Friday, June 6, 2014

ARTI MALA आरती माला

ARTI MALA 
आरती माला
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्। 
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
ॐ जय शिव ओंकारा ::
एकानन (एकमुखी, विष्णु), चतुरानन (चतुर्मुखी, ब्रम्हा) और पंचानन (पंचमुखी, शिव) राजे..
हंसासन (ब्रम्हा) गरुड़ासन (विष्णु) वृषवाहन (शिव) साजे..
दो भुज (विष्णु), चार चतुर्भुज (ब्रम्हा), दसभुज (शिव) अति सोहे..
अक्षमाला (रुद्राक्ष माला, ब्रम्हाजी), वनमाला (विष्णु) रुण्डमाला (शिव) धारी..
चंदन (ब्रम्हा ), मृगमद (कस्तूरी विष्णु ), चंदा (शिव) भाले शुभकारी (मस्तक पर शोभा पाते हैं)..
श्वेताम्बर (सफेदवस्त्र, ब्रम्हा) पीताम्बर (पीले वस्त्र, विष्णु) बाघाम्बर (बाघ चर्म ,शिव) अंगे..
ब्रम्हादिक (ब्राह्मण, ब्रह्मा) सनकादिक (सनक आदि, विष्णु) प्रेतादिक (शिव) संगे (साथ रहते हैं)..
कर के मध्य कमंडल (ब्रम्हा), चक्र (विष्णु), त्रिशूल (शिव) धर्ता..
जगकर्ता (ब्रम्हा) जगहर्ता (शिव) जग पालनकर्ता (विष्णु)..
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका (अविवेकी लोग इन तीनों को अलग अलग जानते हैं।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका
(सृष्टि के निर्माण के मूल ऊँकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते है... आगे सृष्टि-निर्माण, सृष्टि-पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते हैं.
त्रि-देव रुप के लिए वेदों में ओंकार नाद को ओ३म् के रुप में प्रकट किया गया है।
आरती श्री गणेश जी ::
जय गणेश जय  गणेश, जय  गणेश  देवा।
 माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ 
एक दन्त  दयावन्त, चार भुजा धारी। 
मस्तक  सिन्दूर  सोहे, मूसे की सवारी॥ 

अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥ 
हार चढ़ें फूल चढ़ें, और चढ़ें  मेवा।  
लड्वडून को भोग लगे, सन्त करें सेवा॥
दीनन की  लाज राखो, शम्भु सुत वारी।
 कामना को पूरी करो, जग बलिहारी॥ 
जय गणेश जय गणेश ,जय गणेश देवा।
 माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ 
पार्वती के पुत्र कहावो, शंकर सुत स्वामी। 
गजानन्द गणनायक, भक्तन के स्वामी॥
 ऋद्धि सिद्धि के मालिक, मूषक असवारी। 
कर जोड़ विनती करते, आनन्द उर भारी॥
प्रथम आपको पूजत, शुभ मंगल दाता।
 सिद्धि होय सब कारज, दारिद्र हट जाता॥
 सुंड सुंडला इंद्र इन्द्राला, मस्तक पर चंदा।
 कारज सिद्ध कराओ, काटो सब फंदा॥ 
 गणपति जी की आरती, जो कोई नर गावै। 
तब बैकुण्ठ परम पद, निश्चित ही पावै॥
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा; 
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा। 
एक दिन दयावन्त चार भुजा धारी; 
मस्तक सिन्दूर सोहे मुसे की सवारी। 
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा; 
लड्डूअन का भोग लगे सन्त करें सेवा। 
अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया; 
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया। 
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा; 
सूरश्याम शरण आए सुफल कीजे सेवा। 
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा; 
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा। 
विध्न-हरण मंगल-करण, काटत सकल कलेस; 

