(AN ARDENT DEVOTEE OF BHAGWAN SHRI RAM-AN INCARNATION OF BHAGWAN SHIV)
★★रुद्रावतार हनुमान जी महाराज★★
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अमलकमलवर्णं प्रज्ज्वलत्पावकाक्षं सरसिजनिभवक्त्रं सर्वदा सुप्रसन्नम्। पटुतरघनगात्रं कुण्डलालङ्कृताङ्गं रणजयकरवालं वानरेशं नमामि॥ यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम्। बाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्॥
I, bow down to Hanuman Ji Maharaj, who is the slayer of demons and who is present with his head bowed and eyes full of flowing tears, wherever the glory-fame of Bhagwan Shri Ram is sung.
हनुमान जी महाराज चिरंजीवी, अजर, अमर हैं। भगवान् श्री राम के वरदान से, जब तक पृथ्वी लोक में उनका नाम स्मरण किया जायेगा, तब तक हनुमान जी महाराज यहाँ भक्तों का भला करते रहेंगे। जहाँ-जहाँ राम कथा होगी वहाँ-वहाँ हनुमान जी महाराज मौजूद रहेंगे। यदि भगवान् राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, तो हनुमान जी की भक्ति बेमिसाल-अद्वितीय है।
Anjana was an Apsara (nymph, divine woman figure in heaven) who took birth on earth due to a curse. She was redeemed from this curse on her giving birth to a son. Kesri was the son of Dev Guru Brahaspati. Kesri also fought on Bhagwan Ram's side in the war against Ravan. Anjana and Kesri performed intense prayers to Bhagwan Shiv to get a child. Pleased with their devotion, Bhagwan Shiv granted them the boon, they sought. Hanuman Ji Maha Raj, is the incarnation or reflection of Bhagwan Shiv himself.
Vayu's (Pawan Dev, demigod of air) role in Hanuman's birth :: Hanuman Ji Maha Raj is the son of the deity Vayu-Pawan Dev. When Maa Anjana was worshiping Bhagwan Shiv, the King Dashrath of Ayodhya was also performing the ritual of Putrkam-Putryeshthi Yagy, with the help and expertise of Shrang Rishi, to have children. Agni Dev appeared with sacred pudding (खीर) to be shared by his three wives, leading to the births of Bhagwan Shri Ram, Laxman Ji, Bharat Ji, Shatrughan Ji and a daughter. By divine ordinance, a kite snatched a fragment of that pudding and dropped it, while flying over the forest, where Anjana was engaged in worship. Vayu, the deity of the wind, delivered the falling pudding to the outstretched hands of Anjana, who consumed it. By Shiv's blessings, Vayu transferred his male energy-sperms preserved since Mohini Avtar, to Anjana's womb.
Dev Rishi Narad got infatuated with a princess, under the enchant of Bhagwan Shri Hari Vishnu went to Bhagwan Vishnu, to make him look like HIM-Hari Mukh (his face identical to HIM i.e., Hari-Vishnu हरी-विष्णु and Mukh, मुख face, Hari stands for Vanar as well). He wanted the princess to garland him at the Swayamvar (स्वयंवर, husband choosing, selection ceremony). Bhagwan Vishnu instead bestowed him with the face of a Vanar. Unaware of this, Narad Ji went to the princess, who burst into laughter at the sight of his ape like face before all the king's court. Narad Ji, unable to bear the humiliation-insult, cursed Bhagwan Vishnu, that he would one day be dependent upon the Vanars, unaware of the fact that it was a pre planned episode-design. Bhagwan Shri Hari Vishnu consoled and explained Narad Ji that what he had done was for his own sake-benefit, as he would have undermined his own powers had he entered matrimony. Upon hearing this, Narad Ji repented for cursing his idol. Though, the Almighty is not affected by any curse, yet he accepted it happily. Bhagwan Shri Hari Vishnu told him not to repent as the curse would act as a boon, for it would lead to the birth of Hanuman Ji, an avatar-incarnation of Bhagwan Shiv, without whose help Bhagwan Shri Ram (Vishnu's avatar) would not be able to kill Ravan.
मोहिनी अवतार के समय भगवान् शिव का वीर्य स्खलित हो गया था, जिसे ऋषियों ने अग्निहोत्र के माध्यम से सुरक्षित रखा हुआ था। इसके दो जन्म पूर्व माता अञ्जनी ने भगवान् शिव की आराधना कर एक अद्वितीय पुत्र प्राप्ति का वरदान पाया था। वीर्यपात पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ हुआ, वहीं पर सोने और चाँदी की खानें बन गईं।
The sperms were preserved for the events, which were going to take place in future, for killing Ravan in Treta Yug, in which Shri Hanuman Ji Maharaj had a very crucial role. Various places on earth turned into gold mines, where the ejected sperms of Bhagwan Shiv fell during Mohini Avtar.
उस वीर्य को पवन देव ने माता अञ्जनी के गर्भ में स्थापित कर दिया। इस जन्म के पीछे नारद जी का भगवान् विष्णु को श्राप भी था, जिसमें नारद जी ने भगवान् श्री हरी विष्णु को रामावतार में वानरों की सहायता लेने के लिए कहा गया था।
Vanar is a race-species like apes which has intelligence and body like humans but the face is like monkeys. They have tail like animals. Europe has a human race with red face. This race evolved as a result of the marriage of the daughters of Ravan with the Vaners, who were brought back to life by Bhagwan Shri Ram. These Vaners were the incarnations of demigods from the heaven who had taken birth to participate in the war between Bhagwan Shri Ram & Ravan. Their original location is Berlin and a place still called Vanara.
The people with red face can be recognised as the species evolved by the combination of Ravan's daughters and the Vaners. Its just a redistribution of DNA & chromosomes. Permutations & combinations of genes can lead to formation of new species.
पुञ्जिकस्थला का अञ्जना होना एवं हनुतज्जन्म प्रसङ्ग-हनुमान जी की माता अंजनी के पूर्व जन्म की कथा :: माता अंजनि पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं। बालपन में वो अत्यंत सुंदर और स्वभाव से चंचल थी। एक बार अपनी चंचलता वश उन्होंने तपस्या करते एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी थी।
गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि जा तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा, ऋषि के श्राप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना माँगने लगी, तब ऋषि ने कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा।तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा, अंजनि को वीर पुत्र का आशीर्वाद मिला।
श्री हनुमानजी की बाल्यावस्था :: ऋषि के श्राप से त्रेता युग में अंजना को नारी वानर के रूप मे धरती पर जन्म लेना पड़ा।
वह देवराज इन्द्र के दरबार की अप्सराओं में से एक थीं। अंजना की सेवा से प्रसन्न होकर देवराज इन्द्र ने उन्हें मनचाहा वरदान माँगने को कहा, अंजना ने हिचकिचाते हुए उनसे कहा कि उन पर एक तपस्वी साधु का श्राप है, अगर हो सके तो उन्हें उससे मुक्ति दिलवा दें। देवराज इन्द्र ने उनसे कहा कि वह उस श्राप के बारे में बतायें, क्या पता वह उस श्राप से उन्हें मुक्ति दिलवा दें।
अंजना ने उन्हें अपनी कहानी सुनानी शुरू की, अंजना ने कहा "बालपन में जब मैं खेल रही थी तो मैंने एक वानर को तपस्या करते देखा, मेरे लिए यह एक बड़ी आश्चर्य वाली घटना थी, इसलिए मैंने उस तपस्वी वानर पर फल फेंकने शुरू कर दिए, बस यही मेरी गलती थी क्योंकि वह कोई आम वानर नहीं, बल्कि एक तपस्वी साधु थे"।
मैंने उनकी तपस्या भंग कर दी और क्रोधित होकर उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि "जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर बन जाऊँगी। मेरे बहुत गिड़गिड़ाने और माफी माँगने पर उस साधु ने कहा कि मेरा चेहरा वानर होने के बावजूद उस व्यक्ति का प्रेम मेरी तरफ कम नहीं होगा"। अपनी कहानी सुनाने के बाद अंजना ने कहा कि अगर देवराज उन्हें इस श्राप से मुक्ति दिलवा सकें तो वह उनकी बहुत आभारी होंगी। देवराज इन्द्र ने उन्हें कहा कि इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए अंजना को धरती पर जाकर वास करना होगा, जहाँ वह अपने पति से मिलेंगी। भगवान् शिव के अवतार को जन्म देने के बाद अंजना को इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।
देवराज इन्द्र की बात मानकर अंजना धरती पर चली आईं, एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पड़ा। उस शाप का प्रभाव भगवान् शिव के अंश को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। वे वन में जीवन यापन करने लगीं। जंगल में उन्होंने एक बड़े बलशाली युवक को शेर से लड़ते देखा और उसके प्रति आकर्षित होने लगीं, जैसे ही उस व्यक्ति की नजरें अंजना पर पड़ीं, अंजना का चेहरा वानर जैसा हो गया। अंजना जोर-जोर से रोने लगीं, जब वह युवक उनके पास आया और उनकी पीड़ा का कारण पूछा तो अंजना ने अपना चेहरा छिपाते हुए उसे बताया कि वह बदसूरत हो गई हैं। अंजना ने उस बलशाली युवक को दूर से देखा था लेकिन जब उसने उस व्यक्ति को अपने समीप देखा तो पाया कि उसका चेहरा भी वानर जैसा था।
अपना परिचय बताते हुए उस व्यक्ति ने कहा कि वह कोई और नहीं वानर राज केसरी हैं जो जब चाहें इंसानी रूप में आ सकते हैं। अंजना का वानर जैसा चेहरा उन दोनों को प्रेम करने से नहीं रोक सका और जंगल में केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया।
केसरी एक शक्तिशाली वानर थे जिन्होंने एक बार एक भयंकर हाथी को मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पँहुचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, केसरी का अर्थ होता है, सिंह। उन्हें कुंजर सुदान (हाथी को मारने वाला) के नाम से भी जाना जाता है।
केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया पर सन्तान सुख से वंचित थे। अंजना अपनी इस पीड़ा को लेकर मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पम्पा (कई लोग इसे पंपा सरोवर भी कहते हैं) सरोवर के पूर्व में नरसिंह आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है, वहाँ जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करने पर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।
अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया, बारह वर्ष तक केवल वायु पर ही जीवित रही, एक बार अंजना ने शुचिस्नान करके सुन्दर वस्त्राभूषण धारण किए। तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर उस समय पवन देव ने उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर उसे वरदान दिया कि तेरे यहाँ सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा।
मतंग रामायण कालीन एक ऋषि थे, जो शबरी के गुरु थे!
अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ के पास, अपने आराध्य शिव की तपस्या में मग्न थीं। जब वे भगवान् शिव की आराधना कर रही थीं, तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उन्हें वरदान माँगने को कहा, अंजना ने भगवान् शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें भगवान् शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए भगवान् शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।
तथास्तु कहकर भगवान् शिव अंतर्ध्यान हो गए। इस घटना के बाद एक दिन जब अंजना भगवान् शिव की आराधना कर रही थीं और दूसरी तरफ अयोध्या में, इक्ष्वाकु वंशी महाराज अज के पुत्र और अयोध्या के महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए, श्रृंगी ऋषि को बुलाकर पुत्र कामेष्टि यज्ञ के साथ यज्ञ कर रहे थे।
यज्ञ की पूर्णाहुति पर स्वयं अग्नि देव ने प्रकट होकर श्रृंगी को खीर का एक स्वर्ण पात्र (कटोरी) दिया और कहा, "ऋषिवर! यह खीर राजा की तीनों रानियों को खिला दो। राजा की इच्छा अवश्य पूर्ण होगी"। जिसे तीनों रानियों को खिलाना था, लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस खीर की कटोरी में थोड़ा सी खीर अपने पंजों में फँसाकर ले गई और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दी। अंजना ने इसे भगवान् शिव का प्रसाद समझकर ग्रहण कर लिया।
हनुमान जी (वानर मुख वाले हनुमान जी) का जन्म त्रेता युग में अंजना के पुत्र के रूप में, चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा की महानिशा में हुआ।
अंजना के पुत्र होने के कारण ही हनुमान जी को अंजनेय नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है "अंजना द्वारा उत्पन्न"।
उनका एक नाम पवन पुत्र भी है। जिसका शास्त्रों में सबसे ज्यादा उल्लेख मिलता है। शास्त्रों में हनुमान जी को वातात्मज भी कहा गया है, वातात्मज यानि जो वायु से उत्पन्न हुआ हो।
हनुमान जी का जन्म :: भगवान् सूर्य के वर से स्वर्ण के बने हुए सुमेरु में वानर राज केसरी का राज्य था। पूर्व जन्म में एक साथ भगवान् शिव की आराधना करने से वर्तमान जन्म में वे दोनों पति-पत्नी हुए। संतान सुख से वंचित माता अंजना मतंग ऋषि के पास गईं। मंतग ऋषि ने पुत्र सुख की प्राप्ति हेतु उनसे पप्पा सरोवर के पूर्व में स्थित नरसिंह आश्रम और दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ में जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करने के लिए कहा। अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति वानर राज केसरी की अनुमति से तप किया। वे बारह वर्ष तक केवल वायु का ही भक्षण करके तप करती रहीं। पवन देव ने भगवान् शिव के वरदान की पूर्ति हेतु माता अंजना को शुचिस्नान के समय उनके कर्ण रन्ध्र में प्रवेश कर तपस्या के वक्त आश्वासन दिया कि उनके यहाँ सूर्य, अग्नि एवं स्वर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा। जिसके परिणाम स्वरूप माता अंजना को पुत्र की प्राप्ति हुई। वायु के द्वारा उत्पन्न इस पुत्र को ऋषियों ने वायु पुत्र नाम दिया।
Hanuman Ji took birth on Anjney Hill, in Hampi, Karnatak. This is located near the Rishymuk mountain, near the lake called Pampa Sarovar, where Sugreev and Bhagwan Shri Ram met. There is a temple that marks the spot. Kishkindha itself is identified with the modern Anegundi Taluk (near Hampi) in Bellary district of Karnatak.
Anjan, a small village about 18 km away from Gumla, houses Anjan Dham, which is said to be the birthplace of Hanuman Ji. The name of the village is derived from the name of Anjani, the mother of Hanuman Ji Maharaj. Anjani Gufa (cave), 4 km from the village, is believed to be the place where Mata Anjani once lived.
The Anjaneri mountain, located 7 km from Trayambkeshwar Jyotir Ling, in the Nasik district, is also claimed as the birthplace of Hanuman Ji.
There appears to be a conflict between the same event to have taken place at different places according to Purans. One must remember that these events happen in cyclic order like the beads of a rosary, coming back to the same place after counting up to 108. So, there is no contradiction as the same event occurred with slightly different characters and the location. Kak Bhushundi Ji said that he had himself seen the incarnation of Bhagwan Shri Ram in every Chatur Yugi, over the past 6 Manvanters.
Hanuman Ji met Shri Ram in the dense forest of mountain hill near Khurd, Bhubneshwar. It is believed that the mountain was once the kingdom of Bali (The Vanar-Monkey King), where Bali defeated a Asur (Rakshas, demon) in a cave, fighting for 15 days and 15 nights.
All these events took place around 17,50,000 years ago.
All these events took place around 17,50,000 years ago.
एक दिन दो प्रहर बाद सूर्योदय होते ही हनुमान जी महाराज को भूख लगी। माता अञ्जनी फल लाने गई थीं। आकाश में लाल वर्ण के सूर्य को फल मानकर हनुमान जी उसको लेने के लिए आकाश में उछल गए-लपके। अमावस्या होने से सूर्य को ग्रसने के लिए राहु आया था, किंतु हनुमान जी को देखकर वह डर गया। तब भगवान् सूर्य नारायण की रक्षा हेतु देवराज इन्द्र ने हनुमान जी पर वज्र-प्रहार किया, जिससे उनकी ठोड़ी-हनु टेढ़ी हो गई और वे हनुमान कहलाए। हनुमान जी की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक ली, चलना-बहना बन्द कर दिया, जिससे त्राहि-त्राहि मच गई। इससे कोई भी प्राणी साँस न ले सका और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा जी सभी देवताओं, यक्ष, गन्धर्व आदि को लेकर वायु देव के पास गये। वे मूर्छित हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने जब उनकी मूर्छा दूर की तो वायु देव ने अपनी गति का संचार करके सब प्राणियों की पीड़ा दूर की। चूँकि देवराज इन्द्र के वज्र प्रहार से हनुमान जी की हनु (ठुड्डी) टूट गई थी, इसलिये ब्रह्मा जी ने उन्हें स्वयं हनुमान नाम दिया। उसके बाद प्रत्येक देवता ने उन्हें कुछ न कुछ वर-आशीर्वाद, भेंट स्वरूप प्रदान किया।
ब्रह्मा जी ने अमितायु का, देवराज इन्द्र ने वज्र से हत न होने का, सूर्य ने अपने शतांश तेज से युक्त और संपूर्ण शास्त्रों के विशेषज्ञ होने का, वरुण ने पाश और जल से अभय रहने का, यम ने यमदंड से अवध्य और पाश से नाश न होने का, कुबेर ने शत्रु मर्दिनी गदा से निःशंख रहने का, भगवान् शिव ने प्रमत्त और अजेय योद्धाओं से जय प्राप्त करने का और विश्वकर्मा ने मय के बनाए हुए सभी प्रकार के दुर्बोध्य और असह्य, अस्त्र, शस्त्र तथा यंत्रादि से कुछ भी क्षति न होने का वर दिया।
राम भक्त, भगवान् शिव के अंशावतार हनुमान जी को पवन सुत, केसरी नंदन, वातात्मज, अञ्जनेय आदि नामों से पुकारा जाता है।इस प्रकार नाना शक्तियों से सम्पन्न हो जाने पर निर्भय होकर वे ऋषि-मुनियों के साथ बाल सुलभ शरारत करने लगे। किसी के वल्कल फाड़ देते, किसी की कोई वस्तु नष्ट कर देते। इससे क्रुद्ध होकर ऋषियों ने इन्हें शाप दिया कि तुम अपने बल और शक्ति को भूल जाओगे। किसी के याद दिलाने पर ही तुम्हें उनका ज्ञान होगा। तब से उन्हें अपने बल और शक्ति का स्मरण नहीं रहा।
चिरकाल तक राज्य करने के पश्चात् जब ऋक्षराज का देहान्त हुआ तो बालि राजा बना। बालि और सुग्रीव में बचपन से ही प्रेम था। जब उन दोनों में बैर हुआ तो सुग्रीव के सहायक होते हुये भी शाप के कारण हनुमान जी अपने बल से अनजान बने रहे।
उन्होंने भगवान् श्री राम से सुग्रीव की मित्रता कराई, जिसके फलस्वरूप बालि का वध हुआ और सुग्रीव किष्किंधा के राजा बने।
Hanuman Ji looked at the Sun and thought it was a ripe mango and flew towards it, to eat it. Rahu, a demon who could drink a few drops of Amrat, (planet corresponding to an eclipse), was at that time seeking out the Sun as well and he clashed with Hanuman Ji. Hanuman Ji thrashed Rahu and went to take Sun in his mouth. Rahu approached Devraj Indr, king of demigods-deities and complained that a monkey child stopped him from taking on Sun, preventing the scheduled eclipse. This enraged Indr, who responded by throwing the Vajr (thunderbolt) at Hanuman Ji, which struck his jaw. He fell back down on the earth and became unconscious. A permanent mark was left on his chin (हनुः, Hanu-jaw), due to impact of Vajr, explaining his name. Upset over the attack, Hanuman Ji's father figure Vayu Dev (deity of air) went into seclusion, withdrawing air along with him. As living beings began to asphyxiate, Devraj Indr withdrew the effect of his thunderbolt. The demigods-deities then revived Hanuman Ji and blessed-showered multiple boons to appease Vayu-Pawan Dev. Brahma Ji himself gave him the name Hanuman. All demigods-deities gave one or the other boon to him.
Brahma Ji gave Hanuman a boon that would protect him from the irrevocable Brahma's curse. Brahma Ji also blessed that nobody will be able to kill him with any weapon in war. From Brahma Ji, he obtained the power of inducing fear in enemies, of destroying fear in friends, to be able to change his form at will and to be able to travel easily, wherever he wished. From Bhagwan Shiv he obtained the boons of longevity, scriptural wisdom and ability to cross the ocean. Bhagwan Shiv assured safety of Hanuman Ji with a band that would protect him for life. Devraj Indr blessed him that the Vajr (thunder Volt, weapon) will no longer be effective on him and his body would become stronger than Vajr. Varun Dev (deity of water) blessed Hanuman Ji with a boon that he would always be protected from water. Agni-demigod-deity of fire, blessed him with immunity to burning by fire. Bhagwan Sury Narayan-Sun, gave him two Siddhis of Yog namely Anima and Garima, to be able to attain the smallest or to attain the biggest form. Yam, the deity of Death blessed him healthy life and free from his weapon Yam Dand, thus death would not come-approach him. Kuber showered his blessings declaring that Hanuman Ji would always remain happy and contented. Vishwkarma blessed that Hanuman Ji would be protected from all his creations in the form of objects or weapons. Vayu also blessed him with more speed than he himself had. Kam Dev blessed him that the sex-passions will not be effective on him.
NAMES TITLES OF HANUMAN JI MAHA RAJ :: Hanuman, Anjney and Bajrang Bali, Bal Brahm Chari, हनुमान, Indr-the king of the deities, struck Hanuman's jaw during his childhood with thunder volt-Vajr. So, he received his name from the Sanskrat words Hanu (jaw) and Man (मान, pride, Mant, prominent or disfigured). The name thus means :- one with prominent or disfigured jaw.
Manoj Vam (मनोज वम) :: As swift as mind.
Marut Tuly Vegam (मरुत तुल्य वेगम्) :: One who possesses the speed equal to the wind-the deity of air (appears in Ram Raksha Strotr).
Jitendriyam (जितेन्द्रियं) :: One who has absolute control over senses, sensualities, sexuality, passions, preserver of chastity.
Buddhimataamvarishtham (बुद्धिमतांवरिष्ठतम्) :: Senior most among intellectuals.
Vaataatmajam (वातात्मजं) :: One who is the son of Pawan Dev-deity of air.
Vanarayoothmukhyam (वानरा यूथ मुख्यम्) :: Chief of Vanar army.
Vanaranamdheesham (वानरानाम धीशम्) :: Chief of Vanar army.
Shriramdootam (श्री राम दूतम्) :: Messenger of Shri Ram.
Atulit Bal Dhamam (अतुलित बल धामम्) :: Repository of incomparable strength.
Hemshailabh Deham (हेम शैलाभा देहम्) :: One whose body resembles a golden mountain.
Danujvan Krushanum (दनुजवन् कृष्णम) :: Destroyer of demon's forces.
Gyaninam Agrganyam (ज्ञानिनाम् अग्रगणयम्) :: Foremost among enlightened.
Sakal Gun Nidhanam (सकल गुण निधानम्) :: Repository of all the virtues and good qualities.
Raghupati Priy Bhaktam (रघुपति प्रिय भक्तम्) :: Dearest of all devotees to Bhagwan Ram.
Sankat Mochan (संकट मोचन) :: One who liberates (Moksh, Salvation, Assimilation in the Almighty) from dangers.
