Friday, January 24, 2014

GANPATI VANDANA गणपति वन्दना

GANPATI VANDANA
गणपति वन्दना
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
गणपति परिवार :: पत्नियाँ :- रिद्धि एवं सिद्धी, पुत्र :- शुभ एवं लाभ, पुत्रि :- संतोषी माँ, पुत्र वधुएँ :- तुष्टि एवं पुष्टि, पौत्र :- आनंद एवं प्रमोद।
नभस्ये मासि शुक्लायाम् चतुर्थ्याम् मम जन्मनि।
दूर्वाभि: नामभिः पूजां तर्पणं विधिवत् चरेत्॥ 
गणपति का प्राकट्य भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि को हुआ।  
ओंकाररूपी भगवान्  यो वेदादौ प्रतिष्ठितः।[गणेश पुराण 1.1.15]
ओंकाररूपी भगवानुक्तस्ते गणनायकः।[गणेश पुराण 1.12.7]
ददृशु:वज्रीमुख्यास्तेआद्यमोंकाररूपिणम्।[गणेश पुराण 2.125.32]
आद्य पूज्य होने के कारण गण नायक का पंचदेव में स्थान होने से इनका महत्त्व शिव, दुर्गा, सूर्य, विष्णुके तुल्यहै। महर्षि वेदव्यास जी से पूजित होने के कारण श्री गणेश की महत्ता विष्णु रूपी श्री कृष्ण के तुल्य स्वतः सिद्ध है। इन पाँच देवों में अभेद बुद्धि रखने वाला ही तत्त्व ज्ञानी होता है।
गणपति को दूर्वा बहुत प्रिय है। उसमें भी 21 नरकोंसे बचाव केलिए 21 दूर्वा को उनको चढ़ाकर व्यक्ति अपने को कष्ट से बचा लेता है। दूर्वा श्याम और सफेद दोनों होती है। दूर्वा नरक नाशक, वश वर्धक, आयु वर्धक, तेज वर्धक होती है।
हरिता श्वेतवर्ना वा पंच त्रिपत्र संयुता:।
दूर्वांकुरा मया दत्ता एकविंशतिः सम्मिताः
GANPATI,
RIDDHI-SIDDHI
महर्षि कौण्डिन्य और उनकी पत्नी आश्रया ने दूर्वा से गणपति की पूजाकर उनका दर्शन प्राप्त किया था। शमी और मंदार के पुष्प भी गणपति को प्रिय हैं।
अपने सौंदर्य पर गर्वित हो चन्द्रमा ने लंबोदर का मजाक उड़ाया था। क्रुद्ध गणपति ने चन्द्रमा को शाप दिया मेरी तिथि को तुम्हारा अदर्शन हो जाएगा। जब चन्द्रमा ने प्रार्थना की कि हे वरद! मुझे क्षमा करें तब गणपति ने उन्हें कहा, जाइये अदर्शन तो नहीं होगा पर अपवाद होगा"। जो भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को तुम्हारा दर्शन करेगा वह कलंक का भागी बनेगा। अतः आजका चन्द्रमा निषिद्ध दर्शन होता है। दूसरों से कड़वे और अपशब्द वचन सुनकर व्यक्ति कलंक से मुक्त हो पाता है।
शाक्तागम, शैवागम, गणपत्यागम का विद्या और साधना वैभव अपूर्व है। इससे पार पाना असंभव जैसा है। स्कन्द पुराण में भगवान शिव ने कहा है–
"आगमा बहवो जाता गणेशस्य यथा मम"
मेरे आगम (तंत्र शास्त्र) की ही तरह गणपति के आगम का भी बाहुल्य है।[स्कन्द पुराण-भगवान्  शिव]
गणपति की बायीं ओर मुड़ी सूँड वाली प्रतिमा की पूजा से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है और दाहिनी ओर मुड़ी सूँड वाली प्रतिमा की पूजा से समस्त सांसारिक वैभव की प्राप्ति होती है। मयमतं में वहाँ की परम्परा स्पष्ट है-
(1).  गणपति का मुख हाथी का होता है, 
(2).  गणपति का एक दांत बाहर निकला रहता है, 
(3). तीन नेत्र होते हैं, लाल रंग होता है, 
(4). चार भुजाएं होती हैं, 
(5). विशाल उदर होता है, 
(6). सर्प का जनेऊ कंधे से लटकता रहता है, 
(7). जंघाऔर घुटना सघनऔरप्रबलहोता है, 
(8). बाँया पैर फैला और दाहिना मुड़ा होता है, 
(9). सूंड बाँयीं वायीं ओर मुड़ी होती है।[वामावर्त्ताSन्गुलियकम्। 36.124] 
सभी प्रकार की आगमिक साधना में मोक्ष और लोक प्राप्ति की साधना का मार्ग अलग रहता है चाहे वह श्री चक्र का हो या गणेश वामावर्त्त का हो।
जब भगवान् शिव ने माता पार्वती की रक्षा में लगे गणपति का सिर काट कर उनका वध कर दिया तब पुत्र शोक में मूर्छित माँ पार्वती को आश्वस्त करते हुए भगवान् शिव ने हाथी का सिर उस धड़ से जोड़ कर गणपति को जीवित कर दिया। वह जुड़ा सिर सिंदूर से विलेपित था। माता पार्वती अति स्नेह वश पुत्र गणेश को अपने हाथ में लगे सिंदूर से सहलाती थीं। तब वे सिंदूर वर्ण के लगते थे। हाथी का सिर भी वैसा ही निकल आया तब माता पार्वती ने कहा, तुम्हारे मुख पर सिंदूर दिख रहा है। अतः तुम अपने भक्तों से हमेशा सिंदूर से लेपित होते रहोगे :–
आनने तव सिन्दूरं दृश्यते साम्प्रतं यदि।
तस्मात्वंपूजनियो$सि सिन्दूरेण सदा नरै:॥[शिवपुराण 2.4.18.9]
भगवान् शिव ने गणपति  को यह वरदान दिया था कि तुम सभी देवों में अग्र पूजित होगे। साथ ही तुम सर्व पूज्य भी बने रहोगे (लिंग पुराण)। भगवती ललिता देवी ने भी गणपति को सर्व अग्र पूजित होने का वरदान दिया था (ब्रह्मांड पुराण)। यही कारण है कि गणपति आज शिव जी और माता ललिता जी से वरदान पाकर इन्द्र, कुबेर आदि द्वारा भी प्रथम पूजित हैं। गणपति का प्रातः स्मरण मात्र से दिन भर निर्विघ्न बीतता है। विवाह से उपनयन तक में "गणानान्त्वा गणपति" मन्त्र गूंजता रहता है।
माता भगवती पार्वती ने एक बार अति स्नेह वश पुत्र गणपति को अमरत्व देने हेतु लड्डू में अमरत्व भर दिया। उसे  गणपति  ने खाया पर एक चूहा भी उसे खा लिया। वह अमर हो गया। तब गणपति ने उसे अपना वाहन बना लिया।[स्कन्दपुराण 7.3.32]
अमर वाहन मूषक पर अमर  गणपति  सवार होकर चलते हैं। यह चूहा पूर्व जन्म में यक्ष था जो चूहा बनकर ऋषि-मुनियों को परेशान किया करता था। 
ब्रह्मा जी ने गणपति का विवाह सिद्धि और बुद्धि से कर दी। गणपति के दो पुत्र हैं :- शुभ और लाभ।
नि षु सीद गणपते गणेषु त्वमाहुर्विप्रतमं कवीनाम्। 
न ऋते त्वत् क्रियते किं चनारे महामर्क मघवञ्चित्रमर्च 
यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभिः सदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति। 
परब्रह्मरूपं चिदानन्दभूतं सदा तं गणेशं नमामो भजामः॥
हे गणपते! आप स्तुति करने वाले हम लोगों के मध्य में भली प्रकार स्थित होइये। आपको क्रान्तदर्शी कवियों में अतिशय बुद्धिमान्-सर्वज्ञ कहा जाता है। आपके बिना कोई भी शुभाशुभ कार्य आरम्भ नहीं किया जाता, इसलिये हे भगवन्-मघवन्! ऋद्धि-सिद्धि के अधिष्ठाता देव! हमारी इस पूजनीय प्रार्थना को स्वीकार कीजिये।
हे गणपति! आप अपने भक्तजनों के मध्य प्रतिष्ठित हों। त्रिकालदर्शी ऋषिरूप कवियों में श्रेष्ठ! आप सत्कर्मों के पूरक हों। आपकी आराधना के बिना दूर या समीप किसी भी कार्य का शुभारम्भ नहीं होता। हे सम्पत्ति एवं ऐश्वर्य के अधिपति! आप मेरी इस श्रद्धा युक्त पूजा-अर्चना को अभीष्ट फल को देने वाले यज्ञ में सम्पन्न होने हेतु वर प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.112.9]
Hey Ganpati! You should be present & honoured-respected amongest your devotees. You are marvellous poet amongst the Rishis who can foresee the future. You should help us accomplish the virtuous deeds-ventures. No auspicious deed begins without your prayers-wishes. Hey the master of assets and comforts! Kindly accept my prayer to grant me desired reward like the Yagy held for obtaining the desired yield.
ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्॥
वसु, रूद्र, आदित्य आदि गण देवों के स्वामी, ऋषि रूप कवियों में वन्दनीय, दिव्य अन्न-सम्पत्तियों के अधिपति, समस्त देवों में अग्रगम्य तथा मन्त्र-सिद्धि के प्रदाता हे गणपति! यज्ञ, जप तथा दान आदि अनुष्ठानों के माध्यम से हम आपका आवाह्न करते हैं। आप हमें अभय-वर प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.23.1]
The head-master of Vasu, Rudr, Adity etc. Gan, honoured-revered (Wisdom of the Wise and Uppermost in Glory) amongest the Rishis like poets, masters of divine grains-assets, We invite you through Jap-recitation of prayers, other charity-donations (Sacrificial Oblations) & rites, recitations, ceremonies. Kindly bless us with the protection-asylum, desired virtuous rewards.
Please come to us by Listening to our Invocation and be Present in the Seat of this Sacred Sacrificial Altar to charge our Prayers with Your Power and Wisdom.
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥ 
हे परमदेव गणेश जी! समस्त गणों के अधिपति एवं प्रिय पदार्थों प्राणियों के पालक और समस्त सुखनिधियों के निधिपति! आपका हम आवाहन करते हैं। आप सृष्टि को उत्पन्न करने वाले हैं, हिरण्यगर्भ को धारण करने वाले अर्थात् संसार को अपने-आप में धारण करने वाली प्रकृति के भी स्वामी हैं, आपको हम प्राप्त हों।[शु.यजु. 23.19]
Hey the Ultimate deity Ganesh Ji Maha Raj! You are the head of  all individuals-clans, nurturer of all organism, and all comforts. We are inviting you. You created this universe and supported the golden egg-shall from which Bhagwan Shri Hari Vishnu appeared prior to evolution. You are the master of this universe & nature. 
Here the Almighty is addressed as Ganesh Ji Maha Raj, who clear all obstacles of the devotees.
नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमो व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो नमो विरुपेभ्यो विश्वरुपेभ्यश्च वो नमः।
हे जगन्नियन्ता परमदेव! इस सृष्टि में देव, पितर, गन्दर्भ, असुर, मनुष्य रूप प्रधान गण विभाग और उनके गणपतियों, चेतन-अचेतन रूप पदार्थों के अनेक उपसंघों तथा संघपतियों, तत्तद् विषयगत कला निधियों एवं उनके प्रमुख प्रवर्तकों तथा सामान्य एवं असामान्य समस्त जीवा कृतियों के रूप में मूर्तिवान् आपको कोटिशः नमन है।  
देवानुचर गण-विशेषों को, विश्वनाथ महाकालेश्वर आदि की तरह पीठभेद से विभिन्न गणपतियों को, संघों को, संघ-पतियों को, बुद्धिशालियों को, बुद्धि शालियों के परिपालन करने वाले उनके स्वामियों को, दिगम्बर, परमहंस, जटिलादि चतुर्था श्रमियों को तथा सकलात्म दर्शियों को नमस्कार है।[शुक्ल यजुर्वेद 16.25]
Hey Ultimate deity-Ganpati! I offer obeisance to you, who appears in different form like demigods, Pitr, Gandarbh, Demons, humans, heads of various groups & their followers etc.
ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्। 
उन कराट (सूँड़ को घुमाने वाले) भगवान् गणपति को हम जानते हैं, गजवदन का हम ध्यान करते हैं, वे दन्ती सन्मार्ग पर चलने के लिये हमें प्रेरित करें।[कृ. यजुर्वेदीय मैत्रायणी 2.9.1.6]  
We offer obeisance & concentrate over the deity-Ganesh Ji Maha Raj,  who moves his trunk (to bless) the devotees. Please guide us move over virtuous, righteous, pious path.
नमो व्रातपतये नमो गणपतये नमः प्रमथपतये नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्ननाशिने शिवसुताय श्रीवरद-मूर्तये नमः। 
व्रातपति को नमस्कार, गणपति को नमस्कार, प्रमथपति को नमस्कार; लम्बोदर, एकदन्त, विघ्न-नाशक, शिव-तनय श्रीवरदमूर्ति को नमस्कार है।[कृ. यजुर्वेदीय गणपत्यथर्वशीर्ष 10] 
We offer obeisance to the leader of the soldiers of Bhagwan Shiv, having long nose, one tusk, destroyer of evils-obstacles, son of Bhagwan Shiv who is always ready-willing to protect the devotees-those who come to his fold.
उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवयन्तस्त्वेमहे।
उप प्र यन्तु मरुतः सुदानव इन्द्र प्राशूर्भवा सचा॥
हे मन्त्र सिद्धि के प्रदाता परमदेव! सत्य-संकल्प से आपकी ओर अभिमुख हमें आपका अनुग्रह प्राप्त हो। शोभन दान से युक्त वायुमण्डल हमारे अनुकूल हो। हे सुख-धन के अधिष्ठाता! भक्ति भाव से समर्पित भोग-राग को आप अपनी कृपा दृष्टि से अमृतमय   बना दें।[ऋग्वेद 1.40.1]
Hey Ultimate deity! We the ones who are determined to follow the path of truth wish to have your grace-favours. The environment should favour us. Hey the master of wealth! Please make the offering by us as good as the nectar, ambrosia, elixir.
प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्येतु सूनृता।
अच्छा वीरं नर्यं पङ्क्तिराधसं देवा यज्ञं नयन्तु नः॥
मन्त्र-सिद्धि प्रदाता परमदेव की कृपा दृष्टि के हम भागी हों। प्रिय एवं सत्यनिष्ठ वाणी की अधिष्ठात्री देवी की सत्प्रेरणा से हम अभिसिंचित हों। समस्त देवगण दिव्य ऊर्जायुक्त, जीवमात्र के लिये कल्याणकारी एवं भक्ति भाव से समृद्ध यज्ञ-सत्कर्म हेतु हमें प्रतिष्ठित करें। [ऋग्वेद 1.40.3]
We should qualify for the blessings of the Ultimate deity who grants accomplishments. We should be quenched with the loving & truthful words due to the guidance of the deity of speech-Maa Saraswati. We should be blessed (granted, established) with divine energy-capability, devotion to perform social welfare-justice by all demigods & deities.
