्णवोजः।
नाह विव्याच पृथिवी चनैनं यत्सोमासो हर्यश्वममन्दन्
जो इन्द्र देव अतीव शक्तिशाली हैं, जो युद्ध भूमि में शत्रुओं के विजेता हैं, जो शत्रुओं के आह्वान कर्ता हैं, उन्हीं इन्द्र का उम्र बल और दुर्धर्ष तेज सभी जगह विस्तृत हो रहा है। जिस समय हर्यश्च इन्द्र देव को सोमरस हर्षित करता है, इस समय पृथ्वी और स्वर्ग भी इन्द्र देव को संभालने में समर्थ नहीं हो सकते।[ऋग्वेद 3.36.4]
जो इन्द्र देव महाबली तथा शत्रुओं को जीतने वाले हैं, जो इन्द्र देव शत्रुओं को युद्ध में ललकारते हैं, उन इन्द्र का पराक्रम जीतने योग्य हो। उनका तेज सब जगह फैला है। जब अश्व युक्त इन्द्र को सोम पुष्ट करता है तब पृथ्वी और स्वर्ग भी इनको धारण करने की सामर्थ्य नहीं रखते।
The aura-brilliance of Indr Dev, who is potentially mighty, winner of the enemy in war, challenge the enemy; is spreading all around. When Indr Dev consume Somras, his powers-potentials boosts to such a high level that it become difficult for both the earth and the heaven to shield, control-check him.
महाँ उग्रो वावृधे वीर्याय समाचक्रे वृषभः काव्येन।
इन्द्रो भगो वाजदा अस्य गावः प्रजायन्ते दक्षिणा अस्य पूर्वीः
हे बली, उम्र, अभीष्ट वर्षक और दाता इन्द्र देव! वीर कीर्ति के लिए आप प्रवृद्ध हुए हैं, स्तोत्र के साथ मिल गए हैं। आपकी सब गायों ने दुग्धदायी होकर जन्म लिया है। आपका दान कर्म बहुत प्रसिद्ध है।[ऋग्वेद 3.36.5]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; aged.
शक्तिशाली, वीर, इच्छाओं की वर्षा करने वाले, दानशील, इन्द्रदेव पराक्रम पूर्वक अनुष्ठान के लिए वृद्धि को ग्रहण हुए श्लोक में संगति करते हैं। इन्द्र की समस्त धेनु दुग्ध प्रदान करने वाली होकर प्रकट हुई हैं। इन्द्र देव के अत्यन्त दान करने वाले हैं। 
Hey mighty, longevity & accomplishment granting, donor Indr Dev! Associated with the Strotr, you have grown tremendously. Your cows have returned on being milch-milking. Your charity is famous. 
प्र यत्सिन्धवः प्रसवं यथायन्नापः समुद्रं रथ्येव जग्मुः। 
अतश्चिदिन्द्रः सदसो वरीयान्यदीं सोमः पृणति दुग्धो अंशुः
जिस समय नदियाँ स्रोत का अनुकरण करके दूरस्थ समुद्र की ओर जाती हैं, उस समय रथों की भाँति जल भागता है। ठीक उसी प्रकार वरणीय इन्द्र देव इस अन्तरिक्ष से अभिषुत लता खण्ड-रूप अल्प सोमरस की ओर दौड़ते हैं।[ऋग्वेद 3.36.6]
सरिताएँ जब स्रोत के समान दूरस्थ समुद्र की ओर बहती हैं, तब रथ के समान जल दौड़ता है। उसी प्रकार धारण करने योग्य इन्द्र अंतरिक्ष में लता रूप प्रसिद्ध सोम की ओर जाते हैं।
When the rivers flow towards the ocean the water run fast like the charoite. In the same manner Indr Dev run towards Somras from the space -heaven. 
समुद्रेण सिन्धवो यादमाना इन्द्राय सोमं सुषुतं भरन्तः। 
अंशुं दुहन्ति हस्तिनो भरित्रैर्मध्वः पुनन्ति धारया पवित्रैः
समुद्र सङ्गमाभिलाषिणी नदियाँ जिस प्रकार से समुद्र को पूर्ण करती हैं, उसी प्रकार अध्वर्यु लोग इन्द्र देव के लिए अभिषुत सोमरस का सम्पादन करते हुए हाथों द्वारा लता का दोहन करते और प्रस्तर द्वारा धारारूप मधुर सोमरस का शोधन करते हैं।[ऋग्वेद 3.36.7]
समुद्र में मिलने की कामना करने वाली नदियाँ जैसे समुद्र को भरती हैं, वैसे ही इन्द्र देव के लिए अध्वर्युगण छाने गये सोम को संस्कारित करते हुए हाथों से सोमलता को दहते हैं और पाषाण द्वारा सोमरस को पवित्र करते हुए मधुरता परिपूर्ण बनाते हैं।
The way the river desire to assimilate in the ocean to fill it, the devotees-priests extract Somras with their own hands by crushing the Som Valli-Lata, with stone, to offer it to Indr Dev.
ह्रदाइव कुक्षयः सोमधानाः सभी विव्याच सवना पुरूणि। 
अन्ना यदिन्द्रः प्रथमा व्याश वृत्रं जघन्वाँ अवृणीत सोमम्
इन्द्र का उदर तालाब के तुल्य सोम का आधार है। वह अकेले ही सात यज्ञों को व्याप्त करते हैं। इन्द्र ने प्रथम भक्षणीय सोम आदि का भक्षण किया, अनन्तर वृत्रासुर का वध करके देवों को उनका भाग प्रदान किया।[ऋग्वेद 3.36.8]
तालाब के समान इन्द्र का उदर सोम का आश्रय स्थान है, वे एक साथ ही बहुत यज्ञों को पूर्ण करते हैं। इन्द्र ने भक्षण योग्य सोम का सेवन किया है। फिर वृत्र को मारकर दानवों को भगा दिया।
The stomach of Indr Dev is the pond containing Somras. He alone pervade seven Yagy. Indr Dev initially ate Som etc. and then struck Vratr and run away the demons.
आ तू भर माकिरेतत्परि ष्ठाद्विद्मा हि त्वा वसुपतिं वसूनाम्। 
इन्द्र यत्ते माहिनं दत्रमस्त्यस्मभ्यं तद्धर्यश्व प्र यन्धि
हे इन्द्र देव! शीघ्र धन दो। आपके इस धन को कौन रोक सकता है। हम आपको धनाधिपति जानते है। आपके पास जो पूजनीय धन है, उसे हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.36.9]
हे इन्द्र देव! शीघ्र ही धन को प्रदान करो। तुम्हारे दान को रोकने में कोई भी समर्थवान नहीं है। तुम धन के स्वामी हो, यह हम जानते हैं। तुम्हारा धन महान और अर्चना योग्य है, उसे हमें प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Grant-give money quickly. None can stop-obstruct you from granting money. You are wealthy. You have the pure-pious wealth which deserve worship. Grant us that money.
अस्मे प्र यन्धि मघवन्नृजीषिन्निन्द्र रायो विश्ववारस्य भूरेः। 
अस्मे शतं शरदो जीवसे धा अस्मे वीराञ्छश्वत इन्द्र शिप्रिन्
हे ऐश्वर्यवान् इन्द्र देव! आप उदार हृदय के हैं। आप सबके द्वारा वरणीय प्रभूत धन ऐश्वर्य हमें प्रदत्त करें। हे उत्तम शिरस्त्राण वाले इन्द्र देव! हमें जीवित रहने के लिए सौ वर्ष की आयु प्रदत्त करें और बहुत से वीर पुत्र भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.36.10]
हे सरल प्रवृत्ति वाले मघवन! तुम सबके वरण करने योग्य हो। तुम हमें उत्तम प्रकार का धन दो। हमको सौ वर्ष की आयु तक जीवित रहने की सामर्थ्य प्रदान करो हमको चिरायुष्व और वीर पुत्र प्रदान करो।
Hey grandeur possessing Maghvan-Indr Dev! You are generous. Grant us the best wealth. Hey excellent head gear wearing Indr Dev! Grant us a life span of hundred years and brave sons. 
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्रापक यज्ञ में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध हैं। आप धनवान्, प्रभूत वैभव वाले, नेतृवर, स्तुति-श्रवणकर्ता, प्रचण्ड, युद्ध में शत्रु नाशक और धन-विजेता हैं। आश्रय पाने के लिए हम आपको ही बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.36.11]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न लाभ वाले संग्राम में उत्साह के साथ वृद्धि को ग्रहण होम हो। तुम धन और समृद्धि से परिपूर्ण, नायकों में उत्तम, वंदना के श्रवण करने वाले, विकराल युद्ध क्षेत्र में शत्रु का पतन करने वाले और धन को जीतने में समर्थ हो। शरण ग्रहण करने के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You are intensively-actively involved in the Yagy to make available food grains. You possess wealth and grandeur. You are a leader, listener and narrator, slayer of the enemy in the war, winner of wealth. We call you for protection-asylum under you.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- विश्वामित्र, देवता :- इन्द्रछन्द :- गायत्री:, अनुष्टुप्।
वार्त्रहत्याय शवसे पृतनाषाह्याय च। इन्द्र त्वा वर्तयामसि॥
हे इन्द्र देव! वृत्र विनाशक बल की प्राप्ति और शत्रु सेना के पराभव के लिए आपको हम प्रवर्त्तित करते है।[ऋग्वेद 3.37.1]
हे इन्द्र देव! वृत्र का पतन करने वाले धन को ग्रहण कराने वाले और शत्रु की सेना को पराजित करने के लिए तुम्हें प्रेरित करते हैं।
Hey Indr Dev! We encourage-incite you to destroy-kill Vratr and the defeat of the enemy army. 
अर्वाचीनं सु ते मन उत चक्षुः शतक्रतो । इन्द्र कृण्वन्तु वाघतः
हे शतक्रतु इन्द्र देव! आपके मन और चक्षु को प्रसन्न करके स्तोता आपको प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.37.2] 
हे शतकर्मा इन्द्र देव! तुम्हें हमारे मन और आँखों को खुशी प्रदान करते हुए प्रार्थना कराने वाले तुम्हारे सम्मुख पुकारें।
Hey Shatkratu-performer of hundred Yagy Indr Dev! Let the recitators of hymns inspire you, granting pleasure to your innerself and the eyes.
नामानि ते शतक्रतो विश्वाभिर्गीर्भिरीमहे। इन्द्राभिमातिषाह्ये
हे शतक्रतु इन्द्र देव! अभिमानी शत्रुओं के पराभय कर्ता युद्ध में समस्त स्तुतियों से आपके नामों का संकीर्तन करें।[ऋग्वेद 3.37.3]
हे इन्द्र! तुम शतकर्म वाले हो। अहंकारी शत्रुओं को हराकर युद्धक्षेत्र में हम तुम्हारी वंदना करते हुए यशगान करेंगे।
Hey performer of hundred Yagy Indr Dev! We will pray-worship you, having defeated the egoistic-proudy enemy in the  war.
पुरुष्टुतस्य धामभिः शतेन महयामसि। इन्द्रस्य चर्षणी धृतः
इन्द्र देव सभी की स्तुति के योग्य, असीम तेजवान और मनुष्यों के स्वामी है। हम उनकी आराधना करते हैं।[ऋग्वेद 3.37.4]
हे इन्द्र! तुम सभी मनुष्यों द्वारा प्रार्थना करने योग्य हो। तुम्हारे तेज की कोई सीमा नहीं है। तुम मनुष्यों के स्वामी हो। हम तुम्हारी प्रार्थना करते हैं।
Hey Indr Dev! You possess highest level of power-mighty and the master of the humans. We pray-worship you. 
इन्द्रं वृत्राय हन्तवे पुरुहूतमुप ब्रुवे। भरेषु वाजसातये
हे इन्द्र देव! वृत्र का विनाश करने और युद्ध में धन प्राप्ति के लिए बहुतों द्वारा आहूत आपका, हम आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 3.37.5] 
हे इन्द्र देव! तुम्हारा अनेकों ने आह्वान किया है। वृत्र के समान शत्रुओं का पतन करने और धन ग्रहण करने के लिए हम भी तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev, revered-honoured by several! We invoke you for the destruction of Vratr and collection of wealth in the war.
वाजेषु सासहिर्भव स्वामीमहे शतक्रतो। इन्द्र वृत्राय हन्तवे
हे शतक्रतु इन्द्र देव! युद्ध में आप शत्रुओं के पराभव-कर्ता है। हम वृत्रासुर के विनाश के लिए आपको प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 3.37.6]
हे सैकड़ों कार्यों में समर्थ इन्द्रदेव! तुम रणक्षेत्र में शत्रुओं को पराजित करने में समर्थ हो। वृत्र को मारने के लिए हम तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey performer of hundred Yagy Indr Dev! You are capable of defeating the enemy in the war. We request-pray you for the destruction of Vrata Sur. 
घुम्नेषु पृतनाज्ये पृत्सुतुर्षु श्रवः सु च। इन्द्र साक्ष्वाभिमातिषु
संग्रामों में तेजस्वी धनों को प्राप्त करने के लिए सभी शक्तिशाली शत्रुओं का पराभव करने वाले इन्द्र देव! आप हमारे समस्त अहंकारी शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 3.37.7]
हे इन्द्र देव ! जो शत्रु अहंकारी हो, धन में प्रतिस्पर्धा करने वाले हों तथा वीर सैनिकों और शक्ति में हमें चुनौती देते हो, उनको तुम पराजित करो।
The defeater of the mighty enemy in the wars Indr Dev! Defeat all of our egoistic-proudy enemies.
शुष्मिन्तमं न ऊतये द्युम्निनं जागृविम्। इन्द्र सोमं शतक्रतो हेतु 
हे शतक्रतु इन्द्र देव! हमारे आश्रय-लाभ के लिए अत्यन्त बलवान्, दीप्ति युक्त और स्वप्र निवारक सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.37.8] 
शतकर्मा इन्द्रदेव! हमको शरण देने के लिए अत्यन्त शक्तिशाली, तेज सम्पन्न और दुःस्वप्नों का उपचार करने वाले सोम को ग्रहण करो।
Hey hundred Yagy conducting Indr Dev! Drink Somras which vanish the painful dreams, to grant us asylum, shelter.
इन्द्रियाणि शतक्रतो या ते जनेषु पञ्चसु। इन्द्र तानि त आ वृणे
हे शतक्रतु इन्द्र देव! पञ्च जनों में जो सब इन्द्रियाँ है, उनकी हम आपको ही जानते है।[ऋग्वेद 3.37.9]
हे शतकर्मा परिपूर्ण इन्द्रदेव! जो पाँच इन्द्रियाँ हैं, उन सभी से हम तुम्हारी महान शक्ति की वृद्धि करेंगे।
Hey hundred Yagy performing Indr Dev! We recognise the five sense organs as yours.
अगन्निन्द्र श्रवो बृहद्युम्नं दधिष्व दुष्टरम्। उत्ते शुष्मं तिरामसि
हे इन्द्र देव! प्रभूत अन्न आपके निकट जाये। शत्रुओं का दुर्धर्षु अन्न हमें प्रदान करें। हम आपके उत्कृष्ट बल की वर्धित करेंगे।[ऋग्वेद 3.37.10] 
हे इंद्र देव! प्रचुर मात्रा में शत्रुओं का अन्न हमें दो। हम आपके बल में वृद्धि करेंगे।
Hey Indr Dev! Collect the food grains of the enemy in large quantity and give it to us,. we will ensure boosting your powers (by making offerings in Yagy).
अर्वावतो न आ गह्यथो शक्र परावतः। 
उ लोको यस्ते अद्रिव इन्द्रेह तत आगहि
हे वज्रशाली इन्द्रदेव! आप दूर, पास तथा अपने उत्कृष्ट दिव्य लोक (इन्द्र लोक) से हमारे पास आयें।[ऋग्वेद 3.37.11] 
हे इन्द्रदेव! तुम निकट या दूर जहाँ कहीं भी हो, वहीं हमारे निकट पधारो। तुम वज्र धारण करने वाले हो। तुम अपनी अद्भुत जगह से हमारे इस अनुष्ठान को ग्रहण होओ।
Hey Vajr carrying Indr Dev! Come to us from any where and participate in these holy rituals.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- प्रजापति, विश्वामित्र, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्।
अभि तष्टेव दीधया मनीषामत्यो न वाजी सुधुरो जिहानः। 
अभि प्रियाणि मर्मृशत्पराणि कवींच्छामि संदृशे सुमेधाः
हे स्तोता! त्वष्टा के तुल्य, इन्द्र की प्रार्थना को जागृत करें। उत्कृष्ट, भारवाही और द्रुतगामी अश्व के तुल्य कर्म में प्रवृत्त होकर तथा इन्द्र के प्रिय कर्म के विषय पर चिन्ता कर मैं मेधावान होते हुए स्वर्गगत कवियों को देखने की इच्छा करता हूँ।[ऋग्वेद 3.38.1]
हे वंदना करने वालों! त्वष्टा के समान इन्द्र देव के श्लोकों को चैतन्य करो। उत्तम भार वहन करने वाले वेगवान, घोड़े के तुल्य कार्य में लगा हुआ इन्द्र देव के कार्यों का चिंतन करता हुआ मैं अपनी बुद्धि की वृद्धि करता हुआ स्वर्ग में पधारे हुए विद्वानों के दर्शनों की इच्छा करता हूँ।
Hey recitators! Activate the Shloks-Mantr meant for the worship of Indr Dev, like Twasta. I wish to see the intelligent poets (enlightened, learned, scholars), who were excellent like the fast moving horses carrying load, devoted to their duty liked-loved by Indr Dev & have gone to heaven.
इनोत पृच्छ जनिमा कवीनां मनोधृतः सुकृतस्तक्षत द्याम्।
इमा उ ते प्रण्यो ३ वर्धमाना मनोवाता अध नु धर्मणि ग्मन्
हे इन्द्र देव! कवियों के जन्म के सम्बन्ध में उन गुरुओं से पूछो, जिन्होंने मन संयम और पुण्य कार्य द्वारा स्वर्ग का निर्माण किया। इस समय इस यज्ञ में आपके लिए प्रणीत स्तुतियाँ वृद्धिङ्गत होकर, मन के तुल्य, वेग से जाती हैं।[ऋग्वेद 3.38.2]
हे इन्द्र देव! उन महापुरुषों के जन्म के सम्बन्ध में उनके गुरुओं से पूछो जिन्होंने मनोनिग्रह तथा पवित्र कार्यों के द्वारा अपने को स्वर्ग का भागीदार बनाया। इस यज्ञ में तुम्हारे लिए रची गई प्रार्थनाएँ वृद्धि को प्राप्त होती हुई, मन के वेग के समान गमन करती हैं।
Hey Indr Dev! Enquire the Gurus who created the heaven, about the birth of the poets (enlightened, learned, scholars), by controlling their innerself-mindset and pious, virtuous, righteous actions. The compositions-poetry, sacred hymns, prayers created-written for you, move as fast as the mind-brain.
नि षीमिदत्र गुह्या दधाना उत क्षत्राय रोदसी समञ्जन्।
सं मात्राभिर्ममिरे येमुरुर्वी अन्तर्मही समृते धायसे धुः
इस भूलोक में सभी जगह कवियों ने गूढ़ कर्म का विधान करके पृथ्वी और स्वर्ग को बल प्राप्ति के लिए अलंकत किया। उन्होंने मात्राओं या मूल तत्वों के द्वारा पृथ्वी और स्वर्ग का परिमाण भी किया। उन्होंने परस्पर मिलिता, विस्तीर्णा और महती द्यावा-पृथ्वी को सङ्गत किया और द्यावा-पृथ्वी के मध्य में धारितार्थ आकाश को स्तापित किया।[ऋग्वेद 3.38.3]
विद्वजनों ने पृथ्वी पर महान कार्य करते हुए पृथ्वी और अम्बर को जल प्राप्ति के लिए सजाया। उन्होंने गूढ़ तथ्यों द्वारा पृथ्वी और स्वर्ग को दृढ़ किया। उन्होंने व्यापक एवं विस्तृत धरा और अम्बर को सुसंगत किया तथा अम्बर और धरा के बीच अंतरिक्ष का स्थापन किया।
The enlightened-learned, scholars (scientists) performed intricate functions to fill the earth & heaven with force (gravitational, electrostatic attraction, centrifugal & centripetal forces). They fixed their relative positions as well. They coordinated the earth and the heaven in respect of limits-boundaries and generated the space-sky between them for communication. 
आतिष्ठन्तं परि विश्वे अभूषञ्ग्र्यो  वसानश्चरति स्वरोचिः।  
महत्तद्वृष्णो असुरस्य नामा विश्वरूपो अमृतानि तस्थौ
समस्त कवियों ने रथ पर बैठे इन्द्र देव को विभूषित किया। स्वभावतः दीप्तिमान् इन्द्र दीप्ति से आच्छादित होकर स्थित हैं। अभीष्टवर्षी और उग्रकर्मा इन्द्रदेव की कीर्त्ति अद्भुत है। विश्वरूप धारित करके वे अमृत में अवस्थित है।[ऋग्वेद 3.38.4]
समस्त मेधावीजनों के रथ में विराजमान इन्द्रदेव को सजाया। अपने स्वभाव से ही तेजवान इन्द्र प्रकाशित हुए सुस्थित हैं। इच्छाओं की वर्षा करने वाले उग्रकर्मा इन्द्र विचित्र ऐश्वर्य वाले हैं। वे विश्वरूप को धारण करते तथा अमृत्व में व्याप्त हैं।
The intelligentsia decorated Indr Dev in his charoite. Naturally Indr Dev is seated with radiance. The glory of accomplishment-desires fulfilling, performing dangerous jobs Indr Dev is  amazing-wonderful. He assumes the shape & size of the universe and pervade in the nectar-elixir.
The intelligentsia ornamented Indr Dev standing in his charoite and, clothed in beauty, he proceeds self-radiant; wonderful are the acts of that showerer of benefits, the influencer of consciences, who omni form, presides over the ambrosial waters-nectar-elixir.
असूत पूर्वो वृषभो ज्यायानिमा अस्य शुरुधः सन्ति पूर्वीः।
दिवो नपाता विदथस्य धीभिः क्षत्रं राजाना प्रदिवो दधाथे
हे अभीष्टवर्षक! सदा रहने वाले और सर्वश्रेष्ठ इन्द्र देव ने जल-सृष्टि की है। इस प्रभूत जल ने उनकी प्यास बुझाई। स्वर्ग के पौत्र स्वरूप और शोभायमान इन्द्र और वरुण द्युतिमान् यज्ञकर्ता की प्रार्थना से लाभ योग्य धन हमारे लिए धारित करते है।[ऋग्वेद 3.38.5]
इच्छाओं की वर्षा करने वाले, पुराने तथा सर्वोत्कृष्ट इन्द्र देव ने जलों को रचित किया। रचित हुए जल ने उनकी पिपासा का निवारण किया। स्वर्ग के पौत्र रूपी, सुशोभित इन्द्र और वरुण दोनों तेजस्वी वंदनाकारी के पूजन से हमारे लिए सुखकारी अन्न धारण करते हैं।
Desires encouraging-increasing, promoting excellent Indr Dev creating-generating water. This water quenched his thirst. Radiant-aurous Indr Dev & Varun Dev, who are like grand son of the heaven support-sustain food grains for us. 
त्रीणि राजाना विदथे पुरूणि परि विश्वानि भूषथः सदांसि।
अपश्यमत्र मनसा जगन्वान्व्रते  गन्धर्वां अपि वायुकेशान्
राजा इन्द्र और वरुण व्यापक और सम्पूर्ण सवन-त्रय को इस यज्ञ में अलंकृत करें। हे इन्द्र देव! आप यज्ञ में गए थे; क्योंकि मैंने इस यज्ञ में वायु के तुल्य केश विशिष्ट गन्धर्वों को भी देखा।[ऋग्वेद 3.38.6]
हे इन्द्र देव! वरुण व्यापक और सम्पूर्ण तीनों सदनों को इस यज्ञ में शोभित करो। हे इन्द्रदेव! तुम जिस यज्ञ में विराजमान हुए थे, वहाँ मैंने पवन के समान विशिष्ट केश वाले गंधर्वो के दर्शन किये थे।
Hey Indr Dev & Varun Dev! Glorify-embellish the three segments of the day in this Yagy. Hey Indr Dev! You visited the Yagy, where are I saw the the Gandharvs, waving their hair lock like the Vayu-Pawan Dev. 
तदिन्न्वस्य वृषभस्य धेनोरा नामभिर्ममिरे सक्म्यं गोः।
अन्यदन्यदसूर्य १ वसाना नि मायिनो ममिरे रूपमस्मिन्
जो याजकगण लोग अभीष्टदाता इन्द्र के लिए गौओं के भोग योग्य हव्य को शीघ्र दुहते हैं, जिनके अनेक नाम हैं, उन्होंने नवीन असुर बल को धारित करते हुए एवं माया को विकसित करते हुए अपने-अपने रूप को इन्द्र देव को समर्पित किया।[ऋग्वेद 3.38.7]
इच्छाओं की वृष्टि करने वाले इन्द्र देव के लिए जो यजमान हवि योग्य रस को धेनुओं से दोहन करते हैं तथा जिन यजमानों के बहुत से नाम हैं, वे नये पराक्रम धारण कर अपने कर्मों को इन्द्र देव के लिए समर्पित करते हैं।
The Ritviz-devotees with various names, who milk the offerings (milk, cud, Ghee, cheese) good enough to be sacrificed in the Yagy, from the cows for the sake of Indr Dev who accomplish their desires, perform glorious deeds for Indr Dev.
तदिन्न्वस्य सवितुर्नकर्मे हिरण्ययीममतिं यामशिश्रेत्।
अ सुष्टुती रोदसी विश्वमिन्वे अपीव योषा जामानि वव्रे
सूर्य की स्वर्णमयी दीप्ति की कोई सीमा या तुलना नहीं कर सकता। इस दीप्ति के जो आश्रय है, उत्तम स्तुति द्वारा प्रार्थित होकर जिस प्रकार से माता सन्तान का आलिङ्गन करती है, उसी प्रकार सर्व व्यापक द्यावा-पृथ्वी को आलिङ्गित करते हैं।[ऋग्वेद 3.38.8]
सूर्य का स्वर्णमय प्रकाश असीमित है। जो इस आकाश के आश्रयभूत हैं, वे उत्तम प्रार्थनाओं द्वारा प्रशंसित होते हुए जननी द्वारा संतान का आलिंगन करने के समान सर्व व्याप्त आसमान धरती का आलिंगन करते हैं।
None can compare-compete with the brilliance of the Sun. He sustain the sky & the earth, like the mother who hug her progeny, having been worshiped-prayed with excellent sacred hymns.
युवं प्रत्नस्य साधथो महो यद्दैवी स्वस्तिः परि णः स्यातम्।
गोपाजिह्वस्य तस्थुषो विरूपा विश्वे पश्यन्ति मायिनः कृतानि
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों प्राचीन स्तोता का कल्याण करो अर्थात् उनको स्वर्गीय मङ्गल रूप श्रेय प्रदान करें। हमें चारों ओर से बचायें। इन्द्र देव की जीभ सबको अभय प्रदान करती है। इन्द्र स्थिर हैं। समस्त मायावी लोग उनकी नाना प्रकार की कीर्त्तियाँ देखते हैं।[ऋग्वेद 3.38.9]
हे इन्द्र और वरुण! प्राचीन श्लोक उच्चारण करने वाले का कल्याण करो। हमारी सब ओर से सुरक्षा करो।। इन्द्र देव की जिह्वा रूप वाणी सभी को कोमल बनाती है। इन्द्रदेव स्थिर मन वाले हैं। उनके विविध कर्मों को सभी मेधाविजन देखते हैं।
Hey Indr & Varun Dev! Both of you perform the welfare of the devotees who have been reciting hymns for long. Protect us from all directions-sides. The voice-speech of Indr Dev console-sooth every one assuring asylum-protection. The innerself of Indr Dev is calm, composed, at peace. All elusive-illusionary people-demons see (are afraid of) his various glorious deeds-acts.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न-लाभकर्ता यज्ञ-युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य से युक्त नेतृश्रेष्ठ, स्तुति श्रवणकर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु संहारक और धन-विजेता हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.38.10] 
हे इन्द्र देव! तुम अन्न लाभ वाले युद्ध में उत्साहपूर्वक वृद्धि को प्राप्त होते हैं। तुम धन और ऐश्वर्य से युक्त नेताओं में उत्तम वेदना श्रवण करने वाले, उग्र, युद्धभूमि में शत्रुओं का नाश करने वाले और धन को विजय करने वाले हों। आश्रय प्राप्ति हेतु तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You grow in the Yagy-war with great zeal, in which the food grain is obtained. You are a great  leader, a great listener, furious, destroyer of the enemy, winner of wealth, possessing grandeur. We invoke for the sake of asylum, protection, shelter.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप, पंक्ति।
इन्द्रं मतिर्हृद आ वच्यमानाच्छा पतिं स्तोमतष्टा जिगाति।
या जागृविर्विदथे शस्यमानेन्द्र यत्ते जायते विद्धि तस्य
हे इन्द्र देव! आप संसार के स्वामी हैं। हृदय से उच्चारित और स्तोताओं द्वारा सम्पादित स्तोत्र जब आपके समक्ष जाता है। तब आपको जगाकर यज्ञ में जो प्रार्थना कही जाती है और जो मुझी से ही उत्पन्न हैं, उसे आप जानें।[ऋग्वेद 3.39.1]
हे इन्द्र! तुम संसार के दाता हो। हृदय से निकले हुए तथा वंदना करने वालों के द्वारा सम्पादन किये हुए स्तोत्र तुम्हारे सम्मुख उपस्थित होते हैं। जो प्रार्थना मेरे द्वारा उत्पन्न है और तुम्हें चैतन्य कर यज्ञ में उच्चारण की जाती है, उसे ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! You are the master of this universe. The Strotr-prayers, hymns emerged out of the innerself of the worshipers composed by me, wake you up, make you conscious.
दिवश्चिदा पूर्व्या जायमाना वि जागृविर्विदथे शस्यमाना।
भद्रा वस्त्राण्यर्जुना वसाना सेयमस्मे सनजा पित्र्या धीः
हे इन्द्र देव! सूर्य से भी पहले उत्पन्न जो प्रार्थना यज्ञ में उच्चारित होकर आपको जगाती है, वह प्रार्थना कल्याणकारी शुभ्र वस्त्र धारित करके हमारे पितरों के पास से ही आगत और सनातन है।[ऋग्वेद 3.39.2]
हे इन्द्र देव! जो प्रार्थना सूर्य उदय होने से भी पहले रचित होकर यज्ञ में उच्चारण की जाती हुई, तुम्हें चैतन्य करती है, वह कल्याण करने वाली उज्जवल प्रार्थना हमारे पुरखों से ग्रहण होने वाली सनातन है।
Hey Indr Dev! The prayers which awake-make you conscious, sung prior to Sun rise are ancient-eternal and arise from the manes wearing white cloths. 
यमा चिदत्र यमसूरसूत जिह्वाया अग्र पतदा ह्यस्थात्।
वपूंषि जाता मिथुना सचेते तमोहना तपुषो बुध्न एता
यमक पुत्रों की माता ने उन्हें उत्पन्न किया। उनकी प्रशंसा करने के लिए मेरी जीभ का अगला भाग नृत्य कर रहा है। अन्धकार नाशक दिन के आदि में आगत मिथुन (जोड़ा) जन्म के साथ ही प्रार्थना में मिलता है।[ऋग्वेद 3.39.3]
अश्विदय की जननी ने उन्हें जन्म दिया, उनकी स्तुति के लिए मेरी जीभ का अग्रभाग चंचल हो उठा है। तम का विनाश करने वाले दिवस के प्रारम्भ में आते हुए दोनों प्रार्थनाओं से सुसंगति करती है। 
The mother of Ashwani Kumars gave them birth. The front portion of my tongue is dancing to appreciate them. With the removal of darkness-day break both of them involve in recitation of prayers-worship.
नकिरेषां निन्दिता मर्त्येषु ये अस्माकं पितरो गोषु योधाः। 
इन्द्र एषां दृंहिता माहिनावानुद्गोत्राणि ससृजे दंसनावान्
हे इन्द्र देव! हमारे जिन पितरों ने गोधन के लिए युद्ध किया, उनका पृथ्वी पर कोई भी निन्दक नहीं है। महिमा और कीर्त्ति वाले इन्द्र देव ने अङ्गिरा लोगों को समिद्ध गोवृन्द प्रदत्त किए।[ऋग्वेद 3.39.4]
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट; detractor, slanderer, satirical.
हे इन्द्र देव! गौधन प्राप्ति के लिए युद्ध करने वाले हमारे पितरों की धरा पर कोई निन्दा नहीं करता। अंगिराओं को समृद्धिवान, यशस्वी इन्द्र देव ने समृद्ध गोधन प्रदान किया।
समृद्धि :: प्रफुल्लता, ख़ुशहाली, सफलता, कुशल, सौभाग्य, श्री, संपन्नता, धन, प्रचुरता, श्री; prosperity, affluence, flourishing.
Hey Indr Dev! No one is critical, satirical about the Pitre-Manes over the earth, who fought for the cows.  Affluent, glorious-honourable Indr Dev provided a lot of cows to Angiras. 
सखा ह यत्र सखिभिर्नवग्वैरभिज्ञ्वा सत्वभिर्गा अनुग्मन्।
सत्यं तदिन्द्रो दशभिर्दशग्वैः सूर्यं विवेद तमसि क्षियन्तम्
अङ्गिरा लोगों के मित्र इन्द्र देव जिस समय घुटने के ऊपर जोर देकर गोधन की खोज में गए, उस समय अङ्गिरा लोगों के साथ अन्धकार में छिपे सूर्य को देख सके।[ऋग्वेद 3.39.5]
अंगिराओं के सखा इन्द्रदेव जब घुटने के बल से गोधन की खोज में पर्वत पर चढ़े तब उन अंगिराओं ने अंधेरे में छिपे सूर्य के दर्शन कर लिए।
When Indr Dev, a friend of Angiras climbed the mountain stressing over his keens, in search of cows, Angiras saw Sun hidden in darkness along with others.
इन्द्रो मधु संभृतमुस्त्रियायां पद्वद्विवेद शफवन्नमे गोः। 
गुहा हितं गुह्यं गूळ्हमप्सु हस्ते दधे दक्षिणे दक्षिणावान्
इन्द्र ने प्रथम दुग्धदायी धेनुओं पर मधु सिञ्चित किया; पश्चात् चरण और खुर से युक्त धन ले आए। उदारचेता इन्द्र ने गुहामध्यस्थित, प्रच्छन्न और अन्तरिक्ष में छिपे मायावियों को अपने दायें हाथ से पकड़ा।[ऋग्वेद 3.39.6]
इन्द्रदेव ने प्रथम दूध देने वाली गायों पर मधुर रस सींचा, फिर चरण और खुर से युक्त उस गोधन को ले आए। गुफा में स्थिर, अंतरिक्ष में छिपे हुए मायामय दानव को इन्द्रदेव ने दायें हाथ द्वारा पकड़ लिया।
Initially Indr Dev, fed the milch cows with honey & then he brought the cows having legs & hoofs. Thereafter, Indr held the elusive demons hidden in the middle of the cave and the space.
ज्योतिर्वृणीत तमसो विजानन्नारे स्याम दुरितादभीके। 
इमा गिरः सोमपाः सोमवृद्ध जुषस्वेन्द्र पुरुतमस्य कारोः
रात्रि से ही उत्पन्न होकर इन्द्र देव ने ज्योति धारित की। हम पाप से दूर भयशून्य स्थान में रहेंगे। हे सोमपा और सोम पुष्ट इन्द्र देव! बहुस्तोम विनाशक और स्तोत्रकारी की इस प्रार्थना का सेवन करें।[ऋग्वेद 3.39.7]
इन्द्र देव ने रात्रि के गर्भ से उत्पन्न होकर प्रकाश धारण किया। हम पाप रहित तथा निर्भय स्थान में रहने की कामना करते हैं। हे सोम पायी इन्द्र देव! तुम वंदना करने वाले की इस प्रार्थना को स्वीकृत करो। 
धारण :: प्रतिधारण, ग्रहण, प्रतिकूल कब्ज़ा, holding, retention, assumption, hostile possession.
Indr Dev emerged out of night-darkness and possessed aura-glow, light. We will reside in a place free from fear & sins. Hey Somras drinking Indr Dev! Accept our prayer which can vanish destroy-destructions. 
ज्योतिर्यज्ञाय रोदसी अनु  ष्यादारे स्याम दुरितस्य भूरेः। 
भूरि चिद्धि तुजतो मर्त्यस्य सुपारासो वसवो बर्हणावत्
यज्ञ के लिए सूर्य द्यावा-पृथ्वी को प्रकाशित करें। हम प्रभूत पाप से दूर रहेंगे। हे वसुओं! स्तुति द्वारा आपको अनुकूल किया जा सकता है। प्रभूत और समृद्ध धन को प्रभूत दानशील मनुष्य को प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 3.39.8]
अनुष्ठान हेतु अम्बर और धरा को सूर्य प्रकाशमान करे। हम पाप से दूर रहने की कामना करते हैं। हे वसु देवों! तुम प्रार्थना के द्वारा अनुकूल होते हो। इस धन को उदार दानी मनुष्य के लिए प्रदान करो।
Let the Sun shine the earth and the space-heavens for conducting Yagy. Hey Vasus! You can be moulded by requests-prayers. Distribute this money-wealth amongest the deserving humans, who will use for donations-charity. 
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं घनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न-प्राप्ति कर्ता युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य सम्पन्न, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रवणकर्ता, उग्र, संग्राम में शत्रु नाशक और धन विजेता है। आश्रय प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.39.9]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न लाभ वाले युद्ध में हर्ष पूर्वक बढ़ते हो, धन और यश से युक्त, नेताओं में उत्तम, स्तुति श्रवण करने वाले, उग्र युद्ध भूमि में तुम शत्रुओं का संहार करने वाले तथा धन को विजय करने वाले हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You obtain food grains, fight war with courage and destroy the enemy, winner & possessor of riches-wealth, grandeur, recite & listen to prayers-Stuti. We seek-invoke you for shelter, asylum, protection under you.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- गायत्री ।
इन्द्र त्वा वृषभं वयं सुते सोमे हवामहे। स पाहि मध्वो अन्धसः 
हे इन्द्र देव! आप अभीष्टपूरक हैं। अभिषुत सोमपान के लिए हम आपको बुलाते हैं। मद कारक और अन्न मिश्रित सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.40.1]
मद :: नशा, निंदनीय अहंकार, गर्व, उन्मत्तता, पागलपन, मतिभ्रम, मस्ती, मद्य, शराब; intoxicating.
मस्ती :: नशा, मदहोशी, खुमार, अर्द्धोन्मत्तता, बेसुधपन, गंदापन, मस्ती, पंकिलता, क्रमहीनता, बेढ़ंगापन; fun, inebriation, slobbery, sloppiness.हे इन्द्र देव! तुम इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हो। इस संस्कारित सोम के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। आनन्ददायक अन्न मिश्रित सोम का पान करो।
INTOXICATING :: alcoholic drink or a drug liable to cause someone to lose control of their faculties or behaviour, inebriating, spirituous, spiritous
vinous, exhilarating or exciting, rousing, stirring, stimulating, invigorating, electrifying, inspiring.
Hey Indr Dev! You accomplish the desires. We invite you to drink-enjoy the Somras extracted by us. This Somras mixed with food grains (wheat, barley, Sorghum vulgare-ज्वारgives fun-pleasure, intoxication-inebriation.
Little quantity of wine, Ethyl Alcohol may help but large dozes are intoxicating. Somras is not wine.
इन्द्र क्रतुविदं सुतं सोमं हर्य पुरुष्टुत। पिबा वृषस्व तातृपिम्
हे बहुजन स्तुत इन्द्र देव! यह अभिषुत सोमरस बुद्धि वर्द्धक है। इसे पान करने की अभिलाषा को प्रकट करें और इस तृप्ति कारक सोमरस से जठर का सिञ्चन करें।[ऋग्वेद 3.40.2]
हे इन्द्र देव! तुम अनेकों द्वारा वंदित किये गये हो। यह छाता हुआ सोमरस बुद्धि की वृद्धि करने वाला है। इसे पान करने की इच्छा प्रकट करते हुए इस तृप्त करने वाले सोम से अपने उदर को सींचो।
Worshiped by majority, hey Indr Dev! This Somras boosts intelligence. Drink this Somras, which grant satisfaction as per your wish. 
इन्द्र प्रणो धितावानं यज्ञं विश्वेभिर्देवेभिः। तिर स्तवान विश्पते
हे स्तूयमान, मरुत्पति इन्द्र देव! सम्पूर्ण यजनीय देवों के साथ आप हमारे इस हवि वाले यज्ञ में हवि स्वीकार कर इस यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.40.3]
हे मरुतों के स्वामी इन्द्र सभी पूजन योग्य देवगणों के साथ हमारे इस हव्य युक्त यज्ञ की भली-भाँति वृद्धि करो।
Hey praiseworthy, leader of the Marud Gan, Indr Dev! Join our Yagy with the demigods-deities and complete it by accepting-making offerings.
इन्द्र सोमाः सुता इमे तव प्र यन्ति सत्यते। क्षयं चन्द्रास इन्दवः
हे सत्पति इन्द्र देव! हमारे द्वारा प्रदत्त, आह्लादक, दीप्त, अभिषुत सोमरस आपके जठर देश में जा रहा है। इसे धारित करें।[ऋग्वेद 3.40.4]
हे सत्य के स्वामी इन्द्रदेव! हमारे द्वारा दिया गया प्रसन्न मुख तेज से परिपूर्ण निष्यन्न सोम तुम्हारे पेट में प्रविष्ट हो रहा है। इसे धारण करो।
Hey truthful Indr Dev! Somras offered by us happily, aurous is entering your stomach. Bear it.
दधिष्वा जठरे सुतं सोममिन्द्र वरेण्यम्। तव द्युक्षास इन्दवः
हे इन्द्र देव! यह अभिषुत सोमरस सभी के द्वारा वरणीय है। इसे आप अपने जठर में धारित करें। यह सब दीप्त सोमरस आपके साथ द्युलोक में रहता है।[ऋग्वेद 3.40.5]
हे इन्द्र देव! यह निष्यत्र सोम सभी के लिए वरण करने योग्य है। इसे अपने उदर में रखो। यह अत्यन्त उज्जवल सोमरस तुम्हारे साथ स्वर्ग में वास करता है।
Hey Indr Dev! This Somras extract deserve to be accepted by all. Store-stock it in your stomach. This extremely pure, aurous-bright Somras stays in heavens, with you. 
गिर्वणः पाहि नः सुतं मधोर्धाराभिरज्यसे। इन्द्र त्वादातमिद्यशः
हे स्तुति के योग्य इन्द्र देव! मदकारक सोम की धारा से आप प्रसन्न होते हैं; अतः हमारे अभिषुत सोमरस का पान करें। आपके द्वारा वर्द्धित अन्न ही हम लोगों को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 3.40.6]
हे इन्द्र देव! तुम पूजा के योग्य हो। तुम आह्वान योग्य सोम की धारा से प्रसन्न होते हो। हमारे इस प्रसिद्ध सोम को ग्रहण करो। तुम्हारे द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुआ अन्न हमको प्राप्त होता है। 
Hey worship deserving Indr Dev! You become happy by the stimulating, invigorating, electrifying, inspiring Somras. The food grains offered by us are accepted by you. 
अभि द्युम्नानि वनिन इन्द्रं सचन्ते अक्षिता। पीत्वी सोमस्य वावृधे 
देव याजकों की द्युतिमान्, क्षय रहित सोम आदि सम्पूर्ण हवि इन्द्र देव के अभिमुख जाती है। सोमरस का पान कर इन्द्रदेव वर्द्धित होते हैं।[ऋग्वेद 3.40.7]
देवगणों का यज्ञ करने वालों की उज्जवल, अक्षुण्ण, सोम युक्त हवियाँ इन्द्र के समक्ष उपस्थित होती हैं। इन्द्र देव की सोम पीने से वृद्धि होती है।
Indr Dev grows-progress by the energetic imperishable Somras and the offerings made by the devotees-Ritviz. 
अर्वावतो न आ गहि परावतश्च वृत्रहन्। इमा जुषस्व नो गिरः
हे वृत्र विदारक इन्द्र देव! निकटतम प्रदेश से या अत्यन्त दूर देश से हमारी ओर पधारें। हमारी इस स्तुति-वाणी को आकर ग्रहण करें।[ऋग्वेद 3.40.8]
हे इन्द्र देव! तुमने वृत्र का शोषण किया था। तुम पास या दूरस्थ कहीं भी हो, वहीं से हमारी और आते हुए हमारी प्रार्थना को स्वीकार करो। 
Hey slayer of Vratr, Indr Dev! Accept our prayers and come to us from the distant or near place.
यदन्तरा परावतमर्वावतं च हूयसे। इन्द्रेह तत आ गहि
हे इन्द्र देव! यद्यपि आप अत्यन्त दूर देश, निकटतम प्रदेश और बीच भाग देश में आहूत होते हैं; फिर भी सोमपान के लिए इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 3.40.9]
हे इन्द्र देव! तुम दूर, निकट, या मध्य भाग में लाये जाते हो। तुम इस यज्ञ में सोमपान करने के लिए पधारो।
Hey Indr dev!  Though you are present at a far away-distant place, yet come to us for drinking Somras in our Yagy.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- गायत्री।
आ तू न इन्द्र मद्र्यग्घुवानः सोमपीतये। हरिभ्यां याह्यद्रिवः
हे वज्रधर इन्द्र देव! होताओं के द्वारा आहूत होने पर हमारे पास यज्ञ में आप सोमपान के लिए हरि नामक घोड़ों के साथ शीघ्र आवें।[ऋग्वेद 3.41.1]
हे वज्रिन! होताओं द्वारा पुकारे जाने पर हमारे इस अनुष्ठान में अपने अश्वों से युक्त सोमपान हेतु पधारो।
Hey Vajr wielding-holding Indr Dev! Come to the Yagy quickly, to accept Somras offered by the Ritviz-organisers of Yagy, along with your horses named Hari.
सत्तो होता न ऋत्वियस्तिस्तिरे बहिरानुषक्। अयुञ्जन्प्रातरद्रयः
हमारे यज्ञ में यथा समय ऋत्विज होता आपको बुलाने के लिए बैठे हैं। कुश परस्पर सम्बद्ध करके बिछा दिए गए हैं। प्रात: सवन में सोमाभिषेक के लिए प्रस्तर सब भी परस्पर सम्बद्ध किये हुए हैं, इसलिए सोमपान के लिए आये।[ऋग्वेद 3.41.2]
हे इन्द्र देव! ऋत्विक होता तुम्हारे आह्वान के लिए हमारे अनुष्ठान में पधारे हैं। एक-दूसरे से मिलाकर कुश बिछाये गये हैं। सेवेरे सवन में सोम सिद्ध हेतु पाषाण भी प्रस्तुत हैं। इसलिए सोमपान के लिए पधारो।
The Ritviz-Hota (organisers of Yagy) are ready to invoke you. The Kush Mat have been laid by connecting them together.  The stones too have been joined together for the morning session (of Yagy) of Somabhishek-extracting Somras.
इमा ब्रह्म ब्रह्मवाहः क्रियन्त आ बर्हिः सीद। वीहि शूर पुरोळाशम् 
हे स्तुति लभ्य इन्द्र देव! हम आपको प्रार्थना करते है, अत: इस यज्ञीय कुश पर बैठें। हे शूर हमारे द्वारा प्रदत इस पुरोडाश का भक्षण करें।[ऋग्वेद 3.41.3]
हे इन्द्र देव! तुम वंदना द्वारा प्राप्त होओ। तुम वीर हो, हमारे द्वारा दिये गये पुरोडाश का सेवन करो।
Hey Indr Dev, available through prayers-worship! Sit over this Kush Mat meant for he Yagy.  Hey brave-mighty, eat this cookie made of barley flour, prepared by us.
रारन्धि सवनेषु पण एषु स्तोमेषु वृत्रहन्। उक्थेष्विन्द्र गिर्वणः
हे स्तुति पात्र और वृत्रहन्ता इन्द्रदेव! हमारे के तीनों सवनी में किये गये स्तोत्रों और उकथों में रमण करें।[ऋग्वेद 3.41.4] 
उकथ ::  कथन, उक्ति, स्तोत्र, सूक्ति, साम-विशेष, प्राण, ऋषभक नाम की औषधि।
हे इन्द्र देव! तुम वृत्र का संहार करने वाले और स्तुति के योग्य हो। हमारे यज्ञ में सवन त्रय में उच्चारित प्रार्थनाओं में प्राप्त हो जाओ।
Hey worship deserving slayer of Vratr, Indr Dev! You should be present-available in the three parts of the day (morning, midday & evening), for our prayers-worship, Yagy.
मतयः सोमपामुरुं रिहन्ति शवसस्पतिम्। इन्द्रं वत्सं न मातरः 
महान सोमपायी और बलपति इन्द्र देव को स्तुतियाँ उसी प्रकार चाटती है, जिस प्रकार से गौ बछड़े को चाटती है।[ऋग्वेद 3.41.5] 
सोम पान करने वाले, बलदाता, श्रेष्ठ इन्द्र को गौओं द्वारा बछड़ों को चाटने के समान स्तुतियाँ चाटती हैं।
Prayers, hymns lick great Somras drinking & mighty Indr Dev, just like the cows lick their calf.
स मन्दस्वा ह्यन्धसो राधसे तन्वा महे। न स्तोतारं निदे करः
हे इन्द्र देव! प्रभूत धन दान के लिए सोमरस के द्वारा आप शरीर को प्रसन्न करें, परन्तु मुझ स्तोता की निन्दित मत करें।[ऋग्वेद 3.41.6] 
निन्दा :: बुराई करना, लानत, कलंक, धिक्कार, शाप, फटकार, गाली, तिरस्कार, परिवाद, भला-बुरा कहना; blasphemy, reproach, damn, reprehension, taunt, decry. 
हे इन्द्र देव! धन प्रदान करने के लिए इस सोम के द्वारा अपनी देह को पुष्ट करो।मुझसे वंदना करने वाले की कभी निन्दा न हो।
Hey Indr Dev!  Nourish your body to make donations-charity by drinking this Somras. I should not reproach those who pray-worship you.
वयमिन्द्र त्वायवो हविष्मन्तो जरामहे। उत त्वमस्मयुर्वसो
हे इन्द्र देव! हम आपको इच्छा करते हुए हवि से युक्त होकर आपकी प्रार्थना करते हैं। हे सभी के आश्रय दाता इन्द्र देव! आप भी हवि के स्वीकारणार्थ हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.41.7]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारी इच्छा करते हुए हवि से परिपूर्ण प्रार्थना करते हैं। तुम हवि प्राप्त करने के समान हमारी सुरक्षा करो।
Hey Indr Dev! We make offerings with the wish-desire to attain you. Hey savoir-protector of all protect us.
मारे अस्मद्वि मुमुचो हरिप्रियार्वाड् याहि। इन्द्र स्वधावी मत्स्वेह
हे हरि अश्व प्रिय! हमसे दूर देश में घोड़ों को रथ से मत खोलो। हमारे निकट आयें। हे सोमवान इन्द्रदेव! आप इस यज्ञ में हर्षित बनें।[ऋग्वेद 3.41.8]
हे इन्द्र देव! तुम अपने अश्वों से प्यार करते हो। अश्वों को हमसे दूर खोलो। हमारे समीप आओ। इस यज्ञ में सोम से आनंद प्राप्त करो।
Hey Hari named horses, loving Indr Dev! Come to us, do not release the horses. Hey Somras enjoying Indr Dev! Enjoy this Yagy.
अर्वाञ्च त्वा सुखे रथे वहतामिन्द्र केशिना। घृतस्नू बहिरासदे
हे इन्द्र देव! जल से युक्त और लम्बे केश वाले यह घोड़े बैठने योग्य कुश के समक्ष आपको सुख पूर्वक रथ पर हमारे पास से आये।[ऋग्वेद 3.41.9] 
हे इन्द्र देव! श्रम के स्वेद-पसीना से युक्त तुम्हारे लम्बे बालों वाले अश्व, तुम्हारे बैठने योग्य इस कुश के आसन के सामने, सुख देने वाले रथ से तुम्हें ले आएँ।
Hey Indr Dev! Let your horses with the hair wet with sweat, come to the Kush Mat in your comfortable charoite.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- गायत्री।
उप नः सुतमा गहि सोममिन्द्र गवाशिरम्। हरिभ्यां यस्ते अस्मयुः 
हे इन्द्र देव! हमारे दुग्ध मिश्रित अभिषुत सोमरस के पास आवें; क्योंकि आपका अश्व-संयुक्त रथ हमारी कामना करता है।[ऋग्वेद 3.42.1]
हे इन्द्र देव! हमारा सोम दुग्ध मिलाया हुआ प्रसिद्ध है। उसके निकट पधारो। तुम्हारा रथ अश्व युक्त हमसे मिलाने की कामना करता है।
Hey Indr Dev! Somras mixed with milk is ready for you. Come riding your charoite to participate-bless us in our Yagy. 
तमिन्द्र मदमा गहि बर्हिःष्ठां ग्रावभिः सुतम्। कुविन्वस्य तृष्णवः 
हे इन्द्र देव! इस सोमरस के पास पधारें। यह पत्थरों पर पीस कर निकाला गया है और कुशों पर रखा गया है। इसका प्रचुर परिमाण में पान करके आप शीघ्र तृप्त होवें।[ऋग्वेद 3.42.2]
हे इन्द्र देव! पाषाण से कूट कर छाना गया यह सोम कुश पर विराजमान है। तुम इसकी निकटकता ग्रहण करो। तम इसे यथेष्ट मात्रा में पान करके तृप्ति को ग्रहण होओ।
Hey Indr Dev! We have extracted Somras for you by crushing Som Valli with stones. Drink it in sufficient quantity and satisfy yourself. 
इन्द्रमित्था गिरो ममाच्छागुरिषिता इतः। आवृते सोमपीतये
इन्द्र देव के लिए कही गई हमारी यह स्तुति-वाणी इन्द्र देव को सोमपानार्थ बुलाने के लिए इस यज्ञ देश से इन्द्र के निकट जावे।[ऋग्वेद 3.42.3]
हमारी वंदना रूप वाणी इन्द्रदेव के लिए उच्चारित होती हुई सोम ग्रहण के लिए इन्द्र का आह्वान करती हुई, यज्ञ स्थान में चलकर इन्द्र का सामीप्य ग्रहण करें।
Let our prayers, chants, hymns attract Indr Dev to this site of Yagy for enjoying Somras. 
इन्द्रं सोमस्य पीतये स्तोमैरिह हवामहे। उक्थेभिः कुविदागमत्
स्तोत्रों और उकथों द्वारा सोमपान के लिए यज्ञ में हम इन्द्र देव को बुलाते हैं। अनेकों बार आह्वान करने पर ही इन्द्र देव यज्ञ में आते हैं।[ऋग्वेद 3.42.4]
स्तोत्रों द्वारा प्रशंसनीय प्रार्थनाओं द्वारा यज्ञ में सोम ग्रहण करने के लिए हम इन्द्र का आह्वान करते हैं। वे अनेक बार आह्वान किये गए इन्द्र हमारे यज्ञ में पधारें।
We invoke Indr Dev by the recitation of Strotr-sacred hymns and prayers to drink Somras in the Yagy. He comes-obelize after making requests several times. 
इन्द्र सोमाः सुता इमे तान्दधिष्व शतक्रतो। जठरे वाजिनीवसो 
हे शतक्रुत इन्द्र देव! आपके लिए सोमरस तैयार है, इसे जठर में धारित करें। आप अन्न धन हैं।[ऋग्वेद 3.42.5]
हे इन्द्रदेव! तम सैकड़ों कार्यों से परिपूर्ण हो। तुम्हारे लिए अनुष्ठान संस्कारित सोम प्रस्तुत है। इसे अपने उदर में धारण करो और हमारे लिए अन्न तथा धन प्रदान करो।
Hey, performer of hundred Yagy, Indr Dev! Somras is ready for you to drink and stoke it in the stomach. Grant us food grains.
विद्मा हि त्वा धनञ्जयं वाजेषु दघृषं करें। अघा ते सुम्नमीमहे
हे कवि इन्द्रदेव! युद्ध में आप शत्रुओं के अभिभव-कर्ता और धन विजेता है। हम आपको ऐसा ही जानते हैं, इसलिए हम आपसे धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 3.42.6]
हे विद्वान, हे इन्द्रदेव! युद्ध भूमि में शत्रुओं को पराजित करने वाले तथा उनके धनों को जीतने वाले हो। ऐसा जानते हुए तुमसे धन माँगते हैं।
Hey enlightened-learned Indr Dev! You defeat the enemy in the war and wealth. We recognise you like this and request you for riches.
इममिन्द्र गवाशिरं यवाशिरं च नः पिब। आगत्या वृषभिः सुतम् 
हे इन्द्र देव! हमारे इस यज्ञ में आकर गव्य मिश्रित तथा यव मिश्रित अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.42.7]
हे इन्द्र! हमारे यज्ञ में आकर यह दूध से मिला हुआ निष्पन्न सोमरस को पियो।
Hey Indr Dev! Join our Yagy and drink Somras mixed with milk.
तुभ्येदिन्द्र स्व ओक्ये सोमं चोदामि पीतये। एष रारन्तु ते हृदि 
हे इन्द्र देव! आपके पीने के लिए ही इस अभिषुत सोमरस को हम आपके जठर में प्रेरित करते हैं। क्योंकि यह सोमरस आपके हृदय को तृप्त करेगा।[ऋग्वेद 3.42.8]
हे इन्द्र देव! इस सुसंस्कारित सोमरस को तुम्हारे ग्रहण करने के लिए ही हम तुम्हारे उदर में प्रवेश करते हैं। इससे तुम्हारा हृदय तृप्त होता हुआ संतुष्टि को ग्रहण करेगा।
Hey Indr Dev! We inspire you to drink this Somras since it will satisfy you.
त्वां सुतस्य पीतये प्रत्न मिन्द्र हवामहे। कुशिकासो अवस्यवः
हे पुरातन इन्द्र देव! हम कुशिक वंशोत्पन्न आपके द्वारा रक्षित होने की इच्छा करते हुए अभिषुत सोमपान के लिए स्तुति वचनों द्वारा आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.42.9] 
हे इन्द्रदेव! तम प्राचीन हो। हम कौशिकवंश ऋषिगण तुम्हारे द्वारा रक्षा साधन ग्रहण करने की इच्छा करते हुए, हम संस्कारित सोम को पीने के लिए सुन्दर प्रार्थना रूप वाणी से तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey ancient-eternal Indr Dev! We the sages born in Kaushik clan desire asylum-shelter, protection under you. We request to drink this Somras extracted by while reciting Shloks.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप
आ याह्यर्वाङुप वन्धुरेष्ठास्तवेदनु प्रदिवः सोमपेयम्। 
प्रिया सखाया वि मुचोप बर्हिस्त्वामिमे हव्यवाहो हवन्ते
हे इन्द्र देव! जूए वाले रथ पर बैठकर आप हमारे पास आवें। यह सोम प्राचीन काल से ही आपके उद्देश्य से प्रस्तुत है, आप अपने प्रियतम सखा स्वरूप अश्व को कुश के निकट खोलें। ये ऋत्विक् सोमपान के लिए आपको बुला रहे हैं।[ऋग्वेद 3.43.1]
हे इन्द्र देव! तुम अपने जुते हुए परिपूर्ण रथ द्वारा हमको प्राप्त होओ। यह प्राचीन समय का सोम तुम्हारे लिए ही तैयार हुआ है। तुम अपने प्रिय मित्र रूप घोड़े को कुओं के निकट खोलो। यह ऋत्विजगण सोमपान के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! Come to us riding your charoite. This Somras is meant for you, ever since. Free your horses, which like dearest friend to you, near the Kush Mat. The organisers-Ritviz are inviting fro drinking Somras.
आ याहि पूर्वीरति चर्षणीराँ अर्य आशिष उप नो हरिभ्याम्। 
इमा हि त्वा मतयः स्तोमतष्टा इन्द्र हवन्ते सख्यं जुषाणाः
हे स्वामी इन्द्र देव! आप समस्त पुरातन प्रजा का अतिक्रमण करके आवें। घोड़ों के साथ यहाँ आकर सोमपान करें, यही हमारी प्रार्थना है। स्तोताओं के द्वारा प्रयुक्त संख्याभिलाषिण स्तुतियाँ आपका आह्वान कर रही हैं।[ऋग्वेद 3.43.2]
हे इन्द्र देव! हे प्रभु! तुम सभी प्राचीन प्राणियों को लांघकर यहाँ आओ। अपने अश्व के साथ यहाँ आकर सोम ग्रहण करो। हमारी इस विनती पर ध्यान दो। यह मित्रता की अभिलाषी वाली प्रार्थनाओं स्तोताओं के मुख से उच्चारण की जाती हुई तुम्हें बुलाती है।
Hey Lord Indr Dev! Come to us discarding-ignoring your ancient populace. We request you to come here along with your horses to drink Somras. The sacred hymns by the worshipers are sung in loud voice in your honour to invoke-invite you.
आ नो यज्ञं नमोवृधं सजोषा इन्द्र देव हरिभिर्याहि तूयम्। 
अहं हि त्वा मतिभिर्जोहवीमि घृतप्रयाः सधमादे मधूनाम्
हे द्योतमान इन्द्र देव! हमारे अन्न वर्द्धक यज्ञ में घोड़ों के साथ आप शीघ्र पधारें। घृत सहित अन्न रूप हवि लेकर हम सोमपान करने के स्थान में आपका स्तुति-द्वारा प्रभूत आह्वान कर रहे हैं।[ऋग्वेद 3.43.3]
हे इन्द्र देव! तुम ज्योर्तिवान हो। हमारे अन्न की वृद्धि करने वाले इस अनुष्ठान में अपने घोड़ों से युक्त शीघ्र पध करो। घृत सहित अन्न से परिपूर्ण हवि युक्त सोम पीने के लिए वंदनाओं द्वारा तुम्हें पुकारते हैं।
Hey aurous-glowing Indr Dev! Join our Yagy meant for growing more food grains, along with your horses. We invite-request you to drink Somras mixed with food grains and Ghee singing hymns-prayers.
आ च त्वामेता वृषणा वहातो हरी सखाया सुधुरा स्वङ्गा। 
धानावदिन्द्रः सवनं जुषाणः सखा सख्युः शृणवद्वन्दनानि
हे इन्द्र देव! सेचन समर्थ, सुन्दर धुरा और शोभन अंग वाले, सखा स्वरूप ये दोनों घोड़े आपको यज्ञभूमि में रथ पर ले जाते हैं। भूँजे जौ से युक्त यज्ञ की सेवा करते हुए मित्र-स्वरूप इन्द्र देव हम स्तोताओं की स्तुतियाँ श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.43.4]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे सेवन कार्य में समर्थ सुन्दर धुरा युक्त दोनों मित्र रूप रमणीय अश्व तुम्हें यज्ञ स्थान को प्राप्त कराते हैं। भुने हुए धान-युक्त सोम का सेवन करते हुए तुम मित्र भाव से हुई स्तुति करने वालों की वंदना सुनो।
Hey Indr Dev! Capable of serving you, possessing beautiful organs, friendly both horses deployed in the charoite having axel, take you to the Yagy site. Like a friend listen to our prayers while making offerings with roasted barley.
कुविन्मा गोपां करसे जनस्य कुविद्राजानं मघवन्नृजीषिन्। 
कुविन्म ऋषिं पपिवांसं सुतस्य कुविन्मे वस्वो अमृतस्य शिक्षाः
हे इन्द्र देव! मुझे सभी का रक्षक बनावें। हे मघवन्, हे सोमवान् इन्द्र देव! मुझे सबका स्वामी बनावें। मुझे अतीन्द्रिय द्रष्टा (ऋषि) बनावें तथा अभिषुत सोम का पानकर्ता बनावें और मुझे अक्षय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.43.5]
हे इन्द्रदेव! मुझे प्राणियों की सुरक्षा करने की सामर्थ्य प्रदान करो। तुम सोम से परिपूर्ण रहते हो, मुझे सभी का आधिपत्य प्रदान करो। मुझे ऋषि बनाओ और सोम को पीने योग्य बनाते हुए, कभी भी क्षय न होने वाला धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Enable me to protect all living beings. Hey Somras possessing Indr Dev let me become lord of all. Enable to become a sage-Rishi capable of seeing future, drink Somras and possessor of imperishable wealth.
आ त्वा बृहन्तो हरयो युजाना अर्वागिन्द्र सधमादो वहन्तु। 
प्र ये द्विता दिव ऋञ्जन्त्याताः सुसंमृष्टासो वृषभस्य मूराः
हे इन्द्र देव! महान् और रथ में संयुक्त हरि नामक मत्त घोड़े आपको हमारे समक्ष ले आवें। कामनाओं के वर्षक इन्द्र देव के अश्व शत्रुओं के विनाशक हैं। इनके हाथों से संस्पृष्ट होने पर वे घोड़े आकाश मार्ग से अभिमुख आते हुए और दिशाओं को द्विधा करते हुए गमन करते हैं।[ऋग्वेद 3.43.6]
हे इन्द्र देव! रथ में जुते हुए श्रेष्ठ अश्व तुम्हें हमारे सम्मुख लाएँ। तुम अभीष्ट वर्षक हो। तुम्हारे अश्व शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं। इन्द्र के हाथों से चलते हुए वह अश्व दिशाओं में घूमते रहते हैं।
Hey Indr Dev! Let, the great horses named Hari, deployed in the charoite, bring you to us. Accomplishment granting Indr Dev's horses are destroyer of he enemy. Driven by Indr Dev, these horses are capable of moving in all directions.  
इन्द्र पिब वृषधूतस्य वृष्ण आ यं ते श्येन उशते जभार। 
यस्य मदे च्यावयसि प्र कृष्टीर्यस्य मदे अप गोत्रा ववर्थ
हे इन्द्र देव! आप सोमाभिलाषी है। आप अभीष्ट फल दायक और प्रस्तर द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करें। सुपर्ण पक्षी आपके लिए सोमरस को लाया है। सोमपान जन्य हर्ष के उत्पन्न होने पर आप शत्रु भूत मनुष्यादि को पातित करते हैं एवं सोमजन्य हर्ष के उत्पन्न होने पर आप वर्षा ऋतु में मेघों को अपावृत करते हैं।[ऋग्वेद 3.43.7]
हे इन्द्र देव! तुम सोम की इच्छा करते हो। तुम इच्छित फल प्रदान करने वाले और पोषण द्वारा सिद्ध किये गये सोमरस को पीने वाले हो। श्येन तुम्हारे लिए सोम लाता है। सोम से रचित खुशी द्वारा तुम शत्रुता करने वाले व्यक्तियों को धराशायी करते हो। 
Hey Indr Dev! You are desirous of drinking Somras. Drink the Somras extracted by crushing with stone, which accomplish desires. Shyen-Suparn bird has brought Somras for you. On being happy by drinking Somras you destroy the humans who are like enemy and condense-shower the clouds during the raining season.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। आप युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान् प्रभूत, ऐश्वर्यवाले, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रवण कर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन विजेता हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.43.8] 
हे इन्द्र देव! तम अन्न लाभ वाले बुद्धि में हर्ष से वृद्धि करते हो। धन और ऐश्वर्य से युक्त नायकों में श्रेष्ठ तथा स्तुतियों को श्रवण करने वाले हो। भयंकर युद्ध में शत्रु का नाश कर धन जीतते हो। सहारा प्राप्त करने के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You collet the food grains and create pleasure in the mind. You possess grandeur, wealth, listen to the excellent prayers, is a great leader, furious & on being encouraged you destroy the enemy, win wealth.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- बृहती
अयं ते अस्तु हर्यतः सोम आ हरिभिः सुतः।
जुषाण इन्द्र हरिभिर्न आ गह्या तिष्ठ हरितं रथम्
हे इन्द्र देव! पत्थरों द्वारा अभिषुत, प्रीति वर्द्धक कमनीय सोमरस आपके लिए है। हरि नामक घोड़ों से युक्त, हरि द्वर्ण रथ पर आप बैठकर हमारे सम्मुख आगमन करें।[ऋग्वेद 3.44.1]
हे इन्द्र! यह सोम पाषाणों से कूटकर सिद्ध किया गया है। यह रति की वृद्धि करने वाला तथा रमणीय सोम तुम्हारे लिए है। तुम घोड़ों से परिपूर्ण रथ पर चढ़कर हमारे सम्मुख पधारो।
Hey Indr Dev! The Somras obtained after crushing with stone, that boosts sexual power-potency, is ready for you. Come riding the charoite called Hari Dwarn in which the horses named Hari are deployed.
Dev Raj Indr is the deity of senses and the sex organs. He regulate the sexual desires, sensuality in the mind. Chandr Dev and Kam Dev along with Rati and Preeti help him. He invited trouble for himself due to lust and lasciviousness. Undue sex drags one to hells and severe punishments.
हर्यन्नुषसमर्चयः सूर्यं हर्यन्नरोचयः।
विद्वांश्चिकित्वान्हर्यश्च वर्धस इन्द्र विश्वा अभि श्रियः
हे इन्द्र देव! सोमाभिलाषी होकर आप उषा की अर्चना करते हैं तथा सोमाभिलाषी होकर आप सूर्य को भी प्रदीप्त करते हैं। हे हरि नामक घोड़ों वाले! आप विद्वान् है, हमारी मनोकामना के ज्ञाता हैं तथा अभिमत फल प्रदान से आप हमारी सम्पूर्ण सम्पत्ति को परिवर्तित करें।[ऋग्वेद 3.44.2]
हे इन्द्रदेव! तुम सोम की कामना वाले होकर सूर्य को प्रकाशवान बनाते हो। हे अश्वयुक्त इन्द्रदेव! तुम बुद्धिमान तथा इच्छाओं को जानने वाले हो। तुम मनवांछित फल देते हो तथा हमारे धन की वृद्धि करते हो।  
Hey Indr Dev! Desirous of Somras you pray to Usha-day break and shine the Sun. Hey enlightened Indr Dev, having horses named Hari! You are aware of desires, fulfil them & increase our wealth.
द्यामिन्द्रो हरिधायसं पृथिवीं हरिवर्पसम्।
अधारयद्धरितोर्भूरि भोजनं ययोरन्तर्हरिश्चरत्
हरिद्वर्ण रश्मि वाले द्युलोक को तथा औषधियों से हरिद्वर्ण वाली पृथ्वी को इन्द्र देव ने धारित किया। हरिद्वर्ण वाली द्यावा-पृथ्वी के बीच में अपने घोड़ों के लिए ये प्रभूत भोजन प्राप्त करते हैं। इन्द्रदेव इसी द्यावा-पृथ्वी के बीच में भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 3.44.3]
हरे वर्ण वाली रश्मियों से परिपूर्ण सूर्य जगत और हरे रंग वाली औषधियों से हरी हुई पृथ्वी को इन्द्र देव धारण करते हैं। हरित रंग वाले अम्बर-पृथ्वी के बीच इन्द्र अपने घोड़े के लिए भोजन लेते हैं तथा इसी अम्बर धरा के बीच विचरण करते हैं।
Indr Dev support the heaven possessing green rays and the earth full of green herbs. His horses gets sufficient food in between the green sky & earth roaming here.
जज्ञानो हरितो वृषा विश्वमा भाति रोचनम्।
हर्यश्वो हरितं धत्त आयुधमा वज्रं बाह्वोर्हरिम्
कामनाओं के पूरक, हरिद्वर्ण वाले इन्द्र देव जन्म ग्रहण करते ही सम्पूर्ण दीप्तिमान् लोकों को प्रकाशित करते हैं। हरि नामक घोड़ों वाले इन्द्र देव हाथों में हरिद्वर्ण आयुध धारित करते हैं। तथा शत्रुओं का प्राण संहारक वज्र धारित करते हैं।[ऋग्वेद 3.44.4]
अभीष्टों का फल प्रदान करने वाले इन्द्र उत्पन्न होते ही सभी लोकों को प्रकाशित करते हैं। हरे अश्वों वाले इन्द्र अपने हाथ में हरे रंग के शस्त्र धारण करते हुए शत्रुओं का विनाश करने वाला वज्र उठाते हैं।
Desires accomplishing Indr Dev possess green aura and fills all abodes with light. He has green coloured horses, hold green coloured arms & ammunition. To eliminate the enemy he hold Vajr which kills them. 
इन्द्रो हर्यन्तमर्जुनं वज्रं शुक्रैरभीवृतम्। 
अपावृणोद्धरिभिरद्रिभिः सुतमुद्रा हरिभिराजत
इन्द्र देव ने कमनीय, शुभ्र, क्षीरादि के द्वारा व्याप्त होने के कारण शुभ्र, वेगवान् और प्रस्तरों द्वारा अभिषुत सोमरस को अपावृत किया। पणियों द्वारा अपहृत गौओं को इन्द्र देव ने अश्वयुक्त होकर गुफा से बाहर निकाला।[ऋग्वेद 3.44.5]
इन्द्र ने उज्ज्वल दूध आदि द्वारा मिश्रित तथा पाषाणों द्वारा निष्पन्न सोम को प्रकट किया। उन्होंने घोड़ों को संग लेकर पणियों द्वारा चुराई गई गौओं को बाहर निकाला था।
Indr Dev drank the Somras extracted by crushing with white coloured stones, striking with speed-force, mixed with milk. He released the cows with the help of horses from the cave, stolen by the Panis.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- बृहती
आ मन्द्रैरिन्द्र हरिभिर्याहि मयूररोमभिः।
मा त्वा के चिन्नि यमन्विं न पाशिनोऽति धन्वेव ताँ इहि
हे इन्द्र देव! मादक और मयूरों के रोमों के सदृश रोमों से युक्त घोड़ों के साथ आप इस यज्ञ में आवें। जिस प्रकार से उड़ते पक्षी को व्याघ्र फाँस लेते हैं, वैसे कोई भी आपके मार्ग में प्रतिबन्धक नहीं हैं। पथिक मरुभूमि को जिस प्रकार से उल्लंघित कर जाते हैं, उसी प्रकार आप भी इन सकल बाधाओं का अतिक्रमण करके हमारे यज्ञ में शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 3.45.1] 
हे इन्द्र देव! मोर के पंखों के समान सोम वाले, अश्वों के तुल्य इस अनुष्ठान स्थल को ग्रहण होओ। जैसे शिकारी उड़ते हुए पक्षियों को फाँस लेते हैं वैसे ही तुम्हारे रास्ते में बाधक बना हुआ तुम्हें न फाँस ले। जिस प्रकार रास्ता चलते यात्री मरुभूमि को पार करते हैं वैसे ही तुम भी सभी उपस्थित बाधाओं को पार कर हमारे अनुष्ठान में शीघ्र विराजमान होओ। 
Hey Indr Dev! Join our Yagy along with the horses having feathers like the peacock. None should be able to catch you like the hunter who catches the flying birds. There should be no obstacle in your way. The way a traveller crosses the arid zones, deserts, you should also successfully over come all hurdles.
ARID ZONE :: शुष्क क्षेत्र, बंजर क्षेत्र, ऊसर क्षेत्र। 
वृत्रखादो वलंरुजः पुरां दर्मो अपामजः। 
स्थाता रथस्य हर्योरभिस्वर इन्द्रो दृळ्हा चिदारुजः
इन्द्र देव वृत्रहन्ता हैं। ये बादलों को विदीर्ण करके जल को प्रेरित करते हैं। इन्होंने शत्रु पुरी को विदीर्ण किया। इन्होंने हमारे समक्ष दोनों घोड़ों को चलाने के लिए रथ पर आरोहरण किया तथा इन्द्र देव ने बलवान् शत्रुओं को नष्ट किया।[ऋग्वेद 3.45.2]
इन्द्र देव वृत्र को मारकर बादलों को चीरकर जल को गिराते हैं। उन्होंने शत्रु के नगरों को नष्ट किया है। इन्द्र देव अश्वों को चलाने के लिए हमारे सम्मुख ही रथ पर आरूढ़ हुए हैं। इन्हीं इन्द्र देव ने शक्तिशाली शत्रुओं को मार दिया है।
Indr Dev is the slayer of Vratr. He tear the clouds and shower rains. He destroyed the cities of the enemy. He rode the charoite in front of us to move the horses and destroy the mighty enemies. 
गम्भीराँ  उदधींरिव क्रतुं पुष्यसि गाइव।
प्र सुगोपा यवसं धेनवो यथा ह्रदं कुल्या इवाशत
हे इन्द्र देव! साधु गोपगण जिस प्रकार से गौओं को यव आदि खाद्य पदार्थों से पुष्ट करते है, महावकाश समुद्र को जिस प्रकार आप जल द्वारा पुष्ट करते हैं, उसी प्रकार यज्ञ करने वाले, इस याजकगण को भी आप अभिमत फल प्रदान करके सन्तुष्ट करें। धेनुगण जैसे तृणादि को और छोटी सरिताएँ जैसे महाजलाशय को प्राप्त करती हैं, उसी प्रकार यज्ञीय सोमरस आपको प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.45.3]
हे इन्द्र देव! जैसे साधु और ग्वाले अपनी धेनुओं को जौं आदि खाद्य पदार्थों द्वारा पोषण करते हैं तथा तुम जैसे जल द्वारा गंभीरतम समुद्र को पूर्ण करते हो, वैसे ही अनुष्ठान कर्मानुष्ठान में इस यजमान को भी उसका इच्छित फल प्रदान करके पुष्ट करो। जैसे धेनु घास आदि को ग्रहण करती है तथा छोटी नदियाँ विशाल जलाशयों को ग्रहण करती हैं, वैसे ही अनुष्ठान में संस्कारित सोम तुम्हें प्राप्त करता है। 
Hey Indr Dev! The manner in which the sages and the cow herd grazers feed the cows with nourishing food, the ocean is filled with water you should satisfy the Ritviz conducting the Yagy. The way the cows get straw & grass, the small river lets reach ocean, Somras in the Yagy should also reach you. 
आ नस्तुजं रयिं भरांशं न प्रतिजानते।
वृक्षं पकं फलमङ्कीव धूनुहीन्द्र संपारणं वसु
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार से व्यवहारज्ञ पुत्र को पिता अपने धन का भाग दे देता है, उसी प्रकार शत्रुओं को परास्त करने वाला धनवान पुत्र हमें प्रदान करें। पके फलों के लिए जैसे अङ्कुश वृक्ष को चालित कर देता है, उसी प्रकार आप हमारी इच्छा को पूर्ण करने वाला धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.45.4]
हे इन्द्र देव! जैसे पिता अपने व्यवहार कुशल पुत्र को धन देता है, वैसे ही शत्रुओं को जीतने में समर्थ प्राप्ति योग्य धन तुम हमें प्रदान करो। जैसे पके फलों को अंकुशाकार टेढ़ा बांस झाड़कर गिरा देता है, वैसे ही हमारी कामना पूर्ण करने वाला फल दो।
Hey Indr Yagy! The way a father grants his wealth to his son, well versed with dealings in daily life with others. Grant us a son who can defeat the enemy. The way a hook falls the ripe fruits from the tree, you should also accomplish our desires of attaining wealth.
स्वयुरिन्द्र स्वराळसि स्मद्दिष्टिः स्वयशस्तरः।
स वावृधान ओजसा पुरुष्टुत भवा नः सुश्रवस्तमः
हे इन्द्र देव! आप धनवान् हैं, स्वर्ग के राजा हैं, सुवचन हैं और प्रभूत कीर्त्ति वाले हैं। बहुजन स्तुत! आप अपने बल से वर्द्धमान होकर हमारे लिए अतिशय शोभन अन्न वाले बनें।[ऋग्वेद 3.45.5] 
हे इन्द्र देव! तुम धन से परिपूर्ण हो। अद्भुत संसार के स्वामी, श्रेष्ठ संकल्प वाले तथा सुन्दर कीर्ति वाले हो। अनेकों ने तुम्हारा पूजन किया है। तुम अपनी शक्ति से बड़े हुए हो। हमें अत्यन्त सुशोभित अन्न प्रदान करने वाले बनो।
Hey Indr Dev! You possess all sorts of wealth, the king of heaven, revered, speaks pleasing words and worshiped-revered by majority of the humans. Become mighty and grant us a lot of food grains.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्
युध्मस्य ते वृषभस्य स्वराज उग्रस्य यूनः स्थविरस्य घृष्वेः।
अजूर्यतो वज्रिणो वीर्या ३ णीन्द्र श्रुतस्य महतो महानि
हे इन्द्र देव! आप युद्ध करने वाले, अभिमत फल दाता, धनों के स्वामी, सामर्थ्यवान्, नितान्त तरुण, चिरन्तन, शत्रुओं को हराने वाले, जरा रहित, वज्रधारी और तीनों लोकों में विश्रुत हैं। आपका वीर्य महान् है।[ऋग्वेद 3.46.1]
विश्रुत :: सुना हुआ, विख्यात; famous, recognised.
हे इन्द्रदेव! तुम धनों के स्वामी, अभीष्ट फल प्रदान करने वाले, संग्राम में वृद्धि करने वाले, सामर्थ्य से परिपूर्ण, अजर शत्रुओं को पराजित करने वाले, अत्यन्त युवा, वज्र धारण करने वाले, शाश्वत और संसार त्रय में विख्याति ग्रहण हो।
Hey Indr Dev! You are a warrior always defeating the enemy, possess Vajr, accomplish desires, possessor of wealth, capable, young, famous in the three abodes and invincible.
INVINCIBLE :: अजेय, अपराजेय, जिसे जीता न सके; insurmountable, unbeaten, unconquerable, insuperable, inexpungable. 
महाँ असि महिष वृष्ण्येभिर्धनस्पृदुग्र सहमानो अन्यान्।
एको विश्वस्य भुवनस्य राजा स योधया च क्षयया च जनान्
हे पूजनीय उग्र इन्द्र देव! आप महान् है। आप अपने धन को पार ले जाते हैं। पराक्रम से शत्रुओं को आप अभिभूत करते हैं। आप सम्पूर्ण संसार के एकमात्र राजा है। आप शत्रुओं का संहार कर साधु चरित जनों को स्थापित करें।[ऋग्वेद 3.46.2]
हे इन्द्रदेव! तुम उग्र कर्म वाले तथा पूजनीय हो। तुम अपने धन का सेवन करने वाले हो। अपने पराक्रम से शत्रुओं को आतंकित करते हो। तुम सम्पूर्ण संसार के एक मात्र स्वामी हो।
Hey worship able furious Indr Dev! You put the wealth to appropriate use. Enchant the enemy with your might-valour. You are the only king of the universe. Destroy the enemy and establish the sages, virtuous, righteous people.
प्र मात्राभी रिरिचे रोचमानः प्र देवेभिर्विश्वतो अप्रतीतः।
प्र मज्मना दिव इन्द्रः पृथिव्याः प्रोरोर्महो अन्तरिक्षादृजीषी
दीप्यमान् और सब प्रकार से अपरिमित सोमवान इन्द्र देव पर्वतों से भी श्रेष्ठ, बल में देवताओं से भी अधिक, द्यावा-पृथ्वी से भी अधिक श्रेष्ठ हैं और विस्तीर्ण, महान् अन्तरिक्ष से भी श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 3.46.3] 
यह इन्द्र देव सोमयुक्त हैं, सभी प्रकार से असीमित तथा शैल से भी अधिक अडिग है। वह प्रकाशयुक्त देवगणों से भी अधिक शक्तिशाली है। यह आकाश और धरा से भी विस्तृत है तथा विशाल और महान अंतरिक्ष से भी उत्कृष्ट है। 
Indr Dev is Aurous, infinite, possessor of Somras, mightier than the mountains, better than all demigods-deities in strength & power, better the the sky & earth, great, all pervading-vast and superior to the space.
उरुं गभीरं जनुषाभ्यु १ ग्रं विश्वव्यचसमवतं मतीनाम्।
इन्द्रं सोमासः प्रदिवि सुतासः समुद्रं न स्त्रवत आ विशन्ति
हे इन्द्र देव! आप महान् हैं, इसलिए गंभीर हैं तथा स्वभाव से ही शत्रुओं के लिए भयङ्कर हैं। आप सभी जगह व्याप्त है, स्तोताओं के रक्षक है। नदियाँ जिस प्रकार से समुद्र के अभिमुख गमन करती हैं, उसी प्रकार यह पूर्वकालिक अभिषुत सोमरस इन्द्र देव के अभिमुख गमन करे।[ऋग्वेद 3.46.4]
हे इन्द्रदेव! तुम अत्यन्त गंभीर एवं श्रेष्ठतम हो। तुम अपने स्वभाव से ही शत्रुओं के प्रति विकराल हो जाते हो। तम सर्व व्यापक एवं वंदना करने वालों की सुरक्षा करने वाले हो। जैसे नदियाँ समुद्र की ओर प्रस्थान करती हैं, वैसे ही यह पुराने समय से व्यहृत सोम सुविख्यात होकर इन्द्र देव की तरफ जाने वाला हो।
Hey Indr Dev! You are great, serious and furious to the enemy by nature. You pervade all, protect the devotees-worshipers. The way the rivers move towards the ocean, the Somras extracted earlier comes to you. 
यं सोममिन्द्र पृथिवीद्यावा गर्भं न माता बिभृतस्त्वाया।
तं ते हिन्वन्ति तमु ते सृजन्यध्वर्यवो वृषभ पातवा उ
हे इन्द्र देव! माता जिस प्रकार गर्भधारित करती है, उसी प्रकार द्यावा-पृथ्वी आपकी कामना से सोमरस को धारित करती है। हे कामनाओं के पूरक, उसी सोम को अध्वर्यु लोग आपके लिए प्रेरित करते हैं और उसे आपके पीने के लिए शुद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 3.46.5]
हे इन्द्र देव! गर्भ धारण करने वाली माता के समान तुम्हारी अभिलाषा करने वाले आसमान और धरती सोम को धारण करती है। तुम कामनाओं के पूर्ण करने वाले हो। अधवर्युगण उसी सोम को ग्रहण करते हैं।
Hey Indr Dev! The way the mother nourish-sustain the child in her womb, the sky & earth, sustain Somras. Hey desire accomplishing! The Ritviz-priests inspire you to drink Somras.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्
मरुत्वाँ इन्द्र वृषभो रणाय पिबा सोममनुष्वधं मदाय।
आ सिञ्चस्व जठरे मध्व ऊर्मिं त्वं राजासि प्रदिवः सुतानाम्
हे इन्द्र देव! आप जलवर्षक मरुत्वान् है। रमणीय पुरोडाशादि रूप अन्न से युक्त सोमरस को आप संग्राम और हर्ष के लिए ग्रहण करें। आप विशेष रूप से सोम संघात का जठर में सेक करें, क्योंकि आप पूर्वकाल से ही अभिषुत सोमों के स्वामी है।[ऋग्वेद 3.47.1]
हे इन्द्र देव! तुम मरुद्गण के मित्र तथा फल की वृष्टि करने वाले हो। तुम हवि रूप अन्न से परिपूर्ण सोम को युद्ध आदि के लिए तथा आनन्द वर्द्धन के लिए पान करो। तुम उस सोम को उदर में सींचो। तुम पुराने समय से ही सोमों के अधीश्वर हो।
Hey Indr Dev! You make the rain fall with the help of Marud Gan. Accept & enjoy Somras and the lobes made of barley as offerings. Let Somras be stored in your belly-stomach. You are the master-Lord of extracts from ancient times. 
सजोषा इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्।
जहि शत्रूंरप मृधो नुदस्वाथाभयं कृणुहि विश्वतो नः
हे शूर इन्द्र देव! आप देवगणों से संगत, मरुद्गणों से युक्त, वृत्र हन्ता और कर्म विषय ज्ञाता हैं। आप सोमरस का पान करें। हमारे शत्रुओं का वध करें, हिंसक जन्तुओं का वध करें और हमें सभी जगह निर्भय करें।[ऋग्वेद 3.47.2]
हे इन्द्र देव! तुम पराक्रमी हो। तुम देवगणों के मित्र तथा मरुतों की सहायता को प्राप्त करने वाले हो। तुम वृत्र का संहार करने वाले तथा सभी कर्मों को जानते हो। तुम सोम ग्रहण करते हुए हमारे शत्रुओं को मार डालो। हिंसक जीवों को नष्ट कर डालो तथा हमको सभी ओर से निर्भय कर दो।
Hey Indr Dev! You are brave-mighty. You are helped by the demigods-deities and the Marud Gan. You are the slayers of Vrata Sur. Kill our enemies and the beasts. so that we can move-roam freely every where. 
उत ऋतुभिर्ऋतुपाः पाहि सोममिन्द्र देवेभिः सखिभिः सुतं नः।
याँ आभजो मरुतो ये त्वान्वहन्वृत्रमदधुस्तुभ्यभोजः॥
हे ऋतुपा इन्द्र देव! सखा-स्वरूप मरुतों और देवों के साथ आप हमारे अभिषुत सोमरस का पान करें। युद्ध में सहायता पाने के लिए जिन मरुतों का आपने सेवन किया और जिन मरुतों ने आपको स्वामी माना, उन्हीं मरुतों ने आपको संग्राम में शत्रु हननादि-रूप पराक्रमवान् किया; तब आपने वृत्रासुर को मारा।[ऋग्वेद 3.47.3]
हे इन्द्र देव! तुम अपने सखा रूप देवों और मरुद्गणों को साथ लेकर हमारे संस्कारित सोम का पान करो। युद्ध में सहायता के लिए तुमने जिन मरुतों का साथ लिया था और जिन मरुतों ने तुम्हें अपना ईश्वर स्वीकार किया, उन्हीं मरुतों ने युद्ध में तुम्हारी शक्ति में वृद्धि की थी। फिर तुमने शत्रुओं का विनाश किया था।
Hey Indr Dev! Drink the Somras along with the friendly Marud Gan, demigods-deities. You took help from Marud Gan in the war and they accepted you as their Lord-leader. They destroyed the enemy in the war & you killed Vrata Sur. 
ये त्वाहिहत्ये मघवन्नवर्धन्ये शाम्बरे हरिवो ये गविष्टौ।
ये त्वा नूनमनुमदन्ति विप्राः पिबेन्द्र सोमं सगणो मरुद्धिः
हे मघवन्, हे अश्ववन् इन्द्र देव! जिन मरुतों ने अहि हनन कार्य में बलिदान द्वारा, आपको संवर्द्धित किया। जिन्होंने आपको शम्बर वध में संवर्द्धित किया और जिन्होंने गौओं के लिए पणि असुरों के साथ युद्ध में संवर्द्धित किया। जो मेधावी मरुत आपको आज भी प्रसन्न कर रहे हैं, उन मरुद्गणों के साथ आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.47.4]
हे मघवन्! तुम अश्वों से युक्त हो। जिन मरुद्गणों ने तुम्हें दानव को मारने वाले कार्य में बढ़ाया था, जिन्होंने तुम्हें शम्बर को मारने के कार्य में शक्तिशाली बनाया तथा उन्होंने गौओं के लिए मनुष्यों के साथ हुए संग्राम में तुम्हें प्रवृत्त किया था। वे मरुद्गण प्रज्ञावान हैं। वे अब भी तुमको आनन्द प्रदान करने में लगे रहते हैं। तुम उन्हीं मरुतों सहित आकर सोम पियो।
Hey Maghvan Indr Dev!  You possess horses. The intelligent Marud Gan helped you in killing Ahi, Shambar & took part in the war against Pani for releasing cows, are pleasing you. Drink Somras along with them. 
 मरुत्वन्तं वृषभं वावृधानमकवारिं दिव्यं शासमिन्द्रम्।
विश्वासाहमवसे नूतनायोग्रं सहोदामिह तं हुवेम
हे इन्द्र देव! आप मरुद्गण युक्त, जल वर्षी, प्रोत्साहक, प्रभूत शब्द विशिष्ट, दिव्य, शासनकर्ता, विश्व के अभिभविता, उग्र तथा बलप्रद हैं। हम नूतन आश्रय लाभ के लिए आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 3.47.5]
हे इन्द्र देव! तुम मरुतों से परिपूर्ण हो। तुम जल की वृष्टि करते हो। संसार के नियन्ता तथा सम्राट हो। तुम विकराल कार्य वाले अत्यन्त शक्तिशाली हो। दिव्य तथा अद्भुत हो। हम तुम्हारा अभिनव आश्रय करने के लिए स्नेह पूर्वक आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You associate with Marud Gan, makes the rain fall, controls the universe, amazing, divine, furious & mighty-powerful. We request you to grant us asylum.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्
सद्यो ह जातो वृषभः कनीनः प्रभर्तुमावदन्धसः सुतस्य।
साधोः पिब प्रतिकामं यथा ते रसाशिरः प्रथमं सोम्यस्य
हे जल वर्षक, सद्यः उत्पन्न, कमनीय इन्द्र देव! हविर्युक्त सोमरूप अन्न के संग्रहकर्ता की रक्षा करें। प्रत्येक कार्य में सोमपान की इच्छा होने पर आप देवताओं के पहले गव्य मिश्रित साधु सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.48.1]
वे जल की वर्षा करने वाले, सद्याजात इन्द्र देव हवि से परिपूर्ण सोम को जोड़ने वाले के रक्षक हो। सोमपान की कामना करते हुए तुम दुग्धादि से परिपूर्ण सोम के देवों से पूर्व ही पान करो।
सद्योजात :: नवजात शिशु, जो अभी या कुछ ही समय पहले उत्पन्न हुआ हो, शिव का एक रूप या मूर्ति; new born, just born.
Hey rain causing, just born, lovely Indr Dev! Protect the stockist of Som, offerings and the food grains. Drink Somras mixed with cow milk prior to demigods-deities.
यज्जायथास्तदहरस्य कामेंऽशोः पीयूषमपिबो गिरिष्ठाम्।
तं ते माता परि योषा जनित्री महः पितुर्दम आसिञ्चदग्रे
हे इन्द्र देव! आप जिस दिन उत्पन्न हुए, उसी दिन पिपासित होने पर आपने पर्वतस्थ सोमलता के रस का पान किया। आपके महान पिता कश्यप के घर में आपकी युवती माता अदिति ने स्तन्यदान के पहले आपके मुँह में सोमरस का ही सिञ्चन किया।[ऋग्वेद 3.48.2]
हे इन्द्र देव! तुमने रचित होते ही प्यास लगने पर स्थित सोमलता का रसपान किया था। तुम्हारी जननी अदिति ने तुम्हारे पिता कश्यप के घर में स्तन पिलाने से पहले सोम रस को तुम्हारे मुख में डाल दिया था।
Hey Indr Dev! You drank Somras as soon as you were born. Your father sage Kashyap dropped Somras in your mouth prior to being fed with her milk by your mother Aditi. 
उपस्थाय मातरमन्नमैट्ट तिग्ममपश्यदभि सोममूधः।
प्रयावयन्नचरद्गृत्सो अन्यान्महानि चक्रे पुरुधप्रतीकः
इन्द्र देव ने माता से प्रार्थना पुरःसर अन्न की याचना की और उसके स्तन में क्षीर रूप से स्थित दीप्ति सोमरस को देखा। गुत्स शत्रुओं को अपने स्थानों से उच्चालित कर सभी जगह विचरण करने लगे। नाना प्रकार से अङ्ग विक्षेपकर इन्द्र देव ने वृत्र हननादि बहुत से महान् कार्य किए।[ऋग्वेद 3.48.3]
इन्द्र देव ने जननी से अन्न की विनती की। तब उन्होंने सबके स्तन से दुग्ध रूप उज्ज्वल सोम का दर्शन किया। शत्रुओं का संहार करने के लिए देवगणों द्वारा अभिलाषा किये गये इन्द्र शत्रुओं के अपने से हटाते हुए घूमने लगे। उनके अंग-भंग करते हुए इन्द्रदेव ने वृत्र को मारा और अनेकों बल से परिपूर्ण श्रेष्ठ कार्य सम्पन्न किये।
When Indr Dev, requested his mother to feed him with food grains, he saw Somras in her milk. Indr started removing the enemies as desired by the demigods-deities. He killed Vratr chopping his organs-limbs and performed several great deeds. 
उग्रस्तुराषाळभिभूत्योजा यथावशं तन्वं चक्र एषः।
त्वष्टारमिन्द्रो जनुषाभिभूयामुष्या सोममपिबच्चमूषु
शत्रुओं के लिए भयङ्कर, शीघ्र अभिभव कर्ता और पराक्रमवान इन्द्र देव ने अपने शरीर को नाना प्रकार का बनाया। इन्होंने अपनी सामर्थ्य से त्वष्टा नामक असुर को पराजित कर चमस स्थित सोमरस को चुराकर पिया।[ऋग्वेद 3.48.4]
वे इन्द्रदेव शत्रुओं के लिए भयंकर हैं। वे अपनी वीरता से शत्रुओं को जल्दी ही पराजित करते हैं। वे अपना रूप अनेक तरह का बनाने में समर्थ हैं। उन्होंने अपनी शक्ति से त्वष्टों को आधीन कर चमस में दृढ़ सोम का पान किया था।
Furious Indr Dev was quick to defeat the enemies. He took various shapes-forms. He defeated demon Twasta and drank the Somras present in the Chamas.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं घनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत, ऐश्वर्य वाले, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रवण कर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन विजेता हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.48.5]
प्रभूत :: जो हुआ हो,  निकला हुआ, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर,  पूर्ण, पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत, उद्‌गम; भूत, उत्पन्न, उद्‌गम; ample, excellent, outstanding, regeneratory, ample, sufficient, abundant.
हे इन्द्र देव! हे मधवन! तुम अन्न प्राप्त करने वाले युद्ध हर्ष द्वारा वृद्धि को प्राप्त होते हो। तुम धन और ऐश्वर्य युक्त, उत्तम नेतृत्व वाले तथा प्रार्थनाओं को श्रवण करने वाले हो। तुम भयंकर रूप वाले भीषण लड़ाई में शत्रु का नाश करते हुए धनों को जीतते हो। आश्रय प्राप्त करने के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You collect-receive food grains. You are energetic, rich, possess ample grandeur, excellent leader-commander, listens-answers requests-prayers, furious destroyer in the war-battle and winner of money, wealth. We seek patronage-asylum under you.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्
शंसा महामिन्द्रं यस्मिन्विश्वा आ कृष्टयः सोमपाः काममव्यन्।
यं सुक्रतुं धिषणे विभ्वतष्टं घनं वृत्राणां जनयन्त देवाः
हे स्तोता! महान् इन्द्र देव की प्रार्थना करें। इन्द्र देव के द्वारा रक्षित होने पर सब मनुष्य यज्ञ में सोमपान कर अभीष्ट प्राप्त करते हैं। देवताओं और द्यावा-पृथ्वी ने ब्रह्मा द्वारा आधिपत्य के लिए नियुक्त शोभन कर्म वाले तथा पापों के हन्ता इन्द्र देव को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 3.49.1]
हे वंदना करने वालो! यह इन्द्र देव श्रेष्ठ हैं, इनकी प्रार्थना करो। इन्द्र देव द्वारा रक्षित हुए समस्त मनुष्य यज्ञ में सोमपान करते हैं और इच्छित फल प्राप्त करते हैं। देवगण तथा आकाश और पृथ्वी ने ब्रह्मा द्वारा संसार के स्वामी बनाये गये, श्रेष्ठ कार्य वाले, पाप विनाशक इन्द्र देव को प्रकट किया।
Hey recitators of sacred hymns-worshipers! Pray-worship Indr Dev. Being protected by Indr Dev, the Ritviz drink Somras in the Yagy. Indr Dev was appointed by Brahma Ji to rule and sky-earth & the demigods-deities evolved excellent performer Indr Dev to destroy the sins.
यं नु नकिः पृतनासु स्वराजं द्विता तरति नृतमं हरिष्ठाम्।
इनतमः सत्वभिर्यो ह श्रूषैः पृथुज्रया अमिनादायुर्दस्योः
युद्ध में अपने तेज से राजमान, हरि नामक घोड़ों से युक्त रथ पर स्थित, बल-युद्ध के नेता और संग्राम में सेनाओं को दो भागों में विभक्त करने वाले जिन इन्द्र देव को कोई भी अतिक्रान्त नहीं कर सकता, वे ही इन्द्र देव सेनाओं के उत्कृष्ट स्वामी हैं। वे युद्ध में शत्रु बल के शोषक मरुतों के साथ तीव्र वेग होकर शत्रुओं के प्राणों को नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 3.49.2]
युद्ध में अपने तेज से सुशोभित, अश्व जुते हुए रथ पर बैठे हुए बलवानों के युद्ध में नायक रूप लड़ती हुई सेनाओं को दो और विभक्त करने वाले जिन इन्द्र पर आक्रमण करने में कोई सक्षम नहीं है, वे इन्द्र उन सेनाओं के सेनापति हैं। युद्ध में शत्रुओं के पराक्रम को कम करने वाले मरुद्गण के साथ वे इन्द्र अत्यधिक बल वाले होकर शत्रुओं के जीवन को समाप्त करने में सक्षम हैं।
Indr Dev full of energy-aura takes part, seated over the charoite in which the horses named Hari have been deployed, as a leader-commander, being the excellent leader of demigods-deities army; divides the enemy army in  two halves, can not be defeated by anyone.
सहावा पृत्सु तरणिर्नार्वा व्यानशी रोदसी मेहनावान्।
भगो न कारे हव्यो मतीनां पितेव चारुः सुहवो वयोधाः
जिस प्रकार से बलवान अश्व शत्रु बल का सन्तरण करता है, उसी प्रकार बलवान् इन्द्र देव संसार में शत्रुओं का नाश करते हैं। द्यावा-पृथ्वी को व्याप्त कर इन्द्र देव धनवान होते है। यज्ञ में पूषदेव के तुल्य हवनीय इन्द्र देव स्तुति करने वालों के पिता हैं। आहूत होकर कमनीय इन्द्र देव अन्नदाता होते हैं।[ऋग्वेद 3.49.3]
जैसे बलवान घोड़े शत्रुओं के निकट तेज गति से जाते हैं, वैसे ही वे सामर्थ्यवान इन्द्र देव स्पर्द्धा से परिपूर्ण युद्ध में अधिक वेगवान होते हैं। इन्द्र देव आकाश पृथ्वी को महान धनों से सम्पन्न करते हैं। यज्ञ में की जाने वाली वंदनाओं के वे पिता समान हैं। वे पुकारे जाने पर अन्न प्रदान करने वाले हैं। 
The way the powerful horses moves fast towards the enemy, Indr Dev become quick-fast to destroy the enemy in the universe. He pervades the heavens & earth and possess lots of riches. He is like a father for those performing Yagy and grants food grains on being prayed-worshiped.
धर्ता दिवो रजसस्पृष्ट ऊर्ध्वो रथो न वायुर्वसुभिर्नियुत्वान्।
क्षपां वस्ता जनिता सूर्यस्य विभक्ता भाग धिषणेव वाजम्
इन्द्र देव द्युलोक तथा आकाश को धारित करते हैं। वे ऊर्ध्वगामी रथ के तुल्य वर्त्तमान हैं। वे गमनशील मरुतों के द्वारा सहायवान् हैं। वे रात्रि को आच्छादित करते हैं। सूर्य को उत्पन्न करते हैं और भजनीय कर्म फल रूप अन्न का उसी प्रकार विभाग करते हैं, जिस प्रकार से धनी का वाक्य धन विभाग करता है।[ऋग्वेद 3.49.4]
वे ऊपर की ओर चढ़ने वाले रथ के समान उन्नत हैं। वे मरुद्गणों की सहायता प्राप्त कर चुके हैं। वे रात्रि को तम करते तथा सूर्य को उदय करते हैं। वे कर्म के फल रूप अन्न को वैसे ही विभाजन करते हैं जैसे, धनवान व्यक्ति अपनी वाणी द्वारा धन का विभाजन करता है।
Indr Dev supports the heavens & the earth. He is like the charoite which moves up vertically. He is helped by the Marud Gan. He controls-generate the might and leads to Sun rise-day break. He distribute the food grains according to the deeds-endeavours of the performers, like the rich who issues instruction for the distribution of money.
Here the importance-significance of labour, endeavours, efforts is clearly mentioned, stressed by Bhagwan Shri Krashn in Shrimad Bhagwat Geeta. A person is bound to get the rewards & punishments according to his deeds, good-bad, virtuous-wicked, virtues-sin etc. Though one should pray-worship God, demigods, deities yet he must resort to work for his survival.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
श्रण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। आप युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य वाले, नर श्रेष्ठ, स्तुति श्रवण कर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन विजेता हैं। आश्रय-प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.49.5]
हे भगवन्! तुम अन्न ग्रहण करने वाले संग्राम में उत्साह के द्वारा वृद्धि को ग्रहण होते हो। तुम धन और समृद्धि से परिपूर्ण, नेतृत्व से परिपूर्ण तथा वंदनाओं के श्रवण कर्त्ता हो। तुम उम्र कार्य करने वाले हो, युद्ध में शत्रुओं को विनाश करने में समर्थ हो। तुम धनों के विजेता हो। शरण पाने के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You show your might in the war, in which the target is food grains. You enthusiastically take part in the war, possess grandeur, excellent leader-commander, respond to the prayers-worship of devotees, furious, destroyer of the enemy and winner of wealth. We seek shelter, asylum, protection under you.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्
इन्द्रः स्वाहा पिबतु यस्य सोम आगत्या तुभ्रो वृषभो मरुत्वान्।
ओरुव्यचाः पृणतामेभिरन्नैरास्य हविस्तन्व १: काममृध्याः
हे इन्द्र देव! यज्ञ में आकर स्वाहाकृत इस सोमरस का पान करें। जिन इन्द्र देव का यह सोमरस है, वे विघ्नकारियों के हिंसक याजकों के अभिमतफल वर्धक और मरुद्वान् हैं। अतिशय  व्यापक इन्द्र देव हम लोगों के द्वारा दिए गए अन्न से तृप्त होवें। यह हव्य इन्द्र देव की अभिलाषा पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.50.1]
हे इन्द्र देव! हमारे यज्ञ में पधार कर इस सोम रस का पान करो। यह सोम जिन इन्द्र देव के लिए हैं, वे बाधा डालने वालों की हिंसा करने में समर्थ हैं। वे मरुतों से परिपूर्ण इन्द्र देव यज्ञ कर्त्ताओं पर पुष्पों की वर्षा करते हैं। वे अत्यन्त व्यापक हैं। हमारे द्वारा अर्पित अन्न से ही वे तृप्त हों। हवि उनको संतुष्ट करें।
Hey Indr Dev! Oblige us by participating and drinking Somras in this Yagy. This Somras is for Indr Dev who destroy the enemy in association with Marud Gan. Vast-broad Indr Dev should be satisfied with our offerings of food grains.
आ ते सपर्यू जवसे युनज्मि ययोरनु प्रदिवः श्रुष्टिमावः।
इह त्वा घेयुर्हरयः सुशिप्र पिबा त्व१स्य सुषुतस्य चारोः
हे इन्द्र देव! आपको यज्ञ में आने के लिए हम रथ को परिचारक अश्व युक्त करते हैं। आप पुरातन है, घोड़ों के वेग का अनुगमन करते हैं। हे शोभन हनु इन्द्र देव! घोड़े आपको यज्ञ में धारित करें। आप आकर इस कमनीय और भली-भाँति अभिषुत सोमरस का शीघ्र पान करें।[ऋग्वेद 3.50.2]
हे इन्द्र देव! तुम्हें अनुष्ठान में बुलाने के लिए हम रथ में अश्वों को जोड़ते हैं। वे तुम्हें प्राचीन काल से अश्वों का अनुगमन करने वालों को इस यज्ञ में लायें। तुम इस श्रेष्ठ प्रकार से सिद्ध किये गये सोम रस को यहाँ पधारकर पान करो।
Hey Indr Dev! Let the care takers deploy the horses in the charoite to bring you to our Yagy. You are ancient-eternal. Hey Indr Dev possessing beautiful chin! Come quickly and drink this excellent Somras extracted for you. 
गोभिर्मिमिक्षं दधिरे सुपारमिन्द्रं ज्यैष्ठ्याय धायसे गृणानाः।
मन्दानः सोमं पपिवाँ ऋजीषिन्त्समस्मभ्यं पुरुधा गा इषण्य
स्तोताओं के अभिमत फल वर्षक और स्तुति द्वारा प्रसन्न करने योग्य इन्द्र देव को स्तोत्र करने वाले ऋत्विक लोग श्रेष्ठत्व और चिरकालीन प्राप्ति के लिए गव्य मिश्रित सोमरस के द्वारा धारित करते हैं। हे सोमवान् इन्द्र देव! प्रसन्न होकर आप सोमपान करें और स्तोताओं को अग्रिहोत्रादि कार्य सिद्धि के लिए बहुविध गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.50.3]
वंदना किये जाने वाले, अभीष्टों की वृद्धि करने वाले तथा प्रार्थनाओं से प्रसन्न होने वाले इन्द्र देव के वंदनाकारी ऋत्विक महान तत्व की प्राप्ति हेतु दुग्ध से परिपूर्ण सोम धारण करते हैं। हे इन्द्र देव! तुम सोम रस से परिपूर्ण हो। तुम हर्षिता पूर्वक सोम का पान करो और वंदना करने वालों को अनुष्ठान सिद्धि के लिए धेनु प्रदान करो। 
The Ritviz pray-worship Indr Dev, offer him Somras mixed with cow milk to seek fulfilment of their desires and longevity. Hey Indr! Be cheerful, drink Somras and grant cows to the worshipers-Ritviz for conducting Agnihotr-Yagy, Hawan.  
इमं कामं मन्दया गोभिरश्वैश्चन्द्रवता राधसा पप्रथश्च। 
स्वर्यवो मतिभिस्तुभ्यं विप्रा इन्द्राय वाहः कृशिकासो अक्रन्
हे इन्द्र देव! हमारी इस अभिलाषा को गौ, अश्व और दीप्ति वाले धन के द्वारा पूर्ण करें और उनके द्वारा हमें विख्यात करें। स्वर्गादि सुखाभिलाषी और कर्म कुशल कुशिक नन्दनों ने मन्त्र द्वारा आपकी स्तुति की है।[ऋग्वेद 3.50.4]
हमारी अभिलाषा को गाय, घोड़े और उत्तम धन से पूर्ण, करो। धन द्वारा हमको प्रसिद्धि प्राप्त हो। हे इन्द्रदेव! स्वर्ग सुख की अभिलाषा करने वाले कर्मवान कौशिकों ने मंत्रों द्वारा तुम्हारी वंदना की है।
Hey Indr! Accomplish our desires-needs for cows, horses and excellent wealth-riches like shinning Gold. We should become famous with these. The sons of Kaushik, well versed with the procedures-methods of conducting Yagy, prayed-worshiped you with the desires of the luxuries-comforts of heaven. 