On the advice of Dev Rishi Narad, Hanuman Ji decided to seek learning from Bhagwan Sury Narayan. He requested Bhagwan Sury to accept him as a disciple-student. Bhagwan Sury Narayan refused and explained that he was always moving in his chariot making it difficult to impart education. Undeterred, Hanuman Ji enlarged his form, adjusting his body into an orbit around the Sun with one leg on the eastern ranges-horizon and the other on the western ranges and pleaded again facing Sury Dev. Pleased by his persistence, Sury Dev agreed. Hanuman learnt all the 64 disciplines of knowledge. Hanuman Ji requested Sury Dev to quote his guru-Dakshina (teacher's offerings, fee, remuneration), Sury Bhagwan politely refused, saying that the pleasure of teaching one as dedicated as him was the fee in itself. Hanuman Ji insisted, whereupon Sury asked him to help his spiritual son Sugriv. Hanuman's choice of Sury as his teacher is said to signify Sury as a Karm Sakshi, an eternal witness of all deeds. Hanuman Ji Maha Raj later became Sugreev's minister.
Hanuman was naughty in his early childhood. He used to tease the meditating sages in the forests by snatching their personal belongings and by disturbing their well-arranged articles of worship. Ravan too was disturbed by Hanuman Ji while he was meditating along with Kumbh Karn and Vibhishan Ji. Ravan was afraid of Hanuman Ji unaware of the fact that he was an incarnation of Bhagwan Shiv, worshipped by him. Finding his antics unbearable, but realising that Hanuman Ji was but just a child, (albeit invincible), the sages placed a mild curse on him which made him forget all his powers, strength, wisdom. They relaxed the curse by saying that he would regain his divine powers as soon as some one reminded him of his abilities. When the Vanar Sena reached ocean Jamvant Ji the mighty son of Brahma Ji in the grab-form of a bear reminded Hanuman Ji of his abilities, supernatural powers, blessing from all deities and encouraged him to go and find Maa Sita.
रावण के द्वारा माता सीता का हरण किये जाने पर भगवान् राम वन-वन भटकते हुए ॠषिमुख पर्वत के समीप पहुँचे, जहाँ सुग्रीव अपने अनुयाईयों के साथ, अपने ज्येष्ठ भ्राता बाली से छिपकर रहते थे। सूर्य पुत्र किष्किन्धा नरेश वानर राज बाली ने इन्द्र के पुत्र और अपने छोटे भाई सुग्रीव को एक गम्भीर मिथ्या बोध के चलते अपने साम्राज्य से बाहर निकाल दिया था और वो किसी भी तरह से सुग्रीव के तर्क को सुनने के लिये तैयार नहीं था। उसने सुग्रीव की पत्नी को भी अपने पास रख लिया। तभी सुग्रीव ने माता सीता को खोजते हुए भगवान् श्री राम और लक्ष्मण जी को देखा और हनुमान जी को उनके विषय में जानकारी प्राप्त करने को भेजा, क्योंकि वे बाली से छुप कर रह रहे थे और उन्हें डर था कि कहीं साधुवेश धारी भगवान् श्री राम और लक्ष्मण जी बाली के गुप्तचर न हों। भगवान् सूर्य के शिष्य हनुमान जी की सुग्रीव के साथ मित्रता थी। हनुमान जी देवताओं द्वारा प्रदत्त अपनी समस्त शक्तियों को श्राप वश भूल चुके थे।
Hanuman was naughty in his early childhood. He used to tease the meditating sages in the forests by snatching their personal belongings and by disturbing their well-arranged articles of worship. Ravan too was disturbed by Hanuman Ji while he was meditating along with Kumbh Karn and Vibhishan Ji. Ravan was afraid of Hanuman Ji unaware of the fact that he was an incarnation of Bhagwan Shiv, worshipped by him. Finding his antics unbearable, but realising that Hanuman Ji was but just a child, (albeit invincible), the sages placed a mild curse on him which made him forget all his powers, strength, wisdom. They relaxed the curse by saying that he would regain his divine powers as soon as some one reminded him of his abilities. When the Vanar Sena reached ocean Jamvant Ji the mighty son of Brahma Ji in the grab-form of a bear reminded Hanuman Ji of his abilities, supernatural powers, blessing from all deities and encouraged him to go and find Maa Sita.
रावण के द्वारा माता सीता का हरण किये जाने पर भगवान् राम वन-वन भटकते हुए ॠषिमुख पर्वत के समीप पहुँचे, जहाँ सुग्रीव अपने अनुयाईयों के साथ, अपने ज्येष्ठ भ्राता बाली से छिपकर रहते थे। सूर्य पुत्र किष्किन्धा नरेश वानर राज बाली ने इन्द्र के पुत्र और अपने छोटे भाई सुग्रीव को एक गम्भीर मिथ्या बोध के चलते अपने साम्राज्य से बाहर निकाल दिया था और वो किसी भी तरह से सुग्रीव के तर्क को सुनने के लिये तैयार नहीं था। उसने सुग्रीव की पत्नी को भी अपने पास रख लिया। तभी सुग्रीव ने माता सीता को खोजते हुए भगवान् श्री राम और लक्ष्मण जी को देखा और हनुमान जी को उनके विषय में जानकारी प्राप्त करने को भेजा, क्योंकि वे बाली से छुप कर रह रहे थे और उन्हें डर था कि कहीं साधुवेश धारी भगवान् श्री राम और लक्ष्मण जी बाली के गुप्तचर न हों। भगवान् सूर्य के शिष्य हनुमान जी की सुग्रीव के साथ मित्रता थी। हनुमान जी देवताओं द्वारा प्रदत्त अपनी समस्त शक्तियों को श्राप वश भूल चुके थे।
हनुमान जी एक ब्राह्मण के वेश में अपने आराध्य भगवान् श्री राम के सम्मुख गये। हनुमान जी के मुख़ से प्रारम्भिक संवाद को सुनकर भगवान् श्री राम ने शेषनाग अवतार लक्ष्मण जी से कहा कि कोई भी बिना वेद-पुराण को जाने, ऐसा नहीं बोल सकता, जैसा कि ब्राह्मण वेष धारी हनुमान जी ने बोला। भगवान् श्री राम को उस ब्राह्मण के मुख, नेत्र, माथा, भौंह या अन्य किसी भी शारीरिक संरचना से कुछ भी मिथ्या प्रतीत नहीं हुआ। भगवान् श्री राम ने लक्ष्मण जी से कहा कि इस ब्राह्मण के मन्त्र मुग्ध करने वाले उच्चारण को सुन के तो शत्रु भी अस्त्र त्याग देगा। उन्होंने ब्राह्मण की और प्रशंसा करते हुए कहा कि वो नरेश निश्चित ही सफ़ल होगा, जिसके पास ऐसा गुप्तचर होगा। भगवान् श्री राम के मुख़ से इन सब बातों को सुनकर हनुमान जी ने अपना वास्तविक रूप प्रकट किया और भगवान् श्री राम के चरणों में नत मस्तक हो गये। भगवान् श्री राम ने उन्हें अपने ह्रदय से लगा लिया। भक्त और भगवान् का हनुमान जी और प्रभु राम के रूप मे अटूट और अनश्वर मिलन हुआ। हनुमान जी ने भगवान् श्री राम और सुग्रीव की मित्रता करवाई। भगवान् श्री राम ने बाली को मारकर सुग्रीव को उनका सम्मान और गौरव वापस दिलाया।
भगवान् शिव मदारी के वेश में हनुमान जी महाराज को जमूरा बनाकर अपने आराध्य भगवान् श्री राम के दर्शन करने अयोध्या गए थे। वनवास में भगवान् श्री राम ने हनुमान जी देखते ही पहचान लिया था।
During the course of 14 year exile, Bhagwan Shri Ram was staying in the jungle, where Ravan's sister Surpnakha's nose was chopped off by Laxman Ji. Enraged, she protested to her brother Ravan, who sent a number of demons to defeat Bhagwan Shri Ram and ultimately, he him self reached the spot in the grab of a Bhikshu (Hermit, beggar). Khar Dushan and Marich were killed. Ravan abducted Mata Sita and took her to Shri Lanka in the Pushpak Viman-Aeroplane, snatched from his elder brother Kuber. Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji started searching her in the forests, meeting Hanuman Ji at Rishymuk Parwat-mountains.
Sugreev, along with his followers and friends, was in hiding afraid of his elder brother Bali. Having seen saffron clad Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji, Sugreev sent Hanuman Ji to ascertain their identities. Hanuman Ji approached the two brothers in the guise of a Brahman. His first words to them were so elaborate and precise that Bhagwan Shri Ram was deeply impressed and he expressed his sentiment to Lakshman Ji, by saying that none could speak the way the Brahman did, unless he had mastered the Ved. He visualised the defect less countenance, eyes, forehead, brows, limb and the stature of the Brahman. He was extremely pleased with Hanuman Ji and added that his accent was so captivating that even an enemy with sword drawn, would be moved. He showered praises over the disguised Hanuman Ji, saying that sure success awaited the king, whose emissaries were as accomplished as he was.
भगवान् शिव मदारी के वेश में हनुमान जी महाराज को जमूरा बनाकर अपने आराध्य भगवान् श्री राम के दर्शन करने अयोध्या गए थे। वनवास में भगवान् श्री राम ने हनुमान जी देखते ही पहचान लिया था।
During the course of 14 year exile, Bhagwan Shri Ram was staying in the jungle, where Ravan's sister Surpnakha's nose was chopped off by Laxman Ji. Enraged, she protested to her brother Ravan, who sent a number of demons to defeat Bhagwan Shri Ram and ultimately, he him self reached the spot in the grab of a Bhikshu (Hermit, beggar). Khar Dushan and Marich were killed. Ravan abducted Mata Sita and took her to Shri Lanka in the Pushpak Viman-Aeroplane, snatched from his elder brother Kuber. Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji started searching her in the forests, meeting Hanuman Ji at Rishymuk Parwat-mountains.
Sugreev, along with his followers and friends, was in hiding afraid of his elder brother Bali. Having seen saffron clad Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji, Sugreev sent Hanuman Ji to ascertain their identities. Hanuman Ji approached the two brothers in the guise of a Brahman. His first words to them were so elaborate and precise that Bhagwan Shri Ram was deeply impressed and he expressed his sentiment to Lakshman Ji, by saying that none could speak the way the Brahman did, unless he had mastered the Ved. He visualised the defect less countenance, eyes, forehead, brows, limb and the stature of the Brahman. He was extremely pleased with Hanuman Ji and added that his accent was so captivating that even an enemy with sword drawn, would be moved. He showered praises over the disguised Hanuman Ji, saying that sure success awaited the king, whose emissaries were as accomplished as he was.
Bhagwan Shiv had taken Hanuman Ji Maha Raj to Ayodhya to acquaint him with the incarnation of the Almighty Bhagwan Vishnu as Ram, in the grab of a Madari-jugular and Hanuman Ji, as his pet monkey. The meeting took place in solitude. Bhagwan Shri Ram recognised Hanuman Ji Maha Raj at once but Hanuman Ji had forgotten every thing due to the curse of Rishis.
भगवान् श्री राम ने सुग्रीव का किष्किन्धा के राज्य सिंहासन पर अभिषेक किया। चौमासा समाप्त होते ही वानर सेना ने दक्षिण की और प्रस्थान किया। माता सीता की खोज में वानरों का एक दल दक्षिण समुद्र तट पर पहुँचा। इतने विशाल सागर को लाँघने की शक्ति और सामर्थ्य किसी में नहीं थी। ब्रह्मा जी के पुत्र जामवन्त ने हनुमान जी को उनकी अदभुत शक्तियों का स्मरण कराया। गृद्ध राज जटायु के बड़े भाई और ब्रह्मा जी के पुत्र सम्पाति ने ऊँची उड़ान भरी और उन्होंने माता सीता को रावण की लँका में अशोक वाटिका में बैठा पाया। इसके सूचना उन्होंने तत्काल जाम्बन्त जी को दी। अपनी शक्तियों का स्मरण होते ही हनुमान ने अपना रूप विस्तार किया और पवन-वेग से सागर को उड़ कर पार करने लगे। रास्ते में उन्हें एक पर्वत मिला और उसने हनुमान से आग्रह किया कि वे थोड़ा विश्राम कर लें। हनुमान जी ने किन्चित मात्र भी समय व्यर्थ ना करते हुए, पर्वतराज को धन्यवाद किया और आगे बढ़ चले। आगे चलकर उन्हें माँ सुरसा मिलीं, जिन्होंने हनुमान जी को कहा कि अगर आगे जाना है तो उन्हें माँ सुरसा के मुख में प्रवेश करना होगा। हनुमान ने उस चुनौती को स्वीकार किया और बड़ी ही चतुराई से अति लघुरूप धारण करके सुरसा के मुख में प्रवेश करके बाहर आ गये। माता सुरसा ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उन्हें अपने कार्य में सफलता हासिल हो। हनुमान जी ने बुद्धिमता की परीक्षा में निपुणता सिद्ध कर दी थी।
Bhagwan Shri Ram introduced himself and Laxman Ji, to the Brahman, who identified himself as Hanuman and prayed to Bhagwan Shri Ram by prostrating himself over the earth-ground. Bhagwan immediately embraced him warmly. Hanuman Ji accompanied Shri Ram to Sugreev leading to friendship and alliance between them. Bhagwan Shri Ram killed Bali and appointed Sugreev as the king of Kishkindha establishing his honour & glory. All the demigods-deities took incarnation as Vanars from their respective forms, fractions, quantum to assist Bhagwan Shri Ram.
Many teams of Vanars were formed and sent all over the earth. In the mean while Choumasa (rainy season, चौमासा) passed and Bhagwan Shri Ram encountered Jatayu, Bhagwan Brahma's son, who fought a loosing battle with Ravan. Jatayu informed Bhagwan Ram that it was Ravan, who had abducted Mata Sita to Shri Lanka. He was an ardent devotee of Bhagwan Shri Ram. Jatayu's elder brother Sampati reached the spot and surveyed the periphery of the ocean informing them of the presence of Mata Sita in Ashok Vatika in Shri Lanka.
The Vanars headed for sea shore. Upon encountering the vast ocean, every Vanar began to lament his inability to jump across vast ocean. Hanuman Ji too saddened at the possible failure of his mission, until the other Vanars and the wise bear Jamvant Ji-Brahma's son, began to extol his virtues. Hanuman Ji immediately remembered everything and recollected all his powers. He enlarged his body and flew across the ocean. On his way, he encountered a mountain which raised from the sea, proclaiming that it owed his father a debt and asked him to rest for a while, before proceeding further. Hanuman Ji thanked the mountain, touched it and moved further. He encountered Maa Sursa, who challenged him to enter her mouth. Hanuman Ji outwitted her by assuming smallest size, entered her mouth and came out swiftly, immediately. She praised Hanuman Ji of wisdom and blessed him with success in his mission. He encountered Singhika, a Rakshasi-Demoness (mother of Rahu) and reached Shri Lanka.
Many teams of Vanars were formed and sent all over the earth. In the mean while Choumasa (rainy season, चौमासा) passed and Bhagwan Shri Ram encountered Jatayu, Bhagwan Brahma's son, who fought a loosing battle with Ravan. Jatayu informed Bhagwan Ram that it was Ravan, who had abducted Mata Sita to Shri Lanka. He was an ardent devotee of Bhagwan Shri Ram. Jatayu's elder brother Sampati reached the spot and surveyed the periphery of the ocean informing them of the presence of Mata Sita in Ashok Vatika in Shri Lanka.
The Vanars headed for sea shore. Upon encountering the vast ocean, every Vanar began to lament his inability to jump across vast ocean. Hanuman Ji too saddened at the possible failure of his mission, until the other Vanars and the wise bear Jamvant Ji-Brahma's son, began to extol his virtues. Hanuman Ji immediately remembered everything and recollected all his powers. He enlarged his body and flew across the ocean. On his way, he encountered a mountain which raised from the sea, proclaiming that it owed his father a debt and asked him to rest for a while, before proceeding further. Hanuman Ji thanked the mountain, touched it and moved further. He encountered Maa Sursa, who challenged him to enter her mouth. Hanuman Ji outwitted her by assuming smallest size, entered her mouth and came out swiftly, immediately. She praised Hanuman Ji of wisdom and blessed him with success in his mission. He encountered Singhika, a Rakshasi-Demoness (mother of Rahu) and reached Shri Lanka.
हनुमान जी सागर पार करके लँका पहुँचे और लँका की शोभा और सुन्दरता देखकर दंग रह गये और उनके मन में इस बात का दुःख भी हुआ कि रावण के कारण भव्य लँका का तहस-नहस हो जायेगी। गृद्धराज सम्पाती के बताये गये स्थल पर उन्होंने अशोक-वाटिका में माता सीता को देखा। उन्होंने राम नाम का उच्चारण किया और माँ के समक्ष प्रस्तुत हुए और भगवान् श्री राम के अनुचर के रूप में अपना परिचय दिया। उन्होंने माता सीता को विश्वास दिलाने के लिये भगवान् श्री राम की मुद्रिका माँ को दी जो कि प्रस्थान के समय प्रभु राम ने उन्हीं सौंपी थी। उन्होंने माता सीता को सांत्वना दी और साथ ही वापस प्रभु श्री राम के पास साथ चलने का आग्रह भी किया। मगर माता सीता ने ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि ऐसा होने पर श्री राम के पुरुषार्थ को ठेस पँहुचेगी। हनुमान जी ने माता सीता को प्रभु श्री राम के सन्देश का ऐसे वर्णन किया जैसे कोई महान ज्ञानी लोगों को ईश्वर की महानता के बारे में बताता है।
Hanuman Ji traced Mata Sita in Ashok Batika-grove, as directed by Sampati-the vulture form of divine bird-Brahma Ji's son and showed her the ring sent by Bhagwan Shri Ram to her to win the faith-confidence of Maa Sita.
Hanuman Ji traced Mata Sita in Ashok Batika-grove, as directed by Sampati-the vulture form of divine bird-Brahma Ji's son and showed her the ring sent by Bhagwan Shri Ram to her to win the faith-confidence of Maa Sita.
माता सीता से मिलने के पश्चात, हनुमान जी प्रतिशोध लेने के लिये लँका को तहस-नहस करने लगे। उनको बंदी बनाने के लिये रावण पुत्र मेघनाद (इन्द्रजीत) ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। ब्रह्मा जी का सम्मान करते हुए हनुमान जी ने स्वयं को ब्रह्मास्त्र के बन्धन में बँधने दिया। उन्होंने विचार किया कि इस अवसर का लाभ उठाकर वो लँका के कुख्यात रावण से मिल भी लेंगे और उसकी शक्ति का अनुमान भी लगा लेंगे। इन्हीं सब बातों को सोचकर हनुमान जी ने स्वयं को रावण के समक्ष बंदी बनकर उपस्थित होने दिया। जब उन्हें रावण के समक्ष लाया गया तो उन्होंने रावण को प्रभु श्री राम का चेतावनी भरा सन्देश सुनाया और साथ ही यह भी कहा कि यदि रावण माता सीता को आदर-पूर्वक प्रभु श्री राम को लौटा देगा तो प्रभु उसे क्षमा कर देंगे।
He revealed his identity to her, reassured her that Bhagwan Shri Ram had been looking for her and uplifted her spirits. He offered to carry her back to Bhagwan Shri Ram, but Mata Sita refused his offer, saying it would be an insult to Shri Ram as his honour was at stake, as it would be against his dignity. After meeting Maa Sita, Hanuman Ji began to wreak havoc, gradually destroying the palaces and properties of Shri Lanka. He killed many demons & giants, Rakshas, including Jambu Mali and Akshay Kumar-Ravan's son. To subdue him, Ravan's son Indr Jeet used the Brahmastr. Though immune to it, out of respect to Brahma Ji, Hanuman Ji allowed himself to be tied-bound, deciding to use the opportunity to meet Ravan and to assess the strength of Ravan's hordes, Hanuman Ji allowed the Rakshas warriors to parade him through the streets. He conveyed Bhagwan Shri Ram's message of warning and demanded the safe return of Mata Sita. He also informed Ravan that Bhagwan Shri Ram would be willing to forgive him if he returned Maa Sita honourably.
He revealed his identity to her, reassured her that Bhagwan Shri Ram had been looking for her and uplifted her spirits. He offered to carry her back to Bhagwan Shri Ram, but Mata Sita refused his offer, saying it would be an insult to Shri Ram as his honour was at stake, as it would be against his dignity. After meeting Maa Sita, Hanuman Ji began to wreak havoc, gradually destroying the palaces and properties of Shri Lanka. He killed many demons & giants, Rakshas, including Jambu Mali and Akshay Kumar-Ravan's son. To subdue him, Ravan's son Indr Jeet used the Brahmastr. Though immune to it, out of respect to Brahma Ji, Hanuman Ji allowed himself to be tied-bound, deciding to use the opportunity to meet Ravan and to assess the strength of Ravan's hordes, Hanuman Ji allowed the Rakshas warriors to parade him through the streets. He conveyed Bhagwan Shri Ram's message of warning and demanded the safe return of Mata Sita. He also informed Ravan that Bhagwan Shri Ram would be willing to forgive him if he returned Maa Sita honourably.
क्रोध में आकर रावण ने हनुमान जी को मृत्यु दण्ड देने का आदेश दिया; मगर रावण के छोटे भाई विभीषण जी ने ये कहकर बीच-बचाव किया कि एक दूत को मारना आचार संहिता व कूटनीति के विरुद्ध है। रावण ने कहा कि वानर को अपनी पूँछ बहुत प्रिय होती है। अतः उसने हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने का आदेश दे दिया। रावण के सैनिक जब हनुमान जी की पूँछ में कपड़ा लपेट रहे थे, तभी हनुमान जी ने अपनी पूँछ को बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया और सैनिकों को कुछ समय तक परेशान करने के पश्चात पूँछ में आग लगाने का अवसर दे दिया। पूँछ में आग लगते ही हनुमान ने बन्धन मुक्त होकर लँका को जलाना शुरु कर दिया और अन्त में पूँछ में लगी आग को समुद्र में जाकर बुझाया और प्रभु श्री राम के पास लौटकर उन्होंने सारा वृतान्त सुनाया।
Enraged, Ravan ordered Hanuman's Ji execution, whereupon Ravan's brother Vibhishan-a stout devotee of Bhagwan Shri Ram, intervened, pointing out that it would be against the rules of diplomacy-engagement to kill a messenger. Ravan then ordered Hanuman Ji's tail be lit afire, since the Vanars had a lot of love for their tail. As Ravan's forces attempted to wrap cloth around his tail, Hanuman Ji began to lengthen it. After frustrating them for a while, he allowed it to ignited and escaped from his captors. With his tail on fire he burnt down large parts of Shri Lanka. After extinguishing his flaming tail in the ocean, he returned to Bhagwan Shri Ram.
Hanuman Ji utilised the powers granted to him by the deities to enlarge or shrink his body at will. He acquired shape and size much larger than the path of rotation of Sun to seek knowledge from him as a Guru. As a matter of fact, he possessed all these mystic powers, since his birth, when he jumped into the sky to capture Sun considering to be a ripe mango fruit. He entered the mouth of Sursa and came out diminishing himself to the size of an insect. He turned his body microscopically small to enter Shri Lanka before killing Lankini, the demoness guarding the gates of Shri Lanka. He contracted himself to the size of a cat, to search the palaces of Ravan. He took the size of a mountain to defeat the Mayavi-illusionary powers, effects of demons. He resented himself as a timid Vanar before Maa Sita in Ashok Vatika, though blazing with radiance. He achieved this shape-shifting by the powers of two Siddhis :- Anima and Garima bestowed upon him in his childhood by Sun-Bhagwan Sury Narayan.
