Monday, May 26, 2014

NAV GRAH POOJAN नवग्रह पूजन

NAV GRAH POOJAN 
नवग्रह पूजन
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्। 
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
Nine Grah-planets viz. Sun (Adity), Moon (Som), Mars (Angarak), Mercury (Budh), Jupiter (Brahaspati), Venus (Shukr), Rahu and Ketu. Rahu & Ketu are shadow planets. Prayers of these deities occur in the  :- Rig Ved, Atharv Ved & Sam Ved. 
Enchantment of these poetic verses-Mantr is collectively termed as Nav Grah Pujan or Nav Grah Sukt. One recites these Shloks just as to fulfill his worldly desires-wishes. 
सूर्य-आदित्य SUN :: Adity is the Sun-Sury Narayan  and is the son of Maharshi Kashyap and Aditi. He is strong, splendid, bold, regal, warlike, victorious and energetic. He travels in a chariot drawn by seven horses and his charioteer is Arun.
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। 
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥ 
[यजुवेद 33.43, 34.31,ऋग्वेद 1.35.2, तैतिरीय संहिता 3.4.11.2]
अंधकार से प्रकाश की ले जाने के लिये सत्य निष्ठां हेतु, निर्जीव अथवा सजीव सभी में प्राणों का संचार करने हेतु सूर्य देव  स्वर्णमयी रथ में सवार होकर जगत को प्रकाशित करते हैं। 
Moving through darkness with the light of truth, recognizing the mortal and immortal, borne in his golden chariot he comes, Savitar, God who gazes upon the worlds.
सूर्य SUN :: He illuminates the whole world & nourishes it.
ॐ आदित्यस्य नमस्कारान् हे कुरुवंतु दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलम् वीर्यम् तेजस तेषान् च जायते॥
ॐ ह्राँ ह्री सः ॐ नमो भगवाते श्री सूर्याय नम:।
जपाकुसीमसका काश्यप्रयं सूहादयुतिम्। 
मतोऽस्मि दिवाकरम् तमोऽरिं संदण॥
जपा (जिसे अढ़ौल का फूल भी कहा जाता है) की भाँति जिसकी कान्ति है, कश्यप से जो उत्पन्न अन्धकार जिनका शत्रु है, जो सभी पापों को नष्ट कर देते हैं, उन सूर्य भगवान् को मैं प्रणाम करता हूँ।
चन्द्र-सोम MOON :: Moon is the demigod God who rose from the ocean of milk when it was churned. He is inconsistent, amorous, charming, imaginative and poetical.
इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा॥ [यजु. 10.18]
आ पयायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वर्ष्ण्यम। भवा वाजस्य संगथे॥ 
[ऋग्वेद 1.91.16; तैतरीय संहिता 3.2.5]
हे चंद्र देव! आपको हर दिशा से शक्ति की प्राप्ति हो। 
Swell up, O Som! Let your strength be gathered from all sides. Be strong in the gathering of might.
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्। 
नमामि शशिनं सोमं शर्भोमुकूटभूषणम्॥
दही, शंख, हिम के समान जो दीप्तमान है, जो क्षीर सागर से उत्पन्न हुए हैं, जो भगवान् शिव के मुकुट के अलङ्कार बने हुए हैं, उन चन्द्रदेव को में प्रणाम करता हूँ।
स चित्र चित्रं चितयन्तमस्मे चित्रक्षत्र चित्रतमं वयोधाम।
चन्द्रं रयिं पुरुवीरं बर्हन्तं चन्द्र चन्द्राभिर्ग्र्णते युवस्व॥ 
हे (चित्र) अद्भुत गुण कर्म और स्वभाव वाले (चित्रक्षत्र) अदभुत राज्य वा धन से युक्त (चन्द्र) आह्लादकारक, जैसे (सः) वह विद्वान् (चन्द्राभिः) आनन्द और धन करने वाली प्रजाओं से (अस्मे) हम लोगों के लिये (चित्रम्) आश्चर्य्यभूत (चन्द्रम्) आनन्द देने वाले सुवर्ण आदि को (चितयन्तम्) जनाते हुए तथा (चित्रतमम्) अत्यन्त आश्चर्य्ययुक्त रूप और (वयोधाम) जीवन के धारण करने और बृहन्तम् बड़े (पुरुवीरम्) बहुत वीरों के देने वाले (रयिम्) धन की (गुणते) स्तुति करता है, उस को आप (युवस्व) उत्तम प्रकार युक्त करिये।[ऋग्वेद  6.6.7]
Wondrous! Of wondrous power! I give to the singer wealth wondrous, outstanding, most wonderful, life-giving. Bright wealth, O Refulgent Divine Wisdom, vast, with many aspects, give understanding to your devotee.
