Wednesday, March 18, 2015

VISHW DEV विश्वदेव :: (ऋग्वेद 1-8)

VISHW DEV विश्वदेव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:। 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ओमासश्चर्षणीधृतो विश्वे देवास् आगत। 
दाश्वांसो दाशुष: सुतम्॥
हे विश्व देवा! आप सबकी रक्षा करने वाले, सभी प्राणीयों के आधारभूत और सभी को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हैं। अत: आप इस सोम युक्त हवि देने वाले यजमान के यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.3.7]
हे विश्वेदेवा! तुम रक्षक, धारणकर्ता और दाता हो। इसलिए इस हविदाता के यज्ञ को प्राप्त होओ।
Hey Vishw Deva! You are the protector of all, basis of all organisms-living beings and grant all sorts of comforts-amenities. Hence, please come to this Yagy site associated with offerings of Somras.
विश्वे देवासो अप्तुर: सुत्मा गन्त तूर्णय:। उस्ना इव स्वसराणि॥
समय-समय पर वर्षा करने वाले हे विश्वदेवा! आप कर्म कुशल और द्रुतगति से कार्य करने वाले हैं। आप सूर्य रश्मियों के सदृश गति शील होकर हमें प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.3.8]
हे विश्व-देवा! तुम कर्मवान और शीघ्रता करने वाले हो। आप सूर्य की किरणों के समान ज्ञान दाता बनकर आओ।
Hey Vishw Deva! You shower rain from time to time, perform all your deeds at great speed-quickly with expertise. You should be as fast as the Sun rays and reach to us-come to the site of the Yagy to bless us.
विश्वे देवासो अस्निध एहिमायासो अद्रुह:। मेधं जुषण्त वह्रय:॥
हे विश्वदेवा! आप किसी के द्वारा वध न किये जाने वाले, कर्म कुशल, द्रोह रहित और सुखप्रद है। आप हमारे यज्ञ में उपस्थित होकर हवि का सेवन करें।[ऋग्वेद 1.3.9]
हे विश्वेदेवा! तुम किसी के भी द्वारा समाप्त न किये जाने वाले, चालाक, निर्वैर तथा सुख-साधक हो। हमारे अनुष्ठान को ग्रहण होकर अन्न प्राप्त करो।
Hey Vishw Deva! You can not be killed by any one, expert in your endeavours (helping the devotees), do not go against anyone granting comforts-amenities to the devotees. Please come to us and accept the offerings.
जयतामिव तन्यतुर्मरुतामेति धृष्णुया। यच्छुभं याथना नरः॥
वेग से प्रवाहित होने वाले मरुतों का शब्द विजयवाद के सदृश गुन्जित होता है, उससे सभी मनुष्यों का मंगल होता है।[ऋग्वेद 1.23.11]
मरुतों का गर्जन विजय नाद के समान है, उससे प्राणियों का कल्याण होता है।
The blowing Marud Gan produce a sound like the victory signs-sounds. They ensure humans welfare.
हस्काराद्विद्युतस्पर्यतो जाता अवन्तु नः। मरुतो मृळयन्तु नः॥
चमकने वाली विद्युत से उत्पन्न मरुद्‍गण हमारी रक्षा करें और प्रसन्नता प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.23.12]
विद्युत का प्रकाश कर हंसमुख सूर्य से उत्पन्न मरुद्गण हमारे रक्षक हों और हमारा कल्याण करें। 
Let the Marud Gan born out of lightening, protect us and give us pleasure.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (89) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मविश्वेदेवा इत्यादयः ,  छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। 
देवा नो यथा सदमिधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे
कल्याणकारी, अहिंसित, अप्रतिरुद्ध और शत्रु नाशक समस्त यज्ञ चारों ओर से हमें प्राप्त हों अथवा हमारे पास आयें। जो हमें न छोड़कर प्रतिदिन हमारी रक्षा करते हैं, वे ही देवता सदा हमें वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 1.89.1]
अमर, अपराजित, वृद्धि से परिपूर्ण, कल्याणकारी वचन को हम ग्रहण करें जिससे विश्वेदेवा हमारी वृद्धि करते हुए रक्षक हों। 
Let us make of sorts of efforts-Yagy, so that the beneficial, non violent, slayer-killer of the enemy demigods-deities, Vishwedeva protect us and ensure our progress. 
देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम्। 
देवानां सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्र तिरन्तु जीवसे
यजमान प्रिय देवता लोग कल्याण वाहक अनुग्रह हमारे सामने ले आयें और उनका दान भी हमारे सामने आये। हम उन देवों का अनुग्रह प्राप्त करें और वे हमारी आयु बढ़ावें।[ऋग्वेद 1.89.2]
देवताओं का ध्यान और दान हमारी ओर प्रेरित हो। हम उनके मित्र बनने को प्रयत्न करें। वे हमारी आयु की वृद्धि करें।
Let the demigod-deities who like the hosts-devotees, come with their blessings-obligations and donations to us. Let us be friendly with them and they should enhance-boost our longevity.
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम्।  
अर्यमणं वरुणं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्॥
उन देवों को पूर्व के वेदात्मक वाक्य द्वारा हम बुलाते हैं। भग, मित्र, अदिति, दक्ष, अस्त्रिध या मरुद्रण, अर्यमा, वरुण, सोम और अश्विनी कुमारों को हम बुलाते हैं। सौभाग्य शालिनी देवी सरस्वती हमारे सुख का सम्पादन करें।[ऋग्वेद 1.89.3]
अदिति (देवमाता), आकाश, अन्तरिक्ष, माता, पिता और समस्त देव हैं। अदिति पंचजन है और अदिति जन्म और जन्म का कारण है। उन भग, मित्र, अदिति, दक्ष, अर्यमा, तरुण, चन्द्र और अश्विनी कुमारों का हम प्राचीन प्रार्थनाओं से आह्वान करते हैं। वे सौभाग्य प्रदान करने वाली सरस्वती हमें सुख प्रदान करें।
We call the demigods-deities :- Bhag, Mitr, Aditi, Daksh, Astridh, Marud Gan,Aryma, Varun, Som-Moon, Ashwani Kumars with the help of Ved Sukt, Strotr verses-hymns.  Let Mata Saraswati bless us and grant us comforts.
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः। 
तद्ग्रावाण: सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् 
हमारे पास वायुदेव कल्याण वाहक भेषज ले आवें; माता मेदिनी और पिता द्युलोक भी ले आवें। सोम चुआने वाले और सुखकर स्तर भी उस औषध को ले आवें। ध्यान करने योग्य दोनों अश्विनी कुमारो, आप लोग हमारी याचना श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.89.4]
भेषज :: रोगी को स्वस्थ करने अथवा रोग का इलाज या उसकी रोकथाम करने के लिए विधिपूर्वक बनाया हुआ पदार्थ; रोगी को निरोग तथा स्वस्थ करना या बनाना; Pharmaceutical। औषधि, जल, इत्यादि। 
पवन हमको सुख देने वाली औषधियाँ प्राप्त करायें। जननी पृथ्वी, जनक आकाश और सोम निष्पन्न करने वाले पाषणा यह औषधि लाएँ। हे अश्वि देवो! तुम उच्च पदवी वाले हो, हमारी वंदना सुनो।
Let Pawan Dev, Mother earth and the heavens arrange Pharmaceuticals for us. Bring those medicines-herbs from which Somras can be extracted. Hey Ashwani Kumars! Please listen-answer to our prayers.
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम्। 
पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्य: स्वस्तये॥
उस ऐश्वर्यशाली, स्थावर और जंगम के अधिपति और यज्ञ तोष इन्द्रदेव को अपनी रक्षा के लिए हम बुलाते हैं। जैसे पूषा हमारे धन की वृद्धि के लिए रक्षणशील है, वैसे ही अहिंसित पूषा हमारे मंगल के लिए रक्षक हो।[ऋग्वेद 1.89.5]
स्थावर जंगम के पोषणकर्त्ता मति प्रेरक विश्वेदेवों को हम रक्षार्थ पुकारते हैं, जिससे अहिंसित पूषा हमारे धन की वृद्धि करने वाले और रक्षक हों।
We call-request Vishw Dev-Indr Dev for our protection. The way Push Dev non violent protect our wealth, he may become beneficial to us.
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। 
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो  अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
अपरिमेय स्तुति पात्र इन्द्र और सर्वज्ञ पूषा हमें मंगल प्रदान करें। तृक्ष के पुत्र कश्यप या अहिंसित रथनेमि युक्त गरुड़ तथा बृहस्पति हमें मंगल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.89.6]
यशस्वी इन्द्रदेव कल्याण करने वाले हों। धन से युक्त मंगल भी पूषा करें। जिनके रथ के पहिये के वेग का कोई नहीं रोक सकता, ऐसे अश्व सूर्य और बृहस्पति हमारा उद्धार करें। 
Let honourable Indr Dev and enlightened Push Dev look to our welfare. Kashyap, the son of Traksh or non violent Garud Dev & Brahaspati perform our welfare.
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः। 
अग्निजिहा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्नि ह॥
श्वेत बिन्दु चिह्नित अश्ववाले, पृश्नि के पुत्र शोभन गतिशाली, यज्ञगामी, अग्रि जिव्हा पर अवस्थित बुद्धिशाली और सूर्य के समान प्रकाशशाली मरुत देव हमारी रक्षा के लिए यहाँ पधारे। [ऋग्वेद 1.89.7]
चित्र-विचित्र घोड़ों से युक्त सुन्दर गति से यज्ञों को प्राप्त होने वाले मरुद्गण सूर्य के समान तेजस्वी मनु और सभी देवगण अपने रक्षण-साधनों सहित यहाँ पधारें।
Let enlightened Marud Gan-the son of earth, as bright as Sun, stationed our the edge of fire, moves fast with their white spotted horses, come here to protect us. 
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। 
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूः भिर्व्यशेम देवहितं यदायुः
हे देवगण! हम कानों से मंगलप्रद वाक्य सुनें, हे यजनीय देवगण! हम आँखों से मंगलवाहक वस्तु देखें, हम दृढ़ाङ्ग शरीर से सम्पन्न होकर आपकी स्तुति करके ब्रह्मा द्वारा निर्दिष्ट आयु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.89.8]
हे पूज्य देवगण! हम वंदनाकारी कल्याणप्रद वाणी को सुने। मंगल कार्यों को नेत्र से देखें। पुष्ट शरीरों से देवताओं द्वारा नियत की गई आयु का प्रयोग करें।
Hey honourable demigods-deities! Let us listen the words spell our welfare, our eyes should see the objects meant for our welfare, our body-physique should be strong enough to enjoy the age granted by Brahma Ji-the creator. 
शतमिन्नू शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्। 
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥
हे देवगण! मनुष्यों के लिए (आप लोगों के द्वारा) सौ वर्ष की आयु ही कल्पित है। इसी बीच आप लोग शरीर में बाधा उत्पन्न करते हैं और इसी बीच पुत्र लोग पिता हो जाते हैं। उस निर्दिष्ट आयु के बीच हमें विनष्ट मत करो।[ऋग्वेद 1.89.9]
हे देवताओं! जब हमें बुढ़ापा देखे तो तब हम लगभग सौ वर्ष के होते हैं। उस समय हमारे पुत्र भी जनक बन जाते हैं। तुम हमको अल्प आयु में मृत्यु को प्राप्त न करवाना। 
Hey deities-demigods! You have fixed the maximum age of humans to be 100 years. You develop many disturbances, ailments, troubles, difficulties, diseases in the body. Just then the sons become fathers. Please do not destroy-kill us before-during that age.
The age of humans during Sat Yug is 400 years, Tretra Yug 300 years, Dwapar Yug 200 years and during Kali Yug it is 100 years. But exceptions are always there. Those who continue Yog practice, maintain regular life style & diet, resort to high moral & character may live up to 500 years during Kali Yug as well.
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः। 
विश्वे देवाः अदितिः पञ्च जनाः अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्
अदिति-देवमाता, आकाश, अंतरिक्ष, माता-पिता और समस्त देवगण हैं। अदिति पञ्चजन हैं और जन्म का कारण हैं।[ऋग्वेद 1.89.10]
पञ्चजन :: चार वर्ण और पाँचवां वर्ण निषाद है। इनको पाँच जाति (race, नस्ल) भी कहा गया है। चार ऋत्विक और एक यजमान को मिलाकर पाँच होते हैं। 
आकाश, अंतरिक्ष, माता-पिता, पुत्र, सभी देवगण, सम्पूर्ण जातियाँ या जो उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होगा, यह सभी अदिति रूप हैं।
Sky, space-heavens, parents and all deities-demigods are the various forms of Dev Mata Aditi. She is he rot cause behind the birth of all organism.
Each and every organism is the component of the Almighty-God. Birth-rebirth, reincarnations are the outcome of the deeds-endeavours of living beings in various births.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (90) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मविश्वेदेवा इत्यादयः ,  छन्द :- गायत्री, त्रिष्टुप्।
ऋजुनीती नो वरुणो मित्रो नयतु विद्वान्। 
अर्यमा देवैः सजोषाः॥
वरुण (निशाभिमानी देव) और मित्र (दिवाभिमानी देव) उत्तम मार्ग पर अकुटिल गति से हमें ले जावें तथा देवों के साथ समान प्रेम से युक्त अर्यमा भी हमें ले जायें।[ऋग्वेद 1.90.1]
वरुण, सखा एवं देवताओं सहित रमे हुए अर्यमा हमको सही रास्ता प्राप्त करायें।
Let Varun, Mitr and Aryma show us the right (virtuous, righteous, pious) path.
We should not follow the path which is vicious, leads to sins, wretchedness-wickedness.
ते हि वस्वो वसवानास्ते अप्रमूरा महोभिः।
व्रता रक्षन्ते विश्वाहा॥
वे धन देते हैं। वे मूढ़ता से रहित होकर अपने तेज द्वारा सदा अपने कार्य की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.90.2]
हे धन का विचार कर किसी महानता से न दबकर नियमों में दृढ़ रहते हैं।
They grant us riches-wealth. They are free from imprudence and protect us with their energy-power, actions, rules & regulations .   
ते अस्मभ्यं शर्म यंसन्नमृता मर्त्येभ्यः। 
बाधमाना अप द्विषः॥
वे अमर गण हमारे शत्रुओं का विनाश करके हम मर्त्यों को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.90.3]
वे अमरत्व प्राप्त देवतागण हमारे शत्रुओं का विनाश करें और हम मरणशील प्राणियों  के आश्रय दाता हों।
These immortals should vanish our enemies and grant us protection-comfort.
वि नः पथः सुविताय चियन्त्विन्द्रो मरुतः। 
पूषा भगो वन्द्यासः॥
वन्दनीय इन्द्र, मरुद्गण, पूषा और भग देवगण उत्तम बल लाभ के लिए हमें मार्ग दिखावें।[ऋग्वेद 1.90.4]
इन्द्र, मरुद्गण, पूषा भग से स्तुत्य देवता हमको कल्याण मार्ग पर चलाएँ।
 Honourable demigods-deities Indr Dev, Marud Gan, Pusha and Bhag should show us the right tract granting excellent strength-power.
उत नो धियो गोअग्राः पूषन्विष्णवेवयावः। 
कर्ता नः स्वस्तिमतः॥
पूषन, विष्णु और मरुद्गण हमारा यज्ञ गौ प्रधान करें और हमें विनाश रहित बनावें।[ऋग्वेद 1.90.5] 
हे पूषा, हे श्रेष्ठ मार्ग वाले विष्णो! तुम हमको ऐसे कर्म की ओर प्रेरित करो जिससे हम धेनुओं को प्राप्त कर सकें।
Pusha, Vishnu and Marud Gan should make our Yagy predominant with the cows.
Let them guide us, so that we can acquire cows.
मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः।
माध्वीवीर्नः सन्त्वोषधीः॥
यजमान के लिए समस्त वायु और नदियाँ मधु (या कर्मफल) वर्षण करें। समस्त औषधियाँ भी माधुर्य युक्त हों।[ऋग्वेद 1.90.6]
तुम हमारे लिए मंगलकारी बनो। यज्ञशील के लिए पवन, नदियाँ तथा औषधियाँ मृदु रस वृष्टि का कारक हों।
Let air (Pawan Dev) and rivers Varun Dev)  shower honey (reward of the actions-endeavours),  for the sake of the hosts-devotees performing Yagy.
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवं रजः। 
मधु द्यौरस्तु नः पिता॥
हमारी रात्रि और उषा मधुर फलदाता हों। पृथ्वी की रज उत्तम फलदायक हो। सबका रक्षक आकाश भी सुखदायक हो।[ऋग्वेद 1.90.7]
रात और दिन माधुर्यमय हो पृथ्वी और अंतरिक्ष तथा हमारे पिता (क्षितिज) मधुर रस प्रदान करने वाले हों।
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ अस्तु सूर्यः। 
माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥
हमारे लिए समस्त वनस्पतियाँ सुखदायक हों। सूर्य सुखदायक हो। सारी गायें सुखदायक हों।[ऋग्वेद 1.90.8]
वनस्पतियाँ मधुर हों, सूर्य, मधुर रस की वर्षा करें। धेनुएँ हमें मधुर दूध प्रदान करें।
Let the vegetation, Sun and the cows be beneficial to us.
शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा। 
शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः॥
मित्र, वरुण, अर्यमा, इन्द्र, बृहस्पति और विस्तीर्ण पाद क्षेपी विष्णु हमारे लिए सुखकारी हों।[ऋग्वेद 1.90.9]
मित्र, वरुण, अर्यमा, इन्द्र, बृहस्पति और विशाल पैर रखने वाले विष्णु हमारे लिए साक्षात स्वर्ग के समान हों।
Let Mitr, Varun, Aryma, Brahaspati and Bhagwan Shri Hari Vishnu with his giant feet be beneficial (granting comfort) to us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (105) :: ऋषि :- ऋषित-त्रित आप्त्य, कुत्स, आङ्गिरस, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- पंक्ति, बृहती, त्रिष्टुप्।
चन्द्रमा अप्स्वन्तरा सुपर्णो धावते दिवि। 
न वो हिरण्यनेमयः पदं विन्दन्ति विद्युतो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
जलमय अन्तरिक्ष में वर्तमान चन्द्रमा सुन्दर चन्द्रिका के साथ आकाश में विचरित होते हैं। सुवर्णनेमि रश्मियों, कूप में पतित हमारी इन्द्रियाँ आपके पद को नहीं जानतीं। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारे भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.1]
चन्द्रमा अंतरिक्ष में और सूर्य क्षितिज में गति करते हैं। हे स्वर्णिम बिजलियाँ!मनुष्य उन्हें ढूँढने में असमर्थ हैं।  हे क्षितिज-धरा! हमारी विनती को सुनो।
The moon travels in space while the Sun moves across the horizon. Hey golden rays the humans are unable to trace them. Our senses are drowned in the well of sin and hence unable to recognise your status. Hey higher abodes and the earth please grasp our inner feelings-sentiments.
Let the Moon help the humans control their passions which drown them in the sins because of the flirtacious senses. Let Sun enlighten us to control our sensualities, sexuality, mood, pshyche, innerself.
अर्थमिद्वा उ अर्थिन आ जाया युवते पतिम्। 
तुञ्जाते वृष्ण्यं पयः परिदाय रसं दुहे वित्तं मे अस्य रोदसी॥
धनाभिलाषी निश्चय ही धन पाता है। स्त्री अपने पास ही पति को पाकर सहवास करती है और गर्भ से सन्तान उत्पन्न होती है। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी भावना को जानें।[ऋग्वेद 1.105.2]
धन की अभिलाषा वाले धन पाते हैं, नारी पति प्राप्त करती है। वे दोनों मिलकर सम्मान ग्रहण करते हैं।  हे क्षितिज-धरा! मेरे दुःखों को समझो।
One desirous of wealth-money definitely get riches. The wife mates with the husband and give birth to children. Hey heavens and the earth please recognise our thoughts and help.
The luck do help, but one must depend over his labour, endeavours, efforts, hard work for earning.
मो षु देवा अदः स्वरव पादि दिवस्परि। 
मा सोम्यस्य शंभुवः शूने भूम कदाचन वित्तं मे अस्य रोदसी॥
हे देवगण! हमारे स्वर्ग में निवास करने वाले पूर्व पुरुष स्वर्ग से च्युत न हों; हम कहीं सोमपायी पितरों के सुख के लिए पुत्र से निराश न हो। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के अभिप्राय को समझें।[ऋग्वेद 1.105.3]
हे देवगण! आकाश के ऊपर की यह दिव्य ज्योति नष्ट न होने पाये। सोम निष्पन्न करने योग्य सुखकारी पुत्र का अभाव कभी न हो। हे आसमान और धरती! हमारे दुःखों व कष्टों को समझो।
Hey Dev Gan-demigods! Please do not let our Pitr-Manes, who are entitled to drink Somras, fall from the heavens (they should not be disqualified from the heavens). Our progeny should not be filled with despair. Hey heavens & the earth please recognise our troubles, tensions and ease them.
यज्ञं पृच्छाम्यवमं स तद्दूतो वि वोचति। 
क्व ऋतं पूर्व्यं गतं कस्तद्विभर्ति नूतनो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
देवों में सबसे पहले यज्ञार्ह अग्रि की मैं प्रार्थना करता हूँ। वह दूत रूप से मेरी याचना देवों को बतावें। हे अग्निदेव! आपकी पहले की वदान्यता कहाँ गई? इस समय कौन नवीन पुरुष उसे धारित करते हैं? हे द्युलोक और भूलोक! हमारी इस महत्त्वपूर्ण जिज्ञासा को जाने और शान्त करें।[ऋग्वेद 1.105.4]
मैं सबसे युवा अग्नि से पूछता हूँ। वे देवदूत उत्तर दें कि पुरातन नियम कहाँ हैं? कौन नया व्यक्ति उसे ग्रहण करता है? हे आसमान-धरती! मेरे दुःख को समझो।
Agni Dev is the first to accept the offerings. Let him convey my prayers to the demigods. Let me know the eternal rules and who governs them at present. Hey heavens & earth please satisfy our queries and resolve our sorrows-worries.
अमी ये देवाः स्थन त्रिष्वा रोचने दिवः। 
कद्व ऋतं कदनृतं क्व प्रत्ना  व आहुतिर्वित्तं मे अस्य रोदसी॥
सूर्य के द्वारा प्रकाशित इन तीनों लोकों में ये देव वृन्द रहते हैं। हे देवगण! आपका सत्य कहाँ हैं और असत्य कहाँ है? आपकी प्राचीन आहुति कहाँ है? हे द्युलोक और भूलोक! हमारे इन भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.5]
हे देवगण! तीनों लोकों में प्रकाशमान क्षितिज में तुम्हारा स्थान है। तुम्हारा सिद्धान्त कम है? उन सिद्धान्तों के विपरीत क्या है? तुम्हारा प्राचीन आह्वान कहाँ गया? हे क्षितिज-धरा! मेरे दुःख पर ध्यान दो।
The demigods-deities reside in the three abodes illuminated by the Sun. Hey demigods-deities! Let your eternal truth, rules prevail. Let us follow the rules framed by the eternity. Let heavens & the earth understand our pains and help us.
कद्व ऋतस्य धर्णसि कद्वरुणस्य चक्षणम्।  
कदर्यम्णो महस्पथाति क्रामेम दूढ्यो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
आपका सत्य पालन कहाँ है? वरुण की अनुग्रह दृष्टि कहाँ है? महान् अर्यमा का वह मार्ग कहाँ है, जिसके द्वारा हम पाप बुद्धि व्यक्तियों से मुक्त हो सकें? हे द्युलोक और भूलोक! हम इस अवस्था या दुःख को जाने।[ऋग्वेद 1.105.6]
हे देवगण! हमारे नियम का आधार क्या है? वरुण की व्यवस्था कहाँ है? अर्यमा किस तरह हमको दुष्टों से पार लगा सकते हैं। हे आकाश-पृथ्वी! हमारे दुःख को समझो।
Where does the truth lie?! Where are the blessing of Varun Dev?! Where is the path of great Aryma?! Let us-the humans stained with sins be released-relinquished. Hey heavens & the earth realise our pains.
We wish to be released from sins, bad-Tamsik thoughts & ideas leading us to sins. Kindly, grant us shelter, protection and solace and help us relieve from the sins. Patronise us.
अहं सो अस्मि यः पुरा सुते वदामि कानि चित्। 
तं मा व्यन्त्याध्यो वृको न तृष्णजं मृगं वित्तं मे अस्य रोदसी॥
मैं वही हूँ जिसने प्राचीन समय में सोमरस अभिषुत होने पर स्तोत्रों उच्चारण किया था। जिस प्रकार से प्यासे मृग को व्याघ्र खा जाता है, वैसे ही मुझे दुःख खा रहा है। हे द्युलोक और भूलोक! हमारी हन इन व्यथाओं को समझकर दूर करें।[ऋग्वेद 1.105.7]
मैंने पूर्वकाल में सोम के निचोड़े जाने पर अनेक श्लोक कहे। प्यासे मृग को भेड़िये द्वारा खा लेने के समान तेरे हृदय की पीड़ा ही मुझे खाये जा रही है। हे क्षितिज-धरा! मेरे दुःख पर ध्यान दो। 
I am the same person-soul who had recited the Strotr, Shloks, Mantr pertaining to Somras. the sorrow-pains are eating me just like a tiger eats the deer. Hey heavens & the earth realise our troubles-tortures and relieve us.
Somras is meant for the Satvik, pious, honest, truthful, righteous devotee of the God.
सं मा तपन्त्यभितः सपत्नीरिव पर्शवः। 
मूषो न शिश्ना व्यदन्ति माध्यः स्तोतारं ते शतक्रतो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
जिस प्रकार से दो पत्नियाँ (सौतें) दोनों ओर खड़ी होकर स्वामी को कष्ट देती हैं, उसी प्रकार से ही कुएँ की दीवारें मुझे कष्ट दे रही हैं। जैसे चूहा सूत को काटता है, वैसे ही आपकी स्तुती करने वालों को भी मन की पीड़ायें कष्ट दे रही हैं। हे द्युलोक और भूलोक! हमारे इन कष्टों को समझकर दूर करें। [ऋग्वेद 1.105.8]
दो सोतिनों द्वारा पति को सताये जाने के समान कूप की दीवारें मुझे सता रही हैं। हे इन्द्र! चुहिया द्वारा अपनी पूँछ को चबाने के समान मेरे हृदय की पीड़ा मुझे चबा रही है। हे आसमान-धरती! मेरे दुःख को समझो।
The way two wives of a person-sandwiched between them, torture him, the walls of the well (sins) are troubling me. The way a rat cuts the thread of cotton, the pains of innerself are causing worries to your devotee. Hey sky & the earth please understand-realise my pains-troubles and help.
अमी ये सप्त रश्मयस्तत्रा मे नाभिरातता। 
त्रितस्तद्वेदाप्त्यः स जामित्वाय रेभति वित्तं मे अस्य रोदसी॥
ये जो सूर्य की सात किरणें जहाँ तक है, वहाँ तक हमारा नाभि क्षेत्र विस्तारित है। इसका ज्ञान जल के पुत्र त्रित को भली-भाँति है। इसलिए प्रीति युक्त मित्रता भाव हेतु हम याचना करते हैं। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.9]
इस सूर्य को सात रश्मियों से मेरा पैतृक सम्बन्ध है। इस बात को जल का पुत्र त्रित जानता है। इसलिए वह उन रश्मियों की वंदना करता है। हे क्षितिज-धरा! मेरे दुख को समझो।
I have parental-ancestral connection-relation with the 7 rays (colours) of the Sun. Trit the son of water is aware of it. Hence we request for friendship having love & affection. Let the heavens & earth know our feeling, prayers-worship.
अमी ये पञ्चोक्षणो मध्ये तस्आर्पहो दिवः। 
देवत्रा नु प्रवाच्यं सध्रीचीना नि वावृतुर्वित्तं मे अस्य रोदसी॥
विशाल आकाश में ये जो अग्नि, वायु, सूर्य, इन्द्र और विद्युत् आदि पाँच अभीष्टदाता धुलोक में स्थित हैं, वे मेरे इस प्रशंसनीय स्तोत्र को शीघ्र देवताओं के पास ले जाकर पुनः वापस आवें। हे द्युलोक और भूलोक! हमारी इस प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.10]
आकाश में ये पाँच वीर अग्नि, वायु, सूर्य, इन्द्र और विद्युत स्थित हैं। वे मिलकर मेरे द्वारा रचित इस श्लोक को देवताओं को सुनाकर लौट आए। हे आसमान पृथ्वी! मेरे इस कष्ट को समझो।
Let the Agni-fire, Vayu-air, Sun, Indr and the eletricity-thundervolt situated in the upper abodes-heavens, carry forward my appreciable prayers to the demigods-deities. Let the higher abodes and the earth recognise our feelings.
सुपर्णा एत आसते मध्य आरोधने दिवः। 
ते सेधन्ति पथो वृकं तरन्तं यह्व तीरपो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
सम्पूर्ण आकाश में सूर्य की रश्मियाँ है। विशाल जलराशि पार करते समय मार्ग में सूर्य रश्मियाँ जंगल में भेड़ियों का निवारण करती है। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.11]
सर्वव्यापी सूर्य क्षितिज में विराजमान हैं। ये अंतरिक्ष को को पार कर चन्द्रमा को मार्ग से हटायें। हे क्षितिज-धरा! मेरी इस बात को समझ लो।
The rays of Sun are present all over the sky. They relieve all sorts of troubles-tensions while crossing the vast reservoir of water. Hey heavens & the earth please know-appreciate the feeling behind our prayers. 
नव्यं तदुक्थ्यं हितं देवासः सुप्रवाचनम्। 
ऋतमर्षन्ति सिन्धवः सत्यं तातान सूर्यो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
हे देवगण! आपके भीतर वह नव्य, प्रशंसनीय और सुवाच्य बल है। उसके वहनशील नदियाँ सदा जल संचालन करती हैं और सूर्य देव अपना सदा रहने वाला प्रकाश विस्तारित करते हैं। हे द्युलोक और भूलोक आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.12]
हे देवगण! यह नया श्लोक प्रशंसा योग्य, हितकर कल्याण का उद्घोष करता है। नदियाँ देवगणों के नियमों की प्रेरणा करती हैं और सूर्य सत्य का प्रचारक है। है आकाश-पृथ्वी! यह बात समझ लो। 
Hey demigods-deities! You have the new-fresh appreciable might-valour, which keeps the rivers flowing and the Sun keeps on spreading his light. Hey heavens & the earth! Please know the feeling behind our prayers.
अग्ने तव त्यदुक्थ्यं देवेष्वस्त्याप्यम्। 
स नः सत्तो मनुष्वदा देवान्यक्षि विदुष्टरो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
हे अग्रिदेव! देवताओं के साथ आपका यही प्रशंसनीय बन्धुत्व भाव है। आप अत्यन्त विद्वान हैं। मनु के यज्ञ की तरह हमारे यज्ञ में पधारकर देवताओं का यज्ञ पूर्ण करें। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.13]
हे अग्रिदेव! देवताओं के साथ आपका यही प्रशंसनीय बन्धुत्व भाव है। आप अत्यन्त विद्वान हैं। मनु के यज्ञ की तरह हमारे यज्ञ में पधारकर देवताओं का यज्ञ पूर्ण करें। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।
Hey Agni Dev! You have appreciable relation-friendship with the demigods-deities. Please bless us in our Yagy as you did in the Yagy conducted by Manu. Hey heavens & the earth! Please recognise our sentiments and help us.
सत्तो होता मनुष्वदा देवाँ अच्छा विदुष्टर:। 
अग्निर्हव्या सुषूदति देवो देवेषु मेघिरो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
मनु के यज्ञ की तरह हमारे यज्ञ में बैठकर देवताओं के आह्नानकारी अतिशय विद्वान् और देवों में मेधावी अग्निदेव देवताओं को हमारे हव्य की ओर शास्त्रों के अनुसार प्रेरणा प्रदान करें। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.14]
हे अग्नि! देवगणों का यजन करो। हे क्षितिज-धरा! मेरी यह बात सुनो। मनुष्य के तुल्य हमारे अनुष्ठान में विराजे हुए होता रूप मेधावी अग्नि देव के लिए हवि मार्ग दर्शन करें। हे क्षितिज़-धरा! मेरी इस बात को समझो।
Let enlightened Agni Dev, who deserve to be invited by the demigods-deities, join our Yagy and advise-guide us as per the scriptures. Let the horizon & the earth support us.
ब्रह्मा कृणोति वरुणो गातुविदं तमीमहे। 
व्यूर्णोति हृदा मतिं नव्यो जायतामृतं वित्त में अस्य रोदसी॥
वरुण देव रक्षा कार्य करते हैं। उन मार्ग दर्शक से हम प्रार्थना करते हैं। अन्तःकरण से स्तोता वरुण देव को लक्ष्य कर माननीय स्तुति का प्रचार करते हैं। वहीं स्तुति योग्य वृद देव हमारे सत्य स्वरूप हों। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.15]
मंत्र रूप वंदना को वरुण रचते हैं। हम उन स्तुतियों से प्रार्थना करते हैं। हृदय द्वारा प्रार्थनाओं को कहते हैं। उससे सत्य प्रकाशित हो। हे आसमान धरती! हमारे वचनों पर ध्यान दो। 
Varun Dev perform the function of protection. We pray to him to seek guidance. We address Varun Dev from the depths of our soul-(mind & heart) with these prayers as Strota-devotee. Let the truth reveal itself. Hey heavens & the earth! Please accept our prayers-requests.
असौ यः पन्था आदित्यो दिवि प्रवाच्यं कृतः। 
न स देवा अतिक्रमे तं मर्तासो न पश्यथ वित्तं मे अस्य रोदसी॥
यह जो सूर्य आकाश में सर्व सिद्ध पथ स्वरूप हैं, हे देवगण! उन्हें आप लोग लाँघ नहीं सकते। हे मनुष्य गण! आप लोग उन्हें नहीं जानते। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.16]
दे देवगण! क्षितिज में पथ-रूप सूर्य वंदनाओं के योग्य है, उनका उल्लंघन न करो। हे मनुष्यों! तुम उनके बल को नहीं जानते हे क्षितिज-धरा! हमारे दुःखों पर ध्यान दो।
The Sun in the sky is like the widely followed path. Hey demigods-deities! You can not ignore him. Hey humans! You do not identify him. Hey heavens & the earth! Please relieve us from pains, worries, troubles, tensions.
Its not possible for the humans to know the Sun, its activities, functions, being too intricate, comprehensive. 
त्रितः कूपेऽवहितो देवान्हवत ऊतये। 
तच्छुश्राव बृहस्पतिः कृण्वन्नँहूरणादुरु वित्तं मे अस्य रोदसी॥
कुएँ में गिरकर त्रित ने रक्षा के लिए देवताओं को पुकारा। बृहस्पति ने त्रित का पाप रूपी कुएँ से उद्धार करके उसका आह्वान श्रवण किया। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.17]
कुएँ में गिरे हुए त्रित ने रक्षार्थ देव आह्वान किया। उसे बहस्पति ने सुना और त्रित को पाप रूपी कुएँ से बाहर निकला। हे क्षितिज-धरा! मेरे कष्टों को सुनो।
having fallen in the well of sins, Trit, the son of Varun called demigods-deities for help. Dev Guru Brahaspati acted over his calls-prayers and relieved him. Hey heavens & the earth! please answer our prayers. 
Dev Guru Brahaspati in the embodiment of enlightenment.
अरुणो मा सकृकः पथा यन्तं ददर्श हि। 
उज्जिहीते निचाय्या तष्टेव पृष्ट्यामयी वित्तं मे अस्य रोदसी॥
अरुण वर्ण वृक ने एक समय मुझे रास्ते में जाते देखा था। जिस प्रकार से अपना कार्य करते-करते पीठ पर वेदना होने पर कोई उठ खड़ा होता है, उसी प्रकार मुझे देखकर वृक भी उठ खड़ा हुआ। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.18]
रीढ़ पर रोग उठने पर पीड़ा से खड़े हो जाने वाले के समान खड़ा होकर उजाले से युक्त चन्द्रमा उसे रास्ते से ले जाता हुआ मुझे प्रतिदिन देखता था। हे आसमान धरती। मेरी पीड़ा को समझो।
Vrak-Moon having golden colour-hue, saw me moving over the path. The way a person having pain while working, in his back, rises, Vrak too got up. Hey heavens (sky & the space) & the earth! You too get up and help me solve my problems.
एनाङ्गुषेण वयमिन्द्रवन्तोऽभि ष्याम वृजने सर्ववीराः। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
इस घोषणा योग्य स्तोत्र के द्वारा इन्द्रदेव को प्राप्त कर हम लोग वीरों के साथ मिलकर युद्ध में शत्रुओं को पराजित करेंगे। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश, हमारी यह प्रार्थना पूजित करें।[ऋग्वेद 1.105.19]
इन्द्रदेव तथा समस्त पराक्रमी मनुष्यों से परिपूर्ण हम इस श्लोक के द्वारा युद्ध में शत्रुओं पर विजय ग्रहण करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे श्लोक अनमोदन करें।
With the help of this Strotr, which deserve to be declared, we will approach Indr Dev and win the enemies with the help of brave warriors. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, earth & the sky honour this prayer of ours.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (106) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमूतये मारुतं शर्धो अदितिं हवामहे। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
रक्षा करने के लिए हम इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि और मरुद्रण का आवाहन करते हैं। जिस प्रकार से संसार में लोग रथ को दुर्गम रास्ते से निकालते हैं, वैसे ही दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.1]
इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, मरुद्गण और अदिति का रक्षार्थ आह्वान करते हैं। हे कल्याणकारी वसुओं! रथ को संकीर्ण रास्ते से निकालने के तुल्य समस्त पापों से निकाल कर हमारी सुरक्षा करो।
We pray to Indr, Mitr, Varun, Agni& Marud Gan for or protection. Hey Vasu Gan! You are tend o the welfare of humans & charity. The way people navigate the chariot in tough and narrow terrains, you too make us free from sins i.e., pull us out of sinful acts.
त आदित्या आ गता सर्वतातये भूत देवा वृत्रतूर्येषु शंभुवः। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
हे आदित्यगण! युद्ध में हमारी सहायता के लिए आप लोग पधारकर हमारी विजय का कारण बनें। जिस प्रकार से संसार में लोग रथ को दुर्गम मार्ग से सावधानीपूर्वक निकालते हैं, उसी प्रकार से दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.2]
हे आदित्यों! तुम हमारी इच्छा पूर्ति के लिए आओ। युद्धों में दुःख न दो। रथ को संकीर्ण रास्तों से निकालने के तुल्य हमको पाप से निकालो। श्रेष्ठ ऐश्वर्य वाले पूर्वज यज्ञ की वृद्धि करने वाली देव माताएँ हमारी रक्षा करें।
Hey Adity Gan! Please come to our help-resque in the battle and make us victorious. Let the Vasu Gan, Dev Mataen-mothers of demigods & deities, devoted to charity, pool us out of all troubles-sins and help us performing Yagy. 
अवन्तु नः पितरः सुप्रवाचना उत देवी देवपुत्रे ऋतावृधा। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
जिनकी स्तुति सुख साध्य हैं, वे पितृगण हमारी रक्षा करें। देवों की पितृ-मातृ स्वरूपा और यज्ञ को बढ़ानेवाली द्युलोक और भूलोक हमारी रक्षा करें। जिस प्रकार से संसार में लोग रथ को दुर्गम मार्ग से निकाल लाते हैं, उसी प्रकार से दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.3]
हे वसुओ! रथ को निकालने के समान हमको पापों से निकालो। 
Let the Pitr Gan-Manes devotion to whom, leads to comforts & pleasure protect us. The heavans & the earth who are like the parents of the demigods-deities help us in conducting Yagy. The Vasu Gan devoted to charity may migrated-relieve us from sinsful activities and protect us.
नराशंसं वाजिनं वाजयन्निह क्षयद्वीरं पूषणं सुम्नैरीमहे। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
मनुष्यों के प्रशंसनीय और अन्नवान् अग्निदेव को इस समय हम प्रज्ज्वलित कर प्रार्थना करते हैं। वीर और विजयी पूषा के पास सुखकर स्तोत्रों द्वारा याचना करते हैं। जिस प्रकार से संसार में लोग रथ को दुर्गम मार्ग से निकाल लाते हैं, उसी प्रकार से दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.4]
मनुष्यों द्वारा पूजनीय शक्तिशाली अग्नि की अर्चना करते हुए हम पराक्रमी को स्वामी पूषा की वंदना करते हैं। हे कल्याणकारी वसुओ! रथों को निकालने के समान हमको पापों से निकालो।
We ignite the Yagy fire to pray-worship Agni Dev who deserve praise from the humans because of providing food grains for nourishment. We pray to victorious Pusha, who is brave, with the help of pleasure giving Strotr-verses. Let Vasu Dev move us out of all troubles, like those who navigate the chariot in difficult-tough roads and free us from all sins.
बृहस्पते सदमिन्नः सुगं कृधि शं योर्यत्ते मनुर्हि तं तदीमहे। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
हे बृहस्पतिदेव! हमें सदैव सुख प्रदान करें। मनुष्यों के रोगों का नाश कर उनके भय को दूर करने की जो उपकारिणी क्षमता आपमें है, उसके लिए हम प्रार्थना करते है। जिस प्रकार संसार में लोग रथ को दुर्गम मार्ग से निकाल लाते हैं, वैसे ही दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.5]
हे बृहस्पते! हमको सुख प्रदान करो। तुम प्राणियों के रोगों और भयों को दूर करते हो। हम वही चाहते हैं। हे वसुदेवो! रथ को संकीर्ण पथ से निकालने के समान अपराधों से हमको दूर करो। 
Hey Brahaspati Dev! Keep on providing us pleasure. You have the power-calibre to make the humans free from diseases-ailments and all types of fears. We pray to you. Let the Vasu Gan devoted to charity & human welfare, relieve us from all sorts of sins and nourish us.
इन्द्रं कुत्सो वृत्रहणं शचीपतिं काटे निबाळ्ह ऋषिरह्वदूतये। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
पाप रूपी कुएँ में गिरे हुए कुत्स ऋषि ने बचने के लिए वृत्रहन्ता शचीपति इन्द्र का आह्वान किया। जिस प्रकार से लोग संसार में रथ को दुर्गम मार्ग से निकाल लाते हैं, वैसे ही दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.6]
कुँए में गिरे कुत्स ऋषि ने वृत्र हन्ता को बुलाया। हे कल्याणकारी वसुदेवो हमें पापों से मुक्ति दिलाओ।
Kuts Rishi who had fallen in the well of sins called Indr Dev, who had killed Vratr, the demon for help. The Vasu Gan, who tend to human welfare and resort to charity, are requested to help us. Please relieve us of all sins. We call you for help & relinquished. 
देवैर्नो देव्यदितिर्नि पातु देवस्त्राता त्रायतामप्रयुच्छन्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
देवताओं के संग माता अदिति हमारा पालन करें। सबके रक्षक दीप्यमान सविता जागरूक होकर हमारी रक्षा करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी इस प्रार्थना अंगीकार करें।[ऋग्वेद 1.106.7]
देवो युक्त अदिति हमारी सुरक्षा करें। सुरक्षा-साधनों से परिपूर्ण देवगण आलस्य त्यागकर हमें बचायें। मित्र वरुण, अदिति, धरा, क्षितिज हमारी इस वन्दना को अनुमोदित करें।
Let Dev Mata Aditi nourish us along with the demigods & deities. Let Savita, the protector of all, be vigilant and save us. Let Mitr, Varun, Aditi, Dhara-earth, Kshitij-horizon support (ditto, back up) accept our prayer.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (107) :: ऋषि :- आंगिरस, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
यज्ञो देवानां प्रत्येति सुम्नमादित्यासो भवता मृळ्यन्तः। 
आ वोऽर्वाची सुमतिर्ववृत्यादंहोश्चिद्या वरिवोवित्तरासत्॥
हमारा यज्ञ देवों को सुख प्रदान करे। आदित्यगण प्रसन्न हों। आपके अनुग्रह हमारी ओर प्रेरित हों और वही अनुग्रह दरिद्र मनुष्य के लिए प्रभूत धन का कारण बनें।[ऋग्वेद 1.107.1]
अनुग्रह :: कृपा; grace, favour. 
हमारे अनुष्ठान को देवगण स्वीकृत करें। हे आदित्यों! हम पर अनुग्रह करो। तुम कल्याणकारी हृदय को हमारी ओर रखो। हमारी गरीबी को दूर करो। हम अधिकाधिक धन ग्रहण करें।
Let our Yagy grant pleasure to the demigods-deities. Let Adity Gan be happy. Your favours-grace, money-riches be diverted to us and remove our poverty.  
उप नो देवा अवसा गमन्त्वङ्गिरसां सामभिः स्तूयमानाः। 
इन्द्र इन्द्रियैर्मरुतो मरुद्भिरादित्यैर्नो अदितिः शर्म यंसत्॥
अङ्गिरा ऋषियों द्वारा गायन किये गये मंत्रों से स्तुत होकर देवगण रक्षा के लिए हमारे पास आवें। धन लेकर इन्द्रदेव, प्राणवायु के साथ मरुद्गण तथा आदित्यों को लेकर माता अदिति हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.107.2]
अंगिराओं द्वारा गायी गई प्रार्थनाओं से हमारी सुरक्षा के लिए देवगण आवें। शक्तियों के साथ इन्द्र, वायुओं के साथ मरुद्गण और आदित्यों के साथ अदिति हमको सहारा प्रदान करें।
Inspired-pleased by the Mantr sung by Rishi Angira, the demigods-deities come to us for our protection. Mata Aditi Indr Dev, Pran Vayu, Marud Gan & the Adity Gan should bring money for us and grant us happiness. 
तन्न इन्द्रस्तद्वरुणस्तदग्निस्तदर्यमा तत्सविता चनो धात्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
जिस अन्न के लिए हम याचना करते हैं, उसे इन्द्र, वरुण, अग्नि, अर्थमा और सविता हमें प्रदान करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस अन्न की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.107.3]
इन्द्र, वरुण, अग्नि, अर्यमा और सूर्य हमारे लिए सुख ग्रहण कराने वाले हों। सखा, वरुण, अदिति, सागर, धरती और आसमान हमारी विनती को अनुमोदित करो।
Indr, Varun, Agni, Aryma & Savita should give us the food grains requested by us. Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, earth and the sky should support our prayers.
  ऋषि :- 
अस्तु श्रौषट् पुरो अग्निं धिया दध आ नु तच्छर्धो दिव्यं वृणीमह इन्द्रवायू वृणीमहे॥ यद्ध क्राणा विवस्वति नाभा संदायि नव्यसी। अध प्र सू न उप यन्तु धीतयो देवाँ अच्छा न धीतयः
मैंने भक्ति के साथ सामने अग्नि की स्थापना की है। अग्नि की स्वर्गीय शक्ति की मैं प्रशंसा करता हूँ। इन्द्र और वायु देवता की प्रशंसा करता हूँ। चूँकि पृथ्वी की दीप्तिमान् नाभि या यज्ञस्थान को लक्ष्य कर नई अर्थकरी स्तुति बनाई गई है, इसलिए अग्नि देवता उसे श्रवण करें। पश्चात् जैसे हमारे क्रिया-कर्म अन्यान्य देवों के पास जाते हैं, वैसे ही इन्द्र और वायु देवता के पास भी जावें।[ऋग्वेद 1.139.1]
अर्थकरी :: जिससे आमदनी हो, धन प्रदान करने वाला; which grants, evolves money-riches.