When Lakshman Ji was severely wounded during the battle against Ravan, by Indr Jit, Hanuman Ji was sent to fetch the Sanjeevni booty, a powerful life-restoring herb, from Dron Giri-mountain in the Himalay, to revive him, called Sanjivini Booty. Ravan realised that if Lakshman Ji died, distraught Bhagwan Shri Ram would probably give up and so he dispatched the sorcerer Kal Nemi to intercept Hanuman Ji. Kal Nemi, in the guise of a sage, tried to deceive Hanuman Ji, but Hanuman uncovered his plot with the help of an Apsara, whom he rescued from her accursed state as a crocodile. (Kal Nemi took simultaneous births as Kans and thereafter as Aurangzeb.)
Ravan, upon learning that Kal Nemi had been slayed-killed by Hanuman Ji, summoned Sury Bhagwan to rise before its appointed time because the physician Sushen had said that Lakshman Ji would die if untreated by daybreak. Hanuman Ji realised the danger, however and becoming many times his normal size, detained the Sun to prevent the break of day. He then resumed his search for the precious herb, but when he found himself unable to identify-recognise which herb it was, he lifted the entire mountain.
As he was crossing over Ayodhya, Bharat Ji, Bhagwan Ram's younger brother, saw him and assumed that some Rakshas was taking that mountain to attack Ayodhya. Bharat Ji shot Hanuman Ji with an arrow, which was engraved with Bhagwan Shri Ram's name. Hanuman Ji did not stop this arrow as it had Ram's name written on it and it injured his leg. Hanuman Ji landed and explained to Bharat Ji that he was moving the mountain to save his own brother, Lakshman Ji. Bharat Ji, felt very sorry and offered to fire an arrow to Lanka, which Hanuman Ji could ride in order to reach his destination more easily. But Hanuman Ji declined the offer, preferring to fly on his own and he continued his journey with his injured leg. Hanuman Ji was nick named Langda Veer (lame, limping, लँगड़ा योद्धा); Langda in Hindi means limping and Veer means brave.
Hanuman Ji released Sury Bhagwan from his grip and asked for forgiveness, as Bhagwan Sury was his Guru. He reached Lanka before day break and delivered the mountain to Sushen in the battlefield. Sushen identified and administered the herb and Lakshman Ji was saved-revived. Bhagwan Shri Ram embraced Hanuman Ji, declaring him as dear to him as his own brother Bharat Ji.
Ravan perceived his defeat and ordered his brother Ahiravan to abduct Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji from the battle field to Patal. Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji were captured by Ahiravan, who held them captive in their palace in Patal-the netherworld. Ahiravan kept them as offerings to his deity. Searching for them, Hanuman Ji reached Patal, the gates of which are guarded by a young creature called Makar Dhwaj, who was partially a reptile and partially a Vanar.
When Hanuman Ji extinguished his burning tail in the ocean, a drop of his sweat fell into the waters swallowed by a fish who gave birth to Makar Dhwaj, who quickly acquired gigantic proportions. Makar Dhwaj, perceived Hanuman Ji Maharaj as his father. When Hanuman Ji introduced himself to Makar Dhwaj, the latter asked his blessings.
Upon entering Patal, Hanuman Ji discovered that to kill Ahiravan, he must simultaneously extinguish five lamps burning in different directions. Hanuman Ji assumed the Panch Mukh or five-faced form of Shri Varah facing north, Shri Nar Singh facing south, Shri Garud Ji facing west, Shri Haygreev facing the sky and his own facing the east and blew off the lamps. Hanuman Ji then rescued Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji. Bhagwan Shri Ram crowned Makar Dhwaj to the throne of Patal. Hanuman then instructed Makar Dhwaj to rule Patal with justice and wisdom.
Enraged, Ravan ordered Hanuman's Ji execution, whereupon Ravan's brother Vibhishan-a stout devotee of Bhagwan Shri Ram, intervened, pointing out that it would be against the rules of diplomacy-engagement to kill a messenger. Ravan then ordered Hanuman Ji's tail be lit afire, since the Vanars had a lot of love for their tail. As Ravan's forces attempted to wrap cloth around his tail, Hanuman Ji began to lengthen it. After frustrating them for a while, he allowed it to ignited and escaped from his captors. With his tail on fire he burnt down large parts of Shri Lanka. After extinguishing his flaming tail in the ocean, he returned to Bhagwan Shri Ram.
Hanuman Ji utilised the powers granted to him by the deities to enlarge or shrink his body at will. He acquired shape and size much larger than the path of rotation of Sun to seek knowledge from him as a Guru. As a matter of fact, he possessed all these mystic powers, since his birth, when he jumped into the sky to capture Sun considering to be a ripe mango fruit. He entered the mouth of Sursa and came out diminishing himself to the size of an insect. He turned his body microscopically small to enter Shri Lanka before killing Lankini, the demoness guarding the gates of Shri Lanka. He contracted himself to the size of a cat, to search the palaces of Ravan. He took the size of a mountain to defeat the Mayavi-illusionary powers, effects of demons. He resented himself as a timid Vanar before Maa Sita in Ashok Vatika, though blazing with radiance. He achieved this shape-shifting by the powers of two Siddhis :- Anima and Garima bestowed upon him in his childhood by Sun-Bhagwan Sury Narayan.
When Lakshman Ji was severely wounded during the battle against Ravan, by Indr Jit, Hanuman Ji was sent to fetch the Sanjeevni booty, a powerful life-restoring herb, from Dron Giri-mountain in the Himalay, to revive him, called Sanjivini Booty. Ravan realised that if Lakshman Ji died, distraught Bhagwan Shri Ram would probably give up and so he dispatched the sorcerer Kal Nemi to intercept Hanuman Ji. Kal Nemi, in the guise of a sage, tried to deceive Hanuman Ji, but Hanuman uncovered his plot with the help of an Apsara, whom he rescued from her accursed state as a crocodile. (Kal Nemi took simultaneous births as Kans and thereafter as Aurangzeb.)
Ravan, upon learning that Kal Nemi had been slayed-killed by Hanuman Ji, summoned Sury Bhagwan to rise before its appointed time because the physician Sushen had said that Lakshman Ji would die if untreated by daybreak. Hanuman Ji realised the danger, however and becoming many times his normal size, detained the Sun to prevent the break of day. He then resumed his search for the precious herb, but when he found himself unable to identify-recognise which herb it was, he lifted the entire mountain.
As he was crossing over Ayodhya, Bharat Ji, Bhagwan Ram's younger brother, saw him and assumed that some Rakshas was taking that mountain to attack Ayodhya. Bharat Ji shot Hanuman Ji with an arrow, which was engraved with Bhagwan Shri Ram's name. Hanuman Ji did not stop this arrow as it had Ram's name written on it and it injured his leg. Hanuman Ji landed and explained to Bharat Ji that he was moving the mountain to save his own brother, Lakshman Ji. Bharat Ji, felt very sorry and offered to fire an arrow to Lanka, which Hanuman Ji could ride in order to reach his destination more easily. But Hanuman Ji declined the offer, preferring to fly on his own and he continued his journey with his injured leg. Hanuman Ji was nick named Langda Veer (lame, limping, लँगड़ा योद्धा); Langda in Hindi means limping and Veer means brave.
Hanuman Ji released Sury Bhagwan from his grip and asked for forgiveness, as Bhagwan Sury was his Guru. He reached Lanka before day break and delivered the mountain to Sushen in the battlefield. Sushen identified and administered the herb and Lakshman Ji was saved-revived. Bhagwan Shri Ram embraced Hanuman Ji, declaring him as dear to him as his own brother Bharat Ji.
Ravan perceived his defeat and ordered his brother Ahiravan to abduct Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji from the battle field to Patal. Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji were captured by Ahiravan, who held them captive in their palace in Patal-the netherworld. Ahiravan kept them as offerings to his deity. Searching for them, Hanuman Ji reached Patal, the gates of which are guarded by a young creature called Makar Dhwaj, who was partially a reptile and partially a Vanar.
When Hanuman Ji extinguished his burning tail in the ocean, a drop of his sweat fell into the waters swallowed by a fish who gave birth to Makar Dhwaj, who quickly acquired gigantic proportions. Makar Dhwaj, perceived Hanuman Ji Maharaj as his father. When Hanuman Ji introduced himself to Makar Dhwaj, the latter asked his blessings.
Upon entering Patal, Hanuman Ji discovered that to kill Ahiravan, he must simultaneously extinguish five lamps burning in different directions. Hanuman Ji assumed the Panch Mukh or five-faced form of Shri Varah facing north, Shri Nar Singh facing south, Shri Garud Ji facing west, Shri Haygreev facing the sky and his own facing the east and blew off the lamps. Hanuman Ji then rescued Bhagwan Shri Ram and Lakshman Ji. Bhagwan Shri Ram crowned Makar Dhwaj to the throne of Patal. Hanuman then instructed Makar Dhwaj to rule Patal with justice and wisdom.
लँका युद्ध में जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गये तो, वैद्य सुषेण ने संजीवनी बूटी लाने को कहा। हनुमान जी संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाये; अतः पूरा द्रोणगिरी पर्वत ही रण-भूमि में उठा लाये जिससे लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा हो सकी। भावुक होकर भगवान् श्री राम ने हनुमान जी को ह्रदय से लगा लिया और बोले कि हनुमान तुम मुझे भ्राता भरत की भाँति ही प्रिय हो।
अहिरावण तंत्र का ज्ञाता और मायावी था। उसने भगवान् श्री राम और लक्ष्मण जी का सोते समय हरण कर लिया और उन्हें पाताल-लोक में ले गया। उनकी खोज में हनुमान जी भी पाताल लोक पहुँच गये। मुख्य द्वार पर उन्हें मकरध्वज पहरा देता मिला, उसका आधा शरीर मछली का और आधा शरीर वानर का था। लँका दहन के पश्चात जब हनुमान जी पूँछ में लगी आग को बुझाने समुद्र में गये तो उनके पसीने की बूँद समुद्र में गिर गई। उस बूँद को एक मछली ने निगल लिया और वो गर्भवती हो गई। जब उस मछली को पकड़कर अहिरावण की रसोई में लाया तो उसके पेट में से जीवित बचे, उस विचित्र प्राणी को निकाला गया। मकरध्वज ने अति शीघ्र बड़ा आकार ग्रहण कर लिया। उसे पातालपुरी के द्वार का रक्षक बना दिया गया। हनुमान जी इन सभी बातों से अनिभिज्ञ थे। यद्यपि मकरध्वज को पता था कि हनुमान उसके पिता हैं, फिर भी वो उन्हें पहचान नहीं पाया, क्योंकि उसने पहले कभी उन्हें देखा नहीं था।
जब हनुमान जी ने अपना परिचय दिया तो वो जान गया कि ये मेरे पिता हैं, मगर फिर भी उसने हनुमान जी के साथ युद्ध करने का निश्चय किया, क्योंकि पातालपुरी के द्वार की रक्षा करना उसका प्रथम कर्तव्य था। हनुमान जी ने बड़ी आसानी से उसे अपने आधीन कर लिया और पातालपुरी के मुख्यद्वार पर बाँध दिया।
पातालपुरी में प्रवेश करने के पश्चात हनुमान जी ने पता लगा लिया कि अहिरावण का वध करने के लिये उन्हें पाँच दीपकों को एक साथ बुझाना पड़ेगा। अतः उन्होंने पन्चमुखी रूप (श्री वराह, श्री नरसिंह, श्री गरुण, श्री हयग्रिव और स्वयं) ग्रहण किया किया और एक साथ में पाँचों दीपकों को बुझाकर, अहिरावण का अन्त कर किया। अहिरावण का वध होने के पश्चात हनुमान जी ने प्रभु श्री राम के आदेशानुसार मकरध्वज को पातालपुऱी का नरेश बना दिया।
अहिरावण तंत्र का ज्ञाता और मायावी था। उसने भगवान् श्री राम और लक्ष्मण जी का सोते समय हरण कर लिया और उन्हें पाताल-लोक में ले गया। उनकी खोज में हनुमान जी भी पाताल लोक पहुँच गये। मुख्य द्वार पर उन्हें मकरध्वज पहरा देता मिला, उसका आधा शरीर मछली का और आधा शरीर वानर का था। लँका दहन के पश्चात जब हनुमान जी पूँछ में लगी आग को बुझाने समुद्र में गये तो उनके पसीने की बूँद समुद्र में गिर गई। उस बूँद को एक मछली ने निगल लिया और वो गर्भवती हो गई। जब उस मछली को पकड़कर अहिरावण की रसोई में लाया तो उसके पेट में से जीवित बचे, उस विचित्र प्राणी को निकाला गया। मकरध्वज ने अति शीघ्र बड़ा आकार ग्रहण कर लिया। उसे पातालपुरी के द्वार का रक्षक बना दिया गया। हनुमान जी इन सभी बातों से अनिभिज्ञ थे। यद्यपि मकरध्वज को पता था कि हनुमान उसके पिता हैं, फिर भी वो उन्हें पहचान नहीं पाया, क्योंकि उसने पहले कभी उन्हें देखा नहीं था।
जब हनुमान जी ने अपना परिचय दिया तो वो जान गया कि ये मेरे पिता हैं, मगर फिर भी उसने हनुमान जी के साथ युद्ध करने का निश्चय किया, क्योंकि पातालपुरी के द्वार की रक्षा करना उसका प्रथम कर्तव्य था। हनुमान जी ने बड़ी आसानी से उसे अपने आधीन कर लिया और पातालपुरी के मुख्यद्वार पर बाँध दिया।
पातालपुरी में प्रवेश करने के पश्चात हनुमान जी ने पता लगा लिया कि अहिरावण का वध करने के लिये उन्हें पाँच दीपकों को एक साथ बुझाना पड़ेगा। अतः उन्होंने पन्चमुखी रूप (श्री वराह, श्री नरसिंह, श्री गरुण, श्री हयग्रिव और स्वयं) ग्रहण किया किया और एक साथ में पाँचों दीपकों को बुझाकर, अहिरावण का अन्त कर किया। अहिरावण का वध होने के पश्चात हनुमान जी ने प्रभु श्री राम के आदेशानुसार मकरध्वज को पातालपुऱी का नरेश बना दिया।
PANCH MUKHI-FACETS HANUMAN :: Hanuman Ji assumed Panch Mukhi or five-faced form to kill Ahiravan-a powerful Rakshas, black magician and practitioner of the dark arts during the battle-war in Shri Lanka. Ahiravan, brother of Ravan, had taken Bhagwan Ram and Laxman Ji to netherworld-Patal, as captive and the only way to kill him was to extinguish five lamps burning in different directions, all at the same instant. Hanuman Ji assumed Panch Mukh form and accomplished the task, thus killing the Rakshas and freeing Ram and Laxman.
It drives away evil spells, black magic influences, negative spirits and removes all poisonous effects in one's body.
HANUMAN JI'S FACING EAST :- Removes all blemishes of sin and confers purity of mind. East facing posture grants Asht Siddhi (eight boons); Isht Siddhi (attaining devotion to the deity prayed). This is the main posture lying in the middle-center and generates enlightenment, prudence, learning, intelligence, power and victory.
NAR SINGH FACING SOUTH :- South facing sanctions Abhisht Siddhi (accomplishments, desired boons-perfection). Removes fear of enemies and confers victory. Nar Singh is the Lion-Man avatar of Bhagwan Shri Hari Vishnu, who took this form to protect his devotee Prahlad Ji from his evil father, Hirany Kashipu. Hanuman Ji Maharaj adopted this unique form-face during the burning of Lanka and fighting the war.
NAR SINGH FACING SOUTH :- South facing sanctions Abhisht Siddhi (accomplishments, desired boons-perfection). Removes fear of enemies and confers victory. Nar Singh is the Lion-Man avatar of Bhagwan Shri Hari Vishnu, who took this form to protect his devotee Prahlad Ji from his evil father, Hirany Kashipu. Hanuman Ji Maharaj adopted this unique form-face during the burning of Lanka and fighting the war.
GARUD FACING WEST :- West facing awards Sakal Saubhagy (Absolute good luck). Drives away evil spells, black magic influences, negative spirits and removes all poisonous effects in one's body. Garud Ji is Bhagwan Vishnu's vehicle, as the King of birds; he knows the secrets of death and the beyond. Garud Puran explains this at length.
VARAH FACING NORTH :- North facing posture gives wealth. Wards off the troubles caused by bad influences of the planets and confers all eight types prosperity (Asht Aeshwary-Siddhi). Varah was Bhagwan Vishnu's avatar, to rescue earth. Hanuman Ji took this form to dug up mountain having Sanjeevni booty.
HAY GREEV FACING UP URDDH MUKH :- Confers knowledge, victory, good wife and progeny.
These faces show that there is nothing in the world which does not come under the influence of any of the five faces, symbolic of his all around security to all devotees. This also signifies vigilance and control over the five directions :- North, South, East, West and the upward direction-The Zenith.
Bhagwan Shri Ram decided to come back to Ayodhya, since the period of 14 years of exile was about to over. Had he been late Bharat Ji would have immolated himself. He returned in the Pushpak Viman along with all warriors, associates and was handed over the reins of empire by Bharat Ji, who was anxiously waiting for him to return. Bhagwan Shri Ram ceremoniously rewarded all his well-wishers, in a grand ceremony in his court. All his friends and allies took turns being honoured at the throne. Hanuman Ji approached without desiring a reward. Seeing Hanuman Ji come up to him, an emotionally overwhelmed Shri Ram embraced him warmly, declaring that he could never adequately honour or repay Hanuman Ji for the help and services he received from the noble Vanar. Maa Sita, however, insisted that Hanuman Ji deserved honour more than anyone else and she gave him a necklace of precious stones adorning her neck.
Hanuman Ji immediately took it apart and peered into each pearl-stone. Taken aback, many of those present demanded to know why he was destroying the precious gift. Hanuman Ji answered that he was looking into the jams to make sure whether Bhagwan Shri Ram and Maa Sita were present in them. If they were not, the necklace was of no value to him. Someone commented that Hanuman's, reverence and love for Bhagwan Shri Ram and Maa Sita could not possibly be as deep as he implied. Hanuman Ji immediately tore his chest open and everyone was stunned to see Bhagwan Shri Ram and Maa Sita literally present in his heart.
युद्ध समाप्त होने के साथ ही भगवान् श्री राम का चौद्ह वर्ष का वनवास भी समाप्त हो चला था। उन्हें ज्ञात था कि यदि वो वनवास समाप्त होने के साथ ही वे अयोध्या नहीं पँहुचे तो भरत जी अपने प्राण त्याग देंगे। साथ ही उनको इस बात का भी आभास हुआ कि उन्हें वहाँ वापस जाने में अन्तिम दिन से थोड़ा विलम्ब हो जायेगा। हनुमान जी ने अयोध्या जाकर प्रभु श्री राम के आने की जानकारी दी।
अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद प्रभु श्री राम ने उन सभी को सम्मानित करने का निर्णय लिया, जिन्होंने लँका युद्ध में रावण को पराजित करने में उनकी सहायता की थी। उनकी सभा में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें पूरी वानर सेना को उपहार देकर सम्मानित किया गया। हनुमान जी को भी उपहार लेने के लिये बुलाया गया, हनुमान जी मंच पर गये मगर उन्हें उपहार की कोई जिज्ञासा नहीं थी। हनुमान जी को ऊपर आता देखकर भावना से अभिप्लुत भगवान् श्री राम ने उन्हें गले लगा लिया और कहा कि हनुमान जी ने अपनी निश्छल सेवा और पराक्रम से जो योगदान दिया है, उसके बदले में ऐसा कोई उपहार नहीं है जो उनको दिया जा सके। मगर अनुराग स्वरूप माता सीता ने अपना एक मोतियों का हार उन्हें भेंट किया। उपहार लेने के उपरांत हनुमान जी ने माला के एक-एक मोती को तोड़कर देखने लगे। यह देखकर सभा में उपस्थित सदस्यों ने उनसे इसका कारण पूछा तो हनुमान जी ने कहा कि वो ये देख रहे हैं कि मोतियों के अन्दर उनके प्रभु श्री राम और माता सीता हैं कि नहीं, क्योंकि यदि वो इनमें नहीं हैं, तो इस हार का उनके लिये कोई मूल्य नहीं है। यह सुनकर कुछ लोगों ने कहा कि हनुमान जी के मन में प्रभु श्री राम और माता सीता के लिये उतना प्रेम नहीं है, जितना कि उन्हें लगता है। इतना सुनते ही हनुमान जी ने अपनी छाती चीर के लोगों को दिखाई और सभी ये देखकर स्तब्द्ध रह गये कि वास्तव में उनके ह्रदय में प्रभु श्री राम और माता सीता की छवि विद्यमान थी।
Hanuman Ji immediately took it apart and peered into each pearl-stone. Taken aback, many of those present demanded to know why he was destroying the precious gift. Hanuman Ji answered that he was looking into the jams to make sure whether Bhagwan Shri Ram and Maa Sita were present in them. If they were not, the necklace was of no value to him. Someone commented that Hanuman's, reverence and love for Bhagwan Shri Ram and Maa Sita could not possibly be as deep as he implied. Hanuman Ji immediately tore his chest open and everyone was stunned to see Bhagwan Shri Ram and Maa Sita literally present in his heart.
युद्ध समाप्त होने के साथ ही भगवान् श्री राम का चौद्ह वर्ष का वनवास भी समाप्त हो चला था। उन्हें ज्ञात था कि यदि वो वनवास समाप्त होने के साथ ही वे अयोध्या नहीं पँहुचे तो भरत जी अपने प्राण त्याग देंगे। साथ ही उनको इस बात का भी आभास हुआ कि उन्हें वहाँ वापस जाने में अन्तिम दिन से थोड़ा विलम्ब हो जायेगा। हनुमान जी ने अयोध्या जाकर प्रभु श्री राम के आने की जानकारी दी।
अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद प्रभु श्री राम ने उन सभी को सम्मानित करने का निर्णय लिया, जिन्होंने लँका युद्ध में रावण को पराजित करने में उनकी सहायता की थी। उनकी सभा में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें पूरी वानर सेना को उपहार देकर सम्मानित किया गया। हनुमान जी को भी उपहार लेने के लिये बुलाया गया, हनुमान जी मंच पर गये मगर उन्हें उपहार की कोई जिज्ञासा नहीं थी। हनुमान जी को ऊपर आता देखकर भावना से अभिप्लुत भगवान् श्री राम ने उन्हें गले लगा लिया और कहा कि हनुमान जी ने अपनी निश्छल सेवा और पराक्रम से जो योगदान दिया है, उसके बदले में ऐसा कोई उपहार नहीं है जो उनको दिया जा सके। मगर अनुराग स्वरूप माता सीता ने अपना एक मोतियों का हार उन्हें भेंट किया। उपहार लेने के उपरांत हनुमान जी ने माला के एक-एक मोती को तोड़कर देखने लगे। यह देखकर सभा में उपस्थित सदस्यों ने उनसे इसका कारण पूछा तो हनुमान जी ने कहा कि वो ये देख रहे हैं कि मोतियों के अन्दर उनके प्रभु श्री राम और माता सीता हैं कि नहीं, क्योंकि यदि वो इनमें नहीं हैं, तो इस हार का उनके लिये कोई मूल्य नहीं है। यह सुनकर कुछ लोगों ने कहा कि हनुमान जी के मन में प्रभु श्री राम और माता सीता के लिये उतना प्रेम नहीं है, जितना कि उन्हें लगता है। इतना सुनते ही हनुमान जी ने अपनी छाती चीर के लोगों को दिखाई और सभी ये देखकर स्तब्द्ध रह गये कि वास्तव में उनके ह्रदय में प्रभु श्री राम और माता सीता की छवि विद्यमान थी।
PRAYERS :: The five faces of Hanuman Ji Maharaj depict five forms of prayers :- Naman, Smaran, Keertan, Yachna and Arpan. He surrendered, sought asylum-refuge (Arpan, Samarpan) in his Master Bhagwan Shri Ram. He also begged (Yachna) Shri Ram to bless him the undivided love.