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। 
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। आप युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य वाले, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रवणकर्ता, उम्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन विजेता है। हम आश्रय प्राप्ति के लिए आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.50.5]
हे इन्द्रदेव! तुम अन्न को ग्रहण करते हो। युद्ध में उत्साह द्वारा वृद्धि करते हुए धन और समृद्धि के स्वामी बनते हो। तुम महान नेतृत्व शक्ति से परिपूर्ण हो तथा प्रार्थनाओं के सुनने वाले हो। तुम उग्र शक्ति वाले हो । युद्ध में शत्रुओं का पतन करके धन जीतते हो। हम शरण प्राप्ति हेतु तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You show your might in the war, in which the target is food grains. You enthusiastically take part in the war, possess grandeur, excellent leader-commander, respond to the prayers-worship of devotees, furious, destroyer of the enemy and winner of wealth. We seek shelter, asylum, protection under you.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, गायत्री
चर्षणीधृतं मघवानमुक्थ्य१मिन्द्रं गिरो बृहतीरभ्यनूषत।
वावृधानं पुरुहूतं सुवृक्तिभिरमर्त्य जरमाणं दिवेदिवे
अभिमत फल प्रदान से मनुष्यों के धारक, धनवान् उकथ द्वारा प्रशंसनीय, बल-धन आदि सम्पत्ति से प्रतिक्षण वर्द्धमान, स्तोताओं द्वारा बहुशः आहूत, मरण धर्म रहित और शोभन स्तुति वचन से प्रति दिन स्तूयमान इन्द्र देव की प्रभूत स्तुति वचनों से सब प्रकार से प्रार्थना की जावें।[ऋग्वेद 3.51.1]
अभिष्ट वस्तु प्रदान करके मनुष्यों के पोषण कर्त्ता, प्रशंसनीय, धन, परिधान और समृद्धि से लगातार वृद्धि करते हुए, वंदना करने वालों द्वारा अनेक बार पुकारे गये, अत्यन्त शोभायमान रूप गुणों से सुशोभित इन्द्र देव के श्लोकों का उच्चारण करें।
Indr Dev, who grant the desired commodities-boons on being prayed-worshiped every day several times, is supporter of humans, possess unlimited might-power & wealth, is immortal.
शतक्रतुमर्णवं शाकिनं नरं गिरो म इन्द्रमुप यन्ति विश्वतः।
वाजसनिं पूर्भिदं तूर्णिमप्तुरं धामसाचमभिषाचं स्वर्विदम्
इन्द्र सौ यज्ञ करने वाले, जल वाले, मरुतों से युक्त, समस्त संसार के नेता, अन्न के दाता, शत्रु पुरी के भेदक, युद्धार्थ शीघ्र गन्ता, मेघ भेदन द्वारा जल के प्रेरक, धन-प्रदाता, शत्रुओं के अभिभव कर्ता और स्वर्ग के प्रदाता हैं। इन्द्र के पास हमारी स्तुति वाणी सभी प्रकार से जावें।[ऋग्वेद 3.51.2]
इन्द्र देव अनेकों कर्म वाले मरुतवान, जलवान, सागर के अग्रणी अन्नदाता, शत्रु के नगरों को ध्वंस करने वाले, युद्ध के लिए शीघ्र गमन करने वाले, मेघ को भेदकर जल गिराने वाले, धन का दान करने वाले, शत्रुओं को पराजित करने वाले एवं स्वर्ग लाभ कराने वाले हैं। उन इन्द्र देव को हमारी वंदना रूप वाणी प्राप्त हो।
Let our prayers be responded by Indr Dev, who is the performer of hundred Yagy, is leader of the whole universe, grants food grains, quick to respond to war, enters the forts of enemy and destroys them, tear the clouds to shower rains, grants riches.
आकरे वसर्जरिता पनस्यतेऽनेहसः स्तुभ इन्द्रो दुवस्यति।
विवस्वतः सदन आ हि पिप्रिये सत्रासाहमभिमातिहनं स्तुहि
इन्द्र देव शत्रुओं के बल संहारक हैं, संग्राम में वे सबसे प्रार्थित होते हैं। वे निष्पाप स्तुतियों को सम्मानित करते हैं। अग्रिहोत्रादि करने वाले याजक गण के घर में सोमपान कर वे अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। विश्वामित्र, मरुतों के साथ शत्रुओं के अभिभवकर्ता और शत्रु संहारक इन्द्र देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 3.51.3]
युद्ध के मैदान में सभी वंदना करते हैं। वे शत्रुओं के समूह का पतन करते हैं। वे हृदय से की गई वंदनाओं का सम्मान करते हैं। वे यज्ञकर्त्ता यजमान के घर में सोमपान करके परमानंद को प्राप्त होते हैं। हे विश्वामित्र! मरुद्गण सहित शत्रुओं को विनाश करने वाले इन्द्र देव की वंदना करो।
Indr Dev destroys the enemy in the battle field. He is honoured-revered by every one. He  accepts the prayers performed with pure heart. He become very happy by drinking Somras at the house of the Ritviz-Yagy performers. Vishwamitr should pray to the destroyer of the enemy & their down fall, along with Marud Gan. 
नृणामुत्वा नृतमं गीर्भिरुक्थैरभि प्र वीरमर्चता सबाधः।
सं सहसे पुरुमायो जिहीते नमो अस्य प्रदिव एक ईशे
हे इन्द्र देव! आप मनुष्यों के नेता और वीर है। राक्षसों द्वारा पीड़ित ऋत्विक स्तुतियों तथा उकथों द्वारा आपको भली-भाँति अर्चित करते हैं। वृत्रहननादि कर्म करने वाले इन्द्र देव बल के लिए गमनोद्यम करते हैं। एकमात्र पुरातन इन्द्र देव ही इस अन्न के ईश्वर हैं; इसलिए इन्द्र देव को नमस्कार है।[ऋग्वेद 3.51.4]
हे इन्द्र देव! तुम शक्तिशाली तथा मनुष्यों के नायक हो असुरों द्वारा संतापित हुए ऋत्विक तुम्हारी स्तुति मंत्रों द्वारा भली प्रकार करते हैं। तुम वृत्र को मारने के कर्म में पराक्रम के साथ जाते हो। पुरातन इन्द्र ही इस अन्न के दाता हैं। इसलिए मैं उन्हीं इन्द्र को नमस्कार करता हूँ।
Hey Indr Dev! You are mighty-powerful. The Ritviz tortured-teased by the demons pray-worship you with sacred hymns-Mantr. You show your might, valour in destroying Vratr-the demon. Eternal Indr Dev is the God of food grains. Hence, I pray-worship him.
पूर्वीरस्य निष्षिधो मर्त्येषु पुरू वसूनि पृथिवी बिभर्ति।
इन्द्राय द्याव ओषधीरुतापो रयिं रक्षन्ति जीरयो वनानि
मनुष्यों में इन्द्र देव का अनुशासन अनेकानेक प्रकार का है। शासक इन्द्र देव के लिए पृथ्वी बहुत धन धारित करती है। इनकी आज्ञा से द्युलोक, औषधियाँ, जल, मनुष्यों और वृक्ष उनके उपभोग योग्य धन की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 3.51.5]
इन्द्र देव का अनुशासन मनुष्यों में व्यापक रूप से उपस्थित है। उनके लिए धरा ही श्रेष्ठ समृद्धि धारण करती है। इन्द्र देव के आदेश से ही सूर्य औषधियों, मनुष्यों और वृक्षों के उपभोग के लिए अन्न की सुरक्षा करते हैं।
Human beings are disciplined by Indr Dev in several ways. Mother earth bears lots of wealth for Indr Dev. To carry out his orders the heaven, medicines, water, humans and the trees protect the wealth for his consumption-use. 
तुभ्यं ब्रह्माणि गिर इन्द्र तुभ्यं सत्रा दधिरे हरिवो जुषस्व।
बोध्या३पिरवसो नूतनस्य सखे वसोजरितृभ्यो वयो धाः
हे अश्ववान इन्द्र देव! आपके लिए स्तोत्रों और शस्त्रों को ऋत्विक लोग यथार्थ ही धारित करते हैं, आप उनको ग्रहण करें। हे सभी के निवासयिता और मित्रस्वरूप इन्द्रदेव! आप सर्वत्र व्याप्त हैं। यह अभिनव हवि आपको दी गई है, इसे ग्रहण कर स्तोताओं को अन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.51.6]
हे इन्द्र देव! तुम अश्ववान हो। ऋत्विग्गण तुम्हारे लिए स्तोत्रों को धारण करते हैं, उन्हें स्वीकार करो। तुम सबको आवास देने वाले मित्र स्वरूप हो। इस नई हवि को प्रणाम कर वंदना करने वालों को अन्न दो।
Hey Indr Dev! You are the Lord-master of horses. Bearing of Strotr and the Shastr-arms by the Ritviz for you, is justified. You are friendly and grant home to all and pervade every where. Accept this unique offering meant for you and provide food grains to the praying Strota-devotees. 
इन्द्र मरुत्व इह पाहि सोमं यथा शायते अपिबः सुतस्य।
तव प्रणीती तव शूर शर्मन्ना विवासन्ति कवयः सुयज्ञाः
हे मरुतों से युक्त इन्द्र देव! शर्याति राजा के यज्ञ में जिस प्रकार से आपने अभिषुत सोमरस का पान किया, उसी प्रकार इस यज्ञ में सोमरस का पान करें। हे शूर! आपके निर्बाध निवास स्थान में स्थिर और सुन्दर यज्ञ करने वाले मेधावी याजकगण हवि के द्वारा आपकी परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 3.51.7]
हे मरुतवान इन्द्र देव! जिस प्रकार तुमने शर्यात के अनुष्ठान में सोमपान किया था, उसी प्रकार इस अनुष्ठान में भी करो। तुम पराक्रमी हो। तुम्हारे रुकने के स्थान में मेधावी अनुष्ठानकर्त्ता हवि द्वारा तुम्हारी सेवा करते हैं।
Hey Indr Dev associated by the Marud Gan! The way you drank Somras in the Yagy conducted by the king Sharyati, drink it in this Yagy as well. Hey brave-mighty! The intelligent Ritviz-devotees conducting beautiful Yagy, serve to you with the offerings at the site of your stay.
स वावशान इह पाहि सोमं मरुद्भिरिन्द्र सखिभिः सुतं नः।
जातं यत्त्वा परि देवा अभूषन्महे भराय पुरुहूत विश्वे
हे इन्द्र देव! सोमरस की कामना करते हुए आप अपने मित्र मरुतों के साथ हमारे इस यज्ञ में अभिषुत सोमरस का पान करें। हे पुरुओं द्वारा आहूत इन्द्र देव! आपके जन्म-ग्रहण करते ही सब देवताओं ने आपको महासंग्राम के लिए भूषित किया।[ऋग्वेद 3.51.8]
महासंग्राम :: महासमर; great war,  epic battle.
हे इन्द्र देव! सोम की कामना से अपने सखा मरुतों सहित हमारे यज्ञ में सुसंस्कारित सोम को ग्रहण करो। तुमको पुरुवंशियों ने आमंत्रित किया था। तुम्हारे उत्पन्न होते ही समस्त देवताओं ने महासमर के लिए तुम्हें प्रतिष्ठित किया था।
Hey Indr Dev! Drink Somras along with your friends Marud Gan in this Yagy. Hey Indr Dev, worshiped-prayed by the Puru dynasty! The demigods-deities designated you for the epic battle as soon you were born, evolved, appeared. 
अप्तूर्ये मरुत आपिरेषोऽमन्दन्निन्द्रमनु दातिवाराः।
तेभिः साकं पिबतु वृत्रखादः सुतं सोमं दाशुषः स्वे सधस्थे
हे मरुतों! जल के प्रेरणा से इन्द्र देव आपके मित्र होते हैं। उन्हें आपने प्रसन्न किया। वृत्र विनाशक इन्द्र देव आपके साथ हवि देने वाले याजकगण के घर में अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.51.9]
हे मरुद्गण! जल को प्रेरित करने के कारण इन्द्र देव तुम्हारे मित्र बने हैं। जिनको तुमने हर्षित किया है वे वृत्र का विनाश करने वाले इन्द्रदेव, हविदाता यजमान के गृह मैं सुसिद्ध किये गये सोम का तुम्हारे संग विराजमान होकर पान करें। 
Hey Marud Gan! Indr Dev is friendly with you, since you inspire the water (to evaporate and form clouds for rains). You made him happy. Let the slayer of Vratr Indr Dev drink clarified Somras at the house of the devotee-worshiper with you. 
इदं ह्यन्वोजसा सुतं राघानां पते। पिबा त्वस्य गिर्वणः
हे धन के स्वामी स्तूयमान इन्द्र देव! उद्देश्यानुक्रम से बल द्वारा इस अभिषुत सोमरस का शीघ्र पान करें।[ऋग्वेद 3.51.10] 
हे इन्द्र देव! तुम धनों के ईश्वर हो। तुम अभिलाषा पूर्वक इस सोम को अपनी शक्ति से शीघ्र पान करो। 
Hey Indr Dev, lord of wealth! Drink this Somras quickly in the order of priorities of functions-targets, goals with your strength.
यस्ते अनु स्वधामसत्सुते नि यच्छ तन्वम्। स त्वा ममत्तु सोम्यम्
हे इन्द्र देव! आपके लिए जो अन्न मिश्रित सोमरस अभिषुत हुआ है, उसमें अपने शरीर को निमग्न करें। आप सोमपान के योग्य हैं। आपको वह सोमरस प्रसन्न करे।[ऋग्वेद 3.51.11] 
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे लिए जो अन्न से युक्त सोम संस्कारित किया है, वह अपने हृदय को उसमें लगाओ। तुम सोम ग्रहण करने के पात्र हो? यह सोम तुम्हें प्रसन्न रखें।
Hey Indr Dev! Accept this Somras mixed with the extracts of food grains. Its meant for you. It suits you and give you pleasure.
Food grains release ethyl alcohol-basic component of wine. 
प्र ते अश्नोतु कुक्ष्योः प्रेन्द्र ब्रह्मणा शिरः। प्र बाहू शूर राधसे
हे इन्द्र देव! वह सोमरस आपकी दोनों कुक्षियों को व्याप्त करे, स्तोत्रों के साथ वह आपके शरीर को व्याप्त करे। हे शूर! धन के लिए वह आपकी दोनों भुजाओं को भी व्याप्त करे।[ऋग्वेद 3.51.12] 
कुक्षि :: कोख, पेट; stomach, abdomen.
हे इन्द्र देव! यह सोम तुम्हारी दोनों कुक्षियों में व्याप्त हो। श्लोकों से युक्त हुआ सोम तुम्हारे शरीर में व्याप्त हो। हे वीर! यह सोम धन के लिए तुम्हारी दोनों भुजाओं को पुष्ट बनाएं।
Hey Indr Dev! Let this Somras  spread in both segments of your stomachs and pervade your body with the recitation of sacred hymns. Let it spread over your arms to possess wealth.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, गायत्री
धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम्। इन्द्र प्रातर्जुषस्व नः
हे इन्द्र देव! भुने हुए जौ से युक्त, दधि मिश्रित, सत्तू से युक्त, सवनीय पुरोडाश से युक्त और शस्त्र वाले हमारे सोमरस का प्रातःसवन में आप सेवन करें।[ऋग्वेद 3.52.1]
सत्तू :: भुने हुए चने और जौ का आटा जिसे सामान्यतया गुड़ या शक़्कर मिलाकर गर्मियों में खाया जाता है। इसे उत्तर भारत, बिहार आदि हिंदी भाषी क्षेत्रों ज्यादातर प्रयोग किया जाता है। Its is mixture of roasted gram and barley flour is eaten during summers by adding jaggary or Shakkar-jaggary power, raw sugar, in Northern India, UP & Bihar. Its nourishing, easy to digest. 
हे इन्द्र देव! इस मिश्रित दही, सत्तू और पुरोडाश से परिपूर्ण पाषाण द्वारा प्रस्तुत हमारे सोम को प्रातः सवन में ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! Consume flour of roasted gram and barley by mixing it in curd, lobes of bread along with Somras in the morning as breakfast.
पुरोळाशं पचत्यं जुषस्वेन्द्रा गुरस्व च। तुभ्यं हव्यानि सिस्रते
हे इन्द्र देव! पके हुए पुरोडाश का आप सेवन करें। पुरोडाश के भक्षण के लिए उद्यम करे। क्योंकि हवन के योग्य यह पुरोडाश आदि हवि आपके लिए गमन करती है।[ऋग्वेद 3.52.2]
पुरोडास :: यज्ञ में दी जाने वाली आहुति, जौ के आटे की टिकिया, हवि का एक प्रकार जिसमें जौ की रोटी विशेष विधि से बनाई जाती थी; lobes of backed barley used as offerings in the Yagy. Its used for eating as well. cake of ground barley offered as an oblation in fire, sacrificial oblation offered to the demigods-deities, Ghee-clarified butter is offered in oblations to holy fire, with cakes of ground meal.
हे इन्द्र देव! परिपक्क पुरोडाश को खाओ। यज्ञ योग्य पुरोडाश तुम्हारे लिए प्रस्तुत होता है।
Hey Indr Dev! Eat this backed cake of barley. Purodash of superior quality used in the Yagy is ready for you.
आभिक्षीयं दधि क्षीरं पुरोडाश्यं तथौषधम्।
हविर्हैयंगवीनं च नाप्युपघ्नन्ति राक्षसा:॥[भट्टि]
पुरोळाशं च नो घसो जोषयासे गिरश्च नः। वधूयुरिव योषणाम्
हे इन्द्र देव! हमारे इस पुरोडाश का भक्षण कर हमारी इस श्रुति लक्षणा वाणी का उसी प्रकार सेवन करें, जिस प्रकार से स्त्री की भक्ति करने वाला कामी पुरुष युवती स्त्री का सेवन करता है।[ऋग्वेद 3.52.3]
हे इन्द्र देव! हमारे इस पुरोडाश को प्राप्त करो। हमारी इस सुनने के योग्य वाणी को भार्या के प्रेमी पति के समान सेवन करो। 
Hey Indr Dev! Eat our Purodash like the dialogue delivered to the woman by a lascivious man.
पुरोळाशं सनश्रुत प्रातः सावे जुषस्व नः। इन्द्र क्रतुर्हि ते बृहन्
हे पुराण काल से प्रसिद्ध इन्द्र देव ! हमारे इस पुरोडाश का प्रातः सवन में सेवन करें, जिससे आपका कर्म महान् हो।[ऋग्वेद 3.52.4]
हे इन्द्र देव! तुम प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध हो। हमारे पुरोडाश को प्रातः काल में भक्षण करते हुए अपने कर्म में महत्ता प्राप्त करो। 
Hey Indr Dev! You are famous since ancient times. Consume our Purodash in the morning, so that you are capable of performing great deeds-endeavours.
माध्यन्दिनस्य सवनस्य धानाः पुरोळाशमिन्द्र कृष्वे॒ह चारुम्। 
प्र यत्स्तोता जरिता तूर्ण्यर्थो वृषायमाण तप गीर्भिरीट्टे
हे इन्द्र देव! माध्यन्दिन सवन सम्बन्धी भुने जौ के कमनीय पुरोडाश का यहाँ आकर भक्षण करके संस्कृत करें। आपकी परिचर्या करने वाले, स्तुति के लिए त्वरित गमन (व्यय), इसलिए बैल के तुल्य इधर-उधर दौड़ने वाले, स्तोता जब प्रार्थना लक्षण वचनों से आपकी प्रार्थना करते हैं, तभी आप पुरोडाश आदि का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 3.52.5]
हे इन्द्र देव! बीच वाले सवन में गवादि युक्त उत्तम पुरोडाश का यहाँ विराजमान होकर सेवन करो। तुम्हारे सेवक स्तुति के लिए उत्कंठित रहते हैं। तुम्हारी सेवा के लिए इधर-उधर विचरण करने वाले प्रार्थनाकारी श्लोकों से तुम्हारी आराधना करते हैं तथा पुरोडाश आदि को प्राप्त करते हैं। 
Hey Indr Dev! Oblige us by eating our Purodash during the day. The devotees are eager to worship-pray you and move hither-thither like an ox-bull to serve you. You eat Purodash when the worshipers request you.
तृतीये धानाः सवने पुरुष्टुत पुरोळाशमाहुतं मामहस्व नः। 
ऋभुमन्तं वाजवन्तं त्वा कवे प्रयस्वन्त उप शिक्षेम धीतिभिः
हे बहुजन स्तुत इन्द्र देव! तीसरे सवन में हमारे भुने जौ का और हुत पुरोडाश का भक्षण करें। हे कवि! आप ऋभु वाले तथा धन युक्त पुत्र वाले हैं। हम लोग हवि लेकर स्तुतियों द्वारा आपकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 3.52.6]

 ऋभु गण :: ऋभु, विभु व वाज यह तीन सुधन्वा आङ्गिरस के मानव योनि में पुत्र हैं और त्वष्टा के शिष्य बनकर तक्षण की शिक्षा ग्रहण करते हैं। उन्होंने कठिन साधना से उन्होंने देवत्व की उपलब्धि प्राप्त की। ऋषिगण उनकी स्तुति करते हैं।[बृहद्देवता 3.83, सायण]

ऋग्वेद के सूक्त 1.20, 1.110,  1.161,  3.60, 4.33-37,  7.48, 10.76.1 ऋभुओं की स्तुति में हैं।
शतपथ ब्राह्मण 14.2.2.9, तैत्तिरीय आरण्यक 4.9.2, 5.7.11, में सविता देव के साथ ऋभुओं का तादात्म्य कहा गया है।
यास्क के निरुक्त 11.15 में ऋभुओं की निरुक्ति उरु भान्ति या ऋतेन भान्ति या ऋतेन भवन्ति के रूप में की गई है। इसी स्थान पर आदित्य रश्मियों को भी ऋभव: कहा गया है। इस निरुक्ति से संकेत मिलता है कि ऋभुओं का अधिकार ऋत् पर है, सत्य पर नहीं। किसी सत्य का मर्त्य स्तर पर साक्षात्कार करना ऋत् कहलाता है।  
अथर्ववेद 20.127.4 के आधार पर इसे शकुन विद्या कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में सभी को विभिन्न रूपों में शकुन-अपशकुन होते हैं। जिस प्रकार पके हुए वृक्ष पर शकुन पक्षी बोलता है, उसी प्रकार रेभ का वाचन करो। अतः  शकुन के सत्य होने के लिए यह आवश्यक है कि वृक्ष पूर्ण विकसित हो। रेभ वैदिक साहित्य का सार्वत्रिक शब्द है और यह ऋभु से सम्बन्धित हो सकता है।
त्वष्टा ने एक चमस पात्र का निर्माण किया था। अग्निदेव ने देवताओं को दूत के रूप में जाकर उन तीनों से कहा कि एक चमस पात्र से चार चमस बना दें। उन्होंने स्वीकार कर लिया तथा चार चमस बना दिये। फलस्वरूप तीसरे सवन में स्वधा के अधिकारी हुए। उन्हें सोमपान का अधिकार प्राप्त हुआ तथा देवताओं में उनकी गणना होने लगी। उन्होंने अमरत्व प्राप्त किया।
सुधन्वा पुत्रों में से कनिष्ठ बाज देवताओं से, मध्यम बिंबन वरुण से ज्येष्ठ ऋभुगण देवराज इन्द्र  से सम्बन्धित हुए। 
उन्होंने अपने वृद्ध माता-पिता को पुन: युवा बना दिया। अश्विनी कुमारों के लिए तीन आसनों वाला रथ बनवाया, जो अश्व के बिना चलता था। देवराज इन्द्र के लिए रथ का निर्माण किया। देवताओं के लिए दृढ़ कवच बनाया तथा अनेक आयुधों का निर्माण भी किया।
अग्नि वसु आदि देवतागण ऋभुओं के साथ सोमपान नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें मनुष्य की गंध से डर लगता था। सविता तथा प्रजापति (ऋभुओं के दोनों पार्श्व में विद्यमान रहकर) उनके साथ सोमपान करते थे। 
ऋभुओं को स्तोत्र देवता नहीं माना गया है, यद्यपि प्रजापति ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया था। ऋभुओं को स्तोत्र देवता नहीं माना गया यद्यपि प्रजापति ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया था।
हे इन्द्र देव! तुम पुरोडाश का सेवन करो। तुम ऋभुओं से परिपूर्ण तथा धन और पुत्रों से परिपूर्ण हो। हम हवियों से परिपूर्ण श्लोकों द्वारा तुम्हारी अर्चना करते हैं।
Hey Indr Dev, worshiped by a lot of people! Eat the Purodash and roasted barley in the third part of the day i.e., evening. Hey poet! You are associated  Ribhu Gan, have wealth and sons. We make offerings while singing sacred hymns. 
पूषण्वते ते चक्रमा करम्भं हरिवते हर्यश्वाय धानाः।
अपूपमद्धि सगणो मरुद्धिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्
हे शूर इन्द्र देव! आप पूषा नामक देव वाले हैं। आपके लिए हम वही मिला सत्तू बनाते हैं। आप हरि नामक घोड़े वाले हैं। आपके खाने के लिए हम भुना जौ तैयार करते हैं। मरुतों के साथ आप पुरोडाश का भक्षण करें। आप वृत्रासुर का वध करने वाले विद्वान् हैं अतः सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.52.7]
हे इन्द्र! तुम पूषा देवता से युक्त हो, तुम्हारे लिए यह दही से मिश्रित सत्तू तैयार है तथा अश्वान के लिए हम भुना हुआ जौं प्रस्तुत करते हैं, मरुद्गण सहित आकर पुरोडाश स्वीकार करो। तुमने वृत्र का संहार किया, तुम बुद्धिमान हो, इस सोम को ग्रहण करो। 
Hey mighty-brave Indr Dev! You are associated with Pusha Dev. We are preparing Sattu mixed with curd for you. You possess the horses named Hari. We are preparing roasted barley for you.  Eat Purodash along with Marud Gan. You are the enlightened who killed Vrata Sur. Hence drink Somras.
प्रति धाना भरत तूयमस्मै पुरोळाशं वीरतमाय नृणाम्।
दिवेदिवे सदृशीरिन्द्र तुभ्यं वर्धन्तु त्वा सोमपेयाय धृष्णो
हे अध्वर्युओं! इन्द्र देव के लिए शीघ्र भुना जौ प्रदान करें। यह नेतृतम हैं। इन्हें पुरोडाश प्रदत्त करें। हे शत्रुओं के अभिभव कर्ता इन्द्र देव! आपको लक्ष्य कर प्रतिदिन की गई प्रार्थना आपको सोमपान के लिए उत्साहित करे।[ऋग्वेद 3.52.8]
हे अध्वर्युओं! इन्द्र के लिए भुने जौं प्रस्तुत करो। यह नायकों में श्रेष्ठ हैं। इन्हें पुरोडाश प्रदान करो। हे इन्द्र देव । तुम शत्रुओं को दूर करने वाले हो। तुम्हारे लिए प्रतिदिन की जाने वाली वंदनाएँ सोमपान के कार्य में तुम्हें प्रोत्साहित करें।
Hey priests organising Yagy! Keep the roasted barley ready for Indr Dev. He is the supreme leader-commander. Offer him Purodash. Hey destroyer of the enemy Indr Dev! We have recited the prayer for you to sip Somras.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र और पर्वतछन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप, गायत्री, बृहती
इन्द्रापर्वता बृहता रथेन वामीरिष आ वहतं सुवीराः।
वीतं हव्यान्यध्वरेषु देवा वर्षेथां गीर्भिरिळया मदन्ता
हे द्योतमान इन्द्र देव और पर्वत! महान् रथ पर मनोहर और सुन्दर पुत्र से युक्त अन्न लावें। हमारे यज्ञ में आप दोनों हव्य का भक्षण करें। हव्य द्वारा हर्षित होकर हमारे स्तुति लक्षण वचनों से वर्द्धित होवें।[ऋग्वेद 3.53.1]
हे इन्द्र देव, पर्वत! अपने महान रथ पर श्रेष्ठ संतान परिपूर्ण अन्न लाओ। तुम ज्योर्तिमान हो। हमारे यज्ञ में पधारकर हवि का सेवन करो। हवियों द्वारा पुष्ट होते हुए
हमारी श्रेष्ठ प्रार्थनाओं से वृद्धि को ग्रहण करो।
Hey Indr Dev & Parwat! Bring beautiful sons and food grains over your lovely charoite. On being happy by eating the offerings in our Yagy, become happy by listening to the prayers-hymns.
तिष्ठा सु कं मघवन्मा परा गाः सोमस्य नु त्वा सुषुतस्य यक्षि।
पितुर्न पुत्रः सिचमा रभे त इन्द्र स्वादिष्ठया गिरा शचीवः
हे मघवन्! इस यज्ञ में कुछ काल तक आप सुख पूर्वक निवास करें। हमारे यज्ञ से चले मत जावें, क्योंकि सुन्दर अभिषुत सोम द्वारा हम शीघ्र ही आपका यजन करते हैं। हे शक्ति सम्पन्न इन्द्र देव! मधुर वचनों द्वारा पुत्र जिस प्रकार से पिता आश्रय ग्रहण करता है, उसी प्रकार ही हम सुमधुर स्तुतियों द्वारा आपका आश्रय ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 3.53.2]
हे इन्द्र देव! कुछ समय तक इस यज्ञ में आनन्द पूर्वक रहो। हमारे यज्ञ में उपस्थित रहो। हम रमणीक निष्पन्न सोम रस द्वारा तुम्हारा यज्ञ करते हैं। तुम अत्यन्त बली हो, जनक के वस्त्रों को मीठे वचन बोलते हुए शिशु पकड़ते हो।
Hey Indr Dev! Stay in our Yagy comfortably for some time. We perform-conduct Yagy with nicely extracted Somras. Hey mighty Indr Dev! We seek asylum under you like a son seeks shelter under his son. We desire protection under you by singing pleasing sacred hymns for you. 
शंसावाध्वर्यो प्रति मे गृणीहीन्द्राय वाहः कृणवाव जुष्टम्। 
एदं बर्हिर्यजमानस्य सीदाथा च भूदुक्थमिन्द्राय शस्तम्
हे अध्वर्युओं! हम दोनों प्रार्थना करेंगे। आप हमें उत्तर दें। हम दोनों इन्द्र देव के उद्देश्य से प्रीति युक्त प्रार्थना करते हैं। आप याजकगण के कुश के ऊपर उपवेशन करें। इन्द्र देव के लिए हम दोनों के द्वारा किया गया उकथ प्रशस्त है।[ऋग्वेद 3.53.3]
हे अध्वर्युओं! हम दोनों उन इन्द्रदेव की प्रार्थना करेंगे। तुम हमको सदुपदेश करो। हम इन्द्रदेव के प्रति श्रद्धा परिपूर्ण रहते हुए उनका पूजन करें। तुम यजमान के कुशारूप आसन पर विराजमान होओ। हमारे द्वारा प्रदत्त उक्त प्रार्थना इन्द्र देव के लिए आकृष्ट करने वाली हो।
Hey priests performing the Yagy! We will pray to Indr Dev. You guide us. Both of us pray-worship Indr Dev with love. Sit over the Kush mat. Prayers made by us will attract Indr Dev. 
जायेदस्तं मघवन्त्सेदु योनिस्तदित्त्वा युक्ता हरयो वहन्तु। 
यदा कदा च सुनवाम सोममग्निष्ट्वा दूतो धन्वात्यच्छ
हे मघवन्! स्त्री ही घर होती है और स्त्री ही पुरुषों का मिश्रण स्थान है। रथ में युक्त होकर अश्व आपको उस घर में ले जावे। हम जब कभी आपके लिए सोमरस को अभिषुत करेंगे, तब हमारे द्वारा प्रहित, दृतस्वरूप अग्नि देव आपके निकट गमन करें।[ऋग्वेद 3.53.4]
अभिषुत :: जो यज्ञ के लिए स्नान कर चुका हो, निचोड़ा हुआ, (अभिषेचन, अभिषेचनीय, अभिषेच्य, अभिसंग, अभिसंताप); यह अतीव मधुर सोम तुम्हारे लिये अभिषुत हुआ है; anointed, bathed for the Yagy, squeezed.
हे इन्द्र देव! नारी ही पुरुषों का वास स्थान है। रथयुक्त अश्व तुमको इस भवन में भेजें। हम जब कभी तुम्हारे सोम को संस्कारवान करें, तब हमारे द्वारा अभिषिक्त अग्नि दूत रूप से तुम्हें प्राप्त हो।
Hey Indr Dev! The wife constitute home, living with husband. Let the charoite deploying horses bring to that house. When ever we anoint, extract tasty, sweet Somras and chant Mantr, let Agni Dev approach-come to you. 
परा याहि मघवन्नाच याहीन्द्र भ्रातरुभयत्रा ते अर्थम्। 
यत्रा रथस्य बृहतो निधानं विमोचनं वाजिनो रासभस्य
हे मघवन्! आप हमारे इस यज्ञ में आगमन करें। हे पोषक! दोनों स्थानों में आपका प्रयोजन है; क्योंकि वहाँ घर में स्त्री है और यहाँ सोमरस है। गृह गमन के लिए आप महान् रथ के ऊपर अधिष्ठान करें।[ऋग्वेद 3.53.5]
हे इन्द्र देव! तुम दूरस्थ देश में विचरण करते हुए हमारे यहाँ पधारो। तुम सभी का पालन करने वाले हो, तुम्हारा प्रयोजन दोनों स्थानों पर है। जिस घर में नारी है, वहाँ सोम है। तुम रथ पर आरोहण कर ग्रह को ग्रहण करके अश्वों को खोल दो।
Hey Indr Dev! Visit our Yagy. Hey nurturer! You are desirous of both Home and Somras. For visiting your home ride the charoite (after drinking Somras).
अपाः सोममस्तमिन्द्र प्र याहि कल्याणीर्जाया सुरणं गृहे ते। 
यत्रा रथस्य बृहतो निधानं विमोचनं वाजिनो दक्षिणावत्
हे इन्द्र देव! यहीं रुककर सोमरस का पान कर घर जावें। आपके रमणीय घर में मङ्गलकारिणी स्त्री और सुन्दर ध्वनि है। गृह गमन के लिए आप महान् रथ के ऊपर अवस्थान करें अथवा अश्व को रथ से विमुक्त करो इस यज्ञ में रुकें।[ऋग्वेद 3.53.6]
रमणीक :: मनोहर, आभासी, जाली,  आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला, सुहावना, ललित, आनंदकर; delightful, delectable, enjoyable, colourful.
सुखद, रमणीय, सुहावना, ख़ुशगवारहे इन्द्र देव! तुम यहाँ आकर सोम पान करो। सोम पान करके ही गृह को गमन करना। तुम्हारे घर में सौभाग्यवती रमणीय नारी है। तुम गृह जाने के लिए रथ पर चढ़ो और यहाँ अश्वों को खोल दो।
Hey Indr Dev! Go to your house after drinking Somras. Your delightful, beautiful & attractive house has righteous-virtuous wife and auspicious pleasing-sounds. Either go to your house over the great charoite or release the horses and stay here.
इमे भोजा अङ्गिरसो विरूपा दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीराः। 
विश्वामित्राय ददतो मघानि सलत्रसावे प्र तिरन्त आयुः
हे इन्द्र देव! यज्ञ करने वाले ये भोज सुदास राजा के याजक हैं, नाना रूप हैं अर्थात् अङ्गिरा मेधातिथि आदि है। देवों से भी बलवान् रुद्र के पुत्र बलवान् मरुत मुझ विश्वामित्र के लिए अश्वमेध में महनीय धन देते हुए अन्न को भली-भाँति वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 3.53.7]
हे इन्द्र देव! यह भोज और सुदास राजा की ओर से यत्न करते हैं। यह अंगिरा, मेधातिथि आदि अनेक रूप वाले हैं, देवगणों, बली रुद्र उत्पन्न मरुद्गण अश्वमेध यज्ञ में मुझ वैश्वामित्र को उत्तम धन प्रदान करो और अन्न की वृद्धि करो।
Hey Indr Dev! The performers of Yagy, Bhoj & Sudas are making offerings-sacrifices, with Angira & Medhatithi as the priests. Let Marut the son of mighty Rudr, mightier than the demigods-deities, provide me i.e., Vishwa Mitr with a lot of money and food grains.
रूपरूपं मघवा बोभवीति मायाः कृण्वानस्तन्वं १परि स्वाम्। 
त्रिर्यद्दिवः परि मुहूर्तमागात्स्वैर्मन्त्रैरनृतुपा ऋतावा
इन्द्र देव जिस रूप की कामना करते हैं, उस रूप के हो जाते हैं। मायावी इन्द्रदेव अपने शरीर को नानाविध बनाते हैं। वे ऋतवान् होकर भी अऋतु में सोमपान करते हैं। वे स्वकीय स्तुति द्वारा आहूत होकर, स्वर्ग लोक से मुहूर्त बीच में तीनों सवनों में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 3.53.8]
इन्द्र जैसी कामना करते हैं वैसा ही रूप बना लेते हैं। वे अपने शरीर को माया द्वारा विविध रूप को बनाने में समर्थ हैं। वे ऋतुओं को प्रेरित करने वाले होकर भी सोमपान करने में किसी ऋतु विशेष का ध्यान नहीं रखते। वे अपनी ही प्रार्थनाओं द्वारा पुकारे जाकर तीनों सवनों में पहुँचते हैं।
Indr Dev assumes desired body shape & size. Illusive Indr Dev mould his body in various ways. Though devoted to the seasonal changes yet he drink Somras in adverse situations as well. He mobilize in the three parts of the day as and when addressed by the devotees with prayers-worship.
Somras can be used in all seasons, all parts of the year. Dev Raj responds to the prayers, requests of the worshipers throughout the solar day.
महाँ ऋषिर्देवजा देवजूतोऽस्तभ्नात्सिन्धुमर्णवं नृचक्षाः।
विश्वामित्रो यदवहत्सुदासमप्रियायत कुशिकेभिरिन्द्रः
अत्यधिक सामर्थ्यवान्, अतीन्द्रियार्थ द्रष्टा द्योतमान तेजों के जनयिता, तेजों द्वारा आकृष्ट और अध्वर्यु आदि के उपदेष्टा विश्वामित्र ने जलवान सागर को निरुद्ध वेग किया। पिजवन के पुत्र सुदास राजा ने जब विश्वामित्र से यज्ञ कराया, तब इन्द्र देव ने कुशिक गोत्रोत्पन्न ऋषियों के साथ उत्तम व्यवहार किया।[ऋग्वेद 3.53.9]
अत्यन्त समर्थ, तेजस्वी तेजों को उत्पन्न करने वाले अध्वर्यु आदि को उपदेश देने वाले वैश्वामित्र ने जल से पूर्ण सागर को गति को बाँध दिया। जब उन वैश्वामित्र ने पिजवन पुत्र सुदास को यज्ञकर्म में लगाया, तब इन्द्रदेव ने कौशिकों के प्रति अपना श्रेष्ठ व्यवहार व्यक्त किया।
Highly capable, possessing intuition, producer of shine, Vishwa Mitr, preached the Ritviz who were attracted towards him due to his aura and regulated the flow of ocean currents. When king Sudas son of Pijvan managed to conduct-perform the Yagy by Vishwa Mitr, Indr Dev acted decently with the Kaushiks.
हंसाइव कृणुथ श्लोकमद्रिभिर्मदन्तो गीर्भिरध्वरे सुते सचा। 
देवेभिर्विप्रा ऋषयो नृचक्षसो वि पिबध्वं कुशिकाः सोम्यं मधु
हे मेधावियों, हे अतीन्द्रियार्थ द्रष्टाओं, हे नेतृगण के उपदेशको, हे कुशिक गोत्रोत्पन्नों, हे पुत्रों! यज्ञ में पत्थरों द्वारा सोमरस के अभिषुत होने पर आप लोग स्तुतियों द्वारा देवताओं को प्रसन्न करते हुए श्लोक (मन्त्र) का भली-भाँति उच्चारण करें, जिस प्रकार से हँस शब्दों का भली-भाँति उच्चारण करते हैं। उसी प्रकार देवगण के साथ आप लोग मधुर सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 3.53.10] 
हे विद्वानो! परमहंसी! हे ऋषियों! हम सभी को देखने वालों! तुम यज्ञ अनुष्ठान में पाषणों से सोम के संस्कारित होने पर प्रार्थनाओं से देवताओं को हर्षित करो। हंसों के तुल्य ऋग्वेद स्तोत्रों का उच्चारण करो। देवों के साथ मधुर सोम रस का पान करो। 
Hey intellectuals, Kaushik clan descendants, possessor of intuition-power to peep into the future, preachers-guides of the Rishi-Muni conducting Yagy-Hawan! Recite-pronounce the sacred hymns-Mantr, Strotr properly to please-amuse the demigods-deities and enjoy Somras with them.
उप्र प्रेत कृशिकाश्चेतयध्वमश्वं राये प्र मुञ्चता सुदासः।
राजा वृत्रं जङ्घनत्प्रागपागुदगथा यजाते वर आ पृथिव्याः
हे कुशिक गोत्रोत्पन्नो, हे पुत्रो! आप लोग अश्व के समीप जाकर अश्व को उत्तेजित करें। धन के लिए सुदास के अश्व को छोड़ दें। राजा इन्द्र देव ने विघ्न कारक वृत्र का पूर्व, पश्चिम और उत्तर देश में वध किया। इसलिए सुदास राजा पृथ्वी के उत्तम स्थान में यज्ञ कार्य सम्पादित करें।[ऋग्वेद 3.53.11] 
उत्तेजित :: उकसाना,  भड़काना; excite, agitate, elated.
हे कौशिको! तुम अश्व के समीप जाकर इसे उत्तेजित करो। सुदास राजा के अश्व को धन के लिए छोड़ो। इन्द्रदेव ने बाधा उत्पन्न करने वाले पुत्र का पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में संहार किया। राजा सुदास ने महान भू-भाग में पावन कर्म संस्कार किया।
Hey descendants of Kaushik! Go to the horse and excite-agitate it. Let the horse of Sudas roam for money. Indr Dev killed Vrata Sur in east, West & North directions, so Sudas has conducted the Yagy at the most auspicious part-land of the earth.
The horse used to be released for conducting Ashw Medh Yagy, i.e., bringing the other kings to his fold and collect taxes from them. 
य इमे रोदसी उभे अहमिन्द्रमतुष्टवम्। विश्वामित्रस्य ब्रह्मेदं भारतं जनम्
हे कुशिक पुत्रो! हमने द्यावा-पृथ्वी द्वारा इन्द्र देव की प्रार्थना की। स्तोता विश्वामित्र का यह इन्द्र विषयक स्तोत्र भरत कुल के मनुष्यों की रक्षा करे।[ऋग्वेद 3.53.12]
हे कौशिको। हमने क्षितिज धरा के सहयोग से इन्द्र देव की अर्चना की है, प्रार्थना करने वाले विश्वामित्र का इन्द्रदेव के प्रति कहा गया श्लोक भरत वंशियों की सुरक्षा करें। 
Hey descendants of Kaushik! We worshiped Dev Raj Indr along with the heaven and the earth. Let this Strotr composed by Vishwa Mitr protect the Bharat clan-descendants.
विश्वामित्रा अरासत ब्रह्मेन्द्राय वज्रिणे। करदिन्नः सुराधसः॥
विश्वामित्र के वंशवालों ने वज्रधर इन्द्र के लिए स्तुति की। इन्द्र देव हम लोगों को उत्तम धन से युक्त करें।[ऋग्वेद 3.53.13] 
विश्वामित्र के वंशजों ने वज्रधारी इन्द्रदेव का पूजन किया है। वे इन्द्रदेव हमको महान धन से सुशोभित करें।
Descendants of Vishwa Mitr prayed-worshiped Indr Dev. Let Indr Dev reward us with valuables-riches.
किं ते कृण्वन्ति कीकटेषु गावो नाशिरं दुह्रे न तपन्ति धर्मम्। 
आ नो भर प्रमगन्दस्य वेदो नैचाशाखं मघवन्रन्यया नः
हे इन्द्र देव! अनार्यों के निवास योग्य देशों में कीकट समूह के बीच में गौएँ आपके लिए क्या करेंगी? ये सोमरस के साथ मिश्रित होने के योग्य दुग्ध दान नहीं करती। दुग्ध प्रदान द्वारा वे पात्र को भी दीप्त नहीं करतीं। हे धनवान् इन्द्र देव! उन गौओं को आप हमारे निकट लावें और प्रमगन्द के धन का भी आनयन करें। हे मघवन्, नीच वंश वालों को आप नियमित करें।[ऋग्वेद 3.53.14]
कीकट :: मगध देश का प्राचीन वैदिक नाम, तंत्र के अनुसार चरणाद्रि-चुनार से लेकर गुद्धकुट-गिद्धौर तक कीकट देश है, मगध उसी के अंतर्गत है। घोड़ा,  प्राचीन काल की एक अनार्य जाति आदि जो कोकट देश में बसती थी, निर्धन, गरीब, कृपण, कजुंस। Generally, barbarians, those people who did not follow any rule regulations, virtues inhabited the deserts lands in Arab countries.
हे इन्द्र देव! कीकट लोग जो कि अनार्य हैं, वे गायों का क्या उपयोग करते हैं? वे न तो दूध पीते हैं, न घृत निकालते हैं। हे इन्द्र देव! उन गायों को हमारे समीप ले आओ, अधिक धन प्राप्त करने की कामना से धन उधार देने वालों के धनों को भी प्राप्त करवा दो।
Hey Indr Dev! The cows will serve no purposes in the lands inhabited by the Keekat, being Anary-barbarians, ignorant, meat eaters. The cows there do not yield milk, good enough to be added to Somras. The milk pot do not shine with their milk. Hey Indr Dev! Bring these cows to us. Give us the valuable of those who land money for the sake of interest. Regulate-control the people low origin.
ससर्परीरमतिं बाधमाना बृहन्मिमाय जमदग्निदत्ता।
आ सूर्यस्य दुहिता ततान देवेष्वमृतमजुर्यम्
अग्नि देव को प्रज्वलित करने वाले ऋषियों द्वारा सूर्य से लाकर हम लोगों को दी गई, अज्ञान को बाधित करने वाली, रूप, शब्द तथा सभी जगह सर्पणशीला वाक (वचन) आकाश में प्रभूत शब्द करती हैं। सूर्य की पुत्री वाग्देवता इन्द्र देव आदि देवताओं के पास पत्थर रहित अमृत है।[ऋग्वेद 3.53.15] 
अग्नि को चैतन्य करने वाले ऋषियों द्वारा सूर्य से ग्रहण कर, हमको दी गयी अज्ञान को हटाने वाली रूप और ध्वनि से परिपूर्ण लपकती हुई वाणी ध्वनि द्वारा ज्ञान को प्रकट करती है। सूर्य की दुहिता वाणी अमृत रूप अन्न को विस्तृत करती है।
The language, voice-speech provided to us, which eliminated ignorance, brought from the Sun by the Rishis-sages who ignite Agni-fire, elaborating structure, alphabets. (Thus we are able to converse-talk.) The daughter of Sun-Sury Narayan and Indr Dev who gave us language, has the elixir-nectar without stones. 
ससर्परीरभरत्तूयमेभ्योऽधि श्रवः पाञ्चजन्यासु कृष्टिषु।
सा पक्ष्या ३ नव्यमायुर्दधाना यां मे पलस्तिजमदग्नयो ददुः
गद्य-पद्य रूप से सभी जगह सर्पणशीला वाग्देवता चारों वर्ण तथा निषाद में जो अन्न विद्यमान है, उससे अधिक अन्न हमें शीघ्र दें। दीर्घ आयु वाले जमदग्नि आदि मुनियों ने जिस वचन को सूर्य से लाकर हमें दिया, पक्षों के निर्वाहक सूर्य की पुत्री वह वाग्देवता, हमारे लिए नूतन अन्न दान प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.53.16]
लपकती हुई गद्य रूपिणी वाणी सभी ओर से ज्ञान रूप अन्न को हमें दें। दीर्घजीवी ऋषियों ने जिस वाणी को सूर्य से प्राप्त कर हमकों दिया है, वह सूर्य की दुहिता वाणी हमको नव जीवन प्रदान करें।
Let the deity of speech grant us enlightenment in the form of food stuff. Let the words-voice, speech of the daughter of Sun Vagdevta, grant us new lease of life brought to us by the Rishis like Jamdagni.
स्थिरौ गावौ भवतां वीळुरक्षो मेषा वि वर्हि मा युगं वि शारि।
 इन्द्रः पातल्ये ददतां शरीतोररिष्टनेमे अभि नः सचस्व
सुदास के यज्ञ में अवभृथ करने के उपरान्त यज्ञशाला से जाने की इच्छा करते हुए विश्वामित्र रथाङ्ग की प्रार्थना करते हैं। गोद्वय स्थिर होवें अक्ष दृढ़ होवें। दण्ड जिससे विनष्ट न हो, युग जिससे विनष्ट न हो, युग जिससे विशीर्ण न हो। पतनशील कीलकद्वा के विशीर्ण होने के पहले ही इन्द्रदेव धारित करें। हे अहिंसित नेमिविशिष्ट स्थ! आप हम लोगों के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 3.53.17]
दोनों वृषभ स्थिर हों। धुर अटल हों, जिससे दंड नष्ट न हो, जुआ न सूख जाए, दोनों कीलें न उखड़ें। वे इन्द्र देव रथ को गिरने से बचाएँ। हे अरिष्ट नेमि रथ! तू हमको पथ में पहले जाता हुआ हमेशा प्राप्त हो। 
Let both the horses be steady, the axle be strong, the pole should not be defective, the yoke should not be rotten. May Devraj Indr preserve the two yoke-pins from decay & the charoite with uninjured felloes (the outer rim of the wheel), to which the spokes are fixed, be ready for us.
FELLOES :: रथ के पहिये की बहरी सतह; the outer rim of the wheel.
बलं धेहि तनूषु नो बलमिन्द्रानळुत्सु नः।
बलं तोकाय तनयाय जीवसे त्वं लि बलदा असि
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों के शरीर में बल प्रदान करें, हमारे बैलों को बल प्रदान करें और हमारे पुत्र-पौत्रों को चिरजीवी होने के लिए बल प्रदान करें, क्योंकि आप स्वयं बलप्रद हैं।[ऋग्वेद 3.53.18] 
हे इन्द्र देव! तुम अत्यन्त शक्तिशाली हो। हमारे शरीर को जल से परिपूर्ण करो। हमारे ऋषभों को शक्तिशाली बनाओ, पुत्र-पौत्रादि को दीर्घ जीवी होने के लिए बल प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You are mighty-powerful. Grant strength-power along with our oxen-bulls. Grant longevity (life span ranging from 400 years-100 years in Sat Yug to Kali Yug respectively) our sons and grandsons. 
None is immortal-for ever. Maximum life one can enjoy is 8 Prardh, the life span of Bhagwan Shiv.
अभि व्ययस्व खदिरस्य सारमोजो धेहि स्पन्दने शिंशपायाम्।
अक्ष वीळो वीळित वीळयस्व मा यामादस्मादव जीहिपो नः
हे इन्द्र देव! रथ के खदिर-काष्ठ के सार को दृढ़ करें, रथ के शीशम के काष्ठ को दृढ़ करें। हम लोगों के द्वारा दृढ़ीकृत अक्ष, आप दृढ़ करें। हमारे गमनशील इस रथ से हमें फेंक मत देना।[ऋग्वेद 3.53.19] 
हे इन्द्र देव! रथ के खदिर के काष्ठ के सार को दृढ़ बनाओ। शीशम के काष्ठ को भी दृढ़ करो। हे अक्ष! तुम हमारे द्वारा मजबूती से निर्मित किये गये हो। अतः स्थिर बनी। कहीं हमारे विचरणशील रथ से हमको पृथक न कर देना।
Hey Indr Dev! Enforce the wood Khadir & Sheesham used in the charoite. Give strength to the excel of our charoite. Do not through us away from our moving charoite.
अयमस्मान्वनस्पतिर्मा च हा मा च रीरिषत्।
स्वस्त्या गृहेभ्य आवसा आ विमोचनात्
वनस्पतियों द्वारा निर्मित यह रथ हम लोगों को त्यक्त न करे, न विनष्ट करे। जब तक हम लोग घर न प्राप्त करें, जब तक रथ चलता रहे और जब तक कि अश्व विमुक्त न हो जायें, तब तक हम लोगों का मङ्गल हो।[ऋग्वेद 3.53.20]
यह रथ वृक्षों की लकड़ियों द्वारा बनाया गया है। यह हमको छोड़ न दे। जब तक हमको गृह प्राप्त न हो, तब तक यह रथ चलता रहे और जब तक अश्वों का खोल न दिया जाये तब तक हमारा कल्याण हो।
This charoite made of wood, should neither reject nor destroy us. This charoite should continue moving till we reach our home-destination. The horses should not be released till our welfare is incomplete. 
इन्द्रोतिभिर्बहुलाभिर्नो अद्य याच्छ्रेष्ठाभिर्मघञ्छूर जिन्व।
यो नो द्वेष्ट्यधरः सस्पदीष्ट यमु द्विष्मस्तमु प्राणो जहातु
हे शूर धनवान् इन्द्र देव! हम लोग शत्रुओं के हिंसक है। हम लोगों को आप प्रभूत और श्रेष्ठ आश्रम दान द्वारा प्रसन्न करें। जो हम लोगों से द्वेष करता है, वह निकृष्ट व पतित है। हम लोग जिससे द्वेष करते हैं, उसके प्राणों का हरण करें।[ऋग्वेद 3.53.21] 
प्रभूत :: प्रचुर, विपुल, प्रभूत, ज़्यादा, विस्तृत, विस्तीर्ण; spacious, dominant, ample, abundant.
हे पराक्रमी! हे शत्रु संहारक इन्द्रदेव! तुम शत्रुओं का पतन करने के कर्म में पराक्रमी श्रेष्ठ सेनाओं से हमको परिपूर्ण करके विजय ग्रहण कराओ और हर्षित करो। हमसे शत्रुता करने वाला भली-भाँति नीचा देखे। जिससे हम द्वेष करें, उसके प्राण उसका त्याग करें।
Hey brave-mighty wealthy Indr Dev! We are the destroyers of the enemy. Grant us excellent spacious homes-Ashram, shelter. One who is envious to us is worst and degraded-depraved. Kill-destroy the people who are envious to us.
परशुं चिद्वि तपति शिम्बलं चिह्नि वृश्चति।
उखा चिदिन्द्र येपन्ती प्रयस्ता  फेनमस्यति
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार से कुठार को पाकर वृक्ष प्रतप्त होता है, उसी प्रकार हमारे शत्रु प्रतप्त हो। शाल्मली पुष्प जिस प्रकार से अनायास ही वृन्तच्युत हो जाता है, उसी प्रकार हमारे शत्रुओं के अवयव विच्छिन्न हो। प्रहत जलस्रावी स्थाली पाककाल में जिस प्रकार से फेनोद्गीर्ण करती है, उसी प्रकार मेरी मन्त्र सामर्थ्य से प्रहत होकर शत्रु मुख द्वारा फेनोद्गीर्ण करें।[ऋग्वेद 3.53.22]
हे इन्द्रदेव! जैसे तपती हुई पतीली उबलते हुए फेन निकालती है, वैसे ही हमारे शत्रुओं के मुख मार्गों को निकालें, जैसे सेमर का फूल अनायास ही छिन्न-भिन्न हो जाता है, वैसे ही हमारे शत्रुओं के तन कट कर गिर जायें। जैसे आग पर कुठार को तपाता है, वैसे ही शत्रु सेना संतप्त हो। 
Hey Indr dev! The way-manner in which the tree is troubles by the axe, our enemy too be troubled-tortured. The way the flowers of Shalmali tree detach the body organs our our enemy fall out of their body. The manner in which a cooking pot pour froth may Mantr Shakti should make the enemy release blood from his mouth.
न सायकस्यचिकिते जनासो लोघं नयन्ति पशु मन्यमानाः।
नावाजिनं वाजिना हासयन्ति न गर्दभं पुरो अश्वान्नयन्ति
वसिष्ठ के भृत्यों से विश्वामित्र बोले, हे पुरुषों! अवसान करने वाले विश्वामित्र की मन्त्र-सामर्थ्य को आप लोग नहीं जानते हैं। तपस्या का क्षय न हो जाय, इसी लोभ से चुपचाप बैठे हुए को पशु मानकर ले जा रहे हैं। वसिष्ठ मेरे साथ स्पर्द्धा करने के योग्य नहीं हैं, क्योंकि प्राज्ञ व्यक्ति मूर्ख व्यक्ति को उपहासास्पद नहीं करते हैं, घोड़े के सामने गदहा नहीं लाया जाता है।[ऋग्वेद 3.53.23]
हे मनुष्य! अस्त्रादि के तुल्य अपने प्राणों का अंत करने वाले के अज्ञान को तुम नहीं जानते। वे लालच के वशीभूत हुए अपने को पशु के तुल्य आगे ले जाते हैं। ज्ञानी पुरुष अज्ञानी मनुष्य से सामना करके हंसी नहीं उड़वाते। क्योंकि घोड़े की तुलना गधा नहीं करता।
Vishwamitr told the associates of Vashishth, Hey Humans! You are not aware of the Mantr Shakti (power of the sacred hymns)-powers of Vishwamitr. You are carrying a person sitting quietly-performing ascetics, considering him an ass, due to your greed. Vashishth can not compete with me. Enlightened people do not make fun of the ignorant, while talking to him.
Vishwamitr is no match to Vashishth.
Please refer to :: ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ  (ब्रह्मा 1) VASHISHTH   santoshhindukosh.blogspot.com
राज ऋषि विश्वामित्र ASCETIC VISHAWAMITR santoshhindukosh.blogspot.com
इम इन्द्र भरतस्य पुत्रा अपपित्वं चिकितुर्न प्रपित्वम्।
हिन्वन्त्यश्वमरणं न नित्यं ज्यावाजं परि णयन्त्याजौ
हे इन्द्र देव! भरत वंशीय अपगमन जानते हैं, गमन नहीं जानते हैं अर्थात् शिष्टों के साथ उनकी संगति नहीं है। संग्राम में सहज शत्रु के सदृश उन लोगों के प्रति वे अश्व प्रेरण करते हैं और धनुर्धारण करते है।[ऋग्वेद 3.53.24] 
शिष्ट :: सभ्य, धीर और शांत; learned, polite.
हे इन्द्र देव! यह भरतवंशी प्रार्थक्य जानते हैं और मेल भी जानते हैं। ये संग्राम काल में प्रेरित अश्व के तुल्य धनुष की प्रत्यंचा का घोष करते हैं।
Hey Indr Dev! These sons of Bharat, understand severance-detach from Vashishth, not association with them; they urge their steeds against them as against a constant foe; they bear a stout bow for their destruction in battle.
SEVERANCE :: पृथक्करण, विच्छेद, विभाजन; dissolution, decomposable, caesura, Disruption, disunion.
Hey Indr Dev! The descendants of Bharat do not detach themselves from the learned-enlightened. They shot arrows over the enemies in the war.
इमा उ वां भृमयो मन्यमाना युवावते न तुज्या अभूवन्।
क्व १ त्यदिन्द्रावरुणा यशो वां येन स्मा सिनं भरथः सखिभ्यः
हे इन्द्रा-वरुण! शत्रुओं को वश में करने वाले आपके गतिशील शस्त्र सज्जनों की रक्षा करने वाले हैं, वे किसी के द्वारा नष्ट न हों। आप जिससे अपने मित्र बन्धुओं को अन्नादि प्रदत्त करते हैं, वह यश कहाँ स्थित है?[ऋग्वेद 3.62.1]
हे इन्द्रा-वरुण! सभी को ढकने वाले अंधकार के समान सभी को वशीभूत करने वाले तुम दोनों की विचरणशील क्रियाएँ जानी जाती हैं। वे क्रियाएँ तुम्हारे तपस्वियों के लाभ के लिए हैं तथा किसी तरह भी पतन के योग्य नहीं हैं। 
हे इन्द्रा-वरुण! तुम्हारी यह कीर्ति और तेज कहाँ है? जिसके द्वारा तुम सखाओं के लिए अन्न और शक्ति की वृद्धि करते हो। 
Hey Indr-Varun! Let your dynamic Shastr-weapons, which protect the gentle men & keep the enemies under control, never be destroyed by any one. Where is your might-power with which you grant food grains to the friends, relatives?!
अयमु वां पुरुतमो रयीयञ्छश्वत्तममवसे जोहवीति।
सजोषाविन्द्रावरुणा मरुद्भिर्दिवा पृथिव्या शृणुतं हवं मे
हे इन्द्रा-वरुण! धन की इच्छा करने वाले ये महान् याजक गण अन्न के लिए आप दोनों का सदैव आह्वान करते हैं। मरुद्गण, द्युलोक और पृथ्वी के साथ मिलकर आप दोनों मेरी प्रार्थना का श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.62.2] 
हे इन्द्रा-वरुण! धन की अभिलाषा करने वाले यह साधक तुम दोनों को अन्न की प्राप्ति के लिए आमंत्रित करते हैं। हे मरुतों! आकाश और धरती से संगत तुम मेरे श्लोकों को श्रवण करो।
Hey Indr Varun! The great Ritviz always invoke you for wealth & food grains. Marud Gan, heavens, earth and both of you listen-respond to my prayers-requests.
अस्मे तदिन्द्रावरुणा वसु ष्यादस्मे रयिर्मरुतः सर्ववीरः।
अस्मान्वरूत्रीः शरणैरवन्त्वस्मान्होत्रा भारती दक्षिणाभिः
हे इन्द्रा-वरुण! हम लोगों को उसी अभिलषित धन की प्राप्ति हो। हे मरुद्गण! सर्वकर्म-समर्थ पुत्र और पशुसंघ हम लोगों पास हो। सभी के द्वारा भजनीय देव पत्नियाँ द्वारा हम लोगों की रक्षा करें। होत्रा भारती उदार वचनों द्वारा हम लोगों का पालन करें।[ऋग्वेद 3.62.3]
हे इन्द्रा-वरुण! हमको शक्ति, अलौकिक ऐश्वर्य प्राप्त हो। तुम्हारी रक्षित सेनाएँ अपने शत्रु नाशक साधनों तथा शत्रुओं द्वारा हमारी रक्षा करें। सबका पालन करने वाली, प्रदान करने योग्य और उदार वचनों द्वारा हमारा पोषण करें।
Hey Indr Varun! Grant us divine wealth, comforts, luxuries and power. Hey Marud Gan! We should be blessed with sons capable of performing all sorts of endeavours-Karm and cattle. Let the revered-honoured by all, wives of the demigods-deities protect-nourish us with sweet-encouraging words.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ सत्यो यातु मघवाँ ऋजीषी द्रवन्त्वस्य हरय उप नः।
तस्मा इदन्धः सुषुमा सुदक्षमिहाभिपित्वं करते गृणानः
सोमवान और सत्यवान इन्द्र देव हमारे निकट पधारें। इनके अश्व हमारे निकट आगमन करें। हम याजक गण इनके उद्देश्य से सार विशिष्ट अन्न रूप सोमरस का अभिषव करेंगे। वे तृप्त होकर हम लोगों के अभीष्ट को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 4.16.1]
सोम के स्वामी सत्य से परिपूर्ण इन्द्रदेव हमारे निकट पधारें, इनके अश्व हमारे यहाँ आयें। हम यजमान इन्द्र देव के लिए ही अन्न के सार रूप सोम को सिद्ध करेंगे। वे हमारे द्वारा पूजनीय होकर हमारी इच्छा को पूरी करें।
Let truthful, possessor of Som, Indr dev come close-near us. His horses should come close to us. We Ritviz-desirous, will extract Somras from the specific food grains. He should accomplish our desires on being satisfied.
अव स्य शूराध्वनो नान्तेऽस्मिन्नो अद्य सबने मन्दध्यै।
शंसात्युक्थमुशनेव वेद्याश्चिकितुषे असूर्याय मन्म
हे शत्रुओं को अभिमत करने वाले इन्द्र देव! इस माध्यन्दिन के सवन में आप हम लोगों को विमुक्त करें, जिस प्रकार से गन्तव्य मार्ग के अन्त में मनुष्य घोड़ों को छोड़ देता है। जिससे इस सवन में हम आपको हर्षित करें। हे इन्द्र देव! आप सर्वविद हो और असुरों के हिंसक हैं। यजमान लोग उशना के तुल्य हम आपके लिए मनोहर स्तोत्र का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 4.16.2]
हे इन्द्र देव! तुम शत्रुओं को भयभीत करने वाले हो। दिवस के इस बीच सवन में जैसे अपने निर्दिष्ट जगह पर जाकर अश्वों को विमुक्त किया जाता है, वैसे ही तुम हमें विमुक्त करो, जिससे सवन में हम तुम्हें पुष्ट करें। हे इन्द्र देव! तुम शत्रुओं का विनाश करने वाले एवं सभी के स्वामी हो। उशना के समान यजमान जन तुम्हारे लिए सुन्दर स्तोत को कहते हैं।
Hey Indr Dev! You create fear-terror in the enemies. Release us in the middle segment of the day, just like the person who releases the horses at the end of his journey, so that we may be able to please & nourish you. You are aware of all that happens and slay the demons-giants. The hosts-Ritviz sing beautiful hymns-Strotr in your praise-honour.
कविर्न निण्यं विदथानि साधन्वृषा यत्सेकं विपिपानो अर्थात्।
दिव इत्था जीजनत्सप्त कारूनह्ना चिच्चक्रुर्वयुना गृणन्तः
विद्वान जिस प्रकार से गूढ़ अर्थ का सम्पादन करते हैं, उसी प्रकार अभीष्ट वर्षी इन्द्र देव कार्यों को सम्पादित करते हैं। जब सेचन योग्य सोमरस का अधिक परिमाण में पान करके ये हर्षित होते हैं, तब द्युलोक सप्त संख्यक रश्मियों को वास्तव में उत्पन्न कर देते हैं। स्तूयमान (worth praising) रश्मियाँ दिन में भी मनुष्यों के ज्ञान का सम्पादन करती हैं।[ऋग्वेद 4.16.3]
विद्वान जिस प्रकार से गूढ़ विषयों का सम्पादन करते हैं, उसी प्रकार अभीष्ट वर्षी इन्द्र देव कार्यों को सम्पादित करते हैं। जब सेवन के योग्य सोम को अधिक परिमाण में पान करके पुष्टि को ग्रहण करते हैं, तब अम्बर से सप्त रश्मियाँ मनुष्य के लिए ज्ञानमयी होती हैं।
Indr Dev materialise the tasks in the same manner, in which the scholars decipher the intricate words-text. He become happy after drinking Somras in large doses-quantity. The heaven generate the praise worthy rays which enlighten the humans.
DECIPHER :: कूट (गूढ़) लेखन को पढ़ लेना या समझ लेना; कूटवाचन करना; learn to pronounce, to succeed in reading or understanding, something that is not clear.
स्व१र्यद्वेदि सुदृशीकमर्कैर्महि ज्योती रुरुचुर्यद्ध वस्तोः।
अन्धा तमांसि दुधिता विचक्षे नृभ्यश्चकार नृतमो अभिष्टौ
जब प्रभूत एवं ज्योति स्वरूप द्युलोक रश्मियों द्वारा अच्छी तरह से दर्शनीय होता है, तब देवगण उस स्वर्ग में निवास करने के लिए दीप्ति युक्त होते हैं। नेतृ श्रेष्ठ सूर्य ने आगमन करके मनुष्यों को अच्छी तरह से देखने के लिए घनी भूत अन्धकार को नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 4.16.4]
जब दीप्ति स्वरूप अम्बर किरणों के द्वारा उक्त तरह से दर्शनीय होता है, तब देवता गण तेज से चमकते हुए, उस स्वर्ग में निवास करते हैं। सभी का नेतृत्व करने वाले सविता देव ने प्रकट होकर मनुष्यों को देखने के लिए गंभीर अंधेरे का पतन कर डाला।
The demigods become aurous-radiant, when the heaven is lit with the rays of light. The Sun-Sury Dev appeared and vanished the dense darkness.
ववक्ष इन्द्रो अमितमृजीष्यु १ भे आ पप्रौ रोदसी महित्वा।
अतश्चिदस्य महिमा विरेच्यभि यो विश्वा भुवना बभूव
सोम विशिष्ट इन्द्र देव अमित महिमा धारित करते हैं। वे अपनी महिमा के बल से द्यावा और पृथ्वी दोनों को परिपूर्ण करते हैं। इन्द्र देव ने समस्त भुवनों को अभिभूत किया है। इनकी महिमा समस्त भुवनों से अधिक है।[ऋग्वेद 4.16.5]
सोमवान इन्द्र देव अत्यधिक महिमावान हो जाते हैं। वे अपनी महिमा से नभ और धरती दोनों को सम्पन्न करते हैं। इन्द्र देव ने सभी लोकों को व्याप्त किया है, क्योंकि वे सभी लोकों से श्रेष्ठ हैं।
Possessor of Somras, Indr Dev has immense glory. He compensate the earth & sky by virtue of his glory-might. Indr Dev has enchanted all abodes, since he is the beast amongest all abodes.
विश्वानि शक्रो नर्याणि विद्वानपो रिरेच सखिभिर्निकामैः।
अश्मानं चिद्ये बिभिदुर्वचोभिर्व्रजं गोमन्तमुशिजो वि वव्रुः
इन्द्र देव सम्पूर्ण मनुष्यों के हितकर वृष्टि आदि कार्य को जानते हैं। उन्होंने अभिलाषकारी और मित्र भूत मरुतों के लिए जल वर्षण किया। जिन मरुतों ने वचन रूप ध्वनि से पर्वतों को विदीर्ण किया, उन मरुतों ने इन्द्र देव की अभिलाषा करके गोपूर्ण गोशाला के भण्डार खोल दिये।[ऋग्वेद 4.16.6]
वे इन्द्र देव मनुष्यों के लिए हितकारक सभी कार्यों को जानते हुए जल-वृष्टि आदि करते हैं। उन्होंने अभिलाषा पूर्ण मित्र भाग वाले मरुद्गण के लिए जल-वृष्टि की थी। जिन मरुद्गण ने वाणी की ध्वनि से ही पर्वतों को चीर डाला, उन्होंने इन्द्रदेव की इच्छा करते हुए धेनुओं से पूर्ण गोष्ठ खोल दिया।
Indr Dev is aware of all that which is beneficial-essential for the humans. He showered rains for the desirous friendly Marud Gan. Marud Gan teared-destroyed the mountains just by their loud voice. They opened the gates of cow shed remembering Indr Dev.
अपो वृत्रं वद्रिवांसं पराहन्प्रावत्ते वज्रं पृथिवी सचेताः।
प्रार्णांसि समुद्रियाण्यैनोः पतिर्भवञ्छवसा शूर धृष्णो॥
हे इन्द्र देव! आपके लोक पालक वज्र ने जलावरक मेघ को प्रेरित किया। चेतनावती भूमि आपसे संगत हुई। हे शूर और वर्षणशील इन्द्र देव! आप अपने बल से लोकपालक होकर समुद्र सम्बन्धी और आकाश स्थित जल को प्रेरित किया।[ऋग्वेद 4.16.7]
 हे इन्द्रदेव! आपका वज्र लोकों का रक्षक है। उसने जलों के आवरण रूपी बादल को गतिमान किया। वह चैतन्य पृथ्वी तुमसे पूर्ण हुई। तुम अत्यन्त शक्तिशाली एवं घर्षणशील हो । हे इन्द्रदेव! तुम अपनी ही शक्ति से संसार के तीनों लोकों का पालन करते हुए समुद्र की ओर आकाश में स्थित जल को प्रेरित करो।
Hey Indr Dev! Your Vajr is the protector & nurturer of the universe. It inspires-motivate the water possessing clouds. The earth is conscious due to you. Hey brave, mighty, powerful and rain showering Indr Dev! You became the supporter of the universe and manages-inspires the water in the ocean and the sky.
अपो यदद्रिं पुरुहूत दर्दराविर्भुवत्सरमा पूर्व्यं ते।
स नो नेता वाजमा दर्षि भूरिं गोत्रा रुजन्नङ्गिरोभिर्गृणानः
हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! जब आपने वृष्टि जल को लक्ष्य करके बादलों को विदीर्ण किया तब आपके लिए पहले ही सरमा ने पणियों द्वारा अपहृत गौओं को प्रकट किया। अङ्गिराओं द्वारा स्तूयमान होकर आप हमें प्रचुर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.16.8]
हे इन्द्र देव! तुम अनेकों द्वारा पुकारे गये हो। जब तुमने वृष्टि वाले जल को देखकर बादल को चीर डाला था, तब तुम्हारे लिए सरमा ने पणियों द्वारा चुरायी गयी धेनुओं का भेद खेल दिया था। तुम अंगिराओं द्वारा पूजनीय होकर जन्म देते और हमारा कल्याण करते हो।
Hey Indr Dev! Worshiped-prayed by many people-humans you shattered-teared the clouds and made them rain. Sarma disclosed the secret that the Pani-demons had stolen the cows. Having prayed praised by Angira you grant us sufficient food grains and look after us & our welfare.
अच्छा कविं नृमणो गा अभिष्टौ स्वर्षाता मघवन्नाधमानम्। ऊतिभिस्तमिषणो द्युम्नहूतौ नि मायावानब्रह्मा दस्युरर्त
हे धनवान इन्द्र देव! मानव आपको सम्मानित करते हैं। आपने धन प्रदान करने के लिए कुत्स के अभिमुख गमन किया। याचना करने पर शत्रुओं के उपद्रवों से आश्रयदान द्वारा आपने उनकी रक्षा की। कपटी ऋत्विकों के कार्यों को अपनी अनुज्ञा से जानकर आपने कुत्स के धन लोभी शत्रुओं को युद्ध में विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 4.16.9]
कपटी :: छली, मिथ्याभिमानी, अभिमानी, मिथ्या दावेदार, धूर्त, असत, कृत्रिम, साधन-संपन्न; cheat, insidious, pretentious, disingenuous, deceptor.
हे धनेश्वर इन्द्र! प्राणी जगत तुम्हारा सम्मान करते हैं। धन देने के लिए कुत्स के सम्मुख गए थे। बुलाने पर तुमने शत्रुओं के उपद्रवों से उनको बचाकर शरण दी थी। अपनी सुमति से कपटी ऋत्विकों के कार्यों को तुमने जान लिया तथा कुत्स के धन की कामना करने वाले शत्रु को मार दिया।
Hey wealthy Indr Dev! The humans pray-respect you. You requested Kuts to grant wealth-riches. You protected him on being requested and sheltered him. You realised the designs of the deceptor Ritviz and destroyed the greedy enemies of Kuts in the war-battle.
आ दस्युध्ना मनसा याह्यस्तं भुवत्ते कुत्सः सख्ये निकामः।
स्वे योनौ नि षदतं सरूपा वि वां चिकित्सदृतचिद्ध नारी
हे इन्द्र देव! आपने मन में शत्रुओं को मारने का संकल्प करके कुत्स के घर में आपने आगमन किया। कुत्स भी आपके साथ मैत्री करने के लिए लालायित हुए थे, तब आप दोनों अपने स्थान में उपविष्ट हुए। आपकी सत्य दर्शिनी पत्नी शची आप दोनों का समान रूप देखकर द्विविधा में पड़ गई।[ऋग्वेद 4.16.10]
उपविष्ट ::  आसीन, विराजमान, अध्यासीन, अभिनिविष्ट, बैठा हुआ, जमकर बैठा हुआ; seated, contained.
अवस्थित :: अवस्थान, टिकाव, विद्यमानता, स्थिति, मौक़ा, मुहल्ला; location, locality, locale.
हे इन्द्र देव! तुमने शत्रुओं को समाप्त करने का निश्चय कर लिया और कुत्स के घर जा पहुँचे। कुत्स भी तुम्हारी मित्रता के लिए लालायित था। तब तुम दोनों अपने स्थल पर अवस्थित हुए। सत्य को देखने वाले तुम्हारी भार्या तुम दोनों का एक जैसा रूप देखकर अत्यन्त धर्म संकट में पड़ गई।
Hey Indr Dev! You decided to eliminate the enemy and reached the house of Kuts. Kuts too was eager to have friendship with you. Thereafter, you both seated together. Devi Shachi, your wife became confused, when she found both of  you having the same-alike figure. 
यासि कुत्सेन सरथमवस्युस्तोदो वातस्य हर्योरीशानः।
ऋज्रा वाजं न गध्यं युयूषन्कविर्यदहन्यार्याय भूषात्
शत्रुओं का वध करने वाले, वायु के तुल्य गति वाले अश्वों के स्वामी, हे इन्द्र देव! जिस दिन दूरदर्शी कुत्स ग्रहणीय अन्न के तुल्य ऋजुगामी (straight moving) अश्व द्वय को अपने रथ युक्त करके आपत्ति से निस्तीर्ण होने में समर्थ हुए, उस दिन हे इन्द्र देव! आपने कुत्स की रक्षा करने की इच्छा से उसके साथ एक रथ पर गमन किया। आप शत्रु नाशक और वायु के सदृश घोड़ों के अधिपति हैं।[ऋग्वेद 4.16.11]
जब रानी कुत्स स्वीकार करने योग्य अन्न के समान तीव्रगामी दोनों अश्वों को अपने रथ में जोड़कर संकट से छुटकारा पाने में सफल हुई, तब हे इन्द्रदेव! तुमने उसके मार्ग पर उसकी रक्षा करने के लिए एक साथ गमन किया। तुम शत्रुओं का विनाश करने वाले पवन के समान गति वाले अश्वों के दाता हो।
Slayer of enemies, possessor of fast moving horses like Pawan-air, Hey Indr Dev! The day when you deployed your horses in the charoite which are like the acceptable food grains, free from troubles-tensions, you rode the charoite to protect Kuts.
 कुत्साय शुष्णमशुषं नि बर्हीः प्रपित्वे अह्नः कुयवं सहस्रा।
सद्यो दस्यून्प्र मृण कुत्स्येन प्र सूरश्चक्रं वृहतादभीके
हे इन्द्र देव! आपने कुत्स के लिए सुख रहित शुष्ण का वध किया। दिवस के पूर्व भाव में आपने कुयव नाम वाले असुर को मारा। बहुत परिजनों से आवृत होकर आपने उसी समय वज्र द्वारा शत्रुओं को भी विनष्ट किया। आपने संग्राम में सूर्य के चक्र को छिन्न कर दिया।[ऋग्वेद 4.16.12]
हे इन्द्र देव! तुमने कुत्स के कारण शुष्ण को समाप्त कर डाला। दिन के प्रारम्भ में तुमने कुयव नामक दैत्य का वध किया, उसी समय तुमने सूर्य के चक्र को भी तोड़ दिया।
For Kuts, you slained the unhappy Shushn and in the forepart of the day, you slained Kuyav surrounded by thousands of his relatives with the thunderbolt; you have swiftly destroyed the Demons and you have cut them to pieces in the battle, with the wheel of the chariot of the Sun.
Hey Indr Dev! You killed Shushn-demon for the sake of Kuts. Earlier in the morning you killed Kuyav, another demon & enemies surrounded by many of their relatives with your Vajr & the wheel of the charoite of Sun-Sury Narayan in the war. 
त्वं पितुं मृगयं शूशुवांसमृजिश्वने वैदथिनाय रन्धीः।
पञ्चाशत्कृष्णा नि वपः सहस्रात्कं न पुरो जरिमा वि दर्दः
हे इन्द्र देव! आपने पिप्रु नामक असुर को तथा प्रवृद्ध मृगय-प्रवृक नामक असुर का वध किया। आपने विदीथ के पुत्र ऋजिश्वा को बन्दी बनाया। आपने पचास हजार कृष्ण वर्ण राक्षसों का वध किया। वृद्धावस्था जिस प्रकार से रूप को विनष्ट करती है, उसी प्रकार से आपने शम्बर के नगरों को विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 4.16.13]
हे इन्द्र देव! तुमने पिप्रू और प्रवृक नामक दैत्य को मार दिया। तुमने वैदधि के पुत्र ऋजिश्वा को बनाया और पचास सहस्र काले वर्ण वाले असुरों का वध किया। जैसे बुढ़ापा रूप का नाश करता है वैसे ही तुमने शत्रु के नगरों का नाश कर दिया।
Hey Indr Dev! You killed Pipru & Mragay, the demons. You imprisoned Rijshva, son of Vithith. You killed 50,000 black skinned-coloured demons. The way old age takes over living being you destroyed the cities of Shambar demon.
सूर उपाके तन्वं १ दधानो वि यत्ते चेत्यमृतस्य वर्पः।
मृगो न हस्ती तविषीमुषाणः सिंहो न भीम आयुधानि बिभ्रत्
हे इन्द्र देव! आप मरण रहित है। जब आप सूर्य के निकट अपना शरीर धारित करते हैं, तब आपका रूप प्रकाशित होता है। सूर्य के समीप सबका रूप मलिन हो जाता है, किन्तु इन्द्र देव का रूप और भासमान होता है। हे इन्द्र देव! आप मृग विशेष के तुल्य शत्रुओं को दग्ध करके आयुध धारित करते हैं और सिंह के तुल्य भयंकर विकराल हो जाते हैं।[ऋग्वेद 4.16.14]
हे इन्द्र देव! तुम अविनाशी हो। तुम जब सूर्य के निकट प्रकट होते हो तब तुम्हारा रूप अत्यन्त ज्योतिवान होता है। सूर्य के सामने सभी फीके पड़ जाते हैं, परन्तु इन्द्र देव का रूप अधिक तेजोमय होता जाता है। हे इन्द्र देव! तुम मृगया के समान शत्रुओं को जलाते और अस्त्र धारण करते हो तथा उस समय शेर के समान विकराल हो जाते हो।
Hey Indr Dev! You are immortal. When you are close to the Sun, you become shinning. Anyone else looses his aura while in the proximity of Sun. You kill the enemy like hunting the deer and possess the weapons to destroy the enemy like furious lion.  
इन्द्रं कामा वसूयन्तो अग्मन्त्स्वर्मीळ्हे न सवने चकानाः।
श्रवस्यवः शशमानास उक्थैरोको न रण्वा सुदृशीव पुष्टिः
राक्षस जनित भय को निवारित करने के लिए इन्द्र देव की कामना करने वाले और धन की इच्छा करने वाले स्तोता लोग युद्ध सदृश यज्ञ में इन्द्र से अन्न की याचना करते हैं, स्तोत्रों द्वारा उनकी प्रार्थना करते हैं और उनके निकट गमन करते हैं। इन्द्र देव उस समय स्तोताओं के लिए आवास स्थान के तुल्य होते हैं और रमणीय तथा दर्शनीय लक्ष्मी के तुल्य होते हैं।[ऋग्वेद 4.16.15]
असुरों द्वारा उत्पन्न भय को दूर करने के लिए इन्द्र का आश्रय अभिलाषा वाले एवं धन की कामना करने युद्ध के समान यज्ञ में इन्द्र से अन्न चाहते हैं। वे स्तोत्रों द्वारा अन्न की स्तति करते हुए उनके नजदीक जाते हैं। उस समय वे इन्द्र उनके लिए आश्रय स्थान के समान रक्षा करते हैं और रमणीय एवं दर्शनीय धन के समान ऐश्वर्य सम्पन्न होते हैं।
The Ritviz request-pray to Indr Dev to relieve them from the fear of the demons and desire wealth & food grains in the Yagy which is like a war. They recite hymns and move closer to Indr Dev. At this moment Indr Dev is like shelter-home for them-worshipers. He become beautiful-attractive, possessing wealth and grandeur.
तमिद्व इन्द्रं सुहवं हुवेम यस्ता चकार नर्या पुरूणि।
यो मावते जरित्रे गध्यं चिन्मक्षू वाजं भरति स्पार्हराधाः
जिन इन्द्र देव ने मनुष्यों के कल्याण के लिए प्रसिद्ध कार्य किये, जो स्पृहणीय धन विशिष्ट हैं, जो हमारे सदृश स्तोता के लिए ग्रहणीय अन्न को शीघ्र लाते हैं, हे याजक गणों! हम स्तोता लोग उन इन्द्र देव का शोभन आवाहन आपके लिए करते हैं।[ऋग्वेद 4.16.16]
इन्द्र देव ने मनुष्यों के कल्याण के लिए असंख्यक विख्यात कर्म किये हैं। वे इन्द्र देव धन-ऐश्वर्य से परिपूर्ण एवं इच्छा के योग्य हैं। वे हमारे तपस्वी को प्राप्त करने योग्य अन्न को शीघ्र ले आते हैं। हे मनुष्यों! तुम्हारे लिए हम तपस्वीगण उन इन्द्र देव का सुन्दर आह्वान करते हैं।
Indr Dev performed numerous deeds for the welfare of the humans. He possess wealth and grandeur. He gives food grains to the hosts-devotees quickly. Hey Ritviz-devotees! We ascetics invoke Indr Dev.
तिग्मा यदन्तरशनिः पताति कस्मिञ्चिच्छूर मुहुके जनानाम्।
घोरा यदर्य समृतिर्भवात्यध स्मा नस्तन्वो बोधि गोपाः
हे शूर इन्द्र देव! मनुष्यों के किसी भी युद्ध में अगर हम लोगों के बीच में तीक्ष्ण अशनिपात हो अथवा शत्रुओं के साथ अगर हम लोगों का घोरतर युद्ध हो, तब हे स्वामिन्! आप हम लोगों के शरीर की रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.16.17]
हे इन्द्रदेव! तुम पराक्रमी हो। मनुष्यों द्वारा होने वाले संग्राम में हमारे मध्य तीक्ष्ण वज्रपात हो या शत्रुओं से हमारा अत्यन्त घोर युद्ध हो, तब तुम हमारी देह को अपने निमंत्रण में रखते हुए प्रत्येक प्रकार से हमारी सुरक्षा करना।
Hey brave Indr Dev! Protect us-our bodies if we entangle in a war with the humans, involve in furious war with the enemy or lightening strike us. 
भुवोऽविता वामदेवस्य धीनां भुवः सखावृको वाजसातौ।
त्वामनु प्रमतिमा जगन्मोरुशंसो जरित्रे विश्वध स्याः
हे इन्द्र देव! आप वामदेव के यज्ञ कार्य के रक्षक होवें। आप हिंसा रहित हैं। आप युद्ध में हम लोगों के सुहृद होवें। आप मतिमान हैं। हम लोग आपके निकट गमन करें। आप सर्वदा हम के प्रशंसक हों।[ऋग्वेद 4.16.18]
सुहृद :: मित्र, सखा; soft-kind hearted, cordial, affectionate, crony.
हे इन्द्र देव! तुम वामदेव द्वारा किये जाने वाले यज्ञ कार्य के रक्षक हो। तुम किसी के द्वारा हिंसित नहीं किये जाते। तुम युद्ध में हमारे प्रति सहृदयता का बर्ताव करो। तुम अत्यन्त सुन्दर मति वाले हो। तुम हमारे नजदीक आओ। हे इन्द्र! तुम हमेशा स्तोताओं की प्रशंसा करने वाले बनो।
Hey Indr Dev! You should protect the Yagy of Vam Dev. You are be non violent. You should favour us in the war. You are intelligent-prudent. We should be close to you. Appreciate-like our hymns praising you.
एभिर्नृभिरिन्द्र त्वायुभिष्टा मघवद्भिर्मघवन्विश्व आजौ।
द्यावो न घुम्नैरभि सन्तो अर्यः क्षपो मदेम शरदश्च पूर्वीः
हे धनवान इन्द्र देव! हम शत्रुओं को जीतने के लिए समस्त युद्ध में आपकी अभिलाषा करते हैं। धनी जिस प्रकार धन द्वारा दीप्त होता है, हम भी उसी प्रकार हव्य युक्त होकर पुत्र-पौत्रादि परिजनों के साथ दीप्त हों और शत्रुओं को पराजित करके रात्रि एवं सम्पूर्ण संवत्सरों में आपकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 4.16.19]
हे इन्द्र देव! तुम समृद्धिवान हो। हम युद्धों में तुम्हारी इच्छा करते हैं। जैसे धनवान अपने धन से चमकता है, वैसे ही हम भी धन तथा पुत्र-पौत्रादि परिवार वालों के संग ज्योति से परिपूर्ण हों। हम अपने शत्रुओं को पराजित कर रात दिन और वर्षों में प्रसन्नता से तुम्हारा पूजन करते रहें।
Hey wealthy Indr Dev! We expect you to favours us in the war to win the enemy. The way a rich become glorious we too should be glorious with sons & grandsons. Win the enemy and worship-pray you in all segments of the day & night.
एवेदिन्द्राय वृषभाय वृष्णे ब्रह्माकर्म भृगवो न रथम्।
नू चिद्यथा नः सख्या वियोषदसन्न उग्रोऽविता तनूपाः
इन्द्र देव के साथ हम लोगों की मैत्री जिस कार्य से वियुक्त न हो, तेजस्वी और शरीर पालक इन्द्र देव जिससे हम लोगों के रक्षक हों, हम लोग उसी प्रकार का आचरण करेंगे। दीप्त रथ निर्माता जिस प्रकार रथ बनाते हैं, उसी प्रकार हम लोग भी अभीष्ट वर्षी तथा नित्य तरुण इन्द्र देव के लिए स्तोत्र की रचना करते हैं।[ऋग्वेद 4.16.20]
हम वही कार्य करेंगे, जिससे इन्द्र सहित हमारी मैत्री का विच्छेदन न हो और शरीर के रक्षक तेजस्वी इन्द्र हमारे पालन कर्ता बनें। कुशल रथ निर्माता जैसे रथ बनाता है, वैसे ही हम भी कामनाओं की वर्षा करने वाले प्रतिदिन इन्द्र के लिए सुन्दर स्तोत्रों को रचते हैं।
We should act-behave with aurous & our protector Indr Dev in such a manner that our friend ship with him continues. The way a builder of charoite builds it, we should compose attractive Strotr-hymns to worship youthful Indr Dev who accomplish our desires. 
नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो ३ न पीपेः।
अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः
हे इन्द्र देव! आप पूर्व वर्ती ऋषियों द्वारा प्रशंसित होकर तथा हम लोगों द्वारा स्तूयमान होकर जिस प्रकार से जल नदी को पूर्ण करता है, उसी प्रकार आप स्तोताओं के अन्न को प्रवृद्ध करते हैं। हे हरि विशिष्ट इन्द्र देव! हम आपके उद्देश्य से अभिनव स्तोत्र को रचते हैं। जिससे हम लोग रथवान होकर स्तुति द्वारा सदा आपकी सेवा करते रहें।[ऋग्वेद 4.16.21] 
हे इन्द्र देव! तुम प्राचीन काल में ऋषियों द्वारा अर्चित होकर और हमारे द्वारा नमस्कृत होकर जल द्वारा नदी पूर्ण करने के तुल्य समान प्रार्थना करने वालों के लिए अन्न धन की वृद्धि करते हो। हम तुम्हारे लिए नवीन श्लोकों की रचना करते हैं जिससे रथ आदि से परिपूर्ण हुए वंदना के संकल्पों द्वारा तुम्हें हमेशा हर्षित करते रहें।
Hey Indr Dev! On being praised by the ancient rishis and us, you increase the food grains of the Hosts-devotees the way water completes the rivers. Hey Indr Dev! We always compose fresh hymns-Strotr in your honour so that we have charoites and worship-pray, serve you.(13.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- त्रिष्टुप्, एकपदा विराट।
त्वं महाँ इन्द्र तुभ्यं ह क्षा अनु क्षत्रं मंहना मन्यत द्यौः।
त्वं वृत्रं शवसा जघन्वान्त्सृजः सिन्धूँरहिना जग्रसानान् 
हे इन्द्र देव! आप महान् है। महत्त्व से युक्त होकर पृथ्वी ने आपके बल का अनुमोदन किया एवं द्युलोक ने भी आपके बल का अनुमोदन किया। लोकों को आवृत करने वाले वृत्र नामक असुर को आपने बल द्वारा मारा। वृत्रासुर ने जिन नदियों को अवरुद्ध किया, आपने उन नदियों को विमुक्त कर दिया।[ऋग्वेद 4.17.1]
हे इन्द्र देव! तुम श्रेष्ठ हो। महती पृथ्वी ने तुम्हारी शक्ति का समर्थन किया आकाश ने तुम्हारी शक्ति का अनुमोदन किया। तुमने अपनी शक्ति से लोकों को ढक देने वाले वृत्रासुर को समाप्त किया। वृत्र ने नदियों को वशीभूत किया, तुमने उनको स्वतंत्र कर दिया।
Hey Indr Dev! You are the best-great. Earth & the heaven too supported your might. Vratr was killed by your power. You released the river blocked by Vrata Sur.
तव त्विषो जनिमब्रेजत द्यौ रेजद्भूमिर्भियसा स्वस्य मन्योः।
ऋघायन्त सुभ्व: १ पर्वतास आर्दन्धन्वानि सरयन्त आपः
हे इन्द्र देव! आप दीप्तिमान है। आपके जन्म होने पर द्युलोक आपके कोपभय से कम्पित हुआ, पृथ्वी कम्पित हुई और वृद्धि प्रदान के लिए बृहत मेघ समूह आपके द्वारा आबद्ध हुआ। इन मेघों ने प्राणियों की पिपासा को विनष्ट करके मरुभूमि में जल प्रेरण किया।[ऋग्वेद 4.17.2]
हे इन्द्र देव! तुम अत्यन्त तेजस्वी हो। तुम्हारे प्रकट होने पर नभ तुम्हारे क्रोध के डर से काँप गया। उस समय पृथ्वी भी काँप गई और बादलों के दल को तुमने बाँध लिया। तुम्हारी प्रेरणा से प्राणियों की प्यास मिटाने के लिए उन मेघों ने मरुभूमि में जल की वर्षा की।
Hey Indr Dev! You are energetic. Your appearance led to trembling of heavens, earth and the clouds prepared to rain. The clouds quenched the thirst of the living beings and the deserts too got water-rain showers.
भिद्गिगिरिं शवसा वज्रमिष्णन्नाविष्कृण्वानः सहसान ओजः।
वधीद्वृत्रं वज्रेण मन्दसानः सरन्नापो जवसा हतवृष्णीः
शत्रुओं के अभिभवकर्ता इन्द्र देव ने तेज प्रकाशित करके और बल पूर्वक वज्र का प्रेरण करके पर्वतों को विदीर्ण किया। सोमपान से हर्षित होकर इन्होंने वज्र द्वारा वृत्रासुर को विनष्ट किया। वृत्रासुर के विनष्ट होने पर जल आवरण रहित होकर वेग से आने लगा।[ऋग्वेद 4.17.3]
शत्रुओं को पराजित करने वाले इन्द्र देव ने अपने तेज की ज्योति और शक्ति द्वारा वज्र को चलाकर पर्वतों को चीर डाला। सोमपान करके पुष्ट होने के बाद इन्द्रदेव ने अपने वज्र से वृत्र को समाप्त कर डाला। उस वृत्र के समाप्त होने पर जल की वर्षा होने लगी।
Defeater of the enemies Indr Dev lit by his aura, projected Vajr with force to smash the mountains. Pleased by drinking Somras, he killed Vrata Sur with Vajr. With the killing of Vratr, rain waters showered.
सुवीरस्ते जनिता मन्यत द्यौरिन्द्रस्य कर्ता स्वपस्तमो भूत्।
य ईं जजान स्वर्यं सुवज्रमनपच्युतं सदसो न भूम
हे इन्द्र देव! आप अतिशय स्तुत्य, उत्तम वज्र विशिष्ट, स्वर्ग स्थान से अच्युत अर्थात् विनाश रहित और महिमावान हैं। आपको जिन द्युतिमान प्रजापति ने उत्पन्न किया, वे अपने को सुन्दर पुत्रवान मानते थे। आपको जन्म देने वाले प्रजापति उत्तम कर्म करने वाले थे।[ऋग्वेद 4.17.4]
तुम अत्यन्त पूजनीय वज्र से युक्त, अलौकिक स्थान के अधिपति और अविनाशी हो। तुम अत्यन्त महिमा वाले हो, जिन तेजस्वी प्रजापति ने तुम्हें प्रकट किया था, वे अपने को सुन्दर पुत्र वाला मानते थे।
Hey Indr Dev! You are honoured-revered, possess excellent Vajr, immortal. Radiant-energetic Prajapati who produced you, considered himself to have a beautiful-handsome son, performer of auspicious, righteous, virtuous deeds.
य एक इच्च्यावयति प्र भूमा राजा कृष्टीनां पुरुहूत इन्द्रः।
सत्यमेनमनु विश्वे मदन्ति रातिं देवस्य गृणतो मघोनः
सम्पूर्ण प्रजाओं के राजा, बहुजनाहूत और देवों के बीच में एकमात्र प्रधान इन्द्र देव शत्रु जनित राय को विनष्ट करते हैं। द्युतिमान और धनवान बन्धु इन्द्र देव के उद्देश्य से वास्तव में समस्त याजकरण प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.17.5]
इन्द्र के जन प्रजापति का कर्म अत्यन्त उत्तम और शंसा के योग्य था। मनुष्य मात्र के स्वामी, अनेकों द्वारा पुकारे गये, देवताओं के सुख इन्द्रदेव शत्रु द्वारा रचित किये गये भय को मिटाते हैं। वे समृद्धि और ज्योर्तिवान। उन मित्र रूप इन्द्रदेव के लिए यजमान श्लोकों द्वारा नमस्कार करते हैं।
Emperor of all living beings, worshiped by many and the only leader amongest the demigods-deities, destroy the enemies. Radiant and wealthy-rich, brotherly Indr Dev is worshiped-prayed by the Ritviz-hosts.
सत्रा सोमा अभवन्नस्य विश्वे सत्रा मदासो बृहतो मदिष्ठाः।
सत्राभवो वसुपतिर्वसूनां दत्रे विश्वा अधिथा इन्द्र कृष्टीः
सम्पूर्ण सोमरस वास्तव में इन्द्र देव के निमित्त हैं। ये मद कारक सोम महान इन्द्र देव लिए सचमुच हर्ष कारक हैं। हे इन्द्र देव! आप धनपति हैं, केवल धनपति ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण पशुओं के भी पति हैं। हे इन्द्र देव! धन के लिए आप वास्तव में समस्त प्रजाओं को धारित करते है।[ऋग्वेद 4.17.6]
सभी सोम इन्द्रदेव के लिए उत्पन्न होते हैं। यह सोम बल उत्पन्न करने वाला है तथा उन पर श्रेष्ठ इन्द्र को प्रसन्नता प्रदान करते हैं। हे इन्द्र देव! तुम ऐश्वर्यवान् सभी प्रजाओं का पालन-पोषण करने वाले हो।
Entire Somras is meant for Indr Dev. Intoxicating Somras produces great pleasure-happiness in Indr Dev. Hey Indr Dev! You are not only the owner of wealth but also all the leader of living beings, animals-cattle. Hey Indr Dev! You protect-shelter the living beings with wealth.
त्वमद्य प्रथमं जायमानोऽमे विश्वा अधिथा इन्द्र कृष्टीः।
त्वं प्रति प्रवत आशयानमहिं वज्रेण मघवन्वि वृश्चः
हे धनवान इन्द्र देव! पूर्व में ही उत्पन्न होकर आपने वृत्रभीत होकर सम्पूर्ण प्रजाओं को धारित किया। आपने उदकवान देश के उद्देश्य से जल निरोधक वृत्रासुर को छिन्न-भिन्न किया।[ऋग्वेद 4.17.7]
हे धन ऐश्वर्य सम्पन्न इंद्र देव! तुमने उत्पन्न होते ही वृत्र के भय से बचाने के लिए प्रजाओं की रक्षा की। तुमने सभी प्रदेशों को जल युक्त कर देने के उद्देश्य से जल को रोकने वाले शत्रु को नष्ट कर दिया।
Hey grandeur possessing Indr Dev! You appeared in the past and supported the populace. You eliminated Vrata Sur to maintain water supply in all regions, throughout the world.
सत्राहणं दाधृषिं तुम्रमिन्द्रं महामपारं वृषभं सुवज्रम्।
हन्ता यो वृत्रं सनितोत वाजं दाता मघानि मघवा सुराधाः
अनेक शत्रुओं के हन्ता, अत्यन्त दुर्द्धर्ष शत्रुओं के प्रेरक, महान, विनाश रहित, अभीष्टवर्षी और शोभन वज्र विशिष्ट इन्द्र देव की प्रार्थना हम लोग करते हैं। जिन इन्द्र देव ने वृत्रासुर असुर ने को मारा, जो अन्नदाता और शोभन धन से युक्त हैं तथा जो धन दान करते हैं, हम उनकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.17.8]
अनेक शत्रुओं को समाप्त करने वाले, विकराल शत्रुओं को शिक्षा प्रदान करने वाले, महान एवं अविनाशी इन्द्रदेव का पूजन करते हैं। वे इन्द्रदेव अभिष्टों की वृष्टि करने वाले और सुन्दर वज्र वाले हैं। उन्होंने वृत्र का पतन किया था। वे अन्न प्रदान करने वाले उज्ज्वल वनों के अधिपति हैं। सदैव धन प्रदान करते रहते हैं, उन इन्द्र का हम पूजन करते हैं।
We worship immortal, great, desire accomplishing, Vajr possessing Indr Dev, who eliminated several enemies. We pray Indr Dev, who killed Vrata Sur, grants food grains, has grandeur and donate money.
अयं वृतश्चातयते समीचीर्य आजिषु मघवा शृण्व एकः।
अयं वाजं भरति यं सनोत्यस्य प्रियासः सख्ये स्याम
जो धनवान इन्द्र देव संग्राम में अद्वितीय सुने जाते हैं, वे मिलित और विस्तृत शत्रु सेना को विनष्ट करते हैं। वे जो अन्न याजक गणों को देते हैं, उसी अन्न को वे धारित भी करते हैं। इन्द्र देव के साथ हम लोगों की मित्रता प्रीति युक्त हो।[ऋग्वेद 4.17.9]
जो इन्द्र अत्यन्त धनवान एवं युद्ध में अद्वितीय वीर माने गये हैं, वे सुसंगत और विशाल शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम हैं। वे जिस अन्न और धन को धारण करते हैं, वही यजमान को देते हैं। इन इन्द्र सहित हमारा मित्र भाव अटूट रहे।
Highly rich and exceptional brave warrior Indr Dev, destroys the well arranged-managed enemy army in the war. He distribute food grain possessed by him to those requesting for it. Let our association with him be friendly-affectionate.
अयं शृण्वे अध जयन्नुत घ्नन्नयमुत प्र कृणुते युधा गाः।
यदा सत्यं कृणुते मन्युमिन्द्रो विश्वं दृळ्हं भयत एजदस्मात्
शत्रु विजयी और शत्रु हिंसक होकर इन्द्र देव सभी जगह प्रख्यात हैं। ये शत्रुओं के पास से पशुओं को छीन लाते हैं। इन्द्र देव जब वास्तव में कोप करते हैं, तब स्थावर और जंगमरूप समस्त जगत इनसे डरने लगता है।[ऋग्वेद 4.17.10]
वे इन्द्र शत्रुओं से पशुओं को छीन लेते हैं। जब ये आक्रोशित होते हैं, तब यह स्थावर जंगम रूप का अखिल संसार इन्द्रदेव के भय से नितान्त भयग्रस्त हो जाता है।
Winner & destroyer of the enemy Indr Dev, is famous every where. He snatches the cattle from the enemy. When Indr Dev grow angry fixed and movable living beings become afraid of him.
समिन्द्रो गा अजयत्सं हिरण्या समश्विया मघवा यो ह पूर्वीः।
एभिर्नृभिर्नृतमो अस्य शाकै रायो विभक्ता संभरश्च वस्वः
जिन धनवान इन्द्र देव ने असुरों को जीता, शत्रुओं के रमणीय धन को जीता, अश्व समूह को जीता तथा अनेक शत्रु सेनाओं को जीता, वे सामर्थ्यवान नेतृ श्रेष्ठ स्तोताओं द्वारा प्रार्थित होकर पशुओं के विभाजक तथा धन के धारक हों।[ऋग्वेद 4.17.11]
जिन समृद्धिशाली इन्द्रदेव ने दैत्यों पर विजय ग्रहण की थी तथा शत्रुओं के महान धन पर अधिकार प्राप्त किया था। जिन इन्द्रदेव ने शत्रुओं को जीतकर उनके अश्वों को अपने अधिकार में कर लिया था, वे सर्व समर्थ इन्द्र, सभी में अग्रणी एवं वन्दना करने वालों से पूजनीय होकर पशुओं को बाँटने और धनादि के रक्षक हैं।
Let Indr Dev winner of the demons, collector-possessor of their wealth & horses, mighty-powerful leader should distribute the cattle and protect wealth, on being prayed-worshiped.
कियत्स्विदिन्द्रो अध्येति मातुः कियत्पितुर्जनितुर्यो जजान।
यो अस्य शुष्यं मुहुकैरियर्ति वातो न जूतः स्तनयद्भिर भैः
हे इन्द्र देव! आप अपनी जननी के समीप कितना बल प्राप्त करते हैं और पिता के समीप कितना बल प्राप्त करते हैं। जिन इन्द्र देव ने अपने पिता प्रजापति के समीप से इस दृश्यमान जगत को उत्पन्न किया तथा उन्हीं प्रजापति के समीप से जगत को मुहुर्मुहः बल प्रदान किया, वे इन्द्र देव गर्जनशील मेघ द्वारा प्रेरित वायु के तुल्य आहूत होते हैं।[ऋग्वेद 4.17.12]
इन्द्र देव ने अपने माता-पिता से कितनी शक्ति को प्राप्त किया था? जिन इन्द्र देव ने अपने पिता प्रजापति के निकट से इस संसार को रचित करके संसार को बल प्रदान किया है, उन इन्द्र देव की गर्जना करने वाले बादल से प्रेरित पवन के समान आह्वान किया जाता है।
Some portion of his strength; Indr derives from his mother, some portion from his father; he who, though his progenitor, has begotten the world and animates its vigour repeatedly, as the wind is driven by thundering clouds.
Hey Indr Dev! You get power-mighty, strength in the company of your parents. Indr Dev produced the world and granted strength to it. He is worshiped like the roar of clouds who pray to Pawan Dev.
क्षियन्तं त्वमक्षियन्तं कृणोतीयर्ति रेणुं मघवा समोहम्।
विभञ्जनुरशनिमाँइव द्यौरुत स्तोतारं मघवा वसौ धात्
हे धनवान इन्द्र देव! आप निराश्रितों को आश्रय प्रदत्त करते हैं और किए गए पापों को विनष्ट करते हैं। आप द्युलोक के सदृश सुदृढ़ वज्र धारण करने वाले हैं, क्योंकि आप शत्रुओं का संहार करने वाले हैं। आप धनवान हैं, इसलिए प्रार्थना करने वालों को धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.17.13]
इन्द्र देव धनवान हैं, वे धन हीन प्राणियों को धन से पूर्ण करते हैं। अंतरिक्ष के समान अटल वज्र युक्त शत्रु को मारने-वाले इन्द्र देव भी पापों को नष्ट करते हैं और वंदना करने वालों को धन प्रदान करते हैं।
Hey rich-wealthy Indr Dev! You grant shelter-protection to homeless and eliminates the sins. You possess the strong Vajr like the heaven and the slayer of the enemies. You grant money-riches on being prayer-worshiped. 
अयं चक्रमिषणत्सूर्यस्य न्येतशं रीरभत्ससृमाणम्।
आ कृष्ण ईं जुहुराणो जिघर्ति त्वचो बुध्ने रजसो अस्य योनौ॥
इन्द्र देव ने सूर्य के आयुध को प्रेरित किया और युद्ध के लिए जाने वाले एतश-प्रकाश युक्त को निवारित किया। कुटिल गति और कृष्ण वर्ण मेघ ने तेज के मूलभूत और जल के स्थान स्वरूप अन्तरिक्ष में स्थित इन्द्र देव को अभिषिक्त किया।[ऋग्वेद 4.17.14]
अभिषेक :: प्रतिष्ठापन, समझाना, बतलाना, स्नान; coronation, consecration, ablution, anointment.
इन्द्र देव ने सूर्य के अस्त्र को शिक्षा प्रदान की तथा संग्रामोद्यत एतश का निवारण किया। तिरछी गति और काले रंग वाले बादल ने तेज आश्रय रूप और जल से पूर्ण अंतरिक्ष में निवास करने वाले इन्द्रदेव का अभिषेक किया था। 
Indr Dev inspired the weapons of aurous-radiant Sury Bhagwan-Sun. Dark clouds coronated Indr dev in the space with water.
असिक्न्यां याजकगणो न होता॥
जिस प्रकार से रात्रि काल में याजकगण सोमरस द्वारा इन्द्र देव को अभिषिक्त करते हैं। वे भी रात्रि में ही सभी मनुष्यों को परम ऐश्वर्य प्रदत्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.17.15]
जैसे यजमान अंधेरी रात में भी इन्द्र का आह्वान करता है, वैसे ही इन्द्र देव प्रजाओं को रात में भी ऐश्वर्य आदि प्रदान करते हैं।
As the sacrificer-hosts, Ritviz pours the oblation at night upon the fire, Indr Dev grant their wishes at night too.
The way the Ritviz coronate Indr Dev at night, he too grants grandeur to them during the night as well.
गव्यन्त इन्द्रं सख्याय विप्रा अश्वायन्तो वृषणं वाजयन्तः।
जनीयन्तो जनिदामक्षितोतिमा च्यावयामोऽवते न कोशम्
हम मेधावी स्तोता गौओं की अभिलाषा करते हैं, अश्वों की अभिलाषा करते हैं, अन्न की अभिलाषा करते हैं और स्त्री की अभिलाषा करते हैं। हम मित्रता के लिए कामना पूरक, भार्याप्रद और सर्वदा रक्षक इन्द्र देव को, लोग जिस प्रकार से प्यासे लोग कुओं में जल पात्र को भरकर निकालते हैं, उसी प्रकार अवनमित करेंगे।[ऋग्वेद 4.17.16]
हम मेधावी स्तोता गाय, अन्न और सुन्दर संतान उत्पन्न करने वाली नारी की कामना करते हैं। हम अभीष्ट पूर्ण करने वाले, संतानदात्री पत्नी को देने वाले तथा सदैव अक्षय सुरक्षा प्रदान करने वाले इन्द्रदेव के सखा भाव को उसी तरह चाहते हैं, जिस प्रकार कुएँ से जल निकालने की अभिलाषा करने वाले मनुष्य जल पात्र को ग्रहण करना चाहते हैं।
We the intelligent worshipers-devotees are desirous of cows, horses, & wife. We desirous humbled, love friendly Indr Dev sheltering us, like the thirsty person who wish to draw water from the well, to seek wife to produce sons. 
