आदि माता भगवती
BHAGWATI THE BETTER HALF OF THE ALMIGHTY
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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सुराणां च तेभ्यो नमामोऽद्य शान्त्यै। क्षमा योगनिद्रा दया त्वं विवक्षा स्थिता सर्वभूतेषु शस्तै: स्वरूपै:॥
इदं शाश्वतं नैव जानन्ति मूढा न कार्यं विना कारणं सम्भवेद्वा।
वयं तर्कयामोऽनुमानं प्रमाणं त्वमेवासि सर्वस्य तेनैव माता॥
मां आप जिस समय जिन स्वरूपों से देवताओं का कार्य सम्पन्न करती हैं, हम शान्ति के लिए आपके उन स्वरूपों को नमस्कार करते हैं। आप ही क्षमा, योगनिद्रा, दया तथा विवक्षा, इन कल्याणकारी रूपों से सभी जीवों में निवास करती हैं।
आपका यह रूप सनातन है; इस रहस्य को अविवेकी लोग नहीं जानते।हे माता! बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता। अतः अनुमान और प्रमाण के आधार पर हम यही जानते हैं कि इस विश्व की रचना करने वाली आप ही हैं।[श्रीमद्देवीभागवत 5.22. 28.33]
मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते॥
प्रकृति मेरी अध्यक्षता में चराचर सहित सम्पूर्ण जगत की रचना करती है। हे कुन्ती नन्दन! इसी हेतु-कारण जगत का विविध प्रकार से परिवर्तन होता है।[श्रीमद्भगवद्गीता 9.10]
The nature creates the entire universe under my patronage-supervision, guidance and undergoes infinite number of changes-permutations & combinations, hey Arjun!
आदि माता भगवती-प्रकृति, भगवान् के वाम अंग से उत्पन्न हुई हैं और उनके अंतर्गत रहकर ही समस्त चराचर की रचना करती हैं। माँ भगवती को भगवान् की शक्ति और माया आदि नामों से विभूषित किया गया है। माँ राधा, माँ सरस्वती, माँ लक्ष्मी, माँ गंगा, माता पार्वती, माँ दुर्गा-महा काली आदि-आदि उन्हीं के विविध रूप हैं। प्राणियों को उत्पन्न करने का कार्य प्रकृति का नहीं है, क्योंकि वह जड़ है-भौतिक है। पदार्थ का बनना-बिगड़ना, नवीन रूप में आना, आकाश गँगाएँ, तारे, नक्षत्र, ग्रह, सौर मण्डल, चन्द्र आदि उन्हीं के रूप हैं। मानव-प्राणी, विविध प्रकार के जीवों के शरीर उन्हीं से बने हैं। परन्तु जीव जीवात्मा-परमात्मा के अंश के बगैर निर्जीव-मृत है। निर्जीव में जीवात्मा की उपस्थिति में शक्ति-स्फूर्ति, सामर्थ्य विधाता के द्वारा उसके कर्मों के अनुरूप ही उत्पन्न होती है। प्रकृति के दोनों स्वरूप परा और अपरा, भगवान् के शक्ति के आधीन रहकर ही कार्य करते हैं।
Maa Bhagwati evolved from the left half of the Almighty. She is the main benefactor of the God's creations and carries out the duty of the formation of material-physical world like galaxies, solar systems, planets, stars, constellations, nebulae, moons etc. All these bodies are non-living lifeless, unless until, soul-a fragment of the Almighty occupies them as divine (driver) or normal entity like humans. The duty of creation is not imparted to the nature. Its the Vidhata-Brahma Ji, who carries out the function of evolution. Maa Bhagwati has various names, incarnations, forms like Maa Radha, Mata Laxmi, Mata Saraswati, Maa Parwati, Maa Ganga, Maa Durga-Maha Kali etc. The organism in material state is produced by the nature and maintained, when it occupies a soul. The energy, strength, power to do work, move is granted by the Almighty HIMSELF, as per deeds of the organism, according to his destiny. The driver's seat is occupied by the soul. Para & Apara both forms of nature are organs, complementary of the God. New forms, bodies are given by the nature to the soul, before his birth and are always perishable.
महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्॥
हे प्रथा नन्दन! दैवी प्रकृति के आश्रित अनन्य मन वाले महात्मा लोग मुझे सम्पूर्ण प्राणियों का आदि और अविनाशी समझकर मेरा भजन करते हैं।[श्रीमद्भगवद्गीता 9.13]
Hey Arjun, the son of Pratha-Kunti! The great souls (relinquished), ascetics, devotees-saints, dependent over the nature, who possess divine qualities worship, pray, recite MY prayers, Bhajans, names fondly, considering ME as immutable, creator and origin of all living beings-life.
आसुरी, राक्षसी और मोहिनी स्वभाव वालों के विपरीत महात्मा लोग परमात्मा का भजन करते हैं। उनमें सत्, सदाचार होने के कारण वे भगवत्स्वरूप हैं। भगवत्स्वरूप और स्वभाव को ही यहाँ उनकी दैवी प्रकृति कहा गया है। दैवी प्रकृति भौतिक प्रकृति से भिन्न है। दैवी सम्पत्ति के समस्त गुणों पर मनुष्य का पूरा अधिकार है और वो इनका आश्रय लेकर परमात्मा की शरण ग्रहण कर सकता है। दैविक गुण मनुष्य के द्वारा उपार्जित नहीं किये जाते, अपितु भगवान् के द्वारा ही (पूर्व जन्मों के संस्कारों, आचार-व्यवहार, क्रिया-कलापों के आधार पर) प्रदान किये गए हैं। इनके द्वारा मनुष्य में नम्रता, सरलता, निराभिमानता आ जाती है। भगवान् अविनाशी, अनन्त, निर्विकार सर्वोपरि है और आदि-अन्त में भी रहता है। जिसने यह जान लिया और वो दृढ़ता से इसमें लग गया, उसका ध्यान लौकिक अथवा पारलौकिक भोगों में नहीं लगता। वह भगवत भजन कीर्तन, उपासना-ध्यान में ही संलग्न रहता है। भगवान् मेरे हैं और मैं उनका हूँ; इस धारणा के साथ अन्यन्य चित्त जो साधना करता है, वह बन्धन मुक्त हो जाता है। उसके द्वारा अपने आपको भगवान् के श्री चरणों में अर्पित करके अनन्य मन से जो कुछ भी शारीरिक, व्यावहारिक, लौकिक, वैदिक, पारमार्थिक कार्य किया जाता है, वह सब प्रभु की प्रसन्नता के लिए ही होता है।
The behaviour of great souls, saints, ascetics, who remember-pray the Almighty is opposite to the demonic tendencies-nature. They are like the God due to the presence of virtuousness, righteousness, piousness, the Sat-holiness in them. Their nature makes them divine. Here, the divine and material nature-tendencies are different. Their physical body is possessed with divine qualities. Divine qualities-characteristics are not earned by the humans, but they are granted by the Almighty (over the basis of the virtuous, righteous, pious deeds in earlier births) and are already present in the humans, being a component of the God. These qualities grant politeness, simplicity, lack of ego-proud, to the holy persons. The Almighty is since ever, forever uncontaminated-pure and Supreme. One who has learnt this and follows it with firmness-determination is not deviated by the material or divine comforts. He remains devoted-dedicated to the God and believes that he is for the God and the God too is for him. He is set free from all material bonds, ties, connections leading to Salvation. Whatever is done by him Vaedic, physical, practical-behavioural, earthly or divine for the benefit-service of others, by devoting himself to the Almighty, is meant for pleasing the God.