सबसे पहले सुमरिये गौरीपुत्र गणेश।
संकटनाशन स्तोत्र-नारद पुराण ::
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्। 
भक्तावासं स्मरेनित्यम आयुष्कामार्थ सिध्दये॥1॥
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिङगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥2॥
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धुम्रवर्णं तथाषष्टम॥3॥
नवमं भालचंद्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥4॥
द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिध्दीकर प्रभो॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। 
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम॥6॥
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासे फलं लभेत्। 
संवत्सरेण सिध्दीं च लभते नात्र संशय:॥7॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत। 
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥8॥
श्री गणेश स्‍तुति ::
गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय धीमहि। 
गुणशरीराय गुणमण्डिताय गुणेशानाय धीमहि। 
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि। 
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि। 
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि॥ 
गानचतुराय गानप्राणाय गानान्तरात्मने। 
गानोत्सुकाय गानमत्ताय गानोत्सुकमनसे। 
गुरुपूजिताय गुरुदेवताय गुरुकुलस्थायिने। 
गुरुविक्रमाय गुह्यप्रवराय गुरवे गुणगुरवे। 
गुरुदैत्यगलच्छेत्रे गुरुधर्मसदाराध्याय। 
गुरुपुत्रपरित्रात्रे गुरुपाखण्डखण्डकाय। 
गीतसाराय गीततत्त्वाय गीतगोत्राय धीमहि। 
गूढगुल्फाय गन्धमत्ताय गोजयप्रदाय धीमहि। 
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि। 
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि। 
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि॥ 
ग्रन्थगीताय ग्रन्थगेयाय ग्रन्थान्तरात्मने। 
गीतलीनाय गीताश्रयाय गीतवाद्यपटवे। 
गेयचरिताय गायकवराय गन्धर्वप्रियकृते। 
गायकाधीनविग्रहाय गङ्गाजलप्रणयवते। 
गौरीस्तनन्धयाय गौरीहृदयनन्दनाय। गौरभानुसुताय गौरीगणेश्वराय। 
गौरीप्रणयाय गौरीप्रवणाय गौरभावाय धीमहि। 
गोसहस्राय गोवर्धनाय गोपगोपाय धीमहि। 
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि। 
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि। 
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि॥
 आरती माँ गौरी ::
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी; तुम को निस दिन ध्यावत।
मैयाजी को निस दिन ध्यावत; हरि ब्रह्मा शिवजी, जय अम्बे गौरी,
माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को; मैया टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको, जय अम्बे गौरी॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे; मैया रक्ताम्बर साजे।
रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे; अम्बे गौरी॥
केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी; मैया खड्ग कृपाण धारी।
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी; जय अम्बे गौरी॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती; मैया नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति; जय अम्बे गौरी॥
शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर घाती; मैया महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती, जय अम्बे गौरी॥
चण्ड मुण्ड शोणित बीज हरे; मैया शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे; जय अम्बे गौरी॥
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी; तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी; जय अम्बे गौरी॥
चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों; मैया नृत्य करत भैरों।
बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू; जय अम्बे गौरी॥
तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता; मैया तुम ही हो भर्ता।
भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता; जय अम्बे गौरी॥
भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी; मैया वर मुद्रा धारी।
मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी; जय अम्बे गौरी॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बात; मैया अगर कपूर बाती।
माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती; बोलो जय अम्बे गौरी॥
माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे; मैया जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे; जय अम्बे गौरी ॥
सरस्वती वन्दना MAA SARASWATI PRAYER ::
बीज मन्त्र :: ऐं 
सरस्वती मन्त्र: ॐ ह्रां ऐं ह्रीं सरस्वतयै नमः।
मानस-पूजा :: 
ॐ ऐं क्लीं सौः ह्रीं श्रीं ध्रीं वद वद वाग्-वादिनि सौः क्लीं ऐं श्रीसरस्वत्यै नमः। 
सरस्वती वन्दना ::
शुक्लां ब्रह्म-विचार-सार-परमां आद्यां जगद्-व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फाटिक-मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धि-प्रदां शारदाम्॥1॥
या कुन्देन्दु-तुषार-हार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता, या वीणा वर-दण्ड-मण्डित-करा या श्वेत-पद्मासना। या ब्रह्माऽच्युत-शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा सेविता, 
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष-जाड्यापहा॥2॥
ह्रीं ह्रीं ह्रीं हृद्यैक-बीजे शशि-रुचि-कमले कल-विसृष्ट-शोभे, भव्ये भव्यानुकूले कुमति-वन-दवे विश्व-वन्द्यांघ्रि-पद्मे। पद्मे पद्मोपविष्टे प्रणत-जनो मोद सम्पादयित्री, प्रोत्फुल्ल-ज्ञान-कूटे हरि-निज-दयिते देवि! संसार तारे॥3॥
ऐं ऐं दृष्ट-मन्त्रे कमल-भव-मुखाम्भोज-भूत-स्वरुपे, रुपारुप-प्रकाशे सकल-गुण-मये निर्गुणे निर्विकारे। न स्थूले नैव सूक्ष्मेऽप्यविदित-विभवे नापि विज्ञान-तत्त्वे, विश्वे विश्वान्तराले सुर-वर-नमिते निष्कले नित्य-शुद्धे॥4॥

