BRAHASPATI-BRAHMAN SPATI DEV
बृहस्पति-ब्रह्मण स्पति देव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (190) :: ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- बृहस्पति, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अनर्वाणं वृषभं मन्द्रजिह्वं बृहस्पतिं वर्धया नव्यमर्कैः।
गाथान्यः सुरुचो यस्य देवा आशृण्वन्ति नवमानस्य मर्ताः॥
हे होता! अभीष्टवर्षी मधुर भाषी और स्तुति योग्य बृहस्पति को पूजा-साधक मंत्रों द्वारा वर्द्धित करें। वे स्तोता का परित्याग नहीं करते। दीप्ति युक्त और स्तूय मान बृहस्पति देव की गाथा का पाठ करने वाले पाठक, देवगण और मनुष्यगण स्तुति सुनाते हैं।[ऋग्वेद 1.190.1]
परित्याग :: परित्यजन, आत्मसमर्पण, अधिकार त्याग, इंकार, अपदस्थ होना, उपेक्षा, अवहेलना; abandonment, reject, discard, avoidance, preterition.
हे मनुष्यों द्वेष रहित पूजनीय बृहस्पति को श्लोकों द्वारा अर्चना करो। वे स्तोता से विमुक्त नहीं होते। देवताओं में पूज्य उनके वचनों को देवगण और प्राणी सभी सम्मान पूर्वक सुनते हैं।
Hey humans, hosts, Ritviz! Pray-worship Brahaspati with the help of sacred hymns (Strotr, Mantr). He never abandon (discard, reject) the devotee. Brilliant-aurous Brahaspati Dev's words-advises are respected (cared, responded) by the demigods-deities and humans.
The demons-giants too respect him and care for his words.
तमृत्विया उप वाचः सचन्ते सर्गो न यो देवयतामसर्जि।
बृहस्पतिः स ह्यञ्जो वरांसि विभ्वाभवत्समृते भातरिश्वा॥
वर्षा ऋतु सम्बन्धी स्तुतियाँ सृजन कर्तृरूप बृहस्पतिदेव के पास जाती हैं। वे देवाभिलाषियों को फल देते हैं। वे सम्पूर्ण संसार को व्यक्त करते हैं। वे स्वर्ग व्यापी मातरिश्वा की तरह वरणीय फल उत्पन्न करके यज्ञ के लिए सम्भूत हुए है।[ऋग्वेद 1.190.2]
मातरिश्वा :: यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करने वाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है (ऋग्वेद 3.5.9)। मनु के लिये मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर प्रदीप्त किया था। ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध यज्ञकर्ता और गरुड़ के पुत्र का भी यही नाम है।अंतरिक्ष में चलने वाला पवन (वायु, हवा), एक प्रकार की अग्नि; which moves through space-sky, a kind of fire.
वर्षा के समान प्रार्थनाएँ बृहस्पति को प्राप्त होती हैं। वे संसार को व्यक्त करने वाले हैं तथा मातरिश्वा के समान फल देने वाले हैं।
Prayers made for rains are answered by Brahaspati Dev. He support those who wish to reach the demigods-deities. He represents the whole universe. He rewards the devotees for the Yagy like air-Pawan Dev.
As per astrology the rise of Brahaspati (knowledge, understanding) is essential for marriage.
उपस्तुतिं नमस उद्यतिं च श्लोकं यंसत्सवितेव प्र बाहू।
अस्य क्रत्वाहन्योयो अस्ति मृगो न भीमो अरक्षसस्तुविष्मान्॥
जिस प्रकार से सूर्य की किरणें प्रकाशित करने की चेष्टा करती है, उसी प्रकार से बृहस्पतिदेव यजमानों की स्तुति, अन्न, दान और मंत्रों को स्वीकार करने की चेष्टा करते हैं। राक्षसों और शत्रुओं से रहित बृहस्पतिदेव की शक्ति से दिवस कालीन सूर्य देव भयंकर जन्तुओं की तरह बलशाली होकर भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 1.190.3]
सविता द्वारा दीप्ति और ताप प्रदान करने के तुल्य बृहस्पति तपस्वी को प्रार्थना और नमस्कार को ग्रहण करने के लिए सचेष्ट रहते हैं। इन हिंसा रहित बृहस्पति की शक्ति से ही सूर्य भयंकर वन पशु के तुल्य विचरण करते हैं।
The manner in which the Sun rays lit the universe, Brahaspati too accept the prayers of the devotees and offerings in the form of food grains, donations and recitation of Mantr to oblige them. Free from the enmity of any one and the demons Sun moves like a dangerous beast freely due to the strength of Brahaspati.
The Hindus observe fasting on Thursday to seek his blessings and make donations to the deserving and the desirous.
अस्य श्लोको दिवीयते पृथिव्यामत्यो न यंसद्यक्षभृद्विचेताः।
मृगाणां न हेतयो यन्ति चेमा बृहस्पतेरहिमायाँ अभि द्यून्॥
भूलोक और द्युलोक में बृहस्पति देव की कीर्ति व्याप्त है। ये सूर्य देव की तरह पूजित हव्य धारण करते हैं। वे प्राणियों में चैतन्यता देते हुए फल प्रदान करते हैं। इनका आयुध शिकारी पुरुषों के अस्त्रों की तरह है। उनका आयुध मायावियों व कपटी असुरों को मारता है।[ऋग्वेद 1.190.4]
मायावी :: करामाती, ज्ञानी, दाना, सिद्ध, मायावी, बाज़ीगर, मायावी, झूठा, धोखेबाज़, कपटी, ढोंगी, उठाईगीरा, जादूगर, मायावी, करामाती, ऐन्द्रजालिक; charlatan, sorcerer, magician.
आकाश और धरती पर बृहस्पति का ऐश्वर्य फैला हुआ है। वे सूर्य के समान हवि धारण करने वाले हैं। उनका शस्त्र माया मुर्गों के पीछे सदा भागता है।
His glory is spreaded over the earth and the heavens. He is worshiped like the Sun and accept the offerings made by the devotees. His weapons are like the arms of the hunters and kill those who under take elusive tactics in the war.
The demons are expert in elusive tactics in war.
ये त्वा देवोस्त्रिकं मन्यमानाः पापा भद्रमुपजीवन्ति पज्राः।
न दूढ्येअनु ददासि वामं बृहस्पते चयस इत्पियारुम्॥
हे बृहस्पति देव! जो पापी लोग कल्याणकारी बृहस्पतिदेव को वृद्ध बैल जानते हैं, उन्हें आप वरण करने योग्य धन न देना। हे बृहस्पति देव! जो सोम यज्ञ करता है, उस पर आप निःसन्देह कृपा करते हैं।[ऋग्वेद 1.190.5]
हे बृहस्पते! जो धन के घमण्ड से युक्त हुए अपराधी, तुम्हे वृद्ध बैल मानकर अपने गर्व से जीवित हैं, उन्हें उन सुखों के वरणीय धन नहीं देते। तुम उन अपराधियों से दूर रहा करते हो।
Hey Brahaspati Dev! You do not oblige those sinners who consider you like an old bull. Do not grant them riches. You undoubtedly oblige the person who conducts Som Yagy.
सुप्रैतुः सूयवसो न पन्था दुर्नियन्तुः परिप्रीतो न मित्रः।
अनर्वाणो अभि ये चक्षते नोऽपीवृता अपोर्णुवन्तो अस्थुः॥
हे बृहस्पति देव! आप सुखगामी और सुखाद्य विशिष्ट यजमान के मार्ग रूप और दुष्टहन्ता राजा के मित्र हैं। जो हमारी निन्दा करते हैं, उनके सुरक्षित होने पर भी आप उन्हें (अपनी) रक्षा से हीन करें।[ऋग्वेद 1.190.6]
हे बृहस्पते! तुम सुमार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों के लिए मार्ग रूप और दुष्टों पर राज्य करने वाले के सखा के तुल्य हो जो हमारे द्वेष करते हैं वे क्लेशों से घिरे रहें।
Hey Brahaspati Dev! You are a friend of the king who kills the wicked-viceful and the Ritviz-Yajman; granting them comforts, pleasure and nourishing food. Do not protect a person who criticise, torture, deprave us.
सं यं स्तुभोऽवनयो न यन्ति समुद्रं न स्रवतो रोधचक्राः।
स विद्वाँ उभयं चष्टे अन्तबृहस्पतिस्तर आपश्च गृध्रः॥
जिस प्रकार से मनुष्य राजा से मिलता है, तटद्वय वर्त्तिनी नदी जैसे समुद्र में मिलती है, उसी प्रकार से समस्त स्तुतियाँ बृहस्पति देव में मिलती हैं। वे विद्वान् है। आकाशचारी पक्षी की तरह बृहस्पति रूप से जल और तट दोनों को देखते हैं अथवा वृष्टिकामी अभिज्ञ बृहस्पति देव मध्य में स्थित होकर तट और जल दोनों को उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.190.7]
भंवर परिपूर्ण गंभीर जल वाली प्रव नदियाँ जैसे समुद्र को ग्रहण होती हैं, वैसे हमारी प्रार्थनाएँ बृहस्पति को ग्रहण होती है। वे किनारे और जल दोनों के तुल्य हमारे कार्यक्रमों को सिद्ध दृष्टि से देखते हैं।
The way a needy meets the king, rivers meet the ocean, all prayers-worship reach-merge Brahaspati Dev. Brahaspati Dev watches-observes the river banks like a bird flying in the sky.
Brahaspati Dev grants learning, knowledge, enlightenment and Maa Saraswati grants education and Ganesh Maharaj grants intelligence & prudence.
एवा महस्तुविजातस्तुविष्मान्बृहस्पतिर्वृषभो धायि देवः।
स नः स्तुतो वीरवद्धातु गोमद्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्॥
इसी रूप से बृहस्पतिदेव महान्, बलवान्, आशय के अनुकूल वर्षा करने वाले, दीप्तिमान् होकर और बहुतों के उपकार के लिए उत्पन्न हुए हैं। उनका स्तवन करने पर वे हमें वीर संतान प्रदान करें, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.190.8]
बलवान, श्रेष्ठ, पूजनीय, बृहस्पति अनेक के परोपकार के लिए प्रकट होते हैं। ये हमारी वंदना से प्रसन्न होकर हमको बीर संतान तथा गाय आदि धन प्रदान करें। हम
अन्न, शक्ति, और उत्तम स्वाभाव वाले हों।
Brahaspati has evolved to grant the wishes of many, is great, powerful, strong and rain causing-generating, as per need and glowing.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- गुत्समद, भार्गवः, देवता :- बृहस्पति, ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्त मम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्॥
हे ब्रह्मण स्पति! आप देवों में गणपति और कवियों में कवि हैं। आपको अन्न सर्वोच्च और उपमानभूत है। आप प्रशंसनीय लोगों में राजा और मंत्रों के स्वामी हैं। हम आपका आह्वान करते है। आप हमारी स्तुति सुनकर आश्रय प्रदान करने के लिए यज्ञगृह में पधारें।[ऋग्वेद 2.23.1]
हे ब्रह्मण स्पते! तुम देवों में अद्भुत और कवियों में महान हो। तुम्हारा अन्न सबसे श्रेष्ठ है। तुम प्रशंसा किये हुओं में महान एवं श्लोकों के स्वामी हो। तुम हमारी वंदना से शरण देने हेतु अनुष्ठान स्थान में विराजो। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Brahman Spate! You are amazing like Ganpati amongest the demigods-deities and excellent amongest the poets. You are king and the Lord of Mantr amongest the revered-honoured. We invite you. Come to grant us shelter-protection responding to our prayers at the site of the Yagy.
देवाश्चित्ते असुर्य प्रचेतसो बृहस्पते यज्ञियं भागमानशुः।
उस्राइव सूर्यो ज्योतिषा महो विश्वेषाम्मिज्जनिता ब्रह्मणामसि॥
हे असुर हन्ता और प्रकृष्ट ज्ञानी बृहस्पति देव! देवों ने आपका यज्ञीय भाग प्राप्त किया। जिस प्रकार ज्योति द्वारा पूजनीय सूर्य देव किरण उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार आप सब मंत्र उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 2.23.2]
हे राक्षसों का वध करने वाले, ज्ञानवान ब्रह्मणस्पते! देवताओं ने तुम्हारा यज्ञ भाग प्राप्त किया। जैसे सूर्य अपनी ज्योति से किरणें उत्पन्न करते हैं, वैसे ही तुम स्तोत्र उत्पन्न करो।
Hey slayer-killer of demons and enlightened Brahaspati Dev-Brahman Spatye! The demigods received their share in the Yagy, offered by you. The way revered-honourable Sun produces the rays of light, you should also produce all Mantr.
आ विबाध्या परिरापस्तमांसि च ज्योतिष्मन्तं रथमृतस्य तिष्ठसि।
बृहस्पते भीमममित्रदम्भनं रक्षोहणं गोत्रभिदं स्वर्विदम्॥
हे बृहस्पति देव! चारों ओर से निन्दकों और अन्धकारों को दूर करके, आप ज्योतिर्मान् यज्ञ प्रापक, भयानक, शत्रु हिंसक, राक्षस नाशक, मेघ भेदक और स्वर्ग प्रदायक रथ में आरूढ होवें।[ऋग्वेद 2.23.3]
प्रापक :: प्राप्ति संबंधी, प्राप्त होनेवाला; recipient.
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, निन्दक, मुँहफट, बुराई करने वाला; cynic, slanderer, satirical.
SLANDARD :: बदनाम, झूठी निंदा करना, कलंक लगाना, अपयश फैलाना; denigrate, asperse, stain, traduce, slur, calumniate.
हे ब्रह्मण स्पते! सब ओर से निंदकों और अंधकार को मिटाकर तुम दमकते हुए विकराल, शत्रुनाशक मेघों को छिन्न-भिन्न करने वाले दिव्य रथ पर आरूढ़ हुए हो।
Hey Brahman Spatye-Brahaspati! Ride the charoite which grants heaven, pierce through the clouds, slays-kills the demons, violent people, fearsome, leading to receipt of the Yagy, brilliant, surrounded by the wicked, cynic, slanderer, satirical.
सुनीतिभिर्नयसि त्रायसे जनं यस्तुभ्यं दाशान्न तमंहो अश्नवत्।
ब्रह्मद्विषस्तपनो मन्युमीरसि बृहस्पते महि तत्ते महित्वनम्॥
हे बृहस्पति देव! जो आपको हव्य देता है, उसे आप सन्मार्ग में ले जाते हैं। उसे बचाते है। उसे पाप नहीं लगता। आपका ऐसा माहात्म्य है कि आप मंत्र द्वेषियों को सन्ताप देते हुए क्रोध से उनकी हिंसा करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.4]
हे ब्रह्मण स्पते! तुम हविदाता को महान मार्ग पर ले जाने वाले हो, उसकी पाप से सुरक्षा करते हो। तुम अपनी महिमा से वंदना न करने वालों को कष्ट देते और आवेशों का पतन करते हो।
Hey Brahaspati Dev! You direct-take one to the righteous, virtuous, pious path who make offerings to you. You protect him from committing sins. Its your greatness that you punish those who are envious to Mantr.
