DEMIGODS 33 कोटि देवता
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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आ रोदसी अपृणादोत मध्यं पञ्च देवाँ ऋतुशः सप्तसप्त।
चतुस्त्रिंशता पुरुधा वि चष्टे सरूपेण ज्योतिषा विव्रतेन॥
इन्द्र देव ने अपने शरीर से द्युलोक, भूलोक और अन्तरिक्ष को पूर्ण किया। हे इन्द्र देव! समय-समय पर पाँच जातियों (देव, मनुष्य, पितर, असुर और राक्षस) और सात तत्त्वों (सात मरुद्गण, सात सूर्य किरण, सात लोक आदि) को अपने प्रदीप्त नानविध कार्यों के द्वारा धारण किया है। वह सब कार्य एक ही भाव से चलते हैं। इस सम्बन्ध में मेरे साथ तैंतीस देवता (आठ वसु, एकादश रुद्र, द्वादश आदित्य, प्रजापति, वषट्कार और विराट्) इन्द्र देव की सहायता करते है।[ऋग्वेद 10.55.3]
Indr Dev completed heaven, earth and the space with his body. Hey Indr Dev! Time to time, 5 castes-Varn, 7 basic components :- 7 Marud Gan, & rays, & abodes etc., supported by virtue of your differnt endeavours-efforts. They all move in unison. 33 demigods-deities (8 Vasu, 11 Rudr, 12 Adity, 2 Ashwani Kumars) in addition to Prajapati, Vashatkar and Virat) help-suppot Indr Dev.
त्रीणि शता त्री सहस्त्राण्यग्निं त्रिंशच्च देवा नव चासपर्यन्।
औक्षन्मृतेरस्तृणन्बर्हिरस्मा आदिद्धोतारं न्यसादयन्त॥
तीन हजार तीन सौ उन्नतालिस देवताओं ने अग्नि देव की सेवा की। अग्नि देव को उन्होंने घृत से अभिषिक्त किया, उनके लिए कुश बिछा दिया और उन्हें होता के रूप में यज्ञ में प्रतिष्ठित किया।[ऋग्वेद 10.52.6]
अभिषिक्त :: जिसका अभिषेक हुआ हो, जिसके ऊपर जल आदि छिड़का गया हो, जो जल आदि से नहलाया गया हो, बाधा शांति के लिये जिस पर मंत्र पढ़कर दूर्वा और कुश से पानी छिडका गया हो, जिस पर विधिपूर्वक जल छिड़ककर किसी अधिकार का भार दिया गया हो, राजपद पर निर्वाचित; anointed, crowned.
Three thousand and three hundred thirty nine demigods-deities served Agni Dev. They anointed Agni Dev with Ghee, Kush Mate was laid for him and he was established as the Hota of the Yagy.
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः। तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः॥
जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले विभिन्न देवता यज्ञ सम्पन्न होने पर प्रसन्न होकर तुम्हारी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे। किन्तु जो इन उपहारों को देवताओं को अर्पित किये बिना भोगता है, वह निश्चित रूप से चोर है।[श्रीमद्भगवद्गीता कर्म योग 3.12]
The demigods-deities will fulfil all desires, needs of the devotee after the completion of the Yagy-sacrifices in Holi fire, by him. But if one enjoys these gifts without offering them to the demigods he is surly a thief.
देवतागण मनुष्यों की इच्छाओं को पूरा करते हैं। इसलिये मनुष्यों को उनकी पूजा यज्ञ, हवन अग्निहोत्र आदि के द्वारा करनी चाहिये। देवतों के निमित्त चढ़ावा अर्पित करना उसकी जिम्मेवारी है। मनुष्य को अपनी जिम्मेवारियों का निर्वाह चाहिये। अर्जुन के लिये यह अनिवार्य था कि वो युद्ध करे।
The demigods helps the humans in growing food, through rains, various seasons etc., when they perform prayers. They fulfil desires and grant boons. Therefore, one must offer prayers, worship them and offer sacrifices Yagy, in return. Its essential to perform his duties for the humans. It was therefore, essential for Arjun to fight, which was his primary duty as a Kshatriy.Arjun himself was a divine creation fathered by Dev Raj Indr. Maha Bharat too was a divine design. His appearance over the earth was just to become a tool to eliminate the traitors, tyrants, unjust, unreasonable, whether he agreed or not he was destined to fight and accomplish the job assigned to him. After Maha Bharat he became the Supreme Commander of Narayani Sena and eliminated the cruel, unjust kings who did not participate in Maha Bharat, as was desired by the Almighty.
One is born to carry out one or the other aspect of his destiny. So, he should understand this and act in a virtuous manner to accomplish the job.
परमात्मा श्री कृष्ण ने कि उनका चतुर्भुज रुप अत्यन्त दुर्लभ है और इसे देखने के लिये देवगण भी लालायित रहते हैं तथा यह केवल अनन्य भक्ति से ही संभव हैं। देवताओं में अनन्य भक्ति का अभाव है, क्योंकि वो केवल भोग-विलास के लिये ही देवता बने हैं। उनमें देवत्व पद का अभिमान है।
The Almighty made it clear that HIS four armed figure could be seen through devotion-surrender (asylum under the Almighty) only. Even the deities-demigods could not see it, since they lacked unique-exclusive (unqualified) love and devotion towards HIM. They were proud to be demigods and got this form to enjoy, satisfaction of sensuality (sexuality, passions, lasciviousness).
देवताओं जैसे को देवगण कहते हैं। देवगण भी देवताओं के लिए कार्य करते हैं। देवताओं के देवता अर्थात देवाधिदेव महादेव हैं तो देवगणों के अधिपति गणेश जी हैं। जैसे शिव के गण होते हैं उसी तरह देवों के भी गण होते हैं। गण का अर्थ है वर्ग, समूह, समुदाय। जहाँ राजा वहीं मंत्री इसी प्रकार जहाँ देवता वहाँ देवगण भी। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं, तो दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य।
देवताओं की छाया कभी पृथ्वी पर नहीं पड़ती। उनके पाँव कभी पृथ्वी को नहीं छूटे। उनके शरीर में मल-मूत्र और पसीना नहीं बनता। उनके दाढ़ी-मूँछें नहीं होतीं। वे हमेशां 14 साल की वय-आयु के प्रतीत होते हैं।
MENIFESTATIONS OF THE GOD-DEITIES देवगण ::
भगवान् श्री कृष्ण :: जगत के उत्पत्ति कर्ता; Bhagwan Shri Krashn is the first embodiment of the Nirakar Almighty.
