Friday, May 9, 2014

PRAYER-WORSHIP प्रार्थना

PRAYER प्रार्थना
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः। 
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्॥
जो मनुष्य शास्त्र विधि को छोड़कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि (अन्तःकरण की शुद्धि) को न सुख (शान्ति) को और न परम् गति को ही प्राप्त होता है।[श्रीमद् भगवद्गीता 16.23]
One who defy the scriptures and follows his own whims-fancy (सनक), acts in his own way-fashion, does not attain purity of heart-perfection, solace, pleasure-bliss, comforts and Salvation-assimilation in the Ultimate-Almighty.
कुछ मनुष्य शास्त्र विधि की अवहेलना करके यज्ञ, दान, परोपकार आदि करते हैं, जो कि विविध प्रकार के फलों की प्राप्ति के लिए होते हैं। इससे उनमें बड्डपन की भावना जाग्रत होती है। इस समाज में बाहरी आचरण, आडम्बर को ही देखा जाता है; मन की भावना, दुर्गुण, दुर्भाव, दुराग्रह दृष्टिगोचर नहीं होते। आसुरी प्रवृति के व्यक्तियों के अन्तःकरण की शुद्धि नहीं हो पाती। उनमें देहाभिमान बढ़ता जाता है और उनके पतन का कारण बनता है। उनको मन में क्रोध, प्रतिरोध-प्रतिशोध की भावना होने से सुख, शान्ति की प्राप्ति भी नहीं हो पाती। वे अपने काम, क्रोध और लोभ से युक्त कर्मों के कारण परमगति से वंचित रह जाता है। 
There are people who perform big acts of charity, donate huge sums of money, organise large scale sacrifices in fire to demonstrate their might and capability to satisfy their ego. They are honoured and admired by the masses, which fills them with pride and they consider themselves above the God-deities. This all is whimsical and for the sake of might, name, power & fame. They might achieve heavens, from which they have to return ultimately. These demonic traits do not desert them and they lack purity of heart. Piousity, righteousness, virtuousness are not associated with their actions. This only lead to accumulation of pride and they keep on hovering between heaven and hell like a pendulum. The mixture of sex, fury and greed never allows them to reach the Ultimate.
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि॥
अतः तेरे लिये कर्तव्य-अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है, ऐसा जानकर तू इस लोक में शास्त्र विधि से नियत कर्तव्य कर्म करने योग्य है अर्थात तुझे शास्त्र विधि के अनुसार कर्तव्य करने चाहिये। [श्रीमद् भगवद्गीता 16.24]
The Almighty stressed that Arjun should act according to the procedures-methods laid down (scriptural injunction) in scriptures, since he was capable of doing that.
प्राणों का मोह मनुष्य से कर्तव्य-अकर्तव्य, सभी कुछ करवा लेता है। यही कारण है कि व्यक्ति आसुरी सम्पत्ति में प्रवृत हो जाता है। क्योंकि अर्जुन दैवी सम्पत्ति को प्राप्त थे, उन्हें शास्त्र विधि के अनुरूप कर्तव्य पालन  करने को कहा गया। मनुष्य पाप-पुण्य का निर्णय अपने हिसाब से कर लेता है, जो गलत है। सर्वथा स्वार्थ रहित मनुष्य पाप को प्राप्त नहीं होता। स्वार्थ, अभिमान और दूसरों का अनिष्ट करना-सोचना पाप लगाता है। केवल शास्त्र ज्ञान पर्याप्त नहीं है, उसे मनन करना-समझना और दिनचर्या में लाना भी जरूरी है। यह आसुरी स्वभाव को मिटाता है।
The Almighty explained that one who is selfish with respect to his life do not care for the scriptures. He interpret the scriptures in his own way. One has to perform according to the procedures-methods described in scriptures. Selfishness, ego-pride, teasing others; leads to sins. This refers to demonic tendencies as well. One should read the scriptures, understand them, meditate over them, discuss them, analyse them and then act for the sake of human welfare only, instead of personnel gains. Dogmatic views pertaining to epics, history, scriptures are the root cause of sin. Arjun had attained the goodwill of the God, deities, demigods and the human being alike; through his service of mankind, as and when he got a chance. He always considered the service of humanity superior to his own benefits. One who reads-learns and employs it in his daily life, is sure to attain divinity and the Almighty ultimately.
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः॥
हे कृष्ण! जो मनुष्य शास्त्र विधि का त्याग करके श्रद्धा पूर्वक (देवता आदि का) पूजन करते हैं, उनकी निष्ठा फिर कौन सी है? सात्विकी है अथवा राजसी-तामसी।[श्रीमद् भगवद्गीता 17.1]
Arjun put a quarry forward to Bhagwan Shri Krashn about the type of worship performed with faith-dedication, forgoing procedures-methods whether it is Satvik, Rajsik or Tamsik.
सात्विक निष्ठा दैवी सम्पत्ति तथा राजसी-तामसी निष्ठा आसुरी कहलाती है। कुछ मनुष्यों में श्रद्धा भक्ति तो होती है, परन्तु वे शास्त्र-विधि नहीं जानते। जहाँ आस्था, निष्ठा, प्रेम है, वहाँ विधि-विधान न भी हो तो भी परमात्मा उस भक्त को गले लगाते हैं। कलयुग में ऐसे लोगों की सँख्या बहुत ज्यादा होगी, जिन्हें शास्त्र का ज्ञान नगण्य-शून्य होगा। वर्तमान समय में ढोंगियों की सँख्या बहुत ज्यादा है। वे जनता-भक्तों को प्रवचन, चर्चा, सत्संग के नाम पर धोखा देते हैं। 
जो भक्त परमात्मा के प्रति अटूट आस्था लिए उनके भाषणों को सुनता है, उसे कुछ न कुछ अच्छा अवश्य मिलता है और ज्ञान अगर नीच के पास भी हो तो उसे ले लेने में कोई उज्र-परेशानी नहीं है। अगर कोई साधारण मनुष्य शास्त्र का ज्ञान नहीं भी रखता, तो भी उसकी भक्ति सात्विक ही है, क्योंकि वह सच्चे मन से प्रभु को याद करता है। शास्त्र विधि का त्याग अज्ञान, उपेक्षा अथवा विरोध वश किया जाता है। इसकी उपेक्षा या विरोध परेशानी का कारण बन सकता है। कृष्ण का अर्थ है, "खींचने वाला"। अर्जुन का प्रश्न यह है कि आप मनुष्य को किस ओर ले जायेंगे-खींचेंगे? व्यक्ति की वृत्ति भले ही कुछ भी क्यों न हो परमात्मा उसे अपनी ओर ही खींचते हैं।
Arjun wanted to know if one performs prayers without rituals but with faith, regard, dedication to the Almighty, what would be the impact?! Its quite common now a days, specially during the current cosmic era. Its terribly difficult to find a true teacher, philosopher and guide. However, one can acquire enlightenment through self study of the scriptures & concerted effort has been made to provide gist of religion, dedication, through a number of write up over these blogs. Still the reader is requested to exercise his discrimination to reach the truth. 
श्रद्धा-गुण
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 सात्विक         आसुरी
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                             राजसी       तामसी  
 हे ईश दर्पणे शुद्धे सिह सुविलोकित:। 
अहङ्कारे कृते स्वच्छे मया त्वमवलोकित:॥
[सनातन शास्त्र सिद्धांत]
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः। 
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः॥
सात्विक मनुष्य देवताओं का पूजन करते हैं, राजस मनुष्य यक्षों तथा राक्षसों का दूसरे तामस लोग प्रेतों और भूत गणों का पूजन करते हैं। [श्रीमद् भगवद्गीता 17.4]
The virtuous, pious, righteous worship demigods-deities, those with desires for higher abodes and comforts worship Yaksh and Rakshas-demons & Giants, while the ignorant with vicious desires worship ghosts and spirits.