Please come to us by Listening to our Invocation and be Present in the Seat of this Sacred Sacrificial Altar to charge our Prayers with Your Power and Wisdom.
बुधवार को गणपति आराधना, शुभ फल दायक होने के साथ साथ दुःख दारिद्रय, परेशानियों, कष्टों, व्याधि-बीमारी-रोगों आदि से भी से छुटकारा दिलाती है। 
"कलीचण्डौ विनायक:" कलियुग में माँ चण्डी और विनायक की उपासना जल्द मनचाही सिद्धि और शुभ फल प्रदान करती हैं। कलियुग में मन क्रम और वचन में उत्पन्न क्लेश का अन्त करने के लिए गणपति आराधना, बुद्ध को भी प्रसन्न करती है, धन-धान्य बढ़ाती है।
गणपति की प्रतिमा पर शुद्ध गाय का घी और सिन्दूर लगाना या चोला चढ़ाकर, दूर्वा अर्पित करें तथा गुड़ से बने मोदक का भोग लगायें। 
निम्न मन्त्र का 108 बार ध्यान, लग्न के साथ उच्चारण करें। 
खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लंबोदरसुन्दरम्।
प्रस्यन्दन्मदगंधलुब्धमधुपाया लोलगण्डस्थलम्॥ 
दन्ताघातविदारितारिरूधिरैं सिंदूरशोभाकरम्। 
वन्दे शैलसुतासुतं गणपिति सिद्धप्रदम् कामदम्॥ 
धूप-दीप के द्वारा मंगलआरती करें। मोदक का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करें, मस्तक पर सिन्दूर का तिलक लगाकर सिन्दूर से ही स्वस्तिक घर के बाहर और पूजा घर में भी बनायें।
गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय धीमहि।
गुणशरीराय गुणमण्डिताय गुणेशानाय धीमहि।
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि।
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि। 
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि।
गानचतुराय गानप्राणाय गानान्तरात्मने। 
गानोत्सुकाय गानमत्ताय गानोत्सुकमनसे।
गुरुपूजिताय गुरुदेवताय गुरुकुलस्थायिने। 
गुरुविक्रमाय गुह्यप्रवराय गुरवे गुणगुरवे।
गुरुदैत्यगलच्छेत्रे गुरुधर्मसदाराध्याय। 
गुरुपुत्रपरित्रात्रे गुरुपाखण्डखण्डकाय।
गीतसाराय गीततत्त्वाय गीतगोत्राय धीमहि। 
गूढगुल्फाय गन्धमत्ताय गोजयप्रदाय धीमहि।
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि।
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि।
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि।
ग्रन्थगीताय ग्रन्थगेयाय ग्रन्थान्तरात्मने। 
गीतलीनाय गीताश्रयाय गीतवाद्यपटवे।
गेयचरिताय गायकवराय गन्धर्वप्रियकृते। 
गायकाधीनविग्रहाय गङ्गाजलप्रणयवते।
गौरीस्तनन्धयाय गौरीहृदयनन्दनाय। 
गौरभानुसुताय गौरीगणेश्वराय।
गौरीप्रणयाय गौरीप्रवणाय गौरभावाय धीमहि।
गोसहस्राय गोवर्धनाय गोपगोपाय धीमहि।
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि।
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि। 
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि।
गणपति की आरती ::
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा; 
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा। 
एक दिन दयावन्त चार भुजा धारी; 
मस्तक सिन्दूर सोहे मुसे की सवारी। 
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा; 
लड्डू अन का भोग लागो सन्त करे सेवा। 
अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया; 
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया। 
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा; 
सूरश्याम शरण आए सुफल कीजे सेवा। 
दीनन की लाज राखो, शम्भु सुत वारी; 
कामना को पूरी करो, जग बलिहारी। 
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा; 
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा। 
पार्वती के पुत्र कहावो, शंकर सुत स्वामी। 
गजानन्द गणनायक, भक्तन के स्वामी॥
ऋद्धि सिद्धि के मालिक, मूषक असवारी। 
कर जोड़ विनती करते, आनन्द उर भारी॥
प्रथम आपको पूजत, शुभ मंगल दाता। 
सिद्धि होय सब कारज, दारिद्र हट जाता॥
सुंड सुंडला इंद्र इन्द्राला, मस्तक पर चंदा। 
कारज सिद्ध कराओ, काटो सब फंदा॥ 
गणपति जी की आरती, जो कोई नर गावै। 
तब बैकुण्ठ परम पद, निश्चित ही पावै॥
विध्न-हरण मंगल-करण, काटत सकल कलेस; 
सबसे पहले सुमरिये गौरीपुत्र गणेश।
गणपति परिवार :: दोनों पत्नियाँ ऋद्धि और सिद्धि, दोनों पुत्र शुभ और लाभ, पुत्री सन्तोषी माता, दोनों बहुएँ तुष्टि और पुष्टि, दोनों पौत्र आनन्द और प्रमोद। 
महागणपति मूल मन्त्र ::
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा॥
एकदन्ताय विद्‌महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
श्रीगणेश गायत्री मंत्र ::
एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्। 
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्। 
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्। 
ॐ गं गणपतये नमो नमः। 
श्री गणपति स्तोत्र ::
ॐ गं नमो विघ्नराजाय, सर्व सौख्य प्रदायिने, दुष्टारिष्ट विनाशाय, पराय परमात्मने, लम्बोदरम, महावीर्यं, नागयज्ञोपशोभितम, अर्द्धचन्द्रं धरंदेवं, विघ्नव्यूह विनाशनम, ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: हेरम्बाय नमो नम:, सर्व सिद्धि प्रदस्त्वमहि, ऋद्धी बुद्धि प्रदोभव, चिन्तितार्थ प्रदस्त्वमहि, सततं मोदक: प्रिय:, सिन्दुरारुणवस्त्रैच, पूजितो वरदायक:, इदं गणपति स्तोत्रं, यः पठेद् भक्ति मान्नर:, तस्य देहञ्च गेहञ्च, स्वयं लक्ष्मी र्न मुञ्चती, ॐ गं मेघाद: कीर्तिद: शोकहारी दौर्भाग्यनाशन:, प्रतिवादी मुख स्तंभों रुष्टं चित प्रसादन: वर वरदये नमः॥ 
संकटनाशनगणेशस्तोत्रम् ::
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्। 
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये॥1॥
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्। 
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥2॥
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च। 
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥3॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्। 
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥4॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः। 
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरः प्रभुः॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। 
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम्॥6॥
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्। 
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥7॥
अष्टेभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्। 
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥8॥
श्री गणेश चालीसा ::
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल
विघ्न हरण मंगल करन, जय जय गिरिजालाल॥ 
जय जय जय गणपति गणराजू, मंगल भरण करण शुभः काजू
जय गजबदन सदन सुखदाता, विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥ 
वक्रतुंडा शुची शुन्दा सुहावना, तिलका त्रिपुन्दा भाल मन भावन
राजता मणि मुक्ताना उर माला, स्वर्ण मुकुता शिरा नयन विशाला॥ 
पुस्तक पानी कुथार त्रिशूलं, मोदक भोग सुगन्धित फूलं
सुन्दर पीताम्बर तन साजित, चरण पादुका मुनि मन राजित॥ 
धनि शिव सुवन शादानना भ्राता, गौरी लालन विश्व-विख्याता
रिद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे, मूषका वाहन सोहत द्वारे॥ 
कहूं जन्मा शुभ कथा तुम्हारी, अति शुची पावन मंगलकारी
एक समय गिरिराज कुमारी, पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥ 
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा, तब पहुँच्यो तुम धरी द्विजा रूपा
अतिथि जानी के गौरी सुखारी, बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥ 
