Thursday, April 11, 2024

अर्यमा ARYMA

संतोषॐमहादेव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
अर्यमा :: पितरों को मुख्यतः दो श्रेणियों में रखा जा सकता है- दिव्य पितर और मनुष्य पितर। दिव्य पितर उस जमात का नाम है, जो जीवधारियों के कर्मों को देखकर मृत्यु के बाद उसे क्या गति दी जाए, इसका निर्णय करता है। इस जमात का प्रधान यमराज है। यमराज की गणना भी पितरों में होती है। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार इस जमात के मुख्य गण प्रधान हैं। अर्यमा को पितरों का प्रधान माना गया है और यमराज को न्यायाधीश। भगवान चित्रगुप्त सभी के कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले हैं।
इन पांचों के अलावा प्रत्येक वर्ग की ओर से सुनवाई करने वाले हैं, यथा अग्निष्व, देवताओं के प्रतिनिधि, सोमसद या सोमपा-साध्यों के प्रतिनिधि तथा बहिर्पद-गंधर्व, राक्षस, किन्नर सुपर्ण, सर्प तथा यक्षों के प्रतिनिधि हैं। अग्रिष्वात्त, बहिर्पद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये नौ दिव्य पितर बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख पितरों को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं। इन सबसे गठित जो जमात है, वही पितर हैं। यही मृत्यु के बाद न्याय करती है। आओ जानते हैं पितरों के देर्व अर्यमा का परिचय।
ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः। ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय॥
पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह, . और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से 5 अमृत की ओर ले चलें।
पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। श्राद्ध पक्ष का माहात्म्य उत्तर व उत्तर-पूर्व भारत में ज्यादा है। तमिलनाडु में आदि अमावसाई, केरल में करिकडा वावुबली और महाराष्ट्र में इसे पितृ पंधरवड़ा नाम से जानते हैं। हे अग्नि! हमारे श्रेष्ठ सनातन यज्ञ को संपन्न करने वाले पितरों ने जैसे देहांत होने पर श्रेष्ठ ऐश्वर्य वाले स्वर्ग को प्राप्त किया है, वैसे ही यज्ञों में इन ऋचाओं का पाठ करते हुए और समस्त साधनों से यज्ञ करते हुए हम भी उसी ऐश्वर्यवान स्वर्ग को प्राप्त करें।[यजुर्वेद]
(1). ऋषि कश्यप की पत्नीं अदिति के 12 पुत्रों में से एक अर्यमन हैं। ये बारह हैं:- अंशुमान, इंद्र, अर्यमन, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और त्रिविक्रम (वामन)।
(2). अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता भी कहा जाता है।
(3). आकाश में आकाशगंगा उन्हीं के मार्ग का सूचक है। सूर्य से संबंधित इन देवता का अधिकार प्रातः और रात्रि के चक्र पर है।
(4). चंद्रमंडल में स्थित पितृलोक में अर्यमा सभी पितरों के अधिपति नियुक्त हैं। वे जानते हैं कि कौन-सा पितृत किस कुल और परिवार से है। पुराण अनुसार उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र इनका निवास लोक है। द्रमंडल में स्थित पितृलोक में अर्यमा सभी पितरों के अधिपति नियुक्त हैं।
(5). आदित्य का छठा रूप अर्यमा नाम से जाना जाता है। यह वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार करते हैं। चराचर जगत की जीवन शक्ति हैं। प्रकृति की आत्मा रूप में निवास करते हैं।
(6). आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की किरण (अर्यमा) और किरण के साथ पितृ प्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। 
(7). इनकी गणना नित्य पितरों में की जाती है जड़-चेतन मयी सृष्टि में, शरीर का निर्माण नित्य ही करते हैं। इनके प्रसन्न होने पर पितरों की तृप्ति होती है। श्राद्ध के समय इनके नाम से जल दिया जाता है। यज्ञ में मित्र (सूर्य) तथा वरुण (जल) देवता के साथ स्वाहा का 'हव्य' और श्रा स्वधा का 'कव्य' दोनों स्वीकार करते हैं।
श्राद्ध के समय इनके नाम से जलदान दिया जाता है। यज्ञ में मित्र (सूर्य) तथा वरुण (जल) देवता के साथ स्वाहा का 'हव्य' और श्राद्ध में स्वधा का 'कव्य' दोनों स्वीकार करते हैं। अग्नि को किए गए अन्न से सूक्ष्म शरीर और मन तृप्त होता है। इसी अग्निहोत्र से आकाश मंडल के स पक्षी भी तृप्त होते हैं। पक्षियों के लोक को भी पितृलोक कहा जाता है।
ऋषि और पितृ तर्पण विधि
तर्पण के प्रकार :- पितृ तर्पण, मनुष्य तर्पण, देव तर्पण, भीष्म तर्पण, मनुष्य पितृतर्पण,  यम तर्पण। 
तर्पण विधि :- सर्वप्रथम पूर्व दिशा की और मुंह कर दाहिना घुटना जमीन पर लगाकर, सव्य होकर (जनेऊ व अंगोछे को बाएं कंधे पर रखें) गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर, तिलक लगाकर, दोनों हाथों की अनामिका अंगुली में कुशों का पवित्री (पैंती) धारण करें, फिर हाथ में त्रिकुशा, जौ,  अक्षत aऔर जल लेकर संकल्प पढ़ें :-
ॐ विष्णवे नम: ३। हरि: ॐ तत्सदद्यैतस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्पन्न: अमुकशर्मा (वर्मा, गुप्त:) अहं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं देवर्पिमनुष्यपितृतर्पणं करिष्ये।
तीन कुश ग्रहण कर निम्न मंत्र का तीन बार उच्चारण करें :- 
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमोनमः। 
तदनन्तर एक तांबे यां चांदी के पात्र में श्वेत चंदन, जौ, तिल, चावल, सुगंधित पुष्प और तुलसी दल रखें, फिर उस पात्र में तर्पण के लिए जल भर दें, फिर उसमें रखे हुए त्रिकुशा को तुलसी सहित सम्पुटाकार दाएं हाथ में लेकर बाएं हाथ से उसे ढंक लें और  देवताओं का आवाहन करें।
आवाहन मंत्र :- 
ॐ विश्वेदेवास ऽआगत श्रृणुता म ऽइम, हवम्। एदं वर्हिनिषीदत॥
हे विश्वे देव गण! आप लोग यहां पदार्पण करें, हमारे प्रेमपूर्वक किए हुए इस आवाहन को सुनें और इस कुश के आसन पर विराजें।
इस प्रकार आवाहन कर कुश का आसन दें और त्रिकुशा द्वारा दाएं हाथ की समस्त अंगुलियों के अग्रभाग अर्थात् देवतीर्थ से ब्रह्मादि देवताओं के लिए पूर्वोक्त पात्र में से एक-एक अंजलि तिल चावल-मिश्रित जल लेकर दूसरे पात्र में गिराएं और निम्नांकित रूप से उन-उन देवताओं के नाम मंत्र पढ़ते रहें।
देव तर्पण :-
ॐ ब्रह्मास्तृप्यताम्।
ॐ विष्णुस्तृप्यताम्।
ॐ रुद्रस्तृप्यताम्।
ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम्।
ॐ देवास्तृप्यन्ताम्।