भगवती राधा :: भगवान् श्री कृष्ण की चिर संगिनी; Bhagwati Radha: The power-might-strength of the Almighty.
विराट पुरुष :: महाविष्णु-भगवान् श्री कृष्ण और राधा जी के पुत्र-समस्त बृह्मांडों के जनक; The creator of all Universes, Son of Bhagwan Shri Krashn and Radha Ji.
भगवान् विष्णु :: पालन हार; Almighty Bhagwan Vishnu:- The Nurturer.
भगवान् ब्रह्मा जी :: उत्पत्ति कर्ता; Almighty Bhagwan Brahma Ji: The Creator.
भगवान् शिव :: विध्वंसक-नष्ट कर्ता; Almighty Bhagwan Shiv:- The Destroyer.
इन्द्र देवताओं के राजा; INDR :: King of Heaven-Demigods, Nurturers-protects earth through rains and nourishment.
पवन-मारुत-वायु देव PAWAN DEV :: वायु प्रवाह; Deity of wind-air.
वरुण VARUN DEV :: जल के देवता; Deity of water-rain.
समुद्र OCEAN :: पृथ्वी पर जल के संग्रह कर्ता; Incarnation of Bhagwan Vishnu-Ocean.
पवित्र नदियाँ HOLY RIVERS :: गँगा, यमुना, सरस्वती, सिन्धु, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी गोमती :: Ganga, Yamuna, Saraswati, Sindhu, Narmada, Kaveri, Godavari, Gomti.
गणेश GANESH :: विघ्न विनाशक, रुकावट-परेशानी दूर कर्ता; son of Bhagwan Shiv and Maa Parwati, protects from troubles, makes the job easier, helps in over coming difficulty. Provides enlightenment, intelligence, prudence.
शक्ति BHAGWATI (पार्वती, शिव पत्नी, दुर्गा, भवानी, अम्बे) :: भगवती अवतार-शक्ति दायक; Shakti; Wife-consort of Bhagwan Shiv-grants might-power-strength.
धनवंतरी DHANWANTRI :: चिकित्सा; Son of Samudr-The Divine Doctor.
अश्वनी कुमार ASHWANI KUMAR :: देव चिकित्सक, भगवान् सूर्य के दो पुत्र; Two sons of Bhagwan Sury, Doctor of demigods-deities.
भगवान् कार्तिकेय BHAGWAN KARTIKEY :: भगवान् शिव व माता पार्वती के पुत्र, देव सेनापति; Chief of Divine armies.
माता लक्ष्मी GODDESS OF WEALTH :: भगवान् विष्णु की पत्नी-धन की देवी, समुद्र पुत्री, Daughter of Samudr & Wife of Bhagwan Vishnu
माता सरस्वती MATA SARASWATI :: भगवान् विष्णु की पत्नी, ज्ञान-संगीत की देवी, Goddess-Deity of learning & Music.
कुबेर KUBER :: धन के रक्षक-खजांची, यक्षों के राजा, रावण के बड़े भाई; King of Yaksh & Treasurer, Ravan's elder brother.
शनि SATURN :: भाग्य के देवता, भगवान् सूर्य के पुत्र; Deity of Luck. son of Bhagwan Sury-Sun.
वृहस्पति VRAHASPATI :: देव गुरु; Philosopher-teacher & guide of Demigods-deities.
शुक्र VENUS :: राक्षसों के गुरु, सर्वश्रेष्ठ कवि; Philosopher-teacher & guide of Demons-Rakshas, Giants, King of Poets, Master of Earth.
चन्द्र देव, MOON :: ब्राह्मणों के राजा, औषधियों के उत्पत्ति करता और रक्षक, प्यार-मोह; Son of Samudr & King of Brahmns, nourishes medicines, love, imagination, travel.
बुद्ध MERCURY :: चन्द्र पुत्र-चतुराई-ज्ञान, बुद्धि के दाता; Son of Chandr-Moon, Provides intelligence. Kaurav Vansh originated from him.
काम देव KAM DEV :: काम-उत्तेजना, वासना, प्यार; Sensuality, Sex, Lust, Sexuality, Passions, Lasciviousness.
रति RATI :: काम देव की पत्नी-काम वर्धक; helps her husband in sexual pleasure-passions, sensuality.
मंगल MARS :: भगवान् शिव व पृथ्वी पुत्र; Son of Bhagwan Shiv & earth, War, Welfare.
हनुमान HANUMAN :: 11 वे रूद्र, शिव स्वरूप देवताओं के रक्षक व सहायक; Protector of Deities-Demi Gods, Son of Pawan Dev.
पृथ्वी EARTH :: समस्त प्राणियों का भार धारण करने वाली; Bears all the creatures over her.
यम राज-धर्म राज DHARM RAJ :: मृत्यु, धर्म कर्म, पुनर्जन्म, लोक-परलोक निर्धारण, कर्म फल; Deity of Death-Rebirth and Karm-deeds.
भगवान् शेष नाग BHAGWAN SHESH NAG :: पृथ्वी को अपने फन पर धारण करने वाले-भगवान विष्णु के शेष अवतार, लक्षमण जी और बलराम जी उन्हीं के अवतार थे; Incarnation of Bhagwan Vishnu; holds the earth in its orbit round the Sun on his hood, Lakshman Ji & Balram Ji were his incarnation.