भगवान् श्री कृष्ण ने देवान् शब्द का प्रयोग भगवान् विष्णु (राम और कृष्ण), भगवान् शंकर, गणेश जी महाराज, माँ शक्ति-पार्वती और सूर्य भगवान् के सन्दर्भ में किया है। इनके अलावा बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्वनी कुमारों की निष्काम पूजा का निर्देश दिया है। यक्ष और राक्षस भी देव योनि में आते हैं, मगर उनका पूजन राजस मनुष्यों द्वारा दूसरों के विनाश और कामना पूर्ति के लिए किया जाता है। तामस मनुष्य भूत-प्रेतों की पूजा-अर्चना करते हैं। प्रेत के अंतर्गत जो पितृ गण हैं, उनका निष्काम भाव से पूजन सात्विक माना गया है। शास्त्र विहित कर्म, नारायण बलि, गया श्राद्ध, प्रेत कर्मों को तामस नहीं माना गया है। कुत्ते और कौए को निष्काम भाव से रोटी देना भी सात्विक कर्म है। पति व्रत धर्म का पालन सास-श्वसुर की सेवा, ईष्ट की पूजा सात्विक कर्म और कल्याणकारी है। 
The Almighty categorised the methods of worship into three. The first mode is purely virtuous which involves the prayers offered to Bhagwan Vishnu (Ram & Krashn), Bhagwan Shiv, Adi Maa Shakti-Parwati, Ganesh Ji Maha Raj and Bhagwan Sury. Satvik Bhakti involves the prayers offered to 33 deities namely 12 Adity, 8 Vasu, 11 Rudr and 2 Ashwani Kumars. Yaksh and Rakshas too constitute divine category but are worshipped by those who are overridden by passions & desire-long for higher abodes. The ignorant worship the diseased in the form of Bhut-Pret (Ghosts, witches) & Pishach i.e., Ghosts-Dracula etc. However, the sacrifices offered to Bhagwan Narayan, diseased in the form of Pitr Gan performing Shraddh prayers at Gaya Bihar and the performance of rights at the time of death for the release of the diseased, are included in the list of Virtuous deeds. Feeding dogs and crows during Shraddh (homage to Manes, diseases ancestors, family members) period too is Satvik. Service of the husband, in laws by the women is Pious act. The Pitr-Manes Gan are considered to be divine. Manes are divine as well mortals who have passed away.
However, Mallechchh :- the Muslims and the Christians pray the graves and are sure to remain attached with the process of death & birth.
WORSHIP पूजा-अर्चना ::
 Worship and religion are two concepts which are closely knit together. One may worship a living being-legend, who is his ideal, Godfather, guardian, patron. Hero worship is prevalent in all societies.
This is curious that most of the places of worship have been built over the remains of ancient shrines-temples.
There is no doubt that these temples were devoted to the worship of SUN in addition to the various incarnations of the Almighty. Sun worship is prevalent in the traditional form of worship in the present communities-spreaded all over the world, although they have switched their loyalty to some other religion-faith. Rituals, dances, prayers, still portrait the significance of it, which needs to be studied by the currently surviving population of the world. Most curious-significant-astounding reality is that, almost each and every where these practices were in common. 
What is more peculiar is that the structures located thousands of miles-kilometres apart have identical formations-designs-architecture. Is it not wonderful that almost all of them lie over certain longitude and latitude.
हे परमात्मा मुझे क्षर से अक्षर, नश्वर से अनश्वर बना, समता प्रदान कर और अनन्य भक्ति से परिपूर्ण कर। 
हे! विघ्न विनाशक गणपति! संवारो बिगड़े काम; मोक्ष मार्ग हो सहज, साधना हो निष्काम। करें वन्दना नित्य प्रति, दर्शन दो भगवान्; अनन्य भक्ति प्रदान कर संतोष पर करो अहसान॥
मंत्र-जप, देव पूजन तथा उपासना की शब्दावली :: मंत्र जप, देव पूजन तथा उपासना के संबंध में प्रयुक्त होने वाले कुछ विशिष्ट शब्दों के अर्थ
(1). पंचोपचार :: गन्ध, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने को ‘पंचोपचार’ कहते हैं। 
(2). पंचामृत :: दूध, दही, घृत, मधु (शहद) तथा शक्कर इनके मिश्रण को ‘पंचामृत’ कहते हैं। 
(3). पंचगव्य :: पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर के द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर की रोगनिरोधक क्षमता को बढाकर रोगों को दूर किया जाता है। गोमूत्र में प्रति ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। दही एवं घी के पोषण मान की उच्चता से सभी परिचित हैं। दूध का प्रयोग विभिन्न प्रकार से भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से होता आ रहा है। घी का प्रयोग शरीर की क्षमता को बढ़ाने एवं मानसिक विकास के लिए किया जाता है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते हैं। पंचगव्य का निर्माण देसी मुक्त वन विचरण करने वाली गायों से प्राप्त उत्पादों द्वारा ही करना चाहिए, शहरों में घूमने वाली और गन्दगी  खाने वाली गायों से नहीं।
(4). षोडशोपचार :: आवाहन्, आसन, पाध्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, अलंकार, सुगंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवैध्य, अक्षत, ताम्बुल-पान तथा दक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन करने की विधि को ‘षोडशोपचार’ कहते हैं। 
(5). दशोपचार :: पाध्य, अर्घ्य, आचमनीय, मधुपक्र, आचमन, गंध, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने की विधि को दशोपचार कहते हैं।
(6). त्रि धातु :: सोना, चाँदी और लोहा अथवा सोना, चाँदी तथा ताँबे का मिश्रण। 
(7). पंच धातु :: सोना, चाँदी, लोहा, ताँबा और जस्ता। 
(8). अष्ट धातु :: सोना, चाँदी, लोहा, ताँबा, जस्ता, राँगा, काँसा और पारा। 
(9). नैवैध्य :: खीर, मिष्ठान आदि मीठी वस्तुएँ। 
(10). नवग्रह :: सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु।
(11). नवरत्न :: माणिक्य, मोती, मूँगा, पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्य। 
(12). अष्टगंध-देव पूजन हेतु  :: अगर, तगर, गोरोचन, केसर, कस्तूरी, श्वेत चन्दन, लाल चन्दन और सिन्दूर। 
(13). अष्टगंध-देवी पूजन :: अगर, लाल चन्दन, हल्दी, कुमकुम, गोरोचन, जटामासी, शिलाजीत और कपूर। 
(14). गंध त्रय :: सिन्दूर, हल्दी, कुमकुम। 
(15). पञ्चांग :: किसी वनस्पति के पुष्प, पत्र, फल, छाल और जड़।
(16). दशांश :: दसवां भाग।
(17). सम्पुट :: मिट्टी के दो सकोरों को एक-दूसरे के मुँह से मिला कर बंद करना।
(18). भोज पत्र :: एक वृक्ष की छाल। मन्त्र प्रयोग के लिए भोजपत्र का ऐसा टुकड़ा लेना चाहिए, जो कटा-फटा न हो।
(19). मन्त्र धारण :: किसी भी मन्त्र को स्त्री पुरुष दोनों ही कंठ में धारण कर सकते हैं, परन्तु यदि भुजा में धारण करना चाहें तो पुरुष को अपनी दायीं भुजा में और स्त्री को बायीं भुजा में धारण करना चाहिए।
(20). ताबीज :: ये ताँबे के बने हुए गोल तथा चपटे दो आकारों में मिलते हैं। सोना, चांदी, त्रिधातु तथा अष्टधातु आदि के ताबीज बनवाये जा सकते हैं।
(21). मुद्राएँ :: हाथों की अँगुलियों को किसी विशेष स्थिति में लेने कि क्रिया को मुद्रा कहा जाता है। मुद्राएँ अनेक प्रकार की होती हैं।
(22). स्नान :: यह दो प्रकार का होता है। बाह्य तथा आतंरिक,बाह्य स्नान जल से तथा आन्तरिक स्नान जप द्वारा होता है।
(23). तर्पण :: नदी, सरोवर, आदि के जल में घुटनों तक पानी में खड़े होकर हाथ की अंजुली द्वारा जल गिराने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है। जहाँ नदी, सरोवर आदि न हो, वहाँ किसी पात्र में पानी भरकर भी तर्पण की क्रिया संपन्न कर ली जाती है।