मैंने पहले अग्नि को धारण किया। अब दिव्य मरुद्गण को वरण करता हूँ। इन्द्र और पवन का वरण करता हूँ। मेरी वंदना सूर्य रूप को ग्रहण हो।
I have ignited the holy fire with due respect and devotion. I appreciate the heavenly-divine powers of Agni. A new poem (verse, Strotr, Mantr, Shlok) has been composed (evolved) which grants money-riches, which addresses the center place-navel, the place of Yagy over the earth. Hence, let Agni Dev listen-enjoy it. The way various pious deeds (rituals, offerings) reach the demigods-deities, let them reach Indr Dev & Vayu-Pawan Dev. 
यद्ध त्यन्मित्रावरुणावृतादध्याददाथे अनृतं मन्युना दक्षस्य स्वेन मन्युनायुवोरित्याधि सद्मस्वपश्याम हिरण्ययम्। घीभिश्चन मनसा स्वेभिरक्षभिः सोमस्य स्वेभिरक्षभिः
हे कर्म कुशल मित्र और वरुणदेव! आप अपनी शक्ति द्वारा सूर्य के पास से जो अविनाशी जल प्राप्त करते हैं, वह हमें यथेष्ट मात्रा में प्रदान करते हैं, इसलिए हम क्रिया, कर्म, ज्ञान और सोमरस में आसक्त इन्द्रियों की सहायता से यज्ञशाला में आप लोगों का ज्योतिर्मय रूप देखें।[ऋग्वेद 1.139.2]
हे मित्रवरुण! तुम अपने तेज से असत्य का निवारण करने वाले हो। हमने तुम्हारे स्थान में स्वर्णिम तेज के दर्शन किये हैं।
Hey skilled-expert in Karm-rituals Mitr & Varun Dev! You receive the imperishable water from the Sun with your powers and give-grant it to us in sufficient quantity. So, we should see-perceive your aurous-shinning image in the Yagy Shala (place of Yagy) with the help of our senses & the action-functional organs in the actions, Karm-efforts, Gyan-enlightenment & Somras.
युवां स्तोमेभिर्देवयन्तो अश्विनाश्श्रावयन्तइव श्लोकमायवो युवां हव्याभ्या३यवः युवोर्विश्वा अधि श्रियः पृक्षश्च विश्ववेदसा। प्रुषायन्ते वां पवयो हिरण्यये रथे दस्रा हिरण्यये
हे अश्विनी कुमारों! स्तुति द्वारा आपको अपना देवता बनाने की इच्छा से यजमान लोग श्लोक सुनाते और हव्य लेकर आपके सामने जाते हैं। हे सर्वधन सम्पन्न अश्विनीकुमारों! वे लोग आपकी कृपा से सब तरह के धन-धान्य और अन्न प्राप्त करते हैं। आपके सोने के रथ की नेमियाँ मधु गिराती है। उसी रथ पर आप हव्य ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.139.3]
हे अश्विदेवो! हम आपकी वंदना करते हैं। हवियाँ प्रदान करते हैं, संबोधन और अन्न तुम्हारे आश्रित हैं। तुम्हारे रथ के पहिये की धारा घृत की वृष्टि करती हैं।
Hey Ashwani Kumars!  The humans pray to you to adopt-recognise you as their deity-patron and the hosts, priests recite the Shlok and come to you with the offerings. Hey possessors of all riches, Ashwani Kumars! The devotees get all sorts of amenities food stuff, riches due to your blessings. The axels of your chariote shower honey and you receive all offerings over that chariote.
अचेति दस्रा व्युनाकमृण्वथो युञ्जते वां रथयुजो दिविष्टिष्वध्वस्मानो दिविष्टिषु अधि वां स्थाम वन्धुरे रथे दस्त्रा हिरण्यये। पथेव यन्तावनुशासता रजोऽञ्जसा शासता रजः
हे दस्त्र द्वय! आपके मन की बात सब जानते हैं। आप स्वर्ग में जाना चाहते हैं। आपके सारथि लोग स्वर्ग पथ में रथ नियोजित करते हैं। निरालम्ब होते हुए भी अश्व गण रथ को नष्ट नहीं करते। हे अश्विनी कुमारों! बन्धनाधार भूत वस्तु से युक्त सोने के बने रथ पर हम आपको बैठाते हैं। आप लोग सरल मार्ग से स्वर्ग में जाते हो और शत्रुओं को परास्त करते हुए विशेष रूप से वृष्टि की व्यवस्था करते हो।[ऋग्वेद 1.139.4]
तेजस्वी अश्विनी कुमारो! तुम ही आकाश मार्ग को प्रशस्त करते हो और यज्ञों के लिए अश्व जोतते हो। तुम विकराल कर्म वाले हो। तुम सुनहरी रथ की पीठ पर बैठे हुए सीधी राह से चलते हो। तुम अन्तरिक्ष के दाता हो।
Hey Ashwani Kumars! Everyone is aware of your innerself. You wish to go to the heavens. Your chariote drivers deploy your golden chariot over the way to heavens. Though without support, the horses do not destroy the chariot.  You move to the heavens through a simple-straight way. You defeat the enemy and arrange for special rains.
शचीभिर्नः शचीवसू दिवा नक्तं दशस्यतम्। 
मा वां रातिरूप दसत्कदा चनास्मद्रातिः कदा चन
हमारे क्रिया कर्म ही आपका धन हैं। हमारे क्रिया कर्म के लिए दिन-रात अभीष्ट प्रदान करें। न तो आपका दान बन्द हो और न हमारा।[ऋग्वेद 1.139.5]
हे बली ऐश्वर्यशाली अश्विद्वय! दिन में और रात्रि में भी धन प्रदान करते रहो। तुम्हारा दिया हुआ धन कभी कम न हो और हमारा दान भी बढ़ता रहे।
Our offerings, prayers, worship constitute your assets. Let us obtain-get the desired to continue with the Yagy, rituals Vedic practices. Neither you stop donations nor we people stop the prayers, worship, rituals etc. 
वृषन्निन्द्र वृषपाणास इन्दव इमे सुता अद्रिषुतास उद्भिदस्तुभ्यं सुतास उद्भिदः ते त्वा मन्दन्तु दावने महे चित्राय राधसे। गीर्भिर्गिर्वाहः स्तवमान आ गहि सुमृळीको न आ गहि
हे अभीष्ट वर्षक इन्द्रदेव! अभीष्टवर्षी के पान के लिए यह सोमरस अभिषुत हुआ है। यह पत्थरों के द्वारा कूटकर बनाया गया है। सोमरस पर्वत पर उत्पन्न हुआ है। वह आपके लिए अभिषुत हुआ है। विविध विचित्र लाभों के लिए यथास्थान प्रदत्त सोमरस आपको तृप्त करें। हे स्तुति योग्य! हम आपकी स्तुति करते हैं। हमारे ऊपर प्रसन्न होकर पधारें।[ऋग्वेद 1.139.6]
हे इन्द्रदेव! पराक्रमियों के लिए पेय पाषाणों द्वारा निष्पन्न सोम की बूँदें यहाँ उपस्थित हैं। मैं तुम्हें विभिन्न धनों के लिए तृप्त करें। हे वंदनाओं को ग्रहण करने वाले! तुम हमारी ओर आकर हम पर कृपा दृष्टि करो। 
Hey desire fulfilling Indr Dev! This Somras has been extracted for you by crushing it with stones. The creeper of Somras grew over the mountains. Let it satisfy you so that you grant us boons and fulfil our desires.  You deserve felicitation. We pray-worship you. You should be happy with us and come to us. 
ओ षू णो अग्ने शृणुहि त्वमीळितो देवेभ्यो ब्रवसि यज्ञियेभ्यो राजभ्यो यज्ञियेभ्यः यद्ध त्यामङ्गिरोभ्यो धेनुं देवा अदत्तन। वि तां दुहे अर्यमा कर्तरी सचाँ एष तां वेद मे सचा
हे अग्निदेव! हमारी स्तुतियों से प्रसन्न होकर हमारी प्रार्थना पर ध्यान दें। हे देवों! आपने अपनी गौओं को अंगिराओं के लिए प्रदत्त किया और उन गौओं को एकत्रित करते हुए अर्यमा ने उनको दूहा।[ऋग्वेद 1.139.7]
हे अग्निदेव! हमारी प्रार्थनाओं पर ध्यान दो। देवताओं के सम्मुख निवेदन करो। हे देवगण! जब तुमने धेनुएँ विजयकर अंगिराओं को प्रदान की तब अर्यमा ने उसका कूप में दोहन किया।
Hey Agni Dev! Be amused-happy with our prayers and pay attention to our requests (for fulfilment of desires). You offered-presented your cows to Angira who collected them & milked them. 
मो षु वो अस्मदभि तानि पौंस्या सना भूवन्धुमानि मोत जारिषुरस्मत्पुरोत जारिषुः यद्वश्चित्रं युगेयुगे नव्यं घोषादमर्त्यम्। अस्मासु तन्मरुतो यच्च दुष्टरं दिघृता यच्च दुष्टरम्
हे मरुतों! आपका नित्य और प्रसिद्ध बल हमें पराजित न करे। हमारा धन कम न हो। हमारा नगर क्षीण न हो। आपको जो कुछ नूतन, विचित्र, मनुष्य दुर्लभ और शब्द करने वाला है, वह युग-युग में हमारा ही रहे। जिस धन को शत्रु लोग नष्ट नहीं कर सकते, वह हमारा है। आप जिस दुर्लभ धन को धारण करते हैं, वह हमारा हैं। जिस धन को शत्रु नहीं नष्ट कर सकता, वह भी हमारा है।[ऋग्वेद 1.139.8]
हे मरुद्गण! तुम्हारे पराक्रमी कार्यों को हम भूल न पायें। तुम्हारी कीर्ति अक्षुण्ण रहे। तुम्हारा दिव्य कार्य युग-युग में गुंजायमान है। वह कष्ट से तारने वाला कार्य हमको धारण कराओ।
Hey Marud Gan! You regular and famous might should not defeat-trouble us. Our assets should remain intact. Whatever fascinate-attract you, amazing, new, rare and sound developing should remain with us for ages (Yug after another).The wealth which cannot be destroyed by the enemy should remain with us. The rare, difficult to possess riches along with the wealth which you bear & the one which cannot be stolen-snatched by the enemy should be ours.
दध्यङह मे जनुषं पूर्वो अङ्गिराः प्रियमेधः कण्वो अत्रिर्मनुर्विदुस्ते मे पूर्वे मनुर्विदुः तेषां देवेष्वायतिरस्माकं तेषु नाभयः। तेषां पदेन मह्या नमे गिरेन्द्राग्नी आ नमे गिरा
प्राचीन दधीचि, अङ्गिरा, प्रियमेघ कण्व, अत्रि और मनु मेरे जन्म की बात जानते हैं। ये पूर्व काल के ऋषि और मनु मेरे पूर्व पुरुषों को भी जानते हैं, क्योंकि वे महर्षियों में दीर्घायु हैं और मेरे जीवन के साथ उनका सम्बन्ध है। वे महान् हैं, इसलिए मैं उनकी स्तुति करते हुए। उन्हें नमस्कार करता हूँ।[ऋग्वेद 1.139.9]
प्राचीन ऋषि दध्य, अंगिरा, प्रियमेध, कण्व, अत्रि और मनु मेरे जन्म के ज्ञाता हैं और अलौकिक गुणों से युक्त हैं। उन अत्यन्त गौरवशाली इन्द्र और अग्नि को प्रणाम पूर्वक वंदना करता हूँ।
The ancient sages Dadhichi, Angira, Priymegh Kavy, Mitr & Manu know about my birth. They know the ancient Rishis-sages, Manu and my ancestors-Pitrs as well, since they are long lived and related with my life. They are great and hence I pray to them. I salute-revere them. 
होता यक्षद्वनिनो वन्त वार्यं बृहस्पतिर्यजति वेन उक्षभिः पुरुवारेभिरुक्षभिः जगृभ्मा दूरआदिशं श्लोकमद्रेरध त्मना। अधारयदररिन्दानि सुक्रतुः पुरू सद्मानि सुक्रतुः
यज्ञ करने वाले अभीष्ट सिद्धि के लिए यज्ञ करें और कल्याणकारी बृहस्पति, सामर्थ्यप्रद और विभिन्न लोगों द्वारा वांछित सोमरस से यज्ञ पूर्ण करें। दूर से आने वाली पत्थरों द्वारा सोमवल्ली कूटने की ध्वनि को हम श्रवण करते हैं। अति उत्तम कर्मरूपी यज्ञीय कार्य को करने वाले मनुष्य जल और अन्नादि से सम्पन्न रहते हैं।[ऋग्वेद 1.139.10]
होता (सूर्य, याचक) अग्नि याज्मा पढ़ते और हवि के देवता हवि डालते हैं। बृहस्पति निष्पन्न सोमों द्वारा अनुष्ठान करते हैं।
Let the hosts conform (अनुरूप) to Yagy for the fulfilment of their desires-wishes and Dev Guru Brahaspati who conform to welfare lead to accomplishment of the Yagy with Somras which is desired by various-several people. We listen to the sound of crushing the Somvalli through a distance. Those who are involved in the excellent endeavours like Yagy have sufficient quantity of water and food grain.
Dev Guru Brahaspati who is identified with the excellent deeds should conform to 11 deeds.
याज्या :: वह ऋचा जो यज्ञ के समय उच्चरित की जाती है। वह स्तोत्र जिससे अन्तरिक्ष लोक पर विजय हासिल की जा सकती है; The Strotr which are recited at this occasion are termed Yajma. 
ये देवासो दिव्येकादश स्थ पृथिव्यामध्येकादश स्थ। अप्सुक्षितो महिनैकादश स्थ ते देवासो यज्ञमिमं जुषध्वम्
जो देवता स्वर्ग में ग्यारह हैं, पृथ्वी के ऊपर ग्यारह हैं, जब अन्तरिक्ष में रहते हैं, तब भी ग्यारह ही रहते हैं। वे सभी हमारे द्वारा दी गयी आहुतियों को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.139.11]
उत्तम कर्मा बृहस्पति ने प्रसूत पर भी ग्यारह हों, अपने महत्त्व से अंतरिक्ष में भी ग्यारह हों, इस प्रकार जलों को धारण किया है। हे देवगण! तुम आकाश में ग्यारह हो, पृथ्वी! तुम तैंतीस देवगणों के साथ मेरे यज्ञ को ग्रहण करो।
The major demigods present in the heavens are 11, those over the earth are 11 and those in the space too are 11. They all should accept our offerings.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (164) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, प्रभृति आदि ।
अस्य वामस्य पलितस्य होतुस्तस्य भ्राता मध्यमो अस्त्यश्नः। 
तृतीयो भ्राता घृतपृष्ठो अस्यात्रापश्यं विश्पतिं सप्तपुत्रम्
हमने संसार का पालन करने वाले सूर्य देव को सात पुत्रों के साथ देखा है। उसका मध्य अन्तरिक्ष में जाना वाला भ्राता वायु और तीसरा भ्राता तेजस्विता को प्रदान करने वाले अग्निदेव हैं।[ऋग्वेद 1.164.1]
आह्वान योग्य, सुन्दर सूर्य के समान भाई पवन और कनिष्ट भाई अग्नि हैं। मैं यहाँ प्रजा पोषक रश्मियों से परिपूर्ण सूर्य को देखता हूँ।
We have seen-visualised the Sun, who nourishes-nurture the universe, with his 7 sons.  His brother Pawan-Vayu (air) can reach the middle of the space. His third bother Agni grant aura-brilliance.
Higher we go rare-thin is the air. Generally its very close to the earth.
सप्त युञ्जन्ति रथमेकचक्रमेको अश्वो वहति सप्तनामा। 
त्रिनाभि चक्रमजरमनर्वं यत्रेमा विश्वा भुवनाधि तस्थुः
सूर्य देव के एक चक्र रथ में सात घोड़े नियोजित किये गये हैं। एक ही अश्व सात नामों से रथ का वहन करता है। चक्र की तीन नाभियाँ हैं। वे न तो कभी शिथिल होती हैं न जीर्ण; सारा संसार उनका आश्रय प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.164.2]
एक पहिये वाले रथ  के संग अश्व जुतते हैं। इस अक्षय और तीन नाभि वाले पहिए को एक अश्व ले जाता है। समस्त संसार इस पहिये के आश्रित है। सात पहिए वाले निकट रथ को सात घोड़े खींचते हैं।
The chariote of the Sun completes one cycle with three axles deploying 7 horses. They are neither dilapidated nor they become loose-weak. The whole universe gets protection-shelter under them. Same horse is deployed with 7 different names.
इमं रथमधि ये सप्त तस्थुः सप्तचक्रं सप्त वहन्त्यश्वाः। 
सप्त स्वसारो अभि सं नवन्ते यत्र गवां निहिता सप्त नाम
जो सात सप्त-चक्र, रथ का अधिष्ठान करते हैं, वे ही सात अश्व हैं, वे ही इस रथ को वहन करते हैं। सात किरणें इस रथ के समक्ष आती हैं। इसमें सात किरणें या स्वर हैं।[ऋग्वेद 1.164.3]
सात पहिये वाले इस को सात घोड़े खींचते हैं। रश्मि रूप सात बहिने इस रथ के आगे चलती हैं।
The seven horses pulls this chariote. Seven rays moves ahead of this chariote.
को ददर्श प्रथमं जायमानमस्थन्वन्तं यदनस्था बिभर्ति। 
भूम्या असुरसृगात्मा क्व स्वित्को विद्वांसमुप गात्प्रष्टुमेतत्
पहले उत्पन्न हुए को किसने देखा था? किस समय अस्थि रहिता (प्रकृति) ने अस्थि युक्त (संसार) को धारण किया? पृथ्वी से प्राण और रक्त उत्पन्न हुए; परन्तु आत्मा कहाँ से उत्पन्न हुई? विद्वान् के पास कौन इस विषय की जिज्ञासा करने जायेगा?[ऋग्वेद 1.164.4]
पहले जन्म वाले को देखा है? उस अस्थि-रहित ने अस्थि-युक्त को धारण किया। धरती पर प्राण और रक्त उत्पन्न हुआ। लेकिन आत्मा कहाँ से उत्पन्न हुई? इस विषय को जानने के लिए विद्वानों के समीप कौन जाएगा?
Who saw the first-initially born!? When did the bone free (earth-nature) got the bones?! Sensation and blood grew from the earth but from where did the soul came?! Who will go to the enlightened to seek answer to these queries-questions.
पाकः पृच्छामि मनसाविजानन्देवानामेना निहिता पदानि। 
वत्से बष्कयेऽधि सप्त तन्तून्वि तत्निरे करेंय ओतवा उ
मैं अज्ञानी हूँ, कुछ समझ में न आने से पूछ रहा हूँ। ये सब संदिग्ध बातें देवों के लिए भी रहस्यमयी है। एक वर्ष के गोवत्स या सूर्य के वेष्टन के लिए मेधावियों ने जो सात सोमयज्ञ प्रस्तुत किये, वे क्या है?[ऋग्वेद 1.164.5]
मैं अज्ञानी हूँ। समझ में न आने के कारण ही यह सब पूछता हूँ। नवयुवक बछड़े के लिए विद्वानों ने सात सूत्र की रस्सी प्रकट की। वे क्या हैं? नवयुवक बछड़े से तात्पर्य ग्रह नक्षत्र आदि से है और सात सूत्र की रस्सी का तात्पर्य सूर्य के आकर्षण बल से है।
I am ignorant. I am unable to grasp these intricate things, that's why I am asking you. These things are full of secrets even for the demigods-deities. One year old calf is tied with seven cords. The intelligent-prudent have advised seven Som Yagy, please explain.
The planets revolve round the Sun due to the gravitational attraction.
अचिकित्वाञ्चिकितुषश्चिदत्र करीन्पृच्छामि विझने न विद्वान्। 
वि यस्तस्तम्भ षळिमा रजांस्यजस्य रूपे किमपि स्विदेकम्
मैं अज्ञानी हूँ। कुछ न जानकर ही ज्ञानियों के पास जानने की इच्छा से पूछता हूँ। जिन्होंने इन छः लोकों को रोक रखा है, जो जन्म रहित रूप से निवास करते हैं, वे क्या एक हैं?[ऋग्वेद 1.164.6]
मैं अज्ञानी होने के कारण पूछता हूँ जिसने इन छ: लोकों को स्थिर किया है, वे अजन्मा क्या एक ही हैं? 
Being ignorant, I am asking the enlightened, who is holding the six abodes tied together. Who is the unborn (force, Almighty), is he single entity?!
इह ब्रवीतु य ईमङ्ग वेदास्य वामस्य निहितं पदं वेः। 
शीर्ष्ण: क्षीरं दुह्रते गावो अस्य वव्रिं वसाना उदकं पदापुः
गमनशील और सुन्दर सूर्यदेव का स्वरूप अतीव निगूढ़ है। वे सबके मस्तक स्वरूप हैं। उनकी किरणें दूध दुहती तथा अति विशाल तेज से युक्त होकर उसी प्रकार पुनः जलपान करती है। जो यह सब कथाएँ जानते हैं, वे उसका वर्णन करें।[ऋग्वेद 1.164.7]
कौन इस आदित्य रूपी पक्षी के स्थान का जानकार है? इनकी रश्मियाँ रूपी गायें तेज का दोहन करती हैं, वे जल पीने जाती हैं धरती माता नभ में स्थित सूर्य को वृष्टि के लिए पूजती हैं।
The real form of Sury Dev-the Sun is very intricate. He is like the head of everyone. Its rays extracts the milk-nectar associated with brightness (energy explosion) and sips the water. Those who knows all these facts should describe them.
Rays of Sun evaporated water, which rises up in the space and thereafter breaks into highly charged ions of hydrogen and oxygen. The movement of the Sun rays to earth-planets and other abodes is cyclic. It grants energy in the form of heat & light and then sucks it back in the form of highly charged particles, which on reaching Sun again yield Helium and energy. 
माता पितरमृत आ बभाज धीत्यग्रे मनसा सं हि जग्मे। 
सा बीभत्सर्गर्भरसा निविद्धा नमस्वन्त इदुपवाकमीयुः
माता (पृथ्वी) वर्षा के लिए पिता या धुलोक में स्थित सूर्यदेव को अनुष्ठान द्वारा पूजती है। इसके पहले ही पिता भीतर ही भीतर उसके साथ संगत हुए थे। गर्भधारण की इच्छा से माता गर्भरस से निबिद्ध हुई थी। अनेक प्रकार के शस्य उत्पन्न करने के लिए आपस में बातचीत भी की था।[ऋग्वेद 1.164.8]
यह गर्भेच्छा से वर्षा रूपी गर्भ से सींची गई, तब प्राणियों ने अन्न प्राप्त कर प्रार्थना की। प्रदक्षिणा करती हुई धरा गर्भभूत जल राशि के लिए ठहरी, तब वर्षा रूप वर्ल्स ने ध्वनि की और विश्व रूप वाली धेनु शस्य स्यामला हुई।
Mother earth prays to father Sun for yielding water-rains. It leads to production of vegetation.
Rains are controlled by Dev Raj Indr, Varun Dev, Vayu-Pawan Dev, clouds and even the Agni Dev. When we consider Sun as Sury Narayan, he becomes the source of all forms of energy, controlled by these demigods-deities.  
युक्ता मातासीद्धुरि दक्षिणाया अतिष्ठद्गर्भो वृजनीष्वन्तः। 
अमीमेद्वत्सो अनु गामपश्यद्विश्वरूप्यं त्रिषु योजनेषु
पिता (द्युलोक) अभिलाषा की पूर्ति में समर्थ पृथ्वी का भार वहन करने में नियुक्त हुए। गर्भभूत जलराशि मेघमाला के बीच थी। वृष्टि जल ने शब्द किया और तीन (मेघ, वायु और किरण) के योग से विश्व रूपिणी गौ (पृथ्वी) हुई अर्थात् पृथ्वी  शस्याच्छादिता हुई।[ऋग्वेद 1.164.9]
ये आदित्य तीन जननी और तीन पिताओं को धारण करता हुआ उच्च स्थान पर स्थित है। वे थकते नहीं। देवगण क्षितिज की पीठ पर विराजमान हुए के सम्बन्ध में चर्चा करते हैं।
Sun as a father figure is capable of supporting the earth (due to gravitational forces). The large quantity of water is held by the clouds. The rains create-produce sound by the support of the clouds, air-wind and the Sun rays to make the earth green with vegetation.
The earth is termed as Gau-cow in scriptures. It goes to Bhagwan Shri Hari Vishnu to reveal ever increasing tortures-wickedness of the Kshatriy clan. Prathu make endeavours to milk it means, make it fertile.
तिस्त्रो मातॄस्त्रीन्पितॄन्बिभ्रदेक ऊर्ध्वस्तस्थौ नेमव ग्लापयन्ति। 
मन्त्रयन्ते दिवो अमुष्य पृष्ठे विश्वविदं वाचमविश्वमिन्वाम्
एक मात्र सूर्यदेव तीन माता (पृथ्वी, अन्तरिक्ष और आकाश) और तीन पिता (अग्नि, वायु और सूर्य) को धारित करते हुए ऊपर स्थित हैं, उन्हें आलस्य नहीं आता। धुलोक की पीठ पर देवता लोग सूर्य के सम्बन्ध में वार्ता करते हैं। उस वार्ता को कोई नहीं जानता; परन्तु उसमें सबकी बातें रहती हैं।[ऋग्वेद 1.164.10]
धारण :: ग्रहण; retention, assumption, hostile, possession.
आदित्य तीन जननी और तीन पिताओं को धारण करता हुआ उच्च स्थान पर स्थित है। वे थकते नहीं। देवगण क्षितिज की पीठ पर विराजमान हुए सूर्य के सम्बन्ध में चर्चा करते हैं।
The Sun supports-holds the three mothers (earth, space & sky) & three fathers (Agni-fire, Vayu-air and itself), without laziness. The demigods-deities discuss this, in the heavens. None other knows what they talk, but it involves the discussions of every one.
द्वादशारं नहि तज्जराय वर्वर्ति चक्रं परि द्यामृतस्य। 
आ पुत्रा अग्ने मिथुनासो अत्र सप्त शतानि विंशतिश्च तस्थुः
सत्यात्मक आदित्य का बारह अरों (राशियों) से युक्त चक्र स्वर्ग के चारों ओर बार-बार भ्रमण करता और कभी पुरातन नहीं होता। अग्निदेव इस चक्र में पुत्र स्वरूप सात सौ बीस (तीन नौ साठ दिन और तीन सौ साठ रात्रियाँ) निवास करते है।[ऋग्वेद 1.164.11]
सूर्य का बारह राशि रूप अरों से युक्त रथ चक्र नभ के चारों ओर लगातार फिरता है। वह कभी पुराना नहीं होता। चक्र के सात सौ बीस पुत्र रूपी बंधु स्थिर हैं।
The chariote of Sun having 12 axels (12 constellations) moves around the heaven without being old-tired (torn). Agni Dev remains in it for for 720 periods (360 days & 360 nights). 
पञ्चपादं पितरं द्वादशाकृतिं दिव आहुः परे अर्धे पुरीषिणम्। 
अथेमे अन्य उपरे विचक्षणं सप्तचक्रे षळर आहुरर्पितम्
पाँच पैरों (ऋतुओं) और बारह रूपों (महीनों) से संयुक्त सूर्य देव जिस समय द्युलोक के पूर्वार्द्ध में रहते हैं, उस समय उनको कोई-कोई जलदाता कहते है। दूसरे कोई-कोई छः अरों (ऋतुओं) और सात चक्रों (रश्मियों) से संयुक्त रथ पर द्योतमान सूर्य को अर्पित कहते हैं, जबकि वे द्युलोक के आधे भाग में रहते हैं।[ऋग्वेद 1.164.12]
पांच पैर और बारह रूप से युक्त जलों के दाता को आसमान के परे अर्द्ध भाग में स्थिर बताते हैं। दूसरे व्यक्ति उन्हें सात पहिए और छः अरों वाले रथ पर सवार बताते हैं। उस भ्रमण करते हुए पाँच अरों वाले रथ चक्र में समस्त संसार दृढ़ है।
When the Sun is in the eastern horizon, its associated with five legs (seasons) and 12 forms (months), is addressed as the giver of water. When its associated with six axels (seasons) and seven cycles (rays), its called as Arpit by some. 
पञ्चारे चक्रे परिवर्तमाने तस्मिन्ना तस्थुर्भुवनानि विश्वा।  
तस्य नाक्षस्तप्यते भूरिभारः सनादेव न शीर्यते सनाभिः
नियत परिवर्तमान पाँच ऋतुओं या अरों (खूँटों) से युक्त चक्र पर सारे भुवन विहित हैं। उसका अक्ष प्रभूत भारवहन में नहीं थकता। उसकी नाभि सदा समान रहती है, कभी जीर्ण-शीर्ण नहीं होती।[ऋग्वेद 1.164.13]
उनका धुरा बहुत भार ढोने पर भी क्षीण नहीं होता है। अक्षय चक्र भ्रमण करता हुआ सूर्य का नेत्र दमकता है। उसी में समस्त भुवन दृढ़ हैं।
All abodes are aligned over the axels having changeable five seasons. Its axel never tire. Its axels is always fit and torn. 
All abodes are well-knit and maintain their position around the Sun.  
सनेमि चक्रमजरं वि वावृत उत्तानायां दश युक्ता वहन्ति। 
सूर्यस्य चक्षू रजसैत्यावृतं तस्मिन्नार्पिता भुवनानि विश्वा
समान नेमि से संयुक्त और अजीर्ण कालचक्र निरन्तर भ्रमण करता रहता है। एक साथ दस (पंच लोकपाल और निषाद, ब्राह्मण आदि पंच वर्ण) ऊपर मिलकर पृथ्वी को धारित करते हैं। सूर्य का नेत्ररूप मण्डल वर्षा के जल में छिप गया है। समस्त प्राणी और जगत् भी उसमें विलीन हो जाता है।[ऋग्वेद 1.164.14]
अक्षय भ्रमण करता हुआ सूर्य का नेत्र दमकता है। उसी में समस्त भुवन दृढ़ हैं। 
The axel is common, continue moving without being torn. The ten forces (5 Lok Pal & 5 Varns-Brahmans, Kshatriy, Vaeshy, Shudr & the Nishad)) together maintain the earth. The exposure of the Sun in the form of eye is masked by the rains (clouds). All living beings and the universe assimilate in it.
साकंजानां सप्तथमाहुरेकजं षळिद्यमा ऋषयो देवजा इति। 
तेषामिष्टानि विहितानि धामशः स्थात्रे रेजन्ते विकृतानि रूपशः॥
एक साथ जन्में जोड़ से रहने वाले छः और सातवाँ यह सभी एक से उत्पन्न हुए। परिवर्तित हुए रूपों में वे अपने-अपने इष्टकर्म में रथ अपने-अपने धामों में उपस्थित होकर सक्रिय रहते हैं।[ऋग्वेद 1.164.15]   
सहजता ऋतुओं में अधिक मास वाली सातवीं ऋतु अकेले ही रहती है। छः ऋतुएँ आपस में जुड़ी हुई हैं और क्रमशः गमन करती हैं। वे रूप भेद से युक्त हुई अपने दाता के लिए घूमती हैं।
Born together in pairs, the seasons live together. The sixth & the seventh season are tied together. The seventh season is extra. They revolve round their producer.
In Hindu calendar, there is provision for the extra month, the thirteenth. Similarly, the seventh season too occurs. It depends upon the interaction-movement of the Sun, Moon and the constellations. This system is scientific and based upon our knowledge of Astronomy & Astrology. 
स्त्रियः सतीस्ताँ उ मे पुंस आहुः पश्यदक्षण्वान्न वि चेतदन्यः। 
कविर्यः पुत्रः स ईमा चिकेत यस्ता विजानात्स पितुष्पितासत्॥
किरणें स्त्री होकर भी पुरुष रूप हैं। यह सूक्ष्म दृष्टि युक्त ही देख सकते हैं, दूरदर्शी पुत्र ही इसका अनुभव कर सकते हैं। जो यह जान लेता है, वह पिता का भी पिता हो जाता है।[ऋग्वेद 1.164.16]
रश्मि नारी रूप होरक भी मनुष्य के तुल्य है। उन्हें नेत्रवान मेधावी ही जानते हैं। जो जान लेते हैं वे पितामह अनुभवी हैं।
Though the rays are female yet they are like males. This can be observed only by that person, who is a visionary-enlightened. One who identifies this is like a grand father. 
अवः परेण पर एनावरेण पदा वत्सं बिभ्रती गौरुदस्थात्। 
सा कद्रीची कं स्विदर्धं परागात्क्व स्वित्सूते नहि यूथे अन्तः
हे वत्स! अग्नि का पिछला भाग सामने के पैर से और सम्मुख भाग पीछे के पैर से धारण हुए गौ, आदित्य रश्मि या आहुति ऊपर की ओर जाती हैं। वह कहाँ जाती हैं!? यह किस आधे भाग से परे निकलकर जन्म देती हैं। समूह के बीच प्रसव नहीं करती।[ऋग्वेद 1.164.17]
अम्बर ने नीचे धरा के ऊपर वत्स को धारण करती हुई रश्मि ऊपर उठती है। वे कहाँ जाती और कहाँ विश्राम करती हैं। जो आकाशस्थ सूर्य पृथ्वी पर स्थित अग्नि देव की पूजा करते हैं, वे अवश्य हैं। 
Hey disciple-child! The cow carries the rear of Agni over its front legs-feet and the forward-front part-portion, over its hind legs, in this way, the rays or the offerings move in an upward direction. Where does it go?! With which half it produce? It do not give birth in the open.
अवः परेण पितरं यो अस्यानुवेद पर एनावरेण। 
करीयमानः क इह प्र वोचद्देवं मनः कुतो अधि प्रजातम्
जो अघ: स्थित (अग्नि) लोकपालक की सूर्य के साथ और उद्धर्व स्थित की अध:स्थित के साथ उपासना करते हैं, वे ही मेधावी की तरह आचरण करते हैं। किसने ये सब बातें कही है? कहाँ से यह अद्भुत आचरण वाला मन उत्पन्न हुआ है?[ऋग्वेद 1.164.18]
जो आकाशस्थ सूर्य पृथ्वी पर अग्निदेव की पूजा करते हैं, वे अवश्य ही महापुरुष हैं। इन बातों को किसने बताया? कहाँ से वह दिव्याचरण वाला हृदय उत्पन्न हुआ।
Those who pray to Sun and Agni Dev over the earth are prudent scholars-learned. Who has said this!? Where has the amazing Man-innerself originated, which follows-adopts itself to divine behaviour?! 
ये अर्वाञ्चस्तों उ पराच आहुर्ये पराञ्चस्ताँ उ अर्वाच आहुः। 
इन्द्रच या चक्रथुः सोम तानि धुरा न युक्ता रजसो वहन्ति
जिन्हें विद्वान् लोग अधोमुख कहते हैं, उन्हीं को उर्ध्वमुख भी कहते हैं और जिन्हें उर्ध्वमुख कहते हैं, उन्हें अधोमुख भी कहते हैं। हे सोम! आपने और इन्द्रदेव ने जो मण्डल द्वय निर्मित किया है, वह युग युक्त अश्व आदि की तरह समस्त संसार का भार वहन करता है।[ऋग्वेद 1.164.19]
अधोमुख :: उलटा, औंधा;  downward.
जिसका मुँह नीचे की ओर हो। जो इधर आते हैं, उधर जाने वाले भी कहे जाते हैं। जो उधर जाते हैं उन्हें इधर आने वाला कहा जाता है। सोम और इन्द्र ने जो लोक बनाये वे मनुष्य मात्र का भार वहन करते हैं।
Those who are called downward are called upward & vice versa by the learned-studied. Hey Som-Moon! The abodes created by you and Dev raj Indr are capable of bearing the load of the whole universe-world.
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परि षस्वजाते। 
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभि चाकशीति॥ 
दो पक्षी (जीवात्मा और परमात्मा) मित्रता के साथ एक वृक्ष या शरीर में रहते हैं। उनमें एक (जीवात्मा) स्वादु पिप्पल का भक्षण करता है और दूसरा (परमात्मा) कुछ भी भक्षण नहीं करता, केवल द्रष्टा है।[ऋग्वेद 1.164.20] 
दो पक्षी पेड़ों पर वास करते हैं उनमें से एक स्वादिष्ट फल भक्षण करता है और दूसरा कुछ भी भक्षण नहीं करता, केवल देखता रहता है। जीवात्मा और ईश्वर दो पक्षी हैं। एक सांसारिक भोगों में संलिप्त है और दूसरा केवल देखता है।
Two birds reside over a tree or the body, friendly, together. The living being eats the tasty fruits while the other-Almighty is a silent spectator. HE just watches.
यत्रा सुपर्णा अमृतस्य भागमनिमेषं विदथाभिस्वरन्ति। 
इनो विश्वस्य भुवनस्य गोपाः स मा धीर: पाकमत्रा विवेश
जिनमें सुन्दर गति रश्मियाँ, कर्तव्य ज्ञान से अमृत का अंश लेकर सदैव जाती हैं और जो धीर भाव से समस्त भुवनों की रक्षा करते हैं, मेरे अल्पज्ञ होने पर भी उन्होंने मुझे स्थापित किया है।[ऋग्वेद 1.164.21]
जिसमें मनुष्य अमर भाव के चिंतनार्थ लगातार प्रार्थना करते हैं, यह लोक पालक सबका दाता मुझ मूर्ख में ही विद्यमान है। 
One in whom the beautiful rays are merging, which carries the ambrosia of dedication towards duties, who protects all abodes; has established me, though I have little knowledge.
यस्मिन्वृक्षे मध्वदः सुपर्णा निविशन्ते सुवते चाधि विश्वे। 
तस्येदाहुः पिप्पलं स्वाद्वग्रे तन्त्रोन्नशद्यः पितरं न वेद
जिस (आदित्य) वृक्ष पर जलग्राही किरणें रात को बैठतीं और संसार के ऊपर प्रातःकाल दीप्ति प्रकट करती हैं; विद्वान् लोग उनका फल प्रापणीय बताते हैं। जो व्यक्ति पिता (सूर्य या परमात्मा) को नहीं जानता, वह इस फल को नहीं प्राप्त करता।[ऋग्वेद 1.164.22]
जिस वृक्ष में सभी मधुर रस की इच्छा करने वाले निवास करते हैं और प्रजा की उत्पत्ति में लगे रहते हैं, उसके आगे के भाग में स्वादिष्ट फल लगे बताते हैं। जो प्राणी पिता को नहीं जानता, वह उसके फल को नहीं पा सकता।
The rays which absorbs water, settle over the tree (Adity-Sun) and reappear in the morning. The learned describe the outcome of this as rewarding. One who is not aware of the father (Sun, Almighty) never gains from the outcome of this activity. 
यद्गायत्रे अघि गायत्रमाहितं त्रैष्टुभाद्वा त्रैष्टुभं निरतक्षत। 
यद्वा जगज्जगत्याहितं पदं य इत्तद्विदुस्ते अमृतत्वमानशुः
जो पृथ्वी पर गायत्री छन्द, अन्तरिक्ष में त्रिष्टुप् छन्द और आकाश में जगती छन्द को स्थापित करने वाले को जान लेता है, वह देवताओं को प्राप्त कर लेता है।[ऋग्वेद 1.164.23]
धरा पर गायत्री छन्द, अंतरिक्ष में त्रिष्टुप छंद और अम्बर में जगती छन्द जिसने स्थिर किया, उसे जो जानता है वह देवत्व ग्रहण कर चुका है।
One who knows the Gayatri Chhand over the earth, Trishtup Chhand in the space and Jagti Chhand in the sky attains the demigods-deities. 
गायत्रेण प्रति मिमीते अर्कमर्केण साम त्रैष्टुभेन वाकम्। 
वाकेन वाकं द्विपदा चतुष्पदाक्षरेण मिमते सप्त वाणीः
उन्होंने गायत्री छन्द द्वारा पूजन मंत्र की सृष्टि की, अर्चना मंत्र द्वारा सामवेद को बनाया, त्रिष्टुप् द्वारा यर्जुवाक्यों की रचना की, द्विपाद और चतुष्पाद वचन के द्वारा अनुवाक् तथा अक्षर योजना द्वारा सातों छन्दों की रचना की।[ऋग्वेद 1.164.24]
गायत्री छन्द से जिन्होंने ऋचायें निर्माण की, ऋचाओं में सोम को रचा। त्रिष्टुप छंद से वायु वाक्य बनाया। दो पद और चार पद वाली वाणी से वाक उत्पत्ति की। अक्षर से सातों छन्द निर्मित किये।
They created the Mantr for Puja-prayers with the Gayatri Chhand, created Sam Ved with the Archna Mantr, used Trishtup to generate sentences for Yajur Ved, used Dwipad & Chaturpad to write Anuwak and the alphabet system to write seven Chhand.
जगता सिन्धुं दिव्यस्तभायद्रथंतरे सूर्य पर्यपश्यत्। 
गायत्रस्य समिधस्तित्र आहुस्ततो मह्ना प्र रिरिचे महित्वा
ब्रह्मा जी ने सूर्य देवता के माध्यम से आकाश में जल को स्थित कर दिया। वर्षा के माध्यम से जल सूर्य और पृथ्वी संयुक्त होते हैं। सब सूर्य और धुलोक में सन्निहित प्राण, जल-वृष्टि के द्वारा पृथ्वी पर प्रकट होता है। गायत्री के तीन चरण ब्रह्मा के तेज से ही शक्ति पाते हैं।[ऋग्वेद 1.164.25]
जगती से आकाश में जलों को स्थापित किया। रथंतर सोम में सूर्य को देखा। गायत्री के तीन चरण हैं, अतः वह पराक्रम और महत्व में सबसे बढ़ी हुई है।
Brahma Ji established water through the Sun. Sun and the earth are connected through rains. The souls present in the Sun and the space, appear over the earth through the rains. The three stanzas of Gayatri gets strength-energy from the the energy of Brahma Ji.
उप ह्वये सुदुघां धेनुमेतां सुहस्तो गोधुगुत दोहदेनाम्। 
श्रेष्ठं सवं सविता साविषन्नोऽभीद्धो धर्मस्तदु षु प्र वोचम्
मैं इस दुग्धवती गौ को बुलाता हूँ। दूध दुहने में निपुण व्यक्ति उसे दूहता है। हमारे सोमरस के उत्तम भाग को सविता देव ग्रहण करें, क्योंकि उससे उनका तेज प्रवृद्ध होगा। इसलिए मैं उनका आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 1.164.26]
मैं इस आसानी से दुही जाने वाली धेनु को बुलाता हूँ। कुशल दोहन कर्त्ता इसे दुहे। सविता हमको उत्साहित करें। मैं उनके तेज के लिए आह्वान करता हूँ।
I call the milch cow. An expert in milking milk her. Let Savita Dev accept the best of our Somras. It will increase his aura-energy. I invite him.
हिङ्कण्वती वसुपत्नी वसूनां वत्समिच्छन्ती मनसाभ्यागात्। 
दुहामश्विभ्यां पयो अध्न्येयं सा वर्धतां महते सौभगाय
धनशाली गाय बछड़े के लिए मन ही मन व्यग्र होकर रँभाती हुई आती है। कभी भी वध न करने योग्य गौ को मानव समुदाय के महान् सौभाग्य की वृद्धि करती हुई प्रचुर मात्रा में दुग्ध प्रदान करती है।[ऋग्वेद 1.164.27]
बछड़े की कामना से रंभाती हुई दुग्धवती गाय हमको प्राप्त हुई। वह अहिंसा के योग्य अश्विनी कुमारों के लिए दूध दे, सौभाग्य लाभ को बढ़ाये।
The cow come mooing for her calf. It never deserve killing being auspicious for the humanity, providing sufficient milk. 
गौरमीमेदनु वत्सं मिषन्तं मूर्धानं हिङ्ङकृणोन्मातवा उ। 
सक्काणं घर्ममभि वावशाना मिमाति मायुं पयते पयोभिः
आँखें नीचे किए हुए बछड़े के पास जाकर गौ रम्भाती है। बछड़े के सिर को चाटते हुए वात्सल्य पूर्ण शब्द करती है। उसके मुँह के पास अपने दूध से भरे थनों को ले जाती हुई शब्द करती है। वह दुग्धपान कराते हुए (स्नेह से) शब्द करते हुए (अपने) बछड़े को शान्त करती हैं।[ऋग्वेद 1.164.28]
नेत्र बंद करते हुए बछड़े की पीछे ध्वनि करती हुई गाय बछड़े के मुख को चाटती है। इसके होठों को थन से लगाने कर कामना से वृद्धि करती हुई रम्भाती है। उसके थनों में दूध पूर्ण हो जाता है।
The cow moo, keeping its eyes low, moving to the calf. It licks the head of the calf. Bring its head to her udder. Calms down the calf by feeding him. 
अयं स शिङ्क्ते येन गौरभीवृता मिमाति मायुं ध्वसनावधि श्रिता। 
सा चित्तिभिर्नि हि चकार मर्त्य विद्युद्धवन्ती प्रति वव्रिमौहत
गाय के चारों ओर घूमकर बछड़ा अव्यक्त शब्द करता है और गोचर भूमि पर गाय 'हम्बा' शब्द करती है। गाय पशु ज्ञान द्वारा मनुष्यों को लज्जित करती हैं और द्योतमान् होकर अपना रूप प्रकट करती है।[ऋग्वेद 1.164.29]
बछड़ा निःशब्द गाय के सभी ओर घूमता है। धेनु रंभाती हुई अपनी पशु चेष्टाओं से प्राणी को लजाती है, परन्तु निर्मल दूध देकर उसे प्रसन्न करती है।
The calf roams around the cow quietly. The cows moos. Cow shames the humans due to her sense of recognition.
The calf can recognise her mother out of 1,000 cows and vice versa.
अनच्छये तुरगातु जीवमेजदध्रुवं मध्य आ पस्त्यानाम्। 
जीवो मृतस्य चरति स्वधाभिरमर्त्यो मर्त्येना सयोनिः
श्वास प्रक्रिया द्वारा अस्तित्व में रहने वाला जीव जब शरीर से चला जाता है, तब यह शरीर गृह में निश्चल पड़ा रहता है। मरण शील शरीरों के साथ रहने वाली आत्मा अविनाशी है अर्थात् इसका कभी विनाश नहीं होता। इसलिए अविनाशी आत्मा अपनी धारण करने की शक्तियों से युक्त होकर सभी जगह भ्रमण करती है।[ऋग्वेद 1.164.30]
चंचल चित्त वाला, श्वास परिपूर्ण जीव अपने गृह में अह्निवल रूप से वास करता है। मरण धर्म वालों को अन्न से परिपूर्ण होता हुआ वह अमरजीव स्वधा के भक्षण करता हुआ वास करता है।
Respiration-breathing keep the organism alive. When the soul depart the living being become motionless-dead. The soul which reside in the perishable bodies is immortal-forever. Hence it roams everywhere keeping its powers with it. 
 अपश्यं गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्चरन्तम्। 
स सध्रीचीः स विषूचीर्वसान आ वरीवर्ति भुवनेष्वन्तः
सभी ओर फैलने वाली तेजस्विता को धारित करते हुए समस्त लोकों में विराजित सूर्य देव को हम देखते हैं। समीपस्थ और दूरस्थ मार्गों में गतिमान् सूर्य देव हमेशा गति युक्त रहकर भी कभी नहीं गिरते, क्योंकि वे सम्पूर्ण संसार का संरक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.31]
मैं इन रक्षा करने वाले आदित्य को अंतरिक्ष में गमन करते देखता हूँ। वे किरण युक्त वस्त्रों से आच्छादित हुए सभी लोकों में विचरते हैं।
We watch-observe Sun (Sury Dev) moving around all abodes bearing aura. We never see Sun falling when its either far or close to earth, while speeding up-revolving, it protects the entire universe.