गुणों के देवताओं का देववाची नामकरण :: अग्नि :- तेजस्वी। प्रजापति :- प्रजा का पालन करने वाला। इन्द्र :- ऐश्वर्यवान। ब्रह्मा :- बनाने वाला। विष्णु :- व्यापक। रुद्र :- भयंकर। शिव :- कल्याण चाहने वाला। मातरिश्वा :- अत्यंत बलवान। वायु :- वेगवान। आदित्य :- अविनाशी। मित्र :- मित्रता रखने वाला। वरुण :- ग्रहण करने योग्य। अर्यमा :- न्यायवान। सविता :- उत्पादक। कुबेर :- व्यापक। वसु :- सब में बसने वाला। चंद्र :- आनंद देने वाला। मंगल :- कल्याणकारी। बुध :- बोध-ज्ञान स्वरूप। बृहस्पति :- समस्त ब्रह्माण्डों का स्वामी। शुक्र :- पवित्र। शनिश्चर :- सहज में प्राप्त होने वाला। राहु :- निर्लिप्त। केतु :- निर्दोष। निरंजन :- कामना रहित। गणेश :- प्रजा पालक। धर्मराज :- धर्म के अधिपति। यम :- फलदाता। काल :- समय रूप। शेष :- उत्पत्ति और प्रलय से बचा हुआ। शंकर :- कल्याण करने वाला।
आदित्य-विश्व-वसवस् तुषिताभास्वरानिलाः
महाराजिक-साध्याश् च रुद्राश् च गणदेवताः॥
36 तुषित, 10 विश्वेदेवा, 12 साध्य देव, 64 आभास्वर, 49 मरुत्, 220 महाराजिक मिलाकर कुल 424 देवता और देवगण हैं। गणों की सँख्या अनन्त है। प्रमुख देवताओं की सँख्या 33 ही है। इसके अलावा प्रमुख 10 आंगिरस देव और 9 देवगण भी हैं। महाराजिकों की कहीं-कहीं संख्या 236 और 226 भी मिलती है।[नामलिङ्गानुशासनम्]
त्रिदेव :: ब्रह्मा, विष्णु और महेश के जनक हैं आदिदेव भगवान् सदाशिव और माँ दुर्गा। त्रिदेव की पत्नियाँ :- सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती। पार्वती अपने पूर्व जन्म में सती थीं। माता पार्वती ही पिछले जन्म में सती थीं। सती के ही 10 रूप 10 महाविद्या के नाम से विख्यात हुए और उन्हीं को 9 दुर्गा कहा गया है। आदिशक्ति माँ दुर्गा और पार्वती अलग-अलग हैं। दुर्गा सर्वोच्च शक्ति हैं, लेकिन उन्हें कहीं-कहीं पार्वती के रूप में भी दर्शाया गया है। राम, कृष्ण और बुद्ध आदि को देवता नहीं, भगवान् श्री हरी विष्णु का अवतार कहा गया है।
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे॥
जो ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, बारह साध्यगण, दस विश्वेदेव, दो अश्वनीकुमार तथा उन्चास मरुद्गण और गरम-गरम भोजन करने वाले सात पितृ गण तथा गन्धर्व, यक्ष, असुर और सिद्धों के समुदाय हैं, वे सभी चकित होकर आपको देख रहे हैं।[श्रीमद् भगवद्गीता 11.22] 11 Rudr, 12 Adity, 8 Vasu, 12 Sadhygan, 10 Vishw Dev and 2 Ashwani Kumar, 49 Marud Gan and 7 Manes (Pitr Gan) who eat hot-fresh food, Gandharvs, Yaksh, Asur (Rakshas, Demons, Giants) and hosts-groups of Siddh are staring at you in surprise-amazed.
मरुद्गणों और यक्षों को भी देवताओं के समूह में शामिल किया गया है। त्रिदेवों ने सभी देवताओं को अलग-अलग कार्य पर नियुक्त किया है। वर्तमान मन्वन्तर में ब्रह्मा के पौत्र कश्यप से ही देवता और दैत्यों के कुल का निर्माण हुआ। ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थीं। महर्षि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं।
ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, बारह साध्यगण, दो अश्वनीकुमार तथा उन्चास मरुद्गण भगवान् को चकित होकर देख रहे हैं।
ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, बारह साध्यगण, दो अश्वनीकुमार तथा उन्चास मरुद्गण भगवान् को चकित होकर देख रहे हैं।
कश्यप जी की पत्नी मुनि, प्राधा और अरिष्टा से गन्धर्वों की उत्पत्ति हुई है, जो कि गायन विद्या में कुशल होने के कारण स्वर्गलोक के गायक हैं। कश्यप जी की पत्नी खसा से यक्षों की उत्पत्ति हुई है। देवताओं के विरोधी दैत्य, दानव और राक्षस असुर कहलाते हैं। कपिल आदि को सिद्ध कहते हैं। ये समस्त देवता गण, पितर, गन्धर्व, यक्ष आदि जो कि विराटरूप के ही अंग हैं, प्रभु को चकित होकर देख रहे हैं। अतः दिखने वाले और देखने वाले सभी एक परमात्मा ही हैं।
What Arjun was visualising with his divine vision was seen by the demigods, giants, demons, Yaksh, Gandharvs, etc. simultaneously; within the Almighty with great surprise, in the broad form.