चन्द्र स्तोत्र :: 
श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी, श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहु:।
 चन्द्रो मृतात्मा वरद: शशांक:, श्रेयांसि मह्यं प्रददातु देव:॥1
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम। 
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम॥2
क्षीरसिन्धुसमुत्पन्नो रोहिणी सहित: प्रभु:।
हरस्य मुकुटावास: बालचन्द्र नमोsस्तु ते॥3
सुधायया यत्किरणा: पोषयन्त्योषधीवनम।
सर्वान्नरसहेतुं तं नमामि सिन्धुनन्दनम॥4
राकेशं तारकेशं च रोहिणीप्रियसुन्दरम।
ध्यायतां सर्वदोषघ्नं नमामीन्दुं मुहुर्मुहु:॥5 
इति मन्त्रमहार्णवे चन्द्रमस: स्तोत्रम।  
भौम-मंगल, अङ्गारक MARS :: Mars also called as Kuj and Angarak. He is a soldier, crafty, unscrupulous and tyrannical.
अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। 
अपां रेतां सि जिन्वति[यजु. 3.12]
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्। 
कुमारं शक्तिहस्तं तं (च) मङ्गलं प्रणाम्यहम्॥
पृथ्वी के गर्भ से जिनकी उत्पत्ति हुई है, विद्युत के समान जिनकी प्रभा है,जो हाथो में शक्ति धारण किये हुए है, उन मङ्गलदेव को में प्रणाम करता हूँ।
बुध MERCURY :: Mercury is the illicit son of Moon and Guru Brahaspati's wife Tara. He is speculative scientific, skilful.
उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च। 
अस्मिन्त्सधस्‍थे अध्‍युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यशमानश्च सीदत[यजु. 15.54] 
प्रियंगलिकॉश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्य सौम्य रणोपेतं तं बुधं प्रणाम्यहेम्॥ 
प्रियंगु की काली के जैसे जिनका परिणामतर्ण) है, जिनके रूपको किसी भी तरह वर्णित नहीं किया जाता ऐसा है (जिनकी कोई उपमा ही।) उन सौम्य और सोम्य गुणों से युक्त बुध को में प्रणाम करता हूँ। 
गुरु-बृहस्पति JUPITER :: Jupiter is and the son of Mahrshi  Angiras.  He is Dev Guru, teacher, Purohit, guide of demigods. He is religious learned, and philosopher, wise and a statesman.