अति प्रसन्ना हवाई तुम वरा दीन्हा, मातु पुत्र हित जो टाप कीन्हा
मिलही पुत्र तुही, बुद्धि विशाला, बिना गर्भा धारण यही काला॥ 
गणनायक गुण ज्ञान निधाना, पूजित प्रथम रूप भगवाना
असा कही अंतर्ध्याना रूप हवाई, पालना पर बालक स्वरूप हवाई॥ 
बनिशिशुरुदंजबहितुम थाना, लखी मुख सुख नहीं गौरी समाना
सकल मगन सुखा मंगल गावहीं, नाभा ते सुरन सुमन वर्शावाहीं॥ 
शम्भू उमा बहुदान लुतावाहीं, सुरा मुनिजन सुत देखन आवहिं
लखी अति आनंद मंगल साजा, देखन भी आए शनि राजा॥ 
निज अवगुण गाणी शनि मन माहीं, बालक देखन चाहत नाहीं
गिरिजा कछु मन भेद बढायो, उत्सव मोरा न शनि तुही भायो॥ 
कहना लगे शनि मन सकुचाई, का करिहौ शिशु मोहि दिखायी
नहीं विश्वास उमा उर भयू, शनि सों बालक देखन कह्यौ॥ 
पदताहीं शनि द्रिगाकोना प्रकाशा, बालक सिरा उडी गयो आकाशा
गिरजा गिरी विकला हवाई धरणी, सो दुख दशा गयो नहीं वरनी॥ 
हाहाकार मच्यो कैलाशा, शनि कीन्हों लखी सुत को नाशा
तुरत गरुडा चढी विष्णु सिधाए, काटी चक्र सो गजशिरा लाये॥ 
बालक के धड़ ऊपर धारयो, प्राण मंत्र पढ़ी शंकर दारयो
नाम’गणेशा’शम्भुताबकीन्हे, प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥ 
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा, पृथ्वी कर प्रदक्षिना लीन्हा
चले शदानना भरमि भुलाई, रचे बैठी तुम बुद्धि उपाई॥ 
चरण मातु-पितु के धारा लीन्हें, तिनके सात प्रदक्षिना कीन्हें
धनि गणेशा कही शिव हिये हरष्यो, नाभा ते सुरन सुमन बहु बरसे॥ 
तुम्हारी महिमा बुद्धि बढाई, शेष सहसा मुख सके न गई
मैं मति हीन मलीना दुखारी, करहूँ कौन विधि विनय तुम्हारी॥ 
भजता ‘रामसुन्दर’ प्रभुदासा, जगा प्रयागा ककरा दुर्वासा 
अब प्रभु दया दीना पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कुछा दीजै॥  
दोहा ::
श्री गणेशा यह चालीसा, पाठा कर्रे धरा ध्यान; 
नीता नव मंगल ग्रह बसे, लहे जगत सनमाना। 
सम्बन्ध अपना सहस्र दश, ऋषि पंचमी दिनेशा; 
पूर्ण चालीसा भयो, मंगला मूर्ती गणेशा॥ 
ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्।
   ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः श्रृण्वन्नूतिभिः सीदसादनम्॥
We call on Thee, Lord of the hosts, the poet of poets, the most famous of all; the Supreme king of spiritual knowledge, 0 Lord of spiritual wisdom. Listen to us with thy graces and reside in the place (of sacrifice).Hey Ganpati! You are the head of Bhagwan Shiv's Gans-warriors (celestial attendants or followers) we offer our sacrificial oblations to you-the wisdom of the wise and the uppermost in glory, you are the first to be worshipped and is of the nature of Brahmn i.e., absolute consciousness); you are the embodiment of the sacred Pranav (Om).
Please come to us by listening to our prayers and be present in the seat of this sacred sacrificial altar.
Our prostrations to the Maha Ganadhipati-the great leader of  Bhagwan Shiv's Gans.
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
हे वक्रतुण्ड महाकाय! करोड़ों सूर्यों के समान आभा वाले देव, मेरे सभी कार्यों में विघ्नो का अभाव करो अर्थात् वे बिना विघ्नों के सम्पन्न हों। 
Hey Ganpati! Oh! You have a huge body with curved (elephant) trunk, you have the aura-brilliance equivalent to billions of Suns, Kindly always remove all obstacles from my endeavours.
विनायक नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय। 
अविघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
सदैव लड्डुओं के प्रेमी हे विनायक! तुम्हें नमस्कार है, हे देव, मेरे सभी कार्यों में विघ्नों का अभाव पैदा करो अर्थात् वे निर्विघ्न संपादित हों।
Hey Ganpati! You love eating Laddu. I prostrate before you. Kindly accomplish all my endeavours without any trouble-obstacle.
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजंबूफलसारभक्षितम्। 
उमासुतं शोकविनाशकारणं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
Salutations to Ganpati who has an elephant head, who is attended by the band of his followers, who eats his favourite wood-apple and rose-apple fruits, who is the son of Goddess Uma, who is the cause of destruction of all sorrow. And I salute to his feet which are like lotus.
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः। 
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः॥ 
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः। 
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥ 
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।  
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥ 
No obstacles will come in the way of one who reads or listens to these 12 names of Ganesh Ji Maha Raj at the beginning of education, at the time of marriage, while entering or exiting anything, during a battle or calamity.
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्। 
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये॥  
In order to remove all obstacles, one should meditate on (the Ganesh Ji Maharaj) as wearing a white garment, as having the complexion like the moon, and having four arms and a pleasant countenance.
अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुरासुरैः। 
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः॥ 
Salutations to Ganpati who is worshipped by the demigods and the demons for fulfilling their desires, for removing all obstacles.
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्। 
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये॥ 
After bowing to the Vinayak, the son of Maa Gauri, the God who dwells in the hearts of his devotees, one should constantly remember Him in order to achieve long life, wealth and fulfilment of wishes.
अगजाननपद्मार्कं गजाननमहर्निशम्। 
अनेकदन्तं भक्तानां एकदन्तमुपास्महे॥ 
Showering brilliance on the lotus face of his mother Parvati, elephant-faced, bestower of many blessings to his devotees, I propitiate that God with a single tusk, day and night.
गजवक्त्रं सुरश्रेष्ठं कर्णचामरभूषितम्।  
पाशांकुशधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम्॥
I bow before that God who is the leader of Shiva's ghosts, whose face resembles that of an elephant, who is supreme among the deities, who sports ears that look like fans and who is armed with noose and goad.
एकदंतं महाकायं तप्तकाञ्चनसन्निभम्। 
लंबोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम्॥
I bow down to one tusked, huge-bodied, big-bellied, large-eyed Ganpati whose complexion is like that of molten gold.
गजवदनमचिन्त्यं तीक्ष्णदंष्ट्रं त्रिनेत्रं बृहदुदरमशेषं भूतिराजं पुराणम्। 
अमरवर सुपूज्यं रक्तवर्णं सुरेशं पशुपतिसुतमीशं विघ्नराजं नमामि॥ 
Elephant faced, beyond thought, sharp teethed, three eyed, large bellied, the perfect one, the king of the riches, the ancient one, the one to be respected by all the gods, with red complexion, the lord of the gods, son of Shiva (the lord of life), ruler over obstacles; I bow to you.