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24 देवताओं के नाम :: (1).अग्नि, (2). वायु, (3). सूर्य, (4). कुबेर, (5). यम, (6). वरुण, (7). बृहस्पति, (8). पर्जन्य, (9). इन्द्र, (10). गंधर्व, (11). प्रोष्ठ, (12). मित्रावरुण, (13). त्वष्टा, (14). वासव, (15). मरुत, (16). सोम, (17). अंगिरा, (18). विश्वेदेवा, (19). अश्विनीकुमार, (20). पूषा, (21). रुद्र, (22). विद्युत, (23). ब्रह्मा, (24). अदिति।[गायत्री मंत्र]
12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्वनी कुमार। अश्वनीकुमारों की जगह इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति से जन्मे पुत्रों को आदित्य कहा गया है। वेदों में जहां अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है, वहीं सूर्य को भी आदित्य कहा गया है।
12 आदित्य :: अदिति के पुत्र धाता, मित्र, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु 12 आदित्य हैं। अन्य कल्प में ये नाम इस प्रकार थे :- अंशुमान, अर्यमन, इन्द्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु। इन्द्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान, विष्णु, अंशुमान और मित्र अथवा इन्द्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान, विष्णु, अंशुमान और मित्र अथवा विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान् वामन)। प्रचलित है कि गुणों के अनुरुप किसी व्यक्ति के अनेक नाम भी होते हैं। जिस प्रकार एक व्यक्ति के कई नाम होते हैं उसी प्रकार एक नाम के कई व्यक्ति हो सकते हैं। इन्हीं पर वर्ष के 12 मास नियुक्त हैं।
(1). इन्द्र :: यह भगवान सूर्य का प्रथम रूप है। यह देवों के राजा के रूप में आदित्य स्वरूप हैं। इनकी शक्ति असीम है। इन्द्रियों पर इनका अधिकार है। शत्रुओं का दमन और देवों की रक्षा का भार इन्हीं पर है।इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है। वह बादलों और विद्युत का देवता है। इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी थी। इन्द्र एक पद है। स्वर्ग के शासन को इन्द्र कहा जाता है। इसे समय इकाई के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है यथा एक इंद्र का कार्यकाल।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल के वर्णनानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इन्द्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इन्द्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्ति संपन्न देव है। इन्द्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं।
(2). धाता :: धाता हैं दूसरे आदित्य। इन्हें श्री विग्रह के रूप में जाना जाता है। ये प्रजापति के रूप में जाने जाते हैं। जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है। जो व्यक्ति सामाजिक नियमों का पालन नहीं करता है और जो व्यक्ति धर्म का अपमान करता है उन पर इनकी नजर रहती है। इन्हें सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है।
(3). पर्जन्य :: पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं। ये मेघों में निवास करते हैं। इनका मेघों पर नियंत्रण हैं। वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बरसता है। ये धरती के ताप को शांत करते हैं और फिर से जीवन का संचार करते हैं। इनके बगैर धरती पर जीवन संभव नहीं।
(4). त्वष्टा :: आदित्यों में चौथा नाम श्रीत्वष्टा का आता है। इनका निवास स्थान वनस्पति में है। पेड़-पौधों में यही व्याप्त हैं। औषधियों में निवास करने वाले हैं। इनके तेज से प्रकृति की वनस्पति में तेज व्याप्त है जिसके द्वारा जीवन को आधार प्राप्त होता है। त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप। विश्वरूप की माता असुर कुल की थीं। अतः वे चुपचाप असुरों का भी सहयोग करते रहे।
एक दिन इन्द्र ने क्रोध में आकर वेदाध्ययन करते विश्वरूप का सिर काट दिया। इससे इन्द्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा। इधर, त्वष्टा ऋषि ने पुत्रहत्या से क्रुद्ध होकर अपने तप के प्रभाव से महापराक्रमी वृत्तासुर नामक एक भयंकर असुर को प्रकट करके इन्द्र के पीछे लगा दिया।
ब्रह्माजी ने कहा कि यदि नैमिषारण्य में तपस्यारत महर्षि दधीचि अपनी अस्थियां उन्हें दान में दें दें तो वे उनसे वज्र का निर्माण कर वृत्तासुर को मार सकते हैं। ब्रह्माजी से वृत्तासुर को मारने का उपाय जानकर देवराज इन्द्र देवताओं सहित नैमिषारण्य की ओर दौड़ पड़े।
(5). पूषा :: पांचवें आदित्य पूषा हैं, जिनका निवास अन्न में होता है। समस्त प्रकार के धान्यों में ये विराजमान हैं। इन्हीं के द्वारा अन्न में पौष्टिकता एवं ऊर्जा आती है। अनाज में जो भी स्वाद और रस मौजूद होता है वह इन्हीं के तेज से आता है।
(6). अर्यमन :: अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता भी कहा जाता है। आकाश में आकाशगंगा उन्हीं के मार्ग का सूचक है। सूर्य से संबंधित इन देवता का अधिकार प्रात: और रात्रि के चक्र पर है।आदित्य का छठा रूप अर्यमा नाम से जाना जाता है। ये वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार करते हैं। चराचर जगत की जीवन शक्ति हैं। प्रकृति की आत्मा रूप में निवास करते हैं।
(7). भग :: सातवें आदित्य हैं भग। प्राणियों की देह में अंग रूप में विद्यमान हैं। ये भग देव शरीर में चेतना, ऊर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति करते हैं।
(8). विवस्वान :: आठवें आदित्य विवस्वान हैं। ये अग्निदेव हैं। इनमें जो तेज व ऊष्मा व्याप्त है वह सूर्य से है। कृषि और फलों का पाचन, प्राणियों द्वारा खाए गए भोजन का पाचन इसी अग्नि द्वारा होता है। ये आठवें मनु वैवस्वत मनु के पिता हैं।
(9). विष्णु :: नौवें आदित्य हैं विष्णु। देवताओं के शत्रुओं का संहार करने वाले देव विष्णु हैं। वे संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति कराने वाले हैं। माना जाता है कि नौवें आदित्य के रूप में विष्णु ने त्रिविक्रम के रूप में जन्म लिया था। त्रिविक्रम को विष्णु का वामन अवतार माना जाता है। यह दैत्यराज बलि के काल में हुए थे। हालांकि इस पर शोध किए जाने कि आवश्यकता है कि नौवें आदित्य में लक्ष्मीपति विष्णु हैं या विष्णु अवतार वामन।