 य ई चकार न सो अस्य वेद य ईं ददर्श हिरुगिन्नु तस्मात्। 
स मातुर्योना परिवीतो अन्तर्बहुप्रजा निॠतिमा विवेश
जिसने जीव को बनाया है, वह भी इसे नहीं जानता, जिसने इसे देखा है, उससे भी यह लुप्त रहता है। मातृयोनि के बीच वेष्टित होकर यह प्रजाओं की उत्पत्ति करता हुआ स्वयं अस्तित्व खो देता है।[ऋग्वेद 1.164.32]
जिसने रचा, वह भी इसे नहीं जानता और जिसने इसे देखा, उससे वह छिपा है। वह मातृ गर्भ से टिका हुआ अधिक प्रजा वाला नाश को पहुँचा है।
He who created the living being, do not know it. It remains hidden from the one who saw it. It looses its identity, stationing it self in the mother's gentles creating the populace.  
द्यौर्मे पिता जनिता नाभिरत्र बन्धुर्मे माता पृथिवी महीयम्। 
उत्तानयोश्चम्वो ३ योनिरन्तरत्रा पिता दुहितुर्गर्भमाधात्
स्वर्ग मेरा पालक और जनक है, पृथ्वी की नाभि मेरा मित्र है और यह विस्तृत पृथ्वी मेरी माता है। आकाश और पृथ्वी के बीच अन्तरिक्ष है। वहाँ पिता (धु) दूरस्थिता (पृथ्वी) का गर्भ उत्पादन करता है।[ऋग्वेद 1.164.33]
अम्बर मेरा पोषणकर्त्ता पिता है, विस्तारित धरा मेरी जननी है, अम्बर-धरा के बीच अंतरिक्ष योनि रूप है, वहाँ पिता गर्भस्थापन करता है।
The heaven is my creator, and nurturer, earth's navel-womb is my friend, this braod earth is my mother. There is space bwetween the earth and the sky. There my father establishes the fetus.
पृच्छामि त्वा परमन्तं पृथिव्याः पृच्छामि यत्र भुवनस्य नाभिः। 
पृच्छामि त्वा वृष्णो अश्वस्य रेतः पृच्छामि वाचः परमं व्योम
मैं आपसे पूछता हूँ, पृथ्वी का अन्त कहाँ है? मैं आपसे पूछता हूँ, संसार की नाभि (उत्पत्ति-स्थान) कहाँ है? मैं आपसे पूछता हूँ, सेचन समर्थ अश्व का रेत क्या हैं? मैं आपसे पूछता हूँ, समस्त वाक्यों का परम स्थान कहाँ है?[ऋग्वेद 1.164.34]
मैं तुमसे धरा का छोर पूछता हूँ। जगत की नाभि कहाँ है? यह जानना चाहता हूँ। अश्व का वीर्य कहाँ है और वाणी का परम स्थान कौन सा है?
I want to know (1). the end-extension of the earth, (2). the origin of the universe, (3). what is the sperm of the horse which is capable of reproduction? I wish to know the ultimate origin of speech (language)? 
इयं वेदिः परो अन्तः पृथिव्या अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः। 
अयं सोमो वृष्णो अश्वस्य रेतो ब्रह्मायं वाचः परमं व्योम
यह वेदी ही पृथ्वी का अन्त है, यह यज्ञ ही संसार की नाभि है, यह सोम ही सेचन समर्थ अश्व  का रेत है और यह ब्रह्मा या ऋत्विक वाक्य का परम स्थान है।[ऋग्वेद 1.164.35]
वेदी धरा का अन्त है। अनुष्ठान संसार की नाभि है, अश्व का वीर्य सोम है। ब्रह्मा वाणी का परम स्थान है।
Vedi (site-place, construction for the Yagy) is the ultimate place over the earth, the Yagy is the nucleus of the earth, the Som-Moon is the seed-sperm and the Brahma (Brahma Ji) is the ultimate speech-truth.
सप्तार्धगर्भा भुवनस्य रेतो विष्णोस्तिष्ठन्ति प्रदिशा विधर्मणि। 
ते धीतिभिर्मनसा ते विपश्चितः परिभुवः परि भवन्ति विश्वतः
सात किरणें आधे वर्ष तक वृष्टि को उत्पन्न करके तथा संसार में वृष्टिदान द्वारा जगत् का सारभूत होकर श्री हरी विष्णु के कार्य में नियुक्त है। वे ज्ञाता और सर्वतोगामी हैं। वे प्रज्ञा द्वारा भीतर ही भीतर सम्पूर्ण संसार को व्याप्त किये हुए हैं।[ऋग्वेद 1.164.36]
लोक के वीर्य रूप सात अर्ध गर्भ विष्णु की आज्ञा से नियमों में रहते हैं। बुद्धि और मन के द्वारा लोक को सभी ओर से घेर लेते हैं।
Seven rays (of light from the Sun) have been posted-appointed with the job of nourishing the entire universe through rains for half of the year, as an extract. They are aware of all directions and are capable of moving every where. They internally pervade the entire universe.
 न वि जानामि यदिवेदमस्मि निण्यः संनद्धो मनसा चरामि। 
यदा मागन्प्रथमजा ऋतस्यादिद्वाचो अश्नुवे भागमस्याः
मैं यह हूँ कि नहीं, मैं नहीं जानता; क्योंकि मैं मूर्ख हृदय हूँ, अच्छी तरह आबद्ध होकर पागलों की तरह रहता हूँ। जिस समय ज्ञान का प्रथम उन्मेष होता है, उसी समय मैं वाक्य का अर्थ समझ सकता हूँ।[ऋग्वेद 1.164.37]
मैं नहीं जानता कि मैं क्या हूँ? मेरे मूर्ख और अर्द्ध विक्षिप्त के समान हूँ। जब मुझे ज्ञान का प्रथमांश प्राप्त होता है, तभी मैं किसी वाक्य को समझ पाता हूँ।
Since, I am idiot, I do not know whether I exists or not. I survive like a mad. I am able to understand the meaning of a sentence-statement when the first part of it is clear.
अपाङप्राङेति स्वघया गृभीतोऽमर्त्यो मर्त्येना सयोनिः। 
ता शश्वन्ता विषूचीना वियन्ता न्यन्यं चिक्युर्न नि चिक्युरन्यम्
नित्य अनित्य के साथ एक स्थान पर रहता है; अन्नमय शरीर प्राप्त कर वह कभी अधोदेश और कभी ऊर्ध्वदेश में जाता है। वे सदैव एक साथ रहते हैं, इस संसार में सर्वत्र एक साथ जाते हैं; परलोक में भी सब स्थानों पर एक साथ जाते हैं। संसार इनमें एक को (अनित्य को) पहचान सकता है दूसरे (आत्मा) को नहीं।[ऋग्वेद 1.164.38]
अमर, मरणधर्मा के संग रहता है। अन्नमय शरीर पाकर वह कभी ऊपर कभी नीचे जाता है। ये दोनों विरुद्ध गति वाले हैं। संसार उनमें से एक को पहचानता है, परन्तु दूसरे को नहीं जानता। जीव अमर है और देह मृत हो जाती है, संसार शरीर को तो भली-भाँति जानता है, पर जीव के विषय में असमंजस में पड़ा है। 
Immortal-for ever (soul) lives with the perishable-mortal (body). They mover either up or down after acquiring the body made from the food grains. They move together in the physical world. The world recognises the body but not the soul.
ऋचो अक्षरे परमे व्योमन्यस्मिन्देवा अधि विशे निषेदुः। 
यस्तन्त्र वेद किमृचा करिष्यति य इत्तद्विदुस्त इमे समासते
समस्त देवता महा आकाश के समान मन्त्राक्षरों पर उपवेशन किये हुए हैं, इस बात को जो नहीं जानता, वह ऋचा से क्या करेगा? इस बात को जो जानता है, वह सुख से रहता है।[ऋग्वेद 1.164.39]
ऋचाएँ उच्च स्थान को प्राप्त हैं। सभी देवता उनका सहारा लिए हुए हैं जो इस बात को नहीं जानता वह ऋचा से क्या लाभ उठायेगा? जो इस बात को जानता है वह प्रसन्न रहता है।
All demigods-deities depend over the verses-hymns. One who is unaware of it, has nothing to do with the sacred hymns. One knows it live comfortable. 
सूयवसाद्भगवती हि भूया अथो वयं भगवन्तः स्याम। 
अद्धि तृणमध्ये विश्वदानी पिब शुद्धमुदकमाचरन्ती
हे अहननीया शोभन शस्य गौ! घास आदि का भक्षण कर यथेष्ट दुग्धवती बनें। ऐसा करने पर हम भी प्रभूत धन वाले हो जायेंगे। सदैव घास चरते हुए और सर्वत्र भ्रमण करते हुए निर्मल जल का पान करो।[ऋग्वेद 1.164.40]
हे शेर के अयोग्य सुन्दर भाग्य वाली गौ! तू तृण का सेवन करने वाली है। इनको भी भाग्यशाली बना। तुम घास का भक्षण करती हुई कोमल जल पीने वाली हो। 
Hey grass eating cow! You should become milk yielding having eaten grass and other vegetation. Drink clean water while roaming to eat grass.
गौरीर्मिमाय सलिलानि तक्षत्येकपदी द्विपदी सा चतुष्पदी। 
अष्टापदी नवपदी बभूवुषी सहस्राक्षरा परमे व्योमन्
मेघ निनाद रूपिणी और अन्तरिक्ष विहारिणी वाक, वृष्टि जल की सृष्टि करते हुए शब्द करती है। वह कभी एक पदी, कभी द्विपदी, कभी चतुष्पदी, कभी अष्टपदी और कभी नवपदी होती है। कभी-कभी तो सहस्राक्षर परिमिता होकर, अन्तरिक्ष के ऊपर स्थित होकर शब्द करती है।[ऋग्वेद 1.164.41]
जलों को शिक्षा देने वाली विद्युत ध्वनिवान हुई। वह उन्नत अम्बर में एक, चार, आठ और नौ पदों से हजार अक्षर वाली हुई है।
The electricity (thunder volt) make sounds in the sky generating water. It acquires one, two, four. eight, nine dimensions. Some times it acquire thousand dimensions and generate sound.
तस्याः समुद्रा अधि वि क्षरन्ति तेन जीवन्ति प्रदिशश्चतस्त्रः। 
ततः क्षरत्यक्षरं तद्विश्वमुप जीवति
उसके पास से समस्त मेघ वर्षा करते हैं, उसी से चारों दिशाओं में आश्रित भूतों की रक्षा होती है। उसी से जल उत्पन्न होता है और उसी जल से सारे जीव प्राण धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.42]
उसी विद्युत से समुद्र प्रवाहमान है, उससे चारों दिशायें जीवित हैं। उससे बादल जलवृष्टि करते हैं और उसी से संसार प्राणवान है।
That electric spark leads to rains and protects the living beings-species of all kinds. It produces water and the whole world survives due to it.
शकमयं धूममारादपश्यं विषूवता पर एनावरेण। 
उक्षाणं पृश्निमपचन्त वीरास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्
मैंने पास ही सूखे गोबर से उत्पन्न धूम को देखा। चारों दिशाओं में व्याप्त निकृष्ट धूम के बाद अग्नि को देखा। ऋत्विक् लोग शुक्लवर्ण वृष या फलदाता सोम का पाक करते हैं। उनका यही प्रथम अनुष्ठान है।[ऋग्वेद 1.164.43]
मैंने गोबर से रचित धूमाग्नि को विलम्ब से देखा। चारों दिशाओं में व्याप्त धूम के मध्य अग्नि को देखा। ऋत्विजों ने यहाँ सोम को ग्रहण किया। यह उनका पहला कर्म है।
I witnessed the smoke emerging out of the dry dung. Having seen the smoke spreading in all directions, I saw the fire. Those performing-conducting the Yagy observe the white coloured bull and the Moon, initially. Its their first -effort-endeavour.  
त्रयः केशिन ऋतुथा वि चक्षते संवत्सरे वपत एक एषाम्। 
विश्वमेको अभि चष्टे शचीर्भिध्राजिरेकस्य ददृशे न रूपम्
केशयुक्त तीन व्यक्ति (अग्नि, आदित्य, वायु) वर्ष के बीच यथा समय भूमि का परिदर्शन करते हैं। उनमें एक जन-व्यक्ति पृथ्वी का क्षौर कर्म करते हैं, दूसरे अपने कार्य द्वारा परिदर्शन करते हैं और तीसरे का रूप नहीं देखा जाता, केवल गति देखी जाती है।[ऋग्वेद 1.164.44]
क्षौर कर्म  :: केश, दाढ़ी-मूँछ और नखों को कतर कर देह को सजाना क्षौरकर्म के अंतर्गत आता है। व्रत के लिए इसका विधान है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार व्रत, उपासना, श्राद्ध आदि में जो क्षौरकर्म नहीं करता, वह अपवित्र बना रहता है।
भोजन के उपरांत क्षौर का निषेध है, पर व्रत और तीर्थ में यह निषेध नहीं माना जाता।
ऐसा मानते हैं कि रविवार को क्षौर कर्म दुःखदायी, सोमवार को सुख, मङ्गल को मृत्यु, बुध को  धन, बृहस्पति को मान हनन, शुक्र को शुक्राणुओं का क्षय, शनिवार को समस्त दोष उत्पन्न करता है।  
केशयुक्त तीन देवता नियम क्रम से दर्शन देते हैं। एक वर्ष में होता है, एक बलों से संसार को देखता है और एक का रूप दिखाई नहीं पड़ता है, केवल वेग ही दिखाई पड़ता है। (यहाँ सूर्य, अग्नि और वायु से अभिप्राय है।)
Three demigods-deities watches-observe the earth sequentially throughout the year. One of them trims the earth's unwanted growths, second shows the way, the third can not be observed-seen, only its speed can be experienced.
चत्वारि वाक्परिमिता पदानि तानि विदुर्ब्राह्मणा ये मनीषिणः। 
गुहा त्रीणि निहिता नेङ्गयन्ति तुरीयं वाचो मनुष्या वदन्ति
"वाक्" चार प्रकार की मेधावी योगी उसे जानते हैं। उसमें तीन गुहा में निहित हैं, प्रकट नहीं हैं। चौथे प्रकार की वाक् मनुष्य बोलते हैं।[ऋग्वेद 1.164.45] 
वाणी विद्वान उसके ज्ञाता हैं। उसके तीन पद अज्ञात हैं और चौथे पद को मनुष्य बोलते हैं।
The four dimensions of speech-expression are understood by four kinds of Yogis. Three of them are hidden within. Only the fourth type of humans can speak.
इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान्। 
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहुः
मेधावी लोग इन आदित्य को इन्द्र, मित्र, वरुण और अग्नि कहा करते हैं। ये स्वर्गीय, पक्षवाले (गरुड़) और सुन्दर गमन वाले हैं। ये एक हैं, तो भी इन्हें अनेक कहा गया है। इन्हें अग्नि, यम और मातरिश्वा भी कहा जाता है।[ऋग्वेद 1.164.46]
उसे इन्द्र, सखा या वरुण कहते हैं। वही क्षितिज में सूर्य है। अग्नि, यम और मातरिश्वा है। मेधावी जन एक ब्रह्मा का असंख्य रूप में वर्णन करते हैं। 
The prudent identify Aditya as Indr, Mitr, Varun and Agni. He is Sun at the horizon. He is Garud the winged, moving beautifully. He is termed as Agni, Yam & Matrishwa as well. 
कृष्णं नियानं हरयः सुपर्णा अपो वसाना दिवमुत्पतन्ति। 
त आववृत्रन्त्सदना दृतस्यादिद्घृतेन पृथिवी व्युद्यते
सुन्दर गति वाली और जल हारिणी सूर्य किरणें कृष्ण वर्ण और नियंत गति मेघ को जल पूर्ण करते हुए धुलोक में गमन करती हैं। वह वृष्टि के स्थान से नीचे आती हैं और पृथ्वी को जल से अच्छी तरह भिगोती हैं।[ऋग्वेद 1.164.47]
काले मेघ रूपी घोंसले में किरण रूपी सुनहरे पक्षी जल को प्रेरित करते हुए नभ में उड़ते हैं। जब वे आकाश से लौटते हैं, तब धरती जल से भीग जाती है। The beautifully moving rays of Sun, sucks the water and turn it into black clouds and let it roam in the sky. These clouds come down to rain and drench the earth with water.
द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उ तच्चिकेत। 
तस्मिन्त्साकं त्रिशता न शङ्कवोऽर्पिताः षष्टिर्न चलाचलासः
बारह परिधियाँ (रश्मियाँ), एक चन्द्र (वर्ष) और तीन नाभियाँ हैं। यह बात कौन जानता है? इस चन्द्र (वर्ष) में तीन सौ साठ खूँटे हैं।[ऋग्वेद 1.164.48]
जिसके बारह घेरे, एक चक्र और तीन नाभियाँ हैं, उस रथ का ज्ञाता कौन है? उसमें तीन सौ आठ मेखें ठुकी हुई हैं। वे कभी ढीली नहीं होती। (इसका आशय वर्ष और उसके दिनों की सँख्या से है।)
It has twelve perimeters (months), one Moon (year) and three nuclei (three main seasons-summer, winter and rains). The Moon has 360 pegs.
यस्ते स्तनः शशयो यो मयोभूर्येन विश्वा पुष्यसि वार्याणि। 
यो रत्नधा वसुविद्यः सुदत्रः सरस्वति तमिह धातवे कः
हे सरस्वती! आपके शरीर में रहने वाला जो गुण संसार के सुख का कारण है, जिससे सारे वरणीय धनों की आप रक्षा करती हैं, जो गुण बहुरत्नों का आधार है, जो समस्त धन प्राप्त किये हुए हैं और जो कल्याणवाही है, इस समय हमारे पान के लिए उसे प्रकट करें।[ऋग्वेद 1.164.49]
हे सरस्वती! तुम्हारी देहस्थ गुण सुखदायक और वरणीय वस्तुओं के पोषक है। रत्नधारा और दानशील है। उसे हमारी ओर प्रेरित करो।
Hey Saraswati! Let the excellence present in you, which is the source of all comforts-pleasure & protect all amenities, be granted-gifted to us. Its the source of qualities and develop-grow the tendency of charity in us. 
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। 
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः
यजमानों ने अग्नि द्वारा यज्ञ किया है, क्योंकि वही प्रथम धर्म है। वह माहात्म्य आकाश में एकत्रित है, जहाँ पहले से ही साधना करने वाले देवता निवास करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.50]
यजमानों ने अग्नि से अनुष्ठान किया। वही प्रथम धर्म था। वे कर्मवान अपने महत्व से स्वर्ग के निकट वहीं साध्य देव वास करते हैं।
The hosts, households, devotees performed Yagy with Agni-fire, since that is first Dharm-duty. The excellence-piousness of that is stored in the sky-heavens, where the demigods-deities reside.
समानमेतदुदकमुच्चैत्यव चाहभिः। 
भूमिं पर्जन्या जिन्वन्ति दिवं जिन्वन्त्यग्नयः
जल एक ही तरह का है, कभी ऊपर और कभी नीचे जाता आता है। प्रसन्नता देने वाले बादल भूमि को प्रसन्न करते हैं तथा अग्निदेव द्युलोक को प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.51]
जल का एक ही रूप है जो कभी ऊपर जाता है और कभी नीचे आता है।
Water has just one form, which keeps on moving up & down.
Ice, clouds, frost, fog, snow are physical states of water. Chemically its composed of hydrogen (two atoms) and oxygen (one atom).
दिव्यं सुपर्णं वायसं बृहन्तमपां गर्भं दर्शतमोषधीनाम्। 
अभीपतो वृष्टिभिस्तर्पयन्तं सरस्वन्तमवसे जोहवीमि
सूर्यदेव स्वर्गीय सुन्दर गति वाले, गमनशील, प्रकाण्ड जल के गर्भोत्पादक और ओषधियों के प्रकाशक हैं। वे वर्षा के जल द्वारा जलाशय को पूर्ण और नदी को पालित करते हैं। रक्षा के लिए हम उनका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.52]
मेघ वर्षा द्वारा धरती को तृप्त करता है और अग्नियाँ नभ को प्रसन्न करती हैं। जलों और औषधियों के कारण भूत सम्मुख प्राप्त हुए स्तोताओं के लिए मैं वर्षा द्वारा तृप्त करता हूँ।
Sun moves with the beautiful speed of the heavens, produces water and grows medicines as well.
Its observed that continuity is lost in one after another Shlok-hymn, which indicate that the missing Shloks are not available.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (185) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- विश्वेदेवा,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ न आ न इळाभिर्विदथे सुशस्ति विश्वानरः सविता देव एतु। 
अपि यथा युवानो मत्सथा नो विश्वं जगदभिपित्वे मनीषा
अग्निदेव और सविता हमारी स्तुतियों को श्रवण करके भूस्थानीय देवों के साथ (इस) यज्ञ स्थल में पधारें। हे वरुण देव! हमारे यज्ञ में अपनी इच्छा से पधार कर समस्त संसार की तरह हमें भी प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 1.186.1]
सर्वप्रेरक सविता देव हमारी वंदनाओं के प्रति अनुष्ठान में पधारें। हे युवा देवों! तुम यहाँ पधारकर प्रसन्न होते हुए हमें भी सुखी करो।
Let Agni Dev & Savita Dev listen-respond to our prayers and oblige us by coming to this Yagy site. Hey Varun Dev! Come to our Yagy of your own and oblige us too, the way you keep the entire universe-world happy.
आ नो विश्व आस्क्रा गमन्तु देवा मित्रो अर्यमा वरुणः सजोषाः । 
भुवन्यथा नो विश्वे वृधासः करन्त्सुषाहा विथुरं न शवः
शत्रुओं के ऊपर आक्रमण करने वाले मित्र, वरुण और अर्यमा ये सब समान प्रीति युक्त होकर (यहाँ) आगमन करें और हमारी वृद्धि करें। शत्रुओं को पराजित करते हुए अन्नहीन न करें।[ऋग्वेद 1.186.2]
सखा, अर्यमा और वरुण ये एक जैसे हृदय वाले देवगण एक साथ इस यज्ञ में पधारें। वे हमारी वृद्धि के कारण हों और प्रयास पूर्वक हमारी शक्ति क्षीण न होने दें।
Let Mitr, Varun and Aryma, who attack the enemy, come here with love-affection and lead to our progress. While defeating the enemy protect out food grains. 
प्रेष्ठं वो अतिथिं गृणीषेऽग्निं शस्तिभिस्तुर्वणिः सजोषाः। 
असद्यथा नो वरुणः सुकीर्तिरिषश्च पर्षदरिमूर्तः सूरिः
हे देवगण! मैं क्षिप्रकारी और आपकी तरह प्रीति युक्त होकर आपके श्रेष्ठ अतिथि (अग्निदेव) की स्तुति मन्त्रों द्वारा करता हूँ। उत्तम कीर्ति वाले दिग्गज विद्वान् वरुण हमारे ही होवें। ये शत्रुओं के प्रति हुंकार करते हुए अन्न द्वारा हमें परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.186.3]
क्षिप्रकारी :: शीघ्र काम करने वाला; one who acts quickly-swiftly, fast to accomplish the job.
मनुष्यों में तुम्हारे प्रिय अग्नि की वन्दना करता हूँ। वे हमारी प्रार्थना द्वारा शत्रुओं को विजय करें और हमसे प्रेम करें। वदंना करने पर वरुण हमको अन्नों से पूर्ण कर यशस्वी बनायें।
Hey demigods-deities! I act swiftly and pray to Agni Dev with prayer Mantr-hymns & love. Let Varun Dev who is revered & honourable, become ours, alarm-warn the enemy and give us sufficient food grains. 
उप व एषे नमसा जिगीषोषासानक्ता सुदुघेव धेनुः। 
समाने अहन्विमिमानो अर्कं विषुरूपे पयसि सस्मिन्नूधन्
हे देवो! दिन-रात नमस्कार करते हुए पाप-विजय के लिए दुग्धवती धेनु की तरह आपके पास उपस्थित होते हैं। हम यथासमय अधः स्थान से एक मात्र उत्पन्न नाना रूप खाद्य द्रव्य मिश्रित करके लाये हैं।[ऋग्वेद 1.186.4]
हे विश्वे देवताओं! हम वदंना करते हुए दिन-रात विजय की इच्छा से पयस्विनी धेनु के समान विद्यमान रहते हैं। मैं भी उसी तरह प्रणाम सहित तुम्हारी अर्चना करता हूँ। 
Hey Demigod-deities! We salute you through out the day & night, over come the sins and present ourselves in front of you like a milch cow. We have procured the rare food items and mixed various extracts-juices (liquids) in it for you.
उत नोऽहिर्बुध्न्योमयस्कः शिशुं न पिप्युषीव वेति सिन्धुः। 
येन नपातमपां जुनाम मनोजुवो वृषणो यं वहन्ति
अहिर्बुध्न नामक अन्तरिक्ष चारी देव हमें सुख प्रदान करें। सिन्धु पुत्र की तरह हमें प्रसन्न करें। हम जल के नप्ता अग्नि देव की स्तुति करते हुए प्राप्त हुए हैं। मन की तरह वेग शाली मेघ उन्हें ले जाते हैं।[ऋग्वेद 1.186.5] 
नभ में स्थित सर्प के समान आचरण वाली विद्युत हमें सुखी बनायें। सिंधु बछड़े के समान हमारा पोषण करें। उसके अश्व द्वारा हम जलोत्पन्न अग्नि देव को प्राप्त करें। मन के समान गति वाले अश्व उन्हों ले जाते हैं।
Demigod named Ahirbudhn, who occupies the space-sky, grant us comforts and make us happy like the son of the ocean. We have been praying like the grand children of water and devoted ourselves to the prayers of Agni Dev. The clouds who are as strong-quick as the Man (brain, psyche, mood, mind) carries them. 
उत न ई त्वष्टा गन्त्वच्छा स्मत्सूरिभिरभिपित्वे सजोषाः। 
आ वृत्रहेन्द्रश्चर्षणि प्रास्तुविष्टमो नरां न इह गम्याः
त्वष्टा हमारे सामने आयें। यज्ञ के कारण त्वष्टा स्तोताओं के साथ समान प्रीति सम्पन्न हों। अती विशाल, वृत्र घातक और मनुष्यों के अभीष्ट पूरक इन्द्रदेव हमारे यज्ञस्थल में पधारें।[ऋग्वेद 1.186.6]
प्रार्थना कारियों के साथ समान स्नेह रखने वाले त्वष्टा हमारी ओर आयें। वृत्र के शोषण कर्त्ता मनुष्यों के रक्षक, महा बलिष्ठ इन्द्रदेव यहाँ पधारें।
Let Twasta come to us. Let Twasta become full of love & affection like the hosts. Huge, killer of Vratr and human's desire fulfilling, Indr Dev come to our Yagy.
उत न ईं मतयोऽश्वयोगाः शिशुं न गावस्तरुणं रिहन्ति। 
तमी गिरो जनयो न पत्नी: सुरभिष्टमं नरां नसन्त
जिस प्रकार से गौवें बछड़ों को चाटती हैं, वैसे ही अश्व तुल्य हमारा मन युवा इन्द्र देव की स्तुति करता है। जिस प्रकार से स्त्रियाँ पति को प्राप्त कर सन्तान वाली होती हैं, उसी प्रकार से हमारी स्तुति अतिशय यशोयुक्त इन्द्रदेव को प्राप्त होकर फल प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.186.7]
धेनुओं द्वारा बछड़ों को चाटने के तुल्य घोड़े संयोजन करने वाली हमारी वंदनाएँ इन्द्र देव को ग्रहण होती हैं।
The way the cow lick her calf, our innerself (Man, mind, brain, psyche, mood) comparable to the horse, pray to youthful Indr Dev. The way the women get progeny from their husband; our prayers to highly revered-honourable Dev Raj Indr grant our desires.
उत न ईं मरुतो वृद्धसेनाः स्मद्रोदसी समनसः सदन्तु। 
पृषदश्वासोऽवनयो न रथा रिशादसो मित्रयुजो न देवाः
अतीव बलशाली, समान प्रीतियुक्त, पृषत् नाम के अश्व से युक्त, अवनत स्वभाव और शत्रु भक्षक मरुद्गण, मित्रता करने वाले ऋषियों की तरह द्यावा पृथ्वी के पास से एकत्रित होकर हमारे इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.186.8]
अवनत :: विनीत, नीचा, झुका हुआ, नत, गिरा हुआ, पतित, अधोगत, अस्त होता हुआ, नम्र; bowed, cernuous, depressed, downcast
उन्नत हृदय वाले, शत्रु भक्षक मित्रों के पक्षपाती मरुद्गण नभ और पृथ्वी में मिलकर ऋषियों के समान हवन में बैठें। उनके बिन्दु रूप अश्व जल प्रवाह के समान हैं।
Highly powerful, possessing love & affection, having the horse named Prashat, having mild-cordial behaviour and destroyer of the enemy Marud Gan, like the Rishis who prefer friendship come along with the sky and the earth come to join our Yagy.
प्र नु यदेषां महिना चिकित्रे प्र युञ्जते प्रयुजस्ते सुवृक्ति। 
अध यदेषां सुदिने न शरुर्विश्वमेरिणं प्रुषायन्त सेनाः
मरुतों की महिमा प्रसिद्ध है; क्योंकि वे स्तुति का प्रयोग जानते हैं। अनन्तर जिस प्रकार से प्रकाश संसार को व्याप्त करता है, उसी प्रकार सुदिन में अन्धकार विनाशक मरुतों की वृष्टि प्रद सेना समस्त अनुर्वर देशों में उत्पादिका शक्ति से सम्पन्न करती है।[ऋग्वेद 1.186.9]
जब से इन मरुतों की महिमा का सही ढंग से ज्ञान हुआ है तभी से कुशा बिछाने वाले यजमान यज्ञ कर्मों में प्रयुक्त हुए। इनको सेनाएँ बाण के समान गति से मरुस्थल को सीचने में सक्षम हैं।
Greatness-glory of Marud Gan is famous, since they know how to make prayers-Stuti. The way the Sun lit the universe, the army of Marud Gan capable of eliminating darkness (due to clouds) on a fine day, lead to rains in desert, unfertile land and nourish the soil with grow crops.
प्रो अश्विनाववसे कृणुध्वं प्र पूषणं स्वतवसो हि सन्ति। 
अद्वेषो विष्णुर्वात ऋभुक्षा अच्छा सुम्राय ववृतीय देवान्
हे ऋत्विको! हमारी रक्षा के लिए अश्विनी कुमारों और पूषा की स्तुति करें। द्वेष से रहित श्री विष्णु, वायुदेव और इन्द्रदेव नाम के स्वतंत्र बल विशिष्ट देवताओं की स्तुति करें। सुख के लिए मैं समस्त देवगणों की स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 1.186.10]
हे मनुष्यों! सुरक्षा के लिए अश्विदेवों को आगे बढ़ाओ। पूषा को भी आगे लाओ। द्वेष विमुख, विष्णु पवन और ऋभुओं के स्वामी इन्द्रदेव समस्त शक्तियों को अपने अधिकार में रखते हैं। सुख के लिए मैं सभी देवों को सामने बुलाता हूँ। 
Hey Ritviz! Let us pray to Pusha and Ashwani Kumars for our protection. Pray to enmity free Bhagwan Shri Hari Vishnu, Vayu Dev, Dev Raj Indr and the demigods-deities empowered with special powers-might. I pray to all demigods-deities for happiness and pleasure.
इयं सा वो अस्मे दीधितिर्यजत्रा अपिप्राणी च सदनी च भूयाः। 
नि या देवेषु यतते वसूयुर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे यजनीय देवगणों! आपकी अनुपम ज्योति हमारे लिए प्राण दाता और निवास स्थान बनें। आपकी अन्नवती ज्योति देवगणों को प्रकाशित करे, ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.186.11]
हे पूजनीय देवताओं। तुम्हारी भक्ति हमको जीवन देने वाली हो। हम श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करें। तुम्हारी दात्री शक्ति देवताओं को प्रेरित करें जिससे हम अन्न, बल और उदार वृत्ति वाले हों।
Hey prayer deserving demigods-deities! Your divine energy-light may become a source of life and place to live, for us. Your divine vision granting food stuff, may grant us food grains, might and liberal nature.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :-  कूर्म, गार्त्समद, गृत्समद, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
घृतव्रता आदित्या इषिरा आरे मत्कर्त रहसूरिवागः। 
शृण्वतो वो वरुण मित्र देवा भद्रस्य विद्वाँ अवसे हुवे वः
हे व्रतकारी, शीघ्र गमनशील और सबके प्रार्थनीय आदित्यों! गुप्त प्रसविनी स्त्री के गर्भ की तरह मेरा अपराध दूर देश में करें। हे मित्र और वरुण देव! आपके मंगलकार्य को मैं जानकर रक्षा के लिए आपका आवाहन करता हूँ। आप हमारी स्तुति श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.29.1]
हे व्रत परिपूर्ण देवताओं। तुम शीघ्रगामी और सभी के द्वारा वंदना किये जाते हो। गुप्त रहस्यों को छिपाने के तुल्य मेरा अपराध दूर करो। हे सखा। हे वरुण! मैं तुम दोनों की कल्याणकारी भावनाओं को जानता हूँ, इसलिए सुरक्षा के लिए आह्वान करता हूँ। हमारे श्लोकों को सुनो।
Hey quickly acting, revered-honourable prayer-worship deserving Aditys! Pardon us like a pregnant woman hide her pregnancy. Hey Mitr & Varun!  I invite-invoke you due to your nature of helping-benefiting. Respond to our prayers.
Adity, upholders of pious works and to be sought by all; remove sin far from me, like a woman delivered in secret; knowing, Mitr, Varun and demigods, the good that follows from your hearing our prayers, I invoke you for our protection.
यूयं देवाः प्रमतिर्यूयमोजो यूयं द्वेषांसि सनुतर्युयोत। 
अभिक्षत्तारो अभि च क्षमध्वमद्या च नो मृळयतापरं च
हे शत्रु हिंसक देवगण! आप उत्तम बुद्धि युक्त और तेजस्वी हैं। आप द्वेषियों को हमारे पास से अलग करें। शत्रुओं को पराजित करें। वर्तमान और भविष्य में हमें सुखी प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.29.2] 
हे देवो! तुम अनुग्रह पूर्वक बल प्रदान करो। शत्रुओं को हमसे दूर करो। हिंसा करने वाले शत्रुओं को हटाओ। वर्तमान तथा भविष्य में मुझे सुख-प्रदान करो।
Hey enemy killer demigods! You are blessed with excellent intelligence and aura. Repel those who are envious with us. Defeat the enemy. Grant us comforts-pleasure now and then in future. 
किमू नु वः कृणवामापरेण किं सनेन वसव आप्येन। 
यूयं नो मित्रावरुणादिते च स्वस्तिमिन्द्रामरुतो दधात
हे देवगण! अब और पीछे आपका कौन कार्य हम सिद्ध कर सकेंगे? वसु और सनातन प्राप्तव्य कार्य द्वारा हम आपका कौन कार्य सिद्ध कर सकेंगे? हे मित्रा वरुण, अदिति, इन्द्र और मरुद्रण! आप हमारा मंगल करें।[ऋग्वेद 2.29.3] 
हे विश्वे देवताओं! हम तुम्हारा कौन सा कार्य साधन कर सकेंगे। हे मित्र, वरुण, अदिति, इन्द्र और मरुतो ! हमारा कल्याण करो। 
Hey demigods-deities! What can be achieved-accomplished presently and in future?! Hey Mitr, Varun, Aditi, Indr and Marud Gan! Do good to us. 
हये देवा यूयमिदापयः स्थ ते मृळत नाधमानाय मह्यम्। 
मा वो रथो मध्यमवाळृते भून्मा युष्मावत्स्वापिषु श्रमिष्म
हे देव गण! आप ही हमारे मित्र हैं। हम आपकी प्रार्थना करते हैं। कृपा करें। हमारे यज्ञ में आने में आपका रथ की गति मन्द न हो। आपके समान मित्र पाकर बिना थके हम आपकी स्तुतियाँ करते रहें।[ऋग्वेद 2.29.4] 
हे देवो! तुम हमारे सखा हो। हम पर कृपा दृष्टि रखो। हम तुम्हारी प्रार्थना करते हैं। हमारे यज्ञ में पधारते समय तुम्हारे रथ की गति धीमी न पड़े। तुम्हारी मित्रता प्राप्त कर थकावट से न घिरे।
Hey demigods-deities! You are our friend. We worship-pray you. Have pity-mercy on us. Your charoite should not deaccelerate, while reaching our Yagy site. We will continue praying you untired. 
प्र व एको मिमय भूर्यागो यन्मा पितेव कितवं शशास। 
आरे पाशा आरे अघानि देवा मा माधि पुत्रे विमिव ग्रभीष्ट
हे देवगण! आप लोगों के बीच एक मनुष्य होकर मैंने अनेक प्रकार के पाप नष्ट कर डाले। जिस प्रकार से पिता कुमार्गगामी पुत्र को उपदेश देता है, उसी प्रकार से आपने मुझे उपदेश दिया। हे देवो! सभी पाश और पाप मुझ से दूर हों। जिस प्रकार व्याघ्र बच्चे के सामने पक्षी को मारता है, उसी प्रकार मुझे न मारना।[ऋग्वेद 2.29.5]
हे देवताओं! तुम्हारे सहारे मैंने अनेक पापों को समाप्त कर डाला। कुमार्गगामी पुत्र को पिता द्वारा उपदेश देने के समान तुमने मुझे शिक्षा दी। हमारे सभी पाप और बंधन हट जायें। तुम व्याध द्वारा पक्षी को मारने के समान मुझे मत मारना।
Hey demigods-deities! I vanished my several kinds of sins being in your pious-virtuous, righteous company. You advise me like a father who guides his misguided son. Hey demigods-deities! Let all kinds of bonds-ties & sins keep off me. Do not kill me like the tiger who kills the birds in front of progeny. 
अर्वाञ्च्चो अद्या भवता यजत्रा आ वो हार्दि भयमानो व्ययेयम्। 
त्राध्वं नो देवा निजुरो वृकस्य त्राध्वं कर्तादवपदो यजत्राः
हे पूजनीय देवो! आज हमारे सामने पधारें। मैं डरकर आपके हृदयावस्थित आश्रय को प्राप्त करू। हे देवो! वृक के हाथ से मारे जाने से हमें बचावें। हे पूजनीयो! जो हमें विपत्ति में फेंक देता है, उसके हाथों से हमें बचायें।[ऋग्वेद 2.29.6]
हे पूजनीय विश्वेदेवो! हमारे तुल्य प्रत्यक्ष होओ। मैं भय ग्रस्त हूँ। अतः आपका आश्रय चाहता हूँ। हमको दस्यु द्वारा हिंसित होने से बचाओ। संकट में डालने वालों से हमारी सुरक्षा करो।
Hey revered-honourable demigods-deities! Come to our house, invoke in front of us. I am afraid and seek shelter-protection under you. Hey demigods-deities! Protect us from being killed by the wolf. Hey revered! Protect us from those who  push us into trouble. 
माहं मघोनो वरुण प्रियस्य भूरिदाव्य आ विदं शूनमापेः। 
मा रायो राजन्त्सुयमादव स्थां बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे वरुण देव! मुझे किसी धनी और प्रभूत दानशील व्यक्ति से अपनी जाति की दरिद्रता की बात न कहनी पड़े। हे राजन्! मुझे नियमित या आवश्यक धन का अभाव न हो। हम पुत्र और पौत्रों से युक्त होकर इस यज्ञ में आपका स्तवन करें।[ऋग्वेद 2.29.7] 
हे वरुण! मुझे किसी उदार, धनवान के सामने अपनी निर्धनता की कथा न कहनी पड़े। मुझे धन की कमी न हो। हम संतानयुक्त हुए इस यज्ञ में तुम्हारी प्रार्थना-भक्ति करें।
Hey Varun Dev! I should not be compelled to reveal my poverty in front of a liberal or a rich person. Hey king! I should never face poverty. We should be blessed to join the Yagy with our sons & grandsons and worship you.
ऋषि :-  
हे देवताओं! तुम हमारी वंदना चाहते हो। हम भी तुम्हारी कृपा चाहते हैं। अंतरिक्ष के देवता अहि, सूर्य, त्रित, इन्द्रदेव और सविता हमको अन्न प्रदान करें। द्रुतगामी अग्नि देव हमारे श्लोकों से खुशी को प्राप्त हों।
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :-  गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
अस्माकं मित्रावरुणावतं रथमादित्यै रुद्रैर्वसुभिः सचाभुवा। 
प्र यद्वयो न पप्तन्वस्मनस्परि श्रवस्यवो हृषीवन्तो वनर्षदः
जिस समय हमारा स्थ अन्नाभिलाषी, मदमत्त और वनों में रहने वाले पक्षियों की तरह निवास स्थान से दूसरे स्थान को जाता है, उस समय हे मित्र और वरुण देव! आप लोग आदित्य, रुद्र और वसुओं के साथ मिलकर उसकी रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 2.31.1]
अन्न को इच्छा से जंगलों में घूमने वाले पक्षियों के समान हमारा रथ एक दूसरे जगह को ग्रहण होता है। हे मित्रा-वरुण! आदित्य, रुद्र और वसुओं से युक्त तुम उस समय हमारे उस रथ की सुरक्षा करते हो। (यहाँ रथ से तात्पर्य मनुष्यों के शरीर से है)।
Hey Mitr & Varun Dev! You protect our charoite when it moves from one place to another, like the birds, in search of food grains in the forests, along with Adity, Rudr and the Vasus. 
Here the charoite represents the humans.
अध स्मा न उदवता सजोषसो रथं देवासो अभि विक्षु वाजयुम्। 
यदाशवः पद्याभिस्तित्रतो रजः पृथिव्याः सानौ जङ्घानन्त पाणिभिः
हे समान प्रीति वाले देवों! इस समय हमारे रथ की रक्षा करें। वह अन्न खोजने के लिए देश में गये हैं। इस रथ में जोते हुए घोड़े अपने पैरों से मार्ग तय करते और विस्तीर्ण भूमि के उन्नत प्रदेश पर आघात करते हैं।[ऋग्वेद 2.31.2]
हे समान स्नेह वाले देवताओं! अन्न के लिए गये हुए हमारे रथ की रक्षा करो। इस रथ में जुते हुए घोड़े पाँवों से चलते हुए ऊँची जमीन पर भी आरूढ़ हो जाते हैं।
Hey demigods-deities possessing equal affection towards us! Protect our charoite which has moved away in search of food grains. The horses deployed in this charoite strike the elevated regions (rocks, hills, mountains) with their hoofs while moving.
उत स्य न इन्द्रो विश्वचर्षणिर्दिवः शर्धेन मारुतेन सुक्रतुः। 
अनु नु स्थात्यवृकाभि रूतिभी रथं महे सनये वाजसातये
सर्वदर्शी इन्द्र देव मरुतों के पराक्रम से उक्त कर्म सम्पन्न करके स्वर्ग लोक से आते हुए हिंसा शून्य आश्रय के द्वारा महाधन और अन्न प्राप्ति के लिए हमारे रथ के अनुकूल हो।[ऋग्वेद 2.31.3]
सबको देखने वाले इन्द्र मरुद्गण की सहायता से दिव्यलोक में जाते हुए अपनी अहिंसा रहित शरण द्वारा परम यश और अन्न की प्राप्ति के साधन हमारे रथ के उपयुक्त हों।
Let Indr Dev watching every one, be favourable to our charoite, which is out for acquisition of unlimited wealth and food  grains, associated with the valour of Marud Gan, involving deeds free from violence, while coming from the heavens. 
उत स्य देवो भुवनस्य ग्राभिः सजोषा जूजुवद्रथम्। 
इळा भगो बृहद्दिवोत रोदसी पूषा पुरंधिरश्विनावधा पती
संसार के सेवनीय वे त्वष्टा देव, देवपत्नियों के साथ प्रीति युक्त होकर हमारे रथ को चलावे। इला, महादीप्तिमान् भग, द्यावा पृथ्वी, बहुधी पूषा और सूर्या के स्वामी दोनों अश्विनी कुमार हमारा यह रथ चलावें।[ऋग्वेद 2.31.4]
सूर्या :: सूर्य की पत्नी, नवविवाहिता स्त्री, नवोढ़ा; newly wed woman.
वे संसार द्वारा सेवा करने योग्य त्वष्टादेव, देव-नारियों से युक्त रथ को गति प्रदान करें, इला, तेजस्वी, भग, अम्बर, धरा, पूषा और सूर्य के स्वामी अश्विद्वय हमारे रथ का संचालन करें।
Let Twasta Dev, deserving service by the universe, operate our charoite by becoming friendly-affectionate with the wives of the demigods-deities. Ila, extremely brilliant Bhag, sky and the earth, Pusha and the husband of newly wed women, Ashwani Kumars operate our charoite.
उत त्ये देवी सुभगे मिथूदृशोषासानक्ता जगतामपीजुवा। 
स्तुषे यद्वां पृथिवि नव्यसा वचः स्थातुश्च वयस्त्रिवया उपस्तिरे
प्रसिद्ध, द्युतिमती, सुभगा, परस्पर दर्शिनी और जीवों की प्रेरयित्री उषा और रात्रि हमारा रथ चलावें। हे आकाश और पृथ्वी! आप दोनों की नये स्तोत्र से स्तुति करता हूँ। स्थावर ब्रीहि आदि अन्न देता हूँ। औषधि, सोम और पशु मेरे तीन प्रकार के धन हैं।[ऋग्वेद 2.31.5]
प्रसिद्ध, तेजस्विता, सुन्दर परस्पर देखने वाले प्राणधारियों को मार्गदर्शन देने वाला उषा और रात हमारे रथ को गति प्रदान करें। हे आकाश! हे पृथ्वी! नए श्लोकों से तुम्हारी वंदना करता हूँ। अन्नरूपी हवि प्रदान करता हूँ। औषधि, सोम, पशु में तीन प्रकार के धन मेरे पास हों।
Let the famous, lucky, shinning-brilliant looking at other, inspiring the living beings, Usha and Night drive our charoite. Hey Akash-Sky and Prathvi-Earth! I am praying-worshiping you with a new composition-hymn. I make offerings of food grains to you. I should possess three kinds of wealth viz. medicines, Som and cattle. 
उत वः शंसमुशिजामिव श्मस्यहिर्बुध्न्योज एकपादुत। 
त्रित ऋभुक्षाः सविता चनो दधेऽपां नपादाशुहेमा धिया शमि
हे देवगण! आप हमारी स्तुति की इच्छा करें। हम आपको स्तुति करने की इच्छा करते है। अन्तरिक्ष जात अहि देवता, सूर्य, त्रित, उरु निवास इन्द्र और सविता हमें अन्न प्रदान करें। शीघ्रगामी जल नप्ता हमारी स्तुति से प्रसन्न हो।[ऋग्वेद 2.31.6]
हे देवताओं! तुम हमारी वंदना चाहते हो। हम भी तुम्हारी कृपा चाहते हैं। अंतरिक्ष के देवता अहि, सूर्य, त्रित, इन्द्रदेव और सविता हमको अन्न प्रदान करें। द्रुतगामी अग्नि देव हमारे श्लोकों से खुशी को प्राप्त हों।
Hey demigods-deities! You should desire us to pray-worship you. Let us desire to worship-pray you. Let the demigods-deities Ahi, Sun, Trit, Indr Dev and Savita, present in the space-heavens grant us food stuff-grains. Let fast moving Agni Dev-fire become happy-pleased with us.
एता वो वश्मयुद्यता यजत्रा अतक्षन्नायवो नव्यसे सम्। 
श्रवस्यवो वाजं चकानाः सप्तिर्न रथ्यो अह धीतिमश्याः
हे यजनीय विश्व देव गण! हम आपकी स्तुति करने की इच्छा करते हैं। आप सर्वपेक्षा स्तुति योग्य है। अन्न और बल के अभिलाषी मनुष्यों ने आपके लिए स्तुति बनाई है। रथ के अश्व की तरह आपका दल हमारे लिए आये।[ऋग्वेद 2.31.7]
हे यजन योग्य विश्वेदेवो! तुम पूजनीय हो। हम तुम्हारी वंदना करने के अभिलाषी रहते हैं। अन्न और शक्ति चाहने वाले मनुष्य ने तुम्हारा श्लोक रचा। रथ के अश्व के तुल्य तुम्हारी शक्ति हमको ग्रहण हो।
Hey honourable worship deserving Vish Dev! We wish to worship-pray you. You deserve worship the most. The humans desirous of having food grains and might, have composed prayers-hymns in your honour. Invoke in front of us like the horses of the charoite.