न तमंहो न दुरितं कुतश्चन नारातयस्तितिरुर्न द्वयाविनः।
विश्वा इदस्माद्द्वरसो वि बाधसे यं सुगोपा रक्षसि ब्रह्मणस्पते॥
हे सुरक्षक ब्रह्मणस्पति देव! जिसकी आप रक्षा करते हैं, उसे कोई दुःख व कष्ट नहीं दे सकता, पाप उसे कष्ट नहीं दे सकता। शत्रु लोग उसे किसी तरह मार नहीं सकते, ठग उसे सता नहीं सकते। उसके लिए आप सारे हिंसकों को दूर कर दें।[ऋग्वेद 2.23.5]
हे ब्रह्मणस्पते! तुम जिसकी रक्षा करते हो, उसे कोई दुःख नहीं होता। उसके पाप नहीं व्यापते! उसे शत्रु नहीं मार सकते। तुम उसके लिए सभी हिंसा करने वालों को दूर भगा दो।
Hey protector Brahaspati-Brahman Spatye! One under your protection is not troubled by pains-sorrow, tortures and sins. The thugs can not tease or kill him. You repel those who wish to trouble-torture, kill him.
त्वं नो गोपाः पथिकृद्विचक्षणस्तव व्रताय मतिभिर्जरामहे।
बृहस्पते यो नो अभि ह्वरो दधे स्वा तं मर्मर्तु दुच्छुना हरस्वती॥
हे बृहस्पति देव! आप हमारे रक्षक, सन्मार्ग दाता और विलक्षण हैं। आपके यज्ञ के लिए स्तोत्र द्वारा हम स्तुति करते हैं। जो हमारे कुटिल आचरण करता है, उसकी दुर्बुद्धि वेगवती होकर उसे शीघ्र विनष्ट करे।[ऋग्वेद 2.23.6]
हे ब्रह्मण स्पते! तुम दिव्य कर्म वाले उत्तम मार्ग पर चलकर हमारी सुरक्षा करते हो। तुम्हारे प्रति अनुष्ठान करते हुए हम मंत्र पाठ द्वारा वंदना करते हैं। हमारे प्रति कुटिलता पूर्वक कार्य करने वाले की बुद्धि बिगड़ जाये और उसे शीघ्र ही समाप्त कर दें।
Hey Brahaspati Dev! You are our protector, unique and amazing. You make prayers for your Yagy with the help of Strotr-hymns. One who behave with us in a wicked manner you quickly destroy his indecent thinking-thoughts.
उत वा यो नो मर्चयादनागसोऽरातीवा मर्तः सानुको वृकः।
बृहस्पते अप तं वर्तया पथः सुगं नो अस्यै देववीतये कृधि॥
हे बृहस्पति देव! शत्रु तुल्य आचरण करने वाले और भेड़िये के सदृश हिंसा करने वाले मनुष्य यदि हमें पीड़ित या कष्ट प्रदान करें तो आप उन्हें हमारे रास्ते से हटा लें। देवत्व की प्राप्ति के लिए हमारे मार्ग को अपराध रहित बनाते हुए उसे सरल बनायें।[ऋग्वेद 2.23.7]
हे ब्रह्मण स्पते! जो अभिमानी हमारे समीप आकार हमको मारना चाहे, उसे श्रेष्ठ मार्ग से हटाकर यज्ञ के लिए हमारा मार्ग सफल करो।
Hey Brahaspati Dev! Remove those from our path, who trouble-torture us, act like an enemy and behave with us like wolf. Help us attain demigodhood-demigod ship clearing our sins-crimes and making our efforts easy.
त्रातारं त्वा तनूनां हवामहेऽवस्पर्तरधिवक्तारमस्मयुम्।
बृहस्पते देवनिदो नि बर्हय मा दुरेवा उत्तरं सुम्रमुन्नशन्॥
हे बृहस्पति देव! आप सबको उपद्रव से बचाकर हमारे पौत्रादि का पालन करें। हमारे लिए मीठे वचन बोलें और हमारे प्रति प्रसन्न होवें। हम आपका आवाहन करते हैं। आप देवताओं की निन्दा करने वालों का विनाश करते हुए ऐसे दुर्बुद्धि लोगों को उत्कृष्ट सुख न दें।[ऋग्वेद 2.23.8]
हे ब्रह्मण स्पते! हमको मुसीबतों से सुरक्षित करो। हमारी संतान का पालन करो। हम पर खुश होकर मीठे वचन बोलो, देवताओं के निन्दकों को नष्ट कर दो, जिससे मूर्ख प्राणी सुखी न रहें। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Brahaspati Dev! Protect-save us from all sorts of troubles, tensions and nourish-nurture our grandsons etc. Speak auspicious words-blessings for us and be happy with us. We invite you. Do not grant-sanction comfort, luxuries to those wicked, vicious, ignorant who reproach, damn demigods-deities.
त्वया वयं सुवृधा ब्रह्मणस्पते स्पार्हा वसु मनुष्या ददीमहि।
या नो दूरे तळितो या अरातयोऽभि सन्ति जम्भये थे अननसः॥
हे ब्रह्मण स्पति! आपके द्वारा वर्द्धित होने पर मनुष्यों के पास से हम स्पृहणीय धन प्राप्त करें। दूर या पास हमारे जो शत्रु हमें पराजित करते हैं, उन यज्ञहीन शत्रुओं को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 2.23.9]
स्पृहणीय :: admirable.
हे ब्रह्मण स्पते! तुम्हारी वृद्धि होने पर हम धन के भागीदार बने । जो पास या दूर शत्रु हम पर विजय पाना चाहते हैं, उन अनुष्ठान विहीन शत्रुओं का पतन करो।
Hey Brahmn Spatye! On being protected and nurtured by you, we should attain admirable wealth, amenities. You defeat our enemies who are either close or far-away from us. Destroy those who do not conduct Yagy, have no faith in demigods-deities are atheist.
त्वया वयमुत्तमं धीमहे वयो बृहस्पते पप्रिणा सस्निना युजा।
मा नो दुःशंसो अभिदिप्सुरीशत प्र सुशंसा मतिभिस्तारिषीमहि॥
हे बृहस्पति देव! आप मनोरथ को पूर्ण करने वाले और पवित्र है। आपकी सहायता पाकर (हम) उत्कृष्ट अन्न प्राप्त करेंगे। जो दुष्ट हमें पराजित करना चाहते हैं, वह हमारे अधिपति न हो। हम उत्कृष्ट स्तुति द्वारा पुण्यवान् होकर उन्नति करें।[ऋग्वेद 2.23.10]
हे ब्रह्मण स्पते! तुम पवित्र हो, अभिष्ट पूर्ण करने वाले हो। तुम्हारी सहायता से हम महान अन्न प्राप्त करें। हमको पराजित करने की अभिलाषा करने वाले दुष्ट शत्रु न हमारे स्वामी न बन जायें। हम महान श्लोक द्वारा पुनीत हुए अपने को उन्नतिशील बनायें।
Hey Brahaspati Dev! You are pious-virtuous and accomplish our desires. We will get-have excellent food grains-stuff with your blessings. We wish to defeat the enemy and wish you to ensure he never become our lord. Let us become virtuous and progress by the recitation of excellent hymns.
अनानुदो वृषभो जग्मिराहवं निष्टप्ता शत्रुं पृतनासु सासहिः।
असि सत्य ॠणया ब्रह्मणस्पत उग्रस्य चिद्दमिता वीळुहर्षिणः॥
हे ब्रह्मण स्पति! आपके दान की उपमा नहीं है। आप अभीष्ट वर्षी है। युद्ध में जाकर आप शत्रुओं को सन्ताप देते और उन्हें विनष्ट करते हैं। आपका पराक्रम सत्य है। आप ऋण से मुक्त करते हैं। आप उग्र हैं और मदोन्मत्त व्यक्तियों का दमन करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.11]
हे ब्रह्मणस्पते! तुम्हारा दान अनोखा है। युद्ध में शत्रुओं को दुःख पहुँचाते हो। तुम दृढ़ बल वाले उग्र एवं अभिमानियों को दबाते हो।
Hey Brahman Spate! There is no parallel of the donations-charity done by you. You accomplish our desires. You trouble the enemy in the war and destroy them. Your valour is established. You relieve us from debt. You are furious and repress-destroy the sot.
अदेवेन मनसा यो रिषण्यति शासामुग्रो मन्यमानो जिघांसति।
बृहस्पते मा प्रणक्तस्य नो वधो नि कर्म मन्युं दुरेवस्य शर्धतः॥
हे बृहस्पति देव! जो व्यक्ति देव शून्य मन से हमारी हिंसा करता है और जो उग्र आत्माभिमानी हमारा वध करने की इच्छा करता है, उसका आयुध हमें न स्पर्श न कर सके। हम भी ऐसे बलवान् और दुष्ट शत्रुओं का क्रोध नाश करने में समर्थ हो।[ऋग्वेद 2.23.12]
हे ब्रह्मण स्पते! जो देवता से रहित मन वाला अभिमानी हमें चाहे, उसका शस्त्र हमें छू न सके।
Hey Brahaspati Dev! Do not let the weapons of the egoistic, atheist, furious who wish to kill us, touch us. We should be capable of killing such strong and wicked-sinners.
भरेषु हव्यो नमसोपसद्यो गन्ता वाजेषु सनिता धनंधनम्।
विश्वा इदर्यो अभिदिप्स्वो ३ मृधो बृहस्पतिर्वि ववर्हा रथाँइव॥
युद्ध काल में बृहस्पति आह्वान योग्य और नमस्कार पूर्वक उपासना, योग्य हैं। वे युद्ध में जाते हैं। सभी प्रकार का धन देते हैं। सबके स्वामी बृहस्पति विजिगीषा वाली सारी हिंसक सेनाओं को रथ की तरह निहत और विध्वस्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.13]
विजिगीषा :: जिसे विजय पाने की इच्छा हो; warriors desirous of victory in the war, the conquering king, desirous of victory, wishing to conquer, emulous, ambitious, a warrior, a hero.
VITAL :: लोकप्रिय, अत्याधिक, अत्यावश्यक, जिन्दादिल, जीवित, प्राणाधार, महत्वपूर्ण, मार्मिक, संबंधी, मर्मस्थान, जीवनी का, जीवनीक, जीवन का, जीवन-मरण का, ज़िंदगी का।
जो ब्रह्मणस्पति संग्राम काल में नमस्कार पूर्वक पुकारे जाने के योग्य हैं, वे संग्राम करते तथा सब प्रकार की समृद्धि प्रदान करते हैं, वे सभी के स्वामी, हिंसक, रिपु को सेना के रथ ध्वस्त करने के समान तोडते हैं।
Brahaspati is vital during the war, deserve prayers-worship. He goes to the war. He grants all sorts of riches. Lord of all, Brahaspati destroy the chariots and other related things of the violent enemy for the sake of devotee warriors.
तेजिष्ठया तपनी रक्षसस्तप ये त्वा निदे दधिरे दृष्टवीर्यम्।
आविस्तत्कृष्व यदसत्त उक्थ्यं बृहस्पते वि परिरायो अर्दय॥
हे बृहस्पति देव! अतीव तीक्ष्ण और सन्तापक हेति आयुध से राक्षसों को सन्तप्त करें। इन्हीं राक्षसों ने आपके पराक्रम के प्रभूत होने पर भी आपकी निन्दा की। पूर्वकाल में आपका जो प्रशंसनीय वीर्य था, इस समय उसका आविष्कार करें और उसके द्वारा निन्दकों का विनाश करें।[ऋग्वेद 2.23.14]
हे ब्रह्मण स्पते! कष्ट देने वाले तीव्र शस्त्र से असुरों को दुख दो। इन्होंने तुम्हारे महाबली होने पर तुम्हारी रक्षा की थी। तुम अपने उसी प्राचीन पराक्रम को प्रकट कर निन्दकों को समाप्त कर दो।
Hey Brahaspati Dev! Trouble the demons with your sharp weapons. These demons slandered you in the past. You should reveal your previous valour and destroy them.
बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद्द्युमद्विभाति क्रआपज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं घेहि चित्रम्॥
हे यज्ञजात बृहस्पति देव! जिस धन की आर्य लोग पूजा करते हैं, जो दीप्ति और यज्ञ वाला धन लोगों में शोभा पाता है, जो धन अपने तेज से दीप्ति वाला है, वही विचित्र धन या ब्रह्मचर्य तेज हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.23.15]
हे यज्ञ में उत्पन्न ब्रह्मण स्पते! आर्यों द्वारा पूजित देदीप्यमान यज्ञ वाला धन शोभायमान होता है, उसी तेज युक्त धन को हमें प्रदान करो।
Hey Brahaspati, born due-out of he Yagy! Grant us the wealth which is energetic-bright and prayed by the Ary.
मा नः स्तेनेभ्यो ये अभि द्रुहस्पदे निरामिणो रिपवोऽन्नेषु जागृधुः।
आ देवानामोहते वि व्रयो हृदि बृहस्पते न परः साम्नो विदुः॥
हे बृहस्पति देव! जो चोर द्रोह करने में प्रसन्न होते हैं, जो शत्रु हैं, जो दूसरे का धन चाहते हैं, जो अपने मन से सर्वाशतः देवों का बहिष्कार करने की इच्छा करते हैं और जो राक्षस नाशक साम स्तुति नहीं जानते, उनके हाथ में हमें न देना।[ऋग्वेद 2.23.16]
हे ब्रह्मण स्पति देव! विद्रोही, शत्रु, परधन कांक्षी, देवों से पृथक सोम गान से पृथक, असुरों के लिए हमको न सौंप देना।
Hey Brahaspati Dev! Do not hand over us to those who are thieves, enemy, want others wealth, whish to boycott the demigods-deities and are unaware of the Stuti-prayers, hymns meant for the killing of demons.
विश्वेभ्यो हि त्वा भुवनेभ्यस्परि त्वष्टाजनत्साम्नः साम्नः कविः।
स ऋणचिदृणया ब्रह्मणस्पतिर्द्रुहो हन्ता मह ऋतस्य धर्तरि॥
हे बृहस्पति देव! त्वष्टा ने आपको सर्वश्रेष्ठ उत्पन्न किया; इसलिए आप सभी सामों के उच्चारण कर्ता है। यज्ञ आरम्भ करने पर ब्रह्मण स्पति उसका सभी ऋण स्वीकार करते और ऋण का परिशोध करते हैं। वे विद्रोह कारियों का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.17]
हे ब्रह्मण स्पति देव! तुम महान को त्वष्टा ने रचित किया है। अत: तुम समस्त सोमों का उच्चारण करने वाले हो। यज्ञ कार्य द्वारा तुम ऋण का परिशोध और विद्रोही का नाश करते हो।
Hey Brahaspati Dev! Twasta created you first of all and hence you spell all Sams (hymns quoted in Sam Ved). Having started the Yagy Brahman Spati clears all debts. He destroy all the rebels.