12 आदित्यों में से एक विष्णु को पालनहार इसलिए कहते हैं, क्योंकि उनके समक्ष प्रार्थना करने से ही हमारी समस्याओं का निदान होता है। उन्हें सूर्य का रूप भी माना गया है। वे साक्षात सूर्य ही हैं। विष्णु ही मानव या अन्य रूप में अवतार लेकर धर्म और न्याय की रक्षा करते हैं। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हमें सुख, शांति और समृद्धि देती हैं। विष्णु का अर्थ होता है विश्व का अणु।
(10). अंशुमान :: दसवें आदित्य हैं अंशुमान। वायु रूप में जो प्राण तत्व बनकर देह में विराजमान है वही अंशुमान हैं। इन्हीं से जीवन सजग और तेज पूर्ण रहता है।
(11). वरुण :: ग्यारहवें आदित्य जल तत्व का प्रतीक हैं वरुण देव। ये मनुष्य में विराजमान हैं जल बनकर। जीवन बनकर समस्त प्रकृति के जीवन का आधार हैं। जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। वरुण को असुर समर्थक कहा जाता है। वरुण देवलोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं।
वरुण तो देवताओं और असुरों दोनों की ही सहायता करते हैं। ये समुद्र के देवता हैं और इन्हें विश्व के नियामक और शासक, सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन-रात के कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता के रूप में जाना जाता है। इनके कई अवतार हुए हैं। उनके पास जादुई शक्ति मानी जाती थी जिसका नाम था माया। उनको इतिहासकार मानते हैं कि असुर वरुण ही पारसी धर्म में ‘अहुरा मज़्दा’ कहलाए।
(12). मित्र :: बारहवें आदित्य हैं मित्र। विश्व के कल्याण हेतु तपस्या करने वाले, साधुओं का कल्याण करने की क्षमता रखने वाले हैं मित्र देवता हैं। ये 12 आदित्य सृष्टि के विकास क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
8 वसु :: धर, ध्रुव, सोम, अह:, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभास।
11 रूद्र :: बहुरूप, त्र्यम्बक, अपराजित, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी, रैवत, मृगव्याध, शर्व और कपाली।
12 साध्य देव :: अनुमन्ता, प्राण, नर, मन या वीर्य्य, यान, चित्ति, हय, नय, हंस, नारायण, प्रभव-प्रभस और विभु, ये 12 साध्य देव हैं, जो दक्ष पुत्री और धर्म की पत्नी साध्या से उत्पन्न हुए हैं।
साध्य :: The Sadhy were born from the seed Virat Purush. साध्य गणों की उत्पत्ति विराट पुरुष से हुई।[आदि पर्व 1.35]
साध्य दक्ष प्रजापति के पौत्र थे। दक्ष प्रजापति की कन्या साध्य का विवाह धर्म राज से हुआ। जिससे साध्य गणों की उत्पति हुई।[विष्णु पुराण 1.35]
The Sadhy fought with Garud Ji, who went to Dev Lok for Amrat and got defeated.[आदि पर्व 32.16]
The Sadhy feared Vishwamitr.[अनुशासन पर्व 71.39]
Sadhy Gan participated in the birthday celebrations of Arjun.[आदि पर्व 122.70]
Sadhy took their place in planes above the palace of Drupad to witness Draupadi's wedding.[आदि पर्व 186.6]
They were present at the Dev Yagy conducted at Naemisharany forest.[आदि पर्व 195.3]
They were present with various Kinds of arrows in the battle between Bhagwan Shri Krashn and Arjun on the occasion of the burning of the Khandav Van-forest.[आदि पर्व 226.38]
They live in court of Dev Raj Indr.[सभा पर्व 7.22]
They go to the court of Brahma Ji to worship him.[सभा पर्व 11.44]
During the battle between Bhagwan Kartikey and Tadka Sur, they fought for Bhagwan Kartikey. [वन पर्व 231.71]
They prayed to Dattatrey Muni.[उद्योग पर्व 36.3]
On the occasion of the battle between Karṇ and Arjun at Kurukshetra the Sadhy Gan wished success for the flatter.[Salv Parv 44.29].
They served as store-keepers at the Yagy performed by king Marut. [Santi Parv 29.22]
They remain over Mount Munjvan worshipping Bhagwan Shiv. [Ashw Medh Parv 8.1]
Sadhy Gan (साध्य) refers to a group of demigods-deities who worshipped in Kashmir.[Nilmant Puran]
Demigods-deities like Adity, Vasu, Sadhy, Vishw Dev and Marut have their place in the pantheon of the Nilmant.[Shiv Puran]
Gan are troops who generally appear in classes. Nine such classes are mentioned in the Puran Adity, Vishw Dev, Vasu, Tusit, Anil, Maha Rajik, Sadhy, Rudr. These are attached to Bhagwan Shiv and serve under the command of Ganesh Ji Maharaj dwelling on Gan Parwat identified with Kaelash.
Sadhya (साध्या) :- A wife of Dharm; sons known as Sadhy, participators in Yagy.
Sadhy Gan :- Born of Sadhy and Dharm, their son was Arth Siddhi; Created by Vam Dev; of the Tamas epoch, one of the 7 Gan of the Vaevasvat epoch.
Bhagwan Shri Hari Vishnu-Narayan lying in sleep in the vast mass of water.
A son of Atri, the Avtar of the 12th Dwapar.
The sons of Manu (Chakshuk Manvantar) worshipped for control of subjects, came with other demigods to Dwarka request Bhagwan Shri Krashn to return to Gau Lok. The twelve sons of Dharm and Sadhya first appeared as Jay Dev from the forehead of Brahma Ji.
In Svayambhuv epoch-Manvantar as Jit, in Tamas epoch as Harnay, in Raewat epoch as Vaekunth, Svarochit epoch as Tusit, in Uttam epoch as Saty, in Chakshuk epoch as Chandajas and in the Vaevasvat epoch as Sadhy, Vasus are their brothers; demigods of Chakshuk and Vaevasvat epochs, their names are Man, Anumant, Pran, Nar, Apan, Viry Van, Viti, Nay, Hay, Hans, Narayan, Vibhu and Prabhu, live in Bhuvar Lok; Narayan, their overlord; worship Gau, the mind-born daughter of the Manas Pitr Gan-Manes. 2 of them requested Som-Chandr Dev to give up Jara-old age to Dev Guru Brahaspati 3 with Angira's sons spread themselves in the world of Marichi Garbh.