विश्वे देवास आ गत शृणुता म इमं हवम्। एदं बर्हिर्नि षीदत
हे विश्व देवगण! यहाँ पधारें। हमारा आह्वान श्रवण करें और कुश के ऊपर बैठे।[ऋग्वेद 2.41.13]
हे विश्वेदेवो! यहाँ आओ और हमारे आह्वान को सुनते हुए इस कुश पर प्रतिष्ठित होओ।
Hey Vishw Devs! Come to us. Listen-respond to our prayers occupying the Kush cushion. 
तीव्रो वो मधुमाँ अयं शुनहोत्रेषु मत्सरः। एतं पिबत काम्यम्
हे विश्व देवगण! तीव्र मद वाला, रस शाली और हर्ष कर यह सोमरस आपके लिये गृत्समद वंशीयों के पास है। इस शोभन सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.41.14]
हे विश्वेदेवों! गृत्समद वंशज के निकट बहुत ही हर्षकारक सोम से परिपूर्ण पुष्टिवर्द्धक सोम तुम्हारे लिए हैं। शक्ति से परिपूर्ण सोमरस का पान करो।
Hey Vishw Devs! Nourishing, pleasure granting Somras is available with the descendants of Gratsamad. Enjoy-drink this Somras.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- विश्वेदेवा, यूप, व्रश्चन, छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
अञ्जन्ति त्वामध्वरे देवयन्तो वनस्पते मधुना दैव्येन। 
यदूर्ध्वस्तिष्ठा द्रविणेह धत्ताद्यद्वा क्षयो मातुरस्या उपस्थे
हे वनस्पति देव! देवों के अभिलाषी अध्वर्यु लोग देव-सम्बन्धी मधु द्वारा आपको सिक्त करते हैं। आप चाहे उन्नत भाव से रहें या मातृ भूत पृथ्वी की गोद में ही शयन करें, हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.8.1]
हे वनस्पते! देवों की इच्छा करने वाले अध्वर्यु अद्भुत सोमरस द्वारा तुम्हें सींचते हैं। तुम अंकुर रूप से धरा में विश्राम करो, चाहे ऊँचा उठो, हमको धन प्रदान करो।
Hey Vanaspati Dev! The Priests-Ritviz, nourish you with honey. Whether you are standing or sleeping in the lap of mother earth, grant us money. 
समिद्धस्य श्रयमाणः पुरस्ताद्ब्रह्म वन्वानो अजरं सुवीरम्। 
आरे अस्मदमतिं बाधमान उच्छ्रयस्व महते सौभगाय
हे यूप! आप समिद्ध अथवा आहवनीय नामक अग्नि की पूर्व दिशा में रहकर अजर, सुन्दर और अपत्य युक्त अन्न देते हुए एवं हमारे पाप को दूर करते हुए महती सम्पत्ति के लिए उन्नत होवें।[ऋग्वेद 3.8.2]
यूप :: किसी युद्ध में विजयी होने पर उसकी याद में बना स्तम्भ, वह खंभा जिसमें बलि दिया जाने वाला पशु बाँधा जाता है, यज्ञ का वह खंभा जिसमें बलि पशु बाँधा जाता है, वह स्तम्भ जो किसी विजय अथवा कीर्ति आदि की स्मृति में बनाया गया हो; स्तम्भ, खम्भा, विजय स्तम्भ, कीर्ति स्तम्भ, यज्ञ या यूप या तो खदिर-खैर की लकड़ी का होता है या बाँस का, होम-यज्ञ का खूँटा, बलि स्तंभ; sacrificial post, the post, mast, pole meant to sacrifice animals, the tower made in the memory of a war won, the tower to glorify the winners.
अपत्य :: संतान, वंशज; offspring.
हे यूप! तुम अग्नि की पूर्व दिशा में रहते हुए सुन्दर, जरा विमुख परिपूर्ण हमारे पापों को दूर करो। हमको श्रेष्ठतम धन ग्रहण करने हेतु उठो।
Hey Yup! You should rise for the creation of extreme wealth, being immortal-ageless, granting us food grains associated with the grant of progeny, while staying in east direction of Samiddh or Ahavneey Agni, eliminating our sins. 
उच्छ्रयस्व वनस्पते वर्ष्मन्पृथिव्या अधि। 
सुमिती मीयमानो वर्चो धा यज्ञवाहसे
हे वनस्पति! आप पृथ्वी के उत्तम यज्ञ-प्रदेश में उन्नत होवें। आप सुन्दर परिमाण से युक्त हैं। यज्ञ-निर्वाहक को अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.8.3]
हे वनस्पते! तुम धरा के जल आदि परिपूर्ण महान जगह पर वृद्धि करो। हे यज्ञ के पालक! यजमान को अन्न प्रदान करो।
Hey Vanaspati! You should rise-progress over the excellent place, suitable for Yagy, over the earth. You possess beautiful quantum. Grant food grains to the hosts for Yagy.  
युवा सुवासाः परिवीत आगात्स उ श्रेयान्भवति जायमानः। 
तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो ३ मनसा देवयन्तः
दृढ़ाङ्ग, सुन्दर जिह्वावाला तथा जिह्वा से परिवेष्टित यूप आता है। वह यूप ही समस्त वनस्पतियों की अपेक्षा उत्तम रूप से उत्पन्न है। ज्ञानी मेधावी लोग हृदय से देवों की इच्छा करके सुन्दर ध्यान के साथ उसे उन्नत करते हैं।[ऋग्वेद 3.8.4]
अटल अंग से युक्त सुन्दर जीभ वाला यूप प्रकट होता है। वह यूप सभी वनस्पतियों में उत्तम प्रकार वाला है। ज्ञानवान मेधावीजन देवगणों की इच्छा से निश्चय ध्यानपूर्वक मन से उसे बढ़ाते हैं।
Strong-stout Yup with beautiful tongue appears. This Yup is born excellently as compared to other Vanaspati-vegetation.  Enlightened, intelligent people make the desire from the depth of their heart to invoke it. 
जातो जायते सुदिनत्वे अह्नां समर्य आ विदथे वर्धमानः। 
पुनन्ति धीरा अपसो मनीषा देवया विप्र उदियर्ति वाचम्
इस पृथ्वी पर वृक्ष रूप से उत्पन्न यूप मनुष्यों के साथ यज्ञ में सुशोभित होकर दिनों को सुदिन करता है। कर्मनिष्ठ और विद्वान् अध्वर्यु लोग यथाबुद्धि उसी यूप को प्रक्षालन द्वारा शुद्ध करते हैं। देवों के याजक और मेधावी होता वाक्य या मन्त्र का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 3.8.5]
वृक्ष रूप उन्नत हुआ यूप अनुष्ठान स्थान में मनुष्यों के साथ सुशोभित हुआ दिनों को मंगलमय बनाता है। कर्मवान मेधावी अध्वर्युगण अपनी बुद्धि के अनुसार ग्रुप को पानी से धोकर पवित्र करते हैं। देवताओं का यजन करने वाले विज्ञ होता श्लोक का उच्चारण करते हैं।
The Yup born as a tree on this earth, makes the days-life of the humans auspicious. Devoted and enlightened people-cleanse it, as per their wish. The brilliant hosts-Ritviz worshiping demigods-deities recite hymns.
यान्वो नरो देवयन्तो निमिम्युर्वनस्पते स्वधितिर्वा ततक्ष। 
ते देवासः स्वरवस्तस्थिवांसः प्रजावदस्मे दिधिषन्तु रत्नम्
हे यूपो! देवाभिलाषी और कर्मों के नायक अध्वर्यु आदि ने आपको गड्ढे में फेंक दिया है। हे वनस्पति! कुठार ने आपको काटा है। आप दीप्तिमान् और काष्ठ खण्ड युक्त हो। हमें अपत्य के साथ श्रेष्ठ धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.8.6]
हे यूपो! देवताओं की अभिलाषा करने वाले कर्मों के पालक, अध्वर्युगण तुम्हें गड्ढे में फेंकते हैं। हे वनस्पते! तुम कुठार से काटे गये हो। तुम निर्मल लकड़ी वाले हो। इनको संतानयुक्त उत्तम धन दो।
Hey Yup! The Priests desirous of invoking demigods-deities, leader of the divine procedures, threw you in the pit. Hey Vanaspati! You have been cut-shaped with the axe. You are aurous possessing wood. Grant us progeny with wealth.  
ये वृक्णासो अघि क्षमि निमितासो यतस्रुचः। 
ते नो व्यन्तु वार्यं देवत्रा क्षेत्रसाधसः
जो फरसे से भूमि पर काटे जाते हैं, जो ऋत्विकों द्वारा गड्ढे में फेंके जाते हैं व जो यज्ञ
के साधक हैं, वे ही सब यूप देवों के पास हमारा हव्य ले जावें।[ऋग्वेद 3.8.7]
जो कुल्हाड़ी से काटे जाकर ऋत्विजों द्वारा गड्ढे में डाल दिये जाते हैं तथा जो अनुष्ठान का साधन करने वाले हैं, वे यूप हमारी हवियों को देवताओं के निकट पहुँचाये।
The Yup cut with the axe over the land, thrown into the pit and which are the means of performing Yagy, take the humans to demigods-deities. 
आदित्या रुद्रा वसवः सुनीथा द्यावाक्षामा पृथिवी अन्तरिक्षम्। 
सजोषसो यज्ञमवन्तु देवा ऊर्ध्वं कृण्वन्त्वध्वरस्य केतुम्
सुन्दर नायक आदित्य (सूर्य), रुद्र, वसु, द्यावा-पृथ्वी और विस्तीर्ण अन्तरिक्ष, ये सब मिलकर यज्ञ की रक्षा करें और यज्ञ की ध्वजा यूप को उन्नत करें।[ऋग्वेद 3.8.8]
आदित्य, रुद्र, वसु भली प्रकार संगत होकर सूर्य मंडल, पृथ्वी और अंतरिक्ष तीनों स्थानों में विद्यमान करें और अनुष्ठान का पोषण करें। वे ही यज्ञ की ध्वजारूपी अग्नि की वृद्धि करें।
Let the leader Adity-Sun, Rudr, Vasu, heavens-earth and the vast space-sky protect the Yagy as a joint effort and erect-raise the Yup. 
हंसा इव श्रेणिशो यतानाः शुक्रा वसानाः स्वरवो न आगुः। 
उन्नीयमानाः कविभिः पुरस्ताद्देवा देवानामपि यन्ति पाथः
दीप्त वस्त्र से आच्छादित, हंस के तुल्य श्रेणी पूर्वक गमन करने वाले और खण्ड युक्त यूप हमारे पास आयें। मेधावी अध्वर्यु आदि के द्वारा यज्ञ की पूर्व दिशा में उन्नीयमान तथा दीप्तिशाली समस्त दूप देवों का मार्ग प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.8.9]
सुन्दर ध्वजा से ढके हुए, हंस के समाना श्रेणीबद्ध यूप हमको प्राप्त हों। विद्वान अध्वर्युओं के द्वारा पूर्व की ओर उठे हुए निर्मला रूप देवताओं के पथ पर अग्रसर होते हैं।
Let the Yup decorated with shining cloth-flags, which move-travel like the swan, having segments, come to us. The intelligent priests receive the Yup raised in the east direction of the Yagy, that follows the path of the demigods-deities. 
शृङ्गाणीवेच्छङ्गिणां सं ददृश्रे चषालवन्तः स्वरवः पृथिव्याम्। 
वाघद्भिर्वा विहवे श्रीषमाणा अस्माँ अवन्तु पृतनाज्येषु
स्वरूप वाले और मुक्त कण्टक यूप पृथ्वी के शृङ्गी पशुओं की सींग के तुल्य भली-भाँति दिखाई देते हैं। यह में ऋत्विकों की स्तुतियाँ सुनने वाले यूप युद्ध में हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.8.10]
कांटे हटाने के बाद सुंदर हुए यूप पृथ्वी पर उत्पन्न सींगों वाले जानवरों के सींगों की भांति लगते हैं। यज्ञ में ऋत्विजों के स्तोत्र सुनने वाले, खूप लड़ाई में हमारी रक्षा करें।
Beautiful Yup, from which thorns have been removed, are seen clearly, like the horns of the animals over the earth. The Yup which listen to the hymns sung by the Ritviz, protect us in the war.
वनस्पते शतवल्शो वि रोह सहस्रवल्शा वि वयं रुहेम। 
यं त्वामयं स्वधितिस्तेजमानः प्राणिनाय महते सौभगाय
हे छिन्न मूल स्थाणु! इस तीखी धार वाले फरसे ने आपको महान् सौभाग्य प्रदान किया है। आप हजार शाखाओं वाले होकर भली-भाँति उत्पन्न होवें। हम भी हजार शाखाओं वाले होकर भली-भाँति प्रादुर्भूत होवें।[ऋग्वेद 3.8.11] 
हे वनस्पते! तुम मूल से पृथक हुए, तीक्ष्ण धार वाले कुठार ने तुम्हें अत्यन्त भाग्यवान बनाया। तुम हजारों शाखाओं से परिपूर्ण हुए, महान रूप से रचित होओ। हम भी सहस्त्र शाखा वाले बनकर उत्तम रूप से वृद्धि करें।
Hey uprooted fixed Yup! You have been blessed with great luck. You should born again with thousand branches. We too should progress with one thousand branches.

ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- गाथी कौशिकी, देवता :- अग्निविश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप।
अग्नि होतारं प्र वृणे मियेधे गृत्सं कविं विश्वविदममूरम्। 
स नो यक्षदेवताता यजीयान्ये वाजाय वनते मधानि
देवों के स्तोता, मेधावी, सर्वज्ञ और अमूढ़ अग्रि देव को हम इस यज्ञ में होत्र रूप से स्वीकार करते हैं। वे अग्नि सर्वापेक्षा यज्ञ परायण होकर हमारे लिए देवों का यज्ञ करें। धन और अन्न के लिए वे हमारे हव्य को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 3.19.1]
अमूढ़ :: पंचतन्मात्र में से एक, अविशेष, महाभूत, अशांत और अधीर ।
हे अग्नि देव! तुम देवताओं के वंदनाकारी, सर्वज्ञ प्रज्ञावान हो। हम इस अनुष्ठान में तुम्हें होता रूप में प्राप्त करते हैं। वे अग्नि अनुष्ठान कार्यों में लगाकर देवों का यजन करें। वे धन और अन्न देने की कामना करते हुए हमारी हवियाँ स्वीकार करें।
We accept Agni Dev, who is the Stota of the demigods-deities, intelligent, eternal all knowing as the Hota-performer of Yagy. He should conduct this Yagy for he demigods-deities. He should accept the offerings praying for the food grains and money.
प्र ते अग्ने हविष्मतीमियर्म्यच्छा सुद्युम्नां रातिनी घृताचीम्। 
प्रदक्षिणिद्देवतातिमुराणः सं रातिभिर्वसुभिर्यज्ञमश्रेत्
हे देव! मैं हव्य युक्त, तेजस्वी, हव्यदाता और धृत समन्वित जुहू को आपके सामने प्रदत्त करता हूँ। देवों के बहुमानकर्ता अग्निदेव हमारे दातव्य धन के साथ प्रदक्षिणा करके यज्ञ में सम्मिलित होवें।[ऋग्वेद 3.19.2]
जुहू :: पलाश की लक़ड़ी का बना हुआ एक प्रकार का अर्द्ध चंद्राकार यज्ञ-पात्र,  पूर्व दिशा; a pot made of butea-wood having the shape of half moon, east.
हे अग्नि देव! मैं हवियुक्त हवि देने का साधन, धृत से पूर्ण जुहू को तुम्हारे सामने करता हूँ। वे देवगणों का सम्मान करने वाले अग्निदेव हमको देने वाले धन के सहित यज्ञ में भाग लें।
Hey Agni Dev! I place the butea-wooden pot filled with offerings, enriched with Ghee in front of you. Hey demigods-deities honouring Agni Dev circumambulate the Yagy site and join the Yagy with the money meant for us.
स तेजीयसा मनसा त्वोत उत शिक्ष स्वपत्यस्य शिक्षोः। 
अग्ने रायो नृतमस्य प्रभूतौ भूयाम ते सुष्टुतयश्च वस्वः
हे अग्रि देव! जिसकी आप रक्षा करते हैं उसका मन अत्यन्त तेजस्वी हो जाता है। उसे उत्तम अपत्यवाला धन प्रदान करें। हे फलदानेच्छुक अग्नि देव! आप अतीव धन दाता है। हम आपकी महिमा से रक्षित होंगे तथा आपकी प्रार्थना करते हुए धनाधिपति होंगे।[ऋग्वेद 3.19.3]
हे अग्नि देव! तुम्हारी सुरक्षा ग्रहण कर साधक का मन अत्यन्त शक्ति प्राप्त करता है। उसे संतान परिपूर्ण धन प्रदान करो। तुम फल प्रदान करने की कामना वाले एवं श्रेष्ठ धन प्रदान करने वाले हो। हम तुम्हारी महती सुरक्षा से निर्भय होते हुए तुम्हारी प्रार्थना करेंगे और धन के स्वामी बनेंगे।
Hey Agni Dev! The innerself of one protected by you become energetic. Grant him money as well as progeny. You grant riches and protect us. We will worship-pray to you to become rich. 
भूरीणि हि त्वे दधिरे अनीकाग्ने देवस्य यज्यवो जनासः। 
स आ वह देवतातिं यविष्ठ शर्धो यदद्य दिव्यं यजासि
हे द्युतिमान् अग्नि देव! यज्ञ कर्ताओं ने आपको प्रभूत दीप्ति प्रदान की है। हे अग्नि देव! चूंकि आप यज्ञ में स्वर्गीय तेज की पूजा करते हैं; इसलिए देवों को बुलावें।[ऋग्वेद 3.19.4]
हे अग्नि देव! तुम प्रकाशवान हो। यज्ञ करने वालों ने तुम्हें प्रदीप्त किया है। तुम यज्ञ में विश्व तेज की साधना करने वाले हो, अतः देवगणों को आहूत करो।
Hey shinning Agni Dev! The organisers of Yagy have ignited you. Hey Agni Dev! Since you worship the divine aura, invoke-invite the demigods-deities. 
यत्त्वा होतारमनजन्मियेधे निषादयन्तो यजथाय देवाः। 
स त्वं नो अग्नेऽवितेह बोध्यधि श्रवांसि घेहि नस्तनूषु
हे अग्नि देव! चूंकि यज्ञ के लिए बैठे हुए दीप्तिशाली ऋत्विक् लोग यज्ञ में आपको होता कहकर सिक्त करते हैं, अतः आप हमारी रक्षा के लिए जागृत होवें और हमारे पुत्रों को अधिक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.19.5]
हे अग्नि देव! अनुष्ठान में विराजमान मेधावी ऋषि गण तुम्हारे होता हैं। तुम हमारी सुरक्षा के लिए पधारो। हमारे पुत्रों को अन्नवान करो।
Hey Agni Dev! Since the aurous Ritviz nominate you as the Hota-organiser, light up for our protection and grant food grains to our sons.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- गाथी कौशिकी, देवता :- अग्निविश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप।
अग्निमुषसमश्विना दधिक्रां व्युष्टिषु हवते वह्निरुक्थैः।
सुज्योतिषो नः शृण्वन्तु देवाः सजोषसो अध्वरं वावशानाः
हे अग्नि देव! हव्य वाहक उषा के अधिकार दूर करते समय उषा, अश्विनी कुमारों और दधिक्रा नामक देवता को प्रार्थना के द्वारा बुलाते हैं। सुन्दर द्युतिमान् और परस्पर मिलित देवता लोग हमारे यज्ञ की अभिलाषा करके उस स्तुति को श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.20.1]
हे हवि वाहक अग्नि देव! उषाकाल में अन्धकार का पतन करते हुए उषा अश्विद्वय और दधिक्रा नामक देवताओं को ऋचाओं से आहूत करते हैं। देवगण हमारे यज्ञ में आने की इच्छा करते हुए उन ऋचाओं को श्रवण करें। 
Hey Carrier of offerings Agni Dev! Usha, Ashwani Kumars and Dadhikra-a demigod, are invoked with the recitation of hymns. Let the demigods-deities listen to the hymns to attend our Yagy.
अग्ने त्री ते वाजिना त्री षधस्था तिस्रस्ते जिल्हा ऋतजात पूर्वीः।
तिस्त्र उ ते तन्वो देववातास्ताभिर्नः पाहि गिरो अप्रयुच्छन्
हे अग्नि देव! आपका अन्न तीन प्रकार का है, आपका स्थान तीन प्रकार का है। हे यज्ञ सम्पादक अग्नि देव! देवों की उदर-पूर्ति करने वाली आपकी तीन जिव्हायें हैं। आपके तीन प्रकार के शरीर देवों के द्वारा अभिलषित है। अप्रमत्त होकर आप उन्हीं तीनों शरीरों के द्वारा हमारी स्तुति की रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.20.2]
हे अग्नि देव! तुम्हारा तीन तरह का अन्न तथा तीन प्रकार का ही वास स्थान है, तुम यज्ञ को संपादन करने वाले हो। देवगणों को संतुष्ट करने वाली तीन जिह्वाओं से युक्त हो। तुम्हारे शरीर के तीन रूप हैं, जिनकी देवता अभिलाषा किया करते हैं। तुम आलस्य से रहित हुए अपने तीनों रूपों में हमारे श्लोकों की रक्षा करो।
Hey Agni Dev! Your food grains and residence are of three types. You possess three tongues to feed the demigods-deities. Your three types of bodies are desired by the demigods. Protect-save our prayers through your three bodies-configurations.
अग्ने भूरीणि तव जातवेदो देव स्वधावोऽमृतस्य नाम। 
याश्च माया मायिनां विश्वमिन्व त्वे पूर्वीः संदधुः पृष्टबन्धो
हे द्युतिमान्, जातवेदा, मरण-शून्य और अन्नवान् अग्नि देव! देवों ने आपको अनेक प्रकार के तेज दिए हैं। हे संसार के तृप्तिकर्ता और प्रार्थित फलदाता अग्नि देव! मायावियों की जिन मायाओं को देवों ने आपको प्रदान किया है, वह सब आपमें ही निहित है।[ऋग्वेद 3.20.3]
हे अग्नि देव! तुम प्रकट हो। ज्ञानी, ज्योर्तिवान, अमर और अन्न परिपूर्ण हो । देवताओं ने तुम्हें तेज प्रदान किया है। तुम संसार को तृप्त करने वाले अभीष्ट फल प्रदान करने वाले हो। देवताओं ने तुमको जिन शक्तियों से परिपूर्ण किया है, वे शक्तियाँ हमेशा तुम में व्याप्त रहती हैं। 
Hey eternal, immortal and the possessor of food grains Agni Dev! The demigods-deities have granted you three types of aura. Hey satisfying and granter of the material goods Agni Dev! Various types of enchanting powers granted by the demigods-deities, are embedded in you.
अग्निर्नेता भग इव क्षितीनां दैवीनां देव ऋतुपा ऋतावा। 
स वृत्रहा सनयो विश्ववेदाः पर्षद्विश्वाति दुरिता गृणन्तम्
ऋतु कर्ता सूर्य के तुल्य जो अग्रि देवों और मनुष्यों के नियन्ता है, जो अग्नि सत्यकारों, वृत्र हन्ता, सनातन, सर्वज्ञ और धुतिमान् हैं, वे स्तोता के समस्त पापों को लंघाकर, पार ले जायें।[ऋग्वेद 3.20.4]
ऋतुओं को प्रकट करने वाले आदित्य के समान विश्व के नियंता सत्यकर्मों में प्रवृत्त वृत्र को मारने वाले, प्राचीन, सर्वज्ञाता और प्रकाशवान अग्निदेव, स्तुति करने वाले को सभी पापों से दूर करें। 
Agni Dev, who is comparable to Bhagwan Sury-Sun is the regulator of the humans, is devoted to truth, is the slayer of Vratr, enlightened-all knowing and brilliant, should help the worshiper cross all the sins committed by him.
दधिक्रामग्निमुषसं च देवीं बृहस्पतिं सवितारं च देवम्। 
अश्विना मित्रावरुणा भगं च वसून्रुद्र आदित्याँ इह हुवे
मैं दधिक्रा, अग्नि देव, देवी उषा, बृहस्पति, द्युतिमान् सविता, अश्विनी कुमार, भग, वसु, रुद्र और आदित्यों को इस यज्ञ में बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 3.20.5]
दधिका, अग्नि, उषा, बृहस्पति, तेजस्वी, सूर्य दोनों अश्विनी कुमार, भव, वसु और समस्त आदित्यों का इस यज्ञानुष्ठान में आह्वान करता हूँ।
I invite-invoke the demigods-deities named Dadhikra, Agni dev, Usha, Brahaspati, Savita, Ashwani Kumars, Bhag, Vasu, Rudr and Aditys.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- विश्वामित्र, वाच्याप्रजापति, देवता :- विश्वेदेवाछन्द :- त्रिष्टुप्
इमं महे विदथ्याय शूषं शश्वत्कृत्व ईड्याय प्र जभ्रुः।
शृणोतु नो दम्येभिरनीकैः शृणोत्वग्निर्दिव्यैरजस्रः
महान् यज्ञ में मन्थन द्वारा निष्पाद्यमान और स्तुति योग्य अग्नि देव के उद्देश्य से यह सुखकारी स्तोत्र अनेकानेकों बार उच्चारित होता है। अग्नि देव घर में विद्यमान होकर तथा तेजोविशिष्ट होकर हमारे इस स्तोत्र को श्रवण करें। दिव्य तेज से निरन्तर युक्त होकर वह हमारे इस स्तोत्र को सुनें।[ऋग्वेद 3.54.1]
अध्ययन रूपी मंथन द्वारा प्रतिपादित श्लोक वंदना के योग्य हैं। इसका उत्तम अनुष्ठान में बार-बार उच्चारण किया जाता है। अपने गृह तेज से युक्त हुए अग्नि देव इस श्लोक का श्रवण करें। वे अपने अद्भुत तेज से लगातार पूर्ण करते हुए हमारी वंदनाओं पर ध्यान आकृष्ट करें।
This auspicious Strotr-sacred hymn devoted to Agni Dev, is recited several times in the great Yagy. Let Agni Dev be present in our home with radiance and listen to our Strotr, repeatedly.   
महि महे दिवे अर्चा पृथिव्यै कामो म इच्छञ्चरति प्रजानन्।
ययोर्ह स्तोमे विदधेषु देवाः सपर्यवो मादयन्ते सचायोः
हे स्तोता! महती द्यावा-पृथ्वी की शाक्ति को जानते हुए आप उनकी अर्चना करें। मेरा मनोरथ सम्पूर्ण भोग का इच्छुक है जो कि सभी जगह वर्तमान है। पूजाभिलाषी देवगण सम्पूर्ण मनुष्यों के यज्ञ में द्यावा-पृथ्वी के प्रार्थना करने में मत्त होते हैं।[ऋग्वेद 3.54.2] 
हे स्तुति कर्त्ता! तुम आसमान और धरती की अनन्त शक्ति को समझते हुए उन्हें पूजो। मैं सभी भोगों की अभिलाषा करता हूँ। मेरा मन सभी ओर है। अपनी अर्चना की कामना वाले देवता प्राणियों के यज्ञों में जाकर आसमान और पृथ्वी को पूर्ण करते हुए हर्ष प्राप्त करते हैं।
Hey recitators! Pray-worship the heaven & earth fully aware of their powers. I endeavour is to enjoy all sorts of amenities, comforts, luxuries, desires since they are available everywhere. The demigods-deities desirous of worship attend the Yagy by the humans compensating the heavens & the earth.
युवोर्ऋतं रोदसी सत्यमस्तु महे षु णः सुविताय प्र भूतम्।
इदं दिवे नमो अग्ने पृथिव्यै सपर्यामि प्रयसा यामि रत्नम्
हे द्यावा-पृथ्वी! आपका ऋत (अनृशंसता) यथार्थ है। आप हमारे महान् यज्ञ की समाप्ति के लिए समर्थ होवें। हे अग्नि देव! द्युलोक और पृथ्वी को नमस्कार है। हविर्लक्षण अन्न से मैं परिचर्या करते हुए उत्तम धन की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.54.3]
हे क्षितिज-धरा! तुम कार्य सत्य हो। तुम हमारे श्रेष्ठ अनुष्ठान को बिना रुकावट के पूर्ण कराने में समर्थवान होओ। हे अग्नि! मैं क्षितिज और धरा को प्रणाम करता हूँ। हवि रूप अन्न द्वारा सेवा करता है। मैं महान धन माँगता हूँ।
Hey Heaven and earth! May your truth be ever inviolable, be propitious to us for the due completion of the rite, this adoration Agni is offered to heaven and earth, I worship them with sacrificial food, I solicit of them precious wealth.
INVIOLABLE :: पवित्र, अनुल्लंघनीय, भ्रष्ट न करने योग्य; holy, pure, sanctified, pious, solemn.
Hey Heaven and earth! May your truth prevail. You should ensure the completion our great Yagy without interruption. Hey Agni Dev! I pray-worship both the heaven & the earth. Making offerings of food grains, I desire wealth from you.
उतो हि वां पूर्व्या आविविद्र ऋतावरी रोदसी सत्यवाचः।
नरश्चिद्वां समिथे शूरसातौ ववन्दिरे पृथिविं वेविदानाः
हे सत्य युक्त द्यावा-पृथ्वी! पुरातन सत्यवादी महर्षियों ने आपसे हितकर अर्थ प्राप्त किया। हे पृथ्वी! युद्ध में जाने वाले मनुष्यगण आपके माहात्म्य को जानकर आपकी ही वन्दना करते हैं।[ऋग्वेद 3.54.4]
हे सत्य धर्म वाली आसमान धरती पुरातन सत्य वक्ता ऋषियों ने तुमसे हित करने जाना अभिष्ट प्राप्त किया था। हे पृथ्वी! युद्ध भूमि को प्रस्थान करने वाले वीर भी तुम्हारी महिमा को जानते हुए तुम्हें प्रणाम करते हैं।
Hey truthful heaven & earth! The ancient truthful sages got useful money from you. Hey earth! The warriors going to the battle field pray-worship you fully aware of your might-power. 
को अद्धा वेद क इह प्र वोचद्देवाँ अच्छा पथ्या ३ का समेति।
ददृश्र एषामवमा सदांसि परेषु या गुह्येषु व्रतेषु
उस सत्यभूत अर्थ को कौन जानता है? कौन उस जाने हुए अर्थ को बोलता है? कौन समीचीन पथ देवताओं के निकट ले जाता है? देवगण के द्युलोक स्थित नक्षत्रादि देखे जाते हैं। वे उत्कृष्ट और दुर्ज्ञेय व्रत में अवस्थिति करते हैं।[ऋग्वेद 3.54.5] 
उसे सत्य के कारण रूप ज्ञाता कौन है? उस समझे हुए विषय को प्रकट करने वाला कौन है? यह आसान मार्ग कौन से हैं जो देवों की निकटता प्राप्त कराएँ। अद्भुत संसार की निचली जगह में नक्षत्र आदि प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। वे हमको उत्कृष्ट एवं कठिन व्रतों में लगते हैं।
Who is aware of the truth?! Who spell the meaning of the truthful words!? Which is the easiest way to take to the demigods-deities?! The constellations are seen-observed in the sky-heaven. It appears as if they are busy in excellent difficult ascetics. 
कविनृचक्षा अभि षीमचष्ट ऋतस्य योना विघृते मदन्ती।
नाना चक्राते सदनं यथा वेः समानेन क्रतुना संविदाने
हे कवि! मनुष्यों के द्रष्टा सूर्य इस द्यावा-पृथ्वी को सभी जगह देखते हैं। जल के उत्पत्ति स्थान अन्तरिक्ष में हर्षकारिणी, रसवती और समान कर्मों द्वारा परस्पर ऐक्यभावापन्ना द्यावा-पृथ्वी पक्षियों के घोसलों के तुल्य अलग-अलग अनेकानेक स्थान को अधिकृत करती हैं।[ऋग्वेद 3.54.6]
मनुष्यों के ब्रह्मा सूर्य, आकाश और धरती को सभी ओर से देखते हैं। जल के प्राकट्य स्थान अंतरिक्ष में आनन्द देने वाली रस से युक्त हुई समान कर्म वाली आकाश पृथ्वी बहुत स्थानों पर घोंसला बनाने वाले पक्षियों के समान अनेक स्थानों को व्याप्त करती हैं।
The far-seeing beholder of mankind, the Sun, surveys-witness the heaven and earth, rejoicing when having moisture-waters in the firmament, both concurring in community of function, although they occupy various dwellings, like the diversified nests of a bird.
Sun observing-watching the humans, visualise-lit the earth & heavens all around-over. The earth & heavens which grant pleasure & fluids, pervade different places in the sky, the place of origin of water, like the birds having nests at various places.
समान्या वियुते दूरेअन्ते ध्रुवे पदे तस्थतुर्जागरूके।
उत स्वसारा युवती भवन्ती आदु ब्रुवाते मिथुनानि नाम
परस्पर प्रीति युक्त कर्म द्वारा ऐकमत्य प्राप्त, वियुक्त होकर वर्तमान अविनाशिनी द्यावा-पृथ्वी जागरणशील अनश्वर अन्तरिक्ष में नित्य तरुण भगिनीद्वय के तुल्य एक आत्मा से जायमान होकर ठहरी है। वे दोनों आपस में द्वन्द्व नाम अभिहित करती हैं।[ऋग्वेद 3.54.7]
परस्पर आकर्षण में बंधी अलग रहकर भी संग रहने वाली, जिनका कभी पतन नहीं होता, ऐसे अम्बर-धारा कभी भी नष्ट नहीं होने वाले अंतरिक्ष में दो तरुणी बहनों के तुल्य एक आत्मा बाली हुई, सृष्टि कार्य में समर्थ बनकर दृढ़ हैं।
The earth & the heaven are tide together by gravitational attraction-forces, though away from each other in the imperishable space and are never destroyed, like the two young sisters possessing same soul enabling the evolution of life.
विश्वेदेते जनिमा सं विविक्तो महो देवान्बिभ्रती न व्यथेते।
एजद्ध्रुवं पत्यते विश्वमेकं चरत्पतत्रि विषुणं वि जातम्
यह द्यावा-पृथ्वी समस्त भौतिक वस्तु को अवकाश दान द्वारा विभक्त करती हैं। महान् सूर्य, इन्द्र आदि अथवा सरित, समुद्र, पर्वत आदि को धारित करके भी व्यथित नहीं होती है। जङ्गमात्मक और स्थावरात्मक जगत् केवल एक पृथ्वी को ही प्राप्त करता है। चञ्चल पशु और पक्षिगण नाना रूप होकर द्यावा-पृथ्वी के बीच में ही अवस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 3.54.8]
यह अम्बर-धरा समस्त भौतिक पदार्थों को प्रकट करती हुई सूर्य चन्द्रमा, नदी, समुद्र, पर्वत आदि को धारण करके भी कंपित नहीं हो सकती। स्थावर और जंगम पदार्थों से युक्त विश्व केवल पृथ्वी को ही प्राप्त करता है और चलायमान पशु पक्षी आदि जीव आकाश और धरती में ही व्याप्त होते हैं।
The sky-heaven & earth divides the entire material-cosmic objects (stars, planets, nebulae, black hole, galaxies etc.) with space. It never feel disturbed-perturbed by bearing the Sun, Indr-heavens etc. nether world, river, ocean, mountains. Dynamic-movable & the fixed objects, organism are present over the earth. The animals and the birds survive between the sky and the earth.
सना पुराणमध्येम्यारान्महः पितुर्जनितुर्जामि तन्नः।
देवासो यत्र पनितार एवैरुरौ पथि व्युते तस्थुरन्तः
हे द्यो! आप महान हैं, आप सबका जनन कर पालन करती है। सनातनता, पूर्वक्रमागता हम लोगों का जननत्व सब एक से ही उत्पन्न हुआ है। द्यौ बहन होती है। हम अभी उसका स्मरण करते हैं। द्युलोक में विस्तीर्ण और विविक्त आकाश में आपकी प्रार्थना करने वाले देवता अपने वाहनों के साथ स्थित हैं। वहाँ ठहरकर वे स्तोत्र श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 3.54.9]
हे आकाश-धरती तुम सभी की जन्मदात्री हो, सभी को घोषण तुम ही करती हो। तुम्हारी प्राचीनता, पहले क्रम से विकास और हमारा उत्पादन इन सभी का एक ही कारणभूत है। अम्बर भगिनी रूपा है। हम उन सभी का चिन्तन करते हैं। तुम्हारी प्रार्थना करने वाले देवगण अपने-अपने वाहनों पर आरूढ़ होकर तुम्हारा पूजन सुनते हैं।
Hey sky & earth! You are great. You evolve all and nourish them. Source of evolution is same-common. Sky and earth are like sisters. We pray-worship them. Demigods-deities present in the sky, stay there & pray-worship and recite Strotr for you.
इमं स्तोमं रोदसी प्र ब्रवीम्यृदूदराः शृणवन्नग्निजिह्वाः।
मित्रः सम्राजो वरुणो युवान आदित्यासः कवयः पप्रथानाः
हे द्यावा-पृथ्वी! आपके इस स्तोत्र का हम भली-भाँति उच्चारण करते हैं। सोमरस को पेट में धारण करने वाले, अग्नि रूपी जिह्वा वाले, भली-भाँति दीप्यमान, नित्य तरुण, कवि अपने-अपने कर्म को प्रकट करने वाले मित्र आदि देवता इस स्तोत्र को श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.54.10] 
हे आकाश-धरती! तुम्हारे स्तोत्र को भली प्रकार गाते हैं। सोम को उदरस्थ करने वाले, अग्नि रूप जिव्हा वाले, नित्य युवा, तेजस्वी, अपने कर्मों को प्रकट करने वाले मित्र आदि देवगण हमारी प्रार्थनाओं को सुनें।
Hey sky & earth! We recite your Strotr properly. Always young radiant Mitr & other demigods-deities, having Somras in their stomach-belly and tongue in the form of Agni-fire recite this Strotr.
हिरण्यपाणिः सविता सुजिह्वस्त्रिरा दिवो विदथे पत्यमानः।
देवेषु च सवितः श्लोकमश्रेरादस्मभ्यमा सुव सर्वतातिम्
दानार्थ स्वर्ण को हाथ में रखने वाले, शोभन वचन वाले सविता यज्ञ के तीनों सदनों में आकाश से आते हैं। हे सविता! आप स्तोताओं के स्तोत्र को प्राप्त करें। इसके अनन्त सम्पूर्ण अभिलषित फल को हम लोगों के लिए प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.54.11]
दान के लिए स्वर्ण को हाथ में लेने वाले, उत्तम संकल्प वाले सूर्य! तुम तीनों सयनों में अम्बर में आकर प्राप्त करते हो। हे सूर्य देव! तुम वन्दना करने वालों के श्लोकों को स्वीकार करो। फिर इच्छित धन को हमारे लिये प्रेरित करो। 
Let golden-handed, soft-tongued Savita is descend from heaven to be present thrice daily at the sacrifice; accept, the praise-prayers recited by the worshippers and thereupon grant to us all our desires.
Savita appears in all the three parts of the day from the sky, with gold for donating in the hands. Hey Savita! Listen to the recitation of th Strotr for you by the singers-devotees. Let our the rewards-desired commodities-wishes be fulfilled. 
सुकृत्सुपाणिः स्ववाँ ऋतावा देवस्त्वष्टावसे तानि नो धात्।
पूषण्वन्त ऋभवो मादयध्वमूर्ध्वग्रावाणो अध्वरमतष्ट
सुन्दर जगत् के कर्ता! कल्याणपाणि, धनवान्, सत्य सङ्कल्प त्वष्ट देव रक्षा के लिए हम लोगों को सम्पूर्ण अपेक्षित फल प्रदान करें। हे ऋभुओं! पूषा के साथ आप हम लोगों को धन प्रदान करके प्रसन्न करें। क्योंकि सोमाभिषेक के लिए प्रस्तर को उत्तोलन करनेवाले ऋत्विकों ने यह यज्ञ किया है।[ऋग्वेद 3.54.12]
हाथ वाले सुन्दर विश्व के रचयिता, सत्य-प्रतिज्ञ, धन से युक्त, त्वष्टा हमारी रक्षा के लिए आवश्यक साधन दें। हे तुम पूषा से युक्त होकर हमको धन प्रदान करते हुए पुष्ट बनाओ। पाषण को सोम-अभिषेक के लिए प्रेरित करने वाले इस अनुष्ठान को करते हैं।
May Twasta Dev, the able artificer, with his dextrous-hands, the possessor of wealth, the observer of truth, bestow upon us those essential things which are necessary for our preservation; Ribhus associated with Pusha, make us joyful, as they the priests-Ritviz, with uplifted stones, prepare the sacred libation.
Developer-producer of the beautiful world, truthful Twasta! Grant us desires boons-objects & riches with your hands, which you raise-use for protection & welfare. Hey Ribhu Gan! Amuse us by giving us money along with Pusha. The Ritviz have accomplished the job-Yagy involving Somras, by using stones-rocks.
विद्युद्रथा मरुत ऋष्टिमन्तो दिवो मर्या ऋतजाता अयासः।
सरस्वती शृण्वन्यज्ञियासो धाता रयिं सहवीरं तुरासः
द्योतमान् रथ वाले, आयुधवान् दीप्तिमान्, शत्रुओं के विनाशक, यज्ञोत्पन्न, सतत गमनशील, यज्ञार्ह मरुद्गण और वाग्देवता हमारे इस स्तोत्र को सुनें। हे त्वरान्वित मरुद्गण! हमें पुत्र विशिष्ट धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.54.13]
चमकते हुए रथ वाले, अस्त्रों से पूर्ण, तेजस्वी, शत्रुओं के नाशक, अनुष्ठान में प्रकट गतिमान मरुद्गण और वाकदेव हमारी वंदनाओं को श्रवण करें। है मरुतों! हमको पुत्र से सम्पन्न धन प्रदान करो।
Let dynamic Marud Gan, Vag Devta marching for the war, riding radiant charoite, dynamic, slayers of enemy, invoked during the Yagy, listen to our prayer-Strotr. Marching Marud Gan should grant us wealth useful for our sons.
विष्णुं स्तोमासः पुरुदस्ममर्का भगस्येव कारिणो यामनिग्मन्।
उरुक्रमः ककुहो यस्य पूर्वीर्न मर्धन्ति युवतयो जनित्रीः
धन का हेतुभूत यह स्तोत्र और अर्चनीय शस्त्र है, इस विस्तृत यज्ञ में बहुकर्मा श्रीविष्णु के निकट गमन करे। सबकी जनयित्री और परस्पर असङ्कीर्णा दिशाएँ, जिस श्री विष्णु को हिंसित नहीं करती हैं, वह श्री विष्णु उरु विक्रमी है। त्रिविक्रमावतार (वामन अवतार) में एक ही पैर से उन्होंने सम्पूर्ण जगत् को आक्रान्त किया।[ऋग्वेद 3.54.14]
धन का कारणभूत यह स्तोत्र और प्रजा के योग्य हवि इस श्रेष्ठ यज्ञ में अनेक कर्म करने वाले प्रभु विष्णु को प्राप्त हो। सब को जन्म देने वाली दिशाएँ विष्णु को नष्ट नहीं कर सकतीं। वे विष्णु अत्यन्त सामर्थ्यवान हैं। उन्होंने अपने एक पग से समस्त संसार को ढक लिया था।
May our praises and prayers, the causes of good fortune, attain at this sacrifice, reach Shri Hari Vishnu, the object of many rites; he, the wide-stepping; who commands the many-blending regions of space, the genitive raptors of all beings, do not disobey.
Let our prayer-Strotr for the sake of money reach Bhagwan Shri Hari Vishnu who perform several-various functions. All directions which produce all organism can not harm-vanish Shri Hari Vishnu. HIS incarnation Tri-Vikram-Vaman covered the three abodes in just one step.
इन्द्रो विश्वैर्वीर्यैः ३ पत्यमान उभे आ पप्रौ रोदसी महित्वा।
पुरंदरो वृत्रहा धृष्णुषेणः संगृभ्या न आ भरा भूरि पश्वः
सकल सामर्थ्य सम्पन्न इन्द्र देव ने द्यावा और पृथ्वी दोनों को महिमा द्वारा पूर्ण किया। शत्रुपुरी को विदीर्ण करने वाले वृत्रासुर को मारने वाले और शत्रुओं को पराजित करने वाली सेना वाले इन्द्र पशुओं का संग्रह करके हमें प्रचुर मात्रा में पशु प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.54.15]
समस्त बलों से परिपूर्ण हुए इन्द्रदेव ने अम्बर और धरा दोनों को अपनी महती सामर्थ्य से पूर्ण किया। शत्रु के किलों को ध्वस्त करने वाले, वृत्र के संहारक और शत्रुओं को जीतने वाली सेना से परिपूर्ण इन्द्रदेव पशु-सम्पत्ति को भली प्रकार से संग्रहित करके हमें प्रदान करें।
The possessor of all power, mighty, strong Indr Dev granted glory to the heaven & earth. Let the destroyer of enemy's kingdom, slayer of Vratasur Indr dev grants us herds of cattle in sufficient numbers.
नासत्या मे पितरा बन्धुपृच्छा सजात्यमश्विनोश्चारु नाम।
युवं हि स्थो रयिदौ नो रयीणां दात्रं रक्षेथे अकवैरदब्धा
हे अश्विनी कुमारों! आप हम बन्धुओं की अभिलाषा की जिज्ञासा करने वाले हैं, हमारे पालक होवें। आप दोनों का मिलन कमनीय है। हे अश्विन! हमारे लिए आप उत्तम धन के देने वाले होवें। आपका तिरस्कार कोई भी नहीं करता है। आपको हम हवि देते हैं। आप शोभन कर्म द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 3.54.16]
हे अश्विद्वय! तुम हमसे बंधुत्व स्थापना की कामना करते हो। तुम हमारा पालन करने वाले बनो। हे अश्विनी! हम तुम्हारा आदर करने में समर्थ हैं। हम तुमको हव्यदान करते हैं। श्रेष्ठ कार्यों द्वारा हमारी रक्षा करो। 
Hey Ashwani Kumars! You wish to establish brotherly relations with us. You should nurturer & protect us. Hey Ashwani! We honour-revere you.
महत्तद्वः कवयश्चारु नाम यद्ध देवा भवथ विश्व इन्द्रे।
सख ऋभुभिः पुरुहूत प्रियेभिरिमां धियं सातये तक्षता नः
हे कवि देवगण! आपका वह प्रभूत कर्म मनोहर है, जिससे आप लोग इन्द्र लोक में देवत्व प्राप्त करते हैं। हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! आप प्रियतम ऋभुओं के साथ सख्यभावापत्र हैं। आप हमारी इस प्रार्थना को धनादिलाभ के लिए स्वीकार करें।[ऋग्वेद 3.54.17] 
हे देवताओं! हे विद्वानों! तुम्हारा काम अत्यन्त श्रेष्ठ है जो तुम इन्द्र की सेवा में रहते हुए समृद्धि या विजय को ग्रहण करते हो। हे इन्द्रदेव! तुम अनेकों द्वारा आहूत किये गये हो। तुम्हारी मित्रता ऋभुओं को ग्रहण है। धन लाभ के लिए हमारे इस श्लोक को स्वीकृत करो। 
Hey demigods-deities, enlightened! Your endeavours-actions through which you attain the status of demigods-deities in the abode of Devraj Indr are excellent. Hey Indr Dev worshiped by majority of the humans! You are friendly with the Ribhu Gan. Accept our Shlok-prayer for grant of riches-money. 