तव श्रिये व्यजिहीत पर्वतो गवां गोत्रमुदसृजो यदाङ्गिरः।
इन्द्रेण युजा तमसा परीवृतं बृहस्पते निरपामौब्जो अर्णवम् ॥
हे अङ्गिरा वंशीय बृहस्पति देव! पर्वतों ने गायों को छिपाया। आपकी सम्पद् के लिए जिस समय वह उद्घाटित हुआ और आपने गायों को बाहर किया, उस समय इन्द्र देव को सहायक पाकर आपने वृत्रासुर द्वारा आक्रान्त जलाधारभूत जलराशि को नीचे कर दिया।[ऋग्वेद 2.23.18]
हे अंगिरावंशी, हे ब्राह्मणस्पति देव! पर्वतों ने धेनुओं को छिपा लिया। जब यह भेद खुला तब तुमने गौओं को निकाला और इन्द्र की सहायता से वृत्र द्वारा रोकी हुई जल राशि को गिराया।
Hey icon (descendent) of Angira, Brahaspati Dev! The mountains concealed-hide the cows. You released the cows when it was revealed-disclosed. You released the waters held by Vrata Sur, with the help of Indr Dev.
ब्रह्मणस्पते त्वमस्य यन्ता सूक्तस्य बोधि तनयं च जिन्व।
विश्व तद्भद्रं यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥
हे ब्रह्मण स्पति आप इस संसार के नियामक है। इस सूक्त को जानें। हमारी सन्ततियों को प्रसन्न करें। देवता लोग जिसकी रक्षा करते हैं, वह भली-भाँति कल्याणवाहक है। हम पुत्र और पौत्रवाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.23.19]
हे ब्रह्मण स्पते! हमको सुखी बनाओ। देवगण जिसकी सुरक्षा करते हैं, वही कल्याण को वहन करने वाला होता है। हम पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण हुए इस अनुष्ठान में श्लोक बोलेंगे।
Hey Brahman Spati Dev! You are the regulator of the world-universe. Let this Sukt be understood. Make our progeny happy. One who is protected by the demigods-deities is able to discharge his duties efficiently, leading to welfare. We will recite this Sukt in the Yagy, blessed with sons and grand sons.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 18 :: ऋषि :- मेधातिथी काण्व, देवता :- 1-3, ब्रह्मणस्पति, 4 :- इन्द्र, ब्रह्मणस्पति, सोम, 5 :- ब्रह्मणस्पति, दक्षिणा, 6-8 :- सदसस्पति, 9 :- नराशंस, छन्द :- गायत्री।
सोमानं स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते। कक्षीवन्तं य औशिजः॥
हे सम्पूर्ण ज्ञान के अधिपति ब्रह्मणस्पति देव! सोम का सेवन करने वाले यजमान को आप उशिज् के पुत्र कक्षीवान की तरह श्रेष्ठ प्रकाश से युक्त करें।[ऋग्वेद 1.18.1]
हे ब्रह्मणस्पते! मुझ सोम निचोड़ने वाले को उशिज के पुत्र कक्षीवान के तुल्य व्याति प्रदान करो।
Hey the lord of all knowledge Brahman Spati Dev! Please grant enlightenment-brilliance to the host who drinks Som like Kakshivan-the son of Ushij.
यो रेवान्यो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्धनः। स नः सिषक्तु यस्तुरः॥
ऐश्वर्यवान, रोगों का नाश करने वाले, धन प्रदाता और पुष्टि वर्धक तथा जो शीघ्र फल दायक है, वे ब्रह्मणस्पति देव हम पर कृपा करें।[ऋग्वेद 1.18.2]
धनवान, रोगनाशक, धनों के ज्ञाता, पुष्टिवर्द्धक, शीघ्र फल दायक ब्रह्मणस्पति हम पर कृपा दृष्टि करें।
Possessor of amenities, destroyer of illness-diseases, grantor of riches and nourishment, grantor of immediate reward for efforts-endeavours Brahmanspati Dev should be pleased with us.
मा नः शंसो अररुषो धूर्तिः प्रणङ्मर्त्यस्य। रक्षा णो ब्रह्मणस्पते॥
हे ब्रह्मणस्पति देव! यज्ञ न करनेवाले तथा अनिष्ट चिन्तन करने वाले दुष्ट शत्रु का हिंसक, दुष्ट प्रभाव हम पर न पड़े। आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.18.3]
ईश्वर को न मानने वाले नास्तिक हमें वश में न कर सके।
Hey Brahmanspati Dev! Those who do not perform Yagy, think ill of others, violent, evil (wicked, vicious) should not affect us.
स घा वीरो न रिष्यति यमिन्द्रो ब्रह्मणस्पतिः। सोमो हिनोति मर्त्यम्॥
जिस मनुष्य को इन्द्र देव, ब्रह्मणस्पति देव और सोम देव प्रेरित करते हैं, वह वीर कभी नष्ट नही होता।[ऋग्वेद 1.18.4]
इन्द्र से संगठन की, ब्रह्मणस्पति देव से श्रेष्ठ मार्ग दर्शन की एव सोम से पोषण की प्राप्ति होती है। इनसे युक्त मनुष्य क्षीण नही होता। ये तीनों देव यज्ञ में एकत्रित होते हैं। यज्ञ से प्रेरित मनुष्य दुःखी नहीं होता वरन देवत्व प्राप्त करता है।
हम मरण धर्मा व्यक्ति हिंसित न हों, अतः हे ब्रह्मण स्पते! हमारी रक्षा कीजिये। इन्द्र, सोम और ब्रह्मणस्पति द्वारा प्रेरणा प्राप्त प्राणी कभी दुखित नहीं होता है।
The brave-warrior who is inspired by Indr Dev, Brahman Spati Dev and the Moon-Som Dev, never perish.
Presence of Indr Dev, Brahman Spati Dev and Som Dev assures that the host performing the Yagy will never have sorrow-pains and achieve Devatv-demigodhood. Indr Dev provides the ability to manage-unite, Brahman Spati gives excellent guidance and the Som Dev leads to nourishment. The trio meets in the Yagy.
त्वं तं ब्रह्मणस्पते सोम इन्द्रश्च मर्त्यम्। दक्षिणा पात्वंहसः॥
हे ब्रह्मणस्पति देव! आप सोमदेव, इन्द्रदेव और दक्षिणादेवी के साथ मिलकर यज्ञादि अनुष्ठान करने वाले मनुष्य की पापों से रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.18.5]
हे ब्रह्मणस्पत्ते! तुम सोम, इन्द्र और दक्षिणा उस प्राणी की पापों से रक्षा करो।
Hey Brahmanspati Dev! You along with Som Dev, Indr Dev and Dakshina Devi should protect the host performing Yagy from sins.
सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम्। सनिं मेधामयासिषम्॥
इन्द्र देव के प्रिय मित्र, अभीष्ट पदार्थों को देने में समर्थ, लोकों का मर्म समझने में सक्षम सद्सस्पति देव (सत्प्रवृत्तियों के स्वामी) से हम अद्भुत मेधा प्राप्त करना चाहते है।[ऋग्वेद 1.18.6]
दिव्य रूप वाले इन्द्रदेव के प्रिय तथा पोषक अग्नि से धन और सुमति को विनती करता हूँ।
We should to gain amazing (wonderful, marvellous) brilliance (merit, intellect, mental vigour) from Sadspati Dev, who is capable of granting all material goods, understands the gist of the universe-the three abodes (Heavens, Earth & the Nether world) & friend of Indr Dev.
यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन। स धीनां योगमिन्वति॥
जिनकी कृपा के बिना ज्ञानी का भी यज्ञ पूर्ण नहीं होता, वे सदसस्पति देव हमारी बुद्धि को उत्तम प्रेरणाओं से युक्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.18.7]
जिसकी कृपादृष्टि के बिना ज्ञानी का अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता, वह अग्नि देव हमको उचित मार्ग दर्शन देते हैं। जिनमें सदश्यता नहीं है, ऐसे विद्वानों द्वारा यज्ञीय प्रयोजनों की पूर्ति नहीं होती।
Without the approval of whom, the Yagy of even the learned is incomplete, that Sadspati Dev should fill over intelligence with excellent inspirations.
आदृध्नोति हविष्कृतिं प्राञ्चं कृणोत्यध्वरम्। होत्रा देवेषु गच्छति॥
वे सदसस्पतिदेव हविष्यान्न तैयार करने वाले साधकों तथा यज्ञ को प्रवृद्ध करते हैं और वे ही हमारी स्तुतियों को देवों तक पहुँचाते हैं।[ऋग्वेद 1.18.8]
अग्निदेव ही प्राप्त हवियों को समृद्ध कर यज्ञ की वृद्धि करते हैं। यजमान की प्रार्थनाएँ देवताओं को प्राप्त होती हैं।
Sadspati Dev inspires the devotees, who prepare offerings (food mixtures) for the Yagy and take their prayers to the demigods-deities.
नराशंसं सुधृष्टममपश्यं सप्रथस्तमम्। दिवो न सद्ममखसम्॥
द्युलोक से सदृश अति दीप्तिमान्, तेजवान, यशस्वी और मनुष्यों द्वारा प्रशंसित वे सदसस्पति देव को हमने देखा है।[ऋग्वेद 1.18.9]
प्रतापी, विख्यात तथा यशस्वी मनुष्यों द्वारा वन्दना किये और पूजनीय अग्नि को मैंने देखा है।
We have witnessed Sadspati Dev who possess aura, tremendous energy and appreciated-honoured by the humans.
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 40 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- ब्रह्मणस्पति, छन्द :- बाहर्त प्रगाध (विषमा बृहती, समासतो बृहती)।
उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवयन्तस्त्वेमहे।
उप प्र यन्तु मरुतः सुदानव इन्द्र प्राशूर्भवा सचा॥
हे ब्रह्मणस्पते, आप उठें! देवों की कामना करने वाले हम आपकी स्तुति करते हैं। कल्याणकारी मरुद्गण हमारे पास आयें। हे इन्द्रदेव! आप ब्रह्मणस्पति के साथ मिलकर सोमपान करें।[ऋग्वेद 1.40.1]
हे ब्रह्मणस्पते, उठो! देवों की इच्छा करने वाले हम तुम्हारी वन्दना करते हैं।कल्याणकारी मरुद्गण हमारे सम्मुख पधारें। हे इन्द्रदेव! तुम अति शीघ्र यहाँ विराजो।
Hey Brahmanspate, get up! We, desirous of meeting demigods-deities, pray to you. Marud Gan, who look to our welfare should come to us. Hey Indr Dev! You should come quickly.
त्वामिद्धि सहसस्पुत्र मर्त्य उपब्रूते धने हिते।
सुवीर्यं मरुत आ स्वश्व्यं दधीत यो व आचके॥
साहसिक कार्यों के लिये समर्पित हे ब्रह्मणस्पते! युद्ध में मनुष्य आपका आवाहन करतें है। हे मरुतो! जो धनार्थी मनुष्य ब्रह्मणस्पति सहित आपकी स्तुति करता है, वह उत्तम अश्वों के साथ श्रेष्ठ पराक्रम एवं वैभव से सम्पन्न हो।[ऋग्वेद 1.40.2]
हे शक्ति पुत्र ब्रह्मणस्पते! धनवान होने पर मनुष्य सुन्दर अश्वों और शक्ति से परिपूर्ण समृद्धि को ग्रहण करता है। ब्रह्मणस्पति हमको ग्रहण हो। प्रिय सत्य रूप वाणी हमकों ग्रहण हो।
Devoted to courageous jobs, Hey Brahmanspate! The humans invite you in the battle field (for their protection). Hey Maruto! One desirous of excellent horses, valour and wealth, pray to you with the Brahmanspate; should be blessed with the fulfilment of desires.
प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्येतु सूनृता।
अच्छा वीरं नर्यं पङ्क्तिराधसं देवा यज्ञं नयन्तु नः॥
ब्रह्मणस्पति हमारे अनुकूल होकर यज्ञ में आगमन करें। हमें सत्यरूप दिव्यवाणी प्राप्त हो। मनुष्यों के हितकरी देवगण हमारे यज्ञ में पंक्तिबद्ध होकर अधिष्ठित हों तथा शत्रुओं का विनाश करें।[ऋग्वेद 1.40.3]
देवगण पञ्च हवि से परिपूर्ण हमारे अनुष्ठान में मनुष्यों की भलाई के लिए विराजें।
Brahmanspate should be favourable to us in participate in our Yagy. We should attain truthful divine voice. The demigods-deities who are favourable to the humans should honoured in ques (i.e., one by one) should destroy the enemy.
यो वाघते ददाति सूनरं वसु स धत्ते अक्षिति श्रवः।
तस्मा इळां सुवीरामा यजामहे सुप्रतूर्तिमनेहसम्॥
जो यजमान ऋत्विजों को उत्तम धन देते हैं, वे अक्षय यश को पाते हैं। उनके निमित्त हम (ऋत्विज गण) उत्तम पराक्रमी, शत्रु नाशक, अपराजेय, मातृभूमि की वन्दना करते हैं।[ऋग्वेद 1.40.4]
ऋत्विज को श्रेष्ठ धन देने वाला यजमान अक्षय धन प्राप्त करता है। उसके लिए हम शत्रु के द्वारा न मारी जाने वाली इड़ा (धरती, पृथ्वी, वाणी) को यज्ञ में आमंत्रित करते हैं।
The host carrying out Yagy, who grants excellent gifts-money to those Brahmns conducting Yagy for him, attains imperishable honours. We the Brahmns performing Yagy for them-the hosts pray-invite Ida-mother earth who is best amongest the warriors, slayer of enemies & is undefeated.
प्र नूनं ब्रह्मणस्पतिर्मन्त्रं वदत्युक्थ्यम्।
यस्मिन्निन्द्रो वरुणो मित्रो अर्यमा देवा ओकांसि चक्रिरे॥
ब्रह्मणस्पति निश्चय ही स्तुति योग्य (उन) मंत्रों को विधि से उच्चारित कराते हैं, जिन मंत्रों में इन्द्र, वरुण, मित्र और अर्यमा आदि देवगण निवास करते हैं।[ऋग्वेद 1.40.5]
ब्रह्मणस्पति ही शास्त्र सम्मत मंत्र का उच्चारण करते हैं। उस मंत्र में वरुण, इन्द्र, मित्र और अर्यमा का वास है।
Brahmanspate surely-definitely recite those Mantr-Shlok with proper methodology-pronunciation which are meant for the worship of Dev Raj Indr, Varun Dev and Aryma etc. demigods.
These Mantr are the abode of these demigods-deities.
तमिद्वोचेमा विदथेषु शम्भुवं मन्त्रं देवा अनेहसम्।
इमां च वाचं प्रतिहर्यथा नरो विश्वेद्वामा वो अश्नवत्॥
हे नेतृत्व करने वालो-देवताओ! हम सुखप्रद, विघ्ननाशक मंत्र का यज्ञ में उच्चारण करते हैं। हे नेतृत्व करने वाले देवो! यदि आप इस मन्त्र रूप वाणी की कामना करते हैं, (सम्मानपूर्वक अपनाते है) तो यह सभी सुन्दर स्तोत्र आपको निश्चय ही प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.40.6]
मनुष्यों! यदि उस मंत्र रूप वाणी को चाहते हो तो हमारे समस्त सुन्दर संकल्प तुमको ग्रहण हों। हे देवगण! सुखकारक, बाधा नाशक मंत्र का, अनुष्ठान में हम उच्चारण करें।
Hey leading demigods! We recite those Mantr in the Yagy which cause comforts, slay the enemy. Hey leading demigods! If you desire these Mantr with grace, you should get them.