कार्यं मे सिद्धिमायातु प्रसन्ने त्वयि धातरि। 
विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि सुरनायक॥ 
Oh! Creator, Oh leader of the gods; May success come to my efforts by your grace (lit. while you are pleased); (and) May all the obstacles meet their end!
मूषिकवाहन् मोदकहस्त चामरकर्ण विलम्बित सूत्र। 
वामनरूप महेश्वरपुत्र विघ्नविनायक पाद नमस्ते॥
हे गणपति आपका वाहन मूषक-चूहा है। आपके हाथों में (खाने के लिए) लड्डू हैं। आपके कण बड़े पँखे के समान हैं। अपने जनेऊ धारण कर रखा है। आप भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। आपका कद छोटा है। हे भगवान् शिव के पुत्र मैं आपको प्रणाम करता हूँ। 
Hey Ganpati! Mouse is your carrier-vehicle. You have Laddus in your hands. Your ears are like a big fan. You wear sacred thread around your loin.  Hey the son of Bhagwan Shiv! Kindly removes all obstacle, threats, troubles from my life. I prostrate before you.
एकदंताय विद्महे। वक्रतुंडाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात्॥ 
Hey Ganpati! You have one tooth. Your trunk is curved. I prostrate before to get rid of all my pains, troubles.
प्रचोदयात् :: Whatever is prayed or wished for (Pracho) by the chanter of the Gayatri Mantr is bestowed (Dayat) by Mata Gayatri. Inducement-stirring of consciousness.
ऊँ गं गणपतये नमः। 
हे गणपति में आपको प्रणाम करता हूँ। यह गणपति महाराज का महामंत्र है।
This is Maha Mantr devoted to Ganpati Maharaj. Before beginning an auspicious deed-endeavour one has to recite this Mantr with devotion to Ganpati. 
Slowly & gradually obstacles in my life vanished, since when I begun with the recitation of this Maha Mantr.
गणेश चतुर्थी :: महाभारत की समाप्ति पर जब महर्षि वेद व्यास भगवान् श्री कृष्ण के मिले तो उन्होंने व्यास जी को महाभारत लिखने का आदेश दिया-जिसमें पूरी श्रीमद्भगवत गीता समाई हुई है। व्यास जी ने भगवान् श्री कृष्ण से अनुरोध किया कि उन्हें शीघ्र लिखने के लिये गणेश जी की सहायता चाहिये। गणेश जी तैयार हो गए, मगर कहा कि वेद व्यास जी बगैर रुके बोलेंगे। महर्षि वेद व्यास तैयार हो गए; परन्तु कहा कि गणेश जी हर श्लोक को पूरी तरह समझकर ही आगे लिखेंगे। जब तक गणेश जी श्लोक का अर्थ समझ पाते, तब तक महर्षि व्यास नये श्लोक की रचना कर लेते। 
Ganesh Chaturthy 
celebration 
at Oran Park, Sydney, 
NSW, Australia
दिन-रात लेखन कार्य चलने लगा जिससे गणेश जी को थकान होने लगी। बीच-बीच में पानी पीना संभव नहीं था अतः गणेश जी के शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की गई। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा। महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला। अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ। भगवान् वेद व्यास ने देखा कि गणपती का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो उन्होंने गणेश जी को पानी से भिगो दिया। इन दस दिनों में भगवान् वेद व्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ अर्पित किये। तभी से गणपती जी बैठाने की परम्परा शुरू हुई। इन दस दिनों में गणेश जी को उनके मन पसंद भोज्य पदार्थ अर्पित किए जाते हैं। [26. 08.2017]
प्रार्थना :: हे विघ्नेश! हे सिद्धिविनायक! आपका नाम विघ्न-समूह का खण्डन करने वाला है, आप भगवान् शिव और माता पार्वती के सुपुत्र हैं। देवराज इन्द्र आपके चरणों की वन्दना करते हैं।
आप माता पार्वती के महान व्रत के उत्तम फल एवं निखिल मंगलरूप हैं, आप मेरे विघ्न का निवारण करें।
हे सिद्धिविनायक! आपके श्री विग्रह की कान्ति उत्तम पद्मरागमणि के समान अरुण वर्ण की है। 
श्री सिद्धि और बुद्धि देवियों ने आपके श्रीअंगों में कुंकुम का लेप करके आपकी शोभा का विस्तार किया है। 
आपके दाहिने स्तन पर वलयाकार मुड़ा हुआ शुण्ड (सूँड़) अत्यन्त मनोहर जान पड़ता है, आप मेरे विघ्न हर लीजिए।
हे सिद्धिविनायक! आप अपने चार हाथों में क्रमश: पाश, अंकुश, कमल और परशु धारण करते हैं, लाल फूलों की माला से अलंकृत हैं और माँ उमा के अंग से उत्पन्न हुए हैं तथा आपके सिन्दूर शोभित ललाट में चन्द्रमा का प्रकाश फैल रहा है, आप मेरे विघ्नों का अपहरण कीजिए।
हे सिद्धिविनायक! सभी कार्यों में विघ्न-समूह के आ पड़ने की आशंका से भयभीत हुए ब्रह्मा आदि श्रेष्ठ देवताओं ने भी आपकी मोदक आदि मिष्टान्नों से भली-भांति पूजा की है। 
आप समस्त देवताओं में सबसे पहले पूजनीय हैं, आप मेरे विघ्न-समूह का निवारण कीजिए।
हे सिद्धिविनायक! आप जल्दी-जल्दी चलने, लड़खड़ाने, उच्च स्वर से शब्द करने, ऊर्ध्वकण्ठ, स्थूल शरीर होने से चन्द्र, रुद्रगण आदि समस्त देवसमुदाय को हँसाते रहते हैं।
आपके कान सूप के समान जान पड़ते हैं, आप मोटा, गोलाकार और ऊँचा तुन्द (तोंद) धारण करते हैं, आप मेरे विघ्नों का अपहरण कीजिए।
हे सिद्धिविनायक! आपने नागराज को यज्ञोपवीत का स्थान दे रखा है, आप बाल चन्द्र को मस्तक पर धारण कर दर्शनार्थियों को पुण्य प्रदान करते हैं।
भक्तों को अभय देने वाले दयाधाम विघ्नराज, आप मेरे विघ्नों को हर लीजिए।
हे सिद्धिविनायक! आपका सुन्दर मुकुट उत्तम रत्नों के सार से दीप्तिमान होता है।
आप कुसुम्भी रंग के दो मनोहर वस्त्र धारण करते हैं, आपकी शोभा-कान्ति बहुत बढ़ी-चढ़ी है और सर्वत्र आपके स्मरण का प्रताप सबका मंगल करने वाला है, आप मेरे विघ्न हर लें।
हे सिद्धिविनायक! आप देवान्तक आदि असुरों से डरे हुए देवताओं की पीड़ा दूर करने वाले तथा विज्ञान बोध के वरदान से सबके अज्ञानान्धकार को हर लेने वाले हैं। 
त्रिभुवनपति इन्द्र को आनन्दित करने वाले कुमारबन्धो, आप मेरे विघ्नों का निवारण कीजिए।
श्री गणपत्यथर्वशीर्ष-शान्ति पाठ ::
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः। भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः॥
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः। व्यशेम देवहितं यदायुः॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः॥
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ तन्मामवतु तद् वक्तारमवतु अवतु माम् अवतु वक्तारम्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः। 
उपनिषत् ::
हरिः ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि॥
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि॥
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि॥
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्॥1॥
स्वरूप तत्त्व ::
ऋतं वच्मि (वदिष्यामि)॥ सत्यं वच्मि (वदिष्यामि)॥2॥
अव त्वं माम्। अव वक्तारम्॥ अव श्रोतारम्। अव दातारम्॥
अव धातारम्। अवानूचानमव शिष्यम्॥
अव पश्चात्तात्। अव पुरस्तात्॥ अवोत्तरात्तात्। अव दक्षिणात्तात्॥
अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्॥ सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात्॥3॥