अर्यमा णो अदितिर्यज्ञियासोऽदब्धानि वरुणस्य व्रतानि।
युयोत नो अनपत्यानि गन्तोः प्रजावान्नः पशुमाँ अस्तु गातुः
सर्वदा गमनशील सूर्य, देवमाता अदिति, यज्ञार्ह देवगण और अहिंसित कर्म करने वाले वरुण देव हम लोगों की रक्षा करें। वे हमारे मार्ग से पुत्रों के अहित कर्म को अथवा पतन कारक कर्म को दूर करें। हमारे घर को वे पशु आदि से तथा अपत्य से युक्त करें।[ऋग्वेद 3.54.18] 
सदैव गतिमान सूर्य देव माता अदिति, देवता और अहिंसायुक्त वरुण हमारा पालन-पोषण करें। हमारे मार्ग से अहितकारी बाधाओं को दूर भगाएँ। हमारे घर को पशु और संतान आदि से सम्पन्न करें। 
Let always moving-dynamic Sun, Dev Mata Aditi, demigods-deities of the Yagy and non violent Varun Dev protect our populace (friends, relatives, family). Remove-restrict our those action which may harm & lead us to hells. Clear our homes from unexpected troubles and give us cattle & progeny. 
देवानां दूतः पुरुध प्रसूतोऽनागान्नो वोचतु सर्वताता।
शृणोतु नः पृथिवी द्यौरुतापः सूर्यो नक्षत्रैरुर्व १ न्तरिक्षम्
अग्रिहोत्र के लिए बहु देशों में प्रसूत या विहित और देवताओं के दूत अग्रिदेव हैं। कर्म साधन की विगुणता से हम सापराध है। हमें अग्नि देव सभी जगह निरपराध कहें। द्यावा-पृथ्वी, जल समूह, सूर्य और नक्षत्रों द्वारा पूर्ण विशाल अन्तरिक्ष हमारी प्रार्थना श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.54.19]
यज्ञानुष्ठानों के लिए अग्नि देवों के दूत रूप से प्रसिद्ध हैं। वे हमको कर्म साधन से परिपूर्ण और अपराध वृत्ति से पृथक करें। अम्बर, धरा, जलाशय, सूर्य और नक्षत्रों से परिपूर्ण अंतरिक्ष हमारे श्लोकों को सुनें।
Agni Dev is famous-recognised as the ambassador of the demigods-deities for performing-conducting Yagy. Let us remain aloof from crimes-sins, wickedness, vices while performing our jobs-actions day to day rituals. Let the sky-heaven, earth, water reservoirs-ocean etc., Sun and the constellations-stars listen-respond to our prayers.
शृण्वन्तु नो वृषण: पर्वतासो ध्रुवक्षेमास इळया मदन्तः।
आदित्यैनों अदितिः शृणोतु यच्छन्तु नो मरुतः शर्म भद्रम्
हे अभिमत फल सेचक मरुद्गण! धन की कामना को पूर्ण करने वाले निश्चल पर्वत हविरन्न से प्रसन्न होकर हमारी प्रार्थना सुनें। अदिति अपने पुत्रों के साथ हमारी प्रार्थना सुनें। मरुद गण  हमें कल्याणकर सुख दें।[ऋग्वेद 3.54.20]
वे मरुद्गण मनवांछित फलों की वर्षा करने वाले हैं। वे इच्छाओं का अभिष्ट पूर्ण करने वाले अचल पर्वत हवि युक्त अन्न से हर्ष प्राप्त कर हमारे श्लोकों पर ध्यान दो। अदिति अपने पुत्र देवताओं के साथ हमारी स्तुति सुनें और मरुदगण हमारा मंगल करने वाला धन प्रदान करें।
Let Marud Gan accomplishing our desires and granting riches listen-respond to our prayers, commit to our welfare & comforts, accepting our offerings of food grains. Let Aditi respond to our prayers along with her sons.
सदा सुगः पितुमाँ अस्तु पन्था मध्वा देवा ओषधीः सं पिपृक्त।
भगो मे अग्ने सख्ये न मृध्या उदायो अश्यां सदनं पुरुक्षोः
हे अग्नि देव! हमारा मार्ग सदा सुख से जानने योग्य तथा अन्नवान हो। हे देवताओं! मधुर जल से औषधियों को संसिक्त करें। हे अग्नि देव! आपसे मैत्री प्राप्त करने पर हमारा धन विनष्ट न हो। हम जिससे धन और प्रभूत अन्न के स्थान को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 3.54.21]
हे अग्नि देव! हमारा मार्ग आसान हो। हम अन्न यात्रा में सफलता ग्रहण करो। हे देवताओं! औषधियों को मृदुरस से पूर्ण कर दो। हे अग्निदेव! हम तुम्हारे मित्र हो गये हैं। अतः हमारे धन का पतन न हो। हम धन को रचित करने वाले अन्न को ग्रहण करें।
Hey Agni Dev! Make our way easy-clear, granting us food grains. Hey demigods-deities! Fill the medicines with sweet sap. Hey Agni Dev! Being friendly with you, ensure safety of our belongings. We should get-occupy the places rich in food grains and earning.  
स्वदस्व हव्या समिषो दिदीह्यस्मद्रय् १ क्सं मिमीहि श्रवांसि।
विश्वाँ अग्ने पृत्सु ताञ्जेषि शत्रूनहा विश्वा सुमना दीदिही नः
हे अग्नि देव! हवन योग्य हवि का आस्वादन कर हमारे अन्न को भली-भाँति प्रकाशित करें और उन अन्नों को हमारे अभिमुख करें। आप युद्ध में बाधा डालने वाले सभी शत्रुओं को जीतें और प्रफुल्लित मन वाले होकर आप हमारे सम्पूर्ण दिवसों को प्रकाशमय करें।[ऋग्वेद 3.54.22] 
हे अग्नि देव! इस यज्ञ योग्य हवि का स्वाद लो। हमारे लिए अन्न का प्रकाश करो। युद्ध करने वाले सभी विघ्न-बाधाओं, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें और प्रसन्न मन से हमारे सभी दिवसों को प्रकाशित करो।
Hey Agni Dev! Enjoy the offerings for this Yagy. Lit out food grains. Win all enemies and remove all obstacles, enjoy and make our days full of pleasure i.e., lit our days.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- विश्वामित्र, वाच्याप्रजापति, देवता :- विश्वेदेवाछन्द :- त्रिष्टुप्
उषसः पूर्वा अध यद्व्यूषुर्महद्वि जज्ञे अक्षरं पदे गोः।
व्रता देवानामुप नु प्रभूषन्महद्देवानामसुरत्वमेकम्
उदयकाल से प्राचीन उषा जब दग्ध होती है, तब अविनाशी सूर्य समुद्र से या आकाश में उदित होते हैं। सूर्य के उदित होने पर अग्निहोत्रादि के लिए तत्पर याजक गण कर्म करते हैं और शीघ्र ही देवताओं के समीप उपस्थित होते हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.1]
दग्ध :: दहन करना, अग्नि, दग्ध, दग्ध-क्षेत्र, दग्ध, भस्मीभूत, झुलसा हुआ, भुना हुआ; burnt out, burn, burnt, adust.
जब प्राचीन उषा उदयकाल के तेज से संतप्त होती है, तब आकाश से अमरत्व ग्रहण कर आदित्य उदय होते हैं। सूर्योदय होने पर यजमान अनुष्ठान कार्य करते हुए देवताओं की निकटता ग्रहण करते हैं। वे समस्त श्रेष्ठ देव तुल्य शक्ति से परिपूर्ण हैं।
The Sun rises in the sky, when ancient-old Usha is burnt. The Ritviz and performers of Yagy begin with the rituals presenting them selves in front of the demigods-deities. They possess the strength like the demigods-deities.
Usha-day break is for a very small interval of time. As the Sun rises its gone.
मो षू णो अत्र जुहुरन्त देवा मा पूर्वे अग्ने पितरः पदज्ञाः।
पुराण्योः सद्मनोः केतुरन्तर्महद्देवानामसुरत्वमेकम्
हे अग्नि देव! इस समय देवता हमें हिंसित न करें। देव पदवी को प्राप्त पुरातन पुरुष (पितर) हमें हिंसित न करें। यज्ञ के प्रज्ञापक, पुरातन द्यावा-पृथ्वी के बीच में उदित सूर्य हमें हिंसित न करे। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.2]
हे अग्नि देव! देवता हमारा विनाश न करें। देवत्व प्राप्त पूर्वज हमको न मारें। यज्ञ की प्रेरणा देने वाले सूर्य, आकाश और पृथ्वी के बीच उदित होते हैं, वे हमारी हिंसा न करें। उन समस्त देवों की श्रेष्ठ शक्ति एक ही है।
Hey Agni Dev! Do not let the demigods-deities & the Sun occupying position between the earth & the sky harm us, possessing great and unequalled might.
Hey Agni Dev! The demigods-deities, Pitrs-Manes and the Sun placed in between the heaven & earth should not torture-tease us. The strength-power of the demigods-deities is excellent. 
वि मे पुरुत्रा पतयन्ति कामाः शम्यच्छा दीद्ये पूर्व्याणि।
समिद्धे अग्नावृतमिद्वदेम महद्देवानामसुरत्वमेकम्
हे अग्नि देव! हमारी बहुत सी अभिलाषाएँ विविध दिशाओं में गमन करती है। अग्निष्टोमादि यज्ञ को लक्ष्य कर हम पुरातन स्तोत्र को दीप्त करते हैं। यज्ञार्थ अग्नि के दीप्त होने पर सत्य बोलेंगे। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.3]
 हे अग्नि देव! हमारी तरह-तरह की भिन्न-भिन्न अभिलाषायें विभिन्न दिशाओं में विचरण करती हैं। उन श्रेष्ठ से प्रकट हुए अग्नि के प्रति हम अपने प्राचीन श्लोकों को चैतन्य करते हैं। अग्नि से भली-भाँति प्रदीप्त होने पर श्लोक उच्चारण करें। सभी देवों का श्रेष्ठ पराक्रम एक ही है। 
Hey Agni Dev! Our desires-ambitions directs in all directions. We target-aim the Agnishtom & other Yagy and recite the ancient-eternal Strotr for it. We will recite the Shlok-hymns after the ignition of fire. The strength of demigods-deities is the same. 
By nature the mind is wavering-flickering. It travels in all directions. Good & bad, all sorts of desires plague it. The innerself has to be directed to the demigods-deities, the God-Almighty.
समानो राजा विभृतः पुरुत्रा शये शयासु प्रयुतो वनानु।
अन्या वत्सं भरति क्षेति माता महद्देवानामसुरत्वमेकम्
सर्वसाधारित के राजा दीप्यमान् अग्नि देव बहुत देशों में अग्नि होत्र के लिए स्थापित होते है। वे वेदी के ऊपर शयन करते हैं। अरणि-काष्ठ के ऊपर विभक्त होते हैं। द्यावा-पृथ्वी इनके माता-पिता हैं, उनमें अन्य अर्थात् द्युलोक इन्हें वृष्टि आदि के द्वारा पुष्ट करते हैं और अन्य माता वसुधा इन्हें केवल निवास देती है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.4]
हे प्रजा-स्वामी अग्नि देव! सभी स्थानों में यज्ञ कर्म के लिए स्थापित किये जाते हैं। वे वेदी पर रमण करते हैं। अरणियों से प्रकट होते हैं। इनके माता-पिता पृथ्वी और आकाश हैं। आकाश इनका वर्षा द्वारा पोषण करता है और पृथ्वी इनको आवास देती है। देवताओं का पराक्रम एक जैसा ही है।
The king of the populace, Agni Dev! Agni Dev is established in several countries-locations. He sleeps over the Vedi-Agni Kund. He appears out of the wood. The sky & the earth are his parents. The heavens nurture-nourish him for rains. Mother earth-Vasundhara provide him residence. The total-combined strength of the demigods-deities in one.
आक्षित्पूर्वास्वपरा अनूरुत्सद्यो जातासु तरुणीष्वन्तः।
अन्तर्वतीः सुवते अप्रवीतो महद्देवानामसुरत्वमेकम्
जीर्ण औषधियों में वर्त्तमान और नव्य औषधियों में गुणानुरूप से स्थित अग्नि या सूर्य सद्योजात, पल्लवित औषधियों के अभ्यन्तर में वर्तमान है। औषधियाँ बिना किसी पुरुष के रेतः संयोग से अग्नि के द्वारा गर्भवती होकर फल-पुष्प आदि को पैदा करती हैं। यह देवों का ऐश्वर्य है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.5]
प्राचीन औषधियों में रमे हुए और नई औषधियों में गुण के अनुरूप स्थित अग्नि देव सभी औषधियों के अन्तर में निवास करते हैं, वे औषधियाँ, बगैर वीर्यदान ग्रहण किये, अग्नि द्वारा गर्भवती हुई फल-पुष्पादि को रचित करने में समर्थ हैं। यह सब अग्नि देव की सामर्थ्य है। देवताओं का महान् बल एक ही है।
Agni Dev is present in old & new vegetation-herbs. The herbs-medicinal plants produce flowers & fruits without the combination of sperms just by the heat of fire-Agni Dev. This is due to the potential of Agni Dev. The demigods-deities possess great potential.
Its taught in botany that pollination occurs due to the insects, air, water or just by the shaking of plants. Hundreds of herbs and medicinal plants are seen producing flowers and fruits at places where there is no chance of the presence of insects.
शयुः परस्तादध नु द्विमाताबन्धनश्चरति वत्स एकः।
मित्रस्य ता वरुणस्य व्रतानि महद्देवानामसुरत्वमेकम्
दोनों लोकों के निर्माण कर्ता अथवा द्यावा-पृथ्वी रूप माता-पिता वाले सूर्य पश्चिम दिशा में अस्त वेला में शयन करते हैं, किन्तु उदय वेला में वे ही द्यावा- पृथ्वी के पुत्र सूर्य अप्रतिबद्ध गति होकर आकाश में अकेले चलते हैं। यह सकल कर्म मित्र और वरुण का है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.6]
सभी देवताओं में होते हुए सूर्य देव पश्चिम में विश्राम करते हैं। वे सूर्योदय काल में अकेले ही आसमान में निर्बाध गति से घूमते हैं। यह कर्म मित्र वरुण की प्रेरणा से होता है। वे दोनों समान पराक्रम वाले हैं। होतागण सुन्दर संकल्पों द्वारा महान श्लोकों का उच्चारण करते हैं। उन सभी देवताओं की वीरता एक जैसी है।
The Sun sets in the west in the evening and rise in the morning and travel alone in the sky, which is inspired by Mitr & Varun Dev. The power & might of demigods-deities is unique.
द्विमाता होता विदथेषु सम्राळन्वग्रं चरति क्षेति बुध्नः।
प्र रण्यानि रण्यवाचो भरन्ते महद्देवानामसुरत्वमेकम्
दोनों लोकों के निर्माता यज्ञ के होता तथा यज्ञ में भली-भाँति विराजमान अग्नि देव आकाश में सूर्य रूप से विचरण करते हैं। वे सब कर्मों के मूलभूत होकर भूमि में निवास करते हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.7]
वे अग्नि देव अम्बर-धरा रूप दोनों संसार के रचनाकार हैं। वे अनुष्ठान में भली प्रकार रमण करते हैं और क्षितिज में सूर्य से विचरते हैं। वे ही इस पृथ्वी पर निवास करते हुए सभी कार्यों के कारण रूप हैं।
Producer of both the abodes heaven-earth, Agni Dev roam-move in the form of Sun in the sky, present in the Yagy as the Ritviz-Hota. He is the root of every deeds and locate himself over the earth. The combined strength of the demigods-deities is one.
Demigods-deities, humans & all organism draw their strength from the God-Almighty.
शूरस्येव युध्यतो अन्तमस्य प्रतीचीनं ददृशे विश्वमायत्।
अन्तर्मतिश्चरति निष्षिधं गोर्महद्देवानामसुरत्वमेकम्
युद्ध करने वाले शूर व्यक्ति के सामने आने वाली शत्रु सेना जिस प्रकार से पराङ्मुख दिखाई पड़ती है, उसी प्रकार समीप में वर्तमान अग्नि देव के अभिमुख आने वाला भूतजात पराङ्मुख होता दिखाई पड़ता है। सभी के द्वारा ज्ञायमान अग्नि देव जल को हिंसित करने वाली दीप्ति को बीच में धारित करते हैं। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.8]
पराङ्‌मुख :: विमुख, विपरीत, विरुद्ध; adverse, opposite, reverse.
जिस तरह अधिक बलपूर्वक युद्ध करने वाले मनुष्य के सामने जो कोई आता है वह हार का मुख देखता है। उसी तरह अग्नि देव के सम्मुख जो भी आता है वह परागमुख दिखाई देता है। वे सर्वज्ञाता अग्नि देव सभी ओर उपस्थित हैं। उन देवताओं का एक ही उत्तम बल है।
The way the opposite army in front of the brave appears adverse, any one who confronts Agni Dev has to face defeat. Agni Dev is present every where possessing the glow, aura-radiance of water. The excellent might of demigods-deities is singular.
नि वेवेति पलितो दूत आस्वन्तर्महांश्चरति रोचनेन।
वपूंषि बिभ्रदभि नो वि चष्टे महद्देवानामसुरत्वमेकम्
पालक और देवों के दूत अग्नि देव औषधियों के बीच में अत्यन्त व्याप्त होकर वर्तमान हैं। वे सूर्य के साथ द्यावा-पृथ्वी के बीच में चलते है। नानाविध रूपों को धारित करते हुए वे हम लोगों को विशेष अनुग्रह दृष्टि से देखें। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.9]
जैसे सूर्य, आकाश और पृथ्वी के मध्य अपनी अत्यन्त सामर्थ्य से उपस्थित रहता है, वैसे ही देवताओं के सन्देह वाहक प्राणी मात्र का पोषण करने वाली अग्नि औषधियों में व्याप्त हैं। विविध रूपधारी हमको अत्यन्त कृपा दृष्टि से देखें। समस्त देवताओं की उत्तम शक्ति एक ही है।
Nurturer, ambassador of the demigods-deities is widely present in the medicinal plants-herbs. He moves with Sun between the sky and the earth. He possess various-different shapes-sizes obliging the humans. The demigods-deities posses great power.  
विष्णुर्गोपाः परमं पाति पाथः प्रियाधामान्यमृता दधानः।
अग्निष्टा विश्वा भुवनानि वेद महद्देवानामसुरत्वमेकम्
सर्वत्र व्याप्त सभी के रक्षक, प्रियतम और क्षय रहित तेज को धारित करने वाले अग्नि देव परम स्थान की रक्षा करते हैं अथवा लोक धारक जल को धारित करते हुए जल के स्थान अन्तरिक्ष की रक्षा करते हैं। अग्नि देव उन सम्पूर्ण भूतजात को जानते हैं। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.10]
सर्वव्यापक, सभी के पोषणकर्त्ता, हितैषी कभी क्षीण न होने वाले अग्नि देव तेज को धारण करते हुए धरती आदि सभी लोकों के रक्षक हैं। वह अग्नि देव सभी भूतों को जानते हैं। वे सभी देवों में अद्वितीय एक ही उत्तम शक्ति है।
Pervading all places, protector of all bearing immortal radiance Agni Dev protects the Ultimate abodes. He protects the space as well keeping water with him. Agni Dev is aware of all those who are gone now-deceased. There is only one great power possessed by the demigods-deities.
Shuk Dev Ji Maharaj, son of Bhagwan Ved Vyas went to Sury Lok, which indicate that the Sun in it self is a place-abode of demigods-deities or the humans having a bright protective layer-shield in the form of fire. Radio waves emerging out of the Sun have been recorded by the scientists.
नाना चक्राते यम्या३ वपूंषि तयोरन्यद्रोचते कृष्णमन्यत्।
श्यावी च यदरुषी च स्वसारौ महद्देवानामसुरत्वमेकम्
मिथुनभूत अहोरात्र नानाविध रूप धारित करते हैं। कृष्ण वर्णा तथा शुक्ल वर्णा जो दोनों बहनें हैं, उनके बीच में एक दीप्ति शालिनी है और दूसरी कृष्ण वर्णा है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.11]
साँवले रंग वाली रात्रि और तेजोमय उज्जवल उषा दोनों बहनें सूर्य से रचित होती हुई जाग्रति और निद्रा के सिद्धान्तों में जीवों को डालने वाली विविध रूपों से परिपर्ण हैं। उन दोनों में एक तेज से चमकती तथा दूसरी अंधकार से काली रहती है। इन समस्त देवों ने उन सूर्य रूप अग्नि की एक ही उत्तम शक्ति है।
Night and day break are two sisters, one is dark & the other is bright created by the Sun. The night leads to sleep and the Usha wake up the Humans & organisms. The energy of the demigods-deities is derived from the Sun & Agni.
Shakti the mother nature is the source of all power-energy in the universe. Dev Raj Indr, Pawan Dev, Varun Dev, Sury Bhagwan can not operate without her. She is first one to be created by the Almighty Krashn from HIS left. She is the one who hold the stars, constellation and the planets in their orbits. She controls the galaxies.
माता च यत्र दुहिता च धेनू सबर्दुघे धापयेते समीची।
ऋतस्य ते सदसीळे अन्तर्महद्देवानामसुरत्वमेकम्
माता पृथ्वी और दुहिता द्युलोक स्वरूप दोनों क्षीर दायिनी धेनु जिस अन्तरिक्ष में परस्पर सङ्गत होकर अपने रस को एक दूसरे को पान कराती हैं, जल के स्थान भूत उस अन्तरिक्ष के बीच में स्थित द्यावा-पृथ्वी को हम प्रार्थना करते हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.12]
धरती और आकाश दोनों ही जननी और पुत्री के समान हैं। धरती सभी जीवों को उत्पन्न कर उनका पालन-पोषण करने के कारण जननी और आकाश से वर्षा के जल को दूध के समान स्वीकार करने के कारण पुत्री रूप है। उसी प्रकार नभ, बादल, वर्षा आदि जीवों के पालनकर्त्ता होने से माता और धरती के जल को दूध के समान सींचकर पीने से पुत्री के समान हैं। यह दोनों ही गाय के समान अन्न, जल, रूप से दूध देने वाली हैं। उन गगन और पृथ्वी की हम वंदना करते हैं। यह दोनों देवगणों के एक ही उत्तम शक्ति द्वारा समर्थ हुई हैं।
The earth and the sky are the mother & daughter. They are complementary of each other. The earth produces all organism and nourish-nurture them like the mother and accept the rains like the milk from the sky like a daughter. They both grant food grains, water like milk of the cow. We worship the sky and the earth. The strength of the demigods-deities is one.
अन्यस्या वत्सं रिहती मिमाय कया भुवा नि दधे धेनुरूधः।
ऋतस्य सा पयसापिन्वतेळा महद्देवानामसुरत्वमेकम्
द्युलोक पृथ्वी के पुत्र अग्नि को उदक धारा रूप जिव्हा से चाटते हैं और मेघ द्वारा ध्वनि करते हैं। द्युरूपा धेनु को जल वर्जित करके अपने ऊध: प्रदेश को पुष्ट करती है।  वह जल वर्जित पृथ्वी सत्य भूत सूर्य के जल से वर्षा काल में सिक्त होती है। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.13]
 गाय के समान रस-वर्षा करने वाले अम्बर के जल को धरा बादल रूप धारण करती है। इस समय वह धरा के जल से रचित बादल को बछड़े के तुल्य चाटती हैं और विद्युत गर्जन के रूप से ध्वनि करती हुई भूमि को अन्न उत्पादक तथा पौष के वृष्टि जल से भली-प्रकार सींचती हैं। यह समस्त देवताओं की महान शक्ति का परिणाम है।
The cow-heaven lick the calf-Agni, the son of earth with their tongue and generate sound through the clouds and nourish-saturate the earth with rain water. The combined strength of the demigods-deities is one.
पद्या वस्ते पुरुरूपा वपूंष्यूर्ध्वा तस्थौ त्र्यविं रेरिहाणा।
ऋतस्य सद्म वि चरामि विद्वान्महद्देवानामसुरत्वमेकम्
पृथ्वी नाना प्रकार के शरीर को आच्छादित करती है। उन्नत होकर वे तीनों लोकों को व्याप्त करने वाले अथवा डेढ़ वर्ष की अवस्था वाले सूर्य को चाटती हुई अवस्थान करती हैं। सत्य भूत सूर्य के स्थान को जानते हुए हम उनकी परिचर्या करते हैं। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.14]
शरीर को अनेक प्रकार से आकाश और पृथ्वी ढकती है। उन्नत होकर त्रिलोकी को व्याप्त करने वाले सूर्य को चाटती हुई सी चलती है। सत्य के कारण भूत सूर्य के स्थान को जानकर हम उनकी वंदना करते हैं। देवगणों का उत्तम बल एक है।
The earth wears bodies of many forms :- shapes and sizes. She abides on high cherishing her year and a half old (calf); knowing the abode of the truth-Sun. We worship her. The great and unequalled might of the demigods-deities is unique.
The earth covers the body in several ways. On being elevated it lick-touches the Sun, pervades the three abodes (earth, heaven, nether world) & serve the truthful Sun. We worship them. The strength-might of the demigods-deities is one.
पदे इव निहिते दस्मे अन्तस्तयोरन्यद् गुह्यमाविरन्यत्।
सध्रीचीना पथ्या३ सा विषूची महद्देवानामसुरत्वमेकम्
पद द्वय के तुल्य दर्शनीय अहोरात्र द्यावा-पृथ्वी के बीच में स्थापित हैं। उनके बीच में एक गूढ़ और अन्य आविर्भूत है। अहोरात्र का आपस में मिलन पथ पुण्यकारी और अपुण्यकारी दोनों को ही प्राप्त होता है। देवताओं का महान बल एक है।[ऋग्वेद 3.55.15]
आविर्भूत :: उत्पन्न, अभिव्यक्त, प्रकटित, अवतीर्ण, सामने आया हुआ; emerged.
दो पैरों के समान विचरणशील दिन-रात, आकाश और पृथ्वी के बीच विद्यमान हैं। ये दोनों दिव्य हैं, एक अंधकार का और दूसरा उजाले का पतन करने वाली है। उन दोनों का मार्ग पापी और पुण्यकर्मा दोनों को ही ग्रहण होता है। देवों की एक ही श्रेष्ठ शक्ति है।
Like two distinguished impressions, the day and night are complementary and visible between heaven and earth, one hidden, one manifest; the path of both is common and that is universal for good-pious and evil-wicked boosted by the great and unequalled might of demigods-deities.
Like the two legs, day & night are present between the earth & the sky. They appear as one entity. The combination of these two is available for the pious and wicked as well. The strength of demigods-deities is excellent.
आ धेनवो धुनयन्तामशिश्वी: सबर्दुघाः शशया अप्रदुग्धाः।
नव्यानव्या युवतयो भवन्तीर्महद्देवानामसुरत्वमेकम्
तेजस्विता युक्त, अमृतमय दुग्ध का दोहन करने वाली, शिशुओं से रहित, तरुणी गौएं प्रतिदिन नवीनता को धारित करके अमृत रस प्रदान करती हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.16]
वर्षा करने के कारण सबकी प्रीति प्राप्त करने वाली, शिशु-विहीन, आकाश- व्यापिनी, सदैव नारी और नई स्वरूप वाली दिशाएँ कम्पायमान होती हैं। यह देवगणों की एक उत्तम सामर्थ्य का फल है।
Radiant young cows without progeny, yield milk like the nectar-elixir due to the capability-power of the demigods-deities.
यदन्यासु वृषभो रोरवीति सो अन्यस्मिन्यूथे नि दधाति रेतः।
स हि क्षपावान्त्स भगः स राजा महद्देवानामसुरत्वमेकम्
जल के वर्षक पर्जन्य रूप इन्द्र देव अन्य दिशाओं में मेघ द्वारा प्रभूत शब्द करते हैं। वे अन्य दिशा समूह में जल की वर्षा करते हैं। वे जल या शत्रु के क्षेपनवान हैं, सभी के द्वारा भजनीय हैं और सभी के राजा हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.17]
पर्जन्य :: गरजता तथा बरसता हुआ बादल, मेघ, इंद्र, विष्णु, कश्यप ऋषि के एक पुत्र जिसकी गिनती गंधर्वों में होती है; rattling clouds.
पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं, जो कि मेघों में निवास करते हैं। इनका मेघों पर नियंत्रण हैं। वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बरसता है। ये धरती के ताप को शान्त करते हैं और फिर से जीवन का संचार करते हैं। इनके बगैर धरती पर जीवन संभव नहीं।
वर्णशील मेघ, गौ के बीच स्थित वृषभ के समान, दिशाओं से शब्द करता हुआ जल वर्षा करता है। इन्द्र ही उसे इस कार्य में प्रेरित करते हैं। वे इन्द्र सबके द्वारा आराधना करने योग्य हैं और सबके दाता हैं।
Indr dev in the form of clouds make rattling sounds in all directions leading to rains. He is king & revered-honoured by all. The power of demigods-deities is one.
वीरस्य नु स्वश्वयं जनासः प्र नु वोचाम विदुरस्य देवाः।
षोळ्हा युक्ता पञ्चपञ्चावहन्ति महद्देवानामसुरत्वमेकम्
हे जनो! शूर इन्द्र देव के शोभन अश्वों का हम शीघ्र ही प्रभूत वर्णन करते हैं। देवता भी इनके अश्वों को जानते हैं। दो-दो मासों को मिलाने पर छः ऋतुएँ होती हैं, फिर हेमन्त और शिशिर को मिला देने पर पाँच ही ऋतुएँ होती हैं। ये ही इनके अश्व है। ये कालात्मक इन्द्र देव का वहन करती हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.18]
हे मनुष्यों! हम इन्द्रदेव को सुशोभित अश्वों को उत्तम वर्णन करते हैं। देवगण उन इन्द्रदेव के अश्वों को जानते हैं। दो-दो माह को मिश्रित करके साल में छह ऋतुएँ होती हैं। हेमन्त और शिशिर को एक कर देने पर पाँच ऋतुएँ मानी जाती हैं। यह इन्द्रदेव के अश्व रूप ऋतुएँ सूर्य व इन्द्रदेव का यज्ञ करती हैं। देवताओं का श्रेष्ठ सामर्थ्य एक जैसा है।
Hey humans!  Let us describe the beautiful horses of brave Indr Dev. The demigods-deities too recognise-know these horses. Taking two months at a time, there are 6 seasons. If we count Hemant & Shishir together (winters), number of seasons become 5. These seasons constitute the horses of Indr Dev. These seasons perform the Yagy of Sun & Indr Dev. This constitute the combined power of the demigods-deities. 
देवस्त्वष्टा सविता विश्वरूपः पुपोष प्रजाः पुरुधा जजान।
इमा च विश्वा भुवनान्यस्य महद्देवानामसुरत्वमेकम्
अन्तर्यामी होने के कारण सभी के प्रेरक, नानाविध रूप विशिष्ट त्वष्टा देव बहुत प्रकार से प्रजाओं की उत्पत्ति करते हुए उनका पोषण करते हैं। ये सम्पूर्ण भुवन त्वष्टा के हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.19]
त्वष्टादेव अन्तर्यामी होने से सबकी प्राप्ति कराने वाले हैं। वे अनेक रूप वाली प्रजाओं को रचित करने वाले हैं तथा यही उनका पालन पोषण करते हैं। यह समस्त संसार त्वष्टा का ही है। देवताओं की महान शक्ति एक जैसी है।
Possessing intuition Twasta inspire all, create & nourish-nurture several types-kinds of populace through various means assuming various forms, shapes, sizes. All abodes in the universe belong to Twasta. The power of the demigods-deities is one.
मही समैरचम्वा समीची उभे ते अस्य वसुना न्यृष्टे।
शृण्वे वीरो विन्दमानो वसूनि महद्देवानामसुरत्वमेकम्
इन्द्र देव ने महती और परस्पर संगत द्यावा पृथ्वी को पशु-पक्षियों से व्याप्त किया। वह द्यावा-पृथ्वी इन्द्र देव के तेज से अतिशय व्याप्त है। समर्थ इन्द्र देव शत्रुओं को हरा कर उनके धन को ग्रहण करने में विख्यात है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.20]
इन्द्र देव ने ही इस महत्तावान आकाश और धरती को सुसंगत कर, पशु-पक्षियों को प्रकट करने वाली बनाया। वे आकाश और धरती दोनों ही इन्द्र के तेज से व्याप्त हैं।
Indr Dev coordinated-linked the vast sky and the earth together and made them suitable for the survival-living of animals & birds. The energy-power of Indr Dev pervades the sky & earth. Indr Dev defeat the enemy and possess their wealth. The might-power of the demigods-deities is one.
इमां च नः पृथिवीं विश्वधाया उप क्षेति हितमित्रो न राजा।
पुरः सदः शर्मसदो न वीरा महद्देवानामसुरत्वमेकम्
विश्वघाता और हम लोगों के राजा इन्द्र देव इस पृथ्वी और अन्तरिक्ष में हितकारी मित्र के तुल्य निवास करते हैं। वीर मरुद्गण युद्ध के लिए इन्द्र देव के आगे जाते हैं। वे इनके घर में निवास करते हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.21] 
संसार को धारण करने वाले, हमारी पृथ्वी और आकाश के भी स्वामी, हित चिंतक साथियों से परिपूर्ण इन्द्र देव अपने आप तेजस्वी हुए प्राणधारियों का पोषण करते हैं। मरुद्गण संग्राम का अवसर ग्रहण होने पर इन्द्र देव के आगे-आगे चलते हैं और अद्भुत स्थानों पर वास करते हैं। देवों की महान सामर्थ्य एक जैसी है। 
The supporter of the universe, master of our earth & the sky, will wisher of all, lives in the space-heavens like our friend. Brave Marud Gan moves ahead-forward of Indr Dev and occupy amazing place like home. The strength of the demigods-deities is one.
निष्षिध्वरीस्त ओषधीरुतापो रयिं त इन्द्र पृथिवी बिभर्ति।
सखायस्ते वामभाजः स्याम महद्देवानामसुरत्वमेकम्
हे पर्जन्यात्मक इन्द्रदेव! औषधियों ने आपसे सिद्धि पाई हैं, जल आपसे ही निःसृत हुआ है और पृथ्वी आपके भोग के लिए धन को धारित करती है। हम लोग भी आपके धन के भागी हो सकें। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.22] 
हे इन्द्र देव! यह धरती व्याधि-नाशिनी दवाइयों को पुष्ट करती है। जल धाराएँ भी तुम्हारे मित्र उत्तम यश को प्राप्त कर उनका भोग करने में सक्षम हों। देवगणों की महान शक्ति एक ही है।
Hey cloud forming Indr Dev! The herbal Ayurvedic medicines have attained saturation due to you. You create-generate the water streams-rivers etc. The earth possess wealth, to be used-consumed by you. The power of the demigods-deities is one.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- विश्वामित्र, वाच्याप्रजापति, देवता :- विश्वेदेवाछन्द :- त्रिष्टुप्
न ता मिनन्ति मायिनो न धीरा व्रता देवानां प्रथमा ध्रुवाणि।
 न रोदसी अद्रुहा वेद्याभिर्न पर्वता निनमे तस्थिवांसः
मायावी गण देवों की सृष्टि के अनन्तर होने वाले स्थिर और प्रसिद्ध कर्मों को हिंसित न करें, विद्वान लोग भी न करें। अचल पर्वतों को कोई झुका नहीं सकता।[ऋग्वेद 3.56.1]
देवों की पुष्टि से रचित होने वाले मायावी असुर महान कार्यों की हिंसा न करें। विद्वान भी उत्तम कार्यों को न छोड़ें। अम्बर-धरा भी प्रजाओं के साथ बाधा रहित रहें। अविचल पर्वतों को कोई झुका नहीं सकता।
Neither the elusive demons should interfere with the great endeavours of the demigods-deities after evolution nor the enlightened discard the appreciable-excellent deeds. The fixed mountains can not be tilted by any one.
षड्भाराँ एको अचरन्बिभर्वृतं वर्षिष्ठमुप गाव आगुः।
तिस्रो महीरुपरास्तस्थुरत्या गुहा द्वे निहिते दयेका
एक स्थायी संवत्सर वसन्त आदि छः ऋतुओं को धारित करता है। सत्य भूत और प्रवृद्ध आदित्यात्मक संवत्सर को रश्मियाँ प्राप्त करती हैं। चञ्चल लोकत्रय ऊपर-ऊपर अवस्थित हैं। स्वर्ग और अन्तरिक्ष गुहा में निहित हैं; मात्र एक पृथ्वी लोक ही प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है।[ऋग्वेद 3.56.2]
एक संवत्सर वसंतादि की रश्मियाँ प्राप्त होती हैं। तीनों लोक ऊपर ही स्थित हैं। स्वर्ग और अंतरिक्ष गुफा में स्थित हैं। केवल धरती ही दिखाई देती है।
A solar year constitutes of 6 seasons including spring. The rays of Sun spread through out that period. The quick-fast moving three abodes are located over the upper side-layer while the heaven and space are hidden inside a cave. Only the earth is visible.
त्रिपाजस्यो वृषभो विश्वरूप उत त्र्युधा पुरुध प्रजावान्।
त्र्यनीकः पत्यते माहिनावान्त्स रेतोधा वृषभः शश्वतीनाम्
तीन प्रकार के बलों से युक्त वीर, अनेक रूपों से युक्त, द्युलोक, अन्तरिक्ष और पृथ्वी से युक्त, अनेक रंगों से युक्त प्रज्ञावान्, तीनों लोकों में स्थित शक्ति रूपी, तीनों सेनाओं से युक्त, सूर्य देव का उदय होता है। वे अपनी किरणों द्वारा सम्पूर्ण औषधियों में प्राण ऊर्जा का संचार करते हैं।[ऋग्वेद 3.56.3]
ग्रीष्म, वृष्टि, हेमन्त ऋतुओं से परिपूर्ण जल की वृष्टि करने में समर्थ, त्रिलोकों को स्तन के तुल्य रस का दान करने वाले, प्रजा परिपूर्ण, ग्रीष्म, वर्षा, शीत गुण वाले महत्त्ववान संवत्सर प्राण शक्ति से परिपूर्ण हैं। यह संवत्सर जल धारण करके धरा को सीचने में समर्थवान हैं।
The Sun rises associated with three types of forces, possessing several forms, accompanied by the three abodes :- heaven, earth and the space, intelligent having several colours (VIBGYOR, violet, indigo, blue, green, yellow, orange, red. In addition to these several shades are observed). The Sun light provide energy to the herbal medicines.
अभीक आसां पदवीरबोध्यादित्यानामह्वे चारु नाम।
आपश्चिदस्मा अरमन्त देवी: पृथग्व्रजन्तीः परि षीमवृञ्जन्
संवत्सर इन सकल औषधियों (जड़ी-बूटियाँ, आयुवैदिक औषधियाँ) के समीप उनके पद स्वरूप जागृत हुआ है। मैं आदित्यों (चैत्रादि मासों) का मनोहर नाम उच्चारण करता हूँ। द्युतिमान् और स्वतन्त्र पथ द्वारा जाने वाला जल-समूह इस संवत्सर को चार महीनों तक वृष्टि द्वारा तृप्त करता है और आठ महीनों तक परित्याग कर देता है।[ऋग्वेद 3.56.4]
इन सभी औषधियों के पास उनके पद रूप से संवत्सर चैतन्य होता है। मैं उन आदित्यों के सुन्दर नामों को जानता हूँ। इस संवत्सर से स्वतंत्र मार्गगामी जल संगठन चार माह तक सुसंगति करता और आठ माह के लिए नियुक्त रहता है। 
The solar year becomes conscious due to all these herbal medicines. I recite the names of the Sun-Adity (12 Adity, 12 months). The earth observes rains for 4 months and the remaining 8 months release the rain waters into the atmosphere (through evaporation etc.)
त्री षधस्था सिन्धवस्त्रिः कवीनामुत त्रिमाता विदथेषु सम्राट्। ऋतावरीर्योषणास्तिस्रो अप्यास्त्रिरा दिवो विदथे पत्यमानाः
हे नदियों! त्रिगुणित त्रिसंख्यक स्थान देवों का निवास स्थान है। तीनों लोकों के निर्माता, संवत्सर या सूर्य यज्ञ के सम्राट है। जलवती अन्तरिक्ष चारिणी इला, सरस्वती और भारती नामक तीन योषित यज्ञ के तीनों सवनों में पधारें।[ऋग्वेद 3.56.5]
हे नदियों! त्रिगुणात्मक और त्रिसंख्यक संसार में देवता वास करते हैं। संसार-त्रय के रचनाकार सूर्य अनुष्ठान के भी स्वामी हैं। अंतरिक्ष से चलने वाली जलवती इला, सरस्वती और भारती अनुष्ठान के तीनों सवनों में रहें।
Hey divine rivers! The universe having the three abodes heaven, earth sky/nether world & the three characterices constitute the abode of the demigods-deities. The creator of the solar year-Sun and the three abodes is the master of the Yagy. Let the pious-divine rivers :-  Ila, Saraswati and Bharti which originate in the heaven be present in the three segments of the day, while the Yagy is conducted. 
त्रिरा दिवः सवितर्वार्याणि दिवेदिव आ सुव त्रिर्नो अह्नः।
त्रिधातु राय आ सुवा वसूनि भग त्रातर्धिषणे सातये धाः
हे सभी के प्रेरक आदित्यदेव! द्युलोक (स्वर्ग) से आकर प्रतिदिन तीन बार श्रेष्ठ धन हम लोगों को प्रदत्त करें। हम लोगों के रक्षक हे सूर्य देव! हम लोगों को दिन के बीच में तीन बार अर्थात तीनों सवनों में पशु, सुवर्ण, रत्न और गोधन प्रदत्त करें। हे बुद्धिमान! हम लोगों को जिससे धन लाभ हो, वैसा ही करें।[ऋग्वेद 3.56.6]
हे सूर्य! तुम सबको शक्ति देते हो। प्रतिदिन तीनों सवनों में नभ में आकर हमको प्राप्त होते हुए सुन्दर उपभोग्य धन प्रदान करो। तुम हमारे पालनकर्त्ता हो, हमें दिन के तीनों सवनों में पशु, स्वर्ग, रत्न और गायादि धन प्रदान करो।
Hey inspirer of all Sury Narayan-Adity! Grant us riches-wealth, cattle, gold, gems & jewels and the cows, thrice a day, in the three segments of the day. Our protector Bhagwan Sury Narayan! Act the way-manner in which we gain money, riches, wealth.
त्रिरा दिवः सविता सोषवीति राजाना मित्रावरुणा सुपाणी।
आपश्चिदस्य रोदसी चिदुर्वी रत्नं भिक्षन्त सवितुः सवाय
सविता देव दिन में तीन बार हम लोगों को धन प्रदान करें। कल्याणकारी हाथों से युक्त, राजा, मित्रा-वरुण, द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष आदि देवता सविता देव की वदान्यता से अपेक्षित अर्थ की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 3.56.7]
हे मेधावी सूर्य! जिस तरीके से हमको धन लाभ हो सके, वही उपाय करो। वे सविता देव सवन में तीन बार हमको समृद्धि प्रदान करें। कल्याण रूप हाथ वाले राजा, सखा और अम्बर, वरुण और धरा तथा अंतरिक्ष आदि देवता सविता देव से समृद्धि की विनती करें। 
Let intelligent Savita Dev-Sun grant us wealth thrice, during the three segments of the day (morning, noon, evening). We pray-request to Mitra-Varun, heaven & the earth, our benefactors to grant us wealth, riches, prosperity.
त्रिरुत्तमा दूणशा रोचनानि त्रयो राजन्त्यसुरस्य वीराः।
ऋतावान इषिरा दूळभासस्त्रिरा दिवो विदथे सन्तु देवाः
विनाश रहित और द्युतिमान तीन उत्तम स्थान हैं। इन तीनों स्थानों में कालात्मक संवत्सर के अग्नि देव, वायु और सूर्य नामक पुत्र शोभायमान होते हैं। यज्ञवान्, शीघ्रगामी और अतिरस्कृत देव गण दिन में तीन बार हमारे यज्ञ में आगमन करें।[ऋग्वेद 3.56.8]
सर्व विजेता प्रकाशवान, अविनाशी ये तीन उत्तम स्थान हैं। इन तीनों में अग्नि, पवन और सूर्य शोभित होते हैं। यज्ञ से युक्त तिरस्कृत न किये जाने वाले द्रुतगामी देवता तीनों सवनों में हमारे यज्ञ के अनुष्ठान में विराजें।
The three imperishable, radiant, excellent abodes are occupied by Agni Dev, Vayu-Pawan Dev and the Sun. Let the accelerated, dynamic demigods-deities invoke in our Yagy thrice, three segments of the day.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- विश्वेदेवाछन्द :- त्रिष्टुप्
प्र मे विविक्वाँ अविदन्मनीषां धेनुं चरन्तीं प्रयुतामगोपाम्।
सद्यश्चिद्या दुदुहे भूरि धासेरिन्द्रस्तदग्निः पनितारो अस्याः
हे विवेकवान इन्द्र देव! मेरी देवता विषयक प्रार्थना को इतस्ततः विहारिणी, एकाकिनी और रक्षक विहीना धेनु (गाय) के तुल्य अवगत करें। जिस स्तुति रूपा धेनु से तत्क्षण बहुत अपेक्षित फल दोहन किया जाता है, इन्द्र और अग्नि उस धेनु की प्रशंसा को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 3.57.1]
हे बुद्धिमान इन्द्र देव! अकेले विहार करने वाली, रक्षक को पृथक धेनु के लिए हमको ग्रहण करें। जिस वंदना रूप से अभिलाषित फल दोहन की कामना की जाती है, उस प्रार्थना को इन्द्र देव और अग्नि देव दोनों ही ग्रहण करें।
Hey wise-prudent Indr Dev! Accept my prayers devoted to the demigods-deities for the cow who roams alone without the protector. Let the prayer in the form of cow granting boons immediately, be appreciate & accepted by Indr dev & Agni Dev.
इन्द्रः सु पूषा वृषणा सुहस्ता दिवो न प्रीताः शशयं दुदुह्रे
विश्वे यदस्यां रणयन्त देवाः प्रवोऽत्र वसवः सुम्नमश्याम्
इन्द्र देव, पूषा एवं अभीष्टवर्षी कल्याणपाणि मित्रा-वरुण प्रीत होकर सम्प्रति अन्तरिक्षशायी मेघ का अन्तरिक्ष से दोहन करते हैं। हे निवास प्रद विश्वदेव गण! आप सब इस वेदि पर विहार करें, जिससे हम लोगों को आपके द्वारा प्रदत्त सुख प्राप्त हो।[ऋग्वेद 3.57.2]
इन्द्रदेव पूषा और इच्छा वृष्टि करने वाले मंगलहस्त सखा-वरुण अंतरिक्ष में विश्राम करने वाले बादल को अंतरिक्ष से दुहते हैं हे विश्वेदेवों! तुम महान निवास करने वाले हो। इस अनुष्ठान वेदी पर रमण करो जिससे हम तुम्हारे द्वारा दिये गये सुख को ग्रहण कर सकें।
Indr Dev, Pusha & Mitra-Varun granting boons with their hands, fulfil desires and extract the clouds in the space-sky.  Hey Vishw Dev granting homes! Occupy this Yagy Vedi-seat so that we can enjoy the comforts-luxuries granted by you.