बृहस्पति युद्ध के देवता और देवगुरु-पुरोहित भी हैं। उनमें ब्राह्मण तथा क्षत्रिय दोनों की चरित्रगत विशेषताएँ पायी जाती हैं। इसकी पीठकाली तथा शृंग तीक्ष्ण हैं। बृहस्पति स्वर्णिम वर्ण के हैं। यह शस्त्र के रूप में धनुष-बाण तथा परशु धारण करते हैं।उनको वज्रिन भी कहा गया है। वे युद्ध में इन्द्र की सहायता करते हैं। इन के बिना कोई भी यज्ञ कार्य पूर्ण नहीं हो सकता। बृहस्पति मनुष्यों को उत्तम वय, सौभाग्य प्रदान करते हैं। उनको पृष्ठ, ब्रह्मणस्पति, शक्तिपुत्र, सुगोपाः, मरुत्संखा, द्युतिमान्, गणपति वाचस्पति भी कहा गया है। 
बृहस्पतिः प्रथमं जायमानो महो ज्योतिषः परमे व्योमन्।
सप्तास्यस्तु वि जातो रवेण वि सप्तरश्मिरधमत् तमांसि
जब बृहस्पति ने महान् प्रकाश वाले परम व्योम (आकाश) में पहले-पहले जन्म लिया, तो सात मुख वाले, ध्वनि के साथ विभिन्न रूपों वाले (संयुक्त) और सात किरणों वाले ने अँधेरे को पराजित किया।[ऋग्वेद 4.50.4; अथर्ववेद 20.88]
बृहस्पतिः प्रथमं जायमानस्तिष्यं नक्षत्रमभिसम्बभूव।
श्रेष्ठो देवानां पृतनासु जिष्णुः दिशोSनुसर्वा अभयं नो अस्तु
पहली बार प्रकट होते हुए बृहस्पति तिष्य (पुष्य) नक्षत्र के सामने प्रकट हुए। तिष्य और पुष्य दोनों एकार्थक है । तैत्तिरीय-ब्राह्मण में इसके देवता बृहस्पति है।[तैतरीय ब्राह्मण 3.1.1.5] 
बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। 
यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्[यजु. 26.3]
देवानां च ऋषिणों च गुरुकाञ्चनसत्रिभम्। 
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥
जो स्वयं देवताओ और ऋषिओ के गुरु है, कंचन (सुवर्ण) के समान जिनकी प्रभा है, जो बुद्धिदाता है, तीनों लोको के प्रभु हैं, उन बृहस्पति को में प्रणाम करता हूँ। 
शुक्र VENUS :: Shukr-Venus is the son of Bhragu. His mother's name is Kavya. He was adopted as their Guru by the Asuras and he guided them in their wars with the demigods. He is self-willed, master of state craft, poet, thinker and philosopher.
पर वः शुक्राय भानवे भरध्वं हव्यं मतिं चाग्नये सुपूतम।
यो दैव्यानि मानुषा जनूंष्यन्तर्विश्वानि विद्मना जिगाति॥ 
[ऋग्वेद 7.4.1]
Bring forth your offerings to his refulgent splendour; your hymn as purest offering to Agni the mystic fire of wisdom who goes as messenger conveying all songs of men to the Gods in heaven.
अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:। 
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु
[यजुवेद 19.75]
हिमहेम कुन्दमणोलाभ द्वेत्यानां परमं गुरुम्।  
सर्वशास्तप्रवक्तारं भार्गवं प्रणाम्यहम्॥
तुषार (हिम की तरह), कुन्द,मृणाल के समान जिनकी कान्ति है, जो दैत्यों के परम गुरु हैं, सब शास्त्रों के परमज्ञाता हैं, कुशल वक्ता हैं, उन शुक्रदेव को मैं में प्रणाम करता हूँ। 
शनि SATURN :: Saturn is the son of Sun-the deity of light & wisdom. He is lame and moves slowly. He is cruel, vindictive, gloomy, immoral and destructive.
शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:
[ऋग्वेद 10.9.4; अथर्वेद 1.6.1; यजुवेद 36.12]
हे शनिदेव! आप हमारे अनुकूल हों, हमें उत्तम स्वास्थ्य और शक्ति प्रदान करें। 
May the seven cosmic principles be propitious for us; divine forces for our aid & bliss. Let them flow for us, for health and strength.
PROPITIOUS :: अनुकूल, मेहरबान, अनुग्राही; suited, favourable, compatible, congruent, congenial, clement, complaisant, merciful, tender hearted, regardful, merciful.