को देवयन्तमश्नवज्जनं को वृक्तबर्हिषम्।
प्रप्र दाश्वान्पस्त्याभिरस्थितान्तर्वावत्क्षयं दधे॥
कुश-आसन बिछाने वाले के पास कौन आयेंगे? (ब्रह्मणस्पति आयेंगें।) आपके द्वारा हविदाता याजक अपनी सन्तानों, पशुओं आदि के निमित्त उत्तम घर का आश्रय पाते हैं।[ऋग्वेद 1.40.7]
देवों की अभिलाषा करने वाले के पास कौन आयेगा? देवत्व की कामना करने वालों के पास भला कौन आयेंगे? (ब्रह्मणस्पति आयेंगें।) कुश बिछाने वाले के पास कौन आयेगा? हविदाता यजमान अन्य प्राणियों सहित पशु, पुत्र आदि से युक्त घर के लिए चल चुका है।
Who will come to the person laying cushions? Brahmanspati will come. The hosts making offerings in the Yagy are sheltered-protected by you along with their progeny, cattle in excellent comfortable houses.
उप क्षत्रं पृञ्चीत हन्ति राजभिर्भये चित्सुक्षितिं दधे।
नास्य वर्ता न तरुता महाधने नार्भे अस्ति वज्रिणः॥
ब्रह्मणस्पति देव, क्षात्रबल की अभिवृद्धि कर राजाओं की सहायता से शत्रुओं को मारते हैं। भय के सम्मुख वे उत्तम धैर्य को धारण करते हैं। ये वज्रधारी बड़े युद्धों या छोटे युद्धों में किसी से पराजित नहीं होते।[ऋग्वेद 1.40.8]
ब्रह्मणस्पति अपनी शक्ति की वृद्धि करके सम्राट के संग होकर शत्रु का पतन करते हैं। डर के समय सुख देने वाले होते हैं। वे वज्रधारी संग्रामों में किसी से दबते नहीं हैं।
Bramanspati Dev enhance-promote the warrior-Kshatriy tendencies in the kings and slay the enemy in large or small battle-war. They maintain their cool-patience in a situation-position of fear and are not defeated. The Thunder Volt bearing are not defeated.
उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवान्यज्ञेन बोधय।
आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं यज्ञमानं च वर्धय॥
विद्वान पुरूषों का कर्तव्य है कि दूसरे विद्वानों से मिल कर वेदों का और यज्ञादिक उत्तम कर्मो का प्रचार करें जिससे यज्ञादिक कर्म करने वाले यज्ञमान चिरंजीवी बनकर आत्मिक बल ,पुत्रादि संतान और गौ, घोड़े आदि सुखदायक पशु और यश को प्राप्त होकर अपनी और अपने देश की उन्नति करें।[अथर्ववेद 19.63.1]
तत्र महागणपतिपूजनं स्वस्तिपुण्याहवाचन नान्दीश्राद्धं मातृकापूजनं, तथाचार्यादिऋत्विग्वरणं करिप्ये। आचार्यादीन् यथाविधि वृणुयात्। वृत: आचार्य: स्थण्डिलपूर्वभागे गणपतिभद्रे वा सर्वतोभद्रे वा केवले स्वस्तिके बह्मादिमण्डलदेवता: संस्थाप्य पूजयेत्।
तदुपरि धान्यपूरितमध्यभागे कलशं संस्थाप्य तस्योपरि पूर्णपात्रं निधाय यथाशक्ति निर्मितां सुवर्णमर्यी यथोक्तलक्षणां श्रीगणेशप्रतिमां संस्थापर्यत्। सा प्रतिमा पूर्णपात्रोपरि लिखिते अष्टदले “गणानां त्वा” इति मन्त्रेण संस्थाप्या। अनन्तरं यथामिलितषोडशोपचारै: यथाविधि पूजां कुर्यात्। पंचखाद्यं वा मोदकान् नैवेद्ये समर्पणं कृत्वा यथाशक्ति रत्नालङ्कारै: पूजयेत्।
ततश्च स्थण्डिलान्तिके संस्कारपूर्वकं स्वगृह्योक्तविधिना अग्निं प्रतिष्ठाप्य स्थापितदेवताया: उत्तरभागे आदित्यादिनवग्रहादीनां आवाहयेत्संपूजयेच्च।ततश्चान्वाधानं कुर्यात्।
तत्र च संकल्प:। मया क्रियमाणे ग्रहमखपूर्वकब्रह्मणस्पतिसुक्तहवनकर्मणि देवतापरिग्रहार्थमन्वाधानं करिष्ये।
ततश्च अन्वाहिताग्नौ प्रधानदेवतां गणपर्ति द्विषष्टि-क्रमात्मकब्रह्मणस्पतिसूक्तेन प्रत्यर्चं जुहुुयात्।
यथा काम: तथा द्रव्यमिति न्यायेन द्र्घाङ्कुरद्रव्यम्, मोदकद्रव्यम्, लाजाद्रव्यम्, साज्यसमिमद्द्रव्यं च गृह्णीयात्। एते मन्त्रा: हवनकाले ॐ कारयुक्ता: स्वाहान्ताश्च वक्तव्या:।
(1). ॐ सोमानं स्वरणं औशिज: स्वाहा।
(2). ॐ यो रीवान्यो तुर: स्वाहा।
(3). ॐ मा न: शंसो ब्रह्मणस्पते स्वाहा।
(4). ॐ स घा वीरो मर्त्यं स्वाहा।
(5). ॐ त्वं तं ब्रह्मण त्वंहस: स्वाहा।
(6). ॐ उत्तिष्ठ भवासचा स्वाहा।
(7). ॐ त्यामिद्धि आचके स्वाहा।
(8). ॐ प्रैतु ब्रह्मण नयंतु न: स्वाहा।
(9). ॐ यो वाघते मनेहसं स्वाहा।
(10). ॐ प्रनूनं चक्रिरे स्वाहा।
(11). ॐ तमिद्वोचे अश्नवत्स्वाहा।
(12). ॐ को देव क्षयं दघे स्वाहा।
(13). ॐ उप क्षत्रं वज्रिण: स्वाहा।
(14). ॐ गणानां त्वा सादनं स्वाहा।
(15). ॐ देवाश्चित्ते ब्रह्मणामसि स्वाहा।
(16). ॐ आ विबाध्या स्वर्विदं स्वाहा।
(17). ॐ सुनीति महित्वनं स्वाहा।
(18). ॐ न तमंहो ब्रह्मणस्पते स्वाहा।
(19). ॐ त्वं नो हरस्वती स्वाहा।
(20). ॐ उत वा यो कृधि स्वाहा।
(21). ॐ त्रातारं मुन्नशन् स्वाहा।
(22). ॐ त्वया वयं अनप्नस: स्वाहा।
(23). ॐ त्वया व यमु तारिषी महि स्वाहा।
(24). ॐ अनानुदो हर्षिण: स्वाहा।
(25). ॐ अदेवे शर्धत: स्वाहा।
(26). ॐ भरेषु रथाँ इव स्वाहा।
(27). ॐ तेजिष्ठया अर्दय स्वाहा।
(28). ॐ बृहस्पते धेहि चित्रं स्वाहा।
(29). ॐ मा न: साम्नोविदु: स्वाहा।
(30). ॐ विश्वेभ्यो. धर्मरि स्वाहा।
(31). ॐ तव श्रिये. अर्णवं स्वाहा।
(32). ॐ ब्रह्मणस्पते सुवीरा: स्वाहा।
(33). ॐ सेमा नो मर्ति स्वाहा।
(34). ॐ यो नं त्वा पर्वतं स्वाहा।
(35). ॐ तद्देवानां व्यचक्षय स्वाहा।
(36). ॐ अश्मास्य समुद्रिणं स्वाहा।
(37). ॐ सना ता ब्रह्मणस्पति: स्वाहा।
(38). ॐ अमिनक्ष युरा विशं स्वाहा।
(39). ॐ ऋतावान: जहुर्हि तं स्वाहा।
(40). ॐ ऋतज्येन कर्णयोनय: स्वाहा।
(41). ॐ स संनय वृथा स्वाहा।
(42) ॐ विभु प्रभु विश: स्वाहा।
(43). ॐ जोऽवरे ब्रह्मणस्पति: स्वाहा।
(44). ॐ विश्वं सत्यं जिगातं स्वाहा।
(45). ॐ उताशिष्ठा ब्रह्मणस्पति: स्वाहा।
(46). ॐ ब्रह्मणस्पते पृथक् स्वाहा।
(47). ॐ ब्रह्मणस्पते वेषे मे हवं स्वाहा।
(48). ॐ ब्रह्मणस्पते त्वम सुवीरा: स्वाहा।
(49). ॐ इन्धानो ब्रह्मणस्पति: स्वाहा।
(50). ॐ वीरेभि ब्रह्मणस्पति: स्वाहा।
(51). ॐ सिन्हु ब्रह्मणस्पति: स्वाहा।
(52). ॐ तस्मा ब्रह्मणस्पति: स्वाहा।
(53). ॐ तस्मा इ ब्रह्मणस्पति: स्वाहा।
(54). ॐ ऋजुरि भोजनं स्वाहा।
(55). ॐ यजस्व वृणीमहे स्वाहा।
(56). ॐ स इज्ज ब्रह्मणस्पर्ति स्वाहा।
(57). ॐ योऽअस्मै रद्भुत: स्वाहा।
(58). ॐ तमु ज्येष्ठं राजा स्वाहा।
(59). ॐ इयं वा मराती: स्वाहा।
(60). ॐ चत्तो इत द्दषन्निहि स्वाहा।
(61). ॐ अदो य परस्तरं स्वाहा।
(62). ॐ अग्निर्येन समिदं कुरु स्वाहा।
(63). ॐ यत्र बाणा: शर्म यच्छतु स्वाहा।
(64). ॐ यदिन्द्र ब्रह्मणस्पते. पात्वंहस: स्वाहा।
एवं ब्रह्मणस्पतिसूक्तमन्त्राणां हवनं कृत्वा 1,302 आहुतिभि: ब्रह्मादिमण्डलदेवता: प्रत्येकं तिलैर्वा घृतेन-एकैकयाहुत्यादशदश वा यष्टव्या: ।
(द्रव्यका: दूर्वाङ्कुरद्रव्यम् कीर्तिकाम: लाजाद्रव्यम्, इष्टमनोरथार्थसिद्धयर्थं मोदकद्रव्यम्, गृह्लीयात्।
शेषेण स्विपृकृत्। अन्वाधानोक्तरीत्या होमं संपाद्य पूर्णाहुतिं दत्वा संस्रवादि कृत्वा होमशेषं समापयेत्।
ततश्च प्रार्थयेत्।
देहेन वाचामनसा कृतान्मे सांसर्गिकान् जागृतस्वप्नजातान्। सौषुप्ततौर्यान् सकलापराधान् क्षमस्व. हेरम्ब दयानिधे त्वम्॥
ततश्चाभिषेक:। ततश्चाभिषेक:। आचार्य: सदारं यजमानमभिर्षिचेत् ।
तथा च रजामान: अग्निपूजनं कृत्वा विमूतिधारणं कुर्यात्।
कर्मण: साङ्गतासिद्धयर्थं यथाशक्ति गोप्रदानादिचदक्षिणां आचार्यादिभ्य: दत्वा ब्राह्मणभोजनसंकल्पं कुर्यात्।
तथा च स्थापितदेवतादीनां विसर्जनं कृत्वा तत्सर्वं आचार्याय दत्व पीठदानादिकं कुर्यात्।
प्रतिमा विसर्जन मन्त्र: ::
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने त्वं गणेश्वर।
कर्मणानेन मे नित्यं यथोक्तफलदो भव॥ प्रतिमादानमन्त्रा:।
गणेशप्रतिमां श्रेष्ठां वस्त्रयुग्मसंमन्विताम्।
तुभ्यं संप्रददे विप्र प्रीयतां मे गजानन:॥1॥
गणेश: प्रतिगृह्लाति गणेशो वे ददाति च।
गणेशस्तारको हात्र गणेशाय नमो नम:॥2॥
विनायक गणेशान सर्वदेवनमस्कृत।
पार्वतीप्रिय विघ्नेश मम विघ्नं विनाशय॥3॥
भूयसीदक्षिणादानं कृत्वा एतत्कर्म गणपतिप्रीत्यर्थं प्ररमेश्वरार्पणं कुर्यात्।
ब्राह्मणेभ्य: कर्मसम्पूर्णतां वाचयित्वा तेभ्य: आशिष: गृहीत्वा सर्वै: आचार्यादिभि: साकं भुञ्जीयात्।
भोजनोत्तरं ताम्बूलदक्षिणां दत्वा आशिष: गृह्लीयात्।
ब्रह्मणस्पतिसूक्तहोमविधि: सुसंपुर्णं॥
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- गुत्समद, भार्गवः, देवता :- बृहस्पति, ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
सेमामदिड्ढि प्रभृतिं य ईशिषेऽया विधेम नवया महा गिरा।
यथा नो मीढ्वान्त्स्तवते सखा तव बृहस्पते सीषधः सोत नो मतिम्॥
हे ब्रह्मण स्पति! आप सम्पूर्ण संसार के स्वामी हैं। हमारे द्वारा भली-भाँति की गई स्तुति को ग्रहण करें। हम आपकी इस नवीन और बृहत् स्तुति के द्वारा सेवा करते हैं। हमें अभिमत फल प्रदान करें; क्योंकि हम आपके मित्र हैं। हम स्तोता आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.1]
हे ब्रह्मणस्पति देव! तुम संसार के अधीश्वर हो। हमारी वंदना को स्वीकार करो। हम इस नवीन श्लोक द्वारा तुम्हारी अर्चना करते हैं। हम तुम्हारे मित्र हैं। हमको इच्छित फल प्रदान करो। यह वंदनाकारी तुम्हारी पूजा करते हैं।
Hey Brahman Spati Dev! You are the lord of the whole universe. Accept our prayer-worship. We serve you with the new detailed prayer. Grant us the desired boons, since we are your friend. We the devotees pray to you.
यो नन्त्वान्यनमन्न्योजसोतादर्दर्मन्युना शम्बराणि वि।
प्राच्यावयदच्युता ब्रह्मणस्पतिरा चाविशद्वसुमन्तं वि पर्वतम्॥
हे बृहस्पति देव! अपनी सामर्थ्य से आपने तिरस्करणीयों का तिरस्कार किया, क्रोध परवश होकर शम्बरासुर को विदीर्ण किया, निश्चल जल को चालित किया और गोधन पूर्ण पर्वत में प्रवेश किया।[ऋग्वेद 2.24.2]
तिरस्कार :: अपमान, अनादर, अवज्ञा; disdain, reproach, insult, taunt, spurn, sneer, slight, shame, scorn, repudiation, opprobrium, neglect, mock, affront, indignity, disrespect, disparagement, dishonour, disesteem, disdain, contumely, contempt, condemnation.
हे ब्रह्मण स्पति देव! तिरस्कार योग्य प्राणी को तुमने अपनी महत्ता से तिरस्कृत किया। शम्बर को मार डाला। रुके हुए जल को चलाया और जहाँ गायें छिपी थीं, उस पर्वत में घुस गये।
Hey Brahaspati Dev! You disdained those who deserved it, killed Shambrasur and released the blocked water, entered the mountain in which cows were hidden.