WEAPONS :: The weapons are a Parshu, a Khanda, a Chakr, a Dhal-shield, a Gada-mace, a Trishul-trident, a Kumbh, a Katar, a plate filled with blood and again a big Gada.
HANUMAN DHARA TEMPLE :: Chitr Koot in Madhy Pradesh is claimed to be the resting place of Hanuman Ji Maha Raj. The Hanuman Dhara Temple is situated on the peak of mountain, where there is natural rock formation image of Hanuman Ji Maha Raj inside the cave and a natural stream of water falling on his tail. It is believed that after the coronation of Bhagwan Shri Ram, Hanuman Ji requested for a permanent place to settle in his Kingdom, where the injury of burns on his tails could be cured. Bhagwan Shri Ram, spurred a stream of water with his arrow through the tip of the mountain and asked Hanuman Ji Maha Raj to rest there with water of the stream falling on his tail to cool down burning sensation in his tail. The access to the cave temple is through stairs starting from bottom of the mountain to its top. It takes roughly 30 to 40 minutes to reach the temple.
Panch Mukhi Anjney Swami was the main deity of Shri Raghvendr Swami. The place where he meditated with his five-faced form is now known as Panch Mukhi, wherein a temple for him has been built. There is also a shrine for Panch Mukhi Anjney Swami at Kumbakonam in Tamil Nadu, India. A 40 feet (12 m) tall monolithic green granite Murti-statue of Panch Mukhi Hanuman Ji has been installed in Thiruvallur, in Tamil Nadu. This place was known as Rudr Vanam in ancient times, when many saints and seers had blessed this place with their presence.
Hanuman Ji Maharaj is free from the clutches of Shani Dev. Hanuman Ji liberated Shani Dev from the prison of Ravan, where he was hanged with his head downwards. Shani Dev blessed Hanuman Ji that whosoever worshipped him would be relieved-rescued, from the bad, ill effects, painful-malefic effects of Saturn afflicted negatively.
Shani Dev once climbed on to shoulder of Hanuman Ji, implying that he was coming under the effects of the influence of Shani. Hanuman Ji assumed a large size and Shani Dev was caught painfully between Hanuman Ji's shoulders and the ceiling of the room they were in. As the pain was unbearable, Shani Dev requested Hanuman Ji to release him, promising that Shani would moderate the malefic effects of his influence on a person praying Hanuman Ji. Hanuman Ji released Shani Dev thereafter. Hanuman Sahastranam Strotr mentions "Shani" as one of the names of Hanuman Ji. Hanuman JI Maha Raj is seen sporting an iron whip akin to Shani.
शनि की दशा एक बार शुरू हो जाए तो साढ़े सात साल बाद ही पीछा छोड़ती है। लेकिन हनुमान जी के भक्तों को शनि से डरने की तनिक भी जरूरत नहीं। शनि देव ने हनुमान जी को भी प्रभावित करना-डराना चाहा लेकिन मुँह की खानी पड़ी।
सँध्या काल में हनुमान जी महाराज अपने आराध्य देव भगवान् श्री राम का स्मरण करने लगे तो उसी समय ग्रहों में पाप ग्रह, मंद गति सूर्य पुत्र शनि देव पधारे। वह अत्यंत कृष्ण वर्ण के भीषणाकार थे। वह अपना सिर प्रायः झुकाये रखते हैं। जिस पर अपनी दृष्टि डालते हैं, वह अवश्य नष्ट हो जाता है। यद्यपि हनुमान जी ने उन्हें लंका में दशग्रीव के बन्धन से मुक्त किया था, तथापि वे हनुमान जी से विनयपूर्वक किन्तु कर्कश स्वर में बोले कि "हे हनुमान जी! मैं आपको सावधान करने आया हूँ। त्रेता की बात दूसरी थी, अब कलियुग प्रारम्भ हो गया है। भगवान् वासुदेव ने जिस क्षण अपनी अवतार लीला का समापन किया, उसी क्षण से पृथ्वी पर कलि का प्रभुत्व हो गया। यह कलियुग है। इस युग में आपका शरीर दुर्बल और मेरा बहुत बलिष्ठ हो गया है। अब आप पर मेरी साढ़े साती की दशा प्रभावी हो गई है। मैं आपके शरीर पर आ रहा हूँ"।
शनिदेव को इस बात का तनिक भी ज्ञान नहीं था कि रघुनाथ जी के चरणाश्रितों पर काल का प्रभाव नहीं होता। करुणा निधान जिनके हृदय में एक क्षण को भी आ जाते हैं, काल की कला वहाँ सर्वथा निष्प्रभावी हो जाती है। प्रारब्ध के विधान वहाँ प्रभुत्व हीन हो जाते हैं। सर्व समर्थ पर ब्रह्म के सेवकों का नियंत्रण, संचालन, पोषण प्रभु स्वयं ही करते हैं। उनके सेवकों की ओर दृष्टि उठाने का साहस कोई सुर-असुर करे तो स्वयं अनिष्ट भाजन होता है। शनिदेव के अग्रज धर्मराज-यमराज भी प्रभु के भक्त की ओर देखने का साहस नहीं कर पाते।
हनुमान जी ने शनिदेव को समझाने का प्रयत्न किया, आप कहीं अन्यत्र जाएँ। ग्रहों का प्रभाव पृथ्वी के मरणशील प्राणियों पर ही पड़ता है। मुझे अपने आराध्य का स्मरण करने दें। मेरे शरीर में श्री रघुनाथ जी के अतिरिक्त दूसरे किसी को स्थान नहीं मिल सकता।
लेकिन शनिदेव को इससे संतोष नहीं मिला। वह बोले, "मैं सृष्टिकर्ता के विधान से विवश हूँ। आप पृथ्वी पर रहते हैं। अतः आप मेरे प्रभुत्व क्षेत्र से बाहर नहीं हैं। पूरे साढ़े बाईस वर्ष व्यतीत होने पर साढ़े सात वर्ष के अन्तर से ढाई वर्ष के लिए मेरा प्रभाव प्राणी पर पड़ता है। किन्तु यह गौण प्रभाव है। आप पर मेरी साढ़े साती आज इसी समय से प्रभावी हो रही हो। मैं आपके शरीर पर आ रहा हूँ। इसे आप टाल नहीं सकते"। हनुमान जी ने उन्हें बहुत समझाया, किन्तु शनि देव नहीं माने।
शनिदेव हनुमान जी के मस्तक पर आ बैठे तो उनके सिर पर खुजली हुई। इसे मिटाने के लिए हनुमान जी ने उन्हें अपने सर और अन्य ग्रहों के बीच दबाना शुरू कर दिया। शनि देव घबरा गये और माँफी माँगने लगे।
हे पवन कुमार!
त्राहि माम ताहि माम! रामदूत!आंजनेयाय नमः!
मैं उसको भी पीड़ित नहीं करूँगा; जो आपका स्मरण करेगा। मुझे उतर जाने का अवसर प्रदान करें।
NEGATIVE ENERGY नकारात्मक ऊर्जा :: Hanuman Ji is worshipped-revered, honoured to get rid or win over demons (Daety, Danav, Asur, Giants, wicked), other divine creations like :- Yaksh, Kinnar, Gandhar, Nag-Nagin, evil spirits (Bhoot, Pret, Pishach, Chudael, Betal, Brahm Rakshas, spirits, Dracula) and other powerful negative energies :- Dakini, Shakini, Kakini, Kamini.
Hanuman Ji Maharaj requested Maharshi Balmiki to narrate the story of Ramayan scripted by him. But Balmiki refused saying that it could not to described to a Vanar-an animal. Hanuman Ji went to Himalay, where he scripted a version of the Ramayan on the Himalayan mountain rocks using his nails, recording every detail of Bhagwan Ram's deeds. Maharishi Balmiki got disheartened when he read Hanuman Ji's version which was much more superior and authentic than his version. Balmiki got disappointed. Hanuman Ji enquired Balmiki's the cause of sorrow. Mahrishi said that the version, which he had created so laboriously, was no match for the splendour of Hanuman Ji's and would therefore be ignored. Hanuman Ji discarded his own version, which is called the Hanumad Ramayan. Maharishi Balmiki was so taken aback that he said he would take another birth to sing the glory of Hanuman Ji Maharaj which he had understated in his version.
One tablet from the Hanumad Ramayan floated ashore during the period of Maha Kavi Kali Das, the poet in the court of Raja Veer Vikramadity. It was hung at a public place to be deciphered by scholars. Kali Das deciphered it and recognised that it was from the Hanumad Ramayan recorded by Shri Hanuman in an extinct script and considered himself to be very fortunate one to see, at least one Pad-stanza of the text.
After reigning for 10,000 years, the time arrived for Bhagwan Shri Ram to depart to his supreme abode Vaekunth. Many of Bhagwan Shri Ram's entourage, including Sugriv, decided to depart with him. Hanuman Ji, however, requested Bhagwan Shri Ram that he will remain on earth as long as Bhagwan Shri Ram's name was venerated by people. Maa Sita accorded Hanuman Ji that desire and granted that his image would be installed at various public places, so that he could listen to people chanting Bhagwan Shri Ram's name. He is one of the immortals (Chiranjivi).
प्रभु श्री राम की रावण के ऊपर विजय प्राप्त करने के पश्चात ईश्वर की आराधना के लिये हनुमान जी हिमालय पर चले गये थे। वहाँ जाकर उन्होंने पर्वत की शिलाओं पर अपने नाखून से रामायण की रचना की जिसमें उन्होंने प्रभु श्री राम के कर्मों का उल्लेख किया था। कुछ समयोपरान्त जब महर्षि बाल्मिकी हनुमान जी को अपने द्वारा रची गई रामायण दिखाने-सुनाने पहुँचे तो उन्होंने हनुमान जी द्वारा रचित रामायण भी देखी। बाल्मीकि ने हनुमान जी को रामायण सुनाने से यह कहकर मनाकर दिया था कि वे एक वानर-पशु हैं और उन्हें इसको सुनने का कोई नहीं है। उसे देखकर बाल्मिकी थोड़े निराश हो गये तो हनुमान ने उनसे उनकी निराशा का कारण पूछा। महर्षि बोले कि उन्होंने कठोर परिश्रम के पश्चात जो रामायण रची है, वो उनकी रचना के समक्ष कुछ भी नहीं है। अतः आने वाले समय में उनकी रचना उपेक्षित रह जायेगी। ये सुनकर हनुमान ने रामायण रचित पर्वत शिला को एक कन्धे पर उठाया और दूसरे कन्धे पर महर्षि बाल्मिकी को बिठा कर समुद्र के पास गये और स्वयं द्वारा की गई रचना को भगवान् श्री राम को समर्पित करते हुए जल समाधि दे दी। तभी से हनुमान जी द्वारा रची गई हनुमद रामायण उपलब्ध नहीं है। तदुपरांत महर्षि बाल्मिकी ने कहा कि तुम धन्य हो हनुमान जी, तुम्हारे जैसा कोई दूसरा नहीं है और साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि वो हनुमान की महिमा का गुणगान करने के लिये एक जन्म और लेंगे। इस बात को उन्होंने अपनी रचना के अन्त में कहा भी है।
राजा वीर विक्रमादित्य के काल में एक पटलिका किसी प्रकार उनके राज्य में पहुँच गई तो उसको कोई पढ़ नहीं पाया। महाकवि कालीदास ने उस हनुमद रामायण की पटलिका को पढ़ा तो स्वयं को धन्य पाया, क्योंकि वो उन पटलिकाओं में से एक थी, जिनको स्वयं हनुमान जी ने महर्षि बाल्मिकी की सन्तुष्टि हेतु स्वयं ही नष्ट कर दिया था।
Hanuman Ji is the elder brother of Bheem Sen, being the son of Pawan-Vayu Dev. During the Pandav's exile, he appeared disguised as a weak and aged monkey to Bhim in order to subdue his arrogance. Bheem entered a banana groove in search of divine lotus flowers thrown in the river to attract Bheem, where Hanuman Ji was lying with his tail blocking the way. Bheem, unaware of his identity, told him to move it out of the way. Hanuman Ji incognito, refused. Bheem tried to move the tail himself but he failed despite his great strength. Realising that he was not an ordinary monkey, he inquired as to Hanuman's identity, which was revealed. Bheem's request mobilised Hanuman Ji to demonstrate his huge proportions, he had assumed in his crossing of the sea; as he journeyed to Lanka and also said that when the war came, he would be there to protect the Pandavs. This place is located at Sariska National Park in the Alwar District of the State of Rajasthan and named as Pandu Pole (Temple of Hanuman Ji). Pandu Pole is very famous tourist spot of Alwar.
During Maha Bharat, Arjun entered the battlefield with a flag displaying Hanuman Ji-Kapi Pataka on his chariot. The incident that led to this was an earlier encounter between Hanuman Ji and Arjun, wherein Hanuman Ji appeared as a small talkative monkey before Arjun at Rameshwaram, where Bhagwan Shri Ram had built the great bridge to cross over to Lanka to rescue Mata Sita. Upon Arjun's wondering aloud at Bhagwan Shri Ram's taking the help of monkeys rather than building a bridge of arrows, Hanuman Ji challenged him to build a bridge capable of bearing him alone; Arjun, unaware of the Vanar's virtues and true identity, accepted. Hanuman Ji then proceeded to repeatedly destroy the bridges made by Arjun, who decided to take his own life. Bhagwan Shri Krashn smiled and placed his divine discus-Sudarshan Chakr beneath the bridge and this time Hanuman Ji could no longer break it. Bhagwan Shri Hari Vishnu appeared before them both, after originally coming in the form of a tortoise, chiding Arjun for his vanity and Hanuman Ji for making Arjun feel incompetent. As an act of penitence, Hanuman Ji decided to help Arjun by stabilising and strengthen his chariot during the imminent great battle-Maha Bharat. Arjun had to face Bhishm Pitamah who had maintained his chastity throughout his life. So, it became essential to ward off the power of Bhishm Pitamah by countering him with Hanuman Ji Maharaj, After, the battle of Kurukshetr was over, Bhagwan Shri Krashn asked Arjun, to step down the chariot before him. As soon as Arjun got down, Bhagwan Shri Krashn followed him and thanked Hanuman Ji for staying with them during the whole fight in the form of a flag mark on the chariot. Hanuman Ji came in his original form, bowed to Bhagwan Shri Krashn and left the flag, flying away into the sky. As soon as he left the flag, the chariot began to burn and turned into ashes. Arjun was shocked to see this. Bhagwan Shri Krashn told Arjun, that the only reason that his chariot was still standing was because of the presence of HIMSELF and Hanuman Ji, otherwise, it would have burnt many days ago due to effects of celestial weapons thrown at it, in the war.
Hanuman Ji is one of the four people to have heard the Bhagwad Gita from Bhagwan Shri Krashn and seen his Virat-Vishw Roop (gigantic, universal) form, the other three being Arjun, Sanjay and Barbreek-son of Ghatotkach and grand son of Bheem.
शिष्यत्व ::
गुरु भक्ति :- संकट मोचक श्री हनुमान जी के गुरु भगवान् सूर्य हैं। उनका जन्म गुरु पूर्णिमा को माना जाता है। मनुष्य को गुरु के प्रति समर्पण की भावना रखनी चाहिये। हनुमान जी महाराज ने अपने गुरु भगवान् सूर्य नारायण के प्रति समर्पण के अतिरिक्त निम्न गुणों का प्रदर्शन भी किया। वे एक आदर्श विद्यार्थी और गुणी शिष्य हैं।
(1). विनम्रता :- गुणी और ताकतवर होने पर भी शिष्य घमण्ड अहंकार (Ego, pride, arrogance ) से दूर रहे। मन में हमेशा विनम्रता और सीखने का भाव मन में कायम रखें।
गुरु भक्ति :- संकट मोचक श्री हनुमान जी के गुरु भगवान् सूर्य हैं। उनका जन्म गुरु पूर्णिमा को माना जाता है। मनुष्य को गुरु के प्रति समर्पण की भावना रखनी चाहिये। हनुमान जी महाराज ने अपने गुरु भगवान् सूर्य नारायण के प्रति समर्पण के अतिरिक्त निम्न गुणों का प्रदर्शन भी किया। वे एक आदर्श विद्यार्थी और गुणी शिष्य हैं।
(1). विनम्रता :- गुणी और ताकतवर होने पर भी शिष्य घमण्ड अहंकार (Ego, pride, arrogance ) से दूर रहे। मन में हमेशा विनम्रता और सीखने का भाव मन में कायम रखें।
(2). मान और समर्पण :- शिष्य गुरु और प्रभु के प्रति समर्पित-तत्पर रहे। प्रभु के आस्था, निष्ठा, प्रेम, भक्ति भाव कायम रखे।
(3). धैर्य और निर्भयता :- शिष्य को चाहिये कि हनुमान जी से धैर्य और निडरता का सूत्र ग्रहण करे जो कि जीवन की तमाम मुश्किल हालातों में भी मनोबल बनाये रखता है। इसके बल-बूते ही लंका में जाकर हनुमान जी ने रावण राज के अन्त का बिगुल बजाया।
(4). कृतज्ञता :- जीवन में दम्भ रहित या आत्म प्रशंसा का भाव पतन का कारण होती है। शिष्य हनुमान जी से कृतज्ञता के भाव को सीखे और जीवन में उतारे। अपनी हर सफलता में परिजनों, इष्टजनों और बड़ों का योगदान न भूलें। जैसे हनुमान जी ने अपनी तमाम सफलता का कारण भगवान् श्री राम को ही बताया।
(5). विवेक और निर्णय क्षमता :- हनुमान जी ने माता सीता की खोज में समुद्र पार करते वक्त सुरसा, सिंहिका, मेनाक पर्वत जैसी अनेक बाधाओं का सामना किया। किंतु लालसाओं में न उलझ बुद्धि व विवेक से सही फैसला लेकर बगैर डावाँडोल हुए अपने लक्ष्य की ओर बढे। शिष्य भी जीवन में सही और गलत की पहचान कर अपने मकसद से कभी न भटकें।
(6). तालमेल की क्षमता :- श्री हनुमान ने अपने स्वभाव व व्यवहार से हर स्थिति, काल और अवसर से तालमेल बैठाया। इससे ही वे हर युग और काल में सबके प्रिय बने रहे। अतः शिष्य को भी अपना आचार-व्यवहार, स्वभाव, परिस्थिति के अनुकूल रखना चाहिये। शिष्य प्रेम, सेवा, तत्परता, मधुर-संयत वाणी से सभी का दिल जीतकर जीवन यापन करे।
(3). धैर्य और निर्भयता :- शिष्य को चाहिये कि हनुमान जी से धैर्य और निडरता का सूत्र ग्रहण करे जो कि जीवन की तमाम मुश्किल हालातों में भी मनोबल बनाये रखता है। इसके बल-बूते ही लंका में जाकर हनुमान जी ने रावण राज के अन्त का बिगुल बजाया।
(4). कृतज्ञता :- जीवन में दम्भ रहित या आत्म प्रशंसा का भाव पतन का कारण होती है। शिष्य हनुमान जी से कृतज्ञता के भाव को सीखे और जीवन में उतारे। अपनी हर सफलता में परिजनों, इष्टजनों और बड़ों का योगदान न भूलें। जैसे हनुमान जी ने अपनी तमाम सफलता का कारण भगवान् श्री राम को ही बताया।
(5). विवेक और निर्णय क्षमता :- हनुमान जी ने माता सीता की खोज में समुद्र पार करते वक्त सुरसा, सिंहिका, मेनाक पर्वत जैसी अनेक बाधाओं का सामना किया। किंतु लालसाओं में न उलझ बुद्धि व विवेक से सही फैसला लेकर बगैर डावाँडोल हुए अपने लक्ष्य की ओर बढे। शिष्य भी जीवन में सही और गलत की पहचान कर अपने मकसद से कभी न भटकें।
(6). तालमेल की क्षमता :- श्री हनुमान ने अपने स्वभाव व व्यवहार से हर स्थिति, काल और अवसर से तालमेल बैठाया। इससे ही वे हर युग और काल में सबके प्रिय बने रहे। अतः शिष्य को भी अपना आचार-व्यवहार, स्वभाव, परिस्थिति के अनुकूल रखना चाहिये। शिष्य प्रेम, सेवा, तत्परता, मधुर-संयत वाणी से सभी का दिल जीतकर जीवन यापन करे।
JAKHU TEMPLE SHIMLA :: Hanuman Ji encountered a meditating sage on Jakhu hills on his way to Himalay, which was the legendary abode of Yaksh, Kinners Nag and Asur. As he paused to inquire about the Sanjeevni herb, his sudden landing flattened-compressed the earth and changed the shape of the hill to its present state. A 108-foot (33-meter) statue of Hanuman Ji has been erected at the top of the 8,500-foot (2,591-meter) tall Jakhu Hill, the highest point in Shimla.
Tulsi Das Ji, a humble person and Great devotee of Shri Ram, who wrote the greatest epics of these times Ram Charit Manas, offered his tributes comparing himself, to the dust particles under the feet of Bhagwan Shri Ram-incarnation Bhagwan Vishnu. Mahrishi Balmiki was blessed by Shri Hanuman Ji Maharaj to get birth in Kali Yug and rewrite Ramayan and sing the praise of Hanuman Ji. He took incarnation as Tulsi Das and accomplished the deed.
SHRI HANUMAN CHALISA श्री हनुमान चालीसा :: This is a prayer dedicated to Shri Hanuman Ji Maharaj, an incarnation of Bhagwan Shiv, devoted to the incarnation of Bhagwan Vishnu-Shri Ram.
Tulsi Das Ji, a humble person and Great devotee of Bhagwan Shri Ram, who wrote the greatest epics of these times Ram Charit Manas, offered his tributes comparing himself, to the dust particles under the feet of the Bhagwan Shri Ram-incarnation Bhagwan Vishnu. Mahrishi Balmiki was blessed by Shri Hanuman Ji Maharaj to get birth in Kali Yug and rewrite Ramayan and sing the praise of Hanuman Ji. He took incarnation as Tulsi Das and accomplished the deed.
श्री गुरु चरण् सरोजरज, निज मन मुकुरि सुधार।
वरनऊँ रघुबर बिमल यश, जो दायक फलचार॥
Shri-Guru Charan Saroj Raj; Nij Man-Mukur Sudhar.
Barnau Raghu Bar Vimal Jash; Jo Dayak Phal (Fal) Char.
गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।
Having paid reverences-tributes to the Guru-teacher, by touching his feet, permission is sought to narrate the sacred story of the mighty Bhagwan Shri Ram-incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu and its prayed-requested that the devotee may kindly be blessed-bestowed with the four fundamentals-essentials for a human being :- Dharm, Arth, Kam and Moksh.