ॐ छन्दांसि तृप्यन्ताम्।
ॐ वेदास्तृप्यन्ताम्।
ॐ ऋषयस्तृप्यन्ताम्।
ॐ पुराणाचार्यास्तृप्यन्ताम्।
ॐ गन्धर्वास्तृप्यन्ताम्।
ॐ इतराचार्यास्तृप्यन्ताम्।
ॐ संवत्सररू सावयवस्तृप्यताम्।
ॐ देव्यस्तृप्यन्ताम्।
ॐ अप्सरसस्तृप्यन्ताम्।
ॐ देवानुगास्तृप्यन्ताम्।
ॐ नागास्तृप्यन्ताम्।
ॐ सागरास्तृप्यन्ताम्।
ॐ पर्वतास्तृप्यन्ताम्।
ॐ सरितस्तृप्यन्ताम्।
ॐ मनुष्यास्तृप्यन्ताम्।
ॐ यक्षास्तृप्यन्ताम्।
ॐ रक्षांसि तृप्यन्ताम्।
ॐ पिशाचास्तृप्यन्ताम्।
ॐ सुपर्णास्तृप्यन्ताम्।
ॐ भूतानि तृप्यन्ताम्।
ॐ पशवस्तृप्यन्ताम्।
ॐ वनस्पतयस्तृप्यन्ताम्।
ॐ ओषधयस्तृप्यन्ताम्।
ॐ भूतग्रामश्चतुर्विधस्तृप्यताम्।
ऋषि तर्पण :- इसी प्रकार निम्न मंत्र वाक्यों से मरीचि आदि ऋषियों को भी एक-एक अंजलि जल दें :-
ॐ मरीचिस्तृप्यताम्।
ॐ अत्रिस्तृप्यताम्।
ॐ अङ्गिरास्तृप्यताम्।
ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम्।
ॐ पुलहस्तृप्यताम्।
ॐ क्रतुस्तृप्यताम्।
ॐ वशिष्ठस्तृप्यताम्।
ॐ प्रचेतास्तृप्यताम्।
ॐ भृगुस्तृप्यताम्।
ॐ नारदस्तृप्यताम्॥
मनुष्य तर्पण :- उत्तर दिशा की ओर मुँह कर, जनेऊ व गमछे को माला की भाँति गले में धारण कर, सीधा बैठ कर  निम्नांकित मंत्रों को दो-दो बार पढ़ते हुए दिव्य मनुष्यों के लिए प्रत्येक को दो-दो अंजलि जौ सहित जल प्राजापत्यतीर्थ (कनिष्ठिका के मूल-भाग) से अर्पण करें :-
ॐ सनकस्तृप्यताम् -2
ॐ सनन्दनस्तृप्यताम् – 2
ॐ सनातनस्तृप्यताम् -2
ॐ कपिलस्तृप्यताम् -2
ॐ आसुरिस्तृप्यताम् -2
ॐ वोढुस्तृप्यताम् -2
ॐ पञ्चशिखस्तृप्यताम् -2
पितृ तर्पण :- दोनों हाथ के अनामिका में धारण किए पवित्री व त्रिकुशा को निकालकर रख दें। अब दोनों हाथ की तर्जनी अंगुली में नया पवित्री धारण कर मोटक नाम के कुशा के मूल और अग्रभाग को दक्षिण की ओर करके  अंगूठे और तर्जनी के बीच में रखें। स्वयं दक्षिण की ओर मुंह करें, बाएं घुटने को जमीन पर लगाकर अपसव्यभाव से (जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर बाएं हाथ जे नीचे ले जाएं ) पात्रस्थ जल में काली तिल मिलाकर पितृतीर्थ से (अंगूठा और तर्जनी के मध्यभाग से ) दिव्य पितरों के लिए निम्नांकित मन्त्र-वाक्यों को पढ़ते हुए तीन-तीन अंजलि जल दें।
ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गंगाजलं वा तस्मै स्वधा नम: – 3
ॐ सोमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गंगाजलं वा तस्मै स्वधा नम: – 3
ॐ यमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गंगाजलं वा तस्मै स्वधा नम: – 3
ॐ अर्यमा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गंगाजलं वा तस्मै स्वधा नम: – 3
ॐ अग्निष्वात्ता: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गंगाजलं वा तेभ्य: स्वधा नम: – 3
ॐ सोमपा: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गंगाजलं वा तेभ्य: स्वधा नम: – 3
ॐ बर्हिषद: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गंगाजलं वा तेभ्य: स्वधा नम: – 3
मनुष्य पितृ तर्पण :-
इसके पश्चात् निम्न मंत्र से पितरों का आवाहन करें :-
ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम।  
ॐ हे पितरों! पधारिये तथा जलांजलि ग्रहण कीजिए। 
‘हे अग्ने ! तुम्हारे यजन की कामना करते हुए हम तुम्हें स्थापित करते हैं । यजन की ही इच्छा रखते हुए तुम्हें प्रज्ज्वलित करते हैं। हविष्य की इच्छा रखते हुए तुम भी तृप्ति की कामना वाले हमारे पितरों को हविष्य भोजन करने के लिए बुलाओ। तदनन्तर अपने पितृगणों का नाम-गौत्र आदि उच्चारण करते हुए प्रत्येक के लिए पूर्वोक्त विधि से ही तीन-तीन अंजलि तिल-सहित जल इस प्रकार दें :-
अस्मत्पिता अमुकशर्मा  वसुरूपस्तृप्यतांम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3
अस्मत्पितामह: (दादा) अमुकशर्मा रुद्ररूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3
अस्मत्प्रपितामह: (परदादा) अमुकशर्मा आदित्यरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3
अस्मन्माता अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम: – 3
अस्मत्पितामही (दादी) अमुकी देवी  रुद्ररूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम: – 3
अस्मत्प्रपितामही परदादी अमुकी देवी आदित्यरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जल तस्यै स्वधा नम: – 3
इसके बाद नौ बार पितृतीर्थ से जल छोड़ें। इसके बाद सव्य होकर पूर्वाभिमुख हो नीचे लिखे श्लोकों को पढ़ते हुए जल गिराएं। 
देवासुरास्तथा यक्षा नागा गन्धर्वराक्षसा:। 
पिशाचा गुह्यका: सिद्धा: कुष्माण्डास्तरव: खगा:॥ 
जलेचरा भूमिचराः वाय्वाधाराश्च जन्तव:।
प्रीतिमेते प्रयान्त्वाशु मद्दत्तेनाम्बुनाखिला:॥
यम तर्पण :- 
इसी प्रकार निम्नलिखित मंत्रों को पढ़ते हुए चौदह यमों के लिए भी पितृतीर्थ से ही तीन-तीन अंजलि तिल सहित जल दें
ॐ यमाय नम: – 3
ॐ धर्मराजाय नम: – 3
ॐ मृत्यवे नम: – 3
ॐ अन्तकाय नम: – 3
ॐ वैवस्वताय नमः – 3
ॐ कालाय नम: – 3
ॐ सर्वभूतक्षयाय नम: – 3
ॐ औदुम्बराय नम: – 3
ॐ दध्नाय नम: – 3
ॐ नीलाय नम: – 3
ॐ परमेष्ठिने नम: – 3
ॐ वृकोदराय नम: – 3
ॐ चित्राय नम: – 3
ॐ चित्रगुप्ताय नम: – 3
बृहद्वरूथं मरुतां देवं त्रातरमश्विना। मित्रमीमहे वरुणं स्वस्तये
हे मरुतों के पालक इन्द्र देव! दोनों अश्विनी कुमारों, मित्र और वरुण देव के निकट प्रौढ़ और शीत, आतप आदि के निवारक गृह को मङ्गल के लिए, हम आपसे माँगते हैं।[ऋग्वेद 8.18.20]
प्रौढ़ :: पूर्णतः बढ़ा हुआ, मध्य अवस्था को प्राप्त; adult, matured.
Hey nurturer of Marud Gan Indr Dev! We wish to have that house which is fully built up, protective from cold-winters and free from troubles-tensions, close to both Ashwani Kumars, Mitr and Varun Dev.
अनेहो मित्रार्यमन्नृवद्वरुण शंस्यम्। त्रिवरूथं मरुतो यन्त नश्छर्दिः
हे मित्र, अर्यमा, वरुण और मरुद्गणों आप लोग हिंसा रहित, पुत्रादि युक्त और स्तुत्य हैं। शीत, आतप और वर्षा से निवारण करने वाला गृह हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.18.21]
Hey Mitr, Aryma, Varun and Marud Gan, you are free from violence, have sons and are worshipable. Grant us a house which is free from cold, heat and rains. 