10 विश्वेदेव :: क्रतु, दक्ष, श्रव, सत्य, काल, धुनि, कुरुवान, प्रभवान् और रोचमान।
7 पितर :: कव्यवाह, अनल, सोम, यम, अर्यमा, अग्निश्वात्त और बर्हिषत्।
2 अश्वनीकुमार :: (1). नासत्य और (2). दस्त्र। अश्विनीकुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न भगवान् सूर्य नारायण के 2 पुत्र हैं। ये आयुर्वेद के आदि आचार्य देवताओं के वैद्य-चिकित्सक हैं।
64 अभास्वर :: तमोलोक में 3 देव निकाय हैं :- अभास्वर, महाभास्वर और सत्य महाभास्वर। ये देव भूत, इन्द्रिय और अंत:करण को वश में रखने वाले होते हैं।
12 यामदेव :: यदु ययाति देव तथा ऋतु, प्रजापति आदि यामदेव कहलाते हैं।
10 विश्वदेव :: पुराणों में दस विश्वदेवों को उल्लेख मिलता है जिनका अंतरिक्ष में एक अलग ही लोक है।
220 महाराजिक :- कल्पान्तर में इनकी सँख्या 236 से 4,000 कही गई है।
49 मरुतगण :: मरुतगण देवता नहीं हैं, लेकिन वे देवताओं के सैनिक हैं। वेदों में इन्हें रुद्र और वृश्नि का पुत्र कहा गया है तो पुराणों में कश्यप और दिति का पुत्र माना गया है। मरुतों का एक संघ है जिसमें कुल 180 से अधिक मरुतगण सदस्य हैं, लेकिन उनमें 49 प्रमुख हैं। उनमें भी 7 सैन्य प्रमुख हैं। मरुत देवों के सैनिक हैं और इन सभी के गणवेश समान हैं। मरुतगण का स्थान अंतरिक्ष लिखा है। उनके घोड़े का नाम पृशित बतलाया गया है तथा उन्हें इंद्र का सखा लिखा है।[ऋग्वेद 1.85.4]
पुराणों में इन्हें वायुकोण का दिक्पाल माना गया है। अस्त्र-शस्त्र से लैस मरुतों के पास विमान भी होते थे। ये फूलों और अंतरिक्ष में निवास करते हैं।
7 मरुत :- (1). आवह, (2). प्रवह, (3). संवह, (4). उद्वह, (5). विवह, (6). परिवह और (7). परावह। इनके 7-7 गण निम्न जगह विचरण करते हैं यथा ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा। इस तरह से कुल 49 मरुत हो जाते हैं, जो देव रूप में देवों के लिए विचरण करते हैं।
30 तुषित :: 30 देवताओं का एक ऐसा समूह है जिन्होंने अलग-अलग मन्वंतरों में जन्म लिया था। स्वारोचिष नामक द्वितीय मन्वंतर में देवतागण पर्वत और तुषित कहलाते थे। देवताओं का नरेश विपश्चित था और इस काल के सप्त ऋषि थे- उर्ज, स्तंभ, प्रज्ञ, दत्तोली, ऋषभ, निशाचर, अखरिवत, चैत्र, किम्पुरुष और दूसरे कई मनु के पुत्र थे।
तुषित नामक एक स्वर्ग और एक ब्रह्माण्ड भी है। चाक्षुष मन्वंतर में तुषित नामक 12 श्रेष्ठ गणों ने 12 आदित्यों के रूप में महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया। पुराणों में स्वारोचिष मन्वंतर में तुषिता से उत्पन्न तुषित देवगण के पूर्व व अपर मन्वंतरों में जन्मों का वृत्तांत मिलता है। स्वायम्भुव मन्वंतर में यज्ञपुरुष व दक्षिणा से उत्पन्न तोष, प्रतोष, संतोष, भद्र, शांति, इडस्पति, इध्म, कवि, विभु, स्वह्न, सुदेव व रोचन नामक 12 पुत्रों के तुषित नामक देव होने का उल्लेख मिलता है।
अन्य देव :: गणाधिपति गणेश, कार्तिकेय, धर्मराज, चित्रगुप्त, अर्यमा, हनुमान, भैरव, वन, अग्निदेव, कामदेव, चंद्र, यम, शनि, सोम, ऋभुः, द्यौः, सूर्य, बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, धेनु, सनकादि, गरूड़, अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक, पिंगला, जय, विजय आदि।
अन्य देवी :: भैरवी, यमी, पृथ्वी, पूषा, आपः सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु त्वष्टा, सावित्री, गायत्री, श्री, भूदेवी, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति आदि।
देवताओं का वर्गीकरण ::
(1.1). स्थान क्रम :: द्युस्थानीय यानी ऊपरी आकाश में निवास करने वाले देवता, मध्य स्थानीय यानी अंतरिक्ष में निवास करने वाले देवता और तीसरे पृथ्वी स्थानीय यानी पृथ्वी पर रहने वाले देवता माने जाते हैं।
(1.2). परिवार क्रम :: इन देवताओं में आदित्य, वसु, रुद्र आदि को गिना जाता है।
(1.3). वर्ग क्रम :: इन देवताओं में इन्द्रावरुण, मित्रावरुण आदि देवता आते हैं।
(1.4). समूह क्रम :: इन देवताओं में सर्व देवा आदि की गिनती की जाती है।
(2.1). स्व: स्वर्ग :: सूर्य, वरुण, मित्र, पूषन, विष्णु, उषा, अपांनपात, सविता, त्रिप, विंवस्वत, आदित्यगण, अश्विनद्वय आदि।
(2.2). अंतरिक्ष भूव: :: पर्जन्य, वायु, इंद्र, मरुत, रुद्र, मातरिश्वन, त्रिप्रआप्त्य, अज एकपाद, आप, अहितर्बुध्न्य।
(2.3). पृथ्वी भू: धरती :: पृथ्वी, ऊषा, अग्नि, सोम, बृहस्पति, नदियाँ आदि।
(2.4). पाताल :: उक्त 3 लोक के अलावा पितृलोक और पाताल के भी देवता नियुक्त हैं। पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है। पितरों के देवता अर्यमा हैं। पाताल के देवाता शेष और वासुकि हैं।
(2.5). पितृ :: दिव्य पितर की जमात के सदस्यगण :- अग्रिष्वात्त, बर्हिषद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये 9 दिव्य पितर बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख पितरों को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं। पुराण के अनुसार दिव्य पितरों के अधिपति अर्यमा का उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र निवास लोक है।
(2.6). नक्षत्र के अधिपति :: चैत्र मास में धाता, वैशाख में अर्यमा, ज्येष्ठ में मित्र, आषाढ़ में वरुण, श्रावण में इंद्र, भाद्रपद में विवस्वान, आश्विन में पूषा, कार्तिक में पर्जन्य, मार्गशीर्ष में अंशु, पौष में भग, माघ में त्वष्टा एवं फाल्गुन में विष्णु। इन नामों का स्मरण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है।
10 दिशा के 10 दिग्पाल :: ऊर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत।
ब्रह्मा :- सृजनकर्ता ब्रह्मा को जन्म देने वाला कहा गया है।
विष्णु :- पालनहार विष्णु को पालन करने वाला कहा गया है।
महेश :- विनाशक महेश को संसार से ले जाने वाला कहा गया है।
त्रिमूर्ति :- ब्रह्मा-ब्रह्माणी (सर्जन तथा ज्ञान), विष्णु-लक्ष्मी (पालन तथा साधन) और शिव-पार्वती (विसर्जन तथा शक्ति)। कार्य विभाजन अनुसार पत्नियाँ ही पतियों की शक्तियां हैं।