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥
सिया पति राम चन्द्र की जय शरणम् जय जय सिया राम॥
Buddhi Heen Tanu Janke; Sumiroun Pawan Kumar.
Bal Buddhi Vidya Dehun Mohi; Harhun Kalesh Vikar.
हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन-यादकरता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।
The devotee who considers himself as ignorant, remember Shri Hanuman Ji Maharaj to be blessed-bestowed with strength, intelligence, enlightenment, prudence, wisdom and knowledge-learning and to make him free-clear from all blemishes-afflictions.
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँलोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि-पुत्र पवन-सुत नामा॥
Jay Hanuman Gyan Gun Sagar; Jay Kapish Tinhun Lok Ujagar.
Ram Doot Atulit Bal Dhama; Anjani-Putra Pawan Sut Nama.
श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है। हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।
Hanuman Ji, is the ocean (store house) of wisdom, piousity, virtuousness, righteous characteristics and enlightening the three levels-segments of this universe i.e., Earth, Patal (living space beneath the earth, nether world) and the Swarg (paradise-Heaven, residence of pious souls), pray for your victory. (It’s evident that his victory over the evils will protect the humans). You are the son of Maa Anjani and named-called son of Pawan Dev.
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरण बिराज सुबेशा। कानन कुंडल कुंचित केशा॥
Maha Bir Bikram Bajrangi; Kumati Nivar Sumati Ke Sangi.
Kanchan Baran Biraj Subesha; Kanan Kundal Kunchit Kesha.
हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है। आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
You are a great warrior, extremely valiant with the body as strong as Vajr-thunderbolt, possessor of immeasurable, limitless, infinite, strength-power; removes the evil-wickedness and associate, awards-grants, wisdom-enlightenment, prudence to the devotee.
Your body illuminates-possesses aura-glows like gold-golden hue and displays light like the Sun. You have Kundal-rings in your ears and your hairs are curly.
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर-सुवन केशरी-नन्दन।
तेज प्रताप महा जग-वंदन॥
Hath Bajr Au Dhvja Biraje; Kandhe Munj Janeu Saje.
Shankar Suvan Keshari-Nandan; Tej Pratap Maha Jag Vandan.
आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूँज के जनेऊ की शोभा है।हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।
The Bajr-Thunderbolt and Flag are held in Hands, Sacred Thread Janeu across Shoulder. O! The incarnation of Bhawan Shiv and Son of Kesri. You have unlimited strength and power, entire world knows this.
विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लषन सीतामन बसिया॥
Vidyavan Guni Ati Chatur; Ram Kaj Karibe Ko Atur. Prabhu Charitr Sunbe Ko Rasia; Ram Laxman Sita Man Basiya.
आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है। आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।
A Learned, Virtuous, enlightened, prudent, Intelligent, extremely wise person, always willing-ready to accomplish his works-job. You felt delighted in listening to the glories-character of Bhagwan Shri Ram, while possessing-holding the worship of Shri Ram, Lakshman Ji and Maa Sita-dwelling in your Heart.
सूक्ष्म रूपधरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
Shukshm Roop Dhari Siyhin Dikhava; Vikat Roop Dhari Lank Jarawa. Bhim Roop Dhari Asur Sanhare; Ran Chandr Ke Kam Sanware.
आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया। आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।
Small size-shape-diminutive form was acquired by you to appear before Maa Sita and to burn-torch Lanka a dangerous outfit, look, gigantic-mammoth form was acquired. To kill destroy the Rakshash, Demons, Giants a large, terrifying, awesome form, image was acquired-attained by you and helped in accomplishment of the tasks pertaining to Bhagwan Shri Ram.
लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
Layae Sajivan Lakhan Jilaye; Shri Raghubir Harashi Uar Layae. Raghupati Kihni Bahut Badai; Tum Mam Priy Bhrathi Sam Bhai.
आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया-जीवित किया, जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया। श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।
Shri Ram hugged embraced-you in delight, when the life of Laxman Ji was saved by using Sanjivini booty-herb, brought by you. Bhagwan Ram appreciated you whole-open heartedly and accepted you as a brother like Bharat.
हं हनुमते रुद्रात्मकायं हुं फट्।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये॥
जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है, जो परम जितेन्दिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवन पुत्र वानरों में प्रमुख श्री राम दूत की मैं शरण लेता हूँ।
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद शारद सहित अहीशा॥
Sahas Badan Tumharo Jas Gavaen; Us Kahi Shripati Kanth Lagavaen. Sankadik Brahmadi Munisha; Narad Sharad Sahit Ahisha.
श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया कि तुम्हारा यश हजार मुख-भगवान् शेष नाग द्वारा गाया-सराहा जाता है। श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।
Bhawan Anant-the thousand headed Seshnag, will recite your glory-courageous deeds; along with Sanak, other sages (Brahm Rishi, Mahrishi, Rajrishi), Brahma Ji Narad, Devi Saraswati, Seshnag and other deities.
यम कुबेर दिगपाल जहाँते। कवि कोविद कहि सकैं कहाँते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
Yam, Kuber, Dikpal Jahante; Kavi, Kovid Kahi Sakaen Kahante. Tum Upkar Sugrivahin Kinha; Ram Milay Rajpad Dinha.
यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते। आपने सुग्रीव जी को भगवान् श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।
Yam (Dharma Raj, deity of death), Kuber (deity of wealth), Dikpals (the guardian-deities of all the directions), poets and scholars, philosophers, enlightened, Pandits have not been able to describe your glories-characters in full. You rendered great help to Sugriv, by introducing him to Bhagwan Shri Ram and there by helped in regaining his kingdom.
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
युग शस्त्र योजन पर भानु। लील्यो ताहि मदुर फल जानि॥
Tumharo Mantr Vibhishan Mana; Lankeshwar Bhaye Sab Jag Jana. Yug Sahastr Yojan Par Bhanu; Lilyo Tahi Madhur Phal Janu.
आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है। जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।
Whole world knows that Vibhishan became the king of Shri Lanka by following-accepting your advice. The Sun away at a distance of 2,00,000 Yojan was swallowed by you thinking-considering to be a sweet fruit.
प्रभु मुद्रिका मेली मुख मांहि। जलधि लाँघ गए अचरज नाहि॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
Prabhu Mudrika Meli Mukh Mahin; Jaldhi Langh Gaye Achraj Nahin. Durgam Kaj Jagat Ke Jete; Sugam Anugrah Tumhre Tete.
आपने श्री रामचन्द्र जी की अँगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लाँघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है। संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।
There is no wonder that you crossed the ocean holding-carrying, the ring of Bhagwan Shri Ram in your Mouth. All the Difficult Tasks in this World, become-rendered easy by your Grace.
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिन पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥
Ram Duare Tum Rakhvare; Hot Na Agya Bin Paesare.
Sab Sukh Lahe Tumhari Sarna; Tum Rakshak Kahu Ko Darna.
श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है। जो भी आपकी शरण में आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है और जब आप रक्षक हैं, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।
Being the protector-guardian of Bhagwan Shri Ram's kingdom no one can dare enter it, without your permission. All comforts, enjoyments, happiness, pleasures were attained under your patronage and there is nothing to fear-worry, under your shelter, refuge, patronage.
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भूत पिशाच निकट नहीं आवें। महावीर जब नाम सुनावें॥
Apan Tej Samharo Apae; Tino Lok Hank Te Kanpaen.
Bhut Pishach Nikat Nahni Avaen; Mahavir Jab Nam Sunavaen.
आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है। जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।
It’s only you who can absorb-control the gush of your own energy, which is liberated at your roar, leading to the trembling of the three Loks-abodes. O! Mahavir, ghosts and evil spirits dare not come near the devotee, as soon as your name is recited.
नाशै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा॥
संकट से हनुमान छुडावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
Nashaen Rog Haraen Sab Pira; Japat Nirantar Hanumat Bira.
Sankat Se Hanuman Chhudavaen; Man Kram Bachan Dhyan Jo Lavaen.
हे हनुमान जी महाराज! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है। हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आप में ही रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते-उबारते हैं।
All diseases vanish and the devotee is released from pains, worries, destitute, just by the continued recitation-utterances of his names.
Hanuman Ji liberates all troubles, difficulties and brings the body, mind and soul-speech, under control-order, as soon as the devotee meditates, concentrates-confide in him.
सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
Sab Par Ram Tapasvi Raja; Tinke Kaj Sakal Tum Saja.
Aur Manorath Jo Koi Lavae; Soi Amit Jivan Phal Pavae.
तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यो को आपने सहज में कर दिया। जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नही होती।
Bhagwan Shri Ram is the king of the Tapasvis-ascetics, devotees engaged in penances and you complete all their desires, requirements-necessities.
Hanuman Ji fulfill accomplish all vows, requirements, works, desires, wishes of the devotees who bring them forward before him and attains the highest-ultimate fruits in this living-world.
चारों युग परताप तुम्हारा। है पर सिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
Charon Jug Partap Tumhara; Hae Parsiddh Jagat Ujiyara.
Sadhu Sant Ke Tum Rakhware; Asur Nikandan Ram Dulare.
चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत-संसार में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है। हे श्री राम के दुलारे! आप.सज्जनों की रक्षा करते हैं और दुष्टों का नाश करते हैं।
Your glory prevails in all the four Yug, cosmic era, ages and your fame, aura-glow, radiates-illuminates all over-throughout the world. O! The beloved of Bhagwan Shri Ram you are the saviour-protector of the saints and sages, destroying the demons, giants, Rakshash.
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
Asht Siddhi Nav Nidhi Ke Data; As Bar Din Janki Mata.
Ram Rasayan Tumhare Pasa; Sada Raho Raghupati Ke Dasa.
आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ दे सकते-प्रदान कर सकते हैं।
(1). अणिमा :- साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है।
(2). महिमा :- योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।
(3). गरिमा :- साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।
(4). लघिमा :- जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।
(5). प्राप्ति :- इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।
(6). प्राकाम्य :- इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है।
(7). ईशित्व :- जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।
(8). वशित्व :- जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।
नव निधियाँ ::
(1). पद्म निधि :- पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है ।
(2). महापद्म निधि :- महाप निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता रहता है ।
(3). नील निधि :- नील निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेज से संयुक्त होता है। उसकी संपत्ति तीन पीढी तक रहती है।
(4). मुकुंद निधि :- मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है। वह राज्य संग्रह में लगा रहता है।
(5). नन्द निधि :- नन्दनिधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है। वही कुल का आधार होता है।
(6). मकर निधि :- मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है।
(7). कच्छप निधि :- कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है। वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है।
(8). शंख निधि :- शंख निधि एक पीढी के लिए होती है।
(9). खर्व निधि :- खर्व निधि वाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रीत फल दिखाई देते हैं।
आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
Mata Janki (Maa Sita) gave the boon that you will be able to give-grant the eight Siddhis (accomplishments, supernatural powers, contemplation) and nine Nidhis (types of devotions, wealth) to the seekers-devotees. You hold the essence of devotion-charismatic powers of Bhagwan Shri Ram and will always remain devoted to him.
तुम्हरे भजन रामको पावै। जन्म जन्म के दुख बिसरावै॥
अन्त काल रघुपति पुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
Tumhare Bhajan Ram Ko Pavae; Janm Janm Ke Dukh Bisravae. Ant Kal Raghupati Pur Jai; Jahan Janm Hari Bhakt Kahai.
आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते है और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है। अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।
Through the devotion, recollection, enchantment, recitation of your names, deeds one will be able to merge with Bhagwan Shri Ram (will be able to attain Salvation, मोक्ष, Moksh) thereby getting free-over coming of the sin-sorrows of life after life-birth and repeated rebirths-incarnations. At the end-ultimately, one goes to the abode of Raghupati (Bhagwan Shri Ram, Vaekunth Lok, the abode of Bhagwan Vishnu), where one becomes the devotee of Bhagwan Shri Hari Vishnu.
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥
संकट हरै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा ॥
Aur Devta Chitt Na Dharhi; Hanumat Sei Sarv Sukh Kari. Sankat Harae Mite Sab Pira; Jo Sumirae Hanumat Bal Bira.
हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती। हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन-याद करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।
Even without worshiping other Deities, one gets all happiness, since Shri Hanuman Ji Maharaj accomplishes all desires. One, who contemplates in Shri Hanuman Ji Maharaj, comes out of all difficulties, troubles, pains, sorrow.
जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
जो शत बार पाठ कर जोई। छुटहि बन्दि महासुख होई॥
Jai Jai Jai Hanuman Gosaen; Krapa Karhu Gurudev Ki Nai.
Jo Shat Bar Path Kar Koi; Chhutahi Bandi Maha Sukh Hoi.
हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए। जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छूट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
O! Hanuman you should be victorious-victorious-victorious; please bestow your grace-kindness as our supreme Guru. Those who Recite this Hanuman Chalisa, one hundred times (with devotion, chastity, reverence-faith), will be liberated-become free, from worldly bondage, attachments, ties, ignorance and will get great-ultimate happiness.
जो यह पढै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
संतोष कुमार* सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
Jo Yah Padhae Hanuman Chalisa; Hoy Siddhi Saki Gaurisa.
Santosh Kumar* Sada Hari Chera; Kije Nath Hraday Manh Dera.
भगवान् शिव ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी हैं कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी। हे नाथ हनुमान जी! पण्डित संतोष कुमार भारद्वाज* सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।
*स्वनाम का उच्चारण करें।
One, who read-enchant this Hanuman Chalisa (with devotion), become perfect, Bhagwan Shiv is the witness to what has been promised-said (since this has been said on his behalf). Tulsidas* (One may speak his own name instead of Tulsi Dass Ji Maharaj) who is always the servant-devotee of Hari, prays HIM to reside in his heart.
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
रामलषन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप॥
सिया पति राम चन्द्र जय शरणम्।
जय जय सिया जय जय सिया राम॥
Pawan Tanay Sankat Haran; Mangal Murati Roop.
Ram Lashan Sita Sahit; Hraday Basahun Sur Bhup.
हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।
O! Shri Hanuman, the son of Pawan, reliever of all difficulties, having an auspicious form-figure, kindly reside-dwell in my heart along with Bhagwan Shri Ram-Lakshman Ji and Maa Sita.
हनुमान चालीसा HANUMAN CHALISA ::
श्रीगुरु चरन सरोज रज,
In the Lotus feet of my teacher/Guardian,
निज मन मुकुर सुधारि।
I purify the mirror of my heart,
बरनउँ रघुबर बिमल जसु,
I illustrate the story of immaculate Ram,
जो दायकु फल चारि॥
which bestows four fruits (The 4 Purusharth :- desire, prosperity, righteousness, liberation).
बुद्धिहीन तनु जानिकै,
Considering myself as frail & unwise,
सुमिरौं पवनकुमार।
I contemplate Son of Wind (Hanuman),
बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं,
to impart power, knowledge & civilization,
हरहु कलेश विकार॥
& to eradicate all the miseries of life.
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
I glorify enlightened Hanuman Ji Maharaj, the deep sea-ocean of knowledge & virtues;
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
I glorify The Monkey man “Vanar”, who lightens the three worlds (earth, atmosphere & beyond).
राम दूत अतुलित बल धामा।
I glorify the faithful envoy-ambassador of Bhagwan Shri Ram, possessing unlimited strength, might, power,
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
who is also known as son of Anjana (Anjani Putr) & wind’s son (Pawan Sut-son).
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
You are the distinguished warrior, the courageous & possess strength as “Indr’s Vajra”.
कुमति निवार सुमति के संगी॥
You demolish despicable mind and befriend fine intellect.
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
being gold complexioned he dwells in his handsome form,
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
You adorn earrings & curly hair.
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
You hold “Vajr” in one hand & flag in the other,
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
You adorn the sacred thread “Janeu” prepared by “Munj grass” on your shoulder.
शंकर सुवन केसरी नंदन।
You are the delight of Shiv, the son of Kesari;
तेज प्रताप महा जग बंदन॥
You possess a majestic aura & are admired by the whole world.
बिद्यावान गुनी अति चातुर।
You are the laudable abode of the eighteen types of Vidya.
राम काज करिबे को आतुर॥
You are always willing to serve Bhagwan Shri Ram.
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
You adore listening Lord Ram’s legends;
राम लखन सीता मन बसिया॥
Bhagwan Shri Ram, Mata Sita & Lakshman Ji are present in your innerself-mind & heart;
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा।
You searched Sita by adorning the miniscule form;
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
And you set gold made Lanka ablaze by appearing in an outsized form.
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
You destroyed all the demons by taking horrendous form;
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
And that is how you performed all the deeds of Sri Ram.
लाय सँजीवनि लखन जियाए।
You carried the Dron Giri Mountain from Himalayas, which contained Sanjeevni to Lanka and saved Lakshman;
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
Elated by this act Shri Ram embraced you.
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
Ram applauded many times;
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
Ram even said that you are dear-affectionate to him just like his brother Bharat.
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
Thousands of people will pay tribute to you;
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
Saying this; Rama again embraces you.
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
Many saints like Sanak, devoted to the Par Brahm Parmeshwar Bhramha & Munisha;
नारद सारद सहित अहीसा॥
Narad & Sarad have blessed Hanuman.
जम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते।
Yama Kuber & Dikpal;
कबी कोबिद कहि सकैं कहाँ ते॥
Poet & Writer, none could elucidate Hanuman’s glory.
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
You were extreme benevolent to Sugreev;
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
Befriended him with Ram & acquired him his Kingdom Kishkindha.
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना।
Even Vibhishan endorsed your mantra, as a result, became king of Lanka;
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
Ravan, former king of Lanka, was scared of you.
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
Sun, which is at thousands of distance from Earth;
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
You swallowed it believing it to be a syrupy fruit.
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
Placing the ring in your mouth;
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
Its not astounding that you leaped the ocean.
दुर्गम काज जगत के जेते।
The obscure tasks of the world;
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
were achieved by your grace.
राम दुआरे तुम रखवारे।
You are the concierge & guardian of Rama’s court;
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
No one can enter in his court without your consent.
सब सुख लहै तुम्हारी शरना।
All pleasures are attained by your refuge;
तुम रक्षक काहू को डर ना॥
No fear can abode the one whom you protect.
आपन तेज सम्हारो आपै।
Once you commemorate your powers;
तीनौं लोक हाँक ते काँपे॥
all three world’s start trembling with fear.
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
Evil spirits can not disturb;
महाबीर जब नाम सुनावै॥
when one sings your hymns & remembers you.
नासै रोग हरै सब पीरा।
you destroy all the ailments & take away all the pessimism;
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
of those who regular remember you.
सब पर राम तपस्वी राजा।
Though Rama is the Supreme Being;
तिन के काज सकल तुम साजा॥
you accomplish all his tasks.
और मनोरथ जो कोई लावै।
If anyone ever desires for something;
तासु अमित जीवन फल पावै॥
You fulfil his desires manifolds.
साधु संत के तुम रखवारे।
You are Saints & the one who meditates protector;
असुर निकंदन राम दुलारे॥
You slay demons & are dear to Bhagwan Shri Ram.
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
You possess eight supernatural powers & nine treasures;
अस बर दीन्ह जानकी माता॥
and this has been granted to you by Bhagwan Shri Ram’s wife Mata Sita.
तुम्हरे भजन राम को पावै।
Whoever sings your hymns directly possess the Supreme Being, Bhagwan Shri Ram;
जनम-जनम के दुख बिसरावै॥
and gets rid of all the adversities & negativities of life-repeated incarnations-rebirths.
अंत काल रघुबर पुर जाई।
The one who is y our devotee, goes to the Supreme being’s abode after his body death;
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
And when they are reborn after that, they are always known as God’s devotees.
और देवता चित्त न धरई।
Anyone who does not prayer to any other God;
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥
but only to you, even he attains all the treasures of life (generally it is said that every god imparts something or the other).
संकट कटै मिटै सब पीरा।
All the ailments vanish & one is relieved from all the adversities;
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
once when someone becomes your devotee & remembers you.
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
I praise the victorious, the master of all senses, Hanuman;
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
just like guru showers his blessings on his disciple, shower me with your blessings.
जो शत बार पाठ कर कोई।
The one who recites this hymn 100 times;
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
All his troubles vanish & he gains all the life’s treasures.
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
Who ever recites this Chalisa;
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
obtains all the powers & lord Shiva is the witness of this.
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
Tulsidas (recite own name), who is the writer of this Chalisa, will always remain you disciple;
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
and he prays to the lord enshrine in his soul always.
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।
I call upon son of wind, an auspicious form to remove all miseries of my life;
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥
I pray to you to reside in my heart with Ram, Sita & Lakshman.
श्री महापञ्चमुखहनुमत्कवच-ऊँ अस्य श्री महा पञ्चमुख हनुमत्कवचमंत्रस्य ::
ब्रह्मा रूषि:, गायत्री छंद्:,
पञ्चमुख विराट हनुमान देवता।
ह्रीं बीजम्। श्रीं शक्ति:। क्रौ कीलकम्।
क्रूं कवचम्। क्रै अस्त्राय फ़ट्।
इति दिग्बंध्:।
अथध्यानं ::
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्;
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।
श्रुणु सर्वांगसुंदर, यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत्: प्रियम्॥1॥
पंचकक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम्।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिध्दिदम्॥2॥
पूर्वतु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्।
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटीकुटिलेक्षणम्॥3॥
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्।
अत्युग्रतेजोवपुष्पंभीषणम भयनाशनम्॥4॥
पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्।
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्॥5॥
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दिप्तं नभोपमम्। पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम्॥6॥
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्।
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यमं महासुरम्॥7॥
जघानशरणं तस्यात्सर्वशत्रुहरं परम्।
ध्यात्वा पंचमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम्॥8॥
खड्गं त्रिशुलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम्।
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुं॥9॥
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रा दशभिर्मुनिपुंगवम्।
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्॥10॥
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरण्भुषितम्। दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानु लेपनम सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम्॥11॥
पंचास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं शशांकशिखरं कपिराजवर्यम्। पीताम्बरादिमुकुटै रूप शोभितांगं पिंगाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि॥12॥
मर्कतेशं महोत्राहं सर्वशत्रुहरं परम्।
शत्रुं संहर मां रक्ष श्री मन्नपदमुध्दर॥13॥
ओम हरिमर्कट मर्केत मंत्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले।
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुंच्यति मुंच्यति वामलता॥14॥
ओम हरिमर्कटाय स्वाहा ओम नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा।
ओम नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाया।
ओम नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरूडाननाय सकलविषहराय स्वाहा।
ओम नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा।
ओम नमो भगवते पंचवदनाय उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा।
ओम श्रीपञ्चमुखहनुमंताय आंजनेयाय नमो नम:॥
हनुमान जयंती :: चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जयन्ती पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर साधक हनुमान जी महाराज को चोला चढ़ाते हैं। हनुमान जी को चोला चढ़ाने से पहले स्वयं स्नान कर शुद्ध होकर साफ वस्त्र धारण करते हैं। सिर्फ लाल रंग की धोती पहते हैं। चोला चढ़ाने के लिए चमेली के तेल का उपयोग करेते हैं। साथ ही, चोला चढ़ाते समय एक दीपक हनुमान जी के सामने जला कर रख देते हैं। दीपक में भी चमेली के तेल का ही उपयोग करते हैं।
चोला चढ़ाने के बाद हनुमान जी महाराज को गुलाब के फूल की माला पहनायें और केवड़े का इत्र उनकी मूर्ति के दोनों कन्धों पर थोड़ा-थोड़ा छिटक दें। अब एक साबुत पान का पत्ता लें और इसके ऊपर थोड़ा गुड़ व चना रख कर भोग लगायें। भोग लगाने के बाद उसी स्थान पर थोड़ी देर बैठकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र का कम से कम 5 माला जप करें।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने॥
अब चढाए गए गुलाब के फूल की माला से एक फूल तोड़ कर, उसे एक लाल कपड़े में लपेटकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी में रखें। मंगलवार की सुबह स्नान करने के बाद बड़ (बरगद) के पेड़ का एक पत्ता तोड़ें और इसे साफ स्वच्छ पानी से धो लें। अब इस पत्ते को कुछ देर हनुमान जी महाराज की प्रतिमा के सामने रखें और इसके बाद इस पर केसर से जय श्री राम लिखें। अब इस पत्ते सुरक्षित रख लें और अगली होली पर नदी में प्रवाहित कर दें।
घर में पारद-रसराज से निर्मित हनुमान जी महाराज की प्रतिमा स्थापित करें। इससे बिगड़े काम भी बन जायेंगे, घर के वास्तु दोष स्वत: ही दूर हो जायेंगे, घर का वातावरण-माहौल भी शुद्ध होगा। प्रतिदिन इसकी पूजा करने से किसी भी प्रकार के अशुभ तंत्र का असर घर में नहीं होता और न ही साधक पर किसी तंत्र क्रिया का प्रभाव पड़ता है। यदि किसी को पितृदोष हो तो प्रतिदिन पारद हनुमान जी महाराज की प्रतिमा की पूजा करने से पितृदोष समाप्त हो जाता है।
शाम को हनुमान मंदिर में प्रतिमा के आगे सरसों के तेल का व एक शुद्ध घी का दीपक जलायें और हनुमान चालीसा का पाठ करें। हनुमान जी महाराज की कृपा पाने के लिये सुबह स्नान आदि करने के बाद किसी हनुमान मन्दिर में जायें और राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। इसके बाद हनुमान जी को गुड़ और चने का भोग लगायें।
हनुमान जी महाराज की तस्वीर शयन कक्ष में न लगायें। उनकी तस्वीर दक्षिण दिशा में स्थापित करें।
उनकी तस्वीर पर सिन्दूर का केवल तिलक करें।
जब हनुमान जी महाराज लंका से लौटे तो भगवान् श्री राम ने उनको पूछा कि उनके बगैर सीता जी अपने प्राणों की रक्षा कैसे करती हैं ?