इन मंत्रों का 5,00,000 बार जाप करने से सरस्वती कण्ठ में वास करती है।
सरस्वती स्त्रोत्र ::
ॐ रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं, हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम्!
मुनि-वृन्द-गजेन्द्र-समान-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥1॥
शशि-शुद्ध-सुधा-हिम-धाम-युतं, शरदम्बर-बिम्ब-समान-करम्।
बहु-रत्न-मनोहर-कान्ति-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥2॥
कनकाब्ज-विभूषित-भीति-युतं, भव-भाव-विभावित-भिन्न-पदम्।
प्रभु-चित्त-समाहित-साधु-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥3॥
मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं, सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।
परि-पूरित-विशवमनेक-भवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥4॥
सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं, विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।
निज-कान्ति-विलायित-चन्द्र-शिवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥5॥
भव-सागर-मज्जन-भीति-नुतं, प्रति-पादित-सन्तति-कारमिदम्।
विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥6॥
परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं, परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।
सुर-योषित-सेवित-पाद-तमं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥7॥

गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं, गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।
कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥8॥

सरस्वती की पूर्ण कृपा एवं मोक्ष प्राप्त करने हेतु इस स्तोत्र का प्रतिदिन कम से कम तीन बार अवश्य पाठ करें।
सरस्वती आराधना ::
इदं स्तोत्रं महा-पुण्यं, ब्रह्मणा परिकीर्तितं।
यः पठेत् प्रातरुत्थाय, तस्य कण्ठे सरस्वती॥
त्रिसंध्यं यो जपेन्नित्यं, जले वापि स्थले स्थितः।
पाठ-मात्रे भवेत् प्राज्ञो, ब्रह्म-निष्ठो पुनः पुनः॥
हृदय-कमल-मध्ये, दीप-वद् वेद-सारे।
प्रणव-मयमतर्क्यं, योगिभिः ध्यान-गम्यकम्॥
हरि-गुरु-शिव-योगं, सर्व-भूतस्थमेकम्।
सकृदपि मनसा वै, ध्यायेद् यः सः भवेन्मुक्त॥ 
आरती श्री शिव जी ::
जय शिव ओंकारा, प्रभु जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धागनी धारा॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजै।
हंसानन गरुड़ासन वृष वाहन साजै॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहै।
तीनों रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
अक्ष माला वन माला मुण्ड माला धारी।
चन्दन मृग मद सोहे भाले शुभकारी॥
श्वेतांबर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे।

ब्रह्मा दिक सनकादिक भूतादिक संगे॥

कर के मध्ये कमंडल चक्र त्रिशूल धारी।
सुखहारी दुखहारी जगपालन कारी ॥
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव जानत अविवेका।
प्रण वाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥
त्रिगुण स्वामी कि आरती जो कोई नर गावे।
  कहत शिवानन्द स्वामी सुख संपत् पावे॥

आरती भगवान् शिव :: 

ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। 

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, कह भोलेनाथ महाशिव, अर्द्धांगी धारा।  

ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। 


एकानन, चतुरानन, पंचानन राजे, हंसानन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे। 

ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। 

दो भुज चार चतुर्भुज, दश भुज अति सोहे, तीनों रुप निरखता, त्रिभुवन जन

मोहे।


ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।

अक्षमाला वनमाला, रुण्डमाला धारी, चन्दन मृग मद सोहे, भोले शुभकारी। 

ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। 

श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघम्बर अंगे,  सनकादिक, ब्रह्मादिक, भूतादिक संगे। 

 ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। 

कर में श्वेत कमंडल चक्र त्रिशूल धरता,  जग करता दुख हरता, जग पालन करता। 

ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। 

ब्रह्मा, विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका, प्रणवाक्षर के मध्य ये तीनों एका। 

ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। 

त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे, कहत शिवानन्द स्वामी, मन वांछित फ़ल पावै। 

ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। 

ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। 
SATY NARAYAN ARTI सत्य नारायण जी की आरती ::
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा; 
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा। 
ॐ जय लक्ष्मी... 
रत्नजड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे; 
नारद करत नीराजन, घंटा ध्वनि बाजे। 
ॐ जय लक्ष्मी... 
प्रकट भए कलिकारन, द्विज को दरस दियो; 
बूढ़ौ ब्राह्मण बनकर, कञ्चन महल कियो। 
ॐ जय लक्ष्मी... 
दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी; 
चन्द्रचूड इक राजा, तिनकी विपति हरी। 
ॐ जय लक्ष्मी... 
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही; 
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति कीन्हीं। 
ॐ जय लक्ष्मी... 
भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्यो; 
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो। 
ॐ जय लक्ष्मी... 
ग्वाल-बाल सङ्ग राजा, बन में भक्ति करी; 
मनवाञ्छित फल दीन्हों, दीन दयालु हरि। 
ॐ जय लक्ष्मी... 
चढत प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा; 
धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा। 
ॐ जय लक्ष्मी... 
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा; 
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा। 
ॐ जय लक्ष्मी...
श्री सत्यनारायण जी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवांछित फल पावै ॥ 
जय लक्ष्मी..
Om Jay Lakṣhmi Ramna, Swami Jay Lakṣhmi Ramṇa, Satya Narayaṇ Swami, Jan-Patak-Harṇa. 
Oṃ Jay Lakṣhmi... 
Ratn Jadit Singhasan, Adbhut Chhvi Raje; Narad Karat Niranjan, Ghanṭa Dhwni Baje. 
Oṃ Jay Lakṣhmi... 
Prakat Bhaye Kali Karan, Dwij Ko Daras Diyo; Buḍhao Brahmn Ban Kar, Kanchan Mahal Kiyo. 
Oṃ Jay Lakṣhmi... 
Durbal Bheel Kaṭharo, Jin Par Kṛpa Karee; Chandr Chuḍ Ik Raja, Tinki Vipti Hari. 
Oṃ Jay Lakṣhmi... 
Vaishy Manorath Payo, Shraddha Taj Deenhi; So Phal Bhogyo Prabhu Ji, Phir Stuti Keenhin. 
Oṃ Jay Lakṣhmi... 
Bhav-Bhakti Ke Karaṇ, Chhin-Chhin Rup Dharyo; Shraddha Dharaṇ Keenhin, Tinko Kaj Saro. 
Oṃ Jay Lakṣhmi... 
Gwal-Bal Sang Raja, Ban Mae Bhakti Kari; Man Vanchhit Phal Deenhon, Deen Dayalu Hari. 
Oṃ Jay Lakṣhmi... 
Chadhat Prasad Sawayo, Kadlee Phal Mewa; Dhup-Deep-Tulsee Se, Raji Saty Deva. 
Oṃ Jay Lakṣhmi... 
Saty Narayaṇ Ji Ki Arti Jo Koi Nar Gave; Tan-Man Sukh-Saṃpatti Man Vanchhit Phal Pave. 
Oṃ Jay Lakṣhmi.... 
Om Jay Lakṣhmi Ramna, Swami Jay Lakṣhmi Ramna; Saty Narayaṇ Swami, Jan-Patak-Harṇa. 
Oṃ Jay Lakṣhmi...
आरती श्री हनुमान जी :: 
आरती कीजे हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की ॥
 जाके बल से गिरिवर कापै।रोग-दोष जाके निकट न झांपे॥
 अंजनी पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सुहाई॥ 
दे बीरा हनुमान पठाये।लंका जारि सिया सुध लाये॥ 
 लंका सो कोट समुद्र सी खाई।जात  पवन सुत बार न लाई॥
 लंका जारि असुर संहारे।
सियारामजी के काज संवारे॥
 लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।आनि संजीवन प्राण उबारे॥
 पैठी पाताल तोरि जम-कारे।अहिरावन के भुजा उखारे॥
 बायें भुजा असुर दल मारे।दाहिने भजा संतजन तारे॥ 
सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥ 
कंचन थार कपूर लौ छाई।आरती करत अंजना माई॥
 जो हनुमान जी की आरती गावै।बसी बैकुंठ परमपद पावै॥ 
आरती कीजै हनुमान लला की।दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ 