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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
skbhardwaj1951@gmail.com

Thursday, January 18, 2024

वास्तोष्पति VASTOSHPATE

वास्तोष्पति VASTOSHPATE
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।   
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आदित्यासो अदितयः स्याम पूर्देवत्रा वसवो मर्त्यत्रा।
सनेम मित्रावरुणा सनन्तो भवेम द्यावापृथिवी भवन्तः
हम आदित्यों के आत्मीय हैं; हम अखण्डनीय होवें। देवताओं में हे वसुओं! मनुष्यों की आप रक्षा करें। हे मित्र और वरुण देव! आपका भजन करते हुए हम धन का उपभोग करें। हे द्यावा-पृथ्वी! हम शक्ति युक्त होवें।[ऋग्वेद 7.52.1]
आत्मीय :: अपना, अपने लोग, भाई-बंधु, सजाति, संबंधी; cognate, kindred, intimate, proper. 
We are intimate of the Adity Gan. Our relation should persist. Hey Vasus! Protect the humans. Hey Mitr & Varun Dev! We should use the money while remembering you. Hey earth & heavens! We should possess strength.
मित्रस्तन्नो वरुणो मामहन्त शर्म तोकाय तनयाय गोपाः।
मा वो भुजेमान्यजातमेनो मा तत्कर्म वसवो यच्चयध्वे
मित्र और वरुणदेव आदि आदित्यगण हमारे पुत्र और पौत्र को सुख प्रदान करें। दूसरों का किया हुआ पाप हम न भोगें। जिस कर्म को करने पर आप नाश करते हैं, हे वसुओं! हम वह कर्म न करें।[ऋग्वेद 7.52.2]
Mitr & Varun Dev should grant pleasure-comforts to our sons and grand sons. We should not suffer due to the sins of others. Hey Vasus! We should not do such things due to which you destroy.
तुरण्यवोऽङ्गिरसो नक्षन्त रत्नं देवस्य सवितुरियानाः।
पिता च तन्नो महान्यजत्रो यो विश्वे देवाः समनसो जुषन्त
क्षिप्रकारी अंगिरा लोगों ने सविता देव के पास याचना करके उनके जिस रमणीय धन को प्राप्त किया, उसी धन को यज्ञशील महान पिता (प्रजापति) और समस्त देवगण समान मन से हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.52.3]
The wealth attained by Angiras by approaching and praying Savita Dev should be given to us by great father Prajapati busy with the Yagy to us and all demigods-deities should always be happy-pleased with us.(18.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र द्यावा यज्ञैः पृथिवी नमोभिः सबाध ईळे बृहती यजत्रे।
ते चिद्धि पूर्व कवयो गृणन्तः पुरो मही दधिरे देवपुत्रे
जिन विशाल और देवताओं की जननी द्यावा-पृथ्वी को स्तोताओं ने स्तुति करते हुए आगे स्थापित किया, उनसे हम यज्ञ और अन्न के द्वारा कष्ट दूर करने के लिए नमस्कार पूर्वक प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 7.53.1]
We worship & pray saluting with Yagy and food grains, the heaven-earth, the producer of great demigods-deities, installed by the Stotas.
प्र पूर्वजे पितरा नव्यसीभिर्गीर्भिः कृणुध्वं सदने ऋतस्य।
आ नो द्यावापृथिवी दैव्येन जनेन यातं महि वां वरूथम्
हे स्तोताओं! आप लोग नई स्तुतियों द्वारा पूर्वज्ञाता और मातृ-पितृभूता, द्यावा-पृथ्वी को यज्ञस्थान के अग्रभाग में स्थापित करें। द्यावा-पृथ्वी अपना महान और वरणीय धन देने के लिए देवताओं के साथ हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 7.53.2]
Hey Stotas! Establish the heaven & earth aware of the past, who are like parents with new Stutis-prayers in front segment of the Yagy site. Let heaven & earth invoke with demigods-deities for granting us suitable wealth in front of us.
उतो हि वां रत्नधेयानि सन्ति पुरूणि द्यावापृथिवी सुदासे।
अस्मे धत्तं यदसदस्कृधोयु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः
हे द्यावा-पृथ्वी! आपके पास शोभन हवि देने वाले यजमान के लिए देने योग्य बहुत रमणीय धन है। धन में जो धन अक्षय हो, उसे ही हमें प्रदान करें। आप हमारा सदैव कल्याण (स्वस्ति) के साथ पालन करें।[ऋग्वेद 7.53.3]
Hey heaven & earth! You have pleasant wealth for the Ritviz who make beautiful offerings. Grant us the imperishable wealth. You should always nurse-nurture us with Swasti-welfare means.(18.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान्स्वावेशो अनमीवो भवा नः।
यत्त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे
हे वास्तोष्पति! आप हमें जगावें। हमारे गृह को नीरोगी करें। हम जो धन माँगें, वह हमें प्रदान करें। हमारे पुत्र-पौत्रादि द्विपदों और गौ, अश्व आदि चतुष्पदों को सुखी करें।[ऋग्वेद 7.54.1]
Hey Vastoshpate! Wake us. Make our home free from illness, diseases, ailments. Grant us the wealth desired by us. Make our sons, grand sons, two hoofed and cows, horses and four hoofed comfortable.
वास्तोष्पते प्रतरणो न एधि गयस्फानो गोभिरश्वेभिरिन्दो।
अजरासस्ते सख्ये स्याम पितेव पुत्रान्प्रति नो जुषस्व
हे वास्तोष्पति! आप हमारे और हमारे धन के वर्द्धयिता होवें। हे सोम की तरह आह्लादक देव! आपके मित्र होने पर हम गौओं और अश्वों वाले और जरा रहित होंगे। जिस प्रकार पिता पुत्र का पालन करता है, उसी प्रकार आप हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.54.2]
Hey Vastoshpate! You should boost our wealth. Hey pleasure-exhilarating granting like Som! Friendly with you, we should possess cows, horses and become free from aging-old age. The way a father cares for his sons you should nurse us like that.
वास्तोष्पते शग्मया संसदा ते सक्षीमहि रण्वया गातुमत्या।
पाहि क्षेम उत योगे वरं नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः
हे वास्तोष्पति! हम आपका सुखकर, रमणीय और धनवान स्थान प्राप्त करें। आप हमारे प्राप्त और अप्राप्त वरणीय धन की रक्षा करें और हमारा स्वस्ति के साथ सदैव पालन करें।[ऋग्वेद 7.54.3]
Hey Vastoshpate! We should attain your comfortable, beautiful and rich abode-place. Protect our available and yet to be availed, wealth. Nurse us with Swati.(18.01.2024)
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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Monday, November 13, 2023

SHIELD, ARROW, CHARIOTEER, CHAROITE वर्म, धनु, सारथि, रथादि (RIG VED ऋग्वेद 6)