त्राता नो बोधि ददृशान आपिरभिख्याता मर्डिता सोम्यानाम्।
सखा पिता पितृतमः पितॄणां कर्तेमु लोकमुशते वयोधाः
हे इन्द्र देव! आप आप्त है। रक्षक रूप से सभी को देखते हुए आप हमारे रक्षक होवें। आप सोम योग्य याजक गणों के अभिद्रष्टा और सुखयिता है। प्रजापति के समान आपकी ख्याति है। आप पालकों के बीच श्रेष्ठ हैं। आप इस संसार के स्रष्टा हैं और याजकों के अन्न प्रदाता हैं।[ऋग्वेद 4.17.17]
आप्त :: मिला हुआ, कुशल, संबंधी, मित्र, विश्वस्त व्यक्ति, शब्द प्रमाण, अर्हत लब्धि, प्राप्त, प्रामाणिक, कुशल, दक्ष, विश्वास करने योग्य, विश्वसनीय तत्वज्ञ व्यक्ति; concerned, reliable expert person.
हे इन्द्र देव! तुम हमारी रक्षा करने वाले, देखने वाले, सखा उपदेशकर्त्ता शोभित गुणों से युक्त हों। तुम हमारे पूर्व पुरुषों के भी पिता तुल्य, संतानों को सुख देने वाले सखा, ज्ञान और पराक्रम प्रदान करने वाले हो। तुम महान लोकों की कामना करने वाले को उत्तम पद प्रदान करते हो।
Hey Indr Dev! You are reliable concerned & expert. Protect us. You are comforter & well wisher of the Somras deserving Ritviz. You are famous as Prajapati & best amongest the nurturers. You are the creator of the universe and grant food grains to the worshipers.
Here Dev raj Indr is symbolic of Bhagwan Brahma & Bhagwan Shri Hari Vishnu.
सखीयतामविता बोधि सखा गृणान इन्द्र स्तुवते वयो धाः।
चक्रमा सबाध आभिः शमीभिर्महयन्त इन्द्र
हे इन्द्र देव! हम आपसे मित्रता की अभिलाषा करते हैं। आप हमारे रक्षक होवें। आप प्रार्थित होते हैं, आप हमारे मित्र होवें। आप स्तोताओं को अन्न प्रदान करें। हे इन्द्र देव! हम बाधा युक्त होकर भी स्तुति रूप कर्म द्वारा पूजा करके आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.17.18]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारा सखा भाव चाहते हैं। तुम हमारे पोषक बनो। तुम्हारी अर्चना की जाती है, तुम हमारे सखा बनो। वदंना करने वाले यजमानों को अन्न प्रदान करो। हे इन्द्रदेव! हमारे महान कर्मों में बाधा उपस्थित होने पर तुम्हें स्मरण करते हैं। तुम हमारे आह्वान पर ध्यान आकृष्ट करते हुए हमें धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! We desire your friendship. Become our protector. You are worshiped-prayed. Grant food grains to the worshipers. Hey Indr Dev! We remember-call, invoke you as and when face problems. 
स्तुत इन्द्रो मघवा यद्ध वृत्रा भूरीण्येको अप्रतीनि हन्ति।
अस्य प्रियो जरिता यस्य शर्मन्नकिर्देवा वारयन्ते न मर्ताः
जब इन्द्र देव हम लोगों के द्वारा प्रार्थित होते हैं, तब वे अकेले ही अनेक अभिगन्ता शत्रुओं का वध कर डालते हैं। जिस इन्द्र देव की शरण में वर्तमान स्तोता का निवारण न देवगण करते हैं और न मनुष्य गण करते हैं, उन इन्द्र देव को स्तोता प्रिय होता है।[ऋग्वेद 4.17.19]
जब हम उन इन्द्रदेव की वंदना करते हैं तब वे अकेले ही बहुत से असुरों को समाप्त कर देते हैं। उनको विद्वान स्तोता बहुत ही प्रिय हैं। उनके आश्रय में रहने वाले को दवेता या मनुष्य कोई नहीं रोक सकता है।
One being invoked-worshiped, Indr Dev alone eliminate the demons-enemies. He likes the enlightened worshipers-devotees. Those under his asylum-protection can not be restrained by any one.
एवा न इन्द्रो मघवा विरप्शी करत्सत्या चर्षणीधृदनर्वा।
त्वं राजा जनुषां धेह्यस्मे अधि श्रवो माहिनं यज्जरित्रे
विविध शब्दवान, समस्त प्रजाओं के धारक, शत्रु रहित और धनवान इन्द्र देव इस प्रकार प्रार्थित होकर हम लोगों के सत्य रूप अभिलषित को सम्पादित करें। हे इन्द्र देव! आप समस्त जन्म धारियों के राजा हैं। स्तोता जिस महिमा युक्त यश को प्राप्त करता है, वह यश आप अधिक मात्रा में हम लोगों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.17.20]
हे इन्द्र देव ! तुम अत्यन्त धनवान, विविध ध्वनि वाले, समस्त प्रजाओं के रक्षक तथा शत्रुओं से शून्य हो। वे हमारी इस प्रकार की प्रार्थना को सुनकर हमारी सर्वश्रेष्ठ मनोकामनाओं को पूर्ण करें। हे इन्द्र देव! तुम समस्त रचित प्राण धारियों के स्वामी हो। जिस महिमा वाले सुन्दर कीर्ति की प्रार्थना करने वाला ग्रहण करता है, वह अत्यन्त कीर्ति हमको प्रदान करो।
Addressed as knowledgeable of various languages-dialects, nurturer of various living beings, without any enemy, let wealthy Indr Dev, accomplish our desires. Hey Indr Dev! You are the emperor-leader of all living beings. Grant us the fame which an honourable-revered worshiper gains by virtue of composing-singing beautiful hymns.
नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो ३ न पीपेः।
अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः
हे इन्द्र देव! आप पूर्ववर्ती ऋषियों द्वारा प्रशंसित होकर तथा हम लोगों के द्वारा स्तूत होकर जिस प्रकार से जल नदी को पूर्ण करता है, उसी प्रकार स्तोताओं के अन्न को आप प्रवृद्ध करते हैं। हे हरि विशिष्ट इन्द्र देव! हम आपके उद्देश्य से अभिनव स्तोत्र करते हैं, जिससे हम लोग रथवान होकर स्तुति द्वारा सदा आपकी सेवा करते रहें।[ऋग्वेद 4.17.21]
हे इन्द्र देव! तुम पुरातन काल में हुए ऋषियों के द्वारा पूजनीय हुए हमारे द्वारा भी स्तुत्य होकर जल द्वारा नदी को पूर्ण करने के समान, अन्न की वृद्धि करते हो। हम तुम्हारे लिए नए श्लोक रचते हैं। जिससे हम रथ युक्त हुए सदैव तुम्हारी अर्चना करते रहें।
Hey Indr Dev! Praised by the ancient-earlier sages, Rishi Gan, worshiped by us; grant us food grains like the water which fills the rivers. We compose beautiful Strotr in your honour, for you so that we possess charoite and pray you, sing hymns in your honour.(18.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,  अदिति, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अयं पन्था अनुवित्तः पुराणो यतो देवा उदजायन्त विश्वे।
अतश्चिदा जनिषीष्ट प्रवृद्धो मा मातरममुया पत्तवे कः
इन्द्र देव कहते हैं, "यह योनि निर्गमण रूप मार्ग अनादि और पूर्वापर लब्ध है। इसी योनि मार्ग से सम्पूर्ण देव और मनुष्य उत्पन्न हुए हैं; इसलिए आप गर्भ में प्रवृद्ध होकर इसी मार्ग द्वारा उत्पन्न होवें। माता की मृत्यु के लिए कार्य मत करो"। 
यह रास्ता अनादि समय से चलता आ रहा है, जिसके द्वारा विभिन्न भोगों और एक दूसरे को चाहने वाले नर-नारी ज्ञानीजन आदि रचित होते हुए प्रवृद्ध होते हैं। उच्चस्थ पदवी वाले समर्थवान व्यक्ति भी इस परम्परागत रास्ते से ही रचित होते हैं। हे मनुष्य! अपनी जननी माता को अनादर करने का प्रयास न करें।[ऋग्वेद 4.18.1]
Indr Dev said that the sequence of birth through the womb-vagina has been prevalent ever since. All demigods-deities appeared through this route. Establish yourself in the womb and prevent mother's death. 
नाहमतो निरया दुर्गर्तैत्तिरश्चता पार्श्वान्निर्गमाणि।
बहूनि मे अकृता कर्त्वानि युध्यै त्वेन सं त्वेन पृच्छै
वामदेव कहते हैं, "हम इस योनि मार्ग द्वारा नहीं निर्गत होंगे। यह मार्ग अत्यन्त दुर्गम है। हम पार्श्व भेद करके निर्गत होंगे। दूसरों के द्वारा अकरणीय बहुत से कार्य हमें करने हैं। हमें एक के साथ युद्ध करना है। हमें एक के साथ वाद-विवाद करना है"।[ऋग्वेद 4.18.2]
निर्गत :: बाहर आया हुआ, निःसृत; issued, come forth, gone forth.
निर्गतहम पूर्वोक्त योनि मार्ग से नहीं बच सकते। टेढ़े रास्ते से पशु-पक्षी के रूप में जन्म लेकर भी जीवन बड़े दुख से व्यतीत होता है। मैं चाहता हूँ कि इस फंदे से निकल जाऊँ। मुझे अनेक कष्ट न उठाने पड़ें। बार-बार का झगड़ा सब झमेला मात्र है। हमको संसार पथ के किनारे लगने का प्रयास करना चाहिये।
Vamdev said that he would not like to follow that route of birth, since it was very tough, intricate, difficult. We would prefer lateral route. We have to conduct several tasks deferred by others, undertake wars & have debate.
परायतीं मातरमन्वचष्ट न नानु गान्यनु नू गमानि।
त्वष्टुगृहे अपिबत्सोममिन्द्रः शतधन्यं चम्वोः सुतस्य
इन्द्र देव कहते हैं, "हमारी माता मर जायगी, तथापि हम पुरातन मार्ग का अनुधावन नहीं करेंगे, शीघ्र बहिर्गत होंगे"। (इन्द्र ने जो यथेच्छा चरण किए, उसी को वामदेव कहते हैं) इन्द्र देव अभिषवकारी त्वष्टा के घर में सोमाभिषव फलक द्वारा अभिषुत सोमरस का पान बलपूर्वक किया, वह सोमरस बहुत धन द्वारा क्रीत था।[ऋग्वेद 4.18.3]
जैसे अपनी जननी की मृत्यु पर कोई व्यक्ति कहता है कि मैं भी इसके पीछे ही चला जाऊँ या न जाऊँ। कालोपरांत वह ज्ञान-धैर्य आदि से शांत होकर पिता के घर में पुत्र बनकर रहता हुआ जीवन का उपयोग करता है। उसी प्रकार विवेकी होकर त्वष्टा के गृह में सोमपान करता है। अदिति ने उस शक्तिशाली इन्द्र को महीनों वर्षों तक धारण किया था। उस श्रेष्ठ इन्द्रदेव ने अनेक विशिष्ट कार्य किए। उनकी समानता उत्पन्न हुए अथवा आगे उत्पन्न होने वालों में से कोई नहीं कर सकता।
Indr Dev said that he would not discard that route which may kill his mother-Aditi. Indr Dev consumed the Somras at Twasta's house which was bought with a lot of money.
किं स ऋधक्कृणवद्यं सहस्रं मासो जभार शरदश्च पूर्वीः।
नही न्वस्य प्रतिमानमस्त्यन्तर्जातेषूत ये जनित्वाः
"अदिति ने इन्द्र देव को अनेक मासों और अनेक संवत्सरों तक गर्भ में धारित किया। इन्द्र देव ने यह विरुद्ध कार्य क्यों किया अर्थात गर्भ में बहुत दिनों तक रहकर इन्द्र देव ने माता अदिति को कष्ट दिया"। इन्द्र देव के ऊपर किये गये आक्षेप को सुनकर अदिति कहती हैं, "हे वामदेव! जो उत्पन्न हुए हैं और जो देवादि उत्पन्न होंगे, उनके साथ इन्द्र की तुलना कदापि नहीं हो सकती"। [ऋग्वेद 4.18.4]
अदिति ने उस शक्तिशाली इन्द्र को महीनों वर्षों तक धारण किया था। उस श्रेष्ठ इन्द्रदेव ने अनेक विशिष्ट कार्य किए। उनकी समानता उत्पन्न हुए अथवा आगे उत्पन्न होने वालों में से कोई नहीं कर सकता।
Vamdev accused Indr Dev of staying in the womb of his mother for many months and years, torturing her. Aditi, his mother replied that those who were born and those were going to take birth could not be compared with Indr Dev.
अवद्यमिव मन्यमाना गुहाकरिन्द्रं माता वीर्येणा न्यृष्टम्।
अथोदस्थात्स्वयमत्कं वसान आ रोदसी अपृणाज्जायमानः
गह्वर रूप सूतिका गृह में उत्पन्न इन्द्र देव को निन्दनीय मानकर माता ने उन्हें अतिशय सामर्थ्यवान किया। अनन्तर, उत्पन्न होते ही इन्द्र देव ने अपने ओज को धारित करके खड़े हुए और द्यावा-पृथ्वी को अपने तेज से परिपूर्ण कर दिया।[ऋग्वेद 4.18.5]
गह्वर :: गड्ढा, बिल, विवर, गुफा, अँधेरा एवं गहरा स्थान, देवालय, मंदिर, गहरा, घना, दुर्गम; deep, precipice, chasm.
अदिति ने उस इन्द्र को गति देने में समर्थ मानते हुए अदृश्य रूप से धारण किया और फिर इन्द्र देव ने अपनी ही सामर्थ्य से रचित तेज को धारण करते हुए सर्वोच्च वर्ग और आकाश-पृथ्वी दोनों को युक्त किया।
Deeming it disreputable that he should be brought forth in secret, his mother Aditi endowed Indr Dev with extraordinary vigour; therefore, as soon as born he sprung up of his own accord, invested with splendour and filled both heaven and earth.
Mother Aditi nourished Indr Dev secretly, considering him to be capable, keeping him invisible and granted him extraordinary vigour. Thereafter, Indr Dev lit the earth and sky-heaven with his aura-radiance as soon he took birth.
एता अर्षन्त्यललाभवन्तीर्ऋतावरीरिव संक्रोशमानाः।
एता वि पृच्छ किमिदं भनन्ति कमापो अद्रिं परिधिं रुजन्ति
"अ-ल-ला शब्द करती हुई अथवा हर्ष ध्वनी करती हुई ये जलवती नदियाँ इन्द्र देव के महत्त्व को प्रकट करने के लिए हर्ष पूर्वक बहुविध शब्द करती हुई बहती है। हे ऋषि! आप इन नदियों से पूछो कि ये क्या बोलती है? यह शब्द इन्द्र देव के माहात्म्य का सूचक है। मेरे पुत्र इन्द्र देव ने ही उदक के आदरक मेघ को विदीर्ण करके जल को प्रवर्तित किया।[ऋग्वेद 4.18.6]
अत्यन्त ध्वनि करती जल से पूर्ण सरिताएँ इन्द्र के महत्त्व को प्रकट करती हुई कहती है कि हे विद्वान! यह सरिताएँ क्या कहती हैं, यह इनसे पूछो। क्या यह इन्द्र देव का यशोगान करती हैं। इन्द्र का यशोगान रोकने वाले मेघ को फाड़कर जल की वर्षा की थी।
The river show their pleasure, generating several thrilling sounds depicting the significance of Indr Dev. Hey Rishi! ask these river what they speak? This statement signify the greatness-importance of Indr Dev. Her son-Indr Dev teared into the clouds and produced rains.
किमु ष्विदस्मै निविदो भनन्तेन्द्रस्यावद्यं दिधिषन्त आपः।
ममैतान्पुत्रो महता वधेन वृत्रं जघन्वाँ असृजद्वि सिन्धून्
वृत्र वध से ब्रह्म हत्या रूप पाप को प्राप्त करने वाले इन्द्र देव को वेद वाणी क्या कहती है? जल फेन रूप से इन्द्र देव के पाप को धारित करता है। मेरे पुत्र इन्द्र देव ने महान् वज्र से वृत्रासुर का वध किया और इन नदियों को प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 4.18.7]
वृत्र की हत्या करने पर इन्द्र देव को ब्रह्म हत्या का जो पाप लगा, उस सम्बन्ध में वेद वाणी क्या कहती है? इन्द्र देव के उस पाप को जल ने फेन के रूप में धारण किया। इन्द्र देव ने अपने श्रेष्ठ वज्र द्वारा वृत्र को विदीर्ण कर सरिताओं को प्रवाहमान किया।
What is the opinion of Ved regarding the slaying of Vratr leading to the sin of Brahm Hatya-murder of a Brahman? The water bears the foam over it, as the sin of Indr Dev. Aditi's son Indr dev killed Vrata Sur and let the rivers flow.
ममचन त्वा युवतिः परास ममचन त्वा कुषवा जगार।
ममचिदापः शिशवे ममृड्युर्ममच्चिदिन्द्रः सहसोदतिष्ठत्
वामदेव कहते हैं, “आपकी युवती माता अदिति ने हर्षित होकर आपको उत्पन्न किया। कुषवा नाम की राक्षसी ने प्रमत्त होकर आपको ग्रास बनाया। हे इन्द्र देव! उत्पन्न होने पर आपको जल समूह ने प्रमत्त होकर सुखी किया"। इन्द्र देव ने हर्षित होकर अपने वीर्य के प्रभाव से सूतिका गृह में राक्षसी को निगलने का प्रयास किया था।[ऋग्वेद 4.18.8]
हे इन्द्र देव! अत्यन्त प्रसन्नता वाली नारी अदिति ने ममतामय होकर तुम्हें जन्म दिया। कुषवा नाम की राक्षसी से तुम्हें अपना ग्रास बनाने का प्रयत्न किया। तुम्हारे उत्पन्न होते ही सुख प्रदान किया। तुम अपनी क्षमता से सूतिका गृह से उस राक्षसी को मार देने को तैयार हुए।
Vam Dev addressed Indr Dev and said that his young mother gave him birth. The intoxicated demoness Kushva engulfed him. Hey Indr Dev! Water bodies made you happy as soon as you were born. Indr Dev became happy and tried to swallow the demoness.
ममच्चन ते मघवन्व्यंसो निविविध्वाँ अप हनू जघान।
अधा निविद्ध उत्तरो बभूवाञ्छिरो दासस्य सं पिणग्वधेन
हे धनवान इन्द्र देव! व्यंस नामक राक्षस ने प्रमत्त होकर आपके हनुद्वय (चिबुक के अधोभाग) को विद्ध करके अपहृत किया। हे इन्द्र देव! इसके अनन्तर अधिक बलवान होकर आपने व्यंस राक्षस के सिर को वज्र द्वारा पीस डाला।[ऋग्वेद 4.18.9]
हे समद्धि के स्वामी इन्द्रदेव! मद से परिपूर्ण होकर व्यंस नामक दैत्य ने तुम्हारी ठोढ़ी के आधे हिस्से में आघात पहुँचाया, जब तुमने शक्ति से व्यंस के सिर को वज्र से अच्छी तरह से कुचल डाला।
Hey wealthy-rich Indr Dev! The demon called Vyans struck your chin, under intoxication and abducted you. Thereafter, you became mighty and powdered his head with Vajr.
गृष्टिः ससूव स्थविरं तवागामनाधृष्यं वृषभं तुम्रमिन्द्रम्।
अरीळ्हं वत्सं चरथाय माता स्वयं गातुं तन्व इच्छमानम्
सकृत्प्रसूता (एक बार ब्यायी हुई) गौ जिस प्रकार से बछड़े का प्रसव करती है, उसी प्रकार इन्द्र की माता अदिति ने अपनी इच्छा से सञ्चरण करने के लिए इन्द्र देव को प्रसव है। इन्द्र देव अवस्था में वृद्ध, प्रभूत बलशाली, अनभिभवनीय, अभीष्टवर्षी, प्रेरक, अनभि स्वयं गमनक्षम और शरीराभिलाषी हैं।[ऋग्वेद 4.18.10]
जैसे गाय शक्तिशाली बछड़े को उत्पन्न करती है, वैसे ही इन्द्र की जननी अदिति अपनी इच्छा पर चलने वाले, सभी शक्तियों से सम्पन्न, सर्व विजेता इन्द्र को जन्म देती है। वह इन्द्र सभी के प्रेरक, अविनाशी, सर्वव्याप्त, अभीष्टों की वर्षा करने वाले एवं कर्मों का फल देने में सक्षम हैं।
The way a cow give birth to the calf, Mata Aditi channelized-centralised her powers and gave birth to Indr Dev. Indr Dev is possessor of might, power, desires granting, inspiring, all pervading-dynamic and capable of awarding the rewards of endeavours-Karm.
उत माता महिषमन्ववेनदमी त्वा जहति पुत्र देवाः।
अथाब्रवीद् वृत्रमिन्द्रो हनिष्यन्त्सखे विष्णो वितरं विक्रमस्व
इन्द्र की माता अदिति ने महिमावान इन्द्र देव से पूछा, "हे मेरे पुत्र इन्द्र देव, अग्नि देव आपको त्याग रहे हैं"। इन्द्र देव ने श्री हरी विष्णु से कहा, "हे मित्र श्री विष्णु! आप यदि वृत्रासुर को मारने की इच्छा करते हैं, तो अत्यन्त पराक्रमशाली होवें"।[ऋग्वेद 4.18.11]
माता अदिति श्रेष्ठ समृद्धि वाले तुम इन्द्र देव की अभिलाषा करती हुई कहती हैं कि हे पुत्र इन्द्र देव! यह सभी विजयाभिलाषी पराक्रमी तुम्हें ग्रहण होते हैं। तब इन्द्रदेव ने कहा, हे विष्णो! तुम वृत्र को वध करने की कामना करते हुए अत्यन्त पराक्रमी बनो।
Indr Dev's mother Mata Aditi,  inquired of the mighty Indr Dev, whether the deities, Agni Dev etc. had deserted him? Indr Dev asked Shri Hari Vishnu if he purposed to slay Vrata Sur and become mighty possessing great valour.
कस्ते मातरं विधवामचक्रच्छयुं कस्त्वामजिघांसच्चरन्तम्।
कस्ते देवो अधि मार्डीक आसीद्यत्प्राक्षिणाः पितरं पादगृह्य
हे इन्द्रदेव! आपके अतिरिक्त किस देव ने माता को विधवा किया! आप जिस समय शयन कर रहे थे अथवा जाग रहे थे; उस समय किसने आपको मारना चाहा? कौन देवता देने में आपकी अपेक्षा अधिक हैं? किस कारण वश आपने पिता के दोनों चरणों को पकड़कर उनका वध किया?[ऋग्वेद 4.18.12]
हे इन्द्र देव! तुम्हारा कौन सा शत्रु पैरों को पकड़ सकता कर तुम्हारे पिता को
मारकर माता की विधवा बना सकता है? तुमको सोते समय या चलते समय कौन मार सकता है? तुम्हारे अतिरिक्त ऐसा कौन सा देवता है, जो ऊँची पदवी पा सकता है।
Who has made your mother a widow!? Who has sought to slay you while the sleeping or walking!? Which deity has been more gracious than you since you slained the father, having seized him by the foot?
Hey Indr Dev! Who can kill your father holding his legs making your mother a widow!? Who can kill while moving or sleeping?! Which deity other than you can attain a high post, designation?!
अवर्त्या श्रुन आन्त्राणि पेचे न देवेषु विविदे मर्डितारम्।
अपश्यं जायाममहीयमानामधा मै श्येनो मध्वा जभार
हमने भूख से पीड़ित होकर कुत्ते की अँतड़ी को पकाकर खाया। हमने देवों के बीच में इन्द्र देव के अतिरिक्त अन्य देव को सुख दायक नहीं पाया। हमने अपनी पत्नी को असम्मानित होते देखा। इसके अनन्तर इन्द्र देव हमारे लिए मधुर जल लावें।[ऋग्वेद 4.18.13]
हमने निर्धनता वश कुत्ते की आत्रों को भी पकाया, तब तुम्हारे लिए देवों में इन्द्रदेव के अतिरिक्त कोई भी सुख प्रदान करने वाला नहीं हुआ। जब हमने अपनी पत्नी को अपमानित होते देखा, तब इन्द्र देव ने ही हमारी सुरक्षा की और मधुर रस प्रदान किया।
We cooked & ate the intestine of the dog due to intolerable hunger. We did not find any other demigod-deity who could grant us comfort. We saw our wife being insulted. Indr Dev granted us solace and offered us water-sweep sap.(21.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्।
एवा त्वामिन्द्र वज्रिन्नत्र विश्वे देवासः सुहवास ऊमाः।
महामुभे रोदसी वृद्धमृष्वं निरेकमिवृणते वृत्रहन्ये
हे वज्रवान इन्द्र देव! इस यज्ञ में शोभन आह्वान से युक्त तथा रक्षक निखिल देवगण और दोनों द्यावा-पृथ्वी वृत्र वध के लिए एक मात्र आपका ही आवाहन करती हैं। आप स्तूयमान, महान गुणोत्कर्ष से प्रवृद्ध और दर्शनीय हैं।[ऋग्वेद 4.19.1]
हे वज्रिन! इस अनुष्ठान में सुन्दर आह्वान वाले तथा सुरक्षा सामर्थ्य वाले समस्त देवता और अम्बर धरा, वृत्र पतन के लिए केवल तुमको ही भजते हैं। तुम वंदना योग्य एवं गुणों के उत्कर्ष से वृद्धि करते हुए तथा दर्शनीय हो।
Hey Vajr possessing Indr Dev! The earth and sky-heavens invoke you to kill Vratr-demon, in the Yagy. You are praise worthy, possessing great characters-qualities, worship able, worth seen.
अवासृजन्त जिव्रयो न देवा भुवः सम्राळिन्द्र सत्ययोनिः।
अहन्नहिं परिशयानमर्णः प्र वर्तनीररदो विश्वधेनाः
हे इन्द्र देव! वृद्ध पिता जिस प्रकार से युवा पुत्र को प्रेरित करते हैं, उसी प्रकार देवगण आपको असुर वध के लिए प्रेरित करते हैं। हे इन्द्र देव! आप सत्य विकास स्वरूप है। तब से आप समस्त लोकों के अधीश्वर हुए है। जल को लक्ष्य करके परिशयन करने वाले वृत्रासुर का आपने वध किया। सबको प्रसन्न करने वाली नदियों का आपने ही खनन किया।[ऋग्वेद 4.19.2]
हे इन्द्र देव! जैसे वृद्ध पिता अपने पुत्र को शिक्षा प्रदान करता है, वैसे ही देवतागण तुमको राक्षसों के संहार की शिक्षा देते हैं। तुम सत्य के विकसित रूप हो। तुम सभी भुवनों के दाता हो। जल को लक्ष्य कर सोते हुए वृत्र को तुमने मार दिया। सबको सन्तुष्ट करने वाली सरिताओं को तुमने प्रवाहित किया।
Hey Indr Dev! The demigods-deities inspired-encouraged you to kill Vrata Sur. You are embodiment of truth. Since then, you are the leader of all abodes. You killed Vrata Sur resting-sleeping the waters. You desilted-excavated the rivers.
अतृप्णुवन्तं वियतमबुध्यमबुध्यमानं सुषुपाणामिन्द्र।
सप्त प्रति प्रवत आशयानमहिं वज्रेण रिणा अपर्वन्
हे इन्द्र देव! आपने भोग में अतृप्त, शिथिलाङ्ग, दुर्विज्ञान, अज्ञान भावापन, सुप्त और सपणशील जल को आच्छादित करके सोने वाले वृत्रासुर को पौर्णमासी में वज्र द्वारा मारा।[ऋग्वेद 4.19.3]
हे इन्द्र देव! तुमने अपृप्त इच्छा वाले अज्ञानी, कमजोर, बुरे विचार वाले, लुप्त एवं शांत जल ढक लेने वाले, विश्राम करते वृत्र की वज्र द्वारा हत्या की।
Hey Indr Dev! You killed Vrata Sur who was not content-dissatisfied, had weak limbs, possessed bad ideas vices-wickedness, ignorant-idiot, lazy, shadowing the waters, sleeping on full moon day. 
अक्षोदयच्छवसा क्षाम बुध्नं वार्ण वातस्तविषीभिरिन्द्रः।
दृळ्हान्यौभ्नादुशमान ओजोऽवाभिनत्ककुभः पर्वतानाम्
वायु जैसे बल द्वारा जल को हिलाती है, उसी प्रकार परमैश्वर्यवान इन्द्र देव बल द्वारा अन्तरिक्ष को क्षीण जल करके पीस डालते हैं। बलाभिलाषी इन्द्र देव दृढ़ मेघ को भग्न करते हैं और पर्वतों के पक्षों को छिन्न-भिन्न करते हैं।[ऋग्वेद 4.19.4]
पवन अपनी शक्ति से जल को क्षुब्ध करते हैं, वैसे ही परम समृद्धि से परिपूर्ण इन्द्र देव अपनी शक्ति से अम्बर को सूक्ष्म तेज से युक्त कर जल को छिन्न-भिन्न करते हैं। वे जल की अभिलाषा करने वाले इन्द्रदेव बादलों और शैलों को तोड़ डालते हैं।
Indr Dev, by his strength, agitated the exhausted firmament, as wind, by its violent gusts, agitates the water, exulting in his strength, he divided the large clouds and shattered the peaks of the mountains.
The way air shake the water with its power, Indr Dev associate the sky with his energy and tear the clouds into pieces and shatter the peaks of the mountains.
अभि प्र दगुर्जनयो न गर्भं रथाइव प्र ययुः साकमद्रयः।
अतर्पयो विसृत उब्ज ऊर्मीन्त्वं वृताँ अरिणा इन्द्र सिन्धून्
हे इन्द्र देव! माताएँ जिस प्रकार पुत्र के निकट गमन करती हैं, उसी प्रकार मरुतों ने आपके निकट गमन किया, जिस प्रकार से वृत्रासुर को मारने के लिए आपके साथ वेगवान रथ गया। आपने विसरणशील नदियों को जल से पूर्ण किया, मेघ को भग्न किया और वृत्रासुर द्वारा आवृत जल को प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 4.19.5]
हे इन्द्र देव! जैसे जननी पुत्र की ओर जाती है, वैसे ही मरुत तुम्हारे समीप गए थे। वैसे ही वृत्र वध के लिए तुम्हारे समीप रथ पहुँचा था। तुमने सरिताओं को जल से परिपूर्ण कर दिया। मेघ को विदीर्ण कर वृत्र द्वारा रोके हुए जल को गिरा दिया।
विदीर्ण :: चीयर-फाड़ करना, तोड़ देना; teared-torn, cloven, cleft, laciniate, rimose.
Hey Indr Dev! Marud Gan approached you like the mother who become close to her son and similarly your charoite reached you. You filled the dried rivers with water. You laciniate-teared the clouds and released the water blocked by Vrata Sur.
त्वं महीमवनिं विश्वधेनां तुर्वीतये वय्याय क्षरन्तीम्।
अरमयो नमसैजदर्णः सुतरणाँ अकृणोरिन्द्र सिन्धून्
हे इन्द्र देव! आपने महती तथा सबको प्रीति देने वाली और तुर्वीति तथा वय्य राजा के लिए अभीष्ट फल देने वाली भूमि को अन्न-जल से अचल किया तथा हे इन्द्र देव! आपने नदियों को (सुगमता से तैरने के योग्य) बना दिया।[ऋग्वेद 4.19.6]
हे इन्द्र देव! तुम सभी को प्रेम करने वाली तुर्वीति से और सम्राट वय्य के लिए इच्छित फलदायिनी धरा को अन्न से परिपूर्ण कर दिया और जल से युक्त किया था। हे इन्द्र देव तुमने जल को सुविधा पूर्वक तैरने के योग्यतम कर दिया।
You have made the vast, all cherishing and exuberant earth, delighted with abundant food and tremulous water, for the sake of Turviti and Vayy, you have made the rivers easy to be crossed, swimmed.
Hey Indr Dev! You filled the earth with food grains  for he sake king Vayy of the Turvas-Turviti, made the river comfortable for swimming.
प्राग्रुवो नभन्वो ३ न वक्वा ध्वस्त्रा अपिन्वद्युवतीर्ऋतज्ञाः।
धन्वान्यज्राँ अपृणक्तृषाणाँ अधोगिन्द्रः स्तर्यो ३ दंसुपत्नीः
इन्द्र देव ने शत्रु हिंसक सेना के तुल्य तटध्वंसिनी, जल युक्ता तथा अन्न जनयित्री नदियों को भली-भाँति पूर्ण किया। इन्होंने दस्युओं द्वारा नियन्त्रित गौओं को दुहा।[ऋग्वेद 4.19.7] तट बन्ध 
शत्रु का विनाश करने वाली सेना के सम्मुख इन्द्र ने किनारों को तोड़ने वाली जल से पूर्ण अन्नोत्पादिनी नदियों को परिपूर्ण किया, उन्होंने जल विहीन शुष्क प्रदेशों को वर्षा द्वारा पूर्ण किया और प्यासे यात्रियों को शांति प्रदान की। जिन गायों पर राक्षसों ने अधिकार कर लिया था, उस प्रसव से निवृत्र हुई गायों को इन्द्र ने दुहा था।
Dev Raj Indr filled food grain producing rivers with water, which were like the enemy army breaking the embarkment. He milked the cows abducted by the demons.
पूर्वीरुषसः शरदश्च गूर्ता वृत्रं जघन्वाँ असृजद्वि सिन्धून्।
परिष्ठिता अतृणद्बद्बधानाः सीरा इन्द्रः स्त्रवितवे पृथिव्या
वृत्रासुर को मारकर इन्द्र ने तमिस्रा द्वारा आच्छादित अनेक उषाओं को तथा संवत्सरों को विमुक्त किया एवं वृत्र द्वारा निरुद्ध जल को भी विमुक्त किया। इन्द्र देव ने मेघ के चारों ओर वर्तमान तथा वृत्र द्वारा अवरुद्ध नदियों को प्रवाहित कर पृथ्वी को तृप्त किया।[ऋग्वेद 4.19.8]
तमिस्रा से ढकी हुई असंख्य उषाओं और वृष्टि को इन्द्र देव ने वृत्र को समाप्त करके विमुक्त किया और वृत्र द्वारा रोकी गई नदियों को धरा पर प्रवाहमान होने के लिए छोड़ा।
Indr Dev killed Vrata Sur and released many Usha & days from darkness releasing waters blocked by Vrata Sur. Dev Raj made the cloud rain and maintained the flow of rivers.
वमृीभिः पुत्रमग्रुवो अदानं निवेशनाद्धरिव आ जभर्थ।
व्य १ न्धो अख्यदहिमाददानो निर्भूदुखच्छित्समरन्त पर्व
हे हरि नामक घोड़े वाले इन्द्र देव! आपने उपजिह्विका द्वारा भक्ष्यमान अग्रू पुत्र को दीमक के स्थान से बाहर किया। बाहर किये जाते समय वह अग्रू पुत्र यद्यापि नेत्रहीन था, फिर भी उसने सर्प को अच्छी तरह से देखा। उसके बाद चीटियों के द्वारा काटे गये अङ्गों को आपने जोड़ा।[ऋग्वेद 4.19.9]
हे महान अश्वों के स्वामी इन्द्र देव! उपजिह्वाका द्वारा प्रथक किये अग्रु पुत्र को तुमने दीमक के बिल से निकाला। निकलते समय वह अग्रु पुत्र नेत्र हीन था। तब भी उसने साँप को भली प्रकार देखा। उपजिह्विका द्वारा भक्षण किये अंगों को इन्द्र देव ने जोड़ दिया था।
Hey Indr Dev, master of horses named Hari! You released the son of Agru with your minor-sub tongue from the termite mould. Tough Agru's son was blind yet he saw the snake clearly. Thereafter, you joined his organs-limbs cut by the ants.
प्र ते पूर्वाणि करणानि विप्राविद्वाँ आह विदुषे करांसि।
यथायथा वृष्ण्यानि स्वगूर्तापांसि राजन्नर्याविवेषीः
हे राजमान प्राज्ञ इन्द्र देव! आप सर्व वेता है। वर्षण योग्य और स्वयं सम्पन्न मनुष्यों के वृष्टि सम्बन्धी कर्मों को आपने जिस प्रकार से किया, वाम देव उन सकल पुरातन कर्मों का उल्लेख करते है।[ऋग्वेद 4.19.10]
हे बुद्धि मान इन्द्रदेव! तुम सभी कुछ जानते हो। वर्षा के योग्य और प्राणियों को सम्पन्न करने वाली वर्षा सम्बन्धी धर्मों का किस प्रकार तुमने किया था, उन सभी कर्मों का वामदेव ने उल्लेख किया है।
Hey intelligent-prudent Indr Dev! You are enlightened-all knowing. Vam Dev described your ancient deeds-endeavours pertaining to rain, leading to human welfare.
नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः।
अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः
हे इन्द्र देव! आप पूर्ववर्ती ऋषियों द्वारा प्रशंसित होकर तथा हम लोगों के द्वारा प्रशंसित होकर जिस प्रकार से जल नदी को पूर्ण करता है, उसी प्रकार स्तोताओं के अन्न को आप प्रवृद्ध करते है। हे हरि विशिष्ट इन्द्र देव! हम आपके उद्देश्य से अभिनव स्तोत्रों रचते हैं, जिससे हम लोग रथवान होकर स्तुति द्वारा सदा आपकी सेवा करते रहें।[ऋग्वेद 4.19.11]
हे इन्द्र देव! तुम प्राचीन मुनियों द्वारा पूजित बने और हमारे द्वारा भी वंदित किये गये हो। तुम जल के द्वारा नदी को पूर्ण करने के तुल्य प्रार्थना करने वालों के अन्न की वृद्धि करते हो। हे इन्द्र देव ! हम तुम्हारे लिए नवीन श्लोकों को कहते हैं, जिसके द्वारा हम रथीवान बने तुम्हारी वंदना और परिचर्या करते रहे।
Hey Indr Dev! You were praised by the ancient sages and us filling the rivers with water and granting food grins to the devotees-worshipers. We compose new Strotr-hymns in your honour on becoming the owners of charoite and worship-pray, serve you.(22.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ न इन्द्रो दूरादा न आसादभिष्टिकृदवसे यासदुग्रः।
ओजिष्ठेभिर्नृपतिर्वज्रबाहुः संगे समत्सु तुर्वणिः पृतन्यून्
अभीष्टप्रद और तेजस्वी इन्द्र देव! हम लोगों को आश्रय प्रदान करने के लिए दूर से पधारें; हम लोगों को आश्रय प्रदान करने के लिए पास से आगमन करें। वे संग्राम में संगत होने पर शत्रुओं का वध करते हैं। वे वज्रबाहु मनुष्यों के पालक और तेजस्वी मरुतों से युक्त हैं।[ऋग्वेद 4.20.1]
हे इन्द्र देव! तुम अभिलाषाओं के प्रदान करने वाले और तेज से परिपूर्ण हो। तुम हमको आश्रय देने के लिए दूर हो, तो भी आओ, निकट हो तो भी पधारकर हमारी सुरक्षा करो। तुम संग्राम स्थान में शत्रुओं का नाश करते हो। तुम वज्र धारण करने वाले हो। तुम प्राणियों के पालनकर्त्ता एवं तेजस्वी मरुद्गण से युक्त हो।
Hey Indr Dev! You accomplish our desires & possess radiance-aura. Whether far or near come and grant asylum-shelter, protection to us. You kill  the enemy in the war, possessing Vajr. You are the nurturer of the living beings and associated with the Marud Gan.
आ न इन्द्रो हरिभिर्यात्वच्छार्वाचीनोऽवसे राधसे च।
तिष्ठाति वज्री मघवा विरप्शीमं यज्ञमनु नो वाजसातौ
हम लोगों के अभिमुख वर्ती इन्द्र देव आश्रय और धन प्रदान करने के लिए हम लोगों के पास अश्वों के साथ पधारें। वज्रवान, धनशाली और महान इन्द्र देव युद्ध में उपस्थित होने पर हमारे इस यज्ञ में उपस्थित होवें।[ऋग्वेद 4.20.2]
हमारे सामने आने वाले इन्द्र आश्रय देने और धन प्रदान करने के लिए अपने अश्वों के साथ हमारे समीप आएँ। वे इन्द्र वज्रधारी, धनैश्वर्य से युक्त एवं श्रेष्ठ हैं, युद्ध का अवसर होने पर वे हमारे कार्यों में सहयोगी बनें।
Let Indr Dev granting us asylum, come to us with his horses. Vajr wielding-possessing, rich-wealthy and great Indr Dev join us in the Yagy after the war.
Wield :: रखना, चलाना, बरतना, हिलाना, सँभालना, फिराना, प्रबंध करना, काम में लगाना, हाथ लगाना, शक्ति, अधिकार आदि रखना और उनका प्रयोग-उपयोग करना, हथियार पास रखना और उसे इस्‍तेमाल करने के लिए तैयार रहना; to have and use power, authority, to hold and be ready to use a weapon.
इमं यज्ञं त्वमस्माकमिन्द्र पुरो दधत्सनिष्यसि क्रतुं नः।
श्वघ्नीव वज्रिन्त्सनये धनानां त्वया वयमर्य आजियेम
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को पुरःसर करके हमारे द्वारा किये जाने वाले यज्ञों को ग्रहण करें। हे वज्र धर! हम आपके स्तोता हैं। जिस तरह से व्याध हिरणों का शिकार करता है, उसी प्रकार से हम आपके द्वारा धन लाभ के लिए युद्ध में विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 4.20.3]
हे इन्द्र देव! हमारे साथ सखाभाव रखते हुए हमारे द्वारा किये जाते हुए इस अनुष्ठान को हविपूर्ण करो। हे वज्रिन! हम आपकी प्रार्थना करते हैं। जैसे शिकारी हिरणों का शिकार करता है वैसे हम तुम्हारी शक्ति से धन ग्रहण करने हेतु युद्ध में विजेता हों।
Hey Indr Dev! Accept our offerings in the Yagy as a friend. Hey Vajr possessing Indr Dev! You are our deity. The way a tiger hunt the deer, in the same way you should benefited us with wealth, winning war.
उशन्नु षु णः सुमना उपाके सोमस्य नु सुषुतस्य स्वधावः।
पा इन्द्र प्रतिभृतस्य मध्वः समन्यसा ममदः पृष्ठ्येन
हे अन्नवान इन्द्र देव! आप प्रसन्न मन से हम लोगों के समीप आगमन कर हमारी कामना करके उत्तम रूप से अभिषुत, सम्भूत और मादक सोमरस का पान करें एवं माध्यन्दिन सवन में उदीयमान स्तोत्र के साथ सोमपान करके हर्षित होवें।[ऋग्वेद 4.20.4]उदीयमान :: उगता हुआ, उदित होता हुआ, उठता या उभरता हुआ, होनहार, विकासशील, प्रगतिशील, उन्नतिशील; budding, assurgent, ascendant, nascent.
हे इन्द्र देव! तुम अन्नों के दाता हो, तुम प्रसन्न युक्त मन से हमारे नजदीक आओ तथा हमको चाहते हुए उत्तम प्रकार से सिद्ध किये गये सोमरस को पियो। दिन के मध्य वंदना सवन में उज्जवल स्तोत्र सहित हर्ष प्रदायक सोम को ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! You are the provider of food grains. Come to us happily, drink the intoxicating Somras extracted by us, during the mid day and enjoy along with the recitation of ascendant, nascent hymns.
वि यो ररप्श ऋषिभिर्नवोभिर्वृक्षो न पक्वः सृण्यो न जेता।
मर्यो न योषामाभिमन्यमानोऽच्छा विवक्मि पुरुहूतमिन्द्रम्
जो पके फल वाले वृक्ष के तुल्य एवं आयुध कुशल विजयी व्यक्ति के तुल्य हैं और जो नूतन ऋषियों द्वारा विविध प्रकार से स्तूयमान होते हैं, उन पुरुहूत इन्द्र देव के उद्देश्य से हम प्रार्थना करते हैं। जिस प्रकार से मनुष्य अपनी स्त्री की प्रशंसा करता है।[ऋग्वेद 4.20.5]
पुरुहूत :: जिसका आह्वान बहुतों ने किया हो, जिसकी बहुत से लोगों ने स्तुति की हो; invoked by many.
जो इन्द्र देव पके फल वाले वृक्ष के समान और अस्त्र कुशल विजेता के समान पराक्रमी हैं, जो नये ऋषियों के द्वारा असंख्य तरह से पूजनीय होते हैं, उन इन्द्रदेव के लिए हम प्रशंसा से परिपूर्ण श्लोक उच्चारित करते हैं।
We worship Indr Dev, like a man who praise his wife, who is like the tree granting ripe fruits, expert-skilled in using weapons, winner, praised & invoked by the sages-Rishis. We praise-honour him with hymns.
गिरिर्न यः स्वतवाँ ऋष्व इन्द्रः सनादेव सहसे जात उग्रः।
आदर्ता वज्रं स्थविरं न भीम उनेव कोशं वसुना न्यृष्टम्
जो पर्वत के तुल्य प्रवृद्ध और महान हैं, जो तेजस्वी हैं और जो शत्रुओं को अभिभूत करने के लिए सनातन काल में पैदा हुए हैं, वे इन्द्र देव जल द्वारा पूर्ण जलपात्र के तुल्य तेज पूर्ण बृहत वज्र का आदर करते हैं।[ऋग्वेद 4.20.6]
जो शैल के समान विस्तृत हैं, जो तेज से तेजस्वी हैं, जो शत्रुओं को वश में करने के लिए प्राचीन समय में उत्पन्न हुए, वे इन्द्र जल से भरे हुए पात्र के समान अत्यन्त तेजस्वी एवं श्रेष्ठ वज्र के धारण करने वाले हैं।
Indr Dev, who is vast-broad like the mountain, radiant born in ancient-times, eternal, enchant the enemy, respect-honour Vajr like the pot full of water.
न यस्य वर्ता जनुषा न्वस्ति न राधस आमरीता मघस्य।
उद्वावृषाणस्तविषीव उग्रास्मभ्यं दद्धि पुरुहूत संयः
हे इन्द्र देव! आपके जन्म से ही कोई निवारक नहीं रहा। यज्ञादि कर्म के लिए आपके द्वारा प्रदत्व धन का नाशक कोई नहीं रहा। हे बलशाली, तेजस्वी, पुरुहूत! आप अभीष्टवर्षी हैं। आप हम लोगों को धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.20.7]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे प्राकट्य समय से ही तुम्हें कोई रोकने वाला नहीं हुआ। यज्ञादि शुभ कार्यों के लिए तुम्हारे द्वारा किये गये धन का पत्तन करने वाला भी कोई नहीं हुआ। वे बलशाली! तुम बहुत ही तेजस्वी और अभिलाषाओं की वृष्टि करने वाले हो। हमारे लिए धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! There is none to obstruct-restrain you since your birth. There is no one to destroy the grants made by you. Hey mighty-powerful, radiant, invoked by many, you are desires accomplishing. Give us money.
ईक्षे रायः क्षयस्य चर्षेणीनामुत व्रजमपवर्तासि गोनाम्।
शिक्षानरः समिथेषु प्रहावान्वस्वो राशिमभिनेतासि भूरिम्
हे इन्द्र देव! आप प्रजाओं को धन और घर का पर्यवेक्षण करते हैं और विरोधक असुरों गौओं के समूह को उन्मुक्त करते हैं। हे इन्द्र देव! आप शिक्षा के विषय में प्रजाओं के नेता या शासक हैं और युद्ध में प्रहार करने वाले हैं। आप प्रभूत धनराशि के पार हैं।[ऋग्वेद 4.20.8]
पर्यवेक्षक :: काम की देखभाल करनेवाला अधिकारी; supervisor.
हे इन्द्र देव! तुम प्राणियों के धन एवं ग्रहों के पर्यवेक्षक हो। तुम विघ्न प्रदान करने वाले असुरों से गौओं के दल को युक्त करते हो। तुम शैक्षणिक कार्यों में अग्रणी और युद्ध काल में नेतृत्व कर शत्रुओं पर वार करते हो। तुम उत्पन्न सम्पन्नकर्त्ता हो।
Hey Indr Dev! You supervise the wealth-money and houses of he populace, release the cows from the demons captivity. Hey Indr dev! You are the leader of the populace in educational matters and strike the enemy in the war. You possess grandeur-wealth.
कया तच्छृण्वे शच्या शचिष्ठो यया कृणोति मुहु का चिदृष्वः।
पुरु दानुषे विचयिष्ठो अंहोऽथा दधाति द्रविणं जरित्रे॥
अतिशय प्राज्ञ इन्द्रदेव किस प्रज्ञाबल से विश्रुत होते हैं? महान् इन्द्रदेव जिस प्रज्ञाबल से मुहुर्मुहः कर्मसमूह का सम्पादन करते हैं (उसी के द्वारा विश्रुत हैं)। वे याजकगणों के बहुत से पापों को विनष्ट करते हैं और याजकों को धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.20.9]
तुम शैक्षणिक कार्यों में अग्रणी और युद्ध काल में नेतृत्व कर शत्रुओं पर वार करते हो। तुम उत्पन्न सम्पन्नकर्त्ता हो। वह सबसे अधिक बुद्धि वाले इन्द्रदेव किस वाणी, बल और बुद्धि से परिपूर्ण हैं। किन कार्यों के द्वारा वह श्रेष्ठ इन्द्रदेव बार-बार असंख्य कर्मों को करते हैं। वे मनुष्यों को पापों को समाप्त करते हुए वंदना करने वालों को धन ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
मा नो मर्धीरा भरा दद्धि तन्नः प्र दाशुषे दातवे भूरि यत्ते। 
नव्ये देष्णे शस्ते अस्मिन्त उक्थे प्र ब्रवाम वयमिन्द्र स्तुवन्तः॥
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों की हिंसा न करें; बल्कि हम लोगों के पोषक बनें। हे इन्द्र देव! आपका जो प्रभूत धन हव्य दाता को दान देने के लिए आपका है, वह धन लाकर हमें दें। हम आपका भजन करते हैं। इस नूतन दान योग्य और प्रशस्त उक्थ में हम आपका विशेष रूप से भजन करते हैं।[ऋग्वेद 4.20.10]
हे इन्द्र देव! हमारा नाश न हो। तुम्हारे लिए जो प्राणी अपने को अर्पित करते हैं उनको अपना लेने योग्य ऐश्वर्य दो। हमारी अर्चना स्वीकार हो।
Hey Indr Dev! Do not vanish us; nurture us. Grant us the money meant for charity-donation for those who make offerings to you. We worship-pray you. Accept our requests.
नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो ३ न पीपेः।
अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः
हे इन्द्र देव! आप पूर्व वर्ती ऋषियों द्वारा प्रशंसित होकर तथा हम लोगों के द्वारा स्तुत होकर जिस प्रकार से जल नदी को पूर्ण करता है, उसी प्रकार आप स्तोताओं के अन्न को प्रवृद्ध करते है। हे हरि विशिष्ट इन्द्र देव! हम आपके उद्देश्य से अभिनव स्तोत्रों की रचना करते हैं, जिससे हम लोग रथवान होकर स्तुति द्वारा सदा आपकी सेवा करते रहें।[ऋग्वेद 4.20.11]
हे इन्द्र देव! तुम प्राचीन काल में ऋषियों एवं अब हमारे द्वारा भी पूज्य हुए हो। तुम नदी के पूर्ण करने वाले जलों के समान हम वंदनाकारियों के अन्न की वृद्धि करते हो। तुम अश्ववान हो, हम तुम्हारे लिए नवीन श्लोक की उत्पत्ति करते हैं, जिसके द्वारा हम पथ संयुक्त बन तुम्हारी प्रार्थना और परिचर्या करते हैं।
Hey Indr Dev! You were worshiped-prayed by the ancient Rishis-sages. Having been worshiped by us you increase our stock of food grains just like the waters which fill the rivers, on being requested-prayed. We have compose new hymns in your honour so that we possess charoites and become rich.(25.02.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्।
आ यात्विन्द्रोऽवस उप न इह स्तुतः सधमादस्तु शूरः।
वावृधानस्तविषीर्यस्य पूर्वीर्द्यौर्न क्षत्रमभिभूति पुष्यात्
जिनका बल प्रभूत है। जो सूर्य के तुल्य अभिभव समर्थ बल का पोषण करते हैं, वे हम लोगों के समीप रक्षा के लिए आवें। पराक्रमवान और प्रवृद्ध इन्द्र देव हमारे साथ प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 4.21.1]
प्रभूत :: उत्पन्न, जो हुआ हो, निकला हुआ, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर, पूर्ण, पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत, उद्‌गम, भूत, उद्‌गम; excellent, outstanding, regeneratory, sufficient, ample, abundant.
वीरेश्वर इन्द्र वंदनाओं द्वारा हमारी सुरक्षा हेतु पधारें। वह वृद्धि को ग्रहण हुए हमारी प्रसन्नता से ही प्रसन्नता को मानें। जो शक्ति, कौशल से सम्पन्न और सूर्य के समान तेजस्वी हैं, वे इन्द्र देव हमको पराजित करने वाले होकर पोषण करें।
May Indr Dev possessing aura-radiance like the Sun, come to us for protection and being praised by us, being the mighty hero, be exhilarated along with us. He possess employ his own over powering vigour.
Let mighty Indr Dev possessing radiance like the Sun, come to protect us. Let him enjoy with us. He possess valour and ample, abundant power, might.
तस्येदिह स्तवथ वृष्ण्यानि तुविद्युम्नस्य तुविराधसो नॄन्।
यस्य क्रतुर्विदथ्यो ३ न सम्राट् साह्वान्तरुत्रो अभ्यस्ति कृष्टीः
हे स्तोताओ! यज्ञार्ह सम्राट के तुल्य जिनका अभिभव कारक तथा त्राण कारक कर्म शत्रु सम्बन्धिनी प्रजाओं को अभिभूत करता है, उन प्रभूत यशा तथा अतिशय धन शाली इन्द्र देव के बलभूत नेता मरुतों की आप लोग इस यज्ञ में प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 4.21.2]
हे मनुष्यों! यज्ञ आदि शुभ कर्म करने वाला राजा के समान जिनका सबको करने वाला कर्म शत्रुओं की सेना को पराजित करने में सक्षम हैं तथा हमारे रक्षक हैं, उस यशस्वी एवं ऐश्वर्यशाली इन्द्र के पराक्रम के कारण रूप मरुद्गण का इस यज्ञ स्थान में वंदना करो।
Hey humans! Pray-worship Marud Gan for the success of the Yagy, who are the reason behind the valour of revered Indr Dev possessing wealth-riches, grandeur and might, who is capable of crushing the enemy and our protector. 
आ यात्विन्द्रो दिव आ पृथिव्या मक्षू समुद्रादुत वा पुरीषात्।
स्वर्णरादवसे नो मरुत्वान्परावतो वा सदनादृतस्य
हे इन्द्र देव! हम लोगों को आश्रय देने के लिए मरुतों के साथ स्वर्ग लोक से, भूलोक से, अन्तरिक्ष लोक से, जल से, आदित्य लोक से, दूर देश से और जल के स्थान भूत मेघ लोक से यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 4.21.3]
हे इन्द्र देव! हमको शरण देने के लिए स्वर्ग, धरा, अंतरिक्ष, सूर्य-मंडल में या जिस दूर स्थल में भी हो, वही से मरुद्गण के साथ पधारो।
Hey Indr Dev! Come to protect us along with the Marud Gan from heavens, space, earth, water, Adity Lok, distant places and the abode of clouds or where ever you are.
स्थूरस्य रायो बृहतो य ईशे तमु ष्टवाम विदथेष्विन्द्रम्।
यो वायुना जयति गोमतीषु प्र धृष्णुया नयति वस्यो अच्छ
जो स्थूल एवं महान् धन के अधिपति हैं, जो प्राण रूप बल द्वारा शत्रु सेना को जीतते हैं, जो प्रगल्भ हैं और जो स्तोताओं को श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं, यज्ञ स्थल में हम उन इन्द्र देव के उद्देश्य से प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.21.4]
प्रगल्भ :: चतुर, होशियार, प्रतिभाशाली, संपन्न बुद्धि वाला, उत्साही, हिम्मती, साहसी, प्रायः बढ़-चढ़कर बोलने वाला, अधिक बोलने वाला, वाचाल, निडर, निर्भय, पुष्ट, प्रौढ़, उद्धत, जिसमें नम्रता न हो, हाज़िर जवाब, समय पर ठीक उत्तर देने वाला; profound, forward, magniloquent.
जो स्थिर और सर्वश्रेष्ठ समृद्धियों के स्वामी हैं, जो प्राण रूप शक्ति से शत्रु की सेनाओं को हराते हैं, जो अत्यन्त कुशल हैं और प्रार्थनाओं को करने वालों को उत्तम धन प्रदान करते हैं, उन शत्रुहन्ता इन्द्रदेव के लिए हम इस यज्ञ स्थान में प्रार्थना करते हैं।
We request-solicit the presence of Indr Dev in our Yagy, who is the owner of great wealth, winner of the enemy, forward, grants money to the devotees.
उप यो नमो नमसि स्तभायन्नियर्ति वाचं जनयन्यजध्यै।
ऋञ्जसानः पुरुवार उक्थैरेन्द्रं कृण्वीत सदनेषु होता
जो निखिल लोकों का स्तम्भन करके यज्ञार्थ गर्जनशील वचन को उत्पन्न करते हैं और हव्य प्राप्त करके वृष्टि द्वारा अन्न प्रदान करते हैं, जो प्रसाधन योग्य तथा उक्थ (स्तोत्र, hymns) द्वारा स्तुति योग्य हैं, यज्ञ गृह में होता उन इन्द्र देव का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.21.5]
स्तम्भन :: निश्चल, निस्तब्ध, सुन्न; repressed, appalled, paralyzed, stunted, transfixed, slaphappy, paralysed, flabbergasted, restrained, benumbed, spaced out.
उक्थ  :: श्लोक, स्तोत्र; hymns.
जो सभी संसार को स्तंभित करते हुए गर्जन शब्द कों उत्पन्न करते हैं और हवियाँ स्वीकार कर वर्षा द्वारा अन्न प्रदान करते हैं, जो उत्तम स्तोत्र द्वारा श्लोक के पात्र हैं, उन इन्द्र को यज्ञ-स्थान में हम आमंत्रित करते हैं।
We invoke Indr Dev, who stun all abodes, create roaring-thundering  sound for the Yagy, accept offerings and grant food grains, deserve worship-prayers with excellent Strotr, at our Yagy site. 
धिषा यदि धिषण्यन्तः सरण्यान्त्सदन्तो अद्रिमौशिजस्य गोहे।
आ दुरोषाः पास्त्यस्य होता यो नो महान्त्संवरणेषु वह्निः
जब इन्द्र देव की प्रार्थना के अभिलाषी याजक गण के गृह में निवासकारी स्तोता युद्ध प्रार्थना सहित उनके निकट उपगत होते हैं, तब वे इन्द्र देव आवें। वे करें। वे याजक गणों के होता है। उनका क्रोध अत्यन्त भयंकर है।[ऋग्वेद 4.21.6]
जब इन्द्र देव की प्रार्थना की इच्छा करने वाले के गृह में निवास करते हुए प्रार्थना करने वाले इन्द्र देव के सामने श्लोक उपस्थित हों, तब वे इन्द्र देव प्रस्थान करें। वे युद्ध भूमि में हमारे सहायक हों।
When the repeaters of his commendations, abiding in the dwelling of the worshipper, approach Indr Dev with praise, may he who is our great sustainer in conflicts, whose wrath is difficult to be appeased, becomes the ministering priest of the master of the house.
When the hosts-priests staying in the house of the Ritviz, make prayers devoted to war, let Indr Dev come at that occasion. His wrath-anger is tremendous.
सत्रा यदींभार्वरस्य वृष्णः सिषक्ति शुष्मः स्तुवते भराय।
गुहा यदीमौशिजस्थ गोहे प्र यद्धिये प्रायसे मदाय
जगद्भर्ता अर्थात् जगत का पालन-पोषण करने वाले प्रजापति के पुत्र एवं अभीष्टवर्षी इन्द्र देव का बल स्तोत्र कारी यजमानों की सेवा करता है। वह बल वास्तव में याजक गणों के भरण के लिए गुहारूप हृदय उत्पन्न होता है, यजमानों के गृह और कर्म में वास्तव में अवस्थान करता है तथा यजमानों की अभीष्ट प्राप्ति और हर्ष के लिए निःसंदेह वह बल उत्पन्न होता है। इन्द्र देव का बल यजमानों का सदैव पालन करता है।[ऋग्वेद 4.21.7]
वे इन्द्र देव अत्यन्त तेज वाले यजमानों के होता रूप हैं। प्रजापति के पुत्र, संसार का पालन-पोषण करने वाले, इच्छाओं की वर्षा करने वाले, इन्द्र का बल स्तोता यजमान का रक्षक है। वह शक्ति यजमानों का पालन करने के लिए शरीर के गुफा रूपी मन में प्रकट होती है। वह शक्ति यजमानों के घरों और कर्मों में व्याप्त होती हुई हर्ष और अभीष्ट प्राप्ति के लिए उत्पन्न होती हुई सदैव पोषण करती है।
Desires fulfilling-accomplishing, nurtures the universe & the hosts, son of Prajapati,  Indr Dev is like the host of the Ritviz. His might, valour takes care of the Ritviz & protects them. His power appear in the innerself of the Ritviz, generating happiness, pervade their homes & endeavours.
वि यद्वरांसि पर्वतस्य वृण्वे पयोभिर्जिन्वे अपां जवांसि।
विदगौरस्य गवयस्य गोहे यदी वाजाय सुध्यो ३ वहन्ति
इन्द्र देव ने मेघ के द्वार को अपावृत किया और जल के वेग को जल समूह द्वारा परिपूर्ण किया; इसलिए जब सुकर्मा याजक गण इन्द्र देव को अन्न प्रदान करते हैं, तब वे याचकों को गौर मृग और गवय मृग प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.21.8]
इन्द्र देव ने बादल के द्वार को खोल डाला। जल की चाल को युक्त किया। जब श्रेष्ठ कार्य वाले यजमान इन्द्रदेव को हवियाँ प्रदान करते हैं। तब वे गौ आदि धन की प्राप्ति करते हैं।
Indr Dev opened the source of clouds and accelerated the flow of waters. The Ritviz made offerings of food grains for Indr Dev and in return they got cows & wealth.
भद्रा ते हस्ता सुकृतोत पाणी प्रयन्तारा स्तुवते राध इन्द्र।
का ते निषत्तिः किमु नो ममत्सि किं नोदुदु हर्षसे दातवा उ
हे इन्द्र देव! आपका कल्याण कारक हस्त द्वय (दोनों हाथ) सत्कर्म का अनुष्ठान करता है। एवं आपका हस्त द्वय याजक गण को धन प्रदान करता है। हे इन्द्र देव! आपकी स्थिति क्या है? क्यों आप हम लोगों को हर्षित नहीं करते? क्यों आप हम लोगों को धन देने के लिए प्रसन्न नहीं होते?[ऋग्वेद 4.21.9]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे दोनों हाथ कल्याणकारी हैं। हे इन्द्र देव! तुम्हारे उच्च पद की क्या स्थिति है? तुम हमको धन प्रदान करने हेतु हर्षित क्यों नहीं होते?
Hey Indr Dev! Both of your hands are busy in welfare, virtuous deeds granting money to the Ritviz. What's your position!? Don't you become happy having provided us riches?!
एवा वस्व इन्द्रः सत्यः सम्राड्ढन्ता वृत्रं वरिवः पूरवे कः।
पुरुष्टुत क्रत्वा नः शग्धि रायो भक्षीय तेऽवसो दैव्यस्य
इस प्रकार प्रार्थित होकर सत्यवान, धनेश्वर और वृत्रहन्ता इन्द्र देव याजक गणों को धन देते हैं। हे बहु स्तुत! हम लोगों की प्रार्थना के लिए आप हमें धन-धान्य प्रदान करें। जिससे हम दिव्य ऐश्वर्य का सेवन कर सकें।[ऋग्वेद 4.21.10]
सत्य से परिपूर्ण, धनों के दाता वृत्र को मारने वाले इन्द्र की यह स्तुति किये जाने पर वे यजमानों को प्रदान करते हैं। हे इन्द्रदेव! तुम अनेकों द्वारा पूजनीय हो। हमारी वंदना श्रवण कर हमें धन प्रदान करो जिससे हम दिव्य ऐश्वर्य का उपयोग कर सकें।
On being worshiped-prayed truthful, donator of riches, killer of Vratr Indr Dev grants wealth to the Ritviz. Hey Indr Dev! Worshiped by several people, grant us wealth & food grains so that we can enjoy divine grandeur.
नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो ३ न पीपेः।
अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः 
हे इन्द्र देव! आप पूर्ववर्ती ऋषियों द्वारा प्रार्थित होकर तथा हम लोगों के द्वारा स्तूयमान होकर जिस प्रकार से जल नदी को पूर्ण करता है, उसी प्रकार स्तोताओं के अन्न को आप प्रवृद्ध करते हैं। हे हरि विशिष्ट इन्द्र देव! हम आपके उद्देश्य से अभिनव स्तोत्रों का गायन करते हैं, जिससे हम लोग रथवान होकर स्तुति द्वारा सदा आपकी सेवा करते रहें।[ऋग्वेद 4.21.11] 
हे इन्द्र देव! तुम पूर्व कालीन ऋषियों द्वारा वंदित हुए हो। अब हमारे द्वारा वंदनीय होकर जल द्वारा नदी को पूर्ण करने वाले के तुल्य वंदना करने वालों के अन्न की वृद्धि करो। हे अश्ववान इन्द्र देव! हम तुम्हारे लिए नवीन श्लोक रचते हैं। जिसके द्वारा हम श्रेष्ठ रथ से परिपूर्ण हुए तुम्हारा पूजन और परिचर्या करते रहें।
Hey Indr Dev! Prayed-worshiped by ancient sages-Rishis, praised by us, you fill our godown-stores with food grains, just as the water fills the river. Hey the master of horses named Hari we compose new hymns in your honour-praise, so that we posses chariots and continue serving you.(01.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्।
यन्न इन्द्रो जुजुषे यच्च यष्टि तन्नो महान्करति शुष्या चित्।
ब्रह्म स्तोमं मघवा सोममुक्था यो अश्मानं शवसा बिभ्रदेति
महान बलवान इन्द्र देव हम लोगों के हविष्यान्न का सेवन करते हैं। वे धनवान हैं। वे वज्र धारित करके बल से युक्त होकर आगमन करते हैं। इन्द्र देव हव्य, स्तोम, सोमरस और प्रार्थना को स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 4.22.1] 
हे महा बलिष्ठ इन्द्र देव! हमारा हव्य रूप अन्न भक्षण करते हैं। वे समृद्धिवान वज्र धारण कर, बलशाली बनकर आते हैं। हविरन्न, प्रार्थना, सोम तथा श्लोकों को प्राप्त करते हैं।
Mighty, great Indr Dev accept our offerings of food grains. he is rich. He arrives wielding Vajr becoming powerful. He accept our prayers, offerings, Somras, Strotr-hymns.
वृषा वृषन्धिं चतुरश्रिमस्यनुग्रो बाहुभ्यां नृतमः शचीवान्। 
श्रिये परुष्णीमुषमाण ऊर्णां यस्या पर्वाणि सख्याय विव्ये
अभीष्टवर्षी इन्द्र देव दोनों बाहुओं से वृष्टि कारी चतुर्धारा विशिष्ट वज्र को शत्रुओं के ऊपर फेंकते हैं। वे उग्र, नेतृ श्रेष्ठ और कर्मवान होकर आच्छादन कारिणी परुष्णी नदी की आश्रय के लिए सेवा करते हैं। इन्होंने परुष्णी के भिन्न-भिन्न प्रदेश को मित्रता के लिए आवृत्त किया।[ऋग्वेद 4.22.2]
वे इन्द्रदेव इच्छाओं की वृष्टि करने वाले हैं। वे विकाराल कार्य वाले, अग्रणी करने वाले बनकर परुष्णी नदी को आश्रय देने के लिए पूर्ण करते हैं। उन इन्द्र ने परुष्णी नदी को मंत्रों के कर्म के लिए सम्पन्न किया।
Desires-accomplishments fulfilling, rain producing Indr Dev, launch four edged Vajr with both hands over the enemies. The great leader turn furious, duty bound & serve Parushni river granting protection to her. He pervaded various regions of Parushni river friendly.
यो देवो देवतमो जायमानो महो वाजेभिर्महद्भिश्च शुष्मैः।
दधानो वज्रं बाह्वोरुशन्तं द्याममेन रेजयत्प्र भूम
जो दीप्तिमान, जो दातृ श्रेष्ठ और जो उत्पन्न होते ही प्रभूत अन्न  तथा महाबल से युक्त हुए, वे दोनों बाहुओं में कामयमान वज्र धारित करके बल द्वारा द्युलोक और भूलोक को प्रकम्पित करते हैं।[ऋग्वेद 4.22.3]
जो अत्यन्त प्रकाशवान, उत्तम दानी, उत्पन्न होते ही अन्न और अत्यन्त शक्तिशाली हो गए। वे इन्द्र दोनों भुजाओं में वज्र उठाकर अपनी शक्ति से नभ और पृथ्वी को कंपा देते थे।
Excellent donor, radiant turn mighty-powerful as soon as he took birth and possessed a lot of food grains. He wield Vajr in both hands and shake the heaven and earth.
विश्वा रोधांसि प्रवतश्च पूर्वीर्द्यौर्ऋष्वाज्जनिमन्नेजत क्षाः।
आ मातरा भरति शुष्म्या गोर्नृवत्परिज्मन्नोनुवन्त वाताः
महान इन्द्र देव के जन्म होने पर समस्त पर्वत, अनेक समुद्र, द्युलोक और पृथ्वी उनके भय से कम्पित हुई। बलवान इन्द्र देव गतिशील सूर्य के माता-पिता द्यावा-पृथ्वी को धारित करते हैं। उनके द्वारा प्रेरित होकर वायु मनुष्य के तुल्य शब्द करती है।[ऋग्वेद 4.22.4]
उन श्रेष्ठ इन्द्र के प्राकट्य पर सभी शैल, सभी समुद्र, नभ और धरती उनके डर से कंपित हो गए। वे बलशाली, इन्द्रदेव गतिमान आदित्य, माता-पिता, अम्बर, धरा को धारण करते हैं। इन्द्र देव द्वारा प्रेरणा प्राप्त पवन मनुष्य के तुल्य ध्वनिकारी होता है।
The moment Indr Dev, evolved, the mountains, ocean, heavens and the earth trembled due to his fear. Mighty Indr Dev support the father of Sun, the earth and sky. Air inspired by him sound like the humans.
ता तू त इन्द्र महतो महानि विश्वेष्वित्सवनेषु प्रवाच्या।
यच्छूर धृष्णो धृषता दधृष्वानहिं वज्रेण शवसाविवेषीः
हे इन्द्र देव! आप महान हैं, आपका कर्म महान है और आप समस्त सवन में स्तुति योग्य हैं। हे प्रगल्भ, शूर, इन्द्र देव! आपने सम्पूर्ण लोक को धारित करके धर्षणशील वज्र द्वारा बल पूर्वक अहि को विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 4.22.5]
हे इन्द्र देव! तुम सर्वश्रेष्ठ हो, तुम्हारा कार्य महत्त्वशील है और तुम समस्त सवनों में वंदनाओं के पात्र हो। तुम अत्यन्त मेधावी एवं पराक्रमी हो। तुमने शक्ति पूर्वक अपने वज्र से अहि का पतन किया था और समस्त लोकों को धारण किया था।
Hey Indr Dev! You are great. Your endeavours-efforts are great. You deserve worship-prayers during the three segments of the day. Hey intelligent-prudent, brave Indr Dev! You support the entire universe and killed Ahi-demon with you Vajr forcibly.
ता तू ते सत्या तुविनृम्ण विश्वा प्र धेनवः सिस्रते वृष्ण ऊध्नः।
अधा ह त्वद्वृषमणो भियानाः प्र सिन्धवो जवसा चक्रमन्त
हे अधिक बलशाली इन्द्र देव! आपके वे सकल कर्म निश्चय ही सत्य हैं। हे इन्द्र देव! आप अभीष्टवर्षी है। आपके भय से गौएँ अपने ऊधः प्रदेशों में दूध टपकाती हैं। हे हर्षण शील! नदियाँ आपके भय से वेग पूर्वक प्रवाहित होती हैं।
हे इन्द्र देव! तुम अत्यन्त शक्तिशाली हो। तुम्हारे सभी कर्म भय से ओत-प्रोत हैं। तुम अभीष्टों की वर्षा करने वाले हो। तुम्हारे डर से गौएँ दूध की रक्षक हैं। नदियाँ तुम्हारे डर से प्रवाहित होती हैं। 
Hey mighty-powerful Indr Dev! Your endeavours are truthful. You grant-accomplish desires. Cows yield milk due to your fear. The river maintain their flow at high speed due to your fear.
अत्राह ते हरिवस्ता उ देवीरवोभिरिन्द्र स्तवन्त स्वसारः।
यत्सीमनु प्र मुचो बद्बधाना दीर्घामनु प्रसितिं स्यन्दयध्यै
हे हरि वान इन्द्र देव! जब आपने वृत्र द्वारा बद्ध इन नदियों को दीर्घ कालिक बन्धन के अनन्तर प्रवाहित होने के लिए मुक्त किया, तब उसी समय वे प्रसिद्ध द्युतिमती नदियाँ आपके द्वारा रक्षित होने के लिए आपका प्रार्थना करती थीं।[ऋग्वेद 4.22.7]
हे अश्व वान इन्द्र देव! जब तुमने वृत्र द्वारा रोकी गयी इन नदियों को बहुत कालो परान्त प्रवाहमान के लिए छोड़ा, तभी उसी समय वे सुन्दर नदियाँ तुम्हारी शरण के लिए प्रार्थना करती थीं।
Hey the master of horses named Hari, Indr Dev! The beautiful rivers blocked by Vratr used to worship-pray you, when you released them.
पिपीळे अंशुर्मद्यो न सिन्धुरा त्वा शमी शशमानस्य शक्तिः। अस्मद्र्यक्शुशुचानस्य यम्या आशुर्न रश्मि तुव्योजसं गोः
हर्ष जनक सोम निष्पीड़ित हुआ है, स्पन्दमान होकर यह आपके निकट आगमन करे। शीघ्र गामी आरोही गमनशील अश्व की दृढ़बल्गा धारण करके जिस प्रकार से अश्व को प्रेरित करता है, उसी प्रकार आप दीप्तिमान स्तोता की प्रार्थना को हमारे निकट प्रेरित करें।[ऋग्वेद 4.22.8]
हर्षोत्पादक सोम सिद्धस्थ हुआ। वह गतिमान होकर तुम्हारे समीप आए। तीव्रगामी सवार चलने वाले अश्व की लगाम पकड़कर जैसे उसे प्रेरणा देता है, उसी प्रकार तुम पवित्र कर्म वाले स्तोता की वंदना को प्रेरणा प्रदान करो।
Pleasure generating Somras has been extracted for you, move quickly to drink it. The manner in which a fast moving rider holds the reins of the horse and inspire-kick him, like wise direct-inspire the prayers of the virtuous hosts to us.
अस्मे वर्षिष्ठा कृणुहि ज्येष्ठा नृम्णानि सत्रा सहुरे सहांसि।
अस्मभ्यं वृत्रा सुहनानि रन्धि जहि वधर्वनुषो मर्त्यस्य
हे सहन शील इन्द्र देव! आप सर्वदा शत्रुओं का नाश करने करने वाला, प्रवृद्ध और प्रशस्त बल हम लोगों को प्रदान करें। वध योग्य शत्रुओं को हमारे वशी भूत करें। हिंसक मनुष्यों के अस्त्रों को नष्ट करें।[ऋग्वेद 4.22.9]
हे इन्द्र देव! तुम शत्रुओं को हमेशा हराने वाला श्रेष्ठ बल हमें दो। मृत करने योग्य शत्रुओं को हमारे अधिकार में करो और हिंसा करेन वाले विरोधियों के हथियारों का पतन करो।
Hey tolerant Indr Dev! Grant us the strength, power, might to us to kill-eliminate the enemy. Let the enemy fit for slaying, come under under our control. Destroy the weapons-Astr of the enemy.
TOLERANT ::  सहनशील, सहने योग्य, सहिष्णु; large heartedpatient, passive, staying, bearable, endurable.
अस्माकमित्सु शृणुहि त्वमिन्द्रास्मभ्यं चित्राँ उप माहि वाजान्।
अस्मभ्यं विश्वा इषणः पुरंधीरस्माकं सु मघवन्बोधि गोदाः
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों की प्रार्थना श्रवण करें। हम लोगों को विविध प्रकार का अन्न प्रदान करें। हमारे लिए समस्त बुद्धि प्रेरित करें। हमारे लिए आप गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.22.10]
हे इन्द्र देव! हमारी प्रार्थना को सुनो। हमको विविध भाँति का अध्ययन आदि प्रदान करो। हमारे लिए मतियों की शिक्षा प्रदान करो और हमको धेनुएँ प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Listen-respond to our prayers. Give us various kinds of food grains. Inspire-motivate our intelligence. Grant us cows. 
नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो ३ न पीपेः।
अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः
हे इन्द्र देव! आप पूर्ववर्ती ऋषियों द्वारा प्रार्थित होकर तथा हम लोगों के द्वारा प्रशंसित होकर जिस प्रकार से जल नदी को पूर्ण करता है, उसी प्रकार स्तोताओं के अन्न को प्रवृद्ध करते हैं। हे हरि विशिष्ट इन्द्र देव! हम आपके उद्देश्य से अभिनव स्तोत्रों का गान करते हैं, जिससे हम लोग रथवान होकर स्तुति द्वारा सदा आपकी सेवा करते रहें।[ऋग्वेद 4.22.11]
हे इन्द्र देव! तुम प्राचीन ऋषियों द्वारा पूजनीय, हम भी अब तुम्हारी वंदना करते हैं। तुम जल द्वारा नदी को पूर्ण करने के समान वदंना करने वालों के लिए अन्न की वृद्धि करते हो। हे इन्द्र! तुम अश्वों के दाता हो। हम तुम्हारे लिए नए श्लोक की रचना करते हैं। जिससे हम रथ वाले बनकर तुम्हारी वंदना और परिचर्या करते रहें।
Hey Indr Dev! The manner in which you fill the rivers with water on being requested by the ancient sages-Rishis, in the same manner grant food grains to the hosts-devotees. Hey Indr Dev! We pray you with the beautiful Strotr, so that we possess charoite and keep on serving you.(03.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्।
कथा महामवृधत्कस्य होतुर्यज्ञं जुषाणो अभि सोममूधः।
पिबन्नुशानो जुषमाणो अन्धो ववक्ष ऋष्वः शुचते धनाय
हम लोगों की प्रार्थना महान इन्द्र देव को किस प्रकार से वर्द्धित करेगी? वे किस होता के यज्ञ में प्रसन्न होकर आगमन करते हैं? महान इन्द्र देव सोम रस का आस्वादन करते हुए तथा अन्न की कामना और सेवा करते हुए किस याजकगण को देने के लिए प्रदीप्त धन को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.23.1]
हमारी वन्दना इन्द्र देव को किस प्रकार वृद्धि करेंगी? वे किस होता के अनुष्ठान में प्रेम भाव से पधारते हैं । इन्द्र देव श्रेष्ठ हैं। वे सोमरस का स्वाद लेते हुए तथा हवि की अभिलाषा करते हुए उज्जवल धन को किस यजमान के लिए धारण करते हैं?
How can our prayers-worship promote-boost Indr Dev?! In whose-the host's Yagy, he join-participate?! Great Indr Dev sips-drink Somras & grants riches to the host who wish to have food grains and serve him.
को अस्य वीरः सधमादमाप समानंश सुमतिभिः को अस्य।
कदस्य चित्रं चिकिते कदूती वृधे भुवच्छशमानस्य यज्योः
कौन वीर इन्द्रदेव के साथ सोमपान करता है? कौन व्यक्ति इनके अनुग्रह को प्राप्त करता है? कब इनके विचित्र धन वितरित होंगे? कब ये स्तोता याजकगण को वर्द्धित करने के लिए रक्षा युक्त होंगे?[ऋग्वेद 4.23.2]
इन्द्र सहित कौन सोम रस पियेगा? कौन उनकी दया प्राप्त करेगा? उनका अलौकिक धन कब बाँटा जायेगा? अपने श्लोक को बढ़ाने के लिए किसकी रक्षा करेंगे? हे इन्द्र! तुम श्रेष्ठ यश से युक्त होकर होता की बात कैसे श्रवण करते हो? 
Who is the brave person who will enjoy Somras with Devraj Indr?! Who pleases him and gets his favours?! When will his amazing riches be distributed?! When will these Stota-Ritviz be protected to flourish-accomplish their desirous?!
कथा शृणोति हूयमानमिन्द्रः कथा शृण्वन्नवसामस्य वेद।
का अस्य पूर्वीरुपमातयो ह कथैनमाहुः पपुरिं जरित्रे
हे इन्द्र देव! परमैश्वर्य से युक्त होकर आप होता की कथा को क्योंकर श्रवण करते हैं? स्तोत्रों को सुनकर प्रार्थना करने वाले होता की रक्षण कथा को क्योंकर जानते हैं? इन्द्र देव के पुरातन दान कौन हैं? वे दान इन्द्र देव को स्तोताओं की अभिलाषा के पूरक क्यों कहते हैं? [ऋग्वेद 4.23.3]
तुम श्लोकों को सुनकर ही वंदनाकर्त्ता की सुरक्षा को कैसे जानते हो? तुम्हारे प्राचीन दान कौन से हैं? तुम्हारे वे दान वंदनाकारी की कामना को पूर्ण करने वाले क्यों कहे जाते हैं?
How is that Indr Dev hears (the worshipper) who invokes him and hearing, how does he know his necessities? What are his gifts of old; why have they termed him the fulfiller (of the desires) of him who offers praise?
Hey Indr Dev! Blessed with Ultimate grandeur, how do you respond to the prayers of the devotees?! How do you manage to protect the devotee?! What are the tales of charity of Indr Dev? Why these donations are related to accomplishments of the desires of the devotees? 
कथा सबाधः शशमानो अस्य नशदभि द्रविणं दीध्यानः।
देवो भुवन्नवेदा म ऋतानां नमो जगृभ्वाँ अभियज्जुजोषत्
जो याजकगण पीड़ा युक्त होकर इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं और यज्ञ द्वारा दीप्ति युक्त होते हैं, वे किस प्रकार से इन्द्र सम्बन्धी धन प्राप्त करते हैं? जब द्युतिमान इन्द्र देव हव्य ग्रहण करके हमारे ऊपर प्रसन्न होते हैं, तब वे हमारी प्रार्थना को विशेष रूप से जानते हैं।[ऋग्वेद 4.23.4]
जो यजमान दुख में पड़कर इन्द्र देव की प्रार्थना करते और अनुष्ठान के द्वारा ज्योति पाते हैं, वे इन्द्र देव के धन को कैसे ग्रहण करते हैं। जब ज्योतिवान इन्द्र देव सेवन करके हम पर प्रसन्न होते हैं, तब वे हमारे श्लोकों को ठीक तरह से समझते हैं। 
How do the Ritviz get money-wealth from Indr Dev, when they worship-pray to him under distress-pain, conducting the Yagy? Radiant Indr Dev answer our prayers when he accept our offerings and become happy with us.
कथा कदस्या उषसो व्युष्टौ देवो मर्तस्य सख्यं जुजोष।
कथा कदस्य सख्यं सखिभ्यो ये अस्मिन्कामं सुयुजं ततस्त्रे
द्योतमान इन्द्र देव उषा के प्रारम्भ में (प्रभात में) किस प्रकार और कब मनुष्यों के बन्धुत्व की सेवा करते हैं? जो होता इनके उद्देश्य से सुयोग तथा कमनीय हव्य को विस्तारित करते हैं, उन बन्धुओं के प्रति कब और किस प्रकार से अपनी मित्रता को इन्द्र देव प्रकाशित करते हैं?[ऋग्वेद 4.23.5] 
प्रकाशवान इन्द्र उषा बेला में कब और किस प्रकार प्राणियों में सखा भाव बनाते हैं? इन्द्र देव के लिए जो होता सुन्दर हव्य को बढ़ाते हैं। तब उनके प्रति इन्द्र कब और कैसे अपना सखा भाव प्रदर्शित करते हैं?
How & when does Indr Dev generate brotherhood with the humans in the morning-dawn, Usha? How & when does Indr Dev extend  friendship with the hosts-Ritviz accepting the beautiful offerings by them? 
किमादमत्रं सख्यं सखिभ्यः कदा नु ते भ्रात्रं प्र ब्रवाम।
श्रिये सुदृशो वपुरस्य सर्गाः स्व १ र्ण चित्रतममिष आ गोः
हे इन्द्र देव! हम याजक आपके शत्रु पराभवकारी मित्र को स्तोताओं के निकट किस प्रकार से भली-भाँति कहेंगे? कब हम आपके भ्रातृत्व का प्रचार करेंगे? सुदर्शन इन्द्र देव का उद्योग स्तोताओं के कल्याण लिए होता है। सूर्य के तुल्य गतिशील इन्द्र देव का अतिशय दर्शनीय शरीर सभी के द्वारा अभिलषित है।[ऋग्वेद 4.23.6]
हे इन्द्र देव! यजमान शत्रु को पराजित करने वाले तुम्हारे सखा भाव को किस प्रकार वंदना करने वालों से कहेगी? कब हम तुम्हारे बन्धु भाव को प्रचारित करेंगे? श्रेष्ठ दर्शन करने वाले इन्द्र देव के समस्त कर्म वंदना करने वालों के लिए सुख कारक होते हैं। सूर्य के समान अत्यन्त दर्शनीय इन्द्र देव के शरीर की सभी अभिलाषा करते हैं। 
Hey Indr Dev! How can we recite the Strotr-hymns meant for the destruction of the enemy? when will we extend our brotherhood? Endeavors of Indr Dev are aimed at the benefit of the Ritviz. Invocation of dynamic Indr Dev like the Sun, is pleasant for the devotees-Ritviz.
द्रुहं जिघांसन्ध्वरसमनिन्द्रां तेतिक्ते तिग्मा तुजसे अनीका।
ऋणा चिद्यत्र ऋणया न उग्रो दूरे अज्ञाता उषसो बबाधे
द्रोह करने वाली, हिंसा करने वाली तथा इन्द्र देव को न जानने वाली राक्षसी को मारने के लिए पूर्व से ही तीक्ष्ण आयुधों को अत्यन्त तीक्ष्ण करते हैं। ऋण भी हम लोगों को उषा काल में बाधित करता है, ऋण विनाशक बलवान इन्द्र देव उन उषाओं को दूर से ही अज्ञात भाव से पीड़ित करते हैं।[ऋग्वेद 4.23.7]
द्रोह :: नमकहरामी, बेवफ़ाई, राज-द्रोहिता, दुष्टता, हानिकरता, नुक़सानदेहता, कपट, द्वेष, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता; malignancy, disloyalty, malevolence.
द्रोह और हिंसा करने वाली, इन्द्र की शक्ति को न जानने वाली असुरों को मारने के लिए वे पहले से ही शस्त्रों को तेज रखते हैं। जैसे ऋणि व्यक्ति सभी धन को समाप्त करता है, वैसे ही इन्द्र देव उन उषाओं को पीड़ित करते हैं।
The weapons are sharpened prior-before killing the demoness possessing envy, malevolence and violence. Indr Dev discharge loans that trouble a person in the morning-dawn calming Usha.
Loans haunt every one. Payment of loans start troubling right with the beginning of the day.
ऋतस्य हि शुरुधः सन्ति पूर्वीर्ऋतस्य धीतिर्वृजिनानि हन्ति।
ऋतस्य श्लोको बधिरा ततर्द कर्णा बुधानः शुचमान आयोः
ऋत (सत्य, आदित्य अथवा यज्ञ) देव के पास बहुत जल है। ऋतदेव की प्रार्थना पाप को नष्ट करती है। ऋतदेव का बोध योग्य तथा दीप्तिमान् स्तुति वाक्य मनुष्यों के बधिर कर्ण (जिन्हें सुनाई नहीं देता) में भी प्रवेश पाता है।[ऋग्वेद 4.23.8]
ऋतु देव अनेक जल से परिपूर्ण हैं। उनकी प्रार्थना पापों को दूरस्थ करती है। उनको ज्ञान प्रदान करने वाली प्रार्थना बहरे व्यक्ति के भी कानों में पहुँच जाती है।
Rit Dev (Truth, Adity-Sun, Yagy) possess plenty of water. His prayer-worship destroys sin. Acknowledgement-awareness of Rit Dev leads to hearing by the deaf, who are devoted to prayers-worship.
ऋतस्य दृळ्हा धरुणानि सन्ति पुरूणि चद्रा वपुषे वपूंषि।
ऋतेन दीर्घमिषणन्त पृक्ष ऋतेन गाव ऋतमा विवेशुः
वयुष्मान् ऋतदेव के दृढ़, धारक, आह्लादक आदि अनेक रूप हैं। लोग ऋतदेव के निकट प्रभूत अन्न की इच्छा करते हैं। ऋतदेव द्वारा गौएँ दक्षिणा रूप से यज्ञ में प्रवेश करती हैं।[ऋग्वेद 4.23.9]
ऋतु देव के असंख्य रूप हैं। तपस्वीगण उनसे अन्न की विनती करते हैं। इनके द्वारा धेनु दक्षिणा के रूप में अनुष्ठान में पधारती हैं।
Rit Dev has several forms like determined, bearer and blissful. People-Humans request him for granting food grains. Cows come to the Yagy for Dakshina-donating (to Brahmans).
ऋतं येमान ऋतमिद्वनोत्यृतस्य शुष्मस्तुरया उ गव्युः।
ऋताय पृथ्वी बहुले गभीरे ऋताय धेनू परमे दुहाते
स्तोता लोग ऋतदेव को वशीभूत करने के लिए उनकी भक्ति करते हैं। ऋतदेव का बल शीघ्र ही जल कामना करता है। विस्तीर्णा तथा दुरवगाहा द्यावा-पृथ्वी ऋतदेव की है। प्रीति वायिका तथा उत्कृष्टा द्यावा-पृथ्वी ऋतदेव के लिए दुग्ध दोहन करती है।[ऋग्वेद 4.23.10]
स्तुति करने वाले ऋतुदेव को वश में करने के लिए उनका पूजन करते हैं। उनका पराक्रम जल की कामना करता है। पृथ्वी ऋतृदेव के लिए दूध दुहती है।
Those who wish to be blessed by Rit Dev, worship-pray him. His might desire rains, he produces rains. Both the heavens & the earth belong to Rit Dev. The earth draw milk-milch for Rit Dev.
नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो ३ न पीपेः।
अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः
हे इन्द्र देव! आप पूर्ववर्ती ऋषियों द्वारा प्रार्थित होकर तथा हम लोगों के द्वारा प्रशंसित होकर जिस प्रकार से जल नदी को पूर्ण करता है, उसी प्रकार स्तोताओं के अन्न को आप प्रवृद्ध करते है। हे हरि विशिष्ट इन्द्र देव! हम आपके उद्देश्य से अभिनव स्तोत्र का उच्चारण करते हैं, जिससे हम लोग रथवान होकर स्तुति द्वारा सदा आपकी सेवा करते रहें।[ऋग्वेद 4.23.11] 
हे इन्द्र देव! तुम पूर्वज जल द्वारा नदी को पूर्ण करने के समान स्तोताओं के अन्नों को बढ़ाते हो। मुनियों द्वारा पूज्यनीय हुए हो अब हम भी तुम्हारा पूजन करते हैं। हे इन्द्र देव! तुम अश्ववान हो। हम तुम्हारे लिए नवीन श्लोक की उत्पत्ति करते हैं जिससे हम रथ वाले होकर तुम्हारी प्रार्थना और परिचर्या करते हैं।
Hey Indr Dev! Having been worshiped by us and ancient sages, you maintain water in the rivers and grant food grains to the Stota (devotees seeking food stuff). Indr Dev possess the horses named Hari. We recite newly composed excellent hymns in your honour, to seek charoite.(08.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
का सुष्टुतिः शवसः सूनुमिन्द्रमर्वाचीनं राधस आ ववर्तत्।
ददिर्हि वीरो गृणते स गोपतिर्निष्षिधां नो जनासः
हम लोगों को धन देने के लिए तथा हम लोगों के अभिमुख किस प्रकार से सुन्दर प्रार्थना बल के पुत्र इन्द्र देव को आवर्तित करे। हे याजकों! वीर तथा पशु पालक इन्द्र देव हम लोगों को शत्रुओं का धन दें। हम लोग उनकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.24.1]
शक्ति के पुत्र इन्द्र देव को सुन्दर प्रार्थना द्वारा धन प्रदान करने के लिए हम किस तरह से पुकारें? हे मनुष्य! पशुओं का पोषण करने वाले पराक्रमी इन्द्रदेव हमको शत्रुओं का धन प्रदान करें। हम उनका पूजन करते हैं।
Let us pray to Indr Dev, son of Shakti for granting us wealth-riches. Hey Ritviz! Let brave and protector of cattle give us money of the enemy. We worship Indr Dev.
स वृत्रहत्ये हव्यः स ईड्यः स सष्टुत इन्द्रः सत्यराधाः।
स यामन्ना मघवा मर्त्याय ब्रह्मण्यते सुष्वये वरिवो धात्
वृत्रासुर को मारने के लिए इन्द्र देव संग्राम में आहूत होते हैं। वे स्तुति योग्य हैं। वे सुन्दर रूप से प्रार्थित होने पर याजक गणों को धन देने के लिए सत्य धन होते हैं। धनवान इन्द्र देव स्तोत्राभिलाषी तथा सोमाभिलाषी याजकगण को धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.24.2]
वृत्र के लिए इन्द्र देव संग्राम में पुकारे जाते हैं। वे वंदना के पात्र हैं। उत्तम ढंग से स्तुति किये जाने पर वे यजमानों को धन प्रदान करने के लिए सत्य स्वरूप बनते हैं। वे ऐश्वर्यवान इंद्र देव के श्लोक की ओर सोम की अभिलाषा वाले, यजमान को धन प्रदान करते हैं।
Worship able Indr Dev is invoked in the war to kill Vrata Sur. On being prayed beautifully, he ensure granting of wealth to the Ritviz-devotees. Wealthy Indr Dev grant desires recitation of Strotr and Somras from the Ritviz to give them money.
तमिन्नरो वि ह्वयन्ते समीके रिरिक्वांसस्तन्वः कृण्वत त्राम्।
मिथो यत्त्यागमुभयासो अग्मन्नरस्तोकस्य तनयस्य सातौ
मनुष्यगण युद्ध में इन्द्र देव का ही आह्वान करते हैं। याजकगण शरीर को तपस्या द्वारा क्षीण करके उन्हीं को त्राणकर्ता करते हैं। याजकगण तथा स्तोता दोनों ही परस्पर संगत होकर पुत्र-पौत्र लाभ के लिए इन्हीं के समीप जाते हैं।[ऋग्वेद 4.24.3]
युद्ध में प्राणी इन्द्र देव को आहूत करते हैं। यजमान और प्रार्थनाकारी दोनों मिलकर संतति लाभ के लिए इन्द्र देव के निकट जाते हैं।
Humans invoke Indr Dev in the war. The Ritviz reduce their body through ascetics and consider him as the protector. The Ritviz and the Stota, both go to him for having sons & grandsons.
क्रतूयन्ति क्षितयो योग उग्राशुषाणासो मिथो अर्णसातौ।
सं यद्विशोऽववृत्रन्त युध्मा आदिन्नेम इन्द्रयन्ते अभीके
हे बलवान इन्द्र देव! चतुर्दिक में व्याप्त मनुष्य जल लाभ के लिए एकत्र होकर यज्ञ करते हैं। जब युद्धकारी लोग युद्ध में एकत्रित होते हैं, तब कौन इन्द्र देव की अभिलाषा करता है।[ऋग्वेद 4.24.4]
हे इन्द्र देव! तुम शक्तिशाली हो। चारों दिशाओं में रहने वाले व्यक्ति जल के लिए संगठित होकर अनुष्ठान करते हैं। जब संग्राम करने वाले युद्ध भूमि में एकत्र होते हैं, तब इनमें से कौन इन्द्र देव की इच्छा करते हैं?
Hey Indr Dev, you are mighty! The humans gather together and conduct Yagy for the sake of Yagy. Who invoke Indr Dev, when the warriors gather for the war?
आदिद्ध नेम इन्द्रियं यजन्त आदित्यक्तिः पुरोळाशं रिरिच्यात्।
आदित्सोमो वि पपृच्याद सुष्वीनादिज्जुजोष वृषभं यजध्यै
उस समय युद्ध में कोई योद्धा बलवान इन्द्र देव की पूजा करते हैं। अनन्तर कोई पुरोडाश पकाकर करके इन्द्र देव को देते हैं। उस समय सोमाभिषव करने वाले याजकगण अनभिषुत सोम वाले याजकगण को धन से पृथक कर देते हैं। उस समय कोई अभीष्टवर्षी इन्द्र देव के उद्देश्य से यज्ञ करने की अभिलाषा करते हैं।[ऋग्वेद 4.24.5]
उस समय कोई वीर सशक्त इन्द्र का पूजन करते और कोई पुरोडाश लाकर इन्द्र को देते हैं। उस समय सोम सिद्ध करने वाले यजमान, सोम सिद्ध न करने वाले यजमान को धनविहीन कर देते हैं। उस समय अभिलाषाओं की बरसात करने वाले इन्द्र के लिए सभी यज्ञ करने की कामना करते हैं।
At that moment some warrior pray to Indr Dev and bring baked Purodas to him. The Ritviz who extract Somras isolate that Ritviz who do not involve himself in the extraction of Somras from receiving money.  Every one wish to conduct Yagy for the sake of Indr Dev, who accomplish desires.
कृणोत्यस्मै वरिवो य इत्थेन्द्राय सोममुशते सुनोति।
सध्रीचीनेन मनसाविवेनन्तमित्सखायं कृणुते समत्सु
जो सोमाभिलाषी स्वर्ग लोक स्थित इन्द्र देव के उद्देश्य से अभिषव करते हैं, उन्हें इन्द्र देव धन प्रदान करते हैं। एकान्त चित्त से इन्द्र देव की अभिलाषा करने वाले तथा सोमाभिषव करने वाले याजक गण के साथ संग्राम में इन्द्र देव मित्रता करते हैं।[ऋग्वेद 4.24.6]
अद्भुत संसार में वास करने वाले इन्द्रदेव के लिए जो सोम की इच्छा करने वाले उसे सिद्धस्थ करते हैं। इन्द्र देव उनको धन-प्रदान करते हैं। एकाग्रचित भाव से इन्द्रदेव की इच्छा करने वाले तथा सोम सिद्धस्थ करने वाले यजमान से वे इन्द्रदेव संग्राम क्षेत्र में सखा भाव दृढ़ करते हैं।
Indr Dev grants money to those who  extract Somras for him. Indr Dev become friendly in the war with those devotees-Ritviz who extract Somras for him & concentrate-meditate him.
य इन्द्राय सुनवत्सोममद्य पचात्पक्तीरुत भृज्जाति धानाः।
प्रति मनायोरुचथानि हर्यन्तस्मिन्दधद्वृषणं शुष्ममिन्द्रः
जो आज इन्द्र देव के लिए सोमाभिषव करते हैं, जो पुरोडाश पकाते हैं और जो भूजने योग्य जौ को भूँजते हैं, उसी स्तोत्रकारी के स्तोत्र को स्वीकार करके इन्द्र देव याजकगण की अभिलाषा के पूरक बल को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.24.7]
आज जो इन्द्रदेव के लिए सोमरस निकालते हैं, जो पुरोडाश लाते और भूनने योग्य जौं को भूनते हैं, उस श्लोक को स्वीकार करने वाले इन्द्र यजमान की इच्छा पूर्ण करने वाले पराक्रम को धारण करते हैं।
One who extract Somras for Indr Dev today, bake Purodas and roast barley, he accept his prayers and acquire the strength to accomplish his desires.
यदा समर्यं व्यचेदृघावा दीर्घं यदाजिमभ्यख्यदर्यः।
अचिक्रदद् वृषणं पत्न्यच्छा दुरोण आ निशितं सोमसुद्भिः
जब शत्रुओं के हिंसक स्वामी इन्द्र देव शत्रुओं को जानते हैं, जब वे दीर्घ संग्राम में व्याप्त रहते हैं, तब उनकी पत्नी सोमाभिषवकारी ऋत्विक कारक द्वारा तीक्ष्णीकृत अर्थात सोमपान करने से उत्साहवान तथा अभीष्टवर्षी इन्द्र देव का यज्ञगृह में आह्वान करती है।[ऋग्वेद 4.24.8]
जब वे शत्रु संहारक ईश्वर इन शत्रुओं को जान लेते हैं और जब वे भीषण युद्ध में संलग्न होते हैं तब उनकी पत्नी सोम सिद्धस्थ करने वाले ऋत्विक द्वारा सोमपान में दुष्ट और इच्छाओं की वृष्टि करने वाले इन्द्र देव का आह्वान करती हैं।
Wife of energetic Indr Dev, who is busy in the war destroying the enemy having identified them; who accomplish desires, invoke him at the Yagy site, when the Ritviz extract Somras.
भूयसा वस्नमचरत्कनीयोऽविक्रीतो अकानिषं पुनर्यन्।
स भूयसा कनीयो नारिरेचीद्दीना दक्षा वि दुहन्ति प्र वाणम्
कोई बहुत पुण्य द्वारा अल्प धन प्राप्त करता है, फिर क्रेता के निकट गमन करके 'हमने विक्रय नहीं किया है' कहकर अवशिष्ट मूल्य की प्रार्थना करता है। विक्रेता 'बहुत दिया है' कहकर अल्प मूल्य का अतिक्रम नहीं करता है। चाहे 'समर्थ होओ या असमर्थ, विक्रय काल में जो वचन हुआ है, अब वही रहेगा।[ऋग्वेद 4.24.9]
कोई पुण्य करके कम धन पाता है, फिर क्रय करने वाले के समीप जाकर हमने बेचा नहीं, ऐसा कहकर शेष धन माँगता है। खरीदने वाला उससे अधिक धन नहीं देता।
A man has realized a small price for an article of great value and again comes back to the buyer & says, "this has not been sold; I require the full price"; but he does not recover a small price by a large equivalent; whether helpless or clever they adhere to their bargain.
One gains little money even after earning a lot of virtues (paying a lot for it). He demands his money back from the seller but the seller refuse to refund.
क इमं दशभिर्ममेन्द्रं क्रीणाति धेनुभिः।
यदा वृत्राणि जङ्घनदथैनं मे पुनर्ददत्
कौन हमारे इन्द्र देव को दस गायों द्वारा खरीदेगा? जब ये शत्रुओं का वध करेंगे, तब इनको फिर मुझे देना।[ऋग्वेद 4.24.10]
इन्द्र को कौन दस गायों के समान धन से खरीद सकता है? वह जब वृद्धि करते हुए शत्रुओं की हत्या कर डालते हैं तब वह उसके गवादि धन को मुझे ही सौंप देते हैं।
Who can buy our Indr Dev for ten cows?! Give him to me when he kill the enemies. 
नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो ३ न पीपेः।
अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः
हे इन्द्र देव! आप पूर्ववर्ती ऋषियों द्वारा प्रार्थित होकर तथा हम लोगों के द्वारा प्रशंसित होकर, जिस प्रकार से जल नदियों को पूर्ण करता है, उसी प्रकार आप स्तोताओं के अन्न को प्रवृद्ध करते हैं। हे हरि विशिष्ट इंद्र देव! हम आपके उद्देश्य से अभिनव स्त्रोत्रों का गान करते हैं। जिससे हम लोग रथवान होकर सदा आपकी सेवा करते रहें।
[ऋग्वेद 4.24.11]
हे इन्द्र देव! तुम पूर्वज मुनियों के द्वारा अर्चित हो । अब तुम्हारी प्रार्थना करते हैं। तुम जल से परिपूर्ण नदी के समान स्तुति करने वालों के अन्न की वृद्धि करते हो। हे इन्द्र देव! तुम अश्ववान हो । हम तुम्हारे लिए नये श्लोक रचते हैं जिससे हम रथवाले होकर तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey Indr Dev you enrich the Stota with food grains, the way the river is filled with water on being worshiped by ancient sages-Rishis and praised by us. Hey Indr Dev you possess the horses named Hari. We sing newly composes hymns, Strotr-prayers for you so that we have charoite and keep serving you.(09.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्।
को अद्य नर्यो देवकाम उशन्निन्द्रस्य सख्यं जुजोष।
को वा महेऽवसे पार्याय समिद्धे अग्नौ सुतसोम ईट्टे
आज कौन मनुष्य हितकर, देवताभिलाषी, कामयमान मनुष्य इन्द्र देव के साथ मैत्री चाहता है? सोमाभिषवकारी कौन व्यक्ति अग्नि देव के प्रज्वलित होने पर महान तथा पारगामी आश्रय लाभ के लिए इन्द्र देव की स्तुति करता है?[ऋग्वेद 4.25.1]
हितकारक, देवों की इच्छा करने वाला कौन-सा व्यक्ति आज इन्द्र देव से मित्रता स्थापित करने की इच्छा रखता है? सोम का अभिषण करने वाला ऐसा कौन-सा मनुष्य है जो अग्नि प्रदीप्त होने पर इन्द्र देव की सुरक्षा करने वाली शरण की 'इच्छा' से उनका पूजन करता है।
What friend of man or worshipper of the demigods, deserving the friendship of Indr Dev, has today enjoyed it or what offeror of the libation on the kindled fire praises him sufficiently for his great and unbounded protection?
Which human who is desirous, helping, beneficial, wish to invoke demigods & wish to be friendly with Indr Dev? Which human being who extract Somras, worship Indr Dev & seek asylum under him after the ignition of fire-Agni, desirous of great & Ultimate gains?
Ultimate gain is Moksh, emancipation, Salvation.
को नानाम वचसा सोम्याय मनायुर्वा भवति वस्त उस्राः।
क इन्द्रस्य युज्यं कः सखित्वं को भ्रात्रं वष्टि कवये क ऊती
कौन याजकगण स्तुति वाक्य द्वारा सोमार्ह इन्द्र देव के निकट झुकता है? कौन इन्द्र देव की स्तुति की कामना करता है? कौन इन्द्र देव द्वारा प्रदत्त गौओं को धारित करता है? कौन इन्द्र देव की सहायता करने की इच्छा करता है? कौन इन्द्र देव के साथ मित्रता की इच्छा करता है? कौन इन्द्र देव के भ्रातृत्व की इच्छा करता है? कौन क्रान्तदर्शी इन्द्र देव से आश्रय प्रार्थना करता है?[ऋग्वेद 4.25.2]
कौन सा यजमान इन्द्र देव के सम्मुख वंदना करता हुआ नमन करता है? कौन इन्द्र की वंदना का रक्षक है? इन्द्र को प्रदान की हुई गौओं को कौन लेता है? इन्द्र की सहायता कौन चाहता है? कौन उनमें सखा भाव का अभिलाषी है? कौन उनसे बंधुत्व भाव रखना चाहता है? कौन उस तेजस्वी इन्द्रदेव के शरण की विनती करता है।
Who prostrate before Indr Dev, who is desirous of Somras?  Who wish to pray-worship Indr Dev? Who support-nurture cows for the sake of Indr Dev? Who wish to help-support Indr Dev? Who wish to be friendly with Indr Dev? Who wish to be brotherly with Indr Dev? Who seek asylum under radiant Indr Dev?
को देवानामवो अद्या वृणीते क आदित्याँ अदितिं ज्योतिरीट्टे। 
कस्याश्विनाविन्द्रो अग्निः सुतस्यांशोः पिबन्ति मनसाविवेनम्
आज कौन याजक गण इन्द्र देव आदि देवताओं से रक्षा के लिए प्रार्थना करता है? कौन आदित्य, अदिति तथा उदक की प्रार्थना करता है? अश्विनी कुमार, इन्द्र और अग्नि देव किस याजकगण की प्रार्थना से प्रसन्न होकर अभिषुत सोम का यथेच्छ रूप से पान करते हैं?[ऋग्वेद 4.25.3]
उदक :: उत्तर दिशा, जल-पानी, east direction, water.
कौन यजमान इन्द्रदेव आदि देवों की सुरक्षा करने के लिए विनती करता है? आदित्य, अदिति और उदक की प्रार्थना कौन करता है? अश्विनी कुमार, इन्द्रदेव और अग्नि किस यजमान के स्तोत्र से हर्ष पाकर छने हुए सोम रस को अपनी इच्छा के अनुसार पीते हैं?
Which devotee request Indr Dev & demigods-deities for protection? Who worship Adity, Aditi & Udak? Ashwani Kumars, Indr and Agni Dev drink Somras pleased with who's request-prayer?
तस्मा अग्निर्भारतः शर्म यंसज्ज्योक्पश्यात्सूर्यमुच्चरन्तम्।
य इन्द्राय सुनवामेत्याह नरे नर्याय नृतमाय नृणाम्
जो याजक गण कहते हैं कि नेता मनुष्यों के बन्धु एवम् नेताओं के बीच में श्रेष्ठ नेता इन्द्र देव के लिए सोमाभिषव करेंगे, उन याजक गणों को हविर्भर्ता अग्नि देव सुख प्रदान करें तथा चिर काल से उदित सूर्य देव को देखें।[ऋग्वेद 4.25.4]
चिरकाल :: बहुत समय, दीर्घकाल; long period of time, forever.
जो यजमान प्राणियों के सखा उत्तम नेतृत्व वाले इन्द्र के लिए सोम सिद्ध करने का निश्चय करते हैं। ऐसे यजमानों की हवियों के स्वामी अग्नि देव सुख प्रदान करें और हमेशा होने वाले सूर्य देव के दर्शन करने वाला बनायें।
Let Agni Dev grant comforts-pleasure to the Ritviz who under take to extract Somras for the best leader of humans Indr Dev and let they see rising Sun for a long period of time.
न तं जिनन्ति बहवो न दभ्रा उर्वस्मा अदितिः शर्म यंसत्।
प्रियः सुकृत्प्रिय इन्द्रे मनायुः प्रियः सुप्रावीः प्रियो अस्य सोमी
अल्प अथवा अधिक शत्रु उन याजक गणों को हिंसित न करें, जो याजक गण इन्द्र देव के लिए सोमाभिषव करते हैं। इन्द्र देव की माता अदिति उन याजक गणों को अधिक सुख प्रदान करें। शोभन यज्ञ करने वाले याजक गण इन्द्र देव के प्रिय हों। जो इन्द्र देव की स्तुति की कामना करता है, वे इन्द्र देव के प्रिय होवें। जो इन्द्र देव के निकट साधुभाव से गमन करते हैं, वे इन्द्र देव के प्रिय होवें। सोमवान याजक गण इन्द्र देव के प्रिय होवें।[ऋग्वेद 4.25.5]
अदिति इनको बनावें, सुन्दर यज्ञ आदि शुभ कर्म करने वाले यजमानों को इन्द्र देव प्रेम करें। इन्द्र देव की प्रार्थना करने के अभिलाषी उनके प्रेम भाजन बनें। जो शील स्वभाव वाले एवं प्रिय सोम की सिद्धि करते हैं, वे इन्द्र देव के प्रेम पात्र बनें।
The enemy should not harm small or large numbers-groups of Ritviz who extract Somras for Indr Dev. Let Aditi, mother of Indr Dev grant comforts to the Ritviz. Those Ritviz who perform Yagy should be dear to Indr Dev. Those who wish to worship Indr Dev should be dear to him. Those who visit Indr Dev saintly, should be dear to him. Ritviz possessing Somras should be dear to Indr Dev.