॥ जय बजरंगबली॥ 
माँ लक्ष्मी जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता; 
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता। 
जय ब्रह्माणी रूद्राणी कमला, तू हि है जगमाता; 
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता। 
जय दुर्गा रूप निरंजन, सुख सम्पति दाता; 
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता। 
जय तू ही है पाताल बसन्ती, तू ही है शुभ दाता; 
कर्म प्रभाव प्रकाशक, भवनिधि से त्राता। 
जय जिस घर थारो वासो, तेहि में गुण आता। 
कर न सके सोई कर ले, मन नहिं धड़काता।
जय तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता; 
खान पान को वैभव, सब तुमसे आता। 
जय शुभ गुण सुंदर मुक्त्ता, क्षीर निधि जाता; 
रत्त्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नही पाता। 
जय आरती लक्ष्मी जी की, जो कोई नर गाता; 
उर आनन्द अति उपजे, पाप उतर जाता। 
जय स्थिर चर जगत बचावे, शुभ कर्म नर लाता, 
मैया तेरा भक्त निरन्तर शुभ दृष्टि चाहता। 
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता; 
तुमको निश दिन सेवत, हर विष्णु विधाता। 




आरती श्री दुर्गा जी ::
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। 
तुमको निश  दिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
 मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को। 
उज्जवल से दोऊ नैना, चन्द्रबदन नीको॥ 
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। 
रक्त पुष्प की माला, कंठन पर साजै॥ 
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी। 
सुर-नर-मुनिजन सेवत तिनके दुखहारी॥
 कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। 
कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति॥
 शुम्भ निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती। 
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोऊ मारे, सुर भयहीन करे॥
 ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥
चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरू॥ 
तुम ही जग कि माता, तुम ही हो भरता। 
भक्तन कि दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी। 
मन वांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥ 
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥ 
मां अम्बे कि आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावे॥ 
आरती माँ काली ::
अम्बे तू है जगदम्बे, काली जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया; हम सब उतारें तेरी आरती॥ 
माता, तेरे भक्त जनों पर, भीड़  पड़ी है भारी। 
दानव दल पर टूट पड़ो माँ, करके सिंह सवारी॥ 
सौ-सौ सिंहों से बलशाली, दस-दस भुजाओं वाली।
 दुःखियों के दुःख को निवारती, ओ मैया; हम सब उतारें तेरी आरती॥ 
माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता। 
पूत कपूत सुने हैं, पर ना माता सुनी कुमाता॥ 
सब पर करुणा बरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली।
 दुःखियों के दुःख को निवारती, ओ मैया; हम सब उतारें तेरी आरती॥
ना  मांगे हम धन और दौलत और ना चांदी  सोना। 
हम तो मांगे मैया, तेरे दिल में, एक छोटा सा कोना॥
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली। 
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया, हम सब उतारें, तेरी आरती॥ 
दुःखियों के दुःख को निवारती, ओ मैया; हम सब उतारें तेरी आरती 
अथ कालिकाष्टकम:: ध्यान
गलद रक्त मुंडावली कंठ माला; महा घोर रावा सु दंष्ट्रा कराला।
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्त केशी; महाकाल कामाकुला कालिकेयम॥
भुजे वाम युग्मे शिरोsसिं दधाना; वर्ण वक्ष युग्मेSभयं वाई तथैव॥
सु मध्यापि तुंग स्तना भार नम्रा; लसद रक्त सृक्क द्वया सु स्मितास्या॥
शव द्वन्द्व कर्णावतंसा सु केशी; लसत प्रेत पाणिं प्रयुक्तैक कान्ची॥
शवाकार मंचाधि रुढ़ा; शिवाभिश्चातुर्दीक्षु शब्दायमानाभि रेजे॥
अथ कालिकाष्टकम:: स्तुति
विरंच्यादि देवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन; समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु:।
अनादिं सुरादिं विन्दन्ति भवादिं: स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:॥1॥
जगन्मोहनीय तू वाग्वादिनीयम; सुहृद पौषिणी शत्रु संहारणीयम।
वाच स्तम्भनीयम किमुच्चाटनीयम; स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:॥2॥
इयं स्वर्ग दात्री पुन: कल्प वल्ली: मनोजान्स्तु कामां यथार्थं प्रकुर्यात ।
तथा ते क्रतार्थ भवंतीति नित्यं; स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:॥3॥
सुरा पान मत्ता सु भक्तानुरक्ता; लास्ट पूत चित्ते सदा,,विर्भवते।
जप ध्यान पूजा सूधा धौत पनका; स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:॥4॥
चिदानंद कांड हसन मंद मन्दं; शरच्चन्द्र कोटि प्रभा पुंज बिम्बं।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं; स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:॥5॥
महा मेघ काली सु रक्तापि शुभ्रा; कदाचिद विचित्रा कृतिर्योग माया।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि; स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:॥6॥
क्षमास्वापराधं महा गुट भावं; मया लोक मध्ये प्रकाशी कृतं यत।
तव ध्यान पूतें चापल्य भावात; स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:॥7॥
यदि ध्यान युक्तं पठेद यो; मनुष्यस्तदा सर्व लोके विशालो भवेच्च॥
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि।