तद्देवानां देवतमाय कर्त्वमपश्रथ्न न्दृळ्हाव्रदन्त वीळिता।
उद्गा आजदभिनद्ब्रह्मणा वहमगूहत्तमो व्यचक्षयत्स्वः॥
देवश्रेष्ठ देव बृहस्पति के कार्य से सुदृढ़ पर्वत शिथिल हुआ और स्थिर वृक्ष भग्न हुआ। उन्होंने गाँवों का उद्धार किया। मंत्र द्वारा बलासुर को छिन्न-भिन्न किया। अन्धकार को अदृश्य कर आदित्य को प्रकट किया।[ऋग्वेद 2.24.3]
देवों में महान ब्रह्मण स्पति की वीरता से पर्वत दृढ़ हो गया तथा स्थिर पेड़ टूट गया। उन्होंने गाओं को मुक्त कराया और श्लोक से शक्ति नामक असुर को हटा दिया। सूर्य को प्रकट कर अंधकार को समाप्त किया।
The rigid-strong mountain became loose and the stationary tree was broken down due to the might of Dev Guru Brahaspati who is revered-honoured by all. He uplifted the villages. Killed-tore into pieces, Balasur with the Mantr Shakti. Removed the darkness to let Sun shine.
अश्मास्यमवतं ब्रह्मणस्पतिर्मधुधारमभि यमोजसातृणत्।
तमेव विश्वे पपिरे स्वर्दृशो बहु साकं सिसिचुरुत्समुद्रिणम्॥
बृहस्पति देव ने पत्थर की तरह दृढ़ मुख वाले मधुर जल से पूर्ण और निम्न अवनत जिस मेघ का बल प्रयोग द्वारा वध किया, उसका आदित्य किरणों ने जलपान किया और उन्होंने ही जलधारामय वृष्टि का सिंचन किया।[ऋग्वेद 2.24.4]
पाषाण के समान अटल और मधुर जलों से युक्त जिस मेघ का बृहस्पति ने भेदन किया, सूर्य की रश्मियों ने उससे रसपान कर जल की वर्षा की और मिट्टी (धरती) को सींचा।
The rays of Adity-Sun absorbed the sweet water released when Brahaspati Dev killed the Megh who had a rigid mouth like stone & was full of sweet water, with might. This water turned into rain and irrigated the soil.
सना ता का चिद्भुवना भवीत्वा माद्भिः शरद्भिर्दुरो वरन्त वः।
अयतन्ता चरतो अन्यदन्यदिद्या चकार वयुना ब्रह्मणस्पतिः॥
हे ऋत्विको! आपके ही लिए बृहस्पति के सनातन और विचित्र प्रज्ञान ने महीने-महीने और साल साल होने वाली वर्षा का द्वार उद्घाटित किया। इस प्रकार द्यावा पृथ्वी दोनों परस्पर जल का उपभोग करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.5]
हे मनुष्यों! ब्रह्मण स्पति ने तुम्हारे लिए ही सनातन और दिव्य वृष्टि कर दरवाजा खोला और उन्होंने मंत्रों को अद्भुतता प्रदान की और अम्बर, धरा को सुख वृद्धि करने वाला बनाया।
Hey humans-Ritviz! This is how Brahaspati used his ancient and amazing knowledge to release water available to the earth and the sky throughout the year.
अभिनक्षन्तो अभि ये तमानशुर्निधिं पणीनां परमं गुहा हितम्।
ते विद्वांसः प्रतिचक्ष्यानृता पुनर्यत उ आयन्तदुदीयुराविशम्॥
विज्ञ अङ्गिरा लोगों ने चारों ओर खोजते हुए पणियों के दुर्ग में छिपाये हुए परमधन को प्राप्त किया। माया का दर्शन करके वे जिस स्थान से गये, फिर वहीं आ गये।[ऋग्वेद 2.24.6]
विद्वान अंगिराओं ने खोलकर पणियों के दुर्ग में छिपाये धन को प्राप्त किया। फिर माया को देख पूर्व स्थान को प्राप्त हुए।
The enlightened Angiras searched-traced the wealth-treasure hidden in the fort of Panis and came back to the same spot from where they had started-begun, having seen the spell (cast-Maya, illusion, enchantment).
ऋतावानः प्रतिचक्ष्यानृता पुनरात आ तस्थुः करेंयो महस्पथः।
ते बाहुभ्यां धमितमग्निमश्मनि नकिः षो अस्त्यरणो जहुर्हि तम्॥
सत्यवादी और सर्वज्ञाता अङ्गिरा लोग माया का दर्शन करके पुनः प्रधान मार्ग से उसी ओर गये। उन्होंने हाथों से जलाये अग्नि को पर्वत पर फेंका। पर्वतों को जलाने वाला अग्नि वहाँ इससे पूर्व नहीं था।[ऋग्वेद 2.24.7]
फिर अंगिराओं ने माया को देखकर उसी ओर गमन किया। उन्होंने अग्नि को जलाकर पहाड़ पर फेंका। पहाड़ों को जलाने वाले अग्निदेव वहाँ पर पहले नहीं थे।
Truthful, enlightened Angiras witnessed spell-enchantment and moved again through the same route. They threw Agni with their hands over the mountains. This was the first Agni which could burn the mountains. Prior to this it did not exist.
Dev Guru Brahaspati is Agni. He is the priest of the demigods-deities.
ऋतज्येन क्षिप्रेण ब्रह्मणस्पतिर्यत्र वष्टि प्र तदश्नोति धन्वना।
तस्य साध्वीरिषवो याभिरस्यति नृचक्षसो दृशये कर्णयोनयः॥
बृहस्पति बाण क्षेपक और सत्य रूप ज्यावाले हैं। वे जो चाहते हैं, धनुष के द्वारा प्राप्त कर लेते हैं। जिस बाण को वे फेंकते हैं, वह कार्य साधन में कुशल है। वे बाण दर्शनार्थ उत्पन्न हुए हैं। कर्ण ही उनका उत्पत्ति-स्थान है।[ऋग्वेद 2.24.8]
ब्रह्मणस्पति देव बाण फेंकने में निपुण हैं। वह अपना इच्छित अभिष्ट धनुष द्वारा ग्रहण कर लेते हैं। उनके द्वारा चलाया हुआ बाण कार्य को सिद्ध होते हैं।
Brahaspati is an expert in throwing-shooting the arrow. What ever he want-need he achieve with the help of bow & arrow. The abode-origin of the arrow is ear.
Whatever Brahman Spati aims at with the truth-strung quick-darting bow, that (mark-aim) he surely attains; holy are its arrows with which he shoots (intended) for the eyes of men and having their abode-origin in the ear.
स संनयः स विनयः पुरोहितः स सुष्टुतः स युधि ब्रह्मणस्पतिः।
चाक्ष्मो यद्वाजं भरते मती धनादित्सूर्यस्तपति तप्यतुर्वृथा॥
ब्रह्मण स्पति पुरोहित हैं। वे समस्त पदार्थों को पृथक् और एकत्र करते हैं। सब उनकी स्तुति करते हैं। वे युद्ध में निपुण होते हैं। सर्वदर्शी बृहस्पति जिस समय अन्न और धन धारण करते हैं, उस समय सूर्य स्वाभाविक रूप से उदित हो जाते हैं।[ऋग्वेद 2.24.9]
बाण स्पति पुरोहित रूप हैं। वे समस्त वस्तुओं को अलग करते और मिलाते हैं। सभी उनकी वंदना करते हैं। तभी सूर्योदय होता है।
Brahman Spati is a priest. He accumulate all goods separately. Everyone prayers-worship him. When enlightened Brahaspati bears-accumulate the food grains and wealth, the Sun rises.
विभु प्रभु प्रथमं मेहनावतो बृहस्पतेः सुविदत्राणि राध्या।
इमा सातानि वेन्यस्य वाजिनो येन जना उभये भुञ्जते विशः॥
वृष्टिदाता बृहस्पति देव का धन चारों ओर व्याप्त, प्रापणीय, प्रभूत और उत्तम है। कमनीय और अन्नवान् बृहस्पति देव ने यह सम्पूर्ण धन दान किया। दोनों प्रकार के मनुष्य (यजमान और ने स्तोता) ध्यानावस्थित चित्त से इस धन का उपभोग करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.10]
प्रभूत :: जो हुआ हो, निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर, पूर्ण, पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत, उद्गम; excellent, outstanding, regeneratory, ample, sufficient, abundant.
बृहस्पति देव वृष्टि देने वाले हैं। उनका धन सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने अन्न युक्त सम्पूर्ण धन दिया है। यजमान और स्तोता दोनों ही इस धन को तपस्यारत रहते हुए भोग करते हैं।
The wealth granted by the rain causing Brahaspati Dev is pervading in a all directions, acceptable, excellent and abundant. Attractive and food grain possessing Brahaspati dev has donated this wealth. Both the host-Ritviz and the Priests enjoy this wealth in a state of meditation-concentrating in God.
Dev Guru Brahaspati is associated with learning, knowledge, enlightenment, meditation, concentration, understanding; which is considered as the greatest wealth one can possess. it s never lost and can not be snatched-stolen by any one. It grants cultural values, ethics, adaptability etc.
Please refer to :: HINDU PHILOSOPHY (5) हिंदु दर्शन :: VIRTUES सद्गुण धर्माचरण & COMMANDMENTS :: HINDU PHILOSOPHY (14) हिंदु दर्शन santoshkipathshala.blogspot.com
योऽवरे वृजने विश्वथा विभुर्महामु रण्वः शवसा ववक्षिथ।
स देवो देवान्प्रति पप्रथे पृथु विश्वेदु ता परिभूर्ब्रह्मणस्पतिः॥
चारों ओर व्याप्त और स्तवनीय ब्रह्मण स्पति अतीव और महान् बली दोनों प्रकार के स्तोताओं की अपने शक्ति से रक्षा करते हैं। दानादि गुण वाले बृहस्पति देवों के प्रतिनिधि रूप से सर्वत्र अत्यन्त विख्यात है। इसीलिए वे सभी प्राणियों के स्वामी भी हुए हैं।[ऋग्वेद 2.24.11]
समस्त ओर बसे हुए वंदना योग्य, ब्रह्मणस्पति अपनी शक्ति से विद्वान और बलशाली दोनों प्रकार के मनुष्यों की सुरक्षा करते हैं। वे दानशील स्वभाव वाले देवों के नेता रूप से विख्यात हैं और वे समस्त प्राणधारियों के स्वामी हैं।
All pervading esteemed Brahman Spati protects both types of devotees with his power-might. He is famous for the donations-charity done by him. Hence, he is a Lord of the organism.
विश्वं सत्यं मघवाना युवोरिदापश्चन प्र मिनन्ति व्रतं वाम्।
अच्छेन्द्राब्रह्मणस्पती हविर्नोऽन्नं युजेव वाजिना जिगातम्॥
हे इन्द्र और ब्रह्मण स्पति आप धनवान् है। सभी सत्य आपको ही है। आपके व्रत को जल नहीं मार सकता। जिस प्रकार से रथ में जुते हुए घोड़े खाद्य के सामने दौड़ते हैं, उसी प्रकार आप भी हमारे हविष्यान् को ग्रहण करने के लिए पधारें।[ऋग्वेद 2.24.12]
हे इन्द्र देव! हे ब्रह्मण स्पति देव! तुम दोनों ऐश्वर्यवान हो। समस्त धन तुम्हारा है। तुम्हारे उद्देश्य को कोई नहीं रोक सकता। रथ में जुते घोड़ों के अन्न के प्रति दौड़ने के समान तुम भी हमारी हवियों के प्रति दौड़ते हुए आओ।
Hey Indr Dev & Brahman Spati! You are rich & opulent. All wealth is possessed by you. Your decisions can not be altered-changed by water (Vratr & other demons who intend to block rains, water). The way the horses deployed in the charoite rush towards the eatables, you too should run to accept our offerings.
उताशिष्ठा अनु शृण्वन्ति वह्नयः सभेयो विप्रो भरते मती धना।
वीळुद्वेषा अनु वश ऋणमाददिः स ह वाजी समिथे ब्रह्मणस्पतिः॥
युद्ध में बलवान् ब्रह्मणस्पति देव सभ्य ज्ञानी जनों के उत्तम धन को ही स्वीकार करते हैं और बलवान् शत्रुओं से द्वेष करते हैं। द्रुत गति से उड़ने वाले अश्व स्तुति को श्रवण करते हैं। वे ऋण से उऋण करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.13]
द्वेष :: राग का विरोधी भाव, वैमनस्यता, विरोध, शत्रुता, वैर; malice, hatred, enmity.
ब्रह्मणस्पति देव के घोड़े हमारी प्रार्थना सुना करते हैं। विद्वान अध्वर्यु सुन्दर श्लोक परिपूर्ण हवि प्रदान करते हैं।
Brahman Spati Dev accept help from the cultured and has malice-hatred for the wicked-sinners. Fast moving listen listen to the prayers and clear our debts.
The very swift horses of Brahman Spati listen to our invocation; the priest of the assembly offers with praise the sacrificial wealth; may Brahman Spati, the hater of the oppressor, accept the payment of the debt, agreeably to his plural Asure (anti demigods-deities, demons-giants); may he be the accepter of the sacrificial food presented at this ceremony.
ब्रह्मणस्पतेरभवद्यथावशं सत्यो मन्युर्महि कर्मा करिष्यतः।
यो गा उदाजत्स दिवे वि चाभजन्महीव रीतिः शवसासरत्पृथक्॥
जिस समय ब्रह्मण स्पति किसी महान् कर्म में प्रवृत्त होते हैं, उस समय उनका मंत्र उनकी अभिलाषा के अनुसार सफल होता है। जिन्होंने गौवों को बाहर निकाल कर विजय प्राप्त की। सतत् प्रवाहित नदियों की भाँति ये गौवें स्वतंत्र रूप से चली गई।[ऋग्वेद 2.24.14]
ब्रह्मण स्पति हमारे पास पधारकर मंत्र स्वीकृत करो। ब्रह्मण स्पति के किसी कार्य में लगने पर उनका मंत्र फलदायक होता है। उन्होंने धेनु को निकाला, सूर्य लोक के लिए उसका हिस्सा किया। वे धेनु महान श्लोक के अपनी शक्ति से गतिवती हुई है।
When Brahman Spati Dev begin some job-endeavour (accomplishment) his Mantr grant the reward-accomplishment, success as per his wish. He released the cows from the captivity and attained victory. The cows moved like the continuous flow of the rivers.
ब्रह्मणस्पते सुयमस्य विश्वहा रायः स्याम रथ्योवयस्वतः।
वीरेषु वीराँ उप पृङ्धि नस्त्वं यदीशानो ब्रह्मणा वेषि मे हवम्॥
हे ब्रह्मण स्पति! हम सभी व्रतों के पालक और अन्न युक्त धन के सदैव स्वामी रहें। आप सभी के नियन्ता है, इसलिए ज्ञानपूर्वक की गई हमारी स्तुतियों को ग्रहण करके हमें पराक्रमी संतान प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.24.15]
हे ब्रह्मणस्पति देव! हम श्रेष्ठ नियम वाले अन्न व धन तुल्य अलग-अलग के स्वामी बने। तुम हमारे योद्धा पुत्र को संताप न दो। तुम सबके दाता हमारी वंदना और अन्न रूपी हवि की कामना करते हैं।
Hey Brahman Spati! Let us remain the followers-conducting all fasts, vows & the owner of food grains along with wealth. You are the controller-regulator of all. Listen-respond to our prayers and grant us progeny with strength, power & might.
