Sunday, February 12, 2017

XXX मधुपर्क-पञ्चगव्य कथा :: SHRADDH-HOMAGE TO MANES (5) तर्पण-श्राद्ध

मधुपर्क-पञ्चगव्य कथा
SHRADDH-HOMAGE TO MANES (5) तर्पण-श्राद्ध

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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श्राद्ध कर्म में यह व्यवस्था है कि वेदपाठी ब्राह्मणों को जो कभी मृतक संबंधी भोज नहीं करते, को श्राद्धों में भोजनार्थ न बुलाया जाए। उन्हें वैश्व देव निमित्तिक भाग ही देना चाहिए। यदि श्राद्ध में कोई दोष रह जाए तो उसका विधि पूर्वक प्रायश्चित करना भी आवश्यक है।
श्राद्ध करने की विधि :: श्राद्धकर्ता बाल तथा नाखुन कटवाकर तेल लगाने के बाद स्नान करें और शुद्ध हो। तत्पश्चात ब्राह्मण को मंडल में लाकर पाद्य, अर्ध्य, धूप, दीप, तिल तथा माला आदि से उसका पूजन करें। श्राद्ध कर्म संपन्न होने पर ब्राह्मण को भोजन कराए। इस बात का ध्यान रखें कि सपात्रक श्राद्ध में पितरों को लक्ष्य कर संकल्प नहीं कराया जाता। ब्राह्मणों के संतुष्ट होने पर स्वस्तिवाचन करे। इस स्वस्ति वाचन से मन शुद्ध होता है। श्राद्ध में तीन पिंड दिए जाते हैं, उन्हें उठाने से पूर्व पृथ्वी को तीन बार वैष्णवी, काश्पयी और अक्षया नाम से प्रणाम करें। तब प्रथम पिंड स्वयं खाए, दूसरा पत्नी को दे और तीसरा जल में डाल दे। इस प्रकार किया गया श्राद्ध या पितृयज्ञ पूर्णतः सफल होता है। उससे पितरों की तृप्ति और श्राद्धकर्ता की समृद्धि होती है। श्राद्ध के अंत में शांति पाठ से शुभ मंगल की प्राप्ति होती है।
यह सुनकर भगवान से भगवती पृथ्वी ने पूछा कि मधुपर्क किस मात्रा में और किस रूप में लेना चाहिए और उसके बनाने की विधि क्या है। वसुंधरा की बात सुनकर भगवान वराह ने कहा कि मधुपर्क मेरा ही अंश है। तुम जानती हो कि दक्षिण अंग से ही सृष्टि के समय इसकी उत्पत्ति हुई। यह विश्व कल्याण का स्वयं रूप है। इसके बनाने की विधि बहुत सरल है कि समान मात्रा में शहद, दही और घी मिलाकर पवित्र मंत्रों का उच्चारण किया जाए। यह सुनकर पृथ्वी ने फिर पूछा तो उसके पान की विधि बताते हुए भगवान वराह ने कहा कि जब मधुपर्क लिया जाए तो भक्त को कहना चाहिए हे भगवन! आपके द्वारा जगत की सृष्टि होती है। आप देवादि कर्म और यज्ञ के साक्षी हैं। हे प्रभा! आप मुझे आवागमन के चक्र से मुक्ति प्रदान करें। मुझे शांति दें। इसके उपरांत वह मुझे समर्पित करना चाहिए। मधुपर्क समर्पण करते समय ‘ओम नमो नारायणाय’ मंत्र के साथ प्रार्थना करनी चाहिए हे देवाधिदेव! देव स्रष्टा, सर्वव्यापी भगवन! आप सर्व सुपूजित हैं। भवसागर से मेरा तारण करने के लिए आप इन मधुपर्कयुक्त पात्रों में विराजमान हों। दधि, घृत, मधु आदि से बना यह मधुपर्क आपको समर्पित है। इस प्रकार भावमय स्तवन से मैं प्रसन्न होता हूं। कभी-कभी यदि कुछ नहीं मिले तो हाथ में जल लेकर ही मधुपर्क समझा जा सकता है। यदि मरणासन्न व्यक्ति को मधुपर्क दिया जाता है तो उसे शांति मिलती है। इस विषय में मैं एक प्रसंग सुनाता हूं। प्राचीन समय की बात है, एक बार राजा जनमेजय अश्वमेघ यज्ञ कर रहे थे। उस समय वैशाम्पायन उनसे मिल ने आए किंतु राजा यज्ञ में दीक्षित थे। इसलिए मुनि उनसे नहीं मिल पाए और यज्ञ की समाप्ति तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। उधर, जब यज्ञ समाप्त हुआ तो जनमेजय को पता चला कि इस प्रकार ऋषि वैशम्पायन आए हुए हैं और प्रतीक्षा करने के लिए उन्होंने पास में ही एक आश्रम बनाकर निवास प्रारंभ कर दिया है। राजा को बहुत मानसिक कष्ट हुआ कि उनके कारण ऋषि को प्रतीक्षा करनी पड़ी और उन्होंने यह भी सोचा कि यह तो मुनि का अपमान हुआ है। उन्हें इस बात की भी चिंता हुई कि मुनि न जाने कैसा शाप दे बैठें। इस तरह चिंता से व्याकुल राजा जनमेजय स्वयं मुनि के सामने उपस्थित हुए। उन्होंने पहले तो उनका सम्मान किया और फिर उनसे क्षमा मांगी। राजा के मन में मुनि के शाप का भय बराबर विद्यमान रहा। उन्होंने कहा कि हे प्रभो! आप मुझे यमलोक की यंत्रणा से बचने का उपाय बताइए। मैं यमपुरी का रूप भी जानना चाहता हूं।[श्री वराह पुराण]

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