Thursday, November 26, 2015

अन्न FOOD STUFF (ऋग्वेद 1)

 OCEAN CHURNING समुद्र मंथन
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (187) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अन्न,  छन्द :- अनुष्टुप, बृहती, गायत्री।
पितुं नु स्तोषं महो धर्माणं तविषीम्। 
यस्य त्रितो व्योजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत्
मैं क्षिप्रकारी होकर विशाल, सबके धारक और बलात्मक पितु (अन्न) की स्तुति करता हूँ। उनकी ही शक्ति से इन्द्रदेव ने वृत्रासुर के अंगों को काटकर उसका वध किया।[ऋग्वेद 1.187.1]
अब मैं शक्तिशाली अन्न का पूजन करता हूँ, जिसकी शक्ति से "त्रित" ने वृत्र के जोड़ को तोड़कर समाप्त कर डाला।
I quickly pray to food grain-food stuff, which supports all, give strength. With the strength of which Dev Raj Indr chopped the organs of Vrata Sur. 
स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वा ववृमहे। अस्माकमविता भव
हे स्वादु पितु, हे मधुर पितु! हम आपकी सेवा करते हैं। आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.187.2]
हे सुस्वादु अन्न! तू मधुर है, हमने तेरा वरण किया है, तू हमारा रक्षक हो।
Hey tasty, sweet food! We serve-worship you. Protect us.  
उप नः पितवा चर शिवः शिवाभिरूतिभिः। 
मयोभुरद्विषेण्यः सखा सुशेवो अद्वयाः
हे पितु आप मंगलमय है। कल्याणवाही आश्रयदान द्वारा हमारे पास आकर हमें सुख प्रदान करें। हमारे लिए आपका रस अप्रिय न हो। आप हमारे लिए मित्र और अद्वितीय सुखकर बने।[ऋग्वेद 1.187.3]
हे अन्न! तू कल्याण स्वरूप है। अपनी सुरक्षाओं से युक्त हमारी तरफ आ। तू स्वास्थ्य दाता हमको हानिकारक न हो और अद्वितीय सखा के समान सुखकर रहो।
Hey food, you are auspicious! Being our benefactor, come and provide us pleasure. Hey protector of our health! You should be like a friend to us & we should not be harmed. 
BENEFACTOR :: दान देने-करनेवाला; grantor, presenter, conducive, helpful, accommodating, promoter, instrumental.
तव त्ये पितो रसा रजांस्यनु विष्ठिताः। दिवि वाताइव श्रिताः
हे पितु! जिस प्रकार से वायु देवता अन्तरिक्ष का आश्रय प्राप्त किये हुए हैं, उसी प्रकार ही आपका रस समस्त संसार के अनुकूल व्याप्त है।[ऋग्वेद 1.187.4] 
हे अन्न! पवन के अंतरिक्ष में आश्रय लेने के समान तेरा इस संसार में फैला है।
Hey food! The way in which the air is dependent over the sky, your sap is favourable to the whole universe.
तव त्ये पितो ददतस्तव स्वादिष्ठ ते पितो। 
प्र स्वाद्मानो रसानां तुविग्रीवाइवेरते
हे स्वादुतम पितु! जो लोग आपकी प्रार्थना करते हैं, वे भोक्ता हैं। आपकी कृपा से वे आपको दान देते हैं। आपके रस का आस्वादन करने वालों की गर्दन ऊँची होती है।[ऋग्वेद 1.187.5] 
हे पालक और सुस्वादु अन्न! तुम्हारा दान करने वाले तुम्हारी दया चाहते हैं। तुम्हारे सेवन कर्त्ता तुम्हारी अर्चना करते हैं। तुम्हारी प्रार्थना रस आस्वाद न करने वालों की ग्रीवा को उन्नत और अटल करता है।
Hey tastiest food grain! Those who donate you, desire your blessings. Its your mercy that they donate you. Those who taste your sap, keep their neck high and determined-firm.
त्वे पितो महानां देवानां मनो हितम्। 
अकारि चारु केतुना तवाहिमवसावधीत्