(24). आचमन :: हाथ में जल लेकर उसे अपने मुंह में डालने की क्रिया को आचमन कहते हैं। 
(25). करन्यास :: अँगूठा, अँगुली, करतल तथा करपृष्ठ पर मन्त्र जपने को करन्यास कहा जाता है।
(26). ह्रदयाविन्यास :: ह्रदय आदि अंगों को स्पर्श करते हुए मंत्रोच्चारण को ह्रदयाविन्यास कहते हैं। 
(27). अंगन्यास :: ह्रदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्र एवं करतल; इन 6 अंगों से मन्त्र का न्यास करने की क्रिया को अंगन्यास कहते हैं।
(28). अर्घ्य :: शंख, अंजलि आदि द्वारा जल छोड़ने को अर्घ्य देना कहा जाता है। घड़ा या कलश में पानी भरकर रखने को अर्घ्य-स्थापन कहते हैं। अर्घ्य पात्र में दूध, तिल, कुशा के टुकड़े, सरसों, जौ, पुष्प, चावल एवं कुमकुम इन सबको डाला जाता है।
(29). पंचायतन पूजा :: इसमें पांच देवताओं :– विष्णु , गणेश ,सूर्य , शक्ति तथा शिव का पूजनकिया जाता है।
(30). काण्डानुसमय :: एक देवता के पूजा काण्ड को समाप्त कर, अन्य देवता की पूजा करने को काण्डानुसमय कहते हैं।
(31). उद्धर्तन :: उबटन।
(32). अभिषेक :: मन्त्रोच्चारण करते हुए शंख से सुगन्धित जल छोड़ने को अभिषेक कहते हैं।
(33). उत्तरीय :: वस्त्र।
(34). उपवीत :: यज्ञोपवीत-जनेऊ।
(35). समिधा :: जिन लकड़ियों को अग्नि में प्रज्जवलित कर होम किया जाता है उन्हें समिधा कहते हैं। समिधा के लिए आक, पलाश, खदिर, अपामार्ग, पीपल, उदुम्बर, शमी, कुषा तथा आम की लकड़ियों को ग्राह्य माना गया है।
(36). प्रणव :: ॐ।
(37). मन्त्र ऋषि :: जिस व्यक्ति ने सर्व प्रथम शिव जी के मुख से मन्त्र सुनकर उसे विधिवत सिद्ध किया था, वह उस मंत्र का ऋषि कहलाता है। उस ऋषि को मन्त्र का आदि गुरु मानकर श्रद्धापूर्वक उसका मस्तक में न्यास किया जाता है।
(38). छन्द :: मंत्र को सर्वतोभावेन आच्छादित करने की विधि को छन्द कहते हैं। यह अक्षरों अथवा पदों से बनता है। मंत्र का उच्चारण चूँकि मुख से होता है, अतः छन्द का मुख से न्यास किया जाता है।
(39). देवता :: जीव मात्र के समस्त क्रिया-कलापों को प्रेरित, संचालित एवं नियंत्रित करने वाली प्राण शक्ति को देवता कहते हैं। यह शक्ति मनुष्य के हृदय में स्थित होती है, अतः देवता का न्यास हृदय में किया जाता है।
(40). बीज :: मन्त्र शक्ति को उद॒भावित करने वाले तत्व को बीज कहते हैं। इसका न्यास गुह्यांग में किया जाता है।
(41). शक्ति :: जिसकी सहायता से बीज मन्त्र बन जाता है वह तत्व शक्ति कहलाता है। उसका न्यास पाद स्थान में करते हैं।
(42). विनियोग :: मन्त्र को फल की दिशा का निर्देश देना विनियोग कहलाता है।
(43). उपांशु जप :: जिह्वा एवं होठों को हिलाते हुए केवल स्वयम को सुनाई पड़ने योग्य मंत्रोच्चारण को उपांशु जप कहते हैं।
(44). मानस जप :: मन्त्र, मंत्रार्थ एवं देवता में मन लगाकर मन ही मन मन्त्र का उच्चारण करने को मानस जप कहते हैं।
(45). अग्नि की जिह्वाएँ ::
(45.1). अग्नि की 7 जिह्वाएँ :- (45.1.1). हिरण्या, (45.1.2). गगना, (45.1.3). रक्ता, (45.1.4). कृष्णा,  (45.1.5). सुप्रभा, (45.1.6). बहुरूपा एवं (45.1.7). अतिरिक्ता।
(45.2.1). काली, (45.2.2). कराली, (45.2.3). मनोभवा, (45.2.4). सुलोहिता, (45.2.5). धूम्रवर्णा, (45.2.6). स्फुलिंगिनी एवं (45.2.7). विश्वरूचि।
(46). प्रदक्षिणा :– देवता को साष्टांग दंडवत करने के पश्चात इष्ट देव की परिक्रमा करने को ‘प्रदक्षिणा’ कहते हैं।
विष्णु, शिव, शक्ति, गणेश और सूर्य आदि देवताओं की 4, 1, 2 , 1, 3, अथवा 7 परिक्रमायें करनी चाहियें। 
(47). 5 प्रकार की साधना:-
(47.1). अभाविनी :– पूजा के साधन तथा उपकरणों के अभाव से, मन से अथवा जल मात्र से जो पूजा साधना की जाती है, उसे अभाविनी कहा जाता है।
(47.2). त्रासी :– जो त्रस्त व्यक्ति तत्काल अथवा उपलब्ध उपचारों से अथवा मान्सोपचारों से पूजन करता है, उसे त्रासी कहते हैं। यह साधना समस्त सिद्धियाँ देती है।
(47.3). दोवोर्धी :– बालक, वृद्ध, स्त्री, मूर्ख अथवा ज्ञानी व्यक्ति द्वारा बिना जानकारी के की जाने वाली पूजा दोर्वोधी कहलाती है।
(47.4). सौतकी :- सूत की व्यक्ति मानसिक संध्या करा कामना होने पर मानसिक पूजन तथा निष्काम होने पर सब कार्य करें। ऐसी साधना को ‘सौतकी’ कहा जाता है।
(47.5). आतुरी :: रोगी व्यक्ति स्नान एवं पूजन न करें। देव मूर्ति अथवा सूर्य मंडल की ओर देख कर, एक बार मूल मन्त्र का जप कर उस पर पुष्प चढ़ाएं फिर रोग की समाप्ति पर स्नान करके गुरु तथा ब्राह्मणों की पूजा करके, पूजा विच्छेद का दोष मुझे न लगे, ऐसी प्रार्थना करके विधि पूर्वक इष्ट देव का पूजन करें तो इस पूजा को आतुरी कहा जाएगा।
(48). अपने श्रम का महत्व :: पूजा की वस्तुएँ स्वयं लाकर तन्मय भाव से पूजन करने से पूर्ण फल प्राप्त होता है। अन्य व्यक्ति द्वारा दिए गये साधनों से पूजा करने पर आधा फल मिलता है।
(49). वर्णित पुष्पादि :– (49.1). पीले रंग की कट सरैया, नाग चंपा तथा दोनों प्रकार की वृहती के फूल पूजा में नही चढाये जाते।
(49.2). सूखे, बासी, मलिन, दूषित तथा उग्र गंध वाले पुष्प देवता पर नहीं चढाये जाते।
(49.3). भगवान् विष्णु पर अक्षत, आक तथा धतूरा नहीं चढाये जाते।
(49.4). भगवान् शिव पर केतकी, बन्धुक (दुपहरिया), कुंद, मौलश्री, कोरैया, जयपर्ण, मालती और जूही के पुष्प नही चढाये जाते।
(49.5). माँ दुर्गा पर दूब, आक, हरसिंगार, बेल तथा तगर नही चढाये जाते।
(49.6). भगवान् सूर्य तथा गणेश जी पर तुलसी नहीं चढाई जाती।
(49.7). चंपा तथा कमल की कलियों के अतिरिक्त अन्य पुष्पों की कलियाँ नहीं चढाई जातीं।
(50). ग्राह्य पुष्प :– भगवान् विष्णु पर श्वेत तथा पीले पुष्प, तुलसी, सूर्य, गणेश जी पर लाल रंग के पुष्प, माँ लक्ष्मी पर कमल, भगवान् शिव के ऊपर आक, धतूरा, बिल्वपत्र तथा कनेर के पुष्प विशेष रूप से चढाये जाते हैं। अमलतास के पुष्प तथा तुलसी को निर्माल्य नही माना जाता।
(51). ग्राह्य पत्र :: तुलसी, मौलश्री, चंपा, कमलिनी, बेल, श्वेत कमल, अशोक, मैनफल, कुषा, दूर्वा, नागवल्ली, अपामार्ग, विष्णुक्रान्ता, अगस्त्य तथा आंवला इनके पत्ते देव पूजन में ग्राह्य हैं।
(52). ग्राह्य फल :: जामुन, अनार, नींबू, इमली, बिजौरा, केला, आंवला, बेर, आम तथा कटहल ये फल देवपूजन में ग्राह्य हैं।
(53). धूप :: अगर एवं गुग्गुल की धूप विशेष रूप से ग्राह्य है। चन्दन-चूरा, बालछड़ आदि का प्रयोग भी धूप के रूप में किया जाता है।
(54). दीपक की बत्तियाँ :: यदि दीपक में अनेक बत्तियाँ हों तो उनकी संख्या विषम रखनी चाहिए।दायीं ओर के दीपक में सफ़ेद रंग की बत्ती तथा बायीं ओर के दीपक में लाल रंग की बत्ती रखनी चाहिए।
PRAYER OF DEITIES FOR FULFILLMENT OF DESIRES इच्छा पूर्ति हेतु देवराधना ::
ब्रह्म तेज़ या विशिष्ट ज्ञान-विद्या हेतु :: देवगुरु बृहस्पति।   
इन्द्रियों की सन्तुष्टि-विशिष्ट शक्ति :: देवराज इन्द्र। 
अगले जन्म में सन्तान  सुख :: प्रजापतियों का स्मरण। 
सुन्दर और आकृषक शरीर :: अग्नि, गन्दर्भ। 
अन्न संग्रह :: देव माता अदिति।  
पौरुष-बहादुरी :: रुद्रगण।  
धन-लक्ष्मी :: माया (माँ लक्ष्मी), कुबेर। 
स्वर्ग :: देवमाता अदिति। 
राज्य, सत्ता :: विश्व देव।  
सुंदरता :: गन्दर्भ। 
ज्ञान, शिक्षा-विद्या :: भगवान् शिव,  माता सरस्वती।
बुद्धि, चातुरी कौशल :: गणपति महाराज और बुध देव।  
पति-पत्नी में सामंजस्य-प्रेम-सौहार्द, गृहस्थ सुख :: माँ गौरी-पार्वती, शिव परिवार (भगवान् शिव, माँ पार्वती, गणपति, कुमार भगवान् कार्तिकेय और नंदी महाराज)। 
वंश वृद्धि :: पितृगण।  
भोग :: देवराज इन्द्र, चन्द्र देव, कामदेव, रति,  प्रीति।  
मोक्ष :: भगवान्  श्री हरी विष्णु।   
कष्ट निवारण :: गणपति श्री गणेश। 
रोग निवारण :: अश्वनी कुमार, भगवान् धन्वंतरि, महामृत्युंजयी महा काल भगवान् शिव। 
PRAYER प्रार्थना :: हे परम पिता परमेश्वर, पर ब्रह्म परमेश्वर, जगदीश्वर मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर जगदीश्वर भगवान् सदाशिव में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे।