त्वं वाङ्ग्मयस्त्वं चिन्मयः। त्वमानंदमयस्त्वं ब्रह्ममयः॥
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि॥
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि॥4॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ॥ 
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति॥ 
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः॥ त्वं चत्वारि वाक्पदानि॥5॥
त्वं गुणत्रयातीतः त्वमवस्थात्रयातीतः। त्वं देहत्रयातीतः॥
त्वं कालत्रयातीतः। त्वं मूलाधारः स्थिथोऽसि नित्यम्॥
त्वं शक्तित्रयात्मकः। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्॥
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम्॥6॥
गणेश मंत्र ::
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम्।
अनुस्वारः परतरः॥
अर्धेन्दुलसितम्। तारेण ऋद्धम्॥
एतत्तव मनुस्वरूपम्। गकारः पूर्वरूपम्॥
अकारो मध्यमरूपम्। अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्॥
बिन्दुरुत्तररूपम्। नादः संधानम्॥
संहितासंधिः। सैषा गणेशविद्या॥
गणकऋषिः। निचृद्गायत्रीच्छंदः॥ गणपतिर्देवता॥
ॐ गं गणपतये नमः॥7॥
गणेश गायात्री ::
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि॥ तन्नो दंतिः प्रचोदयात्॥8॥
गणेश रूप ::
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। 
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्॥
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। 
रक्तगंधानुलिप्तांगं रक्तपुष्पैः सुपूजितम्॥
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। 
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्॥
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः॥9॥
अष्ट नाम गणपति ::
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये॥
नमः प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय॥
विघ्ननाशिने शिवसुताय। श्रीवरदमूर्तये नमो नमः॥10॥
फलश्रुति ::
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते। स ब्रह्मभूयाय कल्पते॥
स सर्वतः सुखमेधते। स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते॥
स पंचमहापापात्प्रमुच्यते। 
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति॥
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति। 
सायंप्रातः प्रयुंजानो अपापो भवति॥
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति। धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति॥
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्। यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति॥
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्॥11॥
अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति॥
चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति। 
स यशोवान् भवति। इत्यथर्वणवाक्यम्॥
ब्रह्माद्याचरणं विद्यात् न बिभेति कदाचनेति॥12॥
यो दूर्वांकुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति। 
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति॥
स मेधावान् भवति। यो मोदकसहस्रेण यजति॥
स वाञ्छितफलमवाप्नोति। यः साज्यसमिद्भिर्यजति॥
स सर्वं लभते स सर्वं लभते॥13॥
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति। 
सूर्यगृहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति॥
महाविघ्नात्प्रमुच्यते। महादोषात्प्रमुच्यते॥
महापापात् प्रमुच्यते। स सर्वविद्भवति स सर्वविद्भवति॥
य एवं वेद इत्युपनिषत्॥14॥
शान्ति मंत्र :: 
ॐ सहनाववतु। सहनौभुनक्तु॥ 
सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः। भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः॥
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः। व्यशेम देवहितं यदायुः॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः॥
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।
इति श्रीगणपत्यथर्वशीर्षं समाप्तम्। 
विघ्नविनाशक-गणेश-द्वादशनामस्तोत्रम् ::
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते
(1). सुमुख, (2). एकदन्त, (3). कपिल, (4). गजकर्णक, (5). लम्बोदर, (6). विकट, (7). विघ्ननाश, (8). विनायक, (9). धूम्रकेतु, (10). गणाध्यक्ष, (11). भालचन्द्र और (12). गजानन;  इन बारह नामों को विद्यारम्भकाल में, विवाहकाल में, प्रवेशकाल में, निर्गम काल में (यात्रा के समय), संग्राम के समय और संकट के समय जो पढ़े अथवा सुने भी, उन्हें कोई विध्न नहीं होता है। 
संकटनाशनगणेशद्वादशनामस्तोत्रम् ::
नारद उवाच ::
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं दि्वतीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिञ्च लभते नात्र संशयः
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः
इतिश्रीनारदपुराणे संकटनाशननाम गणेशद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम्।
स जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपङ्कजस्मरणम्।
वासरमणिरिव तमसां राशिं नाशयति विऽघ्नानाम्॥1॥
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लंबोदरश्च विकटो  विघ्ननाशो गणाधिपः॥2॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानानः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥3॥
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
सङ्ग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥4॥
शुक्लांबरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वाविघ्नोपशान्तये॥5॥
व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम्।
पराशरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम्॥6॥
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय  विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः॥7॥
अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरिः।
अभाललोचनः शंभुर्भगवान् बादरायणः॥8॥

इति मङ्गलाचरणं सम्पूर्णम्। 
श्री गणेश व्दादशनाम स्तोत्र ::
शुक्लांबरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशांन्तये1
अभीप्सितार्थसिदध्यर्थं पूजितो य: सुरासुरै:।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नम:2
गणानामधिपश्चण्डो गजवक्त्रस्त्रिलोचन:।
प्रसन्नो भव मे नित्यं वरदार्त विनायक:3
सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक:4
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन:।
व्दादश एतानी नामानि गणाधिशस्य य: पठेत्5
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी विपुल धनम्।
इष्टकामं तु कामार्थी धर्मार्थी मोक्षमक्षयम्6
विद्यारंभे विवाहेच प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते7
इति श्रीमुद्गलपुराणे श्रीगणेश व्दादश नाम स्तोत्रं सम्पूर्णम्।
गणपति बीज मंत्र ::
श्री महागणपति प्रणव मूलमंत्र: ॐ। 
श्री महा गणपति प्रणव मूलमंत्र: ॐ गं ॐ। 
ॐ गं गणपतये नमः। ॐ नमो भगवते गजाननाय। 
श्री गणेशाय नमः। ॐ श्री गणेशाय नमः। ॐ वक्रतुन्डाय हुम। 
ॐ ह्रीं श्रीं क्लिं गौं ग: श्रींमहागणाधिपतये नमः। 
ॐ ह्रींश्रींक्लिंगौं वरदमूर्तयेनमः। 
ॐ ह्रीं श्रीं क्लिं नमो भगवते गजाननाय। 
ॐ ह्रीं श्रीं क्लिं नमो गणेश्वराय ब्रह्मरूपाय चारवे सर्वसिध्दी प्रदेयाय ब्रह्मणस्पतये नमः। 
ॐ बिजाय भालचंद्राय गणेश परमात्मने; 
प्रणतक्लेशनाशाय हेरम्बाय नमो नमः। 
ॐ आपदामपहर्तार; दातारं सुखसंपदाम; 
क्षीप्रप्रासादन्न देवं; भूयो भूयो नमाम्यहम
ॐ नमो गणपते तुभ्यं। हेरम्बा येकदंतिने। 
स्वानंदवासिने तुभ्यं। ब्रह्मणस्पतये नमः। 
ॐ श्री गजानन जय गजानन। 
ॐ श्री गजानन जय गजानन। जय जय गजानन। 
ॐ शुक्लाम्बरधरं देव; शशिसूर्यनिभाननम। प्रसन्नवदन ध्यायेत; सर्वविघ्नोंपशान्तये
ॐ नमस्तमै गणेशाय ब्रह्मविद्याप्रदाइने। 
यस्याsगस्तायते नाम। विघ्न सागरशोषणे। 
ॐ ह्रीं गं ह्रीं गणपतये नमः। 
ॐ वक्रतुन्डाय नमः। 
ॐ महाकर्णाय विद्महे। वक्रतुन्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात। 
ॐ यद्भ्रूप्रणीहितां लक्ष्मी। लभन्ते भक्त कोट्य:  
स्वतंत्र मेकं नेतारं। विघ्नराजं नमाम्यहम  
 गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे। निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् 
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः श्रृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम् 
नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमो;
व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो। 
गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो नमो;
विरुपेभ्यो विश्वरुपेभ्यश्च वो नमः
मोदक  प्रिय गणपति :: गणेश जी को मोदक  प्रिय हैं। इनके बिना गणेशजी की पूजा अधूरी ही मानी जाती है। 
गाइये गणपति जगवंदन। संकर सुवन भवानी नंदन॥ 
सिद्धि-सदन गज बदन विनायक। कृपा-सिंधु सुंदर सब लायक॥
मोदकप्रिय मुद मंगलदाता। विद्या वारिधि बुद्धि विधाता॥
[गोस्वामी तुलसीदास, विनय पत्रिका]
मोदक मैदे के खोल में रवा, चीनी, मावे का मिश्रण कर बनाए जाते हैं। जबकि लड्डू मावे व मोतीचूर के बनाए हुए भी उन्हें पसंद है। जो भक्त पूर्ण श्रद्धाभाव से गणेश जी को मोदक या लड्डुओं का भोग लगाते हैं, उन पर वे अत्यन्त प्रसन्न होकर इच्छापूर्ति करते हैं।
मोद यानी आनंद और 'क' का शाब्दिक अर्थ छोटा सा भाग मानकर ही मोदक शब्द बना है, जिसका तात्पर्य हाथ में रखने मात्र से आनंद की अनुभूति होना है। ऐसे प्रसाद को जब गणेशजी को अर्पण किया जाए तो सुख की अनुभूति होना स्वाभाविक है। एक दूसरी व्याख्या के अनुसार जैसे ज्ञान का प्रतीक मोदक यानी मीठा होता है, वैसे ही ज्ञान का प्रसाद भी मीठा होता है।
यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति स मेघावान् भवति।
यो मोदक सहस्रेण यजति स वांछित फलमवाप्राप्नोति।
[गणपति अथर्वशीर्ष]
जो भगवान को दूर्वा चढ़ाता है, वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजो (धान-लाई) चढ़ाता है, वह यशस्वी हो जाता है, मेधावी हो जाता है और जो एक हजार लड्डुओं का भोग गणपति महाराज को लगाता है, वह वांछित फल प्राप्त करता है।
गणेशजी को गुड भी प्रिय है। उनकी मोदक प्रियता के संबंध में एक कथा पद्मपुराण में आती है। 
एक बार गजानन और कार्तिकेय के दर्शन करके देवगण अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने माता पार्वती को एक दिव्य लड्डू प्रदान किया। इस लड्डू को दोनों बालक आग्रह कर मांगने लगे। तब माता पार्वती ने लड्डू के गुण बताए :- इस मोदक की गंध से ही अमरत्व की प्राप्ति होती है। निस्संदेह इसे सूंघने या खाने वाला संपूर्ण शास्त्रों का मर्मज्ञ, सब तन्त्रों में प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान, ज्ञान-विज्ञान विशारद और सर्वज्ञ हो जाता है। फिर आगे कहा, "तुम दोनों से जो धर्माचरण के द्वारा अपनी श्रेष्ठता पहले सिद्ध करेगा, वही इस दिव्य मोदक को पाने का अधिकारी होगा"।
माता पार्वती की आज्ञा पाकर कार्तिक अपने तीव्रगामी वाहन मयूर पर आरूढ होकर त्रिलोक की तीर्थयात्रा पर चल पड़े और मुहर्त भर में ही सभी तीर्थों के दर्शन, स्नान कर लिए। इधर गणेशजी ने अत्यत श्रद्धा-भक्ति पूर्वक माता-पिता की परिक्रमा की और हाथ जोड़कर उनके सम्मुख खड़े हो गए और कहा कि तीर्थ स्थान, देव स्थान के दर्शन, अनुष्ठान व सभी प्रकार के व्रत करने से भी माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर पुण्य प्राप्त नहीं होता है, अतः मोदक प्राप्त करने का अधिकारी मैं हूँ। गणेश जी का तर्कपूर्ण जवाब सुनकर माता पार्वती ने प्रसन्न होकर गणेश जी को मोदक प्रदान कर दिया और कहा कि माता-पिता की भक्ति के कारण गणेश ही यज्ञादि सभी शुभ कार्यों में सर्वत्र अग्रपूज्य होंगे।
गणपति बप्पा को मोदक अति प्रिय हैं, इस लिए गणपति के जन्मोत्सव के दिन सबसे पहले मोदक का भोग लगाएं। 
गणेश जन्मोत्सव के दूसरे दिन बप्पा को मोतीचूर के लड्डू प्रिय हैं, अतः  गणपति के बाल रूप में पूजन करते हुए उन्हें मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाएं। 
गणपति पूजन-आराधना में प्रसाद के रूप में बेसन के लड्डू अर्पित करें और इसी से बप्पा को भोग भी लगायें। 
गणेश चतुर्थी पूजा के चौथे दिन गणेश जी महाराज को केले का भोग लगाएं। सनातन धर्म में ये भोग के लिए उत्तम माना जाता है। 
घर में स्वादिष्ट मखाने की खीर बनायें और इसे गणपति जी को भोग के रूप में अर्पित करें।  
गणेश चतुर्थी को पूजा के दौरान गणपति को नारियल का भोग लगाएं। 
गणेश पूजा में घर में बने मेवा लड्डू का भोग लगा सकते हैं।  
दूध से बना कलाकंद भी बप्पा को प्रिय है इस लिए पूजा में किसी दिन कलाकंद का भोग लगा सकते हैं। 
केसर से बनाएं गए श्रीखंड बप्पा को भोग के रूप में जरूर अर्पित करें. गणपति को ये काफी पसंद आयेगा। 
गणेशोत्सव पूजा के आखिरी दिन बप्पा के बाजार से या फिर घर में बने तरह-तरह के मोदक का भोग लगा सकते हैं।
32 POSTURES OF GANPATI ::
(1). BAL GANPATI :- He possesses the Childlike golden hue. He holds banana, mango, sugar cane and jackfruit, all representing the earth's abundance and fertility, in his hands. His trunk garners his favourite Laddu i.e., Modak.
(2). TARUN GANPATI :: Eight-armed, Tarun Ganapati, "the Youthful", holds a noose and goad, Modak, wood apple, rose apple, His broken tusk, a sprig of paddy and a sugar cane stalk. His brilliant red colour reflects the blossoming of youth.
(3). BHAKTI GANPATI :: Shining like the full moon during harvest season and garlanded with flowers, Bhakti Ganapati, dear to devotees, is indeed pleasant to look upon. He holds a banana, a mango, coconut and a bowl of sweet Payas i.e.,  pudding.
(4). VEER GANPATI :: The "Valiant Warrior," Veer Ganapati, assumes a commanding pose. His 16 arms bristle with weapons, symbols of mind powers: a goad, discus, bow, arrow, sword, shield, spear, mace, a battle axe, a trident and more.
(5). SHAKTI GANPATI :: Four-armed and seated with one of His Shaktis on his knees. Shakti Ganapati, "the Powerful", of orange-red hue, guards the householder. He holds a garland, noose and goad and bestows blessings with the Abhay Mudra.
(6). DWIJ GANPATI :: Four-headed Dwij Ganapati, is moon-like in colour-appearance. Holding a noose, a goad, an Ola leaf scripture, a staff, water vessel and a his Jap beads, He reminds one and all of the urgency for disciplined striving.
(7).  SIDDHI GANPATI :: Golden-yellow Siddhi Ganapati, "the Accomplished", is the epitome of achievement and self-mastery. He sits comfortably holding a bouquet of flowers, an axe, mango, sugar cane and, in his trunk, a tasty sesame sweet.
(8). UCHCHHISHT GANPATI :: Uchchhisht Ganpati is "Lord of Blessed Offerings" and guardian of culture. Of blue complexion and six-armed, he sits with his Shakti, holding a Veena, pomegranate, blue lotus flower, Jap Mala and a sprig of fresh paddy.
(9). VIGHN VINASHAK GANPATI :: Vighn Vinashak Ganapati, "Lord of Obstacles," is of brilliant gold hue and bedecked in jewels. His eight arms hold a noose and goad, tusk and Modak, conch and discus, a bouquet of flowers, sugar cane, flower arrow and an axe.
(10). KSHIPR GANPATI :: Handsome, red-hued Kshipr Ganapati, "Quick-acting" giver of boons, displays His broken tusk, a noose, goad and a sprig of the Kalp Vraksh (wish-fulfilling) tree. In his uplifted trunk he holds a tiny pot of precious jewels.
(11). HERAMBA GANPATI :: Five-faced, white in colour, Heramb Ganapati, "Protector of the Weak," rides a big lion. He extends the gestures of protection and blessing while holding a noose, Jap beads, axe, hammer, tusk, garland, fruit and Modak.
(12). LAKSHMI GANPATI :: Lakshmi Ganapati, pure white giver of success, sits flanked by Wisdom and Achievement. Gesturing in Varad Mudra, he holds a green parrot, a pomegranate, sword, goad, noose, sprig of Kalp Vraksh and a water vessel.
(13). MAHA GANPATI :: Accompanied by one of his Shaktis, "the Great", Maha Ganapati, is red-complexioned and three-eyed. He holds his tusk, a pomegranate, blue lily, sugar-cane bow, discus, noose, lotus, paddy sprig, mace and a pot of gems.
(14). VIJAY GANPATI :: Four-armed, of red hue and riding his resourceful Mushak, Vijay Ganapati is "the Victorious" bestower of success. His insignia are the broken tusk, elephant goad, a noose and a luscious golden mango, his favourite fruit.
(15). NRATY GANPATI :: The happy "Dancer," Nraty Ganapati, is four-armed and golden, with rings on his fingers, holding a tusk, goad, noose and Modak-Laddu sweet. He prances under the Kalp Vraksh tree, epitomizing exuberant activity and joy.
(16). URDHV GANPATI :: Seated with one of his Shaktis (Arms) on his left knee, Urdhv Ganapati is "the Elevated" Lord of golden hue. In his six hands he holds a sprig of paddy, a lotus, the sugar cane bow, an arrow, his ivory tusk and a blue water lily.
(17). EKAKSHAR GANPATI :: Ekakshar, of "Single-Syllable", is three-eyed, of red complexion and attire. Crescent moon on his crown, he sits in lotus pose upon Mushak, offers the boon-giving gesture and holds a pomegranate, noose and goad.
(18). VARAD GANPATI :: Varad Ganapati, "the Boon Giver with prominent third eye of wisdom, holds a dish of honey, the noose and goad and encloses a pot of jewels in his trunk. His shakti is at his side and the crescent moon adorns his crown.
(19). TRAYAKSHYAR  GANPATI  :: Tryakshar Ganapati, "the Lord of Three Letters" (A-U-M), is gold in colour and has fly whisks in his big floppy ears. He carries the broken tusk, goad, noose and mango and is often seen grasping a sweet Modak in his trunk.
(20). KSHIPR PRASAD GANPATI :: Kshipr Prasad Ganapati, "the Quick Rewarder", presides from a Kush grass throne. His big belly symbolizes the manifest universe. He holds a noose, goad, tusk, lotus, pomegranate and a twig of the wish-fulfilling tree.
(21). HARADR ANPATI :: Haradr Ganapati, the golden one dressed in bright yellow vestments, sits calmly on a posh, regal throne. Along with his tusk and a Modak, he wields a noose to hold devotees close and a sharp goad to spur them onward.
(22). EKDANT  GANPATI :: Ekdant, of "Single Tusk," is distinguished by his blue colour and sizeable belly. The attributes of this Murti are an axe for cutting the bonds of ignorance, prayer beads for Jap, a laddu sweet and the broken right tusk.
(23). SRASHTI GANPATI :: Riding on his docile and friendly mouse, Srishti Ganapati is the lord of happy "Manifestation". This active form of Ganpati, of red complexion, holds his noose a goad, a perfect mango and his tusk, representing selfless sacrifice.
(24). UDDAND GANPATI :: Uddand Ganapati is the bold "Enforcer of Dharm", the laws of being. His ten hands hold a pot of gems, a blue lily, sugar cane, a mace, lotus flower, sprig of paddy, a pomegranate, noose, garland and his broken tusk.
(25). RIN ऋण मोचन MOCHAN  GANPATI :: Rin Mochan Ganapati is humanity's liberator from guilt and bondage. His figure of alabaster skin is apparelled in red silks. He bears a noose and a goad, His milk-white tusk and a favourite fruit, the rose apple.
(26). DHUNDHI GANPATI :: Red-hued Dhundhi Ganapati, "the Sought After", holds a strand of Rudraksh beads, his broken tusk, an axe and a small pot of precious gems thought to represent the treasury of awakenings He saves for all ardent devotees.
(27). DWEEMUKH GANPATI :: Dwee Mukh Ganapati, with two divergent faces, sees in all directions. His blue-green form is dressed in red silk. He wears a bejewelled crown and holds a noose, goad, His tusk and a pot of gems.
(28). TRIMUKH GANPATI :: Trimukh Ganapati, the contemplative "three-faced" Lord of red hue, sits on a golden lotus, telling his beads, holding a noose, goad and vessel of nectar. He gestures protection with a right hand and blessings with a left.
(29). SINGH GANPATI :: Singh Ganapati, white in colour, rides a lion and displays another lion in one hand, symbolizing strength and fearlessness. He also holds a Kalp Vraksh sprig, the Veena, a lotus blossom, flower bouquet and a pot of jewels.
(30). YOG GANPATI :: Yog Ganapati is absorbed in Mantr Jap, his knees strapped in meditative pose, hands holding a Yog staff, sugar cane stalk, a noose and prayer beads. His colour is like the morning sun. Blue garments adorn his form.
(31). DURG (fort) GANPATI :: Durg Ganapati, the "Invincible," waves the flag of victory over darkness. This splendid Murti is of deep gold hue, dressed in red, holding a bow and arrow, noose and goad, prayer beads, broken tusk and a rose apple.
(32). SANAKT HARAN GANPATI :: Sankat Haran Ganapati, "the Dispeller of Sorrow," is of Sun like hue, dressed in blue and seated on a red lotus flower. He holds a bowl of pudding, a goad and a noose while gesturing the boon-granting Varad Mudra.
 
Contents of these above mentioned blogs are covered under copyright and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS RESERVED WITH THE AUTHOR.
संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ 
(बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

No comments:

Post a Comment