श्री रामायण जी की आरती ::


श्री रामायण जी की आरती ::

आरती श्री रामायण जी की; कीरत कलित ललित सिय पिय की। 

गावत ब्रह्मादिक मुनि नारत; बाल्मीक विज्ञानी विशारद। 

शुक सनकादि शेष अरु सारद; वरनि पवन सुत कीरति निकी। 

संतन गावत शम्भु भवानी; असु घट सम्भव मुनि विज्ञानी। 

व्यास आदि कवि पुंज बखानी; काग भूसुनिड गरुड़ के हिय की। 

चारों वेद पूरान अष्ठदस; छहों होण शास्त्र सब ग्रन्थ्न को रस। 

तन मन धन संतन को सर्वस; सारा अंश सम्मत सब ही की। 

कलिमल हरनि विषय रस फीकी; सुभग सिंगार मुक्ती जुवती की। 

हरनि रोग भव भूरी अमी की; तात मात सब विधि तुलसी की। 
श्री राम स्तुति :: 
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारूणम्।
नव कंजलोचन कंज मुख, कर  कंज, पद कंजारुणम्॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरम्॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्दकन्द कौशलचन्द दशरथ नन्दनम्॥
  सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।
 आजानुभुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणम्॥
 इति वदति संतोष*  शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
(अपने नाम का उच्चारण करें)
 मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनम् ॥
 मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर सांवरो।
 करुणा निधान सुजान शील सनेहु जानत रावरो॥
एहि भांति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषी अली।
 तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥
 जानी गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥ 
आरती श्री जगदीश जी ::
ओउम् जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे। 
भक्त जनन  के संकट, क्षण  में दूर करे॥
 जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। 
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे  तन का॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। 
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ 
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी। 
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥
 तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्ता। 
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। 
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ 
दीनबन्धु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे। 
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा मैं तेरे॥ 
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। 
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
तन-मन-धन सब है तेरा, स्वामी सब कुछ है तेरा। 
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा॥
 श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे। 
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥ 