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By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- पायु भरद्वाज; देवता :- वर्म, धनु, सारथि, रथादि; छन्द :- त्रिष्टुप् जगती, अनुष्टुप् पंक्ति।
जीमूतस्येव भवति प्रतीकं यद्वर्मी याति समदामुपस्थे।
अनाविद्धया तन्वा जय त्वं स त्वा वर्मणो महिमा पिपर्तु
युद्ध प्रारम्भ हो जाने पर जब राजा जिस समय लौहमय कवच पहन कर जाता है, समय मालूम पड़ता है कि यह साक्षात् मेघ हैं। राजन् अविद्ध शरीर रहकर विजय प्राप्त करें। उस कवच की महान शक्ति आपकी रक्षा करे।[ऋग्वेद 6.75.1]
When the king wear the iron shield over his chest and come to the battle field, he appears like clouds. Let the king attain victory without being pierced by the arrows. Let the power of great shield protect him.
धन्वना गा धन्वनाजिं जयेम धन्वना तीव्राः समदो जयेम।
धनुः शत्रोरपकामं कृणोति धन्वना सर्वाः प्रदिशो जयेम
हम धनुष के द्वारा शत्रुओं की गौवों को जीतेंगे, युद्ध जीतेंगे और मदोन्मत्त शत्रुओं के सेना का वध करेंगे। शत्रुओं की अभिलाषा धनुष से नष्ट करेंगे। हम इस धनुष से समस्त दिशाओं में स्थित शत्रुओं का विनाश करेंगे।[ऋग्वेद 6.75.2]
We will win the cows of the enemy with the power of the bow and kill their intoxicated armies. We will destroy the ambitions of the enemy with the bow. We will destroy the enemies with the bow in all directions. 
वक्ष्यन्तीवेदा गनीगन्ति कर्णं प्रियं सखायं परिषस्वजाना।
योषेव शिङ्क्ते वितताधि धन्वञ्ज्या इयं समने पारयन्ती
धनुष की यह ज्या युद्ध बेला में युद्ध से पार ले जाने की इच्छा करके मानो प्रिय वचन बोलने के लिए ही धनुर्धारी के कान के पास आती है। जिस प्रकार से स्त्री प्रिय पति का आलिङ्गन करके बात करती है, उसी प्रकार यह ज्या भी बाण का आलिङ्गन करके ही शब्द करती है।[ऋग्वेद 6.75.3]
The cord of the bow reach the ears of the archer during the war, as if it wants to speak lovely words to him. The way a wife embrace her husband; this cord too embrace the arrow and make sound.
ते आचरन्ती समनेव योषा मातेव पुत्रं बिभृतामुपस्थे।
अप शत्रून्विध्यतां संविदाने र्त्नी इमे विष्फुरन्ती अमित्रान्
वे दोनों कोटियाँ अन्य मनस्का स्त्री की तरह आचरण करके शत्रुओं के ऊपर आक्रमण करते समय माता की तरह पुत्र तुल्य राजा की रक्षा करती हैं और अपने कार्य को भली-भाँति जानकर जाते हुए इस राजा के द्वेषी शत्रुओं का वेधन करती हैं।[ऋग्वेद 6.75.4]
Both these items (bow & arrow) behave like a woman inclined to some one else, behaves like a mother and protect the king like a son, understanding fully well its job and pierce the envious enemies.
बह्वीनां पिता बहुरस्य पुत्रश्चिश्चा कृणोति समनावगत्य।
इषुधिः सङ्काः पृतनाश्च सर्वाः पृष्ठे निनद्धो जयति प्रसूतः
यह तूणीर अनेक बाणों का पिता है। कितने ही बाण इसके पुत्र हैं। बाण निकालने के समय यह तूणीर “त्रिश्वा" शब्द करता है। यह योद्धा के पृष्ठ देश में निबद्ध रहकर युद्धकाल में बाणों का प्रसव करता हुआ समस्त सेना को जीत लेता है।[ऋग्वेद 6.75.5]
This quiver is the father of several arrows. Many arrows are its son. Quiver makes the sound trishrava while taking the arrow out of it. It stays over the back of the warrior and during the war it evolves the arrows and wins the whole army.
रथे तिष्ठन्नयति वाजिनः पुरो यत्रयत्र कामयते सुषारथिः।
अभीशूनां महिमानं पनायत मनः पश्चादनु यच्छन्ति रश्मयः
सुन्दर सारथि रथ में अवस्थान करके आगे के घोड़ों को जहाँ इच्छा होती है, वहाँ ले जाता है। रस्सियाँ अश्वों के तक फैल कर और अश्वों के पीछे फैलकर सारथि के मन के अनुकूल नियुक्त होती हैं।[ऋग्वेद 6.75.6]
The charioteer deploy the horses and takes the charoite as per his wish. Reins extend till the gorge of the mouth of the horse and fixed as per need of the charioteer.
तीव्रान् घोषान् कृण्वते वृषपाणयोऽश्वा रथेभिः सह वाजयन्तः।
अवक्रामन्तः प्रपदैरमित्रान् क्षिणन्ति शत्रूंरनपव्ययन्तः
अश्व टापों से धूल उड़ाते हुए और रथ के साथ संवेग जाते हुए हिनहिनाते हैं तथा पलायन न करके हिंसक शत्रुओं को टापों-खुरों से पीटते हैं।[ऋग्वेद 6.75.7]
The horses raise dust and neigh running with speed and attack the enemies with their hoofs.
रथवाहनं हविरस्य नाम यत्रायुधं निहितमस्य वर्म।
तत्रा रथमुप शग्मं सदेम विश्वाहा वयं सुमनस्यमानाः
जिस प्रकार से हव्य अग्नि को बढ़ाता है, उसी प्रकार इस राजा के रथ द्वारा वहन किया जाने वाला धन इसे वर्द्धित करे। रथ पर इस राजा के अस्त्र, कवच आदि रहते हैं। हम सदा प्रसन्नचित्त से उस सुखावह रथ के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 6.75.8]
The manner in which offerings raise the fire, the wealth carried in the charoite make the king prosper. The charoite carries the shield and weapons of the king. We approach the comfortable-blissful charoite happily.
स्वादुषंसदः पितरो वयोधाः कृच्छ्रश्रितः शक्तीवन्तो गभीराः।
चित्रसेना इषुबला अमृध्राः सतोवीरा उरवो व्रातसाहाः
रथ के रक्षक शत्रुओं के सुस्वादु अन्न को नष्ट करके अपने पक्ष के लोगों को अन्न प्रदान करते हैं। विपत्ति के समय इनका आश्रय लिया जाता है। ये शक्तिमान, गंभीर, विचित्र सेना से युक्त, बाण बल सम्पन्न अहिंसक, वीर, महान और अनेक शत्रुओं को जीतने में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 6.75.9]
Protectors of the charoite destroy the tasty food of the enemy and grant food grains to the people on their side. Asylum is sought under them during calamity-disaster. They are mighty, serious, possess amazing armies, have the power of arrows, brave, great and capable of winning the enemy.
ब्राह्मणासः पितरः सोम्यासः शिवे नो द्यावापृथिवी अनेहसा।
पूषा नः पातु दुरिताद् ऋतावृधो रक्षा माकिर्नो अघशंस ईशत
हे ब्राह्मणो, पितरों और यज्ञ वर्द्धक सोम सम्पादक! आप हमारी रक्षा करें। पाप शून्या द्यावा-पृथ्वी हमारे लिए सुखकारी हों। पूषा हमें पाप से बचावें। हमारा पापी शत्रु अपना प्रभुत्व स्थापित न करने पावे।[ऋग्वेद 6.75.10]
Hey Brahmans, Manes and promotor of the Yagy, Som! Protect us. Let the sinless earth & heavens comfortable to us. Let Pusha save us from sins. The sinful enemy should not be able to impose his dominion.
सुपर्णं वस्ते मृगो अस्या दन्तो गोभिः संनद्धा पतति प्रसूता।
यत्रा नरः सं च वि च द्रवन्ति तत्रास्मभ्यमिषवः शर्म यंसन्
बाण शोभन पंख धारित करता है। इसका दाँत मृगश्रृंग है। यह ज्या अथवा गोचर्म से अच्छी तरह बद्ध है। यह प्रेरित होकर पतित होता है। जहाँ मनुष्य एकत्र या पृथकरूप से विचरण करते हैं, वहाँ यह बाण हमें शरण प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.75.11]
The arrows have feathers. Its teeth are made of deer's horns. Its covered with cow skin. It strikes on being aimed. Let the arrows grant us shelter, where the people gather or roam separately.
ऋजीते परि वृङ्धि नोऽश्मा भवतु नस्तनूः।
सोमो अधि ब्रवीतु नोऽदितिः शर्म यच्छतु
बाण हमें परिवर्द्धित करें। हमारा शरीर पाषाण के समान है। सोमदेव हमें उत्साहित करें और देवमाता अदिति हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.75.12]
Let arrows enhance-boost us. Our bodies are like the rocks. Let Som Dev encourage us and Dev Mata Aditi grant us pleasure.
आ जङ्घन्ति सान्वेषां जघनाँ उप जिघ्नते।
अश्वाजनि प्रचेतसोऽश्वान्त्समत्सु चोदय
कशा (चाबुक), प्रकृष्ट ज्ञानी सारथि लोग आपके द्वारा अश्वों के उरु और जघन में मारते हैं। संग्राम में आप अश्वों को प्रेरित करें।[ऋग्वेद 6.75.13]
The trained charioteer strike the femur and thigh with whip. Encourage the horses in the battle-war.
अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्पुमान्पुमांसं परि पातु विश्वतः
हस्तघ्न ज्या के आघात का निवारण करता हुआ सर्प के सदृश शरीर के द्वारा प्रकोष्ठ को परिवेष्टित करता है, समस्त ज्ञातव्य विषयों को जानता है और पौरुषशाली होकर चारों ओर से रक्षण करता है।[ऋग्वेद 6.75.14]
The ward of the fore-arm protect it from the abrasion of the bow-string, surrounds the arm like a snake with its convolutions. Let the brave man, expert in warfare, defend a combatant all from four directions.
आलाक्ता या ररुशीष्र्ण्यथो यस्या अयो मुखम्।
इदं पर्जन्यरेतस इष्वै देव्यै बृहन्नमः
जो विषाक्त है, जिसका अग्रभाग हिंसक और और जिसका मुख लौहमय है, उसी पर्जन्य से उत्पन्न विशाल बाण देवता को हमारा नमस्कार है।[ऋग्वेद 6.75.15]
We salute Parjany out of whom the large deity Van-arrow appear, which is poisonous, with harmful tips & iron mouthed.
अवसृष्टा परा पत शरव्ये ब्रह्मसंशिते।
गच्छामित्रान्प्र पद्यस्व मामीषां कं चनोच्छिषः
मंत्र प्रयोग से तीक्ष्ण किए गए हे बाण रूप अस्त्र! हमारे द्वारा छोड़े जाने पर आप शत्रुओं की सेना पर एक साथ प्रहार करें। उनके शरीर में प्रविष्ट होकर आप सभी का सर्वनाश करें और शत्रुओं को जीवित न छोड़े।[ऋग्वेद 6.75.16]
Sharpened with Mantr Shakti, hey weapon in the form of arrow! Strike the enemy on being shot by us. Pierce their bodies and destroy them all.
यत्र बाणाः संपतन्ति कुमारा विशिखाइव।
तत्रा नो ब्रह्मणस्पतिरदितिः शर्म यच्छतु विश्वाहा शर्म यच्छतु
मुण्डित कुमारों की तरह जिस युद्ध में बाण गिरते हैं, उसमें हमें ब्रह्मण स्पति और माता अदिति सुख प्रदान कर हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 6.75.17]
Let Brahman Spati and Mata Aditi grant us comforts-pleasure and benefit us the manner in which the arrows fall in the war like the shaved heads.
मर्माणि ते वर्मणा छादयामि सोमस्त्वा राजामृतेनानु वस्ताम्।
उरोर्वरीयो वरुणस्ते कृणोतु जयन्तं त्वानु देवा मदन्तु
हे राजन्! आपके शरीर के मर्मस्थानों को कवच से आच्छादित कर रहा हूँ। सोम राजा आपको अमृत द्वारा आच्छादित करें, वरुण देव आपको श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठतम सुख प्रदान करें। आपके विजयी होने पर देवगण हर्षित होवें।[ऋग्वेद 6.75.18]
Hey king! I am covering your sensitive organs with the shield. Let Som Dev cover you with elixir-nectar & Varun Dev grant you excellent pleasures. Let the demigods-deities become happy with your victory.
यो नः स्वो अरणो यश्च निष्ट्यो जिघांसति।
देवास्तं सर्वे धूर्वन्तु ब्रह्म वर्म ममान्तरम्
जो कुटुम्बी हमारे प्रति प्रसन्न न होकर जो हमसे अलग रहकर हमारे वध की इच्छा रखते हैं, उन्हें सभी देवता गण नष्ट कर दें। हमारे लिए तो वेदमन्त्र ही बाण निवारक कवच है।[ऋग्वेद 6.75.19]
Let the demigods-deities destroy the people of our clan, who separate from us and wish to kill us.  Let the Ved Mantr be protective to us from arrows like a shield.(13.11.2023)
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

Friday, September 22, 2023

COWS गौ (Rig Ved ऋग्वेद)