मैं और मेरा परिवार, स्वजन-आत्मीय जन, आने वाली पीढ़ियों को धर्म बुद्धि, सद्बुद्धि और तुम्हारे श्री चरणों में परम्, अद्वितीय, अव्यय, विकार रहित, अक्षय, अविचल,  प्रेममयी सात्विक बुद्धि की प्राप्ति हो। 
आदिदेव महादेव, भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, महेश मुझ अकिंचक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद्भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परम धाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
आदि माता भगवती, उमा पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
भगवान् लक्ष्मी-नारायण, शेष नाग मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
माँ गायत्री-सावित्री, भगवान ब्रह्मा जी महाराज मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
भगवान् सदाशिव, माता पार्वती, गणपति जी महाराज, कुमार कार्तिकेय, नंदी बाबा जी महाराज, हनुमान जी बाबा जी महाराज, रिद्धि, सिद्धि, शुभ लाभ मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
भगवान रत्नाकर, समुद्र देवता, वरुण देवता, माता गंगा, यमुना सरस्वती, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी, गोमती मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
कुल देवता, नाग देवता, भगवान अनंत मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
भगवान् शेष नाग, नागराज वासुकी, कर्कोटक, महात्मा तक्षक मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो।आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे।  
देवात्मा देवराज इंद्र, परम पवित्र अग्नि देवता, पवन देव, वरुण देव, समस्त मेध गण और बिजलियाँ मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! हमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, हम पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि हमारी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। हम परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। 
हे परमपिता पर ब्रह्म परमेश्वर! हमारा मन, मस्तिष्क, प्राण, चित्त, ध्यान और दसों इन्द्रियाँ आयु पर्यन्त पूर्ण रूप से स्वस्थ, निरोग और हमारे पूर्ण नियंत्रण में हों। 
हे परमेश्वर! हमें तुम्हारी परम, अव्यय, विकार रहित, अद्वितीय, अनन्य, अक्षय, अनन्त प्रेम मयी सात्विक भक्ति की प्राप्ति हो जो कि हमारे तुममें लीन होने के बाद भी स्थाई रूप से कायम रहे। 
श्री हनुमान जी बाबा जी महाराज मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद्गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। मुझे तुम्हारा दर्शन और आशीर्वाद नित्य प्राप्त हॉट रहे। मेरे शरीरिक, मानसिक, भौतिक, आध्यात्मिक, काम और मोह विकार सदासर्वदा के लिए, जन्म-जन्मांतरों के लिये नष्ट हो जायें।आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे।  
भगवान् वेद व्यास, देवऋषि नारद, सप्तऋषि गण, ब्रह्मऋषि गण, माता भगवती, माता सरस्वती, गणपति बाबा जी महाराज मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। हम परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जायें। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। 
हे प्रभु! मैं केवल वही लिखूँ जो सत्य, तुम्हारा कथन और मन्तव्य हो। मैं जो कुछ भी लिखूँ मुझे समझ में आये। मेरे लिखने में कोई भूल, गलती, त्रुटि हो तो उसे क्षमा करके शुद्ध कर देना। लिखे को अनन्त असंख्य लोग पढ़ें और सात्विक विचारों को ग्रहण करके जीवन में उपयोग में लायें। उनके कल्याण के साथ-साथ मेरा भी कल्याण हो जाये। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
भगवान् सूर्य व चन्द्र देव मुझ अकिंचक पर प्रसन्न हों! मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, हम पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि हमारी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। हम परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जायें। हम तेजस्वी, ओजस्वी बनें। हमारा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्दपूर्ण, निमल और विवके पूर्ण हो। हमें हमारे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। मैं तेजस्वी ओजस्वी बनूँ। मेरे शरीरिक, मानसिक, भौतिक, आध्यात्मिक, काम और मोह विकार सदा-सर्वदा के लिए, जन्म-जन्मांतरों के लिये नष्ट हो जायें। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
हे परमपिता पर ब्रह्म परमेश्वर! हमारा मन, मस्तिष्क, प्राण, चित्त, ध्यान और दसों इन्द्रियाँ आयु पर्यन्त पूर्ण रूप से स्वस्थ, निरोग और हमारे पूर्ण नियंत्रण में हों। 
हे परमेश्वर! हमें तुम्हारी परम, अव्यय, विकार रहित, अद्वितीय, अनन्य, अक्षय, अनन्त प्रेम मयी सात्विक भक्ति की प्राप्ति हो जो कि हमारे तुममें लीन होने के बाद भी स्थाई रूप से कायम रहे। 
समस्त देवगण, ऋषिगण, पितृगण, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग, राक्षस, दैत्य आदि प्रजातियाँ! मुझ पर प्रसन्न हों। मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
भगवान् नर, नारायण, बद्रीनाथ, केदारनाथ! मुझ पर प्रसन्न हों। मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
बाबा विश्वनाथ, महाकाल, रामेश्वर! मुझ पर प्रसन्न हों। मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वरमें, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। मुझे तम्हारे, द्वारकाधीश, द्वादस ज्योतिर्लिंग और तिरुपति बाला जी महाराज का दर्शन और आशीर्वाद निरंतर प्राप्त होता रहे। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
भगवान् तिरुपति बाला जी महाराज! मुझ अकिञ्चक पर प्रसन्न हों। मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर जगदीश्वर भगवान् सदाशिव में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
भगवान् सदाशिव, माता पार्वती, गणपति बाबा महाराज, भगवान् कार्तिकेय और नंदी महाराज! मुझ पर प्रसन्न हों। मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद् बुद्धि, सद् भावना, समता, सद् गति प्रदान करने के साथ-साथ, मुझ पर ऐसी अनुकम्पा-कृपा करें कि मेरी शुद्ध सात्विक, मनोकामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायें। मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर में, सदा सर्वदा के लिए, स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ। मुझे मेरे परिवार, पूर्वजों, पितरों ऋषियों सहित परम सुख, अनंत सुख, अक्षय सुख, परमानन्द, परमधाम की प्राप्ति हो। मेरा व्यवहार अनुकरणीय, सौहार्द पूर्ण, निर्मल, विनम्र और विवेक पूर्ण हो। 
हे प्रभु! मुझ में तेरे प्रति श्रद्धा, भक्ति, विश्वास, आस्था, निष्ठा, प्रेम और ज्ञान की ज्योति सदैव जाग्रत-कायम रहे। समस्त प्राणियों के प्रति करुणा मय प्रेम हो। तुम्हारी कृपा से मेरे शरीर, आत्मा, बुद्धि-विवेक, मन, प्राण, चेतना, ध्यान, चित्त में, तुम्हारा, देवी देवताओं, परमात्मा, माँ भगवती, परम पिता परब्रह्म परमेश्वर भगवान सदाशिव का नित्य निवास-स्थाई निवास हो।आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
O God! Kindly bless me with faith, devotion, trust, confidence, reliance, belief, belief, inclination, regard, respect, reverence, devotion, faith, allegiance-devout-fulfilment of all religious duties, love-affection and knowledge, enlightenment along with compassion, pity, mercy, tenderness towards all creatures for ever. My body, soul, intelligence, mind, brain, prudence, mood-mind and heart, vital breath, consciousness, recollection, intelligence of mind, attention of mind, contemplation, meditation, memory, reflection-thought-understanding of mind should become permanent abode of the Almighty, Mother Bhagwati, Per Brahm Parmeshwar Bhagwan Sada Shiv.
