Thursday, July 17, 2014

DEMIGOD MOON चन्द्र देव :: BRAHMA JI (2) ब्रह्मा जी

चन्द्र देव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
चन्द्र देव हमारे मन, मातिष्क, चित्त, ध्यान और प्राणों को परमपिता, परब्रह्म परमेश्वर के श्री चरणों में केंद्रित करें।
चन्द्र देव मन (innerself, psyche, mood) के कारक हैं।  
ब्रह्मा जी के अवतारों में चंद्रदेव और काम देव प्रमुख हैं। चंद्रदेव ब्रह्मा जी के मानस पुत्र महर्षि अत्रि हुए उनकी पत्नी अनुसूया की सन्तान हैं। जब भगवान् विष्णु, ब्रह्मा जी और भगवान् शिव अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा करने पहुँचे तो अनुसूया ने उन्हें बच्चा बना दिया। माता लक्ष्मी, पार्वती और ब्रह्माणी के अनुरोध पर उन्हें फिर से उनका स्वरूप प्रदान किया। त्रिमूर्ति-त्रिदेवों के आशीर्वाद से त्रिदेवों के स्वरूप दत्तात्रेय, दुर्वासा और चंद्र देव अनुसूया और अत्रि को पुत्र रूप में प्राप्त हुए। चन्द्रदेव ब्रह्मा जी के स्वरूप हैं। 
ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का विचार किया तो सबसे पहले अपने मानसिक संकल्प से मानस पुत्रों की रचना की। उनमें से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ जिस से दुर्वासा,दत्तात्रेय व सोम तीन पुत्र हुए। सोम चन्द्र का ही एक नाम है।[मत्स्य एवम अग्नि पुराण] 
CHANDR MOULI
BHAGWAN SHIV
ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी। महर्षि अत्रि ने अनुत्तर नाम का तप आरम्भ किया। ताप काल में एक दिन महर्षि के नेत्रों से जल की कुछ बूंदें टपक पड़ी जो बहुत प्रकाशमय थीं। दिशाओं ने स्त्री रूप में आ कर पुत्र प्राप्ति की कामना से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया जो उनके उदर में गर्भ रूप में स्थित हो गया। परन्तु उस प्रकाशमान गर्भ को दिशाएं धारण न रख सकीं और त्याग दिया। उस त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा जी ने पुरुष रूप दिया जो चंद्रमा के नाम से प्रख्यात हुए। देवताओं, ऋषियों व गन्धर्वों आदि ने उनकी स्तुति की। उनके ही तेज से पृथ्वी पर दिव्य औषधियाँ उत्पन्न हुईं। ब्रह्मा जी ने चन्द्र देव को नक्षत्र, वनस्पतियों, ब्राह्मण व तप का स्वामी नियुक्त किया।[पद्म पुराण] 
जब देवताओं तथा दैत्यों ने क्षीर सागर का मन्थन किया था तो उस में से चौदह रत्न निकले थे। चंद्रमा उन्हीं चौदह रत्नों में से एक हैं, जिन्हें लोक कल्याण हेतु, उसी मन्थन से प्राप्त कालकूट विष को पी जाने वाले भगवान् शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया।[स्कन्द पुराण]
गर्गाचार्य ने समुद्र मंथन का मुहूर्त निकालते हुए देवों को कहा कि इस समय सभी ग्रह अनुकूल हैं। चंद्रमा से गुरु का शुभ योग है। तुम्हारे कार्य की सिद्धि के लिए चन्द्र बल उत्तम है। यह गोमन्त मुहूर्त तुम्हें विजय देने वाला है। अतः यह सम्भव है कि चंद्रमा के विभिन्न अंशों का जन्म विभिन्न कालों में हुआ हो। चन्द्र का विवाह दक्ष प्रजापति की नक्षत्र रुपी 27 कन्याओं से हुआ, जिनसे अनेक प्रतिभाशाली पुत्र हुए। इन्हीं 27 नक्षत्रों के भोग से एक चन्द्र मास पूर्ण होता है।[स्कन्द पुराण माहेश्वर खण्ड]
श्रीमद्भागवत के अनुसार :- (1). चन्द्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं।
(2). इनका वर्ण चमकीला गौर है।
(3). इनके वस्त्र, अश्व और रथ श्वेत रंग के हैं। शंख के समान उज्जवल दस घोड़ों वाले अपने रथ पर यह कमल के आसन पर विराजमान हैं।
(4). इनके एक हाथ में गदा और दूसरा हाथ वर मुद्रा में है। इन्हें सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं।
(5). भगवान् श्री कृष्ण ने इनके वंश में अवतार लिया था, इसीलिए वे भी सोलह कलाओं से युक्त थे। समुद्र मंथन से उत्पन्न होने के कारण माँ लक्ष्मी और कुबेर के भाई भी माने गए हैं। भगवान् शिव ने इन्हें मस्तक पर धारण किया है। 
(6). ब्रह्मा जी ने इन्हें बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा मनोनीत किया है। इनका विवाह दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ है, जो सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में जानी जाती हैं।
(7). इस तरह नक्षत्रों के साथ चन्द्र देव परिक्रमा करते हुए सभी प्राणियों के पोषण के साथ-साथ पर्व, संधियों व मासों का विभाजन करते हैं।
(8). इनके पुत्र का नाम बुध है, जो देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा से उत्पन्न हुए हैं।