COWS गौ
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- गौ, इन्द्र;  छन्द :-त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप्।
आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे। प्रजावतीः पुरुरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः
गौएँ हमारे घर आवें और हमारा कल्याण करें। वे हमारे गोष्ठ में उपवेशन करें और हमारे ऊपर प्रसन्न हों। इस गोष्ठ में नाना वर्ण वाली गौएँ सन्तति सम्पन्न होकर प्रात: काल में इन्द्र देव के लिए दुग्ध प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.28.1]
Let cows come to our house and resort to our welfare. They should reside in our cow shed and become happy with us. Cows of different colours should have progeny and yield milk for Indr Dev in the morning.
इन्द्रो यजने पृणते च शिक्षत्युपेद्ददाति न स्वं मुषायति।
भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिन्ने खिह्ये नि दधाति देवयुम्
इन्द्र देव यज्ञ करने वाले और प्रार्थना करने वाले को अपेक्षित धन प्रदान करते हैं। वे उन्हें सर्वदा धन प्रदान करते हैं और उनके स्वकीय धन को कभी नहीं लेते। वे निरन्तर उनके धन को बढ़ाते हैं और उन इन्द्राभिलाषी को शत्रुओं के द्वारा सुरक्षित स्थान में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 6.28.2]
Indr Dev grants wealth to the doer of Yagy and his worshipers. He just keep on granting them money and do not take their wealth. He continuously increase their wealth and keep them at safe place.
न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति।
देवाँश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित्ताभिः सचते गोपतिः सह
गौएँ हमारे समीप से नष्ट न हों। चोर हमारी गौओं को न चुरायें। शत्रुओं का शस्त्र हमारी गौओं को क्षति न पहुँचावें । गोस्वामी याजकगण जिन गौओं से इन्द्रादि का यजन करते हैं और जिन गौओं को इन्द्रदेव के लिए प्रदान करते हैं, उन गौओं के साथ वे चिरकाल तक सुखी रहें।[ऋग्वेद 6.28.3]
Our cows should be safe. Thieves should not steal them. Enemy should not harm them. The owner of cows who worship Indr Dev with cows and grant them to him, should survive-live with the cows for long.
न ता अर्वा रेणुककाटो अश्नुते न संस्कृतत्रमुप यन्ति ता अभि।
उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यजनः
धूल उड़ाने वाले वेगगामी अश्व भी उन गौओं को न पा सकेगें। इन गौओं पर वध करने के लिए प्रहार न करें। यागशील मनुष्य की गौएँ निर्भय और स्वाधीन भाव से भ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 6.28.4]
The speeded horses who raise dust, will not be able to have-catch these cows. Do not strike the cows for killing them. Cows of the person who perform Yagy roam fearlessly and independently. 
गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छान् गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः।
इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामीद्धृदा मनसा चिदिन्द्रम्
गौएँ हमें धन प्रदान करनी वाली हों। इन्द्र देव हमें गौएँ प्रदान करें। गाय का दूध सबसे पहले सोमरस में मिलाया जाता है। हे मनुष्यों! ये गौएँ इन्द्र रूप हैं, श्रद्धायुक्त मन से हम जिनकी कामना करते हैं।[ऋग्वेद 6.28.5]
Let the cows yield money to us. Let Indr Dev grant cows to us. Cows milk is mixed with Somras at first. Hey Humans! These cows are like Indr Dev which are worshiped by us with faith-honour.
यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम्।
भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु
हे गौओं! आप हमें पुष्टि प्रदान करें। आप क्षीण और अमंगल अंग को सुन्दर बनावें। हे कल्याणयुक्त वचन वाली गौओं! हमारे गृह को कल्याणयुक्त करें। हे गौओं! यज्ञशाला में आपका महान् अन्न ही कीर्तित होता है।[ऋग्वेद 6.28.6]
Hey cows! Nourish us. Make our weak and unfit organs strong. Hey cows speaking welfare words! Make out house full of welfare. Hey cows! Your great food grains are appreciated-offered in the Yagy house.
प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः।
मा वः स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः
हे गौओ! आप सन्तान युक्त होवें। शोभन तृण का भक्षण करें और सुख से प्राप्त करने में योग्य तालाब आदि का निर्मल जल पीवें। आपका शासक चोर न हो और व्याघ्रादि आपके ईश्वर न हो अर्थात् हिंसक जन्तु आपके ऊपर आक्रमण न करें। कालात्मक परमेश्वर का आयुध आपसे दूर रहे।[ऋग्वेद 6.28.7]
Hey cows! You should have progeny. Eat good straw and drink the water from the pond comfortably. Your master-owner should not be a thief, the beasts should not be able to harm-overpower you. The weapons of death of the Almighty should keep away from you, at all times.
उपेदमुपपर्चनमासु गोषूप पृच्यताम्। उप ऋषभस्य रेतस्युपेन्द्र तव वीर्ये
हे इन्द्र देव! आपके बलाधान के निमित्त गौओं की पुष्टि प्रार्थित हों एवं गौओं के गर्भाधानकारी वृषभों का बल प्रार्थित हो अर्थात् गौओं के पुष्ट होने पर तत्सम्बन्धी क्षीरादि द्वारा इन्द्रदेव सन्तुष्ट होते हैं।[ऋग्वेद 6.28.8]
Hey Indr Dev! Its requested that the cows should be strong for your growth and the strength of the bulls who lead to their fertilisation. Indr Dev should be satisfied with the milk, curd, Ghee etc yielded by the cows.(22.09.2023)
    
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Wednesday, May 17, 2023

श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र SHRI LAKSHMI NRASINGH STROTR

श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
प्रहलाद जी की अनन्य भक्ति, निष्ठा, प्रेम से प्रसन्न होकर भगवान् नरसिंह प्रकट हुए थे और भगवान् ने खंभे में से प्रकट होकर के अपनी सर्वव्यापकता का प्रमाण पूरी सृष्टि के सामने दिया था और भगवान् सदैव अपने भक्तों के साथ हैं इस बात की पूर्ण पुष्टि की थी।
जो व्यक्ति-साधक भगवान् का ध्यान करते हैं उनकी भक्ति करते हैं निरंतर योग साधना में लगे हुए हैं भगवान् सदैव उनके साथ में है और उनकी सदैव रक्षा करते हैं बहुत प्रेम करते हैं।
श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र ::  
श्रीमत् पयॊनिधिनिकॆतन चक्रपाणॆ भॊगीन्द्रभॊगमणिरञ्जितपुण्यमूर्तॆ।
यॊगीश शाश्वत शरण्य भवाब्धिपॊत लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥1॥
ब्रह्मॆन्द्ररुद्रमरुदर्ककिरीटकॊटि सङ्घट्टिताङ्घ्रिकमलामलकान्तिकान्त।
लक्ष्मीलसत्कुच्सरॊरुहराजहंस लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥2॥
संसारघॊरगहनॆ चरतॊ मुरारॆ मारॊग्रभीकरमृगप्रवरार्दितस्य।
आर्तस्यमत्सरनिदाघनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥3॥
संसारकूपमतिघॊरमगाधमूलम् संप्राप्य दुःखशतसर्पसमाकुलस्य।
दीनस्य दॆव कृपणापदमागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥4॥
संसारसागरविशालकरालकाल नक्रग्रहग्रसननिग्रह विग्रहस्य।
व्यग्रस्य रागरसनॊर्मिनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥5॥
संसारवृक्षमघबीजमनन्तकर्म शाखाशतं करणपत्रमनङ्गपुष्पम्।
आरुह्यदुःखफलितं पततॊ दयालॊ लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥6॥
संसारसर्पघनवक्त्रभयॊग्रतीव्र दंष्ट्राकरालविषदग्द्धविनष्टमूर्तॆः।
नागारिवाहन सुधाब्धिनिवास शौरॆ लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥7॥
संसारदावदहनातुरभीकरॊरु ज्वालावलीभिरतिदग्धतनूरुहस्य।
त्वत्पादपद्मसरसीशरणागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥8॥
संसारजालपतितस्य जगन्निवास सर्वॆन्द्रियार्थबडिशार्थझषॊपमस्य।
प्रॊत्खण्डितप्रचुरतालुकमस्तकस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥9॥
संसारभीकरकरीन्द्रकराभिघात निष्पिष्टमर्म वपुषः सकलार्तिनाश।
प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥10॥
अन्धस्य मॆ हृतविवॆकमहाधनस्य चॊरैः प्रभॊ बलिभिरिन्द्रियनामधॆयैः।
मॊहांधकारकुहरॆ विनिपातितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्॥11॥
लक्ष्मीपतॆ कमलनाभ सुरॆश विष्णॊ वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन पुष्कराक्ष।
ब्रह्मण्य कॆशव जनार्दन वासुदॆव दॆवॆश दॆहि कृपणस्य करावलम्बम्॥12॥
यन्माययॊजितवपुः प्रचुरप्रवाह मग्नार्थमत्र निवहॊरुकरावलम्बम्।
लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुव्रतॆन स्तॊत्रं कृतं सुखकरं भुवि शंकरॆण॥13॥

    
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Thursday, April 6, 2023

ऋतदेव RAT DEV (ऋग्वेद 4)