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। 
छायामात्त ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
नीलांजन के समय जिनकी दीप्ति है जो सूर्य नारायण के पुत्र हे, यमराज के को सूर्य की छाया से जिनकी उत्पत्ति हुई है, उन शनेछर दताको में प्रणाम करता हु (करती हु)
राहु RAHU-DRAGON HEAD :: He is the son of Mahrishi Kashyap and his Asur wife Sinhika. Bhagwan Shri Hari Vishnu chopped off his head while distributing Amrat (nectar, elixir) between the demigods & the demons as Mohini when he tried to get it by deceit. The Head constitutes  He is violent, head strong, frank and furious.
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता
[यजु. 36.4] 
अर्धकाय महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्। 
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणाम्यहम्॥ 
जिनका देह आधा है,जिनमे महान पराक्रम है,जो सूर्य चंद्र को भी परास्त कर सकते है जिनकी उत्पत्ति सिंहिका के गर्भ से हुई है उन राहु देवताको में प्रणाम करता हूँ। 
केतु KETU DRAGON TAIL :: Torso of Rahu is Ketu. He is secretive. meditative and unsocial.
केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:
[यजुवेद 29.37, तैतरीय संहिता 7.4.20]
पलाशपुष्पसकाशं तारकाग्रहमस्तकम्। 
रौद्र रौद्रात्मकं धोरं त केतुं प्रणाम्यहम्॥ 
पलाश के पुष्प की तरह जिनकी देहकान्ति हे,जो सभी तारकाओं में श्रेष्ठ है जो स्वयं रोद्र और रोद्रात्मक है। ऐसे घोत रूपधारी केतु देवता को में प्रणाम करता हूँ।
फूलश्रुति :: 
इति व्यासमखोद्गीत यूँ: पठेत् समाहित:। 
दिवा वा वा रात्रौ विघशान्तिर्भविष्यति॥
व्यास के मुखसे निकत हु स्तोत्र को सावधानी पूर्वक दिन या रात्रि के समय पाठ करता हे उसकी सारी बाधार्य शांत हो जाती है। विघ्न शान्त हो जाते है।
नर्नारीनपाणां च भवेद दुःस्वप्नाशनम्। 
ऐश्वर्यमर्तुलं तेषामारोग्य पुष्टिवर्धनम्॥
समग्र संसार के सभी लोग स्त्री-पुरुष और राजाओं के भी दुःस्वप्नो के दोप दूर हो जाते है। इसका पाठ करने से अपार ऐश्वर्य और आरोग्य प्राप्त होता है। पुष्टि वृद्धि होती है।
नव ग्रह सूक्त NAV GRAH SUKT :: ग्रहों से होने वाली पीड़ा का निवारण करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत लाभदायक है। इसमें सूर्य से लेकर हर ग्रहों से क्रमश: एक-एक श्लोक के द्वारा पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की गई है :- 
ग्रहाणामादिरात्यो लोकरक्षणकारक:। 
विषमस्थानसम्भूतां पीड़ां हरतु मे रवि:॥
रोहिणीश: सुधा‍मूर्ति: सुधागात्र: सुधाशन:। 
विषमस्थानसम्भूतां पीड़ां हरतु मे विधु:॥
भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा। 
वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीड़ां हरतु में कुज:॥ 
उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:। 
सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीड़ां हरतु मे बुध:॥ 
देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत:। 
अनेकशिष्यसम्पूर्ण:पीड़ां हरतु मे गुरु:॥
दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामति:। 
प्रभु: ताराग्रहाणां च पीड़ां हरतु मे भृगु:॥
सूर्यपुत्रो दीर्घदेहा विशालाक्ष: शिवप्रिय:। 
मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु मे शनि:॥
अनेकरूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक्। 
उत्पातरूपो जगतां पीडां पीड़ां मे तम:॥
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। 
अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीड़ां हरतु मे शिखी:॥
 नवग्रह स्तोत्र ::
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्। 
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम्
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम्॥ 
प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्
देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम्। 
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥ 
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम्। 
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥ 
इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति॥ 
नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम्।
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम्॥
ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः।
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः॥ 
इति श्रीव्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं। 
 
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