या जामयो वृष्ण इच्छन्ति शक्तिं नमस्यन्तीर्जानते गर्भमस्मिन्।
अच्छा पुत्रं धेनवो वावशाना महश्चरन्ति बिभ्रतं वपूंषि
जो वनस्पतियाँ जल वर्षक इन्द्र देव की शक्ति की वाञ्छा करती हैं, वे औषधियाँ नम्र होकर इन्द्र देव की गर्भाधान-शक्ति को जानती हैं। फलाभिलाषिणी, सबकी प्रीणयित्री औषधियाँ नाना रूपधारी व्रीहि, यव, नीवारादि शल्य स्वरूप पुत्र के अभिमुख विचरण करती हैं।[ऋग्वेद 3.57.3]
जल वर्षक इन्द्रदेव के बल की इच्छा करने वाली औषधियाँ नम्र होकर इन्द्र देव की गर्भाधान करने वाली क्षमता का ज्ञान ग्रहण करती हैं। फल की अभिलाषा करने वाली औषधियाँ गाय आदि पशुओं के अभिमुख होती हैं।
The plural plants that wish the showerer Indr, the power to cause rains appreciate, when manifest, the embryo blossom deposited in him, the kine desirous of reward come to the presence of the calf, invested with many forms.
The medicinal herbs aware of the power of Indr Dev to produce-cause rains, seek his help to produce-grow. The medicinal herbs desirous of rewards are admired by the cows and the cattle-animals. 
अच्छा विवक्मि रोदसी सुमेके ग्राव्णो युजानो अध्वरे मनीषा।
इमा उ ते मनवे भूरिवारा ऊर्ध्वा भवन्ति दर्शता यजत्राः
यज्ञ में प्रस्तर धारित करके हम सुन्दर रूप विशिष्ट द्यावा-पृथ्वी की स्तुति-लक्षण वचन द्वारा प्रार्थना करते हैं। हे अग्नि देव! आपकी अतिशय वरणीय, कमनीय और पूज्य दीप्तियाँ मनुष्यों के लिए ऊर्ध्वगामी हो।[ऋग्वेद 3.57.4]
अनुष्ठान में सोम अभिषव करने वाले पाषाण के धारण करते हुए हम अम्बर-धरा की मधुर वाणी वंदना करती हैं! हे अग्निदेव! तुम्हारी वरण करने योग्य, पूजनीय एवं रमणीय प्रदीप्तियाँ मनुष्य के सम्मुख ऊपर उठती हैं।
We pray to the sky & earth in sweet voice having the stones for crushing Somvalli. Hey Agni Dev! Let the nice-decent prayers devoted to you, rise up vertically over the humans.
या ते जिह्वा मधुमती सुमेधा अग्ने देवेषूच्यत उरूची।
तयेह विश्वाँ अवसे यजत्राना सादय पायया चा मधूनि
हे अग्नि देव! आपकी जो मधुमती और प्रज्ञा शालिनी ज्वाला अत्यन्त व्याप्ति विशिष्ट होकर देवों के बीच में आह्वानार्थ प्रेरित होती है, उस जिह्वा से यजनीय देवों को हमारी रक्षा के लिए, इस कर्म में प्रतिष्ठित करें और उन देवों को हर्ष पूर्वक सोमपान करावें।[ऋग्वेद 3.57.5]
हे अग्नि देव! तुम्हारी ज्वाला रूप जिह्वा अत्यन्त रसवान, मधुवान और प्रज्ञावान हुई देवगणों के लिए है। अपनी उस जिह्वा के पूजन करने योग्य देवताओं को इस यज्ञ कर्म में हमारी रक्षा के लिए आमंत्रित करो और उन देवताओं को सोमपान कराकर आनन्दित करो।
Hey Agni Dev! Your flames granting pleasure and wisdom rising up, spread widely, inspire-invite the demigods-deities. Invite the demigods with your tongue-flame in the Yagy for our safety-protection, please-serve them Somras & honour them, happily.
या ते अग्ने पर्वतस्येव धारासश्चन्ती पीपयद्देव चित्रा।
तामस्मभ्यं प्रमतिं जातवेदो वसो रास्व सुमतिं विश्वजन्याम्
हे द्युतिमान् अग्नि देव! नाना रूपा और हम लोगों को छोड़कर अन्यत्र न जाने वाली आपकी जो अनुग्रह बुद्धि है, वह हम लोगों को अपेक्षित फल प्रदान द्वारा वर्द्धित करे, जिस प्रकार से मेघ की धारा वनस्पतियों को वर्द्धित करती है। हे निवास प्रद जात वेदा! हम लोगों को ऐसी अनुग्रह बुद्धि प्रदान करें और सर्वजन हितकारिणी शोभन बुद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.57.6] 
जातवेद :: अग्नि, चित्रक वृक्ष, चीते का पेड़, अंतर्यामी, परमेश्वर, सूर्य;  fire, Chitrak tree, God, omniscient.
हे तेजस्वी अग्नि देव! हमको छोड़कर अन्य किसी के पास जाने वाली विविध रुपिणी तुम्हारी कृपा पूर्ण बुद्धि हमको अभिलाषित फल प्रदान करती हुई बढ़ावें, उस तरह जैसे बादल जल द्वारा वनस्पतियों की वृद्धि करता है। तुम स्वयं मतिवान एवं आश्रयदाता हो। हमको वही कृपापूर्ण मति प्रदान करो तथा सभी को कल्याण करने वाली मति से सुशोभित करो।
Hey radiant-lustrous Agni Dev! The way-manner in which the rains nourish-grow the vegetation, grant us the desires boons. Hey omniscient Agni Dev! You are brilliant and and protector. Grant the thinking, thoughts, ideas to us for the welfare of all.
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- वामदेव, गौतम, देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप्, गायत्री
को वस्त्राता वसवः को वरूता द्यावाभूमी अदिते त्रासीथां नः।
सहीयसो वरुण मित्र मर्तात्को वोऽध्वरे वरिवो धाति देवाः 
हे वसुओं! आप लोगों के बीच में कौन रक्षक है? कौन दुःखों का निवारक है? हे अखण्डनीया द्यावा-पृथ्वी! हम लोगों की रक्षा करें। हे वरुण, हे मित्र! आप दोनों बलशाली मनुष्यों से हम लोगों की रक्षा करें। हे देवो! यज्ञ में आप लोगों के बीच में कौन देव धन प्रदान करता है?[ऋग्वेद 4.55.1]
Hey Vasus! Who amongest you is a protector? Who removes pain-sorrow? Hey inseparable earth & heavens! Protect us. Hey Varun, Hey Mitr! Both of you protect us from the powerful-mighty humans. Hey demigods-deities! Who from amongest you, provide money for the Yagy?
प्र ये धामानि पूर्व्याण्यर्चान्वि यदुच्छान्वियोतारो अमूराः।
विधाता वि ते दघुरजस्त्रा ऋतधीतयो रुरुचन्त दस्माः
जो देव स्तोताओं को पुरातन स्थान प्रदान करते हैं, जो दुःखों के अमिश्रयिता है, जो है अमूढ़ हैं और जो अन्धकार को विनष्ट करते हैं, वही देव विधाता है और नित्य अभीष्ट फल प्रदान करते हैं। वे सत्य कर्म विशिष्ट और दर्शनीय होकर शोभा पाते हैं।[ऋग्वेद 4.55.2]
अमूढ़ :: चतुर, विद्वान; apt, brilliant, clever, brainy, smart.
The demigods-deities) who bestow ancient-eternal enjoyment to the worshippers with unperplexed minds, are the separators of light from darkness; they distribute desired rewards are truthful and shine.
Those Dev Gan, who grant eternal locations, remove worries, pain, sorrow, are smart, removes darkness constitute the Daev-Brahm and always grant desired rewards. They are truthful and aurous.
प्र पस्त्या ३ मदितिं सिन्धुमर्के: स्वस्तिमीळे सख्याय देवीम्।
उभे यथा नो अहनी निपात उषासानक्ता करतामदब्धे
सभी के द्वारा गन्तव्य देवमाता अदिति, सिन्धु और स्वस्ति देवी की हम मन्त्र द्वारा मित्रता के लिए प्रार्थना करते हैं, जिससे द्यावा-पृथ्वी हम लोगों का विशेष रूप से पालन करें, उसी के लिए प्रार्थना करते हैं। उषा और अहोरात्राभिमानी देव हम लोगों की कामनाओं को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 4.55.3]
मैं पूज्य अदिति, सिंधु और दिव्य स्वस्ति को उनकी मित्रता के लिए प्रणाम करता हूँ, मैं आपकी स्तुति करता हूँ। दिन और रात दोनों की आप हमारी बेरोक-टोक रक्षा कर सकते हैं; रात और भोर करते हैं, जो हम चाहते हैं।
We request, pray-worship for friendship with Dev Mata Aditi, Sindhu, Swasti Devi by the recitation of Mantr; so that heaven & earth take special care of us. Let demigods-deities protect and accomplish our desires during Usha and the Ahoratr (whole day). 
व्यर्यमा वरुणश्चेति पन्थामिषस्पतिः सुवितं गातुमग्निः।
इन्द्राविष्णू नृवदु षु स्तवाना शर्म नो यन्तममवद्वरूथम्
अर्यमा और वरुण देव ने यज्ञ मार्ग को प्रकाशित कर दिया। हविर्लक्षण अन्न के पति अग्नि देव ने सुख प्रद मार्ग दिखा दिया। इन्द्र देव और श्री विष्णु सुन्दर रूप से प्रार्थित होकर हम लोगों को पुत्र-पौत्रादि से युक्त कर बल युक्त रमणीय सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.54.4]
Aryma & Varun Dev illuminated the way to the Yagy. Acceptor of offerings Agni Dev guided-showed the comfortable route. Let Indr Dev & Bhagwan Shri Hari Vishnu grant us sons & grandsons with pleasing comforts along with might.
आ पर्वतस्य मरुतामवांसि देवस्य त्रातुरव्रि भगस्य।
पात्पतिर्जन्यादंहसो नो मित्रो मित्रियादुत न उरुष्येत्
इन्द्र देव के मित्र पर्वत, मरुद्गण तथा भगदेव से हम रक्षा की याचना करते हैं। स्वामी वरुणदेव जन-सम्बन्धियों के पाप से हमारी रक्षा करें और मित्रदेव मित्रभाव से हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 4.55.5]
We request Parwat, the friend of Indr Dev, Marud Gan & Bhag Dev for our protection. Let Varun Dev protect us from the sins of our relations and Mitr Dev protect us like a friend.
नू रोदसी अहिना बुध्न्येन स्तुवीत देवी अप्येभिरिष्टैः।
समुद्रं न संचरणे सनिष्यवो धर्मस्वरसो नद्यो ३ अप व्रन्
हे द्यावा-पृथ्वी रूप देवी द्वय! जिस प्रकार धनाभिलाषी मनुष्य समुद्र के बीच में जाने के लिए समुद्र की स्तुति करता है, उसी प्रकार हम भी अभिलषित कार्यलाभ के लिए अहिबुध्न्य नामक देवता के साथ आप दोनों की स्तुति करते हैं। वे देवगण दीप्त ध्वनि युक्त नदियों को मुक्त करें।[ऋग्वेद 4.55.6]
Hey heaven & earth goddess duo! We pray-worship both of you & demigod Ahibudhany, like a person desirous of gems-jewels worshiping the ocean. Let the demigods-deities release the rivers possessing-making sound.
देवैर्नो देव्यदितिर्नि पातु देवस्त्राता त्रायतामप्रयुच्छन्।
नहि मित्रस्य वरुणस्य धासिमर्हामसि प्रमियं सान्वग्नेः
देवमाता अदिति अन्य देवों के साथ हम लोगों का पालन करें। त्राता इन्द्र देव प्रमादित होकर हम लोगों का पालन करें। मित्र, वरुण और अग्नि देव के सोमादिरूप पोषक अन्न की हम लोग हिंसा नहीं कर सकते। किन्तु अनुष्ठानों के द्वारा संवर्धित कर सकते हैं।[ऋग्वेद 4.55.7]
त्राता :: रक्षक; saviour.
Let Dev Mata Aditi nurture-support us like the other demigods-deities. Saviour Indr Dev nurture-nourish us. We can not destroy-spoil the nourishing food grains like Som, belonging to Mitr, Varun & Agni Dev. Instead, we can boost-promote them by virtue of Yagy-Hawan etc.
अग्निरीशे वसव्यस्याग्निर्महः सौभगस्य। तान्यस्मभ्यं रासते॥
अग्नि देव धन के ईश्वर हैं और महान् सौभाग्य के ईश्वर हैं; इसलिए वे हम लोगों को धन और सौभाग्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.55.8]
Agni dev is the God of wealth-prosperity and good luck, hence he should grant us wealth and good luck.
उषो मघोन्या वह सूनृते वार्या पुरु। अस्मभ्यं वाजिनीवति
हे धनवती, हे प्रिय सत्य रूप वचन की अभिमानिनी और हे अन्न वती उषा! हम लोगों को आप अत्यधिक रमणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 4.55.9]
Hey possessor of wealth & food grains truthful Usha! Grant us pleasing-graceful wealth.
तत्सु नः सविता भगो वरुणो मित्रो अर्यमा। इन्द्रो नो राधसा गमत्
जिस ऐश्वर्य के साथ सविता, भग, वरुण, मित्र, अर्यमा और इन्द्र देव आगमन करते हैं, उस ऐश्वर्य को वे सब देवगण हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 4.55.10]
Let the demigods Savita, Bhag, Varun, Mitr, Aryma and Indr Dev who arrive with the grandeur, grant-provide it to us.(07.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- विश्वेदेवछन्द :- त्रिष्टुपादि।
को नु वां मित्रावरुणावृतायन्दिवो वा महः पार्थिवस्य वा दे।
ऋतस्य वा सदसि त्रासीथां नो यज्ञायते वा पशुषो न वाजान्
हे मित्र-वरुण देव! आप दोनों का यज्ञ करने की इच्छा करने में कौन याजक समर्थ हो सकता है? आप दोनों स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष के किस स्थान में रहकर हम लोगों की रक्षा करते हैं और हव्यदाता याजकगण को पशु तथा धन से युक्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.41.1]
Hey Mitr & Varun Dev! Who amongest the hosts-Ritviz is capable of conducting Yagy for your sake? Which of the abodes :- heavens, earth or the space, is there from where you reside & protect us? You grant animals and wealth to the Ritviz, who make offerings for you.
ते नो मित्रो वरुणो अर्यमायुरिन्द्र ऋभुक्षा मरुतो जुषन्त।
नमोभिर्वा ये दधते सुवृक्तिं स्तोमं रुद्राय मीळ्हुषे सजोषाः
हे मित्र, वरुण, अर्यमा, वायु, इन्द्र देव, ऋभुक्षा और मरुद्गण! आप सब देव हमारे शोभन और पाप वर्जित स्तोत्रों को ग्रहण करें। आप सब रुद्र के साथ प्रसन्न होकर पूजा ग्रहण करें।[ऋग्वेद 5.41.2]
Hey Mitr, Varun, Aryma, Vayu, Indr Dev, Ribhuksha and Marud Gan! All of you, demigods & deities, accept our sinless sacred hymns-Strotr. Accept the prayers happily along with Rudr-Bhagwan Shiv.
आ वां येष्ठाश्विना हुवध्यै वातस्य पत्मन्रथ्यस्य पुष्टौ।
उत वा दिवो असुराय मन्म प्रान्धांसीव यज्यवे भरध्वम्
हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों दमनकारी हैं। हम आपके रथ को वायु वेग द्वारा वेगवान् करने के लिए आप दोनों का आह्वान करते हैं। हे ऋत्विकों! आप लोग द्युतिमान् और प्राणापहारक रुद्र के लिए उत्तम स्तोत्र और हव्य का सम्पादन करें।[ऋग्वेद 5.41.3]
दमनकारी :: अत्याचारी, उत्पीड़क, असह्य, सताने वाला, दबाने वाला; oppressive, repressive, suppressive.
Hey Ashwani Kumars! Both of you are repressive. We invoke you to accelerate your charoite to move with the speed like the air. Hey Ritviz! Make offerings with excellent Strotr-sacred hymns and make offerings for the sake of radiant Rudr who vanish the sins.
प्र सक्षणो दिव्यः कण्वहोता त्रितो दिवः सजोषा वातो अग्निः।
पूषा भगः प्रभृथे विश्वभोजा आजिं न जग्मुराश्वश्वतमाः
मेधावी लोग जिनका आह्वान करते हैं, जो यज्ञ का सेवन करते हैं, शत्रुओं का विनाश करते हैं और स्वर्गीय हैं, वे (वायु, अग्नि देव, पूषा) क्षिति आदि तीनों स्थानों में जायमान होकर सूर्य देव के साथ तुल्य रूप से स्नेह उत्पन्न करते हैं। ये सकल विश्व रक्षक देव यज्ञस्थल में शीघ्र पधारें, जिस प्रकार वेगवान् अश्व युद्ध में वेग से आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.41.4]
क्षिति :: पृथ्वी, निवास-स्थान; earth, residence.
जायमन :: नवजात; nascent-newly born, nascent things or processes are just beginning and are expected to become stronger or to grow bigger.
The intelligent invoke Vayu, Agni & Pusha Dev, who accept the offerings of Yagy, destroy the enemy & are heavenly, stay over the earth nascently and generate love & affection like the Sun. Let the protectors of the whole world come to the Yagy quickly like the horses who arrive in the war-battle.
प्र वो रयिं युक्ताश्वं भरध्वं राय एषेऽवसे दधीत धीः।
सुशेव एवैरौशिजस्य होता ये व एवा मरुतस्तुराणाम्
हे मरुतों! आप लोग अश्व सहित धन का सम्पादन करें। स्तोता लोग गौ, अश्व आदि धन लाभ के लिए और प्राप्त धन की रक्षा के लिए आप लोगों की प्रार्थना करते हैं। उशिज पुत्र कक्षीवान् के होता अत्रि गमनशील अश्वों द्वारा सुखी हों। जो घोड़े वेगवान् हैं, वे आपके ही है।[ऋग्वेद 5.41.5]
Hey Marud Gan! Grant wealth & horses. The Stota-worshipers pray you for the sake of wealth, cow & horses and their protection thereafter. Let Atri the Ritviz of Kakshiwan, son of Ushij be happy with the fast moving strong horses, belonging to you.
प्र वो वायुं रथयुजं कृणुध्वं प्र देवं विप्रं पनितारमर्कैः।
इषुध्यव ऋतसापः पुरंधीर्वस्वीर्नो अत्र पत्नीरा धिये धुः
हे हमारे ऋत्विको! आप लोग द्युतिमान्, कामनाओं के विशेष पूरक या विप्रवत् पूज्य और स्तुति योग्य वायु देव को यज्ञ में जाने के लिए अर्चनीय स्तोत्रों द्वारा रथा पर आरूढ़ करें। गमनवती, यज्ञ ग्रहण कारिणी रूपवती और प्रशंसनीय देव पत्नियाँ हमारे यज्ञ में आगमन करें।[ऋग्वेद 5.41.7]
Hey our Ritviz! Let radiant, accomplisher of desires, worshiped like a Brahman, Vayu Dev ride the charoite, with the worship able Strotr for joining the Yagy. Let the beautiful, appreciable wives of the demigods-deities join our Yagy.
उप व एषे वन्द्येभिः शूषैः प्र यह्वी दिवश्चितयद्भिरकैः।
उषासानक्ता विदुषीव विश्वमा हा वहतो मर्त्याय यज्ञम्
हे अहोरात्राभिमानी देवों! आप दोनों महान् है। वन्दनीय स्वर्ग में रहने वाले देवों के साथ हम आप दोनों को सुखदायक और ज्ञापक मन्त्रों के साथ हव्य प्रदान करते हैं। हे देवों! आप दोनों सब कर्मों को जानकर याजकगण के यज्ञाभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 5.41.7]
ज्ञापक :: ज्ञान प्राप्त कराने वाला, परिचय देनेवाला; enlightening, declaratory, showing.
The deities of the day & night! Both of you are great. We make offerings to you, the resident of the heavens with the enlightening Mantr. Hey deities! Both of you come to the Yagy recognising the endeavours.
अभि वो अर्चे पोष्यावतो नॄन्वास्तोष्पतिं त्वष्टारं रराणः।
धन्या सजोषा धिषणा नमोभिर्वनस्पतींरोषधी राय एषे
आप सब बहुत लोगों के पोषक और यज्ञ के नेता है। स्तोत्रादि के द्वारा अथवा हवि देकर हम आपकी स्तुति धन-लाभ के लिए करते हैं। वास्तुपति त्वष्टा की हम प्रार्थना करते हैं। धन देने वाली और अन्यान्य देवों के साथ गमन करने वाली धिषणा (वाणी) की हम प्रार्थना करते हैं। वनस्पतियों और औषधियों की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.41.8]
धिषणा :: ज्ञान, बुद्धि, भाषण, भजन की देवी; deity enlightenment, intelligence, speech and hymns.
You are the nurturer-nourisher of all humans and leaders of the Yagy. We pray-worship you with the Strotr & making offerings. We worship Twasta-the deity of Vastu. We worship deity Dhishna the deity of enlightenment, intelligence, speech and hymns who grants riches and accompany the demigods-deities. We worship the vegetation and medicines.
तुजे नस्तने पर्वताः सन्तु स्वैतवो ये वसवो न वीराः।
पनित आप्त्यो यजतः सदा नो वर्धान्न: शंसं नर्यो अभिष्टौ
वीरों के समान जगत् के संस्थापक मेघ विस्तृत दान के विषय में हम लोगों के प्रति अनुकूल हों। वे स्तुति योग्य, आप्त्य, यजनीय, मनुष्यों के हितकारी और हम लोगों की स्तुति से सदा प्रसन्न होकर हम लोगों को समृद्धवान् बनावें।[ऋग्वेद 5.41.9]
संस्थापक :: प्रतिष्ठापक, सरपरस्त, संरक्षक, प्रतिपालक; founder, promoter.
Like the brave, founders of the universe clouds be compatible to us for donations. They are worshipable, well wishers of the humans and grant progeny. Let them be happy with our prayers-requests and make us rich.
COMPATIBLE :: अनुकूल, संगत, मुताबिक़; consistent, relevant, harmonious, coherent, logical, suited, favourable, congruent, congenial, propitious, homologous, congruous.
वृष्णो अस्तोषि भूम्यस्य गर्भंत्रितो नपातमपां सुवृक्ति।
गृणीते अग्निरेतरी न शूषैः शोचिष्केशो नि रिणाति वना
हम वर्षणकारी, अन्तरिक्ष के गर्भ स्थानीय जल के रक्षक वैद्युत् अग्नि देव की पाप वर्जित शोभन स्तोत्रों द्वारा प्रार्थना करते हैं। अग्नि देव तीन स्थानों में व्याप्त और त्रिविध हैं। मेरे गमनकाल में सुखकर रश्मियों द्वारा मेरे ऊपर क्रुद्ध नहीं होते हैं, किन्तु प्रदीप्त ज्वाला धारित कर वे वनों को जलाते अर्थात् भस्मी भूत कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.41.10]
We worship electric Agni Dev who cause rains, protect the water in space with the pious Strotr which remove-delete our sins. Agni Dev pervades the three abodes and act in three different ways. He do not get angry with me, while ready to move but engulf-burn the forests.
कथा महे रुद्रियाय ब्रवाम कद्राये चिकितुषे भगाय।
आप ओषधीरुत नोऽवन्तु द्यौर्वना गिरयो वृक्षकेशाः
हम अत्रि गोत्रोत्पन्न किस प्रकार से महान् रुद्र पुत्र मरुतों की प्रार्थना करें? सर्वविद् भगदेव को धन-लाभ के लिए कौन-सा स्तोत्र उच्चारित करें। जल देवता, औषधियाँ, द्युदेवता, वन और वृक्ष जिनके केश स्वरूप हैं, वे पर्वत हम लोगों की सदैव रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.41.11]
How should we born in Atri clan, worship the great sons of Rudr, Marud Gan?! Which Strotr should we recite to worship enlightened Bhag Dev for having wealth? Let the mountains who's extensions are like the hair of the deity of water, medicines, deity of heaven, forests and trees, protect us.
शृणोतु न ऊर्जां पतिर्गिरः स नभस्तरीयाँ इषिरः परिज्मा।
शृण्वन्त्वापः पुरो न शुभ्राः परि स्रुचो बबृहाणस्याद्रेः
बल अथवा अन्न के अधिपति और आकाशचारी वायु हमारी स्तुतियों को श्रवण करें। नगर तुल्य उज्ज्वल, बड़े पर्वत के चतुर्दिक सरणशील जलधारा हमारी वाणी श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.41.12]
सरणशील :: लचकदार, लचीला, तन्यक; flexible, resilient, elastic, pliable, springy, malleable, limber, inflectional, distensible, inflexional, inflective, distensible, non-rigid.Deity-lord of strength, food grains & air-Vayu Dev present in space should listen-respond to our prayers. Let the clean & radiant flowing  in four directions resilient water, like the cities & large mountain listen to our speech, voice.
विदा चिन्नु महान्तो ये व एवा ब्रवाम दस्मा वार्यं दधानाः।
वयश्चन सुभ्व १ आव यन्ति क्षुभा मर्तमनुयतं वधस्नैः
हे महान् मरुतों! आप लोग शीघ्र ही हमारे स्तोत्रों को जानें। हे दर्शनीयों! आपकी प्रार्थना करने वाले हम लोग श्रेष्ठ हव्य धारित करके आपकी प्रार्थना करते हैं। मरुद्गण अनुकूल भाव से आगमन करके क्षोभ द्वारा अभिभूत मनुष्य वैरियों को अस्त्रों द्वारा मार करके हम लोगों के निकट उपस्थित हों।[ऋग्वेद 5.41.13]
दर्शनीय :: प्रसिद्ध, मशहूर; beautiful, visible, notable.
Hey great Marud Gan! Respond to our prayers-Strotr quickly. Hey visible-beautiful! We the prayers, keep best offerings for you. Let Marud Gan favourably come close to us and kill the enchanted-mesmerised enemies with Astr. 
आ दैव्यानि पार्थिवानिं जन्मापश्चाच्छा सुमखाय वोचम्।
वर्धन्तां द्यावो गिरश्चन्द्राग्रा उदा वर्धन्तामभिषाता अर्णाः
हम देव सम्बन्धी और पृथ्वी सम्बन्धी जन्म तथा जल-लाभ करने के लिए सुन्दर यज्ञ वाले मरुतों की प्रार्थना करते हैं। हमारी स्तुतियाँ वर्द्धमान हों। प्रीति दायक स्वर्ग समृद्धि सम्पन्न हों। मरुतों द्वारा परिपुष्ट नदियाँ जल पूर्ण हों।[ऋग्वेद 5.41.14]
We worship Marud Gan for beautiful Yagy pertaining to birth, demigods-deities & earth. Let our prayers-worship and the affectionate-lovely heavens grow-flourish. Let the rivers nourished by Marud Gan be full of water.
पदेपदे मे जरिमा नि धायि वरूत्री वा शक्रा या पायुभिश्च।
सिषक्तु माता मही रसा नः स्मत्सूरिभिर्ऋजुहस्त ऋजुवनिः 
हम सदैव प्रार्थना करते हैं। जो उपद्रवों का निवारण करके हम लोगों की रक्षा करने में समर्थ होती है, वह सबकी निर्मात्री पूज्या भूमि हम लोगों की प्रार्थना को ग्रहण करें। प्रशस्त वचन वाले मेधावी स्तोताओं के प्रति वह प्रसन्न और अनुकूल हाथों से हम लोगों का कल्याण करें।[ऋग्वेद 5.41.15]
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; appreciable, expansive, smashing.
We always keep on praying. Let the worshipable earth generating-evolving all, accept our prayers. It should be happy with those intelligent Stotas-Ritviz, hosts, who speak appreciable words and resort to our welfare.
कथा दाशेम नमसा सुदानूनेवया मरुतो अच्छोक्तौ।
मा नोऽहिर्बुध्न्योरिषे धादस्माकं भूदुपमातिवनिः
हम लोग किस प्रकार से उत्तम दानशील मरुतों की प्रार्थना करें? किस प्रकार वर्तमान स्तोत्र द्वारा मरुतों की सेवा करें? वर्तमान स्तोत्रों द्वारा मरुतों का स्तवन कैसे सम्भव है? अहिबुध्न्य देव हम लोगों का अनिष्ट न करे और शत्रुओं को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 5.41.16]
How should we worship-pray Marud Gan, who make descent donation? How should we worship Marud Gan with the presently available Strotr? Deity Ahirbudhany should not harm us and destroy the enemy.
इति चिन्नु प्रजायै पशुमत्यै देवासो वनते मर्त्यो व आ देवासो वनते मर्त्यो वः। अत्रा शिवां तन्वो धासिमस्या जरां चिन्मे निर्ऋतिर्जग्रसीत
हे देवो! याजकगण सन्तान प्राप्ति के लिए और पशुओं के लिए आप लोगों की ही उपासना करते हैं। इस यज्ञ में निर्ऋति देवता कल्याणकार अन्न द्वारा हमारे शरीर का पोषण करें और वृद्धावस्था को दूर करें।[ऋग्वेद 5.41.17]
Hey demigods-deities! The hosts-Ritviz worship you for progeny and cattle-animals. Deity Nirrati nourish our bodies with beneficial food grains and keep us off old age.
तां वो देवाः सुमतिमूर्जयन्तीमिषमश्याम वसवः शसा गोः।
सा नः सुदानुर्मृळयन्ती देवी प्रति द्रवन्ती सुविताय गम्याः
हे द्युतिमान वसुओं! हम लोग आपकी उस प्रार्थना द्वारा गौ से बल कारक और हृदय पोषक अन्न प्राप्त करें। वह दान शीला और सुख दायिनी देवी हम लोगों के सुख के लिए यहाँ शीघ्र आगमन करें।[ऋग्वेद 5.41.18]
Hey radiant Vasus! Let us get nourishing & strengthening food grains from the cow by virtue of your prayers. Let the deity-goddess resorting to charity move here quickly, for our comforts.
अभि न इळा यूथस्य माता स्मन्नदीभिरुर्वशी वा गृणातु।
उर्वशी वा बृहद्दिवा गृणानाभ्यूर्ण्वाना  प्रभृथस्यायोः
गौसमूह की निर्मात्री इला और उर्वशी नदियों के साथ हम लोगों के प्रति अनुकूल हों। निरतिशय दीप्तिशालिनी उर्वशी हम लोगों के यज्ञ आदि कार्य की प्रशंसा करके याजकगणों को दीप्ति द्वारा समाच्छादित करके यहाँ उपस्थित हों।[ऋग्वेद 5.41.19]
निरतिशय :: अद्वितीय, परमात्मा, ईश्वर; exceptional, relentlessly.
Ila & Urvashi rivers evolving cows groups should be favourable to us. Let exceptionally radiant Urvashi praise our deeds-endeavours like Yagy, granting radiance-aura to the Ritviz & be present here.
सिषक्तु न ऊर्जव्यस्य पुष्टेः॥
बल की वृद्धि व सम्यक् पोषण के लिए देवता लोग हमारी स्तुतियाँ ग्रहण करें।[ऋग्वेद 5.41.20]
Let the demigods-deities accept our prayers-worship for strengthening and proper nourishment.(02.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- अवत्सारा, कश्यप, देवता :- विश्वेदेवछन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
तं प्रत्नथा पूर्वथा विश्वथेमथा ज्येष्ठतातिं बर्हिषदं स्वर्विदम्।
प्रतीचीनं वृजनं दोहसे गिराशुं जयन्तमनु यासु वर्धसे॥
प्राचीन समय के याजकगण, हमारे पूर्ववर्ती लोग, समस्त प्राणी और आधुनिक लोग जिस प्रकार से इन्द्र देव की प्रार्थना करके अपने मनोरथ पूर्ण करते हैं; हे अन्तरात्मा! उसी प्रकार से आप भी उनकी प्रार्थना करके मनोरथपूर्ण होवें। वे देवों के बीच में ज्येष्ठ, कुशासीन, सर्वज्ञ, हम लोगों के सम्मुखवर्ती, बलशाली, वेगवान् और जयशील हैं। इस प्रकार की स्तुति द्वारा आप उन्हें संवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 5.44.1]
Hey conscience! Let our desires be accomplished the way the ancient Ritviz, our ancestors, all living beings and the modern people-populace of current era, worship Indr Dev; by you. He is senior amongest the demigods-deities, occupying the Mat made of Kush, all knowing, accelerated and a winner. Let him be promoted with such requests, worship-prayers.
श्रिये सुदृशीरुपरस्य याः स्वर्विरोचमानः ककुभामचोदते।
सुगोपा असि न दभाय सुक्रतो परो मायाभिर्ऋत आस नाम ते॥
हे इन्द्र देव! आप स्वर्ग में प्रभा विस्तारित करते है। अवर्षणकारी मेघ के बीच में जो सुन्दर जलराशि है, उसे मनुष्यों के हित के लिए समस्त दिशाओं में प्रेरित करते है। वर्षा आदि सुन्दर कर्म द्वारा आप मनुष्यों की रक्षा करें। प्राणियों का वध आप न करें। शत्रुओं की माया का आप नाश करते है। आपका नाम सत्यलोक में विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 5.44.2]
Hey Indr Dev! You spread your aura in the space. Release the water accumulated in the non rain clouds in all directions. Protect the humanity by causing rains and not killing the living beings. You destroy the chant-cast of the enemy. Your name is established in the Saty Lok.
अत्यं हविः सचते सच धातु चारिष्टगातुः स होता सहोभरिः।
प्रसर्स्राणो अनु बर्हिर्वृषा शिशुर्मध्ये युवाजरो विस्रुहा हितः
अग्नि देव नित्य, फल साधक और विश्व धारक हव्य को सदैव वहन करते हैं। अग्नि देव अप्रतिहत गति, होम निर्वाहक और बल विधायक हैं। वे विशेषत: कुश के ऊपर बैठकर गमन करते हैं। फल वर्षणकारी, शिशु, युवा, वृद्धावस्था से रहित और औषधियों के मध्य स्थित है।[ऋग्वेद 5.44.3]
Agni Dev is for ever, grant rewards every day-regularly, carry the oblations-offerings for supporting the world. His movements are non stop able, support the house-home and strengthening. He occupy the Mat while travelling-moving. Grants the desires. He is free from childhood, youth and old age & established amongest the medicines.
प्र व एते सुयुजो यामन्निष्टये नीचीरमुष्मै यम्य ऋतावृधः।
सुयन्तुभिः सर्वशासैरभीशुभिः क्रिविर्नामानि प्रवणे मुषायति
इन याजक गणों के लिए यज्ञ को बढ़ाने वाली ये सूर्य की किरणें परस्पर भली-भाँति से संयुक्त होकर यज्ञ भूमि में गमन करने की अभिलाषा से अवतीर्ण होती हैं। वेग पूर्वक गमन करने वाली और सबका नियमन करने वाली इन समस्त किरणों द्वारा सूर्य जलराशि को निम्न देश में प्रेरण करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.4]
The Sun rays support the Yagy by the Ritviz occurring to lit the Yagy site together. Moving with fast speed, they regulate  all inspiring the water to occupy low lying land.
सञ्जर्भुराणस्तरुभिः सुतेगृभं वयाकिनं चित्तगर्भासु सुस्वरुः।
धारवाकेष्वृजुगाथ शोभसे वर्धस्व पत्नीरभि जीवो अध्वरे
हे अग्नि देव! आपका स्तोत्र अत्यन्त मनोहर है। जब निःसृत सोमरस काष्ठमय पात्र में गृहीत होता है और आप उस सोमरस को ग्रहण करके मनोहर स्तोत्र को सुनकर हर्षित होते हैं, तब उपासकों के बीच में आपकी विशेष शोभा होती है। हे जीवन दाता! यज्ञ में आप रक्षण करने वाली शिखा को सभी जगह वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 5.44.5]
शोभा :: सौंदर्य, शोभा, सौम्यता, सौष्ठव, चमक, द्युति, आभा, आलोक, तेज, महिमा, प्रताप, प्रतिष्ठा, गर्व, यश, सुंदरता, चमक, कांति; glory, beauty, grace, lustre.
Hey Agni Dev! Your Strotr-prayer touches-reaches the heart. When the extracted Somras is stored in the wooden pot, you accept it and become happy listening to the pleasing-amusing Strotr-sacred hymns. At this moment you have a glorious-beautiful look. Hey life sustaining! Spread your life sustaining flames all around.
यादृगेव ददृशे तादृगुच्यते सं छायया दधिरे सिध्रयाप्स्वा। महीमस्मभ्यमुरुषामुरु ज्रयो बृहत्सुवीरमनपच्युतं सहः
यह वैश्व देवी जिस प्रकार दृष्ट होती है; उसी प्रकार वर्णित भी होती है। साधक दीप्ति के साथ उस जल के बीच में अपना रूप या प्रार्थना धारित करते हैं, वे देवता हम लोगों के द्वारा पूज्य प्रभूत धन, महावेग, असंख्य वीर्यशील पुत्र और अक्षम्य बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.44.6]
This Vaeshv Devi-Goddess, is described the way, she appears. The practitioners recite the prayers in the water with light. Let the demigods-deities grant us enough wealth, accelerated speed, several mighty sons and strength.
वेत्यग्रुर्जनिवान्वा अति स्पृधः समर्यता मनसा सूर्यः कविः। 
घ्रंसं रक्षन्तं परि विश्वतो गयमस्माकं शर्म वनवत्स्वावसुः
प्रकाशवान्, धन और सुख को प्रदान करने वाले, सभी के उत्पादक, उत्तम क्रान्तदर्शी, अपने उत्कंठित मन के कारण समस्त स्पर्धावान् ग्रह-नक्षत्रों में अग्रण्य रहने वाले सूर्य देव समस्त संसार की चारों ओर से सुरक्षा करते हैं। इसलिए हम उनकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.7]
उत्कंठित :: चिंतित, व्यग्र; anxious.
Radiant, wealth & comfort granting, producer of all, possessing excellent aura, with anxious mind, ahead of all constellations & planets Sury Dev-Sun grant security to the whole world. That's why we worship him.
ज्यायांसमस्य यतुनस्य केतुन ऋषिस्वरं चरति यासु नाम ते।
यादृश्मिन्धायि तमपस्यया विदद्य उ स्वयं वहते सो अरं करत्
हे देव श्रेष्ठ सूर्य देव या अग्नि देव! याजकगण आपके निकट आगमन करते हैं। आप उदयादि लक्षण द्वारा परिज्ञात होते हैं। ऋषि लोग आपका स्तवन करते हैं, जिससे आपका नाम वर्द्धित होता है। वे जिस वस्तु की कामना करते हैं, कार्य द्वारा उसे प्राप्त करते हैं और जो अपनी इच्छा से पूजा करते हैं, वे प्रचुर पुरस्कार प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.8]
Hey deity Sury Dev/Agni Dev! The Ritviz move closer to you. You are recognised with dawn. The Rishi-sages worship-recite hymns in your favour to prolong your name. They attain the desired commodities by virtue of their endeavours.  Those who worship you of their own, get plenty of rewards.
समुद्रमासामव तस्थे अग्रिमा न रिष्यति सवनं यस्मिन्नायता।
अत्रा न हार्दि क्रवणस्य रेजते यत्रा मतिर्विद्यते पूतबन्धनी
हम लोगों के इन समस्त स्तोत्रों के बीच में प्रधान स्तोत्र समुद्र के समान सूर्य के निकट उपस्थित हों। यज्ञगृह में जो उनका स्तोत्र विस्तीर्ण होता है, वह नष्ट नहीं होता। जिस स्थान में पवित्र सूर्य देव के प्रति चित्त समर्पित होता है, वहाँ उपासकों के हृदयगत मनोरथ विफल नहीं होते ।[ऋग्वेद 5.44.9]
विस्तीर्ण :: फैला हुआ, लंबा-चौड़ा, विशाल, विस्तृत, व्यापक, प्रशस्त, लंबा-चौड़ा, प्रचुर, प्रभूत; extensive, roomy, ample, spacious, vast.
Let the main Strotr be present amongst all Strotr like the ocean close to the Sun. His sacred hymns in the Yagy house be vast & ample without being vanished. A place where the innerself-conscience is devoted to the pious Sun, desires in the heart never fail.
स हि क्षत्रस्य मनसस्य चित्तिभिरेवावदस्य यजतस्य सध्रे:
अवत्सारस्य स्पृणवाम रण्वभिः शविष्ठं वाजं विदुषा चिदर्ध्यम्
वह सविता देव सभी के द्वारा स्तुत्य हैं, सबकी कामनाओं के पूरक हैं। उनके निकट से हम क्षेत्र, मनस, अवद, यजत, सधि और अवत्सार नामक ऋषिगण सूर्यदेव की प्रार्थनाओं द्वारा उत्तम बलों और अन्नों की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.10]
Savita is worshipable for all and accomplish the desires of everyone. We the Rishis-sages named Kshetr, Manas, Yajat, Sadhi and Avtsar desire of excellent might and food grains by virtue of dedication-prayers devoted to Savita-Dev-Sun.
श्येन आसामदितिः कक्ष्यो३ मदो विश्ववारस्य यजतस्य मायिनः। समन्यमन्यमर्थयन्त्येतवे विदुर्विषाणं परिपानमन्ति ते
विश्ववार, यजत और मायी ऋषि का सोमरस जनित मद प्रशंसनीय गमन श्येन पक्षी के तुल्य शीघ्रगामी है, अदिति के तुल्य विस्तृत और इच्छा पूरक है। वे सोमरस पान करने के लिए परस्पर प्रार्थना करते हैं और इसका प्रचुर पान करके हर्षित और पुष्ट होने की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.11]
पुष्ट :: बलवान, तगड़ा, हट्टा-कट्टा, मज़बूत अंगवाला, प्रबल, मज़बूत, दबंग; strong, athletic, robust, sturdy.
पुष्टि :: स्थापना, प्रतिपालन; confirmation, vindication.
Intoxication cased by the Somras in the Rishis named Vishwvar, Yajat and Mayi make them move like Shyen-falcon & Aditi  accomplishing the desires. They request each other to drink Somras sufficiently and pray to be happy and strong, nourished-vindication.
सदापृणो यजतो वि द्विषो वधीद्बाहुवृक्तः श्रुतवित्तर्यो वः सचा।
उभा स वरा प्रत्येति भाति च यदींगणं भजते सुप्रयावभिः
सदापृण, यजत, बाहुवृक्त, श्रुतवित् और तर्य ऋषि आप लोगों के साथ मिलकर शत्रु का संहार करें। वे ऋषि इस लोक और परलोक दोनों लोकों की सकल श्रेष्ठ कामनाओं का लाभ कर दीप्तिमान् हों; क्योंकि वे सुमिश्रित हव्य या स्तोत्र द्वारा विश्वदेवों की उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.12]
Let the Rishis named Sadapran, Yajat, Bahuvrkt, Shrutvit and Tary destroy the enemies joining hands with you. Let them be glorious-radiant in the current and next abodes (births) with the accomplishment of excellent desires since they worship Vishw Dev with thoroughly mixed offerings-oblation and/or the Strotr.
सुतम्भरो याजकगणस्य सत्पतिर्विश्वासामूधः स धियामुदञ्चनः।
भरद्धेनू रसवच्छिश्रिये पयोऽनुब्रुवाणो अध्येति न स्वपन्
याजकगण अवत्सार के यज्ञ में सुतम्भर ऋषि सुन्दर फलों के पालन करने वाले होते हैं। समस्त यज्ञकार्य को ऊद्धर्व में उन्नीत करते हैं। गायें सुन्दर रसयुक्त दुग्ध प्रदान करती हैं। यह दुग्ध वितरित होता है। इस क्रम से घोषणा करके अवत्सार निद्रा का परित्याग कर अध्ययन करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.13]
उद्धर्व :: ऊपर,उर्ध्व दिशा; excrescence, upward, vertical. 
Sutambhar Rishi nourish beautiful rewards in the Yagy of Ritviz Avtsar. They progress the Yagy related deeds in an upward direction. The cows grant sweet-lovely milk, which is distributed. Avtsar Rishi make the announcements and resort to study discarding sleep.
यो जागार तमृचः कामयन्ते यो जागार तमु सामानि यन्ति।
यो जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः
जो देवता सर्वदा गृह में जागृत रहते हैं, ऋचाएँ उनकी कामना करती हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, स्तोत्रादि उन्हें प्राप्त करते हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, उनसे यह अभिषुत सोम कहें कि "हमें स्वीकार करें। हे अग्निदेव! हम आपके नियत स्थान में सहवास करें"।[ऋग्वेद 5.44.14]
Sacred-holy hymns desires for the demigods-deities who are always awake. Sacred hymns-verses are obtained by those demigods-deities who are always awake. Extracted Somras should ask the awake demigods-deities that it was acceptable to them. Hey Agni Dev! Let us stay at your abode.
अग्निर्जागार तमृचः कामयन्तेऽग्निर्जागार तमु सामानि यन्ति।
अग्निर्जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः
जो देवता सर्वदा गृह में जागृत रहते हैं, ऋचाएँ उनकी कामना करती हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, स्तोत्रादि उन्हें प्राप्त करतें हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, उनसे यह अभिषुत सोम कहें कि "हमें स्वीकार करें। हे अग्नि देव! हम आपके नियत स्थान में सहवास करें।[ऋग्वेद 5.44.15]
हे मनुष्यो! जो अग्नि के सदृश जागृत होता है, उसकी प्रशंसित बुद्धि वाले विद्यार्थी गण कामना करते हैं और जो अग्नि के सदृश वर्त्तमान जागृत होता है उसको भी सामवेद में कहे हुए विज्ञान प्राप्त होते हैं। अग्नि के सदृश वर्तमान जागृत होता है, उसको यह निश्चित स्थान युक्त सोमविद्या और ऐश्वर्य्य की इच्छा करने वाला, "आपकी मित्रता में मैं हूँ" ऐसा कहता है।
Hey humans! One who is awake like the fire, is desired by the intelligent student-scholar. One who is presently awake like the fire, too gets the sciences explained in Sam Ved. One who is awake-alert like fire-Agni Dev & desires of a pre determined abode  along with Som Vidya (Ved); should say that I am friendly with you.(09.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- सदापण आत्रेय, देवता :- विश्वेदेवछन्द :- त्रिष्टुप्, पुरस्ताज्ज्योति।
विदा दिवो विष्यन्नद्रिमुक्थैरायत्या उषसो अर्चिनो गुः।
अपावृत व्रजिनीरुत्स्वर्गाद्वि दुरो मानुषीर्देव आवः
अङ्गिराओं की स्तुतियों से इन्द्र देव ने स्वर्ग से वज्र निक्षेप करके पणियों द्वारा अपहृत निगूढ़ गौओं का पुनः उद्धार किया। आगामिनी उषा की रश्मियाँ सभी जगह व्याप्त होती है। पुञ्जीभूत अन्धकार को विनष्ट करके सूर्य उदित होते हैं। मनुष्यों के गृह द्वारों को उन्होंने उन्मुक्त किया।[ऋग्वेद 5.45.1]
Indr Dev released the cows abducted by the demons named Panis, acknowledging the prayers-Stuti of Angiras. Rays at dawn cover the entire area. The Sun rises and vanish the darkness leading to opening of the doors by the household.
वि सूर्यो अमतिं न श्रियं सादोर्वाद् गवां माता जानती गात्।
धन्वर्णसो नद्य: १  खादोअर्णाः स्थूणेव सुमिता दृंहत द्यौः
पदार्थ जिस प्रकार से भिन्न-भिन्न रूप प्रकाशित करते हैं, उसी प्रकार से सूर्य देव अपनी दीप्ति विस्तारित करते हैं। किरण जाल की जननी उषा देवी सूर्य देव के आने की प्रतिक्षा करके विस्तृत अन्तरिक्ष से अवतीर्ण होती है। तट को विध्वंस करने वाली नदियाँ प्रवाहमान जल राशि के साथ प्रवाहित होती हैं। गृह में स्थापित स्तम्भ तुल्य स्वर्ग सुदृढ़ भाव से अवस्थान करता है।[ऋग्वेद 5.45.2]
अवस्थान ::  ठहरना,  स्थिति, सत्ता, स्थान, जगह, निवास स्थान, रहना, वास करना, रहने-ठहरने का स्थान, घर, रहने-ठहरने की अवधि, मौका; sojourn.