हनुमान जी महाराज ने कहा :-
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥
माता सीता के चारों तरफ आप के नाम का पहरा है, क्योंकि वे रात दिन आप के नाम का ही जप करती हैं। सदैव आपका ही ध्यान धरती हैं और जब भी आँखें खोलती हैं तो अपने चरणों में नज़र टिकाकर आप के चरण कमलों को ही याद करती रहती हैं।
हनुमान कथा :: सुपंथ नाम का एक धर्मात्मा राजा थे। अयोध्या में संत सम्मेलन में संतो के दर्शन करने सुपंथ भी जा रहे थे, रास्ते में नारद जी मिल गये। प्रणाम किया, बोले कहाँ जा रहे हो? कहा संत सम्मेलन में संतो के दर्शन करने जा रहा हूँ। नारद जी बोले जाकर सभी संतो को प्रणाम करना, लेकिन वहाँ ब्रह्मऋषि विश्वामित्र होंगे, वे क्षत्रिय है, क्षत्रियों को प्रणाम मत करना, ऐसा नारद जी ने भड़काया।
हनुमान जी की महिमा और भगवान् के नाम का प्रभाव; शायद नारद जी प्रकट करना चाहते होंगे, सुपंथ बोले जैसी आपकी आज्ञा, सुपंथ गयें, सभी को प्रणाम किया; लेकिन विश्वामित्र जी को नही किया, तो क्षत्रिय का यह अहंकारी स्वभाव होता है। विश्वामित्र जी बोले इसकी यह हिम्मत, भरी सभा में मुझे प्रणाम नहीं किया, वैसे भूल हो जाये तो कोई बात नही, जान-बूझकर न किया जाये तो उसके विपरीत कार्यवाही की जानी चाहिये।
विश्वामित्र जी को क्रोध आ गया और दौड़कर भगवान् के पास पहुँच गये कि राघव तुम्हारे राज्य में इतना बड़ा अन्याय, गुरूओं और संतो का इतना बड़ा अपमान? भगवान् बोले गुरूदेव क्या हुआ? बोले, उस राजा ने मुझे प्रणाम नहीं किया उसको दण्ड मिलना चाहिये, भगवान् ने कहा ऐसी बात है तो कल मृत्युदंड घोषित किया जाता है।
जब सुपंथ को पता लगा कि मृत्युदण्ड घोषित हो गया है और वह भी भगवान् श्री राम ने प्रतिज्ञा की है कि मैं गुरूदेव के चरणों की सौगन्ध खाकर कहता हूँ, कि कल सूर्यास्त तक उसके प्राणों का अन्त हो जायेगा, इधर लक्ष्मण जी ने बड़े रोष में प्रभु को देखा और पूछा प्रभु क्या बात है? भगवान् बोले आज एक अपराध हो रहा है, कैसे? बोले कैवल्य देश के राजा सुपंथ ने गुरूदेव का अपमान किया है और मैंने प्रतिज्ञा की है कि कल उनका वध करूँगा। लक्ष्मण जी ने कहा महाराज आपका कल कभी नही आता, आपने सुग्रीव को भी बोला था, कल मैं इसका वध करूँगा, लगता है कि दाल में कुछ काला होने वाला है, बोले नही, यह मेरी प्रतिज्ञा है, उथर सुपंथ रोने लगा तो नारद जी प्रकट हो गये, बोले क्या हुआ?
हनुमान जी की महिमा और भगवान् के नाम का प्रभाव; शायद नारद जी प्रकट करना चाहते होंगे, सुपंथ बोले जैसी आपकी आज्ञा, सुपंथ गयें, सभी को प्रणाम किया; लेकिन विश्वामित्र जी को नही किया, तो क्षत्रिय का यह अहंकारी स्वभाव होता है। विश्वामित्र जी बोले इसकी यह हिम्मत, भरी सभा में मुझे प्रणाम नहीं किया, वैसे भूल हो जाये तो कोई बात नही, जान-बूझकर न किया जाये तो उसके विपरीत कार्यवाही की जानी चाहिये।
विश्वामित्र जी को क्रोध आ गया और दौड़कर भगवान् के पास पहुँच गये कि राघव तुम्हारे राज्य में इतना बड़ा अन्याय, गुरूओं और संतो का इतना बड़ा अपमान? भगवान् बोले गुरूदेव क्या हुआ? बोले, उस राजा ने मुझे प्रणाम नहीं किया उसको दण्ड मिलना चाहिये, भगवान् ने कहा ऐसी बात है तो कल मृत्युदंड घोषित किया जाता है।
जब सुपंथ को पता लगा कि मृत्युदण्ड घोषित हो गया है और वह भी भगवान् श्री राम ने प्रतिज्ञा की है कि मैं गुरूदेव के चरणों की सौगन्ध खाकर कहता हूँ, कि कल सूर्यास्त तक उसके प्राणों का अन्त हो जायेगा, इधर लक्ष्मण जी ने बड़े रोष में प्रभु को देखा और पूछा प्रभु क्या बात है? भगवान् बोले आज एक अपराध हो रहा है, कैसे? बोले कैवल्य देश के राजा सुपंथ ने गुरूदेव का अपमान किया है और मैंने प्रतिज्ञा की है कि कल उनका वध करूँगा। लक्ष्मण जी ने कहा महाराज आपका कल कभी नही आता, आपने सुग्रीव को भी बोला था, कल मैं इसका वध करूँगा, लगता है कि दाल में कुछ काला होने वाला है, बोले नही, यह मेरी प्रतिज्ञा है, उथर सुपंथ रोने लगा तो नारद जी प्रकट हो गये, बोले क्या हुआ?
बोले भगवान् ने हमारे वध की प्रतिज्ञा की है। अच्छा तो भगवान् के हाथ से वध होगा, यह तो सौभाग्य है, मौत तो अवश्यम्भावी होती है, मृत्यु को तो टाला नही जा सकता। सुपंथ बोले कमाल है, आप ने ही तो भड़काया था, आप ही अब आप ही ऐसा कह रहे हैं। नारद जी ने कहा एक रास्ता मैं तुमको बता सकता हूँ। भगवान् के बीच में तो मैं नहीं आऊँगा, क्या रास्ता है? बोले तुम अंजनी माँ की शरण में जाओ।
केवल अंजना माँ हनुमान जी के द्वारा तुम्हारी रक्षा करा सकती है, इतना बड़ा संकट है और दूसरा कोई बचा नही पायेगा, सुपंथ माता अंजनी के घर पहुँचे और अंजनी माँ के घर पछाड़ खाकर हा-हा करके रोयें, माँ तो माँ हैं, बोली क्या बात है बेटा। क्यों रो रहे हो!? माँ रक्षा करो, माँ रक्षा करों, किससे रक्षा करनी है? बोले मैरी रक्षा करो, माँ बोली मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि तुझे कोई नही मार सकता, मैं तेरी रक्षा करूँगी, बता तो सही।
सुपंथ ने पूरी घटना बताई, लेकिन माँ तो प्रतिज्ञा कर चुकी थी, बोली अच्छा कोई बात नही तुम अन्दर विश्राम करो, हनुमान जी आयें, माँ को प्रणाम किया, माँ को थोड़ा चिन्तातुर देखा तो पूछा माँ क्या बात है? माँ ने कहा मैं एक प्रतिज्ञा कर चुकी हूँ शरणागत की रक्षा की और तुमको उसकी रक्षा करनी है, हनुमान जी ने कहा माँ कैसी बात करती हो? आपका आदेश हो गया तो रक्षा उसकी अपने आप हो जायेगी।
माता बोली पहले प्रतिज्ञा करो, बोले मैं भगवान् श्री राम के चरणों की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि जो आपकी शरण में आया है, उसकी रक्षा होगी। माँ ने सुपंथ को बुला लिया, बोली यह हैं, पूछा कौन मारने वाला है? बोले भगवान् श्री राम ने प्रतिज्ञा की है, हनुमान जी ने कहा तुमने तो मुझे ही संकट में डाल दिया। दुनिया तो गाती थी "संकट से हनुमान छुड़ायें, आज तूने हनुमान को ही संकट में डाल दिया"।
खैर, मैं माँ से प्रतिज्ञा कर चुका हूँ, देखो जैसा मैं कहूँगा, वैसा ही करना घबराना नहीं, उधर भगवान् ने धनुष-बाण उठाये और चले मारने के लिये, हनुमान जी दूसरे रास्ते से जाने लगे तो भगवान् ने हनुमान जी से बोले कहाँ जा रहे हो, तो हनुमान जी ने कहा प्रभु आप कहाँ जा रहे हो, बोले मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने जा रहा हूँ, हनुमान जी ने कहा मैं भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने जा रहा हूँ।
भगवान् ने कहा तुम्हारी क्या प्रतिज्ञा है, हनुमान जी ने कहा पहले आप बताइयें, आपने क्या प्रतिज्ञा की है? भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा बतायीं, हनुमान जी ने भी कहा कि मैं उसी की रक्षा करने के लिये जा रहा हूँ, भगवान् ने कहा मैंने अपने गुरूदेव के चरणों की सौगंध खाई है कि मैं उसका वध करूँगा, हनुमान जी ने कहा मैंने अपने भगवान् के चरणों की सौगंध खाई है कि मैं उसकी रक्षा करूँगा।
यह लीला लक्ष्मण जी देख रहे है और मुस्कुरा रहे है, यह क्या लीला हो रही हैं? जैसे ही भगवान् का आगमन देखा तो सुपंथ रोने लगा, हनुमान जी ने कहा रोइये मत, मेरे पीछे खड़े हो जाओ, संकट के समय हनुमान जी आते हैं, भगवान् ने अभिमंत्रित बाण छोड़ा, हनुमान जी दोनों हाथ उठाकर "श्री राम जय राम जय जय राम" हनुमान जी भगवान् के नाम का कीर्तन करें और बाण विफल होकर वापस लौट जायें।
जब सारे बाण निष्फल हो गयें तो भगवान् ने ब्रह्मास्त्र निकाला, जैसे ही ब्रह्मास्त्र छोड़ा सीधा हनुमान जी की छाती में लगा लेकिन परिणाम क्या हुआ? प्रभु मूर्छित होकर गिर पड़े, बाण लगा हनुमान जी को और मूर्छित हुये भगवान्, अब तो बड़ी घबराहट हो गयीं, हनुमान जी दौड़े, मेरे प्रभु मूर्छित हो गये, क्यों मूर्छित हो गये? क्योंकि "जासु ह्रदय अगार बसहिं राम सर चाप धर" हनुमान जी के ह्रदय में भगवान् बैठे है तो बाण तो भगवान् को ही लगेगा न।
बाकी सब घबरा गयें, यह क्या हो गया? हनुमान जी ने चरणों में प्रणाम किया और सुपंथ को बिल्कुल अपनी गोद में ले आये हनुमान जी ने उसको भगवान् के चरणों में बिठा दिया, प्रभु तो मूर्छित हैं, हनुमान जी बहुत रो-रोकर कीर्तन कर रहे थे कि प्रभु की मूर्छा दूर हो जायें, भगवान् की मूर्छा धीरे-धीरे दूर होती चली गयी और प्यार में, स्नेह में चूँकि भगवान् को अनुभव हो गया था कि बाण मेरे हनुमान के ह्रदय में लगा तो उसे चोट लगी होगी, इसलिये भगवान् इस पीड़ा के कारण मूर्छित हो गये।
जब हनुमान जी कीर्तन करने लगे तो राम जी हनुमान जी के सिर पर हाथ फिराने लगे, धीरे से हनुमान जी पीछे सरक गये और भगवान् का हाथ सुपंथ के सिर पर दे दिया, दोनों हाथों से भगवान् हनुमान जी का सिर समझकर सुपंथ का सिर सहलाने लगे, प्रभु ने जैसे नेत्र खोले तो देखा सुपंथ भगवान् के चरणों में था, मुस्करा दिये भगवान् और बोले हनुमान तुम जिसको बचाना चाहोगे, उसको कौन मार सकता है?
केवल अंजना माँ हनुमान जी के द्वारा तुम्हारी रक्षा करा सकती है, इतना बड़ा संकट है और दूसरा कोई बचा नही पायेगा, सुपंथ माता अंजनी के घर पहुँचे और अंजनी माँ के घर पछाड़ खाकर हा-हा करके रोयें, माँ तो माँ हैं, बोली क्या बात है बेटा। क्यों रो रहे हो!? माँ रक्षा करो, माँ रक्षा करों, किससे रक्षा करनी है? बोले मैरी रक्षा करो, माँ बोली मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि तुझे कोई नही मार सकता, मैं तेरी रक्षा करूँगी, बता तो सही।
सुपंथ ने पूरी घटना बताई, लेकिन माँ तो प्रतिज्ञा कर चुकी थी, बोली अच्छा कोई बात नही तुम अन्दर विश्राम करो, हनुमान जी आयें, माँ को प्रणाम किया, माँ को थोड़ा चिन्तातुर देखा तो पूछा माँ क्या बात है? माँ ने कहा मैं एक प्रतिज्ञा कर चुकी हूँ शरणागत की रक्षा की और तुमको उसकी रक्षा करनी है, हनुमान जी ने कहा माँ कैसी बात करती हो? आपका आदेश हो गया तो रक्षा उसकी अपने आप हो जायेगी।
माता बोली पहले प्रतिज्ञा करो, बोले मैं भगवान् श्री राम के चरणों की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि जो आपकी शरण में आया है, उसकी रक्षा होगी। माँ ने सुपंथ को बुला लिया, बोली यह हैं, पूछा कौन मारने वाला है? बोले भगवान् श्री राम ने प्रतिज्ञा की है, हनुमान जी ने कहा तुमने तो मुझे ही संकट में डाल दिया। दुनिया तो गाती थी "संकट से हनुमान छुड़ायें, आज तूने हनुमान को ही संकट में डाल दिया"।
खैर, मैं माँ से प्रतिज्ञा कर चुका हूँ, देखो जैसा मैं कहूँगा, वैसा ही करना घबराना नहीं, उधर भगवान् ने धनुष-बाण उठाये और चले मारने के लिये, हनुमान जी दूसरे रास्ते से जाने लगे तो भगवान् ने हनुमान जी से बोले कहाँ जा रहे हो, तो हनुमान जी ने कहा प्रभु आप कहाँ जा रहे हो, बोले मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने जा रहा हूँ, हनुमान जी ने कहा मैं भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने जा रहा हूँ।
भगवान् ने कहा तुम्हारी क्या प्रतिज्ञा है, हनुमान जी ने कहा पहले आप बताइयें, आपने क्या प्रतिज्ञा की है? भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा बतायीं, हनुमान जी ने भी कहा कि मैं उसी की रक्षा करने के लिये जा रहा हूँ, भगवान् ने कहा मैंने अपने गुरूदेव के चरणों की सौगंध खाई है कि मैं उसका वध करूँगा, हनुमान जी ने कहा मैंने अपने भगवान् के चरणों की सौगंध खाई है कि मैं उसकी रक्षा करूँगा।
यह लीला लक्ष्मण जी देख रहे है और मुस्कुरा रहे है, यह क्या लीला हो रही हैं? जैसे ही भगवान् का आगमन देखा तो सुपंथ रोने लगा, हनुमान जी ने कहा रोइये मत, मेरे पीछे खड़े हो जाओ, संकट के समय हनुमान जी आते हैं, भगवान् ने अभिमंत्रित बाण छोड़ा, हनुमान जी दोनों हाथ उठाकर "श्री राम जय राम जय जय राम" हनुमान जी भगवान् के नाम का कीर्तन करें और बाण विफल होकर वापस लौट जायें।
जब सारे बाण निष्फल हो गयें तो भगवान् ने ब्रह्मास्त्र निकाला, जैसे ही ब्रह्मास्त्र छोड़ा सीधा हनुमान जी की छाती में लगा लेकिन परिणाम क्या हुआ? प्रभु मूर्छित होकर गिर पड़े, बाण लगा हनुमान जी को और मूर्छित हुये भगवान्, अब तो बड़ी घबराहट हो गयीं, हनुमान जी दौड़े, मेरे प्रभु मूर्छित हो गये, क्यों मूर्छित हो गये? क्योंकि "जासु ह्रदय अगार बसहिं राम सर चाप धर" हनुमान जी के ह्रदय में भगवान् बैठे है तो बाण तो भगवान् को ही लगेगा न।
बाकी सब घबरा गयें, यह क्या हो गया? हनुमान जी ने चरणों में प्रणाम किया और सुपंथ को बिल्कुल अपनी गोद में ले आये हनुमान जी ने उसको भगवान् के चरणों में बिठा दिया, प्रभु तो मूर्छित हैं, हनुमान जी बहुत रो-रोकर कीर्तन कर रहे थे कि प्रभु की मूर्छा दूर हो जायें, भगवान् की मूर्छा धीरे-धीरे दूर होती चली गयी और प्यार में, स्नेह में चूँकि भगवान् को अनुभव हो गया था कि बाण मेरे हनुमान के ह्रदय में लगा तो उसे चोट लगी होगी, इसलिये भगवान् इस पीड़ा के कारण मूर्छित हो गये।
जब हनुमान जी कीर्तन करने लगे तो राम जी हनुमान जी के सिर पर हाथ फिराने लगे, धीरे से हनुमान जी पीछे सरक गये और भगवान् का हाथ सुपंथ के सिर पर दे दिया, दोनों हाथों से भगवान् हनुमान जी का सिर समझकर सुपंथ का सिर सहलाने लगे, प्रभु ने जैसे नेत्र खोले तो देखा सुपंथ भगवान् के चरणों में था, मुस्करा दिये भगवान् और बोले हनुमान तुम जिसको बचाना चाहोगे, उसको कौन मार सकता है?