RAT DEV ऋतदेव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋतस्य हि शुरुधः सन्ति पूर्वीर्ऋतस्य धीतिर्वृजिनानि हन्ति। ऋतस्य श्लोको बधिरा ततर्द कर्णा बुधानः शुचमान आयोः॥
ऋत (सत्य, आदित्य अथवा यज्ञ) देव के पास बहुत जल है। ऋतदेव की प्रार्थना पाप को नष्ट करती है। ऋतदेव का बोध योग्य तथा दीप्तिमान् स्तुति वाक्य मनुष्यों के बधिर कर्ण (जिन्हें सुनाई नहीं देता) में भी प्रवेश पाता है।[ऋग्वेद 4.23.8]
ऋतु देव अनेक जल से परिपूर्ण हैं। उनकी प्रार्थना पापों को दूरस्थ करती है। उनको ज्ञान प्रदान करने वाली प्रार्थना बहरे व्यक्ति के भी कानों में पहुँच जाती है।
Rit Dev (Truth, Adity-Sun, Yagy) possess plenty of water. His prayer-worship destroys sin. Acknowledgement-awareness of Rit Dev leads to hearing by the deaf, who are devoted to prayers-worship.
ऋतस्य दृळ्हा धरुणानि सन्ति पुरूणि चद्रा वपुषे वपूंषि।
ऋतेन दीर्घमिषणन्त पृक्ष ऋतेन गाव ऋतमा विवेशुः॥
वयुष्मान् ऋतदेव के दृढ़, धारक, आह्लादक आदि अनेक रूप हैं। लोग ऋतदेव के निकट प्रभूत अन्न की इच्छा करते हैं। ऋतदेव द्वारा गौएँ दक्षिणा रूप से यज्ञ में प्रवेश करती हैं।[ऋग्वेद 4.23.9]
ऋतु देव के असंख्य रूप हैं। तपस्वीगण उनसे अन्न की विनती करते हैं। इनके द्वारा धेनु दक्षिणा के रूप में अनुष्ठान में पधारती हैं।
Rit Dev has several forms like determined, bearer and blissful. People-Humans request him for granting food grains. Cows come to the Yagy for Dakshina-donating (to Brahmans).
ऋतं येमान ऋतमिद्वनोत्यृतस्य शुष्मस्तुरया उ गव्युः।
ऋताय पृथ्वी बहुले गभीरे ऋताय धेनू परमे दुहाते॥
स्तोता लोग ऋतदेव को वशीभूत करने के लिए उनकी भक्ति करते हैं। ऋतदेव का बल शीघ्र ही जल कामना करता है। विस्तीर्णा तथा दुरवगाहा द्यावा-पृथ्वी ऋतदेव की है। प्रीति वायिका तथा उत्कृष्टा द्यावा-पृथ्वी ऋतदेव के लिए दुग्ध दोहन करती है।[ऋग्वेद 4.23.10]
स्तुति करने वाले ऋतुदेव को वश में करने के लिए उनका पूजन करते हैं। उनका पराक्रम जल की कामना करता है। पृथ्वी ऋतृदेव के लिए दूध दुहती है।
Those who wish to be blessed by Rit Dev, worship-pray him. His might desire rains, he produces rains. Both the heavens & the earth belong to Rit Dev. The earth draw milk-milch for Rat Dev.
हंसः शुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत्। नृषद्वरसदृतसव्द्योमसदब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतम्
हंस (आदित्य) दीप्त आकाश में अवस्थित रहते हैं। वसु (वायु) अन्तरिक्ष में अवस्थिति करते है। होता (वैदिकाग्नि) वेदीस्थल पर गार्हपत्यादि रूप से अवस्थिति करते हैं एवं अतिथिवत पूज्य होकर धर में (पाकादिसाधन रूप से) अवस्थिति करते हैं। ऋत (सत्य, ब्रह्म, यक्ष ) मनुष्यों के बीच में अवस्थान करते हैं, वरणीय स्थान में अवस्थान करते हैं, यज्ञस्थल में अवस्थान करते हैं एवं अन्तरिक्ष स्थल में अवस्थान करते हैं। वे जल में, रश्मियों में, सत्य में और पर्वतों में उत्पन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 4.40.5]
अवस्थित नभ में वायु अंतरिक्ष में और होता इत्यादि वेदी पर आते हैं। अदिति के समान पूजनीय होकर गृह में निवास करते हैं। ऋभु मनुष्यों में वरणीय स्थान तथा यज्ञ-स्थल में रहते हैं। वे नत, रश्मि, सत्य और शैलों में उत्पन्न हुए हैं।
Swans (Hans-Adity) stay-establish in the sky. Vasu Vayu stay in the space. The hosts-Ritviz stay at the Yagy site like the fire and honoured like Aditi. Rat dev (Truth, Brahm & Yaksh) establish between-amongest the humans & the space-sky. They are born in the waters, rays of light and the mountains.

    
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

Monday, February 20, 2023

DEV MATA देवमाता अदिति (ऋग्वेद RIG VED 5)

