श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISMBy :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com
santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com
प्रहलाद जी की अनन्य भक्ति, निष्ठा, प्रेम से प्रसन्न होकर भगवान् नरसिंह प्रकट हुए थे और भगवान् ने खंभे में से प्रकट होकर के अपनी सर्वव्यापकता का प्रमाण पूरी सृष्टि के सामने दिया था और भगवान् सदैव अपने भक्तों के साथ हैं इस बात की पूर्ण पुष्टि की थी।
जो व्यक्ति-साधक भगवान् का ध्यान करते हैं उनकी भक्ति करते हैं निरंतर योग साधना में लगे हुए हैं भगवान् सदैव उनके साथ में है और उनकी सदैव रक्षा करते हैं बहुत प्रेम करते हैं।
श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र ::
श्रीमत् पयॊनिधिनिकॆतन चक्रपाणॆ भॊगीन्द्रभॊगमणिरञ्जितपुण्यमूर्तॆ।
यॊगीश शाश्वत शरण्य भवाब्धिपॊत लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥1॥
ब्रह्मॆन्द्ररुद्रमरुदर्ककिरीटकॊटि सङ्घट्टिताङ्घ्रिकमलामलकान्तिकान्त।
लक्ष्मीलसत्कुच्सरॊरुहराजहंस लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥2॥
संसारघॊरगहनॆ चरतॊ मुरारॆ मारॊग्रभीकरमृगप्रवरार्दितस्य।
आर्तस्यमत्सरनिदाघनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥3॥
संसारकूपमतिघॊरमगाधमूलम् संप्राप्य दुःखशतसर्पसमाकुलस्य।
दीनस्य दॆव कृपणापदमागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥4॥
संसारसागरविशालकरालकाल नक्रग्रहग्रसननिग्रह विग्रहस्य।
व्यग्रस्य रागरसनॊर्मिनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥5॥
संसारवृक्षमघबीजमनन्तकर्म शाखाशतं करणपत्रमनङ्गपुष्पम्।
संसारसर्पघनवक्त्रभयॊग्रतीव्र दंष्ट्राकरालविषदग्द्धविनष्टमूर्तॆः।
नागारिवाहन सुधाब्धिनिवास शौरॆ लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥7॥
संसारदावदहनातुरभीकरॊरु ज्वालावलीभिरतिदग्धतनूरुहस्य।
त्वत्पादपद्मसरसीशरणागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥8॥
संसारजालपतितस्य जगन्निवास सर्वॆन्द्रियार्थबडिशार्थझषॊपमस्य।
प्रॊत्खण्डितप्रचुरतालुकमस्तकस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥9॥
संसारभीकरकरीन्द्रकराभिघात निष्पिष्टमर्म वपुषः सकलार्तिनाश।
प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥10॥
अन्धस्य मॆ हृतविवॆकमहाधनस्य चॊरैः प्रभॊ बलिभिरिन्द्रियनामधॆयैः।
मॊहांधकारकुहरॆ विनिपातितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥11॥
लक्ष्मीपतॆ कमलनाभ सुरॆश विष्णॊ वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन पुष्कराक्ष।
ब्रह्मण्य कॆशव जनार्दन वासुदॆव दॆवॆश दॆहि कृपणस्य करावलम्बम्॥12॥
यन्माययॊजितवपुः प्रचुरप्रवाह मग्नार्थमत्र निवहॊरुकरावलम्बम्।
लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुव्रतॆन स्तॊत्रं कृतं सुखकरं भुवि शंकरॆण॥13॥
Contents of these above mentioned blogs are covered under copyright and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS ARE RESERVED WITH THE AUTHOR.
संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)