हे प्रभु! मुझे व मेरे स्वजनों को मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद्बुद्धि, सद भावना, सदगति प्रदान कर। तेरी कृपा से हमारी समस्त शुद्ध सात्विक इच्छाएं, मनोकामनाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायं। हमें तुम्हारी अविचल, निश्छल, अनन्य, अनुपम, दिव्य, परम, अनन्त, अद्वितीय, नित्य, निर्मल भक्ति की प्राप्ति हो। आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
O! Almighty kindly bless me, my relatives and fellow people with detachment, liberation, salvation, devotion, purity of body, mind, heart and soul, prudence, enlightenment, purity of thoughts, good, feelings, thoughts, will, and peaceful transformation to next birth.
हे परमात्मा-दयानिधान! कृपा करके मुझे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति एवं परमानंद प्रदान कर!
Almighty kindly bless me with religiosity, finances, sensuality (ability to perform righteous sex for family life/household duties, which considered as the best ashram), salvation, detachment (from vices, defects-sins-wickedness), devotion and Ultimate bliss-happiness.
तेरी छत्र छाया, मुझ पर, मेरे परिवार पर, सदा बनी रहे। हमें मुक्ति, भक्ति, आत्मशुद्धि, सद्बुद्धि सद्भावना, अनंत सुख, अक्षय सुख-परम सुख, परमानन्द की प्राप्ति हो।
आयु पर्यन्त हम सुखी, सम्पन्न और निरोग रहें। हमारे शारीरिक, मानसिक, वाचिक, कार्मिक, काम विकार, मोह विकार सदा सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएँ। मन, चेतना, बुद्धि, प्राण और आत्मा सदा तुझमें केन्द्रित हो। हमारा मन, मस्तिष्क, अंग-प्रत्यंग, स्नायु-तन्त्रिका तंत्र आयु पर्यन्त सुचारु रूप से काम करता रहे। 
Let the asylum-protection-shelter under you, be always available-bestowed upon me, my family-household members and fellow people.
प्रार्थना PRAYER :: हे परमात्मा! हे भगवान्! कृप्या मुझे समस्त शारीरिक मानसिक दोषों, विकारों, विषय, वासनाओं, व्याधि, बीमारी, रोगों, तनावों से मुक्त कर।
हे प्रभु! मुझ में तेरे प्रति श्रद्धा, भक्ति, विश्वास, आस्था, निष्ठा, प्रेम और ज्ञान की ज्योति सदैव जाग्रत-कायम रहे। समस्त प्राणियों के प्रति करुणा मय प्रेम हो। तुम्हारी कृपा से मेरे शरीर, आत्मा, वाणी, बुद्धि-विवेक, मन, प्राण, चेतना, ध्यान, चित्त में, तुम्हारा, देवी देवताओं, परमात्मा, माँ भगवती, परम पिता परब्रह्म परमेश्वर भगवान् सदाशिव का नित्य-स्थाई निवास हो।
हम धर्म, कर्तव्य, न्याय, सत्य परायण हों। किसी किस्म का शारीरिक, मानसिक, आत्मिक विकार जन्म-जन्मांतरों में हैं न सताये। मुझे अपने परिवार, बड़े-बूढ़े, पितृगण और ऋषि गणों सहित परम्  सुख, अनन्त सुख और ब्रह्मानन्द की प्राप्ति हो। 
हे प्रभु! मुझे व मेरे स्वजनों को मुक्ति, भक्ति, आत्म शुद्धि, सद्बुद्धि, सद भावना, सदगति  प्रदान कर। तेरी कृपा से हमारी  समस्त शुद्ध सात्विक इच्छाएं, मनोकामनाएँ, मनोरथ सिद्ध हो जायं। हमें तुम्हारी अविचल, निश्छल, अनन्य, अनुपम, दिव्य, परम, अनन्त, उत्तम, अद्वितीय, नित्य, निर्मल स्थाई भक्ति की, स्थाई रूप प्राप्ति हो।
हे परमात्मा-दयानिधान! कृपा करके मुझे व मेरे परिवार को  धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मुक्ति, भक्ति, आत्मशुद्धि  एवं  परमानंद प्रदान कर! हमें अक्षय सुख, परम सुख, अन्नत सुख, परमानन्द की  प्राप्ति हो। 
तेरी  छत्र छाया, मुझ पर, मेरे परिवार पर, मेरे देश पर, सारे संसार पर, सारे प्राणियों सदा बनी रहे।
हे परमात्मा! हे भगवान! कृप्या मुझे समस्त शारीरिक, मानसिक दोषों, विकारों, विषय, वासनाओं, व्याधि-बीमारी-रोगों-तनावों  से मुक्त कर।
O God! Kindly bless me with faith, devotion, trust, confidence, reliance, belief, inclination, regard, respect, reverence, devotion, allegiance, devout, fulfilment of all religious duties, love-affection and knowledge-enlightenment along with compassion, pity, mercy, tenderness towards all creatures forever. My body, soul, intelligence-mind-brain, prudence, mood-mind and heart, vital breath, consciousness-recollection-intelligence of mind, attention of mind, contemplation, meditation, memory, reflection-thought-understanding of mind, should become permanent abode of the Almighty, Mother Bhagwati, Per Brahm Permashwer, Bhagwan Sada Shiv.
O! Almighty kindly bless me, my relatives and fellow people with detachment-liberation-salvation, devotion, purity of body-mind-heart-speech and soul, prudence-enlightenment-purity of thoughts, good-feelings-thoughts-will,  and peaceful transformation to next birth.
Almighty kindly bless me with religiosity, finances, sensuality (ability to perform righteous sex for family life/household duties, which considered as the best ashram), salvation, detachment (from vices, defects, sins, wickedness), devotion and Ultimate bliss-happiness.
Let the asylum-protection-shelter under you, be always available-bestowed upon me, my family-household members and fellow people.
O! God kindly protect me from vices, defects, wickedness.
I should not  be smeared, stained, sullied, engrossed, discredited, attached, sullied to the following and get rid of them, as early as possible:
O! God kindly protect me from vices-defects-wickedness.
One should not smear, stained, sullied, engross, discredited, attached, sullied to the following and get rid of them, as early as possible.
Each and everyone, should spare some time for prayers, irrespective of religion-faith. God, is one and the same and is present in all of his creations. Being a component of the Almighty-one should remember him, he too remembers his creations. The devotee attains divine protection as soon he dedicate himself to the pious, virtuous, righteous, deeds. One's dedication to work is surely going to help him in an hour of need. So, always remember the God, before starting work. Remember, it's He who creates and nourishes us all. He is present in all of us.
(1). काम (Sexuality, sex blindness, sensuality, passions, wanton, lust, amorous) :: काम दैवी श्रष्टि और मैथुनी श्रष्टि दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है। काम देव और चन्द्र दोनों ही ब्रह्मा जी के रूप ही हैं। ब्रह्मा जी ने स्वयं काम की रचना की और स्वयं ही उससे ग्रस्त हो गये।  भगवान शिव को भी काम ने त्रस्त किया और उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया। मोहिनी अवतार ने भगवान शिव को मोहित कर दिया परन्तु वे भगवत कृपा से उसके दुष्प्रभाव से बच गये। विश्वामित्र जैसे ऋषि भी इसके जाल से निकल नहीं पाये। इस विकार से बचना असम्भव नहीं है, दृढ निश्चय-तप-ब्रह्मचर्य-भगवत भक्ति-शुद्ध विचार, विवेक, सद्बुद्धि  काम के आवेग को रोकते हैं। 
Its really very difficult to overcome-overpower the sex urge. Still one is capable of controlling-diverting this to devotion in God. [Please read more-Kam Yog, Sex Education of these blogs: bhartiyshiksha.blogspot.com  santoshkipathshala.blogspot.com]
(2). क्रोध (Anger, fury, rage, resentment, wrath) :: राग-द्वेष, ईर्ष्या, इच्छाओं की पूर्ति न होना, क्रोध उत्पन्न करता है। क्रोध में आकर व्यक्ति अपना नुक्सान ज्यादा करता है दूसरे का कम। 
One must control anger, not to repent later. Any act done in a fit of anger may put one  in trouble for the whole life. Life is spoiled. Always avoid such situations. Its better if you avoid anger. Anger is not bad if it is meant for the improvement-betterment of the depraved, corrupt, sinner, our children, society, self-others.