ब्रह्मणस्पते त्वमस्य यन्ता सूक्तस्य बोधि तनयं च जिन्व।
विश्वं तद्भद्रं यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥
हे ब्रह्मण स्पति! आप इस संसार के नियामक है। आप इस सूक्त को जाने। आप हमारी सन्ततियों को प्रसन्न करें। देवता लोग जिसकी रक्षा करते हैं, उसका हर प्रकार से कल्याण होता है। पुत्र और पौत्र वाले होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति कर सकें।[ऋग्वेद 2.24.16]
हे ब्रह्मण स्पति! तुम संसार के नियामक हो। हमारे श्लोक को जानते हुए हमारी संतानों को सुखी बनाओ। देवगण जिसकी सुरक्षा करते हैं, वही कल्याण को वहन करने वाला होता है। पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण हुए हम इस अनुष्ठान में श्लोक बोलेंगे।
Hey Brahman Spati! You are the regulator of this universe. Know-understand, recognise this Shlok-Sukt. Grant pleasure-comforts to our progeny. One who is protected by the demigods-deities achieves all round growth-development, welfare. On being blessed with sons & grand sons, let us make excellent prayers.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- गुत्समद, भार्गवः, देवता :- ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती।
इन्धानो अग्निं वनवद्वनुष्यतः कृतब्रह्मा शूशुवद्रातहव्य इत्।
जातन जातमति स प्र सर्सृते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः॥
अग्नि को प्रज्वलित करके यजमान शत्रुओं को पराजित कर सके। स्तोत्र पढ़ते और हव्य दान करते हुए यजमान समृद्धि प्राप्त कर सके। जिस यजमान को मित्र कहकर ब्रह्मणस्पति अंगीकार करते हैं, वह पुत्र के पुत्र से भी अधिक जीवित रहता है।[ऋग्वेद 2.25.1]
अग्नि को प्रज्वलित करने वाला यजमान शत्रु में समर्थ हो। वंदना और हविधान द्वारा समद्ध हो।
Let the friend-host, Ritviz be able to ignite fire (invoke Brahaspati Dev) and defeat the enemy. Let him gain riches while reciting Strotr addressed to Brahaspati Dev making offerings. The devotee whom Brahaspati address as friend, gain longevity more than his grandson.
INVOKE :: लागू, आह्वान करना, विनती करना, अभिमंत्रित करना; implement, bless, entreat, pray, sue, urge.
वीरेभिर्वीरान्वनवद्वनुष्यतो गोभी रयिं पप्रथद्बोधति त्मना।
तोकं च तस्य तनयं च वर्धते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः॥
जिस यजमान को ब्रह्मण स्पति अपने मित्र रूप में स्वीकार कर लेते हैं, वह अपने बलशाली पुत्रों के द्वारा हिंसा करने वाले शत्रुओं के वीर पुत्रों का वध करता है। वह गोधन से समृद्ध होता हुआ ज्ञानी बनता है। ब्रह्मण स्पति उसे पुत्र-पौत्रों से समृद्ध बनाते हैं।[ऋग्वेद 2.25.2]
जिस यजमान से ब्रह्मणस्पति देव मित्र भाव रखते हैं, वह पौत्र से भी अधिक समय तक जीवित रहता है। यजमान अपने वीर पुत्रों द्वारा दुश्मनों के पुत्रों पर विजय प्राप्त कराएँ। वह गौ धन युक्त, पौत्र प्रसद्धि एवं सर्वज्ञाता है। जिसे ब्रह्मणस्पति सूखी मानते हैं, उसके पुत्र-पौत्र भी समृद्ध होते हैं।
The host (Ritviz, devotee) who is accepted-adopted as a friend by the Brahman Spati Dev, kills the mighty sons of he enemy with the help of his strong-powerful sons. He gains-attains cows as wealth and become enlightened. Brahman Spati bless him with sons and grand sons.
सिन्धुर्न क्षोदः शिमीवाँ ऋघायतो वृषेण वध्रीँरभि वष्ट्योजसा।
अग्निरिव प्रसितिर्नाह वर्तवे यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः॥
जिस प्रकार से नदी तट को तोड़ती है, साँड़ जैसे बैलों को पराजित करता है, उसी प्रकार बृहस्पति देव की सेवा करने वाला यजमान अपनी शक्ति से शत्रुओं को पराजित करता है। जिस प्रकार अग्नि शिखा का निवारण नहीं किया जाता, उसी प्रकार ब्रह्मण स्पति जिस यजमान को मित्र कहकर ग्रहण करते हैं, उसका भी निवारण नहीं किया जा सकता।[ऋग्वेद 2.25.3]
नदी के प्रवाह से कछार टूटते हैं, सांड ऋषभों को पराजित करता है, उसी प्रकार ब्रह्मणस्पति देव का सेवक अपनी शक्ति से शत्रुओं की शक्ति को ध्वस्त करता पराजित करता है। अग्नि की शिखा को जैसे कोई नहीं रोक सकता वैसे ही ब्रह्मणस्पति देव से मित्र भाव पाये हुए यजमान को कोई नहीं रोक सकता।
The way a river breaks-destroys its banks, the bull defeat the oxen. The host serving Brahaspati Dev defeat his enemy with his power-might. The way the tip of the flame can not be blocked, the hosts adopted as friend, can not be blocked-stopped.
तस्माअर्षन्तिदिव्या असश्चतः स सत्वभिः प्रथमो गोषु गच्छति।
अनिभृष्टत विर्हिन्त्योजसा यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः॥
जिस यजमान को बृहस्पति मित्र कहकर ग्रहण करते हैं, उसके पास अप्रतिहत निर्झरिणी होकर स्वर्गीय जल आता है। परिचर्याकारियों में भी वही सबसे पहले गोधन प्राप्त करता है। उसका बल अनिवार्य है। वह बल द्वारा शत्रुओं का विनाश करता है।[ऋग्वेद 2.25.4]
ब्रह्मण स्पति की सेवा करने वाला यजमान सर्वप्रथम तो गौ रूपी धन पाता है। अपने पराक्रम से शत्रुओं को मारता है। जिसे वे मंत्री रूप में स्वीकार करते हैं। वे मैत्री भाव से देखते हैं कि उसी ओर सभी रस प्रवाहित होते हैं।
One adopted as a friend by Brahaspati Dev gets the water from heavens continuously. He gets maximum cows, amongest those service him. He becomes strong and kills-destroys the enemy.
तस्मा इद्विश्वे धुनयन्त सिन्धवोऽच्छिद्रा शर्म दधिरे पुरूणि।
देवानां सुम्ने सुभगः स एधते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः॥
जिस यजमान को मित्र रूप से ब्रह्मण स्पति ग्रहण करते हैं, उसकी ओर समस्त नदियाँ प्रवाहित होती हैं। वह सदा नानाविध सुख का उपभोग करता है। वह सौभाग्यशाली होता है और वह देवताओं द्वारा प्रदत्त सुख तथा समृद्धि को प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 2.25.5]
वे विविध अलौकिक रसपान करने में सक्षम होते हैं। जिस यजमान को ब्रह्मण स्पति देव मित्र भाव से देखते हैं उसी तरफ समस्त रस प्रवाहमान होते हैं। वह विविध सुखों का उपभोग करने वाला महान भाग्य से परिपूर्ण समृद्धि ग्रहण करता है।
One who is accepted as friend by Braham Spati Dev sees the flow of all rivers-amenities towards him. He continue enjoying all sorts of comforts-luxuries and is lucky. He is blessed with all amenities from the demigods-deities and progress in life.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- गुत्समद, भार्गव, देवता :- ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती।
ऋजुरिच्छंसो वनवद्वनुष्यतो देवयन्निददेवयन्तमभ्यसत्।
सुप्रावीरिद्वनवत्पृत्सु दुष्टरं यज्वेदयज्योर्वि भजाति भोजनम्॥
ब्रह्मण स्पति का सरल स्तोता शत्रुओं का विनाश कर डालें। देवाकांक्षी अदेवाकांक्षी को पराभूत कर डाले। जो बृहस्पति देव को अच्छी तरह तृप्त करता है, वह युद्ध में दुर्धर्ष शत्रुओं का विनाश करता है। यज्ञ परायण अयाज्ञिक के धन का उपभोग करता है।[ऋग्वेद 2.26.1]
ब्रह्मणस्पति की वंदना करने वाला शत्रुओं को समाप्त करें। देवताओं का आराधक देव-विहीनों को पराजित करे। ब्रह्मणस्पति देव को संतुष्ट करने वाला संग्राम में भयंकर शत्रुओं का नाश करता है। याज्ञिक यज्ञ द्वेषियों का धन ग्रहण करता है।
Let one who sing Strotr in the honour of Brahman Spati Dev, be able to destroy the enemies. Those who wish to have rapport with the demigods-deities, be able to kill demons-those who are against the demigods-deities. One who thoroughly satisfy-pray to Brahaspati Dev destroy the enemy in the battle field. One who resort to Yagy is capable of utilising the wealth of those who abstain from Yagy.
यजस्व वीर प्र विहि मनायतो भद्रं मनः कृणुष्व वृत्रतूर्ये।
हविष्कृणुष्व सुभगो यथाससि ब्रह्मणस्पतेरव आ वृणीमहे॥
हे वीर! आप ब्रह्मण स्पति की स्तुति करें। अभिमानी शत्रुओं के विरुद्ध यात्रा करें। शत्रुओं के साथ संग्राम में मन को दृढ़ करें। ब्रह्मण स्पति के लिए हव्य तैयार करें। वैसा करने पर आप उत्तम धन पायेंगे। हम ब्रह्मण स्पति से रक्षा की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 2.26.2]
ब्रह्मण स्पति देव की वंदना करो। अहंकारी पर आक्रमण करो । संयम में अटल हों। ब्रह्मण स्पति देव के लिए हवि तैयार करने पर उत्तम धन प्राप्त करोगे। हम उनकी रक्षा चाहते हैं।
Hey mighty! Pray to Brahman Spati. Raid-attack the arrogant enemies. Have a firm determination for war with the enemies. Prepare-ready offerings for Brahman Spati. On doing this, one will get best riches-wealth. We pray to Brahman Spati for our protection.
स इज्जनेन स विशा स जन्मना स पुत्रैर्वाजं भरते धना नृभिः।
देवानां यः पितरमाविवासति श्रद्धामना हविषा ब्रह्मणस्पतिम्॥
जो यजमान श्रद्धावान् होकर देवों के पिता ब्रह्मण स्पति की हव्य द्वारा सेवा करता है, वह अपने मनुष्य और आत्मीय, अपने पुत्र और अन्यान्य परिचारकों के साथ अन्न और धन प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 2.26.3]
देवगणों के पिता ब्रह्मण स्पति देव की जो यजमान विनय पूर्वक सेवा करता है वह अपने संवर्धन एवं संतान से युक्त हुआ अन्न और धन पाता है।
The faithful-devotee who serve Brahman Spati with offerings, get food grain and money for his dependents, relatives, sons, slaves and servants
यो अस्मै हव्यैर्घृतवद्भिरविधत्प्र तं प्राचा नयति ब्रह्मणस्पतिः।
उरुष्यतीमंहसो रक्षती रिर्षो ३ होश्चिदस्मा उरुचक्रिरद्भुतः॥
जो ब्रह्मण स्पति की सेवा घृत युक्त हव्य से करता है, उसे ब्रह्मण स्पति प्राचीन सरल मार्ग से ले जाते हैं। उसे वे पाप, शत्रु और दरिद्रता से बचाते हैं। आश्चर्यजनक रूप से ब्रह्मण स्पति उसका महान् उपकार करते हैं।[ऋग्वेद 2.26.4]
जो यजमान घृत परिपूर्ण हवि से ब्रह्मण स्पति देव को सेवा करता है उस वे आसान मार्ग पर चलाते हैं एवं पाप, निर्धनता और शत्रु से बचाते हैं। वे उसके कार्य सिद्ध करते हैं।
The host-Ritviz who serve Brahman Spati with offerings mixed with Ghee, is taken away by a simple route. He protect him from sins, enemies and poverty. Brahman Spati help him in amazing manner.
बृहस्पते जुषस्व नो हव्यानि विश्वदेव्य। रास्व रत्नानि दाशुषे॥
हे समस्त देवताओं के हितकर बृहस्पति देव! हम लोगों के पुरोडाश (हवि) आदि का सेवन करें। तदनन्तर हवि देने वाले याजक गण को आप उत्तम धन दें।[ऋग्वेद 3.62.4]
हे बृहस्पते! तुम सभी सज्जनों को भलाई करने वाले हो। हमारे द्वारा दी जाने वाली हवि को स्वीकृत करो। हविदाता यजमान को महान तथा रमणीय धन प्रदान करो।
Hey well wisher of demigods-deities Brahaspati Dev! Eat the Purodas offered by us. Thereafter, grant wealth to the Ritviz-organisers of the Yagy.
शुचिमर्कैर्बृहस्पतिमध्वरेषु नमस्यत। अनाम्योज आ चके॥
हे ऋत्विको! आप लोग यज्ञ-समूह में अर्चनीय स्तोत्रों द्वारा विशुद्ध बृहस्पति की परिचर्या करें। मैं शत्रुओं द्वारा अपराजेय बल व पराक्रम की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.62.5]
हे ऋत्विजों! तुम महान श्लोकों द्वारा बृहस्पति को यज्ञ आदि शुभ कर्मों के मौकों पर प्रणाम द्वारा अर्चना करो। मैं उनसे ही शत्रु द्वारा कभी न झुकाए जा सकने वाले पराक्रम की याचना करता हूँ।
Hey Ritviz! Pray to Brahaspati Dev with the worship able sacred Strotr-hymns. I request power & might to be a winner against the enemy.
वृषभं चर्षणीनां विश्वरूपमदाभ्यम्। बृहस्पतिं वरेण्यम्॥
मनुष्यों के लिए अभिमत फल वर्षक, विश्वरूप नामक गोवाहन से युक्त अतिरस्करणीय और सभी के द्वारा भजनीय बृहस्पति देव के निकट मैं अभिमत फल की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.62.6]
समस्त व्यक्तियों में सभी सुखों की वर्षा करने में समर्थ, सभी आदर पाने योग्य, किसी के द्वारा भी हिंसित न होने वाले, शक्तिशाली सभी पर कृपा दृष्टि करने वाले उत्तम मार्ग पर शिक्षा देने वाले बृहस्पति सभी पदार्थों के जानने वाले हैं। उनको नमस्कार करो।
I worship-pray to the showerer of benefits over the humans, the omni form, the irreproachable, the excellent Brahaspati Dev.