सुप्राव्यः प्राशुषाळेष वीरः सुष्वेः पक्तिं कृणुते केवलेन्द्रः।
नासुष्वेरापिर्न सखा न जामिर्दुप्राव्योऽवहन्तेदवाचः
जो व्यक्ति इन्द्र देव के निकट गमन करता है और सोमाभिषव करता है उसके पवित्र कार्य को शीघ्र अभिनवकारी तथा विक्रान्त इन्द्र देव स्वीकार करते हैं। जो याजकगण सोमाभिषव नहीं करता, उसके लिए इन्द्र देव व्याप्त नहीं होते हैं, मित्र नहीं होते हैं और बन्धु भी नहीं होते हैं। जो व्यक्ति इनके निकट गमन नहीं करता और उनकी प्रार्थना नहीं करता, इन्द्र देव उसकी हिंसा करते हैं।[ऋग्वेद 4.25.6]
विक्रांत :: प्रतापी, तेजस्वी, वीर, बहादुर, साहसी, हिम्मत वाला; valiant.
इन्द्र के समीप जाने वाले और सोम सिद्ध करने वाले यजमान के पाप-कर्म को पराक्रमी इन्द्र स्वीकार नहीं करते हैं। सोम का अभिषेक न करने वाले यजमान के लिए इन्द्र व्याप्त नहीं होते। वे उसमें सख्य और बंधु भाव को नहीं रखते। इन्द्र देव के निकट न जाने वाला उसकी प्रार्थना न करने वाला उनके द्वारा हिंसित किया जाता है।
Indr Dev accepts-recognise the virtuous-pious deeds of one who become close to him and extract Somras for him. One who is adverse, is not recognised as a friend or relative, brother and is vanished.
न रेवता पणिना सख्यमिन्द्रोऽसुन्वता सुतपाः सं गृणीते।
आस्य वेदः खिदति हन्ति नग्नं वि सुष्वये पक्तये केवहो भूत्
अभिषुत सोमपायी इन्द्र देव सोमाभिषव कर्म रहित, धनवान और लोभी बणिकों (बनियों) के साथ मैत्री संस्थापित नहीं करते। वे उनके निरर्थक धन को उद्धरित कर और नष्ट करते हैं। वे सोमाभिषवकारी तथा हव्य पाककारी याजकगण के असाधारित मित्र होते हैं।[ऋग्वेद 4.25.7]
सिद्ध सोम पान करने वाले इन्द्रदेव सोम सिद्ध करने वाले काम से विमुख धनिक एवं लोलुप के साथ मित्रता का भाव नहीं बनाते। वे उनके किसी काम न आने वाले धन का पतन कर देते हैं। वे सोमाभिषवकर्त्ता तथा हविरत्न के पाक-कर्त्ता यजमान से अत्यन्त बंधु भाव स्थापित करते हैं।
Indr Dev do not establish friendly relations with those rich, greedy-Vaeshy, who not extract Somras for him. He destroys their useless wealth. Those Ritviz who extract Somras & make offerings of cooked food stuff to him is his great-close friend. 
इन्द्रं परेऽवरे मध्यमास इन्द्रं यान्तोऽवसितास इन्द्रम्।
इन्द्रं क्षियन्त उत युध्यमाना इन्द्रं नरो वाजयन्तो हवन्ते
उत्कृष्ट तथा निकृष्ट व्यक्ति इन्द्र देव का आह्वान करते हैं एवम् मध्यम व्यक्ति भी इनका ही आह्वान करते हैं। चलने वाले लोग इनका आह्वान करते हैं तथा उपविष्ट लोग भी इनका ही आह्वान गृह में रहने वाले लोग इनका आह्वान करते हैं तथा युद्ध करने वाले भी इनका ही आह्वान करते हैं। अन्न की इच्छा करने वाले लोग भी इन्हीं इन्द्र देव का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.25.8] 
ऊँचे, नीचे, मध्यम सभी तरह के प्राणी इन्द्र को आहुत करते हैं। गमनशील, उपविष्ट, ग्रहों में वास करने वाले, समर भूमि में जाने वाले तथा अन्न की अभिलाषा वाले सभी जीव इन्द्र का आह्वान करते हैं।
Excellent, depraved (upper & lower class) and the middle class gentry invoke Indr Dev. Dynamic as well as those who stay in homes too invoke him. Those who wish to have war invoke him. Desirous of food grains invoke him.(11.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अहं मनुरभवं सूर्यश्चाहं कक्षीवाँ ऋषिरस्मि विप्रः।
अहं कुत्समार्जुनेयं न्यृञ्जेऽहं कविरुशना पश्यता मा
हम प्रजापति हैं, हम सबके प्रेरक सविता हैं, हम ही दीर्घतमा के पुत्र मेधावी कक्षीवान ऋषि हैं, हमने ही अर्जुनी पुत्र कुत्स को भली-भाँति अलंकृत किया, हम ही उशना नामक कवि हैं। हे मनुष्यों! हमें अच्छी तरह से देखो।[ऋग्वेद 4.26.1]
हम प्रजापति, सबको प्रेरणा प्रदान करने वाले एवं हम ही दीर्घतमा के विद्वान पुत्र कक्षीवान ऋषि हैं हम कवि उशना हैं। हमने ही अर्जुन के पुत्र कुत्स को भली-भांति प्रशंसित किया था। हे मनुष्यों! हम ही क्रांतदर्शी और सर्वप्रिय हैं।
We are Praja Pati, Savita-who inspire all, Medhavi Kakshivan Rishi-son of Dirghtama and poet Ushna. We decorated Kuts the son of Arjuni.  Hey humans! Look at us carefully.
अहं भूमिमददामार्यायाहं वृष्टिं दाशुषे मर्त्याय।
अहमपो अनयं वावशाना मम देवासो अनु केतमायन्
हमने आर्य को पृथ्वी प्रदान किया। हमने हव्यदाता मनुष्य को सस्य की अभिवृद्धि के लिए वृष्टि प्रदान किया। हमने शब्दायमान जल या आनयन किया। देवगण हमारे सङ्कल्प का अनुगमन करते हैं।[ऋग्वेद 4.26.2]
मैंने ही ध्वनि करते हुए जल को अभिप्रेरित किया। मेरी इच्छा पर समस्त देवता चलते हैं।
We granted earth to the Ary. We provided rains to the humans to boost vegetation. I inspired rains making sound. Demigods-deities fulfil our objective.
अहं पुरो मन्दसानो व्यैरं नव साकं नवतीः शम्बरस्य।
शततमं वेश्यं सर्वताता दिवोदासमतिथिग्वं यदावम्
हमने सोमपान से मत्त होकर शम्बर के निन्यानबे नगरों को एक काल में ही ध्वस्त किया। जिस समय हम यज्ञ में अतिथियों के अभिगन्ता राजर्षि दिवोदास का पालन कर रहे थे, उस समय हमने दिवोदास को सौ नगर निवास करने के लिए दिए।[ऋग्वेद 4.26.3]
सोमपान करके मैंने शम्बर के निन्यानवें शहरों को एक ही समय में नष्ट कर डाला। जब मैं अनुष्ठान में सुरक्षा कर रहा था तब मैंने उनके निवास के लिए सौ पुरी प्रदान की थी।
Having drunk, we destroyed 99 habitats-cities of Shambar-a demon. When Rajrishi Divodas was looking after the guests, we granted him 100 cities to him.
प्र सु ष विभ्यो मरुतो विरस्तु प्र श्वेनः श्येनेभ्य आशुपत्वा।
अचक्रया यत्स्वधया सुपर्णो हव्यं भरन्मनवे देवजुष्टम्
हे मरुद्गण! श्येन पक्षी पक्षियों के बीच में प्रधान है। अन्य श्येनों की अपेक्षा शीघ्रगामी श्येन प्रधान है। क्योंकि देवों द्वारा सेवित सोमरूप हव्य को मनुष्यों के लिए स्वर्गलोक से चक्र रहित रथ द्वारा सुपर्ण लाया था।[ऋग्वेद 4.26.4]
श्येन पक्षी FALCON 
हे मरुतों ! तुम बाज पक्षियों में प्रधान तत्व हो। दूसरे की उपेक्षा तुम शीघ्रगामी हो। देवताओं द्वारा सेवन किये जाने वाले सोमरूपी हव्यों को स्वर्ग के बिना पहिये के रथ द्वारा अद्भुत संसार से लाकर मनुष्यों को प्रदान किया था।
Hey Marud Gan! Falcon is supreme amongest the birds. Amongest the falcons, fast moving Shyen is best. Suparn brought Somras from the heaven for the humans in the charoite which had no wheels.
भरद्यदि विरतो वेविजानः पथोरुणा मनोजवा असर्जि।
तूयं ययौ मधुना सोम्येनोत श्रवो विविदे श्येनो अत्र
जब भयभीत होकर श्येन पक्षी द्युलोक से सोमरस लाया, तब वह विस्तीर्ण अन्तरिक्ष मार्ग में मन के तुल्य वेग युक्त होकर उड़ा एवं सोममय मधुर अन्न के साथ वह शीघ्र गया और सोमरस लाने के कारण सुपर्ण ने इस लोक में यश प्राप्त किया।[ऋग्वेद 4.26.5]
जब श्येन पक्षी डरकर आकाश से सोम को लाया तब वह विशाल अंतरिक्ष के रास्ते के हृदय के तुल्य गतिवाला होकर उड़ा। सम रूप मधु के साथ वह शीघ्र गया और सोम लाने से उसका ऐश्वर्य फैल गया।
When the Falcon, intimidating (its guardians), carried off from hence the Somras it was at large; flying swift as thought along the vast path of the firmament-space, it went rapidly with the sweet Somras and the hawks thence acquired the celebrity in this world.
When fearful-afraid, Shyen-Falcon brought Somras from the heaven, it flew at high speed through the vast space-sky with the speed of the innerself-brain and Suparn-Falcon earned honour over the earth due to this act.
ऋजीपी श्येनो ददमानो अंशुं परावतः शकुनो मन्द्रं मदम्।
सोमं भरद्दादृहाणो देवावान्दिवो अमुष्मादुत्तरादादाय
देवों के साथ होकर ऋजुगामी और प्रशंसित गमन श्येन पक्षी ने दूर से सोम को धारित करके एवं स्तुति योग्य तथा मदकर सोम को उन्नत द्युलोक से ग्रहण करके दृढभाव से उसको ले आए।[ऋग्वेद 4.26.6]
द्रुतगामी और यशस्वी श्येन पक्षी देवगणों सहित दूर से सोम को उठाकर स्तुत एवं प्रसन्नता पूर्वक सोम को उच्च नभ से लेकर दृढ़ता पूर्वक धरती पर चला आया।
Fast flying Falcon on being praised picked up toxicating Somras & brought it up to the earth from the heavens.
आदाय श्येनो अभरत्सोमं सहस्रं सवाँ अयुतं च साकम्।
अत्रा पुरंधिरजहादरातीर्मदे सोमस्य मूरा अमूरः
श्येन पक्षी ने सहस्र और अयुत संख्यक यज्ञ के साथ सोमरस को ग्रहण करके उस अन्न का आनयन किया। उस सोमरस के लाये जाने पर बहुकर्म विशिष्ट प्राज्ञ इन्द्र देव ने सोम सम्बन्धी हर्ष के उत्पन्न होने पर मूर्ख शत्रुओं का वध किया।[ऋग्वेद 4.26.7]
श्येन ने हजारों लाखों अनुष्ठान कार्यों द्वारा सोम को प्राप्त किया और वह उसको ले आया। सोम के लाने पर बहुकर्मा एवं मेधावी इन्द्र देव ने सोम से रचित शक्ति से अज्ञानी शत्रुओं का पतन किया।
Falcon accepted Somras after thousands-millions, uncounted prayers and brought it. It amused Indr Dev and he killed the imprudent-brainless, duffer enemies.(13.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्, शक्वरी।
गर्भे नु सन्नन्वेषामवेदमहं देवानां जनिमानि विश्वा।
शतं मा पुर आयसीररक्षन्नध श्येनो जवसा निरदीयम्
गर्भ में विद्यमान होकर ही हम (वामदेव) ने इन्द्र देव आदि समस्त देवों के जन्म को यथाक्रम से जाना। अर्थात् परमात्मा के समीप से सब देव उत्पन्न हुए हैं। सैकड़ों लौहमय शरीरों ने हमारा पालन किया। अभी हम श्येन के तुल्य स्थित होकर आवरण रहित आत्मा को जानते हुए शरीर से निर्गत होते हैं।[ऋग्वेद 4.27.1]
गर्भ में वास करते हमने इन्द्रादि समस्त देवताओं के प्राकट्य को उत्तमता से जान लिया था। लौह से निर्मित स्थित नगरियों में हमारा पोषण हुआ था। हम ज्ञान से परिपूर्ण हो बाज के तुल्य विशालगति से उड़ जाने वाली आत्मा को जानते हुए देह बंधन से छूट जाते हैं।
We understand the significance of Indr Dev and all the demigods-deities, while staying in the womb. We were nurtured-grown by hundred of bodies like the iron. At present we become like the Falcon & free from the body. The soul leaves the body recognising it.
न घा स मामप जोषं जभाराभीभास त्वक्षसा वीर्येण।
ईर्मा पुरंधिरजहादरातीरुत वाताँ अतरच्छूशुवानः
उस गर्भ ने हमारा पर्याप्त रूप से अपहरण नहीं किया अर्थात् गर्भ में निवास करते समय हमें मोह नहीं हुआ। हमने गर्भस्थ दुःख को तीक्ष्ण वीर्य द्वारा अर्थात् ज्ञान सामर्थ्य से पराभूत किया। सभी के प्रेरक परमात्मा ने गर्भ स्थित शत्रुओं का वध किया और वर्द्धमान होकर गर्भ में क्लेशकारक वायु को अतिक्रान्त किया।[ऋग्वेद 4.27.2] 
उस गर्भ में रहते हुए भी हम मोह में नहीं फँसे। हमने गर्भ के दुःखों को ज्ञान के पराक्रम से प्राप्त किया। सबको प्रेरणा देने वाले परमात्मा ने गर्भ में स्थित शत्रु रूपी कीटाणुओं का नाश किया और वृद्धि को प्राप्त होकर कष्ट पहुँचाने वाली वायु का शमन किया।
We remained free from worldly allurements during our stay in the womb. We overcome the pain, sorrow, worries with the help of enlightenment. The Almighty who inspire all, killed our enemies-microorganism (germs, virus, bacteria, fungus etc.) and we overcome the air-gas which troubled us.
अव यच्छ्येनो अस्वनीदध द्योर्वि यद्यदि वात ऊहुः पुरंधिम्।
सृजद्यदस्मा अव ह क्षिपज्ज्यां कृशानुरस्ता मनसा भुरण्यन्
सोमाहरण काल में जब श्येन ने द्युलोक से अधोमुख होकर शब्द किया, जब सोमपालों ने श्येन के निकट से सोमरस छीन लिया, जब शरप्रक्षेपक सोमपाल कृशानु ने मनोवेग से जाने की इच्छा करके धनुष की केटि पर प्रत्यञ्चा चढ़ाई और श्येन के प्रति शरक्षेपण किया तब श्येन ने सोमरस का आनयन किया।[ऋग्वेद 4.27.3]
सोम लाते समय जब बाज ने क्षितिज के नीचे की ओर मुख करके ध्वनि की, तब सोम के रक्षकों ने श्येन से सोम को छीन लिया, जब सोम रक्षक शुशुवान ने हृदय की गति से जाने वाले के लिए धनुष पर डोरी और श्येन की तरफ बाण को चलाया, तब श्येन सोम को लेकर आया।
The Falcon-Shyen faced the horizon making sound leading to snatching of Somras by its protectors. At this moment Krashanu loaded his bow & arrow, allowing Falcon-Shyen to fly with the speed of mind, allowing Shyen to bring Somras. 
ऋजिप्य ईमिन्द्रावतो न भुज्यं श्येनो जभार बृहतो अधि ष्णोः।
अन्तः पतत्पतत्र्यस्य पर्णमद्य यामनि प्रसितस्य तद्वेः
अश्विनी कुमारों ने जिस प्रकार सामर्थ्यवान् इन्द्र विशिष्ट देश से भुज्यु नामक राजा का अपहरण किया, उसी प्रकार ऋजुगामी श्येन ने इन्द्र रक्षित महान द्युलोक से सोमरस का आहरण किया। उस समय युद्ध में कृशानु के आयुधों से विद्ध होने पर उस गमनशील पक्षी का एक पतनशील पंख गिर पड़ा।[ऋग्वेद 4.27.4]
जैसे अश्विनी कुमारों ने इन्द्र के स्वामित्व वाले देश से राजा भृज्यु का अपहरण किया था, उसी प्रकार इन्द्र से रक्षित श्रेष्ठ आकश से ऋजुगामी सोम को लेकर आया। उस समय कृशनु से लड़ने के कारण उस श्येन का एक पंख बाण से बिंध जाने के कारण गिर गया।
The manner in which Ashwani Kumars abducted king Bhujyu from the domain of Indr Dev,  in the same way fast moving falcon abducted Somras. At that moment one of his feathers was cut by the arrow of Krashanu.
अध श्वेतं कलशं गोभिरक्तमापिण्यानं मघवा शुक्रमन्यः। अध्वर्युभिः प्रयतं मध्वो अग्रमिन्द्रो मदाय प्रति धत्पिबध्यै शूरो मदाय प्रति धत्पिबध्यै
इस समय विक्रमवान इन्द्र देव शुभ पात्र स्थित, गव्य मिश्रित, तृप्तिकर, सारसमन्वित एवं अध्वर्युओं द्वारा प्रदत्त सोम लक्षण अन्न का और मधुर सोमरस का हर्ष के लिए पहले ही पान करें।[ऋग्वेद 4.27.5] 
महापराक्रमी इन्द्रदेव शुद्ध सुरभित, भव्य-मिश्रित, संतुष्टि दायक, सात रूप सोम के अध्वर्युओं द्वारा दिये जाने पर उसके हर्ष दायक इसको इस समय पियें।
Let mighty Indr Dev drink Somras granting pleasure, kept in the pious pot, mixed with cow milk, satisfying with seven flavours, provided by the worshipers-devotees.(14.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वा युजा तव तत्सोम सख्य इन्द्रो अपो मनवे सस्रुतस्कः।
अहन्नहिमरिणात्सप्त सिन्धूनपावृणोदपिहितेव खानि
हे सोम! इन्द्र देव के साथ आपकी मैत्री होने पर इन्द्र देव ने आपकी सहायता से मनुष्यों के लिए सरणशील जल को प्रवाहित किया, वृत्रासुर का वध किया, सर्पणशील जल को प्रेरित किया और वृत्रा सुर द्वारा तिरोहित जल द्वारों को खोल दिया।[ऋग्वेद 4.28.1]
हे सोम! जब इन्द्र देव तुम्हारे सखा बने हुए तब तुम्हारी सहायता से उन्होंने पुरुषों के लिए जल को प्रवाहमान किया और वृत्र का पतन किया। वृत्र द्वारा रोके हुए द्वार को खोलकर तुमने जल को शिक्षित किया।
Hey Som! When you became a friend of Indr Dev, he made the water flow and killed Vrata Sur & opened the blockade of water created by Vrata Sur. 
त्वा युजा नि खिदत्सूर्यस्येन्द्रश्चक्रं सहसा सद्य इन्दो।
अधि ष्णुना बृहता वर्तमानं महो द्रुहो अप विश्वायु धायि
हे सोम! इन्द्र देव ने आपकी सहायता से क्षण भर में प्रेरक सूर्य के रथ के ऊपर स्थित बृहत अन्तरिक्ष में वर्तमान द्विचक्र रथ के एक चक्र को बलपूर्वक तोड़ डाला। प्रभूत द्रोहकारी सूर्य के सर्वतोगामी चक्र को इन्द्र देव ने अपहृत कर लिया।[ऋग्वेद 4.28.2]
चक्र :: आवर्तन, वृत्त, मंडली, घेरा, चक्कर, क्षेत्र, पहिया, चक्र, चाक, चक्का; cycle, circle, wheel.
हे सोम! तुम्हारी सहायता से ही इन्द्र ने सूर्य के रथ के ऊपर स्थित दो चक्रों वाले रथ के एक चक्र को पल भर में अलग कर दिया। सूर्य के सर्वत्र गतिमान चक्रों को स्पर्धा के कारण इन्द्र देव ने ले लिया।
Hey Som! Indr Dev destroyed one of the two disc-cycles over the charoite of Sun in the sky with might. He took away, snatched the competitive disc moving in all directions.
अहन्निन्द्रो अदहदग्निरिन्दो पुरा दस्यून्मध्यन्दिनादभीके।
दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्त्रा शर्वा नि बर्हीत्
हे सोम! आपके पान से बलवान इन्द्र देव ने मध्याह्नकाल के पहले ही संग्राम में शत्रुओं को मार डाला और अग्नि देव ने भी कितने शत्रुओं को जला डाला। किसी कार्य से रक्षा शून्य दुर्गम स्थान से जाने वाले व्यक्ति को जिस प्रकार से चोर मार डालते हैं, उसी प्रकार इन्द्र देव ने सहस्र शत्रु सेनाओं का वध किया।[ऋग्वेद 4.28.3]
हे सोम! तुमको पान कर वीर इन्द्र देव ने मध्याह्न समय से पूर्व ही शत्रुओं को युद्ध में समाप्त कर दिया और अग्नि ने भी असंख्य शत्रुओं को समाप्त कर दिया। जैसे अरक्षित मार्ग से जाने वाले धनिक को चोर मार देता है वैसे असंख्य शत्रु सेनाओं को इन्द्रदेव ने समाप्त कर डाला।
Hey Som! After drinking you, mighty Indr Dev killed the enemies in the mid day and Agni Dev burnt several enemies. Indr Dev killed the thousands of enemies like the rich being killed while moving through an unsafe route.
विश्वस्मात्सीमधमाँ इन्द्र दस्यून्विशो दासीरकृणोरप्रशस्ताः।
अबाधेथाममृणतं नि शत्रूनविन्देथामपचितिं वधत्रैः
हे इन्द्र देव! आप इन दस्युओं को सभी सदगुणों से रहित करते हैं। आप कर्महीन मनुष्यों (दासों) को गर्हित (निन्दित) बनाते हैं। हे इन्द्र देव और सोम! आप दोनों शत्रुओं को बाधा दो और उनका वध करें। उन्हें मारने के लिए लोगों से सम्मान ग्रहण करें।[ऋग्वेद 4.28.4]
हे इन्द्र देव! तुम समस्त दुष्टों को सद्गुणों से विहीन करते हो। तुम उन वस्तुओं को निंदा के योग्य करते हो। हे इन्द्र देव और सोम! तुम दोनों ही शत्रुओं के आक्रमण-कार्य में विघ्न डालते हुए उनका विनाश करो, उनका वध करने हेतु की जाने वाली प्रार्थनाओं को स्वीकार करो।
Hey Indr Dev! You devoid the dacoits of virtues and make the humans vulnerable, who avoid work-efforts, endeavours. Hey Indr Dev & Som! You apply breaks to both the enemies and kill them. Accept the prayers felicitations by the humans, pertaining to the slaying of the enemies.
एवा सत्यं मघवाना युवं तदिन्द्रश्च सोमोर्वमश्व्यं गोः।
आदर्दृतमपिहितान्यशृना रिरिचथुः क्षाश्चित्ततृदाना
हे सोम! आप और इन्द्र देव ने महान अश्व समूह और गो समूह को दान किया एवं पणियों द्वारा आच्छादित गोवृन्द और भूमि को बल द्वारा विमुक्त किया। हे धन युक्त इन्द्र देव और सोम! आप दोनों शत्रुओं के हिंसक है। आप दोनों ने इस प्रकार से जो कुछ किया है, वह सत्य है।[ऋग्वेद 4.28.5]
हे सोम! तुम और इन्द्र देव ने विशाल अश्वों और गौओं के संगठन को दान किया था। हे इन्द्र देव और सोम! तुम दोनों ही अत्यन्त समृद्धिशाली हो। तुम दोनों शत्रुओं का नाश करने में समर्थ हों। तुम दोनों जो भी कार्य करते हो, वह सभी सच है।
Hey Som! You and Indr Dev donated a large group of horses and the cows, released the land under the control of Ahi-demons with force-might having cows herds. Hey wealthy Indr Dev & Som! You are the destroyer of the enemy. What ever you did in this manner is true.(15.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ नः प्रार्थित उप वाजेभिरूती इन्द्र याहि हरिभिर्मन्दसानः।
तिरश्चिदर्यः सवना पुरूण्याङ्गुषेभिर्गृणानः सत्यराधाः
हे इन्द्र देव! आप प्रशंसित होकर हम लोगों को रक्षित करने के लिए हम लोगों के अन्न युक्त अनेक यज्ञों में अश्वों के साथ पधारें। आप आनन्दमय, स्वामी, स्तोत्रों द्वारा प्रशंसित और सत्यधन हैं।[ऋग्वेद 4.29.1]
हे इन्द्र देव! हमारे द्वारा पूजनीय होने पर हमारी सुरक्षा के लिए हविरत्न से परिपूर्ण हमारे यज्ञों में अश्वों से युक्त पधारो। तुम हर्षित हृदय वाले, श्लोकों द्वारा पूजनीय, सत्यस्वरूप एवं स्वर्ग के स्वामी हो। 
Hey Indr Dev! On being worshiped, join our Yagy having food grains for offerings, with your horses, to protect us. You are blissful, lord truthful and revered-honoured with hymns.
आ हि ष्मा याति नर्यश्चिकित्वान्हूयमानः सोतृभिरुप यज्ञम्।
स्वश्वो यो अभीरुर्मन्यमानः सुष्वाणेभिर्मदति सं ह वीरैः
मनुष्यों के हितकारी तथा सर्ववेत्ता इन्द्र देव सोमाभिषवकारियों द्वारा आहूत होकर यज्ञ के उद्देश्य से आगमन करें। वे सुन्दर अश्वों से युक्त हैं, वे निर्भय हैं, वे सोमाभिषवकारियों द्वारा स्तुत होते हैं एवं वीर मरुतों के साथ आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 4.29.2]
प्राणियों को कल्याण करने वाले, सभी ज्ञानों को जानने वाले, इन्द्र सोम सिद्ध करने वालों द्वारा आमंत्रित किये जाने पर यज्ञ के लिए आएँ। वे इन्द्र सुशोभित घोड़ों वाले, निडर, पूज्य तथा वीर मरुद्गण सहित पुष्टि को प्राप्त होते हैं।
Let all knowing Indr Dev, helping humans, join the Yagy on being worshiped by those who extract Somras. He is fearless, possess beautiful horses, prayed by the extractors of Somras and enjoy with Marud Gan.
श्रावयेदस्य कर्णा वाजयध्यै जुष्टामनु प्र दिशं मन्दयध्यै।
उद्वावृषाणो राधसे तुविष्मान्करन्न इन्द्रः सुतीर्थाभयं च
हे स्तोता! आप इन्द्र देव के कर्णद्वय में इन्द्र देव का शुभ करने के लिए और सब दिशाओं में अतिशय हर्षित करने के लिए स्तोत्रों को श्रवण करावें। सोमरस से सिक्त बलवान इन्द्र देव हम लोगों के धन के लिए शोभन तीर्थों को भय रहित करें।[ऋग्वेद 4.29.3]
हे मनुष्यों! इन्द्र देव की शक्ति की वृद्धि के लिए तथा उन्हें प्रत्येक प्रकार से सन्तुष्ट करने के लिए उनके दोनों कानों में श्लोक को श्रवण कराओ। सोम रस से सींचे गये पराक्रमी इन्द्रदेव हमारे धन के लिए उत्तम स्थानों को भय से मुक्त करें।
Hey Stota-worshipers! Let Indr Dev listen-hear the hymns through both ears, make all direction happy and auspiciousness. Satisfied by drinking Somras let mighty Indr Dev make the pilgrimage fearless for our wealth.
अच्छा यो गन्ता नाधमानमूती इत्था विप्रं हवमानं गृणन्तम्।
उप त्मनि दधानो धुर्या ३ शून्त्सहस्त्राणि शतानि वज्रबाहुः
वज्रबाहु इन्द्र देव अपने वशीभूत सहस्र संख्यक तथा शत संख्यक शीघ्रगामी अश्वों को रथ वहन प्रदेश में संस्थापित करते हैं एवं रक्षा करने के लिए याचक, मेधावी आह्लादकारी और प्रार्थनाकारी याजकगण के समीप जाते हैं।[ऋग्वेद 4.29.4]
भुजाओं में वज्र धारण करने वाले इन्द्र देव अपने बहुसंख्यक अश्वों को रथ में चलने के लिए जोड़ते हैं और रक्षा करने के लिए मेधावी हर्ष प्रदान करने वाले, वंदना करते हुए याचक यजमान के समीप जाते हैं।
Bearing Vajr in his arms, Indr Dev deploy his hundreds and thousands of fast moving horses in the charoite and move to the intelligent Ritviz-hosts who make pleasant prayers.
त्वोतासो मघवन्निन्द्र विप्रा वयं ते स्याम सूरयो गृणन्तः।
भेजानासो बृहदिवस्य राय आकाय्यस्य दावने पुरुक्षोः
हे धनवान इन्द्र देव! हम लोग आपके स्तोता हैं। हम लोग आपके द्वारा रक्षित हैं, मेधावी और स्तुतिकारी है। आप दीप्ति विशिष्ट, स्तुति योग्य और अन्न विशिष्ट है। ऐश्वर्य प्रदान करने के समय हम मनुष्य आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.29.5]
हम वंदनाकारी विद्वान तुम्हारे निकट रक्षित हैं। तुम ज्योतिवान अन्नवान और वन्दनाओं के पात्र हों। धन प्रदान करने वाले समय में हम तुम्हारा यजन करें।
Hey rich Indr Dev! We are your worshipers. We are protected by you,  and worship you. You are radiant, deserve prayers and grant food grains. We are intelligent, pray you when you grant us grandeur.(16.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप।
नकिरिन्द्र त्वदुत्तरो न ज्यायाँ अस्ति वृत्रहन्। नकिरेवा यथा त्वम्
हे शत्रु संहारक इन्द्र देव! इस लोक में आपकी अपेक्षा कोई भी श्रेष्ठ नहीं है, आपकी अपेक्षा कोई भी प्रशस्यतर नहीं है। हे इन्द्र देव! आप जिस प्रकार लोक में प्रसिद्ध हैं, उस तरह कोई भी प्रसिद्ध नहीं है।[ऋग्वेद 4.30.1]
हे इन्द्र देव! तुम वृत्र का संहार करने वाले हो। इस संसार में तुमसे बढ़कर कोई श्रेष्ठ नहीं है। तुमसे बढ़कर इस संसार में कोई दूसरा महान नहीं है। तुमसे बढ़कर कोई विशाल भी नहीं है। तुम संसार में जितने प्रसिद्ध हो, उतना विख्यात भी कोई नहीं है।
Hey slayer of the enemy Indr Dev! No other person in this world is as famous-popular as you are.
सत्रा ते अनु कृष्टयो विश्वा चक्रेव वावृतुः। सत्रा महाँ असि श्रुतः 
सभी जगह व्याप्त चक्र जिस प्रकार शकट अर्थात गाड़ी का अनुवर्तन करता है, उसी प्रकार प्रजागण आपका अनुवर्तन करते हैं। हे इन्द्र देव! आप सचमुच महान और गुणों द्वारा विख्यात हैं।[ऋग्वेद 4.30.2]
हे इन्द्र देव! सर्वव्यापी पहिया जैसा गाड़ी के पीछे चलता है, वैसे ही प्रजाजन भी तुम्हारे पीछे चलते हैं। तुम मेधावी हो। तुम अपने गुणों द्वारा देवताओं में प्रसद्धि हो।
Verily men are attached to you as are all the wheels to the body of the wagon-cart; in truth you are great and renowned.
The humans are attached with you like the wheels are attached to the cart. You are intelligent and known for your qualities-virtues amongest the demigods-deities.
विश्वे चनेदना त्वा देवास इन्द्र युयुधुः। यदहा नक्तमातिरः
विजय की अभिलाषा से सब देवों ने बलरूप से आपकी सहायता प्राप्त करके असुरों के साथ युद्ध किया। उस समय आपने अहर्निश शत्रुओं का वध किया।[ऋग्वेद 4.30.3]
अहर्निश :: दिन-रात लगातार; round the clock, photeolic.
हे इन्द्र देव! विजय की अभिलाषा वाले जब देवों ने शक्ति के रूप में तुम्हारी सहायता ग्रहण करके असुरों से युद्ध किया था।
The demigods-deities fought with the demons with your help-support. At that time you continuously killed the demons, day & night.
यत्रोत बाधितेभ्यश्चक्रंकुत्साय युध्यते। मुषाय इन्द्र सूर्यम्
हे इन्द्र देव! जिस युद्ध में आपने युद्धकारी कुत्स एवं उसके सहायकों के लिए सूर्य के रथ चक्र का भी अपहरण कर लिया।[ऋग्वेद 4.30.4]
तब तुमने युद्धरत कुत्स और उसके सहायकों के लिए सूर्य पर चक्र को घुमाया और अपने व्यक्तियों की सुरक्षा की थी।
Hey Indr Dev! You controlled the cycle of the Sun, while fighting with Kuts-demon & his warriors. 
यत्र देवाँ ऋघायतो विश्वाँ अयुध्य एक इत्। त्वमिन्द्र वनूँरहन्
हे इन्द्र देव! जिस युद्ध में आपने एकाकी होकर देवों के बाधक सकल राक्षसों के साथ युद्ध किया तथा उन हिंसकों का वध कर दिया।[ऋग्वेद 4.30.5]
हे इन्द्र देव! युद्ध में तुमने अकेले ही हिंसा करने वाले तथा सभी देवताओं को विघ्न देने वाले असुरों से युद्ध किया था, उसमें उन सभी को तुमने मार दिया था।
Hey Indr Dev! You killed all the violent demons single handily in the war.
यत्रोत मर्त्याय कमरिणा इन्द्र सूर्यम्। प्रावः शचीभिरेतशम्
हे इन्द्र देव! जिस संग्राम में आपने एतश ऋषि के लिए सूर्य की भी हिंसा की, उस समय युद्ध कर्म द्वारा आपने एतश की रक्षा की।[ऋग्वेद 4.30.6]
हे इन्द्र देव! तुम जिस संग्राम में एतश के लिए सूर्य पर भी आक्रमण किया था, उस घोर संग्राम द्वारा तुमने एतश मुनि की भली-भांति रूप से रक्षा की थी।
Hey Indr Dev you discomfited Sun, for protecting Etash by your exploits.
DISCOMFIT :: परेशान, अशांत; make (someone) feel uneasy or embarrassed.
Hey Indr Dev! You protected Etash Muni in that furious war with your fighting skills and disturbed the Sun.
किमादुतासि वृत्रहन्मघवन्मन्युमत्तमः। अत्राह दानुमातिरः
हे आवरक अन्धकार के हननकर्ता धनवान इन्द्र देव! उसके बाद क्या आप अत्यन्त क्रोधवान हुए? इस अन्तरिक्ष में और दिवस में आपने दानु पुत्र वृत्रासुर का वध कर दिया।[ऋग्वेद 4.30.7]
हे वृत्र रूप आवरणकारी अंधकार को दूर करने वाले इन्द्र और दुष्टों पर अत्यधिक क्रोध करने वाले हो। तुम प्रजाओं को छिन्न-भिन्न करने वाले असुरों का वध करो।
Hey remover of darkness, wealthy Indr Dev! Thereafter, your became angry and killed Vrata Sur the son of Danu in the space, during the day.
एतद्धेदुत वीर्य १ मिन्द्र चकर्थ पौंस्यम्।
स्त्रियं यद्दुर्हणायुवं वधीर्दुहितरं दिवः
हे इन्द्र देव! आपने बल को इस प्रकार से सामर्थ्य युक्त किया। आपने सूर्य देव तथा द्युलोक की दुहिता पुत्री उषा का भी वध किया।[ऋग्वेद 4.30.8] 
हे इन्द्र देव! तुम पुरुषोचित्त वीर कर्मों को करने वाले हो। जैसे सूर्य अपने उजाले से उषा को नष्ट कर देता है, वैसे ही तुम एकत्र हुई शत्रु सेना को समाप्त कर दो।
Hey Indr Dev! You performed like a great warrior. The way Sun shines and replace Usha-day break, you destroyed the enemy armies.
दिवश्चिद्धा दुरितं महन्मदीययानाम्। उषासमिन्द्र स पिणक्
हे महान इन्द्र देव! आपने द्युलोक की दुहिता तथा पूजनीया उषा को सम्पिष्ट किया।[ऋग्वेद 4.30.9]
संपुष्टि :: पुष्टिकरण; पक्का करना; nourish. 
Hey mighty Indr Dev! You have enriched revered, glorious dawn Usha-the daughter of heaven-Sun.
Hey great Indr Dev! You nourished Usha, the honoured daughter of heaven.
अपोषा अनसः सरत्संपिष्टादह बिभ्युषी। नि यत्सीं शिश्नथद्वृषा
अभीष्टवर्षी इन्द्रदेव ने जब उषा के शकट को भग्न किया, तब उषा भयभीत होकर इन्द्र देव द्वारा भग्न शकट के ऊपर से अवतीर्ण हुई।[ऋग्वेद 4.30.10]
अभिलाषाओं के वर्षक इन्द्र देव जब तुमने उषा के रथ को छिन्न-भिन्न कर डाला था, तब उषा भयभीत होकर इन्द्र द्वारा तोड़े हुए रथ के ऊपर से प्रकट हुई थी।
Hey great, desires accomplishing Indr Dev! When you destroyed the charoite of Usha, she appeared over the broken charoite. 
एतदस्या अनः शये सुसंपिष्टं विपाश्या। ससार सीं परावतः॥
इन्द्र देव द्वारा विचूर्णित उषा देवी का शकट विपाशा नदी के किनारे पर गिर पड़ा। शकट के टूट जाने पर उषा देवी दूर देश में चली गई।[ऋग्वेद 4.30.11]
इन्द्र द्वारा तोड़ा गया वह उषा का रथ विपाशा नदी के किनारे जा पड़ा। रथ के भस्म होने पर उषा दूर देश में अचेत अवस्था में जाकर गिरी।
Powdered-broken cart of Usha fell over the bank of river Vipasha. Usha shifted else where-other region, due to the breaking of her cart.
उत सिन्धुं विबाल्यं वितस्थानामधि क्षमि। परि ष्ठा इन्द्र मायया
हे इन्द्र देव! आपने सम्पूर्ण जलों तथा तिष्ठमाना नदी को पृथ्वी के ऊपर बुद्धि बल से सभी जगह संस्थापित किया।[ऋग्वेद 4.30.12]
हे इन्द्र देव! तुमने सभी जलों को तथा तिष्ठमाना नदी को इस भूमण्डल पर अपनी बुद्धि के पराक्रम से प्रकट किया था।
Hey Indr Dev! You established water & Tishthmana river over the earth by virtue of your intelligence.
उत शुष्णस्य धृष्णुया प्र मृक्षो अभि वेदनम्। पुरो यदस्य संपिणक्
हे इन्द्र देव! आप वर्षणकारी है। जिस समय आपने शुष्ण नामक असुर के नगरों को नष्ट किया, उस समय आपने उसके धनों को लूट लिया।[ऋग्वेद 4.30.13]
हे इन्द्रदेव तुम वृष्टि करने वाले हो। अब तुमने शुष्ण के नगरों का विनाश किया था तब तुमने उसके धन को भी लूटा था।
Hey Indr Dev! You cause rains. You destroyed & plundered the cities of demon Shushn.
PLUNDERED :: लूटा, डाका डालना, चुराना; rob, flay, ransack, loot, despoil,  pillage, depredate, reave, reive, steal, thieve, pilfer, filch, purloin, lift.
उत दासं कौलितरं बृहतः पर्वतादधि। अवाहन्निन्द्र शम्बरम् 
हे इन्द्र देव! आपने कुलितर के पुत्र दास शम्बर को बृहत पर्वत के ऊपर से नीचे की ओर गिरा कर मार डाला।[ऋग्वेद 4.30.14] 
हे इन्द्र देव! तुमने कौलितर के पुत्र शम्बर नामक राक्षस को शैल से नीचे गिराकर मार दिया।
Hey Indr Dev! You threw the son of Kulitar, Shambar from the high mountain and killed him.
उत दासस्य वर्चिनः सहस्राणि शतावधीः। अधि पञ्च प्रधींरिव
हे इन्द्र देव! चक्र के चतुर्दिक स्थित शंकु (हिंसक) के तुल्य वर्चि नामक दास के चतुर्दिक स्थित पञ्चशत संख्यक और सहस्र संख्यक अनुचरों को आपने विशेष रूप से मार डाला।[ऋग्वेद 4.30.15]
हे इन्द्र देव! चक्र के चारों ओर स्थित शंकु के समान वर्चि नामक दस्यु के चारों ओर स्थित पाँच सौ सहस्त्र संख्यक के दासों को तुमने मार दिया था।
Hey Indr Dev! You killed the five hundred thousand followers-servants, soldiers surrounding the disc in all directions like Shanku-violent; of the slave called Varchi. 
उत त्यं पुत्रमग्रुवः परावृक्तं शतक्रतुः। उक्थेष्विन्द्र आभजत् 
शतकर्मा इन्द्र देव ने अग्रु के पुत्र परावृत्त को स्तोत्रों का पाठ करने योग्य बनाया।[ऋग्वेद 4.30.16]
हे इन्द्रदेव! तुमने प्रशंसा के योग्य कार्यों में भी उन अग्रु पुत्रों को दुखों से बचाकर यज्ञ का भागी बनाया।
Thousand Yagy performing Indr Dev enabled Paravratt the son of Agru, recite the sacred hymns-Strotr.
उत त्या तुर्वशायदु अस्नातारा शचीपतिः। इन्द्रो विद्वाँ अपारयत्
ययाति के शाप से अनभिषिक्त प्रसिद्ध राजा यदु और तुर्वश को शची के पति विद्वान इन्द्र देव ने अभिषेक योग्य बनाया।[ऋग्वेद 4.30.17]
अभिषेक :: प्रतिष्ठापन, समझाना, बतलाना, स्नान; coronation, consecration, ablution, anointment.
शचि पति इन्द्र ने ययापि के शाप से च्युत यदु और तुर्वश को संकट से दूर किया।
Indr Dev, the husband of Shachi, enabled king Yadu & Turvash for re-coronation, who were to be cursed by Yayati.
उत त्या सद्य आर्या सरयोरिन्द्र पारतः। अर्णाचित्ररथावधीः
हे इन्द्र देव! आपने तत्क्षण सरयू नदी के पार में रहने वाले आर्यत्वाभिमानी अर्ण और चित्ररथ नामक राजा का वध किया।[ऋग्वेद 4.30.18]
हे इन्द्र! तुमने तत्क्षण सरयू के पार रहने वाले अर्ण तथा चित्र रथ राजा को मार दिया था।
Hey Indr Dev! You killed immediately king Arn & Chitr Rath who lived across the river Saryu. 
अनु द्वा जहिता नयोन्यं श्रोणं च वृत्रहन्। न तत्ते सुम्नमष्टवे
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव! आपने बन्धुओं द्वारा त्यागे गये अन्ध और पंगु को अनुनीत किया अर्थात उनके अन्धत्व और पंगुत्व को विनष्ट किया। आपके द्वारा प्रदत्त सुख का अतिक्रमण करने में कोई भी समर्थ नहीं हो सकता।[ऋग्वेद 4.30.19]
पंगु :: लँगड़ा, गतिहीन, वात रोग से ग्रस्त व्यक्ति; लुंज-पुंज, लंगड़ा-लूला, असन्तोषजनक, कच्चा, अपूर्ण; crippled,  lame,  lacerated.
हे वृत्र नाशक इन्द्रदेव! तुमने बंधुओं द्वारा त्यागे गये नेत्रहीन एवं अपंग पर भी दया की थी। तुम्हारे द्वारा दिए सुख को नष्ट करने में कोई भी सक्षम नहीं हैं।
Hey slayer of Vratr Indr Dev! You cured the blind and crippled, discarded by the brothers. No one can vanish the comforts granted by you. 
शतमश्मन्मयीनां पुरामिन्द्रो व्यास्यत्। दिवोदासाय दाशुषे
इन्द्र देव ने प्रदाता याजकगण दिवोदास को शम्बर के पाषाण निर्मित शत संख्यक नगर प्रदान किया।[ऋग्वेद 4.30.20]
इन्द्र देव ने हविदान करने वाले यजमान दिवोदास को शम्बर के पत्थर से बने सौ नगर दिये।
Indr Dev granted the hundred cities of Shambar built with stone, to Divodas who made offering for him.
 अस्वापयद्दभीतये सहस्रा त्रिंशतं हथैः। दासानामिन्द्रो मायया
इन्द्र देव ने दभीति के लिए अपनी शक्ति से तीस हजार राक्षसों को हनन-साधन आयुधों के द्वारा पृथ्वी पर सुला दिया।[ऋग्वेद 4.30.21]
इन्द्र ने अपनी माया से दस्युओं की तीन सौ सहस्त्र सेना का नाश करने के लिए यज्ञ करने वाले अस्त्रों से धरती पर सुला दिया।
Indr Dev slayed (laid them over the earth),  thirty thousand demons for Dabhiti with his might & power.
स घेदुतासि वृत्रहन्त्समान इन्द्र गोपतिः। यस्ता विश्वानि चिच्युषे
हे इन्द्र देव! आपने इन समस्त शत्रुओं को प्रच्युत किया। हे शत्रुओं के हिंसक इन्द्र देव! आप गौओं के पालक है। आप सम्पूर्ण याजकगणों के लिए समान रूप से प्रख्यात है।[ऋग्वेद 4.30.22]
हे इन्द्र! तुम वृत्र का संहार करने वाले हो। तुमने समस्त शत्रु सेनाओं को युद्ध क्षेत्र में विचलित कर दिया। तुम धेनुओं के पोषणकर्त्ता हो।
Hey Indr Dev! You destroyed all the enemies. You serve-nurture the cows. You are honoured by the Ritviz.
उत नूनं यदिन्द्रियं करिष्या इन्द्र पौंस्यम्। अद्या नकिष्टदा मिनत्॥
हे इन्द्र देव! जिस लिए आपने अपने बल को सामर्थ्यवान किया, इसीलिए आज भी कोई व्यक्ति उसको हिंसा नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 4.30.23]
तुम जिस शक्ति और समृद्धि को धारण करते हो, उसकी हिंसा आज भी कोई मनुष्य करने में समर्थ नहीं है।
Hey Indr Dev! None can destroy your power, might & strength.
वामवास त आदुरे देवो ददात्वर्यमा।
वामं पूषा वामं भगो वामं देवः करूळती
हे शत्रु विनाशक इन्द्रदेव! अर्यमा देवता आपको वह मनोहर धन प्रदान करें, दन्त हीन पूषा वह मनोहर धन प्रदान करें और भग वह मनोहर धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.30.24]
हे इन्द्र देव! तुम शत्रुओं का पतन करने वाले हो, अर्यमा सुन्दर धन को प्रदान करें। दन्त विहीन पूषा और भग भी रमणीय धन को प्रदान करें।
Hey destroyer of the enemy Indr Dev! Let Aryma, Pusha-who has no teeth & Bhag grant you lovely riches, gifts.(20.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,   छन्द :- गायत्री।
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता
सर्वदा वर्द्धमान, पूजनीय और मित्र भूत इन्द्र देव किस तर्पण द्वारा हमारे अभिमुख आगमन करेंगे? किस प्रज्ञा युक्त श्रेष्ठ कर्म द्वारा हम लोगों के अभिमुख आगमन करेंगे।[ऋग्वेद 4.31.1]
वे हमेशा वृद्धि करने वाले, पूषा के पात्र सखा रूपी इन्द्र देव किस पुष्प द्वारा हमारे सामने पधारेंगे। किस गतिवान के महान कार्य से प्रभावित हुए वे हमारे सम्मुख पधारेंगे।
By what means will Indr Dev, who is ever augmenting, wonderful, our friend, be present with us, by what most effective rite?
By which means, always advancing-progressing, revered Indr Dev will invoke in front of us? Which intelligent & excellent endeavour will bring him to us? 
कस्त्वा सत्यो मदानां मंहिष्ठो मत्सदन्धसः। दृळ्हा चिदारुजे वसु
हे इन्द्र देव! पूजनीय, सत्य भूत और हर्षकर सोमरसों के बीच में कौन सोमरस शत्रुओं के धन को विनष्ट करने के लिए आपको हर्षित करेगा?[ऋग्वेद 4.31.2]
हे इन्द्र देव! सत्य रूपी और हर्षित करने वाले सोम रसों के मध्य, शत्रुओं के धन का पतन करते हुए तुम्हें कौन सा सोमरस संतुष्ट करेगा?
Hey Indr Dev! Which Somras amongest the honoured-respected, blissful, truthful Somras will please-motivate you to destroy the wealth of the enemy?
अभी षु णः सखीनामविता जरितॄणाम्। शतं भवास्यूतिभिः
हे इन्द्र देव! आप मित्र स्वरूप स्तोताओं के रक्षक है। आप बहुत प्रकार की रक्षा के साथ हमारे अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 4.31.3]
हे इन्द्र देव! तुम सखा रूप वंदना करने वालों के रक्षक हो, अपने अनेक रक्षा साधनों के साथ हमारे सम्मुख पधारो।
Hey Indr Dev! you are the protector of the friendly Stota-household. Invoke here with various means of safety, in front of us.
अभी न आ ववृत्स्व चक्रं न वृत्तमर्वतः। नियुद्भिश्चर्षणीनाम्
हे इन्द्र देव! हम लोग आपके उपगन्ता हैं। आप हम मनुष्यों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर हमारे निकट वृत्ताकार चक्र के तुल्य पधारें।[ऋग्वेद 4.31.4]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारे मार्ग पर चलने वाले हैं। हम प्राणियों की प्रार्थनाओं से प्रसन्न होते हुए तुम हमारे सम्मुख वृत्ताकार चक्र के सम्मुख आओ।
Hey Indr Dev! We are your followers. Be happy with our prayers and obelize us by coming to us like a rotating wheel (while pool).
प्रवता हि क्रतूनामा हा पदेव गच्छसि। अभक्षि सूर्वे सचा
हे इन्द्र देव! आप यज्ञ के प्रवण प्रदेश में अपने स्थान को जानकर आगमन करते हैं। हम सूर्य के साथ आपकी उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 4.31.5]
हे इन्द्र देव! तुम यज्ञ में अपने स्थान को समझते हुए यहाँ पधारो। सूर्य के साथ हम तुम्हारा पूजन करते हैं।
Hey Indr Dev! Maintaining your dignity in the Yagy, you arrive here. WE worship you along with the Sun.
सं यत्त इन्द्र मन्यवः सं चक्राणि दधन्विरे। अध त्वे अध सूर्ये
हे इन्द्र देव! आपके लिए सम्पादित प्रार्थना और कर्म जब हम लोगों के द्वारा अनुमन्यमान होते हैं, तब वे पहले आपके होते हैं और उसके पश्चात सूर्य देव के होते हैं।[ऋग्वेद 4.31.6]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे लिए सम्पादन की गई वंदना तथा कार्य जब एक साथ ऊपर उठते हैं तब वे पहले तुम्हारे और फिर सूर्य के होते हैं।
Hey Indr Dev! When we perform prayers and make offerings we worship you first, followed by the Sun.
उत स्मा हि त्वामाहुरिन्मघवानं शचीपते। दातारमविदीधयुम्
हे कर्म पालक इन्द्र देव! आपको लोग धनवान, स्तोताओं के अभीष्टप्रद और दीप्तिमान कहते है।[ऋग्वेद 4.31.7]
हे इन्द्र देव! तुम कार्यों के रक्षक हो। तुमको धनशाली और वंदनाकारी की कामना पूर्ण करने वाला तथा तपस्वी कहा जाता है।
Hey Indr Dev! You protect our efforts-endeavours. Public calls you rich-wealthy, worship deserving, glorious-radiant.
उत स्मा सद्य इत्परि शशमानाय सुन्वते। पुरू चिन्मंहसे वसु
हे इन्द्र देव! आप क्षण भर में ही स्तुति कारी तथा सोमाभिषवकारी याजक गण को बहुत धन प्रदत करते हैं।[ऋग्वेद 4.31.8]
हे इन्द्र देव! सोम सिद्ध करने वाले तथा प्रार्थना करने वाले यजमान को तुम तुरन्त ही अनेक सा धन प्रदान करते हो।
Hey Indr Dev! You grant  a lot of riches-wealth to the worshipers, those who extract Somras for you. 
नहि ष्मा ते शतं चन राधो वरन्त आमुरः। न च्यौत्नानि करिष्यतः
हे इन्द्र देव! बाधक राक्षस आदि आपके शत परिमित धन का निवारण नहीं कर सकते। शत्रुओं की हिंसा करने वाले आपके बल का निवारण नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 4.31.9]
हे इन्द्र! विघ्न देने वाले राक्षस भी तुम्हारे सैंकड़ों ऐश्वर्य को रोक नहीं पाते। विभिन्न बल वाले वीर कर्मा भी तुम्हारी शक्ति को नहीं रोक पाते।
Hey Indr Dev! The demons creating obstacles, can not check-prohibit your grandeur. The violent who kill the opponents, can not prohibit your might, power, strength.
अस्माँ अवन्तु ते शतमस्मान्त्सहस्रमूतयः। अस्मान्विश्वा अभिष्टयः
हे इन्द्र देव! आपकी शत संख्यक रक्षा हम लोगों की रक्षा करे। आपकी सहस्र संख्यक रक्षा हम लोगों की रक्षा करे। आपका समस्त अभिगमन हम लोगों की सुरक्षा करें।[ऋग्वेद 4.31.10]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे हजारों रक्षा साधन हमारे रक्षक हों। तुम्हारे हजारों रक्षा साधन हमारी रक्षा करें। तुम्हारी सभी प्रेरणाएँ रक्षा में सहायक हों।
 Hey Indr Dev! Let your multiple-thousands means protect us.
अस्माँ इहा वृणीष्व सख्याय स्वस्तये। महो राये दिवित्मते
हे इन्द्र देव! इस यज्ञ में आप हम याजक गणों के मित्र, अविनाशी तथा दीप्ति युक्त धन का भागी बनावें।[ऋग्वेद 4.31.11]
हे इन्द्र देव! हम यजमानों को इस यज्ञ में सखा रूप, कभी नष्ट न होने वाला तथा प्रकाश से युक्त धन का अधिकारी बनाओ।
Hey Indr Dev! You should share-enjoy the imperishable, glorious wealth in this Yagy, being our friend-the Ritviz. 
अस्माँ अविड्ढि विश्वहेन्द्र राया परीणसा। अस्मान्विश्वाभिरूतिभिः॥
हे इन्द्र देव! आप प्रतिदिन हम लोगों की अपने महान धनों द्वारा रक्षा करें और समस्त रक्षा कर्मों द्वारा हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.31.12]
हे इन्द्र देव! प्रतिदिन अपने श्रेष्ठ धन द्वारा हमारे रक्षक बनो।
Hey Indr Dev! Protect us and our wealth eceryday.
अस्मभ्यं ताँ अपा वृधि व्रजाँ अस्तेव गोमतः। नवाभिरिन्द्रोतिभिः
हे इन्द्र देव! आप शूर के तुल्य नूतन रक्षा द्वारा हम लोगों के लिए गो विशिष्ट गोव्रज (गौओं के निवास स्थान) का उद्धार करें।[ऋग्वेद 4.31.13]
हे इन्द्र! वीर के समान अपने नए रक्षा साधन द्वारा हमारे लिए गौओं के वास को पुष्ट करो।
Hey Indr Dev! Like a brave person you should protect & support the cows sheds with new means-weapons.
अस्माकं धृष्णुया रथो द्युमाँ इन्द्रानपच्युतः। गव्युरश्वयुरीयते॥
हे इन्द्र देव! हम लोगों का शत्रु धर्षक, दीप्तिमान, विनाश रहित, गोयुक्त और अश्व युक्त रथ सभी जगह गमन करे। आप उस रथ के साथ हम याजकों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.31.14]
हे इन्द्र देव! तुम हमारे शत्रुओं को मारने वाले अत्यन्त तेजस्वी, अविनाशी गायों से युक्त अश्वों वाले रथ में सभी ओर जाने वाले हो। तुम उस रथ के साथ हमारे रक्षक बन जाओ।
Hey Indr Dev! Let our radiant, imperishable chariots having cows & horse roam every where. Protect us along with that charoite.
अस्माकमुत्तमं कृषि श्रवो देवेषु सूर्य। वर्षिष्ठं द्यामिवोपरि
हे सभी के प्रेरक सूर्य देव! आपने जिस प्रकार से सेचन समर्थ द्युलोक को ऊपर में स्थापित कर दिया, उसी प्रकार से देवों के बीच में हम लोगों के यश को उत्कृष्ट करें।[ऋग्वेद 4.31.15]
हे सूर्य! तुम सबको प्रेरणा प्रदान करते हो। तुमने बरसात में समर्थ नभ को जैसे उच्च स्थापित किया है, वैसे ही देवताओं के बीच हमारे यज्ञ को बढ़ाओ।
Hey Sury Dev-Sun, inspiring all! The way-manner in which you have established the heavens at a high altitude in the sky, enhance-boost the glory of our Yagy, amongest the demigods-deities.(23.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र,  अश्व, छन्द :- गायत्री।
आ तू न इन्द्र वृत्रहन्नस्माकमर्धमा गहि। महान्महीभिरूतिभिः
हे शत्रु हिंसक इन्द्र देव! आप शीघ्र ही हम लोगों के निकट आगमन करें। आप महान है। महान रक्षा के साथ आप हमारे निकट आगमन करें।[ऋग्वेद 4.32.1]
हे इन्द्र देव! तुम शत्रुओं के शोषणकर्त्ता हो। तुम हमारे सामने शीघ्रतम पधारो। तुम सर्वश्रेष्ठ हो। अपनी सर्वश्रेष्ठ रक्षाओं से युक्त हमारे सम्मुख आओ।
Hey slayer-destroyer of the enemy, great Indr Dev! Come to us quickly and grant asylum-protection.
भृमिश्चिद्धासि तूतुजिरा चित्र चित्रिणीष्वा। चित्रं कृणोष्यूतये
हे पूजनीय इन्द्र देव! आप भ्रमणशील और हम लोगों के अभीष्टदाता है। चित्र कर्म युक्त प्रजा को आप रक्षा के लिए धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.32.2]
हे इन्द्र देव! तुम पूजा के योग्य हो। तुम विचरणशील हो। तुम हमको इच्छित फल प्रदान करते हो। तुम प्रजा को पोषण के लिए धन देते हो।
Hey Indr Dev! You deserve worship. You are dynamic and accomplish our desires. You nourish, support and nurture the humans-populace.
दभ्रेभिश्चिच्छशीयांसं हंसि व्राधन्तमोजसा। सखिभिर्ये त्वे सचा 
हे इन्द्र देव! जो याजकगण आपके साथ संगत होते हैं, उन थोड़े से भी याजकगणों के साथ आप उत्प्लवमान तथा वर्द्धमान शत्रुओं को अपने बल से विनष्ट करते है।[ऋग्वेद 4.32.3]
हे इन्द्र देव! जो यजमान तुम्हारे अनुकूल होते हैं, उन थोड़े यजमानों सहित तुम उच्छृंखल, बड़े हुए शत्रुओं को अपने उत्तम बल से नष्ट करते हो।
Hey Indr Dev! You kill-destroy the enemy with the small numbers of the Ritviz who are associated with you, with your might-power.
वयमिन्द्र त्वे सचा वयं त्वाभि नोनुमः। अस्माँ अस्माँ इदुदव 
हे इन्द्र देव! हम याजकगण आपसे संगत हुए हैं। हम अधिक परिमाण में आपकी प्रार्थना करते हैं। आप हम सबकी विशेष रूप से रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.32.4]
सुसंगत :: सिलसिलेवार, क्रमबद्ध, तर्कयुक्त, तर्कसंगत, परंपरा-संबंधी, संसक्त, स्पष्ट, संगत, बद्ध; compatible, coherent, sequential, sequent, virtuous-auspicious-pious company.
हे इन्द्र देव! हम यजमान तुम्हारे द्वारा सुसंगत हुए हैं। हम तुम्हारी अत्यन्त प्रार्थना करते हैं। तुम्हारा विशेष रूप से पोषण करते हैं।
Hey Indr Dev! We hosts-Ritviz attained your virtuous company. We have increased the quantum of your worship-prayer. Take care of us, specially.
स नश्चित्राभिरद्रिवोऽनवद्याभिरूतिभिः। अनाधृष्टाभिरा गहि
हे वज्र धर! आप मनोहर, अनिन्दित और शत्रुओं के द्वारा अग्रहर्षित अर्थात अनाक्रमणीय रक्षाओं के साथ हमारे निकट आगमन करें।[ऋग्वेद 4.32.5]
वे वज्रिन! आनन्दमयी! दिव्य शत्रुओं के द्वारा पराजित न होने वाले, तुम अपनी समृद्ध सुरक्षाओं से युक्त हमारे निकट पधारो।
Wielder of the thunderbolt-Vajr, come to us with wondrous, irreproachable, irresistible protections.
Hey Vajr wielding! Hey attractive, blissful, undefeated by the enemy, come to us with the means of protection for us.
भूयामो षु त्वावतः सखाय इन्द्र गोमतः। युजो वाजाय घृष्वये 
हे इन्द्र देव! हम आपके सदृश गोयुक्त देवता के मित्र है। प्रभूत अन्न के लिए आपके साथ संयुक्त होते हैं।[ऋग्वेद 4.32.6]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारे तुल्य धेनु सहित पुरुष के उपयोगी हैं। हम महान धन के लिए तुम्हारी सहायता को चाहते हैं।
Hey Indr Dev! We are friendly with the demigods-deities possessing cows. We associate-coordinate our self with you for plenty of food grains & money.
त्वं ह्येक ईशिष इन्द्र वाजस्य गोमतः। स नो यन्धि महीमिषम् 
हे इन्द्र देव! जिस कारण आप ही एक गोयुक्त अन्न के स्वामी हैं; इसलिए आप हमें प्रभूत अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.32.7]
हे इन्द्र देव! तुम अकेले हो गाय, घोड़े आदि के दाता हो। हमको बहुत सा अन्नादि धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You are the owner of food grains & cows. Grant us sufficient food grains.
न त्वा वरन्ते अन्यथा यद्दित्ससि स्तुतो मघम्। स्तोतृभ्य इन्द्र गिर्वणः
हे स्तुति योग्य इन्द्र देव! जब आप प्रार्थित होकर स्तोताओं को धन प्रदान करने की इच्छा करते हैं, तब कोई भी उसे रोक नहीं सकता।[ऋग्वेद 4.32.8]
हे इन्द्र देव! तुम स्तुति के पात्र हो स्तुति करने वालों को धन देने की कामना करते हो। तुम्हारे उस दान को तब रोकने की शक्ति किसी में नहीं है।
Hey Indr Dev! When you decide to grant riches to the Stota, none is capable of obstructing you.
अभित्वा गौतमा गिरानूषत प्रदानवे। इन्द्र बाजाय घृषवये
हे इन्द्र देव! आपको लक्ष्य करके गौतम नाम वाले ऋषि धन और प्रभूत अन्न के लिए प्रार्थना वाक्य द्वारा आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.32.9]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे उद्देश्य से गौतम वंशज मुनि अन्न के लिए श्लोक द्वारा पूजन करते हैं।
Hey Indr Dev! Rishis with the title Gautom request-pray you for food grains and money by using sacred Strotr-hymns.
प्र ते वोचाम वीर्या३या मन्दसान आरुजः। पुरो दासीरभीत्य
हे इन्द्र देव! सोमपान से हर्षित होकर के आप क्षेपक असुरों के सम्पूर्ण नगरों में अभिगमन करके उन्हें विदीर्ण कर देते हैं। हे इन्द्र देव! हम स्तोता आपके उसी वीरता का कीर्तन करते हैं।[ऋग्वेद 4.32.10]
हे इन्द्र देव! तुम सोमपान करके पराक्रमी बने क्षेपक राक्षसों के समस्त पुरों में जाकर तोड़ते हो।
Hay Indr Dev! You become happy after drinking Somras and destroy the habitats-cities of the demons. We the Stota, sing the glory of your valour, bravery.
ता ते गृणन्ति वेधसो यानि चकर्थ पौंस्या। सुतेष्विन्द्र गिर्वणः
हे इन्द्र देव! आप स्तुति योग्य है। आपने जिन बलों को प्रदर्शित किया। हे इन्द्र देव! प्राज्ञगण सोमाभिषव होने पर आपके उसी बल का संकीर्तन करते हैं।[ऋग्वेद 4.32.11]
हे इन्द्र देव! तुम वंदना के पात्र हो। तुम जिन बलों को प्रकट करते हो, तुम्हारे उन्हीं बलों को मेधावी लोग सोम के सिद्ध होने पर उच्चारण करते हैं।
Hey Indr Dev! You deserve worship. You demonstrate-exhibit your might, power & valour. The intelligent-prudent sing the glory of your strength after extracting Somras.
अवीवृधन्त गोतमा इन्द्र त्वे स्तोमवाहसः। ऐषु धा वीरवद्यशः
हे इन्द्र देव! स्तोत्र वाहक गौतम ऋषि आपको स्तोत्र द्वारा वर्द्धित करते हैं। आप उन्हें पुत्र-पौत्र युक्त कर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.32.12]
हे इन्द्र! स्तोत्रों को वहन करने वाले गौतम वंशज स्तोत्र से तुम्हें बढ़ाते हैं। तुम उन्हें पुत्रादि से परिपूर्ण अन्न प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Gautom Rishi who possess (has the Strotr in his memory) the Strotr, enhance-boost you, through the Strotr. Bless him with sons & grandsons.
यच्चिद्धि शश्वतामसीन्द्र साधारितस्त्वम्। तं त्वा वयं हवामहे
हे इन्द्र देव! यद्यपि आप सभी यजमानों के साधारण देवता हैं, तथापि हम स्तोता आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.32.13]
हे इन्द्र देव! तुम सात यजमानों के विख्यात देवता हो। हम प्रार्थना करने वाले तुम्हें पुकारते हैं।
Hey Indr Dev! Even though you are our demigod-deity, yet we invoke you. 
अर्वाचीनो वसो भवास्मे सु मत्स्वान्धसः। सोमानामिन्द्र सोमपाः
हे निवासप्रद इन्द्र देव! आप हम यजमानों के समक्ष पधारें। आप सोमपान करने वाले हैं, आप सोमरूप अन्न द्वारा प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 4.32.14]
हे इन्द्र देव! तुम महान निवास प्रदान करते हो। तुम यजमानों के सम्मुख पधारो। हे सोमपान करने वाले इन्द्रदेव! तुम सोम रूप अन्न से पुष्टि को प्राप्त होओ।
Hey Indr Dev! You are the provider of best residence-habitat to us. We invoke you. You enjoy Somras. Be happy with the grains like the Som.
अस्माकं त्वा मतीनामा स्तोम इन्द्र यच्छतु। अर्वागा वर्तया हरी
हे इन्द्र देव! हम आपके स्तोता हैं। हमारा स्तोत्र आपको हमारे निकट ले आए। आप अश्वद्वय को हमारे अभिमुख प्रेरित करें।[ऋग्वेद 4.32.15]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारी स्तुति करने वाले हैं, हमारा स्तोत्र तुम्हें हमारे निकट लाए। तुम दोनों अश्वों को हमारे सम्मुख मोड़ों।
Hey Indr Dev! We are your worshipers. Let our Strotr bring you close to us i.e., in our proximity. Direct your horses towards us.
पुरोळाशं च नो घसो जोषयासे गिरश्च नः। वधूयुरिव योषणाम्
हे इन्द्र देव! आप हमारे पुरोडाश रूप अन्न का भक्षण करें। स्त्री कामी पुरुष जिस प्रकार से स्त्रियों के वचन की सेवा करता है, उसी प्रकार आप हमारे स्तुति वाक्य का सेवन करें।
हे इन्द्र देव! तुम हमारे पुरोडाश का भक्षण करो जैसे पुरुष स्त्रियों के संकल्पों को सुनता है उसी तरह तुम हमारे संकल्पों को ध्यान पूर्वक सुनो।
Hey Indr Dev! Please eat-accept the offerings of backed barley lobs made by us. Listen to our words the way a lascivious hear-respond to the women.
सहस्त्रं व्यतीनां युक्तानामिन्द्रमीमहे। शतं सोमस्य खार्यः
हम स्तोता इन्द्र देव के निकट शिक्षित, शीघ्र गामी तथा सहस्र संख्यक अश्वों की याचना करते हैं एवं शत संख्यक सोम-कलश की याचना करते हैं अर्थात् अपरिमित कलश वाले यज्ञ की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 4.32.17]
हम वंदना करने वाले इन्द्र के पास सीखे हुए शीघ्र चलने वाले सहस्त्रों अश्वों को माँगते हैं और सैकड़ों सोम कलशों की याचना करते हैं।
The Ritviz, devotee, hosts pray-request Indr Dev to grant them trained-skilled fast moving thousand horses, hundred pots-vessels full of Somras for the Yagy.
सहस्रा ते शता वयं गवामा च्यावयामसि। अस्मत्रा राध एतु ते
हे इन्द्र देव ! हम आपकी सैकड़ों और हजारों गौओं को आपसे प्राप्त करते हैं। हम लोगों का धन आपके निकट से आवें।[ऋग्वेद 4.32.18]
हे इन्द्र! हम तुम्हारी सैकड़ों तथा हजारों गायों को अपने सम्मुख प्राप्त करें। हमारा धन तुम्हारे पास से यहाँ आए।
Hey Indr Dev! We receive hundreds & thousands of cows from you. Please bring our riches-wealth to us.
दश ते कलशानां हिरण्यानामधीमहि। भूरिदा असि वृत्रहन्
हे इन्द्र देव! हम आपके समीप से दश कुम्भ परिमित सुवर्ण प्राप्त करते हैं। हे शत्रु हिंसक इन्द्र देव! आप सहस्र प्रद होते हैं।[ऋग्वेद 4.32.19]
हे इन्द्र! हम तुम्हारे दस कलशों में स्वर्ण धारण करें। हे वृत्र के हननकर्त्ता इन्द्र देव! तुम अपरिचित दान करने वाले हो।
Hey Indr dev! let us receive gold in 10 vessels. Hey slayer of Vratr Indr Dev! You conceal your identity while making donations.
भूरिदा भूरि देहि नो मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि
हे इन्द्र देव! आप बहुप्रद है। आप हम लोगों को बहुत धन प्रदान करें। अल्प धन न दे। आप बहुत धन हम लोगों के लिए लावें, क्योंकि आप हम लोगों को प्रभूत धन देने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 4.32.20]
बहुप्रद :: व्ययशील, उडाऊ, फजूल खर्च, बहुत, अतिव्ययी; extravagant, lavish.
हे इन्द्र देव! तुम हमें अपरिमित धन प्रदान करने की इच्छा करते हो। तुम बहुत साधन दाता लेकर हमको अत्यन्त धन प्रदान करो। स्वल्प धन न दो। अनेक असंख्य समृद्धि प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You are extravagant, lavish. Give us a lot of money since you you wish to give us more. 
भूरिदा ह्यसि श्रुतः पुरुत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि
हे वृत्र हिंसक विभ्रान्त इन्द्र देव! आप बहुप्रद रूप से अनेकों यजमानों के निकट विख्यात है। आप हम लोगों को धन का भागी बनावें।[ऋग्वेद 4.32.21]
विभ्रांत :: घूमता हुआ, चक्कर खाता हुआ, भ्रम में पड़ा हुआ, विभ्रमयुक्त,  विक्षुब्ध-व्याकुल, चारों ओर फैला हुआ; dynamic.
हे वृत्र के शोषण करने वाले पराक्रमी इन्द्रदेव! तुम अनेक धन देने वाले के रूप में यजमानों में विख्यात हो। तुम हमको धन का अधिकारी बनाओ।
Hey slayer of Vratr dynamic Indr Dev! You are known for your habit of donating lavishly. Share money with us.
प्र ते बभ्रु विचक्षण शंसामि गोषणो नपात्। माभ्यां गा अनु शिश्रथः
हे प्राज्ञ इन्द्र देव! हम आपके पिङ्गलवर्ण अश्व द्वय की प्रशंसा करते हैं। हे गोप्रद! आप स्तोताओं का विनाश नहीं करते। आप इस अश्व द्वय द्वारा हमारी गौओं को नष्ट न करें।[ऋग्वेद 4.32.22]
हे मेधावी इन्द्रदेव ! हम तुम्हारे लाल रंग वाले दोनों अश्वों की प्रार्थना करते हैं। तुम धेनुओं का दान प्रदान करने वाले हो। तुम वंदना करने वालों को नष्ट नहीं करते। तुम अपने दोनों अश्वों द्वारा हमारी गायों को कष्ट न देना।
Hey intelligent Indr Dev! We appreciate you red coloured horses. Hey donor of cows, you never destroy your worshipers. Use these horses to protect our cows.
कनीनकेव विद्रधे नवे द्रुपदे अर्भके। बभ्रु यामेषु शोभेते
हे इन्द्र देव! दृढ़, नव और क्षद्र द्रुमाख्य स्थान में स्थित कमनीय शाल भञ्जिका द्वय (पुतलिका) के तुल्य आपके पिङ्गल वर्ण दोनों घोड़े यज्ञ में शोभा पाते हैं।[ऋग्वेद 4.32.23]
हे इन्द्र देव! जाने योग्य मार्ग में जैसे लाल वर्ण के दो अश्व शोभा पाते हैं, उसी प्रकार स्थिरता नवीन खूंटे के समान कार्यों में दृढ़ स्त्री-पुरुष रूप यजमान सुशोभित होते हैं।
Hey Indr Dev! The way your red coloured horses are gracious over the movable road, the men & women too are gracious in the Yagy.  
अरं म उस्त्रयाम्णेऽरमनुस्त्रयाम्णे। बभ्रु यामेष्वस्त्रिधा
हे इन्द्र देव! हम जब बैलों से युक्त रथ द्वारा गमन करें अथवा जब पैरों द्वारा गमन करें, तब आपके अहिंसक तथा पिङ्गल वर्ण अश्व द्वय हमारे लिए मंगलकारी हों।[ऋग्वेद 4.32.24]
हे इन्द्र देव! जब हम बैलों से जुते रथ में बैठकर चलें या पैदल यात्रा करें तब तुम्हारे हिंसा रहित लाल रंग वाले दोनों घोड़े हमारे लिए सुखकारी हों।
Hey Indr Dev! Let your red coloured horses be helpful to us when we walk on foot or travel in the charoite deploying oxen.(26.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- ऋभुगण,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र ऋभुभ्यो दूतनिव वाचमिष्य उपस्तिरे श्वैतरीं धेनुमीळे।
ये वातजूतास्तरणिभिरेवैः परि द्यां सद्यो अपसो बभूवुः
हम याजक गण ऋभुओं के निकट दूत के तुल्य स्तुति वाक्य प्रेरित करते हैं। हम उनके निकट सोम उपस्तरण के लिए पयोयुक्त गौ की याचना करते हैं। ऋभुगण वायु के समान गमन करने वाले है। वे जगत् के उपकार जनक कर्म को करने वाले हैं। वे वेग से जाने वाले घोड़ों द्वारा अन्तरिक्ष को क्षण मात्र में परिव्याप्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.33.1]
हम यजमान ऋभुगण के लिए दूत के समान वंदना वाणी को प्रेरित करते हैं। हम उनके समीप सोम उपस्थित करने हेतु दुग्ध वाली गौओं की विनती करते हैं। ऋभुगण पवन के समान चलने वाले तथा संसार का हित करने वाले कार्यों को करते हैं। वे अपने वेगवान घोड़ों से पल भर में अंतरिक्ष को विद्यमान करते हैं।
We, the hosts, Ritviz express ourselves as a messenger, to the Ribhu Gan, reciting prayers. We request them to grant us cows yielding milk. Ribhu Gan moves as fast as air. They preform deeds pertaining to the welfare-benefit of the universe-world. Their horses pervade the space with the blink of eye.
यदारमक्रन्नृभवः पितृभ्यां परिविष्टी वेषणा दंसनाभिः।
आदिद्देवानामुप सख्यमायन्धीरासः पुष्टिमवहन्मनायै
जब ऋभुओं ने माता-पिता को परिचर्या द्वारा युवा किया एवं चमस निर्माणादि अन्य कार्य करके वे अलंकृत हुए, तब इन्द्रादि देवों के साथ उन्होंने उसी समय मित्र-लाभ किया। वीर ऋभुगण प्रकृष्ट मनस्वी हैं। वे यजमानों के लिए पुष्टि धारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.33.2]
जब ऋभुगण ने अपनी माता को युवावस्था दी और चमस बनाने आदि कार्यों को करते हुए यशवान हुए तब उसी समय उनकी मित्रता इंद्रादि देवताओं के साथ हो गई। वे मनस्वी एवं धैर्यवान हैं तथा यजमान के लिए पराक्रम धारण करते हैं।
मनस्वी :: चिन्तन शील, विचार शील; intelligent person, thoughtful person, contemplative person.
Ribhu Gan granted youth to their parents, developed Chamas and gained fame & honours. They gained -enjoyed the friendship of the demigods-deities. They are thoughtful and have patience. The rise-possess valour to protect the devotees, Ritviz.
पुनर्ये चक्रुः पितरा युवाना सना यूपेव जरणा शयाना।
ते वाजो विभ्वाँ ऋभुरिन्द्रवन्तो मधुप्सरसो नोऽवन्तु यज्ञम्
ऋभुओं ने यूप काष्ठ के तुल्य जीर्ण और लेटे हुए अपने माता-पिता को नित्य युवा किया। बाज विभु और ऋभु इन्द्र देव के साथ सोम पान करके हम लोगों के यज्ञ की रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.33.3]
ऋभुगणों ने ही यूप के समान जीर्ण और लुढ़के पड़े हुए माता-पिता को तरुणाई प्रदान की। वे शक्तिशाली और ऋभु इन्द्रदेव के साथ सोमपान करते हुए हमारे अनुष्ठान के रक्षक हों।
They made their parents younger day by day, who were lying like the dead log. Let Vibhu & Ribhu Gan drink Somras along with Indr Dev and protect-shield our Yagy.
यत्संवत्समृभवो गामरक्षन्यत्संवत्समृभवो मा अपिंशन्।
यत्संवत्समभरन्भासो अस्यास्ताभिः शमीभिरमृतत्वमाशुः
ऋभुओं ने संवत्सर पर्यन्त मृतक गौ का पालन किया। ऋभुओं ने उस गौ के माँस-शरीर को संवत्सर पर्यन्त अवयव युक्त किया एवं संवत्सर पर्यन्त उसके शरीर के सौन्दर्य की रक्षा की। इन सकल कार्यों द्वारा उन्होंने देवत्व को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 4.33.4]
ऋभुगण ने एक वर्ष तक मृत धेनु की सेवा की। उन्होंने उस धेनु के शरीर को अवयवों से सम्पन्न किया और वर्ष भर उनकी सुरक्षा की। अपने इन कर्मों से वे देवत्व को ग्रहण कर सके।
For a year the Ribhus preserved the dead cow & invested it with flesh & other organs, continued its beauty they obtained by their acts of immortality.
The Ribhu Gan nursed-preserved the dead cow for a year and produced flesh and other organs in her. They attained divinity by virtue of this act.
ज्येष्ठ आह चमसा द्वा करेति कनीयान्त्रीन्कृणवामेत्याह।
कनिष्ठ आह चतुरस्करेति त्वष्ट ऋभवस्तत्पनयद्वचो वः
ज्येष्ठ ऋभु ने कहा, “एक चमस को दो करेंगे।" उसके अवरज विभु ने कहा, "तीन करेंगे।" उसके कनिष्ठ वाज ने कहा, “चार प्रकार से करेंगे"। हे ऋभुओं! आपके गुरु त्वष्टा ने इस चतुष्करण रूप आपके वचन को अङ्गीकार किया।[ऋग्वेद 4.33.5]
बड़े ऋभु ने एक चमस को दो करने की कामना प्रकट की। बीच के ऋभुगण ने तीन करने की और छोटे ऋभु ने चार करने को कहाँ। हे ऋभुगण ! तुम्हारे मरु त्वष्टा ने इस तुम्हारी "चार करने" वाली बात को स्वीकार कर लिया।
The eldest Ribhu said that they would convert one Chamas to two. The second-middle one said that they world make three Chamas out of one. The youngest said that they would convert it into four. Twasta as Guru accepted their plea.
सत्यमूचुर्नर एवा हि चक्रुरनु स्वधामृभवो जग्मुरेताम्।
विभ्राजमानांश्चमसाँ अहेवावेनत्त्वष्टा चतुरो ददृश्वान्
मनुष्य रूप ऋभुओं ने सत्य कहा; क्योंकि उन्होंने जैसा कहा, वैसा किया। इसके अनन्तर ऋभु गण तृतीय सवन गत स्वधा के भागी हुए। दिवस के तुल्य दीप्तिमान चार चमसों को देखकर त्वष्टा ने उसकी कामना की और उसे अङ्गीकार किया।[ऋग्वेद 4.33.6]
उस पुरुष रूपी वाले ऋभुओं ने जो कहा, वही किया। उनका कथन सत्य को प्राप्त हुआ। फिर वे ऋभुगण तीसरे सवन में स्वधा अधिकारी बने। दिन के समान ज्योतिवान चार चमसों को देखकर त्वष्टा ने कामना करते हुए प्राप्त किया।
Ribhu Gan in the form of humans, did what they said. Thereafter, they became entitled-eligible for the third  session-evening Swadha. Twasta accepted the four shinning Chamas.
द्वादश द्यून्यदगोह्यस्यातिथ्ये रणन्नृभवः ससन्तः।
सुक्षेत्राकृण्वन्ननयन्त सिन्धू न्ध न्वातिष्ठन्नोषधीर्निम्नमापः
अगोपनीय सूर्य के घर में जब ऋभु गण आर्द्रा से लेकर वृष्टि कारक बारह नक्षत्रों तक अतिथि रूप से सुख पूर्वक निवास करते हैं, तब वे वृष्टि द्वारा खेतों को शस्य सम्पन्न करते और नदियों को प्रेरित करते हैं। जल विहीन स्थान में औषधियाँ उत्पन्न होती हैं और नीचे की ओर जल जमा होता है।[ऋग्वेद 4.33.7]
प्रत्यक्ष प्रकाशवान सूर्य लोक में जब वे ऋभुगण आर्द्रा से वर्षा कारक बारह नक्षत्रों तक अतिथि रूप में रहते हैं। तब वे वर्ष द्वारा कृषि को धान्यपूर्ण करते और नदियों को बहने वाला बनाते हैं। जल रहित स्थान में दवाइयाँ पैदा होती और निचले स्थानों में जल भरा रहता है।
When Ribhu Gan reside in the house of Sun, starting from Adra- constellation & the rain causing 12 constellations comfortably, they make the earth green with vegetation and inspire the rivers. Medicines grow over those places where there in no water (stagnations) and water is stored in low lying regions.
रथं ये चक्रुः सुवृतं नरेष्ठां ये धेनुं विश्वजुवं विश्वरूपाम्।
त आ तक्षत्वृभवो रयिं नः स्ववसः स्वपसः सुहस्ताः
ऋभु गण, जिन्होंने सुचक्र और चक्र विशिष्ट रथ का निर्माण किया, जिन्होंने विश्व की प्रेरयित्री और बहुरूपा गायों को उत्पन्न किया, वे सुकर्मा, अन्न युक्त और सुहस्त ऋभु हम लोगों को धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.33.8]
जिन्होंने सुन्दर पहियों वाले रथ का निर्माण किया था, जिन्होंने संसार को शिक्षित करने वाले तथा अनेक रूपिणी धेनु को प्रकट किया था, वे श्रेष्ठतम कर्म वाले सुन्दर अन्नवास और सिद्ध ऋभुगण हमारे धन का सम्पादन करें।
Let Ribhu Gan engaged in virtuous, pious endeavours, who created the charoite with beautiful wheels and cows, grant us wealth along with food grains.
अपो ह्येषामजुषन्त देवा अभि क्रत्वा मनसा दीध्यानाः।
वाजो देवानामभवत्सु कर्मेन्द्रस्य ऋभुक्षा वरुणस्य विभ्वा
इन्द्र देव आदि देवों ने वर प्रदान रूप कर्म द्वारा एवं प्रसन्न हृदय से देदीप्यमान होकर इन ऋभुओं के अश्व, रथ आदि निर्माण रूप कर्म को स्वीकार किया। शोभन कर्म करने वाले कनिष्ठ वाज सभी देवों के सम्बन्धी हुए, ज्येष्ठ ऋभु इन्द्र देव के सम्बन्धी हुए और मध्यम विभु वरुण देव के सम्बन्धी हुए।[ऋग्वेद 4.33.9]
इन्द्रादि देवगणों ने वर देने जैसे कर्म द्वारा तथा प्रसन्न चित्त हृदय से तेजस्वी होकर ऋभु गण के अश्व, रथ आदि के निर्माण कार्य को स्वीकार किया । श्रेष्ठ कर्म वाले छोटे-बड़े ऋभु इन्द्र से सम्बन्धित हुए।
Demigods-deities including Indr Dev, accomplishing desires, accepted the endeavours of Ribhu Gan like creation of charoite, horses etc. and became relatives. Young Vaj and other demigods-deities became relatives, the middle-second Vibhu became relative of Varun Dev.
ये हरी मेधयोक्था मदन्त इन्द्राय चक्रुः सुयुजा ये अश्वा।
ते रायस्पोषं द्रविणान्यस्मे धत्त ऋभवः क्षेमयन्तो न मित्रम्
हे ऋभुओं! जिन्होंने अश्व द्वय को प्रज्ञा तथा स्तुति द्वारा बलिष्ठ किया, जिन्होंने उस अश्व द्वय को इन्द्र के लिए सुयोजमान किया, वही ऋभुगण हम लोगों को मंगलकांक्षी मित्र के तुल्य धन, पुष्टि गौ आदि धन तथा सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.33.10]
जिन ऋभुओं ने दो अश्वों को वृद्धि और प्रशंसा के माध्यम से पुष्ट किया, वह ऋभु हमारे लिए मंगलकारी सखा के समान धन, गौ, जल इत्यादि और सभी सुख प्रदान करें।
The Ribhus who who created and grew the twin horses and made them strong for Indr Dev, should become our friend, grant us wealth, nourished cows and comforts-luxuries.
इदाह्नः पीतिमुत वो मदं धुर्न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवाः।
ते नूनमस्मे ऋभवो वसूनि तृतीये अस्मिन्त्सवने दधात
चमस आदि निर्माण के अनन्तर तृतीय सवन में देवों ने आप लोगों को सोमपान तथा तदुत्पन्न हर्ष प्रदान किया। तपो युक्त व्यक्ति को छोड़कर दूसरे के मित्र देव गण नहीं होते। हे ऋभुओं! इस तृतीय सवन में आप निश्चय ही हम लोगों को ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.33.10]
चमस आदि के बनने के बाद देवताओं ने तीसरे सवन में तुम्हारे लिए सोमपान से रचित हर्ष प्रदान किया था। देव गण तपस्वी के अतिरिक्त किसी अन्य के सखा नहीं बनते हैं। हे ऋभुओं! इस तीसरे सवन में तुम हमारे लिए अवश्य ही फल प्रदान करो।
The demigods-deities granted pleasure-enjoyment to Ribhu Gan, when they created Chamas in the third segment of the day-evening and offered them Somras. Hey Ribhu Gan! During this third segment of the day, you will definitely grant us grandeur.(29.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- ऋभुगण,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
ऋभुर्विभ्वा वाज इन्द्रो नो अच्छेमं यज्ञं रत्नधेयोप यात।
इदा हि वो धिषणा देव्यह्नामधात्पीतिं सं मदा अग्मता वः
हे ऋभु! विभु, वाज और इन्द्र देव, रत्न प्रदान करने के लिए आप लोग हमारे इस यज्ञ में पधारें, क्योंकि अभी दिन में वाक्देवी आप लोगों को सोमाभिषव सम्बन्धी प्रीति प्रदान करती हैं। इसलिए सोम जनित हर्ष आप लोगों के साथ संगत हों।[ऋग्वेद 4.34.1]
संगत :: अनुकूल, मुताबिक़, अविस्र्द्ध, तर्कयुक्त, सिलसिलेवार, अविरोधी, प्रासंगिक, उचित, अनुरूप, योग्य, प्रस्तुत; accompaniment, compatible, consistent, relevant.
हे ऋभु, विभु, बाज और इन्द्र देव! धन-धौलत के लिए हमारे इस अनुष्ठान में विराजो। अभी दिन में वाणी रूप वंदना तुम्हारे लिए सोम सिद्ध करने सम्बन्धी स्नेह प्रदान करती हैं। सोम से रचित हुई तुम्हारे साथ सुसंगत हो।
Hey Ribhu, Vibhu, Vaj & Indr Dev! Join our Yagy to grant jewels, gems. Vak Devi is affectionate with you during the day & help you extract Somras. Let the pleasure-happiness, enjoyment by virtue of Somras be compatible with you.
विदानासो जन्मनो वाजरत्ना उत ऋतुभिर्ऋभवो मादयध्वम्।
सं वो मदा अग्मत सं पुरंधिः सुवीरामस्मे रयिमेरयध्वम्
हे अन्न द्वारा शोभमान ऋभु गण! पहले आप लोगों का जन्म मनुष्यों में हुआ, अब देवत्व प्राप्ति को जान करके आप लोग देवों के साथ हर्षित होवें। हर्ष कर सोम और प्रार्थना आप लोगों के लिए एकत्र हुए हैं। आप लोग हमारे लिए पुत्र-पौत्र के लिए विशिष्ट धन प्रेरित करें।[ऋग्वेद 4.34.2]
हे ऋभुओं। तुम अन्न के द्वारा सुशोभित हो। पूर्व में तुम पुरुष थे अब देवता बने हो। इस बात का ध्यान करते हुए देवताओं को समीप पुष्टि को पाओ। हर्षकारी सोम और स्तोत्र तुम्हारे लिए सुसंगत हुए हैं। तुम हमारे लिए पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन प्रदान करो।
सुशोभित :: सजा हुआ, संवारा हुआ, अलंकृत, विभूषित, मंडित, सुंदर, सुखद, शोभायमान, सुश्री, रमणीय; graceful, adorned, inwrought. 
Hey Ribhu Gan! You should be adorned with food grains. Initially you got birth as humans and now you have attained divinity granting you pleasure. You have gathered for Somras and prayers. Grant riches for us & our sons, grandsons.
अयं वो यज्ञ ऋभवोऽकारि यमा मनुष्वत्प्रदिवो दधिध्वे।
प्र वोऽच्छा जुजुषाणासो अस्थुरभूत विश्वे अग्रियोत वाजाः
हे ऋभुओं! आप लोगों के लिए यह यज्ञ किया गया है। मनुष्य के तुल्य दीप्तिशाली होकर आप लोग इसे धारित करें। सेवमान सोम आप लोगों के निकट रहता है। हे वाजगण! आप लोग ही प्रथम उपास्य है।[ऋग्वेद 4.34.3]
हे ऋभुगण ! यह हवन तुम्हारे लिए किया गया है तुम इसे प्राणी के समान दीप्तिवान होकर करो। सेवा कारक सोम तुम्हारे निकट उपस्थित हैं। तुम हमारे मुख्य साध्य हो।
Hey Ribhu Gan! This Yagy has been organised for you. Become radiant-aurous and support it. Somras for drinking is available with you. Hey Vaj Gan! You deserve first worship.
अभूदु वो विद्यते रत्नधेयमिदा नरो दाशुषे मर्त्याय।
पिबत वाजा ऋभवो ददे वो महि तृतीयं सवनं मदाय
हे नेतृगण! आपके अनुग्रह से अभी इस तृतीय सवन में दान योग्य रत्न परिचर्याकारी, हव्य दाता याजक गण के लिए है। हे वाजगण! हे ऋभुगण! आप लोग पान करें। तृतीय सवन में हर्ष के लिए प्रभूत सोमरस हम आप लोगों के लिए प्रदत्त करते हैं।[ऋग्वेद 4.34.4]
हे अग्रगण्य ऋभुओं! हविदाता यजमान के लिए इस तीसरे सवन में तुम्हारे कृपा दृष्टि से दान योग्य रत्न ग्रहण हो। हम तुम्हारे लिए पुष्टिदायक सोम प्रदान करते हैं। तुम उसको ग्रहण करो।
Hey senior Ribhu Gan! During this third segment of the day-evening, jewels-gems are meant for the Ritviz to donate-charity. Hey Ribhu Gan! Hey Vaj Gan! Drink Somras offered by us for your pleasure-happiness.
आ वाजा यातोप न ऋभुक्षा महो नरो द्रविणसो गृणानाः।
आ वः पीतयोऽभिपित्वे अह्नामिमा अस्तं नवस्व इव ग्मन्
हे वाजो, हे ऋभुक्षाओ! आप लोग नेता है। महान धन की प्रार्थना करते हुए आप लोग हमारे निकट आगमन करें। दिवस की समाप्ति में अर्थात तृतीय सवन में जिस प्रकार से नव प्रसवा गौएँ घर की ओर जाती हैं, उसी प्रकार यह सोमरस का पान आप लोगों के निकट आगमन करता है।[ऋग्वेद 4.34.5]
ऋभुगण, श्रेष्ठ ऐश्वर्य की प्रशंसा करते हुए तुम हमारे समीप आओ। दिन की समाप्ति पर जैसे नवप्रसूता गायें अपने स्थान को वापस लौटती हैं, उसी प्रकार यह सोम रस तुम्हारे पीने के लिए तुम्हारी ओर आता है।
Hey Vaj! Hey Ribhu Gan! You are great. Come to us appreciating great wealth & grandeur. Come to the hosts-household like the cows laying the calf & who return home in the evening; for drinking Somras.
आ नपातः शवसो यातनोपेमं यज्ञं नमसा हूयमानाः।
सजोषसः सूरयो यस्य च स्थ मध्वः पात रत्नधा इन्द्रवन्तः
हे बलवानों! स्तोत्र द्वारा आहूत होकर आप लोग इस यज्ञ में आगमन करें। आप लोग इन्द्र देव के साथ प्रीत होते हैं और मेधावी हैं; क्योंकि आप लोग इन्द्र देव के सम्बन्धी हैं। आप लोग इन्द्र देव के साथ रत्न प्रदान करते हुए मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 4.34.6]
हे शक्ति से परिपूर्ण ऋभुओ। श्लोक द्वारा पुकारे जाने पर तुम इस अनुष्ठान पधारो। तुम इन्द्र देव के मित्र रूपी और मतिवान हो क्योंकि तुम इन्द्र देव के सम्बन्धी तुम मधुर सोमपान को इन्द्र देव के संग पान करते हुए रत्नादि धन प्रदान करो।
Hey mighty Ribhu Gan! On being invoked by the recitation of Strotr, join this Yagy. You are Indr Dev's affectionate, relatives & intelligent. Provide us jewels-gems & enjoy Somras.
सजोषा इन्द्र वरुणेन सोमं सजोषाः पाहि गिर्वणो मरुद्भिः।
अग्रेपाभिर्ऋतुपाभिः सजोषा ग्नास्पत्नीभी रत्नधाभिः सजोषाः
हे इन्द्र देव! आप रात्रयभिमानी वरुण देव के साथ समान प्रीति युक्त होकर सोमरस का पान करें। हे स्तुति योग्य इन्द्र देव! आप मरुतों के साथ संगत होकर सोमपान करें। प्रथम पानकारी ऋतुओं के साथ देव-पत्नियों के साथ और रत्न देने वाले ऋभुओं के साथ सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 4.34.7]
हे इन्द्र देव! वरुण सहित सम्यक दीप्तिवान होकर सोम पियो। पहले पीने वाले ऋभुओं, देवांगनाओं तथा रत्नादात्री सामर्थ्यो सहित सोमपान करो।
Hey worship deserving Indr Dev! Enjoy Somras with Varun Dev, Marud Gan, goddesses, wives of the demigods-deities & Ribhu Gan who provide us jewels-gems.
सजोषस आदित्यैर्मादयध्वं सजोषस ऋभवः पर्वतेभिः।
सजोषसो दैव्येना सवित्रा सजोषसः सिन्धुभी रत्नधेभिः
हे ऋभुओं! आदित्यों के साथ संगत होकर आप हर्षित होवें, पर्व में अर्चमान देव विशेष के साथ संगत होकर आप हर्षित होवें, देवों के हितकर सविता देव के साथ संगत होकर हर्षित होवें और रत्नदाता नद्यभिमानी देवों के साथ संगत होकर हर्षित होवें।[ऋग्वेद 4.34.8]
हे ऋभुओं! आदित्यों सहित मिलकर आनन्द को प्राप्त हो जाओ। उपासनीय देवताओं को ग्रहण करो। पर्वत के तुल्य अचल एवं रत्नदाता देवों के संग मिलकर हृष्ट-पुष्ट हो जाओ।
Hey Ribhu Gan! You should be happy in the company of Adity Gan, specific demigods-deities of the festivals, Savita Dev & the deities as great as the mountains who grant gems-jewels.
ये अश्विना ये पितरा य ऊती धेनुं ततक्षुर्ऋभवो ये अश्वा।
ये अंसत्रा य ऋधग्रोदसी ये विभ्वो नरः स्वपतानि चक्रुः
जिन ऋभुओं ने अपने रक्षण साधनों से अश्विनी कुमारों को सक्षम बनाया, जिन्होंने जीर्ण माता-पिता को युवा किया, जिन्होंने धेनु और अश्व का निर्माण किया, जिन्होंने देवों के लिए अंसत्रा कवच निर्माण किया, जिन्होंने द्यावा-पृथ्वी को पृथक किया, जो व्याप्त एवं नेता हैं और जिन्होंने सुन्दर अपत्य प्राप्ति साधन कार्य रूप किया, वे सर्व प्रथम सोमपान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 4.34.9]
जिन्होंने अश्विनी कुमारों को बनाने आदि कर्मों से अपने प्रति स्नेहवान बनाया, जिन्होंने जीर्ण माता-पिता को तारुण्य किया, जिन्होंने गौ और घोड़े को निर्मित किया, जिन्होंने देवों के लिए उसका कवच बनाया। जिन्होंने आकाश और धरती को अलग किया, जिन्होंने सुन्दर से तान उत्पन्न करने वाला कार्य किया और जो सबके नेता रूप हैं, वे ऋभु मध्यम पान करने वाले हैं।
The Ribhu Gan, who made Ashwani Kumars capable, made their parents young, created cows & horses, produced shields for the demigods-deities, separated the sky & earth, who pervades each & every place & works as means for the off springs; are going to drink Somras first of all. 
ये गोमन्तं वाजवन्तं सुवीरं रयिं धत्थ वसुमन्तं पुरुक्षुम्।
ते अग्रेपा ऋभवो मन्दसाना अस्मे धत्त ये च रातिं गृणन्ति
हे ऋभुओं! जो गोविशिष्ट, अन्नविशिष्ट, पुत्र-पौत्रादि विशिष्ट, निवास योग्य घर आदि धनों से युक्त तथा बहुत अन्न वाले धन को धारित करते हैं एवं जो धन की प्रशंसा करते हैं, वे प्रथम सोमपानकारी ऋभुगण हर्षित होकर हम लोगों को धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.34.10]
गौ, अन्न, संतान तथा निवास योग्य ही वह व्यक्ति है जो अनेक अन्न वाले, धनों के पालक हैं, जो धनों की प्रशंसा करने वाले हैं। वे ऋभुगण प्रथम सोमपान के द्वारा हृष्ट-पुष्ट होकर हमें धन ऐश्वर्य प्रदान करें।
Let Ribhu Gan drink Somras first of all, become healthy, happy with us and provide us riches. They possess cows, food grains, sons-grandsons, residence, various kinds of riches.
नापाभूत न वोऽतीतृषामानिःशस्ता ऋभवो यज्ञे अस्मिन्।
समिन्द्रेण मदथ सं मरुद्भिः सं राजभी रत्नधेयाय देवाः
हे ऋभुओं! आप लोग चले न जाना। हम आप लोगों को अत्यन्त तृषित नहीं करेंगे। हे देवो! आप लोग अनिन्दित होकर रमणीय धन प्रदान करने के लिए इस यज्ञ में इन्द्र देव के साथ हर्षित हों, मरुतों के साथ हर्षित होवें और अन्यान्य दीप्तिमान देवों के साथ हर्षित हों।[ऋग्वेद 4.34.11]
हे ऋभु गण! हमसे दूरस्थ मत जाना। तुम हमें अधिक समय वृषित न रहने देना। तुम सुन्दर धन देने के लिए इन्द्रदेव के साथ इस अनुष्ठान में हर्ष को ग्रहण होओ। मरुद्गण तथा अन्य तेजस्वी देवों के साथ पुष्टतम हो जाओ।
Hey Ribhu Gan! Do not desert us. We will not trouble-bother you. Hey demigods! You should be happy-pleased with us along with Indr Dev, several demigods-deities and grant riches-wealth for the Yagy.(31.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- ऋभुगण,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
इहोप यात शवसो नपातः सौधन्वना ऋभवो माप भूत।
अस्मिन्हि वः सवने रत्नधेयं गमन्त्विन्द्रमनु वो मदासः
हे बल के पुत्र, सुधन्वा के पुत्र ऋभुओं! आप सब इस तृतीय सवन में पधारें, अपगत न होवें। इस सवन में मदकर सोम रत्नदाता इन्द्र देव के अनन्तर आप लोगों के निकट गमन करें।[ऋग्वेद 4.35.1]
हे सुधन्वा के बलशाली पुत्रों! इस तृतीय सवन में यहाँ पधारो, कहीं अन्य विचरण मत करो। दृष्टि कारक सोम इस सवन में, रत्न दान करने वाले इन्द्र देव के पश्चात तुम्हारे सम्मुख आयें।
Hey Ribhu Gan, son of Sudhanva & grand son of Bal! Come here in the third segment of the day-evening. Do not move else where. Let Som come to you after the donor of jewels-gems Indr Dev.
आगन्नृभूणामिह रत्नधेयमभूत्सोमस्य सुषुतस्य पीतिः।
सुकृत्यया यत्स्वपस्यया चँ एकं विचक्र चमसं चतुर्धा
ऋभुओं का रत्न दान इस तृतीय सवन में मेरे निकट आवें; क्योंकि आप लोगों ने शोभन हस्त व्यापार द्वारा और कर्म की इच्छा द्वारा एक चमस को चार प्रकार से विनिर्मित किया है एवं अभिषुत सोमरस का पान किया।[ऋग्वेद 4.35.2]
ऋभुओं के द्वारा दिये जाने वाले रत्नों का दान इन तीसरे सवन में मेरे नजदीक पधारें। हे ऋभुगण! तुमने अपने हाथ की कला के माध्यम से एक चमस के चार बना दिये थे और सुसिद्ध सोम को पिया था।
Let the impact of donation of jewels-gems by Ribhu Gan, show its impact in the evening, since they created 4 Chamas out of one by virtue of your skills and drank Somras.
व्यकृणोत चमसं चतुर्धा सखे वि शिक्षेत्यब्रवीत।
अथैत वाजा अमृतस्य पन्थां गणं देवानामृभवः सुहस्ताः
हे ऋभुओं! आप लोगों ने चमस को चार प्रकार का बनाया एवं कहा कि, "हे मित्र अग्नि देव! अनुग्रह करें"। अग्नि देव ने आप लोगों से कहा, "हे वाजगण! हे ऋभुगण! आप लोग कुशल हस्त है। आप लोग अमरत्व पथ में अर्थात स्वर्ग मार्ग में गमन करें।”[ऋग्वेद 4.35.3]
हे ऋभुगण! तुमने एक चमस के चार करते हुए कहा था, हे मित्र रूप अग्ने! दया करो। तब अग्नि ने उत्तर दिया था, हे ऋभुओं! तुम हस्त कारोबार में मेधावी हो। तुम अमरत्व प्राप्ति के मार्ग पर जाओ।
Hey Ribhu Gan! You created 4 Chamas out of one and requested friendly Agni Dev to oblige you. Agni Dev told you, "Hey Vaj Gan! Hey Ribhu Gan"! You are skilled. You should attain immortality.
किंमयः स्विच्चमस एष आस यं काव्येन चतुरो विचक्र।
अथा सुनुध्वं सवनं मदाय पात ऋभवो मधुनः सोम्यस्य
जिस चमस को कौशलपूर्वक चार प्रकार का बनाया, वह चमस किस प्रकार का था? हे ऋत्विकों! आप लोग हर्ष के लिए सोमाभिषव करें। हे ऋभुओं! आप लोग मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 4.35.4]
जिस चमस की चालाकी पूर्वक चार बनाये गये थे, वह चमस कैसा था? हे ऋत्विजों! आनन्द के लिए सोम को सिद्ध करो! हे ऋभुओं! तुम मधुर सोम का पान करो।
What was the shape, size of the Chamas that was converted by you into four, skilfully?! Hey Ritviz! Drink Somras happily. Hey Ribhu Gan! Drink the sweet-tasty Somras.
शच्याकर्त पितरा युवाना शच्याकर्त चमसं देवपानम्।
शच्या हरी धनुतरावतष्टेन्द्रवाहावृभवो वाजरत्नाः
हे रमणीय सोम वाले ऋभुओं! आप लोगों ने कर्म द्वारा माता-पिता को युवा बनाया, कर्म द्वारा चमस को देवपान के योग्य चतुर्था किया और कर्म द्वारा शीघ्र गामी इन्द्र देव को वहन करने वाले अश्व द्वय को सम्पादित किया।[ऋग्वेद 4.35.5]
हे उत्तम सोम युक्त ऋभुगण! तुमने कला द्वारा अपने माता पिता को तारुण्य दिया। एक चमस के चार बनाये और इन्द्र के शीघ्र चलने वाले दोनों अश्वों को प्रकट किया।
Hey possessor of descent Somras Ribhu Gan! You made your parents young by using your skills, expertise & knowledge. You converted one Chamas into four by virtue of expertise. You evolved the fast moving horse duo for Indr Dev. 
यो वः सुनोत्यभिपित्वे अह्नां तीव्रं वाजासः सवनं मदाय।
तस्मै रयिमृभवः सर्ववीरमा तक्षत वृषणो मन्दसानाः
हे ऋभुओं! आप लोग अन्नवान है। जो याजक गण आप लोगों के उद्देश्य से हर्ष के लिए दिवावसान में तीव्र सोमरस का अभिषव करता है, हे फलवर्षी ऋभुओं! आप लोग हर्षित होकर उन याजकों को हर प्रकार से पराक्रमी, उत्तम संतानों से युक्त ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.35.6]
ऋभुगण! तुम अन्न के स्वामी हो। जो यजमान तुम्हारे आनन्द के लिए दिवस के अन्तिम दिन के अंतिम पहर को छानता है, उस यजमान के लिए तुम उत्तम अभीष्ट वर्षी होते हुए अनेक संतान परिपूर्ण धन के देने वाले बनों।
Hey Ribhu Gan! You possess food grains. You extract Somras for the public at the end of the day. Hey accomplishments granting-fulfilling Ribhu Gan! Become happy-pleased and grant versatile progeny & grandeur to the Ritviz.
प्रातः सुतमपिबो हर्यश्व माध्यंदिनं सवनं केवलं ते।
समृभुभिः पिबस्व रत्नधेभिः सखीयों इन्द्र चकृषे सुकृत्या
हे हरि विशिष्ट इन्द्र देव! आप प्रातः सवन में अभिषुत सोमरस का पान करें। माध्यन्दिन सवन केवल आपका ही है। हे इन्द्र देव! आपने शोभन कर्म द्वारा जिसके साथ मित्रता की है, उस रत्नदाता ऋभुओं के साथ आप तृतीय सवन में उनके साथ पान करें।[ऋग्वेद 4.35.7]
हे अश्ववान इंद्र! तुम सुसिद्ध सोम को प्राप्त सवन में पान करो। दिन के मध्यकाल वाला सवन केवल तुम्हारे लिए ही है । हे इन्द्र! अपने श्रेष्ठ कार्य द्वारा तुमने जिनके साथ मित्रता स्थापित की, उन रत्न दान करने वाले ऋभुगण के साथ तीसरे सवन में सोम पान करो।
Hey master of the horses named Hari, Indr Dev! Drink Somras during the first, second & third segment of the day. Drink Somras in the third segment of the day with Ribhu Gan, with whom you became friendly by virtue of your virtuous deeds; who grant jewels-gems. 
ये देवासो अभवता सुकृत्या श्येना इवेदधि दिवि निषेद।
ते रत्नं धात शवसो नपातः सौधन्वना अभवतामृतासः
हे ऋभुओं! आप लोग सुकर्म द्वारा देवता बने। हे बल के पुत्रो! आप लोग श्येन (गृद्ध-विशेष) के तुल्य द्युलोक में प्रतिष्ठित होवें, आप लोग धनदान प्रदान करें। हे सुधन्वा के पुत्रो! आप लोग अमर हुए।[ऋग्वेद 4.35.8]
हे ऋभु गण! तुमने अपने उत्तम कार्यों से देवत्व प्राप्त किया। तुम श्येन के समान क्षितिज में ग्रहण होओ। हे सुधन्वा पुत्रों! तुम अमरत्व ग्रहण कर चुके हो, हमकों धन प्रदान करो।
Hey son of Sudhanva, Ribhu Gan! You have attained divinity by virtue of your auspicious-virtuous deeds. You should be honoured in the heavens like the Shyen-bird & grant us riches. You have attained immortality.