(3). मद (Intoxication, pride, arrogance, conceit, vanity) :: Its the root cause behind the downfall of the mighty. Power, wealth, recognition, flattery corrupts the minds of such people. They start comparing themselves with God. The presume that they are capable of doing everything. One who suffers with this stigma is sure to loss his prestige-power-wealth-recognition-respect and human incarnation in next births. He is destined to hells for millions of years. Never have too high opinion about yourself.
(4). लोभ (Greed, eager, covet) :: There is no end of desires. As soon one is satisfied, another one develops-grows. It creates restlessness-instability till the goal (targets, desires, ambitions) are not fulfilled. One can never live with peace. Satisfaction, Santosh, contentment is the key to live peacefully. Make efforts without greed.
(5). मोह (Allurement-delusion-ignorance) :: One will not be able to qualify for assimilation in God-liberation, till he overpowers this faculty. It keeps one struck-attached with the world. One has affection-attachments for the children-relations-property-wealth etc. Indifference-neglect is useful. Which can not be cut easily. One can seek guidance-help from the enlightened-Guru.
(6). ईर्षा (Envy-jealousy) :: One feels that he should have all that which is possessed by others. As soon as he notices that some thing new (worthy, precious, useful) is acquired by others he starts longing for it. Failure to obtain it fills him with dis satisfactions, distress-anger. The results of which are never good for him and the society. Contentment, self satisfaction, discipline, minimisation of needs-desires is helpful.
(7). आलस्य (Laziness) :: Its an evil which does not allow to attain the desired material, philosophical or spiritual goals. One seldom achieve success in life if he remains sluggish. Health conscious person always remain active, alert and ready to perform any duty assigned to him.
(8). मान (False Pride, vanity, self respect) :: Its good to be proud of ones country, children but one must not be overpowered by this defect. Hirany Kashyap, Hiranyaksh Ravan, Kans, Shishu Pal were killed because they considered themselves to be above all-the greatest. One must maintain his dignity-self respect-prestige, but not by degrading others. All creatures have the same soul-it's only the body which is different by virtue of the Karm-deeds. The egoist will certainly meet down fall.
(9). अपमान (Insult, disrespect, disgrace, contempt, curse, reproach) :: One must respect others and their sentiments even if they do not resemble his thoughts. In not good to dishonour others without any valid reason. Chanky was insulted by Maha Nand which led to the elimination of his dynasty and crowning of Chandr Gupt Maury.
(10). भय Fear :: One should never be afraid of others. There is no reason to be afraid of the parents, elders, well wisher and the Almighty. We should be afraid of our sins, wickedness which sends us to hells and lower species. It does b not mean that one has to become overconfident and too bold. Always asses the danger and act wisely-prudently-carefully-precisely remembering the God all the time. Fear can be overcome easily.
(11). निद्रा Sleep, Drowsiness :: One should not sleep for more than 8 hours. A sound sleep removes tiredness-fatigue and makes one alert, stable and fine. Instead of drowsing all the time one should prefer a sound sleep. It dangerous for own and others life. Never sleep while driving-navigating-flying. Arjun overpowered sleep through practice-Yog. One can easily control sleep through practice and Yog. Always too hard work and fatigue. rest is an essential part of our daily routine. [Please refer to longevity of this blog for more knowledge] The God takes refuge in Yog Nidra-sleep.
(12). थकान Tiredness :: One must avoid extreme physical and mental tiredness. Its not good for health. Amusement-entertainment are essential parts of our lives to shed off tiredness. Yog and refuse in God are alternate remedy for fatigue-tiredness. Increase stamina-enhance energy-boost power and start taking regular physical exercise and Yog. Consume healthy nourishing food,avoid meat, wine-women, fish, egg, narcotics-drugs.
(13). शोक Grief, condolence, mourning ::  Its not good to be under the cloud of grief for the ones who are dead for long. control yourself and be busy with the daily routine-chores of life. God, religion, social gatherings, congregations are good remedy for this. Its a temporary phase in each and every one's life.
(14). संताप Anguish, suffering, grief, remorse, trauma ::  Too much of every thing is bad. Control yourself. One who has given grief will pull you out of it as well. Take a look at the future-brighten it.
(15). दुःख Sorrow, pain, sadness, grief, distress :: There is nothing to be afraid or fear the pains-tensions-failures. They come and go. Over power them. They are meant to educate you, help you in finding out solutions. Remember nothing is difficult for the one who is determined-confident-brave-alert-conscious.
(16). कष्ट Trouble, difficulty ::  They come as routine. One must not be afraid of them and face them with confidence. They are the out come, result of current, previous deeds. Never try to escape them. Have faith in God.
(17). पाप तीन प्रकार का होता है ::  (17.01). शारीरिक-कार्मिक, (17.02). वाचिक और (17.03). मानसिक। 
शारीरिक :: किसी भी प्राणी को शारीरिक आघात-कष्ट पहुँचाना। 
वाचिक :: वचनों-वाणी-शब्दों से अपमान, तिरस्कार, दिल दुखाना, क्रोध करना । 
मानसिक :: बुरा सोचना, दुर्भावना रखना, बदले की चाहत। 
पाप को प्रायश्चित, आराधना, तपस्या, दूसरों की मदद करके कम किया जा सकता है।
(17.1). परस्त्री की संगति, पापियों के साथ रहना और प्राणियों के साथ कठोरता का व्यवहार करना। 
(17.2). फलों की चोरी, आवारागर्दी, वृक्ष पेड़ काटना।
(17.3.1). वर्जित वस्तुओं को लेना, (17.3.2). वे कसूर को मारना, जेल-बन्धन में डालना, धन की प्राप्ति के लिये मुकदमा करना। 
(17.4). सार्वजनिक सम्पत्ति को नष्ट करना धर्म-नियमों के विपरीत चलना। 
(17.5). पुरश्चरण आदि तान्त्रिक अभिचरों से किसी को मारना, मृत्यु जैसा अपार कष्ट देना, मित्र के साथ छल-छंद, झूँठी शपथ, अकेले मधुर पदार्थ खाना। 
(17.6). फल-पत्र-पुष्प की चोरी, बंधुआ रखना, सिद्ध की प्राप्ति में बाधा डालना और नष्ट करना, सवारी के सामानों चोरी। 
(17.7). राजा को देय राशि में घपला, राजपत्नी का सन्सर्ग और राज्य-देश का अमंगल। 
(17.8). किसी वस्तु या व्यक्ति पर लुभा जाना, लालच करना, पुरुषार्थ से प्राप्त धर्म युक्त धन का विनाश करना, लार मिली वाणी, चिकनी-चुपड़ी बातें करना- बनाना। 
(17.9). ब्राह्मण को देश से निकालना, उसका धन चुराना, निंदा करना तथा बन्धुओं से द्वेष-विरोध रखना।
(17.10). शिष्टाचार का नाश, शिष्ट जनों से विरोध, नादान-अबोध बालक की हत्या करना, शास्त्र-ग्रंथों की चोरी, स्वधर्म का नाश-धर्म परिवर्तन।
(17.11). वेद-विद्या, संधि विग्रह, यान, आसन, द्वैधी भाव, समाश्रय-राजनैतिक गुणों का प्रतिवेश। 
(17.12). सज्जनों से वैर, आचारहीनता, संस्कार हीनता, बुरे कामों से लगाव।
(17.13). धर्म, अर्थ, सत्कामना की हानि, मोक्ष प्राप्ति में बाधा डालना या इसके समन्वय में विरोध उत्पन्न करना।
(17.14). कृपण,  धर्म हीनता, परित्याज्य और आग लगाने वाला।
(17.15). विवेकहीनता, दूसरे के दोष निकालना, अमंगल-बुरा करना, अपवित्रता एवं असत्य वचन बोलना। 
(17.16). आलस्य, विशेष रूप से क्रोध करना, सभी के प्रति आतताई बन जाना और घर में आग लगाने वाला।
(17.17). परस्त्री की कामना, सत्य के प्रति ईर्ष्या, निन्दित एवं उदण्ड व्यवहार। 
(17.18). देव ऋण, ऋषिऋण, प्राणियों के ग्रहण-विशेषत :- मनुष्यों एवं पित्तरों का ऋण, सभी वर्णो को एक समझना, ॐ औंकार  के उच्चारण में उपेक्षा भाव रखना, पापकर्मों को करना, मछली खाना तथा अगम्या स्त्री से संगत; महापाप हैं। 
(17.19). तेल-घृत बेचना, चाण्डाल से दान लेना अपना दोष छिपना और दूसरे का उजागर करना घोर पाप हैं। 
(17.20). दूसरे का उत्कर्ष देखकर जलना, कड़वी बात बोलना, निर्दयता, भयंकरता और अधर्मिकता। [वामन पुराण]
SINS are divided into three categories :-
(17.01). PHYSICAL :: The abuse is carried out physically by torture, murder, beating-thrashing, assault, tying, inflicting pain by harming bodily, overpowering.
