Friday, May 29, 2015

रति (ऋग्वेद 1)

‎रति
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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 ॐ गं गणपतये नमः।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (179) ::  ऋषि :- लोपामुद्रा, अगस्त्य, देवता :- रति,  छन्द :- त्रिष्टुप्, बृहती।
पूर्वीरहं शरदः शश्रमाणा दोषा वस्तोरुषसो जरयन्तीः। 
मिनाति श्रियं जरिमा तनूनामप्यू नु पत्नीर्वृषणो जगम्युः
लोपामुद्रा कहती हैं :- हे अगस्त्य! अनेक वर्षों से मैं दिन-रात बुढ़ापा लाने वाली उषाओं में आपकी सेवा करके श्रान्त हुई हूँ। बुढ़ापा शरीर के सौन्दर्य व क्षमताओं का नाश कर देता है; इसलिए उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए सामर्थवान् पुरुष ही पत्नियों के पास जायें।[ऋग्वेद 1.179.1]
श्रान्त :: श्रम के कारण शिथिल होना; exhausted,  a weary, fatigued, tired, description.
लोपामुद्रा महर्षि अगस्त्य की पत्नी थीं। इनको वरप्रदा और कौशीतकी भी कहते हैं। इनका पालन-पोषण विदर्भराज निमि या क्रथपुत्र भीम ने किया, इसलिए इन्हें वैदर्भी भी कहते थे। महर्षि अगस्त्य से विवाह हो जाने पर राजवस्त्र और आभूषण का परित्याग कर, इन्होंने पति के अनुरूप वल्कल एवं मृगचर्म धारण किया। महर्षि अगस्त्य द्वारा प्रहलाद के वंशज इत्वल से पर्याप्त धन ऐश्वर्य प्राप्त होने पर दोनों में समागम हुआ, जिससे दृढस्यु' नामक पराक्रमी पुत्र की उत्पत्ति हुई। भगवान् श्री राम अपने वनवास में लोपामुद्रा तथा अगस्त्य से मिलने उनके आश्रम गए थे। वहाँ ऋषि ने उन्हें उपहार स्वरूप धनुष, अक्षय तूणीर तथा खड्ग दिए थे। लोपामुद्रा ने माता सीता को साड़ी भेंट की जो कभी मैली नहीं होती थी। 
लोपामुद्रा :- मैं वर्षों से दिन-रात जरा की सन्देश वाहिका उषाओं में तुम्हारी सेवा करती हूँ। वृद्धावस्था शरीर सौन्दर्य को समाप्त करती है। इसलिए यौवन काल में ही पति-पत्नी गृहस्थ धर्म का पालन करके उसके उद्देश्य को पूर्ण करें।
Lopa Mudra, wife of August Rishi told him that she was fatigued by serving him day & night. Old age looses the beauty-charm of the body. Hence, a woman should make endeavours to carry out the duties of Grahasthashram-house hold, family life i.e., reproduction. She said that the male should mate with his wife only when he is sexually fit & fine i.e., potent.
ये चिद्धि पूर्व ऋतसाप आसन्त्साकं देवेभिरवदन्नृतानि ते।  
चिदवासुर्नह्यन्तमापु: समू नु पत्नीर्वृषभिर्जगम्युः
हे अगस्त्य! जो प्राचीन और सत्य रक्षक लोग देवताओं के साथ रहते थे, उन्होंने भी संतान उत्पत्ति के कार्य का निर्वाहन किया और अन्त तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नहीं किया। काम में समर्थ ऐसे पुरुषों को उन्हीं के अनुकूल पत्नियाँ प्राप्त हुई।[ऋग्वेद 1.179.2]
धर्म पालन पुरातन ऋषि-देवताओं से सच बोला करते थे। वे क्षीण हो गये तथा जीवन के परम फल को प्राप्त नहीं हुए, इसलिए पति-पत्नी को संयमशील विद्या के अध्ययन में रत विद्वान को भी उपयुक्त दशा में काम भाव प्राप्त होता है और वह अनुकूल पत्नी को प्राप्त कर संतान उत्पादन का कार्य करता है।