MOTHER OF DEMIGODS  
देवमाता अदिति
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
समस्त देव ‍कुलों को जन्म देने वाली अदिति देवियों की भी माता है। अदिति को लोकमाता भी कहा गया है। अदिति के पति ऋषि कश्यप ब्रह्मा जी के मानस पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। मान्यता के अनुसार इन्हें अनिष्ट नेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता कला कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी।
अदिति के पुत्र विवस्वान् से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करुष और पृषध्र नामक 10 श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। विवस्वान को ही सूर्य कहा गया है, जिनकी आकाश में स्थित सूर्य ग्रह से तुलना की गई। सूर्य के कई अन्य भी पुत्र थे। भगवान् श्री कृष्ण की माता देवकी अदिति का अवतार बताई जाती हैं। सूर्य नारायण के परिवार की विस्तृत कथा भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा साम्बपुराण में वर्णित है।
ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति से जन्मे पुत्रों को आदित्य कहा गया है। वेदों में जहाँ अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है, वहीं सूर्य को भी आदित्य कहा गया है।
अदिति के पुत्र धाता, मित्र, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु 12 आदित्य हैं।
ऋग्वेद संहिता, चतुर्थ मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- वामदेव,  गौतम, देवता :- इन्द्र,  अदिति, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अयं पन्था अनुवित्तः पुराणो यतो देवा उदजायन्त विश्वे।
अतश्चिदा जनिषीष्ट प्रवृद्धो मा मातरममुया पत्तवे कः॥
इन्द्र देव कहते हैं, "यह योनि निर्गमण रूप मार्ग अनादि और पूर्वापर लब्ध है। इसी योनि मार्ग से सम्पूर्ण देव और मनुष्य उत्पन्न हुए हैं; इसलिए आप गर्भ में प्रवृद्ध होकर इसी मार्ग द्वारा उत्पन्न होवें। माता की मृत्यु के लिए कार्य मत करो"। 
यह रास्ता अनादि समय से चलता आ रहा है, जिसके द्वारा विभिन्न भोगों और एक दूसरे को चाहने वाले नर-नारी ज्ञानीजन आदि रचित होते हुए प्रवृद्ध होते हैं। उच्चस्थ पदवी वाले समर्थवान व्यक्ति भी इस परम्परागत रास्ते से ही रचित होते हैं। हे मनुष्य! अपनी जननी माता को अनादर करने का प्रयास न करें।[ऋग्वेद 4.18.1]
Indr Dev said that the sequence of birth through the womb-vagina has been prevalent ever since. All demigods-deities appeared through this route. Establish yourself in the womb and prevent mother's death. 
नाहमतो निरया दुर्गर्तैत्तिरश्चता पार्श्वान्निर्गमाणि।
बहूनि मे अकृता कर्त्वानि युध्यै त्वेन सं त्वेन पृच्छै
वामदेव कहते हैं, "हम इस योनि मार्ग द्वारा नहीं निर्गत होंगे। यह मार्ग अत्यन्त दुर्गम है। हम पार्श्व भेद करके निर्गत होंगे। दूसरों के द्वारा अकरणीय बहुत से कार्य हमें करने हैं। हमें एक के साथ युद्ध करना है। हमें एक के साथ वाद-विवाद करना है"।[ऋग्वेद 4.18.2]
निर्गत :: बाहर आया हुआ, निःसृत; issued, come forth, gone forth.
निर्गतहम पूर्वोक्त योनि मार्ग से नहीं बच सकते। टेढ़े रास्ते से पशु-पक्षी के रूप में जन्म लेकर भी जीवन बड़े दुख से व्यतीत होता है। मैं चाहता हूँ कि इस फंदे से निकल जाऊँ। मुझे अनेक कष्ट न उठाने पड़ें। बार-बार का झगड़ा सब झमेला मात्र है। हमको संसार पथ के किनारे लगने का प्रयास करना चाहिये।
Vamdev said that he would not like to follow that route of birth, since it was very tough, intricate, difficult. We would prefer lateral route. We have to conduct several tasks deferred by others, undertake wars & have debate.
परायतीं मातरमन्वचष्ट न नानु गान्यनु नू गमानि।
त्वष्टुगृहे अपिबत्सोममिन्द्रः शतधन्यं चम्वोः सुतस्य
इन्द्र देव कहते हैं, "हमारी माता मर जायगी, तथापि हम पुरातन मार्ग का अनुधावन नहीं करेंगे, शीघ्र बहिर्गत होंगे"। (इन्द्र ने जो यथेच्छा चरण किए, उसी को वामदेव कहते हैं) इन्द्र देव अभिषवकारी त्वष्टा के घर में सोमाभिषव फलक द्वारा अभिषुत सोमरस का पान बलपूर्वक किया, वह सोमरस बहुत धन द्वारा क्रीत था।[ऋग्वेद 4.18.3]
जैसे अपनी जननी की मृत्यु पर कोई व्यक्ति कहता है कि मैं भी इसके पीछे ही चला जाऊँ या न जाऊँ। कालोपरांत वह ज्ञान-धैर्य आदि से शांत होकर पिता के घर में पुत्र बनकर रहता हुआ जीवन का उपयोग करता है। उसी प्रकार विवेकी होकर त्वष्टा के गृह में सोमपान करता है। अदिति ने उस शक्तिशाली इन्द्र को महीनों वर्षों तक धारण किया था। उस श्रेष्ठ इन्द्रदेव ने अनेक विशिष्ट कार्य किए। उनकी समानता उत्पन्न हुए अथवा आगे उत्पन्न होने वालों में से कोई नहीं कर सकता।
Indr Dev said that he would not discard that route which may kill his mother-Aditi. Indr Dev consumed the Somras at Twasta's house which was bought with a lot of money.
किं स ऋधक्कृणवद्यं सहस्रं मासो जभार शरदश्च पूर्वीः।
नही न्वस्य प्रतिमानमस्त्यन्तर्जातेषूत ये जनित्वाः
"अदिति ने इन्द्र देव को अनेक मासों और अनेक संवत्सरों तक गर्भ में धारित किया। इन्द्र देव ने यह विरुद्ध कार्य क्यों किया अर्थात गर्भ में बहुत दिनों तक रहकर इन्द्र देव ने माता अदिति को कष्ट दिया"। इन्द्र देव के ऊपर किये गये आक्षेप को सुनकर अदिति कहती हैं, "हे वामदेव! जो उत्पन्न हुए हैं और जो देवादि उत्पन्न होंगे, उनके साथ इन्द्र की तुलना कदापि नहीं हो सकती"। [ऋग्वेद 4.18.4]
अदिति ने उस शक्तिशाली इन्द्र को महीनों वर्षों तक धारण किया था। उस श्रेष्ठ इन्द्रदेव ने अनेक विशिष्ट कार्य किए। उनकी समानता उत्पन्न हुए अथवा आगे उत्पन्न होने वालों में से कोई नहीं कर सकता।
Vamdev accused Indr Dev of staying in the womb of his mother for many months and years, torturing her. Aditi, his mother replied that those who were born and those were going to take birth could not be compared with Indr Dev.
अवद्यमिव मन्यमाना गुहाकरिन्द्रं माता वीर्येणा न्यृष्टम्।
अथोदस्थात्स्वयमत्कं वसान आ रोदसी अपृणाज्जायमानः
गह्वर रूप सूतिका गृह में उत्पन्न इन्द्र देव को निन्दनीय मानकर माता ने उन्हें अतिशय सामर्थ्यवान किया। अनन्तर, उत्पन्न होते ही इन्द्र देव ने अपने ओज को धारित करके खड़े हुए और द्यावा-पृथ्वी को अपने तेज से परिपूर्ण कर दिया।[ऋग्वेद 4.18.5]
गह्वर :: गड्ढा, बिल, विवर, गुफा, अँधेरा एवं गहरा स्थान, देवालय, मंदिर, गहरा, घना, दुर्गम; deep, precipice, chasm.
अदिति ने उस इन्द्र को गति देने में समर्थ मानते हुए अदृश्य रूप से धारण किया और फिर इन्द्र देव ने अपनी ही सामर्थ्य से रचित तेज को धारण करते हुए सर्वोच्च वर्ग और आकाश-पृथ्वी दोनों को युक्त किया।
Deeming it disreputable that he should be brought forth in secret, his mother Aditi endowed Indr Dev with extraordinary vigour; therefore, as soon as born he sprung up of his own accord, invested with splendour and filled both heaven and earth.
Mother Aditi nourished Indr Dev secretly, considering him to be capable, keeping him invisible and granted him extraordinary vigour. Thereafter, Indr Dev lit the earth and sky-heaven with his aura-radiance as soon he took birth.
एता अर्षन्त्यललाभवन्तीर्ऋतावरीरिव संक्रोशमानाः।
एता वि पृच्छ किमिदं भनन्ति कमापो अद्रिं परिधिं रुजन्ति
"अ-ल-ला शब्द करती हुई अथवा हर्ष ध्वनी करती हुई ये जलवती नदियाँ इन्द्र देव के महत्त्व को प्रकट करने के लिए हर्ष पूर्वक बहुविध शब्द करती हुई बहती है। हे ऋषि! आप इन नदियों से पूछो कि ये क्या बोलती है? यह शब्द इन्द्र देव के माहात्म्य का सूचक है। मेरे पुत्र इन्द्र देव ने ही उदक के आदरक मेघ को विदीर्ण करके जल को प्रवर्तित किया।[ऋग्वेद 4.18.6]
अत्यन्त ध्वनि करती जल से पूर्ण सरिताएँ इन्द्र के महत्त्व को प्रकट करती हुई कहती है कि हे विद्वान! यह सरिताएँ क्या कहती हैं, यह इनसे पूछो। क्या यह इन्द्र देव का यशोगान करती हैं। इन्द्र का यशोगान रोकने वाले मेघ को फाड़कर जल की वर्षा की थी।
The river show their pleasure, generating several thrilling sounds depicting the significance of Indr Dev. Hey Rishi! ask these river what they speak? This statement signify the greatness-importance of Indr Dev. Her son-Indr Dev teared into the clouds and produced rains.
किमु ष्विदस्मै निविदो भनन्तेन्द्रस्यावद्यं दिधिषन्त आपः।
ममैतान्पुत्रो महता वधेन वृत्रं जघन्वाँ असृजद्वि सिन्धून्
वृत्र वध से ब्रह्म हत्या रूप पाप को प्राप्त करने वाले इन्द्र देव को वेद वाणी क्या कहती है? जल फेन रूप से इन्द्र देव के पाप को धारित करता है। मेरे पुत्र इन्द्र देव ने महान् वज्र से वृत्रासुर का वध किया और इन नदियों को प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 4.18.7]
वृत्र की हत्या करने पर इन्द्र देव को ब्रह्म हत्या का जो पाप लगा, उस सम्बन्ध में वेद वाणी क्या कहती है? इन्द्र देव के उस पाप को जल ने फेन के रूप में धारण किया। इन्द्र देव ने अपने श्रेष्ठ वज्र द्वारा वृत्र को विदीर्ण कर सरिताओं को प्रवाहमान किया।
What is the opinion of Ved regarding the slaying of Vratr leading to the sin of Brahm Hatya-murder of a Brahman? The water bears the foam over it, as the sin of Indr Dev. Aditi's son Indr dev killed Vrata Sur and let the rivers flow.
ममचन त्वा युवतिः परास ममचन त्वा कुषवा जगार।
ममचिदापः शिशवे ममृड्युर्ममच्चिदिन्द्रः सहसोदतिष्ठत्
वामदेव कहते हैं, “आपकी युवती माता अदिति ने हर्षित होकर आपको उत्पन्न किया। कुषवा नाम की राक्षसी ने प्रमत्त होकर आपको ग्रास बनाया। हे इन्द्र देव! उत्पन्न होने पर आपको जल समूह ने प्रमत्त होकर सुखी किया"। इन्द्र देव ने हर्षित होकर अपने वीर्य के प्रभाव से सूतिका गृह में राक्षसी को निगलने का प्रयास किया था।[ऋग्वेद 4.18.8]
हे इन्द्र देव! अत्यन्त प्रसन्नता वाली नारी अदिति ने ममतामय होकर तुम्हें जन्म दिया। कुषवा नाम की राक्षसी से तुम्हें अपना ग्रास बनाने का प्रयत्न किया। तुम्हारे उत्पन्न होते ही सुख प्रदान किया। तुम अपनी क्षमता से सूतिका गृह से उस राक्षसी को मार देने को तैयार हुए।