(17.02). VOCAL :: Speaking harsh words, insult, abusing, making fun, cutting jokes, rejection, mental agony-turpitude, harassment.
(17.03). MENTAL :: Thinking bad of others, desire for revenge, bad motives, desire for illicit relations, sensuality, passions, pride, ego, greed. 
Any deed-action-maneuver, preformed with bad intentions to harm others, amounts to sin. Harming others whether intentional or without intention-chance-happening is sin. Penances, repentance, ascetics, prayers devotion to God, helping others, poor, downtrodden, elders, needy, pity on others, forgiving.
VICE (Devil, satanic, wicked, vicious, corrupt, villain, wretch, enemy) :: One is subjected-forced into the hells for thousands and thousands of years, become insect, worm, animal, tree on his release from the hells. The God provides him with an opportunity to improve by giving birth in human incarnation. This opportunity must be utilised for our own sack.
(17.1). Company of others women, wicked and too strict behaviour.
(17.2).  Stealing of fruits, roaming aimlessly with leisure, cutting-felling of trees.
(17.3). Acceptance of restricted goods, killing, beating, imprisoning, filing of false cases against for the sake of extracting money against the innocents. 
(17.4). Destruction of community property and acting against the religious rules, scriptures, epics, code.
(17.5). Killing of people through ghostly-wretched actions, torture like-comparable to death, cheating with friends, relatives, well wishers, false promise, ignoring colleagues, friends, relatives, sitting nearby while sweets. 
(17.6). Theft of vegetation-leaves-fruits-flowers, either vehicles or their components, keeping bonded labor, creating troubles-hindrances in the way of devotees busy in meditation asceticism.
(17.7). Contact-relations with the queen, action against the country and non payment of the state dues. 
(17.8). To become greedy (bait, lure, to temp, to decoy, intense desire, avarice) for a person or thing,  to be greedy and to destroy the wealth-money earned through righteous-honest means. 
(17.9). To expel a Brahmn (Pandit, scholar, learned, enlightened) from the country, snatching-looting his money-wealth-property, spoiling the money earned through righteous means-honest-pure means, envy-anguish with the relatives-friends.
(17.10).  Loss of decency, opposition with the descent people, murder of infants-kids, theft-stealing of scriptures, epics, holy, religious books, change-conversion from own religion and acting against the religion.
(17.11). Action against the Veds, Purans, Upnishads, breaking of treaties, destabilising from vehicle, seat, couch, duality in behaviour, equanimity with the political thoughts, ideas, philosophy. 
(17.12). Rivalry-enmity with the descent people-gentle men, lack of virtues-manners, lack of ethics, attachment to bad deeds, vices, wickedness, devilish.
(17.13). Loss of religiosity, money, wealth, finances-budget, loss of good thoughts-ideas, prohibiting in the attainment of emancipation, Liberty, Salvation, assimilation in God, The Ultimate-Almighty.
(17.14). Miserliness, lack of religiosity, one to be rejected-expelled from family-society and the one who ignites fire to others possessions.
(17.15). Imprudence, finding faults with others, doing bad, impurity and speaking untrue-slur.
(17.16). Laziness, furore-being angry-anguish, becoming tyrant to all, burning homes-houses-inhabitants-huts-tents. 
(17.17). Desire for someone else's wife's, abduction, forcefully or otherwise luring others women, enmity for truth, bad insensitive abnormal behaviour.
(17.18). All sorts of debt pertaining to elders, ancestors, failure to pay debt-debt servicing, considering all castes to be equal, keeping anti opinion, negligence, rejection, opposition against the pronunciation of Om-Omkar, ॐ,  the primordial sound created at the time of evolution, eating fish, sex with impure-wretched women are extreme sins.
(17.19). Selling of oil-ghee, accepting of donations-charity from a Chandal-one who performs last rites in cremation ground-extremely low caste person who lives away from the periphery of civilians-cities, hiding of own faults and exposing others are the ulterior sins.
(17.20). To envy others rise, always speaking the bitter, lack of pity, to act terribly like a monster, fearsome, terrible, dangerous, desolate.
Prayers, donations-charity, fasting, bathing in pious rivers, ponds, lakes on auspicious occasions-festivals, visiting holy places-holy rivers, helping poor-downtrodden-weaker sections of society, participation in religious activities, chanting, recitation, singing, celebrating, remembering of God's names on auspicious occasions, meditation, asceticism, thinking-analysing God's deeds are some of the actions which helps in getting rid from sins. sins carry the sinners to rigorous hells. On being released from them the soul goes to the species like insects-worms-animals.
(18). मत्सरी Envious, jealous, hostility :: Envy, jealousy, hostility leads to unnecessary desires and competitions. One indulge in acquisitions, which makes his bond-attachments strong with the world , making it difficult for him to relinquish it and attain liberation.
(19). प्रमाद Intoxication, frenzy :: One who attain power-worldly acquisitions generally become intoxicated. Those who never had it before, are plagued by this disease. They start thinking that they are above law and rest of the people, leading to their downfall. The sooner they rise the earlier the fall from grace.
(20). निंदा Blame, censure, scorn, abuse, defamation, slander, criticism, blasphemy, scolding, reproach, scorn :: Always avoid these things as far as possible. They only lead to displeasure-discomfort-disharmony and spoiled relations. Never blame or censure those in power, since these people are revengeful and harm one at the first opportunity, specially in today's climate.
(21). त्रष्णा Thirst-desires-longing :: Satisfaction-contentment is essential if you want to live peacefully. Desires have no limit. As soon as one desire is met the other comes forward.
(22). अहंकार, दंभ, दर्प, अभिमान Egotism, pride, arrogance :: Those who considered themselves to be powerful and above all, are no more with us. One can not become God, how so ever mighty he be.
(23). भोग Pleasure, gratification, enjoyment, suffering :: Pleasure leads to formation of ties with the world which may result in sin and suffering. Pleasure and pain are the two sides of the same coin. Neutrality towards them makes one closer to the Almighty.
(24). कुमती Evil thoughts-ideas, plans, designs :: Think before you act. One who act without analysing the consequences of his deeds, leads to trouble, ultimately. 
(25). विलास (Sensuous pleasure-flirting, luxurious life :: This leads to dissatisfaction from sex. Such people always suffer from venereal diseases, AIDS, black mail, disturbed family life. They loss their peace of mind. 
(26). दंभ Pretence-hypocrisy, deceit, boasting, ostentation :: One who is not so mature-intelligent-wise-prudent will suffer from this defect. Never show off your acquisitions. Protect them for lean period-difficult times.
(27). निराशा Despair, disappointment, hopelessness :: Never dream that high which you may not be able to attain instantaneously. Gradual rise is good. Go up step by step. Wait for the opportunities to come and catch hold of them, as soon as they come. Always remember the God. Your present, accumulated and deeds in previous births will modify your destiny. Nothing is too difficult to attain. Try to attain the God, Moksh, Salvation. 
(28). घृणा-द्वेष Hatred, aversion, enmity, spite :: It develops automatically when some one react, abuse, tease, tortures, troubles, scorn you without any valid reason. Its better you move away from the company of such people. Discard, avoid, repel them, away from you.
(29). अपशब्द Abuses :: Some people use abuses as a slang. Some do not miss an opportunity to abuse others. One must dissociate such people since he may also acquire this bad habit-evil. Always exercise restraint-control over the tongue. 
(30). असत्य Falsehood, lies, fake, incorrect ::  A lie spoken to save protect the innocent is not a sin. Those who are in a habit of telling, lies invite troubles for themselves in one or the other form. In fact they reserve their berth in the hells. 