इंद्र :- बारिश और विद्युत को संचालित करते हैं। प्रत्येक मन्वंतर में एक इंद्र हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं :- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि।
अग्नि :- अग्नि का दर्जा इन्द्र से दूसरे स्थान पर है। देवताओं को दी जाने वाली सभी आहूतियां अग्नि के द्वारा ही देवताओं को प्राप्त होती हैं। बहुत सी ऐसी आत्माएं है जिनका शरीर अग्निरूप में है, प्रकाश रूप में नहीं।
सूर्य :- प्रत्यक्ष सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है तो इस नाम से एक देवता भी हैं। दोनों ही देवता हैं। कर्ण सूर्य पुत्र ही था। सूर्य का कार्य मुख्य सचिव जैसा है। सूर्यदेव जगत के समस्त प्राणियों को जीवनदान देते हैं।
वायु-पवन :- वायु को पवनदेव भी कहा जाता है। वे सर्वव्यापक हैं। उनके बगैर एक पत्ता तक नहीं हिल सकता और बिना वायु के सृष्टि का समस्त जीवन क्षण भर में नष्ट हो जाएगा। पवनदेव के अधीन रहती है जगत की समस्त वायु।
वरुण :- वरुण देव का जल जगत पर शासन है। उनकी गणना देवों और दैत्यों दोनों में की जाती है।
धर्म-यम राज :- यमराज सृष्टि में मृत्यु के विभागाध्यक्ष हैं। सृष्टि के प्राणियों के भौतिक शरीरों के नष्ट हो जाने के बाद उनकी आत्माओं को उचित स्थान पर पहुंचाने और शरीर के हिस्सों को पांचों तत्व में विलीन कर देते हैं। वे मृत्यु के देवता हैं।
कुबेर :- कुबेर धन के अधिपति और देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं।
मित्र :- मित्रः देव देव और देवगणों के बीच संपर्क का कार्य करते हैं। वे ईमानदारी, मित्रता तथा व्यावहारिक संबंधों के प्रतीक देवता हैं।
कामदेव :- कामदेव और रति सृष्टि में समस्त प्रजनन क्रिया के निदेशक हैं। उनके बिना सृष्टि की कल्पना ही नहीं की जा सकती। कामदेव का शरीर भगवान् शिव ने भस्म कर दिया था अतः उन्हें अनंग (बिना शरीर) भी कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि काम एक भाव मात्र है जिसका भौतिक वजूद नहीं होता।
अदिति और दिति :- महर्षि कश्यप की पत्नियाँ। इनको भूत, भविष्य, चेतना तथा उपजाऊपन की देवी माना जाता है।
धर्मराज और चित्रगुप्त :- संसार के लेखा-जोखा कार्यालय को संभालते हैं और यमराज, स्वर्ग तथा नरक के मुख्यालयों में तालमेल भी कराते रहते हैं।
अर्यमा या अर्यमन :- यह आदित्यों में से एक हैं और देह छोड़ चुकी आत्माओं के अधिपति हैं अर्थात पितरों के देव।
गणपति-गणेश :- शिवपुत्र गणेश जी महाराज को देवगणों का अधिपति नियुक्त किया गया है। वे बुद्धिमत्ता और समृद्धि के देवता हैं। विघ्ननाशक की ऋद्धि और सिद्धि नामक दो पत्नियाँ हैं।
कार्तिकेय-स्कन्द :- कार्तिकेय वीरता के देव हैं तथा वे देवताओं के सेनापति हैं। उनका एक नाम स्कंद भी है। उनका वाहन मोर है तथा वे भगवान् शिव के पुत्र हैं। दक्षिण भारत में उनकी पूजा का प्रचलन है।
देवऋषि नारद :- नारद देवताओं के ऋषि हैं तथा चिरंजीवी हैं। वे तीनों लोकों में विचरने में समर्थ हैं। वे देवताओं के संदेशवाहक और गुप्तचर हैं। सृष्टि में घटित होने वाली सभी घटनाओं की जानकारी देवऋषि नारद के पास होती है।
हनुमान :- देवताओं में सबसे शक्तिशाली देव रामदूत हनुमानजी अभी भी सशरीर हैं और उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। वे पवनदेव के पुत्र हैं। बुद्धि और बल देने वाले देवता हैं। उनका नाम मात्र लेने से सभी तरह की बुरी शक्तियाँ और संकटों का खात्मा हो जाता है।
The demigods-deities have mention in the Veds. The Veds are source of infinite knowledge transmitted to the demigods in one after another Manvantar, Kalp, Maha Yug. Since, the previous evolution has annihilated, all new souls appear as these deities-demigods, in their next incarnations as per their deeds in one after another birth. 33 crore demigods-deities are mentioned. Here again, the souls who perform pious deeds to attain higher abodes reach here and assimilate in any of the 33 Dev Gan as per its deeds. None of these is immortal. They all vanish after enjoying the fruits of their endeavours. Only those who are blessed with the None Other Devotion अनन्य भक्ति are entitled for salvation, emancipation, Liberation, Moksh.
त्रीणि शता त्री सहस्राण्यग्निं त्रिंशञ्च देवा नव चासपर्यन्।
औक्षन्घृतैरस्तृण न्बर्हिरस्मा आदिद्धोतारं न्यसादयन्त॥
तीन हजार तीन सौ उनतालीस देवों ने अग्नि की पूजा की है, घृत द्वारा उन्हें सिक्त किया है और उनके लिए कुश विस्तृत किया। तदुपरान्त उन्होंने अग्नि को होता मानकर कुशों के ऊपर बैठाया।[ऋग्वेद 3.9.9]
उन अग्निदेव को तैंतीस सौ उन्तालिस देवताओं ने पूजा, घृत से उन्हें सिंचित किया और उनके लिए कुश बिछाये हैं। फिर उन्होंने अग्नि को होता रूप में धारण कर कुश पर प्रतिष्ठित किया।
3,339 demigods worshiped-prayed Agni Dev and satisfied him with Ghee offering him a Kushasan. Later, they recognised Agni Dev as the Ritviz-host and let him be seated over the Kush cushion.
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे॥11.22॥
जो ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, बारह साध्यगण, दस विश्वेदेव, दो अश्वनी कुमार तथा उन्चास मरुद्गण और गरम-गरम भोजन करने वाले सात पितृ गण तथा गन्धर्व, यक्ष, असुर और सिद्धों के समुदाय हैं, वे सभी चकित होकर आपको देख रहे हैं। 11 Rudr, 12 Adity, 8 Vasu, 12 Sadhygan, 10 Vishw Dev and 2 Ashwani Kumar, 49 Marud Gan and 7 Manes (Pitr Gan) who eat hot-fresh food, Gandharvs, Yaksh, Asur (Rakshas, Demons, Giants) and hosts-groups of Siddh are staring at you in surprise-amazement.
ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, बारह साध्यगण, दो अश्वनीकुमार तथा उन्चास मरुद्गण भगवान् को चकित होकर देख रहे हैं। उनके साथ 12 साध्य गण :- मन, अनुमन्ता, प्राण, नर, यान, चित्ति, हय, नय, हंस, नारायण, प्रभस और विभु हैं। ये 10 विश्वेदेव :- क्रतु, दक्ष, श्रव, सत्य, काल, धुनि, कुरुवान, प्रभवान् और रोचमान हैं। ये 7 पितर :- कव्यवाह, अनल, सोम, यम, अर्यमा, अग्निश्वात्त और बर्हिषत् हैं। कश्यप जी की पत्नी मुनि, प्राधा और अरिष्टा से गन्धर्वों की उत्पत्ति हुई है, जो कि गायन विद्या में कुशल होने के कारण स्वर्गलोक के गायक हैं। कश्यप जी की पत्नी खसा से यक्षों की उत्पत्ति हुई है। देवताओं के विरोधी दैत्य, दानव और राक्षस-असुर कहलाते हैं। कपिल आदि को सिद्ध कहते हैं। ये समस्त देवता गण, पितर, गन्धर्व, यक्ष आदि जो कि विराटरूप के ही अंग हैं, प्रभु को चकित होकर देख रहे हैं। अतः दिखने वाले और देखने वाले सभी एक परमात्मा ही हैं।
What Arjun was visualising with his divine vision was seen by the demigods, giants, demons, Yaksh, Gandharvs, etc. simultaneously; within the Almighty with great surprise, in the broad form.
आपो यं वः प्रथमं देवयन्त इन्द्रपानमूर्मिमकृण्वतेळः।
तं वो वयं शुचिमरिप्रमद्य घृतप्रुषं मधुमन्तं वनेम॥
हे अप देवता! देवेच्छुक अध्वर्युओं के द्वारा इन्द्र देव के लिए पीने योग्य और भूमि समुत्पन्न जो आप लोगों का सोमरस पहले बनाया गया है, उसी शुद्ध, निष्पाप, वर्षाजल सेचनकारी और रस से युक्त सोमरस का हम भी सेवन करें।[ऋग्वेद 7.47.1]
Hey Ap Dev! Desirous of invoking the demigods-deities priests extracted Somras good enough to be drunk by Indr Dev. We wish to drink this pure Somras mixed with juices, yielding rains.
तमूर्मिमापो मधुमत्तमं वोऽपां नपादवत्वाशुहेमा।
यस्मिन्निन्द्रो वसुभिर्मादयाते तमश्याम देवयन्तो वो अद्य॥
शीघ्रगति "अपां नपात्" अग्नि देव आपके उस रसवत्तम सोमरस का पालन करें। वसुओं के साथ इन्द्र देव जिसमें मत्त होते हैं, आपके उसी सोमरस को हम देवाभिलाषी होकर आज उसे प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 7.47.2]
अपां नपात् :: अपाम नपात नदियों, झीलों व अन्य स्वच्छ पानी के अधिदेवता हैं।
Fast moving demigods named Apan Nayat & Agni Dev should drink the quality Somras. Indr Dev too drink this Somras with Vasus. We, desirous of invoking demigods-deities too, should get this Somras.
ते चिद्धि पूर्वीरभि सन्ति शासा विश्वाँ अर्य उपरताति वन्वन्।
इन्द्रो विभ्वाँ ऋभुक्षा वाजो अर्यः शत्रोर्मिथत्या कृणवन्वि नृम्णम्॥
हमारी अनेक शत्रु सेनाओं को इन्द्र देव और ऋभुगण आयुध द्वारा पराजित करते हैं। युद्ध होने पर वे सभी शत्रुओं को मारते हैं। विभ्वा, ऋभुक्षा और वाज नाम के तीनों ऋभु और आर्य इन्द्र देव मन्थन द्वारा शत्रुओं के बल को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 7.48.3]
Indr Dev and Ribhu Gan defeat our enemy armies with weapons. In case of war, they kill all the enemies. Vibhva, Ribhuksha and Vaj named three Ribhus and Ary Indr Dev destroy the might-strength of the enemy by churning.
Please refer to :: santoshkipathshala.blogspot.com &santoshkipathshala.blogspot.com
SHRIMAD BHAGWAD GEETA (11) श्रीमद् भगवद्गीता
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ये त्रिंशति त्रयस्परो देवासो बर्हिरासदन्। विदन्नह द्वितासनन्॥
जो तैतीस कोटि देवता कुशों पर बैठे हैं, वे हमारी भावना को जानें और बार-बार हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.28.1]
कोटि :: श्रेणी, करोड़; categories, ten million.
The 33 million demigods-deities sitting over the Kush Mats should understand our feeling-desires and grant us wealth again & again.
इति स्तुतासो असथा रिशादसो ये स्थ त्रयश्च त्रिंशच्व। मनोर्देवा यज्ञियासः॥
हे शत्रु भक्षक और मनु के यज्ञार्ह देवों! आप लोग तैंतीस कोटि हैं। इसी प्रकार आप लोग सम्मानित किए जाते हैं।[ऋग्वेद 8.30.2]
Hey eater-destroyer of the enemy and helpful to Manu in his Yagy! You are 33 millions in number. This is how you are honoured.
निर्ऋति :: देवता, जिन्हें मृत्यु, क्षय और दुःख का प्रतीक माना जाता है।अष्टदिक्पालों (आठ दिशाओं के रक्षक) में से एक है। वह दक्षिण-पश्चिमी कोने का प्रभारी है। एकादश रुद्रों में से एक है। ब्रह्मा जी उनके दादा थे और स्थाणु उनके पिता थे। मंदिरों में उनकी मूर्तियाँ हाथ में तलवार लिए और गधे पर बैठी हुई स्थापित की जाती हैं। अधर्म कहे जाने वाले देव की पत्नी। उनके भय, महाभय और अंतक नामक तीन पुत्र थे। इन राक्षसों को नैऋत्य के नाम से जाना जाता है।