Vam Dev addressed Indr Dev and said that his young mother gave him birth. The intoxicated demoness Kushva engulfed him. Hey Indr Dev! Water bodies made you happy as soon as you were born. Indr Dev became happy and tried to swallow the demoness.
ममच्चन ते मघवन्व्यंसो निविविध्वाँ अप हनू जघान।
अधा निविद्ध उत्तरो बभूवाञ्छिरो दासस्य सं पिणग्वधेन
हे धनवान इन्द्र देव! व्यंस नामक राक्षस ने प्रमत्त होकर आपके हनुद्वय (चिबुक के अधोभाग) को विद्ध करके अपहृत किया। हे इन्द्र देव! इसके अनन्तर अधिक बलवान होकर आपने व्यंस राक्षस के सिर को वज्र द्वारा पीस डाला।[ऋग्वेद 4.18.9]
हे समद्धि के स्वामी इन्द्रदेव! मद से परिपूर्ण होकर व्यंस नामक दैत्य ने तुम्हारी ठोढ़ी के आधे हिस्से में आघात पहुँचाया, जब तुमने शक्ति से व्यंस के सिर को वज्र से अच्छी तरह से कुचल डाला।
Hey wealthy-rich Indr Dev! The demon called Vyans struck your chin, under intoxication and abducted you. Thereafter, you became mighty and powdered his head with Vajr.
गृष्टिः ससूव स्थविरं तवागामनाधृष्यं वृषभं तुम्रमिन्द्रम्।
अरीळ्हं वत्सं चरथाय माता स्वयं गातुं तन्व इच्छमानम्
सकृत्प्रसूता (एक बार ब्यायी हुई) गौ जिस प्रकार से बछड़े का प्रसव करती है, उसी प्रकार इन्द्र की माता अदिति ने अपनी इच्छा से सञ्चरण करने के लिए इन्द्र देव को प्रसव है। इन्द्र देव अवस्था में वृद्ध, प्रभूत बलशाली, अनभिभवनीय, अभीष्टवर्षी, प्रेरक, अनभि स्वयं गमनक्षम और शरीराभिलाषी हैं।[ऋग्वेद 4.18.10]
जैसे गाय शक्तिशाली बछड़े को उत्पन्न करती है, वैसे ही इन्द्र की जननी अदिति अपनी इच्छा पर चलने वाले, सभी शक्तियों से सम्पन्न, सर्व विजेता इन्द्र को जन्म देती है। वह इन्द्र सभी के प्रेरक, अविनाशी, सर्वव्याप्त, अभीष्टों की वर्षा करने वाले एवं कर्मों का फल देने में सक्षम हैं।
The way a cow give birth to the calf, Mata Aditi channelized-centralised her powers and gave birth to Indr Dev. Indr Dev is possessor of might, power, desires granting, inspiring, all pervading-dynamic and capable of awarding the rewards of endeavours-Karm.
उत माता महिषमन्ववेनदमी त्वा जहति पुत्र देवाः।
अथाब्रवीद् वृत्रमिन्द्रो हनिष्यन्त्सखे विष्णो वितरं विक्रमस्व
इन्द्र की माता अदिति ने महिमावान इन्द्र देव से पूछा, "हे मेरे पुत्र इन्द्र देव, अग्नि देव आपको त्याग रहे हैं"। इन्द्र देव ने श्री हरी विष्णु से कहा, "हे मित्र श्री विष्णु! आप यदि वृत्रासुर को मारने की इच्छा करते हैं, तो अत्यन्त पराक्रमशाली होवें"।[ऋग्वेद 4.18.11]
माता अदिति श्रेष्ठ समृद्धि वाले तुम इन्द्र देव की अभिलाषा करती हुई कहती हैं कि हे पुत्र इन्द्र देव! यह सभी विजयाभिलाषी पराक्रमी तुम्हें ग्रहण होते हैं। तब इन्द्रदेव ने कहा, हे विष्णो! तुम वृत्र को वध करने की कामना करते हुए अत्यन्त पराक्रमी बनो।
Indr Dev's mother Mata Aditi,  inquired of the mighty Indr Dev, whether the deities, Agni Dev etc. had deserted him? Indr Dev asked Shri Hari Vishnu if he purposed to slay Vrata Sur and become mighty possessing great valour.
कस्ते मातरं विधवामचक्रच्छयुं कस्त्वामजिघांसच्चरन्तम्।
कस्ते देवो अधि मार्डीक आसीद्यत्प्राक्षिणाः पितरं पादगृह्य
हे इन्द्र देव! आपके अतिरिक्त किस देव ने माता को विधवा किया! आप जिस समय शयन कर रहे थे अथवा जाग रहे थे; उस समय किसने आपको मारना चाहा? कौन देवता देने में आपकी अपेक्षा अधिक हैं? किस कारण वश आपने पिता के दोनों चरणों को पकड़कर उनका वध किया?[ऋग्वेद 4.18.12]
हे इन्द्र देव! तुम्हारा कौन सा शत्रु पैरों को पकड़ सकता कर तुम्हारे पिता को
मारकर माता की विधवा बना सकता है? तुमको सोते समय या चलते समय कौन मार सकता है? तुम्हारे अतिरिक्त ऐसा कौन सा देवता है, जो ऊँची पदवी पा सकता है।
Who has made your mother a widow!? Who has sought to slay you while the sleeping or walking!? Which deity has been more gracious than you since you slained the father, having seized him by the foot?
Hey Indr Dev! Who can kill your father holding his legs making your mother a widow!? Who can kill while moving or sleeping?! Which deity other than you can attain a high post, designation?!
अवर्त्या श्रुन आन्त्राणि पेचे न देवेषु विविदे मर्डितारम्।
अपश्यं जायाममहीयमानामधा मै श्येनो मध्वा जभार
हमने भूख से पीड़ित होकर कुत्ते की अँतड़ी को पकाकर खाया। हमने देवों के बीच में इन्द्र देव के अतिरिक्त अन्य देव को सुख दायक नहीं पाया। हमने अपनी पत्नी को असम्मानित होते देखा। इसके अनन्तर इन्द्र देव हमारे लिए मधुर जल लावें।[ऋग्वेद 4.18.13]
हमने निर्धनता वश कुत्ते की आत्रों को भी पकाया, तब तुम्हारे लिए देवों में इन्द्रदेव के अतिरिक्त कोई भी सुख प्रदान करने वाला नहीं हुआ। जब हमने अपनी पत्नी को अपमानित होते देखा, तब इन्द्र देव ने ही हमारी सुरक्षा की और मधुर रस प्रदान किया।
We cooked & ate the intestine of the dog due to intolerable hunger. We did not find any other demigod-deity who could grant us comfort. We saw our wife being insulted. Indr Dev granted us solace and offered us water-sweep sap.(21.02.2023)
यो अश्वस्य दधिक्राव्णो अकारीत्समिद्धे अग्ना उषसो व्युष्टौ।
अनागसं तमदितिः कृणोतु स मित्रेण वरुणेना सजोषाः
जो याजकगण उषा के प्रकाशित होने पर अर्थात प्रभात होने पर और अग्नि देव के समिद्ध होने पर अश्व रूप दधिक्रा की प्रार्थना करते हैं, मित्र, वरुण और अदिति के साथ दधिक्रादेव उस याजकरण को निष्पाप करें।[ऋग्वेद 4.39.3]
जो यजमान उषाकाल में अग्नि प्रज्जवलित होने पर घोड़े रूप दधिक्रा का पूजन करते हैं, उनकी सखा, वरुण, अदिति और दधिक्रा पापों से बचावें।
Those Ritviz-hosts, who worship Dadhikra Dev; when Agni Dev is being ignited with the day break, he makes them sinless in association with Mitr, Varun & Aditi.
हंसः शुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत्। नृषद्वरसदृतसव्द्योमसदब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतम्
हंस (आदित्य) दीप्त आकाश में अवस्थित रहते हैं। वसु (वायु) अन्तरिक्ष में अवस्थिति करते है। होता (वैदिकाग्नि) वेदीस्थल पर गार्हपत्यादि रूप से अवस्थिति करते हैं एवं अतिथिवत पूज्य होकर धर में (पाकादिसाधन रूप से) अवस्थिति करते हैं। ऋत (सत्य, ब्रह्म, यक्ष ) मनुष्यों के बीच में अवस्थान करते हैं, वरणीय स्थान में अवस्थान करते हैं, यज्ञस्थल में अवस्थान करते हैं एवं अन्तरिक्ष स्थल में अवस्थान करते हैं। वे जल में, रश्मियों में, सत्य में और पर्वतों में उत्पन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 4.40.5]
अवस्थित नभ में वायु अंतरिक्ष में और होता इत्यादि वेदी पर आते हैं। अदिति के समान पूजनीय होकर गृह में निवास करते हैं। ऋभु मनुष्यों में वरणीय स्थान तथा यज्ञ-स्थल में रहते हैं। वे नत, रश्मि, सत्य और शैलों में उत्पन्न हुए हैं।
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स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः।
बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः
कल्याण के लिए हम लोग वायु देव की प्रार्थना करते हैं और सोमरस का भी स्तवन करते हैं। सोम निखिल लोक के पालक हैं। सब देवों के साथ मन्त्र पालक बृहस्पति देव की प्रार्थना कल्याण के लिए करते हैं। अदिति के पुत्र देवगण अथवा अरुणादि द्वादश देव हम लोगों के लिए कल्याणकारी हों।[ऋग्वेद 5.51.12]
We worship Vayu Dev for our welfare and extract Somras for him. Som nourish-nurture the whole world. We worship Brahaspati Dev with all demigods-deities, who is the supporter of Mantr Shakti, for our welfare. Let the son of Aditi Demigods and the twelve Adity Gan be helpful to us i.e., resort to our welfare. 
देवेभिर्देव्यदितेऽरिष्टभर्मन्ना गहि। स्मत्सूरिभिः पुरुप्रिये सुशर्मभिः
हे देवताओं! अहिंसित-पोषक और बहुतों द्वारा प्रीयमाणा माता अदिति, प्राज्ञ और सुख देने वाले देवताओं के साथ सुन्दर रूप से हमारे निकट आगमन करें।[ऋग्वेद 8.18.4]
प्रीयमाणा :: प्रिय, स्नेही; beloved.
Hey demigods-deities! Mata Aditi loved by many, non violent & caring-nursing, enlightened and comforts granting, should come to us with demigods-deities.
ते हि पुत्रासो अदितेर्विदुर्द्वषांसि योतवे। अंहोश्चिदुरुचक्रयोऽ नेहसः
माता अदिति के वे मित्रादि पुत्र गण द्वेषियों को पृथक करना जानते हैं। विस्तीर्ण कर्मकर्ता और रक्षक लोग हमें पापाचारों से अलग करना जानते हैं।[ऋग्वेद 8.18.5]
Friends and sons of Mata Aditi know how to alienate the envious. Performers of broad-great jobs & protectors know how to alienate us from sinful behaviour 
अदितिर्नो दिवा पशुमदितिर्नक्तमद्वयाः। अदितिः पात्वंहसः सदावृधा
दिन में हमारे पशुओं की रक्षा माता अदिति करें, सदैव एक समान रहने वाली माता अदिति रात्रि में भी हमारे पशुओं की रक्षा करें। सदैव वर्द्धनशील रक्षणों द्वारा हमें पापकर्म से बचावें।[ऋग्वेद 8.18.6]
Let Mata Aditi, always remaining alike-composed, protect our cattle-animals during the day & night. She should protect us with always-ever increasing protection means-measures from sins.
उत स्या नो दिवा मतिरदितिरूत्या गमत्। सा शान्ताति मयस्करदप स्त्रिधः
स्तुति योग्य वे माता अदिति रक्षा के साथ दिन में हमारे पास आवें। वे शान्ति दाता हमें शान्ति प्रदान करते हुए सुख प्रदान करें। वे हमारी बाधाओं को दूर करें।[ऋग्वेद 8.18.7]
Worshipable Mata Aditi should come to us during the day, for our protection. She should grant us peace, tranquillity, solace added with comforts. She should remove our hurdles.

    
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