तट :: किनारा, पार, समुद्र-तट, तीर; coast, bank.
The Sun spread its rays, the way an object is seen in different forms. Usha appears from the space after waiting for the Sun. The river break the bank flowing the water. The pillars in the house sojourn like the heaven strongly.
अस्मा उक्थाय पर्वतस्य गर्भो महीनां जनुषे पूर्व्याय।
वि पर्वतो जिहीत साधत द्यौराविवासन्तो दसयन्त भूम
महान् स्तोत्रों के उत्पादक प्राचीनों के तुल्य जब तक हम प्रार्थना करते हैं, तब तक बादलों के गर्भ में स्थित जलराशि हमारे ऊपर गिरती है। मेघ से जल गिरता है। आकाश अपने कार्य का साधन करता है। सभी जगह परिचर्या करने वाले अङ्गिरा लोग कर्मानुष्ठान द्वारा उद्यत होते हैं।[ऋग्वेद 5.45.3]
परिचर्या :: ख़िदमत, सेवा, रोगी की देखभाल, तीमारदारी; after-care.
We recite the great Strotr composed by the ancestors, till the water present in the clouds fall over us. The clouds shower rains. The sky-space perform its functions. The Angiras become ready to perform the endeavours to serve.
सूक्तेभिर्वो वचोभिर्देवजुष्टैरिन्द्रा न्व १ ग्नी अवसे हुवध्यै।
उक्थेभिर्हि ष्मा कवयः सुयज्ञा आविवासन्तो मरुतो यजन्ति
हे इन्द्र देव, हे अग्नि देव! हम रक्षा के लिए देवों के द्वारा सेवनीय उत्कृष्ट स्तोत्रों से आप दोनों का आह्वान करते हैं। उत्तम प्रकार से यज्ञ करने वाले मरुतों के सदृश कर्म तत्पर परिचरण करने वाले ज्ञानी लोग स्तोत्रों द्वारा आप दोनों की पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 5.45.4]
सेवनीय :: सेवन करने के योग्य, आराध्य, पूज्य; edible.
Hey Indr Dev & Agni Dev! We invoke you with the recitation of best Strotr-sacred hymns, liked-admired by the demigods-deities for our safety. The quickly moving enlightened people, worship-pray with the recitation of Strotr like the Marud Gan, who perform the Yagy in best possible manner.
एतो न्व १ द्य सुध्यो भवाम प्र दुच्छुना मिनवामा वरीयः।
आरे द्वेषांसि सनुतर्दधामायाम प्राञ्चो याजकगणमच्छ
इस यज्ञ में शीघ्र पधारें। हम लोग अच्छे कर्म करने वाले हों। विशेष रूप से आप हमारे शत्रुओं को विनष्ट करते हैं। प्रच्छन्न शत्रुओं को दूर करते हैं और याजकगणों के अभिमुख शीघ्र गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.45.5]
प्रच्छन्न :: ढका हुआ, आच्छादित, छिपा हुआ, आच्छन्न, चोर दरवाज़ा, खिड़की; disguised, hidden.
Come-join this Yagy quickly. Let us perform good deeds. You destroy our enemies specially. Repel the disguised-hidden enemies and quickly move to the Ritviz.
एता धियं कृणवामा सखायोऽप या माताँ ऋणुत व्रजं गोः।
यया मनुर्विशिशिप्रं जिगाय यया वणिग्वङ्कुरापा पुरीषम्
हे मित्रों! आओ, हम लोग स्तोत्र पाठ करें। जिसके द्वारा अपहृत गौओं का गोष्ठ उद्घाटित हुआ। जिसके द्वारा मनु ने हनु विहीन शत्रुओं को जीता और जिसके द्वारा वणिक् के तुल्य बहुफलाकांक्षी कक्षीवान् ने जल की इच्छा से वन में जाकर जल प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.45.6]
गोष्ठ :: गोशाला, एक ही प्रकार के पशुओं के रहने का स्थान जैसे :- अश्व गोष्ठ) गउशाला, गोआरी, गोकुल, गोठ, गोवारी, गोशाला, गोष्ठ, बथान, संदानिनी, संधानिनी, सन्दानिनी, सन्धानिनी, पशुओं को रखने का स्थान; cows shed-barn, cow house, cowshed, byre.
Hey friends! Come let us recite the Strotr by virtue of which the place where abducted cows were kept, was identified-found, discovered. Manu won-over come the enemies who lacked chin and Kakshiwan went to the jungle in search of water and got it, like a trader-businessman.
अनूनोदत्र हस्तयतो अद्रिरार्चन्येन दश मासो नवग्वाः।
ऋतं यती सरमा गा अविन्दद्विश्वानि सत्याङ्गिराश्चकार॥
इस यज्ञ में ऋत्विकों के हाथों द्वारा संचालित पाषाण खण्ड से शब्द उत्थित होता हैं, जिसके द्वारा नवग्वों और दशग्वों ने इन्द्र देव की पूजा की। यज्ञ में उपस्थित होकर सरमा ने गौओं को प्राप्त किया और अङ्गिराओं के समस्त स्तवादि कर्म सफल हुए।[ऋग्वेद 5.45.7]
In this Yagy the stones used by the Ritviz produced sound by virtue worship and Navgavs and Dashgavs worshiped Indr Dev. Sarma got cows by presenting himself in the Yagy and the Angiras all  endeavours related to worship were accomplished.
विश्वे अस्या व्युषि माहिनायाः सं यद्गोभिरङ्गिरसो नवन्त।
उत्स आसां परमे सधस्थ ऋतस्य पथा सरमा विदद्गाः
इस पूजनीय उषा के उदयकाल में जब अङ्गिरा लोग प्राप्त गौओं के साथ मिले, तब उस उत्कृष्ट यज्ञशाला में उपयुक्त दुग्धस्राव होने लगा; क्योंकि सत्यमार्ग से सरमा ने गौओं को देखा था।[ऋग्वेद 5.45.8]
When Angiras met revered-honoured Usha with the cows, milk started flowing in the Yagy Shala-site, since Sarma had visualised the cows from Saty Marg-path to truth.
आ सूर्यो यातु सप्ताश्वः क्षेत्रं यदस्योर्विया दीर्घयाथे।
रघुः श्येनः पतयदन्धो अच्छा युवा कविर्दीदयद्गोषु गच्छन्
सात अश्वों के स्वामी सूर्य देव हम लोगों के सम्मुख उपस्थित हों; क्योंकि उन्हें दीर्घ प्रवास के लिए सुदूरवर्ती गन्तव्य स्थान में उपस्थित होना होगा। वे श्येन पक्षी के समान शीघ्रगामी होकर प्रदत्त हव्य के उद्देश्य से भ्रमण करते हैं। वे स्थिर यौवन तथा दूरदर्शी देव निज रश्मि के बीच में अवस्थान करके प्रभा विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.45.9]
Let Sury Dev-Sun, the lord of seven horses, invoke before us; since he has be away from us at a distant place.  He moves quickly like a falcon for accepting oblations-offerings. Far sighted deity-Sun present in his own rays, spread aura-light.
आ सूर्यो अरुहच्छुक्रमर्णोऽयुक्त यद्धरितो वीतपृष्ठाः।
उद्ना न नावमनयन्त धीरा आशृण्वतीरापो अर्वागतिष्ठन्
उज्जवल जलराशि के ऊपर सूर्य देव आरोहण करते हैं। जब वे कान्त पृष्ठ वाले अश्वों को रथ में नियोजित करते हैं, तब उन्हें बुद्धिमान् याजकगण, जिस प्रकार से जल के ऊपर नाव हो, उसी प्रकार से आनयन करते हैं। जलराशि उनके आदेश को श्रवण करके नीचे अवतीर्ण होती है।[ऋग्वेद 5.45.10]
कांत :: कोमल और मनोहर, प्रिय और रुचिकर, पति, शौहर, प्रेमी, जो व्यक्ति किसी के प्रति प्रेम या अनुराग रखता हो, रौनक, मन को लुभाने का कार्य, बसंत, पंसदीदा, प्रेमिका, मालिक; soft and lovely, dear.
Sury Dev rises up the bright-clean water. When he deploy his horses having soft and lovely back; the intelligentsia moves like the boat moving over water. Water acts-emerge following their orders.
धियं वो अप्सु दधिषे स्वर्षां ययातरन्दश मासो नवग्वाः।
अया धिया स्याम देवगोपा अया धिया तुतुर्यामात्यंहः
हे देवो! जिन प्रार्थनाओं से नवग्वों ने दस माह तक साध्य यज्ञ का अनुष्ठान किया; जल प्राप्त कराने वाली, उत्तम ऐश्वर्य देने वाली उन प्रार्थनाओं को हम धारित करते हैं। इन स्तुतियों से हम देवों द्वारा रक्षित हों और पापकर्मों से भी दूर हों।[ऋग्वेद 5.45.11]
Hey demigods-deities! The prayers which the Navgavs followed for ten months, and carried out the accomplishing Yagy, we too adopt them to have water and grandeur. Let us be protected by the demigods-deities and distance ourselves from the sins.(11.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- प्रतिक्षत्र आत्रेय, देवता :- विश्वेदेवछन्द :- त्रिष्टुप्, जगती। 
हयो न विद्वाँ अयुजि स्वयं धुरि तां वहामि प्रतरणीमवस्युवम्।
नास्या वश्मि विमुचं नावृतं पुनर्विद्वान्यथः पुरएत ऋजु नेषति
सर्वज्ञ प्रतिक्षत्र ने यज्ञभार में स्वयं को शकट में अश्व के तुल्य नियोजित किया। हम होता अथवा अध्वर्यु उस अलौकिक रक्षा विधायक भार को वहन करते हैं। इस भार वहन से हम छुटकारा प्राप्त करने की इच्छा नहीं करते, ऐसा भार बारम्बार हमारे प्रति समर्पित हों, ऐसी कामना भी हम नहीं करते। मार्गाभिज्ञ, अन्तर्यामी देव पुरोगामी होकर सरल मार्ग द्वारा मनुष्यों को ले जावें।[ऋग्वेद 5.46.1]
यज्ञभार :: यज्ञ सामग्री को ले जाने वाली गाड़ी, vehicle carrying sacrificial goods.
Aware of all-enlightened Pratikshtr, deployed himself in the vehicle carrying Yagy oblations-offerings. We the priests or hosts, bear the burden of protection of that divine vehicle carrying Yagy oblations. We do not wish to escape this duty and do not wish that this duty be given to us again & again. Let the demigods-deities possessing intuition-insight aware of the path should take the humans through some simple-easy route.
अग्न इन्द्र वरुण मित्र देवाः शर्धः प्र यन्त मारुतोत विष्णो।
उभा नासत्या रुद्रो अध ग्नाः पूषा भगः सरस्वती जुषन्त
हे अग्नि, इन्द्र, वरुण और मित्रादि देवों! आप सब हमें बल प्रदान करें। श्रीविष्णु और मरुत बल प्रदान करें। हे नासत्यद्वय! रुद्रदेव, देवपत्नियाँ, पूषा, भग और सरस्वती हम लोगों की पूजा से प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 5.46.2]
नासत्य द्वय :: दो आश्विनि कुमार, उनमें से एक स्वास्थ के देवता हैं। मानव शरीर की देवी और भगवान् शिव की पुत्री ज्योति नासत्य की पत्नी थी। स्वास्थ्य लाभ का देवता सत्यवीर नासत्य का पुत्र थ‌ा। दरसा दूसरे आश्विन हैं।
Hey Agni, Indr and Mitr etc. demigods-deities! You all grant us strength. Let Shri Hari Vishnu and Marud Gan grant us strength. Hey Nasty Duo-Ashwani Kumars! Let Rudr Dev, goddesses-wives of demigods-deities, Pusha, Bhag and Saraswati be happy-pleased with our worship-prayers.
इन्द्राग्नी मित्रावरुणादितिं स्वः पृथिवीं द्यां मरुतः पर्वताँ अपः।
हुवे विष्णुं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं भगं नु शंसं सवितारमूतये
हम रक्षा के लिए इन्द्र देव, अग्नि देव, मित्र वरुण, अदिति, सूर्य, द्यावा-पृथ्वी, मरुद्गण, पर्वत, जल, विष्णु, पूषा, ब्रह्मणस्पति और सविता का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.46.3]
We invoke Indr Dev, Agni Dev, Mitr & Varun, Aditi, Sury, heavens & earth, Marud Gan, Parwat, water, Vishnu, Pusha, Brahmanspati and Savita for our protection.
उत नो विष्णुरुत वातो अस्त्रिधो द्रविणोदा उत सोमो मयस्करत्।
उत ऋभव उत राये नो अश्विनोत त्वष्टोत विभ्वानु मंसते
श्रीविष्णु अथवा अहिंसाकारी वायुदेव अथवा धनदाता सोम हम लोगों को सुख प्रदान करें। ऋभुगण, अश्विनीकुमार, त्वष्टा और विभु हम लोगों को ऐश्वर्य प्रदान करने के लिए अनुकूल प्रेरणा प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.46.4]
Let Shri Vishnu or non violent Vayu Dev or donor of Som-Moon grant us comforts. Let Ribhu Gan, Ashwani Kumars, Twasta & Vibhu favourably inspire-direct us to have grandeur.
उत त्यन्नो मारुतं शर्ध आ गमद्दिविक्षयं यजतं बर्हिरासदे।
बृहस्पतिः शर्म पूषोत नो यमद्वरूथ्यं १ वरुणो मित्रो अर्यमा
पूजनीय तथा स्वर्ग लोक में रहनेवाले मरुद्गण कुश के ऊपर उपवेशन करने के लिए हम लोगों के निकट आगमन करें। बृहस्पति, पूषा, वरुण, मित्र और अर्यमा हम लोगों को सम्पूर्ण गृहसम्बन्धी सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.46.5]
उपवेशन :: बैठना, स्थित होना, जमना, जमकर बैठ जाना, हार मान लेना; inclusion, sitting.
Worshipable and residents of heavens come to us and sit over the Kush Mat. Let Brahaspati, Pusha, Varun, Mitr and Aryma grant us comforts related to family-household.
उत त्ये नः पर्वतासः सुशस्तयः सुदीतयो नद्य१स्त्रामणे भुवन्।
भगो विभक्ता शवसावसा गमदुरुव्यचा अदितिः श्रोतु मे हवम्
उत्तम स्तुति वाले पर्वत और दानशीला नदियाँ हम लोगों की रक्षा करें। धनदाता भगदेव अन्न और रक्षा के साथ यहाँ आगमन करें। सभी जगह व्याप्त होने वाली देवमाता अदिति हमारे स्तोत्रों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.46.6]
Let the mountains having excellent prayers and the rivers devoted to charity protect us. Let grantor of wealth Bhag Dev come to us with food grains for our protection. All pervading mother of demigods-deities respond, listen-attend to our Strotr.
देवानां पत्नीरुशतीरवन्तु नः प्रावन्तु नस्तुजये वाजसातये।
याः पार्थिवासो या अपामपि व्रते ता नो देवीः सुहवाः शर्म यच्छत
इन्द्रादि देवों की पत्नियाँ हम लोगों स्तुतियों को श्रवण कर हम लोगों की रक्षा करें। वे हम लोगों की इस तरह से रक्षा करें, जिससे हम लोग बलवान् पुत्र तथा प्रभूत अन्न लाभ प्राप्त करें। हे देवियों! आप सब पृथ्वी पर रहो या अन्तरिक्ष में उदकव्रत में निरत रहो; परन्तु हम लोग आपका उत्तम आह्वान करते हैं। आप सभी हम लोगों को सुख प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 5.46.7]
Wives of demigods-deities like Indr Dev, goddesses listen to our prayers and protect us so that we can have strong sons & sufficient food grains. Hey goddesses! Whether you stay over the earth or remain-keep your self busy in the space performing-resorting to water fast, we make excellent invocation of you. All of you should grant us comforts-pleasures.
उत ग्ना व्यन्तु देवपत्नीरिन्द्राण्य१ग्नाय्यश्विनी राट्।
आ रोदसी वरुणानी शृणोतु व्यन्तु देवीर्य ऋतुर्जनीनाम्
हे देवियाँ! देवपत्नियाँ हव्य भक्षण करें। इन्द्राणी, अग्नायी, दीप्तिमती अश्विनी, रोदसी, वरुणानी आदि प्रत्येक हम लोगों की स्तुतियों को श्रवण करें। देवियाँ हव्य भक्षण करें। देवपत्नियों के बीच में जो ऋतुओं की अधिष्ठात्री देवी हैं, वे स्तोत्र श्रवण करें और हव्य का भक्षण करें।[ऋग्वेद 5.46.8]
Hey Goddesses! Let the wives of demigods-deities, Goddesses eat offerings. Indrani, Agnyani, Deepti Mati, Ashvini, Rodsi, Varunani listen-respond to our prayers.  In between the wives of demigods-deities the Ritu's deity listen to our Strotr and eat the offerings.(11.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- प्रतिभानुरात्रेय, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द-जगती।
कदु प्रियाय धाम्ने मनामहे स्वक्षत्राय स्वयशसे महे वयम्।
आमेन्यस्य रजसो यदभ्र आँ अपो वृणाना वितनोति मायिनी
सभी के प्रिय और पूजनीय उस वैद्युत तेज की पूजा हम कब करेंगे? जो स्वाधीन बल है और जिनके सब अन्न अपने हैं। जब आच्छादनकारिणी या सेव्यमाना आग्नेय शक्ति प्रज्ञावती होकर परिमेय अन्तरिक्ष में बादलों के ऊपर वर्षा के जल को विस्तारित करती हैं।[ऋग्वेद 5.48.1]
When will we pray the dear and worshipable electric energy-aura? Who is independent and all food grains are his own! All pervading electric power establish over the limited clouds and extend the spheres-area of rains.
ता अत्नत वयुनं वीरवक्षणं समान्या वृतया विश्वमा रजः।
अपो अपाचीरपरा अपेजते प्र पूर्वाभिस्तिरते देवयुर्जनः
ऋत्विकों द्वारा प्राप्त करने योग्य ज्ञान को ये उषाएँ विस्तारित करती हैं, क्या? एक प्रकार की आवरक दीप्ति द्वारा सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करती हैं। देवाभिलाषी लोग निवृत्त और आगामिनी उषाओं को त्यागकर वर्तमान उषा के द्वारा अपनी बुद्धि को वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 5.48.2]
आवरक :: ढकनेवाला, परदा; folders, flap.
Do the Ushas extend the enlightenment fit for the Ritviz? A special kind of aura covers the entire universe. People desirous of invoking the demigods-deities increase-boost their intelligence by rejecting the previous Ushas and devotion to the new Usha.
आ ग्रावभिरहन्येभिरक्तुभिर्वरिष्ठं वज्रमा जिघर्ति मायिनि।
शतं वा यस्य प्रचरन्तत्स्वे दमे संवर्तयन्तो वि च वर्तयन्नहा
अहोरात्र में निष्पन्न सोमरस द्वारा हर्षित होकर इन्द्र देव मायावी वृत्रासुर के लिए दीर्घ वज्र को दीप्त करते हैं। इन्द्रात्मक आदित्य की शतसंख्यक रश्मियाँ दिवसों को भली-भाँति से निवर्तित परिभ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 5.48.3]
Devraj Indr become happy by drinking the Somras extracted during day & night and energise Vajr. The hundreds of rays of light emitted by Adity with the impact of Indr Dev revolve thoroughly.
तामस्य रीतिं परशोरिव प्रत्यनीकमख्यं भुजे अस्य वर्पसः।
सचा यदि पितुमन्तमिव क्षयं रत्नं दधाति भरहूतये विशे
परशु के तुल्य अग्नि देव की उस स्वाभाविक जाति को हम देखते हैं। रूपवान् आदित्य के रश्मि समूह का कीर्त्तन हम भोग के लिए करते हैं। वह अग्नि देव सहायक होकर यज्ञ स्थल में आह्वानकारी याजकगण को अन्न पूर्ण घर तथा रत्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.48.4]
परशु :: फरसा; halberd, hatchet, poleaxe.
We visualise the nature of Agni Dev which is like a Parshu-hatchet. We recite the names of Adity's rays for our consumption-welfare. Agni Dev assists the Ritviz who invoke him at the Yagy site, grant him food grains and gems-jewels.
स जिह्वया चतुरनीक ऋञ्जते चारु वसानो वरुणो यतन्नरिम्।
न तस्य विद्म पुरुषत्वता वयं यतो भगः सविता दाति वार्यम्
रमणीय तेज से आच्छादित होकर अग्नि देव अन्धकार और शत्रुओं को विनष्ट करते हैं तथा चारों ओर ज्वाला को विस्तारित करके जिह्वा द्वारा घृतादि का पान करते हैं। पुरुषत्व द्वारा कामनाओं को देने वाले अग्निदेव को हम नहीं जानते; क्योंकि ये महान् भजनीय सवितादेव वरणीय धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.48.5]
रमणीय :: रमण योग्य, सुंदर; delightful, delectable.
Agni Dev is surrounded with attractive glow-aura remove darkness and destroy the enemy, spread his flames all around and consume Ghee. We do not know the deity of fire, who award-fulfil desires by virtue of endeavours-efforts, since the great Savita Dev grant acceptable wealth-money, riches.
The Sun, Adity, Savita do have fire in them i.e., the component of Agni Dev.(15.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :-  प्रतिप्रभ  आत्रेय, देवता :- विश्वेदेवछन्द :- त्रिष्टुप्।
देवं वो अद्य सवितारमेषे भगं च रलं विभजन्तमायोः।
आ वां नरा पुरुभुजा ववृत्यां दिवेदिवे चिदश्विना सखीयन्
अभी हम आप याजक गणों के लिए सविता और भगदेव का आवाहन करते हैं। क्योंकि ये याजकगणों को धन प्रदान करते हैं। हे नेतृ स्वरूप बहुभोग कर्ता अश्विनी कुमारों! आप दोनों से मित्रता की कामना करके हम प्रतिदिन आप दोनों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 5.49.1]
We are invoking Savita & Bhag Dev for the Ritviz, since they grant wealth-riches to them. Hey leaders and consumers of several offerings-oblations Ashwani Kumars! We seek-request your friendship and company invoking you everyday.
प्रति प्रयाणमसुरस्य विद्वान्त्सूक्तैर्देवं सवितारं दुवस्य।
उप ब्रुवीत नमसा विजानञ्ज्येष्ठं च रलं विभजन्तमायोः
हे स्तोताओं! शत्रुओं के निवारक सविता देव को पुनः वापस आता जानकर सूक्तों द्वारा उनकी स्तुति करें। वे मनुष्यों को श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं। नमस्कार अथवा हविर्विशेष से उनका स्तवन करें।[ऋग्वेद 5.49.2]
Hey Stotas! On seeing Savita Dev, the remover of the enemies, returning-coming back worship-pray him with sacred hymns-Strotr. He grant money to the excellent humans. Salute him and worship him with special offerings.
अदत्रया दयते वार्याणि पूषा भगो अदितिर्वस्त उस्रः।
इन्द्रो विष्णुर्वरुणो मित्रो अग्निरहानि भद्रा जनयन्त दस्माः॥
पोषक, भजनीय तथा अखण्डनीय अग्नि देव जिह्वा द्वारा वरणीय काष्ठ को दहन करते हैं अथवा वरणीय अन्न याजकगण को प्रदान करते हैं। सूर्य तेज को आच्छादित करते हैं। इन्द्र देव, श्री हरी विष्णु, वरुण, मित्र और अग्नि देव आदि दर्शनीय देव शोभन दिवस को उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 5.49.3]
Nourishing-nurturing, worshipable and unbreakable Agni Dev burn the wood with his tongue and provide food grains to the Ritviz. The Sun covers the energy (reduces-checks the intensity of his radiations). Indr Dev, Shri Hari Vishnu, Varun, Mitr & Agni Dev invoke extremely beautiful-enjoying day.
तन्नो अनर्वा सविता वरूथं तत्सिन्दधव इषयन्तो अनु ग्मन्।
उप यद्वोचे अध्वरस्य होता रायः स्याम पतयो वाजरत्नाः
किसी के द्वारा भी अपराजित सविता देव हम लोगों को अभिमत धन प्रदान करें। उस धन को देने के लिए स्पन्दनशील नदियाँ गमन करें। इसीलिए हम यज्ञ के होता स्तोत्र पाठ करते हैं। हम बहुविध धन के स्वामी हों, अन्न और बल से सम्पन्न हों।[ऋग्वेद 5.49.4]
Let undefeatable by any one, Savita Dev grant us unlimited wealth. Let the palpitating-pulsating rivers flow to grant that unlimited wealth. Hence, we the Stota-Hota of the Yagy recite Strotr. Let us become the owners of vivid wealth, food  grains and might.
PALPITATION :: स्पंदन, धड़कन, घबराहट; flurry, bewilderment, dither, tizzy, pulsation, throb, flutter, quivering, vibration, pulsation, trembling.
प्र ये वसुभ्य ईवदा नमो दुर्ये मित्रे वरुणे सूक्तवाचः।
अवैत्वभ्वं कृणुता वरीयो दिवस्पृथिव्योरवसा मदेम
जिन याजकगणों ने वसुओं को गमनशील अन्न दिया और जिन्होंने मित्र तथा वरुण के लिए स्तोत्र पाठ किया, हे देवो! उन्हें महान् तेज व दीर्घतर सुख प्रदान करें। हम द्यावा-पृथ्वी की रक्षा प्राप्त कर हर्षित हों।[ऋग्वेद 5.49.5]
Hey demigods-deities! Grant energy-power and prolonging comforts to those Ritviz who provided food grains-offerings to the dynamic Vasus and recited Strotr for the sake of Mitr and Varun Dev. Let us become happy by having-receiving protection from heavens & earth.(16.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- स्वस्त्यात्रेय देवता :- विश्वेदेवछन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति।
विश्वो देवस्य नेतुर्मर्ती वुरीत सख्यम्।
विश्वः राय इषुध्यति द्युम्नं वृणीत पुष्यसे
सभी मनुष्य सविता देव से मित्रता की प्रार्थना करते हैं। सम्पूर्ण मनुष्य उनसे धन की कामना करते हैं। उनके अनुग्रह से सभी लोग पुष्टि के लिए पर्याप्त धन प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.50.1]
अनुग्रह :: दया, सुघड़ता, इनायत, सुन्दर ढ़ंग, श्री, पक्षपात, अनुमति, अति कृपा, पत्र, इनायत; grace, favour, graciousness.
All humans worship-pray, request Savita Dev for his friendship. Entire populace get sufficient money for their nourishment by virtue of his grace.
ते ते देव नेतर्ये चेमाँ अनुशसे। 
ते राया ते ह्या ३ पृचे सचेमहि सचथ्यैः
हे अग्रणी देव! आपके उपासक हम याजकगण तथा इन्द्रादि के उपासक होता प्रभृति आपके ही हैं। हम और वे दोनों ही धनयुक्त हों। हम लोगों की कामना पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.50.2]
प्रभृति :: इत्यादि, आदि, वगैरह; influence.
Hey leading deity! We, your worshipers Ritviz and the worshipers of Indr Dev etc. belong to you. Let us become rich along with them. Accomplish our desires-prayers.
अतो न आ नॄनतिथीनतः पत्नीर्दशस्यत।
आरे विश्वं पश्रेष्ठां द्विषो युयोतु यूयुविः
अतः इस यज्ञ में हम ऋत्विजों के अतिथि के तरह पूज्य देवों की सेवा करें। इसलिए इस यज्ञ में हविः प्रदान करके देव पत्नियों की सेवा करें। हे देवों! पृथक कर्ता देव समूह या सविता देव दूर मार्ग में वर्त्तमान समस्त वैरियों को या अन्य शत्रुओं को दूर करें।[ऋग्वेद 5.50.3]
वैरी :: शत्रु, दुश्मन,  वैर करने वाला; enemy.
Hence we should serve the worshipable deities-demigods and the their wives-Goddesses in this Yagy like the guests of the Ritviz with offerings. Hey demigods-deities! Either isolating group of demigods-deities or Savita Dev repel the current enemies of those envious to us.
यत्र वह्निरभिहितो दुद्रवद्द्रोण्यः पशुः।
नृमणा वीरपस्त्योऽर्णा धीरेव सनिता
जिस यज्ञ में यज्ञ को वहन करने वाला यूप योग्य पशु यूप के निकट उपस्थित होता है, उस यज्ञ में सविता देव याजक गण को कुशल तथा धीर स्त्री के तुल्य गृह, भृत्यादि और धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.50.4]
धीर :: शांत स्वभाव वाला, नम्र, विनीत, विरक्त, शांत, दिलजमा, नाउम्मेद, निचला, संकोची, विनयशील, आडंबरहीन, निराश; demure, halcyon, steadfast, resolute, bold, patient, persevering, lasting, stable, constant, calm, self possessed, solemnness, sedate, solemn, grave, deep.
Savita Dev grant skilled-expert, passionless wife, riches, servants etc. to the Ritviz, who brings animal for the sake of Yagy to the pole for tiding it.
एषते देव नेता रथस्पतिः शं रयिः।
शं राये शं स्वस्तय इषः स्तुतो मनामहे देवस्तुतो मनामहे
हे नेता सविता देव! आपका यह धनवान् और सबको पालन करने वाला रथ हम लोगों का कल्याण करे। हम सब स्तुति योग्य सविता देव के स्तोता हैं, हम धन के लिए, सुख के लिए तथा अविनष्ट होने के लिए उनकी प्रार्थना करते हैं। हम सविता देव के स्तुतियों के साथ आपकी भी बारम्बार प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.50.5]
Hey leader Savita Dev! Let your wealth carrying and nurturer of all, charoite resort to our welfare. We all Stotas are the worshipers of honoured-revered Savita Dev and worship-pray him for riches, comforts, immortality. We worship you again & again along with the prayers devoted to Savita Dev.(16.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- स्वस्त्यात्रेयदेवता :- विश्वेदेवछन्द :- गायत्री, त्रिष्टुप्, उष्णिक्।
अग्ने सुतस्य पीतये विश्वैरूमेभिरा गहि देवेभिर्हव्यदातये
हे अग्नि देव! आप सोमरस के पान के लिए इन्द्रादि सम्पूर्ण रक्षक देवों के साथ हव्य देने वाले हम याजकगणों के पास पधारें।[ऋग्वेद 5.51.1]
Hey Agni Dev! Visit us, the Ritviz along with Devraj Indr and other protector demigods-deities, for drinking Somras.
ऋतधीतय आ गत सत्यधर्माणो अध्वरम्। अग्नेः पिबत जिह्वया
हे सत्य स्तुति वाले देवों! हे सत्य को धारित करने वालों आप सभी हमारे यज्ञ में आगमन करें और अग्नि की जिह्वा द्वारा घृत अथवा सोमरस आदि का पान करें।[ऋग्वेद 5.51.2]
Hey truly worshipable Deities! Hey truthful demigods-deities join our Yagy and sip-drink the Ghee and Somras with the tongue of Agni Dev.
विप्रेभिर्विप्र सन्त्य प्रातर्यावभिरा गहि। देवेभिः सोमपीतये
हे मेधाविन् अग्नि देव! प्रातः काल में आने वाले मेधावी देवताओं के साथ सोमरस के पान के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.51.3]
Hey intelligent Agni Dev! Come to drink Somras alongwith the intelligent demigods-deities in the morning.
अयं सोमश्चमू सुतोऽमत्रे परि षिच्यते। प्रिय इन्द्राय वायवे
हे इन्द्र देव और वायु देव! पत्थरों से कूटकर अभिषुत हुआ सोमरस पात्रों में छानकर भरा जाता है, यह इन्द्रदेव और वायुदेव के लिए प्रिय है। इस सोमरस को पीने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.51.4]
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come to drink Somras crushed with stones and filtered for you, kept in the pots. 
वायवा याहि वीतये जुषाणो हव्यदातये। 
पिबा सुतस्यान्धसो अभि प्रयः
हे वायु देव! हवि देने वाले यजमान की प्रीति के लिए आप हव्यपान करने के लिए पधारें। आकर अभिषुत सोमरूप अन्न का भक्षण करें।[ऋग्वेद 5.51.5]
Hey Vayu Dev! Come for drinking Somras for the love of the Ritviz making offerings and eat the food grains in the containing-form of Somras.
इन्द्रश्च वायवेषां सुतानां पीतिमर्हथः।
ताञ्जुषेथामरेपसावभि प्रयः
हे वायु देव! आप और इन्द्र देव इस अभिषुत सोमरस का पान करने के योग्य हैं; इसीलिए अहिंसक होकर आप दोनों इस सोमरस का सेवन करें और सोमात्मक अन्न के उद्देश्य से आगमन करें।[ऋग्वेद 5.51.6]
Hey Vayu Dev! You alongwith Indr Dev is qualified to drink this extracted Somras. Invoke for the eating the food grains in the form of Somras, without being violent.
सुता इन्द्राय वायवे सोमासो दध्याशिरः।
निम्नं न यन्ति सिन्धवोऽभि प्रयः
इन्द्र देव तथा वायु देव के लिए दधि मिश्रित सोमरस अभिषुत हुआ है। हे इन्द्र देव और वायु देव! निम्नगामिनी नदियों के सदृश वह सोमरस आप दोनों के अभिमुख गमन करता है।[ऋग्वेद 5.51.7]
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Somras mixed with curd has been extracted for you. It moves to you like the rivers flowing in the down ward direction.
सजूर्विश्वेभिर्देवेभिरश्विभ्यामुषसा सजूः। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण
हे अग्नि देव! आप देवों के साथ मिलकर तथा अश्विनी कुमारों और उषा के साथ समान प्रीति स्थापित करके आगमन करें। यज्ञ में जिस प्रकार से अत्रि रमण करते हैं, उसी प्रकार आप भी अभिषुत सोमरस में रमण करें।[ऋग्वेद 5.51.8]
Hey Agni Dev! Come with demigods-deities, Ashwani Kumars & Usha friendly. Participate in the Yagy the way Atri Rishi does it.
सजूर्मित्रावरुणाभ्यां सजूः सोमेन विष्णुना। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण॥
हे अग्नि देव! आप मित्र, वरुण, सोम तथा विष्णु के साथ मिलकर आगमन करें। यज्ञ में जिस प्रकार से अत्रि रमण करते हैं, उसी प्रकार आप भी अभिषुत सोमरस में रमण करें।[ऋग्वेद 5.51.9]
Hey Agni Dev! Come alongwith Mitr, Varun, Som-Moon and Bhagwan Shri Hari Vishnu. Participate in the Yagy the way Atri Rishi does it.
सजूरादित्यैर्वसुभिः सजूरिन्द्रेण वायुना। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण
हे अग्नि देव! आप सूर्य, वसु गण, इन्द्र देव और वायु देव के साथ मिलकर यहाँ आगमन करें। यज्ञ में जिस प्रकार से अत्रि रमण करते हैं, उसी प्रकार आप भी अभिषुत सोमरस में रमण करें।[ऋग्वेद 5.51.10]
Hey Agni dev! Come here alongwith Sury-Sun, Vasu Gan, Indr Dev and Vayu Dev. Participate in the Yagy the way Atri Rishi does it.
स्वस्ति नो मिमीतामश्विना भगः स्वस्ति देव्यदितिरनर्वणः।
स्वस्ति पूषा असुरो दधातु नः स्वस्ति द्यावापृथिवी सुचेतुना
हम लोगों के लिए दोनों अश्विनी कुमार अविनश्वर कल्याण करें, भग कल्याण करें तथा देवी अदिति कल्याण करें। बलवान् अथवा सत्यशील और शत्रु संहारक अथवा बलदाता पूषा हम लोगों का मङ्गल करें। शोभन ज्ञान विशिष्ट द्यावा-पृथ्वी हम लोगों का मङ्गल करें।[ऋग्वेद 5.51.11]
अविनश्वर :: वह अक्षर और अविनश्वर है और जीवात्मा के रूप में प्रत्येक जीव में अवस्थित है, जिसका नाश न हो, परब्रह्म; immortal, imperishable, indestructible.
Let both Ashwani Kumars, the imperishable-immortal Brahm, Bhag and Devi Aditi resort to our welfare. Let truthful Pusha the grantor of might, destroyer of the enemy resort to our welfare. Let the heaven & earth resort to our welfare through specific means-knowledge.
स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः।
बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः
कल्याण के लिए हम लोग वायु देव की प्रार्थना करते हैं और सोमरस का भी स्तवन करते हैं। सोम निखिल लोक के पालक हैं। सब देवों के साथ मन्त्र पालक बृहस्पति देव की प्रार्थना कल्याण के लिए करते हैं। अदिति के पुत्र देवगण अथवा अरुणादि द्वादश देव हम लोगों के लिए कल्याणकारी हों।[ऋग्वेद 5.51.12]
We worship Vayu Dev for our welfare and extract Somras for him. Som nourish-nurture the whole world. We worship Brahaspati Dev with all demigods-deities, who is the supporter of Mantr Shakti, for our welfare. Let the son of Aditi Demigods and the twelve Adity Gan be helpful to us i.e., resort to our welfare. 
विश्वे देवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये।
देवा अवन्त्वृभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्वंहसः
इस यज्ञ में सम्पूर्ण देवता हम लोगों का कल्याण करें और रक्षा करें। मनुष्यों के नेता और गृहदाता अग्निदेव हम लोगों का कल्याण करें और रक्षा करें। दीप्तिमान् ऋभुगण भी हम लोगों का कल्याण व रक्षा करें। रुद्रदेव हम लोगों का कल्याण कर पाप से रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.51.13]
Let all the demigods-deities resort to our welfare and protect us, in this Yagy. Let protector of humans and grantor of homes to us, resort to our welfare. Radiant-aurous Ribhu Gan too resort to our welfare and protect us. Let Rudr Dev resort to our welfare and protect us from sins.
स्वस्ति मित्रावरुणा स्वस्ति पथ्ये रेवति।
स्वस्ति न इन्द्रश्चाग्निश्च स्वस्ति नो अदिते कृधि
हे अहोरात्राभिमानी मित्र और वरुण देव! आप दोनों मंगल करें। हे हित मार्गाभिमानिनी धनवती देवी! कल्याण करें। इन्द्र देव और अग्नि देव दोनों ही हम लोगों का कल्याण करें। हे अदिति देवी! आप हम लोगों का कल्याण करें।[ऋग्वेद 5.51.14]
Hey Mitr & Varun Dev regulating day and night! Resort to our welfare. Hey Dhanwati Devi, adopting the welfare route! Resort to our welfare. Let both Indr Dev & Agni Dev resort to our welfare. Hey Aditi Devi! Resort to our welfare.
स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि
सूर्य देव और चन्द्र देव जिस प्रकार से निरालम्ब मार्ग में राक्षसादि के उपद्रव के बिना विचरण करते हैं, उसी प्रकार से हम लोग भी मार्ग में सुख पूर्वक विचरण करें। प्रवास में चिरकाल हो जाने से भी अक्रुद्ध और स्मरण करने वाले मित्रों से हम मिलकर रहें।[ऋग्वेद 5.51.15]
The way-manner in which Sury Dev & Chandr Dev revolve without being disturbed by the demons on their orbits-path, we too move comfortably on our way. We should live friendly with those friends who are away from us without being angry and live together on being remembered.(17.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- त्रिष्टुप् शक्वरी।
स्तुषे जनं सुव्रतं नव्यसीभिर्गीर्भिर्मित्रावरुणा सुम्रयन्ता।
त आ गमन्तु त इह श्रुवन्तु सुक्षत्रासो वरुणो मित्रो अग्निः
मैं नये स्तोत्रों के द्वारा देवों और स्तोताओं के सुखाभिलाषी मित्र और वरुण देव की प्रार्थना करता हूँ। अतीव बली मित्र, वरुण देव और अग्नि देव इस यज्ञ में आकर हमारे स्तोत्रों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.49.1] 
I worship the deities Mitr & Varun Dev, who are well wishers of the Stotas who seek comforts-pleasure, with new Strotrs. Let extremely strong Mitr, Varun & Agni Dev join the Yagy and listen to our Strotrs.
विशोविश ईड्यमध्वरेष्वदृप्तक्रतुमरतिं युवत्योः।
दिवः शिशुं सहसः सूनुमग्निं यज्ञस्य केतुमरुषं यजध्यै
जो अग्नि देव प्रत्येक व्यक्ति के यज्ञ में पूजा के पात्र हैं, जो कार्य करके अहंकार नहीं करते, जो स्वर्ग और पृथ्वी नामक दो कन्याओं के स्वामी हैं, जो स्तोता के पुत्र भूत शक्ति के पुत्र हैं और जो यज्ञ के प्रदीप्त केतु रूप हैं, ऐसे तेजस्वी अग्नि देव की हम यज्ञ में स्तुति अर्थात प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.49.2]
Agni Dev who is worshipable by every human being, is free from ego, is the father of two daughters viz. heaven & the earth, is like the son of the Stota Shakti, is ignited in the Yagy; is worshiped by us in the Yagy.
अरुषस्य दुहितरा विरूपे स्तृभिरन्या पिपिशे सूरो अन्या।
मिथस्तुरा विचरन्ती पावके मन्म श्रुतं नक्षत ऋच्यमाने
दीप्तिमान सूर्य देव की विभिन्न रूपिणी दो कन्यायें (दिन और रात्रि) हैं। इनमें एक नक्षत्र समूह और एक सूर्य देव के द्वारा समुज्ज्वल है। परस्पर विरोधी, पृथक रूप से संचरण शील, पवित्रता विधायक और हमारे स्तुति भाजन ये दोनों हमारा स्तोत्र सुनकर प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 6.49.3]
Radiant Sun-Sury Dev has two daughters viz. day & night. One of them is lighted like the constellations and the other like the Sun. They are opposite to each other, move  separately, pure-pious and let both of them deserving worship by us; be happy by listening-responding to our Strotr.
प्र वायुमच्छा बृहती मनीषा बृहद्रयिं विश्ववारं रथप्राम्।
द्युतद्यामा नियुतः पत्यमानः कविः कविमियक्षसि प्रयज्यो॥
हमारी महती प्रार्थना महाधन सम्पन्न, अखिल लोकों के वन्दनीय और रथ के पूरक वायु देव के सम्मुख उपस्थित हों। हे सम्यक यज्ञ पात्र! समुज्ज्वल रथ पर आरूढ़, नियोजित अश्वों के अधिपति और दूरदर्शी मरुत देव! आप मेधावी स्तोता को धन के द्वारा संवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 6.49.4]
सम्यक :: सुसंगत, सर्वांगसम, सही, उचित, धर्मी, ईमानदार, वैध, कानूनी, विवेकपूर्ण, सम्पूर्ण, कुल; proper, thorough.
Let the wealthy, worshiped-revered in all abodes, enriched by our prayers, complementary of the charoite, present in front of Vayu Dev. Hey most suited for the Yagy! Riding radiant charoite, lord of the deployed horses and far sighted Marud Dev! Enrich the intelligent Stota with wealth.(12.10.2023)
स मे वपुश्छदयदश्विनोर्यो रथो विरुक्मान्मनसा युजानः।
येन नरा नासत्येषयध्यै वर्तिर्याथस्तनयाय त्मने च
जो रथ सोचने के साथ अश्व से नियोजित हो जाता है, अश्विनी कुमारों का वही समुज्ज्वल रथ दीप्ति द्वारा मेरी देह को आच्छादित करें। हे नेता अश्विनी कुमारों! रथ पर आरूढ़ होकर अपने स्तोता का मनोरथ पूर्ण करने के लिए उसके घर पधारें।[ऋग्वेद 6.49.5]
Let the radiance of the Ashwani Kumar's charoite which get deployed with horses just by thinking, should fall over my body. Hey leaders Ashwani Kumars! Reach at the house of the Stota riding the charoite to accomplish his desires.
पर्जन्यवाता वृषभा पृथिव्याः पुरीषाणि जिन्वतमप्यानि।
सत्यश्रुतः कवयो यस्य गीर्भिर्जगतः स्थातर्जगदा कृणुध्वम्
वर्षा करने वाले पर्जन्य और वायु देव आप अन्तरिक्ष से प्राप्त जल भेजें। हे ज्ञान सम्पन्न, स्तोत्र सुनने वाले और संसार-स्थापक मरुतों! जिसके स्तोत्र से आप प्रसन्न होते हैं, उसके समस्त प्राणियों को समृद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 6.49.6]
Hey rain causing Parjany & Vayu Dev divert the water from the space-sky to us. Hey enlightened, listeners of the Strotr and the establisher of the world, Marud Gan! You grow-nourish the living beings-animals of the person with who's Strotr you are pleased.
पावीरवी कन्या चित्रायुः सरस्वती वीरपत्नी धियं धात्।
ग्नाभिरच्छिद्रं शरणं सजोषा दुराधर्षं गृणते शर्म यंसत्
पवित्रता कारिणी, मनोहरा, विचित्र गमना और वीर पत्नी सरस्वती, हमारे यागादि कर्मों का निर्वाह करें। वे देव पत्नियों के साथ प्रसन्न होकर स्तोता को छेद रहित, शीत और वायु के लिए दुर्द्धर्ष घर और सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.49.7]
विचित्र :: अजीब, अनोखा, विलक्षण, पुराने ढंग का, चितला, बहुरंगा, रंग-बिरंगा; weird, bizarre, quaint, pied. 
Let Veer Patni Saraswati who causes purity-piousness, is attractive, moves in weird ways, accomplish our Yagy related deeds. She along with the wives of the demigods-deities grant a house free from holes being happy, which is cool, difficult for the air and comfortable.
पथस्पथः परिपतिं वचस्या कामेन कृतो अभ्यानळर्कम्।
स नो रासच्छुरुधश्चन्दाग्रा धियंधियं सीषधाति प्र पूषा
हे स्तोता! वाञ्छित फल के वश में आकर समस्त मार्ग के अधिपति पूषा के पास स्तोत्र के साथ उपस्थित होवें। वे हमें सोने की सींग वाली गौवें प्रदान करें। पूषा हमारे सम्पूर्ण कार्यों को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 6.49.8]
Hey Stota! Present in front of Pusha, the lord of all roads, under the control of desired reward with the Strotr. He should grant us cows with golden horns. Let Pusha accomplish our all endeavours.
प्रथमभाजं यशसं वयोधां सुपाणिं देवं सुगभस्तिमृध्वम्।
होता यक्षद्यजतं पस्त्यानामग्निस्त्वष्टारं सुहवं विभावा
देवों को बुलाने वाले और दीप्तिमान अग्नि देव त्वष्टा का यज्ञ करें। त्वष्टा सभी के आदि विभाजक, प्रसिद्ध अन्न दाता, शोभनपाणि, दान शील महान गृहस्थों के यजनीय और अनायास आह्वान के योग्य हैं।[ऋग्वेद 6.49.9]
विभाजक :: विभाग करनेवाला, बाँटनेवाला; separator, bulkhead.
Let the invoker of Demigods-deities, radiant Agni Dev accomplish the Yagy of Twasta. Twasta is the ancient divider of all, famous food grains granting, with beautiful hands, donor, worshipable by the great household and deserve to be invoked at random.
भुवनस्य पितरं गीर्भिराभी रुद्रं दिवा वर्धया रुद्रमक्तौ।
बृहन्तमृष्वमजरं सुषुम्रमृधग्घुवेम कविनेषितासः
हे स्तोता! दिन में इन समस्त स्तोत्रों के द्वारा भुवन पालक रुद्र देव का यशोगान करें और रात्रि में रुद्र देव की संवर्द्धना करें।[ऋग्वेद 6.49.10]
संवर्द्धन :: पालन पोषण, उन्नत होना, बढ़ाने वाला; enhancement.