हे पितु! महान् देवों ने आप में ही अपने मन को निहित किया है। आपको तीव्र बुद्धि और आश्रय द्वारा ही अहि का वध किया गया।[ऋग्वेद 1.187.6]
हे अन्न! श्रेष्ठ देवों का हृदय तुझमें ही रखा है। तुम्हारी शरण में सुन्दर कार्य किये जाते हैं। तुम्हारी सुरक्षा से ही इन्द्रदेव ने वृत्र को समाप्त किया था।
Hey food grain! Great demigods-deities concentrated their innerself in you. Its your sharp intellect and protection that Ahi was killed. 
यददो पितो अजगन्विवस्व पर्वतानाम्। 
अत्रा चिन्नो मधो पितोऽरं भक्षाय गम्याः
जिस समय मेघ प्रसिद्ध जल को लाते हैं, उस समय हे मधुर पितु हमारे सम्पूर्ण भोजन के लिए हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 1.187.7]
हे अन्न! बादलों में जो विख्यात जल रूप धन है, उसके द्वारा मधुर हुए हमारे सेवन के लिए ग्रहण हो।
Hey sweet food grain! Let all sorts of food grains come to us for food (lunch & dinner), when the clouds bring water.
यदपामोषधीनां परिंशमारिशामहे। वातापे पीव इद्भव
हम यथेष्ट जल और जौ आदि औषधियों को खाते हैं, इसलिए हे शरीर! आप स्थूल बनें।[ऋग्वेद 1.187.8]
हे अन्न! हम जलों और दवाइयों का कम अंश सेवन करते हैं। तू वृद्धि को प्राप्त हो।
Hey body! We consume sufficient barley and water to keep fit, healthy, handsome. 
यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे। वातापे पीव इद्भव
हे सोम देव! आपके जौ आदि और दुग्ध आदि से मिश्रित अंश का हम भक्षण करते हैं। इसलिए हे शरीर! आप स्थूल बनें।[ऋग्वेद 1.187.9] 
हे सोम! हम तुम्हारे दूध से मिश्रित खिचड़ी रूपी अन्न का सेवन करते हैं। अतः तू वृद्धि को प्राप्त हो।
Hey Som Dev-Moon! We consume barley and milk to keep our fit & fine. 
करम्भ ओषधे भव पीवो वृक उदारथिः। वातापे पीव इद्भव
हे करम्भ औषधि! आप स्थूलता सम्पादक, रोगनिवारक और इन्द्रियोद्दीपक बनें। हे शरीर! आप स्थूल बनें।[ऋग्वेद 1.187.10] 
करम्भ ::  दही चावल या जौ को मिलाकर बनाया गया भोज्य पदार्थ, रम्भा का भाई, महिसासुर का पिता, कलिंग की राजकुमारी-देवातिथि की माता जिसका विवाह पुरुवंश में हुआ, शकुनि का पुत्र-देवरथ का पिता, एक औषधि का नाम; a preparation of curd mixed with rice or barley-meal. 
हे औषधि रूप अन्न! तू शरीर उत्पत्ति के अनुकूल, पुष्टिप्रद, व्याधि नाशक और उद्दीपन करने वाला है। तू वृद्धि को प्राप्त हो।
Hey Karambh-a medicine! You grant us a strong body, remove diseases and energise the sense organs. Hey body! You should become strong-healthy.
तं त्वा वयं पितो वचोभिर्गावो न हव्या सुषूदिम। 
देवेभ्यस्त्वा सधमादमस्मभ्यं त्वा सधमादम्
हे पितु! गौवों के पास जिस प्रकार हव्य गृहीत होता है, उसी प्रकार से ही आपके पास स्तुति द्वारा हम रस ग्रहण करते हैं। यह रस देवों को ही नहीं, हमें भी बलवान् बनाता है।[ऋग्वेद 1.187.11] 
हे अन्न! धेनु जैसे सेवनीय दुग्ध को बहाती है वैसे ही तुमसे वंदना द्वारा हम रस प्राप्त करते हैं। तू देवों को हर्षित करने वाला हमको भी संतुष्ट करता है।
Hey grains! The way the cow give us milk, you give us sap-extract which we obtain by worshiping you. This extract should make strong like the demigods-deities. 
A Hindu farmer worship the crops. The first lot is worshipped as soon it arrives home. Sugar cane too, is worshipped. 
    
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