I pray-request to Brahaspati Dev who is revered-honoured by all (the demigods-deities & the demons as well) grant-accomplish unlimited desires of the humans.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र देव, बृहस्पति, छन्द :- गायत्री।
इदं वामास्ये हविः प्रियमिन्द्राबृहस्पती। उक्थं मदश्च शस्यते॥
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों के मुँह में हम इस प्रिय सोमरूप हवि का प्रक्षेप करते हैं। हम आप दोनों को उक्थ (शस्त्र) और मद जनक सोमरस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 4.49.1]
हे इन्द्रदेव और बृहस्पति! तुम परमप्रिय सोमरूपी हविरत्न को तुम दोनों के मुख में डालते हैं। तुम दोनों को हम हर्षकारक सोमरस प्रदान करते हैं।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! We pour Somras as offering in your mouth. Somras gives joy-pleasure.
अयं वां परि षिच्यते सोम इन्द्राबृहस्पती। चारुर्मदाय पीतये॥
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव ! आप दोनों के मुँह में पान के लिए और हर्ष के लिए यह मनोहर सोमरस भली-भाँति से दिया जाता है।[ऋग्वेद 4.49.2]
हे इन्द्रदेव और बृहस्पति! तुम दोनों की दृष्टि के लिए तथा पान करने के लिए वह सुस्वादु सोमरस हम तुम्हारे मुख में डालते हैं।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! For your pleasure we provide you tasty Somras, to drink.
आ न इन्द्राबृहस्पती गृहमिन्द्रश्च गच्छतम्। सोमपा सोमपीतये॥
हे सोमरस पान करने वाले इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों सोमरस पान के लिए हमारे यज्ञगृह में पधारें।[ऋग्वेद 4.49.3]
हे इन्द्र देव और बृहस्पति! आप दोनों सोमरस पीने वाले हो। आप दोनों हमारे यज्ञ भवन में सोम पीने के लिए आओ।
Somras drinking Indr Dev & Brahaspati Dev! Visit our Yagy site to drink Somras.
अस्मे इन्द्राबृहस्पती रयिं धत्तं शतग्विनम्। अश्वावन्तं सहस्रिणम्॥
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों हमें सैकड़ों गौएँ और हजारों अश्वों से युक्त ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.49.4]
हे इन्द्र और बृहस्पति! आप दोनों ही हमें सैकड़ों गायों और हजारों अश्वों से युक्त धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! Grant us grandeur constituting of hundreds of cows & thousands of horses.
इन्द्राबृहस्पती वयं सुते गीर्भिर्हवामहे। अस्य सोमस्य पीतये॥
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! सोमरस के अभिषुत होने पर हम स्तुति द्वारा आप दोनों का सोमरस पान के लिए आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 4.49.5]
हे इन्द्र और बृहस्पते! हम तुम्हें सोम रस पीने के लिए बुलाते हैं।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! We invite-invoke your enjoying Somras.
सोममिन्द्राबृहस्पती पिबतं दाशुषो गृहे। मादयेथां तदोकसा॥
हे इन्द्र देव और बृहस्पति देव! आप दोनों हव्यदाता याजकगण के घर में सोमरसपान करें और उसके घर में निवास करके हर्षित होवें।
हे इन्द्र देव और बृहस्पते! हवि प्रदान करने वाले यजमान के गृह में निवास करते हुए आप दोनों सोम पान करके हर्षित हो जाओ।
Hey Indr Dev & Brahaspati Dev! Both of you enjoy Somras at the residence of the Ritviz and be pleased with them.(25.04.2023)
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- वामदेव गौतम, देवता :- इन्द्र देव, बृहस्पति, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
यस्तस्तम्भ सहसा वि ज्मो अन्तान्बृहस्पतिस्त्रिषधस्थो रवेण।
तं प्रत्नास ऋषयो दीध्यानाः पुरो विप्रा दधिरे मन्द्रजिह्वम्॥
वेद या यज्ञ के पालयिता बृहस्पति देव ने बलपूर्वक पृथ्वी की दसों दिशाओं को स्तम्भित किया। वे शब्द द्वारा तीनों स्थानों में वर्तमान हैं। उन आह्लादक जिह्वा विशिष्ट बृहस्पति देव को पुरातन, द्युतिमान मेधावियों ने पुरोभाग में स्थापित किया है।[ऋग्वेद 4.50.1]
वेद रक्षक बृहस्पति ने अपनी शक्ति से पृथ्वी की दसों दिशाओं को अपने वशीभूत किया। वे ध्वनि तीनों लोकों में विद्यमान हैं। उन विशिष्ट जिह्वा वाले, हर्षिता प्रदान करने वाले बृहस्पति को प्राचीन मुनियों ने पंडित के पद पर दृढ़ किया।
Protector-saviour of Veds Brahaspati stunned-controlled, over powered the all ten directions with might. They are present in three directions. The ancient scholars-enlightened established Brahaspati, who speaks pleasant, as a prime intellectual.
SAVIOUR :: रक्षक, मुक्तिदाता, उद्धारक, बचानेवाला; protector, defender, keeper, life saver, intercessor, rescuer, salvation, upholder, saver.
धुनेतयः सुप्रकेतं मदन्तो बृहस्पते अभि ये नस्ततस्त्रे।
पृषन्तं सुप्रमदब्धपूर्वं बृहस्पते रक्षतादस्य योनिम्॥
हे प्रभूत प्रज्ञावान बृहस्पति देव! जिनकी गति शत्रुओं को कँपाने वाली है, जो आपको आनन्दित करते हैं और जो आपकी प्रार्थना करते हैं, उनके लिए आप फलप्रद, वर्द्धन शील और अहिंसित होते हुए आप उनके विस्तृत यज्ञ की रक्षा करते है।[ऋग्वेद 4.50.2]
हे मेधावी बृहस्पति देव! तुम्हारी गति से शत्रुगण भयभीत हो जाते हैं जो आपको पुष्ट करने के लिए स्तुति करते हैं, तुम उनके लिए फल देने वाले, वृद्धि करने वाले तथा हिंसा रहित होते हो और तुम उनके श्रेष्ठ यज्ञ के पालनकर्त्ता हो।
Hey intelligent Brahaspati Dev! Your mighty create-generate fear amongest the enemy, though you are non violent. You support the vast-large scale Yagy of those, who worship-pray you, reward them & lead to their progress.
बृहस्पते या परमा परावत आ त ऋतस्पृशो नि षेदुः।
तुभ्यं खाता अवता अद्रिदुग्धा मध्वः श्चोतन्त्यभितो विरप्शम्॥
हे बृहस्पति देव! जो अत्यन्त दूरवर्ती स्वर्ग नामक उत्कृष्ट स्थान है, उस स्थान से आपके अश्व यज्ञ में आगमन करके प्रसन्न होते हैं। खात कूप के चारों तरफ से जिस प्रकार से जल स्राव होता है, उसी प्रकार से आपके चारों ओर स्तुतियों के साथ प्रस्तर द्वारा अभिषुत सोम मधुर रस का अभिसिञ्चन करता है।[ऋग्वेद 4.50.3]
हे बृहस्पति देव! जो दूरस्थ अद्भुत संसार है, वह अत्यन्त उत्कृष्ट है, वहाँ से तुम्हारे अश्व इस अनुष्ठान में आते हैं। जैसे खाद्य से भरे हुए कुएँ के चारों तरफ जल उबलता है, वैसे ही पाषाण द्वारा निष्पन्न मधुर सोमरस वंदनाओं के द्वारा तुम्हें चारों तरफ खींचता है।
Hey Brahaspati Dev! Horses become happy on being arrived from the distant heavens to the Yagy. The manner in which water discharges into the well, prayer-worship hover all around you and Somras obtained by crushing with stone, attracts you.
बृहस्पतिः प्रथमं जायमानो महो ज्योतिषः परमे व्योमन्।
सप्तास्यस्तुविजातो रवेण वि सप्तरश्मिरधमत्तमांसि॥
मन्त्राभिमानी बृहस्पति देव जब महान सूर्य देव के निरतिशय आकाश में प्रथम जायमान हुए, तब सप्त छन्दोमय मुख विशिष्ट होकर और बहु प्रकार से सम्भूत होकर तथा शब्द युक्त एवं गमनशील तेजो विशिष्ट होकर उन्होंने अन्धकार का नाश कर दिया।[ऋग्वेद 4.50.4]
जब वे मंत्रज्ञ बृहस्पति सूर्यमण्डल में प्रथम बार प्रकट हुए, तब मुख से सप्त छंदोमय तथा शब्द से युक्त होकर उन गमनशील बृहस्पति ने अपने तेज से तम को नष्ट किया।
When expert of Mantr Shakti Brahaspati Dev appeared in the solar system-space for the first time, he recited the seven couplets composed of six stanzas and spelled several other related words, acquiring radiance-aura and vanished the darkness.
स सुष्टुभा स ऋक्वता गणेन वलं रुरोज फलिगं रवेण।
बृहस्पतिरुस्त्रिया हव्यसूदः कनिक्रदद्वावशतीरुदाजत्॥
बृहस्पति देव ने दीप्ति युक्त और स्तुति शाली अङ्गिरा गण के साथ शब्द द्वारा बल नामक असुर को विनष्ट किया। उन्होंने शब्द करके भोग प्रदात्री और हव्य प्रेरिका गौओं को बाहर निकाला।[ऋग्वेद 4.50.5]
उन बृहस्पति ने वंदना करती हुई अंगिराओं सहित घोर शब्द द्वारा "बल" नामक असुर का संहार किया। उन्होंने शब्द से ही श्रेष्ठ दूध प्रदान करने वाली गायों को गुफा से निकाला था।
Brahaspati Dev associated with aura-radiance and the Angiras killed the demons names Bal. He uttered words which derived the milch cows out of the caves. These cows grant comforts and inspire offerings.
Brahaspati-Jupiter in the largest planet in space which emit light just like Sun.
एवा पित्रे विश्वदेवाय वृष्णे यज्ञैर्विधेम नमसा हविर्भिः।
बृहस्पते सुप्रजा वीरवन्तो वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
हम लोग इस प्रकार से पालक, सर्व देवता स्वरूप और अभीष्ट वर्षी बृहस्पति देव की यज्ञ द्वारा, हव्य द्वारा और स्तुति द्वारा, सेवा करेंगे। हे बृहस्पति देव! हम लोग जिससे सुपुत्रवान, वीर्यशाली और धन के स्वामी हो सकें।[ऋग्वेद 4.50.6]
हे बृहस्पति! सभी के देव स्वरूप, पोषण करने वाले, अभिलाषाओं की वृद्धि करने वाले हैं, हम अनुष्ठान में हविरल द्वारा वंदना किये उनकी प्रार्थना करेगे, जिससे हम संतान तथा शक्ति से परिपूर्ण समृद्धि का स्वामित्व ग्रहण कर सकें।
Hey Brahaspati Dev! You are the nurturer of all, like the Sun-Sury Dev & accomplish desires. We will make offerings and prayers for you, serve you to have virtuous sons, have wealth and might.
स इद्राजा प्रतिजन्यानि विश्वा शुष्मेण तस्थावभि वीर्येण।
बृहस्पतिं यः सुभृतं बिभर्ति वल्गयति वन्दते पूर्वभाजम्॥
जो बृहस्पति देव का सुन्दर रूप से पोषण करता है एवं उन्हें प्रथम हव्यग्राही कहकर उनकी स्तुति कर नमस्कार करता हैं, वह राजा अपने वीर्य द्वारा शत्रुओं के बल को अभिभूत करके अवस्थित करता है।[ऋग्वेद 4.50.7]
जो सम्राट बृहस्पति का भली प्रकार रक्षक है तथा प्रथम हव्य स्वीकार करने वाला मानकर उनको हवि प्रदान करता हुआ प्रणाम युक्त वंदना करता है। वह नृप अपने बल से शत्रुओं को सामर्थ्य को निरर्थक करता हुआ उसे हर लेता है।
The king who serve Brahaspati Dev, making offerings, prayers-worship for him, wins the enemies with his might-power.
स इत्क्षेति सुधित ओकसि स्वे तस्मा इळा पिन्वते विश्वदानीम्।
तस्मै विशः स्वयमेवा नमन्ते यस्मिन्ब्रह्मा राजनि पूर्व एति॥
जिस राजा के निकट ब्रह्मा (ब्रह्मण स्पति) अग्र गमन करते है, घर में निवास करता है। पृथ्वी उसके लिए सब काल में फल उत्पन्न करती है। प्रजागण स्वयं उसके निकट सदैव रहते हैं।[ऋग्वेद 4.50.8]
जिसके पास बृहस्पति सर्वप्रथम पधारते हैं, वह सम्राट संतुष्ट होकर अपने स्थान पर रहते हैं। उसके लिए धरा भी हर ऋतु में फल प्रदान करने वाली होती है। उसकी प्रजा उसके सामने सदैव सिर झुकाकर रहती है।
The empire of the king become stable, who is visited by Brahaspati Dev. The nature grants him all sorts of amenities. His citizens always abide by him.
अप्रतीतो जयति सं धनानि प्रतिजन्यान्युत या सजन्या।
अवस्यवे यो वरिवः कृणोति ब्रह्मणे राजा तमवन्ति देवाः॥
जो राजा रक्षण कुशल और धन रहित ब्राह्मण या बृहस्पति को धन दान करता है, वह अप्रतिहत रूप से शत्रुओं और प्रजाओं का धन जीतता है एवं महान होता है। देवगण उसी की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 4.50.9]
सम्राट रक्षा चाहने वाले धनहीन विद्वान को धन प्रदान करता हैं, वह शत्रुओं का धन विजय करता है। देवता हमेशा उसकी रक्षा करते हैं।
The king who is able-expert in war fare, donate money to the Brahmans-poor, he over power the enemies and become great-mighty. The demigods-deities protect-save him.
इन्द्रश्च सोमं पिबतं बृहस्पतेऽस्मिन्यज्ञे मन्दसाना वृषण्वसू।
आ वां विशन्त्विन्दवः स्वाभुवोऽस्मे रयिं सर्ववीरं नि यच्छतम्॥
हे बृहस्पति देव! आप और इन्द्र देव इस यज्ञ में हर्षित होकर याजक गणों को धन प्रदान करें। सर्वव्यापक सोमरस आप दोनों के शरीर में प्रवेश करे। आप दोनों हम लोगों को पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.50.10]
हे बृहस्पते! तुम और इन्द्र दोनों ही यज्ञ में हर्ष प्राप्त कर यजमानों को धन प्रदान करो। यह सोमरस सर्वव्यापक है, यह तुम्हारे शरीरों में प्रविष्ट है। तुम दोनों ही हमारे लिए संतान से परिपूर्ण रमणीय धन को प्रदान करो।
Hey Brahaspati & Indr Dev! You should be happy-pleased and grant-donate money to the Ritviz in this Yagy. Let Somras be enjoyed-drunk by you. Grant us sons & grandsons along with money-riches.