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे; भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे। ॐ जय जगदीश… 
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का; सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का. ॐ जय जगदीश… 
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी; तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी। ॐ जय जगदीश… 
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी; पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी। ॐ जय जगदीश… 
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता; मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता। ॐ जय जगदीश… 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति; किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति। ॐ जय जगदीश… 
दीन बंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे; करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे। ॐ जय जगदीश… 
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा; श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा। ॐ जय जगदीश… 
Om Jay Jagdeesh Hare, Swami Jay Jagdeesh Hare; 
Bhakt Janon Ke Sankaṭ, Kshan Mae Dur Kare. Om Jay Jagdeesh … 
Jo Dhyave Phal Pave, Dukh Binse Man Ka; 
Sukh Sampatti Ghar Ave, Kaṣhṭ Miṭe Tan Ka. Om Jay Jagdeesh … 
Mat Pita Tum Mere, Sharan Gahun Maen Kiski; 
Tum Bin Aur Na Duja, Aas Karun Maen Jis Ki; Om Jay Jagdeesh … 
Tum Puran Parmatma, Tum Antaryami; 
Par Brahm Parmeshwar, Tum Sabke Swami. Om Jay Jagdeesh … 
Tum Karuna Ke Sagar, Tum Palan Karta; 
Maen Sewak Tum Swami, Krapa Karo Bharta. Om Jay Jagdeesh … 
Tum Ho Ek Agochar, Sab Ke Pran Pati; 
Kis Vidhi Milun Dayamay, Tumko Maen Kumati. Om Jay Jagdeesh … 
Deen Bandhu Dukh Harta, Tum Rakshak Mere; 
Karuṇa Hasth Baḍhao, Dwar Paḍa Tere. Om Jay Jagdeesh … 
Vishay Vikar Mitao, Pap Haro Deva; 
Shraddha Bhakti Baḍhao, Santan Ki Sewa. Om Jay Jagdeesh …
आरती श्री कुंजबिहारी जी की ::
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की। 
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ॥ 
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली॥ 
लटन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक। 
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की॥
आरती कुंजबिहारी की,  श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं;
गगन सों सुमन रासिबरसै, बजे मिरदंग। 
ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की॥
आरती कुंजबिहारी की,  श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा;
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी सिव सीस, जटा के बीच।  
हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,  बज रही वृंदावन बेनू; 
चहूँ दिसि गोपि ग्वाल धेनू, हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद। 
कटत भव फंद, टेर सुन दीन भिखारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

SHRI KRASHN GOVIND HARE MURARI 

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी; हे! नाथ नारायण वासुदेवा। 
एक मात स्वामी सखा हमारे; हे! नाथ नारायण वासुदेवा। 
बंदी गृह के तुम अवतारी; कहीं जन्म कहीं पले मुरारी। 
किसी के जाये, किसी के कहाये; है अद्भुत, हर बात तिहारी।  
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी; हे! नाथ नारायण वासुदेवा। 
गोकुल में चमके मथुरा के तारे; हे! नाथ नारायण वासुदेवा। 
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी; हे! नाथ नारायण वासुदेवा। 
अधर में बन्सी, ह्रदय में राधे; बट गये दोनों में, आधे आधे।  
 हे! राधा नागर, हे! भक्त वत्सल; सदैव भक्तों के काम साधे। 
वहीँ वहीँ गये, जहाँ गये पुकारे;  हे! नाथ नारायण वासुदेवा। 
राधे कृष्ण, राधे कृष्ण; कृष्ण-कृष्ण हरे! हरे! 
Krashn-Krashn, Hare! Krashn Krashn-Krashn Hare! Hare!
Shri Krashn Govind Hare Murari, Hey! Nath Narayan Vasudeva. 
Ek Maat Swami Sakha Hamare;  Hey! Nath Narayan Vasudeva.
Bandi Grah Ke Tum Avtaari; Kahi Janme Kahi Pale Murari.
Kisi Ke Jaaye Kisi Ke Kahaye; Hai Adbhut Har Baat Tihari.
Gokul Mein Chamke, Mathura Ke Tare; 
Hey! Nath Narayan Vasudeva.
Shri Krishna Govind Hare Murari; Hey! Nath Narayan Vasudeva.
Adhar Mein Banshi, Hriday Mein Radhe; 
Bat Gaye Dono Mein, Aadhe Aadhe.
Hey! Radha Nagar, Hey! Bhakt Vatsal; 
Sadaiv Bhakto Ke, Kaam Sadhe.
Vahin  Vahin Gaye, Jahan Gaye Pukare; 
Hey! Nath Narayan Vasudeva.
Radhe Krashn, Radhe Krashn, Krashn-Krashn Hare! Hare!                 
 