हनुमान विवाह :: हनुमान जी महाराज बाल ब्रह्मचारी हैं। आँध्र प्रदेश के खम्मम जिले में हनुमान जी महाराज का एक प्राचीन मन्दिर है। इस मन्दिर में हनुमान जी के साथ उनकी पत्नी के भी दर्शन प्राप्त होते हैं। यह मन्दिर इकलौता गवाह है, हनुमान जी के विवाह का। हनुमान जी जब अपने गुरु सूर्य देव से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। उस दौरान एक विद्या जिसे सिर्फ विवाहित सीख सकते थे, के लिये, सूर्य देव ने हनुमान जी के सामने शर्त रख दी कि अब आगे कि शिक्षा तभी प्राप्त कर सकते हो जब तुम विवाह कर लो। ऐसे में आजीवन ब्रह्मचारी रहने का प्राण ले चुके हनुमान जी के लिए दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो गई। शिष्य को दुविधा में देखकर सूर्य देव ने हनुमान जी से कहा कि तुम मेरी पुत्री सुवर्चला से विवाह कर लो। सुवर्चला तपस्विनी थी। हनुमान जी से विवाह के बाद सुवर्चला वापस तपस्या में लीन हो गई। इस तरह हनुमान जी ने विवाह की शर्त पूरी कर ली और ब्रह्मचारी रहने का व्रत भी कायम रहा। हनुमान जी के विवाह का उल्लेख पराशर संहिता में भी किया गया है। हनुमान जी के इस मन्दिर में आकर जो दम्पत्ति हनुमान जी और उनकी पत्नी के दर्शन करते हैं, उनके वैवाहिक जीवन में प्रेम और आपसी तालमेल बना रहता है। वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियों से मुक्ति दिलाते हैं, विवाहित हनुमान जी।
सुख-समृद्धिकारक हनुमान साधना :: श्री हनुमान साधना एवं मंत्रों के संदर्भ में मंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि, हनुमदोपासना, श्री विद्यार्णव आदि ग्रंथों में कई प्रयोग वर्णित हैं। कलियुग में हनुमान साधना समस्त बाधाओं, कष्टों और अड़चनों को तुरन्त मिटाने में सहायक है। हनुमान जी महाराज शक्तिशाली, पराक्रमी, संकटों का नाश करने वाले और दुःखों को दूर करने वाले महावीर हैं। इनके नाम का स्मरण ही अपने आप में सहायता और शक्ति प्रदान करने वाला है। शत्रु भय हो या आकस्मिक राज्य बाधा अथवा भूत-प्रेत आदि का प्रकोप, प्रत्येक स्थिति के लिए अलग-अलग ढंग से मंत्रों और हवन-प्रार्थना की व्यवस्था है। आयु, धन-वृद्धि एवं समस्त प्रकार के उपद्रवों को दूर करने हेतु अष्टादशाक्षर मंत्र का प्रयोग अत्यन्त लाभकारी है। इस अष्टादशाक्षर मंत्र के संदर्भ में मंत्र महोदधि में कहा गया है :-
यः कपी श् सदा गे ह पूजयेज्जपतत्परः।
आयुर्लक्ष्म्यौ प्रवद्र्धेते तस्य नश्यन्त्युपद्रवा॥
जो व्यक्ति अपने घर में सदैव हनुमान जी का पूजन करता है और इस मंत्र का जप करता है, उसकी आयु तथा लक्ष्मी (संपत्ति) नित्य बढ़ती रहती है तथा उसके समस्त उप्रदव अपने आप नष्ट हो जाते हैं।[त्रयोदश तरंग 97]
हनुमान जी महाराज समस्त अभीष्ट फलों को प्रदान करने में समर्थ हैं।
‘‘हनुमान देवता प्रोक्तः सर्वाभीष्टफलप्रदः’’ [श्री विद्यार्णक 28.11]
अष्टादशाक्षर मंत्र ::
नमो भगवते आ अंजनेयाय महाबलाय स्वाहा।
ईश्वर :- ऋषि, छंद :- अनुष्टुप, देवता :- हनुमान जी, बीज :- हुं बीज तथा शक्ति :- अग्निप्रिया (स्वाहा)।
मंत्र संख्या :- दस हजार।
पुरश्चरण :: उक्त जप का तिलों से दशांश होम करना चाहिये।
साधना विधि :: सर्वप्रथम प्राण प्रतिष्ठित (चैतन्य) हनुमान यंत्र को प्राप्त कर, मंगलवार (विशेष कर शुक्ल पक्ष) की रात्रि से इस साधना को दस दिन के लिए प्रारम्भ करें। इसमें प्रतिदिन एक निश्चित समय पर ही पूजन एवं दस माला जप करें। इस साधना में स्नान कर, लाल वस्त्र धारण कर के, दक्षिणाभिमुख हो कर लाल रंग के ऊनी आसन पर बैठ कर पूजन एवं जप आवश्यक है। जप हेतु मूँगे की माला या लाल चंदन की माला या रुद्राक्ष की माला आवश्यक है। सर्वप्रथम हनुमान यंत्र को लकड़ी की चैकी पर, लाल वस्त्र बिछा कर मध्य में ताम्र पात्र में स्थापित करें। गुरु का ध्यान कर, घी का दीपक तथा धूप बत्ती जलाएँ। अब निम्न क्रमानुसार पूजन प्रारम्भ करें :-
विनियोग :: दायें हाथ में जल, पुष्प तथा चावल ले कर, निम्न मंत्र को बोल कर, किसी पात्र में हाथ की सामग्री छोड़ दें।
अस्य श्री हनुमन्मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिरनुष्टुप् छन्दः हनुमान देवता हुं बीजं स्वाहा शक्तिरात्मानोऽभीष्टसिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः।
षङ्गन्यास :: अब निम्न क्रमानुसार न्यास विधि करें :-
ॐ आ जनेयाय हृदयाय नमः, ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा, ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट्, ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम्, ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्, ॐ ब्रह्मास्त्रविनिवारणाय अस्त्राय फट्॥
ध्यान मंत्र :: दाहिने हाथ में सिंदूर से रंगे चावल तथा लाल पुष्प ले कर, निम्न मंत्र बोल कर, हनुमान यंत्र पर छोड़ दें।
दहनतप्तसुवर्णसमप्रभं भयहरं हृदये विहिता अंजलिम्। श्रवणकुण्डलशोभिमुखाम्बुजं नमत वानरराजमिहाद्भुतम्॥
मैं तपाये गये सुवर्ण के समान जगमगाते हुए, भय को दूर करने वाले, हृदय पर अञ्जलि बाँधे हुए, कानों में लटकते कुण्डलों से शोभायमान मुख कमल वाले, अद्भुत स्वरूप वाले वानर राज को प्रणाम करता हूँ। अब हनुमान यंत्र को शुद्ध जल से स्नान करा कर यज्ञोपवीत अर्पित करें। इसके बाद यंत्र को तिल के तेल में मिश्रित सिंदूर का तिलक अर्पित करें तथा अँगुली पर बचे हुए सिंदुर को अपने मस्तिष्क पर तिलक के रूप में धारण करें। श्री हनुमान यंत्र पर लाल पुष्पों की माला अर्पित कर नैवेद्य रूप में गुड़, घी तथा आटे से बनी रोटी को मिला कर बनाये गये लड्डू अर्पित करें। श्री विग्रह (यंत्र) को फल अर्पित कर, मुखशुद्धि हेतु पान, सुपारी, लौंग तथा इलायची अर्पित करें। अब उसी स्थान पर बैठ कर ही अष्टादशाक्षर मंत्र की 10 माला, यानी एक हजार जप कर, हनुमान जी महाराज को षाष्टांग प्रणाम करें। पूजन काल में भूलवश यदि त्रुटि रह गयी हो, तो क्षमा माँगें। यही क्रम 10 दिन करना है। दसवें दिन, किसी योग्य विद्वान के सान्निध्य में, तिलों से दशांश होम कर, ब्राह्मण को भोजन-दक्षिणा दे कर, सन्तुष्ट कर, विदा करें।
अर्पित नैवेद्य को अगले दिन हटा कर किसी पात्र में इकट्ठा करते रहें। साधना पूर्ण होने के अगले दिन एकत्रित नैवेद्य को किसी गरीब को दें। इस प्रकार उक्त दिव्य मंत्र सिद्ध हो जाता है।
सिद्ध मंत्र से कामना पूर्ति ::
(1). धन एवं आयु वृद्धि के साथ-साथ समस्त प्रकार के उपद्रवों की शाँति हेतु नित्य हनुमान जी महाराज की आराधना एवं एक माला जप आजीवन करते रहें।
(2). अल्पकालिक रोगों से पीड़ित होने पर, इन्द्रियों को वश में करके, केवल रात्रि में भोजन करें तथा तीन दिन 108 बार इस मंत्र का जप करने से अल्पकालिक रोगों से छुटकारा मिल जाता है।
(3). असाध्य एवं दीर्घकालीन रोगों से मुक्ति पाने के लिए प्रतिदिन एक हजार आठ की मात्रा में जप आवश्यक है।
(4). ‘‘महारोगनिवृत्त्यै तु सहस्रं प्रत्यहं जपेत्’’ हनुमान जी महाराज का ध्यान कर मंत्र का जप करता हुआ व्यक्ति अपना अभीष्ट कार्य पूर्ण कर शीघ्र ही घर लौट आता है।
(5). प्रयाणसमये ध्यायन्हनुमन्तं मनुं जपन्। साधयित्वाग्रहं व्रजेत्॥
इस मंत्र के नित्य जपने से पराक्रम में वृद्धि होती है तथा सोते समय चोरों से रक्षा होती है एवं दुःस्वप्न भी दिखायी नहीं देते हैं। साथ ही उपद्रवी तत्वों से रक्षा होती है। साधना के आवश्यक नियम :-
(5.1). पूर्ण साधना काल में अखंड ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें।
(5.2). मंत्र जप करते समय दृष्टि सदैव यंत्र पर ही टिकी रहे।
(5.3). शयन साधना स्थल पर ही धरती पर करें।
(5.4). इस साधना में घी से एक या पाँच बत्तियों वाला दीपक जलाएँ।
(5.5). भोजन सिर्फ एक बार ही करें। वास्तव में विपत्तियों से छुटकारा तथा सुख-समुद्धि में वृद्धि हेतु यह प्रयोग अपने आप में अचूक और अद्वितीय है।
अ ज नीगभर्स म्भतू कपीन्दस्र चिवात्मम
रामप्रियं नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा॥
संकटमोचन हनुमानाष्टक ::
बाल समय रवि भक्षी लियो तब तीनहुं लोक भयो अँधियारो।
ताहि सो त्रास भयो जग को यह संकट काहू सो जात न टारो॥
देवन आनि करी बिनती तब छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥
बालि की त्रास कपीस बसे गिरि जात महा प्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महा मुनि श्राप दियो तब चाहिये कौन बिचार बिचारो॥
कै द्विज रूप लिवाय महा प्रभु सो तुम दास के शोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥
अंगद के संग लेन गये सिया खोज कपीस यह बैन उचारो।
ना बचिहौ हम सो जो बिना सुधि लाये यहाँ पगु धारौ॥
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब लाये सिया सुधि प्राण उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥
रावण त्रास दई सिया को सब राक्षसि सों कहि शोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनी चर मारो॥
चाहत सिया अशोक सों आगिसु दें प्रभु मुद्रिका शोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥
बाण लाग्यो उर लक्ष्मण के तब प्राण तज्यो सुत रावण मारो।
ले गृह वैद्य सुषेन समेत तवै गिरि द्रोण सो वीर उपारो॥
आनि सजीवन हाथ दई तब लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥
रावण युद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर दारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो॥
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥
बंधु समेत जबै अहि रावण लै रघुनाथ पातळ सिधारो।
देविहिं पूजि भलि विधि सो बलि देउ सबै मिलि मंत्र विचारो॥
जाय सहाय भयो तब ही अहि रावण सैन्य समेत संघारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥
काज किये बड़ देवन के तुम वीर महा प्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुम सों नहिं जात है टारो॥
बेगि हरो हनुमान महा प्रभु जो कछु संकट होय हमारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर;
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।
श्री हनुमान स्तुति ::
मंगलमूरति मारुतनंदन अगमँहु सुगम बनाई।
मुनि मन रंजन जन दुःख भंजन केहि बिधि करौं बड़ाई॥
असहाय सहायक तुम सब लायक गुनगन यश जग छाई।
अतिबड़भागी तुम अनुरागी रामचरन सुख दाई॥
जनहित आगर विद्यासागर रामकृपा अधिकाई।
बालि त्रास त्रसित सुग्रीव को राम से दिहेउ मिलाई॥
भक्त विभीषन धीरज दीन्हेउ राम कृपा समुझाई।
सिया सुख दीन्हेउ आशिष लीन्हेउ प्रभु सन्देश सुनाई॥
बल बुधि धाम सिया सुधि लायउ रावन लंक जराई।
वैद्य सुषेन सदन संग लायउ मूरि कहेउ जनु आई॥
कालनेमि बधि लाइ सजीवन लक्षिमन प्रान बचाई।
पैठि पताल अहिरावन मारेउ लायउ प्रभु दो भाई॥
विजय संदेश सिया को दीन्हेउ सुनि अति मन हर्षाईं।
बूड़त भरत विरह जल राखेउ आवत प्रभु बतलाई॥
हाँक सुनत सब खल दल काँपैं छीजैं सुनि प्रभुताई।
मैं मूढ़ मलीन कहँउ किम तव गुन शारद कहे न सिराई॥
दीनदयाल भयउ तुलसी को तुमही नाथ सहाई।
मम चित करउ कहँउ कर जोरे छमि अवगुन कुटिलाई॥
स्वामिन स्वामि सिया रघुनाथ तव आरतपाल पितु-माई।
रीति सदा जेहिं दीन को आदर कीरति जगत सुहाई॥
दीनसहायक प्रिय रघुनायक मम हित बात चलाई।
करुनासागर जन हित आगर अब न रखो बिसराई॥
अघ अवगुन नहि देखि विरद निज करउ कृपा रघुराई।
साधनहीन नहीं हित स्वामी भ्रमत है अकुलाई॥
दीनबन्धु दीन संतोष की और विलम्ब किये न भलाई।
असरन सरन एक गति तुमही राखो बाँह उठाई॥
मारुति नंदन नमो नमः कष्ट भंजन नमो नमः असुर निकंदन नमो नमः श्रीरामदूतम नमो नमः।
***राम श्रीराम श्रीराम सीताराम***
आरती श्री हनुमान जी ::
आरती कीजे हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरिवर कापै। रोग-दोष जाके निकट न झांपे॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सुहाई॥
दे बीरा हनुमान पठाये। लंका जारि सिया सुध लाये॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवन सुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठी पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावन के भुजा उखारे॥
बायें भुजा असुर दल मारे। दाहिने भजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमान जी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै॥
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
***जय बजरंगबली***जय श्री राम***
108 PRAYERS DEVOTED TO HANUMAN JI MAHARAJ ::
ॐ आञ्जनेयाय नमः। (Son of Anjana)
ॐ महावीराय नमः। (Most Valiant)
ॐ हनूमते नमः। (One With Puffy Cheeks)
ॐ मारुतात्मजाय नमः। (Most Beloved Like Gems)
ॐ तत्वज्ञानप्रदाय नमः। (Granter of Wisdom)
ॐ सीतादेविमुद्राप्रदायकाय नमः।(Deliverer of the Ring of Sita)
ॐ अशोकवनकाच्छेत्रे नमः। (Destroyer of Ashoka Orchard)
ॐ सर्वमायाविभंजनाय नमः। (Destroyer of All Illusions)
ॐ सर्वबन्धविमोक्त्रे नमः। (Detacher of All Relationship)
ॐ रक्षोविध्वंसकारकाय नमः। (Slayer of Demons)
ॐ परविद्या परिहाराय नमः। (Destroyer of Enemies Wisdom)
ॐ परशौर्य विनाशनाय नमः। (Destroyer of Enemy's Valour)
ॐ परमन्त्र निराकर्त्रे नमः। (Acceptor of Rama's Mantra Only)
ॐ परयन्त्र प्रभेदकाय नमः। (Destroyer of Enemies Missions)
ॐ सर्वग्रह विनाशिने नमः। (Killer of Evil Effects of Planets)
ॐ भीमसेन सहायकृथे नमः। (Helper of Bheema)
ॐ सर्वदुखः हराय नमः। (Reliever of All Agonies)
ॐ सर्वलोकचारिणे नमः। (Wanderer of All Places)
ॐ मनोजवाय नमः। (Speed Like Wind)
ॐ पारिजात द्रुमूलस्थाय नमः। (Resider Under the Parijata Tree)
ॐ सर्वमन्त्र स्वरूपवते नमः। (Possessor of All Hymns)
ॐ सर्वतन्त्र स्वरूपिणे नमः।(Shape of All Hymns)
ॐ सर्वयन्त्रात्मकाय नमः। (Dweller in All Yantras, Mysticism)
ॐ कपीश्वराय नमः। (Lord of Monkeys)
ॐ महाकायाय नमः। (Gigantic, huge)
ॐ सर्वरोगहराय नमः। (Reliever of All Ailments, illness)
ॐ प्रभवे नमः। (Popular deity-demigod)
ॐ सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायकाय नमः। (Granter of Knowledge and Wisdom)
ॐ कपिसेनानायकाय नमः। (Chief of the Monkey Army)
ॐ भविष्यथ्चतुराननाय नमः। (Aware of Future Happenings )
ॐ कुमार ब्रह्मचारिणे नमः। (Youthful Bachelor )
ॐ रत्नकुण्डल दीप्तिमते नमः। (Wearing Gem-Studded Earrings)
ॐ चञ्चलद्वाल सन्नद्धलम्बमान शिखोज्वलाय नमः।
(Glittering Tail Suspended Above The Head)
ॐ गन्धर्व विद्यातत्वज्ञाय नमः। (Exponent in the Art of Celestials)
ॐ महाबल पराक्रमाय नमः। (Of Great Strength)
ॐ काराग्रह विमोक्त्रे नमः। (One Who Frees from Imprisonment)
ॐ शृन्खला बन्धमोचकाय नमः। (Reliever from a Chain of Distresses)
ॐ सागरोत्तारकाय नमः। (Leapt Across the Ocean)
ॐ प्राज्ञाय नमः। (Intelligent, prudent, learned, Scholar)
ॐ रामदूताय नमः। (Ambassador of Bhagwan Shri Ram)
ॐ प्रतापवते नमः। (Known for Valour, might, power, strength)
ॐ वानराय नमः। (Monkey)
ॐ केसरीसुताय नमः। (Son of Kesari)
ॐ सीताशोक निवारकाय नमः। (Destroyer of Sita's Sorrow)
ॐ अन्जनागर्भ सम्भूताय नमः। (Born of Anjani)
ॐ बालार्कसद्रशाननाय नमः। (Like the Rising Sun)
ॐ विभीषण प्रियकराय नमः। (Beloved of Vibheeshana )
ॐ दशग्रीव कुलान्तकाय नमः। (Slayer of the Ten-Headed Ravana Dynasty)
ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः। (Reviver of Lakshmana's Lif )
ॐ वज्रकायाय नमः। (Sturdy Like Metal)
ॐ महाद्युथये नमः। (Most Radiant)
ॐ चिरञ्जीविने नमः। (Eternal Being, immortal)
ॐ रामभक्ताय नमः। (Devoted to Bhagwan Shri Ram)
ॐ दैत्यकार्य विघातकाय नमः। (Destroyer of All Demons' Activities)
ॐ अक्षहन्त्रे नमः। (Slayer of Aksha)
ॐ काञ्चनाभाय नमः। (Golden-Hued Body)
ॐ पञ्चवक्त्राय नमः। (Five-Faced, headed)
ॐ महातपसे नमः। (Great Meditator sage, ascetic)
ॐ लन्किनी भञ्जनाय नमः। (Slayer of Lankini-a demoness)
ॐ श्रीमते नमः। (Revered, prayed, worshiped)
ॐ सिंहिकाप्राण भञ्जनाय नमः। (Slayer of Simhika-the mother of Rahu-Ketu)
ॐ गन्धमादन शैलस्थाय नमः। (Dweller of Gandhamadana)
ॐ लङ्कापुर विदायकाय नमः। (The One Who Burnt Lanka)
ॐ सुग्रीव सचिवाय नमः। (Minister of Sugreev)
ॐ धीराय नमः। (Valiant)
ॐ शूराय नमः। (Bold)
ॐ दैत्यकुलान्तकाय नमः। (Destroyer of Demons)
ॐ सुरार्चिताय नमः। (Worshipped by Celestials)
ॐ महातेजसे नमः। (Most Radiant)
ॐ रामचूडामणिप्रदायकाय नमः। (Deliverer of Rama's Ring)
ॐ कामरूपिणे नमः। (Changing Form at Will)
ॐ पिङ्गलाक्षाय नमः। (Pink Eyed)
ॐ वार्धिमैनाक पूजिताय नमः। (Worshipped by Mynaka Hill)
ॐ कबळीकृत मार्ताण्डमण्डलाय नमः। (Swallower of the Sun)
ॐ विजितेन्द्रियाय नमः। (Controller of the Senses)
ॐ रामसुग्रीव सन्धात्रे नमः। (Mediator between Bhagwan Shri Ram and Sugreev)
ॐ महारावण मर्धनाय नमः। (Slayer of the Famous Ravan)
ॐ स्फटिकाभाय नमः। (Crystal Clear)
ॐ वागधीशाय नमः। (deity of Spokesmen)
ॐ नवव्याकृतपण्डिताय नमः। (Skillful Scholar)
ॐ चतुर्बाहवे नमः। (Four-Armed)
ॐ दीनबन्धुराय नमः। (Protector of the Downtrodden, poor)
ॐ मायात्मने नमः। (Supreme Being)
ॐ भक्तवत्सलाय नमः। (Protector of Devotees)
ॐ संजीवननगायार्था नमः। (Bearer of Sanjeevi Mount)
ॐ सुचये नमः। (Chaste)
ॐ वाग्मिने नमः। (Spokesman)
ॐ दृढव्रताय नमः। (Strong-Willed Meditator)
ॐ कालनेमि प्रमथनाय नमः। (Slayer of Kalanemi)
ॐ हरिमर्कट मर्कटाय नमः। (Supreme of Monkey-Vanar)
ॐ दान्ताय नमः। (Calm)
ॐ शान्ताय नमः। (Very Composed)
ॐ प्रसन्नात्मने नमः। (Cheerful)
ॐ शतकन्टमुदापहर्त्रे नमः। (Destroyer Of shatakantta's Arrogance)
ॐ योगिने नमः। (Yogi, Saint)
ॐ रामकथा लोलाय नमः। (Crazy of listening Bhagwan Shri Ram's Story)
ॐ सीतान्वेषण पण्डिताय नमः।(Skillful in Finding Sita's Whereabouts)
ॐ वज्रद्रनुष्टाय नमः। (Strong-Nailed)
ॐ रुद्र वीर्य समुद्भवाय नमः। (Born of Bhagwan Shiv)
ॐ इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्र विनिवारकाय नमः। (Remover of Effect of Indrajita's Brahmastr)
ॐ पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने नमः। (Having Foremost Place on Arjuna's Flag)
ॐ शरपञ्जर भेदकाय नमः। (Destroyer of the Nest made of Arrows)
ॐ दशबाहवे नमः। (Ten-Armed)
ॐ लोकपूज्याय नमः। (Worshipped by the Universe)
ॐ जाम्बवत्प्रीतिवर्धनाय नमः। (Winning Jambavant's Love & affection)
ॐ सीतासमेत श्रीरामपाद सेवदुरन्धराय नमः। (Always Engrossed in Bhagwan Shri Ram's Service)
इति श्रीहनुमानष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णा।
विलुप्त वानर प्रजाति :: पुनर्जीवित करने पर वानरों ने रावण की पुत्रियों से विवाह और अपने लिये रहने हेतु सुरक्षित स्थान की इच्छा जाहिर की, जिसे भगवान् श्री राम ने पूरा किया और उन्हें वर्तमान यूरोप में स्थान प्रदान किया। जर्मनी में अभी भी एक स्थान वानरा कहलाता है। लाल मुँह के मनुष्य उन्हीं वानरों की सन्तान हैं।
नारद जी के विवाह की इच्छा जाहिर करने और उन्हें हरी रूप प्रदान करने को कहा। भगवान् श्री हरी विष्णु ने उन्हें अपना हरी रूप-वानर मुख रूप प्रदान किया। बाद में नारद जी उन्हें वानरों से सहायता प्राप्त करने का श्राप दिया।
हनुमान जी ने प्रार्थना की कि महर्षि बाल्मीकि उन्हें रामायण सुनायें। बाल्मीकि ने उन्हें वानर-पशु कहा और कहा कि वे इसके श्रवण के अधिकारी नहीं हैं। हनुमान जी ने अपने नाखूनों से शिला पटों पर अपने नाखूनों से ख़ुरचकर रामायण की रचना की। बाल्मीकि ने उसे पढ़ा तो उन्हें बहुत निराशा हुई क्योंकि वह रचना बाल्मीकि रामायण से श्रेष्ठ और उत्कृष्ट थी। उसको पढ़कर बाल्मीकि को बहुत निराशा हुई तो हनुमान जी ने शिलाओं को जल में प्रवाहित कर दिया। वे शिलाएँ अभी भी मनुष्यों को मिल जाती हैं। उनमें से एक का कालिदास जी ने वर्णन किया है और एक शिलापट किसी संग्राहलय में सुरक्षित है।
आज भी यदा-कदा मानव शिशुओं में पूँछ पाई जाती है, जिसकों शल्य चिकित्सा द्वारा हटाया जाता है।
जब भगवान् श्री राम की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान जी महाराज से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात भगवान् श्री राम ने लक्ष्मण जी से कहा :-
न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः।
न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम्॥
[किष्किन्धा कांड 3.28-32]
हनुमान जी महाराज भगवान् सूर्य के शिष्य और वेदों के पारगामी विद्वान हैं। उन्हें चारों वेद, व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञान भी है।
भगवान् श्री राम के कहने पर हनुमान जी महाराज ब्राह्मण रूप को त्याग कर वानर रूप में आ गये। शास्त्रों में नाग, पक्षियों आदि का मनुष्यों के रूप में बातचीत करने आया है।
6 मन्वन्तर पहले नागराज कालिया और काक भुशुण्डि जी तपस्वी ब्राह्मण थे जिन्होंने एक दूसरे को श्राप देकर हीन योनियाँ प्राप्त कीं। वर्तमान काल कलियुग में काक भुशुण्डि जी ने शुकताल में ऋषि, मुनियों, ब्राह्मणों को ब्रह्मचारियों को मनुष्यों की बोली में ही राम कथा सुनाई। यमुना दह में नागराज कालिया का भगवान् श्री कृष्ण से संवाद भी मनुष्यों की बोली में ही हुआ था।