भगवती आराधना BHAGWATI ARADHNA ::
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमानेयति शब्दिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु कांतिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरुपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु छायारूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु क्षांतिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
या देवी सर्वभूतेषु भ्रांतिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:।
माता सती ने अपने पिता दक्ष के भगवान् शिव के प्रति दुराग्रह से निराश होकर योगाग्नि द्वारा स्वयं को भस्म कर दिया। देवयोग से उन्होंने पुनः पर्वतराज हिमालय और पितृ कन्या मैना के घर में पुनर्जन्म ग्रहण किया। देवी माँ पार्वती ने भगवान् शिव को पुनः पाने के लिए कठोर तप किया। इनके तप से प्रसन्न होकर महादेव ने पार्वती को पत्नी रुप में स्वीकार कर लिया। विवाह के पश्चात देवी पार्वती अपने पति भगवान् शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई। माँ पार्वती का हर साल नवरात्र के नौ दिनों में पृथ्वी पर माता-पिता से मिलने के लिए आगमन होता है। नवरात्र के पहले दिन माँ के शैलपुत्री रुप की पूजा की जाती है। भगवती शैलपुत्री भगवान् शिव की अर्धांगिनी है। भगवान् शिव के साथ नित्य इनका निवास होने के कारण इनके स्वरुप में महादेव की झलक मिलती है। शैलपुत्री के वाहन वृषभ हैं। माँ के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। त्रिशूल इस बात का द्योतक है कि मां अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और कमल प्रतीक है कि भक्तों को माँ से हर प्रकार की रिद्घि-सिद्घि आशीर्वाद की प्राप्ति का।
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र;
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥1॥
Rakshaansi Yatrogravishaashcha Naaga Yatraarayo Dasyubalaani Yatra; Davaanalo Yatra Tathabdhimadhye Tatra Sthita Tvam Paripaasi Vishvam.
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य;
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥2॥
Devi Prapannaartihare Praseed Praseed Maatarjgatokhilasya; Praseed Vishveshvari Paahi Vishvam Tvameeshwaree Devi Characharasya.
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी;
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते॥3॥
Jayanti Mangla Kaali Bhadrakaali Kapalinee; Durga Kshama Shiva Dhatri Swaha Svadha Namostu Te.
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी;
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥4॥
Sarvbhoota Yada Devi Swargmuktipradaayinee; Tvam Stutaa Stutaye Ka Va Bhavntu Parmoktayah.
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे;
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥
Natebhyah Sarvada Bhaktya Chandike Duritaapahe; Roopam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi.
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि;
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव॥6॥
Prantaanaam Praseed Tvam Devi Vishvaartihaarini; Trailokyavaasinaameedye Lokaanaam Varda Bhav.
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्;
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥
Dehi Saubhagyamaarogyam Dehi Me Paramam Sukham; Roopam Dehi Jayam Dehi Yasho Dehi Dvisho Jahi.
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्;
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योनः सुतानिव॥8॥
Hinasti Daityatejaansi Svanenaapurya Yaa Jagat; Saa Ghanta Paatu No Devi Paapebhyonah Sutaaniv.
यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तमलं बलं च; सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥9॥
Yasyah Prabhavmatulam Bhagavaanananto Brahma Harashch Na Hi Vaqtumalam Balam Ch; Saa Chandi.
ॐ शैलपुत्री मैया रक्षा करो। ॐ जगजननि देवी रक्षा करो।
ॐ नव दुर्गा नमः। ॐ जगजननी नमः।
ॐ ब्रह्मचारिणी मैया रक्षा करो। ॐ भवतारिणी देवी रक्षा करो।
ॐ नव दुर्गा नमः। ॐ जगजननी नमः।
ॐ चंद्रघणटा चंडी रक्षा करो। ॐ भयहारिणी मैया रक्षा करो।
ॐ नव दुर्गा नमः। ॐ जगजननी नमः।
ॐ कुषमांडा तुम ही रक्षा करो। ॐ शक्तिरूपा मैया रक्षा करो।
ॐ नव दुर्गा नमः। ॐ जगजननी नमः।
ॐ स्कन्दमाता माता मैया रक्षा करो। ॐ जगदम्बा जननि रक्षा करो।
ॐ नव दुर्गा नमः। ॐ जगजननी नमः।
ॐ कात्यायिनी मैया रक्षा करो। ॐ पापनाशिनी अंबे रक्षा करो।
ॐ नव दुर्गा नमः। ॐ जगजननी नमः।
ॐ कालरात्रि काली रक्षा करो। ॐ सुखदाती मैया रक्षा करो।
ॐ नव दुर्गा नमः। ॐ जगजननी नमः।
ॐ महागौरी मैया रक्षा करो। ॐ भक्तिदाती रक्षा करो।
ॐ नव दुर्गा नमः। ॐ जगजननी नमः।
ॐ सिद्धिरात्रि मैया रक्षा करो। ॐ नव दुर्गा देवी रक्षा करो।
ॐ नव दुर्गा नमः। ॐ जगजननी नमः।
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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