बृहस्पत इन्द्र वर्धतं नः सचा सा वां सुमतिर्भूत्वस्मे।
अविष्टं धियो जिगृतं पुरन्धीर्जजस्तमर्यो वनुषामरातीः॥
हे बृहस्पति देव और इन्द्र देव! आप दोनों हम लोगों को संवर्द्धित करें। हम लोगों के प्रति आप दोनों का अनुग्रह एक समय में ही प्रयुक्त होता है। आप दोनों हम लोगों के यज्ञ की रक्षा करते हुए हमारी प्रार्थना से जाग्रत होवें और याजकों के शत्रुओं का आप विनाश करें।[ऋग्वेद 4.50.11]
हे बृहस्पते! हे इन्द्रदेव! तुम दोनों ही हमको हर तरह से बढ़ाओ । हमारे प्रति तुम दोनों की दया एक साथ ही प्रेरित हो। हमारे इस यज्ञ के तुम दोनों ही रक्षक हो। वंदना से चैतन्य को ग्रहण हो जाओ।
Hey Brahaspati Dev! Hey Indr Dev! Both of you nurture-support us and oblige us together, at the same moment. Accept our prayers and protect our Yagy. Destroy the enemies of the Ritviz-hosts in the Yagy.(28.04.2023)
उप स्तुहि प्रथमं रत्नधेयं बृहस्पतिं सनितारं धनानाम्।
य: शंसते स्तुवते शंभविष्ठः पुरूवसुरागमज्जोहुवानम्॥
हे अन्तरात्मा! आप अतिशय श्रेष्ठ और रमणीय धनदाता बृहस्पति देव की प्रार्थना करें। वे हविर्लक्षण धन के विभागकर्ता है। वे स्तोत्र कर्ता याजक गण को महान् सुख प्रदान करते हैं। आह्वान करने वाले याजक गण के निकट वे प्रभूत धन लेकर आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.42.7]
अंतरात्मा :: जीवात्मा, प्राण; conscience.
रमणीय :: रमण योग्य, सुंदर; delightful, delectable.
Hey conscience! Pray-worship excellent, delightful and wealth granting Brahaspati Dev. He is the distributer of the offerings. He grant extreme comforts to the Ritviz and recitators of Strotr. When invoked, he comes to the invoker with best riches.
तवोतिभिः सचमाना अरिष्टा बृहस्पते मघवानः सुवीराः।
ये अश्वदा उत वा सन्ति गोदा ये वस्त्रदाः सुभगास्तेषु रायः॥
हे बृहस्पति देव! आपके द्वारा रक्षित होने पर मनुष्य अहिंसित, धनवान और सुन्दर युक्त होते हैं। आपके द्वारा अनुग्रहित होकर जो व्यक्ति अश्व, गौ और वस्त्र का दान करता है, वह धन प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 5.42.8]
Hey Brahaspati Dev! The humans protected by you are unharmed, rich and beautiful-handsome. Any one obliged by you gets riches if he resort to donating cows, horses and cloths.
विसर्माणं कृणुहि वित्तमेषां ये भुञ्जते अपृणन्तो न उक्थैः।
अपव्रतान्प्रसवे वावृधानान्ब्रह्मद्विषः सूर्याद्यावयस्व॥
हे बृहस्पति देव! जो स्तुति प्रतिपादक हम लोगों को दान नहीं देकर स्वयं उपभोग करते हैं, जो व्रत धारित नहीं करते, जो मन्त्र विद्वेषी है, उनके धन को आप नष्ट करें। सन्तति सम्पन्न होकर; यद्यपि वह मनुष्य लोक में वर्द्धमान हो रहा है; तथापि आप उसे सूर्य से पृथक करें अर्थात् अन्धकार में रखें।[ऋग्वेद 5.42.9]
प्रतिपादक :: प्रतिपादन करने वाला, किसी मत को स्थापित करने वाला, उत्पादक, निर्वाह करने वाला, व्याख्यान करने वाला, उन्नायक, व्याख्याता; exponent, enunciator.
Hey Brahaspati Dev! Destroy the wealth of those enunciators of worship-prayers who consume every thing and do not make donations to us, do not resort to fasting and envy the Mantr. Even if he has progeny and growing in this world, let him keep in darkness away from the Sun light.
आ वेधसं नीलपृष्ठं बृहन्तं बृहस्पतिं सदने सादयध्वम्।
सादद्योनिं दम आ दीदिवांसं हिरण्यवर्णमरुषं सपेम॥
बलवान्, पुष्टि कारक और स्निग्धाङ्ग बृहस्पति को यज्ञघर में स्थापित करें। वे घर में बीच में अवस्थित होकर सभी जगह प्रभा विस्तृत करते हैं। वे हिरण्यवर्ण और दीप्तिमान् हैं। हम लोग उनकी पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 5.43.12]
स्निग्ध :: स्नेही, तेल युक्त, तैलीय, चिकना; affectionate, lubricated, oily.
Let Brahaspati Dev having mighty, nourishing and oily body, be established in the Yagy house-site. He will spread aura on being established in the middle-centre of the house. He has golden colour and radiant. We worship-pray him.
स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः।
बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः॥
कल्याण के लिए हम लोग वायु देव की प्रार्थना करते हैं और सोमरस का भी स्तवन करते हैं। सोम निखिल लोक के पालक हैं। सब देवों के साथ मन्त्र पालक बृहस्पति देव की प्रार्थना कल्याण के लिए करते हैं। अदिति के पुत्र देवगण अथवा अरुणादि द्वादश देव हम लोगों के लिए कल्याणकारी हों।[ऋग्वेद 5.51.12]
We worship Vayu Dev for our welfare and extract Somras for him. Som nourish-nurture the whole world. We worship Brahaspati Dev with all demigods-deities, who is the supporter of Mantr Shakti, for our welfare. Let the son of Aditi Demigods and the twelve Adity Gan be helpful to us i.e., resort to our welfare.
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (73) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- बृहस्पति; छन्द :- त्रिष्टुप्।
यो अद्रिभित्प्रथमजा ऋतावा बृहस्पतिराङ्गिरसो हविष्मान्।
द्विबर्हज्मा प्राघर्मसत्पिता न आ रोदसी वृषभो रोरवीति॥
जिन बृहस्पति देव ने पर्वत को तोड़ा, जो सबसे पहले उत्पन्न हुए, जो सत्य रूप, अङ्गिरा और यज्ञ पात्र हैं, जो दोनों लोकों में भली-भाँति जाते हैं, जो प्रदीप्त स्थान में रहते हैं और जो हम लोगों के पालक हैं, वही बृहस्पतिदेव, वर्षक होकर द्यावा-पृथ्वी में गर्जना करते हैं।[ऋग्वेद 6.73.1]
Brahaspati Dev who broke the mountains, born first of all, truthful, Angira & Yagy deserving, aware of both abodes, resides in a radiant place, support us, that Brahaspati Dev become rain showering and thunder in over the earth & heavens.
जनाय चिद्य ईवत उ लोकं बृहस्पतिर्देवहूतौ चकार।
घ्नन्वृत्राणि वि पुरो दर्दरीति जयञ्छत्रूँरमित्रान्पृत्सु साहन्॥
जो बृहस्पति देव में स्तोता को स्थान देते हैं, वहीं वृत्तों या आवरक अन्धकारों को विनष्ट करते हैं, युद्ध में शत्रुओं को पराजित करते हैं। द्वेषियों को परास्त कर असुरपुरियों को अच्छी तरह नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 6.73.2]
Those who consider Brahaspati Dev as a Stota, remove the darkness, defeat the enemies in the war. Defeat the envious and destroy the forts-cities of the demons.
बृहस्पतिः समजयद्वसूनि महो व्रजान् गोमतो देव एषः।
अपः सिषासन्त्स्व १ रप्रतीतो बृहस्पतिर्हन्त्यमित्रमर्कैः॥
इन्हीं बृहस्पति देव ने असुरों का धन और गौओं के साथ गोचरों को भी जीता। अप्रतिगत होकर यज्ञकर्म द्वारा भोग करने की इच्छा करके बृहस्पति देव स्वर्ग के शत्रुओं का मन्त्र द्वारा विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 6.73.3]
Brahaspati Dev won the wealth of the demons & cows including the grass lands for grazing. Brahaspati Dev can not be stopped-blocked by any one and he destroy the enemies of the heavens by Mantr Shakti.(10.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (97) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
यज्ञे दिवो नृषदने पृथिव्या नरो यत्र देवयवो मदन्ति।
इन्द्राय यत्र सवनानि सुन्वे गमन्मदाय प्रथमं वयश्च॥
जिस यज्ञ में देवाभिलाषी नेता लोग मत्त होते हैं, पृथ्वी के नेताओं के जिस यज्ञ में समस्त सवन (सोम) इन्द्र देव के लिए अभिषुत होते हैं, उसी यज्ञ में दृष्ट होने के लिए द्युलोक से इन्द्र देव सर्वप्रथम आगमन करें और गमन परायण अश्व भी आवें।[ऋग्वेद 7.97.1]
Let Indr Dev invoke first, in the Yagy along with the horses capable of moving in the sky, in which the devotees wish to invoke demigods-deities. Somras is extracted for him.
आ दैव्या वृणीमहेऽवांसि बृहस्पतिर्नो मह आ सखायः।
यथा भवेम मीळ्हुषे अनागा यो नो दाता परावतः पितेव॥
हम अपने संरक्षण हेतु देवताओं की स्तुति करते हैं। हमारे हव्य को ग्रहण करने वाला बृहस्पति हमें उसी प्रकार धन प्रदान करते हैं, जिस प्रकार दूर देश से पिता धन लाकर पुत्र को देता है। हम निष्पाप और उत्तम आचरण के साथ उसमें समाहित हो जाएँ।[ऋग्वेद 7.97.2]
We pray the demigods-deities for our protection. Brahaspati, who accept our offerings, grant us money in the same manner, in which a father abroad, brings money for his son. We should be devoted to him sinlessly and best behaviour (practices-virtues).
तमु ज्येष्ठं नमसा हविर्भिः सुशेवं ब्रह्मणस्पतिं गृणीषे।
इन्द्रं श्लोको महि दैव्यः सिषक्तु यो ब्रह्मणो देवकृतस्य राजा॥
ज्येष्ठ और सुन्दर सुख वाले उन ब्रह्मण स्पति को प्रणाम और हव्य द्वारा मैं स्तुति करता हूँ। जो देवकृत मन्त्र के राजा हैं, देवाई श्लोक उन्हीं महान इन्द्र देवता की सेवा करें।[ऋग्वेद 7.97.3]
I salute senior Brahmanspati with beautiful face and pray him with offerings. We should devote the divine Shlok-Strotr, king of Mantr, to great Indr Dev.
स आ नो योनिं सदतु प्रेष्ठो बृहस्पतिर्विश्ववारो यो अस्ति।
कामो रायः सुवीर्यस्य तं दात्पर्षन्नो अति सश्चतो अरिष्टान्॥
वहीं प्रियतम ब्रह्मण स्पति हमारे स्थान (वेदी) पर बैठें। वह सबके वरणीय हैं। हमारे धन और शोभन वीर्य की जो अभिलाषा है, उसे ब्रह्मण स्पति पूर्ण करें। हम उपद्रवों से युक्त है। वह हमें अहिंसित करके पार करें।[ऋग्वेद 7.97.4]
Dearest Brahmanspati should occupy the Vedi-seat. He deserve to be accepted-worshiped by all. He should fulfil our desire for the best riches and might. He should sail us across unharmed.
तमा नो अर्कममृताय जुष्टमिमे धासुरमृतासः पुराजाः।
शुचिक्रन्दं यजतं पस्त्यानां बृहस्पतिमनर्वाणं हुवेम॥
प्रथम उत्पन्न हुए अमर देवगण हमें वही यथेष्ट और पूजा साधन अन्न प्रदान करें। हम शुद्ध स्तोत्र वाले, गृहियों के यज्ञ योग्य और अप्रतिगत बृहस्पति को बुलाते हैं।[ऋग्वेद 7.97.5]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous, one who can not be obstructed by any one.
Demigods-deities evolved first, should grant us sufficient means of worship and food grains. We the bearers of pious-pure Strotr, eligible for the Yagy by the house holds, invite Brahaspati who can not be obstructed by any one.
तं शग्मासो अरुषासो अश्वा बृहस्पतिं सहवाहो वहन्ति।
सहश्चिद्यस्य नीलवत्सघस्थं नभो न रूपमरुषं वसानाः॥
सुखकर, रूचिकर, वहनशील और आदित्य की तरह ज्योति वाले अश्वगण उन्हीं बृहस्पति को वहन करें। बृहस्पति के पास बल और रहने के लिए गृह है।[ऋग्वेद 7.97.6]
The horses which are comfortable, able to carry and radiant like the Adity, should carry Brahaspati. Brahaspati possess might and house for living.
स हि शुचिः शतपत्रः स शुन्ध्युर्हिरण्यवाशीरिषिरः स्वर्षाः।
बृहस्पतिः स स्वावेश ऋष्वः पुरू सखिभ्य आसुतिं करिष्ठः॥
बृहस्पति पवित्र हैं। उनके अनेक वाहन हैं। वे सबके शोधक हैं। वे हित और रमणीय वाद्य वाले हैं। वे गमनशील, स्वर्गभोक्ता, दर्शनीय और उत्तम निवास वाले हैं। वे स्तोताओं को सबसे अधिक अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.97.7]
रमणीय :: रमण योग्य, सुंदर; delightful, delectable.
Brahaspati is pious-pure. He possess several vehicles. He is purifier of all. He has delightful music. He is dynamic, user of heavens, beautiful and possess best residence. He grant maximum food grins to the Stotas.
देवी देवस्य रोदसी जनित्री बृहस्पतिं वावृधतुर्महित्वा।
दक्षाय्याय दक्षता सखायः करद् ब्रह्मणे सुतरा सुगाधा॥
बृहस्पति देवता की जननी देवी द्यावा-पृथ्वी अपनी महिमा के बल से बृहस्पतिदेव को वर्द्धित करें। मित्र लोग, वर्द्धनीय बृहस्पति को वर्द्धित करें। क्योंकि वे प्रचुर अन्न के लिए जलराशि को तरल और स्नान के योग्य बनाते हैं।[ऋग्वेद 7.97.8]
Mother of Brahaspati heavens-earth; should boost the glory of Brahaspati Dev. Mitr should increase the glory of Brahaspati. He make the water bodies fit for bathing and sufficient food grains.
इयं वां ब्रह्मणस्पते सुवृक्तिर्ब्रह्मेन्द्राय वज्रिणे अकारि।
अविष्टं धियो जिगृतं पुरन्धीर्जजस्तमर्यो वनुषामरातीः॥
हे ब्रह्मण स्पति! आपकी और वज्र वाले इन्द्र देव के लिए मैंने मन्त्र रूप सुन्दर स्तुति की है। आप दोनों हमारे अनुष्ठान की रक्षा करें। अनेक स्तुतियाँ श्रवण करें। हम आपके भक्त हैं। हम पर आक्रमण करने वाली शत्रुओं की सेनाओं को नष्ट करें।[ऋग्वेद 7.97.9]
Hey Brahmanspati! I have offered you a beautiful Stuti in the form of Mantr for the Vajr wielding Indr Dev. Both of you should protect our rituals-endeavours. Listen-respond to several Stutis-prayers. We are your devotees. Eliminate-destroy the armies attacking us.
बृहस्पते युवमिन्द्रश्च वस्वो दिव्यस्येशाथे उत पार्थिवस्य।
धत्तं रयिं स्तुवते कीरये चिद्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे बृहस्पति देव! आप और इन्द्र देव दोनों पार्थिव और स्वर्गीय धन के स्वामी हैं। इसलिए स्तोता को धन देते हैं। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.97.10]
Hey Brahaspati Dev! You & Indr Dev possess the material and divine wealth. Hence, you should grant money to the Stotas. You should nurse-nurture us with Swasti.(02.03.2024)
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