उन्होंने ही महर्षि बाल्मीकि को रामायण सुनाई थी।
जिस समय रावण माता सीता का अपहरण कर उन्हें ले जा रहा था, तब जटायु जी को देख कर माता सीता ने कहा :-
जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत्।
अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा॥
हे आर्य जटायु! यह पापी राक्षस पति रावण मुझे अनाथ की भान्ति उठाये ले जा रहा है।[अरण्यक 49.38]
कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम्।
सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम॥
यहाँ जटायु जी को आर्य और द्विज कहा गया है। यह शब्द किसी विद्वान व्यक्तियों के सम्बोधन में ही प्रयुक्त होते हैं।[अरण्यक 68.649-38]
रावण को अपना परिचय देते हुए जटायु जी ने कहा :-
जटायुः नाम नाम्ना अहम् गृध्र राजो महाबलः।
मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ और मेरा नाम जटायु है।[अरण्यक 50.4]
(ये वार्तालाप त्रेता युग का है, कलियुग में यह सब सम्भव नहीं है।)
वानर मनुष्यों और बन्दरों की बीच पाई जाने वाली एक प्रजाति थी, जिसका उदय स्वयं ब्रह्मा जी द्वारा उस अप्सरा से किया गया, जिसका संयोग भगवान् सूर्य और देवराज इन्द्र से हुआ और परिणाम स्वरूप सुग्रीव और बाली का जन्म हुआ। इसी प्रकार देवगुरु बृहस्पति के पुत्र वानर राज केसरी भी, अप्सरा से उत्पन्न हुए थे। सभी वानर देवताओं के अंश थे, जिनका पृथ्वी पर प्राकट्य ब्रह्मा जी और भगवान् श्री हरी के अनुरूप था। माता अंजलि भी एक अप्सरा ही थीं।
ज्ञातव्य हैं कि गुणसूत्रों की सँख्या में हेर-फेर से नई प्रजातियाँ उत्पन्न होती हैं। ऐसा विकिरणों के प्रभाव स्वरूप होता है।
हनुमान महाराज की जन्म कथा :: ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी महाराज का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 113 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 06:03 बजे हुआ था।
बाल्मीकि रामायण (मतान्तर से) के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि (छोटी दीपावली) मंगलवार के दिन हनुमान का जन्म हुआ था।
हनुमान जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। पहली हिन्दु कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को अर्थात ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक मार्च या अप्रैल के बीच और दूसरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी को अर्थात सितंबर-अक्टूबर के बीच। इसके अलावा तमिलानाडु और केरल में हनुमान जयंती मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को तथा उड़ीसा में वैशाख महीने के पहले दिन मनाई जाती है।
एक तिथि को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में जबकि दूसरी तिथि को जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। पहली तिथि के अनुसार इस दिन हनुमान जी सूर्य को फल समझ कर खाने के लिए दौड़े थे, उसी दिन राहु भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिए आया हुआ था लेकिन हनुमान जी को देखकर सूर्यदेव ने उन्हें दूसरा राहु समझ लिया। इस दिन चैत्र माह की पूर्णिमा थी, जबकि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को उनका जन्म हुआ हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार माता सीता ने हनुमान जी की भक्ति और समर्पण को देखकर उनको अमरता का वरदान दिया था। यह दिन नरक चतुर्दशी का दिन था। हालांकि बाल्मिकी ने जो लिखा है उसे सही माना जा सकता है।
माता अंजनि के पूर्व जन्म की कहानी :- माता अंजनि पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं। ‘बालपन में वो अत्यंत सुंदर और स्वभाव से चंचल थी एक बार अपनी चंचलता में ही उन्होंने तपस्या करते एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी थी।
गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि जा तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा, ऋषि के श्राप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना माँगने लगी, तब ऋषि ने कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा।
तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा, अंजनि को वीर पुत्र का आशीर्वाद मिला।
हनुमान जी की बाल्यावस्था :- ऋषि के श्राप से त्रेता युग मे अंजना मे नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा इंद्र जिनके हाथ में पृथ्वी के सृजन की कमान है, स्वर्ग में स्थित इंद्र के दरबार (महल) में हजारों अप्सरा (सेविकाएं) थीं, जिनमें से एक थीं अंजना (अप्सरा पुंजिकस्थला) अंजना की सेवा से प्रसन्न होकर इंद्र ने उन्हें मनचाहा वरदान माँगने को कहा, अंजना ने हिचकिचाते हुए उनसे कहा कि उन पर एक तपस्वी साधु का श्राप है, अगर हो सके तो उन्हें उससे मुक्ति दिलवा दें। इंद्र ने उनसे कहा कि वह उस श्राप के बारे में बताएं, क्या पता वह उस श्राप से उन्हें मुक्ति दिलवा दें।
अंजना ने उन्हें अपनी कहानी सुनानी शुरू की, अंजना ने कहा ‘बालपन में जब मैं खेल रही थी तो मैंने एक वानर को तपस्या करते देखा, मेरे लिए यह एक बड़ी आश्चर्य वाली घटना थी, इसलिए मैंने उस तपस्वी वानर पर फल फेंकने शुरू कर दिए, बस यही मेरी गलती थी क्योंकि वह कोई आम वानर नहीं बल्कि एक तपस्वी साधु थे।
मैंने उनकी तपस्या भंग कर दी और क्रोधित होकर उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर बन जाऊंगी। मेरे बहुत गिड़गिड़ाने और माफी मांगने पर उस साधु ने कहा कि मेरा चेहरा वानर होने के बावजूद उस व्यक्ति का प्रेम मेरी तरफ कम नहीं होगा’। अपनी कहानी सुनाने के बाद अंजना ने कहा कि अगर इंद्र देव उन्हें इस श्राप से मुक्ति दिलवा सकें तो वह उनकी बहुत आभारी होंगी। इंद्र देव ने उन्हें कहा कि इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए अंजना को धरती पर जाकर वास करना होगा, जहां वह अपने पति से मिलेंगी। शिव के अवतार को जन्म देने के बाद अंजना को इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।
इंद्र की बात मानकर अंजना धरती पर आईं और केसरी से विवाह :- इंद्र की बात मानकर अंजना धरती पर चली आईं, एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा। उस शाप का प्रभाव शिव के अन्श को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। और एक शिकारन के तौर पर जीवन यापन करने लगीं। जंगल में उन्होंने एक बड़े बलशाली युवक को शेर से लड़ते देखा और उसके प्रति आकर्षित होने लगीं, जैसे ही उस व्यक्ति की नजरें अंजना पर पड़ीं, अंजना का चेहरा वानर जैसा हो गया। अंजना जोर-जोर से रोने लगीं, जब वह युवक उनके पास आया और उनकी पीड़ा का कारण पूछा तो अंजना ने अपना चेहरा छिपाते हुए उसे बताया कि वह बदसूरत हो गई हैं। अंजना ने उस बलशाली युवक को दूर से देखा था लेकिन जब उसने उस व्यक्ति को अपने समीप देखा तो पाया कि उसका चेहरा भी वानर जैसा था।
अपना परिचय बताते हुए उस व्यक्ति ने कहा कि वह कोई और नहीं वानर राज केसरी हैं जो जब चाहें इंसानी रूप में आ सकते हैं। अंजना का वानर जैसा चेहरा उन दोनों को प्रेम करने से नहीं रोक सका और जंगल में केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया।
केसरी एक शक्तिशाली वानर थे जिन्होने एक बार एक भयंकर हाथी को मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पँहुचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, "केसरी" का अर्थ होता है सिंह। उन्हे "कुंजर सुदान"(हाथी को मारने वाला) के नाम से भी जाना जाता है।
पंपा सरोवर :- अंजना और मतंग ऋषि - पुराणों में कथा है कि केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया पर संतान सुख से वंचित थे। अंजना अपनी इस पीड़ा को लेकर मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पप्पा (कई लोग इसे पंपा सरोवर भी कहते हैं) सरोवर के पूर्व में नरसिंह आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है वहाँ जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करने पर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।
अंजना को पवन देव का वरदान :- मतंग रामायण कालीन एक ऋषि थे, जो शबरी के गुरु थे। अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया था बारह वर्ष तक केवल वायु पर ही जीवित रही, एक बार अंजना ने “शुचिस्नान” करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किए। तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर उस समय पवन देव ने उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर उसे वरदान दिया, कि तेरे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा।
अंजना को भगवान शिव का वरदान :- अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ के पास, अपने आराध्य शिव की तपस्या में मग्न थीं । शिव की आराधना कर रही थीं तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा, अंजना ने शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।
(कर्नाटक राज्य के दो जिले कोप्पल और बेल्लारी में रामायण काल का प्रसिद्ध किष्किंधा)
‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए। इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और दूसरी तरफ अयोध्या में, इक्ष्वाकु वंशी महाराज अज के पुत्र और अयोध्या के महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए, श्रृंगी ऋषि को बुलाकर 'पुत्र कामेष्टि यज्ञ' के साथ यज्ञ कर रहे थे।
यज्ञ की पूर्णाहुति पर स्वयं अग्नि देव ने प्रकट होकर श्रृंगी को खीर का एक स्वर्ण पात्र (कटोरी) दिया और कहा "ऋषिवर! यह खीर राजा की तीनों रानियों को खिला दो। राजा की इच्छा अवश्य पूर्ण होगी।" जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस खीर की कटोरी में थोड़ा सा खीर अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया। अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया।
हनुमान जी का जन्म त्रेता युग मे अंजना के पुत्र के रूप मे, चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा की महानिशा में हुआ।
सामान्यत: लंकादहन के संबंध में यही माना जाता है कि सीता की खोज करते हुए लंका पहुंचे और रावण के पुत्र सहित अनेक राक्षसों का अंत कर दिया। तब रावण के पुत्र मेघनाद ने श्री हनुमान को ब्रह्मास्त्र छोड़कर काबू किया और रावण ने श्री हनुमान की पूंछ में आग लगाने का दण्ड दिया। तब उसी जलती पूंछ से श्री हनुमान ने लंका में आग लगा रावण का दंभ चूर किया। किंतु पुराणों में लंकादहन के पीछे भी एक ओर रोचक कथा जुड़ी है, जिसके कारण श्री हनुमान ने पूंछ से लंका में आग लगाई।
श्री हनुमान शिव अवतार है। शिव से ही जुड़ा है यह रोचक प्रसंग। एक बार माता पार्वती की इच्छा पर शिव ने कुबेर से सोने का सुंदर महल का निर्माण करवाया। किंतु रावण इस महल की सुंदरता पर मोहित हो गया। वह ब्राह्मण का वेश रखकर शिव के पास गया। उसने महल में प्रवेश के लिए शिव-पार्वती से पूजा कराकर दक्षिणा के रूप में वह महल ही मांग लिया। भक्त को पहचान शिव ने प्रसन्न होकर वह महल दान दे दिया।
दान में महल प्राप्त करने के बाद रावण के मन में विचार आया कि यह महल असल में माता पार्वती के कहने पर बनाया गया। इसलिए उनकी सहमति के बिना यह शुभ नहीं होगा। तब उसने शिवजी से माता पार्वती को भी मांग लिया और भोलेभंडारी शिव ने इसे भी स्वीकार कर लिया। जब रावण उस सोने के महल सहित मां पार्वती को ले जाना लगा। तब अचंभित और दुखी माता पार्वती ने विष्णु को स्मरण किया और उन्होंने आकर माता की रक्षा की।
जब माता पार्वती अप्रसन्न हो गई तो शिव ने अपनी गलती को मानते हुए मां पार्वती को वचन दिया कि त्रेतायुग में मैं वानर रूप हनुमान का अवतार लूंगा उस समय तुम मेरी पूंछ बन जाना। जब मैं माता सीता की खोज में इसी सोने के महल यानी लंका जाऊंगा तो तुम पूंछ के रूप में लंका को आग लगाकर रावण को दण्डित करना।
हनुमान जी की प्रसिद्धि कथा
अंजना के पुत्र होने के कारण ही हनुमान जी को अंजनेय नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है 'अंजना द्वारा उत्पन्न'। माता श्री अंजनी और कपिराज श्री केसरी हनुमानजी को अतिशय प्रेम करते थे।
हनुमान जी को सुलाकर वो फल-फूल लेने गये थे इसी समय बाल हनुमान भूख एवं अपनी माता की अनुपस्थिति में भूख के कारण आक्रन्द करने लगे। इसी दौरान उनकी नजर क्षितिज पर पड़ी। सूर्योदय हो रहा था। बाल हनुमान को लगा की यह कोई लाल फल है। (तेज और पराक्रम के लिए कोई अवस्था नहीं होती)।
यहां पर तो श्री हनुमान जी के रुप में माता श्री अंजनी के गर्भ से प्रत्यक्ष शिवशंकर अपने ग्यारहवें रुद्र में लीला कर रहे थे और श्री पवनदेव ने उनके उड़ने की शक्ति भी प्रदान की थी। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे। उस लाल फल को लेने के लिए हनुमानजी वायुवेग से आकाश में उड़ने लगे। उनको देखकर देव, दानव सभी विस्मयतापूर्वक कहने लगे कि बाल्यावस्था में एसे पराक्रम दिखाने वाला यौवनकाल में क्या नहीं करेगा। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था।हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"
राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव
को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई
भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें सचेत किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की।
तभी श्री ब्रह्माजी ने श्री हनुमानजी को वरदान दिया कि इस बालक को कभी ब्रह्मशाप नहीं लगेगा, कभी भी उनका एक भी अंग शस्तर नहीं होगा, ब्रह्माजीने अन्य देवताओं से भी कहा कि इस बालक को आप सभी वरदान दें तब देवराज इंन्द्रदेव ने हनुमानजी के गले में कमल की माला पहनाते हुए कहा की मेरे वज्रप्रहार के कारण इस बालक की हनु (दाढ़ी) टूट गई है इसीलिए इन कपिश्रेष्ठ का नाम आज से हनुमान रहेगा और मेरा वज्र भी इस बालक को नुकसान न पहुंचा सके ऐसा वज्र से कठोर होगा। श्री सूर्यदेव ने भी कहा कि इस बालक को में अपना तेज प्रदान करता हूं और मैं इसको शस्त्र-समर्थ मर्मज्ञ बनाता हुं ।
हनुमानजी के कुछ नाम एवं उनका अर्थ
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हनुमानजी को मारुति, बजरंगबली इत्यादि नामों से भी जानते हैं। मरुत शब्द से ही मारुति शब्द की उत्पत्ति हुई है। महाभारत में हनुमानजी का उल्लेख मारुतात्मज के नाम से किया गया है। हनुमानजी का अन्य एक नाम है, बजरंगबली। बजरंगबली यह शब्द व्रजांगबली के अपभ्रंश से बना है। जिनमें वज्र के समान कठोर अस्त्र का सामना करनेकी शक्ति है, वे व्रजांगबली है। जिस प्रकार लक्ष्मण से लखन, कृष्ण से किशन ऐसे सरल नाम लोगों ने अपभ्रंश कर उपयोगमें लाए, उसी प्रकार व्रजांगबली का अपभ्रंश बजरंगबली हो गया।
हनुमानजी की विशेषताएं
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अनेक संतों ने समाज में हनुमानजी की उपासना को प्रचलित किया है। ऐसे हनुमान जी के संदर्भ में समर्थ रामदास स्वामी कहते हैं, ‘हनुमानजी हमारे देवता हैं ।’ हनुमानजी शक्ति, युक्ति एवं भक्ति का प्रतीक हैं। इसलिए समर्थ रामदासस् वामी ने हनुमानजी की उपासना की प्रथा आरंभ की। महाराष्ट्र में उनके द्वारा स्थापित ग्यारह मारुति प्रसिद्ध हैं। साथ ही संत तुलसीदास ने उत्तर भारत में मारुति के अनेक मंदिर स्थापित किए तथा उनकी उपासना दृढ की। दक्षिण भारत में मध्वाचार्य को मारुति का अवतार माना जाता है। इनके साथ ही अन्य कई संतों ने अपनी विविध रचनाओं द्वारा समाज के समक्ष मारुति का आदर्श रखा है।
शक्तिमान :- हनुमानजी सर्वशक्तिमान देवता हैं। जन्म लेते ही हनुमान जी ने सूर्यको निगलनेके लिए उडान भरी। इससे यह स्पष्ट होता है कि वायु पुत्र अर्थात वायुतत्त्वसे उत्पन्न हनुमान जी, सूर्य पर अर्थात तेज तत्त्वपर विजय प्राप्त करनेमें सक्षम थे। पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश तत्त्वोंमेंसे तेजतत्त्वकी तुलनामें वायुतत्त्व अधिक सूक्ष्म है अर्थात अधिक शक्तिमान है। सर्व देवताओं में केवल हनुमान जी को ही अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं दे सकतीं। लंकामें लाखों राक्षस थे, तब भी वे हनुमानजीका कुछ नहीं बिगाड पाएं। इससे हम हनुमानजीकी शक्तिका अनुमान लगा सकते हैं।
भूतों के स्वामी :- हनुमान जी भूतों के स्वामी माने जाते हैं। किसी को भूत बाधा हो, तो उस व्यक्ति को हनुमानजी के मंदिर ले जाते हैं। साथ ही हनुमान जी से संबंधित स्तोत्र जैसे हनुमत्कवच, भीमरूपी स्तोत्र अथवा हनुमानचालीसा का पाठ करनेके लिए कहते हैं ।
भक्ति :- साधना में जिज्ञासु, मुमुक्षु, साधक, शिष्य एवं भक्त ऐसे उन्नति के चरण होते हैं। इसमें भक्त यह अंतिम चरण है। भक्त अर्थात वह जो भगवानसे विभक्त नहीं है। हनुमानजी भगवान श्रीराम से पूर्णतया एकरूप हैं। जब भी नवविधा भक्ति में से दास्य भक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देना होता है, तब हनुमानजी का उदाहरण दिया जाता है। वे अपने प्रभु राम के लिए प्राण अर्पण करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । प्रभु श्रीराम की सेवा की तुलना में उन्हें सब कुछ कौडी के मोल लगता है। हनुमान सेवक एवं सैनिक का एक सुंदर सम्मिश्रण हैं। स्वयं सर्वशक्तिमान होते हुए भी वे, अपने-आपको श्रीरामजीका दास कहलवाते थ। उनकी भावना थी कि उनकी शक्ति भी श्रीरामजी की ही शक्ति है। मान अर्थात शक्ति एवं भक्तिका संगम।
मनोविज्ञान में निपुण एवं राजनीति में कुशल :- अनेक प्रसंगों में सुग्रीव इत्यादि वानर ही नहीं, वरन् राम भी हनुमानजी से परामर्श करते थे। लंका में प्रथम ही भेंट में हनुमानजी ने सीता के मन में अपने प्रति विश्वास निर्माण किया। इन प्रसंगों से हनुमानजी की बुद्धिमानता एवं मनोविज्ञान में निपुणता स्पष्ट होती है। लंकादहन कर हनुमानजी ने रावण की प्रजा में रावणके सामर्थ्य के प्रति अविश्वास उत्पन्न किया। इस बातसे उनकी राजनीति-कुशलता स्पष्ट होती है।
जितेंद्रिय :- सीता को ढूंढने जब हनुमानजी रावण के अंतःपुर में गए, तो उस समय की उनकी मनः स्थिति थी, उनके उच्च चरित्र का सूचक है। इस संदर्भ में वे स्वयं कहते हैं, ‘सर्व रावण पत्नियों को निःशंक लेटे हुए मैंने देखा; परंतु उन्हें देखने से मेरे मन में विकार उत्पन्न नहीं हुआ। [बाल्मीकि रामायण, सुंदरकांड 11.42-43]
इंद्रियजीत होने के कारण हनुमानजी रावणपुत्र इंद्रजीत को भी पराजित कर सके। तभी से इंद्रियों पर विजय पाने हेतु हनुमानजी की उपासना बतायी गई।
भक्तों की इच्छा पूर्ण करने वाले :- हनुमानजी को इच्छा पूर्ण करने वाले देवता मानते हैं, इसलिए व्रत रखने वाले अनेक स्त्री-पुरुष हनुमानजी की मूर्ति की श्रद्धापूर्वक निर्धारित परिक्रमा करते हैं। कई लोगों को आश्चर्य होता है कि, जब किसी कन्या का विवाह निश्चित न हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमानजी की उपासना करने के लिए कहा जाता है। वास्तव में अत्युच्च स्तर के देवताओं में ‘ब्रह्मचारी’ या ‘विवाहित’ जैसा कोई भेद नहीं होता। ऐसा अंतर मानव-निर्मित है। मनोविज्ञान के आधार पर कुछ लोगों की यह गलत धारणा होती है कि, सुंदर, बलवान पुरुष से विवाह की कामना से कन्याएं हनुमानजी की उपासना करती हैं। परंतु वास्तविक कारण कुछ इस प्रकार है। लगभग 30 प्रतिशत व्यक्तियों का विवाह भूतबाधा, जादू-टोना इत्यादि अनिष्ट शक्तियों के प्रभावके कारण नहीं हो पाता। हनुमानजी की उपासना करने से ये कष्ट दूर हो जाते हैं एवं उनका विवाह संभव हो जाता है।
हनुमान जन्मोत्सव :- हनुमान जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत में विविध स्थानों पर धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन प्रात: 4 बजे से ही भक्तजन स्नान कर हनुमान जी के देवालयों में दर्शन के लिए आने लगते हैं। प्रात: 5 बजे से देवालयों में पूजा विधि आरंभ होती हैं । हनुमानजी की मूर्ति को पंचामृत स्नान करवा कर उनका विधिवत पूजन किया जाता है। सुबह ६ बजे तक अर्थात हनुमान जन्म के समय तक हनुमान जन्म की कथा, भजन, कीर्तन आदि का आयोजन किया जाता है। हनुमानजी की मूर्ति को हिंडोले में रख हिंडोला गीत गाया जाता है। हनुमानजी की मूर्ति हाथ में लेकर देवालय की परिक्रमा करते हैं। हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में कुछ जगह यज्ञ का आयोजन भी करते हैं। तत्पश्चात हनुमानजी की आरती उतारी जाती है। आरती के उपरांत कुछ स्थानों पर सौंठ अर्थात सूखे अदरक का चूर्ण एवं पीसी हुई चीनी तथा सूखे नारियल का चूरा मिलाकर उस मिश्रणको या कुछ स्थानों पर छुहारा, बादाम, काजू, सूखा अंगूर एवं मिश्री, इस पंचखाद्य को प्रसाद के रूप में बांटते हैं । कुछ स्थानों पर पोहे तथा चने की भीगी हुई दाल में दही, शक्कर, मिर्ची के टुकडे, निम्ब का अचार मिलाकर गोपाल काला बनाकर प्रसादके रूपमें बाटते है। कुछ जगह महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है।
जय श्री राम। जय-जय श्री हनुमान जी महाराज।
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा