तंत्र-मंत्र (2) :: MESMERISM वशीकरण

MESMERISM वशीकरण
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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सम्मोहन या वशीकरण विद्या किसी भी व्यक्ति के दिलो-दिमांँग पर काबू कर उसे अपने अनुरूप कुछ भी करने को मजबूर कर सकती है। मूल रुप से यह एक आसुरी विद्या है। इसका दुरूपयोग करने से मनुष्य को दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं। वर्तमान काल में इसका प्रयोग गृह क्लेश, पति-पत्नि में अनबन कराने, सौतन पर काबू करने, दुश्मन से छुटकारा, पति पत्नी का अनचाहा रिश्ता कायम रखना, अदालती मामले, प्रेम विवाह, परिवारिक समस्या का निराकरण, विवाह में रुकावट दूर करना आदि में ही किया जाता है। 
जिस व्यक्ति का आत्मबल बहुत प्रबल हो, वह नियमित रूप से भजन-कीर्तन, ध्यान-चिंतन करता हो, उसके घर में धूपबत्ती-अगरबत्ती नियमित जलती हो, हवन होता हो, शँख-घंटे की ध्वनि होती हो, उस पर ये सभी विद्याएँ बेअसर होती हैं।  दुराग्रह करने पर इसके भयानक दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। 
वशीकरण :: सम्मोहन विद्या, निद्रा की अवस्था-विशेष, जादू-टोना, मानसिकआधिपत्य; hypnotism, mesmerism, bewitchment, subdual, subjugation.  
(1). वशीकरण सूर्य मन्त्र :: 
(1.1). भगवान् सूर्य का ध्यान पूरी लगन और श्रद्धा से करते हुए निम्न  मन्त्र का 108-1008 बार जप, प्रतिदिन 9 दिन तक करने से आकर्षण का कार्य सफल होता है। इस दौरान सभी प्रकार की शुद्धि अनिवार्य है।
ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्र किरणाय ऐं अतुल बल पराक्रमाय नव ग्रह दश दिक्पाल लक्ष्मी देवाय, धर्म कर्म सहितायै अमुक* नाथय नाथय, मोहय मोहय, 
आकर्षय आकर्षय, दासानुदासं कुरु-कुरु, वश कुरु-कुरु स्वाहा।
अमुक*  व्यक्ति विशेष या निर्दिष्ट व्यक्ति का नाम स्मरण करें । 
(1.2). निम्न मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में 20,000 जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय साध्य-अमुक व्यक्ति* के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन 108-1008  बार मन्त्र जपने से वशीकरण हो जाता है।
ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं अमुक* ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।
(1.3). शुभ दिन एवं शुभ लग्न में सूर्योदय के पश्चात उत्तर की ओर मुँह करके मूंगे की माला से निम्न मंत्र का जप शुरू करें। 31 दिनों तक 3 माला का जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्ध करके वशीकरण तंत्र की किसी भी वस्तु को इसी मंत्र से 21 बार अभिमंत्रित करके इच्छित व्यक्ति पर प्रयोग करें। अमुक* के स्थान पर इच्छित* व्यक्ति का नाम बोलें। 
ऊँ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुक महीपति मे वश्यं कुरू कुरू स्वाहा।
(2). काम सम्मोहन :: 
(2.1). कामदेव प्रेम, सौंदर्य और काम के  देवता हैं। परिणय, प्रेम-संबंधों में कामदेव की उपासना और आराधना का महत्व है। इसी क्रम में तंत्र विज्ञान में कामदेव वशीकरण मंत्र का जप करने का महत्व है। इस मन्त्र को सुबह, दोपहर और रात्रि काल में एक-एक माला जप का करें। यह जप एक मास तक करने पर सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्धि के बाद इस मंत्र का मन में जप कर जिसकी तरफ देखते रहने  से वह व्यक्ति  वश में हो जाता है।
मंत्र ::
ॐ कामदेवाय: विदमहे पुष्पबाणाय धीमहि तन्नो अनंग: प्रचोदयात
(2.2). काम व आकर्षण बीज मंत्र ::
"ऊँ क्लीं नम:" 
(2.3). कामदेव के उक्त मन्त्र को तीनों काल, एक-एक माला, एक मास तक जपे, तो सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिस व्यक्ति ध्यान करके जप किया जाता है वह वश में हो जाता है।
कामदेव मन्त्र :: 
ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा
(3). सर्वजन मोहिनी वशीकरण साधना विजय आनंद लोहट :: 
मंत्र ::
 ॐ नमो भगवते कामदेवाय सर्वजन प्रियाय सर्वजन सम्मोहनाय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हन हन वद वद तप तप सम्मोहय सम्मोहाय सर्वजन मे वशं कुरू कुरू स्वाहा
घर के एकांत कक्ष में, उत्तर दिशा की ओर मुँह करके मध्य रात्रि में  शुक्रवार या मोहिनी एकादशी  के दिन, सफ़ेद आसन पर,  सफेद धोती पहनकर बैठकरदेशी घी, पंचमेवा (काजू, बादाम, किशमिश, पिस्ता, मखाना) का उपयोग करते हुए इक्कीस हजार बार उपरोक्त मंत्र का जप करते हुए हवन करें। सम्मोहन सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित यंत्र, सिद्ध वशीकरण माला, सम्मोहिनी कवच, वशीभूत गुटिका, सम्मोहिनी सिद्ध तंत्र फल एवं अन्य उपयोगी आवश्यक पूजन सामग्री का प्रयोग करें। 
काँसे की थाली में समस्त तांत्रिक पूजन सामग्री स्थापित करके पंचोपचार पूजन करना चाहिए। व्यक्ति विशेष को वश में करने का अथवा सिद्धि का संकल्प लेते हुए विधि-विधान पूर्वक गुरु-गणेश वंदना करके मूल मंत्र का जप करें। जप की पूर्णता पर दशांश हवन करके ब्राह्मण एवं पांच कुँआरी कन्याओं को भोजन सहित उपयुक्त दान दक्षिणा देकर साधना को पूरा करें। इस महत्वपूर्ण सम्मोहिनी साधना से साधक का व्यक्तित्व अत्यंत सम्मोहक और आकर्षक हो जाता है। उसके संपर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति प्रभावित हुए बगैर नहीं रहता। यदि कोई साधना करने में असमर्थ हो, तो योग्य विद्वान द्वारा यह साधना संपन्न करवाकर सम्मोहिनी कवच धारण करके उक्त लाभ प्राप्त कर सकता है।
(4). कात्यायनी मंत्र :: 
ॐ कात्यायनी अमुकं मम वश्यं कुरु कुरु फट्॥
पंचमी से सप्तमी, किसी भी पक्ष में, केवल 3 दिन तक रात में लाल वस्त्र पर उपरोक्त मंत्र लिखकर पूजन करें।दीपक में सरसों का तेल भरें। उत्तर-पूर्व, उत्तर या पूर्व  दिशा में अभ्यास करें। मूँगा या हकीक माला का प्रयोग उत्तम है। पीले वस्त्र धारण करें। 101 मालाओं का नियमित जप करें। रात में 11 से 12 के बीच जप के पश्चात जातक को मिठाई, पान या सुपारी 24 घण्टों के भीतर इस प्रकार खिलायें कि उसे किसी प्रकार की दुविधा या शक न हो। 
(5). सिद्ध वशीकरण साधना :: 
मंत्र ::
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिक “सर्वान”मम वश्यं कुरु-कुरु सर्वान कामान मे साधय स्वाहा॥
जिस स्त्री पुरुष को आप वश करना चाहते है उसका नाम प्रयोग करते समय सर्वान* (अमुक व्यक्ति) के स्थान पर साध्य व्यक्ति का नाम बोलकर जाप करना है।
सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण या होली के अवसर पर यह साधना शुरू की जाती है। 5 दिन में इस साधना के लिये 511  बार मंत्र माला के साथ जाप आवश्यक है। मंत्र जाप के बाद 111 मंत्र से हवन में लोबान की आहुती दें। इस क्रिया से मंत्र अत्यधिक शक्तिशाली हो जायेगा। सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण या फिर होली के बाद 4 दिन मे भी 100 माला सहित जाप और 100 आहुति देने से  मंत्र सिद्धि हो सकती है। 
गुरु पूजन के पश्चात, गुरुमंत्र की 4 माला मंत्र जाप भी, काले रंग के आसन पर बैठकर दक्षिण दिशा की और मुख करके साधना-जप करें। काले वस्त्र धारण करके, माला काली हकीक या रुद्राक्ष का उपयोग करते हुए सम्मुख चमेली के तेल का अखंडित दीपक प्रज्वलित करें और आराध्य से पूर्ण सफलता का प्रार्थना करते हुये मंत्र जाप प्रारंभ कर दें। 
(6). सम्मोहन मंत्र :: 
मंत्र ::
ॐ ह्रीं गं ह्रीं वशमानय स्वाहा
विनियोग :- 
ॐ अस्य श्री हस्तिमुख गणेश मंत्रस्य श्री गणक ऋषि: गायत्री छंद:। श्री हस्तिमुख गणपति देवता ममाभीष्ट सिद्धयर्थे विनियोग:
ऐसा बोलकर जल छोड़ें।
अंग न्यास तथा करन्यास इस प्रकार करें:- 
ॐ गं अंगुष्ठाभ्यां नम: हृदयाय नम:, ॐ गं तर्जनीभ्यां नम: शिरसे स्वाहा, ॐ गं मध्यमाभ्यां नम: शिखायै वषट्, ॐ गं अनामिकाभ्यां नम: कवचाय हुम्, ॐ गं कनिष्ठिकाभ्यां नम: नैत्रत्रयाय वौषट्, ॐ गं करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:अस्त्राय फट् 
हस्तिमुख गणपति के तीन लाख मंत्र जाप करें। दशांश हवन ईख तथा घी में तले हुए अपूप (पुए) से करें।
कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जब मंगलवार को पड़े तब पान के पत्ते पर जिस व्यक्ति को वश में करना हो, उसका नाम लिखें और नाम को देखते हुये निम्न मंत्र का जाप 108 बार करें। पत्ते के ऊपर तीन बार फूँक मारें।अब इस अभिमंत्रित पत्ते को अपने मुँह में रखकर धीरे-धीरे चबाते हुये, निम्न मंत्र जाप जब तक जारी रखें, जब तक कि पूरा पत्ता खत्म न हो जाये। 
ॐ ह्रीं क्लीं अमुकी क्लेदय क्लेदय आकर्षय आकर्षय मथ मथ पच पच द्रावय द्रावय मम सन्निधि आनय आनय हुं हुं ऐं ऐं श्रीं श्रीं स्वाहा॥
जब पत्ता समाप्त हो जाये, तो थोड़ा पानी पी लीजिये और जिसे वश में करना हो उसका स्मरण करते हुये फिर से निम्न मंत्र का जाप 108 बार करें :-
क्लीं क्रीं हुं क्रों स्फ़्रों कामकलाकाली स्फ़्रों क्रों हुं क्रीं क्लीं स्वाहा॥
(7). विविध सम्मोहन मंत्र :: 
(7.1).  इस मंत्र का जाप करें ::
ॐ क्लीं कृष्णाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा: 
(7.2). शूकर-दन्त वशीकरण मन्त्र :: 
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह-दन्ताय भैरवाय नमः।
शूकर-दन्त को अपने सामने रखकर उक्त मन्त्र का होली, दीपावली, दशहरा आदि में 108 बार जप करे। 
(7.3). हनुमद्-मन्त्र-तन्त्र ::
 ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो वायु-सूनवे झटिति आकर्षय-आकर्षय स्वाहा।
केसर, कस्तुरी, गोरोचन, रक्त-चन्दन, श्वेत-चन्दन, अम्बर, कर्पूर और तुलसी की जड़ को घिस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम जैसा ‘यन्त्र’ लिखकर उसके मध्य में, जहाँ पराग रहता है, उक्त मन्त्र को लिखे। अमुक* के स्थान पर साध्य* का नाम लिखें। 
बारह दलों में क्रमशः निम्न मन्त्र लिखें :: (7.3.1). ॐ हनुमते नमः, (7.3.2). ॐ अञ्जनी-सूनवे नमः, (7.3.3). ॐ वायु-पुत्राय नमः, (7.3.4). ॐ महा-बलाय नमः, (7.3.5). ॐ श्रीरामेष्टाय नमः, (7.3.6). ॐ फाल्गुन-सखाय नमः, (7.3.7). ॐ पिङ्गाक्षाय नमः, (7.3.8). ॐ अमित-विक्रमाय नमः, (7.3.9). ॐ उदधि-क्रमणाय नमः, (7.3.10). ॐ सीता-शोक-विनाशकाय नमः, (7.3.11). ॐ लक्ष्मण-प्राण-दाय नमः और (7.3.12).  दश-मुख-दर्प-हराय नमः।
यन्त्र की प्राण-प्रतिष्ठा करके षोडशोपचार पूजन करते हुए उक्त मन्त्र का 11,000 जप करें। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से जप करें। आकर्षण हेतु अति प्रभावकारी है।
(8). सम्मोहन के समान्य उपाय ::
(8.1). मोर की कलगी रेश्मी वस्त्र में बांधकर जेब में रखने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
(8.2). श्वेत अपामार्ग की जड़ को घिसकर तिलक करने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
(8.3). स्त्रियाँ अपने मस्तक पर आंखों के मध्य एक लाल बिंदी लगाकर उसे देखने का प्रयास करें। यदि कुछ समय बाद बिंदी खुद को दिखने लगे तो समझ लें कि आप में सम्मोहन शक्ति जागृत हो गई है।
(8.4). गुरुवार को मूल नक्षत्र में केले की जड़ को सिंदूर में मिलाकर पीस कर रोजाना तिलक करने से आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
(8.5). गेंदे का फूल, पूजा की थाली में रखकर हल्दी के कुछ छींटे मारें व गंगा जल के साथ पीसकर माथे पर तिलक लगाएं आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
(8.6). सूर्य ग्रहण के समय सहदेवी की जड़ और सफेद चंदन को घिस कर व्यक्ति तिलक करे तो देखने वाली स्त्री वशीभूत हो जाएगी।
(8.7). सफेद गुंजा की जड़ को घिस कर माथे पर तिलक लगाने से सभी लोग वशीभूत हो जाते हैं।
(8.8). राई और प्रियंगु को, "ह्रीं" मंत्र (ॐ ह्रीं नमः) द्वारा अभिमंत्रित करके किसी स्त्री के ऊपर डाल दें तो वह वश में हो जाएगी।
(8.9). बिजौरे की जड़ और धतूरे के बीज को प्याज के साथ पीसकर जिसे सुंघाया जाए वह वशीभूत हो जाएगा।
(8.10). नागकेसर को खरल में कूट छान कर शुद्ध घी में मिलाकर यह लेप माथे पर लगाने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
(8.11). नागकेसर, चमेली के फूल, कूट, तगर, कुंकुंम और देशी घी का मिश्रण बनाकर किसी प्याली में रख दें। लगातार कुछ दिनों तक नियमित रूप से इसका तिलक लगाते रहने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
(8.12). जातक को प्रेम में सफलता के लिए पन्ने की अंगूठी धारण करनी चाहिए इससे प्रेयसी के मन में प्रबल आकर्षण बना रहता है।
(8.13). प्रेमी युगल को शनिवार और अमावस्या के दिन नहीं मिलना चाहिए। इन दिनों में मिलने से आपस में किसी भी बात पर विवाद हो सकता है। एक दूसरे की कोई भी बात बुरी लग सकती है तथा प्रेम संबंधो में सफलता मिलने में संदेह हो सकता है।
(8.14). प्रेमी युगल को यह प्रयास करना चाहिए कि शुक्रवार और पूर्णिमा के दिन अवश्य मिलें। जिस शुक्रवार को पूर्णिमा हो वह दिन अत्यंत शुभ रहता है। इस दिन मिलने से परस्पर प्रेम व आकर्षण बढ़ता है।
(8.15). सफ़ेद वस्त्र धारण करके किसी भी धार्मिक स्थान पर लाल गुलाब व चमेली का इत्र अर्पित करके अपने प्रेम की सफलता के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करें निश्चय ही लाभ होगा।
(8.16). शुक्ल पक्ष के रविवार को 5 लौंग शरीर में ऐसे स्थान पर रखें जहां पसीना आता हो व इसे सुखाकर चूर्ण बनाकर दूध, चाय में डालकर जिस किसी को पिला दी जाए तो वह वश में हो जाता है।
(8.17). शनिवार के दिन सुंदर आकृति वाली एक पुतली बनाकर उसके पेट पर इच्छित स्त्री का नाम लिखकर उसी को दिखाएं जिसका नाम लिखा है। फिर उस पुतली को छाती से लगाकर रखें। इससे स्त्री वशीभूत हो जाएगी।
(8.18). रवि पुष्य योग (रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र) में गूलर के फूल एवं कपास की रूई मिलाकर बत्ती बनाएं तथा उस बत्ती को मक्खन से जलाएं। फिर जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल निकालें। इस काजल को रात में अपनी आंखें में लगाने से समस्त जग वश में हो जाता है। ऐसा काजल किसी को नहीं देना चाहिए।
(8.19). कौए और उल्लू की विष्ठा को एक साथ मिलाकर गुलाब जल में घोटें तथा उसका तिलक माथे पर लगाएं। अब जिस स्त्री के सम्मुख जाएगा, वह सम्मोहित होकर जान तक न्योछावर करने को उतावली हो जाएगी।
(8.20). अमावस्या के दिन दो पत्ते जो पीले या कुछ सूखे से हों, पीपल के पेड़ से तोड़ लें, नीचे ज़मीन से न उठाएँ।जिससे प्यार करते हैं या जिस व्यक्ति को प्रभावित करना चाहते हैं उस का नाम दोनों पीपल के पत्तों पर लिख देँ। एक पत्ते पर काजल से लिखेँ और उसको वहीँ पीपल के पेड़ के पास उल्टा करके रख दें और उस पर भारी पत्थर रख दें। दूसरे पत्ते पर लाल सिँदूर से लिखेँ और उसको लाकर अपने घर की छत पर उल्टा करके रख देँ। उस पर भी पत्थर रख दें। यह प्रक्रिया आगामी पूर्णिमा तक जारी रखें अर्थात 16 दिन। प्रतिदिन पीपल के पेड़ में अपने साथी को वापस पाने की प्रार्थना करते हुए, जल भी चढायेँ।
कुछ दिन बाद आपने जिसका नाम लिखा था वह व्यक्ति आपसे संपर्क करेगा और वो आपकी तरफ पुनः आकर्षित होने लगेगा। फिर सभी पत्ते एकत्र कर किसी शुद्ध स्थान पर गड्ढे मेँ दबा देँ।
(8.21). पति या प्रेमी का पत्नी या प्रेमिका के प्रति प्यार कम हो गया हो तो भगवान् श्री कृष्ण का स्मरण कर तीन इलायची, अपने बदन से स्पर्श करती हुई शुक्रवार के दिन छुपा कर रखें। जैसे अगर साड़ी पहनतीं हैं तो अपने पल्लू में बाँधकर उसे रखा जा सकता है और अन्य लिबास पहनती हैं तो रूमाल में रखा जा सकता है। शनिवार की सुबह वह इलायची पीस कर किसी भी व्यंजन में मिलाकर पति या प्रेमी को खिला दें। मात्र तीन शुक्रवार में स्पष्ट फर्क नजर आएगा।
(9). दुरात्माओं का कुप्रभाव :: 
 (9.1.1). जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब दुरात्माओं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है, इसीलिए ऐसी जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के 12 बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।
(9.1.2). दूध व सफेद मिठाई चंद्र के द्योतक हैं। चौराहा राहु का द्योतक है। चंद्र राहु का शत्रु है। अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है।
(9.1.3). कोई स्त्री जब रजस्वला होती है, तब उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप की संभावना रहती है।
(9.1.4). कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चंद्र जल स्थान का कारक है। चंद्र राहु का शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
(9.1.5). जब किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरु, चंद्र व मंगल का प्रभाव होता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि व राहु के शत्रु हैं, अतः मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएं व्यक्ति को परेशान कर सकती हैं।
(9.1.6). दिन व रात के 12 बजे सूर्य व चंद्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं। शनि व राहु इनके शत्रु हैं, अतः इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की द्योतक है। अतः जब राहु क्षेत्र में चंद्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावना प्रबल होती है।
(9.1.7). मनुष्य की दायीं आंख पर सूर्य का और बायीं पर चंद्र का नियंत्रण होता है। इसलिए ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आंखों पर ही पड़ता है।
दुरात्माओं से मुक्ति :: 
ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु शास्त्रों में अनेक उपाय बताए गए हैं। अथर्ववेद में इस हेतु कई मंत्रों व स्तुतियों का उल्लेख है। आयुर्वेद में भी इन हवाओं से मुक्ति के उपायों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यहां कुछ प्रमुख सरल एवं प्रभावशाली उपायों का विवरण प्रस्तुत है।
 (9.2.1). ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा हवन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल मिर्ची जलानी चाहिए।
(9.2.2). रोज सूर्यास्त के समय एक साफ-सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो कच्चा दूध लेकर उसमें शुद्ध शहद की नौ बूंदें मिला लें। फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान की छत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने, गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए द्वार तक आएं और बचे हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें। क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरण करते रहें। यह क्रिया इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर प्रभावी ऊपरी हवाएं दूर हो जाएंगी।
(9.2.3).  रविवार को बांह पर काले धतूरे की जड़ बांधें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।
(9.2.4). ऊपरी बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नोक्त मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
ॐ  नमो भगवते रुद्राय नमः कोशेश्वस्य नमो ज्योति पंतगाय नमो रुद्राय नमः सिद्धि स्वाहा।
(9.2.5). घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगाएं, घर ऊपरी हवाओं से मुक्त रहेगा।
(9.2.6). उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें धूनी की विशिष्ट वस्तुएं डालें और उससे उत्पन्न होने वाला धुआं पीड़ित व्यक्ति को सुंघाएं। यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति से करवाएं जो अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।
(9.2.7). प्रातः काल बीज मंत्र झ्क्लींश् का उच्चारण करते हुए काली मिर्च के नौ दाने सिर पर से घुमाकर दक्षिण दिशा की ओर फेंक दें, ऊपरी बला दूर हो जाएगी।
(9.2.8). रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपड़े की छोटी थैली में तुलसी के आठ पत्ते, आठ काली मिर्च और सहदेई की जड़ बांधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा से मुक्ति मिलेगी।
(9.2.9). निम्नोक्त मंत्र का 108 बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर लें और उससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर मालिश करें, व्यकित पीड़ामुक्त हो जाएगा।
(9.2.10). लहसुन के रस में हींग घोलकर आंख में डालने या सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिल जाती है।
मंत्र ::
ॐ नमो काली कपाला देहि देहि स्वाहा।
(9.2.11). ऊपरी हवाओं के शक्तिषाली होने की स्थिति में शाबर मंत्रों का जप एवं प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मंत्रों का दीपावली की रात को अथवा होलिका दहन की रात को जलती हुई होली के सामने या फिर श्मशान घाट में 108 बार जप कर इन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए। इन्हें सिद्ध करने के इच्छुक साधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।
(9.2.12). एक मुट्ठी धूल को निम्नोक्त मंत्र से 3 बार अभिमंत्रित करें और नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति पर फेंकें, व्यक्ति को दोष से मुक्ति मिलेगी।
मंत्र ::  
तह कुठठ इलाही का बान। कूडूम की पत्ती चिरावन। भाग भाग अमुक अंक से भूत। मारुं धुलावन कृष्ण वरपूत। आज्ञा कामरु कामाख्या। हारि दासी चण्ड दोहाई।
(9.2.13). थोड़ी सी हल्दी को 3 बार निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके अग्नि में इस तरह छोड़ें कि उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए। इसे हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।
मंत्र :: 
हल्दी गीरी बाण बाण को लिया हाथ उठाय। हल्दी बाण से नीलगिरी पहाड़ थहराय॥ 
यह सब देख बोलत बीर हनुमान। डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान॥ 
आज्ञा कामरु कामाक्षा माई। आज्ञा हाड़ि की चंडी की दोहाई॥
(9.2.14). जौ, तिल, सफेद सरसों, गेहूं, चावल, मूंग, चना, कुष, शमी, आम्र, डुंबरक पत्ते और अषोक, धतूरे, दूर्वा, आक व ओगां की जड़ को मिला लें और उसमें दूध, घी, मधु और गोमूत्र मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर संध्या काल में हवन करें और निम्न मंत्रों का 108 बार जप कर इस मिश्रण से 108 आहुतियां दें।
मंत्र ::
रू ओम नमः भवे भास्कराय आस्माक अमुक सर्व ग्रहणं पीड़ा नाशनं कु रु-कुरु स्वाहा।
(10). भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति :: अपनी इच्छाओं और अधूरी आंकाक्षाओं को पूरा करने के लिए कुछ आत्माएँ मरने के बाद भी वापिस आती हैं। इसके अलावा अगर अपने संबंधियों या परिचितों के साथ उनका कोई हिसाब बकाया रह जाता है, तो भी उनकी आत्मा को शाँति नहीं मिलती और वह उस लेन-देन को पूरा करने के लिए जीवित लोगों की दुनिया में लौट आती है। 
बिना शरीर के मृत आत्माएं अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकतीं, इसीलिए उन्हें एक शरीर की आवश्यकता पड़ती है। वह किसी व्यक्ति के शरीर में वास कर अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करती हैं। यह उनकी इच्छा की गहराई और उसके पूरे होने की समय सीमा पर निर्भर करता है कि वह किसी व्यक्ति के शरीर में कितनी देर तक ठहरते हैं। यह अवधि कुछ घंटों या सालों की भी हो सकती है। कई बार तो जन्मों-जन्मों तक वह आत्मा उस व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ती। 
पशु, विशेष रूप से कुत्ता और बिल्ली, किसी आत्मा या पिशाच की उपस्थिति को सबसे पहले भाँप लेते हैं। अगर रात के समय कोई कुत्ता बिना किसी कारण के भौंकने लगे या अचानक शाँत होकर बैठ जाए तो इसका मतलब है उसने किसी पारलौकिक शक्ति का अहसास किया है। 
झगड़े या विवाद के पश्चात किसी भूमि या इमारत का अधिग्रहण किया जाता है और इस झगड़े के कारण मालिक की मृत्यु हो जाती है, तो वह जगह भूतिया-प्रेत ग्रस्त हो जाती है। निश्चित तौर पर वहाँ  दुरात्माएँ अपना डेरा जमा लेती हैं। 
जीवित अवस्था में व्यक्ति विशेष को जो वस्तु, घर, स्थान आदि प्रिय हो उस वस्तु को प्रेतावस्था, भूत-प्रेत योनि में जाने के बाद वह आत्मा यह बर्दाश्त नहीं करती कि कोई अन्य व्यक्ति उसका उपयोग-उपभोग करे। पारलौकिक शक्तियों को वश में करने की यह विद्या का प्रयोग कोई भी व्यक्ति अकेले करने की चेष्टा न करे, तो बेहतर होगा। 
इस तरह यह कुछ सरल और प्रभावशाली उपाय हैं, जिनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। नजर दोष, भूत-प्रेत बाधा आदि से मुक्ति हेतु उपाय ही करने चाहिए टोना या टोटके नहीं।
नदी, पुल या सड़क पार करते समय भगवान् का स्मरण जरूर करें। एकांत में शयन या यात्रा करते समय पवित्रता का ध्यान रखें। पेशाब करने के बाद हाथ अवश्य धोयें। उचित जगह देखकर ही पेशाब करें। रात्रि में सोने से पूर्व भूत-प्रेत पर चर्चा न करें। किसी भी प्रकार के टोने-टोटकों से बच कर रहें।
ऐसे स्थान पर न जाएं, जहाँ पर तांत्रिक अनुष्ठान होता हो। जहाँ पर किसी पशु की बलि दी जाती हो या जहाँ भी लोभान आदि के धुएं से भूत भगाने का दावा किया जाता हो। भूत भागाने वाले सभी स्थानों से बच कर रहें, क्योंकि यह धर्म और पवित्रता के विरुद्ध है।
जो लोग भूत, प्रेत या पितरों की उपासना करते हैं, वह राक्षसी कर्म करने वाले होते हैं। ऐसे लोगों का संपूर्ण जीवन ही भूतों के अधीन रहता है। भूत-प्रेत से बचने के लिए ऐसे कोई भी टोने-टोटके न करें जो धर्म विरुद्ध हो। हो सकता है, इससे तात्कालिक लाभ मिल जाए, लेकिन अंतत: जीवन भर परेशान ही रहना पड़ेगा।

एक ऐसी ताकत जो ना तो नुकसान पहुँचा रही है न ही कोई परेशानी खड़ी कर रही है लेकिन फिर भी उसका दिखाई ना देना लिए कितना भयावह है। 
चरक संहिता में प्रेत बाधा से पीड़ित रोगी के लक्षण और निदान के उपाय विस्तार से मिलते हैं। ज्योतिष के मूल ग्रंथों यथा :- प्रश्नमार्ग, वृहत्पराषर, होरा सार, फलदीपिका, मानसागरी आदि में ज्योतिषीय योग हैं, जो प्रेत पीड़ा, पितृ दोष आदि बाधाओं से मुक्ति का उपाय बताते हैं। अथर्ववेद में भूतों और दुष्ट आत्माओं को भगाने से संबंधित अनेक उपायों का वर्णन मिलता है। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :-
(10.1). ॐ या रुद्राक्ष का अभिमंत्रित लॉकेट गले में पहने और घर के बाहर एक त्रिशूल में जड़ा ॐ का प्रतीक दरवाजे के ऊपर लगाएं। सिर पर चंदन, केसर या भभूति का तिलक लगाएं। हाथ में मौली-कलावा अवश्य बाँधकर रखें।
(10.2). दीपावली के दिन सरसों के तेल का या शुद्ध घी का दिया जलाकर काजल बना लें। यह काजल लगाने से भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी आदि से रक्षा होती है और बुरी नजर से भी रक्षा होती है।
(10.3). घर में रात्रि को भोजन पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान या किसी अन्य पवित्र स्थल पर कपूर तथा लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है।
(10.4). प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में चिड़चिटे अथवा धतूरे का पौधा जड़सहित उखाड़ कर उसे धरती में ऐसा दबाएं कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाएं। इस उपाय से घर में प्रेतबाधा नहीं रहती और व्यक्ति सुख-शांति का अनुभव करता है।
(10.5). प्रेत बाधा निवारक हनुमत मंत्र :– 
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-यक्षणी-पूतना-मारी-महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम्‌ क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर रुद्रावतार हुं फट् स्वाहा।
इस हनुमान मंत्र का पांच बार जाप करने से भूत कभी भी निकट नहीं आ सकते।
(10.6). अशोक वृक्ष के सात पत्ते मंदिर में रख कर पूजा करें। उनके सूखने पर नए पत्ते रखें और पुराने पत्ते पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, आपका घर भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष आदि से मुक्त रहेगा।
(10.7). गणेश जी महाराज को एक पूरी सुपारी रोज चढ़ाएं और एक कटोरी चावल दान करें। यह क्रिया एक वर्ष तक करें, नजर दोष व भूत-प्रेत बाधा आदि के कारण बाधित सभी कार्य पूरे होंगे।
(10.8). माँ काली के लिए उनके नाम से प्रतिदिन अच्छी तरह से पवित्र ‍की हुई दो अगरबत्ती सुबह और दो दिन ढलने से पूर्व लगाएं और उनसे घर और शरीर की रक्षा करने की प्रार्थना करें।
(10.9). हनुमान चालीसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें और हनुमान मंदिर में हनुमान जी का श्रृंगार करें व चोला चढ़ाएं।
(10.10). मंगलवार या शनिवार के दिन बजरंग बाण का पाठ शुरू करें। यह डर और भय को भगाने का सबसे अच्छा उपाय है।सदा हनुमानजी का स्मरण करें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्या को पवि‍त्रता का पालन करें। शराब न पीएं और न ही माँस का सेवन करें।
जिन घरों में प्रतिदिन नियम पूर्वक पूजा पाठ, शँख-घंटा ध्वनि होती है वहाँ दुरात्माएँ अपना प्रभाव नहीं दिखा पातीं। 
(11). कर्ण पिशाचिनी विद्या :: निम्न मन्त्र का प्रयोग निरंतर ग्यारह दिन तक किया जाता है। सर्वप्रथम काँसे की थाली में सिंदूर का त्रिशूल बनाएँ। इस त्रिशूल का दिए गए मंत्र द्वारा विधिवत पूजन करें। यह पूजा रात और दिन उचित चौघड़िया में की जाती है।
गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएँ और 1,100 मंत्रों का जाप करें। रात में भी इसी प्रकार त्रिशूल का पूजन करें। घी एवं तेल दोनों का दीपक जलाकर ग्यारह सौ बार मंत्र जप करें।
इस प्रकार ग्यारह दिन तक प्रयोग करने पर कर्ण पिशाचिनी सिद्ध हो जाती है। तत्पश्चात् किसी भी प्रश्न का मन में स्मरण करने पर साधक के कान में ‍पिशाचिनी सही उत्तर दे देती है।
ॐ नम: कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर अतीता नागतवर्त मानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय-कथय ह्यीं कर्ण पिशाचिनी स्वहा।
इस साधना को व्यक्ति स्वयं कभी संपन्न नहीं कर सकता। उसे विशेषज्ञों और सिद्ध गुरुओं के मार्गदर्शन से ही सीखा जा सकता है। स्वयं करने से इसके नकारात्मक परिणाम भी देखे गए हैं। इस साधना को सिद्ध करने के बाद साधक में वो शक्ति आ जाती है कि वह सामने बैठे व्यक्ति की नितांत व्यक्तिगत जानकारी भी जान लेता है।
इस मंत्र का दुरुपयोग न करें। इस मंत्र को अज्ञानतावश आजमाने की कोशिश न करें। यह अत्यंत गोपनीय एवं दुर्लभ मंत्र है। इसे किसी सिद्ध पुरुष एवं प्रकांड विद्वान के मार्गदर्शन में ही करें। इस मंत्र को सिद्ध करने में अगर मामूली त्रुटि भी होती है तो इसका घोर नकारात्मक असर हो सकता है।
इस साधना की सिद्धि के पश्चात् किसी भी प्रश्न का उत्तर कोई पिशाचिनी कान में आकर देती है अर्थात् मंत्र की सिद्धि से पिशाच-वशीकरण होता है। मंत्र की सिद्धि से वश में आई कोई आत्मा कान में सही जवाब बता देती है। मृत्यु के उपरांत एक सामान्य व्यक्ति अगर मुक्ति ना प्राप्त करे तो उसकी क्षमताओं में आश्चर्यजनक वृद्धि हो जाती है।
साधनाकाल में एक समय ही भोजन करें, काले वस्त्र धारण करें, स्त्री से बातचीत भी वर्जित है। मन-कर्म-वचन की शुद्धि रखें।

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