Hey August! The ancient truthful people who accompanied the demigods, too followed the procedure & dictates, pertaining to reproduction and avoided chastity till end. Such people who were potent got the wives who too were like them.
न मृषा श्रान्तं यदवन्ति देवा विश्वा इत्स्पृधो अभ्यश्नवाव। 
जयावेदत्र शतनीथमाजिं यत्सम्यचा मिथुनावभ्यजाव
अगस्त्य ऋषि कहते हैं :- हमारी साधना व्यर्थ नहीं गई, क्योंकि देवता लोग रक्षा करते है। हम सारे भोगों का उपभोग कर सकते हैं। यदि हम दोनों चाहें तो इस संसार में हम सैकड़ों भोगों के साधन प्राप्त कर सकते हैं।[ऋग्वेद 1.179.3]
अगस्त्य :- हमने व्यर्थ में परिश्रम नहीं किया। देवगण हमारे रक्षक हैं। हम स्पर्द्धा करने वालों को वश में करते और सैकड़ों साधनों का उपभोग करते हैं। 
August said that their labour was noted since the demigods protected them. They were capable of enjoying all sorts of comforts & luxuries.
नदस्य मा रुधतः काम आगन्त्रित आजातो अमुतः कुतश्चित्।
लोपामुद्रा वृषणं नी रिणाति धीरमधीरा धयति श्वसन्तम्
यद्यपि मैं जय और संयम में नियुक्त हूँ तथापि इसी कारण या किसी भी कारण, मुझ में काम का समावेश हो गया है। सेचन करने वाली लोपामुद्रा पति के साथ संगत है। घास पर संयम रखने वाले धीर पुरुष ही काम वेग पर नियन्त्रण कर पाते है।[ऋग्वेद 1.179.4]
नर-नारी संयुक्त रूप से गृहस्थ सेवन के लिए मुझे ग्रहण हों, धैर्यवान व्यक्ति को मैं धारण करूँ।
Though I am engaged in controlling self, yet due to this or some other reason the sensuality-sexuality is troubling me. Lopa Mudra who is determined and controls her self, is with her husband. 
इमं नु सोममन्तितो हृत्सु पीतमुप ब्रुवे। 
यत्सीमागश्चकृमा तत्सु मृळतु पुलुकामो हि मर्त्यः
सोमरस के समीप जाकर उसका पान करता हुआ शिष्य कहता है कि मनुष्य तो अनेक इच्छाओं का दास है। अगर इस इच्छा के कारण मेरे मन में कोई विकार उत्पन्न हुआ हो तो यह सोमरस अपने प्रभाव से उसे शुद्ध कर दे।[ऋग्वेद 1.179.5]
शिष्य :- मैं मन से पान किये हुए इस सोम की प्रार्थना करता हूँ। यदि हमसे कोई भूल हुई हो तो उसे वे माफ करें क्योंकि प्राणी अनेक इच्छाओं से युक्त होता है।
The disciple-student (follower) sips Somras and says that a humans being is slave of desires-wishes, wants. If some sort of defect has creped into his mind, it should be removed by the Somras due to its impact-effect. 
अगस्त्यः खनमानः खनित्रैः प्रजामपत्यं बलमिच्छमानः। 
उभौ वर्णावृषिरुग्रः पुपोष सत्या देवेष्वाशिषो जगाम
उग्र ऋषि अगस्त्य ने अनेक उपायों का उद्भावन करके, बहुत पुत्रों और बल की इच्छा करके काम और तप दोनों वरणीय वस्तुओं का पालन किया और देवताओं से यथार्थ आशीर्वाद को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.179.6]
विभिन्न साधनाओं से अगस्त्य ऋषि ने अनेक संतान और बल की कामना से दोनों वरणीय वस्तुओं को पुष्ट किया और देवताओं से सच्चे आशीर्वाद को प्राप्त किया।
August Rishi used various ways & means, desired many sons and strength, accomplished-attained both sex and ascetics, having blessings of the demigods.
 
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