SHRI NARAYAN HRADYAM MULASHTKAM मूलाष्टकम् ::
ॐ नारायणः परं ज्योतिरात्मा नारायणः परः।
नारायणः परं ब्रह्म नारायण नमोऽस्तु ते॥1॥
 Om.  Narayanh Param Jyoti Ratma Narayanh Parh; Narayanh Param Brahm Narayan Namostute.
Bhagwan Shri Narayan is the divine light and our soul is divine;  Narayan is Ultimate Brahmn and I salute Narayan.
नारायणः परो देव दाता नारायणः परः। 
नारायणः परो ध्याता नारायण नमोऽस्तु ते॥2॥  
Narayanh Paro Dev Data Narayanh Parh; Narayanh Paro Dhyata Narayan Namostute.
Narayan is the Ultimate Almighty-God  and Narayan is the Ultimate Nurturer-giver; Narayan is the Supreme support and I salute-bow before Narayan.
नारायणः परं धाम ध्यानं नारायणः परः। 
नारायणः परो धर्मो नारायण नमोऽस्तु ते॥3॥  
Narayanh Param Dham Dyanam Narayanh Parh; Narayanh Paro Dharmo Narayan Namostute.
Narayan is the Ultimate abode and Narayan is the Supreme-Ultimate-Divine  meditation; Narayan is the Ultimate Dharm-Religion and I salute-revere-honor Narayan.
नारायणः परो वेद्यो विद्या नारायण परः। 
विश्वं नारायणः साक्षान्नारायण नमोऽस्तु ते॥4॥ 
Narayanh Paro Vedyo Vidya Narayan Parh; Vishwam Narayanh Sakshannarayan Namostute.
Narayan is the Ultimate enlightenment-learning-knowledge; the universe is a form of Narayan and I salute-bow in front of Narayan.
नारायणद्विधिर्जातो नारायणाच्छिवः। 
जातो नारायणादिन्द्रो नारायण नमोऽस्तु ते॥5॥ 
Narayanad Vidhirjato Narayanachchhivh; Jato Narayanadindro Narayan Namostute.
Brahma  and Shiv got birth from Narayan and Indr was  born to Narayan  and I salute-respect-regard Narayan.
 रविर्नारायणं तेजश्चान्द्रं नारायणं महः। 
वह्निर्नारायणः साक्षान्नारायण नमोऽस्तु ते॥6॥ 
Ravirnarayan Tejash Chandrm Narayanm Mhh; Vahnir Narayanh Sakshannarayan Namostute.
Sun shines because of Narayan and moon gets light from Narayan and the fire is an aspect-form of Narayan and I pray-salute Narayan.
नारायण उपास्यः स्याद्गुरुर्नारायणः परः। 
नारायणः परो बोधो नारायण नमोऽस्तु ते॥7॥ 
Narayan Upasyh Syad Gurur Narayanh Parh; Narayanh Paro Bodho Narayan namostute.
Narayan is the Ultimate-Guru who has to be meditated; Narayan is the highest wisdom-enlightenment-realisation and I salute, pray, revere Narayan.
नारायणः फलं मुख्यं सिद्धिर्नारायणः सुखम्। 
सेव्यो नारायणः शुद्धो नारायण नमोऽस्तु ते॥8॥ 
Narayanh Falam Mukhyam Siddhirnarayanah Sukham; Sevyo Narayanh Shudho Narayan namostute.
Narayan is the Ultimate reward-grant of boons-result of prayers and pleasure; and service-prayer-dedication to Narayan is purifying-cleansing and I salute Narayan.
इति मूलाष्टकम्॥ 
 
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