(9). इनकी महादशा दस वर्ष की होती है तथा ये कर्क राशि के स्वामी हैं। इन्हें नवग्रहों में दूसरा स्थान प्राप्त है। इनकी प्रतिकूलता से मनुष्य को मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। कहते हैं कि पूर्णिमा को ताँबे के पात्र में मधु मिश्रित पकवान अर्पित करने पर ये तृप्त होते हैं। जिसके फलस्वरूप मानव सभी कष्टों से मुक्ति पा जाता है।
(10). इनका सामान्य मंत्र :- "ॐ सों सोमाय नम:" है। इसका एक निश्चित सँख्या (108, 1008) में संध्या समय जाप करना चाहिए।
चन्द्र देव के पुत्र ने अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु के रूप में जन्म लिया और भगवान् श्री कृष्ण से शिक्षा ग्रहण की।
चन्द्र देव की आराधना हेतु बीज मन्त्र :: "ॐ श्राम श्रीं श्रौं सः सोमाय नमः"
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा। 
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः॥
मैं ही पृथ्वी में प्रविष्ट होकर अपनी शक्ति से समस्त प्राणियों को धारण करता हूँ और मैं ही रस स्वरुप चन्द्रमा होकर समस्त औषधियों को पुष्ट हूँ।[श्रीमद्भगवद्गीता 15.13]  
The Almighty said that HE supported life with HIS strength, power, energy, by entering-occupying the earth and by becoming the sap, elixir, nectar, ambrosia of the moon & nourishes all the medicinal plants.
जिस प्रकार समस्त देवगण परमात्मा से शक्ति प्राप्त कर संसार का पालन-पोषण करते हैं, उसी प्रकार प्रभु ने पृथ्वी को अपनी शक्ति से सम्पन्न करके, इसे प्राणियों को धारण करने योग्य बना रखा है। सभी जगहों पर धारण शक्ति परमात्मा से ही है। पृथ्वी में अन्न उत्पन्न करने की शक्ति, गुरुत्वाकर्षण भी प्रभु से ही है। जो आँखों से दिखाई देता है, वह चन्द्र मण्डल है, उससे भी दूर आँखों की परिधि से बाहर चन्द्र लोक है, जो सूर्य से भी ऊपर है। चन्द्रमा पृथ्वी को प्रकाश के साथ-साथ पोषण करने की शक्ति भी प्रदान करता है। शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की किरणों के साथ अमृत वर्षा होती है, जो कि वनस्पतियों और गर्भ स्थित शिशुओं का पोषण करती हैं। 
All demigods and deities function by the strength provided by the God. Without HIS power the demigods & deities are like ordinary beings. The earth is supported by the God to stay in its orbit round the Sun and bear the living beings. The gravitational pull is due to the God's strength. Capacity-capability of the earth to feed and support life is due to the Almighty. Quantum of water is far more as compared to body mass, yet it remains free to support life. The Moon nourishes the medicinal plants and nurture the child in the womb. The Moon visible to us is a material object and the Chandr Lok-abode is situated much above the Sun. The Moon reflects the light over the earth which carries a sap, nectar, elixir, ambrosia essential for nourishment of plants both for food and medicines.
चन्द्रमा की किरणें शुक्ल पक्ष में पृथ्वी पर अपनी किरणों से वनस्पतियों को सींचतीं हैं और फिर कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा स्वयं पृथ्वी से पोषण ग्रहण करता है। सूर्य अपने प्रकाश से पृथ्वी पर उजाला करता है और पोषण करता है साथ-साथ अपना पोषण भी करता है। इस प्रकार आदान-प्रदान की क्रिया साथ-साथ चलती है। 
The Moon nourishes the vegetation over the earth during the bright phase and sucks essentials for it during dark phase. The Sun illuminates the earth and side by side sucks the essentials for it. In this manner a two way process, cyclic in nature continues. This is an intricate process which shows interdependence between the Sun, earth & the Moon.
The scientists are unable to decode this process so far. They just know that the hydrogen burns form to helium and release energy through fusion of protons. However, the process of recycle continues every where in the universe. The water present over the earth breaks into hydrogen and oxygen & then further subdivision takes place into another set of micro particles & energy forms which move to Sun. Recently scientists claim to have discovered God particle.
 
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ 
(बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

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