Hey Stota! Sing songs-hymns in the glory of the nurturer of the world Rudr Dev during the day and at night his enhancement.
आ युवानः कवयो यज्ञियासो मरुतो गन्त गृणतो वरस्याम्।
अचित्रं चिद्धि जिन्वथा वृधन्त इत्था नक्षन्तो नरो अङ्गिरस्वत्
हे नित्य तरुण, ज्ञान-सम्पन्न और पूजनीय मरुद्गण! जहाँ याजक गण स्तोत्र करता है, वहाँ आवें। हे नेताओं! आप इसी प्रकार समृद्ध होकर और चलने वाली रश्मियों के सदृश व्याप्त होकर आप वर्षा द्वारा औषधियों से रहित वनों को तृप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.49.11]
Hey always young, enlightened and worshipable, Marud Gan! Come to the place where the Ritviz recite Strotr. Hey leaders! You saturate the forests with the medicines by rains and enriched rays. 
प्र वीराय प्र तवसे तुरायाजा यूथेव पशुरक्षिरस्तम्।
स पिस्पृशति तन्वि श्रुतस्य स्तृभिर्न नाकं वचनस्य विपः
जिस प्रकार पशु पालक गौओं के झुण्ड को शीघ्र परिचालित करता है, उसी प्रकार पराक्रान्त, भली और द्रुतगामी मरुतों के पास शीघ्र स्तोत्रों को प्रेरित करें। जिस प्रकार से अन्तरिक्ष नक्षत्र मण्डल द्वारा संश्लिष्ट है, उसी प्रकार वे ही मरुद्गण मेधावी स्तोता के सुश्राव्य स्तोत्र द्वारा अपनी देह को संश्लिष्ट करें।[ऋग्वेद 6.49.12]
The way the herd man quickly move the cow herd, similarly send-forward the Strotr to the fast moving Marud Gan. The way the space is composed of the constellations, the Marud Gan should synthesise-compose their body with the Strotr of the intelligent Stota.
यो रजांसि विममे पार्थिवानि त्रिश्चिद्विष्णुर्मनवे बाधिताय।
तस्य ते शर्मन्नुपदद्यमाने राया मदेम तन्वा ३ तना च
जिन श्री विष्णु देव ने उपद्रुत मनु के लिए त्रिपाद पराक्रम के द्वारा पार्थिव लोकों को नाप डाला, वही आपके द्वारा प्रदत्त गृह में निवास करें और हम धन, शरीर और पुत्रों से आनन्दित रहें।[ऋग्वेद 6.49.13]
Let Shri Hari Vishnu who covered the three abodes for Updrut Manu, reside in the house granted by you and we should remain happy with wealth, body and sons.
तन्नोऽहिर्बुध्यो अद्भिरर्कैस्तत्पर्वतस्तत्सविता चनो धात्।
तदोषधीभिरभि रातिषाचो भगः पुरंधिर्जिन्वतु प्र राये
हमारे मन्त्रों द्वारा स्तूयमान अहिर्बुध्न, पर्वत और सविता हमें जल के साथ अन्न प्रदान करें। दान शील विश्वदेव गण हमें औषधि के साथ वही अन्न प्रदान करें। सुबुद्धि देव भग हमें धन के लिए प्रेरित करें।[ऋग्वेद 6.49.14]
Let praiseworthy Ahirbudhn, Parwat and Savita provide us with water and food grains. Donor Vishw Dev grant us that food grains with medicine. Subuddhi Dev Bhag inspire us for wealth.
नू नो रयिं रथ्यं चर्षणिप्रां पुरुवीरं मह ऋतस्य गोपाम्। क्षयं दाताजरं येन जनान्त्स्पृधो अदेवीरभि च क्रमाम विश आदेवीरभ्य १ श्नवाम
हे विश्व देव गण! आप हमें रथ युक्त और असंख्य अनुचरों के साथ अनेक पुत्रों से युक्त यज्ञ का साधनभूत गृह और अक्षय्य अन्न प्रदान करें, जिसके द्वारा हम युद्ध करके शत्रुओं और देवशून्य सैनिकों को पराजित करें और देवभक्तों को आश्रय प्रदान करने में समर्थ हों।[ऋग्वेद 6.49.15]
Hey Vishw Dev Gan! Grant us charoite, many servants, many sons, food grains and a house for the Yagy, so that we can defeat the wicked enemies & impious soldiers and grant asylum to the devotees of the demigods-deities.(13.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- त्रिष्टुप।
हुवे वो देवीमदितिं नमोभिर्मृळीकाय वरुणं मित्रमग्निम्।
अभिक्षदामर्यमणं सुशेवं त्रातॄन्देवान्त्सवितारं भगं च
हे देवो! हम सुख के लिए स्तोत्र के साथ अदिति, वरुण, मित्र, अग्नि देव, शत्रु हन्ता और सेव्य, अर्यमा, सविता, भग और समस्त रक्षक देवों को बुलाते हैं।[ऋग्वेद 6.50.1]
Hey demigods-deities! We invoke Aditi, Varun, Mitr, Agni Dev and the slayer of enemies and serviceable Aryma, Savita, Bhag and all protective demigods-deities for comforts-pleasure with Strotr. 
सुज्योतिषः सूर्य दक्षपितॄननागास्त्वे सुमहो वीहि देवान्।
द्विजन्मानो य ऋतसापः सत्याः स्वर्वन्तो यजता अग्निजिह्वाः
हे दीप्ति सम्पन्न सूर्य देव! दक्ष से सम्भूत शोभन दीप्तिशाली देवों को हमारे अनुकूल करें। द्विजन्मा (स्वर्ग और पृथ्वी से उत्पन्न) देवगण यज्ञप्रिय, सत्यवादी, धन सम्पन्न, यागार्ह और अग्नि जिह्वा होते हैं।[ऋग्वेद 6.50.2]
संभूत :: जो किसी दूसरे के साथ उत्पन्न हुआ हो, उत्पन्न, जात, युक्त, सहित, बिल कुल बदला हुआ, उपयुक्त, योग्य, बराबर, समान; born together, born, equal.
Hey radiant Sury Dev! Make the demigods-deities favourable to us. The demigods born in the heaven and the earth, loves Yagy, are truthful, wealthy and Agni Dev accept the offerings in the Yagy for the demigods with his tongue.
The demigods originated from Brahma Ji which is divine birth-origin and the humans too become demigods who are virtuous, righteous, pious, humans. 
उत द्यावापृथिवी क्षत्रमुरु बृहद्रोदसी शरणं सुषुम्ने।
महस्करथो वरिवो यथा नोऽस्मे क्षयाय धिषणे अनेहः
स्वर्ग और पृथ्वी आपको अधिक बल दे। स्वर्ग और पृथ्वी हमारी स्वतन्त्रता के लिए विशाल गृह हमें प्रदान करें। ऐसा उपाय करें कि हमारे पास अतुल ऐश्वर्य हो जावें । हे सदय देवद्वय! हमारे गृह से पाप को हटावें।[ऋग्वेद 6.50.3]
अतुल :: अमित, असीम, अत्यधिक; nonpareil, unmatched, unlimited.
सदय :: मेहरबान, रहमदिल, कृपाशोल, दयालु, सज्जनतापूर्ण, समवेदनापूर्ण, कृपालु, सज्जनतापूर्ण, सदय, समवेदना पूर्ण; kindly, clement, kind.
Let the heaven and earth grant you more strength & power. Let the heaven & earth grant us homes for our freedom. They should act in such a way that we possess unlimited grandeur. Hey kind-clement duo! Remove the sins out of our house.
आ नो रुद्रस्य सूनवो नमन्तामद्या हूतासो वसवोऽघृष्टाः।
यदीमर्भे महति वा हितासो बाधे मरुतो अह्वाम देवान्
गृह दाता और अजेय रुद्र पुत्र गण इस समय बुलाने पर हमारे पास आवें। ये महान और युद्ध क्लेश के समय में हमें सहायता प्रदान करें; इसलिए हम मरुतों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.50.4]
House granting, invincible Rudr Putr Gan invoke on being requested at this moment here. Let great Marud Gan help us in bearing the torture of war.
मिम्यक्ष येषु रोदसी नु देवी सिषक्ति पूषा अभ्यर्धयज्वा।
श्रुत्वा हवं मरुतो यद्ध याथ भूमा रेजन्ते अध्वनि प्रविक्ते
जिन मरुतों के साथ दीप्तिमान स्वर्ग और पृथ्वी संश्लिष्ट हैं, जिन मरुतों की सेवा, धन के द्वारा, स्तोताओं को समृद्ध करने वाले पूषा देव करते हैं, ऐसे आप मरुद्गण! जिस समय हमारा आह्वान सुनकर आप आते हैं, उस समय आपके विभिन्न मार्गों में अवस्थित प्राणी भी कम्पायमान हो जाते हैं।[ऋग्वेद 6.50.5]
Marud Gan who are associated with the earth & the radiant heavens, served by Pusha Dev with riches & prosper the Stotas. When you come in response to our call, living beings around your route tremble.
अभि त्यं वीरं गिर्वणसमर्चेन्द्रं ब्रह्मणा जरितर्नवेन।
श्रवदिद्धवमुप च स्तवानो रासद्वाजाँ उप महो गृणानः
हे स्तोता! अभिनव स्तुति द्वारा प्रार्थना पात्र वीर इन्द्र देव की प्रार्थना करें। इस प्रकार प्रार्थना किए जाने पर इन्द्र देव हमारा आह्वान श्रवण करके हमें बल व अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.50.6]
Hey Stota! Worship deserving prayers Indr Dev with a decent Strotr. On being prayed in this manner Indr Dev will grant us strength and food grains.(14.10.2023)
ओमानमापो मानुषीरमृक्तं धात तोकाय तनयाय शं योः।
यूयं हि ष्ठा भिषजो मातृतमा विश्वस्य स्थातुर्जगतो जनित्रीः
हे जलराशि! आप मानव हितैषी हैं; इसलिए हमारे पुत्र-पौत्रों के लिए अनिष्ट घातक और रक्षक अन्न प्रदान करें। आप समस्त उपद्रवों को शान्त और दूर करें। आप माताओं की अपेक्षा श्रेष्ठ चिकित्सक हैं। आप स्थावर जंगम रूप संसार के उत्पादक है।[ऋग्वेद 6.50.7]
Hey water! Since, you are a well wisher of humanity, grant such food grains for our sons & grandsons which can destroy the evil and protect them. Calm down all troubles and repel them. You are a better doctor than the mother. You are the grower of dynamic and static beings.
आ नो देवः सविता त्रायमाणो हिरण्यपाणिर्यजतो जगम्यात्।
यो दत्रवाँ उषसो न प्रतीकं व्यूर्णुते दाशुषे वार्याणि
जो उषा मुख के सदृश याजक गण के पास अभिलषित धन प्रकट करते हैं, वे ही रक्षक, हिरण्य पाणि और पूजनीय सविता हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 6.50.8]
Worshipable, possessing golden limbs, protector, with the mouth like the Usha-day break Savita Dev grant the Ritviz desired wealth.
उत त्वं सूनो सहसो नो अद्या देवाँ अस्मिन्नध्वरे ववृत्याः।
स्यामहं ते सदमिद्राती तव स्यामग्नेऽवसा सुवीरः
हे शक्ति पुत्र अग्नि देव! हमारे यज्ञ में आज देवों को ले आवें। जिससे मैं सदा आपकी उदारता का अनुभव करूँ। हे देव! आपकी रक्षा के कारण मैं शोभन पुत्र-पौत्रादि से युक्त बनूँ।[ऋग्वेद 6.50.9]
Hey Shakti Putr Agni Dev! Bring the demigods-deities to our Yagy, so that I always keep your grace in mind. Hey Dev! I should be associated great-beautiful with son & grandsons by virtue of protection granted by you.
उत त्या मे हवमा जग्म्यातं नासत्या धीभिर्युवमङ्ग विप्रा।
अत्रिं न महस्तमसोऽमुमुक्तं तूर्वतं नरा दुरितादभीके
हे प्राज्ञ अश्विनी कुमारों! आप अपने श्रेष्ठ कर्मों के संग हमारे पास आयें। जिस प्रकार से अन्धकार से आपने अत्रि ऋषि को मुक्त किया, उसी प्रकार हमें भी मुक्त करें। हे नेतृ द्वय! आप हमें युद्ध के पापों से बचावें।[ऋग्वेद 6.50.10]
Hey prudent-intelligent Ashwani Kumars! Visit us with your excellent deeds. The way you liberated Atri Rishi from darkness, liberate us as well. Hey leader duo! Protect us from sins in the war.
ते नो रायो द्युमतो वाजवतो दातारों भूत नृवतः पुरुक्षोः।
दशस्यन्तो दिव्याः पार्थिवासो गोजाता अप्या मृळता च देवाः
हे देवो! आप हमें दीप्ति युक्त, बल कारी, पुत्रादि सम्पन्न और सुप्रसिद्ध धन प्रदान करें। स्वर्गीय (आदित्यगण), पार्थिव (वसुगण), गोजात (पृश्निपुत्र मरुद्गण) और जलजात (रुद्रगण), हमारे मनोरथों को पूर्ण करके हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.50.11]
Hey deities! Associate us with radiant, mighty, famous wealth and sons etc. Let divine Adity Gan, material Vasu Gan, Cows clan Prashni Putr Marud Gan and water clan Rudr Gan grant us pleasure-comforts.
ते नो रुद्रः सरस्वती सजोषा मीळ्हुष्मन्तो विष्णुर्मृळन्तु वायुः।
ऋभुक्षा वाजो दैव्यो विधाता पर्जन्यावाता पिप्यतामिषं नः
रुद्रदेव, सरस्वती, श्रीविष्णु, वायु, ऋभुक्षा, वाज और विधाता समान रूप से प्रसन्न होकर हमें सुख प्रदान करें। पर्जन्य और वायुदेव हमें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.50.12]
Let Rudr Dev, Shri Hari Vishnu, Vayu, Ribhuksha, Vaj and Vidhata become happy equally with us and grant us happiness-pleasure. Parjany Dev and Vayu Dev should grant us food grains.
उत स्य देवः सविता भगो नोऽपां नपादवतु दानु पप्रिः।
त्वष्टा देवेभिर्जनिभिः सजोषा द्यौर्देवेभिः पृथिवी समुद्रैः
हे प्रसिद्ध सविता देव! भग और जलराशि के पौत्र दानशील अग्नि देव हमारी रक्षा करें। देवों और देव पत्नियों के साथ समान रूप से प्रसन्न हुए त्वष्टा देव देवों के साथ समान प्रसन्न स्वर्ग तथा समुद्रों के साथ समान प्रसन्न पृथ्वी हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.50.13]
Hey Savita Dev! Let Bhag and the grandson of water, donor Agni Dev protect us. Let Twasta Dev become equally happy with us like the demigods & Goddesses & protect us on being happy like the heavens, earth and the oceans.
उत नोऽहिर्बुध्न्यः शृणोत्वज एकपात्पृथिवी समुद्रः।
विश्वे देवा ऋतावृधो हुवानाः स्तुता मन्त्राः कविशस्ता अवन्तु
हे अहिर्बुध्न! अज एकपाद, पृथ्वी और समुद्र हमारे स्तोत्रों को श्रवण करें। यज्ञ के समृद्धि कर्ता, हमारे द्वारा आहूत और स्तुत, मन्त्र प्रतिपाद्य और मेधावी ऋषियों द्वारा स्तूयमान विश्वदेव गण हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.50.14]
प्रतिपाद्य :: प्रतिपादन के योग्य, निरूपण करने के योग्य, कहने के योग्य, समझाने के योग्य, देने के योग्य, जो दिया जाने योग्य हो; predicable, tenable.
Hey Ahirbudhn! Let Aj-Ekpad, earth and ocean listen to our Strotr. The booster of Yagy, worshiped and prayed by us, tenable with Mantr & intelligent, praise deserving by Vishv Dev; protect us.
एवा नपातो मम तस्य धीभिर्भरद्वाजा अभ्यचन्त्यर्कैः।
ग्ग्रा हुतासो वसवोऽधृष्टा विश्वे स्तुतासो भूता यजत्राः
भरद्वाज गोत्रीय मेरे पुत्र इसी प्रकार के पूजा साधक स्तोत्र द्वारा देवों की प्रार्थना करते हैं। हे यज्ञार्ह देवो! आप हव्य द्वारा हुत, गृहदाता और अजेय हैं। आप देवपत्नियों के साथ सर्वत्र पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 6.50.15]
My sons of Bhardwaj clan, worship the demigods-deities in this manner with the means of worship Strotr. Hey Yagy desiring Deities! You are worshiped with offerings, grant us house and are invincible. You are worshiped along with the goddesses-wives of the demigods every where.(15.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- त्रिष्टुप, उष्णिक्, अनुष्टुप्!
उदु त्यच्चक्षुर्महि मित्रयोराँ एति प्रियं वरुणयोरदब्धम्।
ऋतस्य शुचि दर्शतमनीकं रुक्मो न दिव उदिता व्यद्यौत्
सूर्य देव की प्रसिद्ध, प्रकाशक, विस्तृत तथा मित्र और वरुण की प्रिय अप्रतिहत, निर्मल और मनोहर दीप्ति प्रकाशित होकर अन्तरिक्ष में अलंकार के सदृश शोभा पाती हैं।[ऋग्वेद 6.51.1]
Famous radiance of Sury Dev, broad-vast, dear to Mitr & Varun Dev, continuous, pure and attractive glorious light appears like jewel-ornaments in the sky-space.
वेद यस्त्रीणि विदथान्येषां देवानां जन्म सनुतरा च विप्रः।
ऋजु मर्तेषु वृजिना च पश्यन्नभि चष्टे सूरो अर्य एवान्
जो तीनों ज्ञातव्य भुवनों को जानते हैं, जो ज्ञान शाली हैं और देवों के दुर्ज्ञेय जन्म को जानते हैं, वही सूर्य देव मनुष्यों के सत् और असत् कर्मों को देखते हैं और स्वामी होकर मनुष्यों के अनुकूल मनोरथ को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 6.51.2]
दुर्ज्ञेय :: कठिनाई से जानने योग्य, जिसे जानना अत्यंत कठिन हो, जो जल्दी समझ में न आ सके, जिसे सरलता से जाना न जा सके, जो जल्दी से समझ में न आए, दुर्बोध; difficult to know.
He who knows the three abodes, is enlightened, aware of the incarnations-births of demigods-deities difficult to know, visualise-see the virtuous and wicked deeds of the humans and accomplish the desires of the humans becoming favourable to them.
स्तुष उवो मह ऋतस्य गोपानदितिं मित्रं वरुणं सुजातान्।
अर्यमणं भगमदब्धधीतीनच्छा वोचे सधन्यः पावकान्
मैं यज्ञ रक्षक और शोभन जन्मा अदिति, मित्र, वरुण, अर्यमा और भग की प्रार्थना करता हूँ। जिनके कार्य अप्रतिहता हैं, जो धनशाली और संसार को पवित्र करने वाली हैं, उनके यश का मैं भजन करता हूँ।[ऋग्वेद 6.51.3]
I worship-pray with glorious birth Aditi, Mitr, Varun, Aryma and Bhag who are the protectors of the Yagy. I sing the glory of those who's deeds are continuous, are wealthy, makes the universe pure-clean, uncontaminated.
रिशादसः सत्पर्तं रदब्धान्महो राज्ञः सुवसनस्य दातॄन्।
यूनः सुक्षत्रान्क्षयतो दिवो नॄनादित्यान्याम्यदितिं दुवोयु
हे हिंसकों को नष्ट करने वाले, साधुओं के पालक, अबाध प्रभाव, शक्तिमान अधीश्वर, शोभन गृहदाता, नित्य तरुण, अतीव ऐश्वर्यशाली स्वर्ग के नेता अदिति पुत्रों! मैं माता अदिति की शरण लेता हूँ; क्योंकि वह मेरी परिचर्या (सेवा) चाहती हैं।[ऋग्वेद 6.51.4]
Hey destroyer of the violent, nurturer of the sages-virtuous, with unrestricted impact, mighty lord, glorious granting house, possessor of extreme grandeur leaders of the heavens, sons of Aditi! I seek refuge under Mata Aditi, since she need-want my services.
द्यौ ३ ष्पितः पृथिवि मातरध्रुगग्ने भ्रातर्वसवो मृळता नः।
विश्व आदित्या अदिते सजोषा अस्मभ्यं शर्म बहुलं वि यन्त
हे पिता स्वर्ग, माता पृथ्वी, भ्राता अग्नि देव और वसुओं! आप हमें सुखी करें। हे अदिति के पुत्रों और माता अदिति! एकत्रित होकर आप हमें अधिक सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.51.5]
Hey father heaven, mother earth, brother Agni Dev and Vasu Gan! Make us comfortable. Hey sons of Mata Aditi and her sons! You grant us pleasure, together.
मा नो वृकाय वृक्ये समस्मा अघायते रीरधता यजत्राः।
यूयं हि ष्ठा रथ्यो नस्तनूनां यूयं दक्षस्य वचसो बभूव
हे याग योग्य देवों! आप हमें वृक और वृकी (अरण्य कुक्कुर और कुक्करी अथवा दस्यु और उसकी पत्नी) के हाथ में न जाने दें। आप हमारे शरीर, बल और वाणी के संचालक हैं।[ऋग्वेद 6.51.6]
संचालक :: निदेशक, रहनुमा, नेता, चालक, गाड़ी हाँकने वाला, चलाने वाला, प्रबंधक, व्यवस्थापक, मालिक, परिचालक; operator, director, driver, manager.
Hey offerings-Yagy deserving demigods-deities! Do not let us be captured Vrak & Vraki i.e., either by the jungle dogs & bitches or the dacoits and their wives. You are the director of body, strength and speech-voice.
मा व एनो अन्यकृतं भुजेम मा तत्कर्म वसवो यच्चयध्वे।
विश्वस्य हि क्षयथ विश्वदेवाः स्वयं रिपुस्तन्वं रीरिषीष्ट
हे देवो! हम आपके ही हैं। हम दूसरे के पापी क्लेश का अनुभव न करें। हे वसु गणों! जिसका आप निषेध करते हैं, उसका अनुष्ठान हम न करें। हे विश्वदेव गण! आप विश्व के अधिपति हैं; इसलिए ऐसा उपाय करें कि शत्रु अपने शरीर को स्वयं नष्ट कर डाले।[ऋग्वेद 6.51.7]
Hey demigods-deities! We are yours. We should not undergo punishment for others sins. Hey Vasu Gan! We should not perform the deeds restricted by you. Hey Vishw Dev Gan!  Since, you are the Lord of the universe, devise some means so that the enemy destroy his own body. 
नम इदुग्रं नम आ विवासे नमो दाधार पृथिवीमु॒त द्याम्।
नमो देवेभ्यो नम ईश एषां कृतं चिदेनो नमसा विवासे
नमस्कार सबसे बड़ी वस्तु है; इसलिए मैं नमस्कार करता हूँ। नमस्कार ही स्वर्ग और पृथ्वी को धारित करता है; इसलिए मैं देवों को नमस्कार करता हूँ। देवता लोग नमस्कार के वशीभूत हैं; इसलिए मैं नमस्कार द्वारा किये हुए पापों का प्रायश्चित करता हूँ।[ऋग्वेद 6.51.8]
नमस्कार :: अभिवादन, शुभकामना, नमस्कार, अभिनंदन, मुबारकबाद, सत्कार, वन्दना, प्रणाम, नमस्ते, आराधना, श्रद्धा, भक्ति, पूजा, श्रद्धा, भक्ति, पूजा, अति प्रेम, वंदन, शुभकामना, अभिनंदन, मुबारकबाद, सत्कार, greeting, salutation, adoration, accost, hello, bonjour, bow, regard, respect, salute, compliment, court, greeting.
प्रायश्चित :: पाप कर्म के फल, भोग से बचने हेतु किया जाने वाला शास्त्र विहित कर्म (दान, व्रत आदि), ग्लानिवश किया गया कठोर आचरण, atonement, penance. 
Salutation is great, hence I salute. Salutation bear-support the heaven & earth, hence I bow before the deities. The deities-demigods are under the impact of salutation. Hence, I subject myself to penances-atonement.
ऋतस्य वो रथ्यः पूतदक्षानृतस्य पत्स्यसदो अदब्धान्।
ताँ आ नमोभिरुरुचक्षसो नृन्विश्वान्व आ नमे महो यजत्राः
हे यज्ञ पालक देवो! मैं नमस्कार के साथ आप लोगों के पास प्रणत हो रहा हूँ; क्योंकि आप यज्ञ के नेता, विशुद्ध बल से युक्त, देव यजन गृह के निवासी, अजेय, बहुदर्शी, अधिनायक और महान हैं।[ऋग्वेद 6.51.9]
प्रणत :: झुका हुआ, नम्र, विनीत, दास, नौकर, सेवक; procumbent.
Hey deities supporting the Yagy! I salute you and procumbent before you since you are the lord of the Yagy, possess pure-pious strength, have rights over the house meant for worshiping demigods, invincible, visualize every thing, lord-leader and great.
ते हि श्रेष्ठवर्चसस्त उ नस्तिरो विश्वानि दुरिता नयन्ति।
सुक्षत्रासो वरुणो मित्रो अग्निर्ऋतधीतयो वक्मराजसत्याः
वे अच्छी तरह से दीप्ति युक्त हैं। वे ही हमारे सम्पूर्ण पापों का नाश करें। वरुण देव, मित्र और अग्नि देव शोभन बल वाले, सत्य कर्मा और स्तोत्र निरत व्यक्तियों के एकान्त पक्षपाती हैं।[ऋग्वेद 6.51.10]
निरत :: किसी काम में लगा हुआ रत, लीन, नाच; addict.
They are properly-thoroughly radiant. Let them vanish our all sins. Varun Dev, Mitr and Agni Dev possess demonstrable strength. They are truthful and favour the people who are addicted-busy with Strotr.
ते न इन्द्रः पृथिवी क्षाम वर्धन्पूषा भगो अदितिः पञ्च जनाः।
सुशर्माणः स्ववसः सुनीथा भवन्तु नः सुत्रात्रासः सुगोपाः
इन्द्र देव, पृथ्वी, पूषा, भग, अदिति और पञ्चजन (देव, गन्धर्व आदि) हमारे गृहों की रक्षा करें। वे हमारे सुख दाता, अन्न दाता, सत्पथ-प्रदर्शक, शोभन रक्षा करने वाले और आश्रय दाता हों।[ऋग्वेद 6.51.11]
Let Indr Dev, Prathvi-earth, Pusha, Bhag, Aditi and Panchjan (Dev, Gandarbh etc.) protect our homes. Let them become our granter of pleasure, food grains, guide-show righteous path, great protector and asylum granting.
नू सद्मानं दिव्यं नंशि देवा भारद्वाजः सुमतिं याति होता।
आसानेभिर्यजमानो मियेधैर्देवानां जन्म वसूयुर्वन्द
हे देवों! भरद्वाज गोत्रीय यह स्तोता शीघ्र ही एक दीप्तिमान गृह प्राप्त करें; क्योंकि वह आपकी कृपा चाहता है। हव्य दाता ऋषि अन्य यजमान गण के साथ धनार्थी होकर देवों की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.51.12]
Hey deities! This Stota of Bhardwaj clan request you to grant a radiant house along with your favours. The Rishis making offerings request for wealth, along with the other Ritviz who worship-pray the demigods-deities.
अप त्यं वृजिनं रिपुं स्तेनमग्ने दुराध्यम्। दविष्ठस्य सत्पते कृधी सुगम्
हे अग्नि देव! आप कुटिल, पापी और दुष्ट शत्रु को नष्ट करें। हे साधुओं के रक्षक! हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.51.13]
Hey Agni Dev! Destroy the cunning, sinner and wicked-vicious enemies. Hey protector of the sages! Grant us comforts-pleasure.
ग्रावाणः सोम नो हि कं सखित्वनाय वावशुः।
जही न्य१त्रिणं पणिं वृको हि षः
हे सोम देव! हमारे ये अभिषव पाषाण आपकी मित्रता चाहते हैं। आप भेड़िये की तरह स्वभाव वाले दण्डनीय पणि का संहार करें; क्योंकि वह वास्तव में दस्यु है।[ऋग्वेद 6.51.14]
Hey Som Dev! These grinding stones wish to be friendly with you. You should destroy Pani, who possess the nature of wolf & in fact is dacoit.
यूयं हि ष्ठा सुदानव इन्द्रज्येष्ठा अभिद्यवः।
कर्ता नो अध्वन्ना सुगं गोपा अमा
हे इन्द्रादि देवों! आप दान शील और दीप्ति शाली है। मार्ग में आप हमारे रक्षक और सुख दाता बनें।[ऋग्वेद 6.51.15]
Hey demigods-deities including Indr Dev! You are donor and radiant. You should become our protectors in the path and grant us comfort.
अपि पन्थामगन्महि स्वस्तिगामनेहसम्।
येन विश्वाः परि द्विषो वृणक्ति विन्दते वसु
हम उस पवित्र और सरल मार्ग में आ गये हैं, जिस मार्ग में जाने पर शत्रु दूर रहते हैं और धन का लाभ होता है।[ऋग्वेद 6.51.16]
We have come to that pious and simple road over which wealth is gained and the enemies are repelled.(16.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- त्रिष्टुप, जगती, गायत्री।
न तद्दिवा न पृथिव्यानु मन्ये न यज्ञेन नोत शमीभिराभिः।
उब्जन्तु तं सुभ्व१: पर्वतासो नि हीयतामतियाजस्य यष्टा
मैं इसे (ऋजिवा के यज्ञ को) द्युलोक अथवा देवों के अनुकूल नहीं समझता। यह मेरे द्वारा अनुष्ठित यज्ञ अथवा दूसरों द्वारा सम्पादित यज्ञ की तुलना करेगा, यह भी नहीं समझता। इसलिए समस्त महान पर्वत उसको प्रताड़ित करें।अतियाज के ऋत्विक् भी अत्यन्त दीनता प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.52.1]
दीनता :: नम्र, सादगी, विनम्रता, विनय; meekness, humility, lowliness.
I do not regard it as worthy of the demigods of heaven or those of earth, as fit to be compared with the sacrifices I offer or with these our sacred rites; let, then, the mighty mountains overwhelm him; let the employer of Atiyaj be ever degraded.
I do not consider this Yagy by Rijiva favourable either for the heavens or the earth. I am not sure whether it will be equivalent-comparable to the Yagy by others. Hence, all great mountains punish him. Let the Ritviz of Atiyaj attain humility.
अति वा यो मरुतो मन्यते नो ब्रह्म वा यः क्रियमाणं निनित्सात्।
तपूंषि तस्मै वृजिनानि सन्तु ब्रह्मद्विषमभि तं शोचतु द्यौः
हे मरुतो! जो व्यक्ति आपको हमारी अपेक्षा उत्तम समझता है और मेरे किये स्तोत्र की निन्दा करता है, सारी शक्तियाँ उसके लिए अनिष्टकारिणी बनें और स्वर्ग उस ब्राह्मणद्वेषी को दग्ध करे।[ऋग्वेद 6.52.2]
Hey Marud Gan! The person envious of Brahmans who considers you better than us, condemn my Strotr, let all his powers become his destroyer, the heavens should burn-turn him into ashes.
किमङ्ग त्वा ब्रह्मणः सोम गोपां किमङ्ग त्वाहुरभिशस्तियां नः।
किमङ्ग नः पश्यसि निद्यमानान्ब्रह्मद्विषे तपुषिं हेतिमस्य
हे सोमदेव! लोग आपको क्यों मन्त्र रक्षक कहते हैं? और क्यों आपको निन्दा से हमें उद्धार करने वाला बताया जाता है? शत्रुओं द्वारा हमारे निन्दित होने पर आप क्यों निरपेक्ष भाव से देखते रहते हैं? ब्राह्मण विद्वेषी के प्रति अपना सन्तापक आयुध फेकें।[ऋग्वेद 6.52.3]
Hey Som Dev! Why do people consider you protector of Mantr? Why are you considered as our savoir from reproach? Why do you maintain neutrality when we are condemned by the enemy? Launch your torturing weapon over the person who envy-torture Brahmans.
अवन्तु मामुषसो जायमाना अवन्तु मा सिन्धवः पिन्वमानाः।
अवन्तु मा पर्वतासो ध्रुवासोऽवन्तु मा पितरो देवहूतौ
आविर्भूत उषाएँ मेरी रक्षा करें। जल से भरी नदियाँ मेरा रक्षा करें। निश्चल पर्वत मेरी रक्षा करें। देव यजन काल में यज्ञ में उपस्थित हुए पितर और देवता मेरी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.52.4]
Let the rising Ushas protect me. Rivers full of water protect me. Stationary-rigid mountains protect me. Pitr & demigods-deities present during the prayers-Yagy protect me.
विश्वदानीं सुमनसः स्याम पश्येम नु सूर्यमुच्चरन्तम्।
तथा करद्वसुपतिर्वसूनां देवाँ ओहानोऽवसागमिष्ठः
हम सदैव स्वतन्त्र चित्त होवें। हम सदैव उदयोन्मुख सूर्यदेव के दर्शन करें। देवों के निमित्त आहुति को वहन करने वाले और धनों के अधिपति अग्नि देव हमें सुरक्षा प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 6.52.5]
Let us always remain happy. We should always see the rising Sun. Let Agni Dev who is the lord of wealth for the demigods-deities &  carrier of offerings to them, always protect us.
इन्द्रो नेदिष्ठमवसागमिष्ठः सरस्वती सिन्धुभिः पिन्वमाना।
पर्जन्यो न ओषधीभिर्मयोभुरग्निः सुशंसः सुहवः पितेव
इन्द्र देव और जलराशि के द्वारा स्फीत सरस्वती नदी हमारी रक्षा के साथ हमारे सम्मुख आवें। औषधियों के साथ पर्जन्य हमारे लिए सुख-दाता हों। पिता के सदृश अग्निदेव अनायास स्तुत्य और आह्वान योग्य हों।[ऋग्वेद 6.52.6]
स्फीत :: बढ़ा हुआ, फूला या उभरा हुआ; inflated, enlarged.
Let Indr Dev and river Saraswati full of water come to us for our protection. Let Parjany Dev grant us pleasure with the medicines. Agni Dev who is like father and worshipable deserve invocation.
विश्वे देवास आ गत शृणुता म इमं हवम्। एदं बर्हिर्नि षीदत 
हे विश्वदेव गण! आवें, मेरे आह्वान को श्रवण करें और बिछे हुए कुशों पर विराजें।[ऋग्वेद 6.52.6]
hey Vishw Dev Gan! Listen-respond to my invocation and occupy the Kush Mat.
यो वो देवा घृतस्नुना हव्येन प्रतिभूषति। तं विश्व उप गच्छथ
हे देवों! जो व्यक्ति घृत में मिले हव्य के द्वारा आपके निमित्त आहुतियाँ प्रदान करते हैं, उसके पास आप सब आवें।[ऋग्वेद 6.52.8]
Hey deities! You all should come to the person who makes offerings to you mixed with Ghee.
उप नः सूनवो गिरः शृण्वन्त्वमृतस्य ये। सुमृळीका भवन्तु नः
जो अमर के पुत्र हैं, वही विश्वदेव गण हमारा स्तोत्रों को श्रवण करें और हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.52.9]
Let Vishw Dev Gan, sons of Immortal-Amar listen to our Strotr and grant us pleasure.
विश्वे देवा ऋतावृध ऋतुभिर्हवनश्रुतः। जुषन्तां युज्यं पयः
यज्ञ के समृद्धिकारी और यथा समय स्तोत्रों के श्रवणकारी विश्वदेव गण अच्छी तरह से अपने-अपने उपयुक्त दुग्ध को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.52.10]
The boosters of Yagy and listeners of Strotr timely, Vishw Dev Gan accept properly the milk suitable to them.
स्तोत्रमिन्द्रो मरुद्गणस्त्वष्टृमान्मित्रो अर्यमा। इमा हव्या जुषन्त नः
मरुतों के साथ इन्द्र देव त्वष्टा के साथ मित्र अर्यमा हमारे स्तोत्र और समस्त हव्य को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.52.11]
Let Marud Gan alongwith Indr Dev, Twasta, Mitr & Aryma listen to our Strotr and accept the offerings.
इमं नो अग्ने अध्वरं होतर्वयुनशो यज। चिकित्वान्दैव्यं जनम्
हे देवों को बुलाने वाले अग्नि देव! देवों में जो महायोग्य हैं, उन्हें जानकर उनकी मर्यादा के अनुसार हमारी इस यज्ञक्रिया को सम्पादित करें।[ऋग्वेद 6.52.12]
Hey Agni Dev invoker of deities-demigods! Recognisee the most appropriate amongest the demigods-deities and initiate-perform the Yagy as per their dignity.
विश्वे देवाः शृणुतेमं हवं मे ये अन्तरिक्षे य उप द्यवि ष्ठ।
ये अग्निजिह्वा उत वा यजत्रा आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयध्वम्
हे विश्वदेव गण! आप अन्तरिक्ष, भूलोक या द्युलोक में रहते है। हमारा आह्वान श्रवण करें। अग्निरूप जिह्वा द्वारा या किसी भी प्रकार से हमारे इस यज्ञ को ग्रहण करें। सब लोग इन बिछे कुशों पर बैठकर सोमरस का पान कर आनन्दित होवें।[ऋग्वेद 6.52.13]
Hey Vishw Dev Gan! You reside in the space, earth or heavens. Listen to our invocation. Accept our Yagy with the tongue in the form of Agni-fire. All of you should occupy this Kush Mat and enjoy Somras.
विश्वे देवा मम शृण्वन्तु यज्ञिया उभे रोदसी अपां नपाच मन्म।
मा वो वचांसि परिचक्ष्याणि वोचं सुम्नेष्विद्वो अन्तमा मदेम
हे याज्ञार्ह विश्वदेव गण! स्वर्ग, पृथ्वी और जलराशि के पौत्र अग्निदेव हमारे स्तोत्र को सुनें। हे देवो! जो स्तोत्र आपको अग्राह्य हैं, उसका हम उच्चारण न करें। हम आपके निकटस्थ होकर और सुख प्राप्त कर प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 6.52.14]
Hey Vishw Dev Gan, desirous of Yagy! Let Agni Dev, the son of heavens, earth and the water, listen to our Strotr. Hey demigods-deities! Let us not recite the Strotr which you do not wish to listen. We should have comforts-pleasure in your proximity.
ये के च ज्मा महिनो अहिमाया दिवो जज्ञिरे अपां सधस्थे।
ते अस्मभ्यमिषये विश्वमायुः क्षप उस्रा वरिवस्यन्तु देवाः
पृथ्वी, स्वर्ग अथवा अन्तरिक्ष में प्रादुर्भूत, महान और संहारक शक्ति से युक्त देवगण दिन रात हमें और हमारी सन्ततियों को अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.52.15]
Let earth, heavens or the deities-demigods evolved in the space, should possess striking power and grant food grains to our progeny day & night.
अग्नीपर्जन्याववतं धियं मेऽस्मिन्हवे सुहवा सुष्टुतिं नः।
इळामन्यो जनयद्गर्भमन्यः प्रजावतीरिष आ धत्तमस्मे
अग्नि देव और पर्जन्य हमारे यज्ञ कार्य की रक्षा करें। आप अनायास आह्वान के योग्य हैं; इसलिए इस यज्ञ में हमारा स्तोत्रों को श्रवण करें। आपमें से एक व्यक्ति अन्न प्रदान करते हैं और दूसरे गर्भ उत्पन्न करते हैं। इसलिए आप हमें सन्तति के साथ अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.52.16]
Let Agni Dev & Parjany Dev protect our Yagy. You deserve invocation at any time, therefore listen to our Strotr. One of you grant food grains and the other one develop-grow the foetus. Hence, grant food grains to our progeny.
स्तीर्णे बर्हिषि समिधाने अग्नौ सूक्तेन महा नमसा विवासे।
अस्मिन्नो अद्य विदथे यजत्रा विश्वे देवा हविषि मादयध्वम्
पूजनीय विश्वदेव गण! आज हमारे इस यज्ञ में कुश बिछने पर, अग्नि प्रज्वलित होने पर और मेरे स्तोत्र उच्चारण और नमस्कार के साथ आपकी सेवा करने पर हव्य द्वारा तृप्ति प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.52.17]
Hey revered-honoured Vishw Dev Gan! You should be content-satisfied when we lay the Kush Mat, ignite fire, recitation of Strotr by me, saluting and serving you.(17.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- मनु वैवस्वत; देवता :-विश्वेदेवा; छन्द :- प्रगाध।
अग्निरुक्थे पुरोहितो ग्रावाणो बर्हिरध्वरे।
ऋचा यामि मरुतो ब्रह्मणस्पतिं देवाँ अवो वरेण्यम्
इस स्तोत्रात्मक यज्ञ में अग्नि देव सोमाभिषव के लिए प्रस्तर और कुश के अग्रभाग में स्थापित हुए हैं। मरुद्गण, ब्रह्मणस्पति और अन्य देवताओं से स्तुति द्वारा रक्षा की प्राप्ति के लिए मैं प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 8.27.1]
In this Strotr Yagy, Agni Dev has been established in front of the stone and Kush for Somabhishav. I pray to Marud Gan, Brahman Spati and other demigods-deities for protection. 
आ पशुं गासि पृथिवीं वनस्पतीनुषासा नक्तमोषधीः।
विश्वे च नो वसवो विश्ववेदसो धीनां भूत प्रावितारः
हे अग्नि देव! हमारे यज्ञ में पशु के निकट आते हैं। इस पृथ्वी (यज्ञशाला) और वनस्पति के समीप आते हैं। प्रातःकाल तथा रात्रि में सोमाभिषव के लिए प्रस्तर के निकट आते हैं। सर्वज्ञाता विश्वदेव गण हमारे कर्मों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.27.2]
Hey Agni Dev! Let animals, vegetation, come close in our Yagy. The stones should come close in the morning and night for extraction of Somras. Let Vishw Dev protect our efforts-endeavours.
प्र सू न एत्वध्वरो ३ ग्ना देवेषु पूर्व्यः। आदित्येषु प्र वरुणे धृतव्रते मरुत्सु विश्वभानुषु
प्राचीन यज्ञ अग्नि देव और अन्य देवताओं के पास उत्तमता के साथ जावें एवं आदित्यों, धृतव्रत वरुण देव और तेजस्वी मरुतों के निकट भी जावें।[ऋग्वेद 8.27.3]
उत्तमता :: श्रेष्ठता, प्रधानता; excellence, primness.
Eternal Yagy Agni Dev should move to other demigods-deities with excellence in addition to Adity Gan, Ghratvrat, Varun Dev, Varun Dev and radiant Marud Gan.
विश्वे हि ष्मा मनवे विश्ववेदसो भुवन्वृधे रिशादसः।
अरिष्टेभिः पायुभिर्विश्ववेदसो यन्ता नोऽवृकं छर्दिः॥
बहुधनशाली और शत्रु नाशक विश्वदेव गण मनु की वृद्धि के लिए हों। हे सर्वज्ञाता देवों! अहिसित पालन के साथ हमें बाधा रहित गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.27.4]
Possessor of several kind of wealth and destroyer of enemy Vishw Dev should glow-flourish. Hey all knowing demigods-deities! Grant us a safe house free from disturbances.
आ नो अद्य समनसो गन्ता विश्वे सजोषसः।
ऋचा गिरा मरुतो देव्यदिते सदने पस्त्ये महि
हे विश्वे देवों! स्तोत्रों में समानमना और परस्पर सङ्गत होकर वचन और ऋचा के साथ आज के यज्ञ दिन में हमारे समीप पधारें। मरुतों और महत्त्वपूर्ण माता अदिति हमारे उस गृह (यज्ञ) में विराजमान हों।[ऋग्वेद 8.27.5]
Hey Vishw Dev Gan! Let the Strotr become equitable and come along with themes & Richa while coming to us on the day of Yagy. Let Marud Gan and Mata Aditi should also be present on the day of Yagy.
अभि प्रिया मरुतो या वो अश्वया हव्या मित्र प्रयाथन।
आ बर्हिरिन्द्रो वरुणस्तुरा नर आदित्यासः सदन्तु नः
हे मरुतों! अपने प्रिय अश्वों को इस यज्ञ में भेजें अथवा अश्वों से युक्त होकर पधारें। हे मित्र! हव्य के लिए पधारें। इन्द्रदेव, वरुणदेव और युद्ध में शत्रुवध के लिए क्षिप्रकर्ता तथा नेता आदित्यगण हमारे कुशों पर विराजें।[ऋग्वेद 8.27.6]
क्षिप्रकर्ता :: precipitating factor.
Hey Marud Gan! Send your dear horses to this Yagy. Hey Mitr! Come to have offerings. Slayer of the enemies and precipitating Indr Dev, Varun Dev and Adity Gan should occupy Kush Mats.
वयं वो वृक्तबर्हिषो हितप्रयस आनुषक्।
सुतसोमासो वरुण हवामहे मनुष्वदि द्धाग्नयः
हे वरुण देव! मनु के समान हम सोमाभिषव करके और अग्नि देव को समिद्ध करके हवि को स्थापित और कुश का छेदन करते हुए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.27.7]
Hey Varun Dev! We invoke you by extracting Somras like Manu and offering wood-Samidha to Agni Dev, piercing Kush.
आ प्र यात मरुतो विष्णो अश्विना पूषन्साकीनया धिया।
इन्द्र आ यातु प्रथमः सनिष्युभिर्वृषा यो वृत्रहा गृणे
मरुद्रण, भगवान् विष्णु, अश्विनी कुमारों और पूषा देव मेरी स्तुति के साथ यज्ञ में पधारें। देवताओं के बीच प्रथम इन्द्र देव भी आवें। इन्द्राभिलाषी स्तोता लोग इन्द्र देव को वृत्रहा भी कहते हैं।[ऋग्वेद 8.27.8]
Let Marud Gan, Bhagwan Shri Hari Vishnu, Pusha Dev and prominent amongest the demigods-deities Indr Dev should also join my Yagy. Desirous of invoking Stotas nick name Indr Dev as Vratraha.
वि नो देवासो अद्गुहोऽच्छिद्रं शर्म यच्छत।
न यद्दूराद्वसवो नू चिदन्तितो वरूथमादधर्षति
हे द्रोह रहित देवों! हमें बाधा रहित गृह प्रदान करें। हे वासदाता देवी! दूर अथवा समीप के देश से आकर कोई कभी वरणीय गृह को नष्ट नहीं करता।[ऋग्वेद 8.27.9]
द्रोह :: दुष्टता, हानिकरता, नुक़सानदेहता, कपट, नमकहरामी, बेवफ़ाई, राज-द्रोहिता, द्वेष, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता; अनिष्ट चाहना, हिंसा; treachery, malignancy, disloyalty, malevolence.
वरणीय :: पूजनीय, पूज्य, श्रेष्ठ, बड़ा, चुनने या ग्रहण करने योग्य, वरण योग्य; eligible, to be applied to or solicited for a boon, to be selected, to ask as a boon, to choose.
Hey Demigod-deities free from disloyalty! Grant us house free from troubles-tortures. Hey Vas Data Devi! None from far or near should be able to destroy the house chosen by us.
अस्ति हि वः सजात्यं रिशादसो देवासो अस्त्याप्यम्।
प्र णः पूर्वस्मै सुविताय वोचत मश्रू सुम्नाय नव्यसे
हे शत्रु भक्षक देवों! आपमें स्वजातिभाव और मित्रभाव हैं। प्रथम अभ्युदय और नवीन धन के लिए शीघ्र और उत्तमता से हमें उपदिष्ट करें।[ऋग्वेद 8.27.10]
उपदिष्ट :: उपदेश दिया हुआ, सिखलाया हुआ, preached.
Hey eaters of the enemy! You possess sense of oneness and friendliness. Guide us for progress and earning money enthusiastically.
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