(31). अधर्म Irreligiosity, unrighteousness, immorality, wickedness, sins, crime, guilt, impiety :: One who act against the humanity is irreligious. Visiting holy places, shrines, bathing in holy rivers, does not make you virtuous, pious, devoted to God.  Just by remaining away from criminality, anti social activities one may become religious. Scriptures have defined Varnashram Dharm for each and every one.
(32). कुटैव Bad habits, thought, ideas :: One loss his health, mental peace-harmony if  he indulge in bad company, habits. they are always harmful.
(33). कुविचार Kuvichar, bad-wicked ideas, negative thoughts :: Reading vulgar books, watching vulgar films, bad company moves one to thoughts, which will spoil his present and future births.
(34). कुसंगति Kusangati, evil, wretched, bad company :: It always add to ills, bad ideas, imprudence. No chance is left for reforming such people.
PRAYER प्रार्थना कामना DESIRE ::         
ॐ गंगणपतये  नम: ॐ गंगणपतये  नम: ॐ गंगणपतये  नम:
Om Ganganpatye Namh.      Om Ganganpatye Namh.        Om Ganganpatye Namh.
हे गणपति बाबा जी महाराज। हे गजानन, लम्बोदर, विनायक, विघ्न हर्ता, विघ्नेश्वेर, माता गौरी व भगवान शिव के पुत्र, रिद्धि-सिद्धि के स्वामी, भगवान कार्तिकेय के भाई व नंदिश्वेर के सहचर! मेरे शरीर, मन, आत्मा, प्राण, बुद्धि, वाणी, चित्त, ध्यान, चेतना, घर-मकान-परिवार, में तुम्हारा देवी-देवताओं, परम पिता-पर ब्रह्म परमेश्वर भगवान सदा शिव का, नित्य निवास हो, स्थाई हो।तुम्हारी कृपा से, मैं परम पिता पर ब्रह्म परमेश्वर भगवान सदाशिव में सदा सर्वदा-सदैव के लिए  स्थाई रूप से लीन और एकाकार हो जाऊँ।      
O Ganpati! O Gajanan, Lamboder, Vinayak, Vighnhurta, Vighneshwer, the worthy son of mother Gauri and Bhagwan Shiv, the husband-master of Riddhi-Siddhi and the mighty brother of Bhagwan Kartikay and colleague of Nandishwer; kindly bless me that my Physique-body, Man (mood, innerself, mind  & heart), Atma, soul, Buddhi (intelligence, prudence, mind, brain), Chitt (reflections, thoughts, mood), understanding of mind, Dhyan (meditation, contemplation), memory-attention of mind, Chetna (consciousness, recollection), house-home, family-household members, becomes the permanent abode of Devi-Devta (demigods, deities), Param Pita Par Brahm Parmeshwar Bhagwan Sada Shiv.
Let me assimilate-merge in Param Pita Par Brahm Permashwer Bhagwan Sada Shiv forever, with your kindness and blessings.
MORNING PRAYER प्रातः स्मरण-आराधना :: 
प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना। 
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम॥
हे सर्वशक्तिमान् ईश्वर! आप स्वप्रकाश स्वरूप-सर्वज्ञ, परम ऐश्वर्य के दाता और परम ऐश्वर्य से युक्त, प्राण और उदान के समान, सूर्य और चन्द्र को उत्पन्न करने वाले हैं।आप भजनीय, सेवनीय, पुष्टिकर्त्ता हैं। आप अपने उपासक, वेद तथा ब्रह्माण्ड के पालनकर्त्ता, अन्तर्यामी और प्रेरक, पापियों को रुलानेवाले तथा सर्वरोग नाशक हैं। हम प्रातः वेला में आपकी स्तुति-प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 7.41.1]
यह महर्षि वशिष्ठ द्वारा भगदेवता-ईश्वर से सभी रोगों से मुक्ति पाने की प्रार्थना है। इसके प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक पाठ करने से असाध्य से भी असाध्य रोग दूर हो जाते हैं और दीर्घायु प्राप्त होती है। 
Hey Almighty! YOU bear (inbuilt) aura, all knowing, possess & grants ultimate comforts-bliss, support Pran Vayu-life sustaining force in us, creator of Sun & Moon, has to be prayed by us-devotees. YOU maintain-nurture your devotees, Ved & the Universe, punishes the sinners & eliminates all diseases-illness. We pray to YOU in the morning.
प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता।
आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याह॥
हे ईश्वर! आप जयशील, ऐश्वर्य के दाता, तेजस्वी, ज्ञानस्वरूप, अन्तरिक्ष के पुत्र-रूप सूर्य को उत्पन्न कर्ता, सूर्यादि लोकों को धारण करने वाले हैं। आप सभी को जानते वाले, दुष्टों को दण्डित करने वाले हैं। मैं आपकी स्तुति (प्रार्थना, उपासना) करता हूँ।[ऋग्वेद 7.41.2]
Hey Almighty! YOU grant victory, bliss-comforts, creator & supporter-nurturer of the Sun, sustains the universe, know everyone, punish the sinners & enlightens all. I pray to YOU.
भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगे मां धियमुदवा ददन्नः।
भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम॥
हे ईश्वर! आप भजनीय, सबके उत्पादक और सत्याचार में प्रेरक-सत्य धन को देने वाले, ऐश्वर्य देने वाले हैं। हमें प्रज्ञा का दान देकर हमारी रक्षा कीजिए, गाय, अश्व आदि उत्तम पशुओं के योग से राज्य-श्री को उत्पन्न कीजिए। आपकी कृपा से हम लोग उत्तम मनुष्य बनें, वीर बनें।[ऋग्वेद 7.41.3]
Hey Almighty! We worship YOU-who created all, leads us to divine virtues-truthfulness, grants all sorts of amenities, prudence-intelligence, enlightenment, wealth (cows, horses etc.) and to become excellent & brave humans.
उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अन्हाम्।
उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम॥
हे परम पूजित ईश्वर! आपकी कृपा से और अपने पुरुषार्थ से हम लोग प्रातःकाल में तथा दिनों के मध्य में उत्तमता प्राप्त करें और सूर्यास्त के  समय ऐश्वर्य से युक्त हों। हम लोग देवपुरुषों की उत्तम प्रज्ञा और सुमति में तथा उत्तम परामर्श में सदा रहें।[ऋग्वेद 7.41.4]
Hey Almighty! We should be enriched & powerful by way of our efforts & YOUR kindness during the morning, noon & the evening. We should be ready-inclined to attain prudence-enlightenment from the learned-enlightened.
भग एव भगवां अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम।
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति स नो भग पुरएता भवेह॥
हे जगदीश्वर! सज्जन पुरुष आपको सकल ऐश्वर्य सम्पन्न कहते हैं, आपकी प्रशंसा और गुणगान करते हैं। आप इस संसार में हमारे अग्रणी, आदर्श, शुभ कर्मों में प्रेरित करने वाले हों। आपके कृपा कटाक्ष से हम विद्वत्व, सकल ऐश्वर्य सम्पन्न होकर, सब संसार के उपकार में तन, मन, धन से प्रवृत्त होयें।[ऋग्वेद 7.41.5]
Hey Almighty! The virtuous, righteous, pious, truthful call YOU the Ultimate Bliss-comfort and praise YOU. YOU should be our idol-role model & direct us to pious-virtuous deeds. By virtue of YOUR kindness-blessings, we should become enlightened, attain all sorts of amenities and serve the humanity with our body, mind and wealth.
MORNING PRAYERS प्रातः स्मरण ::
प्रात: कर-दर्शनम् ::
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥
पृथ्वी क्षमा प्रार्थना ::
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥
त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण ::
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
स्नान मन्त्र ::
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
सूर्य नमस्कार ::
ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् 
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम:। ॐ रवये नम:। ॐ सूर्याय नम:। 
ॐ भानवे नम:। ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:। ॐ हिरण्यगर्भाय नम:। 
ॐ मरीचये नम:। ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:। ॐ अर्काय नम:। ॐ भास्कराय नम:। 
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर। 
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥
संध्या दीप दर्शन ::
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥
गणपति स्तोत्र ::
गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:। 
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय। लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय। गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं। प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥
आदिशक्ति वंदना ::
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥
शिव स्तुति ::
कर्पूर गौरम करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे, भवं भवानी सहितं नमामि॥
विष्णु स्तुति ::
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं 
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् 
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
श्री कृष्ण स्तुति ::
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्। 
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥
श्रीराम वंदना ::
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
श्रीरामाष्टक ::
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
एक श्लोकी रामायण ::
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
सरस्वती वंदना ::
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्याऽपहा॥
हनुमान वंदना ::
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥
स्वस्ति-वाचन ::
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
शांति पाठ :: 
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:, 
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: 
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)