Monday, June 22, 2015

SHRI RAM HRADYAM STROTR श्रीराम ह्रदयम् स्त्रोत्र

SHRI RAM HRADYAM STROTR श्रीराम ह्रदयम् स्त्रोत्र

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।  
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्। 
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
श्रीमहादेव उवाच ::
 ततो रामः स्वयं प्राह हनूमंत मुपस्थितम्।
श्रृणु तत्त्वं प्रवक्ष्यामि ह्यात्मानात्मपरात्मनाम्॥1॥
श्री महादेव कहते हैं: तब श्री राम ने अपने पास खड़े हुए श्री हनुमान से स्वयं कहा, मैं तुम्हें आत्मा, अनात्मा और  परमात्मा का तत्त्व बताता हूँ, तुम ध्यान से सुनो। 
Bhagwan Shiv said:  Then Sri Ram himself addressed Sri Hanuman, who was standing nearby to understand the gist, theme, basics, roots of the soul and the Almighty-Supreme Soul.
आकाशस्य यथा भेद-स्त्रिविधो दृश्यते महान्।
जलाशये महाकाशस्-तदवच्छिन्न एव हि॥2॥
विस्तृत आकाश के तीन भेद दिखाई देते हैं : एक महाकाश, दूसरा जलाशय में जलावच्छिन्न (जल से घिरा हुआ सा) आकाश। 
The vast space appears to be divided into three partitions: First, the great space itself; second, space appearing to be partitioned by pool water. 
प्रतिबिंबाख्यमपरं दृश्यते त्रिविधं नभः। 
बुद्ध्यवचिन्न चैतन्यमे-कं पूर्णमथापरम्॥3॥
और तीसरा (महाकाश का जल में) प्रतिबिम्बाकाश। उसी प्रकार चेतन भी तीन प्रकार का होता है: एक बुद्ध्यवच्छिन्न चेतन (बुद्धि से परिमित हुआ सा), दूसरा जो सर्वत्र परिपूर्ण है। 
And the third reflection (or image) of the great space in pool water. Similarly, Consciousness also appears to have three partitions: consciousness (appearing to be)surrounded by intelligence, the other all pervading consciousness.
आभासस्त्वपरं बिंबभूत-मेवं त्रिधा चितिः। 
साभासबुद्धेः कर्तृत्वम-विच्छिन्नेविकारिणि॥4॥
और तीसरा आभास चेतन जो बुद्धि में प्रतिबिंबित होता है। कर्तृत्व आभास चेतन के सहित बुद्धि में होता है अर्थात् आभास चेतन की प्रेरणा से ही बुद्धि सब कार्य करती है। 
And third is the consciousness which gets reflected in intelligence. This reflected consciousness along with intelligence has illusion of doing. Or due to this consciousness, intelligence is able to do all the work.
साक्षिण्यारोप्यते भ्रांत्या जीवत्वं च तथाऽबुधैः। 
आभासस्तु मृषाबुद्धिः अविद्याकार्यमुच्यते॥5॥
किन्तु भ्रान्ति के कारण अज्ञानी लोग साक्षीआत्मा में कर्तृत्व और जीवत्व का आरोप करते हैं अर्थात् उसे ही कर्ता और भोक्ता मान लेते हैं। आभास तो मिथ्या है और बुद्धि अविद्या का कार्य है। 
But due to ignorance, people ascribe this activity to witnessing Soul and assume it to be the doer and the user. This reflection is fake, false, Mithya (non existent) and the intelligence is the by product of Avidya (nature or Maya, falsehood).
अविच्छिन्नं तु तद् ब्रह्म विच्छेदस्तु विकल्पितः। 
विच्छिन्नस्य पूर्णेन एकत्वं प्रतिपाद्यते॥6॥
वह ब्रह्म विच्छेद रहित है और विकल्प (भ्रम) से ही उसके विभाजन (विच्छेद) माने जाते हैं। इस प्रकार विच्छिन्न (आत्मा) और पूर्ण चेतन (परमात्मा) के एकत्व का प्रतिपादन किया गया। 
That Consciousness is without any division and due to illusion only; these divisions appear to exist. This illustrates that the divided (soul) and undivided consciousness (supreme soul) are to be the same.
तत्त्वमस्यादिवाक्यैश्‍च साभासस्याहमस्तथा। 
ऐक्यज्ञानं यदोत्पन्नं महावाक्येन चात्मनोः॥7॥
तत्त्वमसि (तुम वह आत्मा हो) आदि वाक्यों द्वारा  अहम् रूपी आभास चेतन की आत्मा (बुद्ध्यवच्छिन्न चेतन) के साथ एकता बताई जाती है। जब महावाक्य द्वारा एकत्व का ज्ञान उत्पन्न हो जाता है। 
Final statements-addresses like: You are that soul etc., establishes the unity between the reflected consciousness (which we call I, my, me or myself) and surrounded consciousness. When Maha Vaky firmly Ultimate statement-address, demonstrates this unity.
तदाऽविद्या स्वकार्येश्चनश्यत्येव न संशयः।
एतद्विज्ञाय मद्भावा-योपपद्यते॥8॥
तो अविद्या अपने कार्यों सहित नष्ट हो जाती है, इसमें संशय नहीं है। इसको जान कर मेरा भक्त, मेरे भाव (स्वरुप) को प्राप्त हो जाता है। 
Then Avidya (nature or Maya-illusion, ignorance, imprudence) gets destroyed along with its manifestations (which produce such illusions). One, who is devoted to the Almighty, when understands this assimilates in me i.e., attains Moksh, Liberation.
मद्भक्‍तिविमुखानां हि शास्त्रगर्तेषु मुह्यताम्। 
न ज्ञानं न च मोक्षः स्यात्तेषां जन्मशतैरपि॥9॥
मेरी भक्ति से विमुख जो लोग शास्त्र रूपी गड्ढे में मोहित हुए पड़े रहते हैं, उन्हें सौ जन्मों में भी न ज्ञान प्राप्त होता है और न मुक्ति ही। 
Those who are devoid of devotion to the Almighty  remain struck with the lust-ignorance of learning the scriptures, without understanding & adopting the gist-theme-elixir-nectar-basics which stresses over devotion, will not be able to become scholar even in hundreds of births, devoid of Salvation.
इदं रहस्यं ह्रदयं ममात्मनो मयैव साक्षात्-कथितं तवानघ।
मद्भक्तिहीनाय शठाय च त्वया दातव्यमैन्द्रादपि राज्यतोऽधिकम्॥10॥
हे निष्पाप हनुमान! यह रहस्य मेरी आत्मा का भी हृदय है और यह साक्षात् मेरे द्वारा ही तुम्हें सुनाया गया है। यदि तुम्हें इंद्र के राज्य से भी अधिक संपत्ति मिले तो भी मेरी भक्ति से रहित किसी दुष्ट को इसे मत सुनाना। 
O sinless Hanuman! this secret constitutes the centre-heart of even my soul. This has been described to you directly by me. Even if someone offers you a kingdom more precious than that of Indr-Heavens, you should not tell it to him if he is devoid of my devotion or is wicked.
इति श्रीमदध्यात्मरामायण-बालकांडोक्तं श्रीरामह्रदयं संपूर्णम्।
इस प्रकार श्री अध्यात्म रामायण के बाल कांड में कहा गया श्रीराम हृदय संपूर्ण हुआ॥
This completes the Sri Ram Hradyam as mentioned in Bal Kand of Sri Adhyatm Ramayan.[(SALVATION-MOKSH:  ILLUSTRATION FROM RAMAYAN)

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