यत्तृतीयं सवनं रत्नधेयमकृणुध्वं स्वपस्या सुहस्ताः।
तदुद्भवः परिषिक्तं व एतत्सं मदेभिरिन्द्रियेभिः पिबध्वम्
हे सुहस्त ऋभुओं! आप लोग रमणीय सोमदान युक्त तृतीय सवन को शोभन कर्म की इच्छा से प्रयुक्त और प्रसाधित करते हैं, इसलिए आप लोग हर्षित इन्द्रियों के साथ अभिषुत सोमरस का पान करो।[ऋग्वेद 4.35.9]
हे ऋभुओं! तुम महान हस्त कला से सम्पूर्ण हो। तुम सुन्दर सोम से सम्पूर्ण तीसरे सवन को महान कार्यों की कामना से सुसिद्ध करते हो। अतः तुम हर्षित हृदय से सोम का पान करो।
Hey great experts in handicrafts, Ribhu Gan! Enjoy Somras in the third segment of the day with pleasure.(04.04.2023)
तं नो वाजा ऋभुक्षण इन्द्र नासत्या रयिम्।
समश्वं चर्षणिभ्य आ पुरु शस्त मघत्तये
हे वाजगण, हे ऋभुगण, हे इन्द्रदेव, हे अश्विनीकुमारों! आप सब हम प्रार्थना करने वालों को प्रचुर ऐश्वर्य और शक्ति प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 4.37.8]
हे ऋभुओं! हे इन्द्र देव! हे अश्विनी कुमारों ! हम प्रार्थना करने वालों को तुम दान के लिए महान धन और अश्वों के दान की शिक्षा प्रदान करो।
Hey Vaj Gan, Hey Ribhu Gan, Hey Indr Dev and Hey Ashwani Kumars! Grant us sufficient wealth-riches, grandeur responding to our prayers, blessing us.

दधिक्राव्ण इष ऊर्जो महो यदमन्महि मरुतां नाम भद्रम्।
स्वस्तये वरुणं मित्रमग्नि हवामह इन्द्रं वज्रबाहुम्
हम अन्न साधक, बल साधक, महान और स्तोताओं के कल्याण कारक दधिक्रा देव के नाम की प्रार्थना करते हैं। कल्याण के लिए हम वरुण, मित्र, अग्नि और वज्रबाहु इन्द्र देव का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.39.4]
अन्न का साधन करने वाले, प्रार्थना। करने वालों का मंगल करने वाले श्रेष्ठ दधिक्रा देव का नाम संकीर्तन करते हैं। सुख की प्राप्ति के लिए हम मित्र वरुण, अग्नि में व्रज धारण करने वाले इन्द्र देव को आमंत्रित करते हैं।
We worship Dadhikra Dev who is the provider of food grains, great and beneficial to hosts-devotees. We invoke Mitr Dev, Varun Dev, Agni Dev and Indr Dev wielding Vajr.
WIELD :: रखना, चलाना, बरतना, हिलाना, सँभालना, फिराना, प्रबंध करना, काम में लगाना, हाथ लगाना, उपयोग करना; hold, to have and use power, authority, to hold and be ready to use a weapon.
इन्द्रमिवेदुभये विह्वयन्त उदीराणा यज्ञमुपप्रयन्तः।
दधिक्रामु सूदनं मर्त्याय ददथुर्मित्रावरुणा नो अश्वम्
जो युद्ध करने के लिए पराक्रम करते हैं और जो यज्ञ आरम्भ करते हैं, वे दोनों ही इन्द्र देव के तुल्य दधिक्रा देव का आह्वान करते हैं। हे मित्रा-वरुण! आप मनुष्यों के प्रेरक अश्व स्वरूप दधिक्रा देव को हमारे लिए धारित करें।[ऋग्वेद 4.39.5]
जो युद्ध को तैयार करते हैं और जो यज्ञ कर्म करते हैं, वह दोनों ही इन्द्र के समान दधिक्रा देव को आमंत्रित करते हैं। हे मित्रा-वरुण! तुम मनुष्यों को शिक्षा प्रदान करने वाले अश्व के रूप वाले दधिक्रा देव को हमारे लिए धारण करो।
Those who make efforts for the war & those who begin Yagy, both invoke Dadhikra Dev just like Indr Dev. Hey Mitra-Varun! You support Dadhikra Dev-in the form of horse, who inspire humans.
 ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र देव, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्रा को वां वरुणा सुम्नमाप स्तोमो हविष्माँअमृतो न होता।
यो वां हृदि क्रतुमाँ अस्मदुक्तः पस्पर्शदिन्द्रावरुणा नमस्वान्
हे इन्द्र देव, हे वरुण! हमारे द्वारा ज्ञान पूर्वक और विनम्रता पूर्वक उच्चारण किया हुआ कौन-सा स्तोत्र है, जो आपके हृदय को स्पर्श कर सके? हे इन्द्र देव, हे वरुण! अविनाशी और आहुति से युक्त अग्नि देव के तुल्य प्रदिप्त वह स्तोत्र आपके अन्तःस्थल में प्रवेश करे।[ऋग्वेद 4.41.1]
हे इन्द्र देव! हे वरुण! अमरतत्व-ग्रहण होता! अग्नि के तुल्य हवि परिपूर्ण कौन सा श्लोक तुम दोनों की कृपा दृष्टि ग्रहण कर सकता है? वह श्लोक हमारे द्वारा अर्पण हुआ हवियों से परिपूर्ण होकर तुम दोनों के अन्तः करण में प्रवेश करें।
Hey Indr Dev! Hey Varun Dev! Let us know the Strotr learnt by us which touches your heart. Which excellent Shlok can please you like the offerings in imperishable holy fire-Agni Dev?!
इन्द्रा ह यो वरुणा चक्र आपी देवौ मर्त सख्याय प्रयस्वान्।
स हन्ति वृत्रा समिथेषु शत्रूनवोभिर्वा महद्भिः स प्र शृण्वे
हे प्रसिद्ध इन्द्र और वरुण देव! जो मनुष्य हवि लक्षण अन्नवान होकर संख्या के लिए आप दोनों से मित्रता करता है, वह मनुष्य पापों का नाश करता है, युद्ध में शत्रुओं का विनाश करता हैं और महती रक्षा द्वारा प्रख्यात होता है।[ऋग्वेद 4.41.2]
हे इन्द्र, वरुण! तुम दोनों विख्यात हो। जो व्यक्ति पापों का विनाश करने में सक्षम है, वह संग्राम में शत्रु को मार देता है और विशाल रक्षा साधनों द्वारा विख्याति प्राप्त करता है।
Hey famous Indr Dev, Varun Dev! The humans who is friendly with you, makes offerings of food grains; destroys his sins. He kills the enemy in the war and becomes famous under your protection-shelter.
इन्द्रा ह रत्नं वरुणा धेष्ठेत्था नृभ्यः शशमानेभ्यस्ता।
यदी सखाया सख्याय सोमैः सुतेभिः सुप्रयसा मादयैते
हे प्रसिद्ध इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों देव हम स्तोत्र करने वाले मनुष्यों के लिए रमणीय धन देने वाले होवें। यदि आप दोनों परस्पर मित्र हैं और मित्रता के लिए अभिषुत सोमरस तथा उत्तम अन्नों से प्रसन्न हैं, तो ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हो।[ऋग्वेद 4.41.3]
हे प्रख्यात इन्द्र व वरुण! तुम दोनों देवता हम स्तोताओं को सुन्दर धन प्रदान करने वाले बनो। यदि तुम यजमान के मित्र रूप हो सखा भाव लिए सिद्ध किये गये इस सोम रस से पुष्टि को ग्रहण होओ और धन ग्रहण करने वाले बनो।
Hey famous Indr Dev & Varun Dev! You should be able to grant us grandeur, reciting hymns-verses in your honour. If both of you are friends and ready to drink Somras for the sake of friendship and pleased with the excellent grains used for extracting Somras, grant us grandeur.
इन्द्रा युवं वरुणा विद्युमस्मिन्नोजिष्ठमुग्रा नि वधिष्टं वज्रम्।
यो नो दुरेवो वृकतिर्दभीतिस्तस्मिन्मिमाथामभिभूत्योजः
हे उग्र इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों इस शत्रु के ऊपर दीप्त और अतिशय तेजो विशिष्ट वज्र का प्रक्षेप करें। जो शत्रु हम लोगों के द्वारा दुर्दमनीय, अत्यन्त अदाता और हिंसक है, उस शत्रु के विरुद्ध आप दोनों अभिभव कर वज्र का प्रयोग करें।[ऋग्वेद 4.41.4]
हे इन्द्रदेव और वरुण! तुम दोनों विकराल कार्य वाले हो। हमारे शत्रु पर तुम दोनों ही अत्यन्त तेज वाले शस्त्र का प्रहार करो। जो शत्रु अदानशील, हिंसक तथा हमारे दमन किए हुए जाने योग्य नहीं हैं, उस शत्रु के विरुद्ध तुम दोनों उसे पराजित करने वाले शक्ति से हराओ।
Hey furious Indr Dev & Varun Dev! Strike radiant Vajr possessing enormous energy, over this enemy. Defeat the enemies who do not donate, are violent & not qualified to be vanished by us.
इन्द्रा युवं वरुणा भूतमस्या धियः प्रेतारा वृषभेव धेनोः।
सा नो दुहीयद्यवसेव गत्वी सहस्त्रधारा पयसा मही गौः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! बैल जिस प्रकार से गाय से प्रेम करता है, उसी प्रकार आप दोनों स्तुतियों से प्रसन्न होवें। तृणादि का भक्षण करके सहस्र धारा महती गौ जिस प्रकार से दुग्ध दोहन के लिए उपस्थित रहती है, उसी प्रकार से स्तुति रूपा धेनु हम लोगों की अभिलाषाओं को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 4.41.5]
तृणादि को भक्षण कर जैसे गौ दूध देती है, वैसे ही तुम्हारी वंदना रूपी धेनु इच्छाओं को सदैव प्रदान करती रहे।
Hey Indr Dev & Varun Dev! Be happy-affectionate with our hymns, the way the bull loves the cow.  The manner in which the cow yield milk by eating straw, the prayers-worship should accomplish our desires.
तोके हिते तनय उर्वरासु सूरो दृशीके वृषणश्च पौंस्ये।
इन्द्रा नो अत्र वरुणा स्यातामवोभिर्दस्मा परितक्म्यायाम्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों रात्रि में रक्षा युक्त होकर शत्रुओं की हिंसा करने के लिए अवस्थान करें, जिससे हम लोग पुत्र, पौत्र और उपजाऊ भूमि से लाभ प्राप्त कर सकें एवं चिरकाल पर्यन्त सूर्य देव को देख सकें अर्थात् चिरजीवी हों तथा सन्तान उत्पन्न करने की शक्ति को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 4.41.6]
हे इन्द्र और वरुण देव! शीघ्रकाल से तुम दोनों अपने सुरक्षा साधनों से परिपूर्ण होकर शत्रुओं का पतन करने के लिए चल दो जिससे हम सन्तान आदि धन एवं उर्वरा धरा को पास के उम्र पर्यन्त सूर्य के दर्शन करते रहें। हे इन्द्र और वरुण! गाय जैसे बैल को प्रेम करती है वैसे ही तुम दोनों स्तुतियों को प्रेम करने वाले बनो।
Hey Indr Dev & Varun Dev! Move to destroy the enemy at night, well equipped with the means of protections. We wish to survive for long accompanied by our sons & grandsons.
To see Sun means survival for long. Power to produce progeny means having sons & grandsons.
युवामिद्ध्यवसे पूर्व्याय परि प्रभूती गविषः स्वापी।
वृणीमहे सख्याय प्रियाय शूरा मंहिष्ठा पितरेव शंभू
हे इन्द्रदेव और वरुण देव! हम लोग धेनु लाभ की अभिलाषा से आप लोगों के निकट प्राचीन रक्षा की प्रार्थना करते हैं। आप दोनों क्षमता शाली, बन्धु स्वरूप, शूर एवं अतिशय पूजनीय हैं। हम लोग आप दोनों के निकट सुखदायक पिता के तुल्य मित्रता और स्नेह की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 4.41.7]
हे इन्द्र वरुण! गाय की अभिलाषा करने वाले हम तुमसे हमारे पुरातन काल से चले आ रहे पोषण सामर्थ्य की विनती करते हैं। तुम दोनों ही सभी कर्मों को करने वाले हो, सखा रूप एवं अत्यन्त पूजनीय हो। तुम दोनों से हम पुत्र को प्रदान करने वाले पिता के तुल्य अत्यन्त प्रेम प्रदान करने की विनती करते हैं।
Hey Indr Dev & Varun Dev! We pray-request you to grant us cows from ancient times. You are mighty, brave, revered-worship able and brotherly with us. We expect fatherly love & affection from you.
ता वां धियोऽवसे वाजयन्तीराजिं न जग्मुर्युवयूः सुदानू।
श्रिये न गाव उप सोममस्थुरिन्द्रं गिरो वरुणं मे मनीषाः
हे शोभन फल देने वाले देवद्वय! योद्धा जिस प्रकार से संग्राम की कामना करता है, उसी प्रकार से हम लोगों की रत्नाभिलाषिणी स्तुतियाँ आप दोनों की कामना करती हुई रक्षा लाभ के लिए आप दोनों के निकट गमन करते हैं। दध्यादि द्वारा शोभन करने के लिए जिस प्रकार से गौएँ सोम के पास रहती हैं। उसी प्रकार हमारी आन्तरिक स्तुतियाँ इन्द्र देव और वरुण देव के पास जाती हैं।[ऋग्वेद 4.41.8]
हे इन्द्रा-वरुण! तुम दोनों देवता सुन्दर फल प्रदान करने वाले हो। जैसे शक्तिशाली पुरुष युद्ध की कामना करते हैं, वैसे ही हमारी स्तुतियाँ रत्नादि धन की कामना से रक्षा प्राप्ति के लिए तुम्हारे समीप जाती हैं। जैसे गायें दूध दही आदि सुन्दर पदार्थों के लिए तुम्हारे समीप जाती हैं, वैसे ही हमारी हार्दिक वंदनाएँ इन्द्र के समीप पहुँचती हैं।
Hey beautiful reward granting duo! The way a warrior desire to take part in the war, we desirous of jewels-gems recite hymns and move closer to you for safety. The way the cows move to you for milk & curd, our heartiest prayers reach Indr Dev & Varun Dev.
इमा इन्द्रं वरुणं मे मनीषा अग्मन्नुप द्रविणमिच्छमानाः।
उपेमस्थुर्जोष्टार इव वस्वो रघ्वीरिव श्रवसो भिक्षमाणाः
धन-लाभ के लिए जिस प्रकार से सेवक धनवानों के निकट गमन करते हैं, उसी प्रकार हमारी स्तुतियाँ सम्पत्ति लाभ की इच्छा से इन्द्र देव और वरुण देव के निकट गमन करें। भिक्षुक स्त्रियों के तुल्य अन्न की भिक्षा माँगते हुए इन्द्र देव के पास जावें।[ऋग्वेद 4.41.9]
जैसे सेवक गणा धन के लिए धनिकों की सेवा करने को जाते हैं, वैसे ही हमारी वंदनाएँ धन की इच्छा करती और वरुण के निकट जावें। वंदनाएँ अन्न की भीख माँगने वाले भिखारियों के तुल्य इन्द्र देव के पास पहुँचे।
The way the servants move closer to the wealthy, our prayers-hymns reach Indr Dev & Varun Dev for the sake of riches. Let our prayers fruitily like the bagger women, who go to Indr Dev expecting food grains.
अश्व्यस्य त्मना रथ्यस्य पुष्टेर्नित्यस्य रायः पतयः स्याम।
ता चक्राणा ऊतिभिर्नव्यसीभिरस्मत्रा रायो नियुतः सचन्ताम्
हम लोग बिना प्रयत्न के अश्व समूह, रथ समूह, पुष्टि एवं अविचल धन के स्वामी हों। वे दोनों देव गमन शील हों एवं नूतन रक्षा के साथ हम लोगों के अभिमुख अश्व और धन नियुक्त करें।[ऋग्वेद 4.41.10]
वे इन्द्र देव और वरुण दोनों देवता गमनशील हैं। अपने अभिनव रक्षा साधनों के साथ हमारे सम्मुख अश्व आदि पशु धन सम्पादित करें। तब हम बिना प्रयास किये ही अश्वों, रथों, बैलों और स्थिर धनों के अधीश्वर होंगे।
Hey Indr Dev & Varun Dev! You are the master of horses, charoites, might and immovable wealth. You both are dynamic. Appoint-grant horses and new wealth for our safety.
आ नो बृहन्ता बृहतीभिरूती इन्द्र यातं वरुण वाजसातौ।
यद्दिद्यवः पृतनासु प्रक्रीळान्तस्य वां स्याम सनितार ओजः
हे महान इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों महान रक्षा के साथ आगमन करें। जिस अन्न प्रापक युद्ध में शत्रु सेना के आयुध क्रीड़ा करते हैं, उस युद्ध में हम लोग आप दोनों के अनुकम्पा से विजय प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 4.41.11]
हे इन्द्रा-वरुण! तुम सर्वश्रेष्ठ हो। तुम अपने श्रेष्ठ सुरक्षा साधनों से युक्त यहाँ पधारो। अन्न प्राप्ति के जिस युद्ध में शत्रु सेना के हथियार आघात करते हैं, उस संग्राम में हम तपस्वी गण तुम दोनों देवों की कृपा दृष्टि से विजय ग्रहण करें।
Hey mighty-great Indr Dev & Varun Dev! Come to us with your great means of protection. We should be victorious in that war, in which you fight with your weapons for us & which yield food grains.(17.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- त्रसदस्यु, पुरुकुत्सदेवता :- आत्मा, इन्द्र देव, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप।
मम द्विता राष्ट्रं क्षत्रियस्य विश्वायोर्विश्वे अमृता यथा नः।
क्रतुं सचन्ते वरुणस्य देवा राजामि कृष्टेरुपमस्य वव्रेः
हम क्षत्रिय जाति में उत्पन्न (अतिशय बलवान) और सम्पूर्ण मनुष्यों के स्वामी हैं। हमारा राज्य दो प्रकार का है। सम्पूर्ण देवगण जिस प्रकार से हमारे हैं, उसी प्रकार समस्त प्रजा भी हमारी ही है। हम रूपवान और समीपस्थ वरुण देव है। देवगण हमारे यज्ञ की सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 4.42.1]
हम क्षत्रिय हैं। समस्त व्यक्तियों के हम स्वामी हैं। हमारा राष्ट्र दो प्रकार का है। जैसे समस्त देव हमारे हैं, उसी प्रकार समस्त प्रजाजन भी हमारे ही हैं। हम सुन्दर रूप वाले एवं वरुण के समान यशस्वी हैं।
We are born in Kshatriy clan, mighty & king of all humans. Our kingdom is of two types. The manner in which the demigods-deities belong to us, the humans too belong to us. We are beautiful-handsome like Varun Dev. 
Kshatriy is the second Varn in the Hindus. The British referred them as marshal castes. Generally, they are warriors and constitute the army.
अहं राजा वरुणो मह्यं तान्यसुर्याणि प्रथमा धारयन्त।
क्रतं सचन्ते वरुणस्य देवा राजामि कृष्टेरुपमस्य वव्रे:
हम ही राजा वरुण देव हैं। देवगण हमारे लिए ही असुर विघातक श्रेष्ठ बल धारण करते है। हम रूपवान और समीपस्थ वरुण देव हैं। देवगण हमारे यज्ञ की सेवा करते हैं, हम मनुष्य के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 4.42.2]
देवता हमारे यज्ञ की सुरक्षा करते हैं। हम तरुण तेजस्वी सम्राट हैं। देवता हमारे लिए ही असुरों को समाप्त करने वाला बल धारण करते हैं। हम सुन्दर रूप वाले वरुण के अंतकस्थ हैं। हमारे यज्ञ के देवता रक्षक हैं और हम प्राणियों के दाता हैं।
We are like the king Varun Dev. We are close to Varun Dev and beautiful-youthful. The demigods-deities protect our Yagy. We are the king of humans.
अहमिन्द्रो वरुणस्ते महित्वोर्वी गभीरे रजसी सुमेके।
त्वष्टेव विश्वा भुवनानि विद्वान्त्समैरयं रोदसी धारयं च
हम इन्द्र देव और वरुण देव हैं। अपनी महत्ता के कारण विस्तीर्ण, दुरवगाहा, सुरूपा, द्यावा-पृथ्वी हम ही हैं। हम विद्वान हैं। हम सकल भूतजात को प्रजापति के तुल्य प्रेरित करते हैं। हम द्यावा-पृथ्वी को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 4.42.3]
महत्ता :: महत्त्व, अहमियत, महिमा, प्रभुता, प्रभाव, अर्थ, अभिप्राय, गौरव, प्रतिष्ठा, महानता, विपुलता, विस्तार, अधिकता; importance, significance, greatness.
भूतजात :: मृत, दिवंगत, पितृगण; deceased, Manes-Pitres.
हम इन्द्र, वरुण और पृथ्वी भी स्वयं हैं। हम प्राणधारी मात्र को प्रजापति के तुल्य शिक्षा प्रदान करने वाले हैं। हम आकाश और पृथ्वी के धारण करने वाले तथा प्रज्ञावान हैं।
We are Indr Dev & Varun Dev. We constitute the sky-space (heaven) & the earth due to our significance & greatness and support them. We are learned-enlightened. We inspire the deceased, Manes-Pitres like Prajapati.
अहमपो अपिन्वमुक्षमाणा धारयं दिवं सदन ऋतस्य।
ऋतेन पुत्रो अदितेर्ऋतावोत त्रिधातु प्रथयद्वि भूम
हमने ही सिचमान जल की वर्षा की, उदक या आदित्य के स्थान भूत द्युलोक को धारित किया अथवा आकाश में आदित्य को धारित किया। जल के निमित्त से हम अदिति पुत्र ऋतावा (यज्ञवान) हुए। हमने व्याप्त आकाश को तीन प्रकार से प्रथित किया अर्थात परमेश्वर ने हमारे लिए ही क्षिति आदि तीन लोकों को बनाया।[ऋग्वेद 4.42.4]
क्षिति :: पृथ्वी, निवास स्थान; earth.
हमने ही वर्षा रूप जल को सींचा हैं। सूर्य के आश्रित जगत अम्बर को हमने ही धारण किया है। हम अदिति पुत्र जल के लिए यज्ञवान हुए हैं। हमने ही व्यापक नभ के तीनों लोकों के रूप में परिवर्तित किया है।
We showered rains for irrigation and supported the space-sky the abode of Sun. For the sake of water we turned into Ritava-the son of Aditi i.e., became performers of Yagy. We divided the space-sky into three abodes (earth, heavens and the Nether world).
मां नरः स्वश्वा वाजयन्तो मां वृताः समरणे हवन्ते।
कृणोम्याजिं मघवाहमिन्द्र इयर्मि रेणुमभिभूत्योजाः
सुन्दर अश्व वाले और युद्ध के इच्छुक नेता अनुगमन करते हैं। वे सब वृत होकर युद्ध के लिए संग्राम में हमारा ही आह्वान करते हैं। हम धनवान इन्द्र देव होकर युद्ध करते हैं। हम पराजित करने वाले बल से युक्त होकर धूल उड़ाते हैं।
युद्ध में नेतृत्व करने वाले, सुन्दर अश्ववान वीर हमारे पीछे चलते हैं। वे सभी संकल्पवान हुए युद्ध में हमकों ही आमंत्रित करते हैं। हम समृद्धिशाली इन्द्रदेव के रूप में अनुष्ठान करते हैं। हम शत्रु को पराजित करने वाली शक्ति से युक्त हैं। हमारी प्रबल गति से संग्राम स्थान में धूल उड़कर अम्बर में छा जाती है।
The warriors-stalwarts desirous of war, possessing beautiful horses follow us. They decide to fight and invoke us. We become wealthy Indr Dev and fight in the war.  Our might produces-spread dust in the sky. 
अहं ता विश्वा चकरं नकिर्मा दैव्यं सहो वरते अप्रतीतम्।
यन्मा सोमासो ममदन्यदुक्थोभे भयेते रजसी अपारे
हमने उन सभी कार्यों को किया। हम अप्रतिहत दैव बल से युक्त हैं। कोई भी हमे रोक नहीं सकता। जब सोमरस हमें हर्षित करता है एवं उक्थ समूह हमें हर्षित करता है, तब अपार और उभय द्यावा-पृथ्वी भयभीत हो जाती हैं।[ऋग्वेद 4.42.6]
हम अलौकिक पराक्रम से परिपूर्ण हैं। हमको हमारे कार्यों में कोई बाधित नहीं कर सकता। हमने इन सभी कार्यों को पूर्ण किया है। जब सोमरस और श्लोक हमें पुष्ट करते हैं, तब हमारे पराक्रम को देखकर विस्तृत नभ और भू-मण्डल दोनों ही चलायमान हो जाते हैं।
We possess extreme might and none can block us. We accomplished the current deeds. When Somras & hymns nourish-nurse us, the earth and the sky become movable-dynamic.
Each & every thing in the universe is movable-dynamic.
विदुष्टे विश्वा भुवनानि तस्य ता प्र ब्रवीषि वरुणाय वेधः।
त्वं वृत्राणि शृण्वषे जघन्वान्त्वं वृताँ अरिणा इन्द्र सिन्धून्
हे वरुण देव! आपके कर्म को सकल लोक जानते हैं। हे स्तोता! वरुण देव की प्रार्थना करें। हे इन्द्र देव! आपने रिपुओं का वध किया; यह आपकी प्रसिद्धि है। हे इन्द्र देव! आपने अवरुद्ध की हुई नदियों को प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 4.42.7]
हे वरुण! तुम्हारे कार्य को सभी प्राणधारी जानते हैं। वंदना करने वालों! वरुण देव की प्रार्थना करो। हे इन्द्र देव! तुमने शत्रुओं का पतन किया है, तुम्हारे इस कार्य को सभी जानते हैं। तुमने रुकी हुई नदियों को भी प्रवाहित किया है।
Hey Varun Dev! Entire universe is aware of your might-power. Hey Stota! Pray-worship Varun Dev. Hey Indr Dev! You are famous since  you killed the enemies. Hey Indr Dev! You made the dry-blocked rivers flow.
अस्माकमत्र पितरस्त आसन्त्सप्त ऋषयो दौर्गहे बध्यमाने।
त आयजन्त त्रसदस्युमस्या इन्द्रं न वृत्रतुरमर्धदेवम्
दुर्गह के पुत्र पुरुकुत्स के बन्दी होने पर इस देश या पृथ्वी के पालयिता सप्तर्षि हुए। उन्होंने इन्द्र देव और वरुण देव के अनुग्रह से पुरुकुत्स की स्त्री के लिए यज्ञ करके त्रसदस्यु को उपलब्ध किया। त्रसदस्यु इन्द्र देव के तुल्य शत्रु विनाशक और अर्द्धदेव देवताओं के समीप में वर्तमान या देवताओं के अर्द्धभूत इन्द्र देव के तुल्य थे।[ऋग्वेद 4.42.8]
पुरुकुत्स के बन्धन में पड़ने पर सप्तऋर्षि इस पृथ्वी के पालनकर्त्ता हुए। उन्होंने इन्द्र और वरुण की दया से पुरुकुत्स की पत्नी के लिए यज्ञ किया और त्रसदस्यु को पाया। वह त्रसदस्यु इन्द्र के समान शत्रुओं का नाश करने वाला हुआ और वह अर्द्ध देवत्व का भी अधिकारी हुआ।
When Purukuts, son of Durgah was arrested-imprisoned, Sapt Rishi Gan became the nurturers of the earth. They made Trasdasyu, who was as capable as Indr Dev in destroying the enemies, available for conducting the Yagy of the wife of Purukuts & the semi demigods by virtue of the grace of Indr Dev & Varun Dev.
पुरुकुत्सानी हि वामदाशब्द्धव्येभिरिन्द्रावरुणा नमोभिः।
अथा राजानं त्रसदस्युमस्या वृत्रहणं ददथुरर्धदेवम्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! ऋषियों द्वारा प्रेरित होने पर पुरुकुत्स की पत्नी ने आप दोनों को हव्य और स्तुति द्वारा प्रसन्न किया। अनन्तर आप दोनों ने उसे शत्रु नाशक अर्द्ध देव राजा त्रसदस्यु को प्रदान किया।[ऋग्वेद 4.42.9]
हे इन्द्रा-वरुण! मुनि की शिक्षा से पुरुकुत्स की पत्नी ने तुम दोनों को हविरत्न और प्रार्थनाओं के द्वारा हर्षित किया। फिर तुम दोनों ने उसे अर्द्ध देवत्व ग्रहण शत्रुओं का पतन करने वाले त्रसदस्यु को प्रदान करके संतुष्ट होगी।
Hey Indr Dev & Varun Dev! On being inspired by the Rishis, the wife of Purukuts pleased both of you with offerings and prayers. Thereafter, you both sent her to Trasdasyu, who has had obtained semi demigod hood and was the slayer of of the enemy.
राया वयं ससवांसो मदेम हव्येन देवा यवसेन गावः।
तां धेनुमिन्द्रावरुणा युवं नो विश्वाहा धत्तमनपस्फुरन्तीम्
हम लोग आप दोनों की प्रार्थना करके धन द्वारा परितृप्त होंगे। देवगण हव्य द्वारा तृप्त हों और गौएँ तृणादि द्वारा परितृप्त हों। हे इन्द्र और वरुण! आप दोनों विश्व के हन्ता हैं। आप दोनों हम लोगों को सदा अहिंसित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.42.10]
देवता हविरत्न से तथा गाय तृणादि से संतुष्टि को प्राप्त होती है। हे इन्द्रा वरुण! तुम दोनों विश्व की उत्पत्ति और संहार करने वाले हो। हमको स्थिर धन प्रदान करो।
You both are pleased with prayers-worship and the cow is satisfied by the straw. Hey Indr Dev & Varun Dev! You are the creator & destroyer of the universe. Grant us wealth which cannot be snatched from us.(18.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-  इन्द्र देव, वायु देव, छन्द :- गायत्री
अग्रं पिबा मधूनां सुतं वायो दिविष्टिषु। त्वं हि पूर्वपा असि
हे वायु देव! स्वर्ग प्रापक यज्ञ में आप सर्वप्रथम अभिषुत सोमरस का पान करें; क्योंकि आप सबसे पहले सोमरस का पान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 4.46.1]
हे वायु! स्वर्ग में स्थान बनाने वाले अनुष्ठान में इस अभिषुत सोम रस को आकर पीओ क्योंकि तुम सबसे पहले सोमरस का पान करने वाले हो।
Hey Vayu Dev! Drink this freshly extracted Somras first of all, since you are one who clears the way to heavens and you are entitled to drink it first.
शतेना नो अभिष्टिभिर्नियुत्वाँ इन्द्रसारथिः। वायो सुतस्य तृम्पतम्
हे वायु देव! आप नियुद्वान् हैं और इन्द्र देव आपके सारथि हैं। आप अपरिमित कामनाओं को पूर्ण करने के लिए आगमन करें। आप अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 4.46.2]
हे वायु देव! हे इन्द्र देव! तुम दोनों सोमपान के द्वारा संतुष्टि को प्राप्त हो जाओ। हे वायु! तुम संसार के कल्याणकारी कर्म में नियुक्त हुए हो। तुम इन्द्र देव के सारथी होकर हमारी दृढ़ कामनाओं को पूरा करने के लिए यहाँ आओ।
Hey Vayu Dev! Indr Dev is your charioteer & you are appointed to perform the welfare of the humans-world.  Invoke to accomplish our unfulfilled desires. Drink the freshly extracted Somras.
आ वां सहस्रं हरय इन्द्रवायू अभि प्रयः। वहन्तु सोमपीतये
हे इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों को हजारों संख्या वाले अश्व युक्त रथ द्रुतगति से सोमपान के लिए ले आवें।[ऋग्वेद 4.46.3]
हे इन्द्र और वायु! तुम दोनों को हजारों अश्व शीघ्रतापूर्वक सोमपान के लिए यहाँ ले आएँ।
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come here fast, riding the charoite pulled by thousands of horses, to drink the Somras.
रथं हिरण्यवन्धुरमिन्द्रवायू स्वध्वरम्। आ हि स्थाथो दिविस्पृशम्
हे इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों हिरण्मय निवासाधार काष्ठ से युक्त द्युलोक स्पर्शी और शोभन यज्ञशाली रथ पर आरोहण करें।[ऋग्वेद 4.46.4]
हे इन्द्रदेव और वायु! तुम दोनों स्वर्ण के उज्जवल काष्ठ के मूल वाले तथा अम्बर से तुम दोनों ही महान शक्तिशाली रथ से ही हवि प्रदान करने वाले यजमान के निकट पधारो।
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come to the Yagy of the Ritviz, for accepting offerings riding the charoite in which wood is studded with gold, from the heavens.
रथेन पृथुपाजसा दाश्वांसमुप गच्छतम्। इन्द्रवायू इहा गतम्
हे इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों प्रभूत बल सम्पन्न रथ द्वारा हव्य दाता याजक गण के निकट आगमन करें तथा इस यज्ञ मण्डप में पधारें।[ऋग्वेद 4.46.5]
तुम दोनों यजमान के लिए ही इस महान अनुष्ठान में पधारो।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! Visit the Yagy of the Ritviz making offerings, riding the charoite associated with your might.  
इन्द्रवायू अयं सुतस्तं देवेभिः सजोषसा। पिबतं दाशुषो गृहे
इन्द्र देव और वायु देव! यह सोमरस आपके लिए अभिषुत किया गया है। आप दोनों देवताओं के साथ समान प्रीति युक्त होकर हव्य दाता याजक गण की यज्ञशाला में उसका पान करें।[ऋग्वेद 4.46.6]
हे इन्द्र देव! हे वायो! यह प्रसिद्ध सोम रखा है। तुम दोनों समान प्रीति वाले होकर हविदाता यजमान के यज्ञ स्थल में आकार सोम रस पीओ।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! This Somras has been extracted for you. Drink it along with the demigods-deities happily, in the Yagy Shala-house of the Ritviz.
इह प्रयाणमस्तु वामिन्द्रवायू विमोचनम्। इह वां सोमपीतये
हे इन्द्र देव और वायु देव! इस यज्ञ में आप दोनों का आगमन हो। यहाँ पधार कर सोमपान के निमित्त आप दोनों अपने अश्वों को रथ से मुक्त करें।[ऋग्वेद 4.46.7]
हे इन्द्रदेव! हे वायो! इस अनुष्ठान में तुम्हें सोमरस पान करने के लिए अश्व खोल दिए जाएँ। तुम दोनों इस यज्ञ स्थल में आओ।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! Join this Yagy. Come here and release your horses from the charoite.(23.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :-  इन्द्र देव, वायु देव, छन्द :- गायत्री
वायो शुक्रो अयामि ते मध्वो अग्रं दिविष्टिषु।
आ याहि सोमपीतये स्पार्हो देव नियुत्वता
हे वायु देव! व्रतचर्यादि के द्वारा दीप्त-पवित्र होकर हम द्युलोक जाने की अभिलाषा से आपके लिए मधुर सोमरस का प्रथम आनयन करते हैं। हे वायु देव! आप स्पृहणीय हैं। आप अपने अश्व वाहन द्वारा सोमपान के लिए यहाँ आगमन करें।[ऋग्वेद 4.47.1]
हे वायो! महान कर्मानुष्ठानों द्वारा शुद्ध बने हुए हम अद्भुत संसार प्राप्ति की इच्छा करते हुए पहले तुम्हारे लिए ही सोमरस को लाते हैं। तुम अभिलाषा के योग्य हो। अपने वाहन के युक्त सोमपान करने के लिए उस स्थान से पधारो।
Hey Vayu Dev! We extract the sweet Somras with great efforts for you, adopting penances, fasts etc. You are desirable. Ride your charoite deploying horses and come here to drink Somras.
इन्द्रश्च वायवेषां सोमानां पीतिमर्हथः।
युवां हि यन्तीन्दवो निम्नमापो न सध्र्यक्
हे वायु देव! आप और इन्द्र देव इस गृहीत सोमरस के पान योग्य हो, आप दोनों ही सोमरस को प्राप्त करते हैं; क्योंकि जल जिस प्रकार से गर्त की ओर गमन करता है, उसी प्रकार से सकल सोमरस आप दोनों के अभिमुख गमन करते हैं।[ऋग्वेद 4.47.2]
हे वायो! उस ग्रहण किये हुए सोम पीने के पात्र तुम हो और इन्द्रदेव हैं। जैसे जल गड्ढे की ओर जाता है, वैसे ही सभी प्रकार के सोम तुम्हारे समीप जाते हैं।
Hey Vayu Dev! You and Indr dev are qualified to drink Somras. The way water moves to low lying areas, all sorts of Somras comes to you automatically.
वायविन्द्रश्च शुष्मिणा सरथं शवसस्पती।
नियुत्वन्ता न ऊतय आ यातं सोमपीतये
हे वायु देव! आप ही इन्द्र देव हैं। आप दोनों बल के स्वामी है। आप दोनों पराक्रमशाली और नियुद्गण से युक्त हैं। आप दोनों एक ही रथ पर आरोहण करके हम लोगों को आश्रय प्रदान करने के लिए और सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 4.47.3]
तुम दोनों अत्यन्त शक्तिशाली एवं अश्वों से युक्त हो। तुम दोनों एक ही रथ पर विराजमान होकर सोमरस का पान करो तथा हमें आश्रय प्रदान करने के लिए यहाँ पर पधारो।
Hey Vayu Dev! You are Indr Dev. Both of you are mighty and possess the horses. Ride the same charoite and come to us for drinking Somras and grant us asylum-protection.
या वां सन्ति पुरुस्पृहो नियुतो दाशुषे नरा। 
अस्मे ता यज्ञवाहसेन्द्रवायू नि यच्छतम्
हे नायक तथा यज्ञ वाहक इन्द्र देव और वायु देव! आप दोनों के पास अनेकों द्वारा कामना किए जाने योग्य जो अश्व हैं, उन अश्वों को मुझ दान देने वाले यजमान को प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.47.4]
हे इन्द्रदेव और वायो! तुम दोनों ही यज्ञ हवन करने वालों एवं समस्त देवों में अग्रणी हो। हम तुमको हवि रत्न प्रदान करने वाले यजमान हैं। तुम्हारे पास अभिलाषा के योग्य जो अश्व हैं उन्हें हमें प्रदान करो।
Hey leaders and supporter of the Yagy Vayu Dev & Indr Dev! Grant me-the Ritviz, the horses which several people desire to have-possess.(23.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र देव, बृहस्पति,  छन्द :- गायत्री।
इदं वामास्ये हविः प्रियमिन्द्राबृहस्पती। उक्थं मदश्च शस्यते
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों के मुँह में हम इस प्रिय सोमरूप हवि का प्रक्षेप करते हैं। हम आप दोनों को उक्थ (शस्त्र) और मद जनक सोमरस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.49.1]
हे इन्द्रदेव और बृहस्पति! तुम परमप्रिय सोमरूपी हविरत्न को तुम दोनों के मुख में डालते हैं। तुम दोनों को हम हर्षकारक सोमरस प्रदान करते हैं।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! We pour Somras as offering in your mouth. Somras gives joy-pleasure.
अयं वां परि षिच्यते सोम इन्द्राबृहस्पती। चारुर्मदाय पीतये
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव ! आप दोनों के मुँह में पान के लिए और हर्ष के लिए यह मनोहर सोमरस भली-भाँति से दिया जाता है।[ऋग्वेद 4.49.2]
हे इन्द्रदेव और बृहस्पति! तुम दोनों की दृष्टि के लिए तथा पान करने के लिए वह सुस्वादु सोमरस हम तुम्हारे मुख में डालते हैं।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! For your pleasure we provide you tasty Somras, to drink.
आ न इन्द्राबृहस्पती गृहमिन्द्रश्च गच्छतम्। सोमपा सोमपीतये
हे सोमरस पान करने वाले इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों सोमरस पान के लिए हमारे यज्ञगृह में पधारें।[ऋग्वेद 4.49.3]
हे इन्द्र देव और बृहस्पति! आप दोनों सोमरस पीने वाले हो। आप दोनों हमारे यज्ञ भवन में सोम पीने के लिए आओ।
Somras drinking Indr Dev & Brahaspati Dev! Visit our Yagy site to drink Somras.
अस्मे इन्द्राबृहस्पती रयिं धत्तं शतग्विनम्। अश्वावन्तं सहस्रिणम्
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों हमें सैकड़ों गौएँ और हजारों अश्वों से युक्त ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.49.4]
हे इन्द्र और बृहस्पति! आप दोनों ही हमें सैकड़ों गायों और हजारों अश्वों से युक्त धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! Grant us grandeur constituting of hundreds of cows & thousands of horses.
इन्द्राबृहस्पती वयं सुते गीर्भिर्हवामहे। अस्य सोमस्य पीतये
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! सोमरस के अभिषुत होने पर हम स्तुति द्वारा आप दोनों का सोमरस पान के लिए आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.49.5]
हे इन्द्र और बृहस्पते! हम तुम्हें सोम रस पीने के लिए बुलाते हैं।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! We invite-invoke your enjoying Somras.
सोममिन्द्राबृहस्पती पिबतं दाशुषो गृहे। मादयेथां तदोकसा
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों हव्यदाता याजकगण के घर में सोमरसपान करें और उसके घर में निवास करके हर्षित होवें।
हे इन्द्र देव और बृहस्पते! हवि प्रदान करने वाले यजमान के गृह में निवास करते हुए आप दोनों सोम पान करके हर्षित हो जाओ।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! Both of you enjoy Somras at the residence of the Ritviz and be pleased with them.(25.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र देव, बृहस्पति,  छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
यस्तस्तम्भ सहसा वि ज्मो अन्तान्बृहस्पतिस्त्रिषधस्थो रवेण।
तं प्रत्नास ऋषयो दीध्यानाः पुरो विप्रा दधिरे मन्द्रजिह्वम्
वेद या यज्ञ के पालयिता बृहस्पति देव ने बलपूर्वक पृथ्वी की दसों दिशाओं को स्तम्भित किया। वे शब्द द्वारा तीनों स्थानों में वर्तमान हैं। उन आह्लादक जिह्वा विशिष्ट बृहस्पति देव को पुरातन, द्युतिमान मेधावियों ने पुरोभाग में स्थापित किया है।[ऋग्वेद 4.50.1]
वेद रक्षक बृहस्पति ने अपनी शक्ति से पृथ्वी की दसों दिशाओं को अपने वशीभूत किया। वे ध्वनि तीनों लोकों में विद्यमान हैं। उन विशिष्ट जिह्वा वाले, हर्षिता प्रदान करने वाले बृहस्पति को प्राचीन मुनियों ने पंडित के पद पर दृढ़ किया।
Protector-saviour of Veds Brahaspati stunned-controlled, over powered the all ten directions with might. They are present in three directions. The ancient scholars-enlightened established Brahaspati, who speaks pleasant, as a prime intellectual.
SAVIOUR :: रक्षक, मुक्तिदाता, उद्धारक, बचानेवाला; protector, defender, keeper, life saver, intercessor, rescuer, salvation, upholder, saver.
धुनेतयः सुप्रकेतं मदन्तो बृहस्पते अभि ये नस्ततस्त्रे। 
पृषन्तं सुप्रमदब्धपूर्वं बृहस्पते रक्षतादस्य योनिम्
हे प्रभूत प्रज्ञावान बृहस्पति देव! जिनकी गति शत्रुओं को कँपाने वाली है, जो आपको आनन्दित करते हैं और जो आपकी प्रार्थना करते हैं, उनके लिए आप फलप्रद, वर्द्धन शील और अहिंसित होते हुए आप उनके विस्तृत यज्ञ की रक्षा करते है।[ऋग्वेद 4.50.2]
हे मेधावी बृहस्पति देव! तुम्हारी गति से शत्रुगण भयभीत हो जाते हैं जो आपको पुष्ट करने के लिए स्तुति करते हैं, तुम उनके लिए फल देने वाले, वृद्धि करने वाले तथा हिंसा रहित होते हो और तुम उनके श्रेष्ठ यज्ञ के पालनकर्त्ता हो।
Hey intelligent Brahaspati Dev! Your mighty create-generate fear amongest the enemy, though you are non violent. You support the vast-large scale Yagy of those, who worship-pray you, reward them & lead to their progress.
 बृहस्पते या परमा परावत आ त ऋतस्पृशो नि षेदुः।
तुभ्यं खाता अवता अद्रिदुग्धा मध्वः श्चोतन्त्यभितो विरप्शम्
हे बृहस्पति देव! जो अत्यन्त दूरवर्ती स्वर्ग नामक उत्कृष्ट स्थान है, उस स्थान से आपके अश्व यज्ञ में आगमन करके प्रसन्न होते हैं। खात कूप के चारों तरफ से जिस प्रकार से जल स्राव होता है, उसी प्रकार से आपके चारों ओर स्तुतियों के साथ प्रस्तर द्वारा अभिषुत सोम मधुर रस का अभिसिञ्चन करता है।[ऋग्वेद 4.50.3]
हे बृहस्पति देव! जो दूरस्थ अद्भुत संसार है, वह अत्यन्त उत्कृष्ट है, वहाँ से तुम्हारे अश्व इस अनुष्ठान में आते हैं। जैसे खाद्य से भरे हुए कुएँ के चारों तरफ जल उबलता है, वैसे ही पाषाण द्वारा निष्पन्न मधुर सोमरस वंदनाओं के द्वारा तुम्हें चारों तरफ खींचता है।
Hey Brahaspati Dev! Horses become happy on being arrived from the distant heavens to the Yagy. The manner in which water discharges into the well, prayer-worship hover all around you and Somras obtained by crushing with stone, attracts you.
बृहस्पतिः प्रथमं जायमानो महो ज्योतिषः परमे व्योमन्।
सप्तास्यस्तुविजातो रवेण वि सप्तरश्मिरधमत्तमांसि
मन्त्राभिमानी बृहस्पति देव जब महान सूर्य देव के निरतिशय आकाश में प्रथम जायमान हुए, तब सप्त छन्दोमय मुख विशिष्ट होकर और बहु प्रकार से सम्भूत होकर तथा शब्द युक्त एवं गमनशील तेजो विशिष्ट होकर उन्होंने अन्धकार का नाश कर दिया।[ऋग्वेद 4.50.4]
जब वे मंत्रज्ञ बृहस्पति सूर्यमण्डल में प्रथम बार प्रकट हुए, तब मुख से सप्त छंदोमय तथा शब्द से युक्त होकर उन गमनशील बृहस्पति ने अपने तेज से तम को नष्ट किया।
When expert of Mantr Shakti Brahaspati Dev appeared in the solar system-space for the first time, he recited the seven couplets composed of six stanzas and spelled several other related words, acquiring radiance-aura and vanished the darkness.
स सुष्टुभा स ऋक्वता गणेन वलं रुरोज फलिगं रवेण।
बृहस्पतिरुस्त्रिया हव्यसूदः कनिक्रदद्वावशतीरुदाजत्
बृहस्पति देव ने दीप्ति युक्त और स्तुति शाली अङ्गिरा गण के साथ शब्द द्वारा बल नामक असुर को विनष्ट किया। उन्होंने शब्द करके भोग प्रदात्री और हव्य प्रेरिका गौओं को बाहर निकाला।[ऋग्वेद 4.50.5]
उन बृहस्पति ने वंदना करती हुई अंगिराओं सहित घोर शब्द द्वारा "बल" नामक असुर का संहार किया। उन्होंने शब्द से ही श्रेष्ठ दूध प्रदान करने वाली गायों को गुफा से निकाला था।
Brahaspati Dev associated with aura-radiance and the Angiras killed the demons names Bal. He uttered words which derived the milch cows out of the caves. These cows grant comforts and inspire offerings.
Brahaspati-Jupiter in the largest planet in space which emit light just like Sun.
एवा पित्रे विश्वदेवाय वृष्णे यज्ञैर्विधेम नमसा हविर्भिः।
बृहस्पते सुप्रजा वीरवन्तो वयं स्याम पतयो रयीणाम्
हम लोग इस प्रकार से पालक, सर्व देवता स्वरूप और अभीष्ट वर्षी बृहस्पति देव की यज्ञ द्वारा, हव्य द्वारा और स्तुति द्वारा, सेवा करेंगे। हे बृहस्पति देव! हम लोग जिससे सुपुत्रवान, वीर्यशाली और धन के स्वामी हो सकें।[ऋग्वेद 4.50.6]
हे बृहस्पति! सभी के देव स्वरूप, पोषण करने वाले, अभिलाषाओं की वृद्धि करने वाले हैं, हम अनुष्ठान में हविरल द्वारा वंदना किये उनकी प्रार्थना करेगे, जिससे हम संतान तथा शक्ति से परिपूर्ण समृद्धि का स्वामित्व ग्रहण कर सकें।
Hey Brahaspati Dev! You are the nurturer of all, like the Sun-Sury Dev & accomplish desires. We will make offerings and prayers for you, serve you to have virtuous sons, have wealth and might.
स इद्राजा प्रतिजन्यानि विश्वा शुष्मेण तस्थावभि वीर्येण।
बृहस्पतिं यः सुभृतं बिभर्ति वल्गयति वन्दते पूर्वभाजम्
जो बृहस्पति देव का सुन्दर रूप से पोषण करता है एवं उन्हें प्रथम हव्यग्राही कहकर उनकी स्तुति कर नमस्कार करता हैं, वह राजा अपने वीर्य द्वारा शत्रुओं के बल को अभिभूत करके अवस्थित करता है।[ऋग्वेद 4.50.7]
जो सम्राट बृहस्पति का भली प्रकार रक्षक है तथा प्रथम हव्य स्वीकार करने वाला मानकर उनको हवि प्रदान करता हुआ प्रणाम युक्त वंदना करता है। वह नृप अपने बल से शत्रुओं को सामर्थ्य को निरर्थक करता हुआ उसे हर लेता है।
The king who serve Brahaspati Dev, making offerings, prayers-worship for him, wins the enemies with his might-power.
स इत्क्षेति सुधित ओकसि स्वे तस्मा इळा पिन्वते विश्वदानीम्।
तस्मै विशः स्वयमेवा नमन्ते यस्मिन्ब्रह्मा राजनि पूर्व एति
जिस राजा के निकट ब्रह्मा (ब्रह्मण स्पति) अग्र गमन करते है, घर में निवास करता है। पृथ्वी उसके लिए सब काल में फल उत्पन्न करती है। प्रजागण स्वयं उसके निकट सदैव रहते हैं।[ऋग्वेद 4.50.8]
जिसके पास बृहस्पति सर्वप्रथम पधारते हैं, वह सम्राट संतुष्ट होकर अपने स्थान पर रहते हैं। उसके लिए धरा भी हर ऋतु में फल प्रदान करने वाली होती है। उसकी प्रजा उसके सामने सदैव सिर झुकाकर रहती है।
The empire of the king become stable, who is visited by Brahaspati Dev. The nature grants him all sorts of amenities. His citizens always abide by him.
अप्रतीतो जयति सं धनानि प्रतिजन्यान्युत या सजन्या।
अवस्यवे यो वरिवः कृणोति ब्रह्मणे राजा तमवन्ति देवाः
जो राजा रक्षण कुशल और धन रहित ब्राह्मण या बृहस्पति को धन दान करता है, वह अप्रतिहत रूप से शत्रुओं और प्रजाओं का धन जीतता है एवं महान होता है। देवगण उसी की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 4.50.9]
सम्राट रक्षा चाहने वाले धनहीन विद्वान को धन प्रदान करता हैं, वह शत्रुओं का धन विजय करता है। देवता हमेशा उसकी रक्षा करते हैं।
The king who is able-expert in war fare, donate money to the Brahmans-poor, he over power the enemies and become great-mighty. The demigods-deities protect-save him.
इन्द्रश्च सोमं पिबतं बृहस्पतेऽस्मिन्यज्ञे मन्दसाना वृषण्वसू।
आ वां विशन्त्विन्दवः स्वाभुवोऽस्मे रयिं सर्ववीरं नि यच्छतम्
हे बृहस्पति देव! आप और इन्द्र देव इस यज्ञ में हर्षित होकर याजक गणों को धन प्रदान करें। सर्वव्यापक सोमरस आप दोनों के शरीर में प्रवेश करे। आप दोनों हम लोगों को पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.50.10]
हे बृहस्पते! तुम और इन्द्र दोनों ही यज्ञ में हर्ष प्राप्त कर यजमानों को धन प्रदान करो। यह सोमरस सर्वव्यापक है, यह तुम्हारे शरीरों में प्रविष्ट है। तुम दोनों ही हमारे लिए संतान से परिपूर्ण रमणीय धन को प्रदान करो।
Hey Brahaspati & Indr Dev! You should be happy-pleased and grant-donate money to the Ritviz in this Yagy. Let Somras be enjoyed-drunk by you. Grant us sons & grandsons along with money-riches.
बृहस्पत इन्द्र वर्धतं नः सचा सा वां सुमतिर्भूत्वस्मे।
अविष्टं धियो जिगृतं पुरन्धीर्जजस्तमर्यो वनुषामरातीः
हे बृहस्पति देव और इन्द्र देव! आप दोनों हम लोगों को संवर्द्धित करें। हम लोगों के प्रति आप दोनों का अनुग्रह एक समय में ही प्रयुक्त होता है। आप दोनों हम लोगों के यज्ञ की रक्षा करते हुए हमारी प्रार्थना से जाग्रत होवें और याजकों के शत्रुओं का आप विनाश करें।[ऋग्वेद 4.50.11]
हे बृहस्पते! हे इन्द्रदेव! तुम दोनों ही हमको हर तरह से बढ़ाओ । हमारे प्रति तुम दोनों की दया एक साथ ही प्रेरित हो। हमारे इस यज्ञ के तुम दोनों ही रक्षक हो। वंदना से चैतन्य को ग्रहण हो जाओ।
Hey Brahaspati Dev! Hey Indr Dev! Both of you nurture-support us and oblige us together, at the same moment. Accept our prayers and protect our Yagy. Destroy the enemies of the Ritviz-hosts in the Yagy.(28.04.2023)
इन्द्राग्नी शतदाव्यश्वमेधे सुवीर्यम्।
क्षत्रं धारयतं बृहद्दिवि सूर्यमिवाजरम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप दोनों याचकों के लिए अपरिमित धन के दाता राजर्षि अश्वमेध को अन्तरिक्ष स्थित सूर्य की तरह शोभन बल के साथ महान् और अक्षय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.27.6]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Both of you grant-bestow upon unlimited wealth to Rajrishi Ashwmedh, like the glorious Sun in the space; for the needy.(11.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- गौरिवीति शाक्त्य, देवता :- इन्द्र या उशनाछन्द :- त्रिष्टुप्।
त्र्यर्यमा मनुषो देवताता त्री रोचना दिव्या धारयन्त।
अर्चन्ति त्वा मरुतः पूतदक्षास्त्वमेषामृषिरिन्द्रासि धीरः
हे इन्द्र देव! मनु यज्ञ में जो तीन गुण हैं तथा अन्तरिक्ष में उत्पन्न होने वाले जो रोचमाम वायु, अग्नि और सूर्यात्मक तेज हैं, उनको मरुतों ने धारित किया है। शुद्ध बल वाले मरुद्गण आपकी प्रार्थना करते हैं। आप बुद्धिमान् हैं, इन मरुतों को देखें।[ऋग्वेद 5.29.1]
Hey Indr Dev! Marud Gan have supported the three characterices-qualities, traits in the Yagy performed by Manu and the energy-radiance, aura generated in the space i.e., Rochmam Vayu, Agni and the Sun. Marud Gan having pure power worship you. You are intelligent, look at Marud Gan.
अनु यदी मरुतो मन्दसानमार्चन्निन्द्रं पपिवांसं सुतस्य।
आदत्त वज्रमभि यदहिं हन्नपो यह्वीरसृजत्सर्तवा उ
जब मरुतों ने अभिषुत सोमरस के पान से तृप्त इन्द्र देव की प्रार्थना की तब इन्द्र देव ने वज्र धारित किया और वृत्रासुर को मारा एवं वृत्र निरुद्ध महान् जल-राशि को स्वेच्छानुसार से बहने के लिए मुक्त किया।[ऋग्वेद 5.29.2]
When Marud Gan satisfied Indr Dev by offering him extracted Somras and prayed-requested him, he wore Vajr, killed Vrata Sur and allowed the stored-blocked water to flow freely.
उत ब्रह्माणो मरुतो मे अस्येन्द्रः सोमस्य सुषुतस्य पेयाः।
तद्धि हव्यं मनुषे गा अविन्ददहन्नहिं पपिवाँ इन्द्रो अस्य
हे बृहत् मरुतों! आप सब और इन्द्रादि सहित भली-भाँति से हमारे इस अभिषुत सोमरस का पान करें। आप लोगों के द्वारा यह सोमात्मक हव्य पिया जावे, जिससे यजमान गौओं को प्राप्त करें। इसी सोमरस को पीकर इन्द्र देव ने वृत्रासुर का वध किया।[ऋग्वेद 5.29.3]
बृहत् :: बहुत बड़ा, विशाल, बहुत भारी, दृढ़,  पक्का, मजबूत, बलिष्ठ, पर्याप्त, उच्च, ऊँचा स्वर, एक मरुत् का नाम, पैघ, विशाल; large,  comprehensive.
Hey mighty Marud Gan! Drink this Somras extracted by us along with Dev Raj Indr & others and grant cows to the Ritviz-priests. Indr Dev killed Vrata Sur after drinking Somras.
आद्रोदसी वितरं वि ष्कभायत्संविव्यानश्चिद्भियसे मृगं कः।
जिगर्तिमिन्द्रो अपजर्गुराणः प्रति श्वसन्तमव दानवं हन्
सोमपान के अनन्तर इन्द्र देव ने द्यावा-पृथ्वी को निश्चल किया। गमनशील होकर इन्होंने मृगवत् पलायमान वृत्रासुर को भयभीत किया। दनु पुत्र (वृत्र) छिप रहा था और भय से श्वास ले रहा था। इन्द्र देव ने उसके प्रपंच को नष्ट करके उसका वध किया।[ऋग्वेद 5.29.4]
भयभीत :: शंकित, भयानक, भयावह, भयंकर; frightened, fearful, afraid.
प्रपंच :: माया, भ्रांति, मोह, ग़लतफ़हमी, भुलावा; delusion, illusion, illusory creation, mundane affairs, cast, spell.
After drinking Somras, Indr Dev made earth and the heavens stationary became dynamic frightened Vrata Sur, made him run like a dear. Indr Dev destroyed the cast-spell, illusion and killed him.
अध क्रत्वा मघवन्तुभ्यं देवा अनु विश्वे अददुः सोमपेयम्।
यत्सूर्यस्य हरितः पतन्तीः पुरः सतीरुपरा एतशे कः
हे धनवान् इन्द्र देव! आपके इस कर्म से वह्नि आदि निखिल देवताओं ने आपके अनुक्रम से सोमरस पान के लिए दिया। आपने एतश के लिए सम्मुखवर्ती सूर्य के अश्वों का गतिरोध किया।[ऋग्वेद 5.29.5]
एतश :: शानदार, चमकदार, wonderful, shinning.
Hey rich Indr Dev! Having accomplished this deed, Vahni and all other demigods-deities sipped Somras, in their order-sequence. For performing this wonderful act you blocked the horses of Sury Dev-Sun.
नव यदस्य नवतिं च भोगान्त्साकं वज्रेण मघवा विवृश्चत्।
अर्चन्तीन्द्रं मरुतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसा बाधत द्याम्
जब धनवान् इन्द्र देव ने वज्र द्वारा शम्बर के निन्यान्बे नगरों को एक साथ ही विनष्ट किया, तब मरुतों ने युद्ध भूमि में इनकी स्तुति त्रिष्टुप् छन्द में की। इस तरह से मरुतों के मन्त्रों द्वारा प्रार्थित होने पर दीप्त इन्द्र देव ने शम्बर असुर का वध किया।[ऋग्वेद 5.29.6]
When mighty-powerful Indr Dev destroyed the 99 cities-fortress of Shambar with Vajr all together, Marud Gan prayed him with the recitation of Trishtup Chhand. On been worshiped by the Mantr recited by Marud Gan aurous Indr Dev killed the demon Shambar.
सखा सख्ये अपचत्तूयमग्निरस्य क्रत्वा महिषा त्री शतानि।
त्री साकमिन्द्रो मनुषः सरांसि सुतं पिबद्वृत्रहत्याय सोमम्
इन्द्र देव के मित्र रूप अग्नि देव ने मित्र इन्द्र देव के कार्य के लिए सौ महिषों को शीघ्र पकाया। परमैश्वर्य युक्तं इन्द्र देव ने वृत्रासुर को मारने के लिए मनु सम्बन्धी तीन पात्रों में स्थित सोमरस को एक काल में ही पिया।[ऋग्वेद 5.29.7]
Friendly Agni Dev roasted 100 buffalos to get the endeavour of Indr Dev accomplished. Indr Dev having ultimate grandeur consumed-drunk the Somras in the three pots related with Manu in one go.
त्री यच्छता महिषाणामघो मास्त्री सरांसि मघवा सोम्यापाः।
कारं न विश्वे अह्वन्त देवा भरमिन्द्राय यदहिं जघान
हे इन्द्र देव! जब आपने तीन सौ महिषों के माँस का भक्षण किया, धनवान् होकर जब आपने तीन पात्रों में स्थित सोमरस का पान किया, जब आपने वृत्र का वध किया, तब सब देवताओं ने युद्ध के लिए सोमपान से पूर्ण इन्द्र देव का आह्वान किया।[ऋग्वेद 5.29.8]
Hey Indr Dev! You enriched & ate the meat of 300 buffalos, drunk the Somras kept in 3 pots, thereafter you killed Vratr, then the demigods-deities invoked you for the war.
उशना यत्सहस्यै ३ रयातं गृहमिन्द्र जूजुवानेभिरश्वैः।
वन्वानो अत्र सरथं यया कुत्सेन देवैरवनोर्ह शुष्णम्
हे इन्द्र देव! आप और कवि जब अभिभवन शील एवं द्रुतगामी अश्वों के साथ कुत्स के घर में उपस्थित हुए, तब आपने शत्रुओं को हिंसित करके कुत्स और देवताओं के साथ एक ही रथ पर आरूढ़ हुए। हे इन्द्र देव! शुष्ण नामक असुर का वध आपने ही किया।[ऋग्वेद 5.29.9]
अभिभवन :: काबू में करना; Overpowering, over coming.
Hey Indr Dev! When you and Kavi reached house of Kuts riding fast moving, riding the horses capable of over powering, you destroyed the enemy and rode the charoite along with Kuts & demigods-deities. Hey Indr Dev! You killed the
प्रान्यच्चक्रमवृहः सूर्यस्य कुत्सायान्यद्वरिवो यातवेऽकः।
अनासो दस्यूँरमृणो वधेन नि दुर्योण आवृणङ्मृध्रवाचः
हे इन्द्र देव! पहले ही आपने सूर्य के दो चक्कों में से एक चक्के को पृथक किया एवं दूसरे एक चक्के को आपने शब्द रहित असुरों को हत बुद्धि करके वज्र द्वारा संग्राम में मारा।[ऋग्वेद 5.29.10]
Hey Indr Dev! You detached one wheel of the charoite of Sun and stunned-speechless the demons by the second wheel killing them in the war with Vajr.
स्तोमासस्त्वा गौरिवीतेरवर्धन्नरन्धयो वैदथिनाय पिप्रुम्।
आ त्वामृजिश्वा सख्याय चक्रे पचन्पक्तीरपिबः सोममस्य
हे इन्द्र देव! गौरिवीति ऋषि के स्तोत्र आपको प्रवर्द्धित करें। आपने विदथि पुत्र ऋजिश्वा के लिए पिप्रु नामक असुर को मारा। ऋजिश्वा नाम वाले किसी ऋषि ने आपकी मित्रता के लिए पुरोडाश आदि को पकाकर आपको निवेदित किया। आपने ऋजिश्वा के सोमरस का पान किया।[ऋग्वेद 5.29.11]
प्रवर्द्धित :: amplify, prolong.
Hey Indr Dev! Let the Strotr-sacred hymns of Rishi Gouriviti amplify, prolong you. You killed the demon Pipu for the sake of Vidathi's son Rijishwa. Rijishwa cooked barley cakes for you and offered them to you. You drunk-enjoyed Somras offered by Rijishwa.
नवग्वासः सुतसोमास इन्द्रं दशग्वासो अभ्यर्चन्त्यकैः।
गव्यं चिदूर्वमपिधानवन्तं तं चिन्नरः शशमाना अप व्रन्
नौ महीनों में समाप्त होने वाले और दस महीनों में समाप्त होने वाले यज्ञ को करने वाले अङ्गिरा लोग सोमाभिषव करके अर्चनीय स्तोत्रों द्वारा इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना करने वाले अङ्गिरा लोगों ने असुरों द्वारा आच्छादित गौ-समूह को मुक्त कर दिया।[ऋग्वेद 5.29.12]
Angiras accomplish the Yagy in a span of 9-10 months, worshiped Indr Dev with sacred hymns and extracted Somras. Worshiping Angiras freed the cows abducted-captivated by the demons.
CAPTIVATED :: मोहित, बंदी बनाना, मोह लेना, आकर्षण करना; capture, glamor, ravish, glamour, spellbind, fascinate, cast a spell.
कथो नु ते परि चराणि विद्वान्वीर्या मघवन्या चकर्थ।
या चो नु नव्या कृणवः शविष्ठ प्रेदु ता ते विदथेषु ब्रवाम
हे धनवान् इन्द्र देव! आपने जिस पराक्रम को प्रकट किया, हम उसको जानते हुए भी किस प्रकार से आपके लिए प्रकट करें कैसे स्तवन करें? हे बलवान् इन्द्र देव! आप जिस नूतन पराक्रम को प्रकट करेंगे, हम अपने यज्ञ में आपके उस पराक्रम का वर्णन करेंगे।[ऋग्वेद 5.29.13]
Hey rich Indr Dev! We are aware of your valour-bravery. How can we express our gratitude and worship you? Hey mighty-powerful Indr Dev! We will describe your valour-bravery in our Yagy.
एता विश्वा चकृवाँ इन्द्र भूर्यपरीतो जनुषा वीर्येण।
या चिन्नु वज्रिन्कृणवो दधृष्वान्न ते वर्ता तविष्या अस्ति तस्याः
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं द्वारा दुर्द्धर्ष्य हैं। आपने अपने प्रकृत बल से प्रत्यक्ष दृश्यमान सम्पूर्ण भुवनों को निर्मित किया। हे वज्र धर! शत्रुओं को शीघ्र ही विनष्ट करते हुए जो कुछ भी करते हैं, आपके उस बल या कर्म का निवारण कोई भी नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 5.29.14]
दुर्द्धर्ष :: जिसका दमन करना कठिन हो। जिसे जल्दी दबाया या वश में न किया जा सके, जिसे परास्त करना या हराना कठिन हो, प्रचंड। प्रबल, धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम, रावण की सेना का एक राक्षस
Hey Indr Dev! You can not be over powered by the demons. You created the visible abodes by your power. Hey Vajr wielding Indr Dev! Your endeavour to destroy the enemy is unmatched beyond their limits.
इन्द्र ब्रह्म क्रियमाणा जुषस्व या ते शविष्ठ नव्या अकर्म।
वस्त्रेव भद्रा सुकृता वसूयू रथं न धीरः स्वपा अतक्षम्
हे अतिशय बलवान् इन्द्र देव! हम लोगों ने आज आपके लिए जिन नूतन स्तोत्रों की रचना की, हम लोगों द्वारा विहित उन सकल स्तोत्रों को आप ग्रहण करें। हम धीमान्, शोभन कर्म करने वाले और धनाभिलाषी हैं। इन भजनीय स्तोत्रों को हम वस्त्र और रथ तुल्य आपको अर्पण करते हैं।[ऋग्वेद 5.29.15]
धीमान् :: बुद्धिमान्, प्रज्ञावान्; slowly, steady.
Hey extremely powerful Indr Dev! Accept the new compositions-hymns, Strotr by us. We are intelligent, prudent devoted to virtuous-pious deeds, desire wealth. We offer-present these worship able Strotr to you like cloths & chariots.(15.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :- बभ्रु आत्रेय, देवता :- इन्द्र ऋर्णचयेन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्।
क स्य वीरः को अपश्यदिन्द्रं सुखरथमीयमानं हरिभ्याम्।
यो राया वज्री सुतसोममिच्छन्तदोको गन्ता पुरुहूत ऊती
हे वज्रधर! बहुतों द्वारा आहूत इन्द्र देव दान योग्य धन के साथ सोमाभिषव करने वाले याजक गण की इच्छा करते हुए रक्षा के लिए याजक गण के घर में जाते हैं। वे पराक्रमी इन्द्र देव कहाँ विद्यमान् हैं? अपने दोनों घोड़ों द्वारा आकृष्ट सुखकर रथ पर जाने वाले इन्द्र देव को किसने देखा है?[ऋग्वेद 5.30.1]
Hey the wielder of Vajr! Worshiped by many, visits the homes of those who extract Somras for their protection, with money for donation. Where is mighty Indr Dev!? Has any one seen Indr Dev riding his comfortable & attractive charoite deploying the two horses?
अवाचचक्षं पदमस्य सस्वरुग्रं निधातुरन्वायमिच्छन्।
अपृच्छमन्याँ उत ते म आहुरिन्द्रं नरो बुबुधाना अशेम
हमने इन्द्रदेव के गुह्य और उग्र स्थान को देखा। अन्वेषण करते हुए हम आधारभूत इन्द्र देव के स्थान में गये। हमने अन्य विद्वानों से भी इन्द्र देव के सम्बन्ध में पूछा। पूछे जाने पर यज्ञ के नेता और ज्ञानाभिलाषियों ने हमसे कहा कि हम लोगों ने इन्द्र देव को प्राप्त किया है।[ऋग्वेद 5.30.2]
We have seen the secret and furious-dangerous places of Indr Dev. We reached the base of Indr Dev while making discovery. We enquired other learned-scholars as well. On being enquired the head of the Yagy, the priest and inquisitives told us that we had had-invoked Indr Dev.
प्र नु वयं सुते या ते कृतानीन्द्र ब्रवाम यानि नो जुजोषः।
वेददविद्वाञ्छृणवच्च विद्वान्वहतेऽयं मघवा सर्वसेनः
हे इन्द्रदेव! आपने जिन कार्यों को किया है, सोमाभिषव करने पर हम स्तोता उनका वर्णन करते हैं। आपने भी हमारे लिए जिन कर्मों का सेवन किया है, उन कर्मों को इसके पहले नहीं जानने वाले लोग जानें। जो लोग जानते हैं, वे नहीं जानने वालों को श्रवण करावें। सब सेनाओं से युक्त होकर धनवान् इन्द्र देव अश्व पर आरोहण कर उन जानने वाले और सुनने वालों की ओर गमन करें।[ऋग्वेद 5.30.3]
Hey Indr Dev! We the Stota, describe your great deeds after extracting Somras. Let those who are unaware of your endeavours made for us, should also know them. Those who are unaware of his deeds should also be told about these. Let rich-wealthy Indr Dev have all his armies; ride the horse & move to those listening & describing his glory.
स्थिरं मनश्चकृषे जात इन्द्र वेषीदेको युधये भूयसश्चित्। 
अश्मानं चिच्छवसा दिद्युतो वि विदो गवामूर्वमुस्त्रियाणाम्
हे इन्द्र देव! उत्पन्न होते ही आपने सब शत्रुओं को जीतने के लिए चित्त को स्थिर किया। अकेले ही आपने अनेक राक्षसों से युद्ध करने के लिए प्रस्थान किया। गौओं के आवरक पर्वत को आपने बल द्वारा विदीर्ण किया। आपने दूध देने वाली गौवों के समूह को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.30.4]
Hey Indr Dev! You decided to win the enemies as soon as you were born. You alone moved to fight many demons. You destroyed the mountain blocking the cows with your might. You got the milk yielding cows.
परो यत्त्वं परम आजनिष्ठाः परावति श्रुत्यं नाम बिभ्रत्।
अतश्चिदिन्द्रादभयन्त देवा विश्वा अपो अजयद्दासपत्नीः
हे इन्द्र देव! आप सर्वप्रधान और उत्कृष्टतम हैं। दूर से ही श्रवणीय नाम को धारित करके जब आप उत्पन्न हुए थे, तब अग्नि आदि देवता भयभीत हुए। वृत्रासुर द्वारा पालित सकल उदक को इन्द्र देव ने वशीभूत कर लिया।[ऋग्वेद 5.30.5]
Hey Indr Dev! You are supreme and best. When you acquired name listened from a distance, (bearing a name widely renowned), demigods-deities like Agni Dev got afraid. Indr Dev controlled the water reserved by Vrata Sur.
तुभ्येदेते मरुतः सुशेवा अर्चन्त्यर्कं सुन्वन्त्यन्धः।
अहिमोहानमप आशयानं प्र मायाभिर्मायिनं सक्षदिन्द्रः
हे इन्द्र देव! ये स्तुति पाठ करने वाले सुखी मरुद्गण स्तोत्र द्वारा सुख उत्पन्न करते हैं। ये आपका ही स्तवन करते हैं और सोम लक्षण अन्न प्रदान करते हैं। जो वृत्रासुर समस्त जलराशि का आच्छादन करके गर्वित हुआ, अपनी शक्ति द्वारा इन्द्र देव ने उस कपटी और देवों को बाधा पहुँचाने वाले वृत्रासुर को नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 5.30.6]
Hey Indr Dev! Marud Gan who recite this prayer get comforts with this Strotr. They worship you and provide the grains having the characterices of Som. Deceptor troubling demigods-deities Vrata Sur who was proud of controlling the entire water bodies was destroyed by Indr Dev through his might.
वि षू मृधो जनुषा दानमिन्वन्नहन्गवा मघवन्त्संचकानः।
अत्रा दासस्य नमुचेः शिरो यदवर्तयो मनवे गातुमिच्छन्
हे धनवान् इन्द्र देव! हम लोग आपकी प्रार्थना करते हैं। आप देव पीड़क वृत्र को वज्र द्वारा पीड़ित करें। आपने जन्म से ही शत्रुओं का संहार किया है। इस युद्ध में आप हमारे सुख के लिए दस्यु नमुचि के सिर को काट डालें।[ऋग्वेद 5.30.7]
Hey wealthy Indr Dev! We worship-pray you. Torture-punish Vrata Sur who teased the demigods-deities. You killed the dacoits-demons soon after your birth. Cut the head of the dacoit Namuchi for our sake-comfort in the war.
युजं हि मामकृथा आदिदिन्द्र शिरो दासस्य नमुचेर्मथायन्।
अश्मानं चित्स्वर्यं १ वर्तमानं प्र चक्रियेव रोदसी मरुद्भ्यः
हे इन्द्र देव! आपने शब्द करने वाले और भ्रमणशील मेघ के तुल्य, दस्यु नमुचि असुर के मस्तक को चूर्ण करके हमारे साथ मित्रता की। उस समय मरुतों के प्रभाव से द्यावा-पृथ्वी के चक्र तुल्य घूमने लगीं।[ऋग्वेद 5.30.8]
Hey Indr Dev! You entered friendship with us after powdering the head of dacoit Namuchi who roared & was dynamic-movable like the clouds. At that moment the heaven & earth started moving-revolving like a wheel.
स्त्रियो हि दास आयुधानि चक्रे किं मा करन्नबला अस्य सेनाः।
अन्तर्ह्यख्यदुभे अस्य धेने अथोप प्रैद्युधये दस्युमिन्द्रः
दस्यु नमुचि ने स्त्रियों को युद्ध साधन बनाया। उस असुर की वह स्त्री सेना मेरा क्या कर लेगी? इस तरह सोचकर इन्द्र देव ने उन सेनाओं के बीच से उस असुर की दो प्रेयसी स्त्रियों को अपने घर में रख लिया और नमुचि से युद्ध करने के लिए प्रस्थान किया।[ऋग्वेद 5.30.9]
Dacoit Namuchi made the women a tool of war. Indr Dev thought that the women army could not harm him, kept two of Namuchi's lovers  in his house and departed to fight demon Namuchi. 
समत्र गावोऽभितोऽनवन्तेहेह वत्सैर्वियुता यदासन्।
सं ता इन्द्रो असृजदस्य शाकैर्यदीं सोमासः सुषुता अमन्दन्
जब गौएँ बछड़ों से विमुख हुई, तब उस समय वे नमुचि द्वारा अपहृत गौएँ इधर-उधर सभी जगह भटक रही थी। बभ्रु ऋषि द्वारा अभिषुत सोमरस से जब इन्द्र देव हर्षित हुए, तब समर्थवान् मरुतों के साथ इन्द्र देव ने बभ्रु की गौओं को बछड़ों के साथ मिला दिया।[ऋग्वेद 5.30.10]
When the cows were separated from their calf abducted by Namuchi, they started roaming hither & thither. When Indr Dev became happy-amused by drinking Somras offered by Babhru, he brought-joined the cows to the calf.
यदीं सोमा बभ्रुधूता अमन्दन्नरोरवृद्वृषभः सादनेषु।
पुरंदरः पपिवाँ इन्द्रो अस्य पुनर्गवामददादुत्रियाणाम्
जब बभ्रु के अभिषुत सोमरस ने इन्द्र देव को हर्षित किया, तब कामनाओं के पूरक इन्द्र देव ने युद्ध में महान् शब्द किया। पुरन्दर (नगर विनाशक) इन्द्र देव ने सोमरस का पान किया और बभ्रु को फिर से दुग्ध देने वाली गौएँ प्रदान की।[ऋग्वेद 5.30.11]
When Indr Dev was pleased with the Somras extracted-offered by Babhru Indr Dev made a loud sound, accomplishing desires. Purandar-destroyer of forts Indr Dev drunk Somras and granted milch cows to Babhru.
भद्रमिदं रुशमा अग्ने अक्रन्गवां चत्वारि ददतः सहस्रा। 
ॠणंचयस्य प्रयता मघानि प्रत्यग्रभीष्म नृतमस्य नृणाम्
हे अग्नि देव! ऋणञ्चय राजा के किंकर रुशम देश वासियों ने मुझे चार हजार गौएँ देकर कल्याण कारक कर्म किया। नेताओं के बीच श्रेष्ठ नेता ऋणञ्चय राजा द्वारा प्रदत्त गौरूप रत्नों को मैंने ग्रहण किया।[ऋग्वेद 5.30.12]
Hey Agni Dev! King Rinachy's citizens of Kinkar country gave me four thousand cows as a welfare measure. I accepted cows amongest the best leaders like jewels.
सुपेशसं माव सृजन्त्यस्तं गवां सहस्त्रै रुशमासो अग्ने।
तीव्रा इन्द्रमममन्दुः सुतासोऽक्तोर्व्युष्टौ परितक्म्यायाः
हे अग्नि देव! ऋणञ्चय राजा के किंकर रुशम देश वासियों ने मुझे अलंकार और आच्छादन आदि से सुसज्जित घर तथा हजारों गौएँ दी। रात्रि के बीतने पर अर्थात् उषाकाल में सरस सोम ने इन्द्र देव को प्रसन्न किया। (गौओं को पाकर बभ्रु ने तुरन्त ही इन्द्र देव को सोमरस पिलाया)।[ऋग्वेद 5.30.13]
Hey Agni Dev! The residents-citizens of country Rusham King Rinachay decorated me, gave a house and thousands of cows. In the morning Indr Dev drunk Somras and became amused-happy.
औच्छत्सा रात्री परितक्म्या याँ ऋणञ्चये राजनि रुशमानाम्।
अत्यो न वाजी रघुरज्यमानो बभ्रुश्चत्वार्यसनत्सहस्रा
रुशम देश के राजा ऋणञ्चय के समीप में ही सभी जगह गमन करने वाली रात्रि बीत गई। बुलाये जाने पर बभ्रु ऋषि ने वेगवान् घोड़े के तुल्य चार हजार शीघ्रगामिनी गौओं को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.30.14]
The night passed in proximity of king Rinachay of the country Rusham. On being invited Babhru Rishi got four thousand cows comparable to fast moving horses.
चतुः सहस्रं गव्यस्य पश्वः प्रत्यग्रभीष्म रुशमेष्वग्ने।
घर्मश्चित्तप्तः प्रवृजे य आसीदयस्मयस्तम्वादाम विप्राः
हे अग्नि देव! हमने रुशम देशवासियों से चार हजार गौएँ प्राप्त की। हम मेधावी हैं। यज्ञ के लिए महावीर के तुल्य सन्तप्त सुवर्ण कलश को हमने रुशम देश वासियों से दूध दूहने के लिए प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.30.15]
Hey Agni Dev! We the inhabitants of the country Rusham got four thousand cows. We obtained a golden pot comparable to Mahavir, for milking cows for the Yagy.(18.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- अवस्यु आत्रेय, देवता :- इन्द्र या कुत्स, छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्रो रथाय प्रवतं कृणोति यमध्यस्थान्मघवा वाजयन्तम्।
यूथेव पश्वो व्युनोति गोपा अरिष्टो याति प्रथमः सिषासन्
धनवान् इन्द्र देव जिस रथ पर अधिष्ठान करते हैं, उस रथ का संचालन भी करते हैं। गोपालक जिस प्रकार से पशुओं के समूह को प्रेरित करते हैं, उसी प्रकार से इन्द्र देव शत्रुसेना को प्रेरित करते हैं। शत्रुओं द्वारा अहिंसित और देवश्रेष्ठ इन्द्र देव शत्रुओं के धन की कामना करते हुए गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.31.1]
Wealthy Indr Dev operate the charoite, he rides. The manner the cow herd growers move-drive the cattle, Indr Dev too drive the enemies. Unharmed by the enemy Indr Dev move-drive to capture-possess their opulence.
आ प्र द्रव हरिवो मा वि वेनः पिशङ्गराते अभि नः सचस्व।
नहि त्वदिन्द्र वस्यो अन्यदस्त्यमेनांश्चिज्जनिवतश्चकर्थ
हे हरि नामक अश्व वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों के अभिमुख भली-भाँति से आवें; किन्तु हम लोगों के प्रति हीन मनोरथ उदासीन होवें। हे बहुविध धन वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों का सेवन करें। हे इन्द्र देव! दूसरी कोई भी वस्तु आपसे श्रेष्ठ नहीं है। जिनको पत्नी नहीं है, उनको आप स्त्री प्रदान करते है।[ऋग्वेद 5.31.2]
Hey Indr Dev master of horses named Hari! Invoke before us duly organised-neutral to the bad intensions-motives. Hey possessor of various opulence Indr Dev! Utilize our services. None is greater-better than you. You grant wife to the unmarried.
उद्यत्सहः सहस आजनिष्ट देदिष्ट इन्द्र इन्द्रियाणि विश्वा।
प्राचोदयत्सुदुघा वव्रे अन्तर्वि ज्योतिषा संववृत्वत्तमोऽवः
जब सूर्य का तेज उषा के तेज से बढ़ जाता है, तब इन्द्र देव याजकगणों को निखिल धन प्रदान करते हैं। वे निवारक पर्वत के बीच से दुग्ध दायिनी निरुद्ध गौओं को मुक्त करते हैं और अपने तेज द्वारा सर्वत्र व्याप्त अन्धकार को दूर करते हैं।[ऋग्वेद 5.31.3]
When the intensity of Sun rays increase with dawn-day break i.e., Usha Indr Dev grant opulence to his worshipers. He liberate the milch cows held between the mountains and remove darkness with his aura all around.
अनवस्ते रथमश्वाय तक्षन्त्वष्टा वज्रं पुरुहूत द्युमन्तम्।
ब्रह्माण इन्द्रं महयन्तो अर्कैरवर्धयन्नहये हन्तवा उ
हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! ऋभुओं ने आपके रथ को घोड़ों से संयुक्त होने के योग्य बनाया, त्वष्टा ने आपके वज्र को द्युतिमान् किया। इन्द्र देव की पूजा करने वाले अङ्गिरा लोगों ने अथवा मरुतों ने वृत्रासुर वध के लिए स्तुतियों द्वारा इन्द्र देव को संवर्द्धित किया।[ऋग्वेद 5.31.4]
Hey Indr Dev worshiped-prayed by many! Ribhus made your horses capable to be deployed, Twasta made your charoite movable. Worshipers of Indr Dev Angiras & Marud Gan promoted-boosted him with the prayers-sacred hymns. 
BOOST :: बढ़ाना, बढ़ावा देना, प्रोत्साहन, सहारा, संवर्द्धित करना; promotion, encouragement, prompting, solicitation, jog, incentive, encouragement, stimulus, stimulation, boost, fillip, support, recourse, sustenance, anchor, mainstay.
वृष्णे यत्ते वृषणो अर्कमर्चानिन्द्र ग्रावाणो अदितिः सजोषाः।
अनश्वासो ये पवयोऽरथा इन्द्रेषिता अभ्यवर्तन्त दस्यून्
हे इन्द्र देव! आप अभिलाषाओं के पूरक है। सेचन समर्थ मरुतों ने जब आपकी प्रार्थना की, तब सोमाभिषव करने वाले पत्थर भी प्रसन्न होकर संगत हुए। इन्द्र देव द्वारा प्रेषित होने पर अश्व हीन और रथ हीन मरुतों ने अभिगमन करके शत्रुओं को पराजित किया।[ऋग्वेद 5.31.5]
Hey Indr Dev! You accomplish the desires. When Marud Gan capable of watering-irrigation requested you, then the stones used for crushing-extracting Somras became happy-amused. Inspired by Indr Dev, though without horses & charoite, yet the Marud Gan attacked & defeated the enemies. 
प्र ते पूर्वाणि करणानि वोचं प्र नूतना मघवन्या चकर्थ।
शक्तीवो यद्विभरा रोदसी उभे जयन्नपो मनवे दानुचित्राः
हे धनवान् इन्द्र देव! हम आपके पुरातन तथा नूतन कर्मों का स्तवन करते हैं। आपने जिन कार्यों को किया, हम उसे कहते हैं। हे वज्रधर इन्द्र देव! आप द्यावा-पृथ्वी को वशीभूत करके मनुष्यों के लिए विचित्र जल धारित करते है।[ऋग्वेद 5.31.6]
Hey wealthy Indr Dev! We narrate-describe your present & previous endeavours. Hey Vajr wielding Indr Dev! You mesmerize the heavens & earth and hold amazing water for the humans.
तदिन्नु ते करणं दस्म विप्राहिं यघ्नन्नोजो अत्रामिमीथाः।
शुष्णस्य चित्परि माया अगृभ्णाः प्रपित्वं यन्नप दस्यूँरसेधः
हे दर्शनीय तथा बुद्धिमान् इन्द्र देव! वृत्रासुर को मार करके आपने जो अपने बल को इस लोक में प्रकट किया, वह आपका ही कर्म है। आपने शुष्ण असुर की माया को जानकर उसे पकड़ा और युद्धस्थल में जाकर आपने असुरों को विनष्ट किया।[ऋग्वेद 5.31.7]
Hey beautiful-handsome Indr Dev! The might & valour which you demonstrated in this abode-world is your deed. You removes the cast of Shushn the demon, captured him and destroyed-vanished the demons in the war. 
त्वमपो यदवे तुर्वशायारमयः सुदुघाः पार इन्द्र।
उग्रमयातमवहो ह कुत्सं सं ह यद्वामुशनारन्त देवाः
हे इन्द्र देव! नदी तट में प्रवृद्ध होकर अर्थात् अवस्था न करके यदु और तुर्वश राजाओं को आपने वनस्पतियों को बढ़ाने वाला जल प्रदान किया। हे इन्द्र देव! कुत्स के प्रति आक्रमण करने वाले भयानक शुष्ण को मारकर आपने कुंत्स को अपने घर में पहुँचा दिया। तब उशना और देवताओं ने आप दोनों की स्तुति की।[ऋग्वेद 5.31.8]
Hey Indr Dev! You granted water for irrigation to the kings Yadu & Turvash. Hey Indr Dev! You released Kuts from captivity, killed furious-dangerous Shushn and took him to his home. Then Ushna & demigods-deities prayed you.
इन्द्राकुत्सा वहमाना रथेना वामत्या अपि कर्णे वहन्तु।
निः षीमद्भ्यो धमथो निः षधस्थान्मघोनो हृदो वरथस्तमांसि
हे इन्द्र देव और कुत्स ! एक ही रथ पर आरूढ़ होकर आप दोनों को अश्व गण याजक गणों के निकट ले आयें। आप दोनों ने शुष्ण को उसके आवासभूत जल से दूर कर दिया। आप दोनों ने धनवान् याजक गणों के हृदय से अज्ञान रूपी अन्धकार को भी दूर कर दिया।[ऋग्वेद 5.31.9]
Hey Indr Dev & Kuts! Both of  you rode the charoite together and the horses derived you to the Ritviz-worshipers. You removed-separated Sushn from his base, water. You removed the ignorance from the hearts-innerself of the worshipers-Ritviz.
वातस्य युक्तान्त्सुयुजश्चिदश्वान्कविश्चिदेषो अजगन्नवस्युः।
विश्वे ते अत्र मरुतः सखाय इन्द्र ब्रह्माणि तविषीमवर्धन्
हे इन्द्र देव! विद्वान् अवस्यु नामक ऋषि ने वायु तुल्य वेगवान् और रथ में भली भाँति से युक्त करने के योग्य अश्वों को प्राप्त किया। अवस्यु के मित्रभूत सकल स्तोताओं ने, स्तोत्रों द्वारा आपके बल को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.31.10]
Hey Indr Dev! Rishi Avasyu got the horses, fast moving like the air & deployed them in the charoite. All Stota, friendly with Avasyu, attained your strength-power by virtue of Strotr.
सूरश्चिद्रथं परितक्म्यायां पूर्वकरदुपरं जूजुवांसम्।
भरच्चक्रमेतशः सं रिणाति पुरो दधत्सनिष्यति क्रतुं नः
पूर्व में जब एतश ऋषि के साथ सूर्य देव का युद्ध हुआ, तब इन्द्र देव ने सूर्य देव के वेगवान् रथ की गति को अवरुद्ध कर दिया। इन्द्र देव ने पूर्व में द्विचक्र रथ के एक चक्र का हरण कर उसी चक्र द्वारा वे शत्रुओं को विनष्ट करते हैं। हम लोगों को पुरस्कृत करके इन्द्र देव हम लोगों के यज्ञ का सेवन करें।[ऋग्वेद 5.31.11]
In past, when Atash Rishi fought with Sury Dev, Indr Dev blocked his fast moving charoite. He took off one wheel of his charoite out of the two and destroy the enemy with that wheel. Let Indr Dev reward us and join our Yagy. 
आयं जना अभिचक्षे जगामेन्द्रः सखायं सुतसोममिच्छन्।
वदन्ग्रावाव वेदिं भ्रियाते यस्य जीरमध्वर्यवश्चरन्ति
हे मनुष्यों! आप लोगों को देखने के लिए इन्द्र देव सोमाभिषव करने वाले मित्र स्वरूप याजक गणों की इच्छा करते हुए आये। अध्वर्युगण जिस पत्थर का प्रेरण करते हैं, वह सोमाभिषव करने वाला पत्थर शब्द करता हुआ वेदी के ऊपर आरोहण करता है।[ऋग्वेद 5.31.12]
Hey humans! Indr Dev visited the friends desirous of Somras to see them. The stone used by the priests for extracting Somras ride-stay over the Yagy Vedi making sound.
ये चाकनन्त चाकनन्त नू ते मर्ता अमृत मो ते अंह आरन्।
वावन्धि यज्यूँरुत तेषु  धेह्योजो जनेषु येषु ते स्याम॥
हे अमरमण शील इन्द्र देव! जो मनुष्य आपकी कामना करता है और शीघ्रता पूर्वक आपकी अभिलाषा करता है, उस मरण शील मनुष्य का कोई अनर्थ नहीं होता। आप याजक गणों का सेवन करें, उनके प्रति प्रसन्न होवें। जिन मनुष्यों के बीच में हम लोग स्तोता हैं, वे सब आपके हों। हे इन्द्र देव! आप उन मनुष्यों को बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.31.13]
अनर्थ :: दुर्घटना, महाविपदा, भयंकर घटना, अनर्थ, सर्वनाश; disaster, perversion.Hey immortal Indr Dev! You accomplish the desires of one who wish to invoke you. He is protected from disasters. Be happy with the worshipers. Those who appoint us as Stota should belong to you. Hey Indr Dev! Grant them might-power.(18.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- गातु  आत्रेय, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्।
अदर्दरुत्समसृजो वि खानि त्वमर्णवान्बद्बधानाँ अरम्णाः।
महान्तमिन्द्र पर्वतं वि यद्वः सृजो वि धारा अव दानवं हन्
हे इन्द्र देव! आपने वर्षा करने वाले बादलों को विदीर्ण किया और मेघस्थ जल के निर्गमन द्वार को बनाया। हे इन्द्र देव! आपने प्रभूत मेघ को उद्घाटित करके जल बरसाया एवं दनु पुत्र वृत्रासुर का वध किया।[ऋग्वेद 5.32.1]
विदीर्ण :: चीर-फाड़ करना, तोड़ देना, टूटा हुआ, निहत; laciniate, fissured, teared-torn, cloven, cleft, rimose.
Hey Indr Dev! You teared the rain clouds, allowed to water stored in them to flow and killed Vrata Sur-son of Danu.
त्वमुत्साँ ऋतुभिर्बद्बधानाँ अरंह ऊधः पर्वतस्य वज्रिन्।
अहिं चिदुग्र प्रयुतं शयानं जघन्वाँ इन्द्र तविषीमधत्थाः
हे वज्रवान् इन्द्र देव! आप वर्षाकाल में निरुद्ध मेघों को बन्धन मुक्त करें। आप मेघ को बल सम्पन्न करें। हे उग्र इन्द्र देव! जल में शयन करने वाले वृत्रासुर को आपने मारा और अपने बल को प्रख्यात किया।[ऋग्वेद 5.32.2]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Let the clouds rain during rainy season. Granted-invigorated the strength of the cloud. Hey furious Indr Dev! You killed Vrata Sur sleeping in the water and enhanced-boosted your reputation, fame & name.
त्यस्य चिन्महतो निर्मृगस्य वधर्जघान तविषीभिरिन्द्रः।
य एक इदप्रतिर्मन्यमान आदस्मादन्यो अजनिष्ट तव्यान्
अप्रतिद्वन्द्वी एक मात्र इन्द्र देव ने हवि प्रभूत हिरण के तुल्य शीघ्रगामी उस वृत्रासुर के आयुधों को अपने बल द्वारा विनष्ट कर दिया। उस समय वृत्रासुर के शरीर से दूसरा अतिशय बलवान असुर प्रसन्न हुआ।[ऋग्वेद 5.32.3]
Indr Dev without a rival, destroyed-annihilated the weapons of Vrata Sur who was quick like  a deer, leading to added strength in the body of another demon.
त्यं चिदेषां स्वधया मदन्तं मिहो नपातं सुवृधं तमोगाम्।
वृषप्रभर्मा दानवस्य भामं वज्रेण वज्री नि जघान शुष्णम्
वर्षणशील बादलों के ऊपर प्रहार करने वाले वज्रधर इन्द्रदेव ने वज्र द्वारा बलवान् शुष्ण का वध किया। शुष्ण वृत्रासुर के क्रोध से उत्पन्न होकर अन्धकार में भ्रमण कर रहा था और सेचन समर्थ बादलों की रक्षा करते हुए वह समस्त प्राणियों के अन्न को स्वयं खाकर प्रसन्न होता था।[ऋग्वेद 5.32.4]
Vajr wielding Indr Dev, who strike the rain clouds, struck mighty Shushn who was roaming full of anger protecting the rain clouds and eating happily, the food grains of all living beings.
त्यं चिदस्य क्रतुभिर्निषत्तममर्मणो विददिदस्य मर्म।
यदीं सुक्षत्र प्रभृता मदस्य युयुत्सन्तं तमसि हर्म्ये धाः
हे बलवान इन्द्र देव! मादक सोमरस के पान से हर्षित होकर आपने अन्धकार में निमग्न युद्धाभिलाषी वृत्रासुर को जाना। अपने को अवध्य समझने वाले वृत्रासुर के प्राण स्थान को आपने उसके कार्यों द्वारा जाना।[ऋग्वेद 5.32.5]
Hey mighty Indr Dev! You identified Vrata Sur desirous of war-fight, hiding under darkness. You identified-sensed the location of Vrata Sur's source of his energy (Pran Vayu); who considered himself immortal.
त्यं चिदित्था कत्पयं शयानमसूर्ये तमसि वावृधानम्।
तं चिन्मन्दानो वृषभः सुतस्योचैरिन्द्रो अपगूर्या जघान
वृत्रासुर सुखकर उदक के साथ जल में शयन करता हुआ अन्धकार में वर्द्धमान हो रहा था। अभिषुत सोमरस पान से हर्षित होकर अभिलाषाओं के पूरक इन्द्र देव ने वज्र को ऊपर उठाकर उसका वध किया।[ऋग्वेद 5.32.6]
Vrata Sur was sleeping-resting comfortably under water, growing under the shroud of darkness. Amused by drinking Somras, Indr Dev, who accomplish desires, killed him with Vajr.
Vrata Sur himself wanted to be killed-released from the incarnation as a demon.
उद्यदिन्द्रो महते दानवाय वधर्यमिष्ट सहो अप्रतीतम्।
यदीं वज्रस्य प्रभृतौ ददाभ विश्वस्य जन्तोरधमं चकार
जब इन्द्र देव ने उस प्रभूत दानव वृत्रासुर के प्रति विजयी वज्र को उठाया और जब वृत्रासुर पर उसके द्वारा भीषण प्रहार किया, तब उसे समस्त प्राणियों की अपेक्षा निम्नतम स्थिति में पहुँचा दिया।[ऋग्वेद 5.32.7]
Indr Dev raised Vajr-thunder Volt and struck furiously over Vrata Sur, leading him to lowest level of all species-living beings.
त्यं चिदर्णमधुपं शयानमसिन्वं वव्रं मह्याददुग्रः।
अपादमत्रं महता वधेन नि दुर्योण आवृणङ्मृध्रवाचम्
उग्र इन्द्र देव ने महान्, गमनशील बादलों को घेरकर शयन करने वाले, जल-रक्षक, शत्रुओं के संहारक और सभी को आच्छादित करने वाले वृत्रासुर को पकड़ लिया और उसके अनन्तर संग्राम में पाद रहित परिमाण रहित और जुम्भाभिभूत वृत्रासुर को अपने प्रभूत वज्र द्वारा क्षत-विक्षत कर दिया।[ऋग्वेद 5.32.8]
Furious Indr Dev, protector of water-clouds, destroyer of the enemies caught Vrata Sur who tortured all living beings, slept by controlling the movable clouds, in them. Dev Raj cut-slew Vrata Sur was dimensionless, into pieces in the war, loosing his limbs.
को अस्य शुष्मं तविषीं वरात एको धना भरते अप्रतीतः।
इमे चिदस्य ज्रयसो नु देवी इन्द्रस्यौजसो भियसा जिहाते
इन्द्र देव के शोषक बल का निवारण कौन कर सकता है? किसी के द्वारा भी अप्रतीयमान इन्द्र देव अकेले ही शत्रुओं के धन का हरण करते हैं। द्युतिमान् द्यावा-पृथ्वी वेगवान इन्द्र देव के बल से भयभीत होकर शीघ्र ही चलायमान होती हैं।[ऋग्वेद 5.32.9]
Who can escape from the might of Indr Dev? He alone snatch the wealth of the enemies. Radiant heaven & earth move due to the fear of Indr Dev. 
न्यस्मै देवी स्वधितिर्जिहीत इन्द्राय गातुरुशतीव येमे।
सं यदोजो युवते विश्वमाभिरनु स्वधाव्ने क्षितयो नमन्त
स्वयं धारणशील और द्युतिमान् द्युलोक इन्द्र देव के लिए नम्र होकर रहता है। भूमि अभिलाषिणी स्त्री के तरह वह इन्द्र देव के लिए आत्मसमर्पण करती है। जब इन्द्रदेव अपने समस्त बल को प्रजाओं के बीच में स्थापित करते हैं, तब मनुष्यगण अनुक्रम से बलवान् इन्द्रदेव के लिए नमस्कार करते हैं।[ऋग्वेद 5.32.10]नम्र :: विनीत, सविनय,  निरहंकार, विनयपूर्ण, सरल, सादा, संकोच, शर्मीला, विनयशील; meek, humble, unassuming.
Self sustaining radiant heaven is meek-humble towards Indr Dev. It surrender itself to Indr Dev like a woman, desirous of land. Humans salute-prostrate in front of Indr Dev sequentially, when he demonstrate-illustrate his might before the populace.
एकं नु त्वा सत्पतिं पाञ्चजन्यं जातं शृणोमि यशसं जनेषु।
तं मे जगृभ्र आशसो नविष्ठं दोषा वस्तोर्हवमानास इन्द्रम्
हे इन्द्र देव! हमने ऋषियों से श्रवण किया है कि आप मनुष्यों के बीच में मुख्य हैं, सज्जनों के पालक हैं, पञ्चजन मनुष्यों के हित के लिए उत्पन्न हुए हैं और यशोयुक्त हैं। दिन-रात प्रार्थना करने वाली और अपनी अभिलाषाओं को कहने वाली हमारी सन्तान स्तुति योग्य इन्द्रदेव को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.32.11]
Hey Indr Dev! We have heard from the Rishis-sages that you are the leader of humans and nurture-nourish the gentle, born for their welfare and is revered-respected. Let our progeny devoted to prayers during the day & night explaining their desires invoke Indr Dev.
एवा हि त्वामृतुथा यातयन्तं मघा विप्रेभ्यो ददतं शृणोमि।
किं ते ब्रह्माणो गृहते सखायो ये त्वाया निदधुः काममिन्द्र
हे इन्द्र देव! हमने सुना है कि आप समय-समय पर जन्तुओं को प्रेरित करते हैं और स्तोताओं को धन प्रदान करते हैं, यह मिथ्या ही मालूम पड़ता है। हे इन्द्र देव! जो स्तोता आपमें अपनी अभिलाषा स्थापित करते हैं, आपके वे महान् मित्र आपसे क्या प्राप्त करते हैं?[ऋग्वेद 5.32.12]
Hey Indr Dev! We have heard that you inspire living beings from time to time and grant wealth to the Stota, though it appears false-wrong. What can your great friends get, who put their desires forward-in front of you?(19.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- प्राजापत्य संवरण, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्।
महि महे तवसे दीध्ये नॄनिन्द्रायेत्था तवसे अतव्यान्।
यो अस्मै सुमतिं वाजसातौ स्तुतो जने समर्यश्चिकेत
सम्बरण ऋषि अत्यन्त दुर्बल हैं। हम महाबलवान् इन्द्र देव के लिए प्रभूत स्तोत्र करते हैं, जिससे हमारे समान मनुष्य बलवान् हों। युद्ध में अन्न लाभ के लिए प्रार्थित होने पर इन्द्र देव स्तोताओं के साथ हमारे प्रति अनुग्रह प्रदर्शन करें।[ऋग्वेद 5.33.1]
Sambaran Rishi is too weak. We recite ample-abundant Strotr for the sake of highly powerful-mighty Indr Dev, so that the humans are mighty like us. On being requested for food grains during the war, let Indr Dev oblige us as well, along with demigods-deities.
स त्वं न इन्द्र धियसानो अर्कैर्हरीणां वृषन्योक्त्रमश्रेः।
या इत्था मघवन्ननु जोषं वक्षो अभि प्रार्यः सक्षि जनान्
हे अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों का ध्यान करते हुए एवं जो स्तोत्र आप में प्रेम उत्पन्न करें, उन स्तोत्रों द्वारा रथ में जुते हुए घोड़ों की लगाम को अपने हाथ में धारण करें। हे मघवन्! इस प्रकार से आप हमारे शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 5.33.2]
Hey desires accomplishing Indr Dev! Hold the reins of the horses deployed in the charoite, think of us and the Strotr which generate love for you in our hearts. Hey Maghvan-Indr Dev! In this manner we will be able to defeat the enemy.
न ते त इन्द्राभ्य १ स्मदृष्वायुक्तासो अब्रह्मता यदसन्।
तिष्ठा रथमधि तं वज्रहस्ता रश्मिं देव यमसे स्वश्वः
हे तेजोविशिष्ट इन्द्र देव! जो मनुष्य आपके भक्तों से भिन्न है और जो आपके साथ नहीं रहता, ब्रह्मकर्म से हीन होने के कारण वह मनुष्य आपका नहीं। हे वज्रधारी इन्द्र देव! इसलिए आप हमारे यज्ञ में आने के लिए उस रथ पर आरुण हों, जिस रथ का सञ्चालन आप स्वयं करते हैं।[ऋग्वेद 5.33.3]
Hey Indr Dev, possessor of special energy-power! The person who is different from your worshipers, is not associated with you, does not belong to you, being without the Brahm Karm-duties assigned by Brahma Ji. Hey Vajr wielding Indr Dev! Ride that charoite which is driven by you, while coming to join our Yagy.
पुरू यत्त इन्द्र सन्त्युक्था गवे चकर्थोर्वरासु युध्यन्।
ततक्षे सूर्याय चिदोकसि स्वे वृषा समत्सु दासस्य नाम चित्
हे इन्द्र देव! आपके अनेक वर्णनीय स्तोत्र हैं; इसीलिए आप उर्वरा भूमि के ऊपर जल वर्षण करने के लिए वृष्टि निरोध कारकों का संहार करते हैं। आप कामनाओं के पूरक हैं। आप सूर्य देव के अपने स्थान में वृष्टि प्रतिबन्ध कारक दासों के साथ युद्ध करके उनके नाम तक को नष्ट कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.33.4]
Hey Indr Dev! There are several praise worthy-explanatory Strotr pertaining to you, hence you destroy the factors which block rains to fertile land. You accomplish desires. You destroy the slaves-factors in the abode of Sun, which obstruct rains.
वयं ते त इन्द्र ये च नरः शर्धो जज्ञाना याताश्च रथाः।
आस्माञ्जगम्यादहिशुष्म सत्वा भगो न हव्यः प्रभृथेषु चारुः
हे इन्द्र देव! हम लोग जो ऋत्विक याजकगण आदि हैं, वे सब आपके हैं। यज्ञ करके हम लोग आपके बल को बढ़ाते हैं और होम-हवन करने के लिये आपके निकट उपस्थित होते हैं। हे इन्द्र देव! आपका बल सर्वव्यापी है। आपके अनुग्रह से रणक्षेत्र में भग के तुल्य प्रशंसनीय (चारु) विश्वस्त सेवक आदि हमारे निकट आयें।[ऋग्वेद 5.33.5]
Hey Indr Dev! We all, the Ritviz, hosts etc. belong to you. We boost your power-might by performing Yagy. We come-approach you for conducting Hom-Hawan. Hey Indr Dev! Your power pervade all places. Let appreciable and reliable workers like Bhag come to us in the war. 
पपृक्षेण्यमिन्द्र त्वे ह्योजो नृम्णानि च नृतमानो अमर्तः।
स न एनींवसवानो रयिं दाः प्रार्यः स्तुषे तुविमघस्य दानम्
हे इन्द्र देव!आपका बल पूजनीय है। आप सर्वव्यापी और अमरणशील हैं। अपने तेज से संसार को आच्छादित करके श्वेतवर्ण का प्रभूत धन हम लोगों को प्रदान करें। हम लोग प्रभूत धन देने वाले दाता से दान की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.33.6]
Hey Indr Dev! You might deserve worship. You are immortal pervading every place. Illuminate the universe with your aura and grant us white coloured ample-abundant wealth. We request the donor who who donate ample wealth to us.
एवा न इन्द्रोतिभिरव पाहि गृणतः शूर कारून्।
उत त्वचं ददतो वाजसातौ पिप्रीहि मध्वः सुषुतस्य चारोः
हे शूर इन्द्र देव ! हम लोग आपकी प्रार्थना करते हैं और यजन करते हैं। आप रक्षा करके हम लोगों का पालन करें। युद्ध में आप अपने आच्छादक रूप को प्रदान करके हमारे अभिषुत सोमरस के द्वारा प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 5.33.7]
Hey brave Indr Dev! We worship-pray you and perform Yagy. Support, protect & nurture us. Be happy by drinking Somras extracted by us, granting us your protective form in the war.
उत त्ये मा पौरुकुत्स्यस्य सूरेस्त्रसदस्योर्हिरणिनो रराणाः।
वहन्तु मा दश श्येतासो अस्य गोरिक्षितस्य क्रतुभिर्नु सश्चे
गिरिक्षित गोत्रोत्पन्न पुरुकुत्स के पुत्र त्रसदस्यु हिरण्यवान् और प्रेरक हैं। उन्होंने हमें जो दस अश्व प्रदान किये, वे शुभ्रवर्ण वाले दसों अश्व हमें वहन करें। रथ नियोजनादि कार्यों द्वारा हम शीघ्र ही गमन करें।[ऋग्वेद 5.33.8]
Trasdasyu, son of Purukuts born in Girikshit dynasty is inspiring & possessor of gold. Let the ten white-fair coloured horses granted by him to us support-bear us. We should march quickly by managing the charoite.
उत त्ये मा मारुताश्वस्य शोणाः क्रत्वामघासो विदथस्य रातौ।
सहस्रा मे च्यवतानो ददान आनूकमर्यो वपुषे नार्चत्
मरुताश्व के पुत्र विदथ ने हमारे लिए जिन रक्त वर्ण और श्रेष्ठ (शीघ्र गामी) अश्वों को प्रदान किया, वे हमें वहन करें। उन्होंने हमको सहस्रों प्रकार के धन और अपने शरीर का अलंकार भी प्रदान किया।[ऋग्वेद 5.33.9]
Let the fast moving, red coloured horses granted to us Marutashrav's, son of Vidath bear-support us. They granted thousands of kinds wealth and jewels, ornaments for decorating our body.
उत त्ये मा ध्वन्यस्य जुष्टा लक्ष्मण्यस्य सुरुचो यतानाः।
मह्ना रायः संवरणस्य ऋषेर्व्रजं न गावः प्रयता अपि ग्मन्
पुत्र ध्वन्य ने हमें जो दीप्तिमान् और पराक्रमी अश्व प्रदान किया, वे हमें वहन करे। गौएँ जैसे वे गोचरण स्थान (गोष्ठ) को प्राप्त करती हैं, उसी प्रकार से उनके (ध्वन्य) द्वारा प्रदत्त महान् धन सम्बरण ऋषि के घर में उपस्थित हों।[ऋग्वेद 5.33.10] 
Let the radiant & brave horses given to us by son Dhvany, bear-support us. Let the great wealth be present in the house-home of Sambaran Rishi granted by Dhvany, just like the cows occupy the cow shed.(20.06.2023)
ऋषि :- 
जिनके शत्रु उत्पन्न नहीं हुए हैं और जो शत्रुओं का विनाश करते हैं, वे अक्षीण, स्वर्गप्रद और अपरिमित हव्य प्राप्त करते हैं। हे ऋत्विको! उन्हीं इन्द्र देव के लिए आप लोग पुरोडाश पकायें और अपने उचित कर्म को धारित करें। इन्द्र देव स्तोत्र वाहक और बहुस्तुत्य हैं।[ऋग्वेद 5.34.1]
अक्षीण :: जो क्षीण या दुबला-पतला) न हो, मोटा, हष्ट-पुष्ट, जो किसी तरह घटा न हो, अटूट, निरंतर, स्थायी, स्थिर, दृढ़, अक्षय, सदा भरपूर होनेवाला; unabated, unceasing.
His enemies are not born and he destroy the enemies, is unabated-unceasing, heavenly and get unlimited offerings. Hey Ritviz! Cook barley cakes for him and perform right-proper duties. Indr Dev is carrier of Strotr and worshiped by many people.
आ यः सोमेन जठरमपिप्रतामन्दत मघवा मध्वो अन्धसः।
यदींमृगाय हन्तवे महावधः सहस्रभृष्टिमुशना वधं यमत्
इन्द्र देव ने सोमरस द्वारा अपने उदर को परिपूर्ण किया और मधुर सोमरस के पान से प्रमुदित हुए, जबकि मृग नामक असुर को मारने की इच्छा करके उन्होंने अपरिमित तेज वाले महान वज्र को हाथ में उठाया।[ऋग्वेद 5.34.2]
Indr Dev filled his stomach with Somras and lifted great Vajr with infinite speed to kill the demons named Mrag.
यो अस्मै प्रंस उत वा य ऊधनि सोमं सुनोति भवति द्युमाँ अह।
अपाप शक्रस्ततनुष्टिमूहति तनूशुभ्रं मघवा यः कवासखः
जो याजक गण इन्द्र देव के लिए अहर्निश (दिन-रात) सोमाभिषव करते हैं, वे द्युतिमान् होते हैं। जो यजमान यज्ञ नहीं करते; लेकिन धर्म-सन्तति की कामना करते हैं और शोभनीय अलंकार आदि धारण करते हैं तथा धनवान होकर बुरे आचरण करने वालों पुरुषों से मित्रता करते हैं, ऐसे लोगों का इन्द्र देव परित्याग कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.34.3]
The Ritviz-hosts who extract Somras day & night for Indr Dev become aurous-radiant. He rejects those who do not conduct Yagy, but are desirous of pious progeny, bear beautiful jams-jewels, ornaments and become friendly-intimate with the wicked on becoming rich.
यस्यावधीत्पितरं यस्य मातरं यस्य शक्रो भ्रातरं नात ईषते।
वेतीद्वस्य प्रयता यतंकरो न किल्बिषादीषते वस्व आकरः
जो मनुष्य यजमान के माता-पिता और भ्राता का वध करता है, उस यष्टा के पास इन्द्र देव नहीं जाते और उसके द्वारा प्रदत्त हव्य स्वीकार नहीं करते। वे धनाधिपति इन्द्र देव पाप से दूर रहते हैं।[ऋग्वेद 5.34.4]
Indr Dev neither visit the person-host, Ritviz who kills his parents & brothers nor accept his offerings. Wealthy Indr Dev keep-maintain distance from the sin-sinners.
न पञ्चभिदशभिर्वष्ट्यारभं नासुन्वता सचते पुष्यता चन।
जिनाति वेदमुया हन्ति वा धुनिरा देवयुं भजति गोमति व्रजे
शत्रुओं के वध के लिए इन्द्र देव पाँच या दस सहायकों की कामना नहीं करते। जो सोमाभिषव नहीं करता और बन्धुओं का पोषण नहीं करता, उसके साथ इन्द्र देव संगति नहीं करते हैं। शत्रुओं को कम्पायमान करने वाले इन्द्र देव उसे बाधा पहुँचाते हैं और उसका वध करते हैं। इन्द्र देव यज्ञ करने वाले याजकों को गौओं से युक्त गृह प्रदत्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.34.5]
Indr Dev do not wish to have four or five companions-accomplices for killing the enemies. He do not keep-maintain company with one, who do not extract Somras and nourish-support his brothers. Indr Dev tremble-shake the enemies, obstruct them and kill them. He grant cows & houses to the people who conduct Yagy.
वित्वक्षणः समृतौ चक्रमासजोऽसुन्वतो विषुणः सुन्वतो वृधः।
इन्द्रो विश्वस्य दमिता विभीषणो यथावशं नयति दासमार्यः
संग्राम में शत्रुओं को क्षीण करने वाले इन्द्र देव रथ चक्र को वेगवान् करते हैं। सोमाभिषव नहीं करने वाले याजकगण से वे दूर रहते हैं और सोमाभिषण करने वाले यजमान को वर्द्धित करते हैं। विश्व शिक्षक और भय जनक स्वामी इन्द्र देव यथेच्छ कर्म सेवाकर्म करने वाले (मनुष्यों) को अपने वशीभूत कर लेते हैं।[ऋग्वेद 5.34.6]
Indr Dev, who weaken the enemy in the war increase the speed of the charoite wheels. He maintains distance from the Ritviz-people who do not extract Somras and boost the hosts, who do it. The Vishw Guru (teacher of the whole world), cause for fear, mesmerise-enchant the people who devote them selves to community welfare-service.
समींपणेरजति भोजनं मुषे वि दाशुषे भजति सूनरं वसु।
दुर्गे चन ध्रियते विश्व आ पुरु जनो यो अस्य तविषीमचुक्रुधत्
इन्द्र देव लोभियों के धन का हरण कर लते हैं और मनुष्यों की शोभा को बढ़ाने वाले उस धन को तथा बहुविध अन्य धन को लाकर यजन करने वाले याजक गणों को देते हैं अर्थात यज्ञ नहीं करने वालों का धन यज्ञ करने वालों को देते हैं। जो व्यक्ति इन्द्र देव को क्रोध युक्त करता है, वह व्यक्ति महान् कष्टों में घिर जाता है।[ऋग्वेद 5.34.7] 
Indr Dev snatches the wealth of the greedy-avaricious and hand it over to the Ritviz. Any one who anger him is involved in various troubles, pains, tortures, difficulties.
सं यज्जनौ सुधनौ विश्वशर्धसाववेदिन्द्रो मघवा गोषु शुभ्रिषु।
युजं ह्य १ न्यमकृत प्रवेपन्युदीं गव्यं सृजते सत्वभिर्धुनिः
शोभन धन वाले और बृहत् साहाय्य वाले दो व्यक्ति जब शोभन गौओं के लिए परस्पर प्रतिद्वन्द्वी होते हैं, तब ऐसा जानकर इन्द्र देव यज्ञ करने वाले याजक गण की सहायता करते हैं। मेघों को कँपाने वाले इन्द्र देव उस यज्ञकारी याजक गण को गौ समूह प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.34.8]
When there are two rivals for acquiring cows, Indr Dev helps the Ritviz. Indr Dev, who shake-trembles the clouds, help the Ritviz involved in Yagy and grant-give him cows.
सहस्रसामाग्निवेशिं गृणीषे शत्रिमग्न उपमां केतुमर्यः।
तस्मा आपः संयतः पीपयन्त तस्मिन्क्षत्रममवत्त्वेषमस्तु
हे अङ्गनादि गुण विशिष्ट इन्द्र देव! हम अपरिमित धन के दाता, अग्नि वेश के शत्रि नामक राजर्षि की प्रार्थना करते हैं। वे उपमान भूत और प्रख्यात हैं। जलराशि उन्हें अच्छी तरह से सन्तुष्ट करें।[ऋग्वेद 5.34.9]
अँगना :: स्त्री, नारी, सुंदर अंगवाली स्त्री, कामिनी, सार्वभौम नामक उत्तर के दिग्गज की स्त्री, कन्या राशि, वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशियाँ; woman, beautiful woman.
उपमान :: वह वस्तु या व्यक्ति जिससे उपमा दी जाए; समानता, समरूपता, अभेद, अनुरूपता;  resemblance, similarity, analogy.
Hey Indr Dev with special features for the women! We worship-pray Shatri, a Raj Rishi, the son of Agni Vesh, the donor of unlimited wealth. He possess resemblance, similarity, analogy  and is famous.(22.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :-प्रभूवसुरांगिरस , देवता :- इन्द्रछन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति । 
यस्ते साधिष्ठोऽवस इन्द्र क्रतुष्टमा भर।
अस्मभ्यं चर्षणीसहं सस्निं वाजेषु दुष्टरम्॥
हे इन्द्र देव! आपका जो अतिशय साधक कर्म है, उसे हमारे संरक्षण के लिए प्रयुक्त करें। आपका कर्म शत्रुओं को पराजित करने वाला अति शुद्ध और युद्ध में कठिनता से पार पाये जाने वाला है।[ऋग्वेद 5.35.1]
Hey Indr Dev! Use your protective power-measures for us. Your endeavours are meant to defeat the enemy, highly pure-pious and very difficult to over power you in the war.
यदिन्द्र ते चतस्रो यच्छूर सन्ति तिस्रः।
यद्वा पञ्च क्षितीनामवस्तत्सु न आ भर
हे शूर इन्द्र देव! चार वर्णों में जो आपका रक्षा कार्य है, तीन लोकों में जो आपका रक्षा कार्य विद्यमान है और जो पञ्चजन सम्बन्धी आपका रक्षा कार्य है, उस समस्त रक्षा कार्य को आप हम लोगों के लिए भली-भाँति से अभिपूरित करें।[ऋग्वेद 5.35.2]
पंचजन :: पंचजन का अभिप्राय पाँच व्यक्तियों :- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद से है।
पाँच व्यक्ति :- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद जो यज्ञ के सहभागी हैं।[ऋग्वेद] 
शूद्र और निषाद (धर्मसूत्र में जिन्हें ब्राह्मण और शूद्र स्त्री से उत्पन्न वर्ण संस्कार माना गया है) यज्ञभागी थे। समस्त शूद्र यज्ञ के पात्र थे।[यास्क]
पंचजन शब्द का अर्थ है, चार वर्ण :- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और पाँचवाँ निषाद।[निरुक्त]
ऋग्वेद में जातियों का वर्णन-विवरण नहीं है। सभी व्यक्ति समान थे और यज्ञ में निर्बाध हवि चढ़ाते थे। निषाद भी अप्रत्यक्ष रूप से यज्ञ याग के भाग थे।
याजक को तीन रात तक निषाद और वैश्य तथा राजन्य के साथ ठहरना होगा।[विश्वजित यज्ञ]
इस प्रकार आर्य समुदाय के निषाद आर्येत्तर थे।
गन्धर्व, पितर, देव, असुर-राक्षस, मनुष्य भी पंचजन कहे गए हैं।
Hey brave-mighty Indr Dev! Use your protective power-measures for the safety of the four Varn-castes & Panchjan 4 Varn :- Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr & Nishad as the fifth Varn, three abodes (earth, heavens, nether world), discharge your duty-liability for our sake. 
आ तेऽवो वरेण्यं वृषन्तमस्य हूमहे।
वृषजूतिर्हि जज्ञिष आभूभिरिन्द्र तुर्वणिः
हे इन्द्र देव! आप इष्ट फलों को देने वाले, वृष्टि कर्ता और शीघ्र शत्रु संहारक हैं। आपका रक्षण कार्य वरणीय है। हम उसका आह्वान करते हैं। आप सर्वव्यापी मरुतों के साथ मिलकर हम सभी के लिए श्रेष्ठ दाता बनें।[ऋग्वेद 5.35.3]
Hey Indr Dev! You accomplish desires, cause rains and eliminate the enemy quickly. Your defence system is desirable. We invite you for our protection. Become the best donor joining the Marud Gan pervading all abodes.
वृषा ह्यसि राधसे जज्ञिषे वृष्णि ते शवः।
स्वक्षत्रं ते घृषन्मनः सत्राहमिन्द्र पौंस्यम्
हे इन्द्र देव! आप अभीष्ट फल वर्षक है। याजक गणों को धन देने के लिए आपने जन्म ग्रहण किया। आपका बल फल वर्षण करता है। आपका मन स्वभाव से ही बलवान् है और विरोधियों का दमनकारी है। हे इन्द्र देव! आपका पौरुष शत्रु संहारक है।[ऋग्वेद 5.35.4]
पौरुष :: पुरुषत्व, पुरुष की शक्ति, पुरुष होने का भाव; masculinity, manly strength, courage, vigour, virility.
Hey Indr Dev! You grant desires. You are born to grant wealth-riches to the Ritviz-hosts. Your might-power grant rewards. Your innerself is strong and repress-destroy the opponents. Your masculinity destroy the enemy.
त्वं तमिन्द्र मर्त्यममित्रयन्तमद्रिवः।
सर्वरथा शतक्रतो नि याहि शवसस्पते
हे इन्द्र देव! आप वज्रधारी हैं। आपका रथ सभी जगह अप्रतिहत गति से गमन करता है। आप सौ यज्ञों के अनुष्ठानकर्ता एवं बल के अधिपति हैं, जो मनुष्य आपके प्रति शत्रुता का आचरण करता है, आप उनके विरुद्ध चलते है।[ऋग्वेद 5.35.5]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous.
अधिपति :: शासक, अधिपति, सर्वोच्च, अधिपति, श्रीमन्त, अधिपति, दूसरों पर अधिकार जमाना या बतलाना, अधिराज; overlord, lord, hegemonic.
Hey Indr Dev! You wield the Vajr. Your charoite moves-runs continuously. You are the performer of 100 Yagy and the lord of strength. Any one who opposes you, you act against him.
त्वामिवृत्रहन्तम जनासो वृक्तबर्हिषः।
उग्रं पूर्वीषु पूर्व्यं हवन्ते वाजसातये
हे शत्रुओं के हन्ता इन्द्र देव! यज्ञ करने वाले मनुष्य संग्राम में आपका ही आह्वान करते हैं, क्योंकि आप उग्र वीर और समस्त प्रजाओं के मध्य में पुरातन हैं।[ऋग्वेद 5.35.6]
Hey killer-slayer of the enemy Indr Dev! The fighter in the war invoke you since you are furious brave and eternal, amongest the populace.
अस्माकमिन्द्र दुष्टरं पुरोयावानमाजिषु।
सयावानं धनेधने वाजयन्तमवा रथम्॥
हे इन्द्र देव! आप हमारे रथ की रक्षा करें। यह रथ संग्राम में सब प्रकार के धन की इच्छा करता है, अनुचरों के साथ गमन करने वाला और दुस्तर है।[ऋग्वेद 5.35.7]
Hey Indr Dev! Protect our charoite. This charoite has the calibre, capacity to have all sorts of riches-wealth, moves along with the followers-servants and is intricate.
अस्माकमिन्द्रेहि नो रथमवा पुरन्ध्या।
वयं शविष्ठ वार्यंदिवि श्रवो दधीमहि दिवि स्तोमं मनामहे
हे इन्द्र देव! आप हमारे निकट आत्मीय होकर आवें। अपनी उत्कृष्ट बुद्धि द्वारा हमारे रथ की रक्षा करें। आप निरतिशय बलशाली और दीप्तिमान् हैं। आपके अनुग्रह से हम वरणीय धन या कीर्त्ति आप में स्थापित करते हैं। आप द्युतिमान् हैं इसलिए हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.35.8]
Hey Indr Dev! Join us as a friend & relative, well wisher. Protect our charoite with your prudence-brilliance. You are radiant and very powerful. By virtue of your obligation-kindness, we establish acceptable wealth & glory in you. You are aurous-radiant & hence we worship you.(24.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :-प्रभूवसुरांगिरस , देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
स आ गमदिन्द्रो यो वसूनां चिकेतद्दातुं दामनो रयीणाम्।
धन्वचरो न वंसगस्तृषाणश्चकमानः पिबतु दुग्धमंशुम्
इन्द्र देव हमारे यज्ञ में आगमन करें। जो देव धनों को देना जानते हैं, वे किस तरह के हैं? इन्द्र देव धन के दाता हैं अथवा स्वभाव से ही दानी हैं। धनुष के साथ गमन करने वाले धानुष्क के तुल्य साहस पूर्ण गमन करने वाले और अत्यन्त तृषित इन्द्र देव अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.36.1]
तृषित :: प्यासा, पिपासु, आकुल, विकल; घबराया हुआ, विशेष कामना रखने वाला; thirsty.
Let Indr Dev join our Yagy. What is the configuration of the demigods-deities, who just donate wealth? Indr Dev is a donor, who moves bravely with his bow & wish to drink extracted Somras.
आ ते हनू हरिवः शूर शिप्रे रुहत्सोमो न पर्वतस्य पृष्ठे।
अनु त्वा राजन्नर्वतो न हिन्वन् गीर्भिर्मदेम पुरुहूत विश्वे
हे अश्व द्वय सम्पन्न शूर इन्द्र देव! हम लोगों के द्वारा दिया गया सोमरस पर्वत शिखर के तुल्य आपकी संहारक हनु प्रदेश में आरोहण करे। हे राजमान इन्द्र देव! तृण द्वारा जिस प्रकार से घोड़े तृप्त होते हैं, उसी प्रकार से हम आपको स्तुतियों द्वारा प्रसन्न करते हैं। हे इन्द्र देव! आप बहु स्तुत हैं।[ऋग्वेद 5.36.2]
Hey brave Indr Dev, lord of the horses duo! Let the Somras offered by us, move to your destructive chin region, like conquering the mountain. Hey emperor Indr Dev, worshiped by several people! We make you happy by the recitation of scared hymns just as the horse is satisfied by the straw.
चक्रं न वृत्तं पुरुहूत वेपते मनो भिया मे अमतेरिदद्रिवः।
रथादधि त्वा जरिता सदावृध कुविन्नु स्तोषन्मघवन्पुरूवसुः
हे बहु स्तुत, वज्रवान् इन्द्र देव! भूमि में वर्तमान चक्र के समान हमारा हृदय दारिद्रता के भय से कम्पायमान् हो रहा है। हे सर्वदा वर्द्धमान इन्द्र देव! स्तोता पुरुवसु ऋषि शीघ्र ही बहुलता से आपकी प्रार्थना करते हैं। आप रथ पर आरूढ़ हैं।[ऋग्वेद 5.36.3]
Hey Indr Dev, worshipped by many, possessing Vajr! We are afraid of poverty during this cycle-era, Yug over the earth. Hey always growing-progressing Indr Dev! Stota-worshipper Puruvasu quickly recited sacred hymns to pray-worship you. You are riding the charoite.
एष ग्रावेव जरिता त इन्द्रेयर्ति वाचं बृहदाशुषाणः।
प्र सव्येन मघवन्यंसि रायः प्र दक्षिणिद्धरिवो मा वि वेनः
हे इन्द्र देव! प्रभूत फल को भोगने वाले स्तोता अभिषव करने वाले पाषाण के तुल्य आपकी प्रार्थना करते हैं। हे धनवान् और हरि नामक अश्व वाले इन्द्र देव! आप बाँयें हाथ से धन दान करते हैं और दाहिनें हाँथ से भी धन दान करते हैं। आप हमारी कामनाओं को विफल न करें।[ऋग्वेद 5.36.4]
Hey Indr Dev! The Stota rewarded by you, worship you like the stone, which is poured water over it. Hey rich and the lord of horses named Hari, Indr Dev! You donate with both of your hands. Kindly accomplish our desires-do not turn down our requests. 
वृषा त्वा वृषणं वर्धतु द्यौर्वृषा वृषभ्यां वहसे हरिभ्याम्।
स नो वृषा वृषरथः सुशिप्र वृषक्रतो वृषा वज्रिन्भरे धाः
हे इन्द्र देव! आप अभिलाषाओं के पूरक है। अभीष्टवर्षी द्यावा-पृथ्वी आपको संवर्द्धित करें। आप वर्षणकारी हों। घोड़े आपको यज्ञस्थल में वहन करते हैं। हे शोभन हनु वाले, वज्रधर इन्द्र देव! आपका रथ कल्याणकारी है। संग्राम में आप हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.36.5]
Hey Indr Dev, accomplish our desires! Let the desires accomplishing heaven & earth grow-flourish you. Please manage rains. Your horses take you to the site of Yagy. Hey Vajr wielding Indr Dev, having beautiful chin! Your charoite leads to our welfare. Protect us in the war.
यो रोहितौ वाजिनौ वाजिनीवान्त्रिभिः शतैः सचमानावदिष्ट।
यूने समस्मै क्षितयो नमन्तां श्रुतरथाय मरुतो दुवोया
हे इन्द्र देव के सहायक मरुतों! अन्नवान् श्रुतरथ राजा ने हमें लोहित वर्ण वाले दो अश्व और तीन सौ गौएँ प्रदान की। नित्य तरुण उस श्रुतरथ राजा के लिए सकल प्रजा परिचर्या सम्पन्न होकर प्रणाम करती है।[ऋग्वेद 5.36.6]
परिचर्या :: उत्तर रक्षा, बाद की देखभाल, अनुरक्षण; nursing, after-care.
Hey Marud Gan, accomplice-companions of Indr Dev! King Shrutrath granted us two red coloured-skinned horses. and three hundred cows. Entire populace salute the always young king Shrutrath, after discharging their duties & nursing.
ACCOMPLICE :: सहयोगी, सह-अपराधी, सहकारी; cooperative, co-operative, accessary, associate.(27.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- इन्द्रछन्द :- त्रिष्टुप्।
सं भानुना यतते सूर्यस्याजुह्वानो घृतपृष्ठः स्वञ्चाः।
तस्मा अमृध्रा उषसो व्युच्छान्य इन्द्राय सुनवामेत्याह
यथाविधि रूप से आवाहित अग्नि में हव्य प्रदान करने से अग्नि देव प्रदीप्त होकर सूर्य रश्मियों के साथ आहूयमान होते हैं। जो याजकगण "इन्द्रदेव के लिए होम करो" यह कहता है, उस यजमान के लिए उषा अहिंसित होती है।[ऋग्वेद 5.37.1]
Agni Dev glow like the Sun rays on being invoked for making offerings procedurally. The Ritviz who chant, "conduct Hawan for Indr Dev", Usha-dawn rise harmlessly-innoxiously for him.
समिद्धाग्निर्वनवत्स्तीर्णबर्हिर्युक्तग्रावा सुतसोमो जराते।
ग्रावाणो यस्येषिरं वदन्त्ययदध्वर्युर्हविषाव सिन्धुम्
अग्नि को प्रदीप्त करने वाले और कुश को विस्तृत करने वाले याजक गण सम्भजन करते हैं। पाषाणोत्तोलन पूर्वक जिन्होंने सोमरस निःसृत किया, वे प्रार्थना करते हैं। जिस अध्वर्यु के पाषाण से सुमधुर शब्द होता है, वह अध्वर्यु हव्य लेकर नदी के किनारे यजन कार्य करते हैं।[ऋग्वेद 5.37.2] 
The Ritviz-hosts spread Kush grass and ignite fire for worship-prayers. One who extract Somras by crushing it with stones generating sweet-melodious sound, conduct Yagy over the river bed-bank.
वधूरियं पतिमिच्छन्त्येति य ईं वहाते महिषीमिषिराम्।
आस्य श्रवस्याद्रथ आ च घोषात्पुरु सहस्रा परि वर्तयाते
पत्नी-पति की इच्छा करती हुई, यज्ञ में उसी का अनुगमन करती है। इन्द्र देव इसी प्रकार से अनुगामिनी महिषी का आनयन करते हैं। इन्द्र देव का रथ हम लोगों के निकट प्रचुर धन वहन करे। वह अधिक शब्द करता है। वह चारों ओर से सहस्र धन निःक्षेप करे।[ऋग्वेद 5.37.3]
महिषी :: भैंस, महिष, सम्राट् की पत्नी; empress.
आनयन :: ले आना, लाना, उपनयन संस्कार; fetch.
अनुगामिनी :: अनुगमन करने वाली, पीछे चलने वाली, आज्ञाकारिणी; the woman who follows.
निक्षेप :: फेंकना, भेजना; deposit, deposition.
The wife follows her husband in the Yagy. Indr Dev similarly fetch the empress who follows. Let the charoite of Indr Dev bear-possess a lot of wealth, generating a lot of sound; deposit money from all sides.
न स राजा व्यथते यस्मिन्निन्द्रस्तीव्रं सोमं पिबति गोसखायम्।
आ सत्वनैरजति हन्ति वृत्रं क्षेति क्षितीः सुभगो नाम पुष्यन्
जिनके यज्ञ में इन्द्र देव दुग्ध मिश्रित मद जनक सोमरस का पान करते हैं, वे राजा कभी व्यथित नहीं होते। वे राजा अनुचरों के साथ सभी जगह गमन करते हैं, शत्रुओं का संहार करते हैं, प्रजाओं की रक्षा करते हैं और सुख-सम्भोग से युक्त होकर इन्द्र देव की प्रार्थना का पोषण करते हैं।[ऋग्वेद 5.37.4]
The kings in who's Yagy Indr Dev drink intoxicating Somras, never feel disturbed. They move all around with their soldiers and destroy-kill the enemy; protect the populace, have all sorts of comforts & worship-pray Indr Dev.
पुष्यात्क्षेमे अभियोगे भवात्युभे वृतौ संयती सं जयाति।
प्रियः सूर्ये प्रियो अग्ना भवाति य इन्द्राय सुतसोमो ददाशत्॥
जो इन्द्र देव को अभिषेत सोमरस प्रदान करता है, वह बन्धु-बान्धवों का पोषण करता है, वह प्राप्त धन की रक्षा करने और अप्राप्त धन की प्राप्ति में समर्थ होता है, वह वर्तमान तथा नियत अहोरात्र को जीतता है। वह सूर्य देव और अग्नि देव दोनों का ही प्रियपात्र होता है।[ऋग्वेद 5.37.5]
One who offers Somras to Indr Dev, nurse-support his friends & relatives, protect the money he has, win the present and the fixed day & night, is dear to both Sun-Sury Dev and Agni Dev.(28.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- इन्द्रछन्द :- अनुष्टुप्।
उरोष्ट इन्द्र राधसो विभ्वी रातिः शतक्रतो।
अधा नो विश्वचर्षणे द्युम्ना सुक्षत्र मंहय
हे सर्वदर्शी, हे शोभन धन वाले इन्द्र देव! आपने बहुत से कर्म किये। आप प्रभूत धन का महान् दान करते हैं। आप हम लोगों को महान् धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.38.1]
Hey Indr Dev, looking all over-around and possessing beautiful wealth! You accomplished several endeavours-deeds. You donate ample wealth. Grant us a lot of wealth-riches.
यदीमिन्द्र श्रवाय्यमिषं शविष्ठ दधिषे।
पप्रथे दीर्घश्रुत्तमं हिरण्यवर्ण दुष्टरम्
हे महाबल शाली हिरण्य वर्ण इन्द्र देव! यद्यपि आप सुप्रसिद्ध प्रचुर अन्न के अधिपति हैं; तथापि यह अत्यन्त दुर्लभ रूप से सभी जगह कीर्तित होता है।[ऋग्वेद 5.38.2]
दुर्लभ :: कठिनता से प्राप्त होनेवाला, दुष्प्राप्य, अति प्रशस्त; rare, in short supply.
Hey highly powerful-mighty, golden skinned-coloured Indr Dev! You are the lord of rare food grains, famous all around.
शुष्मासो ये ते अद्रिवो मेहना केतसापः।
उभा देवावभिष्टये दिवश्च ग्मश्च राजथः
हे वज्रधर इन्द्र देव! पूजनीय एवं विख्यात कर्म करने वाले मरुद्गण आपके बल स्वरूप हैं। आप और वे दोनों ही पृथ्वी के ऊपर स्वेच्छा से भ्रमण करते हुए सब पर शासन करते हैं।[ऋग्वेद 5.38.3]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Worship able-revered & famous Marud Gan are akin-like your might. Both of you roam over the earth freely as per your wish-will and govern everyone.
उतो नो अस्य कस्य चिद्दक्षस्य तव वृत्रहन्।
अस्मभ्यं नृम्णमा भरास्मभ्यं नृमणस्यसे
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव ! हम लोग आपकी उपासना करते हैं। आप हम लोगों को किसी क्षमताशाली शत्रु का धन लाकर प्रदान करें; क्योंकि आप हम लोगों को धनाढ्य करने के अभिलाषा करते हैं।[ऋग्वेद 5.38.4]
Hey slayer of Vratr Indr Dev! We worship you. Bring wealth of some capable-mighty enemy for us since we desire to be rich.
नू त आभिरभिष्टिभिस्तव शर्मञ्छतकता।
इन्द्र स्याम सुगोपाः शूर स्याम सगोपाः
हे सौ यज्ञ करने वाले इन्द्र देव! आपके अभिगमन से हम शीघ्र ही समृद्ध हों। हे इन्द्र देव! आपके सुख में हम अंशभागी हों। हे शूर! आपके द्वारा हम सुरक्षित हों।[ऋग्वेद 5.38.5]
Hey performer of hundred Yagy, Indr Dev! Your movement will make us rich. Let us become participant in your comforts-happiness. Hey brave! Let us be protected by you.(28.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- अत्रि भौम, देवता :- इन्द्रछन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
यदिन्द्र चित्र मेहनास्ति त्वादातमद्रिवः।
राधस्तन्नो विदद्वस उभयाहस्त्या भर
हे वज्र धर इन्द्र देव! आपका रूप अत्यन्त विचित्र है। देने के लिए आपके पास जो महामूल्य धन है, हे धनवान् इन्द्र देव! उसे आप हम लोगों को दोनों हाथों से प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 5.39.1]
Hey Vajr wielding, wealthy Indr Dev! Your figure (shape & size) is amazing. Grant us the precious wealth possessed by you, with both of your hands.
यन्मन्यसे वरेण्यमिन्द्र द्युक्षं तदा भर।
विधाम तस्य ते वयमकूपारस्य दावने
हे इन्द्र देव! जिस अन्न को आप श्रेष्ठ समझते हैं, वह अन्न हम लोगों को प्रदान करें। हम आपके उस श्रेष्ठ अन्न के दान पात्र हों।[ऋग्वेद 5.39.2]
Hey Indr Dev! Grant us the food grains, which you consider excellent-best. We should be eligible for your excellent food grains.
यत्ते दित्सु प्रराध्यं मनो अस्ति श्रुतं बृहत्।
तेन द्दळ्हा चिदद्रिव आ वाजं दर्षि सातये
हे वज्र धर इन्द्र देव! आपका मन दान देने के लिए विश्रुत और महान् है। आप हम लोगों को सारवान् अन्न  प्रदान करने के लिए आदर प्रदर्शित करते हैं।[ऋग्वेद 5.39.3]
विश्रुत :: famous.
Hey Vajr wielding Indr Dev! Your innerself-mind is famous & inclined to make great donations. We show our gratitude for respect-granting us food grains having extract. 
मंहिष्ठ वो मघोनां राजानं चर्षणीनाम्।
इन्द्रमुप प्रशस्तये पूर्वीभिर्जुजुषे गिरः
इन्द्र देव हवि लक्षण धन से युक्त हैं। वे आप लोगों के अत्यन्त पूजनीय मनुष्यों के वे अधिपति हैं। स्तोता लोग प्राचीन स्तोत्रों द्वारा प्रशंसा करने के लिए उनकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 5.39.4]
Indr Dev possess the wealth with the charctrices of offerings. He is the lord of revered-respected, honoured humans. The Stota appreciate him with the eternal-ancient Strotr and serve him.
अस्मा इत्काव्यं वच उक्थमिन्द्राय शंस्यम्।
तस्मा उ ब्रह्मवाहसे गिरो वर्धन्त्यत्रयो गिरः शुभ्भन्त्यत्रयः
इन्द्र देव के लिए ही यह काव्य, वाक्य और उक्थ उच्चरित हुआ है। वे स्तोत्र वाहक हैं। अत्रि ऋषि के पुत्र उनके निकट ही स्तोत्रों को उच्च स्वर से उच्चारित कर उद्दीपित करते हैं।[ऋग्वेद 5.39.5]
उक्थ :: कथन, सूक्ति; spelled, stated.
उद्दीपित :: जागरित किया हुआ; awakened.
This composition-poetry, sentences are spelled-stated for Indr Dev. He is the carrier of the Strotr.  The sons of Atri Rishi  recite-spell, awake the Strotr in his proximity with loud voice.(28.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- इन्द्रसूर्य, छन्द :- उष्णिक्, त्रिष्टुप् अनुष्टुप्।
आ याह्यद्रिभिः सुतं सोमं सोमपते पिब। वृषन्निन्द्र वृषभिर्वृत्रहन्तम॥
हे इन्द्र देव! हम लोगों के यज्ञ में आप उपस्थित हों। हे सोमरस के स्वामी इन्द्र देव! आकर पत्थरों-द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करें। हे फल वर्षक, हे शत्रुओं के अतिशय हन्ता! फलवर्षी मरुतों के साथ आप सोमपान करें।[ऋग्वेद 5.40.1]
Hey Indr Dev! Join out Yagy. Hey the lord of Somras! Drink the Somras crushed & extracted with stones. Hey rewarding, slayer of the enemy! Drink Somras along with the Marud Gan, who accomplish desires.
वृषा ग्रावा वृषा मदो वृषा सोमो अयं सुतः। वृषन्निन्द्र वृषभिर्वृत्रहन्तम
अभिषव साधन पाषाण वर्षणकारी है। सोमपान जनित हर्ष वर्षणकारी है। यह अभिषुत सोम वर्षणकारी है। हे फल वर्षक! शत्रुओं के अतिशय हन्ता! फलवर्षी मरुतों के साथ आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.40.2]
The stones used to extract Somras leads to rains. Drinking of Somras grant rains. This extracted Somras draws rains. Hey rewarding, destroyer of the enemy! Drink Somras along with the Marud Gan, who accomplish desires.
वृषा त्वा वृषणं हुवे वज्रिञ्चित्राभिरूतिभिः। वृषन्निन्द्र वृषभिर्वृत्रहन्तम
वज्रधर इन्द्र देव! आप सोमरस के सेचन कर्ता और अभीष्ट वर्षी हैं। हम विचित्र रक्षा के लिए आपका आह्वान करते हैं। हे फलवर्षक शत्रुओं के अतिशय हन्ता! फलवर्षी मरुतों के साथ आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.40.3]
सेचन :: सिंचाई करना, सिंचन, पानी छिड़कना; pollination.
Hey Vajr wielding Indr Dev! Hey nurturer of Somras and desires accomplisher, we invoke you for our protection-safety. Hey rewarding slayer of the enemy! Drink-enjoy Somras along with the Marud Gan.
ऋजीषी वज्री वृषभस्तुराषाट्छुष्मी राजा वृत्रहा सोमपावा।
युक्त्वा हरिभ्यामुप यासदर्वाङ्माध्यन्दिने सवने मत्सदिन्द्रः
इन्द्र देव ऋजीषी और वज्रधर हैं। इन्द्र देव अभीष्टवर्षी, शत्रु संहारकर्ता, बलवान्, सभी के ईश्वर, वृत्र हन्ता और सोमपान कर्ता हैं। इस तरह के इन्द्र देव घोड़ों को रथ में नियोजित करके हम लोगों के अभिमुख पधारें और माध्यन्दिन सवन में सोमपान से हर्षित हों।[ऋग्वेद 5.40.4]
ऋजीषी :: कर्ता; nominative, singular, masculine. 
Hey Vajr wielding, singularly doer Indr Dev! You are accomplisher of desires, slayer-killer of enemies, mighty-powerful, lord of all, killer of Vrata Sur and extractor of Somras. Let Indr Dev deploy horses in his charoite and come to us for drinking Somras during the day-noon.
यत्त्वा सूर्य स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः।
अक्षेत्रविद्यथा मुग्धो भुवनान्यदीधयुः॥
हे सूर्य देव! स्वर्भानु नामक असुर ने जब आपको अन्धकार से आच्छदित कर दिया, तब जैसे मनुष्य अन्धकार में अपने क्षेत्र या रास्ते को न जानकर भ्रमित हो जाता है, उसी प्रकार से सभी लोग तमिस्रा में सम्मोहित हो गये।[ऋग्वेद 5.40.5]
तमिस्रा :: अँधेरी रात, गहन-गहरा अँधेरा या अंधकार, क्रोध, द्वेष, राग आदि दूषित और तामसिक मनोविकार, अविद्या का वह रूप जो भोग-विलास की पूर्ति में बाधा पड़ने पर उत्पन्न होता है और जिससे मनुष्य क्रोध वैर आदि करने लगता है; darkness, anger, attachment. 
Hey Sury-Sun Dev! When the demon Swarbhanu had covered-hidden you, every one became confused-illusioned unable to recognise their either the locality or the path.
स्वर्भानोरध यदिन्द्र माया अवो दिवो वर्तमाना अवाहन्।
गूळ्हं सूर्यं तमसापव्रतेन तुरीयेण ब्रह्मणाविन्ददत्रिः
हे इन्द्र देव! जब आपने सूर्य के अधोदेश में वर्त्तमान, स्वर्भानु असुर की द्युतिमान् माया को नष्ट किया, तब व्रत विघातक अन्धकार द्वारा समाच्छन्न सूर्य देव को अत्रि ने चार ऋचाओं द्वारा प्रकाशमान किया।[ऋग्वेद 5.40.6]
ऋचा :: incantation.
Hey Indr Dev! When you removed-eliminated the bright cast-illusion made by the demon Swarbhanu, the darkness spoiled the fasts-endeavours, Atri Rishi lit the Sun by four Mantr-sacred hymns.
मा मामिमं तव सन्तमत्र इरस्या द्रुग्धो भियसा नि गारीत्त्वं।
 मित्रो असि सत्यराधास्तौ मेहावतं वरुणश्च राजा
सूर्य वाक्य :- हे अत्रि! ऐसी अवस्था वाले हम आपके हैं। अन्न की इच्छा से द्रोह करने वाले असुर भय जनक अन्धकार द्वारा हमें नहीं निगल जायें; इसलिए आप और वरुण देव दोनों हमारी रक्षा करें। आप हमारे मित्र और सत्य पालक हैं।[ऋग्वेद 5.40.7]
Sury Dev said :- Hey Atri! In this situation-condition, we belong to you. The demons desirous of food grains may not engulf us by virtue of fear some darkness, we request you and Varun Dev to protect us. You are our friend and stand by the truth.
ग्राव्णो ब्रह्मा युयुजानः सपर्यन् कीरिणा देवान्नमसोपशिक्षन्।
अत्रिः सूर्यस्य दिवि चक्षुराधात्स्वर्भानोरप माया अघुक्षत्
उस समय ऋत्विक् अत्रि ने सूर्य को उपदेश दिया, प्रस्तर खण्डों का घर्षण करके इन्द्र देव के लिए सोमाभिषव किया, स्तोत्रों द्वारा देवी की पूजा की और मन्त्र प्रभाव से अन्तरिक्ष में सूर्य देव चक्षु को स्थापित किया। उस समय उन्होंने स्वर्भानु की समस्त माया को दूर कर दिया।[ऋग्वेद 5.40.8]
At that moment Ritviz Atri advised Sury Dev, that he should rub the stones and extract Somras for Indr Dev, worshiped the Goddess-Maa Bhagwati and established Sury Dev Chakshu in the space eliminating-removing the darkness and cast-spell of Swarbhanu. 
यं वै सूर्यं स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः।
अत्रयस्तमन्वविन्दन्नह्य १ न्ये अशक्नुवन्
असुर स्वर्भानु ने जिस सूर्य को अन्धकार द्वारा आच्छदित किया, अत्रि पुत्रों ने अवशेष में उन्हें मुक्त किया। दूसरा कोई ऐसा करने में समर्थ न हुआ।[ऋग्वेद 5.40.9]
Atri's sons liberated the Sun, which was engulfed with darkness by Swarbhanu. None other had this power.(29.06.2023)
समिन्द्र णो मनसा नेषि गोभिः सं सूरिभिर्हरिवः सं स्वस्ति।
सं ब्रह्मणा देवहितं यदस्ति सं देवानां सुमत्या यज्ञियानाम्
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को प्रसन्न मन से गौएँ, अश्व और कल्याणकारी ऐवश्वर्य प्रदान करें। आप हमें यज्ञकर्म वाली और देवताओं को प्राप्त होने वाली बुद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.42.4]
Hey Indr Dev! Grant us grandeur, cows and horses happily. Grant us intelligence that inspire us for Yagy and approach-invoke the demigods-deities.
देवो भगः सविता रायो अंश इन्द्रो वृत्रस्य संजितो धनानाम्।
ऋभुक्षा वाज उत वा पुरन्धिरवन्तु नो अमृतासस्तुरासः
भगदेव, धनस्वामी सविता, वृत्रहन्ता इन्द्र देव, भली-भाँति से धन के विजेता ऋभुक्षा, वाज़ और पुरन्धि आदि समस्त अमर शीघ्र ही हम लोगों के यज्ञ में उपस्थित होकर हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.42.5]
Let all the immortals :- Bhag Dev, lord of riches Savita, slayers of Vratr Indr Dev, winner of wealth Ribhuksha, Vaj and Purandhi join this Yagy quickly and protect us.
मरुत्वतो अप्रतीतस्य जिष्णोरजूर्यतः प्र ब्रवामा कृतानि।
न ते पूर्वे मघवन्नापरासो न वीर्यं १ नूतनः कश्चनाप
हम याजक गण मरुद्वान् इन्द्र देव के कार्यों का वर्णन करते हैं। वे युद्ध से कभी पलायमान नहीं होते। वे जयनशील और जरा रहित हैं। हे इन्द्र देव! आपके पराक्रम को कोई पुरातन पुरुष नहीं जान पाया, उनके पीछे होने वाले भी नहीं जान पाये। और क्या, किसी नवीन ने भी आपके पराक्रम को प्राप्त नहीं किया।[ऋग्वेद 5.42.6]
We, the Ritviz describe-appreciate the endeavours of Indr Dev and his associates Marud Gan. They are winning and free from aging. Hey Indr Dev! Neither your preceder nor the next to them could  ascertain-assess your valour-bravery. Any one next to them could not do so.
प्र सू महे सुशरणाय मेधां गिरं भरे नव्यसीं जायमानाम्।
य आहना दुहितुर्वक्षणासु रूपा मिनानो अकृणोदिदं नः
महान् और शोभन रक्षक इन्द्र देव या पर्जन्य (पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं, जो कि मेघों में निवास करते हैं)। इनका मेघों पर नियंत्रण हैं। देवता के लिए हम अतिशय स्तुत्य और सद्योजात प्रार्थना समर्पित करते हैं। इन्द्र देव वर्षणकारी हैं। वे कन्या रूपिणी पृथ्वी के हित के लिए नदियों का रूप-विधान करते हैं और हम लोगों को जल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.42.13]
पर्जन्य :: गरजता तथा बरसता हुआ बादल, मेघ, इंद्र, विष्णु, कश्यप ऋषि के एक पुत्र जिसकी गिनती गंधर्वों में होती है, पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं, जो कि मेघों में निवास करते हैं; clouds causing rains.
We present newly composed prayers to worshipable great, beautiful protector Indr Dev or Parjany deity-demigod. Indr Dev is rain producing. They flow rivers for the earth which is like a girl-daughter for them and provide us water.
असावि ते जुजुषाणाय सोमः क्रत्वे दक्षाय बृहते मदाय।
हरी रथे सुधुरा योगे अर्वागिन्द्र प्रिया कृणुहि हूयमानः
हे इन्द्र देव! आपकी सेवा के लिए, वृत्र वधादि कार्य के लिए, बल के लिए और महान् हर्ष के लिए सोमरस समर्पित किया जाता है। हे इन्द्र देव! इसलिए हम लोग आपका आह्वान करते हैं। आप प्रिय, सुशिक्षित और विनम्र अश्वद्वय को रथ में नियोजित करके हम लोगों के पास पधारें।[ऋग्वेद 5.43.5]
Hey Indr Dev! We serve you Somras for the killing of Vratr, extreme power and great pleasure. Hey Indr Dev! That's why, we invoke you. Deploy your dear, trained, polite horse duo in the charoite and come to us. 
तं प्रत्नथा पूर्वथा विश्वथेमथा ज्येष्ठतातिं बर्हिषदं स्वर्विदम्।
प्रतीचीनं वृजनं दोहसे गिराशुं जयन्तमनु यासु वर्धसे॥
प्राचीन समय के याजकगण, हमारे पूर्ववर्ती लोग, समस्त प्राणी और आधुनिक लोग जिस प्रकार से इन्द्र देव की प्रार्थना करके अपने मनोरथ पूर्ण करते हैं; हे अन्तरात्मा! उसी प्रकार से आप भी उनकी प्रार्थना करके मनोरथपूर्ण होवें। वे देवों के बीच में ज्येष्ठ, कुशासीन, सर्वज्ञ, हम लोगों के सम्मुखवर्ती, बलशाली, वेगवान् और जयशील हैं। इस प्रकार की स्तुति द्वारा आप उन्हें संवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 5.44.1]
Hey conscience! Let our desires be accomplished the way the ancient Ritviz, our ancestors, all living beings and the modern people-populace of current era, worship Indr Dev; by you. He is senior amongest the demigods-deities, occupying the Mat made of Kush, all knowing, accelerated and a winner. Let him be promoted with such requests, worship-prayers.
श्रिये सुदृशीरुपरस्य याः स्वर्विरोचमानः ककुभामचोदते।
सुगोपा असि न दभाय सुक्रतो परो मायाभिर्ऋत आस नाम ते॥
हे इन्द्र देव! आप स्वर्ग में प्रभा विस्तारित करते है। अवर्षणकारी मेघ के बीच में जो सुन्दर जलराशि है, उसे मनुष्यों के हित के लिए समस्त दिशाओं में प्रेरित करते है। वर्षा आदि सुन्दर कर्म द्वारा आप मनुष्यों की रक्षा करें। प्राणियों का वध आप न करें। शत्रुओं की माया का आप नाश करते है। आपका नाम सत्यलोक में विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 5.44.2]
Hey Indr Dev! You spread your aura in the space. Release the water accumulated in the non rain clouds in all directions. Protect the humanity by causing rains and not killing the living beings. You destroy the chant-cast of the enemy. Your name is established in the Saty Lok.
विदा दिवो विष्यन्नद्रिमुक्थैरायत्या उषसो अर्चिनो गुः।
अपावृत व्रजिनीरुत्स्वर्गाद्वि दुरो मानुषीर्देव आवः
अङ्गिराओं की स्तुतियों से इन्द्र देव ने स्वर्ग से वज्र निक्षेप करके पणियों द्वारा अपहृत निगूढ़ गौओं का पुनः उद्धार किया। आगामिनी उषा की रश्मियाँ सभी जगह व्याप्त होती है। पुञ्जीभूत अन्धकार को विनष्ट करके सूर्य उदित होते हैं। मनुष्यों के गृह द्वारों को उन्होंने उन्मुक्त किया।[ऋग्वेद 5.45.1]
Indr Dev released the cows abducted by the demons named Panis, acknowledging the prayers-Stuti of Angiras. Rays at dawn cover the entire area. The Sun rises and vanish the darkness leading to opening of the doors by the household.
सूक्तेभिर्वो वचोभिर्देवजुष्टैरिन्द्रा न्व १ ग्नी अवसे हुवध्यै।
उक्थेभिर्हि ष्मा कवयः सुयज्ञा आविवासन्तो मरुतो यजन्ति
हे इन्द्र देव, हे अग्नि देव! हम रक्षा के लिए देवों के द्वारा सेवनीय उत्कृष्ट स्तोत्रों से आप दोनों का आह्वान करते हैं। उत्तम प्रकार से यज्ञ करने वाले मरुतों के सदृश कर्म तत्पर परिचरण करने वाले ज्ञानी लोग स्तोत्रों द्वारा आप दोनों की पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 5.45.4]
सेवनीय :: सेवन करने के योग्य, आराध्य, पूज्य; edible.
Hey Indr Dev & Agni Dev! We invoke you with the recitation of best Strotr-sacred hymns, liked-admired by the demigods-deities for our safety. The quickly moving enlightened people, worship-pray with the recitation of Strotr like the Marud Gan, who perform the Yagy in best possible manner.
अनूनोदत्र हस्तयतो अद्रिरार्चन्येन दश मासो नवग्वाः।
ऋतं यती सरमा गा अविन्दद्विश्वानि सत्याङ्गिराश्चकार॥
इस यज्ञ में ऋत्विकों के हाथों द्वारा संचालित पाषाण खण्ड से शब्द उत्थित होता हैं, जिसके द्वारा नवग्वों और दशग्वों ने इन्द्र देव की पूजा की। यज्ञ में उपस्थित होकर सरमा ने गौओं को प्राप्त किया और अङ्गिराओं के समस्त स्तवादि कर्म सफल हुए।[ऋग्वेद 5.45.7]
In this Yagy the stones used by the Ritviz produced sound by virtue worship and Navgavs and Dashgavs worshiped Indr Dev. Sarma got cows by presenting himself in the Yagy and the Angiras all  endeavours related to worship were accomplished.
अयं सोमश्चमू सुतोऽमत्रे परि षिच्यते। प्रिय इन्द्राय वायवे
हे इन्द्र देव और वायु देव! पत्थरों से कूटकर अभिषुत हुआ सोमरस पात्रों में छानकर भरा जाता है, यह इन्द्रदेव और वायुदेव के लिए प्रिय है। इस सोमरस को पीने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.51.4]
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come to drink Somras crushed with stones and filtered for you, kept in the pots. 
इन्द्रश्च वायवेषां सुतानां पीतिमर्हथः।
ताञ्जुषेथामरेपसावभि प्रयः
हे वायु देव! आप और इन्द्र देव इस अभिषुत सोमरस का पान करने के योग्य हैं; इसीलिए अहिंसक होकर आप दोनों इस सोमरस का सेवन करें और सोमात्मक अन्न के उद्देश्य से आगमन करें।[ऋग्वेद 5.51.6]
Hey Vayu Dev! You alongwith Indr Dev is qualified to drink this extracted Somras. Invoke for the eating the food grains in the form of Somras, without being violent.
सुता इन्द्राय वायवे सोमासो दध्याशिरः।
निम्नं न यन्ति सिन्धवोऽभि प्रयः
इन्द्र देव तथा वायु देव के लिए दधि मिश्रित सोमरस अभिषुत हुआ है। हे इन्द्र देव और वायु देव! निम्नगामिनी नदियों के सदृश वह सोमरस आप दोनों के अभिमुख गमन करता है।[ऋग्वेद 5.51.7]
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Somras mixed with curd has been extracted for you. It moves to you like the rivers flowing in the down ward direction.
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (86) :: ऋषि :- भौम अत्रि; देवता :- इन्द्राग्नी;  छन्द :- विराट्पूर्वा, अनुष्टुप्।
इन्द्राग्नी यमवथ उभा वाजेषु मर्त्यम्।
दृळ्हा चित्स प्र भेदति द्युम्ना वाणीरिव त्रितः
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप दोनों युद्धों में मनुष्यों की रक्षा करते हैं। वे शत्रु सम्बन्धी द्युतिमान् धन को अतिशय भिन्न करते हैं। वे प्रति वादियों के वाक्य का खण्डन करते हैं और शत्रुओं के वाक्य के सदृश तीनों स्थानों में उपस्थित रहते हैं।[ऋग्वेद 5.86.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Both of you protect the human beings in war. You differentiate-separate, distinguish the shinning wealth. You reject the statements of the opponents and occupy the three abodes like the words of the enemies.
या पृतनासु दुष्टरा या वाजेषु श्रवाय्या।
या पञ्च चर्षणीरभीन्द्राग्नी ता हवामहे
जो इन्द्र देव और अग्नि देव संग्राम में अनभिभवनीय हैं, जो संग्राम में या अन्न के विषय में स्तवनीय हैं और जो पञ्च श्रेणी के मनुष्यों की रक्षा करते हैं, उन दोनों महानुभावों का हम लोग स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.86.2]
We invoke Indr Dev and Agni Dev, who are irresistible in conflicts, renowned in battles & protect the five classes of humans.
We worship-pray Indr Dev and Agni Dev who are winners in war-conflict, worshiped for food grains and protector of humans.
तयोरिदमवच्छवस्तिग्मा दिद्युन्मघोनोः।
प्रति द्रुणा गभस्त्योर्गवां वृत्रघ्न एषते
इन दोनों का बल शत्रुओं को पराजित करने वाला है। क्योंकि जब ये दोनों देव एक रथ पर आरूढ़ होकर धेनुओं के उद्धारार्थ और वृत्रासुर के विनाशार्थ गमन करते हैं, तब इन दोनों धनवानों के हाथों में तीक्ष्ण वज्र विराजमान रहता है।[ऋग्वेद 5.86.3]
Their might defeats the enemy, since when they ride the charoite to release the cows and destruction of Vrata Sur, they possess sharp Vajr in their hands.
ता वामेषे रथानामिन्द्राग्नी हवामहे।
पती तुरस्य राधसो विद्वांसा गिर्वणस्तमा
हे गमनशील, धन के अधिपति सर्वज्ञ तथा निरतिशय वन्दनीय इन्द्र देव और अग्नि देव! युद्ध में रथ को प्रेरित करने के लिए हम लोग आप दोनों का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.86.4]
Hey dynamic, lords of wealth, enlightened and worshipable Indr Dev & Agni Dev! We invoke you both, to inspire the charoite in war-battle.
ता वृधन्तावनु द्यून्मर्ताय देवावदभा।
अर्हन्ता चित्पुरो दधें ऽ शेव देवावर्वते
हे अहिंसनीय देवद्वय! आप दोनों अहिंसनीय हैं। हम लोग अश्व प्राप्ति के लिए आप दोनों की प्रार्थना करते हैं और सोमरस के तुल्य आगे स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.86.5]
Hey unhurt demigod duo! Both of you can not be harmed-hurt. We pray-request you both to have horses and establish you in front like Somras.
एवेन्द्राग्निभ्यामहावि हव्यं शूष्यं घृतं न पूतमद्रिभिः।
ता सूरिषु श्रवो बृहद्रयिं गृणत्सु दिघृतमिषं दिधृतम्
पत्थरों द्वारा कूटे हुए सोमरस के सदृश बल कारक हव्य सम्प्रति प्रवृत्त हुआ। आप दोनों ज्ञानियों को अन्न प्रदान करें। स्तोताओं को प्रभूत धन और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.86.6]
Oblations-offerings capable of granting strength like the smashed Somras have been intended. Both of you should grant food grains to the intellectuals. Give wealth and food grains to the Stotas-hosts.(21.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :-त्रिष्टुप्, द्विपदा त्रिष्टुप्।
पिबा सोममभि यमुग्र तर्द ऊर्वं गव्यं महि गृणान इन्द्र।
वि यो धृष्णो वधिषो वज्रहस्त विश्वा वृत्रममित्रिया शवोभिः
हे बलशाली इन्द्र देव! अङ्गिराओं द्वारा स्तूयमान होकर आपने सोमरस का पान करने के लिए पणियों द्वारा अपहृत गौओं को खोज लिया। आप सोमरस का पान करें। हे शत्रुओं के विनाशक वज्रधर इन्द्र देव! बल से युक्त होकर आपने सम्पूर्ण शत्रुओं का विनाश किया।[ऋग्वेद 6.17.1]
Hey might Indr Dev! On being praised by the Angiras you traced the cows abducted by Pani; to drink Somras. Hey destroyer of enemies wielder of Vajr Indr Dev! You destroyed all enemies on being strengthened.
स ईंपहि य ऋजीषी तरुत्रो यः शिप्रवान्वृषभो यो मतीनाम्।
यो गोत्रभिद्वज्रभृद्यो हरिष्ठाः स इन्द्र चित्राँ अभि तृन्धि वाजान्
हे रस विहीन सोमरस के पानकर्ता इन्द्र देव! आप शत्रुओं से त्राण करने वाले, शोभन कपोल वाले और स्तोताओं की कामना के पूरक है। आप इस सोमरस का पान करें। हे इन्द्र देव! आप वज्रधर, पर्वतों या मेघों के विदारक और अश्वों के संयोजक हैं। आप हम लोगों के उत्कृष्ट अन्न को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 6.17.2]
Hey drunker of Somras without sap, Indr Dev! You are reliever from the enemy, has beautiful cheeks and accomplish the desires of the Stotas. Drink this Somras. Hey Indr Dev! You are holder of Vajr, destroyer of mountains & clouds and organiser of horses. Grant us excellent food grains.
एवा पाहि प्रत्नथा मन्दतु त्वा श्रुधि ब्रह्म वावृधस्वोत गीर्भिः।
आविः सूर्यकृणुहि पीपिहीषो जहि शत्रूँरभि गा इन्द्र तृन्थि
हे इन्द्र देव! आपने जिस प्रकार से पहले सोमरस का पान किया, वैसे ही हमारे इस सोमरस को पीवें। यह सोमरस आपको प्रसन्न करे। हमारे स्तोत्र को सुनें और स्तुतियों द्वारा वर्द्धमान होवें। सूर्य देव को आविष्कृत करें। हम लोगों को अन्न का भोजन करावें। हमारे शत्रुओं का विनाश करें। चोरों द्वारा अपहृत गौओं को खोजें।[ऋग्वेद 6.17.3]
Hey Indr Dev! Drink this Somras, as you did earlier. Let this Somras please you. Listen to our Strotr and progress by the impact of prayers. Discover Sun-Sur Dev. Feed us with food grains. Destroy our enemy. Trace the cows stolen by the thieves.
ते त्वा मदा बृहदिन्द्र स्वधाव इमे पीता उक्षयन्त द्युमन्तम्।
महामनूनं तवसं विभूतिं मत्सरासो जर्हृषन्त प्रसाहम्
हे अन्नवान इन्द्र देव! आप दीप्तिमान् है। यह पान किया गया मादक सोमरस आपको अतिशय सिंचित करे। हे इन्द्र देव! यह मदकारक सोमरस आपको अतिशय हर्षित करे। आप निखिल गुणवान्, प्रवृद्ध, विभववान और शत्रुओं को पराजित करने वाले है।[ऋग्वेद 6.17.4]
निखिल :: अखिल, सारा, समस्त, विश्वव्यापी, सम्पूर्ण; complete, entire, universal.
विभव :: ज्योति, धूमधाम, विशालता, संभाव्य, कार्यक्षम; potential, splendour.
Hey possessor of food grains Indr Dev! You are radiant. Let this Somras drunk by you greatly nourish you. Hey Indr Dev! Let this toxicating Somras please you. You are virtuous, universal, possessor of splendour and destroyer of enemies.
येभिः सूर्यमुषसं मन्दसानोऽवासयोऽप दृळ्हानि दर्द्रत्।
महामद्रिं परि गा इन्द्र सन्तं नुत्था अच्युतं सदसस्परि स्वात्
हे इन्द्र देव! सोमरस से तृप्त होकर आपने दृढ़ अन्धकार का भेदन किया और सूर्य देव तथा उषा देवी को अपने-अपने स्थानों पर निवेशित किया। आपने-अपने स्थान से अविचलित पर्वत को विदीर्ण किया, जिस पर्वत के चारों ओर पणियों द्वारा चुराई गई गौएँ पायीं।[ऋग्वेद 6.17.5]
Hey Indr Dev! On being satisfied by drinking Somras, you removed extreme darkness and establish Sury Dev & Usha Devi in their positions. You destroyed the rigid mountain around which cows were stolen by the Panis.
तव क्रत्वा तव तद्दंसनाभिरामासु पक्वं शच्या नि दीधः।
और्णोर्दुर उस्त्रियाभ्यो वि दृळ्होदूर्वाद्गा असृजो अङ्गिरस्वान्
हे इन्द्र देव! आपने अपनी बुद्धि, कार्य और सामर्थ्य के द्वारा अपरिपक्व गौओं को परिणत दुग्ध प्रदान किया अर्थात् अकाल में भी गौओं को क्षीरदायिनी बनाया। हे इन्द्र देव! आपने गौओं को बाहर आने के लिए पाषाणादि के दृढ़ द्वारों को उद्घाटित किया। अङ्गिराओं के साथ मिलकर आपने गौओं को गोष्ठों से उन्मुक्त किया।[ऋग्वेद 6.17.6]
Hey Indr Dev! You made the immature cows yield milk by making use of your intelligence, capability and endeavours. Hey Indr Dev! You opened the strong gates blocked with stones for the cows to move out. Along with Angiras, you released the cows from the sheds.
पप्राथ क्षां महि दंसो व्यु१र्वीमुप द्यामृष्वो बृहदिन्द्र स्तभायः।
अधारयो रोदसी देवपुत्रे प्रत्ने मातरा यह्वी ऋतस्य
हे इन्द्र देव! आपने महान् कर्म द्वारा विस्तीर्ण पृथ्वी को विशेष प्रकार से पूर्ण किया। अतः आप महान् है। आपने द्युलोक को धारित किया, जिससे वह निपतित न हो। आपने पोषण करने के लिए द्यावा-पृथ्वी को धारित किया। देवता लोग द्यावा-पृथ्वी के पुत्र हैं। द्यावा-पृथ्वी पुरातन, यज्ञ अथवा उदक का निर्माण करने वाले और महान हैं।[ऋग्वेद 6.17.7]
Hey Indr Dev! You made great endeavours to complete the broad earth. You are great. You hold the earth & heavens so that they do not fall. You held the earth & heavens for their nourishment. The demigods-deities are the sons of earth & heavens. Earth & heavens are eternal-ancient creators of Yagy and water.
अध त्वा विश्वे पुर इन्द्र देवा एकं तवसं दधिरे भराय।
अदेवो यदभ्यौहिष्ट देवान्स्वर्षाता वृणत इन्द्रमत्र
हे इन्द्र देव! जब वृत्रासुर संग्राम के लिए देवगण चले, तब सम्पूर्ण देवों ने एक आपको ही संग्राम के लिए अपना नेतृत्व कर्ता बनाया। आप अत्यन्त बलशाली हैं। आपने मरुद्गणों की संग्राम में सहायता की।[ऋग्वेद 6.17.8]
Hey Indr Dev! The demigods-deities elected-appointed you the leaders prior to move for the battle with Vrata Sur. You are capable & mighty. You helped the Marud Gan in the war.
अध द्यौश्चित्ते अप सा नु वज्राद्द्द्वितानमद्भियसा स्वस्य मन्योः
अहिं यदिन्द्रो अभ्योहसानं नि चिद्विश्वायुः शयथे जघान
विपुल अन्न वाले इन्द्र देव ने जब सोने के लिए आक्रमणकारी वृत्रासुर का वध किया, तब हे इन्द्रदेव! आपके क्रोध और वज्र के भय से द्युलोक स्तब्ध रह गया।[ऋग्वेद 6.17.9]
When the possessor of enormous stock food grains killed the invader Vratra Sur for gold, the heavens was stunned with fear of your furiosity and the Vajr.
अध त्वष्टा ते मह उग्र वज्रं सहस्रभृष्टिं ववृतच्छताश्रिम्।
निकाममरमणसं येन नवन्तमहिं सं पिणगृजीषिन्
हे अत्यन्त बलशाली इन्द्र देव! देव शिल्पी त्वष्टा ने आपके लिए सहस्र धारा वाले और सौ पर्ववाले वज्र का निर्माण किया। हे नीरस सोमरस का पान करने वाले इन्द्र देव! उसी वज्र द्वारा आपने नियताभिलाष, उद्धत-प्रकृति और शब्दायमान वृत्रासुर का संहार किया।[ऋग्वेद 6.17.10]
Hey extremely powerful-mighty Indr Dev! Artisan of the demigods-deities Twasta  built Vajr for you with hundred edges and thousand sharp points (the thousand-edged, the hundred-angled thunderbolt). Hey drinker of tasteless Somras with the passion & readiness-preparedness you slayed Vratra Sur who created loud noises.
वर्धान्यं विश्वे मरुतः सजोषाः पचच्छतं महिषाँ इन्द्र तुभ्यम्।
पूषा विष्णुस्त्रीणि सरांसि धावन्वृत्रहणं मदिरमंशुमस्मै
हे इन्द्र देव! सम्पूर्ण मरुद्गण समान प्रीतिभाजन होकर स्तोत्र द्वारा आपको पूजित करते हैं और आपके निमित्त पूषा तथा श्री विष्णु देव शत संख्यक महिषों का पाक करते हैं। तीन पात्रों को पूर्ण करने के लिए मद कारक और वृत्र विनाशक सोम धावित होता है अर्थात् पूषा और श्री विष्णु सोम पात्र को पूर्ण करें। सोम पान करने के बाद ही वृत्र विनाश में इन्द्र सामर्थ्यवान् होते हैं।[ऋग्वेद 6.17.11]
पाक :: भोजन आदि पकाने की क्रिया, पकाया हुआ भोजन, रसोई, छोटा, प्रशंसनीय, पवित्र; pure, cleanse.
Hey Indr Dev! All Marud Gan worship you with love with recitation of Strotr. Pusha and Shri Vishnu cleanse hundred buffalo for you. Somras become toxicating by extracting in three pots-vessels leading to slaying of Vratr. Indr became ready-capable of destroying Vratr.
आ क्षोदो महि वृतं नदीनां परिष्ठितमसृज ऊर्मिमपाम्।
तासामनु प्रवत इन्द्र पन्थां प्रार्दयो नीचीरपसः समुद्रम्
हे इन्द्र देव! आपने वृत्रासुर द्वारा समाच्छादित सर्वतः स्थित नदियों के जल को प्रवाहित किया, जिससे नदियाँ प्रवाहित हुईं। आपने उदक तरङ्ग को उन्मुक्त किया। हे इन्द्र देव! आपने उन नदियों को निम्न मार्ग से प्रवाहित किया। आपने वेग युक्त उदक को समुद्र में पहुँचाया।[ऋग्वेद 6.17.12]
सर्वतः :: सभी ओर, चारों तरफ़, पूरी तरह से, पूर्ण रूप से, सभी जगह; completely.
Hey Indr Dev! You made the river flow from all direction, restrained by Vratr. You release the waves-tides of water. Hey Indr Dev! You made the river water flowing at high speed to reach ocean.
एवा ता विश्वा चकृवांसमिन्द्रं महामुग्रमजुर्यं सहोदाम्।
सुवीरं त्वा स्वायुधं सुवज्रमा ब्रह्म नव्यमवसे ववृत्यात्
हे इन्द्र देव! इस प्रकार से आप सम्पूर्ण कार्यों के करने वाले, ऐश्वर्यशाली, महान् ओजस्वी, अजर, बलदाता, शोभन मरुतों से सहायता पाने वाले, अस्त्रधारी और वज्रधर है। हम लोगों का नवीन स्तोत्र आपको प्रसन्न करे, जिससे हम लोगों की रक्षा होवें।[ऋग्वेद 6.17.13]
Hey Indr Dev! You get help-support from Marud Gan are aurous, immortal, mighty, have grandeur and accomplish all of your endeavours, possessing arms-weapons and wield Vajr. Let our new Strotr please you, so that you protect us.
स नो वाजाय श्रवस इषे च राये धेहि द्युमत इन्द्र विप्रान्।
भरद्वाजे नृवत इन्द्र सूरीन्दिवि च स्मैधि पार्ये न इन्द्र
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को बल, पुष्टि, अन्न और धन के लिए धारित करें। हम लोग शक्ति सम्पन्न और मेधावी हों। हे इन्द्र देव! हम भरद्वाज को परिचारकों से युक्त करने वालों को आप पुत्र-पौत्रों से युक्त करें। हे इन्द्र देव! आप आने वाले समय में हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.17.14]
Hey Indr Dev! You grant-support us for strength, nourishment, food grains and wealth. Hey Indr Dev! Grant us sons & grand sons to the providers servants to Bhardwaj Rishi. Hey Indr Dev! protect in an hour of need.
अया वाजं देवहितं सनेम मदेम शतहिमाः सुवीराः॥
इस प्रार्थना के द्वारा हम लोग द्युतिमान् इन्द्र देव द्वारा प्रदत्त अन्न लाभ करें। हम लोग शोभन पुत्र-पौत्रों से युक्त होकर सौ वर्ष पर्यन्त भी सुखमय जीवन यापन करें।[ऋग्वेद 6.17.15]
Let us be favoured by aurous-radiant Indr Dev seeking food grains. We should survive comfortably for hundred years with excellent sons & grandsons. (09.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप् आदि।
तमु ष्टुहि यो अभिभूत्योजा वन्वन्नवातः पुरुहूत इन्द्रः।
अषाळ्हमुग्रं सहमानमाभिर्गीर्भिर्वर्ध वृषभं चर्षणीनाम्॥
हे भरद्वाज! आप अनभिभूत तेज वाले, शत्रुओं की हिंसा करने वाले, अधृष्य और बहुतों के द्वारा आहूत इन्द्र देव का स्तवन करें। आप इन स्तोत्रों द्वारा अनभिभूत, ओजस्वी, शत्रु विजयी और मनुष्यों के अभीष्ट पूरक इन्द्र देव को संवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 6.18.1]
अधृष्य :: जिसका घर्षण न किया जा सके, जिसके पास जाना कठिन हो, अनभिगम्य, अजेय, घमण्डी;  invincible, ill approachable, insuperable, proudy.
अभिभूत :: मुग्ध, भावविभोर, विह्वल, वशीभूत, पराजित, पराभूत; defeated, infatuated, fascinated.
संवर्धित :: बढ़ा हुआ, बढ़ाया हुआ, पाला पोसा या देखभाल किया हुआ; enhanced.
Hey Bhardwaj! Worship Indr Dev who is invincible, possessor of aura, slayer of the enemies-demons worshiped by many people. Promote-enhance Indr Dev, who is shining, slayer of enemies and accomplish humans desires, with these Strotr.
स युध्मः सत्वा खजकृत्समद्वा तुविम्रक्षो नदनुमाँ ऋजीषी।
बृहद्रेणुश्यवनो मानुषीणामेकः कृष्टीनामभवत्सहावा
इन्द्र देव संग्राम में रेणुओं के उत्थापक, मुख्य, बलवान्, योद्धा, दाता, युद्ध में संलग्न, सहानुभूति सम्पन्न, वर्षा द्वारा बहुतों के उपकारक, शब्द विधायक, तीनों सवनों में सोमपान करने वाले और मनु की सन्तानों की रक्षा करने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.18.2]
रेणु :: धूल, बालू, पृथ्वी, संभालू के बीज, बिडंग, अत्यंत लघु परिमाण, कणिका, फूल के पराग कण; pollen grains, dust particles, micro.
उत्थापक :: उत्थान, उत्तोलक, उन्नति, भार उठाने का यन्त्र; lifter, lift, lifting gear, raise.
सहानुभूति :: संवेदना, हमदर्द, अनुकंपा, दया; sympathy, empathy. 
Indr Dev raises dust in the war, head of the army, mighty, warrior, donor, engaged in the war, sympathetic, producer-causative of rains, synthesizer of words, drink Somras thrice during the day and protector of the progeny of Manu. 
त्वं ह नु त्यददमायो दस्यूँरैकः कृष्टीरवनोरार्याय।
अस्ति स्विन्नु वीर्यं१ तत्त इन्द्र न स्विदस्ति तदृतुथा वि वोचः
हे इन्द्र देव! आप कर्म विहीन मनुष्यों को शीघ्र ही अपने वशीभूत करें। अकेले आपने ही कर्मानुष्ठानकारी आर्यों को पुत्र-दासादि प्रदान किया। हे इन्द्र देव! आप में इस प्रकार की पूर्वोक्त सामर्थ्य है अथवा नहीं? आप समय-समय पर अपने बल का विशेष परिचय देने के लिए कभी-कभी अपना पराक्रम प्रकट करें।[ऋग्वेद 6.18.3]
Hey Indr Dev control the humans who are unwilling to work. You granted son, slaves, servants etc. to the Ary. Hey Indr Dev! Do you possess this type of capability or not!? You show your might time & again.
सदिद्धि ते तुविजातस्य मन्ये सहः सहिष्ठ तुरतस्तुरस्य।
उग्रमुग्रस्य तवसस्तवीयोऽरध्रस्य रध्रतुरो बभूव
हे बलवान इन्द्र देव! आप संसार के बहुत यज्ञों में प्रादुर्भूत हुए हैं और हमारे शत्रुओं का विनाश भी किया। आप में प्रचण्ड और प्रवृद्ध बल है हम ऐसा समझते हैं। आप ओजस्वी, समृद्धि सम्पन्न, शत्रुओं द्वारा अजेय तथा जयशील शत्रुओं के संहारक हैं।[ऋग्वेद 6.18.4]
प्रादुर्भूत :: जिसका प्रादुर्भाव हुआ हो, जो प्रकट हुआ हो, सामने आया हुआ, उत्पन्न, जन्मा हुआ, उत्पादित,  विकसित; evolved, born, appeared.
प्रचण्ड :: कठोर, उग्र, कड़ा; terrific, severe.
Hey might Indr Dev! You participated in many Yagy in the universe and slayed our enemies. We assume that you have terrific and highly developed strength. You are effective, powerful, invincible and destroyer of enemy.
तन्नः प्रत्नं सख्यमस्तु युष्मे इत्था वदद्भिर्वलमङ्गिरोभिः। हन्नच्युतच्युद्दस्मेषयन्तमृणोः पुरो वि दुरो अस्य विश्वाः
हे अविचलित पर्वतादि के संचालन कर्ता और मनोज्ञ दर्शन इन्द्र देव! हम लोगों का चिरकालानुवर्त्ती सखा भाव चिरस्थायी है। आपने स्तवकारी अङ्गिराओं के साथ अस्त्र निक्षेप करने वाले बल नामक असुर का वध करके उसके नगरों के द्वारों को खोल दिया।[ऋग्वेद 6.18.5]
मनोज्ञ :: प्रिय, सुंदर; lovely, pleasing.
Hey controller of static mountains etc., with pleasing personality, Indr Dev! Let our friendly relations since ever should remain-maintained. You opened the gates of the cities killing the demon Bal, who fought with Angiras.
स हि धीभिर्हव्यो अस्त्युग्र ईशानकृन्महति वृत्रतूर्ये।
स तोकसाता तनये स वज्री वितन्तसाय्यो अभवत्समत्सु
ओजस्वी और स्तोताओं की सामर्थ्य को बढ़ाने वाले इन्द्र महान् संग्राम में स्तुतियों द्वारा आहूत होते हैं। पुत्र लाभ के लिए इन्द्र देव आहूत होते हैं। वज्रधारी इन्द्र देव संग्राम में विशेष रूप से वन्दनीय हैं।[ऋग्वेद 6.18.6]
Indr Dev being effective and booster of the might of the Stotas, is worshiped in the war with prayers. Indr Dev is worshiped for having son. Vajr wielding Vajr Indr Dev, is especially worshiped in the war.
स मज्मना जनिम मानुषाणाममर्त्येन नाम्नाति प्र सर्खे।
स द्युनेन स शवसोत राया स वीर्येण नृतमः समोकाः
वे इन्द्र देव शत्रुओं को अपने बल से झुकाने वाले, यश, धन बल और वीरता में सर्वश्रेष्ठ है। वे मनुष्यों में उत्तम और सर्वोत्तम पद तथा स्थान को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.18.7]
Indr Dev is best-excellent in lowering-bowing the enemies, fame, wealth, might, valour. Let him achieve the best and excellent position amongest the humans.
स यो न मुहे न मिथू जनो भूत्सुमन्तुनामा चुमुरिं धुनिं च।
वृणक्पितुं शम्बरं शुष्णमिन्द्रः पुरां च्यौनाय शयथाय नू चित्
जो इन्द्र देव संग्राम में कभी भी कर्त्तव्य विमूढ़ नहीं होते, जो कभी भी वृथा वस्तुओं को उत्पन्न नहीं करते; किन्तु जो प्रख्यात नाम वाले हैं, वही इन्द्र देव शत्रुओं के नगरों को विनष्ट करने के लिए और शत्रुओं को मारने के लिए शीघ्र ही कार्यरत होते हैं। हे इन्द्र देव! आपने चुमुरि, धुनि, पिप्रु, शम्बर और शुष्ण नामक असुरों का वध किया।[ऋग्वेद 6.18.8]
किंकर्तव्यविमूढ़ :: हतबुद्धि, हक्का-बक्का; bewildered, puzzle-headed, puzzle-pated.
Indr Dev is never puzzled in the war. Never generate useless materials. he is famous. He quickly act to kill the enemy and their forts-cities in the war. Hey Indr Dev! You killed the demons named Chumuri, Dhuni, Shambar and Shushn.
उदावता त्वक्षसा पन्यसा च वृत्रहत्याय रथमिन्द्र तिष्ठ।
धिष्व वज्रं हस्त आ दक्षिणत्राभि प्र मन्द पुरुदत्र मायाः
हे इन्द्र देव! आप ऊद्धर्वगामी और शत्रुओं के संहारकर्ता हैं। आप स्तवनीय बल से युक्त होकर शत्रुओं को मारने के लिए अपने रथ पर आरुढ़ होते हैं।दायें हाँथ में अपने अस्त्र वज्र को धारण करें। हे बहुत धन वाले इन्द्र देव! आप जाकर आसुरी माया को विशेष प्रकार से नष्ट करें।[ऋग्वेद 6.18.9]
Hey Indr Dev! You move in the upward direction and destroy the enemy. You ride the charoite possessing revered might; wielding Vajr in your right hand. Hey wealthy Indr Dev! Destroy the demonic enchantment using your special powers.
अग्निर्न शुष्कं वनमिन्द्र हेती रक्षो नि धक्ष्यशनिर्न भीमा।
गम्भीरय ऋष्वया यो रुरोजाध्वानयद्दुरिता दम्भयच
हे इन्द्र देव! अग्नि जिस प्रकार से वृक्षों को जलाती है, उसी प्रकार आपका वज्र शत्रुओं को नष्ट करता है। आप वज्र के समान भयंकर हैं। आप वज्र द्वारा राक्षसों को अतिशय नष्ट करें। इन्होंने अनभिभूत और महान् वज्र द्वारा शत्रुओं को नष्ट किया तथा ये संग्राम में भेदन करते हैं और समस्त दुरितों का भी भेदन करते हैं।[ऋग्वेद 6.18.10]
दुरित :: पाप, दुष्कृत; sinners. 
Hey Indr Dev! The way fire burn the trees, your Vajr destroy the enemies. Your Vajr is furious. Destroy the demons to the maximum. You penetrate the enemies, destroy them and the sinners with Vajr.
आ सहस्रं पथिभिरिन्द्र राया तुविद्युम्न तुविवाजेभिरर्वाक्।
याहि सूनो सहसो यस्य नू चिददेव ईशे पुरुहूत योतोः
हे बहुधन सम्पन्न, बहुतों के द्वारा आहूत, बल पुत्र इन्द्र देव! कोई भी असुर आपको बल से पृथक करने में समर्थ नहीं हो सकता। धन से युक्त होकर आप असंख्य बलशाली वाहनों के द्वारा हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 6.18.11]
Possessor of various kinds of wealth, worshiped by many, son of Bal, hey Indr Dev! No demon can separate you from Bal. Come to us possessing infinite wealth.
प्र तुविद्युम्नस्य स्थविरस्य घृष्वेर्दिवो ररप्शे महिमा पृथिव्याः।
नास्य शत्रुर्न प्रतिमानमस्ति न प्रतिष्ठिः पुरुमायस्य सह्योः
अति यश वाले, शत्रुओं के निहन्ता और प्रवर्धमान इन्द्र देव की महिमा स्वर्गलोक और पृथ्वी लोक से भी महान् है। बहुत बुद्धि वाले और शत्रुओं को अभिभूत करने वाले इन्द्र देव का कोई शत्रु नहीं है, कोई प्रतिनिधि नहीं है और न कोई आश्रय है।[ऋग्वेद 6.18.12]
निहन्ता :: हत्या करने वाला; killer.
Possessor of great fame & glory, killer of enemies and progressing Indr Dev is greater than the heavens & the earth. Possessor of great intelligence and enchanter of the enemy, Indr Dev has no enemy, representative and shelter.
प्र तत्ते अद्या करणं कृतं भूत्कुत्सं यदायुमतिथिग्वमस्मै।
पुरू सहस्रा नि शिशा अभि क्षामुत्तूर्वयाणं घृषता निनेथ
हे इन्द्र देव! आपका वह कर्म प्रकाशित होता है। आपने शुष्ण नामक राक्षस से कुत्स की और शत्रुओं के समीप से आयु तथा दिवोदास की रक्षा की। आपने वज्र के द्वारा शम्बर का वध करके उसका बहुत-सा धन अतिथिग्व को प्रदान किया। भूमि पर तीव्रगामी दिवोदास को कष्टों से सुरक्षित किया।[ऋग्वेद 6.18.13]
Hey Indr Dev! Your deeds-endeavours are acknowledged. You killed the demon Shushn and protected Kuts in addition to Ayu & Divodas from the enemies. You killed Shambar with Vajr and gave his lots of wealth to Atithigavy. You protected fast moving-dynamic Divodas from troubles, torture over the earth.
अनु त्वाहिघ्ने अध देव देवा मदन्विश्वे कवितमं कवीनाम्।
करो यत्र वरिवो बाधिताय दिवे जनाय तन्वे गृणानः
हे द्युतिमान इन्द्र देव! सम्पूर्ण स्तोतागण वृष्टि प्रदान करने के लिए आपका स्तवन कर रहे हैं। आप सम्पूर्ण मेधावियों में श्रेष्ठ है। स्तोताओं के स्तवन से प्रसन्न होकर आप दारिद्र्यादि से पीड़ित याजकगणों और उनके पुत्रों को धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.18.14]
Hey radiant Indr Dev! All Stotas worship you for rains. You are best amongest the intelligent people. On being happy-pleased you grant the worshiping Stotas suffering from poverty, wealth to them and their sons.
अनु द्यावापृथिवी तत्त ओजोऽमर्त्या जिहत इन्द्र देवाः।
कृष्वा कृत्नो अकृतं यत्ते अस्त्युक्थं नवीयो जनयस्व यज्ञैः
हे इन्द्र देव! द्यावा-पृथ्वी और अमर देव आपके बल को स्वीकार करते हैं। हे कर्मवीर इन्द्र देव! आप असम्पादित कार्यों का अनुष्ठान करें और उसके अनन्तर यज्ञ में अभिनव स्तोत्रों को इन्द्र देव कर्म करने की अपनी शक्ति के कारण पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 6.18.15]
Hey Indr Dev! The earth & heavens accept your strength. Hey Karm Veer (one who perform) Indr Dev! Accomplish the unfinished jobs. During the Yagy Indr Dev is worshiped by virtue of his might.(11.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
महाँ इन्द्रो नृवदा चर्षणिप्रा उत द्विबर्हा अमिनः सहोभिः।
अस्मद्र्यग्वावृधे वीर्यायोरुः पृथुः सुकृतः कर्तृभिर्भूत्
राजा की तरह स्तोता मनुष्यों की कामनाओं के पूरक प्रभूत इन्द्र देव यहाँ आगमन करें। दोनों लोकों के ऊपर पराक्रम को विस्तारित करने वाले और शत्रुओं द्वारा अहिंसनीय ये हम लोगों के निकट वीरत्व प्रकाशित करने के लिए वर्द्धित होते हैं। इन्द्र देव विस्तीर्ण शरीर वाले और प्रख्यात गुणयुक्त कर्म करने की अपनी शक्ति के कारण पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 6.19.1]
Let Indr Dev who accomplish the desires of the Stotas come here like a king. He extend his valour over the two abodes-heaven & earth, unharmed by the enemy demonstrate-show his capacity-calibre of bravery. Indr Dev, possessor of wide body, qualities-traits and might is worshiped.
इन्द्रमेव धिषणा सातये धाद्बृहन्तमृष्वमजरं युवानम्।
अषाळ्हेन शवसा शूशुवांसं सद्यश्चिद्यो वावृधे असामि
इन्द्र देव उत्पन्न होते ही अत्यधिक वर्द्धमान होते हैं। हमारी स्तुति दान के लिए इन्द्र देव को धारित करती है। इन्द्र देव महान्, गमनशील, जरारहित, युवा और शत्रुओं द्वारा अनभिभूत होने वाले बल से युक्त हैं।[ऋग्वेद 6.19.2]
Indr Dev grew as soon as he was born. Our prayers support Indr Dev for charity. Indr Dev is great, dynamic, free from old age, young and possess the strength which can not be over powered by the enemy.
पृथू करस्ना बहुला गभस्ती अस्मद्र्य१ क्सं मिमीहि श्रवांसि।
यूथेव पश्वः पशुपा दमूना अस्माँ इन्द्राभ्या ववृत्स्वाजौ॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न दान करने के लिए हम लोगों के अभिमुख अपने विस्तीर्ण, कार्यकर्ता और अतिशय दान शील हाथों को करें। हे इन्द्र देव! आप शान्त मन वाले हैं। पशु पालक जिस प्रकार से पशुओं के समूह को संचारित करता है, उसी प्रकार आप संग्राम में हम लोगों को संचारित करें।[ऋग्वेद 6.19.3]
Hey Indr Dev! Keep your broad, working & making extreme charity hands in front of us. Hey Indr Dev! You are calm, quite & compose. Handle us in the war just like the cattle growers tackle their herd.
तं व इन्द्रं चतिनमस्य शाकैरिह नूनं वाजयन्तो हुवेम।
यथा चित्पूर्वे जरितार आसुरनेद्या अनवद्या अरिष्टाः
हम स्तोता गण अन्नाभिलाषी होकर इस यज्ञ में समर्थ सहायक मरुतों के साथ शत्रु निहन्ता प्रसिद्ध इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं। हे इन्द्र देव! आपके पुरातन स्तोता के समान हम लोग भी निन्दा से रहित, पाप रहित और अहिंसित होवें।[ऋग्वेद 6.19.4]
We Stotas desirous of food grains worship, slayer of enemy Indr Dev, with the Marud Gan. Hey Indr Dev! Your eternal Stotas should be free from sins, unharmed and free from reproach-condemnation.
धृतव्रतो धनदाः सोमवृद्धः स हि वामस्य वसुनः पुरुक्षुः।
सं जग्मिरे पथ्या ३ रायो अस्मिन्त्समुद्रे न सिन्धवो यादमानाः
जिस प्रकार नदियाँ प्रवाहित होकर समुद्र में गिरती होती हैं, उसी प्रकार स्तोताओं का हितकर धन इन्द्र देव के प्रति गमन करता है। इन्द्र देव धन से कर्म करने वाले, वाञ्छित धन के स्वामी और सोमरस द्वारा प्रवर्द्धमान हैं।[ऋग्वेद 6.19.5]
The way the river flow to the ocean, the beneficial wealth of the Stotas should moves to Indr Dev. Indr Dev perform deeds with the wealth, possessor of desired wealth and grow-progress by drinking the Somras.
शविष्ठं न आ भर शूर शव ओजिष्ठमोजो अभिभूत उग्रम्।
विश्वा द्युम्ना वृष्ण्या मानुषाणामस्मभ्यं दा हरिवो मादयध्यै
हे पराक्रमशाली इन्द्र देव! आप हम लोगों को प्रकृष्ट तम बल प्रदान करें। हे शत्रुओं को अभिभूत करने वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों को असह्य और अतिशय ओजस्वी दीप्ति प्रदान करें। हे अश्व वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों को सेचन समर्थ, द्युतिमान् और मनुष्यों के भोग्य के लिए कल्पित सम्पूर्ण धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.19.6]
Hey Indr Dev possessing valour & might! Hey mesmeriser of the enemy Indr Dev! Grant us too sharp aura-radiance. Hey Indr Dev possessor of horses! Grant us the wealth which is nourishing, usable for comforts-pleasure for the humans.
यस्ते मदः पृतनाषाळमृध्र इन्द्र तं न आ भर शूशुवांसम्।
येन तोकस्य तनयस्य सातौ मंसीमहि जिगीवांसस्त्वोताः
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को शत्रु सेनाओं को अभिभूत करने वाला और अहिंसित हर्ष प्रदान करें। आपके द्वारा रक्षित होकर हम लोग विजयी हों। पुत्र-पौत्र प्राप्ति के निमित्त हम लोग उसी हर्ष से आपका स्तवन करें।[ऋग्वेद 6.19.7]
Hey Indr Dev! Grant us pleasure that enchant the enemy and do not harm us. Let us be winner being protected by you. Blessed with sons & grant sons, let us worship-pray you with the same pleasure.
आ नो भर वृषणं शुष्ममिन्द्र धनस्पृतं शूशुवांसं सुदक्षम्।
येन वंसाम पृतनासु शत्रून्तवोतिभिरुत जामीरँजामीन्
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को अभिलाषा पूरक सेना रूप बल प्रदान करें। वह (बल) धन का पालक, प्रवृद्ध और शोभन बल हो। हे इन्द्र देव! आपकी रक्षा द्वारा हम संग्राम में जिस बल में आत्मीय और अपरिचित शत्रुओं का वध कर सकें।[ऋग्वेद 6.19.8]
Hey Indr Dev! Grant us the strength, in the form of army which can accomplish our desires. The strength granted by you should be glorious, growing and protector of wealth. Hey Indr Dev! On being protected by you, we should be able to kill the known (friends & relatives against, harming us) and the unknown-unidentified enemies.
आ ते शुष्मो वृषभ एतु पश्चादोत्तरादधरादा पुरस्तात्।
आ विश्वतो अभि समेत्वर्वाङिन्द्र द्युम्नं स्वर्वद्धेह्यस्मे
हे इन्द्र देव! आपका अभीष्ट वर्षी बल पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और पूर्व की ओर से हमारे सम्मुख आगमन करें। वह प्रत्येक दिशा से होकर हमारे पास आवे। आप हमें सुखयुक्त, धनयुक्त करें।[ऋग्वेद 6.19.9]
Hey Indr Dev! The strength which accomplish the desires should concentrate upon us from the east, west, north & south. Let it come to us from all (10) directions. We should have pleasure-comforts and wealth.
नृवत्त इन्द्र नृतमाभिरूती वंसीमहि वामं श्रोमतेभिः।
ईक्षे हि वस्व उभयस्य राजन्धा रत्नं महि स्थूरं बृहन्तम्
हे इन्द्र देव! परिचारकों से युक्त और श्रोतव्य यश के साथ हम लोग श्रेष्ठ धन का उपभोग आपकी रक्षा के द्वारा करते हैं। हे राजमान इन्द्र देव! आप पार्थिव और दिव्य धन के स्वामी हैं; इसलिए आप हम लोगों को महान् असीम एवं गुणयुक्त रत्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.19.10]
Hey Indr Dev! We utilise the excellent riches with servants-slave and glory being protected by you. Hey radiant Indr Dev! You are the lord of material and divine wealth. Grant us unlimited quality jewels.
मरुत्वन्तं वृषभं वावृधानमकवारिं दिव्यं शासमिन्द्रम्।
विश्वासाहमवसे नूतनायोग्रं सहोदामिह तं हुवेम
हम लोग अभिनव रक्षा के लिए इस यज्ञ में प्रसिद्ध इन्द्र देव का आह्वान करते हैं। वे मरुतों के साथ युक्त, अभीष्ट वर्षी, समृद्ध, शत्रुओं के द्वारा अकुत्सित, दीप्तिमान्, शासनकारी, लोक का अभिभव करने वाले, प्रचण्ड और बलवान् हैं।[ऋग्वेद 6.19.11]
अभिनव :: बिल्कुल नया, आधुनिक ढंग का; unique, maiden.
We invoke Indr Dev in this glorious-famous Yagy for excellent protection. Associated by the Marud Gan, he is desires accomplishing, prosperous, untainted by the enemy, radiant, ruler, resort to the welfare of humans, sharp and mighty.
जनं वज्रिन्महि चिन्मन्यमानमेभ्यो नृभ्यो रन्धया येष्वस्मि।
अधा हि त्वा पृथिव्यां शूरसातौ हवामहे तनये गोष्वप्सु
हे वज्रधर! हम जिन मनुष्यों के बीच में स्थित हैं, उन मनुष्यों से अपने को अधिक मानने वाले व्यक्ति को आप वशीभूत करें। हम लोग अभी इस लोक में युद्ध के समय में एवं पुत्र, पशु और उदक लाभ के निमित्त आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 6.19.12]
Hey Vajr wielder! Control the person who considered himself to be above those with whom he interact-live. We invoke you in this abode-earth, during war for the safety of our sons, animals-cattle & water. 
वयं त एभिः पुरुहूत सख्यैः शत्रोः शत्रोरुत्तर इत्स्याम।
घ्नन्तो वृत्राण्युभयानि शूर राया मदेम बृहता त्वोताः
हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! हम लोग इन स्तोत्ररूप मित्रतापूर्ण कर्म के द्वारा आपके साथ समुदित शत्रुओं का संहार करें और उनकी अपेक्षा प्रबल हों। हे पराक्रमवान् इन्द्र देव! हम लोग आपके द्वारा रक्षित होकर महान् धन से प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 6.19.13]
Hey Indr Dev worshiped by many! Let us become capable of destroying the enemy by the Strotr like friendship and become mightier than them. Hey mighty Indr Dev! We should be blissful having attained great wealth under your asylum.(12.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्, विराट्। 
द्यौर्न य इन्द्राभि भूमार्यस्तस्थौ रयिः शवसा पृत्सु जनान्।
तं नः सहस्रभरमुर्वरासां दद्धि सूनो सहसो वृत्रतुरम्
हे बलपुत्र इन्द्र देव! सूर्य देव जिस प्रकार से अपनी दीप्ति द्वारा पृथ्वी को आक्रान्त करते हैं; उसी प्रकार संग्राम में शत्रुओं को आक्रान्त करने वाला पुत्र रूप धन आप हमें प्रदान करें। जो सहस्रों प्रकार के धन का स्वामी, शस्यपूर्ण भूमि का अधिपति और शत्रुओं का निहन्ता हो।[ऋग्वेद 6.20.1]
आक्रांत :: जिस पर आक्रमण हुआ हो, जिसपर हमला किया गया हो, पराभूत, वशीभूत, अभिभूत, ग्रस्त, सताया हुआ, व्याप्त; infested, beleaguered, attacked, invaded.
Hey son of Bal Indr Dev! Grant us a son who can invade the enemy like the Sun-Sury Dev, who pervade the earth. He should be the owner of thousands kinds of wealth, agricultural land and slayer of the enemy.
दिवो न तुभ्यमन्विन्द्र सत्रासुर्यदेवेभिर्धायि विश्वम्।
अहिं यद्वृत्रमपो वव्रिवांसं हन्नृजीषिन्विष्णुना सचानः
हे इन्द्र देव! स्तोताओं ने स्तोत्रों द्वारा सूर्य देव के सदृश आप में वास्तव में समस्त बल अर्पित किया। हे नीरस सोमरस का पान करने वाले इन्द्र देव! आपने श्रीविष्णु के साथ युक्त होकर बल द्वारा जल निरोधक वृत्रासुर का वध किया।[ऋग्वेद 6.20.2]
Hey Indr Dev! The Stotas have filled you with might with the help of Strotrs, like the Sun. Hey drinker of tasteless Somras Indr Dev! You joined Shri Hari Vishnu and eliminated Vratr.
तूर्वन्नोजीयान्तवसस्तवीयान्कृतब्रह्येन्द्रो वृद्धमहाः।
राजाभवन्मधुनः सोम्यस्य विश्वासां यत्पुरां दर्लुमावत्
जब इन्द्र देव ने सम्पूर्ण शत्रु पुरियों के विदारक वज्र को प्राप्त किया, तब वे मधुर सोमरस के स्वामी हुए। इन्द्र देव हिंसकों की हिंसा करने वाले अतिशय ओजस्वी, बलवान्, अन्न देने वाले और प्रवृद्ध तेज वाले हैं।[ऋग्वेद 6.20.3]
Indr Dev became the master-owner of Somras when he destroyed all the cities-forts of the enemies with his Vajr. He destroy the violent, radiant, mighty and grants food grains.
शतैरपन्द्रन्पणय इन्द्रात्र दशोणये कवयेऽर्कसातौ।
वधैः शुष्णस्याशुषस्य मायाः पित्वो नारिरेचीत्किं चन प्र
हे इन्द्र देव! युद्ध में बहुत अन्न प्रदान करने वाले और आपकी सहायता करने वाले मेधावी कुत्स से भयभीत होकर शत संख्यक सेनाओं के साथ पणि नामक असुर ने पलायन किया। इन्होंने बलशाली शुष्ण नामक असुर की कपटता को आयुध द्वारा नष्ट करके उसके समस्त अन्न को अपहृत कर लिया।[ऋग्वेद 6.20.4]
Hey Indr Dev! Demon Pani became afraid of intelligent Kuts who used to supply food grains in the war and helped you and moved him away with his hundreds of his armies constituting of demons. He destroyed the cunningness of mighty demon Shushn with weapons and snatched his stock of food grains.
महो द्रुहो अप विश्वायु धायि वज्रस्य यत्पतने पादि शुष्णः।
उरु ष सरथं सारथये करिन्द्रः कुत्साय सूर्यस्य सातौ
वज्र के गिरने से जब शुष्ण ने प्राण त्यागा, तब महान् द्रोही शुष्ण का सम्पूर्ण बल नष्ट हो गया। इन्द्र देव ने सूर्य देव का संभजन करने के लिए सारथी भूत कुत्स को अपने रथ को विस्तृत करने के लिए कहा।[ऋग्वेद 6.20.5]
Shushn lost his might by the strike of Vajr and died. Indr Dev asked Kuts acting as charioteer to increase the dimensions of his charoite to worship Sury Dev-Sun.
प्र श्येनो न मदिरमंशुमस्मै शिरो दासस्य नमुचेर्मथायन्।
प्रावन्नमींसाप्यं ससन्तं पृणग्राया समिषा सं स्वस्ति
इन्द्र देव ने प्राणियों को उपद्रुत करने वाले नमुचि नामक असुर के मस्तक को चूर्ण किया एवं सप के पुत्र निद्रित नमी ऋषि की रक्षा करके उन्हें पशु आदि धन तथा अन्न से युक्त किया। उस समय श्येन पक्षी ने इन्द्र देव के लिए मदकर सोमरस का आनयन किया।[ऋग्वेद 6.20.6]
Indr Dev powdered the head of Namuchi, a demon who used to trouble-torture the humans, protected the Rishi Nidrit son of Sap, provided him with animals & food grains. At that moment Shyen-falcon brought Somras for him.
वि पिप्रोरहिमायस्य दृळ्हाः पुरो वज्रिञ्छवसा न दर्दः।
सुदामन्तद्रेक्णो अप्रमृष्यमृजिश्वने दात्रं दाशुषे दाः
हे वज्रधर इन्द्र देव! आपने तुरन्त माया वाले पिप्रु नामक असुर के दृढ़ दुर्गों को बल द्वारा विदीर्ण किया। हे शोभन दान सम्पन्न इन्द्र देव! आपने हव्य रूप धन प्रदान करने वाले राजर्षि ऋजिश्वा को अप्रतिबाध धन प्रदान किया।[ऋग्वेद 6.20.7]
Hey Vajr wielder Indr Dev! You demolished the forts of Piyu demon who was an enchanter, with your might. Hey Indr Dev rich in charity! You granted unlimited wealth to Rajrishi Rajishrawa who used to make offerings in the form of wealth.
स वेतसुं दशमायं दशोणिं तूतुजिमिन्द्रः स्वभिष्टिसुम्नः।
आ तुग्रं शश्वदिभं द्योतनाय मातुर्न सीमुप सृजा इयध्यै
मनोवांछित सुख प्रदाता इन्द्र देव ने वेतसु, दशोणि, तूतुजि, तुग्र और इभ नामक असुरों को राजा द्योतन के निकट सर्वदा गमन करने के लिए उसी प्रकार वशीभूत किया, जिस प्रकार से माता पुत्र को वश में करती है।[ऋग्वेद 6.20.8]
Desired comforts-pleasure granting Indr Dev moved the demons Vetsu, Dashoni, Tootuji, Tugr and Ibh to king Dhyotan mesmerising them like the mother who control her son.
स ईं स्पृधो वनते अप्रतीतो बिभ्रद्वज्रं वृत्रहणं गभस्तौ।
तिष्ठद्धरी अध्यस्तेव गर्ते वचोयुजा वहत इन्द्रमृष्वम्
शत्रुओं द्वारा नहीं निरस्त होने वाले इन्द्र देव हाथ में शत्रुओं को मारने वाले अपने आयुध को धारित करते हुए स्पर्द्धाकारी वृत्रादि शत्रुओं का विनाश करते हैं। शूर जिस प्रकार से रथ पर आरोहण करता है, उसी प्रकार वे अपने अश्वों पर आरोहण करते हैं। वचनमात्र से पूजित होकर वे दोनों घोड़े महान इन्द्रदेव का वहन करें।[ऋग्वेद 6.20.9]
Indr Dev who is undefeated by the enemies, wield the weapons in his hands for destroying the competing enemies like Vratr. The way a brave person ride his charoite, he rides his horses. The great horses worshiped through words, carry Indr Dev.
सनेम तेऽवसा नव्य इन्द्र प्र पूरवः स्तवन्त एना यज्ञैः।
सप्त यत्पुरः शर्म शारदीर्दर्द्धन्दासीः पुरुकुत्साय शिक्षन्
हे इन्द्र देव! आपकी रक्षा के द्वारा हम स्तोतागण नवीन धन के लिए उपासना करते हैं। मनुष्य स्तोतागण इस प्रकार से युक्त यज्ञों के द्वारा आपकी स्तुति करते हैं कि यज्ञ विद्वेषी प्रजाओं की हिंसा करते हुए पुरुकुत्स राजा को धन प्रदान करते हैं। हे इन्द्र देव! आपने शरत् नामक असुर की सात पुरियों को वज्र द्वारा विदीर्ण कर दिया।[ऋग्वेद 6.20.10]
Hey Indr Dev! Protected by you, we the Stotas; request for more wealth. The Stotas worship you by holding of Yagy so that king Purukuts who destroy the cities of envious demons, is granted money. Hey Indr Dev! You destroyed the seven cities-abodes of the demon called Sharat.
त्वं वृध इन्द्र पूर्व्यो भूर्वरिवस्यन्नुशने काव्याय।
परा नववास्त्वमनुदेयं महे पित्रे ददाथ स्वं नपातम्
हे इन्द्र देव! धनाभिलाषी होकर आप कवि पुत्र उशना के लिए प्राचीन उपकारक हुए। आपने नववास्त्व नामक असुर का वध किया और क्षमताशाली पिता उशना के निकट उसके देयपुत्र को उपस्थित किया।[ऋग्वेद 6.20.11]
Hey Indr Dev! Desirous of opulence, you helped the son of Kavi named Ushna. You killed the demons Navvastv and went to capable to father Ushna to produce-present his son Dey to him.
त्वं धुनिरिन्द्र धुनिमतीॠणोरपः सीरा न स्रवन्तीः।
प्र यत्समुद्रमति शूर पर्षि पारया तुर्वशं यदुं स्वस्ति
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं को कम्पायमान करने वाले हैं। आपने धुनि नामक असुर द्वारा निरुद्ध जल को नदी के सदृश प्रवहणशील बनाया। हे वीर इन्द्र देव! जब आप समुद्र का अतिक्रमण करके उत्तीर्ण होते हैं तब समुद्र के पार में वर्तमान उर्वशी और यदु को समुद्र पार कराते हैं।[ऋग्वेद 6.20.12]
Hey Indr Dev! You make the enemies tremble. You made the blocked water by the demon Dhuni, flow like a river. Hey brave Indr Dev! When you cross the ocean successfully, you help Urvashi and king Yadu to cross the sea.
तव ह त्यदिन्द्र विश्वमाजौ सस्तो धुनीचुमुरी या ह सिष्वप्।
दीदयदित्तुभ्यं सोमेभिः सुन्वन्दभीतिरिध्मभृतिः पक्थ्य१र्कैः
हे इन्द्र देव! संग्राम में उस तरह के सब कार्य आपके ही हैं। धुनी और चुमुरी नामक असुरों को आपने संग्राम में मार डाला। हे इन्द्र देव! इसके अनन्तर हव्यपाक करने वाले, ईंधन के भर्ता और आपके निमित्त सोमाभिषव करने वाले राजर्षि दभीति ने हवीरूप अन्न से आपको प्रदीप्त किया।[ऋग्वेद 6.20.13]
Hey Indr! All such deeds in the war are performed by you. You killed the demons Dhuni and Chumuri in the war. Hey Indr Dev! Thereafter, Rajrishi Dabhiti who cooked the offerings, supplied the fuel and extracted Somras for you; glorified you with the food grains & offerings.(14.09.2023) 
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
इमा उ त्वा पुरुतमस्य कारोर्हव्यं वीर हव्या हवन्ते।
धियो रथेष्ठामजरं नवीयो रयिर्विभूतिरीयते वचस्या
हे शूर इन्द्र देव! बहुत कार्य की अभिलाषा करने वाले स्तोता भरद्वाज की प्रशंसनीय स्तुतियाँ आपका आह्वान करती हैं। इन्द्र देव रथ पर स्थित जरा रहित और नवीनतर हैं। श्रेष्ठ विभूति इनका अनुगमन करती हैं।[ऋग्वेद 6.21.1]
ऋषि भरद्वाज व्याकरण शास्त्र, धर्म शास्त्र, शिक्षा शास्त्र, राजनीति शास्त्र, अर्थ शास्त्र, धनुर्वेद, आयुर्वेद और भौतिक विज्ञान वेत्ता थे।
ऋषि भरद्वाज ने यन्त्र सर्वस्व नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्म मुनि ने विमानन शास्त्र के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिये विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन है।
Hey brave Indr Dev! Stuties-prayers of Stota Bhardwaj who perform several deeds, invoke you. Indr Dev is free from old age and young. Excellent grandeur follow him.
तमु स्तुष इन्द्रं यो विदानो गिर्वाहसं गीर्भिर्यज्ञवृद्धम्।
यस्य दिवमति मह्ना पृथिव्याः पुरुमायस्य रिरिचे महित्वम्
जो सब जानते हैं अथवा जो सभी के द्वारा जाने जाते हैं, जो स्तुतियों द्वारा आवाहनीय है और जो यज्ञ द्वारा प्रवर्द्धमान होते हैं, उन इन्द्र देव का हम स्तवन करते हैं। बहुत प्रज्ञा वाले इन्द्र देव का माहात्म्य द्यावा-पृथ्वी का अतिक्रमण करता है।[ऋग्वेद 6.21.2]
We worship & invoke Indr Dev who knows every thing and is known to everyone, invoked by the recitation of Stuties-sacred hymns and nourished by the Yagy. Blessed with many intelligence-sciences, the glory-significance of Indr Dev is higher than that of the earth & the heavens.
सइत्तमोऽवयुनं ततन्वत्सूर्येण वयुनवच्चकार।
कदा ते मर्ता अमृतस्य धामेयक्षन्तो न मिनन्ति स्वधावः
इन्द्र देव ने ही वृत्रासुर द्वारा विस्तीर्ण और अप्रकाशित अन्धकार को सूर्य देव द्वारा प्रकाशित किया। हे बलवान् इन्द्र देव! आप अमरणशील है। मनुष्यगण आपके स्वर्ग नामक स्थान का सर्वदा यजन करना चाहते हैं। वे किसी प्राणी की हिंसा नहीं करते।[ऋग्वेद 6.21.3]
Its Indr Dev who got the vast shroud of darkness removed by Sury Dev-Sun. Hey mighty Indr Dev! You are immortal. The humans always worship your abode, the heaven. You do not harm any one.
यस्ता चकार स कुह स्विदिन्द्रः कमा जनं चरति कासु विक्षु।
कस्ते यज्ञो मनसे शं वराय को अर्क इन्द्र कतमः स होता
जिन इन्द्र देव ने उन वृत्र वधादि प्रसिद्ध कार्यों को किया, वे अभी कहाँ वर्तमान हैं, किस देश और किन प्रजाओं के बीच में वर्त्तमान हैं। हे इन्द्र देव! किस तरह का यज्ञ आपके चित्त के लिए सुखकर होता है? आपका वरण करने में किस तरह का मन्त्र समर्थ होता है? आपका वरण करने में जो समर्थ होता है, वह कौन है?[ऋग्वेद 6.21.4]
Where is Indr Dev who killed Vrat etc., now; which abode-country, amongest which people? Hey Indr Dev! What type of Yagy is comfortable to you? What type of Mantr can help us contact-satisfy you? Who is capable of accepting you?
इदा हि ते वेविषतः पुराजाः प्रलास आसुः पुरुकृत्सखायः।
ये मध्यमास उत नूतनास उतावमस्य पुरुहूत बोधि
हे बहुत कार्यों को करने वाले इन्द्र देव! पूर्वकाल में उत्पन्न पुरातन अङ्गिरा आदि आज कल के समान कार्य करते हुए आपके स्तोता हुए। मध्यकालीन और नवीन भी आपके स्तोता हुए। इसलिए हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! आप मुझ अर्वाचीन की प्रार्थना को श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.21.5]
अर्वाचीन :: आधुनिक, नया; modern.
Hey Indr Dev, performer of various-several deeds! During ancient period Angira became your worshiper-Stota. During middle era and the current era too, people became your fans-worshipers. Hence hey Indr dev devoted to the welfare of all humans! Please listen-attend to me a person of the modern-current era my prayers.
तं पृच्छन्तोऽवरासः पराणि प्रत्ना त इन्द्र श्रुत्यानु येमुः।
अर्चामसि वीर ब्रह्मवाहो यादेव विद्म तात्त्वा महान्तम्
हे पराक्रमी इन्द्र देव! आज के मनुष्य आपसे पूछते हैं। आपकी अर्चना करते हैं। आपके प्राचीन और उत्कृष्ट महान् कार्यों को प्रार्थना रूप वचनों में बाँधते हैं। आपके जिन कार्यों को हम लोग जानते हैं, उन्हीं से हम लोग आपकी अर्चना करते हैं। आप महान् है।[ऋग्वेद 6.21.6]
Hey mighty Indr Dev! The humans of current era respect, honour, request & pray to you. They sing glory of your past and current deeds. We worship you through your great deeds known to us. You are great-adorable.
अभि त्वा पाजो रक्षसो वि तस्थे महि जज्ञानमभि तत्सु तिष्ठ।
तव प्रत्येन युज्येन सख्या वज्रेण धृष्णो अप ता नुदस्व
हे इन्द्र देव! राक्षसों का बल आपके अभिमुख प्रतिष्ठित है। आप भी उस प्रादुर्भूत महान् सम्मुख स्थिर होवें। हे शत्रुओं के धर्षक इन्द्र देव! स्थिर होकर आप अपने वज्र द्वारा उस बल का अपनोदन करें। आपका वज्र पुरातन, योजनीय और नित्य सहायक है।[ऋग्वेद 6.21.7]
Hey Indr Dev! The might of the demons is insignificant and concentrated-projected against you. Face them up, scatter them. Hey valiant destroyer of the enemies, Indr Dev! Stabilize your might with the Vajr, which is your ancient associate-accomplice.
स तु श्रुधीन्द्र नूतनस्य ब्रह्मण्यतो वीर कारुधायः।
त्वं ह्या३पिः प्रदिवि पितॄणां शश्वद्धभूथ सुहव एष्टौ
हे स्तोताओं के धारक वीर इन्द्र देव! आप हमारे स्तोत्रों को शीघ्र श्रवण करें। हम आधुनिक और स्तोत्र करने की इच्छा रखने वाले हैं। हे इन्द्र देव! यज्ञ में आप शोभन आह्वान वाले होकर पूर्वकाल में अङ्गिराओं के चिरकाल तक मित्र हुए। इसलिए आप हमारे स्तोत्रों को सुनें।[ऋग्वेद 6.21.8]
Hey supporter-nurturer of the Stotas, Indr Dev! Listen-attend to our Strotr quickly. We are modern and wish to have-recite Strotr (in your honour-dignity). Hey Indr Dev! You became friendly for long with the Angiras and was invoked honourably. Please listen to our Strotr.
प्रोतये वरुणं मित्रमिन्द्रं मरुतः कृष्वावसे नो अद्य।
प्र पूषणं विष्णुमग्निं पुरंधिं सवितारमोषधीः पर्वतांश्च
हे भरद्वाज! आप अभी हम लोगों की तृप्ति और रक्षा के लिए राज्याभिमानी वरुण, दिनाभिमानी मित्र, इन्द्र देव, मरुद्गण, पूषा, सर्वव्यापी श्री विष्णु, बहुकर्मकारी अग्नि देव, सभी के प्रेरक सविता, औषधियों के अभिमानी देव और पर्वतों की स्तुति करें।[ऋग्वेद 6.21.9]
Hey Bhardwaj! You should worship for our safety and contentment to Varun Dev, Mitr, Indr Dev, Pusha and all pervading Shri Hari Vishnu, Agni Dev-performer of various deeds the deities of medicines and the mountains.
इम उ त्वा पुरुशाक प्रयज्यो जरितारो अभ्यर्चन्त्यर्कैः।
श्रुधी हवमा हुवतो हुवानो न त्वावाँ अन्यो अमृत त्वदस्ति
हे बहुत शक्ति वाले अतिशय यजनीय इन्द्र देव! ये स्तोता लोग अर्चनीय स्तोत्रों के द्वारा आपका स्तवन करते हैं। हे अमरणशील इन्द्र देव! स्तूयमान होकर आप प्रार्थना करने वाले मेरे स्तोत्रों को श्रवण करें; क्योंकि आपके समान कोई दूसरा देव नहीं है।[ऋग्वेद 6.21.10]
Hey mighty and highly worshipable Indr Dev! The Stotas worship you with adorable Strotr. Hey immortal Indr Dev! Become aurous-radiant and listen to my prayers and Strotr, since no other demigod-deity is comparable to you.
नू म आ वाचमुप याहि विद्वान्विश्वेभिः सूनो सहसो यजत्रैः।
ये अग्निजिह्वा ऋतसाप आसुर्ये मनुं चक्रुरुपरं दसाय
हे बल पुत्र इन्द्र देव! आप सर्वज्ञ है। आप सम्पूर्ण यजनीय देवों के साथ शीघ्र ही मेरे स्तुति रूप वचन के अभिमुख आगमन करें। जो अग्नि देव देवों की जिह्वा हैं, जो यज्ञ में भोजन करते हैं और जिन्होंने राजर्षि मनु को, नष्ट करने के लिए, शत्रुओं के ऊपर किया, उन्हीं के साथ आगमन करें।[ऋग्वेद 6.21.11]
Hey son of Bal, Indr Dev! You are aware of all activities & events. Invoke quickly with all worshipable demigods-deities to listen to my prayers. Come-invoke with Agni Dev, who is the tongue of the demigods-deities, who dines in the Yagy, who attacked the enemies to protect Rajrishi Manu.
स नो बोधि पुरएता सुगेषूत दुर्गेषु पथिकृद्विदानः।
ये अश्रमास उरवो वहिष्ठास्तेभिर्न इन्द्राभि वक्षि वाजम्
हे इन्द्र देव! आप मार्ग निर्माता और विद्वान् है। आप सुख पूर्वक जाने योग्य मार्ग में तथा दुःख से जाने योग्य मार्ग में हम लोगों के अग्रसर होवें। श्रम रहित, महान् और वाहक श्रेष्ठ जो आपके अश्व हैं, उनके द्वारा हे इन्द्र देव! आप हम लोगों के लिए अन्न लावें।[ऋग्वेद 6.21.12]
Hey Indr Dev! You are path finder-innovator. Come forward to lead us through the comfortable and painful routes. Hey  Indr Dev! Bring food grains with your great-excellent carrier horses which move without trouble-tiredness.(15.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
य एक इद्धव्यश्चर्षणीनामिन्द्रं तं गीर्भिरभ्यर्च आभिः।
यः पत्यते वृषभो वृष्ण्यावान्त्सत्यः सत्वा पुरुमायः सहस्वान्
जो इन्द्र देव प्रजाओं की आपत्तियों में एक मात्र आह्वान करने के योग्य हैं। जो स्तोताओं के प्रति आगमन करते हैं। जो अभीष्टवर्षक, बलवान्, सत्यवादी, शत्रु पीड़क, बहुप्रज्ञ और अभिभवकर्ता हैं, उन इन्द्र देव का स्तुतियों द्वारा हम स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.22.1]
Its only Indr Dev who respond to the invocation of the populace while in trouble, helping the Stotas. He accomplish desires, mighty, truthful, troubles the enemies and defeat them, worshiped by many; is worshiped by us with sacred hymns.
तमु नः पूर्वे पितरो नवग्वाः सप्त विप्रासो अभि वाजयन्तः।
नक्षद्दाभं ततुरिं पर्वतेष्ठामद्रोघवाचं मतिभिः शविष्ठम्
पुरातन, नौ महीनों में यज्ञ करने वाले सप्त संख्यक मेधावी, हमारे पिता अङ्गिरा आदि ने इन्द्र देव को बलवान् अथवा अन्नवान् करते हुए स्तुतियों द्वारा उनकी प्रार्थना की। इन्द्र देव गमनशील, शत्रुओं के हिंसक, पर्वतों पर अवस्थिति करने वाले और अनुल्लंघनीय संहारकर्ता हैं।[ऋग्वेद 6.22.2]
Ancient-eternal, performing Yagy for 9 months, blessed with 7 types of intelligence, our father Angira etc. worshiped him & recited Stuties to make him mighty and possessor of food grains. Indr Dev is dynamic, destroyer of the enemy, regulates the mountains and a destroyer who can not be ignored.
तमीमह इन्द्रमस्य रायः पुरुवीरस्य नृवतः पुरुक्षोः।
यो अस्कृधोयुरजरः स्वर्वान्तमा भर हरिवो मादयध्यै॥
बहुत पौत्रों से युक्त, परिचारकों के साथ और पशुओं के साथ हम लोग इन्द्र देव के निकट अविच्छिन्न, अक्षय और सुखदायक धन की याचना करते हैं। हे अश्वों के अधिपति! आप हम लोगों को सुखी करने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 6.22.3]
Blessed with many grandsons, servants and animals we pray to Indr Dev for continuous, imperishable comfortable wealth. Hey lord of horses! Invoke here for our happiness-pleasure.
तन्नौ वि वोचो यदि ते पुरा चिज्जरितार आनशुः सुम्नमिन्द्र।
कस्ते भागः किं वयो दुध्र खिद्वः पुरुहूत पुरूवसोऽसुरघ्नः
हे इन्द्र देव! जब पूर्वकाल में आपके स्तोताओं ने सुख प्राप्त किया, तब हम लोगों को भी वह सुख बतावें। हे दुर्द्धर्ष, शत्रु विजयी, ऐश्वर्यशाली, बहुजनाहूत इन्द्र देव! आप असुरों का वध करने वाले हैं। आपके लिए यज्ञ में कौन-सा भाग और कौन-सा हव्य कम्पित हुआ है?[ऋग्वेद 6.22.4]
Hey Indr Dev! Grant us the pleasure-comforts which you awarded to your worshipers, earlier. Hey invincible, winner of the enemy, possessor of grandeur, worshiped by many, hey Indr Dev! You are the slayer of the demons. Which segment and offerings in the Yagy are meant for you?
तं पृच्छन्ती वज्रहस्तं रथेष्ठामिन्द्रं वेपी वकरी यस्य नू गीः।
तुविग्राभं तुविकूर्मिं रभोदां गातुमिषे नक्षते तुम्रमच्छ
यागादि लक्षण कर्म से युक्त और गुणवाचक प्रार्थना करने वाले याजक गण वज्र धारण करने वाले और रथ पर अवस्थिति करने वाले इन्द्र देव की अर्चना करते हैं। इन्द्र देव बहुतों के ग्रहण करने वाले बहुकर्म करने वाले और बल के दाता हैं। वह यजमान सुख प्राप्त करता है और शत्रुओं के अभिमुख गमन करता है।[ऋग्वेद 6.22.5]
The Ritviz possess the traits of Yagy performer, describes the qualities of Indr Dev and pray to him while he rides the charoite. Indr dev perform various deeds-endeavours and grants him might. He gets comforts when he face the enemies under Indr Dev's protection.
अया ह त्यं मायया वावृधानं मनोजुवा स्वतवः पर्वतेन।
अच्युता चिद्वीळिता स्वोजो रुजो वि दृळ्हा धृषता विरप्शिन्
हे निज बल से बलवान् इन्द्र देव! आपने मन के सदृश गमन करने वाले और बहुत पर्व वाले वज्र से माया द्वारा प्रवृद्ध उस वृत्रासुर को चूर्ण किया। हे शोभन तेज वाले महान् इन्द्र देव! आपने धर्षक वज्र द्वारा नाश रहित, अशिथिल और दृढ़ पुरियों को नष्ट किया।[ऋग्वेद 6.22.6]
Hey mighty Indr Dev possessing strength of your own! You killed Vrata Sur having the power to enchant, moving with the speed of mind. Hey possessor of beautiful aura great Indr Dev! You destroyed the forts-cities of the demons which were considered imperishable with your sharp Vajr.
तं वो धिया नव्यस्या शविष्ठं प्रत्नं प्रत्नवत्परितंसयध्यै।
स नो वक्षदनिमानः सतहोन्दो विश्वान्यति दर्गहाणि
हे इन्द्र देव! हम चिरन्तन ऋषियों के समान नवीन स्तुतियों के द्वारा आपके गौरव को विस्तारित करते हैं। आप अतिशय बलवान् और प्राचीन है। अपरिमाण और शोभन वहनकारी इन्द्र देव! आप हम लोगों की समस्त विघ्नों से रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.22.7]
Hey Indr Dev! We extend-spread your glory with the help of new compostions-Strotr. You are too mighty and eternal. Immeasurable performer of great deeds, hey Indr Dev! Protect us from all sorts of evils.
आ जनाय द्रुह्वणे पार्थिवानि दिव्यानि दीपयोऽन्तरिक्षा।
तपा वृषन्विश्वतः शोचिषा तान्ब्रह्मद्विषे शोचय क्षामपश्च
हे इन्द्र देव! आप साधु द्रोही राक्षसों के लिए द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष स्थित स्थानों को सन्तप्त करते है। हे कामनाओं के वर्षक इन्द्र देव! आप अपनी दीप्ति द्वारा सभी जगह विद्यमान उन राक्षसों को भस्मीभूत करें। ब्राह्मण द्वेषी राक्षसों को दग्ध करने के लिए पृथ्वी और अन्तरिक्ष को दीप्त करें।[ऋग्वेद 6.22.8]
Hey Indr Dev! You destroy the abodes of the demons present over the earth and space. Hey accomplisher of desires Indr Dev! Destroy-roast, burn the demons with your radiant-aura, at all locations. Lit the earth & space to roast the demons envious of Brahmans. 
भुवो जनस्य दिव्यस्य राजा पार्थिवस्य जगतस्त्वेषसंदृक्।
धिष्व वज्रं दक्षिण इन्द्र हस्ते विश्वा अजुर्य दयसे वि मायाः
हे दीप्य दर्शन इन्द्र देव! आप देवलोक वासी एवं पृथ्वी लोकवासी सभी लोगों के राजा हैं। हे अतिशय स्तवनीय इन्द्र देव! आप दाहिने हाँथ में वज्र धारित करके असुरों की माया को उच्छिन्न करते हैं।[ऋग्वेद 6.22.9] 
Hey glorious-aurous Indr Dev! You are the lord of both earth & heavens. Hey highly adored Indr Dev! You wield the Vajr in your right hand and remove the enchantment-cast of the demons.
आ संयतमिन्द्र णः स्वस्तिं शत्रुतूर्याय बृहतीममृध्राम्।
यया दासान्यार्याणि वृत्रा करो वज्रिन्त्सुतुका नाहुषाणि
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को महान्, अहिंसित, संगच्छमान और कल्याणयुक्त सम्पत्ति प्रदान करें, जिससे शत्रुगण वर्षण करने में समर्थ न हों। हे वज्रधर इन्द्रदेव! जिस कल्याण के द्वारा आपने कर्महीन मनुष्यों को कर्मयुक्त बनाया और मनुष्य सम्बन्धी शत्रुओं को शोभन हिंसा से युक्त किया।[ऋग्वेद 6.22.10]
संगच्छमान :: सुव्यवस्थित; well organized-managed.
Hey Indr Dev! Grant us that asset which is great, well organised, can not be attacked-snatched by the enemy, blessed with welfare. Hey wielder of Vajr, Indr Dev! You made the lazy-useless fellow work and hurt the enemies of humans.
स नो नियुद्धिः पुरुहूत वेधो विश्ववाराभिरा गहि प्रयज्यो।
न या अदेवो वरते न देव आभिर्याहि तूयमा मद्र्यद्रिक्
हे बहुजनाहूत, विधाता, अतिशय यजनीय इन्द्र देव! आप सभी के द्वारा सम्भजनीय अश्वों के द्वारा हमारे निकट आगमन करें। जिन अश्वों का निवारण देव या असुर कोई भी नहीं करता; उन अश्वों के साथ आप शीघ्र ही हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 6.22.11]
Hey Indr Dev, worshiped by many, highly respected and the creator! Join us riding the respectable horses. Bring those horses to us quickly, which can not be hurt by both demigods-deities and the demons.(16.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
सुत इत्त्वं निमिश्ल इन्द्र सोमे स्तोमे ब्रह्मणि शस्यमान उक्थे।
यद्वा युक्ताभ्यां मघवन्हरिभ्यां बिभ्रद्वजं बाह्वोरिन्द्र यासि
हे इन्द्र देव! सोम के अभिषुत होने पर और महान् स्तोत्र के उच्चार्यमाण होने पर एवं शास्त्र विहित होने पर आप रथ में अपने अश्व को संयुक्त करते हैं। हे धनवान् इन्द्र देव! आप दोनों हाथों में वज्र धारित करके रथ में योजित अश्व द्वय के साथ आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 6.23.1]
उच्चार्य :: उच्चारण करने योग्य; pronounced.
Hey Indr Dev! You deploy the horses in your charoite when Somras is extracted & great Strotr are recited as per scriptures. Hey wealthy Indr Dev! You wield Vajr in both hands and deploy the horse duo in the charoite for arrival.
यद्वा दिवि पार्ये सुष्विमिन्द्र वृत्रहत्येऽवसि शूरसातौ।
यद्वा दक्षस्य बिभ्युषो अबिभ्यदरन्धयः शर्धत इन्द्र दस्यून्
हे इन्द्र देव! आप स्वर्ग में शूरों द्वारा सम्भजनीय संग्राम में उपस्थित होकर अभिषवकारी याजकगण की रक्षा करते हैं एवं निर्भीक होकर धार्मिक तथा सन्त्रस्त याजकगण के विघ्नकारी असुरों को वशीभूत करते हैं।[ऋग्वेद 6.23.2]
Hey Indr Dev! You being worshiped by the brave-mighty in the heaven; protect the Ritviz who are religious and tortured by the demons.
पाता सुतमिन्द्रो अस्तु सोमं प्रणेनीरुग्रो जरितारमूती।
कर्ता वीराय सुष्वय उ लोकं दाता वसु स्तुवते कीरये चित्
इन्द्र देव ही अभिषुत सोमरस के पान कर्ता हैं। भीषण इन्द्र देव स्तवकारी को मार्ग से ले जाते हैं। ये यज्ञ करने में दक्ष तथा सोमाभिषव करने वाले याजकगण को स्थान प्रदान करते हैं एवं स्तोत्र करने वाले को धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.23.3]
Indr Dev is entitled to drink extracted Somras. He takes the extractor of Somras through the road. He grants money to the Ritviz who are expert in Yagy & extracting Somras
गन्तेयान्ति सवना हरिभ्यां बभ्रिर्वज्रं पपिः सोमं ददिर्गाः।
कर्ता वीरं नर्यं सर्ववीरं श्रोता हवं गृणतः स्तोमवाहाः
इन्द्र देव अपने दोनों अश्वों के साथ हृदय स्थानीय तीनों सवनों में गमन करते हैं। इन्द्र देव वज्र धारण करने वाले, अभिषुत सोमरस का पान करने वाले, गोदाता, मनुष्यों के हित के लिए बहुत से पुत्र प्रदान करने वाले और स्तवकारी याजकगण के स्तोत्र को श्रवण करने वाले तथा स्वीकार करने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.23.4]
Indr Dev moves during the three segments of the day, dear to his heart, with his two horses. Indr Dev wield Vajr, drink the extracted Somras, donate cows and grant many sons for the benefit of the humans. He accepts-listens the prayers of the Ritviz who recite Strotr. 
अस्मै वयं यद्वावान तद्विविष्म इन्द्राय यो नः प्रदिवो अपस्कः।
सुते सोमे स्तुमसि शंसदुक्थेन्द्राय ब्रह्म वर्धनं यथासत्
जो प्राचीन इन्द्र देव हम लोगों के लिए पोषणादि कर्म करते हैं, उन्हीं इन्द्र देव के अभिलषित स्तोत्र का हम लोग उच्चारण करते हैं। सोमाभिषुत होने पर हम लोग इनका स्तवन करते हैं। स्तुति का उच्चारण करते हुए हम लोग इनको हविलक्षण अन्न उस प्रकार से देते हैं, जिससे उनका वर्द्धन हो।[ऋग्वेद 6.23.5]
We worship Indr Dev with the suitable Strotr who  nourishes-nurture us. We invoke him-pray to him after extracting Somras. On the recitation of Strotr we make offerings to him in the form of food grains for his growth. 
ब्रह्माणि हि चकृषे वर्धनानि तावत्त इन्द्र मतिभिर्विविष्मः।
सुते सोमे सुतपाः शान्तमानि रान्द्रया क्रियास्म वक्षणानि यज्ञैः
हे इन्द्र देव! जिस तरह के स्तोत्रों को आपने स्वयं बढ़ाया, उस तरह के स्तोत्रों का आपके उद्देश्य से बुद्धि पूर्वक उच्चारण करते हैं। हे अभिषुत सोमरस पान कर्ता इन्द्र देव! आपके उद्देश्य से सोमाभिषव होने पर आपके उद्देश्य से निरतिशय, सुखदायक, कमनीय और हवि से युक्त स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 6.23.6]
Hey Indr Dev! We prudently-intelligently recite the Strotr promoted by you. Hey drinker of extracted Somras Indr Dev! We recite the indestructible comfortable, attractive Strotr aided with offerings after extracting Somras. 
स नो बोधि पुरोळाशं रराण: पिबातु सोमं गोऋजीकमिन्द्र। 
एवं बर्हियजमानस्य सीदोरुं कृधि त्वायत 3 लोकम्
हे इन्द्र देव! आनन्दित होकर आप हम लोगों के पुरोडाश को स्वीकार करें। दही आदि से संस्कृत सोमरस को शीघ्र पिवें। सोमरस का पान करने के लिए यजमान द्वारा बिछाए गए कुश के आसन पर आसीन होवें। तदनन्तर आपकी इच्छा करने वाले याजकगण के स्थान को विस्तीर्ण करें।[ऋग्वेद 6.23.7]
Hey Indr Dev! Filled with pleasure, accept our Purodas. Drink the Somras treated with curd, quickly. Occupy the Kush Mat laid for you. Thereafter, extend the space of the Ritviz who invoke you.
स मन्दस्वा ह्यनु जोषमुग्र प्र त्वा यज्ञास इमे अश्नुवन्तु।
प्रेमे हवासः पुरुहूतमस्मे आ त्वेयं धीरवस इन्द्र यम्याः
हे उद्यतायुध इन्द्र देव! आप अपनी इच्छा के अनुसार प्रसन्न होवें। यह सोमरस आपको प्राप्त हो। हे बहुजना हूत इन्द्र देव! हमारे स्तोत्र आपको प्राप्त हों। यह प्रार्थना हम लोगों की रक्षा के लिए आपको नियुक्त करें।[ऋग्वेद 6.23.8]
Hey Indr Dev ready for the war! You should be pleased-happy as per your wish. Hey Indr Dev worshiped by many! Let this Somras reach you. Let our prayer appoint-inspire you for our protection.
तं वः सखायः सं यथा सुतेषु सोमेभिरी पुणता भोजमिन्द्रम्।
कुवित्तस्मा असति भरान मिन्द्रो S वसे वृधाति
हे स्तोताओं! सोमाभिषव होने पर अन्न दाता इन्द्र देव को सोमरस से तृप्त करें। इन्द्र देव के लिए सोमरस बहुत परिमाण में हो, जिससे वह हम लोगों का पोषण करें। इन्द्र देव अभिवर्षण शील याजकगण को तृप्ति में बाधा नहीं देते।[ऋग्वेद 6.23.9]
Hey Stotas! On Somras being extracted satisfy Indr Dev who grants us food grains, with it. The quantum of Somras should be large so that he can nourish-nurture us. Indr Dev do not block the satisfaction of the Ritviz who are haunted.
एवेदिन्द्रः सुते अस्तावि सोमे भरद्वाजेषु क्षयदिन्मघोनः।
असद्यथा जरित्र उत सूरिरिन्द्रो रायो विश्ववारस्य दाता
हविरन्न युक्त यजमान के स्वामी इन्द्र देव सोमरस के निर्मित होने से प्रसन्न होकर धन प्रदान करते हैं। जो स्तोताओं को ज्ञान युक्त करते हैं, ऐसे इन्द्र देव की भरद्वाज ऋषि ने स्तुति की।[ऋग्वेद 6.23.10]
On being satisfied with Somras Indr Dev grants wealth-money to the Ritviz. Indr dev who enlighten the Stotas, was worshiped by Bhardwaj Rishi.(17.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
वृषा मद इन्द्रे श्लोक उक्था सचा सोमेषु सुतपा ऋजीषी।
अर्चत्र्यो मघवा नृभ्य उक्थैर्द्यक्षो राजा गिरामक्षितोतिः
सोमवान् यज्ञ में इन्द्र देव का सोमपान जनित हर्ष याजक गण की कामनाओं का पूरक हों और वैदिकोपासना सहित स्तोत्र अभिलाषा वर्धक हो। अभिषुत सोमरस पान करने वाले, नीरस सोम का भी त्याग नहीं करने वाले धनवान् इन्द्र देव प्रार्थना करने वालों की स्तुतियों द्वारा अर्चनीय होते हैं। द्युलोक निवासी और स्तुतियों के अधिपति इन्द्र देव रक्षक होते हैं।[ऋग्वेद 6.24.1]
Let the Yagy having Som become accomplisher of Ritviz's desires by virtue of the pleasure granted to Indr Dev who drink the Somras. Wealthy Indr Dev, who drink tasteless Somras, is worshiped with Stuties. The resident of heavens and the lord of Stuties Indr Dev, be our protector.
ततुरिर्वीरो नर्यो विचेताः श्रोता हवं गृणत उर्व्यूतिः।
वसुः शंसो नरां कारुधाया वाजी स्तुतो विदथे दाति वाजम्
शत्रुओं के हिंसक, विक्रमवान् मनुष्यों के हितकर्ता, विवेकशील, हम लोगों के स्तोत्र को सुनने वाले, स्तोताओं के अतिशय रक्षक, गृह प्रदाता, स्तोताओं द्वारा प्रशंसनीय, स्तोताओं के धारक यज्ञ में स्तूयमान होने पर हम लोगों को अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.24.2]
Destroyer of the enemies, well wisher of mighty prudent humans, responding to our prayers, extremely protective of the Ritviz, residence awarding, praise worthy Indr Dev grant us food grains.
अक्षो न चक्रयोः शूर बृ॒हन्प्र ते मह्ना रिरिचे रोदस्योः।
वृक्षस्य नु ते पुरुहूत वया व्यू३ तयो रुरुहुरिन्द्र पूर्वीः
हे विक्रान्त इन्द्र देव! चक्र द्वय के अक्ष के समान आपकी बृहत् महिमा द्यावा-पृथ्वी को अतिक्रान्त करती है। हे बहुजनाहूत! वृक्ष की शाखाओं के सदृश आपका रक्षण कार्य वर्द्धमान होता है।[ऋग्वेद 6.24.3]
विक्रांत :: प्रतापी, तेजस्वी, बहादुर, वीर, शेर, साहस, हिम्मत; mighty, valiant.
Hey valiant Indr Dev worshiped by many! Your glory pervade the heaven & earth like the excel of the two wheels. Your protective measures grow-increase like the branches of the tree.
शचीवतस्ते पुरुशाक शाका गवामिव स्रुतयः सञ्चरणीः।
वत्सानां न तन्तयस्त इन्द्र दामन्वन्तो अदामानः सुदामन्
हे बहुकर्मा इन्द्र देव! आप प्रज्ञावान् है। आपकी शक्तियाँ उसी प्रकार से सभी जगह विचरण करती है, जिस प्रकार गौओं के मार्ग सर्वत्र सञ्चारी होते हैं। हे शोभनदान वाले इन्द्र देव! बछड़ों को बाँधने वाली डोरियों की तरह आपकी शक्तियाँ स्वयं अनिरुद्ध होकर बहुत से शत्रुओं को बन्धन युक्त करती है।[ऋग्वेद 6.24.4]
अनिरुद्ध :: असीम, अजेय, विजयी, निर्विरोध, जो निरुद्ध या रुका हुआ न हो, जिसमें कोई रुकावट न हो,  स्वेच्छाचारी, भगवान् श्री कृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न जी के पुत्र जिन्हें ऊषा ब्याही थी,  शिव, गुप्तचर-जासूस, विष्णु; unblocked, unopposed, unlimited, boundless, unstoppable, victorious, an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu, uncontrolled, unrestrained, without obstacles, name of grandson of Bhagwan Shri Krashn. 
Hey performer of various deeds! You are intelligent. Your powers pervade all places like the routes of the cows. Hey granter of excellent donations! You tie the enemies like the cord which tie the calf unblocked-unopposed.
अन्यदद्य कर्वरमन्यदु श्वोऽसच्च सन्मुहुराचक्रिरिन्द्रः।
मित्रो नो अत्र वरुणश्च पूषार्यो वशस्य पर्येतास्ति
इन्द्र देव आज एक काम करते हैं, तो दूसरे दिन इससे कुछ विलक्षण ही कार्य करते हैं। वे पुनः-पुनः सत् और असत् कार्यों का अनुष्ठान करते हैं। इन्द्र देव, मित्र, वरुण, पूषा, सविता इस यज्ञ में हम लोगों की कामनाओं के पूरक हों।[ऋग्वेद 6.24.5]
Indr Dev perform one deed today and tomorrow he will do something amazing. He repeatedly under take Sat & Asat endeavours. Let Indr Dev, Mitr, Varun, Pusha, Savita accomplish our desires in this Yagy.
वि त्वदापो न पर्वतस्य पृष्ठादुक्थेभिरिन्द्रानयन्त यज्ञैः।
तं त्वाभिः सुष्टुतिभिर्वाजयन्त आजिं न जग्मुर्गिर्वाहो अश्वाः
हे इन्द्र देव! आपके पास से शस्त्र और हवि के द्वारा स्तोता लोग अपनी कामनाओं को प्राप्त करते हैं, जिस प्रकार से पर्वत के उपरि भाग से जल प्राप्त होता है। हे स्तुतियों द्वारा वन्दनीय इन्द्र देव! अश्वगण जिस प्रकार से वेगपूर्वक संग्राम में उपस्थित होते हैं, उसी प्रकार प्रार्थना करने वाले अन्नाभिलाषी भरद्वाज आदि स्तुतियों के साथ आपके पास आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 6.24.6]
Hey Indr Dev! The Stotas accomplish their desires by virtue of weapons and offerings, just like the water obtained from the peaks of mountains. Hey Indr Dev worshiped with Stuties! The manner in which the horses quickly reach the battle field, desirous of food grains Rishis like Bhardwaj reach you with Stuties.
न यं जरन्ति शरदो न मासा न द्याव इन्द्रमवकर्शयन्ति।
वृद्धस्य चिद्वर्धतामस्य तनूः स्तोमेभिरुक्थैश्च शस्यमाना
संवत्सर और मास आदि जिस इन्द्र देव को वृद्ध नहीं बना सकते; दिवस जिस इन्द्र को अल्प नहीं बना सकते, उस प्रवर्द्धमान इन्द्र देव का शरीर हम लोगों की स्तुतियों द्वारा स्तूयमान होकर विकसित हो।[ऋग्वेद 6.24.7]
Let the body of Indr Dev become praise worthy & grow by virtue of our prayers, just like the various era of time (Samvatsar & Months) can not grow-make him old.
न वीळवे नमते न स्थिराय न शर्धते दस्युजूताय स्तवान्।
अज्रा इन्द्रस्य गिरयश्चिदृष्वा गम्भीरे चिद्भवति गाधमस्मै
हम लोगों की प्रार्थना द्वारा स्तूयमान इन्द्र देव दृढ़गात्र, संग्राम में अविचलित और दस्युओं द्वारा उत्साहित तथा प्रेरित याजकगण के वशीभूत नहीं होते। अर्थात् यद्यपि स्तोता बहुत गुण वाले हैं; तथापि इन्द्रदेव दस्यु सहित स्तोता के वशीभूत नहीं होते। महान् पर्वत भी इनके लिए सुगम है और अगाध स्थान भी इनके लिए सहज हो जाते हैं।[ऋग्वेद 6.24.8]
दृढ़गात्र :: दृढ़, दृढ़ पकड़ वाला, चिपचिपा; firm, strong, steadfast, tenacious, resolute, determined, clingy, sticky, viscous, gummy, tacky, glutinous.
By virtue of prayers praise worthy tenacious Indr Dev remain unperturbed unharmed-controlled by the dacoits and inspired by the Ritviz. Great mountains & difficult terrines are normal for him.
गम्भीरेण न उरुणामत्रिन्प्रेषो यन्थि सुतपावन्वाजान्।
स्था ऊ षु ऊर्ध्व ऊती अरिषण्यन्नक्तोर्व्युष्टौ परितक्म्यायाम्
हे बलवान् और सोमपान कर्ता इन्द्र देव! आप किसी के द्वारा भी गम्भीर और उदार चित्त से हम लोगों को अन्न और बल प्रदान करें। हे इन्द्र देव! आप दिन-रात हम लोगों की रक्षा के लिए तत्पर होवें।[ऋग्वेद 6.24.9]
Hey mighty and drinker of Somras, Indr Dev! Grant us might & food grains liberally; ready to protect us during the day & night.
सचस्व नायमवसे अभीक इतो वा तमिन्द्र पाहि रिषः।
अमा चैनमरण्ये पाहि रिषो मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे इन्द्र देव! आप संग्राम में स्तुति कर्ता की रक्षा के लिए उनका रक्षण करें। निकटस्थ या दूरस्थ शत्रुओं से उनकी रक्षा करें। घर में अथवा कानन में रिपुओं से उनकी रक्षा करें। शोभन पुत्र वाले होकर हम लोग सौ वर्षों तक प्रमुदित होवें।[ऋग्वेद 6.24.10]
Hey Indr Dev! Protect the worshiper during the war from far or near enemies, house or forests. Let us survive for hundred years blessed with sons & grandsons.(18.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
या त ऊतिरवमा या परमा या मध्यमेन्द्र शुष्मिन्नस्ति।
ताभिरू षु वृत्रहत्येऽवीर्न एभिश्च वाजैर्महान्न उग्र
हे बलवान इन्द्र देव! आप युद्ध में हम लोगों की अधम, उत्तम और मध्यम सब प्रकार की रक्षा द्वारा भली-भाँति से पालन करें। हे भीषण इन्द्र देव! आप महान् हैं। आप हम लोगों को भोज्य साधन द्वारा अन्नों से युक्त करें।[ऋग्वेद 6.25.1]
Hey mighty &furious Indr Dev! You protect us by all means in the war. You are great. Grant us eatables and food grains.
आभिः स्पृधो मिथतीररिषण्यन्नमित्रस्य व्यथया मन्युमिन्द्र।
आभिर्विश्वा अभियुजो विषूचीरार्याय विशोऽव तारीर्दासीः
हे इन्द्र देव! आप हमारी स्तुतियों से शत्रु सेनाओं को नष्ट करने वाली हमारी सेना की हुए संग्राम में विद्यमान शत्रु के क्रोध को विनष्ट करें। यज्ञादि कार्य करने वाले याजक गण के लिए आप कार्यों को विनष्ट करने वाली सम्पूर्ण प्रजाओं को स्तुतियों द्वारा विनष्ट करें।[ऋग्वेद 6.25.2]
Hey Indr Dev! Our prayers make our army capable of destroying-defeating the enemy army. Calm down the anger of the enemy army in the war. Destroy all such people, who obstruct the activities like Yagy by the Ritviz. 
इन्द्र जामय उत येऽजामयोऽर्वाचीनासो वनुषो युयुज्रे।
त्वमेषां विथुरा शवांसि जहि वृष्ण्यानि कृणुही पराचः
हे इन्द्र देव! ज्ञातिरूप निकटस्थ अथवा दूर देश स्थित जो शत्रु हमारे सम्मुख न होकर हिंसा के लिए उद्यत होते हैं, उन दोनों प्रकार के शत्रुओं बल को आप नष्ट करें। इनके वीर्यों को नष्ट करें और इन्हें पराजित करें।[ऋग्वेद 6.25.3]
ज्ञाति :: एक ही गोत्र या वंश में उत्पन्न मनुष्य, गोती; born in the same clan, dynasty.
Hey Indr Dev! Destroy all such enemies, close or distant, bent upon violence, related to us (born in the same clan, dynasty) with your might-power. Destroy their energy-fertility and defeat them.
शूरो वा शूरं वनते शरीरैस्तनूरुचा तरुषि यत्कृण्वैते।
तोके वा गोषु तनये यदप्सु वि क्रन्दसी उर्वरासु ब्रवैते
हे इन्द्र देव! आपके द्वारा अनुगृहीत वीर अपने शरीर से शत्रु वीरों को विनष्ट करता है, जबकि वे दोनों परस्पर विरोधी, शोभित शरीर से संग्राम में प्रवृत्त होते हैं। जबकि वे पुत्र, पौत्र, गौ, जल और उर्वरा के लिए शोर मचाते हुए विवाद करते हैं।[ऋग्वेद 6.25.4]
विवाद :: तर्क, तकरार, कलह, शास्रार्थ, झगड़ा, मतभेद, तकरार, विचार, झमेला; dispute, argue, quarrel, controversy, contention.
Hey Indr Dev! The brave person obliged by you destroy the enemy with his body, when they both are mutually opposite intend to take part in the war. They argue-quarrel over sons, grandsons, cows, water and fertilisers making noise.
नहि त्वा शूरो न तुरो न धृष्णुर्न त्वा योधो मन्यमानो युयोध।
इन्द्र नकिष्ट्वा प्रत्यस्त्येषां विश्वा जातान्यभ्यसि तानि
हे इन्द्र देव! विक्रान्त जन, शत्रु निहन्ता, विजयी और युद्ध में प्रकुपित योद्धा आपके साथ युद्ध करने में समर्थ नहीं होता। हे इन्द्र देव! इनके बीच में कोई भी आपका प्रतिद्वन्द्वी नहीं है। आप इन व्यक्तियों की अपेक्षा श्रेष्ठ योद्धा है।[ऋग्वेद 6.25.5]
Hey Indr Dev! The winner, destroyer of the enemy, winner and the furious warrior are unable to face you in the war. Hey Indr Dev! None of these is your rival. You are much superior fighter than these people.
स पत्यत उभयोर्नृम्णमयोर्यदी वेधसः समिथे हवन्ते।
वृत्रे वा महो नृवति क्षये यदि विंतन्तसैते
महान् शत्रुओं का विरोध करने के लिए अथवा परिचारकों से युक्त घर के लिए जो व्यक्ति परस्पर युद्ध करते हैं, उन दोनों के बीच में वही जन, धन-लाभ करता है, जिसके यज्ञ में ऋत्विक लोग इन्द्र देव का हवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.25.6]
Only that rival wins in the war, who is supported by the Ritviz in the Yagy or performing Hawan for Indr Dev, opposing the great enemy or blessed with servants and house.
अध स्मा ते चर्षणयो यदेजानिन्द्र त्रातोत भवा वरूता।
अस्माकासो ये नृतमासो अर्य इन्द्र सूरयो दधिरे पुरो नः
हे इन्द्र देव! जब आपके पुरुष (स्तोता) कम्पित होते हैं। तब आप उनके पालक होवें। उनके रक्षक होवें। हे इन्द्र देव! हमारे जो नेतृतम पुरुष आपको प्राप्त करने वाले होते हैं, आप उनके त्राता होवें। हे इन्द्र देव! जिन स्तोताओं ने हमें पुरोभाग में स्थापित किया है, आप उन सबकी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.25.7]
Hey Indr Dev! Support-protect your Stota-worshiper when they tremble with fear. Hey Indr Dev! Protect our top leaders and those who appointed us in the front line.
अनु ते दायि मह इन्द्रियाय सत्रा ते विश्वमनु वृत्रहत्ये।
अनु क्षत्रमनु सहो यजत्रेन्द्र देवेभिरनु ते नृषह्ये
हे इन्द्र देव! आप महान् है। शत्रुवध के लिए आपमें समस्त शक्ति एकत्रित हुई है। हे यजनीय इन्द्र देव! युद्ध में समस्त देवों ने आपको शत्रुओं को अभिभूत करने वाला बल और विश्वधारक प्रदान किया।[ऋग्वेद 6.25.8]
Hey Indr Dev! You are great. You have concentrated all powers in you to kill the enemy. All demigods-deities granted you the might which can control the enemy and support the universe.
एवा नः स्पृधः समजा समत्स्विन्द्र रारन्थि मिथतीरदेवीः।
विद्याम वस्तोरवसा गृणन्तो भरद्वाजा उत त इन्द्र नूनम्
हे इन्द्र देव! इस प्रकार से प्रार्थित होकर आप युद्ध में हम लोगों को शत्रुओं को मारने के लिए प्रोत्साहित करें और प्रेरित करें। आप हम लोगों के लिए हिंसा करने वाली असुर सेना को पराजित करें। हे इन्द्र देव! आपकी प्रार्थना करने वाले हम भरद्वाज अन्न के साथ अवश्य ही निवास प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.25.9]
Indr Dev! On being worship-prayed, inspire-encourage us to eliminate the enemy in the war. For our sake defeat the demon's army which torture us. Hey Indr Dev! Let Bhardwaj Rishi who worship-pray you, attain food grains and residence.(19.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
श्रुधी न इन्द्र ह्वयामसि त्वा महो वाजस्य सातौ वावृषाणाः।
सं यद्विशोऽयन्त शूरसाता उग्रं नोऽवः पार्ये अहन्दाः
हे इन्द्र देव! हम स्तोता लोग अन्न लाभ करने के लिए सोमरस के द्वारा आपका सिंचन करते हुए आपका ही आह्वान करते हैं। आप हम लोगों के आह्वान को श्रवण करें। जब मनुष्य लोग युद्ध के लिए गमन करेंगे, तब आप हम लोगों की भली-भाँति से रक्षा करना।[ऋग्वेद 6.26.1]
Hey Indr Dev! We the Stota offer you Somras and invoke you for the sake of food grains. Listen-respond to us. Protect us carefully when we move-march for war. 
त्वां वाजी हवते वाजिनेयो महो वाजस्य गध्यस्य सातौ।
त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं तरुत्रं त्वां चष्टे मुष्टिहा गोषु युध्यन्
हे इन्द्र देव! सभी के द्वारा प्रापणीय और महान अन्न लाभ करने के लिए वाजिनी पुत्र भरद्वाज अन्नवान होकर आपका स्तवन करते हैं। हे इन्द्र देव! आप सज्जनों के पालक और दुर्जनों के नाशक है। उपद्रुत होने पर भरद्वाज आपका आह्वान करते हैं। वे मुष्टि बल द्वारा शत्रुओं को विनष्ट करने वाले हैं। जब वे गौओं के लिए युद्ध करते हैं, तब आपके ऊपर निर्भर रहते हैं।[ऋग्वेद 6.26.2]
उपद्रुत :: उपद्रव ग्रस्त, जहाँ या जिस स्थान पर उपद्रव हुआ हो, ज्योतिष के अनुसार ग्रहण युक्त, जो किसी प्रकार के उपद्रव से पीड़ित हो, सताया हुआ; deuce, disturbance, disorder, brawl, outrage, tyranny, riot, row. 
Hey Indr Dev! Son of Vajini Bhardwaj, worship you for food grains, for all. We nurture the virtuous and kill the wicked. Rishi Bhardwaj invoke you in case of disorder. He kill the enemies with the strike of his fist. He depend upon you, when he fights for the protection of cows.
त्वं कविं चोदयोऽर्कसातौ त्वं कुत्साय शुष्णं दाशुषे वर्क्।
त्वं शिरो अमर्मणः पराहन्नतिथिग्वाय शंस्यं करिष्यन्
हे इन्द्र देव! अन्न लाभ करने के लिए आप भार्गव ऋषि को प्रेरित करें। हव्य दाता कुत्स के लिए आपने शुष्ण असुर का संहार किया। आपने अतिथिग्व को सुखी करने के लिए शम्बरासुर का शिरच्छेदन किया। वह अपने को अमर मानता था।[ऋग्वेद 6.26.3]
Hey Indr Dev! Inspire Rishi Bhargav for food grains. You killed Shushn demon for Kuts who used to make offerings for you. You chopped the head of Shambrasur for the sake-safety of Atithigavy. Shambrasur considered himself immortal.
त्वं रथं प्र भरो योधमृष्वमावो युध्यन्तं वृषभं दशद्युम्।
त्वं तुग्रं वेतसवे सचाहन्त्वं तुजं गृणन्तमिन्द्र तूतोः
हे इन्द्र देव! आपने वृषभ नामक राजा को युद्ध साधन महान रथ प्रदान किया। जब वे शत्रुओं के साथ दस दिनों तक युद्ध कर रहे थे, तब आपने उनकी रक्षा की। वेतसु राजा के सहायक होकर आपने तुग्रासुर को मारा। आपने स्तव कर्ता तुजि राजा की समृद्धि को बढ़ाया।[ऋग्वेद 6.26.4]
Hey Indr Dev! You gave-granted a great-marvellous charoite to the king Vrashabh. You protected him when he was busy in the ten days war. You helped king Vetsu and killed Tragasur. You enhanced the prosperity of king Tuji who worshiped you. 
त्वं तदुक्थमिन्द्र बर्हणा कः प्र यच्छता सहस्रा शूर दर्षि।
अव गिरेर्दासं शम्बरं हन्प्रावो दिवोदासं चित्राभिरूती
हे इन्द्र देव! आप शत्रु निहन्ता है। आपने प्रशंसनीय कार्यों का संपादन किया; क्योंकि हे वीर इन्द्र देव! आपने शत-शत और सहस्र-सहस्र शम्बर सेनाओं को विदीर्ण किया। आपने पर्वत से निर्गत, यज्ञादि कार्यों के विघातक शम्बरासुर का वध किया। विचित्र रक्षा द्वारा आपने दिवोदास की रक्षा की।[ऋग्वेद 6.26.5]
Hey Indr Dev! you are the slayer of the enemy. You accomplished praise worthy-appreciable deeds and destroyed thousands of army units of Shambar demon who used to create disturbances in Yagy. You protected Divodas through wonderful-amazing means.
त्वं श्रद्धाभिर्मन्दसानः सोमैर्दभीतये चुमुरिमिन्द्र सिष्वप्।
त्वं रजिं पिठीनसे दशस्यन्यष्टिं सहस्रा शच्या सचाहन्
हे इन्द्र देव! श्रद्धापूर्वक अनुष्ठित कार्यों द्वारा और सोमरस द्वारा प्रसन्न होकर आपने दभीति राजा के लिए चुमुरि नामक असुर का वध किया। हे इन्द्र देव! आपने पिठीनस को रजि नामक कन्या या राज्य प्रदान किया। आपने बुद्धि से साठ हजार योद्धाओं को युद्ध में मार डाला।[ऋग्वेद 6.26.6]
Hey Indr Dev! You killed demon Chamuri for the sake of king Dabhiti who pleased you with Somras and virtuous deeds faithfully-honourably. You granted Pithinas a girl called Raji and kingdom. You used brain-prudence to kill sixty thousand soldiers.
अहं चन तत्सूरिभिरानश्यां तव ज्याय इन्द्र सुम्नमोजः।
त्वया यत्स्तवन्ते सधवीर वीरास्त्रिवरूथेन नहुषा शविष्ठ
हे वीरों के साथी बलवत्तम इन्द्र देव! आप त्रिभुवनों के रक्षक और शत्रु विजयी हैं। स्तोता लोग आपके द्वारा प्रदत्त सुख और बल की प्रार्थना करते हैं। हे इन्द्र देव! हम भरद्वाज आपके द्वारा प्रदत्त उत्कृष्ट सुख और बल को अपने स्तोताओं के साथ प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.26.7]
Accomplice of the great brave, Indr Dev! You are the protector of the three abodes and winner of the enemy. The Stotas request you comforts and might. Let us have the excellent comforts-pleasures & might through Bhardwaj Rishi alongwith our Stotas.
वयं ते अस्यामिन्द्र द्युम्नहूतौ सखायः स्याम महिन प्रेष्ठाः।
प्रातर्दनिः क्षत्रश्रीरस्तु श्रेष्ठो घने वृत्राणां सनये धनानाम्
हे पूजनीय इन्द्र देव! हम लोग आपके मित्र भूत और स्तोता हैं। धन लाभार्थ किए गये इन स्तोत्रों द्वारा हम लोग आपके निरतिशय प्रीति भाजन हों। प्रातर्दन के पुत्र हमारे राजा क्षत्र श्री शत्रुओं का वध और धन-लाभ करके सबसे उत्कृष्ट हों।[ऋग्वेद 6.26.8]
Hey worshipable Indr Dev! We are your old-close friends and Stota. Let us have your affection & love & gain wealth through the recitation of these Strotr. Let our king Kshtr son of Pratardan, kill the enemies and gain wealth to become excellent.(20.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
किमस्य मदे किम्वस्य पीताविन्द्रः किमस्य सख्ये चकार।
रणा वा ये निषदि किं ते अस्य पुरा विविद्रे किमु नूतनासः
सोमरस से प्रसन्न होकर इन्द्र देव ने क्या किया? इस सोमरस को पान करके क्या किया? इस सोमरस के साथ मैत्री करके उन्होंने क्या किया? पुरातन और आधुनिक स्तोताओं ने सोमगृह में आपसे क्या प्राप्त किया?[ऋग्वेद 6.27.1]
What was done by Indr Dev on being pleased by drinking Somras? What he did after drinking Somras? What was the result of his friendship with Somras? What did the old & new Stotas get from Indr Dev in the house of Somras?
सदस्य मदे सद्वस्य पीताविन्द्रः सदस्य सख्ये चकार।
रणा वा ये निषदि सत्ते अस्य पुरा विविद्रे सदु नूतनासः
सोमरस के पान से प्रसन्न होकर इन्द्र देव ने सुन्दर (शोभन) कार्यों को किया। सोमरस का पान करके उन्होंने सुन्दर कर्म किए। इसके साथ उन्होंने शुभ कार्य किए। जो प्राचीन और नवीन स्तुति करने वाले हैं, उन्होंने आपके द्वारा सत्कार्य ही प्राप्त किया।[ऋग्वेद 6.27.2]
Indr Dev did many new tasks on being pleased by drinking Somras. He performed virtuous deeds on drinking Somras. He did auspicious deeds. The old and new Stotas got virtuous, righteous, auspicious deeds through Indr Dev.
नहि नु ते महिमनः समस्य न मघवन् मघवत्त्वस्य विद्म।
न राधसोराधसो नूतनस्येन्द्र नकिर्ददृश इन्द्रियं ते
हे धनवान इन्द्र देव! आपके समान दूसरे की महिमा हमें अवगत नहीं है। आपके सदृश धनवान और धन भी हमें अवगत नहीं। हे इन्द्र देव! आपके समान कोई भी सामर्थ्य नहीं दिखा सकता।[ऋग्वेद 6.27.3]
Hey Indr Dev! Your grandeur is unique. We never found one wealthy like you. None can show his capability-might like you.
एतत्त्यत्त इन्द्रियमचेति येनावधीर्वरशिखस्य शेषः।
वज्रस्य यत्ते निहतस्य शुष्मात्स्वनाच्चिदिन्द्र परमो ददार
हे इन्द्र देव! आपने जिस वीर्य द्वारा वरशिख नामक असुर के पुत्रों का संहार किया, आपका वह पराक्रम हम लोगों को ज्ञात नहीं है। हे इन्द्र देव! बलपूर्वक निक्षिप्त आपके वज्र के शब्द से ही बलिष्ठतम वरशिख के पुत्र विदीर्ण हो गए।[ऋग्वेद 6.27.4]
Hey Indr Dev! We are unaware of your might and valour with which you killed the sons of demon Varshikh. Hey Indr Dev! When you launched the Vajr powerfully, sons of the mightiest Varshikh were killed.
वधीदिन्द्रो वरशिखस्य शेषोऽभ्यावर्तिने चायमानाय शिक्षन्।
वृचीवतो यद्धरियूपीयायां हन्पूर्वे अर्धे भियसापरो दर्त्॥
इन्द्र देव ने चायमान राजा के अभ्यवर्ती नामक पुत्र को अभिलषित धन देते हुए वरशिख नामक असुर के पुत्रों का संहार किया। हरियूपिया नामक नदी या नगरी के पूर्व भाग में अवस्थित वरशिख के गोत्रोत्पन्न वृचीवान् के पुत्रों का इन्होंने वध किया। तब अपर भाग में अवस्थित वरशिख के श्रेष्ठपुत्र भयभीत हो गए।[ऋग्वेद 6.27.5]
Indr Dev granted desired wealth to Abhyvarti, son of king Chayman and killed the sons of Varshikh the demon. He killed the people born in the clan of Varshikh living in the city over the bank of river Hariyupiya. The sons of Varshikh living in the upper segment were gripped with fear.
त्रिंशच्छतं वर्मिण इन्द्र साकं यव्यावत्यां पुरुहूत श्रवस्या।
वृचीवन्तः शरवे पत्यमानाः पात्रा भिन्दानान्यर्थान्यायन्
हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! युद्ध में आपको जीतकर अन्न अथवा यश प्राप्त करें ऐसी कामना करने वाले, यज्ञ पात्रों का भञ्जन करने वाले और कवच धारित करने वाले वरशिख के एक सौ तीस पुत्र यव्यावती के निकट आगमन करके एक काल में ही विनष्ट हो गए।[ऋग्वेद 6.27.6]
Hey Indr Dev, worshipped by many people! One hundred and thirty sons of Varshikh who used to destroy vessels used for Yagy & who wanted-wished to win you, have-attain food grains and glory-fame,  wearing shields were destroyed in a single moment by you.
यस्य गावावरुषा सूयवस्यू अन्तरू षु चरतो रेरिहाणा।
स सृञ्जयाय तुर्वशं परादाद् वृचीवतो दैववाताय शिक्षन्
जिनके रोचमान, शोभन तृणाभिलाषी पुनः-पुनः घास का आस्वादन करने वाले अश्वगण द्यावा-पृथ्वी के बीच भाग में भ्रमण करते हैं; उन्हीं इन्द्र देव ने वृचीवान के पुत्र दैववात को प्रसन्न करते हुए तुर्वश (राजा) को सृञ्जय के अधीन कर दिया।[ऋग्वेद 6.27.7]
Indr Dev who's beautiful & shining horses enjoy the grass roaming between the earth & heavens; placed king Turvash under Sranjay to please Daevvat, son of Vrachiwan.
द्वयाँ अग्ने रथिनो विंशतिं गा वधूमतो मघवा मह्यं सम्राट्।
अभ्यावर्ती चायमानो ददाति दूणाशेयं दक्षिणा पार्थवानाम्
हे अग्नि देव! अतिशय धन देने वाले और राजसूय यज्ञ करने वाले चयमान के पुत्र राजा अभ्यवर्त्ती ने हमें स्त्रियों से युक्त रथ और बीस गौएँ प्रदान की। पृथु के वंशधर राजा अभ्यवर्ती की यह दक्षिणा अनश्वर है।[ऋग्वेद 6.27.8]
Hey Agni Dev! Highly donating and performer of Rajsuy Yagy Abhyvarti, son of king of Chayman granted us charoite with women and twenty cows. The donation-Dakshina by Abhyvarti, a descendent of king Prathu is imperishable.(21.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- गौ, इन्द्र;  छन्द :-त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप्।
आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे।
प्रजावतीः पुरुरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः
गौएँ हमारे घर आवें और हमारा कल्याण करें। वे हमारे गोष्ठ में उपवेशन करें और हमारे ऊपर प्रसन्न हों। इस गोष्ठ में नाना वर्ण वाली गौएँ सन्तति सम्पन्न होकर प्रात: काल में इन्द्र देव के लिए दुग्ध प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.28.1]
Let cows come to our house and resort to our welfare. They should reside in our cow shed and become happy with us. Cows of different colours should have progeny and yield milk for Indr Dev in the morning.
इन्द्रो यजने पृणते च शिक्षत्युपेद्ददाति न स्वं मुषायति।
भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिन्ने खिह्ये नि दधाति देवयुम्
इन्द्र देव यज्ञ करने वाले और प्रार्थना करने वाले को अपेक्षित धन प्रदान करते हैं। वे उन्हें सर्वदा धन प्रदान करते हैं और उनके स्वकीय धन को कभी नहीं लेते। वे निरन्तर उनके धन को बढ़ाते हैं और उन इन्द्राभिलाषी को शत्रुओं के द्वारा सुरक्षित स्थान में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 6.28.2]
Indr Dev grants wealth to the doer of Yagy and his worshipers. He just keep on granting them money and do not take their wealth. He continuously increase their wealth and keep them at safe place.
न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति।
देवाँश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित्ताभिः सचते गोपतिः सह
गौएँ हमारे समीप से नष्ट न हों। चोर हमारी गौओं को न चुरायें। शत्रुओं का शस्त्र हमारी गौओं को क्षति न पहुँचावें । गोस्वामी याजकगण जिन गौओं से इन्द्रादि का यजन करते हैं और जिन गौओं को इन्द्रदेव के लिए प्रदान करते हैं, उन गौओं के साथ वे चिरकाल तक सुखी रहें।[ऋग्वेद 6.28.3]
Our cows should be safe. Thieves should not steal them. Enemy should not harm them. The owner of cows who worship Indr Dev with cows and grant them to him, should survive-live with the cows for long.
न ता अर्वा रेणुककाटो अश्नुते न संस्कृतत्रमुप यन्ति ता अभि।
उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यजनः
धूल उड़ाने वाले वेगगामी अश्व भी उन गौओं को न पा सकेगें। इन गौओं पर वध करने के लिए प्रहार न करें। यागशील मनुष्य की गौएँ निर्भय और स्वाधीन भाव से भ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 6.28.4]
The speeded horses who raise dust, will not be able to have-catch these cows. Do not strike the cows for killing them. Cows of the person who perform Yagy roam fearlessly and independently. 
गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छान् गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः।
इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामीद्धृदा मनसा चिदिन्द्रम्
गौएँ हमें धन प्रदान करनी वाली हों। इन्द्र देव हमें गौएँ प्रदान करें। गाय का दूध सबसे पहले सोमरस में मिलाया जाता है। हे मनुष्यों! ये गौएँ इन्द्र रूप हैं, श्रद्धायुक्त मन से हम जिनकी कामना करते हैं।[ऋग्वेद 6.28.5]
Let the cows yield money to us. Let Indr Dev grant cows to us. Cows milk is mixed with Somras at first. Hey Humans! These cows are like Indr Dev which are worshiped by us with faith-honour.
यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम्।
भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु
हे गौओं! आप हमें पुष्टि प्रदान करें। आप क्षीण और अमंगल अंग को सुन्दर बनावें। हे कल्याणयुक्त वचन वाली गौओं! हमारे गृह को कल्याणयुक्त करें। हे गौओं! यज्ञशाला में आपका महान् अन्न ही कीर्तित होता है।[ऋग्वेद 6.28.6]
Hey cows! Nourish us. Make our weak and unfit organs strong. Hey cows speaking welfare words! Make out house full of welfare. Hey cows! Your great food grains are appreciated-offered in the Yagy house.
प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः।
मा वः स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः
हे गौओ! आप सन्तान युक्त होवें। शोभन तृण का भक्षण करें और सुख से प्राप्त करने में योग्य तालाब आदि का निर्मल जल पीवें। आपका शासक चोर न हो और व्याघ्रादि आपके ईश्वर न हो अर्थात् हिंसक जन्तु आपके ऊपर आक्रमण न करें। कालात्मक परमेश्वर का आयुध आपसे दूर रहे।[ऋग्वेद 6.28.7]
Hey cows! You should have progeny. Eat good straw and drink the water from the pond comfortably. Your master-owner should not be a thief, the beasts should not be able to harm-overpower you. The weapons of death of the Almighty should keep away from you, at all times.
उपेदमुपपर्चनमासु गोषूप पृच्यताम्। उप ऋषभस्य रेतस्युपेन्द्र तव वीर्ये
हे इन्द्र देव! आपके बलाधान के निमित्त गौओं की पुष्टि प्रार्थित हों एवं गौओं के गर्भाधानकारी वृषभों का बल प्रार्थित हो अर्थात् गौओं के पुष्ट होने पर तत्सम्बन्धी क्षीरादि द्वारा इन्द्रदेव सन्तुष्ट होते हैं।[ऋग्वेद 6.28.8]
Hey Indr Dev! Its requested that the cows should be strong for your growth and the strength of the bulls who lead to their fertilisation. Indr Dev should be satisfied with the milk, curd, Ghee etc yielded by the cows.(22.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्रं वो नरः सख्याय सेषुर्महो यन्तः सुमतये चकानाः।
महो हि दाता वज्रहस्तो अस्ति महामु रण्वमवसे यजध्वम्
हे याजकों! आपके नेतृ स्वरूप ऋत्विक लोग मित्र भाव से इन्द्र देव की परिचर्या करते हैं। वे महान स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं और उनकी बुद्धि शोभन तथा अनुग्रहात्मिका है; क्योंकि वज्रपाणि इन्द्र देव महान धन प्रदान करते हैं; इसलिए रमणीय और महान इन्द्र देव की पूजा, रक्षा के लिए करें।[ऋग्वेद 6.29.1]
रमणीय :: सुखद, रमणीय, सुहावना, ख़ुशगवार, मनोरम, रमणीय, सुहावना, ललित, आनंदकर, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला, रमण योग्य, सुंदर; delightful, delectable, enjoyable.
Hey Hosts! The Ritviz who are like your eyes serve-worship Indr Dev like a friend. They recite great Strotrs which shows their excellent thoughts-ideas and obelizing nature, since Vajr wielding Indr Dev grants great wealth. Hence, worship delightful Indr Dev for protection.
आ यस्मिन्हस्ते नर्या मिमिक्षुरा रथे हिरण्यये रथेष्ठाः।
आ रश्मयो गभस्त्योः स्थूरयोराध्वन्नश्वासो वृषणो युजानाः
जिन इन्द्र देव के हाथ में मनुष्यों के हितकर धन संचित हैं, जो रथ पर चढ़ने वाले इन्द्र देव सुवर्णमय रथ पर आरूढ़ होते हैं, जिनके विशाल बाहुओं में रश्मियाँ नियमित हैं, जिन इन्द्र देव को सेचन करने वाले (बलिष्ठ) और रथ में युक्त अश्वगण वहन करते हैं, हम उन इन्द्र की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 6.29.2]
We worship Indr Dev, who possess wealth beneficial for the humans. He rides the golden charoite, with the hands emitting light rays. Strong horses are deployed in his charoite.
श्रिये ते पादा दुव आ मिमिक्षुर्धृष्णुर्वज्री शवसा दक्षिणावान्।
वसानो अत्कं सुरभिं दृशे कं स्व१ र्ण नृतविषिरो बभूथ
हे इन्द्र देव! ऐश्वर्य लाभ के लिए भरद्वाज आपके चरणों में परिचरण समर्पित करते हैं। आप बल द्वारा शत्रुओं को पराजित करते हैं, वज्र धारण करते हैं और श्रोताओं को धन देते हैं। हे नेता इन्द्रदेव! आप सभी के दर्शनार्थ प्रशस्त और सतत गमनशीलरूप धारित करके सूर्यदेव के सदृश परिभ्रमणशील होते हैं।[ऋग्वेद 6.29.3]
Hey Indr Dev! Rishi Bhardwaj offer adoration at your feet for grandeur. You defeat the enemies with might, wield Vajr and grants wealth to the Stotas. Hey leader-lord Indr Dev! You adopt figure to rotate-revolve like the Sun-Sur Dev to be seen by all.
स सोम आमिश्लतमः सुतो भूद्यस्मिन्पक्तिः पच्यते सन्ति धानाः।
इन्द्रं नरः स्तुवन्तो ब्रह्मकारा उक्था शंसन्तो देववाततमाः
सोमरस के अभिषुत होने पर वह भली-भाँति मिश्रित हुआ है, जिसके अभिषुत होने पर पाक योग्य पुरोडाशादि पकाया जाता है। भुने जौ हवि के लिए संस्कृत होते हैं। हविर्लक्षण अन्न के कर्ता ऋत्विक लोग स्तोत्रों के द्वारा इन्द्र देव का स्तवन करते हैं। शास्त्रों का उच्चारण करते हुए वे देवता के निकटस्थ होते हैं।[ऋग्वेद 6.29.4]
Somras is extracted properly, thoroughly mixed & Purodas is backed. Roasted barley are ready for offerings. The Ritviz worship Indr Dev with the Strotr and keep food grains ready meant for offerings. Reciting the scriptures they become close to the demigods-deities.
न ते अन्तः शवसो धाय्यस्य वि तु बाबधे रोदसी महित्वा।
आ ता सूरिः पृणति तूतुजानो यूथेवाप्सु समीजमान ऊती
हे इन्द्र देव! आपके बल को हम लोग नहीं जानते। द्यावा-पृथ्वी आपके जिस महान् बल से भयभीत हो जाती है, गोपाल लोग जिस प्रकार से जल द्वारा गौओं को तृप्त करते हैं, उसी प्रकार स्तोता शीघ्र तृप्तिकारक हव्य द्वारा भली-भाँति यज्ञ करके आपको तृप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.29.5]
Hey Indr Dev! We are unaware of your might. The earth & heavens become afraid of your great strength. The way the cow heard satisfy the cows with water, the Stotas use satisfying offerings for the Yagy.
एवेदिन्द्रः सुहव ऋष्वो अस्तूती अनूती हिरिशिप्रः सत्वा।
एवा हि जातो असमात्योजाः पुरू च वृत्रा हनति नि दस्यून्
हरित नासा वाले महेन्द्र, इस प्रकार से सुख पूर्वक आह्वान करने के योग्य होते हैं। ये स्वयं उपस्थित अथवा अनुपस्थित हों; किन्तु स्तोताओं को धन प्रदान करते हैं। इस प्रकार से प्रादुर्भूत होकर उत्कृष्टतर बल वाले इन्द्र देव बहुत से वृत्रासुर जैसे राक्षसों तथा शत्रुओं को मारते हैं।[ऋग्वेद 6.29.6]
Indr Dev-Mahendr, with green nose deserve to be invoked comfortable. Whether he is present or not, he grants wealth to the Stotas. Indr Dev invoke and kill the demons & enemies with excellent might, power, strength.(23.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
भूय इद्वावृधे वीर्यायँ एको अजुर्यो दयते वसूनि।
प्र रिरिचे दिव इन्द्रः पृथिव्या अर्धमिदस्य प्रति रोदसी उभे
वृत्र वधादि वीर कार्य करने के लिए इन्द्रदेव पुनः प्रवृद्ध हुए। मुख्य और जरारहित इन्द्र देव स्तोताओं को धन प्रदान करें। इन्द्रदेव द्यावा-पृथ्वी का अतिक्रमण करते हैं। इनका आधा भाग ही द्यावा-पृथ्वी के सदृश है अर्थात् प्रतिनिधि है।[ऋग्वेद 6.30.1]
Indr Dev who killed Vratr etc., got ready again. Indr Dev, free from old age, grants wealth to the Stotas. He cross the limits of both earth & heavens. His half body is like the earth-heavens.
अधा मन्ये बृहदसुर्यमस्य यानि दाधार नकिरा मिनाति।
दिवेदिवे सूर्यो दर्शतो भूद्वि सद्मान्युर्विया सुक्रतुर्धात्
अभी हम इन्द्र देव के बल का स्तवन करते हैं। वह बल असुरों के वध में कुशल है। ये जिन कर्मों को धारित करते हैं, उनकी हिंसा कोई भी नहीं करता। वे प्रतिदिन वृत्रावृत सूर्य देव को दर्शनीय बनाते हैं। शोभन कर्म करने वाले इन्द्र देव ने भुवनों को विस्तारित किया।[ऋग्वेद 6.30.2]
We worship the might of Indr Dev. He is expert in killing the demons. His endeavours can not be hindered by any one. He makes the rotating-revolving Sun beautiful, Indr Dev performing great deeds, extended-expanded the abodes.
अद्या चिन्नू चित्तदपो नदीनां यदाभ्यो अरदो गातुमिन्द्र।
नि पर्वता अद्मसदो न सेदुस्त्वया दृळ्हानि सुक्रतो रजांसि
हे इन्द्र देव! पूर्व के समान आज भी आपका नदी सम्बन्धी कार्य विद्यमान है। नदियों के बहने के लिए आपने मार्ग बनाया। भोजनार्थ उपविष्ट मनुष्यों के समान पर्वतगण आपकी आशा से निश्चल भाव से उपविष्ट हैं। हे शोभन कर्म करने वाले इन्द्र देव! सम्पूर्ण लोक आपके द्वारा स्थिर हुए।[ऋग्वेद 6.30.3]
निश्चल :: अचल, स्थिर, अपरिवर्तनशील; immobile, static, stagnant.
Hey Indr Dev! Your endeavours pertaining to the rivers are still present-functional. You created path for the rivers to flow. The mountains are static like the hungry people. Hey performer of beautiful-appreciable deeds Indr Dev! You made the entire abode stationary-static.
सत्यमित्तन्न त्वावाँ अन्यो अस्तीन्द्र देवो न मर्त्यो ज्यायान्।
अहन्नहिं परिशयानमर्णोऽवासृजो अपो अच्छा समुद्रम्
हे इन्द्र देव! आपके सदृश अन्य देव नहीं हैं, यह यथार्थ है। आपके सदृश कोई दूसरा मनुष्य भी नहीं है। आपसे अधिक न कोई देव है, न मनुष्य, यह जो कहा जाता है, वो पूर्णतः सत्य है। जलराशि को ढँककर वृत्रासुर का आपने ही वध किया और समुद्र की ओर जल को प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 6.30.4]
Hey Indr Dev! Its said that neither demigod-deity nor humans match you, is a fact. You killed Vrata sur covering the water bodies and made them flow into the ocean.
त्वमपो वि दुरो विषूचीरिन्द्र दृळ्हमरुजः पर्वतस्य।
राजाभवो जगतश्चर्षणीनां साकं सूर्यं जनयन्द्यामुषासम्
हे इन्द्र देव! वृत्रासुर से आवृत जल को सभी जगह प्रवाहित होने के लिए आपने मुक्त किया। आपने बादलों के दृढ़-बन्धन को छिन्न-भिन्न किया। सूर्य, उषा और स्वर्ग को प्रकाशमान करने वाले आप सम्पूर्ण संसार के राजा बनें।[ऋग्वेद 6.30.5]
Hey Indr Dev! You released the water blocked by Vrat Sur. You teared the clouds. You should become the king of the universe by virtue of making the Sun and Usha-day break, lighted.(23.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- सुहोत्र भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप, शक्वरी।
अभूरेको रयिपते रयीणामा हस्तयोरधिथा इन्द्र कृष्टीः।
वि तोके अप्सु तनये च सूरेऽवोचन्त चर्षणयो विवाचः
हे धन के पालक इन्द्र देव! आप धन के प्रधान स्वामी हैं। हे इन्द्र देव! आप अपनी दोनों भुजाओं में प्रजाओं को धारित करते हैं अर्थात् सम्पूर्ण जगत् आपकी आज्ञा का अनुवर्ती है। मनुष्यगण विविध प्रकार से आपका स्तवन पुत्र, शत्रु विजयी पुत्र-पौत्र और वर्षा के लिए करते हैं।[ऋग्वेद 6.31.1]
Hey supporter-grower of wealth Indr Dev! You are the lord of wealth. Hey Indr Dev! You support the populace with your both hands. The whole world follow your dictates. The humans worship you through different means for sons, grandsons and rains.
त्वद्भियेन्द्र पार्थिवानि विश्वाच्युता चिच्च्यावयन्ते रजांसि।
द्यावाक्षामा पर्वतासो वनानि विश्वं दृळ्हं भयते अज्मन्ना ते
हे इन्द्र देव! आपके भय से व्यापक और अन्तरिक्षोद्भव उदक पतन योग्य नहीं होने पर भी मेघ द्वारा बरसाये जाते हैं। हे इन्द्र देव! आपके आगमन से द्यावा-पृथ्वी, पर्वत, वृक्ष और सम्पूर्ण स्थावर प्राणिजात भयभीत हो जाते हैं।[ऋग्वेद 6.31.2]
Hey Indr Dev! The clouds shower rain due to your fear as soon as they are saturated. Hey Indr Dev! The earth, heavens, mountains, trees and the stationary organism-living being are gripped with fear with your arrival.
त्वं कुत्सेनाभि शुष्णमिन्द्राशुषं युध्य कुयवं गविष्टौ।
दश प्रपित्वे अध सूर्यस्य मुषायश्चक्रमविवे रपांसि
हे इन्द्र देव! कुत्स के साथ प्रबल शुष्ण के विरुद्ध आपने युद्ध किया। युद्ध में आपने कुयव का वध किया। युद्ध में आपने सूर्य देव के रथ चक्र का हरण किया। तब से सूर्य देव का रथ एक ही चक्र का हो गया। पापकारी राक्षसों का आपने वध किया।[ऋग्वेद 6.31.3]
Hey Indr Dev! You fought Shushn along with Kuts and killed Kuyav. You stole one wheel of Sury Dev's charoite in war and since then it runs over one wheel, only. You killed the sinner demons.
त्वं शतान्यव शम्बरस्य पुरो जघन्थाप्रतीनि दस्योः। अशिक्षो यत्र शच्या शचीवो दिवोदासाय सुन्वते सुतक्रे भरद्वाजाय गृणते वसूनि
हे इन्द्र देव! आपने असुर शम्बरासुर के सौ नगरों को ध्वस्त किया। हे प्रज्ञावान् तथा अभिषुत सोमरस द्वारा आनन्दित इन्द्रदेव! उस समय आपने सोमाभिषव करने वाले दिवोदास को प्रज्ञापूर्वक धन प्रदान किया तथा प्रार्थना करने वाले भरद्वाज को धन प्रदान किया।[ऋग्वेद 6.31.4]
Hey Indr Dev! You destroyed the hundred forts-cities of Shambrasur. Hey intelligent-prudent, happy by drinking Somras Indr Dev! You granted wealth to the extractor of Somras Divodas, intelligently and Bhardwaj who worshiped you.
स सत्यसत्वन्महते रणाय रथमा तिष्ठ तुविनृम्ण भीमम्।
याहि प्रपथिन्नवसोप मद्रिक् च श्रुत श्रावय चर्षणिभ्यः
हे अबध्य भट वाले तथा विपुल धन वाले इन्द्र देव! आप महान् युद्ध के लिए अपने भयंकर रथ पर आरूढ़ होवें। हे प्रकृष्ट मार्ग वाले इन्द्र देव! आप रक्षा के साथ हमारे सम्मुख आगमन करें। हे विख्यात इन्द्र देव! प्रजाओं के बीच में हमें प्रख्यात करें।[ऋग्वेद 6.31.5]
भट :: लोमड़ी, गीदड़-सियार इत्यादि जानवरों के रहने का स्थान, एक घास, चूल्हे की जली हुई मिट्टी, पहलवान, मल्ल, युद्ध करने या लड़ने वाला योद्धा, विद्वान, ज्ञानी, दार्शनिक, मराठा ब्रह्मणों की उपाधि, अपमान सूचक शब्द, एक प्रकार की गाली, स्याह, काला, दूषित, लिथड़ा हुआ, भट्ट जाना, भटना, फ़ुट डेढ़ फ़ुट ऊंचा जंगली पौधा जिसके पत्ते बहुत बड़े होते हैं, एक जाति, गवय्या, दरबारी गायक, भाट, बड़ा सूराख़, बिल, ग़ार जिस में लोमड़ी गीदड़ भेड़िया वग़ैरा रहते हैं; singer, wolf,  intellectual, enlightened, warrior, animal.
Hey possessor of Bhat & enormous wealth Indr Dev! Ride your furious charoite for great war. Hey Indr Dev follower of excellent route! Join with protection. Hey famous Indr Dev! Make us famous amongest the populace.(24.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- सुहोत्र भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
अपूर्व्या पुरुतमान्यस्मै महे वीराय तवसे तुराय।
विरप्शिने वज्रिणे शंतमानि वचांस्यासा स्थविराय तक्षम्
हमने महान्, विविध शत्रुओं को मारने वाले, बलवान् वेग सम्पन्न विशेष प्रकार से स्तुति योग्य वज्रधारी और प्रवृद्ध इन्द्र देव के लिए मुख द्वारा अपूर्व, सुविस्तीर्ण और सुख दायक स्तोत्रों का उच्चारण किया।[ऋग्वेद 6.32.1]
We recited pleased-comforting, unprecedented, long Strotr in the honour of worship deserving Indr Dev who is great, slayer of several enemies, mighty, dynamic, Vajr wielding, prosperous.
स मातरा सूर्येणा कवीनामवासयगुजदद्रिं गृणानः।
स्वाधीभिर्ऋकभिर्वावशान उदुस्त्रियाणामसृजन्निदानम्
इन्द्र देव ने मेधावी अङ्गिराओं के लिए जननी स्वपूर स्वर्ग और पृथ्वी को सूर्य द्वारा प्रकाशित किया एवं अङ्गिराओं द्वारा स्तूयमान होकर पर्वतों को चूर्ण किया। इन्द्र देव ने शोभन ध्यानशील स्तोता अङ्गिराओं द्वारा बारम्बार प्रार्थित होने पर गौओं को बन्धन से मुक्त किया।[ऋग्वेद 6.32.2]
Indr Dev lightened the earth & heavens with the Sun and destroyed the mountains on being praised by Angiras. He released the cows on being worshiped-prayed by Angiras repeatedly
स वह्निभिर्ऋक्वभिर्गोषु शश्वन्मितज्ञुभिः पुरुकृत्वा जिगाय।
पुरः पुरोहा सखिभिः सखीयन्दृळ्हा रुरोज कविभिः कविः सन्
बहुत कर्म करने वाले इन्द्र देव ने हवन करने वाले, प्रार्थना करने वाले और संकुचित-जानु अङ्गिराओं के साथ मिलकर गौओं के लिए शत्रुओं को पराजित किया। मित्रभूत, मेधावी अङ्गिराओं के साथ मित्राभिलाषी और दूरदर्शी होकर इन्द्र देव ने असुर पुरियों को ध्वस्त किया।[ऋग्वेद 6.32.3]
संकुचित :: संकोच युक्त, लज्जित, सिकुड़ा हुआ; narrow, contracted.
Executer of several endeavours-deeds Indr Dev defeated the enemies of cows on being requested by the Hawan performing Angiras, having contracted thighs. Farsighted Indr Dev destroyed the cities-forts of the demons in association with friendly, intelligent Angiras.
स नीव्याभिर्जरितारमच्छा महो वाजेभिर्महद्भिश्च शुष्मैः।
पुरुवीराभिर्वृषभ क्षितीनामा गिर्वणः सुविताय प्र याहि
हे कामनाओं के पूरक, हे स्तुति द्वारा संभजनीय इन्द्र देव! आप महान् अन्न, महान् बल और बहुत वत्सवती युवती वड़वा के साथ अपने स्तुति कर्ता को मनुष्यों के बीच में सुखी करने के लिए उनके समक्ष आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 6.32.4]
बड़वा :: घोड़ी, सूर्य की पत्नी संज्ञा जिसने घोड़ी का रूप धारण कर लिया था,
सितारों के एक समूह का अवतार जो घोड़े के आकार का है, अश्विनी नक्षत्र, वासुदेव की एक परिचारिका-दासी, एक नदी, वड़वाग्नि; mare, fire in the ocean.
Hey desires accomplishing Indr Dev, worshiped by many! You invoke before the worshiper with lots of food grains, might and young mare to make him comfortable.
स सर्गेण शवसा तक्तो अत्यैरप इन्द्रो दक्षिणतस्तुराषाट्।
इत्था सृजाना अनपावृदर्थंदिवेदिवे विविषुरप्रमृष्यम्
हिंसकों के अभिभव कर्ता इन्द्र देव सदा उद्यत बल द्वारा सतत गमन शील तेज से युक्त होकर सूर्य के दक्षिणायन होने पर जल को मुक्त करते हैं। इस प्रकार विसृष्ट जलराशि उस क्षोभ शून्य समुद्र में प्रतिदिन गिरती है, जिससे वह जलराशि लौटकर अपने स्थान पर नहीं आती।[ऋग्वेद 6.32.5]
Destroyer of the violent, dynamic Indr Dev is always ready-prepared with energy-might to release water when the Sun moves to Southern half of the earth. The water thus released falls in the oceans without tides-waves and do not return back.(25.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- शुनहोत्र  भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
य ओजिष्ठ इन्द्र तं सु नो दा मदो वृषन्त्स्वभिष्टिर्दास्वान्।
सौवश्यं यो वनवत्स्वश्वो वृत्रा समत्सु सासहदमित्रान्
हे अभीष्टवर्षक इन्द्र देव! आप हम लोगों को बलशाली, स्तुतियों द्वारा स्तवनकर्ता, शोभन यज्ञकर्ता और हव्य प्रदान करने वाला एक पुत्र प्रदान करें। वह पुत्र उत्कृष्ट अश्व पर आरूढ़ होकर संग्राम में शोभन अश्वों और प्रतिकूलताचारी शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 6.33.1]
Hey desires accomplishing Indr Dev! Grant us a son who is mighty, pray with Stutis-Strotr and perform decent Yagy. He should ride the excellent horse and defeat the enemy always opposing and acting in adverse directions riding beautiful horses.
त्वां ही ३ न्द्रावसे विवाचो हवन्ते चर्षणयः शूरसातौ।
त्वं विप्रेभिर्वि पणीरँशायस्त्वोत इत्सनिता वाजमव
हे इन्द्र देव! विविध स्तुति रूप वचन वाले मनुष्यगण युद्ध में रक्षा के लिए आपका आह्वान करते हैं। आपने मेधावी अङ्गिराओं के साथ पणियों का संहार किया। आपकी उपासना करने वाला पुरुष आपके द्वारा रक्षित होकर अन्न प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.33.2]
Hey Indr Dev! The humans invoke-call you reciting various sacred hymns in the war, for protection. You killed the Pani demons with intelligent Angiras. One who pray-worship you, get food grains and protection from you.
त्वं ताँ इन्द्रोभयाँ अमित्रान्दासा वृत्राण्यार्या च शूर।
वधीर्वनेव सुधितेभिरत्कैरा पृत्सु दर्षि नृणां नृतम
हे शूर इन्द्रदेव! आप दस्युओं अथवा आर्यों दोनों प्रकार के शत्रुओं का संहार करते है। हे नेतृ श्रेष्ठ! जिस प्रकार काष्ठ छेदक कुठारादि से वृक्षों को काट देता है उसी प्रकार आप संग्राम में भली-भाँति प्रयुक्त अस्त्रों द्वारा शत्रुओं को काटें।[ऋग्वेद 6.33.3]
Hey brave Indr Dev! You destroy either the dacoits or the Ary, the two types of enemies. Hey great leader! The way the axe cuts-destroy the trees you should destroy the enemies loaded with various arm & ammunition; used properly in the war.
स त्वं न इन्द्राकवाभिरूती सखा विश्वायुरविता वृधे भूः।
स्वर्षाता यद्ध्वयामसि त्वा युध्यन्तो नेमधिता पृत्सु शूर
हे इन्द्र देव! आप सभी जगह गमन करने वाले हैं। आप श्रेष्ठ रक्षा के द्वारा हम लोगों की समृद्धि के वर्द्धक तथा मित्र होवें। कुछ पुरुषों से युक्त युद्ध करने वाले हम लोग धन प्राप्ति के लिए आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 6.33.4]
Hey Indr Dev! You move every where. You should provide us best protection, increase our prosperity and be friendly with us. We are involved in fight with some people and invite-request you to seek money-riches.
नूनं न इन्द्रापराय च स्या भवा मृळीक उत नो अभिष्टौ।
इत्था गृणन्तो महिनस्य शर्मन्दिवि ष्याम पायें गोषतमाः
हे इन्द्र देव! इस समय तथा दूसरे समय में आप निश्चय ही हमारे रहें। हम लोगों की अवस्था के अनुसार सुख प्रदान करें। इस प्रकार से प्रार्थना करने वाले हम लोगों के गौओं के संभजन करने वाले होकर आपके द्युतिमान सुख में अवस्थान करें। आप महान है।[ऋग्वेद 6.33.5]
Hey great Indr Dev! You should always be with us presently & in future. Grant us pleasure-comforts according to our age. In this manner being prayed-worshiped being worshiper of cows,  grant us pleasure.(25.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- शुनहोत्र  भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
सं च त्वे जग्मुर्गिर इन्द्र पूर्वीर्वि च त्वद्यन्ति विभ्वो मनीषाः।
पुरा नूनं च स्तुतय ऋषीणां पस्पृध्र इन्द्रे अध्युक्थार्का
हे इन्द्र देव! आप में असंख्य स्तोत्र संगत होते हैं। आपसे स्तोताओं की पर्याप्त प्रशंसा निर्गत होती है। पूर्वकाल में और इस समय में भी ऋषियों को स्तोत्र उपासना और मन्त्र इन्द्र देव की पूजा के विषय में परस्पर स्पर्द्धा करते हैं।[ऋग्वेद 6.34.1]
Hey Indr Dev! Innumerable Strotr are emerge out to you. Praises shower for the Stotas out of you. Old & current the Strotr & Mantr used to compete mutually recited by the Rishis in the honour of Indr Dev.
पुरुहूतो यः पुरुगूर्त ऋभ्वाँ एकः पुरुप्रशस्तो अस्ति यज्ञैः।
रथो न महे शवसे युजानो ३ स्माभिरिन्द्रो अनुमाद्यो भूत्
हम लोग सदैव इन्द्र देव को प्रसन्न करते हैं। वे बहुजनाहूत, बहुतों के द्वारा प्रबोधित, महान, अद्वितीय एवं याजकगणों द्वारा भली-भाँति प्रार्थित हैं। हम लोग महान् लाभ करने के लिए रथ के सदृश इन्द्रदेव के प्रति अनुरक्त होकर सदैव उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 6.34.2]
प्रबोधित :: जगाया हुआ, ज्ञान दिया हुआ; enlightened.
We always keep Indr Dev happy-pleased. He is worshiped & enlightened by numerous people being great, unparalled, unique and prayed. We always worship him for great gains attached-attracted like the charoite.
न यं हिंसन्ति धीतयो न वाणीरिन्द्रं नक्षन्तीदभि वर्धयन्तीः।
यदि स्तोतारः शतं यत्सहस्त्रं गृणन्ति गिर्वणसं शं तदस्मै
समृद्धि विधायक स्तोत्र इन्द्र देव के सम्मुख गमन करें। कर्म और स्तुतियाँ इनको बाधित नहीं करती। सैकड़ों और हजारों स्तवकारी स्तुति भाजन इन्द्र देव की प्रार्थना करके प्रसन्नता उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 6.34.3]
Let the Strotr leading to prosperity be recited before Indr Dev. Endeavours and Stutis-prayers do not interfere with it. Hundreds and thousands of worshipers keep-make Indr Dev happy.
अस्मा एतद्दिव्य१र्चेव मासा मिमिक्ष इन्द्रे न्ययामि सोमः।
जनं न धन्वन्नभि सं यदापः सत्रा वावृधुर्हवनानि यज्ञैः
इस यज्ञ दिन में स्तोत्र के योग्य पूजा के साथ प्रदत्त होने के लिए इन्द्र देव के निमित्त मिश्रित सोमरस प्रस्तुत किया जाता है। मरुस्थल के अभिमुख गमन करने वाला जल जिस प्रकार प्राणियों का पोषण करता है, उसी प्रकार हव्य के साथ स्तोत्र इन्द्र देव को आनन्दित करते हैं।[ऋग्वेद 6.34.4]
Mixed Somras is prepared in this Yagy for prayers and offered to Indr Dev. The way the water nourish the living beings directed towards the deserts, the offerings-oblations aided with Strotr amuse Indr Dev.
अस्मा एतन्मह्याङ्गूषमस्मा इन्द्राय स्तोत्रं मतिभिरवाचि।
असद्यथा महति वृत्रतूर्य इन्द्रो विश्वायुरविता वृधश्च
सभी स्थानों में जाने वाले इन्द्र देव महान संग्राम में हम लोगों के रक्षक और समृद्धि विधायक है, अतः स्तोताओं का स्तोत्र आग्रह के साथ इनके प्रति उच्चारित होता है।[ऋग्वेद 6.34.5]
आग्रह :: ज़ोर, अनुरोध, बल, हठ, इसरार, टेक, ज़िद, दृढ़ता, विनती; importunity, pertinacity, request, insistence.
Indr Dev moving all places protects us in the war and grant us prosperity, hence Strotr are recited in his honour insistently.(26.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- नरो भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
कदा भुवन्रथक्षयाणि ब्रह्म कदा स्तोत्रे सहस्रपोष्यं दाः।
कदा स्तोमं वासयोऽस्य राया कदा धियः करसि वाजरत्नाः
हे इन्द्र देव! आप रथाधिरूढ़ के निकट हमारे स्तोत्र कब पहुँचेगें? कब आप मुझ स्तोत्र करने वाले को सहस्र पुरुषों के गो-समूह या पुत्र प्रदान करेगें? कब आप मुझ स्तोता के स्तोत्र को धन-द्वारा पुरस्कृत करेगें? कब आप अग्निहोत्रादि कार्य को अन्न द्वारा रमणीय बनावेंगे?[ऋग्वेद 6.35.1]
Hey Indr Dev! When will you ride your charoite and reach the Strotr-Stotas? When will you grant me cows or sons along with thousands of humans beings? When will you award me-the Stota, with money for the Strotr? When will you make the Agnihotr, Yagy, Hawan etc. attractive-enjoyable with food grains?
कर्हि स्वित्तदिन्द्र यन्नृभिर्नृवीरैर्वीरान्नीळयासे जयाजीन्।
त्रिधातु गा अधि जयासि गोष्विन्द्र द्युम्नं स्वर्वद्धेह्यस्मे
हे इन्द्र देव! कब आप हमारे पुरुषों के साथ शत्रुओं के पुरुषों को तथा हमारे पुत्रों के साथ शत्रुओं के पुत्रों को कब मिलायेंगे? (युद्ध में इस तरह का संश्लेषण कब होगा?) हमारे लिए आप कब संग्राम में जय प्राप्त करेगें ? कब आप गमनशील शत्रुओं से क्षीर, दधि और घृतादि धारित करनेवाली गौओं को जीतेगें? हे इन्द्र देव! कब आप हम लोगों को व्याप्त धन प्रदान करेगें?[ऋग्वेद 6.35.2]
Hey Indr Dev! When will arrange for the meeting of our enemy males with us and our children with their children-sons (cease fires, termination of war)? When will you attain victory for us in the war? When will you snatch-win the cows granting milk, curd, ghee etc. from the enemy? Hey Indr Dev! When will you grant us wealth?
कर्हि स्वित्तदिन्द्र यज्जरित्रे विश्वप्सु ब्रह्म कृणवः शविष्ठ।
कदा धियो न नियुतो युवासे कदा गोमघा हवनानि गच्छाः
हे बलवत्तम इन्द्र देव! कब आप स्तोता को विविध प्रकार का अन्न प्रदान करेगें? कब आप अपने यज्ञ और स्तोत्र को युक्त करेगें? कब आप स्तोत्रों को गोदायक करेगें?[ऋग्वेद 6.35.3]
Hey excellent might possessor Indr Dev! When will you grant food grains to the Stotas in different ways? When will you make the Strotr yielding cows?
स गोमघा जरित्रे अश्वश्चन्द्रा वाजश्रवसो अधि धेहि पृक्षः।
पीपिहीषः सुदुघामिन्द्र धेनुं भरद्वाजेषु सुरुचो रुरुच्याः
हे इन्द्र देव! आप गो दायक, अश्वों द्वारा आह्लादित करने वाला और बल द्वारा प्रसिद्ध अन्न हम प्रार्थना करने वाले भरद्वाज पुत्रों को प्रदान करें। आप अन्नों को तथा सुगमता से दुहने योग्य गौओं को परिपुष्ट करें। वे गौएँ जिससे शोभन दीप्ति वाली हों, वैसा ही आप करें।[ऋग्वेद 6.35.4]
Hey Indr Dev! Grant cows, horses, might and appreciable food grains to us-the sons-descendants of Bhardwaj Rishi. Nourish the food grains and cows which can be milked easily. Take such measures which can make the cows possess aura.
तमा नूनं वृजनमन्यथा चिच्छूरो यच्छक्र वि दुरो गृणीषे।
मा निररं शुक्रदुघस्य धेनोराङ्गिरसान्ब्रह्मणा विप्र जिन्व
हे इन्द्र देव! आप हमारे शत्रु को अन्य प्रकार से (जीवन के विपरीत अर्थात् मरण पथ से) युक्त करें। हे इन्द्र देव! आप शक्तिमान, वीर और शत्रु हन्ता हैं, इस प्रकार से हम लोग आपका स्तवन करते हैं। हे इन्द्र देव! आप विशुद्ध वस्तुओं के प्रदान कर्ता हैं। हम आपके स्तोत्रों के उच्चारण करने से विरत न हों। हे प्राज्ञ इन्द्र देव! आप अङ्गिराओं को अन्न द्वारा प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 6.35.5]
Hey Indr Dev! Grant death to our enemy. We worship you as mighty, brave and slayer of the enemy. Grant us pure goods. We should not forget-avoid recitation of Strotr for you. Hey intelligent Indr Dev! Please the Angiras with food grains.(26.09.2023) 
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- नर भरद्वाज;  देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
सत्रा मदासस्तव विश्वजन्याः सत्रा रायोऽध ये पार्थिवासः।
सत्रा वाजानामभवो विभक्ता यद्देवेषु धारयथा असुर्यम्
हे इन्द्र देव! आपका सोमपान जनित हर्ष निश्चय ही सब लोगों के लिए हितकर है। आप अन्न दाता है। देवों के बीच में आप बल धारित करते है।[ऋग्वेद 6.36.1]
Hey Indr Dev! The pleasure-amusement generated in you by drinking Somras is beneficial to us. Grant us food grains. You possess might, strength, power amongest the demigods-deities.
अनु प्र येजे जन ओजो अस्य सत्रा दधिरे अनु वीर्याय।
स्यूमगृभे दुधयेऽर्वते च क्रतुं वृञ्जन्त्यपि वृत्रहत्ये
यजमान लोग विशेष प्रकार से इन्द्र देव के बल की पूजा करते हैं। वीरत्व प्राप्ति के लिए अथवा वीरकर्म करने के लिए याजकगण इन्द्र देव को पुरोभाग में धारित करते हैं। अविच्छिन्न शत्रु श्रेणी के निरोधकर्ता, हिंसाकारी और आक्रमणकारी इन्द्र देव वृत्रासुर का संहार करेंगे; इसलिए याजकगण उनकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 6.35.2]
The Ritviz worship Indr Dev's might differently. They keep Indr Dev in the forward position for attaining victory. The Ritviz serve-worship him since he is destroyer of the enemies, violent and the attackers & he will kill Vrata Sur.
तं सध्रीचीरूतयो वृष्ण्यानि पौंस्यानि नियुतः सश्चुरिन्द्रम्।
समुद्रं न सिन्धव उक्थशुष्मा उरुव्यचसं गिर आ विशन्ति
संगत होकर मरुद्गण इन्द्र देव का सेवन करते हैं एवं वीर्य, बल और रथ में नियोजित अश्व भी इन्द्र देव का सेवन करते हैं। नदियाँ जिस प्रकार समुद्र में गिरती हैं, उसी प्रकार उपासना रूप बल वाली स्तुतियाँ विश्व व्यापी इन्द्रदेव तक पहुँचती हैं।[ऋग्वेद 6.36.3]
संगत :: प्रासंगिक, उचित, अनुरूप, योग्य, प्रस्तुत, अनुकूल, मुताबिक़, तर्कयुक्त, सिलसिलेवार, अविरोधी; compatible, consistent, relevant.
Marud Gan become compatible with Indr Dev and his horses deployed in the charoite, too enjoy his might. The way the river fall in the ocean, worships-prayers meet Indr Dev pervading the whole universe. 
स रायस्खामुप सृजा गृणानः पुरुश्चन्द्रस्य त्वमिन्द्र वस्वः।
पतिर्बभूथासमो जनानामेको विश्वस्य भुवनस्य राजा
हे इन्द्र देव! स्तूयमान होने पर आप बहुतों के अन्न दायक और गृह प्रदायक धन की धारा को प्रवाहित करें। आप सम्पूर्ण प्राणी के उत्कृष्ट स्वामी और सम्पूर्ण भूतजात के असाधारित अधीश्वर हैं।[ऋग्वेद 6.36.4]
Hey Indr Dev! On being praised you grant food grains, residence to the worshipers. You are excellent master of all living beings and their lord.
स तु श्रुधि श्रुत्या यो दुवोयुर्द्यौर्न भूमाभि रायो अर्यः।
असो यथा नः शवसा चकानो युगेयुगे वयसा चेकितानः
हे इन्द्र देव! आप श्रोतव्य स्तोत्रों को शीघ्र सुनें। हम लोगों की परिचर्या की कामना करके सूर्य देव के सदृश शत्रुओं के धन को जीतें। आप बल युक्त है। प्रत्येक काल में स्तूयमान और हव्य रूप अन्न द्वारा भली-भाँति से ज्ञायमान होकर हमारे पास पहले के समान रहें।[ऋग्वेद 6.36.5]
Hey Indr Dev! Listen to the worthy Strotr quickly. Win the wealth of the enemies like the Sun-Sury Dev, for our welfare-benefit. You are mighty-strong. Being praised and offered with oblations significantly you should be close to us.(27.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अर्वाग्रथं विश्ववारं त उगेन्द्र युक्तासो हरयो वहन्तु।
कीरिश्चिद्धि त्वा हवते स्वर्वानृधीमहि सधमादस्ते अद्य
हे उद्यतायुध इन्द्र देव! आपके रथ में युक्त अश्व हमारे सम्मुख आपके विश्ववन्दनीय रथ को ले आवें। गुणवान् स्तोता भरद्वाज ऋषि आपका आह्वान करते हैं। वे आपकी कृपा से आनन्दित होते हुए सिद्धि प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.37.1]
उद्यतायुध व्यक्ति :: अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए; person in arms.
Hey Indr Dev ready for war, wielding arms & ammunition! Let your horses bring your worshipable charoite. Virtuous Stota Bhardwaj Rishi invoke you. Let him attain-have accomplishment by virtue of your grace.
प्रो द्रोणे हरयः कर्माग्मन्युनानास ऋज्यन्तो अभूवन्।
इन्द्रो नो अस्य पूर्व्यः पपीयाद्युक्षो मदस्य सोम्यस्य राजा
हरित वर्ण सोमरस हमारे यज्ञ में प्रवाहित होता है और पवित्र होकर कलशों में भरा जाता है। पुरातन, दीप्ति सम्पन्न और मदकारक सोमरस के अधिपति इन्द्र देव हमारे सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 6.37.2]
Green coloured Somras flow in our Yagy and purified-cleansed & filled in urn-pitchers. Let the Lord of Somras Indr Dev drink our intoxicating Somras.
आसस्राणासः शवसानमच्छेन्द्रं सुचक्रे रथ्यासो अश्वाः।
अभि श्रव ऋज्यन्तो वहेयुर्नू चिन्नु वायोरमृतं वि दस्येत्
चतुर्दिक् गमन करने वाले, रथ में युक्त और सरलता पूर्वक गमन करने वाले अश्वगण सुदृढ़ रथ चक्र पर अवस्थित बलशाली इन्द्र देव को हमारे समक्ष ले आवें। अमृतमय सोमलक्षण हवि वायु से नष्ट न हों अर्थात् सोमरस के बिगड़ने के पहले ही इन्द्र देव सोमरस को पीवें।[ऋग्वेद 6.37.3]
Let the horses deployed in the charoite roaming in all directions bring Indr Dev to us. Let Indr Dev drink the Somras which is like the elixir prior to be spoiled by air.
वरिष्ठो अस्य दक्षिणामियर्तीन्द्रो मघोनां तुविकूर्मितमः।
यया वज्रिवः परियास्यंहो मघा च धृष्णो दयसे वि सूरीन्
निरतिशय बलशाली और बहुविधि कार्य करने वाले इन्द्र देव हविस्व रूप धन वाले व्यक्तियों के बीच में याजकगण को दक्षिणा प्रदान करते हैं। हे वज्रधर! आप दक्षिणा द्वारा पाप का नाश करें। हे शत्रु विजयी! आप वैसी दक्षिणा प्रेरित करें, जिससे धनराशि और स्तुतिकर्ता पुत्र हमें प्राप्त हों।[ऋग्वेद 6.37.4]
Highly powerful Indr Dev, performing various deeds, grant wealth like oblations to the Ritviz as Dakshina. Hey wielder of Vajr! Destroy the sin through Dakshina. Hey winner of the enemy! Let the Dakshina granted by you inspire wealth and sons singing Stuti-sacred hymns.
Dakshina :: Money granted for performing Yagy.
इन्द्रो वाजस्य स्थविरस्य दातेन्द्रो गीर्भिर्वर्धतां वृद्धमहाः।
इन्द्रो वृत्रं हनिष्ठो अस्तु सत्वा ता सूरिः पृणति तूतुजानः
इन्द्र देव श्रेष्ठ अन्न अथवा बल के दाता हैं। अत्यधिक तेजोयुक्त इन्द्र देव हम लोगों की प्रार्थना द्वारा वर्द्धित हों। शत्रुओं का संहार करने वाले इन्द्र देव शत्रुओं का नाश करें। प्रेरक इन्द्र देव वेगवान होकर हम लोगों को समस्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.37.5]
Indr Dev grant best food grains and strength-nourishment. Possessed with might let Indr dev flourish with our prayers. Let him destroy the enemy. Let inspiring Indr Dev grant us money quickly.(27.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अपादित उदु नश्चित्रतमो महीं भर्षद्युमतीमिन्द्रहूतिम्।
पन्यसीं धीतिं दैव्यस्य यामञ्जनस्य रातिं वनते सुदानुः
आश्चर्यतम इन्द्र देव हम लोगों के पान पात्र से सोमरस का पान करें। वे महान और दीप्तिमान स्तुति को स्वीकार करें। दानशील इन्द्र देव धार्मिक याजकगण के यज्ञ में अतिशय स्तुत्य परिचरण और हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.38.1]
Amazing Indr Dev should drink Somras from our vessels. He should accept the great and glorious prayers. Highly donating Indr Dev should accept the prayers and offerings in the Yagy of holy-virtuous Ritviz.
दूराचिदा वसतो अस्य कर्णा घोषादिन्द्रस्य तन्यति ब्रुवाणः।
एयमेनं देवहूतिर्ववृत्यान्मद्रय् १ गिन्द्रमियमृच्यमाना
इन्द्र देव के दोनों कान दूर देश से भी स्तोत्र सुनने के लिए आते हैं। स्तोता उच्च स्वर से स्तोत्र पाठ करते हैं। इनका आह्वान करने वाली यह प्रार्थना स्वयं प्रेरित होकर इन्द्र देव को हमारे समीप ले आवें।[ऋग्वेद 6.38.2]
Indr Dev's ears hear the Strotr from a distant place. The Stotas recite Strotr in loud voice. Their invoking pryers inspire Indr Dev to come to them.
तं वो धिया परमया पुराजामजरमिन्द्रमभ्यनूष्यर्कैः।
ब्रह्मा च गिरो दधिरे समस्मिन्महाँश्च स्तोमो अधि वर्धदिन्द्रे
हे इन्द्र देव! आप प्राचीन और क्षय रहित है। हम उत्कृष्ट तम प्रार्थना और हव्य द्वारा आपका स्तवन करते हैं; इसीलिए इन्द्र देव में हव्य रूप अन्न और स्तोत्र निहित है। महान स्तोत्र अधिक वर्द्धमान होता है।[ऋग्वेद 6.38.3]
Hey Indr dev! You are eternal and immortal. We worship you with excellent prayers, hence Indr dev possess offerings in the form of food grains and Strotr. Great Strotr lead to more-better progress.
वर्धाद्यं यज्ञ उत सोम इन्द्रं वर्धाद्ब्रह्म गिर उक्था च मन्म।
वर्धाहैनमुषसो यामन्नक्तोर्वर्धान्मासाः शरदो द्याव इन्द्रम्
जिन इन्द्र देव को यज्ञ और सोमरस वर्द्धित करते हैं, जिन इन्द्र देव को हव्य, स्तुति, उपासना और पूजा वर्द्धित करती हैं, दिन और रात्रि की गति जिन्हें वर्द्धित करती है एवं जिन्हें मास, संवत्सर और दिन वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 6.38.4]
Indr Dev progress-grow due to the Yagy, Somras; offerings, Stuti-prayers, worship, the speed of day & night, months, fortnight and the day.
एवा जज्ञानं सहसे असामि वावृधानं राधसे च श्रुताय।
महामुग्रमवसे विप्र नूनमा विवासेम वृत्रतूर्येषु॥
हे मेधावी इन्द्र देव! आप इस प्रकार से प्रादुर्भूत, समृद्ध बलशाली और प्रचण्ड हैं। हम लोग आज धन, कीर्ति, रक्षा और शत्रु विनाश के लिए आपकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 6.38.5]
प्रचण्ड :: कठोर, प्रचण्ड, उग्र, कडा; terrific, severe.
प्रादुर्भूत :: प्रकट हुआ, उत्पन्न; rarefied, outbreak, visitation.
Hey Indr Dev! You are terrific, mighty and rarefied. We serve-worship you for wealth, fame, protection and destruction of the enemy.(28.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
मन्द्रस्य कवेर्दिव्यस्य वह्नेर्विप्रमन्मनो वचनस्य मध्वः।
अपा नस्तस्य सचनस्य देवेषो युवस्व गृणते गोअग्राः
हे इन्द्र देव! आप हमारे उस सोमरस को पिवें, जो मदकारक पराक्रमकर्ता, स्वर्गीय, विज्ञ सम्मत फलदाता प्रसिद्ध और सेवनीय है। हे देव! आप हमें गो दुग्धादि एवं अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.39.1]
Hey Indr Dev! Drink our Somras which is famous for intoxication, valour, heavenly, in accordance with the learned-experts and useful. Hey deity! grant us cows, milk and food grains.
अयमुशानः पर्यद्रिमुस्रा ऋतधीतिभिर्ऋतयुग्युजानः।
रुजदरुग्णं वि वलस्य सानुं पर्णींर्वचोभिरभि योधदिन्द्रः
इन्हीं इन्द्र देव ने पर्वतों के बीच गुप्त रूप से रखी गयी गौवों के उद्धार के लिए यज्ञकर्ता अङ्गिरा लोगों के साथ होकर और उनके सत्य-रूप स्तोत्र द्वारा उत्तेजित होकर दुर्भेद्य पर्वत को भिन्न और ताड़ना द्वारा पणियों को पराजित किया।[ऋग्वेद 6.39.2]
Indr Dev released the cows in captivity in the tough terrain mountains secretly in association with Angiras on being excited by the truthful Strotr and defeated the demons called Panis.
अयं द्योतयदद्युतो व्य१क्तून्दोषा वस्तोः शरद इन्दुरिन्द्र।
इमं केतुमदधुर्नू चिदह्नां शुचिजन्मन उषसश्चकार
हे इन्द्र देव! इस सोमरस ने दीप्ति शून्य रात्रि, दिन और वर्ष; सबको प्रदीप्त किया। प्राचीन समय में देवों ने इस सोमरस को दिन का केतु स्वरूप स्थापित किया। इसी सोमरस ने अपनी दीप्ति से उषाओं को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 6.39.3]
Hey Indr Dev! This Somras has lighted the dark nights, days and the years. During ancient periods the demigods established this Somras as the motive for the day. This Somras lighted the Usha with its aura-radiance.
अयं रोचयदरुचो रुचानो ३ यं वासयद्वय्ृ १ तेन पूर्वीः।
अयमीयत ऋतयुग्भिरश्वैः स्वर्विदा नाभिना चर्षणिप्राः
इन्हीं इन्द्र देव ने सूर्य रूप से प्रकाशित होकर प्रकाश शून्य भुवनों को प्रकाशित किया और सभी जगह गतिशील दीप्ति द्वारा उषाओं का अन्धकार नष्ट किया। मनुष्यों के अभीष्ट फलदाता ये इन्द्र देव स्तोत्र द्वारा नियोजित होने वाले अश्वों द्वारा आकृष्ट और धनपूर्ण रथ पर आरूढ़ होकर गए।[ऋग्वेद 6.39.4]
Indr Dev lighted the dark abodes by assuming the task of Sun-Sury Dev and provided dynamic radiance by Usha. Accomplisher of humans prayers, Indr Dev rode the charoite controlled by the Strotr carrying wealth.
Here Indr Dev is a form of the Almighty.
नू गृणानो गृणते प्रत्न राजन्निषः पिन्व वसुदेयाय पूर्वीः।
अप ओषधीरविषा वनानि गा अर्वतो नॄनृचसे रिरीहि
हे पुरातन और प्रकाशमान इन्द्र देव! आप प्रार्थना किए जाने पर धन देने योग्य स्तोता को प्रचुर धन प्रदान करें। आप स्तोता को जल, औषधि, विषशून्य वृक्षावली, गौ, अश्व और मनुष्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.39.5]
Hey ancient-eternal Indr Dev! Grant sufficient wealth to the deserving Stota. Grant water, medicines, trees free from poison, cows, horses and humans.(28.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्र पिब तुभ्यं सुतो मदायाव स्य हरी वि मुचा सखाया।
उत प्र गाय गण आ निषद्याथा यज्ञाय गृणते वयो धाः
हे इन्द्र देव! आपके मदवर्द्धन के लिए जो सोमरस अभिषुत हुआ है, उसे पान करें। अपने मित्रभूत दोनों अश्वों को रथ में नियोजित करें और इसके पीछे रथ में उन्हें छोड़ दें। स्तोताओं के बीच विराजित होकर हमारे द्वारा किए गए स्तोत्रों के उच्चारण में प्रेरणा दें। स्तोता याजकगण को अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.40.1]
Hey Indr Dev! Drink the Somras extracted for increasing intoxication-boosting energy. Deploy your two horses in the charoite and later release them. Present amongest the Stotas and inspire us for the recitation of the Strotr. Let the Stotas give food grains to the Ritviz. 
अस्य पिब यस्य जज्ञान इन्द्र मदाय क्रत्वे अपिबो विरप्शिन्।
तमु ते गावो नर आपो अद्रिरिन्दुं समह्यन्पीतये समस्मै
हे महेन्द्र! आपने उल्लास और वीरता प्रकट करने के लिए जन्म लेते ही जिस प्रकार से सोमरस का पान किया, उसी प्रकार सोमरस का पान करें। आपके लिए सोमरस तैयार करने के लिए गौवें, ऋत्विक, जल और पत्थर इकट्ठे होते हैं।[ऋग्वेद 6.40.2]
उल्लास :: खुशी, हर्ष, उमंग; glee, frolic.
Hey Mahendr! Drink Somras just the way you had it soon after your birth to glee. Cows, Ritviz, water and stones gathered to prepare Somras for you.
समिद्धे अग्नौ सुत इन्द्र सोम आ त्वा वहन्तु हरयो वहिष्ठाः।
त्वायता मनसा जोहवीमीन्द्रा याहि सुविताय महे नः
हे इन्द्र देव! अग्नि प्रज्वलित हुई और सोमरस अभिषुत हुआ। ढ़ोने में शक्तिशाली आपके अश्व इस यज्ञ में आपको ले आवें। हम आपकी ओर चित्त लगाकर आपका आवाहन कर रहे हैं। आप हमारी विशाल समृद्धि के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 6.40.3]
Hey Indr Dev! Fire was ignited and Somras was extracted. Let you strong horses capable of carrying, come in the Yagy. We are concentrating our mind in you to invoke you. Come here for our prosperity.
आ याहि शश्वदुशता ययाथेन्द्र महा मनसा सोमपेयम्।
उप ब्रह्माणि शृणव इमा नोऽथा ते यज्ञस्तन्वे ३ वयो धात्
हे इन्द्र देव! आप सोमरस के पान के लिए कई बार यज्ञ में उपस्थित हुए। इसलिए इस समय सोमरस के पान की इच्छा से महान् अन्तःकरण के साथ इस यज्ञ में आवें। हमारे स्तोत्रों को श्रवण करें। आपके देह की पुष्टि के लिए याजकगण आपको सोमरस प्रदान करता है।[ऋग्वेद 6.40.4]
Hey Indr Dev! You presented yourself many times in the Yagy for drinking Somras. Hence, you should be prepared with your innerself to drink Somras in the Yagy. The Ritviz have extract, offer Somras to you for strengthening your body. 
यदिन्द्र दिवि पार्ये यदृधग्यद्वा स्वे सदने यत्र वासि।
अतो नो यज्ञमवसे नित्युत्वान्त्सजोषाः पाहि गिर्वणो मरुद्भिः
हे इन्द्र देव! आप दूरस्थित स्वर्ग, किसी अन्य स्थान या अपने घर में अथवा कहीं भी हों; वहीं से हमारी स्तुति श्रवण कर मरुद्गणों के साथ पधारकर हमारे इस यज्ञ की रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.40.5]
Hey Indr Dev! Wherever you are, heaven, distant place or home listen-respond to our prayers and come along with Marud Gan to protect our Yagy.(29.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अहेळमान उप याहि यज्ञं तुभ्यं पवन्त इन्दवः सुतासः।
गावो न वज्रिन्त्स्वमोको अच्छेन्द्रा गहि प्रथमो यज्ञियानाम्
हे इन्द्र देव! आप क्रोध रहित होकर हमारे यज्ञ में आवें, क्योंकि आपके लिए पवित्र सोमरस अभिषुत हुआ है। हे वज्रधर! जिस प्रकार से गौवें गोशाला में जाती हैं, उसी प्रकार सोमरस कलश में जाता है। इसलिए हे इन्द्र देव! आप पधारें। आप यज्ञ योग्य देवों में प्रधान हैं।[ऋग्वेद 6.41.1]
Hey Indr Dev! Join our Yagy free from anger, since Somras has been extracted for you. Hey wilder of Vajr! The ways cows come to the cow shed, Somras pour in the urn-pitcher. Hence, hey Indr Dev you arrive here being the senior-leader of the demigods-deities.
या ते काकुत्सुकृता या वरिष्ठा यया शश्वत्पिबसि मध्व ऊर्मिम्।
तया पाहि प्र ते अध्वर्युरस्थात्सं ते वज्रो वर्ततामिन्द्र गव्युः॥
हे इन्द्रदेव! आप जिस सुनिमित और सुविस्तृत जिह्वा से सदैव सोमरस का पान करते हैं, उसी जिह्वा से हमारे सोमरस का पान करें। सोमरस लेकर ऋत्विक लोग आपके सामने खड़े हैं। हे इन्द्र देव! शत्रुओं की गौओं को आत्मसात करने के लिए अभिलाषी आपका वज्र शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 6.41.2]
Hey Indr Dev! Drink Somras with your broad & regulated tongue here, as you always do so. The Ritviz are standing to serve Somras in front of you. Hey Indr Dev! To adopt the cows of the enemies kill the enemies with your Vajr.
एष द्रप्सो वृषभो विश्वरूप इन्द्राय वृष्णे समकारि सोमः।
एतं पिब हरिवः स्थातरुग्र यस्येशिषे प्रदिवि यस्ते अन्नम्
द्रवीभूत, अभीष्टवर्षी और विविध मूर्ति यह सोमरस मनोरथ वर्षक इन्द्र देव के लिए निर्मित हुआ है। हे अश्वों के अधिपति, सबके शासक और प्रचण्ड बलशाली इन्द्र देव! बहुत दिनों से जिसके ऊपर आपने प्रभुत्व किया और जो आपके लिए अन्न रूप माना गया, उसी सोमरस का आप पान करें।[ऋग्वेद 6.41.3]
This liquified Somras, accomplishing desires in various forms has been prepared by Indr Dev. Hey master-lord of horses, ruler of all, terrific mighty Indr Dev! Drink Somras which was under your rule and like food grains for you.
सुतः सोमो असुतादिन्द्र वस्यानयं श्रेयाञ्चिकितुषे रणाय।
एतं तितिर्व उप याहि यज्ञं तेन विश्वास्तविषीरा पृणस्व
हे इन्द्र देव! अभिषुत सोम अनभिषुत सोम से श्रेष्ठतर है और विचारशाली आपके लिए अधिक प्रसन्नताकारक है। शत्रु विजयी इन्द्र देव! आप यज्ञ साधन इस सोमरस के पास आवें और इसका पान करके समस्त शक्तियों का विकास करें।[ऋग्वेद 6.41.4]
Hey Indr Dev! Extracted Somras is better than the raw and grant pleasure, exhilarate you. Hey winner of the enemy Indr Dev! Drink this Somras and boost your powers.
ह्वयामसि त्वेन्द्र याह्यर्वाङरं ते सोमस्तन्वे भवाति।
शतक्रतो मादयस्वा सुतेषु प्रास्माँ अव पृतनासु प्र विक्षु
हे इन्द्र देव! हम आपका आवाहन करते हैं। आप हमारे सम्मुख आवें। हमारा यह सोमरस आपके शरीर के लिए पर्याप्त है। हे इन्द्र देव! अभिषुत सोमरस के पान के द्वारा प्रसन्न होवें और युद्ध में सभी शत्रुओं से हमारी चारों ओर से रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.41.5]
Hey Indr Dev! We invoke you. Come to us. Our Somras is sufficient for your body. Hey Indr Dev! Drink this extracted Somras and be happy, protect us from all sides from the enemy.(29.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती, अनुष्टुप्।
प्रत्यस्मै पिपीषते विश्वानि विदुषे भर।
अरङ्गमाय जग्मयेऽपश्चाद्दघ्वने नरे॥
हे ऋत्विको! इन्द्र देव को सोमरस प्रदान करें; क्योंकि वे पिपासु, सर्वज्ञाता, सर्वगामी, यज्ञ में अधिष्ठाता, यज्ञ के नायक और सभी के अग्रगामी हैं।[ऋग्वेद 6.42.1]
पिपासु :: जो प्यासा हो,  तृषित, पीने का इच्छुक; thirsty.
Hey Ritviz! Provide Somras to Indr Dev, since he wish to drink it, aware of every thing, capable of moving to every place, deity & leader of the Yagy and remain forward to all.
एमेनं प्रत्येतन सोमेभिः सोमपातमम्।
अमत्रेभिर्ऋजीषिणमिन्द्रं सुतेभिरिन्दुभिः॥
हे ऋत्विको! आप सोमरस के साथ अतिशय सोमरस पान कारी इन्द्र देव के पास उपस्थित होवें। अभिषुत सोमरस से भरे हुए पात्र के साथ बलशाली इन्द्र देव के सम्मुख प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 6.42.2]
Hey Ritviz! Present yourself with the urn-pot full of Somras in front of Indr Dev. Make requests-prayers with the extracted Somras to mighty Indr Dev.
यदी सुतेभिरिन्दुभिः सोमेभिः प्रतिभूषथ।
वेदा विश्वस्य मेधिरो धृषत्तन्तमिदेषते॥
हे ऋत्विको! अभिषुत और दीप्त सोमरस के साथ इन्द्र देव के पास उपस्थित होवें। मेधावी इन्द्रदेव आपका अभिप्राय जानते हैं और शत्रु संहार के साथ वह तुम्हारे मनोरथ को पूर्ण कर देंगे।[ऋग्वेद 6.42.3]
Hey Ritviz! Present yourself in front of Indr Dev with the extracted & aurous Somras. Intellectual Indr Dev knows your purpose for the visit. Not only will he kill the enemies, he will accomplish your desires as well.
अस्माअस्मा इदन्यसोऽध्वर्यो प्र भरा सुतम्।
कुवित्समस्य जेन्यस्य शर्धतोऽभिशस्तेरवस्परत्॥
हे ऋत्विक्! एक मात्र इन्द्रदेव को ही सोमरूप अन्न का अभिषुत रस प्रदान करें। इन्द्र देव हमारे समस्त उत्साही और जीते जाने वाले शत्रुओं के द्वेष से हमारी सदैव रक्षा करेंगे।[ऋग्वेद 6.42.4]
उत्साही :: उत्साह युक्त, उत्साहशील, सरगर्म; enthusiastic, zealous.
Hey Ritviz offer the Somras extracted from the food grains only to Indr Dev. Indr Dev will always protect us from the envy of our enthusiastic, zealous enemies who have been won by us.(30.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- उष्णिक्।
यस्य त्यच्छम्बरं मदे दिवोदासाय रन्धयः।
अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब
हे इन्द्र देव! जिस सोमरस पान के उल्लास में आपने दिवोदास के लिए शम्बर का वध किया, वही सोमरस आपके लिए अभिषुत हुआ। इसलिए इसका आप पान करें।[ऋग्वेद 6.43.1]
Hey Indr Dev! The Somras for drinking which you killed Shambar for Divodas in glee, has been extracted for you. Therefore, you should drink it.
यस्य तीव्रसुतं मदं मध्यमन्तं च रक्षसे।
अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब
हे इन्द्र देव! जब सोम का मादक रस, प्रातः, मध्याह्न और सायं की पूजा में अभिषुत होता है, तब आप इसे धारित करते है। यही सोमरस आपके लिए अभिषुत हुआ है, आप इसका पान करें।[ऋग्वेद 6.43.2]
Hey Indr Dev! You support-hold the intoxicating Somras extracted in the morning, noon and the evening prayers. It has been extracted for you. Please drink it.
यस्य गा अन्तरश्मनो मदे दृळ्हा अवासृजः।
अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब
हे इन्द्र देव! जिस सोम के मादक रस का पान करके आपने पर्वत के बीच, अच्छी तरह से बँधी हुई गौवों को छुड़ाया था, वही सोमरस आपके लिए अभिषुत है, इसका आप पान करें।[ऋग्वेद 6.43.3] 
Hey Indr Dev! The Somras for drinking which you released the cows kept-held in the mountains has been extracted for you, drink it.
यस्य मन्दानो अन्धसो माघोनं दधिषे शवः।
अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब
हे इन्द्र देव! जिस सोमरूप अन्न के रसपान से उल्लसित होकर आप असाधारित बल को धारित करते हैं, वही सोमरस आपके लिए अभिषुत हुआ है। इसका आप पान करें।[ऋग्वेद 6.43.4]
Hey Indr Dev! The Somras for drinking which you glee-frolic & possess exemplary strength has been extracted for you, drink it.(30.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- शंयु बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- अनुष्टुप्, विराट्, त्रिष्टुप्।
 यो रयिवो रयिंतमो यो घुम्नैर्द्युम्नवत्तमः।
सोमः सुतः स इन्द्र तेऽस्ति स्वधापते मदः
हे धनशाली और सोमरूप अन्न के रक्षक इन्द्र देव! जो सोम अतिशय धनशाली है और जो दीप्त यश के द्वारा समुज्ज्वल है, वही सोम अभिषुत होकर आपको आनन्दित करता है।[ऋग्वेद 6.44.1]
Hey wealthy and protector of the food grains in the form of Som, Indr Dev! The Som which is rich and famous gives you pleasure on being extracted.
यः शग्मस्तुविशग्म ते रायो दामा मतीनाम्।
सोमः सुतः स इन्द्र तेऽस्ति स्वधापते मदः
हे विपुल सुखकारी और सोमरूप अन्न के रक्षाकारी इन्द्र देव! जो सोमरस आपकी प्रसन्नताकारक और आपके स्तोताओं का ऐश्वर्य विधायक है, वही सोम अभिषुत होकर आपको प्रसन्न करता है।[ऋग्वेद 6.44.2]
Hey protector of pleasure giving food grains in the form of Som, Indr Dev! The Somras gives you pleasure and grants grandeur to your Stotas on being extracted.
येन वृद्धो न शवसा तुरो न स्वाभिरूतिभिः।
सोमः सुतः स इन्द्र तेऽस्ति स्वधापते मदः
हे सोमरूप अन्न के रक्षक इन्द्र देव! जिस सोमरस के पान से प्रवृद्धबल होकर अपने रक्षक मरुतों के साथ शत्रुओं का विनाश करते हैं, वही सोम अभिषुत होकर आपको आनन्दित करता है।[ऋग्वेद 6.44.3]
Hey protector of Som in the form of food grains, Indr Dev! Drinking of which Somras makes you strong you to kill the enemies along with your protectors Marud Gan, is extracted for your happiness.
त्यमु वो अप्रहणं गृणीषे शवसस्पतिम्।
इन्द्रं विश्वासाहं नरं मंहिष्ठं विश्वचर्षणिम्
हे यजमानों! हम आपके लिए उन इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं, जो भक्तों के कृपालु, बल के स्वामी, विश्वजेता, यागादि क्रियाओं के नायक और श्रेष्ठ दाता तथा सर्वदर्शक हैं।[ऋग्वेद 6.44.4]
कृपालु :: दयालु, आसक्त, रिआयती, सज्जनतापूर्ण, सदय, रहमदिल, मेहरबान, अनुग्राही, तरस करनेवाला, समवेदनापूर्ण, merciful, indulgent, kind.
Hey Ritviz! We worship Indr Dev who is the Lord of might, merciful, leader in the celebrations like Yagy, best donor and watches every thing.
यं वर्धयन्तीद्गिरः पतिं तुरस्य राधसः।
तमिन्न्वस्य रोदसी देवी शुष्मं सपर्यतः
हमारी स्तुतियों द्वारा इन्द्र देव का जो शत्रु धन हरण करने वाला बल वर्द्धित होता है, उसी बल की परिचर्या स्वर्ग देव और पृथ्वी देवी करती हैं।[ऋग्वेद 6.44.5]
Swarg Dev (Heavens) &  Prathvi Devi (Earth) serve that might-strength of Indr Dev with which he snatch the wealth of the enemy by virtue of our worship-prayers, Stuti.
तद्व उक्थस्य बर्हणेन्द्रायोपस्तृणीषणि।
विपो न यस्योतयो वि यद्रोहन्ति सक्षितः
हे स्तोताओं! इन्द्र देव के लिए अपना स्तोत्र विस्तृत करें; क्योंकि मेधावी व्यक्ति की भाँति इन्द्रदेव हमारे रक्षक हैं।[ऋग्वेद 6.44.6]
Hey Stotas! Expand your Strotr for the sake Indr Dev, since like an intellectual, he is  our protector. 
अविदद्दक्षं मित्रो नवीयान्पपानो देवेभ्यो वस्यो अचैत्।
ससवान्त्स्तौलाभिर्धौ तरीभिरुरुष्या पायुरभवत्सखिभ्यः
जो याजकगण यज्ञादि कार्य में दक्ष है, उसकी बातें इन्द्र देव जानते हैं। मित्र और नवीनतर सोमरस का पान करने वाले इन्द्रदेव स्तोताओं को श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं। हव्यरूपी अन्न भोजन करने वाले वह इन्द्र देव प्रवृद्ध और पृथ्वी को कम्पायमान करने वाले अश्वों के साथ स्तोताओं की रक्षा की कामना से आकर उनकी रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 6.44.7]
Indr Dev is aware of the deeds-endeavours of the Ritviz who are expert-skilled in Yagy etc. related jobs. Mitr and Indr Dev drink freshly extracted Somras and grant best riches to the Stotas. Indr Dev who eat offerings; ride the well nourished horses, which tremble the earth, come and protect the Stotas.
ऋतस्य पथि वेधा अपायि श्रिये मनांसि देवासो अक्रन्।
दधानो नाम महो वचोभिर्वपुर्दृशये वेन्यो व्यावः
यज्ञमार्ग में सर्वदर्शी सोमरस पीया गया। ऋत्विक लोग उसी सोमरस को इन्द्र देव का चित्त आकृष्ट करने के लिए प्रदर्शित करते हैं। शत्रुजेता और विशाल देह धारित करने वाले वही इन्द्र देव हमारी प्रार्थना से प्रसन्न होकर हमारे सम्मुख प्रकट हों।[ऋग्वेद 6.44.8]
Somras was drunk in the Yagy which grants equanimity. The Ritviz demonstrate that Somras to attract the innerself of Indr Dev. Let the winner of enemies and possessor of huge body Indr Dev invoke in front of us.
द्युमत्तमं दक्षं धेह्यस्मे सेधा जनानां पूर्वीररातीः।
वर्षीयो वयः कृणुहि शचीभिर्धनस्य सातावस्माँ अविड्ढि
हे इन्द्र देव! आप हमें अतीव दीप्ति से युक्त बल प्रदान करें। अपने उपासकों के असंख्य शत्रुओं को दूर करें। अपनी बुद्धि से हमें यथेष्ट अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.44.9]
Hey Indr Dev! Grant us might along with radiance. Repel the numerous enemies of your worshipers. Grant us sufficient food grains by virtue of your intellect.
इन्द्र तुभ्यमिन्मघवन्नभूम वयं दात्रे हरिवो मा वि वेनः।
नकिरापिर्ददृशे मर्त्यत्रा किमङ्ग रचोदनं त्वाहुः
हे धनशाली इन्द्र देव! आपके लिए ही हम हव्य दे रहे हैं। हे अश्वों के स्वामी इन्द्र देव! हमारे प्रतिकूल न होना, मनुष्यों के बीच हम आपके अतिरिक्त किसी को अपना मित्र नहीं मानते। हे इन्द्र देव! यदि आपके अन्दर यह गुण न होता तो प्राचीन लोग आपको 'धनद' क्यों कहते?[ऋग्वेद 6.44.10]
Hey wealthy Indr Dev! We are making offerings for you. Hey Lord of horses! Don't be against us, since we do not consider any one else our friend, except you. The ancient people called-titled you Dhanad by virtue of your quality.
मा जस्वने वृषभ नो ररीथा मा ते रेवतः सख्ये रिषाम।
पूर्वीष्ट इन्द्र निष्षिधो जनेषु जह्यसुष्वीन्प्र वृहापृणतः
हे अभीष्टवर्षी इन्द्र देव! आप हमें कार्य विनाशक राक्षसादिकों के पास मत छोड़ना। आप धन युक्त हैं। आपकी मित्रता के ऊपर अवलम्बित होकर हम कोई विघ्न न प्राप्त कर सकें। मनुष्यों के बीच आपके लिए अनेक प्रकार के विघ्न उत्पन्न किये जाते हैं। जो अभिषव कर्ता नहीं हैं, उनका संहार करें और जो आपको हव्य नहीं देते, उनका विनाश करें।[ऋग्वेद 6.44.11]
अभिषव :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, यज्ञ, शराब चुआना, आसवन; distillation, Yagy, bathing prior to Yagy.
Hey desires accomplishing Indr Dev! Don't spare demons etc. who destroy our work, efforts-endeavours. Having dependence upon your friendship, we should not be hindered. Several types of obstructions are created for you, amongest-by the humans. Destroy those who do not bath prior to Yagy or distil Somras.
उदभ्राणीव स्तनयन्नियतन्द्रो राधांस्यश्र्व्यानि गव्या।
त्वमसि प्रदिवः कारुधाया मा त्वादामान आ दभन्मघोनः
गर्जन करने वाले पर्जन्य जिस प्रकार से मेघ उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार इन्द्र देव स्तोताओं को देने के लिए अश्व और गौर उत्पन्न करते हैं। हे इन्द्र देव! आप स्तोताओं के प्राचीन रक्षक है। आपको हव्य न देकर धनवान आपके प्रति अन्यथा आचरण न करें।[ऋग्वेद 6.44.12]
The way thundering Parjany Dev create clouds, similarly Indr Dev create horses and Gour for the Stotas. Hey Indr Dev! You are ancient-eternal protector of the Stotas. The rich should not act against you by failing to make offerings for you.(01.10.2023)
अध्वर्यो वीर प्र महे सुतानामिन्द्राय भर स ह्यस्य राजा।
यः पूर्व्याभिरुत नूतनाभिर्गीर्भिर्वावृधे गृणतामृषीणाम्
हे ऋत्विको! आप इन्हीं महेन्द्र को अभिषुत सोमरस अर्पित करें; क्योंकि ये ही सोम के स्वामी हैं। यही इन्द्र देव स्तोता ऋषियों के प्राचीन और नवीन स्तोत्रों के द्वारा परिवर्द्धित हुए हैं।[ऋग्वेद 6.44.13]
Hey Ritviz! Offer Somras to Mahendr since he is the Lord of Somras. Indr Dev flourished by the old and new Strotr of the Stota Rishis.
अस्य मदे पुरु वर्षांस विद्वानिन्द्रो वृत्राण्यप्रती जघान।
तमु प्र होषि मधुमन्तमस्मै सोमं वीराय शिप्रिणे पिबध्यै
ज्ञानी और अबाध प्रभाव इन्द्र देव ने इसी सोमरस का पान कर और उल्लसित होकर असंख्य प्रतिकूल आचरण करने वाले शत्रुओं का संहार किया।[ऋग्वेद 6.44.14]
Intellectual and showing extreme impact Indr Dev drunk this Somras and happily destroyed the numerous enemies who acted againt him.
पाता सुतमिन्द्रो अस्तु सोमं हन्ता वृत्रं वज्रेण मन्दसानः।
गन्ता यज्ञं परावतश्चिदच्छा वसुर्धीनामविता कारुधायाः
इन्द्र देव इस अभिषुत सोमरस का पान करें और इससे आनन्दित होकर वज्र द्वारा वृत्रासुर का संहार करें। गृहदाता, स्तोत्र रक्षक और याजकगण पालक वह इन्द्र देव दूर स्थान से भी हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 6.44.15]
Let Indr Dev drink this extracted Somras and kill Vratasur with his Vajr, happily. Indr Dev who grant houses, protect the Strotr and nourish the Ritviz should reach in our Yagy even if far from us.
इदं त्यत्पात्रमिन्द्रपानमिन्द्रस्य प्रियममृतमपायि।
मत्सद्यथा सौमनसाय देवं व्य१स्मद्द्द्वेषो युयवद्वयंहः
इन्द्र देव के पीने के योग्य और प्रिय वह सोमरूप अमृत इन्द्र देव के द्वारा इस प्रकार पीया जाए कि वे हर्षित होकर हमारे ऊपर अनुग्रह करें और हमारे शत्रुओं तथा पाप को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 6.44.16]
Somras suitable for Indr Dev be drunk in this way he become happy and oblige us, repel our enemies and the sins.
एना मन्दानो जहि शूर शत्रूञ्जामिमजामिं मघवन्नमित्रान्।
अभिषेणाँ अभ्या३ देदिशानान्पराच इन्द्र प्र मृणा जही च॥
हे शौर्यशाली इन्द्र देव! इस सोमरस के पान से प्रसन्न होकर हमारे आत्मीय और अनात्मीय प्रतिकूलाचरण कर्ता शत्रुओं का विनाश करें। हे इन्द्र देव! हमारे सामने आए हुए अस्त्र छोड़ने वाले शत्रुओं का आयुधों सहित विनाश करें और उन्हें पराजित करके हमसे दूर भगाएँ।[ऋग्वेद 6.44.17]
Hey brave-valour possessing Indr Dev! Be happy by drinking this Somras, eliminate our own people and enemies who act against us. Hey Indr Dev! Kill those enemies who run away leaving behind their weapons, defeat them and destroy them with their arms and ammunition.
आसु ष्मा णो मघवन्निन्द्र पृत्स्व १ स्मभ्यं महि वरिवः सुगं कः।
अपां तोकस्य तनयस्य जेष इन्द्र सूरीन्कृणुहि स्मा नो अर्धम्
हे इन्द्र देव! हमारे इस समस्त युद्ध में अतुल धन हमें प्रदान करें। जय प्राप्ति में हमें समर्थ्यवान् बनावें। वर्षा, पुत्र और पौत्र के द्वारा हमें समृद्ध करें।[ऋग्वेद 6.44.18]
Hey Indr Dev! Grant us unlimited wealth in this war. Make us capable of winning the war. Enrich us with rains, son & grandson.
आ त्वा हरयो वृषणो युजाना वृषरथासो वृषरश्मयोऽत्याः।
अस्मत्राञ्चो वृषणो वज्रवाहो वृष्णे मदाय सुयुजो वहन्तु
हे इन्द्र देव! आपके अभीष्ट वर्षक, स्वेच्छा के अनुसार रथ में नियुक्त, अभीष्ट दाता रथ के ढोने वाले, जल वर्षक, किरणों द्वारा संयुक्त, द्रुत गामी, हमारे सामने आने वाले, सदैव युवा, वज्र वाहक और शोभन रूप से योजित अश्व बहुत नशा करने वाले सोमरस को पीने के लिए आपको इस यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 6.44.19]
Hey Indr Dev! Let your accomplishment granting, self deploying in the charoite, carrier of the desires accomplishing charoite, rain producing, associated with the rays, fast moving, appearing before us, always young horses bring you-the drinker of a lot of Somras, here.
आ ते वृषन्वृषणो द्रोणमस्थुर्घृतप्रुषो नोर्मयो मदन्तः।
इन्द्र प्र तुभ्यं वृषभिः सुतानां वृष्णे भरन्ति वृषभाय सोमम्
हे अभीष्ट वर्षी इन्द्र देव! आपके जलवर्षक और युवा अश्व जल का सेवन करने वाली समुद्र तरङ्गों के समान उल्लसित होकर आपके रथ में नियोजित हैं। आप युवा और काम वर्षक हैं। ऋत्विक लोग आपको पत्थरों द्वारा अभिषुत सोमरस अर्पण करते हैं।[ऋग्वेद 6.44.20]
Hey accomplishment granting Indr Dev! Let your young, rains showering horses, like the waves of the ocean, happily deploy in the charoite. You are young and sex stimulating. The Ritviz offer you the Somras extracted by crushing with stones.
वृषासि दिवो वृषभः पृथिव्या वृषा सिन्धूनां वृषभः स्तियानाम्।
वृष्णे त इन्दुर्वृषभ प्रीपाय स्वादू रसो मधुपेयो वराय
हे इन्द्रदेव! आप स्वर्ग के सेवन कर्ता, पृथ्वी के वर्षण कर्ता, नदियों के पूरण कर्ता और एकन, समवेत स्थावर जङ्गम विश्वभूतों के अभीष्टकर्ता हैं। हे अभीष्ट प्रदायक इन्द्र देव! आप श्रेष्ठ सेचनकारी हैं। आपके लिए मधु के सदृश पीने योग्य मीठा सोमरस आपके लिए प्रस्तुत है।[ऋग्वेद 6.44.21]
Hey Indr Dev! You are the resident of heavens, rain showering over the earth, filling the rivers with water, accomplisher of the desires of the stationary living beings. Hey desires accomplishing Indr Dev! You are the best nourisher. Somras as sweet as honey is ready for you to drink.
अयं देवः सहसा जायमान इन्द्रेण युजा पणिमस्तभायत्।
अयं स्वस्य पितुरायुधानीन्दुरमुष्णादशिवस्य मायाः
इस दीप्तिमान सोम ने मित्र इन्द्र देव के साथ जल लेकर बलपूर्वक पणि की प्रार्थना की। इसी सोम ने गोरूप धन को चुराने वाले द्वेषियों की माया और अस्त्रों को विनष्ट किया।[ऋग्वेद 6.44.22]
This radiant Som, along with Mitr & Indr Dev repelled Pani forcefully, snatching water from him. This Som destroyed the stealers of cows and the cast of envious along with their weapons.
अयमकृणोदुषसः सुपत्नीरयं सूर्ये अदधाज्ज्योतिरन्तः।
अयं त्रिधातु दिवि रोचनेषु त्रितेषु विन्ददमृतं निगूळ्हम्
इसी सोम ने उषाओं के पति स्वरूप सूर्य देव को शोभायमान किया। इसी सोम ने सूर्य मण्डल में दीप्ति स्थापित की। इसी सोम ने दीप्ति संयुक्त तीनों भुवनों के बीच स्वर्ग में गूढ़ भाव से अवस्थित त्रिविध अमृतों को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 6.44.23]
This Som glorified the Sun who is like the husband of Ushas. This Som established radiance-aura in the solar system. This Som obtained the nectar-elixir from the shining three abodes where it was placed secretly, in three different ways.
अयं द्यावापृथिवी विष्कभायदयं रथमयुनक्सप्तरश्मिम्।
अयं गोषु शच्या पक्वमन्तः सोमो दाधार दशयन्त्रमुत्सम्
इसी सोम ने स्वर्ग और पृथ्वी को अपने-अपने स्थानों पर संस्थापित किया। इसी सोम ने सप्तरश्मि रथ को नियोजित किया। इसी सोम ने स्वेच्छानुसार गौओं के बीच परिणत दुग्ध के दस यन्त्रों के कूप को या बहुधारा विशिष्ट प्रस्रवण को स्थापित किया।[ऋग्वेद 6.44.24]
This Som established the heavens and the earth in their respective positions. It deployed the charoite with seven rays. This Som willingly established the ten machines to collect milk in the well amongest the cows.(02.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- शंयु बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्रदेव, बृबुस्तक्षा; छन्द :- गायत्री, अतिनिवृत्, पादनिचृत्, अनुष्टुप्।
य आनयत्परावतः सुनीती तुर्वशं यदुम्। इन्द्रः स नो युवा सखा
जो उत्कृष्ट नीति द्वारा तुर्वश और यदु दूर देश से लाया, वही युवा इन्द्र देव हमारे मित्र होवें।[ऋग्वेद 6.45.1]
वह युवा इंद्र, जो अच्छे मार्ग दर्शन से, तुर्वशा और यदु को दूर से लाया, हमारे मित्र बनें।
Young Indr Dev who brought Turvash and Yadu under excellent policy from a distant place, should become our friend.
अविप्रे चिद्वयो दधदनाशुना चिदर्वता। इन्द्रो जेता हितं धनम्
जो व्यक्ति इन्द्र देव की प्रार्थना नहीं करता, उसे भी इन्द्र देव अन्न प्रदान करते हैं। इन्द्र देव धीरे-धीरे चलने वाले अश्वों पर चढ़कर शत्रुओं के मध्य निहित सम्पत्ति को जीतते हैं।[ऋग्वेद 6.45.2]
One who do not worship Indr Dev too gets food grains from him. Indr Dev rides the slow moving horses amongest the enemies to win them.
महीरस्य प्रणीतयः पूर्वीरुत प्रशस्तयः। नास्य क्षीयन्त ऊतयः
इन्द्र देव की नीतियाँ उत्कृष्ट और महान् हैं। उनकी स्तुतियाँ भी नाना प्रकार की हैं। उनकी रक्षा का कथन कभी क्षीण नहीं होता।[ऋग्वेद 6.45.3]
Indr Dev's policy, diplomacy is great. His prayers too are of different nature. His assurance for protection is never lost.
सखायो ब्रह्मवाहसेऽर्चत प्र च गायत। स हि नः प्रमतिर्मही
हे मित्रों! मन्त्र द्वारा आह्वान के योग्य उन्हीं इन्द्र देव की पूजा करें और उन्हीं की प्रार्थना करें; क्योंकि वही हमें वस्तुतः प्रकृष्ट बुद्धि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.4]
Hey friends! Worship-pray Indr Dev who is able to be invoked through the Mantr, since its he who will grant us excellent intelligences- ideas.
त्वमेकस्य वृत्रहन्नविता द्वयोरसि। उतेदृशे यथा वयम्
हे वृत्र विनाशक इन्द्र देव! आप स्तुति करने वाले के रक्षक हैं। आप हम सब की रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.45.5]
Hey slayer of Vratasur Indr Dev! You are the protector of the person who pray you.
नयसीद्वति द्विषः कृणोष्युक्थशंसिनः। नृभिः सुवीर उच्यसे
हे इन्द्र देव! हमारे पास से विद्वेषियों को दूर करें और स्तोताओं को समृद्धि प्रदान करें। आप शोभन पुत्र-पौत्रादि देने वाले हैं; इसलिए मनुष्य आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.6]
Hey Indr Dev! Repel the enviers away from us and grant success-progress of Stotas. You award glorious son and grandsons, hence the humans worship you.
ब्रह्माणं ब्रह्मवाहसं गीर्भिः सखायमृग्मियम्। गां न दोहसे हुवे
मैं स्तोत्र के बल से मित्र, महान मन्त्र द्वारा आह्वान के योग्य और स्तुति पात्र इन्द्र देव को गौ के समान अभीष्ट दूहने के लिए आवाहित करता हूँ।[ऋग्वेद 6.45.7]
I invoke Indr Dev with the strength-power of the Strotr who deserve to be invoked by the Mantr, worshipable and accomplishing like the milking of cow.
यस्य विश्वानि हस्तयोरूचुर्वसूनि नि द्विता। वीरस्य पृतनाषहः
वीर्यवान और शत्रु सेना को पराजित करने वाले इन्द्र देव के दोनों हाथों में दिव्य और पार्थिव धन है; ऐसा ऋषियों ने कहा हैं।[ऋग्वेद 6.45.8]
The Rishis have said that the mighty and defeater of the enemy armies Indr Dev possess divine and material wealth in his both hands.
वि दृकहानि चिदद्रिवो जनानां शचीपते। वृह माया अनानत
हे वज्रधारक और यज्ञपति इन्द्र देव! आप शत्रुओं के दृढ़ किलों, नगरों को नष्ट करते है। हे सर्वोन्नत इन्द्र देव! आप शत्रुओं की मायाओं को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 6.45.9]
Hey wielder of Vajr and deity of Yagy! You destroy the strong forts & cities of the enemies. Hey most advanced-progressive Indr Dev! Destroy the enchant-cast of the enemies.
तमु त्वा सत्य सोमपा इन्द्र वाजानां पते। अहूमहि श्रवस्यवः
हे सत्य स्वभाव, सोमपायी और अन्न रक्षक इन्द्र देव! हम अन्नाभिलाषी होकर ऐसे गुणों से संयुक्त आपका ही आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.10]
Hey truthful, Somras drinking and protector of food grains, Indr Dev! Desirous of food grains, we invoke you who possess these qualities.
तमु त्वा यः पुरासिथ यो वा नूनं हिते धने। हव्यः स श्रुधी हवम्
हे इन्द्र देव! आप पहले आह्वान के योग्य थे और इस समय शत्रुओं के बीच रखे हुए आपको बुलाते हैं। आप हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.45.11]
You deserve to be invoked. Presently we invoke you surrounded by the enemies. Listen to our prayers-request.(03.10.2023)
धीभिरर्वद्भिरर्वतो वाजाँ इन्द्र श्रवाय्यान्। त्वया जेष्म हितं धनम्
हे इन्द्र देव! हमारे स्तोत्र को सुनकर आपके प्रसन्न होने पर आपकी कृपा से हम शत्रुओं के अश्व, उत्कृष्ट अन्न और गूढ़ धन को जीतने में समर्थ होवें।[ऋग्वेद 6.45.12]
Hey Indr Dev! On listening to our Strotr your happiness will make us capable of winning the horses, excellent food grains and secret wealth of the enemies.
अभूरु वीर गिर्वणो महाँ इन्द्र धने हिते। भरे वितन्तसाय्यः
हे वीर और स्तुति पात्र इन्द्र देव! आप शत्रुओं के बीच निहित धन की प्राप्ति के लिए युद्ध में शत्रुओं को जीतने में समर्थ हुए।[ऋग्वेद 6.45.13]
Hey brave and worship deserving Indr Dev! You were successful in winning the enemy along with their wealth in the war.
या त ऊतिरमित्रहन्मक्षूजवस्तमासति। तया नो हिनुही रथम्
हे रिपुञ्जय इन्द्र देव! आपकी गति अतिशय वेग से संयुक्त है। शत्रुओं को जीतने के लिए आप उसी वेग से हमारे रथ को चलने की प्रेरणा प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.45.14]
Hey winner of the enemy Indr Dev! Your moments are associated with extremely high speed. Inspire-motivate our charoites to accelerate, run-move with that speed to win the enemy.
स रथेन रथीतमोऽस्माकेनाभियुग्वना। जेषि जिष्णो हितं धनम्
हे जयशील और रथि श्रेष्ठ इन्द्र देव! आप हमारे शत्रु विजयी रथ के द्वारा शत्रुओं के द्वारा निहित धन को जीतें।[ऋग्वेद 6.45.15]
Hey winner and excellent amongest the charoite drivers! Win the accumulated wealth of the enemy through our charoite, known for winning the enemy.
य एक इत्तमु ष्टुहि कृष्टीनां विचर्षणिः। पतिर्जज्ञे वृषक्रतुः
जो सर्वदर्शी और वर्षणशील हैं, जिन्होंने एक-एक मनुष्यों के अधिपति रूप से जन्म धारित किया, उन्हीं इन्द्र देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 6.45.16]
Worship that Indr Dev who watches every thing and cause rains, born as the leader of each & every human being.
यो गृणतामिदासिथापिरूती शिवः सखा। स त्वं न इन्द्र मृळय
हे इन्द्र देव! आप रक्षा के कारण सुखदाता और मित्र हैं। हमारी प्रार्थना पर आपने प्राचीन समय में मित्रता प्रकट की। इस समय हमें सुखी करें।[ऋग्वेद 6.45.17]
Hey Indr Dev! By virtue of your protective, grants comforts and is friendly. Make us comfortable.
धिष्व वज्रं गभस्त्यो रक्षोहत्याय वज्रिवः। सासहीष्ठा अभि स्पृधः
हे वज्रधर इन्द्र देव! आप राक्षसों के नाश के लिए अपने हाथों में वज्र धारित करते हैं और स्पर्द्धा करने वाले शत्रुओं को भली-भाँति पराजित करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.18]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You hold Vajr in the hands for the destruction of demons and competing enemies thoroughly.
प्रत्नं रयीणां युजं सखायं कीरिचोदनम्। ब्रह्मवाहस्तमं हुवे
जो धनद, मित्र, स्तोताओं के उत्साहदाता और मन्त्रों के द्वारा आह्वान के योग्य हैं, उन्हीं प्राचीन इन्द्र देव का मैं आह्वान करता हूँ।[ऋग्वेद 6.45.19]
I invoke eternal-ancient Indr Dev who is wealthy, encouraging deserve to be invoked through Mantrs.
स हि विश्वानि पार्थिवाँ एको वसूनि पत्यते। गिर्वणस्तमो अध्रिगुः
जो स्तुति द्वारा वन्दनीय और तीव्रगामी गति हैं, वही एक मात्र इन्द्र देव ही समस्त पार्थिव धनों के ऊपर एकाधिपत्य करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.20]
Worshipable through Stutis, dynamic, Indr Dev is the only owner of all material wealth.
स नो नियुद्धिरा पृण कामं वाजेभिरश्विभिः। गोमद्भिर्गोपते घृषत्
हे गौओं के अधिपति! आप बड़वा लोगों के साथ पधार कर अन्न, असंख्य अश्वों और धेनुओं से भली-भाँति हमारे मनोरथ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 6.45.21]
Hey master-leader of the cows! Come with Badava-Agni, with food grains, innumerable horses and cows to accomplish our desire.
तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने। शं यद्गवे न शाकिने
हे स्तोताओं! जिस प्रकार से घास गौ के लिए सुख दायक होती है, उसी प्रकार सोमरस के तैयार होने पर इन्द्र देव का सुख दायक स्तोत्र भी बहुसंख्यक लोगों के द्वारा वन्दनीय होता है। रिपुञ्जय इन्द्र देव के पास एकत्रित होकर गान करें।[ऋग्वेद 6.45.22]
Hey Stotas! The way grass is comforting for the cow, Somras on being ready, the comforting Strotr of Indr Dev is worshipable by numerous people. Let us gather around defeater of the enemy Indr Dev and sing in his glory.
न घा वसुर्नि यमते दानं वाजस्य गोमतः। यत्सीमुप श्रवद्गिरः
गृह प्रदाता इन्द्र देव जिस समय हमारा स्तोत्र सुनते हैं, उस समय वे गौवों के साथ अन्न प्रदान करने में विरत नहीं होते।[ऋग्वेद 6.45.23]
When house granting-awarding Indr dev listen to our Strotr, he (do not alienate) donate cows and food grains.
कुवित्सस्य प्र हि व्रजं गोमन्तं दस्युहा गमत्। शचीभिरप नो वरत्
दस्युओं के वधकर्ता इन्द्र देव कुवित्स की असंख्य धेनुओं वाली गोशाला में और उन्होंने अपने बुद्धि बल से हमारे लिए उस निगूढ़ गोवृन्द को प्रकट किया।[ऋग्वेद 6.45.24]
Destroyer of the dacoits Indr Dev showed-brought numerous cows in the cow shed of Kuvits on the strength of his intelligence.
इमा उ त्वा शतक्रतोऽभि प्र णोनुवुर्गिरः। इन्द्र वत्सं न मातरः
बहुविध कर्मों के अनुष्ठाता इन्द्र देव! जिस प्रकार से गौवें बार-बार बछड़ों के सामने जाती है, उसी प्रकार हमारी ये सारी स्तुतियाँ बार-बार आपकी ओर जाती हैं।[ऋग्वेद 6.45.25]
Hey endeavourer of many procedural rites, Yagy, sacrifices Indr Dev! The way cows move to their calf many times, our Stutis-prayers too  move to you.
दूणाशं सख्यं तव गौरसि वीर गव्यते। अश्वो अश्वायते भव
हे इन्द्र देव! आपकी मित्रता का विनाश नहीं होता। हे वीर! आप गौ चाहने वाले को गौ और अश्व चाहने वाले को अश्व प्रदान करते है।[ऋग्वेद 6.45.26]
Hey Indr Dev! Your valour is never lost. Hey brave! You provide cows to the desirous of cows and the horses to the desirous of horses.
स मन्दस्वा ह्यन्धसो राधसे तन्वा महे। न स्तोतारं निदे करः
हे इन्द्र देव! महाधन के लिए प्रदत्त सोमरस का पान करके अपने को हृदय पुष्ट करें। आप अपने उपासक को निन्दक के हाथ नहीं सौंपते।[ऋग्वेद 6.45.27]
Hey Indr Dev! Nourish your heart by drinking Somras for granting great wealth. You do not hand over your worshiper to the cynic.
इमा उ त्वा सुतेसुते नक्षन्ते गिर्वणो गिरः। वत्सं गावो न धेनवः
हे प्रार्थना द्वारा वन्दनीय इन्द्र देव! जिस प्रकार से दूध देने वाली गौवें बछड़ों के पास जाती हैं, उसी प्रकार बार-बार सोमरस के अभिषुत होने पर हमारी ये स्तुतियाँ अतिवेग से आपकी ओर जाती हैं।[ऋग्वेद 6.45.28]
Hey Indr Dev worshiped with prayers-Stutis! The way the milch cows move to their calf, our Stutis too direct to you, when the Somras is extracted.
पुरूतमं पुरूणां स्तोतॄणां विवाचि। वाजेभिर्वाजयताम्
यज्ञ मण्डप में हव्य रूप अन्न के साथ दिये गये असंख्य स्तोताओं के स्तोत्र, असंख्य शत्रुओं के नाशक आपको बलशाली करें।[ऋग्वेद 6.45.29]
Let the offerings of food grains in the Yagy Mandap with the recitation of Strotr by numerous Stotas make you mighty-strong enough to destroy numerous enemies.
अस्माकमिन्द्र भूतु ते स्तोमो वाहिष्ठो अन्तमः। अस्मान्राये महे हिनु
हे इन्द्र देव! अतीव उन्नति कारक हमारे स्तोत्र आपके पास जावे। हमें महाधन की प्राप्ति के लिए प्रेरित करें।[ऋग्वेद 6.45.30]
Hey Indr Dev! Let our highly progressive Strotr reach you and inspire you to give us great wealth.
अधि बृबुः पणीनां वर्षिष्ठे मूर्धन्नस्थात्। उरुः कक्षो न गाङ्ज्ञः/गाङ्गयः 
गङ्गा के ऊँचे तटों के समान प्राणियों के बीच ऊँचे स्थान पर बृबु ने अधिष्ठान किया।[ऋग्वेद 6.45.31]
Brabu carried out rites, religious ceremonies among the living beings who were over tall like elevated banks of Ganga.
यस्य वायोरिव द्रवद्भद्रा रातिः सहस्रिणी। सद्यो दानाय मंहते
मैं धनार्थी हूँ, बृबु ने मुझे वायु वेग के समान वदान्यता के साथ एक हजार गौवें तत्काल प्रदान की।[ऋग्वेद 6.45.32]
I seek wealth. Brabu granted me thousand cows with the speed of wind immediately.
तत्सु नो विश्वे अर्य आ सदा गृणन्ति कारवः।
बृबुं सहस्त्रदातमं सूरिं सहस्रसातमम्
हम सब लोग प्रार्थना करके हजारों गायें देने वाले विद्वान और हजारों स्तोत्रों के पात्र उन्हीं बृबु की सदैव प्रसंशा करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.33]
We all appreciate enlightened and deserving like the thousands of Strotr Brabu, who granted thousands cows to us.(04.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- शंयु बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- प्रगाथ।
त्वामिद्धि हवामहे साता वाजस्य कारवः।
तवां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः
हम स्तोता हैं। अन्न प्राप्ति के लिए आपका आवाहन करते हैं। आप साधुओं के रक्षक है; इसलिए अश्वों से युक्त युद्ध में शत्रुओं को जीतने के लिए वे आपका ही आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.46.1]
We are Stotas. We invoke you for the sake of food grains. You are the protector of sages. You are invoked during the war to win the enemy in which horses are deployed.
स त्वं नश्चित्र वज्रहस्त धृष्णुया महः स्तवानो अद्रिवः।
गामश्वं रथ्यमिन्द्र सं किर सत्रा वाजं न जिग्युषे
हे विचित्र वज्रपाणि वज्री! जिस प्रकार से आप युद्ध में विजयी पुरुष को यथेष्ट अन्न देते है, उसी प्रकार आप हमारी प्रार्थना से प्रसन्न होकर हमें यथेष्ट गौ और रथ वहन करने में समर्थ अश्व प्रदान करें; क्योंकि आप शत्रु नाशक और प्रतापी हैं।[ऋग्वेद 6.46.2]
Hey amazing Vajr wielding Vajri! The way you provide food grains to the winner in the war, give us sufficient cows and horses capable of pulling charoite as well, since you are glorious, destroyers of the enemy.
यः सत्राहा विचर्षणिरिन्द्रं तं हूमहे वयम्।
सहस्रमुष्क तुविनृम्ण सत्पते भवा समत्सु नो वृधे
जो प्रबल शत्रुओं के निधन कर्ता और सर्वदर्शी हैं, उन्हीं इन्द्र देव को हम बुलाते हैं। सहस्रशेक, अतुल धन युक्त और सत्पालक इन्द्र देव युद्ध स्थल में आप हमें समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.46.3]
We invoke Indr Dev who is the slayer of the enemy and visualise every thing. Hey possessor of innumerable wealth, protector of the truthful grant us prosperity at the war field.
बाधसे जनान्वृषभेव मन्युना घृषौ मीळह ऋचीषम।
अस्माकं बोध्यविता महाधने तनूष्वप्सु सूर्ये
हे इन्द्र देव! जैसा ऋचा में वर्णन मिलता है, वैसा ही आपका रूप है। आप तुमुल युद्ध बैल की तरह अत्यन्त क्रोध के साथ हमारे शत्रुओं पर आक्रमण करें। जिससे हम सन्तति, जल और सूर्य का दर्शन कर सकें, उसके लिए आप युद्धभूमि में हमारे रक्षक बनें।[ऋग्वेद 6.46.4]
तुमुल :: सेना की धूम, लड़ाई की हलचल, सेना की भिड़न्त, गहरी मुठभेड़, बहेड़े का पेड़, हलचल उत्पन्न करने वाला, शोरगुल से युक्त, भयंकर, तीव्र, घोर या भीषण युद्ध, मुठभेड़, घमासान, सेना का कोलाहल, बहेड़े का वृक्ष; fierce war.
Hey Indr Dev! You appear as per your description in the scriptures-Richas-hymns. Attack the enemy furiously in the fierce war like bull. Be our protector in the war so that we can have progeny, water and see the Sun.
इन्द्र ज्येष्ठं न आ भरँ ओजिष्ठं पपुरि श्रवः।
येनेमे चित्र वज्रहस्त रोदसी ओ सुशिप्र प्राः
हे शोभन हनु वाले और अद्भुत वज्र पाणि इन्द्र देव! जिस अन्न से आप स्वर्ग और पृथ्वी का पोषण करते हैं, हमारे पास वही प्रकृष्टतम, अत्यन्त बलवर्द्धक और पुष्टिकारक अन्न ले आयें।[ऋग्वेद 6.46.5]
Hey possessor of beautiful chin and amazing Vajr Indr Dev! Grant us the food grains with which you nourish the heavens & the earth. Bring us the nourishing, strengthening and excellent food grains.
त्वामुग्रमवसे चर्षणीसहं राजन्देवेषु हूमहे।
विश्वा सु नो विथुरा पिब्दना वसोऽमित्रान्त्सुषहान्कृधि
हे दीप्तिशाली इन्द्र देव! आप हमारी रक्षा करेंगे; इसलिए आपका आवाहन करते हैं। आप देवों में सबसे बलवान् और शत्रुजयी हैं। हे गृहदाता इन्द्रदेव! आप समस्त राक्षसों से हमारी रक्षा करें, जिससे हम शत्रुओं के ऊपर विजय प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 6.46.6]
Hey radiant Indr Dev! We invoke you since we know that you will help us. You are the mightiest amongest the demigods-deities and winner of the enemy. Hey granter of house Indr Dev! You protect us from the demons so that we can win over-over power the enemies.
यदिन्द्र नाहुषीवाँ ओजो नृम्णं च कृष्टिषु।
यद्वा पञ्च क्षितीनां द्युम्नमा भर सत्रा विश्वानि पौंस्या
हे इन्द्र देव! मनुष्यों में जो कुछ बल और धन है और पाँचों जनों में जो अन्न हैं, वो सब समस्त महान बल के साथ हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.46.7]
मनुष्यों में जो भी ताकत और ऐश्वर्य मौजूद है, पाँचों वर्गों के लोगों का भरण-पोषण जो भी हो, इंद्र को हमारे पास लाएं, साथ ही सभी महान मर्दाना ऊर्जाओं को भी हमारे पास लायें।
Hey Indr Dev! Bring the strength-might, wealth and the food grains for the nourishment of the five Varn-castes, classes of the humans for us.
यद्वा तृक्षौ मघवन्द्रुह्यावा जने यत्पूरौ कच वृष्ण्यम्।
अस्मभ्यं तद्रिरीहि सं नृषाह्येऽमित्रान्पृत्सु तुर्वणे
हे ऐश्वर्य शाली इन्द्र देव! शत्रुओं के साथ युद्ध प्रारम्भ होने पर हम उन्हें युद्ध में जीत सकें, इसके लिए आप हमें तक्षु, द्राह्य और पुरु का समस्त बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.46.8]
Hey Indr Dev possessing grandeur! Grant us the strength of Takshu, Drahy and Puru prior to the beginning of war with the enemies so that we can win them.
इन्द्र त्रिधातु शरणं त्रिवरूथं स्वस्तिमत्।
छर्दिर्यच्छ मघवद्भ्यश्च मह्यं च यावया दिद्युमेभ्यः
हे इन्द्र देव! हव्य रूप धन से युक्त मनुष्यों को और मुझे एक ऐसा गृह दें, जो लकड़ी, ईंट और पत्थर का बना हुआ हो और जिसमें शीत, ताप और ग्रीष्म न सतावें तथा जो गृह समृद्ध और आच्छादक हो। शत्रुओं से समस्त दीप्ति युक्त आयुधों को (हमसे) दूर करें।[ऋग्वेद 6.46.9]
Hey Indr Dev! Grant the humans houses made of wood, bricks & stones, possessing wealth in the form of offerings; capable of protecting from the cold, heat and summer with prosperity and protection. Keep off the weapons of the enemies possessing radiance-fire, light.
ये गव्यता मनसा शत्रुमादभुरभिप्रघ्नन्ति धृष्णुया।
अध स्मा नो मघवन्निन्द्र गिर्वणस्तनूपा अन्तमो भव
हे ऐश्वर्य शाली इन्द्र देव! जिन्होंने हमारी गौवें अपहृत करने के लिए हमारे ऊपर शत्रुवत् आक्रमण किया, उनसे हमारी रक्षा करने के लिए हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 6.46.10]
Hey Indr Dev, possessing grandeur! Come to us for protection from those who attacked us like enemies to abduct our cows.
अध स्मा नो वृधे भवेन्द्र नायमवा युधि।
यदन्तरिक्षे पतयन्ति पर्णिनो दिद्यवस्तिग्ममूर्धानः
हे इन्द्र देव! इस समय हमें धन प्रदान करें। जिस समय पक्ष युक्त तीक्ष्णाग्र और दीप्त शत्रुओं के बाण आकाश से गिरते हैं, उस समय जो हमारी रक्षा करते हैं, उनकी रक्षा आप युद्धभूमि में करें।[ऋग्वेद 6.46.11]
Hey Indr Dev! Grant us money at this moment. Protect those in the battle field who protect us from the sharp, fire arms-arrows falling from the sky.
यत्र शूरासस्तन्वो वितन्वते प्रिया शर्म पितॄणाम्।
अध स्मा यच्छ तन्वे३तने च छर्दिरचित्तं यावय द्वेषः
शत्रुओं के सामने जिस समय वीर लोग अपनी देह को दिखाते और पैतृक स्थानों का परित्याग करते हैं, उस समय आप हमें और हमारी सन्तानों को शरीर रक्षा के लिए गुप्त रूप से कवच दें और शत्रुओं को दूर करें।[ऋग्वेद 6.46.12]
Grant us and our children protective shields secretly, repel our enemies when the warriors leave their parental abodes showing their bodies-muscles.
यदिन्द्र सर्गे अर्वतश्चोदयासे महाधने।
असमने अध्वनि वृजिने पथि श्येनाँ इव श्रवस्यतः
महायुद्ध प्रारम्भ होने पर आप विकट मार्ग से हमारे अश्वों को कठिन रास्ते से जाने वाले, तेजगति और अभिषार्थी बाज पक्षी के समान भेजें।[ऋग्वेद 6.46.13]
With the onset of great war direct our horses to move through the difficult route with high speed like the nominee falcon.
सिन्धूँरिव प्रवण आशुया यतो यदि क्लोशमनु ष्वणि।
आ ये वयो न ववृतत्यामिषि गृभीता बाह्वोर्गवि
यद्यपि डर के मारे घोड़े जोर-जोर से हिनहिनाते हैं, तथापि निम्न गामिनी नदियों के सदृश वे ही वेग गामी और दृढ़ संयत घोड़े, बाज पक्षियों की तरह धेनु प्राप्ति के लिए प्रवृत्त संग्राम में बार-बार दौढ़ते हैं।[ऋग्वेद 6.46.14]
Though horses neigh with fear, yet they move fast like the river flowing in the down ward direction. The strong and balanced horses run like the falcon in the war for attaining cows in the war.(06.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- गर्ग भारद्वाज; देवता :- सोम, इन्द्रदेव, रथ, दानस्तुति, दुन्दुभि; छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्, बृहती, गायत्री, जगती।
स्वादुष्किलायं मधुमाँ उतायं तीव्रः किलायं रसवाँ उतायम्।
उतो न्व१स्य पपिवांसमिन्द्रं न कश्चन सहत आहवेषु
यह अभिषुत सोमरस सुस्वादु, मधुर, तीव्र और रसवान है। इसका इन्द्र देव पान कर लेते हैं, तब संग्राम में उनके सामने कोई ठहर नहीं सकता।[ऋग्वेद 6.47.1]
This extracted Somras is tasty, sweet, sharp and juicy. No one dare confront him in the war when he drinks it.
अयं स्वादुरिह मदिष्ठ आस यस्येन्द्रो वृत्रहत्ये ममाद।
पुरूणि यश्र्च्यौत्ना  शम्बरस्य वि नवतिं नव च देह्यो ३ हन्
इस यज्ञ में पीने पर ऐसे ही सोमरस ने अत्यन्त हर्ष प्रदान किया। वृत्रासुर के विनाश के समय इन्द्र देव ने इसे पीकर प्रसन्नता प्राप्त की। इसने शम्बर की निन्यानबे पुरियों का विनाश किया।[ऋग्वेद 6.47.2]
Somras produced extreme pleasure-excitement on drinking in the Yagy. At the occasion of killing Vratasur Indr Dev became happy on drinking it. It led to the destruction of 99 cities-forts of Shambar.
अयं मे पीत उदियर्ति वाचमयं मनीषामुशतीमजीगः।
अयं षळुर्वीरमिमीत धीरो न याभ्यो भुवनं कच्चनारे
पीने पर यह सोमरस मेरे वाक्य की स्फूर्ति को बढ़ाता है। यह अभिलषित बुद्धि को प्रदान करता है। इसी सुबुद्धि सोमरस ने स्वर्ग, पृथ्वी, दिन-रात्रि, जल और औषधि आदि छः अवस्थाओं की सृष्टि की। भूतगण में कोई भी इससे दूर ठहर नहीं सकता।[ऋग्वेद 6.47.3]
On drinking Somras intensify the impact of my words. It grants desired ideas-thoughts. It led to the evolution-creation of heavens, earth, day-night, water and medicines etc. six states. Amongest the ancient-deceased people none could distinct-keep off it.
अयं स यो वरिमाणं पृथिव्या वर्ष्माणं दिवो अकृणोदयं सः।
अयं पीयूषं तिसृषु प्रवत्सु सोमो दाधारोर्व १ न्तरिक्षम्
फलत: इसी सोमरस ने पृथ्वी का विस्तार और स्वर्ग की दृढ़ता की। इसी सोमरस ने औषधि, जल और धेनु नामक तीन उत्कृष्ट आधारों में रस दिया।[ऋग्वेद 6.47.4]
As a result-outcome, this Somras extended earth and stabilized the heaven. It led to the creation of sap-juice in the three excellent states viz medicines, water and the cows.
अयं विदच्चित्रदृशीकमर्णः शुक्रसद्मनामुषसामनीके।
अयं महान्महता स्कम्भनेनोद्द्यामस्तभ्नाद् वृषभो मरुत्वान्
निर्मल आकाश में स्थित उषा के पहले यही सोमरस विचित्र दर्शन सूर्य ज्योति को प्रकट करता है। जलवर्षी और बलशाली यह सोमरस ही मरुतों के साथ सुदृढ़ स्तम्भ द्वारा स्वर्ग को धारित किये हुए हैं।[ऋग्वेद 6.47.5]
In the clear sky prior to day break-Usha, this Somras visualised the Sun rays. This  rain showering and mighty-energetic Somras stabilizes-holds the heavens in association with the Marud Gan.
धृषत्पिब कलशे सोममिन्द्र वृत्रहा शूर समरे वसूनाम्।
माध्यंन्दिने सवन आ वृषस्व रयिस्थानो रयिमस्मासु धेहि
हे वीर इन्द्र देव! धन प्राप्ति के लिए आरम्भ किए गये युद्ध में आप शत्रुओं का संहार करें। साहस के साथ कलश में स्थित सोमरस का पान करें। मध्याह्न के यज्ञ में आप बहुत सोमरस का पान करें। हे धनपात्र! हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.47.6]
Hey brave-mighty Indr Dev! Destroy the enemies in the war initiated for having wealth-riches. Drink the Somras kept in the urn with courage. Drink a lot of Somras during the day kept in the pitcher during the midday. Hey lord pf riches! grant us wealth.
इन्द्र प्रणः पुरएतेव पश्य प्र नो नय प्रतरं वस्यो अच्छ। 
भवा सुपारो अतिपारयो नो भवा सुनीतिरुत वामनीतिः
हे इन्द्र देव! मार्ग रक्षक के सदृश आप अग्रगामी होकर हमारे प्रति दृष्टि रखें और हमारे सामने श्रेष्ठ धन ले आवें। आप भली-भाँति हमें दुःखों और शत्रुओं से बचावें और उत्कृष्ट नेता होकर हमें अभिलषित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.47.7]
Hey Indr Dev! Keep an eye over us like a guide, the person who protect the roads and bring excellent wealth for us. You protect us properly-carefully from the enemies, pains & sorrow being an excellent leader and grant us plenty-a lot of money.
उरुं नो लोकमनु नेषि विद्वान्त्स्वर्वज्ज्योतिरभयं स्वस्ति।
ऋष्वा त इन्द्र स्थविरस्य बाहू उप स्थेयाम शरणा बृहन्ता
हे इन्द्रदेव! आप ज्ञानी है। हमें विस्तीर्ण लोक में सुखमय और भयशून्य आलोक में भी निर्विघ्न ले जावें। आप प्राचीन हैं। आपका अभय, सुखद, कल्याणकारी तेज, हमें आपके वरदहस्त के आश्रय में प्राप्त हों।[ऋग्वेद 6.47.8]
Hey eternal, enlightened Indr Dev! Take us to the comfortable broad abodes free from fear without trouble. Grant us asylum under your fear free and beneficial aura-energy.
वरिष्ठे न इन्द्र वन्धुरे धा वहिष्ठयोः शतावन्नश्वयोरा।
इषमा वक्षीषां वर्षिष्ठां मा नस्तारीन्मघवन्त्रयो अर्यः
हे धनाढ्य इन्द्र देव! आप हमें अपने पराक्रमी अश्वों के पीछे विस्तृत रथ पर आरूढ करें। विविध अन्नों के बीच आप हमारे लिए प्रकृष्टतम अन्न ले आवें। हे मघवन्! कोई भी धनवान् धन में हमारा अतिक्रमण न कर सकें।[ऋग्वेद 6.47.9]
Hey wealthy Indr Dev! Deploy your mighty horses in your broad charoite and let us ride it. Select the beast food grains amongest various food grains for us. Hey Maghvan! None of the rich people should be as wealthy as us.
इन्द्र मृळ मह्यं जीवातुमिच्छ चोदय धियमयसो न धाराम्।
यत्किं चाहं त्वायुरिदं वदामि तज्जुषस्व कृधि मा देववन्तम्
हे इन्द्र देव! आप मुझे सुखी करें। मेरी जीवन वृद्धि करने में प्रसन्न होवें। लौहमय खड्ग की धार के सदृश मेरी बुद्धि को तेज करें। आपको प्रसन्न करने के लिए इस समय मैं जो कुछ कह रहा हूँ, वो सब आप ग्रहण करें। देवगण मेरी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.47.10]
Hey Indr Dev! Make me comfortable. Be happy with my progress. Sharpen my mind like a sharp sword. Realise what I am describing you to please you. Let the demigods-deities protect me.
त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रं हवेहवे सुहवं शूरमिन्द्रम्।
ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रं स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः
जो शत्रुओं से रक्षा करते हुए सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं, जो अनायास आह्वानयोग्य, शौर्यशाली और सभी कार्यों को करने में समर्थ हैं, मैं उन्हीं बहुलोक वन्दनीय इन्द्र देव को प्रत्येक यज्ञ में आवाहित करता हूँ। हे धनवान् इन्द्र देव! हमें समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.47.11]
I invoke Indr Dev who is revered in all abodes, brave, mighty, protect us from the enemies and accomplish our desires, capable o executing all endeavours. Hey wealthy Indr Dev! make us prosper.(07.10.2023)
इन्द्रः सुत्रामा स्ववाँ अवोभिः सुमृळीको भवतु विश्ववेदाः।
बाधतां द्वेषो अभयं कृणोतु सुवीर्यस्य पतयः स्याम
शोभन रक्षा करने वाले और धनशाली इन्द्र देव रक्षा द्वारा हमें सुख देते हैं। वही सर्वज्ञ इन्द्र देव हमारे शत्रुओं का वध करके हमें निर्भय करते हैं। उनकी प्रसन्नता से हम अतीव वीर्यशाली बनें।[ऋग्वेद 6.47.12]
Protecting & wealthy Indr Dev protect and comfort us. He makes us fearless by killing our enemies. Let us become mighty by virtue of his pleasure.
तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्थाम।
स सुत्रामा स्ववाँ इन्द्रो अस्मे आराचिद् द्वेषः सनुतर्युयोतु
हम उन्हीं योगार्ह इन्द्र देव के अनुग्रह, बुद्धि और कल्याणवाही प्रीति के पात्र बनें। रक्षक और धनी वही इन्द्र देव शत्रुओं को बहुत दूर ले जावें।[ऋग्वेद 6.47.13]
हम उस आराध्य देव के पक्ष में उसकी शुभ सद्भावना में भी बने रहें; वह रक्षा करने वाले और ऐश्वर्यशाली इंद्र उन सभी को, जो हमसे घृणा करते हैं, हमसे दूर, विनाश की ओर ले जाए।
Let us become capable of Indr Dev's favours, mercy, intelligence and benefit-welfare means. Let Indr Dev drive-repel our enemies away from us to destruction.
अव त्वे इन्द्र प्रवतो नोर्मिर्गिरो ब्रह्माणि नियुतो धवन्ते।
उरू न राधः सवना पुरूण्यपो गा वज्रिन्युवसे समिन्दून्
हे इन्द्र देव! स्तोताओं की स्तुति, उपासना, विशाल धन और प्रचुर अभिषुत सोमरस, निम्र देश प्रवण जलराशि के सदृश आपकी ओर जाते हैं। हे वज्रधर इन्द्र देव! आप जल, गौ का दूध, दही, सोमरस में भली-भाँति मिलाते हैं।[ऋग्वेद 6.47.14]
Hey Indr Dev! Prayers by the Stotas, worship, huge amounts of wealth and lots of extracted Somras move towards you; like the vast amount of water moving towards low lying regions. Hey Vajr wielding Indr Dev! You properly-thoroughly mix the water, cow milk, curd and the Somras.
क ईं स्तवत्कः पृणात्को यजाते यदुग्रमिन्मघवा विश्वहावेत्।
पादाविव प्रहरन्नन्यमन्यं कृणोति पूर्वमपरं शचीभिः
भली-भाँति कौन मनुष्य इन्द्र देव की स्तुति, प्रसन्नता और यज्ञ करने में समर्थ है? धनशाली इन्द्र देव प्रतिदिन अपनी उम्र शक्ति को जानते हैं। जिस प्रकार से पथिक अपने पैरों को कभी आगे और कभी पीछे करता है, उसी प्रकार इन्द्र देव अपने बुद्धि बल से स्तोता को कभी पीछे और कभी आगे करते हैं।[ऋग्वेद 6.47.15]
Which human being is capable of worshiping, pleasing and conducting Yagy for Indr Dev? Wealthy Indr Dev is aware of his age and might-strength. The way a walker moves his feet forward and backward; similarly Indr Dev move the Stota ahead and back by virtue of his intelligence.
शृण्वे वीर उग्रमुग्रं दमायन्नन्यमन्यमतिनेनीयमानः।
एधमानद्विळुभयस्य राजा चोष्कूयते विश इन्द्रो मनुष्यान्
प्रबल शत्रु का दमन करके और स्तोताओं का स्थान सदा परिवर्तन करके इन्द्र देव अपनी वीरता के लिए प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। उद्धत व्यक्तियों के द्वेषी और स्वर्गीय तथा पार्थिव धनों के अधिपति इन्द्र देव अपने सेवकों को रक्षा के लिए बार-बार बुलाते हैं।[ऋग्वेद 6.47.16]
दमन :: रोक, निरोध, नियंत्रण, पराजय, आधिपत्य, वशीकरण, शमन, दबाव, अवरोध, छिपाव, स्तंभन, आत्मनियंत्रण, बलपूर्वक शांत करने का काम; suppression, repression, subjugation.
उद्धत :: अक्खड़, अविनीत; tearing, insubordinate.
द्वेष :: राग का विरोधी भाव, वैमनस्यता, विरोध, शत्रुता, वैर; malice, hatred.
Indr Dev is famous for his valour by suppression, repression of the enemy & change the position of his Stotas (for their safety). Hateful towards the subordinate and master of all material wealth Indr Dev repeatedly call his servants for protection.
परा पूर्वेषां सख्या वृणक्ति वितर्तुराणो अपरेभिरेति।
अनानुभूतीरवधून्वानः पूर्वीरिन्द्रः शरदस्तर्तरीति
इन्द्र देव पूर्वतन प्रशस्त कर्मों के अनुष्ठाताओं की मित्रता त्याग देते हैं और उनसे द्वेष करके उनकी अपेक्षा निकृष्ट व्यक्तियों के साथ मित्रता करते हैं। अथवा अपनी उपासना से रहित व्यक्तियों को छोड़कर परिचारकों के साथ अनेक वर्षों तक रहते हैं।[ऋग्वेद 6.47.17]
Indr Dev rejects the friendship of the people who performed great deeds and become hatful of them and become friendly with the lowest people. Alternatively, he resides with his servants for many years by rejecting those who are faithless.
रूपरूपं प्रतिरूपो बभूव तदस्य रूपं प्रतिचक्षणाय।
इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते युक्ता ह्यस्य हरयः शता दश
समस्त देवों के प्रतिनिधि इन्द्र देव तीन प्रकार की मूर्तियाँ धारित करते हैं और इन रूपों को धारित कर वे अलग-अलग प्रकट होते हैं। वे माया द्वारा अनेक रूप धारित करके याजक गणों के पास उपस्थित होते हैं; क्योंकि इन्द्र देव के रथ में हजारों अश्व जोते जाते हैं।[ऋग्वेद 6.47.18]
Indr Dev, leader-representative of the demigods-deities assumes three shapes and appear-invoke separately. He assumes many forms and appear before the Ritviz by virtue of cast. Charoites of Indr Dev are deployed with thousands of horses.
युजानो हरिता रथे भूरि त्वष्टेह राजति।
को विश्वाहा द्विषतः पक्ष आसत उतासीनेषु सूरिषु
रथ में इन्द्र देव ही घोड़े जोतकर त्रिभुवनों के अनेक स्थानों में प्रकट होते हैं। दूसरा कौन व्यक्ति प्रतिदिन उपस्थित स्तोताओं के बीच जाकर शत्रुओं से उनकी रक्षा करता है?[ऋग्वेद 6.47.19]
Indr Dev appear at various places of the three abodes deploying his horses in the charoite. Who else will appear between the Stotas everyday and protect them from the enemies?
अगव्यूति क्षेत्रमागन्म देवा उर्वी सती भूमिरंहूरणाभूत्।
बृहस्पते प्र चिकित्सा गविष्टावित्था सते जरित्र इन्द्र पन्थाम्
हे देवो! हम आकाश में घूमते-घूमते उस देश में आ पहुँचे हैं, जहाँ गौवें नहीं हैं। विस्तृत पृथ्वी दस्युओं को आश्रय देती है। हे बृहस्पति देव! आप धेनुओं के अनुसन्धान में हमें परिचालित करें। हे इन्द्र देव! इस प्रकार से पथभ्रष्ट अपने उपासकों को रास्ता दिखावें।[ऋग्वेद 6.47.20]
Hey demigods-deities we have reached roaming in the sky in that place where there is no cow. Broad earth shelter the dacoits as well. Hey Brahaspati Dev! Guide us in the discovery of cows. Hey Indr Dev! Guide the distracted worshipers.
दिवेदिवे सदृशीरन्यमर्धं कृष्णा असेधदप सद्मनो जाः।
अहन्दासा वृषभो वस्नयन्तोदव्रजे वर्चिनं शम्बरं च
इन्द्र देव अन्तरिक्ष स्थित गृह से सूर्य रूप से प्रकट होकर दिन का अपरार्द्ध प्रकाशित करने के लिए प्रतिदिन समान रीति से रात्रि को दूर करते हैं। "उदवज्र" नामक देश में शम्बर और वर्चो नाम के दो धनार्थी दासों का वर्षक इन्द्र देव ने संहार किया।[ऋग्वेद 6.47.21]
Indr Dev appear as Sun in the space and remove darkness. He destroyed the two slaves named Shambar & Varcho, who sought wealth in the country called Udvajr.
प्रस्तोक इन्नु राधसस्त इन्द्र दश कोशयीर्दश वाजिनोऽदात्। दिवोदासादतिथिग्वस्य राधः शाम्बरं वसु प्रत्यग्रभीष्म
हे इन्द्र देव! प्रस्तोक ने आपके स्तोताओं को सोने से भरे दस कोश और दस घोड़े प्रदान किये। अतिथिग्व ने शम्बर को जीतकर जो धन प्राप्त किया, उसी धन को हमने दिवोदास से पाया।[ऋग्वेद 6.47.22]
Hey Indr Dev! Prastok gave ten pots & ten horses to your Stotas. The wealth which was obtained by Atithigavy by winning Shambar, we obtained it from Divodas.
दशाश्वान्दश कोशान्दश वस्त्राधिभोजना।
दशो हिरण्यपिण्डान्दिवोदासादसानिषम्
दिवोदास ने दस घोड़े, दस सोने के खजानें, वस्त्र, यथेष्ट अन्न और दस हिरण्य पिण्ड हमें प्रदान किये।[ऋग्वेद 6.47.23]
Divodas gave us ten horses, ten treasures of gold, cloths, sufficient food grains and ten golden lobs.
दश रथान्प्रष्टिमतः शतं गा अथर्वभ्यः। अश्वथः पायवेऽदात्
मेरे भाई अश्वत्थ ने पायु को घोड़ों के साथ दस रथ और अथर्व गोत्रीय ऋषियों को एक सौ गायें प्रदान कीं।[ऋग्वेद 6.47.24]
My brother Ashvtth gave ten charoites with horses to Payu and one hundred cows to the descendants of Athrv Rishi.(08.10.2023)
महि राधो विश्वजन्यं दधानान् भरद्वाजान्त्सार्ञ्जयो अभ्ययष्ट
भरद्वाज पुत्र ने सबकी भलाई के लिए जो ये सब ऐश्वर्य ग्रहण किया, सृञ्जय पुत्र ने उनकी पूजा की।[ऋग्वेद 6.47.25]
Sranjay's son worshiped Bhardwaj for accepting the grandeur for the welfare-benefit of all.
वनस्पते वीडवङ्गो हि भूया अस्मत्सखा प्रतरणः सुवीरः।
गोभिः संनद्धो असि वीळयस्वास्थाता ते जयतु जेत्वानि
वनस्पतियों से निर्मित रथ आपके सब अवयव दृढ़ हों। आप हमारे रक्षक और मित्र बनें। आप प्रतापी वीरों से युक्त होवें। आप गोचर्म द्वारा बाँधे गए हैं। हमें सुदृढ़ करें। आपके ऊपर आरूढ़ रथी अनायास ही युद्ध में शत्रुओं को जीतने में समर्थ हो।[ऋग्वेद 6.47.26]
Let the charoite made of vegetation be tough-strong. You should become our protector & friend. You should have the brave-mighty people. You have been tied with cow's skin. Make us strong. The charoite driver riding you should be able to win the enemy at random-once.
दिवस्पृथिव्याः पर्योज उद्धृतं वनस्पतिभ्यः पर्याभृतं सहः।
अपामोज्मानं परि गोभिरावृतमिन्द्रस्य वज्रं हविषा रथं यज
हे ऋत्विको! आप हव्य से रथ का यज्ञ करें। यह रथ स्वर्ग और पृथ्वी के सारांश से बना है, वनस्पतियों के स्थिरांश से घटित है, जल के वेग के सदृश वेगवान् है, गोचर्म द्वारा ढका हुआ तथा वज्र के समान है।[ऋग्वेद 6.47.27]
Hey Ritviz! Perform Yagy-Pooja of the charoite with offerings. This charoite is made of the extract of the heavens & earth, formed with the extract of vegetation, possess the speed like water, covered with cow skin and as strong as Vajr.
इन्द्रस्य वज्रो मरुतामनीकं मित्रस्य गर्भो वरुणस्य नाभिः।
सेमां नो हव्यदातिं जुषाणो देव रथ प्रति हव्या गृभाय
हे दिव्य रथ! आप हमारे यज्ञ में प्रसन्न होकर हव्य ग्रहण करें; आप इन्द्र देव के वज्र स्वरूप मरुतों के अग्रवर्ती, मित्र के गर्भ और वरुण की नाभि हैं।[ऋग्वेद 6.47.28]
Hey divine charoite! Happily accept the offerings in our Yagy. You are like the Vajr of Indr Dev, forward moving, moving ahead of Marud Gan, stomach of Mitr and naval of Varun Dev.
उप श्वासय पृथिवीमु॒त द्यां पुरुत्रा ते मनुतां विष्ठितं जगत्।
स दुन्दुभे सजूरिन्द्रेण देवैर्दूराद्दवीयो अप सेध शत्रून्
हे युद्ध दुन्दुभि! अपने शब्द से स्वर्ग और पृथ्वी को परिपूर्ण करो। स्थावर और जंगम इस बात को जानें कि आप इन्द्र देव और अन्य देवों के साथ मिलकर हमारे शत्रुओं को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 6.47.29]
Hey Dev Dundubhi! Fill the heavens & the earth with your sound. Let stationary-fixed and movable beings know that you repel our enemies in association with Devraj Indr and other demigods-deities.
आ क्रन्दय बलमोजो न आ धा निः ष्टनिहि दुरिता बाधमानः।
अप प्रोथ दुन्दुभे दुच्छुना इत इन्द्रस्य मुष्टिरसि वीळयस्व
हे दुन्दुभि! हमारे शत्रुओं को रुलाएँ और हमें बल प्रदान करें। इतने जोर से बजो कि दुर्द्धर्ष शत्रुओं को दुःख मिले। हे दुन्दुभि! जो हमारा अनिष्ट करके आनन्दित होते हैं, उन्हें दूर हटावें। आप इन्द्रदेव की मुष्टिका के सदृश हैं; इसलिए हमें दृढ़ता प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.47.30]
Hey Dundubhi! Make our enemies weep-cry and grant us strength. Make such a loud-harsh sound that the enemy is pained. Hey Dundubhi! Repel-remove those who become happy by our bad luck. You are like the fist of Indr Dev, hence grant us strength.
आमूरज प्रत्यावर्तयेमाः केतुमद्दुन्दुभिर्वावदीति।
समश्वपर्णाश्चरन्ति नो नरोऽस्माकमिन्द्र रथिनो जयन्तु
हे इन्द्र देव! हमारी समस्त गौवों को रोककर हमारे पास ले आवें। सभी के पास घोषणा करने के लिए दुन्दुभि नियत उच्च स्वर करता है। हमारे सेनानी घोड़ों पर आरूढ़ हुए हैं। है इन्द्र देव! हमारे रथारूढ़ सैनिक और सेनाएँ युद्ध में विजयी होवें।[ऋग्वेद 6.47.31]
Hey Indr Dev! Stop all of our cows and bring them to us. Dundubhi make loud noise to make announcement. Our soldiers have rode the horses. Hey Indr Dev! Let our soldiers riding the charoite and the army become victorious.(09.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :-  भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र देव, अग्रि; छन्द :- बृहती, अनुष्टुप्।
प्र नु वोचा सुतेषु वां बीर्या३यानि चक्रथुः।
हतासो वां पितरो देवशत्रव इन्द्राग्री जीवथो युवम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आपने जो वीरता प्रकट की है, उसी वीरता का वर्णन हम सोमरस के अभिषुत होने पर बड़े आग्रह के साथ करते हैं। देवद्वेष्टा असुर आपके द्वारा मारे गये हैं और आप लोग रक्षक हैं।[ऋग्वेद 6.59.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! We describe-stress over your valour on extracting Somras. Demons envious of demigods-deities are killed by you. You are the protectors of humans.
बळित्या महिमा वामिन्द्राग्नी पनिष्ठ आ।
समानो वां जनिता भ्रातरा युवं यमाविहेहमातरा
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप लोगों का जो जन्म माहात्म्य प्रतिपादित होता है, वह सब यथार्थ और अतीव प्रशस्य है। आप दोनों के एक ही पिता हैं। आप यम के भाई हैं और आपकी माता सभी जगह विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 6.59.2]
Hey Indr Dev and Agni Dev! The glory associated with your birth-evolution is real and deserve appreciation. Father of both of you is the same. You are the brothers of Yam-Dharm Raj. Your mother is omnipresent.
ओकिवांसा सुते सचाँ उ श्वा सप्ती इवादने।
इन्द्रान्व १ ग्री अवसेह वज्रिणा वयं देवा हवामहे
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! जिस प्रकार से तेज चलने वाले दोनों अश्व भक्षणीय घास की ओर जाते हैं आप भी उसी प्रकार सोमरस के अभिषुत होने पर एक साथ जाते हैं। अपनी रक्षा के लिए आज हम वज्रधर और दानादि गुण से युक्त इन्द्रदेव और अग्निदेव को इस यज्ञ में बुलाते हैं।[ऋग्वेद 6.59.3]
Hey Indr Dev & Agni Dev! The way fast moving horses are attracted towards grass, you invoke as soon as Somras is extracted. We invite Vajr wielder donor Indr Dev and Agni Dev for our protection in the Yagy.
य इन्द्राग्नी सुतेषु वां स्तवत्तेष्वृतावृधा।
जोषवाकं वदतः पज्रहोषिणा न देवा भसथश्चन
हे यज्ञ के समृद्धिदाता इन्द्र देव और अग्नि देव! आपका स्तोत्र प्रसिद्ध है। जो व्यक्ति सोमरस के अभिषुत होने पर प्रेम रहित स्तोत्र द्वारा कुत्सित रूप से आपकी प्रार्थना करता है, उसका दिया हुआ सोमरस आप स्पर्श नहीं करते।[ऋग्वेद 6.59.4]
Hey enricher of the Yagy Indr Dev & Agni Dev! Your Strotr is famous. You do not touch the Somras extracted by a person with impious prayers associated with the Strotr without affection & love.
इन्द्राग्नी को अस्य वां देवो मर्तश्चिकेतति।
विषूचो अश्वान्युयुजान ईयत एकः समान आ रथे
हे दीप्ति सम्पन्न इन्द्र देव और अग्नि देव! जिस समय आपमें से एक सूर्यात्मक इन्द्र देव नाना प्रकार से गमन करने वाले अश्वों को जोतकर अग्नि देव के साथ एक रथ पर आरूढ़ होकर जाते हैं, उस समय कौन मनुष्य आपके इस कार्य का विचार करेगा या जानेगा (कोई भी नहीं)?[ऋग्वेद 6.59.5]
Hey radiant Indr Dev & Agni Dev! The manner in which one of you, Indr Dev deploy the horses in the charoite with vivid movements and ride it along with Agni Dev, who will not think of this action by you.
इन्द्राग्नी अपादियं पूर्वागात्पद्वतीभ्यः।
हित्वी शिरो जिह्वया वावदचरत्त्रिंशत्पदा न्यक्रमीत्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! पैरों से रहित यही उषा प्राणियों के शिरोवेश को उत्तेजित करके और उनकी जिह्वाओं से उच्च शब्द कराकर पैरों से युक्त और निद्रित जीवों की अभिमुखवर्त्तिनी हो रही हैं और इसी प्रकार तीस पद (मुहूर्त) अतिक्रम करती हैं।[ऋग्वेद 6.59.6] 
मुहूर्त :: कार्य हेतु निश्चित किया गया विशिष्ट समय, काल गणना के अनुसार कार्य हेतु निश्चित किया गया समय; auspicious moment, auspicious beginning.
Hey Indr Dev & Agni Dev! Usha without legs, activate the minds of the humans, make them speak, awake the slept living beings, moves forward and continue like this for thirty feet i.e., Muhurt (designated auspicious time period).
इन्द्राग्नी आ हि तन्वते नरो धन्वानि बाह्वोः।
मा नो अस्मिन्महाधने परा वर्कतन वर्क्तं गविष्टिषु
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! योद्धा लोग दोनों से हाथों धनुष फैलाते हैं। इस महासंग्राम में गौवों के अनुसन्धान के समय हमें न छोड़ना।[ऋग्वेद 6.59.7]
Hey Indr Dev and Agni Dev! The warriors expend-stretch the bow with both hands. Do not discard us during the great war for the recovery of cows. 
इन्द्राग्नी तपन्ति माघा अर्यो अरातयः। अप द्वेषांस्या कृतं युयुतं सूर्यादधि
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! हनन परायण और आक्रमण कर्ता शत्रु हमें पीड़ित कर रहे हैं। उन्हें आप दूर करें और उन्हें सूर्य दर्शन से भी वञ्चित करें।[ऋग्वेद 6.59.8]
Hey Indr Dev & Agni Dev! The attacker-invader enemies are torturing us. Repel them and prohibit them from seeing the Sun.
इन्द्रानी युवोरपि वसु दिव्यानि पार्थिवा।
आ न इह प्र यच्छतं रथिं विश्वायुपोषसम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप लोग दिव्य और पार्थिव समस्त धनों के स्वामी हैं; इसलिए इस यज्ञ में हमें जीवन पोषक समस्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.59.9]
Hey Indr Dev & Agni Dev! You are the lord of divine and material wealth, hence grant us all sorts of riches for sustaining life & carrying out the Yagy.
इन्द्रानी उक्थवाहसा स्तोमेभिर्हवनश्रुता।
विश्वाभिर्गीर्भिरा गतमस्य सोमस्य पीतये
स्तोत्र द्वारा आकर्षणीय इन्द्र देव और अग्नि देव! हमारे इस सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें, क्योंकि आप लोग स्तोत्रों और उपासनाओं से युक्त आह्वान श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 6.59.10]
Hey Indr Dev & Agni Dev invoked by the Strotr! Come for drinking our Somras, since you respond to the prayers-worship and recitation of Strotr-sacred hymns.(24.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्राग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्, बृहती, अनुष्टुप् गायत्री।
शनाथद्वृत्रमुत सनोति वाजमिन्द्रा यो अग्नी सहुरी सपर्यात्।
इरज्यन्ता वसव्यस्य भूरे: सहस्तमा सहसा वाजयन्ता
जो विशाल धन के स्वामी हैं, जो बलात शत्रु हन्ता हैं और जो अन्नाभिलाषी इन्द्र देव और अग्नि देव की सेवा करते हैं, वे शत्रुओं का संहार करते हुए और अन्न प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.60.1]
Those who possess a lot of wealth, kills the enemy at once, desirous of food grains and server Indr Dev & Agni Dev, they obtain food grains while killing the enemies.
ता योधिष्टमभि गा इन्द्र नूनमपः स्वरुषसो अग्न ऊळहाः।
दिशः स्वरुषस इन्द्र चित्रा अपो गा अग्ने युवसे नियुत्वान्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आपने अपहरण की गई गौओं, जलराशि, सूर्य और उषा के लिए युद्ध किया। हे इन्द्रदेव! आपने दिशाओं, सूर्य, उषाओं, विचित्र जल और गौओं को सार के साथ योजित किया। हे अश्वों के अधिपति अग्निदेव! आपने भी ऐसे कार्य किये।[ऋग्वेद 6.60.2]
योजित :: मिलाया हुआ, युक्त, बनाया हुआ, जिसकी योजना की गई हो, योजना के रूप में लाया हुआ, जोड़ा या मिलाया हुआ, किसी काम या बात में लगाया हुआ, बनाया या रचा हुआ, रचित, नियमों आदि से बँधा हुआ, नियमबद्ध; ; connected,  planned, organised.
Hey Indr Dev & Agni Dev! You fought the war for cows, water, Sun and Usha. Hey Indr Dev! You connected the directions, Sun, Ushas, amazing water and the cows through their extract. Hey Lord of horses Agni Dev! You too performed such jobs-deeds.
आ वृत्रहणा वृत्रहभिः शुष्मैरिन्द्र यातं नमोभिरग्ने अर्वाक्।
युवं राधोभिरकवेभिरिन्द्राग्ने अस्मे भवतमुत्तमेभिः
हे वृत्रहन्ता इन्द्र देव और अग्नि देव! आप हमारे हव्यान्न द्वारा परिपुष्ट होने के लिए शत्रुनाशक बल के साथ हमारे सामने पधारें। आप लोग अनिन्द्य और अत्युत्कृष्ट धन के साथ हमारे पास आविर्भूत होवें।[ऋग्वेद 6.60.3]
अनिंद्य :: प्रशंसनीय, जिसकी निंदा न की जा सकती हो, श्रेष्ठ, सुंदर; appreciable, irreproachable, unexceptionable, beautiful.
Hey slayer of Vratr, Indr Dev & Agni Dev! Invoke before us with your might to destroy the enemy & to be nourished with our offerings. Come to us with appreciable and excellent wealth.
ता हुवे ययोरिदं पप्ने विश्वं पुरा कृतम्। इन्द्राग्नी न मर्धतः
प्राचीन समय में ऋषियों द्वारा जिनके समस्त वीरकार्य कीर्त्तित हुए, मैं उन्हीं इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करता हूँ। वे स्तोताओं की हिंसा नहीं करते।[ऋग्वेद 6.60.4]
I invoke Indr Dev & Agni Dev whose bravery and valour were appreciated by the Rishis during ancient times-periods. They do not harm their Stotas-worshipers.
उग्रा विघनिना मृध इन्द्राग्नी हवामहे। ता नो मृळात ईदृशे
हम प्रचण्ड बलशाली, शत्रु हन्ता इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करते हैं। वे हमें ऐसे में कृत कार्य करके सुखी बनावें।[ऋग्वेद 6.60.5]
प्रचण्ड ::  कठोर, उग्र, तीक्ष्ण, कड़ा; terrific, severe.
We invoke terrific, mighty and destroyer of the enemy Indr Dev & Agni Dev. Let should make us comfortable.
हतो वृत्राण्यार्या हतो दासानि सत्पती। हतो विश्वा अप द्विषः॥
हे साधुओं के रक्षक इन्द्र देव और अग्नि देव! धार्मिकों और अधार्मिकों द्वारा कृत समस्त उपद्रवों का निवारण करते हैं। उन्होंने समस्त विरोधियों का संहार किया।[ऋग्वेद 6.60.6]
निवारण :: रोकना, दूर करना, हटाना; prevention, eradication, prohibit.
Hey protector of the sages Indr Dev and Agni Dev! You eradicate the misdeeds and troubles created by the religious and irreligious. You killed all opponents.
इन्द्राग्नी युवामिमे३भि स्तोमा अनूषत। पिबतं शंभुवा सुतम्
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव और अग्नि देव! ये स्तोता आपकी प्रार्थना करते हैं। हे सुखदाता इंद्रदेव और अग्निदेव! आप इस अभिषुत सोमरस का पान करें। [ऋग्वेद 6.60.7]
Hey killer of Vratr Indr Dev & Agni Dev! These Stotas worship-pray you. Hey comforter Indr Dev & Agni Dev! Drink this extracted Somras.
या वां सन्ति पुरुस्पृहो नियुतो दाशुषे नरा। इन्द्राग्नी ताभिरा गतम्॥
हे नेता इन्द्रदेव और अग्निदेव! याजकों द्वारा प्रशंसा किए जाते हुए, आप दोनों उनसे प्रदत्त हविष्यान्न के लिए यज्ञशाला में अपने तेज चलने वाले अश्व की सहायता से आकर दान देने वालों की सहायता करें।[ऋग्वेद 6.60.8]
Hey leaders Indr Dev & Agni Dev! Come riding your fast moving horses to the Yagy house to accept the offerings on been appreciated and help the donors.
ताभिरा गच्छतं नरोपेदं सवनं सुतम्। इन्द्राग्नी सोमपीतये
हे नेता इन्द्र देव और अग्नि देव! इस सवन में अभिषुत सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 6.60.9]
Hey leaders Indr Dev & Agni Dev! Come to drink the extracted Somras during this period-part of the day.
तमीळिष्व यो अर्चिषा वना विश्वा परिष्वजत्। कृष्णा कृणोति जिह्वया
हे स्तोता! जो अग्नि देव अपनी शिखा द्वारा समस्त वनों को ढक लेते हैं और ज्वालारूप जिव्हा द्वारा उन्हें काला कर देते हैं, आप उन्हीं अग्नि देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 6.60.10]
Hey Stota! Worship Agni Dev who cover the forests with their tip and make them black with their tongue in the form of flames.
य इद्ध आविवासति सुम्नमिन्द्रस्य मर्त्यः। द्युम्नाय सुतरा अपः
जो मनुष्य प्रज्वलित अग्नि में इन्द्र देव के लिए सुखकर हव्य प्रदान करते है, इन्द्र देव उन्हीं मनुष्यों के दीप्ति सम्पन्न अन्न के लिए कल्याणकारी जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 6.60.11]
Indr Dev make rains for the welfare of those humans who make pleasure giving offerings in the ignited fire. 
ता नो वाजवतीरिष आशून्पिपृतमर्वतः। इन्द्रमग्निं च वोळ्हवे 
हे इन्द्र देव और अग्रि देव! हमें बल युक्त अन्न प्रदान करें और हमारे हव्य को बलवान करने के लिए हमें वेगवान अश्व प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.60.12]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Grant us food grains which grant strength and give us fast moving horses to make our offerings powerful.
उभा वामिन्द्राग्नी आहुवध्या उभा राधसः सह मादयध्यै।
उभा दाताराविषां रयीणामुभा वाजस्य सातये हुवे वाम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! होम द्वारा आपको अनुकूल करने के लिए मैं आप दोनों का आवाहन करता हूँ। हव्य द्वारा तत्काल तृप्ति करने के लिए मैं आप दोनों का आवाहन करता हूँ। आप दोनों अन्न और धन को देने वाले हैं; इस लिए मैं अन्न प्राप्ति के लिए आप दोनों का आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 6.60.13]
Hey Indr Dev & Agni Dev! I invoke both of you to make favourable. I invoke you to have satisfaction with the offerings immediately-instantaneously. Both of you grant wealth & food grains, hence I invoke you to seek food grains. 
आ नो गव्येभिरश्यैर्वसव्यैरुप ३ गच्छतम्।
सखायौ देवौ सख्याय शंभुवेन्द्राग्नी ता हवामहे
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप गौओं, अश्वों और विपुल धन के साथ हमारे सम्मुख पधारें। हम मित्रता के लिए मित्रभूत, दानादि गुणों से युक्त और सुख देने वाले इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.60.14]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Come to us with cows, horses and a lot of wealth. We invoke Indr Dev & Agni Dev who are like friends, possess virtues like donation and comforts-pleasure for friendship.
इन्द्रानी शृणुतं हवं याजकगणस्य सुन्वतः।
वीतं हव्यान्या गतं पिबतं सोम्यं मधु
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप सोमरस रस तैयार करने वाले याजकगण का आह्वान श्रवण करें। हवि की इच्छा से आएँ और मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 6.60.15]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Respond to the invocation of the Ritviz who extract Somras. Come with the desire of offerings and drink sweet Somras.(25.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र देव, वरुण; छन्द :- त्रिष्टुप जगती।
श्रुष्टी वां यज्ञ उद्यतः सजोषा मनुष्वद् वृक्तबर्हिषो यजध्यै।
आ य इन्द्रावरुणाविषे अद्य महे सुम्नाय मह आववर्तत्
हे महान इन्द्र देव और वरुण देव! मनु के सदृश कुश-विस्तारक याजकगण के अन्न और सुख के लिए जो यज्ञ आरम्भ होता है, आज आप लोगों के लिए वही क्षिप्र यज्ञ ऋत्विकों के द्वारा प्रवृत्त किया गया।[ऋग्वेद 6.68.1]
Hey great Indr Dev & Varun Dev! The Yagy which initiate by spreading Kush Mat-cushion like Manu for food grains & benefit-comforts of the Ritviz, has been directed towards you. 
ता हि श्रेष्ठा देवताता तुजा शूराणां शविष्ठा ता हि भूतम्।
मघोनां मंहिष्ठा तुविशुष्म ऋतेन वृत्रतुरा सर्वसेना
आप श्रेष्ठ हैं, यज्ञ में धन देने वाले हैं और वीरों में अतीव बलवान हैं। दाताओं में श्रेष्ठ दाता तथा बहुबलशाली सत्य के द्वारा शत्रुओं के हिंसक और सब प्रकार की सेना से युक्त हैं।[ऋग्वेद 6.68.2]
You are excellent, grant lots of wealth for the Yagy and mightiest amongest the brave. Best amongest the donors, your mighty-truthful powers destroy the violent enemies and are have all sorts of armies.
ता गृणीहि नमस्येभिः शूषैः सुम्नेभिरिन्द्रावरुणा चकाना।
वज्रेणान्यः शवसा हन्ति वृत्रं सिषकयन्यो वृजनेषु विप्रः
स्तुति, बल और सुख के द्वारा स्तुत इन्द्र देव और वरुण देव की प्रार्थना करें। उनमें से एक इन्द्र देव वृत्रासुर का वध करते हैं, दूसरे प्रजा में युक्त (वरुण) उपद्रवों से रक्षा करने के लिए बलशाली होते हैं।[ऋग्वेद 6.68.3]
Let us worship Indr Dev & Varun Dev with Stuti, strength and comforts. One of them Indr Dev kills Vrata Sur and the other one i.e., Varun Dev protect the populace from all sorts of trouble.
ग्नाश्च यन्नरश्च वावृधन्त विश्वे देवासो नरां स्वगूर्ताः।
प्रैभ्य इन्द्रावरुणा महित्वा द्यौश्च पृथिवि भूतमुर्वी
हे इन्द्र देव और वरुण देव! समस्त पुरुष और स्त्री एवं समस्त देवगण द्यावा- पृथ्वी स्वतः उद्यत होकर जब आपको स्तुति द्वारा वर्द्धित करते हैं, तब महमिान्वित होकर आप लोग उनके प्रभु बनें।[ऋग्वेद 6.68.4]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You should become the lord of the all men & women with all demigods-deities who will automatically worship-pray to grow-promote you.
स इत्सुदानुः स्वँवा ऋतावेन्द्रा यो वां वरुण दाशति त्मन्।
इषा स द्विषस्तरेद्दास्वान्वंसद्रयिं रयिवतश्च जनान्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! जो याजक आपको स्वयं हवि देता है, वह सुन्दर दान वाला और यज्ञशाली होता है। वही दाता जय प्राप्त अन्न के साथ शत्रुओं के हाथ से सुरक्षित रहकर धन और सम्पत्तिशाली पुत्र प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.68.5]
GRACIOUS :: वैभवपूर्ण, सुख-सुविधापूर्ण, व्‍यक्ति या उसका अच्छा आचरण,  दयालु, नम्र और उदार; descent behaviour of a person, kind, polite and generous, showing the easy comfortable way of life that rich people can have.
Hey Indr Dev & Varun Dev! The Ritviz who make offerings to you become a gracious-glorious donor and performer of Yagy. That donor wins the enemies & remain protected, gets wealth and prosperous son.
यं युवं दाश्वध्वराय देवा रयिं धत्थो वसुमन्तं पुरुक्षुम्।
अस्मे स इन्द्रावरुणावपि ष्यात्प्र यो भनक्ति वनुषामशस्तीः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप हविदाता को धनानुगामी और बहु अन्नशाली जो धन देते हैं और जिससे हम अपनी निन्दा करने वालों को दूर कर सकें, वैसा ही धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.68.6]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You grant wealth and various food grains to the one (who makes offerings in the Yagy for you). Grant us riches so that we can repel those who reproach us.
उत नः सुत्रात्रो देवगोपाः सूरिभ्य इन्द्रावरुणा रयिः ष्यात्।
येषां शुष्मः पृतनासु साह्रान्प्र सद्यो द्युम्ना तिरते ततुरिः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! हम आपके स्तोता हैं। जो धन सुरक्षित है और जिसके रक्षक देवगण हैं, वही धन हम स्तोताओं को प्रदान करें। हमारा बल संग्राम में शत्रुओं को परास्त करने वाला और हिंसक होकर तत्काल उनके यज्ञ को नष्ट करे।[ऋग्वेद 6.68.7]
Hey Indr Dev & Varun Dev! We are your worshipers-Stotas. Grant us the wealth which is safe and protected by the demigods-deities. Our strength and power should be such that we are able to defeat the enemy in the war and destroy his Yagy-endeavours by becoming violent immediately.
नू न इन्द्रावरुणा गृणाना पृङ्क्तं रयिं सौश्रवसाय देवा।
इत्था गृणन्तो महिनस्य शर्धोऽपो न नावा दुरिता तरेम
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप लोग प्रार्थित होकर सुअन्न के लिए हमें शीघ्र धन प्रदान करें। हे देवों! आप लोग महान हैं। हम इस प्रकार आपके बल की प्रार्थना करते हैं। हम नौका द्वारा जल के समान पापों से मुक्त हो जावें।[ऋग्वेद 6.68.8]
Hey Indr Dev & Varun Dev! On being worshipped you grant us pious food grains quickly. Hey deities! You are great. In this manner we worship your might & power. Let us become free from the sins caused by water through boat.
I Delhi Yamuna river is extremely polluted. Maa ganga else where too face the same agony-trouble. Any one who take a dip in them invite numerous diseases-sins for him. Its advised not to enter these river for a bath or cross them. The governments are gross failure.
प्र सम्राजे बृहते मन्म नु प्रियमर्च देवाय वरुणाय सप्रथः।
अयं य उर्वी महिना महिव्रतः क्रत्वा विभात्यजरो न शोचिषा
जो वरुण देव महिमान्वित, महाकर्मा, प्रज्ञायुक्त तेज युक्त और अजर हैं, जो विस्तीर्ण हैं, वहीं धन हम स्तोताओं को प्रदान करें। हमारा बल संग्राम में शत्रुओं को परास्त करने वाला और हिंसक होकर तत्काल उनके यज्ञ को नष्ट करे।[ऋग्वेद 6.68.9]
Varun Dev, who is free form old age, glorious, performer of great deeds, aurous and vast; grant us-Stotas wealth-riches. Our war should be aimed-able to defeat the enemy by becoming violent and destroy their endeavours at the same moment.
इन्द्रावरुणा सुतपाविमं सुतं सोमं पिबतं मद्यं धृतव्रता।
युवो रथो अध्वरं देववीतये प्रति स्वसरमुप याति पीतये
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप सोमरस का पान करने वाले हैं; इसलिए इस मादक और अभिषुत सोमरस का पान करें। हे धृतव्रत मित्र और वरुणदेव! देवों के पान के लिए आपका रथ यज्ञ की ओर आता है।[ऋग्वेद 6.68.10]
धृतव्रत :: (1). जिसने कोई व्रत धारण किया हो, धार्मिक क्रिया करनेवाला, निष्ठाशील, जिसकी निष्ठा द्दढ़ हो, पुरुवेशीय जयद्रथ के पुत्र विजय का पौत्र।etermined-firm.
(2). वरुण देव के नियम सर्वदा ही निश्चित तथा दृढ हैं और इसीलिए उन्हें धृतव्रत कहा जाता है। स्वयं देवता भी इनके नियम का पालन करते हैं। शब्द का प्रयोग सविता-सूर्य  देव के लिये भी किया गया है।[ऋग्वेद 4.53.4]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You drink Somras, hence drink this intoxicating and extracted Somras. Hey determined-firm Mitr & Varun Dev! Your charoite approaches the Yagy for the demigods  to drink Somras.
इन्द्रावरुणा मधुमत्तमस्य वृष्णः सोमस्य वृषणा वृषेथाम्।
इदं वामन्धः परिषिक्तमस्मे आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयेथाम्
हे कामवर्षी इन्द्र देव और वरुण देव! आप अतीव मधुर और मनोरथवर्षक सोमरस का पान करें। आपके लिए इस सोमरूप अन्न को बनाया गया है; इसलिए कुश के आसन पर बैठकर इस यज्ञ में सोमरस को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.68.11]
Hey desires accomplishing Indr & Varun Dev! You should drink extremely-highly sweet and ambitions fulfilling Somras. Somras has been extracted for you from the food grains, hence sit over the Kush Mat and accept Somras in this Yagy.(06.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र देव, विष्णु; छन्द :- विषुप्।
सं वां कर्मणा समिषा हिनोमीन्द्राविष्णू अपसस्पारे अस्य।
जुषेथां यज्ञं द्रविणं च धत्तमरिष्टैर्नः पथिभिः पारयन्ता
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! आपके निमित्त हम हवि और उत्तम स्तोत्र प्रेषित करते हैं। आप दोनों प्रसन्न होकर यज्ञ में पधारे और हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.69.1]
Hey Indr Dev & Vishnu Dev! We make offering for you and recited excellent Strotr-sacred hymns. Both of you become happy with us and join the Yagy.
या विश्वासां जनितारा मतीनामिन्द्राविष्णू कलशा सोमधाना।
 प्र वो गिरः शस्यमाना अवन्तु प्र स्तोमासो गीयमानासो अर्कैः
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप स्तुतियों के पिता हैं। आप कलश स्वरूप और सोम के निधानभूत हैं। कहे जाने वाले स्तोत्र आपको प्राप्त होते हैं। स्तोताओं द्वारा गायन किए गए स्तोत्र आपको प्राप्त होते है।[ऋग्वेद 6.69.2]
Hey Indr Dev & Vishnu Dev! you are the father-source of the Strotr-Stutis. You are like the Kalash-pitcher & basis of som. The Strotr composed & recited by the worshipers are directed towards you. 
इन्द्राविष्णू मदपती मदानामा सोमं यातं द्रविणो दधाना।
सं वामञ्जन्त्वक्तुभिर्मतीनां सं स्तोमासः शस्यमानास उक्थैः
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप सोम के अधिपति हैं। धन देते हुए आप सोम के सम्मुख आवें। स्तोताओं के स्तोत्र, उक्थों के साथ आपको तेज द्वारा बढ़ायें।[ऋग्वेद 6.69.3]
उक्थ  :: श्लोक, स्तोत्र, कथन, कथन, उक्ति, स्तोत्र, सूक्ति, साम-विशेष, प्राण, ऋषभक नाम की औषधि; Strotr, Sukt, spelled, stated, hymns.
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! You are the lord of Som. Come to Som while granting wealth. Enhance boost your aura with the compositions and recitations sacred hymns.
आ वामश्वासो अभिमातिषाह इन्द्राविष्णू सधमादो वहन्तु।
जुषेथां विश्वा हवना मतीनामुप ब्रह्माणि शृणुतं गिरो मे
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! हिंसकों को हराने वाले और एकत्रमत्त अश्वगण आपका वहन करें। स्तोताओं के समस्त स्तोत्रों का आप सेवन करें। मेरे स्तोत्रों और वचनों को भी श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.69.4]
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! Let the horses of the same nature, capable of defeating the violent enemy, carry you. Respond to all Strotr of the Stotas. Respond to my prayers-Strotr and requests as well.
इन्द्राविष्णू तत्पनयाय्यं वां सोमस्य मद उरु चक्रमाथे।
अकृणुतमन्तरिक्षं वरीयोऽप्रथतं जीवसे नो रजांसि
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! सोमरस का मद या हर्ष उत्पन्न होने पर आप लोग विस्तृतरूप से परिक्रमा करते है। आपने अन्तरिक्ष को विस्तृत किया। आपने लोकों को हमारे जीने के लिए प्रसिद्ध किया। आपके ये सब कर्म प्रशंसा योग्य हैं।[ऋग्वेद 6.69.5]
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! You revolve comprehensively under the impact of Somras. You extended the space-universe. You made the abodes suitable for our living. All these endeavours of yours, deserve appreciation-applaud.
इन्द्राविष्णू हविषा वावृधानाग्राद्वाना नमसा रातहव्या।
घृतासुती द्रविणं धत्तमस्मे समुद्रः स्थः कलशः सोमधानः
घृत और अन्न से युक्त इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप सोमरस के पान से बढ़ते हैं और सोम के अग्रभाग का भक्षण करते हैं। नमस्कार के साथ याजकगण आपको हव्य देते हैं। आप हमें धन प्रदान करें। आप लोग समुद्र की तरह हैं। आप सोम का भण्डार और कलश के रूप हैं।[ऋग्वेद 6.69.6]
Hey possessor of Ghee and food grains Indr Dev & Shri Vishnu! You boost by the consumption of Somras and eat the upper segment of Som. The Ritviz salute and make offerings to you. You are like the ocean. You are the store house of Som and appear like  Kalash.
इन्द्राविष्णू पिबतं मध्वो अस्य सोमस्य दस्त्रा जठरं पृणेथाम्।
आ वामन्यांसि मदिराण्यग्मन्नुप ब्रह्माणि शृणुतं हवं मे
हे दर्शनीय इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप इस मदकारी सोमरस को पीकर उदर को भरें। आपके पास मदकर सोमरूप अन्न जावे। मेरा स्तोत्र और आवाहन ध्यानपूर्वक श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.69.7]
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! Fill your stomach with Somras. Let the intoxicating Som come to you as a food grain. Listen-respond to my invocation seriously.
उभा जिग्यथुर्न परा जयेथे न परा जिग्ये कतरश्चनैनोः।
इन्द्रश्च विष्णो यदपस्पृधेथां त्रेधा सहस्त्रं वि तदैरयेथाम्॥
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप विजयी होवें; कभी पराजित न होवें। आप दोनों में से कोई भी पराजित होने वाला नहीं है। आपने जिस वस्तु के लिए असुरों के साथ युद्ध किया, वह यद्यपि लोक, वेद और वचन के रूप में स्थित और असंख्य है, तथापि आपने अपनी वीरता से उसे प्राप्त किया।[ऋग्वेद 6.69.8]
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! You should be a winner and never defeated. None of you can be defeated. Though the commodity for which you fought with the demons is available in unlimited quantum, like abode, Ved and words yet you obtained-attained it with your valour-bravery.(08.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्रदेव, सोमा;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्रासोमा महि तद्वां महित्वं युवं महानि प्रथमानि चक्रथुः।
युवं सूर्यं विविदथुर्युवं स्व ९ विश्वा तमांस्यहतं निदश्च
हे इन्द्र देव और सोम देव! आपकी महिमा महान है। आपने महान और मुख्य भूतों को बनाया आपने सूर्य और जल को प्राप्त किया। आपने समस्त अन्धकारों और निन्दकों को दूर किया।[ऋग्वेद 6.72.1]
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी; चुगलखोर, आक्षेपक, निन्दोपाख्यान लेखक, उपहासात्मक; detractor, slanderer, cynical, cynic, backbiter, denigrator, satirist, satirical.
Hey Indr Dev & Som Dev! Your glory is great-ever lasting. You created great material and obtained Sun and water. You repelled all sorts of darkness and detractor, slanderer, satirical.
इन्द्रासोमा वासयथ उषासमुत्सूर्य नयथो ज्योतिषा सह।
उप द्यां स्कम्भथुः स्कम्भनेनाप्रथतं पृथिवीं मातरं वि
हे इन्द्र देव और सोम देव! आप उषा को प्रकाशित करें और सूर्य देव को ज्योति के साथ ऊपर उठावें तथा अन्तरिक्ष के द्वारा द्युलोक को स्तम्भित करें। माता पृथ्वी को प्रसिद्ध करें।[ऋग्वेद 6.72.2]
Hey Indr Dev and Som Dev! Let Usha appear and the Sun rise up with his light and make the heavens stable in respect of the space.  Make mother earth famous.
इन्द्रासोमावहिमपः परिष्ठां हथो वृत्रमनु वा द्यौरमन्यत।
प्रार्णांस्यैरयतं नदीनामा समुद्राणि पप्रथुः पुरूणि
हे इन्द्र देव और सोम देव! जल को रोकने वाले अहि वृत्रासुर का वध करें। द्युलोक ने आपको संवर्द्धित किया। नदी के जल को प्रेरित करके, जल द्वारा समुद्र को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 6.72.3]
Hey Indr Dev & Som Dev! Kill Vratra Sur who blocked the flow of water. The heavens have grown-nourished, nurtured you. Inspire the river waters to fill the oceans.
इन्द्रासोमा पकमामास्वन्तर्नि गवामिद्दद्यथुर्वक्षणासु।
जगृभथुरनपिनद्धमासु रुशच्चित्रासु जगतीष्वन्तः
हे इन्द्र देव और सोम देव! आपने कम उम्र वाली गौओं के थनों में परिपक्व दूध को स्थापित किया। नाना वर्ण की गौओं में आपने आबद्ध और शुक्लवर्ण दुग्ध को धारित कराया।[ऋग्वेद 6.72.4]
Hey Indr Dev & Som Dev! You generated ripe milk in the udders of immature cows. Cows of various colours produce white milk.
इन्द्रासोमा युवमङ्ग तरुत्रमपत्यसाचं श्रुत्यं रराथे।
युवं शुष्मं नर्यं चर्षणिभ्यः सं विव्यथुः पृतनाषाहमुग्रा
हे इन्द्र देव और सोम देव! आप लोग तारक, सन्तानयुक्त और श्रवणयोग्य धन हमें शीघ्र प्रदान करें। हे उग्र इन्द्र देव और सोम देव! मनुष्यों के लिए हितकर और शत्रु सेना को पराजित करने वाले बल को आप हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.72.5]
Hey Indr Dev & Som Dev! Grant us the wealth which is purifying, help in release from reincarnations, associated with progeny, good to listen-heard, quickly. Hey furious Indr Dev & Som Dev! Grant us might which is beneficial to the humans and capable of defeating the enemy army.(10.11.2023)

 
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

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